चैतन्य लहरी रा ३ नवम्बर - दिसम्बर 2007 ि ा चै त न्य लह री प्रकाशक निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी,. पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 - 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिजाइनर्ज 292/23 ओंकार नगर बी' त्रीनगर दिल्ली- 110035 मोबाइल : 9212238008 ़ आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्रॉसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी पॉड रोड कोथरुड पुणे - 411 029 फोनः 020-25285232 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110034 फोन : 011- 653568।। चै त न्य ल ह री अंक : 11 - 12, 2007 VISHWA SKMAALA PUREY इस अंक में परमेश्वरी माँ से वार्तालाप (भाग-1) कबेला, लीग्रे, इटली जून-2007 ं परमेश्वरी माँ से वार्तालाप (भाग-2) जुलाई-अगस्त-2007 'अपेक्षा' (Expectations) (बाबा मामा), नागपुर-1999 10 निर्मल-गीतिका 11 महाकाली पूजा, (म्यूनिक- 8.10.1987) 12 दिवाली पूजा, कोमो 25.10.1987 19 हम जन्म दिवस पूजा-जुहु, बम्बई-22.3.1984 30 श्री आदिशक्ति पूजा- कबेला-6.6.1993 33. नत DHARA ENIVERSA RELIGION 5. कार ाभ ा ा ्रा नब नवरात्रि पूजा, आस्ट्रेलिया-2007 परमेश्वरी माँ से वार्तालाप (भाग-1) कवेला, लीग्रे, इटली जून-2007 बताए। ये इस प्रकार हैं:- जून के अन्तिम दस दिन कवेला, लीग्र. इटली में उनके महल में श्रीमाताजी के समक्ष होना तथा उनके परमेश्वरी सानिध्य के दिव्यक्षणों का अनुभव करना वास्तव में आश्चर्यजनक आशीर्वाद था। ये असाधारण वार्तालाप भिन्न दिनों और लिए हार्दिक प्रेम के कारण, सबसे पहले श्रीमाताजी भिन्न क्षणों में हुए परन्तु पूरे वार्तालाप का प्रसंग एक ही है। संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्मे तथा पढ़े-लिखे लोगों में सहजयोग का विकास न हो पाना, इन वार्ताओं की मुख्य विषयवस्तु थी। इसकी ब्याख्या अमरीकन समाज की मुख्यधारा के रूप में भी की जा सकती है। वार्तालाप प्रश्नोत्तरी के रूप में हुई, इसकी सहजयोगियों की संख्या 10 गुनी होनी चाहिए। , यए श्रीमाताजी का विवेचन भारत के बाद अमरीका ही वह पहला देश 1. था जिसके हित की चिन्ता और वहाँ के साधकों के वहाँ गईं। अमरीका की 30 करोड़ की आबादी में सहजयोगियों की संख्या लगभग 1200 है। ये संख्या तीन करोड़ की आबादी वाले देश इटली के सहजयोगियों के बराबर है। इटली जैसे देश के अनुपात तक पहुँचने के लिए भी अमरीका में 2. रूपरेखा का सार, निम्नलिखित पंक्तियों में प्रस्तुत अमरीका में यद्यपि आध्यात्मिक धरोहर का 3. करने का प्रयत्न किया गया है। अभाव है, परन्तु पश्चिमी यूरोप और रूस में भी आध्यात्मिक धरोहर का प्राचुर्य नहीं है, फिर भी वहाँ पर सहजयोग का विकास सन्तोषजनक है। मूलत: श्रीमाताजी इस विषय में अत्यन्त स्पष्ट थीं और स्पष्ट हैं कि यदि अमरीका में सहजयोग नहीं फैलता, (अमरीका अर्थात अमरीका की मुख्यधारा) तो स्पष्ट रूप से इस बात का खूतरा बना हुआ है कि यह देश स्वयं ही स्वयं को नष्ट कर देगा। विश्वस्तर पर अमरीका की भूमिका को देखते हुए शेष विश्व पर भी ऐसी किसी घटना के परिणाम समान रूप से चिन्ताजनक होंगे। या इस विषय पर भी बातचीत हुई कि आत्मसाक्षात्कार लेने के पश्चात् भी क्यों केवल थोड़े से लोग हैं, परन्तु इसके पश्चात् सहजयोग छोड़ देते हैं। महत्वपूर्ण बात तो ये है कि इन राष्ट्रों की जनता की अमरीका में सहजयोग के सीमित विकास के कारण अनुवर्ती कार्यक्रम में सम्मिलित होते मुख्यधारा ने अमरीका की अपेक्षा श्रीमाताजी को कहीं अधिक स्वीकार किया है, परन्तु अमरीका के अधिकतर भागों में विकास अव्यवस्थित रूप में है और स्पष्टत: मुख्यधारा इससे बाहर है। अन्य राष्ट्ं भी प्रस्तुत किए गए। परन्तु इनका विवरण इस रिपोर्ट में नहीं दिया जा रहा है। अपने अद्वितीय प्रेम एवं धैयपूर्वक श्रीमाताजी ने इन कारणों को पूर्णरूपेण तथा इनके कुछ भागों को स्वीकार किया। जो भी हो उन्होंने अपनी अद्वितीय शैली में स्थिति का निष्कर्ष निकाला और इसके कुछ समाधान से आए हुए लोगों का सहजवोग में आने का वास्तव में अधिक महत्व नहीं है क्योंकि इस विकास में अमरीका के मूल निवासी सम्मिलित नहीं हैं। अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 70-80 के दशकों में भारत के इसे इतना महत्वपूर्ण बनाता है?" इन्हीं सन्देशों के साथ, तब उन्हें अमरीका की मूलधारा तक पहुँचने 4. लगभग 12 कुगुरु अमरीका आए और उन्हें धोखा दिया तथा आध्यात्मिक पथप्रदर्शन के नाम पर उन्हें का प्रयत्न करना चाहिए। भ्रमित किया। इसके कारण सभी भारतीय धारणाओं के विकास को क्षति पहुँची, विशेषरूप से आध्यात्मिक विकास के क्षेत्र में हानि हुई जिसके कारण अमरीका और पहचानना होगा। केवल भारतीय सहजयोगियों के लोग सहजयोग को भी शंका की दृष्ट से देखने लगे हैं। इस प्रक्रिया में कुगुरुओं ने वहाँ के लोगों देखेंगे तो ये आसानी से सम्भव न होगा। को भ्रमित करते हुए हजारों करोड़ों की व्यक्तिगत सहजयोग के लाभ पहचानने के लिए, सामान्य अमरीकनों को अपने जैसे लोगों को देखना 9. को यदि वे सहजयोग का प्रचार-प्रसार करते हुए अतः अमरीका के सहजयोगियों को चाहिए कि इस कार्य का नेतृत्व सम्भालने का प्रयत्न करें। भारतीयों सहित अन्य सभी राष्ट्रों (धर्मों) के लोग इस महान उद्यम के लिए सच्ची सहायक भूमिका निभा सकते हैं। 10. सम्पदा एकत्र कर ली। इस तथ्य ने भारत से आने वाली आध्यात्मिकता के सभी पक्षों के प्रति गहन अविश्वास की धारणा को दृढ़ एवं स्थापित किया। यद्यपि अमरीका के लोग जीवन की अधिकतर चीजों को भौतिक दृष्टि से देखते हैं फिर भी उन्हें 5. अमरीका के भिन्न नगरों में सहज पाठशालाएं खोलना ताकि अधिक से अधिक बच्चे आ सकें। सहज प्रचार-प्रसार की आदर्श विधि होगी। सहज-स्कूलों में जाने वाले बच्चे उस वातावरण से यह महसूस करना होगा कि जीवन के सभी आवश्यक तत्व नि:शुल्क उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए प्राणवायु! अमरीका के लोगों को अपने परिवारों से 11. 6. उतना प्रेम एवं सूझ-बूझ प्राप्त नहीं होती जितनी अन्य संस्कृतियों से सम्बन्धित लोगों को होती हैं- जैसे भारत के लोगों को। अमरीका में सहजयोग के बहुत प्रसन्न हैं। उनकी प्रसन्नता का उपयोग यदि उन परिवारों के बच्चों को आकर्षित करने के लिए किया जाए जो सहजयोगी नहीं हैं, तो यह अमरीकन परिवारों में सहजयोग पहुँचाने का अद्भुत मार्ग होगा। माता-पिता जब देखेंगे कि उनके बच्चे सहज-स्कूल में (और वहाँ की संस्कृति) बहुत सन्तुष्ट एव विकास के लिए आवश्यक है कि वहाँ के लोग उस प्रेम एवं सहृदता को प्राप्त करें जो उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन में नहीं प्राप्त हुए है । स्वभाव से भी अमरीका के लोग उच्च 7. प्रसन्न हैं, तो उनके स्वत: सहज स्वीकार करने की सम्भाव्यता बहुत अधिक बढ़ जाएगी। सत्यसाधक नहीं हैं, सम्भवत: भौतिक सम्पदा के प्राचुर्य के कारण। परन्तु यह धारणा भारत जैसे देश के बिल्कुल विपरीत है जहाँ वैभवशाली लोग भी अन्त में श्रीमाताजी ने कहा कि मैं अमरीका आऊंगी। उन्होंने कहा कि मैं अभी प्रयत्न करना नहीं छोड़ूंगी। फिर भी उन्होंने बार-बार प्रश्न पूछा, आप ही बताएं कि अमरीका की जनता को मैं क्या बताऊं जिससे वे सहजयोग स्वीकार कर ले?" उच्च-सत्यसाधक हैं। अमरीका के मूलयोगियों (बाहर से आए योगी नहीं) को भलिभांति समझकर उन कारणों का अवलोकन करना होगा कि वे सहजयोग की ओर आकर्षित क्यों हुए और अभी तक वे सहजयोग में बने ৪. निष्कर्ष के रूप में यह हम सबके लिए हुए क्यों हैं? उन्हें स्वयं से एक मूलप्रश्न पूछना चुनौती है। श्रीमाताजी अमरीका आना चाहती हैं। होगा:- " श्रीमाताजी और सहजयोग में ऐसा क्या है केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि उन सबके लिए जो इसे इतना अद्वितीय बनाता है और मेरे जीवन में जिन्होंने उनका प्रकाश नहीं देखा है। ৩ परमेश्वरी माँ से वार्तालाप (भाग-2) जुलाई-अगस्त-2007 के बाद के दिनों में श्रीमाताजी के चाहिए कि चक्रों का ज्ञान प्राप्त करके वे अपनी समस्याओं का निदान कर सकेंगे और किसी को बताए बिना उन समस्याओं को ठीक कर सकेंगे। गुरु पूजा चित्त को शनै: शनै: श्री कृष्ण भूमि तथा अमरीका के मामलों पर जाते हुए देखा गया। मुझे तथा कुछ अन्य लोगों को इस समय कबेला में उनकी सेवा में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चक्रों के स्तर पर समस्याओं का समाधान करने की योग्यता उन्हें डाक्टरों, मनोवैज्ञानिकों तथा श्री कृष्ण पूजा तक के इन दिनों में श्रीमाताजी उनकी बताई गई दवाईयों से मुक्त करेगी और इन ने अमरीका के साधकों, उत्क्रान्ति-शिक्षा-केन्द्र चीजों पर बर्बाद होने वाला धन बच सकेगा। (C.E.L. ) की सीमाओं तक पहुँचने तथा भारतीय स्वतन्त्रता के समय उनके अपने अनुभवों आदि विषयों पर बात की और हर क्षण आगे करने वाले कार्यों के बारे वे अत्यन्त उत्साहित थीं। श्रीमाताजी ने परामर्श दिया कि साधक तुरन्त स्वयं पर और अन्य लागों पर कार्य करना आरम्भ कर दें। इस प्रकार उन्हें महसूस होगा कि इनके पास कुछ (शक्ति) है। चाहे वे इसे महसूस न कर सकते हों परन्तु जिस व्यक्ति पर वो कार्य कर रहे हों और उसे महसूस भी हो रहा हो तो निम्न पंक्तियों में इन वार्तालापों के मुख्य तत्वों का सारांश प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास किया गया है। इनमें से कुछ वार्तालाप मेरी अनुपस्थिति इससे उनका उत्साह बढ़ेगा| वो में में हुए। परन्तु इनके विषय में जो मुझे प्राप्त हुए भी इनमें सम्मिलित हैं। ये क्षण, हमारे लिए उनका पथ प्रदर्शन और उनकी पुरानी कहानियाँ-- इतनी अमूल्य हैं कि आज और आने वाली पीढ़ियों के लिए उनके मूल्यों का अन्दाजा लगा पाना भी कठिन है। श्रीमाताजी ने अमरीका के विषय में बहुत सी सामान्य चीजों के बारे में भी बातचीत की| इनका सारांश निम्नलिखित है। श्रीमाताजी ने कहा कि रूस में हुए सहजयोग प्रचार-प्रसार से वे अत्यन्त प्रसन्न हैं और शायद साम्यवाद अच्छी चीज है। उन्होंने कहा कि अमरीका का लोकतन्त्र बेकार है यदि इसका परिणाम वही है जो वहाँ के साधकों को भौतिकता की ओर आकर्षित अमरीका अमरीका के साधक क्योंकि अत्यन्त स्वतन्त्र और आत्मनिर्भर हैं इसलिए श्रीमाताजी ने उन्हें इस कर रहा है। उन्होंने बताया कि वे उनके प्रति प्रकार इन विषयों के बारे में बताने के लिए कहा जो उनकी प्रकृति के इस पक्ष को अच्छा लगे। अत्यन्त करुणामय एवं धैर्यवान रहीं, परन्तु अब वे उन्हें ये बात बताने वाली हैं और आशा है कि उनके ऐसा करने से लाभ होगा। श्रीमाताजी ने कहा कि वो अमरीका आना चाहती हैं। साधकों को बताएं कि सच्ची स्वतन्त्रता आत्मज्ञान से प्राप्त होती है और उन्हें ये समझ लेना चाहिए कि यह तन्त्र (यन्त्र) उनके अन्तःस्थित है और उनका अपना है। हमें चाहिए कि उन्हें बताएं भारत से 12 कुगुरु अमरीका आए और उन्होंने साधकों का पूरा धन लूटकर बड़े-बड़े आश्रम बना दिए। अब उनमें कौन रहेगा? श्रीमाताजी ने कहा कि उन कुगुरुओं की बात सुनना अमरीका के लोगों की मूर्खता थी और अब आपमें सहजयोग कि "स्वयं का ज्ञान प्राप्त करें।" अपने अन्दर विद्यमान यन्त्र को जब एक बार वो महसूस कर लें तब उन्हें बताया जाना अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 6. ाल ज समझने का विवेक होना चाहिए। ये गुरु समाप्त हो गए हैं परन्तु इनके प्रभाव अब भी बने हुए हैं। होना चाहिए, परन्तु ये नाम आरम्भ में न देकर श्रीमाताजी ने वर्णन किया कि माता-पिता के लिएद छोटे-छोटे कार्य करने के लिए जैसे कार धोना और का नाम 'Know Thyself' (स्वयं को पहचाने द्वितीय अवस्था में दिया जाना चाहिए । C.E. L. ( उत्क्रान्ति शिक्षाकेन्द्र) घर का काम-काज करना- पैसे देकर वहाँ के माता-पितां बच्चों को धनप्रेम सिखाते हैं क्योंकि ये सभी कार्य तो बच्चों को प्रेमवश करने चाहिए। उन्होंने आशा जताई कि उनके बच्चे उन्हें ठीक करेंगे। उन्होंने कहा कि आपको अपने बच्चों से प्रेम उत्क्रान्ति शिक्षाकेन्द्र द्वारा किए जाने वाले प्रयत्नों के विषय में श्रीमाताजी को पूर्ण जानकारी दी गई। ध्यान-धारणा अभ्यास के माध्यम से ज्योतित प्रबन्धन सिद्धान्तों एवं सकारात्मक एवं सन्तुलित कार्य वातावरण बनाने के लिए ये केन्द्र कारपोरेट विश्व तक पहुँच रहा है। इस अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की करना चाहिए, यदि आप ऐसा नहीं करते तो सहजयोग आपको प्रेम नहीं करेगा। केवल अपने बच्चों से ही नहीं सभी से। आप अवश्य उनसे प्रेम करें व उनका एक शाखा की स्थापना अमरीका में हाल ही में की सम्मान करें। आपके सन्त होने की उन्हें कोई गई है। श्रीमाताजी को जब यूरोप में इनके कार्यों के परवाह नहीं है, परन्तु आपका प्रेम उन्हें अच्छा लगता है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हो जाए तो पूरा विश्वपरिवर्तित हो जाएगा। विषय में बताया गया तो उन्होंने निम्नलिखित टिप्पणी की। "अब मुझे आशा है कि मेरा अवतरण व्यर्थ नहीं हुआ है! परमात्मा ने आपको अपने पदों पर आरूढ़ कर दिया है और अब आप जिम्मेदार हैं। इसीलिए परमात्मा ने आपको पृथ्वी पर जन्म दिया है। मैं तो मात्र एक गृहणी हूँ। विश्व आपके नेतृत्व की ओर देख रहा है ।" श्रीमाताजी को अमरीका में 'कुबेर फण्ड बनाए जाने के विषय में बताया गया और पूछा गया कि इस धन को किस कार्य पर खर्च करने को प्राथमिकता दी जाए- नए केन्द्रों के स्थापना के कार्य पर या सीधे साधकों तक पहुँचने की दिशा में- तो श्रीमाताजी ने पहले पूछा कि इस धन से कितने केन्द्र स्थापित किए जा सकते है? जब उन्हें बताया १ संस्थाओं में प्रकाश नहीं है। उनके पास भवन है, दफ्तर हैं परन्तु प्रकाश नहीं है। "घटिया प्रबन्धन के कारण- विशेष रूप गया कि गिरवी रखकर ये फण्ड कन्द्रों का पूरा से महिलाओं की दिशा में- इस्लामिक विश्व असफल मूल्य चुका देता है और बाद में केन्द्र यह ऋण चुकाते हैं, तो उन्होंने कहा कि केन्द्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए परन्तु इस कार्य में और साधकों तक पहुँचने के कार्य में सन्तुलन स्थापित किया नहीं कर सकता। कानून सत्य के पक्ष में है। हो गया। पपड घबराएं नहीं इस बार कोई आपका वध त जाना चाहिए। आजकल हर चीज़ रिकार्ड हो जाती है- पुनः देखा जा सकता है कि क्या कहा गया था- कोई इसे परिवर्तित नहीं कर सकता। भूतकाल में धर्मों को तोड़ना-मरोड़ना आसान था परन्तु आज ऐसा नहीं है। आपकी बात यदि सच्ची है तो चाहे जब तक आप श्रीमाताजी को जब सहजयोग की एक आरम्भिक पुस्तिका प्रस्तुत की गई, जिसकी सहायता से साधक केन्द्रों से निकलकर दूर-दराज जाकर कार्य कर सकें, और श्रीमाताजी से इस पुस्तिका का इसे कह सकते हैं।' नाम पूछा गया तो श्रीमाताजी ने कहा कि इस पुस्तक चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 2007 करना है? तुम्हें और कौन सा काम अच्छा लगेगा? व्यापार और राजनीति के सभी घुरंधरों को यह स्वीकार करना पड़ेगा क्योंकि यह सत्य है। मैं तो इटली के लोग बहुत अच्छे हैं परन्तु उनमें ज्ञान नहीं है। इराकी बुरे नहीं हैं परन्तु वो मूर्खता में फँसे हुए हैं। मात्र एक गृहणी हूँ (पूरे ब्रह्माण्ड की, ग्रेगोर ने दो मेयरों ने (Albera And Cabella) ने मुझे ईसामसीह की माँ के रूप में पहचाना। वो बुद्धिमान कहा), परन्तु मुझे किसी का डर नहीं है। थे मैं यदि वो हूँ भी तो क्या? महत्वपूर्ण बात तो ये है कि आपने मुझसे क्या पाना है। में अब सहजयोगियों की माँ हूँ। पहले वे किसी पुरुष को बने। समय आ गया है। आप सब सत्य को जानते भेजना चाह रहे थे परन्तु आपको माँ की आवश्यकता थी। ईसामसीह भी ये कार्य न कर पाते। आपके अतिरिक्त कोई इस कार्य को नहीं कर सकता। आप पूरी तरह से जिम्मेदार हैं! साहसी हैं, परन्तु अब बड़े-बड़े धुरन्धरों को सत्य खोजना होगा.. आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है, धन से आनन्द नहीं खरीदा जा सकता आगे बढ़ें। अच्छे पद प्राप्त करें परमात्मा ने तुम्हें इन परन्तु प्रेम करने के लिए आप धन का उपयोग कर सकते हैं। प्रेम के लिए इसका उपयोग करें। पूरा विश्व परिवर्तित हो रहा है आगे बढ़ें। विस्तृत हों, पदों पर आरुढ़ किया है। आज उत्सव का दिन है कितना अच्छा चैतन्य है। कितनी अच्छी कुण्डलिनियाँ हैं! विस्तृत हों! जो भी आवश्यक हो करें। इसी कारण से परमात्मा ने आपको पृथ्वी पर जन्म दिया है। पेड़ यदि प्रेम को महसूस कर सकते हैं तो प्रबन्धक भी इसे महसूस कर सकते हैं, प्रबन्धक। मैं हैं? कुर्ते और साड़ियाँ वितरण इस बात का ध्यान रखूंगी। क्या अब आप खुश एक दोपहर पश्चात् श्रीमाताजी वहाँ उपस्थित सभी अगुआओं को कुर्ते बाँट रहीं थीं और हर एक से सत्य बोलो और प्रेम दो। आपको इस बात का अन्दाजा नहीं हैं कि आपके पीछे कौन सी शक्ति है! रहीं थीं कि जो कुर्ता उन्होंने पहना हुआ है पूछ वो उन्हें कहाँ से मिला। जो भी नया व्यक्ति आता उसके सामने वे कई रंगों के कुर्ते रखतीं और छाँटने के लिए कहतीं, तथा जिन लोगों को कुर्ते मिल चुके थे उन्हें नए लोगों को कुर्ते दिखाने के लिए कहतीं। श्रीमाताजी पूरी तरह से विश्वस्त होने का प्रयत्न करतीं कि सभी को वो रंग मिल गए हैं जो उन पर बहुत फबते हैं। बार-बार वे उनसे पूछतीं कि उन्होंने जो रंग छाँटे वो उन्हें पसन्द तो हैं? इसके लिए वे नए रंगों के कुर्ते उनके सामने रखतीं ताकि वे अपने आप यदि घृणा करते हैं, वास्तव में घृणा करते हैं तो आप वास्तव में प्रेम करते हैं क्योंकि उस व्यक्ति पर आप का इतना चित्त है! आज प्रेम करने का यही तरीका है। स्वार्थ प्रेम तक पहुँचाता है। प्रेम को परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह तो भावना है। आप सबको देखकर मेरा हृदय आशा से भर उठा है मैंने सोचा था कि मेरा अवतरण व्यर्थ हो जाएगा। अब आप जिम्मेदार हैं आपको अपनी लिए सबसे अच्छा रंग छाँट सकें। आत्मा पर विश्वास है। उत्क्रान्ति शिक्षा केन्द्र के प्रतिनिधियों ने जब उनसे पूछा कि क्या श्रीमाताजी का आशीर्वाद उनके साथ है तो श्रीमाताजी ने उत्तर दिया, 'हाँ', शक्तिपूर्वक आगे बढ़ो', और तुम्हें क्या में स्थित पैंठन नामक स्थान से आई हैं। श्रीमाताजी तत्पश्चात् श्रीमाताजी ने उपस्थित अगुआओं की पत्नियों के लिए साडियाँ बाँटनी शुरु कीं और बताया कि ये 'पैठनी' साड़ियाँ हैं जो पुणे के दक्षिण चैतन्य लहरी अंक :1। & 12 -2007 ৪ ने बताया कि किसी जमाने में ये साड़ियाँ बहुत दिया गया तब उन्हें पहली बार पता लगा कि गरीबी दुर्लभ होती थीं परन्तु अब इनका काफी उत्पादन किया जा रहा है और ये साड़ियाँ सात गज लम्बी हैं, इनमें एक गज़ कपड़ा ब्लाऊज के लिए बचाया जाता जिन्हें जेल भेजा गया। है। द्राक्ष चयनकर्ता की शैली में श्रीमाताजी पुनः हर व्यक्ति को याद करके उनके लिए साड़ियाँ खोजने छोड़कर अंग्रेजों ने बहुत बुद्धिमानी की परन्तु वे लगतीं। वो ये भी बता रहीं थीं कि ये साड़ी फलाँ महिला पर क्यों फबेगी। क्या होती है क्योंकि उनके पिता ही घर के मुख्य कमाने वाले थे वे अकेले जाने-पहचाने ईसाई थे ुं श्रीमाताजी कहती चलीं गई कि भारत आजतक भी ये बात नहीं समझ पाई हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, क्योंकि इससे पूर्व ऐसा कहीं घटित नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि न तो कोई युद्ध था और न ही कोई द्वन्द, जिनके बिना आक्रान्ता देश कभी छोड़ते नहीं हैं। अत: अंग्रेजों में कुछ विवेक था। श्रीमाताजी ने कहा कि नेहरु बंश भारत के हित में कभी न था, और यदि उस समय गाँधीजी राष्ट्रपति बन गए होते तो आज भारत का रूप कुछ यह समय के झरोखे से देवी के उस रूप को देखने जैसा था- देवी जिनकी सेवा में सभी कुछ नतमस्तक है और सभी ग्रह जिनके आभूषण हैं, परन्तु फिर भी अपने असीम प्रेम की अभिव्यक्ति के रूप में तोहफे वितरण किए बिना जिन्हें चैन नहीं आता। श्रीमाताजी ने बताया कि आरम्भिक दिनों में और ही होता। वे खादी की साड़ियाँ पहना करतीं थीं परन्तु विवाह कबेला और प्रतिष्ठान होने पर उनकी माँ ने उन्हें रंग-विरंगी साड़ियाँ पहनने के लिए कहा। तत्पश्चात् वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन तथा घर की बुनी खादी के वस्त्र पहनने करते हुए उन्होंने बताया कि उनके अतिरिक्त कोई के लिए गाँधीजी प्रयत्नों के बारे में बताने लगीं । कबेला में अपने पहले आगमन का वर्णन भी वहाँ की सच्ची सम्भाव्यता को नहीं देख पाया था। उन्होंने कहा कि सर सी.पी. को यह लगा कि भारतीय स्वतन्त्रता यह स्थान अच्छा नहीं हैं। वे बहुत परेशान थे और गाँधीजी के साथ उनके आश्रम में बिताए जाते उन्होंने कहा था "हम यहाँ कैसे रह सकते समय की याद करते हुए श्रीमाताजी ने बताया कि है?" तब सर सी. पी. मज़ाक करते हुए बोल उठे, वे अत्यन्त सहज, अनुशासित व स्पष्टवादी व्यक्ति "और अब हम यहाँ रहते हैं!" श्रीमाताजी तथा वहाँ थे। उनके खादी आन्दोलन ने मन्चैस्टर इंग्लैण्ड के उपस्थित सभी लोगों के हर्ष की सीमा न रही! कपड़ा उद्योग को नष्ट कर दिया। उन्होंने ये भी हुए उस समय यद्यपि उनके वर्तमान शयनकक्ष बताया कि गाँधीजी ने गाना भी बनाया था कि यदि में खड़े होकर दीवारों के बीच से आकाश को देखा हम घर की बनी खादी पहनेंगे तो इंग्लैण्ड के कपड़े जा सकता था, उन्हें लगा था कि मोटी दीवारों और सुदृढ़ नीवों के कारण इस घर में बहुत सम्भाव्यता है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है. कि उनमें यह सम्भाव्यता पहचानने की 'कला' (Knack) है तथा यद्यपि ये घर पाँच सौ वर्ष पुराना था फिर भी वो ये के कारखाने बन्द ही जाएंगे। डा0 स्पाइरो जो उस समय वहाँ उपस्थित थे वे मन्चैस्टर से हैं, उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि आज मन्चैस्टर में कपडे का एक भी कारखाना नहीं हैं। श्रीमाताजी ने बताया कि स्वतन्त्रता संग्राम बता पाई कि यह उनका निवास बनने योग्य है। उन्होंने कहा कि उन्हें कभी वास्तु-कला का प्रशिक्षण में जब उनके पिता को छः महीने के लिए जेल भेज चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 _० फेंक दिया और चौबीस घण्टों के अन्दर इस भव्य एवं रमणीय निवास की रूपरेखा बना डाली। सभी योगी चिन्तित थे कि अधिकारियों के पास मूलरूपरेखा स्वीकृति के लिए भेज दी गई है, परन्तु जब वे नए नक्शे स्वीकृति के लिए देने गए तो वहाँ पुराने नक्शे गुम हो चुके थे, अत: उन्होंने पुराने नक्शों के स्थान पर श्रीमाताजी द्वारा बनाए गए नए नक्शे स्वीकार कर लिए और उन्हीं के अनुरूप कार्य करने की स्वीकृति दे दी । नहीं मिला, फिर भी किसी न किसी तरह से वे हमेशा ये गुण देख पाईं! इस बात पर मेंने कहा कि श्रीमाताजी, "आप तो वास्तुकारों की वास्तुकार हैं!" और वे मुस्करा भर दीं। आल्डो ने व्याख्या की कि इस घर के थे यह परिवार जहाज़रानी से सम्बन्धित था और उन्होंने Palazzo का उपयोग ग्रामीणनिवास के रूप में किया। इसका निर्माण सन् मालिक 'डोरिया' 1641 में हुआ। शनिवार सन्ध्या श्रीमाताजी ने बताया कि किस प्रकार उन्होंने शनिवार सन्ध्या को मनोरंजन कार्यक्रम के ऊँची छतों और सुदृढ़ नीवों वाले अपने शयनकक्षों में एक और तल का निर्माण किया और इस प्रकार बहुत सा अतिरिक्त स्थान बना पाईं। उन्होंने कहा कि वे हैरान थीं कि अधिकारियों ने भी उन्हें इस पराकाष्ठा पर पहुँचने, युवाशक्ति तथा अमरीका के योगियों की प्रस्तुति को देखने तथा कार्यक्रम का भरपूर आनन्द लेने के बाद श्रीमाताजी ने कहा कि अमरीका के विषय में उनकी निराशा समाप्त हो गई एतिहासिक भवन में यह अतिरिक्त निर्माण करने की आज्ञा प्रदान की! परन्तु वो लोग विवेकशील थे और उन्होंने उन्हें पहचान लिया था। है और अब उन्हें विश्वास हो गया है कि यह कार्यान्वित हो जाएगा! श्रीमाताजी के इस कथन को हमें निहित वचन के रूप में लेकर अमरीका के साधकों के उद्धार तथा पृथ्वी पर विशुद्धि की शक्तियों के पूर्ण श्रीमाताजी ने बताया कि पुराने भवन अद्वितीय हैं क्योंकि प्राय: उनकी छतें ऊँची होती हैं, खिड़कियाँ तथा दरवाज़े विशाल होते हैं और नए घरों की अपेक्षा पुराने घर कई प्रकार से रमणीय होते हैं। तब उन्होंने बताया कि प्रतिष्ठान की योजना भी योगियों ने मूलरूप से पारम्परिक बंगलों कीशृंखला के रूप में बनाई थी परन्तु जब उन्होंने नक्शे देखे तो उन्हें प्रकटन का माध्यम बनना चाहिए। U.S.A. सहजनैट के माध्यम से (The light of Sahaja Yoga No. 15 उद्घृत एवं रूपान्तरित) 'अपेक्षा' (Expectations) ि (बाबा मामा) ( चैतन्य मेला, महाराष्ट्र सहजयोग सेमिनार, नागपुर-1999 ) पाम मड देते हैं और सदैव स्वयं को ही कोसते रहते हैं, कि वे परमात्मा की कृपा के योग्य ही नहीं है। आशावादी लोग सीधे परमात्मा को दोष देते हैं और कहते हैं कि परमात्मा बेकार हैं और हमें किसी और 'परमात्मा आप मानते हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ ( Omnipresent, Omripotent and Omniscient) हैं वास्तव में, आपको ये विश्वास है कि वे कण-कण में विद्यमान हैं। इस (देवी-देवता) के पास जाना चाहिए। इस प्रकार से विश्वास के उपफल के रूप में ये समझ लेना आप एक परमात्मा से दूसरे परमात्मा के पास जाते आवश्यक होगा कि परमात्मा आपकी इच्छा को जानते हैं या आपकी आवश्यकता को। पहली हैं, परन्तु हमेशा निराशा हाथ लगती है। ये सोच आपको परमात्माविरोधी और अन्तत: नास्तिक भी धारणा यदि सत्य है तो दूसरी धारणा को भी सत्य होना चाहिए। इसका निष्कर्ष ये निकला कि जो लोग जानते हैं कि परमात्मा सर्वशक्तिमान और जिसमें व्यक्ति परमात्मा के पास बिना किसी आकांक्षा सर्वव्यापी हैं, उन्हें ये स्वीकार करना होगा कि वे सर्वज्ञ भी हैं। इसलिए हमारी सारी समस्याओं का बना सकती है। अब आप एक और उदाहरण लें के जाता है। यहाँ आकांक्षा शून्य (0) है और जो इनाम मिलता है वह है 'ख'। अत: 'ख'-0=ख, अर्थात बढ़ोतरी। ज्ञान भी उन्हें है। व्यक्ति को हमेशा अपनी आकांक्षाओं, इच्छाओं और शुद्ध इच्छाओं में अन्तर करना चाहिए। शुद्ध इच्छा सदैव अन्य लोगों के हित के लिए होती है. इसलिए शुद्ध इच्छा लेकर परमेश्वरी के पास जाने का अधिकार आपको हैं। एक बार, मुझे याद है, में श्रीमाताजी के साथ सिडनी से कैनबरा की यात्रा कर इस सत्य को जानने के बावजूद भी हम हमेशा परमात्मा के पास कोई न कोई आकांक्षा लेकर जाते हैं। ये आकांक्षाएं भिन्न प्रकार की हो सकती हैं परन्तु मूलत: ये स्व:केन्द्रित होती हैं या उन लोगों तक सीमित होती हैं जो हमारे सम्बन्धी हैं, जिनसे हम लिप्त हैं। आप परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वे आपको कुछ विशेष प्रकार की सहायता प्रदान कर दें, नौकरी में तरक्की दिला दें या आपके सगे-सम्बन्धियों को कुछ लाभ पहुँचा दें। मस्तिष्क रहा था। गर्मी बहुत थी और कार का वातानुकूलन ( Air Conditioning) बहुत ही कम था। श्रीमाताजी को पसीने आ रहे थे और मैं एक समाचार पत्र से कि उन्हें पंखा झल रहा था। परन्तु मुझे महसूस हुआ गर्मी बहुत में ऐसी धारणा लेकर जब आप जाते हैं तो प्राय: निराशा हाथ लगती है। परिकल्पना के रूप में बात है और मौसम को चाहिए कि ही दुखद श्रीमाताजी को कुछ राहत प्रदान करे। मेरे विचारों को पढ़ते हुए श्रीमाताजी ने मुझसे पूछा कि मैं क्या सोच रहा था? उत्तर में स्पष्ट रूप से मैंने कहा कि गर्मी करते हुए यदि आपकी आकांक्षाएं 'क' निहित हैं और आपको मिलता है 'ख' तो 'क-ख'= आपकी निराशा फिर इस निराशा का दोष आप किसी दूसरे को देते हैं। निराशावादी लोग अपने दुर्भाग्य को दोष के कारण उन्हें कष्ट उठाता देखना में सहन न कर चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 11 तो आपको पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि आपको परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश मिल गया पा रहा था। उन्होंने कहा कि मैं शुद्ध इच्छा करुं कि मौसम परिवर्तित हो जाए। अपनी आँखें बन्द करके मैंने है। अब आप उनकी प्रजा हैं, और चाहे जो इच्छाएं आपकी रही हों, कर्तव्यबद्ध, उन्हें आपकी देखभाल करनी होगी। अतः सहजयोग में आने के पश्चात् कृपया आकांक्षा न करें। श्रीमाताजी से केवल प्रार्थना करें कि वे आपको वैसा ही बना दें, जैसा वे चाहती हैं। शुद्ध इच्छा की कि मौसम परिवर्तित हो जाना चाहिए। पाँच मिनट के अन्दर जाने कहाँ से काले बादल छा गए और बारिश होने लगी तथा गर्मी का "देखो यदि वेग कम हो गया। श्रीमाताजी ने कहा, तुम शुद्ध इच्छा करो तो ये हमेशा पूर्ण होगी।" आकांक्षाओं पर वापिस आते हुए, मैं कहना हार्दिक आशीर्वाद चाहूंगा कि आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से एक बार आपका योग जब परमेश्वरी से हो जाता है (बाबा मामा) निर्मल-गीतिका प्यार देने का सिला, केवल सहज के पास है, पार जाने की कला, केवल सहज के पास है। साँप बन कर आदमी ही आदमी को डस रहा, और अमृत का कुआँ, केवल सहज के पास है। चाँद, सूरज औ सितारे, सब पड़े हैं कैद में, और उल्फत का दिया, केवल सहज के पास है। ज़िन्दगी इस दौर में है, दर्द की तस्वीर सी, और हर गुम की दवा, केवल सहज के पास है। खोज में उसकी लगे हैं, लोग सदियों से यहाँ, और ईश्वर का पता, केवल सहज के पास है। चंद खुशियों के लिए, हर दिल हुआ बेताब सा, और जीने का मजा केवल सहज के पास है। आज हर मौसम यहाँ, मैला बहुत मैला हुआ, और दुआए-निर्मला, केवल सहज के पास है। डा. सरोजनी अग्रवाल ब् (मुरादाबाद) महाकाली पूजा (म्यूनिक- 8.10.1987 ) पत रुम परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन मुझे बताया गया था कि पूजा के लिए हमें वर्षा से होने वाली फसलें भी चैतन्यमय होंगी। इस बहुत सुन्दर स्थान मिल गया है। मैं हैरान थी कि आप सबके लिए किस प्रकार इतनी सुन्दरता से होगा। अत: यदि हम चाहते हैं कि अधिक से सभी कुछ कार्यान्वित हो रहा है! मैं कहना चाहूंगी अधिक लोग सहजयोग में आएं तो बादलों को कि आप लोग अत्यन्त भाग्यशाली हैं। ये स्थान पहले 'फूलों का किला' कहलाता था और अब यह खूनी किला', 'रक्तरंजित किला' कहलाता है। परन्तु यहाँ इतने अधिक फूल हैं कि यह पुनः ये सर्वोत्तम उपाय है। इसके अतिरिक्त चैतन्य-लहरियाँ, "फूलों का किला बन जाएगा। आप अत्यन्त सुन्दर बहुत ही छोटे-छोटे कण होते हैं जिनका एक बिन्दु स्थान पर आए हैं। यहाँ की चैतन्य लहरियाँ भी बहुत सुन्दर हैं। मुझे हमेशा आश्चर्य होता था कि जर्मनी को 'जर्मनी' नाम क्यों दिया गया। जर्म अर्थात अंकुरित वनाते हैं और कभी मिलकर क्रॉस (f) बनाते हैं। होना, किसी भी चीज के बीज ( Gem) का अर्थ है अंकुरित होना। जमिनेट अंकुरित होना, सहजयोग का अंकुरण। जैसा मैंने से, तथा ये अत्यन्त सामूहिक हैं, अत्यन्त सामूहिक। आपको पहले भी बहुत बार बताया है, जर्मन लाग जब सहजयोग के प्रचार प्रसार का कार्य सम्भाल हैं और एक ही प्रकार से समझते हुए इतनी सुन्दरता लेंगे तो सहजयोग उच्चतम बुलौदियों को छू लेगा। हमने बहुत से उतार चढ़ाव देखे हैं, कोई बात नहीं। यह बहुत कठिन स्थान है और अब हमने वास्तव में ठीक प्रकार से अंकुरित होना आरम्भ किया हैं। कल मैंने देखा कि पूरा आकाश रंगों एवं प्रकाश से भरा हुआ था। आप जानते हैं कि चैतन्य-लहरियों में प्रकाश होता है। आप देख सकते हैं कि चैतन्य-लहरियों हैं। आप सोचते होंगे कि श्रीमाताजी ने हमें ऐसी के हर कण में एक अत्यन्त टिमटिमाता हुआ, मद्धम प्रकाश होता है परन्तु चैतन्य-कणों की संख्या जब बहुत अधिक होती है तो आपके कैमरे कुण्डलिनी उठती है, जहाँ भी समस्या हो वहाँ उन्हें पकड़ सकते हैं। परन्तु कल तो, में सोचती हूँ बादल ही चैतन्य से भर उठा और बादलों का चैतन्यित हो उठना बहुत बड़ी बात है। बादल यदि चैतन्य से परिपूर्ण होंगे तो उनसे होने वाली वर्षा भी चैतन्यमय होगी और पृथ्वी को चैतन्यित करेगी उस अन्न को जब मानव खाएंगे तो उन्हें भी चैतन्य प्राप्त चैतन्यित करना सर्वोत्तम उपाय है। कल रात ये विचार मेरे मन में आया कि क्यों न सभी बादलों को चैतन्यित कर दिया जाए। अर्द्धवृत्त की तरह, प्रायः कोमे () ) का आकार धारण कर लेता है और ये अर्द्धवृत्त मिलकर कभी ॐ की रचना करते हैं और कभी जंजीर (Chain) परन्तु उनके विषय में मूल बात ये है कि वो तेजी से सोचते हैं, मानव की अपेक्षा कहीं अधिक तेजी (Germinate) अर्थात अत: ये एक साथ चलते हैं एक ही प्रकार ये सोचते एवं शांतिपूर्वक सारा कार्य करते हैं कि आपको महसूस भी नहीं होता। कुण्डलिनी की जागृति जो आपने की है आप सबके लिए अवश्य एक रहस्य है कि किस प्रकार अपने हाथ से आप कुण्डलिनी उठा सकते विशिष्ट शक्ति प्रदान कर दी है कि जब हम अपना हाथ किसी की भी कुण्डलिनी की ओर उठाते हैं तो जाकर रुक जाती है और पुन: उठती है। अब ये बात आप लोगों के लिए रहस्य नहीं है। अब आपको नई शक्तियाँ प्राप्त हो गई हैं कि आप जल को तथा अन्य पदार्थों को, और सभी चीजों को चलायमान कर सकें, परिवर्तित कर सकें। परन्तु अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी 13 2007 आपकी कार्यशाला में बहुत से लोग आए। पशुओं के पास ये शक्ति नहीं है यहाँ - वहाँ थोडा बहुत परिवर्तन शायद वो कर लें परन्तु अपने उपयोग योग्य वो किसी चीज को नहीं बना सकते। उदाहरण के रूप में यहाँ पर पीतल की सुन्दर चीजें ओह! ये सब अत्यन्त महान था। आप ही लोग सारे कार्य कर रहे थे, आप ही इसे कार्यान्वित कर रहे थे परन्तु आपके मन में कर्ताभाव न था। इसका है, बहुत सुन्दर चाँदी है, ऊपर छोटे से गणेश बैठे हुए हैं, यह सब किसी मृत वस्तु में से बनाया गया है। पशु ऐसा नहीं कर सकते। जिस प्रकार आप जीवन्त कार्य में कुशल बन सकते हैं वो नहीं बन सकते। अब आप लोग जीवन्त कार्य के स्वामी है, कारण ये है कि अब आप इस प्रकार कर्म कर रहे हैं जो अकर्म कहलाता है। किसी कार्य को करते हुए जब व्यक्ति में कर्ताभाव न आए तो यह 'अकर्म' कहलाता है। कार्य को करते हुए यदि आपमें कर्ताभाव नहीं हैं तो मृत कार्य के नहीं। आप जीवन्त शक्ति को संचालित कर सकते हैं, इसे अपने हिसाब से ढाल सकते हैं। और अपने उद्देश्य के लिए उपयोग कर सकते हैं यह 'अकर्म' है। परन्तु कार्य करने के विषय में यदि कर्ताभाव है तो यह कर्म कहलाता है। तो अब 'कर्म' अकर्म बन गया है, परन्तु ऐसा नहीं है कि आपने कार्य करना ही छोड़ दिया है। आप बहुत से कार्य कर रहे हैं फिर भी आपमें कर्ताभाव नहीं है। परन्तु पशु ऐसा नहीं कर सकते। परन्तु आश्चर्य की बात ये है कि आपको इस बात का भी ज्ञान नहीं है कि आप ऐसा कर रहे हैं जैसे आप जब कोई अब आप अकर्म कर रहे हैं, सारा जीवन्त कार्य अकर्म है। जैसे पृथ्वी माँ बीजों को अंकुरित करती हैं परन्तु उनमें कर्ताभाव नहीं होता। जब आप में कर्ताभाव नहीं होता तो आप यह नहीं सोचना चाहते कि यह कैसे घटित हो रहा है। मानव रूप में आप मुझे देखें इस प्रकार हाथ उठाने से कुण्डलिनी उठती है और उठकर सिर से बाहर आ जाती है। में देखती हूँ कि ऐसा घटित होता है, यह सत्य है। तो किस बड़ा काम कर रहे होते हैं तो आपको अहसास होता है कि आप कुछ बहुत बड़ा कार्य कर रहे हैं! आप लोगों से बताते हैं कि मैंने ऐसा कार्य किया है, मैंने ऐसा स्थान बनाया है। अपने अंदर विद्यमान अहं के कारण आप उसके विषय में चेतन होते हैं। परन्तु अन्य लोगों को आत्म-साक्षात्कार देते हुए आपमें यह भाव नहीं होता क्योंकि इस समय आपमें अहं नहीं है। आप कहते हैं, " श्रीमाताजी यह नहीं उठ प्रकार ये घटित हो रहा है? प्रक्रिया क्या है? कार्य-प्रणाली क्या है? किस प्रकार ये कार्यान्वित हुआ? क्या मैंने कोई गलती की? आप ऐसा नहीं सोचते। क्या मैंने इसे गलत ढंग से किया? आप ये नहीं सोचते। आप तो बस कार्य आरम्भ करते हैं और कुण्डलिनी उठा देते हैं। इस बात की भी आप चिन्ता नहीं करते कि आपने स्वयं को बन्धन दिया रही है, यह विशुद्धि पर पकड़ रही है और कार्यान्वित नहीं हो रही।" आप तृतीय पुरुष (Third Person) में बोलने लगते हैं, ये नहीं कहते कि मैं इसे नहीं उठा सकता या मैंने इसे उठा दिया। ये कार्यान्वित हो जाता है। जब कुण्डलिनी उठ जाती है तो मैं आपका चेहरा देखती हूँ और जान जाती हूँ कि कार्य हो गया है। आपको पता तक नहीं होता, इसके बारे में आप बिल्कुल चेतन नहीं होते। कुण्डलिनी उठने के पश्चात् इस कार्य को करते हुए आपमें कर्ताभाव नहीं होता, इसके प्रति आप चेतन नहीं हो सकते । आपमें इसके विषय में अहं नहीं होता। इसका कोई श्रेय आप नहीं लेते, केवल आनन्दित होते हैं। है या नहीं, ये भी नहीं सोचते कि सामने बैठे व्यक्ति की चैतन्य-लहरियाँ कैसी हैं। नहीं, आगे बढ़कर आप अपना हाथ उठाते हैं, आपको केवल इस बात का एहसास होता है कि आप आत्म-साक्षात्कारी हैं और आप कुण्डलि-नी जागृत कर सकते हैं। कल मैंने देखा कि बहुत सारे सहजयोगी आ गए और मैंने अंक : 11 & 12 2007 14 चैतन्य लहरी कहा कि आ जाओ और इन्हें आत्म-साक्षात्कार दो। पूर्णत: स्वतन्त्र हो गए हैं। उस स्वतन्त्रता में आप वहाँ खड़े होकर ऐसे किया, वैसे किया और समाप्त। आपने ये भी नहीं सोचा कि आपने इतना महान जीवन्त कार्य किया है कि उनकी कुण्डलिनी उठा दी है जो उन्हें परिवर्तित कर देगी! यह उन्हें एक नया जीवन प्रदान करेगी और वो भी आप ही की ऐसा व्यक्ति हूँ जो हर समय बन्दूक उठाकर आपके तरह से विशेष लोग बन जाएंगे। आप लोगों को इस बात का एहसास भी नहीं है कि आप विशिष्ट लोग जाएगा।' ऐसा नहीं है तो सहजयोगियों के साथ कौन हैं। अहं लुप्त हो गया है, अब आप ये नहीं सोचते सी नई चीज घटित हो रही है? ये बात पूरी तरह से कि आप कोई कार्य कर रहे हैं। आप सोचते हैं कि श्रीमाताजी ही सभी कार्य कर रहीं हैं। ये लोग जब बड़े-बड़े भाषण देते हैं, बताते हैं कि मैं कभी भाषण नहीं देता था, श्रीमाताजी में नहीं जानता कि भाषण में मेंने क्या कहा, और अब में महान बक्ता बन गया हूँ! आप ही ये सारा कार्य कर रही हैं। फँस जाती है, कोई बडी मछली भी इसे खा सकती आपमें यह भावना इसलिए आ गयी है क्योंकि अब आपमें अहं बाकी नहीं बचा। हमेशा मेरी उपस्थिति को महसूस करते हैं। अब ये क्या है? क्या मैं आपको किसी चीज से बाँधने का या आपको जंजीरें डालने का प्रयत्न कर रही हूँ? या मैं आपका पथप्रदर्शन कर रही हूँ, या में कोई क्या पीछे चल रहा हो? ऐसा करो अन्यथा ऐसा हो समझ लेनी होगी। बात ऐसी है कि जिस प्रकार मछली सर्वत्र जाती है, सभी कुछ करती है, परन्तु उसमें विवेक नहीं है, वो ये नहीं जानती कि घर जाना है और क्या करना है। कभी-कभी तो वह मछुआरे के जाल में है। किसी भी समय यह नष्ट हो सकती है। रेंगती हुई ये तट पर आकर नष्ट हो सकती है। मछली के पास विवेक बुद्धि तो बिल्कुल नहीं हैं परन्तु स्वयं को खतरों से सुरक्षित रखने का थोड़ा सा अन्तर्जात ज्ञान इसमें है। इसके बारे में आपमें कोई अन्तर्जात ज्ञान नहीं है कि स्वयं को खतरों से किस प्रकार बचना है, कठिनाईयों से स्वयं को किस प्रकार समुद्र में यदि पानी की बूँद डालें तो यह सागर बन जाती है, इसमें कोई सन्देह नहीं हैं। परन्तु बूँद ये नहीं जानती कि वह सागर बन गई है। ये सागर के साथ चलती है। परन्तु यदि आप किसी मछली को देखें तो मछली स्वतन्त्र है। इच्छानुसार बचाना है। ऐसा अन्तर्जात ज्ञान आपमें नहीं है कि आप सावधान हों कि ऐसे नहीं चलना चाहिए, ऐसे नहीं जाना चाहिए, किस व्यक्ति को चैतन्य नहीं देना यह इधर-उधर जा सकती है, उछल सकती है और पानी पी सकती है। इच्छानुसार ये कुछ भी कर सकती है। परन्तु पानी की बूँद ऐसा नहीं कर सकती, बूँद को तो पूर्ण का अंग-प्रत्यंग बनना ही चाहिए और किस व्यक्ति का इलाज नहीं करना होगा। तो यह मध्य की अवस्था थी। जब आप पशु चाहिए। ये बात नहीं है। आपमें ये अन्तर्जात ज्ञान थे और परमात्मा के पाश में बन्धे हुए थे, उनके नहीं है कि आपको स्वयं को बचाने का प्रयत्न बन्धन में थे तो बिल्कुल वैसा ही कर रहे थे जैसा विधान था। तत्पश्चात् आप मानव बने और आपको अशुभ होगा। इतना कुछ नहीं है फिर भी हम ठीक पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई कि चाहे जिस प्रकार आप इसका उपयोग करें। आप स्वर्ग में जाना चाहते हैं तो स्वर्ग में जाएं और नर्क में जाना चाहते हैं तो नर्क में जाएं। आपके लिए सभी मार्ग खुले हैं। परन्तु करना चाहिए या दाएं से जाना चाहिए ऐसा करना प्रकार से कार्य करते है। जो भी समय आप चुनेंगे वह मंगलमय होगा। इसके लिए आपको पाँचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। लोनावाला में एक बार ऐसा हुआ था। एक पूजा थी। यहाँ की तरह से ये भी दस बजे होनी थी परन्तु काफी देर तक आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् अब आप चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 15 मैं स्नान करने के लिए ही न उठ रही थी। सभी लोग हैरान थे कि ये हमें कैसे मिला! परन्तु आरम्भ लोग बहुत परेशान हो गए और पूछा, "श्रीमाताजी में आपको विकसित होना होगा, परिपक्व होना होगा। क्या बात है?" मेंने कहा, "सब ठीक है हम चलते हैं। पर में इधर-उधर की बातें करती रही और ग्यारह बजे स्नान के लिए गई। जब वापिस आई तो बारह बज चुके थे और सूर्य दूसरी ओर को जा चुका था। सभी लोग थोड़े से परेशान थे। तब मैंने कहा, "चन्द्र पद्धति का पांचांग लाओ। ग्यारह बजे बिना परिपक्व हुए आपमें वह विवेक बुद्धि नहीं आती। जैसे लन्दन में जब हम एक स्थान लेने का प्रयत्न कर रहे थे तो कुछ सहजयोगियों के साथ मैं स्थान खोजने के लिए गई। इन लोगों को ऐसे अजीबो-गरीब स्थान पसन्द आ रहे थे जिनका चैतन्य बहुत खराब था परन्तु ये लोग चैतन्य देख ही न रहे थे! मैंने वहाँ प्रवेश ही नहीं किया मैंने कहा, नहीं, नहीं, यह अच्छी नहीं है," कहने लगे, "इसका चरित्र (गुण) है, ये है, वो है । मैंने कहा कि मेरे लिए इनका अधिक महत्व नहीं है। कहने लगे, तक अमावस्या थी और अमावस्या के दिन आकाश में चाँद नहीं होता। अमावस्या में में स्नान नहीं कर सकती, इस समय में आप पूजा नहीं कर सकते। इसलिए मुझे प्रतीक्षा करनी पड़ी!" उन्होंने कहा, "हमने पांचांग देखा था।" तब मैंने कहा, "कौन "परन्तु श्रीमाताजी किस प्रकार हमें कोई अच्छा सा?" उन्होंने देखा और सब हैरान थे कि श्रीमाताजी स्थान मिल सकेगा?" मेंने कहा,"हमें मिल जाएगा। एक बार मैं हवाईजहाज से यात्रा कर रही थी, वहाँ पर मैंने एक पत्रिका खोली जिसमें मुझे 'शुडी कैम्प' मिला। मैंने कहा, हमारे लिए ये स्थान है, जाकर को किस प्रकार अमावस्या आदि का ज्ञान है!" क्योंकि सद्-सद् विवेक बुद्धि अन्तर्जात है। तो चाहे जो भी आप करें, जिस प्रकार आप कार्य करें, यह आपमें अन्तर्जात है। आप जानते हैं कि किस प्रकार कार्य करना है। उदाहरण के रूप में यदि आप किसी को सुई चुभाएं तो रोकने के लिए तुरन्त देखो, और इस प्रकार हमें इतना सुन्दर स्थान प्राप्त हुआ। अत: हमें चाहिए कि चीजों को कार्यान्वित होने दें, सबूरी रखें। स्वत: ही चीजें कार्यान्वित हो जाएंगी। क्योंकि अब पूर्ण ब्रह्माण्ड हमारे साथ है, उसका हाथ उठेगा। ऐसा करना उसे किसने बताया? किसीने सिखाया नहीं। यह गुण उसकी चेतना में ही बना हुआ है कि प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action) के अनुसार स्वत: ही तुरन्त आपके हाथ उठ जाएंगे। तो मंगलमयता की प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action) के अनुसार स्वत: ही तुरन्त आपके हाथ उठ जाएंगे। तो मंगलमयता की प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action), अपनी सुरक्षा की प्रतिवर्ती क्रिया, हर चीज़ के प्रति प्रतिक्रिया, आपमें अन्तर्रचित है और सहजयोगी ब्रह्माण्ड का पूरा विवेक हमारे साथ है। सोचने वाली चैतन्य-लहरियाँ हमारे साथ हैं। पथ-प्रदर्शन करने वाली चैतन्य-लहरियाँ हमारे साथ हैं, आयोजन करने वाली चैतन्य-लहरियाँ हमारे साथ हैं। उन्हें आयोजन करने दें । हम उनके हाथों में खेल रहे हैं, उनसे बन्धे हुए नहीं हैं, वे हमारी सहायता करती हैं। जैसे मान लो आपका कोई बच्चा है। आपने उसकी देखभाल करनी है। परन्तु कोई महिला अगर कहती है कि मुझे अपने बच्चे की देखभाल करने दो," और आप कहें, "ठीक है।" फिर आप सो जो कुछ भी आप करेंगे वह मंगलमय जाएं। अब कोई व्यक्ति आपसे कहे, चिन्ता मत बनने के पश्चात् आप स्वयं को तथा अन्य लोगों को बन्धन देने लगते हैं। इस प्रतिवर्ती क्रिया के बारे में आपको सोचना नहीं पड़ता। ऐसा हो जाता है। होगा, सुन्दर होगा, और जो भी आप पूछेंगे वह सुन्दर होगा। जैसे ये स्थान आपको मिल गया और करो, सो जाओ, मैं तुम्हारे लिए अच्छा सा बिस्तर बनाऊंगा।" आप कहें ठीक है, तब वो आपके लिए अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी -2007 16 अपना सम्मान करना है, क्योंकि आप सहजयोगी हैं। दूसरी बात ये है कि आपने अन्य योगियों का भी अच्छा सा बिस्तर बना दे और आप वहाँ सो जाएं, कोई आकर आपको ठीक से ढक दे और आप सुखपूर्वक ढके रहें। तब आप स्नान करने के लिएसम्मान करना है। जाना चाहते हैं। वो आकर कहते हैं, " आइए स्नान गणपति पुले में पहले भी मैंने आपको बताया था कि नामदेव नाम का एक दर्जी सन्त था। वह दूसरे सन्त से मिलने गया जो पेशे से कुम्हार था। कुम्हार अपने पैरों से मिट्टी में पानी मिला रहा था। नामदेव जब वहाँ पहुँचे और उन्हें देखा तो बोले, 'निर्गुणचा वेति आलो सगुणाचा' अर्थात में यहाँ निराकार को देखने आया था, चैतन्य, इन चीजों से बंधे हुए हैं। ये बात में आपको समझान चैतन्य-लहरियाँ, निर्गुण को, परन्तु यहाँ तो आप का पूरा प्रबन्ध हो गया है', स्नान कर ले।" आप पूजा करना चाहते हैं और कोई आकर कहता है आइए आपके पूजा करने के लिए बहुत अच्छा स्थान है, आइए पूजा कर लीजिए। आप आश्रम हैं चाहते हैं, कोई आकर कहता है आइए बहुत अच्छा स्थान उपलब्ध है, इसका अभिप्राय ये नहीं कि आप म का प्रयत्न कर रही हूँ। परन्तु सम्मान से आपको आमन्त्रित किया जाता है, इज्जत और सम्मान से आपके साथ व्यवहार किया जाता है और सभी लोग आपकी सेवा के लिए खड़े होते हैं। श्रीमाताजी, आप मेरे सिर में आइए,' मैं आपके सिर में आ जाऊंगी, आप कहते है '"मेरे हृदय हृदय में आ जाऊंगी, आप कहते हैं मेरे हाथों में आइए, मैं आपके हाथों में आऊंगी। अतः पूरा ब्रह्माण्ड आपकी सेवा में है, मानो अब आप मेरा कार्य करने के लिए मंच पर खड़े हों । ये सोचना गलत है कि आप बन्धन में बन्धे हुए हैं। काई बन्धन नहीं है, इसके विपरीत गण, फरिश्ते और देवता आपको प्रसन्न रखने के लिए हर सम्भव कार्य करने को उत्सुक हैं, आपको प्रसन्न रखने के लिए। आप यदि कुण्डलिनी उठाना चाहते हैं ता समझते अत: बेहतर होगा कि आप पंजाबी सीख लें चैतन्य-लहरियों के रूप में (सगुण) विद्यमान हैं। क्या प्रशंसा थी! ज़रा सोचें, एक योगी की दूसरी योगी के लिए प्रशंसा! हे परमात्मा! मैं तो यहाँ केवल निर्गुण- निराकार से मिलने आया था, परन्तु यहाँ मैं मिल किससे रहा हूँ -सगुण से! आपके रूप में साकार से! चैतन्य के अतिरिक्त मैं कुछ नहीं देख पा रहा हूँ! दूसरे योगी का यही सम्मान है। नामदेव दर्जी थे, ब्राह्मण नहीं थे। इसलिए ब्राह्मण उनसे अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। इस कारण से में आइए," मैं आपके उन्हें पंजाब जाना पड़ा। ये भी कहा जाता है कि उन्हें पंजाब में निर्मान्त्रित किया गया गुरुनानक ने जब उन्हें देखा तो कहा, कि हमारे यहाँ एक महान सन्त आए हैं। उन्होंने नामदेव को अपने साथ रखा और उनसे कहा कि यहाँ लोग मराठी भाषा नहीं आपकी सहायता के लिए वे उपस्थित हैं। आप जो चाहेंगे किया जा सकता है। परन्तु इसमें परिपक्व होना प्रथम आवश्यकता है और इसके लिए आपको समझना होगा कि 'आत्मा की भी एक संस्कृति है।' और अपनी कविताएं पंजाबी भाषा में लिखें। मेरे है। पास नामदेव-गाथा पुस्तक यह बहुत बड़ी पुस्तक -पुस्तक पंजाबी भाषा में है। इसकी कविताएं इतनी सुन्दर हैं कि इन्हें गुरु-ग्रन्थ साहिब में स्थान दिया गया है। गुरु-ग्रन्थ को मन्दिरों (गुरुद्वारों) में रखा जाता है। सिक्खों के सभी गुरुद्वारों में गुरु-ग्रन्थ साहिब रखे हुए हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब के कम से कम दसवें भाग में नामदेव की कविताएं हैं । एक अन्य महिला नौकरानी-ज्ञानबाई- थीं जो नामदेव है और आधी मानव संस्कृति की तरह से 'आत्मा की भी संस्कृति' है जिसे आत्म-सात करना आवश्यक है। आत्मा की संस्कृति के अनुरूप यदि आप चलें तो आपको समस्याएं नहीं हो सकतीं। आत्मा की संस्कृति की प्रमुख बात ये है कि आपने चैतन्य लहरी । अंक : 11 & 12 2007 17 किस प्रकार एक दूसरे से बातचीत करते हैं, किस प्रकार एक दूसरे की देखभाल करते हैं, किस प्रकार पावनता पूर्वक एक दूसरे के प्रति प्रेम-संचार करते हैं! जैसे सहजयोगी को सोचना चाहिए कि मैं वहाँ जा रहा हूँ तो दूसरे सहजयोगियों के लिए मुझे ये तोहफ़ा ले जाना चाहिए। एक भाई की तरह से। मैं इतने समय के बाद उससे मिलूंगा। उससे मिलना, के साथ कार्य करती थी। उनकी कविताएं भी गुरुग्रन्थ में हैं। तो जिस प्रकार से इन सन्तों ने एक दूसरे का सम्मान किया और दूसरे को समझा यह अत्यन्त उत्कृष्ट था। परन्तु अब तो बात बिल्कुल विपरीत हो गई है। झूठे और उल्टे-सीधे लोग परमात्मा के नाम पर धन बटोर रहे हैं। ये लोगों को धोखा दे रहे हैं और विश्व को नष्ट करने के लिए नकारात्मकता एवं परमात्मा का प्रकोप बटोर रहे हैं, और आम-आदमी इनका सम्मान करता है! परन्तु सहजयोगियों को चाहिए कि दूसरे सहजयोगियों का सम्मान करें। कोई भी व्यक्ति जब तक सहजयोगी है बातचीत करना और उसका आनन्द उठाना, कभी-कभी उसकी टाँगें खींचना और उससे विनोद करना बहुत ही अच्छा होगा। ये सारी संस्कृति प्रेम की ही हैं। आपमें यदि प्रेम की संवेदना नहीं है, आप शुष्क तबीयत हैं, हर समय गम्भीर या दुखी हैं तो याद रखें कि आप सहजयोगी नहीं हैं। तो अन्य-योगियों द्वारा उसका सम्मान किया जाना चाहिए, उसे समझा जाना चाहिए। यह अत्यन्त आवश्यक है। यही आत्मा की संस्कृति है। सहजयोगी को मुस्काहट पूर्ण, आनन्दमय व्यक्ति होना चाहिए। अन्य लोगों को प्रसन्न करने वाला। यही मुख्य अपेक्षा और दृष्टिकोण होना चाहिए। अगली बार, दिवाली पर जब आप आएंगे तो आध्यात्मिक संस्कृति के बारे में बताऊंगी। परन्तु यह आरम्भ है। नई संस्कृति, जिसे हमने स्वीकार करना इसमें हम उन सबका सम्मान करते हैं जो आध्यात्मिक रूप से ऊँचे हैं, जैसे परमात्मा के विषय में बात करते हुए हम गलत बातें नहीं कह सकते। हम ये नहीं कह सकते कि परमात्मा अनिष्टकर हैं। हम ऐसा नहीं कह सकते। हम सन्त हैं। परमात्मा है, के विषय में मैंने बताना शुरु किया है। अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करने में हमें शर्म नहीं महसूस करनी चाहिए। प्रेम अभिव्यक्ति करने में संकोच नहीं होना चाहिए। हम प्रेम की अभिव्यक्ति कर रहे हैं और प्रेम की अभिव्यक्ति होनी ही चाहिए। प्रेम अभिव्यक्त करने में कोई हानि नहीं है। परन्तु बन्धन ग्रस्त होने के कारण आरम्भ में हमें थोड़ा सा संकोच होता है। हम सोचते हैं कि लोग बात को गलत ढंग से लेंगे और सोचेंगे कि हम गलत हैं। नहीं, हम विशेष लोग हैं। हमें पूरे विश्व को संवारना है वो लोग ऐसा नहीं करेंगे, हमें नए विश्व का सृजन करना होगा और बाकी लोग हमारा आनुसरण करेंगे। हमें उनका अनुसरण नहीं करना। हम सम्राट-साम्राज्ञियाँ के प्रति हमें अत्यन्त सम्मानमय होना चाहिए। परमात्मा के सभी स्थानों का सम्मान होना चाहिए। सभी ईश्वरी चीजों का समान होना चाहिए क्योंकि आत्मा की संस्कृति यही है। यह ईश्वरत्व, मंगलमयता और सौन्दर्य का सम्मान करती है।' इस संस्कृति में हम सतही चीजों को नहीं देखते। इसमें हम मँहगी दिखनेवाली या विज्ञापनों के प्रति नतमस्तक नहीं होते। इसमें तो हम केवल यही देखते हैं कि कोई चीज़ कितनी आनन्दप्रदायी है। कोई यदि मुझे प्रेम से एक सुपारी भी भेंट करता है तो मैं इसे बड़े प्रेम से स्वीकार करती हूँ, परन्तु बिना प्रेम के यदि कोई मुझे हीरा भी भेंट करे तो मेरी दृष्टि में इसका कोई मूल्य नहीं है, ये सारी चीजें समाप्त हो जाएंगी, खो जाएंगी, ये सब बेकार हैं। अत: जो प्रेम आप हर चीज में डालते हैं वही आपको सहजयोगी बनाता है। किस प्रकार आप एक दूसरे से व्यवहार करते हैं तथा अन्य सभी कुछ बनाने वाले हैं। अत: हमें यह सब इसी प्रकार से कार्यान्वित करना होगा। लोगों के तौर तरीकों के सम्मुख हमें झुकना नहीं है। हमें तो अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 18 हम योगीजन हें और हमें योगियों की तरह से रहना होगा। उन्हें संरक्षण देना है और जब भी वो हमारे पास आते हैं, हमें उनकी देखभाल करनी है। उनसे हमने प परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। इस प्रकार व्यवहार करना है जैसे कोई पिता अपने पुत्र से करता है। उनका पालन पोषण करना है, उन्हें प्रेम-पूर्वक परिवर्तित करना है और समझाना है कि हम भिन्न शैली और भिन्न साम्राज्य के लोग हैं। हम आज की पूजा कृष्णपक्ष की है। शुक्लपक्ष में चाँद चढ़ती कला में होता है और कृष्णपक्ष में उतरती कलाओं। में चाँद बाईं ओर हाने के कारण हम महाकाली पूजा कर सकते हैं। सारी नकारात्मक तथा अनिष्टकर धारणाओं को समाप्त करने के लिए पूर्णत: स्वतन्त्र लोग हैं, जिन्हें परमात्मा देखता है, जिन्हें परमात्मा संरक्षण देता है, सहायता करता है तथा सम्मानित करता है। हमें इतना विशिष्ट पद महाकाली की पूजा सर्वोत्तम होगी। अत: आज हम प्राप्त है। अत: हमारे अन्दर वह गरिमा तथा वह महाकाली पूजा करेंगे। चरित्र होना चाहिए कि हम उस स्तर पर रह सकें। स्वयं को अपमानित करने के लिए हम कोई गलत कार्य कैसे कर सकते हैं? ऐसा हम नहीं कर सकते। करें। परमात्मा आप पर कृपा काम "आपमें और मुझमें नि:सन्देह घनिष्ठ सम्बन्ध है कि आप मेरे शरीर में हैं, परन्तु यदि आप ध्यान-धारणा नहीं करते तो यह ( सम्बन्ध) सांसारिकता है। आपको ये बता देना आवश्यक होगा कि 'ध्यानगम्य' होना होगा आप यदि 'ध्यानधारणा' नहीं करते तो मेरा आपसे कोई सम्बन्ध नहीं है। आप मेरे सम्बन्धी नहीं हैं, मुझ पर आपका कोई अधिकार नहीं है। आपको मुझसे ये पूछने का अधिकार नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है, वैसा क्यों हो रहा है ? अत: यदि आप ध्यान-धारणा नहीं करते- मैं हमेशा कहती हूँ ध्यान करें, ध्यान करें- तो मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं है। मेरे लिए अब आपका कोई अस्तित्व नहीं है। मुझसे यदि आपका योग ही नहीं है ( सम्बन्ध ही नहीं है ) तो आप भी अन्य लोगों की तरह से हैं चाहे आप सहजयोगी हों (कहलवाएं), चाहे आपने अपने अगुआओं से सहजयोग प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिए हों, ऐसा हो सकता है, मैं नहीं जानती- और हो सकता है कि आपको कुछ बहुत महान माना जाता हो, परन्तु यदि आप प्रतिदिन सुबह और शाम ध्यान-धारणा नहीं करते तो वास्तव में अब आप अधिक समय तक श्रीमाताजी के साम्राज्य में नहीं रहेंगे। क्योंकि सम्बन्ध तो केवल ध्यान-धारणा के माध्यम से जुड़ता है। मैं जानती हूँ कि कौन ध्यान-धारणा नहीं करते। तब उन्हें कष्ट होता है, उनके बच्चों को कष्ट होता है और जब ऐसा कुछ घटित होता है तब आकर मुझे बताने लगते हैं। परन्तु मैं स्पष्ट देखती हूँ कि यह व्यक्ति ध्यान-धारणा नहीं करता। उसके साथ मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है, मुझसे कुछ भी माँगने का अधिकार उसे नहीं है।" आदिशक्ति पूजा-1993 पत दिवाली पूजा परम पूज्य माনाजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कोमो 25.10.1987 (आध्यात्मिक संस्कृति) | हे हम श्रीगणेश को नमन करते हैं क्योंकि वे हमारे अन्दर अबोधिता का स्रोत हैं। वास्तव में हम अपनी आन्तरिक अबोधिता को इसलिए नमन करते हैं क्योंकि यही अबोधिता आपको बोध प्रकार आचरण न करती। परन्तु अबोधिता का प्रकाश सब कुछ जानता है। इसमें भय बिल्कुल नहीं है। जब हम कहते हैं कि बच्चे अबोध हैं तो हमारा कहने का अभिप्राय ये होता है कि उनमें अबोधिता Enlightenment) प्रदान करती है। कल, जैसा मैंने की शक्ति है। बहुत बार लोगों ने देखा होगा कि आपको बताया था, प्रकाश में अबोधिता है, पर इस बड़ी-बड़ी ऊँचाईयों से गिरने पर भी बच्चों की अबोधिता में ज्ञान नहीं है। परन्तु आपका प्रकाश अबोध है और इसमें ज्ञान भी निहित है। हम हमेशा यही सोचते हैं कि ज्ञानवान व्यक्ति कभी अबोध नहीं हो सकते, सहज नहीं हो सकते। हम सोचते हैं होता। गिरने का भी वह आनन्द लेता है, मानो कि अबोध हमेशा धोखा खाता है, उसे बेवकूफ पैराशूट नीचे आ रही हो! गिर जाने के बाद भी बनाया जा सकता है और स्वीकृत रूप से लिया जा मृत्यु नहीं होती, जबकि कोई जवान व्यक्ति उससे बहुत कम ऊँचाई से गिरकर भी जीवन से हाथ धो सकता है। गिरते समय बच्चे के अन्दर भय नहीं बच्चा सब पर हँसता है, उसकी समझ में नहीं आता कि क्यों सभी लोग चिन्तित हैं! क्योंकि अपनी अबोधिता में वह जानता है कि उसकी देखभाल हो रही है और वह सुरक्षित है। वह जानता है कि कोई शक्ति हैं जो बहुत ऊँची हैं और उसे चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बच्चे के मस्तिष्क में सकता है (Taken for Granted)। परन्तु अबोधिता ऐसी शक्ति है जो आपकी रक्षा करती है और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करती है। सांसारिक सोच के अनुरूप हमारे अन्दर जो ज्ञान है वह सिखाता है कि किस प्रकार दूसरों का अनुचित लाभ उठाएं, किस प्रकार उन्हें धोखा दें, किस प्रकार उनसे धन ऐंठे, किस प्रकार उनका मजाक बनाएं और किस प्रकार हम विचार भरना शुरु कर देते हैं और इस प्रकार वह अपनी अबोधिता की शक्ति खोने लगता है और उनका तिरस्कार करें! परन्तु अबोधिता का प्रकाश वो प्रकाश है जिसके द्वारा आप समझ पाते हैं कि प्रेम उच्चतम गुण है और यह ( अबोधिता) आपको अन्य लोगों से प्रेम करना, उनकी देखभाल करना तथा उनके प्रति भद्र होना सिखाती है। ये आपको अन्तर्प्रकाश भी प्रदान करती है यह विश्व में फैली हुई 'अविद्या' के बिल्कुल विपरीत है । बिल्कुल कायर, धूर्त और धर्मविहीन बन जाता है! परन्तु हम हमेशा यही कहते हैं कि बच्चे की अबोधिता एक . प्रकार का अज्ञान है क्योंकि बच्चों को भयबोध नहीं होता। अबोधिता का प्रकाश सभी खतरों को पहचानता है और इनसे छुटकारा पाना भी, तथा ये भी जानता है कि ऐसे व्यक्ति से दूर किस प्रकार हटना है। एक बुद्धिमान व्यक्ति सीढ़ी चढ़ रहा था और एक मुर्ख उसकी विपरीत दिशा से आ रहा था। एक मूर्ख व्यक्ति। मूर्ख प्राय: आक्रामक होते हैं क्योंकि उनमें हीन-भावना होती है। ऊपर आते विपरीत। ाक विश्व में फैली हुई बाह्य अविद्या हमें स्पर्धा एवं अन्य लोगों का तिरस्कार सिखाती है, क्योंकि इसके अन्दर भय-भाव निहित है। यह असुरक्षित है। यह ज्ञान (सांसारिक) बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। बाह्य अविद्या यदि स्वयं को सुरक्षित समझती तो इस हुए व्यक्ति को बुद्धिमान व्यक्ति कहता है:- "व्यक्ति को एक ओर हट जाना चाहिए, " परन्तु मैं मू्खों के लिए नहीं हटता," मूर्ख व्यक्ति बोला। "परन्तु मैं अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 20 ान महत्वपूर्ण है। केवल आत्म-साक्षात्कार (बोध) से ही यह हमें प्राप्त होती है। अत: हम एक ऐसी अवस्था में हैं जो अज्ञानमय एवं अबोध है- अबोध एवं अज्ञान लोग अब न तो अबोध हैं न अज्ञानी, परन्तु उनमें बोध नहीं है। ऐसे व्यक्ति धूर्त बन जाते हैं। उनमें यदि इन दोनों गुणों का अभाव है, उनमें अज्ञान नहीं है, उनमें तथाकथित ज्ञान है, अपनी मेधा एवं प्रतिभा के लिए वो प्रसिद्ध हैं और, तथाकथित ज्ञानवान कहलाते हैं। सांसारिक दृष्टि से ये ज्ञानवान परन्तु उनमें अबोधिता का पूर्ण अभाव है। अत: वे तरीके खोजने लगते हैं। मस्तिष्क को थोड़ा सा हट जाता हूँ," बुद्धिमान ने कहा। इस प्रकार से अबोधिता का प्रकाश आपको बताता है कि किसी व्यक्ति के साथ किस सीमा तक जाना है, किसी के साथ किस सीमा तक बातचीत करनी है, किसी के व्यक्तित्व तथा उसकी समस्याओं में कहाँ तक लिप्त होना है। अन्यथा आप पीछे हट जाते हैं। विवेकशील व्यक्ति समझता है कि ये व्यक्ति मूर्ख है अंत: मुझे इस प्रकार चलना है। ऐसे व्यक्ति पर वह चित्त नहीं डालता, उसकी चिन्ता नहीं करता। अवोधिता का प्रकाश व्यक्ति को सद-सद्- विवेक बुद्धि प्रदान करता है। अन्य लोगों के साथ किस सीमा तक जाना है। मैं किसी एक व्यक्ति से नियन्त्रित करने वाली अबोधिता लुप्त हो गई है प्रेम करता हूँ, और भी बहुत लोग हैं परन्तु में उसी से प्रेम करता हूँ। ठीक है। वह व्यक्ति चाहे आपको इसलिए अबोधिता का सम्मान नहीं करते तो वे ठोकर मारे, चोट पहुँचाए, कष्ट दे, वह चाहे भयानक रूप से भूतबाधित हो जाए, फिर भी पागलों की तरह बिना किसी आत्म-सम्मान के आप उससे प्रेम करते हैं? सांसारिक अर्थों में अबोधिता इसका कारण हो सकती है परन्तु वास्तव में आप ज्ञानशील एवं अबोध नहीं हैं। क्योंकि वे सोचते हैं कि अबोधिता मूर्खता है और लोगों से चालाकियाँ करने लगते हैं, नकारात्मक, व्यंगात्मक और अनिष्टकर बातें कहने लगते हैं। मस्तिष्क इन्हीं सब चीजों में चलने लगता है क्योंकि यह अपनी अबोधिता की शक्ति पुनः प्राप्त नहीं कर पाता। अत: हमें ऐसे लोग अच्छे नहीं लगते, बाद में हम उन्हें नहीं चाहते। तब इन लोगों में ऐसे विचार घर कर जाते है कि हम ऊँचे लोग हैं, चुनींदा हैं और इस प्रकार के विचारों वाले सारे लोग एकजुट हो जाते हैं। तो आपकी अबोधिता यदि ज्योतिर्मय हैं तो आपकी यह शक्ति सर्वप्रथम आपको सद्-सद्-विवेक बुद्धि प्रदान करती है मान लो अपने हाथ में आप अज्ञान को ज्ञान मान लिया जाता है। अन्दर से ये प्रकाश लिए हुए हों तो आप देख सकते हैं कि रस्सी है या सॉप? परन्तु प्रकाश के बिना आप येपूण अज्ञान है परन्तु बाह्य में इसे ज्ञान के रूप में सब नहीं देख सकते । साँप को देखकर आप भाग खड़े होंगे, परन्तु यदि आप मूर्ख हैं तो साँप को ये भी कह सकते हैं, "आओ मुझे काटो, मैं देखना चाहूंगा कि कैसा लगता है।" आपमें यदि ज्ञान का मान लिया जाता है और इस प्रकार ये बढ़ता रहता है। अपने अन्तस में वो कुछ नहीं खोजना चाहते, तथाकथित बाह्यज्ञान से सन्तुष्ट हो कर इसी तरह से चलते रहते हैं। सिर फूटने के बाद उन्हें पता चलता है, है परमात्मा! अन्दर क्या था? अन्दर तो सारा प्रकाश है तो आप साँप से कहेंगे, 'मझे छोड़ दो चले जाओ, नमस्ते,' और साँप इस बात को समझ था ! तपस्वी की तरह से सारी अज्ञान (अन्धेरा) खिड़कियाँ बन्दकर के हम नहीं रह सकते, सूर्य तो बाहर चमक रहा है! स्वयं देखने के लिए हमारे अन्दर प्रकाश का होना आवश्यक है। हम क्या हैं, हमारी शक्तियाँ क्या हैं, हम किस सीमा तक जा कर चला जाएगा। लेकिन साँप यदि मनहस है तो उस पर दृष्टि पड़ते ही वह दौड़ जाएगा। अत: अबोधिता की यह शक्ति अत्यन्त প अंक : 11 & 12 -2007 21 चैतन्य लहरी प्रदान करता है। चैतन्य के प्रकाश के बिना आप सकते हैं, किस प्रकार हम स्वयं अपने जीवन, मुझे पहचान ही न पाते, किसी देवी-देवता को भी न पहचान सकते और न ही ये समझ पाते कि जीवन में आपकी क्या स्थिति है और आपके जीवन को चला रहे हैं? बोध (आत्मसाक्षात्कार) अपनी आयु की अभिव्यक्ति आपके अन्दर चैतन्य के रूप में हो गई है, प्रकाश के रूप में। अत: चैतन्य स्वयं प्रकाश का क्या लक्ष्य है। आप ये न जान सकते कि आपके जीवन का उददेश्य क्या है, आप यहाँ क्यों आए है। क्या आप यहाँ पर इसलिए हैं कि कुछ पैसा कमा लें, बीमा करवा लें, शेयर व्यापार में धन लगा दें, अपने पति या पत्नी की है। बाहर और अन्दर के प्रकाश में ये अन्तर है कि बाह्य प्रकाश में आप आँखों द्वारा देख सकते हैं कि ये पत्थर है, बूट है, घर है, किसी व्यक्त का चेहरा है या ऐसी ही कोई अन्य चीज, परन्तु यह प्रकाश आपको ये नहीं बता पाएगा कि यह व्यक्ति अच्छा है या बुरा, ये घर चैतन्यमय है या नहीं, मंगलमय उंगलियों पर नाचते रहें और किसी तरह से है या नहीं। तो ये प्रकाश आपको मंगलमयता, बच्चों का पालन पोषण कर दें? क्या यहाँ पर आप इसीलिए हैं? ये चैतन्य स्पष्ट रूप से आपको बताता है- नहीं'। क्योंकि इन चीजों में बहुत अधिक फँस कर यदि आप सामूहिक कार्यक्रमों से कट जाते हैं तो यह प्रकाश बुझ (समाप्त) जाता है। चैतन्य स्वयं प्रकाश है। अपना सारा ज्ञान ये है, और परम चैतन्य से इस प्रकाश का सम्बन्ध पूरी तरह से कटते ही आप बिल्कुल प्रकाशहीन हो जाते मंगलमयता का विचार नहीं प्रदान करता। हम श्रीगणेश की अबोधिता का बात कर रहे हैं जो हमें मंगलमयता का विवेक प्रदान करती है और हमें मंगलमय भी बनाती है। इस प्रकार से चैतन्य स्वयं प्रकाश आपको बताता है। कल्पना करें कि कितना सूक्ष्म प्रबन्ध किया गया है कि चैतन्य वलयों' कोमो में हैं। अत: चैतन्य-लहरियों से आपका सम्बन्ध अत्यन्त चाहिए और पूर्णतः निरन्तर तथा सुस्थिर। तथा सूक्ष्म-सूक्ष्म प्रकाश कणों में, इतना विवेक और दृढ़ होना सद्-सद्-विवेक-बुद्धि निहित है कि यह आपको बता सकती है कि कोई व्यक्ति अच्छा है या बुरा! चीजों को ठीक प्रकार से नहीं समझ सकते। यद्यपि सहजयोग हमें अत्यन्त आसानी से मिल चैतन्य-लहरियाँ सभी कुछ जानती हैं परन्तु माध्यम गया है इसलिए हमने ये पता लगाने की भी चिन्ता यदि सही न हो, जिसे चैतन्य-लहरियों का सम्मान नहीं की कि हमारे कम्प्यूटर को क्या मिल गया है! ही न हो, जिसका तारतम्य चैतन्य-लहरियों से न हो. इसे प्रकाश मिल गया है। अब ये जानने की ऐसे माध्यम से चैतन्य-लहरियाँ सम्पर्क किस प्रकार सम्भावना है कि फलां व्यक्ति को क्या समस्या है। स्थापित कर सकती हैं? ये प्रकाश व्यक्ति के एक आयाम तक जा सकता है- वो किस प्रकार कार्य करता है, किस प्रकार उदाहरण के रूप में यदि प्रकाश स्थिर न हो तो आप है ये यन्त्र जो आपको प्राप्त हुआ इसे हर समय प्रवाहित होना होगा। अत: आपको अत्यन्त शुद्ध यन्त्र बनना होगा। मान लो लैम्प के अन्दर प्रकाश है परन्तु उसका शीशा साफ नहीं है तो प्रकाश आप तक ठीक प्रकार से नहीं पहुँच पाएगा। अत: पावनता स्थापित करनी होगी और इस क्षेत्र में श्री गणेश अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कवे आपको स्वच्छ करते हैं, धो देते हैं और आप अबोध बन जाते हैं तथा किसी भी भले व्यक्ति को हानि चलता है और आप यदि किसी चीज़ की कल्पना करने लगे और कहें कि मुझे ऐसा लगता है, मैं ऐसा सोचता हूँ, तो हमारे अन्दर का चैतन्य जो बाहर प्रसारित हो रहा है, जिसे हम चारों ओर से प्राप्त कर रहे हैं, जो सर्व्यापी है, जो हर अणु-परमाणु में ठीक से विद्यमान है, वह हमें हर चीज़ का, हर पशु का, हर मानव का और देवी-देवताओं का ज्ञान अंक : 11 & 12 2007 22 चैतन्य लहरी पहुँचाने की योजना नहीं बनाते। यह अबोधिता ऐसे लोगों से कुछ लेना-देना नहीं है। खेद प्रकट मंगलमय होने का कारण बन जाती है। आप मंगलमय करते हुए उन्हें कह दें कि आप कुछ नहीं कर सकते तुम जो चाहे करो, ये हमारी जिम्मेदारी नहीं बनने लगते हैं जहाँ कहीं भी आप जाते हैं, जिससे भी आप मिलते हैं, वह सोचता है- हे, परमात्मा है। बिना कमजोर पड़े या दुविधा में फँसे आप उन्हें आज कुछ शुभ घटित होने वाला है। हाल ही में बता दें कि इस मामले में हम आपकी कोई सहायता जर्मनी में मैं किसी से मिली। कोई सहजयोगी थे नहीं कर सकते, हमें खेद है। आप स्वयं को कार्यान्वित करें क्योंकि ये प्रकाश आपका पोषण करता है और आपको शक्ति प्रदान करता है आत्मा जिसने मेरे और सहजयोग के विरुद्ध बोलना शुरु कर दिया था तथा आश्रम छोड़ दिया था। तब वह किसी सहजयोगी कहलाने वाले व्यक्ति और उसकी का प्रकाश अवश्य आपको आन्तरिक शक्ति प्रदान करेगा। शक्तिशाली व्यक्ति बन जाएं, ऐसे व्यक्ति जो बहुत कुछ सह सकता है, यहाँ तक कि क्रूसारोपण भी। परन्तु युद्ध भी कर सकता है। उसके अन्दर क्रुद्ध होने का गुण भी विद्यमान होता है। पत्नी के पास गया और वहाँ अपनी तकलीफों के बारे में बताया और सहजयोग के विरुद्ध बातें करने लगा। यद्यपि वह व्यक्ति भूतबाधित था और उन लोगों को मेरे विरुद्ध उसकी बात नहीं सुननी चाहिए थी। शास्त्रों में लिखा हुआ है कि 'गुरुनिन्दा' या गुरु सहजयोगी में क्रूद्ध स्वभाव होना अच्छा के विरोध में कुछ सुनना अत्यन्त भयानक है। तो नहीं है परन्तु यदि कोई आपसे माँ-विरोधी कोई कोई यदि आपके गुरु के विरुद्ध कुछ कहे तो हाथों बात कहे तो आपको क्रोध आना ही चाहिए। यही के वह स्थान है जहाँ पर आपने अपने क्रोध का उपयोग से अपने कान बन्द करके कहें "अपने गुरु विरुद्ध में कुछ नहीं सुनना चाहता। ऐसा करने की अपेक्षा उन्होनें उस व्यक्ति से सहानुभूति जताई। अब महिला को भयानक कैंसर रोग है और पति भी करना है। ऐसे व्यक्ति को यदि घूँसे लगा दें तो भी कोई बात नहीं। श्री गणेश आपके पीछे खडे होंगे और श्री हनुमान आपके सामने। आप यदि उसे एक बहुत बीमार है। व्यक्ति को समझना चाहिए कि समुद्र पार करने के लिए हम सभी नाव पर सवार हैं और कोई अकी और बार घूँसा मारेंगे तो हनुमान जी उसे दस बार घूँसे मारेंगे। तो इस प्रकार के क्रोध का कोई अर्थ है लोग कहते हैं कि व्यक्ति को लालची नहीं होना चाहिए। हाँ, व्यक्ति को लालची नहीं होना अपना पैर नाव से निकालकर मगरमच्छ के मुँह में डालना चाहे तो ऐसे व्यक्ति को कोई कैसे बचाएगा? बेहतर होगा कि ऐसे व्यक्ति नाव पर सवार होने के चाहिए। परन्तु आपमें यदि चैतन्य का लालच है तो स्थान पर मगरमच्छ के पास चले जाएं। जो लोग इस प्रकार के लोगों से सहानुभूति करते हैं जिन्होंने चाहिए और जहाँ भी चैतन्य मिले दौड़कर चैतन्य अपना एक पैर मगरमच्छ के मुँह में डाला हुआ है, प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। इस मामले में वो भी कठिनाई में पड़ जाएंगे। ये सारी चीजें केवल बाधा ही नहीं डालती परन्तु अमंगलमय और भयानक भी हैं। इनके विषय में आप सबको अत्यन्त सावधान होना होगा। किसी को ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि तुम आसुरी प्रवृत्ति हो या बुरे हो, या ऐसा ही कुछ, परन्तु ऐसे लोगों से दूर हट जाएं। मुझे समझ पाई। क्योंकि जब घृणा की बात आती है तो है। चैतन्य का लालच आप में होना अच्छी बात । यह लालच अच्छा है और आपके अन्दर लालच होना चाहिए। ये लालच यदि आपमें नहीं होगा तो किस प्रकार आप अन्य आकर्षणों से स्वयं को बचा पाएंगे? यह आश्चर्य की बात है। मैं हमेशा मनुष्यों पर आश्चर्य करती हूैँ, मानव को मैं कभी भी नहीं अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी 2007 23 मनुष्य सबसे आगे होता है। घृणा करने के लिए सभी कुछ सुगम हो जाता है, वहाँ लोग सुख-सुविधाओं आदि के चक्कर में पड़ जाते हैं, परन्तु बलिदान उनकी समझ में बिल्कुल नहीं आता! अपनी पत्नियों, बच्चों एवं पतियों आदि की सभी समस्याएं लेकर वो आते हैं और ये सब चलता रहता. है! चलता है। कर लें और इन्हें भूल जाएं। मनुष्य अपना सब कुछ बलिदान कर सकता है। परमात्मा के नाम पर, राष्ट्र के नाम पर या किसी भी अन्य चीज के नाम पर। आपको बस कहना भर पड़ता है कि हमने किसी से घृणा करनी है। एकदम से सभी लोग एकत्र हो जाएंगे सभी प्रकार की यातनाएं भुगत लेंगे, सब कुछ बलिदान कर देंगे, जेलों में चले जाएंगे, आत्म-हत्या कर लंगे, एक बार एक ही बार इन समस्याओं का समाधान रहता आपने सहजयोग को फैलाना है। कुछ समय और धन बलिदान करना होगा और कौन इसे कार्यान्वित करेगा? रूस, जर्मनी और पोलैण्ड में जिस प्रकार लाग मारे गए थे वैसे आपको कोई नहीं मारेगा। कोई आपके बच्चे या धन नहीं छीनेगा। घृणा करने को कह तो दें! अन्यथा आपको कहना पड़ेगा कि 'हम महान राष्ट्र हैं और वे बुरे राष्ट्र हैं, अत: हमें उनसे लड़ना होगा। लोग ऐसा करते हैं। आश्चर्य की बात है कि राजनीतिक क्रान्ति और राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए लोग बलिदान की किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। उस दिन मैं किसी को इसकी आवश्यकता नहीं है। परन्तु आपके लेनिन देख रही थी, मैं हैरान थी कि अकेला लेनिन जो सदा देश से निष्कासित रहा-लिखा करता था कि चाहिए। आपके अन्दर कुण्डलिनी ही शुद्ध इच्छा है। हमें युद्ध करना है, हमें यह पाना है, हमें ऐसा करना है। यद्यपि वह आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति था फिर हुआ) रखा जाना चाहिए। परन्तु इस मामले में भी उसने आध्यात्मिकता के विषय में नहीं लिखा । उसने राजनीतिक संघर्ष के विषय में लिखा और तीन बार क्रान्ति हुई तथा सब स्थानों पर हजारों लोग चाहते, क्योंकि यहाँ पर आनन्द प्राप्त होता है। परन्त मौत के घाट उतार दिए गए। आश्चर्य की बात है कि वह इतना समर्पित था कि छोटे बच्चे, पत्नियाँ, गर्भित महिलाएं और बहुत से पुरुष इस प्रकार से मारे गए। वे पुनः उठे, पुन: उठे, तीन बार क्रान्ति की और अन्तत: सफल हुए। किसलिए? राजनीतिक उपलब्धि पाने के लिए। भारत में भी हमने ऐसा ही किया। लोगों ने अपने घर, परिवार तथा सभी कुछ त्याग दिया। यहाँ तक की कुगुरुओं के लिए लोगों ने इतना पैसा खर्च किया, इतना कुछ किया, घर बेच डाले, बच्चों को कठिनाई में डाल दिया, स्वयं कठिनाई में फँस गये और सभी कुछ कर दिया! हाथ का यह दीपक शुद्ध इच्छा पूर्वक जलता रहना यही बाती है जिसे पूर्णतः पोषित ( तेल में डूबा सहजयोगी असफल हो जाते हैं। सहजयोग छोड़ने के लिए कहने पर भी लोग सहजयोग को छोड़ना नहीं मानव के लिए यह कुछ भिन्न होगा। किसी व्यक्ति का यद शराब की बोतल मिल जाए तो इसका आनन्द लेने के लिए वह दस लोगों को बुलाता है। किसी कुत्ते को खाने के लिए यदि कुछ मिल जाए तो वह अन्य कुत्तों को बुलाता है, गाय को यदि कुछ मिल जाए तो वह अन्य गउओं को बुलाती है। यह गुण उनमें अन्तर्रचित है। मानव में भी ऐसा ही है। परन्तु सहजयोग में ऐसा करने में हम इतने दृढ़ नहीं है! हमें अपने सभी सम्बन्धियों को बताना होगा कि हम सहजयोगी हैं और यह अन्तर्धर्म है। आप यदि इसे नहीं मानना चाहते तो मुझे आपसे कुछ लेना-देना नहीं। क्यों नहीं आप इसे अपनाते? सबके सम्बन्धी हैं! परन्तु उचित, विवेकमय तथा महानतम घटना जो घटित होनी है- 'सहजयोग, ' जहाँ हम पर हर RE दिवाली के दिन जब हम अपने प्रकाश के समय सुख और आनन्द की वर्षा हो रही है, जिसमें चैतन्य लहरी 2007. 24 अक : ।। & 12 - आराम कर रहे हैं। मैं यहाँ हूँ तो इटली के लोग विषय में बात कर रहे हैं तो इस प्रकाश का हम क्या करने वाले हैं? क्या हम इसे केवल अपने कार्य कर रहे हैं, परिश्रम कर रहे हैं बाद में वे स्वार्थ के लिए उपयोग करने वाले हैं? ईसा-मसीह ने कहा था कि दीपक को ढक कर न रखें इसे मेज के ऊपर रखें। हम सबको जनता के बीच रहती हूँ। क्या आपने किसी ऐसे वैभवशाली व्यक्ति आकर सहजयोग प्रचार-प्रसार के तरीके खोजने को देखा है जो अपनी सारी सम्पदा बाँटने में व्यस्त होंगे। केवल अगुआ ही नहीं, सभी को सहजयोग हो और अन्य लोग केवल उस सम्पदा को लेने में आराम करेंगे! और मैं क्या करती हूँ? सभी कुछ मेरे पास होते हुए भी पूरा वर्ष मैं भिन्न स्थानों पर जाती ही लगे हुए हों? ऐसा ही है । का प्रचार-प्रसार करना होगा। सहजयोग का प्रचार करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? आप सर्वत्र जाते हैं। किस प्रकार हम इसके विषय में बता सकते हैं? मैं ये नहीं कहती कि आप सब अपने मुझे आपको बताना है कि आपने अपने उत्साह के नए आयाम में आना है। सहजयोग केवल हमारे आनन्द के लिए ही नहीं है। हम सन्त हैं तो क्या हुआ? आपको किसलिए सन्त बनाया गया? वस्त्र बंदल लें। परन्तु बड़े-बड़े बैंज तो आप लगा ही सकते हैं। तब लोग आपसे पूछेंगे। तब आप उन्हें बता सकते हैं कि हाँ ये वही शख्सियत हैं जिन्होंने हमें ऐसा नहीं है कि केवल पुरुषो को काम करना चाहिए या महिलाओं को करना चाहिए या कुछ खास ही लोगों को काम करना चाहिए। इन प्रलोभनों में न फँसे। समुद्र-मंथन में से तेरह प्रकार के सुख-शान्ति और आनन्द प्रदान किया है। इस प्रकार बात करना आरम्भ कर दें। बाज़ारों में जाएं, सार्वजनिक स्थानों पर जाएं। केवल चैतन्य फैलाने के मैं लिए मैं बाज़ारों में जाती हूँ। आप सबको ऐसा प्रलोभन निकले और चौदहवाँ इन तेरह को बेअसर ही करना होगा अन्यथा सहजयोग आनन्द को आप करने के लिए एक बहुत बड़ा शिकारी था। ऐसा अपने तक ही सीमित रखेंगे। बिना अन्य लोगों से नहीं है कि सहयजोग किसी को प्रलोभन देना चाहता बाँटे आप भी पूरी तरह इसका आनन्द नहीं उठा पाएंगे। परन्तु आशीर्वाद होने के कारण आपके लिए ये प्रलोभन बन जाते हैं। आशीर्वाद का ही उपयोग आप प्रलोभन के रूप में करने लगते हैं । मेरी ओर देखें मेरे पास संसार का सारा इस प्रकार प्रलोभनों में फँसने वाले व्यक्ति कुछ है, तो मुझे तो स्व:केन्द्रित हो चैतन्य है। सभी कर ध्यान में बैठ जाना चाहिए। इस आयु में भी, की स्थिति उस घोड़े जैसी होती है जिसे दक्षिण की आखिरकार, क्यों मुझे यात्रा करनी चाहिए? मैं तो ओर जाना हो या उत्तर की ओर परन्तु वह आराम आदिशक्ति हूँ। क्यों मुझे अन्य लोगों को शक्तिशाली से खड़ा हुआ घास खा रहा हो! आपको चलना बनाने की चिन्ता करनी चाहिए? कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे चाहिए कि मैं अपनी शक्तियों का दूसरे स्थान पर जाना है, एक गाँव से दूसरे गाँव आनन्द लँ। में ऐसा कर सकती हूँ, फिर भी नहीं कर सकती। मुझे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। ही चाहिए। ईसामसीह ने भी अपने अनुयायियों से मेरा परिवार है, मेरे पति का जीवन बहुत व्यस्त है। यही कहा था, 'परन्तु उन्होंने कितने धर्म बना दिए मेरे चार नाती हैं। नाती-नातिनों को भी मैं अधिकतम समय देती हूँ। यहाँ रोम में आकर मुझे आप लोगों सिद्ध करना है। परन्तु जब आप लोगों को बताते हैं से बातचीत भी करनी पड़ती है। आप सब लोग तो आपके बताने की शैली बहुत महत्वपूर्ण है । LEE होगा। चलना ही शक्ति है। आपको एक स्थान से तक, एक घर से दूसरे घर तक। ये संदेश तो फैलना है'? उन्होंने कितने धर्म बना दिए है? आपने इसे अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 25 आपका चीजों पर बल देना महत्वपूर्ण है। बेशक आज से आप लोगों को बता सकते हैं कि मैं क्या हूँ। कब तक आप इसे छिपाते रहेंगे? बेहतर होगा हमने एक कार्यक्रम किया था, मैं बता रही हूँ कि कि आप उन्हें बताएं ये (आदिशक्ति) हैं, ये बात बाइबल में लिखी हुई है। वे ये हैं और हमने इसका पता लगा लिया है। आप यदि इसे नहीं देखना चाहते लें, उन्हें पत्र लिखें, तो न देखें, ये आप पर निर्भर करता है। परन्तु गतिशील करें, अन्यथा आपके सभी साथी मानव इस महत्वपूर्ण समय को खो देंगे। जैसे उस दिन व्यवहारिकता में मैं क्या करती। जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है उनके पते लिख जाकर उनसे मिलें, पूछे की क्या हुआ, वो आए क्यों नहीं, वो क्यों नहीं आ रहे है? तब उन कारणों की सूची बनाएं कि लोग क्यों नहीं आए, क्या हुआ, वो क्यों नहीं आ रहे है? उन्हें निरन्तर लिखते रहें। आपको आश्चर्य होगा कि गलती से यदि आप कभी रीडर्ज़ डाइजेस्ट ( Readers सच्चाई यही है। आइए दृढ़-निश्चय करें, ऐसी ही स्पष्टवादिता का। इन भयानक राजनीतिज्ञों को देखें। वे कहते है ' मेरा विश्वास है कि कुछ लोग होने चाहिएं, मुझे इसमें विश्वास है, मुझे इसमें विश्वास है! आप केवल विश्वास ही नहीं करते आपको इसका ज्ञान Digest) की एक प्रति खरीद लें तो वो लगातार आपको अपनी पत्रिका भेजते चले जाएंगे! बहुत सी चीजें, कई भिन्न प्रकार के तोहफ़े आपको भेजेंगे। चाहे इनकी आपको आवश्यकता न हो। फिर भी वे है। आज दिवाली के दिन इस बात का निर्णय किया जाना चाहिए कि अगली दिवाली तक हमें बहुत लोगों को सहजयोग में लाना है। से भेजे चले जाएंगे। मैंने उन्हें लिखा है कि मुझे कुछ न भेजें, मुझे कार की आवश्यकता नहीं है, केवल पत्रिका भेज दें। धन्यवाद। में इतनी भाग्यशाली व्यक्ति नहीं हूँ। (जिसकी लॉटरी निकले) कृपा करके मुझे कुछ न भेजें। इसी प्रकार से आप भी लोगों को लिखें, "कि आप श्रीमाताजी के पास क्यों नहीं आ रहे, सहजयोग में क्यों नहीं आ रहे? ऐसा करना बहुत आवश्यक है। सहजयोग से मुझे बहुत कुछ प्राप्त हुआ है, क्यों आप ये लेना नहीं चाहते? अपने अन्दर की सत्यनिष्ठा को दर्शाएं। ये सत्यनिष्ठा यदि आप नहीं दर्शाना चाहते और इसे भौतिक रूप से ही लेते है कि ठीक है, सब अच्छा है आदि, परन्तु बहुत से लोगों ने मुझे बताया है कि जब मैं बोलती हूँ तो कुछ लोग समझते हैं कि मैं उनसे न कहकर किसी और से कह रही हूँ। आपको चाहिए कि उन लोगों को देखें जो सहजयोग के लिए आपसे कहीं अधिक कठोर परिश्रम कर रहे हैं और हैं, सहजयोग में कहीं अधिक लगे हुए सहजयोग में कहीं अधिक उपलब्धियाँ प्राप्त कर रहें हैं। उन लोगों की ओर न देखें, कि जिन्होंने कुछ नहीं किया। आप मुझे देख सकते हैं। सोचें कि हम क्या कर रहे हैं? में कहां जा रहा हूँ? यह बहुत महत्वपूर्ण समय हैं। मैं अधिक से अधिक पाँच और तो यह सहजयोग को कार्यान्वित करने का तरीका वर्ष यात्रा कर सकती हूँ। अधिक से अधिक। क्या आप सोचते हैं कि 70 वर्ष की आयु के बाद भी मैं यात्रा कर पाऊंगी? यह इतना महत्वपूर्ण समय है। जब मैं यहाँ होती हूँ तो लोगों से मिल सकती हूँ, स्वर्ग में अपना स्थान आरक्षित करना है। ऐसा करना उनसे बातचीत कर सकती हूँ, और उनकी काफी सहायता कर सकती हूँ। इन पाँच वर्षों में आपको कुछ तो प्राप्त करना होगा। उछलकर स्वयं को नहीं है। मैं यदि भारत चली गई तो वहाँ पर ये कार्य अत्यन्त तेजी से कार्यान्वित होगा। आपने तो बहुत आवश्यक है। हवाई-जहाज में जाने के लिए भी आपको स्थान आरक्षित कराना पड़ता है तो स्वर्ग के विषय में क्या कहें। बहुत से लोगों को अपने अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 26 सूची में सभी जजों के नाम थे, तुरन्त मेरे भाई ने फोन उठाया और सब लोगों को बताया कि वे उस स्थान आरक्षित करने होंगे। यदि सारे भारतीय लोग ही वहाँ पर बैठ गए तो आप क्या करेंगे? तो इस महिला से कोई सम्बन्ध न रखें।' तो इस प्रकार से आनन्द, प्रसन्नता, प्रकाश तथा साक्षात्कार के इस सौन्दर्य के साथ आप सब गुरु हैं। इन बेकार के है। आपको भी लोगों तक पहुँचने की विधि खोजनी गुरुओं की कल्पना करें जो कुछ भी नहीं जानते, होगी मैं जब स्वयं होती हूँ तो दो सौ लोग आते हैं, उनकी तो कुण्डलिनी भी जागृत नहीं है, फिर भी परन्तु मेरे जाने के बाद केवल दो लोग रह जाते हैं? उन्होनें कितने बड़े-बड़े साम्राज्य खड़े कर लिये हैं! कोई कारण तो अवश्य होगा। लोग मुझे नहीं जानते। मैं ये नहीं कहती कि तुम भी उन्हीं की तरह से साम्राज्य खड़े करो। "नहीं, ऐसा कुछ नहीं कहती। परन्तु कम से कम एक झोंपड़ा तो बना लो ताकि ये दर्शा सको कि आपने कुछ प्राप्त किया है| और से बहुत अधिक न लिखें। जब आप उन्हें पत्र यह कार्य होना आवश्यक है।" अपने दफ्तर में लिखने लगेंगे तो उनकी अज्ञानता में प्रवेश कर सबसे सहजयोग के बारे में बात करें, इसमें आप संकोच न करें। मैंने देखा है कि दफ्तरों में, बसों में और सर्वत्र, लोग इन कुगुरुओं के फोटो लगाते हैं । तो आप मेरी तस्वीर क्यों नहीं लगाते ? उत्सुक होकर लोग आपसे पूछेंगे, आप उन्हें बताएं और यह कार्यान्वित होगा आश्चर्य की बात है कि इटली में यह सर्वोत्तम रूप से हो रहा है, क्योंकि हमें' बहुत अच्छे लोग मिल गए हैं। आपको चाहिए कि ऐसे लोगों को खोजने का प्रयत्न करें जो आपके आस-पास हों और उनके पीछे पड़कर इसे कार्यान्वित करें। गलत लोगों के पास न जाएं। अपने विवेक का उपयोग करें। आप जानते हैं कि वे गुरु किस प्रकार कार्य करते हैं। ये बहुत आवश्यक है। मेरा भाई कम से कम उनके पते तो ले लें। पता लगाएं वो कौन लोग हैं। उन लोगों की सूची बनाएं और उन्हें पत्र लिखते रहें, चाहे रीडर्ज डाइजेस्ट वालों की तरह पाएंगे। आपके चित्त की गतिविधि से उनमें प्रकाश जाएगा, उन तक प्रकाश पहुँचेगा। आप नहीं जानते कि आपका चित्त कितना शक्तिशाली है! आप यदि उनपर चित्त डालेंगे तो प्रकाश उन तक पहुँचेगा। आज नहीं तो कल वे लौट कर आएंगे। आप मेरा फोटोग्राफ भी भेज सकते हैं. कह सकते हैं कि हमें प्रसन्नता है कि आप कार्यक्रम में आए, फोटोग्राफ को आजमाएं। अनुवर्ती कार्यकम यदि सफल नहीं होता तो इस विधि को आजमाएं। सफलता पाने के लिए कभी-कभी यह बहुत अच्छा मार्ग है। परन्तु साचना समझना आप पर निर्भर करता है क्योंकि आप मानव हैं और मानव को पहचानते हैं। स्वयं को दूसरे व्यक्ति की स्थिति में डालकर से मुझसे बता रहा था कि मुक्तानन्द के यहाँ एक महिला उसके पास आई, यद्यपि मुक्तानन्द अब वहाँ नहीं है, वह महिला वहाँ से आई। ये अंग्रेज महिला आई. और वहाँ लगी मेरी तस्वीर को देखकर लोगों को चाहिए कि मेरे विषय में पुस्तक लिखें बोली, 'ये श्रीमाताजी यहाँ क्या कर रहीं हैं?" मेरे भाई ने कहा क्या? ये मेरी बहन हैं। तुरन्त उसने विषय में पुस्तक लिखें। परन्तु ऐसे लोगों को लिखना अपना सामान उठाया और दौड़ गई। मेरे भाई ने उसे चाहिए जिनकी समाज में कोई पहचान हो, और बुलाया, बैठने को कहा और पूछा, करती हैं?" उसने कहा, "हम शहर के सारे महत्वपूर्ण लिख सकते हैं। वे सबके विषय में लिखते है तो लोगों के पास जाकर उनसे बात करते हैं।" उसकी मेरे विषय में क्यों नहीं लिख सकते। नि:सन्देह आप देखें कि आपको क्या अच्छा लगता। मैं सोचती हूँ कि एक अन्य चीज़ भी है इसमें कोई हानि नहीं है। मेरे विषय में लिखें, मेरे जिन्हें लोग गम्भीरता से लें, वो मेरे विषय में पुस्तक आप क्या अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी -2007 27 सहजयोग के विषय में लिखते हैं परन्तु आप मेरे विषय में भी लिख सकते हैं, लोगों को बता सकते लगी हैं और इसका अर्थ आप जानते हैं। आज हैं कि फलां-फलां शख्सियत है और कोई बन्धन नहीं है। ऐसा क्यों न करे। लोग इन सब भयानक गुरुओं के विषय में लिखते हैं, आप क्यों नहीं मेरे विषय में लिख सकते? परन्तु लेखक प्रसिद्ध व्यक्ति होना चाहिए। यदि आप अच्छे लेखक हैं तो आप पुस्तक लिख सकते हैं और कोई अन्य इसका सम्पादन और मुद्रण कर सकता है। हम ऐसा भी के गुणों के आशीर्वाद की वर्षा आप पर होती है। कर सकते हैं। बहुत से ऐसे तरीके हैं जिनसे आप सहजयोग की ओर लागों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। सहजयोग के. विषय में कितने लोग जानते बोले जाने चाहिए। हैं? भारत की जेल से छूटकर कोई व्यक्ति आता है और अमेरिका की किसी गन्दी गली के कोने में प्रसिद्ध गुरु बन बैठता है! कैसे? ऐसे सभी लोग बहुत प्रसिद्ध हैं। हमेशा ऐसे कार्य पैसे के माध्यम से ही नहीं किए जाते। जान-बूझकर तथा सम्मोहन द्वारा भी ये कार्य किए जाते हैं। मैं भली भांति जानती हूँ कि आप सच्चे साधक हैं परन्तु अपनी स्वतन्त्रता में ईसा-मसीह की माँ को मेरी या मरियम कहा गया आपको महसूस करना होगा। और आज आपने यही क्योंकि उत्पति धन से हुई, कोई नहीं जानता कि अब देखें कि चैतन्य-लहरियाँ प्रवाहित होने लक्ष्मी पूजा करते हुए, आपके चक्रों पर इन आशीर्वादों की वर्षा हो रही है। पूजा इस प्रकार से की जानी चाहिए कि सभी देवी - देवता प्रसन्न हों और आपको पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त हों। ये मन्त्र है; संगीत और मन्त्रों में अन्तर है, मन्त्र आपके चक्रों पर कार्य करते हैं, आपके उस भाग को खोलते हैं और मन्त्र अतः मन्त्र तेजी से या सतही रूप से नहीं गाए जाने चाहिएं, मन्त्र गहन भावना और सूझ-बूझ पूर्वक क्या आप इन सभी लक्ष्मियों का अर्थ जानते हैं, क्या सबको बता सकते है? या मैं बताऊ? सर्वप्रथम आद्यलक्ष्मी हैं। आद्य अर्थात आदि (Primordial ) लक्ष्मी। जैसे मैंने आपको बताया था वे समुद्र से निकलीं थीं। तो ऐसा ही है। जैसे निर्णय करना है कि हमें ये प्रकाश प्राप्त हुआ है उनकी 'मेरी' क्यों कहा गया, मेरा नाम 'नीरा' था- अर्थात जल से उत्पन्न हुई। उसे प्रकाश स्तम्भ बनाना है, टिमटिमाता हुआ दीपक नहीं। इसका क्या लाभ है? हमें सुन्दर प्रकाश-स्तम्भ का दूसरी विद्यालक्ष्मी हैं। ये आपको परमेश्वरी शक्ति को संभालने की विधि सिखाती हैं। ये बात अच्छी तरह समझ ली जानी चाहिए कि लक्ष्मी हैं क्या? वे करुणाशीलता हैं। अत: वे आपको सिखाती कि इस शक्ति का सहदतापूर्वक किस प्रकार उपयोग करें। अब यही आशीर्वाद आपको प्राप्त हो रहा है कि आप आद्यलक्ष्मी की शक्ति को प्राप्त की तरह बनना है, प्रकाशगृह की तरह से। अपने अन्दर और बाहर सभी को ये कार्यान्वित करना चाहिए। अपने अन्दर यद्यपि आपने इसे कार्यान्वित कर लिया है परन्तु इसका बाहर कार्यान्वित होना हैं आवश्यक है। दूसरे, ये दीपावली है, केवल एक दीप नहीं है। अत: हम सबको सामूहिक होना है। जहाँ तक हो सके सामूहिक प्रकाश प्राप्त करने का प्रयत्न करें। जहाँ भी कोई सामूहिक कार्यक्रम हो है? जल में स्वच्छ करने की शक्ति है, जो मैं हूँ। वहाँ पहुँचने का प्रयत्न करें। जहाँ कोई सामूहिक घटना हो वहाँ पहुँचने का प्रयत्न करें । जहाँ सामूहिकता है वहीं ऊर्जा का स्रोत प्रवाहित होता है। करें जिसके द्वारा आप जलसम बन जाएं। जल क्या जल के बिना हम जीवित नहीं रह सकते। अत: पहला आशीर्वाद ये है कि आपके चेहरे तेजोमय हो उठते हैं। आद्यलक्ष्मी की कृपा से स्वच्छ होकर आप सभी गम्भीर चीज़ों को, प्रकाश को तथा विस्मृत परमात्मा आपको धन्य करें। अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी -2007 28 चीज़ों को देख सकते हैं । होना। अमृतलक्ष्मी आपको अनन्त जीवन प्रदान करती हैं। विद्यालक्ष्मी- मैंने आपको बताया, ज्ञान गृहलक्ष्मी- गृहलक्ष्मी परिवार की देवी हैं| जुरुरी नहीं कि सभी गृहणियाँ गृहलक्ष्मियाँ हों। वे कलहणियाँ भी हो सकती हैं, वो भयानक महिलाएं भी हो सकती हैं। परिवार के देवता का निवास यदि आपके अन्दर है केवल तभी आप गृहलक्ष्मियाँ है प्रदान करती हैं। ज्ञान, कि परमेश्वरी शक्ति को सहृदतापूर्वक किस प्रकार संभालना है। मैं एक उदाहरण दूंगी, मैंने बहुत से लोगों को बन्धन देते हुए देखा है, उनका तरीका अत्यन्त बेढबा होता है। नहीं इस प्रकार नहीं किया जाना चाहिए। ये लक्ष्मी हैं। 1, अन्यथा नहीं। । अतः यह कार्य अत्यन्त सावधानीपूर्वक करें। आप मुझे देखें, मैं कैसे बन्धन देती हूँ। मैं इस प्रकार कभी नहीं करती, कर ही नहीं सकती। सम्मानपूर्वक गरिमापूर्वक। वे सम्मानपक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं और गरिमापूर्वक यह कार्य करने का ज्ञान आपको प्राप्त होता है। सभी कार्य गरिमापूर्वक किए होगा राजा की गरिमा, उसका प्रताप, राजलक्ष्मी का जाने चाहिएं, ऐसे तरीके से कि गरिमामय लगें। कुछ लोग बातचीत करते हैं परन्तु उनमें गरिमा नहीं होती! सहजयोग का ज्ञान देने वाले कुछ लोगों में भी कार्य करता है, और अत्यन्त भव्यतापूर्वक लोगों से गरिमा बिल्कुल नहीं होती और वे अत्यन्त गरिमाविहीन तरीके से बात करते हैं। परमेश्वरी ज्ञान को गरिमापूर्वक गरिमामय होता है कि लोग सोचते हैं कि देखो राजा किस प्रकार उपयोग करना है, यह आशीर्वाद इसके बाद राजलक्ष्मी हैं - वे राजाओं की गरिमा प्रदान करती हैं। राजा यदि नौकर की तरह से व्यवहार करे तो उसे राजा नहीं कहा जाना चाहिए। उन्हें अत्यन्त सम्मानपूर्वक व्यवहार करना टि वरदान है। परन्तु सहजयोगी राजा नहीं होता वह अत्यन्त शानदार तरीके से चलता है, भव्य तरीके से व्यवहार करता है। अपने सभी कार्यों में वह इतना आ रहा है! विद्यालक्ष्मी प्रदान करती हैं। सत्यलक्ष्मी- सत्यलक्ष्मी के माध्यम से आपको सत्य की चेतना प्राप्त होती है । उसके अतिरिक्त भी सत्यचेतना विद्यमान है परन्तु इस सत्य को आप अत्यन्त भव्य तरीके से प्रस्तुत करते हैं। ये सत्य है, आप इसे स्वीकार करें, ऐसे नहीं। सत्य से आपने लोगों को चोट नहीं पहुँचानी। फूल में रखकर आपने लोगों को सत्य देना है। ये सत्यलक्ष्मी हैं। अब सौभाग्य लक्ष्मी- वे आपको सौभाग्य प्रदान करती हैं। सौभाग्य का अर्थ पैसा नहीं है, इसका अर्थ है पैसे की गरिमा। पैसा से लोगों के पास है परन्तु यह पैसा वैसा ही जैसे गधे के ऊपर धन का लदा हेना। ऐसे व्यक्ति में आपको गरिमा बिल्कुल नहीं दिखाई देती। सौभाग्य का अर्थ केवल पैसा ही नहीं है। इसका अर्थ है खुशकिस्मती, बहुत नि:सन्देह ये सभी लक्ष्मी तत्व हमारे हृदय हर चीज़ में अच्छा भाग्य। आशीरव्वाद का अत्यन्त गरिमापूर्वक उपयोग ताकि आप भी आशीर्वादित हों में स्थापित शक्तियाँ हैं परन्तु वास्तव में इनकी अभिव्यक्ति हमारे मस्तिष्क में होनी चाहिए। मस्तिष्क विराट है, यह विष्णु हैं जो विराट बनते हैं। अत: ये सभी शक्तियाँ, विशेषरूप से यह शक्ति (सत्यलक्ष्मी), अमृतलक्ष्मी- अमृत का अर्थ है अमृत मस्तिष्क में है। अत: मस्तिष्क स्वतः इस प्रकार जिसे लेने के बाद मृत्यु नहीं होती अर्थात चिरंजीवी कार्य करता है कि लोग सोचते हैं कि यह कोई और आपसे मिलने वाले लोगों को भी सौभाग्य का वह आशीष प्राप्त हो। भमा अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 29 ा विशिष्ट व्यक्तित्व है। सहजयोगी को हमेशा समझ आप अपनी योग शक्ति का उपयोग करते हैं तब बन्दर, गंधे या घोड़े की तरह से व्यवहार नहीं करते। गरिमापूर्वक ये कार्य करते हैं। इस प्रकार इस कार्य को करें कि यह अत्यन्त गरिमामय हो, अर्थात अत्यन्त भद्र, गरिमामय एवं भव्य तरीके से। तो यह होती है कि आनन्द किस प्रकार उठाना है। सहजयोगी कभी चिन्तित नहीं होता वह किसी भी चीज़ का आनन्द उठा सकता है। सीधी चढ़ाई वाला........ नाम का एक स्थान था। लगभग छ: मील खड़ी चढ़ाई थी। वहाँ पहुँचकर मैंने बहुत सुन्दर मूर्तिकला इस प्रकार है। अब जब आपने इस प्रकार इसका देखी। इस सुन्दर मूर्तिकला को देखकर मेरी थकान एकदम गायब हो गई। में अपने दामाद से बता रही थी, "देखो, हर हाथी की पूँछ अलग ढंग से बनी हुई है। वो कहने लगे, "माँ मुझे मूर्च्छा आ रही है किस प्रकार आप हाथियों की ये पूछें देख पा रही हैं?" क्योंकि मैं आनन्द उठा सकती हूँ। आपको भी आनन्द लेने के योग्य होना चाहिए। मान लो आप कोई बेढबी, हास्यास्पद चीज़ देखते हैं तो आपको हँसना और आनन्द लेना चाहिए। ये बहुत ये तो श्री लक्ष्मी की हाजिरी लेने जैसा हुआ। क्या स्तुति गान किया है, इस शक्ति से आपको आशीर्वादित कर दिया गया है। अब यदि आप चाहें तो भी आप गरिमाविहीन आचरण नहीं कर सकते, आपको स्थिर कर दिया गया है। हार्दिक धन्यवाद। तो मन्त्रों का उच्चारण सोच समझ एवं सूझ-बूझ पूर्वक करनी चाहिए। जैसे आपका एक भजन है इसे आप बिल्कुल ठीक ढंग से गाए। ऐसे न कहें श्री ये, श्री वो, श्री.....। नहीं, नहीं, नहीं । कठिन कार्य है, बेढबी चीज़ का आनन्द लेना। कोई तुम हाजिर हो, तुम हाजिर हो, तुम हाज़िर हो। इस यदि अटपटा या भद्दा हो तो उस पर गुस्सा नहीं करना चाहिए, इसे आनन्ददायक बना लेना चाहिए। ये महानतम चीज़ है, मेरे विचार से यह महानतम आशीर्वाद है जो वे आपको प्रदान करती हैं- आनन्द तरह से। अत: अब यह उच्चारण अत्यन्त सच समझ से करें। पूरी गरिमा एवं सम्मानपूर्वक क्योंकि लक्ष्मीतत्व का आपको अत्यन्त सम्मान करना पड़ता है। आपको अत्यन्त विनम्रतापूर्ण शब्द, मधुर धुनें तथा स्वर उपयोग करने होंगे । लेने की शक्ति। अन्यथा आप जो चाहे प्रयत्न करें, लोग किसी चीज़ का आनन्द नहीं लेते, क्योंकि वे इतने अहंवादी हो गए हैं कि उनके मस्तिष्क में कुछ अब आप 'तेरे ही गुण गाते हैं,' गा सकते हैं परन्तु याद रखें कि यह भी मन्त्र है, गाना नहीं है, सूझ-बूझ पूर्वक इसे गाएं। आप यदि इसे गाएं तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु यह अत्यन्त सम्मान घुसता ही नहीं। उन्हें तो किसी छड़ी से गुदगुदाना पड़ेगा। योगलक्ष्मी- जो आपको योग प्रदान करती ये शक्ति आपके अन्दर है, आपके अन्तःस्थित लक्ष्मी की शक्ति अर्थात आप अन्य लोगों को योग एवं सूझ-बूझपूर्वक गाया जाना चाहिए। ठीक है? ( पूजा आरम्भ होती है) (रूपान्तरित) प्रदान करते हैं। जब आप अन्य लोगों को योग की शक्ति प्रदान करते हैं, मेरा अभिप्राय है कि जब मा প जन्म दिवस पूजा जुहु बम्बई-22.3.1984 अभी-अभी मैंने इन्हें (भारतीय सहजयोगियों) को बताया कि वे अहंचालित पाश्चात्य समाज की शैली की नकल करने का प्रयत्न न करें। क्योंकि उसमें ये लोग कठोर शब्द उपयोग करते हैं और ऐसा करके हम सोचते हैं कि हम आधुनिक बन गए हैं। वो ऐसे कठोर शब्द उपयोग करते हैं, "मैं क्या परवाह करता हूँ!" ऐसे सभी वाक्य जो हमने कभी उपयोग नहीं किए, ऐसे वाक्यों से हम परिचित नहीं है। किसी से भी ऐसे वाक्य कहना अभद्रता है। किस प्रकार आप कह सकते है, "मैं तुमसे घृणा करता हूँ।" परन्तु अब मेंने लोगों को इस प्रकार बात करते देखा है कि हममें क्या दोष है?" " आप ऐसा कहने वाले कौन होते हैं? हम इस प्रकार बात है क्योंकि इससे सुधार नहीं होता। देखिए, दूसरे तरीके से आप अपने बच्चों को नियन्त्रित नहीं कर सकते। हर समय आप उन्हें डाँटते रहते हैं, अपमानित करते रहते हैं, अन्य लोगों को अपमानित करते रहते हैं। अपमानजनक तरीके और भावनात्मक धमकी तथा ये सारी व्यवस्था इस देश की परम्परा नहीं है। ऐसा करने वाले लोगों को बाहर फेंक दिया जाएगा। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं आपको बताती हूँ कि सहजयोग में आप ऐसा नहीं कर सकते। लोगों को अपमानित करने की, उनके लिए अपमानजनक परिस्थितियाँ उत्पन्न करने की धारणाएं आपमें नहीं होनी चाहिएं। ये सब आधुनिक शैली है। अत: हमें ऐसा नहीं करना चाहिएं। सहजयोग में हमें अत्यन्त गरिमामय आचरण करना चाहिए जो हमारी नहीं करते। ये हमारा बात करने का तरीका नहीं है। बात करने का ये तरीका नहीं है। किसी भी अच्छे शैली और हमारी परम्परा के अनुरूप हो। सहजयोग परिवार का व्यक्ति इस प्रकार बात नहीं कर सकता परम्परा ये है कि हम लोगों से अत्यन्त सभ्य, मधुर, स्नेहमय एवं प्रोत्साहित करने वाले तरीके से व्यवहार करें। हम सबको इसी प्रकार बोलना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार की बातों से उसका परिवार प्रतिबिम्बित होता है। परन्तु यहाँ पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भाषा की नकल अधिक होती हैं। जिस प्रकार लोग बसों में, टैक्सियों में, रास्ते पर बातचीत करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है। ये मेरी समझ अत: पहली बात मैं ये बताती हूँ कि अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते हुए आपको चिल्लाना नहीं चाहिए। मैं उन लोगों पर चिल्लाती हूँ जिनमें भूत हैं। परन्तु मेरे चिल्लाने से भूत भाग जाते हैं, परन्तु यदि आप चिल्लाएंगे तो भागेंगे नहीं।, अत: में नहीं आता। अत: मैंने उनसे कहा कि भाषा प्रेममय तथा हमारी पारम्परिक शैली की होनी चाहिए। इस प्रकार तो हम अपने बच्चों को भी नहीं डाँटते। आपको भूत पकड़ लेंगे। भूत भागेंगे नहीं । अतः बेहतर होगा कि आप चिल्लाएं नहीं। यदि आपमें अपने बच्चों को भी यदि हमें डॉटना हो तो भी हम ऐसी भाषा का उपयोग करते है जो उन्हें सम्मानमय बनाए (श्रेष्ठमानव) । (दामले साहब ने मेरी तरह से शक्तियाँ हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं। परन्तु आपमें ये शक्तियाँ नहीं हैं। भूत वाले व्यक्ति पर यदि आप चिल्लाएंगे तो भूत आपको पकड़ लेंगे। अत: सावधान रहें। कुर्ता पजामा पहना हुआ है, "आप शिवाजी महाराज जैसे लग रहे है।' शिवाजी महाराज आपका स्वागत है।") हमें ऐसी सम्मानमय भाषा में बोलना चाहिए मेरी विधियाँ न अपनाएं। मैं बिल्कुल भिन्न जिससे वो घबरा न जाएं। प्रकार की व्यक्ति हूँ और सोच-समझकर बात कहती हूँ। आप ऐसा नहीं करते। अतः यदि आपने मेरी बातों का अनुसरण करना हो तो मेरी सुधार यदि आवश्यक होता तो हम इस प्रकार सुधार किया करते थे। दूसरी विधि ठीक नहीं अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 31 नहीं है, किसी चीज़ से समझौता नहीं करना। परन्तु क्षमा, प्रेम और स्नेह आदि गुणों को अपनाएं, उन चीजों को नहीं जहाँ मैं भयंकर होती हूँ। मेरे आपमें ऐसे स्वभाव का विकसित होना अत्यन्त भयावने स्वभाव में भी मेरा प्रेम निहित होता है। यह प्रेम, ये शक्तियाँ आपमें नहीं हैं। अत: किसी अन्य व्यक्ति पर ये विधियाँ न अपनाएं। चिल्लाने और से आपके प्रेम की अभिव्यक्ति होनी चाहिए, अन्य क्रोधित होने का आपको कोई अधिकार नहीं है लोगों के प्रति प्रेम की। जैसे अब आगामी दो तीन आवश्यक है। दूसरी चीज़ ये है कि आपकी इस शक्ति क्योंकि यदि आप चिल्लाते हैं तो सारे आपके अन्दर आ जाते हैं क्योंकि यही भूत आपको गुस्सा है। इन आश्रमों में आने वाले लोगों के प्रति मैं दिलाते हैं। वो आपको इसलिए गुस्सा दिलाते हैं कि आप इसमें फँस जाएं और इतना अधिक इस कार्य को करें कि पूर्णत: नष्ट हो जाएं। अत: मध्य में बने दृष्टिकोण यदि आपका नहीं है। तो आश्रम शून्य भूत वर्षों में सर्वत्र आपके आश्रम होंगे, ऐसा मुझे विश्वास आपका प्रेममय सुहृद, स्नेहमय एवं आश्रयप्रदायी सुन्दर दृष्टि कोण देखना चाहूंगी इसके विपरीत, ये रहना तथा स्नेह एवं प्रेम की शक्ति जो मैंने आपको दी है उसे बनाए रखना सर्वोत्तम है। वह शक्ति है। मुझे दोष नहीं देना कि हमारे आश्रम क्यों नहीं आपने विकसित करनी है। वह प्रेम की शक्ति। सर्वप्रथम प्रेम की वह शक्ति विकसित करें फिर आपको कोई चिन्ता नहीं करनी होगी, न चिल्लाना पड़ेगा और न ही ऐसा कुछ और करना पड़ेगा। (व्यर्थ) हो जाएंगे। बहुत से स्थानों पर ऐसा ही हुआ चल रहे। ये देखना आपकी जिम्मेदारी होगी कि यह माँ का घर है और लोग माँ के घर आ रहे हें माँ इनसे किस प्रकार व्यवहार करेंगी? प्रेम एवं स्नेहपूर्वक। आप जो चाहे करें- चाहे भूखे रहें, परन्तु अन्य लोगों से करुणा एवं स्नेहपूर्वक व्यवहार करें ताकि अन्य लोगों पर प्रभाव पड़े और वे सोचे कि यह व्यक्ति आपकी शक्ति कृत (गतिशील) हो उठेगी। यह स्वत: कार्य करेगी और ऐसे सुन्दर वातावरण का सृजन करेगी जिसमें हम किसी को नष्ट करने की इच्छा न करें। परन्तु आप चिल्लाएंगे तो आप दौड़ जाएंगे विशेषरूप से किसी भी अहंवादी समाज में आप चिल्ला नहीं सकते, यह उन्हें नहीं सुहाता। अहंचालित समाज में यदि आप चिल्लाएंगे तो इससे उनका चित्त भटकेगा और वो दौड़ जाएंगे। अक्खूड नहीं है। मैं चाहती हूँ कि चोटी के व्यक्ति आश्रमों में कार्यभारी हों। मध्यम दर्जे के व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। अगले साल तक सभी जुमीने आपके हाथ आ जाएंगी और अगले वर्ष तक आश्रम बनने आरम्भ हो जाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। मैं आपको यह प्रदान करती हूँ अत: मुझे अब मैं दो चीजें माँग रही हूँ। बड़ी अटपटी सी बात है कि माँ अपने मुँह से कोई उपहार माँगे। जो उपहार आपने देना हैं उसमें पहली चीज तो ये है कि आपके चरित्र में शक्ति की अभिव्यक्ति होनी बताना है कि 'आप उच्चतम से भी उच्च हैं। पहली चीज जो आज आपने मुझे देनी हैं- अपनी बातचीत में, अपने आचरण में, अपने हृदय में मुझे प्रेमपूर्वक स्थापित करें। चाहिए। परन्तु इसका अर्थ ये भी नहीं है कि शान्त लोग भीरु होते हैं, अस्वस्थ, जो सभी मूर्खताओं को सहन कर लेते हैं। नहीं। परन्तु वो शान्तिपूर्वक विरोध करने वाले लोग होते हैं। आपको किसी चीज़ से भय नहीं है। किसी चीज़़ के आगे आपने झुकना दूसरी चीज़ जो मुझे माँगनी है वो ये है कि आप शान्त हो जाएं। अपने अन्दर शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न करें। स्वयं से झगडें नहीं। पश्चिमी लोगों के साथ ये समस्या है कि वे स्वयं से झगड़ते अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 32 कुछ नहीं कर रहा' श्रीमाताजी कर रही हैं। शान्त हो जाएं शान्त होने पर आपको लगेगा कि आपका हृदय हैं! "मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मैं ऐसा हूँ! मैं इतना खराब हूँ, मैं बिल्कुल अच्छा नहीं हूँ!" आप यदि स्वयं से लड़ते रहेंगे तो उन्नत नहीं होंगे। आपको स्वयं से कहना चाहिए, "मैं बहुत अच्छा हूँ, मुझमें क्या कमी है? मुझे आत्मसाक्षात्कार मिल गया है, मुझमें क्या दोष है? मुझमें कोई दोष नहीं है।" ये आत्मविश्वास अपने अन्दर खुल जाता आप अपना हृदय क्यों नहीं खोलते? क्योंकि आपको स्वयं पर विश्वास नहीं है। इससे आपकी आज्ञा खुलेगी, आपका सहस्रार खुलेगा और आपको शान्त जीवन प्राप्त होगा। है। आज मेरे जन्मदिवस पर आपको वचन उत्पन्न करें तब ये कार्यान्वित होगा। मान लो आप देना होगा कि अगले वर्ष के अन्त तक आपको ठीक प्रकार से स्थापित होना है, परन्तु पहली दो शर्ते बनी रहनी चाहिएं। आप यदि इसके लिए तैयार नहीं आपको अत्यन्त शान्त होना होगा। आपने देखा है हैं तो परमात्मा कभी आपको आश्रम प्रदान नहीं ये जान भी जाएं कि आपमें कोई दोष नहीं है तो भी ये नहीं कि आप अन्य लोगों पर चिल्लाने लगें। कि मेरे शान्त स्वभाव से किस प्रकार इतनी समस्याओं करेंगे। बेतुके लोगों को वे (परमात्मा) आश्रम नहीं देना चाहते। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिन लोगों को कहीं और स्थान नहीं मिलता वे आश्रम में चछ का समाधान हुआ है। किसी भी कीमत पर, किसी भी प्रकार से, ये शान्ति नष्ट नहीं होनी चाहिए। बाहर इसकी अभिव्यक्ति होनी चाहिए। मेरी शान्ति अपने आप में इतनी भयंकर हो जाती है। आपमें ऐसी संभावना नहीं है। ऐसा न करें, इस प्रकार कभी आ जाते हैं। अत: जब तक उस क्षमता के लोग नहीं होंगे जो प्रेममय और शान्त न बने रह सकें आश्रम स्थापित नहीं होंगे। न करें, अपने मस्तक को शान्त रखने का प्रयत्न करें। इस तरह के ( बिगड़े हुए, विकृत चेहरों वाले बहुत से लोग मेरे पास आते हैं और उनके मस्तक में मैं भूत बैठे हुए देखती हूँ और मेरे उनपर चिल्लाने से उनके मस्तक शान्त हो जाते हैं। 'मैं सभी स्थानों पर आश्रम बनाने की योग्यता आपमें हो। परमात्मा आपको धन्य करें निर्मला योग-1985 म क ै* र क श्री आदिशक्ति पूजा कबेला-6.6.1993 पटम पूज्य माताजी श्री निरर्मला देवी का प्रवचन (आदिशक्ति क्या हैं?) आज आप पहली बार मेरी पूजा करेंगे। इच्छाएं होती हैं। परन्तु वे पछताते नहीं। उनमें अहं नहीं है। वो ये नहीं सोचते यह अच्छा है यह बुरा। उनमें कर्म की समस्या नहीं है क्योंकि उनमें न तो अहं है और न ही वे स्वतन्त्र हैं। अभी तक हमेशा मेरे एक पक्ष की पूजा होती थी। व्यक्ति को यह ठीक प्रकार से जानना चाहिए कि आदिशक्ति क्या हैं! जैसे आप कहते हैं, ये सर्वशक्तिमान परमात्मा श्री सदाशिव की शुद्ध इच्छा हैं। परन्तु सर्वशक्तिमान परमात्मा की शुद्ध इच्छा क्या है? आप यदि देखें तो आपकी अपनी इच्छओं जिसने अपना सारा प्रेम एक व्यक्ति में उड़ेल दिया का स्रोत क्या है? यह परमात्मा का प्रेम नहीं है, हो! उसके बाद उनमें क्या शेष रहा? कुछ नहीं। वो इसका स्रोत तो वासना, भौतिक प्रेम और सत्ता प्रेम है। इन सभी इच्छाओं के पीछे प्रेम है। बिना प्रेम के आप किसी चीज़ की इच्छा नहीं करते। अत: ये सांसारिक प्रेम जिनके लिए आप इतना समय व्यर्थ करते हैं, वास्तव में ये आपको संतोष प्रदान नहीं क्योंकि वो जानते हैं, कि यह व्यक्तित्व जिसका इस बिन्दु पर आदिशक्ति, जो कि शुद्ध प्रेम अत: उस पिता के बारे में सोचें मात्र हैं... मात्र देख रहे हैं। वो क्या सोचते हैं? वो तो बस अपनी इच्छा का अपने प्रेम का खेल देख रहे हैं। वो देख रहे हैं कि ये किस प्रकार कार्यान्वित होता है। यह सब देखते हुए वो अत्यन्त सावधान होते हैं करते क्योंकि आपके अन्दर यह सच्चा प्रेम नहीं है। सृजन मेंने किया है," यह प्रेम एवं करुणा के अतिरिक्त कुंछ भी नहीं। और करुणा अपने आपमें बाद आप इससे तंग आ जाते हैं और फिर दूसरी-दूसरी इतनी श्रेष्ठ होती है कि उन्हें ये बात बिल्कुल बर्दाशत नहीं है कि कोई इस करुणा को चुनौती दे, कुछ समय के लिए सम्मोहन मात्र है और उसके चीजों की ओर चले जाते हैं । अत: आदिशक्ति परमात्मा के परमेश्वरी इसे कष्ट दे, या इसकी प्रतिष्ठा को कम करे, इसे प्रेम की. प्रतिमूर्ति हैं, परमात्मा का विशुद्ध प्रेम हैं। नीचा दिखाए या इसका अपमान करे। इस मामले में अपने प्रेम में उन्होंने क्या इच्छा की? उन्होंने इच्छा वो बहुत सावधान हैं और इस पर पूरी दृष्टि रखते की कि वो ऐसे मानव का सृजन करें जो आज्ञाकारी हें। अत: एक दरार पड़ गई है, आप कह सकते हैं, हों, उत्कृष्ट हों, देवदूतों की तरह से हों और इसी उनकी ओर से उनके प्रेम की इच्छा की ओर से। विचार से उन्होंने आदम और होवा का सृजन किया। तो देवदूत स्वतन्त्र नहीं हैं। उनका सृजन इसी प्रकार किया गया है, वो आबद्ध हैं, ये नहीं जानते कि क्यों किसी काम को करते हैं। पशु भी ये नहीं जानते कि वो किसी कार्य को क्यों कर रहे हैं बस कर लेते कार्य करने के लिए स्वतन्त्र था! अपने सांसारिक हैं क्योंकि वो कर रहे है बस कर लेते हैं क्योंकि वो जीवन में हम ये नहीं सोच सकते कि कोई पति/पत्नी प्रकृति के पाश में हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा के पाश में हैं। कहते हैं श्री शिव पशुपति हैं अर्थात पूर्णतः स्वतन्त्र हैं, क्योंकि न तो कोई सम्बद्धता है, पशुओं का नियंत्रण करने वाले। वे पशुंपति हैं, सभी पशुओं का नियन्त्रण करते हैं । पशुओं में भी सभी प्रेम की इस इच्छा को एक व्यक्तित्च भी दिया गया, अर्थात अहं, और इस अहं को स्वयं कार्य करना होता है। यह एक प्रकार का स्वतन्त्र व्यक्तित्व बन गया जो अपनी इच्छा के अनुरूप अपनी पसन्द के अनुरूप कार्य करने के लिए न सूझबूझ है तथा वह एकरूपता एवं सौहार्द्र भी नहीं है। परन्तु यह चाँद और चाँदनी, एवं सूर्य और 34 अक : 11 2007 चैतन्य लहरी 12 कायल करें, क्योंकि महिलाएं जानती हैं कि यह कार्य किस प्रकार करना है। कई बार वे पतियों को गलत ढंगे से भी कारयल कर लेती हैं, कोई बिल्कुल गलत चीज़ उन्हें बता देती हैं, बहुत ही अनर्थकारी, जैसा आप जानते है 'मैकबैथ' में घटित हुआ। बहुत धूप की तरह से है। ये ऐसी सम्बद्धता है कि एक व्यक्ति जो कार्य करता है दूसरा इसका आनन्द लेता हैं। इस सुन्दर दरार के बीच आदिशक्ति ने अपनी योजनाएं परिवर्तित करने का निर्णय लिया। वे अपने संकल्प विकल्प करोति' गुण के लिए प्रसिद्ध हैं । आप किसी चीज़ के विषय में बहुत अधिक निर्णय से स्थानों पर, हमने देखा है, महिलाओं ने अपने लें तो वे इसे बदल देंमी, जैसे आज की ग्यारह बजे पतियों को गलत मार्ग दिखाया। परन्तु पुरुष को की पूजा। तो आदम और हौवा का ये कार्य भी जब शुरु हुआ तो उन्होंने (आदिशक्ति) सोचा कि ये भी (आदम-हौवा) अन्य पशुओं या देवदूतों की तरह से होंगे। क्या लाभ है? उन्हें अवश्य इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। उन्हें ये समझने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए गलत मार्ग पर चलाया जा सकता है, ठीक मार्ग पर चलाया जा सकता है। यदि पत्नी अच्छी है तो उनका उद्धार किया जा सकता है। तो उसको आदमी को) अपनी पत्नी पर विश्वास था, उस पर भरोसा था तथा परमात्मा महिला व्यक्तित्व के रूप में आई आदिशक्ति के पथ प्रदर्शन में उन्होनें कि ज्ञान क्या है तथा पशुओं के इस नियमित मशीन जैसे जीवन से उनमें ये बात कैसे आएगी? अत: अपनी इच्छाचारिता की शक्ति से जो नि:सन्देह उन्हें जो अभी तक ईसामसीह, मोहम्मद साहब या नानक प्रदान की गई थी, उन्होंने सर्पिणी का रूप धारण किया और उन्हें बताया कि ज्ञान का फल चखें। जो में नहीं आएगा। उन्हें तो इन लोगों की झलक मात्र लोग सहजयोगी नहीं हैं उन्हें आप ये बात नहीं बता सकते, इससे उन्हें ठेस पहुँचेगी परन्तु ये सर्पिणी कहते, 'वाह!' ये क्या है? लोग कभी उनकी बात उन्हें प्रलोभित करने के लिए उनके पास आई और उन्हें बताया कि इस फल को चखना बेहतर होगा। करने की शक्ति जैसी थी उसके अनुरूप उन्होंने सर्पिणी ने यह बात महिला (हौवा) से बताई, पुरुष धर्म के विषय में बताया, उत्क्रान्ति के विषय में को नहीं, क्योंकि महिला चीजों को आसानी से स्वीकार कर लेती है। महिला भूत की भी स्वीकार कण्डलिनी के विषब में बताया कि ये आदिशक्ति कर लेती है, किसी भी बेवकूफी को स्वीकार कर लेती है। परन्तु ऐसा महिला ही करती हैं, पुरुष पढकर सुनाया जा चुका है कि मैं सभी के अन्दर आसानी से स्वीकार नहीं करता। वह वाद-विवाद ज्ञान का फल चखा। यह बात उन लोगों को स्वीकार्य नहीं होगी साहब की झलक मात्र देखने लगे हैं। उनकी समझ मिली है। उन्होंने भी यदि बताया होता तो लोग ने सुनते। अत: उस समय, चित्त जैसा था, स्वीकार बताया। परन्तु भारत में लोगों ने बहुत समय पूर्व हें जो हमारे अन्दर प्रतिबिम्बित हैं। आपको ये होऊंगी। अब ये समझने का प्रयत्न करें कि ये आदिशक्ति प्रेम की शक्ति हैं, शुद्ध प्रेम की- करुणा की शक्ति, इसके अतिरिक्त उनके पास कुछ भी करता है, तर्क करता है। इसीलिए सर्पिणी ने आकर महिला को बताया। उसने आकर महिला को बताया, मुझे ये कहना चाहिए। ये आदिशक्ति वास्तव में नहीं है। उनके हृदय में केवल शुद्ध प्रेम है। परन्तु स्त्रीवाचक हैं। अत: महिलाओं के ज्यादा करीब हैं। ये शुद्ध प्रेम अत्यन्त शक्तिशाली है, और यही प्रेम महिला शक्ति सर्पिणी के रूप में आई और बताया कि अच्छा होगा कि तुम ज्ञान का फल चख लो। उन्होनें पृथ्वी माँ को दिया है। इसी प्रेम के कारण, हम चाहे जितने पाप करें, कुछ भी करें, हमारे लिए सुन्दर-सुन्दर चीज़ों के माध्यम से पृथ्वी माँ हम पर अब यह महिला होवा का काम था कि वह पति को अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी -2007 35 जो शुष्क नहीं हैं। अपने परमेश्वरी प्रेम के कारण उनमें ऐसा हृदय विकसित हुआ। अत: शरीर के हर भाग का, हर चीज़ का सृजन परमेश्वरी प्रेम से हुआ। इसके हर जुरें से परमेश्वरी प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी प्रवाहित नहीं होता, चैतन्य-लहरियाँ परमेश्वरी प्रेम है इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। अपने प्रेम की वर्षा कर रही हैं। हर प्रकार से उन्होंने अपने इस प्रेम की अभिव्यक्ति की है- आकाशगंगाओं के माध्यम से, इन सितारों के माध्यम से। विज्ञान की दृष्टि ये यदि आप देखना चाहें, विज्ञान अर्थात जिसमें प्रेम नहीं है 'प्रेम' का प्रश्न ही नहीं है लोग योग के विषय में भी बात करते हैं। परन्तु प्रेम एवं करुणा की बात नहीं करते। जैसे मैंने आपको बताया इस अवतरण को व्यक्ति में यदि प्रेम और करुणा नहीं है तो आना पड़ा। समय आ गया था। देखा जा रहा था कि उसमें परमात्मा की शक्ति हो ही नहीं सकती, सभी कुछ परमात्मा के प्रेम की शक्ति में डूबा हुआ है। पृथ्वी पर जिस भी चीज का सृजन हुआ है, ब्रह्माण्ड में जिस भी चीज़ का सृजन हुआ है, ब्रह्माण्डों और पहुँचेगी। आप ये भी कह सकते हैं, कि ये मशीन ब्रह्माण्ड में जिस भी चीज़ का सृजन हुआ है सभी कुछ परमेश्वरी माँ की प्रेम के कारण हैं। इन आदिशक्ति का प्रेम इतना सूक्ष्म है, इतना सूक्ष्म है चीजों में , जो स्वत: होती हैं और जो सहज हैं, आप कि कभी-कभी तो आप इसे समझ ही नहीं सकते। मैं जानती हूँ कि आप सब मुझे अत्यन्त प्रेम करते हैं। मेरे लिए आपमें गहन प्रेम है और जब में आपसे है। अत: व्यक्ति ये नहीं कह सकता कि किस चैतन्य प्राप्त करती हैँ तो यह उन लहरों की तरह से होता है जो तट तक जाकर पुन: वापिस आती है। करने के लिए लाग उपलब्ध होंगे। समय आ गया है। नियत समय और सहजसमय में अन्तर है। नियत समय ऐसा होता है, जैसे आप कह सकते हैं, रेलगाड़ी इस समय चलेगी, इस समय पर किसी चीज़ का उत्पादन कर रही है, और इतने समय में यह इतनी वस्तुएं बना देगी। परन्तु जीवन्त समय नहीं बता सकते। स्वतन्त्रता की यह प्रक्रिया भी इसी प्रकार है। आपके पास अधिकतम स्वतन्त्रता समय परमेश्वरी प्रेम के इस सूक्ष्म ज्ञान को प्राप्त और तट पर भी असंख्य नन्हीं-नन्हीं चमकती हुई बूँदे होती हैं। इसी प्रकार अपने हृदय में मैं परमेश्वरी प्रेम की चमकते हुए प्रेम के सौन्दर्य की गुंजन ज्ञान भी अत्यन्त शुष्क हो सकता है। भारत में बहुत से भयंकर तपस्वी हुए जो हर समय अध्ययन में और मन्त्रोच्चारण आदि में व्यस्त रहते थे। इस घोर तपस्या के कारण वे इतने शुष्क हो गए कि उनका शरीर हड्डियों का ढाँचा भर रह गया महसूस करती हूँ। उस अनुभव का वर्णन तो मैं आपके सम्मुख नहीं कर सकती कि यह क्या सृजन करता है। परन्तु पहला सृजन जो ये करता है वह है कि मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं क्योंकि यह करुणा है जो 'सान्द्रकरुणा' है। आर्द्र है, यह शुष्क नहीं है। जैसे एक पिता की करुणा शुष्क हो सकती है, ये कार्य करो नहीं तो मैं तुम्हें गोली मार दंगा। मैं पृथ्वी पर इसलिए तपस्या करने के लिए आए हैं ऐसा कर दूंगा। माँ कहेंगी परन्तु वो ठेस पहुँचाने वाली कोई बात नहीं कहेंगी। आपको सुधारने के लिए उन्हें भी कई बार कहना पड़ेगा, परन्तु उनका कहना, पिता के कहने से बिल्कुल भिन्न होगा। क्योंकि उनमें सान्द्रकरुणा है- आर्द्, 'आर्द्र अर्थात ये और वो इतने क्रोधी बन गए कि किसी व्यक्ति की ओर यदि वे क्रोध से देख लेते तो वह जलकर राख हो जाता। कहने का अभिप्राय ये है कि क्या आप कि किसी को जलाकर राख कर दें? परन्तु वो लोग स्वयं को बहुत महान मानते थे क्योंकि उनकी दृष्टि मात्र से कोई व्यक्ति लुप्त या भस्मीसात हो जाता था, जलकर राख हो जाता था! उनके हृदय में परहित की कोई भावना न थी। अतः इस परमेश्वरी अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 36 कार्यान्वित हुआ और आप जानते हैं कि मैंने स्वयं प्रेम से जो पहली उपलब्धि प्राप्त होती है वह है हितैषिता की भावना।- भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया। यह महत्वपूर्ण बात है। भारत में इसका आरम्भ हुआ, सर्वप्रथम भारत को साम्राज्य वाद से स्वतन्त्रता मिली हितैषिता शब्द भी अत्यन्त भ्रामक है। हितैषिता अर्थात जो आत्मा के हित में हो। अब जैसा आप जानते हैं, आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। अत: आपके अन्दर जब आत्मा अपने पूर्ण सौन्दर्य में प्रतिबिम्बित होने लगती हैं तब आप दाता और धीरे-धीरे साम्राज्यवाद से स्वतन्त्रता सभी देशों में फैल गई। लोग स्वतन्त्रता के बारे में सोचने लगे। वो समझने लगे कि साम्राज्य बनाने का कोई लाभ नहीं है, अपने स्थानों पर लौट आना ही बेहतर होगा। अत: जब यह घटित हुआ, कहने से अभिप्राय है कि मेरे अपने जीवनकाल में यह घटित हुआ। बन जाते हैं। अब आप वो व्यक्ति नहीं रहते जिसे कुछ लेना है, दाता बन जाते हैं। इतने सन्तुष्ट हो जाते हैं। यह अवतरण भी उस समय हुआ जब इसे होना चाहिए था। जैसा मैंने कहा, आप स्वतन्त्र हैं यद्यपि मैं ये भी कहूंगी कि हमारे देश में जिन लोगों ने सर्वप्रथम स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयत्न किया और इस स्वतन्त्रता के कारण लोग पागलपन में सभी उल्टे-सीधे कार्य कर रहे थे यदि आप देखें तो इससे पूर्व हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या थी कि लोग अपनी शक्ति को कार्यान्वित कर रहे वो मारे गए। बहुत से लोगों का वध कर दिया गया, आप जानते हैं, हमारे यहाँ तथा अन्य देशों में भी भगतसिंह जैसे लोग हैं। सभी क्रान्तिकारियों को बाहर निकाल दिया गया, उनसे दुव्व्यवहार किया थे, जैसे भारत जाकर वहाँ के क्षेत्र पर कब्ज़ा करना था। चीन जाकर या इसके अतिरिक्त वे अफ्रीका तथा अन्य स्थानों पर भी गए। यहाँ तक कि अमरीका के लोग तथाकथित अमरीका के लोगों के पास गए गया और उनका वध कर दिया गया। यह स्वतन्त्रता का प्रश्न नहीं है। परन्तु व्यक्ति को इसमें से गुजरना पड़ा ताकि स्वतन्त्रता को परखा जा सके। उन्होंने सोचा कि हमने (उन्होंने) मूर्खतापूर्ण कार्य किया है। और अमरीका जाकर कब्ज़ा किया। यह स्वतन्त्रता नहीं थी क्योंकि कि यह सब करते हुए उन्हें पछतावा होने लगा। उनके मन में अन्य लोगों से एक प्रकार का भय और घबराहट पनपने लगा और एक प्रकार की बाईं विशुद्धि की समस्या खड़ी हो गई। वे दोषभावग्रस्त हो गए कि उन्होंने गलत कार्य किया है जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। तो यह वह समय था जब लोग अपनी स्वतन्त्रता को शक्तिवर्द्धन के लिए उपयोग कर रहे थे। यह आदिशक्ति के अवतरति होने का समय नहीं था। ये लोग सत्तालोलुप थे, ये नहीं है कि आज ऐसे लोग नहीं है, आज भी हैं, परन्तु ये लोग केवल सत्ता तथा साम्राज्य खोज रहे थे यह महत्वपूर्ण नहीं इस समय पर और भी समस्याएं थीं जैसे हमारे यहाँ जातिप्रथा और गुलामी तथा अन्य बहुत प्रकार का समस्याएं थीं- असमानता तथा कुछ लोगों करना होता था और अपनी स्वतन्त्रता के लिए युद्ध को नीच और कुछ को उच्च माना जाना, कुछ नस्लों करके इन साम्राज्यवादी लोगों के शिकंजे से मुक्त को ऊँचा समझा जाना और कुछ को नीचा। ये सभी मूर्खतापूर्ण चीजें वहाँ थीं। अपनी स्वतन्त्रता के माध्यम से उन्होंने ये सब चीजें बनाई- अपनी स्वतन्त्रता के कारण। ये ऐसा नहीं है, यह सत्य नहीं है, यह वास्तविकता नहीं है। परन्तु उन्होंने ऐसी, चीजें है। अत: उस समय यह कार्य न हो सकता था। उस समय तो व्यक्ति को अपनी स्वतन्त्रता के लिए युद्ध होना था जो अन्य लागों पर शासन करने का प्रयत्न कर रहे थे। शनै: शनै: सब परिवर्तित हो गया। सारा परिवर्तन अत्यन्त सहजढंग से हुआ। यह आश्चर्य की बात है। मैंने स्वयं यह परिवर्तन होते देखा। सब चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 37 बनाईं। अब मान ले मैं यहाँ पर ये कहने के लिए कोई ऐसी चीज़ बना दें कि ठीक है ये कालीन नहीं और आपसे बताती चली जाऊँ ये कालीन नहीं है, ये कालीन नहीं है तो ये बात मस्तिष्क में घर कर जाएगी कि ये कालीन नहीं है ये कुछ और है। यह तो सम्मोहन जैसा ही कुछ है जिसके कारण लोगों ने नस्लवाद जैसी मूर्खता, सभी प्रकार की असमानता, दासत्व, जातिप्रथा तथा विशेष रूप से महिलाओं से दुर्व्यवहार को स्वीकार किया। यह सब उस स्वतन्त्रता के कारण आया जो उन्हें ये छाँटने के लिए दी गई थीं कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है। अत: उनके लिए यह बुहत अच्छा था, उनके करने के लिए बहुत अच्छा कार्य था। इन परिस्थितियों में, इन लोगों पर की गई करुणा व्यर्थ हो जाती परमेश्वरी प्रेम व्यर्थ हो जाता क्योंकि ये लोग मानसिक रूप से समझने के लिए तैयार न थे। आप उन्हें ये नहीं बता सकते थे कि ये सब कार्य आप अपनी अन्धता और से ऊँचा है। आप केवल एक चीज़ कह सकते हैं कि आप भिन्न अवस्थाओं में हैं। कुछ लोग निम्न अवस्था में हैं, कुछ लोग ऊँची अवस्था में हैं। परन्तु सार्वजनिक रूप से आप किसी की ये कहकर निन्दा नहीं कर सकते कि फलां व्यक्ति अच्छा नहीं है, फलां समाज अच्छा नहीं है, सार्वजनिक रूप से। व्यक्तिगत रूप से आप कह सकते हैं। सार्वजनिक रूप से आप ऐसा नहीं कह सकते। परन्तु यह अज्ञानता अत्यन्त गहन थी क्योंकि ये सामूहिक बन चुकी थी, यह सामूहिक अज्ञान है- सामूहिक अज्ञान। सामूहिक रूप से हाथ मिलाकर सब लोग कहने लगे कि यही धर्म सर्वोत्तम है, हम लोगों की रक्षा की गई है। दूसरे लोगों ने कहा, नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं, ये तो पूर्णतः दण्डित लोग हैं, हम सर्वोत्तम हैं तथा धर्म के और सर्वशक्तिमान परमात्मा के ना म पर उन्होंने ये मूर्खता आरम्भ कर दी। अत: अब आदिशक्ति को पूरी शक्ति के साथ उतरना पड़ा। पहली चीज़ जो उन्होंने महसूस की वो ये थी कि व्यक्ति को समझना चाहिए कि अज्ञानता के कारण कर रहे थे। ऐसा करना आपके हित में नहीं है, ऐसा करने से आप श्रेष्ठ नहीं बन जाएंगे। ये तो अधम कार्य है। इस प्रकार लोग अधम बन गए। नि:सन्देह बहुत से सन्त आए और उन्होनें श्रेष्ठता, क्षमा, एकता, एकरूपता आदि के बारे में बताया, महान दृष्टाओं ने भी जन्म लिया। वे भी इस बिन्दु पर पहुँचे अभी तक लोग पूरी तरह से इसके लिए ठीक से तैयार न थे। मैं सोचती हूँ धीरे-धीरे उनकी शिक्षाएं लोगों के अन्दर कार्य करने लगीं। परिवार क्या है। बच्चा परिवार में जन्म लेता है। माता-पिता यदि बच्चे की ओर पूरा ध्यान न दें या उन्हें बिगाड़ दे और बिगाड़ें भी नहीं परन्तु उनसे बहुत ज्यादा मोह करें या उनकी उपेक्षा कर दें तो बच्चा समझ ही नहीं पाता कि प्रेम क्या है। बच्चे को यदि पता ही नहीं चलेगा कि प्रेम क्या है- प्रेम का अर्थ ये नहीं है कि आप बच्चे को बिगाड़ दें या खेलने के लिए बहुत से खिलौने देकर जान छुड़ा और इसके बारे में बताया। परन्तु परन्तु सबसे बड़ी समस्या इन तथाकथित धर्मों की है जो उन्होंने चलाए। ये सभी धर्म पटरी लें। इसका अर्थ ये है कि हर समय आपका चित्त बच्चे पर हो और वह चित्त 'मोह' न हो। बच्चे के हित पर चित्त हो। हर समय आप देखते रहें कि हित हो रहा है और इस प्रकार मैंने सोचा कि सर्वप्रथम पारिवारिक जीवन को सारवान बनाना होगा। अत्यन्त से उतर गए और इन्होंने एक प्रकार की खिचड़ी सी बना दी- यहाँ मुसलमान, वहाँ ईसाई, यहाँ हिन्दू ये वो, ये वो। अत: इन खड्डों को भरने के लिए, उन्हें एक करने के लिए वास्तव में आपको जीवन सरिता की आवश्यकता थी। यह पूर्ण अज्ञान है। यह सोचना मात्र मूर्खता है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति आवश्यक है क्योंकि आजकल धर्म के नाम पर इन्होंने मठ खोल दिए हैं और पादरी, सन्यासी और बाबाओं के रूप में सभी प्रकार के लोग वहाँ हैं। वे अंक : 1। & 12 2007 चैतन्य लहरी 38 इतने शुष्क हैं और लोगों को इतना भ्रमित करते हैं पड़ना बहुत अच्छा होता है। परन्तु लड़ने का कारण क्या है? उन्हें कुछ नहीं पता प्रेम का न होना इसका कारण है। इसी कारण से किसी भी चीज़ को जब आप देखते हैं तो उससे घृणा करते हैं। अपनी कुण्ठा और प्रेम यदि सामूहिक हो तो अधिक प्रभावशाली के कारण हर चीज़ को नष्ट करने का प्रयत्न करते होता है। भारत में आपने देखा होगा कि परिवार में हैं। अत: युद्ध समाप्त होने के बाद एक नई प्रथा लोग परस्पर प्रेम करते हैं। कहने से अभिप्राय ये है चालू हो गई क्योंकि मूल्यप्रणाली का नीचे जाना स्वाभाविक था। लोगों ने सोचा कि इन सब मूल्यों का क्या लाभ है? इन सब मूल्यों के अनुरूप रहकर ने कि लोग सन्यास लेने लगे, घर, पत्नियाँ और बच्चों को त्यागकर भागने लगे। तो सर्वप्रथम मुझे लगा कि प्रेम को समझे बिना मानव प्रेम कर ही नहीं सकता कि इतने सम्बन्धी होते हैं कि ये समझ में भी नहीं आता कि कौन सा सम्बन्ध है। हम बस उन्हें भाई-बहन ये वो बुलाते हैं। ये नहीं जानते कि सम्बन्ध क्या है, किसके पिता और किसकी माँ हमें क्या मिला? युद्ध! और युद्ध किसलिए? युद्ध तो हमारे समाज का, हमारे बच्चों का वध किया है। इस युद्ध प्रणाली में भी क्या महानता है? अत: लोगों का मस्तिष्क ऐसा बन गया था कि किसी न किसी बहाने से युद्ध करो तथा शक्तिशाली व्यक्ति ही सर्वोत्तम है। अत: जो व्यक्ति हावी हो सकता है, जो कुछ नहीं। बस हम इतना जानते हैं कि ये हमारा भाई है और कोई पूछे किस प्रकार भाई तो आपको कुछ पता नहीं होता कि कैसे ये आपका भाई है। कारण ये है कि हमारे यहाँ संयुक्त परिवार प्रणाली होती थी। संयुक्त परिवार प्रणाली बिल्कुल सामूहिक प्रणाली जैसी है। कोई नहीं जानता था कि उसका सगा भाई या सौतेला भाई है और चरचेरा भाई कौन ऊपर आ सकता है, वही सर्वोत्तम है। सरकार की प्रभुत्व जमाने वाली साम्राज्य शैली तो समाप्त हो गई परन्तु अब यह प्रभुत्व जमाने की व्यक्तिगत शैली बन गई। इस प्रक्रिया से अहं विकसित होने लगा। बच्चों को भी वे ऐसी शिक्षा दिया करते थे कि है, कुछ नहीं। सभी लोग सम्बन्धियों के रूप में साथ रहा करते थे परन्तु ये प्रणाली भी टूट गई। आर्थिक कारणों से तथा ऐसी ही अन्य चीजों के कारण बच्चे अत्यन्त अक्खड़ और बनावटी बन गए। ये समझ पाना असम्भव था कि क्यों इन बच्चों को नियन्त्रित नहीं किया गया और क्यों नहीं उन्हें संयुक्त परिवार टूट गए। अत: यह वह समय था जो कि बहुत संकटमय था जब सभी देशों में परिवार टूटने लगे थे, विशेष रूप से पश्चिमी देशों में जहाँ महिलाओं और पुरुषों को पारिवारिक जीवन के बताया गया कि ऐसा करना गलत है! क्योंकि माता-पिता ने ही बिल्कुल भिन्न दृष्टिकोण अपना लिया था, न तो वो अपने बच्चों की भावनाओं को समझते थे और न ही उन्हें बताते थे कि गलत क्या है। वो तो अपने विचारों में उलझे हुए थे कि हम चाहे जो मर्जी करें ये बच्चे हमें छोड़कर चले जाएंगे। इन परिस्थितियों में मनुष्य अच्छे परिवार और तलाक तथा बेतुके समाज के बीच बँट गए। एक ऐसे समाज में जो महिलाओं और पुरुषों की साझेदारी करना तथा सभी प्रकार की बेवकूफियाँ महत्व का कभी एहसास ही नहीं हुआ। उन्हें कभी अपने परिवार पर विश्वास नहीं हुआ। अत: बिचारे बच्चों के लिए यह सब अस्थिरता के कारण बन गए। बच्चों का आहार अस्थिर हो गया उनका पालन-पोषण ठीक प्रकार न हो सका। अत: इसके कारण एक अत्यन्त हिंसक और भयानक रूप से भूतबाधित बच्चों की पीढ़ी का सृजन हुआ। तत्पश्चात् यह पीढ़ी युद्ध के उन्माद में फँस गई। बिना कारण के वो लड़ना चाहते हैं मैंने बच्चों को पेड़ों से लड़ते देखा है, मैंने पूछा तुम क्यों पड़ रहे हो? करना चाहता था! अत: आदिशक्ति को इस मामले में उतरने के लिए. यह कितनी भयानक परिस्थिति अंक : 1 & 12 चैतन्य लहरी 39 -2007 5 मई को प्रात: के समय। नि:सन्देह कुछ अन्य थी! इसके अतिरिक्त हर धर्म का अपने आपको, अपने विचारों को तथा अपने रीतिरिवाज़ों को लोगों घटनाएं भी इस घटना के तुरन्त होने का कारण पर लादना एक अन्य बहुत बड़ी समस्या थी जो बनीं। मैं पूरी तरह तैयार थी। मैं जानती थी कि मानव के साथ क्या समस्या है, परन्तु मैंने सोचा कि हो सकता है कि लोग इसे स्वीकार ही न करें, वो (ऐसा कर सकते हैं)। अब ये अवतरण अत्यन्त और लोगों की बुद्धि पर छा जाती। अत: खलबली थी, खलबली थी और खलबली की इस अवस्था में ही धर्म की स्थापना करने के लिए आदिशक्ति को आना पड़ा। धर्म स्थापना करने का यह कार्य उन्हें करना पड़ा। अद्वितीय है। बहुत से अवतरण आए, वे आए इसी प्रकार आपको सभी कुछ बताया। उन्होंने कहा, अत्यन्त अस्थिर स्थान था, अत्यन्त अस्थिर भूमि थी. ये अच्छा है, ये अच्छा है, ये अच्छा है। जो लोग और जब मेरा जन्म हुआ तो लोगों की चाल-ढाल देखकर मुझे सदमा पहुँचा। उस समय मेरी मुलाकात बहुत से साधकों से नहीं हुई। नि:सन्देह एक दो आत्मसाक्षात्कारी लोगों से मिली परन्तु अधिकतर लोग अपने बीमा, धन-दौलत आदि-आदि के लिए परमेश्वरी प्रेम की चिंगारी न थी। इस थोडे से समय चिन्तित थे उनसे बात करने पर समझ में नहीं आता कि कौन से विचित्र देश में आ गए हैं! समझ में नहीं आता था कि उनसे क्या बात की जाए! जो लोग साधक ही नहीं थे, ये नहीं समझ आता था कि उनसे किस प्रकार परमेश्वरी प्रेम की बात की जाए। उनसे प्रभावित हुए उन्होंने उनका अनुसरण किया परन्तु उनके हृदय में कुछ न था। जो भी उन्होंने सुना या पढ़ा यह प्रवचन जैसा था, गीता जैसा, बस इतना ही इन लोगों के जीवन में उनके अन्दर मैं के दौरान बहुत से अच्छे लोग आए। आप देख सकते हैं, महात्मा गाँधी आए, मार्टिन लूथर आए। सभी प्रकार के अच्छे लोग आए- अब्राहम लिंकन, जॉर्ज वाशिंगटन, विलियम ब्लेक और शेक्सपीयर भी आए। सभी इसी समय पर आए, चाहे साहित्य में शनै:शनै: मुझमें आत्मविश्वास आया, पहले तो मुझे ही सही- लाओत्से और उसके बाद सुकरात भी आए। सुकरात से आरम्भ होकर हमारे सम्मुख आज बहुत से दार्शनिक हैं, बहुत से ऐसे लोग जिन्होंने उच्च जीवन के विषय में बातचीत की। इसके लगा कि मैं कुछ जल्दी आ गई हूँ, मुझे कुछ और प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, ऐसा करना बेहतर होता क्योंकि यहाँ तो लोग सभी से घृणा करते हैं, हर व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध है। लोग एक दूसरे बावजूद भी लोग ये सोच रहे थे कि ये बडे को धोखा दे रहे हैं, एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं, अजीबोगरीब लोग हैं, इनमें कोई अच्छाई नहीं है। कोई भी गुरुगीता आदि की बात नहीं करता, कोई भी इसकी बात नहीं करता, लोग सोचते कि 'ये क्या बेवकूफी है!' चल रही इस सारी मूर्खता का क्या लाभ है? चहुँ ओर इस निन्दापूर्ण दृष्टिकोण के बीच जब मैंने देखा (सोचा), "मैं उन्हें कैसे बताऊं सभी उच्च पदवियाँ चाहते है, दूसरों पर शासन करना चाहते हैं और सबकी टाँग खींचना चाहते हैं। हो सकता है अभी तक सहजयोग आरम्भ करने का समय न आया हो। परन्तु तभी मैंने भयानक कुगुरुओं को अपने सम्मोहन द्वारा लोगों को वश में करते देखा। इसने मुझे ये सोचने पर विवश किया कि कि वे क्या हैं और उन्हें क्या खोजना है?" वास्तव वातावरण की चिन्ता छोड़कर, लोग कसे हैं इस बात की चिन्ता छोड़कर अब हमें कार्य शुरु कर देना तो जिज्ञासा हो, बिल्कुल थोड़ी सी ही। ये यदि मुझे चाहिए। और इस प्रकार भारत में प्रथम ब्रह्मरन्त्र में ये मेरी इच्छा थी कि लोगों के मन में थोड़ी सी जरा सा भी मौका दे दें तो यह परमेश्वरी प्रेम जो, कि अत्यन्त सूक्ष्म है, यह परमेश्वरी प्रेम उनके छेदन घटित हुआ। यह 5 मई 1970 का दिन था, चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 40 गलत धारणा होती। ये बात मेंने महसूस कर ली थी। इस प्रकार सामूहिक साक्षात्कार आरम्भ हुआ और इसने वास्तव में मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। यह कोई जादू न था, कथावाचन न था। यह सत्य था, लोग इसे अपनी अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर सहजयोग का आरम्भ हुआ और मैंने पाया कि सके, अपनी तालूअस्थि क्षेत्र पर इसे महसूस कर आदिशक्ति की शक्तियाँ इन समस्याओं से कहीं सके। यह सहजयोग का वास्तवीकरण था जिसने चमत्कार किए। इसके बिना ये कार्य करना असम्भव यही शक्तियाँ कुण्डलिनी को जागृत कर रहीं थीं। में होता ये सभी आश्चर्य जो आप देखते हैं, आपकी जानती थी कि मैं कुण्डलिनी जागृत कर सकती हूँ, प्रतिक्रिया के कारण हैं क्योंकि जिस प्रकार आपने इसमें कोई सन्देह नहीं, ये बात मैं जानती थी, और प्रतिक्रिया की, जिस प्रकार आपने इसे स्वीकार किया, ये उसका परिणाम है। अन्यथा आदिशक्ति क्या है? बेकार की चीज़! (Good for nothing) आप यदि स्वीकार न करें तो मैं कुछ भी नहीं। और आएंगे क्योंकि वो इतने अज्ञानी हैं! मैंने कभी नहीं ये आरम्भ हो गया। वास्तव में मैं देखती हूँ कि आपका विवेक, आपकी संवेदना और आपकी जिज्ञासा ही आपको सहजयोग तक लाई है। मैं कभी किसी मैंने कभी, कभी, कभी, कभी नहीं सोची। कोई यदि को पत्र नहीं लिखती, मैं कभी किसी को नहीं मुझे यह बताता भी सही तो में उनपर हँसती! बुलाती, जैसे आप जानते हैं अन्य गुरु करते हैं। ज्योंही वे किसी नगर में जाते हैं, वहाँ के महत्वपूर्ण हृदय में प्रवेश कर जाएगा। परन्तु ये थोड़ा सा अवसर भी वे मुझे नहीं दे रहे थे। वो तो पत्थरों जैसे थे, उनसे बात न की जा सकती थी, उन्हें बताया न जा सकता था और सबसे बुरी बात ये थी कि वे अपना कोई अन्त न समझते थे। इन परिस्थितियों में महान हैं। यह बात मेंने अत्यन्त स्पष्ट देखी क्योंकि यह भी जानती थी कि मैं सामूहिक आत्म-साक्षात्कार दे सकती हूँ। परन्तु में कभी ये न सोच सकी कि जिन लोगों को मैं जागृत करूंगी वो लौटकर भी सोचा था कि वो लौटकर आएंगे, सहजयोग का अभ्यास करेंगे या इस चीज़ को अपनाएंगे। ये बात बिल्कुल ऐसा ही। हुआ ये कि जब मेंने पहली बार एक सभागार में प्रवचन दिया तो मुझे लगा कि ये लोगों के नाम लिख लेते हैं और उन्हें पत्र भेजते हैं सभागार ही समाप्त हो जाएगा, सभी कुछ समाप्त हो और उनमें से दो तीन लोग उनके कार्यक्रमों में पहुँच जाएगा। सभागार से कुछ लेना-देना नहीं था मैं कहीं जाते हैं। परन्तु आप जानते हैं कि हम ये कार्य नहीं और रुकी हुई थी और सभागार किराए पर लिया करते। तो किस प्रकार हम यह सामूहिक आत्मसाक्षात्कार, सामूहिक कुण्डलिनी जागृति का कार्य कर पाए जिसके द्वारा लोग सहजयोग को समझने लगे और सहजयोग की गहराइयों में जाने गया था। अनुवर्ती कार्यक्रम में भी बहुत कम लोग आए। मुझे लगा कि यह कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा. क्योंकि लोग कुछ समझना ही नहीं चाहते। वो कुछ नहीं समझे। बहुत दबाव और पारिवारिक समस्याएं थीं परन्तु उनका अधिक महत्व न था। सबसे आवश्यक समस्या तो ये थी कि किस प्रकार लगे? ऐसा करने के लिए मुझे हर जन-कार्यक्रम में अपनी कुण्डलिनी उठानी पड़ती है। मैं अपनी कुण्डलिनी को भी उठाती हूँ और अपनी कुण्डलिनी में आपकी सभी समस्याओं को पकड़ लेती हूँ। यह कार्य अत्यन्त कष्टकर है; यही कारण हैं कि पूजा के पश्चात्, एक प्रकार से कुछ देर के लिए मेरे मानव हृदय में प्रवेश किया जाए। एकमात्र समाधान उनकी कुण्डलिनियों को उठाना था। मैें यदि इस विचार के साथ बैठी रहती कि लोग मेरे पास आकर आत्मसाक्षात्कार मांगेंगे तो में उनकी कुण्डलिनी जागृत करूंगी तब उन्हें जागृति प्राप्त होगी तो यह शरीर पर सूजन आ जाती है। वजह ये है कि आपके अंक : 11 & 12 2007 41 चैतन्य लहरी परन्तु यदि आप प्रतिदिन सुबह और शाम ध्यान-धारणा नहीं करते तो वास्तव में अब आप अधिक समय तक श्रीमाताजी के साम्राज्य में अन्दर जो कुछ भी है (नकारात्मकता) में उसे अपने अन्दर आत्मसात करती हूँ। आप सबको अपने अन्दर धारण कर लेती हूँ। आप सब मेरे शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। मेरा हर कोषाणु आपके नहीं रहेंगे। क्योंकि सम्बन्ध तो केवल ध्यान-धारणा लिए है, आपके और आपकी उत्क्रान्ति के लिए, के माध्यम से जुड़ता है। मैं जानती हूँ कि कौन और आपको भी इतना सूक्ष्म बनना होगा कि आप ये समझ सकें कि कोई भी भावना जब आपमें है, उनके बच्चों को कष्ट होता है और जब आती है, या सहजयोग का कोई भी कार्य आप ऐसा कुछ घटित होता है तब आकर मुझे बताने करना चाहते हैं, जो कुछ भी आप महसूस करते हैं, लगते हैं। परन्तु मैं स्पष्ट देखती हूँ कि यह ध्यान-धारणा नहीं करते। तब उन्हें कष्ट होता कोई आश्रम यदि आप आरम्भ करना चाहते हैं या कोई और कार्य आप करना चाहते हैं तो तुरन्त मुझे पता चल जाता है। मुझे कैसे पता चलता है? क्योंकि आप मेरे अन्दर हैं। अधिकतर चीजें में स्पष्ट जान व्यक्ति ध्यान-धारणा नहीं करता। उसके साथ मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है, मुझसे कुछ भी माँगने का अधिकार उसे नहीं है। आरम्भ में नि:सन्देह 'ध्यान-धारणा' पर (उतरने में) कुछ समय लगता है। परन्तु एक बार लेती हूँ परन्तु कुछ चीजें में स्पष्ट नहीं जान पाती। जब आप जान जाते हैं कि ध्यान-धारणा क्या है इसका एक कारण है : आपमें और मुझमें नि:सन्देह घनिष्ठ किस प्रकार आप मेरे सानिध्य का आनन्द लेते हैं, सम्बन्ध है कि आप मेरे शरीर में हैं, परन्तु यदि किस प्रकार मुझसे एकरूप होते हैं, किस प्रकार हमारे बीच सामंजस्य स्थापित होता है.. (तो आप ध्यान-धारणा नहीं करते तो यह (सम्बन्ध) सांसारिकता है। आपको ये बता देना आवश्यक होगा कि 'ध्यानगम्य' होना होगा। आप यदि ध्यानधारणा' नहीं करते तो मेरा आपसे कोई विशेष प्रकार का सम्बन्ध जोड़ना, कुछ नहीं। केवल सम्बन्ध नहीं है। आप मेरे सम्बन्धी नहीं हैं, मुझ पर आपका कोई अधिकार नहीं है। आपको मुझसे ये पूछने का अधिकार नहीं है कि ऐसा रूप से आप ऊपर उठते हैं और जब ये घटित होता क्यों हो रहा है, वैसा क्यों हो रहा है? अतः यदि आप ध्यान-धारणा नहीं करते- मैं हमेशा की परिपक्वता की अवस्था तक पहुँचते हैं, तब कहती हूँ ध्यान करें, ध्यान करें- तो मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं है। मेरे लिए अब आपका कोई अस्तित्व नहीं है। मुझसे यदि आपका योग ही नहीं है ( सम्बन्ध ही नहीं है ) तो आप भी में बैठे रहें। परन्तु कितनी गहनता-पूर्वक आप मेरे अन्य लोगों की तरह से हैं चाहे आप सहजयोगी हों ( कहलवाएं), चाहे आपने अपने अगुआओं समय आपने दिया। तब मैं आपके लिए, आपके से सहजयोग प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिए हों, ऐसा बच्चों के लिए, आपकी हर चीज़ के लिए हो सकता है, मैं नहीं जानती- और हो सकता है कि आपको कुछ बहुत महान माना जाता हो, आपकी सुरक्षा के लिए, सभी नकारात्मकताओं तुरन्त सब हो जाता है)। बीच में कुछ और लाने की आवश्यकता नहीं है-जैसे पत्र लिखना या कोई और एक ही चीज की आवश्यकता है 'ध्यानधारणा'। ध्यान में आप उन्नत होते हैं, इस स्थिति में आध्यात्मिक है, इस प्रकार से, में कहूंगी, आप जब सहजयोग आप ध्यानधारणा को छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि तब आप मुझसे पूर्णत: एकरूप होते हैं। इसका अर्थ ये भी नहीं हैं कि आप लगातार तीन-चार घण्टे ध्यान साथ हैं, ये बात महत्वपूर्ण है। ये नहीं कि कितना जिम्मेदार हूँ। मैं आपकी उत्क्रान्ति के लिए, अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 42 से आपकी रक्षा करने के लिए जिम्मेदार हूँ। तो और किस प्रकार इसका आनन्द उठाएं। आपको यह पिता की तरह से नहीं है जो सीधा आपको दण्डित करे, ऐसा नहीं है। परन्तु ठीक है, आप मैेरे दूसरी चीज़ से सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। परन्तु सम्बन्धी नहीं हैं, मैं निकल जाती हँ। यही चीज़ आपको परमात्मा से पूर्ण एकाकारिता प्राप्त करनी घटित हो सकती है। आप यदि ध्यान-धारणा नहीं चाहिए- पूर्ण एकाकारिता। परन्तु ये तभी सम्भव हो करते तो मैं आपको विवश नहीं कर सकती। मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं। आप और सम्बन्धी बना सकते हैं, बाहर-बाहर की दुनिया से। परन्तु ये लोग कहते हैं श्री माताजी हमें समय नहीं मिलता, आन्तरिक सम्बन्ध जिसके माध्यम से आपके आन्तरिक केवल एक नृत्यनाटिका या किसी एक चीज़ या पाएगा जब आप वास्तव में ध्यान करें, और ऐसा करना बहुत सुगम है- ध्यान-धारणा करना, कुछ वव हम हर समय कुछ न कुछ सोचते रहते हैं, या उस समय हमारी घड़ी देखने की इच्छा होती है। हो सम्बन्ध बनते हैं, जिसके द्वारा आपको आशीष प्राप्त होता है, बिना ध्यान-धारणा के आपको यह नहीं सकता है कि आरम्भ में आपको थोड़ी सी समस्या मिल सकता। मैं आप सबसे कहती चली आ रही हो, में ये नहीं कहती कि आपको समस्या नहीं करके ध्यान करें, कृपा करके प्रतिदिन होगी, समस्या हो सकती है। परन्तु ऐसा केवल आरम्भ में होता है, शनै: शनै: आप ठीक हो जाते हैं. हूँ कि कृपा ध्यान-धारणा करें। परन्तु मैं सोचती हूँ कि लोगों को मेरे कथन का महत्व समझ नहीं आता। लोग मुझे इसमें कुशल हो जाते हैं, इसे इतनी अच्छी तरह से जान जाते हैं कि किसी अन्य घटिया किस्म की चीज़ को अपनाना नहीं चाहते। आप कोई घटिया बात नहीं सुनते। अतः अपने सौन्दर्य, गरिमा और महान व्यक्तित्व तक पहुंचने के लिए, जो अब प्रकट बताते हैं 'श्रीमाताजी हम ध्यान-धारणा नहीं करते, क्यों!' 'अब हम आत्मसाक्षात्कारी हैं' अब क्यों हम ध्यान-धारणा करें?' यह यन्त्र पूरी तरह बना हुआ है, परन्तु यदि हर समय यह अपने स्रोत से जुड़ा हो चुका है, यही एकमात्र कार्य आपने पूर्ण सत्यनिष्ठा से करना है। ये नहीं कि रात को मैं हुआ नहीं है तो इसका क्या लाभ है? ध्यान-धारणा में ही आप प्रेम को, परमेश्वरी प्रेम, परमेश्वरी प्रेम के सौन्दर्य को महसूस करेंगे। पूरा परिदृश्य ही परिवर्तित हो जाएगा। ध्यान-धारणा करने वाले व्यक्ति का दृष्टिकोण अत्यन्त भिन्न होता है, भिन्न स्वभाव और अत्यन्त भिन्न जीवन होता है। वह पूर्ण आन्तरिक सन्तोष के साथ जीवनयापन करता है। बहुत देर से आया इसलिए ध्यान-धारणा नहीं की, या कल है क्योंकि मुझे काम पर जाना इसलिए में ध्यान-धारणा नहीं कर सकता। बहाने कोई नहीं सुनना चाहता, यह आपके और आपकी आत्मा के बीच की बात है। इसमें आपका लाभ है किसी और का नहीं। आपके है! लाभ के लिए ही सभी कुछ घटित हुआ है! अत: जैसे आप कहते हैं, आज अवतरण व्यक्ति की समझना चाहिए कि हमने सम्बन्धों की कुछ बुलन्दियाँ प्राप्त कर ली हैं और अन्दर से आप यहाँ तक, यहाँ तक, यहाँ तक उठ सकते हैं, बिना ये कहे कि ऐसा करना सम्भव नहीं है। परन्तु सर्वप्रथम एवं आवश्यक चीज़ ये है कि आप स्वयं को चाहे जितना उच्च दर्जे का सहजयोगी मानें, ध्यान-धारणा के विषय में आपको विनम्र होना होगा। का प्रथम दिन है, हम कह सकते हैं कि अवतरण घटित होने का यह प्रथम दिन है, क्योंकि आज हम पूजा कर रहे हैं, यद्यपि ये आज नहीं हो रही, परन्तु फिर भी हम कह सकते हैं कि यदि यह सत्य है, यदि यह घटित हुआ और आपके लिए सहायक हुआ, आपके लिए महान आशीर्वाद बना, तो आपको ये जानना होगा कि किस प्रकार इसे सुरक्षित रखें। ध्यान-धारणा का ये गुण, यद्यपि में आपसे सहस्रार अवश्य जानना होगा कि किस प्रकार इसे बढ़ाएं अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी 43 -2007 पर बात कर रही हूँ फिर भी मैं इसमें उतर रही हूँ जो बता रही हूँ अवश्य वह सत्य होगा, इसका क्योंकि यह इतना आनन्ददायी है। इस आनन्द के पूर्ण आधार। यद्यपि ये बात कुछ सांसारिक है। प्रतीत होती है परन्तु यह अत्यन्त महत्वपूर्ण सागर में कूद पड़ें। पहले तो ये कठिन होगा परन्तु कुछ समय पश्चात् आप जान जाएंगे कि ये सम्बन्ध जो आपका श्रीमाताजी से है यही एकमात्र सम्बन्ध है अब आदिशक्ति की पूजा के विषय में में नहीं जानती क्योंकि आदिशक्ति के विषय में प्रार्थना आदि कुछ भी नहीं बने । लोग भगवती तक ही पहुँच पाए। अत: मैं नहीं जानती कि आप कंसी जिसकी आपको तलाश थी। एक अन्य बात ये है कि लोग खो जाते हैं, मैंने देखा है कि खो जाने वाले कुछ लोगों में यह आम बात है कि वे अकेले काफी ध्यान-धारणा करते हैं, ये बात ठीक है। अकेले बैठकर वो ध्यान करेंगे, पूजा करेंगे परन्तु सामूहिकता में वो ध्यान नहीं करते। तो स्मरण रखने वाली ये लिए हम ध्यान में जाएंगे। एक अन्य चीज़ है कि आपको सामूहिक रूप से ध्यान-धारणा करनी है क्योंकि में सभी प्राणियों में (श्रीमाताजी सभी उपस्थित लोगों की कुण्डलिनी सामूहिक अस्तित्व हूँ। जब आप सामूहिकता में उठाती है और 11 बार प्रणव फूँकती हैं) ग्यारह रुद्र पूजा कर पाएंगे! परन्तु आइए कुछ प्रयत्न करें। मेरे ख्याल से ध्यान-धारणा ही सर्वात्तम उपाय है जिससे हम कुछ पा सकते हैं। अत: लगभग पाँच मिनट के 'कृपा करके आँखें बन्द कर लीजिए। ध्यान करते हैं तो वास्तव में मेरे बहुत करीब होते हैं। जब भी कोई कार्यक्रम आदि हो, अवश्य थोडा सा ध्यान करें। ध्यान-धारणा को हर कार्यक्रम में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। भजन गाएं, सभी कुछ कर लें, उसके बाद ध्यान करें। मैं जब किसी चीज़ पर बल दें तो समझ लें कि मैं जागृत हो गए हैं, वे सारी नकारात्मकता को नष्ट कर देंगे। अज्ञान सबसे बड़ी शक्ति है। मुझे पूरा विश्वास है कि वे लोगों के अज्ञान को नष्ट कर दंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। (रूपान्तरित) त चा র से यर काी त र गा वा का पूजा, आस्ट्रेलिया-2007 जवरात्रि राव पाम अ सहजयोग केन्द्र बज़व-जनपद (बागापत), उ से पूजा के ातठिया गया फोटो पा য अब हमें समझना है कि हगने मशाल अपने हाथों में ली हुई है। इसकी लौ डावाँडोल नहीं होनी चाहिए। हमें ये मशाल कसकर पकड़े रखनी है। प्रकाश को अखण्ड बनाए रखने के लिए हमें अपना पूरा चित्त इस पर केन्द्रित करना चाहिए और तब स्वयं से कहना चाहिए कि ত" हमें यह पूकाश देखना है, मस्तिष्क से केवल इसे समझना मात्र नहीं है,' वास्तव में इसके प्रति चेतन होना है। अन्यथा आप पूर्ण हैं, विराट के अंग-प्रत्यंग हैं। परव्तु इस प्रकाश को आपने देखा नहीं है। मस्तिष्क से आपने इसे स्वीकार कर लिया है। परन्तु आप प्रकाश बन नहीं पाए हैं। मानसिक प्रक्षेपण क्योंकि विचारों से आते हैं, अतः आप विचारों के स्तर पर हैं। ম आपको निर्विचार होना होगा। विचारों को यदि आप जीवन का आधार बनाए रखेंगे तो अभी आप आज्ञाचक्र से नीचे हैं। अतः आरम्भ ে া से ही सारा विचार-प्रवाह रोकना होगा और कहना होगा कि, "ठीक है, आइए अब देखते हैं।" परम पूज्य श्रीमाताजी ---------------------- 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी रा ३ नवम्बर - दिसम्बर 2007 ि ा 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt चै त न्य लह री प्रकाशक निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8. चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी,. पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 - 411 029 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिजाइनर्ज 292/23 ओंकार नगर बी' त्रीनगर दिल्ली- 110035 मोबाइल : 9212238008 ़ आप अपने सुझाव, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्रॉसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी पॉड रोड कोथरुड पुणे - 411 029 फोनः 020-25285232 अपने अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख आदि निम्नलिखित पते पर भेजें : श्री ओ.पी. चान्दना जी-11-(463), ऋषि नगर, रानी बाग दिल्ली-110034 फोन : 011- 653568।। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt चै त न्य ल ह री अंक : 11 - 12, 2007 VISHWA SKMAALA PUREY इस अंक में परमेश्वरी माँ से वार्तालाप (भाग-1) कबेला, लीग्रे, इटली जून-2007 ं परमेश्वरी माँ से वार्तालाप (भाग-2) जुलाई-अगस्त-2007 'अपेक्षा' (Expectations) (बाबा मामा), नागपुर-1999 10 निर्मल-गीतिका 11 महाकाली पूजा, (म्यूनिक- 8.10.1987) 12 दिवाली पूजा, कोमो 25.10.1987 19 हम जन्म दिवस पूजा-जुहु, बम्बई-22.3.1984 30 श्री आदिशक्ति पूजा- कबेला-6.6.1993 33. नत DHARA ENIVERSA RELIGION 5. 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt कार ाभ ा ा ्रा नब नवरात्रि पूजा, आस्ट्रेलिया-2007 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt परमेश्वरी माँ से वार्तालाप (भाग-1) कवेला, लीग्रे, इटली जून-2007 बताए। ये इस प्रकार हैं:- जून के अन्तिम दस दिन कवेला, लीग्र. इटली में उनके महल में श्रीमाताजी के समक्ष होना तथा उनके परमेश्वरी सानिध्य के दिव्यक्षणों का अनुभव करना वास्तव में आश्चर्यजनक आशीर्वाद था। ये असाधारण वार्तालाप भिन्न दिनों और लिए हार्दिक प्रेम के कारण, सबसे पहले श्रीमाताजी भिन्न क्षणों में हुए परन्तु पूरे वार्तालाप का प्रसंग एक ही है। संयुक्त राज्य अमेरिका में जन्मे तथा पढ़े-लिखे लोगों में सहजयोग का विकास न हो पाना, इन वार्ताओं की मुख्य विषयवस्तु थी। इसकी ब्याख्या अमरीकन समाज की मुख्यधारा के रूप में भी की जा सकती है। वार्तालाप प्रश्नोत्तरी के रूप में हुई, इसकी सहजयोगियों की संख्या 10 गुनी होनी चाहिए। , यए श्रीमाताजी का विवेचन भारत के बाद अमरीका ही वह पहला देश 1. था जिसके हित की चिन्ता और वहाँ के साधकों के वहाँ गईं। अमरीका की 30 करोड़ की आबादी में सहजयोगियों की संख्या लगभग 1200 है। ये संख्या तीन करोड़ की आबादी वाले देश इटली के सहजयोगियों के बराबर है। इटली जैसे देश के अनुपात तक पहुँचने के लिए भी अमरीका में 2. रूपरेखा का सार, निम्नलिखित पंक्तियों में प्रस्तुत अमरीका में यद्यपि आध्यात्मिक धरोहर का 3. करने का प्रयत्न किया गया है। अभाव है, परन्तु पश्चिमी यूरोप और रूस में भी आध्यात्मिक धरोहर का प्राचुर्य नहीं है, फिर भी वहाँ पर सहजयोग का विकास सन्तोषजनक है। मूलत: श्रीमाताजी इस विषय में अत्यन्त स्पष्ट थीं और स्पष्ट हैं कि यदि अमरीका में सहजयोग नहीं फैलता, (अमरीका अर्थात अमरीका की मुख्यधारा) तो स्पष्ट रूप से इस बात का खूतरा बना हुआ है कि यह देश स्वयं ही स्वयं को नष्ट कर देगा। विश्वस्तर पर अमरीका की भूमिका को देखते हुए शेष विश्व पर भी ऐसी किसी घटना के परिणाम समान रूप से चिन्ताजनक होंगे। या इस विषय पर भी बातचीत हुई कि आत्मसाक्षात्कार लेने के पश्चात् भी क्यों केवल थोड़े से लोग हैं, परन्तु इसके पश्चात् सहजयोग छोड़ देते हैं। महत्वपूर्ण बात तो ये है कि इन राष्ट्रों की जनता की अमरीका में सहजयोग के सीमित विकास के कारण अनुवर्ती कार्यक्रम में सम्मिलित होते मुख्यधारा ने अमरीका की अपेक्षा श्रीमाताजी को कहीं अधिक स्वीकार किया है, परन्तु अमरीका के अधिकतर भागों में विकास अव्यवस्थित रूप में है और स्पष्टत: मुख्यधारा इससे बाहर है। अन्य राष्ट्ं भी प्रस्तुत किए गए। परन्तु इनका विवरण इस रिपोर्ट में नहीं दिया जा रहा है। अपने अद्वितीय प्रेम एवं धैयपूर्वक श्रीमाताजी ने इन कारणों को पूर्णरूपेण तथा इनके कुछ भागों को स्वीकार किया। जो भी हो उन्होंने अपनी अद्वितीय शैली में स्थिति का निष्कर्ष निकाला और इसके कुछ समाधान से आए हुए लोगों का सहजवोग में आने का वास्तव में अधिक महत्व नहीं है क्योंकि इस विकास में अमरीका के मूल निवासी सम्मिलित नहीं हैं। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 70-80 के दशकों में भारत के इसे इतना महत्वपूर्ण बनाता है?" इन्हीं सन्देशों के साथ, तब उन्हें अमरीका की मूलधारा तक पहुँचने 4. लगभग 12 कुगुरु अमरीका आए और उन्हें धोखा दिया तथा आध्यात्मिक पथप्रदर्शन के नाम पर उन्हें का प्रयत्न करना चाहिए। भ्रमित किया। इसके कारण सभी भारतीय धारणाओं के विकास को क्षति पहुँची, विशेषरूप से आध्यात्मिक विकास के क्षेत्र में हानि हुई जिसके कारण अमरीका और पहचानना होगा। केवल भारतीय सहजयोगियों के लोग सहजयोग को भी शंका की दृष्ट से देखने लगे हैं। इस प्रक्रिया में कुगुरुओं ने वहाँ के लोगों देखेंगे तो ये आसानी से सम्भव न होगा। को भ्रमित करते हुए हजारों करोड़ों की व्यक्तिगत सहजयोग के लाभ पहचानने के लिए, सामान्य अमरीकनों को अपने जैसे लोगों को देखना 9. को यदि वे सहजयोग का प्रचार-प्रसार करते हुए अतः अमरीका के सहजयोगियों को चाहिए कि इस कार्य का नेतृत्व सम्भालने का प्रयत्न करें। भारतीयों सहित अन्य सभी राष्ट्रों (धर्मों) के लोग इस महान उद्यम के लिए सच्ची सहायक भूमिका निभा सकते हैं। 10. सम्पदा एकत्र कर ली। इस तथ्य ने भारत से आने वाली आध्यात्मिकता के सभी पक्षों के प्रति गहन अविश्वास की धारणा को दृढ़ एवं स्थापित किया। यद्यपि अमरीका के लोग जीवन की अधिकतर चीजों को भौतिक दृष्टि से देखते हैं फिर भी उन्हें 5. अमरीका के भिन्न नगरों में सहज पाठशालाएं खोलना ताकि अधिक से अधिक बच्चे आ सकें। सहज प्रचार-प्रसार की आदर्श विधि होगी। सहज-स्कूलों में जाने वाले बच्चे उस वातावरण से यह महसूस करना होगा कि जीवन के सभी आवश्यक तत्व नि:शुल्क उपलब्ध हैं। उदाहरण के लिए प्राणवायु! अमरीका के लोगों को अपने परिवारों से 11. 6. उतना प्रेम एवं सूझ-बूझ प्राप्त नहीं होती जितनी अन्य संस्कृतियों से सम्बन्धित लोगों को होती हैं- जैसे भारत के लोगों को। अमरीका में सहजयोग के बहुत प्रसन्न हैं। उनकी प्रसन्नता का उपयोग यदि उन परिवारों के बच्चों को आकर्षित करने के लिए किया जाए जो सहजयोगी नहीं हैं, तो यह अमरीकन परिवारों में सहजयोग पहुँचाने का अद्भुत मार्ग होगा। माता-पिता जब देखेंगे कि उनके बच्चे सहज-स्कूल में (और वहाँ की संस्कृति) बहुत सन्तुष्ट एव विकास के लिए आवश्यक है कि वहाँ के लोग उस प्रेम एवं सहृदता को प्राप्त करें जो उन्हें अपने व्यक्तिगत जीवन में नहीं प्राप्त हुए है । स्वभाव से भी अमरीका के लोग उच्च 7. प्रसन्न हैं, तो उनके स्वत: सहज स्वीकार करने की सम्भाव्यता बहुत अधिक बढ़ जाएगी। सत्यसाधक नहीं हैं, सम्भवत: भौतिक सम्पदा के प्राचुर्य के कारण। परन्तु यह धारणा भारत जैसे देश के बिल्कुल विपरीत है जहाँ वैभवशाली लोग भी अन्त में श्रीमाताजी ने कहा कि मैं अमरीका आऊंगी। उन्होंने कहा कि मैं अभी प्रयत्न करना नहीं छोड़ूंगी। फिर भी उन्होंने बार-बार प्रश्न पूछा, आप ही बताएं कि अमरीका की जनता को मैं क्या बताऊं जिससे वे सहजयोग स्वीकार कर ले?" उच्च-सत्यसाधक हैं। अमरीका के मूलयोगियों (बाहर से आए योगी नहीं) को भलिभांति समझकर उन कारणों का अवलोकन करना होगा कि वे सहजयोग की ओर आकर्षित क्यों हुए और अभी तक वे सहजयोग में बने ৪. निष्कर्ष के रूप में यह हम सबके लिए हुए क्यों हैं? उन्हें स्वयं से एक मूलप्रश्न पूछना चुनौती है। श्रीमाताजी अमरीका आना चाहती हैं। होगा:- " श्रीमाताजी और सहजयोग में ऐसा क्या है केवल हमारे लिए ही नहीं बल्कि उन सबके लिए जो इसे इतना अद्वितीय बनाता है और मेरे जीवन में जिन्होंने उनका प्रकाश नहीं देखा है। ৩ 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt परमेश्वरी माँ से वार्तालाप (भाग-2) जुलाई-अगस्त-2007 के बाद के दिनों में श्रीमाताजी के चाहिए कि चक्रों का ज्ञान प्राप्त करके वे अपनी समस्याओं का निदान कर सकेंगे और किसी को बताए बिना उन समस्याओं को ठीक कर सकेंगे। गुरु पूजा चित्त को शनै: शनै: श्री कृष्ण भूमि तथा अमरीका के मामलों पर जाते हुए देखा गया। मुझे तथा कुछ अन्य लोगों को इस समय कबेला में उनकी सेवा में उपस्थित होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चक्रों के स्तर पर समस्याओं का समाधान करने की योग्यता उन्हें डाक्टरों, मनोवैज्ञानिकों तथा श्री कृष्ण पूजा तक के इन दिनों में श्रीमाताजी उनकी बताई गई दवाईयों से मुक्त करेगी और इन ने अमरीका के साधकों, उत्क्रान्ति-शिक्षा-केन्द्र चीजों पर बर्बाद होने वाला धन बच सकेगा। (C.E.L. ) की सीमाओं तक पहुँचने तथा भारतीय स्वतन्त्रता के समय उनके अपने अनुभवों आदि विषयों पर बात की और हर क्षण आगे करने वाले कार्यों के बारे वे अत्यन्त उत्साहित थीं। श्रीमाताजी ने परामर्श दिया कि साधक तुरन्त स्वयं पर और अन्य लागों पर कार्य करना आरम्भ कर दें। इस प्रकार उन्हें महसूस होगा कि इनके पास कुछ (शक्ति) है। चाहे वे इसे महसूस न कर सकते हों परन्तु जिस व्यक्ति पर वो कार्य कर रहे हों और उसे महसूस भी हो रहा हो तो निम्न पंक्तियों में इन वार्तालापों के मुख्य तत्वों का सारांश प्रस्तुत करने का विनम्र प्रयास किया गया है। इनमें से कुछ वार्तालाप मेरी अनुपस्थिति इससे उनका उत्साह बढ़ेगा| वो में में हुए। परन्तु इनके विषय में जो मुझे प्राप्त हुए भी इनमें सम्मिलित हैं। ये क्षण, हमारे लिए उनका पथ प्रदर्शन और उनकी पुरानी कहानियाँ-- इतनी अमूल्य हैं कि आज और आने वाली पीढ़ियों के लिए उनके मूल्यों का अन्दाजा लगा पाना भी कठिन है। श्रीमाताजी ने अमरीका के विषय में बहुत सी सामान्य चीजों के बारे में भी बातचीत की| इनका सारांश निम्नलिखित है। श्रीमाताजी ने कहा कि रूस में हुए सहजयोग प्रचार-प्रसार से वे अत्यन्त प्रसन्न हैं और शायद साम्यवाद अच्छी चीज है। उन्होंने कहा कि अमरीका का लोकतन्त्र बेकार है यदि इसका परिणाम वही है जो वहाँ के साधकों को भौतिकता की ओर आकर्षित अमरीका अमरीका के साधक क्योंकि अत्यन्त स्वतन्त्र और आत्मनिर्भर हैं इसलिए श्रीमाताजी ने उन्हें इस कर रहा है। उन्होंने बताया कि वे उनके प्रति प्रकार इन विषयों के बारे में बताने के लिए कहा जो उनकी प्रकृति के इस पक्ष को अच्छा लगे। अत्यन्त करुणामय एवं धैर्यवान रहीं, परन्तु अब वे उन्हें ये बात बताने वाली हैं और आशा है कि उनके ऐसा करने से लाभ होगा। श्रीमाताजी ने कहा कि वो अमरीका आना चाहती हैं। साधकों को बताएं कि सच्ची स्वतन्त्रता आत्मज्ञान से प्राप्त होती है और उन्हें ये समझ लेना चाहिए कि यह तन्त्र (यन्त्र) उनके अन्तःस्थित है और उनका अपना है। हमें चाहिए कि उन्हें बताएं भारत से 12 कुगुरु अमरीका आए और उन्होंने साधकों का पूरा धन लूटकर बड़े-बड़े आश्रम बना दिए। अब उनमें कौन रहेगा? श्रीमाताजी ने कहा कि उन कुगुरुओं की बात सुनना अमरीका के लोगों की मूर्खता थी और अब आपमें सहजयोग कि "स्वयं का ज्ञान प्राप्त करें।" अपने अन्दर विद्यमान यन्त्र को जब एक बार वो महसूस कर लें तब उन्हें बताया जाना 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 6. ाल ज समझने का विवेक होना चाहिए। ये गुरु समाप्त हो गए हैं परन्तु इनके प्रभाव अब भी बने हुए हैं। होना चाहिए, परन्तु ये नाम आरम्भ में न देकर श्रीमाताजी ने वर्णन किया कि माता-पिता के लिएद छोटे-छोटे कार्य करने के लिए जैसे कार धोना और का नाम 'Know Thyself' (स्वयं को पहचाने द्वितीय अवस्था में दिया जाना चाहिए । C.E. L. ( उत्क्रान्ति शिक्षाकेन्द्र) घर का काम-काज करना- पैसे देकर वहाँ के माता-पितां बच्चों को धनप्रेम सिखाते हैं क्योंकि ये सभी कार्य तो बच्चों को प्रेमवश करने चाहिए। उन्होंने आशा जताई कि उनके बच्चे उन्हें ठीक करेंगे। उन्होंने कहा कि आपको अपने बच्चों से प्रेम उत्क्रान्ति शिक्षाकेन्द्र द्वारा किए जाने वाले प्रयत्नों के विषय में श्रीमाताजी को पूर्ण जानकारी दी गई। ध्यान-धारणा अभ्यास के माध्यम से ज्योतित प्रबन्धन सिद्धान्तों एवं सकारात्मक एवं सन्तुलित कार्य वातावरण बनाने के लिए ये केन्द्र कारपोरेट विश्व तक पहुँच रहा है। इस अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की करना चाहिए, यदि आप ऐसा नहीं करते तो सहजयोग आपको प्रेम नहीं करेगा। केवल अपने बच्चों से ही नहीं सभी से। आप अवश्य उनसे प्रेम करें व उनका एक शाखा की स्थापना अमरीका में हाल ही में की सम्मान करें। आपके सन्त होने की उन्हें कोई गई है। श्रीमाताजी को जब यूरोप में इनके कार्यों के परवाह नहीं है, परन्तु आपका प्रेम उन्हें अच्छा लगता है। उन्होंने कहा कि यदि ऐसा हो जाए तो पूरा विश्वपरिवर्तित हो जाएगा। विषय में बताया गया तो उन्होंने निम्नलिखित टिप्पणी की। "अब मुझे आशा है कि मेरा अवतरण व्यर्थ नहीं हुआ है! परमात्मा ने आपको अपने पदों पर आरूढ़ कर दिया है और अब आप जिम्मेदार हैं। इसीलिए परमात्मा ने आपको पृथ्वी पर जन्म दिया है। मैं तो मात्र एक गृहणी हूँ। विश्व आपके नेतृत्व की ओर देख रहा है ।" श्रीमाताजी को अमरीका में 'कुबेर फण्ड बनाए जाने के विषय में बताया गया और पूछा गया कि इस धन को किस कार्य पर खर्च करने को प्राथमिकता दी जाए- नए केन्द्रों के स्थापना के कार्य पर या सीधे साधकों तक पहुँचने की दिशा में- तो श्रीमाताजी ने पहले पूछा कि इस धन से कितने केन्द्र स्थापित किए जा सकते है? जब उन्हें बताया १ संस्थाओं में प्रकाश नहीं है। उनके पास भवन है, दफ्तर हैं परन्तु प्रकाश नहीं है। "घटिया प्रबन्धन के कारण- विशेष रूप गया कि गिरवी रखकर ये फण्ड कन्द्रों का पूरा से महिलाओं की दिशा में- इस्लामिक विश्व असफल मूल्य चुका देता है और बाद में केन्द्र यह ऋण चुकाते हैं, तो उन्होंने कहा कि केन्द्रों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए परन्तु इस कार्य में और साधकों तक पहुँचने के कार्य में सन्तुलन स्थापित किया नहीं कर सकता। कानून सत्य के पक्ष में है। हो गया। पपड घबराएं नहीं इस बार कोई आपका वध त जाना चाहिए। आजकल हर चीज़ रिकार्ड हो जाती है- पुनः देखा जा सकता है कि क्या कहा गया था- कोई इसे परिवर्तित नहीं कर सकता। भूतकाल में धर्मों को तोड़ना-मरोड़ना आसान था परन्तु आज ऐसा नहीं है। आपकी बात यदि सच्ची है तो चाहे जब तक आप श्रीमाताजी को जब सहजयोग की एक आरम्भिक पुस्तिका प्रस्तुत की गई, जिसकी सहायता से साधक केन्द्रों से निकलकर दूर-दराज जाकर कार्य कर सकें, और श्रीमाताजी से इस पुस्तिका का इसे कह सकते हैं।' नाम पूछा गया तो श्रीमाताजी ने कहा कि इस पुस्तक 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 2007 करना है? तुम्हें और कौन सा काम अच्छा लगेगा? व्यापार और राजनीति के सभी घुरंधरों को यह स्वीकार करना पड़ेगा क्योंकि यह सत्य है। मैं तो इटली के लोग बहुत अच्छे हैं परन्तु उनमें ज्ञान नहीं है। इराकी बुरे नहीं हैं परन्तु वो मूर्खता में फँसे हुए हैं। मात्र एक गृहणी हूँ (पूरे ब्रह्माण्ड की, ग्रेगोर ने दो मेयरों ने (Albera And Cabella) ने मुझे ईसामसीह की माँ के रूप में पहचाना। वो बुद्धिमान कहा), परन्तु मुझे किसी का डर नहीं है। थे मैं यदि वो हूँ भी तो क्या? महत्वपूर्ण बात तो ये है कि आपने मुझसे क्या पाना है। में अब सहजयोगियों की माँ हूँ। पहले वे किसी पुरुष को बने। समय आ गया है। आप सब सत्य को जानते भेजना चाह रहे थे परन्तु आपको माँ की आवश्यकता थी। ईसामसीह भी ये कार्य न कर पाते। आपके अतिरिक्त कोई इस कार्य को नहीं कर सकता। आप पूरी तरह से जिम्मेदार हैं! साहसी हैं, परन्तु अब बड़े-बड़े धुरन्धरों को सत्य खोजना होगा.. आपको घबराने की आवश्यकता नहीं है, धन से आनन्द नहीं खरीदा जा सकता आगे बढ़ें। अच्छे पद प्राप्त करें परमात्मा ने तुम्हें इन परन्तु प्रेम करने के लिए आप धन का उपयोग कर सकते हैं। प्रेम के लिए इसका उपयोग करें। पूरा विश्व परिवर्तित हो रहा है आगे बढ़ें। विस्तृत हों, पदों पर आरुढ़ किया है। आज उत्सव का दिन है कितना अच्छा चैतन्य है। कितनी अच्छी कुण्डलिनियाँ हैं! विस्तृत हों! जो भी आवश्यक हो करें। इसी कारण से परमात्मा ने आपको पृथ्वी पर जन्म दिया है। पेड़ यदि प्रेम को महसूस कर सकते हैं तो प्रबन्धक भी इसे महसूस कर सकते हैं, प्रबन्धक। मैं हैं? कुर्ते और साड़ियाँ वितरण इस बात का ध्यान रखूंगी। क्या अब आप खुश एक दोपहर पश्चात् श्रीमाताजी वहाँ उपस्थित सभी अगुआओं को कुर्ते बाँट रहीं थीं और हर एक से सत्य बोलो और प्रेम दो। आपको इस बात का अन्दाजा नहीं हैं कि आपके पीछे कौन सी शक्ति है! रहीं थीं कि जो कुर्ता उन्होंने पहना हुआ है पूछ वो उन्हें कहाँ से मिला। जो भी नया व्यक्ति आता उसके सामने वे कई रंगों के कुर्ते रखतीं और छाँटने के लिए कहतीं, तथा जिन लोगों को कुर्ते मिल चुके थे उन्हें नए लोगों को कुर्ते दिखाने के लिए कहतीं। श्रीमाताजी पूरी तरह से विश्वस्त होने का प्रयत्न करतीं कि सभी को वो रंग मिल गए हैं जो उन पर बहुत फबते हैं। बार-बार वे उनसे पूछतीं कि उन्होंने जो रंग छाँटे वो उन्हें पसन्द तो हैं? इसके लिए वे नए रंगों के कुर्ते उनके सामने रखतीं ताकि वे अपने आप यदि घृणा करते हैं, वास्तव में घृणा करते हैं तो आप वास्तव में प्रेम करते हैं क्योंकि उस व्यक्ति पर आप का इतना चित्त है! आज प्रेम करने का यही तरीका है। स्वार्थ प्रेम तक पहुँचाता है। प्रेम को परिभाषित नहीं किया जा सकता क्योंकि यह तो भावना है। आप सबको देखकर मेरा हृदय आशा से भर उठा है मैंने सोचा था कि मेरा अवतरण व्यर्थ हो जाएगा। अब आप जिम्मेदार हैं आपको अपनी लिए सबसे अच्छा रंग छाँट सकें। आत्मा पर विश्वास है। उत्क्रान्ति शिक्षा केन्द्र के प्रतिनिधियों ने जब उनसे पूछा कि क्या श्रीमाताजी का आशीर्वाद उनके साथ है तो श्रीमाताजी ने उत्तर दिया, 'हाँ', शक्तिपूर्वक आगे बढ़ो', और तुम्हें क्या में स्थित पैंठन नामक स्थान से आई हैं। श्रीमाताजी तत्पश्चात् श्रीमाताजी ने उपस्थित अगुआओं की पत्नियों के लिए साडियाँ बाँटनी शुरु कीं और बताया कि ये 'पैठनी' साड़ियाँ हैं जो पुणे के दक्षिण 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt चैतन्य लहरी अंक :1। & 12 -2007 ৪ ने बताया कि किसी जमाने में ये साड़ियाँ बहुत दिया गया तब उन्हें पहली बार पता लगा कि गरीबी दुर्लभ होती थीं परन्तु अब इनका काफी उत्पादन किया जा रहा है और ये साड़ियाँ सात गज लम्बी हैं, इनमें एक गज़ कपड़ा ब्लाऊज के लिए बचाया जाता जिन्हें जेल भेजा गया। है। द्राक्ष चयनकर्ता की शैली में श्रीमाताजी पुनः हर व्यक्ति को याद करके उनके लिए साड़ियाँ खोजने छोड़कर अंग्रेजों ने बहुत बुद्धिमानी की परन्तु वे लगतीं। वो ये भी बता रहीं थीं कि ये साड़ी फलाँ महिला पर क्यों फबेगी। क्या होती है क्योंकि उनके पिता ही घर के मुख्य कमाने वाले थे वे अकेले जाने-पहचाने ईसाई थे ुं श्रीमाताजी कहती चलीं गई कि भारत आजतक भी ये बात नहीं समझ पाई हैं कि उन्होंने ऐसा क्यों किया, क्योंकि इससे पूर्व ऐसा कहीं घटित नहीं हुआ था। उन्होंने कहा कि न तो कोई युद्ध था और न ही कोई द्वन्द, जिनके बिना आक्रान्ता देश कभी छोड़ते नहीं हैं। अत: अंग्रेजों में कुछ विवेक था। श्रीमाताजी ने कहा कि नेहरु बंश भारत के हित में कभी न था, और यदि उस समय गाँधीजी राष्ट्रपति बन गए होते तो आज भारत का रूप कुछ यह समय के झरोखे से देवी के उस रूप को देखने जैसा था- देवी जिनकी सेवा में सभी कुछ नतमस्तक है और सभी ग्रह जिनके आभूषण हैं, परन्तु फिर भी अपने असीम प्रेम की अभिव्यक्ति के रूप में तोहफे वितरण किए बिना जिन्हें चैन नहीं आता। श्रीमाताजी ने बताया कि आरम्भिक दिनों में और ही होता। वे खादी की साड़ियाँ पहना करतीं थीं परन्तु विवाह कबेला और प्रतिष्ठान होने पर उनकी माँ ने उन्हें रंग-विरंगी साड़ियाँ पहनने के लिए कहा। तत्पश्चात् वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन तथा घर की बुनी खादी के वस्त्र पहनने करते हुए उन्होंने बताया कि उनके अतिरिक्त कोई के लिए गाँधीजी प्रयत्नों के बारे में बताने लगीं । कबेला में अपने पहले आगमन का वर्णन भी वहाँ की सच्ची सम्भाव्यता को नहीं देख पाया था। उन्होंने कहा कि सर सी.पी. को यह लगा कि भारतीय स्वतन्त्रता यह स्थान अच्छा नहीं हैं। वे बहुत परेशान थे और गाँधीजी के साथ उनके आश्रम में बिताए जाते उन्होंने कहा था "हम यहाँ कैसे रह सकते समय की याद करते हुए श्रीमाताजी ने बताया कि है?" तब सर सी. पी. मज़ाक करते हुए बोल उठे, वे अत्यन्त सहज, अनुशासित व स्पष्टवादी व्यक्ति "और अब हम यहाँ रहते हैं!" श्रीमाताजी तथा वहाँ थे। उनके खादी आन्दोलन ने मन्चैस्टर इंग्लैण्ड के उपस्थित सभी लोगों के हर्ष की सीमा न रही! कपड़ा उद्योग को नष्ट कर दिया। उन्होंने ये भी हुए उस समय यद्यपि उनके वर्तमान शयनकक्ष बताया कि गाँधीजी ने गाना भी बनाया था कि यदि में खड़े होकर दीवारों के बीच से आकाश को देखा हम घर की बनी खादी पहनेंगे तो इंग्लैण्ड के कपड़े जा सकता था, उन्हें लगा था कि मोटी दीवारों और सुदृढ़ नीवों के कारण इस घर में बहुत सम्भाव्यता है। उन्होंने कहा कि ऐसा लगता है. कि उनमें यह सम्भाव्यता पहचानने की 'कला' (Knack) है तथा यद्यपि ये घर पाँच सौ वर्ष पुराना था फिर भी वो ये के कारखाने बन्द ही जाएंगे। डा0 स्पाइरो जो उस समय वहाँ उपस्थित थे वे मन्चैस्टर से हैं, उन्होंने इस बात की पुष्टि की कि आज मन्चैस्टर में कपडे का एक भी कारखाना नहीं हैं। श्रीमाताजी ने बताया कि स्वतन्त्रता संग्राम बता पाई कि यह उनका निवास बनने योग्य है। उन्होंने कहा कि उन्हें कभी वास्तु-कला का प्रशिक्षण में जब उनके पिता को छः महीने के लिए जेल भेज 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 _० फेंक दिया और चौबीस घण्टों के अन्दर इस भव्य एवं रमणीय निवास की रूपरेखा बना डाली। सभी योगी चिन्तित थे कि अधिकारियों के पास मूलरूपरेखा स्वीकृति के लिए भेज दी गई है, परन्तु जब वे नए नक्शे स्वीकृति के लिए देने गए तो वहाँ पुराने नक्शे गुम हो चुके थे, अत: उन्होंने पुराने नक्शों के स्थान पर श्रीमाताजी द्वारा बनाए गए नए नक्शे स्वीकार कर लिए और उन्हीं के अनुरूप कार्य करने की स्वीकृति दे दी । नहीं मिला, फिर भी किसी न किसी तरह से वे हमेशा ये गुण देख पाईं! इस बात पर मेंने कहा कि श्रीमाताजी, "आप तो वास्तुकारों की वास्तुकार हैं!" और वे मुस्करा भर दीं। आल्डो ने व्याख्या की कि इस घर के थे यह परिवार जहाज़रानी से सम्बन्धित था और उन्होंने Palazzo का उपयोग ग्रामीणनिवास के रूप में किया। इसका निर्माण सन् मालिक 'डोरिया' 1641 में हुआ। शनिवार सन्ध्या श्रीमाताजी ने बताया कि किस प्रकार उन्होंने शनिवार सन्ध्या को मनोरंजन कार्यक्रम के ऊँची छतों और सुदृढ़ नीवों वाले अपने शयनकक्षों में एक और तल का निर्माण किया और इस प्रकार बहुत सा अतिरिक्त स्थान बना पाईं। उन्होंने कहा कि वे हैरान थीं कि अधिकारियों ने भी उन्हें इस पराकाष्ठा पर पहुँचने, युवाशक्ति तथा अमरीका के योगियों की प्रस्तुति को देखने तथा कार्यक्रम का भरपूर आनन्द लेने के बाद श्रीमाताजी ने कहा कि अमरीका के विषय में उनकी निराशा समाप्त हो गई एतिहासिक भवन में यह अतिरिक्त निर्माण करने की आज्ञा प्रदान की! परन्तु वो लोग विवेकशील थे और उन्होंने उन्हें पहचान लिया था। है और अब उन्हें विश्वास हो गया है कि यह कार्यान्वित हो जाएगा! श्रीमाताजी के इस कथन को हमें निहित वचन के रूप में लेकर अमरीका के साधकों के उद्धार तथा पृथ्वी पर विशुद्धि की शक्तियों के पूर्ण श्रीमाताजी ने बताया कि पुराने भवन अद्वितीय हैं क्योंकि प्राय: उनकी छतें ऊँची होती हैं, खिड़कियाँ तथा दरवाज़े विशाल होते हैं और नए घरों की अपेक्षा पुराने घर कई प्रकार से रमणीय होते हैं। तब उन्होंने बताया कि प्रतिष्ठान की योजना भी योगियों ने मूलरूप से पारम्परिक बंगलों कीशृंखला के रूप में बनाई थी परन्तु जब उन्होंने नक्शे देखे तो उन्हें प्रकटन का माध्यम बनना चाहिए। U.S.A. सहजनैट के माध्यम से (The light of Sahaja Yoga No. 15 उद्घृत एवं रूपान्तरित) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt 'अपेक्षा' (Expectations) ि (बाबा मामा) ( चैतन्य मेला, महाराष्ट्र सहजयोग सेमिनार, नागपुर-1999 ) पाम मड देते हैं और सदैव स्वयं को ही कोसते रहते हैं, कि वे परमात्मा की कृपा के योग्य ही नहीं है। आशावादी लोग सीधे परमात्मा को दोष देते हैं और कहते हैं कि परमात्मा बेकार हैं और हमें किसी और 'परमात्मा आप मानते हैं कि परमात्मा सर्वव्यापी, सर्वशक्तिमान और सर्वज्ञ ( Omnipresent, Omripotent and Omniscient) हैं वास्तव में, आपको ये विश्वास है कि वे कण-कण में विद्यमान हैं। इस (देवी-देवता) के पास जाना चाहिए। इस प्रकार से विश्वास के उपफल के रूप में ये समझ लेना आप एक परमात्मा से दूसरे परमात्मा के पास जाते आवश्यक होगा कि परमात्मा आपकी इच्छा को जानते हैं या आपकी आवश्यकता को। पहली हैं, परन्तु हमेशा निराशा हाथ लगती है। ये सोच आपको परमात्माविरोधी और अन्तत: नास्तिक भी धारणा यदि सत्य है तो दूसरी धारणा को भी सत्य होना चाहिए। इसका निष्कर्ष ये निकला कि जो लोग जानते हैं कि परमात्मा सर्वशक्तिमान और जिसमें व्यक्ति परमात्मा के पास बिना किसी आकांक्षा सर्वव्यापी हैं, उन्हें ये स्वीकार करना होगा कि वे सर्वज्ञ भी हैं। इसलिए हमारी सारी समस्याओं का बना सकती है। अब आप एक और उदाहरण लें के जाता है। यहाँ आकांक्षा शून्य (0) है और जो इनाम मिलता है वह है 'ख'। अत: 'ख'-0=ख, अर्थात बढ़ोतरी। ज्ञान भी उन्हें है। व्यक्ति को हमेशा अपनी आकांक्षाओं, इच्छाओं और शुद्ध इच्छाओं में अन्तर करना चाहिए। शुद्ध इच्छा सदैव अन्य लोगों के हित के लिए होती है. इसलिए शुद्ध इच्छा लेकर परमेश्वरी के पास जाने का अधिकार आपको हैं। एक बार, मुझे याद है, में श्रीमाताजी के साथ सिडनी से कैनबरा की यात्रा कर इस सत्य को जानने के बावजूद भी हम हमेशा परमात्मा के पास कोई न कोई आकांक्षा लेकर जाते हैं। ये आकांक्षाएं भिन्न प्रकार की हो सकती हैं परन्तु मूलत: ये स्व:केन्द्रित होती हैं या उन लोगों तक सीमित होती हैं जो हमारे सम्बन्धी हैं, जिनसे हम लिप्त हैं। आप परमात्मा से प्रार्थना करते हैं कि वे आपको कुछ विशेष प्रकार की सहायता प्रदान कर दें, नौकरी में तरक्की दिला दें या आपके सगे-सम्बन्धियों को कुछ लाभ पहुँचा दें। मस्तिष्क रहा था। गर्मी बहुत थी और कार का वातानुकूलन ( Air Conditioning) बहुत ही कम था। श्रीमाताजी को पसीने आ रहे थे और मैं एक समाचार पत्र से कि उन्हें पंखा झल रहा था। परन्तु मुझे महसूस हुआ गर्मी बहुत में ऐसी धारणा लेकर जब आप जाते हैं तो प्राय: निराशा हाथ लगती है। परिकल्पना के रूप में बात है और मौसम को चाहिए कि ही दुखद श्रीमाताजी को कुछ राहत प्रदान करे। मेरे विचारों को पढ़ते हुए श्रीमाताजी ने मुझसे पूछा कि मैं क्या सोच रहा था? उत्तर में स्पष्ट रूप से मैंने कहा कि गर्मी करते हुए यदि आपकी आकांक्षाएं 'क' निहित हैं और आपको मिलता है 'ख' तो 'क-ख'= आपकी निराशा फिर इस निराशा का दोष आप किसी दूसरे को देते हैं। निराशावादी लोग अपने दुर्भाग्य को दोष के कारण उन्हें कष्ट उठाता देखना में सहन न कर 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 11 तो आपको पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि आपको परमात्मा के साम्राज्य में प्रवेश मिल गया पा रहा था। उन्होंने कहा कि मैं शुद्ध इच्छा करुं कि मौसम परिवर्तित हो जाए। अपनी आँखें बन्द करके मैंने है। अब आप उनकी प्रजा हैं, और चाहे जो इच्छाएं आपकी रही हों, कर्तव्यबद्ध, उन्हें आपकी देखभाल करनी होगी। अतः सहजयोग में आने के पश्चात् कृपया आकांक्षा न करें। श्रीमाताजी से केवल प्रार्थना करें कि वे आपको वैसा ही बना दें, जैसा वे चाहती हैं। शुद्ध इच्छा की कि मौसम परिवर्तित हो जाना चाहिए। पाँच मिनट के अन्दर जाने कहाँ से काले बादल छा गए और बारिश होने लगी तथा गर्मी का "देखो यदि वेग कम हो गया। श्रीमाताजी ने कहा, तुम शुद्ध इच्छा करो तो ये हमेशा पूर्ण होगी।" आकांक्षाओं पर वापिस आते हुए, मैं कहना हार्दिक आशीर्वाद चाहूंगा कि आत्मसाक्षात्कार के माध्यम से एक बार आपका योग जब परमेश्वरी से हो जाता है (बाबा मामा) निर्मल-गीतिका प्यार देने का सिला, केवल सहज के पास है, पार जाने की कला, केवल सहज के पास है। साँप बन कर आदमी ही आदमी को डस रहा, और अमृत का कुआँ, केवल सहज के पास है। चाँद, सूरज औ सितारे, सब पड़े हैं कैद में, और उल्फत का दिया, केवल सहज के पास है। ज़िन्दगी इस दौर में है, दर्द की तस्वीर सी, और हर गुम की दवा, केवल सहज के पास है। खोज में उसकी लगे हैं, लोग सदियों से यहाँ, और ईश्वर का पता, केवल सहज के पास है। चंद खुशियों के लिए, हर दिल हुआ बेताब सा, और जीने का मजा केवल सहज के पास है। आज हर मौसम यहाँ, मैला बहुत मैला हुआ, और दुआए-निर्मला, केवल सहज के पास है। डा. सरोजनी अग्रवाल ब् (मुरादाबाद) 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt महाकाली पूजा (म्यूनिक- 8.10.1987 ) पत रुम परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन मुझे बताया गया था कि पूजा के लिए हमें वर्षा से होने वाली फसलें भी चैतन्यमय होंगी। इस बहुत सुन्दर स्थान मिल गया है। मैं हैरान थी कि आप सबके लिए किस प्रकार इतनी सुन्दरता से होगा। अत: यदि हम चाहते हैं कि अधिक से सभी कुछ कार्यान्वित हो रहा है! मैं कहना चाहूंगी अधिक लोग सहजयोग में आएं तो बादलों को कि आप लोग अत्यन्त भाग्यशाली हैं। ये स्थान पहले 'फूलों का किला' कहलाता था और अब यह खूनी किला', 'रक्तरंजित किला' कहलाता है। परन्तु यहाँ इतने अधिक फूल हैं कि यह पुनः ये सर्वोत्तम उपाय है। इसके अतिरिक्त चैतन्य-लहरियाँ, "फूलों का किला बन जाएगा। आप अत्यन्त सुन्दर बहुत ही छोटे-छोटे कण होते हैं जिनका एक बिन्दु स्थान पर आए हैं। यहाँ की चैतन्य लहरियाँ भी बहुत सुन्दर हैं। मुझे हमेशा आश्चर्य होता था कि जर्मनी को 'जर्मनी' नाम क्यों दिया गया। जर्म अर्थात अंकुरित वनाते हैं और कभी मिलकर क्रॉस (f) बनाते हैं। होना, किसी भी चीज के बीज ( Gem) का अर्थ है अंकुरित होना। जमिनेट अंकुरित होना, सहजयोग का अंकुरण। जैसा मैंने से, तथा ये अत्यन्त सामूहिक हैं, अत्यन्त सामूहिक। आपको पहले भी बहुत बार बताया है, जर्मन लाग जब सहजयोग के प्रचार प्रसार का कार्य सम्भाल हैं और एक ही प्रकार से समझते हुए इतनी सुन्दरता लेंगे तो सहजयोग उच्चतम बुलौदियों को छू लेगा। हमने बहुत से उतार चढ़ाव देखे हैं, कोई बात नहीं। यह बहुत कठिन स्थान है और अब हमने वास्तव में ठीक प्रकार से अंकुरित होना आरम्भ किया हैं। कल मैंने देखा कि पूरा आकाश रंगों एवं प्रकाश से भरा हुआ था। आप जानते हैं कि चैतन्य-लहरियों में प्रकाश होता है। आप देख सकते हैं कि चैतन्य-लहरियों हैं। आप सोचते होंगे कि श्रीमाताजी ने हमें ऐसी के हर कण में एक अत्यन्त टिमटिमाता हुआ, मद्धम प्रकाश होता है परन्तु चैतन्य-कणों की संख्या जब बहुत अधिक होती है तो आपके कैमरे कुण्डलिनी उठती है, जहाँ भी समस्या हो वहाँ उन्हें पकड़ सकते हैं। परन्तु कल तो, में सोचती हूँ बादल ही चैतन्य से भर उठा और बादलों का चैतन्यित हो उठना बहुत बड़ी बात है। बादल यदि चैतन्य से परिपूर्ण होंगे तो उनसे होने वाली वर्षा भी चैतन्यमय होगी और पृथ्वी को चैतन्यित करेगी उस अन्न को जब मानव खाएंगे तो उन्हें भी चैतन्य प्राप्त चैतन्यित करना सर्वोत्तम उपाय है। कल रात ये विचार मेरे मन में आया कि क्यों न सभी बादलों को चैतन्यित कर दिया जाए। अर्द्धवृत्त की तरह, प्रायः कोमे () ) का आकार धारण कर लेता है और ये अर्द्धवृत्त मिलकर कभी ॐ की रचना करते हैं और कभी जंजीर (Chain) परन्तु उनके विषय में मूल बात ये है कि वो तेजी से सोचते हैं, मानव की अपेक्षा कहीं अधिक तेजी (Germinate) अर्थात अत: ये एक साथ चलते हैं एक ही प्रकार ये सोचते एवं शांतिपूर्वक सारा कार्य करते हैं कि आपको महसूस भी नहीं होता। कुण्डलिनी की जागृति जो आपने की है आप सबके लिए अवश्य एक रहस्य है कि किस प्रकार अपने हाथ से आप कुण्डलिनी उठा सकते विशिष्ट शक्ति प्रदान कर दी है कि जब हम अपना हाथ किसी की भी कुण्डलिनी की ओर उठाते हैं तो जाकर रुक जाती है और पुन: उठती है। अब ये बात आप लोगों के लिए रहस्य नहीं है। अब आपको नई शक्तियाँ प्राप्त हो गई हैं कि आप जल को तथा अन्य पदार्थों को, और सभी चीजों को चलायमान कर सकें, परिवर्तित कर सकें। परन्तु 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी 13 2007 आपकी कार्यशाला में बहुत से लोग आए। पशुओं के पास ये शक्ति नहीं है यहाँ - वहाँ थोडा बहुत परिवर्तन शायद वो कर लें परन्तु अपने उपयोग योग्य वो किसी चीज को नहीं बना सकते। उदाहरण के रूप में यहाँ पर पीतल की सुन्दर चीजें ओह! ये सब अत्यन्त महान था। आप ही लोग सारे कार्य कर रहे थे, आप ही इसे कार्यान्वित कर रहे थे परन्तु आपके मन में कर्ताभाव न था। इसका है, बहुत सुन्दर चाँदी है, ऊपर छोटे से गणेश बैठे हुए हैं, यह सब किसी मृत वस्तु में से बनाया गया है। पशु ऐसा नहीं कर सकते। जिस प्रकार आप जीवन्त कार्य में कुशल बन सकते हैं वो नहीं बन सकते। अब आप लोग जीवन्त कार्य के स्वामी है, कारण ये है कि अब आप इस प्रकार कर्म कर रहे हैं जो अकर्म कहलाता है। किसी कार्य को करते हुए जब व्यक्ति में कर्ताभाव न आए तो यह 'अकर्म' कहलाता है। कार्य को करते हुए यदि आपमें कर्ताभाव नहीं हैं तो मृत कार्य के नहीं। आप जीवन्त शक्ति को संचालित कर सकते हैं, इसे अपने हिसाब से ढाल सकते हैं। और अपने उद्देश्य के लिए उपयोग कर सकते हैं यह 'अकर्म' है। परन्तु कार्य करने के विषय में यदि कर्ताभाव है तो यह कर्म कहलाता है। तो अब 'कर्म' अकर्म बन गया है, परन्तु ऐसा नहीं है कि आपने कार्य करना ही छोड़ दिया है। आप बहुत से कार्य कर रहे हैं फिर भी आपमें कर्ताभाव नहीं है। परन्तु पशु ऐसा नहीं कर सकते। परन्तु आश्चर्य की बात ये है कि आपको इस बात का भी ज्ञान नहीं है कि आप ऐसा कर रहे हैं जैसे आप जब कोई अब आप अकर्म कर रहे हैं, सारा जीवन्त कार्य अकर्म है। जैसे पृथ्वी माँ बीजों को अंकुरित करती हैं परन्तु उनमें कर्ताभाव नहीं होता। जब आप में कर्ताभाव नहीं होता तो आप यह नहीं सोचना चाहते कि यह कैसे घटित हो रहा है। मानव रूप में आप मुझे देखें इस प्रकार हाथ उठाने से कुण्डलिनी उठती है और उठकर सिर से बाहर आ जाती है। में देखती हूँ कि ऐसा घटित होता है, यह सत्य है। तो किस बड़ा काम कर रहे होते हैं तो आपको अहसास होता है कि आप कुछ बहुत बड़ा कार्य कर रहे हैं! आप लोगों से बताते हैं कि मैंने ऐसा कार्य किया है, मैंने ऐसा स्थान बनाया है। अपने अंदर विद्यमान अहं के कारण आप उसके विषय में चेतन होते हैं। परन्तु अन्य लोगों को आत्म-साक्षात्कार देते हुए आपमें यह भाव नहीं होता क्योंकि इस समय आपमें अहं नहीं है। आप कहते हैं, " श्रीमाताजी यह नहीं उठ प्रकार ये घटित हो रहा है? प्रक्रिया क्या है? कार्य-प्रणाली क्या है? किस प्रकार ये कार्यान्वित हुआ? क्या मैंने कोई गलती की? आप ऐसा नहीं सोचते। क्या मैंने इसे गलत ढंग से किया? आप ये नहीं सोचते। आप तो बस कार्य आरम्भ करते हैं और कुण्डलिनी उठा देते हैं। इस बात की भी आप चिन्ता नहीं करते कि आपने स्वयं को बन्धन दिया रही है, यह विशुद्धि पर पकड़ रही है और कार्यान्वित नहीं हो रही।" आप तृतीय पुरुष (Third Person) में बोलने लगते हैं, ये नहीं कहते कि मैं इसे नहीं उठा सकता या मैंने इसे उठा दिया। ये कार्यान्वित हो जाता है। जब कुण्डलिनी उठ जाती है तो मैं आपका चेहरा देखती हूँ और जान जाती हूँ कि कार्य हो गया है। आपको पता तक नहीं होता, इसके बारे में आप बिल्कुल चेतन नहीं होते। कुण्डलिनी उठने के पश्चात् इस कार्य को करते हुए आपमें कर्ताभाव नहीं होता, इसके प्रति आप चेतन नहीं हो सकते । आपमें इसके विषय में अहं नहीं होता। इसका कोई श्रेय आप नहीं लेते, केवल आनन्दित होते हैं। है या नहीं, ये भी नहीं सोचते कि सामने बैठे व्यक्ति की चैतन्य-लहरियाँ कैसी हैं। नहीं, आगे बढ़कर आप अपना हाथ उठाते हैं, आपको केवल इस बात का एहसास होता है कि आप आत्म-साक्षात्कारी हैं और आप कुण्डलि-नी जागृत कर सकते हैं। कल मैंने देखा कि बहुत सारे सहजयोगी आ गए और मैंने 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-15.txt अंक : 11 & 12 2007 14 चैतन्य लहरी कहा कि आ जाओ और इन्हें आत्म-साक्षात्कार दो। पूर्णत: स्वतन्त्र हो गए हैं। उस स्वतन्त्रता में आप वहाँ खड़े होकर ऐसे किया, वैसे किया और समाप्त। आपने ये भी नहीं सोचा कि आपने इतना महान जीवन्त कार्य किया है कि उनकी कुण्डलिनी उठा दी है जो उन्हें परिवर्तित कर देगी! यह उन्हें एक नया जीवन प्रदान करेगी और वो भी आप ही की ऐसा व्यक्ति हूँ जो हर समय बन्दूक उठाकर आपके तरह से विशेष लोग बन जाएंगे। आप लोगों को इस बात का एहसास भी नहीं है कि आप विशिष्ट लोग जाएगा।' ऐसा नहीं है तो सहजयोगियों के साथ कौन हैं। अहं लुप्त हो गया है, अब आप ये नहीं सोचते सी नई चीज घटित हो रही है? ये बात पूरी तरह से कि आप कोई कार्य कर रहे हैं। आप सोचते हैं कि श्रीमाताजी ही सभी कार्य कर रहीं हैं। ये लोग जब बड़े-बड़े भाषण देते हैं, बताते हैं कि मैं कभी भाषण नहीं देता था, श्रीमाताजी में नहीं जानता कि भाषण में मेंने क्या कहा, और अब में महान बक्ता बन गया हूँ! आप ही ये सारा कार्य कर रही हैं। फँस जाती है, कोई बडी मछली भी इसे खा सकती आपमें यह भावना इसलिए आ गयी है क्योंकि अब आपमें अहं बाकी नहीं बचा। हमेशा मेरी उपस्थिति को महसूस करते हैं। अब ये क्या है? क्या मैं आपको किसी चीज से बाँधने का या आपको जंजीरें डालने का प्रयत्न कर रही हूँ? या मैं आपका पथप्रदर्शन कर रही हूँ, या में कोई क्या पीछे चल रहा हो? ऐसा करो अन्यथा ऐसा हो समझ लेनी होगी। बात ऐसी है कि जिस प्रकार मछली सर्वत्र जाती है, सभी कुछ करती है, परन्तु उसमें विवेक नहीं है, वो ये नहीं जानती कि घर जाना है और क्या करना है। कभी-कभी तो वह मछुआरे के जाल में है। किसी भी समय यह नष्ट हो सकती है। रेंगती हुई ये तट पर आकर नष्ट हो सकती है। मछली के पास विवेक बुद्धि तो बिल्कुल नहीं हैं परन्तु स्वयं को खतरों से सुरक्षित रखने का थोड़ा सा अन्तर्जात ज्ञान इसमें है। इसके बारे में आपमें कोई अन्तर्जात ज्ञान नहीं है कि स्वयं को खतरों से किस प्रकार बचना है, कठिनाईयों से स्वयं को किस प्रकार समुद्र में यदि पानी की बूँद डालें तो यह सागर बन जाती है, इसमें कोई सन्देह नहीं हैं। परन्तु बूँद ये नहीं जानती कि वह सागर बन गई है। ये सागर के साथ चलती है। परन्तु यदि आप किसी मछली को देखें तो मछली स्वतन्त्र है। इच्छानुसार बचाना है। ऐसा अन्तर्जात ज्ञान आपमें नहीं है कि आप सावधान हों कि ऐसे नहीं चलना चाहिए, ऐसे नहीं जाना चाहिए, किस व्यक्ति को चैतन्य नहीं देना यह इधर-उधर जा सकती है, उछल सकती है और पानी पी सकती है। इच्छानुसार ये कुछ भी कर सकती है। परन्तु पानी की बूँद ऐसा नहीं कर सकती, बूँद को तो पूर्ण का अंग-प्रत्यंग बनना ही चाहिए और किस व्यक्ति का इलाज नहीं करना होगा। तो यह मध्य की अवस्था थी। जब आप पशु चाहिए। ये बात नहीं है। आपमें ये अन्तर्जात ज्ञान थे और परमात्मा के पाश में बन्धे हुए थे, उनके नहीं है कि आपको स्वयं को बचाने का प्रयत्न बन्धन में थे तो बिल्कुल वैसा ही कर रहे थे जैसा विधान था। तत्पश्चात् आप मानव बने और आपको अशुभ होगा। इतना कुछ नहीं है फिर भी हम ठीक पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त हुई कि चाहे जिस प्रकार आप इसका उपयोग करें। आप स्वर्ग में जाना चाहते हैं तो स्वर्ग में जाएं और नर्क में जाना चाहते हैं तो नर्क में जाएं। आपके लिए सभी मार्ग खुले हैं। परन्तु करना चाहिए या दाएं से जाना चाहिए ऐसा करना प्रकार से कार्य करते है। जो भी समय आप चुनेंगे वह मंगलमय होगा। इसके लिए आपको पाँचांग देखने की आवश्यकता नहीं पड़ती। लोनावाला में एक बार ऐसा हुआ था। एक पूजा थी। यहाँ की तरह से ये भी दस बजे होनी थी परन्तु काफी देर तक आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् अब आप 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 15 मैं स्नान करने के लिए ही न उठ रही थी। सभी लोग हैरान थे कि ये हमें कैसे मिला! परन्तु आरम्भ लोग बहुत परेशान हो गए और पूछा, "श्रीमाताजी में आपको विकसित होना होगा, परिपक्व होना होगा। क्या बात है?" मेंने कहा, "सब ठीक है हम चलते हैं। पर में इधर-उधर की बातें करती रही और ग्यारह बजे स्नान के लिए गई। जब वापिस आई तो बारह बज चुके थे और सूर्य दूसरी ओर को जा चुका था। सभी लोग थोड़े से परेशान थे। तब मैंने कहा, "चन्द्र पद्धति का पांचांग लाओ। ग्यारह बजे बिना परिपक्व हुए आपमें वह विवेक बुद्धि नहीं आती। जैसे लन्दन में जब हम एक स्थान लेने का प्रयत्न कर रहे थे तो कुछ सहजयोगियों के साथ मैं स्थान खोजने के लिए गई। इन लोगों को ऐसे अजीबो-गरीब स्थान पसन्द आ रहे थे जिनका चैतन्य बहुत खराब था परन्तु ये लोग चैतन्य देख ही न रहे थे! मैंने वहाँ प्रवेश ही नहीं किया मैंने कहा, नहीं, नहीं, यह अच्छी नहीं है," कहने लगे, "इसका चरित्र (गुण) है, ये है, वो है । मैंने कहा कि मेरे लिए इनका अधिक महत्व नहीं है। कहने लगे, तक अमावस्या थी और अमावस्या के दिन आकाश में चाँद नहीं होता। अमावस्या में में स्नान नहीं कर सकती, इस समय में आप पूजा नहीं कर सकते। इसलिए मुझे प्रतीक्षा करनी पड़ी!" उन्होंने कहा, "हमने पांचांग देखा था।" तब मैंने कहा, "कौन "परन्तु श्रीमाताजी किस प्रकार हमें कोई अच्छा सा?" उन्होंने देखा और सब हैरान थे कि श्रीमाताजी स्थान मिल सकेगा?" मेंने कहा,"हमें मिल जाएगा। एक बार मैं हवाईजहाज से यात्रा कर रही थी, वहाँ पर मैंने एक पत्रिका खोली जिसमें मुझे 'शुडी कैम्प' मिला। मैंने कहा, हमारे लिए ये स्थान है, जाकर को किस प्रकार अमावस्या आदि का ज्ञान है!" क्योंकि सद्-सद् विवेक बुद्धि अन्तर्जात है। तो चाहे जो भी आप करें, जिस प्रकार आप कार्य करें, यह आपमें अन्तर्जात है। आप जानते हैं कि किस प्रकार कार्य करना है। उदाहरण के रूप में यदि आप किसी को सुई चुभाएं तो रोकने के लिए तुरन्त देखो, और इस प्रकार हमें इतना सुन्दर स्थान प्राप्त हुआ। अत: हमें चाहिए कि चीजों को कार्यान्वित होने दें, सबूरी रखें। स्वत: ही चीजें कार्यान्वित हो जाएंगी। क्योंकि अब पूर्ण ब्रह्माण्ड हमारे साथ है, उसका हाथ उठेगा। ऐसा करना उसे किसने बताया? किसीने सिखाया नहीं। यह गुण उसकी चेतना में ही बना हुआ है कि प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action) के अनुसार स्वत: ही तुरन्त आपके हाथ उठ जाएंगे। तो मंगलमयता की प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action) के अनुसार स्वत: ही तुरन्त आपके हाथ उठ जाएंगे। तो मंगलमयता की प्रतिवर्ती क्रिया (Reflex Action), अपनी सुरक्षा की प्रतिवर्ती क्रिया, हर चीज़ के प्रति प्रतिक्रिया, आपमें अन्तर्रचित है और सहजयोगी ब्रह्माण्ड का पूरा विवेक हमारे साथ है। सोचने वाली चैतन्य-लहरियाँ हमारे साथ हैं। पथ-प्रदर्शन करने वाली चैतन्य-लहरियाँ हमारे साथ हैं, आयोजन करने वाली चैतन्य-लहरियाँ हमारे साथ हैं। उन्हें आयोजन करने दें । हम उनके हाथों में खेल रहे हैं, उनसे बन्धे हुए नहीं हैं, वे हमारी सहायता करती हैं। जैसे मान लो आपका कोई बच्चा है। आपने उसकी देखभाल करनी है। परन्तु कोई महिला अगर कहती है कि मुझे अपने बच्चे की देखभाल करने दो," और आप कहें, "ठीक है।" फिर आप सो जो कुछ भी आप करेंगे वह मंगलमय जाएं। अब कोई व्यक्ति आपसे कहे, चिन्ता मत बनने के पश्चात् आप स्वयं को तथा अन्य लोगों को बन्धन देने लगते हैं। इस प्रतिवर्ती क्रिया के बारे में आपको सोचना नहीं पड़ता। ऐसा हो जाता है। होगा, सुन्दर होगा, और जो भी आप पूछेंगे वह सुन्दर होगा। जैसे ये स्थान आपको मिल गया और करो, सो जाओ, मैं तुम्हारे लिए अच्छा सा बिस्तर बनाऊंगा।" आप कहें ठीक है, तब वो आपके लिए 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी -2007 16 अपना सम्मान करना है, क्योंकि आप सहजयोगी हैं। दूसरी बात ये है कि आपने अन्य योगियों का भी अच्छा सा बिस्तर बना दे और आप वहाँ सो जाएं, कोई आकर आपको ठीक से ढक दे और आप सुखपूर्वक ढके रहें। तब आप स्नान करने के लिएसम्मान करना है। जाना चाहते हैं। वो आकर कहते हैं, " आइए स्नान गणपति पुले में पहले भी मैंने आपको बताया था कि नामदेव नाम का एक दर्जी सन्त था। वह दूसरे सन्त से मिलने गया जो पेशे से कुम्हार था। कुम्हार अपने पैरों से मिट्टी में पानी मिला रहा था। नामदेव जब वहाँ पहुँचे और उन्हें देखा तो बोले, 'निर्गुणचा वेति आलो सगुणाचा' अर्थात में यहाँ निराकार को देखने आया था, चैतन्य, इन चीजों से बंधे हुए हैं। ये बात में आपको समझान चैतन्य-लहरियाँ, निर्गुण को, परन्तु यहाँ तो आप का पूरा प्रबन्ध हो गया है', स्नान कर ले।" आप पूजा करना चाहते हैं और कोई आकर कहता है आइए आपके पूजा करने के लिए बहुत अच्छा स्थान है, आइए पूजा कर लीजिए। आप आश्रम हैं चाहते हैं, कोई आकर कहता है आइए बहुत अच्छा स्थान उपलब्ध है, इसका अभिप्राय ये नहीं कि आप म का प्रयत्न कर रही हूँ। परन्तु सम्मान से आपको आमन्त्रित किया जाता है, इज्जत और सम्मान से आपके साथ व्यवहार किया जाता है और सभी लोग आपकी सेवा के लिए खड़े होते हैं। श्रीमाताजी, आप मेरे सिर में आइए,' मैं आपके सिर में आ जाऊंगी, आप कहते है '"मेरे हृदय हृदय में आ जाऊंगी, आप कहते हैं मेरे हाथों में आइए, मैं आपके हाथों में आऊंगी। अतः पूरा ब्रह्माण्ड आपकी सेवा में है, मानो अब आप मेरा कार्य करने के लिए मंच पर खड़े हों । ये सोचना गलत है कि आप बन्धन में बन्धे हुए हैं। काई बन्धन नहीं है, इसके विपरीत गण, फरिश्ते और देवता आपको प्रसन्न रखने के लिए हर सम्भव कार्य करने को उत्सुक हैं, आपको प्रसन्न रखने के लिए। आप यदि कुण्डलिनी उठाना चाहते हैं ता समझते अत: बेहतर होगा कि आप पंजाबी सीख लें चैतन्य-लहरियों के रूप में (सगुण) विद्यमान हैं। क्या प्रशंसा थी! ज़रा सोचें, एक योगी की दूसरी योगी के लिए प्रशंसा! हे परमात्मा! मैं तो यहाँ केवल निर्गुण- निराकार से मिलने आया था, परन्तु यहाँ मैं मिल किससे रहा हूँ -सगुण से! आपके रूप में साकार से! चैतन्य के अतिरिक्त मैं कुछ नहीं देख पा रहा हूँ! दूसरे योगी का यही सम्मान है। नामदेव दर्जी थे, ब्राह्मण नहीं थे। इसलिए ब्राह्मण उनसे अच्छा व्यवहार नहीं करते थे। इस कारण से में आइए," मैं आपके उन्हें पंजाब जाना पड़ा। ये भी कहा जाता है कि उन्हें पंजाब में निर्मान्त्रित किया गया गुरुनानक ने जब उन्हें देखा तो कहा, कि हमारे यहाँ एक महान सन्त आए हैं। उन्होंने नामदेव को अपने साथ रखा और उनसे कहा कि यहाँ लोग मराठी भाषा नहीं आपकी सहायता के लिए वे उपस्थित हैं। आप जो चाहेंगे किया जा सकता है। परन्तु इसमें परिपक्व होना प्रथम आवश्यकता है और इसके लिए आपको समझना होगा कि 'आत्मा की भी एक संस्कृति है।' और अपनी कविताएं पंजाबी भाषा में लिखें। मेरे है। पास नामदेव-गाथा पुस्तक यह बहुत बड़ी पुस्तक -पुस्तक पंजाबी भाषा में है। इसकी कविताएं इतनी सुन्दर हैं कि इन्हें गुरु-ग्रन्थ साहिब में स्थान दिया गया है। गुरु-ग्रन्थ को मन्दिरों (गुरुद्वारों) में रखा जाता है। सिक्खों के सभी गुरुद्वारों में गुरु-ग्रन्थ साहिब रखे हुए हैं। गुरु ग्रन्थ साहिब के कम से कम दसवें भाग में नामदेव की कविताएं हैं । एक अन्य महिला नौकरानी-ज्ञानबाई- थीं जो नामदेव है और आधी मानव संस्कृति की तरह से 'आत्मा की भी संस्कृति' है जिसे आत्म-सात करना आवश्यक है। आत्मा की संस्कृति के अनुरूप यदि आप चलें तो आपको समस्याएं नहीं हो सकतीं। आत्मा की संस्कृति की प्रमुख बात ये है कि आपने 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt चैतन्य लहरी । अंक : 11 & 12 2007 17 किस प्रकार एक दूसरे से बातचीत करते हैं, किस प्रकार एक दूसरे की देखभाल करते हैं, किस प्रकार पावनता पूर्वक एक दूसरे के प्रति प्रेम-संचार करते हैं! जैसे सहजयोगी को सोचना चाहिए कि मैं वहाँ जा रहा हूँ तो दूसरे सहजयोगियों के लिए मुझे ये तोहफ़ा ले जाना चाहिए। एक भाई की तरह से। मैं इतने समय के बाद उससे मिलूंगा। उससे मिलना, के साथ कार्य करती थी। उनकी कविताएं भी गुरुग्रन्थ में हैं। तो जिस प्रकार से इन सन्तों ने एक दूसरे का सम्मान किया और दूसरे को समझा यह अत्यन्त उत्कृष्ट था। परन्तु अब तो बात बिल्कुल विपरीत हो गई है। झूठे और उल्टे-सीधे लोग परमात्मा के नाम पर धन बटोर रहे हैं। ये लोगों को धोखा दे रहे हैं और विश्व को नष्ट करने के लिए नकारात्मकता एवं परमात्मा का प्रकोप बटोर रहे हैं, और आम-आदमी इनका सम्मान करता है! परन्तु सहजयोगियों को चाहिए कि दूसरे सहजयोगियों का सम्मान करें। कोई भी व्यक्ति जब तक सहजयोगी है बातचीत करना और उसका आनन्द उठाना, कभी-कभी उसकी टाँगें खींचना और उससे विनोद करना बहुत ही अच्छा होगा। ये सारी संस्कृति प्रेम की ही हैं। आपमें यदि प्रेम की संवेदना नहीं है, आप शुष्क तबीयत हैं, हर समय गम्भीर या दुखी हैं तो याद रखें कि आप सहजयोगी नहीं हैं। तो अन्य-योगियों द्वारा उसका सम्मान किया जाना चाहिए, उसे समझा जाना चाहिए। यह अत्यन्त आवश्यक है। यही आत्मा की संस्कृति है। सहजयोगी को मुस्काहट पूर्ण, आनन्दमय व्यक्ति होना चाहिए। अन्य लोगों को प्रसन्न करने वाला। यही मुख्य अपेक्षा और दृष्टिकोण होना चाहिए। अगली बार, दिवाली पर जब आप आएंगे तो आध्यात्मिक संस्कृति के बारे में बताऊंगी। परन्तु यह आरम्भ है। नई संस्कृति, जिसे हमने स्वीकार करना इसमें हम उन सबका सम्मान करते हैं जो आध्यात्मिक रूप से ऊँचे हैं, जैसे परमात्मा के विषय में बात करते हुए हम गलत बातें नहीं कह सकते। हम ये नहीं कह सकते कि परमात्मा अनिष्टकर हैं। हम ऐसा नहीं कह सकते। हम सन्त हैं। परमात्मा है, के विषय में मैंने बताना शुरु किया है। अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करने में हमें शर्म नहीं महसूस करनी चाहिए। प्रेम अभिव्यक्ति करने में संकोच नहीं होना चाहिए। हम प्रेम की अभिव्यक्ति कर रहे हैं और प्रेम की अभिव्यक्ति होनी ही चाहिए। प्रेम अभिव्यक्त करने में कोई हानि नहीं है। परन्तु बन्धन ग्रस्त होने के कारण आरम्भ में हमें थोड़ा सा संकोच होता है। हम सोचते हैं कि लोग बात को गलत ढंग से लेंगे और सोचेंगे कि हम गलत हैं। नहीं, हम विशेष लोग हैं। हमें पूरे विश्व को संवारना है वो लोग ऐसा नहीं करेंगे, हमें नए विश्व का सृजन करना होगा और बाकी लोग हमारा आनुसरण करेंगे। हमें उनका अनुसरण नहीं करना। हम सम्राट-साम्राज्ञियाँ के प्रति हमें अत्यन्त सम्मानमय होना चाहिए। परमात्मा के सभी स्थानों का सम्मान होना चाहिए। सभी ईश्वरी चीजों का समान होना चाहिए क्योंकि आत्मा की संस्कृति यही है। यह ईश्वरत्व, मंगलमयता और सौन्दर्य का सम्मान करती है।' इस संस्कृति में हम सतही चीजों को नहीं देखते। इसमें हम मँहगी दिखनेवाली या विज्ञापनों के प्रति नतमस्तक नहीं होते। इसमें तो हम केवल यही देखते हैं कि कोई चीज़ कितनी आनन्दप्रदायी है। कोई यदि मुझे प्रेम से एक सुपारी भी भेंट करता है तो मैं इसे बड़े प्रेम से स्वीकार करती हूँ, परन्तु बिना प्रेम के यदि कोई मुझे हीरा भी भेंट करे तो मेरी दृष्टि में इसका कोई मूल्य नहीं है, ये सारी चीजें समाप्त हो जाएंगी, खो जाएंगी, ये सब बेकार हैं। अत: जो प्रेम आप हर चीज में डालते हैं वही आपको सहजयोगी बनाता है। किस प्रकार आप एक दूसरे से व्यवहार करते हैं तथा अन्य सभी कुछ बनाने वाले हैं। अत: हमें यह सब इसी प्रकार से कार्यान्वित करना होगा। लोगों के तौर तरीकों के सम्मुख हमें झुकना नहीं है। हमें तो 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 18 हम योगीजन हें और हमें योगियों की तरह से रहना होगा। उन्हें संरक्षण देना है और जब भी वो हमारे पास आते हैं, हमें उनकी देखभाल करनी है। उनसे हमने प परमात्मा आपको आशीर्वादित करें। इस प्रकार व्यवहार करना है जैसे कोई पिता अपने पुत्र से करता है। उनका पालन पोषण करना है, उन्हें प्रेम-पूर्वक परिवर्तित करना है और समझाना है कि हम भिन्न शैली और भिन्न साम्राज्य के लोग हैं। हम आज की पूजा कृष्णपक्ष की है। शुक्लपक्ष में चाँद चढ़ती कला में होता है और कृष्णपक्ष में उतरती कलाओं। में चाँद बाईं ओर हाने के कारण हम महाकाली पूजा कर सकते हैं। सारी नकारात्मक तथा अनिष्टकर धारणाओं को समाप्त करने के लिए पूर्णत: स्वतन्त्र लोग हैं, जिन्हें परमात्मा देखता है, जिन्हें परमात्मा संरक्षण देता है, सहायता करता है तथा सम्मानित करता है। हमें इतना विशिष्ट पद महाकाली की पूजा सर्वोत्तम होगी। अत: आज हम प्राप्त है। अत: हमारे अन्दर वह गरिमा तथा वह महाकाली पूजा करेंगे। चरित्र होना चाहिए कि हम उस स्तर पर रह सकें। स्वयं को अपमानित करने के लिए हम कोई गलत कार्य कैसे कर सकते हैं? ऐसा हम नहीं कर सकते। करें। परमात्मा आप पर कृपा काम "आपमें और मुझमें नि:सन्देह घनिष्ठ सम्बन्ध है कि आप मेरे शरीर में हैं, परन्तु यदि आप ध्यान-धारणा नहीं करते तो यह ( सम्बन्ध) सांसारिकता है। आपको ये बता देना आवश्यक होगा कि 'ध्यानगम्य' होना होगा आप यदि 'ध्यानधारणा' नहीं करते तो मेरा आपसे कोई सम्बन्ध नहीं है। आप मेरे सम्बन्धी नहीं हैं, मुझ पर आपका कोई अधिकार नहीं है। आपको मुझसे ये पूछने का अधिकार नहीं है कि ऐसा क्यों हो रहा है, वैसा क्यों हो रहा है ? अत: यदि आप ध्यान-धारणा नहीं करते- मैं हमेशा कहती हूँ ध्यान करें, ध्यान करें- तो मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं है। मेरे लिए अब आपका कोई अस्तित्व नहीं है। मुझसे यदि आपका योग ही नहीं है ( सम्बन्ध ही नहीं है ) तो आप भी अन्य लोगों की तरह से हैं चाहे आप सहजयोगी हों (कहलवाएं), चाहे आपने अपने अगुआओं से सहजयोग प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिए हों, ऐसा हो सकता है, मैं नहीं जानती- और हो सकता है कि आपको कुछ बहुत महान माना जाता हो, परन्तु यदि आप प्रतिदिन सुबह और शाम ध्यान-धारणा नहीं करते तो वास्तव में अब आप अधिक समय तक श्रीमाताजी के साम्राज्य में नहीं रहेंगे। क्योंकि सम्बन्ध तो केवल ध्यान-धारणा के माध्यम से जुड़ता है। मैं जानती हूँ कि कौन ध्यान-धारणा नहीं करते। तब उन्हें कष्ट होता है, उनके बच्चों को कष्ट होता है और जब ऐसा कुछ घटित होता है तब आकर मुझे बताने लगते हैं। परन्तु मैं स्पष्ट देखती हूँ कि यह व्यक्ति ध्यान-धारणा नहीं करता। उसके साथ मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है, मुझसे कुछ भी माँगने का अधिकार उसे नहीं है।" आदिशक्ति पूजा-1993 पत 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt दिवाली पूजा परम पूज्य माনाजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन कोमो 25.10.1987 (आध्यात्मिक संस्कृति) | हे हम श्रीगणेश को नमन करते हैं क्योंकि वे हमारे अन्दर अबोधिता का स्रोत हैं। वास्तव में हम अपनी आन्तरिक अबोधिता को इसलिए नमन करते हैं क्योंकि यही अबोधिता आपको बोध प्रकार आचरण न करती। परन्तु अबोधिता का प्रकाश सब कुछ जानता है। इसमें भय बिल्कुल नहीं है। जब हम कहते हैं कि बच्चे अबोध हैं तो हमारा कहने का अभिप्राय ये होता है कि उनमें अबोधिता Enlightenment) प्रदान करती है। कल, जैसा मैंने की शक्ति है। बहुत बार लोगों ने देखा होगा कि आपको बताया था, प्रकाश में अबोधिता है, पर इस बड़ी-बड़ी ऊँचाईयों से गिरने पर भी बच्चों की अबोधिता में ज्ञान नहीं है। परन्तु आपका प्रकाश अबोध है और इसमें ज्ञान भी निहित है। हम हमेशा यही सोचते हैं कि ज्ञानवान व्यक्ति कभी अबोध नहीं हो सकते, सहज नहीं हो सकते। हम सोचते हैं होता। गिरने का भी वह आनन्द लेता है, मानो कि अबोध हमेशा धोखा खाता है, उसे बेवकूफ पैराशूट नीचे आ रही हो! गिर जाने के बाद भी बनाया जा सकता है और स्वीकृत रूप से लिया जा मृत्यु नहीं होती, जबकि कोई जवान व्यक्ति उससे बहुत कम ऊँचाई से गिरकर भी जीवन से हाथ धो सकता है। गिरते समय बच्चे के अन्दर भय नहीं बच्चा सब पर हँसता है, उसकी समझ में नहीं आता कि क्यों सभी लोग चिन्तित हैं! क्योंकि अपनी अबोधिता में वह जानता है कि उसकी देखभाल हो रही है और वह सुरक्षित है। वह जानता है कि कोई शक्ति हैं जो बहुत ऊँची हैं और उसे चिन्ता करने की कोई आवश्यकता नहीं है। बच्चे के मस्तिष्क में सकता है (Taken for Granted)। परन्तु अबोधिता ऐसी शक्ति है जो आपकी रक्षा करती है और ज्ञान का प्रकाश प्रदान करती है। सांसारिक सोच के अनुरूप हमारे अन्दर जो ज्ञान है वह सिखाता है कि किस प्रकार दूसरों का अनुचित लाभ उठाएं, किस प्रकार उन्हें धोखा दें, किस प्रकार उनसे धन ऐंठे, किस प्रकार उनका मजाक बनाएं और किस प्रकार हम विचार भरना शुरु कर देते हैं और इस प्रकार वह अपनी अबोधिता की शक्ति खोने लगता है और उनका तिरस्कार करें! परन्तु अबोधिता का प्रकाश वो प्रकाश है जिसके द्वारा आप समझ पाते हैं कि प्रेम उच्चतम गुण है और यह ( अबोधिता) आपको अन्य लोगों से प्रेम करना, उनकी देखभाल करना तथा उनके प्रति भद्र होना सिखाती है। ये आपको अन्तर्प्रकाश भी प्रदान करती है यह विश्व में फैली हुई 'अविद्या' के बिल्कुल विपरीत है । बिल्कुल कायर, धूर्त और धर्मविहीन बन जाता है! परन्तु हम हमेशा यही कहते हैं कि बच्चे की अबोधिता एक . प्रकार का अज्ञान है क्योंकि बच्चों को भयबोध नहीं होता। अबोधिता का प्रकाश सभी खतरों को पहचानता है और इनसे छुटकारा पाना भी, तथा ये भी जानता है कि ऐसे व्यक्ति से दूर किस प्रकार हटना है। एक बुद्धिमान व्यक्ति सीढ़ी चढ़ रहा था और एक मुर्ख उसकी विपरीत दिशा से आ रहा था। एक मूर्ख व्यक्ति। मूर्ख प्राय: आक्रामक होते हैं क्योंकि उनमें हीन-भावना होती है। ऊपर आते विपरीत। ाक विश्व में फैली हुई बाह्य अविद्या हमें स्पर्धा एवं अन्य लोगों का तिरस्कार सिखाती है, क्योंकि इसके अन्दर भय-भाव निहित है। यह असुरक्षित है। यह ज्ञान (सांसारिक) बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं है। बाह्य अविद्या यदि स्वयं को सुरक्षित समझती तो इस हुए व्यक्ति को बुद्धिमान व्यक्ति कहता है:- "व्यक्ति को एक ओर हट जाना चाहिए, " परन्तु मैं मू्खों के लिए नहीं हटता," मूर्ख व्यक्ति बोला। "परन्तु मैं 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 20 ान महत्वपूर्ण है। केवल आत्म-साक्षात्कार (बोध) से ही यह हमें प्राप्त होती है। अत: हम एक ऐसी अवस्था में हैं जो अज्ञानमय एवं अबोध है- अबोध एवं अज्ञान लोग अब न तो अबोध हैं न अज्ञानी, परन्तु उनमें बोध नहीं है। ऐसे व्यक्ति धूर्त बन जाते हैं। उनमें यदि इन दोनों गुणों का अभाव है, उनमें अज्ञान नहीं है, उनमें तथाकथित ज्ञान है, अपनी मेधा एवं प्रतिभा के लिए वो प्रसिद्ध हैं और, तथाकथित ज्ञानवान कहलाते हैं। सांसारिक दृष्टि से ये ज्ञानवान परन्तु उनमें अबोधिता का पूर्ण अभाव है। अत: वे तरीके खोजने लगते हैं। मस्तिष्क को थोड़ा सा हट जाता हूँ," बुद्धिमान ने कहा। इस प्रकार से अबोधिता का प्रकाश आपको बताता है कि किसी व्यक्ति के साथ किस सीमा तक जाना है, किसी के साथ किस सीमा तक बातचीत करनी है, किसी के व्यक्तित्व तथा उसकी समस्याओं में कहाँ तक लिप्त होना है। अन्यथा आप पीछे हट जाते हैं। विवेकशील व्यक्ति समझता है कि ये व्यक्ति मूर्ख है अंत: मुझे इस प्रकार चलना है। ऐसे व्यक्ति पर वह चित्त नहीं डालता, उसकी चिन्ता नहीं करता। अवोधिता का प्रकाश व्यक्ति को सद-सद्- विवेक बुद्धि प्रदान करता है। अन्य लोगों के साथ किस सीमा तक जाना है। मैं किसी एक व्यक्ति से नियन्त्रित करने वाली अबोधिता लुप्त हो गई है प्रेम करता हूँ, और भी बहुत लोग हैं परन्तु में उसी से प्रेम करता हूँ। ठीक है। वह व्यक्ति चाहे आपको इसलिए अबोधिता का सम्मान नहीं करते तो वे ठोकर मारे, चोट पहुँचाए, कष्ट दे, वह चाहे भयानक रूप से भूतबाधित हो जाए, फिर भी पागलों की तरह बिना किसी आत्म-सम्मान के आप उससे प्रेम करते हैं? सांसारिक अर्थों में अबोधिता इसका कारण हो सकती है परन्तु वास्तव में आप ज्ञानशील एवं अबोध नहीं हैं। क्योंकि वे सोचते हैं कि अबोधिता मूर्खता है और लोगों से चालाकियाँ करने लगते हैं, नकारात्मक, व्यंगात्मक और अनिष्टकर बातें कहने लगते हैं। मस्तिष्क इन्हीं सब चीजों में चलने लगता है क्योंकि यह अपनी अबोधिता की शक्ति पुनः प्राप्त नहीं कर पाता। अत: हमें ऐसे लोग अच्छे नहीं लगते, बाद में हम उन्हें नहीं चाहते। तब इन लोगों में ऐसे विचार घर कर जाते है कि हम ऊँचे लोग हैं, चुनींदा हैं और इस प्रकार के विचारों वाले सारे लोग एकजुट हो जाते हैं। तो आपकी अबोधिता यदि ज्योतिर्मय हैं तो आपकी यह शक्ति सर्वप्रथम आपको सद्-सद्-विवेक बुद्धि प्रदान करती है मान लो अपने हाथ में आप अज्ञान को ज्ञान मान लिया जाता है। अन्दर से ये प्रकाश लिए हुए हों तो आप देख सकते हैं कि रस्सी है या सॉप? परन्तु प्रकाश के बिना आप येपूण अज्ञान है परन्तु बाह्य में इसे ज्ञान के रूप में सब नहीं देख सकते । साँप को देखकर आप भाग खड़े होंगे, परन्तु यदि आप मूर्ख हैं तो साँप को ये भी कह सकते हैं, "आओ मुझे काटो, मैं देखना चाहूंगा कि कैसा लगता है।" आपमें यदि ज्ञान का मान लिया जाता है और इस प्रकार ये बढ़ता रहता है। अपने अन्तस में वो कुछ नहीं खोजना चाहते, तथाकथित बाह्यज्ञान से सन्तुष्ट हो कर इसी तरह से चलते रहते हैं। सिर फूटने के बाद उन्हें पता चलता है, है परमात्मा! अन्दर क्या था? अन्दर तो सारा प्रकाश है तो आप साँप से कहेंगे, 'मझे छोड़ दो चले जाओ, नमस्ते,' और साँप इस बात को समझ था ! तपस्वी की तरह से सारी अज्ञान (अन्धेरा) खिड़कियाँ बन्दकर के हम नहीं रह सकते, सूर्य तो बाहर चमक रहा है! स्वयं देखने के लिए हमारे अन्दर प्रकाश का होना आवश्यक है। हम क्या हैं, हमारी शक्तियाँ क्या हैं, हम किस सीमा तक जा कर चला जाएगा। लेकिन साँप यदि मनहस है तो उस पर दृष्टि पड़ते ही वह दौड़ जाएगा। अत: अबोधिता की यह शक्ति अत्यन्त প 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt अंक : 11 & 12 -2007 21 चैतन्य लहरी प्रदान करता है। चैतन्य के प्रकाश के बिना आप सकते हैं, किस प्रकार हम स्वयं अपने जीवन, मुझे पहचान ही न पाते, किसी देवी-देवता को भी न पहचान सकते और न ही ये समझ पाते कि जीवन में आपकी क्या स्थिति है और आपके जीवन को चला रहे हैं? बोध (आत्मसाक्षात्कार) अपनी आयु की अभिव्यक्ति आपके अन्दर चैतन्य के रूप में हो गई है, प्रकाश के रूप में। अत: चैतन्य स्वयं प्रकाश का क्या लक्ष्य है। आप ये न जान सकते कि आपके जीवन का उददेश्य क्या है, आप यहाँ क्यों आए है। क्या आप यहाँ पर इसलिए हैं कि कुछ पैसा कमा लें, बीमा करवा लें, शेयर व्यापार में धन लगा दें, अपने पति या पत्नी की है। बाहर और अन्दर के प्रकाश में ये अन्तर है कि बाह्य प्रकाश में आप आँखों द्वारा देख सकते हैं कि ये पत्थर है, बूट है, घर है, किसी व्यक्त का चेहरा है या ऐसी ही कोई अन्य चीज, परन्तु यह प्रकाश आपको ये नहीं बता पाएगा कि यह व्यक्ति अच्छा है या बुरा, ये घर चैतन्यमय है या नहीं, मंगलमय उंगलियों पर नाचते रहें और किसी तरह से है या नहीं। तो ये प्रकाश आपको मंगलमयता, बच्चों का पालन पोषण कर दें? क्या यहाँ पर आप इसीलिए हैं? ये चैतन्य स्पष्ट रूप से आपको बताता है- नहीं'। क्योंकि इन चीजों में बहुत अधिक फँस कर यदि आप सामूहिक कार्यक्रमों से कट जाते हैं तो यह प्रकाश बुझ (समाप्त) जाता है। चैतन्य स्वयं प्रकाश है। अपना सारा ज्ञान ये है, और परम चैतन्य से इस प्रकाश का सम्बन्ध पूरी तरह से कटते ही आप बिल्कुल प्रकाशहीन हो जाते मंगलमयता का विचार नहीं प्रदान करता। हम श्रीगणेश की अबोधिता का बात कर रहे हैं जो हमें मंगलमयता का विवेक प्रदान करती है और हमें मंगलमय भी बनाती है। इस प्रकार से चैतन्य स्वयं प्रकाश आपको बताता है। कल्पना करें कि कितना सूक्ष्म प्रबन्ध किया गया है कि चैतन्य वलयों' कोमो में हैं। अत: चैतन्य-लहरियों से आपका सम्बन्ध अत्यन्त चाहिए और पूर्णतः निरन्तर तथा सुस्थिर। तथा सूक्ष्म-सूक्ष्म प्रकाश कणों में, इतना विवेक और दृढ़ होना सद्-सद्-विवेक-बुद्धि निहित है कि यह आपको बता सकती है कि कोई व्यक्ति अच्छा है या बुरा! चीजों को ठीक प्रकार से नहीं समझ सकते। यद्यपि सहजयोग हमें अत्यन्त आसानी से मिल चैतन्य-लहरियाँ सभी कुछ जानती हैं परन्तु माध्यम गया है इसलिए हमने ये पता लगाने की भी चिन्ता यदि सही न हो, जिसे चैतन्य-लहरियों का सम्मान नहीं की कि हमारे कम्प्यूटर को क्या मिल गया है! ही न हो, जिसका तारतम्य चैतन्य-लहरियों से न हो. इसे प्रकाश मिल गया है। अब ये जानने की ऐसे माध्यम से चैतन्य-लहरियाँ सम्पर्क किस प्रकार सम्भावना है कि फलां व्यक्ति को क्या समस्या है। स्थापित कर सकती हैं? ये प्रकाश व्यक्ति के एक आयाम तक जा सकता है- वो किस प्रकार कार्य करता है, किस प्रकार उदाहरण के रूप में यदि प्रकाश स्थिर न हो तो आप है ये यन्त्र जो आपको प्राप्त हुआ इसे हर समय प्रवाहित होना होगा। अत: आपको अत्यन्त शुद्ध यन्त्र बनना होगा। मान लो लैम्प के अन्दर प्रकाश है परन्तु उसका शीशा साफ नहीं है तो प्रकाश आप तक ठीक प्रकार से नहीं पहुँच पाएगा। अत: पावनता स्थापित करनी होगी और इस क्षेत्र में श्री गणेश अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कवे आपको स्वच्छ करते हैं, धो देते हैं और आप अबोध बन जाते हैं तथा किसी भी भले व्यक्ति को हानि चलता है और आप यदि किसी चीज़ की कल्पना करने लगे और कहें कि मुझे ऐसा लगता है, मैं ऐसा सोचता हूँ, तो हमारे अन्दर का चैतन्य जो बाहर प्रसारित हो रहा है, जिसे हम चारों ओर से प्राप्त कर रहे हैं, जो सर्व्यापी है, जो हर अणु-परमाणु में ठीक से विद्यमान है, वह हमें हर चीज़ का, हर पशु का, हर मानव का और देवी-देवताओं का ज्ञान 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-23.txt अंक : 11 & 12 2007 22 चैतन्य लहरी पहुँचाने की योजना नहीं बनाते। यह अबोधिता ऐसे लोगों से कुछ लेना-देना नहीं है। खेद प्रकट मंगलमय होने का कारण बन जाती है। आप मंगलमय करते हुए उन्हें कह दें कि आप कुछ नहीं कर सकते तुम जो चाहे करो, ये हमारी जिम्मेदारी नहीं बनने लगते हैं जहाँ कहीं भी आप जाते हैं, जिससे भी आप मिलते हैं, वह सोचता है- हे, परमात्मा है। बिना कमजोर पड़े या दुविधा में फँसे आप उन्हें आज कुछ शुभ घटित होने वाला है। हाल ही में बता दें कि इस मामले में हम आपकी कोई सहायता जर्मनी में मैं किसी से मिली। कोई सहजयोगी थे नहीं कर सकते, हमें खेद है। आप स्वयं को कार्यान्वित करें क्योंकि ये प्रकाश आपका पोषण करता है और आपको शक्ति प्रदान करता है आत्मा जिसने मेरे और सहजयोग के विरुद्ध बोलना शुरु कर दिया था तथा आश्रम छोड़ दिया था। तब वह किसी सहजयोगी कहलाने वाले व्यक्ति और उसकी का प्रकाश अवश्य आपको आन्तरिक शक्ति प्रदान करेगा। शक्तिशाली व्यक्ति बन जाएं, ऐसे व्यक्ति जो बहुत कुछ सह सकता है, यहाँ तक कि क्रूसारोपण भी। परन्तु युद्ध भी कर सकता है। उसके अन्दर क्रुद्ध होने का गुण भी विद्यमान होता है। पत्नी के पास गया और वहाँ अपनी तकलीफों के बारे में बताया और सहजयोग के विरुद्ध बातें करने लगा। यद्यपि वह व्यक्ति भूतबाधित था और उन लोगों को मेरे विरुद्ध उसकी बात नहीं सुननी चाहिए थी। शास्त्रों में लिखा हुआ है कि 'गुरुनिन्दा' या गुरु सहजयोगी में क्रूद्ध स्वभाव होना अच्छा के विरोध में कुछ सुनना अत्यन्त भयानक है। तो नहीं है परन्तु यदि कोई आपसे माँ-विरोधी कोई कोई यदि आपके गुरु के विरुद्ध कुछ कहे तो हाथों बात कहे तो आपको क्रोध आना ही चाहिए। यही के वह स्थान है जहाँ पर आपने अपने क्रोध का उपयोग से अपने कान बन्द करके कहें "अपने गुरु विरुद्ध में कुछ नहीं सुनना चाहता। ऐसा करने की अपेक्षा उन्होनें उस व्यक्ति से सहानुभूति जताई। अब महिला को भयानक कैंसर रोग है और पति भी करना है। ऐसे व्यक्ति को यदि घूँसे लगा दें तो भी कोई बात नहीं। श्री गणेश आपके पीछे खडे होंगे और श्री हनुमान आपके सामने। आप यदि उसे एक बहुत बीमार है। व्यक्ति को समझना चाहिए कि समुद्र पार करने के लिए हम सभी नाव पर सवार हैं और कोई अकी और बार घूँसा मारेंगे तो हनुमान जी उसे दस बार घूँसे मारेंगे। तो इस प्रकार के क्रोध का कोई अर्थ है लोग कहते हैं कि व्यक्ति को लालची नहीं होना चाहिए। हाँ, व्यक्ति को लालची नहीं होना अपना पैर नाव से निकालकर मगरमच्छ के मुँह में डालना चाहे तो ऐसे व्यक्ति को कोई कैसे बचाएगा? बेहतर होगा कि ऐसे व्यक्ति नाव पर सवार होने के चाहिए। परन्तु आपमें यदि चैतन्य का लालच है तो स्थान पर मगरमच्छ के पास चले जाएं। जो लोग इस प्रकार के लोगों से सहानुभूति करते हैं जिन्होंने चाहिए और जहाँ भी चैतन्य मिले दौड़कर चैतन्य अपना एक पैर मगरमच्छ के मुँह में डाला हुआ है, प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। इस मामले में वो भी कठिनाई में पड़ जाएंगे। ये सारी चीजें केवल बाधा ही नहीं डालती परन्तु अमंगलमय और भयानक भी हैं। इनके विषय में आप सबको अत्यन्त सावधान होना होगा। किसी को ये बताने की आवश्यकता नहीं है कि तुम आसुरी प्रवृत्ति हो या बुरे हो, या ऐसा ही कुछ, परन्तु ऐसे लोगों से दूर हट जाएं। मुझे समझ पाई। क्योंकि जब घृणा की बात आती है तो है। चैतन्य का लालच आप में होना अच्छी बात । यह लालच अच्छा है और आपके अन्दर लालच होना चाहिए। ये लालच यदि आपमें नहीं होगा तो किस प्रकार आप अन्य आकर्षणों से स्वयं को बचा पाएंगे? यह आश्चर्य की बात है। मैं हमेशा मनुष्यों पर आश्चर्य करती हूैँ, मानव को मैं कभी भी नहीं 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी 2007 23 मनुष्य सबसे आगे होता है। घृणा करने के लिए सभी कुछ सुगम हो जाता है, वहाँ लोग सुख-सुविधाओं आदि के चक्कर में पड़ जाते हैं, परन्तु बलिदान उनकी समझ में बिल्कुल नहीं आता! अपनी पत्नियों, बच्चों एवं पतियों आदि की सभी समस्याएं लेकर वो आते हैं और ये सब चलता रहता. है! चलता है। कर लें और इन्हें भूल जाएं। मनुष्य अपना सब कुछ बलिदान कर सकता है। परमात्मा के नाम पर, राष्ट्र के नाम पर या किसी भी अन्य चीज के नाम पर। आपको बस कहना भर पड़ता है कि हमने किसी से घृणा करनी है। एकदम से सभी लोग एकत्र हो जाएंगे सभी प्रकार की यातनाएं भुगत लेंगे, सब कुछ बलिदान कर देंगे, जेलों में चले जाएंगे, आत्म-हत्या कर लंगे, एक बार एक ही बार इन समस्याओं का समाधान रहता आपने सहजयोग को फैलाना है। कुछ समय और धन बलिदान करना होगा और कौन इसे कार्यान्वित करेगा? रूस, जर्मनी और पोलैण्ड में जिस प्रकार लाग मारे गए थे वैसे आपको कोई नहीं मारेगा। कोई आपके बच्चे या धन नहीं छीनेगा। घृणा करने को कह तो दें! अन्यथा आपको कहना पड़ेगा कि 'हम महान राष्ट्र हैं और वे बुरे राष्ट्र हैं, अत: हमें उनसे लड़ना होगा। लोग ऐसा करते हैं। आश्चर्य की बात है कि राजनीतिक क्रान्ति और राजनीतिक स्वतन्त्रता के लिए लोग बलिदान की किसी भी सीमा तक जा सकते हैं। उस दिन मैं किसी को इसकी आवश्यकता नहीं है। परन्तु आपके लेनिन देख रही थी, मैं हैरान थी कि अकेला लेनिन जो सदा देश से निष्कासित रहा-लिखा करता था कि चाहिए। आपके अन्दर कुण्डलिनी ही शुद्ध इच्छा है। हमें युद्ध करना है, हमें यह पाना है, हमें ऐसा करना है। यद्यपि वह आत्म-साक्षात्कारी व्यक्ति था फिर हुआ) रखा जाना चाहिए। परन्तु इस मामले में भी उसने आध्यात्मिकता के विषय में नहीं लिखा । उसने राजनीतिक संघर्ष के विषय में लिखा और तीन बार क्रान्ति हुई तथा सब स्थानों पर हजारों लोग चाहते, क्योंकि यहाँ पर आनन्द प्राप्त होता है। परन्त मौत के घाट उतार दिए गए। आश्चर्य की बात है कि वह इतना समर्पित था कि छोटे बच्चे, पत्नियाँ, गर्भित महिलाएं और बहुत से पुरुष इस प्रकार से मारे गए। वे पुनः उठे, पुन: उठे, तीन बार क्रान्ति की और अन्तत: सफल हुए। किसलिए? राजनीतिक उपलब्धि पाने के लिए। भारत में भी हमने ऐसा ही किया। लोगों ने अपने घर, परिवार तथा सभी कुछ त्याग दिया। यहाँ तक की कुगुरुओं के लिए लोगों ने इतना पैसा खर्च किया, इतना कुछ किया, घर बेच डाले, बच्चों को कठिनाई में डाल दिया, स्वयं कठिनाई में फँस गये और सभी कुछ कर दिया! हाथ का यह दीपक शुद्ध इच्छा पूर्वक जलता रहना यही बाती है जिसे पूर्णतः पोषित ( तेल में डूबा सहजयोगी असफल हो जाते हैं। सहजयोग छोड़ने के लिए कहने पर भी लोग सहजयोग को छोड़ना नहीं मानव के लिए यह कुछ भिन्न होगा। किसी व्यक्ति का यद शराब की बोतल मिल जाए तो इसका आनन्द लेने के लिए वह दस लोगों को बुलाता है। किसी कुत्ते को खाने के लिए यदि कुछ मिल जाए तो वह अन्य कुत्तों को बुलाता है, गाय को यदि कुछ मिल जाए तो वह अन्य गउओं को बुलाती है। यह गुण उनमें अन्तर्रचित है। मानव में भी ऐसा ही है। परन्तु सहजयोग में ऐसा करने में हम इतने दृढ़ नहीं है! हमें अपने सभी सम्बन्धियों को बताना होगा कि हम सहजयोगी हैं और यह अन्तर्धर्म है। आप यदि इसे नहीं मानना चाहते तो मुझे आपसे कुछ लेना-देना नहीं। क्यों नहीं आप इसे अपनाते? सबके सम्बन्धी हैं! परन्तु उचित, विवेकमय तथा महानतम घटना जो घटित होनी है- 'सहजयोग, ' जहाँ हम पर हर RE दिवाली के दिन जब हम अपने प्रकाश के समय सुख और आनन्द की वर्षा हो रही है, जिसमें 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt चैतन्य लहरी 2007. 24 अक : ।। & 12 - आराम कर रहे हैं। मैं यहाँ हूँ तो इटली के लोग विषय में बात कर रहे हैं तो इस प्रकाश का हम क्या करने वाले हैं? क्या हम इसे केवल अपने कार्य कर रहे हैं, परिश्रम कर रहे हैं बाद में वे स्वार्थ के लिए उपयोग करने वाले हैं? ईसा-मसीह ने कहा था कि दीपक को ढक कर न रखें इसे मेज के ऊपर रखें। हम सबको जनता के बीच रहती हूँ। क्या आपने किसी ऐसे वैभवशाली व्यक्ति आकर सहजयोग प्रचार-प्रसार के तरीके खोजने को देखा है जो अपनी सारी सम्पदा बाँटने में व्यस्त होंगे। केवल अगुआ ही नहीं, सभी को सहजयोग हो और अन्य लोग केवल उस सम्पदा को लेने में आराम करेंगे! और मैं क्या करती हूँ? सभी कुछ मेरे पास होते हुए भी पूरा वर्ष मैं भिन्न स्थानों पर जाती ही लगे हुए हों? ऐसा ही है । का प्रचार-प्रसार करना होगा। सहजयोग का प्रचार करने के लिए हम क्या कर सकते हैं? आप सर्वत्र जाते हैं। किस प्रकार हम इसके विषय में बता सकते हैं? मैं ये नहीं कहती कि आप सब अपने मुझे आपको बताना है कि आपने अपने उत्साह के नए आयाम में आना है। सहजयोग केवल हमारे आनन्द के लिए ही नहीं है। हम सन्त हैं तो क्या हुआ? आपको किसलिए सन्त बनाया गया? वस्त्र बंदल लें। परन्तु बड़े-बड़े बैंज तो आप लगा ही सकते हैं। तब लोग आपसे पूछेंगे। तब आप उन्हें बता सकते हैं कि हाँ ये वही शख्सियत हैं जिन्होंने हमें ऐसा नहीं है कि केवल पुरुषो को काम करना चाहिए या महिलाओं को करना चाहिए या कुछ खास ही लोगों को काम करना चाहिए। इन प्रलोभनों में न फँसे। समुद्र-मंथन में से तेरह प्रकार के सुख-शान्ति और आनन्द प्रदान किया है। इस प्रकार बात करना आरम्भ कर दें। बाज़ारों में जाएं, सार्वजनिक स्थानों पर जाएं। केवल चैतन्य फैलाने के मैं लिए मैं बाज़ारों में जाती हूँ। आप सबको ऐसा प्रलोभन निकले और चौदहवाँ इन तेरह को बेअसर ही करना होगा अन्यथा सहजयोग आनन्द को आप करने के लिए एक बहुत बड़ा शिकारी था। ऐसा अपने तक ही सीमित रखेंगे। बिना अन्य लोगों से नहीं है कि सहयजोग किसी को प्रलोभन देना चाहता बाँटे आप भी पूरी तरह इसका आनन्द नहीं उठा पाएंगे। परन्तु आशीर्वाद होने के कारण आपके लिए ये प्रलोभन बन जाते हैं। आशीर्वाद का ही उपयोग आप प्रलोभन के रूप में करने लगते हैं । मेरी ओर देखें मेरे पास संसार का सारा इस प्रकार प्रलोभनों में फँसने वाले व्यक्ति कुछ है, तो मुझे तो स्व:केन्द्रित हो चैतन्य है। सभी कर ध्यान में बैठ जाना चाहिए। इस आयु में भी, की स्थिति उस घोड़े जैसी होती है जिसे दक्षिण की आखिरकार, क्यों मुझे यात्रा करनी चाहिए? मैं तो ओर जाना हो या उत्तर की ओर परन्तु वह आराम आदिशक्ति हूँ। क्यों मुझे अन्य लोगों को शक्तिशाली से खड़ा हुआ घास खा रहा हो! आपको चलना बनाने की चिन्ता करनी चाहिए? कोई आवश्यकता नहीं है। मुझे चाहिए कि मैं अपनी शक्तियों का दूसरे स्थान पर जाना है, एक गाँव से दूसरे गाँव आनन्द लँ। में ऐसा कर सकती हूँ, फिर भी नहीं कर सकती। मुझे कठोर परिश्रम करना पड़ता है। ही चाहिए। ईसामसीह ने भी अपने अनुयायियों से मेरा परिवार है, मेरे पति का जीवन बहुत व्यस्त है। यही कहा था, 'परन्तु उन्होंने कितने धर्म बना दिए मेरे चार नाती हैं। नाती-नातिनों को भी मैं अधिकतम समय देती हूँ। यहाँ रोम में आकर मुझे आप लोगों सिद्ध करना है। परन्तु जब आप लोगों को बताते हैं से बातचीत भी करनी पड़ती है। आप सब लोग तो आपके बताने की शैली बहुत महत्वपूर्ण है । LEE होगा। चलना ही शक्ति है। आपको एक स्थान से तक, एक घर से दूसरे घर तक। ये संदेश तो फैलना है'? उन्होंने कितने धर्म बना दिए है? आपने इसे 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 25 आपका चीजों पर बल देना महत्वपूर्ण है। बेशक आज से आप लोगों को बता सकते हैं कि मैं क्या हूँ। कब तक आप इसे छिपाते रहेंगे? बेहतर होगा हमने एक कार्यक्रम किया था, मैं बता रही हूँ कि कि आप उन्हें बताएं ये (आदिशक्ति) हैं, ये बात बाइबल में लिखी हुई है। वे ये हैं और हमने इसका पता लगा लिया है। आप यदि इसे नहीं देखना चाहते लें, उन्हें पत्र लिखें, तो न देखें, ये आप पर निर्भर करता है। परन्तु गतिशील करें, अन्यथा आपके सभी साथी मानव इस महत्वपूर्ण समय को खो देंगे। जैसे उस दिन व्यवहारिकता में मैं क्या करती। जिन लोगों को आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है उनके पते लिख जाकर उनसे मिलें, पूछे की क्या हुआ, वो आए क्यों नहीं, वो क्यों नहीं आ रहे है? तब उन कारणों की सूची बनाएं कि लोग क्यों नहीं आए, क्या हुआ, वो क्यों नहीं आ रहे है? उन्हें निरन्तर लिखते रहें। आपको आश्चर्य होगा कि गलती से यदि आप कभी रीडर्ज़ डाइजेस्ट ( Readers सच्चाई यही है। आइए दृढ़-निश्चय करें, ऐसी ही स्पष्टवादिता का। इन भयानक राजनीतिज्ञों को देखें। वे कहते है ' मेरा विश्वास है कि कुछ लोग होने चाहिएं, मुझे इसमें विश्वास है, मुझे इसमें विश्वास है! आप केवल विश्वास ही नहीं करते आपको इसका ज्ञान Digest) की एक प्रति खरीद लें तो वो लगातार आपको अपनी पत्रिका भेजते चले जाएंगे! बहुत सी चीजें, कई भिन्न प्रकार के तोहफ़े आपको भेजेंगे। चाहे इनकी आपको आवश्यकता न हो। फिर भी वे है। आज दिवाली के दिन इस बात का निर्णय किया जाना चाहिए कि अगली दिवाली तक हमें बहुत लोगों को सहजयोग में लाना है। से भेजे चले जाएंगे। मैंने उन्हें लिखा है कि मुझे कुछ न भेजें, मुझे कार की आवश्यकता नहीं है, केवल पत्रिका भेज दें। धन्यवाद। में इतनी भाग्यशाली व्यक्ति नहीं हूँ। (जिसकी लॉटरी निकले) कृपा करके मुझे कुछ न भेजें। इसी प्रकार से आप भी लोगों को लिखें, "कि आप श्रीमाताजी के पास क्यों नहीं आ रहे, सहजयोग में क्यों नहीं आ रहे? ऐसा करना बहुत आवश्यक है। सहजयोग से मुझे बहुत कुछ प्राप्त हुआ है, क्यों आप ये लेना नहीं चाहते? अपने अन्दर की सत्यनिष्ठा को दर्शाएं। ये सत्यनिष्ठा यदि आप नहीं दर्शाना चाहते और इसे भौतिक रूप से ही लेते है कि ठीक है, सब अच्छा है आदि, परन्तु बहुत से लोगों ने मुझे बताया है कि जब मैं बोलती हूँ तो कुछ लोग समझते हैं कि मैं उनसे न कहकर किसी और से कह रही हूँ। आपको चाहिए कि उन लोगों को देखें जो सहजयोग के लिए आपसे कहीं अधिक कठोर परिश्रम कर रहे हैं और हैं, सहजयोग में कहीं अधिक लगे हुए सहजयोग में कहीं अधिक उपलब्धियाँ प्राप्त कर रहें हैं। उन लोगों की ओर न देखें, कि जिन्होंने कुछ नहीं किया। आप मुझे देख सकते हैं। सोचें कि हम क्या कर रहे हैं? में कहां जा रहा हूँ? यह बहुत महत्वपूर्ण समय हैं। मैं अधिक से अधिक पाँच और तो यह सहजयोग को कार्यान्वित करने का तरीका वर्ष यात्रा कर सकती हूँ। अधिक से अधिक। क्या आप सोचते हैं कि 70 वर्ष की आयु के बाद भी मैं यात्रा कर पाऊंगी? यह इतना महत्वपूर्ण समय है। जब मैं यहाँ होती हूँ तो लोगों से मिल सकती हूँ, स्वर्ग में अपना स्थान आरक्षित करना है। ऐसा करना उनसे बातचीत कर सकती हूँ, और उनकी काफी सहायता कर सकती हूँ। इन पाँच वर्षों में आपको कुछ तो प्राप्त करना होगा। उछलकर स्वयं को नहीं है। मैं यदि भारत चली गई तो वहाँ पर ये कार्य अत्यन्त तेजी से कार्यान्वित होगा। आपने तो बहुत आवश्यक है। हवाई-जहाज में जाने के लिए भी आपको स्थान आरक्षित कराना पड़ता है तो स्वर्ग के विषय में क्या कहें। बहुत से लोगों को अपने 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 26 सूची में सभी जजों के नाम थे, तुरन्त मेरे भाई ने फोन उठाया और सब लोगों को बताया कि वे उस स्थान आरक्षित करने होंगे। यदि सारे भारतीय लोग ही वहाँ पर बैठ गए तो आप क्या करेंगे? तो इस महिला से कोई सम्बन्ध न रखें।' तो इस प्रकार से आनन्द, प्रसन्नता, प्रकाश तथा साक्षात्कार के इस सौन्दर्य के साथ आप सब गुरु हैं। इन बेकार के है। आपको भी लोगों तक पहुँचने की विधि खोजनी गुरुओं की कल्पना करें जो कुछ भी नहीं जानते, होगी मैं जब स्वयं होती हूँ तो दो सौ लोग आते हैं, उनकी तो कुण्डलिनी भी जागृत नहीं है, फिर भी परन्तु मेरे जाने के बाद केवल दो लोग रह जाते हैं? उन्होनें कितने बड़े-बड़े साम्राज्य खड़े कर लिये हैं! कोई कारण तो अवश्य होगा। लोग मुझे नहीं जानते। मैं ये नहीं कहती कि तुम भी उन्हीं की तरह से साम्राज्य खड़े करो। "नहीं, ऐसा कुछ नहीं कहती। परन्तु कम से कम एक झोंपड़ा तो बना लो ताकि ये दर्शा सको कि आपने कुछ प्राप्त किया है| और से बहुत अधिक न लिखें। जब आप उन्हें पत्र यह कार्य होना आवश्यक है।" अपने दफ्तर में लिखने लगेंगे तो उनकी अज्ञानता में प्रवेश कर सबसे सहजयोग के बारे में बात करें, इसमें आप संकोच न करें। मैंने देखा है कि दफ्तरों में, बसों में और सर्वत्र, लोग इन कुगुरुओं के फोटो लगाते हैं । तो आप मेरी तस्वीर क्यों नहीं लगाते ? उत्सुक होकर लोग आपसे पूछेंगे, आप उन्हें बताएं और यह कार्यान्वित होगा आश्चर्य की बात है कि इटली में यह सर्वोत्तम रूप से हो रहा है, क्योंकि हमें' बहुत अच्छे लोग मिल गए हैं। आपको चाहिए कि ऐसे लोगों को खोजने का प्रयत्न करें जो आपके आस-पास हों और उनके पीछे पड़कर इसे कार्यान्वित करें। गलत लोगों के पास न जाएं। अपने विवेक का उपयोग करें। आप जानते हैं कि वे गुरु किस प्रकार कार्य करते हैं। ये बहुत आवश्यक है। मेरा भाई कम से कम उनके पते तो ले लें। पता लगाएं वो कौन लोग हैं। उन लोगों की सूची बनाएं और उन्हें पत्र लिखते रहें, चाहे रीडर्ज डाइजेस्ट वालों की तरह पाएंगे। आपके चित्त की गतिविधि से उनमें प्रकाश जाएगा, उन तक प्रकाश पहुँचेगा। आप नहीं जानते कि आपका चित्त कितना शक्तिशाली है! आप यदि उनपर चित्त डालेंगे तो प्रकाश उन तक पहुँचेगा। आज नहीं तो कल वे लौट कर आएंगे। आप मेरा फोटोग्राफ भी भेज सकते हैं. कह सकते हैं कि हमें प्रसन्नता है कि आप कार्यक्रम में आए, फोटोग्राफ को आजमाएं। अनुवर्ती कार्यकम यदि सफल नहीं होता तो इस विधि को आजमाएं। सफलता पाने के लिए कभी-कभी यह बहुत अच्छा मार्ग है। परन्तु साचना समझना आप पर निर्भर करता है क्योंकि आप मानव हैं और मानव को पहचानते हैं। स्वयं को दूसरे व्यक्ति की स्थिति में डालकर से मुझसे बता रहा था कि मुक्तानन्द के यहाँ एक महिला उसके पास आई, यद्यपि मुक्तानन्द अब वहाँ नहीं है, वह महिला वहाँ से आई। ये अंग्रेज महिला आई. और वहाँ लगी मेरी तस्वीर को देखकर लोगों को चाहिए कि मेरे विषय में पुस्तक लिखें बोली, 'ये श्रीमाताजी यहाँ क्या कर रहीं हैं?" मेरे भाई ने कहा क्या? ये मेरी बहन हैं। तुरन्त उसने विषय में पुस्तक लिखें। परन्तु ऐसे लोगों को लिखना अपना सामान उठाया और दौड़ गई। मेरे भाई ने उसे चाहिए जिनकी समाज में कोई पहचान हो, और बुलाया, बैठने को कहा और पूछा, करती हैं?" उसने कहा, "हम शहर के सारे महत्वपूर्ण लिख सकते हैं। वे सबके विषय में लिखते है तो लोगों के पास जाकर उनसे बात करते हैं।" उसकी मेरे विषय में क्यों नहीं लिख सकते। नि:सन्देह आप देखें कि आपको क्या अच्छा लगता। मैं सोचती हूँ कि एक अन्य चीज़ भी है इसमें कोई हानि नहीं है। मेरे विषय में लिखें, मेरे जिन्हें लोग गम्भीरता से लें, वो मेरे विषय में पुस्तक आप क्या 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी -2007 27 सहजयोग के विषय में लिखते हैं परन्तु आप मेरे विषय में भी लिख सकते हैं, लोगों को बता सकते लगी हैं और इसका अर्थ आप जानते हैं। आज हैं कि फलां-फलां शख्सियत है और कोई बन्धन नहीं है। ऐसा क्यों न करे। लोग इन सब भयानक गुरुओं के विषय में लिखते हैं, आप क्यों नहीं मेरे विषय में लिख सकते? परन्तु लेखक प्रसिद्ध व्यक्ति होना चाहिए। यदि आप अच्छे लेखक हैं तो आप पुस्तक लिख सकते हैं और कोई अन्य इसका सम्पादन और मुद्रण कर सकता है। हम ऐसा भी के गुणों के आशीर्वाद की वर्षा आप पर होती है। कर सकते हैं। बहुत से ऐसे तरीके हैं जिनसे आप सहजयोग की ओर लागों का ध्यान आकर्षित कर सकते हैं। सहजयोग के. विषय में कितने लोग जानते बोले जाने चाहिए। हैं? भारत की जेल से छूटकर कोई व्यक्ति आता है और अमेरिका की किसी गन्दी गली के कोने में प्रसिद्ध गुरु बन बैठता है! कैसे? ऐसे सभी लोग बहुत प्रसिद्ध हैं। हमेशा ऐसे कार्य पैसे के माध्यम से ही नहीं किए जाते। जान-बूझकर तथा सम्मोहन द्वारा भी ये कार्य किए जाते हैं। मैं भली भांति जानती हूँ कि आप सच्चे साधक हैं परन्तु अपनी स्वतन्त्रता में ईसा-मसीह की माँ को मेरी या मरियम कहा गया आपको महसूस करना होगा। और आज आपने यही क्योंकि उत्पति धन से हुई, कोई नहीं जानता कि अब देखें कि चैतन्य-लहरियाँ प्रवाहित होने लक्ष्मी पूजा करते हुए, आपके चक्रों पर इन आशीर्वादों की वर्षा हो रही है। पूजा इस प्रकार से की जानी चाहिए कि सभी देवी - देवता प्रसन्न हों और आपको पूर्ण आशीर्वाद प्राप्त हों। ये मन्त्र है; संगीत और मन्त्रों में अन्तर है, मन्त्र आपके चक्रों पर कार्य करते हैं, आपके उस भाग को खोलते हैं और मन्त्र अतः मन्त्र तेजी से या सतही रूप से नहीं गाए जाने चाहिएं, मन्त्र गहन भावना और सूझ-बूझ पूर्वक क्या आप इन सभी लक्ष्मियों का अर्थ जानते हैं, क्या सबको बता सकते है? या मैं बताऊ? सर्वप्रथम आद्यलक्ष्मी हैं। आद्य अर्थात आदि (Primordial ) लक्ष्मी। जैसे मैंने आपको बताया था वे समुद्र से निकलीं थीं। तो ऐसा ही है। जैसे निर्णय करना है कि हमें ये प्रकाश प्राप्त हुआ है उनकी 'मेरी' क्यों कहा गया, मेरा नाम 'नीरा' था- अर्थात जल से उत्पन्न हुई। उसे प्रकाश स्तम्भ बनाना है, टिमटिमाता हुआ दीपक नहीं। इसका क्या लाभ है? हमें सुन्दर प्रकाश-स्तम्भ का दूसरी विद्यालक्ष्मी हैं। ये आपको परमेश्वरी शक्ति को संभालने की विधि सिखाती हैं। ये बात अच्छी तरह समझ ली जानी चाहिए कि लक्ष्मी हैं क्या? वे करुणाशीलता हैं। अत: वे आपको सिखाती कि इस शक्ति का सहदतापूर्वक किस प्रकार उपयोग करें। अब यही आशीर्वाद आपको प्राप्त हो रहा है कि आप आद्यलक्ष्मी की शक्ति को प्राप्त की तरह बनना है, प्रकाशगृह की तरह से। अपने अन्दर और बाहर सभी को ये कार्यान्वित करना चाहिए। अपने अन्दर यद्यपि आपने इसे कार्यान्वित कर लिया है परन्तु इसका बाहर कार्यान्वित होना हैं आवश्यक है। दूसरे, ये दीपावली है, केवल एक दीप नहीं है। अत: हम सबको सामूहिक होना है। जहाँ तक हो सके सामूहिक प्रकाश प्राप्त करने का प्रयत्न करें। जहाँ भी कोई सामूहिक कार्यक्रम हो है? जल में स्वच्छ करने की शक्ति है, जो मैं हूँ। वहाँ पहुँचने का प्रयत्न करें। जहाँ कोई सामूहिक घटना हो वहाँ पहुँचने का प्रयत्न करें । जहाँ सामूहिकता है वहीं ऊर्जा का स्रोत प्रवाहित होता है। करें जिसके द्वारा आप जलसम बन जाएं। जल क्या जल के बिना हम जीवित नहीं रह सकते। अत: पहला आशीर्वाद ये है कि आपके चेहरे तेजोमय हो उठते हैं। आद्यलक्ष्मी की कृपा से स्वच्छ होकर आप सभी गम्भीर चीज़ों को, प्रकाश को तथा विस्मृत परमात्मा आपको धन्य करें। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी -2007 28 चीज़ों को देख सकते हैं । होना। अमृतलक्ष्मी आपको अनन्त जीवन प्रदान करती हैं। विद्यालक्ष्मी- मैंने आपको बताया, ज्ञान गृहलक्ष्मी- गृहलक्ष्मी परिवार की देवी हैं| जुरुरी नहीं कि सभी गृहणियाँ गृहलक्ष्मियाँ हों। वे कलहणियाँ भी हो सकती हैं, वो भयानक महिलाएं भी हो सकती हैं। परिवार के देवता का निवास यदि आपके अन्दर है केवल तभी आप गृहलक्ष्मियाँ है प्रदान करती हैं। ज्ञान, कि परमेश्वरी शक्ति को सहृदतापूर्वक किस प्रकार संभालना है। मैं एक उदाहरण दूंगी, मैंने बहुत से लोगों को बन्धन देते हुए देखा है, उनका तरीका अत्यन्त बेढबा होता है। नहीं इस प्रकार नहीं किया जाना चाहिए। ये लक्ष्मी हैं। 1, अन्यथा नहीं। । अतः यह कार्य अत्यन्त सावधानीपूर्वक करें। आप मुझे देखें, मैं कैसे बन्धन देती हूँ। मैं इस प्रकार कभी नहीं करती, कर ही नहीं सकती। सम्मानपूर्वक गरिमापूर्वक। वे सम्मानपक्ष का प्रतिनिधित्व करती हैं और गरिमापूर्वक यह कार्य करने का ज्ञान आपको प्राप्त होता है। सभी कार्य गरिमापूर्वक किए होगा राजा की गरिमा, उसका प्रताप, राजलक्ष्मी का जाने चाहिएं, ऐसे तरीके से कि गरिमामय लगें। कुछ लोग बातचीत करते हैं परन्तु उनमें गरिमा नहीं होती! सहजयोग का ज्ञान देने वाले कुछ लोगों में भी कार्य करता है, और अत्यन्त भव्यतापूर्वक लोगों से गरिमा बिल्कुल नहीं होती और वे अत्यन्त गरिमाविहीन तरीके से बात करते हैं। परमेश्वरी ज्ञान को गरिमापूर्वक गरिमामय होता है कि लोग सोचते हैं कि देखो राजा किस प्रकार उपयोग करना है, यह आशीर्वाद इसके बाद राजलक्ष्मी हैं - वे राजाओं की गरिमा प्रदान करती हैं। राजा यदि नौकर की तरह से व्यवहार करे तो उसे राजा नहीं कहा जाना चाहिए। उन्हें अत्यन्त सम्मानपूर्वक व्यवहार करना टि वरदान है। परन्तु सहजयोगी राजा नहीं होता वह अत्यन्त शानदार तरीके से चलता है, भव्य तरीके से व्यवहार करता है। अपने सभी कार्यों में वह इतना आ रहा है! विद्यालक्ष्मी प्रदान करती हैं। सत्यलक्ष्मी- सत्यलक्ष्मी के माध्यम से आपको सत्य की चेतना प्राप्त होती है । उसके अतिरिक्त भी सत्यचेतना विद्यमान है परन्तु इस सत्य को आप अत्यन्त भव्य तरीके से प्रस्तुत करते हैं। ये सत्य है, आप इसे स्वीकार करें, ऐसे नहीं। सत्य से आपने लोगों को चोट नहीं पहुँचानी। फूल में रखकर आपने लोगों को सत्य देना है। ये सत्यलक्ष्मी हैं। अब सौभाग्य लक्ष्मी- वे आपको सौभाग्य प्रदान करती हैं। सौभाग्य का अर्थ पैसा नहीं है, इसका अर्थ है पैसे की गरिमा। पैसा से लोगों के पास है परन्तु यह पैसा वैसा ही जैसे गधे के ऊपर धन का लदा हेना। ऐसे व्यक्ति में आपको गरिमा बिल्कुल नहीं दिखाई देती। सौभाग्य का अर्थ केवल पैसा ही नहीं है। इसका अर्थ है खुशकिस्मती, बहुत नि:सन्देह ये सभी लक्ष्मी तत्व हमारे हृदय हर चीज़ में अच्छा भाग्य। आशीरव्वाद का अत्यन्त गरिमापूर्वक उपयोग ताकि आप भी आशीर्वादित हों में स्थापित शक्तियाँ हैं परन्तु वास्तव में इनकी अभिव्यक्ति हमारे मस्तिष्क में होनी चाहिए। मस्तिष्क विराट है, यह विष्णु हैं जो विराट बनते हैं। अत: ये सभी शक्तियाँ, विशेषरूप से यह शक्ति (सत्यलक्ष्मी), अमृतलक्ष्मी- अमृत का अर्थ है अमृत मस्तिष्क में है। अत: मस्तिष्क स्वतः इस प्रकार जिसे लेने के बाद मृत्यु नहीं होती अर्थात चिरंजीवी कार्य करता है कि लोग सोचते हैं कि यह कोई और आपसे मिलने वाले लोगों को भी सौभाग्य का वह आशीष प्राप्त हो। 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt भमा अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 29 ा विशिष्ट व्यक्तित्व है। सहजयोगी को हमेशा समझ आप अपनी योग शक्ति का उपयोग करते हैं तब बन्दर, गंधे या घोड़े की तरह से व्यवहार नहीं करते। गरिमापूर्वक ये कार्य करते हैं। इस प्रकार इस कार्य को करें कि यह अत्यन्त गरिमामय हो, अर्थात अत्यन्त भद्र, गरिमामय एवं भव्य तरीके से। तो यह होती है कि आनन्द किस प्रकार उठाना है। सहजयोगी कभी चिन्तित नहीं होता वह किसी भी चीज़ का आनन्द उठा सकता है। सीधी चढ़ाई वाला........ नाम का एक स्थान था। लगभग छ: मील खड़ी चढ़ाई थी। वहाँ पहुँचकर मैंने बहुत सुन्दर मूर्तिकला इस प्रकार है। अब जब आपने इस प्रकार इसका देखी। इस सुन्दर मूर्तिकला को देखकर मेरी थकान एकदम गायब हो गई। में अपने दामाद से बता रही थी, "देखो, हर हाथी की पूँछ अलग ढंग से बनी हुई है। वो कहने लगे, "माँ मुझे मूर्च्छा आ रही है किस प्रकार आप हाथियों की ये पूछें देख पा रही हैं?" क्योंकि मैं आनन्द उठा सकती हूँ। आपको भी आनन्द लेने के योग्य होना चाहिए। मान लो आप कोई बेढबी, हास्यास्पद चीज़ देखते हैं तो आपको हँसना और आनन्द लेना चाहिए। ये बहुत ये तो श्री लक्ष्मी की हाजिरी लेने जैसा हुआ। क्या स्तुति गान किया है, इस शक्ति से आपको आशीर्वादित कर दिया गया है। अब यदि आप चाहें तो भी आप गरिमाविहीन आचरण नहीं कर सकते, आपको स्थिर कर दिया गया है। हार्दिक धन्यवाद। तो मन्त्रों का उच्चारण सोच समझ एवं सूझ-बूझ पूर्वक करनी चाहिए। जैसे आपका एक भजन है इसे आप बिल्कुल ठीक ढंग से गाए। ऐसे न कहें श्री ये, श्री वो, श्री.....। नहीं, नहीं, नहीं । कठिन कार्य है, बेढबी चीज़ का आनन्द लेना। कोई तुम हाजिर हो, तुम हाजिर हो, तुम हाज़िर हो। इस यदि अटपटा या भद्दा हो तो उस पर गुस्सा नहीं करना चाहिए, इसे आनन्ददायक बना लेना चाहिए। ये महानतम चीज़ है, मेरे विचार से यह महानतम आशीर्वाद है जो वे आपको प्रदान करती हैं- आनन्द तरह से। अत: अब यह उच्चारण अत्यन्त सच समझ से करें। पूरी गरिमा एवं सम्मानपूर्वक क्योंकि लक्ष्मीतत्व का आपको अत्यन्त सम्मान करना पड़ता है। आपको अत्यन्त विनम्रतापूर्ण शब्द, मधुर धुनें तथा स्वर उपयोग करने होंगे । लेने की शक्ति। अन्यथा आप जो चाहे प्रयत्न करें, लोग किसी चीज़ का आनन्द नहीं लेते, क्योंकि वे इतने अहंवादी हो गए हैं कि उनके मस्तिष्क में कुछ अब आप 'तेरे ही गुण गाते हैं,' गा सकते हैं परन्तु याद रखें कि यह भी मन्त्र है, गाना नहीं है, सूझ-बूझ पूर्वक इसे गाएं। आप यदि इसे गाएं तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता परन्तु यह अत्यन्त सम्मान घुसता ही नहीं। उन्हें तो किसी छड़ी से गुदगुदाना पड़ेगा। योगलक्ष्मी- जो आपको योग प्रदान करती ये शक्ति आपके अन्दर है, आपके अन्तःस्थित लक्ष्मी की शक्ति अर्थात आप अन्य लोगों को योग एवं सूझ-बूझपूर्वक गाया जाना चाहिए। ठीक है? ( पूजा आरम्भ होती है) (रूपान्तरित) प्रदान करते हैं। जब आप अन्य लोगों को योग की शक्ति प्रदान करते हैं, मेरा अभिप्राय है कि जब मा প 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt जन्म दिवस पूजा जुहु बम्बई-22.3.1984 अभी-अभी मैंने इन्हें (भारतीय सहजयोगियों) को बताया कि वे अहंचालित पाश्चात्य समाज की शैली की नकल करने का प्रयत्न न करें। क्योंकि उसमें ये लोग कठोर शब्द उपयोग करते हैं और ऐसा करके हम सोचते हैं कि हम आधुनिक बन गए हैं। वो ऐसे कठोर शब्द उपयोग करते हैं, "मैं क्या परवाह करता हूँ!" ऐसे सभी वाक्य जो हमने कभी उपयोग नहीं किए, ऐसे वाक्यों से हम परिचित नहीं है। किसी से भी ऐसे वाक्य कहना अभद्रता है। किस प्रकार आप कह सकते है, "मैं तुमसे घृणा करता हूँ।" परन्तु अब मेंने लोगों को इस प्रकार बात करते देखा है कि हममें क्या दोष है?" " आप ऐसा कहने वाले कौन होते हैं? हम इस प्रकार बात है क्योंकि इससे सुधार नहीं होता। देखिए, दूसरे तरीके से आप अपने बच्चों को नियन्त्रित नहीं कर सकते। हर समय आप उन्हें डाँटते रहते हैं, अपमानित करते रहते हैं, अन्य लोगों को अपमानित करते रहते हैं। अपमानजनक तरीके और भावनात्मक धमकी तथा ये सारी व्यवस्था इस देश की परम्परा नहीं है। ऐसा करने वाले लोगों को बाहर फेंक दिया जाएगा। आपको ऐसा नहीं करना चाहिए। मैं आपको बताती हूँ कि सहजयोग में आप ऐसा नहीं कर सकते। लोगों को अपमानित करने की, उनके लिए अपमानजनक परिस्थितियाँ उत्पन्न करने की धारणाएं आपमें नहीं होनी चाहिएं। ये सब आधुनिक शैली है। अत: हमें ऐसा नहीं करना चाहिएं। सहजयोग में हमें अत्यन्त गरिमामय आचरण करना चाहिए जो हमारी नहीं करते। ये हमारा बात करने का तरीका नहीं है। बात करने का ये तरीका नहीं है। किसी भी अच्छे शैली और हमारी परम्परा के अनुरूप हो। सहजयोग परिवार का व्यक्ति इस प्रकार बात नहीं कर सकता परम्परा ये है कि हम लोगों से अत्यन्त सभ्य, मधुर, स्नेहमय एवं प्रोत्साहित करने वाले तरीके से व्यवहार करें। हम सबको इसी प्रकार बोलना चाहिए। क्योंकि इस प्रकार की बातों से उसका परिवार प्रतिबिम्बित होता है। परन्तु यहाँ पाश्चात्य देशों की अपेक्षा भाषा की नकल अधिक होती हैं। जिस प्रकार लोग बसों में, टैक्सियों में, रास्ते पर बातचीत करते हैं उस पर मुझे हैरानी होती है। ये मेरी समझ अत: पहली बात मैं ये बताती हूँ कि अपने प्रेम की अभिव्यक्ति करते हुए आपको चिल्लाना नहीं चाहिए। मैं उन लोगों पर चिल्लाती हूँ जिनमें भूत हैं। परन्तु मेरे चिल्लाने से भूत भाग जाते हैं, परन्तु यदि आप चिल्लाएंगे तो भागेंगे नहीं।, अत: में नहीं आता। अत: मैंने उनसे कहा कि भाषा प्रेममय तथा हमारी पारम्परिक शैली की होनी चाहिए। इस प्रकार तो हम अपने बच्चों को भी नहीं डाँटते। आपको भूत पकड़ लेंगे। भूत भागेंगे नहीं । अतः बेहतर होगा कि आप चिल्लाएं नहीं। यदि आपमें अपने बच्चों को भी यदि हमें डॉटना हो तो भी हम ऐसी भाषा का उपयोग करते है जो उन्हें सम्मानमय बनाए (श्रेष्ठमानव) । (दामले साहब ने मेरी तरह से शक्तियाँ हैं तो आप ऐसा कर सकते हैं। परन्तु आपमें ये शक्तियाँ नहीं हैं। भूत वाले व्यक्ति पर यदि आप चिल्लाएंगे तो भूत आपको पकड़ लेंगे। अत: सावधान रहें। कुर्ता पजामा पहना हुआ है, "आप शिवाजी महाराज जैसे लग रहे है।' शिवाजी महाराज आपका स्वागत है।") हमें ऐसी सम्मानमय भाषा में बोलना चाहिए मेरी विधियाँ न अपनाएं। मैं बिल्कुल भिन्न जिससे वो घबरा न जाएं। प्रकार की व्यक्ति हूँ और सोच-समझकर बात कहती हूँ। आप ऐसा नहीं करते। अतः यदि आपने मेरी बातों का अनुसरण करना हो तो मेरी सुधार यदि आवश्यक होता तो हम इस प्रकार सुधार किया करते थे। दूसरी विधि ठीक नहीं 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-32.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 31 नहीं है, किसी चीज़ से समझौता नहीं करना। परन्तु क्षमा, प्रेम और स्नेह आदि गुणों को अपनाएं, उन चीजों को नहीं जहाँ मैं भयंकर होती हूँ। मेरे आपमें ऐसे स्वभाव का विकसित होना अत्यन्त भयावने स्वभाव में भी मेरा प्रेम निहित होता है। यह प्रेम, ये शक्तियाँ आपमें नहीं हैं। अत: किसी अन्य व्यक्ति पर ये विधियाँ न अपनाएं। चिल्लाने और से आपके प्रेम की अभिव्यक्ति होनी चाहिए, अन्य क्रोधित होने का आपको कोई अधिकार नहीं है लोगों के प्रति प्रेम की। जैसे अब आगामी दो तीन आवश्यक है। दूसरी चीज़ ये है कि आपकी इस शक्ति क्योंकि यदि आप चिल्लाते हैं तो सारे आपके अन्दर आ जाते हैं क्योंकि यही भूत आपको गुस्सा है। इन आश्रमों में आने वाले लोगों के प्रति मैं दिलाते हैं। वो आपको इसलिए गुस्सा दिलाते हैं कि आप इसमें फँस जाएं और इतना अधिक इस कार्य को करें कि पूर्णत: नष्ट हो जाएं। अत: मध्य में बने दृष्टिकोण यदि आपका नहीं है। तो आश्रम शून्य भूत वर्षों में सर्वत्र आपके आश्रम होंगे, ऐसा मुझे विश्वास आपका प्रेममय सुहृद, स्नेहमय एवं आश्रयप्रदायी सुन्दर दृष्टि कोण देखना चाहूंगी इसके विपरीत, ये रहना तथा स्नेह एवं प्रेम की शक्ति जो मैंने आपको दी है उसे बनाए रखना सर्वोत्तम है। वह शक्ति है। मुझे दोष नहीं देना कि हमारे आश्रम क्यों नहीं आपने विकसित करनी है। वह प्रेम की शक्ति। सर्वप्रथम प्रेम की वह शक्ति विकसित करें फिर आपको कोई चिन्ता नहीं करनी होगी, न चिल्लाना पड़ेगा और न ही ऐसा कुछ और करना पड़ेगा। (व्यर्थ) हो जाएंगे। बहुत से स्थानों पर ऐसा ही हुआ चल रहे। ये देखना आपकी जिम्मेदारी होगी कि यह माँ का घर है और लोग माँ के घर आ रहे हें माँ इनसे किस प्रकार व्यवहार करेंगी? प्रेम एवं स्नेहपूर्वक। आप जो चाहे करें- चाहे भूखे रहें, परन्तु अन्य लोगों से करुणा एवं स्नेहपूर्वक व्यवहार करें ताकि अन्य लोगों पर प्रभाव पड़े और वे सोचे कि यह व्यक्ति आपकी शक्ति कृत (गतिशील) हो उठेगी। यह स्वत: कार्य करेगी और ऐसे सुन्दर वातावरण का सृजन करेगी जिसमें हम किसी को नष्ट करने की इच्छा न करें। परन्तु आप चिल्लाएंगे तो आप दौड़ जाएंगे विशेषरूप से किसी भी अहंवादी समाज में आप चिल्ला नहीं सकते, यह उन्हें नहीं सुहाता। अहंचालित समाज में यदि आप चिल्लाएंगे तो इससे उनका चित्त भटकेगा और वो दौड़ जाएंगे। अक्खूड नहीं है। मैं चाहती हूँ कि चोटी के व्यक्ति आश्रमों में कार्यभारी हों। मध्यम दर्जे के व्यक्ति को नियुक्त नहीं किया जाना चाहिए। अगले साल तक सभी जुमीने आपके हाथ आ जाएंगी और अगले वर्ष तक आश्रम बनने आरम्भ हो जाएंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। मैं आपको यह प्रदान करती हूँ अत: मुझे अब मैं दो चीजें माँग रही हूँ। बड़ी अटपटी सी बात है कि माँ अपने मुँह से कोई उपहार माँगे। जो उपहार आपने देना हैं उसमें पहली चीज तो ये है कि आपके चरित्र में शक्ति की अभिव्यक्ति होनी बताना है कि 'आप उच्चतम से भी उच्च हैं। पहली चीज जो आज आपने मुझे देनी हैं- अपनी बातचीत में, अपने आचरण में, अपने हृदय में मुझे प्रेमपूर्वक स्थापित करें। चाहिए। परन्तु इसका अर्थ ये भी नहीं है कि शान्त लोग भीरु होते हैं, अस्वस्थ, जो सभी मूर्खताओं को सहन कर लेते हैं। नहीं। परन्तु वो शान्तिपूर्वक विरोध करने वाले लोग होते हैं। आपको किसी चीज़ से भय नहीं है। किसी चीज़़ के आगे आपने झुकना दूसरी चीज़ जो मुझे माँगनी है वो ये है कि आप शान्त हो जाएं। अपने अन्दर शान्ति स्थापित करने का प्रयत्न करें। स्वयं से झगडें नहीं। पश्चिमी लोगों के साथ ये समस्या है कि वे स्वयं से झगड़ते 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-33.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 32 कुछ नहीं कर रहा' श्रीमाताजी कर रही हैं। शान्त हो जाएं शान्त होने पर आपको लगेगा कि आपका हृदय हैं! "मेरे साथ ऐसा क्यों हो रहा है? मैं ऐसा हूँ! मैं इतना खराब हूँ, मैं बिल्कुल अच्छा नहीं हूँ!" आप यदि स्वयं से लड़ते रहेंगे तो उन्नत नहीं होंगे। आपको स्वयं से कहना चाहिए, "मैं बहुत अच्छा हूँ, मुझमें क्या कमी है? मुझे आत्मसाक्षात्कार मिल गया है, मुझमें क्या दोष है? मुझमें कोई दोष नहीं है।" ये आत्मविश्वास अपने अन्दर खुल जाता आप अपना हृदय क्यों नहीं खोलते? क्योंकि आपको स्वयं पर विश्वास नहीं है। इससे आपकी आज्ञा खुलेगी, आपका सहस्रार खुलेगा और आपको शान्त जीवन प्राप्त होगा। है। आज मेरे जन्मदिवस पर आपको वचन उत्पन्न करें तब ये कार्यान्वित होगा। मान लो आप देना होगा कि अगले वर्ष के अन्त तक आपको ठीक प्रकार से स्थापित होना है, परन्तु पहली दो शर्ते बनी रहनी चाहिएं। आप यदि इसके लिए तैयार नहीं आपको अत्यन्त शान्त होना होगा। आपने देखा है हैं तो परमात्मा कभी आपको आश्रम प्रदान नहीं ये जान भी जाएं कि आपमें कोई दोष नहीं है तो भी ये नहीं कि आप अन्य लोगों पर चिल्लाने लगें। कि मेरे शान्त स्वभाव से किस प्रकार इतनी समस्याओं करेंगे। बेतुके लोगों को वे (परमात्मा) आश्रम नहीं देना चाहते। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि जिन लोगों को कहीं और स्थान नहीं मिलता वे आश्रम में चछ का समाधान हुआ है। किसी भी कीमत पर, किसी भी प्रकार से, ये शान्ति नष्ट नहीं होनी चाहिए। बाहर इसकी अभिव्यक्ति होनी चाहिए। मेरी शान्ति अपने आप में इतनी भयंकर हो जाती है। आपमें ऐसी संभावना नहीं है। ऐसा न करें, इस प्रकार कभी आ जाते हैं। अत: जब तक उस क्षमता के लोग नहीं होंगे जो प्रेममय और शान्त न बने रह सकें आश्रम स्थापित नहीं होंगे। न करें, अपने मस्तक को शान्त रखने का प्रयत्न करें। इस तरह के ( बिगड़े हुए, विकृत चेहरों वाले बहुत से लोग मेरे पास आते हैं और उनके मस्तक में मैं भूत बैठे हुए देखती हूँ और मेरे उनपर चिल्लाने से उनके मस्तक शान्त हो जाते हैं। 'मैं सभी स्थानों पर आश्रम बनाने की योग्यता आपमें हो। परमात्मा आपको धन्य करें निर्मला योग-1985 म क ै* र क 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-34.txt श्री आदिशक्ति पूजा कबेला-6.6.1993 पटम पूज्य माताजी श्री निरर्मला देवी का प्रवचन (आदिशक्ति क्या हैं?) आज आप पहली बार मेरी पूजा करेंगे। इच्छाएं होती हैं। परन्तु वे पछताते नहीं। उनमें अहं नहीं है। वो ये नहीं सोचते यह अच्छा है यह बुरा। उनमें कर्म की समस्या नहीं है क्योंकि उनमें न तो अहं है और न ही वे स्वतन्त्र हैं। अभी तक हमेशा मेरे एक पक्ष की पूजा होती थी। व्यक्ति को यह ठीक प्रकार से जानना चाहिए कि आदिशक्ति क्या हैं! जैसे आप कहते हैं, ये सर्वशक्तिमान परमात्मा श्री सदाशिव की शुद्ध इच्छा हैं। परन्तु सर्वशक्तिमान परमात्मा की शुद्ध इच्छा क्या है? आप यदि देखें तो आपकी अपनी इच्छओं जिसने अपना सारा प्रेम एक व्यक्ति में उड़ेल दिया का स्रोत क्या है? यह परमात्मा का प्रेम नहीं है, हो! उसके बाद उनमें क्या शेष रहा? कुछ नहीं। वो इसका स्रोत तो वासना, भौतिक प्रेम और सत्ता प्रेम है। इन सभी इच्छाओं के पीछे प्रेम है। बिना प्रेम के आप किसी चीज़ की इच्छा नहीं करते। अत: ये सांसारिक प्रेम जिनके लिए आप इतना समय व्यर्थ करते हैं, वास्तव में ये आपको संतोष प्रदान नहीं क्योंकि वो जानते हैं, कि यह व्यक्तित्व जिसका इस बिन्दु पर आदिशक्ति, जो कि शुद्ध प्रेम अत: उस पिता के बारे में सोचें मात्र हैं... मात्र देख रहे हैं। वो क्या सोचते हैं? वो तो बस अपनी इच्छा का अपने प्रेम का खेल देख रहे हैं। वो देख रहे हैं कि ये किस प्रकार कार्यान्वित होता है। यह सब देखते हुए वो अत्यन्त सावधान होते हैं करते क्योंकि आपके अन्दर यह सच्चा प्रेम नहीं है। सृजन मेंने किया है," यह प्रेम एवं करुणा के अतिरिक्त कुंछ भी नहीं। और करुणा अपने आपमें बाद आप इससे तंग आ जाते हैं और फिर दूसरी-दूसरी इतनी श्रेष्ठ होती है कि उन्हें ये बात बिल्कुल बर्दाशत नहीं है कि कोई इस करुणा को चुनौती दे, कुछ समय के लिए सम्मोहन मात्र है और उसके चीजों की ओर चले जाते हैं । अत: आदिशक्ति परमात्मा के परमेश्वरी इसे कष्ट दे, या इसकी प्रतिष्ठा को कम करे, इसे प्रेम की. प्रतिमूर्ति हैं, परमात्मा का विशुद्ध प्रेम हैं। नीचा दिखाए या इसका अपमान करे। इस मामले में अपने प्रेम में उन्होंने क्या इच्छा की? उन्होंने इच्छा वो बहुत सावधान हैं और इस पर पूरी दृष्टि रखते की कि वो ऐसे मानव का सृजन करें जो आज्ञाकारी हें। अत: एक दरार पड़ गई है, आप कह सकते हैं, हों, उत्कृष्ट हों, देवदूतों की तरह से हों और इसी उनकी ओर से उनके प्रेम की इच्छा की ओर से। विचार से उन्होंने आदम और होवा का सृजन किया। तो देवदूत स्वतन्त्र नहीं हैं। उनका सृजन इसी प्रकार किया गया है, वो आबद्ध हैं, ये नहीं जानते कि क्यों किसी काम को करते हैं। पशु भी ये नहीं जानते कि वो किसी कार्य को क्यों कर रहे हैं बस कर लेते कार्य करने के लिए स्वतन्त्र था! अपने सांसारिक हैं क्योंकि वो कर रहे है बस कर लेते हैं क्योंकि वो जीवन में हम ये नहीं सोच सकते कि कोई पति/पत्नी प्रकृति के पाश में हैं। सर्वशक्तिमान परमात्मा के पाश में हैं। कहते हैं श्री शिव पशुपति हैं अर्थात पूर्णतः स्वतन्त्र हैं, क्योंकि न तो कोई सम्बद्धता है, पशुओं का नियंत्रण करने वाले। वे पशुंपति हैं, सभी पशुओं का नियन्त्रण करते हैं । पशुओं में भी सभी प्रेम की इस इच्छा को एक व्यक्तित्च भी दिया गया, अर्थात अहं, और इस अहं को स्वयं कार्य करना होता है। यह एक प्रकार का स्वतन्त्र व्यक्तित्व बन गया जो अपनी इच्छा के अनुरूप अपनी पसन्द के अनुरूप कार्य करने के लिए न सूझबूझ है तथा वह एकरूपता एवं सौहार्द्र भी नहीं है। परन्तु यह चाँद और चाँदनी, एवं सूर्य और 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-35.txt 34 अक : 11 2007 चैतन्य लहरी 12 कायल करें, क्योंकि महिलाएं जानती हैं कि यह कार्य किस प्रकार करना है। कई बार वे पतियों को गलत ढंगे से भी कारयल कर लेती हैं, कोई बिल्कुल गलत चीज़ उन्हें बता देती हैं, बहुत ही अनर्थकारी, जैसा आप जानते है 'मैकबैथ' में घटित हुआ। बहुत धूप की तरह से है। ये ऐसी सम्बद्धता है कि एक व्यक्ति जो कार्य करता है दूसरा इसका आनन्द लेता हैं। इस सुन्दर दरार के बीच आदिशक्ति ने अपनी योजनाएं परिवर्तित करने का निर्णय लिया। वे अपने संकल्प विकल्प करोति' गुण के लिए प्रसिद्ध हैं । आप किसी चीज़ के विषय में बहुत अधिक निर्णय से स्थानों पर, हमने देखा है, महिलाओं ने अपने लें तो वे इसे बदल देंमी, जैसे आज की ग्यारह बजे पतियों को गलत मार्ग दिखाया। परन्तु पुरुष को की पूजा। तो आदम और हौवा का ये कार्य भी जब शुरु हुआ तो उन्होंने (आदिशक्ति) सोचा कि ये भी (आदम-हौवा) अन्य पशुओं या देवदूतों की तरह से होंगे। क्या लाभ है? उन्हें अवश्य इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि वे क्या कर रहे हैं और क्यों कर रहे हैं। उन्हें ये समझने की स्वतन्त्रता होनी चाहिए गलत मार्ग पर चलाया जा सकता है, ठीक मार्ग पर चलाया जा सकता है। यदि पत्नी अच्छी है तो उनका उद्धार किया जा सकता है। तो उसको आदमी को) अपनी पत्नी पर विश्वास था, उस पर भरोसा था तथा परमात्मा महिला व्यक्तित्व के रूप में आई आदिशक्ति के पथ प्रदर्शन में उन्होनें कि ज्ञान क्या है तथा पशुओं के इस नियमित मशीन जैसे जीवन से उनमें ये बात कैसे आएगी? अत: अपनी इच्छाचारिता की शक्ति से जो नि:सन्देह उन्हें जो अभी तक ईसामसीह, मोहम्मद साहब या नानक प्रदान की गई थी, उन्होंने सर्पिणी का रूप धारण किया और उन्हें बताया कि ज्ञान का फल चखें। जो में नहीं आएगा। उन्हें तो इन लोगों की झलक मात्र लोग सहजयोगी नहीं हैं उन्हें आप ये बात नहीं बता सकते, इससे उन्हें ठेस पहुँचेगी परन्तु ये सर्पिणी कहते, 'वाह!' ये क्या है? लोग कभी उनकी बात उन्हें प्रलोभित करने के लिए उनके पास आई और उन्हें बताया कि इस फल को चखना बेहतर होगा। करने की शक्ति जैसी थी उसके अनुरूप उन्होंने सर्पिणी ने यह बात महिला (हौवा) से बताई, पुरुष धर्म के विषय में बताया, उत्क्रान्ति के विषय में को नहीं, क्योंकि महिला चीजों को आसानी से स्वीकार कर लेती है। महिला भूत की भी स्वीकार कण्डलिनी के विषब में बताया कि ये आदिशक्ति कर लेती है, किसी भी बेवकूफी को स्वीकार कर लेती है। परन्तु ऐसा महिला ही करती हैं, पुरुष पढकर सुनाया जा चुका है कि मैं सभी के अन्दर आसानी से स्वीकार नहीं करता। वह वाद-विवाद ज्ञान का फल चखा। यह बात उन लोगों को स्वीकार्य नहीं होगी साहब की झलक मात्र देखने लगे हैं। उनकी समझ मिली है। उन्होंने भी यदि बताया होता तो लोग ने सुनते। अत: उस समय, चित्त जैसा था, स्वीकार बताया। परन्तु भारत में लोगों ने बहुत समय पूर्व हें जो हमारे अन्दर प्रतिबिम्बित हैं। आपको ये होऊंगी। अब ये समझने का प्रयत्न करें कि ये आदिशक्ति प्रेम की शक्ति हैं, शुद्ध प्रेम की- करुणा की शक्ति, इसके अतिरिक्त उनके पास कुछ भी करता है, तर्क करता है। इसीलिए सर्पिणी ने आकर महिला को बताया। उसने आकर महिला को बताया, मुझे ये कहना चाहिए। ये आदिशक्ति वास्तव में नहीं है। उनके हृदय में केवल शुद्ध प्रेम है। परन्तु स्त्रीवाचक हैं। अत: महिलाओं के ज्यादा करीब हैं। ये शुद्ध प्रेम अत्यन्त शक्तिशाली है, और यही प्रेम महिला शक्ति सर्पिणी के रूप में आई और बताया कि अच्छा होगा कि तुम ज्ञान का फल चख लो। उन्होनें पृथ्वी माँ को दिया है। इसी प्रेम के कारण, हम चाहे जितने पाप करें, कुछ भी करें, हमारे लिए सुन्दर-सुन्दर चीज़ों के माध्यम से पृथ्वी माँ हम पर अब यह महिला होवा का काम था कि वह पति को 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-36.txt अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी -2007 35 जो शुष्क नहीं हैं। अपने परमेश्वरी प्रेम के कारण उनमें ऐसा हृदय विकसित हुआ। अत: शरीर के हर भाग का, हर चीज़ का सृजन परमेश्वरी प्रेम से हुआ। इसके हर जुरें से परमेश्वरी प्रेम के अतिरिक्त कुछ भी प्रवाहित नहीं होता, चैतन्य-लहरियाँ परमेश्वरी प्रेम है इसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं। अपने प्रेम की वर्षा कर रही हैं। हर प्रकार से उन्होंने अपने इस प्रेम की अभिव्यक्ति की है- आकाशगंगाओं के माध्यम से, इन सितारों के माध्यम से। विज्ञान की दृष्टि ये यदि आप देखना चाहें, विज्ञान अर्थात जिसमें प्रेम नहीं है 'प्रेम' का प्रश्न ही नहीं है लोग योग के विषय में भी बात करते हैं। परन्तु प्रेम एवं करुणा की बात नहीं करते। जैसे मैंने आपको बताया इस अवतरण को व्यक्ति में यदि प्रेम और करुणा नहीं है तो आना पड़ा। समय आ गया था। देखा जा रहा था कि उसमें परमात्मा की शक्ति हो ही नहीं सकती, सभी कुछ परमात्मा के प्रेम की शक्ति में डूबा हुआ है। पृथ्वी पर जिस भी चीज का सृजन हुआ है, ब्रह्माण्ड में जिस भी चीज़ का सृजन हुआ है, ब्रह्माण्डों और पहुँचेगी। आप ये भी कह सकते हैं, कि ये मशीन ब्रह्माण्ड में जिस भी चीज़ का सृजन हुआ है सभी कुछ परमेश्वरी माँ की प्रेम के कारण हैं। इन आदिशक्ति का प्रेम इतना सूक्ष्म है, इतना सूक्ष्म है चीजों में , जो स्वत: होती हैं और जो सहज हैं, आप कि कभी-कभी तो आप इसे समझ ही नहीं सकते। मैं जानती हूँ कि आप सब मुझे अत्यन्त प्रेम करते हैं। मेरे लिए आपमें गहन प्रेम है और जब में आपसे है। अत: व्यक्ति ये नहीं कह सकता कि किस चैतन्य प्राप्त करती हैँ तो यह उन लहरों की तरह से होता है जो तट तक जाकर पुन: वापिस आती है। करने के लिए लाग उपलब्ध होंगे। समय आ गया है। नियत समय और सहजसमय में अन्तर है। नियत समय ऐसा होता है, जैसे आप कह सकते हैं, रेलगाड़ी इस समय चलेगी, इस समय पर किसी चीज़ का उत्पादन कर रही है, और इतने समय में यह इतनी वस्तुएं बना देगी। परन्तु जीवन्त समय नहीं बता सकते। स्वतन्त्रता की यह प्रक्रिया भी इसी प्रकार है। आपके पास अधिकतम स्वतन्त्रता समय परमेश्वरी प्रेम के इस सूक्ष्म ज्ञान को प्राप्त और तट पर भी असंख्य नन्हीं-नन्हीं चमकती हुई बूँदे होती हैं। इसी प्रकार अपने हृदय में मैं परमेश्वरी प्रेम की चमकते हुए प्रेम के सौन्दर्य की गुंजन ज्ञान भी अत्यन्त शुष्क हो सकता है। भारत में बहुत से भयंकर तपस्वी हुए जो हर समय अध्ययन में और मन्त्रोच्चारण आदि में व्यस्त रहते थे। इस घोर तपस्या के कारण वे इतने शुष्क हो गए कि उनका शरीर हड्डियों का ढाँचा भर रह गया महसूस करती हूँ। उस अनुभव का वर्णन तो मैं आपके सम्मुख नहीं कर सकती कि यह क्या सृजन करता है। परन्तु पहला सृजन जो ये करता है वह है कि मेरी आँखों में आँसू आ जाते हैं क्योंकि यह करुणा है जो 'सान्द्रकरुणा' है। आर्द्र है, यह शुष्क नहीं है। जैसे एक पिता की करुणा शुष्क हो सकती है, ये कार्य करो नहीं तो मैं तुम्हें गोली मार दंगा। मैं पृथ्वी पर इसलिए तपस्या करने के लिए आए हैं ऐसा कर दूंगा। माँ कहेंगी परन्तु वो ठेस पहुँचाने वाली कोई बात नहीं कहेंगी। आपको सुधारने के लिए उन्हें भी कई बार कहना पड़ेगा, परन्तु उनका कहना, पिता के कहने से बिल्कुल भिन्न होगा। क्योंकि उनमें सान्द्रकरुणा है- आर्द्, 'आर्द्र अर्थात ये और वो इतने क्रोधी बन गए कि किसी व्यक्ति की ओर यदि वे क्रोध से देख लेते तो वह जलकर राख हो जाता। कहने का अभिप्राय ये है कि क्या आप कि किसी को जलाकर राख कर दें? परन्तु वो लोग स्वयं को बहुत महान मानते थे क्योंकि उनकी दृष्टि मात्र से कोई व्यक्ति लुप्त या भस्मीसात हो जाता था, जलकर राख हो जाता था! उनके हृदय में परहित की कोई भावना न थी। अतः इस परमेश्वरी 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-37.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 36 कार्यान्वित हुआ और आप जानते हैं कि मैंने स्वयं प्रेम से जो पहली उपलब्धि प्राप्त होती है वह है हितैषिता की भावना।- भारत के स्वतन्त्रता संग्राम में भाग लिया। यह महत्वपूर्ण बात है। भारत में इसका आरम्भ हुआ, सर्वप्रथम भारत को साम्राज्य वाद से स्वतन्त्रता मिली हितैषिता शब्द भी अत्यन्त भ्रामक है। हितैषिता अर्थात जो आत्मा के हित में हो। अब जैसा आप जानते हैं, आत्मा सर्वशक्तिमान परमात्मा का प्रतिबिम्ब है। अत: आपके अन्दर जब आत्मा अपने पूर्ण सौन्दर्य में प्रतिबिम्बित होने लगती हैं तब आप दाता और धीरे-धीरे साम्राज्यवाद से स्वतन्त्रता सभी देशों में फैल गई। लोग स्वतन्त्रता के बारे में सोचने लगे। वो समझने लगे कि साम्राज्य बनाने का कोई लाभ नहीं है, अपने स्थानों पर लौट आना ही बेहतर होगा। अत: जब यह घटित हुआ, कहने से अभिप्राय है कि मेरे अपने जीवनकाल में यह घटित हुआ। बन जाते हैं। अब आप वो व्यक्ति नहीं रहते जिसे कुछ लेना है, दाता बन जाते हैं। इतने सन्तुष्ट हो जाते हैं। यह अवतरण भी उस समय हुआ जब इसे होना चाहिए था। जैसा मैंने कहा, आप स्वतन्त्र हैं यद्यपि मैं ये भी कहूंगी कि हमारे देश में जिन लोगों ने सर्वप्रथम स्वतन्त्रता प्राप्त करने का प्रयत्न किया और इस स्वतन्त्रता के कारण लोग पागलपन में सभी उल्टे-सीधे कार्य कर रहे थे यदि आप देखें तो इससे पूर्व हमारे सामने एक बहुत बड़ी समस्या थी कि लोग अपनी शक्ति को कार्यान्वित कर रहे वो मारे गए। बहुत से लोगों का वध कर दिया गया, आप जानते हैं, हमारे यहाँ तथा अन्य देशों में भी भगतसिंह जैसे लोग हैं। सभी क्रान्तिकारियों को बाहर निकाल दिया गया, उनसे दुव्व्यवहार किया थे, जैसे भारत जाकर वहाँ के क्षेत्र पर कब्ज़ा करना था। चीन जाकर या इसके अतिरिक्त वे अफ्रीका तथा अन्य स्थानों पर भी गए। यहाँ तक कि अमरीका के लोग तथाकथित अमरीका के लोगों के पास गए गया और उनका वध कर दिया गया। यह स्वतन्त्रता का प्रश्न नहीं है। परन्तु व्यक्ति को इसमें से गुजरना पड़ा ताकि स्वतन्त्रता को परखा जा सके। उन्होंने सोचा कि हमने (उन्होंने) मूर्खतापूर्ण कार्य किया है। और अमरीका जाकर कब्ज़ा किया। यह स्वतन्त्रता नहीं थी क्योंकि कि यह सब करते हुए उन्हें पछतावा होने लगा। उनके मन में अन्य लोगों से एक प्रकार का भय और घबराहट पनपने लगा और एक प्रकार की बाईं विशुद्धि की समस्या खड़ी हो गई। वे दोषभावग्रस्त हो गए कि उन्होंने गलत कार्य किया है जो उन्हें नहीं करना चाहिए था। तो यह वह समय था जब लोग अपनी स्वतन्त्रता को शक्तिवर्द्धन के लिए उपयोग कर रहे थे। यह आदिशक्ति के अवतरति होने का समय नहीं था। ये लोग सत्तालोलुप थे, ये नहीं है कि आज ऐसे लोग नहीं है, आज भी हैं, परन्तु ये लोग केवल सत्ता तथा साम्राज्य खोज रहे थे यह महत्वपूर्ण नहीं इस समय पर और भी समस्याएं थीं जैसे हमारे यहाँ जातिप्रथा और गुलामी तथा अन्य बहुत प्रकार का समस्याएं थीं- असमानता तथा कुछ लोगों करना होता था और अपनी स्वतन्त्रता के लिए युद्ध को नीच और कुछ को उच्च माना जाना, कुछ नस्लों करके इन साम्राज्यवादी लोगों के शिकंजे से मुक्त को ऊँचा समझा जाना और कुछ को नीचा। ये सभी मूर्खतापूर्ण चीजें वहाँ थीं। अपनी स्वतन्त्रता के माध्यम से उन्होंने ये सब चीजें बनाई- अपनी स्वतन्त्रता के कारण। ये ऐसा नहीं है, यह सत्य नहीं है, यह वास्तविकता नहीं है। परन्तु उन्होंने ऐसी, चीजें है। अत: उस समय यह कार्य न हो सकता था। उस समय तो व्यक्ति को अपनी स्वतन्त्रता के लिए युद्ध होना था जो अन्य लागों पर शासन करने का प्रयत्न कर रहे थे। शनै: शनै: सब परिवर्तित हो गया। सारा परिवर्तन अत्यन्त सहजढंग से हुआ। यह आश्चर्य की बात है। मैंने स्वयं यह परिवर्तन होते देखा। सब 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-38.txt चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 37 बनाईं। अब मान ले मैं यहाँ पर ये कहने के लिए कोई ऐसी चीज़ बना दें कि ठीक है ये कालीन नहीं और आपसे बताती चली जाऊँ ये कालीन नहीं है, ये कालीन नहीं है तो ये बात मस्तिष्क में घर कर जाएगी कि ये कालीन नहीं है ये कुछ और है। यह तो सम्मोहन जैसा ही कुछ है जिसके कारण लोगों ने नस्लवाद जैसी मूर्खता, सभी प्रकार की असमानता, दासत्व, जातिप्रथा तथा विशेष रूप से महिलाओं से दुर्व्यवहार को स्वीकार किया। यह सब उस स्वतन्त्रता के कारण आया जो उन्हें ये छाँटने के लिए दी गई थीं कि अच्छा क्या है और बुरा क्या है। अत: उनके लिए यह बुहत अच्छा था, उनके करने के लिए बहुत अच्छा कार्य था। इन परिस्थितियों में, इन लोगों पर की गई करुणा व्यर्थ हो जाती परमेश्वरी प्रेम व्यर्थ हो जाता क्योंकि ये लोग मानसिक रूप से समझने के लिए तैयार न थे। आप उन्हें ये नहीं बता सकते थे कि ये सब कार्य आप अपनी अन्धता और से ऊँचा है। आप केवल एक चीज़ कह सकते हैं कि आप भिन्न अवस्थाओं में हैं। कुछ लोग निम्न अवस्था में हैं, कुछ लोग ऊँची अवस्था में हैं। परन्तु सार्वजनिक रूप से आप किसी की ये कहकर निन्दा नहीं कर सकते कि फलां व्यक्ति अच्छा नहीं है, फलां समाज अच्छा नहीं है, सार्वजनिक रूप से। व्यक्तिगत रूप से आप कह सकते हैं। सार्वजनिक रूप से आप ऐसा नहीं कह सकते। परन्तु यह अज्ञानता अत्यन्त गहन थी क्योंकि ये सामूहिक बन चुकी थी, यह सामूहिक अज्ञान है- सामूहिक अज्ञान। सामूहिक रूप से हाथ मिलाकर सब लोग कहने लगे कि यही धर्म सर्वोत्तम है, हम लोगों की रक्षा की गई है। दूसरे लोगों ने कहा, नहीं नहीं नहीं नहीं नहीं, ये तो पूर्णतः दण्डित लोग हैं, हम सर्वोत्तम हैं तथा धर्म के और सर्वशक्तिमान परमात्मा के ना म पर उन्होंने ये मूर्खता आरम्भ कर दी। अत: अब आदिशक्ति को पूरी शक्ति के साथ उतरना पड़ा। पहली चीज़ जो उन्होंने महसूस की वो ये थी कि व्यक्ति को समझना चाहिए कि अज्ञानता के कारण कर रहे थे। ऐसा करना आपके हित में नहीं है, ऐसा करने से आप श्रेष्ठ नहीं बन जाएंगे। ये तो अधम कार्य है। इस प्रकार लोग अधम बन गए। नि:सन्देह बहुत से सन्त आए और उन्होनें श्रेष्ठता, क्षमा, एकता, एकरूपता आदि के बारे में बताया, महान दृष्टाओं ने भी जन्म लिया। वे भी इस बिन्दु पर पहुँचे अभी तक लोग पूरी तरह से इसके लिए ठीक से तैयार न थे। मैं सोचती हूँ धीरे-धीरे उनकी शिक्षाएं लोगों के अन्दर कार्य करने लगीं। परिवार क्या है। बच्चा परिवार में जन्म लेता है। माता-पिता यदि बच्चे की ओर पूरा ध्यान न दें या उन्हें बिगाड़ दे और बिगाड़ें भी नहीं परन्तु उनसे बहुत ज्यादा मोह करें या उनकी उपेक्षा कर दें तो बच्चा समझ ही नहीं पाता कि प्रेम क्या है। बच्चे को यदि पता ही नहीं चलेगा कि प्रेम क्या है- प्रेम का अर्थ ये नहीं है कि आप बच्चे को बिगाड़ दें या खेलने के लिए बहुत से खिलौने देकर जान छुड़ा और इसके बारे में बताया। परन्तु परन्तु सबसे बड़ी समस्या इन तथाकथित धर्मों की है जो उन्होंने चलाए। ये सभी धर्म पटरी लें। इसका अर्थ ये है कि हर समय आपका चित्त बच्चे पर हो और वह चित्त 'मोह' न हो। बच्चे के हित पर चित्त हो। हर समय आप देखते रहें कि हित हो रहा है और इस प्रकार मैंने सोचा कि सर्वप्रथम पारिवारिक जीवन को सारवान बनाना होगा। अत्यन्त से उतर गए और इन्होंने एक प्रकार की खिचड़ी सी बना दी- यहाँ मुसलमान, वहाँ ईसाई, यहाँ हिन्दू ये वो, ये वो। अत: इन खड्डों को भरने के लिए, उन्हें एक करने के लिए वास्तव में आपको जीवन सरिता की आवश्यकता थी। यह पूर्ण अज्ञान है। यह सोचना मात्र मूर्खता है कि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति आवश्यक है क्योंकि आजकल धर्म के नाम पर इन्होंने मठ खोल दिए हैं और पादरी, सन्यासी और बाबाओं के रूप में सभी प्रकार के लोग वहाँ हैं। वे 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-39.txt अंक : 1। & 12 2007 चैतन्य लहरी 38 इतने शुष्क हैं और लोगों को इतना भ्रमित करते हैं पड़ना बहुत अच्छा होता है। परन्तु लड़ने का कारण क्या है? उन्हें कुछ नहीं पता प्रेम का न होना इसका कारण है। इसी कारण से किसी भी चीज़ को जब आप देखते हैं तो उससे घृणा करते हैं। अपनी कुण्ठा और प्रेम यदि सामूहिक हो तो अधिक प्रभावशाली के कारण हर चीज़ को नष्ट करने का प्रयत्न करते होता है। भारत में आपने देखा होगा कि परिवार में हैं। अत: युद्ध समाप्त होने के बाद एक नई प्रथा लोग परस्पर प्रेम करते हैं। कहने से अभिप्राय ये है चालू हो गई क्योंकि मूल्यप्रणाली का नीचे जाना स्वाभाविक था। लोगों ने सोचा कि इन सब मूल्यों का क्या लाभ है? इन सब मूल्यों के अनुरूप रहकर ने कि लोग सन्यास लेने लगे, घर, पत्नियाँ और बच्चों को त्यागकर भागने लगे। तो सर्वप्रथम मुझे लगा कि प्रेम को समझे बिना मानव प्रेम कर ही नहीं सकता कि इतने सम्बन्धी होते हैं कि ये समझ में भी नहीं आता कि कौन सा सम्बन्ध है। हम बस उन्हें भाई-बहन ये वो बुलाते हैं। ये नहीं जानते कि सम्बन्ध क्या है, किसके पिता और किसकी माँ हमें क्या मिला? युद्ध! और युद्ध किसलिए? युद्ध तो हमारे समाज का, हमारे बच्चों का वध किया है। इस युद्ध प्रणाली में भी क्या महानता है? अत: लोगों का मस्तिष्क ऐसा बन गया था कि किसी न किसी बहाने से युद्ध करो तथा शक्तिशाली व्यक्ति ही सर्वोत्तम है। अत: जो व्यक्ति हावी हो सकता है, जो कुछ नहीं। बस हम इतना जानते हैं कि ये हमारा भाई है और कोई पूछे किस प्रकार भाई तो आपको कुछ पता नहीं होता कि कैसे ये आपका भाई है। कारण ये है कि हमारे यहाँ संयुक्त परिवार प्रणाली होती थी। संयुक्त परिवार प्रणाली बिल्कुल सामूहिक प्रणाली जैसी है। कोई नहीं जानता था कि उसका सगा भाई या सौतेला भाई है और चरचेरा भाई कौन ऊपर आ सकता है, वही सर्वोत्तम है। सरकार की प्रभुत्व जमाने वाली साम्राज्य शैली तो समाप्त हो गई परन्तु अब यह प्रभुत्व जमाने की व्यक्तिगत शैली बन गई। इस प्रक्रिया से अहं विकसित होने लगा। बच्चों को भी वे ऐसी शिक्षा दिया करते थे कि है, कुछ नहीं। सभी लोग सम्बन्धियों के रूप में साथ रहा करते थे परन्तु ये प्रणाली भी टूट गई। आर्थिक कारणों से तथा ऐसी ही अन्य चीजों के कारण बच्चे अत्यन्त अक्खड़ और बनावटी बन गए। ये समझ पाना असम्भव था कि क्यों इन बच्चों को नियन्त्रित नहीं किया गया और क्यों नहीं उन्हें संयुक्त परिवार टूट गए। अत: यह वह समय था जो कि बहुत संकटमय था जब सभी देशों में परिवार टूटने लगे थे, विशेष रूप से पश्चिमी देशों में जहाँ महिलाओं और पुरुषों को पारिवारिक जीवन के बताया गया कि ऐसा करना गलत है! क्योंकि माता-पिता ने ही बिल्कुल भिन्न दृष्टिकोण अपना लिया था, न तो वो अपने बच्चों की भावनाओं को समझते थे और न ही उन्हें बताते थे कि गलत क्या है। वो तो अपने विचारों में उलझे हुए थे कि हम चाहे जो मर्जी करें ये बच्चे हमें छोड़कर चले जाएंगे। इन परिस्थितियों में मनुष्य अच्छे परिवार और तलाक तथा बेतुके समाज के बीच बँट गए। एक ऐसे समाज में जो महिलाओं और पुरुषों की साझेदारी करना तथा सभी प्रकार की बेवकूफियाँ महत्व का कभी एहसास ही नहीं हुआ। उन्हें कभी अपने परिवार पर विश्वास नहीं हुआ। अत: बिचारे बच्चों के लिए यह सब अस्थिरता के कारण बन गए। बच्चों का आहार अस्थिर हो गया उनका पालन-पोषण ठीक प्रकार न हो सका। अत: इसके कारण एक अत्यन्त हिंसक और भयानक रूप से भूतबाधित बच्चों की पीढ़ी का सृजन हुआ। तत्पश्चात् यह पीढ़ी युद्ध के उन्माद में फँस गई। बिना कारण के वो लड़ना चाहते हैं मैंने बच्चों को पेड़ों से लड़ते देखा है, मैंने पूछा तुम क्यों पड़ रहे हो? करना चाहता था! अत: आदिशक्ति को इस मामले में उतरने के लिए. यह कितनी भयानक परिस्थिति 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-40.txt अंक : 1 & 12 चैतन्य लहरी 39 -2007 5 मई को प्रात: के समय। नि:सन्देह कुछ अन्य थी! इसके अतिरिक्त हर धर्म का अपने आपको, अपने विचारों को तथा अपने रीतिरिवाज़ों को लोगों घटनाएं भी इस घटना के तुरन्त होने का कारण पर लादना एक अन्य बहुत बड़ी समस्या थी जो बनीं। मैं पूरी तरह तैयार थी। मैं जानती थी कि मानव के साथ क्या समस्या है, परन्तु मैंने सोचा कि हो सकता है कि लोग इसे स्वीकार ही न करें, वो (ऐसा कर सकते हैं)। अब ये अवतरण अत्यन्त और लोगों की बुद्धि पर छा जाती। अत: खलबली थी, खलबली थी और खलबली की इस अवस्था में ही धर्म की स्थापना करने के लिए आदिशक्ति को आना पड़ा। धर्म स्थापना करने का यह कार्य उन्हें करना पड़ा। अद्वितीय है। बहुत से अवतरण आए, वे आए इसी प्रकार आपको सभी कुछ बताया। उन्होंने कहा, अत्यन्त अस्थिर स्थान था, अत्यन्त अस्थिर भूमि थी. ये अच्छा है, ये अच्छा है, ये अच्छा है। जो लोग और जब मेरा जन्म हुआ तो लोगों की चाल-ढाल देखकर मुझे सदमा पहुँचा। उस समय मेरी मुलाकात बहुत से साधकों से नहीं हुई। नि:सन्देह एक दो आत्मसाक्षात्कारी लोगों से मिली परन्तु अधिकतर लोग अपने बीमा, धन-दौलत आदि-आदि के लिए परमेश्वरी प्रेम की चिंगारी न थी। इस थोडे से समय चिन्तित थे उनसे बात करने पर समझ में नहीं आता कि कौन से विचित्र देश में आ गए हैं! समझ में नहीं आता था कि उनसे क्या बात की जाए! जो लोग साधक ही नहीं थे, ये नहीं समझ आता था कि उनसे किस प्रकार परमेश्वरी प्रेम की बात की जाए। उनसे प्रभावित हुए उन्होंने उनका अनुसरण किया परन्तु उनके हृदय में कुछ न था। जो भी उन्होंने सुना या पढ़ा यह प्रवचन जैसा था, गीता जैसा, बस इतना ही इन लोगों के जीवन में उनके अन्दर मैं के दौरान बहुत से अच्छे लोग आए। आप देख सकते हैं, महात्मा गाँधी आए, मार्टिन लूथर आए। सभी प्रकार के अच्छे लोग आए- अब्राहम लिंकन, जॉर्ज वाशिंगटन, विलियम ब्लेक और शेक्सपीयर भी आए। सभी इसी समय पर आए, चाहे साहित्य में शनै:शनै: मुझमें आत्मविश्वास आया, पहले तो मुझे ही सही- लाओत्से और उसके बाद सुकरात भी आए। सुकरात से आरम्भ होकर हमारे सम्मुख आज बहुत से दार्शनिक हैं, बहुत से ऐसे लोग जिन्होंने उच्च जीवन के विषय में बातचीत की। इसके लगा कि मैं कुछ जल्दी आ गई हूँ, मुझे कुछ और प्रतीक्षा करनी चाहिए थी, ऐसा करना बेहतर होता क्योंकि यहाँ तो लोग सभी से घृणा करते हैं, हर व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति के विरुद्ध है। लोग एक दूसरे बावजूद भी लोग ये सोच रहे थे कि ये बडे को धोखा दे रहे हैं, एक दूसरे से ईर्ष्या करते हैं, अजीबोगरीब लोग हैं, इनमें कोई अच्छाई नहीं है। कोई भी गुरुगीता आदि की बात नहीं करता, कोई भी इसकी बात नहीं करता, लोग सोचते कि 'ये क्या बेवकूफी है!' चल रही इस सारी मूर्खता का क्या लाभ है? चहुँ ओर इस निन्दापूर्ण दृष्टिकोण के बीच जब मैंने देखा (सोचा), "मैं उन्हें कैसे बताऊं सभी उच्च पदवियाँ चाहते है, दूसरों पर शासन करना चाहते हैं और सबकी टाँग खींचना चाहते हैं। हो सकता है अभी तक सहजयोग आरम्भ करने का समय न आया हो। परन्तु तभी मैंने भयानक कुगुरुओं को अपने सम्मोहन द्वारा लोगों को वश में करते देखा। इसने मुझे ये सोचने पर विवश किया कि कि वे क्या हैं और उन्हें क्या खोजना है?" वास्तव वातावरण की चिन्ता छोड़कर, लोग कसे हैं इस बात की चिन्ता छोड़कर अब हमें कार्य शुरु कर देना तो जिज्ञासा हो, बिल्कुल थोड़ी सी ही। ये यदि मुझे चाहिए। और इस प्रकार भारत में प्रथम ब्रह्मरन्त्र में ये मेरी इच्छा थी कि लोगों के मन में थोड़ी सी जरा सा भी मौका दे दें तो यह परमेश्वरी प्रेम जो, कि अत्यन्त सूक्ष्म है, यह परमेश्वरी प्रेम उनके छेदन घटित हुआ। यह 5 मई 1970 का दिन था, 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-41.txt चैतन्य लहरी अंक : 11 & 12 -2007 40 गलत धारणा होती। ये बात मेंने महसूस कर ली थी। इस प्रकार सामूहिक साक्षात्कार आरम्भ हुआ और इसने वास्तव में मुझे आश्चर्यचकित कर दिया। यह कोई जादू न था, कथावाचन न था। यह सत्य था, लोग इसे अपनी अंगुलियों के सिरों पर महसूस कर सहजयोग का आरम्भ हुआ और मैंने पाया कि सके, अपनी तालूअस्थि क्षेत्र पर इसे महसूस कर आदिशक्ति की शक्तियाँ इन समस्याओं से कहीं सके। यह सहजयोग का वास्तवीकरण था जिसने चमत्कार किए। इसके बिना ये कार्य करना असम्भव यही शक्तियाँ कुण्डलिनी को जागृत कर रहीं थीं। में होता ये सभी आश्चर्य जो आप देखते हैं, आपकी जानती थी कि मैं कुण्डलिनी जागृत कर सकती हूँ, प्रतिक्रिया के कारण हैं क्योंकि जिस प्रकार आपने इसमें कोई सन्देह नहीं, ये बात मैं जानती थी, और प्रतिक्रिया की, जिस प्रकार आपने इसे स्वीकार किया, ये उसका परिणाम है। अन्यथा आदिशक्ति क्या है? बेकार की चीज़! (Good for nothing) आप यदि स्वीकार न करें तो मैं कुछ भी नहीं। और आएंगे क्योंकि वो इतने अज्ञानी हैं! मैंने कभी नहीं ये आरम्भ हो गया। वास्तव में मैं देखती हूँ कि आपका विवेक, आपकी संवेदना और आपकी जिज्ञासा ही आपको सहजयोग तक लाई है। मैं कभी किसी मैंने कभी, कभी, कभी, कभी नहीं सोची। कोई यदि को पत्र नहीं लिखती, मैं कभी किसी को नहीं मुझे यह बताता भी सही तो में उनपर हँसती! बुलाती, जैसे आप जानते हैं अन्य गुरु करते हैं। ज्योंही वे किसी नगर में जाते हैं, वहाँ के महत्वपूर्ण हृदय में प्रवेश कर जाएगा। परन्तु ये थोड़ा सा अवसर भी वे मुझे नहीं दे रहे थे। वो तो पत्थरों जैसे थे, उनसे बात न की जा सकती थी, उन्हें बताया न जा सकता था और सबसे बुरी बात ये थी कि वे अपना कोई अन्त न समझते थे। इन परिस्थितियों में महान हैं। यह बात मेंने अत्यन्त स्पष्ट देखी क्योंकि यह भी जानती थी कि मैं सामूहिक आत्म-साक्षात्कार दे सकती हूँ। परन्तु में कभी ये न सोच सकी कि जिन लोगों को मैं जागृत करूंगी वो लौटकर भी सोचा था कि वो लौटकर आएंगे, सहजयोग का अभ्यास करेंगे या इस चीज़ को अपनाएंगे। ये बात बिल्कुल ऐसा ही। हुआ ये कि जब मेंने पहली बार एक सभागार में प्रवचन दिया तो मुझे लगा कि ये लोगों के नाम लिख लेते हैं और उन्हें पत्र भेजते हैं सभागार ही समाप्त हो जाएगा, सभी कुछ समाप्त हो और उनमें से दो तीन लोग उनके कार्यक्रमों में पहुँच जाएगा। सभागार से कुछ लेना-देना नहीं था मैं कहीं जाते हैं। परन्तु आप जानते हैं कि हम ये कार्य नहीं और रुकी हुई थी और सभागार किराए पर लिया करते। तो किस प्रकार हम यह सामूहिक आत्मसाक्षात्कार, सामूहिक कुण्डलिनी जागृति का कार्य कर पाए जिसके द्वारा लोग सहजयोग को समझने लगे और सहजयोग की गहराइयों में जाने गया था। अनुवर्ती कार्यक्रम में भी बहुत कम लोग आए। मुझे लगा कि यह कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा. क्योंकि लोग कुछ समझना ही नहीं चाहते। वो कुछ नहीं समझे। बहुत दबाव और पारिवारिक समस्याएं थीं परन्तु उनका अधिक महत्व न था। सबसे आवश्यक समस्या तो ये थी कि किस प्रकार लगे? ऐसा करने के लिए मुझे हर जन-कार्यक्रम में अपनी कुण्डलिनी उठानी पड़ती है। मैं अपनी कुण्डलिनी को भी उठाती हूँ और अपनी कुण्डलिनी में आपकी सभी समस्याओं को पकड़ लेती हूँ। यह कार्य अत्यन्त कष्टकर है; यही कारण हैं कि पूजा के पश्चात्, एक प्रकार से कुछ देर के लिए मेरे मानव हृदय में प्रवेश किया जाए। एकमात्र समाधान उनकी कुण्डलिनियों को उठाना था। मैें यदि इस विचार के साथ बैठी रहती कि लोग मेरे पास आकर आत्मसाक्षात्कार मांगेंगे तो में उनकी कुण्डलिनी जागृत करूंगी तब उन्हें जागृति प्राप्त होगी तो यह शरीर पर सूजन आ जाती है। वजह ये है कि आपके 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-42.txt अंक : 11 & 12 2007 41 चैतन्य लहरी परन्तु यदि आप प्रतिदिन सुबह और शाम ध्यान-धारणा नहीं करते तो वास्तव में अब आप अधिक समय तक श्रीमाताजी के साम्राज्य में अन्दर जो कुछ भी है (नकारात्मकता) में उसे अपने अन्दर आत्मसात करती हूँ। आप सबको अपने अन्दर धारण कर लेती हूँ। आप सब मेरे शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। मेरा हर कोषाणु आपके नहीं रहेंगे। क्योंकि सम्बन्ध तो केवल ध्यान-धारणा लिए है, आपके और आपकी उत्क्रान्ति के लिए, के माध्यम से जुड़ता है। मैं जानती हूँ कि कौन और आपको भी इतना सूक्ष्म बनना होगा कि आप ये समझ सकें कि कोई भी भावना जब आपमें है, उनके बच्चों को कष्ट होता है और जब आती है, या सहजयोग का कोई भी कार्य आप ऐसा कुछ घटित होता है तब आकर मुझे बताने करना चाहते हैं, जो कुछ भी आप महसूस करते हैं, लगते हैं। परन्तु मैं स्पष्ट देखती हूँ कि यह ध्यान-धारणा नहीं करते। तब उन्हें कष्ट होता कोई आश्रम यदि आप आरम्भ करना चाहते हैं या कोई और कार्य आप करना चाहते हैं तो तुरन्त मुझे पता चल जाता है। मुझे कैसे पता चलता है? क्योंकि आप मेरे अन्दर हैं। अधिकतर चीजें में स्पष्ट जान व्यक्ति ध्यान-धारणा नहीं करता। उसके साथ मेरा कोई सम्बन्ध नहीं है, मुझसे कुछ भी माँगने का अधिकार उसे नहीं है। आरम्भ में नि:सन्देह 'ध्यान-धारणा' पर (उतरने में) कुछ समय लगता है। परन्तु एक बार लेती हूँ परन्तु कुछ चीजें में स्पष्ट नहीं जान पाती। जब आप जान जाते हैं कि ध्यान-धारणा क्या है इसका एक कारण है : आपमें और मुझमें नि:सन्देह घनिष्ठ किस प्रकार आप मेरे सानिध्य का आनन्द लेते हैं, सम्बन्ध है कि आप मेरे शरीर में हैं, परन्तु यदि किस प्रकार मुझसे एकरूप होते हैं, किस प्रकार हमारे बीच सामंजस्य स्थापित होता है.. (तो आप ध्यान-धारणा नहीं करते तो यह (सम्बन्ध) सांसारिकता है। आपको ये बता देना आवश्यक होगा कि 'ध्यानगम्य' होना होगा। आप यदि ध्यानधारणा' नहीं करते तो मेरा आपसे कोई विशेष प्रकार का सम्बन्ध जोड़ना, कुछ नहीं। केवल सम्बन्ध नहीं है। आप मेरे सम्बन्धी नहीं हैं, मुझ पर आपका कोई अधिकार नहीं है। आपको मुझसे ये पूछने का अधिकार नहीं है कि ऐसा रूप से आप ऊपर उठते हैं और जब ये घटित होता क्यों हो रहा है, वैसा क्यों हो रहा है? अतः यदि आप ध्यान-धारणा नहीं करते- मैं हमेशा की परिपक्वता की अवस्था तक पहुँचते हैं, तब कहती हूँ ध्यान करें, ध्यान करें- तो मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं है। मेरे लिए अब आपका कोई अस्तित्व नहीं है। मुझसे यदि आपका योग ही नहीं है ( सम्बन्ध ही नहीं है ) तो आप भी में बैठे रहें। परन्तु कितनी गहनता-पूर्वक आप मेरे अन्य लोगों की तरह से हैं चाहे आप सहजयोगी हों ( कहलवाएं), चाहे आपने अपने अगुआओं समय आपने दिया। तब मैं आपके लिए, आपके से सहजयोग प्रमाणपत्र प्राप्त कर लिए हों, ऐसा बच्चों के लिए, आपकी हर चीज़ के लिए हो सकता है, मैं नहीं जानती- और हो सकता है कि आपको कुछ बहुत महान माना जाता हो, आपकी सुरक्षा के लिए, सभी नकारात्मकताओं तुरन्त सब हो जाता है)। बीच में कुछ और लाने की आवश्यकता नहीं है-जैसे पत्र लिखना या कोई और एक ही चीज की आवश्यकता है 'ध्यानधारणा'। ध्यान में आप उन्नत होते हैं, इस स्थिति में आध्यात्मिक है, इस प्रकार से, में कहूंगी, आप जब सहजयोग आप ध्यानधारणा को छोड़ना नहीं चाहते क्योंकि तब आप मुझसे पूर्णत: एकरूप होते हैं। इसका अर्थ ये भी नहीं हैं कि आप लगातार तीन-चार घण्टे ध्यान साथ हैं, ये बात महत्वपूर्ण है। ये नहीं कि कितना जिम्मेदार हूँ। मैं आपकी उत्क्रान्ति के लिए, 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-43.txt अंक : 11 & 12 -2007 चैतन्य लहरी 42 से आपकी रक्षा करने के लिए जिम्मेदार हूँ। तो और किस प्रकार इसका आनन्द उठाएं। आपको यह पिता की तरह से नहीं है जो सीधा आपको दण्डित करे, ऐसा नहीं है। परन्तु ठीक है, आप मैेरे दूसरी चीज़ से सन्तुष्ट नहीं हो जाना चाहिए। परन्तु सम्बन्धी नहीं हैं, मैं निकल जाती हँ। यही चीज़ आपको परमात्मा से पूर्ण एकाकारिता प्राप्त करनी घटित हो सकती है। आप यदि ध्यान-धारणा नहीं चाहिए- पूर्ण एकाकारिता। परन्तु ये तभी सम्भव हो करते तो मैं आपको विवश नहीं कर सकती। मेरा आपसे कोई लेना-देना नहीं। आप और सम्बन्धी बना सकते हैं, बाहर-बाहर की दुनिया से। परन्तु ये लोग कहते हैं श्री माताजी हमें समय नहीं मिलता, आन्तरिक सम्बन्ध जिसके माध्यम से आपके आन्तरिक केवल एक नृत्यनाटिका या किसी एक चीज़ या पाएगा जब आप वास्तव में ध्यान करें, और ऐसा करना बहुत सुगम है- ध्यान-धारणा करना, कुछ वव हम हर समय कुछ न कुछ सोचते रहते हैं, या उस समय हमारी घड़ी देखने की इच्छा होती है। हो सम्बन्ध बनते हैं, जिसके द्वारा आपको आशीष प्राप्त होता है, बिना ध्यान-धारणा के आपको यह नहीं सकता है कि आरम्भ में आपको थोड़ी सी समस्या मिल सकता। मैं आप सबसे कहती चली आ रही हो, में ये नहीं कहती कि आपको समस्या नहीं करके ध्यान करें, कृपा करके प्रतिदिन होगी, समस्या हो सकती है। परन्तु ऐसा केवल आरम्भ में होता है, शनै: शनै: आप ठीक हो जाते हैं. हूँ कि कृपा ध्यान-धारणा करें। परन्तु मैं सोचती हूँ कि लोगों को मेरे कथन का महत्व समझ नहीं आता। लोग मुझे इसमें कुशल हो जाते हैं, इसे इतनी अच्छी तरह से जान जाते हैं कि किसी अन्य घटिया किस्म की चीज़ को अपनाना नहीं चाहते। आप कोई घटिया बात नहीं सुनते। अतः अपने सौन्दर्य, गरिमा और महान व्यक्तित्व तक पहुंचने के लिए, जो अब प्रकट बताते हैं 'श्रीमाताजी हम ध्यान-धारणा नहीं करते, क्यों!' 'अब हम आत्मसाक्षात्कारी हैं' अब क्यों हम ध्यान-धारणा करें?' यह यन्त्र पूरी तरह बना हुआ है, परन्तु यदि हर समय यह अपने स्रोत से जुड़ा हो चुका है, यही एकमात्र कार्य आपने पूर्ण सत्यनिष्ठा से करना है। ये नहीं कि रात को मैं हुआ नहीं है तो इसका क्या लाभ है? ध्यान-धारणा में ही आप प्रेम को, परमेश्वरी प्रेम, परमेश्वरी प्रेम के सौन्दर्य को महसूस करेंगे। पूरा परिदृश्य ही परिवर्तित हो जाएगा। ध्यान-धारणा करने वाले व्यक्ति का दृष्टिकोण अत्यन्त भिन्न होता है, भिन्न स्वभाव और अत्यन्त भिन्न जीवन होता है। वह पूर्ण आन्तरिक सन्तोष के साथ जीवनयापन करता है। बहुत देर से आया इसलिए ध्यान-धारणा नहीं की, या कल है क्योंकि मुझे काम पर जाना इसलिए में ध्यान-धारणा नहीं कर सकता। बहाने कोई नहीं सुनना चाहता, यह आपके और आपकी आत्मा के बीच की बात है। इसमें आपका लाभ है किसी और का नहीं। आपके है! लाभ के लिए ही सभी कुछ घटित हुआ है! अत: जैसे आप कहते हैं, आज अवतरण व्यक्ति की समझना चाहिए कि हमने सम्बन्धों की कुछ बुलन्दियाँ प्राप्त कर ली हैं और अन्दर से आप यहाँ तक, यहाँ तक, यहाँ तक उठ सकते हैं, बिना ये कहे कि ऐसा करना सम्भव नहीं है। परन्तु सर्वप्रथम एवं आवश्यक चीज़ ये है कि आप स्वयं को चाहे जितना उच्च दर्जे का सहजयोगी मानें, ध्यान-धारणा के विषय में आपको विनम्र होना होगा। का प्रथम दिन है, हम कह सकते हैं कि अवतरण घटित होने का यह प्रथम दिन है, क्योंकि आज हम पूजा कर रहे हैं, यद्यपि ये आज नहीं हो रही, परन्तु फिर भी हम कह सकते हैं कि यदि यह सत्य है, यदि यह घटित हुआ और आपके लिए सहायक हुआ, आपके लिए महान आशीर्वाद बना, तो आपको ये जानना होगा कि किस प्रकार इसे सुरक्षित रखें। ध्यान-धारणा का ये गुण, यद्यपि में आपसे सहस्रार अवश्य जानना होगा कि किस प्रकार इसे बढ़ाएं 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-44.txt अंक : 11 & 12 चैतन्य लहरी 43 -2007 पर बात कर रही हूँ फिर भी मैं इसमें उतर रही हूँ जो बता रही हूँ अवश्य वह सत्य होगा, इसका क्योंकि यह इतना आनन्ददायी है। इस आनन्द के पूर्ण आधार। यद्यपि ये बात कुछ सांसारिक है। प्रतीत होती है परन्तु यह अत्यन्त महत्वपूर्ण सागर में कूद पड़ें। पहले तो ये कठिन होगा परन्तु कुछ समय पश्चात् आप जान जाएंगे कि ये सम्बन्ध जो आपका श्रीमाताजी से है यही एकमात्र सम्बन्ध है अब आदिशक्ति की पूजा के विषय में में नहीं जानती क्योंकि आदिशक्ति के विषय में प्रार्थना आदि कुछ भी नहीं बने । लोग भगवती तक ही पहुँच पाए। अत: मैं नहीं जानती कि आप कंसी जिसकी आपको तलाश थी। एक अन्य बात ये है कि लोग खो जाते हैं, मैंने देखा है कि खो जाने वाले कुछ लोगों में यह आम बात है कि वे अकेले काफी ध्यान-धारणा करते हैं, ये बात ठीक है। अकेले बैठकर वो ध्यान करेंगे, पूजा करेंगे परन्तु सामूहिकता में वो ध्यान नहीं करते। तो स्मरण रखने वाली ये लिए हम ध्यान में जाएंगे। एक अन्य चीज़ है कि आपको सामूहिक रूप से ध्यान-धारणा करनी है क्योंकि में सभी प्राणियों में (श्रीमाताजी सभी उपस्थित लोगों की कुण्डलिनी सामूहिक अस्तित्व हूँ। जब आप सामूहिकता में उठाती है और 11 बार प्रणव फूँकती हैं) ग्यारह रुद्र पूजा कर पाएंगे! परन्तु आइए कुछ प्रयत्न करें। मेरे ख्याल से ध्यान-धारणा ही सर्वात्तम उपाय है जिससे हम कुछ पा सकते हैं। अत: लगभग पाँच मिनट के 'कृपा करके आँखें बन्द कर लीजिए। ध्यान करते हैं तो वास्तव में मेरे बहुत करीब होते हैं। जब भी कोई कार्यक्रम आदि हो, अवश्य थोडा सा ध्यान करें। ध्यान-धारणा को हर कार्यक्रम में प्राथमिकता दी जानी चाहिए। भजन गाएं, सभी कुछ कर लें, उसके बाद ध्यान करें। मैं जब किसी चीज़ पर बल दें तो समझ लें कि मैं जागृत हो गए हैं, वे सारी नकारात्मकता को नष्ट कर देंगे। अज्ञान सबसे बड़ी शक्ति है। मुझे पूरा विश्वास है कि वे लोगों के अज्ञान को नष्ट कर दंगे। परमात्मा आपको धन्य करें। (रूपान्तरित) त चा 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-45.txt র से यर काी त र गा वा का पूजा, आस्ट्रेलिया-2007 जवरात्रि राव पाम 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-46.txt अ सहजयोग केन्द्र बज़व-जनपद (बागापत), उ से पूजा के ातठिया गया फोटो 2007_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-47.txt पा য अब हमें समझना है कि हगने मशाल अपने हाथों में ली हुई है। इसकी लौ डावाँडोल नहीं होनी चाहिए। हमें ये मशाल कसकर पकड़े रखनी है। प्रकाश को अखण्ड बनाए रखने के लिए हमें अपना पूरा चित्त इस पर केन्द्रित करना चाहिए और तब स्वयं से कहना चाहिए कि ত" हमें यह पूकाश देखना है, मस्तिष्क से केवल इसे समझना मात्र नहीं है,' वास्तव में इसके प्रति चेतन होना है। अन्यथा आप पूर्ण हैं, विराट के अंग-प्रत्यंग हैं। परव्तु इस प्रकाश को आपने देखा नहीं है। मस्तिष्क से आपने इसे स्वीकार कर लिया है। परन्तु आप प्रकाश बन नहीं पाए हैं। मानसिक प्रक्षेपण क्योंकि विचारों से आते हैं, अतः आप विचारों के स्तर पर हैं। ম आपको निर्विचार होना होगा। विचारों को यदि आप जीवन का आधार बनाए रखेंगे तो अभी आप आज्ञाचक्र से नीचे हैं। अतः आरम्भ ে া से ही सारा विचार-प्रवाह रोकना होगा और कहना होगा कि, "ठीक है, आइए अब देखते हैं।" परम पूज्य श्रीमाताजी