चैतन्य लहरी को जनवरी - फरवरी १00८ चै त न्य ल हरी प्रकाशक निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे - 411 029 फोनः 020-25285232 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिज़ाइनर्ज 292/23 ओंकार नगर 'बी' त्रीनगर दिल्ली - 110035 मोबाइल : 9212238008 अपने सुझाव, अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 - 411 029 ल हरी चै त न्य अंक : 1- 2, 2008 NIRMALA. UNIVERSAL PURE ा में ुम इस अक श्री महालक्ष्मी पूजा, 10.11.2007 ( N.C.R. ) नोएडा 2. 11. दीवाली पूजा सेमिनार-2007 दिल्ली (N.C. R. ) नोएडा এ 15. लाल बहादुर शास्त्री-उर्दू संस्करण-विमोचन 17. श्रीमाताजी निर्मल प्रेम आश्रम में 19. महाशिवरात्रि पूजा, दिल्ली- 6-3-1989 28 . महाशिवरात्रि पूजा- 29-2-1976 31. प्रजापति यज्ञ- मुम्बई- 2-3-1976। 35. निर्विचार में रहो- मुम्बई- 18-12-1977 37. सहजयोग की एक ही युक्ति है- 30-9-1979 43. परिवर्तित इच्छा ( अनुभव) 44. त्रुटि-सुधार DHARMA ৮HS1N विं श्री महालक्ष्मी पूजा 10-11-2007-नोएडा (N.C.R.) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन के पुत्र थे पर कोई अहंकार नहीं था। उनसे पहले जो लोग हो गए वो तो थोड़े बताते थे, लेकिन ईसामसीह ने यही चाहा कि हमारे आज्ञा चक्र ठीक तरह-तरह के नृत्य को आपने देखा, हो जाएं। और वो आज्ञा चक्र आपके दिल्ली में बहुत पकड़ता है। इसका कारण क्या है? पहले अंग्रेज़ यहाँ रह गए और अंग्रेज़ों ने हमको घमण्ड करना सिखाया। आप लोगों का बातचीत से पता कर सकते हैं। हमने वो भी दिन देखे हैं जब अपना देश परतन्त्र था लेकिन उस परतन्त्र से आप लोग निकल आए हैं। अब स्वतन्त्रता हो गई, और स्वतन्त्रता क्या है? 'स्व' को जानना। जिसने 'स्व' को जाना वह 'स्व' के तन्त्र को जानता है। सहजयोग से आपने अपने को जाना है और आप जानते हैं Happy Diwali! आप सबको दीवाली मुबारक हो। ये इससे एक बात समझ लो कि ये जो भी थे जिन्होंने ये लिखा, कहा, सब एक ही बात कह रहे हैं। और सबसे बड़ी बात कौनसी कही कि परमात्मा एक हैं। उन्होंने अलग-अलग अवतार लिए पर परमात्मा एक हैं। उनमें आपस में कोई झगड़ा नहीं, और वो इस संसार में इसलिए आते हैं कि दुष्टों का नाश करें, खराब लोगों को बरबाद करें। और हो रहा है हर जगह। हर जगह में देखती हूँ कि जो हैं, वो सामने आ रहे हैं। और अब आप लोगों का भी यही काम है कि जो दुष्ट हैं, जो परमात्मा के कि आप तन्त्र हैं और आपको 'स्व' के तन्त्र से विरोध में काम करते हैं और पैसा कमाने के लिए कोई भी काम कर सकते हैं, वो सब नर्क में जाएंगे। हमको पता नहीं कितने नर्क हैं। अभी जिस माहौल में आप बैठे हैं, जो जगह आप बैठे हैं, ये नर्क से परे है। इसका सम्बन्ध नर्क से कोई नहीं हैं। लेकिन आप इसमें रहकर और अधर्म करें, गलत काम करें तो आप भी नर्क में जा सकते हैं। बहुत तरह के नर्क हैं और ये नर्क में जाने की व्यवस्था भी बड़ी अच्छी है। क्योंकि वहाँ पे जाने वाले जानते नहीं कि हम कहाँ जा रहे हैं। और जो बच जाते हैं वो स्वर्ग सीखे नहीं। उल्टे जहाँ ईसाई देश हैं उनमें बहुत ही चले जाते हैं। तो इस पृथ्वी तल पे कोई जानता ही नहीं कि हमें न्क में जाना है। गलत काम करने से हम नर्क में जाएंगे और दीवाली का मतलब यही है कि जैसे बाहर दीये लगे वैसे आप लोगों में भी दीये लड़ाई और आपस में शुद्ध मन नहीं। तो पहली लग जाएं। और आप भी देखो इस अंधेरे दुनिया में तुम लोग दीये हो, दीपक हो और तुम्हें प्रकाश देना से सब हो सकता है, कहाँ से कहाँ लोग पहुँच है। लेकिन अगर अन्दर का ही प्रकाश पूरा नहीं सकते हैं। जरूरी नहीं कि उसके लिए आप हिमालय हुआ तो आप कंसे प्रकाश दे सकते हैं? ये भी सोचो। तो पहले आप सहजयोगियों को चाहिए कि पहले अन्दर के प्रकाश को पूरा शायद हम इस दुनिया में आए हैं। ईसामसीह तक तो कोई इस मामले में बात ही नहीं करता था। आज्ञा चक्र पर वो आए और अपने को पूरी तरह से दिखा दिया कि उनमें कोई भी अहंकार नहीं था, परमात्मा लोग दुष्ट चलना है। दिल्ली में बहुत काम हुआ है, ये तो दिखाई दे रहा है। दिल्ली से बाहर भी काम हुआ है। यहाँ के लोगों में जो दोष हैं वो तो आप जानते हैं, मुझे बताने की कोई जुरूरत नहीं है। लेकिन अब आप स्वतन्त्र हो गए हैं। तो आपको देखना चाहिए की हममें तो ये दोष नहीं है। पहला तो दोष ये है कि आपका आज्ञा ही चक्र पकड़ रहा है। ईसामसीह मर गए, सूली पर चढ़ गए लेकिन उससे हम लोग अहंकार है। वो हम लोगों पर भी छाए हुए थे पर सबसे बडी जो यहाँ खराबी है कि हम अभी एक दूसरे को पहचानते ही नहीं । जहाँ-तहाँ झगड़े, जहाँ-तहाँ चीज है कि अपने मन को शुद्ध करना है। सहजयोग जाके बैठें। इसी दिल्ली शहर में आप कर सकते हैं । पर आप चारों तरफ अगर देखें कि अहंकारी लोग है तो करें और इसी से है, बहुत ज्यादा उनका आज्ञा चक्र पकड़ा हुआ बड़ी मुश्किल है। अब एक भगवान ने नई चीज़ भेजी है 'कैन्सर'। अगर आपको कैन्सर हो गया है तो और आपका अगर आज्ञा चक्र ठीक नहीं हुआ, वो ठीक हो ही नहीं सकता और बड़ी आफ्त हो अंक : ! & 2 चैतन्य लहरी -2008 उनको तो करते हैं। इस देश में तो लोग पैसा खाते हैं, बताइए जाएगी। इसलिए जिनको कैन्सर हुआ है चाहिए सहजयोग लें और अपने अन्दर जो अहंकार कि भगवान कैसे माफ़़ करेगा हमको? सबसे बड़ा है उसे निकालें। क्योंकि जहाँ भी Government होती है लोगों में अहंकार आ जाता है। हमारे यहाँ इस तरह के गुनाह को करता है उसको कुछ भी इतने Government Servants हैं और उनके अन्दर काफी सा अहंकार है। पर उनसे भी ज्यादा जो बाहर से आए हैं वो तो उनके नाना हैं, और ऊपर से सब शराब पीते हैं। आप सोचिए कि ईसाई कहलाते हैं और सब शराब पीते हैं! तो शराब पीना तो आप अपने ही खिलाफ जा रहे हैं। आप अपने आज्ञा चक्र को ही मना कर रहे हैं। उसको नहीं मान रहे। जिस आदमी का आज्ञा चक्र हट गया वो शराब नहीं पी सकता, कभी नहीं पी सकता। आप जहाँ-तहाँ देखते हैं लोग शराब पीते हैं और उसको निकालने का कोई इलाज भी नहीं है उन लोगों के पास। क्योंकि उसके ऊपर फिर वो शराब पीते हैं। तो किसी भी ? तो आप आज कसम ले लीजिए कि हम झूठ तरह की लत जो होती है वो अपने को गुलामी में डाल देती है। कोई सी भी। अभी इधर में पान का चाहिए। लेकिन अब आप जब पार हो गए हो तो बात बहुत है, उसमें तम्बाकू डालेंगे! बताइए। इतने भगवान ने आपको मोहब्बत से पैदा किया है इस देश में कि आप सारी दुनिया से निराले हो जाएं। हो सकते हैं, हिन्दुस्तानी होते हैं, लेकिन उनमें दो चार बीमारियाँ अभी मैं ज्यादा देखती हूँ। वो ये कि वो खाने की जगह पैसा खाते हैं। अभी जिस रास्ते से हो, कोई भी हो, इंजीनियर हों, सड़कें बना रहे हों, हम आए तो मुझे बड़ा दुख हुआ, वो रास्ता पहले नहीं था और अब ऐसा रास्ता बना है कि कोई कह नहीं सकता कि ये नया रास्ता है। ये सब हिन्दुस्ताना अब आप पार हैं. सो पार लोग, अगर कोई झूठ ही कर सकते हैं। इतने बेशर्म तो मैंने दुनिया में है, कहीं लोग देखे ही नहीं जो ऐसे काम करें और कोई ज़रूरत नहीं हैं। यहाँ बड़े से बड़ा (अस्पष्ट)कोई भी ये काम कर सकता है। क गुनाह तो ये है कि चोरी करना और पैसा खाना। जो करे, वो कुछ भी कोशिश करें, पूजा करे, पाठ करे, नमाज़ पढ़े, अल्लाह को पुकारे, उसको कोई फायदा नहीं हो सकता। तो आज आपका नया साल है, आपको मुबारक हो। और में चाहती हूँ कि आप लोग आज ये निश्च्य करें कि हम झूठ नहीं बोलेंगे, कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे। हिन्दुस्तानी मशहूर हैं, दुनिया भर में मैं गई हूँ, कि बड़े ही झूठे हैं। पता नहीं क्यों हमारे देश पे ऐसे ठप्पा लगता है कि झूठे लोग हैं। जहाँ इतने बड़े बड़े सन्त-साधु हो गए, जहाँ सूफी जैसे लोग हो गए वहाँ लोग इतना झूठ क्यों बोलते नहीं बोलेंगे। चाहे कुछ हो जाए। उसके लिए हिम्मत और हिम्मत क्या चाहिए? आप झुठ बोल ही नहीं सकते। और आप जब ऐसे हो जाएंगे तभी तो लोग आप पे विश्वास करेंगे कि ये लोग सच्चे हैं। तो सहजयोगी को सच्चा होना है। कुछ भी हो, बिज़निस डॉक्टर हों, सबका इलाज कर रहे हों। ये सब होते हुए भी आपके लिए नर्क है अगर आप झूठ बोलें तो। अब क्योंकि आपने अपना हुलिया बदल लिया अपने देश के बारे में बाहर में सुनती हूँ, तो बड़ा दुख होता है कि यहाँ के लोग बड़े धोखेबाज़ हैं, बड़े झूठे हैं, पैसा बनाते हैं। आज आपका अच्छा शुभ दिन है। आज सब निश्चय कर लो कि हम कुछ हो जाए। हम बात ये है कि हम अपने को सबसे उत्तम समझते खुद हैं एक औरत, वो भी हिन्दुस्तान की, हमने कभी झूठ नहीं बोला। झूठ बोलने से आप ही को नुकसान होगा। झूठे काम करने से आप ही को नुकसान होगा। इस तरह से आप पैसा ज्यादा कमा देखिए ऐसे आपने बहुत लोग देखे होंगे, जो अपने लें या और भी ढंग कर लें, लेकिन इसके बाद आप स्वर्ग में नहीं जा सकते, नर्क में जाएंगे। ये बहुत तो आज ये निश्चय करना है कि पहले हम अपने आज्ञा को ठीक करें। आज्ञा में सबसे बड़ी कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे, चाहे हैं, और हम सोचते हैं कि दुनिया भर में हम चला सकते हैं, दुनिया को हम ठीक कर सकते हैं। जब आप ही ठीक नहीं तो दुनिया कैसे ठीक होगी? को बहुत ऊँचा समझ के और बहुत गलत काम अक : । & 2 चैतन्य लहरी 2008 जुरूरी जान लेना है कि हमारे बारे में सब देशों में बोलना है। हम दिल्ली बहुत रह चुके हैं और हम इतनी बदनामी है। ये बदनामी क्यों है, क्योंकि हमारे तो हैरान थे की लोग कितना झूठ बोलते हैं यहाँ, बाप रे बाप! उनको कोई डर ही नहीं!" साफ़ साफ़ झूठे बोलना और उससे लाभ? पता नहीं उनको यहाँ हो जाए शायद, कुछ रुपया पैसा ज्यादा कमा लें लेकिन वो स्वर्ग में नहीं जा सकते। मैं तो पता करिए कि कितना पैसा खर्च हुआ और चाहती हूँ सहजयोगी आज से कसम ले लें, 'न तो उनको देखिए कि वो क्या कर रहे हैं? ऐसे पैसे हम झूठ बोलेंगे और न तो हम झूठों की मदद खाके शराब ही तो पिएंगे और शराब हमारी दुश्मन करेंगे।' अपने देश के बारे में लोग ये कहते हैं कि बड़े बेईमान हैं। हाँ, सब जगह, में तो बहुत दूर घूमी बहुत अच्छी है और बहुत देश में गरीब लोग हैं, हूँ। सबसे मैंने देखा कि रशिया के लोग हैं, बहुत लेकिन मैंने देखा है कि वो बड़े ईमानदार हैं, तो बढिया। वो आधे सहजयोगी तो हैं ही और बहुत ईमानदारी पहली चीज है। आज निश्चय होना चाहिए सहजयोगी हैं । मैं रशिया इस साल जा भी नहीं पाई। कि हम बेईमानी नहीं करेंगे और हम बेईमानों के अगले साल जाऊंगी जरूरी। पर इसका ये मतलब हैं कि हम democracy नहीं पाल सकते। हमको भी बता देंगे। अब ये है कि लोग कहेंगे, "माँ, पुलिस कम्यूनिस्ट होना चाहिए। वहाँ कोई चोरी चकारी नहीं, झूठ बोलना नहीं और सब बहुत प्यार करते सहजयोगी हैं । जो सहजयोगी हैं वो किसी पुलिसवाले हैं। मेरा भी बहुत मान है। लेकिन समझने की बात यह है कि हम कहाँ जा रहे हैं? दो चार पैसे कमाने उनमें शक्ति है। पर सारी शक्ति सच्चाई की है। के लिए हम जा कहाँ रहे हैं? हमें क्या मिलने वाला सच्चाई होनी चाहिए और मुझे बड़ी खुशी है कि है? सो पहले तो ईमानदारी अपने साथ होनी चाहिए। बहुत से सहजयोगी बहुत सच्चे हैं, बहुत सच्चे हैं। तुम्हारे बेईमानी से तुम्हारे ही लोगों को तकलीफ़ होगी। हिन्दुस्तान को लोग कहते हैं कि यहाँ के कि जो सच्चे हो जाएं। सच्चाई बहुत ज़रूरी चीज़ हे लोग बड़े बेईमान हैं। शर्म आती है सुनकर के। तुम्हारे यहाँ इतने बड़े-बड़े सन्त हो गए, इतने इतने महान पुरुष हो गए और यहाँ पर लोग बड़े चोर हैं आदमी में अहंकार आ जाता है तो कोई सी भी और बहुत चोरी करते हैं और बुराई करते हैं। तो गलती करता है, बुराई करता है, किसी को नुकसान इससे पहले ही तो आपका आज्ञा डर गया। बड़े-बड़े करता है, पैसा खाता है वो सब नर्क में जाएंगे। मैं रईस बन जाएंगे। देखिए अन्त में, रईस साहब चले जा रहे हैं नरक में। में आज बताना चाहती हूँ कि खाना चाहिए। कोई आप मर नहीं रहे। क्या किया दिवाली का मतलब ये है कि नर्क अंधेरा है और तुम प्रकाश हो गए हो। तुमको चाहिए कि जहाँ भी अंधेरा हो वहाँ लड़ो और वो बताओ कि ये गलत बात है। इससे हमारा देश सुधरेगा। तुमको ये भी काम एक करना है। पूजा पाठे हम कर ही रहे हैं। लेकिन जो हमारे अन्दर शक्ति है वो ये है कि हम जो भी असत्य है उसके विरोध में हैं से लोगों यहाँ ऐसे लोग हैं। आपको अगर पता हो जाए कि कोई झूठा है तो आप उसके लिए एक संस्था बनाइए और उससे पूछिए कि साहब इसके मतलब क्या है? जैसे एक सड़क है, वो अगर ठीक ही नहीं बनी है है। किसलिए चाहिए? आप लोगों की तो हालत साथ नहीं रहेंगे और किसी ने अगर किया तो हम में भी ऐसे हैं, उसमें भी वैसे हैं" लेकिन आप से या किसी भी बड़े आदमी से कम नहीं। बहुत लेकिन अभी अपने को और भी सहजयोगी चाहिए नहीं तो आपका आज्ञा छूट ही नहीं संकता। आज्ञा होता है उसमें एक चीज़ है कि 'अहंकार'। जब आपको बता देना चाहती हूँ कि आपको पैसा नहीं पैसा ज्यादा कमाके, क्या कर रहे हैं? दो चार Ilights लगा लिए होंगे और कोई दो चार औरतें रख ली होंगी और क्या? लेकिन अब जब नर्क में जाएंगे तो आपका क्या हाल होने वाला है? दीवाली के दिन मैं ये बात इसलिए कह रही हूँ, दीवाली इसलिए मनाई गई थी कि जब सीताजी वापिस राम के पास आ गईं। जब हमारे पास चरित्र आ जाएगा तो फिर हम गुलाम नहीं रह सकते। हम अपने ही गुलाम है, दूसरों के थोड़े ही। किसी भी बात के लिए झूठ नहीं बहुत को पता नहीं पैसा कमाने की बीमारी है। सीधे वो नर्क में जाएंगे। मैं आपसे इसलिए बता रही हैूँ कि किसी ने ऐसा बताया ही नहीं। दीवाली के दिन में अंक :। & 2 - 2008 चैतन्य लहरी बता रही हूँ कि हम खुशियाँ मनाएंगे और दीये जलाएंगे, अपने हृदय में, उसमें, उस दीये में हमें दिखाई देगा कि कौन कैसे हैं चोरी करते हैं, अब तो एक दूसरी लड़ाई मैं देखती हूँ। हिन्दू-मुसलमानों हैं। हम कभी झूठ नहीं बोलते, कभी भी नहीं। और की तो लड़ाई खतम हो गई और दूसरे लोगों की बोल ही नहीं सकते। जैसे ही आपको झूठ बोलना लड़ाई शुरु हो गई। यानि दूसरी बात ये है हम लड़ाका भी बहुत हैं। कम से कम दूसरे देशों में देख लीजिए इस अंधेरे में। आप दीप हैं और दीप इतने देश के धर्म नहीं हैं। तो अपने यहाँ तो कोई को जलना है। इस अंधेरे को हमको मिटाना है। हम भी मौका मिल जाए, लड़ाई करो। लड़ाई पहले। मियाँ-बीवी में झगड़ा, फिर उनके बच्चों में झगड़ा, फिर आपस में कोई हो तो उससे झगड़ा। सहजयोग क्या है? सहजयोग प्रेम है, प्रेम। अपने अन्दर जो प्रेम की शक्ति है उसको जगाओ। आज का बड़ा शुभदिन है और हमें दीये जलाने हैं अपने हृदय में और ये निश्चय कर लेना है कि हम मर भी जाएंगे तो भी हम झूठ नहीं बोलेंगे। अपने यहाँ ऐसे लोग हो गए हैं। लेकिन इतना नाम बदनाम है दुनिया में कि हिन्दुस्तानी बेईमान होते हैं। भई मैने तो कोई देखे हैं, माने बेवकूफ हैं । जमुनाजी तो सीधे नकर्क में नहीं, पर सुनते हैं तो बड़ा दु:ख लगता है। हिन्दुस्तान उतरती हैं, लेकिन उस नरक से आप बच जाओगे। जैसे पवित्र स्थान जहाँ इतने बड़े सन्त जन्म लिए और तो कहीं नहीं। सूफ़ी हैं, यहीं पैदा हुए, सब जो नहीं। लेकिन अगर आपको वाकई में सहजयोग को महान लोग हो गए, सब हिन्दुस्तान में हुए। किसी भी देश में इतने महान लोग हुए नहीं हैं। एक आध दो हुए होंगे, पर हमारे यहाँ तो बड़े महान लोग हो गए और उसके बाद उन्होंने जो भी सिखाया, वो तो छोड़िए. नम्बरी हम लोग चोर हो गए। तो जो भी चोरी करते हैं, वो कभी भी स्वर्ग में नहीं जा सकते और यहाँ पहले आप सच्चाई रखो। नहीं तो झूठे आदमी के की जिन्दगी जितनी है उससे हजार गुने ज्यादा जिन्दगी आपको नर्क में मिलेगी। आज के दिन में मुश्किल है। क्योंकि आप देखते हैं हमारा पड़ोसी इसलिए नर्क की बात कर रही हूँ कि नर्क माने जो अंधेरा है वो नर्क हम देखते हैं। अब आपके दीये सोचते हैं कि हम ऐसे हैं, तो उस पड़ोसी को क्यों जल गए। उससे आप देखो कि कौन कौन नर्क हैं। आप Government को मदद करो। मदद करो कि कौन लोग बेईमान हैं। आप छोटी पॅंजिशन में हों चाहे बड़ी पॅजिशन में हों, आपको बता देना चाहिए कि कौन चोर हैं। चोरों को पकड़ो। झूठ बोलने वालों को पकड़ो। अब तुम्हारे पास शक्ति आई है वो किस चीज़ के लिए? तुम जाग गए हो किस चीज़़ के लिए? तुम्हारे प्रकाश हो गए, उस प्रकाश में आप अपने को देखो। अन्धेरे में तो कुछ नहीं दिखा, पर अपने प्रकाश को देखो कि आप क्या हैं? और झूठ बोलने से आपको क्या प्राप्त होगा? हम एक गृहस्थी पड़े आपके पास शक्ति हैं, आप सब दीप हैं, आप सब दूर तक बदनाम हैं, अरे! हमारे देश के जैसे तो लोग कहीं हैं ही नहीं और बड़ा दुख लगता है सुनके कि लोग हमें कितना गलत समझे हैं! और वेईमानी करके भी क्या पाते हैं, पता नहीं! और जो पाना है वो तो भयंकर है। कोई भी नहीं छुटेगा। जो भी बेईमान हो गए, सब पकड़े जाएंगे। उसकी व्यवस्था है, आप पार हो गए क्योंकि आप बेईमान नहीं है। आप सत्य को प्यार करते हैं और सत्य की इज्जत करते हैं। मैं चाहती खड़े हों। अब जैसे जमुनाजी में लोग कचरा फेंकते हूँ कि आप सत्य पर आप पार हैं। जिसके पास दीया होता है गिरता तो अपने अन्दर पूरी तरह समाना है, तो पहले तय कर लो कि हम बेईमानी नहीं करेंगे किसी भी तरह। पैसा कमाना ही इस दुनिया में धन्धा रह गया हैं। उससे क्या होता है? कोई उनको याद भी नहीं करता। अगर आप अपने देश को प्यार करते हैं तो प्यार का क्या विश्वास? ये आपकी एक बड़ी ऐसा तो हम भी वैसे हो जाएं, पर ऐसा क्यों नहीं नहीं अपने जैसे बनाएं? पहले तो आज कसम खालो कि हम कोई बेईमानी नहीं करेंगे और हम बेईमानों का साथ नहीं देंगे। झूठेपना अपने देश पे पता नहीं शाप है। बहुत से लोग हैं, सुबह से शाम तक दस झूठ बोले मगर उनका पेट ही नहीं भरता। अब तो आपकी गरीबी हट गई। काफ़ी ठीक है, खाना पीना सब है। कोई आप लोग भिखारी नहीं हैं। फिर झूठ क्यों बोलते हो? आज के दिन का निश्चय कर लो 6. 2008 अक : 1 & 2 चैतन्य लहरी कि हम झूठ नहीं बोलेंगे और अगर कोई झूठा होगा तो हम उसके साथ नहीं चलेंगे। हमारा उससे कोई जिससे हम नष्ट हो जाएंगे। शराब होने से हम कुछ सम्बन्ध नहीं होगा। इसमें बड़ा सुख है, बहुत आनन्द है। इससे आपको पता है कि झूठे आदमी नरक में जाएंगे और आप भी उसके पीछे-पीछे जाएगे। आपको भगवान ने जागृत किया है। आपके ये कि सब नौकर हैं। जब वो कुछ काम करते हैं, अन्दर प्रकाश है। उस प्रकाश में देखो। अगर (.... गाड़ी धोते हैं तो उनको पैसा देते हैं। और सोलह ...............अस्पष्ट) यह तय करले कि हम झूठ नहीं बोलेंगे, चाहे कुछ हो जाए, चाहे हमारी गर्दन कट जाए। इस मामले में हिन्दुस्तानी बहुत अच्छे हैं। देखा है हर जगह यह गरीब सोलह साल के बच्चे| मैं जानती हूँ, लेकिन जब मैं बाहर सुनती हूँ तो बड़ा दु:ख होता है। अब जैसे रास्ता ये बनाया है, हो रहा है तो कहाँ जाएगा, क्या पढ़ेगा? वो तो ये कोई रास्ता है? ये तो मुझे लग रहा था कहीं सोलह साल का हो गया ना, उनको घर से निकाल जंगल में जा रहे हैं। जो ऐसा कुछ दिखाई दे, तो देते हैं, माँ भी और बाप भी। यह Americans का तुम्हारा organization है, तुम सब मिल करके ये कितने दिन चलने वाला है, देख लीजिए आप। नष्ट पूछो कि ऐसा रास्ता किसने बनाया? क्यों बनाया? किसने पैसे खाए? सारे आपके सहजयोगियों को नहीं होता। आप कहाँ हैं, आपकी कौन सी औकात है? एक हो जाना चाहिए और उस तरफ आप कोशिश करें कि ये अपने भारत वर्ष में जो भूत घुसा हुआ उसको निकालें। कहीं भी जाओ तो लोग कहते सच्चाई आनी चाहिए। सच्चाई आना बहुत जरूरी है। हैं, "भैया हिंदुस्तानियों पर विश्वास मत करो कितनी शरम की बात है! जिस पे सबसे ज्यादा विश्वास करना चाहिए वो तो हम हिन्दुस्तानी हैं। लेकिन हमारे यहाँ बड़े-बड़े सब लीडर हो गए. बड़े-बड़े महान लोग हुए, महान आदमी और हम उनको नहीं देखते कि उनका कितना नाम है, उनको कौन आदमी खुश है, ये मैंने तो आज तक देखा लोग कितना मानते हैं! आपको भी मानते हैं, मैं नहीं। आप सहजयोगी हैं, आपके अन्दर प्रकाश है। जानती हूँ, पर आप चोरों के साथ मत खड़े हों। अगर आपको पता हुआ कि ये आदमी चोर है तो उसके घर खाना खाने नहीं जाओ। चोरों को बड़ी चाहे ईसाई हों, कुछ फर्क नहीं पड़ता, आप सब मुश्किल हो जाएगी। सब भगवान के पुलिसवाले हैं और जितने भी चोर वो बेईमान है। उसको कोई नहीं जानेगा इसके बाद आपको मिलें उनका पता रखो। आपके बच्चे उनमें भी हिम्मत भरो। अगर कोई गलत काम करते हैं से अनेक लाभ हैं। सबसे तो बड़ा ये कि परमेश्वर और झूठ बोलते हैं तो आप उसका पता करो। अपने को ये देश, बहुत सारे सन्तों के साथ जागृत हुआ है है कि बैठे बिठाए, आप हैरान हो जाएंगे, बैठे बिठाए और आप सब संत हैं। आपको कोई जरूरी नहीं कि आप झूठ बोलें। अरे एक बार खाना मिला तो क्या? खाना नहीं खाने से कोई मरता नहीं। हम लोगों को खाना-पीना मिलता है पर उस पर शराब लेते हैं। शराब लेने से तो दूसरे एक कदम हम चलते हैं ठीक नहीं हो सकते। अब जैसे अमेरिका है, वो एक एक नई बात निकालते हैं कि सोलह साल का बच्चा हो जाए तो अपना (.........अस्पष्ट) मतलब साल में वो क्या कहते हैं,"कि साहब अब हम तो सोलह साल के हो गए। अब जाइए बाहर।" मैंने ये 174 हम लोग तो ये सोचते हैं कि वह सोलह साल का हो रहे हैं। एक दो aeroplane ले लेने से कोई बड़ा हिन्दुस्तान ऐसा देश है कि सारी दुनिया को बचा सकता है, सारी दुनिया को। लेकिन उसमें हर मामले में सच्चाई। कोई झूठापना करने की जरूरत क्या है, मेरी समझ में नहीं आता! ज्यादा जितने अमीर लोग हैं, उनको तो पहले समझ लेना चाहिए कि अब आप अमीर हैं, अब चुप बैठिए। और कमाने की मत सोचो। ज्यादा पैसा मिलने से प्रकाश में आप अपना रास्ता देखते हैं और रास्ता सत्य का है। चाहे आप मुसलमान हों, चाहे हिन्दू हों, मैं आपसे बताती हूँ कि आप इन्सान हैं। और अगर इन्सान में ईमानदारी नहीं तो भी तो हमारी ज़िन्दगी है, वो कैसी होगी? ईमानदारी का आप पे आशीर्वाद होता है। ऐसा आशीर्वाद होता आपका सब ठीक हो जाता है। लेकिन अब हिन्दुस्तान में लोग पैसे भी हों, नहीं भी हों, सब पैसे के पीछे भागते हैं। और तो भी गरीब लोग बहुत हैं। इसीलिए आज के दिन उनकी भी दीवाली होनी चाहिए। अंक :। & 2 2008 चैतन्य लहरी उनको भी खुश होना चाहिए, हम उसी देश के कमेटी बनाएं कि वहाँ आपको कहीं भी चोरी पता रहनेवाले हैं पर हम तो अपने ही को धोखा देते हैं! चली तो कमेटी को बताओ और कमेटी क्या करती बड़े होशियार हैं! इससे हमारे अन्दर अहंकार आ जाता है, और जब अहंकार आ गया तो फिर किसी से आप बड़ी पॅजिशन में जाएंगे। तो पहली तो चीज़ भी तरह से कोई नहीं बचा सकता। अहंकार में है न आप बेईमान बनें और न किसी को बनने दें । आपको तो कैन्सर हो जाएगा। तो आप बचा नहीं ये सकते अपने को। अगर आपके अन्दर कैन्सर है तो तेल में मिलावट है, तो घी में मिलावट है। जहाँ आप बचा नहीं सकते, में नहीं बचा सकतीं। सच बात बता रही हूँ। आपका पहले अहंकार जो है उसको आग में जला लीजिए और अहंकार है तो हिंदुस्तान में हैं। शर्म कीजिए। किस चीज़ का अहंकार है साहब? इन्होंने पुण्य नहीं कमाया। तो पैसा कमाने से अच्छा अपने देश में तो हर बात का। किसी ने बी.ए. पास कर दिया तो उसको अहंकार हो गया और उससे देखो। तो आज का दिन बड़ा शुभ है और आनन्द आगे कुछ किया तो उसको डबल अहंकार! किसी ने है देखें। इसी तरह से आपका नाम होगा, इसी तरह बहुत ज़रूरी है, आपके देश पे बड़ा कलंक है । देखो, वहाँ देखो सब लोग हँसते हैं हम पर! कोई विश्वास ही नहीं करता, हालांकि सबसे बढ़िया लोग इतने लोग कहीं पार ही नहीं हुए हैं। है पुण्य कमाओ। तो बहुत गरीब लोग हैं, उनको का दिन है, किसलिए? इस रोज हमको स्वर्ग मिला और हम स्वर्ग में ही रहना चाहते हैं। पर स्वर्ग में कुछ प्राप्त किया, इन्जीनियर हो गया, डॉक्टर हो गया तो उसको अहंकार! सो ये आज्ञा चक्र जो डरपोक लोग नहीं जा सकते डरने की कोई ज़रूरत पकड़ जाता है वो सीधे आपको कहाँ ले जाएगा? नर्क में, और न्क महा-भयंकर जगह है। आपके पास भगवान ने बुद्धि दी और अब आप पार हो गए हैं। उसके बाद भी अगर आप नर्क में जाना चाहें तो जाइए। आज तक किसी ने ये बात नहीं करी, कहा नहीं, आज का दिन जो है इसलिए शुभ हे कि बहुत अच्छे काम हुए। सीताजी लौट आईं, रामचन्द्रजी के ज़माने में कृष्ण के जमाने में, और जो बड़े-बड़े बेईमानी नहीं करेंगे काम हुए सब पार लोगों से हुए। इसलिए पहली चीज़ आज निश्चय कर लीजिए आज, कि हम कोई भी बेईमानी तो करेंगे ही नहीं लेकिन कोई अगर करेगा तो हम उसको पकड़वा देंगे। पर मैं देखती हूँ होगा तो बाहर क्या प्रकाश डालेंगे आप? और इस देश में काले का गोरे से झगड़ा है, कोई किसी से झगड़ा। भारत वर्ष को चाहते हैं कि इसे अलग-अलग कर दें। उससे कोई फायदा नहीं होने वाला। फायदा काहे से होगा? जब आप ईमानदार रहो और तुम्हारा चरित्र अच्छा हो। अंग्रेजों से जो भी सीखा है उनसे मरते हैं? और कहीं नहीं मरते। उसका कारण है कि सीखने लायक कोई चीज़ नहीं। वो तो सब बुरी नर्क में जाना है न। तो ये जान लीजिए आप अगर हालत में हैं आज कल। लेकिन हमको अपने देश बेईमानी करेंगे तो पहला कदम तो आपका न्क में को बचाना है और सारी दुनिया को बचाना है। जिम्मेदारी है। आपको पार कर दिया आपमें प्रकाश आ गया, तो भी आप गड्ढे में जाना चाहें तो कौन वो एक अनोखा, वो अगर सहजयोग करे तो भव्य क्या करेगा? सबको मिल कर के कोशिश करनी होगा। जैसे आज आप सूफी को याद कर रहे हैं, चाहिए। मैं तो चाहती हूँ कि सहजयोगियों की एक नहीं है। अरे दो पैसे अगर कम मिले या ज्यादा मिले तो इतनी कौनसी आफत आनेवाली है? सब लोग रईस हो गए हैं, मैं देखती हैँ न, में यहाँ सत्तरह-अठारह साल से आ रही हूँ। पहले से आप सब लोग रईस हो गए हैं। पहले से अब हालत ठीक हो गई है। पर सुबह से शाम बेईमानी, बेईमानी, बेईमानी। तो रास्ता बना हुआ है। बस आज कसम खालो कि हम कोई और अगर कोई होगा तो हम सब मिलकर के उसको oppose करेंगे। सहजयोग आपको क्यों दिया? पार क्यों कराया? इसलिए कि आप प्रकाश डालें। आप ही के अन्दर प्रकाश नहीं प्रकाश डालके देखें कि हम बेईमानों को मदद कर रहे हैं? कुछ नहीं होता अगर दो पैसे कम कमाएँ या ज्यादा कमाएं। अगर आप ईमानदार हैं तो आपको भगवान मदद करते हैं। अपने देश में लोग इतने क्यों बड़ी हो गया और दूसरा झूठ बोलने की कोई जुरूरत ही नहीं है। आप सच बोलिए। जो आदमी सच बोलेगा तब लोग आपको याद करेंगे। काम कुछ करना नहीं अंक : 1 & 2 -2008 चैतन्य लहरी अगर हैं, मर रहे हैं, भूखे मर रहे हैं तो उसकी इन्तज़ाम हो सकता है, पर अगर ईमानदार हैं तो और अगर ईमानदारी नहीं है तो परमात्मा तो क्या, आपको है, सिर्फ बेईमान जो हैं उनको पकड़ो, जुरूरी है। यहाँ लोग झगड़ा कर रहे हैं कि जमुनाजी में कचरा मत फेंको, ये नहीं फेंको। अब ये भी बताना पड़ता है। मैं इतने देशों में घूमी हूँ कहीं भी कोई नदी में कोई मदद नहीं करेगा। दुनिया भर की बीमारियाँ कचरा नहीं फेंकता। तो इतने आलसी क्यों हो? यहाँ इन्तज़ाम कितना है कि कचरा आप muncipality को दे दीजिए, कहीं कर दीजिए। पर आप खुद ही यहाँ क्या आप बेवकूफ़ बनने के लिए आए हैं? कचरा हैं, तो फिर आप क्या करेंगे? सब लोग सोचो और जो करते हैं उनसे दोस्ती छोड़ो। उनको मदद मन में और निश्चय करो आज, बड़ा अच्छा दिन है आज का, बड़ा अच्छा दिन है कि हम न तो पीता हैं तो लोग उसके यहाँ आते हैं और वो भी बेईमानी करेंगे और न ही हम बेईमानों को मानेंगे। हमने ऐसे लोग देखे हैं कि जो खुद बेईमान नहीं थे ये आदमी ऐसा है, ये पता हुआ कि ये आदमी और बेईमानो के घर जाते नहीं थे, उनसे कोई बेईमान है, तो आप उसके घर खाना छोड़ दो। उससे मतलब नहीं रखते थे। क्योंकि वो अपना तो हित करते ही हैं पर सारे देश का हित करते हैं तो आप सहजयोगी हैं, आपको चाहिए कसमें खालो कि हम कोई बेईमानी कभी करेंगे नहीं। आप सि्फ पहचान लीजिए कि कोई बेईमान है और सिर्फ आप अपने से, उसको भगवान देखेगा, बस बहुत है! लेकिन अन्तरआत्मा से कहिए कि बेईमान है, और सहजयोगी. अगर बारह सहजयोगी भी मिल जाएँ और सब मिलकर जानलें कि ये आदमी बेईमान है, तो परमात्मा तुम्हारे साथ है। थोड़े रईसों से ये देश का भला नहीं हो सकता। लेकिन ईमानदारों से होगा। तो और इसीलिए आज का एक सन्देश आपको है कि सबसे बड़ी चीज़ हमारे ऊपर कलंक ये कि बेईमान हैं। और जो सहजयोगी है वो तो बेईमान हो ही नहीं नहीं करेंगे। और अगर कोई बेईमान होगा तो हम ये मेरा विश्वास है। हमको सब एक होना उसको मदद नहीं करेंगे। बस, काफ़ी है। अपने देश लग जाएंगी। ऐसे हमारे देश के बहुत tradition अच्छे हैं बहुत। शराब पिएंगे, दारू पिएंगे, बताइए! मत करो। मैंने यह देखा है कि कोई आदमी शराब शराब पीते हैं। लेकिन आपको अगर पता हुआ कि कोई मतलब नहीं है। अपने देश का हमें भला करना है, क्योंकि भगवान ने हमें Ilight दे दी। उस light में देखो। उसकी शक्ति बहुत जूबरदस्त है। तुम अगर यही सोच लो कि जिसने बेईमानी करी है देश आप बहरे हो जाते हैं, आपको समझ ही में नहीं आता! ऐसा आदमी कभी कुछ अच्छा नहीं कर सकता, न कभी देख सकता है। पता नहीं कैसे वो बेशरम जीते हैं? यह मुझे पता नहीं, पर जीते हैं। आज ये व्रत ले लो कि हम कभी भी कोई बेईमानी सकता, चाहिए। सब झगड़े छोड़ दीजिए और ये कि हम ईमानदार लोग हैं। हिन्दुस्तान का नाम, बहुत नाम बदनाम है, इसलिए आज से बचन लो कि हम कोई सन्देश है कि आपके पास प्रकाश है और उस बेईमानी नहीं करेंगे और दूसरे बेईमान अगर हो तो हम सब मिलकर उसका पीछा करेंगे। दूसरे दिन उसकी नींद भाग जाएगी। पर बहुत बढ़ गई है, हम तो आपसे कह रहे हैं कि हम तो हैरान हैं, हर चीज़ में बेईमानी, हर चीज़ में बेईमानी। पहले ये छोटी-छोटी हों, इसलिए पहले सीख लो। आज का बड़ा दिन है । बात में Outcast बनाते थे और छोटीछोटी चीजों में अपने को अलग करते थे। लेकिन हमारा देश इतना ईमानदार रहा, ऐसे ऐसे गुण थे, वो हम क्यों भूल गए? कहाँ चले गए? हर जगह मैं देखती हैँ कि बेईमानी। हर कदम पे बेईमानी है। हमारे यहाँ 'बच्चों' को सिखाओ कि तुम बेईमान मत बनो। में और भी realized souls आएंगे। पर ऐसे बेईमान देश में कौन आने चला? तो आज का एक हो प्रकाश में आप चलो और वो तुमको शक्ति देगा। जो भी करना चाहो (.....अस्पष्ट)। देखिए, हमने अपनी स्वतन्त्रता को पाया है। स्वतन्त्र, स्व: को जानों ना। अब में चाहती हूँ कि बहुत से बच्चे पैदा आज व्रत ले लो कि हम न तो बेईमानी करेंगे और ना ही बेईमानों के साथ होंगे, न उनसे डरेंगे। उनके साथ भगवान तो है नहीं। भगवान आपके साथ हैं। अगर आप (अस्पष्ट) हैं तो भगवान आपके साथ हैं। सारे लोगों ने तो इसी भारत भूमि में जन्म लिया था, इसलिए तो नहीं कि आपस में लड़ो मरो, अंक : । & 2 चैतन्य लहरी 2008 6, महामूरख। हम लोग लड़ते हैं, मरते हैं। कुछ लड़ने हो चुका, जब बेईमान लोग इतने जुबरदस्त हो गए से फायदा नहीं, लोगों को बताओ। अरे भाई क्यों हैं। तो आज एक ही संदेश है कि 'न तो हम लड़ते हो? तुमको क्या चाहिए? क्यों? आखिर क्या चाहिए तुमको? खाने को अच्छा है, पीने को अच्छा है। बस और क्या चाहिए? पर आज कल तो ये है कि भाई हमें ये कपड़े चाहिएं, हमें ऐसा घर चाहिए और ये नहीं, उसी के साथ कि हम जाएंगे नर्क। उस वक्त में बो जो सूफी हो गए। वैसे आप सब सूफ़ी हैं, क्योंकि आपकी सफ़ाई हो गई है। अब सब लोग कविता लिखो, ईमानदारी की। ये बेईमानी पाएंगे। आपने पाया है लेकिन उसको इस्तेमाल करो तो जानी चाहिए, पहली चीज़ और दूसरी बहुत सी बातें हैं जो ठीक होनी चाहिए। लेकिन सबसे पहले नहीं देखे थे दिल्ली में सो आज सब लोग यही मन तो बेईमानी मत करो। कोई भारतवर्ष में इतना गरीब में निश्चय कर लें कि हम लोग किसी बेईमान को नहीं कि उसको बेईमानी करना पड़े। हम ये कह रहे हैं कि हमारे देश पे कलंक है उसको मिटाना लेते हैं क्योंकि हमारे अन्दर कुछ है ना ऐसा कि वो चाहिए। और आप सहजयोगी हैं, आप कर सकते सोचते हैं कि वो हमें मान लेंगे। हिंदुस्तानियों को हैं। आपके पास प्रकाश है। प्रकाश से आप सब जगह light फैला सकते हैं और सबको हिम्मत दें उसको तो कभी भी नहीं। अपने देश पे एक बड़ा कि ठीक है। खासकर आप में जो young लोग है, लाँछन है सब जगह। ये बात सच नहीं है, हिन्दुस्तान दोस्त हैं, वो ये सोचो कि क्या ईमानदारी का काम आप कर सकते हैं। अब लग गए कि जमुनाजी में यह मत फेंको। ठीक है, चीज़ नहीं है। जरूरी चीज़ है एक अपने ईमान को है वो है 'स्वराज्य' स्व का राज्य। स्व का राज्य होगा, खोना। और इसीलिए आज का दिन बड़ा शुभ माना जाता है हर जगह। जगह-जगह में light लगाई जाती किसी से डरने की ज़रूरत नहीं। किसी को कुछ हैं। सब कुछ होता है और अगर ये हम नहीं कर सकें तो सहजयोगी होने से फायदा क्या? सबसे तो हैरान हो गई। मैंने कभी दिल्ली में इतने लोग ज्यादा सहजयोगी हिन्दुस्तान में हैं। सबसे ज्यादा। और उसके बाद रशिया (रूस) में। अब रशियन इतने शुभ दिन पर निश्चय कर लें कि हम बेईमानी लोग बहुत ही ज्यादा नम्र हैं। वो चोरी चकारी नहीं करते। पता नहीं क्यों? हमारे यहाँ कम्यूनिज्म आ जाए तो शायद हम लोग भी वैसे हो जाएं। पर वो सहजयोगी हो, तुमको किसका डर है? डरने की कोई बात बड़ी ऊँची नहीं है। जबरदस्ती कोई कुछ करे, वो अच्छा नहीं है। हम अपने पे जुबरदस्त हो जाएं। तय कर लीजिए, आज यह निश्चय कर लीजिए आज बड़ा अच्छा दिन है, कि न तो हम बेईमानी करेंगे चीजें हटा दी, पर सब नहीं, कुछ सूफ़ियों ने। तो और न ही दूसरे को करने देंगे। आपका देश बहुत ऐसा आपको सबको करना चाहिए। मेरे समृद्ध हो जाएगा। और देश क्या हैं, मैं देख चुकी हूँ सब देश। बैकार लोग हैं। पर हमारे देश में लोगों में अब भी बहुत ज्यादा धर्म है। हमारे यहाँ धर्म खत्म बेईमानी करेंगे और न ही किसी को करने देंगे। ' लेकिन यहाँ के लोग इस मामले में बहुत tolrent हैं, सहते हैं। सबसे बड़ी यही गलती है जब आपने प्रकाश पाया है तो आप क्यों डरते हो? आपको क्या ज़रूरत है डरने की? इसलिए में आज आपसे विनती करती हूँ कि हिम्मत से काम लो। और अब एक स्वतनत्रता हो गई। स्व का तन्त्र आप आज आप इतने लोग यहाँ आए हैं। मैंने इतने कभी मानेंगे ही नहीं और सब राक्षस भी ये इसीलिए जन्म कभी नहीं मानना चाहिए और फिर जो पार हैं में बहुत लोग हैं ईमानदार, बहुत। लेकिन ये बात सच नहीं है। पर ये बात मेंने देखी है, झगड़ा करेंगे, यह ज़मीन हमारी, ये जमीन तुम्हारी। अरे जो आपका लेकिन वो इतनी जुरूरी तभी होगा जब आप वाकई में स्वतन्त्र हो जाएं। कहने की ज़रूरत नहीं। इतने लोगों को देखकर में देखे नहीं थे तो आपसे जो विनती यही है कि आज तो करेंगे नहीं, चाहे हम मर जाएं। दस साल में बहुत अपना देश खराब हो गया है। तुम लोग इतने कौन सी बात है? सबके पीछे परमात्मा खड़े हुए हैं। देखिए सूफ़ियों को पता हुआ कि परमात्मा हमारे पीछे हैं तो वो सब उन्होंने दुनिया भर की बेकार की ख्याल से आज का यही सन्देश है कि अब आप ना तो खुद चोर हों और न ही चोरों की मदद करो, पर मैं देखती हूँ पेपर में कि और और चीजों के लिए चैतन्य लहरी अंक : । & 2 -2008 10 म झगड़ा है। जाति-पाति पे झगड़ा है। अरे बाबा, इस देश को तुमको बचाना है कि डुबाना है? बड़ी हुए इसलिए इस कलयुग की बदलना है और हज़ारों में आप पार हैं। इतने लोग तो कहीं दुनिया में पार नहीं बार-बार कहूँगी कि तुम सच्चाई पर खड़े रहा, मैं तुम्हारे साथ हूँ और भगवान भी तुम्हारे साथ है। भगवान भी तुम्हारे साथ है। तो सबसे बिनती है कि आज अपने अन्दर ये ठान लो कि हम कोई चोरी चकारी चलने नहीं देंगे। जहाँ पता होगा वहाँ हम लड़ेंगे। पर मेरे ख्याल से लोग क्या शराब पी गए कि क्या? इस प्रकाश में और हिम्मत से लड़ो। जो इस देश की वो हटानी हैं। बहुत बदनाम है। और भी बहुत वातें है पर सबसे बड़ी बात यही है कि पहले तो ईमानदारी ही नहीं तो तुमको भगवान कैसे मदद करेगा? पैसे पाना कोई भगवान की मदद नहीं है। धर्म को पाना, और तुमने पाया है। इतने लोग तो कोई सहजयोगी हैं ही नहीं दुनिया में और सहजयोगी ऐसा काम करते भी नहीं हैं। पर में इसलिए बता रही हूँ कि यहाँ का atmosphere खराब है। और हमलोग इतने बदनाम हैं हर जगह। सब है आपके पास खाने-पीने को है, कपड़े लत्ते हैं, और क्या चाहिए? आप सिनेमा देखो, ये देखो, इतना तो पैसा है। पर ये पैसे की बीमारी जो है, ये पहले जानी चाहिए। मुझे पूर्ण आशा है कि मेरी आज की बात को आप ध्यान से सुनेंगे। और आज से कसम खालें कि हम तो बेईमानी करेंगे ही नहीं लेकिन जो दूसरे भी करते हैं उसका हम विरोध करेंगे। यह सबसे बड़ी बात समझ लो कि आज अपने देश को ईमानदारी चाहिए। इससे बढ़कर और कोई चीज़ नहीं। आपकी माँ है ईमानदारी। दस शर्ट की जगह एक शर्ट है तो क्या हुआ? ऐसे ही औरतों से कही। हो जाएगा, बन जाएगा। आज का भाषण जरा अलग है, निराला है और पसन्द आया ये बड़ी कृपा है। सो धन्यवाद! ज़िम्मेदारी है आपकी। आप कलयुग में पैदा हैं हुए। इसलिए आपसे फिर फिर मैं आपने क्या पाया? हिम्मत, गलत चीज है लोगों को तुम (मूल आडियो के अनुरूप) ৩ क वा त्रिदिवसीय दीवाली पूजा सेमिनार दिल्ली, एन.सी.आर. (नोएडा) 9-11 नवम्बर 2007 यु रा अत: निष्कर्ष निकाला गया कि इंटर ट का 9 नवम्बर 2007 : 9 नवम्बर शुक्रवार के दिन सेमिनार की सफलता तथा बाधा निवारण की उपयोग पूर्ण विवेक पूर्वक किया जाना चाहिए। कामना से हवन के साथ इस उत्सव का शुभारम्भ किया गया। सायंकाल शानदार संगीत कार्यक्रम हुआ जो देर रात तक चला। घोषणा की गई कि पूजा के करने वाले लोगों से सावधान रहने के लिए सलाह लिए साक्षात् श्री महालक्ष्मी- परम पूज्य श्रीमाताजी- के 10 नवम्बर या 11 नवम्बर संध्या के समय आने की सम्भावना है। ये भी बताया गया कि पूजा 4.00 बजे सायं के बाद किसी भी समय आरम्भ हो कार्यक्रम करने के तरीकों पर बातचीत की गई तथा सकती है। संगीत संध्या को देर रात तक दीपक वर्मा, डा. अरुण आप्टे, श्री राजेश, श्री मुखीराम, प. सुब्रमण्यम् तथा गुरुजी के साथ निर्मल संगीत सरिता के लताधुमाल, धनंजय धुमाल, छाया और श्याम जैन ने श्री चरणों में मनमोहक गीत, भजन और राग प्रस्तुत किए। अतिचेतन (Supra-conscious) गतिविधियों के कारण श्रीमाताजी के प्रवचनों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत दी गई। इंटरनैट उपयोग के लिए कुछ नियमाचरणों का भी वर्णन किया गया। तत्पश्चात कारपोरेट सेक्टर में आत्मसाक्षात्कार सहज मर्यादाओं के बारे में भी बताया गया। इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों में सहजयोग प्रचार-प्रसार करने के लिए बरती जाने वाली आवश्यक सावधानियों के विषय में भी चर्चा की गई। मेराजू, कयामा और कयामत आदि शब्दों के अर्थ विस्तारपूर्वक बताए गए। ये भी व्याख्या की गई कि गैब्रील, जिनहें हम श्री हनुमान के रूप में जानते हैं, पैगम्बर मोहम्मद को बुराक पर सात स्वर्गो से ले गए। हर स्वर्ग का एक देवदूत और पैगम्बर था जो यहाँ दैवी नियमों के अनुसार शासन करता था। गैब्रील मोहम्मद को छठे स्वर्ग तक ला पाए और यहाँ उन्हें कहा कि वे इससे आगे नहीं जा सकते हैं और अन्तिम स्वर्ग में उन्हें स्वयं प्रवेश करना होगा। प्रस्तुति इतनी 10 नवम्बर 2007 : शनिवार 10 नवम्बर प्रातः कार्यक्रम का आरम्भ युवाशक्ति सेमिनार से हुआ। बहुत सी आवश्यक सूचनाओं एवं गतिविधियों के बारे में बात की गई। इंटरनैट द्वारा सहज प्रचार-प्रसार के कारण सम्भावित हानियों के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। इस बात पर बल दिया गया कि वेष्णुमाया के इस माध्यम से अच्छी- बुरी दोनों प्रकार की सूचनाएं जन-जन तक जा सकती हैं। ६० 21 चैतन्य लहरी अंक : 1 & 2 12 -2008 सभी को दीवाली की मंगलकामना करते प्रभावशाली थी कि योगियों के मन में उठने वाले बहुत से प्रश्नों का उत्तर उन्हें स्वत: ही मिल गया। हुए श्रीमाताजी ने हिन्दी भाषा में अपना सम्बोधन आरम्भ किया। उनका संदेश 60 से भी ज्यादा मिनट तक चला। सहज इतिहास का शायद यह सबसे लम्बा प्रवचन था। उनका कहा गया हर शब्द मन्त्र था । श्रीमाताजी ने प्रायः अपने शब्दों को तीन चार बार दोहराया ताकि सभी लोग उनके सन्देश के सार को भलीभांति समझ सकें। ा प्रात: का कार्यक्रम समाप्त होते ही के लिए तैयार होकर आए योगियों और योगिनियों से पण्डाल भरने लगा और 25 हजार लोगों के बैठने के लिए पर्याप्त पण्डाल सायं 3.30 बजे तक पूरा भर चुका था। नए पुराने सभी सहजयोगी ध्यानमुद्रा में श्री महालक्ष्मी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। समय बीतता गया और शाम को लगभग 6.50 पर मंच के पर्दे डाल दिए गए और कुछ रंग-बिरंगी आतिशबाजी चलाई गई, परम पावनी श्रीमाताजी के स्वागत के लिए चलाई गई आतिशबाजी के रंगों तथा आवाज से पूरा आकाश गुँजायमान हो उठा। सभी योगी अपने अपने स्थानों पर खड़े हो गए और मंच पर परम पावनी श्रीमाताजी का स्वागत किया। आशा की जा रही थी पारम्परिक सहजशैली में किसी भी क्षण पूजा आरम्भ होगी परन्तु पूजा भजन के स्थान पर 'श्री जगदम्बे आई रे' भजन के साथ श्रीमाताजी के 108 नाम आरम्भ हो गए। कण-कण से चैतन्य फूट पड़ रहा था। तभी मंच से घोषणा की गई कि संगीतकार मंच पर आकर संगीत प्रस्तुत करें। कुछ लोग आश्चर्यचकित थे परन्तु अधिकतर चैतन्य सागर में डूबे हुए थे। वातावरण में शीतलता बढ़ रही थी और स्पष्ट महसूस किया जा सकता था कि महामाया अपनी लीला कर रही हैं। पूजा सन्देश का सार सम्भवत: सहज-जीवन में अपनी नैतिक जिम्मेदारियों तथा कर्तव्यों को समझना था। ऐसा लग रहा था कि अपने प्रवचन में श्रीमाताजी हमारे अन्तर्निहित अष्टलक्ष्मियों के गुणों की व्याख्या कर रहीं थीं। गृहलक्ष्मी के रूप में श्रीमाताजी की मानवमात्र के हित की चिन्ता की पूरी सामूहिकता साक्षी थी। 'अहंकार' विषय से उन्होंने अपना प्रवचन आरम्भ किया। मानो सूक्ष्म रूप से वे सामूहिकता के आज्ञा चक्र को स्वच्छ करने के लिए मन्त्र उच्चारण कर रहीं थीं। उन्होंने बताया कि 'अहं अन्तत: उन्हें अंधकार की ओर ले जाता है और इस अन्धकार में अच्छाई देख पाना सम्भव नहीं है। इसके कारण लोग भ्रष्टाचार और बेईमानी का जामा आढ़े दुष्टता के जाल में फँसते चले जाते हैं। हमारा उद्धार करने के लिए ईसामसीह सूली पर चढ़ गए, फिर भी हम उनके सन्देश को नहीं समझते। हमें कभी भी बेईमानी स्वीकार नहीं करनी चाहिए और असत्य से बचना चाहिए। झूठ बोलने वाले लोग सीधे नर्क में जाएंगे और वहाँ पर बहुत लम्बे समय तक कष्ट भोगना होगा। माँ के रूप में मैं आपको बताती हूँ कि पूजा कार्यक्रम संगीत सन्ध्या में परिवर्तित हो गया था और मंच पर विराजमान परम पूज्य श्रीमाताजी अपने बच्चों को संगीत के माध्यम से आशीर्वादित कर रहीं थीं। एक के बाद एक संगीतकार श्रीमाताजी के नक बहुत भयानक है, वहाँ पूर्ण अन्धकार है। सम्मुख स्तुतिसंगीत प्रस्तुत कर रहे थे ऐसा लगता था मानो दैदीप्यमान मुख से श्रीमाताजी अपने बच्चों की आत्मा में झाँक रहीं हों। संगीत प्रस्तुति के अन्त में वे कलाकारों को प्रोत्साहित करतीं। लगभग साढ़े सत्यसार पर बल दिया परन्तु उनके तेजोमय मुख आठ बजे संगीत प्रस्तुति सम्पन्न हुई और अचानक परम पावनी माँ ने माइक्रोफोन देने के लिए कहा। बहुत समय के बाद श्रीमाताजी के मुख से आवाज सुनने पर पूरी सामूहिकता ने प्रफुल्लित हृदय से जयघोष किए और बहुत से योगी-योगिनियों की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे। आपके हृदय में प्रकाश प्रज्जवलित हो गया है, इस प्रकाश में आप केवल अच्छाई को देखें। यद्यपि श्रीमाताजी ने नैतिकता, चरित्र तथा एवं हर भावभंगिमा से करुणा टपक रही थी। अपने बच्चों से उन्हें बहुत आशाएं थीं। अपने बच्चों से उन्होंने वचन माँगा कि सभी मिलकर झूठ, बेईमानी, भ्रष्टाचार और बुरा करने वालों का मुकाबला करें। इस कार्य को करने के लिए सहजयोगी समितियाँ बनाएं और सरकार को इनके विरुद्ध कारवाई करने अंक : । & 2 -2008 चैतन्य लहरी 13 के लिए विवश करें। उन्होंने कहा कि इस कार्य को कि व्यक्ति को अपने राष्ट्र पर गर्व होना चाहिए। ये करने के लिए सहजयोगी 10-10 लोगों का समूह भी बना सकते हैं। श्रीमाताजी ने कहा कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं और हृदय के प्रकाश में आप बेईमान लोगों को पहचानकर उनके विरुद्ध कारवाई निश्चित रूप से ये आशीर्वादित देश है।" कर सकते हैं। सरकार को उनके नाम बताकर उन्हें दण्डित करवाएं। चेतावनी देते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि 'बेईमानों के साथ आपको सम्बन्ध नहीं रखने। आपको उनके घर तथा संगीत में भी नहीं जाना चाहिए। स्वत: ही वे रास्ते पर आ जाएंगे। अब आपके अन्दर असत्य और बेईमानी को पहचानने के लिए प्रकाश है और सर्वशक्तिमान परमात्मा का आशीर्वाद आपके साथ है। अत: घबराएं नहीं। स्वर्ग कायरों और डरपोक लोगों के लिए नहीं है। बेईमानी को बरदाश्त करते बेईमानों तथा गलत गतिविधियों सहजयोगियों को देखकर वे अत्यन्त प्रसन्न हैं। ये का विरोध न करने वाले भी नर्क में जाएंगे। बात भारतीय लोगों को विशेष रूप से कही गई। उन्होंने कहा कि साक्षात्कारी लोगों की विशालतम सामूहिकता है। देश है जिसमें भारत महान रूस के बारे में बोलते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि "रूस एक महान देश है और सम्भवत: साम्यवाद ने वहाँ के लोगों को सत्यनिष्ठ बना दिया है। वो इतना अधिक झूठ नहीं बोलते। भारत में भी यदि साम्यवाद होता तो शायद यहाँ भी चीजें बिल्कुल भिन्न होतीं और लोग आज की तरह से इतना अधिक झूठ नहीं बोलते। श्रीमाताजी ने कहा कि इतने सारे हुए बात सत्य है कि विश्व के बहुत से गरीब देशों के मुकाबले भारत की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है यह बात सत्य है कि भारत के लोग (विशेषरूप से भारत की वर्तमान अवस्था तथा देश में क्षीण होती हुई नैतिकता पर प्रकाश डालते हुए सहजयोगी) पहले की अपेक्षा बहुत समृद्ध हुए हैं। श्रीमाताजी ने योगियों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि गर्वपूर्वक आपको घोषणा करनी है कि चाहिए कि देश से बेईमानी को निकाल फेंकने के आप भारतीय हैं और आपको परमात्मा की शक्ति कार्य में जट जाएं। अधिक धन की लालसा में और प्रेम का आशीर्वाद मिल चुका है। इस आशीर्वादित देश में आपको उच्च चारित्रिक मूल्यों के साथ रहना चाहिए 'परन्तु आप सबको क्या हो गया है। लोगों में हर समय झूठ बोलने की आदत पड़ गई है।' 'कभी लोगों की निन्दा करनी चाहिए। आप इन्हें आश्रय न दें। उन्होंने कहा कि हमारे अन्दर से सत्य के सिवाए कुछ नहीं निकलना चाहिए। माँ के रूप में जब उन्होंने कभी झूठ नहीं बुरे लोगों पर अवश्य विजय प्राप्त होगी क्योंकि बोला तो उनके बच्चे क्यों असत्य को आश्रय दें? अब उन्हें धन के पीछे नहीं भागना चाहिए। उन्हें व्यक्ति बेईमानी, असत्य और भ्रष्टाचार में फँस जाता है। अत: अब सहजयोगियों को दिव्य प्रकाश में नैतिक जीवन गुज़ारना चाहिए और झूठे तथा बेईमान श्रीमाताजी ने कहा कि हमें बेईमान और परमात्मा का आशीर्वाद हमारे साथ है। एक बार फिर अहं के विषय में बोलते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि कैंसर रोगी अपने आज्ञा चक्र को स्वच्छ करें और अहं से मुक्ति पा लें। सत्य की अग्नि में अपने अहं की आहुति दे दें, स्वयं को और विश्व को पहचानें । तत्पश्चात् विश्वभर में बच्चों और माता- पिता के पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में बताते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि दुख की बात है कि अमरीका जैसे देश में 16 वर्ष की आयु के बाद अपने भविष्य का निर्णय करने के लिए बच्चे को घर से निकाल दिया है बेईमानी और भ्रष्टाचार का एक उदाहरण देते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि जिस सडक से अभी उनकी गाड़ी आई है वह इसे बनाने और बनवाने वाले लोगों की बेईमानी का जीता जागता सबूत ऐसे लोगों को दण्डित करने में सरकार की मद्द की जानी चाहिए । भारतीय संस्कृति में हम ऐसा सोच जाता परन्तु भी नहीं सकते। ऐसा करने की अपेक्षा बच्चे के 16 वर्ष का होने पर पिता उसके भविष्य की योजनाएं बनाने पर और अधिक ध्यान देता है। "आपको अवश्य अपने बच्चों की देखभाल करनी चाहिए।" राष्ट्रीय धर्म के बारे में बताते हुए श्रीमाताजी ने कहा है। तम्बाकू, पानमसाला और शराब के उपयोग चैतन्य लहरी अक : 1 & 2 -2008 14 की भी उन्होंने निन्दा की। इन आदतों में फँसे योगी पूजा के लिए मंच के समीप स्थान ग्रहण लोग सीधे नर्क में जाते हैं, उनके लिए स्वर्ग में कोई स्थान नहीं है। पर्यावरण की समस्या के बारे में बताते हुए श्रीमाताजी ने यमुनानदी में कूड़ा डाले जाने की को गई कि पूजा लगभग 8.00 बजे आरम्भ होगी। निन्दा की। उन्होंने कहा कि ये अत्यन्त भयानक बात है तथा हमें चाहिए कि सरकार और नगरपालिका की इस बुराई को रोकने में मदद करें। प्रकाश के त्यौहार दिवाली के अन्य पक्ष पर बताते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि श्री सीताजी का जन्म इसी दिन हुआ था। अत: व्यक्ति को अपने आन्तरिक चारित्रिक मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। करना चाहते थे। साढ़े तीन बजे तीन महामन्त्रों के साथ ध्यान का आरम्भ हुआ और छ: बजे सायं तक भिन्न कलाकारों ने संगीत प्रस्तुत किया। तब घोषणा 8.20 बजे पुनः घोषणा की गई कि श्रीमाताजी का निवास हमारे हृदय में है और आज हम सब श्रीमाताजी की निराकार में पूजा करेंगे क्योंकि वे प्रतिष्ठान में आराम कर रहीं हैं और उन्होंने सामूहिक पूजा करने का आदेश दिया है। स्वागत भजन 'स्वागत आगत स्वागतम' के साथ सायं 8.20 बजे महालक्ष्मी पूजा को आरम्भ ए उन्होंने हुआ । पूजा प्रार्थना गीत 'विनती सुनिए, आदिशक्ति धनलालुपता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अपने लिए उन्हें कोई पैसा नहीं चाहिए। आप मेरे इतने सारे बच्चे हो, मुझे धन की क्या आवश्यकता है?" उन्होंने कहा। आपके होते हुए मुझे वास्तव में अपने लिए कोई पैसा नहीं चाहिए। श्रीमाताजी ने पुन: दोहराया कि पहली बार इतने सारे सहजयोगियों को देखकर मैं आश्चर्य चकित हूँ। मेरी' गाया गया। 'श्री गणेश अथर्वशीर्षम' और हेमजा भजे' के साथ 108 नन्हें गणेशों ने श्री सुतम चरण धोए। बच्चों की लम्बी पंक्ति होने के कारण श्री गणेश के दो और भजन गाए गए। तत्पश्चात् श्री महालक्ष्मी स्तोत्रम्' के साथ श्री महालक्ष्मी पूजा आरम्भ हुई। ऐ गिरी न्दिनी' और 'महामाया महाकाली भजनों से देवी पूजा की गई, हासत आली निर्मल आई के साथ देवी का श्रृंगार हुआ और ओटी अर्पण त और अन्तत: 'विश्ववन्दिता' गाया गया। 9.50 बजे आरती की गई और तीन महामन्त्रों के साथ पूजा सम्पन्न हुई। पूरे वातावरण के कण-कण से चैतन्य प्रवाहित हो रहा था। अपने सारगर्भित प्रवचन में श्रीमाताजी ने भारत में प्राय: उपयोग किए जाने वाले देशभक्ति पुर्ण दो शब्दों के बारे में बताया- एक है स्वराज - स्व अर्थात 'अपनी आत्मा' और 'राज' अर्थात साम्राज्य और दूसरा शब्द है- 'स्वतन्त्र' अर्थात आत्मा और 'तन्त्र।' जब हम स्वतन्त्र शब्द बोलते हैं ता इसका अर्थ है 'आत्मा का तन्त्र'। राष्ट्र का अर्थ समझने के लिए पहले व्यक्ति को स्व को समझना होगा। स्वराज की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर का अब हमें ने नतमस्तक होकर मंच पर विराजमान निराकार प्रतिनिधित्व करना चाहिए। अपने 80 मिनट के प्रवचन के बारे में उन्होंने कहा कि आज का भाषण निराला है। 'स्व' पूजा के पश्चात् कुछ मिनट ध्यान का आनन्द लिया गया तत्पश्चात् 'जोगवा' तथा कई अन्य भजनों के साथ पूजा समिति के कुछ सदस्यों महालक्ष्मी के सम्मुख नृत्य किया। पण्डाल में उपस्थित सभी योगी/ योगिनियाँ अपने स्थानों पर खड़े हर्षपूर्वक नाच रहे थे सर्वत्र चैतन्य का साम्राज्य था और पूरा दृश्य स्वर्गीय था। श्रीमाताजी के प्रस्थान से पूर्व राष्ट्रीय समन्वयकों ने उनसे पूजा स्वीकार करने के लिए प्रार्थना की और उन्होंने कहा कि घोषणा कर दो कि कल 3.00 बजे पूजा होगी। इस विशेष पूजा की घोषणा से पूरी सामूहिकता में प्रसन्नता की लहर दीौड़ गई। श्रीमाताजी विश्व भर के हम आपके सभी सहजयोगी बच्चे अपना हार्दिक आभार प्रकट करते हैं कि आपने अपने चरणकमलों में श्री महालक्ष्मी पूजा स्वीकार की.......! 11 नवम्बर 2007 : रविवार 2.30 बजे ही पण्डाल 20-25 हजार योगियों से भर गया, सभी जय श्री माताजी डा. सी.पी. श्रीवास्तव लिखित लाल बहादुर शास्त्री-राजनीति में सत्य निष्ठ जीवन के उर्दू संस्करण का विमोचन 17 नवम्बर 2007 عزت آاب م حامدانصاری ১ ৫ ा) ो क॥ भ EAR सर सी.पी. श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक मूर्तियाँ लगी हुई थीं और हाथ में बाँसुरी लिए श्री लाल बहादुर शास्त्री, राजनीति में सत्यनिष्ठ जीवन' के प्रोफेसर अब्दुल हक द्वारा किए गये उर्दू रूपान्तरण का विमोचन भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने अशोका होटल नई दिल्ली, भारत, के कन्वेंशन हॉल में 17 नवम्बर 2007 शनिवार की संध्या को किया। समारोह का आयोजन परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ट्रस्ट और मैसर्ज गलगोटिया पब्लिशर्ज़ ने किया। मेजबानों सहित दिल्ली और नोएडा के सहजयोगियों की देखरेख में हुए इस समारोह में विशिष्ट अतिथियों सहित ।000 से भी अधिक मेहमान सम्मिलित हुए। कृष्ण की एक अत्वन्त सुन्दर चित्रकारी लगाई गई थी जिसमें श्रीकृष्ण के समीप खड़ी राधाजी उन्हें अत्यन्त प्रेमपूर्वक निहार रही हैं। ऐसा प्रतीत होता था मानो श्रीमाताजी का स्वागत करने के लिए साक्षात श्री कृष्ण वहाँ खड़े हों और श्री राधा इस दिव्य स्वागत को प्रसन्नतापूर्वक देख रहीं हों। होटल पहुँचने पर श्रीमाताजी को उनके लिए सातवीं मंजिल पर आरक्षित किए गए विशेष स्वीट में ले जाया गया। श्रीमाताजी के चरणकमलों की आरती उतारने और चरणकमलों में पुष्पार्पण करने के बाद अधिकतर सहजयोगी सायंकालीन समारोह का प्रबन्धकार्य देखने सुप्रसिद्ध अशोका होटल के प्रवेश द्वार की के लिए नीचे चले गए। छवि दर्शनीय थी। प्रवेश द्वार से हाल तक का पूरा मार्ग फूलों से सजाया गया था। हॉल के वरांडे में अत्यन्त ढंग से सजाई गई मेज पर विमाचित सायंकाल 4.00 बजते बजते पूरा सभागार विशिष्ट अतिथियों एवं सहजयोगियों से भर चुका था केवल मीडिया के लोगों की कुछ सीटें खाली थीं। ठीक सवाचार बजे परम पूज्य श्रीमाताजी, सर सी.पी. तथा परिवार के अन्य सदस्यां को सम्मानपूर्वक हॉल में लाया गया। तुरन्त सभी कैमरों का मुख श्रीमाताजी की ओर घूम गया और उनकी करुणामयी स्वागत कक्ष की सुन्दर सजावट देखते ही मुखाकृति एवं प्रेम छलकाती आँखें मंच के दोनों ओर लगाए गए विशाल पदों पर दिखाई जाने लगी। सुन्दर पुस्तक के अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू संस्करण की बहुत सी प्रतियाँ रखी हुईं थीं। लगभग सवा दो बजे परम पूज्य श्रीमाताजी सर सी. पी. तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अशोका होटल पधारीं। बनती थी। स्वागत कक्ष में भगवान गणेश की तीन अंक : & 2 2008 चैतन्य लहरी 16 زت آب مد حام انتصاری ৫ ट र काल बै. ४ तत्पश्चात् सर सी.पी. को स्थान ग्रहण करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया लाल मुलायम मखमल के पर्दों से सजाया गया मंच का पृष्ठपट कन्वेंशन हॉल के सौन्दर्य को चार चाँद लगा रहा था। मंच पर विराजमान प्रतिष्ठित अतिथियों-जिनमें भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी, हरियाणा राज्य के गवर्नर डा. ए.आर. किदवई, गलगोटिया से पूर्व सर सी.पी. ने परम पूज्य श्रीमाताजी को 'मेरी पब्लिशरज के चेयरमैन, श्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र श्री अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री मुख्य थे- को गुलदस्ते भेंट करने के साथ समारोह का शुभारम्भ हुआ। सर सी.पी. का भाषण इतना प्रभावशाली था किं बीच-बीच में माननीय अतिथि एवं दर्शकों की तालियों से हॉल का सभागार गूँज़ उठा। भाषण समाप्त होने पर सब लोगों ने खड़े होकर तालियाँ बेजाकर उनका स्वागत किया। भाषण समाप्त करने मोहतरमा, मेरी बीवी' सम्बोधित करते हुए उन्हें लालबहादुर शास्त्री पर ये पुस्तक लिखने के कठिन कार्य को पूर्ण करने का प्रेरणास्रोत बताया और उनके प्रति आभार प्रकट किया। उन्होनें कहा कि इसका सारा श्रेय श्रीमाताजी को है। सभी कैमरों का मुख श्रीमाताजी की ओर मुड़ गया और दो विशाल पदों पर उनका दैदीप्यमान मुख कुछ क्षणों के लिए सभी अपने संक्षिप्त भाषण में सर सी.पी. ने पुस्तक विमोचन के इस समारोह को भव्यता प्रदान करने के लिए भारत के उपराष्ट्रपति का हृद्य से धन्यवाद किया। पुस्तक के उर्दू रूपान्तरण के लिए को दिखाई दिया। साधना दीदी ने उनके कान में उन्होंने प्रो. अब्दुल हक के प्रति भी आभार प्रकट किया तथा हरियाणा राज्य के गवर्नर श्री किदवई को पुस्तक का प्राक्थन लिखने के लिए विशेष रूप से हरियाणा राज्य के गवर्नर माननीय डा. ए.आर. धन्यवाद दिया। श्री शास्त्री के दोनों बेटों तथा विशिष्ट किदवई के भाषण के साथ समारोह आगे बढ़ा। अतिथियों का स्वागत करते हुए सर सी.पी. ने श्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ अपने कार्यकाल के जीवन के उच्च नैतिक मूल्यों की कुछ घटनाओं की स्मरणीय घटनाओं का उल्लेख किया। श्री शास्त्री की ईमानदारी, सत्यनिष्ठा एवं अदम्य साहस का उदाहरण देते हुए सर सी.पी. ने स्पष्ट कहा कि वे लाल बहादुर शास्त्री की समानता के दृष्टिकोण एवं हमारे धर्म निरपेक्ष देश के सभी धर्मों एवं जातियों के प्रति गहन सम्मान की भावना से अत्यन्त प्रेरित हुए। उन्होंने बताया कि श्री लालबहादुर शास्त्री की कूटनीतिक कुशलता और उनका चमत्कारिक । व्यक्तित्व अद्वितीय है। उनके इन गुणों ने उस युद्ध काल की कड़वाहट में भी पाकिस्तान के भिन्न नेताओं के साथ उन्हें मित्रता एवं सामंजस्य स्थापित करने में सहायता की। जब इसके बारे में बताया तो वे मुस्करा उठीं। उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में श्री लालबहादुर शास्त्री का वर्णन किया। श्री एम. हामि सरी उपराम्ट |नवन 2 सव. ए५. कली अंक : । & 2 2008 चैतन्य लहरी 17 तत्पश्चात् भारत के उपराष्ट्रपति महामहिम श्री एम. हामिद अन्सारी ने सर सी. पी. का धन्यवाद किया और लालबहादुर शास्त्री के जीवन के विषय माननीय उपराष्ट्रपति ने विमोचन किया। चाँदी की में अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त किए उन्होंने पुस्तक के लेखक का धन्यवाद किया और कहा कि की गई और सर सी. पी. की प्रशंसा उद्घोष से पूरा पुस्तक के उर्दू संस्करण के माध्यम से विश्वभर के उर्दूभाषी लोग बीसवीं सदी के इस महान व्यक्तित्व को जान पाएंगे। उन्होंने व्यक्तिगत चारित्रिक मूल्यों के चेयरमैन श्री गुलगोटिया ने आभाराभिव्यक्ति की। की उस विशेष घटना का वर्णन किया जिसमें उन्होंने श्रीमाताजी, परम पूज्य माताजी श्री निर्मला रेलमंत्री के रूप में लालबहादुर शास्त्री ने रेल दुर्घटना के विषय में जानकारी मिलते ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने इस घटना को पद की नैतिकता का स्मरणीय उदाहरण बताया। उनकी राष्ट्रीयता की भावना और उनके चरित्र का वर्णन योगियों को चाय नाश्ते के आमंत्रण के साथ समारोह करते हुए देश के आज के राजनीतिज्ञ एवं पदाधिकारी भी लाल बहादुर शास्त्री के उच्च मानदण्डों को अपनाएंगे। भाषण अभी चल ही रहा था कि परम पूज्य श्रीमाताजी के भाई तथा भारत के अनुभवी राजनीतिज्ञ श्री एन. के. पी. साल्वे समारोह में पधारे और उन्हें श्रीमाताजी के साथ वाली कुर्सी दी गई। श्रीमाताजी की आँखों में भाई के प्रति प्रेम देखते ही बनता था। तत्पश्चात् सर सी.पी. द्वारा लिखित पुस्तक 'लाल बहादुर शास्त्री' के उर्दू संस्करण का भारत के तश्तरी में सुसज्जित पुस्तक विमोचन के लिए पेश सभागार गूँज उठा। पुस्तक के प्रकाशक गलगोटिया पब्लिकेशन देवी ट्रस्ट और रूपान्तरकार के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया। सभी उपस्थित सम्माननीय अतिथियों एवं माननीय उपराष्ट्रपति ने आशा जताई कि सम्पन्न हुआ। दिवाली के बाद, मानो भैयादूज के अवसर पर, श्रीमाताजी को अपने भाई के साथ अत्यन्त प्रसन्न मुद्रा में देखना एक स्वर्गीय अनुभव था। सहजयागियों ने परम पावनी माँ में उनके गृहलक्ष्मी तथा स्नेहमयी बहन रूप के दर्शन किए। जय श्रीमाताजी **** परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मल प्रेम आश्रम (N.G.O) में ग्रेटर नोएडा- 22 नवम्बर, 2007, भारत करुणामयी श्रीमाताजी निर्मल प्रेम आश्रम के बच्चों के सम्मुख परमेश्वरी माँ के रूप में प्रकट हुईं। बांसुरी बजाते हुए श्री कृष्ण और गोपियों संग उन्हें देखती हुईं राधा का चित्र हॉल की सज्जा को बढ़ा रहा था। आश्रम के बच्चों के मुख से फूटता हुआ हमारी परम पावनी माँ श्रीमाताजी ने 22 नवम्बर दोपहर पश्चात एक बार फिर ग्रेटर नोएडा स्थित 'निर्मल प्रेम आश्रम' के बच्चों को आशीर्वादित किया। आश्रम के बच्चों, अध्यापिकाओं, अधिकारियों, थोड़े से सहजयोगियों तथा आश्रम के आयोजकों ने हृदय से स्वागत-आगत भजन तथा आरती गाकर तेज श्रीमाताजी के प्रेम को प्रतिबिम्बित कर रहा था| बालसुलभ दृष्टि से अत्यन्त अनुशासित ढंग से बच्चे हर चीज को देख रहे थे और श्रीमाताजी के प्रेमकेन्द्र बनने के प्रयत्न में लगे हुए थे। 80 से 100 योगियों की सामूहिकता के बीच श्रीमाताजी ने बच्चों द्वारा गाए गए सामूहिक भजनों का आनन्द उठाया। हर भजन के बाद श्रीमाताजी ने तालियाँ बजाकर बच्चों को प्रोत्साहित किया और उनकी श्रद्धा को सराहा। उनकी करुणा का पारावार न था। बच्चों द्वारा सामूहिक नृत्य प्रस्तुत किए जाने पर परम पूज्य श्रीमाताजी का स्वागत किया। निर्मल प्रेम आश्रम का प्रवेश संभागार रंगबिरंगी रंगोली और फूलों से सजाया गया था। मध्य सभागार तक जाने वाले मार्ग पर गुलाब की पंखुड़ियाँ बिछाई गई थी। ऐसा प्रतीत होता था मानो निराश्रित महिलाओं तथा यतीम बच्चों की उस शरणस्थली में प्रेमलहरियाँ प्रवाहित होने लगीं हों। सफेद साडी और हल्के रंग की शाल पहने अंक : चैतन्य लहरी । & 2 - 2008 18 ख कोम जी आनन्ददायी क्षण से श्रीमाताजी बहुत प्रसन्न हुईं। वे श्रीमाताजी गद्गद् हो उठी। मुस्काई और पिल्लों को प्रेमपूर्वक उठाए नन्हें शिशुओं तत्पश्चात् श्रीमाताजी को आश्रम तथा वहाँ की कार्यशैली दिखाने के लिए ले जाया गया| श्रीमाताजी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए व्यवस्था करने वालों और अधिकारियों की हृदय से प्रशंसा की और कहा कि आश्रम में रहने वाले इन बच्चों की सुखसुविधाओं के लिए ये लोग अथक कार्य कर रहे हैं। आश्रम देखते हुए श्रीमाताजी ने स्वयं उसे कार्यान्वित करेंगे। तत्पश्चात् अधिकृत रूप से बच्चों से पूछा कि उन्हें वहाँ की कौन सी चीज वास्तव में अच्छी लगती है? एक न्हें शिशु के सहज उत्तर "खाना, श्रीमाताजी!" ने सबको हैरान कर दिया। इस बालसुलभ उत्तर ने सभी के हृदय खोल दिए। श्रीमाताजी इस प्रकार मुस्करा रहीं थीं मानो कह रही हों, 'आखिरकार स्वप्न साकार हो गया है। का आनन्द लिया। तत्पश्चात् श्रीमाताजी ने पुणे में बड़े स्तर पर एक ऐसा ही आश्रम स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की। N.GO. की महासचिव प्रोफेसर किरण वालिया ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उनकी परमेश्वरी इच्छा का उनके बच्चे सम्मान करेंगे और श्रीमाताजी की इच्छा और N.G.O. को उदारतापूर्वक उनकी ओर से दी गई राशि के विषय में बताया गया। सायं 4.00 बजे के करीब जब श्रीमाताजी ने आश्रम से प्रस्थान किया तब भी पिल्लों को हाथों में पकड़े हुए बच्चों ने उन्हें घेरा हुआ था। प्रेम एवं करुणा से ओत-प्रोत श्रीमाताजी ने इच्छा जताई कि उनमें से दो पिल्ले प्रतिष्ठान में रखने के लिए उनके आश्रम के बच्चों ने श्रीमाताजी को हाथों से बनाए उपहार भंट किए तथा बीच-बीच में सहजयोगी श्रीमाताजी को गुलदस्ते भेंट करने के लिए आते रहे। ऐसा ही एक अवसर पाकर SITA India द्वारा बनाई गई वेबसाइट जनता को समर्पित करने से पूर्व विमोचन के लिए श्रीमाताजी के सम्मुख लाई गई। श्रीमाताजी ने वेबसाइट से लिए गए कुछ पृष्ठों को के बच्चे को श्रीमाताजी से आशीर्वाद एवं नाम देखते हुए टीम के प्रयत्नों को सराहा और उन्हें दिलवाने के लिए खड़े एक सहजयोगी को भी देखा आशीर्वाद दिया। साथ भेज दिए जाएं। अत्यन्त हृदयस्पर्शी दृश्य था। पिल्ले श्रीमाताजी को भेंट करने के लिए दौड़ते हुए बच्चों को देखना अत्यन्त हृदय स्पर्शी दृश्य था। कार में बैठे हुए, कार को घेरे बच्वों के साथ उन्होंने कुछ क्षण और बिताए। अपने एक माह गया। श्रीमाताजी ने तुरन्त उसे 'सहज' नाम दिया। सभी लोग आनन्द से जयजयकार कर उठे और N.G.O. आश्रम में पधारकर आशीष वर्षा करने के लिए परम पावनी माँ का हृदय से धन्यवाद किया। आश्रम के नन्हें बच्चों के भोलेपन का साक्षी बनने का एक अन्य अवसर भी उपस्थित सामूहिकता को प्राप्त हुआ। श्रीमाताजी के आस-पास खड़े बच्चों ने छः नन्हें पिल्ले उठाए हुए थे इस जय श्रीमाताजी महाशिवरात्रि पूजा दिल्ली-6-3-1989 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हि रहे हैं लेकिन मुझे भी तो कुछ देना चाहिए। इस कलयुग में ईमानदारी से जो काम किया जाता उसके लिये काफी विपत्तियाँ, आपत्ति संकट उठाने पड़ते हैं। हालांकि सबसे बड़ा समाधान ये है कि हम लोग ईमानदार हैं। और सहजयोग में एक बात जाननी चाहिए कि जो चीज़ जिस वक्त बननी है उस वक्त जुरूर बन जाएगी, उसमें रुकावट नहीं हो सकती। गर कोई रुकावट हुई है तो जुरूरी थी, गर समय उसमें ज्यादा लग गया या कम लग गया, रुपया अधिक लगा या कम लगा, ये सब जुरूरी थे। इसलिए किसी भी चीज़ में दोष निकालना नहीं चाहिए, लेकिन उसका आनन्द पूरा प्राप्त करना चाहिए। अब हमें सोचना चाहिए कि दिल्ली में हमने उठाया। सबसे पहले हिन्दुस्तान का, सहजयोग का आश्रम बनाया गया जो अभी तक सारे भारत वर्ष में कोशिश करने से भी नहीं बना। ये कोशिश अठारह साल से हो रही थी और आज ये आश्रम देखकर मुझे बड़ा आनन्द आया। इसका पूरा उत्तरदायित्व आप लोगों ने लिया था और सारा श्रम आपने किया और इसका श्रेय भी, सारा Credit भी आप ही को है। जब आप लोग मुझे किसी चीज का श्रेय देते हैं तो मेरी समझ में नहीं आता है कि आप लोग इतने अकर्म में उतर हैं कि आप जानते ही नहीं कि सव आप हो है, इसकी लहरें और भी आपको लपेटती चली है सहजयोग एक आनन्द का पर्व है, एक हर चीज़ में आपको आनन्द गर मिले तो सोचना चाहिए कि आप सहजयोग की संवेदनशीलता को प्राप्त करते हैं । लेकिन आपमें वो आनन्द, उसकी प्रचीति न हो तो सोचना चाहिए कि आपमें अभी कमी रह गई है। इसको बनाने में जो कुछ भी कष्ट हुआ हो, जो कुछ भी परेशानियाँ हुई हो और जो कुछ भी आपको उठाना पड़ा हो, ये सब कुछ एक खेल है, ये सब एक खेल है और इस खेल को हमने किस तरह से खेला उसका मज़ा घर बनाना, दुकान बनाना, विश्व बनाना, ये सब एक खेल है। गर आप विश्व के बनाने पर ये सोचे कि कैसे बनेगा, क्या होगा तो उसका मजा ही खत्म हो जाएगा। लेकिन आप बना रहे हैं, आप देख रहे हैं, किस तरह से बना रहे हैं और किस तरह से इस चीज को वनाइएगा। सिर्फ आपका चित्त गर स्वच्छ हो जाए, चित्त शुद्धि हो और चित्त में यही प्यार हो कि कोई चीज करनी है और ये परमात्मा के कार्य के लिए हम कर रहे हैं तो आनन्द द्विरुणित हो जाता है। और भी बढ़ जाता आनन्द का सागर है। गए कर रहे हैं! अगर सब काम मुझसे ही होता तो मुझे आपको जोड़ने की क्या जरूरत पड़ जाती? आप ही मेरे हाथ हैं, आप ही मेरे आँख हैं, और आप ही मेरे कान हैं। आपके बगैर मैं कोई भी कार्य नहीं कर सकती और इसके लिए मैं आपके शरणागत हूँ एक तरह से, कहती हैँ कि जब भी आप लोगों को मेरे लिए जाती हैं और आप बड़ी गहरी ऐसी एक अनुभूति में जाते हैं जहाँ पर जाकर आप कहते हैं कि 'अब मस्त हुए फिर क्या बोले?' वही हाल आज मेरा हो है। रहा ये सारा देखकर के, वैसे तो सारा विश्व ही बनाया है लेकिन ये जो अभी बनाया है, जैसे के खेल में जब आप उस गुड़िया का छोटा सा घर बनाते हैं उसको देखकर के बड़ा अद्भुत सा आनन्द होता है। ऐसा ही विश्व में सा हुआ ये हमारा आश्रम है जिसके प्रति मुझे वही एक अनुभूति प्रतीत हो रही है। गुड़िया मैं हाजिर हो जाऊंगी और हुकुम हो उस जगह जहाँ कहोगे वहाँ मैं स्थापित हो जाऊंगी। लेकिन इसमें आपका जो हमारे ऊपर अधिकार है वो बना रहना चाहिए, वो पूरी तरह से बना रहना चाहिए और जब वो अधिकार बना रहता है तो उस अधि कार की पूर्ति भी बहुत आसानी से हो जाती है। अब मुझे तो पता नहीं मैंने इसमें कितना रुपया दिया कि क्या दिया? ये तो सारा सहजयोगियों का रुपया है मेरी जेब से तो मैंने एक पैसा नहीं दिया। लेकिन में दिन शिवजी की पूजा की जाती है। शिव माने जो अपनी जेब से भी देना चाहती हूँ क्योंकि मेरे लिए ऐसी चीज बन गई जो अटूट, अचल, और भी तो आप यहाँ कमरा बना रहे हैं। तब थोड़ा सा मुझे भी तो पैसा देना चाहिए। आप लोग तो बना ही है, ये तो एक सारे संसार के लिए बड़ी सौभाग्य आज का दिवस भी बड़ा शुभ हैं कि आज शिवतत्व के दिन, जिस दिन हमारे अन्दर शिवतत्व तत्व प्रगटित होता है, वो आज का दिन है | जिस अटूट, अचल, अविनाशी और आज के दिन कोई अविनाशी-इन तीन स्तम्भों को प्रकाशित करने वाली अंक : 1 & 2 - 2008 20 चैतन्य लहरी हि] विनाशी हैं और विनाशी चीजों के पीछे दौड़ना ये कोई भी अक्ल की बात नहीं है। विनाशी चीजें जहाँ और बड़ी मुश्किल बात है। इसे हम लोग इस तरह से समझें कि सारे विश्व में हलचल और दुनिया भर की आफत, ये कलयुग की घोर यातनाएं ओर हें वहाँ हैं, अपनी सीमा में रहें। लेकिन उनका उसका प्रकाश तांडव चला हुआ है। ऐसे वक्त एक लेखना कोई होनी चाहिए जिसको हम पकड़ लें। उस लेखना के लिए एक गणेश तत्व को बिठाना होगा। उस गणेश तत्व को बिठाने के लिए कोई न कोई पृथ्वी तत्व पे चीज़ खड़ी करनी पड़ती है। उसी प्रकार आज गणेशतत्व यहाँ बसाया गया, एक पवित्रता यहाँ लाई गई। ये एक पवित्र मन्दिर सा बन हैं, और विनाशी चीजों के लिए भागते हैं, उसी को गया है और यहाँ से पवित्रता सारे संसार में कूद सकती हैं और उसका जो कुछ भी कार्य है वो बहुत उसी से हम सब लाभ कर सकते हैं। उनको सुचारु रूप से हो सकता है। हर तरह का आक्रमण, आततायी लोगों को ये एक छोटा सा दिखने वाला आश्रम ही बहुत कार्य कर सकता है। तो जिसे कहते हैं कि nucleus इस तरह से ये एक भारतवर्ष में आज दिल्ली में शुरु हुआ है। सर्वप्रथम संसार में देते हैं। लेकिन उसमें जान नहीं है, उसमें प्राण नहीं जो चीज बनाई गई वो है श्री गणेश। लेकिन उनसे भी पहले और आदिशक्ति से भी पहले तत्व जो है वो हम लोगों को मालूम है और हम जो तत्व था उस तत्व को हम ये कहेंगे कि वो सदाशिव स्वरूप, सदाशिव था। उस सदाशिव तत्व से ही उनकी जो शक्ति आई उसे हम आदिशक्ति कहते हैं। तो सबसे पहले जो चीजू संसार में रही और रहती है और हमेशा रहेगी, वो चाहे सुप्तावस्था में होती है तब कोई सा भी सृजन ( Creation) नहीं होता है, 'लेकिन जब वो जागृत अवस्था में रहती है तब सारा सृजन होता है। उस है, फिर हम संसार में नहीं रह सकते। वक्त हर तरह का सृजन आते रहता है। फिर उसके बाद, अवतरण आते हैं और सब तरह के कार्य होते हैं और फिर वही जा करके चीज जब सो जाती तो सब चीज़ फिर सुप्त अवस्था में चला जाता है। तो ये जो सुप्तावस्था में जाने की स्थिति है उस स्थिति से पहले ही हम लोगों को उस जागरण में उतरना चाहिए जो शिवतत्व है। शिव का तत्व समझना एक हिन्दुस्तानी के भी गलती करते हैं तो शिवतत्व के प्रकाश में वो लिए कठिन बात नहीं है क्योंकि अपने यहाँ, भारत वर्ष में जो कि भारतीय हैं, जो कि विदेशी लोग हैं को अगर आप ऐसा समझिए कि हमारे जीवन में या विदेशी संस्कृति से प्रभावित हैं उनकी बात नहीं, पर सर्वसाधारण किसी भी भारतीय को आप गर देखें तो वो यही कहेगा कि इस अविनाशी तत्व को अनुभूति होती है ये ही शिवतत्व का प्रकाश है और ही पाना हमारे जीवन का लक्ष्य है। बाकी सब चीजें विनाशी हैं ये हम लोग जानते हैं। सारी चीजें तक आत्मा आपके अन्दर जागृत नहीं होती आप जरूरत से ज्यादा महत्व करना विनाश की ओर जाना है यही चीज़ है जो शिवतत्व है इसे हमें प्राप्त करना है, जो सारी हमारी कार्यपद्धति, गतिविधियों का लक्ष्य भी है और वही हमारा केन्द्रबिन्दु और स्रोत भी है। भूल गए हैं। यही चीज विदेश के लोग विदेश में लोग विनाशी चीजों को बहुत महत्त्व देते महत्वपूर्ण समझते हैं और उसी को सोचते हैं कि अविनाशी की शायद खूबर भी नहीं, बहुत से लोगों को, और जिनको है वो भी बस उसको विचारों में, और तत्वों में और इस चीजू में बाँधकर के एक बड़ा भारी सा, कहना चाहिए, कि कबन्ध सा बना हैं, उसके जो प्राण हैं, वो है शिवतत्व। और शिव जानते हैं कि इस अविनाशी शिवतत्व से ही सारा कार्य होने वाला है! गर हमारा मस्तिष्क, गर किसी तरह से काम से चला जाए तो भी हम जिन्दा हैं, गर हमारा हाथ टूट जाए तो भी हम जिन्दा हैं, गर हमारा पैर टूट जाए तो भी हम जिन्दा रह सकते हैं, रीढ की हड्डी भी ट्ूटने पर हम जिन्दा रह सकते हैं। पर जैसे ही हृदय बन्द हो जाता है जहाँ शिव का तत्व तो शिव के तत्व के बारे में हमें जानना चाहिए कि यह तत्व अत्यन्त भोला है। भोलेपन का है ये मतलब नहीं कि मूर्ख, भोलेपन का मतलब है पवित्र, अत्यन्त पवित्र है। जैसे कि एक पवित्र चीज आपने यहाँ बिछा दी हो कुछ भी, इस पर एक छोटा सा भी दाग लग जाए तो फौरन दिखाई दे जाएगा। इसी प्रकार शिवतत्व का है कि जैसे ही थोडी सी एकदम साफ दिखाई देती है। और अब इस शिवतत्व इस शिवतत्व का क्या उपयोग है तो जो आज आप चैतन्य को जानते हैं या चैतन्य की आपमें जो जब तक शिव आपके अन्दर जागृत नहीं होते, जब अंक : 1 & 2 2008 21 चैतन्य लहरी सकेगी? ऐसी कोई सी भी चीज़ उनके लिए नहीं इस शिवतत्व को प्राप्त नहीं कर सकते, उसकी प्रचीति नहीं कर सकते, उसे जान नहीं सकते। है। इसी से आप जान सकते हैं कि गर हमारे अन्दर उसकी प्रचीति होना ही एक बोध है, इसी को विद् शिव तत्व चलता है तो पहले तो हम ऐसे इन्सान हो कहना चाहिए जो वेद है। इसी को Knowledge कहते हैं जो ज्ञान है। यही शिवतत्व को जानना चाहिए। अब शिवतत्व है या नहीं ये तो आप जानते है, इसमें आपको शंका नहीं है कि शिवतत्व है या नहीं। किन्तु शिवतत्व पे हम जमें हैं या नहीं, ये हो जाती है, क्योंकि आप कालातीत हो गए, किस सोचना चाहिए। शिवतत्व का सबसे बड़ा फायदा ये है कि ये प्रेम है, प्रेम का स्रोत है, प्रेम का लक्ष्य है प्रेम का केन्द्र है, ये प्रेम है। सबसे बड़ी चीज़ आप अपने हृदय को खोल लें, शिवतत्व को अपने अन्दर समाने का मतलब है अपने हृदय को खोल लो। हृदय को खोलकर के बिल्कुल खुली तबियत से रखें। इसके विरोध में क्या-क्या चीजें बैठती हैं वो हमें देखना चाहिए। इसके विरोध में जब हमें एक तो स्वार्थ 'मैं', ममत्व, 'मैं, मेरा पति, मेरे बच्चे, मेरा घर' जहाँ ममत्व शुरु हुआ वहाँ शिवतत्व खत्म होने बनेगा, कैसे बनेगा, उसके लिए व्याकुल होने की लगता है। अब शिवजी को देखिए कहाँ रहते हैं? कैलाश पर, जहाँ कोई भी नहीं रह सकता, वहाँ बसे हैं। कपड़े क्या पहनते हैं वो तो आप जानते ही जाएंगे, तब ये पूरा होगा, नहीं तो यहाँ पर क्या, कौन हैं। अलंकार उनके क्या हैं और जिस मस्ती में वो पहनते हैं वो भी आप जानते हैं। लेकिन उनको कोई मैने तो इनसे कहा था कि पहले ये तय कर लो आराम की जुरूरत नहीं, कि मुझे कौन सा आराम मिलेगा। हम लोग पहले सोचते हैं-भई वहाँ जा रहे कहने लगे माँ आप तो रहेंगे। मैंने कहा मैं कौन-से-कौन हैं तो वो कितने स्टार होटल हैं, वहाँ क्या इन्तज़ाम होगा, वहाँ ये चीज ठीक होगी या नहीं होगी, वहाँ एक मेरे लिए मत आश्रम बनाओ, आपमें से कितने किस तरह से रहने को मिलेगा, वहाँ कौन सा इन्तजाम होगा और किस तरह से खाना होगा? वो इस चीज़ की परवाह नहीं करते। शिव तत्व वालों का पहली पहचान है, वो मस्ती में कहीं भी रह सकते हैं। आप उनको जंगल में सुला दीजिए, वो जंगल में आराम से हैं, महलों में रख दीजिए तो चाहिए अपनी। 'अपना' 'मेरा'। ये मेरी, ये मेरी चीज़ महलों में आराम से हैं। जहाँ है वहाँ वो शिव हैं। है, मेरे बच्चे मेरे पास हैं, मेरी बीवी मेरे पास है। उससे ऊँची कोई चीज़ है ही नहीं जिसका वो आनन्द उठा सकें क्योंकि स्वयं आनन्दमय होने की सकते हैं दुनिया में? परदेस में ये प्रश्न नहीं उठता। वजह से और किस चीज़ से आनन्द उठाना है? बाकी तो सब कचरा ही है। जो असली परम चीज़ है वो उन्होनें पाई है अपने अन्दर में, शिव की और उस शिव के आनन्द में ही वो पूरी तरह से जमे हुए हैं। तो उनके लिए ऐसी कौन सी विशेष चीज होगी जो उनको दबा सकेगी या उनको मोहित कर जाते हैं जिसे कहते हैं, औलिया माने आप कहीं भी सो लीजिए, कहीं भी बैठ लीजिए, कहीं भी खाना खा लीजिए, किसी वक्त भी खाना खा लीजिए, कितना टाइम है सोलें और ये घड़ी जो है ये बन्द वक्त जाना, किस वक्त आना, किस वक्त क्या करना, उसका विचार ही नहीं रहता। सब ये कि हो रहा है। जो भी चल रहा है ठीक है। अभी यहाँ बैठे थे यहाँ बैठ गए, कल को वहाँ जाकर बैठ जाएंगे। उसमें ये विचार ही नहीं आता है कि अब Time हो रहा है चलो, अब वहाँ पर ऐसा करना है ये करने का है, ये सब दिमागी जमाखर्च उसमें होते ही नहीं। क्योंकि जो हो रहा हैं वो कालचक्र के हिसाब से ठीक ही हो रहा है। इसीलिए मैंने कहा कि ये कब जुरूरत नहीं। जब इसके लायक लोग हो जाएंगे तब ये पूरा हो जाएगा। जब इसमें रहने लायक लोग हो रहेगा? जानवर आकर रहेंगे, चिड़िया पंछी रहेंगे? दिल्ली वाले कि कौन रहने वाले हैं यहाँ आकर। से आश्रम में रहने वाली हूँ? ये बता दीजिए। तो लोग आश्रम में रहना चाहते हैं, ये पहले तय कर लो। क्योंकि हिन्दुस्तानी तो बहुत ही ज्यादा सीमित हैं। उसको तो अपना घर चाहिए, अपनी बीवी चाहिए, अपने बच्चे चाहिएं और बीवी पर रौब जमाने के लिए चाहिए। ऊपर से ये कि उनको मोटर कितने लोग ऐसे हैं कि जो सामूहिक तरह से रह परदेस में तो गर आश्रम बनाया तो खट बन जाता है क्योंकि सब अपना बिस्तर वगैरा लेकर के चले आते हैं। भई क्या हुआ? अब तो घर-वर बेच दिया, अब तो माँ आश्रम में रहेंगे। अब हमारे सारे प्रश्न ही छूट गए क्योंकि अब न तो घर का किराया देने का, न कोई आफ्त, न कोई चीज़। बस अंक : । & 2 2008 22 बैतन्य लहरी अब यहाँ रहेंगे, सामूहिक में रहेंगे, जो कुछ पैसा सारे लोग उसके साथ खड़े हो जाएंगे। उल्टे गर आप देना है वो दंगे और अपना आराम से रहंगे। सब लोग मिलकर काम करेंगे, और कोई Problem ही नहीं। कोई आफत आई तो सब लेग मिलकर उठा लेंगे और कोई ऐसी विशेष बात हुई तो उसका भी आनन्द सब लोग उठा लेंगे। वो लोग तो इतने खुश हो जाते हैं कि इसमें हमें कुछ मिल गया, जैसे कि हम किसी चीज के हो गए, जिसको कहते हैं रिश्ता आप जानते है, वो चैतन्य से होता है। इस belonging, किसी चीज को हम belong कर गए। और हम लोग हैं चिपटे-चिपटे घूमे रहते हैं। अच्छा उस घर में भी, घर के अन्दर भी, फिर झगई़ शुरु होते हैं कि साहब ये बड़ा लड़का है, ये छोटा लड़का है, ये वड़ी बहू, ये छोटी बहू। फिर उसका बच्चा, फिर मेरी बहन, फिर ये, ढिकाना। उसमें भी झगड़ा! क्योंकि ये जो रिश्तेदारी है कृत्रिम रिश्तेदारी मेंने कहा, क्या हुआ है? पता नहीं क्या? एकदम से ये असली रिश्तेदारी नहीं। कोई किसी का बेटा कुण्डलिनी चढ़ गई एकदम खुल गई। हमने कहा हो जाए तो उससे उसका रिश्ता नहीं होता। गर होता, रिश्ता गर बनता तो झगाड़ा क्यों होता? मतलब इसमें वास्तविकता नहीं है। उसमें फिर छोटी-छोटी बात वो बिचारा झुका ही बैठा था मैंने कहा उसको तो की मांग क्यों होती? एक दूसरे में प्यार क्यों नहीं छोड़ो। पकड़ लिया उसको। उसका जो आनन्द आ होता? तो जिस तरह से हम आपको कहते हैं कि बाहर के धर्म सब झूठे हैं इसी तरह से बाहर के रिश्ते भी सब झूठे हैं। एक-एक आदमी को इसकी प्रचीति आएगी। अब कोई कहेगा साहब मेरी माँ को दौजिए, माँ को बुला दीजिए। लन्दन सहजयोग में आएं तो आपकी टाँगे खींचेंगे। अच्छा गर आप सहजयोग में आए तो आपसे कहेंगे कि चलो फिर हमें ठीक कराओ। तुमने हमें ठीक नहीं कराया तो हम तुम्हें सहजयोग में नहीं जाने देंगे। फिर और भी तमाशे खड़े कर लिए। क्योंकि शिवतत्व ही सत्य है, बाकी सब असत्य है और शिवतत्व का प्रकार से जब आप चेतन्य को महसूस करते हैं आप जानते हैं कि चैतन्य है तो आप समझ लेते हैं कि ये जो दूसरा सामने बैठा है इससे कितना कितना आनन्द आ रहा है। एक बार कलकते में एक साहब मेरे पास आए। वो मेरे पैर पर आते ही साथ आठ-दस वहाँ जितने भी सहजयोगी थे दौड़ पड़े! जाकर देखे माँ को क्या हुआ? तो ये देखा कि सामने एक realized soull अब वो सब खड़े हो गए रहा था जैसे कि गुलाब के फूल से भी न आए, न के कमल से थे! ये असली रिश्ता हुआ कि बैठे कहाँ थे, वहाँ से भा्ग-भागे आए! क्या मज़ा आया! जब ये मज़ा आने लग गया तब रिश्तेदारी हैं। यही असली दोस्ती है, यही असली सहजयोग की प्रेरणा, प्यार और उसका आनन्द हैं। ये सिर्फ शिव तत्व से मिल सकता है। आए, एसे उसका मजा उठा रहे फूल बुला में हम थे तो एक साहबे मेरी जान के पीछे पड गए। मैंने कहा अच्छा भई तुम इतने पीछे पड़े हो तो माँ को बुला देते हैं। जब माँ को बुला दिया तो वो रोज़ कहें माँ गर आपके अन्दर शिव तत्व है तो आप आपस में इससे मुझे छुटकारा करें, मेरी जान खा गई है। इसको कैसे भगाऊँ? मेंने कहा पहले तो कह रहे थे माँ को बुलाओं, माँ को बुलाओ, मेरी जान खाली, अब ये कि इसको यहाँ से निकालने की कैसे कोशिश करें। मैं कैसे इसको निकाल दूं मेरा सर खा लिया। मैंने कहा, पहले बुलाया क्यों और अब भेज क्यों रहें है? वजह ये है कि ये जो रिश्ता था ये रिश्ता सच्चा नहीं था, ये झूठा रिश्ता था। अगर सच्चा रिश्ता होता तो एक प्रेम में विभोर मनुष्य रहता। उसमें ये नहीं भावना आती कि ये मेरा है। 'मेरा' की जो भावना है ये झूठी भावना है, ये सच्ची भावना बिल्कुल नहीं है। गर सच्ची भावना होती तो हैं। शिव तत्व में स्थित होना माने मैं नहीं कहती कि आप मुझे बताइए कि कौन सी रिश्तेदारी में आपने देखा है कि एक आदमी को शिकायत हो जाए तो झगड़ ही नहीं सकते। आपने गणों को देखा है कि गण कैसे होते है कि वो एक इशारे पे कठिन से कठिन काम सब लोग मिलकर करने लग जाते हैं, कठिन से कठिन बात हो, उसमें सब जुटकर के करने लग जाते हैं। लेकिन गर हमारे यहाँ शिवतत्व की जब पूर्ण प्रणाली शुरु हो जाती है, मैंने देखा है, कि गर समझ लीजिए कोई चीज़ अमेरिका में हो गई तो सारे सहजयोगी उधर दौड़ पड़ेंगे। कोई घटना आस्ट्रेलिया में हो गई, सबका चित्त वहाँ चला जाएगा। कितनी बड़ी बात है! लेकिन सबसे पहले उसमें हमें जानना चाहिए कि हम शिवतत्व में स्थित आप सन्यासी बाबा बन जाए। पर अन्दर से सन्यस्थ भाव आना चाहिए। अन्दर से सन्यस्थ भाव आने का अंक : 1 & 2 23 -2008 चैतन्य लहरी अर्थ ये होता है कि आप इस तरह से कि एक पेड़ कि आप उनको धुत्कारिए या बुरा कहिए, लेकिन के अन्दर उसकी शक्ति या उसके अन्दर का जो Sap होता है वो उठता है और हर जगह जाता है, हर पत्ती पर, हर शे पर, हर फूल पर, हर फल पर जाता है और फिर लौट जाता है। इसी प्रकार आपका भी प्यार बिल्कुल निर्वाज्य, पूरी तरह से असंग में, कोई कहे कि दूध में आप दही डाल दें। क्या हर्ज detached होना चाहिए। तब आप शिवतत्व में स्थित है? हम सब तो detached ही हैं, ऐसे तो होता नहीं। होंगे। और जब वैसे आप हो जाते हैं तब आपको दूध में आपने दही डाल दिया तो दही हो जाएगा। एक दूसरे का मज़ा आने लगता है, नहीं तो एक दूसरे को देखकर के, वो ऐसा बोले, इन्होंने ऐसा किया। शुरु-शुरु में तो ऐसा लगता था कि मैं किसी झगड़ालू घर में घुस गई हूँ। इसका उसका आपस में दी और जिन लोगों के vibrations खुराब हैं उनको झगड़ा, न किसी को आपस में मजा आ रहा है, न कोई आपस में प्यार कर रहा है। इसका झगड़ा उससे, उसका झगड़ा उससे, मैं तो देख-देख के सोचती थी हे भगवान! अब मैं क्या करूं? यहाँ कुछ मेरा कार्य तो बनना ही नहीं। लेकिन धीरे-धीरे, बैठा है मैं भी ऐसी शान्ति में बैठूं। इस शान्ति को मैं धीरे-धीरे दिमाग ठण्डे हो गए, शिवतत्व अंदर स्थापित होने लग गया और अब लोग आपसी प्रेम को आनन्द से भोग रहे हैं और जान रहे हैं कि प्रेम में जब घुस जाएगा तो दूसरे लोग जिनके आपसी प्रेम जो है यही सबसे बड़ी चीज़ है। और रिश्तेदारों का भी अनुभव आने लग गया कि ये क्या चीज़ है। अपना रिश्ता एक ही चीज से होता है वो है शिवतत्व से। जिस आदमी में शिवतत्व नहीं, काहे में है, हमारा हित इस तरह से पागल जैसे जिस आदमी में vibrations नहीं, जिसके घूमने में और भटकने में नहीं। उस अविनाशी चीज vibrations ठीक नहीं हैं उस आदमी से आपका रिश्ता हो ही नहीं सकता। कितनी भी कोशिश कर लो, तो भी वो रिश्ता बन नहीं सकता। उसको जब तक उसके vibrations ठीक नहीं हो जाएंगे तब तक आप कुछ भी कर लें, आपको उसके साथ मजा आ ही नहीं सकता। या तो आपके ही vibrations खराब हो जाएंगे या उसके vibrations खराब हो जाएंगे। तो आपको ऐसा लगेगा कि इसी के vibrations खुराब हैं तो क्या मेरे खुराब हो गए? और मेरे खराब हैं तो कहनी चाहिए। सो शिवतत्व की बात ऐसी है कि क्या उसके खुराब हो गए? और एक तरह से संभ्रान्त, भ्रान्तिमय स्थिति आ जाएगी। आपको ये ही समझ में नहीं आएगा कि vibrations किसके खराब हैं? तो इसलिए ऐसे आदमी जिनके कि vibrations ठीक नहीं हैं उनसे दूर रहना चाहिए। उसमें कोई संकुचित हो जाएगा, एकदम छोटा हो जाएगा। और किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए, उसमें दोनों का लाभ है। गुर आपके अन्दर शिवतत्व जागृत आप उनसे अलिप्त रहिए। इसका मतलब ये नहीं उनका भी शिवतत्व ठीक करना चाहिए और उनसे भी कहना चाहिए कि आप अपने शिव तत्व को ठीक करें, क्योंकि गर ऐसे लोग बीच में आ जाएं तो उसमें कभी भी आनन्द नहीं आ सकता जैसे कि आप कितनी भी कुछ Theory लगाओ, उस Theory का काम नहीं। उसके सामने जाकर प्रार्थना करो, नमस्कार करो, कुछ करो, दूध में आपने दही डाल पूरी तरह से guidance देना चाहिए। तुम्हारे vibration ठीक हो जाएंगे और सब ठीक हो जाएगा और आपकी शान्ति आपके शिवतत्व से वो देखकर कहेंगे, " हाँ ठीक है।" ये आदमी कितना शान्ति में क्यों न पाऊ? उसका में क्यों न उपभोग करू? इस तरह का आपका जीवन उस शान्ति में, सादगी में, vibrations ठीक नहीं हैं, जो इतने अभी बैठे नहीं हैं सहजयोग में, वो धीरे-धीरे बैठ जाएंगे।' लेकिन सबको यही कोशिश करनी चाहिए कि हमारा हित को प्राप्त करना ही हमारे जीवन का लक्ष्य है। हम इसीलिए सहजयोग में भी आए हैं और सहजयोग में आकर के अगर हम आधे-अधूरे रह गए तो क्या फायदा? हमने क्या प्राप्त किया? उसमें हम जिस रास्ते पर आए हैं हम बीच ही में बैठ गए, मंजिल तक तो पहुँचे ही नहीं। इस शिवतत्व के बारे में मैंने अनेक बार बातें करीं हैं और बताया लेकिन दिल्ली वालों के लिए विशेष रूप से शिवतत्व की बात आपको पता होना चाहिए कि जब हृदय आपका पकड़ जाता है तो आपका आज्ञा चक्र पकड़ जाता है। पर मैं तो उल्टे कहूंगी, गर आपका आज्ञा चक्र पकड़ गया, सामने का, तो आपका हृदय एकदम से जब आपका आज्ञा चक्र खुल जाएगा तो आपका हृदय एकदम ठण्डा ठण्डा उसमें से बहने शुरु हो जाएगा। आज्ञा चक्र चढ़ता है अहंकार से। क्योंकि है तो अंक :। & 2 -2008 24 चैतन्य लहरी तब हमें एक मीनाबाग में एक जगह मिल गई थी, कहने लगी मीनाबाग में रहती हो? तुम्हारे पति क्या आप इस राजधानी में रहते हैं और सब घोडे पर सवार लोग हैं, आप भी सोचते हैं (बच्चों को जरा- पता नहीं क्यों बच्चे रो रहे हैं इनको देखना चाहिए करते हैं ? भई कुछ करते ही हैं सरकारी नौकरी ही जो बच्चे रो रहे हैं उनको देखना चाहिए) सो दिल्ली है, ऐसा ही after all। ये मीराबाग में तुम रहती हो, शहर में मेरी जब शादी होकर आई तो मुझे लगा कि ये कोई अजीब जमीन पर हैं परन्तु गर्दन उनकी ऊपर ही चलती है ऐसे, और आप जब-तक कूदकर उनसे बात नहीं तुम क्या मीनाबाग में रहती हो? मैंने सोचा कि करिए उनको कुछ समझ में नहीं आएगा। एक अजीब अहंकार की दुनियां थी, बापरे, जब उस Time में जब देखा, मैं बहुत छोटी सी और भोली सी थी, मुझे हँसी आती थी कि ये सब पागल लोग जा कहाँ रहे हैं। सीधे जमुना जा रहे हैं, किसी घाट पर जा रहे हैं, कुछ समझ में नहीं आता था। तो मैं देखा वो दूर होगा न जरा यहाँ से। अरे तो क्या मेरे पास करती थी और मुझे बड़ा आश्चर्य होता था, सबकी गर्दन, यहाँ से उठकर छः फुट चलती थी और से हैं। मेरे पति तो ये हैं, मेरा पति। पहले तो मेरे इसका कारण ये कि अहंकार, इतना अहंकार। एक चपरासी की गर बीवी घर में आए तो वो शनील के सूट पहनकर के, लिपस्टिक विपस्टिक लगा करके पहुँची घर में, मैंने सोचा कोई मेमसाहब ही होगी। नाखून रंगाए हुए, लिपस्टिक लगाए हुए, पहनी हुई बिल्कुल फेशनेबल। और सामने बिल्कुल ही गाँव की औरत लग रही थी। तो नहीं रहता कौन सी चीज़ Higher-lower है। ये तुम्हें मैंने सोचा कोई मेमसाहब होगी। तो मैंने उनसे कहा चाय लो, सोफे पे बिठा दिया और वो बैठे न, मैने मुझे समझ ही में नहीं आता है कि इतने सारे कहा, आप बैठिए न, बैठ सकती हूँ? मैंने कहा क्यों आप हैं कौन? मैं आपके चपरासी की बीवी हूँ, तो मैंने कहा, कोई हर्ज नहीं हैं, बैठ जाइए अब आप। और फिर जितनी उसमें घमण्ड थी, मैंने देखा कि उतनी तो Collector के नहीं होती। तो मैंने कहा कि जब इनका ये हाल है तो कलेक्टर की बीवी क्या होगी! और इस कदर अहंकार और झूठ और इतनी कृत्रिम जिन्दगी कि मैं तो नागपुर से आई थी, तो लगा कि ये है दुनिया, कैसी दुनिया है ये, कुछ समझ ही में नहीं आ रहा। अजीब-अजीब से अनुभव आने लगे। जैसे हमारे पति आए, वो शास्त्री जी के साथ थे ऐसा दुनिया लगी तुमने क्यों नहीं नमस्ते किया? वो तो मेरे पति में तो बड़ी भारी नौकरी, मुझे तो समझ में नहीं हैं न, उनको क्या नमस्ते करनी। कहने लगी ये आता इसमें क्या बड़ा भारीपन है? तो एक हमारी तुम्हारे पति हैं तुम मीना बाग में क्यों रहती हो? जैसे सहेली हमें मिली, सो वो हमारे कॉलेज में पढ़ती थी। वो तो हमसे बात ही नहीं कर रही। तो मेंने कहा कि नमस्ते वमस्ते किया। तुम कहाँ रहती हो? तुम्हारे पति हैं। अरे तुम तो बड़े आदमी की बी किससे शादी कर ली तुमने? तुमको और कोई नहीं मिला? मेंने कहा भई मेरे पति तो बहुत अच्छे आदमी हैं बहुत अच्छे। अरे उसको क्या चाटना है? दुनिया है यहाँ लोग चलते तो इसको सारी दुनिया में कौन कहाँ रहता है, किसकी क्या Position है, उसको सब पाठ याद है कि कहाँ रहते हैं। मैने कहा कि तुम कहाँ रहती हो? कहने लगी, मैं तो वहाँ रहती हूँ राउजुएवेन्यू में मैंने कहा वो कहाँ है? तो वो के पास है। मैंने कहा, तो पुल मोटर है, उसमें क्या है, कहीं भी हो, रहते तो शान यही नहीं समझ में आता था कि additional, under सारे इन prepositions का क्या मतलब है। मेरे Husband से मैं पूछती थी कि additional और under में क्या फर्क होता है? वो कहने लगे चूंड़ियाँ कि वैसे तुम्हारे पास बहुत ज़्यादा अक्ल है लेकिन मैं तो उसके तुम तीन पत्ती नहीं खेल सकती, इसमें तुम्हें याद ब्यूरोक्रेसी याद हीं नहीं रहेगी। तो मैंने कहा साहब Prepositions हैं, उसमें ऊपर नीचे क्या होता है। बहरहाल जो भी हो, तो वो बहुत मुझसे बिल्कुल दूर भाग के खड़ी हुई कि ये तो कोई क्लर्क की बीवी है या जो भी सोचा हो, पता नहीं। तो मैंने उनसे ये कहा कि भई ठीक है, मैं मीना बाग में रहती हूँ तो इतने नाराज़ होने की कोई बात नहीं है। जो सरकार ने हमें जगह दी है हम रहते हैं । तो कहने लगी कि, इतने में मेरे पति आ गए। अब तो भई यहाँ तो सब लोग नमस्कार कुसी को करते हैं, चाहे जो भी हो, तो वो आते ही साथ सब वो नमस्ते, नमस्ते, नमस्ते नमस्ते। तो ये भी उन्हें नमस्ते करने लगी। तो कहने बैठिए न। कहने लगी मैं कैसे कि कोई वो यरवड़ा का जेल है कि मीना बाग। उसमें इतना objection क्या है? कहने लगी, ये अंक : & 2 2008 चैतन्य लहरी 25 भगवान जी चिढ़ाती हूँ। कहने लगे बस करो, आप हो। मैंने कहा मेरे लिए तो पता नहीं, पर जरा लम्बे हैं मेरे Husband। तो कहने लगी, तुम तो निरी गवार मुझे मत चिढ़ाया करो। इस कदर का घमण्ड, इस हो। तुमको तो वो फलानी जगह में कोठी माँगनी चाहिए थी मैंने कहा काहे के लिए? तो कहने लगी वाह इतने बड़े आदमी हैं तो क्या तुमको बड़ी कोठी नहीं चाहिए? मेंने कहा कि भई मुझे तो छोटा ही घर अच्छा लगता है, सफाई वफाई करने में मुश्किल position है और उन लोगों को तो सारी Civil list ज्यादा नहीं होती। कहने लगी तुम्हारे घर में नौकर मालूम है कि इनका नम्बर इतना, तो उसका नम्बर नहीं है, मेंने कहा, है पर उसको बहुत ज्यादा काम पड़ेगा न। तो बेहतर कदर यहाँ पर artificiality, ऊपरी तरह से बात ऊपरी तरह से तामझाम। बस, उसके बाद तो वो समझ लीजिए कि वो मुझे रोज एक फोन करती थी, क्योंकि बैठे-बैठे discussion करती रहतीं थी थी। मैं तो परेशान हो गई। मैंने कहा इसको क्या हो इसको ये promotion मिला, उसको बो Promotion गया भई ये? अभी तो ये मीना बाग से घबराती थी मिला। अच्छी भली पढ़ी-लिखी औरतें, educated । और वो रोज़ ही आने के लिए बैठी ही में नहीं आता। इस तरह की चीजें जब मैंने देखीं तो मैंने सोचा कि यहां के लोगों का दिमाग, क्या हो जाएगा? गर समझ लीजिए कोई बिल्ली से आप कह दें कि आप घोड़ा हैं तो वो घोड़ा रहा एक तरफ तो वो बिल्ली क्या हो जाएगी ये बता दीजिए। वही हाल यहाँ के लोगों का है कि हर आदमी जो है ये सब खत्म हो चुकी हैं। अब असलियत पर है वो अपने को पता नहीं क्या समझता है। और ये सब बाहर के लादे हुए गोवर के टुकड़े उनको के लिए ये जुरूर है कि कायदे के कपड़े पहने, लेकर के कौन सी शान बघारते हैं ? ये तो कल गिर कायदे से रहे, सुशोभित रहे। ये सब चीज़ ठीक हैं जाएगी। ये सब चीज़़ गिर जाएगी, ये सब विनाशी चीजें हैं, इसमें रखा क्या है? आज बड़े कुर्सी पर कृत्रिमता को जब आप हटाएँगे तभी आप देखिएगा बैठे हैं, कोई भी आदमी हो, कितना भी खराब हो, कि अन्दर बो शिवतत्व आपके अन्दर चमक रहा बस एकदम लोफर हो, कैसा भी हो, वो कुर्सी पर है। आपकी जो शान है वो देख रही है दुनिया, कहते बैठा है, सब हाथ जोड़े खड़े हुए हैं! वो कोई हैं ना एक ऐसे एक साहब हैं। आप मिले है उनसे? प्रतिबन्ध है ही नहीं, किस तरह का आदमी कुस्सी पर वैठे? अच्छा और गर वो आदमी उस कुर्सी से उतर गया उसका सारा कच्चा चबिट्ठा आप पूछ लीजिए। जब तक कुर्सी पर है वो तो समझ लीजिए दे दिया? ये सहजयोगियों की बात होनी चाहिए। भगवान से भी बढ़कर है। भगवान ही लोग उसको कहते हैं। आपको आश्चर्य होगा कि बहुत से लोग मेरे Husband को मिलने आते तो पूछते थे वो कि ये वो तो राक्षसों को भी क्षमा करते थे। इस प्रकार वो भगवान जी हैं? तो मैंने कहा कोन भगवान जी? साहब, श्रीवास्तव साहब। वो भगवान जी हैं, भगवान जी? तो, मैंने कहा फिर शास्त्री जी कौन हैं। कहने कोई सता ही नहीं सकता, कोई दुख ही नहीं दे लगे, अरे वो परमभगवान हैं। आप कीन? मैंने कहा, यहाँ मैं नौकरानी हूँ। तो तब से मैं अपने पति को कदर की जूरि, इस कदर की जुबरदस्ती और उसमें एक औरतों में जो एक विशेष रूप से एक विचार आता है, कि ओ, मैं इसकी पत्नी हूँ। मुझे तो ये भी नहीं पता था कि मेरे पति कहाँ, कितना, क्या उनकी इतना तो उसका ये। मैंने कहा कि ये क्या घोड़े की list बना रहे हो या काहे की list बना रहे हो। ये किसलिए तुम इस तरह की बातें करते हो? और उन लोगों की बातें मुझसे समझ में मेरे आती नहीं है छोटा ही घर अच्छा है। इस हम लोगों के साथ पढ़ी लिखी औरते थीं वो अपना कुछ पढ़ना न लिखना न कुछ जानना न कोई बातें, बस ये कि पति की नौकरी कौन सी है। उसी के प्रकाश में मार अपने को....... इस कृत्रिम जीवन से आप एकदम हट जाइए, इस कृत्रिम जीवन को एकदम आप छोड़ दीजिए। ये जो कुछ भी मेमसावियत है मीना बाग, समझ आना है क्योंकि हम सहजयोगी हैं। और सहजयोगी लेकिन अपनी सीमा में । अपनी सीमा में। और इस आह क्या चीज है! फिर वो कु्सी से उतरें या कुर्सी पर बैठें चाहे वो बाहर जाएं, चाहे वो अन्दर जाएं, सारी दुनिया उनके नाम से ही सोचेगी वाह क्या नाम एक ऐसा चरित्र होना चाहिए, एक ऐसा विशेष स्वरूप होना चाहिए कि जो कहें कि शिवजी जो थे जिस शिवतत्व को हमने मान्य कर लिया और उनका क्षमा तत्व जब हमारे अन्दर बस गया तो हमें सकता क्योंकि जब हमें याद ही नहीं रहा किसने क्या तकलीफ दी तो हमें कोन सा दुख होगा? इस अक : & 2 2008 26 चैतन्य लहरी शिवतत्व में उतरने के लिए सबसे पहले आपको उसमें अन्तर्निहित जो चेतना है उसी का प्यार है। समझ लेना चाहिए, कि बिल्ली बिल्ली है, ये घोड़ा जैसे मैने आपसे बताया था कि मैं कश्मीर गई थी नहीं है और विल्ली पर चैठा नहीं जाता है नहीं तो तो वहाँ पाँच मील दूरी पर मुझे vibrations आए, बिल्ली मर जाती है। ये नहीं सोचना है कि हम दिल्ली में रह रहे हैं तो हम कोई विशेष हो गए। जैसे ये सोच लिया ऐसे ही आपका जो हैं सारा चरित्र ही एक हास्यास्पद, Idiotic हो जाता है। एक और भी मजेदार बात है कि एक साहब minister साहब से मिलने गए एक साहब वहाँ बहुत कूद रहे थे, तो उन्होंने कहा, साहब आप इतना क्यों कूद रहे हैं? आपको पता नहीं मैं पी.ए. हूँ। उन्होंने कहा, अच्छा आप पीए हैं, अच्छा नमस्कार! ये तो पीए हुए आदमी हैं। तो इस प्रकार इस दिल्ली का बहुत अनुभव मुझे आया। और उस पर भी मेरे जैसी एक दो गवार औरते थीं, तो हमलोग बैठे-बैठे धर्म की इसकी मिट्टी, पत्थर सीमेंट, फीरमेंट जो भी लगा है , चर्चा, इसकी चर्चा करते थे। बहुत कम, लेकिन अधिकतर सबमें ऐसी बातें। जो लड़कियाँ हमारे हुए मेरे बच्चों का महात्म्य है जिन्होंने अपनी मेहनत साथ कालेज में पढ़ती थी, इतनी सीधी, सरल, सादगी से रहने वाली, उनको पता नहों एकदम उनके पर कैसे चढ़ जाते है ? फिर हर चीज़ में ये मेरा घर है, एक गर उनका नैपकिन खो गया तो वो तो ये आपके ऊपर निर्भर है कि जब आप इसके सारे ब्रह्माण्ड को फोन करेंगी, भई तुम गलती से मेरा नैपकिन तो नहीं ले गए। अरे भई एक गया तो को जागृत करने आ रहे हैं, शिवतत्व पाने आ रहे हैं, गया, चूल्हे में गया। एक किसी का चम्मच खो गया तो उसके लिए वो सारी दुनिया को फोन करेंगे कि भई वो एक मेरे यहाँ से चम्मच खो गया है, इन्हें है। जो लोग Serious होते हैं उनको रोज़ चाहिए शर्म भी नहीं आती। किसी चीज़ की, इतनी बेशमी से इस तरह की कंजूसी की बातें करना और ऊपर हूँ तो मेरा ही मन करता है कि दो थप्पड़ इनको से आप लिपस्टिक लगाओ ये बनाओ अपना शृंगार लगाऊ। जब आपके अन्दर शिवतत्व जागृत हो गया करो और अन्दर से तो आप इतने टुच्चे, छोटे है तो आप इतनी मनहूस शक्ल बनाकर क्यों आए तवियत के लोग हैं। उनको क्या इतना महत्व देना, जो कि छोटी-छोटी चीजों के लिए, इतनी बरबाद चौजों के लिए परेशान हैं। कभी-कभी तो आश्चर्य करो, माफ़ करो। मैंने कहा देखो फिर से मत कहना हो जाता है कि किस तरह से ये लोग अपने को इतना बड़ा बनाकर दिखाते हैं और होते हैं कितने है कि हम लोग तो शिवतत्व को प्राप्त हैं और हमारे टुक्चे, कितने Iow level के। उनसे तो एक चीज़ अंदर आनन्द की उदियाँ उठ रही हैं हम Serious नहीं छूटती, एक इतनी सी चीज किसी के पास रह जाए तो उनके प्राण निकल जाएंगे। वो सब अपने है कि कोई मर गया है? और ये भी एक बीमारी साथ ले जाने वाले हैं । तो शिवतत्व में जब हम अविनाशी चीज को सोचते हैं तो संसार की सारी चीज जो है वो हमारे लिए क्षण भंगुर है। किसी चीज़ का महात्म्य ही नहीं। उसके पौछे छिपी हुई या मैंने driver से कहा कि यहाँ से चलो, वहाँ से चलो। तो वो मुझसे कहने लगा, यहाँ तो कोई भी चीज नहीं, तो मैंने कहा नहीं चलिए यहाँ कुछ होगा जरूर। जाके देखा तो बहुत मुसलमानो के ऐसे छोटे-छोटे घर थे, आगे जाकर पूछा यहाँ क्या है? कहने लगे, यहाँ हजुरत इकबाल का एक बाल है। मेरे अब भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं, एक बाल, इकबाल, माने कीन मोहम्मद साहब, एक बाल वहाँ रखा हुआ था और पाँच छः मील पर मैंने उसे पकड़ा। इतने vibrations थे। आप सोच लीजिए एक बाल में क्या शक्ति होगी! इसी तरह से ये आपका जो आश्रम है, उसका महात्म्य नहीं है लेकिन इसके अन्दर बसे से प्यार से इसे बनाया और हर चीज़ इसकी vibrate करी है। आगे लोग मेरा फोटो न मिले तो इसी के बाहर बैठकर के vibrations ले सकते हैं। अन्दर आएं तो याद रखें कि आप अपने शिवतत्व उसी को जानने आ रहे हैं । और जिस आदमी शिवतत्व होता है वो आनन्दमय, हँसता खेलता रहता अपने मुँह पर दो थप्पड़ मारें। क्योंकि मैं जब देखती हैं? और सवेरे से माफ़ करो, माफ़ करो, भई काहे की माफ करो। सरवेरे से चलता है माफ़ करो, माफ़ माफ करो, नहीं तो एक लगाऊँगी। क्योंकि बात ये कैसे हो सकते हैं? कोई हमारे घर में मातम हो रहा उत्तर हिन्दुस्तान में हैं खासकर आदमी लोग जब उनकी बीवी के साथ होते हैं तो देख लेना चाहिए, वा ऐसा मुँह लटका लेते हैं जैसे किसी पशानी में चले जा रहे हों। कभी मैंने इधर के आदमियों को यर अंक : 1 8 2 - 2008 कमान ात्री चैतन्य लहरी 27 है, सब आनन्द हमारे लिए पूरा भरा हुआ है और हम उससे अछूते ही रहे। आपस में जो सहजयोगियों का आपस में मेल-जोल है वो तो बहुत अच्छी बात दस कदम पीछे चलती है। वो बिचारी देखती चलती है लेकिन अपनी गृहस्थी में भी इसी तरह से है कि उसका चमरोदा कहां जा रहा है उसके पीछे मेलजोल होना चाहिए। न कोई स्त्री पुरुष को dominate करें न पुरुष स्त्री को dominate करे, सब लोग अपनी अपनी जगह आनन्द में रहें। इसमें आपको ये भी है यहाँ औरतें इसलिए भी चिढ़ती हैं आदमी से आदमी किसी औरत से बहुत बात कर रहा है तो बहुत, दिल्ली मैने देखा, इनके पति काम में बहुत व्यस्त हैं। अब अगर आपके अन्दर शिवतत्व है, आपके हृदय में शिवतत्व है इस शिवतत्व से ही आनन्द मिलता है। गर आप चाहें अपने पति से, आप आनन्द तो नहीं पा सकती, उससे सुख पा सकती हैं, उससे अपने अहंकार को अपने पाल सकती हैं लेकिन पति से आपको आनन्द नहीं मिल सकता। आनन्द के लिए तो आप ही का अपना शिवतत्व है उसको पा लीजिए। तो फिर दुखी रहने जैसे चन्द्र और चन्द्रिका जैसे अटूट सम्बन्ध में। की कौन सी बात है? गर उसको काम करना है, मेहनत करना है, हम तो अपने जीवन में आप बताएं तो आपको विश्वास ही नहीं होगा जितने साल तक हम India में रहे हमारे पति ने एक भी छुट्टी नहीं चाहते हैं। कितना आपस में मधुर उनका सम्बन्ध है ली, एक भी। वो भी इसलिए छुट्टी ली एक दिन, उस दिन मौलाना आजाद मर गए थे और सब चीजू बन्द ही हो गई थी। लेकिन मैंने कभी शिकायत नहीं की, मैं अपने आनन्द में मग्न हूँ, मुझे क्या? वो तो अच्छा ही काम कर रहे हैं, देश का काम कर रहे चाहिए कि ये जो है ये शिव और पार्वती का हैं, मंहनत कर रहे हैं, तो काम करने दो और उनके काम की वजह से मुझे भी तो कितने लाभ हो रहे की हैं, शिवजी ये नहीं कहते कि तुम मेरे ढंग की हैं, तो उनको बार-बार सताने से फायदा क्या? और तकलीफ देने से फायदा क्या? उल्टे अगर वो थके आए, उनको तकलीफ हों, उनको देखना चाहिए, उनको आराम देना चाहिए, उनको संभालना चाहिए। यही चीज हमारे यहाँ हो नहीं पाती है इसलिए भी आनन्द बढ़ता नहीं। औरतें तो दिन भर आराम औरतों से हँसते खेलते बोलते नहीं देखा। ज्यादातर तो कहते हैं हमारे भैया लोग जो यू.पी. के हैं कि आदमी आगे चलता है और बीबी घूँघट निकालकर चलू। और आदमी लोगों को तो बीवी से बात करना किसी आप होटल में जाकर बैठिए, किसी रेस्तरां में बैठिए, वहाँ अगर आप देखिए कोई समझ लेना चाहिए कि इसकी वो बीवी नहीं है impossible। क्योंकि बीवी से बात करते बक्त उनको पता ही नहीं क्या बिच्छू काट जाता है कि सॉप काट जाता है। और ये इतना common experience मैंने देखा है कि बीवी घर में हैं गर, उससे बात भी नहीं करने का, न उसे कहीं बाहर ले जाने का, उसे कोई companionship, नहीं। और शिव और पार्वती ये दानों अटूट सम्बन्ध से बँधे हैं, किसी और के साथ उनका सम्बन्ध चल ही नहीं सकता और आनन्द आ ही नहीं सकता क्योंकि स्त्री उनकी शक्ति है और यही कार्य करती है जो ये और किस तरह से आदान-प्रदान और किस तरह से आनन्द! तो आदमी जो है वो हँसता खेलता रहे, औरते जो हैं वो भी हँसती खेलती रहें और आपस में बड़ा प्रेम और आनन्द आता रहे, उसे कहना (अस्पष्ट)। शिव अपने ढंग के हैं पार्वती अपने ढंग हो जाओ और पार्वती ये नहीं कहतीं कि तुम मेरे ढंग के हो जाओ। न कोई जुबरदस्ती, न कोई ये और आपस में एक तरह का बड़ा सा ही अच्छा (Love) जिसे कहते हैं, प्यार मनमुटाव चलते रहता है। शिवतत्व से हमें ये भी समझना है कि जो विवाह हमारे अन्दर होते हैं वो तभी पुर्णतया सखी करती है और शाम को चाहती हैं कि आदमी बारह हो सकते हैं जब पुरुष और स्त्री दोनों ही अपने आनन्द को प्राप्त करें। जब तक स्त्री ये सोचेगी कि मैं आदमी को कितना कव्जा करूं और आदमी सोचेगा कि मैं अपनी औरत को कितने कब्जे में रखं तो उस वक्त में ये समझ लीजिए ये आनन्द खत्म हो जाता है। और इतनी बेवकूफी की बात है कि जब अपने सामने सब कुछ थाली भरकर रखा हुआ एक बजे तक उनको घुमाते फिरे सो इसमें आपको ये पता होना चाहिए कि आपको अगर पूरे रात भी घुमाए तो आपको आनन्द नहीं आने वाला क्योंकि आपका आत्मा ही जागृत नहीं है। आपका आत्मा जागृत जब हो जाए तो आपको इसकी जुरूरत ही नहीं होती है। हम दोनों आदमी आज तक कभी (शेष भाग पृष्ट 36 पर.....) श्रीष् महाशिवरात्रि पूजा "उत्पत्ति, आदिशक्ति और शिव का स्वरूप'" दिनांक-29-2-1976 म अपनी आँखे मुँद लेते हैं उसी दिन हम लोग खत्म हो जाते हैं। इस दुनिया से हम लोग निकल जाते हैं और हमारी स्थिति परलोक में हो जाती है। शिवजी, आप जानते हैं, हमारी (सूर्यनाड़ी पर वास करते हें ) उसके बाद, उनके प्रगटिकरण के बांद, उन्हीं के चन्द्रनाड़ी पर वास करते हैं और चन्द्रनाड़ी पर बैठे वे स्थिति का सारा कार्य अपने अन्दर करते ही हैं लेकिन हमारा जो प्राण है, उसकी भी स्थिति वो के तीनों रूपों को अलग-अलग प्रकाशित करती है बनाए रखते हैं। शिवजी के बगैर हमारे प्राण नहीं चल सकते। अब ये काफी लम्बी चौडी बाते हैं, ये मेरी किताब में मैंने काफी खोल करके कही हुई हैं। शिवजी का स्वरूप, वे एक परम सन्यासी में सारी सृजन की हुई सृष्टि सारा manifested हैं। जैसे कि परमात्मा का एक स्वरूप है कि वो अन्दर से सन्यस्थ है। वो किसी वजह से ये रचना नहीं करते, उनको कोई कारण नहीं है। वो अपने उनका सम्बन्ध परमात्मा के उस अंग से हमेशा ही करते हैं, उनकी whim है, उनका मज़ा है, वो अगर बना रहता है जो कभी भी प्रगटिकरण नहीं होता है चाहें तो रचना करते हैं नहीं तो उसे तोड़ देते हैं। एक सन्यस्थ आदमी संसार में जो बहुत से विराजते प्रकट होती हैं वो being से होती हैं और जो नहीं हैं, वे उनके प्रतीक हैं। मेरे सन्यास से अर्थ जो होती हैं बो non-being की हमेशा बनी ही रहती हैं। दुनिया में माना जाता है उससे नहीं है, आप सब उसमें सदाशिव का स्थान वेसा ही है जैसे एक हीरा जानते हैं। सन्यस्थ उसे कहना चाहिए जो आदमी है ऐसे समझ लीजिए कि किसी वृक्षे को पूर्णतया प्रगटित होने से पहले उसका बीज देखा जाता है और इसीलिए उसको बीजस्वरूप कहना चाहिए। इसीलिए शिवजी की अत्यन्त महिमा है। अन्दर से शक्ति अपना स्वरूप धारण करके आदिशक्ति हुए के नाम से जानी जाती है। वही आदिशक्ति परमात्मा जिसको आप जानते हैं- जिनका नाम ब्रह्मा विष्णु और महेश, माने शिवशंकर है। यानि एक ही हीरे के तीन पहलू आदिशक्ति धारती है। और जब प्रलयकाल संसार विसर्जित होता है, उसी ब्रह्म में अवतरित होता है, तब भी सदाशिव बने ही रहते हैं और जो कि एक nonbeing है। परमात्मा की जो शक्तियाँ Self Realized होकर के उस दशा में पहुँच गया जहाँ वो साक्षी है। अन्दर से वो सन्यस्थ होता है। बाहर से सारे संसार में रहते हुए भी वो महान सदाशिव का स्थान है । सदाशिव से स्थिति बनती है सन्यासी होता है। उसमें कुछ किसी से बताना नहीं पड़ता कि मैं सन्यासी हूँ, मैंने सन्यास ले लिया है लेकिन जो अन्दर से मन हमारे अन्दर सन्यास ले लेता है, जो अन्दर से सन्यस्थ हो जाता है वो स्वरूप श्री शिव का है। और जो संसार में हम विराजते हैं की ही शक्ति से होता है। इस कारण सृजन में और संसार के जो कार्य करते हैं और संसार में जिसे भी हम भोगते हैं, वो भोक्ता स्वरूप परमात्मा का जो हवेली में या भवन में उसके नींव का होता है, है वो उनका श्री विष्णु का स्वरूप है । इसलिए उसके foundation का होता है। ये दिखाई नहीं देती, विष्णु के स्वरूप में वो भोक्ता हैं, शिवजी के स्वरूप में वो सन्यस्थ और ब्रह्मा के स्वरूप में वो सृजन करने वाले हैं, सृजन कार्य करने वाले हैं, कर्ता हैं। इस सन्यासी के ओर दृष्टि करने से एक अजीब सी चीज़ दिखाई देती है कि नीलवर्ण का इनका शरीर, क्योंकि यह चन्द्रमा की लाइन पर हमारा इस संसार में जीवन चलता है, जिस दिन बो बैठे हुए हैं, इनके गले में, हाथ में सर्प लिपटे हुए टूट जाए, बिखर जाए, कितना भी मिट जाए, उसके कण-कण भी हो जाएं, तो भी वॉं चमकता ही रहता है। कभी नष्ट नहीं होती उसकी चमक। उसी प्रकार कुछ और संसार के सृजन में जब तक स्थिति नहीं बनेगी, तब तक कोई भी सूजन नहीं हो सकता। पहले स्थिति बनाई जाती है। Existance, अस्तित्व लाना पड़ता है किसी भी चीज का। अस्तित्व सदाशिव उनका वही हाथ होता है जैसे किसी बड़ी भारी जो नींव होती है वो दिखाई नहीं देती हैं लेकिन उसके बगैर कोई भी building खड़ी नहीं रह सकती। उसी तरह सदाशिव हमारे अन्दर भी हृदय में निवास करते हुए आत्मास्वरूप होते हैं। जब तक वे अपने हृदय में आत्मा स्वरूप स्थित होते हैं तभी तक अंक : 1 & 2 -2008 29 चैतन्य लहरी हैं, इनका सारा ही अलंकार सर्पों से हो जाता है। उनको बहुत मुश्किल है मनाना। जीजस क्राइस्ट भी सर्प शीतल होते हैं, शान्त होते है, दाहकता को पीते नहीं कर सकते, कभी भी नहीं कर सकते। उनके है और वो अपने ऊपर सर्प को पाले हैं। माने लिए सिर्फ महादेव, श्री शंकर समर्थ हैं। उनकी बात संसार का जितना भी दुष्ट, जितना भी विपरीत, को ये दोनों भी नहीं टाल सकते। इसलिए उनकी जितना भी डंक, जितनी भी जबरदस्त चीजें संसार को नष्ट करने वाली हैं सबको अपने शरीर में महाशिवरात्रि के दिन लोग उपवास क्यों करते समाए हुए हैं। दुनिया भर का गरल वो पीए हुए, अपने आप जानते ही है, कि उन्होंने सारे गरल को कौन से आधार पर बनाई गई? या तो किसी 420 में ही सारा पी लिया और जो कुछ भी गरल हुए आराधना करनी चाहिए। आश्चर्य की बात है कि है? मेरी कुछ समझ में नहीं आता कि ये प्रथा लोगो ने शास्त्रों में ये बात लिख दी। आज के दिन शुरु संसार का होता है वो अपने अन्दर पीकर संसार को उन्होंने गरल पिया था और आपको भी आज के ठण्डा रखते हैं, संसार को सुख देते हैं। जो कुछ भी दिन हर चीज खाने की इजाज़त है, कि आज आप मर जाती है चीज, खत्म हो जाती है वो सारी ही उनके राज्य में जाकर बसती है और जो बेकार के लोग होते हैं, जो महादुष्ट होते हैं उनके कारागार भी इतने जोर से हृदय चक्र पे खिंचाव पड़ रहा है, जिस उन्हीं के चरण धूलि से बन्द हो जाते हैं। वो लोग सहजयोगी ने आज उपवास किया है मेरे हृदय चक्र बन्धित होते हैं, शिवजी की कृपा से। उनके सिर पर चन्द्रमा का राज्य है, चन्द्रमा स्वत: लक्ष्मी के भाई हैं सहजयोगियों को, सोच लेना चाहिए कि जो दिन और इसीलिए कहा जाता है कि अपने साले को बड़ा ही celebration का है, जिन्होंने गरल पीकर उन्होंने अपने सिर पर रख लिया है। अजीब सा वर्णन कवियों ने किया हुआ है और बहुत सुन्दर उनके सिर पे गंगा का बोझा उन्होंने उठाया हुआ है। वाले हैं । गंगा जैसी गर्ववती को भी उन्होंने जटा में बाँध लिया। इतनी उनकी जटाएं जबरदस्त हैं! मनुष्य में जो अहंकार होता है उसे भी वो अपने अन्दर पी लेते हैं और इसी प्रकार वो संसार की अहंकारी लोगों से रक्षा करते हैं । वो अतुलनीय हैं, उनका कोई वर्णन शब्दों में नहीं कर सकते। लेकिन है। आज खुशियाँ मनाने का दिन है कि उन्होंने सारे उनके अन्दर एक बहुत बड़ा, एक बहुत ही असाधारण एक शक्ति है जो किसी भी देवी-देवता में नहीं हैं- वो है क्षमा की शक्ति। वे दुष्ट से दुष्ट महादुष्ट को भी क्षमा कर सकते हैं, जिन्हें गणेश जी क्षमा नहीं कर सकते, जिन्हें येसुमसीह नहीं क्षमा कर सकते, उनकों भी सदाशिव क्षमा कर सकते हैं। इसीलिए हमेशा जब भी क्षमा माँगनी होती है। मराठी) तो उन्हीं से क्षमा मांगी जाती है। क्योंकि कुछ-कुछ ऐसी बाते हैं जिसे गणेश बिल्कुल नहीं क्षमा कर सकते, जिसे कि हम कहते हैं कि sin against the mother, माँ के खिलाफ कोई सा भी बैठकर उपवास करते हैं घर वाले। कैसे समझाया पाप करना। जितने भी sex पाप हैं उसको श्री गणेश कभी भी नहीं माफ करते। कभी नहीं कर सकते, गरल भी पी लें तो आज आपने बराबर निकाल दिया कि आज तो हम उपवास करेंगे। मेरा आज को खींचे जा रहा है। अन्धाकरण नहीं करना चाहिए के संसार में विजय प्राप्त की, उस शिवजी का जब इतना बड़ा महोत्सव है उस दिन भूखा मरना किसने बताया है? जिस दिन मनुष्य खुश होता है उस दिन ज्यादा ही खाता है। आज तो दो रोटी ज्यादा खाने का दिन है, आज सबने उपवास करके रखा हुआ है। और इसलिए शिवजी सबसे नाराज हैं, और इस चीज को शिवजी भी नहीं माफ कर सकते। तो हो गया आप लोगों का कल्याण। तभी आज कल इतने बड़े-बड़े शिवभक्तों के पहले heart attack आता बहुत ही उनका माने बो सबका गर्व हरण करने अपनी संसार का जो कुछ भी सारा गरल था वो उसे पी लिया जो कुछ भी अहित था, जो भी पाप था, जो कुछ भी दुष्टता संसार में फैली हुई थी सबको उन्होंने शोषण कर लिया, ऐसे शिवजी के महान दिवस पर्व में हमको इस तरह के मनहूस काम करना नहीं चाहिए। गर हम किसी के जन्मदिवस पर उपवास करते हैं तो उसके मरने पर हम लोग क्या खाना खाएंगे? सब उल्टा कारोबार हमारे यहाँ चलता है, कोई मरता है तो ब्राह्मण बैठकर खाना खाते हैं, जब कोई जन्म होता है तो सब लोग ******* जाए, कौन से शास्त्र में इसका आधार है और शास्त्रों में भी महामूरखों ने इस तरह की चीजें भर दी हैं। ू चैतन्य लहरी अंक : । & 2 2008 30 है? कुछ अभिनव चीज है, कोई बड़ी भारी चीज है, अत्याचार भर दिया है। ये सोच समझ रखना चाहिए कोई विशेष रूप की चीज है। फिर अपने विचार भी बदलने चाहिए, अपनी आदतें भी बदलनी चाहिएं। हमेशा इस तरह से उल्टी बात हम क्यों करते हैं, मेरी समझ में ही नहीं आती और हर एक उल्टी बात ऐसी उल्टी बैठती है कि उससे शिवजी तो उठ और कहेंगे शिवजी खाते थे तो हम भी खा रहे हैं ही गए हैं इस संसार से, और उनको फिर से बिठाना चरस और भंग। शिवजी तो इसलिए खाते हैं चरस मुश्किल हो जाता है। और अगर ज्यादा देर खड़े रहें तो तांडव शुरु कर देंगे, उनका कोई ठिकाना नहीं। जाना पड़ता है तो वो उसे खाते हैं चाहे जिसे भी खा इसलिए सब लोग विचार-पूर्वक समझकर के और लें उनको क्या मतलब है। जैसे कि समझ लीजिए चलें। आज उनका महान, बहुत महान दिवस है। आज से promise करें कि अगले महाशिवरात्रि से बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाएगा, उनका गुणगान किया जाएगा आपको, हो सकता है कि विष्णु जी वो तो शिवजी ही हैं जिन्होंने गरल पी लिया और जैसे नहीं उनको पसंद अलंकार, उनके अलंकार वो हैं जो दुनिया भर के भंग पीकर के संसार के और हैं। उनके लिए आप भभूत लगाइए, दुनिया भर की राख उनको चढ़ा सकते हैं आप, उस सब चीज ये भंग कहां dump की जाए? तो उनके अन्दर भर को वो तैयार हैं लेकिन उन्होंने उपवास करने की बात कही हो, ये तो मुझे पता ही नहीं है । व्रत करना जिसको देखो उसने अपने शास्त्र में दुनिया भर का 1. कि आज के दिन उपवास का क्या अर्थ है? सब लोग मिठाई खाएं क्योंकि आज मन्दिरों में बैठे हुए लोग मिठाई खाना चाहते हैं तो मिठाई चढ़ाई जाए। अभी रात भर भांग पीऐंगे बैठकर और चरस खाएंगे और भंग क्योंकि उनको जब subconscious में aeroplane है, उससे आपको कहीं जाना है तो आपको पहले पाइलट तो होना चाहिए। तो वो भंग पीकर के और चरस खा के शिवजी नहीं हो सकते जितना भी भंग है उनका शोषण कर रहे हैं। ताकि दी जाती है कि भई तुम शिवजी हो तुम पी लो, तुम गरल पी लो, तुम भंग पी लो। तो चले सब लोग भंग पीने आज कि आज भंग पीकर सबलोग शिवजी हो रहे हैं। आप में से कितने लोग शिवजी शब्द ही बदल गया है। व्रत का मतलब उपवास करना हो गया है। ऐसे व्रत करना चाहिए जैसे जिस time राम चन्द्र जी वनवास गए, तब व्रत करना के पांव के धूल के बराबर हैं? वो तो भंग इसलिए चाहिए। जब repentence की बात हो, जब पश्चाताप हो रहा हो, उस समय का उपवास समझ में आता है। अब क्या आपको पश्चाताप हो रहा है कि हैं, दुष्ट भी होते हैं। इनको कहाँ रखा जाए? घर के उन्होंने गरल पी लिया? कुछ सोचने की बात है। सारे संसार की विपत्ति, सारे संसार की आफें, सारे संसार का गरल आज के महान दिवस में उन्होंने पी लाओ मैं दुनिया भर का गरल पीता हूँ। इसलिए लिया। इसलिए आज को महाशिवरात्रि कहते हैं। सारी रात उन्होंने ले ली, अपने अन्दर| रात्रि का जितना भी उनका, जितना भी darkness संसार की चरस पीते हैं, तुमसे बड़े महामूर्ख तो संसार में कोई है उसको उन्होंने अपने अन्दर समा लिया। अब मैं आपके लिए कोई force तो करती नहीं हूँ लेकिन आप करके देखिए। अभी आप निश्चय करें इसी वक्त कि अगले महाशिवरात्रि से हम उपवास बिल्कुल नहीं करेंगे और vibrations देखिए कितनी जोर से पीते हैं कि उनके अन्दर रखा ही जाता है सारा भंग का स्टोर। संसार में भंग होती ही है, राक्षस भी होते अन्दर आप के यहाँ गर ऐसी चीज हो तो उसे रखने की भी व्यवस्था होनी चाहिए। शिवजी ने कहा उनके पास ये चीज़ stored रखी हुई है कि भई तुम रखे रहो। तो आप लोग जो उनके नाम पर भंग और है ही नहीं। एक सोचना चाहिए सहजयोगियों के लिए कि आपको vibrations तो कभी आए नहीं, आपने अभी जाना नहीं कि ये चीज क्या है, ये क्या आपके अन्दर से बह रहा है, ये क्या आपके अन्दर हो रहा ु आती हैं, और माफी मांगिए। ৩৩ परम तत्व पाने का विशेष पथ' प्रजापति यज्ञ मुम्बई-2-3-1976 प स्थान है कि आपसे तो देवलोक भी ईष्ष्या करे इस संसार में जो सबसे बढ़कर के माया है वो है पढ़त मूुर्खों की। पढ़त मूर्ख: उन्हें कहते हैं किसी देवों ने इस तरह से उंगलियों के इशारे पर जिनके लिए कबीरदास जी ने कहा है 'पढ़ि पढ़ि जागृति नहीं की है, एक गणेश छोड़ कर। किसी भी पण्डित मूर्ख भए।' और इसीलिए मैं किताब लिखने साधु सन्तों से ये कार्य नहीं हुआ था जिन्होंने हजारों में भी बहुत डरती थी और जब किताब लिखने का सोचा भी है तो भी ऐसे महामूखों के हाथ में वो नहीं लोग पार हो गए हो, पर इशारे पर कुण्डलिनी उठाते पड़नी चाहिए। वो लोग उसी प्रकार हैं जिस प्रकार कोई इन्सान किसी भी देश में नहीं जाता है और ये कहाँ है, और कैसी झूठी बातें सारी दुनियां में बताता है कि मैं वहाँ गया था फिर वहाँ पर ये देखा, फिर वहाँ ये था, वहाँ वो था, फिर वो ऐसा हुआ और फिर किसी ने ये कहा था, उसने वो कहा था। अपनी कोई उनके पास प्रचीती नहीं होती। लंकिन आप जो सहजयोगी हैं मेरा मन यह चाहता है कि बन्द कर दें इस आप सबको इसकी प्रचीती आई है। आपके अन्दर से vibrations फूटे हैं माने ये चैतन्य बह रहा है। भी हैं, प्यार भी करते हैं, दुलार भी करते हैं, कि आपको इसका अनुभव आया है कि चैतन्य क्या चीज़ है। आप एक बड़े भारी स्थान पे बैठे हैं। वो तुम्हारा कहाँ बहक रहा है? आप जानते हैं कि लोग बड़े-बड़े भाषण दे सकते हैं, इसी चैतन्य के आपके हाथ से हजारों लोग ठीक हो रहे हैं और हो बारे में बता सकते हैं, बहुत बड़े श्लोक पढ़ सकते हैं, लेकिन उनको अनुभूति इतनी भी नहीं हुई और जो सर्वव्यापी all pervading जो प्रेम शक्ति है वो वो परमात्मा के राज्य से अभी बहुत दूर हैं। आपकी entry ही चुकी है। उसका एक विशेष कारण है। आपने पढ़ा होगा कि गणेश जी का जन्म सिर्फ देख रही है, आप झूठ बोलते हैं वो भी देख रही हैं। उसकी माँ ने ही किया था। अपनी सृष्टि रचना से और आप माँ की निन्दा करते हैं वो भी वो जान पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया था। खुद ने ही ये सब किया था इसलिए कि बाद में वो बहुत ही superficially आप रह रहे हैं ये भी वो पिता को जान सकें। और उसको एक विशेष जानती हैं। सहजयोग के प्रति आपका commitment शक्तिशाली बनाया कि उसकी ओर ब्रह्मा, विष्णु, महेश कोई भी नज़र उठाकर के भी न देख सके। इतना वो शक्तिशाली था। एक विशेष रूप का वो घड़ी, हर पल आपको guide कर रही है। तो भी बालक था और उसी की पुनरावृत्ति आज इस कलयुग में हुई है। आपको भी मैने अपने सहस्रार से जन्म दिया है, एक विशेष रूप से। इसीलिए रहे हैं। छी, छी, छी, छी। बार-बार मैं आपसे कहती आपके अन्दर vibration छूट रहे हैं। लेकिन आपमें हूँ कि आपका स्थान पूजनीय है। आपमें से एक-एक से कितने लोग है जो अपनी इज्जत करते हैं ं? अपने की पूजा करनी चाहिए। ऐसा आपका स्थान है और को समझते हैं कि कोई विशेष चीज हमने पाई है? और उसी विशेष तरह से हमें रहना चहिए, अपने लोग, इस तरह से काम करने लग जाएं तो दुनिया जीवन को उसी तरह से बनाना चहिए। आपका स्थान देवलोक से भी ऊँचा बना है। आपका वो साल की तपस्या की हुई है। इतना ही नहीं कि तुम हो, और हर एक की कुण्डलिनी को जानते हो कि है। लेकिन इतनी बड़ी चीज पाकर के भी आप लोगों ने अपनी इज्जत नहीं की। या तो हमारा नसीब खोटा है कि हमें खोटे ही सिक्के मिले, वो चल ही नही सकते। आधा-अधूरापन इतना अधिक है, इतना अधिक है कि कभी कभी सहजयोग को अब खत्म करें। डाँटते भी हैं,, कहते सिर्फ जरा steady हो जाओ, steady हो जाओ। चित्त सकते हैं। आपकी बीमारियाँ भाग गईं। परमात्मा की आपके साथ-साथ हर समय घुम रही है, आपको सहारा दे रही है, आप गलतियाँ भी कर रहे हैं, वो रही है, और आप बहुत छिछोरेपन से रह रहे हैं और माँ बड़ा ही खराब हैं। ये भी वो शक्ति जानती है तो भी, तो भी आपको सहारा दे रही है, हर जगह, हर आप misguided हैं, आप रुपया पैसा और दुनिया भर की सत्ता उसके लिए इस तरह से छोटे होते जा भूतो न भविष्यति- इस तरह ऊँचे पर बिठाए हुए क्या कहेगी? आपका इतिहास में क्या नाम जाएगा? आप तो जानते हैं कि आपमें से बहुत लोगों ने पार पा अंक : 1 & 2 - 2008 चैतन्य लहरी 32 तंल बार-बार आपसे कहा है आप लोग सीख जाएं। आज प्रजापति का, ब्रह्मदेव का यज्ञ किया गया है। आप जानते हैं कि मनुष्य पाँच elements से बना हुआ है और ये जो पाँच तत्व हैं, उन तत्वों की है तक किया हुआ है। और फिर गिर गए।! जिस पथ पे इतने ऊँचे आप हैं उससे गिरना बहुत आसान है। सांसारिक चीजों में सहजयोग नहीं देखना है। परमात्मा के स्वरूप को जानने के लिए आप यहाँ आए हैं। हमें कितना रुपया मिला इसके बाद में, या हमारा करने का ही मतलब ब्रह्मा का पूजन करना क्या लाभ हुआ इसके बारे में, ये सांसारिक तुच्छ क्योंकि ये उनके आयुध हैं और ये भी प्रजापति को चीजों का महत्व करना सहजयोगी के लिए शोभनीय भी माँ ने ही दिए हैं। माँ के देखने ही से प्रकाश नहीं है। आप हमारे पास परमात्मा को माँगने आए हैं हुआ था, इसीलिए तेज का जो तन्मात्रा है या जो element है वो तैयार हुआ, या जो essence of element कहिए, तन्मात्रा का मतलब। मोँ ने जब के लिए आए हैं आप नहीं, जो साक्षात ज्ञान है, खुशबू ली, उसी सुगन्ध से ये पृथ्वी बनीं। इसी तरह से पृथ्वी तत्व तैयार हुआ। माँ के बोलने से ही sound का तत्व तैयार हुआ है, इसे नाद कहिए। इस प्रकार तन्मात्राएं जो हैं वो तैयार हुईं और जो लिए और अपने घर द्वार की चिन्ताएं। आप विशेष तन्मात्राओं से फिर element तैयार हुए हैं। ये सब स्थान पर बिठाए गए हैं, जो लोग विशेष होएंगे उन्हीं प्रजापति का कार्य है, ब्रह्मदेव का कार्य है और ब्रह्मदेव इसीलिए नहीं पूजे जाते हैं, उनको पूजा नहीं जाता। उसका कारण ये है कि वो संसार का सब पूजन सांसारिक चीजें माँगने के लिए नहीं आए। न ही कुछ मेरा भाषण सुनकर के झूठा ज्ञान इक्ट्ठा करने अन्दर से देखिए, जब भी आप ज्ञान मॉगिएगा अन्दर से ज्ञान बहेगा, हरेक चीज़ स्पष्ट दिखाई देगी कि यही ज्ञान बहुत हो गया अपने बाल बच्चों के है। से विशेष कार्य घटित होएंगे। मानव से अतिमानव हो गए हैं। आपके लिए यज्ञ भी दो किए थे पहले भी आप जानते कि पूरा प्रयत्न हम कर रहे हैं कि आपके सब अंग कमसकम परमेश्वर को समर्पित हो जाएं। उसी को की जरूरत नहीं है, वो अपनी जगह बैठे वो काम समर्पित करना है अपने को, उसके लिए जो भी स्वच्छता होती है जैसे कि मां जब बाप घर आने वाला होता है तो बच्चों को कैसे धो-पोंछकर के. साफ करके, सामने presentation देती है। वही करने के लिए बड़े प्यार से हम लोग ये यज्ञ कर रहे हैं। अपने सारे चक्रों में से सब जो बहने वाली होती है। लेकिन यज्ञ प्रजापति का करना जरुरी है. सारी शक्तियाँ हैं उससे सब मैं आपको प्लावित कर सकती हूँ। लेकिन आप कभी-कभी मुझे ऐसे जान पड़ते हैं कि मैं किसी दीवार से बात कर रही हूँ. जिन्हें तन्मात्राएं कहते हैं, वो जागृत होकर के किसी पत्थरों से मैं अपना सर टकरा रही हूँ। दुष्ट महादुष्ट, मेरी बात सुनने नहीं वाले। ऐसा नहीं होना चाहिए। सहजयोग में गहरा उतरिए। सारे संसार का सुख एक तरफ है और परमात्मा के चरणार्विन्द का सुख एक तरफ। उस परम सुख को पाने के बाद मनुष्य संसार के किसी भी सुख की ओर देखता है। उसके भी कारण हैं। शास्त्र में जो कुछ विधि नहीं, जिस तरह मनुष्य अमृत को पा लेता है उसके लिखी हुई है उन सबके बहुत गहरे कारण हैं बाद वो क्या ये मृत चीजें पीने वाला है? उसकी इसलिए जो कुछ लिखा है उसको गर आप शक्तियाँ अनेक आपके लिए सज्य हैं, आपके हाथ से बह रही हैं, आपको समझ में नहीं आता कि उसमें अन्धता नहीं है। जबकि आपके पास vibrations किस तरह से ये कहाँ पर काम कर रही हैं। मैंने हैं आप स्वयं vibrations से इसकी जांच पड़ताल कार्य करें। आपका जो शरीर है, आपका जो elements हैं का काम है वो कर रहे हैं। उसके लिए उनको पूजने कर रहे हैं । आपको सिर्फ दों ही चीजों को पूजना चाहिए- एक तो शिव को जिससे आपका existance बना रहे, आपका अस्तित्व बना रहे, आपके प्राण बने रहें और दूसरा आपको विष्णु को जो कि आपको evolution देता है जिससे आपकी उत्क्रान्ति कि आपके अन्दर के जो पंचभूत हैं, आपके अन्दर के जो तत्व हैं, इन पंच महाभूतों के जो तत्व हैं, आपको भी उसका यश प्रदान करें। ये पहले यज्ञ सिर्फ प्रजापति का ही होता था और बाद में विष्णु जी का भी शुरु हुआ। शिवजी जी का भी यज्ञ होना चाहिए, ऐसा लोग सोचते हैं लेकिन उनका यज्ञ नहीं होता है। उनका रुद्र होता हुआ follow करते हैं तो कोई उसमें blindness नहीं है, अंक : 1 & 2 - 2008 33 चैतन्य लहरी कर ले सकते हैं कि जो ये विचार है या जो यहाँ आप परम तत्व को पाने के लिए, उसमें घुलने किताब में लिखा है ये ठीक है या नहीं। बहुत सी के लिए आए हैं। यहाँ पैसा कमाने के लिए आप जगह कुछ-कुछ घुसेड़ दिया है, हर एक पुस्तक में नहीं आए। यहाँ किसी तरह का भी व्यवसाय करने ये किया है, उसको भी आप देख सकते हैं अपनी के लिए आप नहीं आए हैं। उसमें कोई भी bargaining vibrations पे ऐसे कौन जान सकता है कौन आदमी नहीं है। सिवाए एक चीज कि आपको मैं परमतत्व पार है, कौन नहीं है, कौन realized है, कौन नहीं से परिचित कराऊँ। फिर मुझे उसके लिए आपको है? कौन God realized है, कौन ordinary realized है, कौन जीवन मुक्त है? सबकुछ आप vibration पे पड़ेगा और कभी प्यार करना पड़ेगा। गर आप इस जान सकते हैं। आप हर एक चीज vibration से जान सकते हैं। जो अचेतन में है, जो unconscious में है, मेरे पास आए हैं तो ठीक है, नहीं तो मुझे क्या? मैं मनुष्य ने कभी नहीं जानी। उनकी एक-एक बारीक-बारीक चीज आप समझ सकते हैं। Vibrations दूंगी। तुम अपनी गरज़ से आ रहे हो, मेरी गरज़ से के भी एक-एक ढंग होता है, एक-एक तरीका होता नहीं आए। मेरी भी गरज है क्योंकि माँ को बच्चों है, एक-एक उसकी लय होती है अलग-अलग। लेकिन अभी तो basis ही नहीं बन रहा है आप लोगों का, तो मैं कैसे आगे की बात सिखाऊं? अभी तो आप पहली ही class में बैठे हैं, उसी में एक मेरे मोहमयी और प्रेम करने वाली है। आज के यज्ञ में को नोच रहे हैं, एक मेरे को घसीट रहे हैं, एक मेरे पूर्ण चित्त से, पूरे अपने को समर्पित करते चलिए से झगड़ा कर रहे हैं, बुद्ध जैसे। अपना basis पहले और ये वाला यज्ञ विशेष रूप से पंचतत्वों का होने ठीक कर लो फिर इस vibrations और एक-एक चीज के permulation combinations से आप हर चीज समझ सकते हैं जो आप जानना चाहें। है। गुर जड़तत्व स्वच्छ न हो तो बाकी का कुछ नहीं इतना ही नहीं, आप स्वयं भी उठते जा रहे हैं। जैसे जैसे मनुष्य उठता जाता है वैसे-वैसे वो ज्यादा जानते आपके जड़तत्व स्वच्छ हो जाएंगे तब हमारा कार्य जाता है। आप जानते हैं कि जब आप नीचे खड़े थे बहुत सुचारु रूप से होगा। तो आपको इतना नहीं दिखाई दे रहा था। इससे और ऊपर जाएंगे तो और आपको दिखाई देगा और गर से अलग ऐसे होंगे, ऐसे तो आप जानते हैं कि 19, और ऊँचे चले गए तो और कुछ दिखाई देगा। जब आप चन्द्रमा पर चले जाएंगे तो वहाँ से पृथ्वी और है काबाजी, जहाँगीर हॉल में। उसमें से सर्ेरे का तरह की दिखाई देगी वो पूरी की पूरी घूमती हुई आपको दिखाई देगी, उसका पूरा भ्रमण आपको दिखाई देगा। लेकिन यहाँ बैठे-बैठे तो पूृथ्वी लग रही है जैसे कि चोकोर हो। इसलिए जैसे-जैसे रहें हो, कैसे भी हो, कहीं भी हों, कोई बहानेवाजी आदमी उठते जाता है, उठने का तरीका ये कि एक ही है, एक ही है अपने बोझे उतारते जाइए, सब बोझों को उतार दीजिए। जैसे-जैसे बोझे उतरते जाएंगे आप अपने आप ऊपर उठते जाएंगे। फालतू को लेकर आएं, अपने मित्रों को लेकर आएं, दोस्तों के बोझे मेरा बाप ऐसा मेरी माँ वैसी, मेरा भाई वैसा, उसको चाहिए, इसको चाहिए, मेरी सत्ता है, मेरा पैसा है, सब मूर्खता है, misidentifications हैं। लेकिन handbilis की जगह अगर ऐसे कागज़ छप आपको गर पाना है तो पाइए और अगर नहीं पाना तो माफ कीजिए। दोनों चीजें नहीं चल सकती। कुछ डाँटना पड़ेगा, नाराज़ होना पड़ेगा, कभी सिखाना चीज के लिए उत्सुक हैं और यही चीज माँगने आप तो औलिया हूँ मैं वैसे ही अपनी किताब बन्द कर की गरजू होती ही है। लेकिन ये माँ अजीब है, निर्मम भी हैं, बड़ी निर्मम है। एक दम से clearcut सब को बन्द भी कर सकती है। और उतनी ही के कारण आप लोगों की समझ में ज्यादा आएगा। ये जड़तत्व पं है, लेकिन जड़तत्व भी जरूरी होता और बनता। और आपके जड़तत्व ही गड़बड़ हैं। जब शायद अब एक दो ही प्रोग्राम आप लोगों 20 और 21 को तीन दिन हमारा प्रोग्राम होने वाला ime ध्यान के लिए होगा और शाम का time भाषण आदि वगैरा। सरवेरे ध्यान और curity होंगे। तीन दिन के लिए पूरे dedication के साथ, आप कहीं भी रह मत करिए। आप अपने ही से बहानेवाजी कर रहे हैं। तीन दिन जैसे कोई शादी में जाता है, बड़ा भारी यज्ञ है। उसमें अगर आप आएं, पूरी तरह से, औरों को लेकर आएं, इसका प्रचार करें, घरों-घर जाएं। हम तो handbills भी छपाने की बात कर रहे थे जाएं तो आप लोग ले जाइए उसको लिफाफे में डाल के सबके यहाँ भेज दीजिए, जिनको आप अंक :। & 2 2008 34 चैतन्य लहरी बहुत कुछ पहले भी कहा है, अब भी मैने कहा है। कितनी चीजें अन्दर गई, भगवान जाने और कितनी चौजें बाहर ही रुक गईं, भगवान जाने। इस पर विचार करें। माँ बार-बार कहती है, हर तरह से सर फोड़-फोड़के भी कहें तो भी गर समझ में नहीं आया तो हृदय खोल-खोलकर कहती है। जो कुछ उससे बनता है, पूरी तरह से आपकी कुण्डलिनी सोचते हैं वो आना चाहें। जिस तरह से भी हो सकता है, लोग तो आ जाते है, लेकिन उसमें से कितने लोग असलियत से आते हैं? वही पाएंगे, जरा सा भी उनमें खोट होएगा, उनको नहीं भगवान देने वाले कुछ भी यहाँ कोई बैठा नहीं आप लोगों की चापलूसी करने के लिए। ये कोई politics थोड़े ही न है । आप मुझे वोट नहीं देने वाले, मुझे आपको वोट देना पड़ेगा। ये उल्टी बात है। मुझे आपको को पूरी तरह से जागृत करके और उसको सहस्रार certificate देना पड़ेगा। गर मैं आपसे नाराज हूँ तो भगवान भी आपसे नाराज हैं और सहजयोग आपसे नाराज़ है। इसलिए आपको मझे खुश करना पड़ेगा, मुझे प्रसन्न करना पड़ेगा। मुझे आपको वोट देना हो, आपके गर कान ही बंद हो, और इस प्रकार पड़ेगा, उल्टा मामला चल रहा है। घर से पैसा लगाकर भक्त लोग इकट्ठे करना अपने से नहीं होता। इसलिए अब याद रखिए कि गर आपको कहीं भी आना है, आपको अगर प्रोग्राम में आना है पाँच यन्त्र में खोलने वाली हूँ। प्रयत्न करूंगी। आप तो पूरी तरह से सादगी के साथ आइए, innocence के साथ आइए और हमें इसमें पाने का है ये हमारे खोलो। प्रजापति से यही कहना कि हमारे सोचकर के वहाँ आना है। और कोई भी अपने घर के problems लेकर मत आइए। बहुत गलत तरीका है। ठीक है बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं, बीमारियाँ बाहर रख दो। सब व्यर्थ चीजें बाहर रखकर के यहाँ हम ठीक कर देते हैं। लेकिन इतने क्षुद्र लोगों के लिए सहजयोग नहीं है जो रात-दिन अपने घर में ही घुसे रहें। परम की बात पाने के लिए उसे dedication के साथ आइए, उसको समझने के लिए आइए और सबलोगों से कहिए कि वो पाना बहुत जरुरी है। से पूरी तरह से साफ करके, अत्यन्त सुचारु रूप से, उसमें भी वो पुष्प-वर्षा करती है। लेकिन आपकी अगर नाक ही बंद हो, आपकी गर आँख ही बंद आपका सभी कुछ जो कुछ जानने के यन्त्र हैं, सब आपने बन्द कर लिए हैं तो मैं सहजयोग से क्या दे सकती हूँ? इसीलिए आज के यज्ञ में आपके यही भी अपने को समर्पित करें और कहें कि हे प्रभु यंत्र खोलो और हमें कुछ नहीं चाहिए। इस वक्त सब अपनी फालतू की चीजें अपने जूतों के साथ बैठो और अनन्त का जो प्रेम है उसको पाओ। परमात्मा आपको धन्य करें। (मूल आडियो के अनुरूप) ति ा चिड् कता ৩এ ुध िला ही निर्विचार में रहो मुम्बई-18-12-1977 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन मिसाल के तौर पे। वो मेरे पास आता है माताजी ये शराब पीता हैं इसकी शराब छुड़ाओ। उसकी कुण्डलिनी जागृत करते ही उसके अन्दर की cosmic दशा एसी हो जाती है कि वो शराब पीता है तो उसको उल्टी होती है। फिर ये भी हो सकता है कि शराब की भी जो मादक शक्ति है उसको भी खत्म कर सकते हैं। जब शक्ति पे बैठे हैं तो हर तरह की शक्ति को ले सकते हैं। जितनी भी तत्व शक्ति है उस सबको खत्म कर सकते हैं। लेकिन आप जो ये अपने छोटे लोगों को बुरा लगेगा इसलिए मराठी में तुम ही बोलने दो। मैं कह रही हूँ कि तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं उन प्रश्नों को तुम अचेतन में छोड़ो, वो मेरे पैर में बह रहा है। माने ये कि कोई भी प्रश्न है, अब तुमको अपनी लड़की का प्रश्न है समझ लो, उसमें खोपड़ी भिड़ाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न है आप यहाँ छोड़ दो, उसका उत्तर मिल जाएगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इस चीज से लाभ होएगा वो नहीं बात। जो परमात्मा सोचता है, तुम्हारे लिए जो हितकारी चीज है, वो से दिमाग से हरेक चीज को सुलझाने का प्रयत्न घटित हो जाएगी। वो तुम कर भी नहीं सकती हो। इसलिए उसको छोड़ दो तुम क्यों बीच में टंगड़िया निर्विचार। मेरे पैर पे भी लोग रहते हैं तो भी वो तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो? तुमको परेशान होने की कोई जुरूरत नहीं। तुम छोड़ तो दो, से कम मेरे पैर पे तो विचार छोड़ दो। बहाँ पे भी जो तुम्हारे सारे प्रश्न को हल करने के लिए पूरी इतनी कमेटी बैठी हुई है उनके पास छोड़ो तुम। सहजयोग में यही तो कमाल है कि सर का बोझा उतर गया उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होएंगे, ऐसे कमाल होएंगे कि बस। लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है। आखिर तक वो ऐसा ही सोचता रहता है कि नहीं मुझी को करना है, मुझी को करना है। और सोचते रहिए| एक के ऊपर एक ताना बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिए, आखिर में आप पाइएगा कि आप कहीं भी नहीं पहुँचे, आखिर पागल खाने में ही आप जाइएगा। आपके प्रश्न हल करने के लिए रखो। मन की भी बहुत सारी बीमारियाँ होती हैं। बहुत बड़ी कमेटी बैठी हुई है। उसमें पाँचों तत्वों के अधिनायक बैठे हुए हैं, ब्रह्मदेव। सारे धर्म के बनाने वाले बैठे हैं विष्णु और सारे संसार की स्थिति लेकर के और लय लेकर के बैठे हैं शंकर जी। उनको भी तो कभी -कभी चांस दो, कि तुम्हीं लोग सारे प्रश्न को ठीक करोगे? और जैसे ही आप निर्विचार में होना शुरु कर देंगे, आप देखिएगा आप के अन्दर ये तीनों ही शक्तियाँ अपने आप बन जाएंगी। अपने आप सुलझ जाएंगी-धर्म, अर्थ और काम - बिल्कुल वो ठीक से अपनी अपनी जगह बैठ जाएंगी| निर्विचारिता में रहने से आपके अन्दर के जो प्रश्न है उसमें cosmic change आता है। ये कोई अंदरूनी घटना घटित होती है। उसके सूत्र पे घटना होती है। जैसे एक आदमी समझ लीजिए, शराब पी रहा है करते हैं, उसी में गड़बड हो जाती है। बिल्कुल विचार में रहते हैं। मुझे इतना आश्चर्य होता है। कम उनका चलता रहता है विचार। मैं कोशिश कर रही हूँ, हाथ पैर चला रही हूँ, ये कर रही हैूँ, सारा ताण्डवनृत्य हो रहा है और ये लोग इधर विचार ही कर रहे हैं! कम से कम मेरे पैर पे विचार छोड़ना आना चाहिए। फिर धीरे-धीरे ये आदत बनते जाएगी निर्विचारिता की। बस एक छोटी-सी चीज है कि निर्विचार में रहना सीखो, कोई सा भी आपका प्रश्न हो निर्विचार में रहो। ऐसे मैं आपको सुझाव देती रहती हूँ- आपका ये चक्र क्यों पकड़ता है, वो चक्र क्यों पकड़ता है, छोटी-छोटी बातें हैं उसको समझ लेना चाहिए। आपका शरीर ठीक रखो, मन ठीक औरतों को बीमारी होती है कि आदमियों के पीछे में मरो खास करके, आदमियों को और बीमारियाँ होती हैं। मन की अनेक बीमारियाँ होती हैं। उधर जरा-सा चित्त रखो, निर्विचार में रहो। एक छोटी-सी चीज करने से आपका जो स्वयं हृदय में बैठा हुआ 'स्व है उसका प्रकाश फेलना शुरु होगा। अब ये ही प्रकाश है जो आपके अन्दर vibration की तरह से बह रहा है। ये आपके अन्दर बसा हुआ, परमात्मा का जो अंश है 'स्वः ' (Self) इसका प्रकाश सारे संसार में जाता है और लौट के आपके पास आ जाता है सारा झोली में। अनेक उसकी लहरें चलती हैं। गोल गोल घूमके आपके हृदय में आ जाता है। अपनी जो बाती है उसे ठीक रखो, आपका शरीर ठीक रखो, जो आपका दीप है। आपकी जो शक्ति हुए चैतन्य लहरी अंक :। & 2 -2008 36 है तेल, दिमागी जमाखर्च जो है उसमें खर्च न करो। लौ को सीधे लगाओ। जो लौ के ऊपर का हिस्सा है मूर्ति थोड़ी आपके vibrations जानती है, वो तो उसको माँ से चिपका लो। उसके पैर में बांध दो। सीधी की सीधी लौ निर्विचारिता में निर्भीकता से हो रहा है? आप तो अपने हाथ भी चला सकते हैं। जलती है। और जब ऐसा आदमी कहीं खड़ा होगा दूसरे को आप जागृति दे सकते हैं, किसी के चक्र तो उसकी तेजस्विता देखकर लोग कहेंगे कि भई तुम्हारे गुरु कौन हैं? ये तुमने किससे पाया? यही सहजयोग के लिए, आप लोगों को करना है। जहाँ में बम्बई सेंटर में बहुत काम हुआ है, इसमें कोई तक हो सके निर्विचार रहें। हम तो धक्का दे ही रहे हैं कुण्डलिनी को, आपको भी वहाँ रखने की कोशिश कर रहे हैं, आप भी जरा कोशिश करें| कोई विचार नहीं आना है। और अपना माथा किसी है। जितना आप गहरा उतरंगे उतना ही गहरा काम के आगे मत झुकाना। याद रखना किसी के आगे जाकर माथा नहीं झुकाना है। कोई भी हो। बहुत से सहजयोगी लोग सहजयोगी के आगे माथे झुकाते हैं। ऐसा मैंने देखा है। ये सब फालतू की बातें करने की जरूरत नहीं हैं। मूर्तियों vibrations ठीक हों, ठीक है। मूर्तियों से आप बहुत बड़ी मुर्तियाँ हैं, आप स्वयं एक मंदिर हैं। क्या वो उसमें से vibration बस आ ही रहे हैं, बस और क्या खराब हों, उसको आप ठीक कर सकते हैं। मूर्ति तो वहाँ बैठी सिर्फ vibration ही छोड़ रही है। सहजयोग शक नहीं और लोगों ने बहुत अपने को ऊँचा उठा दिया है। और वैसे भी महाराष्ट्र में बहुत काम हुआ है, एक छोटे से गांव में, राहुरी में बहुत काम हुआ होगा। अपने को बहुत ज्यादा लोग नहीं चबाहिएं, थोड़े ही लोगों से काम बन जाएगा। लेकिन जो भी हों वो पक्के हों। (मराठी प्रवचन- में भी देख के जिसके (मूल आडियो के अनुरूप) **** (शेष भाग पृष्ट 27 से.....) घूमने अकले नहीं गए, आपको आश्चर्य होगा, लेकिन कुछ मुझमें कमी नहीं हैं, में तो मस्त हूँ। किया है जो आनन्द लोग देखकर के सोचें कि हाँ मुझे कोई नहीं और उनमें भी कोई कमी नहीँ है। गर ये चीज़ समझ ली जाए कि हमारी आत्मा से ही हम आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं और जिस सुख को देखकर के मैं ही खुश हो जाती हूँ। मेरे बच्चे इतने हम सोचते हैं वो विनाशी सुख है। तो जब तक आनन्द में रहना है आनन्द में रहो। ये चीज नहीं की, वो चीज नहीं की, ऐसा नहीं किया, दोनों का भी कहना ये दुख का कारण है। आज इसलिए में हैं अब बदल रही है। जहाँ पर दोस्ती नहीं, आपस बता रही हूँ कि मनुष्य निसंग में आ जाए, निसंग में बिल्कुल, कोई भी चीज उसको न रोके, जहाँ किसी को नीचा कर, एक को ऊपर कर, उस जगह ये भी चीज़ की लालसा, किसी भी चीज़ की इच्छा उसको न दबाए। तब कहना चाहिए कि वो सहजयोगी दोस्ती, प्यार के लिए प्यार, इससे बढ़के और माँ हैं। तब वो सहजयोगी हो गया। जहाँ वो किसी भी को कुछ नहीं चाहिए। ये जिस दिन हो जाए तो मैं इच्छा से- पूरा नहीं, ये चीज नहीं हुई चलो दूसरी चीज, वो चीज़ नहीं हुई चलो दूसरी चीजु, ऐसा जो है उसका सब मुझे फल मिल गया। आशा है, आज मस्त रहता है आदमी उसको कहना चाहिए वो सहजयोगी है। और आशा है इस दिल्ली शहर में आप इस तरह के लोग तैयार होने वाले हैं और होएंगे क्योंकि अब हमारा आश्रम बन गया है और आज इस शुभ अवसर पर हमने शिवतत्व को प्राप्त साहब आनन्द में है, और आनन्द की जो लहर होती हैं एक आपस में जो एक उसका फैलाव होता है आपस में खुश हैं, इतने प्रेम से बैठे हैं और एक दूसरे का मज़ा उठा रहे हैं । यानि जब इन लोगों की दोस्ती देखती हूँ तो ऐसा लगता है कि ये दिल्ली जो में इसको काट, इसको खींच, इसको ये कर, एक दोस्ती का वातावरण और इतना शुद्ध, दोस्ती के लिए कहूं कि इस आश्रम बनाने का और मेरी जो मेहनत आप अपने शिवतत्व को स्थापित करें। परमात्मा आपको धन्य करें। आडियो के अनुरूप) मूल सहजयोग की एक ही युक्ति है। नवरात्रि, मुम्बई, 30 सितम्बर, 1979 आपके अन्दर में परमात्मा की शक्ति ज्यादा बड़ा भारी कार्य एक जमाने में हो गया है जबकि बढ़ती जाएगी। यानि आपका caliber जो है वो wider होते जाएगा और आपके अन्दर ज्यादा शक्ति के अनुचर सताया करते थे। आज भी संसार में बढ़ती जाएगी। अब जब ये ज्यादा शक्ति आपसे बढ़ शैतानों की कमी नहीं है, दुष्टों की कमी नहीं है, रही है तब इस शक्ति को भी उपयोग में लाना राक्षसों की कमी नहीं है। और इनके जो राक्षसी चाहिए। अगर शक्ति बढ़ती गई और आपने उसको उपयोग में नहीं लाया तो हो सकता है कि थोड़े दिन बाद ये caliber फिर छोटा हो जाए। अब आपको घर जाके बैठना है और सोचना है, मनन करना है कि हम किस तरह से सहजयोग को बढ़ा सकते हैं। किस-किस जगह हमारा स्थान है, कोन लोग हमें से लोगों ने इस आत्मज्ञान को पाते वक्त अपने मानते हैं, उनकी लिस्ट बनाइये। कौन-से ऐसे areas हैं जहाँ हम जाकर के इसको प्रस्थापित कर सकते राक्षसी आक्रमण की वजह से आ गईं थीं, उनसे भी हैं। उसके लिए जो भी आपको जरूरतें हैं, हमारे अलग सेंटर हो गए हैं, आज मैंने कोलाबा में भी सहजयोग में आप स्वयं भी जागृत हो गये हैं इतने एक सेंटर खोल दिया है कफकैसल में। और इस तरह से हरे जगह एक-एक सेंटर अब आपके लिए ऐसे मैं भी नहीं सोचती थी और इतने थोड़े समय में हो गया है और आप गर कहीं खोलना चाहते हैं तो वो भी आप देख लीजिए। आपके रिश्तेदार, आपके पहचान वाले, आप जहाँ पे कार्यान्वित हैं वहाँ, कितने लोगों को आप सहजयोग में ला सकते हैं उनको लाकर के और इस संसार का कल्याण करने का है। सारी humanity का अपने को कल्याण करना है और आप जो आज यहाँ बैठे हुए हैं ये योग में पाया है, आप लोग योगी हो गये, आप लोग उसके पाये हैं आपकी जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है । अब योगी हैं। आप ordinery लोग नहीं हैं। सर्वसाधारण और मेरे ख्याल से सहजयोगी अपनी जिम्मेदारी नहीं लोग नहीं है। आप योग में आ गये। अब आप योग समझते। 20-25 आदमी गर जिम्मेदारी लेकर के भ्रष्ट नहीं हो सकते। आपको उस योग के अनुसार चलें तो सहजयोग नहीं चल सकता। हर आदमी को चलना चाहिए। माने दो चार आपमें जैसी आदतें हैं चाहिए की अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझें, अपने-अपने विचार से ये तय कर लें कि हम सहजयोग किस तरह से बढ़ाएंगे, कहाँ तक ले ज्यादा बोलना , बहुत कम बोलना, ये भी ठीक नहीं जाएंगे इसके लिए आप स्वयं प्रबुद्ध हो गये हैं आपको मुझे बताने की जुरूरत नहीं हैं। आप सिर्फ पे नहीं जाना है। कोई आदमी हर समय पैसे की बैठ कर इस पर विचार करें। आप जानते हैं कि बहुत से लोग कभी भी भाषण नहीं देना जानते थे. वो लोग भाषण देने लग गए हैं। इतनी शक्ति आप के अन्दर तब आएगी जब आप दूसरों को देंगे, नहीं निर्विचारिता में आना चाहिए। अपनी निर्विचारिता तो आपकी शक्ति कम हो जाती है। ये सबने जाना को आप धीरे-धीरे बढ़ायें। जितना निर्विचारिता है कि आपकी शक्ति कम हो जाती है गर आप का, विलम्ब का स्थान बढ़ता जाएगा उतने ही दूसरों को शक्ति न दें। मैं ये नहीं कह रही कि आप अपने भक्तों को संरक्षित किया। ये भक्त लोगों को हर तरह से दुष्ट राक्षस आदि शैतान विचार हैं और जो इनके गलत तरीके हैं उनसे आज सारा ही संसार ज्यादा ही लिप्त नजूर आ रहा है। और इसीलिए इनमें से निकलने के लिए भी मनुष्य अधिक प्रयत्न कर रहा है। इस नवरात्रि में न जाने कितने ही लोगों का Realisation हुआ है और बहुत अन्दर की जो कुछ भी तकलीफें थी, जो कि इन छुटकारा पाया। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों का जागृत होना कभी भी संभव हो सकता है इतने लोग जागृत हो गये ये बहुत बड़ी एक हम लोगों ने मंजिल पाई हुई है। इस मंजिल से अब जब देखते हैं तो ऐसा लगता है कि बहुत जल्दी इस साल भर के अन्दर ही बहुत कुछ काम आप सभी लोग कर सकते हैं। आज में आपसे इसलिए बात कर रही हूँ कि आप अब सहजयोगी हैं सब, आपने जरा सा आप Will Power लगायें तो हम शक्ति देने के लिए तैयार हैं, आप अपनी आदतें छोड़ दें। बहुत है। सब चीज में बीच बीच में आना है। कोई अति बात सोचता है या हर समय किसी सत्ता की बात सोचता है उसको भी बीच में लाना चाहिए। अपने मन को बीच में लाना चाहिए, मतलब ये कि अंक : 1 & 2 - 2008 38 चैतन्य लहरी लोगों की बीमारियाँ ठीक करिए। बीमारी के लिए ठीक है। चलो जो भी गलती हो गई माफ, लेकिन आप मेरा फोटो दीजिए। लेकिन औरों से बात करें. उनको सहजयोग में लायें, उनको Realisation के हूँ तो आपका सहजयोग नहीं चल सकता, कुछ लिए लायें, फोटो पे बिठा कर के आप Realisation दें। आप, जरूरी नहीं कि आप फोटो से हट के realisation दें। जहाँ तक हो सके फोटो का इस्तेमाल करें जिससे आप पूरी तरह से संरक्षित रहें। जिससे आपको कोई तकलीफ न हो, कोई आपके अन्दर Ego न आ जाए, कोई गलत चीज़ न हो जाए, आपकी निर्मलता बनी रहे। लेकिन कितने लोगों को खोल के बात कर रही हूँ। सारे अन्दर बिठाकर मैं सहज में लाना है ये बहुत जरूरी है। जितने आप ज्यादा सहजयोगियों को अंदर लाइएगा उतना ही आपका भी सहजयोग बलवत्तर होएगा। लेकिन इसके वो एकनिष्ठता नहीं रहेगी तो सहजयोग भी नहीं लिए ये एक जरूरी तो है कि आप भी पक्के सहजयोगी हों, अगर आप ही डावाँडोल हैं तो आपके साथ आये हुए भी बेकार गये। क्योंकि जो आपके साथ आएगें वो आपके साथ ही डूबेंगे, जिसके अन्दर सारे देवी देवता बिठाए हुए हैं और इसलिए आप भी अपने को पक्का कर लीजिए। अपने को पक्का करना बहुत जरूरी हैं। अपनी जहाँ आपको समझा रहा है, बात कर रहा है, आपसे community है, अपने जहाँ लोग हैं, बहुत कुछ हो सकता है। अगर आप बैठे कि हमारा यह संघ हैं हमारा ये समाज है, ये यहाँ पर हम इसके मेंम्बर हैं, हम उसके मेम्बर हैं। या किसी के आप मेम्वर हों जाइए जहाँ ऐसे-ऐसे समाज हैं, और उनसे आप बातचीत करें क्योंकि हमको सारे संसार को बदलना है। बहुत बड़ा काम है। दिखने में हम सर्वसाधारण लोग हैं, पर हमारे ही हाथ से ये कार्य करना है तो हम सबको एकत्रित होना है। एक जुट से रहना चाहिए और इसपे पूरी तरह से एकाग्र होना चाहिए। इसके लिए शक्ति तो मैं आपको दे रही हूँ, जितनी चाहिए आप शक्ति ले सकते हैं, और मिल सकती है अगर मुझे आपने नहीं माना है कि मैं एक अवतरण नहीं। ये एक compulsion है। ये पहले ही से compulsion मेरे लगा करके मैं संसार में आई हूँ और इसी compulsion को आपको मानना ही पड़ेगा। अगर आपने माना नहीं तो सहजयोग नहीं चलने वाला, कुछ नहीं चलने वाला। सब देव-देवता मेरे अंदर बैठे हुए हैं। ये आप सहजयोगी हैं इसलिए मैं आई हुई हूँ और आपको उसका पूरा उपयोग कर लेना चाहिए और समझ लेना चाहिए। अगर आपमें चलने वाला और आप भी नहीं चलने वाले और सारा संसार भी डूबने वाला है। अब ये आखिरी चांस सारे संसार को मिला हुआ है कि एक incarmation ऐसा incarnation जो माँ के स्वरूप आया है, बहुत प्रम से, सहृदयता से सब कार्य करा रहा है। और बहुत मेहनत कर रहा है। रात दिन आपके साथ लगा हुआ है। और आप जानते हैं कि किसी भी तरह से मैं अपने शरीर को किसी भी तरह से देखती नहीं हूँ सिवाए आपके आराम को देखने के। लेकिन आपके अन्दर ऐसे बहुत से लोग हैं जो अभी भी अधमरे हैं बहुत से लोग हैं जो बिल्कुल जिसको मराठी में अर्धवत कहते हैं माने जिनका दिमाग आधा इधर आधा उधर है और जिसको क्राइस्ट ने कहा था कि these half believers। उस तरह के जो लोग हैं वो बिल्कुल बेकार होते हैं क्योंकि Christ ने कहा था कि ये murmur करते रहते हैं। ये बड़, बड़, बड़, बड़, करते रहते हैं और इनकी बड़, बड़, में कोई अर्थ नहीं होता। बेकार की चीज की तरफ़ बहुत लोगों का चित्त जाता है लेकिन असली चीज की तरफ उनका चित्त नहीं जाता। ये और आप लोग पाइए और अपनी शक्ति को पूरी तरह से आप बढ़ा लीजिए। लेकिन इसकी जो एकनिष्ठता है और एकाग्रता है वो आपको लानी पड़ेगी। सबसे बड़ी चीज ये है कि सहजयोग का एक ही बड़ा लोकिंग point है, जो आप समझ गए होएंगे। एक ही इसकी युक्ति है, एक ही इसकी चीज़ है कलियुग में जो बहुत सरल भी और बहुत गलत बात है और इसलिए सहजयोग के जो नियम हैं उनको पालना चाहिए। पहली तो चीज ये है कि हमारे सहजयोग में नियम है कि आपको कोई भी किसी को भी एक भी पैसा सहजयोग के नाम पे लेने का अधिकार नहीं है। जिस प्रकार कोई सा भी काम अनअधिकार करने से आपको नुकसान बहुत कठिन भी हैं। वो आज में अपने मुँह से आपसे बता रही हूँ। आजतक जितने भी अवतरण संसार में हुए हैं उसको आपने नहीं माना। नहीं माना ै. अंक : । & 2 -2008 चैतन्य लहरी 39 प्रेम होना चाहिए। आपस में बहुत प्रेम करना चाहिए, सबको समझना चाहिए। वड़ा मज़ा आता है, जरा प्यार करके तो देखो। प्यार का मज़ा और होता है और दुश्मनी करने का, द्वेष करने का, ईष्थ्या करने का, झगड़ा करने का, आते ही साथ मेरे को सबके complaint सुनाई देते हैं- उन्होंने हमको inform होता है उसी तरह से अनअधिकार एक भी पैसा आपने लिया है तो आपको नुकसान होगा। ये बिल्कुल मैं आपसे बता देती हूँ कि सहजयोग में अपने पर्सनल खर्चे के लिए किसी को भी एक भी पैसा नहीं लेना चाहिए और आप जानते हैं कि में खुद ही अपना घर का पैसा खर्चा करके कितने काम करती आई हूँ। लेकिन दूसरी बात भी इसकी होनी चाहिए नहीं किया, उन्होंने हमको नहीं बताया, बो हमसे कि सहजयोग, ये हालांकि बिल्कुल बगैर किसी नहीं बोले, फलाने ने ये किया। दूसरा आएगा वो के सबको मिलता है लेकिन इसका मतलब बोलेगा इन्होंने ऐसा किया वैसा किया। मैं कहती हूँ अरे बाप रे बाप। ये अपने हिन्दुस्तानियों की बीमारी मूल्य नहीं कि ये cheap चीज़ है, ये सस्ती चीज नहीं है। ये बहुत मूल्यवान चीज़ है। ये अब आप जानते हैं है खास। पर सिर्फ बम्बई वालों की भी खास है। कि हर चीज़ का खर्चा होता है, इस हाल का खर्चा होता है, उस हाल का खर्चा होता है। हॉल में प्रोग्राम होता है। कल (अभिषेक) के सामने गाना गाया उसका खर्चा होता है, पूजा का खर्चा होता है और जो लोग पूजा में भी पैसा नहीं देते हैं और फिर आकर मुझे कहते हैं कि हमारा लक्ष्मीतत्व खराब है, तो होगा ही। कल ही मैंने बताया था कि अपना selfrespect होना चाहिए आदमी को! इसका मतलब आप अपने आत्म-सम्मान को बढ़ायें अपने अन्दर आत्मसम्मान होना चाहिए और सोचना चाहिए कि हमारे समाज में जो भी कार्य करने पड़ते हैं उसके हैं बाबा? आप राजा के लड़के थे, खो गए थे, फिर लिए पैसा चाहिये। कि माताजी अपना ही पैसा देंगी क्या हमेशा? ये अच्छी बात है क्या कि आपके कल्याण के लिए में पैसा दूं? या मेरे पति पैसा दें? उन्हीं का कल्याण हो रहा है फिर। पैसा तो, उनका ही लक्ष्मी तत्व अच्छा हो रहा है, तुम लोगों का इतना अच्छा नहीं हो रहा है। अपनी भी लक्ष्मी खर्चनी चाहिए। सब को धर्म से कहना चाहिए कि माँ हम लोग सब अपने ही मन से देना चाहिए। अपने-अपने एक एक सेंटर सम्भालिए, organize आपको मालूम है- अपना खर्चा कितना है हाल का खर्चा कितना है खाने पीने का खर्चा कितना है, सब चीज़ का खर्चा कितना है। लोग खाने का भी पैसा देने को तैयार नहीं। मुफ्त है आज ही पूजा के बाद जा करके नाम दे दें। आज हमें नहीं चाहिएं। मुफ्तखोर लोग सहजयोग में चाहिएं नहीं। ठीक है, सहजयोग एकदम मुफ़्त है एकदम फ़्री है। पर मुफ्तखोरों के लिए नहीं है। कहाँ से लाएं बताइए। इसका पैसा देने का है तो क्या माताजी दें? नहीं तो ये कि मेरे को इसने मारा, मुझे उसने मारा, मेरी बीबी ने मारा, मेरे लड़के ने मारा, रात दिन रोनी सूरत। आप लोगों को चाहिए कि अपनी प्रतिष्ठा पे खड़े हों, आप प्रतिष्ठित हैं, हमने आपको प्रतिष्ठित किया है। आप जानते हैं आप कौन हैं। आपको मैंने वो चीज दी है जो गणेश को दी थी! आप पूजनीय, संसार के वर्णनीय लोग हैं और आप कर क्या रहे हैं? वो अपनी बुरी आदतें और पहली बाते भूल जाइए। अब आप राजा हो गये हैं अभी भी भिखारियों जैसे आप झोली लेकर काहे को घूम रहे से आपको राजा बना दिया अभी फिर से वही भिखारी जैसे घूम रहे हैं? अपनी प्रतिष्ठा पे खड़े होना है। तीसरी चीज ये है कि आपके अन्दर जो young लोग है, 25-30 जो भी हो, अलग-अलग जगह के, जहाँ-जहाँ रहते हैं अपने नाम आज ही देके जाना। मैं जाने से पहले देखूंगी और आप सब कुछ करिए और उसके इंचाज जितने भी लोग हैं उनको संभालिए। कोई मुश्किल काम नहीं, इतने आदमी हैं, क्या मुश्किल है? इसमें जिस जिस को नाम देना में खाना खाएंगे। ऐसे लोग ही व्रत कर लें कि हम माँ करके दिखाएंगे काम और हम समझा देंगें कि हम इतने लोगों को इक्टठा कर रहे हैं। सब लोग एक एक जिसको भी जो सोचता है 25 कम से कम नाम होने चाहिएं, ज्यादा भी हो सकते हैं जो बुजुर्ग लोग हैं उनको सताने की जरूरत नहीं है, बच्चों को अभी रहने दीजिए। आप जो Young लोग हैं वो अपने ऊपर लें। सब, आप दूसरी बात ये है कि हमारे organization का भी बड़ा गड़बड़ दिखाई देता है। जब हम एक माँ से पैदा हुए हैं तब हम सब बच्चों में आपस में श्रीम अंक :। 2 चैतन्य लहरी 40 2008 भी ले सकते हैं। आप भी, वहाँ पर हो सकता है मिल सकता। सहजयोग में दो तीन रिंगंस चलती हैं, आपने नोटिस किया होगा, एक तो Peripheri पे होती है जो जन समुदाय है उसमें ज्यादातर लोग पार नहीं हैं। उसके अन्दर की रिंग होती है जिसमें लोग पार हो गए हैं। उसके अन्दर की रिंग होती है कि चाहती हूँ कि सहजयोग कितना फैल गया है । एक जो आते हैं आधे, आधे नहीं आते। उसमें पार होने पर भी सबलोग आते नहीं, आते हैं आधे, आधे नहीं आते। उसके अंन्दर की रिंग होती है जिसके अन्दर अगर आप लोग जरा प्रयत्न करें तो। तो इस तरह से लोग हमेशा आते हैं और उसके अन्दर की रिंग है जो बहुत ही dedicated हें और हम सब को जानते हैं। हमें Certificate देने की जरुरत नहीं, हम हर इसको समझे इसमें है सारा organize केसे लीजिए। हमें किसी के बारे में कुछ बताने की जुरूरत नहीं है और शिकायत करने की जुरूरत नहीं है। इस तरह से आप लोग समझदारी से रहें क्योंकि एक सेन्टर में, हर एक मोहल्ले में, एक एक लीडर ये समझना चाहिए कि आप लोग विशेष लोग हैं। आपको परमात्मा ने विशेष रूप से choose किया है। आपके अन्दर अन्दर ये कुण्डलिनी जागरण करा दिया है और आपके ऊपर ये सरताज लगाया है कि आप योगी बन गये हैं, घर में बैठे हुए आपको इसके लिए कुछ नहीं करना पड़ा। अब पुरुषार्थ करना होगा जो पुरुषार्थ करेगा वो बहुत कुछ पा सकता है और जो नहीं करेगा वो नहीं पा सकता। जो चीज आप देते ही नहीं वो आप कैसे पा सकते मज़ाक करना उनका दोष देखना आदि नहीं करने हैं? अगर आप सरस्वती, आपको कितनी भी सरस्वती का हम ज्ञान दें, एक लड़का है पढ़ता नहीं, कि माँ आएगा, दोस्ती में इतना मज़ा आएगा ज़िसकी कोई ये पढ़ता नहीं उसको ले आए, उसको हमने first class में पास किया और first class में पास होने के बाद भी वो बेवकूफ जैसा घूमता रहा और कुछ भी workout करें। और में जो जो लोग हैं उनसे पूछूंगी उसने सरस्वती का कार्य नहीं किया तो उसके पास सरस्वती कितने दिन टिकेगी? आखिर आप यही बताइए कि दीप आप जलाते हैं तो प्रकाश देने के कम से कम पांच दें उससे ज्यादा दें, जैसा दें, पैसा लिए जलाते हैं कि क्या उसको बिठा करके आप देना चाहिए। अब जो आदमी ज्यादा कमाता है अपने आंचल में छिपा लेते हैं? आपके दीप जले हैं इससे अनेक दीप जलने चाहिएं। बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। आप ही मेरे हाथ हैं और आप ही मेरी आंखें हैं, हो आपके अपने क्षेत्र में। इस तरह से सब लोग गर अपने अन्दर ऐसा ले लें और आपस में ऐसे लोग सब मिला करें, कभी चाय यर मिलें, कहीं किसी तरह से मिलें और मैं एक साल बाद आकर देखना बड़ी अच्छी बात है कि इस वक्त गुरु सिंहस्त आने है, की वजह से सहजयोग बड़ी जोर से बढ़ सकता हमारी जो बातें हैं उसको समझ लेना चाहिए। अब देखिए हमें लक्ष्मीतत्व की आपको बात मैंने कही। जो दूसरी बात मैंने कही सरस्वतीतत्व की। करना लोगों को केंसे बुलाना किस तरह से उनको चालना देना, उनको समझना, उनको जोड़ लेना। हर एक आदमी को जानते हैं। आप की ये organisation बन सकता है, और बहुत अच्छे से organise कर सकता है। अब लंदन वरगैरा में जैसा कर रहे हैं या जैसे पूना के लोगों ने किया उस तरह से करना चाहिए। एक आदमी है वो पच्चीस आदमियों को जोड़े रखता है। आपस में मिलना जुलना, भई तुम कैसे हो, तुम कैसे हो, तुम्हारा क्या चल रहा है, कैसे, सब आपस में प्यार से बातचीत करें। दोष नहीं देखने का, उनमें ऐंसा है, नहीं तो उनका का। आपलोग सब आपस में देख लें, इतना मज़ा हृद नहीं। जैसा भी जहाँ हो सकता है जिसको भी आप ले सकते हैं उनको लेकर के और आप इसको next year कि क्या किया इन्होंने। तो आप लोग इसकी गर कोशिश करें और Per Month सब लोग उसको पांच देने में कोई sense ही नहीं है। दूसरी बात ये है कि पूजा में हमेशा ऐसे में आप ही मेरा सबकुछ हैं। आपके ही through सकता है। अगर मेरे से बनता तो मैं क्यों आपके सामने गिडगिड़ाकर कहती कि बेटे ये चीज़़ को करो। तुम लोग मेरे हाथ हो, हाथ के बगैर कोई काम लोगों को बुलाना चाहिए जो हमेशा आते हैं पूजा और जिनका सहजयोग में कोई स्थान है। ऐसे लोगों को नहीं बुलाना चाहिए जो कभी भी चले आए, आ गए। सहजयोग में ऐसे आधे-अधूरे लोग नहीं चल सकते। कम-से-कम पूजा का वरदान उनको नहीं नही हो सकता। पर समझदारी से रहना चाहिए और अंक : 2 -2008 चैतन्य लहरी 41 के तरीके न बदलें तो फिर से वैसे के वैसे हो जाएगा। इसलिए बड़ा मान है आपका कि आप लोग पूजा में आए हैं तो उस मान को रखना और अगले साल में आने पर जितने भी लोग यहाँ पर आए अपने अंदर अहंकार आदि झूठी चीजें नहीं लानी चाहिए। और मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं सिर्फ ये चाहती हूँ कि ये आप लोगों का जो जीवन है, योगियों का जीवन, ये अत्यन्त सुन्दर जीवन बने और आपके साथ अनेक आपके कारण कल्याण के मार्ग में आएं और परमात्मा के साम्राज्य में स्थित हो जाएं। ये आखिरी काम है हमारा, और इसमें थोडा हमारी मदद कर दीजिए। सब काम हो जाएगा। हम हैं आज मुझे बचन दें हर एक आदमी कम से कम दस आदमियों को पार करायेगा। हर एक आदमी आज मुझे वचन दे और मैं आपको शक्ति देती हूँ। और इर एक आदमी इसमें पूरी तरह से, हमेशा जहाँ आपसे कहते हैं कि आश्चर्य की बात है कि भी ध्यान होता है वहाँ आया करेगा और ध्यान कराएगा। ये हर एक आंदमी को आज मुझे वचन देना चाहिए तभी मैं आपको पूर्ण शक्ति दूंगी। जैसी वो लोग मेहनत करते हैं और जिस तरह से हालांकि आज का दिन आपके लिए भी और मेरे लिए भी बड़ा समारोह है, बड़ी भारी चीज है, सारे इंग्लैण्ड के लड़के जो हैं हमारी पास में हालां सब west से हैं, उनके मुकाबले में उतरना मुश्किल है। ध्यान- धारणा करते हैं और जितनी एकनिष्ठा उनमें है आप लोगों में आना चाहिए। उनमें पैसा और ये चीजें वो सोचते भी नहीं हैं और न ही किसी प्रकार से संसार में आज नवरात्रि का अंतिम दिन बड़े माना जाता हैं। लेकिन दुख की भी बात लगती है से भी वो आलस्य करते हैं। इतनी मेहनत वो लोग कि इतने बच्चे सामने बैठे हों तो माँ का जी जिस करते हैं। उनको मैंने कहा कि आपको सिगरेट तरह से खिंचता है वो आप देख ही रहे हैं कि कल से मेरा हाल बहुत खराब है। और आप लोगों को भी कभी दुकान ही नहीं देखा। इतनी एकनिष्ठा और बहुत तकलीफ होती है सब चीजों से। ये तो इतना उनमें मेहनत करने की ये है कि आपके लेकिन तो भी ये सोचना चाहिए कि माँ के और भी सामने वाकई एक मिसाल के तौर पे ये लोग हैं कि बच्चे वहाँ हैं और ये सोच के कि वहाँ जब माँ जाएंगी तो कैसे खुश होएंगे वे और उनके भी दिल कितने बड़े हो जाएंगे और अपने दुख को आप आप देख सकते हैं कि Advent जैसी किताब लिखाई लोगों को जीत लेना चाहिए और सोचना चाहिए कि मां जायें! जैसा सुख हमें दिया वैसे उनको भी सुख दें और उनको भी ये आनन्द मिले और हमारे जैसे ही कोई traslation अपने ऊपर ले ले तो एक अच्छे वो भी सुखी हो जाएं तो तुम्हारा भी दिल शांत हो जाएगा और जो ये परेशानी है कि माँ कब आओगे, है, कैसे होगा, ये सब छूट जाएगा। हर एक चीज के बारे में सबको पता है। अगर एक चीज का probiem है? ऐसे तो सब मंदिरों मे हो ही रही है मेरी पूजा, हो जाए, समझ लीजिए आपको कोई problem हो जाए कि भई क्या करें, इसमें केसा solution है, क्या तुम अनेक लोगों को जागृत करोगे, हज़ारों लोगों को है तो आपस में पूछ लीजिए। आप लोग अपना पैसा इकटठा करें, जो कुछ आप कार्यक्रम करना चाहें करें, जैसा भी चाहें आप कर सकते हैं। लेकिन पैसा, ये Public का पैसा जो होता है उसका बड़ा भारी अर्थ होता है। Public का पैसा आपको उड़ाना नहीं चाहिए। कभी भी एक पैसा भी नहीं, एक उपयोग नहीं करें, उसको आगे न बढ़ायें, उसकी बूंद भी नहीं, आप लोग गलत चीज़ के लिए प्रतिष्ठा न रखें, उसपे मेहनत न करें, अपने जीवन खर्चा करें। नहीं तो हमने बीड़ी पी उसका पैसा, छोड़ना पड़ेगा, तो सिगरेट तो क्या उन्होंने सिगरेट का जो इस कदर अनभिज्ञ हैं अपने धर्म से और अपने तरीकों से, उन्होंने मास्टरी कर ली है और उसका है? और ऐसी कम से कम चार पाँच किताबें अभी आएंगी, बहुत जल्दी। कम से कम इस Advent का हिन्दी भाषा में हो जाए और एक मराठी भाषा में हो जाए तो भी बड़ा अच्छा हो जाए। यही मेरी पूजा यही मेरा सब कुछ है। बाकी सब पूजा में क्या अर्थ उससे क्या पाने का है? मेरी पूजा तभी होगी जब जागृत करोगे जब मैं देखूंगी की ये शक्ति सारे संसार में बह रही है वही मेरी पूजा असल में होगी, बाकी सब मेरी पूजा में कोई मुझे अर्थ नजर नहीं आता। उससे थोड़ा बहुत आपको फायदा हो रहा है। जुरूर है पूजा हैं। पर गर आप इसको इस्तेमाल नहीं करें उसका याद रखना कि वो भी पैसा, एक-एक में आने से आपके चक्र ठीक हो जाते मधट अंक : 1 & 2 -2008. चैतन्य लहरी 42 बाहर से आए हैं वो तो हमारे Guest हैं, पर जो यहाँ के हैं उनको तो अपना भी देना चाहिए और दूसरो का भी देना चाहिए। इतना भी एक साल में आप एक मर्तबा नहीं दे सकते हैं तो ऐसे भिखारियों को आप बाहर करें। ऐसे भिखारी अपने को नहीं चाहिएं। सबको मिलना जुलना चाहिए। एक बार के खाने का पैसा नहीं दे सकते हम? ऐसे गये बीते लोग हैं क्या? एक सहजयोग में बहुत बड़ा drawback हो गया है क्योंकि हम इसमें पैसा ही नहीं लेते हैं इसलिए बड़ा भारी drawback है। पर ये बम्बई में सबसे ज्यादा है। इसका मतलब बम्बई में कुछ न कुछ गड़बड़ है। अगर आपको अपना लक्ष्मीतत्व जागृत करना है तो पैसों के मामले में जरा ढील हमने चाय पी उसका पैसा, ये नहीं। होँ अगर आपको बहुत ही कहीं जाना हो, कुछ खर्चा हो गया हो तो दूसरी बात है। पर अधिकतर आप अपने बस से जाइए, अपनी जैसी औकात से रहते हैं उसी से रहिए। अगर जो आदमी बस से चलता है- में टैक्सी से गया उसका पैसा, ये सब खर्चा नहीं करना। थोड़ा सा पैसा आपको भी खर्चा करना चाहिए। इस तरह से भी लोग करते हैं कि बड़े-बड़े खर्चें बता करके ये सहजयोग में नहीं चल सकता। आप अगर ये करेंगे तो मैं फिर उसकी सजा निकालती हूँ। आप जानते हैं ये चल नहीं सकता सहजयोग में सहजयोग में आपको बहुत Public money के लिए, बहुत ख्याल रखना है। ये कोई Politics नहीं है कि आपने पैसा मार लिया और जिसको जैसा कर लिया। ये छोड़ दें और दूसरा ये कि ईमानदारी रखें। दोनों चीज परमात्मा का साम्राज्य है और इसके कायदे बहुत कड़क होते हैं। इसलिए इसमें पैसा-वैसा की गड़बड़ एक कौड़ी की नहीं होनी चाहिए। कारयदे से आप रखिए, कायदे से रहें और अपने को जूते मारा करें, सुबह से शाम तक, गर दिमाग में ऐसा कोई भी ख्याल आए, तो सब ठीक हो जाएगा। आपको ये ही जोर का सेन्टर बन जाएगा। बस दादर से बहुत सब चीजों का किसी का अधिकार नहीं है। जब तक ये अधिकार प्राप्त नहीं होता अनाधिकार चेष्टा नहीं करनी। और सब चीज बहुत Gracefully करें। सब चीज में Grace होनी चाहिए आपस में प्यार होना चाहिए, दुलार होना चाहिए। आपस में मिलो, बच्चे किस तरह कितनी खुशी की बात है कि देखिए कहाँ कहाँ से, आज ही यहाँ पर देखिए कहाँ-कहाँ से लोग आए हैं। सब जाति, सब धर्म के लोग आज बैठे हुए हैं, कितने आनन्द की वात है। एक दूसरे की पूरी तरह से मदद करो, कोई बीमार हो तो दौड़ के जाओ, देखो क्या तकलीफ है। कितनी अच्छी बात है। आपस में मेलजोल होना चाहिए। इसीलिए मैंने कहा कि आज यहाँ पर dinner, लंच करो तो अच्छा है। अभी लंच में पैसा नहीं देंगे, बहुत से लोग ऐसे हैं, हम लंच में पैसा नहीं देंगे। मैंने कहा ठीक है कोई के होनी चाहिए। दानी भी होना चाहिए और ईमानदार भी होना चाहिए। इससे सब ठीक हो जाएगा। अगले वक्त मैं आऊं, मुझे इस वक्त बड़ी खुशी हुई कि दादर का प्रोग्राम इतना जबरदस्त हुआ और इतना बढ़िया हुआ कि Next time दादर में तो एक बड़ा खुश हो गई हूँ मैं और आपको अनेक आशीर्वाद हैं। इस दादर में जिस तरह से प्रोग्राम हुआ है हरेक जगह ऐसे ही बड़े बड़े प्रोग्राम हों और बड़ी खुशी की बात है। इससे इतनी खुशी होती है कि देखिए से मेरे बढ़ रहे हैं और इसका importance समझ रहे हैं। इसको बढ़ाएं, आगे चलाएं। जैसे दादर में प्रोग्राम हुए, ऐसे हर एक जगह आपके प्रोग्राम हों और बड़ा अच्छे से सफलता मिले, ये सबको आपको अनेक आशीर्वाद मैं देती हूँ। मेरे हृदय से मैं आपको अनेक आशीर्वाद देती हूँ, आप समृद्ध हों, आप समर्थ हों और आपके अन्दर से अनेक शक्तियाँ बह करके संसार का भला करें और कल्याण करें। और माँ की एक ही इच्छा है कि सारा संसार जो है वो सुख में आ जाए, आनन्द में आ जाए। वो तो आप लोग पूर्ण करें। (मूल आडियो के अनुरूप) **** ाि परिवर्तित इच्छा के श्री चरणों में भेट कर सकँ। काफी सोच विचार के बाद मैंने पाया कि मैं अपनी भक्ति माँ को भेंट कर सकता हूँ और में पूरे मन से श्री माँ की भक्ति एक पूर्णत: नास्तिक व्यक्ति था। डा0 बी.के. कोहली (पंजाबी बाग, देहली) ने श्रीमाताजी की कृपा से मुझे आत्मसाक्षात्कार कराया। श्रीमाताजी ने मुझ पर कृपा की और मुझे में लग गया। परन्तु मेरे मन में यह भक्ति श्रीमाताजी आत्मसाक्षात्कार दिया। जिसके उपरान्त मेरा रोम-रोम आनन्द से भर उठा। खुशियों का सागर मेरे हृदय में पैदा हुई है। अर्थात यह भक्ति भी श्रीमाताजी की ही उमड़ने लगा। इस असीमित आनन्द को पाकर कृतज्ञतावश मुझे लगा कि में श्रीमाताजी के चरणों में वापिस कर सकता हूँ। और मेरी इच्छा फिर अधूरी कुछ भेंट अर्पण करूँ। श्रीमाताजी की कृपा से यह मौका शीघ्र आ गया। श्रीमाताजी विदेश से बापिस लौट रही थीं। उनके स्वागत में हम सभी सहजयोगी रात को हवाई अड्डे पर मौजूद थे। डा. कोहली ने सोचते कुछ ही समय बीता था कि मुझे एहसास द्वारा मुझे आत्मसाक्षात्कार कराए जाने के बाद ही अनुपम देन है। मैं इस ली हुई चीज को कैसे माँ को रहे गई! अब मैने सोचा कि सहजयोग के विकास के लिए कुछ आर्थिक सहयोग दिया करुँगा। ऐसा गुलदस्ता बनाया, और मुझे श्री माँ के चरणों में हुआ कि मेरी आर्थिक स्थिति पहले से अच्छी होती अर्पण करने के लिए दिया। मैं बहुत अधिक खुश है इसे मैं स्वयं उन्हीं को भेंट स्वरुप दे सकता हूँ। था कि अपनी माँ को अर्पण करने के लिए मैरे पास एक अच्छी भेंट है। हवाई अड्डे पर मेंने वह गलदस्ता श्रीमाताजी के चरणों में भेंट कर दिया और नहीं हुई। यह तो फिर श्रीमाताजी की मुझ पर कृपा खुशी-खुशी अपने घर आ गया। जा रही है। अर्थात यह धन भी श्रीमाताजी ही दे रही अगर मैं सहजयोग के विकास पर कुछ धन व्यय भी करता हूँ तो वह धन भी श्रीमाताजी को भेंट तो ही हुई कि अपना धन मेरे माध्यम से सहजयोग के विकास पर खर्च करा रही हैं। मुझे श्रीमाताजी ने अपने कार्य के लिए चुन लिया है! जय श्रीमाताजी! अत; इस बार भी माँ को कुछ भेट करने की मेरी इच्छा अधूरी ही रह गई। एक दिन के पश्चात् श्रीमाताजी का आश्रम में आगमन हुआ और फिर दुबारा मैने डा0 बी.के. कोहली द्वारा बनाया हुआ गुलदस्ता ही श्रीमाताजी के चरणों में भेंट किया। लेकिन अब मेरा मन आनन्दमय नहीं था। मेरा मन बहुत विचलित हो गया था। में सोच रहा था कि भेंट तो कोई ऐसी वस्तु की जाती है जो तुम्हारी अपनी हो, लेकिन वह फूल तो डॉ. साहब ने अपने बगीचे से लिए थे, उन्होंने अपने हाथों से ही गुलदस्ता बनाया था, मैंने तो केवल माँ के चरणों में अर्पित ही किया था । और वास्तविकता अब मेंने अपना तन और मन माताजी को भेंट करने की सोची और मैं सहजयोग के विषय में सभी व्यक्तियों को विस्तार से बताने लगा। मैं हर सम्भव प्रयास करता, कि किसी प्रकार अधिक से अधिक व्यक्ति सहजयोग अपना लें। कुछ ही समय में मैने महसूस किया कि, दूसरों को प्रभावित करने में तो फूल डा. साहब के भी नहीं थे। क्योंकि की मेरी क्षमता धीरें-धीरे बढ़ रही है। पहले सभी पेड-पौधे, फल-फूल समस्त चर और अचर वस्तुएं व्यक्ति मेरी बात को बड़ी लापरवाही से सुनते थे, तो श्रीमाताजी ने अपने प्रताप से ही पैदा की है। उन सभी में, अर्थात स्वयं मुझमें श्रीमाताजी की ही शक्ति प्रवाहित हो रही है। अर्थात फूलों का गुलदस्ता भी तो श्रीमाताजी का ही हुआ। और मैने तो उनकी वस्तु उन्हीं को भेट कर दी । अर्थात मैं कुछ भेंट कर ही नहीं सका। उसे कोई महत्व नहीं देते थे। परन्तु अब अधिकतर व्यक्ति मेरी बात को ध्यान से सुनते हैं और सहज़योग अपनाने का प्रयास करते हैं। अर्थात सहजयोग प्रचार हेतु दूसरों को प्रभावित करने की मेरी क्षमता श्रीमाताजी की ही देन है । अत: मैं सहजयोग का प्रचार करके भी श्रीमाताजी अब मैं किसी ऐसी वस्तु की तलाश में को कुछ भी भेंट नहीं कर रहा हूँ। मैं तो सहजयोग के प्रचार का केवल माध्यम मात्र हूँ। धन्य हैं हम लग गया, जिसे में अपना कह सक और मैं उसे माँ चैतन्य लहरी अक : 1 & 2 -2008 44 म लोग कि माँ ने चुना है। श्री माँ का कोटि-कोटि धन्यवाद! हरें सहजयोग के प्रचार के लिए माँ को कुछ भेंट करने के स्थान पर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगा हुआ हूँ। और अब मैंने अन्तिम फैसला किया, कि मैं स्वयं को श्री माँ के चरणों में पूर्णत: समर्पित कर दुँगा; अपने जीवन की डोर श्रीमाताजी के हवाले मैं केवल अपनी कह कर श्रीमाताजी के चरणों में कर दूँगा। और मैंने ऐसा ही किया। परन्तु समय-समय पर मेरा ध्यान इधर-उधर विचलित होने लगता, माँ ही तो परम आनन्द है। अब में श्रीमाताजी से केवल की पूजा में ध्यान ही नहीं लगता था। ऐसे में मैं एक ही प्रार्थना करता रहता हूँ, कि श्रीमाताजी अपने श्रीमाताजी से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अपने से दूर मत करो। मुझे इतनी शक्ति दो माँ कि मैं अपने आपको, आपके चरणों में पूर्णतः समर्पित कर सकँ। आपकी पूजा में लीन रह सकँ। उलझा कर अपने से विमुख मत करो माँ। इतने में ही मेरी ममतामयी, मेरी प्यारी माँ, दयालु माँ, मेरी में परिवर्तित हो गई। पुकार सुन फिर मेरा ध्यान अपनी पूजा में लगा लेती, और मैं फिर अपनी सर्वव्यापी माँ की पूजा का आनन्द उठाने लगता। इस सबसे मुझे आभास हुआ कि मैं अपना समर्पण तो श्रीमाताजी की पूजा का आनन्द उठाने के लिए कर रहा था। अत: मैं तो अर्थात अपनी हर सम्भव कोशिश करने के बावजूद भी मैं ऐसी कोई वस्तु नहीं खोज पाया जिसे समर्पित कर सके। मैं हार गया। अपनी माँ से हारना इस बच्चे को अपनी अनन्यभक्ति का आशीर्वाद दें। में आपकी भक्ति का आनन्द अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक उठाता रहू। मुझे अपनी माया में अन्तत: श्रीमाताजी को कुछ भेंट करने की मेरी इच्छा, माँ की अनन्यभक्ति का आशीर्वाद पाने जय जय जय श्री आदि शक्ति माताजी, श्री निर्मला देवी नमो नम्ः डा. नरेन्द्र गुप्ता देहली এ ৩ श तं2 ुिड त्रुटि-सुधार पृष्ठ 38 की अन्तिम तीसरी पंक्ति 'लेकिन ये दोनों मूर्ख इतने 'लेकिन ये दोनों ही इतने अनभिज्ञ हैं।' प्रिय पाठक, अनभिज्ञ हैं के स्थान पर चैतन्य लहरी- अंक 9,10/2007 के पृष्ठ चैतन्य लहरियाँ क्या हैं की 38 पर छपे प्रवचन " आडियो से प्रतिलिपि बनाते हुए Audio की आवाज कई स्थानों पर स्पष्ट न होने के कारण कुछ त्रुटियाँ तीसरी पंक्ति में 'आपके अन्दर में खिलना सामने आई हैं। कृपा करके अपनी प्रति में निम्न त्रुटि-सुधार कर लें। कष्ट के लिए क्षमा प्रार्थी हैं:- चाहता है। पृष्ठ 39 : पहला पैरा- अन्त से ऊपर- चाहता है' के स्थान पर 'आपके हृदय में खिलना पृष्ठ 40 : पहला पैरा- अन्त से ऊपर को तीसरी पंक्ति 'पिस्तौल' के स्थान पर 'दुष्टभाव' तथा पूरे प्रवचन में 'Viberation ' शब्द के हिज्जे Vibration कर लें। पृष्ठ 38 : पहला पैरा- पंक्ति चार में 'तार छूती के स्थान पर तार खिंचती' कर लें, दूसरा पैरा- तीसरी पंक्ति- 'जल' के स्थान पर जड़' धन्यवाद টি ১ 3. ै। ०. * ३ २ु हर +२ SSSSSSSKSK ४5.S संक्रान्ति अर्थात सूर्य की शक्ति । सूर्यशक्ति का अर्थ है आत्मविश्वास| सूर्य हमें उष्मा और प्रकाश प्रदान करता है। अब ये हम पर निर्भर करता है कि सूर्य की उष्मा में हम स्वयं को झुलस लें या इससे आत्मविश्वास प्राप्त करके तेजोमय हो जाएं। परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी पूर्ण 14.01.2002 मै। ु ---------------------- 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी को जनवरी - फरवरी १00८ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-1.txt चै त न्य ल हरी प्रकाशक निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे - 411 029 फोनः 020-25285232 मुद्रक कृष्णा प्रिन्टर्ज एण्ड डिज़ाइनर्ज 292/23 ओंकार नगर 'बी' त्रीनगर दिल्ली - 110035 मोबाइल : 9212238008 अपने सुझाव, अनुभव, सहज सम्बन्धी लेख, सदस्यता एवं जानकारी के लिए निम्न पते पर लिखें : निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लाट नं. 8, चन्द्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पॉड रोड, कोथरुड पुणे फोनः 020-25285232 - 411 029 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-2.txt ल हरी चै त न्य अंक : 1- 2, 2008 NIRMALA. UNIVERSAL PURE ा में ुम इस अक श्री महालक्ष्मी पूजा, 10.11.2007 ( N.C.R. ) नोएडा 2. 11. दीवाली पूजा सेमिनार-2007 दिल्ली (N.C. R. ) नोएडा এ 15. लाल बहादुर शास्त्री-उर्दू संस्करण-विमोचन 17. श्रीमाताजी निर्मल प्रेम आश्रम में 19. महाशिवरात्रि पूजा, दिल्ली- 6-3-1989 28 . महाशिवरात्रि पूजा- 29-2-1976 31. प्रजापति यज्ञ- मुम्बई- 2-3-1976। 35. निर्विचार में रहो- मुम्बई- 18-12-1977 37. सहजयोग की एक ही युक्ति है- 30-9-1979 43. परिवर्तित इच्छा ( अनुभव) 44. त्रुटि-सुधार DHARMA ৮HS1N विं 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-3.txt श्री महालक्ष्मी पूजा 10-11-2007-नोएडा (N.C.R.) परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन के पुत्र थे पर कोई अहंकार नहीं था। उनसे पहले जो लोग हो गए वो तो थोड़े बताते थे, लेकिन ईसामसीह ने यही चाहा कि हमारे आज्ञा चक्र ठीक तरह-तरह के नृत्य को आपने देखा, हो जाएं। और वो आज्ञा चक्र आपके दिल्ली में बहुत पकड़ता है। इसका कारण क्या है? पहले अंग्रेज़ यहाँ रह गए और अंग्रेज़ों ने हमको घमण्ड करना सिखाया। आप लोगों का बातचीत से पता कर सकते हैं। हमने वो भी दिन देखे हैं जब अपना देश परतन्त्र था लेकिन उस परतन्त्र से आप लोग निकल आए हैं। अब स्वतन्त्रता हो गई, और स्वतन्त्रता क्या है? 'स्व' को जानना। जिसने 'स्व' को जाना वह 'स्व' के तन्त्र को जानता है। सहजयोग से आपने अपने को जाना है और आप जानते हैं Happy Diwali! आप सबको दीवाली मुबारक हो। ये इससे एक बात समझ लो कि ये जो भी थे जिन्होंने ये लिखा, कहा, सब एक ही बात कह रहे हैं। और सबसे बड़ी बात कौनसी कही कि परमात्मा एक हैं। उन्होंने अलग-अलग अवतार लिए पर परमात्मा एक हैं। उनमें आपस में कोई झगड़ा नहीं, और वो इस संसार में इसलिए आते हैं कि दुष्टों का नाश करें, खराब लोगों को बरबाद करें। और हो रहा है हर जगह। हर जगह में देखती हूँ कि जो हैं, वो सामने आ रहे हैं। और अब आप लोगों का भी यही काम है कि जो दुष्ट हैं, जो परमात्मा के कि आप तन्त्र हैं और आपको 'स्व' के तन्त्र से विरोध में काम करते हैं और पैसा कमाने के लिए कोई भी काम कर सकते हैं, वो सब नर्क में जाएंगे। हमको पता नहीं कितने नर्क हैं। अभी जिस माहौल में आप बैठे हैं, जो जगह आप बैठे हैं, ये नर्क से परे है। इसका सम्बन्ध नर्क से कोई नहीं हैं। लेकिन आप इसमें रहकर और अधर्म करें, गलत काम करें तो आप भी नर्क में जा सकते हैं। बहुत तरह के नर्क हैं और ये नर्क में जाने की व्यवस्था भी बड़ी अच्छी है। क्योंकि वहाँ पे जाने वाले जानते नहीं कि हम कहाँ जा रहे हैं। और जो बच जाते हैं वो स्वर्ग सीखे नहीं। उल्टे जहाँ ईसाई देश हैं उनमें बहुत ही चले जाते हैं। तो इस पृथ्वी तल पे कोई जानता ही नहीं कि हमें न्क में जाना है। गलत काम करने से हम नर्क में जाएंगे और दीवाली का मतलब यही है कि जैसे बाहर दीये लगे वैसे आप लोगों में भी दीये लड़ाई और आपस में शुद्ध मन नहीं। तो पहली लग जाएं। और आप भी देखो इस अंधेरे दुनिया में तुम लोग दीये हो, दीपक हो और तुम्हें प्रकाश देना से सब हो सकता है, कहाँ से कहाँ लोग पहुँच है। लेकिन अगर अन्दर का ही प्रकाश पूरा नहीं सकते हैं। जरूरी नहीं कि उसके लिए आप हिमालय हुआ तो आप कंसे प्रकाश दे सकते हैं? ये भी सोचो। तो पहले आप सहजयोगियों को चाहिए कि पहले अन्दर के प्रकाश को पूरा शायद हम इस दुनिया में आए हैं। ईसामसीह तक तो कोई इस मामले में बात ही नहीं करता था। आज्ञा चक्र पर वो आए और अपने को पूरी तरह से दिखा दिया कि उनमें कोई भी अहंकार नहीं था, परमात्मा लोग दुष्ट चलना है। दिल्ली में बहुत काम हुआ है, ये तो दिखाई दे रहा है। दिल्ली से बाहर भी काम हुआ है। यहाँ के लोगों में जो दोष हैं वो तो आप जानते हैं, मुझे बताने की कोई जुरूरत नहीं है। लेकिन अब आप स्वतन्त्र हो गए हैं। तो आपको देखना चाहिए की हममें तो ये दोष नहीं है। पहला तो दोष ये है कि आपका आज्ञा ही चक्र पकड़ रहा है। ईसामसीह मर गए, सूली पर चढ़ गए लेकिन उससे हम लोग अहंकार है। वो हम लोगों पर भी छाए हुए थे पर सबसे बडी जो यहाँ खराबी है कि हम अभी एक दूसरे को पहचानते ही नहीं । जहाँ-तहाँ झगड़े, जहाँ-तहाँ चीज है कि अपने मन को शुद्ध करना है। सहजयोग जाके बैठें। इसी दिल्ली शहर में आप कर सकते हैं । पर आप चारों तरफ अगर देखें कि अहंकारी लोग है तो करें और इसी से है, बहुत ज्यादा उनका आज्ञा चक्र पकड़ा हुआ बड़ी मुश्किल है। अब एक भगवान ने नई चीज़ भेजी है 'कैन्सर'। अगर आपको कैन्सर हो गया है तो और आपका अगर आज्ञा चक्र ठीक नहीं हुआ, वो ठीक हो ही नहीं सकता और बड़ी आफ्त हो 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-4.txt अंक : ! & 2 चैतन्य लहरी -2008 उनको तो करते हैं। इस देश में तो लोग पैसा खाते हैं, बताइए जाएगी। इसलिए जिनको कैन्सर हुआ है चाहिए सहजयोग लें और अपने अन्दर जो अहंकार कि भगवान कैसे माफ़़ करेगा हमको? सबसे बड़ा है उसे निकालें। क्योंकि जहाँ भी Government होती है लोगों में अहंकार आ जाता है। हमारे यहाँ इस तरह के गुनाह को करता है उसको कुछ भी इतने Government Servants हैं और उनके अन्दर काफी सा अहंकार है। पर उनसे भी ज्यादा जो बाहर से आए हैं वो तो उनके नाना हैं, और ऊपर से सब शराब पीते हैं। आप सोचिए कि ईसाई कहलाते हैं और सब शराब पीते हैं! तो शराब पीना तो आप अपने ही खिलाफ जा रहे हैं। आप अपने आज्ञा चक्र को ही मना कर रहे हैं। उसको नहीं मान रहे। जिस आदमी का आज्ञा चक्र हट गया वो शराब नहीं पी सकता, कभी नहीं पी सकता। आप जहाँ-तहाँ देखते हैं लोग शराब पीते हैं और उसको निकालने का कोई इलाज भी नहीं है उन लोगों के पास। क्योंकि उसके ऊपर फिर वो शराब पीते हैं। तो किसी भी ? तो आप आज कसम ले लीजिए कि हम झूठ तरह की लत जो होती है वो अपने को गुलामी में डाल देती है। कोई सी भी। अभी इधर में पान का चाहिए। लेकिन अब आप जब पार हो गए हो तो बात बहुत है, उसमें तम्बाकू डालेंगे! बताइए। इतने भगवान ने आपको मोहब्बत से पैदा किया है इस देश में कि आप सारी दुनिया से निराले हो जाएं। हो सकते हैं, हिन्दुस्तानी होते हैं, लेकिन उनमें दो चार बीमारियाँ अभी मैं ज्यादा देखती हूँ। वो ये कि वो खाने की जगह पैसा खाते हैं। अभी जिस रास्ते से हो, कोई भी हो, इंजीनियर हों, सड़कें बना रहे हों, हम आए तो मुझे बड़ा दुख हुआ, वो रास्ता पहले नहीं था और अब ऐसा रास्ता बना है कि कोई कह नहीं सकता कि ये नया रास्ता है। ये सब हिन्दुस्ताना अब आप पार हैं. सो पार लोग, अगर कोई झूठ ही कर सकते हैं। इतने बेशर्म तो मैंने दुनिया में है, कहीं लोग देखे ही नहीं जो ऐसे काम करें और कोई ज़रूरत नहीं हैं। यहाँ बड़े से बड़ा (अस्पष्ट)कोई भी ये काम कर सकता है। क गुनाह तो ये है कि चोरी करना और पैसा खाना। जो करे, वो कुछ भी कोशिश करें, पूजा करे, पाठ करे, नमाज़ पढ़े, अल्लाह को पुकारे, उसको कोई फायदा नहीं हो सकता। तो आज आपका नया साल है, आपको मुबारक हो। और में चाहती हूँ कि आप लोग आज ये निश्च्य करें कि हम झूठ नहीं बोलेंगे, कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे। हिन्दुस्तानी मशहूर हैं, दुनिया भर में मैं गई हूँ, कि बड़े ही झूठे हैं। पता नहीं क्यों हमारे देश पे ऐसे ठप्पा लगता है कि झूठे लोग हैं। जहाँ इतने बड़े बड़े सन्त-साधु हो गए, जहाँ सूफी जैसे लोग हो गए वहाँ लोग इतना झूठ क्यों बोलते नहीं बोलेंगे। चाहे कुछ हो जाए। उसके लिए हिम्मत और हिम्मत क्या चाहिए? आप झुठ बोल ही नहीं सकते। और आप जब ऐसे हो जाएंगे तभी तो लोग आप पे विश्वास करेंगे कि ये लोग सच्चे हैं। तो सहजयोगी को सच्चा होना है। कुछ भी हो, बिज़निस डॉक्टर हों, सबका इलाज कर रहे हों। ये सब होते हुए भी आपके लिए नर्क है अगर आप झूठ बोलें तो। अब क्योंकि आपने अपना हुलिया बदल लिया अपने देश के बारे में बाहर में सुनती हूँ, तो बड़ा दुख होता है कि यहाँ के लोग बड़े धोखेबाज़ हैं, बड़े झूठे हैं, पैसा बनाते हैं। आज आपका अच्छा शुभ दिन है। आज सब निश्चय कर लो कि हम कुछ हो जाए। हम बात ये है कि हम अपने को सबसे उत्तम समझते खुद हैं एक औरत, वो भी हिन्दुस्तान की, हमने कभी झूठ नहीं बोला। झूठ बोलने से आप ही को नुकसान होगा। झूठे काम करने से आप ही को नुकसान होगा। इस तरह से आप पैसा ज्यादा कमा देखिए ऐसे आपने बहुत लोग देखे होंगे, जो अपने लें या और भी ढंग कर लें, लेकिन इसके बाद आप स्वर्ग में नहीं जा सकते, नर्क में जाएंगे। ये बहुत तो आज ये निश्चय करना है कि पहले हम अपने आज्ञा को ठीक करें। आज्ञा में सबसे बड़ी कभी भी झूठ नहीं बोलेंगे, चाहे हैं, और हम सोचते हैं कि दुनिया भर में हम चला सकते हैं, दुनिया को हम ठीक कर सकते हैं। जब आप ही ठीक नहीं तो दुनिया कैसे ठीक होगी? को बहुत ऊँचा समझ के और बहुत गलत काम 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-5.txt अक : । & 2 चैतन्य लहरी 2008 जुरूरी जान लेना है कि हमारे बारे में सब देशों में बोलना है। हम दिल्ली बहुत रह चुके हैं और हम इतनी बदनामी है। ये बदनामी क्यों है, क्योंकि हमारे तो हैरान थे की लोग कितना झूठ बोलते हैं यहाँ, बाप रे बाप! उनको कोई डर ही नहीं!" साफ़ साफ़ झूठे बोलना और उससे लाभ? पता नहीं उनको यहाँ हो जाए शायद, कुछ रुपया पैसा ज्यादा कमा लें लेकिन वो स्वर्ग में नहीं जा सकते। मैं तो पता करिए कि कितना पैसा खर्च हुआ और चाहती हूँ सहजयोगी आज से कसम ले लें, 'न तो उनको देखिए कि वो क्या कर रहे हैं? ऐसे पैसे हम झूठ बोलेंगे और न तो हम झूठों की मदद खाके शराब ही तो पिएंगे और शराब हमारी दुश्मन करेंगे।' अपने देश के बारे में लोग ये कहते हैं कि बड़े बेईमान हैं। हाँ, सब जगह, में तो बहुत दूर घूमी बहुत अच्छी है और बहुत देश में गरीब लोग हैं, हूँ। सबसे मैंने देखा कि रशिया के लोग हैं, बहुत लेकिन मैंने देखा है कि वो बड़े ईमानदार हैं, तो बढिया। वो आधे सहजयोगी तो हैं ही और बहुत ईमानदारी पहली चीज है। आज निश्चय होना चाहिए सहजयोगी हैं । मैं रशिया इस साल जा भी नहीं पाई। कि हम बेईमानी नहीं करेंगे और हम बेईमानों के अगले साल जाऊंगी जरूरी। पर इसका ये मतलब हैं कि हम democracy नहीं पाल सकते। हमको भी बता देंगे। अब ये है कि लोग कहेंगे, "माँ, पुलिस कम्यूनिस्ट होना चाहिए। वहाँ कोई चोरी चकारी नहीं, झूठ बोलना नहीं और सब बहुत प्यार करते सहजयोगी हैं । जो सहजयोगी हैं वो किसी पुलिसवाले हैं। मेरा भी बहुत मान है। लेकिन समझने की बात यह है कि हम कहाँ जा रहे हैं? दो चार पैसे कमाने उनमें शक्ति है। पर सारी शक्ति सच्चाई की है। के लिए हम जा कहाँ रहे हैं? हमें क्या मिलने वाला सच्चाई होनी चाहिए और मुझे बड़ी खुशी है कि है? सो पहले तो ईमानदारी अपने साथ होनी चाहिए। बहुत से सहजयोगी बहुत सच्चे हैं, बहुत सच्चे हैं। तुम्हारे बेईमानी से तुम्हारे ही लोगों को तकलीफ़ होगी। हिन्दुस्तान को लोग कहते हैं कि यहाँ के कि जो सच्चे हो जाएं। सच्चाई बहुत ज़रूरी चीज़ हे लोग बड़े बेईमान हैं। शर्म आती है सुनकर के। तुम्हारे यहाँ इतने बड़े-बड़े सन्त हो गए, इतने इतने महान पुरुष हो गए और यहाँ पर लोग बड़े चोर हैं आदमी में अहंकार आ जाता है तो कोई सी भी और बहुत चोरी करते हैं और बुराई करते हैं। तो गलती करता है, बुराई करता है, किसी को नुकसान इससे पहले ही तो आपका आज्ञा डर गया। बड़े-बड़े करता है, पैसा खाता है वो सब नर्क में जाएंगे। मैं रईस बन जाएंगे। देखिए अन्त में, रईस साहब चले जा रहे हैं नरक में। में आज बताना चाहती हूँ कि खाना चाहिए। कोई आप मर नहीं रहे। क्या किया दिवाली का मतलब ये है कि नर्क अंधेरा है और तुम प्रकाश हो गए हो। तुमको चाहिए कि जहाँ भी अंधेरा हो वहाँ लड़ो और वो बताओ कि ये गलत बात है। इससे हमारा देश सुधरेगा। तुमको ये भी काम एक करना है। पूजा पाठे हम कर ही रहे हैं। लेकिन जो हमारे अन्दर शक्ति है वो ये है कि हम जो भी असत्य है उसके विरोध में हैं से लोगों यहाँ ऐसे लोग हैं। आपको अगर पता हो जाए कि कोई झूठा है तो आप उसके लिए एक संस्था बनाइए और उससे पूछिए कि साहब इसके मतलब क्या है? जैसे एक सड़क है, वो अगर ठीक ही नहीं बनी है है। किसलिए चाहिए? आप लोगों की तो हालत साथ नहीं रहेंगे और किसी ने अगर किया तो हम में भी ऐसे हैं, उसमें भी वैसे हैं" लेकिन आप से या किसी भी बड़े आदमी से कम नहीं। बहुत लेकिन अभी अपने को और भी सहजयोगी चाहिए नहीं तो आपका आज्ञा छूट ही नहीं संकता। आज्ञा होता है उसमें एक चीज़ है कि 'अहंकार'। जब आपको बता देना चाहती हूँ कि आपको पैसा नहीं पैसा ज्यादा कमाके, क्या कर रहे हैं? दो चार Ilights लगा लिए होंगे और कोई दो चार औरतें रख ली होंगी और क्या? लेकिन अब जब नर्क में जाएंगे तो आपका क्या हाल होने वाला है? दीवाली के दिन मैं ये बात इसलिए कह रही हूँ, दीवाली इसलिए मनाई गई थी कि जब सीताजी वापिस राम के पास आ गईं। जब हमारे पास चरित्र आ जाएगा तो फिर हम गुलाम नहीं रह सकते। हम अपने ही गुलाम है, दूसरों के थोड़े ही। किसी भी बात के लिए झूठ नहीं बहुत को पता नहीं पैसा कमाने की बीमारी है। सीधे वो नर्क में जाएंगे। मैं आपसे इसलिए बता रही हैूँ कि किसी ने ऐसा बताया ही नहीं। दीवाली के दिन में 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-6.txt अंक :। & 2 - 2008 चैतन्य लहरी बता रही हूँ कि हम खुशियाँ मनाएंगे और दीये जलाएंगे, अपने हृदय में, उसमें, उस दीये में हमें दिखाई देगा कि कौन कैसे हैं चोरी करते हैं, अब तो एक दूसरी लड़ाई मैं देखती हूँ। हिन्दू-मुसलमानों हैं। हम कभी झूठ नहीं बोलते, कभी भी नहीं। और की तो लड़ाई खतम हो गई और दूसरे लोगों की बोल ही नहीं सकते। जैसे ही आपको झूठ बोलना लड़ाई शुरु हो गई। यानि दूसरी बात ये है हम लड़ाका भी बहुत हैं। कम से कम दूसरे देशों में देख लीजिए इस अंधेरे में। आप दीप हैं और दीप इतने देश के धर्म नहीं हैं। तो अपने यहाँ तो कोई को जलना है। इस अंधेरे को हमको मिटाना है। हम भी मौका मिल जाए, लड़ाई करो। लड़ाई पहले। मियाँ-बीवी में झगड़ा, फिर उनके बच्चों में झगड़ा, फिर आपस में कोई हो तो उससे झगड़ा। सहजयोग क्या है? सहजयोग प्रेम है, प्रेम। अपने अन्दर जो प्रेम की शक्ति है उसको जगाओ। आज का बड़ा शुभदिन है और हमें दीये जलाने हैं अपने हृदय में और ये निश्चय कर लेना है कि हम मर भी जाएंगे तो भी हम झूठ नहीं बोलेंगे। अपने यहाँ ऐसे लोग हो गए हैं। लेकिन इतना नाम बदनाम है दुनिया में कि हिन्दुस्तानी बेईमान होते हैं। भई मैने तो कोई देखे हैं, माने बेवकूफ हैं । जमुनाजी तो सीधे नकर्क में नहीं, पर सुनते हैं तो बड़ा दु:ख लगता है। हिन्दुस्तान उतरती हैं, लेकिन उस नरक से आप बच जाओगे। जैसे पवित्र स्थान जहाँ इतने बड़े सन्त जन्म लिए और तो कहीं नहीं। सूफ़ी हैं, यहीं पैदा हुए, सब जो नहीं। लेकिन अगर आपको वाकई में सहजयोग को महान लोग हो गए, सब हिन्दुस्तान में हुए। किसी भी देश में इतने महान लोग हुए नहीं हैं। एक आध दो हुए होंगे, पर हमारे यहाँ तो बड़े महान लोग हो गए और उसके बाद उन्होंने जो भी सिखाया, वो तो छोड़िए. नम्बरी हम लोग चोर हो गए। तो जो भी चोरी करते हैं, वो कभी भी स्वर्ग में नहीं जा सकते और यहाँ पहले आप सच्चाई रखो। नहीं तो झूठे आदमी के की जिन्दगी जितनी है उससे हजार गुने ज्यादा जिन्दगी आपको नर्क में मिलेगी। आज के दिन में मुश्किल है। क्योंकि आप देखते हैं हमारा पड़ोसी इसलिए नर्क की बात कर रही हूँ कि नर्क माने जो अंधेरा है वो नर्क हम देखते हैं। अब आपके दीये सोचते हैं कि हम ऐसे हैं, तो उस पड़ोसी को क्यों जल गए। उससे आप देखो कि कौन कौन नर्क हैं। आप Government को मदद करो। मदद करो कि कौन लोग बेईमान हैं। आप छोटी पॅंजिशन में हों चाहे बड़ी पॅजिशन में हों, आपको बता देना चाहिए कि कौन चोर हैं। चोरों को पकड़ो। झूठ बोलने वालों को पकड़ो। अब तुम्हारे पास शक्ति आई है वो किस चीज़ के लिए? तुम जाग गए हो किस चीज़़ के लिए? तुम्हारे प्रकाश हो गए, उस प्रकाश में आप अपने को देखो। अन्धेरे में तो कुछ नहीं दिखा, पर अपने प्रकाश को देखो कि आप क्या हैं? और झूठ बोलने से आपको क्या प्राप्त होगा? हम एक गृहस्थी पड़े आपके पास शक्ति हैं, आप सब दीप हैं, आप सब दूर तक बदनाम हैं, अरे! हमारे देश के जैसे तो लोग कहीं हैं ही नहीं और बड़ा दुख लगता है सुनके कि लोग हमें कितना गलत समझे हैं! और वेईमानी करके भी क्या पाते हैं, पता नहीं! और जो पाना है वो तो भयंकर है। कोई भी नहीं छुटेगा। जो भी बेईमान हो गए, सब पकड़े जाएंगे। उसकी व्यवस्था है, आप पार हो गए क्योंकि आप बेईमान नहीं है। आप सत्य को प्यार करते हैं और सत्य की इज्जत करते हैं। मैं चाहती खड़े हों। अब जैसे जमुनाजी में लोग कचरा फेंकते हूँ कि आप सत्य पर आप पार हैं। जिसके पास दीया होता है गिरता तो अपने अन्दर पूरी तरह समाना है, तो पहले तय कर लो कि हम बेईमानी नहीं करेंगे किसी भी तरह। पैसा कमाना ही इस दुनिया में धन्धा रह गया हैं। उससे क्या होता है? कोई उनको याद भी नहीं करता। अगर आप अपने देश को प्यार करते हैं तो प्यार का क्या विश्वास? ये आपकी एक बड़ी ऐसा तो हम भी वैसे हो जाएं, पर ऐसा क्यों नहीं नहीं अपने जैसे बनाएं? पहले तो आज कसम खालो कि हम कोई बेईमानी नहीं करेंगे और हम बेईमानों का साथ नहीं देंगे। झूठेपना अपने देश पे पता नहीं शाप है। बहुत से लोग हैं, सुबह से शाम तक दस झूठ बोले मगर उनका पेट ही नहीं भरता। अब तो आपकी गरीबी हट गई। काफ़ी ठीक है, खाना पीना सब है। कोई आप लोग भिखारी नहीं हैं। फिर झूठ क्यों बोलते हो? आज के दिन का निश्चय कर लो 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-7.txt 6. 2008 अक : 1 & 2 चैतन्य लहरी कि हम झूठ नहीं बोलेंगे और अगर कोई झूठा होगा तो हम उसके साथ नहीं चलेंगे। हमारा उससे कोई जिससे हम नष्ट हो जाएंगे। शराब होने से हम कुछ सम्बन्ध नहीं होगा। इसमें बड़ा सुख है, बहुत आनन्द है। इससे आपको पता है कि झूठे आदमी नरक में जाएंगे और आप भी उसके पीछे-पीछे जाएगे। आपको भगवान ने जागृत किया है। आपके ये कि सब नौकर हैं। जब वो कुछ काम करते हैं, अन्दर प्रकाश है। उस प्रकाश में देखो। अगर (.... गाड़ी धोते हैं तो उनको पैसा देते हैं। और सोलह ...............अस्पष्ट) यह तय करले कि हम झूठ नहीं बोलेंगे, चाहे कुछ हो जाए, चाहे हमारी गर्दन कट जाए। इस मामले में हिन्दुस्तानी बहुत अच्छे हैं। देखा है हर जगह यह गरीब सोलह साल के बच्चे| मैं जानती हूँ, लेकिन जब मैं बाहर सुनती हूँ तो बड़ा दु:ख होता है। अब जैसे रास्ता ये बनाया है, हो रहा है तो कहाँ जाएगा, क्या पढ़ेगा? वो तो ये कोई रास्ता है? ये तो मुझे लग रहा था कहीं सोलह साल का हो गया ना, उनको घर से निकाल जंगल में जा रहे हैं। जो ऐसा कुछ दिखाई दे, तो देते हैं, माँ भी और बाप भी। यह Americans का तुम्हारा organization है, तुम सब मिल करके ये कितने दिन चलने वाला है, देख लीजिए आप। नष्ट पूछो कि ऐसा रास्ता किसने बनाया? क्यों बनाया? किसने पैसे खाए? सारे आपके सहजयोगियों को नहीं होता। आप कहाँ हैं, आपकी कौन सी औकात है? एक हो जाना चाहिए और उस तरफ आप कोशिश करें कि ये अपने भारत वर्ष में जो भूत घुसा हुआ उसको निकालें। कहीं भी जाओ तो लोग कहते सच्चाई आनी चाहिए। सच्चाई आना बहुत जरूरी है। हैं, "भैया हिंदुस्तानियों पर विश्वास मत करो कितनी शरम की बात है! जिस पे सबसे ज्यादा विश्वास करना चाहिए वो तो हम हिन्दुस्तानी हैं। लेकिन हमारे यहाँ बड़े-बड़े सब लीडर हो गए. बड़े-बड़े महान लोग हुए, महान आदमी और हम उनको नहीं देखते कि उनका कितना नाम है, उनको कौन आदमी खुश है, ये मैंने तो आज तक देखा लोग कितना मानते हैं! आपको भी मानते हैं, मैं नहीं। आप सहजयोगी हैं, आपके अन्दर प्रकाश है। जानती हूँ, पर आप चोरों के साथ मत खड़े हों। अगर आपको पता हुआ कि ये आदमी चोर है तो उसके घर खाना खाने नहीं जाओ। चोरों को बड़ी चाहे ईसाई हों, कुछ फर्क नहीं पड़ता, आप सब मुश्किल हो जाएगी। सब भगवान के पुलिसवाले हैं और जितने भी चोर वो बेईमान है। उसको कोई नहीं जानेगा इसके बाद आपको मिलें उनका पता रखो। आपके बच्चे उनमें भी हिम्मत भरो। अगर कोई गलत काम करते हैं से अनेक लाभ हैं। सबसे तो बड़ा ये कि परमेश्वर और झूठ बोलते हैं तो आप उसका पता करो। अपने को ये देश, बहुत सारे सन्तों के साथ जागृत हुआ है है कि बैठे बिठाए, आप हैरान हो जाएंगे, बैठे बिठाए और आप सब संत हैं। आपको कोई जरूरी नहीं कि आप झूठ बोलें। अरे एक बार खाना मिला तो क्या? खाना नहीं खाने से कोई मरता नहीं। हम लोगों को खाना-पीना मिलता है पर उस पर शराब लेते हैं। शराब लेने से तो दूसरे एक कदम हम चलते हैं ठीक नहीं हो सकते। अब जैसे अमेरिका है, वो एक एक नई बात निकालते हैं कि सोलह साल का बच्चा हो जाए तो अपना (.........अस्पष्ट) मतलब साल में वो क्या कहते हैं,"कि साहब अब हम तो सोलह साल के हो गए। अब जाइए बाहर।" मैंने ये 174 हम लोग तो ये सोचते हैं कि वह सोलह साल का हो रहे हैं। एक दो aeroplane ले लेने से कोई बड़ा हिन्दुस्तान ऐसा देश है कि सारी दुनिया को बचा सकता है, सारी दुनिया को। लेकिन उसमें हर मामले में सच्चाई। कोई झूठापना करने की जरूरत क्या है, मेरी समझ में नहीं आता! ज्यादा जितने अमीर लोग हैं, उनको तो पहले समझ लेना चाहिए कि अब आप अमीर हैं, अब चुप बैठिए। और कमाने की मत सोचो। ज्यादा पैसा मिलने से प्रकाश में आप अपना रास्ता देखते हैं और रास्ता सत्य का है। चाहे आप मुसलमान हों, चाहे हिन्दू हों, मैं आपसे बताती हूँ कि आप इन्सान हैं। और अगर इन्सान में ईमानदारी नहीं तो भी तो हमारी ज़िन्दगी है, वो कैसी होगी? ईमानदारी का आप पे आशीर्वाद होता है। ऐसा आशीर्वाद होता आपका सब ठीक हो जाता है। लेकिन अब हिन्दुस्तान में लोग पैसे भी हों, नहीं भी हों, सब पैसे के पीछे भागते हैं। और तो भी गरीब लोग बहुत हैं। इसीलिए आज के दिन उनकी भी दीवाली होनी चाहिए। 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-8.txt अंक :। & 2 2008 चैतन्य लहरी उनको भी खुश होना चाहिए, हम उसी देश के कमेटी बनाएं कि वहाँ आपको कहीं भी चोरी पता रहनेवाले हैं पर हम तो अपने ही को धोखा देते हैं! चली तो कमेटी को बताओ और कमेटी क्या करती बड़े होशियार हैं! इससे हमारे अन्दर अहंकार आ जाता है, और जब अहंकार आ गया तो फिर किसी से आप बड़ी पॅजिशन में जाएंगे। तो पहली तो चीज़ भी तरह से कोई नहीं बचा सकता। अहंकार में है न आप बेईमान बनें और न किसी को बनने दें । आपको तो कैन्सर हो जाएगा। तो आप बचा नहीं ये सकते अपने को। अगर आपके अन्दर कैन्सर है तो तेल में मिलावट है, तो घी में मिलावट है। जहाँ आप बचा नहीं सकते, में नहीं बचा सकतीं। सच बात बता रही हूँ। आपका पहले अहंकार जो है उसको आग में जला लीजिए और अहंकार है तो हिंदुस्तान में हैं। शर्म कीजिए। किस चीज़ का अहंकार है साहब? इन्होंने पुण्य नहीं कमाया। तो पैसा कमाने से अच्छा अपने देश में तो हर बात का। किसी ने बी.ए. पास कर दिया तो उसको अहंकार हो गया और उससे देखो। तो आज का दिन बड़ा शुभ है और आनन्द आगे कुछ किया तो उसको डबल अहंकार! किसी ने है देखें। इसी तरह से आपका नाम होगा, इसी तरह बहुत ज़रूरी है, आपके देश पे बड़ा कलंक है । देखो, वहाँ देखो सब लोग हँसते हैं हम पर! कोई विश्वास ही नहीं करता, हालांकि सबसे बढ़िया लोग इतने लोग कहीं पार ही नहीं हुए हैं। है पुण्य कमाओ। तो बहुत गरीब लोग हैं, उनको का दिन है, किसलिए? इस रोज हमको स्वर्ग मिला और हम स्वर्ग में ही रहना चाहते हैं। पर स्वर्ग में कुछ प्राप्त किया, इन्जीनियर हो गया, डॉक्टर हो गया तो उसको अहंकार! सो ये आज्ञा चक्र जो डरपोक लोग नहीं जा सकते डरने की कोई ज़रूरत पकड़ जाता है वो सीधे आपको कहाँ ले जाएगा? नर्क में, और न्क महा-भयंकर जगह है। आपके पास भगवान ने बुद्धि दी और अब आप पार हो गए हैं। उसके बाद भी अगर आप नर्क में जाना चाहें तो जाइए। आज तक किसी ने ये बात नहीं करी, कहा नहीं, आज का दिन जो है इसलिए शुभ हे कि बहुत अच्छे काम हुए। सीताजी लौट आईं, रामचन्द्रजी के ज़माने में कृष्ण के जमाने में, और जो बड़े-बड़े बेईमानी नहीं करेंगे काम हुए सब पार लोगों से हुए। इसलिए पहली चीज़ आज निश्चय कर लीजिए आज, कि हम कोई भी बेईमानी तो करेंगे ही नहीं लेकिन कोई अगर करेगा तो हम उसको पकड़वा देंगे। पर मैं देखती हूँ होगा तो बाहर क्या प्रकाश डालेंगे आप? और इस देश में काले का गोरे से झगड़ा है, कोई किसी से झगड़ा। भारत वर्ष को चाहते हैं कि इसे अलग-अलग कर दें। उससे कोई फायदा नहीं होने वाला। फायदा काहे से होगा? जब आप ईमानदार रहो और तुम्हारा चरित्र अच्छा हो। अंग्रेजों से जो भी सीखा है उनसे मरते हैं? और कहीं नहीं मरते। उसका कारण है कि सीखने लायक कोई चीज़ नहीं। वो तो सब बुरी नर्क में जाना है न। तो ये जान लीजिए आप अगर हालत में हैं आज कल। लेकिन हमको अपने देश बेईमानी करेंगे तो पहला कदम तो आपका न्क में को बचाना है और सारी दुनिया को बचाना है। जिम्मेदारी है। आपको पार कर दिया आपमें प्रकाश आ गया, तो भी आप गड्ढे में जाना चाहें तो कौन वो एक अनोखा, वो अगर सहजयोग करे तो भव्य क्या करेगा? सबको मिल कर के कोशिश करनी होगा। जैसे आज आप सूफी को याद कर रहे हैं, चाहिए। मैं तो चाहती हूँ कि सहजयोगियों की एक नहीं है। अरे दो पैसे अगर कम मिले या ज्यादा मिले तो इतनी कौनसी आफत आनेवाली है? सब लोग रईस हो गए हैं, मैं देखती हैँ न, में यहाँ सत्तरह-अठारह साल से आ रही हूँ। पहले से आप सब लोग रईस हो गए हैं। पहले से अब हालत ठीक हो गई है। पर सुबह से शाम बेईमानी, बेईमानी, बेईमानी। तो रास्ता बना हुआ है। बस आज कसम खालो कि हम कोई और अगर कोई होगा तो हम सब मिलकर के उसको oppose करेंगे। सहजयोग आपको क्यों दिया? पार क्यों कराया? इसलिए कि आप प्रकाश डालें। आप ही के अन्दर प्रकाश नहीं प्रकाश डालके देखें कि हम बेईमानों को मदद कर रहे हैं? कुछ नहीं होता अगर दो पैसे कम कमाएँ या ज्यादा कमाएं। अगर आप ईमानदार हैं तो आपको भगवान मदद करते हैं। अपने देश में लोग इतने क्यों बड़ी हो गया और दूसरा झूठ बोलने की कोई जुरूरत ही नहीं है। आप सच बोलिए। जो आदमी सच बोलेगा तब लोग आपको याद करेंगे। काम कुछ करना नहीं 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-9.txt अंक : 1 & 2 -2008 चैतन्य लहरी अगर हैं, मर रहे हैं, भूखे मर रहे हैं तो उसकी इन्तज़ाम हो सकता है, पर अगर ईमानदार हैं तो और अगर ईमानदारी नहीं है तो परमात्मा तो क्या, आपको है, सिर्फ बेईमान जो हैं उनको पकड़ो, जुरूरी है। यहाँ लोग झगड़ा कर रहे हैं कि जमुनाजी में कचरा मत फेंको, ये नहीं फेंको। अब ये भी बताना पड़ता है। मैं इतने देशों में घूमी हूँ कहीं भी कोई नदी में कोई मदद नहीं करेगा। दुनिया भर की बीमारियाँ कचरा नहीं फेंकता। तो इतने आलसी क्यों हो? यहाँ इन्तज़ाम कितना है कि कचरा आप muncipality को दे दीजिए, कहीं कर दीजिए। पर आप खुद ही यहाँ क्या आप बेवकूफ़ बनने के लिए आए हैं? कचरा हैं, तो फिर आप क्या करेंगे? सब लोग सोचो और जो करते हैं उनसे दोस्ती छोड़ो। उनको मदद मन में और निश्चय करो आज, बड़ा अच्छा दिन है आज का, बड़ा अच्छा दिन है कि हम न तो पीता हैं तो लोग उसके यहाँ आते हैं और वो भी बेईमानी करेंगे और न ही हम बेईमानों को मानेंगे। हमने ऐसे लोग देखे हैं कि जो खुद बेईमान नहीं थे ये आदमी ऐसा है, ये पता हुआ कि ये आदमी और बेईमानो के घर जाते नहीं थे, उनसे कोई बेईमान है, तो आप उसके घर खाना छोड़ दो। उससे मतलब नहीं रखते थे। क्योंकि वो अपना तो हित करते ही हैं पर सारे देश का हित करते हैं तो आप सहजयोगी हैं, आपको चाहिए कसमें खालो कि हम कोई बेईमानी कभी करेंगे नहीं। आप सि्फ पहचान लीजिए कि कोई बेईमान है और सिर्फ आप अपने से, उसको भगवान देखेगा, बस बहुत है! लेकिन अन्तरआत्मा से कहिए कि बेईमान है, और सहजयोगी. अगर बारह सहजयोगी भी मिल जाएँ और सब मिलकर जानलें कि ये आदमी बेईमान है, तो परमात्मा तुम्हारे साथ है। थोड़े रईसों से ये देश का भला नहीं हो सकता। लेकिन ईमानदारों से होगा। तो और इसीलिए आज का एक सन्देश आपको है कि सबसे बड़ी चीज़ हमारे ऊपर कलंक ये कि बेईमान हैं। और जो सहजयोगी है वो तो बेईमान हो ही नहीं नहीं करेंगे। और अगर कोई बेईमान होगा तो हम ये मेरा विश्वास है। हमको सब एक होना उसको मदद नहीं करेंगे। बस, काफ़ी है। अपने देश लग जाएंगी। ऐसे हमारे देश के बहुत tradition अच्छे हैं बहुत। शराब पिएंगे, दारू पिएंगे, बताइए! मत करो। मैंने यह देखा है कि कोई आदमी शराब शराब पीते हैं। लेकिन आपको अगर पता हुआ कि कोई मतलब नहीं है। अपने देश का हमें भला करना है, क्योंकि भगवान ने हमें Ilight दे दी। उस light में देखो। उसकी शक्ति बहुत जूबरदस्त है। तुम अगर यही सोच लो कि जिसने बेईमानी करी है देश आप बहरे हो जाते हैं, आपको समझ ही में नहीं आता! ऐसा आदमी कभी कुछ अच्छा नहीं कर सकता, न कभी देख सकता है। पता नहीं कैसे वो बेशरम जीते हैं? यह मुझे पता नहीं, पर जीते हैं। आज ये व्रत ले लो कि हम कभी भी कोई बेईमानी सकता, चाहिए। सब झगड़े छोड़ दीजिए और ये कि हम ईमानदार लोग हैं। हिन्दुस्तान का नाम, बहुत नाम बदनाम है, इसलिए आज से बचन लो कि हम कोई सन्देश है कि आपके पास प्रकाश है और उस बेईमानी नहीं करेंगे और दूसरे बेईमान अगर हो तो हम सब मिलकर उसका पीछा करेंगे। दूसरे दिन उसकी नींद भाग जाएगी। पर बहुत बढ़ गई है, हम तो आपसे कह रहे हैं कि हम तो हैरान हैं, हर चीज़ में बेईमानी, हर चीज़ में बेईमानी। पहले ये छोटी-छोटी हों, इसलिए पहले सीख लो। आज का बड़ा दिन है । बात में Outcast बनाते थे और छोटीछोटी चीजों में अपने को अलग करते थे। लेकिन हमारा देश इतना ईमानदार रहा, ऐसे ऐसे गुण थे, वो हम क्यों भूल गए? कहाँ चले गए? हर जगह मैं देखती हैँ कि बेईमानी। हर कदम पे बेईमानी है। हमारे यहाँ 'बच्चों' को सिखाओ कि तुम बेईमान मत बनो। में और भी realized souls आएंगे। पर ऐसे बेईमान देश में कौन आने चला? तो आज का एक हो प्रकाश में आप चलो और वो तुमको शक्ति देगा। जो भी करना चाहो (.....अस्पष्ट)। देखिए, हमने अपनी स्वतन्त्रता को पाया है। स्वतन्त्र, स्व: को जानों ना। अब में चाहती हूँ कि बहुत से बच्चे पैदा आज व्रत ले लो कि हम न तो बेईमानी करेंगे और ना ही बेईमानों के साथ होंगे, न उनसे डरेंगे। उनके साथ भगवान तो है नहीं। भगवान आपके साथ हैं। अगर आप (अस्पष्ट) हैं तो भगवान आपके साथ हैं। सारे लोगों ने तो इसी भारत भूमि में जन्म लिया था, इसलिए तो नहीं कि आपस में लड़ो मरो, 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-10.txt अंक : । & 2 चैतन्य लहरी 2008 6, महामूरख। हम लोग लड़ते हैं, मरते हैं। कुछ लड़ने हो चुका, जब बेईमान लोग इतने जुबरदस्त हो गए से फायदा नहीं, लोगों को बताओ। अरे भाई क्यों हैं। तो आज एक ही संदेश है कि 'न तो हम लड़ते हो? तुमको क्या चाहिए? क्यों? आखिर क्या चाहिए तुमको? खाने को अच्छा है, पीने को अच्छा है। बस और क्या चाहिए? पर आज कल तो ये है कि भाई हमें ये कपड़े चाहिएं, हमें ऐसा घर चाहिए और ये नहीं, उसी के साथ कि हम जाएंगे नर्क। उस वक्त में बो जो सूफी हो गए। वैसे आप सब सूफ़ी हैं, क्योंकि आपकी सफ़ाई हो गई है। अब सब लोग कविता लिखो, ईमानदारी की। ये बेईमानी पाएंगे। आपने पाया है लेकिन उसको इस्तेमाल करो तो जानी चाहिए, पहली चीज़ और दूसरी बहुत सी बातें हैं जो ठीक होनी चाहिए। लेकिन सबसे पहले नहीं देखे थे दिल्ली में सो आज सब लोग यही मन तो बेईमानी मत करो। कोई भारतवर्ष में इतना गरीब में निश्चय कर लें कि हम लोग किसी बेईमान को नहीं कि उसको बेईमानी करना पड़े। हम ये कह रहे हैं कि हमारे देश पे कलंक है उसको मिटाना लेते हैं क्योंकि हमारे अन्दर कुछ है ना ऐसा कि वो चाहिए। और आप सहजयोगी हैं, आप कर सकते सोचते हैं कि वो हमें मान लेंगे। हिंदुस्तानियों को हैं। आपके पास प्रकाश है। प्रकाश से आप सब जगह light फैला सकते हैं और सबको हिम्मत दें उसको तो कभी भी नहीं। अपने देश पे एक बड़ा कि ठीक है। खासकर आप में जो young लोग है, लाँछन है सब जगह। ये बात सच नहीं है, हिन्दुस्तान दोस्त हैं, वो ये सोचो कि क्या ईमानदारी का काम आप कर सकते हैं। अब लग गए कि जमुनाजी में यह मत फेंको। ठीक है, चीज़ नहीं है। जरूरी चीज़ है एक अपने ईमान को है वो है 'स्वराज्य' स्व का राज्य। स्व का राज्य होगा, खोना। और इसीलिए आज का दिन बड़ा शुभ माना जाता है हर जगह। जगह-जगह में light लगाई जाती किसी से डरने की ज़रूरत नहीं। किसी को कुछ हैं। सब कुछ होता है और अगर ये हम नहीं कर सकें तो सहजयोगी होने से फायदा क्या? सबसे तो हैरान हो गई। मैंने कभी दिल्ली में इतने लोग ज्यादा सहजयोगी हिन्दुस्तान में हैं। सबसे ज्यादा। और उसके बाद रशिया (रूस) में। अब रशियन इतने शुभ दिन पर निश्चय कर लें कि हम बेईमानी लोग बहुत ही ज्यादा नम्र हैं। वो चोरी चकारी नहीं करते। पता नहीं क्यों? हमारे यहाँ कम्यूनिज्म आ जाए तो शायद हम लोग भी वैसे हो जाएं। पर वो सहजयोगी हो, तुमको किसका डर है? डरने की कोई बात बड़ी ऊँची नहीं है। जबरदस्ती कोई कुछ करे, वो अच्छा नहीं है। हम अपने पे जुबरदस्त हो जाएं। तय कर लीजिए, आज यह निश्चय कर लीजिए आज बड़ा अच्छा दिन है, कि न तो हम बेईमानी करेंगे चीजें हटा दी, पर सब नहीं, कुछ सूफ़ियों ने। तो और न ही दूसरे को करने देंगे। आपका देश बहुत ऐसा आपको सबको करना चाहिए। मेरे समृद्ध हो जाएगा। और देश क्या हैं, मैं देख चुकी हूँ सब देश। बैकार लोग हैं। पर हमारे देश में लोगों में अब भी बहुत ज्यादा धर्म है। हमारे यहाँ धर्म खत्म बेईमानी करेंगे और न ही किसी को करने देंगे। ' लेकिन यहाँ के लोग इस मामले में बहुत tolrent हैं, सहते हैं। सबसे बड़ी यही गलती है जब आपने प्रकाश पाया है तो आप क्यों डरते हो? आपको क्या ज़रूरत है डरने की? इसलिए में आज आपसे विनती करती हूँ कि हिम्मत से काम लो। और अब एक स्वतनत्रता हो गई। स्व का तन्त्र आप आज आप इतने लोग यहाँ आए हैं। मैंने इतने कभी मानेंगे ही नहीं और सब राक्षस भी ये इसीलिए जन्म कभी नहीं मानना चाहिए और फिर जो पार हैं में बहुत लोग हैं ईमानदार, बहुत। लेकिन ये बात सच नहीं है। पर ये बात मेंने देखी है, झगड़ा करेंगे, यह ज़मीन हमारी, ये जमीन तुम्हारी। अरे जो आपका लेकिन वो इतनी जुरूरी तभी होगा जब आप वाकई में स्वतन्त्र हो जाएं। कहने की ज़रूरत नहीं। इतने लोगों को देखकर में देखे नहीं थे तो आपसे जो विनती यही है कि आज तो करेंगे नहीं, चाहे हम मर जाएं। दस साल में बहुत अपना देश खराब हो गया है। तुम लोग इतने कौन सी बात है? सबके पीछे परमात्मा खड़े हुए हैं। देखिए सूफ़ियों को पता हुआ कि परमात्मा हमारे पीछे हैं तो वो सब उन्होंने दुनिया भर की बेकार की ख्याल से आज का यही सन्देश है कि अब आप ना तो खुद चोर हों और न ही चोरों की मदद करो, पर मैं देखती हूँ पेपर में कि और और चीजों के लिए 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-11.txt चैतन्य लहरी अंक : । & 2 -2008 10 म झगड़ा है। जाति-पाति पे झगड़ा है। अरे बाबा, इस देश को तुमको बचाना है कि डुबाना है? बड़ी हुए इसलिए इस कलयुग की बदलना है और हज़ारों में आप पार हैं। इतने लोग तो कहीं दुनिया में पार नहीं बार-बार कहूँगी कि तुम सच्चाई पर खड़े रहा, मैं तुम्हारे साथ हूँ और भगवान भी तुम्हारे साथ है। भगवान भी तुम्हारे साथ है। तो सबसे बिनती है कि आज अपने अन्दर ये ठान लो कि हम कोई चोरी चकारी चलने नहीं देंगे। जहाँ पता होगा वहाँ हम लड़ेंगे। पर मेरे ख्याल से लोग क्या शराब पी गए कि क्या? इस प्रकाश में और हिम्मत से लड़ो। जो इस देश की वो हटानी हैं। बहुत बदनाम है। और भी बहुत वातें है पर सबसे बड़ी बात यही है कि पहले तो ईमानदारी ही नहीं तो तुमको भगवान कैसे मदद करेगा? पैसे पाना कोई भगवान की मदद नहीं है। धर्म को पाना, और तुमने पाया है। इतने लोग तो कोई सहजयोगी हैं ही नहीं दुनिया में और सहजयोगी ऐसा काम करते भी नहीं हैं। पर में इसलिए बता रही हूँ कि यहाँ का atmosphere खराब है। और हमलोग इतने बदनाम हैं हर जगह। सब है आपके पास खाने-पीने को है, कपड़े लत्ते हैं, और क्या चाहिए? आप सिनेमा देखो, ये देखो, इतना तो पैसा है। पर ये पैसे की बीमारी जो है, ये पहले जानी चाहिए। मुझे पूर्ण आशा है कि मेरी आज की बात को आप ध्यान से सुनेंगे। और आज से कसम खालें कि हम तो बेईमानी करेंगे ही नहीं लेकिन जो दूसरे भी करते हैं उसका हम विरोध करेंगे। यह सबसे बड़ी बात समझ लो कि आज अपने देश को ईमानदारी चाहिए। इससे बढ़कर और कोई चीज़ नहीं। आपकी माँ है ईमानदारी। दस शर्ट की जगह एक शर्ट है तो क्या हुआ? ऐसे ही औरतों से कही। हो जाएगा, बन जाएगा। आज का भाषण जरा अलग है, निराला है और पसन्द आया ये बड़ी कृपा है। सो धन्यवाद! ज़िम्मेदारी है आपकी। आप कलयुग में पैदा हैं हुए। इसलिए आपसे फिर फिर मैं आपने क्या पाया? हिम्मत, गलत चीज है लोगों को तुम (मूल आडियो के अनुरूप) ৩ क वा 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-12.txt त्रिदिवसीय दीवाली पूजा सेमिनार दिल्ली, एन.सी.आर. (नोएडा) 9-11 नवम्बर 2007 यु रा अत: निष्कर्ष निकाला गया कि इंटर ट का 9 नवम्बर 2007 : 9 नवम्बर शुक्रवार के दिन सेमिनार की सफलता तथा बाधा निवारण की उपयोग पूर्ण विवेक पूर्वक किया जाना चाहिए। कामना से हवन के साथ इस उत्सव का शुभारम्भ किया गया। सायंकाल शानदार संगीत कार्यक्रम हुआ जो देर रात तक चला। घोषणा की गई कि पूजा के करने वाले लोगों से सावधान रहने के लिए सलाह लिए साक्षात् श्री महालक्ष्मी- परम पूज्य श्रीमाताजी- के 10 नवम्बर या 11 नवम्बर संध्या के समय आने की सम्भावना है। ये भी बताया गया कि पूजा 4.00 बजे सायं के बाद किसी भी समय आरम्भ हो कार्यक्रम करने के तरीकों पर बातचीत की गई तथा सकती है। संगीत संध्या को देर रात तक दीपक वर्मा, डा. अरुण आप्टे, श्री राजेश, श्री मुखीराम, प. सुब्रमण्यम् तथा गुरुजी के साथ निर्मल संगीत सरिता के लताधुमाल, धनंजय धुमाल, छाया और श्याम जैन ने श्री चरणों में मनमोहक गीत, भजन और राग प्रस्तुत किए। अतिचेतन (Supra-conscious) गतिविधियों के कारण श्रीमाताजी के प्रवचनों को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत दी गई। इंटरनैट उपयोग के लिए कुछ नियमाचरणों का भी वर्णन किया गया। तत्पश्चात कारपोरेट सेक्टर में आत्मसाक्षात्कार सहज मर्यादाओं के बारे में भी बताया गया। इस्लाम धर्म को मानने वाले लोगों में सहजयोग प्रचार-प्रसार करने के लिए बरती जाने वाली आवश्यक सावधानियों के विषय में भी चर्चा की गई। मेराजू, कयामा और कयामत आदि शब्दों के अर्थ विस्तारपूर्वक बताए गए। ये भी व्याख्या की गई कि गैब्रील, जिनहें हम श्री हनुमान के रूप में जानते हैं, पैगम्बर मोहम्मद को बुराक पर सात स्वर्गो से ले गए। हर स्वर्ग का एक देवदूत और पैगम्बर था जो यहाँ दैवी नियमों के अनुसार शासन करता था। गैब्रील मोहम्मद को छठे स्वर्ग तक ला पाए और यहाँ उन्हें कहा कि वे इससे आगे नहीं जा सकते हैं और अन्तिम स्वर्ग में उन्हें स्वयं प्रवेश करना होगा। प्रस्तुति इतनी 10 नवम्बर 2007 : शनिवार 10 नवम्बर प्रातः कार्यक्रम का आरम्भ युवाशक्ति सेमिनार से हुआ। बहुत सी आवश्यक सूचनाओं एवं गतिविधियों के बारे में बात की गई। इंटरनैट द्वारा सहज प्रचार-प्रसार के कारण सम्भावित हानियों के बारे में विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। इस बात पर बल दिया गया कि वेष्णुमाया के इस माध्यम से अच्छी- बुरी दोनों प्रकार की सूचनाएं जन-जन तक जा सकती हैं। ६० 21 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-13.txt चैतन्य लहरी अंक : 1 & 2 12 -2008 सभी को दीवाली की मंगलकामना करते प्रभावशाली थी कि योगियों के मन में उठने वाले बहुत से प्रश्नों का उत्तर उन्हें स्वत: ही मिल गया। हुए श्रीमाताजी ने हिन्दी भाषा में अपना सम्बोधन आरम्भ किया। उनका संदेश 60 से भी ज्यादा मिनट तक चला। सहज इतिहास का शायद यह सबसे लम्बा प्रवचन था। उनका कहा गया हर शब्द मन्त्र था । श्रीमाताजी ने प्रायः अपने शब्दों को तीन चार बार दोहराया ताकि सभी लोग उनके सन्देश के सार को भलीभांति समझ सकें। ा प्रात: का कार्यक्रम समाप्त होते ही के लिए तैयार होकर आए योगियों और योगिनियों से पण्डाल भरने लगा और 25 हजार लोगों के बैठने के लिए पर्याप्त पण्डाल सायं 3.30 बजे तक पूरा भर चुका था। नए पुराने सभी सहजयोगी ध्यानमुद्रा में श्री महालक्ष्मी के आगमन की प्रतीक्षा कर रहे थे। समय बीतता गया और शाम को लगभग 6.50 पर मंच के पर्दे डाल दिए गए और कुछ रंग-बिरंगी आतिशबाजी चलाई गई, परम पावनी श्रीमाताजी के स्वागत के लिए चलाई गई आतिशबाजी के रंगों तथा आवाज से पूरा आकाश गुँजायमान हो उठा। सभी योगी अपने अपने स्थानों पर खड़े हो गए और मंच पर परम पावनी श्रीमाताजी का स्वागत किया। आशा की जा रही थी पारम्परिक सहजशैली में किसी भी क्षण पूजा आरम्भ होगी परन्तु पूजा भजन के स्थान पर 'श्री जगदम्बे आई रे' भजन के साथ श्रीमाताजी के 108 नाम आरम्भ हो गए। कण-कण से चैतन्य फूट पड़ रहा था। तभी मंच से घोषणा की गई कि संगीतकार मंच पर आकर संगीत प्रस्तुत करें। कुछ लोग आश्चर्यचकित थे परन्तु अधिकतर चैतन्य सागर में डूबे हुए थे। वातावरण में शीतलता बढ़ रही थी और स्पष्ट महसूस किया जा सकता था कि महामाया अपनी लीला कर रही हैं। पूजा सन्देश का सार सम्भवत: सहज-जीवन में अपनी नैतिक जिम्मेदारियों तथा कर्तव्यों को समझना था। ऐसा लग रहा था कि अपने प्रवचन में श्रीमाताजी हमारे अन्तर्निहित अष्टलक्ष्मियों के गुणों की व्याख्या कर रहीं थीं। गृहलक्ष्मी के रूप में श्रीमाताजी की मानवमात्र के हित की चिन्ता की पूरी सामूहिकता साक्षी थी। 'अहंकार' विषय से उन्होंने अपना प्रवचन आरम्भ किया। मानो सूक्ष्म रूप से वे सामूहिकता के आज्ञा चक्र को स्वच्छ करने के लिए मन्त्र उच्चारण कर रहीं थीं। उन्होंने बताया कि 'अहं अन्तत: उन्हें अंधकार की ओर ले जाता है और इस अन्धकार में अच्छाई देख पाना सम्भव नहीं है। इसके कारण लोग भ्रष्टाचार और बेईमानी का जामा आढ़े दुष्टता के जाल में फँसते चले जाते हैं। हमारा उद्धार करने के लिए ईसामसीह सूली पर चढ़ गए, फिर भी हम उनके सन्देश को नहीं समझते। हमें कभी भी बेईमानी स्वीकार नहीं करनी चाहिए और असत्य से बचना चाहिए। झूठ बोलने वाले लोग सीधे नर्क में जाएंगे और वहाँ पर बहुत लम्बे समय तक कष्ट भोगना होगा। माँ के रूप में मैं आपको बताती हूँ कि पूजा कार्यक्रम संगीत सन्ध्या में परिवर्तित हो गया था और मंच पर विराजमान परम पूज्य श्रीमाताजी अपने बच्चों को संगीत के माध्यम से आशीर्वादित कर रहीं थीं। एक के बाद एक संगीतकार श्रीमाताजी के नक बहुत भयानक है, वहाँ पूर्ण अन्धकार है। सम्मुख स्तुतिसंगीत प्रस्तुत कर रहे थे ऐसा लगता था मानो दैदीप्यमान मुख से श्रीमाताजी अपने बच्चों की आत्मा में झाँक रहीं हों। संगीत प्रस्तुति के अन्त में वे कलाकारों को प्रोत्साहित करतीं। लगभग साढ़े सत्यसार पर बल दिया परन्तु उनके तेजोमय मुख आठ बजे संगीत प्रस्तुति सम्पन्न हुई और अचानक परम पावनी माँ ने माइक्रोफोन देने के लिए कहा। बहुत समय के बाद श्रीमाताजी के मुख से आवाज सुनने पर पूरी सामूहिकता ने प्रफुल्लित हृदय से जयघोष किए और बहुत से योगी-योगिनियों की आँखों से झर-झर आँसू बहने लगे। आपके हृदय में प्रकाश प्रज्जवलित हो गया है, इस प्रकाश में आप केवल अच्छाई को देखें। यद्यपि श्रीमाताजी ने नैतिकता, चरित्र तथा एवं हर भावभंगिमा से करुणा टपक रही थी। अपने बच्चों से उन्हें बहुत आशाएं थीं। अपने बच्चों से उन्होंने वचन माँगा कि सभी मिलकर झूठ, बेईमानी, भ्रष्टाचार और बुरा करने वालों का मुकाबला करें। इस कार्य को करने के लिए सहजयोगी समितियाँ बनाएं और सरकार को इनके विरुद्ध कारवाई करने 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-14.txt अंक : । & 2 -2008 चैतन्य लहरी 13 के लिए विवश करें। उन्होंने कहा कि इस कार्य को कि व्यक्ति को अपने राष्ट्र पर गर्व होना चाहिए। ये करने के लिए सहजयोगी 10-10 लोगों का समूह भी बना सकते हैं। श्रीमाताजी ने कहा कि आप आत्मसाक्षात्कारी हैं और हृदय के प्रकाश में आप बेईमान लोगों को पहचानकर उनके विरुद्ध कारवाई निश्चित रूप से ये आशीर्वादित देश है।" कर सकते हैं। सरकार को उनके नाम बताकर उन्हें दण्डित करवाएं। चेतावनी देते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि 'बेईमानों के साथ आपको सम्बन्ध नहीं रखने। आपको उनके घर तथा संगीत में भी नहीं जाना चाहिए। स्वत: ही वे रास्ते पर आ जाएंगे। अब आपके अन्दर असत्य और बेईमानी को पहचानने के लिए प्रकाश है और सर्वशक्तिमान परमात्मा का आशीर्वाद आपके साथ है। अत: घबराएं नहीं। स्वर्ग कायरों और डरपोक लोगों के लिए नहीं है। बेईमानी को बरदाश्त करते बेईमानों तथा गलत गतिविधियों सहजयोगियों को देखकर वे अत्यन्त प्रसन्न हैं। ये का विरोध न करने वाले भी नर्क में जाएंगे। बात भारतीय लोगों को विशेष रूप से कही गई। उन्होंने कहा कि साक्षात्कारी लोगों की विशालतम सामूहिकता है। देश है जिसमें भारत महान रूस के बारे में बोलते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि "रूस एक महान देश है और सम्भवत: साम्यवाद ने वहाँ के लोगों को सत्यनिष्ठ बना दिया है। वो इतना अधिक झूठ नहीं बोलते। भारत में भी यदि साम्यवाद होता तो शायद यहाँ भी चीजें बिल्कुल भिन्न होतीं और लोग आज की तरह से इतना अधिक झूठ नहीं बोलते। श्रीमाताजी ने कहा कि इतने सारे हुए बात सत्य है कि विश्व के बहुत से गरीब देशों के मुकाबले भारत की स्थिति में बहुत सुधार हुआ है यह बात सत्य है कि भारत के लोग (विशेषरूप से भारत की वर्तमान अवस्था तथा देश में क्षीण होती हुई नैतिकता पर प्रकाश डालते हुए सहजयोगी) पहले की अपेक्षा बहुत समृद्ध हुए हैं। श्रीमाताजी ने योगियों को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि गर्वपूर्वक आपको घोषणा करनी है कि चाहिए कि देश से बेईमानी को निकाल फेंकने के आप भारतीय हैं और आपको परमात्मा की शक्ति कार्य में जट जाएं। अधिक धन की लालसा में और प्रेम का आशीर्वाद मिल चुका है। इस आशीर्वादित देश में आपको उच्च चारित्रिक मूल्यों के साथ रहना चाहिए 'परन्तु आप सबको क्या हो गया है। लोगों में हर समय झूठ बोलने की आदत पड़ गई है।' 'कभी लोगों की निन्दा करनी चाहिए। आप इन्हें आश्रय न दें। उन्होंने कहा कि हमारे अन्दर से सत्य के सिवाए कुछ नहीं निकलना चाहिए। माँ के रूप में जब उन्होंने कभी झूठ नहीं बुरे लोगों पर अवश्य विजय प्राप्त होगी क्योंकि बोला तो उनके बच्चे क्यों असत्य को आश्रय दें? अब उन्हें धन के पीछे नहीं भागना चाहिए। उन्हें व्यक्ति बेईमानी, असत्य और भ्रष्टाचार में फँस जाता है। अत: अब सहजयोगियों को दिव्य प्रकाश में नैतिक जीवन गुज़ारना चाहिए और झूठे तथा बेईमान श्रीमाताजी ने कहा कि हमें बेईमान और परमात्मा का आशीर्वाद हमारे साथ है। एक बार फिर अहं के विषय में बोलते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि कैंसर रोगी अपने आज्ञा चक्र को स्वच्छ करें और अहं से मुक्ति पा लें। सत्य की अग्नि में अपने अहं की आहुति दे दें, स्वयं को और विश्व को पहचानें । तत्पश्चात् विश्वभर में बच्चों और माता- पिता के पारस्परिक सम्बन्धों के बारे में बताते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि दुख की बात है कि अमरीका जैसे देश में 16 वर्ष की आयु के बाद अपने भविष्य का निर्णय करने के लिए बच्चे को घर से निकाल दिया है बेईमानी और भ्रष्टाचार का एक उदाहरण देते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि जिस सडक से अभी उनकी गाड़ी आई है वह इसे बनाने और बनवाने वाले लोगों की बेईमानी का जीता जागता सबूत ऐसे लोगों को दण्डित करने में सरकार की मद्द की जानी चाहिए । भारतीय संस्कृति में हम ऐसा सोच जाता परन्तु भी नहीं सकते। ऐसा करने की अपेक्षा बच्चे के 16 वर्ष का होने पर पिता उसके भविष्य की योजनाएं बनाने पर और अधिक ध्यान देता है। "आपको अवश्य अपने बच्चों की देखभाल करनी चाहिए।" राष्ट्रीय धर्म के बारे में बताते हुए श्रीमाताजी ने कहा है। तम्बाकू, पानमसाला और शराब के उपयोग 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-15.txt चैतन्य लहरी अक : 1 & 2 -2008 14 की भी उन्होंने निन्दा की। इन आदतों में फँसे योगी पूजा के लिए मंच के समीप स्थान ग्रहण लोग सीधे नर्क में जाते हैं, उनके लिए स्वर्ग में कोई स्थान नहीं है। पर्यावरण की समस्या के बारे में बताते हुए श्रीमाताजी ने यमुनानदी में कूड़ा डाले जाने की को गई कि पूजा लगभग 8.00 बजे आरम्भ होगी। निन्दा की। उन्होंने कहा कि ये अत्यन्त भयानक बात है तथा हमें चाहिए कि सरकार और नगरपालिका की इस बुराई को रोकने में मदद करें। प्रकाश के त्यौहार दिवाली के अन्य पक्ष पर बताते हुए श्रीमाताजी ने कहा कि श्री सीताजी का जन्म इसी दिन हुआ था। अत: व्यक्ति को अपने आन्तरिक चारित्रिक मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। करना चाहते थे। साढ़े तीन बजे तीन महामन्त्रों के साथ ध्यान का आरम्भ हुआ और छ: बजे सायं तक भिन्न कलाकारों ने संगीत प्रस्तुत किया। तब घोषणा 8.20 बजे पुनः घोषणा की गई कि श्रीमाताजी का निवास हमारे हृदय में है और आज हम सब श्रीमाताजी की निराकार में पूजा करेंगे क्योंकि वे प्रतिष्ठान में आराम कर रहीं हैं और उन्होंने सामूहिक पूजा करने का आदेश दिया है। स्वागत भजन 'स्वागत आगत स्वागतम' के साथ सायं 8.20 बजे महालक्ष्मी पूजा को आरम्भ ए उन्होंने हुआ । पूजा प्रार्थना गीत 'विनती सुनिए, आदिशक्ति धनलालुपता पर टिप्पणी करते हुए कहा कि अपने लिए उन्हें कोई पैसा नहीं चाहिए। आप मेरे इतने सारे बच्चे हो, मुझे धन की क्या आवश्यकता है?" उन्होंने कहा। आपके होते हुए मुझे वास्तव में अपने लिए कोई पैसा नहीं चाहिए। श्रीमाताजी ने पुन: दोहराया कि पहली बार इतने सारे सहजयोगियों को देखकर मैं आश्चर्य चकित हूँ। मेरी' गाया गया। 'श्री गणेश अथर्वशीर्षम' और हेमजा भजे' के साथ 108 नन्हें गणेशों ने श्री सुतम चरण धोए। बच्चों की लम्बी पंक्ति होने के कारण श्री गणेश के दो और भजन गाए गए। तत्पश्चात् श्री महालक्ष्मी स्तोत्रम्' के साथ श्री महालक्ष्मी पूजा आरम्भ हुई। ऐ गिरी न्दिनी' और 'महामाया महाकाली भजनों से देवी पूजा की गई, हासत आली निर्मल आई के साथ देवी का श्रृंगार हुआ और ओटी अर्पण त और अन्तत: 'विश्ववन्दिता' गाया गया। 9.50 बजे आरती की गई और तीन महामन्त्रों के साथ पूजा सम्पन्न हुई। पूरे वातावरण के कण-कण से चैतन्य प्रवाहित हो रहा था। अपने सारगर्भित प्रवचन में श्रीमाताजी ने भारत में प्राय: उपयोग किए जाने वाले देशभक्ति पुर्ण दो शब्दों के बारे में बताया- एक है स्वराज - स्व अर्थात 'अपनी आत्मा' और 'राज' अर्थात साम्राज्य और दूसरा शब्द है- 'स्वतन्त्र' अर्थात आत्मा और 'तन्त्र।' जब हम स्वतन्त्र शब्द बोलते हैं ता इसका अर्थ है 'आत्मा का तन्त्र'। राष्ट्र का अर्थ समझने के लिए पहले व्यक्ति को स्व को समझना होगा। स्वराज की व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि अपनी सांस्कृतिक धरोहर का अब हमें ने नतमस्तक होकर मंच पर विराजमान निराकार प्रतिनिधित्व करना चाहिए। अपने 80 मिनट के प्रवचन के बारे में उन्होंने कहा कि आज का भाषण निराला है। 'स्व' पूजा के पश्चात् कुछ मिनट ध्यान का आनन्द लिया गया तत्पश्चात् 'जोगवा' तथा कई अन्य भजनों के साथ पूजा समिति के कुछ सदस्यों महालक्ष्मी के सम्मुख नृत्य किया। पण्डाल में उपस्थित सभी योगी/ योगिनियाँ अपने स्थानों पर खड़े हर्षपूर्वक नाच रहे थे सर्वत्र चैतन्य का साम्राज्य था और पूरा दृश्य स्वर्गीय था। श्रीमाताजी के प्रस्थान से पूर्व राष्ट्रीय समन्वयकों ने उनसे पूजा स्वीकार करने के लिए प्रार्थना की और उन्होंने कहा कि घोषणा कर दो कि कल 3.00 बजे पूजा होगी। इस विशेष पूजा की घोषणा से पूरी सामूहिकता में प्रसन्नता की लहर दीौड़ गई। श्रीमाताजी विश्व भर के हम आपके सभी सहजयोगी बच्चे अपना हार्दिक आभार प्रकट करते हैं कि आपने अपने चरणकमलों में श्री महालक्ष्मी पूजा स्वीकार की.......! 11 नवम्बर 2007 : रविवार 2.30 बजे ही पण्डाल 20-25 हजार योगियों से भर गया, सभी जय श्री माताजी 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-16.txt डा. सी.पी. श्रीवास्तव लिखित लाल बहादुर शास्त्री-राजनीति में सत्य निष्ठ जीवन के उर्दू संस्करण का विमोचन 17 नवम्बर 2007 عزت آاب م حامدانصاری ১ ৫ ा) ो क॥ भ EAR सर सी.पी. श्रीवास्तव द्वारा लिखित पुस्तक मूर्तियाँ लगी हुई थीं और हाथ में बाँसुरी लिए श्री लाल बहादुर शास्त्री, राजनीति में सत्यनिष्ठ जीवन' के प्रोफेसर अब्दुल हक द्वारा किए गये उर्दू रूपान्तरण का विमोचन भारत के माननीय उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी ने अशोका होटल नई दिल्ली, भारत, के कन्वेंशन हॉल में 17 नवम्बर 2007 शनिवार की संध्या को किया। समारोह का आयोजन परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी ट्रस्ट और मैसर्ज गलगोटिया पब्लिशर्ज़ ने किया। मेजबानों सहित दिल्ली और नोएडा के सहजयोगियों की देखरेख में हुए इस समारोह में विशिष्ट अतिथियों सहित ।000 से भी अधिक मेहमान सम्मिलित हुए। कृष्ण की एक अत्वन्त सुन्दर चित्रकारी लगाई गई थी जिसमें श्रीकृष्ण के समीप खड़ी राधाजी उन्हें अत्यन्त प्रेमपूर्वक निहार रही हैं। ऐसा प्रतीत होता था मानो श्रीमाताजी का स्वागत करने के लिए साक्षात श्री कृष्ण वहाँ खड़े हों और श्री राधा इस दिव्य स्वागत को प्रसन्नतापूर्वक देख रहीं हों। होटल पहुँचने पर श्रीमाताजी को उनके लिए सातवीं मंजिल पर आरक्षित किए गए विशेष स्वीट में ले जाया गया। श्रीमाताजी के चरणकमलों की आरती उतारने और चरणकमलों में पुष्पार्पण करने के बाद अधिकतर सहजयोगी सायंकालीन समारोह का प्रबन्धकार्य देखने सुप्रसिद्ध अशोका होटल के प्रवेश द्वार की के लिए नीचे चले गए। छवि दर्शनीय थी। प्रवेश द्वार से हाल तक का पूरा मार्ग फूलों से सजाया गया था। हॉल के वरांडे में अत्यन्त ढंग से सजाई गई मेज पर विमाचित सायंकाल 4.00 बजते बजते पूरा सभागार विशिष्ट अतिथियों एवं सहजयोगियों से भर चुका था केवल मीडिया के लोगों की कुछ सीटें खाली थीं। ठीक सवाचार बजे परम पूज्य श्रीमाताजी, सर सी.पी. तथा परिवार के अन्य सदस्यां को सम्मानपूर्वक हॉल में लाया गया। तुरन्त सभी कैमरों का मुख श्रीमाताजी की ओर घूम गया और उनकी करुणामयी स्वागत कक्ष की सुन्दर सजावट देखते ही मुखाकृति एवं प्रेम छलकाती आँखें मंच के दोनों ओर लगाए गए विशाल पदों पर दिखाई जाने लगी। सुन्दर पुस्तक के अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू संस्करण की बहुत सी प्रतियाँ रखी हुईं थीं। लगभग सवा दो बजे परम पूज्य श्रीमाताजी सर सी. पी. तथा परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अशोका होटल पधारीं। बनती थी। स्वागत कक्ष में भगवान गणेश की तीन 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-17.txt अंक : & 2 2008 चैतन्य लहरी 16 زت آب مد حام انتصاری ৫ ट र काल बै. ४ तत्पश्चात् सर सी.पी. को स्थान ग्रहण करने के लिए मंच पर आमंत्रित किया गया लाल मुलायम मखमल के पर्दों से सजाया गया मंच का पृष्ठपट कन्वेंशन हॉल के सौन्दर्य को चार चाँद लगा रहा था। मंच पर विराजमान प्रतिष्ठित अतिथियों-जिनमें भारत के उपराष्ट्रपति श्री एम. हामिद अंसारी, हरियाणा राज्य के गवर्नर डा. ए.आर. किदवई, गलगोटिया से पूर्व सर सी.पी. ने परम पूज्य श्रीमाताजी को 'मेरी पब्लिशरज के चेयरमैन, श्री लाल बहादुर शास्त्री के पुत्र श्री अनिल शास्त्री और सुनील शास्त्री मुख्य थे- को गुलदस्ते भेंट करने के साथ समारोह का शुभारम्भ हुआ। सर सी.पी. का भाषण इतना प्रभावशाली था किं बीच-बीच में माननीय अतिथि एवं दर्शकों की तालियों से हॉल का सभागार गूँज़ उठा। भाषण समाप्त होने पर सब लोगों ने खड़े होकर तालियाँ बेजाकर उनका स्वागत किया। भाषण समाप्त करने मोहतरमा, मेरी बीवी' सम्बोधित करते हुए उन्हें लालबहादुर शास्त्री पर ये पुस्तक लिखने के कठिन कार्य को पूर्ण करने का प्रेरणास्रोत बताया और उनके प्रति आभार प्रकट किया। उन्होनें कहा कि इसका सारा श्रेय श्रीमाताजी को है। सभी कैमरों का मुख श्रीमाताजी की ओर मुड़ गया और दो विशाल पदों पर उनका दैदीप्यमान मुख कुछ क्षणों के लिए सभी अपने संक्षिप्त भाषण में सर सी.पी. ने पुस्तक विमोचन के इस समारोह को भव्यता प्रदान करने के लिए भारत के उपराष्ट्रपति का हृद्य से धन्यवाद किया। पुस्तक के उर्दू रूपान्तरण के लिए को दिखाई दिया। साधना दीदी ने उनके कान में उन्होंने प्रो. अब्दुल हक के प्रति भी आभार प्रकट किया तथा हरियाणा राज्य के गवर्नर श्री किदवई को पुस्तक का प्राक्थन लिखने के लिए विशेष रूप से हरियाणा राज्य के गवर्नर माननीय डा. ए.आर. धन्यवाद दिया। श्री शास्त्री के दोनों बेटों तथा विशिष्ट किदवई के भाषण के साथ समारोह आगे बढ़ा। अतिथियों का स्वागत करते हुए सर सी.पी. ने श्री लाल बहादुर शास्त्री के साथ अपने कार्यकाल के जीवन के उच्च नैतिक मूल्यों की कुछ घटनाओं की स्मरणीय घटनाओं का उल्लेख किया। श्री शास्त्री की ईमानदारी, सत्यनिष्ठा एवं अदम्य साहस का उदाहरण देते हुए सर सी.पी. ने स्पष्ट कहा कि वे लाल बहादुर शास्त्री की समानता के दृष्टिकोण एवं हमारे धर्म निरपेक्ष देश के सभी धर्मों एवं जातियों के प्रति गहन सम्मान की भावना से अत्यन्त प्रेरित हुए। उन्होंने बताया कि श्री लालबहादुर शास्त्री की कूटनीतिक कुशलता और उनका चमत्कारिक । व्यक्तित्व अद्वितीय है। उनके इन गुणों ने उस युद्ध काल की कड़वाहट में भी पाकिस्तान के भिन्न नेताओं के साथ उन्हें मित्रता एवं सामंजस्य स्थापित करने में सहायता की। जब इसके बारे में बताया तो वे मुस्करा उठीं। उन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में श्री लालबहादुर शास्त्री का वर्णन किया। श्री एम. हामि सरी उपराम्ट |नवन 2 सव. ए५. कली 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-18.txt अंक : । & 2 2008 चैतन्य लहरी 17 तत्पश्चात् भारत के उपराष्ट्रपति महामहिम श्री एम. हामिद अन्सारी ने सर सी. पी. का धन्यवाद किया और लालबहादुर शास्त्री के जीवन के विषय माननीय उपराष्ट्रपति ने विमोचन किया। चाँदी की में अपने व्यक्तिगत विचार व्यक्त किए उन्होंने पुस्तक के लेखक का धन्यवाद किया और कहा कि की गई और सर सी. पी. की प्रशंसा उद्घोष से पूरा पुस्तक के उर्दू संस्करण के माध्यम से विश्वभर के उर्दूभाषी लोग बीसवीं सदी के इस महान व्यक्तित्व को जान पाएंगे। उन्होंने व्यक्तिगत चारित्रिक मूल्यों के चेयरमैन श्री गुलगोटिया ने आभाराभिव्यक्ति की। की उस विशेष घटना का वर्णन किया जिसमें उन्होंने श्रीमाताजी, परम पूज्य माताजी श्री निर्मला रेलमंत्री के रूप में लालबहादुर शास्त्री ने रेल दुर्घटना के विषय में जानकारी मिलते ही अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने इस घटना को पद की नैतिकता का स्मरणीय उदाहरण बताया। उनकी राष्ट्रीयता की भावना और उनके चरित्र का वर्णन योगियों को चाय नाश्ते के आमंत्रण के साथ समारोह करते हुए देश के आज के राजनीतिज्ञ एवं पदाधिकारी भी लाल बहादुर शास्त्री के उच्च मानदण्डों को अपनाएंगे। भाषण अभी चल ही रहा था कि परम पूज्य श्रीमाताजी के भाई तथा भारत के अनुभवी राजनीतिज्ञ श्री एन. के. पी. साल्वे समारोह में पधारे और उन्हें श्रीमाताजी के साथ वाली कुर्सी दी गई। श्रीमाताजी की आँखों में भाई के प्रति प्रेम देखते ही बनता था। तत्पश्चात् सर सी.पी. द्वारा लिखित पुस्तक 'लाल बहादुर शास्त्री' के उर्दू संस्करण का भारत के तश्तरी में सुसज्जित पुस्तक विमोचन के लिए पेश सभागार गूँज उठा। पुस्तक के प्रकाशक गलगोटिया पब्लिकेशन देवी ट्रस्ट और रूपान्तरकार के प्रति हार्दिक आभार प्रकट किया। सभी उपस्थित सम्माननीय अतिथियों एवं माननीय उपराष्ट्रपति ने आशा जताई कि सम्पन्न हुआ। दिवाली के बाद, मानो भैयादूज के अवसर पर, श्रीमाताजी को अपने भाई के साथ अत्यन्त प्रसन्न मुद्रा में देखना एक स्वर्गीय अनुभव था। सहजयागियों ने परम पावनी माँ में उनके गृहलक्ष्मी तथा स्नेहमयी बहन रूप के दर्शन किए। जय श्रीमाताजी **** परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मल प्रेम आश्रम (N.G.O) में ग्रेटर नोएडा- 22 नवम्बर, 2007, भारत करुणामयी श्रीमाताजी निर्मल प्रेम आश्रम के बच्चों के सम्मुख परमेश्वरी माँ के रूप में प्रकट हुईं। बांसुरी बजाते हुए श्री कृष्ण और गोपियों संग उन्हें देखती हुईं राधा का चित्र हॉल की सज्जा को बढ़ा रहा था। आश्रम के बच्चों के मुख से फूटता हुआ हमारी परम पावनी माँ श्रीमाताजी ने 22 नवम्बर दोपहर पश्चात एक बार फिर ग्रेटर नोएडा स्थित 'निर्मल प्रेम आश्रम' के बच्चों को आशीर्वादित किया। आश्रम के बच्चों, अध्यापिकाओं, अधिकारियों, थोड़े से सहजयोगियों तथा आश्रम के आयोजकों ने हृदय से स्वागत-आगत भजन तथा आरती गाकर तेज श्रीमाताजी के प्रेम को प्रतिबिम्बित कर रहा था| बालसुलभ दृष्टि से अत्यन्त अनुशासित ढंग से बच्चे हर चीज को देख रहे थे और श्रीमाताजी के प्रेमकेन्द्र बनने के प्रयत्न में लगे हुए थे। 80 से 100 योगियों की सामूहिकता के बीच श्रीमाताजी ने बच्चों द्वारा गाए गए सामूहिक भजनों का आनन्द उठाया। हर भजन के बाद श्रीमाताजी ने तालियाँ बजाकर बच्चों को प्रोत्साहित किया और उनकी श्रद्धा को सराहा। उनकी करुणा का पारावार न था। बच्चों द्वारा सामूहिक नृत्य प्रस्तुत किए जाने पर परम पूज्य श्रीमाताजी का स्वागत किया। निर्मल प्रेम आश्रम का प्रवेश संभागार रंगबिरंगी रंगोली और फूलों से सजाया गया था। मध्य सभागार तक जाने वाले मार्ग पर गुलाब की पंखुड़ियाँ बिछाई गई थी। ऐसा प्रतीत होता था मानो निराश्रित महिलाओं तथा यतीम बच्चों की उस शरणस्थली में प्रेमलहरियाँ प्रवाहित होने लगीं हों। सफेद साडी और हल्के रंग की शाल पहने 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-19.txt अंक : चैतन्य लहरी । & 2 - 2008 18 ख कोम जी आनन्ददायी क्षण से श्रीमाताजी बहुत प्रसन्न हुईं। वे श्रीमाताजी गद्गद् हो उठी। मुस्काई और पिल्लों को प्रेमपूर्वक उठाए नन्हें शिशुओं तत्पश्चात् श्रीमाताजी को आश्रम तथा वहाँ की कार्यशैली दिखाने के लिए ले जाया गया| श्रीमाताजी ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए व्यवस्था करने वालों और अधिकारियों की हृदय से प्रशंसा की और कहा कि आश्रम में रहने वाले इन बच्चों की सुखसुविधाओं के लिए ये लोग अथक कार्य कर रहे हैं। आश्रम देखते हुए श्रीमाताजी ने स्वयं उसे कार्यान्वित करेंगे। तत्पश्चात् अधिकृत रूप से बच्चों से पूछा कि उन्हें वहाँ की कौन सी चीज वास्तव में अच्छी लगती है? एक न्हें शिशु के सहज उत्तर "खाना, श्रीमाताजी!" ने सबको हैरान कर दिया। इस बालसुलभ उत्तर ने सभी के हृदय खोल दिए। श्रीमाताजी इस प्रकार मुस्करा रहीं थीं मानो कह रही हों, 'आखिरकार स्वप्न साकार हो गया है। का आनन्द लिया। तत्पश्चात् श्रीमाताजी ने पुणे में बड़े स्तर पर एक ऐसा ही आश्रम स्थापित करने की इच्छा व्यक्त की। N.GO. की महासचिव प्रोफेसर किरण वालिया ने उन्हें विश्वास दिलाया कि उनकी परमेश्वरी इच्छा का उनके बच्चे सम्मान करेंगे और श्रीमाताजी की इच्छा और N.G.O. को उदारतापूर्वक उनकी ओर से दी गई राशि के विषय में बताया गया। सायं 4.00 बजे के करीब जब श्रीमाताजी ने आश्रम से प्रस्थान किया तब भी पिल्लों को हाथों में पकड़े हुए बच्चों ने उन्हें घेरा हुआ था। प्रेम एवं करुणा से ओत-प्रोत श्रीमाताजी ने इच्छा जताई कि उनमें से दो पिल्ले प्रतिष्ठान में रखने के लिए उनके आश्रम के बच्चों ने श्रीमाताजी को हाथों से बनाए उपहार भंट किए तथा बीच-बीच में सहजयोगी श्रीमाताजी को गुलदस्ते भेंट करने के लिए आते रहे। ऐसा ही एक अवसर पाकर SITA India द्वारा बनाई गई वेबसाइट जनता को समर्पित करने से पूर्व विमोचन के लिए श्रीमाताजी के सम्मुख लाई गई। श्रीमाताजी ने वेबसाइट से लिए गए कुछ पृष्ठों को के बच्चे को श्रीमाताजी से आशीर्वाद एवं नाम देखते हुए टीम के प्रयत्नों को सराहा और उन्हें दिलवाने के लिए खड़े एक सहजयोगी को भी देखा आशीर्वाद दिया। साथ भेज दिए जाएं। अत्यन्त हृदयस्पर्शी दृश्य था। पिल्ले श्रीमाताजी को भेंट करने के लिए दौड़ते हुए बच्चों को देखना अत्यन्त हृदय स्पर्शी दृश्य था। कार में बैठे हुए, कार को घेरे बच्वों के साथ उन्होंने कुछ क्षण और बिताए। अपने एक माह गया। श्रीमाताजी ने तुरन्त उसे 'सहज' नाम दिया। सभी लोग आनन्द से जयजयकार कर उठे और N.G.O. आश्रम में पधारकर आशीष वर्षा करने के लिए परम पावनी माँ का हृदय से धन्यवाद किया। आश्रम के नन्हें बच्चों के भोलेपन का साक्षी बनने का एक अन्य अवसर भी उपस्थित सामूहिकता को प्राप्त हुआ। श्रीमाताजी के आस-पास खड़े बच्चों ने छः नन्हें पिल्ले उठाए हुए थे इस जय श्रीमाताजी 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-20.txt महाशिवरात्रि पूजा दिल्ली-6-3-1989 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन हि रहे हैं लेकिन मुझे भी तो कुछ देना चाहिए। इस कलयुग में ईमानदारी से जो काम किया जाता उसके लिये काफी विपत्तियाँ, आपत्ति संकट उठाने पड़ते हैं। हालांकि सबसे बड़ा समाधान ये है कि हम लोग ईमानदार हैं। और सहजयोग में एक बात जाननी चाहिए कि जो चीज़ जिस वक्त बननी है उस वक्त जुरूर बन जाएगी, उसमें रुकावट नहीं हो सकती। गर कोई रुकावट हुई है तो जुरूरी थी, गर समय उसमें ज्यादा लग गया या कम लग गया, रुपया अधिक लगा या कम लगा, ये सब जुरूरी थे। इसलिए किसी भी चीज़ में दोष निकालना नहीं चाहिए, लेकिन उसका आनन्द पूरा प्राप्त करना चाहिए। अब हमें सोचना चाहिए कि दिल्ली में हमने उठाया। सबसे पहले हिन्दुस्तान का, सहजयोग का आश्रम बनाया गया जो अभी तक सारे भारत वर्ष में कोशिश करने से भी नहीं बना। ये कोशिश अठारह साल से हो रही थी और आज ये आश्रम देखकर मुझे बड़ा आनन्द आया। इसका पूरा उत्तरदायित्व आप लोगों ने लिया था और सारा श्रम आपने किया और इसका श्रेय भी, सारा Credit भी आप ही को है। जब आप लोग मुझे किसी चीज का श्रेय देते हैं तो मेरी समझ में नहीं आता है कि आप लोग इतने अकर्म में उतर हैं कि आप जानते ही नहीं कि सव आप हो है, इसकी लहरें और भी आपको लपेटती चली है सहजयोग एक आनन्द का पर्व है, एक हर चीज़ में आपको आनन्द गर मिले तो सोचना चाहिए कि आप सहजयोग की संवेदनशीलता को प्राप्त करते हैं । लेकिन आपमें वो आनन्द, उसकी प्रचीति न हो तो सोचना चाहिए कि आपमें अभी कमी रह गई है। इसको बनाने में जो कुछ भी कष्ट हुआ हो, जो कुछ भी परेशानियाँ हुई हो और जो कुछ भी आपको उठाना पड़ा हो, ये सब कुछ एक खेल है, ये सब एक खेल है और इस खेल को हमने किस तरह से खेला उसका मज़ा घर बनाना, दुकान बनाना, विश्व बनाना, ये सब एक खेल है। गर आप विश्व के बनाने पर ये सोचे कि कैसे बनेगा, क्या होगा तो उसका मजा ही खत्म हो जाएगा। लेकिन आप बना रहे हैं, आप देख रहे हैं, किस तरह से बना रहे हैं और किस तरह से इस चीज को वनाइएगा। सिर्फ आपका चित्त गर स्वच्छ हो जाए, चित्त शुद्धि हो और चित्त में यही प्यार हो कि कोई चीज करनी है और ये परमात्मा के कार्य के लिए हम कर रहे हैं तो आनन्द द्विरुणित हो जाता है। और भी बढ़ जाता आनन्द का सागर है। गए कर रहे हैं! अगर सब काम मुझसे ही होता तो मुझे आपको जोड़ने की क्या जरूरत पड़ जाती? आप ही मेरे हाथ हैं, आप ही मेरे आँख हैं, और आप ही मेरे कान हैं। आपके बगैर मैं कोई भी कार्य नहीं कर सकती और इसके लिए मैं आपके शरणागत हूँ एक तरह से, कहती हैँ कि जब भी आप लोगों को मेरे लिए जाती हैं और आप बड़ी गहरी ऐसी एक अनुभूति में जाते हैं जहाँ पर जाकर आप कहते हैं कि 'अब मस्त हुए फिर क्या बोले?' वही हाल आज मेरा हो है। रहा ये सारा देखकर के, वैसे तो सारा विश्व ही बनाया है लेकिन ये जो अभी बनाया है, जैसे के खेल में जब आप उस गुड़िया का छोटा सा घर बनाते हैं उसको देखकर के बड़ा अद्भुत सा आनन्द होता है। ऐसा ही विश्व में सा हुआ ये हमारा आश्रम है जिसके प्रति मुझे वही एक अनुभूति प्रतीत हो रही है। गुड़िया मैं हाजिर हो जाऊंगी और हुकुम हो उस जगह जहाँ कहोगे वहाँ मैं स्थापित हो जाऊंगी। लेकिन इसमें आपका जो हमारे ऊपर अधिकार है वो बना रहना चाहिए, वो पूरी तरह से बना रहना चाहिए और जब वो अधिकार बना रहता है तो उस अधि कार की पूर्ति भी बहुत आसानी से हो जाती है। अब मुझे तो पता नहीं मैंने इसमें कितना रुपया दिया कि क्या दिया? ये तो सारा सहजयोगियों का रुपया है मेरी जेब से तो मैंने एक पैसा नहीं दिया। लेकिन में दिन शिवजी की पूजा की जाती है। शिव माने जो अपनी जेब से भी देना चाहती हूँ क्योंकि मेरे लिए ऐसी चीज बन गई जो अटूट, अचल, और भी तो आप यहाँ कमरा बना रहे हैं। तब थोड़ा सा मुझे भी तो पैसा देना चाहिए। आप लोग तो बना ही है, ये तो एक सारे संसार के लिए बड़ी सौभाग्य आज का दिवस भी बड़ा शुभ हैं कि आज शिवतत्व के दिन, जिस दिन हमारे अन्दर शिवतत्व तत्व प्रगटित होता है, वो आज का दिन है | जिस अटूट, अचल, अविनाशी और आज के दिन कोई अविनाशी-इन तीन स्तम्भों को प्रकाशित करने वाली 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-21.txt अंक : 1 & 2 - 2008 20 चैतन्य लहरी हि] विनाशी हैं और विनाशी चीजों के पीछे दौड़ना ये कोई भी अक्ल की बात नहीं है। विनाशी चीजें जहाँ और बड़ी मुश्किल बात है। इसे हम लोग इस तरह से समझें कि सारे विश्व में हलचल और दुनिया भर की आफत, ये कलयुग की घोर यातनाएं ओर हें वहाँ हैं, अपनी सीमा में रहें। लेकिन उनका उसका प्रकाश तांडव चला हुआ है। ऐसे वक्त एक लेखना कोई होनी चाहिए जिसको हम पकड़ लें। उस लेखना के लिए एक गणेश तत्व को बिठाना होगा। उस गणेश तत्व को बिठाने के लिए कोई न कोई पृथ्वी तत्व पे चीज़ खड़ी करनी पड़ती है। उसी प्रकार आज गणेशतत्व यहाँ बसाया गया, एक पवित्रता यहाँ लाई गई। ये एक पवित्र मन्दिर सा बन हैं, और विनाशी चीजों के लिए भागते हैं, उसी को गया है और यहाँ से पवित्रता सारे संसार में कूद सकती हैं और उसका जो कुछ भी कार्य है वो बहुत उसी से हम सब लाभ कर सकते हैं। उनको सुचारु रूप से हो सकता है। हर तरह का आक्रमण, आततायी लोगों को ये एक छोटा सा दिखने वाला आश्रम ही बहुत कार्य कर सकता है। तो जिसे कहते हैं कि nucleus इस तरह से ये एक भारतवर्ष में आज दिल्ली में शुरु हुआ है। सर्वप्रथम संसार में देते हैं। लेकिन उसमें जान नहीं है, उसमें प्राण नहीं जो चीज बनाई गई वो है श्री गणेश। लेकिन उनसे भी पहले और आदिशक्ति से भी पहले तत्व जो है वो हम लोगों को मालूम है और हम जो तत्व था उस तत्व को हम ये कहेंगे कि वो सदाशिव स्वरूप, सदाशिव था। उस सदाशिव तत्व से ही उनकी जो शक्ति आई उसे हम आदिशक्ति कहते हैं। तो सबसे पहले जो चीजू संसार में रही और रहती है और हमेशा रहेगी, वो चाहे सुप्तावस्था में होती है तब कोई सा भी सृजन ( Creation) नहीं होता है, 'लेकिन जब वो जागृत अवस्था में रहती है तब सारा सृजन होता है। उस है, फिर हम संसार में नहीं रह सकते। वक्त हर तरह का सृजन आते रहता है। फिर उसके बाद, अवतरण आते हैं और सब तरह के कार्य होते हैं और फिर वही जा करके चीज जब सो जाती तो सब चीज़ फिर सुप्त अवस्था में चला जाता है। तो ये जो सुप्तावस्था में जाने की स्थिति है उस स्थिति से पहले ही हम लोगों को उस जागरण में उतरना चाहिए जो शिवतत्व है। शिव का तत्व समझना एक हिन्दुस्तानी के भी गलती करते हैं तो शिवतत्व के प्रकाश में वो लिए कठिन बात नहीं है क्योंकि अपने यहाँ, भारत वर्ष में जो कि भारतीय हैं, जो कि विदेशी लोग हैं को अगर आप ऐसा समझिए कि हमारे जीवन में या विदेशी संस्कृति से प्रभावित हैं उनकी बात नहीं, पर सर्वसाधारण किसी भी भारतीय को आप गर देखें तो वो यही कहेगा कि इस अविनाशी तत्व को अनुभूति होती है ये ही शिवतत्व का प्रकाश है और ही पाना हमारे जीवन का लक्ष्य है। बाकी सब चीजें विनाशी हैं ये हम लोग जानते हैं। सारी चीजें तक आत्मा आपके अन्दर जागृत नहीं होती आप जरूरत से ज्यादा महत्व करना विनाश की ओर जाना है यही चीज़ है जो शिवतत्व है इसे हमें प्राप्त करना है, जो सारी हमारी कार्यपद्धति, गतिविधियों का लक्ष्य भी है और वही हमारा केन्द्रबिन्दु और स्रोत भी है। भूल गए हैं। यही चीज विदेश के लोग विदेश में लोग विनाशी चीजों को बहुत महत्त्व देते महत्वपूर्ण समझते हैं और उसी को सोचते हैं कि अविनाशी की शायद खूबर भी नहीं, बहुत से लोगों को, और जिनको है वो भी बस उसको विचारों में, और तत्वों में और इस चीजू में बाँधकर के एक बड़ा भारी सा, कहना चाहिए, कि कबन्ध सा बना हैं, उसके जो प्राण हैं, वो है शिवतत्व। और शिव जानते हैं कि इस अविनाशी शिवतत्व से ही सारा कार्य होने वाला है! गर हमारा मस्तिष्क, गर किसी तरह से काम से चला जाए तो भी हम जिन्दा हैं, गर हमारा हाथ टूट जाए तो भी हम जिन्दा हैं, गर हमारा पैर टूट जाए तो भी हम जिन्दा रह सकते हैं, रीढ की हड्डी भी ट्ूटने पर हम जिन्दा रह सकते हैं। पर जैसे ही हृदय बन्द हो जाता है जहाँ शिव का तत्व तो शिव के तत्व के बारे में हमें जानना चाहिए कि यह तत्व अत्यन्त भोला है। भोलेपन का है ये मतलब नहीं कि मूर्ख, भोलेपन का मतलब है पवित्र, अत्यन्त पवित्र है। जैसे कि एक पवित्र चीज आपने यहाँ बिछा दी हो कुछ भी, इस पर एक छोटा सा भी दाग लग जाए तो फौरन दिखाई दे जाएगा। इसी प्रकार शिवतत्व का है कि जैसे ही थोडी सी एकदम साफ दिखाई देती है। और अब इस शिवतत्व इस शिवतत्व का क्या उपयोग है तो जो आज आप चैतन्य को जानते हैं या चैतन्य की आपमें जो जब तक शिव आपके अन्दर जागृत नहीं होते, जब 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-22.txt अंक : 1 & 2 2008 21 चैतन्य लहरी सकेगी? ऐसी कोई सी भी चीज़ उनके लिए नहीं इस शिवतत्व को प्राप्त नहीं कर सकते, उसकी प्रचीति नहीं कर सकते, उसे जान नहीं सकते। है। इसी से आप जान सकते हैं कि गर हमारे अन्दर उसकी प्रचीति होना ही एक बोध है, इसी को विद् शिव तत्व चलता है तो पहले तो हम ऐसे इन्सान हो कहना चाहिए जो वेद है। इसी को Knowledge कहते हैं जो ज्ञान है। यही शिवतत्व को जानना चाहिए। अब शिवतत्व है या नहीं ये तो आप जानते है, इसमें आपको शंका नहीं है कि शिवतत्व है या नहीं। किन्तु शिवतत्व पे हम जमें हैं या नहीं, ये हो जाती है, क्योंकि आप कालातीत हो गए, किस सोचना चाहिए। शिवतत्व का सबसे बड़ा फायदा ये है कि ये प्रेम है, प्रेम का स्रोत है, प्रेम का लक्ष्य है प्रेम का केन्द्र है, ये प्रेम है। सबसे बड़ी चीज़ आप अपने हृदय को खोल लें, शिवतत्व को अपने अन्दर समाने का मतलब है अपने हृदय को खोल लो। हृदय को खोलकर के बिल्कुल खुली तबियत से रखें। इसके विरोध में क्या-क्या चीजें बैठती हैं वो हमें देखना चाहिए। इसके विरोध में जब हमें एक तो स्वार्थ 'मैं', ममत्व, 'मैं, मेरा पति, मेरे बच्चे, मेरा घर' जहाँ ममत्व शुरु हुआ वहाँ शिवतत्व खत्म होने बनेगा, कैसे बनेगा, उसके लिए व्याकुल होने की लगता है। अब शिवजी को देखिए कहाँ रहते हैं? कैलाश पर, जहाँ कोई भी नहीं रह सकता, वहाँ बसे हैं। कपड़े क्या पहनते हैं वो तो आप जानते ही जाएंगे, तब ये पूरा होगा, नहीं तो यहाँ पर क्या, कौन हैं। अलंकार उनके क्या हैं और जिस मस्ती में वो पहनते हैं वो भी आप जानते हैं। लेकिन उनको कोई मैने तो इनसे कहा था कि पहले ये तय कर लो आराम की जुरूरत नहीं, कि मुझे कौन सा आराम मिलेगा। हम लोग पहले सोचते हैं-भई वहाँ जा रहे कहने लगे माँ आप तो रहेंगे। मैंने कहा मैं कौन-से-कौन हैं तो वो कितने स्टार होटल हैं, वहाँ क्या इन्तज़ाम होगा, वहाँ ये चीज ठीक होगी या नहीं होगी, वहाँ एक मेरे लिए मत आश्रम बनाओ, आपमें से कितने किस तरह से रहने को मिलेगा, वहाँ कौन सा इन्तजाम होगा और किस तरह से खाना होगा? वो इस चीज़ की परवाह नहीं करते। शिव तत्व वालों का पहली पहचान है, वो मस्ती में कहीं भी रह सकते हैं। आप उनको जंगल में सुला दीजिए, वो जंगल में आराम से हैं, महलों में रख दीजिए तो चाहिए अपनी। 'अपना' 'मेरा'। ये मेरी, ये मेरी चीज़ महलों में आराम से हैं। जहाँ है वहाँ वो शिव हैं। है, मेरे बच्चे मेरे पास हैं, मेरी बीवी मेरे पास है। उससे ऊँची कोई चीज़ है ही नहीं जिसका वो आनन्द उठा सकें क्योंकि स्वयं आनन्दमय होने की सकते हैं दुनिया में? परदेस में ये प्रश्न नहीं उठता। वजह से और किस चीज़ से आनन्द उठाना है? बाकी तो सब कचरा ही है। जो असली परम चीज़ है वो उन्होनें पाई है अपने अन्दर में, शिव की और उस शिव के आनन्द में ही वो पूरी तरह से जमे हुए हैं। तो उनके लिए ऐसी कौन सी विशेष चीज होगी जो उनको दबा सकेगी या उनको मोहित कर जाते हैं जिसे कहते हैं, औलिया माने आप कहीं भी सो लीजिए, कहीं भी बैठ लीजिए, कहीं भी खाना खा लीजिए, किसी वक्त भी खाना खा लीजिए, कितना टाइम है सोलें और ये घड़ी जो है ये बन्द वक्त जाना, किस वक्त आना, किस वक्त क्या करना, उसका विचार ही नहीं रहता। सब ये कि हो रहा है। जो भी चल रहा है ठीक है। अभी यहाँ बैठे थे यहाँ बैठ गए, कल को वहाँ जाकर बैठ जाएंगे। उसमें ये विचार ही नहीं आता है कि अब Time हो रहा है चलो, अब वहाँ पर ऐसा करना है ये करने का है, ये सब दिमागी जमाखर्च उसमें होते ही नहीं। क्योंकि जो हो रहा हैं वो कालचक्र के हिसाब से ठीक ही हो रहा है। इसीलिए मैंने कहा कि ये कब जुरूरत नहीं। जब इसके लायक लोग हो जाएंगे तब ये पूरा हो जाएगा। जब इसमें रहने लायक लोग हो रहेगा? जानवर आकर रहेंगे, चिड़िया पंछी रहेंगे? दिल्ली वाले कि कौन रहने वाले हैं यहाँ आकर। से आश्रम में रहने वाली हूँ? ये बता दीजिए। तो लोग आश्रम में रहना चाहते हैं, ये पहले तय कर लो। क्योंकि हिन्दुस्तानी तो बहुत ही ज्यादा सीमित हैं। उसको तो अपना घर चाहिए, अपनी बीवी चाहिए, अपने बच्चे चाहिएं और बीवी पर रौब जमाने के लिए चाहिए। ऊपर से ये कि उनको मोटर कितने लोग ऐसे हैं कि जो सामूहिक तरह से रह परदेस में तो गर आश्रम बनाया तो खट बन जाता है क्योंकि सब अपना बिस्तर वगैरा लेकर के चले आते हैं। भई क्या हुआ? अब तो घर-वर बेच दिया, अब तो माँ आश्रम में रहेंगे। अब हमारे सारे प्रश्न ही छूट गए क्योंकि अब न तो घर का किराया देने का, न कोई आफ्त, न कोई चीज़। बस 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-23.txt अंक : । & 2 2008 22 बैतन्य लहरी अब यहाँ रहेंगे, सामूहिक में रहेंगे, जो कुछ पैसा सारे लोग उसके साथ खड़े हो जाएंगे। उल्टे गर आप देना है वो दंगे और अपना आराम से रहंगे। सब लोग मिलकर काम करेंगे, और कोई Problem ही नहीं। कोई आफत आई तो सब लेग मिलकर उठा लेंगे और कोई ऐसी विशेष बात हुई तो उसका भी आनन्द सब लोग उठा लेंगे। वो लोग तो इतने खुश हो जाते हैं कि इसमें हमें कुछ मिल गया, जैसे कि हम किसी चीज के हो गए, जिसको कहते हैं रिश्ता आप जानते है, वो चैतन्य से होता है। इस belonging, किसी चीज को हम belong कर गए। और हम लोग हैं चिपटे-चिपटे घूमे रहते हैं। अच्छा उस घर में भी, घर के अन्दर भी, फिर झगई़ शुरु होते हैं कि साहब ये बड़ा लड़का है, ये छोटा लड़का है, ये वड़ी बहू, ये छोटी बहू। फिर उसका बच्चा, फिर मेरी बहन, फिर ये, ढिकाना। उसमें भी झगड़ा! क्योंकि ये जो रिश्तेदारी है कृत्रिम रिश्तेदारी मेंने कहा, क्या हुआ है? पता नहीं क्या? एकदम से ये असली रिश्तेदारी नहीं। कोई किसी का बेटा कुण्डलिनी चढ़ गई एकदम खुल गई। हमने कहा हो जाए तो उससे उसका रिश्ता नहीं होता। गर होता, रिश्ता गर बनता तो झगाड़ा क्यों होता? मतलब इसमें वास्तविकता नहीं है। उसमें फिर छोटी-छोटी बात वो बिचारा झुका ही बैठा था मैंने कहा उसको तो की मांग क्यों होती? एक दूसरे में प्यार क्यों नहीं छोड़ो। पकड़ लिया उसको। उसका जो आनन्द आ होता? तो जिस तरह से हम आपको कहते हैं कि बाहर के धर्म सब झूठे हैं इसी तरह से बाहर के रिश्ते भी सब झूठे हैं। एक-एक आदमी को इसकी प्रचीति आएगी। अब कोई कहेगा साहब मेरी माँ को दौजिए, माँ को बुला दीजिए। लन्दन सहजयोग में आएं तो आपकी टाँगे खींचेंगे। अच्छा गर आप सहजयोग में आए तो आपसे कहेंगे कि चलो फिर हमें ठीक कराओ। तुमने हमें ठीक नहीं कराया तो हम तुम्हें सहजयोग में नहीं जाने देंगे। फिर और भी तमाशे खड़े कर लिए। क्योंकि शिवतत्व ही सत्य है, बाकी सब असत्य है और शिवतत्व का प्रकार से जब आप चेतन्य को महसूस करते हैं आप जानते हैं कि चैतन्य है तो आप समझ लेते हैं कि ये जो दूसरा सामने बैठा है इससे कितना कितना आनन्द आ रहा है। एक बार कलकते में एक साहब मेरे पास आए। वो मेरे पैर पर आते ही साथ आठ-दस वहाँ जितने भी सहजयोगी थे दौड़ पड़े! जाकर देखे माँ को क्या हुआ? तो ये देखा कि सामने एक realized soull अब वो सब खड़े हो गए रहा था जैसे कि गुलाब के फूल से भी न आए, न के कमल से थे! ये असली रिश्ता हुआ कि बैठे कहाँ थे, वहाँ से भा्ग-भागे आए! क्या मज़ा आया! जब ये मज़ा आने लग गया तब रिश्तेदारी हैं। यही असली दोस्ती है, यही असली सहजयोग की प्रेरणा, प्यार और उसका आनन्द हैं। ये सिर्फ शिव तत्व से मिल सकता है। आए, एसे उसका मजा उठा रहे फूल बुला में हम थे तो एक साहबे मेरी जान के पीछे पड गए। मैंने कहा अच्छा भई तुम इतने पीछे पड़े हो तो माँ को बुला देते हैं। जब माँ को बुला दिया तो वो रोज़ कहें माँ गर आपके अन्दर शिव तत्व है तो आप आपस में इससे मुझे छुटकारा करें, मेरी जान खा गई है। इसको कैसे भगाऊँ? मेंने कहा पहले तो कह रहे थे माँ को बुलाओं, माँ को बुलाओ, मेरी जान खाली, अब ये कि इसको यहाँ से निकालने की कैसे कोशिश करें। मैं कैसे इसको निकाल दूं मेरा सर खा लिया। मैंने कहा, पहले बुलाया क्यों और अब भेज क्यों रहें है? वजह ये है कि ये जो रिश्ता था ये रिश्ता सच्चा नहीं था, ये झूठा रिश्ता था। अगर सच्चा रिश्ता होता तो एक प्रेम में विभोर मनुष्य रहता। उसमें ये नहीं भावना आती कि ये मेरा है। 'मेरा' की जो भावना है ये झूठी भावना है, ये सच्ची भावना बिल्कुल नहीं है। गर सच्ची भावना होती तो हैं। शिव तत्व में स्थित होना माने मैं नहीं कहती कि आप मुझे बताइए कि कौन सी रिश्तेदारी में आपने देखा है कि एक आदमी को शिकायत हो जाए तो झगड़ ही नहीं सकते। आपने गणों को देखा है कि गण कैसे होते है कि वो एक इशारे पे कठिन से कठिन काम सब लोग मिलकर करने लग जाते हैं, कठिन से कठिन बात हो, उसमें सब जुटकर के करने लग जाते हैं। लेकिन गर हमारे यहाँ शिवतत्व की जब पूर्ण प्रणाली शुरु हो जाती है, मैंने देखा है, कि गर समझ लीजिए कोई चीज़ अमेरिका में हो गई तो सारे सहजयोगी उधर दौड़ पड़ेंगे। कोई घटना आस्ट्रेलिया में हो गई, सबका चित्त वहाँ चला जाएगा। कितनी बड़ी बात है! लेकिन सबसे पहले उसमें हमें जानना चाहिए कि हम शिवतत्व में स्थित आप सन्यासी बाबा बन जाए। पर अन्दर से सन्यस्थ भाव आना चाहिए। अन्दर से सन्यस्थ भाव आने का 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-24.txt अंक : 1 & 2 23 -2008 चैतन्य लहरी अर्थ ये होता है कि आप इस तरह से कि एक पेड़ कि आप उनको धुत्कारिए या बुरा कहिए, लेकिन के अन्दर उसकी शक्ति या उसके अन्दर का जो Sap होता है वो उठता है और हर जगह जाता है, हर पत्ती पर, हर शे पर, हर फूल पर, हर फल पर जाता है और फिर लौट जाता है। इसी प्रकार आपका भी प्यार बिल्कुल निर्वाज्य, पूरी तरह से असंग में, कोई कहे कि दूध में आप दही डाल दें। क्या हर्ज detached होना चाहिए। तब आप शिवतत्व में स्थित है? हम सब तो detached ही हैं, ऐसे तो होता नहीं। होंगे। और जब वैसे आप हो जाते हैं तब आपको दूध में आपने दही डाल दिया तो दही हो जाएगा। एक दूसरे का मज़ा आने लगता है, नहीं तो एक दूसरे को देखकर के, वो ऐसा बोले, इन्होंने ऐसा किया। शुरु-शुरु में तो ऐसा लगता था कि मैं किसी झगड़ालू घर में घुस गई हूँ। इसका उसका आपस में दी और जिन लोगों के vibrations खुराब हैं उनको झगड़ा, न किसी को आपस में मजा आ रहा है, न कोई आपस में प्यार कर रहा है। इसका झगड़ा उससे, उसका झगड़ा उससे, मैं तो देख-देख के सोचती थी हे भगवान! अब मैं क्या करूं? यहाँ कुछ मेरा कार्य तो बनना ही नहीं। लेकिन धीरे-धीरे, बैठा है मैं भी ऐसी शान्ति में बैठूं। इस शान्ति को मैं धीरे-धीरे दिमाग ठण्डे हो गए, शिवतत्व अंदर स्थापित होने लग गया और अब लोग आपसी प्रेम को आनन्द से भोग रहे हैं और जान रहे हैं कि प्रेम में जब घुस जाएगा तो दूसरे लोग जिनके आपसी प्रेम जो है यही सबसे बड़ी चीज़ है। और रिश्तेदारों का भी अनुभव आने लग गया कि ये क्या चीज़ है। अपना रिश्ता एक ही चीज से होता है वो है शिवतत्व से। जिस आदमी में शिवतत्व नहीं, काहे में है, हमारा हित इस तरह से पागल जैसे जिस आदमी में vibrations नहीं, जिसके घूमने में और भटकने में नहीं। उस अविनाशी चीज vibrations ठीक नहीं हैं उस आदमी से आपका रिश्ता हो ही नहीं सकता। कितनी भी कोशिश कर लो, तो भी वो रिश्ता बन नहीं सकता। उसको जब तक उसके vibrations ठीक नहीं हो जाएंगे तब तक आप कुछ भी कर लें, आपको उसके साथ मजा आ ही नहीं सकता। या तो आपके ही vibrations खराब हो जाएंगे या उसके vibrations खराब हो जाएंगे। तो आपको ऐसा लगेगा कि इसी के vibrations खुराब हैं तो क्या मेरे खुराब हो गए? और मेरे खराब हैं तो कहनी चाहिए। सो शिवतत्व की बात ऐसी है कि क्या उसके खुराब हो गए? और एक तरह से संभ्रान्त, भ्रान्तिमय स्थिति आ जाएगी। आपको ये ही समझ में नहीं आएगा कि vibrations किसके खराब हैं? तो इसलिए ऐसे आदमी जिनके कि vibrations ठीक नहीं हैं उनसे दूर रहना चाहिए। उसमें कोई संकुचित हो जाएगा, एकदम छोटा हो जाएगा। और किसी को बुरा नहीं मानना चाहिए, उसमें दोनों का लाभ है। गुर आपके अन्दर शिवतत्व जागृत आप उनसे अलिप्त रहिए। इसका मतलब ये नहीं उनका भी शिवतत्व ठीक करना चाहिए और उनसे भी कहना चाहिए कि आप अपने शिव तत्व को ठीक करें, क्योंकि गर ऐसे लोग बीच में आ जाएं तो उसमें कभी भी आनन्द नहीं आ सकता जैसे कि आप कितनी भी कुछ Theory लगाओ, उस Theory का काम नहीं। उसके सामने जाकर प्रार्थना करो, नमस्कार करो, कुछ करो, दूध में आपने दही डाल पूरी तरह से guidance देना चाहिए। तुम्हारे vibration ठीक हो जाएंगे और सब ठीक हो जाएगा और आपकी शान्ति आपके शिवतत्व से वो देखकर कहेंगे, " हाँ ठीक है।" ये आदमी कितना शान्ति में क्यों न पाऊ? उसका में क्यों न उपभोग करू? इस तरह का आपका जीवन उस शान्ति में, सादगी में, vibrations ठीक नहीं हैं, जो इतने अभी बैठे नहीं हैं सहजयोग में, वो धीरे-धीरे बैठ जाएंगे।' लेकिन सबको यही कोशिश करनी चाहिए कि हमारा हित को प्राप्त करना ही हमारे जीवन का लक्ष्य है। हम इसीलिए सहजयोग में भी आए हैं और सहजयोग में आकर के अगर हम आधे-अधूरे रह गए तो क्या फायदा? हमने क्या प्राप्त किया? उसमें हम जिस रास्ते पर आए हैं हम बीच ही में बैठ गए, मंजिल तक तो पहुँचे ही नहीं। इस शिवतत्व के बारे में मैंने अनेक बार बातें करीं हैं और बताया लेकिन दिल्ली वालों के लिए विशेष रूप से शिवतत्व की बात आपको पता होना चाहिए कि जब हृदय आपका पकड़ जाता है तो आपका आज्ञा चक्र पकड़ जाता है। पर मैं तो उल्टे कहूंगी, गर आपका आज्ञा चक्र पकड़ गया, सामने का, तो आपका हृदय एकदम से जब आपका आज्ञा चक्र खुल जाएगा तो आपका हृदय एकदम ठण्डा ठण्डा उसमें से बहने शुरु हो जाएगा। आज्ञा चक्र चढ़ता है अहंकार से। क्योंकि है तो 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-25.txt अंक :। & 2 -2008 24 चैतन्य लहरी तब हमें एक मीनाबाग में एक जगह मिल गई थी, कहने लगी मीनाबाग में रहती हो? तुम्हारे पति क्या आप इस राजधानी में रहते हैं और सब घोडे पर सवार लोग हैं, आप भी सोचते हैं (बच्चों को जरा- पता नहीं क्यों बच्चे रो रहे हैं इनको देखना चाहिए करते हैं ? भई कुछ करते ही हैं सरकारी नौकरी ही जो बच्चे रो रहे हैं उनको देखना चाहिए) सो दिल्ली है, ऐसा ही after all। ये मीराबाग में तुम रहती हो, शहर में मेरी जब शादी होकर आई तो मुझे लगा कि ये कोई अजीब जमीन पर हैं परन्तु गर्दन उनकी ऊपर ही चलती है ऐसे, और आप जब-तक कूदकर उनसे बात नहीं तुम क्या मीनाबाग में रहती हो? मैंने सोचा कि करिए उनको कुछ समझ में नहीं आएगा। एक अजीब अहंकार की दुनियां थी, बापरे, जब उस Time में जब देखा, मैं बहुत छोटी सी और भोली सी थी, मुझे हँसी आती थी कि ये सब पागल लोग जा कहाँ रहे हैं। सीधे जमुना जा रहे हैं, किसी घाट पर जा रहे हैं, कुछ समझ में नहीं आता था। तो मैं देखा वो दूर होगा न जरा यहाँ से। अरे तो क्या मेरे पास करती थी और मुझे बड़ा आश्चर्य होता था, सबकी गर्दन, यहाँ से उठकर छः फुट चलती थी और से हैं। मेरे पति तो ये हैं, मेरा पति। पहले तो मेरे इसका कारण ये कि अहंकार, इतना अहंकार। एक चपरासी की गर बीवी घर में आए तो वो शनील के सूट पहनकर के, लिपस्टिक विपस्टिक लगा करके पहुँची घर में, मैंने सोचा कोई मेमसाहब ही होगी। नाखून रंगाए हुए, लिपस्टिक लगाए हुए, पहनी हुई बिल्कुल फेशनेबल। और सामने बिल्कुल ही गाँव की औरत लग रही थी। तो नहीं रहता कौन सी चीज़ Higher-lower है। ये तुम्हें मैंने सोचा कोई मेमसाहब होगी। तो मैंने उनसे कहा चाय लो, सोफे पे बिठा दिया और वो बैठे न, मैने मुझे समझ ही में नहीं आता है कि इतने सारे कहा, आप बैठिए न, बैठ सकती हूँ? मैंने कहा क्यों आप हैं कौन? मैं आपके चपरासी की बीवी हूँ, तो मैंने कहा, कोई हर्ज नहीं हैं, बैठ जाइए अब आप। और फिर जितनी उसमें घमण्ड थी, मैंने देखा कि उतनी तो Collector के नहीं होती। तो मैंने कहा कि जब इनका ये हाल है तो कलेक्टर की बीवी क्या होगी! और इस कदर अहंकार और झूठ और इतनी कृत्रिम जिन्दगी कि मैं तो नागपुर से आई थी, तो लगा कि ये है दुनिया, कैसी दुनिया है ये, कुछ समझ ही में नहीं आ रहा। अजीब-अजीब से अनुभव आने लगे। जैसे हमारे पति आए, वो शास्त्री जी के साथ थे ऐसा दुनिया लगी तुमने क्यों नहीं नमस्ते किया? वो तो मेरे पति में तो बड़ी भारी नौकरी, मुझे तो समझ में नहीं हैं न, उनको क्या नमस्ते करनी। कहने लगी ये आता इसमें क्या बड़ा भारीपन है? तो एक हमारी तुम्हारे पति हैं तुम मीना बाग में क्यों रहती हो? जैसे सहेली हमें मिली, सो वो हमारे कॉलेज में पढ़ती थी। वो तो हमसे बात ही नहीं कर रही। तो मेंने कहा कि नमस्ते वमस्ते किया। तुम कहाँ रहती हो? तुम्हारे पति हैं। अरे तुम तो बड़े आदमी की बी किससे शादी कर ली तुमने? तुमको और कोई नहीं मिला? मेंने कहा भई मेरे पति तो बहुत अच्छे आदमी हैं बहुत अच्छे। अरे उसको क्या चाटना है? दुनिया है यहाँ लोग चलते तो इसको सारी दुनिया में कौन कहाँ रहता है, किसकी क्या Position है, उसको सब पाठ याद है कि कहाँ रहते हैं। मैने कहा कि तुम कहाँ रहती हो? कहने लगी, मैं तो वहाँ रहती हूँ राउजुएवेन्यू में मैंने कहा वो कहाँ है? तो वो के पास है। मैंने कहा, तो पुल मोटर है, उसमें क्या है, कहीं भी हो, रहते तो शान यही नहीं समझ में आता था कि additional, under सारे इन prepositions का क्या मतलब है। मेरे Husband से मैं पूछती थी कि additional और under में क्या फर्क होता है? वो कहने लगे चूंड़ियाँ कि वैसे तुम्हारे पास बहुत ज़्यादा अक्ल है लेकिन मैं तो उसके तुम तीन पत्ती नहीं खेल सकती, इसमें तुम्हें याद ब्यूरोक्रेसी याद हीं नहीं रहेगी। तो मैंने कहा साहब Prepositions हैं, उसमें ऊपर नीचे क्या होता है। बहरहाल जो भी हो, तो वो बहुत मुझसे बिल्कुल दूर भाग के खड़ी हुई कि ये तो कोई क्लर्क की बीवी है या जो भी सोचा हो, पता नहीं। तो मैंने उनसे ये कहा कि भई ठीक है, मैं मीना बाग में रहती हूँ तो इतने नाराज़ होने की कोई बात नहीं है। जो सरकार ने हमें जगह दी है हम रहते हैं । तो कहने लगी कि, इतने में मेरे पति आ गए। अब तो भई यहाँ तो सब लोग नमस्कार कुसी को करते हैं, चाहे जो भी हो, तो वो आते ही साथ सब वो नमस्ते, नमस्ते, नमस्ते नमस्ते। तो ये भी उन्हें नमस्ते करने लगी। तो कहने बैठिए न। कहने लगी मैं कैसे कि कोई वो यरवड़ा का जेल है कि मीना बाग। उसमें इतना objection क्या है? कहने लगी, ये 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-26.txt अंक : & 2 2008 चैतन्य लहरी 25 भगवान जी चिढ़ाती हूँ। कहने लगे बस करो, आप हो। मैंने कहा मेरे लिए तो पता नहीं, पर जरा लम्बे हैं मेरे Husband। तो कहने लगी, तुम तो निरी गवार मुझे मत चिढ़ाया करो। इस कदर का घमण्ड, इस हो। तुमको तो वो फलानी जगह में कोठी माँगनी चाहिए थी मैंने कहा काहे के लिए? तो कहने लगी वाह इतने बड़े आदमी हैं तो क्या तुमको बड़ी कोठी नहीं चाहिए? मेंने कहा कि भई मुझे तो छोटा ही घर अच्छा लगता है, सफाई वफाई करने में मुश्किल position है और उन लोगों को तो सारी Civil list ज्यादा नहीं होती। कहने लगी तुम्हारे घर में नौकर मालूम है कि इनका नम्बर इतना, तो उसका नम्बर नहीं है, मेंने कहा, है पर उसको बहुत ज्यादा काम पड़ेगा न। तो बेहतर कदर यहाँ पर artificiality, ऊपरी तरह से बात ऊपरी तरह से तामझाम। बस, उसके बाद तो वो समझ लीजिए कि वो मुझे रोज एक फोन करती थी, क्योंकि बैठे-बैठे discussion करती रहतीं थी थी। मैं तो परेशान हो गई। मैंने कहा इसको क्या हो इसको ये promotion मिला, उसको बो Promotion गया भई ये? अभी तो ये मीना बाग से घबराती थी मिला। अच्छी भली पढ़ी-लिखी औरतें, educated । और वो रोज़ ही आने के लिए बैठी ही में नहीं आता। इस तरह की चीजें जब मैंने देखीं तो मैंने सोचा कि यहां के लोगों का दिमाग, क्या हो जाएगा? गर समझ लीजिए कोई बिल्ली से आप कह दें कि आप घोड़ा हैं तो वो घोड़ा रहा एक तरफ तो वो बिल्ली क्या हो जाएगी ये बता दीजिए। वही हाल यहाँ के लोगों का है कि हर आदमी जो है ये सब खत्म हो चुकी हैं। अब असलियत पर है वो अपने को पता नहीं क्या समझता है। और ये सब बाहर के लादे हुए गोवर के टुकड़े उनको के लिए ये जुरूर है कि कायदे के कपड़े पहने, लेकर के कौन सी शान बघारते हैं ? ये तो कल गिर कायदे से रहे, सुशोभित रहे। ये सब चीज़ ठीक हैं जाएगी। ये सब चीज़़ गिर जाएगी, ये सब विनाशी चीजें हैं, इसमें रखा क्या है? आज बड़े कुर्सी पर कृत्रिमता को जब आप हटाएँगे तभी आप देखिएगा बैठे हैं, कोई भी आदमी हो, कितना भी खराब हो, कि अन्दर बो शिवतत्व आपके अन्दर चमक रहा बस एकदम लोफर हो, कैसा भी हो, वो कुर्सी पर है। आपकी जो शान है वो देख रही है दुनिया, कहते बैठा है, सब हाथ जोड़े खड़े हुए हैं! वो कोई हैं ना एक ऐसे एक साहब हैं। आप मिले है उनसे? प्रतिबन्ध है ही नहीं, किस तरह का आदमी कुस्सी पर वैठे? अच्छा और गर वो आदमी उस कुर्सी से उतर गया उसका सारा कच्चा चबिट्ठा आप पूछ लीजिए। जब तक कुर्सी पर है वो तो समझ लीजिए दे दिया? ये सहजयोगियों की बात होनी चाहिए। भगवान से भी बढ़कर है। भगवान ही लोग उसको कहते हैं। आपको आश्चर्य होगा कि बहुत से लोग मेरे Husband को मिलने आते तो पूछते थे वो कि ये वो तो राक्षसों को भी क्षमा करते थे। इस प्रकार वो भगवान जी हैं? तो मैंने कहा कोन भगवान जी? साहब, श्रीवास्तव साहब। वो भगवान जी हैं, भगवान जी? तो, मैंने कहा फिर शास्त्री जी कौन हैं। कहने कोई सता ही नहीं सकता, कोई दुख ही नहीं दे लगे, अरे वो परमभगवान हैं। आप कीन? मैंने कहा, यहाँ मैं नौकरानी हूँ। तो तब से मैं अपने पति को कदर की जूरि, इस कदर की जुबरदस्ती और उसमें एक औरतों में जो एक विशेष रूप से एक विचार आता है, कि ओ, मैं इसकी पत्नी हूँ। मुझे तो ये भी नहीं पता था कि मेरे पति कहाँ, कितना, क्या उनकी इतना तो उसका ये। मैंने कहा कि ये क्या घोड़े की list बना रहे हो या काहे की list बना रहे हो। ये किसलिए तुम इस तरह की बातें करते हो? और उन लोगों की बातें मुझसे समझ में मेरे आती नहीं है छोटा ही घर अच्छा है। इस हम लोगों के साथ पढ़ी लिखी औरते थीं वो अपना कुछ पढ़ना न लिखना न कुछ जानना न कोई बातें, बस ये कि पति की नौकरी कौन सी है। उसी के प्रकाश में मार अपने को....... इस कृत्रिम जीवन से आप एकदम हट जाइए, इस कृत्रिम जीवन को एकदम आप छोड़ दीजिए। ये जो कुछ भी मेमसावियत है मीना बाग, समझ आना है क्योंकि हम सहजयोगी हैं। और सहजयोगी लेकिन अपनी सीमा में । अपनी सीमा में। और इस आह क्या चीज है! फिर वो कु्सी से उतरें या कुर्सी पर बैठें चाहे वो बाहर जाएं, चाहे वो अन्दर जाएं, सारी दुनिया उनके नाम से ही सोचेगी वाह क्या नाम एक ऐसा चरित्र होना चाहिए, एक ऐसा विशेष स्वरूप होना चाहिए कि जो कहें कि शिवजी जो थे जिस शिवतत्व को हमने मान्य कर लिया और उनका क्षमा तत्व जब हमारे अन्दर बस गया तो हमें सकता क्योंकि जब हमें याद ही नहीं रहा किसने क्या तकलीफ दी तो हमें कोन सा दुख होगा? इस 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-27.txt अक : & 2 2008 26 चैतन्य लहरी शिवतत्व में उतरने के लिए सबसे पहले आपको उसमें अन्तर्निहित जो चेतना है उसी का प्यार है। समझ लेना चाहिए, कि बिल्ली बिल्ली है, ये घोड़ा जैसे मैने आपसे बताया था कि मैं कश्मीर गई थी नहीं है और विल्ली पर चैठा नहीं जाता है नहीं तो तो वहाँ पाँच मील दूरी पर मुझे vibrations आए, बिल्ली मर जाती है। ये नहीं सोचना है कि हम दिल्ली में रह रहे हैं तो हम कोई विशेष हो गए। जैसे ये सोच लिया ऐसे ही आपका जो हैं सारा चरित्र ही एक हास्यास्पद, Idiotic हो जाता है। एक और भी मजेदार बात है कि एक साहब minister साहब से मिलने गए एक साहब वहाँ बहुत कूद रहे थे, तो उन्होंने कहा, साहब आप इतना क्यों कूद रहे हैं? आपको पता नहीं मैं पी.ए. हूँ। उन्होंने कहा, अच्छा आप पीए हैं, अच्छा नमस्कार! ये तो पीए हुए आदमी हैं। तो इस प्रकार इस दिल्ली का बहुत अनुभव मुझे आया। और उस पर भी मेरे जैसी एक दो गवार औरते थीं, तो हमलोग बैठे-बैठे धर्म की इसकी मिट्टी, पत्थर सीमेंट, फीरमेंट जो भी लगा है , चर्चा, इसकी चर्चा करते थे। बहुत कम, लेकिन अधिकतर सबमें ऐसी बातें। जो लड़कियाँ हमारे हुए मेरे बच्चों का महात्म्य है जिन्होंने अपनी मेहनत साथ कालेज में पढ़ती थी, इतनी सीधी, सरल, सादगी से रहने वाली, उनको पता नहों एकदम उनके पर कैसे चढ़ जाते है ? फिर हर चीज़ में ये मेरा घर है, एक गर उनका नैपकिन खो गया तो वो तो ये आपके ऊपर निर्भर है कि जब आप इसके सारे ब्रह्माण्ड को फोन करेंगी, भई तुम गलती से मेरा नैपकिन तो नहीं ले गए। अरे भई एक गया तो को जागृत करने आ रहे हैं, शिवतत्व पाने आ रहे हैं, गया, चूल्हे में गया। एक किसी का चम्मच खो गया तो उसके लिए वो सारी दुनिया को फोन करेंगे कि भई वो एक मेरे यहाँ से चम्मच खो गया है, इन्हें है। जो लोग Serious होते हैं उनको रोज़ चाहिए शर्म भी नहीं आती। किसी चीज़ की, इतनी बेशमी से इस तरह की कंजूसी की बातें करना और ऊपर हूँ तो मेरा ही मन करता है कि दो थप्पड़ इनको से आप लिपस्टिक लगाओ ये बनाओ अपना शृंगार लगाऊ। जब आपके अन्दर शिवतत्व जागृत हो गया करो और अन्दर से तो आप इतने टुच्चे, छोटे है तो आप इतनी मनहूस शक्ल बनाकर क्यों आए तवियत के लोग हैं। उनको क्या इतना महत्व देना, जो कि छोटी-छोटी चीजों के लिए, इतनी बरबाद चौजों के लिए परेशान हैं। कभी-कभी तो आश्चर्य करो, माफ़ करो। मैंने कहा देखो फिर से मत कहना हो जाता है कि किस तरह से ये लोग अपने को इतना बड़ा बनाकर दिखाते हैं और होते हैं कितने है कि हम लोग तो शिवतत्व को प्राप्त हैं और हमारे टुक्चे, कितने Iow level के। उनसे तो एक चीज़ अंदर आनन्द की उदियाँ उठ रही हैं हम Serious नहीं छूटती, एक इतनी सी चीज किसी के पास रह जाए तो उनके प्राण निकल जाएंगे। वो सब अपने है कि कोई मर गया है? और ये भी एक बीमारी साथ ले जाने वाले हैं । तो शिवतत्व में जब हम अविनाशी चीज को सोचते हैं तो संसार की सारी चीज जो है वो हमारे लिए क्षण भंगुर है। किसी चीज़ का महात्म्य ही नहीं। उसके पौछे छिपी हुई या मैंने driver से कहा कि यहाँ से चलो, वहाँ से चलो। तो वो मुझसे कहने लगा, यहाँ तो कोई भी चीज नहीं, तो मैंने कहा नहीं चलिए यहाँ कुछ होगा जरूर। जाके देखा तो बहुत मुसलमानो के ऐसे छोटे-छोटे घर थे, आगे जाकर पूछा यहाँ क्या है? कहने लगे, यहाँ हजुरत इकबाल का एक बाल है। मेरे अब भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं, एक बाल, इकबाल, माने कीन मोहम्मद साहब, एक बाल वहाँ रखा हुआ था और पाँच छः मील पर मैंने उसे पकड़ा। इतने vibrations थे। आप सोच लीजिए एक बाल में क्या शक्ति होगी! इसी तरह से ये आपका जो आश्रम है, उसका महात्म्य नहीं है लेकिन इसके अन्दर बसे से प्यार से इसे बनाया और हर चीज़ इसकी vibrate करी है। आगे लोग मेरा फोटो न मिले तो इसी के बाहर बैठकर के vibrations ले सकते हैं। अन्दर आएं तो याद रखें कि आप अपने शिवतत्व उसी को जानने आ रहे हैं । और जिस आदमी शिवतत्व होता है वो आनन्दमय, हँसता खेलता रहता अपने मुँह पर दो थप्पड़ मारें। क्योंकि मैं जब देखती हैं? और सवेरे से माफ़ करो, माफ़ करो, भई काहे की माफ करो। सरवेरे से चलता है माफ़ करो, माफ़ माफ करो, नहीं तो एक लगाऊँगी। क्योंकि बात ये कैसे हो सकते हैं? कोई हमारे घर में मातम हो रहा उत्तर हिन्दुस्तान में हैं खासकर आदमी लोग जब उनकी बीवी के साथ होते हैं तो देख लेना चाहिए, वा ऐसा मुँह लटका लेते हैं जैसे किसी पशानी में चले जा रहे हों। कभी मैंने इधर के आदमियों को 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-28.txt यर अंक : 1 8 2 - 2008 कमान ात्री चैतन्य लहरी 27 है, सब आनन्द हमारे लिए पूरा भरा हुआ है और हम उससे अछूते ही रहे। आपस में जो सहजयोगियों का आपस में मेल-जोल है वो तो बहुत अच्छी बात दस कदम पीछे चलती है। वो बिचारी देखती चलती है लेकिन अपनी गृहस्थी में भी इसी तरह से है कि उसका चमरोदा कहां जा रहा है उसके पीछे मेलजोल होना चाहिए। न कोई स्त्री पुरुष को dominate करें न पुरुष स्त्री को dominate करे, सब लोग अपनी अपनी जगह आनन्द में रहें। इसमें आपको ये भी है यहाँ औरतें इसलिए भी चिढ़ती हैं आदमी से आदमी किसी औरत से बहुत बात कर रहा है तो बहुत, दिल्ली मैने देखा, इनके पति काम में बहुत व्यस्त हैं। अब अगर आपके अन्दर शिवतत्व है, आपके हृदय में शिवतत्व है इस शिवतत्व से ही आनन्द मिलता है। गर आप चाहें अपने पति से, आप आनन्द तो नहीं पा सकती, उससे सुख पा सकती हैं, उससे अपने अहंकार को अपने पाल सकती हैं लेकिन पति से आपको आनन्द नहीं मिल सकता। आनन्द के लिए तो आप ही का अपना शिवतत्व है उसको पा लीजिए। तो फिर दुखी रहने जैसे चन्द्र और चन्द्रिका जैसे अटूट सम्बन्ध में। की कौन सी बात है? गर उसको काम करना है, मेहनत करना है, हम तो अपने जीवन में आप बताएं तो आपको विश्वास ही नहीं होगा जितने साल तक हम India में रहे हमारे पति ने एक भी छुट्टी नहीं चाहते हैं। कितना आपस में मधुर उनका सम्बन्ध है ली, एक भी। वो भी इसलिए छुट्टी ली एक दिन, उस दिन मौलाना आजाद मर गए थे और सब चीजू बन्द ही हो गई थी। लेकिन मैंने कभी शिकायत नहीं की, मैं अपने आनन्द में मग्न हूँ, मुझे क्या? वो तो अच्छा ही काम कर रहे हैं, देश का काम कर रहे चाहिए कि ये जो है ये शिव और पार्वती का हैं, मंहनत कर रहे हैं, तो काम करने दो और उनके काम की वजह से मुझे भी तो कितने लाभ हो रहे की हैं, शिवजी ये नहीं कहते कि तुम मेरे ढंग की हैं, तो उनको बार-बार सताने से फायदा क्या? और तकलीफ देने से फायदा क्या? उल्टे अगर वो थके आए, उनको तकलीफ हों, उनको देखना चाहिए, उनको आराम देना चाहिए, उनको संभालना चाहिए। यही चीज हमारे यहाँ हो नहीं पाती है इसलिए भी आनन्द बढ़ता नहीं। औरतें तो दिन भर आराम औरतों से हँसते खेलते बोलते नहीं देखा। ज्यादातर तो कहते हैं हमारे भैया लोग जो यू.पी. के हैं कि आदमी आगे चलता है और बीबी घूँघट निकालकर चलू। और आदमी लोगों को तो बीवी से बात करना किसी आप होटल में जाकर बैठिए, किसी रेस्तरां में बैठिए, वहाँ अगर आप देखिए कोई समझ लेना चाहिए कि इसकी वो बीवी नहीं है impossible। क्योंकि बीवी से बात करते बक्त उनको पता ही नहीं क्या बिच्छू काट जाता है कि सॉप काट जाता है। और ये इतना common experience मैंने देखा है कि बीवी घर में हैं गर, उससे बात भी नहीं करने का, न उसे कहीं बाहर ले जाने का, उसे कोई companionship, नहीं। और शिव और पार्वती ये दानों अटूट सम्बन्ध से बँधे हैं, किसी और के साथ उनका सम्बन्ध चल ही नहीं सकता और आनन्द आ ही नहीं सकता क्योंकि स्त्री उनकी शक्ति है और यही कार्य करती है जो ये और किस तरह से आदान-प्रदान और किस तरह से आनन्द! तो आदमी जो है वो हँसता खेलता रहे, औरते जो हैं वो भी हँसती खेलती रहें और आपस में बड़ा प्रेम और आनन्द आता रहे, उसे कहना (अस्पष्ट)। शिव अपने ढंग के हैं पार्वती अपने ढंग हो जाओ और पार्वती ये नहीं कहतीं कि तुम मेरे ढंग के हो जाओ। न कोई जुबरदस्ती, न कोई ये और आपस में एक तरह का बड़ा सा ही अच्छा (Love) जिसे कहते हैं, प्यार मनमुटाव चलते रहता है। शिवतत्व से हमें ये भी समझना है कि जो विवाह हमारे अन्दर होते हैं वो तभी पुर्णतया सखी करती है और शाम को चाहती हैं कि आदमी बारह हो सकते हैं जब पुरुष और स्त्री दोनों ही अपने आनन्द को प्राप्त करें। जब तक स्त्री ये सोचेगी कि मैं आदमी को कितना कव्जा करूं और आदमी सोचेगा कि मैं अपनी औरत को कितने कब्जे में रखं तो उस वक्त में ये समझ लीजिए ये आनन्द खत्म हो जाता है। और इतनी बेवकूफी की बात है कि जब अपने सामने सब कुछ थाली भरकर रखा हुआ एक बजे तक उनको घुमाते फिरे सो इसमें आपको ये पता होना चाहिए कि आपको अगर पूरे रात भी घुमाए तो आपको आनन्द नहीं आने वाला क्योंकि आपका आत्मा ही जागृत नहीं है। आपका आत्मा जागृत जब हो जाए तो आपको इसकी जुरूरत ही नहीं होती है। हम दोनों आदमी आज तक कभी (शेष भाग पृष्ट 36 पर.....) श्रीष् 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-29.txt महाशिवरात्रि पूजा "उत्पत्ति, आदिशक्ति और शिव का स्वरूप'" दिनांक-29-2-1976 म अपनी आँखे मुँद लेते हैं उसी दिन हम लोग खत्म हो जाते हैं। इस दुनिया से हम लोग निकल जाते हैं और हमारी स्थिति परलोक में हो जाती है। शिवजी, आप जानते हैं, हमारी (सूर्यनाड़ी पर वास करते हें ) उसके बाद, उनके प्रगटिकरण के बांद, उन्हीं के चन्द्रनाड़ी पर वास करते हैं और चन्द्रनाड़ी पर बैठे वे स्थिति का सारा कार्य अपने अन्दर करते ही हैं लेकिन हमारा जो प्राण है, उसकी भी स्थिति वो के तीनों रूपों को अलग-अलग प्रकाशित करती है बनाए रखते हैं। शिवजी के बगैर हमारे प्राण नहीं चल सकते। अब ये काफी लम्बी चौडी बाते हैं, ये मेरी किताब में मैंने काफी खोल करके कही हुई हैं। शिवजी का स्वरूप, वे एक परम सन्यासी में सारी सृजन की हुई सृष्टि सारा manifested हैं। जैसे कि परमात्मा का एक स्वरूप है कि वो अन्दर से सन्यस्थ है। वो किसी वजह से ये रचना नहीं करते, उनको कोई कारण नहीं है। वो अपने उनका सम्बन्ध परमात्मा के उस अंग से हमेशा ही करते हैं, उनकी whim है, उनका मज़ा है, वो अगर बना रहता है जो कभी भी प्रगटिकरण नहीं होता है चाहें तो रचना करते हैं नहीं तो उसे तोड़ देते हैं। एक सन्यस्थ आदमी संसार में जो बहुत से विराजते प्रकट होती हैं वो being से होती हैं और जो नहीं हैं, वे उनके प्रतीक हैं। मेरे सन्यास से अर्थ जो होती हैं बो non-being की हमेशा बनी ही रहती हैं। दुनिया में माना जाता है उससे नहीं है, आप सब उसमें सदाशिव का स्थान वेसा ही है जैसे एक हीरा जानते हैं। सन्यस्थ उसे कहना चाहिए जो आदमी है ऐसे समझ लीजिए कि किसी वृक्षे को पूर्णतया प्रगटित होने से पहले उसका बीज देखा जाता है और इसीलिए उसको बीजस्वरूप कहना चाहिए। इसीलिए शिवजी की अत्यन्त महिमा है। अन्दर से शक्ति अपना स्वरूप धारण करके आदिशक्ति हुए के नाम से जानी जाती है। वही आदिशक्ति परमात्मा जिसको आप जानते हैं- जिनका नाम ब्रह्मा विष्णु और महेश, माने शिवशंकर है। यानि एक ही हीरे के तीन पहलू आदिशक्ति धारती है। और जब प्रलयकाल संसार विसर्जित होता है, उसी ब्रह्म में अवतरित होता है, तब भी सदाशिव बने ही रहते हैं और जो कि एक nonbeing है। परमात्मा की जो शक्तियाँ Self Realized होकर के उस दशा में पहुँच गया जहाँ वो साक्षी है। अन्दर से वो सन्यस्थ होता है। बाहर से सारे संसार में रहते हुए भी वो महान सदाशिव का स्थान है । सदाशिव से स्थिति बनती है सन्यासी होता है। उसमें कुछ किसी से बताना नहीं पड़ता कि मैं सन्यासी हूँ, मैंने सन्यास ले लिया है लेकिन जो अन्दर से मन हमारे अन्दर सन्यास ले लेता है, जो अन्दर से सन्यस्थ हो जाता है वो स्वरूप श्री शिव का है। और जो संसार में हम विराजते हैं की ही शक्ति से होता है। इस कारण सृजन में और संसार के जो कार्य करते हैं और संसार में जिसे भी हम भोगते हैं, वो भोक्ता स्वरूप परमात्मा का जो हवेली में या भवन में उसके नींव का होता है, है वो उनका श्री विष्णु का स्वरूप है । इसलिए उसके foundation का होता है। ये दिखाई नहीं देती, विष्णु के स्वरूप में वो भोक्ता हैं, शिवजी के स्वरूप में वो सन्यस्थ और ब्रह्मा के स्वरूप में वो सृजन करने वाले हैं, सृजन कार्य करने वाले हैं, कर्ता हैं। इस सन्यासी के ओर दृष्टि करने से एक अजीब सी चीज़ दिखाई देती है कि नीलवर्ण का इनका शरीर, क्योंकि यह चन्द्रमा की लाइन पर हमारा इस संसार में जीवन चलता है, जिस दिन बो बैठे हुए हैं, इनके गले में, हाथ में सर्प लिपटे हुए टूट जाए, बिखर जाए, कितना भी मिट जाए, उसके कण-कण भी हो जाएं, तो भी वॉं चमकता ही रहता है। कभी नष्ट नहीं होती उसकी चमक। उसी प्रकार कुछ और संसार के सृजन में जब तक स्थिति नहीं बनेगी, तब तक कोई भी सूजन नहीं हो सकता। पहले स्थिति बनाई जाती है। Existance, अस्तित्व लाना पड़ता है किसी भी चीज का। अस्तित्व सदाशिव उनका वही हाथ होता है जैसे किसी बड़ी भारी जो नींव होती है वो दिखाई नहीं देती हैं लेकिन उसके बगैर कोई भी building खड़ी नहीं रह सकती। उसी तरह सदाशिव हमारे अन्दर भी हृदय में निवास करते हुए आत्मास्वरूप होते हैं। जब तक वे अपने हृदय में आत्मा स्वरूप स्थित होते हैं तभी तक 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-30.txt अंक : 1 & 2 -2008 29 चैतन्य लहरी हैं, इनका सारा ही अलंकार सर्पों से हो जाता है। उनको बहुत मुश्किल है मनाना। जीजस क्राइस्ट भी सर्प शीतल होते हैं, शान्त होते है, दाहकता को पीते नहीं कर सकते, कभी भी नहीं कर सकते। उनके है और वो अपने ऊपर सर्प को पाले हैं। माने लिए सिर्फ महादेव, श्री शंकर समर्थ हैं। उनकी बात संसार का जितना भी दुष्ट, जितना भी विपरीत, को ये दोनों भी नहीं टाल सकते। इसलिए उनकी जितना भी डंक, जितनी भी जबरदस्त चीजें संसार को नष्ट करने वाली हैं सबको अपने शरीर में महाशिवरात्रि के दिन लोग उपवास क्यों करते समाए हुए हैं। दुनिया भर का गरल वो पीए हुए, अपने आप जानते ही है, कि उन्होंने सारे गरल को कौन से आधार पर बनाई गई? या तो किसी 420 में ही सारा पी लिया और जो कुछ भी गरल हुए आराधना करनी चाहिए। आश्चर्य की बात है कि है? मेरी कुछ समझ में नहीं आता कि ये प्रथा लोगो ने शास्त्रों में ये बात लिख दी। आज के दिन शुरु संसार का होता है वो अपने अन्दर पीकर संसार को उन्होंने गरल पिया था और आपको भी आज के ठण्डा रखते हैं, संसार को सुख देते हैं। जो कुछ भी दिन हर चीज खाने की इजाज़त है, कि आज आप मर जाती है चीज, खत्म हो जाती है वो सारी ही उनके राज्य में जाकर बसती है और जो बेकार के लोग होते हैं, जो महादुष्ट होते हैं उनके कारागार भी इतने जोर से हृदय चक्र पे खिंचाव पड़ रहा है, जिस उन्हीं के चरण धूलि से बन्द हो जाते हैं। वो लोग सहजयोगी ने आज उपवास किया है मेरे हृदय चक्र बन्धित होते हैं, शिवजी की कृपा से। उनके सिर पर चन्द्रमा का राज्य है, चन्द्रमा स्वत: लक्ष्मी के भाई हैं सहजयोगियों को, सोच लेना चाहिए कि जो दिन और इसीलिए कहा जाता है कि अपने साले को बड़ा ही celebration का है, जिन्होंने गरल पीकर उन्होंने अपने सिर पर रख लिया है। अजीब सा वर्णन कवियों ने किया हुआ है और बहुत सुन्दर उनके सिर पे गंगा का बोझा उन्होंने उठाया हुआ है। वाले हैं । गंगा जैसी गर्ववती को भी उन्होंने जटा में बाँध लिया। इतनी उनकी जटाएं जबरदस्त हैं! मनुष्य में जो अहंकार होता है उसे भी वो अपने अन्दर पी लेते हैं और इसी प्रकार वो संसार की अहंकारी लोगों से रक्षा करते हैं । वो अतुलनीय हैं, उनका कोई वर्णन शब्दों में नहीं कर सकते। लेकिन है। आज खुशियाँ मनाने का दिन है कि उन्होंने सारे उनके अन्दर एक बहुत बड़ा, एक बहुत ही असाधारण एक शक्ति है जो किसी भी देवी-देवता में नहीं हैं- वो है क्षमा की शक्ति। वे दुष्ट से दुष्ट महादुष्ट को भी क्षमा कर सकते हैं, जिन्हें गणेश जी क्षमा नहीं कर सकते, जिन्हें येसुमसीह नहीं क्षमा कर सकते, उनकों भी सदाशिव क्षमा कर सकते हैं। इसीलिए हमेशा जब भी क्षमा माँगनी होती है। मराठी) तो उन्हीं से क्षमा मांगी जाती है। क्योंकि कुछ-कुछ ऐसी बाते हैं जिसे गणेश बिल्कुल नहीं क्षमा कर सकते, जिसे कि हम कहते हैं कि sin against the mother, माँ के खिलाफ कोई सा भी बैठकर उपवास करते हैं घर वाले। कैसे समझाया पाप करना। जितने भी sex पाप हैं उसको श्री गणेश कभी भी नहीं माफ करते। कभी नहीं कर सकते, गरल भी पी लें तो आज आपने बराबर निकाल दिया कि आज तो हम उपवास करेंगे। मेरा आज को खींचे जा रहा है। अन्धाकरण नहीं करना चाहिए के संसार में विजय प्राप्त की, उस शिवजी का जब इतना बड़ा महोत्सव है उस दिन भूखा मरना किसने बताया है? जिस दिन मनुष्य खुश होता है उस दिन ज्यादा ही खाता है। आज तो दो रोटी ज्यादा खाने का दिन है, आज सबने उपवास करके रखा हुआ है। और इसलिए शिवजी सबसे नाराज हैं, और इस चीज को शिवजी भी नहीं माफ कर सकते। तो हो गया आप लोगों का कल्याण। तभी आज कल इतने बड़े-बड़े शिवभक्तों के पहले heart attack आता बहुत ही उनका माने बो सबका गर्व हरण करने अपनी संसार का जो कुछ भी सारा गरल था वो उसे पी लिया जो कुछ भी अहित था, जो भी पाप था, जो कुछ भी दुष्टता संसार में फैली हुई थी सबको उन्होंने शोषण कर लिया, ऐसे शिवजी के महान दिवस पर्व में हमको इस तरह के मनहूस काम करना नहीं चाहिए। गर हम किसी के जन्मदिवस पर उपवास करते हैं तो उसके मरने पर हम लोग क्या खाना खाएंगे? सब उल्टा कारोबार हमारे यहाँ चलता है, कोई मरता है तो ब्राह्मण बैठकर खाना खाते हैं, जब कोई जन्म होता है तो सब लोग ******* जाए, कौन से शास्त्र में इसका आधार है और शास्त्रों में भी महामूरखों ने इस तरह की चीजें भर दी हैं। ू 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-31.txt चैतन्य लहरी अंक : । & 2 2008 30 है? कुछ अभिनव चीज है, कोई बड़ी भारी चीज है, अत्याचार भर दिया है। ये सोच समझ रखना चाहिए कोई विशेष रूप की चीज है। फिर अपने विचार भी बदलने चाहिए, अपनी आदतें भी बदलनी चाहिएं। हमेशा इस तरह से उल्टी बात हम क्यों करते हैं, मेरी समझ में ही नहीं आती और हर एक उल्टी बात ऐसी उल्टी बैठती है कि उससे शिवजी तो उठ और कहेंगे शिवजी खाते थे तो हम भी खा रहे हैं ही गए हैं इस संसार से, और उनको फिर से बिठाना चरस और भंग। शिवजी तो इसलिए खाते हैं चरस मुश्किल हो जाता है। और अगर ज्यादा देर खड़े रहें तो तांडव शुरु कर देंगे, उनका कोई ठिकाना नहीं। जाना पड़ता है तो वो उसे खाते हैं चाहे जिसे भी खा इसलिए सब लोग विचार-पूर्वक समझकर के और लें उनको क्या मतलब है। जैसे कि समझ लीजिए चलें। आज उनका महान, बहुत महान दिवस है। आज से promise करें कि अगले महाशिवरात्रि से बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाएगा, उनका गुणगान किया जाएगा आपको, हो सकता है कि विष्णु जी वो तो शिवजी ही हैं जिन्होंने गरल पी लिया और जैसे नहीं उनको पसंद अलंकार, उनके अलंकार वो हैं जो दुनिया भर के भंग पीकर के संसार के और हैं। उनके लिए आप भभूत लगाइए, दुनिया भर की राख उनको चढ़ा सकते हैं आप, उस सब चीज ये भंग कहां dump की जाए? तो उनके अन्दर भर को वो तैयार हैं लेकिन उन्होंने उपवास करने की बात कही हो, ये तो मुझे पता ही नहीं है । व्रत करना जिसको देखो उसने अपने शास्त्र में दुनिया भर का 1. कि आज के दिन उपवास का क्या अर्थ है? सब लोग मिठाई खाएं क्योंकि आज मन्दिरों में बैठे हुए लोग मिठाई खाना चाहते हैं तो मिठाई चढ़ाई जाए। अभी रात भर भांग पीऐंगे बैठकर और चरस खाएंगे और भंग क्योंकि उनको जब subconscious में aeroplane है, उससे आपको कहीं जाना है तो आपको पहले पाइलट तो होना चाहिए। तो वो भंग पीकर के और चरस खा के शिवजी नहीं हो सकते जितना भी भंग है उनका शोषण कर रहे हैं। ताकि दी जाती है कि भई तुम शिवजी हो तुम पी लो, तुम गरल पी लो, तुम भंग पी लो। तो चले सब लोग भंग पीने आज कि आज भंग पीकर सबलोग शिवजी हो रहे हैं। आप में से कितने लोग शिवजी शब्द ही बदल गया है। व्रत का मतलब उपवास करना हो गया है। ऐसे व्रत करना चाहिए जैसे जिस time राम चन्द्र जी वनवास गए, तब व्रत करना के पांव के धूल के बराबर हैं? वो तो भंग इसलिए चाहिए। जब repentence की बात हो, जब पश्चाताप हो रहा हो, उस समय का उपवास समझ में आता है। अब क्या आपको पश्चाताप हो रहा है कि हैं, दुष्ट भी होते हैं। इनको कहाँ रखा जाए? घर के उन्होंने गरल पी लिया? कुछ सोचने की बात है। सारे संसार की विपत्ति, सारे संसार की आफें, सारे संसार का गरल आज के महान दिवस में उन्होंने पी लाओ मैं दुनिया भर का गरल पीता हूँ। इसलिए लिया। इसलिए आज को महाशिवरात्रि कहते हैं। सारी रात उन्होंने ले ली, अपने अन्दर| रात्रि का जितना भी उनका, जितना भी darkness संसार की चरस पीते हैं, तुमसे बड़े महामूर्ख तो संसार में कोई है उसको उन्होंने अपने अन्दर समा लिया। अब मैं आपके लिए कोई force तो करती नहीं हूँ लेकिन आप करके देखिए। अभी आप निश्चय करें इसी वक्त कि अगले महाशिवरात्रि से हम उपवास बिल्कुल नहीं करेंगे और vibrations देखिए कितनी जोर से पीते हैं कि उनके अन्दर रखा ही जाता है सारा भंग का स्टोर। संसार में भंग होती ही है, राक्षस भी होते अन्दर आप के यहाँ गर ऐसी चीज हो तो उसे रखने की भी व्यवस्था होनी चाहिए। शिवजी ने कहा उनके पास ये चीज़ stored रखी हुई है कि भई तुम रखे रहो। तो आप लोग जो उनके नाम पर भंग और है ही नहीं। एक सोचना चाहिए सहजयोगियों के लिए कि आपको vibrations तो कभी आए नहीं, आपने अभी जाना नहीं कि ये चीज क्या है, ये क्या आपके अन्दर से बह रहा है, ये क्या आपके अन्दर हो रहा ु आती हैं, और माफी मांगिए। ৩৩ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-32.txt परम तत्व पाने का विशेष पथ' प्रजापति यज्ञ मुम्बई-2-3-1976 प स्थान है कि आपसे तो देवलोक भी ईष्ष्या करे इस संसार में जो सबसे बढ़कर के माया है वो है पढ़त मूुर्खों की। पढ़त मूर्ख: उन्हें कहते हैं किसी देवों ने इस तरह से उंगलियों के इशारे पर जिनके लिए कबीरदास जी ने कहा है 'पढ़ि पढ़ि जागृति नहीं की है, एक गणेश छोड़ कर। किसी भी पण्डित मूर्ख भए।' और इसीलिए मैं किताब लिखने साधु सन्तों से ये कार्य नहीं हुआ था जिन्होंने हजारों में भी बहुत डरती थी और जब किताब लिखने का सोचा भी है तो भी ऐसे महामूखों के हाथ में वो नहीं लोग पार हो गए हो, पर इशारे पर कुण्डलिनी उठाते पड़नी चाहिए। वो लोग उसी प्रकार हैं जिस प्रकार कोई इन्सान किसी भी देश में नहीं जाता है और ये कहाँ है, और कैसी झूठी बातें सारी दुनियां में बताता है कि मैं वहाँ गया था फिर वहाँ पर ये देखा, फिर वहाँ ये था, वहाँ वो था, फिर वो ऐसा हुआ और फिर किसी ने ये कहा था, उसने वो कहा था। अपनी कोई उनके पास प्रचीती नहीं होती। लंकिन आप जो सहजयोगी हैं मेरा मन यह चाहता है कि बन्द कर दें इस आप सबको इसकी प्रचीती आई है। आपके अन्दर से vibrations फूटे हैं माने ये चैतन्य बह रहा है। भी हैं, प्यार भी करते हैं, दुलार भी करते हैं, कि आपको इसका अनुभव आया है कि चैतन्य क्या चीज़ है। आप एक बड़े भारी स्थान पे बैठे हैं। वो तुम्हारा कहाँ बहक रहा है? आप जानते हैं कि लोग बड़े-बड़े भाषण दे सकते हैं, इसी चैतन्य के आपके हाथ से हजारों लोग ठीक हो रहे हैं और हो बारे में बता सकते हैं, बहुत बड़े श्लोक पढ़ सकते हैं, लेकिन उनको अनुभूति इतनी भी नहीं हुई और जो सर्वव्यापी all pervading जो प्रेम शक्ति है वो वो परमात्मा के राज्य से अभी बहुत दूर हैं। आपकी entry ही चुकी है। उसका एक विशेष कारण है। आपने पढ़ा होगा कि गणेश जी का जन्म सिर्फ देख रही है, आप झूठ बोलते हैं वो भी देख रही हैं। उसकी माँ ने ही किया था। अपनी सृष्टि रचना से और आप माँ की निन्दा करते हैं वो भी वो जान पहले ही उसने एक बेटे को जन्म दिया था। खुद ने ही ये सब किया था इसलिए कि बाद में वो बहुत ही superficially आप रह रहे हैं ये भी वो पिता को जान सकें। और उसको एक विशेष जानती हैं। सहजयोग के प्रति आपका commitment शक्तिशाली बनाया कि उसकी ओर ब्रह्मा, विष्णु, महेश कोई भी नज़र उठाकर के भी न देख सके। इतना वो शक्तिशाली था। एक विशेष रूप का वो घड़ी, हर पल आपको guide कर रही है। तो भी बालक था और उसी की पुनरावृत्ति आज इस कलयुग में हुई है। आपको भी मैने अपने सहस्रार से जन्म दिया है, एक विशेष रूप से। इसीलिए रहे हैं। छी, छी, छी, छी। बार-बार मैं आपसे कहती आपके अन्दर vibration छूट रहे हैं। लेकिन आपमें हूँ कि आपका स्थान पूजनीय है। आपमें से एक-एक से कितने लोग है जो अपनी इज्जत करते हैं ं? अपने की पूजा करनी चाहिए। ऐसा आपका स्थान है और को समझते हैं कि कोई विशेष चीज हमने पाई है? और उसी विशेष तरह से हमें रहना चहिए, अपने लोग, इस तरह से काम करने लग जाएं तो दुनिया जीवन को उसी तरह से बनाना चहिए। आपका स्थान देवलोक से भी ऊँचा बना है। आपका वो साल की तपस्या की हुई है। इतना ही नहीं कि तुम हो, और हर एक की कुण्डलिनी को जानते हो कि है। लेकिन इतनी बड़ी चीज पाकर के भी आप लोगों ने अपनी इज्जत नहीं की। या तो हमारा नसीब खोटा है कि हमें खोटे ही सिक्के मिले, वो चल ही नही सकते। आधा-अधूरापन इतना अधिक है, इतना अधिक है कि कभी कभी सहजयोग को अब खत्म करें। डाँटते भी हैं,, कहते सिर्फ जरा steady हो जाओ, steady हो जाओ। चित्त सकते हैं। आपकी बीमारियाँ भाग गईं। परमात्मा की आपके साथ-साथ हर समय घुम रही है, आपको सहारा दे रही है, आप गलतियाँ भी कर रहे हैं, वो रही है, और आप बहुत छिछोरेपन से रह रहे हैं और माँ बड़ा ही खराब हैं। ये भी वो शक्ति जानती है तो भी, तो भी आपको सहारा दे रही है, हर जगह, हर आप misguided हैं, आप रुपया पैसा और दुनिया भर की सत्ता उसके लिए इस तरह से छोटे होते जा भूतो न भविष्यति- इस तरह ऊँचे पर बिठाए हुए क्या कहेगी? आपका इतिहास में क्या नाम जाएगा? आप तो जानते हैं कि आपमें से बहुत लोगों ने पार 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-33.txt पा अंक : 1 & 2 - 2008 चैतन्य लहरी 32 तंल बार-बार आपसे कहा है आप लोग सीख जाएं। आज प्रजापति का, ब्रह्मदेव का यज्ञ किया गया है। आप जानते हैं कि मनुष्य पाँच elements से बना हुआ है और ये जो पाँच तत्व हैं, उन तत्वों की है तक किया हुआ है। और फिर गिर गए।! जिस पथ पे इतने ऊँचे आप हैं उससे गिरना बहुत आसान है। सांसारिक चीजों में सहजयोग नहीं देखना है। परमात्मा के स्वरूप को जानने के लिए आप यहाँ आए हैं। हमें कितना रुपया मिला इसके बाद में, या हमारा करने का ही मतलब ब्रह्मा का पूजन करना क्या लाभ हुआ इसके बारे में, ये सांसारिक तुच्छ क्योंकि ये उनके आयुध हैं और ये भी प्रजापति को चीजों का महत्व करना सहजयोगी के लिए शोभनीय भी माँ ने ही दिए हैं। माँ के देखने ही से प्रकाश नहीं है। आप हमारे पास परमात्मा को माँगने आए हैं हुआ था, इसीलिए तेज का जो तन्मात्रा है या जो element है वो तैयार हुआ, या जो essence of element कहिए, तन्मात्रा का मतलब। मोँ ने जब के लिए आए हैं आप नहीं, जो साक्षात ज्ञान है, खुशबू ली, उसी सुगन्ध से ये पृथ्वी बनीं। इसी तरह से पृथ्वी तत्व तैयार हुआ। माँ के बोलने से ही sound का तत्व तैयार हुआ है, इसे नाद कहिए। इस प्रकार तन्मात्राएं जो हैं वो तैयार हुईं और जो लिए और अपने घर द्वार की चिन्ताएं। आप विशेष तन्मात्राओं से फिर element तैयार हुए हैं। ये सब स्थान पर बिठाए गए हैं, जो लोग विशेष होएंगे उन्हीं प्रजापति का कार्य है, ब्रह्मदेव का कार्य है और ब्रह्मदेव इसीलिए नहीं पूजे जाते हैं, उनको पूजा नहीं जाता। उसका कारण ये है कि वो संसार का सब पूजन सांसारिक चीजें माँगने के लिए नहीं आए। न ही कुछ मेरा भाषण सुनकर के झूठा ज्ञान इक्ट्ठा करने अन्दर से देखिए, जब भी आप ज्ञान मॉगिएगा अन्दर से ज्ञान बहेगा, हरेक चीज़ स्पष्ट दिखाई देगी कि यही ज्ञान बहुत हो गया अपने बाल बच्चों के है। से विशेष कार्य घटित होएंगे। मानव से अतिमानव हो गए हैं। आपके लिए यज्ञ भी दो किए थे पहले भी आप जानते कि पूरा प्रयत्न हम कर रहे हैं कि आपके सब अंग कमसकम परमेश्वर को समर्पित हो जाएं। उसी को की जरूरत नहीं है, वो अपनी जगह बैठे वो काम समर्पित करना है अपने को, उसके लिए जो भी स्वच्छता होती है जैसे कि मां जब बाप घर आने वाला होता है तो बच्चों को कैसे धो-पोंछकर के. साफ करके, सामने presentation देती है। वही करने के लिए बड़े प्यार से हम लोग ये यज्ञ कर रहे हैं। अपने सारे चक्रों में से सब जो बहने वाली होती है। लेकिन यज्ञ प्रजापति का करना जरुरी है. सारी शक्तियाँ हैं उससे सब मैं आपको प्लावित कर सकती हूँ। लेकिन आप कभी-कभी मुझे ऐसे जान पड़ते हैं कि मैं किसी दीवार से बात कर रही हूँ. जिन्हें तन्मात्राएं कहते हैं, वो जागृत होकर के किसी पत्थरों से मैं अपना सर टकरा रही हूँ। दुष्ट महादुष्ट, मेरी बात सुनने नहीं वाले। ऐसा नहीं होना चाहिए। सहजयोग में गहरा उतरिए। सारे संसार का सुख एक तरफ है और परमात्मा के चरणार्विन्द का सुख एक तरफ। उस परम सुख को पाने के बाद मनुष्य संसार के किसी भी सुख की ओर देखता है। उसके भी कारण हैं। शास्त्र में जो कुछ विधि नहीं, जिस तरह मनुष्य अमृत को पा लेता है उसके लिखी हुई है उन सबके बहुत गहरे कारण हैं बाद वो क्या ये मृत चीजें पीने वाला है? उसकी इसलिए जो कुछ लिखा है उसको गर आप शक्तियाँ अनेक आपके लिए सज्य हैं, आपके हाथ से बह रही हैं, आपको समझ में नहीं आता कि उसमें अन्धता नहीं है। जबकि आपके पास vibrations किस तरह से ये कहाँ पर काम कर रही हैं। मैंने हैं आप स्वयं vibrations से इसकी जांच पड़ताल कार्य करें। आपका जो शरीर है, आपका जो elements हैं का काम है वो कर रहे हैं। उसके लिए उनको पूजने कर रहे हैं । आपको सिर्फ दों ही चीजों को पूजना चाहिए- एक तो शिव को जिससे आपका existance बना रहे, आपका अस्तित्व बना रहे, आपके प्राण बने रहें और दूसरा आपको विष्णु को जो कि आपको evolution देता है जिससे आपकी उत्क्रान्ति कि आपके अन्दर के जो पंचभूत हैं, आपके अन्दर के जो तत्व हैं, इन पंच महाभूतों के जो तत्व हैं, आपको भी उसका यश प्रदान करें। ये पहले यज्ञ सिर्फ प्रजापति का ही होता था और बाद में विष्णु जी का भी शुरु हुआ। शिवजी जी का भी यज्ञ होना चाहिए, ऐसा लोग सोचते हैं लेकिन उनका यज्ञ नहीं होता है। उनका रुद्र होता हुआ follow करते हैं तो कोई उसमें blindness नहीं है, 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-34.txt अंक : 1 & 2 - 2008 33 चैतन्य लहरी कर ले सकते हैं कि जो ये विचार है या जो यहाँ आप परम तत्व को पाने के लिए, उसमें घुलने किताब में लिखा है ये ठीक है या नहीं। बहुत सी के लिए आए हैं। यहाँ पैसा कमाने के लिए आप जगह कुछ-कुछ घुसेड़ दिया है, हर एक पुस्तक में नहीं आए। यहाँ किसी तरह का भी व्यवसाय करने ये किया है, उसको भी आप देख सकते हैं अपनी के लिए आप नहीं आए हैं। उसमें कोई भी bargaining vibrations पे ऐसे कौन जान सकता है कौन आदमी नहीं है। सिवाए एक चीज कि आपको मैं परमतत्व पार है, कौन नहीं है, कौन realized है, कौन नहीं से परिचित कराऊँ। फिर मुझे उसके लिए आपको है? कौन God realized है, कौन ordinary realized है, कौन जीवन मुक्त है? सबकुछ आप vibration पे पड़ेगा और कभी प्यार करना पड़ेगा। गर आप इस जान सकते हैं। आप हर एक चीज vibration से जान सकते हैं। जो अचेतन में है, जो unconscious में है, मेरे पास आए हैं तो ठीक है, नहीं तो मुझे क्या? मैं मनुष्य ने कभी नहीं जानी। उनकी एक-एक बारीक-बारीक चीज आप समझ सकते हैं। Vibrations दूंगी। तुम अपनी गरज़ से आ रहे हो, मेरी गरज़ से के भी एक-एक ढंग होता है, एक-एक तरीका होता नहीं आए। मेरी भी गरज है क्योंकि माँ को बच्चों है, एक-एक उसकी लय होती है अलग-अलग। लेकिन अभी तो basis ही नहीं बन रहा है आप लोगों का, तो मैं कैसे आगे की बात सिखाऊं? अभी तो आप पहली ही class में बैठे हैं, उसी में एक मेरे मोहमयी और प्रेम करने वाली है। आज के यज्ञ में को नोच रहे हैं, एक मेरे को घसीट रहे हैं, एक मेरे पूर्ण चित्त से, पूरे अपने को समर्पित करते चलिए से झगड़ा कर रहे हैं, बुद्ध जैसे। अपना basis पहले और ये वाला यज्ञ विशेष रूप से पंचतत्वों का होने ठीक कर लो फिर इस vibrations और एक-एक चीज के permulation combinations से आप हर चीज समझ सकते हैं जो आप जानना चाहें। है। गुर जड़तत्व स्वच्छ न हो तो बाकी का कुछ नहीं इतना ही नहीं, आप स्वयं भी उठते जा रहे हैं। जैसे जैसे मनुष्य उठता जाता है वैसे-वैसे वो ज्यादा जानते आपके जड़तत्व स्वच्छ हो जाएंगे तब हमारा कार्य जाता है। आप जानते हैं कि जब आप नीचे खड़े थे बहुत सुचारु रूप से होगा। तो आपको इतना नहीं दिखाई दे रहा था। इससे और ऊपर जाएंगे तो और आपको दिखाई देगा और गर से अलग ऐसे होंगे, ऐसे तो आप जानते हैं कि 19, और ऊँचे चले गए तो और कुछ दिखाई देगा। जब आप चन्द्रमा पर चले जाएंगे तो वहाँ से पृथ्वी और है काबाजी, जहाँगीर हॉल में। उसमें से सर्ेरे का तरह की दिखाई देगी वो पूरी की पूरी घूमती हुई आपको दिखाई देगी, उसका पूरा भ्रमण आपको दिखाई देगा। लेकिन यहाँ बैठे-बैठे तो पूृथ्वी लग रही है जैसे कि चोकोर हो। इसलिए जैसे-जैसे रहें हो, कैसे भी हो, कहीं भी हों, कोई बहानेवाजी आदमी उठते जाता है, उठने का तरीका ये कि एक ही है, एक ही है अपने बोझे उतारते जाइए, सब बोझों को उतार दीजिए। जैसे-जैसे बोझे उतरते जाएंगे आप अपने आप ऊपर उठते जाएंगे। फालतू को लेकर आएं, अपने मित्रों को लेकर आएं, दोस्तों के बोझे मेरा बाप ऐसा मेरी माँ वैसी, मेरा भाई वैसा, उसको चाहिए, इसको चाहिए, मेरी सत्ता है, मेरा पैसा है, सब मूर्खता है, misidentifications हैं। लेकिन handbilis की जगह अगर ऐसे कागज़ छप आपको गर पाना है तो पाइए और अगर नहीं पाना तो माफ कीजिए। दोनों चीजें नहीं चल सकती। कुछ डाँटना पड़ेगा, नाराज़ होना पड़ेगा, कभी सिखाना चीज के लिए उत्सुक हैं और यही चीज माँगने आप तो औलिया हूँ मैं वैसे ही अपनी किताब बन्द कर की गरजू होती ही है। लेकिन ये माँ अजीब है, निर्मम भी हैं, बड़ी निर्मम है। एक दम से clearcut सब को बन्द भी कर सकती है। और उतनी ही के कारण आप लोगों की समझ में ज्यादा आएगा। ये जड़तत्व पं है, लेकिन जड़तत्व भी जरूरी होता और बनता। और आपके जड़तत्व ही गड़बड़ हैं। जब शायद अब एक दो ही प्रोग्राम आप लोगों 20 और 21 को तीन दिन हमारा प्रोग्राम होने वाला ime ध्यान के लिए होगा और शाम का time भाषण आदि वगैरा। सरवेरे ध्यान और curity होंगे। तीन दिन के लिए पूरे dedication के साथ, आप कहीं भी रह मत करिए। आप अपने ही से बहानेवाजी कर रहे हैं। तीन दिन जैसे कोई शादी में जाता है, बड़ा भारी यज्ञ है। उसमें अगर आप आएं, पूरी तरह से, औरों को लेकर आएं, इसका प्रचार करें, घरों-घर जाएं। हम तो handbills भी छपाने की बात कर रहे थे जाएं तो आप लोग ले जाइए उसको लिफाफे में डाल के सबके यहाँ भेज दीजिए, जिनको आप 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-35.txt अंक :। & 2 2008 34 चैतन्य लहरी बहुत कुछ पहले भी कहा है, अब भी मैने कहा है। कितनी चीजें अन्दर गई, भगवान जाने और कितनी चौजें बाहर ही रुक गईं, भगवान जाने। इस पर विचार करें। माँ बार-बार कहती है, हर तरह से सर फोड़-फोड़के भी कहें तो भी गर समझ में नहीं आया तो हृदय खोल-खोलकर कहती है। जो कुछ उससे बनता है, पूरी तरह से आपकी कुण्डलिनी सोचते हैं वो आना चाहें। जिस तरह से भी हो सकता है, लोग तो आ जाते है, लेकिन उसमें से कितने लोग असलियत से आते हैं? वही पाएंगे, जरा सा भी उनमें खोट होएगा, उनको नहीं भगवान देने वाले कुछ भी यहाँ कोई बैठा नहीं आप लोगों की चापलूसी करने के लिए। ये कोई politics थोड़े ही न है । आप मुझे वोट नहीं देने वाले, मुझे आपको वोट देना पड़ेगा। ये उल्टी बात है। मुझे आपको को पूरी तरह से जागृत करके और उसको सहस्रार certificate देना पड़ेगा। गर मैं आपसे नाराज हूँ तो भगवान भी आपसे नाराज हैं और सहजयोग आपसे नाराज़ है। इसलिए आपको मझे खुश करना पड़ेगा, मुझे प्रसन्न करना पड़ेगा। मुझे आपको वोट देना हो, आपके गर कान ही बंद हो, और इस प्रकार पड़ेगा, उल्टा मामला चल रहा है। घर से पैसा लगाकर भक्त लोग इकट्ठे करना अपने से नहीं होता। इसलिए अब याद रखिए कि गर आपको कहीं भी आना है, आपको अगर प्रोग्राम में आना है पाँच यन्त्र में खोलने वाली हूँ। प्रयत्न करूंगी। आप तो पूरी तरह से सादगी के साथ आइए, innocence के साथ आइए और हमें इसमें पाने का है ये हमारे खोलो। प्रजापति से यही कहना कि हमारे सोचकर के वहाँ आना है। और कोई भी अपने घर के problems लेकर मत आइए। बहुत गलत तरीका है। ठीक है बीमारियाँ ठीक हो जाती हैं, बीमारियाँ बाहर रख दो। सब व्यर्थ चीजें बाहर रखकर के यहाँ हम ठीक कर देते हैं। लेकिन इतने क्षुद्र लोगों के लिए सहजयोग नहीं है जो रात-दिन अपने घर में ही घुसे रहें। परम की बात पाने के लिए उसे dedication के साथ आइए, उसको समझने के लिए आइए और सबलोगों से कहिए कि वो पाना बहुत जरुरी है। से पूरी तरह से साफ करके, अत्यन्त सुचारु रूप से, उसमें भी वो पुष्प-वर्षा करती है। लेकिन आपकी अगर नाक ही बंद हो, आपकी गर आँख ही बंद आपका सभी कुछ जो कुछ जानने के यन्त्र हैं, सब आपने बन्द कर लिए हैं तो मैं सहजयोग से क्या दे सकती हूँ? इसीलिए आज के यज्ञ में आपके यही भी अपने को समर्पित करें और कहें कि हे प्रभु यंत्र खोलो और हमें कुछ नहीं चाहिए। इस वक्त सब अपनी फालतू की चीजें अपने जूतों के साथ बैठो और अनन्त का जो प्रेम है उसको पाओ। परमात्मा आपको धन्य करें। (मूल आडियो के अनुरूप) ति ा चिड् कता ৩এ ुध िला ही 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-36.txt निर्विचार में रहो मुम्बई-18-12-1977 परम पूज्य माताजी श्री निर्मला देवी का प्रवचन मिसाल के तौर पे। वो मेरे पास आता है माताजी ये शराब पीता हैं इसकी शराब छुड़ाओ। उसकी कुण्डलिनी जागृत करते ही उसके अन्दर की cosmic दशा एसी हो जाती है कि वो शराब पीता है तो उसको उल्टी होती है। फिर ये भी हो सकता है कि शराब की भी जो मादक शक्ति है उसको भी खत्म कर सकते हैं। जब शक्ति पे बैठे हैं तो हर तरह की शक्ति को ले सकते हैं। जितनी भी तत्व शक्ति है उस सबको खत्म कर सकते हैं। लेकिन आप जो ये अपने छोटे लोगों को बुरा लगेगा इसलिए मराठी में तुम ही बोलने दो। मैं कह रही हूँ कि तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं उन प्रश्नों को तुम अचेतन में छोड़ो, वो मेरे पैर में बह रहा है। माने ये कि कोई भी प्रश्न है, अब तुमको अपनी लड़की का प्रश्न है समझ लो, उसमें खोपड़ी भिड़ाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न है आप यहाँ छोड़ दो, उसका उत्तर मिल जाएगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इस चीज से लाभ होएगा वो नहीं बात। जो परमात्मा सोचता है, तुम्हारे लिए जो हितकारी चीज है, वो से दिमाग से हरेक चीज को सुलझाने का प्रयत्न घटित हो जाएगी। वो तुम कर भी नहीं सकती हो। इसलिए उसको छोड़ दो तुम क्यों बीच में टंगड़िया निर्विचार। मेरे पैर पे भी लोग रहते हैं तो भी वो तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो? तुमको परेशान होने की कोई जुरूरत नहीं। तुम छोड़ तो दो, से कम मेरे पैर पे तो विचार छोड़ दो। बहाँ पे भी जो तुम्हारे सारे प्रश्न को हल करने के लिए पूरी इतनी कमेटी बैठी हुई है उनके पास छोड़ो तुम। सहजयोग में यही तो कमाल है कि सर का बोझा उतर गया उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होएंगे, ऐसे कमाल होएंगे कि बस। लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है। आखिर तक वो ऐसा ही सोचता रहता है कि नहीं मुझी को करना है, मुझी को करना है। और सोचते रहिए| एक के ऊपर एक ताना बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिए, आखिर में आप पाइएगा कि आप कहीं भी नहीं पहुँचे, आखिर पागल खाने में ही आप जाइएगा। आपके प्रश्न हल करने के लिए रखो। मन की भी बहुत सारी बीमारियाँ होती हैं। बहुत बड़ी कमेटी बैठी हुई है। उसमें पाँचों तत्वों के अधिनायक बैठे हुए हैं, ब्रह्मदेव। सारे धर्म के बनाने वाले बैठे हैं विष्णु और सारे संसार की स्थिति लेकर के और लय लेकर के बैठे हैं शंकर जी। उनको भी तो कभी -कभी चांस दो, कि तुम्हीं लोग सारे प्रश्न को ठीक करोगे? और जैसे ही आप निर्विचार में होना शुरु कर देंगे, आप देखिएगा आप के अन्दर ये तीनों ही शक्तियाँ अपने आप बन जाएंगी। अपने आप सुलझ जाएंगी-धर्म, अर्थ और काम - बिल्कुल वो ठीक से अपनी अपनी जगह बैठ जाएंगी| निर्विचारिता में रहने से आपके अन्दर के जो प्रश्न है उसमें cosmic change आता है। ये कोई अंदरूनी घटना घटित होती है। उसके सूत्र पे घटना होती है। जैसे एक आदमी समझ लीजिए, शराब पी रहा है करते हैं, उसी में गड़बड हो जाती है। बिल्कुल विचार में रहते हैं। मुझे इतना आश्चर्य होता है। कम उनका चलता रहता है विचार। मैं कोशिश कर रही हूँ, हाथ पैर चला रही हूँ, ये कर रही हैूँ, सारा ताण्डवनृत्य हो रहा है और ये लोग इधर विचार ही कर रहे हैं! कम से कम मेरे पैर पे विचार छोड़ना आना चाहिए। फिर धीरे-धीरे ये आदत बनते जाएगी निर्विचारिता की। बस एक छोटी-सी चीज है कि निर्विचार में रहना सीखो, कोई सा भी आपका प्रश्न हो निर्विचार में रहो। ऐसे मैं आपको सुझाव देती रहती हूँ- आपका ये चक्र क्यों पकड़ता है, वो चक्र क्यों पकड़ता है, छोटी-छोटी बातें हैं उसको समझ लेना चाहिए। आपका शरीर ठीक रखो, मन ठीक औरतों को बीमारी होती है कि आदमियों के पीछे में मरो खास करके, आदमियों को और बीमारियाँ होती हैं। मन की अनेक बीमारियाँ होती हैं। उधर जरा-सा चित्त रखो, निर्विचार में रहो। एक छोटी-सी चीज करने से आपका जो स्वयं हृदय में बैठा हुआ 'स्व है उसका प्रकाश फेलना शुरु होगा। अब ये ही प्रकाश है जो आपके अन्दर vibration की तरह से बह रहा है। ये आपके अन्दर बसा हुआ, परमात्मा का जो अंश है 'स्वः ' (Self) इसका प्रकाश सारे संसार में जाता है और लौट के आपके पास आ जाता है सारा झोली में। अनेक उसकी लहरें चलती हैं। गोल गोल घूमके आपके हृदय में आ जाता है। अपनी जो बाती है उसे ठीक रखो, आपका शरीर ठीक रखो, जो आपका दीप है। आपकी जो शक्ति हुए 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-37.txt चैतन्य लहरी अंक :। & 2 -2008 36 है तेल, दिमागी जमाखर्च जो है उसमें खर्च न करो। लौ को सीधे लगाओ। जो लौ के ऊपर का हिस्सा है मूर्ति थोड़ी आपके vibrations जानती है, वो तो उसको माँ से चिपका लो। उसके पैर में बांध दो। सीधी की सीधी लौ निर्विचारिता में निर्भीकता से हो रहा है? आप तो अपने हाथ भी चला सकते हैं। जलती है। और जब ऐसा आदमी कहीं खड़ा होगा दूसरे को आप जागृति दे सकते हैं, किसी के चक्र तो उसकी तेजस्विता देखकर लोग कहेंगे कि भई तुम्हारे गुरु कौन हैं? ये तुमने किससे पाया? यही सहजयोग के लिए, आप लोगों को करना है। जहाँ में बम्बई सेंटर में बहुत काम हुआ है, इसमें कोई तक हो सके निर्विचार रहें। हम तो धक्का दे ही रहे हैं कुण्डलिनी को, आपको भी वहाँ रखने की कोशिश कर रहे हैं, आप भी जरा कोशिश करें| कोई विचार नहीं आना है। और अपना माथा किसी है। जितना आप गहरा उतरंगे उतना ही गहरा काम के आगे मत झुकाना। याद रखना किसी के आगे जाकर माथा नहीं झुकाना है। कोई भी हो। बहुत से सहजयोगी लोग सहजयोगी के आगे माथे झुकाते हैं। ऐसा मैंने देखा है। ये सब फालतू की बातें करने की जरूरत नहीं हैं। मूर्तियों vibrations ठीक हों, ठीक है। मूर्तियों से आप बहुत बड़ी मुर्तियाँ हैं, आप स्वयं एक मंदिर हैं। क्या वो उसमें से vibration बस आ ही रहे हैं, बस और क्या खराब हों, उसको आप ठीक कर सकते हैं। मूर्ति तो वहाँ बैठी सिर्फ vibration ही छोड़ रही है। सहजयोग शक नहीं और लोगों ने बहुत अपने को ऊँचा उठा दिया है। और वैसे भी महाराष्ट्र में बहुत काम हुआ है, एक छोटे से गांव में, राहुरी में बहुत काम हुआ होगा। अपने को बहुत ज्यादा लोग नहीं चबाहिएं, थोड़े ही लोगों से काम बन जाएगा। लेकिन जो भी हों वो पक्के हों। (मराठी प्रवचन- में भी देख के जिसके (मूल आडियो के अनुरूप) **** (शेष भाग पृष्ट 27 से.....) घूमने अकले नहीं गए, आपको आश्चर्य होगा, लेकिन कुछ मुझमें कमी नहीं हैं, में तो मस्त हूँ। किया है जो आनन्द लोग देखकर के सोचें कि हाँ मुझे कोई नहीं और उनमें भी कोई कमी नहीँ है। गर ये चीज़ समझ ली जाए कि हमारी आत्मा से ही हम आनन्द को प्राप्त कर सकते हैं और जिस सुख को देखकर के मैं ही खुश हो जाती हूँ। मेरे बच्चे इतने हम सोचते हैं वो विनाशी सुख है। तो जब तक आनन्द में रहना है आनन्द में रहो। ये चीज नहीं की, वो चीज नहीं की, ऐसा नहीं किया, दोनों का भी कहना ये दुख का कारण है। आज इसलिए में हैं अब बदल रही है। जहाँ पर दोस्ती नहीं, आपस बता रही हूँ कि मनुष्य निसंग में आ जाए, निसंग में बिल्कुल, कोई भी चीज उसको न रोके, जहाँ किसी को नीचा कर, एक को ऊपर कर, उस जगह ये भी चीज़ की लालसा, किसी भी चीज़ की इच्छा उसको न दबाए। तब कहना चाहिए कि वो सहजयोगी दोस्ती, प्यार के लिए प्यार, इससे बढ़के और माँ हैं। तब वो सहजयोगी हो गया। जहाँ वो किसी भी को कुछ नहीं चाहिए। ये जिस दिन हो जाए तो मैं इच्छा से- पूरा नहीं, ये चीज नहीं हुई चलो दूसरी चीज, वो चीज़ नहीं हुई चलो दूसरी चीजु, ऐसा जो है उसका सब मुझे फल मिल गया। आशा है, आज मस्त रहता है आदमी उसको कहना चाहिए वो सहजयोगी है। और आशा है इस दिल्ली शहर में आप इस तरह के लोग तैयार होने वाले हैं और होएंगे क्योंकि अब हमारा आश्रम बन गया है और आज इस शुभ अवसर पर हमने शिवतत्व को प्राप्त साहब आनन्द में है, और आनन्द की जो लहर होती हैं एक आपस में जो एक उसका फैलाव होता है आपस में खुश हैं, इतने प्रेम से बैठे हैं और एक दूसरे का मज़ा उठा रहे हैं । यानि जब इन लोगों की दोस्ती देखती हूँ तो ऐसा लगता है कि ये दिल्ली जो में इसको काट, इसको खींच, इसको ये कर, एक दोस्ती का वातावरण और इतना शुद्ध, दोस्ती के लिए कहूं कि इस आश्रम बनाने का और मेरी जो मेहनत आप अपने शिवतत्व को स्थापित करें। परमात्मा आपको धन्य करें। आडियो के अनुरूप) मूल 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-38.txt सहजयोग की एक ही युक्ति है। नवरात्रि, मुम्बई, 30 सितम्बर, 1979 आपके अन्दर में परमात्मा की शक्ति ज्यादा बड़ा भारी कार्य एक जमाने में हो गया है जबकि बढ़ती जाएगी। यानि आपका caliber जो है वो wider होते जाएगा और आपके अन्दर ज्यादा शक्ति के अनुचर सताया करते थे। आज भी संसार में बढ़ती जाएगी। अब जब ये ज्यादा शक्ति आपसे बढ़ शैतानों की कमी नहीं है, दुष्टों की कमी नहीं है, रही है तब इस शक्ति को भी उपयोग में लाना राक्षसों की कमी नहीं है। और इनके जो राक्षसी चाहिए। अगर शक्ति बढ़ती गई और आपने उसको उपयोग में नहीं लाया तो हो सकता है कि थोड़े दिन बाद ये caliber फिर छोटा हो जाए। अब आपको घर जाके बैठना है और सोचना है, मनन करना है कि हम किस तरह से सहजयोग को बढ़ा सकते हैं। किस-किस जगह हमारा स्थान है, कोन लोग हमें से लोगों ने इस आत्मज्ञान को पाते वक्त अपने मानते हैं, उनकी लिस्ट बनाइये। कौन-से ऐसे areas हैं जहाँ हम जाकर के इसको प्रस्थापित कर सकते राक्षसी आक्रमण की वजह से आ गईं थीं, उनसे भी हैं। उसके लिए जो भी आपको जरूरतें हैं, हमारे अलग सेंटर हो गए हैं, आज मैंने कोलाबा में भी सहजयोग में आप स्वयं भी जागृत हो गये हैं इतने एक सेंटर खोल दिया है कफकैसल में। और इस तरह से हरे जगह एक-एक सेंटर अब आपके लिए ऐसे मैं भी नहीं सोचती थी और इतने थोड़े समय में हो गया है और आप गर कहीं खोलना चाहते हैं तो वो भी आप देख लीजिए। आपके रिश्तेदार, आपके पहचान वाले, आप जहाँ पे कार्यान्वित हैं वहाँ, कितने लोगों को आप सहजयोग में ला सकते हैं उनको लाकर के और इस संसार का कल्याण करने का है। सारी humanity का अपने को कल्याण करना है और आप जो आज यहाँ बैठे हुए हैं ये योग में पाया है, आप लोग योगी हो गये, आप लोग उसके पाये हैं आपकी जिम्मेदारी बहुत ज्यादा है । अब योगी हैं। आप ordinery लोग नहीं हैं। सर्वसाधारण और मेरे ख्याल से सहजयोगी अपनी जिम्मेदारी नहीं लोग नहीं है। आप योग में आ गये। अब आप योग समझते। 20-25 आदमी गर जिम्मेदारी लेकर के भ्रष्ट नहीं हो सकते। आपको उस योग के अनुसार चलें तो सहजयोग नहीं चल सकता। हर आदमी को चलना चाहिए। माने दो चार आपमें जैसी आदतें हैं चाहिए की अपनी-अपनी जिम्मेदारी समझें, अपने-अपने विचार से ये तय कर लें कि हम सहजयोग किस तरह से बढ़ाएंगे, कहाँ तक ले ज्यादा बोलना , बहुत कम बोलना, ये भी ठीक नहीं जाएंगे इसके लिए आप स्वयं प्रबुद्ध हो गये हैं आपको मुझे बताने की जुरूरत नहीं हैं। आप सिर्फ पे नहीं जाना है। कोई आदमी हर समय पैसे की बैठ कर इस पर विचार करें। आप जानते हैं कि बहुत से लोग कभी भी भाषण नहीं देना जानते थे. वो लोग भाषण देने लग गए हैं। इतनी शक्ति आप के अन्दर तब आएगी जब आप दूसरों को देंगे, नहीं निर्विचारिता में आना चाहिए। अपनी निर्विचारिता तो आपकी शक्ति कम हो जाती है। ये सबने जाना को आप धीरे-धीरे बढ़ायें। जितना निर्विचारिता है कि आपकी शक्ति कम हो जाती है गर आप का, विलम्ब का स्थान बढ़ता जाएगा उतने ही दूसरों को शक्ति न दें। मैं ये नहीं कह रही कि आप अपने भक्तों को संरक्षित किया। ये भक्त लोगों को हर तरह से दुष्ट राक्षस आदि शैतान विचार हैं और जो इनके गलत तरीके हैं उनसे आज सारा ही संसार ज्यादा ही लिप्त नजूर आ रहा है। और इसीलिए इनमें से निकलने के लिए भी मनुष्य अधिक प्रयत्न कर रहा है। इस नवरात्रि में न जाने कितने ही लोगों का Realisation हुआ है और बहुत अन्दर की जो कुछ भी तकलीफें थी, जो कि इन छुटकारा पाया। लेकिन सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों का जागृत होना कभी भी संभव हो सकता है इतने लोग जागृत हो गये ये बहुत बड़ी एक हम लोगों ने मंजिल पाई हुई है। इस मंजिल से अब जब देखते हैं तो ऐसा लगता है कि बहुत जल्दी इस साल भर के अन्दर ही बहुत कुछ काम आप सभी लोग कर सकते हैं। आज में आपसे इसलिए बात कर रही हूँ कि आप अब सहजयोगी हैं सब, आपने जरा सा आप Will Power लगायें तो हम शक्ति देने के लिए तैयार हैं, आप अपनी आदतें छोड़ दें। बहुत है। सब चीज में बीच बीच में आना है। कोई अति बात सोचता है या हर समय किसी सत्ता की बात सोचता है उसको भी बीच में लाना चाहिए। अपने मन को बीच में लाना चाहिए, मतलब ये कि 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-39.txt अंक : 1 & 2 - 2008 38 चैतन्य लहरी लोगों की बीमारियाँ ठीक करिए। बीमारी के लिए ठीक है। चलो जो भी गलती हो गई माफ, लेकिन आप मेरा फोटो दीजिए। लेकिन औरों से बात करें. उनको सहजयोग में लायें, उनको Realisation के हूँ तो आपका सहजयोग नहीं चल सकता, कुछ लिए लायें, फोटो पे बिठा कर के आप Realisation दें। आप, जरूरी नहीं कि आप फोटो से हट के realisation दें। जहाँ तक हो सके फोटो का इस्तेमाल करें जिससे आप पूरी तरह से संरक्षित रहें। जिससे आपको कोई तकलीफ न हो, कोई आपके अन्दर Ego न आ जाए, कोई गलत चीज़ न हो जाए, आपकी निर्मलता बनी रहे। लेकिन कितने लोगों को खोल के बात कर रही हूँ। सारे अन्दर बिठाकर मैं सहज में लाना है ये बहुत जरूरी है। जितने आप ज्यादा सहजयोगियों को अंदर लाइएगा उतना ही आपका भी सहजयोग बलवत्तर होएगा। लेकिन इसके वो एकनिष्ठता नहीं रहेगी तो सहजयोग भी नहीं लिए ये एक जरूरी तो है कि आप भी पक्के सहजयोगी हों, अगर आप ही डावाँडोल हैं तो आपके साथ आये हुए भी बेकार गये। क्योंकि जो आपके साथ आएगें वो आपके साथ ही डूबेंगे, जिसके अन्दर सारे देवी देवता बिठाए हुए हैं और इसलिए आप भी अपने को पक्का कर लीजिए। अपने को पक्का करना बहुत जरूरी हैं। अपनी जहाँ आपको समझा रहा है, बात कर रहा है, आपसे community है, अपने जहाँ लोग हैं, बहुत कुछ हो सकता है। अगर आप बैठे कि हमारा यह संघ हैं हमारा ये समाज है, ये यहाँ पर हम इसके मेंम्बर हैं, हम उसके मेम्बर हैं। या किसी के आप मेम्वर हों जाइए जहाँ ऐसे-ऐसे समाज हैं, और उनसे आप बातचीत करें क्योंकि हमको सारे संसार को बदलना है। बहुत बड़ा काम है। दिखने में हम सर्वसाधारण लोग हैं, पर हमारे ही हाथ से ये कार्य करना है तो हम सबको एकत्रित होना है। एक जुट से रहना चाहिए और इसपे पूरी तरह से एकाग्र होना चाहिए। इसके लिए शक्ति तो मैं आपको दे रही हूँ, जितनी चाहिए आप शक्ति ले सकते हैं, और मिल सकती है अगर मुझे आपने नहीं माना है कि मैं एक अवतरण नहीं। ये एक compulsion है। ये पहले ही से compulsion मेरे लगा करके मैं संसार में आई हूँ और इसी compulsion को आपको मानना ही पड़ेगा। अगर आपने माना नहीं तो सहजयोग नहीं चलने वाला, कुछ नहीं चलने वाला। सब देव-देवता मेरे अंदर बैठे हुए हैं। ये आप सहजयोगी हैं इसलिए मैं आई हुई हूँ और आपको उसका पूरा उपयोग कर लेना चाहिए और समझ लेना चाहिए। अगर आपमें चलने वाला और आप भी नहीं चलने वाले और सारा संसार भी डूबने वाला है। अब ये आखिरी चांस सारे संसार को मिला हुआ है कि एक incarmation ऐसा incarnation जो माँ के स्वरूप आया है, बहुत प्रम से, सहृदयता से सब कार्य करा रहा है। और बहुत मेहनत कर रहा है। रात दिन आपके साथ लगा हुआ है। और आप जानते हैं कि किसी भी तरह से मैं अपने शरीर को किसी भी तरह से देखती नहीं हूँ सिवाए आपके आराम को देखने के। लेकिन आपके अन्दर ऐसे बहुत से लोग हैं जो अभी भी अधमरे हैं बहुत से लोग हैं जो बिल्कुल जिसको मराठी में अर्धवत कहते हैं माने जिनका दिमाग आधा इधर आधा उधर है और जिसको क्राइस्ट ने कहा था कि these half believers। उस तरह के जो लोग हैं वो बिल्कुल बेकार होते हैं क्योंकि Christ ने कहा था कि ये murmur करते रहते हैं। ये बड़, बड़, बड़, बड़, करते रहते हैं और इनकी बड़, बड़, में कोई अर्थ नहीं होता। बेकार की चीज की तरफ़ बहुत लोगों का चित्त जाता है लेकिन असली चीज की तरफ उनका चित्त नहीं जाता। ये और आप लोग पाइए और अपनी शक्ति को पूरी तरह से आप बढ़ा लीजिए। लेकिन इसकी जो एकनिष्ठता है और एकाग्रता है वो आपको लानी पड़ेगी। सबसे बड़ी चीज ये है कि सहजयोग का एक ही बड़ा लोकिंग point है, जो आप समझ गए होएंगे। एक ही इसकी युक्ति है, एक ही इसकी चीज़ है कलियुग में जो बहुत सरल भी और बहुत गलत बात है और इसलिए सहजयोग के जो नियम हैं उनको पालना चाहिए। पहली तो चीज ये है कि हमारे सहजयोग में नियम है कि आपको कोई भी किसी को भी एक भी पैसा सहजयोग के नाम पे लेने का अधिकार नहीं है। जिस प्रकार कोई सा भी काम अनअधिकार करने से आपको नुकसान बहुत कठिन भी हैं। वो आज में अपने मुँह से आपसे बता रही हूँ। आजतक जितने भी अवतरण संसार में हुए हैं उसको आपने नहीं माना। नहीं माना ै. 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-40.txt अंक : । & 2 -2008 चैतन्य लहरी 39 प्रेम होना चाहिए। आपस में बहुत प्रेम करना चाहिए, सबको समझना चाहिए। वड़ा मज़ा आता है, जरा प्यार करके तो देखो। प्यार का मज़ा और होता है और दुश्मनी करने का, द्वेष करने का, ईष्थ्या करने का, झगड़ा करने का, आते ही साथ मेरे को सबके complaint सुनाई देते हैं- उन्होंने हमको inform होता है उसी तरह से अनअधिकार एक भी पैसा आपने लिया है तो आपको नुकसान होगा। ये बिल्कुल मैं आपसे बता देती हूँ कि सहजयोग में अपने पर्सनल खर्चे के लिए किसी को भी एक भी पैसा नहीं लेना चाहिए और आप जानते हैं कि में खुद ही अपना घर का पैसा खर्चा करके कितने काम करती आई हूँ। लेकिन दूसरी बात भी इसकी होनी चाहिए नहीं किया, उन्होंने हमको नहीं बताया, बो हमसे कि सहजयोग, ये हालांकि बिल्कुल बगैर किसी नहीं बोले, फलाने ने ये किया। दूसरा आएगा वो के सबको मिलता है लेकिन इसका मतलब बोलेगा इन्होंने ऐसा किया वैसा किया। मैं कहती हूँ अरे बाप रे बाप। ये अपने हिन्दुस्तानियों की बीमारी मूल्य नहीं कि ये cheap चीज़ है, ये सस्ती चीज नहीं है। ये बहुत मूल्यवान चीज़ है। ये अब आप जानते हैं है खास। पर सिर्फ बम्बई वालों की भी खास है। कि हर चीज़ का खर्चा होता है, इस हाल का खर्चा होता है, उस हाल का खर्चा होता है। हॉल में प्रोग्राम होता है। कल (अभिषेक) के सामने गाना गाया उसका खर्चा होता है, पूजा का खर्चा होता है और जो लोग पूजा में भी पैसा नहीं देते हैं और फिर आकर मुझे कहते हैं कि हमारा लक्ष्मीतत्व खराब है, तो होगा ही। कल ही मैंने बताया था कि अपना selfrespect होना चाहिए आदमी को! इसका मतलब आप अपने आत्म-सम्मान को बढ़ायें अपने अन्दर आत्मसम्मान होना चाहिए और सोचना चाहिए कि हमारे समाज में जो भी कार्य करने पड़ते हैं उसके हैं बाबा? आप राजा के लड़के थे, खो गए थे, फिर लिए पैसा चाहिये। कि माताजी अपना ही पैसा देंगी क्या हमेशा? ये अच्छी बात है क्या कि आपके कल्याण के लिए में पैसा दूं? या मेरे पति पैसा दें? उन्हीं का कल्याण हो रहा है फिर। पैसा तो, उनका ही लक्ष्मी तत्व अच्छा हो रहा है, तुम लोगों का इतना अच्छा नहीं हो रहा है। अपनी भी लक्ष्मी खर्चनी चाहिए। सब को धर्म से कहना चाहिए कि माँ हम लोग सब अपने ही मन से देना चाहिए। अपने-अपने एक एक सेंटर सम्भालिए, organize आपको मालूम है- अपना खर्चा कितना है हाल का खर्चा कितना है खाने पीने का खर्चा कितना है, सब चीज़ का खर्चा कितना है। लोग खाने का भी पैसा देने को तैयार नहीं। मुफ्त है आज ही पूजा के बाद जा करके नाम दे दें। आज हमें नहीं चाहिएं। मुफ्तखोर लोग सहजयोग में चाहिएं नहीं। ठीक है, सहजयोग एकदम मुफ़्त है एकदम फ़्री है। पर मुफ्तखोरों के लिए नहीं है। कहाँ से लाएं बताइए। इसका पैसा देने का है तो क्या माताजी दें? नहीं तो ये कि मेरे को इसने मारा, मुझे उसने मारा, मेरी बीबी ने मारा, मेरे लड़के ने मारा, रात दिन रोनी सूरत। आप लोगों को चाहिए कि अपनी प्रतिष्ठा पे खड़े हों, आप प्रतिष्ठित हैं, हमने आपको प्रतिष्ठित किया है। आप जानते हैं आप कौन हैं। आपको मैंने वो चीज दी है जो गणेश को दी थी! आप पूजनीय, संसार के वर्णनीय लोग हैं और आप कर क्या रहे हैं? वो अपनी बुरी आदतें और पहली बाते भूल जाइए। अब आप राजा हो गये हैं अभी भी भिखारियों जैसे आप झोली लेकर काहे को घूम रहे से आपको राजा बना दिया अभी फिर से वही भिखारी जैसे घूम रहे हैं? अपनी प्रतिष्ठा पे खड़े होना है। तीसरी चीज ये है कि आपके अन्दर जो young लोग है, 25-30 जो भी हो, अलग-अलग जगह के, जहाँ-जहाँ रहते हैं अपने नाम आज ही देके जाना। मैं जाने से पहले देखूंगी और आप सब कुछ करिए और उसके इंचाज जितने भी लोग हैं उनको संभालिए। कोई मुश्किल काम नहीं, इतने आदमी हैं, क्या मुश्किल है? इसमें जिस जिस को नाम देना में खाना खाएंगे। ऐसे लोग ही व्रत कर लें कि हम माँ करके दिखाएंगे काम और हम समझा देंगें कि हम इतने लोगों को इक्टठा कर रहे हैं। सब लोग एक एक जिसको भी जो सोचता है 25 कम से कम नाम होने चाहिएं, ज्यादा भी हो सकते हैं जो बुजुर्ग लोग हैं उनको सताने की जरूरत नहीं है, बच्चों को अभी रहने दीजिए। आप जो Young लोग हैं वो अपने ऊपर लें। सब, आप दूसरी बात ये है कि हमारे organization का भी बड़ा गड़बड़ दिखाई देता है। जब हम एक माँ से पैदा हुए हैं तब हम सब बच्चों में आपस में श्रीम 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-41.txt अंक :। 2 चैतन्य लहरी 40 2008 भी ले सकते हैं। आप भी, वहाँ पर हो सकता है मिल सकता। सहजयोग में दो तीन रिंगंस चलती हैं, आपने नोटिस किया होगा, एक तो Peripheri पे होती है जो जन समुदाय है उसमें ज्यादातर लोग पार नहीं हैं। उसके अन्दर की रिंग होती है जिसमें लोग पार हो गए हैं। उसके अन्दर की रिंग होती है कि चाहती हूँ कि सहजयोग कितना फैल गया है । एक जो आते हैं आधे, आधे नहीं आते। उसमें पार होने पर भी सबलोग आते नहीं, आते हैं आधे, आधे नहीं आते। उसके अंन्दर की रिंग होती है जिसके अन्दर अगर आप लोग जरा प्रयत्न करें तो। तो इस तरह से लोग हमेशा आते हैं और उसके अन्दर की रिंग है जो बहुत ही dedicated हें और हम सब को जानते हैं। हमें Certificate देने की जरुरत नहीं, हम हर इसको समझे इसमें है सारा organize केसे लीजिए। हमें किसी के बारे में कुछ बताने की जुरूरत नहीं है और शिकायत करने की जुरूरत नहीं है। इस तरह से आप लोग समझदारी से रहें क्योंकि एक सेन्टर में, हर एक मोहल्ले में, एक एक लीडर ये समझना चाहिए कि आप लोग विशेष लोग हैं। आपको परमात्मा ने विशेष रूप से choose किया है। आपके अन्दर अन्दर ये कुण्डलिनी जागरण करा दिया है और आपके ऊपर ये सरताज लगाया है कि आप योगी बन गये हैं, घर में बैठे हुए आपको इसके लिए कुछ नहीं करना पड़ा। अब पुरुषार्थ करना होगा जो पुरुषार्थ करेगा वो बहुत कुछ पा सकता है और जो नहीं करेगा वो नहीं पा सकता। जो चीज आप देते ही नहीं वो आप कैसे पा सकते मज़ाक करना उनका दोष देखना आदि नहीं करने हैं? अगर आप सरस्वती, आपको कितनी भी सरस्वती का हम ज्ञान दें, एक लड़का है पढ़ता नहीं, कि माँ आएगा, दोस्ती में इतना मज़ा आएगा ज़िसकी कोई ये पढ़ता नहीं उसको ले आए, उसको हमने first class में पास किया और first class में पास होने के बाद भी वो बेवकूफ जैसा घूमता रहा और कुछ भी workout करें। और में जो जो लोग हैं उनसे पूछूंगी उसने सरस्वती का कार्य नहीं किया तो उसके पास सरस्वती कितने दिन टिकेगी? आखिर आप यही बताइए कि दीप आप जलाते हैं तो प्रकाश देने के कम से कम पांच दें उससे ज्यादा दें, जैसा दें, पैसा लिए जलाते हैं कि क्या उसको बिठा करके आप देना चाहिए। अब जो आदमी ज्यादा कमाता है अपने आंचल में छिपा लेते हैं? आपके दीप जले हैं इससे अनेक दीप जलने चाहिएं। बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। आप ही मेरे हाथ हैं और आप ही मेरी आंखें हैं, हो आपके अपने क्षेत्र में। इस तरह से सब लोग गर अपने अन्दर ऐसा ले लें और आपस में ऐसे लोग सब मिला करें, कभी चाय यर मिलें, कहीं किसी तरह से मिलें और मैं एक साल बाद आकर देखना बड़ी अच्छी बात है कि इस वक्त गुरु सिंहस्त आने है, की वजह से सहजयोग बड़ी जोर से बढ़ सकता हमारी जो बातें हैं उसको समझ लेना चाहिए। अब देखिए हमें लक्ष्मीतत्व की आपको बात मैंने कही। जो दूसरी बात मैंने कही सरस्वतीतत्व की। करना लोगों को केंसे बुलाना किस तरह से उनको चालना देना, उनको समझना, उनको जोड़ लेना। हर एक आदमी को जानते हैं। आप की ये organisation बन सकता है, और बहुत अच्छे से organise कर सकता है। अब लंदन वरगैरा में जैसा कर रहे हैं या जैसे पूना के लोगों ने किया उस तरह से करना चाहिए। एक आदमी है वो पच्चीस आदमियों को जोड़े रखता है। आपस में मिलना जुलना, भई तुम कैसे हो, तुम कैसे हो, तुम्हारा क्या चल रहा है, कैसे, सब आपस में प्यार से बातचीत करें। दोष नहीं देखने का, उनमें ऐंसा है, नहीं तो उनका का। आपलोग सब आपस में देख लें, इतना मज़ा हृद नहीं। जैसा भी जहाँ हो सकता है जिसको भी आप ले सकते हैं उनको लेकर के और आप इसको next year कि क्या किया इन्होंने। तो आप लोग इसकी गर कोशिश करें और Per Month सब लोग उसको पांच देने में कोई sense ही नहीं है। दूसरी बात ये है कि पूजा में हमेशा ऐसे में आप ही मेरा सबकुछ हैं। आपके ही through सकता है। अगर मेरे से बनता तो मैं क्यों आपके सामने गिडगिड़ाकर कहती कि बेटे ये चीज़़ को करो। तुम लोग मेरे हाथ हो, हाथ के बगैर कोई काम लोगों को बुलाना चाहिए जो हमेशा आते हैं पूजा और जिनका सहजयोग में कोई स्थान है। ऐसे लोगों को नहीं बुलाना चाहिए जो कभी भी चले आए, आ गए। सहजयोग में ऐसे आधे-अधूरे लोग नहीं चल सकते। कम-से-कम पूजा का वरदान उनको नहीं नही हो सकता। पर समझदारी से रहना चाहिए और 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-42.txt अंक : 2 -2008 चैतन्य लहरी 41 के तरीके न बदलें तो फिर से वैसे के वैसे हो जाएगा। इसलिए बड़ा मान है आपका कि आप लोग पूजा में आए हैं तो उस मान को रखना और अगले साल में आने पर जितने भी लोग यहाँ पर आए अपने अंदर अहंकार आदि झूठी चीजें नहीं लानी चाहिए। और मुझे कुछ नहीं चाहिए, मैं सिर्फ ये चाहती हूँ कि ये आप लोगों का जो जीवन है, योगियों का जीवन, ये अत्यन्त सुन्दर जीवन बने और आपके साथ अनेक आपके कारण कल्याण के मार्ग में आएं और परमात्मा के साम्राज्य में स्थित हो जाएं। ये आखिरी काम है हमारा, और इसमें थोडा हमारी मदद कर दीजिए। सब काम हो जाएगा। हम हैं आज मुझे बचन दें हर एक आदमी कम से कम दस आदमियों को पार करायेगा। हर एक आदमी आज मुझे वचन दे और मैं आपको शक्ति देती हूँ। और इर एक आदमी इसमें पूरी तरह से, हमेशा जहाँ आपसे कहते हैं कि आश्चर्य की बात है कि भी ध्यान होता है वहाँ आया करेगा और ध्यान कराएगा। ये हर एक आंदमी को आज मुझे वचन देना चाहिए तभी मैं आपको पूर्ण शक्ति दूंगी। जैसी वो लोग मेहनत करते हैं और जिस तरह से हालांकि आज का दिन आपके लिए भी और मेरे लिए भी बड़ा समारोह है, बड़ी भारी चीज है, सारे इंग्लैण्ड के लड़के जो हैं हमारी पास में हालां सब west से हैं, उनके मुकाबले में उतरना मुश्किल है। ध्यान- धारणा करते हैं और जितनी एकनिष्ठा उनमें है आप लोगों में आना चाहिए। उनमें पैसा और ये चीजें वो सोचते भी नहीं हैं और न ही किसी प्रकार से संसार में आज नवरात्रि का अंतिम दिन बड़े माना जाता हैं। लेकिन दुख की भी बात लगती है से भी वो आलस्य करते हैं। इतनी मेहनत वो लोग कि इतने बच्चे सामने बैठे हों तो माँ का जी जिस करते हैं। उनको मैंने कहा कि आपको सिगरेट तरह से खिंचता है वो आप देख ही रहे हैं कि कल से मेरा हाल बहुत खराब है। और आप लोगों को भी कभी दुकान ही नहीं देखा। इतनी एकनिष्ठा और बहुत तकलीफ होती है सब चीजों से। ये तो इतना उनमें मेहनत करने की ये है कि आपके लेकिन तो भी ये सोचना चाहिए कि माँ के और भी सामने वाकई एक मिसाल के तौर पे ये लोग हैं कि बच्चे वहाँ हैं और ये सोच के कि वहाँ जब माँ जाएंगी तो कैसे खुश होएंगे वे और उनके भी दिल कितने बड़े हो जाएंगे और अपने दुख को आप आप देख सकते हैं कि Advent जैसी किताब लिखाई लोगों को जीत लेना चाहिए और सोचना चाहिए कि मां जायें! जैसा सुख हमें दिया वैसे उनको भी सुख दें और उनको भी ये आनन्द मिले और हमारे जैसे ही कोई traslation अपने ऊपर ले ले तो एक अच्छे वो भी सुखी हो जाएं तो तुम्हारा भी दिल शांत हो जाएगा और जो ये परेशानी है कि माँ कब आओगे, है, कैसे होगा, ये सब छूट जाएगा। हर एक चीज के बारे में सबको पता है। अगर एक चीज का probiem है? ऐसे तो सब मंदिरों मे हो ही रही है मेरी पूजा, हो जाए, समझ लीजिए आपको कोई problem हो जाए कि भई क्या करें, इसमें केसा solution है, क्या तुम अनेक लोगों को जागृत करोगे, हज़ारों लोगों को है तो आपस में पूछ लीजिए। आप लोग अपना पैसा इकटठा करें, जो कुछ आप कार्यक्रम करना चाहें करें, जैसा भी चाहें आप कर सकते हैं। लेकिन पैसा, ये Public का पैसा जो होता है उसका बड़ा भारी अर्थ होता है। Public का पैसा आपको उड़ाना नहीं चाहिए। कभी भी एक पैसा भी नहीं, एक उपयोग नहीं करें, उसको आगे न बढ़ायें, उसकी बूंद भी नहीं, आप लोग गलत चीज़ के लिए प्रतिष्ठा न रखें, उसपे मेहनत न करें, अपने जीवन खर्चा करें। नहीं तो हमने बीड़ी पी उसका पैसा, छोड़ना पड़ेगा, तो सिगरेट तो क्या उन्होंने सिगरेट का जो इस कदर अनभिज्ञ हैं अपने धर्म से और अपने तरीकों से, उन्होंने मास्टरी कर ली है और उसका है? और ऐसी कम से कम चार पाँच किताबें अभी आएंगी, बहुत जल्दी। कम से कम इस Advent का हिन्दी भाषा में हो जाए और एक मराठी भाषा में हो जाए तो भी बड़ा अच्छा हो जाए। यही मेरी पूजा यही मेरा सब कुछ है। बाकी सब पूजा में क्या अर्थ उससे क्या पाने का है? मेरी पूजा तभी होगी जब जागृत करोगे जब मैं देखूंगी की ये शक्ति सारे संसार में बह रही है वही मेरी पूजा असल में होगी, बाकी सब मेरी पूजा में कोई मुझे अर्थ नजर नहीं आता। उससे थोड़ा बहुत आपको फायदा हो रहा है। जुरूर है पूजा हैं। पर गर आप इसको इस्तेमाल नहीं करें उसका याद रखना कि वो भी पैसा, एक-एक में आने से आपके चक्र ठीक हो जाते मधट 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-43.txt अंक : 1 & 2 -2008. चैतन्य लहरी 42 बाहर से आए हैं वो तो हमारे Guest हैं, पर जो यहाँ के हैं उनको तो अपना भी देना चाहिए और दूसरो का भी देना चाहिए। इतना भी एक साल में आप एक मर्तबा नहीं दे सकते हैं तो ऐसे भिखारियों को आप बाहर करें। ऐसे भिखारी अपने को नहीं चाहिएं। सबको मिलना जुलना चाहिए। एक बार के खाने का पैसा नहीं दे सकते हम? ऐसे गये बीते लोग हैं क्या? एक सहजयोग में बहुत बड़ा drawback हो गया है क्योंकि हम इसमें पैसा ही नहीं लेते हैं इसलिए बड़ा भारी drawback है। पर ये बम्बई में सबसे ज्यादा है। इसका मतलब बम्बई में कुछ न कुछ गड़बड़ है। अगर आपको अपना लक्ष्मीतत्व जागृत करना है तो पैसों के मामले में जरा ढील हमने चाय पी उसका पैसा, ये नहीं। होँ अगर आपको बहुत ही कहीं जाना हो, कुछ खर्चा हो गया हो तो दूसरी बात है। पर अधिकतर आप अपने बस से जाइए, अपनी जैसी औकात से रहते हैं उसी से रहिए। अगर जो आदमी बस से चलता है- में टैक्सी से गया उसका पैसा, ये सब खर्चा नहीं करना। थोड़ा सा पैसा आपको भी खर्चा करना चाहिए। इस तरह से भी लोग करते हैं कि बड़े-बड़े खर्चें बता करके ये सहजयोग में नहीं चल सकता। आप अगर ये करेंगे तो मैं फिर उसकी सजा निकालती हूँ। आप जानते हैं ये चल नहीं सकता सहजयोग में सहजयोग में आपको बहुत Public money के लिए, बहुत ख्याल रखना है। ये कोई Politics नहीं है कि आपने पैसा मार लिया और जिसको जैसा कर लिया। ये छोड़ दें और दूसरा ये कि ईमानदारी रखें। दोनों चीज परमात्मा का साम्राज्य है और इसके कायदे बहुत कड़क होते हैं। इसलिए इसमें पैसा-वैसा की गड़बड़ एक कौड़ी की नहीं होनी चाहिए। कारयदे से आप रखिए, कायदे से रहें और अपने को जूते मारा करें, सुबह से शाम तक, गर दिमाग में ऐसा कोई भी ख्याल आए, तो सब ठीक हो जाएगा। आपको ये ही जोर का सेन्टर बन जाएगा। बस दादर से बहुत सब चीजों का किसी का अधिकार नहीं है। जब तक ये अधिकार प्राप्त नहीं होता अनाधिकार चेष्टा नहीं करनी। और सब चीज बहुत Gracefully करें। सब चीज में Grace होनी चाहिए आपस में प्यार होना चाहिए, दुलार होना चाहिए। आपस में मिलो, बच्चे किस तरह कितनी खुशी की बात है कि देखिए कहाँ कहाँ से, आज ही यहाँ पर देखिए कहाँ-कहाँ से लोग आए हैं। सब जाति, सब धर्म के लोग आज बैठे हुए हैं, कितने आनन्द की वात है। एक दूसरे की पूरी तरह से मदद करो, कोई बीमार हो तो दौड़ के जाओ, देखो क्या तकलीफ है। कितनी अच्छी बात है। आपस में मेलजोल होना चाहिए। इसीलिए मैंने कहा कि आज यहाँ पर dinner, लंच करो तो अच्छा है। अभी लंच में पैसा नहीं देंगे, बहुत से लोग ऐसे हैं, हम लंच में पैसा नहीं देंगे। मैंने कहा ठीक है कोई के होनी चाहिए। दानी भी होना चाहिए और ईमानदार भी होना चाहिए। इससे सब ठीक हो जाएगा। अगले वक्त मैं आऊं, मुझे इस वक्त बड़ी खुशी हुई कि दादर का प्रोग्राम इतना जबरदस्त हुआ और इतना बढ़िया हुआ कि Next time दादर में तो एक बड़ा खुश हो गई हूँ मैं और आपको अनेक आशीर्वाद हैं। इस दादर में जिस तरह से प्रोग्राम हुआ है हरेक जगह ऐसे ही बड़े बड़े प्रोग्राम हों और बड़ी खुशी की बात है। इससे इतनी खुशी होती है कि देखिए से मेरे बढ़ रहे हैं और इसका importance समझ रहे हैं। इसको बढ़ाएं, आगे चलाएं। जैसे दादर में प्रोग्राम हुए, ऐसे हर एक जगह आपके प्रोग्राम हों और बड़ा अच्छे से सफलता मिले, ये सबको आपको अनेक आशीर्वाद मैं देती हूँ। मेरे हृदय से मैं आपको अनेक आशीर्वाद देती हूँ, आप समृद्ध हों, आप समर्थ हों और आपके अन्दर से अनेक शक्तियाँ बह करके संसार का भला करें और कल्याण करें। और माँ की एक ही इच्छा है कि सारा संसार जो है वो सुख में आ जाए, आनन्द में आ जाए। वो तो आप लोग पूर्ण करें। (मूल आडियो के अनुरूप) **** ाि 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-44.txt परिवर्तित इच्छा के श्री चरणों में भेट कर सकँ। काफी सोच विचार के बाद मैंने पाया कि मैं अपनी भक्ति माँ को भेंट कर सकता हूँ और में पूरे मन से श्री माँ की भक्ति एक पूर्णत: नास्तिक व्यक्ति था। डा0 बी.के. कोहली (पंजाबी बाग, देहली) ने श्रीमाताजी की कृपा से मुझे आत्मसाक्षात्कार कराया। श्रीमाताजी ने मुझ पर कृपा की और मुझे में लग गया। परन्तु मेरे मन में यह भक्ति श्रीमाताजी आत्मसाक्षात्कार दिया। जिसके उपरान्त मेरा रोम-रोम आनन्द से भर उठा। खुशियों का सागर मेरे हृदय में पैदा हुई है। अर्थात यह भक्ति भी श्रीमाताजी की ही उमड़ने लगा। इस असीमित आनन्द को पाकर कृतज्ञतावश मुझे लगा कि में श्रीमाताजी के चरणों में वापिस कर सकता हूँ। और मेरी इच्छा फिर अधूरी कुछ भेंट अर्पण करूँ। श्रीमाताजी की कृपा से यह मौका शीघ्र आ गया। श्रीमाताजी विदेश से बापिस लौट रही थीं। उनके स्वागत में हम सभी सहजयोगी रात को हवाई अड्डे पर मौजूद थे। डा. कोहली ने सोचते कुछ ही समय बीता था कि मुझे एहसास द्वारा मुझे आत्मसाक्षात्कार कराए जाने के बाद ही अनुपम देन है। मैं इस ली हुई चीज को कैसे माँ को रहे गई! अब मैने सोचा कि सहजयोग के विकास के लिए कुछ आर्थिक सहयोग दिया करुँगा। ऐसा गुलदस्ता बनाया, और मुझे श्री माँ के चरणों में हुआ कि मेरी आर्थिक स्थिति पहले से अच्छी होती अर्पण करने के लिए दिया। मैं बहुत अधिक खुश है इसे मैं स्वयं उन्हीं को भेंट स्वरुप दे सकता हूँ। था कि अपनी माँ को अर्पण करने के लिए मैरे पास एक अच्छी भेंट है। हवाई अड्डे पर मेंने वह गलदस्ता श्रीमाताजी के चरणों में भेंट कर दिया और नहीं हुई। यह तो फिर श्रीमाताजी की मुझ पर कृपा खुशी-खुशी अपने घर आ गया। जा रही है। अर्थात यह धन भी श्रीमाताजी ही दे रही अगर मैं सहजयोग के विकास पर कुछ धन व्यय भी करता हूँ तो वह धन भी श्रीमाताजी को भेंट तो ही हुई कि अपना धन मेरे माध्यम से सहजयोग के विकास पर खर्च करा रही हैं। मुझे श्रीमाताजी ने अपने कार्य के लिए चुन लिया है! जय श्रीमाताजी! अत; इस बार भी माँ को कुछ भेट करने की मेरी इच्छा अधूरी ही रह गई। एक दिन के पश्चात् श्रीमाताजी का आश्रम में आगमन हुआ और फिर दुबारा मैने डा0 बी.के. कोहली द्वारा बनाया हुआ गुलदस्ता ही श्रीमाताजी के चरणों में भेंट किया। लेकिन अब मेरा मन आनन्दमय नहीं था। मेरा मन बहुत विचलित हो गया था। में सोच रहा था कि भेंट तो कोई ऐसी वस्तु की जाती है जो तुम्हारी अपनी हो, लेकिन वह फूल तो डॉ. साहब ने अपने बगीचे से लिए थे, उन्होंने अपने हाथों से ही गुलदस्ता बनाया था, मैंने तो केवल माँ के चरणों में अर्पित ही किया था । और वास्तविकता अब मेंने अपना तन और मन माताजी को भेंट करने की सोची और मैं सहजयोग के विषय में सभी व्यक्तियों को विस्तार से बताने लगा। मैं हर सम्भव प्रयास करता, कि किसी प्रकार अधिक से अधिक व्यक्ति सहजयोग अपना लें। कुछ ही समय में मैने महसूस किया कि, दूसरों को प्रभावित करने में तो फूल डा. साहब के भी नहीं थे। क्योंकि की मेरी क्षमता धीरें-धीरे बढ़ रही है। पहले सभी पेड-पौधे, फल-फूल समस्त चर और अचर वस्तुएं व्यक्ति मेरी बात को बड़ी लापरवाही से सुनते थे, तो श्रीमाताजी ने अपने प्रताप से ही पैदा की है। उन सभी में, अर्थात स्वयं मुझमें श्रीमाताजी की ही शक्ति प्रवाहित हो रही है। अर्थात फूलों का गुलदस्ता भी तो श्रीमाताजी का ही हुआ। और मैने तो उनकी वस्तु उन्हीं को भेट कर दी । अर्थात मैं कुछ भेंट कर ही नहीं सका। उसे कोई महत्व नहीं देते थे। परन्तु अब अधिकतर व्यक्ति मेरी बात को ध्यान से सुनते हैं और सहज़योग अपनाने का प्रयास करते हैं। अर्थात सहजयोग प्रचार हेतु दूसरों को प्रभावित करने की मेरी क्षमता श्रीमाताजी की ही देन है । अत: मैं सहजयोग का प्रचार करके भी श्रीमाताजी अब मैं किसी ऐसी वस्तु की तलाश में को कुछ भी भेंट नहीं कर रहा हूँ। मैं तो सहजयोग के प्रचार का केवल माध्यम मात्र हूँ। धन्य हैं हम लग गया, जिसे में अपना कह सक और मैं उसे माँ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-45.txt चैतन्य लहरी अक : 1 & 2 -2008 44 म लोग कि माँ ने चुना है। श्री माँ का कोटि-कोटि धन्यवाद! हरें सहजयोग के प्रचार के लिए माँ को कुछ भेंट करने के स्थान पर अपना स्वार्थ सिद्ध करने में लगा हुआ हूँ। और अब मैंने अन्तिम फैसला किया, कि मैं स्वयं को श्री माँ के चरणों में पूर्णत: समर्पित कर दुँगा; अपने जीवन की डोर श्रीमाताजी के हवाले मैं केवल अपनी कह कर श्रीमाताजी के चरणों में कर दूँगा। और मैंने ऐसा ही किया। परन्तु समय-समय पर मेरा ध्यान इधर-उधर विचलित होने लगता, माँ ही तो परम आनन्द है। अब में श्रीमाताजी से केवल की पूजा में ध्यान ही नहीं लगता था। ऐसे में मैं एक ही प्रार्थना करता रहता हूँ, कि श्रीमाताजी अपने श्रीमाताजी से प्रार्थना करता हूँ कि मुझे अपने से दूर मत करो। मुझे इतनी शक्ति दो माँ कि मैं अपने आपको, आपके चरणों में पूर्णतः समर्पित कर सकँ। आपकी पूजा में लीन रह सकँ। उलझा कर अपने से विमुख मत करो माँ। इतने में ही मेरी ममतामयी, मेरी प्यारी माँ, दयालु माँ, मेरी में परिवर्तित हो गई। पुकार सुन फिर मेरा ध्यान अपनी पूजा में लगा लेती, और मैं फिर अपनी सर्वव्यापी माँ की पूजा का आनन्द उठाने लगता। इस सबसे मुझे आभास हुआ कि मैं अपना समर्पण तो श्रीमाताजी की पूजा का आनन्द उठाने के लिए कर रहा था। अत: मैं तो अर्थात अपनी हर सम्भव कोशिश करने के बावजूद भी मैं ऐसी कोई वस्तु नहीं खोज पाया जिसे समर्पित कर सके। मैं हार गया। अपनी माँ से हारना इस बच्चे को अपनी अनन्यभक्ति का आशीर्वाद दें। में आपकी भक्ति का आनन्द अपने जीवन के अन्तिम क्षण तक उठाता रहू। मुझे अपनी माया में अन्तत: श्रीमाताजी को कुछ भेंट करने की मेरी इच्छा, माँ की अनन्यभक्ति का आशीर्वाद पाने जय जय जय श्री आदि शक्ति माताजी, श्री निर्मला देवी नमो नम्ः डा. नरेन्द्र गुप्ता देहली এ ৩ श तं2 ुिड त्रुटि-सुधार पृष्ठ 38 की अन्तिम तीसरी पंक्ति 'लेकिन ये दोनों मूर्ख इतने 'लेकिन ये दोनों ही इतने अनभिज्ञ हैं।' प्रिय पाठक, अनभिज्ञ हैं के स्थान पर चैतन्य लहरी- अंक 9,10/2007 के पृष्ठ चैतन्य लहरियाँ क्या हैं की 38 पर छपे प्रवचन " आडियो से प्रतिलिपि बनाते हुए Audio की आवाज कई स्थानों पर स्पष्ट न होने के कारण कुछ त्रुटियाँ तीसरी पंक्ति में 'आपके अन्दर में खिलना सामने आई हैं। कृपा करके अपनी प्रति में निम्न त्रुटि-सुधार कर लें। कष्ट के लिए क्षमा प्रार्थी हैं:- चाहता है। पृष्ठ 39 : पहला पैरा- अन्त से ऊपर- चाहता है' के स्थान पर 'आपके हृदय में खिलना पृष्ठ 40 : पहला पैरा- अन्त से ऊपर को तीसरी पंक्ति 'पिस्तौल' के स्थान पर 'दुष्टभाव' तथा पूरे प्रवचन में 'Viberation ' शब्द के हिज्जे Vibration कर लें। पृष्ठ 38 : पहला पैरा- पंक्ति चार में 'तार छूती के स्थान पर तार खिंचती' कर लें, दूसरा पैरा- तीसरी पंक्ति- 'जल' के स्थान पर जड़' धन्यवाद টি 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_I.pdf-page-47.txt ১ 3. ै। ०. * ३ २ु हर +२ SSSSSSSKSK ४5.S संक्रान्ति अर्थात सूर्य की शक्ति । सूर्यशक्ति का अर्थ है आत्मविश्वास| सूर्य हमें उष्मा और प्रकाश प्रदान करता है। अब ये हम पर निर्भर करता है कि सूर्य की उष्मा में हम स्वयं को झुलस लें या इससे आत्मविश्वास प्राप्त करके तेजोमय हो जाएं। परम पूज्य श्रीमाताजी निर्मला देवी पूर्ण 14.01.2002 मै। ु