चैतन्य लहरी नवंबर - दिसंबर - २00८ २) ेका के काम हिन्दी एक + प्रकाशक + निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं. ८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८ फोन : ०२०-२५२८६५३७, २५२८६०३२ ुभ ै। ४ स्था के ा का पा घव पी पहाघा प Oकम ह ्र ४ कम ४ - श्री कुण्डलिनी शक्ति व श्री येशु ट्विस्त १४ - क्या आपकी प्रगति अध्छी हो रही है? १८ - आप उनमें से बनिए जो दस 'अध्छे' आदमी १० - ये वाइब्रेशन्स सिर्फ 'प्रेम' है ११- घड़ी : सहजयोग व ध्यान के लिए १६ - ध्यान में निष्द्रियता क - 22 में ३० - सहजयोग जए आयाम र श्री कुण्डलिनी शक्ति व श्री येशु ख्रिस्त २७ सितम्बर १९७९, मुंबई निर्मला योग, जनवरी-फरवरी १९८६. वर्ष ४ अंक २३ लिम ह गी ८ ें 'श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु ख्रिस्त' ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है। सर्वसामान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय है क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु ख्रिस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु संत रूपी पुष्प खिले। उन पुष्पों (विभूतियों) का परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम है। जहाँ-जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए वहाँ-वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया। परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदिशक्ति से हो सकता है यह बात सर्वसाधारण की समझ से परे है। मैं जिस स्थिति से आपको ये कह रही हैं उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तन्त्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शारीरिक संयन्त्र ऊपर कही गई बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय आपका संयन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है उस का कर समय आप ऊपर कही गयी बात को अनुभव कर सकते हैं । इसका अर्थ है आपको सहजयोग में आकर पार होना' आवश्यक है। 'पार' होने के बाद आप के हाथ से चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं। जो चीज़ सत्य है उसके लिए आपके हाथ में ठंडी-ठंडी चैतन्य की तरंगे (लहरियाँ) आएंगी और वह असत्य होगी तो गरम लहरं आएंगी। इसी तरह कोई चीज़ सत्य है कि नहीं इसे आप जान सकते हैं । ईसाई लोग श्री येशु ख्रिस्त के बारे में जो कुछ जानते हैं वह बाइबल ग्रन्थ के कारण है। बाइबल ग्रन्थ बहुत ही गुढ़ (रहस्यमय) है। यह ग्रन्थ इतना गहन है कि अनेक लोग वह गूढ़ार्थ (गहन अर्थ) समझ नहीं सके। बाइबल में लिखा है कि 'मैं तेरे पास ज्वालाओं की लपुटों के रूप में आऊंगा चारों ओर आग की ज्वालायें फैलेंगी इसलिए वह उन्हें देख नहीं सकेंगे। वस्तुत: इसका सही मतलब ये है कि मेरा दर्शन आपको सहस्त्रार में होगा। बाइबल में अनेक जगह इसी तरह श्री कुण्डलिनी शक्ति व सहस्त्रार का उल्लेख है। किन्तु यहाँ यह सब बिलकुल संक्षेप में कह सकते हैं। ।' इज़राइली (यहदी) लोगों ने इसका ये मतलब लगाया कि जब परमात्मा का अवतरण होगा तब उनमें से श्री येशु खिस्त जी ने कहा है कि, 'जो मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं।' इसका मतलब है कि जो लोग मेरे विरोध में नहीं है वे मेरे साथ हैं। आपने अगर ईसाई लोगों को पूछा कि ये लोग कौन थे तो उन्हें इसका पता नहीं है। श्री येशु ख़िस्त में दो महान शक्तियों का संयोग है। एक श्री गणेश की शक्ति जो येशु खिस्त की मूल शक्ति मानी गयी है और दूसरी शक्ति श्री कार्तिकेय की। इस कारण श्री येशु खिस्त का स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तत्त्व, ॐकार रूप है। श्री येशु ख्रिस्त के पिताजी साक्षात श्री कृष्ण थे । इसलिए उन्होंने उन्हें जन्म से पूर्व ही अनेक वरदान दिये हुए थे। उसमें से एक बरदान है कि आप हमेशा मेरे स्थान से ऊपर स्थित होंगे। इसका स्पष्टीकरण ये है कि श्री कृष्ण का स्थान हमारी गर्दन पर जो विशुद्धि चक्र है उस पर है, और श्री ख्रिस्त का स्थान आज्ञा चक्र में है जो अपने सर के पिछले भाग में जहाँ दोनो आँखों की ज्योति ले जाने वाली नसें जहाँ परस्पर छेदती हैं वहाँ स्थित है। दूसरा वरदान श्री कृष्ण ने ये दिया था कि आप सारे विश्व के आधार होंगे। तीसरा वरदान है कि, पूजा में मुझे जो भेंट प्राप्त होगा उसका १६ वाँ हिस्सा सर्वप्रथम आपको दिया जाएगा। इस तरह अनेक वरदान देने के बाद श्री कृष्ण ने उन्हें अवतार लेने की अनुमति दी। आपने अगर मार्कण्डेय पुराण पढ़ा होगा तो ये सारी बातें आप समझ सकते हैं क्योंकि श्री मार्कण्डेय जी ने ऐसी अनेक बातें जो सूक्ष्म हैं खोलकर कही हैं। नति इसी पुराण में श्री महाविष्णु का भी वर्णन किया है। आप अगर ध्यान में जाकर यह वर्णन सुनेंगे तो आप समझ सकते हैं कि ये वर्णन श्री येशु खरिस्त का है 1 अब अगर आपने श्री "ख्रिस्त' शब्द का अध्ययन किया (उसे सूक्ष्मता से देखा) तो ये 'कृष्ण' शब्द के अपभ्रंश से निर्माण हुआ है। वस्तुतः श्री येशु ख्िस्त के पिताजी श्री कृष्ण ही हैं। और इसलिए उन्हें ख्रिस्त कहते हैं। उनका नाम 'जीजस' जिस प्रकार बना है वह भी मनोरंजक है। श्री यशोदा माता को 'येशु' नाम से कहा जाता था । उत्तर प्रदेश में अब भी किसी का नाम 'येशु' होता है तो उसे वैसे न कहकर 'जेशू कहते हैं। इस प्रकार ये स्पष्ट होता है कि, 'यशोदा से 'येशु' व उसके 'जशू' व उससे 'जीजस क्राईस्ट' नाम बना है। जिस समय श्री ख़िस्त अपने पिताजी की गाथाऐं सुनाते थे उस समय वे वास्तव में श्री कृष्ण के बारे में बताते थे, 'विराट' की बातें बताते थे। यद्यपि श्री कृष्ण ने जीजस खिस्त के जीवन काल में पुनः अवतार नहीं लिया था, तथापि जीजस ख्रिस्त के उपदेशों का सार था कि साधकों विराट पुरुष सर्वशक्तिमान परमात्मा का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात् श्री ख्रिस्त की माता साक्षात् श्री महालक्ष्मी थीं। श्री मेरी माता स्वयं श्री महालक्ष्मी व आदिशक्ति थी। और अपनी माँ को उन्होंने 'होली घोस्ट' (Holy Ghost) नाम से सम्बोधित करते थे। श्री खिस्त जी के पास एकादश रुद्र की शक्तियाँ हैं, अर्थात् ग्यारह संहार शक्तियाँ हैं। इन शक्तियों के स्थान अपने माथे पर हैं। जिस समय शक्ति का अवरतण होता है उस समय ये सारी शक्तियाँ संहार का काम करती हैं। इन ग्यारह शक्तियों में एक शक्ति श्री हनुमान की है व दूसरी श्री भैरवनाथ की है। इन दोनों शक्तियों को बाइबल में 'सेंट माइकल' तथा 'सेंट गाब्रियल' कहा जाता है। सहजयोग में आकर पार होने के बाद आप इन शक्तियों को अंग्रेजी में बोलकर भी जागृत कर सकते हैं या मराठी में या संस्कृत में भी बोलकर जागृत कर सकते हैं। अपने दायें तरफ की (right) नाड़ी (पिंगला नाड़ी) में भी श्री हनुमान जी की शक्ति कार्यान्वित होती है। जिस समय अपनी पिंगला नाड़ी में अवरोध निर्माण होता है उस समय श्री हनुमान जी के मन्त्र से तुरन्त अन्तर पड़ता है। उसी प्रकार 'सेंट माइकेल' का मन्त्र बोलने से भी पिंगला नाड़ी में अन्तर आएगा। अपने बांये तरफ की नाड़ी इड़ा नाड़ी सेंट गाब्रियल' या 'श्री भैरवनाथ' की शक्ति से कार्यान्वित होती है। उनके मन्त्र से इड़ा नाड़ी की तकलीफें दूर होती है। ऊपर कही गयी बातों की सिद्धता सहजयोग में आकर पार होने के बाद किसी को भी आ सकती है। कहने का अभिप्राय है कि अपने आपको हिन्दू या मुसलमान या ईसाई ऐसे अलग-अलग समझ कर आपस में लड़ना मूर्खता है। अगर आप ने इसमें तत्त्व की बात जान ली तो आपके मस्तिष्क में आएगा कि ये सब एक ही धर्म के वृक्ष के अनेक फूल हैं व आपस में एक ही शक्ति से सम्बन्धित हैं। आपको ये जानकर कदाचित आश्चर्य होगा कि सहजयोग में कुण्डलिनी जागृति होना साधक के आज्ञा चक्र की अवस्था पर निर्भर करता है। आजकल लोगों में अहंकार बहुत ज्यादा है क्योंकि अनेक लोग अहंकारी प्रवृत्ति में खोये हैं। अहंकारी वृत्ति के कारण मनुष्य अपने सच्चे धर्म से विचलित हो जाते हैं और दिशाहारा (मार्ग से भटक जाना) होने के कारण वे अहंकार को बढ़ावा देने वाले कार्यों में रत रहते हैं। इस अहंकार से मुक्ति पाने के लिए येशु ख्रिस्त बहुत सहायक होते हैं। जिस प्रकार मोहम्मद पैगंबर ने शक्तियों का कैसे विनाश करना है इसके बारे में लिखा है उसी प्रकार श्री ख़िस्त जी ने बहुत ही सरल तरीके से आप में कौन-कौन सी शक्तियाँ हैं व कौन से आयुध हैं इसके बारे में कहा है। दुष्ट उन आयुधों में सर्वप्रथम 'क्षमा' करना है। जो तत्त्व श्री गणेश में 'परोक्ष' रूप में है वही तत्त्व मनुष्य में क्षमा के रूप में कार्यान्वित है। वस्तुत: क्षमा बहुत बड़ा आयुध है क्योंकि उससे मनुष्य अहंकार से बचता है। अगर हमें किसी ने दु:ख दिया, परेशान किया या हमारा अपमान किया तो अपना मन बार -बार यही बात सोंचता रहता है और उद्विग्न रहता है। आप रात दिन उस मनुष्य के बारे में सोचते रहेंगे और बीती घटनाएँ याद करके अपने आपको दु:ख देते रहेंगे। इससे मुक्ति पाने के लिए सहजयोग में हम ऐसे मनुष्य को क्षमा करने के लिए कहते हैं। दूसरों को क्षमा करना, ये एक बड़ा आयुध, श्री ख्रिस्त के कारण हमें प्राप्त हुआ है जिससे आप दूसरों के कारण होने वाली परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं। श्री ख्रिस्तजी के पास अनेक शक्तियाँ थी और उसी में एकादश रुद्र स्थित है। इतनी सारी शक्तियाँ पास में होने पर भी उन्होंने अपने आपको क्रास (सूली) पर लटकवा लिया। उन्होंने अपने आपको क्यों नहीं बचाया? श्री ख्रिस्त जी के पास इतनी शक्तियाँ थी कि वे उन्हें परेशान करने वालों का एक क्षण में हनन कर सकते थे । उनकी माँ श्री मेरी माता साक्षात् श्री आदिशक्ति थी। उस माँ से अपने बेटे पर हुए अत्याचार देखे नहीं गए। परन्तु परमेश्वर को एक नाटक करना था। सच बात तो ये है कि श्री ख्रिस्त सुख या दु:ख, इसमें फँसे हुए नहीं थे। उन्हें ये नाटक खेलना था। उनके लिए सब कुछ खेल था। वास्तव में जीजस ख्रिस्त सुख दुःख से परे थे। उन्हें तो यह नाटक अत्यन्त निपुणता से रचना था। जिन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाया वे कितने मूर्ख थे? उस जमाने के लोगों की मूर्खता को नष्ट करने के लिए श्री खरिस्त स्वयं गधे पर सवार हुए थे। आपके कभी सिर में दर्द हो तो आप कोई दवाई न लेकर, श्री ख्रिस्त की प्रार्थना करिए कि 'इस दुनिया में जिस किसी ने मुझे कष्ट दिया है, परेशान किया है उन सबको माफ कीजिए' तो आपका सर दर्द तुरन्त समाप्त हो जाएगा। लेकिन इसके लिए आपको सहजयोग में आकर कुण्डलिनी जागृत करवा कर पार होना आवश्यक है। उसका कारण है कि आज्ञा चक्र, जो आपमें श्री ख़िस्त तत्त्व है वह सहजयोग के माध्यम से कुण्डलिनी जागृति के पश्चात ही सक्रिय होता है, उसके बिना नहीं। ये चक्र इतना सूक्ष्म है कि डाक्टर भी इसे देख नहीं सकते । इस चक्र पर एक अतिसूक्ष्म द्वार है। इसलिए श्री खिस्त ने कहा है कि 'मैं द्वार हूँ इस अतिसूक्ष्म द्वार को पार करना आसान करने के लिए श्री ख्रिस्त ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया और स्वयं यह द्वार प्रथम पार किया। अपने अहंभाव के कारण लोगों ने श्री ख्रिस्त को सूली पर चढ़ाया, क्योंकि कोई मनुष्य परमेश्वर का अवतार बनकर आ सकता है ये उनकी बुद्धि को मान्य नहीं था उन्हेोंने अपने बौद्धिक अहंकार के कारण सत्य को ठुकराया । श्री खिस्त ने ऐसा कौन सा अपराध किया कि जिससे उनको सुली पर लटकाया? उलटे उन्होंने दुनिया के कितने लोगों को अपनी शक्ति से ठीक किया। जग में सत्य का प्रचार किया। लोगों को अनेक अच्छी बातें सिखाई। लोगों को सुव्यवस्थित, सुसंस्कृत जीवन सिखाया । वे हमेशा प्यार की बातें करते थे । लोगों के लिए हमेशा अच्छाई करते हुए भी आपने उन्हें दु:ख दिया, परेशान किया। जो लोग आपको गन्दी बातें सिखाते हैं या मूर्ख बनाते हैं उनके आप पाँव छूते हैं। मूर्खता की हद है! आजकल कोई भी ऐरे-गैरे गुरू बनते हैं, लोगों को ठगते हैं, लोगों से पैसे लूटते हैं। उनकी लोग वाह-वाह (खुशामद, प्रशंसा) करते हैं। कोई सत्य बात कहकर लोगों को सच्चा मार्ग दिखाएगा तो उसकी कोई सुनता नहीं, उल्टे उसी पर गुस्सा करेंगे। ऐसे महामूर्ख लोगों को ठीक करने के लिए परमात्मा ने अपना सुपुत्र श्री खिस्त को इस दुनिया में भेजा था । पर उन्हें लोगों ने सूली पर चढ़ाया। ऐसे ही नाना प्रकार के लोग करते रहते हैं। 1 आप इतिहास पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि जब-जब परमेश्वर ने अवतरण लिया या सन्त-महात्माओं ने अवतरण लिया तब-तब लोगों ने उन्हें कष्ट दिया है। उनसे कुछ सीखने के बजाय खुद मूर्खों की तरह बर्ताव करते थे । महाराष्ट्र के सन्त श्रेष्ठ श्री तुकाराम महाराज या श्री ज्ञानेश्वर महाराज इनके साथ यही हुआ। वैसे ही श्री गुरुनानक, श्री मोहम्मद साहब इनके साथ भी उसी प्रकार हुआ। 1 मनुष्य हमेशा सत्य से दूर भागता है और असत्य से चिपका रहता है। जब कोई साधु-सन्त या परमेश्वर का अवतरण होता है तब अगर ऐसा प्रश्न पूछा जाए कि यह व्यक्ति क्या अवतारी, सन्त या पवित्र है? तो सहजयोग में लोगों द्वारा ऐसा सवाल पूछते ही तुरन्त एक सहजयोगी के हाथ पर ठंडी लहरें आकर आप के प्रश्न का 'हाँ में उत्तर मिलेगा। विगत (भूतकाल की) बातों से मनुष्य का अहंकार बढ़ता है। उदाहरणत: किसी विशेष व्यक्ति का शिष्ट होने का दंभ जो सामने प्रत्यक्ष है उसका मनुष्य को ज्ञान नहीं होता है। बढ़े हुए अहंकार के कारण मनुष्य 'स्व' (आत्मा के सच्चे अर्थ को भूल ० जाता है। अब देखिए, 'स्वार्थ' माने 'स्व' का अर्थ समझ लेना जरुरी है। आज गंगा जिस जगह बह रही है, और अगर आप किसी दूसरी जगह जाकर बैठ जाएँ और कहने लगें कि गंगा इधर से बह रही है और हम गंगा के किनारे बेठे हैं तो ये जिस तरह हास्यजनक होगा उसी तरह ये बात है। आपके सामने आज जो साक्षात है उसी को स्वीकार कीजिए । श्री ख्रिस्त के समय भी इसी तरह की स्थिति थी। उस समय श्री ख्रिस्त जी ने कुण्डलिनी जागरण के अनेक यत्न किये। परन्तु महा मुश्किल से केवल २१ व्यक्ति पार हुए। सहजयोग में हजारों पार हुए हैं। श्री ख्रिस्त उस समय बहुतों को पार करा सकते थे परन्तु उनके शिष्यों ने सोचा श्री खिस्त केवल बीमार लोगों को ठीक करते हैं। उसके अतिरिक्त कुछ है उसका उन्हें ज्ञान नहीं था। इसलिए उनके सारे शिष्य सभी तरह के बीमार लोगों को उनके पास ले जाते थे। श्री ख्रिस्त ने बहुत बार पानी पर चलकर दिखाया क्योंकि वे स्वयं प्रणव थे। ॐकार रूपी थे। इतना सब कुछ था। तब भी लोगों के दिमाग में नहीं आया कि श्री खिस्त परमेश्वर के सुपुत्र थे। मुश्किल से उन्होंने कुछ मछुआरों को इकठ्ठा करके (क्योंकि और कोई लाग उनके साथ आने के लिए तैयार नहीं थे ) बड़ी मुश्किल से उन्होंने उन लोगों को पार किया। पार होने के बाद ये लोग श्री खिस्त के पास किसी न किसी बीमार को ठीक कराने ले आते थे। हमारे यहाँ सहजयोग में भी बहुत से बीमार लोग पार होकर ठीक हुए हैं। लोगों को जान लेना चाहिए कि अहंकार बहुत ही सूक्ष्म है। अब दूसरा प्रकार ये है कि अपने अहंकार के साथ लड़ना भी ठीक नहीं है। अहंकार से लड़ने से वह नष्ट नहीं होता है। वह अपने आप ('स्व') में समाना चाहिए। जिस समय अपना चित्त कुण्डलिनी पर केन्द्रित होता है व कुण्डलिनी अपने ब्रह्मरन्ध्र को छेदकर विराट में मिलती है उस समय अहंकार का विलय होता है। विराट शक्ति का अहंकार ही सच्चा अहंकार है। वास्तव में विराट ही वास्तविक अहंकार है। आपका अहंकार छूटता नहीं। आप जो करते हैं वह अहंकार है। अहंकरोति सः अहंकार: । आप अपने आप से पूछकर देखिए कि आप क्या करते हैं। किसी मृत वस्तु का आकार बदलने के सिवा आप क्या कर सकते हैं? किसी फूल से आप फल बना सकते हैं? ये नाक, ये मुँह, ये सुन्दर मनुष्य शरीर आपको प्राप्त हुआ है। ये कैसे हुआ है? आप अमीबा से मनुष्य स्थिति को प्राप्त हुए हैं। ये कैसे हुआ है? परमेश्वर की असीम कृपा कि आपको ये सुन्दर मनुष्य देह प्राप्त हुआ है। क्या मानव इसका बदला चुका सकता है? आप ऐसा कोई जीवन्त कार्य कर सकते हैं क्या? एक टेस्ट ट्यूब बेबी के निर्माण के बाद मनुष्य में इतने बड़े अहंकार का निर्माण हुआ है। उसमें भी वस्तुत: ये कार्य जीवन्त कार्य नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार आप किसी पेड़ का cross breeding करते हैं, उसी प्रकार किसी जगह से एक जीवन्त जीव लेकर यह क्रिया की है। परन्तु इस बात का भी मनुष्य को कितना अहंकार है। चाँद पर पहुँच गए तो कितना अहंकार । जिसने चाँद-सूरज की तरह अनेक ग्रह बनाए और ये सृष्टि बनायी उनके सामने आपका अहंकार क्या है? वास्तव में आपका अहंकार दाम्भिक है, झूठा है। उस विराट पुरुष का अहंकार सत्य है क्योंकि वही सब कुछ करता है। विराट पुरुष ही सब कुछ कर रहा है, ये समझ लेना चाहिए। तो श्री विराट पुरुष को ही सब कुछ करने दीजिए। आप एक यन्त्र की तरह है। समझ लीजिए मेैं किसी माईक में (माध्यम) है परन्तु बोलने का कार्य मैं कर रही हूँ व वह शक्ति माइक से बह रही है। उसी भाँति आप एक परमेश्वर के यन्त्र है। उस विराट ने आपको बनाया है। तो उस विराट की शक्ति को आप में से बहने दो। उस 'स्व' का मतलब समझ लीजिए। यह मतलब समझने के लिए आज्ञा चक्र, जो बहुत ही मुश्किल चक्र है और जिस पर अति सूक्ष्म तत्त्व ॐकार, प्रणव स्थित है, वही अर्थात श्री ख्रिस्त इस दुनिया में अवतरित हुए थे। अब कुण्डलिनी और श्री ख्रिस्त का सम्बन्ध जैसे सूर्य का सूर्य किरण से जो सम्बन्ध है, उसी तरह है, अथवा चन्द्र का चन्द्रिका से जो सम्बन्ध है उसी प्रकार है। से बोल रही हूँ व माईक में से मेरा बोला हुआ आप तक बह रहा है। माइक केवल साक्षी श्री कुण्डलिनी ने माने श्री गौरी माता ने अपनी शक्ति से, तपस्या से, मनोबल से व पुण्याई से श्री गणेश का निर्माण किया। जिस समय श्री गणेश स्वयं अवतरण लेने के लिए सिद्ध हुए उस समय श्री खिस्त का जन्म हुआ। इस संसार में ऐसी अनेक घटनाएऐं घटित होती हैं जो मनुष्य को अभी तक मालूम नहीं। क्या आप ये विचार करते हैं कि एक बीज में अंकुर का निर्माण कैसे होता है? आप श्वास कैसे लेते हैं? अपना चलन वलन (movement, action) कैसे होता है? अपने मस्तिष्क में कहाँ से शक्ति आती है? आप इस संसार में कैसे आये हैं? ऐसी अनेक बातें हैं। क्या मनुष्य इन सबका अर्थ समझ सकता हैं? आप कहते हैं पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है। लेकिन यह कहाँ से आयी हैं? आपको ऐसी बहुत सी बातें अभी तक मालूम नहीं हैं। आप भ्रम में हैं और इस भ्रम को हटाना जरुरी है। जब तक आपका भ्रम नहीं नष्ट होगा तब तक आप में वह बढ़ता ही जाएगा। इस संसार में मनुष्य की उत्क्रान्ति के लिए उसके भ्रम का नष्ट होना जरुरी है। जिस समय मनुष्य ने या और किसी भी जीव ने उत्क्रान्ति के लिए यत्न किए तब इस संसार में अवतरण हुए हैं आपको मालूम है कि श्री विष्णु श्री राम अवतार लेकर जंगलों में घूमते थे। जिससे मनुष्य ये जान ले कि एक आदर्श राजा को केसा होना चाहिए। इस लिए एक सुन्दर नाटक उन्होंने प्रदर्शित किया। इसी प्रकार श्री कृष्ण का जीवन था। और इसी तरह श्री येशु ख्िस्त का जीवन था। हुए श्री ख्रिस्त के जीवन की तरफ ध्यान दिया जाय तो एक बात दिखाई देती है। वह है उस समय लोगों की महामूर्खता, जिसके कारण इस महान व्यक्ति को सूली पर (फाँसी पर) चढ़ाया गया । इतनी मूर्खता कि 'एक चोर को छोड़ दिया जाए या श्री ख्रिस्त को? ऐसा लोगों से सवाल किया गया तो वहाँ के यहूदी लेगों ने श्री ख्रिस्त को फाँसी दी जाए यह माँग की। आज इन्हीं लोगों की क्या स्थिति है, ये आप जानते हैं। उन्होंने जो पाप किया है वह अनेक जन्मों में नहीं धुलने वाला। अभी भी ऐसे लोग अहंकार में डूबे हुए है। उन्हें लगता है, हमने बहुत बड़ा पुण्य कर्म किया है। अभी भी यदि उन लोगों ने परमेश्वर से क्षमा माँगी कि 'हे परमात्मा, आपके पवित्र तत्व को फाँसी देने के अपराध के कारण हमें आप क्षमा कीजिए । हमने आपका पवित्र तत्व नष्ट किया इसके लिए हमें माफ कीजिए' तो परमात्मा लोगों को तुरन्त माफ कर देंगे। परन्तु मनुष्य को क्षमा माँगना बड़ी कठिन बात लगती है। वह अनेक दुष्टता करता है। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सन्तों का पूजन किया है। आप श्री कबीर या श्री गुरुनानक की बात लीजिए। हर पल लोगों ने उन्हें सताया। इस दुनिया में लोगों ने आज तक हर एक सन्त को दुःख के सिवाय कुछ नहीं दिया। परन्तु अब में कहना चाहती हूँ कि अब दुनिया बदल चुकी है। सत्ययुग का आरम्भ हो गया है। आप कोशिश कर सकते हैं, पर अब आप किसी भी सन्त-साधु को नहीं सता पाऐँगे। इसका कारण श्री खिस्त हैं। श्री खरिस्त ने दुनिया में बहुत बड़ी शक्ति संचारित की है, जिससे साधुसन्त लोगों को परेशान करने वालों को कष्ट भुगतने पड़ेंगे। उन्हें सजा होगी । श्री खरिस्त के एकादश रुद्र आज पूर्णतया सिद्ध है। और इसलिए जो कोई साधु-सन्तों को सताएगा उनका सर्वनाश होगा। किसी भी महात्मा को सताना ये महापाप है। आप श्री येशु ख्रिस्त के उदाहरण द्वारा समझ लीजिए । इस प्रकार की मूर्खता मत कीजिए। अगर इस तरह की मूर्खता आपने फिर से की तो आपका हमेशा के लिए सर्वनाश होगा। श्री ख्रिस्त के जीवन से सीखने की एक बहुत बड़ी बात है। वह है 'जैसे रखूँ वैसे ही रहूँ' उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बदला। उन्होंने अपने आपको सन्यासी समझ कर अपने को समाज से अलग नहीं किया। उलटे वे शादी ब्याहों में गए। वहाँ उन्होंने स्वयं शादियों की व्यवस्था की। बायबल में लिखा है कि एक विवाह में एक बार उन्होंने पानी से अंगूर का रस निर्माण किया। ऐसा वर्णन बाइबल में है। अब मनुष्य ने केवल यही मतलब निकाला कि श्री खरिस्त ने पानी से शराब बनायी, अत: वह शराब पिया करते थे। आपने अगर हिब्रू भाषा का अध्ययन किया तो आपको मालूम होगा कि 'वाइन' माने शुद्ध ताजे अंगूर का रस। उसका अर्थ दारु नहीं है। 1 श्री खिस्त का कार्य था आपके आज्ञा चक्र को खोलकर आपके अहंकार को नष्ट करना। मेरा कार्य है आप की कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करके आपके सहस्त्रार का उसके (कुण्डलिनी शक्ति) द्वारा छेदन करना। ये समग्रता का कार्य होने के कारण हर एक के लिए मुझे ये करना है। मुझे समग्रता में श्री खिस्त, श्री गुरुनानक, श्री जनक व ऐसे अनेक अवतरणों के बारे में कहना है। उसी प्रकार र मुझे श्री कृष्ण, श्री राम , इन अवतारों के बारे में भी कहना है। उसी प्रकार श्री शिवजी के बारे में भी, क्योंकि इन सभी देव-देवताओं की शक्ति आप में है। अब समग्रता (सामूहिक चेतना) घटित होने का समय आया है। कलियुग में जो कोई परमेश्वर को खोज रहे हैं उन्हें परमेश्वर प्राप्ति होने वाली है। और लोखों की संख्या में लोगों को यह प्राप्ति होगी। इसका सर्व न्याय भी कलियुग में होने वाला है। सहजयोग ही आखिरो न्याय (Last Judgement) है । इसके बारे में बाइबल में वर्णन है। सहजयोग में आने के बाद आपका न्याय (Judgement) होगा। परन्तु आपको सहजयोग में आने के बाद समर्पित होना बहुत जरुरी है क्योंकि सब कुछ प्राप्त होने के बाद उसमें टिककर रहना व जमकर रहना, उसमें स्थिर होना, ये बहुत महत्त्वपूर्ण है। बहुत लोग हमें पूछते हैं,"माताजी हम स्थिर कब होंगे?" ये सवाल ऐसा है कि, समझ लीजिए आप किसी नाव में बैठकर जा रहे हैं। नाव स्थित हुई कि नहीं, ये आप जानते हैं। या ऐसा समझ लीजिए आप साईकिल चला रहे हैं। वह चलाते समय जब आप ड्रगमगाते नहीं है कि आप का सन्तुलन हो गया व आप जम गए। ये जिस प्रकार आपकी समझ में आता है उसी प्रकार सहजयोग में आकर स्थिर हो गए हैं, ये स्वयं आपकी समझ में आता है। यह निर्णय आपने स्वयं ही करना है। जिस समय सहजयोग में आप स्थित होते हैं उस समय निर्विकल्पता प्रस्थापित होती है। जब तक कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार नहीं कर जाती तब तक निर्विचार स्थिति प्राप्त नहीं होती। साधक में निर्विचारिता प्राप्त होना, साधना की पहली सीढ़ी है। जिस समय कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार करती है, उस समय निर्विचारिता स्थापित होती है। आज्ञा चक्र के ऊपर स्थित सूक्ष्म द्वार येशु ख्रिस्त की शक्ति से ही कुण्डलिनी शक्ति के लिए खोला जाता है और ये द्वार खोलने के लिए श्री खिस्त की प्रार्थना 'दी लार्डस् प्रेअर' बोलनी पड़ती है। ये द्वारा पार करने के बाद कुण्डलिनी शक्ति अपने मस्तिष्क में जो तालू स्थान (limbic area) है उसमें प्रवेश करती है। उसी को परमात्मा का साम्राज्य कहते हैं। कुण्डलिनी जब इस राज्य में प्रवेश करती है तब ही निर्विचार स्थिति प्राप्त होती है। इस मस्तिष्क के limbic area में वे चक्र है जो शरीर के सात मुख्य चक्र व और अन्य उप चक्रों को संचालित करते हैं। अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब होता है वह देखते हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य कारण आँखे हैं। मनुष्य को अपनी आँखों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि उनका बड़ा महत्त्व है अनधिकृत गुरु के सामने झुकने अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है। इसी कारण जीजस ख्रिस्त ने अपना माथा चाहे जिस आदमी या स्थान के सामने झुकाने को मना किया है। ऐसा करने से हमने जो कुछ पाया है वह सब नष्ट हो जाता है । केवल परमेश्वरी अवतार के आगे ही अपना सन माथा टेकना चाहिए। दूसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे को झुकाना ठीक नहीं। किसी गलत स्थान के सम्मुख भी अपना माथा नहीं झुकाना चाहिए। ये बात बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आपने अपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया तो तुरन्त आपका आज्ञा चक्र पकड़ा जाएगा। सहजयोग में हमें दिखाई देता है, आजकल बहुत ही लोगों के आज्ञा चक्र खराब हैं । इसका कारण है लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरु को मानते हैं। आँखों के अनेक रोग इसी कारण से होते हैं। ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा अच्छे पवित्र धर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए। अपवित्र साहित्य बिलकुल नहीं पढ़ना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं 'इसमें क्या हुआ? हमारा तो काम ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने पड़ते है जो पूर्णतः सही नहीं है।' परन्तु ऐसे अपवित्र कार्यों के कारण आँखे खराब हो जाती हैं। मेरी ये समझ में नहीं आता कि जो बातें खराब है वह मनुष्य क्यों करता है? किसी अपवित्र व गन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो सकता है। श्री खरिस्त ने बहुत ही जोर से कहा था कि आप व्यभिचार मत कीजिए। परन्तु मैं आपसे कहती है कि आप की नजर भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने इतने बलपूर्वक कहा था कि आपकी अगर नजर अपवित्र होगी तो आपको आँखों की तकलीफि होंगी। इसका मतलब ये नहीं कि अगर आप चष्मा पहनते है तो आप अपवित्र गलत व्यक्ति है। किसी एक उम्र के बाद चष्मा लगाना पड़ता है। ये जीवन की आवश्यकता है। परन्तु आँखे खराब होती हैं ये अपनी नजर स्थिर न रखने के कारण। बहुत लोगों का चिंत्त बार-बार इधर उधर दौड़ता रहता है। ऐसे लोगों को इसकी समझ नहीं कि आपनी आँखें इस प्रकार इधर उधर घुमाने के कारण ये खराब होती हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का दूसरा कारण है मनुष्य की कार्यपद्धति । समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति कर्मी हैं। अच्छे काम करते हैं। कोई भी बुरा काम नहीं करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से, फिर वह अति पढ़ना, अति सिलाई हो या अति अध्ययन हो या अति विचारशीलता हो । इसका कारण है कि जिस समय आप अति कार्य करते हैं उस समय आप परमात्मा को भूल जाते हैं। उस समय अपने में ईश्वर प्रणिधान स्थित नहीं होता। 1 1 1 कुण्डलिनी सत्य है। यह पवित्र है। ये कोई ढोंगबाजी या दुकान में मिलने वाली चीज़ नहीं है। ये नितान्त सत्य है। जब तक आप सत्य में नहीं उतरंगे, तब तक आप ये जान नहीं सकते। वाम मार्ग (गलत मार्ग) का अवलम्बन करके आप सत्य को नहीं पहचान सकते। जिस समय आप सत्य से एकाकार होंगे, तब ही आप जान सकते हैं कि सत्य क्या है, उसी समय आप समझेंगे कि हम परम पिता परमेश्वर के एक साधन हैं, जिसमें से परमेश्वरी शक्ति का वहन (प्रवाह) हो रहा है, जो परमेश्वरी शक्ति सारे विश्व में फैली हुई है, जो सारे विश्व का संचालन करती है। उसी परमेश्वरी प्रेम शक्ति के आप साधन हैं। इसमें श्री खिस्त का कितना बड़ा बलिदान है? क्योंकि उन्हीं के कारण आपका आज्ञा चक्र खुला है। अगर आज्ञा चक्र नहीं खुला तो कुण्डलिनी का उत्थान नहीं हो सकता, क्योंकि जिस मनुष्य का आज्ञा चक्र पकड़ता है उसका मूलाधार चक्र भी पकड़ा जाता है। किसी मनुष्य का आज्ञा चक्र बहुत ही ज्यादा पकड़ा होगा तो उसकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत नहीं होगी। आज्ञा चक्र की पकड़ छुड़वाने के लिए हम कुंकुम लगाते हैं। उससे अहंकार व आपकी अनेक विपत्तियाँ होती हैं। जब आपके आज्ञा चक्र पर कुंकुम लगाया जाता है तब आपका आज्ञा चक्र खुलता है व कुण्डलिनी शक्ति ऊपर जाती है। इतना गहन सम्बन्ध श्री ख्रिस्त व कुण्डलिनी शक्ति का है । जो श्री गणेश, मूलाधार चक्र पर स्थित रहकर आपकी कुण्डलिनी शक्ति की लज्जा का रक्षण करते हैं वही श्री गणेश आज्ञा चक्र पर उस कुण्डलिनी शक्ति का द्वार खोलते हैं। दूर यह चक्र ठीक रखने के लिए आपको क्या करना चाहिए? उसके लिए अनेक मार्ग हैं। किसी भी अतिशयता के कारण समाज दूषित होता है। और इसलिए किसी भी प्रकार की अतिशयता अनुचित है। संतुलितता से अपनी आँखों को विश्राम मिलता है। सहजयोग में इसके लिए अनेक उपचार हैं। परन्तु इसके लिए पहले पार होना आवश्यक है। उसके बाद आँखों के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम है जिससे आपका आज्ञा चक्र ठीक रह सकता है। इसमें एक हैं अपना अहंकार देखते रहना और अपने आपसे कहना 'क्यों? क्या विचार चल रहा है? कहाँ जा रहे हो?' जैसे कि आप आईने में अपने आपको देख रहे हैं। उससे अहंकार से ऑँखों पर आने वाला तनाव कम हो जाता है। इसका महत्त्वपूर्ण इलाका (क्षेत्र, अंचल) सिर के पिछले भाग का वह स्थल है जो माथे (भाल) के ठीक पीछे स्थित है। यह उस क्षेत्र में स्थित है जो गर्दन के आधार (back of the neck ) से आठ उंगलियों की मोटाई (लगभग पांच इंच) की ऊँचाई पर स्थित है। यह 'महागणेश' का अंचल (इलाका) है । श्री गणेश ने 'महागणेश' के रूप में अवतार लिया और वही अवतार जीजस ख्रिस्त का है। श्री ख्रिस्त का स्थान कपाल (खोपड़ी) के केन्द्र (मध्य) भाग में है और इसके चारों ओर एकादश रुद्र का साम्राज्य है। जीजस ख्रिस्त इस साम्राज्य के स्वामी हैं। श्री महागणेश और षड़ानन इन्हीं एकादश रुद्रों में से हैं। कुण्डलिनी जागृत होने के पश्चात यदि आप आँख खोलें तो अनुभव करेंगे कि आपकी आँखों की दृष्टि कुछ धुंधली हो गई है। इसका कारण यह है कि जब कुण्डलिनी जागृत होती है तब आपकी आँखों की पुतलियाँ कुछ फैल जाती हैं और शीतल हो जाती है। यह para sympathetic nervous system ( सुषुम्ना नाड़ी) के कार्य के फलस्वरूप होता है। जीजस ख्रिस्त के बारे में केवल सोचने से अथवा चिन्तन, मनन करने से आज्ञा चक्र को चैन प्राप्त होता है । साथ ही यह भी समझ लेना चाहिए कि जीजस ख्रिस्त के जीवन पश्चात निर्मित मिथ्या आचार-विचार या १० ० उत्तराधिकारियों की श्रृंखलाओं का अनुसरण जीजस ख्रिस्त का मनन-चिन्तन नहीं है । अब जो कुछ सनातन सत्य है वह में आपको बताऊँगी। सर्वप्रथम किसी भी स्त्री की तरफ बुरी दृष्टि से देखना महापाप है। आप ही सोचिए जो लोग रात दिन रास्ते चलते ख्त्रियों की तरफ बुरी नजरों से देखते हैं वे कितना महापाप कर रहे हैं? श्री ख़िस्त ने ये बातें २००० साल पहले आपको कही हैं। परन्तु उन्होंने ये बातें खुलकर नहीं कहीं थी और इसलिए यही बातें मैं फिर से आपसे कह रही हूं। श्री खिस्त ने ये बातें आपसे कहीं तो आपने उन्हें फाँसी पर चढ़ाया। श्री ख्रिस्त ने इतना ही कहा था कि ये बातें न करें, क्योंकि ये बातें गन्दी हैं । परन्तु ये करने से क्या होता है ये उन्होंने नहीं कहा था। गलत नजर रखने से उसके दुष्परिणाम क्या होते हैं, इसके बारे में उन्होंने कहा है। मनुष्य किसी पशु समान बर्ताव करता है क्योंकि रात दिन उसके मन में गन्दे विचारों का चक्र चलता रहता है। इसी कारण अपने योग शास्त्र में लिखा है अपनी चित्तवृत्ति को संभालकर रखिए और चित्त को सही मार्ग पर रखिए । अपना चित्त ईश्वर के प्रति नतमस्तक रखना चाहिए। हमें योग से बनाया गया है। हमारी भूमि योग भूमि है। हम अहंकारवादी नहीं है या हमारे में अहंकार आने वाला भी नहीं है। हमें अहंकारवादिता नहीं चाहिए । हमें इस भूमि पर योगी की तरह रहना है । एक दिन ऐसा आएगा जब हम सभी को योग प्राप्त होगा। उस समय सारी दुनिया इस देश के चरणों में झुकेगी। उस समय लोग जान जाएँगे श्री ख्रिस्त कौन थे।, कहाँ से आए थे और उनका इस भूमि पर यथाचित पूजन होगा। अपनी पवित्र भारत भूमि पर आज भी नारी की लज्जा का रक्षण होता है और उन्हें सम्मान दिया जाता है। अपने देश में हम अपनी माँ को मान देते हैं। अन्य देशों के लोग जब भारत में आएंगे तब वे देखेंगे कि श्री खिस्त का सच्चा धर्म वास्तव में भारत में अत्यन्त आदरपूर्वक पालन किया जा रहा है, ईसाई धर्मानुयायी राष्ट्रों में नहीं। श्री ख्रिस्त ने कहा कि अपना दोबारा जन्म होना चाहिए या आपको द्विज होना पड़ेगा। मनुष्य का दूसरा जन्म केवल कुण्डलिनी जागृति से ही हो सकता है। जब तक किसी की कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी तब तक वह दूसरे जन्म को प्राप्त नहीं होगा। और जब तक आपका दूसरा जन्म नहीं होगा तब तक आप परमेश्वर को पहचान नहीं सकते । आप लोग पार होने के बाद बाइबल पढ़िए। आपको आश्चर्य होगा कि उस में ख्रिस्त जी ने सहजयोग की महत्ता कही है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं । एक एक बात इतनी सूक्ष्मता में बताई है। परन्तु जिन लोगों को वह दृष्टि प्राप्त नहीं है वे इन सभी बातों को उल्टा स्वरूप दे रहे हैं। (मनमाने ढंग से उसकी व्याख्या कर रहे हैं।) वास्तव में बाप्तिस्म (baptism) देने का अर्थ है कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना और उसके बाद उसे सहस्त्रार तक लाना, तद्नन्तर सहस्त्रार का छेदन कर परमेश्वरी शक्ति और अपनी कुण्डलिनी शक्ति का संयोग घटित करना। यही कुण्डलिनी शक्ति का ११ ORFIOKED आखिरी कार्य है। परन्तु इन पादरियों को बाप्तिस्म की जरा भी कल्पना नहीं है। उल्टे वे अनाधिकार चेष्टा करते हैं, या फिर ऐसे ये पादरी भूत कामों में लग हैं। गरीबों की सेवा करो, बीमारों की सेवा करो हुए वगैरा। आप कहेंगे माताजी ये तो अच्छे हैं। हाँ ये अच्छा है, परन्तु ये परमात्मा का कार्य नहीं है। परमात्मा का ये कार्य नहीं है कि पैसे देकर गरीबों की सेवा करें। परमेश्वर का कार्य है आपको उनके साम्राज्य में ले जाना और उनसे भेंट कराना। आपको सुख, शान्ति, समृद्धि शोभा व ऐश्वर्य इन सभी बातों से परिपूर्ण करना, यही परमेश्वर का कार्य है। कोई मनुष्य चोरी करता है या झूठ बोलता है या गरीब बनकर घूमता है, परमात्मा ऐसे मनुष्य के पांव नहीं पकड़ेंगे। ये सेवा का काम है, जो कोई भी मनुष्य कर सकता है। कुछ क्रिश्चन लोग धर्मान्तर करने का काम करते हैं। जहाँ कुछ आदिवासी लोग होंगे वहाँ वे (क्रिश्चन लोग) जाएँगे। वहाँ कुछ सेवा का काम करेंगे। फिर सब को क्रिश्चन बनायेंगे। परन्तु एक बात समझना चाहिए कि ये परमात्मा का काम नहीं है। परमात्मा का कार्य अवाधित है। सहजयोग में लोगों की कुण्डलिनी जागृत करते ही लोग ठीक हो जाते हैं। हम सहजयोग में दिखावटी दयालुता का काम नहीं करते। परन्तु अगर हम किसी अस्पताल में गए तो २५- ३० बीमार को सहज (आसानी से) स्वस्थ कर सकते हैं । उनकी कुण्डलिनी जागृत करते ही वे अपने आप स्वस्थ हो जाते हैं। श्री खिस्त ने उनमें बह रही उसी प्रेमशक्ति के द्वारा अनेक लोगों को स्वस्थ किया । श्री ख़िस्त ने कभी किसी भी भौतिक वस्तुओं से सहायता नहीं की। ये सब बातें आपको सुज्ञता (सूक्ष्मता) से समझ लेना आवश्यक है। पहले की गयी गलतियों की पुनरावृत्ति मत कीजिए। आप स्वयं साक्षात्कार प्राप्त कीजिए। ये आपका प्रथम कार्य है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आपकी शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं। इन जागृत शक्तियों से सहजयोग में कर्क रोग (कैन्सर) जैसी असाध्य बीमारियाँ ठीक हुई हैं। आप किसी को भी रोगमुक्त करा सकते हैं। कैन्सर जैसी असाध्य बीमारियाँ केवल सहजयोग से हौ ठीक हो सकती हैं। परन्तु लोग ठीक होने के बाद फिर से अपने पहले मार्ग और आदतों पर चले जाते हैं । ऐसे लोग परमात्मा को नहीं खोजते। उन्हें अपनी बीमारी ठीक कराने के लिए परमेश्वर की याद आती है। अन्यथा उन्हें परमात्मा को खोजने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। जो मनुष्य परमात्मा का दीप बनना नहीं चाहते, उन्हें परमात्मा क्यों ठीक करे? ऐसे लोगों को ठीक किया या नहीं किया, उन से दुनिया को प्रकाश नहीं मिलने वाला। परमात्मा ऐसे दीप जलाऐंगे जिनसे सारी दुनिया प्रकाशमय हो जाएगी। परमात्मा मूर्ख लोगों को क्यों ठीक करेंगे। जिन लोगों में परमेश्वर प्रीति की इच्छा नहीं, परमेश्वर का कार्य करने की इच्छा नहीं, ऐसे लोगों को परमात्मा क्यों सहायता करें? गरीबी दूर करना अथवा अन्य सामाजिक कार्यों को ईश्वरीय कार्य नहीं समझना चाहिए । कुछ लोग इतने निम्न स्तर पर परमेश्वर का सम्बन्ध जोड़ते हैं कि एक जगह दुकान पर 'साईनाथ बीड़ी लिखा हुआ था। यह परमेश्वर का मज़ाक उड़ाना, परमात्मा का सरासर अपमान करना है। सभी बातों में मर्यादा होनी चाहिए। हर एक बात परमात्मा से जोड़कर आप महापाप करते हैं, ये समझ लीजिए। 'साईंनाथ बीड़ी' या 'लक्ष्मी हींग' ये परमात्मा का मज़ाक उड़ाना हुआ। ऐसा करने से लोगों को क्या लाभ होता है? कुछ लोग कहते हैं 'माताजी, इससे हमारा शुभ हुआ है। शुभ का मतलब है ज्यादा पैसे प्राप्त हुए। इस तरह से धन्धा करने से कष्ट होगा। इससे परमात्मा का अपमान होता है। श्री खरिस्त ने सारी मनुष्य जाति के कल्याणार्थ व उद्धारार्थ जन्म लिया था वे किसी जाति या समुदाय की निजी सम्पदा नहीं थे। वे स्वयं ॐ कार रूपी प्रणव थे। सत्य थे। परमेश्वर के अन्य जो अवतरण हुए उनके शरीर पृथ्वी तत्त्व से बनाये गये थे। परन्तु श्री खरिस्त का शरीर आत्म तत्त् से बना था। और इसलिए मृत्यु के बाद उनका पुनरुत्थान हुआ। और उस पुनरुत्थान के बाद ही उनके शिष्यों ने जाना कि वे साक्षात् परमेश्वर थे । बाद में तो फिर उनके नाम का नगाड़ा बजने लगा, उनके नाम का जाप होने लगा और उनके बारे में भाषण होने लगे । वे परमात्मा के अवतरण थे, यह मुख्य बात है। यदि लोग उनके उस स्वरूप को, अवतरण को पहचान कर अपनी आत्मोन्नति करें तो चारों तरफ आनन्द ही आनन्द होगा। 131 आप सब लोग परमेश्वर के योग को प्राप्त हों। अनन्त आशीर्वाद! (मूल मराठी से अनुवादित) १३ डा ा ता क्या आपकी प्रगति अच्छी हो रही है ? सहस्रार दिवस, ५ मई, फ्रान्स आ् से गुज़रना है जैसे की यह महल। यह उन तपस्या के नज़ारों में से एक है पको पूर्ण समर्पित मन से इस यात्रा जिसे आपको करना है। क्योंकि मुझे यह बताया गया है कि आपको आपके इस यात्रा के दौरान कुछ कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। पर उन सब जगहों तक पहुँचना बड़ा ही रोमांचक होता है जहाँ शैतानों को जाने की हिम्मत नहीं होती। और अगर आपको ज्ञान हो जाए कि किस तरह से तथाकथित असुविधा का भी आनन्द उठाया जा सकता है तो फिर आप समझ लीजिए कि आप सही रास्ते पर चल रहे हैं। और जैसे ही आप अपने आप विचारशील बनने लग जाएं आपको जान लेना चाहिए कि आप की प्रगति अच्छी तरह से हो रही है। जैसे-जैसे आप शांत होते है और आपका गुस्सा हवा में गायब हो जाता है। यह देख कर भी कोई आप पर वार कर रहा है या आप के ऊपर कोई मुसीबत आ रही है और आप फिर भी उसकी चिन्ता नहीं कर रहें हैं तो समझ लीजिए कि आपकी १४ अच्छी प्रगति हो रही है। जब किसी भी तरह की कृत्रिमता आपको प्रभावित नहीं कर सकती तो समझ लीजिए कि आप की अच्छी प्रगति हो रही है। जब दूसरों की धन-सम्पत्ति से आपको कोई जलन न हो, आप बिलकुल दुःखी नहीं हो रहे हों, तो समझ लीजिए कि आपकी अच्छी प्रगति हो रही है। सहजयोगी बनने के लिए किसी तरह की तकलीफ उठाना या मेहनत करना ही पर्याप्त नहीं है। चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें पर आप सहजयोगी नहीं बन सकते। जबकि आपको यह बिना किसी प्रयास के प्राप्त हुआ है, इसलिए आप कुछ तो खास हैं। इसलिए एक बार जब आपको पता चल जाए कि आप कुछ तो खास हैं, आप उसके लिए विनम्र हो जाएंगे। जब आप में ऐसा होता है कि आप कुछ हासिल करने के बाद नम्र हो जाते हो, कि आप में कुछ शक्तियाँ हैं, कि आप अबोधिता को प्रदर्शित कर रहे हो, कि आप विचारशील हैं। और उसके कारण आप और भी अधिक करुणामय, विनम्र और मधुर व्यक्तित्व बन जाते हो तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप श्री माताजी के हृदय में हैं। यह एक नये युग के सहजयोगी की पहचान है जिसे नए सामर्थ्य से आगे बढ़ना है। और वहाँ आप इतनी तेजी से प्रगति कर सकते हैं कि तब ध्यान न करते हुए भी ध्यान में रहेंगे। मैरी मौजूदगी न होने पर भी आप मेरी मौजूदगी महसूस करेंगे। बिना माँगे ही, आप परमात्मा से आशीर्वादित हो जाएंगे। यही है जिसके लिए यहाँ आप मौजूद हैं और इस नए युग में एक बार फिर, इस सहस्रार दिवस पर, मैं आप सब का स्वागत करती हैं। परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें। ॐ बॉम S menta fin seche आप उनमें से बनिए जो दस 'अच्छे' आदमी हैं मुंबई - १ फरवरी १९७५ ु अ धिकतर लोगों को मैं ये देखती हैँ, इधर - उधर की पचासों बातें करेंगे, लेकिन ध्यान की बात, अपने मनशुद्धि की बात, अपने अन्दर के आनन्द को उभारने की बात कितने लोग आप लोगों में से करते हैं? "इसने ये कहा, उसने वो कहा, ऐसा हो गया, ऐसा नहीं करना चाहिए था, वैसा नहीं करना चाहिए था" ये क्या सहजयोगी को शोभनीय होगा? जब आपके पास निर्विचार की इतनी बड़ी सम्पत्ति है, तो क्या उसको पूरी तरह से उखाड़ देना चाहिए या नहीं। ये तो आप जानते हैं कि क्षण क्षण आप उसे पा रहे हैं और हर एक क्षण उसे आप खो भी रहे हैं। ये हरेक क्षण कितना महत्त्वपूर्ण है, इसे आप देखिए । कौनसी छोड़ने की बात, कौनसी पकड़ने की बात, कोई भी ऐसी बात मैंने आप से आज तक तो की नहीं होगी। लेकिन ये आपका भ्रम है। आपका मन आपको भ्रम में ड्राले दे रहा है। तो तुम क्या घर गृहस्थी छोड़ दोगी? मैंने घर-गृहस्थी छोड़ी है जो आपसे मैं घर-गृहस्थी छोड़ने को कहती हूँ? आप जानते हैं कि आपसे कहीं अधिक मैं मेहनत करती हैं। लेकिन मैं थकती नहीं हूँ क्योंकि मेरे आनन्द का स्रोत आप लोग हैं। जब आपको देख लेती हैँं, बस, खुश हो जाती हैँ। तबीयत सारी बाग-बाग हो जाती है। जिस चीज़ का महत्त्व है, उधर दृष्टि रखिए। आप को पूरी तरह से मैं ये नहीं कहती कि चौबीसों घण्टे इसमें आप यहीं बैठे रहिए! जहाँ भी बैठे हैं, वहाँ बैठे रहिए - ये मतलब है मेरा। जहाँ भी जमे हैं वहाँ जमे रहिए, अपने स्थान पर, अपने सिंहासन पर । कुछ लोग इसलिए प्रगति करते हैं और कुछ लोग नहीं करते। शारीरिक बीमारियां आप लोगों की, बहुतों की ठीक हो गई हैं। बहुतों के पास बीमारियां नहीं है। लेकिन अभी भी मानसिक प्रश्न हैं। सब बातें भूल जाइए। हर इन्सान इसको पाने का अधिकारी है। आपका जन्मसिद्ध हक है, क्योंकि ये 'सहज' है, आप ही के साथ पैदा हुआ है। लेकिन ध्यान करना ही होगा और वो भी समष्टि में लेकिन उसको उसकी व्यवस्था करने की आप इतनी चिन्ता नहीं करें। वो कार्य हो रहा है, वो हो भी जाएगा । क्या हर्ज है अगर दस आदमी ज्यादा आए चाहे दस आदमी कम । हजार बेकार के लोग रखने से दस ही कायदे के आदमी हों सो ही सहजयोग के लिए 'विशेष चीज' है। organise करने की आप लोग इतनी चिन्ता न करें। १८ प ४. रा आप उनमें से बनिए जो दस 'अच्छे' आदमी हैं। जो ऐसे लोग हैं, जो सहजयोग का कार्य अत्यंत प्रेम से करते हैं और उसमें मजा उठा रहे हैं, उसमें बह रहे हैं, उसमें अग्रसर हैं और एक अग्रिम श्रेणी में जाकर के खड़े हो जाते हैं जैसे कि हिमालय संसार में सबसे ऊँचा है। उसकी ओर सबकी दृष्टि रहती है। ऐसे ही आप बनें। आप ही में आप हिमालय बन सकते हैं और आप देख सकते हैं कि दुनिया आप की ओर आँख उठा कर कहे कि बनूँ तो मैं इस आदमी जैसा बनूँ जो सहजयोग में इतना ऊँचा उठ गया । ये अन्दर का उठना होता है, बाहर का नहीं। और मैं सबके बारे में जानती हैँ कौन कहाँ तक पहुँच रहा है। आप ही अपनी रुकावट हैं और कोई आप की रुकावट नहीं कर सकता। कोई भी दुनिया का आदमी आप पर मंत्र-तंत्र आदि 'कोई चीज़ नहीं ड्ाल सकता। आप ही अपने साथ अगर खराबी न करें और पहचाने रहें कि कौन आदमी कैसी बातें करता है, आप खुद ही समझ लेंगे कि इस आदमी में कोई न कोई दुष्टता आ गई है, तभी वो ऐसी बातें कर रहा है, नहीं तो ऐसी बात ही न करता वो। जैसे गलत बात वो कर रहा है, इसमें कोई न कोई खराबी है। उसमें साथ देने की कोई जरूरत नहीं। फिर चाहे वो आपका पति ही हो, चाहे आपकी वो पत्नी हो। उससे लड़ाई-झगड़ा करने की, उलझने की 'कोई' जरूरत नहीं। वो अपने आप ही ठीक हो जाएगा। इतना ही नहीं आप ये भी जानते हैं कि आपमें कोई खराबी आ जाए तो आप किस तरह से उसे हाथ चला कर भी ठीक कर सकते हैं, क्योंकि आपके हाथ के अन्दर ही वो चीजें बह रही है। असल में आपकी उंगलियों में ही ये सब जो भी देवता मेंने बताए हैं ये जागृत हैं, इन पाँचों उंगलियों में और इस हथेली में, सारे देवता यहाँ जागृत हैं। लेकिन बहुत जरूरी है कि इन जागृत देवताओं का कहीं भी अपमान न हो। इन को बहुत ही संभाल के और जतन से रखना चाहिए। इनकी पूजा होनी चाहिए। अपने हाथ ऐसे होने चाहिए कि पूजनीय हों । लोग ये सोचें कि ये हाथ हैं या गंगा की धारा ! गंगा ही की धारा बहें । जिस वजह से गंगा पावन हुई वही वाइब्रेशन (चैतन्य, आपके अन्दर से बह रहे हैं । जिस चैतन्य शक्ति से सारी सृष्टि चल रही है, वही आपके अन्दर से बह रही है, ये आप जानतेहैं। फिर जिन हाथों से, जिन पाँव से ये चीज बह रही है, उसको 'अत्यन्त पवित्र' रखना चाहिए। मेरा मतलब 'धोन-धवाने' से नहीं है। इससे जो भी आप काम करें, अत्यन्त सुन्दरता से, सुगमता से और 'प्रेम' से होना चाहिए। 'सबसे बड़ी' चीज प्रेम' है। १९ ি ० ये वाइब्रेशन सिर्फ "प्रेम'" है २० ध्या. वमें गति करना, यही आपका कार्य है, और कुछ भी आपका कार्य नहीं है, बाकी सब हो रहा है। और आप में से अगर कोई भी जब ये सोचने लगेगा कि मैं ये कार्य करता हूँ और वो कार्य करता है, तब आप जानते हैं कि मैं अपनी माया छोड़ती हूँ और बहुतों ने उस पर काफी चोट खाई हैं। वो में करूँगी। पहले ही मैंने आप से बता दिया है, कि कभी भी नहीं सोचना है कि में ये काम करता हूँ या वो काम करता हूँ।"हो रहा है।" जैसे "ये जा रहा है और आ रहा है।" अब सब तरह से अकर्म में-जैसे कि सूर्य ये नहीं कहता कि में आपको प्रकाश देता हूँ। "वो दे रहा है।" क्योंकि वो एकतानता में परमात्मा से, इतनी प्रचण्ड शक्ति को अपने अन्दर से बहा रहा है। ऐसे ही आपके अन्दर से 'अति' सूक्ष्म शक्तियाँ बह रही हैं क्योंकि आप एक सूक्ष्म मशीन हैं। आप सूर्य जैसी मशीन नहीं हैं, आप एक 'विशेष' मशीन हैं, जो बहुत ही सूक्ष्म है, जिसके अन्दर से बहनेवाली ये सुन्दर धाराएं एक अजीब तरह की अनुभूति देंगी ही, लेकिन टूसरों के भी अन्दर उनके छोटे-छोटे यंत्र है, मशीनें हैं, उनको एकदम से प्रेमपूर्वक ठीक कर देंगे। ये जो शक्ति है, ये प्रेम की शक्ति है। इस चीज का वर्णन कैसे करूँ मैं आप से? इस मशीन को ठीक करना है, तो आप किसी भी चीज से रगड़-मगड़ कर के ठीक कर दें, कोई आप screw (पेच) लगा दें, तो ठीक हो जाएगा। लेकिन मनुष्य की मशीन जो है वो प्रेम से ठीक होती है उसको बहुत जख्मी पाया है। बहुत जख्म हैं उसके अन्दर में । बहुत दुःखी है मानव। उसके जख्मों को प्रेम की दवा से आपको ठीक करना है। जो आपके अन्दर से बह रहा है, ये वाइब्रेशन सिर्फ "प्रेम" है। जिस दिन आपकी प्रेम की धारा ट्ूट जाती है, वाइब्रेशन रुक जाते हैं। बहुत से लोग मुझसे कहते हैं "माताजी हमको बाधा हो गई। हमारे हाथ से वाइब्रेशन बंद हो गए।" आपके अन्दर से प्रेम की धारा टूट गई। प्रेम का पल्ला पकड़ा रहे, सिर्फ प्रेम का - वाइब्रेशन बहते रहेंगे। क्योंकि ये ही प्रेम परमात्मा का जो है, वही बहे जा रहा है और वही बह रहा है। ा कि इतनी अद्भुत अनुभूति है, इतना अद्भुत समां आया हुआ है। क्या ये सब व्यर्थ हो जाएगा क्योंकि आप ने इसमें पूरी लगन से मेरा साथ नहीं दिया? हरेक बात आप खुद भी जान सकते हैं, और न जानने पर मैं भी आपसे हरेक बात बताने के लिये हमेशा तैयार रहती हैं। लेकिन थोड़ासा इसमें एक आप से सुझाव देने का है, कि आप इसके अधिकारी तो हैं या नहीं, इसे सोच लीजिए। क्योंकि आप मेरे ध्यान में आते हैं-जैसे मराठी में बहुत से लोग कहते हैं, - "जमून आले" इससे आप अधिकारी 'नहीं होते। आप अधिकारी इसलिये होते हैं, कि आपके अन्दर वो गहराई आ गई। जैसे एक घाघर है। जितनी गहरी होगी, उतना पानी उसमें समा जाएगा। अब अगर वो नहीं है तो उसमें पानी डालने से क्या फायदा, वो तो सब पानी निकल ही जाएगा। अपनी गहराई आप ध्यान से बढ़ाते हैं। ध्यान पर स्थित होईये। ध्यान में जाईये। ध्यान में जो विचार आ रहे हैं उनकी ओर देखते ही आप निर्विचार हो जाएंगे। निर्िचार होते ही उस अचेतन मन में 'अचेतन', सुप्त चेतन नहीं कहेंगे- अचेतन मन में अपनी चेतना के सहित आप जाएंगे। आपकी चेतना, आपकी consciousness खत्म नहीं होती। वहां आप चेतना को जानेंगे। ये पहली मर्तबा इंसान के शरीर के अन्दर हुआ है, कि आप अपना भी शरीर जानते हैं और दूसरों का भी जानते हैं। और दूसरों के बारे में आप सामूहिक चेतना से जानते हैं कि इसके अन्दर क्या हो रहा है। इसका महत्त्व अभी बहुत कम लोग जानते हैं। क्योंकि सब लोग मुझसे कहते हैं कि "माताजी, सबसे अगर आप रुपया लें, तो सब लोग समझेंगे क्योंकि लोग पैसों को बहुत मानते हैं।" पैसा एक भूत है। पैसा लेने से अगर आप इसका महत्त्व समझे तो बेहतर है कि आप न ही समझें। कोई भी पैसा देने से इसका महत्त्व आप नहीं समझ सकते। अपने को ही पूरी तरह से देना होगा और वो देने में कितना मिलनेवाला है। जो आप सात गुने खड़े हुए हैं वो तो एकदम साक्षात मिल जाएगा। २१ है० की (० p৮ य बना घड़ी -सहजयोग और ध्यान के लिए स हजयोग में सबसे आवश्यक बात यह है कि इसमें अग्रसर होने के लिए, बढ़ने के लिए आपको ध्यान करना पड़ेगा। ध्यान बहुत जरूरी है। आप और चाहे कुछ भी न करें लेकिन अगर आप ध्यान में स्थित रहें, तो सहजयोग में प्रगति हो सकती है। जैसे कि मैने आपसे कहा था कि एक ये नया रास्ता है। नया आयाम है, dimension है; नई चीज़ है जिसमें आप कूद पड़े है। आपके अचेतन मन में, उस महान सागर में आप उतर गएं है, बात तो सही है। लेकिन उसकी गहराई में अगर उतरना है, तो आपको ध्यान करना पड़ेगा । मैं बहुत से लोगों से ऐसा भी सुनती हूँ कि "माताजी, ध्यान के लिए हमको समय नहीं मिलता है।" आज का जो आधुनिक मानव (modern man) है, उसके पास घड़ी रहती है हर समय बचाने के लिए, लेकिन वो ये नहीं जानता है कि वो time किस चीज़ के लिए बचा रहा है? उसने घड़ी बनाई है वो सहजयोग के लिए बनाई है ये वो जानता नहीं है। एक साहब मुझ से कहने लगे कि "मुझे लन्दन जाना बहुत जरूरी है। और इसी Plane (हवाई जहाज) से जाना ही है और किसी तरह मेरा टिकट बुक होना ही चाहिए और कुछ कर दीजिए आप और एअर-इंडिया वालों से कह दीजिए और कुछ कर दीजिए।" मैने कहा "ऐसी कौनसी आफत है? आप लन्दन क्यों जाना चाहते हैं? क्या विशेष कार्य आप वहाँ करनेवाले हैं? कौन सी चीज है?" कहने लगे, "Imust go there, I have to save time" (मुझे जाना जरूरी है, मुझे समय बचाना है) "time is very important" (समय बहुत मूल्यवान है)। मैंने कहा आखिर बात क्या हैं? ये time बचा कर भागे-भागे आप वहाँ क्यों जा रहे है? तो कहने लगे "वहाँ एक special dinner है (विशेष भोज) वो मुझे attend करना है, और उसके बाद वहाँ पर bal है।" time आप बचा किसलिये रहे हैं? हर समय, आप ये सोच लीजिए कि जो हाथ में घड़ी बंधी है, ये सहजयोग के लिए और 'ध्यान' के लिए है। और सहजयोग के ही कार्य के लिए बाँधी हुई है, मैंने उसी लिये बाँधी है, नहीं तो मैं कभी भी नहीं बाँधती । जिस आदमी का पूरा ही समय सहजयोग में बीतता है, उसको जरूरी नहीं कि आप घर का काम न करें। ये जरूरी नहीं कि आप २२ सु प ०र प्रान र कुभ पंद्र a n हि ० (ु ह ा ० ইং दफ्तर का काम न करें सारा ही कार्य आप करें पर 'ध्यान में करें। ध्यानावस्थित होकर के कार्य हो सकता है क्योंकि आप को ध्यान में उतार दिया है। हरेक काम करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं और निर्विचार होते ही उस काम की सुन्दरता, उसका 'सम्पूर्ण' ज्ञान और उसका सारा आनन्द आप को मिलने लग जाता है। समझने की बात है, यह लोग समझते नहीं है। इसलिए ध्यान के लिए अलग से time नहीं मिलता है, झगड़ा शुरू हो जाता है। लेकिन जब इसका मजा आने लगता है, तब आपको आश्चर्य होगा कि नींद बहुत कम हो जाती है और आप ध्यान में चले जाते हैं। निद्रा में भी आप सोचेंगे कि आप ध्यान में जा रहे है। कोई भी चीज छोड़ने की या कम करने की नहीं। लेकिन हमारी जो महत्त्वपूर्ण चीजें हैं जिसे हम महत्वपूर्ण समझते हैं, वो बिलकुल ही महत्त्वपूर्ण नहीं रह जातीं । और जिसको हम बिल्कुल ही विशेष नहीं समझते है, वो हमारे लिये 'बहुत कुछ हो जाता है। ध्यान करने के लिए एक छोटी सी चीज आपको याद रखनी चाहिए, कि जिस चीज़ पर ध्यान का आलाप छेड़ा जाएगा, जिस वीणा पर ये सुन्दर गीत बजनेवाला है, वह साफ होनी चाहिए। आप वह वीणा नहीं है, आप वह आलाप भी नहीं हैं, लेकिन आप उसको सुननेवाले हैं और उसको बजाने वाले हैं। आप उसके मालिक हैं। इसलिए अगर वो वीण। कुछ बेसुरी हो, उसके अगर तार जंग खा जाएं या उसके कुछ तार टूट जाएं, तो आपको जरूरी है कि उसको ठीक कर लेना चाहिए। अगर वो ठीक नहीं है, तो आपके जीवन में माधुर्य नहीं है। आप में वो सुन्दरता नहीं आ सकती, आप में एक अजीब तरह का चिड़चिड़ापन, अरीब तरह की रूक्षता (dryness) और विचलितता दृष्टिगत होगी। एक सहजयोगी को एकदम निश्चित मति से ध्यान में बैठे देखना बहत बड़ी चीज़ हो जाती है मेरे लिए। और वही मैं देखती हूँ कि कुछ सहजयोगी गहराई से अन्दर चले जा रहे हैं और कुछ सहजयोगी बहुत विचलित हैं। ये नहीं मैं कहती कि सभी लोग उतनी दशा में पहुँच सकते हैं या नहीं। लेकिन जो कुछ भी बन पड़े वो इस जीवन में करना ही' चाहिए। उपार्जन का जितना भी समय है, वो इसी में बिताना चाहिए। और जो कुछ भी मिल सके, सभी इसी में मिलना चाहिए बाकी कुछ हो या नहीं । २३ ा] सेल जा र० सारे संसार के आप प्रकाश दीप हो, आपस में भाई- बहन हो । एँ एकाकार बनिए तन्मय हो यात जाइए, से ंज जागृत हो ० जाइए। .अ |ु. क] ा ध्यान में निष्क्रियता लण्डन, १९८० ৩सी तरह से चैतन्य है । चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, वे वितरित हो रही हैं। आपने अपने स्वयं को इनके लिए उधेड़ के रखना है। बहुत अच्छा होगा कि आप कोई क्रिया न करें, चाहे जहाँ भी समस्या हो, आप उसकी चिन्ता न करें। मेंने कई बार देखा है कि ध्यान करते समय अगर कोई चक्र पकड़ता है तो लोगों का ध्यान वही लगा रहता है आपको बिलकुल भी चिन्ता नहीं करनी है, आप उसे जाने दीजिए और वह अपने आप कार्य करेगा। इसलिए आपको कोई क्रिया नहीं करनी है, यही है ध्यान । ध्यान का मतलब है स्वयं को भगवान की कृपा पर छोड़ देना। अब यही कृपा जानती है कि आपको किस तरह से ठीक करना है इसे ज्ञान है कि किस तरह से आपको सुधारना है। आपके अन्तः में कैसे बसना है। आपकी आत्मा को किस तरह से प्रज्वलित रखना है। इसे सब पता है। इसलिए आपको चिन्ता करने की जरुरत नहीं है कि आपको क्या करना है या कौन से नाम बोलने है, कौन से मन्त्रों का उच्चार करना है? ध्यान में आपको पूर्णत: निष्क्रिय रहना है। अपने को पूरी तरह से उधेड़ रखें और उस वक्त आपको पूरी तरह से निर्विचार रहना है। समझ लीजिए हो सकता है कि आप निर्विचार में न हो। ऐसी दशा में आप सिर्फ विचारों पर नज़र रखें, उनमें उलझना नहीं है। आप देखेंगे कि जैसे जैसे सूरज उगता है वैसे वैसे अंधेरा चला जाता है और सूरज की किरणें हर एक कोने कोने तक पहुँचती हैं और सारी जगह को प्रकाशित कर देती है। उसी तरह से आप भी प्रकाशित हो जाएंगे। अपने अन्दर की कुछ चीज़ों को रोकने की कोशिश करेंगे या फिर बंधन देंगे, तो वह ना होगा निष्क्रियता ही ध्यान करने का एक तरीका है। आपको इसके प्रति जड़वत नहीं होना चाहिए। आपको सतर्क होना चाहिए और उस पर नज़र रखनी चाहिए। ा। दूसरी ओर हो सकता है कि लोग झपक जायें । नहीं ! आपको सतर्क रहना है। अगर आप झपक जायें तो कुछ भी कार्यान्वित नहीं होगा। वह इसका दूसरा पहलू है। अगर आप उसके प्रति सुस्त रहेंगे तो कुछ भी कार्य नहीं होने वाला। आपको सतर्क और खुलकर रहना चाहिए । एकदम सचेत, सम्पूर्ण निष्क्रिय, पूर्णतः निष्क्रिय होना चाहिए। अगर आप पूर्णतया निष्क्रिय होंगे तो ध्यान पूर्णतया कार्य करेगा । आप अपनी समस्याओं के बारे में बिलकुल भी न सोचें । चाहे आपका कोई भी चक्र पकड़ता हो, कुछ भी हो, सिर्फ, अपने को प्रस्तुत करें । देखिए जब सूर्य चमकता है तब निसर्ग अपने आपको सूर्य को प्रदर्शित करता है और निष्क्रियता से सूर्य का आशीर्वाद लेता है, वह बिना क्रिया किए लेता है। वह सिर्फ अपने आप लेता है। जब वह सूर्य की रोशनी लेता है। तब सूर्य की किरणें क्रिया करने लगती हैं और क्रियान्वित होती हैं। उसी तरह से परम चैतन्य शक्ति कार्य करने लगती है । आपको उसके लिए कोई युक्ति नहीं करनी। उसके लिए आपको कुछ भी नहीं करना है। सिर्फ निष्क्रिय रहिए, बिलकुल निष्क्रिय कोई भी नाम नहीं लेना, अगर आपकी आज्ञा पकड़ रही है या कुछ और पकड़ रहा है, इसकी आप कोई चिन्ता न करें -वह सब कार्यान्वित हो रहा है। यह तब तक होगा जब तक यह कार्यान्वित हो सकता है और यह वह करामात करेगा जो इसे करना है। आपको उसके बारे में चिन्ता नहीं करनी है। यह अपने कर्तव्य को जानती है। वास्तव में जब आप क्रिया करते हैं, तब आप इसकी राह में बाधा बन जाते हैं। इसलिए कोई प्रयास करने की जरुरत नहीं है, एकदम निष्क्रिय रहिए और कहिए कि जाने दो, जाने दो, बस यही । कोई मन्त्र नहीं बोलना है । अगर ऐसा करना आपके लिए मुश्किल हो तो फिर आप मेरा नाम ले सकते हैं पर इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। जब आप अपना हाथ मेरी और करते हैं तब वही मन्त्र है। ये चेष्टा ही अपने आप में एक मन्त्र है। देखिए इसके अलावा आपको कुछ और नहीं बोलना है। पर मन में इच्छा के साथ भावना भी होनी चाहिए। अब हमने उसके लिए हाथ फैला दिए है और वह कार्यान्वित होने वाला है। जब यह भावना परिपूर्ण होगी तो मन्त्र बोलने की कोई जरुरत ही नहीं है। आप उससे परे हैं। इसलिए हर एक निष्क्रिय होना है। एकमेव निष्क्रिय, वह जो भी कुछ है यही है। ध्यान आपके अपने उत्थान के लिए है। अपने पूँजी लाभ के लिए है जो होना चाहिए। पर एक बार आप उसमें जाएंगे आप अपनी शक्ति को भी ग्रहण करेंगे। जैसे अगर आप गवर्नर बनते हैं तो फिर आपको गवर्नर की सारी शक्तियाँ, अधिकार दिए जाते हैं। ऐसे में आप को किसी और के बारे में नहीं सोचना है। किसी के ऊपर अपना चित्त केंद्रित नहीं करना है। पर सिर्फ उसे ग्रहण करो, सिर्फ ग्रहण करो। किसी समस्या के बारे में मत सोचिए, सिर्फ इतना सोचो कि आपको निष्क्रिय होना है, पूर्णतया निष्क्रिय। यह उन पर अधिक असर करेगा जो सिर्फ ग्रहण करते हैं। आपको समस्याऐं है इसलिए आप यहाँ है, पर आप उन्हें हल नहीं कर सकते । परम चैतन्य उनका हल कर सकता है। ये पूरी तरह से आपको समझ लेना चाहिए कि हम अपनी समस्याओं का हल नहीं कर सकते हैं। ये हमारे बस के परे है कि हम अपनी समस्याओं का हल करें। इसलिए आप इसे परम चैतन्य के हाथों में छोड़ दीजिए और अपने आपको निष्क्रियता में प्रस्तुत करिए, परिपूर्ण निष्क्रियता। आराम से २६ ह० पि बेठिए, अपने दोनों पैर ज़मीन पर रखकर, दोनो हाथों को आराम से इस तरह रखकर । आराम से रहिए । आपको बिलकुल भी कोई असुविधा न हो, क्योंकि आपको काफी देर तक बैठना है। अगर आप कर सको तो और आप अपने चित्त को मेरी ओर, अपने अन्दर रखिए या मेरी कुण्डलिनी की ओर करें। आप मेरी कुण्डलिनी के अन्दर आ सकते हैं। यह सिर्फ हाथों को इसी तरह से सीधे रखकर करना है। अत: निष्क्रियता ही चाबी है, परिपूर्ण निष्क्रियता। चाहे आप मेरे सामने ध्यान करें या मेरी तस्वीर के सामने । श्री माताजी निर्मलादेवी मा का शु ७ यट २७। कर ॥ॐ माँ॥ निर्मला योग जुलाई-अगस्त १९८४, वर्ष ३ अंक १४ ५ार ३ कि नवरात्रि की शुरूवात का मतलब एक महायुद्ध की शुरूवात है। नवरात्रि का एक एक दिन प्रत्येक महापर्व की गाथा है। ये युद्ध अनेक युगों में हुआ है-केवल मानव के संरक्षणार्थ। परन्तु उस मानव का संरक्षण क्यों करना है? सारी सृष्टि ने उन्हें वरदान क्यों देना हैं? इसे सोचना चाहिए। मनुष्य को सर्वोच्च पद पर राज्य करने के लिए बिठाया परन्तु कलियुग में मनुष्य ने अत्यन्त क्षुद्र गति स्वीकार की है। अपने 'स्व' का साम्राज्य क्षुद्रता में कैसे होगा? आप सहजयोगी एक विशेष जीव हैं। इस सारे संसार में कितने लोगों को चैतन्य लहरी का आभास है? और कितने लोगों को इस के विषय में ज्ञान हैं? लोग जानते नहीं है तो वह दोष अज्ञानता का है। आँखे खोलकर जो ग्ढे में गिर जाता है उसे लोग मूर्ख कहते हैं और आँख ऊपर करके जो चढ़ता है उसे विजयी कहते हैं। आप क्यों गिरते हैं? आपकी आँखे कहाँ रहती हैं? वह देखिए तब समझोगे, आपका लक्ष्य (ध्यान) मार्ग पर है कि दूसरों की तरफ । यह देखना जरूरी है। घोड़े के आँख पर दोनों तरफ चमड़े की गद्दी डालते हैं ताकि लक्ष्य इधर उधर न हो पाए। परन्तु सहजयोग के आप सवार हो, घोड़े नहीं। सवार की आँख पर गद्दी नहीं डालते। घुड़सवार स्वतन्त्र है, आजाद है। वह जानकार है। वह घोड़े को भी जानता है और मार्ग को भी जानता है। कलियुग में महान घमासान युद्ध चालू है। यह आपातकाल का समय है । पीछे हटकर नहीं चलेगा। शैतानों का साम्राज्य हर एक के हृदय में प्रस्थापित है। अच्छे बुरे की पहचान नहीं रही। परमेश्वर और संस्कृति दोनों को बाजार में राक्षस बेच रहे हैं। नीति नाम की चीज कोई मानता ही नहीं। चोरी-डाकाखोरी का नाम, अमीरी और वेश्या व्यवसाय शुरू है। इस समय हमारे घुड़सवार (सहजयोगीजन) आपस में गले काट रहे हैं, कुछ लोग लूटमार करके पैसे इकट्ठा कर रहे हैं। ऐसा जो सामने आएगा तो सहजयोग की दवाई कौन पीएगा ? उसका परहेज करना ही पड़ेगा। आपने क्या कमाया वह देखना जरूरी है। कौन कौन से कलंक (दाग) छूटे और आप कैसे पवित्र हुए (निर्मल हए) ये देखना चाहिए। दूसरों के अच्छे गुण देखिए और अपने दुर्गुण (बुराई) देखिए । फिर अपने आप आपका चित्त काम करेंगा। ढाल का काम तलवार से मत लीजिए। तलवार का काम ढाल से लेकर कैसे लड़ाई जीतोगे? अपने आप से लड़ना है। जो आपकी मर्यादा है बही तोड़ के - अमर्यादा विशाल होना है। न भूल कर - चेतना में एकरूप होना है प्रेम की खाली बातें नहीं चाहिए। मन से प्यार करना बहत आसान है। क्योंकि जब वैराग्य आता है तब किसी को देना बहुत आसान लगता है (सहज लगता है)। परन्तु वैराग्य मतलब देने की उत्कंठा जागृत होनी चाहिए। पास से गंगा बह रही है। लेकिन वह बह रही है ये मालूम होना चाहिए। उसका कारण आप खुद ही है, यह जान लीजिए। दूसरा कोई कैसे भी होगा तब भी आपकी लहरें रुकती नहीं हैं। परन्तु जब आप की मशीन ठीक होगी तो औरों की भी ठीक हो जाएगी और उनकी लहरें भी बढ़ जाएंगी । जो आपसे आगे हैं उनके संपर्क में रहिए । आपका ध्यान उस पर होना चाहिए। सहजयोग कितना अद्भुत है ये जानना चाहिए और उसके मुताबिक अपने आप की विशेषता समझनी चाहिए। आप आगे जाते जाते बीच में क्यों रुकते हो? पीछे मत मुड़िए क्योंकि फिसलोगे और चढ़ाई मुश्किल हो जाएगी। प्रेम की महत्ता हम क्या गाएं? उसके सुर आप सुनिए और मस्त हो जाइए। इसलिए यह सारी मेहनत, इतने प्रयत्न, संसार की रचना और अवतार, आखिर जिनको ये मधुर संगीत सुनाने बिठाया वो तो औरंगजेब निकले (जिनको इसकी कोई चाह नहीं उल्टे नफरत ही है) । ये दुर्भाग्य है कि आपकी समझ में नहीं आता। परन्तु फिर भी हमें संतोष है क्योंकि आप लोगों में कई बड़े शौकीन लोग हैं। उन्होंने अनेक जन्मों में जो कमाया है उसे जानकर, समझकर सहजयोग को पक्के पकड़कर उसका स्वाद ले रहे हैं। आनन्द सागर में तेर रहे हैं । उन्हें विरह नहीं है, दुःख नहीं है। उनका जीवन एक सुन्दर काव्य बन गया है। ऐसे भी कई फूल हैं। कभी कभी उन्हें भी आप दुःख देते हो, कुचलते हो। अरे, ये कोई योगियों के लक्षण हैं क्या? आज ही प्रतिज्ञा कीजिए । अपने स्वयं के दोष, गलतियाँ देखनी हैं। अपने हृदय से सब कुछ अर्पण करना है, प्रेम करना है सबसे। जो मन दूसरों की गलतियाँ दिखाता है वह घोड़ा उल्टे रास्ते से जा रहा है, उसे सीधे-सरल रास्ते पर लाकर आगे का रास्ता चलना है। हमने तो आप लोगों पर अपना जीवन अर्पण किया है और सारा पुण्य आप ही के उद्धार हेतु (अच्छाई के लिए) लगाया है। आपको भी तो थोड़ा-थोड़ा पुण्य जोड़ना चाहिए कि नहीं? सारे संसार के आप प्रकाश दीप हो, आपस में भाई-बहन हो। एकाकार बनिए तन्मय हो जाइए, जागृत हो जाइए। सभी को आशीर्वाद आपकी माँ निर्मला २९ the खा क] सहजयोग में नए आयाम (सारांश) प्रतिष्ठान, पुणे - ११.३.९३ अबहमें सहजयोग में क्रियाशील होना होगा। हम सबको चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो गयी है तथा आप ये भी जानते हैं कि चक्र क्या हैं। आप जानते है स्वस्थ कैसे रहा जा सकता है। जीवन को संतुलित रखना भी आप जानते हैं। ये सब शक्तियां आपको दी हैं? इस पर आपको विचार करना चाहिए। कब आप इनहें कार्यान्वित करेंगे? हमें सोचना है कि हम सहजयोग का क्या करने वाले हैं। सहजयोग का प्रचार ठीक हैं परन्तु इसके व्यवहारिक परिणाम भी दिखाई देने चाहिए। जब तक आप व्यवहारिक परिणाम नहीं दर्शाते इसका अन्य लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। आओ देखें कि किस धरातल पर हम जा सकते हैं और क्या कर सकते हैं? कौन सी मूलभूत समस्या है जो सहजयोगियों पर आक्रमण कर सकती है? पश्चिमी संस्कृति तीव्रता से आपके सिर सवार हो रही है तथा घटिया किस्म की रचनायें विकसित हो रही हैं । जैसे नाटक, चलचित्र, पुस्तकें एवं समाचार पत्र । इसके बारे में हम क्या करें? उनकी आलोचना करना एक मार्ग है। पर ऐसा हम करना नहीं चाहते। तब हमारा दृष्टिकोण क्या होना चाहिए? बच्चोंको अच्छे नाटक देखने ले जायें। बंगाल में आपको ऐसी घटिया चीजें मिलेंगी ही नहीं। उनका चरित्र ही ऐसा है। वे अपने स्तर को गिरा नहीं सकते । नि:संदेह नाटक विनोदपूर्ण भी हो सकते हैं। अधिकतर मराठी नाटक संगीत में है। अपने समय में अधिकतर नाटक जो हमने देखे वे अति उत्तम थे। लोगों की संगीत में विशेष रूचि थी । सब गाने उन्हें आते थे । इसी प्रकार अच्छे और गहन अर्थोंवाले चलचित्र खोज कर उनका प्रसार किया जाना चाहिए। शनै: शनै: आपको चलचित्रों में परिवर्तन दिखाई देगा। इसका प्रभाव आपके बच्चों पर भी अच्छा पड़ेगा। हमारे बच्चे यदि गंदे सिनेमा देखते रहे तो वे समाप्त हो जायेंगे। कोई भी चीज जो अच्छी न हो और जिससे कोई विवेकपूर्ण तथा रचनात्मक संदेश न मिलता हो उसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। आप स्वयं यदि अनुशासित हो जायें तो दूसरों को भी अनुशासित कर सकते हैं। कोई भी नाटक जो भी हमे देखना होता था उसे हमारे माता पिता देखा करते थे । यदि वे उचित समझते थे तभी हम इसे देख सकते थे। महाराष्ट्र में हमारा संगीत नाट्य-संगीत है । अगर हम नाट्य संगीत भी नहीं समझ पाते तो और क्या समझेंगे? आप सब शास्त्रीय संगीत समझने का प्रयत्न करें । ऐसा करना आवश्यक है क्योंकि जैसा मैने आपको बताया कि इस संगीत का उद्भव ओंकार से हुआ। पश्चिमी देशों के सहजयोगियों को देखें। उन्हें कोई अन्य संगीत अच्छा ही नहीं लगता। ये बातें अब आपकी सूझ-बूझ का अंग-प्रत्यंग बन जानी चाहिए। वे अब घृणास्पद और सस्ता संगीत नहीं सुन पाते। हमें संगीत को रागों के माध्यम से विकसित करना चाहिए। आपको सुनना चाहिए क्योंकि लहरियों के माध्यम से ही आप संगीत अच्छी तरह समझते हैं और अधिक आनन्द प्राप्त करते हैं। संगीत के माध्यम से चैतन्य लहरियां बह ३० रप कॉ ता रही हैं। यदि विदेशी लोग हमारे संगीतको इतना समझ लेते हैं तो हम भारतीय इसे क्यों नहीं समझ सकते? अपने बच्चों को आप अभी से शास्त्रीय संगीत तथा शास्त्रीय संगीत की धुनों पर बना भारतीय संगीत सुनवायें क्योंकि यही शुद्ध संगीत है। हम खोज निकालें कि अच्छी फिल्में कौन सी हैं और उन्हें मान्यता दें अच्छे तथा रचनात्मक विचार प्रदान करनेवाली फिल्मों का निर्णय हम करें। दूसरी कौन सी समिति इस कार्य को करेगी? खून, हिंसा वाली फिल्मों से तो हमारे बच्चे भी वही सीखेंगे। हम यहां आत्म साक्षात्कार, शांति एवं आनन्द प्राप्त करने के लिये आयें हैं। बच्चे यदि इतने उग्र एवं हिंसक हो जाएंगे तो आप उनसे कैसे आशा कर सकते हैं कि वे शांति और आनन्द की रचना करें ? हम पर तीसरा आक्रमण समाचार पत्रों का होता हैं। हमें यह भी निर्णय करना है कि कौन सा समाचार पत्र पढ़े । जो चीज हमें अच्छी लगे, सांख्यिकीय हो, वह हमारे लिये लाभप्रद होगी। सहजयोग प्रचार में सहायक समाचार पत्र की कतरने आप सम्भाल कर रखें। में पश्चिमी देशों की समस्याओं तथा अपराधवृत्ति पर पुस्तक लिख रही हैं। पश्चिम की एक पत्रिका में मुझे भारत के विषय में आंकड़े मिले। परन्तु भारत सर्व सुरक्षित देश है। पश्चिमी देशों की तुलना में यहाँ हिंसा न के बराबर हैं। पश्चिम में पुलिस विभाग इतना अच्छा होने के बावजूद भी वहाँ इतने अपराध हैं। क्यों? क्योंकि यहाँ धर्म के बारे में नहीं बताया गया अपने देश के प्रति आपका क्या धर्म हैं? हम भारतीयों का अपने माता-पिता, पत्नी, पति आदि के प्रति धर्म है। इसका अर्थ है कि मनुष्य किस प्रकार व्यवहार करें, मानवीय संयोजकता (वैलन्सी) किस प्रकार अपने इर्द-गिर्द तथा रिश्तेदारों से व्यवहार करें। हम पाते हैं कि सहजयोग में उत्पन्न हये अधिकतर बच्चे साक्षात्कारी हैं। अगर आप सद्विचार उनमें भरें तो एक दिन आपके पास विवेकशील लोगों की पीढ़ी होगी जो पूरे संसार का नेतृत्व कर सकेगी। उदाहारण के तौर पर पश्चिमी जीवन में सच्चरित्रका कोई विचार नहीं है। गणतंत्र में चरित्र की ओर कोई ध्यान नहीं । विज्ञान दुण्चरित्र है। इसका चरित्र से कोई सरोकार नहीं। चरित्र का मार्ग कीन बनायेगा? यही कार्य आप सहजयोगियों ने करना है। मिलकर सूझ-बूझ से आपने यह कार्य करना हैं। यह चारित्रिक स्तर स्थापित करना है ताकि लोग देख सकें कि सामूहिक रूप में हम अति दृढ़ तथा चरित्रवान है। व्यक्तिगत रूप से आप अति चरित्रवान हैं। आप सिगरेट, शराब नहीं पीते, झूठ नहीं बोलते। पर जब समूह का प्रश्न आता हैं तो समस्याय है।। भिन्न लोगों द्वारा लिखी गयी पुस्तकों को खोज निकालना एक दूसरी बात हैं। सहजयोगी अवश्य अपनी सम्पान करें। आप महात्मा हैं। में बार बार यही कहती हैं। आपको अपना सम्मान करना हैं। किसी भी पागल पफैशन में आप न फंसे । फशन क्यी है? उद्यकियों के कारनामों के सिवाय यह कुछ भी नहीं। वे हमे मुर्ख बना रहे हैं। अपनी मशीनों तथा व्यापार को चलाने के लिय व आज कहते है कि यह कपड़े पहनो और कल दूसरे कपड़े पहनने को कहते हैं। इस प्रकार आप के पास ढेरों कपड़े होंगे और आप कहेंगे कि भर पस पहनने को कपड़ा नही हैं। एक ही बार आप निर्णय कर लें कि मैने इस प्रकार के कपड़े पहनने हैं और अब में इस ओर अधिक ध्यान न दवदि कोई कलात्मक चीज हैं तो जवान लोग पहनें क्योंकि उन्हें भी कलाकार को प्रोत्साहन देना चाहिए। साडी भी अति कलात्मको वन्त्र है। खाली समय में बनाई गयी ३१ वस्तुओं पर हमारे अस्सी प्रतिशत लोग निर्भर हैं। मैं कोई नियम नहीं बनाना चाहती कि सभी लोग एक से कपड़े पहने, फिर भी वसत्रों को गरिमामय बनाने का यत्न कीजिए। आप सहजयोगी हैं, आपको शालीन वरखत्र पहनने चाहिए। आपको भद्दे या दूसरों को आकर्षित करनेवाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। अपने आत्म सम्मान पर खड़े होना आवश्यक है। एक बार जब आप अपना सम्मान करने लगेंगे तो आप बर्ताव करना भी सीख जाएंगे। आपमें अनुशासन अन्दर से ही आता हैं। तुरंत आप जान जाएंगे कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। आत्मसम्मान सहजयोग में एक अत्यंत आवश्यक गुण हैं। किसी भी अवस्था में हमें अपने शरीर का प्रदर्शन नहीं करना। यदि कोई सहजयोगी भद्दे बस्र पहनता है तो आपको चाहिए कि उसे सुधारें । हमें भारतीय वेशभूषा धारण करनी चाहिए। भारतीय वसर् सुन्दर हैं । महाराष्ट्र के लोगों को चाहिए कि परस्पर न झगड़े और न ही एक दूसरे को नीचा दिखाए। सहजयोगियों के अनुभवों को पत्रिकाओं में छापें । कुछ अनुभव वास्तव में अद्वितीय हैं। सहजयोगी कला तथा किज्ञान के क्षेत्र में भी प्रवेश करें आस्ट्रेलिया में ऐसे सहजयोगी कलाकार हैं जिन्हे अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हये हैं। इससे आया हुआ धन इसी पर खर्च होना चाहिए। भिन्न कार्यों के लिये मैं भिन्न लिफाफों में पैसे रखती हूं। आप विचारें कि जिसे कार्य के लिये धन आया है उसी पर ही खर्च होना चाहिए। चाहे कुछ भी हो इसे आप किसी और कार्य के लिये न खर्चे । वाशी अस्पताल में बुहुत से लोग आएंगे। बहुत से आएंगे और वापिस चले जाएंगे। अस्पताल में एक समिती बनाई जानी चाहिए जो कि एक रजिस्टर रखें। वे रोगी की हर बात लिखें । ठीक हो जाने पर उसे लिखना होगा कि वह ठीक हो गया है। हमें कुछ स्वयं सेवकों तथा चिकित्सकों की आवश्यकता हैं। हमें नसों की आवश्यकता हैं। धन का प्रबन्ध हो जाएगा। बाह्य रोगियों से हम कोई पैसा न लेंगे परन्तु जो रोगी अस्पताल में ठहरेंगे उनके कमरे, वातानुकूलन, भोजन आदि के लिये उनसे पैसे लिये जाएंगे। हम अस्पताल को चलाने भर के लिये धन लेंगे । पहले एक पत्र लिखें तथा फोटो भेजें । तब वे आपको बताएंगे कि अस्पताल में आपको जगह दी जा सकती है या नहीं। हम अस्पताल में एक शोध केन्द्र बनाने की भी सोच रहे हैं। बहुत से डाक्टर वहाँ से एम.डी.कर सकेंगे। लोग मुझसे कहते हैं कि तुमने हजारो को ठीक किया है पर उनकी सूची नहीं बनाई। अतः जिन्हें आपने रोगमुक्त किया हैं उनकी सूची बनाएं। जैसे हमारे पास बहुत से फोटो हैं। इनका संग्रह हम वाशी में कर रहें हैं इस प्रकार का फोटो जिसे भी प्राप्त हो पहले वह इसकी एक प्रति भेजे तथा बाद में इसका नेगेटिव भी भेजें । इस प्रकार के सभी चमत्कारित फोटो वाशी में भेजे जाने चाहिए, वहां हम एक पुस्तकालय बना रहें हैं। वाशी पुस्तकालय में पुस्तकें भी रखी जाएंगी। हम वहां कुछ लोगों को रखेंगे जो उधार दी गई पुस्तकों तथा लाभान्वित लोगों की सूची बनायेंगे। सभी केन्द्रो को सहजयोगियों, उनके पते, टेलीफोन नं. की सूची रखनी चाहिए। हमें स्कूलों, विश्वविद्यालयों में जाकर लड़के-लड़कियों से सहजयोग की बात करनी चाहिए। इस प्रकार के से क्षेत्र हैं जहाँ हमे जाना हैं । बहुत से आयाम हैं। युवा सहजयोगियों की समस्याओं को हमें देखना चाहिए । संत बनने के बाद भी एक दूसरे की आलोचना करना सहजयोग में अर्थहीन है । किसी में यदि कोई दोष भी हैं तो उसे देखने से आपमें अच्छाई नहीं आ जाएगी। अपने दोषों तथा दूसरों की अच्छाइयों को देखिये । विशेष कर हमारे देश में, खियाँ बहुत बड़ी शक्ति हैं। यदि वे भी ऐसी मूर्खतापूर्ण बातों में फंसने लगेंगी तो यह सहजयोग का अन्त होगा। महिलाओं को बहुत सावधान रहना है क्योंकि शक्तियाँ हैं। वे चाहें तो पूरे विश्व का विनाश कर सकती हैं और चाहें तो अपने प्रकाश से पूरे विश्व को प्रकाशित कर सकती हैं। स्त्रियों को पृष्ठभूमि (बैकग्राऊंड) में ही रहना चाहिए। समय यदि आन पड़े तो झांसी की रानी भी बन सकती है। हमने सहजयोगियों के कम से कम सात सौ विवाह किये हैं । इनमें चार-पाँच में समस्या आयी और यह समस्यायें भारतीय सत्रियं के कारण थी। हैरानी की बात है कि दोष ढूंढने के स्थान पर विदेशी कहते हैं कोई बात नहीं वे सुधर जाएंगी। विवाहीत लोगों के लिये एक समिति होनी चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि विवाह असफल क्यों हये, पति-पत्नी में झगड़े क्यों है। बहुत से विवाह ठीक हो गये हैं। यदि किसी बात का हल नहीं है तो तलाक हो सकता हैं। जहां पति पत्नी में से एक सहजयोगी नहीं है, वहाँ सहजयोगियों को समस्या हैं। कोई बात नहीं। सहजयोग आपकी अपनी चीज है। तो इसके लिये झगड़ना क्यों हैं? यह स्वत: ही ठीक हो जायेगा। परन्तु यदि आप झगड़ते हैं तो पति या पत्नी कभी भी सहजयोग को नहीं समझेंगे । वे इसे आपके प्रेम, सूझ- बूझ और शान्ति के माध्यम से समझेंगे। सहजयोग आप किसी पर लाद नहीं सकते । पिछले जन्मों के पुण्यों के फलस्वरूप आपको सहजयोग प्राप्त हुआ है। जिनके अन्दर शुद्ध इच्छा है, केवल वही लोग सहजयोग पा सकते है। बहत से लोग बीमारियाँ ठीक करने के लिये सहजयोग में आते है। किसी की बीमारी का इलाज मत कीजिये। आपको ऐसा क्यों करना है? मेरा चित्र सभी कुछ कर सकता है। आप उनका तीन मोमबत्तियों से या जल क्रिया से इलाज कर सकते हैं। पर उन्हे स्पर्श मत कीजिये । यदि वह व्यक्ति स्वयं करने में असमर्थ हो, बैठ न पाता हो तो बात अलग हैं। साधारणतया उसे अपने हाथों से न छूयें अन्यथा आप में पकड़ आ जायेगी या आप में कोई दोष आ जायेगा। बहुत आप साधारण रोगों का इलाज कर सकते हैं। इलाज करने की विधि सीखिये । चक्र और उनका विज्ञान समझिये। परन्तु अपना हाथ उन पर रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। व्यक्ति को मिठाइयाँ और तली हुई वस्तुयें बहुत कम खानी चाहिये । सहजयोग में पोस्टमैन तेल तथा मूंगफली का तेल न खायें। कम ३२ ४ डा तेल में खाना पकायें। पुरुषों को ध्यान रखना चाहिये कि उनकी पत्नियाँ ठीक प्रकार का खाना बना रही हैं। मिर्ची खाना कम कर देना चाहिये। महाराष्ट्र के लोग बहुत अधिक मिर्ची खाते हैं। कोई भी मुझे कुछ नहीं बता सकता। में सभी कुछ जानती हैं। कुछ सहजयोगी एक दूसरे के अत्यंत विरूद्ध हैं। महाराष्ट्र के लोगों को धन बचाने का विशेष ज्ञान हैं। कुछ लोग शिकायत करते हैं कि टेप आदि के मूल्य गरीब लोगों के लिये बहुत अधिक हैं। यदि आप गरीबों के लिये इतने चिंतित हैं तो एक टेप अपने लिये खरीदें और दूसरा किसी गरीब के लिये तथा इस प्रकार उसकी सहायता करें क्योंकि यह पैसा सहजयोग को जाता है। मुझे आपके धन की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा तथा चैतन्य लहरियों पर कुछ खर्च नहीं होता। परन्तु यही दृष्टिकोण हैं, विशेषकर महाराष्ट्र के लोगों का। गणपतीपुले में भी ऐसा ही होता है। आप के लिये संगीतज्ञ लाने के लिये हम लाखों खर्च करते है। उनका खर्च कोन उठायेगा? देवताओं को तो कोई कमी नहीं होगी परन्तु इस प्रकार के दृष्टिकोण से आपको धन की कमी होगी आपके पास जो भी है सब आपके सहजयोगी होने के कारण हैं। यदि आप कंजूस हैं तो आपको लक्ष्मी तत्त्व न प्राप्त होगा । हर व्यक्ति प्रतिदिन स्वयं से पूछे कि मैने सहजयोग के लिये क्या किया है? आप बीमार पड़ते हैं तो सहजयोग आपका इलाज करता है। आपकी कुण्डलिनी आपको ठीक करती है। जो भी लाभ आपको मिले हैं सब सहजयोग के कारण है आप को समझना है कि एक बहुत बड़ी क्रान्ति हो रही हैं। पचपन देशों में सहजयोग बल रहा है । केवल एक ही कस्बे में २२,००० सहजयोगी हैं। मैं उनसे वर्ष में केवल एक बार मिलती हैं। वे साइबेरिया तक फैले हये है। अब आपका विचार यह होना चाहिए कि मैने सहजयोग के लिये कुछ करना है। में कहँगी कि आप सब भारतीयों को हिन्दी भाषा सीखनी हैं। आपको हिन्दी का ज्ञान होना ही चाहिये। हम सबको सहज भाषा का ज्ञान होना चाहिये। सहज भाषा में हम अपने चक्रों की बात करते हैं। हम यह नहीं कहते कि फलाँ व्यक्ति सुन्दर हैं या असुन्दर या किसने कैसे वख्र पहने हैं। हम कहते हैं कि मुझमें यह चक्र ठीक नहीं हैं। दूसरों के बारे में जानने की हमें कोई आवश्यकता नहीं। दूसरों को बताना कि उनमें भूत हैं, अनुचित है। सहजयोगियों के अनुसार नये लोगों में समस्यायें, भूत आदि होते हैं। शरत चन्द्र को पढ़ने से आप हिन्दी सीख सकते है। उनकी २६ पुस्तकें हैं। वे आत्मसाक्षात्वकारी थे। साक्षात्कारी हैं। अत: हमें साहित्यिक व्यक्ति होना हैं। सारा वातावरण इतना भौतिक हो चुका है कि हम साहित्य की बात ही नहीं कर सकते । सहजयोग केवल आप ही के लिये नहीं हैं यह जन साधारण के लिये हैं। यह पूरे विश्व के लिये है । संतुलित विचारों के माध्यम प्राप्त किये विश्व के सभी देशों में बहुत से ३३ १० भा ह विना आप कैसे इसे अन्य लोगों तक पहुंचायेंगे। विशेष कर महाराष्ट्र के लोगों को पता होना चाहिए कि मराठी भाषा में फारसी, अरबी, उर्दू आदि भाषाओं के शब्द हैं। अत: हममें से कुछ लोग इस प्रकार की गतिविधियों को प्रोत्साहित करें । बहुत से सहजयोगी दूसरे लोगों के सुंदर विचारों को लिख रहें हैं। पहले आप ऐसा कीजिये फिर जनता भी ऐसा करेगी। सहजयोगियों के लिये पढ़ना बहुत आवश्यक हैं। पढ़ने से व्यक्तित्व निखरता हैं। लोगों को साहित्यिक वातावरण में लागने के लिये हम पुस्तकालय बनायेंगे, पर भारतीय बंधन तो ऐसे है कि लोग एक बार पुस्तक उधार लेते हैं तो उसे लौटाते ही नहीं । दूसरे व्यक्ति का अनुचित लाभ कभी मत उठाइये। सहजयोग में शोषण करनेवाले का ही शोषण हो जाता है क्योंकि अब आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हम लोगों में यह एक विशेष बात हैं। हम भारत के लोग अत्यंत चालाक लोग हैं। किसी की बुराई करने के स्थान पर हम कह सकते है कि यह व्यक्ति कितना उदार था । जिन गुणों की बात हो रही है ये सब दूसरे लोगों को हमारे अन्दर नजर आने चाहिये। उन्हें प्रकाश हो जाना चाहिये। यदि प्रकाश नहीं हाता तो क्यों सहजयोग करना हैं? सभी लोग मुझ से बहत प्रेम करते हैं पर वे सहजयोग के लिये कुछ भी नहीं करते। वे स्वयं को ऐसा बनाने का प्रयत्न भी नहीं करते जिससे लोग कहें कि ये सहजयोगी हैं। अत: अब हमें ऐसा कुछ करना हैं जिससे हम कह सकें कि उस व्यक्ति ने यह महान कार्य किया है और दूसरे ने यह महान कार्य । ३४ ल डा े ला ३ ॐ नव-आगमन CODE. NOS. Lang. Type Place Speech Title Date DVD/HH VCD/HH ACD/HH ACS/HH Sp 368 Shri Mataji with New Sahaja Yogis - Part II Delhi 20-Feb-77 Sp 369 Mumbai Advice, Questions and Answers 22 Mar -77 371 H. 371 Sp श्री गणेश ओर मूलाधार चक्र Mumbai 16-Jan-79 H. 372 372 Sp भारतवर्ष: योगभूमी दिल्ली युनिवर्सिटी सेमिनार Delhi 10-Mar-79 H. 373 373 Sp Delhi 11-Mar-79 | कुण्डलिनी का उत्थान - दिल्ली युनिवर्सिटी सेमिनार H. 374 Sp 374 Delhi मूलाधार - सुक्ष्मता पाना ही सहजयोग का लक्ष है 12-Mar-79 H. 375 Sp 375 Delhi 18-Mar-79 सहस्रार चक्र H. 376 Sp 376 कुण्डलिनी और श्री येशु खिस्त Mumbai 27-Sep-79 377 Sp Mumbai Joy & Depth, Lakshmi Tattwa 29-Sep-79 378 Sp Getting to Know Yourself - Gayton Road Harrow 19-Oct-79 PP 379 London The Knowledge of the Divine 28-Oct-79 E PP 380 Bristol Many People are Seeking 9-Jul-80 381 Sp Rakashabandhan - Caxton Hall London 26-Aug-80 PP 382 Brighton The Four Dimensions Within 11-Jul-81 233 Sp/Pu 383 Mothers Day Puja : Address on children Birmingham 21-Apr-85 234 384 Sp/Pu Paris Guru Puja, Part I & II 29-Jun-85 Sp 385 Devi Shakti PujaN : Talk about ego New York 8-Oct-85 Sp/Pu 54 66 66 54 श्री महादेवी पूजा, भाग १ और २ Calcutta 10-Oct-86 235 Sp/Pu 386 Shri Adi Shakti (Kundalini) Puja, Part I & II Cabella 21-Jun-92 Н/M 236 387 PP 387 सार्वजनिक कार्यक्रम : कुण्डलिनी की जागृति से आप बदल जातें है Mumbai 12-Mar-00 Mu/Gen 237 Musical Evening Prog. Shri Adi Shakti Puja Cabella 23-Jun-07 388 238 Sp/Pu Cabella Guru Puja, Part I & I 20-Jul-08 ४ हु] र २ हा २ा श्री येशु ट्रिस्त का स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तत्त्व, ॐकार रूप है। ---------------------- 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी नवंबर - दिसंबर - २00८ २) ेका के काम हिन्दी एक 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-1.txt + प्रकाशक + निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं. ८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८ फोन : ०२०-२५२८६५३७, २५२८६०३२ ुभ ै। ४ स्था के ा का पा घव पी पहाघा प Oकम ह ्र 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-2.txt ४ कम ४ - श्री कुण्डलिनी शक्ति व श्री येशु ट्विस्त १४ - क्या आपकी प्रगति अध्छी हो रही है? १८ - आप उनमें से बनिए जो दस 'अध्छे' आदमी १० - ये वाइब्रेशन्स सिर्फ 'प्रेम' है ११- घड़ी : सहजयोग व ध्यान के लिए १६ - ध्यान में निष्द्रियता क - 22 में ३० - सहजयोग जए आयाम र 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-3.txt श्री कुण्डलिनी शक्ति व श्री येशु ख्रिस्त २७ सितम्बर १९७९, मुंबई निर्मला योग, जनवरी-फरवरी १९८६. वर्ष ४ अंक २३ लिम ह गी ८ ें 'श्री कुण्डलिनी शक्ति और श्री येशु ख्रिस्त' ये विषय बहुत ही मनोरंजक तथा आकर्षक है। सर्वसामान्य लोगों के लिए ये एक पूर्ण नवीन विषय है क्योंकि आज से पहले किसी ने श्री येशु ख्रिस्त और कुण्डलिनी शक्ति को परस्पर जोड़ने का प्रयास नहीं किया। विराट के धर्मरूपी वृक्ष पर अनेक देशों और अनेक भाषाओं में अनेक प्रकार के साधु संत रूपी पुष्प खिले। उन पुष्पों (विभूतियों) का परस्पर सम्बन्ध था । यह केवल उसी विराट-वृक्ष को मालूम है। जहाँ-जहाँ ये पुष्प (साधु संत) गए वहाँ-वहाँ उन्होंने धर्म की मधुर सुगंध को फैलाया। परन्तु इनके निकट (सम्पर्क) वाले लोग सुगन्ध की महत्ता नहीं समझ सके। फिर किसी सन्त का सम्बन्ध आदिशक्ति से हो सकता है यह बात सर्वसाधारण की समझ से परे है। मैं जिस स्थिति से आपको ये कह रही हैं उस स्थिति को अगर आप प्राप्त कर सकें तभी आप ऊपर कही गयी बात समझ सकते हैं या उसकी अनुभूति पा सकते हैं क्योंकि मैं जो आपसे कह रही हूँ वह सत्य है कि नहीं इसे जानने का तन्त्र इस समय आपके पास नहीं है; या सत्य क्या है जानने की सिद्धता आपके पास इस समय नहीं है। जब तक आपको अपने स्वयं का अर्थ नहीं मालूम तब तक आपका शारीरिक संयन्त्र ऊपर कही गई बात को समझने के लिए असमर्थ है। परन्तु जिस समय आपका संयन्त्र सत्य के साथ जुड़ जाता है उस का 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-4.txt कर समय आप ऊपर कही गयी बात को अनुभव कर सकते हैं । इसका अर्थ है आपको सहजयोग में आकर पार होना' आवश्यक है। 'पार' होने के बाद आप के हाथ से चैतन्य लहरियाँ बहने लगती हैं। जो चीज़ सत्य है उसके लिए आपके हाथ में ठंडी-ठंडी चैतन्य की तरंगे (लहरियाँ) आएंगी और वह असत्य होगी तो गरम लहरं आएंगी। इसी तरह कोई चीज़ सत्य है कि नहीं इसे आप जान सकते हैं । ईसाई लोग श्री येशु ख्रिस्त के बारे में जो कुछ जानते हैं वह बाइबल ग्रन्थ के कारण है। बाइबल ग्रन्थ बहुत ही गुढ़ (रहस्यमय) है। यह ग्रन्थ इतना गहन है कि अनेक लोग वह गूढ़ार्थ (गहन अर्थ) समझ नहीं सके। बाइबल में लिखा है कि 'मैं तेरे पास ज्वालाओं की लपुटों के रूप में आऊंगा चारों ओर आग की ज्वालायें फैलेंगी इसलिए वह उन्हें देख नहीं सकेंगे। वस्तुत: इसका सही मतलब ये है कि मेरा दर्शन आपको सहस्त्रार में होगा। बाइबल में अनेक जगह इसी तरह श्री कुण्डलिनी शक्ति व सहस्त्रार का उल्लेख है। किन्तु यहाँ यह सब बिलकुल संक्षेप में कह सकते हैं। ।' इज़राइली (यहदी) लोगों ने इसका ये मतलब लगाया कि जब परमात्मा का अवतरण होगा तब उनमें से श्री येशु खिस्त जी ने कहा है कि, 'जो मेरे विरोध में नहीं हैं वे मेरे साथ हैं।' इसका मतलब है कि जो लोग मेरे विरोध में नहीं है वे मेरे साथ हैं। आपने अगर ईसाई लोगों को पूछा कि ये लोग कौन थे तो उन्हें इसका पता नहीं है। श्री येशु ख़िस्त में दो महान शक्तियों का संयोग है। एक श्री गणेश की शक्ति जो येशु खिस्त की मूल शक्ति मानी गयी है और दूसरी शक्ति श्री कार्तिकेय की। इस कारण श्री येशु खिस्त का स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तत्त्व, ॐकार रूप है। श्री येशु ख्रिस्त के पिताजी साक्षात श्री कृष्ण थे । इसलिए उन्होंने उन्हें जन्म से पूर्व ही अनेक वरदान दिये हुए थे। उसमें से एक बरदान है कि आप हमेशा मेरे स्थान से ऊपर स्थित होंगे। इसका स्पष्टीकरण ये है कि श्री कृष्ण का स्थान हमारी गर्दन पर जो विशुद्धि चक्र है उस पर है, और श्री ख्रिस्त का स्थान आज्ञा चक्र में है जो अपने सर के पिछले भाग में जहाँ दोनो आँखों की ज्योति ले जाने वाली नसें जहाँ परस्पर छेदती हैं वहाँ स्थित है। दूसरा वरदान श्री कृष्ण ने ये दिया था कि आप सारे विश्व के आधार होंगे। तीसरा वरदान है कि, पूजा में मुझे जो भेंट प्राप्त होगा उसका १६ वाँ हिस्सा सर्वप्रथम आपको दिया जाएगा। इस तरह अनेक वरदान देने के बाद श्री कृष्ण ने उन्हें अवतार लेने की अनुमति दी। आपने अगर मार्कण्डेय पुराण पढ़ा होगा तो ये सारी बातें आप समझ सकते हैं क्योंकि श्री मार्कण्डेय जी ने ऐसी अनेक बातें जो सूक्ष्म हैं खोलकर कही हैं। नति इसी पुराण में श्री महाविष्णु का भी वर्णन किया है। आप अगर ध्यान में जाकर यह वर्णन सुनेंगे तो आप समझ सकते हैं कि ये वर्णन श्री येशु खरिस्त का है 1 अब अगर आपने श्री "ख्रिस्त' शब्द का अध्ययन किया (उसे सूक्ष्मता से देखा) तो ये 'कृष्ण' शब्द के अपभ्रंश से निर्माण हुआ है। वस्तुतः श्री येशु ख्िस्त के पिताजी श्री कृष्ण ही हैं। और इसलिए उन्हें ख्रिस्त कहते हैं। उनका नाम 'जीजस' जिस प्रकार बना है वह भी मनोरंजक है। श्री यशोदा माता को 'येशु' नाम से कहा जाता था । उत्तर प्रदेश में अब भी किसी का नाम 'येशु' होता है तो उसे वैसे न कहकर 'जेशू कहते हैं। इस प्रकार ये स्पष्ट होता है कि, 'यशोदा से 'येशु' व उसके 'जशू' व उससे 'जीजस क्राईस्ट' नाम बना है। जिस समय श्री ख़िस्त अपने पिताजी की गाथाऐं सुनाते थे उस समय वे वास्तव में श्री कृष्ण के बारे में बताते थे, 'विराट' की बातें बताते थे। यद्यपि श्री कृष्ण ने जीजस खिस्त के जीवन काल में पुनः अवतार नहीं लिया था, तथापि जीजस ख्रिस्त के उपदेशों का सार था कि साधकों विराट पुरुष सर्वशक्तिमान परमात्मा का ज्ञान किस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं। अर्थात् श्री ख्रिस्त की माता साक्षात् श्री महालक्ष्मी थीं। श्री मेरी माता स्वयं श्री महालक्ष्मी व आदिशक्ति थी। और अपनी माँ को उन्होंने 'होली घोस्ट' (Holy Ghost) नाम से सम्बोधित करते थे। श्री खिस्त जी के पास एकादश रुद्र की शक्तियाँ हैं, अर्थात् ग्यारह संहार शक्तियाँ हैं। इन शक्तियों के स्थान अपने माथे पर हैं। जिस समय शक्ति का अवरतण होता है उस समय ये सारी शक्तियाँ संहार का काम करती हैं। इन ग्यारह शक्तियों में एक शक्ति श्री हनुमान की है व दूसरी श्री भैरवनाथ की है। इन दोनों शक्तियों को बाइबल में 'सेंट माइकल' तथा 'सेंट गाब्रियल' कहा जाता है। सहजयोग में आकर पार होने के बाद आप इन शक्तियों को अंग्रेजी में बोलकर भी जागृत कर सकते हैं या मराठी में या संस्कृत में भी बोलकर जागृत कर सकते हैं। अपने दायें तरफ की (right) नाड़ी (पिंगला नाड़ी) में भी श्री हनुमान जी की शक्ति कार्यान्वित होती है। जिस समय अपनी पिंगला नाड़ी में अवरोध निर्माण होता है उस समय श्री हनुमान जी के मन्त्र से तुरन्त अन्तर पड़ता है। उसी प्रकार 'सेंट माइकेल' का मन्त्र बोलने से भी पिंगला नाड़ी में अन्तर आएगा। अपने बांये तरफ की नाड़ी इड़ा नाड़ी सेंट गाब्रियल' या 'श्री भैरवनाथ' की शक्ति से कार्यान्वित होती है। उनके मन्त्र से इड़ा नाड़ी की तकलीफें दूर होती है। ऊपर कही गयी बातों की सिद्धता सहजयोग में आकर पार होने के बाद किसी को भी आ सकती है। कहने का अभिप्राय है कि अपने आपको हिन्दू या मुसलमान या ईसाई ऐसे अलग-अलग समझ कर आपस में लड़ना मूर्खता है। अगर आप ने इसमें तत्त्व की बात जान ली तो आपके मस्तिष्क में आएगा कि ये सब एक ही धर्म के वृक्ष के अनेक फूल हैं व आपस में एक ही शक्ति से सम्बन्धित हैं। 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-5.txt आपको ये जानकर कदाचित आश्चर्य होगा कि सहजयोग में कुण्डलिनी जागृति होना साधक के आज्ञा चक्र की अवस्था पर निर्भर करता है। आजकल लोगों में अहंकार बहुत ज्यादा है क्योंकि अनेक लोग अहंकारी प्रवृत्ति में खोये हैं। अहंकारी वृत्ति के कारण मनुष्य अपने सच्चे धर्म से विचलित हो जाते हैं और दिशाहारा (मार्ग से भटक जाना) होने के कारण वे अहंकार को बढ़ावा देने वाले कार्यों में रत रहते हैं। इस अहंकार से मुक्ति पाने के लिए येशु ख्रिस्त बहुत सहायक होते हैं। जिस प्रकार मोहम्मद पैगंबर ने शक्तियों का कैसे विनाश करना है इसके बारे में लिखा है उसी प्रकार श्री ख़िस्त जी ने बहुत ही सरल तरीके से आप में कौन-कौन सी शक्तियाँ हैं व कौन से आयुध हैं इसके बारे में कहा है। दुष्ट उन आयुधों में सर्वप्रथम 'क्षमा' करना है। जो तत्त्व श्री गणेश में 'परोक्ष' रूप में है वही तत्त्व मनुष्य में क्षमा के रूप में कार्यान्वित है। वस्तुत: क्षमा बहुत बड़ा आयुध है क्योंकि उससे मनुष्य अहंकार से बचता है। अगर हमें किसी ने दु:ख दिया, परेशान किया या हमारा अपमान किया तो अपना मन बार -बार यही बात सोंचता रहता है और उद्विग्न रहता है। आप रात दिन उस मनुष्य के बारे में सोचते रहेंगे और बीती घटनाएँ याद करके अपने आपको दु:ख देते रहेंगे। इससे मुक्ति पाने के लिए सहजयोग में हम ऐसे मनुष्य को क्षमा करने के लिए कहते हैं। दूसरों को क्षमा करना, ये एक बड़ा आयुध, श्री ख्रिस्त के कारण हमें प्राप्त हुआ है जिससे आप दूसरों के कारण होने वाली परेशानियों से छुटकारा पा सकते हैं। श्री ख्रिस्तजी के पास अनेक शक्तियाँ थी और उसी में एकादश रुद्र स्थित है। इतनी सारी शक्तियाँ पास में होने पर भी उन्होंने अपने आपको क्रास (सूली) पर लटकवा लिया। उन्होंने अपने आपको क्यों नहीं बचाया? श्री ख्रिस्त जी के पास इतनी शक्तियाँ थी कि वे उन्हें परेशान करने वालों का एक क्षण में हनन कर सकते थे । उनकी माँ श्री मेरी माता साक्षात् श्री आदिशक्ति थी। उस माँ से अपने बेटे पर हुए अत्याचार देखे नहीं गए। परन्तु परमेश्वर को एक नाटक करना था। सच बात तो ये है कि श्री ख्रिस्त सुख या दु:ख, इसमें फँसे हुए नहीं थे। उन्हें ये नाटक खेलना था। उनके लिए सब कुछ खेल था। वास्तव में जीजस ख्रिस्त सुख दुःख से परे थे। उन्हें तो यह नाटक अत्यन्त निपुणता से रचना था। जिन लोगों ने उन्हें सूली पर लटकाया वे कितने मूर्ख थे? उस जमाने के लोगों की मूर्खता को नष्ट करने के लिए श्री खरिस्त स्वयं गधे पर सवार हुए थे। आपके कभी सिर में दर्द हो तो आप कोई दवाई न लेकर, श्री ख्रिस्त की प्रार्थना करिए कि 'इस दुनिया में जिस किसी ने मुझे कष्ट दिया है, परेशान किया है उन सबको माफ कीजिए' तो आपका सर दर्द तुरन्त समाप्त हो जाएगा। लेकिन इसके लिए आपको सहजयोग में आकर कुण्डलिनी जागृत करवा कर पार होना आवश्यक है। उसका कारण है कि आज्ञा चक्र, जो आपमें श्री ख़िस्त तत्त्व है वह सहजयोग के माध्यम से कुण्डलिनी जागृति के पश्चात ही सक्रिय होता है, उसके बिना नहीं। ये चक्र इतना सूक्ष्म है कि डाक्टर भी इसे देख नहीं सकते । इस चक्र पर एक अतिसूक्ष्म द्वार है। इसलिए श्री खिस्त ने कहा है कि 'मैं द्वार हूँ इस अतिसूक्ष्म द्वार को पार करना आसान करने के लिए श्री ख्रिस्त ने इस पृथ्वी पर अवतार लिया और स्वयं यह द्वार प्रथम पार किया। अपने अहंभाव के कारण लोगों ने श्री ख्रिस्त को सूली पर चढ़ाया, क्योंकि कोई मनुष्य परमेश्वर का अवतार बनकर आ सकता है ये उनकी बुद्धि को मान्य नहीं था उन्हेोंने अपने बौद्धिक अहंकार के कारण सत्य को ठुकराया । श्री खिस्त ने ऐसा कौन सा अपराध किया कि जिससे उनको सुली पर लटकाया? उलटे उन्होंने दुनिया के कितने लोगों को अपनी शक्ति से ठीक किया। जग में सत्य का प्रचार किया। लोगों को अनेक अच्छी बातें सिखाई। लोगों को सुव्यवस्थित, सुसंस्कृत जीवन सिखाया । वे हमेशा प्यार की बातें करते थे । लोगों के लिए हमेशा अच्छाई करते हुए भी आपने उन्हें दु:ख दिया, परेशान किया। जो लोग आपको गन्दी बातें सिखाते हैं या मूर्ख बनाते हैं उनके आप पाँव छूते हैं। मूर्खता की हद है! आजकल कोई भी ऐरे-गैरे गुरू बनते हैं, लोगों को ठगते हैं, लोगों से पैसे लूटते हैं। उनकी लोग वाह-वाह (खुशामद, प्रशंसा) करते हैं। कोई सत्य बात कहकर लोगों को सच्चा मार्ग दिखाएगा तो उसकी कोई सुनता नहीं, उल्टे उसी पर गुस्सा करेंगे। ऐसे महामूर्ख लोगों को ठीक करने के लिए परमात्मा ने अपना सुपुत्र श्री खिस्त को इस दुनिया में भेजा था । पर उन्हें लोगों ने सूली पर चढ़ाया। ऐसे ही नाना प्रकार के लोग करते रहते हैं। 1 आप इतिहास पढ़ेंगे तो आप देखेंगे कि जब-जब परमेश्वर ने अवतरण लिया या सन्त-महात्माओं ने अवतरण लिया तब-तब लोगों ने उन्हें कष्ट दिया है। उनसे कुछ सीखने के बजाय खुद मूर्खों की तरह बर्ताव करते थे । महाराष्ट्र के सन्त श्रेष्ठ श्री तुकाराम महाराज या श्री ज्ञानेश्वर महाराज इनके साथ यही हुआ। वैसे ही श्री गुरुनानक, श्री मोहम्मद साहब इनके साथ भी उसी प्रकार हुआ। 1 मनुष्य हमेशा सत्य से दूर भागता है और असत्य से चिपका रहता है। जब कोई साधु-सन्त या परमेश्वर का अवतरण होता है तब अगर ऐसा प्रश्न पूछा जाए कि यह व्यक्ति क्या अवतारी, सन्त या पवित्र है? तो सहजयोग में लोगों द्वारा ऐसा सवाल पूछते ही तुरन्त एक सहजयोगी के हाथ पर ठंडी लहरें आकर आप के प्रश्न का 'हाँ में उत्तर मिलेगा। विगत (भूतकाल की) बातों से मनुष्य का अहंकार बढ़ता है। उदाहरणत: किसी विशेष व्यक्ति का शिष्ट होने का दंभ जो सामने प्रत्यक्ष है उसका मनुष्य को ज्ञान नहीं होता है। बढ़े हुए अहंकार के कारण मनुष्य 'स्व' (आत्मा के सच्चे अर्थ को भूल 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-6.txt ० जाता है। अब देखिए, 'स्वार्थ' माने 'स्व' का अर्थ समझ लेना जरुरी है। आज गंगा जिस जगह बह रही है, और अगर आप किसी दूसरी जगह जाकर बैठ जाएँ और कहने लगें कि गंगा इधर से बह रही है और हम गंगा के किनारे बेठे हैं तो ये जिस तरह हास्यजनक होगा उसी तरह ये बात है। आपके सामने आज जो साक्षात है उसी को स्वीकार कीजिए । श्री ख्रिस्त के समय भी इसी तरह की स्थिति थी। उस समय श्री ख्रिस्त जी ने कुण्डलिनी जागरण के अनेक यत्न किये। परन्तु महा मुश्किल से केवल २१ व्यक्ति पार हुए। सहजयोग में हजारों पार हुए हैं। श्री ख्रिस्त उस समय बहुतों को पार करा सकते थे परन्तु उनके शिष्यों ने सोचा श्री खिस्त केवल बीमार लोगों को ठीक करते हैं। उसके अतिरिक्त कुछ है उसका उन्हें ज्ञान नहीं था। इसलिए उनके सारे शिष्य सभी तरह के बीमार लोगों को उनके पास ले जाते थे। श्री ख्रिस्त ने बहुत बार पानी पर चलकर दिखाया क्योंकि वे स्वयं प्रणव थे। ॐकार रूपी थे। इतना सब कुछ था। तब भी लोगों के दिमाग में नहीं आया कि श्री खिस्त परमेश्वर के सुपुत्र थे। मुश्किल से उन्होंने कुछ मछुआरों को इकठ्ठा करके (क्योंकि और कोई लाग उनके साथ आने के लिए तैयार नहीं थे ) बड़ी मुश्किल से उन्होंने उन लोगों को पार किया। पार होने के बाद ये लोग श्री खिस्त के पास किसी न किसी बीमार को ठीक कराने ले आते थे। हमारे यहाँ सहजयोग में भी बहुत से बीमार लोग पार होकर ठीक हुए हैं। लोगों को जान लेना चाहिए कि अहंकार बहुत ही सूक्ष्म है। अब दूसरा प्रकार ये है कि अपने अहंकार के साथ लड़ना भी ठीक नहीं है। अहंकार से लड़ने से वह नष्ट नहीं होता है। वह अपने आप ('स्व') में समाना चाहिए। जिस समय अपना चित्त कुण्डलिनी पर केन्द्रित होता है व कुण्डलिनी अपने ब्रह्मरन्ध्र को छेदकर विराट में मिलती है उस समय अहंकार का विलय होता है। विराट शक्ति का अहंकार ही सच्चा अहंकार है। वास्तव में विराट ही वास्तविक अहंकार है। आपका अहंकार छूटता नहीं। आप जो करते हैं वह अहंकार है। अहंकरोति सः अहंकार: । आप अपने आप से पूछकर देखिए कि आप क्या करते हैं। किसी मृत वस्तु का आकार बदलने के सिवा आप क्या कर सकते हैं? किसी फूल से आप फल बना सकते हैं? ये नाक, ये मुँह, ये सुन्दर मनुष्य शरीर आपको प्राप्त हुआ है। ये कैसे हुआ है? आप अमीबा से मनुष्य स्थिति को प्राप्त हुए हैं। ये कैसे हुआ है? परमेश्वर की असीम कृपा कि आपको ये सुन्दर मनुष्य देह प्राप्त हुआ है। क्या मानव इसका बदला चुका सकता है? आप ऐसा कोई जीवन्त कार्य कर सकते हैं क्या? एक टेस्ट ट्यूब बेबी के निर्माण के बाद मनुष्य में इतने बड़े अहंकार का निर्माण हुआ है। उसमें भी वस्तुत: ये कार्य जीवन्त कार्य नहीं है। क्योंकि जिस प्रकार आप किसी पेड़ का cross breeding करते हैं, उसी प्रकार किसी जगह से एक जीवन्त जीव लेकर यह क्रिया की है। परन्तु इस बात का भी मनुष्य को कितना अहंकार है। चाँद पर 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-7.txt पहुँच गए तो कितना अहंकार । जिसने चाँद-सूरज की तरह अनेक ग्रह बनाए और ये सृष्टि बनायी उनके सामने आपका अहंकार क्या है? वास्तव में आपका अहंकार दाम्भिक है, झूठा है। उस विराट पुरुष का अहंकार सत्य है क्योंकि वही सब कुछ करता है। विराट पुरुष ही सब कुछ कर रहा है, ये समझ लेना चाहिए। तो श्री विराट पुरुष को ही सब कुछ करने दीजिए। आप एक यन्त्र की तरह है। समझ लीजिए मेैं किसी माईक में (माध्यम) है परन्तु बोलने का कार्य मैं कर रही हूँ व वह शक्ति माइक से बह रही है। उसी भाँति आप एक परमेश्वर के यन्त्र है। उस विराट ने आपको बनाया है। तो उस विराट की शक्ति को आप में से बहने दो। उस 'स्व' का मतलब समझ लीजिए। यह मतलब समझने के लिए आज्ञा चक्र, जो बहुत ही मुश्किल चक्र है और जिस पर अति सूक्ष्म तत्त्व ॐकार, प्रणव स्थित है, वही अर्थात श्री ख्रिस्त इस दुनिया में अवतरित हुए थे। अब कुण्डलिनी और श्री ख्रिस्त का सम्बन्ध जैसे सूर्य का सूर्य किरण से जो सम्बन्ध है, उसी तरह है, अथवा चन्द्र का चन्द्रिका से जो सम्बन्ध है उसी प्रकार है। से बोल रही हूँ व माईक में से मेरा बोला हुआ आप तक बह रहा है। माइक केवल साक्षी श्री कुण्डलिनी ने माने श्री गौरी माता ने अपनी शक्ति से, तपस्या से, मनोबल से व पुण्याई से श्री गणेश का निर्माण किया। जिस समय श्री गणेश स्वयं अवतरण लेने के लिए सिद्ध हुए उस समय श्री खिस्त का जन्म हुआ। इस संसार में ऐसी अनेक घटनाएऐं घटित होती हैं जो मनुष्य को अभी तक मालूम नहीं। क्या आप ये विचार करते हैं कि एक बीज में अंकुर का निर्माण कैसे होता है? आप श्वास कैसे लेते हैं? अपना चलन वलन (movement, action) कैसे होता है? अपने मस्तिष्क में कहाँ से शक्ति आती है? आप इस संसार में कैसे आये हैं? ऐसी अनेक बातें हैं। क्या मनुष्य इन सबका अर्थ समझ सकता हैं? आप कहते हैं पृथ्वी में गुरुत्वाकर्षण की शक्ति है। लेकिन यह कहाँ से आयी हैं? आपको ऐसी बहुत सी बातें अभी तक मालूम नहीं हैं। आप भ्रम में हैं और इस भ्रम को हटाना जरुरी है। जब तक आपका भ्रम नहीं नष्ट होगा तब तक आप में वह बढ़ता ही जाएगा। इस संसार में मनुष्य की उत्क्रान्ति के लिए उसके भ्रम का नष्ट होना जरुरी है। जिस समय मनुष्य ने या और किसी भी जीव ने उत्क्रान्ति के लिए यत्न किए तब इस संसार में अवतरण हुए हैं आपको मालूम है कि श्री विष्णु श्री राम अवतार लेकर जंगलों में घूमते थे। जिससे मनुष्य ये जान ले कि एक आदर्श राजा को केसा होना चाहिए। इस लिए एक सुन्दर नाटक उन्होंने प्रदर्शित किया। इसी प्रकार श्री कृष्ण का जीवन था। और इसी तरह श्री येशु ख्िस्त का जीवन था। हुए श्री ख्रिस्त के जीवन की तरफ ध्यान दिया जाय तो एक बात दिखाई देती है। वह है उस समय लोगों की महामूर्खता, जिसके कारण इस महान व्यक्ति को सूली पर (फाँसी पर) चढ़ाया गया । इतनी मूर्खता कि 'एक चोर को छोड़ दिया जाए या श्री ख्रिस्त को? ऐसा लोगों से सवाल किया गया तो वहाँ के यहूदी लेगों ने श्री ख्रिस्त को फाँसी दी जाए यह माँग की। आज इन्हीं लोगों की क्या स्थिति है, ये आप जानते हैं। उन्होंने जो पाप किया है वह अनेक जन्मों में नहीं धुलने वाला। अभी भी ऐसे लोग अहंकार में डूबे हुए है। उन्हें लगता है, हमने बहुत बड़ा पुण्य कर्म किया है। अभी भी यदि उन लोगों ने परमेश्वर से क्षमा माँगी कि 'हे परमात्मा, आपके पवित्र तत्व को फाँसी देने के अपराध के कारण हमें आप क्षमा कीजिए । हमने आपका पवित्र तत्व नष्ट किया इसके लिए हमें माफ कीजिए' तो परमात्मा लोगों को तुरन्त माफ कर देंगे। परन्तु मनुष्य को क्षमा माँगना बड़ी कठिन बात लगती है। वह अनेक दुष्टता करता है। दुनिया में ऐसे कितने लोग हैं जिन्होंने सन्तों का पूजन किया है। आप श्री कबीर या श्री गुरुनानक की बात लीजिए। हर पल लोगों ने उन्हें सताया। इस दुनिया में लोगों ने आज तक हर एक सन्त को दुःख के सिवाय कुछ नहीं दिया। परन्तु अब में कहना चाहती हूँ कि अब दुनिया बदल चुकी है। सत्ययुग का आरम्भ हो गया है। आप कोशिश कर सकते हैं, पर अब आप किसी भी सन्त-साधु को नहीं सता पाऐँगे। इसका कारण श्री खिस्त हैं। श्री खरिस्त ने दुनिया में बहुत बड़ी शक्ति संचारित की है, जिससे साधुसन्त लोगों को परेशान करने वालों को कष्ट भुगतने पड़ेंगे। उन्हें सजा होगी । श्री खरिस्त के एकादश रुद्र आज पूर्णतया सिद्ध है। और इसलिए जो कोई साधु-सन्तों को सताएगा उनका सर्वनाश होगा। किसी भी महात्मा को सताना ये महापाप है। आप श्री येशु ख्रिस्त के उदाहरण द्वारा समझ लीजिए । इस प्रकार की मूर्खता मत कीजिए। अगर इस तरह की मूर्खता आपने फिर से की तो आपका हमेशा के लिए सर्वनाश होगा। श्री ख्रिस्त के जीवन से सीखने की एक बहुत बड़ी बात है। वह है 'जैसे रखूँ वैसे ही रहूँ' उन्होंने अपना ध्येय कभी नहीं बदला। उन्होंने अपने आपको सन्यासी समझ कर अपने को समाज से अलग नहीं किया। उलटे वे शादी ब्याहों में गए। वहाँ उन्होंने स्वयं शादियों की व्यवस्था की। बायबल में लिखा है कि एक विवाह में एक बार उन्होंने पानी से अंगूर का रस निर्माण किया। ऐसा वर्णन बाइबल में है। अब मनुष्य ने केवल यही मतलब निकाला कि श्री खरिस्त ने पानी से शराब बनायी, अत: वह शराब पिया करते थे। आपने अगर हिब्रू भाषा का अध्ययन किया तो आपको मालूम होगा कि 'वाइन' माने शुद्ध ताजे अंगूर का रस। उसका अर्थ दारु नहीं है। 1 श्री खिस्त का कार्य था आपके आज्ञा चक्र को खोलकर आपके अहंकार को नष्ट करना। मेरा कार्य है आप की कुण्डलिनी शक्ति का जागरण करके आपके सहस्त्रार का उसके (कुण्डलिनी शक्ति) द्वारा छेदन करना। ये समग्रता का कार्य होने के कारण हर एक के लिए मुझे ये करना है। मुझे समग्रता में श्री खिस्त, श्री गुरुनानक, श्री जनक व ऐसे अनेक अवतरणों के बारे में कहना है। उसी प्रकार र 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-8.txt मुझे श्री कृष्ण, श्री राम , इन अवतारों के बारे में भी कहना है। उसी प्रकार श्री शिवजी के बारे में भी, क्योंकि इन सभी देव-देवताओं की शक्ति आप में है। अब समग्रता (सामूहिक चेतना) घटित होने का समय आया है। कलियुग में जो कोई परमेश्वर को खोज रहे हैं उन्हें परमेश्वर प्राप्ति होने वाली है। और लोखों की संख्या में लोगों को यह प्राप्ति होगी। इसका सर्व न्याय भी कलियुग में होने वाला है। सहजयोग ही आखिरो न्याय (Last Judgement) है । इसके बारे में बाइबल में वर्णन है। सहजयोग में आने के बाद आपका न्याय (Judgement) होगा। परन्तु आपको सहजयोग में आने के बाद समर्पित होना बहुत जरुरी है क्योंकि सब कुछ प्राप्त होने के बाद उसमें टिककर रहना व जमकर रहना, उसमें स्थिर होना, ये बहुत महत्त्वपूर्ण है। बहुत लोग हमें पूछते हैं,"माताजी हम स्थिर कब होंगे?" ये सवाल ऐसा है कि, समझ लीजिए आप किसी नाव में बैठकर जा रहे हैं। नाव स्थित हुई कि नहीं, ये आप जानते हैं। या ऐसा समझ लीजिए आप साईकिल चला रहे हैं। वह चलाते समय जब आप ड्रगमगाते नहीं है कि आप का सन्तुलन हो गया व आप जम गए। ये जिस प्रकार आपकी समझ में आता है उसी प्रकार सहजयोग में आकर स्थिर हो गए हैं, ये स्वयं आपकी समझ में आता है। यह निर्णय आपने स्वयं ही करना है। जिस समय सहजयोग में आप स्थित होते हैं उस समय निर्विकल्पता प्रस्थापित होती है। जब तक कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार नहीं कर जाती तब तक निर्विचार स्थिति प्राप्त नहीं होती। साधक में निर्विचारिता प्राप्त होना, साधना की पहली सीढ़ी है। जिस समय कुण्डलिनी शक्ति आज्ञा चक्र को पार करती है, उस समय निर्विचारिता स्थापित होती है। आज्ञा चक्र के ऊपर स्थित सूक्ष्म द्वार येशु ख्रिस्त की शक्ति से ही कुण्डलिनी शक्ति के लिए खोला जाता है और ये द्वार खोलने के लिए श्री खिस्त की प्रार्थना 'दी लार्डस् प्रेअर' बोलनी पड़ती है। ये द्वारा पार करने के बाद कुण्डलिनी शक्ति अपने मस्तिष्क में जो तालू स्थान (limbic area) है उसमें प्रवेश करती है। उसी को परमात्मा का साम्राज्य कहते हैं। कुण्डलिनी जब इस राज्य में प्रवेश करती है तब ही निर्विचार स्थिति प्राप्त होती है। इस मस्तिष्क के limbic area में वे चक्र है जो शरीर के सात मुख्य चक्र व और अन्य उप चक्रों को संचालित करते हैं। अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब होता है वह देखते हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य कारण आँखे हैं। मनुष्य को अपनी आँखों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि उनका बड़ा महत्त्व है अनधिकृत गुरु के सामने झुकने अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है। इसी कारण जीजस ख्रिस्त ने अपना माथा चाहे जिस आदमी या स्थान के सामने झुकाने को मना किया है। ऐसा करने से हमने जो कुछ पाया है वह सब नष्ट हो जाता है । केवल परमेश्वरी अवतार के आगे ही अपना सन 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-9.txt माथा टेकना चाहिए। दूसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे को झुकाना ठीक नहीं। किसी गलत स्थान के सम्मुख भी अपना माथा नहीं झुकाना चाहिए। ये बात बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आपने अपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया तो तुरन्त आपका आज्ञा चक्र पकड़ा जाएगा। सहजयोग में हमें दिखाई देता है, आजकल बहुत ही लोगों के आज्ञा चक्र खराब हैं । इसका कारण है लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरु को मानते हैं। आँखों के अनेक रोग इसी कारण से होते हैं। ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा अच्छे पवित्र धर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए। अपवित्र साहित्य बिलकुल नहीं पढ़ना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं 'इसमें क्या हुआ? हमारा तो काम ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने पड़ते है जो पूर्णतः सही नहीं है।' परन्तु ऐसे अपवित्र कार्यों के कारण आँखे खराब हो जाती हैं। मेरी ये समझ में नहीं आता कि जो बातें खराब है वह मनुष्य क्यों करता है? किसी अपवित्र व गन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो सकता है। श्री खरिस्त ने बहुत ही जोर से कहा था कि आप व्यभिचार मत कीजिए। परन्तु मैं आपसे कहती है कि आप की नजर भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने इतने बलपूर्वक कहा था कि आपकी अगर नजर अपवित्र होगी तो आपको आँखों की तकलीफि होंगी। इसका मतलब ये नहीं कि अगर आप चष्मा पहनते है तो आप अपवित्र गलत व्यक्ति है। किसी एक उम्र के बाद चष्मा लगाना पड़ता है। ये जीवन की आवश्यकता है। परन्तु आँखे खराब होती हैं ये अपनी नजर स्थिर न रखने के कारण। बहुत लोगों का चिंत्त बार-बार इधर उधर दौड़ता रहता है। ऐसे लोगों को इसकी समझ नहीं कि आपनी आँखें इस प्रकार इधर उधर घुमाने के कारण ये खराब होती हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का दूसरा कारण है मनुष्य की कार्यपद्धति । समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति कर्मी हैं। अच्छे काम करते हैं। कोई भी बुरा काम नहीं करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से, फिर वह अति पढ़ना, अति सिलाई हो या अति अध्ययन हो या अति विचारशीलता हो । इसका कारण है कि जिस समय आप अति कार्य करते हैं उस समय आप परमात्मा को भूल जाते हैं। उस समय अपने में ईश्वर प्रणिधान स्थित नहीं होता। 1 1 1 कुण्डलिनी सत्य है। यह पवित्र है। ये कोई ढोंगबाजी या दुकान में मिलने वाली चीज़ नहीं है। ये नितान्त सत्य है। जब तक आप सत्य में नहीं उतरंगे, तब तक आप ये जान नहीं सकते। वाम मार्ग (गलत मार्ग) का अवलम्बन करके आप सत्य को नहीं पहचान सकते। जिस समय आप सत्य से एकाकार होंगे, तब ही आप जान सकते हैं कि सत्य क्या है, उसी समय आप समझेंगे कि हम परम पिता परमेश्वर के एक साधन हैं, जिसमें से परमेश्वरी शक्ति का वहन (प्रवाह) हो रहा है, जो परमेश्वरी शक्ति सारे विश्व में फैली हुई है, जो सारे विश्व का संचालन करती है। उसी परमेश्वरी प्रेम शक्ति के आप साधन हैं। इसमें श्री खिस्त का कितना बड़ा बलिदान है? क्योंकि उन्हीं के कारण आपका आज्ञा चक्र खुला है। अगर आज्ञा चक्र नहीं खुला तो कुण्डलिनी का उत्थान नहीं हो सकता, क्योंकि जिस मनुष्य का आज्ञा चक्र पकड़ता है उसका मूलाधार चक्र भी पकड़ा जाता है। किसी मनुष्य का आज्ञा चक्र बहुत ही ज्यादा पकड़ा होगा तो उसकी कुण्डलिनी शक्ति जागृत नहीं होगी। आज्ञा चक्र की पकड़ छुड़वाने के लिए हम कुंकुम लगाते हैं। उससे अहंकार व आपकी अनेक विपत्तियाँ होती हैं। जब आपके आज्ञा चक्र पर कुंकुम लगाया जाता है तब आपका आज्ञा चक्र खुलता है व कुण्डलिनी शक्ति ऊपर जाती है। इतना गहन सम्बन्ध श्री ख्रिस्त व कुण्डलिनी शक्ति का है । जो श्री गणेश, मूलाधार चक्र पर स्थित रहकर आपकी कुण्डलिनी शक्ति की लज्जा का रक्षण करते हैं वही श्री गणेश आज्ञा चक्र पर उस कुण्डलिनी शक्ति का द्वार खोलते हैं। दूर यह चक्र ठीक रखने के लिए आपको क्या करना चाहिए? उसके लिए अनेक मार्ग हैं। किसी भी अतिशयता के कारण समाज दूषित होता है। और इसलिए किसी भी प्रकार की अतिशयता अनुचित है। संतुलितता से अपनी आँखों को विश्राम मिलता है। सहजयोग में इसके लिए अनेक उपचार हैं। परन्तु इसके लिए पहले पार होना आवश्यक है। उसके बाद आँखों के लिए अनेक प्रकार के व्यायाम है जिससे आपका आज्ञा चक्र ठीक रह सकता है। इसमें एक हैं अपना अहंकार देखते रहना और अपने आपसे कहना 'क्यों? क्या विचार चल रहा है? कहाँ जा रहे हो?' जैसे कि आप आईने में अपने आपको देख रहे हैं। उससे अहंकार से ऑँखों पर आने वाला तनाव कम हो जाता है। इसका महत्त्वपूर्ण इलाका (क्षेत्र, अंचल) सिर के पिछले भाग का वह स्थल है जो माथे (भाल) के ठीक पीछे स्थित है। यह उस क्षेत्र में स्थित है जो गर्दन के आधार (back of the neck ) से आठ उंगलियों की मोटाई (लगभग पांच इंच) की ऊँचाई पर स्थित है। यह 'महागणेश' का अंचल (इलाका) है । श्री गणेश ने 'महागणेश' के रूप में अवतार लिया और वही अवतार जीजस ख्रिस्त का है। श्री ख्रिस्त का स्थान कपाल (खोपड़ी) के केन्द्र (मध्य) भाग में है और इसके चारों ओर एकादश रुद्र का साम्राज्य है। जीजस ख्रिस्त इस साम्राज्य के स्वामी हैं। श्री महागणेश और षड़ानन इन्हीं एकादश रुद्रों में से हैं। कुण्डलिनी जागृत होने के पश्चात यदि आप आँख खोलें तो अनुभव करेंगे कि आपकी आँखों की दृष्टि कुछ धुंधली हो गई है। इसका कारण यह है कि जब कुण्डलिनी जागृत होती है तब आपकी आँखों की पुतलियाँ कुछ फैल जाती हैं और शीतल हो जाती है। यह para sympathetic nervous system ( सुषुम्ना नाड़ी) के कार्य के फलस्वरूप होता है। जीजस ख्रिस्त के बारे में केवल सोचने से अथवा चिन्तन, मनन करने से आज्ञा चक्र को चैन प्राप्त होता है । साथ ही यह भी समझ लेना चाहिए कि जीजस ख्रिस्त के जीवन पश्चात निर्मित मिथ्या आचार-विचार या १० 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-10.txt ० उत्तराधिकारियों की श्रृंखलाओं का अनुसरण जीजस ख्रिस्त का मनन-चिन्तन नहीं है । अब जो कुछ सनातन सत्य है वह में आपको बताऊँगी। सर्वप्रथम किसी भी स्त्री की तरफ बुरी दृष्टि से देखना महापाप है। आप ही सोचिए जो लोग रात दिन रास्ते चलते ख्त्रियों की तरफ बुरी नजरों से देखते हैं वे कितना महापाप कर रहे हैं? श्री ख़िस्त ने ये बातें २००० साल पहले आपको कही हैं। परन्तु उन्होंने ये बातें खुलकर नहीं कहीं थी और इसलिए यही बातें मैं फिर से आपसे कह रही हूं। श्री खिस्त ने ये बातें आपसे कहीं तो आपने उन्हें फाँसी पर चढ़ाया। श्री ख्रिस्त ने इतना ही कहा था कि ये बातें न करें, क्योंकि ये बातें गन्दी हैं । परन्तु ये करने से क्या होता है ये उन्होंने नहीं कहा था। गलत नजर रखने से उसके दुष्परिणाम क्या होते हैं, इसके बारे में उन्होंने कहा है। मनुष्य किसी पशु समान बर्ताव करता है क्योंकि रात दिन उसके मन में गन्दे विचारों का चक्र चलता रहता है। इसी कारण अपने योग शास्त्र में लिखा है अपनी चित्तवृत्ति को संभालकर रखिए और चित्त को सही मार्ग पर रखिए । अपना चित्त ईश्वर के प्रति नतमस्तक रखना चाहिए। हमें योग से बनाया गया है। हमारी भूमि योग भूमि है। हम अहंकारवादी नहीं है या हमारे में अहंकार आने वाला भी नहीं है। हमें अहंकारवादिता नहीं चाहिए । हमें इस भूमि पर योगी की तरह रहना है । एक दिन ऐसा आएगा जब हम सभी को योग प्राप्त होगा। उस समय सारी दुनिया इस देश के चरणों में झुकेगी। उस समय लोग जान जाएँगे श्री ख्रिस्त कौन थे।, कहाँ से आए थे और उनका इस भूमि पर यथाचित पूजन होगा। अपनी पवित्र भारत भूमि पर आज भी नारी की लज्जा का रक्षण होता है और उन्हें सम्मान दिया जाता है। अपने देश में हम अपनी माँ को मान देते हैं। अन्य देशों के लोग जब भारत में आएंगे तब वे देखेंगे कि श्री खिस्त का सच्चा धर्म वास्तव में भारत में अत्यन्त आदरपूर्वक पालन किया जा रहा है, ईसाई धर्मानुयायी राष्ट्रों में नहीं। श्री ख्रिस्त ने कहा कि अपना दोबारा जन्म होना चाहिए या आपको द्विज होना पड़ेगा। मनुष्य का दूसरा जन्म केवल कुण्डलिनी जागृति से ही हो सकता है। जब तक किसी की कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी तब तक वह दूसरे जन्म को प्राप्त नहीं होगा। और जब तक आपका दूसरा जन्म नहीं होगा तब तक आप परमेश्वर को पहचान नहीं सकते । आप लोग पार होने के बाद बाइबल पढ़िए। आपको आश्चर्य होगा कि उस में ख्रिस्त जी ने सहजयोग की महत्ता कही है, उसके अतिरिक्त कुछ भी नहीं । एक एक बात इतनी सूक्ष्मता में बताई है। परन्तु जिन लोगों को वह दृष्टि प्राप्त नहीं है वे इन सभी बातों को उल्टा स्वरूप दे रहे हैं। (मनमाने ढंग से उसकी व्याख्या कर रहे हैं।) वास्तव में बाप्तिस्म (baptism) देने का अर्थ है कुण्डलिनी शक्ति को जागृत करना और उसके बाद उसे सहस्त्रार तक लाना, तद्नन्तर सहस्त्रार का छेदन कर परमेश्वरी शक्ति और अपनी कुण्डलिनी शक्ति का संयोग घटित करना। यही कुण्डलिनी शक्ति का ११ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-11.txt ORFIOKED 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-12.txt आखिरी कार्य है। परन्तु इन पादरियों को बाप्तिस्म की जरा भी कल्पना नहीं है। उल्टे वे अनाधिकार चेष्टा करते हैं, या फिर ऐसे ये पादरी भूत कामों में लग हैं। गरीबों की सेवा करो, बीमारों की सेवा करो हुए वगैरा। आप कहेंगे माताजी ये तो अच्छे हैं। हाँ ये अच्छा है, परन्तु ये परमात्मा का कार्य नहीं है। परमात्मा का ये कार्य नहीं है कि पैसे देकर गरीबों की सेवा करें। परमेश्वर का कार्य है आपको उनके साम्राज्य में ले जाना और उनसे भेंट कराना। आपको सुख, शान्ति, समृद्धि शोभा व ऐश्वर्य इन सभी बातों से परिपूर्ण करना, यही परमेश्वर का कार्य है। कोई मनुष्य चोरी करता है या झूठ बोलता है या गरीब बनकर घूमता है, परमात्मा ऐसे मनुष्य के पांव नहीं पकड़ेंगे। ये सेवा का काम है, जो कोई भी मनुष्य कर सकता है। कुछ क्रिश्चन लोग धर्मान्तर करने का काम करते हैं। जहाँ कुछ आदिवासी लोग होंगे वहाँ वे (क्रिश्चन लोग) जाएँगे। वहाँ कुछ सेवा का काम करेंगे। फिर सब को क्रिश्चन बनायेंगे। परन्तु एक बात समझना चाहिए कि ये परमात्मा का काम नहीं है। परमात्मा का कार्य अवाधित है। सहजयोग में लोगों की कुण्डलिनी जागृत करते ही लोग ठीक हो जाते हैं। हम सहजयोग में दिखावटी दयालुता का काम नहीं करते। परन्तु अगर हम किसी अस्पताल में गए तो २५- ३० बीमार को सहज (आसानी से) स्वस्थ कर सकते हैं । उनकी कुण्डलिनी जागृत करते ही वे अपने आप स्वस्थ हो जाते हैं। श्री खिस्त ने उनमें बह रही उसी प्रेमशक्ति के द्वारा अनेक लोगों को स्वस्थ किया । श्री ख़िस्त ने कभी किसी भी भौतिक वस्तुओं से सहायता नहीं की। ये सब बातें आपको सुज्ञता (सूक्ष्मता) से समझ लेना आवश्यक है। पहले की गयी गलतियों की पुनरावृत्ति मत कीजिए। आप स्वयं साक्षात्कार प्राप्त कीजिए। ये आपका प्रथम कार्य है। आत्मसाक्षात्कार के बाद आपकी शक्तियाँ जागृत हो जाती हैं। इन जागृत शक्तियों से सहजयोग में कर्क रोग (कैन्सर) जैसी असाध्य बीमारियाँ ठीक हुई हैं। आप किसी को भी रोगमुक्त करा सकते हैं। कैन्सर जैसी असाध्य बीमारियाँ केवल सहजयोग से हौ ठीक हो सकती हैं। परन्तु लोग ठीक होने के बाद फिर से अपने पहले मार्ग और आदतों पर चले जाते हैं । ऐसे लोग परमात्मा को नहीं खोजते। उन्हें अपनी बीमारी ठीक कराने के लिए परमेश्वर की याद आती है। अन्यथा उन्हें परमात्मा को खोजने की आवश्यकता प्रतीत नहीं होती। जो मनुष्य परमात्मा का दीप बनना नहीं चाहते, उन्हें परमात्मा क्यों ठीक करे? ऐसे लोगों को ठीक किया या नहीं किया, उन से दुनिया को प्रकाश नहीं मिलने वाला। परमात्मा ऐसे दीप जलाऐंगे जिनसे सारी दुनिया प्रकाशमय हो जाएगी। परमात्मा मूर्ख लोगों को क्यों ठीक करेंगे। जिन लोगों में परमेश्वर प्रीति की इच्छा नहीं, परमेश्वर का कार्य करने की इच्छा नहीं, ऐसे लोगों को परमात्मा क्यों सहायता करें? गरीबी दूर करना अथवा अन्य सामाजिक कार्यों को ईश्वरीय कार्य नहीं समझना चाहिए । कुछ लोग इतने निम्न स्तर पर परमेश्वर का सम्बन्ध जोड़ते हैं कि एक जगह दुकान पर 'साईनाथ बीड़ी लिखा हुआ था। यह परमेश्वर का मज़ाक उड़ाना, परमात्मा का सरासर अपमान करना है। सभी बातों में मर्यादा होनी चाहिए। हर एक बात परमात्मा से जोड़कर आप महापाप करते हैं, ये समझ लीजिए। 'साईंनाथ बीड़ी' या 'लक्ष्मी हींग' ये परमात्मा का मज़ाक उड़ाना हुआ। ऐसा करने से लोगों को क्या लाभ होता है? कुछ लोग कहते हैं 'माताजी, इससे हमारा शुभ हुआ है। शुभ का मतलब है ज्यादा पैसे प्राप्त हुए। इस तरह से धन्धा करने से कष्ट होगा। इससे परमात्मा का अपमान होता है। श्री खरिस्त ने सारी मनुष्य जाति के कल्याणार्थ व उद्धारार्थ जन्म लिया था वे किसी जाति या समुदाय की निजी सम्पदा नहीं थे। वे स्वयं ॐ कार रूपी प्रणव थे। सत्य थे। परमेश्वर के अन्य जो अवतरण हुए उनके शरीर पृथ्वी तत्त्व से बनाये गये थे। परन्तु श्री खरिस्त का शरीर आत्म तत्त् से बना था। और इसलिए मृत्यु के बाद उनका पुनरुत्थान हुआ। और उस पुनरुत्थान के बाद ही उनके शिष्यों ने जाना कि वे साक्षात् परमेश्वर थे । बाद में तो फिर उनके नाम का नगाड़ा बजने लगा, उनके नाम का जाप होने लगा और उनके बारे में भाषण होने लगे । वे परमात्मा के अवतरण थे, यह मुख्य बात है। यदि लोग उनके उस स्वरूप को, अवतरण को पहचान कर अपनी आत्मोन्नति करें तो चारों तरफ आनन्द ही आनन्द होगा। 131 आप सब लोग परमेश्वर के योग को प्राप्त हों। अनन्त आशीर्वाद! (मूल मराठी से अनुवादित) १३ डा 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-13.txt ा ता क्या आपकी प्रगति अच्छी हो रही है ? सहस्रार दिवस, ५ मई, फ्रान्स आ् से गुज़रना है जैसे की यह महल। यह उन तपस्या के नज़ारों में से एक है पको पूर्ण समर्पित मन से इस यात्रा जिसे आपको करना है। क्योंकि मुझे यह बताया गया है कि आपको आपके इस यात्रा के दौरान कुछ कठिनाईयों का सामना करना पड़ा। पर उन सब जगहों तक पहुँचना बड़ा ही रोमांचक होता है जहाँ शैतानों को जाने की हिम्मत नहीं होती। और अगर आपको ज्ञान हो जाए कि किस तरह से तथाकथित असुविधा का भी आनन्द उठाया जा सकता है तो फिर आप समझ लीजिए कि आप सही रास्ते पर चल रहे हैं। और जैसे ही आप अपने आप विचारशील बनने लग जाएं आपको जान लेना चाहिए कि आप की प्रगति अच्छी तरह से हो रही है। जैसे-जैसे आप शांत होते है और आपका गुस्सा हवा में गायब हो जाता है। यह देख कर भी कोई आप पर वार कर रहा है या आप के ऊपर कोई मुसीबत आ रही है और आप फिर भी उसकी चिन्ता नहीं कर रहें हैं तो समझ लीजिए कि आपकी १४ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-14.txt अच्छी प्रगति हो रही है। जब किसी भी तरह की कृत्रिमता आपको प्रभावित नहीं कर सकती तो समझ लीजिए कि आप की अच्छी प्रगति हो रही है। जब दूसरों की धन-सम्पत्ति से आपको कोई जलन न हो, आप बिलकुल दुःखी नहीं हो रहे हों, तो समझ लीजिए कि आपकी अच्छी प्रगति हो रही है। सहजयोगी बनने के लिए किसी तरह की तकलीफ उठाना या मेहनत करना ही पर्याप्त नहीं है। चाहे आप कितनी भी कोशिश कर लें पर आप सहजयोगी नहीं बन सकते। जबकि आपको यह बिना किसी प्रयास के प्राप्त हुआ है, इसलिए आप कुछ तो खास हैं। इसलिए एक बार जब आपको पता चल जाए कि आप कुछ तो खास हैं, आप उसके लिए विनम्र हो जाएंगे। जब आप में ऐसा होता है कि आप कुछ हासिल करने के बाद नम्र हो जाते हो, कि आप में कुछ शक्तियाँ हैं, कि आप अबोधिता को प्रदर्शित कर रहे हो, कि आप विचारशील हैं। और उसके कारण आप और भी अधिक करुणामय, विनम्र और मधुर व्यक्तित्व बन जाते हो तो आपको समझ लेना चाहिए कि आप श्री माताजी के हृदय में हैं। यह एक नये युग के सहजयोगी की पहचान है जिसे नए सामर्थ्य से आगे बढ़ना है। और वहाँ आप इतनी तेजी से प्रगति कर सकते हैं कि तब ध्यान न करते हुए भी ध्यान में रहेंगे। मैरी मौजूदगी न होने पर भी आप मेरी मौजूदगी महसूस करेंगे। बिना माँगे ही, आप परमात्मा से आशीर्वादित हो जाएंगे। यही है जिसके लिए यहाँ आप मौजूद हैं और इस नए युग में एक बार फिर, इस सहस्रार दिवस पर, मैं आप सब का स्वागत करती हैं। परमात्मा आप सबको आशीर्वादित करें। ॐ बॉम 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-16.txt S menta fin seche 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-17.txt आप उनमें से बनिए जो दस 'अच्छे' आदमी हैं मुंबई - १ फरवरी १९७५ ु अ धिकतर लोगों को मैं ये देखती हैँ, इधर - उधर की पचासों बातें करेंगे, लेकिन ध्यान की बात, अपने मनशुद्धि की बात, अपने अन्दर के आनन्द को उभारने की बात कितने लोग आप लोगों में से करते हैं? "इसने ये कहा, उसने वो कहा, ऐसा हो गया, ऐसा नहीं करना चाहिए था, वैसा नहीं करना चाहिए था" ये क्या सहजयोगी को शोभनीय होगा? जब आपके पास निर्विचार की इतनी बड़ी सम्पत्ति है, तो क्या उसको पूरी तरह से उखाड़ देना चाहिए या नहीं। ये तो आप जानते हैं कि क्षण क्षण आप उसे पा रहे हैं और हर एक क्षण उसे आप खो भी रहे हैं। ये हरेक क्षण कितना महत्त्वपूर्ण है, इसे आप देखिए । कौनसी छोड़ने की बात, कौनसी पकड़ने की बात, कोई भी ऐसी बात मैंने आप से आज तक तो की नहीं होगी। लेकिन ये आपका भ्रम है। आपका मन आपको भ्रम में ड्राले दे रहा है। तो तुम क्या घर गृहस्थी छोड़ दोगी? मैंने घर-गृहस्थी छोड़ी है जो आपसे मैं घर-गृहस्थी छोड़ने को कहती हूँ? आप जानते हैं कि आपसे कहीं अधिक मैं मेहनत करती हैं। लेकिन मैं थकती नहीं हूँ क्योंकि मेरे आनन्द का स्रोत आप लोग हैं। जब आपको देख लेती हैँं, बस, खुश हो जाती हैँ। तबीयत सारी बाग-बाग हो जाती है। जिस चीज़ का महत्त्व है, उधर दृष्टि रखिए। आप को पूरी तरह से मैं ये नहीं कहती कि चौबीसों घण्टे इसमें आप यहीं बैठे रहिए! जहाँ भी बैठे हैं, वहाँ बैठे रहिए - ये मतलब है मेरा। जहाँ भी जमे हैं वहाँ जमे रहिए, अपने स्थान पर, अपने सिंहासन पर । कुछ लोग इसलिए प्रगति करते हैं और कुछ लोग नहीं करते। शारीरिक बीमारियां आप लोगों की, बहुतों की ठीक हो गई हैं। बहुतों के पास बीमारियां नहीं है। लेकिन अभी भी मानसिक प्रश्न हैं। सब बातें भूल जाइए। हर इन्सान इसको पाने का अधिकारी है। आपका जन्मसिद्ध हक है, क्योंकि ये 'सहज' है, आप ही के साथ पैदा हुआ है। लेकिन ध्यान करना ही होगा और वो भी समष्टि में लेकिन उसको उसकी व्यवस्था करने की आप इतनी चिन्ता नहीं करें। वो कार्य हो रहा है, वो हो भी जाएगा । क्या हर्ज है अगर दस आदमी ज्यादा आए चाहे दस आदमी कम । हजार बेकार के लोग रखने से दस ही कायदे के आदमी हों सो ही सहजयोग के लिए 'विशेष चीज' है। organise करने की आप लोग इतनी चिन्ता न करें। १८ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-18.txt प ४. रा आप उनमें से बनिए जो दस 'अच्छे' आदमी हैं। जो ऐसे लोग हैं, जो सहजयोग का कार्य अत्यंत प्रेम से करते हैं और उसमें मजा उठा रहे हैं, उसमें बह रहे हैं, उसमें अग्रसर हैं और एक अग्रिम श्रेणी में जाकर के खड़े हो जाते हैं जैसे कि हिमालय संसार में सबसे ऊँचा है। उसकी ओर सबकी दृष्टि रहती है। ऐसे ही आप बनें। आप ही में आप हिमालय बन सकते हैं और आप देख सकते हैं कि दुनिया आप की ओर आँख उठा कर कहे कि बनूँ तो मैं इस आदमी जैसा बनूँ जो सहजयोग में इतना ऊँचा उठ गया । ये अन्दर का उठना होता है, बाहर का नहीं। और मैं सबके बारे में जानती हैँ कौन कहाँ तक पहुँच रहा है। आप ही अपनी रुकावट हैं और कोई आप की रुकावट नहीं कर सकता। कोई भी दुनिया का आदमी आप पर मंत्र-तंत्र आदि 'कोई चीज़ नहीं ड्ाल सकता। आप ही अपने साथ अगर खराबी न करें और पहचाने रहें कि कौन आदमी कैसी बातें करता है, आप खुद ही समझ लेंगे कि इस आदमी में कोई न कोई दुष्टता आ गई है, तभी वो ऐसी बातें कर रहा है, नहीं तो ऐसी बात ही न करता वो। जैसे गलत बात वो कर रहा है, इसमें कोई न कोई खराबी है। उसमें साथ देने की कोई जरूरत नहीं। फिर चाहे वो आपका पति ही हो, चाहे आपकी वो पत्नी हो। उससे लड़ाई-झगड़ा करने की, उलझने की 'कोई' जरूरत नहीं। वो अपने आप ही ठीक हो जाएगा। इतना ही नहीं आप ये भी जानते हैं कि आपमें कोई खराबी आ जाए तो आप किस तरह से उसे हाथ चला कर भी ठीक कर सकते हैं, क्योंकि आपके हाथ के अन्दर ही वो चीजें बह रही है। असल में आपकी उंगलियों में ही ये सब जो भी देवता मेंने बताए हैं ये जागृत हैं, इन पाँचों उंगलियों में और इस हथेली में, सारे देवता यहाँ जागृत हैं। लेकिन बहुत जरूरी है कि इन जागृत देवताओं का कहीं भी अपमान न हो। इन को बहुत ही संभाल के और जतन से रखना चाहिए। इनकी पूजा होनी चाहिए। अपने हाथ ऐसे होने चाहिए कि पूजनीय हों । लोग ये सोचें कि ये हाथ हैं या गंगा की धारा ! गंगा ही की धारा बहें । जिस वजह से गंगा पावन हुई वही वाइब्रेशन (चैतन्य, आपके अन्दर से बह रहे हैं । जिस चैतन्य शक्ति से सारी सृष्टि चल रही है, वही आपके अन्दर से बह रही है, ये आप जानतेहैं। फिर जिन हाथों से, जिन पाँव से ये चीज बह रही है, उसको 'अत्यन्त पवित्र' रखना चाहिए। मेरा मतलब 'धोन-धवाने' से नहीं है। इससे जो भी आप काम करें, अत्यन्त सुन्दरता से, सुगमता से और 'प्रेम' से होना चाहिए। 'सबसे बड़ी' चीज प्रेम' है। १९ ি ० 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-19.txt ये वाइब्रेशन सिर्फ "प्रेम'" है २० ध्या. वमें गति करना, यही आपका कार्य है, और कुछ भी आपका कार्य नहीं है, बाकी सब हो रहा है। और आप में से अगर कोई भी जब ये सोचने लगेगा कि मैं ये कार्य करता हूँ और वो कार्य करता है, तब आप जानते हैं कि मैं अपनी माया छोड़ती हूँ और बहुतों ने उस पर काफी चोट खाई हैं। वो में करूँगी। पहले ही मैंने आप से बता दिया है, कि कभी भी नहीं सोचना है कि में ये काम करता हूँ या वो काम करता हूँ।"हो रहा है।" जैसे "ये जा रहा है और आ रहा है।" अब सब तरह से अकर्म में-जैसे कि सूर्य ये नहीं कहता कि में आपको प्रकाश देता हूँ। "वो दे रहा है।" क्योंकि वो एकतानता में परमात्मा से, इतनी प्रचण्ड शक्ति को अपने अन्दर से बहा रहा है। ऐसे ही आपके अन्दर से 'अति' सूक्ष्म शक्तियाँ बह रही हैं क्योंकि आप एक सूक्ष्म मशीन हैं। आप सूर्य जैसी मशीन नहीं हैं, आप एक 'विशेष' मशीन हैं, जो बहुत ही सूक्ष्म है, जिसके अन्दर से बहनेवाली ये सुन्दर धाराएं एक अजीब तरह की अनुभूति देंगी ही, लेकिन टूसरों के भी अन्दर उनके छोटे-छोटे यंत्र है, मशीनें हैं, उनको एकदम से प्रेमपूर्वक ठीक कर देंगे। ये जो शक्ति है, ये प्रेम की शक्ति है। इस चीज का वर्णन कैसे करूँ मैं आप से? इस मशीन को ठीक करना है, तो आप किसी भी चीज से रगड़-मगड़ कर के ठीक कर दें, कोई आप screw (पेच) लगा दें, तो ठीक हो जाएगा। लेकिन मनुष्य की मशीन जो है वो प्रेम से ठीक होती है उसको बहुत जख्मी पाया है। बहुत जख्म हैं उसके अन्दर में । बहुत दुःखी है मानव। उसके जख्मों को प्रेम की दवा से आपको ठीक करना है। जो आपके अन्दर से बह रहा है, ये वाइब्रेशन सिर्फ "प्रेम" है। जिस दिन आपकी प्रेम की धारा ट्ूट जाती है, वाइब्रेशन रुक जाते हैं। बहुत से लोग मुझसे कहते हैं "माताजी हमको बाधा हो गई। हमारे हाथ से वाइब्रेशन बंद हो गए।" आपके अन्दर से प्रेम की धारा टूट गई। प्रेम का पल्ला पकड़ा रहे, सिर्फ प्रेम का - वाइब्रेशन बहते रहेंगे। क्योंकि ये ही प्रेम परमात्मा का जो है, वही बहे जा रहा है और वही बह रहा है। ा 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-20.txt कि इतनी अद्भुत अनुभूति है, इतना अद्भुत समां आया हुआ है। क्या ये सब व्यर्थ हो जाएगा क्योंकि आप ने इसमें पूरी लगन से मेरा साथ नहीं दिया? हरेक बात आप खुद भी जान सकते हैं, और न जानने पर मैं भी आपसे हरेक बात बताने के लिये हमेशा तैयार रहती हैं। लेकिन थोड़ासा इसमें एक आप से सुझाव देने का है, कि आप इसके अधिकारी तो हैं या नहीं, इसे सोच लीजिए। क्योंकि आप मेरे ध्यान में आते हैं-जैसे मराठी में बहुत से लोग कहते हैं, - "जमून आले" इससे आप अधिकारी 'नहीं होते। आप अधिकारी इसलिये होते हैं, कि आपके अन्दर वो गहराई आ गई। जैसे एक घाघर है। जितनी गहरी होगी, उतना पानी उसमें समा जाएगा। अब अगर वो नहीं है तो उसमें पानी डालने से क्या फायदा, वो तो सब पानी निकल ही जाएगा। अपनी गहराई आप ध्यान से बढ़ाते हैं। ध्यान पर स्थित होईये। ध्यान में जाईये। ध्यान में जो विचार आ रहे हैं उनकी ओर देखते ही आप निर्विचार हो जाएंगे। निर्िचार होते ही उस अचेतन मन में 'अचेतन', सुप्त चेतन नहीं कहेंगे- अचेतन मन में अपनी चेतना के सहित आप जाएंगे। आपकी चेतना, आपकी consciousness खत्म नहीं होती। वहां आप चेतना को जानेंगे। ये पहली मर्तबा इंसान के शरीर के अन्दर हुआ है, कि आप अपना भी शरीर जानते हैं और दूसरों का भी जानते हैं। और दूसरों के बारे में आप सामूहिक चेतना से जानते हैं कि इसके अन्दर क्या हो रहा है। इसका महत्त्व अभी बहुत कम लोग जानते हैं। क्योंकि सब लोग मुझसे कहते हैं कि "माताजी, सबसे अगर आप रुपया लें, तो सब लोग समझेंगे क्योंकि लोग पैसों को बहुत मानते हैं।" पैसा एक भूत है। पैसा लेने से अगर आप इसका महत्त्व समझे तो बेहतर है कि आप न ही समझें। कोई भी पैसा देने से इसका महत्त्व आप नहीं समझ सकते। अपने को ही पूरी तरह से देना होगा और वो देने में कितना मिलनेवाला है। जो आप सात गुने खड़े हुए हैं वो तो एकदम साक्षात मिल जाएगा। २१ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-21.txt है० की (० p৮ य बना घड़ी -सहजयोग और ध्यान के लिए स हजयोग में सबसे आवश्यक बात यह है कि इसमें अग्रसर होने के लिए, बढ़ने के लिए आपको ध्यान करना पड़ेगा। ध्यान बहुत जरूरी है। आप और चाहे कुछ भी न करें लेकिन अगर आप ध्यान में स्थित रहें, तो सहजयोग में प्रगति हो सकती है। जैसे कि मैने आपसे कहा था कि एक ये नया रास्ता है। नया आयाम है, dimension है; नई चीज़ है जिसमें आप कूद पड़े है। आपके अचेतन मन में, उस महान सागर में आप उतर गएं है, बात तो सही है। लेकिन उसकी गहराई में अगर उतरना है, तो आपको ध्यान करना पड़ेगा । मैं बहुत से लोगों से ऐसा भी सुनती हूँ कि "माताजी, ध्यान के लिए हमको समय नहीं मिलता है।" आज का जो आधुनिक मानव (modern man) है, उसके पास घड़ी रहती है हर समय बचाने के लिए, लेकिन वो ये नहीं जानता है कि वो time किस चीज़ के लिए बचा रहा है? उसने घड़ी बनाई है वो सहजयोग के लिए बनाई है ये वो जानता नहीं है। एक साहब मुझ से कहने लगे कि "मुझे लन्दन जाना बहुत जरूरी है। और इसी Plane (हवाई जहाज) से जाना ही है और किसी तरह मेरा टिकट बुक होना ही चाहिए और कुछ कर दीजिए आप और एअर-इंडिया वालों से कह दीजिए और कुछ कर दीजिए।" मैने कहा "ऐसी कौनसी आफत है? आप लन्दन क्यों जाना चाहते हैं? क्या विशेष कार्य आप वहाँ करनेवाले हैं? कौन सी चीज है?" कहने लगे, "Imust go there, I have to save time" (मुझे जाना जरूरी है, मुझे समय बचाना है) "time is very important" (समय बहुत मूल्यवान है)। मैंने कहा आखिर बात क्या हैं? ये time बचा कर भागे-भागे आप वहाँ क्यों जा रहे है? तो कहने लगे "वहाँ एक special dinner है (विशेष भोज) वो मुझे attend करना है, और उसके बाद वहाँ पर bal है।" time आप बचा किसलिये रहे हैं? हर समय, आप ये सोच लीजिए कि जो हाथ में घड़ी बंधी है, ये सहजयोग के लिए और 'ध्यान' के लिए है। और सहजयोग के ही कार्य के लिए बाँधी हुई है, मैंने उसी लिये बाँधी है, नहीं तो मैं कभी भी नहीं बाँधती । जिस आदमी का पूरा ही समय सहजयोग में बीतता है, उसको जरूरी नहीं कि आप घर का काम न करें। ये जरूरी नहीं कि आप २२ सु प ०र प्रान र कुभ पंद्र a n हि ० (ु 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-22.txt ह ा ० ইং दफ्तर का काम न करें सारा ही कार्य आप करें पर 'ध्यान में करें। ध्यानावस्थित होकर के कार्य हो सकता है क्योंकि आप को ध्यान में उतार दिया है। हरेक काम करते वक्त आप निर्विचार हो सकते हैं और निर्विचार होते ही उस काम की सुन्दरता, उसका 'सम्पूर्ण' ज्ञान और उसका सारा आनन्द आप को मिलने लग जाता है। समझने की बात है, यह लोग समझते नहीं है। इसलिए ध्यान के लिए अलग से time नहीं मिलता है, झगड़ा शुरू हो जाता है। लेकिन जब इसका मजा आने लगता है, तब आपको आश्चर्य होगा कि नींद बहुत कम हो जाती है और आप ध्यान में चले जाते हैं। निद्रा में भी आप सोचेंगे कि आप ध्यान में जा रहे है। कोई भी चीज छोड़ने की या कम करने की नहीं। लेकिन हमारी जो महत्त्वपूर्ण चीजें हैं जिसे हम महत्वपूर्ण समझते हैं, वो बिलकुल ही महत्त्वपूर्ण नहीं रह जातीं । और जिसको हम बिल्कुल ही विशेष नहीं समझते है, वो हमारे लिये 'बहुत कुछ हो जाता है। ध्यान करने के लिए एक छोटी सी चीज आपको याद रखनी चाहिए, कि जिस चीज़ पर ध्यान का आलाप छेड़ा जाएगा, जिस वीणा पर ये सुन्दर गीत बजनेवाला है, वह साफ होनी चाहिए। आप वह वीणा नहीं है, आप वह आलाप भी नहीं हैं, लेकिन आप उसको सुननेवाले हैं और उसको बजाने वाले हैं। आप उसके मालिक हैं। इसलिए अगर वो वीण। कुछ बेसुरी हो, उसके अगर तार जंग खा जाएं या उसके कुछ तार टूट जाएं, तो आपको जरूरी है कि उसको ठीक कर लेना चाहिए। अगर वो ठीक नहीं है, तो आपके जीवन में माधुर्य नहीं है। आप में वो सुन्दरता नहीं आ सकती, आप में एक अजीब तरह का चिड़चिड़ापन, अरीब तरह की रूक्षता (dryness) और विचलितता दृष्टिगत होगी। एक सहजयोगी को एकदम निश्चित मति से ध्यान में बैठे देखना बहत बड़ी चीज़ हो जाती है मेरे लिए। और वही मैं देखती हूँ कि कुछ सहजयोगी गहराई से अन्दर चले जा रहे हैं और कुछ सहजयोगी बहुत विचलित हैं। ये नहीं मैं कहती कि सभी लोग उतनी दशा में पहुँच सकते हैं या नहीं। लेकिन जो कुछ भी बन पड़े वो इस जीवन में करना ही' चाहिए। उपार्जन का जितना भी समय है, वो इसी में बिताना चाहिए। और जो कुछ भी मिल सके, सभी इसी में मिलना चाहिए बाकी कुछ हो या नहीं । २३ ा] सेल जा र० 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-24.txt सारे संसार के आप प्रकाश दीप हो, आपस में भाई- बहन हो । एँ एकाकार बनिए तन्मय हो यात जाइए, से ंज जागृत हो ० जाइए। .अ |ु. क] ा 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-25.txt ध्यान में निष्क्रियता लण्डन, १९८० ৩सी तरह से चैतन्य है । चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं, वे वितरित हो रही हैं। आपने अपने स्वयं को इनके लिए उधेड़ के रखना है। बहुत अच्छा होगा कि आप कोई क्रिया न करें, चाहे जहाँ भी समस्या हो, आप उसकी चिन्ता न करें। मेंने कई बार देखा है कि ध्यान करते समय अगर कोई चक्र पकड़ता है तो लोगों का ध्यान वही लगा रहता है आपको बिलकुल भी चिन्ता नहीं करनी है, आप उसे जाने दीजिए और वह अपने आप कार्य करेगा। इसलिए आपको कोई क्रिया नहीं करनी है, यही है ध्यान । ध्यान का मतलब है स्वयं को भगवान की कृपा पर छोड़ देना। अब यही कृपा जानती है कि आपको किस तरह से ठीक करना है इसे ज्ञान है कि किस तरह से आपको सुधारना है। आपके अन्तः में कैसे बसना है। आपकी आत्मा को किस तरह से प्रज्वलित रखना है। इसे सब पता है। इसलिए आपको चिन्ता करने की जरुरत नहीं है कि आपको क्या करना है या कौन से नाम बोलने है, कौन से मन्त्रों का उच्चार करना है? ध्यान में आपको पूर्णत: निष्क्रिय रहना है। अपने को पूरी तरह से उधेड़ रखें और उस वक्त आपको पूरी तरह से निर्विचार रहना है। समझ लीजिए हो सकता है कि आप निर्विचार में न हो। ऐसी दशा में आप सिर्फ विचारों पर नज़र रखें, उनमें उलझना नहीं है। आप देखेंगे कि जैसे जैसे सूरज उगता है वैसे वैसे अंधेरा चला जाता है और सूरज की किरणें हर एक कोने कोने तक पहुँचती हैं और सारी जगह को प्रकाशित कर देती है। उसी तरह से आप भी प्रकाशित हो जाएंगे। अपने अन्दर की कुछ चीज़ों को रोकने की कोशिश करेंगे या फिर बंधन देंगे, तो वह ना होगा निष्क्रियता ही ध्यान करने का एक तरीका है। आपको इसके प्रति जड़वत नहीं होना चाहिए। आपको सतर्क होना चाहिए और उस पर नज़र रखनी चाहिए। ा। दूसरी ओर हो सकता है कि लोग झपक जायें । नहीं ! आपको सतर्क रहना है। अगर आप झपक जायें तो कुछ भी कार्यान्वित नहीं होगा। वह इसका दूसरा पहलू है। अगर आप उसके प्रति सुस्त रहेंगे तो कुछ भी कार्य नहीं होने वाला। आपको सतर्क और खुलकर रहना चाहिए । एकदम सचेत, सम्पूर्ण निष्क्रिय, पूर्णतः निष्क्रिय होना चाहिए। अगर आप पूर्णतया निष्क्रिय होंगे तो ध्यान पूर्णतया कार्य करेगा । आप अपनी समस्याओं के बारे में बिलकुल भी न सोचें । चाहे आपका कोई भी चक्र पकड़ता हो, कुछ भी हो, सिर्फ, अपने को प्रस्तुत करें । देखिए जब सूर्य चमकता है तब निसर्ग अपने आपको सूर्य को प्रदर्शित करता है और निष्क्रियता से सूर्य का आशीर्वाद लेता है, वह बिना क्रिया किए लेता है। वह सिर्फ अपने आप लेता है। जब वह सूर्य की रोशनी लेता है। तब सूर्य की किरणें क्रिया करने लगती हैं और क्रियान्वित होती हैं। उसी तरह से परम चैतन्य शक्ति कार्य करने लगती है । आपको उसके लिए कोई युक्ति नहीं करनी। उसके लिए आपको कुछ भी नहीं करना है। सिर्फ निष्क्रिय रहिए, बिलकुल निष्क्रिय कोई भी नाम नहीं लेना, अगर आपकी आज्ञा पकड़ रही है या कुछ और पकड़ रहा है, इसकी आप कोई चिन्ता न करें -वह सब कार्यान्वित हो रहा है। यह तब तक होगा जब तक यह कार्यान्वित हो सकता है और यह वह करामात करेगा जो इसे करना है। आपको उसके बारे में चिन्ता नहीं करनी है। यह अपने कर्तव्य को जानती है। वास्तव में जब आप क्रिया करते हैं, तब आप इसकी राह में बाधा बन जाते हैं। इसलिए कोई प्रयास करने की जरुरत नहीं है, एकदम निष्क्रिय रहिए और कहिए कि जाने दो, जाने दो, बस यही । कोई मन्त्र नहीं बोलना है । अगर ऐसा करना आपके लिए मुश्किल हो तो फिर आप मेरा नाम ले सकते हैं पर इसकी कोई आवश्यकता नहीं है। जब आप अपना हाथ मेरी और करते हैं तब वही मन्त्र है। ये चेष्टा ही अपने आप में एक मन्त्र है। देखिए इसके अलावा आपको कुछ और नहीं बोलना है। पर मन में इच्छा के साथ भावना भी होनी चाहिए। अब हमने उसके लिए हाथ फैला दिए है और वह कार्यान्वित होने वाला है। जब यह भावना परिपूर्ण होगी तो मन्त्र बोलने की कोई जरुरत ही नहीं है। आप उससे परे हैं। इसलिए हर एक निष्क्रिय होना है। एकमेव निष्क्रिय, वह जो भी कुछ है यही है। ध्यान आपके अपने उत्थान के लिए है। अपने पूँजी लाभ के लिए है जो होना चाहिए। पर एक बार आप उसमें जाएंगे आप अपनी शक्ति को भी ग्रहण करेंगे। जैसे अगर आप गवर्नर बनते हैं तो फिर आपको गवर्नर की सारी शक्तियाँ, अधिकार दिए जाते हैं। ऐसे में आप को किसी और के बारे में नहीं सोचना है। किसी के ऊपर अपना चित्त केंद्रित नहीं करना है। पर सिर्फ उसे ग्रहण करो, सिर्फ ग्रहण करो। किसी समस्या के बारे में मत सोचिए, सिर्फ इतना सोचो कि आपको निष्क्रिय होना है, पूर्णतया निष्क्रिय। यह उन पर अधिक असर करेगा जो सिर्फ ग्रहण करते हैं। आपको समस्याऐं है इसलिए आप यहाँ है, पर आप उन्हें हल नहीं कर सकते । परम चैतन्य उनका हल कर सकता है। ये पूरी तरह से आपको समझ लेना चाहिए कि हम अपनी समस्याओं का हल नहीं कर सकते हैं। ये हमारे बस के परे है कि हम अपनी समस्याओं का हल करें। इसलिए आप इसे परम चैतन्य के हाथों में छोड़ दीजिए और अपने आपको निष्क्रियता में प्रस्तुत करिए, परिपूर्ण निष्क्रियता। आराम से २६ ह० पि 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-26.txt बेठिए, अपने दोनों पैर ज़मीन पर रखकर, दोनो हाथों को आराम से इस तरह रखकर । आराम से रहिए । आपको बिलकुल भी कोई असुविधा न हो, क्योंकि आपको काफी देर तक बैठना है। अगर आप कर सको तो और आप अपने चित्त को मेरी ओर, अपने अन्दर रखिए या मेरी कुण्डलिनी की ओर करें। आप मेरी कुण्डलिनी के अन्दर आ सकते हैं। यह सिर्फ हाथों को इसी तरह से सीधे रखकर करना है। अत: निष्क्रियता ही चाबी है, परिपूर्ण निष्क्रियता। चाहे आप मेरे सामने ध्यान करें या मेरी तस्वीर के सामने । श्री माताजी निर्मलादेवी मा का शु ७ यट २७। कर 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-27.txt ॥ॐ माँ॥ निर्मला योग जुलाई-अगस्त १९८४, वर्ष ३ अंक १४ ५ार ३ कि 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-28.txt नवरात्रि की शुरूवात का मतलब एक महायुद्ध की शुरूवात है। नवरात्रि का एक एक दिन प्रत्येक महापर्व की गाथा है। ये युद्ध अनेक युगों में हुआ है-केवल मानव के संरक्षणार्थ। परन्तु उस मानव का संरक्षण क्यों करना है? सारी सृष्टि ने उन्हें वरदान क्यों देना हैं? इसे सोचना चाहिए। मनुष्य को सर्वोच्च पद पर राज्य करने के लिए बिठाया परन्तु कलियुग में मनुष्य ने अत्यन्त क्षुद्र गति स्वीकार की है। अपने 'स्व' का साम्राज्य क्षुद्रता में कैसे होगा? आप सहजयोगी एक विशेष जीव हैं। इस सारे संसार में कितने लोगों को चैतन्य लहरी का आभास है? और कितने लोगों को इस के विषय में ज्ञान हैं? लोग जानते नहीं है तो वह दोष अज्ञानता का है। आँखे खोलकर जो ग्ढे में गिर जाता है उसे लोग मूर्ख कहते हैं और आँख ऊपर करके जो चढ़ता है उसे विजयी कहते हैं। आप क्यों गिरते हैं? आपकी आँखे कहाँ रहती हैं? वह देखिए तब समझोगे, आपका लक्ष्य (ध्यान) मार्ग पर है कि दूसरों की तरफ । यह देखना जरूरी है। घोड़े के आँख पर दोनों तरफ चमड़े की गद्दी डालते हैं ताकि लक्ष्य इधर उधर न हो पाए। परन्तु सहजयोग के आप सवार हो, घोड़े नहीं। सवार की आँख पर गद्दी नहीं डालते। घुड़सवार स्वतन्त्र है, आजाद है। वह जानकार है। वह घोड़े को भी जानता है और मार्ग को भी जानता है। कलियुग में महान घमासान युद्ध चालू है। यह आपातकाल का समय है । पीछे हटकर नहीं चलेगा। शैतानों का साम्राज्य हर एक के हृदय में प्रस्थापित है। अच्छे बुरे की पहचान नहीं रही। परमेश्वर और संस्कृति दोनों को बाजार में राक्षस बेच रहे हैं। नीति नाम की चीज कोई मानता ही नहीं। चोरी-डाकाखोरी का नाम, अमीरी और वेश्या व्यवसाय शुरू है। इस समय हमारे घुड़सवार (सहजयोगीजन) आपस में गले काट रहे हैं, कुछ लोग लूटमार करके पैसे इकट्ठा कर रहे हैं। ऐसा जो सामने आएगा तो सहजयोग की दवाई कौन पीएगा ? उसका परहेज करना ही पड़ेगा। आपने क्या कमाया वह देखना जरूरी है। कौन कौन से कलंक (दाग) छूटे और आप कैसे पवित्र हुए (निर्मल हए) ये देखना चाहिए। दूसरों के अच्छे गुण देखिए और अपने दुर्गुण (बुराई) देखिए । फिर अपने आप आपका चित्त काम करेंगा। ढाल का काम तलवार से मत लीजिए। तलवार का काम ढाल से लेकर कैसे लड़ाई जीतोगे? अपने आप से लड़ना है। जो आपकी मर्यादा है बही तोड़ के - अमर्यादा विशाल होना है। न भूल कर - चेतना में एकरूप होना है प्रेम की खाली बातें नहीं चाहिए। मन से प्यार करना बहत आसान है। क्योंकि जब वैराग्य आता है तब किसी को देना बहुत आसान लगता है (सहज लगता है)। परन्तु वैराग्य मतलब देने की उत्कंठा जागृत होनी चाहिए। पास से गंगा बह रही है। लेकिन वह बह रही है ये मालूम होना चाहिए। उसका कारण आप खुद ही है, यह जान लीजिए। दूसरा कोई कैसे भी होगा तब भी आपकी लहरें रुकती नहीं हैं। परन्तु जब आप की मशीन ठीक होगी तो औरों की भी ठीक हो जाएगी और उनकी लहरें भी बढ़ जाएंगी । जो आपसे आगे हैं उनके संपर्क में रहिए । आपका ध्यान उस पर होना चाहिए। सहजयोग कितना अद्भुत है ये जानना चाहिए और उसके मुताबिक अपने आप की विशेषता समझनी चाहिए। आप आगे जाते जाते बीच में क्यों रुकते हो? पीछे मत मुड़िए क्योंकि फिसलोगे और चढ़ाई मुश्किल हो जाएगी। प्रेम की महत्ता हम क्या गाएं? उसके सुर आप सुनिए और मस्त हो जाइए। इसलिए यह सारी मेहनत, इतने प्रयत्न, संसार की रचना और अवतार, आखिर जिनको ये मधुर संगीत सुनाने बिठाया वो तो औरंगजेब निकले (जिनको इसकी कोई चाह नहीं उल्टे नफरत ही है) । ये दुर्भाग्य है कि आपकी समझ में नहीं आता। परन्तु फिर भी हमें संतोष है क्योंकि आप लोगों में कई बड़े शौकीन लोग हैं। उन्होंने अनेक जन्मों में जो कमाया है उसे जानकर, समझकर सहजयोग को पक्के पकड़कर उसका स्वाद ले रहे हैं। आनन्द सागर में तेर रहे हैं । उन्हें विरह नहीं है, दुःख नहीं है। उनका जीवन एक सुन्दर काव्य बन गया है। ऐसे भी कई फूल हैं। कभी कभी उन्हें भी आप दुःख देते हो, कुचलते हो। अरे, ये कोई योगियों के लक्षण हैं क्या? आज ही प्रतिज्ञा कीजिए । अपने स्वयं के दोष, गलतियाँ देखनी हैं। अपने हृदय से सब कुछ अर्पण करना है, प्रेम करना है सबसे। जो मन दूसरों की गलतियाँ दिखाता है वह घोड़ा उल्टे रास्ते से जा रहा है, उसे सीधे-सरल रास्ते पर लाकर आगे का रास्ता चलना है। हमने तो आप लोगों पर अपना जीवन अर्पण किया है और सारा पुण्य आप ही के उद्धार हेतु (अच्छाई के लिए) लगाया है। आपको भी तो थोड़ा-थोड़ा पुण्य जोड़ना चाहिए कि नहीं? सारे संसार के आप प्रकाश दीप हो, आपस में भाई-बहन हो। एकाकार बनिए तन्मय हो जाइए, जागृत हो जाइए। सभी को आशीर्वाद आपकी माँ निर्मला २९ the 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-29.txt खा क] सहजयोग में नए आयाम (सारांश) प्रतिष्ठान, पुणे - ११.३.९३ अबहमें सहजयोग में क्रियाशील होना होगा। हम सबको चैतन्य लहरियाँ प्राप्त हो गयी है तथा आप ये भी जानते हैं कि चक्र क्या हैं। आप जानते है स्वस्थ कैसे रहा जा सकता है। जीवन को संतुलित रखना भी आप जानते हैं। ये सब शक्तियां आपको दी हैं? इस पर आपको विचार करना चाहिए। कब आप इनहें कार्यान्वित करेंगे? हमें सोचना है कि हम सहजयोग का क्या करने वाले हैं। सहजयोग का प्रचार ठीक हैं परन्तु इसके व्यवहारिक परिणाम भी दिखाई देने चाहिए। जब तक आप व्यवहारिक परिणाम नहीं दर्शाते इसका अन्य लोगों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा। आओ देखें कि किस धरातल पर हम जा सकते हैं और क्या कर सकते हैं? कौन सी मूलभूत समस्या है जो सहजयोगियों पर आक्रमण कर सकती है? पश्चिमी संस्कृति तीव्रता से आपके सिर सवार हो रही है तथा घटिया किस्म की रचनायें विकसित हो रही हैं । जैसे नाटक, चलचित्र, पुस्तकें एवं समाचार पत्र । इसके बारे में हम क्या करें? उनकी आलोचना करना एक मार्ग है। पर ऐसा हम करना नहीं चाहते। तब हमारा दृष्टिकोण क्या होना चाहिए? बच्चोंको अच्छे नाटक देखने ले जायें। बंगाल में आपको ऐसी घटिया चीजें मिलेंगी ही नहीं। उनका चरित्र ही ऐसा है। वे अपने स्तर को गिरा नहीं सकते । नि:संदेह नाटक विनोदपूर्ण भी हो सकते हैं। अधिकतर मराठी नाटक संगीत में है। अपने समय में अधिकतर नाटक जो हमने देखे वे अति उत्तम थे। लोगों की संगीत में विशेष रूचि थी । सब गाने उन्हें आते थे । इसी प्रकार अच्छे और गहन अर्थोंवाले चलचित्र खोज कर उनका प्रसार किया जाना चाहिए। शनै: शनै: आपको चलचित्रों में परिवर्तन दिखाई देगा। इसका प्रभाव आपके बच्चों पर भी अच्छा पड़ेगा। हमारे बच्चे यदि गंदे सिनेमा देखते रहे तो वे समाप्त हो जायेंगे। कोई भी चीज जो अच्छी न हो और जिससे कोई विवेकपूर्ण तथा रचनात्मक संदेश न मिलता हो उसे स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए। आप स्वयं यदि अनुशासित हो जायें तो दूसरों को भी अनुशासित कर सकते हैं। कोई भी नाटक जो भी हमे देखना होता था उसे हमारे माता पिता देखा करते थे । यदि वे उचित समझते थे तभी हम इसे देख सकते थे। महाराष्ट्र में हमारा संगीत नाट्य-संगीत है । अगर हम नाट्य संगीत भी नहीं समझ पाते तो और क्या समझेंगे? आप सब शास्त्रीय संगीत समझने का प्रयत्न करें । ऐसा करना आवश्यक है क्योंकि जैसा मैने आपको बताया कि इस संगीत का उद्भव ओंकार से हुआ। पश्चिमी देशों के सहजयोगियों को देखें। उन्हें कोई अन्य संगीत अच्छा ही नहीं लगता। ये बातें अब आपकी सूझ-बूझ का अंग-प्रत्यंग बन जानी चाहिए। वे अब घृणास्पद और सस्ता संगीत नहीं सुन पाते। हमें संगीत को रागों के माध्यम से विकसित करना चाहिए। आपको सुनना चाहिए क्योंकि लहरियों के माध्यम से ही आप संगीत अच्छी तरह समझते हैं और अधिक आनन्द प्राप्त करते हैं। संगीत के माध्यम से चैतन्य लहरियां बह ३० 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-30.txt रप कॉ ता रही हैं। यदि विदेशी लोग हमारे संगीतको इतना समझ लेते हैं तो हम भारतीय इसे क्यों नहीं समझ सकते? अपने बच्चों को आप अभी से शास्त्रीय संगीत तथा शास्त्रीय संगीत की धुनों पर बना भारतीय संगीत सुनवायें क्योंकि यही शुद्ध संगीत है। हम खोज निकालें कि अच्छी फिल्में कौन सी हैं और उन्हें मान्यता दें अच्छे तथा रचनात्मक विचार प्रदान करनेवाली फिल्मों का निर्णय हम करें। दूसरी कौन सी समिति इस कार्य को करेगी? खून, हिंसा वाली फिल्मों से तो हमारे बच्चे भी वही सीखेंगे। हम यहां आत्म साक्षात्कार, शांति एवं आनन्द प्राप्त करने के लिये आयें हैं। बच्चे यदि इतने उग्र एवं हिंसक हो जाएंगे तो आप उनसे कैसे आशा कर सकते हैं कि वे शांति और आनन्द की रचना करें ? हम पर तीसरा आक्रमण समाचार पत्रों का होता हैं। हमें यह भी निर्णय करना है कि कौन सा समाचार पत्र पढ़े । जो चीज हमें अच्छी लगे, सांख्यिकीय हो, वह हमारे लिये लाभप्रद होगी। सहजयोग प्रचार में सहायक समाचार पत्र की कतरने आप सम्भाल कर रखें। में पश्चिमी देशों की समस्याओं तथा अपराधवृत्ति पर पुस्तक लिख रही हैं। पश्चिम की एक पत्रिका में मुझे भारत के विषय में आंकड़े मिले। परन्तु भारत सर्व सुरक्षित देश है। पश्चिमी देशों की तुलना में यहाँ हिंसा न के बराबर हैं। पश्चिम में पुलिस विभाग इतना अच्छा होने के बावजूद भी वहाँ इतने अपराध हैं। क्यों? क्योंकि यहाँ धर्म के बारे में नहीं बताया गया अपने देश के प्रति आपका क्या धर्म हैं? हम भारतीयों का अपने माता-पिता, पत्नी, पति आदि के प्रति धर्म है। इसका अर्थ है कि मनुष्य किस प्रकार व्यवहार करें, मानवीय संयोजकता (वैलन्सी) किस प्रकार अपने इर्द-गिर्द तथा रिश्तेदारों से व्यवहार करें। हम पाते हैं कि सहजयोग में उत्पन्न हये अधिकतर बच्चे साक्षात्कारी हैं। अगर आप सद्विचार उनमें भरें तो एक दिन आपके पास विवेकशील लोगों की पीढ़ी होगी जो पूरे संसार का नेतृत्व कर सकेगी। उदाहारण के तौर पर पश्चिमी जीवन में सच्चरित्रका कोई विचार नहीं है। गणतंत्र में चरित्र की ओर कोई ध्यान नहीं । विज्ञान दुण्चरित्र है। इसका चरित्र से कोई सरोकार नहीं। चरित्र का मार्ग कीन बनायेगा? यही कार्य आप सहजयोगियों ने करना है। मिलकर सूझ-बूझ से आपने यह कार्य करना हैं। यह चारित्रिक स्तर स्थापित करना है ताकि लोग देख सकें कि सामूहिक रूप में हम अति दृढ़ तथा चरित्रवान है। व्यक्तिगत रूप से आप अति चरित्रवान हैं। आप सिगरेट, शराब नहीं पीते, झूठ नहीं बोलते। पर जब समूह का प्रश्न आता हैं तो समस्याय है।। भिन्न लोगों द्वारा लिखी गयी पुस्तकों को खोज निकालना एक दूसरी बात हैं। सहजयोगी अवश्य अपनी सम्पान करें। आप महात्मा हैं। में बार बार यही कहती हैं। आपको अपना सम्मान करना हैं। किसी भी पागल पफैशन में आप न फंसे । फशन क्यी है? उद्यकियों के कारनामों के सिवाय यह कुछ भी नहीं। वे हमे मुर्ख बना रहे हैं। अपनी मशीनों तथा व्यापार को चलाने के लिय व आज कहते है कि यह कपड़े पहनो और कल दूसरे कपड़े पहनने को कहते हैं। इस प्रकार आप के पास ढेरों कपड़े होंगे और आप कहेंगे कि भर पस पहनने को कपड़ा नही हैं। एक ही बार आप निर्णय कर लें कि मैने इस प्रकार के कपड़े पहनने हैं और अब में इस ओर अधिक ध्यान न दवदि कोई कलात्मक चीज हैं तो जवान लोग पहनें क्योंकि उन्हें भी कलाकार को प्रोत्साहन देना चाहिए। साडी भी अति कलात्मको वन्त्र है। खाली समय में बनाई गयी ३१ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-31.txt वस्तुओं पर हमारे अस्सी प्रतिशत लोग निर्भर हैं। मैं कोई नियम नहीं बनाना चाहती कि सभी लोग एक से कपड़े पहने, फिर भी वसत्रों को गरिमामय बनाने का यत्न कीजिए। आप सहजयोगी हैं, आपको शालीन वरखत्र पहनने चाहिए। आपको भद्दे या दूसरों को आकर्षित करनेवाले वस्त्र नहीं पहनने चाहिए। अपने आत्म सम्मान पर खड़े होना आवश्यक है। एक बार जब आप अपना सम्मान करने लगेंगे तो आप बर्ताव करना भी सीख जाएंगे। आपमें अनुशासन अन्दर से ही आता हैं। तुरंत आप जान जाएंगे कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। आत्मसम्मान सहजयोग में एक अत्यंत आवश्यक गुण हैं। किसी भी अवस्था में हमें अपने शरीर का प्रदर्शन नहीं करना। यदि कोई सहजयोगी भद्दे बस्र पहनता है तो आपको चाहिए कि उसे सुधारें । हमें भारतीय वेशभूषा धारण करनी चाहिए। भारतीय वसर् सुन्दर हैं । महाराष्ट्र के लोगों को चाहिए कि परस्पर न झगड़े और न ही एक दूसरे को नीचा दिखाए। सहजयोगियों के अनुभवों को पत्रिकाओं में छापें । कुछ अनुभव वास्तव में अद्वितीय हैं। सहजयोगी कला तथा किज्ञान के क्षेत्र में भी प्रवेश करें आस्ट्रेलिया में ऐसे सहजयोगी कलाकार हैं जिन्हे अन्तरराष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हये हैं। इससे आया हुआ धन इसी पर खर्च होना चाहिए। भिन्न कार्यों के लिये मैं भिन्न लिफाफों में पैसे रखती हूं। आप विचारें कि जिसे कार्य के लिये धन आया है उसी पर ही खर्च होना चाहिए। चाहे कुछ भी हो इसे आप किसी और कार्य के लिये न खर्चे । वाशी अस्पताल में बुहुत से लोग आएंगे। बहुत से आएंगे और वापिस चले जाएंगे। अस्पताल में एक समिती बनाई जानी चाहिए जो कि एक रजिस्टर रखें। वे रोगी की हर बात लिखें । ठीक हो जाने पर उसे लिखना होगा कि वह ठीक हो गया है। हमें कुछ स्वयं सेवकों तथा चिकित्सकों की आवश्यकता हैं। हमें नसों की आवश्यकता हैं। धन का प्रबन्ध हो जाएगा। बाह्य रोगियों से हम कोई पैसा न लेंगे परन्तु जो रोगी अस्पताल में ठहरेंगे उनके कमरे, वातानुकूलन, भोजन आदि के लिये उनसे पैसे लिये जाएंगे। हम अस्पताल को चलाने भर के लिये धन लेंगे । पहले एक पत्र लिखें तथा फोटो भेजें । तब वे आपको बताएंगे कि अस्पताल में आपको जगह दी जा सकती है या नहीं। हम अस्पताल में एक शोध केन्द्र बनाने की भी सोच रहे हैं। बहुत से डाक्टर वहाँ से एम.डी.कर सकेंगे। लोग मुझसे कहते हैं कि तुमने हजारो को ठीक किया है पर उनकी सूची नहीं बनाई। अतः जिन्हें आपने रोगमुक्त किया हैं उनकी सूची बनाएं। जैसे हमारे पास बहुत से फोटो हैं। इनका संग्रह हम वाशी में कर रहें हैं इस प्रकार का फोटो जिसे भी प्राप्त हो पहले वह इसकी एक प्रति भेजे तथा बाद में इसका नेगेटिव भी भेजें । इस प्रकार के सभी चमत्कारित फोटो वाशी में भेजे जाने चाहिए, वहां हम एक पुस्तकालय बना रहें हैं। वाशी पुस्तकालय में पुस्तकें भी रखी जाएंगी। हम वहां कुछ लोगों को रखेंगे जो उधार दी गई पुस्तकों तथा लाभान्वित लोगों की सूची बनायेंगे। सभी केन्द्रो को सहजयोगियों, उनके पते, टेलीफोन नं. की सूची रखनी चाहिए। हमें स्कूलों, विश्वविद्यालयों में जाकर लड़के-लड़कियों से सहजयोग की बात करनी चाहिए। इस प्रकार के से क्षेत्र हैं जहाँ हमे जाना हैं । बहुत से आयाम हैं। युवा सहजयोगियों की समस्याओं को हमें देखना चाहिए । संत बनने के बाद भी एक दूसरे की आलोचना करना सहजयोग में अर्थहीन है । किसी में यदि कोई दोष भी हैं तो उसे देखने से आपमें अच्छाई नहीं आ जाएगी। अपने दोषों तथा दूसरों की अच्छाइयों को देखिये । विशेष कर हमारे देश में, खियाँ बहुत बड़ी शक्ति हैं। यदि वे भी ऐसी मूर्खतापूर्ण बातों में फंसने लगेंगी तो यह सहजयोग का अन्त होगा। महिलाओं को बहुत सावधान रहना है क्योंकि शक्तियाँ हैं। वे चाहें तो पूरे विश्व का विनाश कर सकती हैं और चाहें तो अपने प्रकाश से पूरे विश्व को प्रकाशित कर सकती हैं। स्त्रियों को पृष्ठभूमि (बैकग्राऊंड) में ही रहना चाहिए। समय यदि आन पड़े तो झांसी की रानी भी बन सकती है। हमने सहजयोगियों के कम से कम सात सौ विवाह किये हैं । इनमें चार-पाँच में समस्या आयी और यह समस्यायें भारतीय सत्रियं के कारण थी। हैरानी की बात है कि दोष ढूंढने के स्थान पर विदेशी कहते हैं कोई बात नहीं वे सुधर जाएंगी। विवाहीत लोगों के लिये एक समिति होनी चाहिए। उन्हें देखना चाहिए कि विवाह असफल क्यों हये, पति-पत्नी में झगड़े क्यों है। बहुत से विवाह ठीक हो गये हैं। यदि किसी बात का हल नहीं है तो तलाक हो सकता हैं। जहां पति पत्नी में से एक सहजयोगी नहीं है, वहाँ सहजयोगियों को समस्या हैं। कोई बात नहीं। सहजयोग आपकी अपनी चीज है। तो इसके लिये झगड़ना क्यों हैं? यह स्वत: ही ठीक हो जायेगा। परन्तु यदि आप झगड़ते हैं तो पति या पत्नी कभी भी सहजयोग को नहीं समझेंगे । वे इसे आपके प्रेम, सूझ- बूझ और शान्ति के माध्यम से समझेंगे। सहजयोग आप किसी पर लाद नहीं सकते । पिछले जन्मों के पुण्यों के फलस्वरूप आपको सहजयोग प्राप्त हुआ है। जिनके अन्दर शुद्ध इच्छा है, केवल वही लोग सहजयोग पा सकते है। बहत से लोग बीमारियाँ ठीक करने के लिये सहजयोग में आते है। किसी की बीमारी का इलाज मत कीजिये। आपको ऐसा क्यों करना है? मेरा चित्र सभी कुछ कर सकता है। आप उनका तीन मोमबत्तियों से या जल क्रिया से इलाज कर सकते हैं। पर उन्हे स्पर्श मत कीजिये । यदि वह व्यक्ति स्वयं करने में असमर्थ हो, बैठ न पाता हो तो बात अलग हैं। साधारणतया उसे अपने हाथों से न छूयें अन्यथा आप में पकड़ आ जायेगी या आप में कोई दोष आ जायेगा। बहुत आप साधारण रोगों का इलाज कर सकते हैं। इलाज करने की विधि सीखिये । चक्र और उनका विज्ञान समझिये। परन्तु अपना हाथ उन पर रखने की कोई आवश्यकता नहीं है। व्यक्ति को मिठाइयाँ और तली हुई वस्तुयें बहुत कम खानी चाहिये । सहजयोग में पोस्टमैन तेल तथा मूंगफली का तेल न खायें। कम ३२ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-32.txt ४ डा तेल में खाना पकायें। पुरुषों को ध्यान रखना चाहिये कि उनकी पत्नियाँ ठीक प्रकार का खाना बना रही हैं। मिर्ची खाना कम कर देना चाहिये। महाराष्ट्र के लोग बहुत अधिक मिर्ची खाते हैं। कोई भी मुझे कुछ नहीं बता सकता। में सभी कुछ जानती हैं। कुछ सहजयोगी एक दूसरे के अत्यंत विरूद्ध हैं। महाराष्ट्र के लोगों को धन बचाने का विशेष ज्ञान हैं। कुछ लोग शिकायत करते हैं कि टेप आदि के मूल्य गरीब लोगों के लिये बहुत अधिक हैं। यदि आप गरीबों के लिये इतने चिंतित हैं तो एक टेप अपने लिये खरीदें और दूसरा किसी गरीब के लिये तथा इस प्रकार उसकी सहायता करें क्योंकि यह पैसा सहजयोग को जाता है। मुझे आपके धन की आवश्यकता नहीं है। परमात्मा तथा चैतन्य लहरियों पर कुछ खर्च नहीं होता। परन्तु यही दृष्टिकोण हैं, विशेषकर महाराष्ट्र के लोगों का। गणपतीपुले में भी ऐसा ही होता है। आप के लिये संगीतज्ञ लाने के लिये हम लाखों खर्च करते है। उनका खर्च कोन उठायेगा? देवताओं को तो कोई कमी नहीं होगी परन्तु इस प्रकार के दृष्टिकोण से आपको धन की कमी होगी आपके पास जो भी है सब आपके सहजयोगी होने के कारण हैं। यदि आप कंजूस हैं तो आपको लक्ष्मी तत्त्व न प्राप्त होगा । हर व्यक्ति प्रतिदिन स्वयं से पूछे कि मैने सहजयोग के लिये क्या किया है? आप बीमार पड़ते हैं तो सहजयोग आपका इलाज करता है। आपकी कुण्डलिनी आपको ठीक करती है। जो भी लाभ आपको मिले हैं सब सहजयोग के कारण है आप को समझना है कि एक बहुत बड़ी क्रान्ति हो रही हैं। पचपन देशों में सहजयोग बल रहा है । केवल एक ही कस्बे में २२,००० सहजयोगी हैं। मैं उनसे वर्ष में केवल एक बार मिलती हैं। वे साइबेरिया तक फैले हये है। अब आपका विचार यह होना चाहिए कि मैने सहजयोग के लिये कुछ करना है। में कहँगी कि आप सब भारतीयों को हिन्दी भाषा सीखनी हैं। आपको हिन्दी का ज्ञान होना ही चाहिये। हम सबको सहज भाषा का ज्ञान होना चाहिये। सहज भाषा में हम अपने चक्रों की बात करते हैं। हम यह नहीं कहते कि फलाँ व्यक्ति सुन्दर हैं या असुन्दर या किसने कैसे वख्र पहने हैं। हम कहते हैं कि मुझमें यह चक्र ठीक नहीं हैं। दूसरों के बारे में जानने की हमें कोई आवश्यकता नहीं। दूसरों को बताना कि उनमें भूत हैं, अनुचित है। सहजयोगियों के अनुसार नये लोगों में समस्यायें, भूत आदि होते हैं। शरत चन्द्र को पढ़ने से आप हिन्दी सीख सकते है। उनकी २६ पुस्तकें हैं। वे आत्मसाक्षात्वकारी थे। साक्षात्कारी हैं। अत: हमें साहित्यिक व्यक्ति होना हैं। सारा वातावरण इतना भौतिक हो चुका है कि हम साहित्य की बात ही नहीं कर सकते । सहजयोग केवल आप ही के लिये नहीं हैं यह जन साधारण के लिये हैं। यह पूरे विश्व के लिये है । संतुलित विचारों के माध्यम प्राप्त किये विश्व के सभी देशों में बहुत से ३३ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-33.txt १० भा ह विना आप कैसे इसे अन्य लोगों तक पहुंचायेंगे। विशेष कर महाराष्ट्र के लोगों को पता होना चाहिए कि मराठी भाषा में फारसी, अरबी, उर्दू आदि भाषाओं के शब्द हैं। अत: हममें से कुछ लोग इस प्रकार की गतिविधियों को प्रोत्साहित करें । बहुत से सहजयोगी दूसरे लोगों के सुंदर विचारों को लिख रहें हैं। पहले आप ऐसा कीजिये फिर जनता भी ऐसा करेगी। सहजयोगियों के लिये पढ़ना बहुत आवश्यक हैं। पढ़ने से व्यक्तित्व निखरता हैं। लोगों को साहित्यिक वातावरण में लागने के लिये हम पुस्तकालय बनायेंगे, पर भारतीय बंधन तो ऐसे है कि लोग एक बार पुस्तक उधार लेते हैं तो उसे लौटाते ही नहीं । दूसरे व्यक्ति का अनुचित लाभ कभी मत उठाइये। सहजयोग में शोषण करनेवाले का ही शोषण हो जाता है क्योंकि अब आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हम लोगों में यह एक विशेष बात हैं। हम भारत के लोग अत्यंत चालाक लोग हैं। किसी की बुराई करने के स्थान पर हम कह सकते है कि यह व्यक्ति कितना उदार था । जिन गुणों की बात हो रही है ये सब दूसरे लोगों को हमारे अन्दर नजर आने चाहिये। उन्हें प्रकाश हो जाना चाहिये। यदि प्रकाश नहीं हाता तो क्यों सहजयोग करना हैं? सभी लोग मुझ से बहत प्रेम करते हैं पर वे सहजयोग के लिये कुछ भी नहीं करते। वे स्वयं को ऐसा बनाने का प्रयत्न भी नहीं करते जिससे लोग कहें कि ये सहजयोगी हैं। अत: अब हमें ऐसा कुछ करना हैं जिससे हम कह सकें कि उस व्यक्ति ने यह महान कार्य किया है और दूसरे ने यह महान कार्य । ३४ ल डा े ला ३ ॐ 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-34.txt नव-आगमन CODE. NOS. Lang. Type Place Speech Title Date DVD/HH VCD/HH ACD/HH ACS/HH Sp 368 Shri Mataji with New Sahaja Yogis - Part II Delhi 20-Feb-77 Sp 369 Mumbai Advice, Questions and Answers 22 Mar -77 371 H. 371 Sp श्री गणेश ओर मूलाधार चक्र Mumbai 16-Jan-79 H. 372 372 Sp भारतवर्ष: योगभूमी दिल्ली युनिवर्सिटी सेमिनार Delhi 10-Mar-79 H. 373 373 Sp Delhi 11-Mar-79 | कुण्डलिनी का उत्थान - दिल्ली युनिवर्सिटी सेमिनार H. 374 Sp 374 Delhi मूलाधार - सुक्ष्मता पाना ही सहजयोग का लक्ष है 12-Mar-79 H. 375 Sp 375 Delhi 18-Mar-79 सहस्रार चक्र H. 376 Sp 376 कुण्डलिनी और श्री येशु खिस्त Mumbai 27-Sep-79 377 Sp Mumbai Joy & Depth, Lakshmi Tattwa 29-Sep-79 378 Sp Getting to Know Yourself - Gayton Road Harrow 19-Oct-79 PP 379 London The Knowledge of the Divine 28-Oct-79 E PP 380 Bristol Many People are Seeking 9-Jul-80 381 Sp Rakashabandhan - Caxton Hall London 26-Aug-80 PP 382 Brighton The Four Dimensions Within 11-Jul-81 233 Sp/Pu 383 Mothers Day Puja : Address on children Birmingham 21-Apr-85 234 384 Sp/Pu Paris Guru Puja, Part I & II 29-Jun-85 Sp 385 Devi Shakti PujaN : Talk about ego New York 8-Oct-85 Sp/Pu 54 66 66 54 श्री महादेवी पूजा, भाग १ और २ Calcutta 10-Oct-86 235 Sp/Pu 386 Shri Adi Shakti (Kundalini) Puja, Part I & II Cabella 21-Jun-92 Н/M 236 387 PP 387 सार्वजनिक कार्यक्रम : कुण्डलिनी की जागृति से आप बदल जातें है Mumbai 12-Mar-00 Mu/Gen 237 Musical Evening Prog. Shri Adi Shakti Puja Cabella 23-Jun-07 388 238 Sp/Pu Cabella Guru Puja, Part I & I 20-Jul-08 2008_Chaitanya_Lehari_H_(Scan)_VI.pdf-page-35.txt ४ हु] र २ हा २ा श्री येशु ट्रिस्त का स्वरूप सम्पूर्ण ब्रह्म तत्त्व, ॐकार रूप है।