चैतन्य लहरी क जनवरी - फरवरी २००९ ्रि २० हिन्दी ॥ ०কारত म - प्रकाशक * निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८ फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२ ४४४ अनुक्रमणिका १. परमात्मा सबसे शक्तिशाली २. जलेबी पुडिंग 3. क्रिसमस पूजा ४. ललिता पंचमी पूजा ५. संक्रांति पूजा ६. अंतर्बोध तथा महिलाएं अब मुझसे एक जगह से दूसरे ह जगह का सफर नहीं किया जा रहा है और आपको मेरा कार्य करना होगा, ही वो यह कि; लोगों को आत्म-साक्षात्कार -देना-।- गुरु पूजा - २० जुलाई २००८ परमात्मा सबसे शक्तिशाली हैं 'अति विचार करना और अति प्लानिंग करना कोई बड़ी अच्छी चीज़ नहीं, शरीर की दृष्टि से और समाज की ट से भी ....? दृष् ४ मार्च १९७९ देहरादून ४ आ. ज मैंने आपसे सबेरे बताया था कि कुण्डलिनी के सबसे पहले चक्र पे श्री गणेश जी बैठते हैं, श्री गणेश का स्थान है और श्री गणेश ये पवित्रता के द्योतक हैं । पवित्रता स्वयं साक्षात ही है। वो तो पहला चक्र हुआ। और ये चक्र जो है कुण्डलिनी से नीचे है वो कुण्डलिनी की रक्षा ही नहीं करता है, लेकिन वो लोग जो कुण्डलिनी में जाते हैं उनसे पूरी तरह से सतर्क रहते हैं। इस रास्ते से कोई भी कुण्डलिनी को नहीं छू सकता है। आज सबेरे मैंने आपसे बताया था कि इस रास्ते से जो लोग कोशिश करते हैं वो बड़ा ही महान पाप करते हैं। हालांकि उससे थोड़ा बहुत रुपया -पैसा कमा सकते हैं । लेकिन अपने लिए जो पूँजी इकट्ठी करते हैं, वो सारी ही एक दिन बहुत कलेशकारी हो जाती है जो दूसरा चक्र है, जिसे मैंने स्वाधिष्ठान चक्र आपसे बताया था । इससे हम विचार करते हैं क्योंकि जब हम बुद्धि से विचार करते हैं, जब हम अपने दिमाग से विचार करते हैं, उस दिमाग की जो मेध है इसे फैट ग्लैड्यूस कहते हैं, जो चर्बी है, वो चर्बी पेट की चर्बी से बनती है। पेट की चर्बी को ये चक्र सर की चर्बी बनाता है इसलिए विचार करते १ () वक्त, इस चक्र पर बहुत जोर पड़ जाता है। और जब विचार करने की आपको आदत लग जाती है, जैसे की आजकल के आधुनिक लोगों को विचार करने की आदत एक बीमारी है। तब तो ये काम इतना ज्यादा इसे करना पड़ता है कि इसके कारण जो बचे हुए बाकी के काम हैं, वो सब बिगड़ने लग जाते हैं। जैसा मैंने कहा था कि डायबटीस इसी कारण हो जाता है क्योंकि पैंक्रियाज भी इसी से संचालित होता है। और क्योंकि ये चक्र दूसरी चीज़ में व्यस्त हो जाता है, जो दूसरी कार्य की उसकी जगह है, वो कमजोर हो जाती है। उसमें से एक पैंक्रियाज भी है, उसमें से स्प्लीन भी है, लीवर का उपरी हिस्सा भी है, किडनी भी है। इसलिए अति विचार करना और अति प्लानिंग करना कोई बड़ी अच्छी चीज़ नहीं शरीर के दृष्टि से और समाज की दृष्टि से भी कोई बहुत अच्छी चीज़ज़ नहीं है। क्योंकि अधिक विचार तब करता है जब वो परमात्मा को नहीं मानता। एक हद पर जाने | (जब आप परमात्मा के मनुष्य पर परमात्मा पर ही छोड़ देना ही चाहिए । साम्राज्य में देवी महात्म्य में लिखा है, 'संकल्प विकल्प करें।' जैसे भाईसाहब हैं, आप कहीं कार्य से जा रहे थे। आपने प्लानिंग कर दिया, रास्ते में एक्सिडेंट हो गया। आपके पूरा आ जाते हैं हाथ में चोट आ गयी तो आप जा नहीं पाए। काम होने का था वो हो गया। जो होना था बन गया। बहुत ज्यादा आपने प्लानिंग भी किया समझ लीजिए और आप टाइम पर नहीं पहुँच पाए तो काम नहीं होता है। इसलिए संकल्प नहीं करना चाहिए किसी चीज़ का कि हम ये करके ही दिखाएंगे या होना है, उसमें विकल्प आ जाता है। जब आप परमात्मा के तो परमात्मा साम्राज्य में आ जाते हैं, तो उसके तरीके चलते हैं, आपको पूरा पता हो जाता है कि कहाँ चलना है, कहाँ जाना है, कैसे करना है क्योंकि उसका प्लानिंग चलता है ना। अगर भाई आपकी साहब हमारे पार हो गए होते, समझ लीजिए, तो कभी भी उस रास्ते से नहीं जाते। उस वक्त वो जाते ही नहीं, ये होगा आप देखिएगा। आप अपने लिखते जाइएगा कि जबसे जो लोग पार हो गए हैं उनके ये अनुभव हैं कि एक्सिडेंट हो भी गये तो भी किसी को चोट नहीं लगी। पूरी तरह से बच गए और बहुत से लोग तो जाते ही नहीं हैं। कुछ देर हो जाती है, कहीं कुछ और हो जाता है और पहुँच नहीं पाते। ये पार होने का बड़ा भारी आशीर्वाद है देखभाल करते हैं? कि अब आप परमात्मा के साम्राज्य में आ गए हैं जैसे कि आप की गवरमेंट आपको देखती है, आपकी देखभाल करती है। जब आप परमात्मा के साम्राज्य में आ जाते हैं तो परमात्मा आपकी देखभाल करते हैं। उनकी गवर्मेंट आपकी देखभाल करती है। इस तरह से जीवन की जो दुर्घटनाएँ हैं, जिसे हम दुर्घटना कहते हैं, वो avoid हो जाती हैं। असल में हर अच्छे आदमी के पीछे सटेनिक फोर्स लगे रहते हैं । जीवन में भी आप देखते हैं कि कोई शरीफ आदमी है उसके पीछे सटेनिक फोर्स लगे रहते हैं, उससे कोई बचाव करने का तरीका नहीं है। इसका एक ही तरीका है कि परमात्मा के आँचल में घुस जाओ । ये सब सटेनिक फोर्सेस हैं, जिसकी वजह से आप सब लोग तकलीफें उठा रहे हैं। ये आपके पीछे हाथ धो कर लगे हैं। आपको परेशान कर रहे हैं। इनसे बचने का तरीका आपके पास कोई भी नहीं क्योंकि वो बड़ी सूक्ष्म है । उसकी शक्तियाँ इतनी सूक्ष्म 6 आदमी होती हैं कि आप देख नहीं पाते कि कब झपाटा मार दे, कब तंग कर दें, कब परेशान कर दे। उसको आप समझ भी नहीं सकते लेकिन वो असर कर जाती है। जब असर कर जाती है तब आप खड़े होते हैं कि साहब हम को इसका पता ही नहीं था कि ऐसे हो जाएगा। तो उस से रक्षा करने के लिए परमात्मा का आँचल जब आप के उपर रहेगा तो कोई सवाल ही नहीं उठता कि आपको कोई तकलीफ हो । जिस वक्त मृत्यु होनी है वो तो होती ही है। यह बात और है लेकिन आदमी जब पार हो जाता है तब उसकी मृत्यु नाक, मुँह से नहीं होती, सहस्रार से होती है। उसके मुँह से, नाक से खून नहीं आता । अभी तक हमारे सहजयोग में आपको आश्चर्य होगा सिर्फ एक या दो आदमी मरें हैं । हजारों लोगों को हम जब पार हो जाता है तब जानते हैं । वो भी सब सत्तर साल, पचहत्तर साल की उम्र में । एक तो अठानवे साल में मरे हैं और एक तिहत्तर साल को। दीर्घायु भी आप हो जाते हैं। अकस्मात मृत्यु जो होती है, ये सब सटैनिक फोर्स से होती है क्योंकि आपको उनका अन्दाज नहीं होता। वो कभी भी आ कर आप पर अपना हाथ मारती है और इसलिए आप दुःखी होते हैं और सारी चीज़ों को गड़बड़ कर देते हैं। क्योंकि उनका अपना प्लानिंग रहता है। आपने कोई अच्छा ही काम करने का प्लानिंग किया होगा लेकिन वो बीच में हाथ मार ड्ालते हैं। लेकिन अगर आपने पहले से प्लानिंग किया हुआ होगा तो वो आपके मन को पढ़ सकते हैं। जो सटैनिक फोर्सेस होती हैं वो आपके मन को खूब अच्छे से पढ़ लेती हैं। यहाँ तक उनका है कि अगर आप मुझसे कुछ बातचीत करें तो कोई आदमी आपको मिलेगा और बता देगा, मुझे पता है कि माताजी से आपकी क्या बातचीत हुई है। वो आपके मन को पढ़ सकते हैं। फौरन बता देंगे की हाँ आपकी आपस में यह बातचीत हुई है क्योंकि आपने सारा प्लानिंग किया हुआ है आपके मन में। वो आपके मन को पढ़ लेते हैं। उनको पता है कि आप इस रस्ते से ऐसे-ऐसे जा रहे हैं। उनको आपका सारा भेद पता है, वो आप कह सकते हैं। इसलिए उनसे भेद रखना पड़ता है आपको ये पता नहीं होगा कि सटैनिक फोर्सेस संसार में कितनी विद्यमान हैं। उसकी मृत्यु नाक, | मुँह से | नहीं होती, ये जितने भी राक्षस लोग अपने को गुरू कहलवाते हैं, यह सब सटैनिक ही तो हैं| इनकी शक्तियाँ, हिप्नोसिस वरगैरेह जो चलती है यह सब सटैनिक, शैतान की शक्तियाँ और इसलिए ये आप पर असर करते रहते हैं। इन शक्तियों को पहचानने के लिए ही आपको सहजयोग में आना ही पड़ेगा । इससे आप समझ सकते हैं कि आपके अन्दर कौनसी शक्ति कहाँ से घुस रही है। किस तरह से आप पे आघात किए जा रही है । किस तरह से आपको वो सताने वाली है। अब डॉक्टर लोग हैं जैसे साइकोलाजिस्ट हैं। वो जानते ही नहीं कि हर पागल आदमी के अन्दर कोई न कोई भूत घुसा हुआ रहता है। वो उसको समझते नहीं है, हम उस पर विश्वास करते हैं बेचारे। और उसका असर उन पर आ जाता है। अब हमारे यहाँ आज ही वो चले गए, जो साइकिएट्रिस्ट आए हुए थे मिलने के लिए । उनको ये नहीं मालूम कि उनसे सहस्रार से होती है। है । अपना बचाव कैसे करना है। जैसे समझ लीजिए किसी को टी.बी. की बीमारी हो गयी तो हम लोग उससे बचाव करते हैं कि भाई, वो बीमारी अपने को लग जाएगी । लेकिन ये शैतानी शक्तियों से बचाव करने के लिए हमको कुछ मालूम ही नहीं है । हम तो देख भी नहीं पाते हैं कि कौन-सी शैतानी शक्ति है। हमारे जो बुजुर्ग थे वो इसको जानते थे लेकिन हम लेोग हो गए अंग्रेज जैसा कि मैंने कहा । तो हम लोग इस चीज़ को नहीं जानते कि शैतानी शक्तियाँ संसार में किस तरह से कार्यान्वित होती हैं और किस तरह से हमें परेशान करती हैं। लेकिन इसके बाद परमात्मा के आगे कोई भी चीज़ शक्तिशाली नहीं । सबसे | ६ शक्तिशाली चीज़ परमात्मा हैं। जब आप परमात्मा के बन्दे हो जाते हैं तो वो आपको देखता है और आपको सम्भालता है । वैसे भी वो आपको सम्भालते ही रहते हैं। इसलिए छोटी-मोटी चोट लग भी जाएगी। किसी शरीफ आदमी को छोटी-मोटी चोट लग जाएगी-जैसे आपको हो गया। छोटे बच्चों को आप जानते हैं-उपर से बच्चे गिर जाते हैं। कहते हैं उनको देवदूत उठा लेते हैं । खास कर, विशेष कर जो बच्चे प्रबुद्ध होते है, जैसे ये बच्ची है पैदाइशी realised soul है ऐसे बहुत से बच्चे हैं। ये बचपन से बीमार रहेंगे क्योंकि इनके उपर हमेशा शैतानी हमला होता है। हमारे अन्दर जो लेफ्ट साइड व राईट साइड की जो दो नाड़ियाँ हैं। मैंने आपको बताई थी सबेरे । उससे एक साइड में जैसे लेफ्ट साइड को जब आप जाते हैं, तो आप कलेक्टिव कान्शसनेस माने सामूहिक सुप्त चेतना और अगर आप राइट साइड में आ जाते हैं जो कलेक्टिव सुप्राकान्शस । लेफ्ट साइड में ऐसे लोग रहते हैं-मरे हुए, कलेक्टिव सबकान्शस में कि जो अभी तक तृप्त नहीं है। जो अभी तक तृप्त नहीं हुए और जिनकी आत्माएं अभी भटक रही हैं लेकिन जो बहुत ही गन्दे किस्म के, छोटे किस्म के चोर-उचक्के हैं ऐसे लोग हैं। दूसरे किस्म के जो लोग होते हैं जो बहुत महत्त्वकांक्षी होते हैं, एम्बिशस लोग होते हैं। जैसे हिटलर स्टाईल के, ये भी दूसरे साइड में अपने होते हैं, कलेक्टिव सामूहिकता में। आज एक साहब ने मुझसे कहा कि 'आप मुझे मंत्र दीजिए माताजी ।' जो लोग मंत्र देते हैं बड़े धोखे में आपको रखते हैं, आपको पता होना चाहिए । जैसे आपको किसी ने राम का मन्त्र दे दिया। आप तो कभी पूछेंगे नहीं कि ' लेफ्ट त्ट साइड में ऐसे लोग रहते हैं- २६ 'भाई, हमें राम का मंत्र तुमने क्यों दिया?' अब आप रटने लग गए राम, राम, राम, राम। अब राम जो हैं वो कोई आपके नौकर तो हैं नहीं। उनको आप बुला रहें, आप पुकार रहे हैं। आपका क्या अधिकार है? सोचने की बात है जब आपको अधिकार ही नहीं है तो आप बुला कैसे रहे हैं? मरे हुए, एक छोटी सी चीज़ है -हमारे प्राईम मिनिस्टर साहब जो अभी हैं। उनसे अगर आपको मिलना है, तो क्या आप सीधे उन से जा कर कह सकते हैं कि मोरारजी, हम से बात करिए। उनको मिलने के लिए प्रोटोकॉल होता है। सत्रह जगह आप जाईए-दौड़िए, इनसे मीलिए-उनसे मीलिए; तब मिल सकते हैं। और जो प्राइम मिनिस्टर के प्राइम मिनिस्टर के प्राइम मिनिस्टर हैं-वो इतने झट से मिल जाएंगे आपको कि आप बस पुकारने लग जाएं और वो आ कर हाजिर हो जाएं । हो सकता है राम नाम का कोई नौकर ही हो इधर या उधर फँसा हुआ जो आपके अन्दर घुस जाता है और आपको एकदम ऐसा लगता है कि वाह भाई मुझे तो बड़ी शांति मिल गयी क्योंकि उसने आपका काम ले लिया। आपके अन्दर आ गया। आपको लगा वाह भाई ! मेरा तो काम बड़े मजे से हो गया। ये क्या आपने जाना नहीं कि आपने अपने आप को नहीं खोजा है या कोई दूसरा ही अपने उपर लाद लिया है और ये जो दूसरा लादा हुआ आदमी है उसको आप अपने एक ही शरीर पर लादे चले जा रहे हैं। पाँच-छः साल बाद आप देखिए आपका शरीर यूँ थर- थर, लट - लटाऐगा और आदमी कमजोर हो जाएगा । इस शक्ति से भी परिचित होने की बड़ी जरूरत है। सहजयोग में आने के बाद जब आप में वाइब्रेशन्स आते हैं तब आप देख सकते हैं कि आसपास में शैतानी शक्तियाँ चलती हैं। और परमात्मा की शक्ति किस तरह से आपको हर चीज़ में कामयाब कराती हुई किस तरह आगे बढ़ती है। किस तरह से वो रास्ता ढूँढ करके और आपको सही रास्ते पर पहुँचाती है ये देखने लायक है। इसके अनेक अनुभव और आपको भी आएंगे इसलिए आप पार हो लीजिए और इस चीज़ को प्राप्त कीजिए । कलेक्टिव सबकान्शस | में कि जो | अभी तक लोगों को आए है तृप्त नहीं मैंने आपको नाभि चक्र के बारे में भी बताया था । इस चक्र में हमारी जो खोज है उसके बीज हैं। जब जानवर खाना खोजता है वो भी इसी वजह से। और इन्सान जब परमात्मा खोजता है, वो भी इसी वजह से । परमात्मा को खोजना भी मनुष्य के अन्दर में ही बना हुआ है। इसकी खोज उसके अन्दर है। वो चाहे माने या चाहे ना माने । जब तक वो इसको पूरा खोज नहीं लेगा उसको तृप्ति नहीं आने वाली। वो अपने को भूखा रख लेगा थोड़ी देर, पर उसको चैन नहीं आने वाला। उसको परमात्मा को खोज ही हैं। |१ ७ निकालना है। जब वो परमात्मा को खोजने निकलता है तब चारो तरफ से supply भी शुरू हो जाती है। आप जानते हैं किस तरह से लोग संसार में आकर परमात्मा के नाम पर कोई भी चीज़ बेचने के लिए तैयार हैं। और किस तरह से गलत-सलत झूठी चीज़ आपको बेचते हैं और उन के बारे में कुछ भी कहिए, उन लोगों के बारे में कितना कुछ अखबारों में छपता है, लिखा होता है । फिर भी लोग उन्ही के चरणों में चले जाते हैं। क्यों जाते हैं? क्योंकि ये एक तरह की मंत्रमुग्धता है, हिप्नोसिस, एक झूठ है। उस झूठ को मानने लगते हैं और उस झूठ से छूट ही नहीं सकते । बहुत मुश्किल हो जाता है उनको एक झूठ से मुक्ति पाना। इसके चारो ओर आप देख रहे हैं जो हरा रंग आदि बनाया हुआ है-यही भवसागर इस भवसागर को पार के है। मनुष्य अन्दर भी ये भवसागर है। इस भवसागर को पार करने के लिए कुण्डलिनी को कोई न कोई सोपान, कोई न कोई ब्रिज बनना चाहिए और उस ब्रिज का बनना सिर्फ सहजयोग में ही घटित होता है। अगर आप मेरी ओर हाथ किए हुए हैं या आप किसी भी रियलाइज्ड सोल की ओर आप ऐसे हाथ करेंगे तो जो आपके अन्दर में चैतन्य लहरी हैं जो जाती हैं । वो आपके हाथ से गुजर कर के नीचे में वहाँ पर एक सोपान बना देती है। और उस सोपान से ही कुण्डलिनी उपर में चढ़ के आ जाती है। लेकिन अगर इस में कुछ खराबी हो इस सोपान में या आपके नाभि चक्र पे या इसके चारों तरफ फैले हुए इस भवसागर में जहाँ पर गुरू का स्थान है। अपने यहाँ दस गुरू माने गए हैं, असल में। उसे Primordial Master कह सकते हैं। जिसके बारे में मैंने आज बताया था आपसे, लेकिन झूठे गुरू भी बहुत ज्यादा हैं और जिस आदमी ने किसी भी झूठ का पल्ला पकड़ा है उसकी कुण्डलिनी यहाँ से चढ़ती नहीं है, अटक जाती है। उस के दो चक्र पकड़ते हैं, एक नाभि और एक ये। उस पर यदि किसी से पूछा जाए कि आपके गुरू कौन हैं? तो उन्होंने बताया फलाने ठिकाने कोई ढोंगानद। जो भी नाम हो वो ऐसे नाम रखते हैं कि भगवान ही बचाए उनको । फलाने हमारे गुरू हैं। अच्छा, तो कहते हैं आपके गुरू तो ठीक नहीं है जिससे आपकी कुण्डलिनी रुकती है नाभि पर । अब आप हमारे पास पार होने के करने के लिए कुण्डलिनी | को कोई न कोई सोपान,... लिए आए हैं। आए हैं ना? आप अपना इलाज करवाने आए हैं, समझ लीजिए। तो कोई बदपरहेजी अगर आपने की होगी, आपने हमें बताना होगा या नहीं? आपको अगर डॉक्टर ने कहा कि आपने खट्टा खाया तो इसलिए आपका नुकसान हो गया है। तो क्या आप डॉक्टर से लड़ेंगे कि खट्टा खाना ही ठीक है ! यह तो पागलपन की निशानी है । लेकिन उस गुरू को लेकर के झगड़ा खड़ा कर देंगे। चलो, एक मिनट के लिए इस बात को मान लें कि हाँ भाई अगर हमारे गुरू ठीक होते, तो हम पार होते । माँ ने कहा है कि जो असल गुरू होगा तो हम तो उसके शिष्यों से पहचानते हैं। उसकी कुण्डलिनी से पहचानते हैं। हम तो किसी भी गुरू को नहीं जानते थे जैसे ही कोई हमारे सामने आता था तो हम समझ जाते थे कि ये कौनसे गुरू के चेले आए हुए हैं। जैसे महाराष्ट्र में एक गुरू थे वो बहुत ही अपने को समझते थे सन्यासी थे। सन्यासी लोगों से हम वैसे ही बड़े अभिभूत रहते हैं। वाह ! वाह! सन्यासी आदमी आ गए तो बस ! संन्यासियों से तो मैं इतना घबराती हूँ कि मैंने आपसे बताया कि सन्यांसियों से तो मैं बहुत बिगड़ती हूँ। कोई सन्यासी अपने सामने आ गया तो लोग सोचते हैं 'वाह भाई ! इससे बढ़कर कोई नहीं। वो सन्यासी का जीवन कैसा है ? उसका खान-पान कैसा है ? वह किस तरह से लोगों को खसोटता है, नोचता है यह कोई नहीं देखता है । उसने सन्यासी के वस्त्र पहन लिये बहुत बड़़ा आदमी हो गया। उनकी कुण्डलिनी में एक विशेषता होती है कि कुण्डलिनी एकदम उपर चढ़ कर धड़ से नीचे गिर जाती है। उसको बाँधना पड़ता है। सब के एक एक तरीके हैं। इससे आप पहचान सकते हैं कि इनके गुरू कौन हैं। इतने झूठे गुरू संसार में आए हुए हैं कि आपको अंदाज नहीं हैं कि कितने गुरू आए हैं। असल गुरू भी बहुत सारे हैं। आज एक साहब ने पूछा कि 'कोई असल गुरू भी हैं?' तो मैंने कहा 'हाँ, हैं। अब अमरनाथ में एक नागनाथ बाबा हैं, वो कभी-कभी आते हैं । मेरे लिए आते हैं हमेशा, मुझे मिलने । महाराष्ट्र में हैं बनना चाहिए और उस ब्रिज का बनना सिर्फ सहजयाग में ही घटित होता है। ८ । চি गगनगढ़ महाराज। दक्षिण में एक ब्रह्मचारी करके है । वे रहते हैं कालिकोट । वे ब्रह्मचारी हैं। रंगुन में एक हैं। ऐसे हैं, काफी सारे लोग हैं। लेकिन वे लोग समाज में नहीं, शहर से बाहर, दूर, जंगलों में । गगनगढ़ महाराज सब से बताते है जब माँ ही आ गयी तो तुम क्यों मेरे पास आते हो। जब हम कोल्हापुर गए तो कहें कि हम जाएं, उपर देख आएं इनको। हमारे शिष्य कहने लगे कि 'माँ, आप तो सब गुरूओं से, इन सब से बहुत वाइब्रेशन्स देखो तो।' वो सात मील उपर चढ़ना था । हमने कहा कि 'हम तो चढ़ मिलने ।' तब उन्होंने ऐसे हाथ किया तो उनके सब के हाथों से ठण्डा-ठण्डा आने लगा तो कहने लगे 'चलिए ।' जब उपर गए तो देखा कि वे बैठे हुए थे मस्ती में अपने और बहुत नाराज । कहने लगे बरसात हो रही थी और सब भीग गये आप। अब देखिए इन लोगों ने कैसा प्रभुत्व चीज़ों पर कर लिया परेशान हैं। उनसे क्यों मिलना चाहती हैं ?' हमने कहा 'बेटे, जरा के जाएंगे, उन से ८मैं आपकी माँ, मुझे है। बरसात पर, सूर्य पर यह सब काम इन्होंने किया है। लेकिन ये रियलायजेशन बहुत कम देते हैं। उन्होंने एक आदमी को रियलायजेशन दिया। मैंने कहा कि 'भाई, आपने रियलायजेशन क्यों नहीं दिया और लोगों को?' तो कहने लगे 'एक को दिया और कान पकड़े। पच्चीस साल इस पर मेहनत की, हर एक चक्रों पर ।' बात ये है कि उनको टाइम बहुत लगता है। लेकिन मेरे को तो लगता नहीं न टाइम, मैं तो इसमें माहिर हूँ । लेकिन इनको बहुत टाइम लगता है बिचारों को। कहने लगे,'मुझको ही हजारों वर्ष लगे वाइब्रेशन्स पाने में।' कहने लगे 'इतनी मेहनत करी। इनका नाम अण्णा महाराज। आप माताजी, कभी देखना आपको पता होगा कि मुझे उनका मुँह भी नहीं देखना।' कहने लगे कि 'वो कामिनी और कांचन के पीछे पड़ा हुआ है। रियलायझेशन के बाद सारी शुद्धी के बाद।' | | आपको आगाह करना है। उसके बाद एक दिन ऐसा इत्तफाक हुआ कि उनसे (अण्णा महाराज) फोन से कुछ मुलाकात हो गयी हमारी। किसी के यहाँ आए हुए थे । बत्तमिजी शुरू की उन्होंने । औरतें-वौरतें भी लेकर बैठे हुए थे । हमें कहने लगे कि 'हमारे महाराज जो हैं वो बम्बई आते हैं आपसे मिलने के लिए | उनकी १०८ वर्ष की उम्र है । इनकी जिनकी बता रहे हैं वो कभी छोड़ते नहीं थे अपना तकिया। इनको क्या जरूरत थी आने की?' मतलब उनके पेट पर पैर आता होगा उनके आने से। वो बहुत नाराज थे अपने गुरू से। तो मैंने कहा कि 'अच्छा! अब तो हम जा रहे हैं ।' ऐसा करिए आप कि हम आपको कुमकुम लगाते हैं। हमने उनकी आज्ञा से कुमकुम लगाया । अब आप हमें लगा दीजिए । जैसे ही उन्होंने लगाया तो उँगली उनकी यहाँ चिपक गयी। धक-धक शुरू हुआ और लगे चिल्लाने। कहने लगे 'माँ माफ कर दो। माँ माफ कर दो।' मैंने कहा कि 'फिर से अपने गुरू के लिए ऐसा कहा तो देख लेना । मुझसे बुरा | हरेक गली-कुचे नहीं कोई। अपना आज्ञा तो पूरा पकड़ा हुआ था और क्या बाते करते हो बकवास । शर्म नहीं आती यहाँ औरतों के साथ बैठे हुए हो। इतनी तुम्हारे ऊपर उन्होंने पच्चीस साल मेहनत करी हुई है। चले जाओ यहाँ से ।' बाद में उन औरतों ने बताया उन लोगों से सब से सवा तोला सोना और सवा सौ रुपया सब ले लिया। उसके बाद मैंने कहा जब वो आए तब उनको सवा जूता मारना, कहना कि हमारी श्रद्धा इससे सवा सौ की है। लेकिन हमारे हाथ दुखेंगे तो सवा जूता तुमको मारेंगे। माने वो तो रियलाईजेशन के बाद भी इतने बत्तमीजी कर गए तब वो रियलाइज्ड ही नहीं हैं जिन्होंने शुरू से यही प्लान कर लिया कि किसको कैसा लूटें? किसको घसीटे? ये तो पक्के चोर बिलंदर हैं। बहुत से लोग जेल से छूटने के बाद भी गुरू बन जाते हैं। आप लोग हैं कहाँ। उससे नाराज होने की कोई बात नहीं। जो असलियत है उसे समझ लें। मैं आपकी माँ, मुझे आपको आगाह करना है हरेक गली-कुचे में एक-एक गुरू बैठा है। अगर आप उनका पता लगाए। वाकई में पुलिस लगा दें इनके पीछे में तब तो पता हो जायेगा कि आधे, ५०% लोग जेल से निकले हुए घूम रहें हैं। बम्बई वाले यहाँ आएंगे, यहाँ वाले बम्बई जाते हैं। उस से अच्छा और कौनसा तरीका होता है लोगों को ठगने का। जैसे रावण ने सीताजी तक को ठग लिया । जितनी भी बदसूरत चीज़ हो उसको ढकने के लिए बहुत खुबसूरत चीज़ उस पर लगा दीजिए वो ढ़क जाएगी। आप से भी बढ़कर विदेश के लोग हैं। बेचारे बड़े सीधे हैं कहते हैं कि वो भगवान हैं। मैंने कहा, "कहने को लगता क्या है? ये जबान है कह दिया।"उन्होंने कहा कि 'उन्होंने तो पेपर में छपवा भी में | | एक-एक गुरु | बैठा है। ९ প् क5 दिया है।' मैंने कहा, 'लगता क्या है उसके लिए ! पेपर में पैसा दे दिया, और छपवा दिया।' मैंने कहा 'वो कह रहे हैं इसका मतलब हो गया वो सत्य ही है क्योंकि ये लोग इस तरह के हैं कि वो सोचते हैं। कि हम लोग भी जो कुछ कहते हैं उसके भी कुछ मायने होते हैं।' यहाँ तो किसी को कुछ कहने से कुछ ' लेकिन ये लगता ही नहीं। ये जो गुरू का बना हुआ है, अपने अन्दर जिसे मैंने भवसागर बताया है, यह बहुत जरूरी चीज़ है। इसको समझ लेना चाहिए । अब इसलिए हम तो सब को खुले आम कहते हैं, हर एक के बारे में १९७० से हम खुले आम सब के बारे में कह रहे हैं नाम ले-ले कर सबके बारे में और बता रहे हैं कि ये क्या-क्या गड़बड़ करते हैं खुले आम। लेकिन किसी की आज तक हिम्मत नहीं हुई कि न हमारे उपर किसी ने केस की, न किसी ने पुलिस में दर्ज किया न कुछ। खुले आम सबके नाम ले करके हम बता रहें हैं कि वे किस कदर के बदमाश हैं। किसी की हिम्मत नहीं हुई। हालांकि सब लोग हमें आ आकर कहते हैं कि 'माँ तुम्हे नहीं मालूम ये तुम्हारा मर्डर कर देंगे।' मैं कहती हूँ 'करें तो | मैं देखेँ तो कौन करता है मेरा मर्डर?' ना किसी ने शिकायत की ना किसी ने एक अक्षर हमारे विरोध में कोई नहीं बोला क्योंकि इनको मालूम है कि इनकी सारी पोल-पट्टियाँ मुझे मालूम है। लेकिन इनके शिष्य जरूर ऐसे होते हैं जो मेरे से खिलाफ कर लेते है लेकिन वो लोग नहीं । वो लोग चुप्पी साधे बैठे हैं। सब एक से एक बिलन्दर है और सब आपको लूट रहे हैं, बेवकूफ बना रहे हैं। इसलिए सजग हो जाएं, सतर्क हो जाए इनके चक्कर में ना आएं और इसमे बुरा मानने की कोई बात नहीं, माँ है। माँ सब बात सही-सही बताएगी और आप से पूरी बात बताएगी, चाहे आप भला माने या बुरा। मेरे लिए तो आपकी कुण्डलिनी खराब कर देते हैं।... जो परमात्मा बड़ा अच्छा है, सब को अच्छा कहते फिरो, बस आप लोग नाराज ही नहीं होंगे। वो लोग तो किसी को बुरा-भला नहीं कहते। वो क्यों कहें उनको आप के जेब से मतलब है। आपको नचाने से मतलब है उनको । वो आपको किस को बुरा-भला कहेंगे । ईसामसीह ने कहा था शैतान के घर में रहने वाले लोग आपसी बुराई करके कहाँ जाएंगे? लेकिन कबीर ने आवाज उठाई थी, नानक ने आवाज उठाई थी, ईसा ने आवाज उठाई थी । इसलिए क्योंकि यह सब झूठ है। और मुझे इसमें भी हर्ज नहीं है स्मगलिंग करें, कुछ करे, पैसा कमाए कोई हर्ज नहीं । चलो भाई पैसा ही कमाया। लेकिन ये आपकी कुण्डलिनी खराब कर देते हैं। जो आपका अधिकार है, सहजयोग का, जो परमात्मा को पाने का आपका अधिकार है,उस पर हाथ मारते हैं इसलिए मैं उनके विरोध में हूँ। को पाने का आपका अधिकार अब जो इस के उपर का चक्र है, उसके बारे में, अभी तक तो मैंने बाकी सब चक्रों के बारे में है, उस पर बताया था, जिसे कि हम लोग हृदय चक्र कहते हैं। चक्र, हृदय पहले रहता है। हृदय में तो आत्मा का स्थान है। आत्मा जो है वो हमारे अन्दर स्थित है और सारे हमारे क्षेत्र को जानता है। उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं। वही साक्षी है वो हर एक चीज़ जानता है । हम क्या कर रहे हैं और क्या नहीं कर रहे हैं। कुण्डलिनी जागरण से सिर्फ आपकी जो चेतना है, इस वक्त जो चेतना है वो आत्मा में लीन हो जाती है। अभी तक हाथ मारते आत्मा आप से परे है। आत्मा से आप सम्बन्धित नहीं हैं। वो आपके अवेयरनेस में, चेतना में नहीं है। जब कुण्डलिनी जागृत हो जाती है तब आपकी चेतना में आत्मा आ जाती है और आत्मा क्योंकि सर्वव्यापी शक्ति है- आप भी सर्वव्यापी हो जाते हैं। इस के आगे और आप समझेंगे और धीरे-धीरे । अब ये जो हृदय चक्र है ये बीचोबीच में है, ये आपकी माँ का, देवी का, जगदम्बा का, जो कि पहाड़ों में बहुत प्रसिद्ध है-उनका यह स्थान है। इन देवी ने अनेक बार संसार में अवतरण लिए और ये भवसागर में जो लोग परमात्मा को खोज रहे थे और जिनको बहुत राक्षसों ने सताया था उनसे इन्होंने रक्षा का कार्य किया, ये रक्षा करती हैं। अगर किसी के रक्षा का स्थान खराब हो जाए जिसे of insecurity कहते हैं तो ये चक्र धक-धक करने लग जाता है। औरतों को जब इस तरह की चीज़ हो जाती है तो उन्हें ब्रेस्ट कैन्सर हो जाता है। अगर वो insecure feel करे तो उन्हें ब्रेस्ट का कैन्सर के हैं इसलिए मैं उनके विरोध sense में हूँ। १ हो जाता है। अस्थमा की बीमारी भी इसी चक्र के खराब होने से हो सकती है। ये सब इस चक्र | combinations में होती है जिसे हम विशुद्धि चक्र कहते हैं। अस्थमा की बीमारी भी ठीक हो सकती है १० প्ड পष्ण दो मिनट में। हमने कश्मीर के जो गवर्नर सहाय साहब थे, उनकी पच्चीस साल की अस्थमा की बीमारी एक क्षण में ठीक कर दी। एक क्षण में। जब ये चक्र जागृत हो जाता है, जब आपके अन्दर जगदम्बा जागृत हो जाती है तो आप ही सुरक्षा बन जाती है। आप अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं इसलिए यह चक्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। और इस चक्र को किस तरह से ठीक किया जाता है ये भी अगर आप हमारा पैम्फलेट्स पढ़ें, इंग्लिश की किताब में बहुत अच्छे से लिखा हुआ है । इस मंत्र जागरण से ये चक्र ठीक होगा। इसके उपर यह जो चक्र है ये मनुष्य के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। ये पीछे में इस जगह जिसे हम विशुद्धि चक्र कहते हैं। इस विशुद्धि चक्र से सोलह हजार नाड़ियाँ चलती हैं। यह श्री कृष्ण का चक्र है । इसमें श्री राधाकृष्ण बसते हैं। इसकी लेफ्ट साइड में श्री विष्णुमाया, आदिमाया जो कि उनकी बहन है, वो रहती है और इस राइट साइड में रुक्मिणी और कृष्ण का स्थान है। रामचन्द्र जी का स्थान सुषुम्ना आप जब के पर से हट कर इस साइड में, राइट साइड में है। हृदय चक्र से राइट साइड में है क्योंकि आपको मालूम है कि उन्होंने अपने को पूर्णत: मनुष्य बनाने के लिए अपने अवतार की दशा से हटा लिया था । वो अपने को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते थे, हालांकि थे तो अवतार ही। नाभि चक्र में सारे ही उथान हुए जाग्रत हो हैं। जो दशावतार हुए हैं वो नाभि चक्र से शुरू है। फिर छठा अवतार रामचन्द्र जी का था वो यहाँ पर है। उसके बाद कृष्ण का अवतार है। कृष्ण से पहले परशुराम का अवतार हुआ। उनका भी होना जरूरी था। परशुराम का अवतार इसलिए हुआ था कि वो संसार में आ कर के अपने बल से लोगों का आने वाला कल ठीक करे, क्योंकि ढेडी खीर आदमी की बुद्धि सीधे उँगली बात ठीक नहीं होती। तो उन्होंने अपने जोर से और अपनी शक्ति से लोगों को पहले तैय्यार किया। और फिर जब वो आ गए तब उन्होंने श्री राम के बारे में बताया कि यही श्री राम हैं। इस प्रकार दोनो के दोनो साथ आए थे इसलिए बताने के लिए क्योंकि ये पुरुषोत्तम थे, क्योंकि ये मनुष्य के जैसे रहते थे। इसके बारे में बताने के लिए ही परशुराम का अत्यन्त जाज्वल जैसा जाते हैं, तो आप | विराट से अवतरण उनके साथ ही हुआ था। इसके बाद श्री कृष्ण का अवतार हमारे विशुद्धि चक्र पर हुआ है। यह विशुद्धि चक्र एक बड़ी महान चीज़ है। मनुष्य ने जब अपनी गर्दन जानवर से उपर उठा ली वो तब मानव हो गया तभी यह चक्र घटित हुआ है। श्री कृष्ण जो है ये विराट स्वरूप है। समझ लीजिए ये विराट है और इस विराट के अन्दर आप छोटी-छोटी पेशियाँ है। आप भी विराट के स्वरूप है। आप जब जाग्रत हो जाते हैं, तो आप विराट से सम्बन्धित हो जाते हैं। वही परमात्मा की शक्ति है जिसे में कह रही हूँ। वही जो परमात्मा का साम्राज्य है उसमें आप जाग्रत हो जाते हैं। सारी पेशियाँ इस तरह से जब जागृत हो जाती हैं तो पूरा विराट जागृत हो सकता है। ये विराट की शक्ति है। अब मोहम्मद साहब ने जो 'अल्लाह हो अकबर' का नारा लगाया था, वो इसका मंत्र है। आप को आश्चर्य होगा ये ऊँगलियाँ कान में ड्राल कर ये इसकी अंगुलियाँ है । देखिए कितने फायदे की बातें वे कर गए थे। ये उसकी ऊँगलियाँ है, यही विशुद्धि की ऊँगलियाँ है अगर ये ऊँगली पकड़ जाए समझ सम्बन्धित हो जाते हैं। जाएँ कि विशुद्धि चक्र पकड़ा है। अगर आप पूछेंगे भी तो पता चलेगा कि हाँ मेरा गला खराब है। इस ऊँगली को कान में ड्राल कर के जब आप सर उपर करते है और 'अल्लाह हो अकबर' कहते हैं। अकबर का मतलब विराट से होता है, तो एकदम विशुद्धि चक्र खुल जाता है। आपके देहरादून में विशुद्धि चक्र ज्यादा पकड़ा हुआ है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। उसको आप समझ लें जो भी आपके अन्दर हों । | इसका एक कारण यह हो सकता है कि आप जरूरत से ज्यादा सिगरेट पीते हों या तम्बाकू खाते हो। उससे विशुद्धि चक्र पकड़ता है। दूसरा कारण यह हो सकता है कि आप गलत ध्यान-धारणा कर के और कोई गलत मंत्र कहते हैं। इस से भी विशुद्धि चक्र पकड़ता है। तीसरी चीज़ है सदी-जुकाम। कभी आपको ठीक से ख्याल न रहें, कभी परहेज न रहे। जो चीज़े आप खाते हो, जिससे आपका गला | ११ चि পष् से खराब हो, उससे भी आपका गला खराब होता है और विशुद्धि चक्र पकड़ता है। विशुद्धि चक्र इस भी पकड़ा जाता है जब आदमी अपने को बहुत छोटा समझता है। जब वो यह सोचता है कि वो विराट जब का कोई हिस्सा नहीं है। जब वो यह नहीं समझ पाता कि अगर वो बूँद भी है तो वह सागर का अंग है। तब भी विशुद्धि पकड़ती है, तब इसे न्यूनगण्ड कहते हैं, inferiority complex | पाँचवी चीज़ है जब इसको माँ बहन का खयाल नहीं रहता तब उसकी लेफ्ट विशुद्धि पकड़ती है। या जो आदमी बहुत क्रोध से बातें करता है या दुष्टता से व्यवहार करता है उस से भी विशुद्धि पकड़ जाती है, ऐसे अनेक कारण है उसमें से जो भी कारण हो उस से हमें मतलब नहीं । गले में ऐसे कण्ठमालाएं पहन लें। इसको माँ बहुन का कल एक ऐसे साहब आए थे। पता नहीं वो आज आये हैं या नहीं, जिन्होंने कोई माला पहनी हुई थी। उनके साथ ही एक साहब बैठे थे। तो हमने कहा कि 'आप माला निकालिए।' तो वो नाराज वाराज हो गए फिर बाद में उन्होंने निकाल भी दी। फिर आपसे हमने पूछा ये आप चूपचाप पहने बैठे थे | | हुए खयाल नहीं | अन्दर में, तो हमने उससे पूछा कि 'आपके पिताजी कहाँ हैं ?' तो कहने लगे कि वो तो हुए 'स्वर्गवास हो गए हैं।' तो मैंने कहा कि 'आप ने कुछ पहना है?' तो कहा 'हाँ। 'उनकी दी हुई कोई चीज़ है।' तो कहने लगे 'मान गये माताजी आप को हम।' उनके गुरू ने दी हुई चीज़ पहन कर अन्दर बैठे थे और वो ऊँगली पर आ गये। वो कैसे? बहुत सरल चीज़ है। राइट हैण्ड पे ये जो है ये हृदय २हता.... हुए चक्र राइट हैण्ड का है जो रामचन्द्रजी का है वो पिता का लक्षण है। इस में चमक मार रही थी। इस ऊँगली में चमक मार रही थी कि मैंने आपके पिता के बारे में पूछा। वो इतनी जोर की चमक थी कि उससे मैं समझ गयी थी कि कोई न कोई उनकी दी हुई चीज़ आपने पहनी है । ये आप भी समझ लेंगे । ये तो उन लड़कियों ने भी बता दिया था, मैंने तो बताया नहीं पर लड़कियों ने आप को बता दिया था | तो या जो आदमी बहुत क्रोध इस तरह से इस चक्र की पकड़ हो गयी और जैसे ही इन्होंने माला निकाल दी थी पार हो गए। इनके पास ये चीज़ आयी। छोटी-छोटी चीज़ों में लोग अटक जाते हैं । मैंने कहा भाई काशी का धंधा है छोड़ दो । नही छोड़े। हम आपको परम देने बैठे हैं, आप छोटी-छोटी चीज़ों को नहीं छोड़ रहे हैं। अरे, काशी के पंडित कैसे होते हैं? क्या आपको पता नहीं? आपको मुझे बताना होगा और उनका वो जो है धन्धा वो भी किस काम का है, वो भी बताना होगा आपको| एक पैसे की चीज़ एक रुपये में बेचते हैं। और इतने और इतने गरन्दे लोग हैं। सारे इस मंदिरों की वाइब्रेशन्स भी खराब कर दिए हैं। इस में मानने की कौन सी बात है। किसी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए। सब आपके मंगल और से बातें | है करता दुष्ट या दुष्टता से बुरा कल्याण की ही बात कर रही हूँ। सब कुछ आपके मंगल व कल्याण के लिए कर रही हूँ। ऐसी छोटी- छोटी बात ले कर के अपने आपको फँसा ड़राला। इस विशुद्धि चक्र की बात में कह रही थी कि जो विराट है । व्यवहार उसके बाद यह उपर का चक्र है। ये चक्र, इसे बड़ा महत्त्वपूर्ण माना जाता है, आज्ञा चक्र है। आज्ञा चक्र बड़ा संकडा होता है। उसके अन्दर से कुण्डलिनी का निकलना बड़ा कठिन हो जाता है दोनो तरफ से जब इगो और सुपर इगो दोनो दबाते हैं तब यह चक्र और भी दब जाता है । जब आदमी किसी को क्षमा नहीं करता और रात-दिन इसी के बारे में सोचता रहता है कि उसने मुझे ये सताया, वो सताया, मुझे ये तकलीफ दी, वो तकलीफ दी, ऐसे आदमी का आज्ञा चक्र एकदम पकड़ जाता है। और जो लोग चष्मा लगाते है उनका भी आज्ञा चक्र कुछ कमजोर होता है। शारीरिक रूप से। इस आज्ञा चक्र के भी अनेक रूप हैं। वो पढ़ेंगे तो, मेरे पास जो किताब है उसे आप पढ़े तो आप देख सकते हैं कि काफी इन लोगों ने इस पर लिख दिया है, आज्ञा चक्र के बारे में । इस आज्ञा चक्र पर महाविष्णु का स्थान है। अब आप लोग महाविष्णु के बारे में जानते ही नहीं। लेकिन देवी भागवत जिसने भी पढ़ा होगा उस में पता चलेगा कि महाविष्णु बहत बड़ा अवतार माना जाता है। जो राधा जी का पुत्र था और संसार में आने वाला है ऐसा चौदह हजार वर्ष पहले कहा गया था । वही अपने ईसामसीह हैं। है करता उस से भी विशुद्धि पकड़ जाती है? ईसामसीह साक्षात महाविष्णु के अवतरण हैं। अब मैं जो बात कह रही हूँ वो सच है या झूठ है- १२ कैसे जानना इसे? इसका एक बड़ा आसान तरीका है। आपकी जब वाइब्रेशन्स आ जाए तो आप पूछिए कि क्या इसामसीह महाविष्णु के अवतरण हैं? वही आज्ञा चक्र पर है? फौरन वाइब्रेशन्स आने शुरू हो जाएगे। आज्ञा चक्र पर जो "Lord's Prayer" है वो इसका मंत्र है। लेकिन वो साक्षात 'ॐ' व 'प्रणव' से बने हैं। माने गणेश जी का अवतरण हैं वो। ॐ प्रणव हैं उन्होने साकार अपना स्वरूप लिया। और इस संसार का तारण के लिए वो आए क्योंकि वो ॐ व प्रणव हैं। उनकी मृत्यु भी जब हुई उसके बाद उनका पूर्णोत्थान हुआ। और कृष्ण उनके पिता हैं क्योंकि उन्होंने कहा था 'नैनं छिदन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक:' यह जो प्रणव है, जो ओम है, यही किसी भी चीज़ से कटता नहीं और किसी भी चीज़ से वहन नहीं होता। उसकी सिद्धता करने के लिए, महाविष्णु का अवतरण इस संसार में हुआ। कृष्ण उनके पिता थे इसलिए उनको क्रिस्त कहते हैं और यशोदा जी का नाम रखने के लिए ही उनको राधाजी ने येशु कहा। इनकी माँ साक्षात राधाजी थी । महालक्ष्मी का अवतरण है। यह सब अपने ही हैं लेकिन उनको जान लेना चाहिए, लेकिन प्रणव निराकार है, ॐ निराकार है। साकार- 'यह जो प्रणव है, जो ओम है, निराकार लेकर के बड़ा झगड़ा लोगों ने खड़ा किया हुआ है। इस मामले में थोड़ी बात जरूर करूँगी नहीं तो ये भी एक झगड़ा बना ही रहेगा परमानैन्ट । और खासकर इस देहरादून में तो मैं काफी देखती हूँ सनातन धर्म और आर्य धर्म आदि वगैरे में मैं-मैं, तू-तू होती रहती है । हालांकि मिला किसी को भी नहीं । सदियों से चले आ रहे हैं को नहीं। किसी की भी तृप्ति मैंने देखी नहीं। अब निराकार-साकार की बात थोड़ी सी समझा दें, तो यह झगड़े भी खत्म हो जाएंगे। जिस वक्त हमारी पिंगला नाड़ी बनायी गयी जैसे हम देख रहे हैं, हमारे यही किसी दोनो झगड़े । मिला किसी भी चीज़़ से में राइट साइड । उस वक्त ये पाँच तत्त्व जो थे, उनकी जागृत करने की बात थी। आप पाँच तत्त्व जानते है जिससे सारी सृष्टि बनायी। इनको जागृत करना था इसलिए यज्ञ वगैरेह हमारे वेदों में किये गये। स्मृतियाँ पढ़ी गयी हैं। यज्ञों में ये जो पाँच तत्त्व है इसको जागृत किया गया| जैसा मैंने सबेरे बताया था । कटता नहीं पानी को जागृत करना था ये पाँच तत्त्व जागृत करना जरूरी चीज़ है। अग्नि को जागृत करना था, क्योंकि इनकी जागृति के कारण ही मनुष्य इनको इस्तेमाल कर सकता था। उसके बाद ही खेती बाड़ी और से शुरू हुई। आज का साइन्स भी इसी वजह मनुष्य के समझ में आया। अगर हमारी पिंगला नाड़ी न जागृत होती तो हम कभी भी साइन्स न सोच पाते ना ही हम ये समझ पाते कि इन पाँच तत्त्वों को हम किस तरह से इस्तेमाल करें। बिजली कैसे बनाए और किस तरह से हम इस अग्नि का इस्तमाल करें। अग्नि तक का भी हमें पता न था, कि हम अग्नि भी न बना पाते । ये सब हम बना सके इसलिए राइट किसी भी साइड की पूजा होती है। इसलिए यज्ञ होते रहे और निराकार में ही यह जो पाँच शक्तियाँ हैं तो निराकार की ही होती रही उस जमाने में। लेकिन उस में जब आगे लोगों ने सोचा कि अब जागृत कर | पूजा दिया, अब आगे क्या? तो फिर मनन की चीज़ शुरू हुई। तब फिर सेंट्रल पाथ पर आ गए। जब सेंट्रल पाथ पर सुषुम्ना नाड़ी पर चढ़नी शुरू हुई तो उन्हें दिखाई देने लगा कि यह ये देवी देवता इस जगह बैठे हुए हैं और ये देवता हैं। ये जो पाँच तत्त्व बने हैं, इसी से इन चक्रों की बॉड़ीज भी बनी हैं । इनकी जो शरीर रचना है ये इन्हीं पाँच तत्त्वों से बनी है। तो जब इन्होंने इन तत्त्वों को जानना शुरू किया तो देखा कि इनके देवता हैं, तब इन्होंने मनन विधि में उन देवताओं को जानना शुरू किया एक के बाद, एक के चीज़ से वहन नहीं बाद एक। तब इन्होने कहना शुरू कर दिया कि नहीं यह साकार भी दूसरी चीज़ आ गयी है। निराकार से साकार पर लोग उतरने लग गये। जैसे-जैसे चेतना बढ़ती गयी वैसे वैसे लोग आने लग गए। उसके बाद जो साकार पर आ गए उनका जो हाल हो गया वो आप जानते ही हैं। इसकी पूजा कर, उसकी होता। ? IT पूजा कर। Ritualism आ गया। अंधश्रद्धा आ गयी। धर्मान्धता आ गयी, बड़ा बुरा हाल हो गया। तब से एक बड़ा भारी आन्दोलन हुआ, इतना ही नहीं मोहम्मद साहब जैसे लोग संसार में पैदा हुए। ख्रिस्त संसार में आए, इन्होंने सब ने कहा कि निराकार ही ठीक है, साकार को खत्म करो। हालांकि बड़ा गोपनीय है ये सब कुछ इतना, बाईबल में लिखा हुआ है जो कुछ पृथ्वी ने बनाया हुआ है और जो १३ প् कुछ आकाश ने बनाया है उसका प्रतिरूप तो बनाइए, ये बड़ी मार्मिक चीज़ है। इसको एक ईसाई लोग समझे तो समझ लें कि मूर्ति पूजा क्या है? अब पृथ्वी ने कौन सी चीज़ बनाई है, बताइए आप ? उसकी प्रतिरूप कर के उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए । पृथ्वी ने ये जितने भी स्वयंभू लिंग हैं ये बनाये हैं। अभी ईसाईयों से कहिए कि जितने स्वयंभू लिंग हैं ये पृथ्वी ने स्वयं बनाये हैं और इसके प्रतिरूप आप जो बनाए भी वो इसके पूजनीय होता ही नहीं क्योंकि ये imperfect है । इसका भी है, इस आकार का भी co-efficience होता है। उस आकार के कारण ही चैतन्य बहुता है। और हू-बह वैसा आकार बनाना असम्भव है और जो बनाता है वो भी realized soul होना चाहिए और वो उसे बेचना नहीं चाहिए उसको। इसलिए जितने भी मूर्तियों की हम पूजा करते हैं अधिकतर इस हिसाब से जीरो हैं। अब आप जा कर के देखें, रांजनगाँव का एक गणेश जी है बिलकुल गणेश के रूप हैं, बिलकुल गणेशजी हैं। और ये पृथ्वी के अन्दर से निकले हुए हैं। किसी ने उनको हाथ भी नहीं लगाया है। अभी अनादि काल से बात चली आ रही है। मैं खुद देखने गयी थी। इतने वाइब्रेशन्स उस गणपति में है जैसे कि कोई जाग्रत वहाँ समाधि लगाई हुई हो। इस तरह से उन में से जागृत व्हायब्रेशन्स आते हैं। इसलिए कहा गया था कि उसके प्रतिरूप मूर्ति न बनाएं । अब हमलोग हैं जिसको देखिए मूर्ति बनाने बैठ जाता है। हर एक चीज़ की मूर्ति बनाकर उसको पूजने लगते हैं । उसका co-efficience है या नहीं, उस में चैतन्य है या नहीं, वो जागृत है या नहीं, इसको कौन देखता है? इसलिए मूर्ति पूजा का खण्डन है । इस तरह सें उन दिनों में ईसामसीह के समय में हुआ क्योंकि मूर्ति का मतलब यह होता है कि पैरों पर पड़ना शुरू हो गया। अब काबा के अन्दर जो पत्थर है वो साक्षात शिवलिंग है। पृथ्वी से निकला हुआ शिवलिंग है वो। उसे मोहम्मद साहब जानते थे । और जितने भी शिवलिंग हैं, वो साक्षात हैं लेकिन जिसको देखिए वही उसकी मूर्ति बना लें, मिट्टी का बना लें, पत्थर का बना लें-ये बनाने की इज़ाज़त नहीं है । इसकी मूर्ति पूजा वर्जित है इसलिए मूर्ति पूजा बाधक है। अब मूर्ति पूजा के विरोध में जो लोग बोलते हैं वो वहाँ तक कह गये हैं कि मूर्ति पूजा जो कि मूर्ति झूठ मूठ बनायी गयी है, उसकी पूजा नहीं होनी चाहिए, वहाँ तक सही है। लेकिन साकार परमात्मा नहीं होते हैं यह कहना बहुत गलत बात है साकार co-efficience होता परमात्मा नहीं होते हैं यह कहना बहुत गलत इसका मतलब है आपने वन साइडेड़नेस ले ली है। उसकी वजह तीसरी थी कि जब साकार की पूजा लोग करने लग गए तो लोगों ने देखा कि इस कदर वो गलत हो गए। समझ लीजिए कि हम आपसे कहें कि शहद को खोज लाएं तो हम आपसे पहले फूलों का वर्णन करे कि फूल ऐसा होना चाहिए, वैसा फूल मिलेगा, उन में से शहद ले आइये । आप गए और देख के चले आये कि हाँ भाई फूल मिल बात है। करने लग गए। शहद आपको नही मिलेगा । बातचीत से शहद नहीं मिल गया। अब फूलों की पूजा सकता । सिर्फ फूलों की बातचीत होती रही कि फूल ऐसे होते हैं, फूलों में ये करना चाहिए, फूलों में वो करना चाहिए। शहद नहीं मिलता बातचीत से, तो उन्होंने कहा कि फिर भी शहद नहीं मिला, चलो, शहद की बात करते हैं। तो दूसरी बातचीत शुरू कर दी निराकार की । वो भी बातचीत तो बातचीत ही रह गयी दिमागी जमा खर्च । आप चाहे शहद की बात करो , चाहे फूल की बात करो , आपको शहद नहीं मिल सकता। जब तक आप स्वयं ही मधुकर न हो जाएं। जब तक आप स्वयं ही मधु को पाने के योग्य न हो जाएं तब तक आपको शहद नहीं मिल सकता। फूल भी जरूरी है और शहद भी जरूरी है और शहद को पाने के लिए भी आपका वो होना जरूरी है, जिसे मधुकर कहते हैं । अब ये झगड़ेबाजी की बात है जो हर चीज़ के लिए झगड़ा खड़ा कर देते हैं। सत्य एक है उस में कभी झगड़ा नहीं हो सकता । अब उस जमाने में या पिछले जमाने में जब हम अपने पाँच तत्त्वों को प्रबुद्ध कर रहे थे । उस चीज़ | को ले कर के आज झगड़ा खड़ा करने की कोई जरूरत नहीं। जो बीच की बात है क्योंकि यह भी बिलकुल सही है कि परमेश्वर अवतार के रूप में थे और वो अवतार लेते हैं । संसार में आ कर के और भी मनुष्य का उद्धार करते हैं। यह बिलकुल सनातन बात है और यह करना भी सनातन बात है और यज्ञ करना भी सनातन बात है। जिसके कारण आप ये पाँच एलिमेंट्स हैं, अपने अन्दर में उनकी शुद्धि १४ करे। क्योंकि जब आपके चक्र शुद्ध नहीं हुए हैं तो मेरा कहना भी व्यर्थ है । वो भी जरूरी चीज़ है और | और आत्मा का जानना भी जरूरी चीज़ है और अगर इसको समझ लें तो सारा झगड़ा खत्म हो जाए व्यर्थ की बकवास कर करके और हजारो किताबें लिख- लिख करके, जिस तरह से आप लोगों ने झगड़ा खड़ा कर दिया है, वो सब बेकार है। कल ही एक साहब आए थे वो कह रहे थे कि मैं गायत्री मन्त्र कहता हूँ। तो मैंने कहा क्यों कहते हैं? वो पार नहीं हो पा रहे थे । मैंने कहा कि आप गायत्री देवी के बारे में पूछिए तो कहने लगे कि हम मानते ही नहीं साकार को । अरे भाई, मानते नहीं तो किस आधार पर नहीं मानते हो क्योंकि आप आर्य जब समाजी फैमली में पैदा हुए, आप आर्य समाजी बन गए। मनुष्य की स्वतन्त्रता कहाँ गयी? क्योंकि आप हिन्दू परिवार में पैदा हुए आप हिन्दू बन गए। हो सकता था आप मुसलमान पैदा हो जाते। हो सकता था कि आप कोई अफ्रिका में पैदा हो सकते थे । जब आपका पुर्नजन्म है ही नहीं तब आप कहीं भी पैदा हुए होंगे। हो सकता है आप पूर्व जन्म में बड़े कट्टर मुसलमान होगे और आज आप बड़े कट्टर ब्राह्मण बने बैठे हैं, हो सकता है और होता ही है । एक अति से आदमी दूसरे अति में हमेशा उतरता है। एक कट्टरता को लेके चलता है तो दूसरे कट्टरता में उतरता है। सत्य कट्टर नहीं है, सत्य साक्षात है। | कुण्डलिनी इसका साक्षात करना चाहिए, सूझबूझ इस में है। सूज्ञता इसी में है कि वो जो सत्य है उसे हमें पाने का है उसी को हमें ले लेना है और असत्य हमें त्याग देना है। आज यही हो रहा है। आपके जो जवान बच्चे आज्ञा चक्र हैं वो परमात्मा पर विश्वास नहीं कर रहे हैं । उनको मेरी बात भी बेकार लगनी शुरू हो गयी है। सभी विश्व में ये बात है आप ही की बात नहीं, आप से कहीं अधिक और जगह ये हो रहा है । कहीं जगह ये हो गया है कि जहाँ लोगों ने परमात्मा पर विश्वास छोड़ दिया है। अल्जिरिया के एक हमारे शिष्य हैं। इंजिनियरहैं, हमारे पास आए थे, मुसलमान हैं वो लोग सब । वहाँ पर जितने भी पढ़े लिखे लड़के हैं, इंजिनियर, डॉक्टर, आर्किटेक्ट वगैरेह उनको परमात्मा में को छेदती है तब विश्वास नहीं। उनमें से ये महाशय भी थे। ये किसी तरह से हमारे पास आ गये और पार हो गये। एक विश्वास को धर्मान्धता से निकलकर के और अविश्वास की ओर जब मनुष्य झुकता है तो बीचोबीच सहजयोग उसे पकड़ता है। जब उन्हें साक्षात हो गया आज उन्होंने ५०० सहजयोगी बना लिये जो कि मुसलमान हैं। जो कि विष्णु की भी पूजा करते हैं और मोहम्मद को भी जानते हैं इसलिए नहीं कि मैंने कहा है उसके बगैर काम ही नहीं बनता । अगर आपके पेट में कैन्सर है अगर आप धर्मान्ध हैं तो आपको मोहम्मद साहब का नाम लेना पड़ेगा। आप नही लीजिएगा तो मैं ठीक नहीं कर सकती । अगर आप मुसलमान हैं और आपको कैन्सर हैं पेट का तो आपको दत्तात्रेय जी का नाम लेना पड़ेगा और विष्णु जी का नाम लेना पड़ेगा चाहे आप मुसलमान हो कुछ भी हो । किसी का कुछ ठेका नहीं होता है। ये भगवान मेरे, वो भगवान मेरे हैं। उनको समझाने बुझाने और बना लिया। अब तो धर्म का राजकारण ही बन गया तब तो भगवान ही बचाएं । जो लोग धर्म में राजकारण ला कर के बात करते हैं, उनसे पूछा है कि वे लाग धर्म के बारे में कुछ जानते भी हैं । धर्म का राजकारण नहीं बन सकता । आप निर्विचार हो जाते हैं। १ आपको मैंने विशुद्धि चक्र के बारे में बताया। अब आज्ञा चक्र के बारे में बताया। जब कुण्डलिनी आज्ञा चक्र को छेदती है तब आप निर्विचार हो जाते हैं। निर्विचारिता आप में बह जाती है । ये भी चक्र यहाँ बहुत पकड़ता है, पता नहीं क्यों आप क्षमाशील कम हैं। क्षमा करनी चाहिए। क्षमाशील होना बहुत जरूरी है। जब हम क्षमाशील नहीं तो परमात्मा भी हमें क्षमा नहीं करेगा। हमें बहुत तकलीफें होती हैं। दुनिया में माना है, लेकिन हमको क्षमा करना चाहिए इससे परमात्मा भी हमें क्षमा करें। नहीं तो परमात्मा क्यों हमारी गलतियाँ क्षमा करेगा? इससे भी आज्ञा चक्र बहुत पकड़ता है। क्षमाशीलता बहुत जरूरी है। इसलिए मैं बार-बार आपसे कहती हैँ आप सबको क्षमा कर दें। पूरी तरह से क्षमा कर दें। अंत में आपका चक्र जो हैं जिसे सहस्रार कहते हैं। वो हजार पेटल्स से बना हुआ है। डॉक्टर का भी झगडा ९९२ नाड़ियाँ है उनके हिसाब में और उनको हजार कहते हैं और यही लेकर बैठे रहे उनके | १५ पप्ण পष् सामने झगड़ा करते हुए एक हजार पंखुडियाँ हैं। वो खुल जाती है, कमल के समान अनेक रंगों की पंखुडियाँ होती हैं और जब ये खुल जाती है तब वो इससे गुजर के ब्रह्मरंध्र को छेदती है। इसका नाम है ब्रह्मरंध्र। रंध्र माने छेद और ब्रह्म का, ब्रह्म माने सर्वव्यापी शक्ति जो कार्यान्वित होती है। परमात्मा की जो शक्ति है जो सर्वव्यापी है, जो आपके अन्दर , आपके अन्दर विहित और जैसे ही वो छेद देती है वो आपके अन्दर वो शक्ति स्थापित हो जाती है। आप भी बता सकते हैं कि दूसरों के अन्दर क्या प्रॉब्लम है। ये सामूहिकता आपके अन्दर जागृत होती है । इस में कोई लेक्चर देने की बात नहीं है। ये घटना आज घटित होने वाली है। आज मेरा यहाँ आखिरी दिन है, मैं चली जाऊँगी दिल्ली। मैंने कल भी कहा था कि यहाँ पर कुछ लोग मिलकर के एक स्थान निहित कर दें। किसी के भी घर, छोटी सी भी जगह हो एक सेंटर की तरह से हो जाए। जहाँ सब का सम्बन्ध जुट जाए। उसको बहुत बड़े जगह की जरूरत नहीं, एक एड्रेस ऐसा हो जहाँ सब लोग मिले तो देहरादून का सेंटर चल जाएगा और देहरादून में कार्य हो सकता है और हम दिल्ली से भी लोगों को भेज देंगे जो आकर के आप करेंगे। अनेक तरह की बीमारियाँ इस में ठीक हो जाती हैं | कैन्सर बीमारी हर एक तरह की बीमारी इस में ठीक हो जाती है। वो आपको भी सिखा देंगे। आप भी जागृत हो जाइए। वो आपकी भी प्रगति कर देंगे। लेकिन ऐसा एक्सपरिमेन्ट आज तक हमने किया नहीं कि ऐसी जगह पहुँचे जहाँ कोई पहले से सहजयोगी नहीं रहता। ये पहला ही एक्सपरिमेन्ट है इसका कारण और हमारी नातीन जो है यहाँ एक स्कूल में एडमिटीड थी। पिछली मर्तबा जब हम आए तो हमने सोचा बड़ी तपोभूमि है यहाँ ऐसा करने से इसमें कोई हर्ज नहीं और कुछ लोग जुट भी गए इसलिए बात बन गयी लेकिन यहाँ कोई ऐसा एड्रेस हो जहाँ पर सब लोग मिल सकते हैं। साधारण घर हो तो भी चल जाएगा। ऐसा एक एड्रस आप लोग ४३ंध माने छेद को काफी समझा कर के आपकी मदद कुछ और ब्रह्म | का, ब्रह्म सब मिल कर के जो पार हो जाए सो कर दे। इस तरह की एक चीज़ चला देनी चाहिए जो शहर के माने अन्दर हो बहुत दूर न हो। उसके बाद बाहर से लोग आते रहेंगे और पूरी तरह से आप उनसे गाईडन्स ले सकते हैं और आगे बढ़ा सकते हैं । और ये साहब बैठे हैं। इनका अनुभव देखिए । सबेरे से इन्हें सबेरे वाइब्रेशन्स नहीं आ रहे है और किसी तरह से रुकावट हो रही थी। और किसी ने उनसे कहा कि आप पूछिए कि माताजी कौन है ? और बस ये कहते ही साथ धड़-धड़ हाथ उनके वाइब्रेशन्स शुरू हो गये उनको बड़ी हँसी आयी अपनी बात पर भी। ऐसा ही चमत्कार होता है। एक चीज़ पर आदमी रूक जाता है। एक छोटी सी चिंगारी भी आँख में चली जाए, एक तिनका भी चला जाए, तो सारा आकाश आपके ऑँख से लुप्त हो जाता है । उसी तरह की छोटी-छोटी चीज़ों से हम उलझे रहते हैं जिन्हें हमें निकाल देना चाहिए । और निकाल दीजिए । आप लोग सभी हाथ ऐसे फैला कर बैठिए। इस तरह बैठे रहिए मैं सब को देखती हैूँ। सर्वव्यापी शक्ति जो कार्यान्वित कोई प्रश्न हो तो पूछिए, एकाध कोई प्रश्न हो तो ठीक है बेकार के प्रश्न पूछने में समय नहीं बर्बाद करना चाहिए। जो चीज़ आपके अन्दर होने की आपके अन्दर घटित होनी चाहिए ये आपकी सम्पदा है उसे पा लेना चाहिए। अब छोटी-छोटी बातों पर लोग उलझ जाते हैं। अब वो बता रही थी कि हम हीरे पहने हुए थे। तो उन्होंने पूछा कि 'माताजी ने हीरे की अंगूठी क्यों पहनी हुई है ?' तो भाई हमारे पास बहुत सारी अंगुठियाँ है और हमारे पति चाहते हैं कि हम सब अलंकार से लिप्त रहें । असल में हमारे पति.. का एक पैसा भी नहीं कमाया लोकिन आश्चर्य की बात है कि वो हीरे की अंगूठी नहीं वो झूठी अंगूठी, किसी ने हमको प्रेजेंट में दे दी तो हमने पहन ली। ये माया का चक्कर देखिए, वो भी झूठी अंगूठी है । हमारे पास बहुत सारी अंगूठी है। हीरे की भी हैं लेकिन वो हम झूठी अंगूठी पहने हुए थे । प्रेम के पीछे में और हम किसी से एक पैसा लेते नहीं है न आप हमें देते हैं। अब इस जन्म में हमारे पति हैं, होती है। .यहाँ हमारे पति को लोग जानते हैं वो बहुत ईमानदार आदमी हैं । उन्होंने बेईमानी हमारे पिता बहुत रईस आदमी थे। सब कुछ है तो हम पहन लेते थोड़ा बहुत । वैसे हम थोड़ा ही पहनते १६ हैं बहुत कम ही पहनते हैं । हमारे पति का शौक है हमारी पत्नी जो है सुहागिन है, पहने । इसलिए हम पहनते हैं, हम कोई सन्यासी आदमी थोड़े ही है । आप से ले कर हम कुछ नहीं पहनते । परम्परागत जो हमें पहनना है वो हम पहनते हैं। हम कोई सन्यासी नहीं हैं। हम कोई साधु बाबा नहीं हैं। अब हमने ये क्यों पहना | ाल वो क्यों पहना यह सब फालतू की बात करने का क्या फायदा था। यह सब बात की जो खबर रखते हैं वो लोग चोर होते हैं सब सर्क स चलाते हैं वो ढ ों ग स ब ब न क र , clown ब न क र अ प को सामने खड़े हो जाते हैं और आप स उ स ी अभिभूत हो जाते हैं। यहाँ ये समझना चाहिए कि आपको लेना है। हमें नहीं। हम देने बैठे हैं। आपको नहीं मिला तो आपको डिसक्रेडिट है। आपके लिए वो गलत रहेगा । आप के लिए वो नुकसानदेह रहेगा, हमारे लिए नहीं । आज सबेरे मैंने आपसे कहा कि मुझे आपसे कुछ नहीं लेना है। वोट भी नहीं लेना है, इलेक्शन भी नहीं लड़ना है । कुछ भी नहीं । मुझे शौहरत भी नहीं चाहिए आपसे। लेकिन आपके अन्दर जो आपका छिपा हुआ है वो पा लीजिए। ये माँ की तरह से मैं समझाती हैूँ। अगर आप अपने माँ को समझ सकते हैं तो यह भी समझ सकते हैं । आपको impress करने के लिए हम यहाँ नहीं आए हैं। और उससे हमें क्या मिलने वाला है, आप हमें क्या देने वाले हैं पहले ये बताइए । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सुबुद्ध की महिला ने इस तरह की बात करी। बहुत आश्चर्य की बात है । इसलिए इस शायद जन्म में हमारे पति इतने उँचे पद पर पहुँचे कि जिससे दुनिया न कहे । क्योंकि लोग इतने बेवकूफ होते हैं, कदर बेवकूफ होते हैं कि सत्य को कभी पहचानना ही नहीं चाहते हैं। | इस अनन्त आशीर्वाद! १७ जलेबी पुडिंग सामग्री :- २५० ग्राम जलेबी, ७५० मि.ली. दूध चीनी स्वादानुसार १/४ छोटा चम्मच इलायची पाऊडर १/४ छोटा चम्मच केसर कुछ बूँदे केवड़ा जेल ११/२ बड़ा चम्मच छिलका उतारे हुए चाँदी के वर्कवाले बादाम ११/२ बड़ा चम्मच कटे हुए बादाम विधि : १) जलेबी को छोटे टुकड़ों में काँटे। २) दूध उबालें, जलेबी के टुकड़े ड्रालें। धीमी आँच पर पकाएं और बीच - बीच में हिलायें । जब गाढ़ा होने लगे तो बाकी की सामग्री ड्ालें। आवश्यकतानुसार परोसे चीनी ड्ालें। पाँच मिनट और धीमी आँच पर हिलाते हुए पकायें। आँच से उतार लें। गर्म या ठंडा अधिकतर इस व्यंजन को पहले दिन की बची हुई जलेबियों से बनाते हैं। (श्री माताजी द्वारा लिखित 'Cooking with Love' से लिया गया है।) १८ ७ ত) ज क्रिसमस पूजा स शु २५ दिसम्बर २००८ न ठा 1999 या র करिा क्र. समस के अवसर पर ३ दिन का कार्यक्रम भुकूम, पुणे के निर्मल नगरी में आयोजित किया गया था। इन तीन दिनों का कार्यक्रम कुछ इस तरह से था :- २४दिसम्बर २००८ - ये कार्यक्रम का पहला दिन था। इस दिन के कार्यक्रम का आरम्भ हवन से किया गया। यह हवन २४ दिसम्बर की सुबह १०.०० बजे प्रारंभ हुआ। श्री माताजी के १०८ नामों को लेते हुए इस हवन को किया गया। हवन को चैतन्यपूर्ण सम्पन्न किया गया। शाम का कार्यक्रम सहज शादियों के जोड़ियों के नामों की घोषणा से आरम्भ किया गया| फिर हुई शुरुआत संगीत सरिता और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की। इन कार्यक्रमों ने तो वहाँ विराजे योगियों को तो चैतन्य की बारिश में डूबो ही दिया था। संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम देर रात तक चलते रहे। २५ दिसम्बर २००८ - यह कार्यक्रम का दूसरा दिन था। दिन की शुरुआत सामूहिक ध्यान से हुई। फिर के ग्यारह बजे अरुण आपटेजी का संगीत जिस से सभी पूजा के लिए तैयार हो गये। शाम का कार्यक्रम ६.३० बजे शुरु हुआ तीन महामंत्रों से और फिर कुछ देर तक सामूहिक ध्यान हुआ। इसके बाद कुछ सुन्दर भजन गाए गये। इतने सुन्दर भजनों के बीच हर योगी रास्ता तक रहा था श्री माताजी के आने का। इस बीच वहाँ लगाये गये बड़े परदे पर 'श्री माताजी' का १९८१ का क्रिसमस पूजा का सन्देश दिखाया गया। इसे देखते हुए योगियों ने लगातार चैतन्य लहरियों का अनुभव भी किया। आखिर ७.३० बजे वो क्षण आ ही गया था जिसका हमें बड़ी बेसब्री से था इंतजार। ढोल- नगाडे की गुँज और पटाखों के धमाकों के साथ आगमन हआ हमारी 'श्री माताजी निर्मलादेवी' का। श्री माताजी की एक झलक पाते ही सभी योगियों ने चैन की साँस ली और फिर श्री माताजी के स्वागत में 'स्वागत-आगत् स्वागतम्...' गीत गाया। इसके बाद पूजा की शुरूआत हुई। पूजा का आनन्द उठाते हुए पूरी तरह से मगन वहाँ उपस्थित योगिजन स्वर्ग का अनुभव कर रहे थे। आरती ९.०० बजे हुई और पूजा के बाद क्रिसमस के दो बड़े केक श्री माताजी के सामने रखे गये। एक केक श्री माताजी ने काटा और सबको आशीर्वादित किया । दूसरा केक प्रिय पापाजी द्वारा काटा गया। इसके बाद कुछ आंतरराष्ट्रीय तोहफे श्री माताजी के चरण कमलों में समर्पित किये गए । करीबन रात के ९.३० बजे श्री माताजी का निर्मल नगरी से प्रस्थान हुआ। देखते ही देखते पूजा के वो दो घंटे दो क्षण के जैसे बीत गये। श्री माताजी के साथ के वो हसीन पल हर वक्त अभी भी आँखों के सामने आते हैं। २६ दिसम्बर २००८ - तीन दिन के कार्यक्रमों का यह आखिरी दिन था। दिन की शुरुआत सामूहिक ध्यान से हुई। इसके बाद शुरू हुई शादियों की विधि 'हल्दी' के कार्यक्रम से। और दुल्हन को हल्दी लगाई गई और साथ ही वहाँ उपस्थित सभी योगी जन एक दूसरे को ऐसे हल्दी लगा रहे थे जैसे कोई होली का त्यौहार हो। सहज भजनों पर सभी नाचते गाते हल्दी लगाते रहे। चैतन्यमय और आनन्द से भरा हुआ था यह हल्दी का कार्यक्रम । इसके बाद मेहंदी की रस्म शुरू हुई। शाम के आठ बजे श्री माताजी निर्मल नगरी आई और फिर शुरू हुई शादियाँ श्री गणेश पूजा से। शादियाँ हो जाने के बाद श्री माताजी ने हर नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिया और करीबन ९.३० बजे निर्मल नगरी से प्रस्थान किया। श्री माताजी के प्रस्थान के बाद भी वहाँ उपस्थित योगी जन नाचते -गाते रहे, चैतन्य की लहरियों के साथ। इस तरह से कार्यक्रम का तीसरा दिन समाप्त हुआ। देखते ही देखते किस तरह से ये तीन दिन गुज़र गये इसका किसी को पता नहीं चला। सुबह शुरू हुआ दुल्हा जय श्री माताजी। १९ C. चलिता पंचमी पृज मुंबई, ५ वरी ७३ ब हत से लोग मुझसे पुछते हैं हमारा क्या फायदा हुआ? इस प्रश्न में निहित एक बहुत ही छोटी सी छुपी हुई बात है कि हमें जो कुछ मिला है उसके प्रति हमें कोई भी उपकार बुद्धि नहीं है। जरा सी भी उपकार बुद्धि नहीं है कि हम सोचते हैं कि हमनें क्या सहज में ही पा लिया। उपकार बुद्धि जिसे sense of gratitude अंग्रेजी में कहते हैं जब तक आपके अन्दर होगा नहीं सब बात उलटी बैठती जाएगी। आज का दिन बड़ा शुभ है। ललिता पंचमी है। ललित का मतलब है सुन्दर, अति सुन्दर और ललिता, गौरी जी का नाम है क्योंकि कल गणेशजी का जन्म हुआ है इसलिए आज गौरी जी का दिन मनाया जाता है। वैसे भी आप जानते हैं कि मेरी कुण्डलिनी माने कुण्डली का नाम ललिता है । लालित्य सौंदर्य को कहते हैं। मनुष्य वही सौंदर्य होता है, वही सुन्दरतम होता है जिसमें sense of gratitude होती है। जिस इन्सान में sense of gratitude जरा भी न हो वह इन्सान पशुवत है। पशु में भी होती है । कुत्ते में भी होती है। एक कुत्ता उसको आप थोड़े दिन पालिए-पोसिये देखिए आपको आश्चर्य होगा वो किस तरह वफ़ादार होता है। जैसे ही sense of gratitude आपके अन्दर जागृत होगा वैसे ही प्रेम के दर्शन अन्दर से आने शुरू हो जाते हैं। बहत से लोग कहते हैं हम तो माँ आप को surrender हैं। मुझे हँसी आती है। मुझे क्या आप surrender होने जा रहे हैं। मैंने आप से तो कुछ माँगा नहीं था। मैं तो देने भर के लिए बैठी हूँ और ना मेरा कुछ वास्ता है। किन्तु यह जो परमात्मा है ना-वो जरूर आपको देखता है कि आप में कुछ उस उपकार की बुद्धि है या नहीं। जब नहीं है, में कुछ भी आपका recommendation करुँ वो सुनते नहीं हैं। इसलिए बहुत से लोग जो अपने को समझते हैं वो पार हैं, उनकी जागृति हो गयी है। वो बड़े evolve हो गये हैं। अभी वहीं पर है । बिलकुल यूहीं चल रहे हैं। अपने अन्दर की उपकार बुद्धि लानी जरूरी है। उसके बगैर सब चीज़ अग्नि हो जाती है। लालित्य उस से खत्म हो जाता है। लालित्य ऐसे इन्सान में नहीं आता। लालित्य उसी इन्सान में होता है जिसमें sense of gratitude होता है, जिसमें उपकार बुद्धि होनी चाहिए । आदमी पता नहीं कैसी अजीब इन्सान है, कैसी अजीब चीज़ है कि वो अपने से इस तरह से compronmise कर लेता है वो अपने अन्दर का जो लालित्य है उसे भी नहीं पहचानता और अपने अन्दर की जो अग्लिनेस है उसके साथ रहता है हर दम। और वो सोचता है कि उसी के साथ रहने से वो बड़ा भारी आदमी, इन्सान होते चला जा रहा है । शुरू से ही देखिए, जन्म से ही देखिये परमात्मा ने हमारे लिये क्या २० ज शु नहीं किया। जानवर से हमें इन्सान बनाया। यह सारी सृष्टि कितनी मनोरम, कितनी सुन्दर और कितनी व्यवस्थित हम लोगों के लिये बनायी है लेकिन हमें उनके प्रति कोई sense of gratitude नहीं है । हम तो taken for granted हैं। हाँ, दिया, जैसे कोई हम सब तो बड़े अधिकारी थे इन सब चीज़ के लिये कि मिल गया तो क्या हआ। मनुष्य जब इस तरह की झूठी बातों में जीता है तब वो अपनी गंदगी भी नहीं देख सकता क्योंकि उसके लिये जो सच्चाई है वहीं दृष्टिगोचर नहीं होती। सच्चाई यह है कि आप अपनी गंदगी के साथ जी रहे हैं। आपके अन्दर जो गंदे तत्त्व हैं उन पर आप जी रहे हैं । उसको वो नहीं समझ पाता क्योंकि वो अंधा है और उस अंधेपन को ही बड़ी चीज़ समझ के, उसे compromise करते हैं। उसे हम लोग भूत कहें, बाधा कहे कुछ भी कहें | कुछ भी नाम दीजिए। ये आदत लग जानी चाहिए हमारे अन्दर, सब सहजयोगियों के अन्दर कि हमारी गन्दगी की हम सफाई करें । जैसे कि हमारी आदत है हाथों को कुछ गंदा लग जाता है तो फौरन हाथ धो लेते हैं। यह तो मनुष्य सीख कर आया है। जानवर फौरन अपने हाथ नहीं धोता है। मनुष्य हाथ जल्दी से धो लेगा, नहा लेगा जल्दी से । सफाई कर लेगा अपनी शरीर की। लेकिन इस मन के अन्दर कितनी गन्दगी हमारे अन्दर बसी हुई है, जिसके साथ हम जी रहे हैं और जन्मजन्मांतर तक हम जीते रहेंगे। आप गर सोचते हो कि इसी जन्म में खत्म हो जाएगी तो ये सही नहीं । ये गन्दगी जन्म जन्मांतर तक चलेगी और उस जगह पहुँचा देगी जो महान गंदी चीज़़ है जिसे कि हम नर्क कहते हैं | आज इतना सुन्दर दिन है कि मैं उस नर्क की आपको पूर्ण कल्पना देने, ना ही उसके बारे में बातचीत करना चाहती हूँ। लेकिन गंदी से गंदी कोई चीज़ अगर आपके अनुभव में होगी जिसको देखते ही आपने तय की होगी इस तरह की वो जगह जो अपने अन्दर आप बना रहे हैं। हाँ, माँ ने हमें जागृति दी है, ठीक है। मानते है हम । माँ ने हमें पार किया, मानते हो । फिर क्या? आगे? मानते हो माने मेरे उपर कोई उपकार कर रहे हैं क्या? इस तरह से लोग बातचीत करते हैं माने मेरे ऊपर उपकार हआ जा रहा है । ऐसेलोगों का evolution कैसे हो सकता है? २१ आज हम यहाँ हवन करने वाले हैं विष्णु जी का। अब ये हवन क्या है इसे समझ लेना चाहिए। जो मनुष्य निर्मल मन से यहाँ बैठा हुआ है उसी पे उसका असर आने वाला है और जो अशुद्ध मन से यहाँ बैठा हुआ है उस पर कोई असर नहीं आने वाला है। उसके लिये ये व्यर्थ चीज है । हवन या पूजा, प्रार्थना, नमाज, मन्त्रोच्चार, तन्त्र आदि सबकुछ। तन्त्र माने जो गंदी चीज़ है वो नहीं। कुण्डलिनी itself। ये सबकुछ हमें उस राह का मार्ग प्रदर्शन करते हैं। उस राह को आलोकित करते हैं जिस पर हमें उठना है। एकदम से चमका देती है। ट्रिगरिंग हो जाता है। अपने जीवन में एकदम से वो चीज़ ट्रिगर हो जाती है । जैसे हम एकदम कूद जाते हैं। इस सीमित जीवन से हम असीम में एकदम से कूद जाते हैं। हवन में श्री विष्णु का हवन । सारे बम्बई शहर के लिए इसका फायदा है क्योंकि मैं अपने हाथों से आज करने वाली हूँ। श्री विष्णु के हवन का मतलब ये होता है कि श्री विष्णु ही हमारे evolution के, हमारे उत्क्रांति के संयोजक। वे स्वयं ही उठकर के श्री कृष्ण बने। श्री विष्णु के इस अनुष्ठान को हम सारे संसार में ट्रिगर कर देते हैं, उस में चमक ड़ाल देते हैं। उसमें एक नई तरह की तरंगे उठा सकते हैं, जिससे मनुष्य की दृष्टि अपने evolution की ओर जायें कि और जिस तीन डायमेन्शन में, जिस तीन चक्करों में वो फँसा है उसके बंधनों से, उसके बाँडेज से वो छूट जाए । लेकिन यह भी समझना चाहिए परमात्मा को गुलाम लोगों से कुछ मिलने वाला नहीं है। जो गुलाम हैं वो परमात्मा को क्या नमस्कार कर सकते हैं? उस सारे ही बंधनों को छोड़ने के लिए, उस सभी चीज़ों को छोड़ने के लिए आप में ताकत नहीं है ये हम जानते हैं। लेकिन तैयारियाँ आप रखें, फेंक हम देंगे। आज से तैयारी रखें कि 'जो जो मैं अपने अन्दर झूठ लिये बैठा हूँ उसे मैं फेंक दूँगा 6सहजयोग साक्षात् सहजयोग का आप कल्याण नहीं कर सकते हैं। आपको कल्याण करना है सहजयोग से। आप अपने को सोचते हैं कि हम सहजयोग के कल्याण के लिए यहाँ आये है तो आप बहुत बड़ी गलतफहमी में है क्योंकि सहजयोग साक्षात् परमात्मा का साक्षात्कार है। इससे जिसे लेना है, जिसे बढ़ना है वही आगे जा सकता है और जो देने यहाँ आयेगा वो कुछ भी यहाँ नहीं पा सकता। देना तो दूसरी बात है। सहजयोग के प्रति उपकृत होना चाहिए। उपकृत होने का मतलब अन्दर भावना ये होनी चाहिए कि आपके बड़े उपकार है, इतनी कृपा हमारे उपर हुई कि हम पार हो गये। कुण्डलिनी का पूर्ण साक्षात्कार हमें हुआ और हम उँगलियों के इशारे पर कुण्डलिनियाँ उठा रहे हैं। क्या मजाल है किसीकी इस तरह से कर सकें। बातें करने वाले बहुत देखे होंगे आपने, लेकिन कुण्डलिनियों को उँगलियों पर नचाने वाले ये जो आप लोग यहाँ बैठे हये हैं पता होना चाहिए कि परमात्मा के प्रति किस कदर उसके आगे झुकना चाहिए और उसके उपकार मानना चाहिए कि 'हे प्रभू, हमारी क्या, ऐसी कौन सी हमारी विशेष बात थी कि तुमने हमारे उपर इतना उपकार किया? किसलिए इस तरह से आप हमारे उपर धर आये हैं प्रभू? क्या हमारी हस्ती थी? हमने क्या किया? आखिर कौन से ऐसे पुण्य हमने जोड़े थे जिसके लिये तुम इस तरह से हमारे उपर धर आये और सारी कुण्डलिनी हमारे सामने खोल के रख दी ।' उसका सारा का सारा सूक्ष्म से सूक्ष्म ज्ञान आप लोगों में है। मूर्खां की बात छोड़ दीजिए। महामूरखों की बात आप करते हैं, जो कि अपने को सोचते है कि हम बड़े हो गये हैं। आप लोग यहाँ उल्लू बनने आये हैं या अकलमन्द बनने आये हैं ये सोच के आयें । मैं आपको यहाँ उल्लू बनाने नहीं आयीं हूँ या आपको एनटाइसमेन्ट में ड़ालकर आपको उल्लू बनाकर और आप लोगों को चढ़ाती हैँ? वास्तविक में आपको चढ़ना होगा उस सीढ़ी पर । एक ही तरीका है, आधे अधूरे मन से ना आईये। पूरे मन से समर्पण में । पूरे मन से कि प्रभू तुमने कितना दिया हमें । हम क्या करें तुम्हारे? दुनिया की चीजें माँगते है कभी कभी। सत्ता माँगते हैं, पैसा माँगते हैं। छोटी छोटी चीज़ों में आप लोग अभी तक उलझे हुऐ हैं। जिस परम त्त्व की मैं बात करती हूँ वो सभी चीज़ देखने वाला है। योग, क्षेम, वहाम्यहम् | कह दिया है देख लेगा आपका । और ऐसी कौन सी चीज़े हैं जो उससे बढ़के संसार में हैं। इस परम तत्त्व से बढ़कर ऐसी कौनसी चीज़ दुनिया में है जो उसकी तुलना में खड़ी भी हो सकती है। जिस तत्त्व के सहारे सारा संसार चल रहा है। उसके अन्दर डूब जाने पर, उस अमृत को पाने के बाद आप क्या नहाने का पानी पीने की बातचीत करिऐगा मुझसे? इसलिए आपके ऊपर उसके आशीर्वाद की जो छाया है वो नहीं लगता। क्योंकि आप अभी भी किनारे पर डूबकियाँ मार रहे हैं। आज श्री विष्णु के इस सत्र में पूर्ण परमात्मा का साक्षात्कार है । १ आपको महसूस नहीं है। उसका पता २२ यहीं ध्यान रखिए कि ये आपके evolution के लिये किया जा रहा है ? मुझे कोई जरूरत नहीं है । इतना ही नहीं आज बम्बई शहर में, वातावरण में यह तरंगे जाकर चमकायेंगे। इन तरंगों की वजह से सारे बम्बई शहर में जो विष्णुमयी उत्क्रांति की चिनगारियाँ जलेंगी । इसको समझ लेना चाहिए यह बड़ी महत्त्वपूर्ण चीज़ है। हो सकता है आज आप लोग दस-पाँच आदमी बैठे हैं, लेकिन आप सब का पूरा चित्त यहाँ होना चाहिए। पूरी तरह से आप यहाँ concentrate करिए। इधर उधर मत देखिए । एक आदमी आता है आपकी आँख उधर घुमती है । आपका चित्त यहाँ रखिए । पूरी तरह से अपने को समर्पित रखें । जब आप लोग माँगेंगे तभी होगा । आप लोगों के माँगे बगैर नहीं होने वाला । मेरे करने से कुछ नहीं होता। अवतरण भी सबका माँगा हुआ होता है। जब तक कोई माँगता नहीं तो यहाँ किसी को फुर्सत नहीं अवतरण लेने की, आफत करने की। अवतरण में ही समझ लेना चाहिए कि आपकी माँग है। लेकिन माँगने वाले इतने अधुरे क्यों हो? पूरी तरह से अपने चित्त को इधर लाएं। पूरा चित्त यहाँ समर्पित रखें और आज का जो हमारा हवन है बहुत यशस्वी हो सकता है। इससे बहुत कार्य हो सकते हैं। लन्दन में हमने ऐसा ही एक हवन किया था। उसका बड़ा ही परिणाम लन्दन में आया। एकदम आबोहवा बदल गयी। आपकी आबोहवा बदलने की जरूरत है । इससे यहाँ का जो atmosphere है वो जाग्रत हो जाएगा। कभी-कभी इतने ज्यादा वाइब्रेशन्स मेरे शरीर में से बहते हैं लेकिन वह वातावरण में जा नहीं पाते। क्योंकि वातावरण उसे ले नहीं पा रहा है। आप लोग भी पूर्णत: जाग्रत अपने वाइब्रेशन पहले ठीक कर ले। नतमस्तक हो करके आवाहन करे। और जब उनका अवतरण हो, जब वो जाग्रत हो तब आप उसे अन्दर लें। जितनी भी यहाँ पर सामग्रियाँ हैं, उन सामग्रियों के द्वारा आप उनके सामने से ये कह रहे हैं कि हम आप से उपकृत हैं। आपके हमारे उपर अनेक उपकार है। ये हम दिखा रहें हैं आपको ये लीजिए लकड़ियाँ जो आपने हमें दी, हम आपको दे कर दिखा रहें है। हम कैसे बतायें! ये है । हवन का मतलब ये है। और उसी के साथ-साथ उस उपकार बुद्धि के कारण, उस sense of gratitude के कारण आपके अन्दर जितना भी मैल है, जलने दीजिए इस अग्नि में । और ये अग्नि आपको पवित्र कर सकती है, अगर आप इस भावना से इन चीज़ों को यहाँ दे रहें हैं। कुछ कठिन काम नहीं है। कोई मुश्किल चीज़ नहीं हैं । हम तो हैं आप के साथ खड़े हुऐं। हर एक चीज़ देखने के लिये, हर एक चीज़ को जानने के लिये । कभी आपको समझाते हैं, कभी आपको डाँटते, कभी आपको प्यार करते, जैसे कि माँ को करना चाहिए। बच्चों को समझना चाहिए कि माँ अगर हमारे भले के लिये कुछ कह रही है तो ये माँ ही कर सकती है और कोई कर ही नहीं सकता। ये आपके परम भाग्य है, ऐसा सोचना चाहिए और उपकार मानने चाहिए इस चीज़ से। जरूरत है क्योंकि इस सब के पीछे है माँ का प्यार, उसको आपको पहचानना चाहिए। आपको अगर प्यार की पहचान नहीं है सहजयोग आपके लिए व्यर्थ है क्योंकि सारा ही ये प्यार ही का दर्शन है। आपस में एक दूसरे में उस प्यार का आपको दर्शन होता है। लेकिन जब तक पूर्ण चित्त स्वच्छ कर के आप दूसरों के दर्पण में अपने को नहीं देख पाएंगे उस प्यार को भी आप पहचान नहीं पाएंगे। आप तो अपना जो विद्रप रूप है वही दूसरे में देखकर दूसरों को विद्वुप समझते हैं। आशा है, मुझे आशा है, अब मैं भी आप जैसी बातचीत करने लगी हूँ कि इस यज्ञ से, इस हवन से हम लोगों के हृदय स्वच्छ हो जाएं और हमारे उत्क्रांति में बहुत मदद मिलेगी । और उस असीम के किनारे में आप जाकर इस तरह से टिक जाईयेगा कि वहाँ से लौटने की बातचीत नहीं होगी। सब के पीछे | है माँ का प्यार, उसको आपको पहचानना चाहिए। आज बड़ा शुभ दिन है और गणेश जी की बात समझ लेनी चाहिए। गणेश सिवाय अपने माँ के और संसार में किसी चीज़ को नहीं जानते और इसलिए सबसे उच्चतम स्थान पर वे बैठे हुए हैं। माँ के प्रति पूरी तरह, क्या उनकी माँने उन्हें कभी डाँटा नहीं होगा? क्या उन्होंने उनको कभी समझाया नहीं होगा? हर चीज़ को शिरोधार्य करने वाले उस गणेश का स्मरण कर के हम लोग अब अपने हवन को पूरी तरह से संपन्न करेंगे और आप लोग भी इसमें पूरी तरह सम्मिलित हो और शंका कुशंका करते हुए न बैठियेगा। क्योंकि आप में से अधिकतर लोग पार है । जो लोग पार नहीं है उनको भी फायदा होगा । जरूर होगा, अवश्य होगा। आप सबको अनन्त आशीर्वाद ! २३ संक्रांति पूजा अनुवादित, राहुरी, १४ जनवरी १९८७ आ् ज का दिन बहुत शुभ है और इस दिन हम लोगों को तिल-गुड़ देकर मीठा-मीठा बोलने को कहते हैं। हम दूसरों को तो कह देते हैं, पर खुद को भी कहें तो अच्छा होगा। क्योंकि दूसरों को कहना बहुत आसान होता है। यह प्रतीत होता है कि तरह की प्रवृत्ति से कोई भी मीठा नहीं बोलता। कहीं भी जाओ, वहाँ चिल्लाने का कोई कारण न होने पर भी, चिल्लाने के अलावा लोगों को बात करना आता ही नहीं है। उसका कारण यह है कि हमने खुद के बारे में कुछ कल्पना की हुई है। हमें परमात्मा के आशीर्वाद की तनिक भी कल्पना नहीं है। - आप तो मीठा बोलें और हम कड़वा - इस सूर्य से इस देश में परमात्मा ने हमें कितना बडा आशीर्वाद दिया है। देखो, इस देश में स्वच्छता का कोई विचार ही नहीं है। इस देश में तरह-तरह के कीटाणु, तरह - तरह के पैरासाइटस् हैं। मैं तो कहती हूँ कि सारे विश्व के पैरासाइटस् अपने देश में हैं। जो कही भी नहीं मिलेगा वह अपने देश में हैं। दूसरे देशों में यहाँ के कुछ पैरासाइटस् जाएं तो वे मर जाते हैं। वहाँ की ठंड में वो रह ही नहीं सकते। सूर्य की कृपा से इतने पैरासाइटस् इस देश में है और उनको मात देकर हम कैसे जिंदा हैं। एक वैज्ञानिक ने मुझसे पूछा कि, 'अपने इंडिया में लोग जीवित कैसे रहते हैं?' मैंने कहा, जीवित ही नहीं रहते, हँसते- खेलते भी रहते हैं, आनंद में रहते हैं, सुख में रहते हैं। उसका कारण सूर्य है। जो सीखने | लायक चीज़ है, इस सूर्य ने हमें अपने घर को खुला रखना सिखाया है। हमारा हृदय खोलना सिखाया है। इग्लैण्ड में अगर आपको कहीं बाहर जाना हो तो १५ मिनट आपको कपड़े बदलने के लिए लगते हैं। कुछ पहनकर बाहर निकलना पड़ता है नहीं तो वहाँ की ठंड आपके सिर में घुस कर आपका सर ही खाएगी। ऐसी स्थिति वहाँ है। आज आप यहाँ जैसे खुले में बैठे हो इग्लैण्ड में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कर सकते। कहीं पर भी सब देशों में, अपने देश में भी ऐसे स्थान हैं, प्रांत हैं। कह सकते हैं कि मोहाली या नैनीताल या दूसरी तरफ आप गए- देहरादून से भी आगे, हिमालय के उस ओर गए तो जैसी उस जगह पर है वैसी ही ठंड इन जगहों पर भी है । जैसे इग्लैण्ड या अमेरिका में है वहाँ कोई परिंदा तक नहीं दिखता। वहाँ पर बड़े - बड़े वन है और उस जगह में सुंदर फूल हैं। 'वैली आफ फ्लॉवर' के नाम से लोग बताते हैं कि वहाँ बहुत सुन्दर-सुन्दर फूल हैं। वहाँ जैसे नंदनवन लगता हो। पर यह सब कुछ क्षणिक ही है। वहाँ इतनी ठंड होती है कि उसे देखने के लिए आँखे खोलना भी एक प्रश्न है। आँखों पर चश्मा लगाना पडता है अन्यथा आँखो को तकलीफ होती है। वहाँ इतनी ठंड है। वैसे ही दूसरे देशों में भी इतनी ठंड होते हुए भी उन्होंने वहाँ पर प्रगति की हुई है। सारे वातावपण से संघर्ष कर, लड कर उन्होंने अपने देश खड़े किए हैं। हमें तो इतना बड़ा वरदान होते हुए भी हम उसकी तरफ ध्यान नहीं देते कि सूर्य का हमें कितना बड़ा वरदान है। वह है वैसी ही ठंड यहाँ भी है। पर हैं। उसकी - देने की | शक्ति। १ अपने देश में सबसे मुख्य सूर्य की उर्जा बहुत बड़ी है। उसे अगर हम काम में लेना शुरू करें तो हमें उर्जा की कमी रहेगी नहीं : मोटर भी उस उर्जा से चल सकती है । पर अपने यहाँ जो सत्ताधीश हैं या अपने यहाँ के जो लोग हैं उनका ध्यान दूसरी तरफ होने की वजह से सूर्य की जो देनगी है, वह व्यर्थ हो रही है। उसकी तकलीफ हो रही है। हमें अति हो रही हैं। यह पढ़ कर हम बहुत कार्य कर सकते हैं। सूर्य से जो सीखने लायक चीज़ है, वह है उसकी देने की शक्ति । सूर्य यह देता ही रहता है, लेता कुछ भी नही। देता ही रहता और देने की उसकी इतनी शक्ति है कि उसी शक्ति से बारिश होती है। उसी शक्ति से खेती होती है। उसी शक्ति पर उपज होती है। अगर सूर्य न होता तो यहाँ कोई भी नहीं रहता। उसकी इस प्रेम की शक्ति की वजह से ही आज हम इस स्थिति तक पहुँच चुके हैं। पर उससे सीखना यह है कि हममें भी देने की शक्ति आनी चाहिए। पर नीचे से उपर तक आप देखें, तो लोगों को ऐसा लगता है कि कैसे पैसे बचाएं। कैसे खुद के लिए पैसे रखें? हमने अगर किसी कार्यक्रम के लिए पैसे दिए तो उसमें २४ भी लोग कहते हैं कि इसमें से पैसे बचाएं तो अच्छा है। अरे, आपको किसने कहा बचाने के लिए? बचा कर रखो, पर किसलिए ? अरे, आपको खर्च करने दिए, तो बचाते क्यों हो? अर्थात कैसे भी करके, कुछ भी सह कर लेना चाहिए। कुछ तो अपना बचा कर रखना चाहिए-यह प्रवृत्ति सब जगह है। किसी बाजार गए तो उन्होंने भाव बढ़ा दिया, किसलिए? 'उन्होंने बढाया इसलिए हमने बढाया।' अरे भाव अगर वहीं हो तो बढाया क्यों? कैसे भी करके वह शोषण की शक्ति। अब कोई छोटा सा कार्य शुरू किया तो लोग कहते है, " माताजी देखिए , आपको वह नहीं जमेगा ।" पूछा "क्यों ?" क्योंकि वो पैसा खाते हैं। मतलब हम तो खाना खाते हैं और वो पैसा खातें हैं। हमारा कुछ जमेगा नहीं क्या! मतलब ऐसी क्या अजीब बात है। देश का जो हित करने वाले हैं, देश को जो चलाने वाले हैं उन्हें सारी सत्ता भगवान नें दी है। उन्होंने भी यह नहीं समझा कि हमें देना चाहिए। इस सूरज से हमें सीखना चाहिए कि हम कुछ देने के लिए आएं हैं। जब तक पूर्णतया यह स्थिति मानव की बदलती नहीं है कि हम देने के लिए आएं हैं, लेने नहीं, यही उसका शौक होना चाहिए। जैसे आपकी माँ को कैसे लगता है कि मेरा बेटा आज आने वाला है उसके लिए मैं क्या करुँ? क्या खाने के लिए बनाऊँ? आज यह करूं कि वह करू? खाने के लिए क्या बनाऊँ? उसे कैसे शौक होता है एक माँ को कैसे शौक होता है कि वो दो चार पैसे इधर उधर से इकठ्ठा करके आसपास से पड़ोसियों से कुछ भी लाकर कुछ मीठा बनाकर आपको खिलाती है। उसे ऐसा लगता है कि कैसे दं और कैसे क्या नहीं। वैसा ही शौक अंदर से आए बगैर, वैसा सामूहिक शौक अंदर आए बगैर, अन्य लोगों के लिए वैसी भावना अपने अंदर जागृत बगैर अपने देश का क्या, किसी भी देश का कल्याण नहीं हो सकता। पर किससे क्या लूट सकते हैं, कि किससे क्या ले सकते हैं- इसी विचार में हम होते हैं। किससे क्या मांग सकते हैं और इस चिंतन से हमारे बच्चों को तकलीफ होती हैं। हमें ही तकलीफ होती है। कुछ भी कहा तो भी। अब हमारे ससुराल में उन्होंने कुछ शुरू किया है कि हम बड़ा तालाब खोद रहे हैं...। सब कुछ खुद ही खाओगे तो हमें खाने को क्या मिलेगा! (सक्रात अर्थात एक ऐसी शुभ क्रांति जिससे आज जो संक्रांत हम मना रहे हैं उसमें यह जो संक्रांति हैं, संक्रांत अर्थात एक ऐसी शुभ क्रांति जिससे हमारे अन्दर देने की प्रवृत्ति आ जाए । अब ये सब कहते हैं कि देने की प्रवृत्ति होनी चाहिए । यदि तुम पंडित के पास गए....तो कुछ तो दान करना चाहिए। दान क्या उस पंडित को करने का है ? वैसा दान नहीं। ... या कोई कहेगा दान करना चाहिए-मतलब खुद का पेट भरने के लिए! ....दान करते रहो इसलिए ये लोग ऐसे भाषण वरगैरेह देते रहते हैं-इसका कोई मतलब नहीं हैं। दान देंें परंतु आपको ही क्यों? तो दान किसे किया जाए ऐसा भी प्रश्न खड़ा होता है। यह देखना चाहिए कि हम मुक्त मन से अपने देश के लिए, अपने बंधुओं के लिए, अपने पड़़ोसियों के लिए क्या कर रहे हैं? मन रोक कर नहीं रखना चाहिए मन खोल कर पूरी तरह से लूटाना चाहिए। उसका एक विशेष आनंद होता है जो हम सदैव से भोग रहे हैं। जी-जान से देने का इसमें जो आनंद है वो किसी में भी नहीं । वो आनंद किसी में भी नहीं है। और अगर वो आनंद प्राप्त करना है तो आज का यह त्योहार मनाना चाहिए। यानि उस सूर्य के जैसे अपना स्वभाव होना चाहिए। वह क्या करता है इसका उसे कुछ आभास ही नहीं। उसे कुछ भी पता नहीं। परंतु सतत् अकर्म में खड़ा है सदैव प्रज्वलित रहता है और आपको नित्य प्रकाश देकर, आनंद देकर संपूर्ण जीवन त्त्व देकर आपका पालन-पोषण करता है। हम प्रतिदिन उसे देखते है। लोग उसे नमस्कार भी करते हैं किंतु मात्र नमस्कार तक। उसमें से कुछ भी हमारे अन्दर आता नहीं है। उसकी देने की शक्ति उसकी क्षमता हमारे अन्दर आनी चाहिए। हमारे अन्दर देने की प्रवृत्ति बहुत आ जाए। के पेड लगाएं। इसके लिए सरकार से क्यों पैसे लेना? एक तो उसमें बाडा लगाने में लगता ही क्या है। चलो, मैंने एक छोटी सी बात बताई थी कि सब सहजयोगी सड़क के किनारे बरगद इस साल यही एक पेड लगाऊँ, उसमें एक बाडा लगाऊँ। इसमें कितने पैसे लगते हैं? अरे बीडियाँ फूँकने में भी ज्यादा लगेंगे। एक यही कार्य करके देखो। कहने का मतलब हैं कि यह दिखना चाहिए कि हम कुछ कर रहे हैं। बजाए इसके (हम सोचते हैं) कि कैसे किसी को लूटें? कैसे किसी से पैसे लें? कैसे पैसे बचाकर रखें? इस प्रवृत्ति से अपने देश की बिलकुल भी प्रगति नहीं होगी। अच्छा, हमारे यहाँ पहले ऐसे लोग नहीं थे। मैं आपको बताती हैँ कि जब हम छोटे थे तब देने वाले ही लोग थे हमने देने वाले ही २५ लोग देखे हैं लेने वाले लोग तो देखे ही नहीं । कुछ भी लिया तो उन्हें पसन्द नहीं आता था, भी नहीं; किसी बच्चे ने कुछ सिर्फ देना है। माँ-बाप को लिया तो वे कहते थे कि वापस करके आओ। क्यों दुसरे का लिया ? मुझे याद है कि हमारे पिताजी ने चाँदी की कुर्सियाँ बनवाई और छत्र-चांबर बनवाए। तो सबने कहा कि किसलिए बनवाए? इसकी क्या जरूरत है? अरे शादी ब्याह तो होते रहते हैं..सब किराए से लाते हैं। ....उससे अच्छा है कि अपने घर का हो तो बढ़िया है। .... जाने दो। अब कहीं कुछ कार्यक्रम हुआ तो उन्होंने पूछा कि वो छत्र-चांबर चाहिए। अरे पिछली बार वो शादी हुई थी ना वहाँ से ले लो। .....फिर यहाँ से वहाँ करते करते वो न जाने कहाँ गायब हो गये भगवान ही जाने! मेरे कहने का मतलब है कि उनके विचार ही ऐसे थे। अब सवाल यह है कि अपने पास पैसे हैं तो क्या करना चाहिए? तो उसका कुछ सामूहिक सार्वजनिक ही करना। अगर बेडमिंटन का कोर्ट आप बनायें तो उसमें सब खेलें, यह नहीं कि सिर्फ हमारे ही बच्चे खेलें-ऐसा नहीं कि सब कुछ मेरे बच्चे के लिए ही । अगर उन्होंने मोटर ली तो उसमें सभी बच्चे स्कूल जाने चाहिए। बड़ी मोटर लेनी चाहिए ताकि उसमें सभी लोग जा सकें, यह सामूहिकता है। यह जो एक सार्वजनिक तबियत है वह बनानी होगी। वह इस सूर्य से सीखना चाहिए। और आज का यह विशेष दिवस है और इस दिन हमने यह तत्त्व लेना चाहिए कि आज से हम कुछ सार्वजनिक कार्य करेंगे। कैसे लोगों के पेट में अन्न जाता है, पता नहीं! अरे, क्या आप अपने आसपास देखते नहीं! आपने ऐसा कुछ भी सार्वजनिक कार्य नहीं किया है । हमसे जो बन पड़े उसे मैं एक छोटी सी बात बताती हूँ कि आप एक-दो पेड़ लगाना शुरू कीजिए । अपने महाराष्ट्र में कितने सारे सहजयोगी हैं और हर एक सहजयोगी ने अगर एक-एक पेड़ लगाकर उसकी देखभाल की तो इन लोगों पर कितने उपकार होंगे। मेरी सबसे यह विनती है कि कुछ न कुछ सार्वजनिक कार्य करने में शुरू करना चाहिए। परंतु उसके लिए हमें पैसे इकट्ठे करने हैं। ये करना है-ऐसे धंधे करने की क्या जरूरत हैं? पंडित को पैसे देने जैसी प्रवृत्ति हमें नहीं चाहिए। बिलकुल हृदय खोल कर, प्रेम से लोगों के लिए कुछ करना और उसका आनंद उठाना है। इसका मतलब यह नहीं कि आप फोकट में यह सब करें। मैंने ऐसा कभी भी नहीं कहा कि ये सहजयोगी वहाँ (परदेश ) से आये हैं और उन्हें कुछ मुफ्त में दो, बिलकुल भी नहीं। पर इन लोगों में वो बात है और आते समय वो कितने तोहफे लेकर आयें। उसमें मेरा भी बहत खुद अपने मन से इतनी चीज़े लायें हैं। मुझे पहले लगा कि जो मैंने रोम से सामान लिया था वही सामान ये साथ लायें हैं। तो उन्होंने कहा, 'नहीं माताजी, हम आपका (सामान) नहीं लाये हैं। हमने आपके जैसा (सामान) खरीदा था ।' उन्हें आनंद हो रहा था कि हम ये लाए-वो लाए, ये दिया। अच्छा वहाँ पर किसे क्या दिया ये किसी को पता भी नहीं। यहाँ मैं बैठ कर (कहती हूँ) इसे दो, उसे दो, इसका नाम लो, उसका नाम लो। वहाँ इंडियन लोग बैठ कर (कहते हैं) 'अरे मेरे बेटे को अभी तक कुछ नहीं मिला, मेरी माँ को भी नहीं मिला।' वो माँ लंगडाते हुए आगे आई। मैंने कहा, 'अब लीजिए अपनी माँ के लिए।' 'उन्हें लुगडं ( मराठी साडी) नहीं मिली।' अब मेरे पास लुगडी नहीं हैं तो साडी ही ले लो। ऐसे बातें होती हैं। इन लोगों (परदेसी) का उलटा है । ये लोग जहाँ से आये वहाँ से कितना सामान लेकर आये। ये लोग दो टन सामान लायें। वो दो टन देते-देते मेरे हाथ दुखने लग गये। ऐसा दो टन (सामान) उन सबको बाँटा। क्या हर्ज है। हाथ होता है तो भी वे स्वयं आपको देने के लिए कितनी चीज़े लाये हैं । वे उसके लिए कुछ पैसे लगते मेरा कहना हैं कि तुम भी कुछ दो। ऐसी बात नहीं कि इन्हें कुछ देना है। पर उनके सामने हमें अपना एक महान चरित्र दर्शाना होगा कि हम लोग भी कुछ कम नहीं। आप आयें, तो हम आपके सेवा के लिए खडे हैं। आपकी देख रेख के लिए हम उपस्थित हैं। हमसे जो बन पड़े उसे करने में क्या हर्ज है। उसके लिए कुछ पैसे लगते नहीं। उसमें कोई दिक्कत नहीं है। सिर्फ अपने मन की प्रवृत्ति बदलनी चाहिए और अगर सहजयोग से हमने वह नहीं बदली तो मुझे नहीं लगता कि सहजयोग से मन- परिवर्तन होगा। दूसरे को देने का जो सबसे महत्त्वपूर्ण स्वभाव है वह होना चाहिए। सहजयोग में कुण्डलिनी जागृत होती है और आप आत्मस्वरूप होते हैं। और आत्मा का तत्त्व यानि सूर्य जैसा देने वाला। आपने मेरा फोटो देखा है। उसमें मेरे हृदय के उपर इतना बडा सूर्य आया था। सचमुच मेरे हृदय में सूर्य है। और उसी सूर्य से मुझे कभी लगता नहीं कि मैं किसी से कुछ छीन लँ। मुझे पता नहीं कि नहीं। | २६ २० दिमाग के किस भाग से यह विचार आता है कि इनसे यह लूट लेँ। कैसी अजीब बात है। वह तो सहजयोग में आनी ही नहीं चाहिए। पर दिमाग लगाना चाहिए कि हम हर दिन क्या दे सकते हैं। इसके लिए अब हम क्या कर सकते हैं। ३० आपके राहुरी में भी हमने की है। एक संस्था शुरू उसका नाम हमने 'सहज स्त्री सुधार, समाज सुधार' रखा है। यह संस्था इसलिए बनाई क्योंकि हमारी संस्था ार लाइफ एटर्नल ट्रस्ट की ओर से ऐसे कार्य न हीं हो सकते। यहाँ स) रजिस्ट ड कराई है। सब छ] य ह कुछ हो गया है। केनडा के वे लोग पैसे देने के लिए बैठे हैं। वहाँ से लोग पैसा देने के लिए बैठे हैं। परंतु स्त्री सुधार के लिए यहाँ कोई मिलता ही नहीं है। यहाँ की औरतों ने यह कार्य अपने हाथ में लिया तो यह कार्य हो सकता है। यहाँ जगह है, सब कुछ है। फिर हमें वक्त ही नहीं मिलता, हम कैसे जाएं? अरे, आपको देने के लिए ये लोग वहाँ से पैसे लेकर आ रहे हैं। यहाँ के स्त्री समाज में सुधार करो। आपके लिए चौदह मशीनें भेजी हैं । वहाँ की औरतों को सिखाओ । आपको दिखता नहीं है कि वो भूखी- प्यासी घूमती रहती हैं। उन्हें बिठाओ , आएंगे तो उनका भला होगा। थोड़ा तो हमें ऐसा सोचना चाहिए। क्या सिर्फ अपना ही सोचते रहना है? तो सहजयोग में इस चीज़ के लिए कोई स्थान नहीं है। केवल अपने बारे में ही सोचने वालों के लिए हमारे यहाँ कोई जगह नहीं है । विश्व कल्याण के लिए हमें आगे आना चाहिए। और मैं हमेशा कहती हैँ कि 'जगाच्या कल्याणा संतांच्या विभूती' विश्व कल्याण के लिए संतों की भभूत। अगर ऐसा हो तो भी संतों की विभुति के कल्याण के लिए विश्व है| ऐसी परिस्थिति से उन संतों का कल्याण ही तो होगा। इसलिए अब जो आप संत हो गये हो तो आपको संतों की दृष्टि से आचरण करना चाहिए। और की कुछ कार्य सिखाओ। उनके हाथ में दो-चार पैसे | २७ ठ संतों का पहला लक्षण होता है-देना, देते रहना। किसी भी संत ने किसी से कुछ लूटा ऐसा तो हमने आज तक नहीं सुना। ऐसा किया भी तो फिर वह संत ही नहीं रहता। यह उसके दिमाग में आता ही नहीं। तो इस ओर ध्यान देना चाहिए कि हम अपने से क्या दे सकते हैं, कितना प्रेम दे सकते हैं, कितने लोगों का भला कर सकते हैं और आजकल जो सार्वजनिक कार्य होते हैं-इलेक्शन वरगैरेह के लिए वैसा कुछ नहीं करते हुए- निस्वार्थ भाव से जैसे हम माँ के प्रेम को निव्व्याज्य कहते हैं, जिसके उपर कोई ब्याज नहीं होता, ऐसा जो अटूट बहने वाला, अनंत तक जाने वाला-ऐसा जो प्रेम है वो देते वक्त आपको अपने आप सूझेगा कि मैंने क्या-क्या किया। वो सुधार धीरे-धीरे होना चाहिए। सब सहजयोगियों की ओर से कुछ न कुछ तो घटित होना चाहिए। और इस चीज़ के लिए हमें थोडा वक्त देना चाहिए। समय देकर उसमें उतरना चाहिए। मेहनत करनी चाहिए। 'माताजी आईं, एक लेक्चर हो गया और बस खत्म-ऐसा नहीं होना चाहिए।' इन लोगों ने बहुत काम किए हैं। पाठशाला की है और बहुत समाज सुधार का काम कर रहे हैं हमें ऐसी शुरूआत करनी चाहिए। नहीं तो ' मैंने शुरू सहजयेग यानि केवल आत्मसाक्षात्कार लेकर आनंद के सागर में तैरने वाले सब आलसेश्वर जैसे नहीं होने चाहिए । हमने दूसरों की कितनी मदद की , चारो ओर आँखें घुमाकर इधर -उधर देखो । उनकी ओर हमें प्रेम की दृष्टि ड्रालनी चाहिए। अच्छी तरह देखो कि अपने हाथ से क्या कार्य हो रहा है। सहजयोग अभी तक मेरा हिंदुस्तान में आना नहीं हुआ है। आने के बाद आप देखोगे कि मैं सबको काम पर लगाऊँगी। तो पहले ही शुरूआत करना अच्छा है। मैंने सहजयोग सिर्फ ध्यान-धारणा करने के लिए नहीं शुरू किया है। सिर्फ ध्यान-धारणा करने लिए क्यों सहजयोग चाहिए। फिर हिमालय जाओ| यहाँ रहकर गर सहजयोग करना है तो उस सहजयोग से लोगों का भला होना चाहिए। और आजकल का जो सार्वजनिक कार्य है-वैसा बिलकुल भी नहीं करना। सचमुच कार्य सिद्ध करना होगा तभी कहना चाहिए कि हमने सहजयोग स्थापित किया है। अब मेरी बहुत स्तुति हो गई मैंने बहुत स्तुति सुन ली, भजन सुन लिए, बहुत अच्छा लगा। बहुत संतोष हुआ। लोगों ने पहचाना वगैरेह-वरगैरेह , पर एक चीज़ पहचाननी होगी कि आप क्या हो? यह जानने के लिए कार्य करना चाहिए। नहीं तो आप स्वयं को शीशे में देख नहीं सकते। आपको क्या दिया वह आपको दिखाना चाहिए। जैसे पहले आप खाना पकाते थे, बच्चे को देखते थे अगर वैसी आपकी स्थिति होगी और उसमें बिलकुल सार्वजनिक या सामूहिक स्वरूप नहीं आया तो सहजयोग में आकर भी आपने क्या पाया-मुझे पता नहीं। जैसे थे वैसे ही हैं। प्रथम बात यह है कि अगले साल आने पर सबको बताना होगा कि किसने कितने बरगद के पेड़ लगाए। सिर्फ ध्यानधारणा करने के लिए दूसरी बात यह कि आपने कौन सा सामूहिक कार्य किया वह मुझे सुनने को मिले। आपकी नजर में कोई भी सामूहिक कार्य आए तो देखो कि आप वह कर सकते हैं और अच्छे से कर सकते हैं। उसमें भी पैसों की जरूरत नहीं पड़ती सिर्फ मन की तैयारी चाहिए। मैंने बगैर एक पैसे के तथा बगैर घर कुछ वालों के सपोर्ट के एक र्त्री को पार करके यह सहजयोग खडा किया था। परंतु उस कार्य की निष्ठा और सत्यता की वजह से ही तो आज इतना फैल गया है। अब यह एक बड़ी जिम्मेदारी आप सभी पर हर आदमी, हर औरत पर है कि हमें लोगों को सहजयोग बताते समय कुछ न कुछ उसका प्रमाण देना है। उसके लिए कोई नियम नहीं बनाने है। उसके लिए कोई गैर जिम्मेदार काम नहीं करना। कुछ भी गलत- सलत नहीं करना। सीधे सरल मार्ग से आप सिर्फ आँख खोल कर देखो कि हम क्या कर सकते हैं। लोगों का हम कहाँ क्या हित कर सकते हैं। हम आपको शक्ति देने के लिए बैठे हैं। आप इस कार्य में कूद पड़ो। और इस कार्य में हमें कोई वोट नहीं चाहिए हमें पैसे नहीं चाहिए, कुछ नहीं चाहिए। एक वचन दो कि हम कुछ तो ऐसा काम शुरू करेंगे। दूसरी बात उसमें कठिनाई यह है कि लोग गर शुरू करते हैं तो चार जगह पैसे माँगने चले जाते हैं-पहले पैसे इकठ्ठा करना । पैसे बिलकुल भी मत माँगो। पहले वह काम शुरू करो जो पैसे के बगैर हो सकता है। सबसे पहले पैसे इकट्ठे करना-सबको ऐसा लगता है कि पैसे के बगैर काम होता ही नहीं है। आपके पास शक्ति है। आपको पैसे किसलिए चाहिए? आसपास जाकर देखो कोई बीमार होगा । वहाँ देखो उनके यहाँ कोई बीमार हैं। उन्हें कोई परेशानी होगी। कोई बीमार होता है तो मैं ही देखती हूँ। ....उस दिन कोई गृहस्थ बीमार था...उसका हाथ ऐसा हो गया था। अरे, दो मिनट का ही काम था। कोई भी सहजयोग से ठीक कर सकता था, तो उसे मेरे नहीं शुरू किया है। १ | २८ े पास ले आए, वो भी प्रोग्राम के बीचोबीच- 'इसका हाथ ठीक करो।' अब आप इतने सहजयोगी होते हुए भी आपके हाथ से शक्ति बह रही है फिर भी..ये लोग कभी नहीं...इतना भी आप ठीक कर सकते तो आपके सहजयोगी होने का क्या फायदा ? तो मेरी माँ बहुत बीमार है, मेरा बाप ऐसा है, उसके पैर टूट गये हैं। 'अरे, आप ठीक कीजिए।' आपमें शक्ति हैं ना! करके तो देखो। तो लोगों की मदद करनी होगी बिना किसी अपेक्षा के, आनंद में, उस भावना से जिसमें सचमुच अत्यंत आनंद मिलता है। परमात्मा का एक साधन मात्र होकर विश्व में इस देश में इस परिवार में कुछ विशेष दे रहे हैं-यह कितनी बड़ी धारणा है। कितनी गौरव की बात है। गर ऐसा समझ कर आप सबने निश्चय किया तो कुछ न कुछ तो आपके हाथ से घटित होगा। और फिर लोगों की समझ में आएगा कि सहजयोग क्या है। 6. अब सहजयोग क्या है। ...सब लोग ध्यान में बैठे हैं। हमारे देश में कुछ गडबड हुई तो - ध्यान में ही हैं हो गया। 'अब हमारी बीबी खाना नहीं बनाती।' पूछा 'क्यों?' 'वो ध्यान ही करती रहती है।' ऐसा क्यों? किसने बताया उसे। खाना पहलें बनाना है। ध्यान के लिए पाँच मिनट बहुत हैं। आपको शक्ति दी है तो आप अच्छा खाना बनाओगे। तो एक तरह का विश्वास होना चाहिए और कार्य की क्षमता भी होनी चाहिए। मैं जो शक्ति देती हँ उसे ग्रहण करो। रोज सिर्फ ध्यान- धारणा करके कोई फायदा नहीं। यह भी देखना चाहिए कि आपने लोगों का क्या भला किया। आपका भला हुआ, हमारा भला होना चाहिए।.. मेरे बेटे के लिए करो, मेरी नौकरी के लिए करो, मेरी माँ को ठीक करो, बाप को ठीक करो, फलाने को ठीक करो। मेरे घर आओ। ये करो , वो करो । ... सबके उपर ही अधिकार और आप क्या करोगे? हमें भी कुछ करना चाहिए ऐसा मन से निश्चय करें कि माताजी को हम कुछ विशेष करके दिखायेंगे। और मेरे सामने सचमुच ऐसा चित्र खड़ा है जो वर्णन ज्ञानेश्वर जी ने किया है 'बोल ते पियुषांचे सागर' वह पीयुष का जो सागर है... हमें देखना है , वह कहाँ यह है। तो सबको इस सुदिवस पर मीठा- मीठा आशीर्वाद । सबका अच्छा करो और सबका भला करो। सबसे प्रेम से बर्ताव करो और प्रेम से बोलो। २९ अंतर्बोध तथा महिलाएं अनुवादित, ९ ७-१९८८, लीरैन्स (फ्रांस) मैं ने आप लोगों से बात कर के एक सभा की व्यवस्था करने के लिए कहा, उसका कारण यह है, क्योंकि मैंने खोज किया है कि कलयुग में विशेषकर पश्चिमी देशों में, समस्याएं महिलाओं से आएगी। मुझे आस्ट्रेलिया में बहुत बड़ी समस्या हुई। आप लोगों ने इसके बारें में सुना होगा| क्या आप लोगों ने सुना हैं? यह बहुत गंभीर समस्या है। उसने (उस पत्नी ने) अपना अहंकार स्पष्ट रूप से दिखा दिया। उसने कहा, "मैं माँ की बात नहीं मानूँगी। मैं जानती हूँ कि मैं भूतग्रस्त हूँ और इसके बारें में अब कुछ नहीं कर सकती और मैं गायब हो जाना चाहती हूँ। अपने माता-पिता के साथ रहँगी व अपने बच्चों को भी वहाँ रखूँगी। जो कुछ करना हो करिये। अगर आप बच्चें लेते हैं तो मैं आपसे लड़ाई करुंगी।" उसके कारण ही उसके बच्चों को 'मेनिनजाइटिस' बिमारी हैं। वे मरने के कगार पर थें। जब मैं वहाँ थी तो उन्हें बचा लिया। लेकिन जब किसी नकारात्मक महिला में अहंकार प्रवेश करता हैं तो 'कलयुग में विशेष कर कोई भी उसे नहीं बचा सकता । देखिए, मैं स्वयं एक महिला हूँ, इसलिए आप लोगों के नजदिकी संपर्क में आ सकती हूँ। कभी लोग सोचते हैं कि महिलाओं का माँ के साथ विशेष संबंध है। अभी नई औरत जो आई है वह एक दूसरी भयानक औरत है। मैं नहीं जानती कि वह क्या है? हम लोगों को कितना नुकसान कर सकती है? वह किसी को भी अपने से बात नहीं करने देगी। वह कहती है, "माँ के साथ मेरा विशेष सम्बन्ध है।" वह किसी भी लीडर का नहीं सुनेगी। कुछ भी नहीं और उसने भयंकर से भयंकर कार्य किये हैं । विशेषकर पश्चिमी देशों में यह ग्रसित और बेहदे विचार सहजयोगियों के दिमाग में भी गये हैं। एक अनुबंधन जो उनमें है वह है- 'महिलाओं की स्वतंत्रता'। पश्चिमी देशों में, घुस समस्याएं अब सहजयोग में आप पर कोई अधिकार नहीं जमा सकता है क्योंकि आप आत्मा हैं और आत्मा पर अधिकार नहीं जमाया जा सकता अगर आप सोचते हैं कि आप पर किसी का अधिकार है। तब आप अभी आत्मा नहीं हैं। अतः हमें समझना है कि हम सहजयोग में स्त्रिाँ हैं और हमें अपनी संतुलनात्मक शक्ति को पहचानना है। जैसा कि मैंने कई बार कहा है कि वे दोनो एक गाड़ी के दो पहिए महिलाओं हैं, एक दायाँ और बायाँ। बायाँ दाई तरफ और दायाँ बाई तरफ लगाया नहीं जा सकता। हम दूसरा लोग परमात्मा द्वारा इस तरह बनाए गये हैं। परन्तु आपको गर्व होना चाहिए कि आप महिला हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक स्त्री हूँ क्योंकि एक महिला बहुत सी चीजें कर सकती हैं, जो पुरूष नहीं कर सकते। औरत पृथ्वी माँ जैसी होती हैं और हम कह सकते हैं कि पुरुष सूर्य की तरह होते हैं। दोनों को मिलना होता है। सूर्य बहिष्कृत किया जा सकता है, पर पृथ्वी को नहीं किया जा सकता। सूर्य रात में नहीं होता फिर भी हम जीवित रहते हैं। पृथ्वी माँ की तरफ देखिये कि उसे कितना उत्पन्न करना होता है। कितना बर्दाश्त कर सकती है। देखिये, कितनी अधिक संवेदनशील वह है। वह हमारे लिए सुन्दर फूल, सुन्दर पेड़ और अन्य चीज़ें बिना शिकायत पैदा करती हैं। इसके अतिरिक्त, यद्यपि हम उसके खिलाफ बहुत से पाप करते रहते हैं, फिर भी वह हमें पालती है। परन्तु सूर्य पृथ्वी नहीं बनना चाहता और पृथ्वी भी सूर्य नहीं बनना चाहती है क्योंकि उन्हें पता है कि वे किसी खास कार्य के लिए स्थित किये गये हैं। सहजयोग की कुछ महिलाएं हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। परन्तु, प्रथम गुण जो होना चाहिए, वह है बर्दाश्त करने की शक्ति। और उनमें आध्यात्मिक प्यार और करुणा होनी चाहिए। मान लीजिए मेरी जगह ईसामसीह होते तो सहजयोग की हालत देखकर वह अपने आपको सूली पर चढ़ा लेते , खत्म से आएगी। ३० अस में कर लेते या अगर कृष्ण होते तो वह अपने हाथ सुदर्शन चक्र ले कर सबका सिर काट देते, बस, खत्म कर देते। अगर राम होते तो अपने बाण से आपको खत्म कर देतें। उन्होंने इस बात का महत्त्व नहीं दिया होता कि आपको धैर्य रखना है। आपको बर्दाश्त करना है और दूसरों की देखरेख करनी है अगर आपको कुछ परिणाम पैदा करना है तो। अतः सिर्फ महिलाएं ही फल (परिणाम) पैदा कर सकती हैं। आप ही ऐसे बच्चें पैदा कर सकती हैं जो अ ा त म ही साक्षात्कारी होंगे। परन्तु आप अगर ल ा ग अहं क ारित यात्रा पर जाएंगे, तब तो आप ना ही औरत हैं ना ही मर्द। आप बीच की कुछ होंगी। ना तो यहाँ की ना वहाँ की, ना किसी काम की नहीं। अतः महिलाओं को यह शोभा नहीं देता कि वे अहंकारी बनें। यह बेहतर शोभा देता है कि वह भावुक बनें; जैसे कभी दुःख आभास करें और कभी आँखों में आसूँ भी आए। आप जैसे देखते है कि मैं भी कभी कभी रो पड़ती हूँ। मैं आप लोगों को छोड़ रही हूँ (जा रही हूँ)। इसके लिए मुझे बहुत खेद है। मैं अपना हाथ निकालकर (आक्रमक ढंग से) नहीं कहती कि वहाँ बैठो, यह करो। मैं ऐसी बात नहीं करती। क्या मैं करती हूँ? मैं अपनी आवाज़ भी कभी तेज़ नहीं करती हूँ। वह सिर्फ आदमी ही कर सकते हैं । जो कुछ वे कर सकते हैं, उन्हें करने दें । जो कुछ आप कर सकती हैं, कर सकती हैं। एकमेव नारीत्व ही पराकाष्ठा है। आपको स्त्री होनें में निपुण होना चाहिए। खाना बनाने, बागवानी करने, लोगों की सेवा और प्यार करने से ही आप लोगों को बस में कर सकती हैं। आप देखिए, परवाह करके ही , आप लोग दूसरों को बस में करती है ना कि बेवकूफी की चीजों से जैसा कि आदमी लोग करते हैं। ३१ दसरों को बस में करने के लिए प्यार सबसे अच्छा साधन है, परन्तु प्यार का मतलब है त्याग, परन्तु कुछ समय के बाद आप त्याग नहीं आभास करेंगे। अगर देने का आनन्द महसूस करने लगते हैं। तब यह त्याग नहीं होता है और विशेषकर फ्रांस की औरतों के लिए यह बहत जरूरी है क्योंकि इसके पहले बहुत ही हावी रही हैं। अब आपको रचना करनी है एक नई परम्परा की, नये युग की, नये व्यक्तित्व की। वह व्यक्तित्व जो बच्चों का पालन -पोषण करे, सुरक्षा दे, अन्य हर चीज़ बच्चों को दे और अपने पति को संग्रहित तथा प्यार दें। औरतों में बहुतसे गुण दिये गये हैं, क्योंकि उनकी जीवन पद्धति पुरुषों से अधिक कठोर है। अतः मैं आप लोगों से अनुरोध करती हूँ कि आप लोग अच्छी सहजयोगिनी बनें। मैं कहती हूँ कि मैं भारतीय महिलाओं को इसका श्रेय दूँगी क्योंकि उन्होंने एक सुन्दर समाज की रचना की है। हमारे यहाँ एक महिला प्रधानमंत्री थीं। परन्तु हमारे यहाँ बहतसी औरतें महान सैनिक थीं, सेना की अगुआ थीं। परन्तु यह लड़ाई का समय था। हर समय नहीं, अन्यथा वे सिर्फ गृहिणियाँ थीं। ईश्वर ने आप लोगों को विशेष गुण दिये हैं। अगर आप उनको सुधारना चाहती हैं, उनको प्रकटित करना चाहती हैं, तब आपको जानना होगा कि आप महिला हैं, महिलाओं की तरह गौरवशाली होना है। और वह अच्छी तरह कार्यान्वित होता है। मान लो आप अहंकारी है, आप झगडालू है और गर्म मिज़ाज की हैं तब आपके बच्चे आपकी नकल करते हैं। वे पिता की परवाह नहीं 6 आपको रचना करनी है करते। वे माँ की परवाह करते हैं। इसलिए भारतीय समाज इतना अच्छा है। यह समाज अति उत्तम है। लेकिन भारतीय पुरुष निकम्मे हैं। उन्होंने हमारे अर्थशास्त्र को, हमारी राजनीति को अस्त-व्यस्त बना रखा है। लेकिन हो सकता है, आपके पुरुष बेहतर हैं। मैं वह नहीं जानती। मैं नि:सन्देह कहूँगी कि वे भारतीय पुरुषों से विनम्र लोग हैं। पुरुष लोग बहुत हावी हैं, बहुत हावी। लेकिन हम उन पर हँसते हैं, आप जानते हो। देखिए, उन लोगों का स्वभाव एक बच्चे जैसा है, जो हावी होना चाहता है, पति भी उस तरह हावी होना चाहते हैं। और वह किसी दूसरें पर हावी हों तो पीटे जाएंगे। इसलिए वे हम पर एक नई | परम्परा हावी होना चाहते हैं, अन्यथा वे अपना गुस्सा कहाँ निकालें? की, अच्छा है कि वे अपना गुस्सा हम पर ही निकाल लेते हैं, अन्यथा बाहर तो वे पीटे जाएंगे। अगर आपको कोई आदमी बहत शांत और अच्छा दिखे तो जान लीजिए कि उसके पत्नी के बुरे दिन रहे होंगे। अतः आप इसे मज़ाक की तरह ले और इसे गंभीरता से न लें। औरतों को पता होना चाहिए कि आप में बर्दाश्त करने की बहत शक्ति होती है और आपको पता होता है कि किस तरह परिस्थिति को संभालना है और आप लोग बेहतर बुद्धिमान और संयमी हैं। इसलिए जीवन हंसी मजाक का हो जाता है। आप जानती हैं कि आदमी आदमी ही रहेंगे और औरतें औरतें ही रहेंगी। कुछ भी वस्त्र आप पहन नये युग की, नये लो। आपको वही होना है जो आप हैं। लेकिन अगर आपको पता है कि आप क्या हो तो आप अपना आनन्द ले सकेंगी। आदमी हमेशा घड़ियाँ देखते रहते हैं। औरतें हमेशा देर ही करती रहेंगी। एक सहजयोगी :- श्री माताजी, हवाई उड़ान को २५ मिनट देर हो गई है। श्री माताजी :- वह घड़ी देख रहा था। इसे मत रखो। मैं अपने पति से भी ऐसी चालबाजियाँ करती हूँ। इस हँसी-मजाक को देखो। कभी -कभी वह बहुत सावधान रहते हैं। यद्यपि मैं जा रही हूँ पर वह मेरे पीछे पड़े रहेंगे और कहते रहेंगे, "अब आप जल्दी जाओ , जल्दी जाओ।" मैंने कहा, "मैं जा रही हूँ, आप नहीं जा रहे हैं, फिर आप अपनी घड़ी क्यों देख रहे हैं?" और वह जब मेरे साथ जाते हैं। तब भी वही करते हैं। फिर, जहाज को २ घंटे देर होती है, जो वह नहीं जानते हैं। फिर हम वहाँ दो घंटे | व्यक्तित्व की। ? इन्तजार करते हैं। एक सहजयोगिनी :- ( अस्पष्ट ...... ) श्री माताजी :- हाँ, हाँ मैं मेरे पति के बारे में ही कह रही थी। कभी- कभी वह मेरे साथ सिर्फ मुझे छोड़ने आते हैं। 'देखिये', मैं बोलती हूँ कि 'ना आइए ।' वह मेरे साथ आएंगे और इस तरह मुझे परेशान करते रहेंगे, "आपको देर हो रही हैं, देर हो रही है" तब जहाज को ३ घंटे देर होगी। ऐसा ही होता है। ३२ हो यह ऐसा ही मज़ाक है। जीवन है कि जीवन को सुन्दर बनाइये । लड़़ने, झगड़ने और जिद् करने से कोई फायदा नहीं है। यह अच्छी चीज़़े नहीं हैं। अच्छा है अगर कोई पति कहता है कि ऐसा करिए । तो कहिए, "ठीक है मैं ऐसा करती हूँ।" आप अपने आप ऐसा करीए। आपको ऐसा करना पसन्द आएगा। इसमें कोई नुकसान नहीं है। गर लीडर कहता है तो आप वैसा करिए। परन्तु जब आप हर बात पर नहीं, नहीं करती जाएंगी तब वह आपसे तंग आ जाएंगे | तब इसमें कोई शोभा नहीं है। इसलिए, मुसिबतें क्यों पैदा करें। मान लीजिए, यहाँ कोई कुछ कागज़ रखता है, ठीक है। परन्तु मानिये मैं कुछ कागज़ रखती हूँ और वह इसे पसन्द नहीं करते हैं तो कहेंगे, 'कृपया यह कागज़ हटा लो।' एक बुद्धिमान महिला कहेगी, " ठीक है मैं हठा लेती हँ। मैं कब करूँ? कल पार्टी है, अतः आप नहीं हटा सकतीं। ठीक है। परसो हम लोग जा रहे हैं। अतः आप नहीं हटा सकते ? ठीक है मैं तीन दिन बाद करुँगी।" इन तीन दिनों में जो लोग पाटी के लिए आएंगे , निश्चित ही कहेंगे कि कितने सुन्दर कागज़ हैं। सभी महिलाएं कहेंगी क्योंकि यह महिलाओं की पसन्द का है। देखो , आदमी घर को ऑफिस बनाना चाहते हैं। जब वे आएंगी और कहेंगी कितने अच्छे कागज़ हैं! तब पति लोग कहेंगे कि नि:संदेह आदमी 'अच्छा होता अगर आप कागज़ को ऐसा रखते, यह अच्छा विचार है।' इस तरह से होता है। इस तरह ज्यादा आपको जानना है कि किस तरह सुव्यवस्थित करना है। यह औरत की सुन्दरता है जो जानती है कि बच्चों परिस्थिति को कैसे संभालना है। अगर वह परिस्थिति को संभालना नहीं जानती और पति पर, पर गरजती रहती है, तो यह दिखता है कि वह अयोग्य है। औरत की योग्यता इसमें है कि वह परिस्थिति को किस तरह सुव्यवस्थित करती है । परिवार में शांति लाती है, सभी को आराम तथा खुशी देती है। आप देखिए, हम कह सकते हैं कि वह कैसे लोगों को जोड़ती है। उनको आरामदायक कैसे बनाती है। उसका घर, उसका राज्य है। और आप देखते हैं कि उसमें कुछ औरतें निपुण हैं। और उसी प्रतिभावान है, | तरह से आप लोगों को अपनी बेटियों को भी बनाना है इस तरह से हमारी सहजयोगी महिलाओं को होना है। अब हमें '"जोन आफ आर्क'" नहीं बनना है। परन्तु उन्हें बहुत हिम्मतवाली बहादुर और करुणामयी व्यक्ति बनना है। आपको अपनी लीड़र की बातों पर ध्यान देना चाहिए। मुझे कभी-कभी बहुत शिकायतें मिली हैं। मैं प्रत्यक्ष रूप से आप से सम्बन्ध नहीं रख सकती। मैंने औरतों को नेतागिरी कोशिश करते देखा हैं। यह कार्यान्वित नहीं होता। मरिया खुद लीड़र थी। उसने छोड़ दिया। उसने कहा, "मैं लीड्र बनना नहीं चाहती, किसी दूसरे को दीजिए"। उसने छोड़ दिया। अब क्रिस्टिन लीडर है। पिछले दिन उसने फोन किया, "माँ, आप किसी और को दे दीजिए।" क्योंकि, देखिये उसने अनुभव किया कि इन आदमियों को संभालना, एक आदमी ही बेहतर कर सकता है। नहीं, आदमी ज्यादा प्रतिभावान है, नि:संदेह लेकिन औरतों के पास अंतर्बोध है । लेकिन आपको बहस नहीं करनी है। यह अपने आप कार्यान्वित होगा, उस तरह जैसा आपका अंतर्बोध है और उनको एक शिक्षा मिलेगी। अतः आप अपने से बहत जोर ना दें। यह अपने आप वैसा ही होगा, जैसा आप का अंतर्बोध है और जिसे आपने महसूस किया है कि कैसे होगा, और आपको आश्चर्य होगा कि कैसे हुआ। ठीक है। कोई दूसरा प्रश्न। लेकिन महिलाओं ना3 कृपया १) के पास अंतर्बोध हैं। १ सहजयोगी :- ( अस्पष्ट) श्री माताजी :- यह क्या है? उससे कोई पूछे। सहजयोगी :- वह जानना चाहती है कि प्रतिमा से आपके क्या माईने हैं? श्री माताजी :- प्रतिमा, प्रतिमा स्थूल है। उदाहरणार्थ, बुद्धि से कहेंगे और अन्य से, देखिये, ठीक है। लेकिन अंतर्बोध से आप कहेंगे कि हम देर नहीं होंगे। अतः आप अपना अंतर्बोध विकसित करें न कि बुद्धि। देखिए, मुसिबत है कि आप उनसे बुद्धि द्वारा प्रतियोगिता करना चाहती है। बहस के द्वारा आप कहेंगी अभी ३ मिनट शेष है। वे कहेंगे २ मिनट और आप कहेंगे ३ मिनट । वह इसी तरह ३३ পष्व होता है। लेकिन आपको कहना चाहिए कि चलो देखते हैं ३ मिनट, चलो देखते हैं। तब वह देख पाते हैं कि आपने जो कहा वह ठीक था। आपको एक बार कहना है, बस! इसके बाद वह कहता है, ठीक है, ठीक है। अगर आप कहती है तो हम इसी तरह से जाएंगे। वह आगे बढ़ेगा, कहेगा, 'मैं सोचता हूँ हम गलत जा रहे हैं। आपने जो कहा वह ठीक था। हमें वैसे ही जाना होगा।' सहजयोग में, इन सब आदमियों और औरतों को मैंने अंतर्बोध द्वारा ही संभाला है । लेकिन मैं कहँगी कि पश्चिमी देशों में औरतों का अंतर्बोध बहुत खराब है क्योंकि वे बहुत बहसवादी हैं। अतः देखिए, इस अंतर्बोध के लिए विशेष गुण विकसित करना चाहिए। ठीक है। अब अंतर देखिये, क्योंकि अब आपने गहनता प्राप्त की है। अति गहनता। उत्क्रांति में आप उच्चतम हो, नि:संदेह परन्तु आप उनसे प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश करती हैं और उन्हें बहुत अधिक दासत्व में खींच लाती हैं। उदाहरणार्थ यह सभ्यता - इसमें औरतें आदमियों को आकर्षित करने के लिए अपने शरीर की नुमाईश करना चाहती हैं। हर वक्त पुरुषों को आकर्षित करने की क्या जरूरत है? आप ऐसा क्यों करती हो? हर वक्त पुरुषो को आकर्षित करने के लिए अपने शरीर को क्यों प्रदर्शित करते हो? हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? हमें अपने शरीर का प्रदर्शन क्यों करना चाहिए? कवि रविन्द्रनाथ ने एक कहानी लिखी है, जहाँ उन्होंने लिखा है कि एक लेखक था, जो प्रेमकथा लिख रहा था। उसने अपनी पत्नी से कहा कि 'मान लो, शादी के पहले कहता कि तुम मेरे साथ चुपके से गायब हो चलो, तो तुम उसने कहा कि 'मैं तुरन्त पुलिस को सूचित कर देती।' रवीद्रनाथ एक लेखक की कहानी लिख रहे थे, जो इस तरह है। अतः आप लोगों को अपनी गरिमा का ध्यान देना चाहिए। आप देखिए, जिस तरह से औरतें अपने को नग्न रखती है, आदमियों के पीछे भागती है, तब फिर हम कैसे कह सकती हैं कि बलात्कार हुआ या और कुछ। मुझे लगता है हम लोग ऐसा ही चाहते हैं। हम इस तरह से हो गए है कि हम आदमियों के गन्दे चित्र चाहते हैं। लेकिन सहजयोगियों में ऐसी औरतें नहीं है । वे प्रतिष्ठित हैं । उनमें अपनापन है। उनमें संतुलन है। उनमें अपनी प्रतिष्ठा है क्योंकि वे योगिनी है। उनके मस्तिष्क में प्रकाश (प्रबोधिता) है, वे विशेष लोग हैं। अतः हमें अपने को थोड़ा निर्बंधित (deconditioning) रखना हैं, विशेषकर अहंकार को, जो पश्चिमी औरतों में बहुत विकसित है उसे औरतों को नीचे लाना चाहिए । एक दूसरी घटना बताऊंगी कि किस तरह मैंने किस तरह से एक सन्यासी के अहंकार को निकाला। एक बार मैं एक सन्यासी से मिलने एक पहाड़ी पर गई । वह एक उत्कृष्ट आत्मा था परन्तु पुरुष था। उसमें अहंकार था ऐसा मुझे लगता है। काफी बारिश होने लगी और रुक नहीं रही थी। और कहा जाता है कि इस सन्यासी में शक्ति थी कि वह बारिश को रोक सकता था। वह बहुत क्षुब्ध हो गया। और जब मैं गई, वह इधर उधर घूम रहा था। दुःखी था कि वह बारीश को नहीं रोक पाया। जब मैं वहाँ गई और बैठी तो काफी भीगी थी। वह वहाँ आया और निसंदेह मेरा पैर छुआ। परन्तु उसने कहा, " माँ, आपने मुझे बारिश को बस में करने क्यों नहीं दिया? क्या यह ऐसा है कि आप मेरे अहंकार को नियंत्रित करना चाहती थी?" मैंने कहा, "नहीं, ऐसा नहीं है| मैं किसी तरह से तुम्हारे अहंकार को नियंत्रित करना नहीं चाहती थी।'" "तब फिर आपने मुझे बारिश रोकने क्यों नहीं दिया। | 'सहजयोग में, इन सब आदमियों क्या करती?' और औरतों 3 को मैंने अंतर्बाध द्वारा ही संभाला उसने कहा। तब मैंने कहा "यह समस्या इस तरह से है कि तुम एक सन्यासी हो और मेरे लिए साड़ी लाए हो। और एक सन्यासी से मैं साड़ी नहीं ले सकती थी। लेकिन भीग जाने पर मैं ले सकती हूँ।" प्रेमपूर्वक ऐसा मैंने उससे कहा। उसे नहीं पता था कि क्या जबाब दे और उसने कहा, "आपको कैसे पता कि मैं साड़ी लाया हूँ।" तब मैंने कहा, "आप मुझे आदिशक्ति मानतो हो। ऐसा है ना!" उसने कहा, "हाँ, हाँ, मैं मानता हूँ। आपमें महान शक्तियाँ हैं।" है। मैंने कहा, "यह बात नहीं है। लेकिन जब मैं आ रही थी, मैंने सोचा कि यदि बारिश का पानी मेरे शरीर के ऊपर से बहता इसलिए मैंने ऐसा किया।" देखिए, यद्यपि वह पैरों से पूरा पक्षघातित थे फिर भी मेरे पैर पकड़ कर रोने तो सारी चीज़़े चैतन्यित हो जाती। तब आपका ये क्षेत्र हमारा हो जाता। ३४ लगे। उन्होंने कहा, "मेरी माँ, कृपया मुझे क्षमा करो।" इस तरह से यह बुद्धि और अंतर्बोध के माइने हैं। ठीक है, इस तरह से अपने अंतर्बोध को विकसित करो। हर चीज़ को हाँ, हाँ कहो, लेकिन आपको जो पता है वही होगा। लेकिन हम निश्चित करते हैं, नहीं, यह तो ऐसे ही होना चाहिए, यह तो ऐसे ही होना चाहिए और ऐसा ही करते रहते हो । तो देखिए, आप अपने को और दूसरों को भी दुःखी बना देंगे। अगर उसने प्याला ऐसे रखा है, तब आप कहेंगे, "नहीं, ऐसा होना चाहिए।" फिर पति आएंगे और वैसा रख देंगे। फिर आप वैसा रख देंगी । इस तरह चलता रहेगा, देखिए । लेकिन अगर आप वास्तव में महिला है तो कहेगी 'ठीक है। आप वैसा ही रखिये । ' फिर सारे गण आपकी सहायता में आ जाएंगे। | 'अगर आप लोग देवियाँ हैं देखिए वे आपकी देखरेख करेंगे। अगर आप लोग आधा आदमी बनाना चाहती हैं तो गण ऐसे अधूरे व्यक्तियों की क्यों चिंता करें ? मैंने इस प्रकार बहुत से प्रयोग किए हैं और मैंने लोगों को देखा है जैसे वे बहुत दिखाने की कोशिश करते हैं। तब वे गायब ही हो जाते हैं। देखिए, आप अपने इस तरह से ये मुख्य चीज़ है कि आप अपने अंतर्बोध को विकसित करें। उसके साथ जीवन पनपें । और जो आपका अंतर्बोध है वह सच साबित होगा क्योंकि अंतर्बोध गणों से आता है। अतः बाईं बाजू को इस तरह विकसित करना चाहिए कि गण खुश हो सरकें। और अगर आप अपने साथ गणों को विकसित करें तो आपको कोई कष्ट नहीं दे सकता। साथ गणों को और उनमें (आदमियों में) बहुत खामियाँ है, जो कि बहुत मजेदार है , जैसे वे चीज़ों को जाते हैं, हमेशा भूल जाते हैं। कोई चीज वहाँ छोड देंगे और उसके बारें में भूल जाएंगे । यह इन लोगों की विशेषता है। आप उन्हें चाभी दे दो (फिर भी) कहेंगे, "आपने चाभी नहीं दी।" ठीक है, मैंने चाभी नहीं दी, ठीक है, यही ठीक है, आप ये कहिए। मेरे पति तो बहुत उँचे है, इसलिए हर चीज़ को मैं ६ फीट की ऊँचाई से देखती हैँ। वहाँ हमें नजर आती है। अतः यह बहुत मजेदार है, ठीक है ना। अतः आपको शांत और संयमित होना चाहिए, एक साथ संयमित। तब आप देखेंगे कि आपको गण कैसे सहयोग देते हैं। इसके बाद तो आपके पति आपके पीछे-पीछे, पैसों के बारें में या अन्य मसलें में, चलेंगे, ठीक है। देखिए, हम लोगों को अपने मकान से काफी फायदा हुआ। मेरे पति ने कुछ पैसा मुझे दिया और कुछ अपने पास रखा। ईश्वर जाने कहाँ? और कहा कि उसमें उन्हें बहुत ब्याज मिलेगा। मैंने कहा, "ठीक है, ठीक है।" और मैंने इस घर से छोटा एक घर खरीदा। इस घर की किमत आज ९ गुना हो गई है। और उनकी बचत अब हमारी एक चौथाई भी नहीं है। भूल विकसित करें तो आपको अतः अब वे कहते है - क्या मैं एक घर खरीद लूँ। अगर आप कहें तो मैं एक घर खरीद लूँ। मैंने कहा - "अभी नहीं , क्योंकि अभी तो कीमतें बहुत अधिक हैं' उन्होंने कहा कोई कष्ट आप अर्थशास्त्र कैसे जानती हो?" "सिर्फ अंतर्बोध से", मैंने कहा। वह अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ हैं, और गोल्ड मेडलिस्ट हैं। सोचिए| नहीं दे वे लोग (पुरुष) बुद्धिमान हैं, परन्तु साधारण ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान की कमी है। देखिए, उनके एक ही तरह के पहनावा होता है और उसी को हमेशा पहनते हैं। आप लोग कितनी बार (कपडे) बदलते हों, उन्हें समस्या नहीं हैं। वे स्थूल लोग हैं। व्यवहारिक ज्ञान उनमें नहीं है। इसलिए आप लोग उनके सकता। पूरक हैं। वे लोग नियम, कानून आदि में बेहतर हैं। वहाँ पर आप लोगों को उनकी बात माननी चाहिए। और वे कहते हैं ऐसा करो, वैसा करो, तो आपको मानना चाहिए क्योंकि उनको वह ज्ञान है। वे लोग उस ज्ञान के ज्ञाता हैं और आप लोग उनसे बहस न करें। बहस से आपको भी प्राप्त होने वाला नहीं है। ठीक है! यह एक प्रश्न का उत्तर है। और दूसरा प्रश्न क्या है? चलो चलें, चलो चलें। ठीक है। अब हर कोई खुश है। हमें गणों को अपने तरफ करना है, ठीक है। कुछ ईश्वर आपको आशीर्वाद दें। ३५ न] ० रा का छ स) आज संक्रांति है..... आपस में प्रेम बढ़ाने के लिए तिल और गुड़ देतें है। १७ जनवरी २००८, पुणे रम ---------------------- 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी क जनवरी - फरवरी २००९ ्रि २० हिन्दी 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-1.txt ॥ ०কारত म - प्रकाशक * निर्मल ट्राँसफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८ फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२ ४४४ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-2.txt अनुक्रमणिका १. परमात्मा सबसे शक्तिशाली २. जलेबी पुडिंग 3. क्रिसमस पूजा ४. ललिता पंचमी पूजा ५. संक्रांति पूजा ६. अंतर्बोध तथा महिलाएं अब मुझसे एक जगह से दूसरे ह जगह का सफर नहीं किया जा रहा है और आपको मेरा कार्य करना होगा, ही वो यह कि; लोगों को आत्म-साक्षात्कार -देना-।- गुरु पूजा - २० जुलाई २००८ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-3.txt परमात्मा सबसे शक्तिशाली हैं 'अति विचार करना और अति प्लानिंग करना कोई बड़ी अच्छी चीज़ नहीं, शरीर की दृष्टि से और समाज की ट से भी ....? दृष् ४ मार्च १९७९ देहरादून ४ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-4.txt आ. ज मैंने आपसे सबेरे बताया था कि कुण्डलिनी के सबसे पहले चक्र पे श्री गणेश जी बैठते हैं, श्री गणेश का स्थान है और श्री गणेश ये पवित्रता के द्योतक हैं । पवित्रता स्वयं साक्षात ही है। वो तो पहला चक्र हुआ। और ये चक्र जो है कुण्डलिनी से नीचे है वो कुण्डलिनी की रक्षा ही नहीं करता है, लेकिन वो लोग जो कुण्डलिनी में जाते हैं उनसे पूरी तरह से सतर्क रहते हैं। इस रास्ते से कोई भी कुण्डलिनी को नहीं छू सकता है। आज सबेरे मैंने आपसे बताया था कि इस रास्ते से जो लोग कोशिश करते हैं वो बड़ा ही महान पाप करते हैं। हालांकि उससे थोड़ा बहुत रुपया -पैसा कमा सकते हैं । लेकिन अपने लिए जो पूँजी इकट्ठी करते हैं, वो सारी ही एक दिन बहुत कलेशकारी हो जाती है जो दूसरा चक्र है, जिसे मैंने स्वाधिष्ठान चक्र आपसे बताया था । इससे हम विचार करते हैं क्योंकि जब हम बुद्धि से विचार करते हैं, जब हम अपने दिमाग से विचार करते हैं, उस दिमाग की जो मेध है इसे फैट ग्लैड्यूस कहते हैं, जो चर्बी है, वो चर्बी पेट की चर्बी से बनती है। पेट की चर्बी को ये चक्र सर की चर्बी बनाता है इसलिए विचार करते १ () वक्त, इस चक्र पर बहुत जोर पड़ जाता है। और जब विचार करने की आपको आदत लग जाती है, जैसे की आजकल के आधुनिक लोगों को विचार करने की आदत एक बीमारी है। तब तो ये काम इतना ज्यादा इसे करना पड़ता है कि इसके कारण जो बचे हुए बाकी के काम हैं, वो सब बिगड़ने लग जाते हैं। जैसा मैंने कहा था कि डायबटीस इसी कारण हो जाता है क्योंकि पैंक्रियाज भी इसी से संचालित होता है। और क्योंकि ये चक्र दूसरी चीज़ में व्यस्त हो जाता है, जो दूसरी कार्य की उसकी जगह है, वो कमजोर हो जाती है। उसमें से एक पैंक्रियाज भी है, उसमें से स्प्लीन भी है, लीवर का उपरी हिस्सा भी है, किडनी भी है। इसलिए अति विचार करना और अति प्लानिंग करना कोई बड़ी अच्छी चीज़ नहीं शरीर के दृष्टि से और समाज की दृष्टि से भी कोई बहुत अच्छी चीज़ज़ नहीं है। क्योंकि अधिक विचार तब करता है जब वो परमात्मा को नहीं मानता। एक हद पर जाने | (जब आप परमात्मा के मनुष्य पर परमात्मा पर ही छोड़ देना ही चाहिए । साम्राज्य में देवी महात्म्य में लिखा है, 'संकल्प विकल्प करें।' जैसे भाईसाहब हैं, आप कहीं कार्य से जा रहे थे। आपने प्लानिंग कर दिया, रास्ते में एक्सिडेंट हो गया। आपके पूरा आ जाते हैं हाथ में चोट आ गयी तो आप जा नहीं पाए। काम होने का था वो हो गया। जो होना था बन गया। बहुत ज्यादा आपने प्लानिंग भी किया समझ लीजिए और आप टाइम पर नहीं पहुँच पाए तो काम नहीं होता है। इसलिए संकल्प नहीं करना चाहिए किसी चीज़ का कि हम ये करके ही दिखाएंगे या होना है, उसमें विकल्प आ जाता है। जब आप परमात्मा के तो परमात्मा साम्राज्य में आ जाते हैं, तो उसके तरीके चलते हैं, आपको पूरा पता हो जाता है कि कहाँ चलना है, कहाँ जाना है, कैसे करना है क्योंकि उसका प्लानिंग चलता है ना। अगर भाई आपकी साहब हमारे पार हो गए होते, समझ लीजिए, तो कभी भी उस रास्ते से नहीं जाते। उस वक्त वो जाते ही नहीं, ये होगा आप देखिएगा। आप अपने लिखते जाइएगा कि जबसे जो लोग पार हो गए हैं उनके ये अनुभव हैं कि एक्सिडेंट हो भी गये तो भी किसी को चोट नहीं लगी। पूरी तरह से बच गए और बहुत से लोग तो जाते ही नहीं हैं। कुछ देर हो जाती है, कहीं कुछ और हो जाता है और पहुँच नहीं पाते। ये पार होने का बड़ा भारी आशीर्वाद है देखभाल करते हैं? कि अब आप परमात्मा के साम्राज्य में आ गए हैं जैसे कि आप की गवरमेंट आपको देखती है, आपकी देखभाल करती है। जब आप परमात्मा के साम्राज्य में आ जाते हैं तो परमात्मा आपकी देखभाल करते हैं। उनकी गवर्मेंट आपकी देखभाल करती है। इस तरह 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-5.txt से जीवन की जो दुर्घटनाएँ हैं, जिसे हम दुर्घटना कहते हैं, वो avoid हो जाती हैं। असल में हर अच्छे आदमी के पीछे सटेनिक फोर्स लगे रहते हैं । जीवन में भी आप देखते हैं कि कोई शरीफ आदमी है उसके पीछे सटेनिक फोर्स लगे रहते हैं, उससे कोई बचाव करने का तरीका नहीं है। इसका एक ही तरीका है कि परमात्मा के आँचल में घुस जाओ । ये सब सटेनिक फोर्सेस हैं, जिसकी वजह से आप सब लोग तकलीफें उठा रहे हैं। ये आपके पीछे हाथ धो कर लगे हैं। आपको परेशान कर रहे हैं। इनसे बचने का तरीका आपके पास कोई भी नहीं क्योंकि वो बड़ी सूक्ष्म है । उसकी शक्तियाँ इतनी सूक्ष्म 6 आदमी होती हैं कि आप देख नहीं पाते कि कब झपाटा मार दे, कब तंग कर दें, कब परेशान कर दे। उसको आप समझ भी नहीं सकते लेकिन वो असर कर जाती है। जब असर कर जाती है तब आप खड़े होते हैं कि साहब हम को इसका पता ही नहीं था कि ऐसे हो जाएगा। तो उस से रक्षा करने के लिए परमात्मा का आँचल जब आप के उपर रहेगा तो कोई सवाल ही नहीं उठता कि आपको कोई तकलीफ हो । जिस वक्त मृत्यु होनी है वो तो होती ही है। यह बात और है लेकिन आदमी जब पार हो जाता है तब उसकी मृत्यु नाक, मुँह से नहीं होती, सहस्रार से होती है। उसके मुँह से, नाक से खून नहीं आता । अभी तक हमारे सहजयोग में आपको आश्चर्य होगा सिर्फ एक या दो आदमी मरें हैं । हजारों लोगों को हम जब पार हो जाता है तब जानते हैं । वो भी सब सत्तर साल, पचहत्तर साल की उम्र में । एक तो अठानवे साल में मरे हैं और एक तिहत्तर साल को। दीर्घायु भी आप हो जाते हैं। अकस्मात मृत्यु जो होती है, ये सब सटैनिक फोर्स से होती है क्योंकि आपको उनका अन्दाज नहीं होता। वो कभी भी आ कर आप पर अपना हाथ मारती है और इसलिए आप दुःखी होते हैं और सारी चीज़ों को गड़बड़ कर देते हैं। क्योंकि उनका अपना प्लानिंग रहता है। आपने कोई अच्छा ही काम करने का प्लानिंग किया होगा लेकिन वो बीच में हाथ मार ड्ालते हैं। लेकिन अगर आपने पहले से प्लानिंग किया हुआ होगा तो वो आपके मन को पढ़ सकते हैं। जो सटैनिक फोर्सेस होती हैं वो आपके मन को खूब अच्छे से पढ़ लेती हैं। यहाँ तक उनका है कि अगर आप मुझसे कुछ बातचीत करें तो कोई आदमी आपको मिलेगा और बता देगा, मुझे पता है कि माताजी से आपकी क्या बातचीत हुई है। वो आपके मन को पढ़ सकते हैं। फौरन बता देंगे की हाँ आपकी आपस में यह बातचीत हुई है क्योंकि आपने सारा प्लानिंग किया हुआ है आपके मन में। वो आपके मन को पढ़ लेते हैं। उनको पता है कि आप इस रस्ते से ऐसे-ऐसे जा रहे हैं। उनको आपका सारा भेद पता है, वो आप कह सकते हैं। इसलिए उनसे भेद रखना पड़ता है आपको ये पता नहीं होगा कि सटैनिक फोर्सेस संसार में कितनी विद्यमान हैं। उसकी मृत्यु नाक, | मुँह से | नहीं होती, ये जितने भी राक्षस लोग अपने को गुरू कहलवाते हैं, यह सब सटैनिक ही तो हैं| इनकी शक्तियाँ, हिप्नोसिस वरगैरेह जो चलती है यह सब सटैनिक, शैतान की शक्तियाँ और इसलिए ये आप पर असर करते रहते हैं। इन शक्तियों को पहचानने के लिए ही आपको सहजयोग में आना ही पड़ेगा । इससे आप समझ सकते हैं कि आपके अन्दर कौनसी शक्ति कहाँ से घुस रही है। किस तरह से आप पे आघात किए जा रही है । किस तरह से आपको वो सताने वाली है। अब डॉक्टर लोग हैं जैसे साइकोलाजिस्ट हैं। वो जानते ही नहीं कि हर पागल आदमी के अन्दर कोई न कोई भूत घुसा हुआ रहता है। वो उसको समझते नहीं है, हम उस पर विश्वास करते हैं बेचारे। और उसका असर उन पर आ जाता है। अब हमारे यहाँ आज ही वो चले गए, जो साइकिएट्रिस्ट आए हुए थे मिलने के लिए । उनको ये नहीं मालूम कि उनसे सहस्रार से होती है। है । अपना बचाव कैसे करना है। जैसे समझ लीजिए किसी को टी.बी. की बीमारी हो गयी तो हम लोग उससे बचाव करते हैं कि भाई, वो बीमारी अपने को लग जाएगी । लेकिन ये शैतानी शक्तियों से बचाव करने के लिए हमको कुछ मालूम ही नहीं है । हम तो देख भी नहीं पाते हैं कि कौन-सी शैतानी शक्ति है। हमारे जो बुजुर्ग थे वो इसको जानते थे लेकिन हम लेोग हो गए अंग्रेज जैसा कि मैंने कहा । तो हम लोग इस चीज़ को नहीं जानते कि शैतानी शक्तियाँ संसार में किस तरह से कार्यान्वित होती हैं और किस तरह से हमें परेशान करती हैं। लेकिन इसके बाद परमात्मा के आगे कोई भी चीज़ शक्तिशाली नहीं । सबसे | ६ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-6.txt शक्तिशाली चीज़ परमात्मा हैं। जब आप परमात्मा के बन्दे हो जाते हैं तो वो आपको देखता है और आपको सम्भालता है । वैसे भी वो आपको सम्भालते ही रहते हैं। इसलिए छोटी-मोटी चोट लग भी जाएगी। किसी शरीफ आदमी को छोटी-मोटी चोट लग जाएगी-जैसे आपको हो गया। छोटे बच्चों को आप जानते हैं-उपर से बच्चे गिर जाते हैं। कहते हैं उनको देवदूत उठा लेते हैं । खास कर, विशेष कर जो बच्चे प्रबुद्ध होते है, जैसे ये बच्ची है पैदाइशी realised soul है ऐसे बहुत से बच्चे हैं। ये बचपन से बीमार रहेंगे क्योंकि इनके उपर हमेशा शैतानी हमला होता है। हमारे अन्दर जो लेफ्ट साइड व राईट साइड की जो दो नाड़ियाँ हैं। मैंने आपको बताई थी सबेरे । उससे एक साइड में जैसे लेफ्ट साइड को जब आप जाते हैं, तो आप कलेक्टिव कान्शसनेस माने सामूहिक सुप्त चेतना और अगर आप राइट साइड में आ जाते हैं जो कलेक्टिव सुप्राकान्शस । लेफ्ट साइड में ऐसे लोग रहते हैं-मरे हुए, कलेक्टिव सबकान्शस में कि जो अभी तक तृप्त नहीं है। जो अभी तक तृप्त नहीं हुए और जिनकी आत्माएं अभी भटक रही हैं लेकिन जो बहुत ही गन्दे किस्म के, छोटे किस्म के चोर-उचक्के हैं ऐसे लोग हैं। दूसरे किस्म के जो लोग होते हैं जो बहुत महत्त्वकांक्षी होते हैं, एम्बिशस लोग होते हैं। जैसे हिटलर स्टाईल के, ये भी दूसरे साइड में अपने होते हैं, कलेक्टिव सामूहिकता में। आज एक साहब ने मुझसे कहा कि 'आप मुझे मंत्र दीजिए माताजी ।' जो लोग मंत्र देते हैं बड़े धोखे में आपको रखते हैं, आपको पता होना चाहिए । जैसे आपको किसी ने राम का मन्त्र दे दिया। आप तो कभी पूछेंगे नहीं कि ' लेफ्ट त्ट साइड में ऐसे लोग रहते हैं- २६ 'भाई, हमें राम का मंत्र तुमने क्यों दिया?' अब आप रटने लग गए राम, राम, राम, राम। अब राम जो हैं वो कोई आपके नौकर तो हैं नहीं। उनको आप बुला रहें, आप पुकार रहे हैं। आपका क्या अधिकार है? सोचने की बात है जब आपको अधिकार ही नहीं है तो आप बुला कैसे रहे हैं? मरे हुए, एक छोटी सी चीज़ है -हमारे प्राईम मिनिस्टर साहब जो अभी हैं। उनसे अगर आपको मिलना है, तो क्या आप सीधे उन से जा कर कह सकते हैं कि मोरारजी, हम से बात करिए। उनको मिलने के लिए प्रोटोकॉल होता है। सत्रह जगह आप जाईए-दौड़िए, इनसे मीलिए-उनसे मीलिए; तब मिल सकते हैं। और जो प्राइम मिनिस्टर के प्राइम मिनिस्टर के प्राइम मिनिस्टर हैं-वो इतने झट से मिल जाएंगे आपको कि आप बस पुकारने लग जाएं और वो आ कर हाजिर हो जाएं । हो सकता है राम नाम का कोई नौकर ही हो इधर या उधर फँसा हुआ जो आपके अन्दर घुस जाता है और आपको एकदम ऐसा लगता है कि वाह भाई मुझे तो बड़ी शांति मिल गयी क्योंकि उसने आपका काम ले लिया। आपके अन्दर आ गया। आपको लगा वाह भाई ! मेरा तो काम बड़े मजे से हो गया। ये क्या आपने जाना नहीं कि आपने अपने आप को नहीं खोजा है या कोई दूसरा ही अपने उपर लाद लिया है और ये जो दूसरा लादा हुआ आदमी है उसको आप अपने एक ही शरीर पर लादे चले जा रहे हैं। पाँच-छः साल बाद आप देखिए आपका शरीर यूँ थर- थर, लट - लटाऐगा और आदमी कमजोर हो जाएगा । इस शक्ति से भी परिचित होने की बड़ी जरूरत है। सहजयोग में आने के बाद जब आप में वाइब्रेशन्स आते हैं तब आप देख सकते हैं कि आसपास में शैतानी शक्तियाँ चलती हैं। और परमात्मा की शक्ति किस तरह से आपको हर चीज़ में कामयाब कराती हुई किस तरह आगे बढ़ती है। किस तरह से वो रास्ता ढूँढ करके और आपको सही रास्ते पर पहुँचाती है ये देखने लायक है। इसके अनेक अनुभव और आपको भी आएंगे इसलिए आप पार हो लीजिए और इस चीज़ को प्राप्त कीजिए । कलेक्टिव सबकान्शस | में कि जो | अभी तक लोगों को आए है तृप्त नहीं मैंने आपको नाभि चक्र के बारे में भी बताया था । इस चक्र में हमारी जो खोज है उसके बीज हैं। जब जानवर खाना खोजता है वो भी इसी वजह से। और इन्सान जब परमात्मा खोजता है, वो भी इसी वजह से । परमात्मा को खोजना भी मनुष्य के अन्दर में ही बना हुआ है। इसकी खोज उसके अन्दर है। वो चाहे माने या चाहे ना माने । जब तक वो इसको पूरा खोज नहीं लेगा उसको तृप्ति नहीं आने वाली। वो अपने को भूखा रख लेगा थोड़ी देर, पर उसको चैन नहीं आने वाला। उसको परमात्मा को खोज ही हैं। |१ ७ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-7.txt निकालना है। जब वो परमात्मा को खोजने निकलता है तब चारो तरफ से supply भी शुरू हो जाती है। आप जानते हैं किस तरह से लोग संसार में आकर परमात्मा के नाम पर कोई भी चीज़ बेचने के लिए तैयार हैं। और किस तरह से गलत-सलत झूठी चीज़ आपको बेचते हैं और उन के बारे में कुछ भी कहिए, उन लोगों के बारे में कितना कुछ अखबारों में छपता है, लिखा होता है । फिर भी लोग उन्ही के चरणों में चले जाते हैं। क्यों जाते हैं? क्योंकि ये एक तरह की मंत्रमुग्धता है, हिप्नोसिस, एक झूठ है। उस झूठ को मानने लगते हैं और उस झूठ से छूट ही नहीं सकते । बहुत मुश्किल हो जाता है उनको एक झूठ से मुक्ति पाना। इसके चारो ओर आप देख रहे हैं जो हरा रंग आदि बनाया हुआ है-यही भवसागर इस भवसागर को पार के है। मनुष्य अन्दर भी ये भवसागर है। इस भवसागर को पार करने के लिए कुण्डलिनी को कोई न कोई सोपान, कोई न कोई ब्रिज बनना चाहिए और उस ब्रिज का बनना सिर्फ सहजयोग में ही घटित होता है। अगर आप मेरी ओर हाथ किए हुए हैं या आप किसी भी रियलाइज्ड सोल की ओर आप ऐसे हाथ करेंगे तो जो आपके अन्दर में चैतन्य लहरी हैं जो जाती हैं । वो आपके हाथ से गुजर कर के नीचे में वहाँ पर एक सोपान बना देती है। और उस सोपान से ही कुण्डलिनी उपर में चढ़ के आ जाती है। लेकिन अगर इस में कुछ खराबी हो इस सोपान में या आपके नाभि चक्र पे या इसके चारों तरफ फैले हुए इस भवसागर में जहाँ पर गुरू का स्थान है। अपने यहाँ दस गुरू माने गए हैं, असल में। उसे Primordial Master कह सकते हैं। जिसके बारे में मैंने आज बताया था आपसे, लेकिन झूठे गुरू भी बहुत ज्यादा हैं और जिस आदमी ने किसी भी झूठ का पल्ला पकड़ा है उसकी कुण्डलिनी यहाँ से चढ़ती नहीं है, अटक जाती है। उस के दो चक्र पकड़ते हैं, एक नाभि और एक ये। उस पर यदि किसी से पूछा जाए कि आपके गुरू कौन हैं? तो उन्होंने बताया फलाने ठिकाने कोई ढोंगानद। जो भी नाम हो वो ऐसे नाम रखते हैं कि भगवान ही बचाए उनको । फलाने हमारे गुरू हैं। अच्छा, तो कहते हैं आपके गुरू तो ठीक नहीं है जिससे आपकी कुण्डलिनी रुकती है नाभि पर । अब आप हमारे पास पार होने के करने के लिए कुण्डलिनी | को कोई न कोई सोपान,... लिए आए हैं। आए हैं ना? आप अपना इलाज करवाने आए हैं, समझ लीजिए। तो कोई बदपरहेजी अगर आपने की होगी, आपने हमें बताना होगा या नहीं? आपको अगर डॉक्टर ने कहा कि आपने खट्टा खाया तो इसलिए आपका नुकसान हो गया है। तो क्या आप डॉक्टर से लड़ेंगे कि खट्टा खाना ही ठीक है ! यह तो पागलपन की निशानी है । लेकिन उस गुरू को लेकर के झगड़ा खड़ा कर देंगे। चलो, एक मिनट के लिए इस बात को मान लें कि हाँ भाई अगर हमारे गुरू ठीक होते, तो हम पार होते । माँ ने कहा है कि जो असल गुरू होगा तो हम तो उसके शिष्यों से पहचानते हैं। उसकी कुण्डलिनी से पहचानते हैं। हम तो किसी भी गुरू को नहीं जानते थे जैसे ही कोई हमारे सामने आता था तो हम समझ जाते थे कि ये कौनसे गुरू के चेले आए हुए हैं। जैसे महाराष्ट्र में एक गुरू थे वो बहुत ही अपने को समझते थे सन्यासी थे। सन्यासी लोगों से हम वैसे ही बड़े अभिभूत रहते हैं। वाह ! वाह! सन्यासी आदमी आ गए तो बस ! संन्यासियों से तो मैं इतना घबराती हूँ कि मैंने आपसे बताया कि सन्यांसियों से तो मैं बहुत बिगड़ती हूँ। कोई सन्यासी अपने सामने आ गया तो लोग सोचते हैं 'वाह भाई ! इससे बढ़कर कोई नहीं। वो सन्यासी का जीवन कैसा है ? उसका खान-पान कैसा है ? वह किस तरह से लोगों को खसोटता है, नोचता है यह कोई नहीं देखता है । उसने सन्यासी के वस्त्र पहन लिये बहुत बड़़ा आदमी हो गया। उनकी कुण्डलिनी में एक विशेषता होती है कि कुण्डलिनी एकदम उपर चढ़ कर धड़ से नीचे गिर जाती है। उसको बाँधना पड़ता है। सब के एक एक तरीके हैं। इससे आप पहचान सकते हैं कि इनके गुरू कौन हैं। इतने झूठे गुरू संसार में आए हुए हैं कि आपको अंदाज नहीं हैं कि कितने गुरू आए हैं। असल गुरू भी बहुत सारे हैं। आज एक साहब ने पूछा कि 'कोई असल गुरू भी हैं?' तो मैंने कहा 'हाँ, हैं। अब अमरनाथ में एक नागनाथ बाबा हैं, वो कभी-कभी आते हैं । मेरे लिए आते हैं हमेशा, मुझे मिलने । महाराष्ट्र में हैं बनना चाहिए और उस ब्रिज का बनना सिर्फ सहजयाग में ही घटित होता है। ८ । চি 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-8.txt गगनगढ़ महाराज। दक्षिण में एक ब्रह्मचारी करके है । वे रहते हैं कालिकोट । वे ब्रह्मचारी हैं। रंगुन में एक हैं। ऐसे हैं, काफी सारे लोग हैं। लेकिन वे लोग समाज में नहीं, शहर से बाहर, दूर, जंगलों में । गगनगढ़ महाराज सब से बताते है जब माँ ही आ गयी तो तुम क्यों मेरे पास आते हो। जब हम कोल्हापुर गए तो कहें कि हम जाएं, उपर देख आएं इनको। हमारे शिष्य कहने लगे कि 'माँ, आप तो सब गुरूओं से, इन सब से बहुत वाइब्रेशन्स देखो तो।' वो सात मील उपर चढ़ना था । हमने कहा कि 'हम तो चढ़ मिलने ।' तब उन्होंने ऐसे हाथ किया तो उनके सब के हाथों से ठण्डा-ठण्डा आने लगा तो कहने लगे 'चलिए ।' जब उपर गए तो देखा कि वे बैठे हुए थे मस्ती में अपने और बहुत नाराज । कहने लगे बरसात हो रही थी और सब भीग गये आप। अब देखिए इन लोगों ने कैसा प्रभुत्व चीज़ों पर कर लिया परेशान हैं। उनसे क्यों मिलना चाहती हैं ?' हमने कहा 'बेटे, जरा के जाएंगे, उन से ८मैं आपकी माँ, मुझे है। बरसात पर, सूर्य पर यह सब काम इन्होंने किया है। लेकिन ये रियलायजेशन बहुत कम देते हैं। उन्होंने एक आदमी को रियलायजेशन दिया। मैंने कहा कि 'भाई, आपने रियलायजेशन क्यों नहीं दिया और लोगों को?' तो कहने लगे 'एक को दिया और कान पकड़े। पच्चीस साल इस पर मेहनत की, हर एक चक्रों पर ।' बात ये है कि उनको टाइम बहुत लगता है। लेकिन मेरे को तो लगता नहीं न टाइम, मैं तो इसमें माहिर हूँ । लेकिन इनको बहुत टाइम लगता है बिचारों को। कहने लगे,'मुझको ही हजारों वर्ष लगे वाइब्रेशन्स पाने में।' कहने लगे 'इतनी मेहनत करी। इनका नाम अण्णा महाराज। आप माताजी, कभी देखना आपको पता होगा कि मुझे उनका मुँह भी नहीं देखना।' कहने लगे कि 'वो कामिनी और कांचन के पीछे पड़ा हुआ है। रियलायझेशन के बाद सारी शुद्धी के बाद।' | | आपको आगाह करना है। उसके बाद एक दिन ऐसा इत्तफाक हुआ कि उनसे (अण्णा महाराज) फोन से कुछ मुलाकात हो गयी हमारी। किसी के यहाँ आए हुए थे । बत्तमिजी शुरू की उन्होंने । औरतें-वौरतें भी लेकर बैठे हुए थे । हमें कहने लगे कि 'हमारे महाराज जो हैं वो बम्बई आते हैं आपसे मिलने के लिए | उनकी १०८ वर्ष की उम्र है । इनकी जिनकी बता रहे हैं वो कभी छोड़ते नहीं थे अपना तकिया। इनको क्या जरूरत थी आने की?' मतलब उनके पेट पर पैर आता होगा उनके आने से। वो बहुत नाराज थे अपने गुरू से। तो मैंने कहा कि 'अच्छा! अब तो हम जा रहे हैं ।' ऐसा करिए आप कि हम आपको कुमकुम लगाते हैं। हमने उनकी आज्ञा से कुमकुम लगाया । अब आप हमें लगा दीजिए । जैसे ही उन्होंने लगाया तो उँगली उनकी यहाँ चिपक गयी। धक-धक शुरू हुआ और लगे चिल्लाने। कहने लगे 'माँ माफ कर दो। माँ माफ कर दो।' मैंने कहा कि 'फिर से अपने गुरू के लिए ऐसा कहा तो देख लेना । मुझसे बुरा | हरेक गली-कुचे नहीं कोई। अपना आज्ञा तो पूरा पकड़ा हुआ था और क्या बाते करते हो बकवास । शर्म नहीं आती यहाँ औरतों के साथ बैठे हुए हो। इतनी तुम्हारे ऊपर उन्होंने पच्चीस साल मेहनत करी हुई है। चले जाओ यहाँ से ।' बाद में उन औरतों ने बताया उन लोगों से सब से सवा तोला सोना और सवा सौ रुपया सब ले लिया। उसके बाद मैंने कहा जब वो आए तब उनको सवा जूता मारना, कहना कि हमारी श्रद्धा इससे सवा सौ की है। लेकिन हमारे हाथ दुखेंगे तो सवा जूता तुमको मारेंगे। माने वो तो रियलाईजेशन के बाद भी इतने बत्तमीजी कर गए तब वो रियलाइज्ड ही नहीं हैं जिन्होंने शुरू से यही प्लान कर लिया कि किसको कैसा लूटें? किसको घसीटे? ये तो पक्के चोर बिलंदर हैं। बहुत से लोग जेल से छूटने के बाद भी गुरू बन जाते हैं। आप लोग हैं कहाँ। उससे नाराज होने की कोई बात नहीं। जो असलियत है उसे समझ लें। मैं आपकी माँ, मुझे आपको आगाह करना है हरेक गली-कुचे में एक-एक गुरू बैठा है। अगर आप उनका पता लगाए। वाकई में पुलिस लगा दें इनके पीछे में तब तो पता हो जायेगा कि आधे, ५०% लोग जेल से निकले हुए घूम रहें हैं। बम्बई वाले यहाँ आएंगे, यहाँ वाले बम्बई जाते हैं। उस से अच्छा और कौनसा तरीका होता है लोगों को ठगने का। जैसे रावण ने सीताजी तक को ठग लिया । जितनी भी बदसूरत चीज़ हो उसको ढकने के लिए बहुत खुबसूरत चीज़ उस पर लगा दीजिए वो ढ़क जाएगी। आप से भी बढ़कर विदेश के लोग हैं। बेचारे बड़े सीधे हैं कहते हैं कि वो भगवान हैं। मैंने कहा, "कहने को लगता क्या है? ये जबान है कह दिया।"उन्होंने कहा कि 'उन्होंने तो पेपर में छपवा भी में | | एक-एक गुरु | बैठा है। ९ প् क5 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-9.txt दिया है।' मैंने कहा, 'लगता क्या है उसके लिए ! पेपर में पैसा दे दिया, और छपवा दिया।' मैंने कहा 'वो कह रहे हैं इसका मतलब हो गया वो सत्य ही है क्योंकि ये लोग इस तरह के हैं कि वो सोचते हैं। कि हम लोग भी जो कुछ कहते हैं उसके भी कुछ मायने होते हैं।' यहाँ तो किसी को कुछ कहने से कुछ ' लेकिन ये लगता ही नहीं। ये जो गुरू का बना हुआ है, अपने अन्दर जिसे मैंने भवसागर बताया है, यह बहुत जरूरी चीज़ है। इसको समझ लेना चाहिए । अब इसलिए हम तो सब को खुले आम कहते हैं, हर एक के बारे में १९७० से हम खुले आम सब के बारे में कह रहे हैं नाम ले-ले कर सबके बारे में और बता रहे हैं कि ये क्या-क्या गड़बड़ करते हैं खुले आम। लेकिन किसी की आज तक हिम्मत नहीं हुई कि न हमारे उपर किसी ने केस की, न किसी ने पुलिस में दर्ज किया न कुछ। खुले आम सबके नाम ले करके हम बता रहें हैं कि वे किस कदर के बदमाश हैं। किसी की हिम्मत नहीं हुई। हालांकि सब लोग हमें आ आकर कहते हैं कि 'माँ तुम्हे नहीं मालूम ये तुम्हारा मर्डर कर देंगे।' मैं कहती हूँ 'करें तो | मैं देखेँ तो कौन करता है मेरा मर्डर?' ना किसी ने शिकायत की ना किसी ने एक अक्षर हमारे विरोध में कोई नहीं बोला क्योंकि इनको मालूम है कि इनकी सारी पोल-पट्टियाँ मुझे मालूम है। लेकिन इनके शिष्य जरूर ऐसे होते हैं जो मेरे से खिलाफ कर लेते है लेकिन वो लोग नहीं । वो लोग चुप्पी साधे बैठे हैं। सब एक से एक बिलन्दर है और सब आपको लूट रहे हैं, बेवकूफ बना रहे हैं। इसलिए सजग हो जाएं, सतर्क हो जाए इनके चक्कर में ना आएं और इसमे बुरा मानने की कोई बात नहीं, माँ है। माँ सब बात सही-सही बताएगी और आप से पूरी बात बताएगी, चाहे आप भला माने या बुरा। मेरे लिए तो आपकी कुण्डलिनी खराब कर देते हैं।... जो परमात्मा बड़ा अच्छा है, सब को अच्छा कहते फिरो, बस आप लोग नाराज ही नहीं होंगे। वो लोग तो किसी को बुरा-भला नहीं कहते। वो क्यों कहें उनको आप के जेब से मतलब है। आपको नचाने से मतलब है उनको । वो आपको किस को बुरा-भला कहेंगे । ईसामसीह ने कहा था शैतान के घर में रहने वाले लोग आपसी बुराई करके कहाँ जाएंगे? लेकिन कबीर ने आवाज उठाई थी, नानक ने आवाज उठाई थी, ईसा ने आवाज उठाई थी । इसलिए क्योंकि यह सब झूठ है। और मुझे इसमें भी हर्ज नहीं है स्मगलिंग करें, कुछ करे, पैसा कमाए कोई हर्ज नहीं । चलो भाई पैसा ही कमाया। लेकिन ये आपकी कुण्डलिनी खराब कर देते हैं। जो आपका अधिकार है, सहजयोग का, जो परमात्मा को पाने का आपका अधिकार है,उस पर हाथ मारते हैं इसलिए मैं उनके विरोध में हूँ। को पाने का आपका अधिकार अब जो इस के उपर का चक्र है, उसके बारे में, अभी तक तो मैंने बाकी सब चक्रों के बारे में है, उस पर बताया था, जिसे कि हम लोग हृदय चक्र कहते हैं। चक्र, हृदय पहले रहता है। हृदय में तो आत्मा का स्थान है। आत्मा जो है वो हमारे अन्दर स्थित है और सारे हमारे क्षेत्र को जानता है। उसे क्षेत्रज्ञ कहते हैं। वही साक्षी है वो हर एक चीज़ जानता है । हम क्या कर रहे हैं और क्या नहीं कर रहे हैं। कुण्डलिनी जागरण से सिर्फ आपकी जो चेतना है, इस वक्त जो चेतना है वो आत्मा में लीन हो जाती है। अभी तक हाथ मारते आत्मा आप से परे है। आत्मा से आप सम्बन्धित नहीं हैं। वो आपके अवेयरनेस में, चेतना में नहीं है। जब कुण्डलिनी जागृत हो जाती है तब आपकी चेतना में आत्मा आ जाती है और आत्मा क्योंकि सर्वव्यापी शक्ति है- आप भी सर्वव्यापी हो जाते हैं। इस के आगे और आप समझेंगे और धीरे-धीरे । अब ये जो हृदय चक्र है ये बीचोबीच में है, ये आपकी माँ का, देवी का, जगदम्बा का, जो कि पहाड़ों में बहुत प्रसिद्ध है-उनका यह स्थान है। इन देवी ने अनेक बार संसार में अवतरण लिए और ये भवसागर में जो लोग परमात्मा को खोज रहे थे और जिनको बहुत राक्षसों ने सताया था उनसे इन्होंने रक्षा का कार्य किया, ये रक्षा करती हैं। अगर किसी के रक्षा का स्थान खराब हो जाए जिसे of insecurity कहते हैं तो ये चक्र धक-धक करने लग जाता है। औरतों को जब इस तरह की चीज़ हो जाती है तो उन्हें ब्रेस्ट कैन्सर हो जाता है। अगर वो insecure feel करे तो उन्हें ब्रेस्ट का कैन्सर के हैं इसलिए मैं उनके विरोध sense में हूँ। १ हो जाता है। अस्थमा की बीमारी भी इसी चक्र के खराब होने से हो सकती है। ये सब इस चक्र | combinations में होती है जिसे हम विशुद्धि चक्र कहते हैं। अस्थमा की बीमारी भी ठीक हो सकती है १० প्ड পष्ण 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-10.txt दो मिनट में। हमने कश्मीर के जो गवर्नर सहाय साहब थे, उनकी पच्चीस साल की अस्थमा की बीमारी एक क्षण में ठीक कर दी। एक क्षण में। जब ये चक्र जागृत हो जाता है, जब आपके अन्दर जगदम्बा जागृत हो जाती है तो आप ही सुरक्षा बन जाती है। आप अपने को सुरक्षित महसूस करते हैं इसलिए यह चक्र बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। और इस चक्र को किस तरह से ठीक किया जाता है ये भी अगर आप हमारा पैम्फलेट्स पढ़ें, इंग्लिश की किताब में बहुत अच्छे से लिखा हुआ है । इस मंत्र जागरण से ये चक्र ठीक होगा। इसके उपर यह जो चक्र है ये मनुष्य के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। ये पीछे में इस जगह जिसे हम विशुद्धि चक्र कहते हैं। इस विशुद्धि चक्र से सोलह हजार नाड़ियाँ चलती हैं। यह श्री कृष्ण का चक्र है । इसमें श्री राधाकृष्ण बसते हैं। इसकी लेफ्ट साइड में श्री विष्णुमाया, आदिमाया जो कि उनकी बहन है, वो रहती है और इस राइट साइड में रुक्मिणी और कृष्ण का स्थान है। रामचन्द्र जी का स्थान सुषुम्ना आप जब के पर से हट कर इस साइड में, राइट साइड में है। हृदय चक्र से राइट साइड में है क्योंकि आपको मालूम है कि उन्होंने अपने को पूर्णत: मनुष्य बनाने के लिए अपने अवतार की दशा से हटा लिया था । वो अपने को मर्यादा पुरुषोत्तम कहते थे, हालांकि थे तो अवतार ही। नाभि चक्र में सारे ही उथान हुए जाग्रत हो हैं। जो दशावतार हुए हैं वो नाभि चक्र से शुरू है। फिर छठा अवतार रामचन्द्र जी का था वो यहाँ पर है। उसके बाद कृष्ण का अवतार है। कृष्ण से पहले परशुराम का अवतार हुआ। उनका भी होना जरूरी था। परशुराम का अवतार इसलिए हुआ था कि वो संसार में आ कर के अपने बल से लोगों का आने वाला कल ठीक करे, क्योंकि ढेडी खीर आदमी की बुद्धि सीधे उँगली बात ठीक नहीं होती। तो उन्होंने अपने जोर से और अपनी शक्ति से लोगों को पहले तैय्यार किया। और फिर जब वो आ गए तब उन्होंने श्री राम के बारे में बताया कि यही श्री राम हैं। इस प्रकार दोनो के दोनो साथ आए थे इसलिए बताने के लिए क्योंकि ये पुरुषोत्तम थे, क्योंकि ये मनुष्य के जैसे रहते थे। इसके बारे में बताने के लिए ही परशुराम का अत्यन्त जाज्वल जैसा जाते हैं, तो आप | विराट से अवतरण उनके साथ ही हुआ था। इसके बाद श्री कृष्ण का अवतार हमारे विशुद्धि चक्र पर हुआ है। यह विशुद्धि चक्र एक बड़ी महान चीज़ है। मनुष्य ने जब अपनी गर्दन जानवर से उपर उठा ली वो तब मानव हो गया तभी यह चक्र घटित हुआ है। श्री कृष्ण जो है ये विराट स्वरूप है। समझ लीजिए ये विराट है और इस विराट के अन्दर आप छोटी-छोटी पेशियाँ है। आप भी विराट के स्वरूप है। आप जब जाग्रत हो जाते हैं, तो आप विराट से सम्बन्धित हो जाते हैं। वही परमात्मा की शक्ति है जिसे में कह रही हूँ। वही जो परमात्मा का साम्राज्य है उसमें आप जाग्रत हो जाते हैं। सारी पेशियाँ इस तरह से जब जागृत हो जाती हैं तो पूरा विराट जागृत हो सकता है। ये विराट की शक्ति है। अब मोहम्मद साहब ने जो 'अल्लाह हो अकबर' का नारा लगाया था, वो इसका मंत्र है। आप को आश्चर्य होगा ये ऊँगलियाँ कान में ड्राल कर ये इसकी अंगुलियाँ है । देखिए कितने फायदे की बातें वे कर गए थे। ये उसकी ऊँगलियाँ है, यही विशुद्धि की ऊँगलियाँ है अगर ये ऊँगली पकड़ जाए समझ सम्बन्धित हो जाते हैं। जाएँ कि विशुद्धि चक्र पकड़ा है। अगर आप पूछेंगे भी तो पता चलेगा कि हाँ मेरा गला खराब है। इस ऊँगली को कान में ड्राल कर के जब आप सर उपर करते है और 'अल्लाह हो अकबर' कहते हैं। अकबर का मतलब विराट से होता है, तो एकदम विशुद्धि चक्र खुल जाता है। आपके देहरादून में विशुद्धि चक्र ज्यादा पकड़ा हुआ है। इसके अनेक कारण हो सकते हैं। उसको आप समझ लें जो भी आपके अन्दर हों । | इसका एक कारण यह हो सकता है कि आप जरूरत से ज्यादा सिगरेट पीते हों या तम्बाकू खाते हो। उससे विशुद्धि चक्र पकड़ता है। दूसरा कारण यह हो सकता है कि आप गलत ध्यान-धारणा कर के और कोई गलत मंत्र कहते हैं। इस से भी विशुद्धि चक्र पकड़ता है। तीसरी चीज़ है सदी-जुकाम। कभी आपको ठीक से ख्याल न रहें, कभी परहेज न रहे। जो चीज़े आप खाते हो, जिससे आपका गला | ११ चि পष् 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-11.txt से खराब हो, उससे भी आपका गला खराब होता है और विशुद्धि चक्र पकड़ता है। विशुद्धि चक्र इस भी पकड़ा जाता है जब आदमी अपने को बहुत छोटा समझता है। जब वो यह सोचता है कि वो विराट जब का कोई हिस्सा नहीं है। जब वो यह नहीं समझ पाता कि अगर वो बूँद भी है तो वह सागर का अंग है। तब भी विशुद्धि पकड़ती है, तब इसे न्यूनगण्ड कहते हैं, inferiority complex | पाँचवी चीज़ है जब इसको माँ बहन का खयाल नहीं रहता तब उसकी लेफ्ट विशुद्धि पकड़ती है। या जो आदमी बहुत क्रोध से बातें करता है या दुष्टता से व्यवहार करता है उस से भी विशुद्धि पकड़ जाती है, ऐसे अनेक कारण है उसमें से जो भी कारण हो उस से हमें मतलब नहीं । गले में ऐसे कण्ठमालाएं पहन लें। इसको माँ बहुन का कल एक ऐसे साहब आए थे। पता नहीं वो आज आये हैं या नहीं, जिन्होंने कोई माला पहनी हुई थी। उनके साथ ही एक साहब बैठे थे। तो हमने कहा कि 'आप माला निकालिए।' तो वो नाराज वाराज हो गए फिर बाद में उन्होंने निकाल भी दी। फिर आपसे हमने पूछा ये आप चूपचाप पहने बैठे थे | | हुए खयाल नहीं | अन्दर में, तो हमने उससे पूछा कि 'आपके पिताजी कहाँ हैं ?' तो कहने लगे कि वो तो हुए 'स्वर्गवास हो गए हैं।' तो मैंने कहा कि 'आप ने कुछ पहना है?' तो कहा 'हाँ। 'उनकी दी हुई कोई चीज़ है।' तो कहने लगे 'मान गये माताजी आप को हम।' उनके गुरू ने दी हुई चीज़ पहन कर अन्दर बैठे थे और वो ऊँगली पर आ गये। वो कैसे? बहुत सरल चीज़ है। राइट हैण्ड पे ये जो है ये हृदय २हता.... हुए चक्र राइट हैण्ड का है जो रामचन्द्रजी का है वो पिता का लक्षण है। इस में चमक मार रही थी। इस ऊँगली में चमक मार रही थी कि मैंने आपके पिता के बारे में पूछा। वो इतनी जोर की चमक थी कि उससे मैं समझ गयी थी कि कोई न कोई उनकी दी हुई चीज़ आपने पहनी है । ये आप भी समझ लेंगे । ये तो उन लड़कियों ने भी बता दिया था, मैंने तो बताया नहीं पर लड़कियों ने आप को बता दिया था | तो या जो आदमी बहुत क्रोध इस तरह से इस चक्र की पकड़ हो गयी और जैसे ही इन्होंने माला निकाल दी थी पार हो गए। इनके पास ये चीज़ आयी। छोटी-छोटी चीज़ों में लोग अटक जाते हैं । मैंने कहा भाई काशी का धंधा है छोड़ दो । नही छोड़े। हम आपको परम देने बैठे हैं, आप छोटी-छोटी चीज़ों को नहीं छोड़ रहे हैं। अरे, काशी के पंडित कैसे होते हैं? क्या आपको पता नहीं? आपको मुझे बताना होगा और उनका वो जो है धन्धा वो भी किस काम का है, वो भी बताना होगा आपको| एक पैसे की चीज़ एक रुपये में बेचते हैं। और इतने और इतने गरन्दे लोग हैं। सारे इस मंदिरों की वाइब्रेशन्स भी खराब कर दिए हैं। इस में मानने की कौन सी बात है। किसी बात का बुरा नहीं मानना चाहिए। सब आपके मंगल और से बातें | है करता दुष्ट या दुष्टता से बुरा कल्याण की ही बात कर रही हूँ। सब कुछ आपके मंगल व कल्याण के लिए कर रही हूँ। ऐसी छोटी- छोटी बात ले कर के अपने आपको फँसा ड़राला। इस विशुद्धि चक्र की बात में कह रही थी कि जो विराट है । व्यवहार उसके बाद यह उपर का चक्र है। ये चक्र, इसे बड़ा महत्त्वपूर्ण माना जाता है, आज्ञा चक्र है। आज्ञा चक्र बड़ा संकडा होता है। उसके अन्दर से कुण्डलिनी का निकलना बड़ा कठिन हो जाता है दोनो तरफ से जब इगो और सुपर इगो दोनो दबाते हैं तब यह चक्र और भी दब जाता है । जब आदमी किसी को क्षमा नहीं करता और रात-दिन इसी के बारे में सोचता रहता है कि उसने मुझे ये सताया, वो सताया, मुझे ये तकलीफ दी, वो तकलीफ दी, ऐसे आदमी का आज्ञा चक्र एकदम पकड़ जाता है। और जो लोग चष्मा लगाते है उनका भी आज्ञा चक्र कुछ कमजोर होता है। शारीरिक रूप से। इस आज्ञा चक्र के भी अनेक रूप हैं। वो पढ़ेंगे तो, मेरे पास जो किताब है उसे आप पढ़े तो आप देख सकते हैं कि काफी इन लोगों ने इस पर लिख दिया है, आज्ञा चक्र के बारे में । इस आज्ञा चक्र पर महाविष्णु का स्थान है। अब आप लोग महाविष्णु के बारे में जानते ही नहीं। लेकिन देवी भागवत जिसने भी पढ़ा होगा उस में पता चलेगा कि महाविष्णु बहत बड़ा अवतार माना जाता है। जो राधा जी का पुत्र था और संसार में आने वाला है ऐसा चौदह हजार वर्ष पहले कहा गया था । वही अपने ईसामसीह हैं। है करता उस से भी विशुद्धि पकड़ जाती है? ईसामसीह साक्षात महाविष्णु के अवतरण हैं। अब मैं जो बात कह रही हूँ वो सच है या झूठ है- १२ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-12.txt कैसे जानना इसे? इसका एक बड़ा आसान तरीका है। आपकी जब वाइब्रेशन्स आ जाए तो आप पूछिए कि क्या इसामसीह महाविष्णु के अवतरण हैं? वही आज्ञा चक्र पर है? फौरन वाइब्रेशन्स आने शुरू हो जाएगे। आज्ञा चक्र पर जो "Lord's Prayer" है वो इसका मंत्र है। लेकिन वो साक्षात 'ॐ' व 'प्रणव' से बने हैं। माने गणेश जी का अवतरण हैं वो। ॐ प्रणव हैं उन्होने साकार अपना स्वरूप लिया। और इस संसार का तारण के लिए वो आए क्योंकि वो ॐ व प्रणव हैं। उनकी मृत्यु भी जब हुई उसके बाद उनका पूर्णोत्थान हुआ। और कृष्ण उनके पिता हैं क्योंकि उन्होंने कहा था 'नैनं छिदन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक:' यह जो प्रणव है, जो ओम है, यही किसी भी चीज़ से कटता नहीं और किसी भी चीज़ से वहन नहीं होता। उसकी सिद्धता करने के लिए, महाविष्णु का अवतरण इस संसार में हुआ। कृष्ण उनके पिता थे इसलिए उनको क्रिस्त कहते हैं और यशोदा जी का नाम रखने के लिए ही उनको राधाजी ने येशु कहा। इनकी माँ साक्षात राधाजी थी । महालक्ष्मी का अवतरण है। यह सब अपने ही हैं लेकिन उनको जान लेना चाहिए, लेकिन प्रणव निराकार है, ॐ निराकार है। साकार- 'यह जो प्रणव है, जो ओम है, निराकार लेकर के बड़ा झगड़ा लोगों ने खड़ा किया हुआ है। इस मामले में थोड़ी बात जरूर करूँगी नहीं तो ये भी एक झगड़ा बना ही रहेगा परमानैन्ट । और खासकर इस देहरादून में तो मैं काफी देखती हूँ सनातन धर्म और आर्य धर्म आदि वगैरे में मैं-मैं, तू-तू होती रहती है । हालांकि मिला किसी को भी नहीं । सदियों से चले आ रहे हैं को नहीं। किसी की भी तृप्ति मैंने देखी नहीं। अब निराकार-साकार की बात थोड़ी सी समझा दें, तो यह झगड़े भी खत्म हो जाएंगे। जिस वक्त हमारी पिंगला नाड़ी बनायी गयी जैसे हम देख रहे हैं, हमारे यही किसी दोनो झगड़े । मिला किसी भी चीज़़ से में राइट साइड । उस वक्त ये पाँच तत्त्व जो थे, उनकी जागृत करने की बात थी। आप पाँच तत्त्व जानते है जिससे सारी सृष्टि बनायी। इनको जागृत करना था इसलिए यज्ञ वगैरेह हमारे वेदों में किये गये। स्मृतियाँ पढ़ी गयी हैं। यज्ञों में ये जो पाँच तत्त्व है इसको जागृत किया गया| जैसा मैंने सबेरे बताया था । कटता नहीं पानी को जागृत करना था ये पाँच तत्त्व जागृत करना जरूरी चीज़ है। अग्नि को जागृत करना था, क्योंकि इनकी जागृति के कारण ही मनुष्य इनको इस्तेमाल कर सकता था। उसके बाद ही खेती बाड़ी और से शुरू हुई। आज का साइन्स भी इसी वजह मनुष्य के समझ में आया। अगर हमारी पिंगला नाड़ी न जागृत होती तो हम कभी भी साइन्स न सोच पाते ना ही हम ये समझ पाते कि इन पाँच तत्त्वों को हम किस तरह से इस्तेमाल करें। बिजली कैसे बनाए और किस तरह से हम इस अग्नि का इस्तमाल करें। अग्नि तक का भी हमें पता न था, कि हम अग्नि भी न बना पाते । ये सब हम बना सके इसलिए राइट किसी भी साइड की पूजा होती है। इसलिए यज्ञ होते रहे और निराकार में ही यह जो पाँच शक्तियाँ हैं तो निराकार की ही होती रही उस जमाने में। लेकिन उस में जब आगे लोगों ने सोचा कि अब जागृत कर | पूजा दिया, अब आगे क्या? तो फिर मनन की चीज़ शुरू हुई। तब फिर सेंट्रल पाथ पर आ गए। जब सेंट्रल पाथ पर सुषुम्ना नाड़ी पर चढ़नी शुरू हुई तो उन्हें दिखाई देने लगा कि यह ये देवी देवता इस जगह बैठे हुए हैं और ये देवता हैं। ये जो पाँच तत्त्व बने हैं, इसी से इन चक्रों की बॉड़ीज भी बनी हैं । इनकी जो शरीर रचना है ये इन्हीं पाँच तत्त्वों से बनी है। तो जब इन्होंने इन तत्त्वों को जानना शुरू किया तो देखा कि इनके देवता हैं, तब इन्होंने मनन विधि में उन देवताओं को जानना शुरू किया एक के बाद, एक के चीज़ से वहन नहीं बाद एक। तब इन्होने कहना शुरू कर दिया कि नहीं यह साकार भी दूसरी चीज़ आ गयी है। निराकार से साकार पर लोग उतरने लग गये। जैसे-जैसे चेतना बढ़ती गयी वैसे वैसे लोग आने लग गए। उसके बाद जो साकार पर आ गए उनका जो हाल हो गया वो आप जानते ही हैं। इसकी पूजा कर, उसकी होता। ? IT पूजा कर। Ritualism आ गया। अंधश्रद्धा आ गयी। धर्मान्धता आ गयी, बड़ा बुरा हाल हो गया। तब से एक बड़ा भारी आन्दोलन हुआ, इतना ही नहीं मोहम्मद साहब जैसे लोग संसार में पैदा हुए। ख्रिस्त संसार में आए, इन्होंने सब ने कहा कि निराकार ही ठीक है, साकार को खत्म करो। हालांकि बड़ा गोपनीय है ये सब कुछ इतना, बाईबल में लिखा हुआ है जो कुछ पृथ्वी ने बनाया हुआ है और जो १३ প् 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-13.txt कुछ आकाश ने बनाया है उसका प्रतिरूप तो बनाइए, ये बड़ी मार्मिक चीज़ है। इसको एक ईसाई लोग समझे तो समझ लें कि मूर्ति पूजा क्या है? अब पृथ्वी ने कौन सी चीज़ बनाई है, बताइए आप ? उसकी प्रतिरूप कर के उसकी पूजा नहीं करनी चाहिए । पृथ्वी ने ये जितने भी स्वयंभू लिंग हैं ये बनाये हैं। अभी ईसाईयों से कहिए कि जितने स्वयंभू लिंग हैं ये पृथ्वी ने स्वयं बनाये हैं और इसके प्रतिरूप आप जो बनाए भी वो इसके पूजनीय होता ही नहीं क्योंकि ये imperfect है । इसका भी है, इस आकार का भी co-efficience होता है। उस आकार के कारण ही चैतन्य बहुता है। और हू-बह वैसा आकार बनाना असम्भव है और जो बनाता है वो भी realized soul होना चाहिए और वो उसे बेचना नहीं चाहिए उसको। इसलिए जितने भी मूर्तियों की हम पूजा करते हैं अधिकतर इस हिसाब से जीरो हैं। अब आप जा कर के देखें, रांजनगाँव का एक गणेश जी है बिलकुल गणेश के रूप हैं, बिलकुल गणेशजी हैं। और ये पृथ्वी के अन्दर से निकले हुए हैं। किसी ने उनको हाथ भी नहीं लगाया है। अभी अनादि काल से बात चली आ रही है। मैं खुद देखने गयी थी। इतने वाइब्रेशन्स उस गणपति में है जैसे कि कोई जाग्रत वहाँ समाधि लगाई हुई हो। इस तरह से उन में से जागृत व्हायब्रेशन्स आते हैं। इसलिए कहा गया था कि उसके प्रतिरूप मूर्ति न बनाएं । अब हमलोग हैं जिसको देखिए मूर्ति बनाने बैठ जाता है। हर एक चीज़ की मूर्ति बनाकर उसको पूजने लगते हैं । उसका co-efficience है या नहीं, उस में चैतन्य है या नहीं, वो जागृत है या नहीं, इसको कौन देखता है? इसलिए मूर्ति पूजा का खण्डन है । इस तरह सें उन दिनों में ईसामसीह के समय में हुआ क्योंकि मूर्ति का मतलब यह होता है कि पैरों पर पड़ना शुरू हो गया। अब काबा के अन्दर जो पत्थर है वो साक्षात शिवलिंग है। पृथ्वी से निकला हुआ शिवलिंग है वो। उसे मोहम्मद साहब जानते थे । और जितने भी शिवलिंग हैं, वो साक्षात हैं लेकिन जिसको देखिए वही उसकी मूर्ति बना लें, मिट्टी का बना लें, पत्थर का बना लें-ये बनाने की इज़ाज़त नहीं है । इसकी मूर्ति पूजा वर्जित है इसलिए मूर्ति पूजा बाधक है। अब मूर्ति पूजा के विरोध में जो लोग बोलते हैं वो वहाँ तक कह गये हैं कि मूर्ति पूजा जो कि मूर्ति झूठ मूठ बनायी गयी है, उसकी पूजा नहीं होनी चाहिए, वहाँ तक सही है। लेकिन साकार परमात्मा नहीं होते हैं यह कहना बहुत गलत बात है साकार co-efficience होता परमात्मा नहीं होते हैं यह कहना बहुत गलत इसका मतलब है आपने वन साइडेड़नेस ले ली है। उसकी वजह तीसरी थी कि जब साकार की पूजा लोग करने लग गए तो लोगों ने देखा कि इस कदर वो गलत हो गए। समझ लीजिए कि हम आपसे कहें कि शहद को खोज लाएं तो हम आपसे पहले फूलों का वर्णन करे कि फूल ऐसा होना चाहिए, वैसा फूल मिलेगा, उन में से शहद ले आइये । आप गए और देख के चले आये कि हाँ भाई फूल मिल बात है। करने लग गए। शहद आपको नही मिलेगा । बातचीत से शहद नहीं मिल गया। अब फूलों की पूजा सकता । सिर्फ फूलों की बातचीत होती रही कि फूल ऐसे होते हैं, फूलों में ये करना चाहिए, फूलों में वो करना चाहिए। शहद नहीं मिलता बातचीत से, तो उन्होंने कहा कि फिर भी शहद नहीं मिला, चलो, शहद की बात करते हैं। तो दूसरी बातचीत शुरू कर दी निराकार की । वो भी बातचीत तो बातचीत ही रह गयी दिमागी जमा खर्च । आप चाहे शहद की बात करो , चाहे फूल की बात करो , आपको शहद नहीं मिल सकता। जब तक आप स्वयं ही मधुकर न हो जाएं। जब तक आप स्वयं ही मधु को पाने के योग्य न हो जाएं तब तक आपको शहद नहीं मिल सकता। फूल भी जरूरी है और शहद भी जरूरी है और शहद को पाने के लिए भी आपका वो होना जरूरी है, जिसे मधुकर कहते हैं । अब ये झगड़ेबाजी की बात है जो हर चीज़ के लिए झगड़ा खड़ा कर देते हैं। सत्य एक है उस में कभी झगड़ा नहीं हो सकता । अब उस जमाने में या पिछले जमाने में जब हम अपने पाँच तत्त्वों को प्रबुद्ध कर रहे थे । उस चीज़ | को ले कर के आज झगड़ा खड़ा करने की कोई जरूरत नहीं। जो बीच की बात है क्योंकि यह भी बिलकुल सही है कि परमेश्वर अवतार के रूप में थे और वो अवतार लेते हैं । संसार में आ कर के और भी मनुष्य का उद्धार करते हैं। यह बिलकुल सनातन बात है और यह करना भी सनातन बात है और यज्ञ करना भी सनातन बात है। जिसके कारण आप ये पाँच एलिमेंट्स हैं, अपने अन्दर में उनकी शुद्धि १४ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-14.txt करे। क्योंकि जब आपके चक्र शुद्ध नहीं हुए हैं तो मेरा कहना भी व्यर्थ है । वो भी जरूरी चीज़ है और | और आत्मा का जानना भी जरूरी चीज़ है और अगर इसको समझ लें तो सारा झगड़ा खत्म हो जाए व्यर्थ की बकवास कर करके और हजारो किताबें लिख- लिख करके, जिस तरह से आप लोगों ने झगड़ा खड़ा कर दिया है, वो सब बेकार है। कल ही एक साहब आए थे वो कह रहे थे कि मैं गायत्री मन्त्र कहता हूँ। तो मैंने कहा क्यों कहते हैं? वो पार नहीं हो पा रहे थे । मैंने कहा कि आप गायत्री देवी के बारे में पूछिए तो कहने लगे कि हम मानते ही नहीं साकार को । अरे भाई, मानते नहीं तो किस आधार पर नहीं मानते हो क्योंकि आप आर्य जब समाजी फैमली में पैदा हुए, आप आर्य समाजी बन गए। मनुष्य की स्वतन्त्रता कहाँ गयी? क्योंकि आप हिन्दू परिवार में पैदा हुए आप हिन्दू बन गए। हो सकता था आप मुसलमान पैदा हो जाते। हो सकता था कि आप कोई अफ्रिका में पैदा हो सकते थे । जब आपका पुर्नजन्म है ही नहीं तब आप कहीं भी पैदा हुए होंगे। हो सकता है आप पूर्व जन्म में बड़े कट्टर मुसलमान होगे और आज आप बड़े कट्टर ब्राह्मण बने बैठे हैं, हो सकता है और होता ही है । एक अति से आदमी दूसरे अति में हमेशा उतरता है। एक कट्टरता को लेके चलता है तो दूसरे कट्टरता में उतरता है। सत्य कट्टर नहीं है, सत्य साक्षात है। | कुण्डलिनी इसका साक्षात करना चाहिए, सूझबूझ इस में है। सूज्ञता इसी में है कि वो जो सत्य है उसे हमें पाने का है उसी को हमें ले लेना है और असत्य हमें त्याग देना है। आज यही हो रहा है। आपके जो जवान बच्चे आज्ञा चक्र हैं वो परमात्मा पर विश्वास नहीं कर रहे हैं । उनको मेरी बात भी बेकार लगनी शुरू हो गयी है। सभी विश्व में ये बात है आप ही की बात नहीं, आप से कहीं अधिक और जगह ये हो रहा है । कहीं जगह ये हो गया है कि जहाँ लोगों ने परमात्मा पर विश्वास छोड़ दिया है। अल्जिरिया के एक हमारे शिष्य हैं। इंजिनियरहैं, हमारे पास आए थे, मुसलमान हैं वो लोग सब । वहाँ पर जितने भी पढ़े लिखे लड़के हैं, इंजिनियर, डॉक्टर, आर्किटेक्ट वगैरेह उनको परमात्मा में को छेदती है तब विश्वास नहीं। उनमें से ये महाशय भी थे। ये किसी तरह से हमारे पास आ गये और पार हो गये। एक विश्वास को धर्मान्धता से निकलकर के और अविश्वास की ओर जब मनुष्य झुकता है तो बीचोबीच सहजयोग उसे पकड़ता है। जब उन्हें साक्षात हो गया आज उन्होंने ५०० सहजयोगी बना लिये जो कि मुसलमान हैं। जो कि विष्णु की भी पूजा करते हैं और मोहम्मद को भी जानते हैं इसलिए नहीं कि मैंने कहा है उसके बगैर काम ही नहीं बनता । अगर आपके पेट में कैन्सर है अगर आप धर्मान्ध हैं तो आपको मोहम्मद साहब का नाम लेना पड़ेगा। आप नही लीजिएगा तो मैं ठीक नहीं कर सकती । अगर आप मुसलमान हैं और आपको कैन्सर हैं पेट का तो आपको दत्तात्रेय जी का नाम लेना पड़ेगा और विष्णु जी का नाम लेना पड़ेगा चाहे आप मुसलमान हो कुछ भी हो । किसी का कुछ ठेका नहीं होता है। ये भगवान मेरे, वो भगवान मेरे हैं। उनको समझाने बुझाने और बना लिया। अब तो धर्म का राजकारण ही बन गया तब तो भगवान ही बचाएं । जो लोग धर्म में राजकारण ला कर के बात करते हैं, उनसे पूछा है कि वे लाग धर्म के बारे में कुछ जानते भी हैं । धर्म का राजकारण नहीं बन सकता । आप निर्विचार हो जाते हैं। १ आपको मैंने विशुद्धि चक्र के बारे में बताया। अब आज्ञा चक्र के बारे में बताया। जब कुण्डलिनी आज्ञा चक्र को छेदती है तब आप निर्विचार हो जाते हैं। निर्विचारिता आप में बह जाती है । ये भी चक्र यहाँ बहुत पकड़ता है, पता नहीं क्यों आप क्षमाशील कम हैं। क्षमा करनी चाहिए। क्षमाशील होना बहुत जरूरी है। जब हम क्षमाशील नहीं तो परमात्मा भी हमें क्षमा नहीं करेगा। हमें बहुत तकलीफें होती हैं। दुनिया में माना है, लेकिन हमको क्षमा करना चाहिए इससे परमात्मा भी हमें क्षमा करें। नहीं तो परमात्मा क्यों हमारी गलतियाँ क्षमा करेगा? इससे भी आज्ञा चक्र बहुत पकड़ता है। क्षमाशीलता बहुत जरूरी है। इसलिए मैं बार-बार आपसे कहती हैँ आप सबको क्षमा कर दें। पूरी तरह से क्षमा कर दें। अंत में आपका चक्र जो हैं जिसे सहस्रार कहते हैं। वो हजार पेटल्स से बना हुआ है। डॉक्टर का भी झगडा ९९२ नाड़ियाँ है उनके हिसाब में और उनको हजार कहते हैं और यही लेकर बैठे रहे उनके | १५ पप्ण পष् 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-15.txt सामने झगड़ा करते हुए एक हजार पंखुडियाँ हैं। वो खुल जाती है, कमल के समान अनेक रंगों की पंखुडियाँ होती हैं और जब ये खुल जाती है तब वो इससे गुजर के ब्रह्मरंध्र को छेदती है। इसका नाम है ब्रह्मरंध्र। रंध्र माने छेद और ब्रह्म का, ब्रह्म माने सर्वव्यापी शक्ति जो कार्यान्वित होती है। परमात्मा की जो शक्ति है जो सर्वव्यापी है, जो आपके अन्दर , आपके अन्दर विहित और जैसे ही वो छेद देती है वो आपके अन्दर वो शक्ति स्थापित हो जाती है। आप भी बता सकते हैं कि दूसरों के अन्दर क्या प्रॉब्लम है। ये सामूहिकता आपके अन्दर जागृत होती है । इस में कोई लेक्चर देने की बात नहीं है। ये घटना आज घटित होने वाली है। आज मेरा यहाँ आखिरी दिन है, मैं चली जाऊँगी दिल्ली। मैंने कल भी कहा था कि यहाँ पर कुछ लोग मिलकर के एक स्थान निहित कर दें। किसी के भी घर, छोटी सी भी जगह हो एक सेंटर की तरह से हो जाए। जहाँ सब का सम्बन्ध जुट जाए। उसको बहुत बड़े जगह की जरूरत नहीं, एक एड्रेस ऐसा हो जहाँ सब लोग मिले तो देहरादून का सेंटर चल जाएगा और देहरादून में कार्य हो सकता है और हम दिल्ली से भी लोगों को भेज देंगे जो आकर के आप करेंगे। अनेक तरह की बीमारियाँ इस में ठीक हो जाती हैं | कैन्सर बीमारी हर एक तरह की बीमारी इस में ठीक हो जाती है। वो आपको भी सिखा देंगे। आप भी जागृत हो जाइए। वो आपकी भी प्रगति कर देंगे। लेकिन ऐसा एक्सपरिमेन्ट आज तक हमने किया नहीं कि ऐसी जगह पहुँचे जहाँ कोई पहले से सहजयोगी नहीं रहता। ये पहला ही एक्सपरिमेन्ट है इसका कारण और हमारी नातीन जो है यहाँ एक स्कूल में एडमिटीड थी। पिछली मर्तबा जब हम आए तो हमने सोचा बड़ी तपोभूमि है यहाँ ऐसा करने से इसमें कोई हर्ज नहीं और कुछ लोग जुट भी गए इसलिए बात बन गयी लेकिन यहाँ कोई ऐसा एड्रेस हो जहाँ पर सब लोग मिल सकते हैं। साधारण घर हो तो भी चल जाएगा। ऐसा एक एड्रस आप लोग ४३ंध माने छेद को काफी समझा कर के आपकी मदद कुछ और ब्रह्म | का, ब्रह्म सब मिल कर के जो पार हो जाए सो कर दे। इस तरह की एक चीज़ चला देनी चाहिए जो शहर के माने अन्दर हो बहुत दूर न हो। उसके बाद बाहर से लोग आते रहेंगे और पूरी तरह से आप उनसे गाईडन्स ले सकते हैं और आगे बढ़ा सकते हैं । और ये साहब बैठे हैं। इनका अनुभव देखिए । सबेरे से इन्हें सबेरे वाइब्रेशन्स नहीं आ रहे है और किसी तरह से रुकावट हो रही थी। और किसी ने उनसे कहा कि आप पूछिए कि माताजी कौन है ? और बस ये कहते ही साथ धड़-धड़ हाथ उनके वाइब्रेशन्स शुरू हो गये उनको बड़ी हँसी आयी अपनी बात पर भी। ऐसा ही चमत्कार होता है। एक चीज़ पर आदमी रूक जाता है। एक छोटी सी चिंगारी भी आँख में चली जाए, एक तिनका भी चला जाए, तो सारा आकाश आपके ऑँख से लुप्त हो जाता है । उसी तरह की छोटी-छोटी चीज़ों से हम उलझे रहते हैं जिन्हें हमें निकाल देना चाहिए । और निकाल दीजिए । आप लोग सभी हाथ ऐसे फैला कर बैठिए। इस तरह बैठे रहिए मैं सब को देखती हैूँ। सर्वव्यापी शक्ति जो कार्यान्वित कोई प्रश्न हो तो पूछिए, एकाध कोई प्रश्न हो तो ठीक है बेकार के प्रश्न पूछने में समय नहीं बर्बाद करना चाहिए। जो चीज़ आपके अन्दर होने की आपके अन्दर घटित होनी चाहिए ये आपकी सम्पदा है उसे पा लेना चाहिए। अब छोटी-छोटी बातों पर लोग उलझ जाते हैं। अब वो बता रही थी कि हम हीरे पहने हुए थे। तो उन्होंने पूछा कि 'माताजी ने हीरे की अंगूठी क्यों पहनी हुई है ?' तो भाई हमारे पास बहुत सारी अंगुठियाँ है और हमारे पति चाहते हैं कि हम सब अलंकार से लिप्त रहें । असल में हमारे पति.. का एक पैसा भी नहीं कमाया लोकिन आश्चर्य की बात है कि वो हीरे की अंगूठी नहीं वो झूठी अंगूठी, किसी ने हमको प्रेजेंट में दे दी तो हमने पहन ली। ये माया का चक्कर देखिए, वो भी झूठी अंगूठी है । हमारे पास बहुत सारी अंगूठी है। हीरे की भी हैं लेकिन वो हम झूठी अंगूठी पहने हुए थे । प्रेम के पीछे में और हम किसी से एक पैसा लेते नहीं है न आप हमें देते हैं। अब इस जन्म में हमारे पति हैं, होती है। .यहाँ हमारे पति को लोग जानते हैं वो बहुत ईमानदार आदमी हैं । उन्होंने बेईमानी हमारे पिता बहुत रईस आदमी थे। सब कुछ है तो हम पहन लेते थोड़ा बहुत । वैसे हम थोड़ा ही पहनते १६ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-16.txt हैं बहुत कम ही पहनते हैं । हमारे पति का शौक है हमारी पत्नी जो है सुहागिन है, पहने । इसलिए हम पहनते हैं, हम कोई सन्यासी आदमी थोड़े ही है । आप से ले कर हम कुछ नहीं पहनते । परम्परागत जो हमें पहनना है वो हम पहनते हैं। हम कोई सन्यासी नहीं हैं। हम कोई साधु बाबा नहीं हैं। अब हमने ये क्यों पहना | ाल वो क्यों पहना यह सब फालतू की बात करने का क्या फायदा था। यह सब बात की जो खबर रखते हैं वो लोग चोर होते हैं सब सर्क स चलाते हैं वो ढ ों ग स ब ब न क र , clown ब न क र अ प को सामने खड़े हो जाते हैं और आप स उ स ी अभिभूत हो जाते हैं। यहाँ ये समझना चाहिए कि आपको लेना है। हमें नहीं। हम देने बैठे हैं। आपको नहीं मिला तो आपको डिसक्रेडिट है। आपके लिए वो गलत रहेगा । आप के लिए वो नुकसानदेह रहेगा, हमारे लिए नहीं । आज सबेरे मैंने आपसे कहा कि मुझे आपसे कुछ नहीं लेना है। वोट भी नहीं लेना है, इलेक्शन भी नहीं लड़ना है । कुछ भी नहीं । मुझे शौहरत भी नहीं चाहिए आपसे। लेकिन आपके अन्दर जो आपका छिपा हुआ है वो पा लीजिए। ये माँ की तरह से मैं समझाती हैूँ। अगर आप अपने माँ को समझ सकते हैं तो यह भी समझ सकते हैं । आपको impress करने के लिए हम यहाँ नहीं आए हैं। और उससे हमें क्या मिलने वाला है, आप हमें क्या देने वाले हैं पहले ये बताइए । मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि सुबुद्ध की महिला ने इस तरह की बात करी। बहुत आश्चर्य की बात है । इसलिए इस शायद जन्म में हमारे पति इतने उँचे पद पर पहुँचे कि जिससे दुनिया न कहे । क्योंकि लोग इतने बेवकूफ होते हैं, कदर बेवकूफ होते हैं कि सत्य को कभी पहचानना ही नहीं चाहते हैं। | इस अनन्त आशीर्वाद! १७ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-17.txt जलेबी पुडिंग सामग्री :- २५० ग्राम जलेबी, ७५० मि.ली. दूध चीनी स्वादानुसार १/४ छोटा चम्मच इलायची पाऊडर १/४ छोटा चम्मच केसर कुछ बूँदे केवड़ा जेल ११/२ बड़ा चम्मच छिलका उतारे हुए चाँदी के वर्कवाले बादाम ११/२ बड़ा चम्मच कटे हुए बादाम विधि : १) जलेबी को छोटे टुकड़ों में काँटे। २) दूध उबालें, जलेबी के टुकड़े ड्रालें। धीमी आँच पर पकाएं और बीच - बीच में हिलायें । जब गाढ़ा होने लगे तो बाकी की सामग्री ड्ालें। आवश्यकतानुसार परोसे चीनी ड्ालें। पाँच मिनट और धीमी आँच पर हिलाते हुए पकायें। आँच से उतार लें। गर्म या ठंडा अधिकतर इस व्यंजन को पहले दिन की बची हुई जलेबियों से बनाते हैं। (श्री माताजी द्वारा लिखित 'Cooking with Love' से लिया गया है।) १८ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-18.txt ७ ত) ज क्रिसमस पूजा स शु २५ दिसम्बर २००८ न ठा 1999 या র करिा क्र. समस के अवसर पर ३ दिन का कार्यक्रम भुकूम, पुणे के निर्मल नगरी में आयोजित किया गया था। इन तीन दिनों का कार्यक्रम कुछ इस तरह से था :- २४दिसम्बर २००८ - ये कार्यक्रम का पहला दिन था। इस दिन के कार्यक्रम का आरम्भ हवन से किया गया। यह हवन २४ दिसम्बर की सुबह १०.०० बजे प्रारंभ हुआ। श्री माताजी के १०८ नामों को लेते हुए इस हवन को किया गया। हवन को चैतन्यपूर्ण सम्पन्न किया गया। शाम का कार्यक्रम सहज शादियों के जोड़ियों के नामों की घोषणा से आरम्भ किया गया| फिर हुई शुरुआत संगीत सरिता और सांस्कृतिक कार्यक्रमों की। इन कार्यक्रमों ने तो वहाँ विराजे योगियों को तो चैतन्य की बारिश में डूबो ही दिया था। संगीत और सांस्कृतिक कार्यक्रम देर रात तक चलते रहे। २५ दिसम्बर २००८ - यह कार्यक्रम का दूसरा दिन था। दिन की शुरुआत सामूहिक ध्यान से हुई। फिर के ग्यारह बजे अरुण आपटेजी का संगीत जिस से सभी पूजा के लिए तैयार हो गये। शाम का कार्यक्रम ६.३० बजे शुरु हुआ तीन महामंत्रों से और फिर कुछ देर तक सामूहिक ध्यान हुआ। इसके बाद कुछ सुन्दर भजन गाए गये। इतने सुन्दर भजनों के बीच हर योगी रास्ता तक रहा था श्री माताजी के आने का। इस बीच वहाँ लगाये गये बड़े परदे पर 'श्री माताजी' का १९८१ का क्रिसमस पूजा का सन्देश दिखाया गया। इसे देखते हुए योगियों ने लगातार चैतन्य लहरियों का अनुभव भी किया। आखिर ७.३० बजे वो क्षण आ ही गया था जिसका हमें बड़ी बेसब्री से था इंतजार। ढोल- नगाडे की गुँज और पटाखों के धमाकों के साथ आगमन हआ हमारी 'श्री माताजी निर्मलादेवी' का। श्री माताजी की एक झलक पाते ही सभी योगियों ने चैन की साँस ली और फिर श्री माताजी के स्वागत में 'स्वागत-आगत् स्वागतम्...' गीत गाया। इसके बाद पूजा की शुरूआत हुई। पूजा का आनन्द उठाते हुए पूरी तरह से मगन वहाँ उपस्थित योगिजन स्वर्ग का अनुभव कर रहे थे। आरती ९.०० बजे हुई और पूजा के बाद क्रिसमस के दो बड़े केक श्री माताजी के सामने रखे गये। एक केक श्री माताजी ने काटा और सबको आशीर्वादित किया । दूसरा केक प्रिय पापाजी द्वारा काटा गया। इसके बाद कुछ आंतरराष्ट्रीय तोहफे श्री माताजी के चरण कमलों में समर्पित किये गए । करीबन रात के ९.३० बजे श्री माताजी का निर्मल नगरी से प्रस्थान हुआ। देखते ही देखते पूजा के वो दो घंटे दो क्षण के जैसे बीत गये। श्री माताजी के साथ के वो हसीन पल हर वक्त अभी भी आँखों के सामने आते हैं। २६ दिसम्बर २००८ - तीन दिन के कार्यक्रमों का यह आखिरी दिन था। दिन की शुरुआत सामूहिक ध्यान से हुई। इसके बाद शुरू हुई शादियों की विधि 'हल्दी' के कार्यक्रम से। और दुल्हन को हल्दी लगाई गई और साथ ही वहाँ उपस्थित सभी योगी जन एक दूसरे को ऐसे हल्दी लगा रहे थे जैसे कोई होली का त्यौहार हो। सहज भजनों पर सभी नाचते गाते हल्दी लगाते रहे। चैतन्यमय और आनन्द से भरा हुआ था यह हल्दी का कार्यक्रम । इसके बाद मेहंदी की रस्म शुरू हुई। शाम के आठ बजे श्री माताजी निर्मल नगरी आई और फिर शुरू हुई शादियाँ श्री गणेश पूजा से। शादियाँ हो जाने के बाद श्री माताजी ने हर नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिया और करीबन ९.३० बजे निर्मल नगरी से प्रस्थान किया। श्री माताजी के प्रस्थान के बाद भी वहाँ उपस्थित योगी जन नाचते -गाते रहे, चैतन्य की लहरियों के साथ। इस तरह से कार्यक्रम का तीसरा दिन समाप्त हुआ। देखते ही देखते किस तरह से ये तीन दिन गुज़र गये इसका किसी को पता नहीं चला। सुबह शुरू हुआ दुल्हा जय श्री माताजी। १९ C. 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-19.txt चलिता पंचमी पृज मुंबई, ५ वरी ७३ ब हत से लोग मुझसे पुछते हैं हमारा क्या फायदा हुआ? इस प्रश्न में निहित एक बहुत ही छोटी सी छुपी हुई बात है कि हमें जो कुछ मिला है उसके प्रति हमें कोई भी उपकार बुद्धि नहीं है। जरा सी भी उपकार बुद्धि नहीं है कि हम सोचते हैं कि हमनें क्या सहज में ही पा लिया। उपकार बुद्धि जिसे sense of gratitude अंग्रेजी में कहते हैं जब तक आपके अन्दर होगा नहीं सब बात उलटी बैठती जाएगी। आज का दिन बड़ा शुभ है। ललिता पंचमी है। ललित का मतलब है सुन्दर, अति सुन्दर और ललिता, गौरी जी का नाम है क्योंकि कल गणेशजी का जन्म हुआ है इसलिए आज गौरी जी का दिन मनाया जाता है। वैसे भी आप जानते हैं कि मेरी कुण्डलिनी माने कुण्डली का नाम ललिता है । लालित्य सौंदर्य को कहते हैं। मनुष्य वही सौंदर्य होता है, वही सुन्दरतम होता है जिसमें sense of gratitude होती है। जिस इन्सान में sense of gratitude जरा भी न हो वह इन्सान पशुवत है। पशु में भी होती है । कुत्ते में भी होती है। एक कुत्ता उसको आप थोड़े दिन पालिए-पोसिये देखिए आपको आश्चर्य होगा वो किस तरह वफ़ादार होता है। जैसे ही sense of gratitude आपके अन्दर जागृत होगा वैसे ही प्रेम के दर्शन अन्दर से आने शुरू हो जाते हैं। बहत से लोग कहते हैं हम तो माँ आप को surrender हैं। मुझे हँसी आती है। मुझे क्या आप surrender होने जा रहे हैं। मैंने आप से तो कुछ माँगा नहीं था। मैं तो देने भर के लिए बैठी हूँ और ना मेरा कुछ वास्ता है। किन्तु यह जो परमात्मा है ना-वो जरूर आपको देखता है कि आप में कुछ उस उपकार की बुद्धि है या नहीं। जब नहीं है, में कुछ भी आपका recommendation करुँ वो सुनते नहीं हैं। इसलिए बहुत से लोग जो अपने को समझते हैं वो पार हैं, उनकी जागृति हो गयी है। वो बड़े evolve हो गये हैं। अभी वहीं पर है । बिलकुल यूहीं चल रहे हैं। अपने अन्दर की उपकार बुद्धि लानी जरूरी है। उसके बगैर सब चीज़ अग्नि हो जाती है। लालित्य उस से खत्म हो जाता है। लालित्य ऐसे इन्सान में नहीं आता। लालित्य उसी इन्सान में होता है जिसमें sense of gratitude होता है, जिसमें उपकार बुद्धि होनी चाहिए । आदमी पता नहीं कैसी अजीब इन्सान है, कैसी अजीब चीज़ है कि वो अपने से इस तरह से compronmise कर लेता है वो अपने अन्दर का जो लालित्य है उसे भी नहीं पहचानता और अपने अन्दर की जो अग्लिनेस है उसके साथ रहता है हर दम। और वो सोचता है कि उसी के साथ रहने से वो बड़ा भारी आदमी, इन्सान होते चला जा रहा है । शुरू से ही देखिए, जन्म से ही देखिये परमात्मा ने हमारे लिये क्या २० 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-20.txt ज शु नहीं किया। जानवर से हमें इन्सान बनाया। यह सारी सृष्टि कितनी मनोरम, कितनी सुन्दर और कितनी व्यवस्थित हम लोगों के लिये बनायी है लेकिन हमें उनके प्रति कोई sense of gratitude नहीं है । हम तो taken for granted हैं। हाँ, दिया, जैसे कोई हम सब तो बड़े अधिकारी थे इन सब चीज़ के लिये कि मिल गया तो क्या हआ। मनुष्य जब इस तरह की झूठी बातों में जीता है तब वो अपनी गंदगी भी नहीं देख सकता क्योंकि उसके लिये जो सच्चाई है वहीं दृष्टिगोचर नहीं होती। सच्चाई यह है कि आप अपनी गंदगी के साथ जी रहे हैं। आपके अन्दर जो गंदे तत्त्व हैं उन पर आप जी रहे हैं । उसको वो नहीं समझ पाता क्योंकि वो अंधा है और उस अंधेपन को ही बड़ी चीज़ समझ के, उसे compromise करते हैं। उसे हम लोग भूत कहें, बाधा कहे कुछ भी कहें | कुछ भी नाम दीजिए। ये आदत लग जानी चाहिए हमारे अन्दर, सब सहजयोगियों के अन्दर कि हमारी गन्दगी की हम सफाई करें । जैसे कि हमारी आदत है हाथों को कुछ गंदा लग जाता है तो फौरन हाथ धो लेते हैं। यह तो मनुष्य सीख कर आया है। जानवर फौरन अपने हाथ नहीं धोता है। मनुष्य हाथ जल्दी से धो लेगा, नहा लेगा जल्दी से । सफाई कर लेगा अपनी शरीर की। लेकिन इस मन के अन्दर कितनी गन्दगी हमारे अन्दर बसी हुई है, जिसके साथ हम जी रहे हैं और जन्मजन्मांतर तक हम जीते रहेंगे। आप गर सोचते हो कि इसी जन्म में खत्म हो जाएगी तो ये सही नहीं । ये गन्दगी जन्म जन्मांतर तक चलेगी और उस जगह पहुँचा देगी जो महान गंदी चीज़़ है जिसे कि हम नर्क कहते हैं | आज इतना सुन्दर दिन है कि मैं उस नर्क की आपको पूर्ण कल्पना देने, ना ही उसके बारे में बातचीत करना चाहती हूँ। लेकिन गंदी से गंदी कोई चीज़ अगर आपके अनुभव में होगी जिसको देखते ही आपने तय की होगी इस तरह की वो जगह जो अपने अन्दर आप बना रहे हैं। हाँ, माँ ने हमें जागृति दी है, ठीक है। मानते है हम । माँ ने हमें पार किया, मानते हो । फिर क्या? आगे? मानते हो माने मेरे उपर कोई उपकार कर रहे हैं क्या? इस तरह से लोग बातचीत करते हैं माने मेरे ऊपर उपकार हआ जा रहा है । ऐसेलोगों का evolution कैसे हो सकता है? २१ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-21.txt आज हम यहाँ हवन करने वाले हैं विष्णु जी का। अब ये हवन क्या है इसे समझ लेना चाहिए। जो मनुष्य निर्मल मन से यहाँ बैठा हुआ है उसी पे उसका असर आने वाला है और जो अशुद्ध मन से यहाँ बैठा हुआ है उस पर कोई असर नहीं आने वाला है। उसके लिये ये व्यर्थ चीज है । हवन या पूजा, प्रार्थना, नमाज, मन्त्रोच्चार, तन्त्र आदि सबकुछ। तन्त्र माने जो गंदी चीज़ है वो नहीं। कुण्डलिनी itself। ये सबकुछ हमें उस राह का मार्ग प्रदर्शन करते हैं। उस राह को आलोकित करते हैं जिस पर हमें उठना है। एकदम से चमका देती है। ट्रिगरिंग हो जाता है। अपने जीवन में एकदम से वो चीज़ ट्रिगर हो जाती है । जैसे हम एकदम कूद जाते हैं। इस सीमित जीवन से हम असीम में एकदम से कूद जाते हैं। हवन में श्री विष्णु का हवन । सारे बम्बई शहर के लिए इसका फायदा है क्योंकि मैं अपने हाथों से आज करने वाली हूँ। श्री विष्णु के हवन का मतलब ये होता है कि श्री विष्णु ही हमारे evolution के, हमारे उत्क्रांति के संयोजक। वे स्वयं ही उठकर के श्री कृष्ण बने। श्री विष्णु के इस अनुष्ठान को हम सारे संसार में ट्रिगर कर देते हैं, उस में चमक ड़ाल देते हैं। उसमें एक नई तरह की तरंगे उठा सकते हैं, जिससे मनुष्य की दृष्टि अपने evolution की ओर जायें कि और जिस तीन डायमेन्शन में, जिस तीन चक्करों में वो फँसा है उसके बंधनों से, उसके बाँडेज से वो छूट जाए । लेकिन यह भी समझना चाहिए परमात्मा को गुलाम लोगों से कुछ मिलने वाला नहीं है। जो गुलाम हैं वो परमात्मा को क्या नमस्कार कर सकते हैं? उस सारे ही बंधनों को छोड़ने के लिए, उस सभी चीज़ों को छोड़ने के लिए आप में ताकत नहीं है ये हम जानते हैं। लेकिन तैयारियाँ आप रखें, फेंक हम देंगे। आज से तैयारी रखें कि 'जो जो मैं अपने अन्दर झूठ लिये बैठा हूँ उसे मैं फेंक दूँगा 6सहजयोग साक्षात् सहजयोग का आप कल्याण नहीं कर सकते हैं। आपको कल्याण करना है सहजयोग से। आप अपने को सोचते हैं कि हम सहजयोग के कल्याण के लिए यहाँ आये है तो आप बहुत बड़ी गलतफहमी में है क्योंकि सहजयोग साक्षात् परमात्मा का साक्षात्कार है। इससे जिसे लेना है, जिसे बढ़ना है वही आगे जा सकता है और जो देने यहाँ आयेगा वो कुछ भी यहाँ नहीं पा सकता। देना तो दूसरी बात है। सहजयोग के प्रति उपकृत होना चाहिए। उपकृत होने का मतलब अन्दर भावना ये होनी चाहिए कि आपके बड़े उपकार है, इतनी कृपा हमारे उपर हुई कि हम पार हो गये। कुण्डलिनी का पूर्ण साक्षात्कार हमें हुआ और हम उँगलियों के इशारे पर कुण्डलिनियाँ उठा रहे हैं। क्या मजाल है किसीकी इस तरह से कर सकें। बातें करने वाले बहुत देखे होंगे आपने, लेकिन कुण्डलिनियों को उँगलियों पर नचाने वाले ये जो आप लोग यहाँ बैठे हये हैं पता होना चाहिए कि परमात्मा के प्रति किस कदर उसके आगे झुकना चाहिए और उसके उपकार मानना चाहिए कि 'हे प्रभू, हमारी क्या, ऐसी कौन सी हमारी विशेष बात थी कि तुमने हमारे उपर इतना उपकार किया? किसलिए इस तरह से आप हमारे उपर धर आये हैं प्रभू? क्या हमारी हस्ती थी? हमने क्या किया? आखिर कौन से ऐसे पुण्य हमने जोड़े थे जिसके लिये तुम इस तरह से हमारे उपर धर आये और सारी कुण्डलिनी हमारे सामने खोल के रख दी ।' उसका सारा का सारा सूक्ष्म से सूक्ष्म ज्ञान आप लोगों में है। मूर्खां की बात छोड़ दीजिए। महामूरखों की बात आप करते हैं, जो कि अपने को सोचते है कि हम बड़े हो गये हैं। आप लोग यहाँ उल्लू बनने आये हैं या अकलमन्द बनने आये हैं ये सोच के आयें । मैं आपको यहाँ उल्लू बनाने नहीं आयीं हूँ या आपको एनटाइसमेन्ट में ड़ालकर आपको उल्लू बनाकर और आप लोगों को चढ़ाती हैँ? वास्तविक में आपको चढ़ना होगा उस सीढ़ी पर । एक ही तरीका है, आधे अधूरे मन से ना आईये। पूरे मन से समर्पण में । पूरे मन से कि प्रभू तुमने कितना दिया हमें । हम क्या करें तुम्हारे? दुनिया की चीजें माँगते है कभी कभी। सत्ता माँगते हैं, पैसा माँगते हैं। छोटी छोटी चीज़ों में आप लोग अभी तक उलझे हुऐ हैं। जिस परम त्त्व की मैं बात करती हूँ वो सभी चीज़ देखने वाला है। योग, क्षेम, वहाम्यहम् | कह दिया है देख लेगा आपका । और ऐसी कौन सी चीज़े हैं जो उससे बढ़के संसार में हैं। इस परम तत्त्व से बढ़कर ऐसी कौनसी चीज़ दुनिया में है जो उसकी तुलना में खड़ी भी हो सकती है। जिस तत्त्व के सहारे सारा संसार चल रहा है। उसके अन्दर डूब जाने पर, उस अमृत को पाने के बाद आप क्या नहाने का पानी पीने की बातचीत करिऐगा मुझसे? इसलिए आपके ऊपर उसके आशीर्वाद की जो छाया है वो नहीं लगता। क्योंकि आप अभी भी किनारे पर डूबकियाँ मार रहे हैं। आज श्री विष्णु के इस सत्र में पूर्ण परमात्मा का साक्षात्कार है । १ आपको महसूस नहीं है। उसका पता २२ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-22.txt यहीं ध्यान रखिए कि ये आपके evolution के लिये किया जा रहा है ? मुझे कोई जरूरत नहीं है । इतना ही नहीं आज बम्बई शहर में, वातावरण में यह तरंगे जाकर चमकायेंगे। इन तरंगों की वजह से सारे बम्बई शहर में जो विष्णुमयी उत्क्रांति की चिनगारियाँ जलेंगी । इसको समझ लेना चाहिए यह बड़ी महत्त्वपूर्ण चीज़ है। हो सकता है आज आप लोग दस-पाँच आदमी बैठे हैं, लेकिन आप सब का पूरा चित्त यहाँ होना चाहिए। पूरी तरह से आप यहाँ concentrate करिए। इधर उधर मत देखिए । एक आदमी आता है आपकी आँख उधर घुमती है । आपका चित्त यहाँ रखिए । पूरी तरह से अपने को समर्पित रखें । जब आप लोग माँगेंगे तभी होगा । आप लोगों के माँगे बगैर नहीं होने वाला । मेरे करने से कुछ नहीं होता। अवतरण भी सबका माँगा हुआ होता है। जब तक कोई माँगता नहीं तो यहाँ किसी को फुर्सत नहीं अवतरण लेने की, आफत करने की। अवतरण में ही समझ लेना चाहिए कि आपकी माँग है। लेकिन माँगने वाले इतने अधुरे क्यों हो? पूरी तरह से अपने चित्त को इधर लाएं। पूरा चित्त यहाँ समर्पित रखें और आज का जो हमारा हवन है बहुत यशस्वी हो सकता है। इससे बहुत कार्य हो सकते हैं। लन्दन में हमने ऐसा ही एक हवन किया था। उसका बड़ा ही परिणाम लन्दन में आया। एकदम आबोहवा बदल गयी। आपकी आबोहवा बदलने की जरूरत है । इससे यहाँ का जो atmosphere है वो जाग्रत हो जाएगा। कभी-कभी इतने ज्यादा वाइब्रेशन्स मेरे शरीर में से बहते हैं लेकिन वह वातावरण में जा नहीं पाते। क्योंकि वातावरण उसे ले नहीं पा रहा है। आप लोग भी पूर्णत: जाग्रत अपने वाइब्रेशन पहले ठीक कर ले। नतमस्तक हो करके आवाहन करे। और जब उनका अवतरण हो, जब वो जाग्रत हो तब आप उसे अन्दर लें। जितनी भी यहाँ पर सामग्रियाँ हैं, उन सामग्रियों के द्वारा आप उनके सामने से ये कह रहे हैं कि हम आप से उपकृत हैं। आपके हमारे उपर अनेक उपकार है। ये हम दिखा रहें हैं आपको ये लीजिए लकड़ियाँ जो आपने हमें दी, हम आपको दे कर दिखा रहें है। हम कैसे बतायें! ये है । हवन का मतलब ये है। और उसी के साथ-साथ उस उपकार बुद्धि के कारण, उस sense of gratitude के कारण आपके अन्दर जितना भी मैल है, जलने दीजिए इस अग्नि में । और ये अग्नि आपको पवित्र कर सकती है, अगर आप इस भावना से इन चीज़ों को यहाँ दे रहें हैं। कुछ कठिन काम नहीं है। कोई मुश्किल चीज़ नहीं हैं । हम तो हैं आप के साथ खड़े हुऐं। हर एक चीज़ देखने के लिये, हर एक चीज़ को जानने के लिये । कभी आपको समझाते हैं, कभी आपको डाँटते, कभी आपको प्यार करते, जैसे कि माँ को करना चाहिए। बच्चों को समझना चाहिए कि माँ अगर हमारे भले के लिये कुछ कह रही है तो ये माँ ही कर सकती है और कोई कर ही नहीं सकता। ये आपके परम भाग्य है, ऐसा सोचना चाहिए और उपकार मानने चाहिए इस चीज़ से। जरूरत है क्योंकि इस सब के पीछे है माँ का प्यार, उसको आपको पहचानना चाहिए। आपको अगर प्यार की पहचान नहीं है सहजयोग आपके लिए व्यर्थ है क्योंकि सारा ही ये प्यार ही का दर्शन है। आपस में एक दूसरे में उस प्यार का आपको दर्शन होता है। लेकिन जब तक पूर्ण चित्त स्वच्छ कर के आप दूसरों के दर्पण में अपने को नहीं देख पाएंगे उस प्यार को भी आप पहचान नहीं पाएंगे। आप तो अपना जो विद्रप रूप है वही दूसरे में देखकर दूसरों को विद्वुप समझते हैं। आशा है, मुझे आशा है, अब मैं भी आप जैसी बातचीत करने लगी हूँ कि इस यज्ञ से, इस हवन से हम लोगों के हृदय स्वच्छ हो जाएं और हमारे उत्क्रांति में बहुत मदद मिलेगी । और उस असीम के किनारे में आप जाकर इस तरह से टिक जाईयेगा कि वहाँ से लौटने की बातचीत नहीं होगी। सब के पीछे | है माँ का प्यार, उसको आपको पहचानना चाहिए। आज बड़ा शुभ दिन है और गणेश जी की बात समझ लेनी चाहिए। गणेश सिवाय अपने माँ के और संसार में किसी चीज़ को नहीं जानते और इसलिए सबसे उच्चतम स्थान पर वे बैठे हुए हैं। माँ के प्रति पूरी तरह, क्या उनकी माँने उन्हें कभी डाँटा नहीं होगा? क्या उन्होंने उनको कभी समझाया नहीं होगा? हर चीज़ को शिरोधार्य करने वाले उस गणेश का स्मरण कर के हम लोग अब अपने हवन को पूरी तरह से संपन्न करेंगे और आप लोग भी इसमें पूरी तरह सम्मिलित हो और शंका कुशंका करते हुए न बैठियेगा। क्योंकि आप में से अधिकतर लोग पार है । जो लोग पार नहीं है उनको भी फायदा होगा । जरूर होगा, अवश्य होगा। आप सबको अनन्त आशीर्वाद ! २३ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-23.txt संक्रांति पूजा अनुवादित, राहुरी, १४ जनवरी १९८७ आ् ज का दिन बहुत शुभ है और इस दिन हम लोगों को तिल-गुड़ देकर मीठा-मीठा बोलने को कहते हैं। हम दूसरों को तो कह देते हैं, पर खुद को भी कहें तो अच्छा होगा। क्योंकि दूसरों को कहना बहुत आसान होता है। यह प्रतीत होता है कि तरह की प्रवृत्ति से कोई भी मीठा नहीं बोलता। कहीं भी जाओ, वहाँ चिल्लाने का कोई कारण न होने पर भी, चिल्लाने के अलावा लोगों को बात करना आता ही नहीं है। उसका कारण यह है कि हमने खुद के बारे में कुछ कल्पना की हुई है। हमें परमात्मा के आशीर्वाद की तनिक भी कल्पना नहीं है। - आप तो मीठा बोलें और हम कड़वा - इस सूर्य से इस देश में परमात्मा ने हमें कितना बडा आशीर्वाद दिया है। देखो, इस देश में स्वच्छता का कोई विचार ही नहीं है। इस देश में तरह-तरह के कीटाणु, तरह - तरह के पैरासाइटस् हैं। मैं तो कहती हूँ कि सारे विश्व के पैरासाइटस् अपने देश में हैं। जो कही भी नहीं मिलेगा वह अपने देश में हैं। दूसरे देशों में यहाँ के कुछ पैरासाइटस् जाएं तो वे मर जाते हैं। वहाँ की ठंड में वो रह ही नहीं सकते। सूर्य की कृपा से इतने पैरासाइटस् इस देश में है और उनको मात देकर हम कैसे जिंदा हैं। एक वैज्ञानिक ने मुझसे पूछा कि, 'अपने इंडिया में लोग जीवित कैसे रहते हैं?' मैंने कहा, जीवित ही नहीं रहते, हँसते- खेलते भी रहते हैं, आनंद में रहते हैं, सुख में रहते हैं। उसका कारण सूर्य है। जो सीखने | लायक चीज़ है, इस सूर्य ने हमें अपने घर को खुला रखना सिखाया है। हमारा हृदय खोलना सिखाया है। इग्लैण्ड में अगर आपको कहीं बाहर जाना हो तो १५ मिनट आपको कपड़े बदलने के लिए लगते हैं। कुछ पहनकर बाहर निकलना पड़ता है नहीं तो वहाँ की ठंड आपके सिर में घुस कर आपका सर ही खाएगी। ऐसी स्थिति वहाँ है। आज आप यहाँ जैसे खुले में बैठे हो इग्लैण्ड में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं कर सकते। कहीं पर भी सब देशों में, अपने देश में भी ऐसे स्थान हैं, प्रांत हैं। कह सकते हैं कि मोहाली या नैनीताल या दूसरी तरफ आप गए- देहरादून से भी आगे, हिमालय के उस ओर गए तो जैसी उस जगह पर है वैसी ही ठंड इन जगहों पर भी है । जैसे इग्लैण्ड या अमेरिका में है वहाँ कोई परिंदा तक नहीं दिखता। वहाँ पर बड़े - बड़े वन है और उस जगह में सुंदर फूल हैं। 'वैली आफ फ्लॉवर' के नाम से लोग बताते हैं कि वहाँ बहुत सुन्दर-सुन्दर फूल हैं। वहाँ जैसे नंदनवन लगता हो। पर यह सब कुछ क्षणिक ही है। वहाँ इतनी ठंड होती है कि उसे देखने के लिए आँखे खोलना भी एक प्रश्न है। आँखों पर चश्मा लगाना पडता है अन्यथा आँखो को तकलीफ होती है। वहाँ इतनी ठंड है। वैसे ही दूसरे देशों में भी इतनी ठंड होते हुए भी उन्होंने वहाँ पर प्रगति की हुई है। सारे वातावपण से संघर्ष कर, लड कर उन्होंने अपने देश खड़े किए हैं। हमें तो इतना बड़ा वरदान होते हुए भी हम उसकी तरफ ध्यान नहीं देते कि सूर्य का हमें कितना बड़ा वरदान है। वह है वैसी ही ठंड यहाँ भी है। पर हैं। उसकी - देने की | शक्ति। १ अपने देश में सबसे मुख्य सूर्य की उर्जा बहुत बड़ी है। उसे अगर हम काम में लेना शुरू करें तो हमें उर्जा की कमी रहेगी नहीं : मोटर भी उस उर्जा से चल सकती है । पर अपने यहाँ जो सत्ताधीश हैं या अपने यहाँ के जो लोग हैं उनका ध्यान दूसरी तरफ होने की वजह से सूर्य की जो देनगी है, वह व्यर्थ हो रही है। उसकी तकलीफ हो रही है। हमें अति हो रही हैं। यह पढ़ कर हम बहुत कार्य कर सकते हैं। सूर्य से जो सीखने लायक चीज़ है, वह है उसकी देने की शक्ति । सूर्य यह देता ही रहता है, लेता कुछ भी नही। देता ही रहता और देने की उसकी इतनी शक्ति है कि उसी शक्ति से बारिश होती है। उसी शक्ति से खेती होती है। उसी शक्ति पर उपज होती है। अगर सूर्य न होता तो यहाँ कोई भी नहीं रहता। उसकी इस प्रेम की शक्ति की वजह से ही आज हम इस स्थिति तक पहुँच चुके हैं। पर उससे सीखना यह है कि हममें भी देने की शक्ति आनी चाहिए। पर नीचे से उपर तक आप देखें, तो लोगों को ऐसा लगता है कि कैसे पैसे बचाएं। कैसे खुद के लिए पैसे रखें? हमने अगर किसी कार्यक्रम के लिए पैसे दिए तो उसमें २४ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-24.txt भी लोग कहते हैं कि इसमें से पैसे बचाएं तो अच्छा है। अरे, आपको किसने कहा बचाने के लिए? बचा कर रखो, पर किसलिए ? अरे, आपको खर्च करने दिए, तो बचाते क्यों हो? अर्थात कैसे भी करके, कुछ भी सह कर लेना चाहिए। कुछ तो अपना बचा कर रखना चाहिए-यह प्रवृत्ति सब जगह है। किसी बाजार गए तो उन्होंने भाव बढ़ा दिया, किसलिए? 'उन्होंने बढाया इसलिए हमने बढाया।' अरे भाव अगर वहीं हो तो बढाया क्यों? कैसे भी करके वह शोषण की शक्ति। अब कोई छोटा सा कार्य शुरू किया तो लोग कहते है, " माताजी देखिए , आपको वह नहीं जमेगा ।" पूछा "क्यों ?" क्योंकि वो पैसा खाते हैं। मतलब हम तो खाना खाते हैं और वो पैसा खातें हैं। हमारा कुछ जमेगा नहीं क्या! मतलब ऐसी क्या अजीब बात है। देश का जो हित करने वाले हैं, देश को जो चलाने वाले हैं उन्हें सारी सत्ता भगवान नें दी है। उन्होंने भी यह नहीं समझा कि हमें देना चाहिए। इस सूरज से हमें सीखना चाहिए कि हम कुछ देने के लिए आएं हैं। जब तक पूर्णतया यह स्थिति मानव की बदलती नहीं है कि हम देने के लिए आएं हैं, लेने नहीं, यही उसका शौक होना चाहिए। जैसे आपकी माँ को कैसे लगता है कि मेरा बेटा आज आने वाला है उसके लिए मैं क्या करुँ? क्या खाने के लिए बनाऊँ? आज यह करूं कि वह करू? खाने के लिए क्या बनाऊँ? उसे कैसे शौक होता है एक माँ को कैसे शौक होता है कि वो दो चार पैसे इधर उधर से इकठ्ठा करके आसपास से पड़ोसियों से कुछ भी लाकर कुछ मीठा बनाकर आपको खिलाती है। उसे ऐसा लगता है कि कैसे दं और कैसे क्या नहीं। वैसा ही शौक अंदर से आए बगैर, वैसा सामूहिक शौक अंदर आए बगैर, अन्य लोगों के लिए वैसी भावना अपने अंदर जागृत बगैर अपने देश का क्या, किसी भी देश का कल्याण नहीं हो सकता। पर किससे क्या लूट सकते हैं, कि किससे क्या ले सकते हैं- इसी विचार में हम होते हैं। किससे क्या मांग सकते हैं और इस चिंतन से हमारे बच्चों को तकलीफ होती हैं। हमें ही तकलीफ होती है। कुछ भी कहा तो भी। अब हमारे ससुराल में उन्होंने कुछ शुरू किया है कि हम बड़ा तालाब खोद रहे हैं...। सब कुछ खुद ही खाओगे तो हमें खाने को क्या मिलेगा! (सक्रात अर्थात एक ऐसी शुभ क्रांति जिससे आज जो संक्रांत हम मना रहे हैं उसमें यह जो संक्रांति हैं, संक्रांत अर्थात एक ऐसी शुभ क्रांति जिससे हमारे अन्दर देने की प्रवृत्ति आ जाए । अब ये सब कहते हैं कि देने की प्रवृत्ति होनी चाहिए । यदि तुम पंडित के पास गए....तो कुछ तो दान करना चाहिए। दान क्या उस पंडित को करने का है ? वैसा दान नहीं। ... या कोई कहेगा दान करना चाहिए-मतलब खुद का पेट भरने के लिए! ....दान करते रहो इसलिए ये लोग ऐसे भाषण वरगैरेह देते रहते हैं-इसका कोई मतलब नहीं हैं। दान देंें परंतु आपको ही क्यों? तो दान किसे किया जाए ऐसा भी प्रश्न खड़ा होता है। यह देखना चाहिए कि हम मुक्त मन से अपने देश के लिए, अपने बंधुओं के लिए, अपने पड़़ोसियों के लिए क्या कर रहे हैं? मन रोक कर नहीं रखना चाहिए मन खोल कर पूरी तरह से लूटाना चाहिए। उसका एक विशेष आनंद होता है जो हम सदैव से भोग रहे हैं। जी-जान से देने का इसमें जो आनंद है वो किसी में भी नहीं । वो आनंद किसी में भी नहीं है। और अगर वो आनंद प्राप्त करना है तो आज का यह त्योहार मनाना चाहिए। यानि उस सूर्य के जैसे अपना स्वभाव होना चाहिए। वह क्या करता है इसका उसे कुछ आभास ही नहीं। उसे कुछ भी पता नहीं। परंतु सतत् अकर्म में खड़ा है सदैव प्रज्वलित रहता है और आपको नित्य प्रकाश देकर, आनंद देकर संपूर्ण जीवन त्त्व देकर आपका पालन-पोषण करता है। हम प्रतिदिन उसे देखते है। लोग उसे नमस्कार भी करते हैं किंतु मात्र नमस्कार तक। उसमें से कुछ भी हमारे अन्दर आता नहीं है। उसकी देने की शक्ति उसकी क्षमता हमारे अन्दर आनी चाहिए। हमारे अन्दर देने की प्रवृत्ति बहुत आ जाए। के पेड लगाएं। इसके लिए सरकार से क्यों पैसे लेना? एक तो उसमें बाडा लगाने में लगता ही क्या है। चलो, मैंने एक छोटी सी बात बताई थी कि सब सहजयोगी सड़क के किनारे बरगद इस साल यही एक पेड लगाऊँ, उसमें एक बाडा लगाऊँ। इसमें कितने पैसे लगते हैं? अरे बीडियाँ फूँकने में भी ज्यादा लगेंगे। एक यही कार्य करके देखो। कहने का मतलब हैं कि यह दिखना चाहिए कि हम कुछ कर रहे हैं। बजाए इसके (हम सोचते हैं) कि कैसे किसी को लूटें? कैसे किसी से पैसे लें? कैसे पैसे बचाकर रखें? इस प्रवृत्ति से अपने देश की बिलकुल भी प्रगति नहीं होगी। अच्छा, हमारे यहाँ पहले ऐसे लोग नहीं थे। मैं आपको बताती हैँ कि जब हम छोटे थे तब देने वाले ही लोग थे हमने देने वाले ही २५ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-25.txt लोग देखे हैं लेने वाले लोग तो देखे ही नहीं । कुछ भी लिया तो उन्हें पसन्द नहीं आता था, भी नहीं; किसी बच्चे ने कुछ सिर्फ देना है। माँ-बाप को लिया तो वे कहते थे कि वापस करके आओ। क्यों दुसरे का लिया ? मुझे याद है कि हमारे पिताजी ने चाँदी की कुर्सियाँ बनवाई और छत्र-चांबर बनवाए। तो सबने कहा कि किसलिए बनवाए? इसकी क्या जरूरत है? अरे शादी ब्याह तो होते रहते हैं..सब किराए से लाते हैं। ....उससे अच्छा है कि अपने घर का हो तो बढ़िया है। .... जाने दो। अब कहीं कुछ कार्यक्रम हुआ तो उन्होंने पूछा कि वो छत्र-चांबर चाहिए। अरे पिछली बार वो शादी हुई थी ना वहाँ से ले लो। .....फिर यहाँ से वहाँ करते करते वो न जाने कहाँ गायब हो गये भगवान ही जाने! मेरे कहने का मतलब है कि उनके विचार ही ऐसे थे। अब सवाल यह है कि अपने पास पैसे हैं तो क्या करना चाहिए? तो उसका कुछ सामूहिक सार्वजनिक ही करना। अगर बेडमिंटन का कोर्ट आप बनायें तो उसमें सब खेलें, यह नहीं कि सिर्फ हमारे ही बच्चे खेलें-ऐसा नहीं कि सब कुछ मेरे बच्चे के लिए ही । अगर उन्होंने मोटर ली तो उसमें सभी बच्चे स्कूल जाने चाहिए। बड़ी मोटर लेनी चाहिए ताकि उसमें सभी लोग जा सकें, यह सामूहिकता है। यह जो एक सार्वजनिक तबियत है वह बनानी होगी। वह इस सूर्य से सीखना चाहिए। और आज का यह विशेष दिवस है और इस दिन हमने यह तत्त्व लेना चाहिए कि आज से हम कुछ सार्वजनिक कार्य करेंगे। कैसे लोगों के पेट में अन्न जाता है, पता नहीं! अरे, क्या आप अपने आसपास देखते नहीं! आपने ऐसा कुछ भी सार्वजनिक कार्य नहीं किया है । हमसे जो बन पड़े उसे मैं एक छोटी सी बात बताती हूँ कि आप एक-दो पेड़ लगाना शुरू कीजिए । अपने महाराष्ट्र में कितने सारे सहजयोगी हैं और हर एक सहजयोगी ने अगर एक-एक पेड़ लगाकर उसकी देखभाल की तो इन लोगों पर कितने उपकार होंगे। मेरी सबसे यह विनती है कि कुछ न कुछ सार्वजनिक कार्य करने में शुरू करना चाहिए। परंतु उसके लिए हमें पैसे इकट्ठे करने हैं। ये करना है-ऐसे धंधे करने की क्या जरूरत हैं? पंडित को पैसे देने जैसी प्रवृत्ति हमें नहीं चाहिए। बिलकुल हृदय खोल कर, प्रेम से लोगों के लिए कुछ करना और उसका आनंद उठाना है। इसका मतलब यह नहीं कि आप फोकट में यह सब करें। मैंने ऐसा कभी भी नहीं कहा कि ये सहजयोगी वहाँ (परदेश ) से आये हैं और उन्हें कुछ मुफ्त में दो, बिलकुल भी नहीं। पर इन लोगों में वो बात है और आते समय वो कितने तोहफे लेकर आयें। उसमें मेरा भी बहत खुद अपने मन से इतनी चीज़े लायें हैं। मुझे पहले लगा कि जो मैंने रोम से सामान लिया था वही सामान ये साथ लायें हैं। तो उन्होंने कहा, 'नहीं माताजी, हम आपका (सामान) नहीं लाये हैं। हमने आपके जैसा (सामान) खरीदा था ।' उन्हें आनंद हो रहा था कि हम ये लाए-वो लाए, ये दिया। अच्छा वहाँ पर किसे क्या दिया ये किसी को पता भी नहीं। यहाँ मैं बैठ कर (कहती हूँ) इसे दो, उसे दो, इसका नाम लो, उसका नाम लो। वहाँ इंडियन लोग बैठ कर (कहते हैं) 'अरे मेरे बेटे को अभी तक कुछ नहीं मिला, मेरी माँ को भी नहीं मिला।' वो माँ लंगडाते हुए आगे आई। मैंने कहा, 'अब लीजिए अपनी माँ के लिए।' 'उन्हें लुगडं ( मराठी साडी) नहीं मिली।' अब मेरे पास लुगडी नहीं हैं तो साडी ही ले लो। ऐसे बातें होती हैं। इन लोगों (परदेसी) का उलटा है । ये लोग जहाँ से आये वहाँ से कितना सामान लेकर आये। ये लोग दो टन सामान लायें। वो दो टन देते-देते मेरे हाथ दुखने लग गये। ऐसा दो टन (सामान) उन सबको बाँटा। क्या हर्ज है। हाथ होता है तो भी वे स्वयं आपको देने के लिए कितनी चीज़े लाये हैं । वे उसके लिए कुछ पैसे लगते मेरा कहना हैं कि तुम भी कुछ दो। ऐसी बात नहीं कि इन्हें कुछ देना है। पर उनके सामने हमें अपना एक महान चरित्र दर्शाना होगा कि हम लोग भी कुछ कम नहीं। आप आयें, तो हम आपके सेवा के लिए खडे हैं। आपकी देख रेख के लिए हम उपस्थित हैं। हमसे जो बन पड़े उसे करने में क्या हर्ज है। उसके लिए कुछ पैसे लगते नहीं। उसमें कोई दिक्कत नहीं है। सिर्फ अपने मन की प्रवृत्ति बदलनी चाहिए और अगर सहजयोग से हमने वह नहीं बदली तो मुझे नहीं लगता कि सहजयोग से मन- परिवर्तन होगा। दूसरे को देने का जो सबसे महत्त्वपूर्ण स्वभाव है वह होना चाहिए। सहजयोग में कुण्डलिनी जागृत होती है और आप आत्मस्वरूप होते हैं। और आत्मा का तत्त्व यानि सूर्य जैसा देने वाला। आपने मेरा फोटो देखा है। उसमें मेरे हृदय के उपर इतना बडा सूर्य आया था। सचमुच मेरे हृदय में सूर्य है। और उसी सूर्य से मुझे कभी लगता नहीं कि मैं किसी से कुछ छीन लँ। मुझे पता नहीं कि नहीं। | २६ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-26.txt २० दिमाग के किस भाग से यह विचार आता है कि इनसे यह लूट लेँ। कैसी अजीब बात है। वह तो सहजयोग में आनी ही नहीं चाहिए। पर दिमाग लगाना चाहिए कि हम हर दिन क्या दे सकते हैं। इसके लिए अब हम क्या कर सकते हैं। ३० आपके राहुरी में भी हमने की है। एक संस्था शुरू उसका नाम हमने 'सहज स्त्री सुधार, समाज सुधार' रखा है। यह संस्था इसलिए बनाई क्योंकि हमारी संस्था ार लाइफ एटर्नल ट्रस्ट की ओर से ऐसे कार्य न हीं हो सकते। यहाँ स) रजिस्ट ड कराई है। सब छ] य ह कुछ हो गया है। केनडा के वे लोग पैसे देने के लिए बैठे हैं। वहाँ से लोग पैसा देने के लिए बैठे हैं। परंतु स्त्री सुधार के लिए यहाँ कोई मिलता ही नहीं है। यहाँ की औरतों ने यह कार्य अपने हाथ में लिया तो यह कार्य हो सकता है। यहाँ जगह है, सब कुछ है। फिर हमें वक्त ही नहीं मिलता, हम कैसे जाएं? अरे, आपको देने के लिए ये लोग वहाँ से पैसे लेकर आ रहे हैं। यहाँ के स्त्री समाज में सुधार करो। आपके लिए चौदह मशीनें भेजी हैं । वहाँ की औरतों को सिखाओ । आपको दिखता नहीं है कि वो भूखी- प्यासी घूमती रहती हैं। उन्हें बिठाओ , आएंगे तो उनका भला होगा। थोड़ा तो हमें ऐसा सोचना चाहिए। क्या सिर्फ अपना ही सोचते रहना है? तो सहजयोग में इस चीज़ के लिए कोई स्थान नहीं है। केवल अपने बारे में ही सोचने वालों के लिए हमारे यहाँ कोई जगह नहीं है । विश्व कल्याण के लिए हमें आगे आना चाहिए। और मैं हमेशा कहती हैँ कि 'जगाच्या कल्याणा संतांच्या विभूती' विश्व कल्याण के लिए संतों की भभूत। अगर ऐसा हो तो भी संतों की विभुति के कल्याण के लिए विश्व है| ऐसी परिस्थिति से उन संतों का कल्याण ही तो होगा। इसलिए अब जो आप संत हो गये हो तो आपको संतों की दृष्टि से आचरण करना चाहिए। और की कुछ कार्य सिखाओ। उनके हाथ में दो-चार पैसे | २७ ठ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-27.txt संतों का पहला लक्षण होता है-देना, देते रहना। किसी भी संत ने किसी से कुछ लूटा ऐसा तो हमने आज तक नहीं सुना। ऐसा किया भी तो फिर वह संत ही नहीं रहता। यह उसके दिमाग में आता ही नहीं। तो इस ओर ध्यान देना चाहिए कि हम अपने से क्या दे सकते हैं, कितना प्रेम दे सकते हैं, कितने लोगों का भला कर सकते हैं और आजकल जो सार्वजनिक कार्य होते हैं-इलेक्शन वरगैरेह के लिए वैसा कुछ नहीं करते हुए- निस्वार्थ भाव से जैसे हम माँ के प्रेम को निव्व्याज्य कहते हैं, जिसके उपर कोई ब्याज नहीं होता, ऐसा जो अटूट बहने वाला, अनंत तक जाने वाला-ऐसा जो प्रेम है वो देते वक्त आपको अपने आप सूझेगा कि मैंने क्या-क्या किया। वो सुधार धीरे-धीरे होना चाहिए। सब सहजयोगियों की ओर से कुछ न कुछ तो घटित होना चाहिए। और इस चीज़ के लिए हमें थोडा वक्त देना चाहिए। समय देकर उसमें उतरना चाहिए। मेहनत करनी चाहिए। 'माताजी आईं, एक लेक्चर हो गया और बस खत्म-ऐसा नहीं होना चाहिए।' इन लोगों ने बहुत काम किए हैं। पाठशाला की है और बहुत समाज सुधार का काम कर रहे हैं हमें ऐसी शुरूआत करनी चाहिए। नहीं तो ' मैंने शुरू सहजयेग यानि केवल आत्मसाक्षात्कार लेकर आनंद के सागर में तैरने वाले सब आलसेश्वर जैसे नहीं होने चाहिए । हमने दूसरों की कितनी मदद की , चारो ओर आँखें घुमाकर इधर -उधर देखो । उनकी ओर हमें प्रेम की दृष्टि ड्रालनी चाहिए। अच्छी तरह देखो कि अपने हाथ से क्या कार्य हो रहा है। सहजयोग अभी तक मेरा हिंदुस्तान में आना नहीं हुआ है। आने के बाद आप देखोगे कि मैं सबको काम पर लगाऊँगी। तो पहले ही शुरूआत करना अच्छा है। मैंने सहजयोग सिर्फ ध्यान-धारणा करने के लिए नहीं शुरू किया है। सिर्फ ध्यान-धारणा करने लिए क्यों सहजयोग चाहिए। फिर हिमालय जाओ| यहाँ रहकर गर सहजयोग करना है तो उस सहजयोग से लोगों का भला होना चाहिए। और आजकल का जो सार्वजनिक कार्य है-वैसा बिलकुल भी नहीं करना। सचमुच कार्य सिद्ध करना होगा तभी कहना चाहिए कि हमने सहजयोग स्थापित किया है। अब मेरी बहुत स्तुति हो गई मैंने बहुत स्तुति सुन ली, भजन सुन लिए, बहुत अच्छा लगा। बहुत संतोष हुआ। लोगों ने पहचाना वगैरेह-वरगैरेह , पर एक चीज़ पहचाननी होगी कि आप क्या हो? यह जानने के लिए कार्य करना चाहिए। नहीं तो आप स्वयं को शीशे में देख नहीं सकते। आपको क्या दिया वह आपको दिखाना चाहिए। जैसे पहले आप खाना पकाते थे, बच्चे को देखते थे अगर वैसी आपकी स्थिति होगी और उसमें बिलकुल सार्वजनिक या सामूहिक स्वरूप नहीं आया तो सहजयोग में आकर भी आपने क्या पाया-मुझे पता नहीं। जैसे थे वैसे ही हैं। प्रथम बात यह है कि अगले साल आने पर सबको बताना होगा कि किसने कितने बरगद के पेड़ लगाए। सिर्फ ध्यानधारणा करने के लिए दूसरी बात यह कि आपने कौन सा सामूहिक कार्य किया वह मुझे सुनने को मिले। आपकी नजर में कोई भी सामूहिक कार्य आए तो देखो कि आप वह कर सकते हैं और अच्छे से कर सकते हैं। उसमें भी पैसों की जरूरत नहीं पड़ती सिर्फ मन की तैयारी चाहिए। मैंने बगैर एक पैसे के तथा बगैर घर कुछ वालों के सपोर्ट के एक र्त्री को पार करके यह सहजयोग खडा किया था। परंतु उस कार्य की निष्ठा और सत्यता की वजह से ही तो आज इतना फैल गया है। अब यह एक बड़ी जिम्मेदारी आप सभी पर हर आदमी, हर औरत पर है कि हमें लोगों को सहजयोग बताते समय कुछ न कुछ उसका प्रमाण देना है। उसके लिए कोई नियम नहीं बनाने है। उसके लिए कोई गैर जिम्मेदार काम नहीं करना। कुछ भी गलत- सलत नहीं करना। सीधे सरल मार्ग से आप सिर्फ आँख खोल कर देखो कि हम क्या कर सकते हैं। लोगों का हम कहाँ क्या हित कर सकते हैं। हम आपको शक्ति देने के लिए बैठे हैं। आप इस कार्य में कूद पड़ो। और इस कार्य में हमें कोई वोट नहीं चाहिए हमें पैसे नहीं चाहिए, कुछ नहीं चाहिए। एक वचन दो कि हम कुछ तो ऐसा काम शुरू करेंगे। दूसरी बात उसमें कठिनाई यह है कि लोग गर शुरू करते हैं तो चार जगह पैसे माँगने चले जाते हैं-पहले पैसे इकठ्ठा करना । पैसे बिलकुल भी मत माँगो। पहले वह काम शुरू करो जो पैसे के बगैर हो सकता है। सबसे पहले पैसे इकट्ठे करना-सबको ऐसा लगता है कि पैसे के बगैर काम होता ही नहीं है। आपके पास शक्ति है। आपको पैसे किसलिए चाहिए? आसपास जाकर देखो कोई बीमार होगा । वहाँ देखो उनके यहाँ कोई बीमार हैं। उन्हें कोई परेशानी होगी। कोई बीमार होता है तो मैं ही देखती हूँ। ....उस दिन कोई गृहस्थ बीमार था...उसका हाथ ऐसा हो गया था। अरे, दो मिनट का ही काम था। कोई भी सहजयोग से ठीक कर सकता था, तो उसे मेरे नहीं शुरू किया है। १ | २८ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-28.txt े पास ले आए, वो भी प्रोग्राम के बीचोबीच- 'इसका हाथ ठीक करो।' अब आप इतने सहजयोगी होते हुए भी आपके हाथ से शक्ति बह रही है फिर भी..ये लोग कभी नहीं...इतना भी आप ठीक कर सकते तो आपके सहजयोगी होने का क्या फायदा ? तो मेरी माँ बहुत बीमार है, मेरा बाप ऐसा है, उसके पैर टूट गये हैं। 'अरे, आप ठीक कीजिए।' आपमें शक्ति हैं ना! करके तो देखो। तो लोगों की मदद करनी होगी बिना किसी अपेक्षा के, आनंद में, उस भावना से जिसमें सचमुच अत्यंत आनंद मिलता है। परमात्मा का एक साधन मात्र होकर विश्व में इस देश में इस परिवार में कुछ विशेष दे रहे हैं-यह कितनी बड़ी धारणा है। कितनी गौरव की बात है। गर ऐसा समझ कर आप सबने निश्चय किया तो कुछ न कुछ तो आपके हाथ से घटित होगा। और फिर लोगों की समझ में आएगा कि सहजयोग क्या है। 6. अब सहजयोग क्या है। ...सब लोग ध्यान में बैठे हैं। हमारे देश में कुछ गडबड हुई तो - ध्यान में ही हैं हो गया। 'अब हमारी बीबी खाना नहीं बनाती।' पूछा 'क्यों?' 'वो ध्यान ही करती रहती है।' ऐसा क्यों? किसने बताया उसे। खाना पहलें बनाना है। ध्यान के लिए पाँच मिनट बहुत हैं। आपको शक्ति दी है तो आप अच्छा खाना बनाओगे। तो एक तरह का विश्वास होना चाहिए और कार्य की क्षमता भी होनी चाहिए। मैं जो शक्ति देती हँ उसे ग्रहण करो। रोज सिर्फ ध्यान- धारणा करके कोई फायदा नहीं। यह भी देखना चाहिए कि आपने लोगों का क्या भला किया। आपका भला हुआ, हमारा भला होना चाहिए।.. मेरे बेटे के लिए करो, मेरी नौकरी के लिए करो, मेरी माँ को ठीक करो, बाप को ठीक करो, फलाने को ठीक करो। मेरे घर आओ। ये करो , वो करो । ... सबके उपर ही अधिकार और आप क्या करोगे? हमें भी कुछ करना चाहिए ऐसा मन से निश्चय करें कि माताजी को हम कुछ विशेष करके दिखायेंगे। और मेरे सामने सचमुच ऐसा चित्र खड़ा है जो वर्णन ज्ञानेश्वर जी ने किया है 'बोल ते पियुषांचे सागर' वह पीयुष का जो सागर है... हमें देखना है , वह कहाँ यह है। तो सबको इस सुदिवस पर मीठा- मीठा आशीर्वाद । सबका अच्छा करो और सबका भला करो। सबसे प्रेम से बर्ताव करो और प्रेम से बोलो। २९ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-29.txt अंतर्बोध तथा महिलाएं अनुवादित, ९ ७-१९८८, लीरैन्स (फ्रांस) मैं ने आप लोगों से बात कर के एक सभा की व्यवस्था करने के लिए कहा, उसका कारण यह है, क्योंकि मैंने खोज किया है कि कलयुग में विशेषकर पश्चिमी देशों में, समस्याएं महिलाओं से आएगी। मुझे आस्ट्रेलिया में बहुत बड़ी समस्या हुई। आप लोगों ने इसके बारें में सुना होगा| क्या आप लोगों ने सुना हैं? यह बहुत गंभीर समस्या है। उसने (उस पत्नी ने) अपना अहंकार स्पष्ट रूप से दिखा दिया। उसने कहा, "मैं माँ की बात नहीं मानूँगी। मैं जानती हूँ कि मैं भूतग्रस्त हूँ और इसके बारें में अब कुछ नहीं कर सकती और मैं गायब हो जाना चाहती हूँ। अपने माता-पिता के साथ रहँगी व अपने बच्चों को भी वहाँ रखूँगी। जो कुछ करना हो करिये। अगर आप बच्चें लेते हैं तो मैं आपसे लड़ाई करुंगी।" उसके कारण ही उसके बच्चों को 'मेनिनजाइटिस' बिमारी हैं। वे मरने के कगार पर थें। जब मैं वहाँ थी तो उन्हें बचा लिया। लेकिन जब किसी नकारात्मक महिला में अहंकार प्रवेश करता हैं तो 'कलयुग में विशेष कर कोई भी उसे नहीं बचा सकता । देखिए, मैं स्वयं एक महिला हूँ, इसलिए आप लोगों के नजदिकी संपर्क में आ सकती हूँ। कभी लोग सोचते हैं कि महिलाओं का माँ के साथ विशेष संबंध है। अभी नई औरत जो आई है वह एक दूसरी भयानक औरत है। मैं नहीं जानती कि वह क्या है? हम लोगों को कितना नुकसान कर सकती है? वह किसी को भी अपने से बात नहीं करने देगी। वह कहती है, "माँ के साथ मेरा विशेष सम्बन्ध है।" वह किसी भी लीडर का नहीं सुनेगी। कुछ भी नहीं और उसने भयंकर से भयंकर कार्य किये हैं । विशेषकर पश्चिमी देशों में यह ग्रसित और बेहदे विचार सहजयोगियों के दिमाग में भी गये हैं। एक अनुबंधन जो उनमें है वह है- 'महिलाओं की स्वतंत्रता'। पश्चिमी देशों में, घुस समस्याएं अब सहजयोग में आप पर कोई अधिकार नहीं जमा सकता है क्योंकि आप आत्मा हैं और आत्मा पर अधिकार नहीं जमाया जा सकता अगर आप सोचते हैं कि आप पर किसी का अधिकार है। तब आप अभी आत्मा नहीं हैं। अतः हमें समझना है कि हम सहजयोग में स्त्रिाँ हैं और हमें अपनी संतुलनात्मक शक्ति को पहचानना है। जैसा कि मैंने कई बार कहा है कि वे दोनो एक गाड़ी के दो पहिए महिलाओं हैं, एक दायाँ और बायाँ। बायाँ दाई तरफ और दायाँ बाई तरफ लगाया नहीं जा सकता। हम दूसरा लोग परमात्मा द्वारा इस तरह बनाए गये हैं। परन्तु आपको गर्व होना चाहिए कि आप महिला हैं। मुझे गर्व है कि मैं एक स्त्री हूँ क्योंकि एक महिला बहुत सी चीजें कर सकती हैं, जो पुरूष नहीं कर सकते। औरत पृथ्वी माँ जैसी होती हैं और हम कह सकते हैं कि पुरुष सूर्य की तरह होते हैं। दोनों को मिलना होता है। सूर्य बहिष्कृत किया जा सकता है, पर पृथ्वी को नहीं किया जा सकता। सूर्य रात में नहीं होता फिर भी हम जीवित रहते हैं। पृथ्वी माँ की तरफ देखिये कि उसे कितना उत्पन्न करना होता है। कितना बर्दाश्त कर सकती है। देखिये, कितनी अधिक संवेदनशील वह है। वह हमारे लिए सुन्दर फूल, सुन्दर पेड़ और अन्य चीज़ें बिना शिकायत पैदा करती हैं। इसके अतिरिक्त, यद्यपि हम उसके खिलाफ बहुत से पाप करते रहते हैं, फिर भी वह हमें पालती है। परन्तु सूर्य पृथ्वी नहीं बनना चाहता और पृथ्वी भी सूर्य नहीं बनना चाहती है क्योंकि उन्हें पता है कि वे किसी खास कार्य के लिए स्थित किये गये हैं। सहजयोग की कुछ महिलाएं हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। परन्तु, प्रथम गुण जो होना चाहिए, वह है बर्दाश्त करने की शक्ति। और उनमें आध्यात्मिक प्यार और करुणा होनी चाहिए। मान लीजिए मेरी जगह ईसामसीह होते तो सहजयोग की हालत देखकर वह अपने आपको सूली पर चढ़ा लेते , खत्म से आएगी। ३० अस 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-30.txt में कर लेते या अगर कृष्ण होते तो वह अपने हाथ सुदर्शन चक्र ले कर सबका सिर काट देते, बस, खत्म कर देते। अगर राम होते तो अपने बाण से आपको खत्म कर देतें। उन्होंने इस बात का महत्त्व नहीं दिया होता कि आपको धैर्य रखना है। आपको बर्दाश्त करना है और दूसरों की देखरेख करनी है अगर आपको कुछ परिणाम पैदा करना है तो। अतः सिर्फ महिलाएं ही फल (परिणाम) पैदा कर सकती हैं। आप ही ऐसे बच्चें पैदा कर सकती हैं जो अ ा त म ही साक्षात्कारी होंगे। परन्तु आप अगर ल ा ग अहं क ारित यात्रा पर जाएंगे, तब तो आप ना ही औरत हैं ना ही मर्द। आप बीच की कुछ होंगी। ना तो यहाँ की ना वहाँ की, ना किसी काम की नहीं। अतः महिलाओं को यह शोभा नहीं देता कि वे अहंकारी बनें। यह बेहतर शोभा देता है कि वह भावुक बनें; जैसे कभी दुःख आभास करें और कभी आँखों में आसूँ भी आए। आप जैसे देखते है कि मैं भी कभी कभी रो पड़ती हूँ। मैं आप लोगों को छोड़ रही हूँ (जा रही हूँ)। इसके लिए मुझे बहुत खेद है। मैं अपना हाथ निकालकर (आक्रमक ढंग से) नहीं कहती कि वहाँ बैठो, यह करो। मैं ऐसी बात नहीं करती। क्या मैं करती हूँ? मैं अपनी आवाज़ भी कभी तेज़ नहीं करती हूँ। वह सिर्फ आदमी ही कर सकते हैं । जो कुछ वे कर सकते हैं, उन्हें करने दें । जो कुछ आप कर सकती हैं, कर सकती हैं। एकमेव नारीत्व ही पराकाष्ठा है। आपको स्त्री होनें में निपुण होना चाहिए। खाना बनाने, बागवानी करने, लोगों की सेवा और प्यार करने से ही आप लोगों को बस में कर सकती हैं। आप देखिए, परवाह करके ही , आप लोग दूसरों को बस में करती है ना कि बेवकूफी की चीजों से जैसा कि आदमी लोग करते हैं। ३१ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-31.txt दसरों को बस में करने के लिए प्यार सबसे अच्छा साधन है, परन्तु प्यार का मतलब है त्याग, परन्तु कुछ समय के बाद आप त्याग नहीं आभास करेंगे। अगर देने का आनन्द महसूस करने लगते हैं। तब यह त्याग नहीं होता है और विशेषकर फ्रांस की औरतों के लिए यह बहत जरूरी है क्योंकि इसके पहले बहुत ही हावी रही हैं। अब आपको रचना करनी है एक नई परम्परा की, नये युग की, नये व्यक्तित्व की। वह व्यक्तित्व जो बच्चों का पालन -पोषण करे, सुरक्षा दे, अन्य हर चीज़ बच्चों को दे और अपने पति को संग्रहित तथा प्यार दें। औरतों में बहुतसे गुण दिये गये हैं, क्योंकि उनकी जीवन पद्धति पुरुषों से अधिक कठोर है। अतः मैं आप लोगों से अनुरोध करती हूँ कि आप लोग अच्छी सहजयोगिनी बनें। मैं कहती हूँ कि मैं भारतीय महिलाओं को इसका श्रेय दूँगी क्योंकि उन्होंने एक सुन्दर समाज की रचना की है। हमारे यहाँ एक महिला प्रधानमंत्री थीं। परन्तु हमारे यहाँ बहतसी औरतें महान सैनिक थीं, सेना की अगुआ थीं। परन्तु यह लड़ाई का समय था। हर समय नहीं, अन्यथा वे सिर्फ गृहिणियाँ थीं। ईश्वर ने आप लोगों को विशेष गुण दिये हैं। अगर आप उनको सुधारना चाहती हैं, उनको प्रकटित करना चाहती हैं, तब आपको जानना होगा कि आप महिला हैं, महिलाओं की तरह गौरवशाली होना है। और वह अच्छी तरह कार्यान्वित होता है। मान लो आप अहंकारी है, आप झगडालू है और गर्म मिज़ाज की हैं तब आपके बच्चे आपकी नकल करते हैं। वे पिता की परवाह नहीं 6 आपको रचना करनी है करते। वे माँ की परवाह करते हैं। इसलिए भारतीय समाज इतना अच्छा है। यह समाज अति उत्तम है। लेकिन भारतीय पुरुष निकम्मे हैं। उन्होंने हमारे अर्थशास्त्र को, हमारी राजनीति को अस्त-व्यस्त बना रखा है। लेकिन हो सकता है, आपके पुरुष बेहतर हैं। मैं वह नहीं जानती। मैं नि:सन्देह कहूँगी कि वे भारतीय पुरुषों से विनम्र लोग हैं। पुरुष लोग बहुत हावी हैं, बहुत हावी। लेकिन हम उन पर हँसते हैं, आप जानते हो। देखिए, उन लोगों का स्वभाव एक बच्चे जैसा है, जो हावी होना चाहता है, पति भी उस तरह हावी होना चाहते हैं। और वह किसी दूसरें पर हावी हों तो पीटे जाएंगे। इसलिए वे हम पर एक नई | परम्परा हावी होना चाहते हैं, अन्यथा वे अपना गुस्सा कहाँ निकालें? की, अच्छा है कि वे अपना गुस्सा हम पर ही निकाल लेते हैं, अन्यथा बाहर तो वे पीटे जाएंगे। अगर आपको कोई आदमी बहत शांत और अच्छा दिखे तो जान लीजिए कि उसके पत्नी के बुरे दिन रहे होंगे। अतः आप इसे मज़ाक की तरह ले और इसे गंभीरता से न लें। औरतों को पता होना चाहिए कि आप में बर्दाश्त करने की बहत शक्ति होती है और आपको पता होता है कि किस तरह परिस्थिति को संभालना है और आप लोग बेहतर बुद्धिमान और संयमी हैं। इसलिए जीवन हंसी मजाक का हो जाता है। आप जानती हैं कि आदमी आदमी ही रहेंगे और औरतें औरतें ही रहेंगी। कुछ भी वस्त्र आप पहन नये युग की, नये लो। आपको वही होना है जो आप हैं। लेकिन अगर आपको पता है कि आप क्या हो तो आप अपना आनन्द ले सकेंगी। आदमी हमेशा घड़ियाँ देखते रहते हैं। औरतें हमेशा देर ही करती रहेंगी। एक सहजयोगी :- श्री माताजी, हवाई उड़ान को २५ मिनट देर हो गई है। श्री माताजी :- वह घड़ी देख रहा था। इसे मत रखो। मैं अपने पति से भी ऐसी चालबाजियाँ करती हूँ। इस हँसी-मजाक को देखो। कभी -कभी वह बहुत सावधान रहते हैं। यद्यपि मैं जा रही हूँ पर वह मेरे पीछे पड़े रहेंगे और कहते रहेंगे, "अब आप जल्दी जाओ , जल्दी जाओ।" मैंने कहा, "मैं जा रही हूँ, आप नहीं जा रहे हैं, फिर आप अपनी घड़ी क्यों देख रहे हैं?" और वह जब मेरे साथ जाते हैं। तब भी वही करते हैं। फिर, जहाज को २ घंटे देर होती है, जो वह नहीं जानते हैं। फिर हम वहाँ दो घंटे | व्यक्तित्व की। ? इन्तजार करते हैं। एक सहजयोगिनी :- ( अस्पष्ट ...... ) श्री माताजी :- हाँ, हाँ मैं मेरे पति के बारे में ही कह रही थी। कभी- कभी वह मेरे साथ सिर्फ मुझे छोड़ने आते हैं। 'देखिये', मैं बोलती हूँ कि 'ना आइए ।' वह मेरे साथ आएंगे और इस तरह मुझे परेशान करते रहेंगे, "आपको देर हो रही हैं, देर हो रही है" तब जहाज को ३ घंटे देर होगी। ऐसा ही होता है। ३२ हो 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-32.txt यह ऐसा ही मज़ाक है। जीवन है कि जीवन को सुन्दर बनाइये । लड़़ने, झगड़ने और जिद् करने से कोई फायदा नहीं है। यह अच्छी चीज़़े नहीं हैं। अच्छा है अगर कोई पति कहता है कि ऐसा करिए । तो कहिए, "ठीक है मैं ऐसा करती हूँ।" आप अपने आप ऐसा करीए। आपको ऐसा करना पसन्द आएगा। इसमें कोई नुकसान नहीं है। गर लीडर कहता है तो आप वैसा करिए। परन्तु जब आप हर बात पर नहीं, नहीं करती जाएंगी तब वह आपसे तंग आ जाएंगे | तब इसमें कोई शोभा नहीं है। इसलिए, मुसिबतें क्यों पैदा करें। मान लीजिए, यहाँ कोई कुछ कागज़ रखता है, ठीक है। परन्तु मानिये मैं कुछ कागज़ रखती हूँ और वह इसे पसन्द नहीं करते हैं तो कहेंगे, 'कृपया यह कागज़ हटा लो।' एक बुद्धिमान महिला कहेगी, " ठीक है मैं हठा लेती हँ। मैं कब करूँ? कल पार्टी है, अतः आप नहीं हटा सकतीं। ठीक है। परसो हम लोग जा रहे हैं। अतः आप नहीं हटा सकते ? ठीक है मैं तीन दिन बाद करुँगी।" इन तीन दिनों में जो लोग पाटी के लिए आएंगे , निश्चित ही कहेंगे कि कितने सुन्दर कागज़ हैं। सभी महिलाएं कहेंगी क्योंकि यह महिलाओं की पसन्द का है। देखो , आदमी घर को ऑफिस बनाना चाहते हैं। जब वे आएंगी और कहेंगी कितने अच्छे कागज़ हैं! तब पति लोग कहेंगे कि नि:संदेह आदमी 'अच्छा होता अगर आप कागज़ को ऐसा रखते, यह अच्छा विचार है।' इस तरह से होता है। इस तरह ज्यादा आपको जानना है कि किस तरह सुव्यवस्थित करना है। यह औरत की सुन्दरता है जो जानती है कि बच्चों परिस्थिति को कैसे संभालना है। अगर वह परिस्थिति को संभालना नहीं जानती और पति पर, पर गरजती रहती है, तो यह दिखता है कि वह अयोग्य है। औरत की योग्यता इसमें है कि वह परिस्थिति को किस तरह सुव्यवस्थित करती है । परिवार में शांति लाती है, सभी को आराम तथा खुशी देती है। आप देखिए, हम कह सकते हैं कि वह कैसे लोगों को जोड़ती है। उनको आरामदायक कैसे बनाती है। उसका घर, उसका राज्य है। और आप देखते हैं कि उसमें कुछ औरतें निपुण हैं। और उसी प्रतिभावान है, | तरह से आप लोगों को अपनी बेटियों को भी बनाना है इस तरह से हमारी सहजयोगी महिलाओं को होना है। अब हमें '"जोन आफ आर्क'" नहीं बनना है। परन्तु उन्हें बहुत हिम्मतवाली बहादुर और करुणामयी व्यक्ति बनना है। आपको अपनी लीड़र की बातों पर ध्यान देना चाहिए। मुझे कभी-कभी बहुत शिकायतें मिली हैं। मैं प्रत्यक्ष रूप से आप से सम्बन्ध नहीं रख सकती। मैंने औरतों को नेतागिरी कोशिश करते देखा हैं। यह कार्यान्वित नहीं होता। मरिया खुद लीड़र थी। उसने छोड़ दिया। उसने कहा, "मैं लीड्र बनना नहीं चाहती, किसी दूसरे को दीजिए"। उसने छोड़ दिया। अब क्रिस्टिन लीडर है। पिछले दिन उसने फोन किया, "माँ, आप किसी और को दे दीजिए।" क्योंकि, देखिये उसने अनुभव किया कि इन आदमियों को संभालना, एक आदमी ही बेहतर कर सकता है। नहीं, आदमी ज्यादा प्रतिभावान है, नि:संदेह लेकिन औरतों के पास अंतर्बोध है । लेकिन आपको बहस नहीं करनी है। यह अपने आप कार्यान्वित होगा, उस तरह जैसा आपका अंतर्बोध है और उनको एक शिक्षा मिलेगी। अतः आप अपने से बहत जोर ना दें। यह अपने आप वैसा ही होगा, जैसा आप का अंतर्बोध है और जिसे आपने महसूस किया है कि कैसे होगा, और आपको आश्चर्य होगा कि कैसे हुआ। ठीक है। कोई दूसरा प्रश्न। लेकिन महिलाओं ना3 कृपया १) के पास अंतर्बोध हैं। १ सहजयोगी :- ( अस्पष्ट) श्री माताजी :- यह क्या है? उससे कोई पूछे। सहजयोगी :- वह जानना चाहती है कि प्रतिमा से आपके क्या माईने हैं? श्री माताजी :- प्रतिमा, प्रतिमा स्थूल है। उदाहरणार्थ, बुद्धि से कहेंगे और अन्य से, देखिये, ठीक है। लेकिन अंतर्बोध से आप कहेंगे कि हम देर नहीं होंगे। अतः आप अपना अंतर्बोध विकसित करें न कि बुद्धि। देखिए, मुसिबत है कि आप उनसे बुद्धि द्वारा प्रतियोगिता करना चाहती है। बहस के द्वारा आप कहेंगी अभी ३ मिनट शेष है। वे कहेंगे २ मिनट और आप कहेंगे ३ मिनट । वह इसी तरह ३३ পष्व 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-33.txt होता है। लेकिन आपको कहना चाहिए कि चलो देखते हैं ३ मिनट, चलो देखते हैं। तब वह देख पाते हैं कि आपने जो कहा वह ठीक था। आपको एक बार कहना है, बस! इसके बाद वह कहता है, ठीक है, ठीक है। अगर आप कहती है तो हम इसी तरह से जाएंगे। वह आगे बढ़ेगा, कहेगा, 'मैं सोचता हूँ हम गलत जा रहे हैं। आपने जो कहा वह ठीक था। हमें वैसे ही जाना होगा।' सहजयोग में, इन सब आदमियों और औरतों को मैंने अंतर्बोध द्वारा ही संभाला है । लेकिन मैं कहँगी कि पश्चिमी देशों में औरतों का अंतर्बोध बहुत खराब है क्योंकि वे बहुत बहसवादी हैं। अतः देखिए, इस अंतर्बोध के लिए विशेष गुण विकसित करना चाहिए। ठीक है। अब अंतर देखिये, क्योंकि अब आपने गहनता प्राप्त की है। अति गहनता। उत्क्रांति में आप उच्चतम हो, नि:संदेह परन्तु आप उनसे प्रतिस्पर्धा करने की कोशिश करती हैं और उन्हें बहुत अधिक दासत्व में खींच लाती हैं। उदाहरणार्थ यह सभ्यता - इसमें औरतें आदमियों को आकर्षित करने के लिए अपने शरीर की नुमाईश करना चाहती हैं। हर वक्त पुरुषों को आकर्षित करने की क्या जरूरत है? आप ऐसा क्यों करती हो? हर वक्त पुरुषो को आकर्षित करने के लिए अपने शरीर को क्यों प्रदर्शित करते हो? हमें ऐसा क्यों करना चाहिए? हमें अपने शरीर का प्रदर्शन क्यों करना चाहिए? कवि रविन्द्रनाथ ने एक कहानी लिखी है, जहाँ उन्होंने लिखा है कि एक लेखक था, जो प्रेमकथा लिख रहा था। उसने अपनी पत्नी से कहा कि 'मान लो, शादी के पहले कहता कि तुम मेरे साथ चुपके से गायब हो चलो, तो तुम उसने कहा कि 'मैं तुरन्त पुलिस को सूचित कर देती।' रवीद्रनाथ एक लेखक की कहानी लिख रहे थे, जो इस तरह है। अतः आप लोगों को अपनी गरिमा का ध्यान देना चाहिए। आप देखिए, जिस तरह से औरतें अपने को नग्न रखती है, आदमियों के पीछे भागती है, तब फिर हम कैसे कह सकती हैं कि बलात्कार हुआ या और कुछ। मुझे लगता है हम लोग ऐसा ही चाहते हैं। हम इस तरह से हो गए है कि हम आदमियों के गन्दे चित्र चाहते हैं। लेकिन सहजयोगियों में ऐसी औरतें नहीं है । वे प्रतिष्ठित हैं । उनमें अपनापन है। उनमें संतुलन है। उनमें अपनी प्रतिष्ठा है क्योंकि वे योगिनी है। उनके मस्तिष्क में प्रकाश (प्रबोधिता) है, वे विशेष लोग हैं। अतः हमें अपने को थोड़ा निर्बंधित (deconditioning) रखना हैं, विशेषकर अहंकार को, जो पश्चिमी औरतों में बहुत विकसित है उसे औरतों को नीचे लाना चाहिए । एक दूसरी घटना बताऊंगी कि किस तरह मैंने किस तरह से एक सन्यासी के अहंकार को निकाला। एक बार मैं एक सन्यासी से मिलने एक पहाड़ी पर गई । वह एक उत्कृष्ट आत्मा था परन्तु पुरुष था। उसमें अहंकार था ऐसा मुझे लगता है। काफी बारिश होने लगी और रुक नहीं रही थी। और कहा जाता है कि इस सन्यासी में शक्ति थी कि वह बारिश को रोक सकता था। वह बहुत क्षुब्ध हो गया। और जब मैं गई, वह इधर उधर घूम रहा था। दुःखी था कि वह बारीश को नहीं रोक पाया। जब मैं वहाँ गई और बैठी तो काफी भीगी थी। वह वहाँ आया और निसंदेह मेरा पैर छुआ। परन्तु उसने कहा, " माँ, आपने मुझे बारिश को बस में करने क्यों नहीं दिया? क्या यह ऐसा है कि आप मेरे अहंकार को नियंत्रित करना चाहती थी?" मैंने कहा, "नहीं, ऐसा नहीं है| मैं किसी तरह से तुम्हारे अहंकार को नियंत्रित करना नहीं चाहती थी।'" "तब फिर आपने मुझे बारिश रोकने क्यों नहीं दिया। | 'सहजयोग में, इन सब आदमियों क्या करती?' और औरतों 3 को मैंने अंतर्बाध द्वारा ही संभाला उसने कहा। तब मैंने कहा "यह समस्या इस तरह से है कि तुम एक सन्यासी हो और मेरे लिए साड़ी लाए हो। और एक सन्यासी से मैं साड़ी नहीं ले सकती थी। लेकिन भीग जाने पर मैं ले सकती हूँ।" प्रेमपूर्वक ऐसा मैंने उससे कहा। उसे नहीं पता था कि क्या जबाब दे और उसने कहा, "आपको कैसे पता कि मैं साड़ी लाया हूँ।" तब मैंने कहा, "आप मुझे आदिशक्ति मानतो हो। ऐसा है ना!" उसने कहा, "हाँ, हाँ, मैं मानता हूँ। आपमें महान शक्तियाँ हैं।" है। मैंने कहा, "यह बात नहीं है। लेकिन जब मैं आ रही थी, मैंने सोचा कि यदि बारिश का पानी मेरे शरीर के ऊपर से बहता इसलिए मैंने ऐसा किया।" देखिए, यद्यपि वह पैरों से पूरा पक्षघातित थे फिर भी मेरे पैर पकड़ कर रोने तो सारी चीज़़े चैतन्यित हो जाती। तब आपका ये क्षेत्र हमारा हो जाता। ३४ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-34.txt लगे। उन्होंने कहा, "मेरी माँ, कृपया मुझे क्षमा करो।" इस तरह से यह बुद्धि और अंतर्बोध के माइने हैं। ठीक है, इस तरह से अपने अंतर्बोध को विकसित करो। हर चीज़ को हाँ, हाँ कहो, लेकिन आपको जो पता है वही होगा। लेकिन हम निश्चित करते हैं, नहीं, यह तो ऐसे ही होना चाहिए, यह तो ऐसे ही होना चाहिए और ऐसा ही करते रहते हो । तो देखिए, आप अपने को और दूसरों को भी दुःखी बना देंगे। अगर उसने प्याला ऐसे रखा है, तब आप कहेंगे, "नहीं, ऐसा होना चाहिए।" फिर पति आएंगे और वैसा रख देंगे। फिर आप वैसा रख देंगी । इस तरह चलता रहेगा, देखिए । लेकिन अगर आप वास्तव में महिला है तो कहेगी 'ठीक है। आप वैसा ही रखिये । ' फिर सारे गण आपकी सहायता में आ जाएंगे। | 'अगर आप लोग देवियाँ हैं देखिए वे आपकी देखरेख करेंगे। अगर आप लोग आधा आदमी बनाना चाहती हैं तो गण ऐसे अधूरे व्यक्तियों की क्यों चिंता करें ? मैंने इस प्रकार बहुत से प्रयोग किए हैं और मैंने लोगों को देखा है जैसे वे बहुत दिखाने की कोशिश करते हैं। तब वे गायब ही हो जाते हैं। देखिए, आप अपने इस तरह से ये मुख्य चीज़ है कि आप अपने अंतर्बोध को विकसित करें। उसके साथ जीवन पनपें । और जो आपका अंतर्बोध है वह सच साबित होगा क्योंकि अंतर्बोध गणों से आता है। अतः बाईं बाजू को इस तरह विकसित करना चाहिए कि गण खुश हो सरकें। और अगर आप अपने साथ गणों को विकसित करें तो आपको कोई कष्ट नहीं दे सकता। साथ गणों को और उनमें (आदमियों में) बहुत खामियाँ है, जो कि बहुत मजेदार है , जैसे वे चीज़ों को जाते हैं, हमेशा भूल जाते हैं। कोई चीज वहाँ छोड देंगे और उसके बारें में भूल जाएंगे । यह इन लोगों की विशेषता है। आप उन्हें चाभी दे दो (फिर भी) कहेंगे, "आपने चाभी नहीं दी।" ठीक है, मैंने चाभी नहीं दी, ठीक है, यही ठीक है, आप ये कहिए। मेरे पति तो बहुत उँचे है, इसलिए हर चीज़ को मैं ६ फीट की ऊँचाई से देखती हैँ। वहाँ हमें नजर आती है। अतः यह बहुत मजेदार है, ठीक है ना। अतः आपको शांत और संयमित होना चाहिए, एक साथ संयमित। तब आप देखेंगे कि आपको गण कैसे सहयोग देते हैं। इसके बाद तो आपके पति आपके पीछे-पीछे, पैसों के बारें में या अन्य मसलें में, चलेंगे, ठीक है। देखिए, हम लोगों को अपने मकान से काफी फायदा हुआ। मेरे पति ने कुछ पैसा मुझे दिया और कुछ अपने पास रखा। ईश्वर जाने कहाँ? और कहा कि उसमें उन्हें बहुत ब्याज मिलेगा। मैंने कहा, "ठीक है, ठीक है।" और मैंने इस घर से छोटा एक घर खरीदा। इस घर की किमत आज ९ गुना हो गई है। और उनकी बचत अब हमारी एक चौथाई भी नहीं है। भूल विकसित करें तो आपको अतः अब वे कहते है - क्या मैं एक घर खरीद लूँ। अगर आप कहें तो मैं एक घर खरीद लूँ। मैंने कहा - "अभी नहीं , क्योंकि अभी तो कीमतें बहुत अधिक हैं' उन्होंने कहा कोई कष्ट आप अर्थशास्त्र कैसे जानती हो?" "सिर्फ अंतर्बोध से", मैंने कहा। वह अर्थशास्त्र के विशेषज्ञ हैं, और गोल्ड मेडलिस्ट हैं। सोचिए| नहीं दे वे लोग (पुरुष) बुद्धिमान हैं, परन्तु साधारण ज्ञान और व्यवहारिक ज्ञान की कमी है। देखिए, उनके एक ही तरह के पहनावा होता है और उसी को हमेशा पहनते हैं। आप लोग कितनी बार (कपडे) बदलते हों, उन्हें समस्या नहीं हैं। वे स्थूल लोग हैं। व्यवहारिक ज्ञान उनमें नहीं है। इसलिए आप लोग उनके सकता। पूरक हैं। वे लोग नियम, कानून आदि में बेहतर हैं। वहाँ पर आप लोगों को उनकी बात माननी चाहिए। और वे कहते हैं ऐसा करो, वैसा करो, तो आपको मानना चाहिए क्योंकि उनको वह ज्ञान है। वे लोग उस ज्ञान के ज्ञाता हैं और आप लोग उनसे बहस न करें। बहस से आपको भी प्राप्त होने वाला नहीं है। ठीक है! यह एक प्रश्न का उत्तर है। और दूसरा प्रश्न क्या है? चलो चलें, चलो चलें। ठीक है। अब हर कोई खुश है। हमें गणों को अपने तरफ करना है, ठीक है। कुछ ईश्वर आपको आशीर्वाद दें। ३५ 2009_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-35.txt न] ० रा का छ स) आज संक्रांति है..... आपस में प्रेम बढ़ाने के लिए तिल और गुड़ देतें है। १७ जनवरी २००८, पुणे रम