चैतन्य लहरी सितंबर-अक्टूबर २००९ हिन्दी े २५ मैं सब कुछ जानती हूँ क्योंकि मुझे आपकी चिन्ता है। आप सब की। मैं जानती हूँ कि आप कहाँ खड़े हैं, आपको क्या परेशानी है । क्या किया जाना चाहिए, आपको दू दू क्या पसन्द है और क्या ना पसन्द| पर्थ, ऑस्ट्रेलिया, ९/२/१९९२ इस अंक में श्री महाकाली पूजा - १ ब विशुद्धि तत्व - ७ और अन्य सन्तुलन - १९ सहज विवाह - २७ कहू-गाजर की खीर - ३१ श्रीमहाकाली पूजा (कि कलकत्ता, ०१ अप्रैल १९८६ २१ मार्च से हमारा जन्मदिवस आप लोग मना रहे हैं और बम्बई में भी बड़ी जोर-शोर से चार दिन तक जन्म दिवस मनाया गया और इसके बाद दिल्ली में जनम दिवस मनाया गया और आज भी लग रहा है फिर आप लोग हमारा जन्म दिवस मनाते रहें। इस कदर सुंदर सजाया हुआ है इस मंडप को, फूलों से और विविध रंगों से सारी शोभा इतनी बढ़ाई हुई है कि शब्द रूक जाते हैं, कलाकारों को देखकर कि उन्होंने किस तरीके से अपने हृदय से यहाँ यह प्रतिभावान चीज़ बनाई इतने थोड़ी समय में। आज विशेष स्वरूप ऐसा है कि अधिकतर इन दिनों जब कि ईस्टर होता है मैं लंदन में रहती हूँ और हर ईस्टर की पूजा लंदन में ही होती है। तो उन लोगों ने यह खबर की, कि माँ कोई बात नहीं आप कहीं भी रहें जहाँ भी आपकी पूजा होगी वहाँ हमें याद कर लीजिएगा और हम यहाँ ईस्टर की पूजा करेंगे उस दिन। इतने जल्दी में पूजा का सारा इन्तजाम हुआ और इतनी सुंदरता से, यह सब परमात्मा की असीम कृपा है जो उन्होंने ऐसी व्यवस्था करवा दी। लेकिन यहाँ एक बड़ा कार्य आज से आरंभ हो रहा है। आज तक मैंने अगुरूओं के विषय के बारे में बहुत कुछ कहा और बहुत खुले तरीके से मैंने इनके बारे में बताया; ये कितने दुष्ट हैं, कितने राक्षसी हैं और किस तरीके से ये सच्चे साधकों का रास्ता रोकते हैं और उनको गलतफहमी में डाल के उनको एकदम उल्टे रास्ते पर ड़राल देते हैं और इसके लिए बहुत जताया कि ऐसी बात करना ठीक नहीं इससे गुरू लोग आप पर आक्रमण करेंगे और आपको सताएंगे लेकिन लोगों ने हुआ उसके बिलकुल उल्टा किसी ने भी हमें कचहरी नहीं दिखाई, ना ही किसी ने हमारे बारे में बात कही, एक-एक करके हर एक दुष्ट सामने आया और दुनिया ने जाना कि जो कुछ हमने इनके बारे में कहा था वह बिलकुल सत्य है, आज धीरे-धीरे ये अगुरू मिट रहे हैं। लेकिन तांत्रिक अभी भी काफी अपना जोर बँधाये हुए हैं और आपके कलकत्ते में इसका मेरे खयाल से मुख्य स्रोत है। यहाँ पर वह पनपते हैं और यहीं से सारी दुनिया में छा जाते हैं। आज ही एक साहब से मुलाकात हुई, उनसे इतने तान्त्रिकों पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कौन-कौन उनके आश्रय में आये और कौन-कौन महात्मा बन गये। मुझे लगा ये अभियान अब शुरू हो गया। ये तान्त्रिकों को एक-एक करके ठीक करना जरूरी नहीं है। सबको एक साथ ही गंगाजी में धो ड़ालना चाहिए । तभी इनकी तबियत ठीक होगी। आज यह महिषासुर सब दूर फैल गया है। इसको खत्म करने का ही अभियान शुरू होना चाहिए। ये एक बड़ी भारी आत्मिक क्रान्ति है जिससे सारे संसार का कल्याण होने वाला है। सारा संसार इस क्रान्ति से पुनीत हो जाएगा और आनन्द के सागर में परमात्मा के साम्राज्य में रहेगा। लेकिन उसके लिए सबको धीरज से कुछ न कुछ त्याग करना चाहिए और उसके लिए सबसे बड़ी चीज़ यह है कि हिम्मत रखनी चाहिए। हिम्मत से अगर काम लिया जाए तो कोई वह दिन दूर नहीं जब हमारा सारा संसार सुख से भरा हो जाएगा। किन्तु उसमें सबसे बड़ी अड़चन आती है। हमें जब तक कि सहजयोगी गहनता में उतरते नहीं, सहजयोगियों को चाहिए कि वे गहनता में उतरें। हर सहजयोगियों के लिए ये बड़ी जिम्मेदारी है कि उन्हें इस क्रान्ति में ऐसा कार्य करना १ एक अभियान शुरु हो रहा है.. २ उनके आगे बाकी सब पराये हैं। चाहिए जो एक विशेष रूप धारण किए हो। अभी तक जो भी सहजयोगी मैं देखती हैँ उनमें यही बात होती है कि अभी हमारी यह पकड़ आ रही है, माँ, हमारे यह चक्र पकड़ रहे हैं, हमारा यह हो रहा है, अभी हमारे अन्दर यह दोष है, ऐसा है, वैसा है। लेकिन जब आप देना शुरू करें। मगर हम जब दूसरों को देना शुरू करेंगे, जब दूसरों का उद्धार करना शुरू करेंगे तो अपने आप यह सब चीजें धीरे-धीरे कम होती जाएगी। चित्त अपना इधर ही रहना चाहिए कि हमने कितनों को दिया। कितनों को हमने पार कराया। कितनों को हमने सहजयोग में लाया है। जब तक हम इसे जोर से नहीं कर सकते तब तक सहजयोग का कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा और ये बढ़ना अत्यंत आवश्यक है। उसके लिए और भी बातें करनी चाहिए। जो कि हम लोग सोच रहे हैं कि एक साल के চ अन्दर घटित हो जाए उसमें से एक बात ऐसे सोच रहे हैं कि इस तरह का एक कोई आश्रम बना लें जहाँ पर सहजयोगी अलग-अलग जगह से आकर रहेंगे और उनको सहजयोग के मार्ग से पूर्ण, ूर्णतया परिचित किया जाएगा। इतना ही नहीं लेकिन उनकी जो कुण्डलिनी है उसकी जागृति भी पूर्णतया हो जाएगी और वे एक बड़े, भारी महान योगी के रूप में हमारे संसार में कार्यान्वित होंगे। इसकी व्यवस्था सोच रहे हैं और मेरे विचार से साल भर के अन्दर कोई न कोई ऐसी चीज़ बन जाएगी जहाँ पर आप लोग कम से कम एक महीना आकर रह सकते हैं। और वहाँ रह कर आप सहजयोग में पारंगत हो जाएं और एक निष्णात प्रवीण सहजयोगी बनकर इस सारे संसार में आप कार्य कर सकते हैं । पर सबसे पहले बड़ी बात यह है कि जो हमारे अन्दर एक तरह का अपने प्रति एक अविश्वास सा है जो डेफिडन्स है उससे हमें बाज़ आना चाहिए। हम आपसे बताते हैं यहाँ जो डॉ.वॉरेन है, ये जब सहजयोग में आए थे तो हमारे पास ज़्यादा से ज़्यादा एक-आठ दिन तक रहे। उसमें भी लड़ते झगड़ते रहे पूरे समय उनके पहले समझ में नहीं आ रहा था किस तरह अपने को ठीक करें फिलहाल जो भी हो उसके बाद वो ठीक हो गये और वापस वे ऑस्ट्रेलिया चले गए और ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद उन्होंने इतने लोगों को पार कर दिया। इतने लोगों को ठिकाने लगा दिया कि मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जिन्होंने गणपति भी क्या उसे जाना नहीं था । जिन्होंने किसी देवता को कभी जाना नहीं था। जिन्होंने कभी कुण्डलिनी के बारे में जाना नहीं था। वो आठ दिन के अन्दर इतने बढ़िया होकर और सारे ऑस्ट्रेलिया पर छा गये। तो यह सोचना कि हम इसे नहीं कर सकते हैं या कैसे करें? इसमें यह उलझन है लोग क्या समझेंगे इस तरह की आप अगर आपने विचार धारणा रखी तो सहजयोग बढ़ नहीं सकता। परमात्मा आपके साथ में है, शक्ति आपके साथ में है। स्वयं आप योगी है और सब योगियों के ऊपर ये जिम्मेदारी है इस कार्य को पूरी तरह से करें। जब तक आप संघठित रूप से नहीं रहेंगे तब तक यह कार्य नहीं हो सकता। संघठित होना पड़ेगा। संघठित होने का मतलब यह है कि, आप एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग है। एक सहजयोगी को दूसरे सहजयोगी से कभी भी विलग समझना नहीं चाहिए। जैसे कि मैं देखती हूँ कि शुरुआत में सहजयोगी जो इन्सान सहजयोगी नहीं है उसकी ओर ज़्यादा मुड़ता है बजाय इसके कि जो सहजयोगी है। तो पहली तो बात यह होनी चाहिए कि जो हमारे दूसरे भाई -बहन जो सहजयोगी हैं, उनके आगे बाकी सब पराये हैं। कोई कुछ भी बात कहें उनके साथ हमको किसी तरह से भी एकमत नहीं होना क्योंकि वो आपको चक्कर में ड्राल देंगे और आपके अन्दर फूट पड़ जाएगी। इस आसुरी विद्या से अगर बचना है तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि आप योगी जन है और आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हर आसुरी विद्या का एक-एक ऐजंट है। समझ लीजिए वह आपको खींचना चाहता है कि आप इस विद्या से हट जाएं और उनके विद्या में आ जाएं। और उनकी चालाकियाँ इतनी सुन्दर है कि आपकी समझ में नहीं आएगी। ३ पहली तो बात यह होनी चाहिए कि जो हमारे दूसरे भाई- बहन जो सहजयोगी हैं इसलिए पहली चीज़ यह है कि हम सहजयोगी, सहजयोगी के विरोध में नहीं जाएंगे और कोई ग्रुप हम न बनाये और कहीं ग्रुप जरा सा भी बनने लग जाता है सहजयोग का तो मैं उसको तोड़ देती हूँ और ऐसा तोड़ा है। अब जैसे ग्रुप बन गये, दिल्ली वाले हो गए, फिर दिल्ली में कोई हो गए तो कोई करोल बाग के हो गए। तो कोई कहीं के हो गए। तो कोई बम्बई के हो गए। तो बम्बई वाले तो उनमें भी कोई नागपाड़ा के हो गये, तो कोई दादर के हो गए, तो कोई कहां के हो गए। अब करते- करते फिर आप ऐसी छोटी जगह पर आप पहुँच जाएंगे जहाँ आप सिर्फ अकेले बैठे रहेंगे और आप कहेंगे कि सहजयोगी कहाँ गायब हो गए। तो इसमें से कोई भी चीज़ का ग्रुप नहीं होना चाहिए । जब इन्सान में कैन्सर सैट होता है तब वह ग्रुप बना के रहता है। एक आदमी में अगर 'डीएनए' जिसे कहते हैं एक आदमी में अगर खराब हो जाए, एक सेल में अगर खराबी आ जाए एक ही सेल में अगर खराबी आ जाए तो वह दूसरे सेल पर जोर करेगा और दूसरा सेल तीसरे सेल पर जोर करेगा और ऐसा उनका एक गुट बनता जाएगा। वह चाहेगा हमारा जो एक ग्रुप है वह सब पर हावी हो जाए। जब वह सब पर हावी होने लगता है जैसे कि आप समझ लीजिए कि आपके नाक का सेल है वो अगर बढ़ने लगा तो उन्होंने एक ग्रुप बना लिया तो एक बड़ा सा यहाँ पर लम्पसा हो गया और उसने जाकर के आक्रमण किया आँख के ऊपर, फिर आँख को ढक लिया और वहाँ से गए कान को ढ़क लिया। इस तरह से कैन्सर जो होता है वह अपनी अपेक्षा दूसरों को नीचे समझता है। और एक ग्रुप बनाकर के उनके जो दूसरे लोग है जो कि सहजयोगी हैं उनको दबाता है। ऐसी बीमारी अगर सहजयोग में अगर फैल जाए तो उसका ठिकाना मैं खुूब लगाती हूँ। चाहे मैं कहीं भी हूँ, मैं चाहे लंदन में रहँ चाहे मैं अमेरिका में रहूँ चाहे कहीं भी रहँ उसका ठिकाना अपने आप हो जाता है। इसलिए किसी को भी कोई ग्रुपबाज़ी नहीं करनी चाहिए । किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए हम एक ग्रुप के हैं। अगर दस आदमी एक साथ रहते हैं और बार-बार एक ही साथ दस आदमी रहते हैं तो समझ लेना चाहिए कि ग्रुप बन रहा है। सहजयोगियों को कभी भी एक साथ दस आदमी हर समय नहीं रहना चाहिए। जब आज इनके साथ बैठे तो कल उनके साथ, तो कल इनके साथ। जैसे कि हमारे अन्दर रक्त की छोटी-छोटी पेशियाँ हैं जिनको हम सेल्स कहते हैं। वो अगर समझ लीजिए कि एक जगह बैठ गये तो दस सेल्स ने यह सोचा कि हम यहीं बैठ जाए तो उस आदमी की मृत्यु हो जाएगी। सहजयोग की मृत्यु हो जाएगी। इसलिए हम दस आदमी एक साथ क्योंकि हम एक ग्रुप के हैं, ये एक ग्रुप के हैं, वे एक ग्रुप के हैं, रक्ताभिसरण जिसे कहते हैं कि ब्लड का जो सरक्युलेशन है वह हमारे अन्दर खुले आम से होना चाहिए, तो कोई सा भी ग्रुप नहीं बनना चाहिए। जहाँ ग्रुप आपने देखा बन रहा है उस ग्रुप को छोड़कर दूसरे ग्रुप में चले जाएं। उस ग्रुप को तोडिए। उसे कहना इस ग्रुप के साथ आ जाए और वह उस ग्रुप के साथ आ जाएगा। इस तरह से आप जब तक नहीं करेंगे तब तक आपकी कलेक्टिविटी में निगेटिविटी बनती जाएगी। जैसे कि मैं कहती हूैँ कि आपने अगर मंथन करके मख्खन निकाला। मख्खन के कण चारों तरफ हैं मगर उसमें बड़ा सा एक मख्खन का ढ़ेला ड्ालना पड़ता है फिर उसके आस- पास सारे जो कण हैं वो जुड़ते जाते हैं। मगर चार, पाँच, छ: कण मिलकर अलग से अगर बैठ जाएं तो जिसने मथा है वह कहता है जाने दीजिए। बेकार ही है, यह मख्खन बेकार ही है। इसे छोड़ दीजिए । जो बड़ा है उसे उठा लीजिए। तो सबको मिल - मिल करके एक बड़ा सा मख्खन के ठेला स्वरूप बनना है। इसी तरह से आपको भी एक बड़ा सा ग्रुप बनना चाहिए। करते-करते फिर एक बड़े सागर में विलीन होना चाहिए। तो एक बूँद को अगर आपको सागर में विलीन करना है तो आप चार-पाँच बूँद बना के सिर्फ बबुला आप जानते है कि दो मिनट के लिए आते हैं और नष्ट हो जाते हैं। अपने आप ही प्रकृति से ही होते हैं। उसको कोई कुछ करने की जरूरत नहीं है | इसलिए कोई सा भी ग्रुप आपको बनाना नहीं है। सबके साथ एक जैसा मिलना-जुलना, सबको एक साथ जाना। सबसे एक साथ प्रेम रखना और सबको एक साथ समझने की कोशिश करनी है। एक दूसरों को किसी भी तरीके से क्रिटीसाइज़ (निंदा) कभी नहीं करना चाहिए। आप आपस में भाई -बहन नहीं है लेकिन आप मेरे शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। अगर समझ लीजिए मेरी एक अंगुली ने दुसरी अंगुली को क्रिटीसाइज़ कर दिया तो क्या फायदा होगा? इससे तो नुकसान ही होने वाला है । इसलिए ठीक यही है कि मनुष्य को, इसलिए बहुत उचित बात है कि, हम लोगों को यह सोचना चाहिए कि अब हम मनुष्य नहीं हैं। हम अति मानव हैं और अति मानव की जो स्थिति है उसमें हमें सब दूर घूम-फिर कर के अपना चित्त परमात्मा पर रखना चाहिए। यह बड़ी भारी एक कठिनाई आ जाती है। ४ सहजयोग में। शुरुआत में कलेक्टिविटी, पता नहीं आदमी क्यों तोड़ देता है। यह भी एक आसूरी विद्या है । जहाँ कलेक्टिविटी टूट जाती है। अब जैसे हम कहें कि बम्बई में यह काम कम है। पर दिल्ली में अभी नहीं मगर कलकत्ता में मुझे मालूम नहीं हाल। लेकिन मैं यही कहँगी कि ये बीमारियाँ फैलने मत दीजिए। आप सब लोग मेरे बेटे हैं और मेरी बेटियाँ हैं। आपस में कोई सा भी अगर आपमें मतभेद हो जाए तो उसमें कोई ऐसी बात नहीं लेकिन यह है कि आपस में आप कोई ग्रुपबाज़ी मत कीजिए। फिर एक ग्रुप बन गया फिर वह ग्रप वाले कहेंगे हमारे आदमी को आप सामने कीजिए । वह ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को सामने कीजिए और फिर दूसरा ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को समाने कीजिए और उसका फिर असर क्या होगा? आप देखते हैं कि ऐसे लोग सहजयोग से परान्मुख हो जाते हैं, हट जाते हैं। उनका स्थान खत्म हो जाता है। जैसे गुरुओं को खत्म किया है। वैसे इस तरह के लोगों को भी खत्म किया जाता है। तो मैं नहीं करूं तो आपकी प्रकृति ही कर देती है। इसलिए आपको खास करके मुझे कहना है कि, कृपया आप लोग अपनी ओर चित्त दें और दूसरों की ओर प्रेम दें। दूसरों को प्रेम दीजिए और अपनी ओर चित्त रखें। अपनी ओर देखें। अपनी ओर देखिए और कहिए कि हम कैसे हैं? क्या हम ठीक हैं? क्या हमारे चक्र ठीक हैं? क्या हम में कोई दोष है? अगर आप सोचते हैं कि कोई समझता है तो उससे जाकर पूछिए कि, अगर कोई चक्र पकड़ रहा है तो बता दीजिए, हमारे समझ में नहीं आ रहा । जिस दिन आप इस चीज़ को अपना लेंगे कि हम माँ के अंग-प्रत्यंग में बैठे हैं आप समझ जाएंगे कि आपका कितना महत्त्व है। आप चाहे जैसे भी हैं हमने आपको स्वीकार कर लिया है। अब आपको भी हमें स्वीकार करना होगा और जानना होगा कि अब अत्यंत शुद्ध और पवित्र भाव से रहने से ही हमारी माँ को और सुख आनन्द मिल सकता है। आज की एक विशेष तिथि है, इस तिथि पर अभियान शुरू हो रहा है कि सारी दुनिया के जितने भी तांत्रिक है उनके पीछे मैं अब लगने वाली हूँ। और मैं चाहती हूँ कि आप भी सबके पीछे हाथ धो कर लगें। और जहाँ भी कोई तांत्रिक दिखाई दें तो उसके पास जाने वाले लोगों के लिए कुछ आप चाहे तो उसके लिए हैण्ड बिल्स वगैरे छपवा कर वहाँ पर भेज दीजिए कि ये तांत्रिक है और आप तांत्रिक उसके से भाग निकलें। जो आदमी तांत्रिक के पास जाता है, उसके घर अगर तांत्रिक आ जाए तो सात पुश्तो तक वह पनप नहीं सकता। बच्चे नहीं पनप सकते। सात पुश्तों तक उसके यहाँ हालत खराब होगी। बड़े बड़े नुकसान होंगे। उसका घर जल जाएगा और हो सकता है उसकी बीबी कहीं आत्महत्या कर ले, उसके घर में हमेशा तकलीफें, दु:ख और परेशानी बनी रहेगी। इसलिए यह जो अभियान है इसका आज दिन ऐसा है कि सब लोग मज़ाक में अप्रेल फूल का दिन कहते हैं। तो इनको बेवकूफ बना-बना कर ही पटका जाएगा। उनको बेवकूफ बनाकर ही पटका जाएगा क्योंकि ये अपने को बहुत अकलमन्द समझते हैं। तो इनकी जो बेवकूफियाँ हैं उनको उनका पूर्णतया उद्घाटन करना आप लोगों का कार्य है। आप सबके प्यार और दुलार और इस शोभा से वाकई मैं अभिभूत हूँ। इतना आप लोगों ने खर्च किया, इतनी शोभा बढ़ाई है, सो यही कहना है कि बहत ज़्यादा खर्चा करने की जरूरत नहीं है। आपकी माँ तो इतनी सीधी- साधी है। उसको कोई भी चीज़ की जरूरत नहीं। आप लोग जो भी है, भी नहीं । जो कुछ हमसे लेना अगर आप लोगों को साड़ी देना है तो दे दें। अब क्या करें?' लेकिन वो भी क्या है चार साल पहले दी हुई साड़ियाँ अब भी ताले-चाबी में बन्द है वो तो हमारी समझ में आता है कि बाद में अगर कोई म्युसियम वगैरे कुछ बनेगा तो उसमें आप लोग लगा दीजिएगा। तो यह सब चीजें आपके शौक के लिए जो भी आप कहें मेरे पास धरोहर रखी हुई हैं और इसकी कोई जरूरत नहीं पर आपका प्रेम ऐसा है कि उसके आगे मैं बोल भी नहीं सकती और कुछ कह भी नहीं सकती। जो भी कुछ प्रेम से दीजिएगा चाहे वो शबरी के बेर हों और चाहे आप लोगों की कीमती साड़ियाँ हो सब मेरे लिए मान्य है। तो अब हम लोगों का पूजा का समय हो गया है। आज जैसे मैंने कहा था जन्मदिवस की बात है बराबर बारह बजे मैंने मेरा भाषण शुरू किया और बराबर बारह बजे मेरा जन्म हुआ था इसलिए इतना समय लग गया फूलों में समय लग गया इसमें कोई घबराने की बात नहीं क्योंकि संजोग ऐसा है। बारह ही बजे आज का जन्म दिन मनाने का था। तो इस में सब चीज़ अपने समय पर ठीक-ठाक बैठती है। तो इसमें किसी को भी दोष नहीं मानना नहीं चाहिए। जो कुछ भी हमें दे दें । वही बहुत हैं। हमें तो कुछ चाहिए है वह आप लोग ले लीजिए लेकिन अब आप लोगों के सन्तोष के लिए हम कहते हैं कि, 'अच्छा भाई, कुछ ५ आपस में कोई सा भी अगर आपमें मतभेद हो जाए तो सार ६ उसमें कोई ऐसी बात नहीं, लेकिन यह है कि आपस में आप कोई ग्रुपबाज़ी मत कीजिए। he श्र श्रीकृष्ण शक्ति जो हमारे अन्दर {४ है ये मनुष्य की शुरुआत है। मनुष्य व्य ने जब अपनी गर्दन ऊपर की तब उसके अन्दर इस चक्र की स्थिति बनी है। जिसको हम विशूद्धि चक्र वर पद कहते हैं। जिसके अन्दर सोलह पंखुड़ियाँ हैं। जो कि हमारे पीछे के हिस्से में यहाँ पर अगर आप गर्दन के पीछे के हिस्से में देखें तो इस जगह पे वो है। जहाँ मनुष्य ने अपनी गर्दन उठायी और सीधी कर ली वहाँ रयी रे कृष्ण शक्ति जागृत हो गयी।" २५ सितम्बर १९७९, मुंबई ् आक पके सद्गुरु तत्व को नमस्कार करके आपकी श्रीकृष्ण शक्ति के बारे में मैं अब आपको बतलाती हैँ । श्रीकृष्ण शक्ति जो हमारे अन्दर है ये मनुष्य की शुरूआत है। मनुष्य ने जब अपनी गर्दन ऊपर की तब उसके अन्दर इस चक्र की स्थिति बनी है। जिसको हम विशुद्धि चक्र कहते हैं। जिसके अन्दर सोलह पंखुड़ियाँ हैं। जो कि हमारे पीछे के हिस्से में यहाँ पर अगर आप गर्दन के पीछे के हिस्से में देखें तो इस जगह पे वो है। जहाँ मनुष्य ने अपनी गर्दन उठायी और सीधी कर ली वहाँ कृष्ण शक्ति जागृत हो गयी। अब कृष्ण की शक्ति जो है ये समझना चाहिए इवोल्यूशन की परिपूर्णता है। पहले तो हम अमीबा थे , वहाँ से मछली, कछुआ होते हुए हम राम, राम के आगे कृष्ण तक पहुँच गये। श्रीकृष्ण शक्ति सम्पूर्ण शक्ति है। जब आपमें श्रीकृष्ण शक्ति जागृत होती है तब आपका सम्बन्ध विराट से होता है। माने जिसको अंग्रेजी में मेक्रोकोसम और मायक्रोकोसम कहते है। इसमें समष्टि और दृष्टि आ जाती है। उस समष्टि में आप समा जाते हैं। आपका व्यक्तित्व उससे करेक्टेड हो जाती है। ये कृष्ण शक्ति से होता है। इसलिए मेरा प्रोग्राम चलते वक्त मैं आपसे कहती हूँ कि आप इस तरह से मेरी ओर हाथ करें। इस तरह से हाथ करके अगर आप लोग बैठे रहें तो ये कृष्णशक्ति आपके अन्दर यहाँ पर जागृत हो जाएगी। और आपका सम्बन्ध जो है विराट से हो जाएगा। विराट की शक्ति जो है उसका नाम विराटांगना है। वो शक्ति सब दूर तक हमारे अन्दर समाई हुई है। और जिस वक्त ये शक्ति आपको मिल जाती है जब आप कृष्ण की शक्ति को पा लेते हैं तब आपके अन्दर साक्षित्व आ जाता है। माने ये कि किसी भी चीज़ को आप नाटक की तरह देखते हैं। वास्तविक में भी ये एक नाटक है, एक लीला है। कृष्ण ने ही इसको लीला माना। राम ने जब नाटक दिखाया तो ऐसा लगता था कि उसमें बह ही गये। लेकिन कृष्ण की सिर्फ लीला थी इसलिए उनको पूर्णअवतार कहते हैं। जब मनुष्य पूर्णत्व की ओर आता है तब सारे संसार की ओर देखता है कि एक नाटक चला। पागलों जैसे लोग कूद रहे हैं। उसमें वो भ्रमता नहीं । उसमें वो दुःखी नहीं होता। उसमें वो सुखी नहीं होता। देखिए आनन्द की भावना में, जो कि एक भावना है उसमें वो समाया रहता है। ये श्रीकृष्ण की शक्ति है। श्रीकृष्ण शक्ति के हम दो अंग (शरीर के हिस्से) हैं। एक तो लेफ्ट और राइट और एक सेंटर। सेंटर की जो शक्ति है वो विराट की ओर ले जाती है। लेफ्ट और राइट की शक्ति में से जो लेफ्ट की शक्ति है, जिस आदमी में बहुत ज़्यादा गिल्ट हो जाए और जो सोचे कि भाई, मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। मेरी बड़ी गलत बात हो गयी। मैंने बड़ा गलत काम किया और मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। ये | | फैशन आजकल उधर बहुत है। जब कि आप डेवलपमेन्ट पे पहुँच जाते हैं, बहुत ज़्यादा डेवलप हो जाता है तब आप में ये चीज़ सेटल हो जाती है। पहले तो आप एक्स्ट्रीम पर जाइये और 'मैं ये हूँ, मैं वो हूँ। मुझे आगे प्रोग्रेस करना चाहिए ।' जिधर अब अपना देश चढ़ा जा रहा है। और जब उतरने पे आ जाते हैं, तब वेस्टर्न कंट्रीज में ये शुरू हो गया है कि जिसको देखो वो सुबह से शाम तक रोते बैठता है और रोये जा रहा है। तो मैंने कहा कि 'क्या हुआ?' तो कहने लगे कि, 'मैंने बहत पाप किए हैं माँ। मैंने ये किए हैं।' मैंने कहा, 'अरे छोड़ो उन बातों को। अभी पार हो जाओ।' तो वो रोये इसी चीज़ पर, रात-दिन उनका रोना सुन-सुनकर आदमी परेशान हो जाता है। | ८ इतने रोते हैं कि हमारे पूर्वजों ने जा कर के हिन्दुस्तान जैसे योगभूमि पर आक्रमण किया है । आज - तम्बाकू कल के वहाँ के नवयुवक जो हैं वो बहुत अलग तरह के हैं जिन नव युवकों को हमने पहले देखा था वो और ही हैं। ये और हैं। अब ये लेफ्ट साइड में जब जाने लग जाते हैं विशेषतः इसमें मनुष्य मादक वस्तु लेने लग जाता है क्योंकि उसको ये लगता है कि 'मैंने ये गलती करी। मैंने वो गलती बड़ी करी। अब मैंने ये पाप किया है। ये झूठ बोला है। मुझे ये नहीं करना चाहिए था।' तो मनुष्य मादक द्रव्य लेने लग जाता है। इसमें से एक वस्तु जो है जो हमारे अन्दर बहुत चलती है सिगरेट और बीड़ी और उसके बाद है तम्बाकू खाना। तम्बाकू खाना भी इस शक्ति के विरोध में बहुत बैठता है। आपको आश्चर्य होगा कि जो आदमी तम्बाकू खाता है उसको सहजयोग में आने के बाद इसे हानीकारक छोड़ना ही पड़ता है। ये छूट जाता है। चीज़ एक साहब थे जिन्होंने नहीं छोडी। वो अपनी विल पावर नहीं बढ़ा पाए और छोड़ नहीं पाए । तो कभी-कभी चोरी छिपे वो तम्बाकू खाते रहे। एक दिन आकर मुझसे कहने लगे कि, 'माँ, जब मैं ध्यान में बैठता हूँ तब मेरा मूँह फूलते जाता है। टेढा - मेढ़ा होता रहता है। मुझे समझ में नहीं है आता है कि मैं क्या करू?' मैंने कहा कि, 'मुझे मालूम है कि क्या बात है। आप अपनी तम्बाकू ये छोड़ दीजिए। आज वचन दीजिए आप तम्बाकू छोड़ देंगे। उस दिन हुआ कि उनका चक्र जो लेफ्ट साइड का है वो खुल गया और तब से इनकी कुण्डलिनी ठीक से चलने लग गयी। अब उसी प्रकार आपने देखा है कि वेस्टर्न कंट्रीज में लोग क्योंकि इगो-ओरिएन्टेड बहुत थे। पहले बहुत इगोइस्टिकल बातें करीं। वॉर किया। दुनियाभर के लोगों को मारा और अपना साम्राज्य फैलाया। और सब किया। अब जब एक हद पर पहुँच गए और फिर वहाँ से जब पेन्ड्यूलम चला तब दूसरे हद तम्बाकू तक पहुँच गये और वहाँ जाकर के देखा कि 'बाप रे, बाप रे, अब हम क्या करें! तो अब हम कैसे करें, क्या करें? हम इतने बुरे, हम उतने बुरे।' ये जब दिखाई दिया तो चलो शराब पियो। शराब नहीं तो चलो, तम्बाकू खाओ। नहीं तो किसी तरह से वहाँ से भागना शुरू किया। अब तम्बाकू से जो है चीज़ जो है वो पीने पाने के लिए भगवान ने नहीं बनायी है। आदमी की अकल इतनी ही है क्या करे? ये पीने-पाने के लिए बनायी नहीं है भगवान ने तम्बाकू । ये चीज़ जो बनायी है, ये इनसेक्टिसाइड है, इनसेक्ट्स को मारने के लिए बनायी है। आप लोगों ने पता नहीं उसे कहाँ से जला लिया और शुरू कर दिया कि 'तम्बाकू करें' लेकिन तम्बाकू बड़ी हानिकारक चीज़ है और हमारा तम्बाकू से जो है हमारा गुरुतत्व भी खराब हो जाता है। ये पेट में जाती है और लीवर वरगैरा सबको खराब कर देती है। अब ये गुरुतत्व जो है वो हमारे सागर में भरा हुआ है। ये जो सागर है वो हमारा गुरुतत्व है। जब हम कभी भी गुरुतत्व के खिलाफ चलते हैं तब सागर बिलकुल भी बिगड़ जाता है गुरू और बिगड़ करके तहस-नहस करना शुरू कर देता है। खराब द्ध तत्व विशु हो जाता .... है। ९ ডি ত नि हा গ ा] ह ि4 श्र ० २ मैं एक बार वहाँ गयी थी गुंटूर में, आंध्र के लोग थे। मैंने उनसे कहा कि, 'आप यहाँ पर महेरबानी से ये जो तम्बाकू लगा रहे हो, ये मत लगाओ ।' तो कहने लगे कि, 'हम अपने देश वालों को नहीं देते हैं। हम तो सारे बाहर भेजते हैं।' मैंने कहा कि, 'तुम्हारे देश वाले। यहाँ आंध्र के जो गरीब लोग हैं वो इसे खाते हैं और काली विद्या करते हैं और तुम लोग इसे एक्सपोर्ट करके इसमें भी एक भयंकर हिस्सा ले रहे हैं।' तो कहने लगे कि, 'नहीं, नहीं माँ, इसके बगैर तो हम मर जाएंगे | ' तो मैंने कहा कि, 'कोई नहीं मरने वाला है। आप यहाँ पर कपास लगाईये और कपास से सब ठीक हो जाएगा।' कुछ ने इनमें से कहा कि, 'अच्छा माँ हम कपास लगायेंगे। हम कपास की शुरुआत करेंगे' और फिर काफी बिज़नेस उनका हो गया लेकिन जब मैंने दो-तीन बार कहा, टैप पर भी मेरा है लेकिन एक दिन जब वो बहुत मुझसे डिस्कस करने लगें तो मैंने कहा कि, 'खबरदार, अब ज्यादा मत डिस्कस करो अगर तुमने ऐसा जो किया तो ये समुद्र जो है ये तुम पर बिगड़ेगा।' आपको तो मालूम है कि उसके बाद आंध्र में कितनी जोर की तूफान आयी थी और कितने ही लोग तहस- १० नहस हो गए थे और उनको पता भी नहीं चला कि वो कहाँ रह रहे हैं। हमेशा आपने देखा कि समुद्र के बड़े-बड़े तूफान आते हैं और लोग उसमें सत्यनाश हो जाते हैं। किसी से अगर कहो कि हमारे तम्बाकू लगाना बन्द करो। ये बहुत अशुभ चीज़ है' तो कोई सुनने को तैयार नहीं है। अब वहाँ पर सब खारी जमीन हो गयी है, वहाँ अब तम्बाकू लगा नहीं सकते। किसी तरह से तम्बाकू बढ़ नहीं सकती। तो अब वो अपने नसीब पर रो रहे हैं। सारा वहाँ जो एरिया है, जहाँ तम्बाकू लगता है और हमेशा बड़े-बड़े आप जानते हैं साइक्लोन्स आते हैं। वहाँ मरते हैं। जिस दिन लोग इस चीज़ को समझ लें कि तम्बाकू लगाने से और काली विद्या करने से, समुद्र हमसे नाराज हो जाता है, उस दिन वो समझ जाएंगे कि कितना परमेश्वर का हमें आशीर्वाद है । कितनी सुन्दर हमारे पास जमीन है, उसका उपयोग हम कोई और चीज़ करने में लगायें। लेकिन मनुष्य को छोटी चीज़ में समाधान नहीं होता। वो चाहता है कि संसार में जितनी भी सम्पत्ति है वो मैं ही ले सिनेमा वालों को लँ। लेकिन वो ये नहीं देखता है कि, जिसके पास है सम्पत्ति वो कौनसा बड़ा सुखी बैठा है। वो भी अकल कौन बड़ा आनन्द में बैठा हुआ है। तो ये जो लेफ्ट साइड की जो शक्ति है जिसे कि हम विष्णुमाया की शक्ति कहते हैं। ये बहन नहीं है, की शक्ति है, जो विष्णुमाया आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण की बहन जो कि मारी गयी थी और जो आकाश में जाकर के जिसने आकाशवाणी की थी कि मारने वाला हत्यारा अभी भी तुम्हारा जीवित है। वही ये विष्णुमाया की शक्ति हैं। और ये बहन के रिश्तेदारी की बात है। अगर आपकी ये इतना बहन बीमार हो तो आपका ये चक्र पकड़ जाएगा। आपके बहन को अगर कोई तकलीफ हो तो आपका ये चक्र पकड़ जाएगा। अगर आपकी रिश्तेदारी बहन के मामले में ठीक न हो, माने आप किसी को बहन मानते हो और अगर आपकी नज़र खराब हो । आजकल तो लोगों का ये चक्र पाप कर बहुत खराब रहता है। क्योंकि इनमें पवित्रता नहीं है। अपनी पत्नी के अलावा सब औरतों को अपनी बहन या माँ मानना चाहिए। ये जो शास्त्रों में लिखा है इस पर लोग हंसते हैं कि, 'ये कैसे हो सकता है, माँ ये तो हो ही नहीं सकता।' क्योंकि सब लोग कुत्ते हो गये हैं ना? कुत्तों को तो समझ में आती नहीं है बात कि इस तरह से भी कोई पावित्र्य होता है। आप करके देखिये कि आप सिर्फ अपनी छोड़ करके दूसरी अन्य औरत को अपनी बहन की तरह देखना है। देखिये कितना सन्तोष आपके अन्दर आएगा। कितनी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएंगी। कितना समझ विकसित हो जाएगा। अभी देखिए पहले के जमाने में लोग घर में आते थे, रहते थे । कोई भी प्रॉब्लम नहीं रहती थी | विशेषतः विलायत में देखिए, विलायत में ये हालत हो गयी है कि हमारे शिष्य जो थे उनकी उमर सिर्फ २६ साल की थी और उनकी माँ की उमर थी समझ लीजिए कुछ ४२ या ४३ थी उनके घर में उनके एक दोस्त साहब आ गये थे रहने को। तो वो उनकी माँ उनके साथ भाग गयी थी। वो साहब रहे हैं कि इसका फल उनको भोगना विशुद्धि तत्व पड़ेगा। ११ कू २४ साल के थे। बेटे से २ साल छोटे थे। उनकी माँ इनके साथ भाग गयी। माने, किसी चीज़ का सेन्स आफ प्रपोर्शन ही नहीं रहा। आप | सोचिए कि लड़के का दोस्त घर में आया और उसकी माँ उसके दोस्त को लेकर के भाग गयी। अभी आने से पहले हमने एक आर्टिकल पढ़ा जिसको सुनकर आप हैरान हो जाएंगे कि सतरह साल के लड़के ने अपने माँ से शादी कर ली और जाकर के अभी कोर्ट में लड़ाई कर रहे हैं दोनो माँ-बेटे कि हमारा मंजूर होना चाहिए कि हमने शादी की है। ये सारी बायीं तरफ की अपवित्रता है। ये हमारे सिनेमा वालों को भी अकल नहीं है, ये इतना पाप कर रहे हैं कि इसका फल उनको भोगना पड़ेगा। सबको अपने पाप का फल भुगतना पड़ता है। इस तरह से जो हमने अपने अपवित्र हालत कर दी है, हमारी शक्लें देखिए कैसी हैं? इसमें न कोई तेज है, न इसमें कोई भोलापन है, न इसमें कोई सादगी है। एक तरह से, हर समय में आँखे चलाना। ये जो आँखे चलाने की बीमारी है ये कृष्ण शक्ति से ही दंडित होती है। आप देखिए कि मनुष्य हर समय में आँखे चलाता रहता है। आँखे चलाने से आपके अन्दर भूत घूस आता है। आपको पता नहीं कि अगर लेफ्ट साइड से आपके अन्दर भूत घूस आएं तो आपकी आँख चलने लगती है, आप कुछ करते ही नहीं, ऑख चलाने के सिवाय आप करते ही क्या है! आँखे चलाने से आपको तो आनन्द तो आता कुछ ही नहीं है। एक मिथ्य है, इसमें आँख घूम रही है, इधर से उधर चल रही है। इसको देख रही है, उसको देख रही है और आपका जो विशुद्धि चक्र है लेफ्ट साइड का, वो पकड़ा जा रहा है। इस लेफ्ट साइड के पकड़ने से गिल्ट बनता जाएगा। हर समय आप कभी भी सुखी नहीं रह सकते। आदमी को, इसलिए पहले जब हम छोटे थे तो हमारे माता-पिता कहते थे कि आँख अपनी जमीन पर रखकर हमेशा चलना चाहिए। आपने सुना होगा कि लक्ष्मणजी ने सीताजी के सिर्फ पाँव तक के अलंकार देखे थें । उसके ऊपर उन्होंने देखा ही नहीं। क्या उनको, वो कोई दुष्ट आदमी थे या कोई बुरे आदमी थे। ये क्या कानून था कि आप अपनी आँखे नीचे करके चलें। शहनशाह लोग जो थे वो हमेशा अपनी आँख नीचे करके चलते थे । जो बिल्कुल हमेशा भिखारी, भूत जैसे थे, वो इधर -उधर देखकर चलते थे । जो आदमी खुद अपनी शान में, प्रतिष्ठा में होता है उसको क्या पड़ी है किसीको क्या देखने की। और आपको पता होना चाहिए कि आप जैसे ही दूसरों को देखते हैं, उनकी जो गुणवत्ता है, उसकी जो बुराई है वह आपके अन्दर आ जाती है। उसके अन्दर बसे हुए जो, जो कंडिशनिंग है वो आपके अन्दर आ जाती है। और ये इतनी ज़्यादा बीमारी बढ़ गई है लोगों में इस कदर लोग इससे भरे हुए हैं कि ये समझते नहीं है कि इससे हम आँखें कैसे बचाएं। इससे आँखे लाल हो जाती है। आदमी की आँखों में कमजोरी आ जाती है। आँख | बहुत तकलीफ देने लग जाती है। तभी बताया जाता है कि आप हरी घास पर चला करें, पृथ्वी माँ पर चला करें, जो आपकी माँ है। माँ को जानने से ही आप बहन को समझेंगे। जब तक आप अपनी माँ को नहीं जानिएगा तो बहन को समझ नहीं पाओगे। लेकिन वास्तविकता ये है कि आँख नीचे नतमस्तक होकर रखें और रास्ते में चलते वक्त या किसी की ओर देखते वक्त बुरी दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, ये पाप है। और गुरू ने भी इसे कहा है कि Thou shall not commit adultery और क्राइस्ट ने आकर के उसकी ओर होकर कहा कि Thou shall not have adultery eyes। उन्होंने साफ कह दिया कि Adulterous eyes are equally evil as adulterous life | इस पवित्रता पे उन्होंने आपको पहुँचा दिया और उम्मीद की थी। लेकिन आज जहाँ संसार पहुँचा हुआ है कि अगर आज हम ये बात कहेंगे तो भी वो बुरा मान जाएंगे। लेकिन आप कोशिश करके देखिए, आपके जीवन में और बाकी सबके जीवन में इतनी सरलता और इतना सौन्दर्य आ जाएगा कि आँखो को चलाना और अपने को नीचे गिरा लेना जिसको कि आगे चलकर प्रोस्टिट्यूशन आदि कहते हैं। अब आजकल के जो गाने हैं, औरतों को बैठ कर गाने का ढंग आदि वगैरा इस कदर छिछलापन और इस 'सबको अपने पाप का फल भूगतना पड़ता है। १२ 'राइट साइड की विशुद्ध चक्र... ये 0० श्रीकृष्ण का और राधा टा ० की शक्ति से है। बना विशुद्धि तत्व १३ कदर अपने को चीप कर लेने के तरीके हैं कि समझ में नहीं आता, खासकर अपने मध्यमवर्गीय लोगों को इसकी क्या पड़ी है। आदमी पैसे वाला है तो बचने वाले नहीं है। उनके पास तो साधन ही मिल गया है। जिसके पास अति पैसा है उसको लगता है कि मैं क्या करूँ या क्या न करूँ। इस पैसे को कौनसे गढ्ढे में डालूँ और मैं भी उसके साथ कूद जाऊँ। जैसे ही उसके पास में पैसा आता है, वो सोचता है कि मैं रेस में जाऊँ और फिर ये करूँ और फिर वो करूँ आज इसलिए मैं पाप-पुण्य की चर्चा कर रही हूँ क्योंकि गुरू की बात हो रही है। पाप-पुण्य का विचार आपको इस विशुद्धि चक्र पे आता है, पाप और पुण्य क्या हैं? अगर आपको पाप-पुण्य का विचार विशुद्धि चक्र तक नहीं आया तो आप काम से गये। आपकी कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी। संसार में पाप व पुण्य दोनों चीज़ हैं । लेकिन ये सोचते हैं कि माँ ये इतना पापी आदमी है फिर भी देखो, इसकी इतनी प्रगति हुई है। मैंने कहा कि, 'आप इनके घर में जाकर देखो क्या हो रहा है। उसके जीवन में देखो क्या उसकी प्रगती हुई है ? इस आदमी के मुख पर जरा भी आनंद है? जिस आदमी का नाम लेते ही लोग कहते हैं, 'बाबा रे बाबा किसका नाम ले लिया !' जिस | आदमी के पीठ पीछे कभी भी कोई आदमी अच्छी बात नहीं कहता, ऐसे आदमी, ऐसे चरित्रहीन, ऐसे गिरे हुए लोगों को अगर आप आदर्श मानिएगा तो आपका भी ठिकाना नहीं रहेगा। हमारे सहजयोग में आप जब पार हो जाएंगे तब आपके अन्दर शक्ति आ जाएगी। आप स्वयं ही अपनी प्रतिष्ठा को जानिएगा क्योंकि आप खुद प्रतिष्ठित हैं। आप जानते नहीं है कि परमात्मा ने कितनी मेहनत से इस चक्र को आपके अन्दर बनाया है। इसको कितनी सुन्दरता से बनाया है। इसको किस तरह घड़ाया है और इस कुण्डलिनी को किस तरह से सुरक्षित रखा हुआ है। आप अपना ही अपमान कर रहे हैं। अपने को ही नीचे गिरा रहे हैं। अपने को समझें| अपने बडूपन को समझें | हालात को आप समझें। आप तो सारे संसार के फूल हैं और आपको फल में रूपांतरित होना है। जब आप इस चीज़ को समझें कि आप ही परमात्मा के अंश हैं, परमात्मा आप ही को मानता है और आप ही के सामने झुक रहा है और आपसे कह रहा है कि आप इसको पा लीजिए, जो आपका श्रेय है। श्रेयों को पहचानना भी सुबुद्धि का काम होता है। जब तक उसके अन्दर दुर्बुद्धि बनी रहेगी वो कर नहीं सकता है। ये सुबुद्धि भी विशुद्धि चक्र की जागृति से होती है। जब मनुष्य का अपना विशुद्धि चक्र जाग उठता है तब उसके अन्दर अपने आप सुबुद्धि आ जाती है। उसके अन्दर सन्तुलन आ जाता है। एक होती है सुबुद्धि और दूसरी है दुर्बुद्धि। बुद्धि से कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला है । बुद्धि गधे की तरह भी हो सकती है और बेकूफ भी हो सकती है। बुद्धि के रॅशनॅलिटी से आदमी चोरी करता है। वह कहता है कि, 'मैं क्यों न चोरी करूँ? मेरे पास ये चीज़ नहीं है, उसके पास है। तो मैं क्यों न चोरी करूँ।' इसका कारण तर्कबुद्धि है। अब देखिए तर्कबुद्धि के कारण मनुष्य हर एक चीज़ की तरफ व्यक्तिगत विचार से देखता है। लेकिन सुबुद्धि जो है वो कहेगी कि, 'नहीं, इसकी ये चीज़ इसकी अपनी है और मेरी ये चीज़ मेरी अपनी है। मेरी चीज़ में जो मजा आ रहा है वो दूसरों की चीज़ में नहीं है।' कोई भी चीज़ किसी की नहीं होती। सभी चीज़ यहीं छोड़ कर जाना हैं। ये तो दिमागी जमा-खर्च है कि ये मेरी चीज़ है। ये तेरी चीज़ है। ये रजिस्ट्रार ऑफिस में लिखा है। जाते वक्त सब कुछ यही छोड़ कर जाना है। एक तो ये साधारण सी बात है इसके पीछे इतनी भागदौड़ क्यों कर रहे हो । अब राइट साइड के हमारे जो चक्र हैं, जो कि राइट साइड की विशुद्धि चक्र का ये है कि ये श्रीकृष्ण और राधा की शक्ति से बना है । श्रीकृष्ण और राधा की जो शक्ति है, उससे जब मनुष्य उसके विरोध में खड़ा होता है तो कंस जैसा हो जाता है कि मैं ही बड़ा राजा हूँ, मैं ही बड़ा भारी लीडर हूँ और मैं ही सब कुछ हूँ, तो उसके अन्दर अहंकार कंस के जैसा बढ़ता है, कि किस तरह से मैं ही सब के ऊपर १४ राज्य करूं। उसको दुनिया की कोई भी चीज़ दिखाई नहीं देती। उसे राइट साइड की विशुद्धि चक्र की पकड़ होती है। लेकिन राइट साइड की विशुद्धि चक्र पकड़ तब शुरू होती है जब आपको सर्दी-खाँसी होती है। अब सब लोग कहते हैं कि सर्दी-खाँसी के लिए तुलसी बहुत अच्छी होती है। इसकी वजह ये है कि तुलसी से लेफ्ट साइड की जो शक्ति है वो बैलन्स कर देती है राइट साइड में। जुकाम का होना वैसे तो कोई सीरीयस बात नहीं है पर हमारे सहजयोग में जुकाम के लिए 'तुलसी से लेफ्ट व्यवस्था भी बहुत अच्छी है और उसके लिए भी अगर आप जान लें कि किस तरह से आपका जो सर्वसाधारण जो जुकाम है सायनस वगैरा के प्रॉब्लेम है वो ठीक हो सकती है। लेकिन बीच की जो शक्ति है जिसे विराट की शक्ति कहते हैं। ये सबसे महत्वपूर्ण है। आज साइड संसार में जहाँ भी लोग कुछ न कुछ खोज रहे हैं, जहाँ कि मनुष्य परमात्मा की खोज में लगा है। वो अपने wholesomeness को, विराट को खोज रहा है। या यह खोज रहा है कि अगर मैं विराट का एक हिस्सा हूँ तो मैं उसको खोजूँ जिसका मैं हिस्सा हूँ। इसका मतलब ये है कि हमारी वो चीज़ जिसे सामूहिक चेतना कहते हैं, वो अभी तक नहीं आयी। हम कहते हैं कि 'आप भाई हैं, आप बहने हैं। बड़े-बड़े लेक्चर देंगे कि ये स्थापित हुआ है इसलिए फिट है, माने इन्सान का ये है कि की जो शक्ति जो होने वाला है उसका नाटक पहले कर लेता है। जैसे कोई रिहर्सल हो। ये एक रिहर्सल सा लगता है कि आप भी भाई है, आप भी बहन है। आप सब लोग भाई -बहन हैं। सब लोग सामूहिक एक हैं। वास्तविक अभी तक ये सब झूठ बात है आपके लिए, हमारे लिए नहीं। जब आप सहजयोग में है आ जाते हैं आपकी सामूहिक चेतना जागृत हो जाती है। सामूहिक चेतना जागृत होते ही आप महसूस करने लगते हैं कि दूसरा जो है वो मेंरे अन्दर है और मैं उसके अन्दर हूँ। आप खुद ये देखने लगते हैं क्योंकि जब absolute पॉइंट जब आपको मिल जाता है तब आप रिलेटिव स्टेज में चले वो जाते हैं। आप कहाँ हैं इस absolute पॉइंट के इसमें और वो कहाँ हैं। अब सादे शब्दों में बताना ये है कि ये जो आपके उंगलियों के जो चक्र है वो जागृत हो जाते हैं। ये १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ये सातों चक्र लेफ्ट सिम्पथैटिक और राइट सिम्पथैटिक पर जागृत हो जाते हैं फिर ये जागृत हो जाते बैलन्स हैं तो इसमें क्या महसूस होने लग जाता है? इसमें ऐसा महसूस होता है मान लीजिए आपके सामने कोई खड़े हैं हाथ ऐसा करके। तो मैं तुरन्त बता दूँगी कि उसमें क्या बीमारी है। वो मैं कैसे समझ लेती हूँ? समझ लीजिए कि अगर मेरे राइट हैण्ड के इस उंगली में चमक आई या कुछ गरमी सी कर लग रही है तो मैं जान जाऊंगी कि इनके लिवर में खराबी है क्योंकि ये जो है ये नाभि चक्र है राइट हैण्ड साइड का और नाभी चक्र राइट हैण्ड साइड पर लिवर का स्थान है। उसके बाद में छोटी- छोटी फ्रिक्वेन्सी भी आदमी पकड़ लेता है। यहाँ तक कि जब आदमी आगे बढ़ता है। सहजयोग में तो उसके अन्दर वैसी ही भावना आने लग जाती है जैसी सामने में दूसरे की होती है। और जब | देती है राइट विशुद्धि तत्व साइड में १५ लगता है कि लिवर में हेवीनेस और अगर आप पूछते हैं कि आपका लिवर हैं? तो वो कहता हैं कि हाँ, लिवर है। आप अपने हाथ ऐसे- ऐसे रगडिए। आपका भी लिवर ठीक होगा और उसका भी लिवर ठीक होगा। अगर किसी आदमी को सरदर्द हो रहा है तो उसके पास जाईये तो आपका भी सिर थोड़ा सा भारी हो जाएगा । आप कहियेगा कि 'सिरदर्द हो रहा है ?' तो कहेगा 'हाँ।' उसके बाद उन्होंने अपना सिर ऐसे दबा करके ठीक कर दिया। उस आदमी का देखिएगा कि उसका भी सिरदर्द ठीक हो जाएगा । कलेक्टिव कॉन्शसनेस आपके अन्दर जो आती है, सामूहिक चेतना आती है ये सब्जेक्टिविटी है। माने ये असल में आती है, माने ये अॅक्च्युअलाइजेशन होता है इसका। ये सिर्फ बातचीत नहीं होती है, ये हो ही जाता है। आपकी जो चेतना है वो इस स्तर पर आ जाती है। एक नया आयाम उसके अन्दर खुद आ जाता है। जिसके अन्दर आप सामूहिक चेतित हो जाते हैं। वो कहे अगर रियलाइज्ड होगा तो वो भी बतायेगा कि नानी इनको देखिये, इनके हार्ट में पकड़ है। तो हार्ट आपका पकड़ रहा है। हार्ट पर प्रेशर है आपके। ये तो फिजिकल | हो गया, इमोशनल भी आप बता सकते हैं। बहुत से लोग तो ऐसे लगते हैं ऊपर से वो होशियार लगते हैं पर अन्दर से तो पागल होते हैं। उसके पास गये तो दो ऐसे झापड़ मारते हैं आपको। लेकिन अगर आप रियलाइज्ड सोल हो तो आप जान जाओगे कि ये पागल हैं। आपको ये पता चल जाएगा यानी आज्ञा चक्र कहाँ है। यानी लेफ्ट साइड के अगर कोई न कोई चक्र पकड़ते हैं तो उसमें कोई न कोई मानसिक विकृति आ गयी है, कोई न कोई लेफ्ट साइड के आते हैं। राइट साइड के आते हैं तो फिजिकल और इमोशनल होते हैं। ये अपने विशुद्धि चक्र से कनेक्टेड है। बहुत से लोग पार हो जाते हैं, पर वो उनके अन्दर वायब्रेशन्स को फील नहीं कर पाते हैं, इसका कारण है विशुद्धि चक्र की खराबी। क्योंकि विशुद्धि चक्र मैंने बताये है कि आपके सिगरेट पीने से खराब होती है। शहर के वातावरण में आप सिगरेट नहीं भी पीते हैं तो एक आपके समझ लीजिए कि आपके पिताजी सिगरेट पीने वाले में से हों जो कुछ है तो ये जो विशुद्धि चक्र है यहाँ खराब हो जाता है। विशुद्धि चक्र अगर खराब हो जाता है तो विशुद्धि चक्र में से निकलने वाली जो दो नसें है, जिसे कि हमारे अन्दर, हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम में ये जब चेतना आती है जब हम चेतित भी होते हैं तो भी हम इसे महसूस नहीं कर पाते। क्योंकि हमारी संवेदना खत्म हो जाती है। हमारी संवेदना इस चक्र से बढ़ सकती है अगर हमारा विशुद्धि चक्र पूरी तरह से जागृत होता है। तो इस चक्र के भी मन्त्र है ये समझ लेना चाहिए, उस मन्त्र के लिए कहे गये मन्त्र, बतलाये गये मन्त्र कहने से ये चक्र जागृत होता है। ये जो दो उंगलियाँ विशुद्धि चक्र | की है अगर इसे कान में ड्राल कर के सर यूँ पिछे कर के अगर आप 'अल्लाह हो अकबर' अगर तीन बार कहें तो आपका ये चक्र साफ होगा। क्योंकि अकबर जो है वो विराट है। मोहम्मद साहब ने ये बात कही थी, कृष्ण की बात कही थी लेकिन कौन सुनता है? उन्होंने जो भी कुछ बताया कि इस तरह से हाथ करिए और फिर नमाज पढ़िए तो सारी कुण्डलिनी जागृत होगी लेकिन अगर ये किसी मानव को जाकर बताएंगे तो वो मुझे मारने को दौडेंगे। मोहम्मद साहब भी साक्षात दत्तात्रेय के अवतरण थे और मैं कहती हूैँ कि कुण्डलिनी जागृति में उन्होंने जितना कार्य किया है उतना और किसी ने नहीं किया । शैतान को कैसे निकालना चाहिए? इसके उन्होंने कुछ तरिके बतायें हैं, वो एक से एक अभिनव है। जिसे हम अभी भी करते हैं अधिकतर। सहजयोग में हम उन्हें भी इस्तेमाल करते हैं अभी तक। हांलाकि हमारे पास आदि शंकराचार्य जैसे लोग हैं जिन्होंने तो बड़ी कमाल की चीज़ें लिख दी है और उनकी जो बारिकियाँ है अगर आप उन सारी बारिकियों को फॉलो करें तो आप पूरी तरह से स्थित हो जाते हैं। जिसके हमारे ऊपर अनेक उपकार हैं, इस देशपर, इन संतों- साधुओं के और इन बड़े-बड़े अवतारों के। ऐसे-ऐसे महान अवतार इस योगभूमि में हुए हैं, इस संत भूमिपर जिसे हम महाराष्ट्र कहते हैं । हूँ। १६ अनेक संत-साधुओं ने हमारा रक्त सिंचन किया है। इतनी मेहनत आप लोगों पर की है कि जरासे इशारे पर आप लोग पार होते हैं खास कर जब मैं गाँवों में जाती हूँ तो आप देखते हैं कि हजारों के हजारो तादात में लोग आज जाते हैं। अब आप देखिए कि हमारे लेक्चर में कितने लोग आएं हैं । यहाँ से शुरुआत है। लोगों को सत्य की पहचान नहीं है। सत्य का खिंचाव नहीं है। वहाँ जा रहे हैं लोग। अगर कोई आदमी कहे कि मैं आपको कपड़े खोलकर नंगे नचवाऊँगा तो आप सब वहाँ चले जाएंगे। पैसा दे कर वहाँ से नाच कर आप आएंगे और आप कहेंगे कि वाह ! वाह! क्या मजा आ गया| ऐसे बेवकूफ लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। जो लोग गम्भीर हैं, जिनका कैलिबर है, जिन्हें कहते हैं कि 'येऱ्यागबाळ्याचे काम नाही'। कोई आपके अन्दर जब तक वो पूरी तरह से अणू-रेणु सब पुब श्रद्धा, पूरी तरह से प्रतिष्ठा ना हो तो वो दिख जाता है, उसके लिए ये नहीं है। इसके लिए कॉम्प्रोमाइज करना असत्य से बहुत ही आसान चीज़ है ऐसे व्यक्ति पर सहजयोग नहीं चलता। सहजयोग प्राप्ति के लिए बहुत बड़े पंडित या ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है लेकिन दिल के पक्के होने चाहिए। शहनशाह किस्म के होने चाहिए । ऐसे आदमी पर सहजयोग यूं काम कर जाता है। अब कृष्ण शक्ति पर मैंने कहा कि बताने लगू तो साल बीत जाएगा। उसके सारे सोलह पड़दे खोलने के लिए और बताने के लिए काफी चीज़ चाहिए । और कुण्डलिनी क्या चीज़ है आज तक चीज़ में आपको पता नहीं। आपने देखा नहीं है। जिसे आपने देखा नहीं, जाना नहीं उसे आप जान सकते हैं। उसका स्पंदन आप अपनी नज़र से देख सकते हैं। उसका चढ़ना आप देख सकते हैं। उसका भ्रमण आप देख सकते हैं। अब ये चीजें अलग ही है, आपने जानी नहीं है। परायी चीजें हैं अभी परमात्मा आपने जाना नहीं, पर हैं। जैसे कि यहाँ पर अनेक चित्र है इस वक्त। आप नहीं देख पाते। आप टेलिविजन लगाइये, आप देख सकते हैं। अनेक यहाँ पर संगीत हो रहे हैं आप सुन नहीं सकते। की लेकिन अगर आप रेडियो लगायेंगे तो आप सुन सकेंगे। उसी तरह से, ये परमात्मा की शक्ति सब तरफ दूर तक विराजमान है। अणू-रेणू, सब चीज़ में परमात्मा की शक्ति भरी हुई है। कुण्डलिनी अगर जागृत हो जाए, उसका अगर कॉर्ड मेन से लग जाए तो फिर उसका परमात्मा से संवाद शुरू शक्ति हो जाता है । फिर इन्ही हाथों पर जिसको कि आप सोचते हैं कि ये विशेष नहीं है, इन्हीं हाथों पर आप जान सकते हैं, आप इस तरह से हाथ करके पूछिए कि 'क्या संसार में परमात्मा हैं?' तो आप देखेंगे कि आपके अन्दर ठण्डी-ठण्डी लहरें चलने लगेंगी। भरी अपने प्रति प्रेमभाव होना चाहिए, आदर होना चाहिए, अत्यंत प्रेम होना चाहिए । क्योंकि परमात्मा ने आपको इसलिए नहीं बनाया कि आपका जीवन व्यर्थ हो जाए। किसी भी तरह से हुई नहीं बनाया। अगर आपका जीवन व्यर्थ हो गया तो परमेश्वर का भी कोई अर्थ नहीं रहने वाला है। सृष्टि का भी कोई अर्थ नहीं रहेगा। ये अपने प्रति आदर रखते हुए और प्रेमभाव रखते हुए, पूरी है। विशुद्धि तत्व १७ ह लभ आशा से ही आप इस कार्य में संलग्न रहो। सर्वव्यापी परमेश्वर के साथ चैतन्य लहरियों से आप बात कर सकते हैं क्योंकि ये परमेश्वरी शक्ति सारे चराचर में भरी है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद! १८ स०्तल ग कनी पर्थ, आस्ट्रोलिया, फरवरी, १९९२, अनुवादित ০০ है परम-चैतन्य का कार्य करने वाले ोगियों के सहतय जीवन नें सम्तुलन होना चाहिए। १९ 'आ. स्ट्रेलिया लौटकर आना अति आनन्ददायी है।' यहाँ भयंकर गर्मी थी, पर अब आपने देखा कि कितनी वर्षा हुई। क्योंकि आप सब चाहते थे कि बारिश हो और वातावरण शीतल हो जाए। दोनो कार्य हो गए हैं। तब चिन्ता यह हो गई कि वर्षा के कारण साधक नहीं आएंगे। यह समस्या भी हल हो गई क्योंकि वर्षा तो साधकों की परीक्षा के लिए थी। मैंने कहा कि यदि वे वास्तविक साधक हैं तो वे आएंगे, नहीं तो जिज्ञासा विहीन भीड़ का क्या लाभ? देखिए कल कितने सुन्दर लोग पहुँचे। पूरा रास्ता भीगते हुए वे आए क्योंकि वे गहन साधक थे। उन्होंने एक भी प्रश्न नहीं पूछा। क्या आप ऐसी कल्पना कर सकतें है? आस्ट्रेलिया में सदा मुझ पर प्रश्नों की झड़ी लग जाती है। अब के मैंने इतनी जिज्ञासा देखी कि मैंने उनसे कहा कि "मुझसे प्रश्न पूछिए", पर एक भी प्रश्न नहीं पूछा गया। तो एक ही बार में मैंने कितने सारे कार्य कर दिए? कार्यक्रम के समय बिजली चली गई। उसका भी अच्छा प्रभाव हुआ क्योंकि हमें मोमबत्तियाँ जलानी पड़ीं जिनकी लौ में सारे भूत विलय हो गए। जब मैं इस कमरे में आई तब यह घटना हुई। यह समझना आवश्यक था कि बिजली पर अत्याधिक निर्भरता भी अच्छी बात नहीं। अत: सदा किसी प्राकृतिक साधन का प्रबन्ध हमारे पास होना चाहिए। हमें कुछ लालटेन आदि रखने चाहिएं और बिजली के स्थान पर अधिक समय प्रकृति के संग रहने का प्रयत्न करना चाहिए। मैं आपको बताती हैँ कि बिजली हमारी आँखों को खराब करने के लिए जिम्मेवार है। यह केवल हमें रोशनी ही नहीं देती, हमारी आँखों की ज्योति को छीनती भी है । अत: बिजली के बहुत अधिक उपयोग ने हमें दास बना दिया है। अधिक प्राकृतिक वातावरण तथा रहने के लिए अधिक प्राकृतिक स्थानों का होना अच्छी प्रवृत्ति है । भी | यदि परम-चैतन्य परमात्मा के प्रेम की शक्ति है तो यह सन्तुलन प्रदान करता है। अत: परम-चैतन्य का कार्य करने वाले सहजयोगियों के जीवन में सन्तुलन होना चाहिए । में कहती हैँ कि इस स्थान (आस्ट्रेलिया) पर महागणेश का निवास है। स्थिर होने पर श्री गणेश सन्तुलन लाते हैं। जब यह दायें ओर को जाने लगते हैं तब कोई निर्माणकारी कार्य शुरू होता है और जीवन के लिए आवश्यक सभी कुछ यह करते हैं। परन्तु विपरीत दिशा में यदि यह चल पड़ें तो यह विध्वंसक हो उठते हैं। इनके सन्तुलन के बिना जीवन नहीं चल सकता। इनके दोनो ही गुणों-रचनात्मक तथा विध्वंसक-का सन्तुलित होना आवश्यक है। प्रकृति का जैसा नियम है, जिस चीज़ की भी रचना हुई है उसका विनाश होता है और रचनात्मक रूप से कोई नई चीज़ विकसित हो जाती है। फिर इसके कुछ भाग नष्ट हो जाते हैं। अत: मृत्यु में ही जीवन निहित है मृत्यु कुछ भी नहीं। कल्पना कीजिए कि यदि एक बार उत्पन्न हुए सभी लोग यहाँ जीवित होते तो हम यहाँ न होते। बहुत से पशुओं की मृत्यु हुई और वे मानव रूप में उत्पन्न हुए। अन्य लोगों को पृथ्वी पर अवतरित होने का अवसर देने के लिए मनुष्यों को मरना ही होगा। मृत्यु के बाद कुछ समय आराम करके आपको फिर वापिस आना है। अत: मृत्यु जीवन का परिवर्तन मात्र है, बिना मृत्यु के जीवन अस्तित्व विहीन है। यह जीवन व मृत्यु के बीच सन्तुलन है। अत: एक सहजयोगी को कभी भी मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए। उसकी मृत्यु केवल उस समय विश्राम कर अधिक उत्साह तथा शक्तिपूर्वक दूसरा जन्म लेने के लिए है। सी चीजें पूर्णतया सन्तुलित हैं। यह सन्तुलन यहीं समाप्त हो जाए प्रकृति की बहुत तो हम कहीं के न रहेंगे। अत: हमें समझना चाहिए कि यह सब कार्य श्री गणेश ही करते हैं। वे ही सभी भौतिक पदार्थों की तथा मानव रचित वस्तुओं की देखभाल करते हैं। उदाहरणतया पहले चक्र ( मूलाधार) की सृष्टि पृथ्वी माँ ने की २० गम्भीरता का अर्थ है कि किसी भी प्रकार की में आप विचलित न हों। उथल-पुथल और दूसरे चक्र (स्वाधिष्ठान) ने पूरे ब्रह्माण्ड को रचा। परन्तु पहला चक्र ही पवित्रता तथा मंगलमयता को फैलाता है तथा सन्तुलन प्रदान करता है। सन्तुलन खो देने पर लोग या तो बाएं या दाएं को चले जाते हैं। कुछ सहजयोगी अति धर्मपरायण हैं। परन्तु उनमें प्रेम का अभाव है। प्रेम के बिना धर्म परायणता अर्थहीन है।। प्रेम का अभिप्राय यह नहीं कि आप किसी चीज़ से लिप्त हो जाएं परन्तु निर्लिप्त प्रेम तथा उत्तरदायित्व तो आप में होना ही चाहिए। श्री गणेश मूलाधार पर हैं और मूलाधार स्थित हमारी सभी इन्द्रियों का नियंत्रण उनके हाथ में है-विशेषकर सभी प्रकार के मलोत्सर्जन का। अत: हम वे लोग नहीं हैं जो इन इन्द्रियों की लिप्सा में या इसे पूर्ण विरक्ति में विश्वास करते हैं। हमें इनके सन्तुलन में विश्वास है। अत: आपने विवाहित होकर सन्तुलित जीवन बिताना है । आपके यथोचित बच्चे हों और आप विवेक एवं गरिमामय जीवन व्यतीत करें । पर प्रेम का होना आवश्यक है-पति -पत्नी में, बच्चों तथा माता-पिता में तथा सभी से प्रेम आवश्यक है । एक व्यक्ति के असन्तुलित होने से पूरा परिवार असन्तुलित हो जाता है। प्रेमपूर्वक परिवार को अच्छी तरह स्थापित करना भी एक कला है। यदि पति-पत्नी दोनो ही ऐसा करने को रजामन्द हो जाएं तो, मुझे विश्वास है, ऐसा करना कठिन न होगा, क्योंकि आप लोग सहजयोगी हैं। सन्तुलन के गुण को आप पहले से ही जानते हैं। समलिंग कामुकता तथा टी. एम. (ट्रान्सैडैन्टल मैडीटेशन) में की जाने वाली तपश्चर्या के कारण पश्चिमी देशों में असन्तुलन है। एक चीज़ के बाहुल्य तथा दूसरी के अभाव की अपेक्षा सन्तुलन में रहना स्वाभाविक है। असन्तुलन ही लोगों के कष्टों बहुत का कारण है। गणेश चक्र के द्वारा समझना चाहिए कि हम क्या कर रहे हैं। कभी हमें वस्तुएं संग्रह करनी पड़ती है, कभी उपभोग करनी पड़ती है और कभी फेंक देनी पड़ती है। कहीं से भी जब हमें कोई विचार आते हैं तो उनमें से जो हमारे हित में हो वही हमें अपनाने चाहिए बाकी सब फेंक देने चाहिए। परम चैतन्य की कृपा से ही हम ऐसा कर सकते हैं। छोड़ उदाहरण के रुप में कैथोलिक मत से ईसा की पूजा आदि जो भी अच्छी बातें हैं वो हम ले लेते हैं और विवेकहीन सभी कुछ देते हैं। ईसा ने चरित्र पर बहुत बल दिया, चरित्र के विषय में बहुत कुछ कहा। व्याभिचार जिस भी समाज की शैली बन गया है वह समाज पूर्णतया असन्तुलित है तथा ईसा की शिक्षा के विपरीत चल रहा है। श्रीकृष्ण ने कहा है कि हर मानव में आत्मा का निवास है। अत: सब मानव समान हैं। आप जाति-प्रथा कैसे अपना सकते हैं। कार्य के आप जातियाँ बना सकते हैं जन्म के आधार पर नहीं। हर मानव में आत्मा है अत: सबका उत्थान हो सकता है। ईसा ने भी अनुसार सही कहा है। उन्होंने कभी नहीं कहा कि स्त्रियों में आत्मा नहीं है, पुरुषों में है। धर्म अर्थात् सन्तुलन, मध्य में रहना-जिस मनुष्य सन्तुलन होता है वही धार्मिक होता है। यदि आप मध्य में है-गुरुत्व के बिन्दु पर हैं तो आप किसी भी गलत दिशा की ओर नहीं झुक सकते। गुरुत्व धरा माँ से आता है और धरा माँ ने ही श्री गणेश की रचना की है। अत: अति स्वाभाविक रुप से यह गुरुत्व मानव में आ में जाता है। गुरुत्व अन्तर्जात है, इसे अपनाना नहीं पडता। बचपन में यदि बच्चों को उनके गुरुत्व, गरिमा और महानता के विषय में बताया जाए तो वे स्वाभिमानपूर्वक तुरन्त ही इन गुणों को विकसित कर लेंगे। यह गुरुत्व आपको एक प्रकार का आकर्षण प्रदान करता है। गम्भीरता का अर्थ यह नहीं कि आप मुंह लटकाए बैठे रहें। गम्भीरता का अर्थ है कि किसी भी प्रकार की उथल-पूथल में आप विचलित न हों। गम्भीरता का अर्थ बहुत गहन है। जैसा कि आप श्री गणेश के चरित्र से देख सकते हैं-गम्भीरता का अर्थ है कि आप अपने मध्य में खडे हैं, एक ऐसे व्यक्ति हैं जो सब कुछ देखते हुए भी न विचलित होता है न किसी प्रलोभन में आता है, आत्मसन्तुष्ट है, न वह कुछ माँगता है, न उसकी कोई आवश्यकता है, न वह किसी से बदला लेता है। वह सदा क्षमा करता है क्योंकि अपने गुरुत्व से बाहर निकलने का उसके लिए कोई मार्ग नहीं-गुरुत्व से वह बस बंधा हुआ है। ऐसा व्यक्ति किसी असन्तुलित या गलत कार्य करने वाले व्यक्ति के पीछे नहीं दौड़ता। ऐसे व्यक्ति पर उसे दया | २१ २२ आती है। दृढ़तापूर्वक खड़े हो जाता है, दृढ़तापूर्वक खड़े हो जाते ही दूसरों को डराने तथा उनका विनाश करने के लिए काफी है। वह व्यक्ति एक ऐसे बिन्दु पर खड़ा है जहाँ उसे विचलित नहीं किया जा सकता, पर अन्य लोग तो विनाश की ओर दौड़ रहे हैं। तो उनके पीछे दौडकर अपना विनाश कर लेने का क्या लाभ? गुरुत्व में खड़े व्यक्ति यदि चाहें तो अन्य लोगों की सहायता कर सकते हैं क्योंकि वे देख सकते हैं कि कोई व्यक्ति गिरने वाला है। फिर भी यदि व्यक्ति सन्तुलन में न आना चाहे तो आप उसे मजबूर नहीं कर सकते। श्री गणेश का महानतम गुण यह है कि उनमें सन्तुलन है उस गुरुत्व के साथ वे इस धरा माँ पर बैठतें हैं। आस्ट्रेलिया श्री गणेश का देश है। अत: स्वाभाविक रुप से यहाँ के लोगों में सन्तुलन होना आवश्यक है परन्तु उनमें सन्तुलन का अभाव है। आस्ट्रेलिया में सहजयोग शुरु करने से पूर्व श्री माताजी का वहाँ का अनुभव यह था कि वहाँ के लोग बहुत शराब पीते हैं, व्यर्थ की बातें करते हैं, बड़ी कठोरता से हाथ मिलाते हैं तथा हर कार्य को बहुत हंगामें से करते हैं श्री गणेश के देश का तारतम्य परमचैतन्य से होना चाहिए। प्रकृति की गोद में रहने वाले भी परमात्मा के सम्पर्क में तथा उसके अनुशासन में होते हैं। वे एक दूसरे पर अत्याचार नहीं करते, वे अति भले होते हैं और झुंड नहीं बनाते हैं। वे बढ़ते हैं, जो भी कुछ उन्हें खाने को दिया जाए उसे स्वीकार करते हैं और प्रसन्नतापूर्वक रहते हैं। यदि उन्हें नष्ट भी होना हो तो इस विनाश को स्वीकार करते हैं । श्री गणेश के इस देश में आप प्रकृति को स्वयं में आत्मसात कर लें और आप में सन्तुलन इस प्रकार से आ जाए कि आप का पूरा स्वभाव उस सन्तुलन को दर्शाएं। पर आस्ट्रेलिया में बहुत बड़ी कठिनाई यह है कि यहाँ लोगों के बहुत से झुंड है लोग आपस में लड़ते रहते हैं तथा उनकी बहुत सी समस्याएं है गणेश के देश में जहाँ उनके गणों का निवास है यदि गण परस्पर लड़ने लगें तो क्या परिणाम होगा? यदि हमारे शरीर के अन्दर रोग प्रतिकारक ही परस्पर लडने लगें तो शरीर का क्या होगा? अतः आप भी गणों के समान ही इस देश में जन्में विशिष्ट लोग हैं । इतनी उपलब्धियां पाने के बावजूद भी अन्य देशों की सभी बुराईयाँ लेने लगते हैं तो श्री गणेश के इस देश में जन्म लेने से क्या लाभ? गणेश की इस भूमि पर आपके अन्दर पूर्ण सन्तुलन होना चाहिए, यही सब आस्ट्रेलिया के सहजयोगियों से आशा करती हूँ और श्री गणेश के सन्तुलन का विवेक उन्होंने पूरे विश्व को देना है। किसी के प्रति हमें कोई दुर्भाव नहीं रखना चाहिए और सदा हमें क्षमाशील होना चाहिए। अंग्रेजी भाषा में भी मृदुता होनी चाहिए कि यदि आप किसी को कुछ कहें तो वह बुरा न मानें। यदि आपकी विनोदपूर्ण भाषा है पर विनोदिता भी कभी -कभी व्यक्ति को कठिनाई में फँसा देती है। इसका अर्थ यह भी नहीं कि आप किसी को कठोर शब्द बोलें या किसी व्यक्ति के, अपने कर्तव्य, अपने बच्चों, पति या पत्नी के प्रति उदासीन हो जाए। किसी के प्रति उदासीनता भयंकर कठोरता है। किसी छोटी सी बात के लिए यदि कोई स्त्री नाराज होकर अपने पति से बात नहीं करती या पति पत्नी का तिरस्कार करता है, उसकी फिक्र नहीं करता, देखभाल नहीं करता तो सहजयोग के अनुसार यह अपराध है। यह गलत है क्योंकि आप में सन्तुलन तथा स्वाभाविक कोमलता होनी चाहिए। अन्य लोगों से आपको पशु २३ २४ अति प्रेम से बात करनी चाहिए तथा आपको दयालु तथा अच्छा होना चाहिए। पता लगाईये कि आप ये सब कर रहे हैं या नहीं। समूहों के बीच हमें प्रेम की शक्ति का उपयोग करना है-केवल प्रेम ही तो हमारी शक्ति है। श्री गणेश को देखिए-कितने भले, मधुर तथा अबोध हैं। उनकी कार्यविधि कितनी भली है । कैसे वह तुम पर कार्य करते हैं, कैसे वे तुम्हारे लिए चीज़ों की रचना करते हैं और कितनी शान्ति से वे सारा कार्य करते हैं। उदाहरण के रुप में किसी फूल को खिलते हुए या प्रकृति के किसी अन्य कार्य को जब श्री गणेश करतें हैं तो आप उसे देख नहीं सकते। इतनी कोमलता से वे सारे कार्य को करते हैं और हर पत्ते को दूसरे से भिन्न बनाते हैं। गणेश की पृथ्वी पर रहने वाले हम सबको कितना भद्र होना चाहिए? लोगों से व्यवहार में हमें कितना मधुर होना चाहिए? यह दर्शाने के लिए कि हम गणेश हैं आपको अति भद्र होना चाहिए आपको विशेष प्रकार के गण बनना है। आप सबको वास्तविक रुप से प्रेममय, भद्र, करुणामय और हितैषी बनना सीखना है। छोटी-छोटी चीज़ें लोगों को बहुत प्रसन्नता प्रदान कर सकती है। मैं स्वयं छोटी-छोटी यूक्तियाँ उपयोग करती हूैँ। आपको भी इनका उपयोग करना चाहिए एक दिन एक महिला को मैंने एक साडी दी। उसने कहा, 'माँ आप कैसे जानती हैं कि मुझे ये रंग पसन्द है?' क्योंकि मैंने तुम्हें ज़्यादातर यही रंग पहने देखा है, अत: मैं जानती हूँ कि तुम्हें यह रंग पसन्द है। 'क्या आपने मुझे देखा था ?' 'नि:सन्देह मैंने तुम्हें देखा था।' उसे बहुत प्रसन्नता हुई। उसे लगा कि माँ मेरा ध्यान रखती है। मैं सब कुछ जानती हैँ क्योंकि मुझे आपकी चिन्ता है। आप सब की। मैं जानती हूँ कि आप कहाँ खड़े हैं, आपको क्या परेशानी है। क्या किया जाना चाहिए, आपको क्या पसन्द है और क्या ना पसन्द। ऐसा करने में कोई हानि नहीं है। अच्छा, सौहार्द बना लेना ही ठीक है तभी आप समझ सकेंगे कि समस्या क्या है। श्री माताजी ने बताया कि कितने प्रेम से वे लोगों को सुधारने का प्रयत्न करती हैं, पर यह सब हमें उन लोगों को बताना नहीं चाहिए। उन्हें बताने के स्थान पर हम बन्धन दे सकते हैं। हमें कोई कठोर कदम लेने की या किसी के मुँह पर उसकी कमी कहने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। ध्यान- धारणा मध्य (केन्द्र) में रहने में सहायक होती है फिर भी कभी-कभी हम ध्यान से निकल जाते हैं। कठिनाई पड़ने पर तुरन्त अपने गुरुत्व बिन्दु पर चले जाइए......ऐसा यदि हो जाए तो समस्या समाप्त हो जाएगी। मेरे साथ ऐसा ही होता है। कहीं भी जब मैं कोई कठिनाई देखती हूँ तो मुझे लगता है कि मैं तुरन्त अपने गुरुत्व की गहनता पर चली गई हूँ और वहाँ से मैं सभी कुछ स्पष्ट देख सकती हूँ, तब मैं समस्याओं का हल करती हूँ। आपने ना तो अपना मुकाबला दूसरों से करना है और न ही ये सोचना है कि आपका कोई लाभ या हानी होगी। आप अपने मालिक हैं। अत: चिन्ता मत कीजिए। न कोई ईष्ष्या न कोई प्रलोभन। आप स्थिर हैं। निश्चिंत। २५ कभी अगुआ गण अपने पद के लिए चिन्तित होते हैं। पर सहजयोग में नेता तो बाजिगरी मात्र है। नेतृत्व मात्र एक मज़ाक है और यदि आप इस बात को समझ जाए तो कार्य और अच्छी तरह से होगा। सहजयोग में कोई पूरा-तन्त्र नहीं है। हम सब एक हैं। कोई भी किसी दूसरे से बेहतर नहीं है । अत: आपको नेता से कोई भय नहीं होना चाहिए । यदि आप अपने गुरुत्व पर स्थिर हैं तो वह आपको समझ जाएगा। अपने गुरुत्व बिन्दू पर आते ही नेता जान जाएगा। अत: आप अपने गुरुत्व बिन्दू पर स्थिर रहें कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकता। सहजयोग में आपको कोई भय या चिन्ता नहीं होनी चाहिए। आप सभी संत हैं। सारे और परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति आपकी देखभाल कर रही है यह श्री गणेश का स्थान है, सभी कुछ ठीक हो जाएगा। गण, देवदूत आपको परेशान करने वाले को सर्वव्यापक शक्ति सम्भाल लेगी इस विषय में आपको कुछ करने की आवश्यकता नहीं। ये देखने का प्रयत्न कीजिए कि क्या आप सन्तुलन में हैं - अपने परिवार से न बहुत लिप्त और न बहत विरक्त। लिप्सा प्रेम की मृत्यू है अतः हमने निर्लिप्त प्रेम की यथोचित समझ प्राप्त करनी है, जहाँ गुरुत्व पर खड़े हो कर सबका हित सोच सकें। यदि आपको लगे कि कोई व्यक्ति ठीक नहीं है तो भी आपको सन्तुलन खोने की कोई आवश्यकता नहीं। अपना सन्तुलन ही यदि आपने खो दिया तो उस व्यक्ति को आप कैसे ठीक कर सकेंगी ? इस प्रकार आप अपनी सारी घृणा, क्रोध, कामुकता तथा स्पर्धा भाव छुटकारा पा लेंगे क्योंकि आप अपनी गरिमा में स्थित हैं। आपको किसी की प्रशंसा की इच्छा नहीं, आप जानते हैं कि आप अपने स्थान पर खड़े हैं और आप आत्मसन्तुष्ट हैं। से श्री माताजी से विशेष - साक्षात्कार भी आवश्यक नहीं। यह सब तो अहम् है। श्री माताजी कभी निजी नहीं हैं। हर समय वे हमें उपलब्ध हैं। यह सब बातें अज्ञान से तथा इस सत्य से उपजी है कि आप अपने गुरुत्व बिन्दु पर नहीं है। अत: आज हमें अपने हृदय में सोचना चाहिए कि हमारा गुरुत्व बिन्दु क्या है और यह कि हमें दृढ़तापूर्वक खड़े होना है। करें। परमात्मा आप पर कृपा २६ हम ६ि ४० 2ा तर द्न ै ० सहज विवाह २७ ति ु कि र कभ पह अत्यन्त आनन्ददायी एवं शुभअवसर था। इसका हम सबने आनन्द लिया। सभी दूल्हे-दुल्हनें बहुत प्रसन्न नज़र आ रहे हैं। ये सब देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है और मैं हृदय से आपको आशीर्वाद देती हूँ। केवल इतना कहूँगी कि अपने विवाह को अत्यन्त प्रेममय एवं सफल बनाएं, यह बहुत आवश्यक है। उदाहरण के रूप में मैंने देखा कि एक देश से छः या सात लड़कियाँ थीं जिन्होंने दुर्व्यवहार किया और तलाक ले लिया। इस प्रकार के व्यवहार के कारण हमने उस देश पर रोक लगा दी है। क्योंकि हमें लगा कि इन महिलाओं ने एक के बाद एक इतने विवाह तोड़ दिये, ऐसा उनके खोखले अहं के कारण हुआ होगा। यह हमारा अनुभव है। कुछ जिनमें सहज 'विवाहों के कुछ बुरे उदाहरण हैं। तो मैंने कहा कि यदि आप विवाह नहीं करना चाहते तो मत करो। सहजयोग में आप स्वयं के लिए या पत्नी के लिए विवाह नहीं करते, सहजयोग के लिए विवाह कर रहे हैं। अतः जब आप झगडते २ अन्य देश भी हैं। ना] रे हैं या इस प्रकार की मूर्खता करते हैं तो आप सहजयोग को हानि पहुँचाते हैं। आपको एक-दूसरे के प्रेम भावनाओं और विवाहित जीवन का आनन्द क्या है ये देखना है। आप यदि आनन्द नहीं लेना चाहते तो ठीक है। यह केक के समान है, यदि आप इसे नहीं खाना चाहते तो न खाएं। परन्तु पूर्ण उत्साह के साथ, दैवी नियमों के अनुसार कार्य करते हुए आप डटे रहें और विवेकपूर्ण कार्य करें। सहजयोग में अधिकतर विवाह अत्यन्त सफल होते हैं। उन दम्पतियों के आत्मसाक्षात्कारी अत्यन्त सुन्दर बच्चे हैं और उन्हें देखकर अन्य परिवार भी सहजयोग में आ रहे हैं। मुझे आपको बताना है कि पति को यह नहीं समझना चाहिए कि विवाह करके पत्नी पर रौब जमाने का या उसके सिर पर बैठने का अधिकार प्राप्त हो गया है। नि:सन्देह पश्चिमी देशों में लोग ऐसा नहीं करते परन्तु भारत में प्रायः ऐसा होता है। भारतीय पुरुष अत्यन्त उग्र होते हैं। इसके विपरीत पश्चिम की महिलाएं पुरुषों से कहीं अधिक आक्रामक है। ये बात मेरी समझ में नहीं आती। इस स्वभाव के कारण कई बार विवाह टूट जातें हैं। किसी पर भी रौब जमाने की कोई आवश्यकता नहीं। किसी को कष्ट देने की कोई आवश्यकता नहीं। विवाह को निभा पाना यदि असम्भव है, आपका साथी यदि अशोध्य है, तो | ५ अक्तूबर १९९८, कबैला २८ ह सहजयोग में हमने तलाक की आज्ञा दी परन्तु तलाक लज्जाजनक है। जीवन का आनन्द लेने के स्थान पर तलाक लेना मुझे बिलकुल पसन्द नहीं। अत्यन्त सुन्दर, रोमांचक मनोभावों के साथ अपने पति-पत्नी का आनन्द लेने के लिये आप तैयार हो जाएं। पहले दिन से झगडना न शुरु कर दें। तलाक के चक्कर में यदि आपको झगड़ना है तो वास्तव में अपने खानदान, अपने देश को बदनाम करवातें हैं और आपके देश से विवाह की इच्छुक अन्य लड़कियाँ भी सहजयोग में विवाह करने से वंचित ही रह जाती हैं। क्योंकि ऐसे देशों की लड़कियों का विवाह करना मुझे अच्छा नहीं लगता अब एक प्रथा बन गयी है। हम देखते हैं कि पिछले छः- सात वर्षों में किसी देश में सहज विवाह किस प्रकार चल रहें हैं। तो यदि आप सहज विवाह के सौन्दर्य एवं मय्यादा को ताक पर रख देना चाहते हो तो बेहतर होगा कि आप विवाह करने का निर्णय ही न लें। आपका विवाह करना हमारा कर्तव्य नहीं है, अच्छी पत्नी या अच्छा पति प्राप्त करना आपकी आवश्यकता है। इस सबके बावजूद भी यदि आप इसे स्वीकार करना नहीं चाहते या ऐसा नहीं करना चाहते तो भी एकदम से तलाक के विषय में सोचने लगते हैं। ऐसा करना बहुत लज्जाजनक है और बहुत गलत। यह सहज जीवन को नहीं दशर्शाता। आप यदि सच्चे सहजयोगी हैं तो अपने पति-पत्नी के साथ प्रेमपूर्वक जीवन निर्वाह करने की वे योग्यता आपमें होनी चाहिए। सहज विवाह आप पर श्री गणेश का आशीश है, आपकी वैवाहिक जीवन की रक्षा करेंगे। आपकी सहायता करेंगे और आपको बुराईयों से बचाएंगे। मैं जानती हूैँ कि सहजयोग में विवाह करना कितना बड़ा वरदान है, परन्तु कुछ मूर्ख पुरुष एवं महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन का आनन्द नहीं लेना चाहते। ऐसी स्थिति में हम उन्हें तलाक की आज्ञा देंगे, परन्तु एक बार तलाक लेने के बाद, सहजयोग में पुन: विवाह करने की आज्ञा हम उन्हें नहीं देंगे । यह निश्चि है। जिस व्यक्ति ने एक बार तलाक ले लिया है हम उसका विवाह नहीं करना चाहते। यदि किसी उचित कारण से तलाक हुआ है, तब तो ठीक है। परन्तु तलाक के लिए तलाक लेकर विशेष प्रकार के व्यवहार की आज्ञा हम नहीं देंगे तो मैं यह बताना चाहूँगी कि सहजयोग में तलाक निषिद्ध २९ का है। परन्तु यदि आप लड़ना चाहते हैं, कष्ट देना चाहते हैं, अन्य लोगों के जीवन को बर्बाद करना चाहते हैं, तभी तलाक लिया जाता है। मैं आपसे अनुरोध करुँगी कि आप अपने पति-पत्नी होने का आनन्द लें। एक देश के लोगों का दूसरे देश के लोगों से विवाह का आरम्भ हमने उनके आनन्द के लिए किया है। कल मैंने आपको बताया था कि स्वयं परस्पर विवाह न करें। इसके हम जिम्मेदार न होंगे। विवाहों का आयोजन हमें करने दें। आप स्वयं यदि ऐसा करेंगे तो बहुत सी बेकार की समस्याएं खड़ी हो जाएंगी जैसा कि पश्चिमी समाज में है। यहाँ आकर वे लडकी छाँटना चाहते हैं या अपने केन्द्र से लड़की निश्चित करके वे यहाँ आते हैं। इसका अभिप्राय ये हआ कि केन्द्र में ध्यान करने के स्थान पर वे लड़के-लड़कियाँ खोजते रहते हैं। इस प्रकार की बेवकूफी हम रोकना चाहते हैं। इसलिए यदि आप सहजयोग में विवाह करना चाहते हैं तो आपको अपना वर स्वयं नहीं खोजना क्योंकि हम यह देखना चाहते हैं कि आपकी चैतन्य लहरियाँ कितनी मिलती है। हमारे यह सब करने के बावजूद भी विवाह टूट ही जाते हैं। परन्तु यह बात मैंने अवश्य देखी है कि स्वयं तय किये हुए विवाह तो टूट ही जाते हैं। ऐसे विवाह सर्वसाधारण विवाहों की तरह से होते हैं। तो सर्वोत्तम बात ये होगी कि स्वयं को वचन दे कि आप मूर्ख नहीं बनेंगे और अपने विवाहित जीवन को बर्बाद नहीं करेंगे। आपके हित के लिए मैं चिन्तित हँ। अत: बहुत परिश्रम करके, बहुत जाँच कर सूझ-बूझ से मैंने यह सब कार्य किया है। बिना बात के आप मुझे दु:खी न करें। बारम्बार मेरी यही प्रार्थना है कि आप प्रसन्नचित हो जाए। मैं बहुत प्रसन्न हूँ, हृदय से आपको आशीर्वाद देती हूँ। मुझे विश्वास है आपके विवाह कार्यान्वित होंगे। जल्दबाजी मत कीजिए। सब्र रखिए । सर्वप्रथम हर चीज़़ को सहजता से लिया जाना चाहिए तब देखे कि कितने प्रेमपूर्वक आपके विवाह कार्यान्वित होते हैं। परमात्मा आपको धन्य करें! धन्यवाद! ३० स लि की खोर স कछु-गाजर ु ইত ইউ্ত 2ं ुि ट ए ड शिशिशय ১८৩ े कलल [र ट सामग्री : 300 ग्राम कदू-छिलका व बीज निकला और कदूकस किया हुआ, - 100 ग्राम गाजर-छिलका उतार कर कद्दकस की गई, 400 मि.ली. दूध, 1 समतल बड़ा चम्मच जमा हुआ घी, 4 बड़े चम्मच चीनी या स्वादानुसार, 70 ग्राम खोआ, 1/2 छोटा चम्मच इलायची पाऊडर, 1/8 छोटा चम्मच केसर, 1 बड़ा चम्मच बादाम छिलका उतरे व कटे हुए, 1 बड़ा चम्मच बारीक कटे हुए काजू विधि :- में 1) दूध कद्दूकस किए गए कद्दू व गाजर नर्म होने तक पकाएं। 2) घी व चीनी डालकर 5 मिनट और पकाएं। 3) खोआ, इलायची पाऊडर, केसर, बारीक कटे काजू व बादाम डालकर अच्छे से हिलाएं। आँच से उतारें और ठण्डा होने दें । 4) चाहें तो केवड़ा या गुलाब जल डालें। गर्म या साधारण तापमान पर परोसें। ३१ म नव-आगमन Code. Nos. DVD/HH VCD/HH|ACD/HH ACS/HH Speech Title Type Place Date 269* 1-Feb.-78 Delhi 269 Sp ब्रह्म का ज्ञान 23-Feb-79 | कुंडलिनी आणि सात चक्र Ahmadnagar Sp 276* 276 सार्वजनिक कार्यक्रम Delhi 28* 28 9-Mar-79 Sp How Truthfull are we about Seeking 313* 313 16-Jul-79 Sp 28-Sep-79| Navratri : Relation Between Kundalini & Kalki Mumbai 304* 304 Sp 10-Oct-83 Puja and Havan 279* Toranto Pu 11-Jan-87 | Devi Puja Paithan Sp/Pu 280* 19-Jun-90 | Shri Adishakti Puja I & II Sp/Pu 281* 423* Modling 25-Dec-90 Christmas Puja Ganapatipule Sp 438* Guru Puja 28-Jul-91 Sp/Pu Cabella 314* 216 314 22-Mar-93| सार्वजनिक कार्यक्रम Delhi Sp 275* 12-Dec-93| गलत गुरु एव पैसे का चक्कर Deharadun Sp 282* 409 409* Shri Krishna Puja 8-Jun-97 Sp New York 168* 168 23-Aug-97| Shri Krishna Puja Cabella Sp 162 162* Shri Ganesh Puja 7-Sep-97 Cabella Sp 167 167* 19-Apr-98 Easter Puja 173 Istambul Sp 173* 25-Dec-99 Christmas Puja Ganapatipule Sp 306* 306 21-Mar-09 Birthday Puja Celebrations Part I & II Noida Pu 276* 21-Mar-09 Musical Program-Birthday Puja Noida Mu 277* Easter Puja Pu/Mu 278* 7-Apr-09 Noida Nirmal Gyan Second Edition-Mix SP 002 (Contents-1 Data DVD & 2 Video DVD) प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हौसिंग सोसायटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२ E-mail : sale@nitl.co.in फिर आता है पन्द्रहवाँ दिन, जो सबसे अन्धकार भरी रात होती है। उसी रात में आप दीप जलाते हैं क्योंकि ये अन्धकार भरी रात होती है शक्तियाँ अन्दर चली आ सकती है। और दुष्ट इसलिए दीप जलाये जाते हैं ताकि लक्ष्मीजी अन्दर आ सके। . दिवाली पूजा, १९८३ ए सय ---------------------- 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी सितंबर-अक्टूबर २००९ हिन्दी 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-1.txt े २५ मैं सब कुछ जानती हूँ क्योंकि मुझे आपकी चिन्ता है। आप सब की। मैं जानती हूँ कि आप कहाँ खड़े हैं, आपको क्या परेशानी है । क्या किया जाना चाहिए, आपको दू दू क्या पसन्द है और क्या ना पसन्द| पर्थ, ऑस्ट्रेलिया, ९/२/१९९२ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-2.txt इस अंक में श्री महाकाली पूजा - १ ब विशुद्धि तत्व - ७ और अन्य सन्तुलन - १९ सहज विवाह - २७ कहू-गाजर की खीर - ३१ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-3.txt श्रीमहाकाली पूजा (कि कलकत्ता, ०१ अप्रैल १९८६ २१ मार्च से हमारा जन्मदिवस आप लोग मना रहे हैं और बम्बई में भी बड़ी जोर-शोर से चार दिन तक जन्म दिवस मनाया गया और इसके बाद दिल्ली में जनम दिवस मनाया गया और आज भी लग रहा है फिर आप लोग हमारा जन्म दिवस मनाते रहें। इस कदर सुंदर सजाया हुआ है इस मंडप को, फूलों से और विविध रंगों से सारी शोभा इतनी बढ़ाई हुई है कि शब्द रूक जाते हैं, कलाकारों को देखकर कि उन्होंने किस तरीके से अपने हृदय से यहाँ यह प्रतिभावान चीज़ बनाई इतने थोड़ी समय में। आज विशेष स्वरूप ऐसा है कि अधिकतर इन दिनों जब कि ईस्टर होता है मैं लंदन में रहती हूँ और हर ईस्टर की पूजा लंदन में ही होती है। तो उन लोगों ने यह खबर की, कि माँ कोई बात नहीं आप कहीं भी रहें जहाँ भी आपकी पूजा होगी वहाँ हमें याद कर लीजिएगा और हम यहाँ ईस्टर की पूजा करेंगे उस दिन। इतने जल्दी में पूजा का सारा इन्तजाम हुआ और इतनी सुंदरता से, यह सब परमात्मा की असीम कृपा है जो उन्होंने ऐसी व्यवस्था करवा दी। लेकिन यहाँ एक बड़ा कार्य आज से आरंभ हो रहा है। आज तक मैंने अगुरूओं के विषय के बारे में बहुत कुछ कहा और बहुत खुले तरीके से मैंने इनके बारे में बताया; ये कितने दुष्ट हैं, कितने राक्षसी हैं और किस तरीके से ये सच्चे साधकों का रास्ता रोकते हैं और उनको गलतफहमी में डाल के उनको एकदम उल्टे रास्ते पर ड़राल देते हैं और इसके लिए बहुत जताया कि ऐसी बात करना ठीक नहीं इससे गुरू लोग आप पर आक्रमण करेंगे और आपको सताएंगे लेकिन लोगों ने हुआ उसके बिलकुल उल्टा किसी ने भी हमें कचहरी नहीं दिखाई, ना ही किसी ने हमारे बारे में बात कही, एक-एक करके हर एक दुष्ट सामने आया और दुनिया ने जाना कि जो कुछ हमने इनके बारे में कहा था वह बिलकुल सत्य है, आज धीरे-धीरे ये अगुरू मिट रहे हैं। लेकिन तांत्रिक अभी भी काफी अपना जोर बँधाये हुए हैं और आपके कलकत्ते में इसका मेरे खयाल से मुख्य स्रोत है। यहाँ पर वह पनपते हैं और यहीं से सारी दुनिया में छा जाते हैं। आज ही एक साहब से मुलाकात हुई, उनसे इतने तान्त्रिकों पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कौन-कौन उनके आश्रय में आये और कौन-कौन महात्मा बन गये। मुझे लगा ये अभियान अब शुरू हो गया। ये तान्त्रिकों को एक-एक करके ठीक करना जरूरी नहीं है। सबको एक साथ ही गंगाजी में धो ड़ालना चाहिए । तभी इनकी तबियत ठीक होगी। आज यह महिषासुर सब दूर फैल गया है। इसको खत्म करने का ही अभियान शुरू होना चाहिए। ये एक बड़ी भारी आत्मिक क्रान्ति है जिससे सारे संसार का कल्याण होने वाला है। सारा संसार इस क्रान्ति से पुनीत हो जाएगा और आनन्द के सागर में परमात्मा के साम्राज्य में रहेगा। लेकिन उसके लिए सबको धीरज से कुछ न कुछ त्याग करना चाहिए और उसके लिए सबसे बड़ी चीज़ यह है कि हिम्मत रखनी चाहिए। हिम्मत से अगर काम लिया जाए तो कोई वह दिन दूर नहीं जब हमारा सारा संसार सुख से भरा हो जाएगा। किन्तु उसमें सबसे बड़ी अड़चन आती है। हमें जब तक कि सहजयोगी गहनता में उतरते नहीं, सहजयोगियों को चाहिए कि वे गहनता में उतरें। हर सहजयोगियों के लिए ये बड़ी जिम्मेदारी है कि उन्हें इस क्रान्ति में ऐसा कार्य करना १ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-4.txt एक अभियान शुरु हो रहा है.. २ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-5.txt उनके आगे बाकी सब पराये हैं। चाहिए जो एक विशेष रूप धारण किए हो। अभी तक जो भी सहजयोगी मैं देखती हैँ उनमें यही बात होती है कि अभी हमारी यह पकड़ आ रही है, माँ, हमारे यह चक्र पकड़ रहे हैं, हमारा यह हो रहा है, अभी हमारे अन्दर यह दोष है, ऐसा है, वैसा है। लेकिन जब आप देना शुरू करें। मगर हम जब दूसरों को देना शुरू करेंगे, जब दूसरों का उद्धार करना शुरू करेंगे तो अपने आप यह सब चीजें धीरे-धीरे कम होती जाएगी। चित्त अपना इधर ही रहना चाहिए कि हमने कितनों को दिया। कितनों को हमने पार कराया। कितनों को हमने सहजयोग में लाया है। जब तक हम इसे जोर से नहीं कर सकते तब तक सहजयोग का कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा और ये बढ़ना अत्यंत आवश्यक है। उसके लिए और भी बातें करनी चाहिए। जो कि हम लोग सोच रहे हैं कि एक साल के চ अन्दर घटित हो जाए उसमें से एक बात ऐसे सोच रहे हैं कि इस तरह का एक कोई आश्रम बना लें जहाँ पर सहजयोगी अलग-अलग जगह से आकर रहेंगे और उनको सहजयोग के मार्ग से पूर्ण, ूर्णतया परिचित किया जाएगा। इतना ही नहीं लेकिन उनकी जो कुण्डलिनी है उसकी जागृति भी पूर्णतया हो जाएगी और वे एक बड़े, भारी महान योगी के रूप में हमारे संसार में कार्यान्वित होंगे। इसकी व्यवस्था सोच रहे हैं और मेरे विचार से साल भर के अन्दर कोई न कोई ऐसी चीज़ बन जाएगी जहाँ पर आप लोग कम से कम एक महीना आकर रह सकते हैं। और वहाँ रह कर आप सहजयोग में पारंगत हो जाएं और एक निष्णात प्रवीण सहजयोगी बनकर इस सारे संसार में आप कार्य कर सकते हैं । पर सबसे पहले बड़ी बात यह है कि जो हमारे अन्दर एक तरह का अपने प्रति एक अविश्वास सा है जो डेफिडन्स है उससे हमें बाज़ आना चाहिए। हम आपसे बताते हैं यहाँ जो डॉ.वॉरेन है, ये जब सहजयोग में आए थे तो हमारे पास ज़्यादा से ज़्यादा एक-आठ दिन तक रहे। उसमें भी लड़ते झगड़ते रहे पूरे समय उनके पहले समझ में नहीं आ रहा था किस तरह अपने को ठीक करें फिलहाल जो भी हो उसके बाद वो ठीक हो गये और वापस वे ऑस्ट्रेलिया चले गए और ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद उन्होंने इतने लोगों को पार कर दिया। इतने लोगों को ठिकाने लगा दिया कि मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ जिन्होंने गणपति भी क्या उसे जाना नहीं था । जिन्होंने किसी देवता को कभी जाना नहीं था। जिन्होंने कभी कुण्डलिनी के बारे में जाना नहीं था। वो आठ दिन के अन्दर इतने बढ़िया होकर और सारे ऑस्ट्रेलिया पर छा गये। तो यह सोचना कि हम इसे नहीं कर सकते हैं या कैसे करें? इसमें यह उलझन है लोग क्या समझेंगे इस तरह की आप अगर आपने विचार धारणा रखी तो सहजयोग बढ़ नहीं सकता। परमात्मा आपके साथ में है, शक्ति आपके साथ में है। स्वयं आप योगी है और सब योगियों के ऊपर ये जिम्मेदारी है इस कार्य को पूरी तरह से करें। जब तक आप संघठित रूप से नहीं रहेंगे तब तक यह कार्य नहीं हो सकता। संघठित होना पड़ेगा। संघठित होने का मतलब यह है कि, आप एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग है। एक सहजयोगी को दूसरे सहजयोगी से कभी भी विलग समझना नहीं चाहिए। जैसे कि मैं देखती हूँ कि शुरुआत में सहजयोगी जो इन्सान सहजयोगी नहीं है उसकी ओर ज़्यादा मुड़ता है बजाय इसके कि जो सहजयोगी है। तो पहली तो बात यह होनी चाहिए कि जो हमारे दूसरे भाई -बहन जो सहजयोगी हैं, उनके आगे बाकी सब पराये हैं। कोई कुछ भी बात कहें उनके साथ हमको किसी तरह से भी एकमत नहीं होना क्योंकि वो आपको चक्कर में ड्राल देंगे और आपके अन्दर फूट पड़ जाएगी। इस आसुरी विद्या से अगर बचना है तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि आप योगी जन है और आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हर आसुरी विद्या का एक-एक ऐजंट है। समझ लीजिए वह आपको खींचना चाहता है कि आप इस विद्या से हट जाएं और उनके विद्या में आ जाएं। और उनकी चालाकियाँ इतनी सुन्दर है कि आपकी समझ में नहीं आएगी। ३ पहली तो बात यह होनी चाहिए कि जो हमारे दूसरे भाई- बहन जो सहजयोगी हैं 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-6.txt इसलिए पहली चीज़ यह है कि हम सहजयोगी, सहजयोगी के विरोध में नहीं जाएंगे और कोई ग्रुप हम न बनाये और कहीं ग्रुप जरा सा भी बनने लग जाता है सहजयोग का तो मैं उसको तोड़ देती हूँ और ऐसा तोड़ा है। अब जैसे ग्रुप बन गये, दिल्ली वाले हो गए, फिर दिल्ली में कोई हो गए तो कोई करोल बाग के हो गए। तो कोई कहीं के हो गए। तो कोई बम्बई के हो गए। तो बम्बई वाले तो उनमें भी कोई नागपाड़ा के हो गये, तो कोई दादर के हो गए, तो कोई कहां के हो गए। अब करते- करते फिर आप ऐसी छोटी जगह पर आप पहुँच जाएंगे जहाँ आप सिर्फ अकेले बैठे रहेंगे और आप कहेंगे कि सहजयोगी कहाँ गायब हो गए। तो इसमें से कोई भी चीज़ का ग्रुप नहीं होना चाहिए । जब इन्सान में कैन्सर सैट होता है तब वह ग्रुप बना के रहता है। एक आदमी में अगर 'डीएनए' जिसे कहते हैं एक आदमी में अगर खराब हो जाए, एक सेल में अगर खराबी आ जाए एक ही सेल में अगर खराबी आ जाए तो वह दूसरे सेल पर जोर करेगा और दूसरा सेल तीसरे सेल पर जोर करेगा और ऐसा उनका एक गुट बनता जाएगा। वह चाहेगा हमारा जो एक ग्रुप है वह सब पर हावी हो जाए। जब वह सब पर हावी होने लगता है जैसे कि आप समझ लीजिए कि आपके नाक का सेल है वो अगर बढ़ने लगा तो उन्होंने एक ग्रुप बना लिया तो एक बड़ा सा यहाँ पर लम्पसा हो गया और उसने जाकर के आक्रमण किया आँख के ऊपर, फिर आँख को ढक लिया और वहाँ से गए कान को ढ़क लिया। इस तरह से कैन्सर जो होता है वह अपनी अपेक्षा दूसरों को नीचे समझता है। और एक ग्रुप बनाकर के उनके जो दूसरे लोग है जो कि सहजयोगी हैं उनको दबाता है। ऐसी बीमारी अगर सहजयोग में अगर फैल जाए तो उसका ठिकाना मैं खुूब लगाती हूँ। चाहे मैं कहीं भी हूँ, मैं चाहे लंदन में रहँ चाहे मैं अमेरिका में रहूँ चाहे कहीं भी रहँ उसका ठिकाना अपने आप हो जाता है। इसलिए किसी को भी कोई ग्रुपबाज़ी नहीं करनी चाहिए । किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए हम एक ग्रुप के हैं। अगर दस आदमी एक साथ रहते हैं और बार-बार एक ही साथ दस आदमी रहते हैं तो समझ लेना चाहिए कि ग्रुप बन रहा है। सहजयोगियों को कभी भी एक साथ दस आदमी हर समय नहीं रहना चाहिए। जब आज इनके साथ बैठे तो कल उनके साथ, तो कल इनके साथ। जैसे कि हमारे अन्दर रक्त की छोटी-छोटी पेशियाँ हैं जिनको हम सेल्स कहते हैं। वो अगर समझ लीजिए कि एक जगह बैठ गये तो दस सेल्स ने यह सोचा कि हम यहीं बैठ जाए तो उस आदमी की मृत्यु हो जाएगी। सहजयोग की मृत्यु हो जाएगी। इसलिए हम दस आदमी एक साथ क्योंकि हम एक ग्रुप के हैं, ये एक ग्रुप के हैं, वे एक ग्रुप के हैं, रक्ताभिसरण जिसे कहते हैं कि ब्लड का जो सरक्युलेशन है वह हमारे अन्दर खुले आम से होना चाहिए, तो कोई सा भी ग्रुप नहीं बनना चाहिए। जहाँ ग्रुप आपने देखा बन रहा है उस ग्रुप को छोड़कर दूसरे ग्रुप में चले जाएं। उस ग्रुप को तोडिए। उसे कहना इस ग्रुप के साथ आ जाए और वह उस ग्रुप के साथ आ जाएगा। इस तरह से आप जब तक नहीं करेंगे तब तक आपकी कलेक्टिविटी में निगेटिविटी बनती जाएगी। जैसे कि मैं कहती हूैँ कि आपने अगर मंथन करके मख्खन निकाला। मख्खन के कण चारों तरफ हैं मगर उसमें बड़ा सा एक मख्खन का ढ़ेला ड्ालना पड़ता है फिर उसके आस- पास सारे जो कण हैं वो जुड़ते जाते हैं। मगर चार, पाँच, छ: कण मिलकर अलग से अगर बैठ जाएं तो जिसने मथा है वह कहता है जाने दीजिए। बेकार ही है, यह मख्खन बेकार ही है। इसे छोड़ दीजिए । जो बड़ा है उसे उठा लीजिए। तो सबको मिल - मिल करके एक बड़ा सा मख्खन के ठेला स्वरूप बनना है। इसी तरह से आपको भी एक बड़ा सा ग्रुप बनना चाहिए। करते-करते फिर एक बड़े सागर में विलीन होना चाहिए। तो एक बूँद को अगर आपको सागर में विलीन करना है तो आप चार-पाँच बूँद बना के सिर्फ बबुला आप जानते है कि दो मिनट के लिए आते हैं और नष्ट हो जाते हैं। अपने आप ही प्रकृति से ही होते हैं। उसको कोई कुछ करने की जरूरत नहीं है | इसलिए कोई सा भी ग्रुप आपको बनाना नहीं है। सबके साथ एक जैसा मिलना-जुलना, सबको एक साथ जाना। सबसे एक साथ प्रेम रखना और सबको एक साथ समझने की कोशिश करनी है। एक दूसरों को किसी भी तरीके से क्रिटीसाइज़ (निंदा) कभी नहीं करना चाहिए। आप आपस में भाई -बहन नहीं है लेकिन आप मेरे शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। अगर समझ लीजिए मेरी एक अंगुली ने दुसरी अंगुली को क्रिटीसाइज़ कर दिया तो क्या फायदा होगा? इससे तो नुकसान ही होने वाला है । इसलिए ठीक यही है कि मनुष्य को, इसलिए बहुत उचित बात है कि, हम लोगों को यह सोचना चाहिए कि अब हम मनुष्य नहीं हैं। हम अति मानव हैं और अति मानव की जो स्थिति है उसमें हमें सब दूर घूम-फिर कर के अपना चित्त परमात्मा पर रखना चाहिए। यह बड़ी भारी एक कठिनाई आ जाती है। ४ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-7.txt सहजयोग में। शुरुआत में कलेक्टिविटी, पता नहीं आदमी क्यों तोड़ देता है। यह भी एक आसूरी विद्या है । जहाँ कलेक्टिविटी टूट जाती है। अब जैसे हम कहें कि बम्बई में यह काम कम है। पर दिल्ली में अभी नहीं मगर कलकत्ता में मुझे मालूम नहीं हाल। लेकिन मैं यही कहँगी कि ये बीमारियाँ फैलने मत दीजिए। आप सब लोग मेरे बेटे हैं और मेरी बेटियाँ हैं। आपस में कोई सा भी अगर आपमें मतभेद हो जाए तो उसमें कोई ऐसी बात नहीं लेकिन यह है कि आपस में आप कोई ग्रुपबाज़ी मत कीजिए। फिर एक ग्रुप बन गया फिर वह ग्रप वाले कहेंगे हमारे आदमी को आप सामने कीजिए । वह ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को सामने कीजिए और फिर दूसरा ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को समाने कीजिए और उसका फिर असर क्या होगा? आप देखते हैं कि ऐसे लोग सहजयोग से परान्मुख हो जाते हैं, हट जाते हैं। उनका स्थान खत्म हो जाता है। जैसे गुरुओं को खत्म किया है। वैसे इस तरह के लोगों को भी खत्म किया जाता है। तो मैं नहीं करूं तो आपकी प्रकृति ही कर देती है। इसलिए आपको खास करके मुझे कहना है कि, कृपया आप लोग अपनी ओर चित्त दें और दूसरों की ओर प्रेम दें। दूसरों को प्रेम दीजिए और अपनी ओर चित्त रखें। अपनी ओर देखें। अपनी ओर देखिए और कहिए कि हम कैसे हैं? क्या हम ठीक हैं? क्या हमारे चक्र ठीक हैं? क्या हम में कोई दोष है? अगर आप सोचते हैं कि कोई समझता है तो उससे जाकर पूछिए कि, अगर कोई चक्र पकड़ रहा है तो बता दीजिए, हमारे समझ में नहीं आ रहा । जिस दिन आप इस चीज़ को अपना लेंगे कि हम माँ के अंग-प्रत्यंग में बैठे हैं आप समझ जाएंगे कि आपका कितना महत्त्व है। आप चाहे जैसे भी हैं हमने आपको स्वीकार कर लिया है। अब आपको भी हमें स्वीकार करना होगा और जानना होगा कि अब अत्यंत शुद्ध और पवित्र भाव से रहने से ही हमारी माँ को और सुख आनन्द मिल सकता है। आज की एक विशेष तिथि है, इस तिथि पर अभियान शुरू हो रहा है कि सारी दुनिया के जितने भी तांत्रिक है उनके पीछे मैं अब लगने वाली हूँ। और मैं चाहती हूँ कि आप भी सबके पीछे हाथ धो कर लगें। और जहाँ भी कोई तांत्रिक दिखाई दें तो उसके पास जाने वाले लोगों के लिए कुछ आप चाहे तो उसके लिए हैण्ड बिल्स वगैरे छपवा कर वहाँ पर भेज दीजिए कि ये तांत्रिक है और आप तांत्रिक उसके से भाग निकलें। जो आदमी तांत्रिक के पास जाता है, उसके घर अगर तांत्रिक आ जाए तो सात पुश्तो तक वह पनप नहीं सकता। बच्चे नहीं पनप सकते। सात पुश्तों तक उसके यहाँ हालत खराब होगी। बड़े बड़े नुकसान होंगे। उसका घर जल जाएगा और हो सकता है उसकी बीबी कहीं आत्महत्या कर ले, उसके घर में हमेशा तकलीफें, दु:ख और परेशानी बनी रहेगी। इसलिए यह जो अभियान है इसका आज दिन ऐसा है कि सब लोग मज़ाक में अप्रेल फूल का दिन कहते हैं। तो इनको बेवकूफ बना-बना कर ही पटका जाएगा। उनको बेवकूफ बनाकर ही पटका जाएगा क्योंकि ये अपने को बहुत अकलमन्द समझते हैं। तो इनकी जो बेवकूफियाँ हैं उनको उनका पूर्णतया उद्घाटन करना आप लोगों का कार्य है। आप सबके प्यार और दुलार और इस शोभा से वाकई मैं अभिभूत हूँ। इतना आप लोगों ने खर्च किया, इतनी शोभा बढ़ाई है, सो यही कहना है कि बहत ज़्यादा खर्चा करने की जरूरत नहीं है। आपकी माँ तो इतनी सीधी- साधी है। उसको कोई भी चीज़ की जरूरत नहीं। आप लोग जो भी है, भी नहीं । जो कुछ हमसे लेना अगर आप लोगों को साड़ी देना है तो दे दें। अब क्या करें?' लेकिन वो भी क्या है चार साल पहले दी हुई साड़ियाँ अब भी ताले-चाबी में बन्द है वो तो हमारी समझ में आता है कि बाद में अगर कोई म्युसियम वगैरे कुछ बनेगा तो उसमें आप लोग लगा दीजिएगा। तो यह सब चीजें आपके शौक के लिए जो भी आप कहें मेरे पास धरोहर रखी हुई हैं और इसकी कोई जरूरत नहीं पर आपका प्रेम ऐसा है कि उसके आगे मैं बोल भी नहीं सकती और कुछ कह भी नहीं सकती। जो भी कुछ प्रेम से दीजिएगा चाहे वो शबरी के बेर हों और चाहे आप लोगों की कीमती साड़ियाँ हो सब मेरे लिए मान्य है। तो अब हम लोगों का पूजा का समय हो गया है। आज जैसे मैंने कहा था जन्मदिवस की बात है बराबर बारह बजे मैंने मेरा भाषण शुरू किया और बराबर बारह बजे मेरा जन्म हुआ था इसलिए इतना समय लग गया फूलों में समय लग गया इसमें कोई घबराने की बात नहीं क्योंकि संजोग ऐसा है। बारह ही बजे आज का जन्म दिन मनाने का था। तो इस में सब चीज़ अपने समय पर ठीक-ठाक बैठती है। तो इसमें किसी को भी दोष नहीं मानना नहीं चाहिए। जो कुछ भी हमें दे दें । वही बहुत हैं। हमें तो कुछ चाहिए है वह आप लोग ले लीजिए लेकिन अब आप लोगों के सन्तोष के लिए हम कहते हैं कि, 'अच्छा भाई, कुछ ५ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-8.txt आपस में कोई सा भी अगर आपमें मतभेद हो जाए तो सार ६ उसमें कोई ऐसी बात नहीं, लेकिन यह है कि आपस में आप कोई ग्रुपबाज़ी मत कीजिए। he श्र 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-9.txt श्रीकृष्ण शक्ति जो हमारे अन्दर {४ है ये मनुष्य की शुरुआत है। मनुष्य व्य ने जब अपनी गर्दन ऊपर की तब उसके अन्दर इस चक्र की स्थिति बनी है। जिसको हम विशूद्धि चक्र वर पद कहते हैं। जिसके अन्दर सोलह पंखुड़ियाँ हैं। जो कि हमारे पीछे के हिस्से में यहाँ पर अगर आप गर्दन के पीछे के हिस्से में देखें तो इस जगह पे वो है। जहाँ मनुष्य ने अपनी गर्दन उठायी और सीधी कर ली वहाँ रयी रे कृष्ण शक्ति जागृत हो गयी।" २५ सितम्बर १९७९, मुंबई 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-10.txt ् आक पके सद्गुरु तत्व को नमस्कार करके आपकी श्रीकृष्ण शक्ति के बारे में मैं अब आपको बतलाती हैँ । श्रीकृष्ण शक्ति जो हमारे अन्दर है ये मनुष्य की शुरूआत है। मनुष्य ने जब अपनी गर्दन ऊपर की तब उसके अन्दर इस चक्र की स्थिति बनी है। जिसको हम विशुद्धि चक्र कहते हैं। जिसके अन्दर सोलह पंखुड़ियाँ हैं। जो कि हमारे पीछे के हिस्से में यहाँ पर अगर आप गर्दन के पीछे के हिस्से में देखें तो इस जगह पे वो है। जहाँ मनुष्य ने अपनी गर्दन उठायी और सीधी कर ली वहाँ कृष्ण शक्ति जागृत हो गयी। अब कृष्ण की शक्ति जो है ये समझना चाहिए इवोल्यूशन की परिपूर्णता है। पहले तो हम अमीबा थे , वहाँ से मछली, कछुआ होते हुए हम राम, राम के आगे कृष्ण तक पहुँच गये। श्रीकृष्ण शक्ति सम्पूर्ण शक्ति है। जब आपमें श्रीकृष्ण शक्ति जागृत होती है तब आपका सम्बन्ध विराट से होता है। माने जिसको अंग्रेजी में मेक्रोकोसम और मायक्रोकोसम कहते है। इसमें समष्टि और दृष्टि आ जाती है। उस समष्टि में आप समा जाते हैं। आपका व्यक्तित्व उससे करेक्टेड हो जाती है। ये कृष्ण शक्ति से होता है। इसलिए मेरा प्रोग्राम चलते वक्त मैं आपसे कहती हूँ कि आप इस तरह से मेरी ओर हाथ करें। इस तरह से हाथ करके अगर आप लोग बैठे रहें तो ये कृष्णशक्ति आपके अन्दर यहाँ पर जागृत हो जाएगी। और आपका सम्बन्ध जो है विराट से हो जाएगा। विराट की शक्ति जो है उसका नाम विराटांगना है। वो शक्ति सब दूर तक हमारे अन्दर समाई हुई है। और जिस वक्त ये शक्ति आपको मिल जाती है जब आप कृष्ण की शक्ति को पा लेते हैं तब आपके अन्दर साक्षित्व आ जाता है। माने ये कि किसी भी चीज़ को आप नाटक की तरह देखते हैं। वास्तविक में भी ये एक नाटक है, एक लीला है। कृष्ण ने ही इसको लीला माना। राम ने जब नाटक दिखाया तो ऐसा लगता था कि उसमें बह ही गये। लेकिन कृष्ण की सिर्फ लीला थी इसलिए उनको पूर्णअवतार कहते हैं। जब मनुष्य पूर्णत्व की ओर आता है तब सारे संसार की ओर देखता है कि एक नाटक चला। पागलों जैसे लोग कूद रहे हैं। उसमें वो भ्रमता नहीं । उसमें वो दुःखी नहीं होता। उसमें वो सुखी नहीं होता। देखिए आनन्द की भावना में, जो कि एक भावना है उसमें वो समाया रहता है। ये श्रीकृष्ण की शक्ति है। श्रीकृष्ण शक्ति के हम दो अंग (शरीर के हिस्से) हैं। एक तो लेफ्ट और राइट और एक सेंटर। सेंटर की जो शक्ति है वो विराट की ओर ले जाती है। लेफ्ट और राइट की शक्ति में से जो लेफ्ट की शक्ति है, जिस आदमी में बहुत ज़्यादा गिल्ट हो जाए और जो सोचे कि भाई, मैंने बहुत बड़ी गलती कर दी। मेरी बड़ी गलत बात हो गयी। मैंने बड़ा गलत काम किया और मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए था। ये | | फैशन आजकल उधर बहुत है। जब कि आप डेवलपमेन्ट पे पहुँच जाते हैं, बहुत ज़्यादा डेवलप हो जाता है तब आप में ये चीज़ सेटल हो जाती है। पहले तो आप एक्स्ट्रीम पर जाइये और 'मैं ये हूँ, मैं वो हूँ। मुझे आगे प्रोग्रेस करना चाहिए ।' जिधर अब अपना देश चढ़ा जा रहा है। और जब उतरने पे आ जाते हैं, तब वेस्टर्न कंट्रीज में ये शुरू हो गया है कि जिसको देखो वो सुबह से शाम तक रोते बैठता है और रोये जा रहा है। तो मैंने कहा कि 'क्या हुआ?' तो कहने लगे कि, 'मैंने बहत पाप किए हैं माँ। मैंने ये किए हैं।' मैंने कहा, 'अरे छोड़ो उन बातों को। अभी पार हो जाओ।' तो वो रोये इसी चीज़ पर, रात-दिन उनका रोना सुन-सुनकर आदमी परेशान हो जाता है। | ८ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-11.txt इतने रोते हैं कि हमारे पूर्वजों ने जा कर के हिन्दुस्तान जैसे योगभूमि पर आक्रमण किया है । आज - तम्बाकू कल के वहाँ के नवयुवक जो हैं वो बहुत अलग तरह के हैं जिन नव युवकों को हमने पहले देखा था वो और ही हैं। ये और हैं। अब ये लेफ्ट साइड में जब जाने लग जाते हैं विशेषतः इसमें मनुष्य मादक वस्तु लेने लग जाता है क्योंकि उसको ये लगता है कि 'मैंने ये गलती करी। मैंने वो गलती बड़ी करी। अब मैंने ये पाप किया है। ये झूठ बोला है। मुझे ये नहीं करना चाहिए था।' तो मनुष्य मादक द्रव्य लेने लग जाता है। इसमें से एक वस्तु जो है जो हमारे अन्दर बहुत चलती है सिगरेट और बीड़ी और उसके बाद है तम्बाकू खाना। तम्बाकू खाना भी इस शक्ति के विरोध में बहुत बैठता है। आपको आश्चर्य होगा कि जो आदमी तम्बाकू खाता है उसको सहजयोग में आने के बाद इसे हानीकारक छोड़ना ही पड़ता है। ये छूट जाता है। चीज़ एक साहब थे जिन्होंने नहीं छोडी। वो अपनी विल पावर नहीं बढ़ा पाए और छोड़ नहीं पाए । तो कभी-कभी चोरी छिपे वो तम्बाकू खाते रहे। एक दिन आकर मुझसे कहने लगे कि, 'माँ, जब मैं ध्यान में बैठता हूँ तब मेरा मूँह फूलते जाता है। टेढा - मेढ़ा होता रहता है। मुझे समझ में नहीं है आता है कि मैं क्या करू?' मैंने कहा कि, 'मुझे मालूम है कि क्या बात है। आप अपनी तम्बाकू ये छोड़ दीजिए। आज वचन दीजिए आप तम्बाकू छोड़ देंगे। उस दिन हुआ कि उनका चक्र जो लेफ्ट साइड का है वो खुल गया और तब से इनकी कुण्डलिनी ठीक से चलने लग गयी। अब उसी प्रकार आपने देखा है कि वेस्टर्न कंट्रीज में लोग क्योंकि इगो-ओरिएन्टेड बहुत थे। पहले बहुत इगोइस्टिकल बातें करीं। वॉर किया। दुनियाभर के लोगों को मारा और अपना साम्राज्य फैलाया। और सब किया। अब जब एक हद पर पहुँच गए और फिर वहाँ से जब पेन्ड्यूलम चला तब दूसरे हद तम्बाकू तक पहुँच गये और वहाँ जाकर के देखा कि 'बाप रे, बाप रे, अब हम क्या करें! तो अब हम कैसे करें, क्या करें? हम इतने बुरे, हम उतने बुरे।' ये जब दिखाई दिया तो चलो शराब पियो। शराब नहीं तो चलो, तम्बाकू खाओ। नहीं तो किसी तरह से वहाँ से भागना शुरू किया। अब तम्बाकू से जो है चीज़ जो है वो पीने पाने के लिए भगवान ने नहीं बनायी है। आदमी की अकल इतनी ही है क्या करे? ये पीने-पाने के लिए बनायी नहीं है भगवान ने तम्बाकू । ये चीज़ जो बनायी है, ये इनसेक्टिसाइड है, इनसेक्ट्स को मारने के लिए बनायी है। आप लोगों ने पता नहीं उसे कहाँ से जला लिया और शुरू कर दिया कि 'तम्बाकू करें' लेकिन तम्बाकू बड़ी हानिकारक चीज़ है और हमारा तम्बाकू से जो है हमारा गुरुतत्व भी खराब हो जाता है। ये पेट में जाती है और लीवर वरगैरा सबको खराब कर देती है। अब ये गुरुतत्व जो है वो हमारे सागर में भरा हुआ है। ये जो सागर है वो हमारा गुरुतत्व है। जब हम कभी भी गुरुतत्व के खिलाफ चलते हैं तब सागर बिलकुल भी बिगड़ जाता है गुरू और बिगड़ करके तहस-नहस करना शुरू कर देता है। खराब द्ध तत्व विशु हो जाता .... है। ९ ডি ত 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-12.txt नि हा গ ा] ह ि4 श्र ० २ मैं एक बार वहाँ गयी थी गुंटूर में, आंध्र के लोग थे। मैंने उनसे कहा कि, 'आप यहाँ पर महेरबानी से ये जो तम्बाकू लगा रहे हो, ये मत लगाओ ।' तो कहने लगे कि, 'हम अपने देश वालों को नहीं देते हैं। हम तो सारे बाहर भेजते हैं।' मैंने कहा कि, 'तुम्हारे देश वाले। यहाँ आंध्र के जो गरीब लोग हैं वो इसे खाते हैं और काली विद्या करते हैं और तुम लोग इसे एक्सपोर्ट करके इसमें भी एक भयंकर हिस्सा ले रहे हैं।' तो कहने लगे कि, 'नहीं, नहीं माँ, इसके बगैर तो हम मर जाएंगे | ' तो मैंने कहा कि, 'कोई नहीं मरने वाला है। आप यहाँ पर कपास लगाईये और कपास से सब ठीक हो जाएगा।' कुछ ने इनमें से कहा कि, 'अच्छा माँ हम कपास लगायेंगे। हम कपास की शुरुआत करेंगे' और फिर काफी बिज़नेस उनका हो गया लेकिन जब मैंने दो-तीन बार कहा, टैप पर भी मेरा है लेकिन एक दिन जब वो बहुत मुझसे डिस्कस करने लगें तो मैंने कहा कि, 'खबरदार, अब ज्यादा मत डिस्कस करो अगर तुमने ऐसा जो किया तो ये समुद्र जो है ये तुम पर बिगड़ेगा।' आपको तो मालूम है कि उसके बाद आंध्र में कितनी जोर की तूफान आयी थी और कितने ही लोग तहस- १० 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-13.txt नहस हो गए थे और उनको पता भी नहीं चला कि वो कहाँ रह रहे हैं। हमेशा आपने देखा कि समुद्र के बड़े-बड़े तूफान आते हैं और लोग उसमें सत्यनाश हो जाते हैं। किसी से अगर कहो कि हमारे तम्बाकू लगाना बन्द करो। ये बहुत अशुभ चीज़ है' तो कोई सुनने को तैयार नहीं है। अब वहाँ पर सब खारी जमीन हो गयी है, वहाँ अब तम्बाकू लगा नहीं सकते। किसी तरह से तम्बाकू बढ़ नहीं सकती। तो अब वो अपने नसीब पर रो रहे हैं। सारा वहाँ जो एरिया है, जहाँ तम्बाकू लगता है और हमेशा बड़े-बड़े आप जानते हैं साइक्लोन्स आते हैं। वहाँ मरते हैं। जिस दिन लोग इस चीज़ को समझ लें कि तम्बाकू लगाने से और काली विद्या करने से, समुद्र हमसे नाराज हो जाता है, उस दिन वो समझ जाएंगे कि कितना परमेश्वर का हमें आशीर्वाद है । कितनी सुन्दर हमारे पास जमीन है, उसका उपयोग हम कोई और चीज़ करने में लगायें। लेकिन मनुष्य को छोटी चीज़ में समाधान नहीं होता। वो चाहता है कि संसार में जितनी भी सम्पत्ति है वो मैं ही ले सिनेमा वालों को लँ। लेकिन वो ये नहीं देखता है कि, जिसके पास है सम्पत्ति वो कौनसा बड़ा सुखी बैठा है। वो भी अकल कौन बड़ा आनन्द में बैठा हुआ है। तो ये जो लेफ्ट साइड की जो शक्ति है जिसे कि हम विष्णुमाया की शक्ति कहते हैं। ये बहन नहीं है, की शक्ति है, जो विष्णुमाया आप जानते हैं कि श्रीकृष्ण की बहन जो कि मारी गयी थी और जो आकाश में जाकर के जिसने आकाशवाणी की थी कि मारने वाला हत्यारा अभी भी तुम्हारा जीवित है। वही ये विष्णुमाया की शक्ति हैं। और ये बहन के रिश्तेदारी की बात है। अगर आपकी ये इतना बहन बीमार हो तो आपका ये चक्र पकड़ जाएगा। आपके बहन को अगर कोई तकलीफ हो तो आपका ये चक्र पकड़ जाएगा। अगर आपकी रिश्तेदारी बहन के मामले में ठीक न हो, माने आप किसी को बहन मानते हो और अगर आपकी नज़र खराब हो । आजकल तो लोगों का ये चक्र पाप कर बहुत खराब रहता है। क्योंकि इनमें पवित्रता नहीं है। अपनी पत्नी के अलावा सब औरतों को अपनी बहन या माँ मानना चाहिए। ये जो शास्त्रों में लिखा है इस पर लोग हंसते हैं कि, 'ये कैसे हो सकता है, माँ ये तो हो ही नहीं सकता।' क्योंकि सब लोग कुत्ते हो गये हैं ना? कुत्तों को तो समझ में आती नहीं है बात कि इस तरह से भी कोई पावित्र्य होता है। आप करके देखिये कि आप सिर्फ अपनी छोड़ करके दूसरी अन्य औरत को अपनी बहन की तरह देखना है। देखिये कितना सन्तोष आपके अन्दर आएगा। कितनी प्रॉब्लम सॉल्व हो जाएंगी। कितना समझ विकसित हो जाएगा। अभी देखिए पहले के जमाने में लोग घर में आते थे, रहते थे । कोई भी प्रॉब्लम नहीं रहती थी | विशेषतः विलायत में देखिए, विलायत में ये हालत हो गयी है कि हमारे शिष्य जो थे उनकी उमर सिर्फ २६ साल की थी और उनकी माँ की उमर थी समझ लीजिए कुछ ४२ या ४३ थी उनके घर में उनके एक दोस्त साहब आ गये थे रहने को। तो वो उनकी माँ उनके साथ भाग गयी थी। वो साहब रहे हैं कि इसका फल उनको भोगना विशुद्धि तत्व पड़ेगा। ११ कू 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-14.txt २४ साल के थे। बेटे से २ साल छोटे थे। उनकी माँ इनके साथ भाग गयी। माने, किसी चीज़ का सेन्स आफ प्रपोर्शन ही नहीं रहा। आप | सोचिए कि लड़के का दोस्त घर में आया और उसकी माँ उसके दोस्त को लेकर के भाग गयी। अभी आने से पहले हमने एक आर्टिकल पढ़ा जिसको सुनकर आप हैरान हो जाएंगे कि सतरह साल के लड़के ने अपने माँ से शादी कर ली और जाकर के अभी कोर्ट में लड़ाई कर रहे हैं दोनो माँ-बेटे कि हमारा मंजूर होना चाहिए कि हमने शादी की है। ये सारी बायीं तरफ की अपवित्रता है। ये हमारे सिनेमा वालों को भी अकल नहीं है, ये इतना पाप कर रहे हैं कि इसका फल उनको भोगना पड़ेगा। सबको अपने पाप का फल भुगतना पड़ता है। इस तरह से जो हमने अपने अपवित्र हालत कर दी है, हमारी शक्लें देखिए कैसी हैं? इसमें न कोई तेज है, न इसमें कोई भोलापन है, न इसमें कोई सादगी है। एक तरह से, हर समय में आँखे चलाना। ये जो आँखे चलाने की बीमारी है ये कृष्ण शक्ति से ही दंडित होती है। आप देखिए कि मनुष्य हर समय में आँखे चलाता रहता है। आँखे चलाने से आपके अन्दर भूत घूस आता है। आपको पता नहीं कि अगर लेफ्ट साइड से आपके अन्दर भूत घूस आएं तो आपकी आँख चलने लगती है, आप कुछ करते ही नहीं, ऑख चलाने के सिवाय आप करते ही क्या है! आँखे चलाने से आपको तो आनन्द तो आता कुछ ही नहीं है। एक मिथ्य है, इसमें आँख घूम रही है, इधर से उधर चल रही है। इसको देख रही है, उसको देख रही है और आपका जो विशुद्धि चक्र है लेफ्ट साइड का, वो पकड़ा जा रहा है। इस लेफ्ट साइड के पकड़ने से गिल्ट बनता जाएगा। हर समय आप कभी भी सुखी नहीं रह सकते। आदमी को, इसलिए पहले जब हम छोटे थे तो हमारे माता-पिता कहते थे कि आँख अपनी जमीन पर रखकर हमेशा चलना चाहिए। आपने सुना होगा कि लक्ष्मणजी ने सीताजी के सिर्फ पाँव तक के अलंकार देखे थें । उसके ऊपर उन्होंने देखा ही नहीं। क्या उनको, वो कोई दुष्ट आदमी थे या कोई बुरे आदमी थे। ये क्या कानून था कि आप अपनी आँखे नीचे करके चलें। शहनशाह लोग जो थे वो हमेशा अपनी आँख नीचे करके चलते थे । जो बिल्कुल हमेशा भिखारी, भूत जैसे थे, वो इधर -उधर देखकर चलते थे । जो आदमी खुद अपनी शान में, प्रतिष्ठा में होता है उसको क्या पड़ी है किसीको क्या देखने की। और आपको पता होना चाहिए कि आप जैसे ही दूसरों को देखते हैं, उनकी जो गुणवत्ता है, उसकी जो बुराई है वह आपके अन्दर आ जाती है। उसके अन्दर बसे हुए जो, जो कंडिशनिंग है वो आपके अन्दर आ जाती है। और ये इतनी ज़्यादा बीमारी बढ़ गई है लोगों में इस कदर लोग इससे भरे हुए हैं कि ये समझते नहीं है कि इससे हम आँखें कैसे बचाएं। इससे आँखे लाल हो जाती है। आदमी की आँखों में कमजोरी आ जाती है। आँख | बहुत तकलीफ देने लग जाती है। तभी बताया जाता है कि आप हरी घास पर चला करें, पृथ्वी माँ पर चला करें, जो आपकी माँ है। माँ को जानने से ही आप बहन को समझेंगे। जब तक आप अपनी माँ को नहीं जानिएगा तो बहन को समझ नहीं पाओगे। लेकिन वास्तविकता ये है कि आँख नीचे नतमस्तक होकर रखें और रास्ते में चलते वक्त या किसी की ओर देखते वक्त बुरी दृष्टि से नहीं देखना चाहिए, ये पाप है। और गुरू ने भी इसे कहा है कि Thou shall not commit adultery और क्राइस्ट ने आकर के उसकी ओर होकर कहा कि Thou shall not have adultery eyes। उन्होंने साफ कह दिया कि Adulterous eyes are equally evil as adulterous life | इस पवित्रता पे उन्होंने आपको पहुँचा दिया और उम्मीद की थी। लेकिन आज जहाँ संसार पहुँचा हुआ है कि अगर आज हम ये बात कहेंगे तो भी वो बुरा मान जाएंगे। लेकिन आप कोशिश करके देखिए, आपके जीवन में और बाकी सबके जीवन में इतनी सरलता और इतना सौन्दर्य आ जाएगा कि आँखो को चलाना और अपने को नीचे गिरा लेना जिसको कि आगे चलकर प्रोस्टिट्यूशन आदि कहते हैं। अब आजकल के जो गाने हैं, औरतों को बैठ कर गाने का ढंग आदि वगैरा इस कदर छिछलापन और इस 'सबको अपने पाप का फल भूगतना पड़ता है। १२ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-15.txt 'राइट साइड की विशुद्ध चक्र... ये 0० श्रीकृष्ण का और राधा टा ० की शक्ति से है। बना विशुद्धि तत्व १३ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-16.txt कदर अपने को चीप कर लेने के तरीके हैं कि समझ में नहीं आता, खासकर अपने मध्यमवर्गीय लोगों को इसकी क्या पड़ी है। आदमी पैसे वाला है तो बचने वाले नहीं है। उनके पास तो साधन ही मिल गया है। जिसके पास अति पैसा है उसको लगता है कि मैं क्या करूँ या क्या न करूँ। इस पैसे को कौनसे गढ्ढे में डालूँ और मैं भी उसके साथ कूद जाऊँ। जैसे ही उसके पास में पैसा आता है, वो सोचता है कि मैं रेस में जाऊँ और फिर ये करूँ और फिर वो करूँ आज इसलिए मैं पाप-पुण्य की चर्चा कर रही हूँ क्योंकि गुरू की बात हो रही है। पाप-पुण्य का विचार आपको इस विशुद्धि चक्र पे आता है, पाप और पुण्य क्या हैं? अगर आपको पाप-पुण्य का विचार विशुद्धि चक्र तक नहीं आया तो आप काम से गये। आपकी कुण्डलिनी जागृत नहीं होगी। संसार में पाप व पुण्य दोनों चीज़ हैं । लेकिन ये सोचते हैं कि माँ ये इतना पापी आदमी है फिर भी देखो, इसकी इतनी प्रगति हुई है। मैंने कहा कि, 'आप इनके घर में जाकर देखो क्या हो रहा है। उसके जीवन में देखो क्या उसकी प्रगती हुई है ? इस आदमी के मुख पर जरा भी आनंद है? जिस आदमी का नाम लेते ही लोग कहते हैं, 'बाबा रे बाबा किसका नाम ले लिया !' जिस | आदमी के पीठ पीछे कभी भी कोई आदमी अच्छी बात नहीं कहता, ऐसे आदमी, ऐसे चरित्रहीन, ऐसे गिरे हुए लोगों को अगर आप आदर्श मानिएगा तो आपका भी ठिकाना नहीं रहेगा। हमारे सहजयोग में आप जब पार हो जाएंगे तब आपके अन्दर शक्ति आ जाएगी। आप स्वयं ही अपनी प्रतिष्ठा को जानिएगा क्योंकि आप खुद प्रतिष्ठित हैं। आप जानते नहीं है कि परमात्मा ने कितनी मेहनत से इस चक्र को आपके अन्दर बनाया है। इसको कितनी सुन्दरता से बनाया है। इसको किस तरह घड़ाया है और इस कुण्डलिनी को किस तरह से सुरक्षित रखा हुआ है। आप अपना ही अपमान कर रहे हैं। अपने को ही नीचे गिरा रहे हैं। अपने को समझें| अपने बडूपन को समझें | हालात को आप समझें। आप तो सारे संसार के फूल हैं और आपको फल में रूपांतरित होना है। जब आप इस चीज़ को समझें कि आप ही परमात्मा के अंश हैं, परमात्मा आप ही को मानता है और आप ही के सामने झुक रहा है और आपसे कह रहा है कि आप इसको पा लीजिए, जो आपका श्रेय है। श्रेयों को पहचानना भी सुबुद्धि का काम होता है। जब तक उसके अन्दर दुर्बुद्धि बनी रहेगी वो कर नहीं सकता है। ये सुबुद्धि भी विशुद्धि चक्र की जागृति से होती है। जब मनुष्य का अपना विशुद्धि चक्र जाग उठता है तब उसके अन्दर अपने आप सुबुद्धि आ जाती है। उसके अन्दर सन्तुलन आ जाता है। एक होती है सुबुद्धि और दूसरी है दुर्बुद्धि। बुद्धि से कोई भी फर्क नहीं पड़ने वाला है । बुद्धि गधे की तरह भी हो सकती है और बेकूफ भी हो सकती है। बुद्धि के रॅशनॅलिटी से आदमी चोरी करता है। वह कहता है कि, 'मैं क्यों न चोरी करूँ? मेरे पास ये चीज़ नहीं है, उसके पास है। तो मैं क्यों न चोरी करूँ।' इसका कारण तर्कबुद्धि है। अब देखिए तर्कबुद्धि के कारण मनुष्य हर एक चीज़ की तरफ व्यक्तिगत विचार से देखता है। लेकिन सुबुद्धि जो है वो कहेगी कि, 'नहीं, इसकी ये चीज़ इसकी अपनी है और मेरी ये चीज़ मेरी अपनी है। मेरी चीज़ में जो मजा आ रहा है वो दूसरों की चीज़ में नहीं है।' कोई भी चीज़ किसी की नहीं होती। सभी चीज़ यहीं छोड़ कर जाना हैं। ये तो दिमागी जमा-खर्च है कि ये मेरी चीज़ है। ये तेरी चीज़ है। ये रजिस्ट्रार ऑफिस में लिखा है। जाते वक्त सब कुछ यही छोड़ कर जाना है। एक तो ये साधारण सी बात है इसके पीछे इतनी भागदौड़ क्यों कर रहे हो । अब राइट साइड के हमारे जो चक्र हैं, जो कि राइट साइड की विशुद्धि चक्र का ये है कि ये श्रीकृष्ण और राधा की शक्ति से बना है । श्रीकृष्ण और राधा की जो शक्ति है, उससे जब मनुष्य उसके विरोध में खड़ा होता है तो कंस जैसा हो जाता है कि मैं ही बड़ा राजा हूँ, मैं ही बड़ा भारी लीडर हूँ और मैं ही सब कुछ हूँ, तो उसके अन्दर अहंकार कंस के जैसा बढ़ता है, कि किस तरह से मैं ही सब के ऊपर १४ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-17.txt राज्य करूं। उसको दुनिया की कोई भी चीज़ दिखाई नहीं देती। उसे राइट साइड की विशुद्धि चक्र की पकड़ होती है। लेकिन राइट साइड की विशुद्धि चक्र पकड़ तब शुरू होती है जब आपको सर्दी-खाँसी होती है। अब सब लोग कहते हैं कि सर्दी-खाँसी के लिए तुलसी बहुत अच्छी होती है। इसकी वजह ये है कि तुलसी से लेफ्ट साइड की जो शक्ति है वो बैलन्स कर देती है राइट साइड में। जुकाम का होना वैसे तो कोई सीरीयस बात नहीं है पर हमारे सहजयोग में जुकाम के लिए 'तुलसी से लेफ्ट व्यवस्था भी बहुत अच्छी है और उसके लिए भी अगर आप जान लें कि किस तरह से आपका जो सर्वसाधारण जो जुकाम है सायनस वगैरा के प्रॉब्लेम है वो ठीक हो सकती है। लेकिन बीच की जो शक्ति है जिसे विराट की शक्ति कहते हैं। ये सबसे महत्वपूर्ण है। आज साइड संसार में जहाँ भी लोग कुछ न कुछ खोज रहे हैं, जहाँ कि मनुष्य परमात्मा की खोज में लगा है। वो अपने wholesomeness को, विराट को खोज रहा है। या यह खोज रहा है कि अगर मैं विराट का एक हिस्सा हूँ तो मैं उसको खोजूँ जिसका मैं हिस्सा हूँ। इसका मतलब ये है कि हमारी वो चीज़ जिसे सामूहिक चेतना कहते हैं, वो अभी तक नहीं आयी। हम कहते हैं कि 'आप भाई हैं, आप बहने हैं। बड़े-बड़े लेक्चर देंगे कि ये स्थापित हुआ है इसलिए फिट है, माने इन्सान का ये है कि की जो शक्ति जो होने वाला है उसका नाटक पहले कर लेता है। जैसे कोई रिहर्सल हो। ये एक रिहर्सल सा लगता है कि आप भी भाई है, आप भी बहन है। आप सब लोग भाई -बहन हैं। सब लोग सामूहिक एक हैं। वास्तविक अभी तक ये सब झूठ बात है आपके लिए, हमारे लिए नहीं। जब आप सहजयोग में है आ जाते हैं आपकी सामूहिक चेतना जागृत हो जाती है। सामूहिक चेतना जागृत होते ही आप महसूस करने लगते हैं कि दूसरा जो है वो मेंरे अन्दर है और मैं उसके अन्दर हूँ। आप खुद ये देखने लगते हैं क्योंकि जब absolute पॉइंट जब आपको मिल जाता है तब आप रिलेटिव स्टेज में चले वो जाते हैं। आप कहाँ हैं इस absolute पॉइंट के इसमें और वो कहाँ हैं। अब सादे शब्दों में बताना ये है कि ये जो आपके उंगलियों के जो चक्र है वो जागृत हो जाते हैं। ये १, २, ३, ४, ५, ६, ७, ये सातों चक्र लेफ्ट सिम्पथैटिक और राइट सिम्पथैटिक पर जागृत हो जाते हैं फिर ये जागृत हो जाते बैलन्स हैं तो इसमें क्या महसूस होने लग जाता है? इसमें ऐसा महसूस होता है मान लीजिए आपके सामने कोई खड़े हैं हाथ ऐसा करके। तो मैं तुरन्त बता दूँगी कि उसमें क्या बीमारी है। वो मैं कैसे समझ लेती हूँ? समझ लीजिए कि अगर मेरे राइट हैण्ड के इस उंगली में चमक आई या कुछ गरमी सी कर लग रही है तो मैं जान जाऊंगी कि इनके लिवर में खराबी है क्योंकि ये जो है ये नाभि चक्र है राइट हैण्ड साइड का और नाभी चक्र राइट हैण्ड साइड पर लिवर का स्थान है। उसके बाद में छोटी- छोटी फ्रिक्वेन्सी भी आदमी पकड़ लेता है। यहाँ तक कि जब आदमी आगे बढ़ता है। सहजयोग में तो उसके अन्दर वैसी ही भावना आने लग जाती है जैसी सामने में दूसरे की होती है। और जब | देती है राइट विशुद्धि तत्व साइड में १५ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-18.txt लगता है कि लिवर में हेवीनेस और अगर आप पूछते हैं कि आपका लिवर हैं? तो वो कहता हैं कि हाँ, लिवर है। आप अपने हाथ ऐसे- ऐसे रगडिए। आपका भी लिवर ठीक होगा और उसका भी लिवर ठीक होगा। अगर किसी आदमी को सरदर्द हो रहा है तो उसके पास जाईये तो आपका भी सिर थोड़ा सा भारी हो जाएगा । आप कहियेगा कि 'सिरदर्द हो रहा है ?' तो कहेगा 'हाँ।' उसके बाद उन्होंने अपना सिर ऐसे दबा करके ठीक कर दिया। उस आदमी का देखिएगा कि उसका भी सिरदर्द ठीक हो जाएगा । कलेक्टिव कॉन्शसनेस आपके अन्दर जो आती है, सामूहिक चेतना आती है ये सब्जेक्टिविटी है। माने ये असल में आती है, माने ये अॅक्च्युअलाइजेशन होता है इसका। ये सिर्फ बातचीत नहीं होती है, ये हो ही जाता है। आपकी जो चेतना है वो इस स्तर पर आ जाती है। एक नया आयाम उसके अन्दर खुद आ जाता है। जिसके अन्दर आप सामूहिक चेतित हो जाते हैं। वो कहे अगर रियलाइज्ड होगा तो वो भी बतायेगा कि नानी इनको देखिये, इनके हार्ट में पकड़ है। तो हार्ट आपका पकड़ रहा है। हार्ट पर प्रेशर है आपके। ये तो फिजिकल | हो गया, इमोशनल भी आप बता सकते हैं। बहुत से लोग तो ऐसे लगते हैं ऊपर से वो होशियार लगते हैं पर अन्दर से तो पागल होते हैं। उसके पास गये तो दो ऐसे झापड़ मारते हैं आपको। लेकिन अगर आप रियलाइज्ड सोल हो तो आप जान जाओगे कि ये पागल हैं। आपको ये पता चल जाएगा यानी आज्ञा चक्र कहाँ है। यानी लेफ्ट साइड के अगर कोई न कोई चक्र पकड़ते हैं तो उसमें कोई न कोई मानसिक विकृति आ गयी है, कोई न कोई लेफ्ट साइड के आते हैं। राइट साइड के आते हैं तो फिजिकल और इमोशनल होते हैं। ये अपने विशुद्धि चक्र से कनेक्टेड है। बहुत से लोग पार हो जाते हैं, पर वो उनके अन्दर वायब्रेशन्स को फील नहीं कर पाते हैं, इसका कारण है विशुद्धि चक्र की खराबी। क्योंकि विशुद्धि चक्र मैंने बताये है कि आपके सिगरेट पीने से खराब होती है। शहर के वातावरण में आप सिगरेट नहीं भी पीते हैं तो एक आपके समझ लीजिए कि आपके पिताजी सिगरेट पीने वाले में से हों जो कुछ है तो ये जो विशुद्धि चक्र है यहाँ खराब हो जाता है। विशुद्धि चक्र अगर खराब हो जाता है तो विशुद्धि चक्र में से निकलने वाली जो दो नसें है, जिसे कि हमारे अन्दर, हमारे सेंट्रल नर्वस सिस्टम में ये जब चेतना आती है जब हम चेतित भी होते हैं तो भी हम इसे महसूस नहीं कर पाते। क्योंकि हमारी संवेदना खत्म हो जाती है। हमारी संवेदना इस चक्र से बढ़ सकती है अगर हमारा विशुद्धि चक्र पूरी तरह से जागृत होता है। तो इस चक्र के भी मन्त्र है ये समझ लेना चाहिए, उस मन्त्र के लिए कहे गये मन्त्र, बतलाये गये मन्त्र कहने से ये चक्र जागृत होता है। ये जो दो उंगलियाँ विशुद्धि चक्र | की है अगर इसे कान में ड्राल कर के सर यूँ पिछे कर के अगर आप 'अल्लाह हो अकबर' अगर तीन बार कहें तो आपका ये चक्र साफ होगा। क्योंकि अकबर जो है वो विराट है। मोहम्मद साहब ने ये बात कही थी, कृष्ण की बात कही थी लेकिन कौन सुनता है? उन्होंने जो भी कुछ बताया कि इस तरह से हाथ करिए और फिर नमाज पढ़िए तो सारी कुण्डलिनी जागृत होगी लेकिन अगर ये किसी मानव को जाकर बताएंगे तो वो मुझे मारने को दौडेंगे। मोहम्मद साहब भी साक्षात दत्तात्रेय के अवतरण थे और मैं कहती हूैँ कि कुण्डलिनी जागृति में उन्होंने जितना कार्य किया है उतना और किसी ने नहीं किया । शैतान को कैसे निकालना चाहिए? इसके उन्होंने कुछ तरिके बतायें हैं, वो एक से एक अभिनव है। जिसे हम अभी भी करते हैं अधिकतर। सहजयोग में हम उन्हें भी इस्तेमाल करते हैं अभी तक। हांलाकि हमारे पास आदि शंकराचार्य जैसे लोग हैं जिन्होंने तो बड़ी कमाल की चीज़ें लिख दी है और उनकी जो बारिकियाँ है अगर आप उन सारी बारिकियों को फॉलो करें तो आप पूरी तरह से स्थित हो जाते हैं। जिसके हमारे ऊपर अनेक उपकार हैं, इस देशपर, इन संतों- साधुओं के और इन बड़े-बड़े अवतारों के। ऐसे-ऐसे महान अवतार इस योगभूमि में हुए हैं, इस संत भूमिपर जिसे हम महाराष्ट्र कहते हैं । हूँ। १६ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-19.txt अनेक संत-साधुओं ने हमारा रक्त सिंचन किया है। इतनी मेहनत आप लोगों पर की है कि जरासे इशारे पर आप लोग पार होते हैं खास कर जब मैं गाँवों में जाती हूँ तो आप देखते हैं कि हजारों के हजारो तादात में लोग आज जाते हैं। अब आप देखिए कि हमारे लेक्चर में कितने लोग आएं हैं । यहाँ से शुरुआत है। लोगों को सत्य की पहचान नहीं है। सत्य का खिंचाव नहीं है। वहाँ जा रहे हैं लोग। अगर कोई आदमी कहे कि मैं आपको कपड़े खोलकर नंगे नचवाऊँगा तो आप सब वहाँ चले जाएंगे। पैसा दे कर वहाँ से नाच कर आप आएंगे और आप कहेंगे कि वाह ! वाह! क्या मजा आ गया| ऐसे बेवकूफ लोगों के लिए सहजयोग नहीं है। जो लोग गम्भीर हैं, जिनका कैलिबर है, जिन्हें कहते हैं कि 'येऱ्यागबाळ्याचे काम नाही'। कोई आपके अन्दर जब तक वो पूरी तरह से अणू-रेणु सब पुब श्रद्धा, पूरी तरह से प्रतिष्ठा ना हो तो वो दिख जाता है, उसके लिए ये नहीं है। इसके लिए कॉम्प्रोमाइज करना असत्य से बहुत ही आसान चीज़ है ऐसे व्यक्ति पर सहजयोग नहीं चलता। सहजयोग प्राप्ति के लिए बहुत बड़े पंडित या ज्ञानी होने की जरूरत नहीं है लेकिन दिल के पक्के होने चाहिए। शहनशाह किस्म के होने चाहिए । ऐसे आदमी पर सहजयोग यूं काम कर जाता है। अब कृष्ण शक्ति पर मैंने कहा कि बताने लगू तो साल बीत जाएगा। उसके सारे सोलह पड़दे खोलने के लिए और बताने के लिए काफी चीज़ चाहिए । और कुण्डलिनी क्या चीज़ है आज तक चीज़ में आपको पता नहीं। आपने देखा नहीं है। जिसे आपने देखा नहीं, जाना नहीं उसे आप जान सकते हैं। उसका स्पंदन आप अपनी नज़र से देख सकते हैं। उसका चढ़ना आप देख सकते हैं। उसका भ्रमण आप देख सकते हैं। अब ये चीजें अलग ही है, आपने जानी नहीं है। परायी चीजें हैं अभी परमात्मा आपने जाना नहीं, पर हैं। जैसे कि यहाँ पर अनेक चित्र है इस वक्त। आप नहीं देख पाते। आप टेलिविजन लगाइये, आप देख सकते हैं। अनेक यहाँ पर संगीत हो रहे हैं आप सुन नहीं सकते। की लेकिन अगर आप रेडियो लगायेंगे तो आप सुन सकेंगे। उसी तरह से, ये परमात्मा की शक्ति सब तरफ दूर तक विराजमान है। अणू-रेणू, सब चीज़ में परमात्मा की शक्ति भरी हुई है। कुण्डलिनी अगर जागृत हो जाए, उसका अगर कॉर्ड मेन से लग जाए तो फिर उसका परमात्मा से संवाद शुरू शक्ति हो जाता है । फिर इन्ही हाथों पर जिसको कि आप सोचते हैं कि ये विशेष नहीं है, इन्हीं हाथों पर आप जान सकते हैं, आप इस तरह से हाथ करके पूछिए कि 'क्या संसार में परमात्मा हैं?' तो आप देखेंगे कि आपके अन्दर ठण्डी-ठण्डी लहरें चलने लगेंगी। भरी अपने प्रति प्रेमभाव होना चाहिए, आदर होना चाहिए, अत्यंत प्रेम होना चाहिए । क्योंकि परमात्मा ने आपको इसलिए नहीं बनाया कि आपका जीवन व्यर्थ हो जाए। किसी भी तरह से हुई नहीं बनाया। अगर आपका जीवन व्यर्थ हो गया तो परमेश्वर का भी कोई अर्थ नहीं रहने वाला है। सृष्टि का भी कोई अर्थ नहीं रहेगा। ये अपने प्रति आदर रखते हुए और प्रेमभाव रखते हुए, पूरी है। विशुद्धि तत्व १७ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-20.txt ह लभ आशा से ही आप इस कार्य में संलग्न रहो। सर्वव्यापी परमेश्वर के साथ चैतन्य लहरियों से आप बात कर सकते हैं क्योंकि ये परमेश्वरी शक्ति सारे चराचर में भरी है। आप सबको अनन्त आशीर्वाद! १८ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-21.txt स०्तल ग कनी पर्थ, आस्ट्रोलिया, फरवरी, १९९२, अनुवादित ০০ है परम-चैतन्य का कार्य करने वाले ोगियों के सहतय जीवन नें सम्तुलन होना चाहिए। १९ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-22.txt 'आ. स्ट्रेलिया लौटकर आना अति आनन्ददायी है।' यहाँ भयंकर गर्मी थी, पर अब आपने देखा कि कितनी वर्षा हुई। क्योंकि आप सब चाहते थे कि बारिश हो और वातावरण शीतल हो जाए। दोनो कार्य हो गए हैं। तब चिन्ता यह हो गई कि वर्षा के कारण साधक नहीं आएंगे। यह समस्या भी हल हो गई क्योंकि वर्षा तो साधकों की परीक्षा के लिए थी। मैंने कहा कि यदि वे वास्तविक साधक हैं तो वे आएंगे, नहीं तो जिज्ञासा विहीन भीड़ का क्या लाभ? देखिए कल कितने सुन्दर लोग पहुँचे। पूरा रास्ता भीगते हुए वे आए क्योंकि वे गहन साधक थे। उन्होंने एक भी प्रश्न नहीं पूछा। क्या आप ऐसी कल्पना कर सकतें है? आस्ट्रेलिया में सदा मुझ पर प्रश्नों की झड़ी लग जाती है। अब के मैंने इतनी जिज्ञासा देखी कि मैंने उनसे कहा कि "मुझसे प्रश्न पूछिए", पर एक भी प्रश्न नहीं पूछा गया। तो एक ही बार में मैंने कितने सारे कार्य कर दिए? कार्यक्रम के समय बिजली चली गई। उसका भी अच्छा प्रभाव हुआ क्योंकि हमें मोमबत्तियाँ जलानी पड़ीं जिनकी लौ में सारे भूत विलय हो गए। जब मैं इस कमरे में आई तब यह घटना हुई। यह समझना आवश्यक था कि बिजली पर अत्याधिक निर्भरता भी अच्छी बात नहीं। अत: सदा किसी प्राकृतिक साधन का प्रबन्ध हमारे पास होना चाहिए। हमें कुछ लालटेन आदि रखने चाहिएं और बिजली के स्थान पर अधिक समय प्रकृति के संग रहने का प्रयत्न करना चाहिए। मैं आपको बताती हैँ कि बिजली हमारी आँखों को खराब करने के लिए जिम्मेवार है। यह केवल हमें रोशनी ही नहीं देती, हमारी आँखों की ज्योति को छीनती भी है । अत: बिजली के बहुत अधिक उपयोग ने हमें दास बना दिया है। अधिक प्राकृतिक वातावरण तथा रहने के लिए अधिक प्राकृतिक स्थानों का होना अच्छी प्रवृत्ति है । भी | यदि परम-चैतन्य परमात्मा के प्रेम की शक्ति है तो यह सन्तुलन प्रदान करता है। अत: परम-चैतन्य का कार्य करने वाले सहजयोगियों के जीवन में सन्तुलन होना चाहिए । में कहती हैँ कि इस स्थान (आस्ट्रेलिया) पर महागणेश का निवास है। स्थिर होने पर श्री गणेश सन्तुलन लाते हैं। जब यह दायें ओर को जाने लगते हैं तब कोई निर्माणकारी कार्य शुरू होता है और जीवन के लिए आवश्यक सभी कुछ यह करते हैं। परन्तु विपरीत दिशा में यदि यह चल पड़ें तो यह विध्वंसक हो उठते हैं। इनके सन्तुलन के बिना जीवन नहीं चल सकता। इनके दोनो ही गुणों-रचनात्मक तथा विध्वंसक-का सन्तुलित होना आवश्यक है। प्रकृति का जैसा नियम है, जिस चीज़ की भी रचना हुई है उसका विनाश होता है और रचनात्मक रूप से कोई नई चीज़ विकसित हो जाती है। फिर इसके कुछ भाग नष्ट हो जाते हैं। अत: मृत्यु में ही जीवन निहित है मृत्यु कुछ भी नहीं। कल्पना कीजिए कि यदि एक बार उत्पन्न हुए सभी लोग यहाँ जीवित होते तो हम यहाँ न होते। बहुत से पशुओं की मृत्यु हुई और वे मानव रूप में उत्पन्न हुए। अन्य लोगों को पृथ्वी पर अवतरित होने का अवसर देने के लिए मनुष्यों को मरना ही होगा। मृत्यु के बाद कुछ समय आराम करके आपको फिर वापिस आना है। अत: मृत्यु जीवन का परिवर्तन मात्र है, बिना मृत्यु के जीवन अस्तित्व विहीन है। यह जीवन व मृत्यु के बीच सन्तुलन है। अत: एक सहजयोगी को कभी भी मृत्यु से भयभीत नहीं होना चाहिए। उसकी मृत्यु केवल उस समय विश्राम कर अधिक उत्साह तथा शक्तिपूर्वक दूसरा जन्म लेने के लिए है। सी चीजें पूर्णतया सन्तुलित हैं। यह सन्तुलन यहीं समाप्त हो जाए प्रकृति की बहुत तो हम कहीं के न रहेंगे। अत: हमें समझना चाहिए कि यह सब कार्य श्री गणेश ही करते हैं। वे ही सभी भौतिक पदार्थों की तथा मानव रचित वस्तुओं की देखभाल करते हैं। उदाहरणतया पहले चक्र ( मूलाधार) की सृष्टि पृथ्वी माँ ने की २० 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-23.txt गम्भीरता का अर्थ है कि किसी भी प्रकार की में आप विचलित न हों। उथल-पुथल और दूसरे चक्र (स्वाधिष्ठान) ने पूरे ब्रह्माण्ड को रचा। परन्तु पहला चक्र ही पवित्रता तथा मंगलमयता को फैलाता है तथा सन्तुलन प्रदान करता है। सन्तुलन खो देने पर लोग या तो बाएं या दाएं को चले जाते हैं। कुछ सहजयोगी अति धर्मपरायण हैं। परन्तु उनमें प्रेम का अभाव है। प्रेम के बिना धर्म परायणता अर्थहीन है।। प्रेम का अभिप्राय यह नहीं कि आप किसी चीज़ से लिप्त हो जाएं परन्तु निर्लिप्त प्रेम तथा उत्तरदायित्व तो आप में होना ही चाहिए। श्री गणेश मूलाधार पर हैं और मूलाधार स्थित हमारी सभी इन्द्रियों का नियंत्रण उनके हाथ में है-विशेषकर सभी प्रकार के मलोत्सर्जन का। अत: हम वे लोग नहीं हैं जो इन इन्द्रियों की लिप्सा में या इसे पूर्ण विरक्ति में विश्वास करते हैं। हमें इनके सन्तुलन में विश्वास है। अत: आपने विवाहित होकर सन्तुलित जीवन बिताना है । आपके यथोचित बच्चे हों और आप विवेक एवं गरिमामय जीवन व्यतीत करें । पर प्रेम का होना आवश्यक है-पति -पत्नी में, बच्चों तथा माता-पिता में तथा सभी से प्रेम आवश्यक है । एक व्यक्ति के असन्तुलित होने से पूरा परिवार असन्तुलित हो जाता है। प्रेमपूर्वक परिवार को अच्छी तरह स्थापित करना भी एक कला है। यदि पति-पत्नी दोनो ही ऐसा करने को रजामन्द हो जाएं तो, मुझे विश्वास है, ऐसा करना कठिन न होगा, क्योंकि आप लोग सहजयोगी हैं। सन्तुलन के गुण को आप पहले से ही जानते हैं। समलिंग कामुकता तथा टी. एम. (ट्रान्सैडैन्टल मैडीटेशन) में की जाने वाली तपश्चर्या के कारण पश्चिमी देशों में असन्तुलन है। एक चीज़ के बाहुल्य तथा दूसरी के अभाव की अपेक्षा सन्तुलन में रहना स्वाभाविक है। असन्तुलन ही लोगों के कष्टों बहुत का कारण है। गणेश चक्र के द्वारा समझना चाहिए कि हम क्या कर रहे हैं। कभी हमें वस्तुएं संग्रह करनी पड़ती है, कभी उपभोग करनी पड़ती है और कभी फेंक देनी पड़ती है। कहीं से भी जब हमें कोई विचार आते हैं तो उनमें से जो हमारे हित में हो वही हमें अपनाने चाहिए बाकी सब फेंक देने चाहिए। परम चैतन्य की कृपा से ही हम ऐसा कर सकते हैं। छोड़ उदाहरण के रुप में कैथोलिक मत से ईसा की पूजा आदि जो भी अच्छी बातें हैं वो हम ले लेते हैं और विवेकहीन सभी कुछ देते हैं। ईसा ने चरित्र पर बहुत बल दिया, चरित्र के विषय में बहुत कुछ कहा। व्याभिचार जिस भी समाज की शैली बन गया है वह समाज पूर्णतया असन्तुलित है तथा ईसा की शिक्षा के विपरीत चल रहा है। श्रीकृष्ण ने कहा है कि हर मानव में आत्मा का निवास है। अत: सब मानव समान हैं। आप जाति-प्रथा कैसे अपना सकते हैं। कार्य के आप जातियाँ बना सकते हैं जन्म के आधार पर नहीं। हर मानव में आत्मा है अत: सबका उत्थान हो सकता है। ईसा ने भी अनुसार सही कहा है। उन्होंने कभी नहीं कहा कि स्त्रियों में आत्मा नहीं है, पुरुषों में है। धर्म अर्थात् सन्तुलन, मध्य में रहना-जिस मनुष्य सन्तुलन होता है वही धार्मिक होता है। यदि आप मध्य में है-गुरुत्व के बिन्दु पर हैं तो आप किसी भी गलत दिशा की ओर नहीं झुक सकते। गुरुत्व धरा माँ से आता है और धरा माँ ने ही श्री गणेश की रचना की है। अत: अति स्वाभाविक रुप से यह गुरुत्व मानव में आ में जाता है। गुरुत्व अन्तर्जात है, इसे अपनाना नहीं पडता। बचपन में यदि बच्चों को उनके गुरुत्व, गरिमा और महानता के विषय में बताया जाए तो वे स्वाभिमानपूर्वक तुरन्त ही इन गुणों को विकसित कर लेंगे। यह गुरुत्व आपको एक प्रकार का आकर्षण प्रदान करता है। गम्भीरता का अर्थ यह नहीं कि आप मुंह लटकाए बैठे रहें। गम्भीरता का अर्थ है कि किसी भी प्रकार की उथल-पूथल में आप विचलित न हों। गम्भीरता का अर्थ बहुत गहन है। जैसा कि आप श्री गणेश के चरित्र से देख सकते हैं-गम्भीरता का अर्थ है कि आप अपने मध्य में खडे हैं, एक ऐसे व्यक्ति हैं जो सब कुछ देखते हुए भी न विचलित होता है न किसी प्रलोभन में आता है, आत्मसन्तुष्ट है, न वह कुछ माँगता है, न उसकी कोई आवश्यकता है, न वह किसी से बदला लेता है। वह सदा क्षमा करता है क्योंकि अपने गुरुत्व से बाहर निकलने का उसके लिए कोई मार्ग नहीं-गुरुत्व से वह बस बंधा हुआ है। ऐसा व्यक्ति किसी असन्तुलित या गलत कार्य करने वाले व्यक्ति के पीछे नहीं दौड़ता। ऐसे व्यक्ति पर उसे दया | २१ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-24.txt २२ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-25.txt आती है। दृढ़तापूर्वक खड़े हो जाता है, दृढ़तापूर्वक खड़े हो जाते ही दूसरों को डराने तथा उनका विनाश करने के लिए काफी है। वह व्यक्ति एक ऐसे बिन्दु पर खड़ा है जहाँ उसे विचलित नहीं किया जा सकता, पर अन्य लोग तो विनाश की ओर दौड़ रहे हैं। तो उनके पीछे दौडकर अपना विनाश कर लेने का क्या लाभ? गुरुत्व में खड़े व्यक्ति यदि चाहें तो अन्य लोगों की सहायता कर सकते हैं क्योंकि वे देख सकते हैं कि कोई व्यक्ति गिरने वाला है। फिर भी यदि व्यक्ति सन्तुलन में न आना चाहे तो आप उसे मजबूर नहीं कर सकते। श्री गणेश का महानतम गुण यह है कि उनमें सन्तुलन है उस गुरुत्व के साथ वे इस धरा माँ पर बैठतें हैं। आस्ट्रेलिया श्री गणेश का देश है। अत: स्वाभाविक रुप से यहाँ के लोगों में सन्तुलन होना आवश्यक है परन्तु उनमें सन्तुलन का अभाव है। आस्ट्रेलिया में सहजयोग शुरु करने से पूर्व श्री माताजी का वहाँ का अनुभव यह था कि वहाँ के लोग बहुत शराब पीते हैं, व्यर्थ की बातें करते हैं, बड़ी कठोरता से हाथ मिलाते हैं तथा हर कार्य को बहुत हंगामें से करते हैं श्री गणेश के देश का तारतम्य परमचैतन्य से होना चाहिए। प्रकृति की गोद में रहने वाले भी परमात्मा के सम्पर्क में तथा उसके अनुशासन में होते हैं। वे एक दूसरे पर अत्याचार नहीं करते, वे अति भले होते हैं और झुंड नहीं बनाते हैं। वे बढ़ते हैं, जो भी कुछ उन्हें खाने को दिया जाए उसे स्वीकार करते हैं और प्रसन्नतापूर्वक रहते हैं। यदि उन्हें नष्ट भी होना हो तो इस विनाश को स्वीकार करते हैं । श्री गणेश के इस देश में आप प्रकृति को स्वयं में आत्मसात कर लें और आप में सन्तुलन इस प्रकार से आ जाए कि आप का पूरा स्वभाव उस सन्तुलन को दर्शाएं। पर आस्ट्रेलिया में बहुत बड़ी कठिनाई यह है कि यहाँ लोगों के बहुत से झुंड है लोग आपस में लड़ते रहते हैं तथा उनकी बहुत सी समस्याएं है गणेश के देश में जहाँ उनके गणों का निवास है यदि गण परस्पर लड़ने लगें तो क्या परिणाम होगा? यदि हमारे शरीर के अन्दर रोग प्रतिकारक ही परस्पर लडने लगें तो शरीर का क्या होगा? अतः आप भी गणों के समान ही इस देश में जन्में विशिष्ट लोग हैं । इतनी उपलब्धियां पाने के बावजूद भी अन्य देशों की सभी बुराईयाँ लेने लगते हैं तो श्री गणेश के इस देश में जन्म लेने से क्या लाभ? गणेश की इस भूमि पर आपके अन्दर पूर्ण सन्तुलन होना चाहिए, यही सब आस्ट्रेलिया के सहजयोगियों से आशा करती हूँ और श्री गणेश के सन्तुलन का विवेक उन्होंने पूरे विश्व को देना है। किसी के प्रति हमें कोई दुर्भाव नहीं रखना चाहिए और सदा हमें क्षमाशील होना चाहिए। अंग्रेजी भाषा में भी मृदुता होनी चाहिए कि यदि आप किसी को कुछ कहें तो वह बुरा न मानें। यदि आपकी विनोदपूर्ण भाषा है पर विनोदिता भी कभी -कभी व्यक्ति को कठिनाई में फँसा देती है। इसका अर्थ यह भी नहीं कि आप किसी को कठोर शब्द बोलें या किसी व्यक्ति के, अपने कर्तव्य, अपने बच्चों, पति या पत्नी के प्रति उदासीन हो जाए। किसी के प्रति उदासीनता भयंकर कठोरता है। किसी छोटी सी बात के लिए यदि कोई स्त्री नाराज होकर अपने पति से बात नहीं करती या पति पत्नी का तिरस्कार करता है, उसकी फिक्र नहीं करता, देखभाल नहीं करता तो सहजयोग के अनुसार यह अपराध है। यह गलत है क्योंकि आप में सन्तुलन तथा स्वाभाविक कोमलता होनी चाहिए। अन्य लोगों से आपको पशु २३ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-26.txt २४ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-27.txt अति प्रेम से बात करनी चाहिए तथा आपको दयालु तथा अच्छा होना चाहिए। पता लगाईये कि आप ये सब कर रहे हैं या नहीं। समूहों के बीच हमें प्रेम की शक्ति का उपयोग करना है-केवल प्रेम ही तो हमारी शक्ति है। श्री गणेश को देखिए-कितने भले, मधुर तथा अबोध हैं। उनकी कार्यविधि कितनी भली है । कैसे वह तुम पर कार्य करते हैं, कैसे वे तुम्हारे लिए चीज़ों की रचना करते हैं और कितनी शान्ति से वे सारा कार्य करते हैं। उदाहरण के रुप में किसी फूल को खिलते हुए या प्रकृति के किसी अन्य कार्य को जब श्री गणेश करतें हैं तो आप उसे देख नहीं सकते। इतनी कोमलता से वे सारे कार्य को करते हैं और हर पत्ते को दूसरे से भिन्न बनाते हैं। गणेश की पृथ्वी पर रहने वाले हम सबको कितना भद्र होना चाहिए? लोगों से व्यवहार में हमें कितना मधुर होना चाहिए? यह दर्शाने के लिए कि हम गणेश हैं आपको अति भद्र होना चाहिए आपको विशेष प्रकार के गण बनना है। आप सबको वास्तविक रुप से प्रेममय, भद्र, करुणामय और हितैषी बनना सीखना है। छोटी-छोटी चीज़ें लोगों को बहुत प्रसन्नता प्रदान कर सकती है। मैं स्वयं छोटी-छोटी यूक्तियाँ उपयोग करती हूैँ। आपको भी इनका उपयोग करना चाहिए एक दिन एक महिला को मैंने एक साडी दी। उसने कहा, 'माँ आप कैसे जानती हैं कि मुझे ये रंग पसन्द है?' क्योंकि मैंने तुम्हें ज़्यादातर यही रंग पहने देखा है, अत: मैं जानती हूँ कि तुम्हें यह रंग पसन्द है। 'क्या आपने मुझे देखा था ?' 'नि:सन्देह मैंने तुम्हें देखा था।' उसे बहुत प्रसन्नता हुई। उसे लगा कि माँ मेरा ध्यान रखती है। मैं सब कुछ जानती हैँ क्योंकि मुझे आपकी चिन्ता है। आप सब की। मैं जानती हूँ कि आप कहाँ खड़े हैं, आपको क्या परेशानी है। क्या किया जाना चाहिए, आपको क्या पसन्द है और क्या ना पसन्द। ऐसा करने में कोई हानि नहीं है। अच्छा, सौहार्द बना लेना ही ठीक है तभी आप समझ सकेंगे कि समस्या क्या है। श्री माताजी ने बताया कि कितने प्रेम से वे लोगों को सुधारने का प्रयत्न करती हैं, पर यह सब हमें उन लोगों को बताना नहीं चाहिए। उन्हें बताने के स्थान पर हम बन्धन दे सकते हैं। हमें कोई कठोर कदम लेने की या किसी के मुँह पर उसकी कमी कहने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। ध्यान- धारणा मध्य (केन्द्र) में रहने में सहायक होती है फिर भी कभी-कभी हम ध्यान से निकल जाते हैं। कठिनाई पड़ने पर तुरन्त अपने गुरुत्व बिन्दु पर चले जाइए......ऐसा यदि हो जाए तो समस्या समाप्त हो जाएगी। मेरे साथ ऐसा ही होता है। कहीं भी जब मैं कोई कठिनाई देखती हूँ तो मुझे लगता है कि मैं तुरन्त अपने गुरुत्व की गहनता पर चली गई हूँ और वहाँ से मैं सभी कुछ स्पष्ट देख सकती हूँ, तब मैं समस्याओं का हल करती हूँ। आपने ना तो अपना मुकाबला दूसरों से करना है और न ही ये सोचना है कि आपका कोई लाभ या हानी होगी। आप अपने मालिक हैं। अत: चिन्ता मत कीजिए। न कोई ईष्ष्या न कोई प्रलोभन। आप स्थिर हैं। निश्चिंत। २५ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-28.txt कभी अगुआ गण अपने पद के लिए चिन्तित होते हैं। पर सहजयोग में नेता तो बाजिगरी मात्र है। नेतृत्व मात्र एक मज़ाक है और यदि आप इस बात को समझ जाए तो कार्य और अच्छी तरह से होगा। सहजयोग में कोई पूरा-तन्त्र नहीं है। हम सब एक हैं। कोई भी किसी दूसरे से बेहतर नहीं है । अत: आपको नेता से कोई भय नहीं होना चाहिए । यदि आप अपने गुरुत्व पर स्थिर हैं तो वह आपको समझ जाएगा। अपने गुरुत्व बिन्दू पर आते ही नेता जान जाएगा। अत: आप अपने गुरुत्व बिन्दू पर स्थिर रहें कोई भी आपको परेशान नहीं कर सकता। सहजयोग में आपको कोई भय या चिन्ता नहीं होनी चाहिए। आप सभी संत हैं। सारे और परमात्मा की सर्वव्यापक शक्ति आपकी देखभाल कर रही है यह श्री गणेश का स्थान है, सभी कुछ ठीक हो जाएगा। गण, देवदूत आपको परेशान करने वाले को सर्वव्यापक शक्ति सम्भाल लेगी इस विषय में आपको कुछ करने की आवश्यकता नहीं। ये देखने का प्रयत्न कीजिए कि क्या आप सन्तुलन में हैं - अपने परिवार से न बहुत लिप्त और न बहत विरक्त। लिप्सा प्रेम की मृत्यू है अतः हमने निर्लिप्त प्रेम की यथोचित समझ प्राप्त करनी है, जहाँ गुरुत्व पर खड़े हो कर सबका हित सोच सकें। यदि आपको लगे कि कोई व्यक्ति ठीक नहीं है तो भी आपको सन्तुलन खोने की कोई आवश्यकता नहीं। अपना सन्तुलन ही यदि आपने खो दिया तो उस व्यक्ति को आप कैसे ठीक कर सकेंगी ? इस प्रकार आप अपनी सारी घृणा, क्रोध, कामुकता तथा स्पर्धा भाव छुटकारा पा लेंगे क्योंकि आप अपनी गरिमा में स्थित हैं। आपको किसी की प्रशंसा की इच्छा नहीं, आप जानते हैं कि आप अपने स्थान पर खड़े हैं और आप आत्मसन्तुष्ट हैं। से श्री माताजी से विशेष - साक्षात्कार भी आवश्यक नहीं। यह सब तो अहम् है। श्री माताजी कभी निजी नहीं हैं। हर समय वे हमें उपलब्ध हैं। यह सब बातें अज्ञान से तथा इस सत्य से उपजी है कि आप अपने गुरुत्व बिन्दु पर नहीं है। अत: आज हमें अपने हृदय में सोचना चाहिए कि हमारा गुरुत्व बिन्दु क्या है और यह कि हमें दृढ़तापूर्वक खड़े होना है। करें। परमात्मा आप पर कृपा २६ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-29.txt हम ६ि ४० 2ा तर द्न ै ० सहज विवाह २७ ति 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-30.txt ु कि र कभ पह अत्यन्त आनन्ददायी एवं शुभअवसर था। इसका हम सबने आनन्द लिया। सभी दूल्हे-दुल्हनें बहुत प्रसन्न नज़र आ रहे हैं। ये सब देखकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है और मैं हृदय से आपको आशीर्वाद देती हूँ। केवल इतना कहूँगी कि अपने विवाह को अत्यन्त प्रेममय एवं सफल बनाएं, यह बहुत आवश्यक है। उदाहरण के रूप में मैंने देखा कि एक देश से छः या सात लड़कियाँ थीं जिन्होंने दुर्व्यवहार किया और तलाक ले लिया। इस प्रकार के व्यवहार के कारण हमने उस देश पर रोक लगा दी है। क्योंकि हमें लगा कि इन महिलाओं ने एक के बाद एक इतने विवाह तोड़ दिये, ऐसा उनके खोखले अहं के कारण हुआ होगा। यह हमारा अनुभव है। कुछ जिनमें सहज 'विवाहों के कुछ बुरे उदाहरण हैं। तो मैंने कहा कि यदि आप विवाह नहीं करना चाहते तो मत करो। सहजयोग में आप स्वयं के लिए या पत्नी के लिए विवाह नहीं करते, सहजयोग के लिए विवाह कर रहे हैं। अतः जब आप झगडते २ अन्य देश भी हैं। ना] रे हैं या इस प्रकार की मूर्खता करते हैं तो आप सहजयोग को हानि पहुँचाते हैं। आपको एक-दूसरे के प्रेम भावनाओं और विवाहित जीवन का आनन्द क्या है ये देखना है। आप यदि आनन्द नहीं लेना चाहते तो ठीक है। यह केक के समान है, यदि आप इसे नहीं खाना चाहते तो न खाएं। परन्तु पूर्ण उत्साह के साथ, दैवी नियमों के अनुसार कार्य करते हुए आप डटे रहें और विवेकपूर्ण कार्य करें। सहजयोग में अधिकतर विवाह अत्यन्त सफल होते हैं। उन दम्पतियों के आत्मसाक्षात्कारी अत्यन्त सुन्दर बच्चे हैं और उन्हें देखकर अन्य परिवार भी सहजयोग में आ रहे हैं। मुझे आपको बताना है कि पति को यह नहीं समझना चाहिए कि विवाह करके पत्नी पर रौब जमाने का या उसके सिर पर बैठने का अधिकार प्राप्त हो गया है। नि:सन्देह पश्चिमी देशों में लोग ऐसा नहीं करते परन्तु भारत में प्रायः ऐसा होता है। भारतीय पुरुष अत्यन्त उग्र होते हैं। इसके विपरीत पश्चिम की महिलाएं पुरुषों से कहीं अधिक आक्रामक है। ये बात मेरी समझ में नहीं आती। इस स्वभाव के कारण कई बार विवाह टूट जातें हैं। किसी पर भी रौब जमाने की कोई आवश्यकता नहीं। किसी को कष्ट देने की कोई आवश्यकता नहीं। विवाह को निभा पाना यदि असम्भव है, आपका साथी यदि अशोध्य है, तो | ५ अक्तूबर १९९८, कबैला २८ ह 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-31.txt सहजयोग में हमने तलाक की आज्ञा दी परन्तु तलाक लज्जाजनक है। जीवन का आनन्द लेने के स्थान पर तलाक लेना मुझे बिलकुल पसन्द नहीं। अत्यन्त सुन्दर, रोमांचक मनोभावों के साथ अपने पति-पत्नी का आनन्द लेने के लिये आप तैयार हो जाएं। पहले दिन से झगडना न शुरु कर दें। तलाक के चक्कर में यदि आपको झगड़ना है तो वास्तव में अपने खानदान, अपने देश को बदनाम करवातें हैं और आपके देश से विवाह की इच्छुक अन्य लड़कियाँ भी सहजयोग में विवाह करने से वंचित ही रह जाती हैं। क्योंकि ऐसे देशों की लड़कियों का विवाह करना मुझे अच्छा नहीं लगता अब एक प्रथा बन गयी है। हम देखते हैं कि पिछले छः- सात वर्षों में किसी देश में सहज विवाह किस प्रकार चल रहें हैं। तो यदि आप सहज विवाह के सौन्दर्य एवं मय्यादा को ताक पर रख देना चाहते हो तो बेहतर होगा कि आप विवाह करने का निर्णय ही न लें। आपका विवाह करना हमारा कर्तव्य नहीं है, अच्छी पत्नी या अच्छा पति प्राप्त करना आपकी आवश्यकता है। इस सबके बावजूद भी यदि आप इसे स्वीकार करना नहीं चाहते या ऐसा नहीं करना चाहते तो भी एकदम से तलाक के विषय में सोचने लगते हैं। ऐसा करना बहुत लज्जाजनक है और बहुत गलत। यह सहज जीवन को नहीं दशर्शाता। आप यदि सच्चे सहजयोगी हैं तो अपने पति-पत्नी के साथ प्रेमपूर्वक जीवन निर्वाह करने की वे योग्यता आपमें होनी चाहिए। सहज विवाह आप पर श्री गणेश का आशीश है, आपकी वैवाहिक जीवन की रक्षा करेंगे। आपकी सहायता करेंगे और आपको बुराईयों से बचाएंगे। मैं जानती हूैँ कि सहजयोग में विवाह करना कितना बड़ा वरदान है, परन्तु कुछ मूर्ख पुरुष एवं महिलाएं अपने वैवाहिक जीवन का आनन्द नहीं लेना चाहते। ऐसी स्थिति में हम उन्हें तलाक की आज्ञा देंगे, परन्तु एक बार तलाक लेने के बाद, सहजयोग में पुन: विवाह करने की आज्ञा हम उन्हें नहीं देंगे । यह निश्चि है। जिस व्यक्ति ने एक बार तलाक ले लिया है हम उसका विवाह नहीं करना चाहते। यदि किसी उचित कारण से तलाक हुआ है, तब तो ठीक है। परन्तु तलाक के लिए तलाक लेकर विशेष प्रकार के व्यवहार की आज्ञा हम नहीं देंगे तो मैं यह बताना चाहूँगी कि सहजयोग में तलाक निषिद्ध २९ 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-32.txt का है। परन्तु यदि आप लड़ना चाहते हैं, कष्ट देना चाहते हैं, अन्य लोगों के जीवन को बर्बाद करना चाहते हैं, तभी तलाक लिया जाता है। मैं आपसे अनुरोध करुँगी कि आप अपने पति-पत्नी होने का आनन्द लें। एक देश के लोगों का दूसरे देश के लोगों से विवाह का आरम्भ हमने उनके आनन्द के लिए किया है। कल मैंने आपको बताया था कि स्वयं परस्पर विवाह न करें। इसके हम जिम्मेदार न होंगे। विवाहों का आयोजन हमें करने दें। आप स्वयं यदि ऐसा करेंगे तो बहुत सी बेकार की समस्याएं खड़ी हो जाएंगी जैसा कि पश्चिमी समाज में है। यहाँ आकर वे लडकी छाँटना चाहते हैं या अपने केन्द्र से लड़की निश्चित करके वे यहाँ आते हैं। इसका अभिप्राय ये हआ कि केन्द्र में ध्यान करने के स्थान पर वे लड़के-लड़कियाँ खोजते रहते हैं। इस प्रकार की बेवकूफी हम रोकना चाहते हैं। इसलिए यदि आप सहजयोग में विवाह करना चाहते हैं तो आपको अपना वर स्वयं नहीं खोजना क्योंकि हम यह देखना चाहते हैं कि आपकी चैतन्य लहरियाँ कितनी मिलती है। हमारे यह सब करने के बावजूद भी विवाह टूट ही जाते हैं। परन्तु यह बात मैंने अवश्य देखी है कि स्वयं तय किये हुए विवाह तो टूट ही जाते हैं। ऐसे विवाह सर्वसाधारण विवाहों की तरह से होते हैं। तो सर्वोत्तम बात ये होगी कि स्वयं को वचन दे कि आप मूर्ख नहीं बनेंगे और अपने विवाहित जीवन को बर्बाद नहीं करेंगे। आपके हित के लिए मैं चिन्तित हँ। अत: बहुत परिश्रम करके, बहुत जाँच कर सूझ-बूझ से मैंने यह सब कार्य किया है। बिना बात के आप मुझे दु:खी न करें। बारम्बार मेरी यही प्रार्थना है कि आप प्रसन्नचित हो जाए। मैं बहुत प्रसन्न हूँ, हृदय से आपको आशीर्वाद देती हूँ। मुझे विश्वास है आपके विवाह कार्यान्वित होंगे। जल्दबाजी मत कीजिए। सब्र रखिए । सर्वप्रथम हर चीज़़ को सहजता से लिया जाना चाहिए तब देखे कि कितने प्रेमपूर्वक आपके विवाह कार्यान्वित होते हैं। परमात्मा आपको धन्य करें! धन्यवाद! ३० 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-33.txt स लि की खोर স कछु-गाजर ु ইত ইউ্ত 2ं ुि ट ए ड शिशिशय ১८৩ े कलल [र ट सामग्री : 300 ग्राम कदू-छिलका व बीज निकला और कदूकस किया हुआ, - 100 ग्राम गाजर-छिलका उतार कर कद्दकस की गई, 400 मि.ली. दूध, 1 समतल बड़ा चम्मच जमा हुआ घी, 4 बड़े चम्मच चीनी या स्वादानुसार, 70 ग्राम खोआ, 1/2 छोटा चम्मच इलायची पाऊडर, 1/8 छोटा चम्मच केसर, 1 बड़ा चम्मच बादाम छिलका उतरे व कटे हुए, 1 बड़ा चम्मच बारीक कटे हुए काजू विधि :- में 1) दूध कद्दूकस किए गए कद्दू व गाजर नर्म होने तक पकाएं। 2) घी व चीनी डालकर 5 मिनट और पकाएं। 3) खोआ, इलायची पाऊडर, केसर, बारीक कटे काजू व बादाम डालकर अच्छे से हिलाएं। आँच से उतारें और ठण्डा होने दें । 4) चाहें तो केवड़ा या गुलाब जल डालें। गर्म या साधारण तापमान पर परोसें। ३१ म 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-34.txt नव-आगमन Code. Nos. DVD/HH VCD/HH|ACD/HH ACS/HH Speech Title Type Place Date 269* 1-Feb.-78 Delhi 269 Sp ब्रह्म का ज्ञान 23-Feb-79 | कुंडलिनी आणि सात चक्र Ahmadnagar Sp 276* 276 सार्वजनिक कार्यक्रम Delhi 28* 28 9-Mar-79 Sp How Truthfull are we about Seeking 313* 313 16-Jul-79 Sp 28-Sep-79| Navratri : Relation Between Kundalini & Kalki Mumbai 304* 304 Sp 10-Oct-83 Puja and Havan 279* Toranto Pu 11-Jan-87 | Devi Puja Paithan Sp/Pu 280* 19-Jun-90 | Shri Adishakti Puja I & II Sp/Pu 281* 423* Modling 25-Dec-90 Christmas Puja Ganapatipule Sp 438* Guru Puja 28-Jul-91 Sp/Pu Cabella 314* 216 314 22-Mar-93| सार्वजनिक कार्यक्रम Delhi Sp 275* 12-Dec-93| गलत गुरु एव पैसे का चक्कर Deharadun Sp 282* 409 409* Shri Krishna Puja 8-Jun-97 Sp New York 168* 168 23-Aug-97| Shri Krishna Puja Cabella Sp 162 162* Shri Ganesh Puja 7-Sep-97 Cabella Sp 167 167* 19-Apr-98 Easter Puja 173 Istambul Sp 173* 25-Dec-99 Christmas Puja Ganapatipule Sp 306* 306 21-Mar-09 Birthday Puja Celebrations Part I & II Noida Pu 276* 21-Mar-09 Musical Program-Birthday Puja Noida Mu 277* Easter Puja Pu/Mu 278* 7-Apr-09 Noida Nirmal Gyan Second Edition-Mix SP 002 (Contents-1 Data DVD & 2 Video DVD) प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हौसिंग सोसायटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२ E-mail : sale@nitl.co.in 2009_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-35.txt फिर आता है पन्द्रहवाँ दिन, जो सबसे अन्धकार भरी रात होती है। उसी रात में आप दीप जलाते हैं क्योंकि ये अन्धकार भरी रात होती है शक्तियाँ अन्दर चली आ सकती है। और दुष्ट इसलिए दीप जलाये जाते हैं ताकि लक्ष्मीजी अन्दर आ सके। . दिवाली पूजा, १९८३ ए सय