चैतन्य लहरी जनवरी-फरवरी २०१० हिन्दी ० ए म ा श्री %23 ४ ॐ %23 रु श्री माताजी का नववर्ष का सन्देश! नववर्ष की शुरुआत हुई है औट इस महत्वपूर्ण थुभ अवसर पर दुनिया भर के मेरे बच्चों को मेरा अनन्त आशीर्वाद ! जैसे कि हम सब जानते हैं दैनिक समाचार द्वारा कि दुनिया खतरे में हैं। हर तटफ द्वेष और हिंसा फैली हुई है। दुनियाभट को सहजयोग की स्नेहमयी और प्रेम के सन्देश की आवश्यकता है। आप सब से मेरी विनती है वास कर के दुनियाभर के नॅशनल सहजयोग के लीडर और को- ऑर्डिनेटर्स से कि आप सहजयोग की प्रेममयी और स्नेहमयी सन्देश को लोगों तक पहुँचाने में आप अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दें, इसे आप न केवल अपने देशों में करें बल्कि सबसे महत्वपूर्ण है कि इसे आप दूसटे पड़ोरसी देशों में भी सहजयोगियों की छोटी सी टोली भेज कर सहजयोग के प्रेममयी, स्नेहमयी सन्देश का प्रचार कटवायें। मैं आप सबको नव वर्ष की शुभकामनायें देती हूँ और आपको सहजयोग के सन्देश के प्रचार-प्रसार में सफलता प्रदान करती हूँ। - श्री माताजी निर्मला देवी 3 जनवरी २०१० इस अंक में सब लोग मन में प्रतिज्ञा करें - ४ सहजयोग के लिए क्या किया है? - ९ प्रेम- धर्म - १४ और अन्य श्री माताजी द्वारा दिये गये सवालों के जवाब : १२-१३ चरण कमलों की मालिश - २४ साबुदाना वडा - २७ आजा चक्र - २८ अमावस्या और पूर्णमासी की रात...... - ३० आपको अपना सिर ढक का प्रयत्न करना चाहिंए - ३३ सब लोग मन में ा४ प्रतिज्ञा करें र च. मं १-१-१९९१ ४ सब लोग मन में प्रतिज्ञा करें। आज हम लोग बम्बई के पास ही में ये पूजा करने वाले हैं। बम्बई का वास्तविक नाम मुम्बई था। इसमें तीन शब्द आते हैं-मु-अम्बा और 'आई'। मराठी भाषा में माँ को 'आई' ही कहते हैं। वेदों में भी आदिशक्ति को 'ई' कहा गया है । अतः आदिशक्ति का प्रतिबिम्ब ही 'आई' है। तो मुम्बई का पहला अक्षर 'म' माँ शब्द से आया है, और अम्बा को आप जानते हैं कि वो साक्षात कुण्डलिनी है। तो ये त्रिगुणात्मिका-तीन शब्द -हैं। बम्बई में, जैसा कि आप जानते हैं, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली तीनों का एक सुन्दर मन्दिर है जहाँ पर ये तीन देवियाँ पृथ्वी से निकलती है। यद्यपि लोग यहाँ पर बहुत से अनुचित तरीकों का उपयोग करते हैं फिर भी ये तीनों देवियाँ यहाँ जागृत है। अत: बम्बई वालों को विशेष रूप से समझना चाहिए कि ऐसी तीनों ही मूर्तियाँ और कहीं नहीं पाई जातीं। वैसे तो आप जानते ही होंगे कि में महासरस्वती है, माहुरगढ़ तुलजापुर में भवानी (महाकाली) हैं, और कोल्हापुर में महालक्ष्मी और वरणी में अर्धमात्रा जो है उसे हम आदिशक्ति कहते हैं। लेकिन बम्बई में तीनों ही मूर्तियाँ जागृत हैं। यहाँ सबसे ज्यादा आदिशक्ति मेहनत होती है और चैतन्य सबसे ज्यादा कार्य करता है। इसका कारण कभी-कभी यह भी होता है की कि ऐसी जगहों में कुछ न कुछ त्रुटियाँ होती हैं जिन्हें नष्ट करने के लिए ऐसी मूर्तियाँ वहाँ प्रकट होती हैं । प्रतिबिम्ब उदाहरणतया अरब देशों में जोरास्टर ने पाँच बार जन्म लिया और उसके बाद अनेक ही 'आई' है । आदि गुरुओं ने वहाँ जन्म लिया-अब्राहम, मोज़ज़ और अन्त में मोहम्मद साहिब ने भी वहाँ जन्म लिया क्योंकि वहाँ बहुत जरूरत थी इसलिए ये जन्म हुए और वहाँ ये कार्य हुआ। परन्तु बम्बई शहर के बारे में ये कहा जाता है कि शुरू से ही यहाँ लोग बहुत ही ज्यादा भौतिकवादी रहे होंगे। ऐसा किस्सा है कि एक बार पुण्डरिकाक्ष पुण्डरीक अपने माँ बाप को कावड़ में बिठा करके तीर्थ यात्रा को जाते हुए बम्बई आ गये। माता पिता दोनों बूढ़े थे। यहाँ पहुँच कर पुण्डरीक ने सोचा, मुम्बई अच्छी नगरी है, यहाँ दो मिनट आराम किया जाये। जब वे यहाँ रुके तो-भौतिकता के प्रभाव से उनकी चैतन्य लहरियाँ खराब हो गईं। उनके मन में ये विचार आया कि माँ बाप को उठा कर मैं कहाँ जा रहा हूँ? ऐसा करने से मेरा क्या लाभ होग ? क्योंकि भौतिकवादी लोग हर कार्य में भौतिक लाभ खोजते हैं। पुण्डरीक ने सोचा मेरी तो पीठ दुखने लग गई है इनको मैं कहाँ ले जाऊं? उसने अपने माता-पिता से कहा कि आप इच्छानुसार अपनी व्यवस्था कर लें। मैं आपको और आगे नहीं ले जा सकता। माँ-बाप सोचने लगे कि क्या बात है। उन्होंने देखा कि वहाँ की चैतन्य | हम चले जाएंगे तुम केवल मुम्बई के दर्शन हमें बाहर तक ले चलो।' पुण्डरीक इसके लिए राजी हो गये। बाहर तक पहुँचते- पहुँचते उनको विचार आ रहा था कि ये कैसा झंझट मेरे पीछे लग गया है। मेरी तो कमर और बदन में कुछ गड़बड़ है तो कहने लगे 'अच्छा ठीक है करवाते हुए ५ सब टूटने लगे हैं। परन्तु जैसे ही वे मुम्बई से बाहर पहुँचे तो उनको ठीक लगने लगा। तो शायद वे कलवा ही आये होंगे क्योंकि कलवा बम्बई से बाहर है नसीब से। जब वो बाहर आये तो उनमें इतनी शक्ति आ गई कि उनकी समझ में नहीं आई। एकदम उनका चित्त बदल गया। अपने माँ-बाप से उन्होंने माफी माँगी और प्रार्थना की कि मुझे क्षमा कर दीजिए । मैंने यह पुण्य कर्म करना है। मैं आपको आगे की तीर्थ यात्रा पर ले जाता हूँ। | | आप जानते हैं कि यहाँ पर दो सरोवर हैं। एक पम्पा सरोवर के नाम से जाना जाता है और दूसरे का वर्णन भी रामायण में किया गया है। इसका मतलब यह है कि दण्डकारण्य में घूमें और वहाँ बहुत सारे चैतन्य का प्रादुर्भाव किया। इसके अलावा भी महाराष्ट्र में बहुत कार्य किया गया। अनेक संत यहाँ पैदा हुए। संतों को बहुत सताया भी गया तो भी बार- बार संत यहाँ आते गये और संत की वजह से एक बड़ा कार्य हुआ कि लोगों में धर्म के प्रति अध्यात्म के प्रति रुचि हो गई। फिर भी यहाँ कोई न कोई गड़बड़ बात रही होगी। क्योंकि यहाँ अष्टविनायक हैं, साढ़े तीन पीठ हैं और इसके अलावा तीन देवियों का प्रादुर्भाव खासकर बम्बई में हुआ। इसका मतलब यह है कि यहाँ कोई न कोई बड़ा भारी दोष रहा होगा। जिसके कारण यहाँ इतनी मेहनत करनी पड़ी। और मेरा भी जन्म महाराष्ट्र में हो गया। तो ये सोचना जरूरी है कि क्या बात है कि हममें त्रुटि रह गई | बम्बई के लोग बहुत ही भौतिकवादी हैं । यहाँ अंग्रेज आयें और उन्होंने अंग्रेजियत सिखाई जिससे आदमी भौतिकवादी हो गया और उसका सारा चित्त बाह्य में आ गया। समुद्र के रास्ते से फिर पुर्तगाल तथा अन्य देशों से लोग यहाँ पर आए परिणामवश यहाँ के भौतिकवादी लोग और अधिक भौतिकवादी बन गये। यही कारण है कि सहजयोग में आने के बाद भी बम्बई के लोग भौतिकता से चिपके रहते हैं और उनमें दूसरे जगह के लोगों की अपेक्षा बहुत कम उड़ान होती है। बड़े आश्चर्य की बात है कि महाराष्ट्र में इतनी मेहनत करने पर भी हम इतना कार्य नहीं कर पाये जितना हमने उत्तरी भारत में किया। उत्तरी भारत के लोग जितना बढ़ पाये उतने यहाँ के लोग नहीं बढ़ सके। इसका कारण यही है कि हम लोगों | में अब भी एक बड़ी तरह की जड़ता है। धर्म के मामले में भी जड़ता है। अब भी यहाँ इतने गुरु-घंटाल हैं जितने उत्तरी भारत में नहीं हैं क्योंकि वहाँ वे चल ही नहीं पायेंगे और यहाँ के भौतिक लोगों को ऐसे ही गुरु घंटाल अच्छे लगते हैं जो तांत्रिक हैं और जो उनकी ऐसी चीज़ों में मदद करें जिनसे दूसरों का नुकसान हो जाए । यहाँ झूठे गुरु भी बहुत हैं वो भी सब भौतिक लोगों को पकड़े हुए हैं और उनको समझा देते हैं कि कोई नहीं आपको सीधे परमात्मा का नाम याद करना चाहिए। पर उनके हित की कोई आन्तरिक इच्छा उनके हृदय में नहीं। वे चाहे कुगुरु न भी हों, उनके मन में लोगों को कुछ देने की इच्छा नहीं है। चौथी चीज़ जो मैं देखती हैँ और जिससे मुझे आश्चर्य होता है कि ब्राह्मण लोग अति भौतिकवादी हो गये हैं। किसी जमाने में जाति पाति के विरुद्ध तथा विधवा विवाह के पक्ष में आगरकर साहब आदि ने कितना कार्य किया। मराठी लेखकों, ब्राह्मणों, कवियों तथा संतों ने यहाँ बहुत मेहनत की। रामदास स्वामी, ऋषियन सरस्वती तथा ब्राह्मण लोगों ने भी बहुत मेहनत करके अध्यात्म को स्थापित किया । दासगणों ने कहा 'आम्हासी म्हणती ब्राह्हण आम्ही जावि ले नाहीं ब्रह्म आम्ही कसले ब्राह्मण।' इस तरह से उन्होंने हमारे अन्दर यह जागृति की कि जब तुम ब्रह्म को नहीं जानते तो तुम ब्राह्मण नहीं हो। और हर तरह से कोशिश की कि जाति पाति हट जाए । परन्तु आधुनिक काल में मैं देखती हूँ कि ब्राह्मण लोग बहुत अधिक आधुनिक हो गये हैं । जैसे किसी औरत के बाल कटे दिखाई दे और चश्मा लगाया हो और सिगरेट पी रही हो तो पूछने पर पता चलेगा कि वह ब्राह्मण है। तो लोगों में इस तरह का परिवर्तन मेरी समझ में नहीं आता । यहाँ दूसरी कौम जिसे मराठा कहते हैं उनकी तलवार क्योंकि अब महत्वहीन हो गई है अब वे आपस में ही गर्दन काट रहे हैं। क्योंकि अब तलवार का करें तो क्या करें? ये सोचते हैं कि पहले तलवार लिये शिवाजी महाराज के लिए लड़ते थे, अब आपस में भाऊ-बन्दकी कर रहे हैं और एक दूसरे की गर्दन काट रहे हैं। तीसरे वैश्य जाति तो यहाँ है ही नहीं क्योंकि इन लोगों को व्यापार करना नहीं आता। मुँह फट होने की वजह से ये व्यापार कर नहीं सकते। रही आध्यात्म की बात, तो किसके साहारे बांधा जाये। ये मुझे समझ में नहीं आता कि किसे कहें कि तुम आध्यात्म को पकड़ो। जाति-पाति को हटाना या गलत धारणाओं को हटाना तो दूर उसमें और घुसे चले जा रहे हैं। ६ ४ िी २१ ० आा पू सब लोग मन में प्रतिज्ञा करें (क्योंकि नया साल आया हआ है।) कि आज से हम अपने को सहजयोग में पूरी तरह ढाल देंगे, उसके लिए पूरी धारणा करेंगे और स्वयं को उन्नत करेंगे और सहजयोग को हम सम्भालेंगे। ७ आज इतना ज्यादा इसका प्रकोप हो गया है कि कोई समझ भी नहीं सकता कि जाति-पाति सब व्यर्थ की चीज़़ है और इससे सिर्फ अनर्थ होने वाला है। इस तरह से हमारे महाराष्ट्र में अनेक चीज़ें चल पड़ी है। उनकी तरफ हमें ध्यान देना चाहिए। हालांकि यहाँ के लोग सीधे हैं, भोले भी हैं और पैसे का विचार इनको बहुत ही छोटे तरीके का है, बड़े तरीके का नहीं है। पर इनकी नितान्त श्रद्धा गणेश जी पर है। ये बहुत बड़ी बात है कि चारित्रिकता में ये लोग समाये हुए हैं। उनका चारित्रिक- विवेक हमारी बहुत बड़ी सम्पदा है। यद्यपि चारित्रिक विवेक द्वारा ही सहज कार्य तेजी से हो सकता है फिर भी में गहनता के बिना सहजयोग मनुष्य आगे नहीं बढ़ सकता। यहाँ लोग पार तो बहत हो जाते हैं परन्तु जमते नहीं क्योंकि उन्होंने अपनी गहनता को छुआ नहीं। आज यह पूजा करते हुए हमें सोचना है कि महाराष्ट्र की त्रुटियों की ओर ध्यान देते हुए हमें सहजयोग का कार्य करना है। त्रुटियाँ हर जगह हैं कोई भी मनुष्य आज तक परिपूर्ण नहीं हुआ। विदेशी शासकों के प्रभाव से भी त्रुटियाँ आईं। त्रुटियों का ध्यान रखते हुए यदि आप कार्य करें तो सहजयोग बहुत जोरों से फैल सकता है। यहाँ संतों ने बहुत कार्य किया है जिसके फलस्वरूप हम लोगों का कार्य आज खड़ा हो सकता है। तो इस मुम्बई के आशीर्वाद से आज आप बैठे हुए हैं और भी जो तीन शक्तियाँ हैं उनका भी आशीर्वाद आप लोगों को मिल रहा है। इस आशीर्वाद के सहारे यहाँ सहजयोग बहुत जल्दी बढ़ना चाहिए। परन्तु देखा जाता है कि सहजयोग में होते हुए भी लोग इस कार्य में सहयोग नहीं देते और एक तरह से अपनी जान बचाकर रहते हैं। यदि आप अपनी जान बचायेंगे तो भगवान भी अपनी जान बचार्ेंगे। जितना आप सहजयोग के लिए कार्यान्वित रहेंगे उतना ही आपको आशीर्वाद मिलता है क्योंकि मैं आपको पहले भी बता चुकी हूँ कि अब कृत-युग शुरू हो गया है, पहले कलियुग था। कलियुग में किसी तरह चल जाता था लेकिन अब कृतयुग में कोई भी गलत काम यदि आप करेंगे तो उसका फल फौरन आपको मिल जाएगा। पुण्य कार्य भी यदि आप करेंगे तो उसका लाभ भी आपको फौरन मिल जाएगा। इस प्रकार की परिस्थिति, हम कहेंगे, वातावरण में है। तो गलत काम करने वाले आदमी को सोच समझकर बहुत रहना चाहिए क्योंकि बुरा या भला जैसा भी आप करेंगे उसका असर फौरन आप पर आ जाएगा। यह आज की स्थिति है। अब हम लोगों को सोचना चाहिए कि अगर हम बम्बई में रहते हैं तो हम बहुत कुछ कार्य कर सकते हैं। मैंने बम्बई में बहुत मेहनत की जिसके फलस्वरूप आज आप इतने लोग यहाँ पर आये हैं। लेकिन अब आप सबको यह सोचना है कि हमें सहजयोग के लिए क्या करना है। रोज रात को बैठकर आप यह सोचे कि सहजयोग के लिए हमने क्या कार्य किया, हम तो सिर्फ अपने लिये ही कर रहे हैं, अत: जो जान बचायेंगे वो आकर हमें न कहें कि 'माँ हमें ये रोग हो गया, हमें यह तकलीफ हो गई, हमें यह परेशानी हो गई।' होनी ही है क्योंकि आप अगर अपनी जान बचाइयेगा तो परमात्मा का ध्यान भी आपकी ओर नहीं रहेगा। परम-चैतन्य का ध्यान अपनी ओर रखने के लिए आप हर समय सोचे कि आज हमने कौन सा पुण्य कर्म किया? आज हमने सहयोग के लिए कौन सा काम किया ? पूरे मन से हमने सहजयोग के लिए क्या किया ? यह सब करने से ही आपको पूरी तरह से आशीर्वाद मिल सकता है और आप जान सकते हैं कि सहजयोग में आप आशीर्वादित लोग हैं और परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं। पर जैसे किसी भी साम्राज्य में गलत काम करने पर आपको कोई न कोई शिक्षा, कोई न कोई दण्ड दिया जाता है उसी प्रकार इस साम्राज्य में भी होता है। लेकिन इसमें थोड़ा समय दे दिया जाता है। 'अच्छा देखते हैं, ठीक हो जाए-ठीक हो जाए।' पर इसका इशारा आपको फौरन मिल जायेगा कि आपने गलत काम किया तो, आपकी चैतन्य लहरियाँ (वाइब्रेशन्स) छूट जाएंगी। इसलिय बहुत सम्भल कर चलना है आगे को। धीरे धीरे आगे बढ़ना है और आपको बहुत उँचाई पर जाना है। आप जानते हैं कि सारे देश के लिए तो यह जरूरी है ही, सारी दुनिया के लिए भी जरूरी है कि हमारे महाराष्ट्र में सहजयोग बहुत पनप जाए और उसकी सम्पदा हम सारी दुनियाँ को दे दें। इसलिए बार-बार कहना है कि आज सब लोग मन में प्रतिज्ञा करें (क्योंकि नया साल आया हआ है।) कि आज से हम अपने को सहजयोग में पूरी तरह ढाल देंगे, उसके लिए पूरी धारणा करेंगे और स्वयं को उन्नत करेंगे और सहजयोग को हम सम्भालेंगे। यह सभी के लिए है न कि सिर्फ महाराष्ट्र के लिए । सारी दुनियाँ के लोगों से यह बात मैं कह रही हूँ। आप सबको अनन्त आशीर्वाद! ८ र छि सहजयोग आपने के लिए क्या किया है ? कळवा, १४ जनवरी १९९० आज का दिन भारत में हमारे लिए बहुत ही खुशियों का दिन है। सूर्य अभी मकर अक्ष में है और मकर अक्ष से वह कर्कवृत्त में जब आता है तब यह सूर्य पृथ्वी के नजदीक आता है तब यह धरणीमाता सृजनशीलता से पुन: कार्यान्वित होती है और अत्यन्त सुन्दर फुलों का निर्माण करती है। सुन्दर, पौष्टिक और पूर्ण समाधान देने वाली चीज़ों का जैसे कि3B फलों का, निर्माण करती है और वह अपने आँखों को, उन्हीं की दी हुई हरियाली द्वारा ठण्डक पहुँचाती है। केवल सूर्य के आगमन से पृथ्वी हमें बहुविधि ऐसी सब चीज़ों से आशीर्वादित करती है। इसी तरह से, सहजयोग के सूर्य का उदय हुआ है और शिरोबिन्दु तक पहुँच रहा है और आपको इसका परिणाम भी दिखाया गया है भूमी तत्व पर, जो कि आपका मूलाधार है और इस मूलाधार की सृजन शक्ति जो कि कुण्डलिनी है, वो चढ़ती जा रही है और आपके अस्तित्व को खिला रही है जिसका परिणाम आप अपनी जिन्दगी में देख सकते हैं जिसके कारण आपकी जिन्दगी बहुत सुन्दर हो गयी है, जिसने आपकी जिन्दगी को आनन्द से ओत-प्रोत कर दिया है। अब आप लोग एक ऐसी जगह पहुँच गये हैं जहाँ से एक उँची उड़ान लेनी है। इस उड़ान के समय आपको अपने विचारों पर, अपनी कल्पनाएँ और अपनी शर्तें इन सब पर नजर रखनी चाहिये । इन्ही कंडिशनिंग की वजह से हम उनके जाल में खुद को उलझायें हुए हैं जिसके कारण हम पर उनका बुरा असर पड़ रहा है। मुझे यह बात समझ में नहीं आ रही है कि मूलत: जिनकी कोई किमत नहीं फिर भी हम उनसे चिपके रहते हैं, जिनमें कोई जान ही नहीं है। जब आप किसी उँचाई तक पहुँचते हैं तब बहुत से लोग पीछे रहते हैं; छूट जाते हैं कारण है कंडिशनिंग्ज। हो सकता है कोई उसमें से बाहर ही ना निकले । तो मेरी आपसे नम्र प्रार्थना है कि आपने अपने आपको ध्यान में संपूर्ण समर्पित करना है और अपने आपको सामुहिकता को समर्पण करना है। हर रोज आपने स्वयं को यह सवाल करना है कि, मैंने सहजयोग के लिए क्या किया है? खुद के लिए मैंने क्या किया है? आप कृपया यह जान लें कि आपको एक बड़ी छलांग लगानी है, ऐसा करने के लिए आपको तैयार रहना है क्योंकि हो सकता है कि इस छलांग को लगाने के दरम्यान कुछ लोग खो जाएं, पिछे रह जाएं। क्योंकि अब तक आप अपने कंडिशनिंग से बाहर नहीं निकलें हैं। यह कंडिशनिंग्ज कई प्रकार की होती है। कोई अज्ञान में से निर्माण होती है, कोई अंधविश्वास से निर्माण होती है या फिर उन सबसे निर्माण होती है जिनका हमें कभी सामना करना पड़ हो । कभी - कभी तो अपने ही देश की कंडिशनिंग होती है, हमारी जाती की होती है। अपनी विशिष्ट आदतों से वो निर्माण हो सकती है। ऐसी और भी चीजें हैं जिनके द्वारा हम एक दूसरों को तोलते-नापते हैं मगर यहाँ हमने अपने आपको ही तौलना है। यह देखना है कि क्या हम सहज संस्कृति का पालन कर रहे हैं या नहीं। अगर आपने सहज संस्कृति को नहीं अपनाया तो आपके लिए बहुत कठिन हो जाएगा। मैं आपको सावधान करना चाहती हूँ कि जो नाव सब को लेकर चलने वाली है, उस पर आप सवार नहीं हो पाएंगे , फिर आप कहोगे कि 'माताजी, कुछ लोग तो पीछे रह गये हैं, कृपया उनकी मदद कीजिए।' ऐसे लोगों की आप मदद कीजिए, उनको वास्तविकता की पहचान करवा दीजिए । साफ शब्दों में कह दीजिए, उन्हें नेक रास्ते पर चलने की साफ-साफ सूचना दीजिए। जब भी आपको पता चले कि वे गलत रास्ते से जा रहे हैं तो उन्हें सतर्क कर दीजिए। दिन-ब- दिन हालात खराब होती जा रही हैं। निर्णायक समय आ चुका है। तो आप सभी ने सहजयोग को सहज में ना ले तो बहुत अच्छा होगा। यही मैं आपसे निवेदन करना चाहती हूँ। बाकी सब चीजें एक माया जाल की तरह है जहाँ आपको भौतिक चीजें ठीक लगती है, उनसे आप सब कर सकते हैं, ऐसा लगता है आपको। यहाँ परमात्मा यह नहीं देखते हैं कि कौन अमिर है, कौन पैसे वाला है, कौन गरीब है। वह केवल एक ही चीज़ देखता है कि आप अध्यात्म की दृष्टि से कितने अमीर हैं। परमात्मा यह भी नहीं देखते कि, आपकी शैक्षणिक पात्रता क्या है, आपके पास विश्वविद्यालय की कितनी उपाधियाँ हैं। आप का उद्देश्य क्या है। वह केवल ये देखते हैं कि आप कितने अबोध हैं। आपने सहजयोग १० संक्रान्ति पूजा के लिए क्या किया ? आपने परमात्मा के लिए कितना कार्य किया है? इसके लिए कान कौन सी चीज़ों को प्राधान्य देना चाहिए यह आपको तय करना है, इसकी ओर ध्यान रखना है। सहजयोग आपको अत्यन्त सूक्ष्मता से ऑँकता है। अब इस कयामा के समय में जैसे कि, कई लोगों का निर्णय हो चुका है कि कौन अच्छा है और कौन बेहतर है, फिर भी आने वाली चढ़ान के लिए आपको अत्यन्त सावधानी बरतनी है। जिनको हृदय से लगता है कि मैं एक सहजयोगी हूँ पर वास्तव में नहीं है, ऐसे लोग पीछे रह सकते हैं । तो अब सूर्य का उदय हो चुका है शिरोबिन्दु तक, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है। ऐसे में हर एक ने अपने आप में सावधानी बरतनी है। जो सूरज अपने इर्द-गिर्द हरियाली फैलाता है वही सूरज अपनी गर्मी से हमें झुलसा सकता है। तो आप सावधानी से रहें। हर वक्त सहजयोग के मार्गदर्शन में रहें आरै देखें कि हमसे क्या गलतियाँ हुई है। हममें यह जडत्व क्यों निर्माण हुआ है, हमारा यह मार्ग क्यों दुर्गम होता जा रहा है? अब तक तो में बहुत ही खुश हूँ बहुत आनन्द में हूँ कि आज तक मैं आपको जो भी कहती रही, जिसका भी आपको मार्गदर्शन दिया है, वह आपने शांती से सुना और अपनाया भी है। और तो और रोज मर्रा की जिन्दगी में आपने उसे ग्रहण भी किया है, अमल भी किया है। मुझे नहीं लगता है कि कुछ समय के बाद तो आपको कुछ बताने की भी जरूरत पड़ेगी, आगे जा कर आपको आपके प्रकाश में ही ज्ञान हो जाएगा कि क्या गलत है और क्या सही है। फिर भी मुझे लगता है कि पूजा में और संगीत में तथा और अन्य चीज़ों के लिए आप अपना हृदय खोल दें। अगर आप अपना हृदय नहीं खोलेंगे तो कोई भी चीज़ कार्यान्वित नहीं होगी। कोई भी चीज़ उसी समय कार्यान्वित होगी जब आपकी आत्मा हृदय में होगी। आपकी सभी कंडिशनिंग्ज आपका अहंकार पूर्णतया गायब हो जाएगा, अगर आप खुद ही तय करेंगे कि सहजयोग के लिए मैं अपना हृदय संपूर्णतया खोल दूँ। आप सबको अनन्त आशीर्वाद ! अगर भप अपनी हदेये नहीं खोलेंगे तो कोई भी चीज़ कार्यान्वित नहीं होगी। कुछ जाता ही नहीं है क्योंकि आए ती पिछले बाय में ही फसे हुए हैं। स्तिष्क में वाक्य बर्तमान में तौ आए हैं ही नहीं। मस्तिष्क में कुछ जाता ही नहीं है क्योंकि आप तो पिछले वाक्य में ही फँसे हुए हैं । वर्तमान में तो आप हैं ही नहीं। मेरे विचार से मैं आपको बहुत लम्बा प्रवचन दे चुकी हूँ। कुछ प्रतिक्रियाएं बहुत अच्छी है और लोग इसे भली-भाँति आत्मसात कर सके। परन्तु बताया गया कि कुछ लोग सो रहे थे। ये सब कुछ नकारात्मकता के कारण होता है। आपको अपनी नकारात्मकता से लड़ना होगा क्योंकि नकारात्मकता ही ऐसी चीज़ है जो प्रश्न पूछती है। मैं जब बोल रही होती हूँ तो सत्य बताती हूँ, पूर्ण सत्य। परन्तु नकारात्मकता प्रश्न पूछती हैं और प्रतिबिम्बित करती है और जब इसका प्रतिबिम्बिकरण आरम्भ होता है तब मस्तिष्क में कुछ भी नहीं जाता, तब आप पिछले वाक्य में ही फँसे होते हैं, वर्तमान के साथ होते ही नहीं। तो सारी बात पलायन पर आ जाती है और तब आप पलायन करते हैं, सो जाते हैं। कहने का अभिप्राय ये है कि आज मैंने आपको चेतन-मस्तिष्क में रखने का भरसक प्रयत्न किया है। आपको चेतन होना होगा, होना होगा, क्योंकि बिना चेतन हुए आप उत्क्रान्ति नहीं प्राप्त कर सकते। कोई भी चुस्त असामान्य व्यक्ति उत्क्रान्ति नहीं पा सकता। आपको स्वयं को सामान्य बनाना होगा। आपमें से से बहुत लोगों में असामान्यताएं थीं जिन्हें बाहर लाया गया, निकाल फेंका गया। बहुत से लोग स्वच्छ हो गए हैं। परन्तु अब भी यदि कुछ लोग लटक रहे हैं तो उन्हें यह क्रियान्वित करना चाहिए परन्तु वो तो उसे (नकारात्मकता को) उचित ठहराने में ही लगे हुए हैं। प्राय: नकारात्मकता नकारात्मक व्यक्ति को ही आकर्षित करती है। अत: यदि आपमें इस प्रकार की कोई नकारात्मकता है, तो ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के पास न जाएं। दूरी बनाए रखें। प.पू.श्री माताजी, अल्पेमोता, इटली, ४.५.१९८६ १२ ० आपको अपने हाों का उपयोग करना होगा, अपने पैों का छपयोग करा होणा, पानी पैर किया करनी होणी क्योंकि ज सर है। गगार सभी सहजयोगी नियमित रूप से पानी में बैठें। यह अत्यन्त आवश्यक है। प्रतिदिन प्रात:काल अवश्य ध्यान - धारणा करें क्योंकि बौद्धिक स्तर पर हम कहते हैं कि हम श्रीमाताजी के साथ थे, ठीक है। यह अभिव्यक्तिकरण ठीक है। आप लोग आए, आपने देखा कि भारतीय कैसे लोग हैं और सहजयोग के लिए अच्छे हैं, परन्तु यह सब देखने के पश्चात् आपको जानना होगा कि सहजयोग को कार्यान्वित करना पड़ता है। उसे सोचना नहीं पड़ता। इसके विषय में सोचने मात्र से कोई लाभ नहीं। विचारों के माध्यम से आप जो भी सोचने का प्रयत्न करें, सहजयोग में आप कोई सफलता प्राप्त नहीं कर पाएंगे। आपको अपने हाथों का उपयोग करना होगा। अपने पाँव आपको पानी में डालकर बैठना होगा क्योंकि जल समुद्र है। ये सभी पाँचों चक्र या कहें छ: चक्र, मैं पाँच इसलिए कह रही हूँ कि पहला चक्र मूलाधार है और सातवाँ तथा सबसे ऊपर वाला चक्र मस्तिष्क है, तो इस विचार के साथ कि यह मध्य के पाँचों चक्र मूलत: भौतिक तत्वों के बने हैं तथा पाँच तत्वों से ही इन चक्रों का शरीर बना है हमें पूर्ण सावधानीपूर्वक इन पाँचों चक्रों का संचालन करना चाहिए। जिन तत्वों से यह चक्र बने हैं उन्हीं में इनकी अशुद्धियों को निकाल कर हमें इन चक्रों का शुद्धिकरण करना है। उदाहरण के रूप में, यदि कोई व्यक्ति उग्र स्वभाव का है तो उसे बाईं ओर से संतुलन प्राप्त करना होगा। हाथ से उठाना नि:सन्देह ठीक है, परन्तु तत्व का क्या होगा? दाईं ओर के (उग्र स्वभाव) व्यक्ति के अन्दर विद्यमान सभी तत्व उसे गर्मी प्रदान करते हैं, हम कह सकते हैं प्रकाश या अग्नि। अत: दाईं ओर के लोगों को अग्नि अधिक सहायता न कर सकेगी। जैसे फोटो के सम्मुख तथा अहं ग्रस्त लोगों के सम्मुख यदि आप दीपक (प्रकाश) का उपयोग करेंगे तो इसका कोई लाभ न होगा। लाभ तो पृथ्वी माँ और जल तत्व से होगा जो शीतलता प्रदान करते हैं। दाईं ओर के लोगों के लिए बर्फ भी बहुत लाभदायक है। तो उग्रता को ठीक करने के लिए सभी शीतलता प्रदान करने वाले तत्वों का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि उग्रता शान्त हो जाए। खाने के विषय में भी ऐसा ही है। दाईं ओर के लोगों को ऐसे भोजन लेने चाहिए जो शान्त करने वाले हों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स अर्थात् उन्हें काफी सीमा तक शाकाहारी बन जाना चाहिए । मांस खाना ही हो तो चिकन ही लेना चाहिए, मछली या समुद्र से निकला खाना बहुत गर्म होता है। इस प्रकार आप अपने चक्रों के भौतिक भाग को ठीक कर सकते हैं। बाईं ओर के (तमोगुणी) लोगों को चाहिए कि दीप-प्रकाश या अग्नितत्व का उपयोग अपनी बाईं ओर को ठीक करने के लिए करें। खाने में ऐसे लोगों को नाइट्रोजन परिपूर्ण अर्थात् प्रोटीनयुक्त भोजन करने चाहिए। अधिक प्रोटीन उनके लिए आवश्यक है । प.पू.श्री माताजी, वैतरणा, महाराष्ट्र, भारत, १८.०१.१९८३ १३ प्रेम धर्म ४ २३ मार्च १९७७ १४ बहुतों को ऐसा लगता है, जब वो पहली मर्तबा देखते हैं कि 'ये कोई बच्चों का खेल है! 'कुण्डलिनी जागरण है।' कुण्डलिनी जागृति के लिए तो इतना बताया है कि दुनिया भर की चीज़ और सिर के बल खडे होना और दुनिया भर की आफत करना और इतने सहज में कुण्डलिनी का जागरण कैसे हो जाता है? आप में से जो लोग पार हैं यहाँ पर, अधिकतर तो पार ही लोग बैठे हैं, उनकी कुण्डलिनी जब जागृत हुई तब तो आपको पता भी नहीं चला कि कैसे हो गई? लेकिन अब जब दूसरों की होते देखते हैं तो आपको पता चलता है कि हाँ भाई, हमारी हो गई है, क्योंकि आप एकदम से ही चन्द्रमा पर पहुँच गये हैं, कैसे पहुँचे? कहाँ से पहुँचे हैं? फलिभूत होने का समय जब आता है तब फल लगते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बाकी जो होता रहा, वो जरूरी नहीं था । वो भी जरूरी था और अब फल होना भी जरूरी है । एकदम से पता नहीं चलता है, इसका कारण तो है ही। और उसका उद्देश्य भी है। | फिर कोई कहते हैं कि दस हजार वर्ष हो गये हैं कोई पार नहीं हुआ है तो अभी क्यों हो गये हैं! दस हजार वर्ष पहले तो आप चन्द्रमा पर नहीं जाते थे, पर अब क्यों जा रहे हैं ? अब वो अगर जा रहे हैं तो शंका करने वाली क्या बात है! लेकिन रामदास स्वामी ने बताया है कि दुनिया में कुछ लोग होते हैं जिनको कहते हैं। पढ़त मूर्ख। पढ़त मूर्ख का मतलब होता है पढ़ पढ़ के जो महामूर्ख हो जाते हैं। जिसको कबीरदास जी ने कहा है कि 'पढ़ि पढ़ि पण्डित मूरख भये' इस तरह की एक संस्था चलती रहती है। चाहे वो ईसा मसीह जी का जमाना हो या चाहे वो ज्ञानेश्वर जी का जमाना हो या शंकराचार्य जी का जमाना हो, जरदोस का जमाना हो, कभी ये एक अपने को विशेष, अतिशहाणे समझने वाले लोग, अपने को एक विशेष तरह से बहत उच्च तरह के विद्वान समझने वाले लोग हमेशा रहे और रहेंगे और वो हर समय इस तरह के अड़ांगे करते रहेंगे। और जीवन के जो अमूल्य क्षण है वो इसी में बितायेंगे, उनका कोई इलाज नहीं है। कलयुग में भी ऐसे बहुत है कि जो किताबें रखी हैं वो सब पढ़ ड़ाली है। अब उस आदमी का तो दिमाग खराब हो ही जाएगा क्योंकि उसने इतनी मेहनत करके इतनी किताबें खरीदी हैं , पढ़ी है । तो उसकी समझ में नहीं आता है कि मैंने इतनी मेहनत की, किताबें पढ़ीं है, उपवास किये हैं और मुझे नहीं आया और माताजी ने सिर्फ ऐसे हाथ किया और मैं पार हो गया ! ये क्या बात है? कोई न कोई तो सहजयोग का * बात हमारे में है ही, ये तो आप समझते हैं। समझ लीजिए कि अगर कोई बड़ा रईस आदमी है और कोई उसके पास रूपये माँगने जाए और अगर उसे रूपये देने की इच्छा है तो उसको सिर्फ आधार एक चैक पर लिखना होता है और बस हो जाता है काम। कोई न कोई सम्पदा तो हमने जोड़ कर रखी है अपनी। हमारी कोई न कोई तो मेहनत है इसके पीछे, बहुत जबरदस्त, इसलिए तो आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है। साफ-सुथरा सब कुछ आपको मिल जाता है। ना तो धर्म है। १५ आपको पढ़ने की जरूरत है, ना तो आपको मेहनत करने की जरूरत है। बस पाने की जरूरत है। लेकिन एक बात जरूर है कि सहजयोग का आधार धर्म है। धर्म का मतलब जो बाह्य में हम हिन्दू, मुस्लिम सब कहते हैं वो नहीं। धर्म का मतलब है मनुष्य का धर्म, मानवता का धर्म। अब 'मानवता का धर्म' का मतलब, बहुत से लोगों को यह लगता है कि दूसरों की सेवा करना, दूसरों को पैसा देना। बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि चार लोगों को ठगेंगे और एक बड़ा भारी मन्दिर बना देंगे और कहेंगे कि हमने बहुत बड़ा दान धर्म कर दिया है। दूसरे लोग ऐसे होते हैं कि अपनी घर की बहू को तो सतायेंगे और दुनिया भर में धर्म फैलाते फिरेंगे। तीसरे लोग ऐसे होते हैं कि अपना सर मुंडवायेंगे, फिर वो गेरुये वस्त्र पहनेंगे, चोगे पहनेंगे , और सब दूर भगवान का नाम चिल्लाते फिेंगे। पाँचवे तरह के ऐसे होते हैं कि वो सोचते हैं कि हम धार्मिक हैं और दूसरे सभी अधार्मिक हैं। और दूसरों को नीचा गिराते फिरेंगे । धर्म की व्यवस्था हमारे अन्दर बनी हुई है पहले से । मनुष्य धर्म में ही पैदा होता है और जो भी वो उस धर्म के विरोध में चलता है तभी उसका पतन हो जाता है और वो सहजयोग के लिए इतना उपयोगी नहीं होता है इसलिए कुछ लोग पार नहीं होते हैं, और कुछ लोग पार होते हैं। कुछ लोग रूक जाते हैं और कुछ लोग जल्दी से पार हो जाते हैं। पहले अपने धर्म को ठीक से बाँधना चाहिए। सारे धर्मों का सार एक ही है, प्रेम त्त्व का । प्रेम तत्त्व अगर आपके अन्दर है, अगर आप प्रेम तत्त्व से परिपूर्ण हैं, प्रेम तत्त्व का आपके अन्दर तत्त्व है और उसका आपके अन्दर में पूर्णत: प्रभाव है, आपके जीवन में उतरा हुआ है तो इससे बढ़ के मनुष्य का धर्म और कोई नहीं है। लेकिन प्रेम का मतलब ये नहीं होता है कि आप उसकी कोई जाहिरात लगा कर फिरे कि आप अपना एडवर्टाइज करें कि 'हम प्रेमी हैं'। हमने इतने उपकार सब पर किये हैं और हम बड़े मातृ प्रेमी हैं। ये एक अन्दर का धर्म अपना होता है। राम के जीवन में आपने देखा है कि भीलनी ने उनको बेर दिये । आप सहजयोग में जानते हैं कि हर एक खाने को आप वाइब्रेट करके खाते हैं। जब तक वो वाइब्रेट नहीं होता आप खाते नहीं है। उस पर जब तक ग्रेस नहीं उतरता है आप उसे लेते नहीं है, लेकिन रामचन्द्रजी ने भीलनी के बेर ऐसे ही खा लिये। भीलनी ने अपने दाँत उस पर ऐसे लगाये थे, एक-एक बेर को चख कर देखा था, तब झूठे बेर को रामचन्द्रजी ने अपने आँखो के ऊपर लगा कर के खा लिये। इसका कारण ये है कि भीलनी प्रेम से परिपूर्ण थी। परमेश्वर के प्रती जो उसको प्रेम था, निष्कपट, निश्चल पूर्णतया । वो जानती थी कि श्री राम एक अवतरण है और उनसे वो नितांत प्रेम करती थी। उसे जो भी बेर मिलते, उसे वह चख कर के देखती थी कि कहीं कोई खट्टी न हो। मेरे राम को खट्टी न लग जाये । उनको कोई तकलीफ न हो जाए और इस विचार को करके उसने वो बेर खाये और राम को दिये और राम ने वो खा लिये। उस भीलनी की जो प्रेम शक्ति है, उसने कभी कोई धर्म की व्याख्या भी नहीं जानी होगी। उसको पाप और पुण्य का कोई विचार भी नहीं होगा। उसने और कोई दुनिया की चीज़ नहीं जानी होगी। न तो वो अमीरी जानती होगी, न गरीबी जानती होगी। जंगलों में पत्थरों में रहती होगी । उसको कपड़े का भी विशेष ख्याल नहीं रहा होगा। न ही उसमें कोई निर्लज्जता रही होगी, ना ही कोई विशेष लज्जा का अविर्भाव रहा होगा लेकिन उसमें इतना प्रेम राम के प्रति था कि उसने एक-एक बेर को भीन - भीन अपने दाँत से खाया और अत्यन्त भोलेपन से राम को अर्पित करके कहा कि ' देखिये , इसमें से हर एक बेर को मैंने खाया हुआ है। १६ जब मनुष्य प्रेम में उतरता है तब वो निष्कपट और निष्कलंक हो जाता है। प्रेम एक बड़ी भारी साधना है, वो की नहीं जाती है वो हो जाती है। प्रेम का धर्म जब तक आपमें जगेगा नहीं, आपका सहजयोग टिक नहीं सकता। हमारे बहुत से सहजयोगी हैं, वो बताते हैं कि हम एक-एक घंटा ध्यान में बैठते हैं, बैठिये। हम चार-चार घंटे फलाना करते हैं और ठिकाना होता है लेकिन भावना क्या है? जब आपको परमात्मा के प्रति प्रेम उभरता है, जब आप परमात्मा में लीन होकर प्रेम करते हैं, तब उसकी बनायी इस सारी सृष्टि को, उसकी बनायी हुई हर एक प्राणी मात्र को, सबको आप पूरी हृदय से प्यार करते हैं। अगर उसे नहीं कर सकते हैं तो आपके प्रेम में क्षति है, कमी है। जब हम दूसरों को लेक्चर देते हैं और उनसे कहते हैं कि तुमको ऐसा नहीं करना चाहिए, तुमको वैसा नहीं करना चाहिए, तुमने ऐसा क्यों किया, उनको वैसा नहीं करना चाहिए था, तब हम ये नहीं जानते हैं कि हमने इस आदमी से जो कहा है वो क्या प्रेम में कहा है? अगर आप अतिशय प्रेम से किसी से कोई बात कहें या काम कें तो उसे बुरा नहीं लगता। सारे धर्मों का सार प्रेम है। परमेश्वर साक्षात प्रेम है। सहजयोग में प्रेम ही सम्पूर्ण है , प्रेम के सिवाय और नहीं है। उसमें त्याग अपने आप हो जाता है। उसको कोई भी चीज़ त्यागते हुए विचार ही नहीं आता दूसरा क्योंकि प्रेम की शक्ति त्याग को करवा देती है। प्रेम में प्रेम ही पाना, प्रेम ही करना यही लक्ष्य होता है। और जीवन में उसे कुछ नहीं चाहिए। लेकिन अगर आपमें दोष हों और आप दूसरों को ऐसे प्रेम करते हैं, आप दूसरों को वाइब्रेशन्स देते हैं और आपमें कुछ विचार है कि इस आदमी से कुछ लाभ हो जाये , या इससे कोई फायदा उठा लें या इसकी कोई तुलना कर दे, इसलिये अगर आप किसी को वाइब्रेशन्स दे रहे हैं या फिर उसका आप उपयोग कर लें तो आपके प्रेम में कमी रह जाएगी। किसी को आप वाइब्रेशन्स देते वक्त पाते हैं कि उसमें एकाद दोष हैं, कोई चक्र कम हैं, उसको भी अत्यन्त प्रेमपूर्वक समझा कुछ कर सहला कर के, उसका उद्दीपन करना चाहिए। सारा संसार आज द्वेष पर ही खड़ा हुआ है। सारे धर्मों द्वेष करने का कोई न कोई बहाना ढूँढ ही लेता है इन्सान। कुछ न कुछ तरीका उसको ये मालूम है कि जिससे बड़े-बड़े संग तैयार हो जायें कि इसको द्वेष करो, उसको द्वेष करो । बड़े-बड़े राष्ट्र, बड़ी-बड़ी संस्थायें संसार में प्रेम के बूते पर खड़ी हुई दिखाई नहीं देती । अधिकतर उसके पायें में, उसकी नींव में द्वेष की खाई होती है इसलिए वो संस्थाएं धीरे धीरे खत्म हो जाती है। का प्रेम की शक्ति कितनी आगाध है ये अब आप जानते हैं। आपके हाथ से जो शक्ति बह रही है, ये भी दूसरों के प्रति अनुभूति नहीं है, आपके अन्दर अगर कोई माधुर्य नहीं है तो आप सहजयोग में बहुत आगे नहीं जा सकते हैं। अपने बाल बच्चे, अपने घर वाले, अपने नौकर-चाकर, सार साक्षात प्रेम की शक्ति है। आप अगर पाषाण हृदय हैं और अगर आपके अन्दर कुछ प्रेम है। अपने १७ अड़ोसी-पड़ोसी, इधर-उधर के जितने भी मिलने वाले हैं उन सब से आपको प्रेम करना चाहिए फिर वो चाहे पार हो, चाहे नहीं हो। आज नहीं तो कल सब पार हो सकते हैं। लेकिन आप अगर उनके साथ गिर गये तो आपका भी पतन हो गया और उनका भी उत्थान होने की कोई भी बात कही नहीं जा सकती है। आपके प्रेम को ही देखकर के समझ सकते हैं कि सहजयोग की कितनी विशेषता है। प्रेम की शक्ति को मनुष्य ने कभी आजमाया ही नहीं है, ये अभी- अभी शुरु है। जब से आप सहजयोग से पार हुए हैं, तब से आपने इस शक्ति को जाना है कि ये कितनी प्रचण्ड शक्ति है, हुआ कितनी व्यापक है और कितनी कार्यान्वित होती है। इसको बाह्य से अगर कोई देखना चाहे, अगर वो उथले मन का आदमी हो तो उसको वो समझ ही नहीं सकता इसलिए मैंने कहा है कि जो लोग पढ़त मूर्ख होते हैं उनकी समझ में नहीं आने वाला है लेकिन जो दयाद्र हैं, जो हृदयपूर्ण हैं उनके लिए सहजयोग बहत आसान है क्योंकि ये अत्यन्त सूक्ष्म सम्वेदना है और वो घटित उन्हीं के लिए हो सकती है जिनके लिए अपने हृदय का स्थान पूर्णतय: अभी भी संसार के में लिए बना हुआ है। हृदय में ही शिवजी का स्थान है और हृदय ही परमेश्वर का प्रकाश आत्म स्वरूप हमारे अन्दर विराजता है। जिस आदमी का हृदय कठोर होगा, जो कठोरता पूर्ण दूसरों से व्यवहार करता होगा, उसका हृदय आत्मा के दर्शन से वंचित रहेगा। सबको चाहिए कि अपनी ओर दृष्टि करके देखें कि हम प्रेम धर्म में कितने उतरे हैं। उस पर आपको हर एक धर्म खरा है या नहीं पता चलेगा। जैसे एक छोटी सी बात है कि हमको मादकता नहीं करनी चाहिए। हमें कोई मादक पदार्थ नहीं लेना चाहिए सहजयोग में। आप जानते हैं कि मादक पदार्थ लेने वाले लोगों की नाभी पकड़ जाती है और वॉइड भी पकड़ जाता है और ऐसे लोग पार नहीं हो सकते हैं। अब देखिये जो लोग शराब पीते हैं वो एक तो स्वयं से प्यार नहीं करते हैं। उनको मालूम है कि शराब या कोई भी मादक पदार्थ से हमको नुकसान होने वाला है। अपने घर वालों का नुकसान होता है। जो आदमी खुद शराब पीता है, उसके घर वाले भूखे रहते हैं। उसके बच्चों के सामने क्या मॉडेल | रहता है? उसके बच्चे देखते हैं कि मनुष्य सुबह से शाम तक शराब पीता है। उसका समाज में क्या व्यवहार होता है। वो शराब के आगे दुनिया में कोई भी चीज़ का महत्व नहीं रखता है। प्रेम का स्वरूप आप हर एक धर्म में देख सकते हैं जिसको कि हम दस धर्मों के नाम से जानते हैं। हर एक धर्म में आप अगर प्रेम का व्यवहार करें तो आप समझ जाएंगे कि प्रेम ऐसी चीज़ है कि जैसे सोने को परखना होता है उसी तरह आपको अपना हर एक धमर्म परखना पड़ेगा। आप में से बहुत लोग कहते हैं कि हम लोग खान-पान का बहुत विचार रखते हैं। इनका मतलब ये है कि हम सौ मर्तबा हाथ धोते हैं फिर हम इतना ही खाना खाते हैं, उतना ही खाते हैं, हम दस मर्तबा उपवास करते हैं और दुनिया भर की सबको तकलीफ़ देते हैं। आपको अगर खाने की इतनी परेशानियाँ हैं तो आप कभी किसी के घर मत जाईये, ये सबसे बड़ी अच्छी बात है। जहाँ जो मिल जाए सो खा लेना चाहिए लेकिन उसमें भी एक बात को जानना चाहिए कि जो भी दे रहा है आपको खाने के लिए, वो प्रेम से दे रहा है कि नहीं दे रहा है। अगर वो आपको प्रेम से नहीं दे रहा है तो आपको खाने की जरूरत नहीं है। आप उसको अस्वीकार कर सकते हैं या किसी तरह से उसे टाल सकते हैं कि नहीं हमें खाना नहीं खाना है। सिर्फ एक ही चीज़ देखनी है कि वो आदमी आपको फिर से खाना दे रहा है या नहीं। लेकिन अगर वही बात आप शराब पर लगायें कि अगर कोई आदमी आपको प्रेम से शराब दे रहा है तो आपको पीना चाहिए कि नहीं ? तो १८ প to) २े जो कठोरता पूर्ण ी दूसरों से व्यवहार *० करता होगा, उसका हृदय आत्मा के दर्शन से वंचित रहेगा। १९ ० बिल्कुल भी नहीं पीना चाहिए क्योंकि जो आपको शराब पिला रहा है वो खुद भी शराबी है, माने वो अपने से प्रेम नहीं करता और आपको भी गन्दे काम सिखा रहा है कि जिससे आप भी, किसी से प्यार न करें। आजकल आप किसी आदमी के यहाँ खाना खाने जाएं और जिसने आपको बहुत प्रेम से खाना खिलाया है उस प्रेम के वाइब्रेशन्स से आपके अन्दर भी ये इच्छा होगी कि मैं भी किसी को अपने हाथ से खाना बनाकर प्रेम से खिलाऊं। जब आप प्रेम बाँटते हैं तो प्रेम बढ़ता है और जब आप घृणा बॉटते हैं तो घृणा बढ़ती है। हर एक सहजयोगियों को ये सोचना चाहिए कि जब तक वो प्रेम के मार्ग में उतरता नहीं, जब तक उसने प्रेम में पूरी तरह से अपने को समर्पित नहीं किया तब तक उसका सहजयोग लाभान्वित नहीं होगा। वाइब्रेशन्स हैं, सबको काफी वाइब्रेशन्स आ रहे हैं और सब लोग सोचते हैं कि हमारे अन्दर से शक्ति बह रही है। बहुत से लोगों के हाथ से अनेक लोग ठीक भी हो गये हैं। अनेक लोगों के फायदे भी हो गये हैं, ये भी बात मान्य है, लेकिन सब बातें करते वक्त हम प्रेम को कहाँ रखते हैं ये भी देखना चाहिए। किसी भी बड़े अवतरणों की बात करते वक्त हमें ये ख्याल होना चाहिए कि हर अवतरण में प्रेम के दर्शन अत्यन्त सुन्दर और मधुर हुए हैं। कृष्ण के दर्शन में भी आप देखिए कि विदुर के घर का खाना कृष्ण ने प्रेम से खाया था। कहते हैं 'दुर्योधन का मेवा त्याजो, विदुर घर साग खाईं, सबसे ऊँची प्रेम सगाई।' क्राइस्ट के जन्म में देखिये आप कि, एक प्रोस्टिट्यूट को लोग एक पत्थर से मार रहे थे और तब क्राइस्ट था कि जिनको कि प्रोस्टिट्यूट से कोई मतलब नहीं, वो जाकर के वहाँ खड़े हो गये और उन्होंने ये कहा 'जिसने कभी भी कोई पाप नहीं किया हो वो इस औरत पर पत्थर मार सकता है, पर पहला पत्थर मुझे मारे' और सबके हाथ रूक गये। ये सभी कार्य प्रेम में होता है। प्रेम पैसे से नहीं आता है। प्रेम दिखावे से नहीं आता है। प्रेम बोलने से नहीं आता है। प्रेम अन्दर ही अन्दर जानने से होता है कि परमेश्वर की हमारे ऊपर कितनी अनन्त कृपा है। विशेषकर सहजयोगियों को सोचना चाहिए, जैसे कि अभी किसी ने प्रश्न पुछा कि इसी जन्म में क्यों हो गया ? इसी जन्म में क्यों हमने पाया है, क्योंकि ढ़राया हुआ है उनकी करुणा, उनका प्रेम। वो आपके अन्दर ढराया हुआ है और जितना आपके अन्दर ये सूक्ष्म, अति सूक्ष्म रास्ता बनाते जाएगा वैसी ही इस प्रेम की सम्वेदना भी आपके अन्दर गहरी होती जाएगी। लेकिन बार-बार यही बात है कि ये उथले लोगों का काम नहीं है। छोटी तबियत लोगों का काम नहीं है । जो लोग रात-दिन इसको-उसको क्रिटीसाइज करते रहते हैं, जिनका काम ही होता है इनको उनको भला-बुरा कहना, उनका ये काम नहीं है। जिन्होंने प्रेम किया है संसार में जिन्होंने हर जगह इसकी पदवी पाई कि ये बड़ा प्रेमपूर्ण आदमी है, आप भी अपने जीवन में देखिये कि जब भी कभी आपको याद आता है तो उसी आदमी को आप याद करते हैं जिसने नितान्त प्रेमपूर्वक आप से व्यवहार किया हो । आपको कोई कितना भी रूपया दे दें उसकी याद नहीं आती है। आपसे कोई कितना भी कोई बड़ा मान दे दें कोई आपको उच्च जगह पहुँचा दें, आपको उसकी उसी वक्त याद आती है जिसने आपको अत्यन्त प्रेम दिया हो । सारे धर्म को अपने अन्दर जितने भी धर्म बसे हैं, उसे प्रेम से जानना चाहिए। धर्म की जो व्याख्यायें हमारी यहाँ जो बनायी गयी है वो इतनी संकुचित है कि प्रेम की जगह उसकी घृणा ही होती है। माने एक ऐसा धर्म बनाया हुआ है, जैसे कि ' एक विधवा स्त्री है, उसको किसी के साथ खाना नहीं खाना चाहिए।' ये कहाँ का धर्म हो सकता है। ये कहीं का भी धर्म नहीं हो सकता है। कोई स्त्री अगर विधवा हो, चाहे पुरुष विधवा हो ये उसके ऊपर उढारा घात है। जब ऐसे ही उसके ऊपर २० जब आप प्रेम बाँटते हैं तो प्रेम बढता ह बाँटते हैं और जब आप घृणा बॉटते हैं। तो घृणा बढ़ती है। बर भ 12'9 १ २१ इतनी बड़ी आफ़त आ गयी है तब एक सहजयोगी को चाहिए कि उसके साथ पूरी तरह से तन्मय होकर के उसकी पूरी मदद करें और उसको एक सांत्वना दें। बजाय इसके कि उसको सतायें, उसको तकलीफ़ दें। ये अधर्म है। किसी भी धर्म के नाम पर अगर अधर्म किया जाए तो वो धर्म नहीं हो सकता है। इसी प्रकार अनेक किसी को शुद्र बना कर के किसी को खराब बता कर के उससे घृणा करने का जो धर्म सीखना है, वो धर्म नहीं है। हमारे सहजयोग में ऐसे धर्म की कोई भी किसी प्रकार की भी व्यवस्था नहीं हो सकती है। जो असली धर्म है वो वही धर्म है जिससे प्रेम उत्पन्न होता है। दूसरे तरह के भी अनेक धर्म हैं जैसे कि हम ये मिठाई नहीं खाएंगे आज, ये उपवास करेंगे आज । जिससे हम दूसरों को तकलीफ दे सकते हैं ऐसे धर्म कभी भी धर्म नहीं हो सकते हैं। तीसरे तरह के ये कि चाहे घर में पैसा हो या ना हो हम मन्दिरों में जाएंगे, हम वहाँ जाकर के पैसा लुटाएंगे। हम वहाँ जाकर के पण्डितों को पैसा देंगे और इन लुटेरों को हम पैसा लुटायेंगे। ये भी कोई धर्म नहीं हो सकता है। अपने घर के बाल बच्चों को, जिनको खाने को नहीं है, अपने बच्चे के तरफ़ जब हमारा ध्यान नहीं है। हम जब अपने घर वालों को देख नहीं सकते, इस तरह का व्यर्थ समय बर्बाद करने वालों का भी धर्म नहीं कहना चाहिए । मैं यहाँ तक कहूँगी कि मनन शक्ति में भी अगर मनुष्य अपना समय बर्बाद कर रहा है और अपने घर वालों को भी भूखा मारे, तो ऐसे मनन से भी अच्छा है कि आदमी मनन न करें। धर्म | का मतलब है कि सबके प्रति प्रेम की पूर्ण व्यवस्था रखना। प्रेमपूर्वक सबके तरफ जागरूक रहना, यही धर्म है और जब तक ये धर्म को आप पाईयेगा नहीं तब तक आप धर्मातीत नहीं हो सकते हैं। धर्मातीत जब मनुष्य हो जाता है तब | वह प्रेमी हो जाता है। उसमें और कुछ बच ही नहीं जाता है। वो जो भी करता है सब प्रेम में ही करता है। जैसे श्रीकृष्ण का संहार, जब वो किसी का संहार भी करते हैं तो वो प्रेम में ही होता है । जब ईसा मसीह ने अपने हाथ में हंटर लेकर लोगों को मारना शुरू कर दिया क्योंकि वो मन्दिरों में बैठकर बाजार कर रहे थे , वो भी प्रेम है। उसकी हर एक चीज़ ही प्रेम हो जाती है और तब आदमी धर्मातीत हो जाता है। उसके लिए कोई अधर्म नहीं बच जाता है सिर्फ प्रेम ही प्रेम रह जाता है। वो जो भी कहता है, जो भी करता है, जो भी बोलता है, जो भी खाता है, जो भी पीता है, सब धर्म में ही करता है और धर्म वही होता है जो कि प्रेम होता है| हमारे सहजयोग में मैं अनेक बार देखती हूँ कि आप मानव हैं और मानव से अति मानव होने के बाद भी आप इस बात को समझते नहीं है कि प्रेम की व्यवस्था सबसे बड़ी व्यवस्था है। प्रेम के प्रति जागरूक होना है। कोई मनुष्य है, वो अगर अपनी पत्नी को मारता है और अगर कोई पत्नी है वो अपने पति को सताती है और वो अगर अपने को बहुत बड़ा सहजयोगी समझती है तो उसे ये समझ लेना चाहिए कि ये महापाप है। किसी को भी सताने की व्यवस्था सहजयोग में नहीं है। किसी को भी मारने की व्यवस्था सहजयोग में नहीं है। आप किसी तरह से भी हाथ फेरे, उसके अन्दर से सिर्फ प्रेम ही की शक्ति बहेगी और प्रेम की शक्ति से हमेशा दसरों का हित ही होगा, अहित नहीं हो सकता है। आप कितनी भी कोशिश करें आप किसी का अहित नहीं कर सकते। हाँ, अगर आप सहजयोग से हट जायें या गिर जायें, आप का पतन हो जाये तो आप जरूर अहित कर सकते हैं। ने धर्म के प्रति, आज तक हर एक धर्मों में भी लोगों बहुत, पूरी तरह से खुलकर इस बात को बताया हुआ है। इसी ने इस बात को बताया है; ऐसा नहीं है। लेकिन मनुष्य हमेशा मिथ्या की ओर दौड़ता है इसलिए धर्म का जो भी विपरीत रूप बन जाता है, उसी को हम मान लेते हैं। जैसे ईसा मसीह ने बताया है कि 'तुमको भूत और प्रेत, इन सब | २२ चीज़ों से काम नहीं लेना चाहिए।' मोहम्मद साहब ने बताया है कि 'आपको शराब आदि चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए।' राजा जनक ने बताया है कि 'आपको परमेश्वर में लीन, परमेश्वर के सामने हमेशा हर एक इन्सान को एक ही दृष्टि से देखना चाहिए।' नानक ने बताया है कि 'सारे संसार में, हर एक मनुष्य में परमात्मा का वास है।' उन्होंने भी मादक पदार्थ को एकदम मना किया है, लेकिन उनके धर्म को जो मानने वाले हैं और अपने को जो बहुत बड़े धार्मिक कहलाते हैं और कहते हैं कि हम बड़े भारी नानक के, बड़े-भारी सपोर्टर्स हैं, वो लोग आज क्या कर रहे हैं? क्राइस्ट के जो सपोर्टर्स हैं वो लोग आज क्या कर रहे हैं? इसामसीह ने सबसे बड़ी चीज़ बतायी थी कि मनुष्य को अबोध-बच्चे जैसा होना चाहिए। खास कर सेक्स के मामले में तो ईसामसीह ने बताया था कि मनुष्य को बहुत ही celibate बहुत ही अत्यन्त, व्यवस्थित, विवाहित रूप से ही सेक्स का इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन उनके शिष्यों ने आज क्या हालत कर रखी है। उन्होंने क्या व्यवस्था करके रखी है। वो किस तरह चल रहे हैं, उनको देखिये तो आश्चर्य होता है कि क्या ये ईसामसीह के ही ईसाई है? हिन्दू धर्म की एक बहुत बड़ी व्याख्या है, बहुत बड़ी बात कही गयी है कि सबके अन्दर एक ही आत्मा का वास है और हम अनेक बार जन्म संसार में लेते हैं, अनेक बार इसको खोजते हैं इसलिए एक ही जन्म में इन सब चीज़ को खोज ड़राला है। जब हम अनेक बार जन्म लेते हैं तब हम ऐसे कैसे कह सकते हैं कि कोई मुसलमान है, कोई हिन्दु है। हम ऐसे कैसे कह सकते हैं कि कोई निम्न है और कोई उच्च है। अनेक बार मैं आपको ये समझाती हूँ और आप भी इस बात को समझ लें कि प्रेम में जब तक आप पूरी तरह से लीन नहीं होंगे, सहजयोग इस संसार में | बैठने वाला नहीं है। जब आप प्रेममय हो जाएंगे एक प्रेम का फूल अगर कहीं खिल जायें तो आने लगेगी । आप भी अपने जिन्दगी में सोचें, एक इन्सान सारे संसार में उसकी खुशबू जिसको आपने पाया था कभी, उसने कितना आपको प्रेम दिया था? ऐसा एक भी आदमी कहीं हो तो आपको आश्चर्य होगा कि उसके पीछे हजारों घूमते हैं और उससे प्रेम की याचना करते हैं । उसको मानते हैं, लेकिन वो लोग जो कि झूठ बोलकर के, प्रेम का दम भर कर लोगों को लूटते हैं, उनको खसोटते हैं, उनसे झूठ बोलते हैं, ऐसे लोगों को मनुष्य बड़ी जल्दी छोड़ देता है। प्रेम ऐसी चीज़ है जो हृदय तक पहुँचती है और उसी की चाव सबसे ज़्यादा होती है मनुष्य को अबोध-बच्चे और यही परमात्मा का सबसे बड़ा धर्म है। पर परमेश्वर का कोई सा भी धर्म हो या अगर जैसा उसका कोई तत्व हो, तो वो सिर्फ प्रेम है। आप अपने-अपने प्रेम तत्व पर थोड़ा सा मनन करें । सब लोग अपने प्रेम तत्व की ओर देखें कि हमने कहाँ तक प्रेम किया हआ है। हमें संसार में कितने लोगों से प्रेम है! होना चाहिए। अनन्त आशीर्वाद! २३ ा द ०थ हुि मेरे चरण कमलों की मालिश करते हैं तो आपको अच्छा लगता है, OIe मुझे नहीं आप मेरे हाथों की मालिश करते हैं तो आपको अच्छा लगता है; अपनी भौतिक कुण्ठाओं पर नियन्त्रण प्राप्त करना, पूजा का सार है। पूजा महत्त्वपूर्ण है परन्तु अपनी भौतिक कुण्ठाओं पर नियन्त्रण किस प्रकार प्राप्त किया जाए ? अपने लिए जब हमें कोई भौतिक पदार्थ की इच्छा होती है तो हमें ये जान लेना चाहिए कि ये पदार्थ परमात्मा ने हमें प्रदान किया है। हर चीज़ परमात्मा की है। तो हम यदि परमात्मा को पुष्प अर्पण करते हैं तो पुष्प परमात्मा का ही सृजन है, हम क्या अर्पण कर रहे हैं? परमात्मा को हम दीप दिखाते हैं, या परमात्मा की आरती करते हैं तो क्या? ये प्रकाश भी तो परमात्मा का ही है! हम क्या करते हैं? परन्तु परमात्मा को प्रकाश दिखाने से हम अपने अन्दर के प्रकाश की करते हैं। हमारे अन्दर प्रकाश-तत्व ज्योतिर्मय हो उठता है। प्रकाश तत्व यहाँ पूजा आज्ञा तक है। जब आप आरती करते हैं या परमात्मा के सम्मुख दीपक जलाते हैं, जब आप परमात्मा को प्रकाश दिखाते हैं तो आपके अन्दर प्रकाश तत्व ज्योतिर्मय हो उठता है। अब आप पुष्प अर्पण करते हैं तो मूलाधार ज्योतिर्मय हो जाता है। जब आप मधु अर्पण करते हैं तब आपका चित्त प्रबुद्ध होता है। तो क्यों हम ये सब परमात्मा को अर्पण करते हैं? आखिरकार परमात्मा को तो कुछ भी नहीं चाहिए। परन्तु परमात्मा भोक्ता हैं । आप भोक्ता नहीं हैं। आप भोग नहीं सकते। आपके अन्दर परमात्मा भोक्ता हैं। जब परमात्मा वहाँ पर होते हैं तो वे आनन्द उठाते हैं, अर्थात् आत्मा। अत: आपकी आत्मा को जो चीज़ अच्छी लगती है उसका उपयोग पूजा-अर्चना करने के लिए किया जाता है। अब आप मुझे अक्षत भेंट करते हैं, इन सभी चीज़़ों की खोज की गई है कि आप देवी को अक्षत भेंट करें, अक्षत उनकी झोली में अर्पण करें। अब इन थोड़े से चावलों का देवी के लिए क्या महत्व है? अक्षत देवी की झोली में डालने से आपके अन्दर भोजन प्राप्त करने की सन्तुष्टि या जो भोजन आपको सन्तुष्टि प्रदान करता है वह सन्तुष्टि, ज्योतिर्मय हो उठती है। परन्तु इसका अर्थ ये भी नहीं है कि आप मेरे ऊपर इन चीज़ों की वर्षा करते रहें। इसका अर्थ ये नहीं है। मैं ये कहने का प्रयत्न कर रही हूँ कि ये सब अत्यन्त गरिमा और सूझ-बूझ पूर्वक करें। आप मुझे अक्षत भेंट करते हैं। लोगों को ये बात समझ नहीं आती कि परमात्मा को चावल क्यों भेंट किए जाते हैं? आखिरकार उन्हें ताड़पत्र क्यों भेंट करने चाहिए? परमात्मा आपके लिए क्या करने वाले हैं? ईसामसीह यदि परमात्मा पुत्र हैं तो उन्हें ताड़पत्र या तेल २५ अर्पण करने का क्या लाभ है? या उनके चरणों की तेल मालिश का क्या लाभ है? ये सब इसलिए है कि आपको लाभ प्राप्त हो। सहजयोग में ये प्रमाणित हो गया है कि जब आप मेरे चरण कमलों की मालिश करते हैं तो आपको अच्छा लगता है, मुझे नहीं। आप मेरे हाथों की मालिश करते हैं तो आपको अच्छा लगता है; आप मेरे चरणों में गिरते हैं तो आप बेहतर महसूस करते हैं। (एक सहजयोगिनी की तरफ इशारा करते हुए) ये महान है। तुम क्या कर रही हो? आह!.....प्रत्यावर्तन विज्ञान.....बड़ा नाम है.... प्रत्यावर्तन विज्ञान.... और उसे पैरों आदि का ज्ञान है....। एक दिन उसने कहा, 'श्री माताजी में आकर आपके चरण कमलों की मालिश करना चाहती हूँ। बजाय इसके कि मुझे आराम मिलता, उसे आराम मिलने लगा , जितनी अधिक वो मालिश कर रही थी उतना ही अधिक आराम उसे मिल रहा था। अत: जब आप परमात्मा के लिए कुछ करते हैं तो आपको आशीर्वाद प्राप्त होते हैं, आप आशीर्वादित होते हैं। आपको जो भी समस्या हो, समाधान के लिए वह आप परमात्मा को दे दें । जिनसे आपको सन्तुष्टि मिलती है वह भी परमात्मा पर छोड़ दें। आपको सन्तुष्टि मिल जाएगी। ये फूल जब आप मुझे अर्पण करते हैं-तो ये आपको दो चीज़ें प्रदान करते हैं - (बेहतर) स्वाधिष्ठान और मूलाधार। इसलिए पुष्प अर्पण करना महत्वपूर्ण है। ये अच्छा स्वाधिष्ठान प्रदान करते हैं। फूल यदि सुन्दर हों तो ये स्वाधिष्ठान को बेहतर बनाते हैं। अर्पण किए जाने वाले पुष्प यदि सुरभित हों तो आपका मूलाधार ठीक होता है। कहने से अभिप्राय ये है कि फूलों का भी कोई अन्त नहीं है। परन्तु इसके विषय में सोचें कि आप अपने चक्रों को सुधारने के लिए ऐसा कर रहे हैं। फिर अन्य चीज़ें जो पूजा में उपयोग होती हैं जैसे घी का उपयोग होता है, यह....श्रीकृष्ण को घी और मक्खन बहुत पसन्द है। जब आप मेरे चरणों पर घी की मालिश करते हैं तो आपकी विशुद्धि बेहतर होती है, ये बात आप जानते हैं (आपकी विशुद्धि) मेरी नहीं। मुझे कोई समस्या नहीं है। मेरी एकमात्र समस्या ये है कि आप मेरे अन्दर हैं। जब आपको समस्या होती है तो मुझे समस्या होती है क्योंकि इन चैतन्य- लहरियों ने आपकी ओर जाना होता है, मैं 'प्रतिकारक' के रूप में इन चैतन्य-लहरियों को यहाँ तैयार करती हूँ और उन्हें प्रवाहित होना होता है। समझने के लिए यह अति सूक्ष्म बात है। स्थूल क्योंकि पहले आप अपने चक्रों को ज्योतिर्मय करते हैं, चक्र ज्योतिर्मय होने पर आपके से आत्मा की ओर जाना, ये वो चीज़ है जिससे आप चलते हैं देवी-देवता प्रसन्न होते हैं, और जब देवी- देवता प्रसन्न होते हैं तो कुण्डलिनी को ऊपर उठने का रास्ता प्राप्त होता है। मार्ग बनने पर कुण्डलिनी ऊपर उठती है और आपके चित्त का समन्वय आत्मा से होने लगता है। एक-एक कदम आप स्थूल पदार्थ से सूक्ष्म पदार्थ की ओर बढ़ते हैं, सूक्ष्म पदार्थ से अपने चक्रों की ओर, चक्रों से अपने देवी- देवताओं की ओर तथा देवी- देवताओं से आत्मा की ओर। प.पू.श्री माताजी, लन्दन, २७.९.१९८० २६ साबूदाना वड़ा ७ ह र क सामग्री :- 60 ग्राम साबूदाना, 200 ग्राम उबले आलू कद्दूकस हुए, 2 बड़े चम्मच बारीक कटा हुआ हरा धनिया, 1 हरी मिर्च बारीक कटी हुई (इच्छानुसार) 1 छोटा चम्मच जीरा पाऊडर, '/2 छोटा चम्मच गर्म मसाला, » छोटा चम्मच काली मिर्च पाऊडर, 8 करी पत्ता कटा हुआ नमक स्वादानुसार, तेल तलने के लिए विधि :- 1) साबूदाना पानी में धोकर छानें। थोड़ा पानी रहने दें ताकि साबूदाना गीला रहे। दो घण्टे तक छोड़ दें। 2) कटोरे में तेल को छोडकर साबूदाना एवं सारे पदार्थ मिलाएं और चिकना सान लें। 3) इसे 8-10 भागों में बाटें और गोल, चपटी और एक सें. मी. मोटी पैटीज़ बनाएं। सुनहरा होने तक तलें या घी में गहरा तलें। चटनी या कैचप के साथ गर्म परोसें। (श्री माताजी द्वारा लिखित ' Cooking with Love' से लिया गया है।) २७ पलवाल Eव॥ न ८४ िनि न रज बा परारतत पक आज़ा चक्र खराब होने का कारण..... अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब होता है वह देखते हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य कारण आँखें हैं। को अपनी आँखों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि उनका बड़ा महत्व है। मनुष्य अनाधिकृत गुरु के सामने झुकने अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है। इसी कारण जीसस ख्रिस्त ने अपना माथा चाहे जिस आदमी या स्थान के सामने झुकाने को मना किया है। ऐसा करने से हमने जो कुछ पाया है वह सब नष्ट हो जाता है। केवल परमेश्वरी अवतार के आगे ही झुकाना ठीक नहीं है । किसी अपना माथा टेकना चाहिए। दुसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे को गलत स्थान के सम्मुख भी अपना माथा नहीं झुकाना चाहिए। ये बात बहुत ही महत्वपूर्ण है। आपने अपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया तो तुरन्त आपका आज्ञा चक्र खराब होगा। इसका कारण है लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरु को मानते हैं। आँखों के अनेक रोग इसी कारण से होते हैं। ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा अच्छे पवित्र धर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए। अपवित्र साहित्य बिल्कुल नहीं पढ़ना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं, 'इसमें क्या हुआ? हमारा तो काम ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने पड़ते हैं जो पूर्णतः सही नहीं हैं।' परन्तु ऐसे अपवित्र कार्यों के कारण आँखें खराब हो जाती हैं। मेरी ये समझ में नहीं आता कि जो बातें खराब हैं वह मनुष्य क्यों करता है? किसी अपवित्र व गन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो सकता है। श्री ख्रिस्त ने बहुत ही जोर से कहा | था कि, आप व्यभिचार मत कीजिए । परन्तु मैं आपसे कहती हूँ कि आपकी नजर भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिए । उन्होंने बलपूर्वक कहा था कि आपकी नज़र अपवित्र होगी तो आपको आँखों की तकलीफें होंगी। इसका मतलब ये नहीं कि अगर आप चश्मा पहनते हैं तो आप गलत व्यक्ति हैं। किसी एक उम्र के बाद चश्मा लगाना पड़ता है। ये जीवन की आवश्यकता है। परन्तु आँखें खराब होती हैं अपनी नज़र स्थिर न रखने के कारण। बहुत लोगों का चित्त बार-बार इधर-उधर दौड़ता रहता है। ऐसे लोगों को ये समझ नहीं होती है कि अपनी आँखें इस प्रकार इधर -उधर घुमाने के कारण ये खराब होती हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का दूसरा कारण मनुष्य की कार्य पद्धति। समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति कर्मी हैं। अच्छे काम करते हैं, कोई भी बुरा काम नहीं करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से, फिर वह अति है पढ़ना हो, अति सिलाई हो या अति अध्ययन हो या अति विचारशीलता हो। इसका कारण है कि जिस समय आप अति कार्य करते हैं उस समय आप परमात्मा को भूल जाते हैं। उस समय अपने में ईश्वर प्रणिधान स्थित नहीं होता। मुंबई, भारत, २७.०९.१९७९ २८ किसी एक उम्र काभ के बाद चश्मा लगाना पड़ता है। ১ अमावस्या और पूर्णमासी IR की रात को जल्दी सो जाएं..... आपने पूछा था कि पाने के बाद क्या करना है? पाने के बाद देना ही होता है, यह बहुत परम आवश्यक चीज़ है कि पाने के बाद देना ही होगा। नहीं तो पाने का कोई अर्थ ही नहीं । और देने के वक्त में एक बात सिर्फ एक छोटी-सी बात याद रखनी है कि जिस शरीर से, जिस मन से, जिस बुद्धि से, माने इस पूरे व्यक्तित्व से, आप इतनी जो अनुपम चीज़ दे रहे हैं, वो स्वयं भी बहुत सुन्दर होनी चाहिए। आपका शरीर स्वच्छ होना चाहिए | शरीर के अन्दर कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए। अगर आपको कोई बीमारी है-बहुत से सहजयोगियों को ऐसा भी होगा कि उनके अन्दर कोई शारीरिक बीमारी है तो सहजयोग से पहले तो वो कहते होंगे कि 'साहब, मुझे यह बीमारी ठीक होनी चाहिए, वो बीमारी ठीक होनी चाहिए,' लेकिन सहजयोग के बाद में उनका चित्त बीमारी की ओर नहीं रहेगा । जो भी हो 'अरे हो जाएगा ठीक, चलो बस ठीक है' ये बात भी गलत है, आपको कोई सी भी जरा सी भी तकलीफ हो जाए आप फौरन वहाँ हाथ रखें, अपनी तबियत ठीक कर सकते हैं। अपना शारीरिक पक्ष बहुत साफ रख सकते हैं। बहुत ज्यादा उसमें कुछ करने की जरूरत नहीं। स्नान करना है, स्वच्छता से रहना है और अपना शारीरिक पक्ष ठीक रखना है। जो भी हो आप लोगों के लिए मैंने एक इलाज बताया है। जैसे मैंने बताया है आपमें से हर एक प्रात: उठने के पश्चात् स्नानागार में जाकर स्वयं को स्वच्छ करें। कम से कम पाँच मिनट के लिए पानी पैर क्रिया करना भी सहजयोगियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है। आप चाहे जितने उन्नत हों, चाहे आपको बिलकुल पकड़ ना आती हो, फिर भी कम से कम पाँच मिनट के लिए आप पानी पैर क्रिया अवश्य करें। कभी-कभी तो मैं स्वयं भी यह क्रिया करती हूँ (यद्यपि मेरे लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं है । ) ताकि सहजयोगी भी इस क्रिया को अपना लें। यह आदत बहुत ही अच्छी है। एक पाँच मिनट पानी में सब सहजयोगियों को बैठना चाहिए। फोटो के समुख दीप जलाएँ, कुमकुम लगाएं, अपने दोनों हाथ फोटो की ओर खोल कर, दोनों पैर नमक वाले पानी में रखकर सब सहजयोगियों को बैठना चाहिए । आपकी आधी से ज़्यादा समस्याएं हल हो जाएंगी, अगर आप यह करें। चाहे कुछ हो जाए, आपके लिए पाँच मिनट कुछ मुश्किल नहीं हैं। सोने से पहले पानी में सबको बैठना चाहिए। इससे आपकी आधी से ज़्यादा समस्याएं ठीक हो जाएंगी। हमारे अन्दर स्वयं ही दुष्ट प्रवृत्तियाँ हैं। हमारे ही अन्दर स्वयं बहत सी अंधकारमय प्रवृत्तियाँ हैं जिसे नकारात्मकता कहते हैं। पूरी ताकत से वे हमें प्रभावित करने का प्रयत्न करती हैं। उनके नियन्त्रण में रहना मतलब शैतान के नियन्त्रण में रहना है। आप चाहें तो शैतान बन सकते हैं और आप चाहें तो परमात्मा बन सकते हैं। शैतान अगर बनना है तो बात दूसरी है। उसके लिये मैं गुरु नहीं हूँ। भगवान बनना है तो उसके लिये मैं गुरु हूँ। लेकिन शैतान बनने से स्वयं को बचाएँ। ३१ पहली चीज़ है कि अमावस्या की रात या पूर्णिमा की रात दायें और बायें पक्ष को प्रभावित होने का भय होता है। दो दिन विशेष कर अमावस्या की रात्रि को और पूर्णिमा की रात्रि को बहुत जल्दी सो जाना चाहिए। भोजन करके, फोटो के सामने नतमस्तक होकर, ध्यान करके, चित्त को सहस्रार पर रखें तथा बन्धन लेकर सो जाएं। इसका अर्थ यह है कि जिस क्षण आप अपने चित्त को सहस्रार पर ले जाते हैं उसी क्षण आप अचेतन में चले जाते हैं। उस स्थिति में स्वयं को बन्धन दें तो आपको सुरक्षा प्राप्त हो जाती है। विशेष रूप से इन दो रातों को। और जिस दिन अमावस्या की रात्रि हो उस दिन, विशेष कर अमावस्या के दिन, आपको शिवजी का ध्यान करना चाहिए। शिवजी का ध्यान करके, स्वयं को उसके प्रति समर्पित करके सोना चाहिए, और पूर्णिमा के दिन आपको श्री रामचन्द्रजी का ध्यान करना चाहिए। उनके ऊपर अपनी नैया छोड़कर। है सृजनात्मकता। सारी सृजनात्मक शक्तियाँ पूरी तरह से उनको समर्पित रामचन्द्रजी का मतलब कर दें । इस तरह से इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चाहिए। हालांकि, शुक्ल पक्ष सप्तमी और नवमी को विशेषकर आपके ऊपर हमारा आशीव्वाद रहता है। सप्तमी और नवमी के दिन इस बात का ध्यान रखना कि इन दो दिनों मे आपको मेरा विशेष आशीर्वाद मिलता है। सप्तमी और नवमी के दिन जरूर कोई ऐसा आयोजन करना जिसमें आप ध्यान अच्छी तरह से करें। किसी ऐसे व्यक्ति से यदि आपका सामना हो जिसे आज्ञा की पकड़ हो तो तुरन्त बन्धन ले लें चाहे यह बन्धन चित्त से ही क्यों न लेना पड़े। आज्ञा की पकड़ वाले व्यक्ति से वाद-विवाद न करें। ऐसा करना मूर्खता है। किसी भूत से क्या आप वाद-विवाद कर सकते हैं ? जिसका विशुद्धि चक्र पकड़ा है, उससे भी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। सहस्रार से पकड़े हुए व्यक्ति के पास कभी न जाएं, उससे कोई सम्बन्ध न रखें। उसे बताएँ कि पहले अपने सहस्रार को ठीक करो। उसे ये बताने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि 'आपका सहस्रार पकड़ा हुआ है इसे ठीक कर दें।' सहस्रार स्वच्छ रखा जाना चाहिए। किसी को यदि सहस्रार पर पकड़ आने लगे तो उसे चाहिए कि तुरन्त अन्य सहजयोगियों से प्रार्थना करें कि 'कुछ करें और मेरा सहस्रार ठीक कर दें।' सहस्रार की पकड़ वाला व्यक्ति यदि आप से बात करता है, तो उसे बता दिया जाना चाहिए कि वह आपका दुश्मन है, शत्रु है। उस आदमी से बिल्कुल उस वक्त तक बात नहीं की जानी चाहिए जब तक उसका सहस्रार पकड़ा है। अब रही हृदय चक्र की बात। जिस मनुष्य का हृदय चक्र पकड़ा है उसकी सहायता करें। बैठकर जहाँ तक सम्भव हो उसके हृदय को बन्धन दें। श्री माताजी के फोटोग्राफ के सम्मुख उसका एक हाथ हृदय पर रखवाएं। हृदय चक्र के विषय में आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। कभी भी व्यक्ति को हृदय चक्र की समस्या हो सकती है। अपने हृदय चक्र को अवश्य शुद्ध परन्तु बहुत से लोगों में हृदय ही नहीं होता। वे इतने शुष्क व्यक्तित्व होते हैं। चाहते हुए भी आप ऐसे लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकते। फिर भी यदि वे आपसे प्रार्थना करें तो उन्हें सलाह दें कि हठयोग को छोड़ दें, भिन्न कार्यों के बोझ से स्वयं को मुक्त करें, अन्य लोगों से प्रेम करना सीखें। यदि वे एकदम से किसी मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकते तो पहले पालतु पशुओं से प्रेम करें। आपको चाहिए कि सभी से प्रेम करें। भारतीय विद्याभवन, बम्बई, २९.५.१९७६ ३२ ि कपी बी बाम गा आपको अपना सिर ढकने का प्रयत्न करना चाहिए। सहस्रार की देखभाल करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप सर्दियों में अपना सिर ढकें। सर्दियों में सिर ढकना अच्छा है ताकि मस्तिष्क ठण्ड से ना जमे, क्योंकि मस्तिष्क भी मेधा (फैट) का बना होता है। और फिर मस्तिष्क को बहत ज्यादा गर्मी से भी बचाना चाहिए। अपने मस्तिष्क को ठीक रखने के लिए, आपको हर समय धूप में ही नहीं बैठे रहना चाहिए, जैसा कि कुछ पाश्चात्य लोग करते हैं। उससे आपका मस्तिष्क पिघल जाता है और आप एक सनकी मनुष्य बन जाते हैं, जो इस बात का संकेत है कि आपके कुछ समय बाद पागल होने की सम्भावना है। अगर आप धूप में भी बैठे तो अपना सिर ढके रखें। सिर ढकना बहत आवश्यक है। लेकिन सिर को कभी - कभी ढकना चाहिए, हमेशा नहीं। क्योंकि अगर आप हमेशा ही सिर पर एक भारी पट्टा बांधे रहें तो रक्त का संचार ठीक प्रकार से नहीं होगा और आपके रक्त संचार में तकलीफ होगी। अत: केवल कभी-कभी (हमेशा नहीं) सिर को सूर्य अथवा चन्द्रमा के प्रकाश में खुला रखना उचित है। यदि आप चाँद के प्रकाश में अत्याधिक बैठे तो पागल खाने, पहुँच जाएंगे। मैं जो भी कुछ बताती हूँ आपको समझना चाहिए कि सहजयोग में किसी भी चीज़ में 'अति' न करें । दिल्ली, ४.२.१९८३ ३३ XX नव आगमन Type |Lang| DVD Sp/Pu VCD Place ACD ACS Date Title 13-Jul-86 Shri Kartikeya Puja Munich E 206 441* Schwetzingen Sp/Pu 31-Aug-90 Shri Hanumana Puja: Shri Hanuman, E 212 442* Electromagnetic Power 10-Dec-90|सार्वजनिक कार्यक्रम Sp 214 Loni 443* 16-Feb-91 M ahashivaratri Puja: 4 nadis of the heart, the 4th |Chianciano Sp/Pu E 88 444* state 6-Jun-04 Shri Adi Shakti Puja Cabella Sp/Pu E 123* 007 17-M ar-85 Birthday Puja M elbourne Sp E 202 445* 6-M ay-89 Sahastrar Puja : Jump into the Ocean of Love - Sorrento Sp/Pu E 039 288* 039* Part I & II 11-Dec-90|सार्वजनिक कार्यक्रम Shriramp ur Sp 215 446* 31-M ay-90 Public Program San Diego PP E 289* 447* 26-Aug-90|Shri Ganesha Puja Sp 211 Lanersbach E 064* 064 15-Dec-91 Shri Ganesha Puja Shere E/M Sp/Pu 290* 448* 10-Nov-96|Diwali Puja part-I & II Sp/Pu Lisbon 291* 150* 150 23-Jun-02|Shri Adishakti Puja - Your job is to create more Cabella Sp/Pu E 292* 237* 237 Sahaja Yogis 25-Dec-02 Christmas Puja: Take character of Christ as model Ganpatipule Sp/Pu E 046* 046 281 281* for y ou 10-Dec-80|सेमिनार Mumbai SP 364* M 364 भाग २ व ३ 10-Jun-82|Public Program- When are we going to grow Hampstead 399 PP 293* 11-Jul-82|Public Program- Becoming the knowledge Derby PP 431 294* 12-Jul-82|Shri Bhoomi Devi Puja PU Derby 295* San Diego 31-May-85 Shri Devi Puja 27-Dec-85 Puja at Bramhapuri-Knowledge of Roots PU E 449* 203 Bramhap uri E/H/M PU 450* 204 22-Feb-86|धर्म आचरण Delhi PP Н 84* 84 1-Nov-86|दिवाली H/M PU 451* Pune 207 ( श्री लक्ष्मी पूजा) पूजा 20-Dec-89|सार्वजनिक कार्यक्रम Shriramp ur 332* PP 332 26-Dec-89|सार्वजनिक कार्यक्रम Pune PP 333 333* 21-Jun-98|Shri Adishakti Puja Cabella PU 296* 175 175* 23-Apr-00 Easter Puja : Purity is the basis of your Istanbul E 207* 207 PU 297* existence Guided Meditation by Shri Mataji Gen E/M 298* Title |A rtis t ACD ACS Song List Kolkatta Collectivity 150* M angal Dhw ani Nirmal Sangeet Sarita Nirmal Dham 151* Maa Ke Charno Mein Meena Subedi 152* Nirmala Ge e th am Sangeetha Ram Prasad 153* Sw eden Children Collectivity Little G anesha 154 * प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in MI MI आप स्वयं मंगवा सकते है भारत के किसी भी कोने से !!! आप अपने सहज साहित्य को उदा. किताबे, ऑडिओ, विडीओ कैसेट और सीडीज (प्रवचन और संगीत ), मैगज़िन्स, पेंडंट इ.नीचे दिये हुए किसी भी तरिके से मंगवा सकते हैं। १) आदेश (ऑर्डर) का पहला विधि + आप अपने ऑडिओ-विडीओ मटेरियल या किताबें, फोटोग्राफ्स इ . का चयन एनआयटीएल कैटलॉगद्वारा कर सकते हैं, जो www.nitl.co.in इस वेबसाइट पर हैं। ये एनआयटीएल के सभी प्रतिनिधींओं के पास भी उपलब्ध हैं। आप इस कैटलॉग को ई-मेल : sale(@nitl.co.in द्वारा भी मंगवा सकते हैं। * * आप अपना ऑर्डर एनआयटीएल तक फोन, ई-मेल, फैक्स द्वारा पहुँचा सकते हैं या एनआयटीएल के अधिकृत प्रतिनिधींओं से संपर्क कर सकते हैं। संपर्क : निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा.लि., प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरूड, पुणे ४११०३८. फोन नं. ०२०-२५२८६५३७, २५२८६०३२. फैक्स : +९१-२०-२५२८६७२२, ई-मेल : sale@nitl.co.in, मोबाईल नं.९७६३७४१०२७, ९७६७५८३८०८ २) आदेश (ऑर्डर) का दूसरा विधि आप हमारी वेबसाइट www.nitl.co.in पर ऑन-लाइन रजिस्ट्रेशन कर के भी ऑर्डर दे सकते हैं। इस साईट के शॉपिंग डेमो के लिंक पर आपको अधिक जानकारी मिल सकती है। आप अपनी रकम क्रेडिट कार्ड द्वारा ऑन-लाइन भर सकते हैं या एनआयटीएल के ऑन-लाइन शॉपिंग के माध्यम से मटेरियल का चयन कर के एनआयटीएल में उस रकम के डीडी या चेक नं. के बारे में सूचित कर के रकम अदा कर सकते हैं। (जानकारी के लिए शॉपिंग डेमो पर देखें) आप अपनी रकम चेक या कॅश द्वारा आपके नजदिकी एक्सिस बैंक में भर सकते हैं। आपका ऑर्डर मिलने के बाद उस आपको ई-मेलद्वारा सूचित किया जाएगा । पैसे कैसे अदा करें? आप अपनी रकम को एनआयटीएल के एक्सिस बँक के सेविंग अकाऊंट नं. १०४०१०१००१८५५४ पर एक्सिस बैंक के किसी भी ब्रैंच द्वारा + भेज सकते हैं या उस रकम का डी.डी. (Payable at Pune) बनाकर ऊपर दिये हुए पते पर भेज सकते हैं। सेविंग अकौंट में रकम जमा करने के बाद हमें इ-मेल या ऊपर दिये हुए फोन नंबर्स पर सुचित करें। रकम बैंक में भरने के बाद आपने आदेश (ऑर्डर) की गयी चीज़ों को सीधे अपने घर पाईये डिलीव्हरी चार्जेस + डिलीव्हरी चार्जेस वजन और दूरी (कि.मी.) पर आधारित होंगे। जिस ऑर्डर की किमत रु.१०,००० या उससे अधिक होगी तो उस पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगाया जाएगा । + ३. वर्ष २०१० में उपलब्ध मैगज़िन्स की जानकारी मैगज़िन्स कीमत (रु.) पूरे साल की मैगज़िन्स की संख्या चैतन्य लहरी (हिंदी) ६ अंक ३६० चैतन्य लहरी (मराठी) ६ अंक ३०० डिव्हाईन कूल ब्रीज (इंग्लिश) युवादृष्टी (मिक्स) (इन सभी मैगज़िन्स की माँग आप ऊपर दी गई किसी भी विधि से कर सकते हैं। ) * आपसे विनती है कि उपरोक्त मटैरियल को आप एनआयटीएल या उनके अधिकृत प्रतिनिधींओं द्वारा मँगवायें । ६ अंक ३६० ४ अंक २०० एनआयटीएल में पब्लिश हुए किसी भी किताब या रेकॉर्डिंग की पुनर्निर्मिती या किसी भी प्रकार से रूपांतरण करने के लिए एनआयटीएल की परमिशन लेनी पडेगी। कोई भी व्यक्ति पब्लिशिंग या रेकॉर्डिंग के बारे में अनधिकृत कृत्य करते हुए पाये जाने पर सजा के या नुकसानभरपाई के हकदार होंगे। /ा. है "जैसे आप मुझे रखेंगी, मैं वैसे ही रहँगा।" और आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि सब कुछ अच्छा हो गया है, ठीक हो गया है। कभी-कभी आप पाते हैं कि आप कहीं पहुँचना चाहते थे, नहीं पहुँच पाये, कोई भजन लिखना चाहते थे-नहीं लिख पाये, कोई वस्तु पाना चाहते थे-आपको नहीं मिली, यह सब आपको परमात्मा की इच्छा समझकर स्वीकार करना चाहिए । नई दिल्ली, १९७६ ---------------------- 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी जनवरी-फरवरी २०१० हिन्दी ० ए म ा श्री %23 ४ ॐ %23 रु 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-1.txt श्री माताजी का नववर्ष का सन्देश! नववर्ष की शुरुआत हुई है औट इस महत्वपूर्ण थुभ अवसर पर दुनिया भर के मेरे बच्चों को मेरा अनन्त आशीर्वाद ! जैसे कि हम सब जानते हैं दैनिक समाचार द्वारा कि दुनिया खतरे में हैं। हर तटफ द्वेष और हिंसा फैली हुई है। दुनियाभट को सहजयोग की स्नेहमयी और प्रेम के सन्देश की आवश्यकता है। आप सब से मेरी विनती है वास कर के दुनियाभर के नॅशनल सहजयोग के लीडर और को- ऑर्डिनेटर्स से कि आप सहजयोग की प्रेममयी और स्नेहमयी सन्देश को लोगों तक पहुँचाने में आप अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दें, इसे आप न केवल अपने देशों में करें बल्कि सबसे महत्वपूर्ण है कि इसे आप दूसटे पड़ोरसी देशों में भी सहजयोगियों की छोटी सी टोली भेज कर सहजयोग के प्रेममयी, स्नेहमयी सन्देश का प्रचार कटवायें। मैं आप सबको नव वर्ष की शुभकामनायें देती हूँ और आपको सहजयोग के सन्देश के प्रचार-प्रसार में सफलता प्रदान करती हूँ। - श्री माताजी निर्मला देवी 3 जनवरी २०१० 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-2.txt इस अंक में सब लोग मन में प्रतिज्ञा करें - ४ सहजयोग के लिए क्या किया है? - ९ प्रेम- धर्म - १४ और अन्य श्री माताजी द्वारा दिये गये सवालों के जवाब : १२-१३ चरण कमलों की मालिश - २४ साबुदाना वडा - २७ आजा चक्र - २८ अमावस्या और पूर्णमासी की रात...... - ३० आपको अपना सिर ढक का प्रयत्न करना चाहिंए - ३३ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-3.txt सब लोग मन में ा४ प्रतिज्ञा करें र च. मं १-१-१९९१ ४ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-4.txt सब लोग मन में प्रतिज्ञा करें। आज हम लोग बम्बई के पास ही में ये पूजा करने वाले हैं। बम्बई का वास्तविक नाम मुम्बई था। इसमें तीन शब्द आते हैं-मु-अम्बा और 'आई'। मराठी भाषा में माँ को 'आई' ही कहते हैं। वेदों में भी आदिशक्ति को 'ई' कहा गया है । अतः आदिशक्ति का प्रतिबिम्ब ही 'आई' है। तो मुम्बई का पहला अक्षर 'म' माँ शब्द से आया है, और अम्बा को आप जानते हैं कि वो साक्षात कुण्डलिनी है। तो ये त्रिगुणात्मिका-तीन शब्द -हैं। बम्बई में, जैसा कि आप जानते हैं, महालक्ष्मी, महासरस्वती, महाकाली तीनों का एक सुन्दर मन्दिर है जहाँ पर ये तीन देवियाँ पृथ्वी से निकलती है। यद्यपि लोग यहाँ पर बहुत से अनुचित तरीकों का उपयोग करते हैं फिर भी ये तीनों देवियाँ यहाँ जागृत है। अत: बम्बई वालों को विशेष रूप से समझना चाहिए कि ऐसी तीनों ही मूर्तियाँ और कहीं नहीं पाई जातीं। वैसे तो आप जानते ही होंगे कि में महासरस्वती है, माहुरगढ़ तुलजापुर में भवानी (महाकाली) हैं, और कोल्हापुर में महालक्ष्मी और वरणी में अर्धमात्रा जो है उसे हम आदिशक्ति कहते हैं। लेकिन बम्बई में तीनों ही मूर्तियाँ जागृत हैं। यहाँ सबसे ज्यादा आदिशक्ति मेहनत होती है और चैतन्य सबसे ज्यादा कार्य करता है। इसका कारण कभी-कभी यह भी होता है की कि ऐसी जगहों में कुछ न कुछ त्रुटियाँ होती हैं जिन्हें नष्ट करने के लिए ऐसी मूर्तियाँ वहाँ प्रकट होती हैं । प्रतिबिम्ब उदाहरणतया अरब देशों में जोरास्टर ने पाँच बार जन्म लिया और उसके बाद अनेक ही 'आई' है । आदि गुरुओं ने वहाँ जन्म लिया-अब्राहम, मोज़ज़ और अन्त में मोहम्मद साहिब ने भी वहाँ जन्म लिया क्योंकि वहाँ बहुत जरूरत थी इसलिए ये जन्म हुए और वहाँ ये कार्य हुआ। परन्तु बम्बई शहर के बारे में ये कहा जाता है कि शुरू से ही यहाँ लोग बहुत ही ज्यादा भौतिकवादी रहे होंगे। ऐसा किस्सा है कि एक बार पुण्डरिकाक्ष पुण्डरीक अपने माँ बाप को कावड़ में बिठा करके तीर्थ यात्रा को जाते हुए बम्बई आ गये। माता पिता दोनों बूढ़े थे। यहाँ पहुँच कर पुण्डरीक ने सोचा, मुम्बई अच्छी नगरी है, यहाँ दो मिनट आराम किया जाये। जब वे यहाँ रुके तो-भौतिकता के प्रभाव से उनकी चैतन्य लहरियाँ खराब हो गईं। उनके मन में ये विचार आया कि माँ बाप को उठा कर मैं कहाँ जा रहा हूँ? ऐसा करने से मेरा क्या लाभ होग ? क्योंकि भौतिकवादी लोग हर कार्य में भौतिक लाभ खोजते हैं। पुण्डरीक ने सोचा मेरी तो पीठ दुखने लग गई है इनको मैं कहाँ ले जाऊं? उसने अपने माता-पिता से कहा कि आप इच्छानुसार अपनी व्यवस्था कर लें। मैं आपको और आगे नहीं ले जा सकता। माँ-बाप सोचने लगे कि क्या बात है। उन्होंने देखा कि वहाँ की चैतन्य | हम चले जाएंगे तुम केवल मुम्बई के दर्शन हमें बाहर तक ले चलो।' पुण्डरीक इसके लिए राजी हो गये। बाहर तक पहुँचते- पहुँचते उनको विचार आ रहा था कि ये कैसा झंझट मेरे पीछे लग गया है। मेरी तो कमर और बदन में कुछ गड़बड़ है तो कहने लगे 'अच्छा ठीक है करवाते हुए ५ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-5.txt सब टूटने लगे हैं। परन्तु जैसे ही वे मुम्बई से बाहर पहुँचे तो उनको ठीक लगने लगा। तो शायद वे कलवा ही आये होंगे क्योंकि कलवा बम्बई से बाहर है नसीब से। जब वो बाहर आये तो उनमें इतनी शक्ति आ गई कि उनकी समझ में नहीं आई। एकदम उनका चित्त बदल गया। अपने माँ-बाप से उन्होंने माफी माँगी और प्रार्थना की कि मुझे क्षमा कर दीजिए । मैंने यह पुण्य कर्म करना है। मैं आपको आगे की तीर्थ यात्रा पर ले जाता हूँ। | | आप जानते हैं कि यहाँ पर दो सरोवर हैं। एक पम्पा सरोवर के नाम से जाना जाता है और दूसरे का वर्णन भी रामायण में किया गया है। इसका मतलब यह है कि दण्डकारण्य में घूमें और वहाँ बहुत सारे चैतन्य का प्रादुर्भाव किया। इसके अलावा भी महाराष्ट्र में बहुत कार्य किया गया। अनेक संत यहाँ पैदा हुए। संतों को बहुत सताया भी गया तो भी बार- बार संत यहाँ आते गये और संत की वजह से एक बड़ा कार्य हुआ कि लोगों में धर्म के प्रति अध्यात्म के प्रति रुचि हो गई। फिर भी यहाँ कोई न कोई गड़बड़ बात रही होगी। क्योंकि यहाँ अष्टविनायक हैं, साढ़े तीन पीठ हैं और इसके अलावा तीन देवियों का प्रादुर्भाव खासकर बम्बई में हुआ। इसका मतलब यह है कि यहाँ कोई न कोई बड़ा भारी दोष रहा होगा। जिसके कारण यहाँ इतनी मेहनत करनी पड़ी। और मेरा भी जन्म महाराष्ट्र में हो गया। तो ये सोचना जरूरी है कि क्या बात है कि हममें त्रुटि रह गई | बम्बई के लोग बहुत ही भौतिकवादी हैं । यहाँ अंग्रेज आयें और उन्होंने अंग्रेजियत सिखाई जिससे आदमी भौतिकवादी हो गया और उसका सारा चित्त बाह्य में आ गया। समुद्र के रास्ते से फिर पुर्तगाल तथा अन्य देशों से लोग यहाँ पर आए परिणामवश यहाँ के भौतिकवादी लोग और अधिक भौतिकवादी बन गये। यही कारण है कि सहजयोग में आने के बाद भी बम्बई के लोग भौतिकता से चिपके रहते हैं और उनमें दूसरे जगह के लोगों की अपेक्षा बहुत कम उड़ान होती है। बड़े आश्चर्य की बात है कि महाराष्ट्र में इतनी मेहनत करने पर भी हम इतना कार्य नहीं कर पाये जितना हमने उत्तरी भारत में किया। उत्तरी भारत के लोग जितना बढ़ पाये उतने यहाँ के लोग नहीं बढ़ सके। इसका कारण यही है कि हम लोगों | में अब भी एक बड़ी तरह की जड़ता है। धर्म के मामले में भी जड़ता है। अब भी यहाँ इतने गुरु-घंटाल हैं जितने उत्तरी भारत में नहीं हैं क्योंकि वहाँ वे चल ही नहीं पायेंगे और यहाँ के भौतिक लोगों को ऐसे ही गुरु घंटाल अच्छे लगते हैं जो तांत्रिक हैं और जो उनकी ऐसी चीज़ों में मदद करें जिनसे दूसरों का नुकसान हो जाए । यहाँ झूठे गुरु भी बहुत हैं वो भी सब भौतिक लोगों को पकड़े हुए हैं और उनको समझा देते हैं कि कोई नहीं आपको सीधे परमात्मा का नाम याद करना चाहिए। पर उनके हित की कोई आन्तरिक इच्छा उनके हृदय में नहीं। वे चाहे कुगुरु न भी हों, उनके मन में लोगों को कुछ देने की इच्छा नहीं है। चौथी चीज़ जो मैं देखती हैँ और जिससे मुझे आश्चर्य होता है कि ब्राह्मण लोग अति भौतिकवादी हो गये हैं। किसी जमाने में जाति पाति के विरुद्ध तथा विधवा विवाह के पक्ष में आगरकर साहब आदि ने कितना कार्य किया। मराठी लेखकों, ब्राह्मणों, कवियों तथा संतों ने यहाँ बहुत मेहनत की। रामदास स्वामी, ऋषियन सरस्वती तथा ब्राह्मण लोगों ने भी बहुत मेहनत करके अध्यात्म को स्थापित किया । दासगणों ने कहा 'आम्हासी म्हणती ब्राह्हण आम्ही जावि ले नाहीं ब्रह्म आम्ही कसले ब्राह्मण।' इस तरह से उन्होंने हमारे अन्दर यह जागृति की कि जब तुम ब्रह्म को नहीं जानते तो तुम ब्राह्मण नहीं हो। और हर तरह से कोशिश की कि जाति पाति हट जाए । परन्तु आधुनिक काल में मैं देखती हूँ कि ब्राह्मण लोग बहुत अधिक आधुनिक हो गये हैं । जैसे किसी औरत के बाल कटे दिखाई दे और चश्मा लगाया हो और सिगरेट पी रही हो तो पूछने पर पता चलेगा कि वह ब्राह्मण है। तो लोगों में इस तरह का परिवर्तन मेरी समझ में नहीं आता । यहाँ दूसरी कौम जिसे मराठा कहते हैं उनकी तलवार क्योंकि अब महत्वहीन हो गई है अब वे आपस में ही गर्दन काट रहे हैं। क्योंकि अब तलवार का करें तो क्या करें? ये सोचते हैं कि पहले तलवार लिये शिवाजी महाराज के लिए लड़ते थे, अब आपस में भाऊ-बन्दकी कर रहे हैं और एक दूसरे की गर्दन काट रहे हैं। तीसरे वैश्य जाति तो यहाँ है ही नहीं क्योंकि इन लोगों को व्यापार करना नहीं आता। मुँह फट होने की वजह से ये व्यापार कर नहीं सकते। रही आध्यात्म की बात, तो किसके साहारे बांधा जाये। ये मुझे समझ में नहीं आता कि किसे कहें कि तुम आध्यात्म को पकड़ो। जाति-पाति को हटाना या गलत धारणाओं को हटाना तो दूर उसमें और घुसे चले जा रहे हैं। ६ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-6.txt ४ िी २१ ० आा पू सब लोग मन में प्रतिज्ञा करें (क्योंकि नया साल आया हआ है।) कि आज से हम अपने को सहजयोग में पूरी तरह ढाल देंगे, उसके लिए पूरी धारणा करेंगे और स्वयं को उन्नत करेंगे और सहजयोग को हम सम्भालेंगे। ७ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-7.txt आज इतना ज्यादा इसका प्रकोप हो गया है कि कोई समझ भी नहीं सकता कि जाति-पाति सब व्यर्थ की चीज़़ है और इससे सिर्फ अनर्थ होने वाला है। इस तरह से हमारे महाराष्ट्र में अनेक चीज़ें चल पड़ी है। उनकी तरफ हमें ध्यान देना चाहिए। हालांकि यहाँ के लोग सीधे हैं, भोले भी हैं और पैसे का विचार इनको बहुत ही छोटे तरीके का है, बड़े तरीके का नहीं है। पर इनकी नितान्त श्रद्धा गणेश जी पर है। ये बहुत बड़ी बात है कि चारित्रिकता में ये लोग समाये हुए हैं। उनका चारित्रिक- विवेक हमारी बहुत बड़ी सम्पदा है। यद्यपि चारित्रिक विवेक द्वारा ही सहज कार्य तेजी से हो सकता है फिर भी में गहनता के बिना सहजयोग मनुष्य आगे नहीं बढ़ सकता। यहाँ लोग पार तो बहत हो जाते हैं परन्तु जमते नहीं क्योंकि उन्होंने अपनी गहनता को छुआ नहीं। आज यह पूजा करते हुए हमें सोचना है कि महाराष्ट्र की त्रुटियों की ओर ध्यान देते हुए हमें सहजयोग का कार्य करना है। त्रुटियाँ हर जगह हैं कोई भी मनुष्य आज तक परिपूर्ण नहीं हुआ। विदेशी शासकों के प्रभाव से भी त्रुटियाँ आईं। त्रुटियों का ध्यान रखते हुए यदि आप कार्य करें तो सहजयोग बहुत जोरों से फैल सकता है। यहाँ संतों ने बहुत कार्य किया है जिसके फलस्वरूप हम लोगों का कार्य आज खड़ा हो सकता है। तो इस मुम्बई के आशीर्वाद से आज आप बैठे हुए हैं और भी जो तीन शक्तियाँ हैं उनका भी आशीर्वाद आप लोगों को मिल रहा है। इस आशीर्वाद के सहारे यहाँ सहजयोग बहुत जल्दी बढ़ना चाहिए। परन्तु देखा जाता है कि सहजयोग में होते हुए भी लोग इस कार्य में सहयोग नहीं देते और एक तरह से अपनी जान बचाकर रहते हैं। यदि आप अपनी जान बचायेंगे तो भगवान भी अपनी जान बचार्ेंगे। जितना आप सहजयोग के लिए कार्यान्वित रहेंगे उतना ही आपको आशीर्वाद मिलता है क्योंकि मैं आपको पहले भी बता चुकी हूँ कि अब कृत-युग शुरू हो गया है, पहले कलियुग था। कलियुग में किसी तरह चल जाता था लेकिन अब कृतयुग में कोई भी गलत काम यदि आप करेंगे तो उसका फल फौरन आपको मिल जाएगा। पुण्य कार्य भी यदि आप करेंगे तो उसका लाभ भी आपको फौरन मिल जाएगा। इस प्रकार की परिस्थिति, हम कहेंगे, वातावरण में है। तो गलत काम करने वाले आदमी को सोच समझकर बहुत रहना चाहिए क्योंकि बुरा या भला जैसा भी आप करेंगे उसका असर फौरन आप पर आ जाएगा। यह आज की स्थिति है। अब हम लोगों को सोचना चाहिए कि अगर हम बम्बई में रहते हैं तो हम बहुत कुछ कार्य कर सकते हैं। मैंने बम्बई में बहुत मेहनत की जिसके फलस्वरूप आज आप इतने लोग यहाँ पर आये हैं। लेकिन अब आप सबको यह सोचना है कि हमें सहजयोग के लिए क्या करना है। रोज रात को बैठकर आप यह सोचे कि सहजयोग के लिए हमने क्या कार्य किया, हम तो सिर्फ अपने लिये ही कर रहे हैं, अत: जो जान बचायेंगे वो आकर हमें न कहें कि 'माँ हमें ये रोग हो गया, हमें यह तकलीफ हो गई, हमें यह परेशानी हो गई।' होनी ही है क्योंकि आप अगर अपनी जान बचाइयेगा तो परमात्मा का ध्यान भी आपकी ओर नहीं रहेगा। परम-चैतन्य का ध्यान अपनी ओर रखने के लिए आप हर समय सोचे कि आज हमने कौन सा पुण्य कर्म किया? आज हमने सहयोग के लिए कौन सा काम किया ? पूरे मन से हमने सहजयोग के लिए क्या किया ? यह सब करने से ही आपको पूरी तरह से आशीर्वाद मिल सकता है और आप जान सकते हैं कि सहजयोग में आप आशीर्वादित लोग हैं और परमात्मा के साम्राज्य में बैठे हैं। पर जैसे किसी भी साम्राज्य में गलत काम करने पर आपको कोई न कोई शिक्षा, कोई न कोई दण्ड दिया जाता है उसी प्रकार इस साम्राज्य में भी होता है। लेकिन इसमें थोड़ा समय दे दिया जाता है। 'अच्छा देखते हैं, ठीक हो जाए-ठीक हो जाए।' पर इसका इशारा आपको फौरन मिल जायेगा कि आपने गलत काम किया तो, आपकी चैतन्य लहरियाँ (वाइब्रेशन्स) छूट जाएंगी। इसलिय बहुत सम्भल कर चलना है आगे को। धीरे धीरे आगे बढ़ना है और आपको बहुत उँचाई पर जाना है। आप जानते हैं कि सारे देश के लिए तो यह जरूरी है ही, सारी दुनिया के लिए भी जरूरी है कि हमारे महाराष्ट्र में सहजयोग बहुत पनप जाए और उसकी सम्पदा हम सारी दुनियाँ को दे दें। इसलिए बार-बार कहना है कि आज सब लोग मन में प्रतिज्ञा करें (क्योंकि नया साल आया हआ है।) कि आज से हम अपने को सहजयोग में पूरी तरह ढाल देंगे, उसके लिए पूरी धारणा करेंगे और स्वयं को उन्नत करेंगे और सहजयोग को हम सम्भालेंगे। यह सभी के लिए है न कि सिर्फ महाराष्ट्र के लिए । सारी दुनियाँ के लोगों से यह बात मैं कह रही हूँ। आप सबको अनन्त आशीर्वाद! ८ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-8.txt र छि सहजयोग आपने के लिए क्या किया है ? कळवा, १४ जनवरी १९९० 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-9.txt आज का दिन भारत में हमारे लिए बहुत ही खुशियों का दिन है। सूर्य अभी मकर अक्ष में है और मकर अक्ष से वह कर्कवृत्त में जब आता है तब यह सूर्य पृथ्वी के नजदीक आता है तब यह धरणीमाता सृजनशीलता से पुन: कार्यान्वित होती है और अत्यन्त सुन्दर फुलों का निर्माण करती है। सुन्दर, पौष्टिक और पूर्ण समाधान देने वाली चीज़ों का जैसे कि3B फलों का, निर्माण करती है और वह अपने आँखों को, उन्हीं की दी हुई हरियाली द्वारा ठण्डक पहुँचाती है। केवल सूर्य के आगमन से पृथ्वी हमें बहुविधि ऐसी सब चीज़ों से आशीर्वादित करती है। इसी तरह से, सहजयोग के सूर्य का उदय हुआ है और शिरोबिन्दु तक पहुँच रहा है और आपको इसका परिणाम भी दिखाया गया है भूमी तत्व पर, जो कि आपका मूलाधार है और इस मूलाधार की सृजन शक्ति जो कि कुण्डलिनी है, वो चढ़ती जा रही है और आपके अस्तित्व को खिला रही है जिसका परिणाम आप अपनी जिन्दगी में देख सकते हैं जिसके कारण आपकी जिन्दगी बहुत सुन्दर हो गयी है, जिसने आपकी जिन्दगी को आनन्द से ओत-प्रोत कर दिया है। अब आप लोग एक ऐसी जगह पहुँच गये हैं जहाँ से एक उँची उड़ान लेनी है। इस उड़ान के समय आपको अपने विचारों पर, अपनी कल्पनाएँ और अपनी शर्तें इन सब पर नजर रखनी चाहिये । इन्ही कंडिशनिंग की वजह से हम उनके जाल में खुद को उलझायें हुए हैं जिसके कारण हम पर उनका बुरा असर पड़ रहा है। मुझे यह बात समझ में नहीं आ रही है कि मूलत: जिनकी कोई किमत नहीं फिर भी हम उनसे चिपके रहते हैं, जिनमें कोई जान ही नहीं है। जब आप किसी उँचाई तक पहुँचते हैं तब बहुत से लोग पीछे रहते हैं; छूट जाते हैं कारण है कंडिशनिंग्ज। हो सकता है कोई उसमें से बाहर ही ना निकले । तो मेरी आपसे नम्र प्रार्थना है कि आपने अपने आपको ध्यान में संपूर्ण समर्पित करना है और अपने आपको सामुहिकता को समर्पण करना है। हर रोज आपने स्वयं को यह सवाल करना है कि, मैंने सहजयोग के लिए क्या किया है? खुद के लिए मैंने क्या किया है? आप कृपया यह जान लें कि आपको एक बड़ी छलांग लगानी है, ऐसा करने के लिए आपको तैयार रहना है क्योंकि हो सकता है कि इस छलांग को लगाने के दरम्यान कुछ लोग खो जाएं, पिछे रह जाएं। क्योंकि अब तक आप अपने कंडिशनिंग से बाहर नहीं निकलें हैं। यह कंडिशनिंग्ज कई प्रकार की होती है। कोई अज्ञान में से निर्माण होती है, कोई अंधविश्वास से निर्माण होती है या फिर उन सबसे निर्माण होती है जिनका हमें कभी सामना करना पड़ हो । कभी - कभी तो अपने ही देश की कंडिशनिंग होती है, हमारी जाती की होती है। अपनी विशिष्ट आदतों से वो निर्माण हो सकती है। ऐसी और भी चीजें हैं जिनके द्वारा हम एक दूसरों को तोलते-नापते हैं मगर यहाँ हमने अपने आपको ही तौलना है। यह देखना है कि क्या हम सहज संस्कृति का पालन कर रहे हैं या नहीं। अगर आपने सहज संस्कृति को नहीं अपनाया तो आपके लिए बहुत कठिन हो जाएगा। मैं आपको सावधान करना चाहती हूँ कि जो नाव सब को लेकर चलने वाली है, उस पर आप सवार नहीं हो पाएंगे , फिर आप कहोगे कि 'माताजी, कुछ लोग तो पीछे रह गये हैं, कृपया उनकी मदद कीजिए।' ऐसे लोगों की आप मदद कीजिए, उनको वास्तविकता की पहचान करवा दीजिए । साफ शब्दों में कह दीजिए, उन्हें नेक रास्ते पर चलने की साफ-साफ सूचना दीजिए। जब भी आपको पता चले कि वे गलत रास्ते से जा रहे हैं तो उन्हें सतर्क कर दीजिए। दिन-ब- दिन हालात खराब होती जा रही हैं। निर्णायक समय आ चुका है। तो आप सभी ने सहजयोग को सहज में ना ले तो बहुत अच्छा होगा। यही मैं आपसे निवेदन करना चाहती हूँ। बाकी सब चीजें एक माया जाल की तरह है जहाँ आपको भौतिक चीजें ठीक लगती है, उनसे आप सब कर सकते हैं, ऐसा लगता है आपको। यहाँ परमात्मा यह नहीं देखते हैं कि कौन अमिर है, कौन पैसे वाला है, कौन गरीब है। वह केवल एक ही चीज़ देखता है कि आप अध्यात्म की दृष्टि से कितने अमीर हैं। परमात्मा यह भी नहीं देखते कि, आपकी शैक्षणिक पात्रता क्या है, आपके पास विश्वविद्यालय की कितनी उपाधियाँ हैं। आप का उद्देश्य क्या है। वह केवल ये देखते हैं कि आप कितने अबोध हैं। आपने सहजयोग १० 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-10.txt संक्रान्ति पूजा के लिए क्या किया ? आपने परमात्मा के लिए कितना कार्य किया है? इसके लिए कान कौन सी चीज़ों को प्राधान्य देना चाहिए यह आपको तय करना है, इसकी ओर ध्यान रखना है। सहजयोग आपको अत्यन्त सूक्ष्मता से ऑँकता है। अब इस कयामा के समय में जैसे कि, कई लोगों का निर्णय हो चुका है कि कौन अच्छा है और कौन बेहतर है, फिर भी आने वाली चढ़ान के लिए आपको अत्यन्त सावधानी बरतनी है। जिनको हृदय से लगता है कि मैं एक सहजयोगी हूँ पर वास्तव में नहीं है, ऐसे लोग पीछे रह सकते हैं । तो अब सूर्य का उदय हो चुका है शिरोबिन्दु तक, यह अत्यन्त महत्वपूर्ण बात है। ऐसे में हर एक ने अपने आप में सावधानी बरतनी है। जो सूरज अपने इर्द-गिर्द हरियाली फैलाता है वही सूरज अपनी गर्मी से हमें झुलसा सकता है। तो आप सावधानी से रहें। हर वक्त सहजयोग के मार्गदर्शन में रहें आरै देखें कि हमसे क्या गलतियाँ हुई है। हममें यह जडत्व क्यों निर्माण हुआ है, हमारा यह मार्ग क्यों दुर्गम होता जा रहा है? अब तक तो में बहुत ही खुश हूँ बहुत आनन्द में हूँ कि आज तक मैं आपको जो भी कहती रही, जिसका भी आपको मार्गदर्शन दिया है, वह आपने शांती से सुना और अपनाया भी है। और तो और रोज मर्रा की जिन्दगी में आपने उसे ग्रहण भी किया है, अमल भी किया है। मुझे नहीं लगता है कि कुछ समय के बाद तो आपको कुछ बताने की भी जरूरत पड़ेगी, आगे जा कर आपको आपके प्रकाश में ही ज्ञान हो जाएगा कि क्या गलत है और क्या सही है। फिर भी मुझे लगता है कि पूजा में और संगीत में तथा और अन्य चीज़ों के लिए आप अपना हृदय खोल दें। अगर आप अपना हृदय नहीं खोलेंगे तो कोई भी चीज़ कार्यान्वित नहीं होगी। कोई भी चीज़ उसी समय कार्यान्वित होगी जब आपकी आत्मा हृदय में होगी। आपकी सभी कंडिशनिंग्ज आपका अहंकार पूर्णतया गायब हो जाएगा, अगर आप खुद ही तय करेंगे कि सहजयोग के लिए मैं अपना हृदय संपूर्णतया खोल दूँ। आप सबको अनन्त आशीर्वाद ! अगर भप अपनी हदेये नहीं खोलेंगे तो कोई भी चीज़ कार्यान्वित नहीं होगी। 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-11.txt कुछ जाता ही नहीं है क्योंकि आए ती पिछले बाय में ही फसे हुए हैं। स्तिष्क में वाक्य बर्तमान में तौ आए हैं ही नहीं। मस्तिष्क में कुछ जाता ही नहीं है क्योंकि आप तो पिछले वाक्य में ही फँसे हुए हैं । वर्तमान में तो आप हैं ही नहीं। मेरे विचार से मैं आपको बहुत लम्बा प्रवचन दे चुकी हूँ। कुछ प्रतिक्रियाएं बहुत अच्छी है और लोग इसे भली-भाँति आत्मसात कर सके। परन्तु बताया गया कि कुछ लोग सो रहे थे। ये सब कुछ नकारात्मकता के कारण होता है। आपको अपनी नकारात्मकता से लड़ना होगा क्योंकि नकारात्मकता ही ऐसी चीज़ है जो प्रश्न पूछती है। मैं जब बोल रही होती हूँ तो सत्य बताती हूँ, पूर्ण सत्य। परन्तु नकारात्मकता प्रश्न पूछती हैं और प्रतिबिम्बित करती है और जब इसका प्रतिबिम्बिकरण आरम्भ होता है तब मस्तिष्क में कुछ भी नहीं जाता, तब आप पिछले वाक्य में ही फँसे होते हैं, वर्तमान के साथ होते ही नहीं। तो सारी बात पलायन पर आ जाती है और तब आप पलायन करते हैं, सो जाते हैं। कहने का अभिप्राय ये है कि आज मैंने आपको चेतन-मस्तिष्क में रखने का भरसक प्रयत्न किया है। आपको चेतन होना होगा, होना होगा, क्योंकि बिना चेतन हुए आप उत्क्रान्ति नहीं प्राप्त कर सकते। कोई भी चुस्त असामान्य व्यक्ति उत्क्रान्ति नहीं पा सकता। आपको स्वयं को सामान्य बनाना होगा। आपमें से से बहुत लोगों में असामान्यताएं थीं जिन्हें बाहर लाया गया, निकाल फेंका गया। बहुत से लोग स्वच्छ हो गए हैं। परन्तु अब भी यदि कुछ लोग लटक रहे हैं तो उन्हें यह क्रियान्वित करना चाहिए परन्तु वो तो उसे (नकारात्मकता को) उचित ठहराने में ही लगे हुए हैं। प्राय: नकारात्मकता नकारात्मक व्यक्ति को ही आकर्षित करती है। अत: यदि आपमें इस प्रकार की कोई नकारात्मकता है, तो ऐसे किसी अन्य व्यक्ति के पास न जाएं। दूरी बनाए रखें। प.पू.श्री माताजी, अल्पेमोता, इटली, ४.५.१९८६ १२ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-12.txt ० आपको अपने हाों का उपयोग करना होगा, अपने पैों का छपयोग करा होणा, पानी पैर किया करनी होणी क्योंकि ज सर है। गगार सभी सहजयोगी नियमित रूप से पानी में बैठें। यह अत्यन्त आवश्यक है। प्रतिदिन प्रात:काल अवश्य ध्यान - धारणा करें क्योंकि बौद्धिक स्तर पर हम कहते हैं कि हम श्रीमाताजी के साथ थे, ठीक है। यह अभिव्यक्तिकरण ठीक है। आप लोग आए, आपने देखा कि भारतीय कैसे लोग हैं और सहजयोग के लिए अच्छे हैं, परन्तु यह सब देखने के पश्चात् आपको जानना होगा कि सहजयोग को कार्यान्वित करना पड़ता है। उसे सोचना नहीं पड़ता। इसके विषय में सोचने मात्र से कोई लाभ नहीं। विचारों के माध्यम से आप जो भी सोचने का प्रयत्न करें, सहजयोग में आप कोई सफलता प्राप्त नहीं कर पाएंगे। आपको अपने हाथों का उपयोग करना होगा। अपने पाँव आपको पानी में डालकर बैठना होगा क्योंकि जल समुद्र है। ये सभी पाँचों चक्र या कहें छ: चक्र, मैं पाँच इसलिए कह रही हूँ कि पहला चक्र मूलाधार है और सातवाँ तथा सबसे ऊपर वाला चक्र मस्तिष्क है, तो इस विचार के साथ कि यह मध्य के पाँचों चक्र मूलत: भौतिक तत्वों के बने हैं तथा पाँच तत्वों से ही इन चक्रों का शरीर बना है हमें पूर्ण सावधानीपूर्वक इन पाँचों चक्रों का संचालन करना चाहिए। जिन तत्वों से यह चक्र बने हैं उन्हीं में इनकी अशुद्धियों को निकाल कर हमें इन चक्रों का शुद्धिकरण करना है। उदाहरण के रूप में, यदि कोई व्यक्ति उग्र स्वभाव का है तो उसे बाईं ओर से संतुलन प्राप्त करना होगा। हाथ से उठाना नि:सन्देह ठीक है, परन्तु तत्व का क्या होगा? दाईं ओर के (उग्र स्वभाव) व्यक्ति के अन्दर विद्यमान सभी तत्व उसे गर्मी प्रदान करते हैं, हम कह सकते हैं प्रकाश या अग्नि। अत: दाईं ओर के लोगों को अग्नि अधिक सहायता न कर सकेगी। जैसे फोटो के सम्मुख तथा अहं ग्रस्त लोगों के सम्मुख यदि आप दीपक (प्रकाश) का उपयोग करेंगे तो इसका कोई लाभ न होगा। लाभ तो पृथ्वी माँ और जल तत्व से होगा जो शीतलता प्रदान करते हैं। दाईं ओर के लोगों के लिए बर्फ भी बहुत लाभदायक है। तो उग्रता को ठीक करने के लिए सभी शीतलता प्रदान करने वाले तत्वों का उपयोग किया जाना चाहिए ताकि उग्रता शान्त हो जाए। खाने के विषय में भी ऐसा ही है। दाईं ओर के लोगों को ऐसे भोजन लेने चाहिए जो शान्त करने वाले हों जैसे कार्बोहाइड्रेट्स अर्थात् उन्हें काफी सीमा तक शाकाहारी बन जाना चाहिए । मांस खाना ही हो तो चिकन ही लेना चाहिए, मछली या समुद्र से निकला खाना बहुत गर्म होता है। इस प्रकार आप अपने चक्रों के भौतिक भाग को ठीक कर सकते हैं। बाईं ओर के (तमोगुणी) लोगों को चाहिए कि दीप-प्रकाश या अग्नितत्व का उपयोग अपनी बाईं ओर को ठीक करने के लिए करें। खाने में ऐसे लोगों को नाइट्रोजन परिपूर्ण अर्थात् प्रोटीनयुक्त भोजन करने चाहिए। अधिक प्रोटीन उनके लिए आवश्यक है । प.पू.श्री माताजी, वैतरणा, महाराष्ट्र, भारत, १८.०१.१९८३ १३ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-13.txt प्रेम धर्म ४ २३ मार्च १९७७ १४ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-14.txt बहुतों को ऐसा लगता है, जब वो पहली मर्तबा देखते हैं कि 'ये कोई बच्चों का खेल है! 'कुण्डलिनी जागरण है।' कुण्डलिनी जागृति के लिए तो इतना बताया है कि दुनिया भर की चीज़ और सिर के बल खडे होना और दुनिया भर की आफत करना और इतने सहज में कुण्डलिनी का जागरण कैसे हो जाता है? आप में से जो लोग पार हैं यहाँ पर, अधिकतर तो पार ही लोग बैठे हैं, उनकी कुण्डलिनी जब जागृत हुई तब तो आपको पता भी नहीं चला कि कैसे हो गई? लेकिन अब जब दूसरों की होते देखते हैं तो आपको पता चलता है कि हाँ भाई, हमारी हो गई है, क्योंकि आप एकदम से ही चन्द्रमा पर पहुँच गये हैं, कैसे पहुँचे? कहाँ से पहुँचे हैं? फलिभूत होने का समय जब आता है तब फल लगते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि बाकी जो होता रहा, वो जरूरी नहीं था । वो भी जरूरी था और अब फल होना भी जरूरी है । एकदम से पता नहीं चलता है, इसका कारण तो है ही। और उसका उद्देश्य भी है। | फिर कोई कहते हैं कि दस हजार वर्ष हो गये हैं कोई पार नहीं हुआ है तो अभी क्यों हो गये हैं! दस हजार वर्ष पहले तो आप चन्द्रमा पर नहीं जाते थे, पर अब क्यों जा रहे हैं ? अब वो अगर जा रहे हैं तो शंका करने वाली क्या बात है! लेकिन रामदास स्वामी ने बताया है कि दुनिया में कुछ लोग होते हैं जिनको कहते हैं। पढ़त मूर्ख। पढ़त मूर्ख का मतलब होता है पढ़ पढ़ के जो महामूर्ख हो जाते हैं। जिसको कबीरदास जी ने कहा है कि 'पढ़ि पढ़ि पण्डित मूरख भये' इस तरह की एक संस्था चलती रहती है। चाहे वो ईसा मसीह जी का जमाना हो या चाहे वो ज्ञानेश्वर जी का जमाना हो या शंकराचार्य जी का जमाना हो, जरदोस का जमाना हो, कभी ये एक अपने को विशेष, अतिशहाणे समझने वाले लोग, अपने को एक विशेष तरह से बहत उच्च तरह के विद्वान समझने वाले लोग हमेशा रहे और रहेंगे और वो हर समय इस तरह के अड़ांगे करते रहेंगे। और जीवन के जो अमूल्य क्षण है वो इसी में बितायेंगे, उनका कोई इलाज नहीं है। कलयुग में भी ऐसे बहुत है कि जो किताबें रखी हैं वो सब पढ़ ड़ाली है। अब उस आदमी का तो दिमाग खराब हो ही जाएगा क्योंकि उसने इतनी मेहनत करके इतनी किताबें खरीदी हैं , पढ़ी है । तो उसकी समझ में नहीं आता है कि मैंने इतनी मेहनत की, किताबें पढ़ीं है, उपवास किये हैं और मुझे नहीं आया और माताजी ने सिर्फ ऐसे हाथ किया और मैं पार हो गया ! ये क्या बात है? कोई न कोई तो सहजयोग का * बात हमारे में है ही, ये तो आप समझते हैं। समझ लीजिए कि अगर कोई बड़ा रईस आदमी है और कोई उसके पास रूपये माँगने जाए और अगर उसे रूपये देने की इच्छा है तो उसको सिर्फ आधार एक चैक पर लिखना होता है और बस हो जाता है काम। कोई न कोई सम्पदा तो हमने जोड़ कर रखी है अपनी। हमारी कोई न कोई तो मेहनत है इसके पीछे, बहुत जबरदस्त, इसलिए तो आपको कोई मेहनत नहीं करनी पड़ती है। साफ-सुथरा सब कुछ आपको मिल जाता है। ना तो धर्म है। १५ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-15.txt आपको पढ़ने की जरूरत है, ना तो आपको मेहनत करने की जरूरत है। बस पाने की जरूरत है। लेकिन एक बात जरूर है कि सहजयोग का आधार धर्म है। धर्म का मतलब जो बाह्य में हम हिन्दू, मुस्लिम सब कहते हैं वो नहीं। धर्म का मतलब है मनुष्य का धर्म, मानवता का धर्म। अब 'मानवता का धर्म' का मतलब, बहुत से लोगों को यह लगता है कि दूसरों की सेवा करना, दूसरों को पैसा देना। बहुत से लोग ऐसे होते हैं कि चार लोगों को ठगेंगे और एक बड़ा भारी मन्दिर बना देंगे और कहेंगे कि हमने बहुत बड़ा दान धर्म कर दिया है। दूसरे लोग ऐसे होते हैं कि अपनी घर की बहू को तो सतायेंगे और दुनिया भर में धर्म फैलाते फिरेंगे। तीसरे लोग ऐसे होते हैं कि अपना सर मुंडवायेंगे, फिर वो गेरुये वस्त्र पहनेंगे, चोगे पहनेंगे , और सब दूर भगवान का नाम चिल्लाते फिेंगे। पाँचवे तरह के ऐसे होते हैं कि वो सोचते हैं कि हम धार्मिक हैं और दूसरे सभी अधार्मिक हैं। और दूसरों को नीचा गिराते फिरेंगे । धर्म की व्यवस्था हमारे अन्दर बनी हुई है पहले से । मनुष्य धर्म में ही पैदा होता है और जो भी वो उस धर्म के विरोध में चलता है तभी उसका पतन हो जाता है और वो सहजयोग के लिए इतना उपयोगी नहीं होता है इसलिए कुछ लोग पार नहीं होते हैं, और कुछ लोग पार होते हैं। कुछ लोग रूक जाते हैं और कुछ लोग जल्दी से पार हो जाते हैं। पहले अपने धर्म को ठीक से बाँधना चाहिए। सारे धर्मों का सार एक ही है, प्रेम त्त्व का । प्रेम तत्त्व अगर आपके अन्दर है, अगर आप प्रेम तत्त्व से परिपूर्ण हैं, प्रेम तत्त्व का आपके अन्दर तत्त्व है और उसका आपके अन्दर में पूर्णत: प्रभाव है, आपके जीवन में उतरा हुआ है तो इससे बढ़ के मनुष्य का धर्म और कोई नहीं है। लेकिन प्रेम का मतलब ये नहीं होता है कि आप उसकी कोई जाहिरात लगा कर फिरे कि आप अपना एडवर्टाइज करें कि 'हम प्रेमी हैं'। हमने इतने उपकार सब पर किये हैं और हम बड़े मातृ प्रेमी हैं। ये एक अन्दर का धर्म अपना होता है। राम के जीवन में आपने देखा है कि भीलनी ने उनको बेर दिये । आप सहजयोग में जानते हैं कि हर एक खाने को आप वाइब्रेट करके खाते हैं। जब तक वो वाइब्रेट नहीं होता आप खाते नहीं है। उस पर जब तक ग्रेस नहीं उतरता है आप उसे लेते नहीं है, लेकिन रामचन्द्रजी ने भीलनी के बेर ऐसे ही खा लिये। भीलनी ने अपने दाँत उस पर ऐसे लगाये थे, एक-एक बेर को चख कर देखा था, तब झूठे बेर को रामचन्द्रजी ने अपने आँखो के ऊपर लगा कर के खा लिये। इसका कारण ये है कि भीलनी प्रेम से परिपूर्ण थी। परमेश्वर के प्रती जो उसको प्रेम था, निष्कपट, निश्चल पूर्णतया । वो जानती थी कि श्री राम एक अवतरण है और उनसे वो नितांत प्रेम करती थी। उसे जो भी बेर मिलते, उसे वह चख कर के देखती थी कि कहीं कोई खट्टी न हो। मेरे राम को खट्टी न लग जाये । उनको कोई तकलीफ न हो जाए और इस विचार को करके उसने वो बेर खाये और राम को दिये और राम ने वो खा लिये। उस भीलनी की जो प्रेम शक्ति है, उसने कभी कोई धर्म की व्याख्या भी नहीं जानी होगी। उसको पाप और पुण्य का कोई विचार भी नहीं होगा। उसने और कोई दुनिया की चीज़ नहीं जानी होगी। न तो वो अमीरी जानती होगी, न गरीबी जानती होगी। जंगलों में पत्थरों में रहती होगी । उसको कपड़े का भी विशेष ख्याल नहीं रहा होगा। न ही उसमें कोई निर्लज्जता रही होगी, ना ही कोई विशेष लज्जा का अविर्भाव रहा होगा लेकिन उसमें इतना प्रेम राम के प्रति था कि उसने एक-एक बेर को भीन - भीन अपने दाँत से खाया और अत्यन्त भोलेपन से राम को अर्पित करके कहा कि ' देखिये , इसमें से हर एक बेर को मैंने खाया हुआ है। १६ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-16.txt जब मनुष्य प्रेम में उतरता है तब वो निष्कपट और निष्कलंक हो जाता है। प्रेम एक बड़ी भारी साधना है, वो की नहीं जाती है वो हो जाती है। प्रेम का धर्म जब तक आपमें जगेगा नहीं, आपका सहजयोग टिक नहीं सकता। हमारे बहुत से सहजयोगी हैं, वो बताते हैं कि हम एक-एक घंटा ध्यान में बैठते हैं, बैठिये। हम चार-चार घंटे फलाना करते हैं और ठिकाना होता है लेकिन भावना क्या है? जब आपको परमात्मा के प्रति प्रेम उभरता है, जब आप परमात्मा में लीन होकर प्रेम करते हैं, तब उसकी बनायी इस सारी सृष्टि को, उसकी बनायी हुई हर एक प्राणी मात्र को, सबको आप पूरी हृदय से प्यार करते हैं। अगर उसे नहीं कर सकते हैं तो आपके प्रेम में क्षति है, कमी है। जब हम दूसरों को लेक्चर देते हैं और उनसे कहते हैं कि तुमको ऐसा नहीं करना चाहिए, तुमको वैसा नहीं करना चाहिए, तुमने ऐसा क्यों किया, उनको वैसा नहीं करना चाहिए था, तब हम ये नहीं जानते हैं कि हमने इस आदमी से जो कहा है वो क्या प्रेम में कहा है? अगर आप अतिशय प्रेम से किसी से कोई बात कहें या काम कें तो उसे बुरा नहीं लगता। सारे धर्मों का सार प्रेम है। परमेश्वर साक्षात प्रेम है। सहजयोग में प्रेम ही सम्पूर्ण है , प्रेम के सिवाय और नहीं है। उसमें त्याग अपने आप हो जाता है। उसको कोई भी चीज़ त्यागते हुए विचार ही नहीं आता दूसरा क्योंकि प्रेम की शक्ति त्याग को करवा देती है। प्रेम में प्रेम ही पाना, प्रेम ही करना यही लक्ष्य होता है। और जीवन में उसे कुछ नहीं चाहिए। लेकिन अगर आपमें दोष हों और आप दूसरों को ऐसे प्रेम करते हैं, आप दूसरों को वाइब्रेशन्स देते हैं और आपमें कुछ विचार है कि इस आदमी से कुछ लाभ हो जाये , या इससे कोई फायदा उठा लें या इसकी कोई तुलना कर दे, इसलिये अगर आप किसी को वाइब्रेशन्स दे रहे हैं या फिर उसका आप उपयोग कर लें तो आपके प्रेम में कमी रह जाएगी। किसी को आप वाइब्रेशन्स देते वक्त पाते हैं कि उसमें एकाद दोष हैं, कोई चक्र कम हैं, उसको भी अत्यन्त प्रेमपूर्वक समझा कुछ कर सहला कर के, उसका उद्दीपन करना चाहिए। सारा संसार आज द्वेष पर ही खड़ा हुआ है। सारे धर्मों द्वेष करने का कोई न कोई बहाना ढूँढ ही लेता है इन्सान। कुछ न कुछ तरीका उसको ये मालूम है कि जिससे बड़े-बड़े संग तैयार हो जायें कि इसको द्वेष करो, उसको द्वेष करो । बड़े-बड़े राष्ट्र, बड़ी-बड़ी संस्थायें संसार में प्रेम के बूते पर खड़ी हुई दिखाई नहीं देती । अधिकतर उसके पायें में, उसकी नींव में द्वेष की खाई होती है इसलिए वो संस्थाएं धीरे धीरे खत्म हो जाती है। का प्रेम की शक्ति कितनी आगाध है ये अब आप जानते हैं। आपके हाथ से जो शक्ति बह रही है, ये भी दूसरों के प्रति अनुभूति नहीं है, आपके अन्दर अगर कोई माधुर्य नहीं है तो आप सहजयोग में बहुत आगे नहीं जा सकते हैं। अपने बाल बच्चे, अपने घर वाले, अपने नौकर-चाकर, सार साक्षात प्रेम की शक्ति है। आप अगर पाषाण हृदय हैं और अगर आपके अन्दर कुछ प्रेम है। अपने १७ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-17.txt अड़ोसी-पड़ोसी, इधर-उधर के जितने भी मिलने वाले हैं उन सब से आपको प्रेम करना चाहिए फिर वो चाहे पार हो, चाहे नहीं हो। आज नहीं तो कल सब पार हो सकते हैं। लेकिन आप अगर उनके साथ गिर गये तो आपका भी पतन हो गया और उनका भी उत्थान होने की कोई भी बात कही नहीं जा सकती है। आपके प्रेम को ही देखकर के समझ सकते हैं कि सहजयोग की कितनी विशेषता है। प्रेम की शक्ति को मनुष्य ने कभी आजमाया ही नहीं है, ये अभी- अभी शुरु है। जब से आप सहजयोग से पार हुए हैं, तब से आपने इस शक्ति को जाना है कि ये कितनी प्रचण्ड शक्ति है, हुआ कितनी व्यापक है और कितनी कार्यान्वित होती है। इसको बाह्य से अगर कोई देखना चाहे, अगर वो उथले मन का आदमी हो तो उसको वो समझ ही नहीं सकता इसलिए मैंने कहा है कि जो लोग पढ़त मूर्ख होते हैं उनकी समझ में नहीं आने वाला है लेकिन जो दयाद्र हैं, जो हृदयपूर्ण हैं उनके लिए सहजयोग बहत आसान है क्योंकि ये अत्यन्त सूक्ष्म सम्वेदना है और वो घटित उन्हीं के लिए हो सकती है जिनके लिए अपने हृदय का स्थान पूर्णतय: अभी भी संसार के में लिए बना हुआ है। हृदय में ही शिवजी का स्थान है और हृदय ही परमेश्वर का प्रकाश आत्म स्वरूप हमारे अन्दर विराजता है। जिस आदमी का हृदय कठोर होगा, जो कठोरता पूर्ण दूसरों से व्यवहार करता होगा, उसका हृदय आत्मा के दर्शन से वंचित रहेगा। सबको चाहिए कि अपनी ओर दृष्टि करके देखें कि हम प्रेम धर्म में कितने उतरे हैं। उस पर आपको हर एक धर्म खरा है या नहीं पता चलेगा। जैसे एक छोटी सी बात है कि हमको मादकता नहीं करनी चाहिए। हमें कोई मादक पदार्थ नहीं लेना चाहिए सहजयोग में। आप जानते हैं कि मादक पदार्थ लेने वाले लोगों की नाभी पकड़ जाती है और वॉइड भी पकड़ जाता है और ऐसे लोग पार नहीं हो सकते हैं। अब देखिये जो लोग शराब पीते हैं वो एक तो स्वयं से प्यार नहीं करते हैं। उनको मालूम है कि शराब या कोई भी मादक पदार्थ से हमको नुकसान होने वाला है। अपने घर वालों का नुकसान होता है। जो आदमी खुद शराब पीता है, उसके घर वाले भूखे रहते हैं। उसके बच्चों के सामने क्या मॉडेल | रहता है? उसके बच्चे देखते हैं कि मनुष्य सुबह से शाम तक शराब पीता है। उसका समाज में क्या व्यवहार होता है। वो शराब के आगे दुनिया में कोई भी चीज़ का महत्व नहीं रखता है। प्रेम का स्वरूप आप हर एक धर्म में देख सकते हैं जिसको कि हम दस धर्मों के नाम से जानते हैं। हर एक धर्म में आप अगर प्रेम का व्यवहार करें तो आप समझ जाएंगे कि प्रेम ऐसी चीज़ है कि जैसे सोने को परखना होता है उसी तरह आपको अपना हर एक धमर्म परखना पड़ेगा। आप में से बहुत लोग कहते हैं कि हम लोग खान-पान का बहुत विचार रखते हैं। इनका मतलब ये है कि हम सौ मर्तबा हाथ धोते हैं फिर हम इतना ही खाना खाते हैं, उतना ही खाते हैं, हम दस मर्तबा उपवास करते हैं और दुनिया भर की सबको तकलीफ़ देते हैं। आपको अगर खाने की इतनी परेशानियाँ हैं तो आप कभी किसी के घर मत जाईये, ये सबसे बड़ी अच्छी बात है। जहाँ जो मिल जाए सो खा लेना चाहिए लेकिन उसमें भी एक बात को जानना चाहिए कि जो भी दे रहा है आपको खाने के लिए, वो प्रेम से दे रहा है कि नहीं दे रहा है। अगर वो आपको प्रेम से नहीं दे रहा है तो आपको खाने की जरूरत नहीं है। आप उसको अस्वीकार कर सकते हैं या किसी तरह से उसे टाल सकते हैं कि नहीं हमें खाना नहीं खाना है। सिर्फ एक ही चीज़ देखनी है कि वो आदमी आपको फिर से खाना दे रहा है या नहीं। लेकिन अगर वही बात आप शराब पर लगायें कि अगर कोई आदमी आपको प्रेम से शराब दे रहा है तो आपको पीना चाहिए कि नहीं ? तो १८ প to) 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-18.txt २े जो कठोरता पूर्ण ी दूसरों से व्यवहार *० करता होगा, उसका हृदय आत्मा के दर्शन से वंचित रहेगा। १९ ० 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-19.txt बिल्कुल भी नहीं पीना चाहिए क्योंकि जो आपको शराब पिला रहा है वो खुद भी शराबी है, माने वो अपने से प्रेम नहीं करता और आपको भी गन्दे काम सिखा रहा है कि जिससे आप भी, किसी से प्यार न करें। आजकल आप किसी आदमी के यहाँ खाना खाने जाएं और जिसने आपको बहुत प्रेम से खाना खिलाया है उस प्रेम के वाइब्रेशन्स से आपके अन्दर भी ये इच्छा होगी कि मैं भी किसी को अपने हाथ से खाना बनाकर प्रेम से खिलाऊं। जब आप प्रेम बाँटते हैं तो प्रेम बढ़ता है और जब आप घृणा बॉटते हैं तो घृणा बढ़ती है। हर एक सहजयोगियों को ये सोचना चाहिए कि जब तक वो प्रेम के मार्ग में उतरता नहीं, जब तक उसने प्रेम में पूरी तरह से अपने को समर्पित नहीं किया तब तक उसका सहजयोग लाभान्वित नहीं होगा। वाइब्रेशन्स हैं, सबको काफी वाइब्रेशन्स आ रहे हैं और सब लोग सोचते हैं कि हमारे अन्दर से शक्ति बह रही है। बहुत से लोगों के हाथ से अनेक लोग ठीक भी हो गये हैं। अनेक लोगों के फायदे भी हो गये हैं, ये भी बात मान्य है, लेकिन सब बातें करते वक्त हम प्रेम को कहाँ रखते हैं ये भी देखना चाहिए। किसी भी बड़े अवतरणों की बात करते वक्त हमें ये ख्याल होना चाहिए कि हर अवतरण में प्रेम के दर्शन अत्यन्त सुन्दर और मधुर हुए हैं। कृष्ण के दर्शन में भी आप देखिए कि विदुर के घर का खाना कृष्ण ने प्रेम से खाया था। कहते हैं 'दुर्योधन का मेवा त्याजो, विदुर घर साग खाईं, सबसे ऊँची प्रेम सगाई।' क्राइस्ट के जन्म में देखिये आप कि, एक प्रोस्टिट्यूट को लोग एक पत्थर से मार रहे थे और तब क्राइस्ट था कि जिनको कि प्रोस्टिट्यूट से कोई मतलब नहीं, वो जाकर के वहाँ खड़े हो गये और उन्होंने ये कहा 'जिसने कभी भी कोई पाप नहीं किया हो वो इस औरत पर पत्थर मार सकता है, पर पहला पत्थर मुझे मारे' और सबके हाथ रूक गये। ये सभी कार्य प्रेम में होता है। प्रेम पैसे से नहीं आता है। प्रेम दिखावे से नहीं आता है। प्रेम बोलने से नहीं आता है। प्रेम अन्दर ही अन्दर जानने से होता है कि परमेश्वर की हमारे ऊपर कितनी अनन्त कृपा है। विशेषकर सहजयोगियों को सोचना चाहिए, जैसे कि अभी किसी ने प्रश्न पुछा कि इसी जन्म में क्यों हो गया ? इसी जन्म में क्यों हमने पाया है, क्योंकि ढ़राया हुआ है उनकी करुणा, उनका प्रेम। वो आपके अन्दर ढराया हुआ है और जितना आपके अन्दर ये सूक्ष्म, अति सूक्ष्म रास्ता बनाते जाएगा वैसी ही इस प्रेम की सम्वेदना भी आपके अन्दर गहरी होती जाएगी। लेकिन बार-बार यही बात है कि ये उथले लोगों का काम नहीं है। छोटी तबियत लोगों का काम नहीं है । जो लोग रात-दिन इसको-उसको क्रिटीसाइज करते रहते हैं, जिनका काम ही होता है इनको उनको भला-बुरा कहना, उनका ये काम नहीं है। जिन्होंने प्रेम किया है संसार में जिन्होंने हर जगह इसकी पदवी पाई कि ये बड़ा प्रेमपूर्ण आदमी है, आप भी अपने जीवन में देखिये कि जब भी कभी आपको याद आता है तो उसी आदमी को आप याद करते हैं जिसने नितान्त प्रेमपूर्वक आप से व्यवहार किया हो । आपको कोई कितना भी रूपया दे दें उसकी याद नहीं आती है। आपसे कोई कितना भी कोई बड़ा मान दे दें कोई आपको उच्च जगह पहुँचा दें, आपको उसकी उसी वक्त याद आती है जिसने आपको अत्यन्त प्रेम दिया हो । सारे धर्म को अपने अन्दर जितने भी धर्म बसे हैं, उसे प्रेम से जानना चाहिए। धर्म की जो व्याख्यायें हमारी यहाँ जो बनायी गयी है वो इतनी संकुचित है कि प्रेम की जगह उसकी घृणा ही होती है। माने एक ऐसा धर्म बनाया हुआ है, जैसे कि ' एक विधवा स्त्री है, उसको किसी के साथ खाना नहीं खाना चाहिए।' ये कहाँ का धर्म हो सकता है। ये कहीं का भी धर्म नहीं हो सकता है। कोई स्त्री अगर विधवा हो, चाहे पुरुष विधवा हो ये उसके ऊपर उढारा घात है। जब ऐसे ही उसके ऊपर २० 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-20.txt जब आप प्रेम बाँटते हैं तो प्रेम बढता ह बाँटते हैं और जब आप घृणा बॉटते हैं। तो घृणा बढ़ती है। बर भ 12'9 १ २१ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-21.txt इतनी बड़ी आफ़त आ गयी है तब एक सहजयोगी को चाहिए कि उसके साथ पूरी तरह से तन्मय होकर के उसकी पूरी मदद करें और उसको एक सांत्वना दें। बजाय इसके कि उसको सतायें, उसको तकलीफ़ दें। ये अधर्म है। किसी भी धर्म के नाम पर अगर अधर्म किया जाए तो वो धर्म नहीं हो सकता है। इसी प्रकार अनेक किसी को शुद्र बना कर के किसी को खराब बता कर के उससे घृणा करने का जो धर्म सीखना है, वो धर्म नहीं है। हमारे सहजयोग में ऐसे धर्म की कोई भी किसी प्रकार की भी व्यवस्था नहीं हो सकती है। जो असली धर्म है वो वही धर्म है जिससे प्रेम उत्पन्न होता है। दूसरे तरह के भी अनेक धर्म हैं जैसे कि हम ये मिठाई नहीं खाएंगे आज, ये उपवास करेंगे आज । जिससे हम दूसरों को तकलीफ दे सकते हैं ऐसे धर्म कभी भी धर्म नहीं हो सकते हैं। तीसरे तरह के ये कि चाहे घर में पैसा हो या ना हो हम मन्दिरों में जाएंगे, हम वहाँ जाकर के पैसा लुटाएंगे। हम वहाँ जाकर के पण्डितों को पैसा देंगे और इन लुटेरों को हम पैसा लुटायेंगे। ये भी कोई धर्म नहीं हो सकता है। अपने घर के बाल बच्चों को, जिनको खाने को नहीं है, अपने बच्चे के तरफ़ जब हमारा ध्यान नहीं है। हम जब अपने घर वालों को देख नहीं सकते, इस तरह का व्यर्थ समय बर्बाद करने वालों का भी धर्म नहीं कहना चाहिए । मैं यहाँ तक कहूँगी कि मनन शक्ति में भी अगर मनुष्य अपना समय बर्बाद कर रहा है और अपने घर वालों को भी भूखा मारे, तो ऐसे मनन से भी अच्छा है कि आदमी मनन न करें। धर्म | का मतलब है कि सबके प्रति प्रेम की पूर्ण व्यवस्था रखना। प्रेमपूर्वक सबके तरफ जागरूक रहना, यही धर्म है और जब तक ये धर्म को आप पाईयेगा नहीं तब तक आप धर्मातीत नहीं हो सकते हैं। धर्मातीत जब मनुष्य हो जाता है तब | वह प्रेमी हो जाता है। उसमें और कुछ बच ही नहीं जाता है। वो जो भी करता है सब प्रेम में ही करता है। जैसे श्रीकृष्ण का संहार, जब वो किसी का संहार भी करते हैं तो वो प्रेम में ही होता है । जब ईसा मसीह ने अपने हाथ में हंटर लेकर लोगों को मारना शुरू कर दिया क्योंकि वो मन्दिरों में बैठकर बाजार कर रहे थे , वो भी प्रेम है। उसकी हर एक चीज़ ही प्रेम हो जाती है और तब आदमी धर्मातीत हो जाता है। उसके लिए कोई अधर्म नहीं बच जाता है सिर्फ प्रेम ही प्रेम रह जाता है। वो जो भी कहता है, जो भी करता है, जो भी बोलता है, जो भी खाता है, जो भी पीता है, सब धर्म में ही करता है और धर्म वही होता है जो कि प्रेम होता है| हमारे सहजयोग में मैं अनेक बार देखती हूँ कि आप मानव हैं और मानव से अति मानव होने के बाद भी आप इस बात को समझते नहीं है कि प्रेम की व्यवस्था सबसे बड़ी व्यवस्था है। प्रेम के प्रति जागरूक होना है। कोई मनुष्य है, वो अगर अपनी पत्नी को मारता है और अगर कोई पत्नी है वो अपने पति को सताती है और वो अगर अपने को बहुत बड़ा सहजयोगी समझती है तो उसे ये समझ लेना चाहिए कि ये महापाप है। किसी को भी सताने की व्यवस्था सहजयोग में नहीं है। किसी को भी मारने की व्यवस्था सहजयोग में नहीं है। आप किसी तरह से भी हाथ फेरे, उसके अन्दर से सिर्फ प्रेम ही की शक्ति बहेगी और प्रेम की शक्ति से हमेशा दसरों का हित ही होगा, अहित नहीं हो सकता है। आप कितनी भी कोशिश करें आप किसी का अहित नहीं कर सकते। हाँ, अगर आप सहजयोग से हट जायें या गिर जायें, आप का पतन हो जाये तो आप जरूर अहित कर सकते हैं। ने धर्म के प्रति, आज तक हर एक धर्मों में भी लोगों बहुत, पूरी तरह से खुलकर इस बात को बताया हुआ है। इसी ने इस बात को बताया है; ऐसा नहीं है। लेकिन मनुष्य हमेशा मिथ्या की ओर दौड़ता है इसलिए धर्म का जो भी विपरीत रूप बन जाता है, उसी को हम मान लेते हैं। जैसे ईसा मसीह ने बताया है कि 'तुमको भूत और प्रेत, इन सब | २२ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-22.txt चीज़ों से काम नहीं लेना चाहिए।' मोहम्मद साहब ने बताया है कि 'आपको शराब आदि चीज़ों का सेवन नहीं करना चाहिए।' राजा जनक ने बताया है कि 'आपको परमेश्वर में लीन, परमेश्वर के सामने हमेशा हर एक इन्सान को एक ही दृष्टि से देखना चाहिए।' नानक ने बताया है कि 'सारे संसार में, हर एक मनुष्य में परमात्मा का वास है।' उन्होंने भी मादक पदार्थ को एकदम मना किया है, लेकिन उनके धर्म को जो मानने वाले हैं और अपने को जो बहुत बड़े धार्मिक कहलाते हैं और कहते हैं कि हम बड़े भारी नानक के, बड़े-भारी सपोर्टर्स हैं, वो लोग आज क्या कर रहे हैं? क्राइस्ट के जो सपोर्टर्स हैं वो लोग आज क्या कर रहे हैं? इसामसीह ने सबसे बड़ी चीज़ बतायी थी कि मनुष्य को अबोध-बच्चे जैसा होना चाहिए। खास कर सेक्स के मामले में तो ईसामसीह ने बताया था कि मनुष्य को बहुत ही celibate बहुत ही अत्यन्त, व्यवस्थित, विवाहित रूप से ही सेक्स का इस्तेमाल करना चाहिए। लेकिन उनके शिष्यों ने आज क्या हालत कर रखी है। उन्होंने क्या व्यवस्था करके रखी है। वो किस तरह चल रहे हैं, उनको देखिये तो आश्चर्य होता है कि क्या ये ईसामसीह के ही ईसाई है? हिन्दू धर्म की एक बहुत बड़ी व्याख्या है, बहुत बड़ी बात कही गयी है कि सबके अन्दर एक ही आत्मा का वास है और हम अनेक बार जन्म संसार में लेते हैं, अनेक बार इसको खोजते हैं इसलिए एक ही जन्म में इन सब चीज़ को खोज ड़राला है। जब हम अनेक बार जन्म लेते हैं तब हम ऐसे कैसे कह सकते हैं कि कोई मुसलमान है, कोई हिन्दु है। हम ऐसे कैसे कह सकते हैं कि कोई निम्न है और कोई उच्च है। अनेक बार मैं आपको ये समझाती हूँ और आप भी इस बात को समझ लें कि प्रेम में जब तक आप पूरी तरह से लीन नहीं होंगे, सहजयोग इस संसार में | बैठने वाला नहीं है। जब आप प्रेममय हो जाएंगे एक प्रेम का फूल अगर कहीं खिल जायें तो आने लगेगी । आप भी अपने जिन्दगी में सोचें, एक इन्सान सारे संसार में उसकी खुशबू जिसको आपने पाया था कभी, उसने कितना आपको प्रेम दिया था? ऐसा एक भी आदमी कहीं हो तो आपको आश्चर्य होगा कि उसके पीछे हजारों घूमते हैं और उससे प्रेम की याचना करते हैं । उसको मानते हैं, लेकिन वो लोग जो कि झूठ बोलकर के, प्रेम का दम भर कर लोगों को लूटते हैं, उनको खसोटते हैं, उनसे झूठ बोलते हैं, ऐसे लोगों को मनुष्य बड़ी जल्दी छोड़ देता है। प्रेम ऐसी चीज़ है जो हृदय तक पहुँचती है और उसी की चाव सबसे ज़्यादा होती है मनुष्य को अबोध-बच्चे और यही परमात्मा का सबसे बड़ा धर्म है। पर परमेश्वर का कोई सा भी धर्म हो या अगर जैसा उसका कोई तत्व हो, तो वो सिर्फ प्रेम है। आप अपने-अपने प्रेम तत्व पर थोड़ा सा मनन करें । सब लोग अपने प्रेम तत्व की ओर देखें कि हमने कहाँ तक प्रेम किया हआ है। हमें संसार में कितने लोगों से प्रेम है! होना चाहिए। अनन्त आशीर्वाद! २३ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-23.txt ा द ०थ हुि मेरे चरण कमलों की मालिश करते हैं तो आपको अच्छा लगता है, OIe मुझे नहीं 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-24.txt आप मेरे हाथों की मालिश करते हैं तो आपको अच्छा लगता है; अपनी भौतिक कुण्ठाओं पर नियन्त्रण प्राप्त करना, पूजा का सार है। पूजा महत्त्वपूर्ण है परन्तु अपनी भौतिक कुण्ठाओं पर नियन्त्रण किस प्रकार प्राप्त किया जाए ? अपने लिए जब हमें कोई भौतिक पदार्थ की इच्छा होती है तो हमें ये जान लेना चाहिए कि ये पदार्थ परमात्मा ने हमें प्रदान किया है। हर चीज़ परमात्मा की है। तो हम यदि परमात्मा को पुष्प अर्पण करते हैं तो पुष्प परमात्मा का ही सृजन है, हम क्या अर्पण कर रहे हैं? परमात्मा को हम दीप दिखाते हैं, या परमात्मा की आरती करते हैं तो क्या? ये प्रकाश भी तो परमात्मा का ही है! हम क्या करते हैं? परन्तु परमात्मा को प्रकाश दिखाने से हम अपने अन्दर के प्रकाश की करते हैं। हमारे अन्दर प्रकाश-तत्व ज्योतिर्मय हो उठता है। प्रकाश तत्व यहाँ पूजा आज्ञा तक है। जब आप आरती करते हैं या परमात्मा के सम्मुख दीपक जलाते हैं, जब आप परमात्मा को प्रकाश दिखाते हैं तो आपके अन्दर प्रकाश तत्व ज्योतिर्मय हो उठता है। अब आप पुष्प अर्पण करते हैं तो मूलाधार ज्योतिर्मय हो जाता है। जब आप मधु अर्पण करते हैं तब आपका चित्त प्रबुद्ध होता है। तो क्यों हम ये सब परमात्मा को अर्पण करते हैं? आखिरकार परमात्मा को तो कुछ भी नहीं चाहिए। परन्तु परमात्मा भोक्ता हैं । आप भोक्ता नहीं हैं। आप भोग नहीं सकते। आपके अन्दर परमात्मा भोक्ता हैं। जब परमात्मा वहाँ पर होते हैं तो वे आनन्द उठाते हैं, अर्थात् आत्मा। अत: आपकी आत्मा को जो चीज़ अच्छी लगती है उसका उपयोग पूजा-अर्चना करने के लिए किया जाता है। अब आप मुझे अक्षत भेंट करते हैं, इन सभी चीज़़ों की खोज की गई है कि आप देवी को अक्षत भेंट करें, अक्षत उनकी झोली में अर्पण करें। अब इन थोड़े से चावलों का देवी के लिए क्या महत्व है? अक्षत देवी की झोली में डालने से आपके अन्दर भोजन प्राप्त करने की सन्तुष्टि या जो भोजन आपको सन्तुष्टि प्रदान करता है वह सन्तुष्टि, ज्योतिर्मय हो उठती है। परन्तु इसका अर्थ ये भी नहीं है कि आप मेरे ऊपर इन चीज़ों की वर्षा करते रहें। इसका अर्थ ये नहीं है। मैं ये कहने का प्रयत्न कर रही हूँ कि ये सब अत्यन्त गरिमा और सूझ-बूझ पूर्वक करें। आप मुझे अक्षत भेंट करते हैं। लोगों को ये बात समझ नहीं आती कि परमात्मा को चावल क्यों भेंट किए जाते हैं? आखिरकार उन्हें ताड़पत्र क्यों भेंट करने चाहिए? परमात्मा आपके लिए क्या करने वाले हैं? ईसामसीह यदि परमात्मा पुत्र हैं तो उन्हें ताड़पत्र या तेल २५ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-25.txt अर्पण करने का क्या लाभ है? या उनके चरणों की तेल मालिश का क्या लाभ है? ये सब इसलिए है कि आपको लाभ प्राप्त हो। सहजयोग में ये प्रमाणित हो गया है कि जब आप मेरे चरण कमलों की मालिश करते हैं तो आपको अच्छा लगता है, मुझे नहीं। आप मेरे हाथों की मालिश करते हैं तो आपको अच्छा लगता है; आप मेरे चरणों में गिरते हैं तो आप बेहतर महसूस करते हैं। (एक सहजयोगिनी की तरफ इशारा करते हुए) ये महान है। तुम क्या कर रही हो? आह!.....प्रत्यावर्तन विज्ञान.....बड़ा नाम है.... प्रत्यावर्तन विज्ञान.... और उसे पैरों आदि का ज्ञान है....। एक दिन उसने कहा, 'श्री माताजी में आकर आपके चरण कमलों की मालिश करना चाहती हूँ। बजाय इसके कि मुझे आराम मिलता, उसे आराम मिलने लगा , जितनी अधिक वो मालिश कर रही थी उतना ही अधिक आराम उसे मिल रहा था। अत: जब आप परमात्मा के लिए कुछ करते हैं तो आपको आशीर्वाद प्राप्त होते हैं, आप आशीर्वादित होते हैं। आपको जो भी समस्या हो, समाधान के लिए वह आप परमात्मा को दे दें । जिनसे आपको सन्तुष्टि मिलती है वह भी परमात्मा पर छोड़ दें। आपको सन्तुष्टि मिल जाएगी। ये फूल जब आप मुझे अर्पण करते हैं-तो ये आपको दो चीज़ें प्रदान करते हैं - (बेहतर) स्वाधिष्ठान और मूलाधार। इसलिए पुष्प अर्पण करना महत्वपूर्ण है। ये अच्छा स्वाधिष्ठान प्रदान करते हैं। फूल यदि सुन्दर हों तो ये स्वाधिष्ठान को बेहतर बनाते हैं। अर्पण किए जाने वाले पुष्प यदि सुरभित हों तो आपका मूलाधार ठीक होता है। कहने से अभिप्राय ये है कि फूलों का भी कोई अन्त नहीं है। परन्तु इसके विषय में सोचें कि आप अपने चक्रों को सुधारने के लिए ऐसा कर रहे हैं। फिर अन्य चीज़ें जो पूजा में उपयोग होती हैं जैसे घी का उपयोग होता है, यह....श्रीकृष्ण को घी और मक्खन बहुत पसन्द है। जब आप मेरे चरणों पर घी की मालिश करते हैं तो आपकी विशुद्धि बेहतर होती है, ये बात आप जानते हैं (आपकी विशुद्धि) मेरी नहीं। मुझे कोई समस्या नहीं है। मेरी एकमात्र समस्या ये है कि आप मेरे अन्दर हैं। जब आपको समस्या होती है तो मुझे समस्या होती है क्योंकि इन चैतन्य- लहरियों ने आपकी ओर जाना होता है, मैं 'प्रतिकारक' के रूप में इन चैतन्य-लहरियों को यहाँ तैयार करती हूँ और उन्हें प्रवाहित होना होता है। समझने के लिए यह अति सूक्ष्म बात है। स्थूल क्योंकि पहले आप अपने चक्रों को ज्योतिर्मय करते हैं, चक्र ज्योतिर्मय होने पर आपके से आत्मा की ओर जाना, ये वो चीज़ है जिससे आप चलते हैं देवी-देवता प्रसन्न होते हैं, और जब देवी- देवता प्रसन्न होते हैं तो कुण्डलिनी को ऊपर उठने का रास्ता प्राप्त होता है। मार्ग बनने पर कुण्डलिनी ऊपर उठती है और आपके चित्त का समन्वय आत्मा से होने लगता है। एक-एक कदम आप स्थूल पदार्थ से सूक्ष्म पदार्थ की ओर बढ़ते हैं, सूक्ष्म पदार्थ से अपने चक्रों की ओर, चक्रों से अपने देवी- देवताओं की ओर तथा देवी- देवताओं से आत्मा की ओर। प.पू.श्री माताजी, लन्दन, २७.९.१९८० २६ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-26.txt साबूदाना वड़ा ७ ह र क सामग्री :- 60 ग्राम साबूदाना, 200 ग्राम उबले आलू कद्दूकस हुए, 2 बड़े चम्मच बारीक कटा हुआ हरा धनिया, 1 हरी मिर्च बारीक कटी हुई (इच्छानुसार) 1 छोटा चम्मच जीरा पाऊडर, '/2 छोटा चम्मच गर्म मसाला, » छोटा चम्मच काली मिर्च पाऊडर, 8 करी पत्ता कटा हुआ नमक स्वादानुसार, तेल तलने के लिए विधि :- 1) साबूदाना पानी में धोकर छानें। थोड़ा पानी रहने दें ताकि साबूदाना गीला रहे। दो घण्टे तक छोड़ दें। 2) कटोरे में तेल को छोडकर साबूदाना एवं सारे पदार्थ मिलाएं और चिकना सान लें। 3) इसे 8-10 भागों में बाटें और गोल, चपटी और एक सें. मी. मोटी पैटीज़ बनाएं। सुनहरा होने तक तलें या घी में गहरा तलें। चटनी या कैचप के साथ गर्म परोसें। (श्री माताजी द्वारा लिखित ' Cooking with Love' से लिया गया है।) २७ पलवाल Eव॥ न ८४ िनि न रज बा परारतत पक 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-27.txt आज़ा चक्र खराब होने का कारण..... अब आज्ञा चक्र किस कारण से खराब होता है वह देखते हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का मुख्य कारण आँखें हैं। को अपनी आँखों का बहुत ध्यान रखना चाहिए। क्योंकि उनका बड़ा महत्व है। मनुष्य अनाधिकृत गुरु के सामने झुकने अथवा उनके चरणों में अपना माथा टेकने से भी आज्ञा चक्र खराब हो जाता है। इसी कारण जीसस ख्रिस्त ने अपना माथा चाहे जिस आदमी या स्थान के सामने झुकाने को मना किया है। ऐसा करने से हमने जो कुछ पाया है वह सब नष्ट हो जाता है। केवल परमेश्वरी अवतार के आगे ही झुकाना ठीक नहीं है । किसी अपना माथा टेकना चाहिए। दुसरे किसी भी व्यक्ति के आगे अपने माथे को गलत स्थान के सम्मुख भी अपना माथा नहीं झुकाना चाहिए। ये बात बहुत ही महत्वपूर्ण है। आपने अपना माथा गलत जगह पर या गलत आदमी के सामने झुकाया तो तुरन्त आपका आज्ञा चक्र खराब होगा। इसका कारण है लोग गलत जगह माथा टेकते हैं या गलत गुरु को मानते हैं। आँखों के अनेक रोग इसी कारण से होते हैं। ये चक्र स्वच्छ रखने के लिए मनुष्य को हमेशा अच्छे पवित्र धर्म ग्रन्थ पढ़ना चाहिए। अपवित्र साहित्य बिल्कुल नहीं पढ़ना चाहिए। बहुत से लोग कहते हैं, 'इसमें क्या हुआ? हमारा तो काम ही इस ढंग का है कि हमें ऐसे अनेक काम करने पड़ते हैं जो पूर्णतः सही नहीं हैं।' परन्तु ऐसे अपवित्र कार्यों के कारण आँखें खराब हो जाती हैं। मेरी ये समझ में नहीं आता कि जो बातें खराब हैं वह मनुष्य क्यों करता है? किसी अपवित्र व गन्दे मनुष्य को देखने से भी आज्ञा चक्र खराब हो सकता है। श्री ख्रिस्त ने बहुत ही जोर से कहा | था कि, आप व्यभिचार मत कीजिए । परन्तु मैं आपसे कहती हूँ कि आपकी नजर भी व्यभिचारी नहीं होनी चाहिए । उन्होंने बलपूर्वक कहा था कि आपकी नज़र अपवित्र होगी तो आपको आँखों की तकलीफें होंगी। इसका मतलब ये नहीं कि अगर आप चश्मा पहनते हैं तो आप गलत व्यक्ति हैं। किसी एक उम्र के बाद चश्मा लगाना पड़ता है। ये जीवन की आवश्यकता है। परन्तु आँखें खराब होती हैं अपनी नज़र स्थिर न रखने के कारण। बहुत लोगों का चित्त बार-बार इधर-उधर दौड़ता रहता है। ऐसे लोगों को ये समझ नहीं होती है कि अपनी आँखें इस प्रकार इधर -उधर घुमाने के कारण ये खराब होती हैं। आज्ञा चक्र खराब होने का दूसरा कारण मनुष्य की कार्य पद्धति। समझ लीजिए आप बहुत काम करते हैं, अति कर्मी हैं। अच्छे काम करते हैं, कोई भी बुरा काम नहीं करते। परन्तु ऐसी अति कार्यशीलता की वजह से, फिर वह अति है पढ़ना हो, अति सिलाई हो या अति अध्ययन हो या अति विचारशीलता हो। इसका कारण है कि जिस समय आप अति कार्य करते हैं उस समय आप परमात्मा को भूल जाते हैं। उस समय अपने में ईश्वर प्रणिधान स्थित नहीं होता। मुंबई, भारत, २७.०९.१९७९ २८ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-28.txt किसी एक उम्र काभ के बाद चश्मा लगाना पड़ता है। ১ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-30.txt अमावस्या और पूर्णमासी IR की रात को जल्दी सो जाएं..... आपने पूछा था कि पाने के बाद क्या करना है? पाने के बाद देना ही होता है, यह बहुत परम आवश्यक चीज़ है कि पाने के बाद देना ही होगा। नहीं तो पाने का कोई अर्थ ही नहीं । और देने के वक्त में एक बात सिर्फ एक छोटी-सी बात याद रखनी है कि जिस शरीर से, जिस मन से, जिस बुद्धि से, माने इस पूरे व्यक्तित्व से, आप इतनी जो अनुपम चीज़ दे रहे हैं, वो स्वयं भी बहुत सुन्दर होनी चाहिए। आपका शरीर स्वच्छ होना चाहिए | शरीर के अन्दर कोई बीमारी नहीं होनी चाहिए। अगर आपको कोई बीमारी है-बहुत से सहजयोगियों को ऐसा भी होगा कि उनके अन्दर कोई शारीरिक बीमारी है तो सहजयोग से पहले तो वो कहते होंगे कि 'साहब, मुझे यह बीमारी ठीक होनी चाहिए, वो बीमारी ठीक होनी चाहिए,' लेकिन सहजयोग के बाद में उनका चित्त बीमारी की ओर नहीं रहेगा । जो भी हो 'अरे हो जाएगा ठीक, चलो बस ठीक है' ये बात भी गलत है, आपको कोई सी भी जरा सी भी तकलीफ हो जाए आप फौरन वहाँ हाथ रखें, अपनी तबियत ठीक कर सकते हैं। अपना शारीरिक पक्ष बहुत साफ रख सकते हैं। बहुत ज्यादा उसमें कुछ करने की जरूरत नहीं। स्नान करना है, स्वच्छता से रहना है और अपना शारीरिक पक्ष ठीक रखना है। जो भी हो आप लोगों के लिए मैंने एक इलाज बताया है। जैसे मैंने बताया है आपमें से हर एक प्रात: उठने के पश्चात् स्नानागार में जाकर स्वयं को स्वच्छ करें। कम से कम पाँच मिनट के लिए पानी पैर क्रिया करना भी सहजयोगियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है। आप चाहे जितने उन्नत हों, चाहे आपको बिलकुल पकड़ ना आती हो, फिर भी कम से कम पाँच मिनट के लिए आप पानी पैर क्रिया अवश्य करें। कभी-कभी तो मैं स्वयं भी यह क्रिया करती हूँ (यद्यपि मेरे लिए ऐसा करना आवश्यक नहीं है । ) ताकि सहजयोगी भी इस क्रिया को अपना लें। यह आदत बहुत ही अच्छी है। एक पाँच मिनट पानी में सब सहजयोगियों को बैठना चाहिए। फोटो के समुख दीप जलाएँ, कुमकुम लगाएं, अपने दोनों हाथ फोटो की ओर खोल कर, दोनों पैर नमक वाले पानी में रखकर सब सहजयोगियों को बैठना चाहिए । आपकी आधी से ज़्यादा समस्याएं हल हो जाएंगी, अगर आप यह करें। चाहे कुछ हो जाए, आपके लिए पाँच मिनट कुछ मुश्किल नहीं हैं। सोने से पहले पानी में सबको बैठना चाहिए। इससे आपकी आधी से ज़्यादा समस्याएं ठीक हो जाएंगी। हमारे अन्दर स्वयं ही दुष्ट प्रवृत्तियाँ हैं। हमारे ही अन्दर स्वयं बहत सी अंधकारमय प्रवृत्तियाँ हैं जिसे नकारात्मकता कहते हैं। पूरी ताकत से वे हमें प्रभावित करने का प्रयत्न करती हैं। उनके नियन्त्रण में रहना मतलब शैतान के नियन्त्रण में रहना है। आप चाहें तो शैतान बन सकते हैं और आप चाहें तो परमात्मा बन सकते हैं। शैतान अगर बनना है तो बात दूसरी है। उसके लिये मैं गुरु नहीं हूँ। भगवान बनना है तो उसके लिये मैं गुरु हूँ। लेकिन शैतान बनने से स्वयं को बचाएँ। ३१ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-31.txt पहली चीज़ है कि अमावस्या की रात या पूर्णिमा की रात दायें और बायें पक्ष को प्रभावित होने का भय होता है। दो दिन विशेष कर अमावस्या की रात्रि को और पूर्णिमा की रात्रि को बहुत जल्दी सो जाना चाहिए। भोजन करके, फोटो के सामने नतमस्तक होकर, ध्यान करके, चित्त को सहस्रार पर रखें तथा बन्धन लेकर सो जाएं। इसका अर्थ यह है कि जिस क्षण आप अपने चित्त को सहस्रार पर ले जाते हैं उसी क्षण आप अचेतन में चले जाते हैं। उस स्थिति में स्वयं को बन्धन दें तो आपको सुरक्षा प्राप्त हो जाती है। विशेष रूप से इन दो रातों को। और जिस दिन अमावस्या की रात्रि हो उस दिन, विशेष कर अमावस्या के दिन, आपको शिवजी का ध्यान करना चाहिए। शिवजी का ध्यान करके, स्वयं को उसके प्रति समर्पित करके सोना चाहिए, और पूर्णिमा के दिन आपको श्री रामचन्द्रजी का ध्यान करना चाहिए। उनके ऊपर अपनी नैया छोड़कर। है सृजनात्मकता। सारी सृजनात्मक शक्तियाँ पूरी तरह से उनको समर्पित रामचन्द्रजी का मतलब कर दें । इस तरह से इन दो दिन अपने को विशेष रूप से बचाना चाहिए। हालांकि, शुक्ल पक्ष सप्तमी और नवमी को विशेषकर आपके ऊपर हमारा आशीव्वाद रहता है। सप्तमी और नवमी के दिन इस बात का ध्यान रखना कि इन दो दिनों मे आपको मेरा विशेष आशीर्वाद मिलता है। सप्तमी और नवमी के दिन जरूर कोई ऐसा आयोजन करना जिसमें आप ध्यान अच्छी तरह से करें। किसी ऐसे व्यक्ति से यदि आपका सामना हो जिसे आज्ञा की पकड़ हो तो तुरन्त बन्धन ले लें चाहे यह बन्धन चित्त से ही क्यों न लेना पड़े। आज्ञा की पकड़ वाले व्यक्ति से वाद-विवाद न करें। ऐसा करना मूर्खता है। किसी भूत से क्या आप वाद-विवाद कर सकते हैं ? जिसका विशुद्धि चक्र पकड़ा है, उससे भी वाद-विवाद नहीं करना चाहिए। सहस्रार से पकड़े हुए व्यक्ति के पास कभी न जाएं, उससे कोई सम्बन्ध न रखें। उसे बताएँ कि पहले अपने सहस्रार को ठीक करो। उसे ये बताने में कोई संकोच नहीं होना चाहिए कि 'आपका सहस्रार पकड़ा हुआ है इसे ठीक कर दें।' सहस्रार स्वच्छ रखा जाना चाहिए। किसी को यदि सहस्रार पर पकड़ आने लगे तो उसे चाहिए कि तुरन्त अन्य सहजयोगियों से प्रार्थना करें कि 'कुछ करें और मेरा सहस्रार ठीक कर दें।' सहस्रार की पकड़ वाला व्यक्ति यदि आप से बात करता है, तो उसे बता दिया जाना चाहिए कि वह आपका दुश्मन है, शत्रु है। उस आदमी से बिल्कुल उस वक्त तक बात नहीं की जानी चाहिए जब तक उसका सहस्रार पकड़ा है। अब रही हृदय चक्र की बात। जिस मनुष्य का हृदय चक्र पकड़ा है उसकी सहायता करें। बैठकर जहाँ तक सम्भव हो उसके हृदय को बन्धन दें। श्री माताजी के फोटोग्राफ के सम्मुख उसका एक हाथ हृदय पर रखवाएं। हृदय चक्र के विषय में आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। कभी भी व्यक्ति को हृदय चक्र की समस्या हो सकती है। अपने हृदय चक्र को अवश्य शुद्ध परन्तु बहुत से लोगों में हृदय ही नहीं होता। वे इतने शुष्क व्यक्तित्व होते हैं। चाहते हुए भी आप ऐसे लोगों के लिए कुछ नहीं कर सकते। फिर भी यदि वे आपसे प्रार्थना करें तो उन्हें सलाह दें कि हठयोग को छोड़ दें, भिन्न कार्यों के बोझ से स्वयं को मुक्त करें, अन्य लोगों से प्रेम करना सीखें। यदि वे एकदम से किसी मनुष्य को प्रेम नहीं कर सकते तो पहले पालतु पशुओं से प्रेम करें। आपको चाहिए कि सभी से प्रेम करें। भारतीय विद्याभवन, बम्बई, २९.५.१९७६ ३२ 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-32.txt ि कपी बी बाम गा आपको अपना सिर ढकने का प्रयत्न करना चाहिए। सहस्रार की देखभाल करने के लिए यह बहुत जरूरी है कि आप सर्दियों में अपना सिर ढकें। सर्दियों में सिर ढकना अच्छा है ताकि मस्तिष्क ठण्ड से ना जमे, क्योंकि मस्तिष्क भी मेधा (फैट) का बना होता है। और फिर मस्तिष्क को बहत ज्यादा गर्मी से भी बचाना चाहिए। अपने मस्तिष्क को ठीक रखने के लिए, आपको हर समय धूप में ही नहीं बैठे रहना चाहिए, जैसा कि कुछ पाश्चात्य लोग करते हैं। उससे आपका मस्तिष्क पिघल जाता है और आप एक सनकी मनुष्य बन जाते हैं, जो इस बात का संकेत है कि आपके कुछ समय बाद पागल होने की सम्भावना है। अगर आप धूप में भी बैठे तो अपना सिर ढके रखें। सिर ढकना बहत आवश्यक है। लेकिन सिर को कभी - कभी ढकना चाहिए, हमेशा नहीं। क्योंकि अगर आप हमेशा ही सिर पर एक भारी पट्टा बांधे रहें तो रक्त का संचार ठीक प्रकार से नहीं होगा और आपके रक्त संचार में तकलीफ होगी। अत: केवल कभी-कभी (हमेशा नहीं) सिर को सूर्य अथवा चन्द्रमा के प्रकाश में खुला रखना उचित है। यदि आप चाँद के प्रकाश में अत्याधिक बैठे तो पागल खाने, पहुँच जाएंगे। मैं जो भी कुछ बताती हूँ आपको समझना चाहिए कि सहजयोग में किसी भी चीज़ में 'अति' न करें । दिल्ली, ४.२.१९८३ ३३ XX 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-33.txt नव आगमन Type |Lang| DVD Sp/Pu VCD Place ACD ACS Date Title 13-Jul-86 Shri Kartikeya Puja Munich E 206 441* Schwetzingen Sp/Pu 31-Aug-90 Shri Hanumana Puja: Shri Hanuman, E 212 442* Electromagnetic Power 10-Dec-90|सार्वजनिक कार्यक्रम Sp 214 Loni 443* 16-Feb-91 M ahashivaratri Puja: 4 nadis of the heart, the 4th |Chianciano Sp/Pu E 88 444* state 6-Jun-04 Shri Adi Shakti Puja Cabella Sp/Pu E 123* 007 17-M ar-85 Birthday Puja M elbourne Sp E 202 445* 6-M ay-89 Sahastrar Puja : Jump into the Ocean of Love - Sorrento Sp/Pu E 039 288* 039* Part I & II 11-Dec-90|सार्वजनिक कार्यक्रम Shriramp ur Sp 215 446* 31-M ay-90 Public Program San Diego PP E 289* 447* 26-Aug-90|Shri Ganesha Puja Sp 211 Lanersbach E 064* 064 15-Dec-91 Shri Ganesha Puja Shere E/M Sp/Pu 290* 448* 10-Nov-96|Diwali Puja part-I & II Sp/Pu Lisbon 291* 150* 150 23-Jun-02|Shri Adishakti Puja - Your job is to create more Cabella Sp/Pu E 292* 237* 237 Sahaja Yogis 25-Dec-02 Christmas Puja: Take character of Christ as model Ganpatipule Sp/Pu E 046* 046 281 281* for y ou 10-Dec-80|सेमिनार Mumbai SP 364* M 364 भाग २ व ३ 10-Jun-82|Public Program- When are we going to grow Hampstead 399 PP 293* 11-Jul-82|Public Program- Becoming the knowledge Derby PP 431 294* 12-Jul-82|Shri Bhoomi Devi Puja PU Derby 295* San Diego 31-May-85 Shri Devi Puja 27-Dec-85 Puja at Bramhapuri-Knowledge of Roots PU E 449* 203 Bramhap uri E/H/M PU 450* 204 22-Feb-86|धर्म आचरण Delhi PP Н 84* 84 1-Nov-86|दिवाली H/M PU 451* Pune 207 ( श्री लक्ष्मी पूजा) पूजा 20-Dec-89|सार्वजनिक कार्यक्रम Shriramp ur 332* PP 332 26-Dec-89|सार्वजनिक कार्यक्रम Pune PP 333 333* 21-Jun-98|Shri Adishakti Puja Cabella PU 296* 175 175* 23-Apr-00 Easter Puja : Purity is the basis of your Istanbul E 207* 207 PU 297* existence Guided Meditation by Shri Mataji Gen E/M 298* Title |A rtis t ACD ACS Song List Kolkatta Collectivity 150* M angal Dhw ani Nirmal Sangeet Sarita Nirmal Dham 151* Maa Ke Charno Mein Meena Subedi 152* Nirmala Ge e th am Sangeetha Ram Prasad 153* Sw eden Children Collectivity Little G anesha 154 * प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in MI MI 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-34.txt आप स्वयं मंगवा सकते है भारत के किसी भी कोने से !!! आप अपने सहज साहित्य को उदा. किताबे, ऑडिओ, विडीओ कैसेट और सीडीज (प्रवचन और संगीत ), मैगज़िन्स, पेंडंट इ.नीचे दिये हुए किसी भी तरिके से मंगवा सकते हैं। १) आदेश (ऑर्डर) का पहला विधि + आप अपने ऑडिओ-विडीओ मटेरियल या किताबें, फोटोग्राफ्स इ . का चयन एनआयटीएल कैटलॉगद्वारा कर सकते हैं, जो www.nitl.co.in इस वेबसाइट पर हैं। ये एनआयटीएल के सभी प्रतिनिधींओं के पास भी उपलब्ध हैं। आप इस कैटलॉग को ई-मेल : sale(@nitl.co.in द्वारा भी मंगवा सकते हैं। * * आप अपना ऑर्डर एनआयटीएल तक फोन, ई-मेल, फैक्स द्वारा पहुँचा सकते हैं या एनआयटीएल के अधिकृत प्रतिनिधींओं से संपर्क कर सकते हैं। संपर्क : निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा.लि., प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरूड, पुणे ४११०३८. फोन नं. ०२०-२५२८६५३७, २५२८६०३२. फैक्स : +९१-२०-२५२८६७२२, ई-मेल : sale@nitl.co.in, मोबाईल नं.९७६३७४१०२७, ९७६७५८३८०८ २) आदेश (ऑर्डर) का दूसरा विधि आप हमारी वेबसाइट www.nitl.co.in पर ऑन-लाइन रजिस्ट्रेशन कर के भी ऑर्डर दे सकते हैं। इस साईट के शॉपिंग डेमो के लिंक पर आपको अधिक जानकारी मिल सकती है। आप अपनी रकम क्रेडिट कार्ड द्वारा ऑन-लाइन भर सकते हैं या एनआयटीएल के ऑन-लाइन शॉपिंग के माध्यम से मटेरियल का चयन कर के एनआयटीएल में उस रकम के डीडी या चेक नं. के बारे में सूचित कर के रकम अदा कर सकते हैं। (जानकारी के लिए शॉपिंग डेमो पर देखें) आप अपनी रकम चेक या कॅश द्वारा आपके नजदिकी एक्सिस बैंक में भर सकते हैं। आपका ऑर्डर मिलने के बाद उस आपको ई-मेलद्वारा सूचित किया जाएगा । पैसे कैसे अदा करें? आप अपनी रकम को एनआयटीएल के एक्सिस बँक के सेविंग अकाऊंट नं. १०४०१०१००१८५५४ पर एक्सिस बैंक के किसी भी ब्रैंच द्वारा + भेज सकते हैं या उस रकम का डी.डी. (Payable at Pune) बनाकर ऊपर दिये हुए पते पर भेज सकते हैं। सेविंग अकौंट में रकम जमा करने के बाद हमें इ-मेल या ऊपर दिये हुए फोन नंबर्स पर सुचित करें। रकम बैंक में भरने के बाद आपने आदेश (ऑर्डर) की गयी चीज़ों को सीधे अपने घर पाईये डिलीव्हरी चार्जेस + डिलीव्हरी चार्जेस वजन और दूरी (कि.मी.) पर आधारित होंगे। जिस ऑर्डर की किमत रु.१०,००० या उससे अधिक होगी तो उस पर कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं लगाया जाएगा । + ३. वर्ष २०१० में उपलब्ध मैगज़िन्स की जानकारी मैगज़िन्स कीमत (रु.) पूरे साल की मैगज़िन्स की संख्या चैतन्य लहरी (हिंदी) ६ अंक ३६० चैतन्य लहरी (मराठी) ६ अंक ३०० डिव्हाईन कूल ब्रीज (इंग्लिश) युवादृष्टी (मिक्स) (इन सभी मैगज़िन्स की माँग आप ऊपर दी गई किसी भी विधि से कर सकते हैं। ) * आपसे विनती है कि उपरोक्त मटैरियल को आप एनआयटीएल या उनके अधिकृत प्रतिनिधींओं द्वारा मँगवायें । ६ अंक ३६० ४ अंक २०० एनआयटीएल में पब्लिश हुए किसी भी किताब या रेकॉर्डिंग की पुनर्निर्मिती या किसी भी प्रकार से रूपांतरण करने के लिए एनआयटीएल की परमिशन लेनी पडेगी। कोई भी व्यक्ति पब्लिशिंग या रेकॉर्डिंग के बारे में अनधिकृत कृत्य करते हुए पाये जाने पर सजा के या नुकसानभरपाई के हकदार होंगे। 2010_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-35.txt /ा. है "जैसे आप मुझे रखेंगी, मैं वैसे ही रहँगा।" और आप आश्चर्यचकित रह जाएंगे कि सब कुछ अच्छा हो गया है, ठीक हो गया है। कभी-कभी आप पाते हैं कि आप कहीं पहुँचना चाहते थे, नहीं पहुँच पाये, कोई भजन लिखना चाहते थे-नहीं लिख पाये, कोई वस्तु पाना चाहते थे-आपको नहीं मिली, यह सब आपको परमात्मा की इच्छा समझकर स्वीकार करना चाहिए । नई दिल्ली, १९७६