चेतच्य लहरो हिन्दी मई-जून २०१० १ रुभ दह र स कहैँह ंक गं हृदय में आप देख रहे हैं, उसे यदि हृदयगम्य कर सके या पूजा पूजा करना सर्वोत्तम है। मेरे जिस चित्र को के पश्चात इसकी झलक हृदय की गहराइयों में उतार सकें तो वह आनन्द, जो आप उस समय प्राप्त करते हैं, ১ शाश्वत तथा अनन्त बन जाता है। स अक आपको अपना ही हित साधना है और परम पद को प्राप्त करना है.... ४ आर्टीकेरिया....१६ वि एकादश रुद्र पूजा... २० ाम ि ले अन्य...... श्रीमाताजी द्वारा बताये गये उपदेश...३० म आपको अपना ही हित साधना है और परम पद को प्राप्त करना है १९ मार्च १९८९ सहजयोग के कार्य में व्यस्त न जाने कैसे समय बीत जाता है। अब करिबन अठारह साल से सहजयोग कर रहे हैं हम और उसकी प्रगती अब काफी हो रही है। आपने देखा किस तरह से इसकी प्रगती बढ़ रही है। अब जन्मदिन के दिन अब हमारे तो आपकी सबकी स्तुति करनी चाहिए और सब अच्छा ही कहना चाहिए । लेकिन एक ही बात मुझे जो समझ में आती है और जो मुझे कहनी चाहिए वो है कि अपनी गहराई को बढ़ाना है । अपनी गहराई को बढ़ाना बहुत जरुरी है और ये गहराई हमारे अन्दर है, कहीं ढूँढने नहीं जाना है, अपने ही अन्दर बस ये गहराई है। लेकिन जब हम गहराई को बढ़ाते हैं तब ये देखना चाहिए कि हम पहले स्वयं कहाँ खड़े हैं। इसको पहले जान लेना चाहिए कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। और उसे जानने के लिए एक तरीका है, सहज सरल तरीका है कि अपनी ओर दृष्टि करें जैसे कि हमारा व्यवहार कैसा है? हम क्या करते हैं? हम किस तरह से अपने मन में विचार लाते हैं? हमारे तौर-तरीके कैसे हैं? हम अपने को कहाँ तक सीमित रखते हैं। जैसे शुरुआत में जब दिल्ली में काम शुरू किया तो लोगों के तो अन्दाज ही कुछ और थे। मैं तो एकदम सकुचा गयी थी क्योंकि उस वक्त किसी को कुछ मालूम ही नहीं था पूजा के बारे में। वह सब प्लास्टिक के डिब्बियों में सामान-वामान लेकर के सब लोग पहुँचे तो मेरी तो हालात ही खराब हो गयी। मैंने कहा कि, 'अब तो क्या होगा बिचारों का। ये तो अज्ञानी हैं, इनको तो कुछ मालूम ही नहीं है। प्लास्टिक में कुमकुम लेकर आ गए हैं और घर का ही लोटा उठा लायें हैं पैर धोने के लिए तो बड़ी घबराहट हुई मुझे। मैं तो एकदम, मेरा तो सारा बदन ही एकदम सकुचा गया। मैं रोके रही सबको कि ठण्डे रहो सभी, नहीं तो हनुमानजी कहीं बिगड़ न जाए। कहीं गणेशजी का गुस्सा शुरु हो जाए तो न जाने क्या दिल्ली वालों का हाल होगा ! मेरे समझ में नहीं आया कि कैसे कहँ कि प्लास्टिक से पूजा नहीं होती है। जिस घर में चोरी हुई, जिस घर में पूजा हुई उसके वहाँ पर ० च चन= ० पर हैट कुछ-कुछ चीजें रखी हुई थी, बिचारे महोदय बड़े अच्छे थे, उन्होंने हमें जगह दी, उनकी चीज़ें गायब हो गयी । पूजा के बाद सब लोग कुछ-कुछ उठाकर चल दिये। तो इससे शुरुआत हुई। उसने कहा कि, 'मैं अपने यहाँ तो नहीं दे सकता। आपको चाहिए तो आप हमारे कम्पाऊण्ड में कर लीजिए पूजा। लेकिन कम्पाऊण्ड से वे घर में न आयें। पानी-वानी का सब बाहर इन्तजाम है।' तो मुझे तो बड़ा वैसे लगा, 'ये तो बड़ा अपमान है किसी तरह से।' इस प्रकार यहाँ सहजयोग शुरु हुआ। और उस वक्त दुनिया भर के बीमार लोग हमारे पास। मेरे तो सबेरे से शाम तक हाथ दःख जाते थे और सबको तो यही फिकर कि 'मेरा लड़का ठीक नहीं, लड़की ठीक नहीं। मेरा तो बाप ठीक नहीं, मेरी तो माँ ठीक नहीं।' दुनिया भर के मरीज़ खड़े कर दिये। सबेरे से शाम तक यही काम! तो इसके बाद हमारे भाईसाहब के घर में शुरु हुआ। वहाँ भी यही मेरी तो जान खा जाये कि मेरे इसको ये हो गया, मेरे इसको वो हो गया, इसे तो देखना ही होगा, ऐसे कैसे आप नहीं देख रहे च= ॐ अ० े মন हैं, ये नहीं, वो नहीं। अब चार बज जाएं मुझे खाने को नहीं मिला तो भी वो जान को लग जाए। उसके बाद टैलिफोन पे टैलिफोन, टैलिफोन पे टैलिफोन कि 'नहीं मुझे तो माताजी से बात करनी ही है।' जैसे कोई सबका मेरे ऊपर अधिकार ही है, पूरी तरह से। तो उसके बाद में फॉरेनस्स आने शुरु हुए तो उसमें भी बड़ी हालत खराब कर दी हमारी यहाँ। एक तो बीमारी से मैं बिल्कुल तंग आ गयी थी। जिसको देखो तो 'ये मिनस्टर आ रहा है, वो मिनस्टर आ रहा है।' सब लोग समझते हैं कि हम बड़े महत्वपूर्ण हैं , हमारे बच्चे बड़े महत्वपूर्ण हैं, हमारे रिश्तेदार बड़े महत्वपूर्ण हैं। यहाँ तक कि वे अस्पताल तक की विजीट करवायें (अस्पष्ट)... ये लोग तो इतने उथले लोग हैं कि इनको तो और कुछ सूझता ही नहीं, इतनी जबरदस्त । फिर इसके बाद हमारे भाईसाहब के यहाँ हमारा प्रोग्राम शुरू हुआ। तो वहाँ कुछ उन्होंने बिगड़ना शुरु किया कि 'तुम लोग सभी स्वार्थी हो, सिर्फ हमारी बहन को इसलिए सताते हो कि बस इसकी बीमारी ठीक करो, उसकी बीमारी ठीक करो। बड़े स्वार्थी हो। तुम लोग क्या करने वाले हो सहजयोग के लिए। यहाँ रहने के लिए तक इनको जगह नहीं, कुछ नहीं। ये अपने पैसों से आती है बिचारी। ये सबकुछ है।' सबको भगाया, जितने बीमार थे उन सबको भगाया कि, 'खबरदार ! अगर किसी ने बीमारी की बात की तो उसको नहीं छोडूँगा मैं!' जब उन्होंने ये शुरु कर दिया तब लोगों की संख्या बहत कम हो गयी लेकिन कायदे से लोग थोड़े शुरु हो गये। उसके बाद यहाँ परदेसी लोग आयें और शादियाँ-वादियाँ की हमने तो वो परदेसी लोगों से भी वो 'तुम हमको फारेन एक्सचेंज दे दो, इतना पैसा हमको दे दो। नहीं तो इसमें ऐसा ठीक हो जाएगा कि हम आ रहे हैं विलायत । विलायत में हमारे रहने का इन्तजाम कर दो।' ऐसा सब काम कराया। फिर मुझसे इतना खाने-पीने का पैसा लिया कि मेरा तो दिवाला ही बज गया । साथ ही सारा बैंक बैलन्स ही खाली हो गया| फिर मैंने कहा कि, 'अब तो मैं दिल्ली ही नहीं आने वाली हूँ' क्योंकि इनसे तो हम एक रूपया भी नहीं लेते थे खाने-पीने का और इतना खर्चा हुआ कि मैं तो बिल्कुल तंग आ गयी कि यहाँ पर इन दिनों में में बात कर रही हूँ इयर ७४-७५ की नहीं ७७ से ७९ तक सब बैंक खाली हो गया, अब मैंने कहा कि, 'अब करें क्या?' तो जैसे कि पहले यह कि बीमारियाँ ठीक करो, बड़े ये लो लेवल के लोग थे, जो सबकी बीमारियाँ ठीक कराने के पीछे लगे थे। इसका मतलब है कि इनको परम का मतलब ही नहीं मालूम है। परम पद में आना ही नहीं चाहते हैं। जिनकी बीमारियाँ ठीक करनी है उनको आप फोटोग्राफ दे दीजिए और उनसे कहना कि करें। पर वो तो फोटो लेंगे ही नहीं क्योंकि वो मानते ही नहीं सहजयोग को। तो फिर क्यों उनके लिए परेशान कर रहे हो माँ को। फिर उस पर प्रेशर करने का कि वाइस प्रेसिडन्ट साहब मिलने को आ रहे हैं। मैं तो तंग आ गयी कि फॉरेनर्स को यहाँ लाने के लिए पैसे तो है नहीं और फिर कुछ और चीज़ शुरु करें। फिर सहजयोगियों की खोपड़ी में कुछ आया और उन्होंने कहा कि अच्छा माँ ये थोड़े से लोग आ जाएं और हमारे घरों में रहें। और उनका जो पैसा बचेगा वो हम पैसे दे देंगे आश्रमों में। हालांकि महाराष्ट्र से यहाँ लोगों के पास पैसे ज़्यादा है। यहाँ सबके पास मोटर है। महाराष्ट्र में एक मोटर मिलना मुश्किल है। एक भी किसी के पास में अॅम्बॅसिडर मोटर नहीं कि जो मैं उनके मोटर में जाऊं, ये हालत है। लेकिन पैसे की ऐसी तकलीफ कभी किसी को नहीं हुई। यहाँ इतने कंजूस लोग हैं कि मैं तो हैरान हो गयी हूँ कि ये मोटरों में घूमते हैं। सबकुछ चाहिए, जेवर के जेवर, औरतों के कपड़े देखिए, आदमीओं के कपड़े देखिए सबकुछ बहुत बढ़िया, लेकिन वहाँ ये बात नहीं कि ये परमात्मा का कार्य है। तो जिस वक्त हमने काम शुरु किया, तो सब कोई रुपया लाकर देने लगा। मैंने कहा कि 'नहीं, अभी तो हमने कुछ बनाया नहीं है, ट्रस्ट-वस्ट तो अभी बनाया नहीं। जब ट्रस्ट बनायेंगे तब तक आपको रुकना होगा, तब तक आप अपना पैसा जमा कर के रखो।' और जिस वक्त हमने टरस्ट बनाया, ऐसा कोई भी नहीं था जिसने हजार रुपये से कम दिया हो, ऐसा कोई भी नहीं था। उसी वक्त हजार, दो हजार, चार हजार, पाँच हजार, जिसको जो मिला , जो उन्होंने एकठ्ठा किया वो उन्होंने ला कर दिया। पैसे की तो मुझे कोई जरुरत नहीं है। आप तो जानते हैं कि सारा पैसा कार्य के लिए ही होना है। उस वक्त हमें यहाँ अच्छी जमीन मिल रही थी। काश! हम उस वक्त खरीद लेतें , पर हमने सोचा दिल्ली वालों के पैसे से ही होना चाहिए और दिल्ली वाले करें। अब महाराष्ट्र में जो रुपया एकठ्ठा हुआ जमीने खरीदी गयी। और सब जगह हमने जमीनें खरीद कर रखी है । और यहाँ भी जो रुपया बाद में दिया है वो सब से उससे महाराष्ट्र ही आया हुआ है। इसका मतलब ये नहीं कि आप रुपया बहुत खर्च करें। आप इतने फैशन करते हैं। यहाँ दिल्ली की औरतें बड़ी फैशन करती है। रोज उनको नयी साड़ियाँ चाहिए। कपड़े चाहिए। और अगर किसीको नायलॉन की साड़ी दें तो कहते हैं कि, 'हम नायलॉन नहीं पहनते, सिर्फ शिफॉन पहनते हैं।' अगर आप इतने रईस हैं तो एकाद कभी कुछ रुपये सहजयोग के लिए तो देना चाहिए। हमने तो बहत कुछ रुपया दिया है सहजयोग के लिए। मेरे husband से तो मेरा झगड़ा हो गया था इस बात को लेकर एक बार। उन्होंने कहा कि, 'अच्छे से मेरे बैंक को आपने पूरा खाली करवा दी। पिछले सब गुरु लोग तो बैंक भरते थे , तुमने तो मेरी बैंक खाली करवा दी।' तो भाई ये शर्म की बात है, बहुत शर्म की बात है कि आप लोगों की तरफ से मुझे ऐसा करना पड़ा। आदमी लोग भी यहाँ कितना खर्चा करते हैं, मैंने देखा है कि मोटर होनी चाहिए, टेलिविजन होना चाहिए। महाराष्ट्र में कितने लोगों के पास टेलीविजन है ? ये होना चाहिए, वो होना चाहिए, पर सहजयोग के लिए पैसा नहीं है। और पहले उस जमाने में हमारे पास साढ़े चार लाख रुपये एकठ्ठा हुये थे, उस जमाने में, तब कितने सहजयोगी थे, वैसे तो वो बहत गरीब थे आप लोगों से पैसों के मामले में। कोई बड़े पोजिशन में नहीं है। महाराष्ट्र में आप जानते हैं कि वहाँ पर सारे जितने भी बड़ी-बड़ी जगह है वो सब मारवाड़ी लोगों की है, गुजराती लोगों की है और सिंधी। इन्होंने सारा बिज़़नेस ले लिया है। आपको एक भी सहजयोगी वहाँ बिज़नेस वाला नहीं मिलेगा। और कितने कर्मठ लोग हैं। कैसे काम करते हैं आपने देखा। कितने, वहाँ तो बड़े-बड़े प्रोफेशनल लोग हैं पर आप किसी को भी पाईयेगा नहीं घमण्डीपना में। तो इस तरह से जब यहाँ सहजयोग | शुरु हुआ तो मैं बहुत घबरा गयी थी कि यहाँ सहजयोग कैसे चलेगा। यहाँ के लोग तो अपने में ही हैं, बड़े सेल्फिश हैं। अपनी ही बात करते हैं। अपने स्वार्थ में ही रहते है। इनको क्या परमात्मा मिलेगा। पर धीरे-धीरे ऐसा आपकी माँ का प्यार है कि वो माँ की प्यार में बदलते गये। बहुत बदल गये। मुझे तो देखकर बहुत खुशी हुई कि अब बहुत, आप लोगों में अन्तर आ गया है। तो भी, मैं ये कहँगी कि एक जमाना था जिस वक्त कि गांधीजी खड़े हुए, उन्होंने कहा कि देश का काम करना है। देश भर का ही काम था कोई मनुष्य भर का काम नहीं था, दुनिया भर का काम नहीं था, कुछ नहीं। हमें याद है कि हमारी अम्मा ने जितने भी घर के जेवरात थे गिन के सारे उनको दे दिये। उनके दो-चार ट्रेडिशनल जो थे वो छोड़ के बाकी सब दे दिये। हम लोगों ने भी हमारी जो चुड़ियाँ थी वो उतार के दे दी| हमारी मदर ने भी ऐसे बहुत और किये हैं । और भी बहुतों ने ऐसे काम किये हैं। लेकिन ऐसी उन्होंने कौनसी बड़ी भारी बात कही थी... अस्पष्ट... आप लोगो का सबका भला हो गया है सहजयोग में आकर। सबके हालात ठीक हो गये हैं, सब कुछ ठीक हो गया है, तन्दुरूस्ति ठीक हो गयं है। लेकिन सहजयोग के लिए लोग पैसा नहीं निकालते हैं । अगर आज पैसा होता तो ये जगह भी अच्छे से बना सकते थे हम। अब ये अटके पड़े हैं कि माँ, पैसा दो, पैसा नहीं है अब, माँ, आप पैसा दो। हमने कहा ठीक है तो आज हम ये ग्यारह हजार दे रहे हैं टोकन की तरह। आगे भी भेजेंगे। लेकिन आप लोगों को खुद सोचना चाहिए कि ये हमारा आश्रम है, हमें इसके लिए कुछ देना चाहिए। और इससे हमें ४ कितने लाभ हुए हैं। सहजयोग से हमने कितना प्राप्त किया है। अब दूसरी बात ये है कि इससे जो एक हमारे अन्दर जो कैटेगरी है उसे देखना चाहिए । अa जब हम अपने अन्दर देख रहे हैं कि हम कंजुसी कर रहे हैं, जान बचा रहे हैं, कुछ काम कोई बताता है, तो कोई हाजिर ही नहीं होता है। तो | हमें सोचना चाहिए कि हमारे अन्दर गहराई ही नहीं है । हम कंजूसी कर रहे हैं, हममें गहराई ही नहीं है। आगे चलना चाहिए, हम अपने रिश्तेदारों की बीमारी के लिए हम माँ को तंग कर रहे हैं, ये बहुत ही लो टाइप के सहजयोगी हैं। इसमें गहराई नहीं है। माँ को परेशान कर रहे हैं। अरे, अगर माँ से तुम्हारे सम्बन्ध ठीक हो जाए तो कुछ कहने की जरुरत नहीं है। वैसे भी रिश्तेदारी ठीक हो जाती है। ऐसे भी कुछ लोग हैं जिन्होंने बताया कि फलाने साहब न्यूयॉर्क में बीमार है और फौरन ठीक हो गये। ऐसे भी लोग हैं। लेकिन आपमें गहराई कम है। और जब आपमें गहराई कम हो जाती है तो ये सब होता है। और सहजयोग में पैसे कमाने का भी लोग विचार करते हैं । ये भी बड़ी गन्दी चीज़ है और बहुत लो कर देता है आपको। इसमें कुछ हो, कि किताब बिक जाये, फलाना हो अपने विचारों को देखना जाए, ठिकाना हो जाए ये सब गलत बात है। चाहिए सहजयोग सत्ता के लिए नहीं है, पैसे के लिए नहीं है, आपसी रिश्तेदारों के लिए नहीं। ये आपके हित के लिए है। आपको अपना ही हित साधना है और परम पद को प्राप्त करना है। और और | जब तक हम इसका निश्चय नहीं कर लेते हैं कि हमें परम पद प्राप्त करना है और बाकी चीज़ें सब व्यर्थ है। फैमिली के झगड़े, लड़कों के झगड़े, मियाँ-बिवी के झगड़े ये सब मुझे कहने की बाते नहीं होती है। परम पद को पाने के बाद इसे आप अपने आप ही सॉल्व कर सकते हैं। अब सबसे सोचना चाहिए बड़ा एक दोष उसमें आ जाता है जैसे कि आप लोगों से बात करने का यही सबसे अच्छा मौका है, जहाँ मैं आपको बता सकती हूँ कि अहंकार को देखते रहना चाहिए कि हमें किस चीज़ का अहंकार है, किस चीज़ को हम महत्वपूर्ण समझते हैं। कौनसी चीज़ को हम सोचते हैं कि बहत जरुरी है और हमें करना चाहिए। अपने विचारों को देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि हम किस चीज़ को इतनी महत्वपूर्ण चीज़ समझते हैं। हम कौन सी चीज़ के लिए सोचते हैं कि ये चीज़ हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उसी को तोलना चाहिए। कोई कोई लोग तो कहते हैं कि, 'हमारे लिए तो ये बहुत महत्वपूर्ण है माँ कि परम पद को प्राप्त करना है।' बस हो गया ऐसे लोग तो ठीक है। उनको तो कुछ कहने की जरूरत नहीं है। बाकी तो सब होते ही रहता है। नौकरी, खाना-पीना और दुनिया भर की चीजें। कि हम किस चीज़ को इतनी | महत्वपूर्ण चीज़ मैं चाहती हूँ कि दिल्ली वाले आज इस तरह से पूरी तरह निश्चय कर लें कि माँ के जन्मदिन के दिन, अब हमारी भी उम्र ६६ साल की हो गई है, काफी उम्र हो गई है और एक क्षण भी हमारा बेकार नहीं गया है। इतनी मेहनत हमने की है। जितनी हमने मेहनत की है हम नहीं चाहते कि आप लोग उतनी मेहनत करें, बिल्कुल भी नहीं करने की जरुरत है। हम आपके लिए मेहनत करने के लिए तैयार हैं सिर्फ आप अपने अन्दर अपने को तौलते रहिए कि मैंने क्या किया है, सहजयोग के लिए क्या किया है? जिसकी वजह से कि मैं आज ऐसा पहुँच नहीं पाया। सहजयोग के लिए मैंने क्या किया? माँ के लिए नहीं, सहजयोग के लिए। बहुत से लोग हैं जो मुझे रुपये दे देते हैं, कभी कुछ दे देते हैं, उससे क्या फायदा है! वो तो सिर्फ मैं सहजयोग को ही दे देती हूँ, छोड़ती थोड़ी हूँ। बेहरहाल वो भी एक चीज़ है अगर ऐसा कोई दे तो वो सहजयोग के लिए दे सकते हैं। ठीक है आप प्यार के स्वरूप कुछ दैं, जन्मदिन के दिन कुछ दें तो वो स्वीकार्य है। कोई बात नहीं है । लेकिन मेरे लिए कुछ खास जरूरत नहीं है किसी चीज़ की। मैं तो हरदम लड़ती रहती हूँ कि समझते हैं। ৪ जकै जितना हो कम से कम खर्चा करो। इसलिए कि रुपया कुछ बचें और आप लोग इसे सहजयोग पर खर्च करें। सहजयोग में आप जानते हैं कि हमारे पास कोई और तरीका तो है नहीं। हम तो ऐसे-वैसे लोगों से तो कभी रुपये लेते नहीं कि कहीं भीक माँगते फिरते हैं या किसीसे कहते हैं कि आप हमें रुपया-पैसा दे दें। सो, मेरी यही विनती है आप लोगों से कि आपको अपने को तौलना चाहिए कि हम कहाँ तक हैं और हम क्या चाहते हैं । तो सहजयोग में जब तक आपका चित्त परमात्मा की ओर पूरी तरह से लगा नहीं रहेगा और सब ऐसी-वैसी चीज़ों में लगा रहेगा तो आप या तो पैसे बनाने के बारे में सोचेंगे या फिर उसकी बात सोचेंगे, नौकरी की सोचेंगे, धन्दे की सोचेंगे तो जो असल चीज़ है वो नहीं मिलने वाली है। और असल चीज़ मिलते ही बाकी सब ठीक हो जाता है। ये ऐसी कुछ विशेष चीज़ है। और जब तक ये नेगेटिवीटी बनी रहेगी तब तक आप का काम बनने ही नहीं | वाला है। अभी आज की ही बात बताते हैं, आज चाबी नहीं खुल रही थी तब मैंने कहा कि आज चाबी किसने बन्द की थी। तो कहा कि 'इन्होंने'। तो मैंने कहा कि अच्छा इन्हें थोडी देर बाहर भेजो। और उनके बाहर जाते ही चाबी गयी थी। आपका कोई काम बन ही नहीं सकता, जब नेगेटिव होंगे तो कोई काम बन नहीं सकता। लेकिन | | खुल अगर आप इस स्थिति पर आ जाए, आपके सारे काम अपने आप बन जाते हैं। और वो इतने बनते हैं कि कभी-कभी आपको लगता है कि 'माँ मैं ये नहीं चाह रहा था।' और फिर आप बाद में कहते हैं कि अच्छा हुआ यही हुआ और मैं गया झंझट से। इस प्रकार सहजयोग की एक किमया है, अपनी एक उसका चमत्कार है कि जो चीज़ सामने आती है वो स्वीकार्य करना चाहिए। और अन्त में आप ये कहेंगे कि यही मेरे लिए हितकारी था, यही अच्छा था। उसको प्रेम से स्वीकार्य करना चाहिए और तौलते जाना चाहिए अपने को जीवन में कि जैसे ही जीवन में आगे बढ़ेंगे तो आपको पता होगा कि इसके बड़े ही आशीर्वाद हैं , इतने अनन्त आशीर्वाद है कि सारे देवी - देवता आपके साथ लग जाएंगे। आप जहाँ जाएंगे आपके साथ आगे-पीछे दौड रहे होंगे। कोई आपको सता नहीं सकता, कोई आपसे छल नहीं कर सकता, आपको कोई परेशान नहीं कर सकता, आप पर कोई केस नहीं कर सकता, कुछ सुन्दर छूट नहीं। बिल्कुल आप पूरी तरह से, एकदम से ही आप सुरक्षित हैं। कोई आपको तकलीफ नहीं दे सकता। कोई अगर आपको तकलीफ देगा तो उसको बहुत तकलीफ होगा ये भी आप देख लीजिए। फिर हर तरह से आपकी हालत ठीक हो जाएगी, आपकी तंदुरुस्ती ठीक हो जाएगी। ये ठीक हो जाएगा, वो ठीक हो जाएगा। लेकिन ये भी एक प्रलोभन है हमारे लिए, एक प्रलोभन है । जैसे कि हम जा रहे हैं और हमें प्लेन पकड़ना है। रास्ते में मदारी का खेल हो रहा है, ये हो रहा है, वो हो रहा है लेकिन उससे हमें क्या मतलब है। हमें तो प्लेन पकड़ना है। तो फिर इस प्रलोभन में आप भटके तो गये। तो अब लोगों को मैंने देखा है कि सहजयोग में आते ही लोगों को बड़े पैसे मिल जाते हैं और फिर भटक गये। भटक गये तो उसके बाद कैन्सर हो गया, और फिर वापस आये मेरे पास। 'मैं छोड़ कर चला गया था सहजयोग। बिजनेस में बहुत काम था, ऐसा था, वैसा था।' सबसे पहली जो चीज़ है-सहजयोग में अपना मन बनाए रखें। हर एक प्रोग्राम जो है उसे अटेन्ड करनी चाहिए । हर कलेक्टिविटी में आना चाहिए। हर पूजा में जहाँ भी होता है आना चाहिए। पूरा चित्त इसमें देना चाहिए। पूरा समर्पण इसमें करना चाहिए। बाकी चीज़ें परमात्मा सब सम्भाल लेता है। आप तो जानते हैं कि आपकी माँ को पैसे का बिल्कुल समझता नहीं है, बैंक का समझता नहीं है। अब जो लोग मेरे साथ रहते हैं वो भी कहते हैं कि माँ का ये क्या हाल है। ....अस्पष्ट.... मेरी कुछ समझ में नहीं आता है कि ये है क्या भला! क्योंकि ये आजकल के कायदे-कानून, ये, वो ये कुछ मैं जानती नहीं। पर ऐसे देखा जाए तो मैं कायदे में बहुत होशियार हूँ। जो पॉईंट मैं निकालती हूँ वो बड़े-बड़े लॉयर बोलते हैं कि आपको ये पॉईंट कैसे सूझा। क्योंकि इसी में सूक्ष्मता है, मनुष्य में एकदम बराबर इस जगह पर। जैसे हरेक चीज़ सस्ती मिल जाए, ये कैसे मिल जाती है ? हरेक चीज़ बढ़िया मिल जाए। ये कैसे मिल जाती है? अभी आज ही के दिन इन लोगों ने कि वहाँ कौनसी चाबी लगेगी? और मैंने कहा कि ये चाबी लगेगी और वो लग गयी| वो गुच्छा ले आये , मैंने तो वो चाबी कभी पूछा 6. में रहो, प्रलोभन में नहीं। एक बस् आनन्द देखी ही नहीं थी। वो कहने लगे कि माँ कौनसी चाबी लगेगी? और मैंने कहा, 'ये लगेगी।' और वो चाबी लग गयी। | में अब कहो कि माँ कैसे जानती हैं? क्योंकि सूक्ष्म है। हम सूक्ष्म में बैठे हैं। चित्त हमारा सूक्ष्म में ही है। और बाह्य हम सब कहेंगे कि ये भी करना है, वो भी करना है, फलाना है, ठिकाना है। तो इस प्रलोभन में आना नहीं है। एक बस आनन्द में रहो, प्रलोभन में नहीं। उसका आनन्द तो आप उठा ही नहीं सकते आप प्रलोभन में आये तो गये। धीरे -धीरे आप खिसकते ही जाएंगे, खिसकते जाएंगे। तो आज इतने सालों बाद इस बात को मैं कह रही हूँ आपसे और घबरा भी | रही हूँ कि दिल्ली में शुरु का आना और आज का आना ये बहुत अन्तर हो गया है। पर इससे भी बहुत ज़्यादा परिवर्तन होना चाहिए। और दिल खोलकर के मनुष्य को देना चाहिए। जैसे अब आप लोगों को सोचना चाहिए और बहुत लोग कहते हैं कि 'माँ मैं तो सोच तो रही थी कि दे दूँ, इतना रुपया दे दें। फिर मैंने सोचा कि लड़की के लिए जेवर बना लँ।' 'अच्छा! ठीक ही किया।' तो उसने पूछा, 'माँ, बुरा तो नहीं किया। नहीं, नहीं बहुत अच्छा किया। पर आपने तो अपने जेवर बैंक में रखे हैं। लड़की भी वो सारे जेवर बैंक में रखेगी। और उसकी भी लड़की होगी तो वो भी बैंक में रखेगी। सारा बैंक ही को पैसा देना है। उससे अच्छा अगर कोई चीज़ बना दो सबका हित होगा। कलेक्टिविटी में आनन्द आएगा। तो इस तरह की चीज़ों में प्रलोभन होना चाहिए। अब सबसे जो बड़ा सूक्ष्म प्रलोभन जो है सहजयोग में कि मैं करता हूँ। मैंने आश्रम की जमीन ली है। मैंने आश्रम बना दिया। और मेरी वजह से, या मैंने इतना रुपया इकठ्ठा कर दिया है या मैंने इसको ठीक कर दिया है, मैं, मैं, मैं.....ये बड़ा ही सूक्ष्म प्रलोभन है। से में ऑर्गनाइजर हूँ, में लीड़र हूँ। मैं बड़ा आदमी हूँ। 'मैं' इस चक्कर से बिल्कुल बचना चाहिए । मैंने ये किया, मैंने वो किया अगर ऐसे विचार आये तो आपको सोचना चाहिए कि आप ऊँची सीढ़ी पर पहुँच गये हैं और इस उँची सीढ़ी से जब आप गिरेंगे तो थड़ाम् से नीचे आएंगे। ये 'मैं', 'मेरा' छुड़ा लीजिए । अभी डेहराड़ून में एक लेडी मिली थी। उनके बच्चे आये तो उनका हाथ एकदम गरम, फूल दिये तो एकदम गरम। तो मैंने कहा कि 'आप कर क्या रहे हैं?' तो उसने कहा कि 'माँ, मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ।' और फिर बताने लगी कि माँ, आपने स्पाँडिलाइटिस मेरा ठीक किया। डाइबिटिज मेरा ठीक किया, फलाना मेरा ठीक किया, नौकरी मेरी कर दी। 'अगर ये हो गया तो आप गरम क्यों हैं?' नहीं माँ, मैं तो ये चाह रही थी कि मैं अपने यहाँ एक सेंटर चलाऊँ पर ये लोग परमिशन नहीं दे रहे हैं । पर मैं चला रही हूँ।' मैंने कहा, 'इसलिए आप गरम हैं। आप छोड़िए इसे। जिस लायक आप हैं उस लायक आप रहिए। आप ठीक होने के लायक हैं। आप ठीक होईये। अभी आप सेंटर चलाने के लायक नहीं है।' तो ये बात आपको सोचनी चाहिए, आपको अपने को जज़ करना चाहिए। ये जो लास्ट जजमेंट है, जो टाइम आया है पुनरुत्थान का ये लास्ट जजमेंट है। इसमें हमको ही अपना जजमेंट करना है कि हम कहाँ हैं? हम कैसे हैं? हमारा चित्त कहाँ दौड रहा है? हम किसे देखते रहते हैं? विचार, कहाँ हमारे विचार जा रहे हैं? अपने चित्त की ओर नज़र रखें, कहाँ जा रहा है हमारा चित्त? हमारा लक्ष्य कहां है? हम क्या सोच रहे हैं? इस पर बहुत सुन्दर लिखा हुआ है, नामदेव ने। जो कि आपके ग्रन्थों में भी है कि एक पतंग उड़ रही है और एक लड़का उसे उड़ा रहा है। इससे, उससे बात करता है, मज़ाक करता है, पर नज़र उसकी पतंग पर है। बहुत सी औरतें हैं वो सर पर घड़े रख कर चल रही है, हँस रही है, मज़ाक कर रही है, ठिठोली कर रही है पर नज़र उसकी सर पर है। एक औरत है, जो बच्चे को कमर पर ले कर घर झाड़ रही है, पानी भर रही है, सब काम कर रही है और बच्चा कमर पर है। ध्यान उसका कमर पर है। तुम्हारा ध्यान कहाँ पर है? हमारा ध्यान कहाँ है? ऐसे और भी प्रश्न खड़े हो जाएंगे कि माँ से 11 हमें मिलने नहीं दिया। हम तो आयें पर माँ से मिलने नहीं दिया। बहुत गलत बात है ये। माँ को तो प्रसन्न रखना चाहिए। अगर आपके लिए कोई ऐसा करे तो आपको अच्छा लगेगा ? और ये दिल्ली में सबसे ज़्यादा बीमारी है माँ से मिलने का। ये एक अहंकार का स्वरूप है। और मिलने नहीं दिया तो रोने बैठ गये या फिर चीखना शुरु कर दिया। ये बड़ी बारीक-बारीक चीज़ों का सोचना चाहिए। जैसे मेरा बर्थ डे हो रहा है, ऐसे आप लोगों का भी बर्थ डे होता है। जिस दिन आपने अपना रियलाइझेशन लिया, वो आपका बर्थ डे है । मैं तो अनादि हूँ। मेरी तो हजारों वर्षं की उम्र है। बहुत सी पूरानी उम्र है। मेरी तो कोई नयी उमर तो है नहीं। आप तो मेरा बर्थ डे मना रहे हैं। आप लोगों का बर्थ डे होना चाहिए कि जिन्होंने जन्म लिया, सहजयोगी बन कर के जो आज घूम रहे हैं। इन्होंने नया जन्म लिया है, नये स्वरूप में आये हैं। आपका बर्थ डे होना चाहिए। आप सारे मेरा क्या बर्थ डे मना रहे हैं! कैसे ये सहजयोगी हैं, आप देखिए कि मैं तो अनादि हूँ, मेरा क्या बर्थ डे मना रहे हैं? मैं चाहती हूँ कि आप लोगों का बर्थ डे मनाया जाय। और हर बर्थ डे में मनुष्य बढ़ते जाता है, घटता तो नहीं है। ऐसा भी कभी आपने देखा है कि मनुष्य बढ़ कर के, बाद में छोटा सा दूध पीता बच्चा हो जाए? पर सहजयोग में ऐसा होता है। अच्छे भले दिखते हैं, नज़र आते हैं, पर एकदम से पता नहीं क्या खोपडी बैठ जाती है। और लोग कहते हैं कि वो ऑफ हो गए हैं। मैंने कहा, 'ऑफ हो गये हैं ? मर गये हैं क्या ?' तो कहने लगे, कि ' नहीं, नहीं, सहजयोग से चले गये हैं, फिसल गये हैं।' और इतनी कठिन डगर नहीं है। बहुत आसान है, सहजयोग में बढ़ना बहुत आसान है, हर घड़ी। अब आपको देखना है कि हम किस लेवल के हैं? आपको तो कुछ कहने की भी जरूरत ही नहीं पड़ेगी, मिलने की भी क्या जरूरत है! माँ को तो हृदय में ही बसा लिया है । जब चाहें अपनी गर्दन को झुका लीजिए। मिलने की कौनसी जरुरत है। पहले मिलो , फिर माँ की जान खाओ कि ऐसा है, वैसा है। इससे प्रसन्न होंगी क्या? इसे देखके तो कभी प्रसन्न नहीं होंगी। अपनी जगह आप सोचो कि अगर सहजयोग में बढ़ना बहुत आसान है, हुए घड़ी। हमारे साथ कोई ऐसा करेगा तो क्या हमें अच्छा लगेगा ! तब आप देखियेगा कि आपकी विशालता इतनी बढ़ जाएगी, इतनी बढ़ जाएगी कि कौनसा भी प्रॉब्लेम ही नहीं आ सकता इतना साफ कर देगी। ये आप ही की विशालता है। आपको मेरी विशालता को आजमाने की कोई जरुरत ही नहीं है आप अपनी ही विशालता का उपयोग करें। ऐसे है कि अभी सहजयोगी जो महस कहने से ही सब मामला बन जाता है। ऐसे लोग हैं, ये नहीं कि नहीं। ऐसे तोड़ताड़ करके सब कुछ इसमें गहरा उतरना चाहिए। अब तो गणपतीपूले में आप लोगों के साथ मुलाकात होगी। और एक-एक जन्मदिवस मुझे याद आता है। जिस तरह से आप लोगों ने इतने प्रेम से इसे मनाया है और सुन्दर सजाया है। और यही कि आज ये आखरी दिन है और मैं चली जाऊंगी। और फिर इतने दिन बाद मुलाकात होगी। लेकिन मैं चाहती हूँ कि जिस वक्त भी मुलाकात हो तो आप लोग एकदम स्वच्छ, सुन्दर, अनुपम एक बढ़े हुए पेड़ के जैसे, जिसे मैं बड़े गर्व से देख सकूँ कि 'ये मेरे बच्चे हैं,' ये गर्व होना चाहिए मानो मैंने बच्चों से कुछ बात कह दी और इन्होंने ठान लिया और करके दिखा दिया। लेकिन यहाँ मैं सोचती हूँ कि बहुत कम लोग इस तरह के हैं। अधिकतर तो लोग ऐसे ही हैं कि जो आयें, अपना फायदा किया और चल दिये। फिर सोचते नहीं कि भाई तुम कैसे कर रहे हो और क्या ? ऐसा नहीं होना चाहिए। अगले साल भी यहाँ मेरा जन्मदिन हो ऐसी मेरी इच्छा भी है। हर एक आदमी कम से | कम आसानी से सौ लोगों को सहजयोग दे सकता है। अभी जैसे, यहाँ तो पता नहीं कि जैसे गौरी क पूजन होता है महाराष्ट्र में तो औरतें बुलाई जाती है, उनको हल्दी - कुमकुम देते हैं । तो अभी ये लोग 12 कै क्या करते हैं कि, ये हमारा ही फोटो रखती हैं। हमारा ही पूजन करती हैं। और फ्रेन्डस को, सबको बुलाकर के हल्दी-कुमकुम देती हैं। तो फ्रेन्ड सर्कल में जहाँ पर भी आपकी दोस्ती है, पहचान है, रिश्तेदारी है सबसे बात करिए। देखिए इसमें कैसे लोग ठीक हो गये हैं। देखिए इसमें कैसे फायदे हो रहे हैं। कम से कम सौ में से पचास आदमी तो आपको मिल ही जाएंगे । शादी में जाएंगे । बहुत जरुरी है शादी में जाना! बहुत से लोग कहते हैं कि 'माँ, हम नहीं आ सकते, पूजा में। हमें शादी में जाना है।' और शादी में जाकर आपने किसको जोड़ा? एक भी आपका कोई बना सगा? वहाँ तो यही हुआ कि तुमने क्या कपड़े पहने थे। उसने क्या पहने थे । मैंने जो बताई थी 'बिना बात की बात।' ऐसे शादी में जाकर आपने कौन से लाभ उठाये हैं? यहाँ बहुत सी दुश्मनी है आपके साथ। तो यहाँ आपके अपने असली रिश्तेदार हैं। जो हमारी सारी विश्व की रिश्तेदारी है वो आज यहाँ बैठे हैं। सारा विश्व आज आपको पता होगा फ्रान्स में आज बहुत से लोगों ने आज सेमिनार किया है, हमारे बर्थ डे का, पाँच-छः रोज का यहाँ पर हो रहा है, सेमिनार हो रहा है इस में खबर भेजी है, 'माँ, हमने अठारह तारीख से शुरु कर दिया है आपके बर्थ डे का और सब एकट्े हुए हैं।' और वहीं से, मेरा अब सब जगह जाना नहीं होता। पहले जाते थे, पहले ग्रीस गये वहाँ सहजयोग बिठाया। बाद में फिनलैण्ड गये वहाँ सहजयोग बिठाया। अब टर्की गये हैं वहाँ बिठाया। जो देश छूट गया है वहाँ जाकर पहले सहजयोग फिट करते हैं और फिर जाते हैं। यहाँ तो सब गणपती जैसे बैठे हैं, कोई हिलता भी नहीं। यहाँ से नोएडा तक का यही नसीब समझ लो। मैंने सोचा नोएडा कोई दूर ही जगह है लेकिन देखा तो यहीं रखी हुई। चलो नोएडा में तो ऐसे लोग मिल गये हैं जिन्होंने खींच लिया है आप लोगों को। इतने आकर्षक लोग हैं। पर इससे जरा आगे जाईये, धीरे-धीरे ये चीज़ फैलेगी, जोर से भी फैल सकती है। फैलाना बहुत जरुरी है और टाइम बहुत कम है। और लोग देखिए अपने कैसे फैला बैठे हैं। किस तरह से काम कर रहे हैं और हम लोग हैं कि सो गये थे । और लोग हैं जो अपने गुरु का बखान करते रहते हैं हर वक्त। उनके गुरु एकदम चोर, उनसे सारा रुपया लूट लिया और बिल्कुल हालत खराब कर दिया। तो आज मुक्ति है, आप जो चाहे मेरे बारे में कहना चाहे कह सकते हैं। जो सहजयोग के बारे में कहना चाहते हैं कह सकते हैं। पहले कहा था आदिशक्ति मत कहो, पर अब आदिशक्ति कहने में अब कोई हर्ज नहीं, इसकी सिद्धता है हमारे पास में। खैर आप पहचानेंगे कैसे ? पहचानने के तरीके हैं आपके पास! हमने तो पहचान लिया। अपने चैतन्य को सवाल पूछने से आप जान सकते हैं। तो सबसे बताना होगा। अपने सब दोस्तों को बताना होगा। अपने सब पहचान वालों को बताना होगा। सबको बताना होगा, आपके रिश्तेदारी है, रिश्तेदारी कम से कम एक-एक के हजारो रिश्तेदार होंगे। उनको चिठ्ठियाँ लिखो, उनको खबर करो, सबको। जितने भी रिश्तेदार हैं, जिनको आप शादी में बुलाते हैं उन सबकी लिस्ट बनायें और सबको चिट्ठियाँ भेजो कि सहज से ऐसे -ऐसे लाभ हुआ है, इससे ये फायदे हुए हैं और इसे करना चाहिए। इससे आप उनका हित ही चाहते हैं । अपने घर में उनको डिनर पर बुलाते हो, बेकार का खर्चा करते हो। उससे क्या फायदा होता है। बाद में जाकर वो आपकी बुराई करेंगे और आप उनकी बुराई करेंगे। आप कहेंगे कि उन्होंने बहुत खा लिया और वो कहेंगे कि इन्होंने तो खाने को ही नहीं दिया। ऐसे लोगों को रास्ते पर लाना चाहिए या नहीं। आप जानते हैं, ये नहीं कि आप नहीं जानते और सहजयोग में आने से तो और साफ आप देखते हैं। सब चीज़़ को आप सब जगह, आज। | | साफ देखते हैं। फिर ऐसे लोगों को कहना चाहिए न साफ, ये बात है। अब तो हमारी जिंदगी बदल गयी है और आप भी बदल लीजिए, अच्छा है, बाकी सब बेकार है, कहने में तो कोई हर्ज नहीं और इस तरह से सहजयोग बहुत जोर से बढ़ सकता है। आज के दिन जाना मुझे अच्छा नहीं लगता क्योंकि आज अच्छा उत्सव का दिन है। आज ही बढिया सा प्रोग्राम होगा, पर वहाँ भी हजारों लोग बैठे होंगे। वहाँ भी जन्मदिन है और एक भावना से यहाँ से जाइये तो दूसरी भावना वहाँ शुरु हो जाती है। अब इसी तरह से दिन कट गये हैं हमारे, बड़े आनन्द से, सुख से दिन कट गये हैं हमारे। कोई तकलीफ नहीं है, ना ही कभी सोचा, कभी नहीं सोचा कि कैसे चल रहे हैं, क्या हो रहा है ? कभी रात 13 को दो-चार बजे से पहले तो सोये नहीं है। और दिन भर मेहनत चलती है। मैं तो चाहती नहीं कि आप लोग इतना मेहनत करें। लेकिन सहजयोग आपको चाहिए, मुझे नहीं ये जान लेना चाहिए। माँ इसलिए सोचती है कि आपको मिलना चाहिए, देना चाहिए इसलिए मैं आपको सहजयोग दे रही हूँ। लेकिन आपको मिलना चाहिए। आपकी चीज़ है ये, आपको प्राप्त करना चाहिए। ऐसा समझ लेने से आप समझ जाएंगे कि मेरे जीवन का इतना ही एक अर्थ है, एक इतना ही अर्थ है कि मेरे जीवन के कारण आपका कुण्डलिनी का जागरण हो गया और आप ऐसी स्थिति में आ गये कि जिससे आप दूसरों का जागरण कर सके और जिससे सारी दुनिया बदल जाए। तो इस जीवन का अर्थ कोई बहुत बड़ा मैं लगाती नहीं हूँ। अगर आप लोग नहीं होते तो मेरे जीवन का कोई अर्थ ही नहीं होता क्योंकि आप लोग हैं और आपके बच्चे हैं। ये काम तो बढ़ता ही जायेगा और बहुत से लोग पार हो जाएंगे। लेकिन मेरे जीवन में ही अगर कुछ विशेष चीजें हो जाए तो उससे जरूर संतोष रहेगा कि अपने ही जीवन में कोई चीज़ प्राप्त कर ली है । इसलिए जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है आप लोगों की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है कि माँ के सामने दिखाना है कि हमने कौन -कौन सी चीजें पायी है और किस तरह से हमने सहजयोग को बढ़ाया है। सबसे बड़ी चीज़ ये है कि माँ के सामने हम कौनसा कमाल दिखा रहे हैं सहजयोग का, 14 सहजयोग उनके लिए जीवन हो गया है। और जब तक ये आपका जीवन नहीं होता है आप इसको पूरी तरह से पा नहीं सकते। वो दिखाना है। जैसे नोएडा का देखा, बड़ी खुशी हुई। इसी प्रकार कोई मुश्किल नहीं है। आप हरियाना की तरफ चले जाईये, उधर यु.पी. की तरफ चले जाईये| यही दिखाना है माँ को कि माँ हमने यहाँ ऐसे-ऐसे सहजयोग का सेंटर खोल दिये हैं। वहाँ इतने सारे सेंटर्स खोल दिये हैं। बस इसी से मुझे हो गया है सन्तोष। और मुझे कुछ नहीं चाहिए। एक फूलों की मुझे लालच है और वो भी आपने इतना अती कर दिया है कि अब तो नहीं चाहिए । वो भी छूट गया है। अब तो यही है कि कहाँ-कहाँ आपने बगीचे बनाये हैं, कहाँ-कहाँ आपने उद्यान खड़े किये हैं, कहाँ-कहाँ चमन खड़े किये हैं, वही सब सुनना है। पहले तो जब सहजयोगी नहीं थे तब मैं फूलों को देखती थी, लेकिन अब सहजयोगी आ गये हैं तो फूलों को कौन देखेगा। लेकिन अभी आपको ऐसे ही बगीचे हर जगह चलाने हैं। और कोई-कोई लोग इतने अच्छे हैं कि जहाँ बिजनेस होता है, जहाँ ट्रान्सफर होता है, जहाँ जिससे सम्बन्ध आता है फिर चाहे जापान जाए, चाहे वो अमेरिका जाए वहाँ जाकर वो बताते रहते हैं सहजयोग के बारे में। छोड़ते नहीं है। सहजयोग उनके लिए जीवन हो गया है। और जब तक ये आपका जीवन नहीं होता है आप इसको पूरी तरह से पा नहीं सकते । ये हमारे लिए जीवन है। बाकी सब चीजें तो चलती रहती है। वो कोई महत्वपूर्ण नहीं है। तो आज के दिन मैं आप सबको क्या कहूँ। मैं आपको धन्यवाद भी नहीं दे सकती कि मेरा बर्थ डे मनाया गया है। सिर्फ यही कि आप भी अपना बर्थ डे मनायें और आगे बढ़ते जाएं। बढ़ते -बढ़़ते एक काल में मैं ऐसा देखूँ कि दिल्ली के सहजयोगी बहुत ऊँचे पद पर चले गये हैं। दिल्ली बहुत महत्वपूर्ण जगह है । आप जानते हैं कि दिल्ली बहुत महत्वपूर्ण जगह है। यहाँ सहजयोग का लाभ होना और सहजयोगियों का एक विशिष्ट स्वरूप आना विशेष जरुरी है, अत्यन्त जरुरी है। सारी दुनिया दिल्ली को देख रही है। तो दिल्ली के लोगों में एक विशेष प्रगति होनी चाहिए और बढ़ना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि जैसे अब अपने यहाँ हिन्दी बोलने वाले बहुत से लोग हैं, उसी प्रकार यहाँ बहुत से लोग हैं जैसे यहाँ साऊथ इंडियन्स हैं उनको अप्रोच करना चाहिए। उनसे बात करनी चाहिए और बहुत कुछ काम हो सकता है। इस पर मैं चाहूँगी कि हर आदमी रोज लिखे कि आज हमने कितनों को सहजयोग दिया है। ये पता करना चाहिए कि हमने कितना आज काम किया है? कितनों को दिया है? फिर अपने बारे में सोचना चाहिए कि हम रात-दिन क्या फिक्र करते रहते हैं। हमारा जब सारा काम माँ करती है तो हम क्या फिक्र करते रहते हैं। हमारे दिमाग में क्या चलते रहता है। जब भी आप फिक्र करियेगा तो कोई काम नहीं होगा। जिस वक्त आपने मेरे ऊपर छोड़ दिया उस वक्त ही तो सारा काम होगा। जब आप कहते हैं कि 'हम ही बीच में कुछ लगाते हैं आधा।' तो अच्छा है, लो तुम्ही लगाओ आधा। पूरी तरह से छोड़ना आना चाहिए। और आप पूरी तरह से तब छोड़ सकोगे जब आप इस दशा में आएंगे। नहीं तो छोड़ ही नहीं सकते। अब कहने के लिए इतना ही है कि अब आप लोग जान ही गये हैं कि हम कौन है? छिपाने की कोई बात ही नहीं रह गयी। और उसकी सिद्धता भी हो गयी है अनेक तरह से। लेकिन इसका एहसास अभी नहीं है। अहसास अगर हो जाए तो किसकी फिक्र, किस चीज़ की है फिक्र? आदिशक्ति कहाँ बैठी हैं? किसके सामने बैठी हैं, बाते कर रही हैं। ऐसा कभी हुआ है क्या? सारे इतिहास में ऐसा कभी हुआ है! कहीं भी नहीं। और आप जानते हैं कि हम आदिशक्ति हैं। अभी आप हमारे बेटे हैं, आपको कैसे होना चाहिए! जैसे हमारा नाम है वैसे ही आपको होना है। यही आशीर्वाद है कि सब लोग समझदारी से काम लेंगे। सहजयोग आपका जीवन है और उसको आप अपने अन्दर पूरी तरह से उतारें। और उसके प्रकाश में आप भी प्रकाशित हों और दूसरों को भी प्रकाशित करें। | यही हमारा आशीर्वाद है। [र] 15 आर्टीकेरिया (Urticaria) प.पू.श्रीमाताजी और डा.तलवार के बीच हुई वार्तालाप का भाग चैतन्य लहरी २०००, खण्ड १२, अक १, २ आर्टीकेरिया रोग भी मनोदैहिक है। शिथिल जिगर के कारण इस रोग का प्रकोप हो सकता है। उपचार : गेरू का उपयोग करें। गेरू को पत्थर पर रगड़कर तनिक सी शहद में मिलाकर बच्चों को दें तथा बड़े भी इस रोग में गेरू का उपयोग करें। वृद्ध लोगों के लिए भी ये लाभकारी है क्योंकि इसमें घुलनशील कैल्शियम है। प्रभावित हिस्से पर इसे लगाकर किसी काले कपड़े से ढक दें। बाईं नाभि की खराबियों के कारण ये रोग होता है। जिग़र जब शिथिल होता है तो नाभि भी शिथिल हो जाती है। | 16 व्यक्ति अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं कर पाता। यह बाईं नाभि द्वारा प्रभावित शिथिल जिगर होता है | बाईं ओर को ठीक करना ही इसका उपचार है। शरीर को काले कम्बल या कपड़े से ढ़ककर इसे गम्मी दी जा सकती है क्योंकि यह एक प्रकार की एलर्जी है। एकदम गर्म के उपयोग के बाद एकदम ठण्डे का उपयोग इसका कारण है। चाय-काफी पीने के तुरन्त पश्चात् ठण्डा पानी पीना भी इसका कारण है। इस अचानक परिवर्तन को हमारी प्रणाली सहन नहीं कर सकती। बाईं नाभि के क्षेत्र में ही हमारा प्लीहा (तिल्ली) भी है । प्लीहा गतिमापक और व्यवस्थापक भी है। अचानक परिवर्तन के कारण यह व्यवस्था अगर ठीक से न हो तो यह समस्या का कारण बनती है। अत: प्लीहा को रक्त कोषाणु (आर.बी.सी.) घटाने या बढ़ाने के लिए उद्युत रहना पड़ता है। परन्तु अचानक किए गए परिवर्तन के कारण प्लीहा पगला जाता है। एकदम उत्तेजित हो जाने वाले लोगों में रक्त कैन्सर रोग का यह मुख्य कारण है। बायाँ आज्ञा चक्र गतिशील होगा तो आप शिथिल हो जाएंगे और दाईं आज्ञा गतिशील होने पर आप अत्यन्त आक्रामक हो उठते हैं। शरीर में रसायनों का सन्तुलन आज्ञा चक्र से आता है। इसलिए आपको सदैव निर्विचारिता में रहना चाहिए। तामसी प्रवृत्ति (बाईं ओर ) के लोग स्वयं को कष्ट देते हैं और आक्रामक स्वभाव के (दाईं ओर) के अन्य लोगों को कष्ट देते हैं। अत: बाई ओर के लोगों के शरीर में दर्द होता है और वे कष्ट उठाते हैं। दूसरों को कष्ट पहुँचाने वाले, दाईं ओर के लोगों को इस बात का पता भी नहीं होता। ऐसे लोगों को ज़िगर का पीलिया रोग या चक्षु रोग हो सकते हैं। 'भक्ति' बाएं ओर का रोग है; श्रद्धा मध्य का। जब तक दर्द शुरू न हो जाएं बाईं ओर बहुत सुहावनी लगती है। परन्तु बाद में आप भटकने लगते हैं। कुछ भक्त लोगों के साथ ऐसा हो रहा है। जब मैं बोलती हूँ तो मेरा हर शब्द मन्त्र है । मैं जब बोलना आरम्भ करती हूँ तो लोग ठीक होने लगते हैं। अब सभी प्रकार के लोग आ रहे हैं। कुछ बहुत तेजी से उन्नत हो रहे हैं। उन्होंने मुझे देवी समझ कर एक तरफ बिठा दिया है कि मुझ तक नहीं पहुँचा जा सकता। अब आपमें से कोई सहजयोगी जब खड़ा हो जाएगा तो उसे से देखकर लोग सहज में आएंगे । कुछ लोगों का सहज कार्य के लिए आगे आना बहुत आवश्यक है। बहुत लोगों ने सहजयोग को व्यक्तिगत बना लिया है। वे जानना चाहते हैं कि उनके परिवार पर, दूसरे लोगों पर, बम्बई के लोगों पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है। सहजयोगी अत्यन्त ईमानदार, करुणामय, कुशल , सुस्वभाव और कम क्रोध वाले हैं। उत्थान की इस प्रक्रिया में उनके चरित्र ने एक नया आयाम अपना लिया है। आप सभी दूसरों की चिन्ता किए बिना इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम करें। परिस्थिति के समय अपनी स्थिति की परीक्षा होती है। अत: स्थिति पूर्णत: विवेकमय होनी चाहिए । चक्रों पर देवी- देवता विराजमान है। कुण्डलिनी जब जागृत होती है तो इन्हें भी जागृत करती है और जागृत होकर देवी-देवता उत्थान को कार्यान्वित करते हैं। अपने कार्य को भलीभांति जानते हैं और उसे अन्जाम देते हैं। उत्थान प्रक्रिया के समय ये देवी-देवता हमारे अन्दर स्थापित हुए। अपने स्थान पर रहते हुए ये कार्य करते हैं। एक छोटे से बीज का उदाहरण लें। यह स्थूल होता है। परन्तु इसमें बड़े-बड़े वृक्ष बनाने की सम्भावना निहित होती है। यह सम्भावना अत्यन्त सूक्ष्म होती है। यद्यपि यह स्थूल दिखाई पड़ती है। सुगन्ध पृथ्वी माँ का गुण है अत: जब कुण्डलिनी जागृत होती है तो अपने गुण को छूती है और कभी-कभी व्यक्ति में से सुगन्ध महकने में लगती है। आत्मसाक्षात्कार का कारण-सम्बन्ध शुद्ध इच्छा है। मनुष्य तीन सम्भावनाएं होती है-स्थूल, सूक्ष्म और कारणात्मक। 17 आत्मसाक्षात्कार का कारणात्मक सम्बन्ध अर्थात् शुद्ध इच्छा सूक्ष्म और स्थूल शरीर को ज्योतिर्मय करता है। जैसे बीज को यदि आप पृथ्वी माँ में डालें तो पृथ्वी माँ इसे जीवन्त करके सम्भावना शक्ति प्रदान करती है। इसी प्रकार कुण्डलिनी भी हमारे अन्दर पृथ्वी माँ हैं जो व्यक्ति के अन्दर छिपे बीज को सशक्त आयाम प्रदान करती है। सभी चक्र अपने गुण के अनुसार कार्य करते हैं, लेकिन समस्या ये है कि हम स्थूल स्तर पर भी इन चीज़ों को नहीं समझते। हम एक अणु को ही लें। अणु के अन्दर प्रोटोन, न्यूट्रोन और मेसोट्रोन होते हैं। हिलियम गैस की तरह से यदि आप इस अणु को ठण्डा करें तो प्रोटोन, न्यूट्रोन और मेसोट्रोन सामूहिक हो जाते हैं। इस प्रकार स्थूलतम चीज़ों में भी ये सम्भावना मौजूद है और वैज्ञानिक रूप से इसे प्रमाणित किया जा सकता है। मानव की बात जब हम करते हैं तो जीवन्त क्रिया की बात हम करते हैं। स्थूल स्तर पर मानव पूरी तरह से परिपक्व हो चुका है बिल्कुल उसी बीज की तरह से जो पूरी तरह से पक कर अंकुरण की सम्भावना से परिपूर्ण है। जरूरत है तो केवल इस बात की कि इसे उचित समय पर पृथ्वी माँ में बोना चाहिए। मानव की सम्भावना कुण्डलिनी है यह पृथ्वी माँ की तरह कारणात्मक सम्बन्ध की प्रतीक है। विराट का कारणात्मक गुण सामूहिकता है। आत्मा और कुण्डलिनी हमारे अन्दर सदाशिव और आदिशक्ति के प्रतीक हैं। ये कार्यकारण से परे हैं, वास्तव में यही कारणात्मक सम्बन्धों को बढ़ावा देते हैं। एक उदाहरण लें। मोमबत्ती जलाएं, अपना बायाँ हाथ इसकी लौ के सम्मुख करें। मेरी फोटोग्राफ के सामने अग्नितत्व जागृत हो जाता है। और इस प्रकार मोमबत्ती की लौ में उसकी सम्भाव्य शक्ति जागृत हो जाती है। यह अग्नि तत्व बाईं ओर की बाधाओं को भस्म करता है। बाधाओं को जलाती हुई मोमबत्ती की लौ से आपने | जागृत दीवार काली होते हुए देखी है। हर चीज़ का एक कारणात्मक सम्बन्ध होता है जिसमें सभी सम्भावनाएं निहित होती है। कारणात्मक से स्थूल तक हम सूक्ष्म के माध्यम से जाते हैं। अब क्या होता है, जैसे सुगन्ध का कारणात्मक पृथ्वी माँ हैं। पृथ्वी माँ के माध्यम से सभी फूल और वृक्ष बढ़ते हैं। मनुष्य का कारणात्मक कार्बन है। जिस प्रकार पृथ्वी माँ के अन्दर अग्नि जलती है और उस अग्नि के ताप से यह कार्बन की सृष्टि करती है और यह कार्बन आपके अन्दर अमीनो एसिड बनाने का कार्य करते हैं। तो कारणात्मक स्तर पर माँ जानती हैं कि माँ क्या हैं। शक्ति रूप में निराकार ही कारणात्मक है और इसका उपयोग करने के लिए साकार रूप में देवी - देवता हैं। वे इसका उपयोग करना जानते हैं । मध्य नाड़ी प्रणाली के माध्यम से स्थूल में इसका प्रदर्शन होता है। साकार ही कर्ता है। किसी देवता विशेष की अव्यक्त शक्ति कारणात्मक है परन्तु देवताओं के जागृत होते ही उनकी शक्तियाँ भी जागृत हो जाती हैं। यह एक जीवंत प्रक्रिया है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। आप भ्रूण को ही देखें, किस प्रकार यह आकार धारण करता है, कौन इसका पथ प्रदर्शन करता है, कौन इस कार्य को करता है, कौन इसे चलाता है, कौन इसकी योजना बनाता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ से मेरा प्रश्न है-किसी भी बाह्य चीज़़ को शरीर अपने अन्दर स्वीकार नहीं करता तो भ्रूण को बाहर क्यों नहीं फेंकता? मुझे इसका उत्तर दें। कोई शक्ति इसका पोषण करती है, इसकी देखभाल करती है और एक उचित समय पर इसे बाहर भेजती है। भ्रूण माँ के गर्भ में बढ़ता है परन्तु उसे कोई कष्ट नहीं देता । परन्तु जीवन शक्ति के परिवर्तन के दौरान माँ की मुखाकृति परिवर्तित होती है । तो माँ पर ये सौंदर्य कहाँ से आता है, इसके पोषण और देखभाल पर आप नजर डालें। इस पूर्णता को देख कर आश्चर्य होता है। क्या ऐसा नहीं होता ? | अपनी बुद्धि का हम कोई अन्त नहीं समझते। परन्तु परमात्मा के सम्मुख रखते हुए एक छोटा सा बीज आया और अन्त में एक नन्हा सा कोषाणु निकला। जो विवेक बुद्धि इस कोषाणु में है वह यदि मानव में आ जाए तो 18 प। निम निश्चित रूप से सहजयोग स्थापित हो जाएगा। एकदम से यह अपने मार्ग को देख लेता है, रास्ते पर आए पत्थर को यह देख लेता है। पत्थर से यह लड़ता नहीं। इसके इर्द -गिर्द घूमकर जड़ पत्थर से लिपट जाती है ताकि पेड़ बनने पर पत्थर इसे मजबूत बना सके। तब धीरे-धीरे यह पानी की ओर बढ़ती है। पानी के स्तर का इसको पूर्वाभास नहीं होता। गुँजमक्षी (Bumblebee) के साथ एक मैंने प्रयोग किया। इस पर मैंने रंग लगा दिया क्योंकि यह हमारे घर में अपना घरौंदा बनाती थी। यह रंग किसी तरह उसके पंखों पर आ गया। एक दिन मैं अपने घर से किसी बहुत दूर स्थान पर गई। उस गुँज मक्षी को मैंने वहाँ पाया। कुछ देर बाद फिर वह मक्षी हमारे घर पर थी उसे ये सारे मार्ग कैसे पता चले। उसमें अवश्य कोई चुम्बक होगा। आस्ट्रेलिया से साइबेरिया जाकर पक्षी किस प्रकार अपने घर खोज लेते हैं? क्योंकि वे सब सामूहिक होते हैं और उनमें पूर्ण प्रेम होता है। सभी इक्ट्ठेचलते हैं यह सब बातें पशु ओं के पाश की हैं। में परन्तु हम मानव अब पशु नहीं हैं। हम स्वतन्त्र हैं। इस स्वतन्त्रता बहुत कुछ खो गया है और लुप्त हो गया है। तब कहीं मानव स्थिर होते हैं। आदम और हौवा के स्तर पर यह स्वतन्त्रता दी गई थी। वे यदि समझदार होते तो कोई समस्या न होती। परन्तु अब इस स्वतन्त्रता के लिए बहुत कीमत चुकानी पड़ रही है। आजकल सब कार्यान्वित हो रहा है । विज्ञान को यह जीवन्त प्रक्रिया नहीं समझाई जा सकती। वैज्ञानिक देवी - देवताओं को तो मानेंगे नहीं । अत: उनकी चिन्ता छोड़ दे, हमारे यहाँ वैज्ञानिक नहीं है तो हानि क्या है? उन्हें भी हम छोड़ेंगे नहीं । वैज्ञानिकों के लिए आवश्यक है कि वे स्वयं को देखें । इसके बारे में कुछ अधिक वर्णन नहीं किया जा सकता। सल्फर-डाय-आक्साइड में चैतन्य लहरियाँ हैं। ये विद्युत चुम्बकीय-सममित होती है। और आइसोसिमैट्रिक होती है। वैज्ञानिक जो भी कुछ देखते हैं उसी का वर्णन करते हैं। सहजयोग में भी वे देखेंगे कि यह क्या है? आप लोग उन्हें तथ्य बताएं और इसका अनुभव उन्हें दें। वैज्ञानिक रूप से किस प्रकार आप उन्हें चीज़ें दिखा सकते हैं? 19 ब्कादर रुद्र १६/९/१९८४, अनुवादित एकादश रुद्र की महिमा गान करने के लिए आज हम एक विशेष प्रकार की पूजा कर रहे हैं। रुद्र श्री शिव की, आत्मा की विध्वंसक शक्ति है। उनकी एक शक्ति, जो उनका स्वभाव है, 'क्षमा है।' मानव होने के कारण हम लोग गलतियाँ करते हैं, गलत कार्य करते हैं, प्रलोभनों में फँसते हैं और हमारा चित्त भी अस्थिर है; परन्तु मानव जानकर वे हमें क्षमा करते हैं। जब हम अपने पावित्र्य को बिगाड़ते हैं; अनैतिक कार्य करते हैं, चोरी आदि करते हैं या उनके (शिव) विरुद्ध कार्य करते हैं तब भी वे हमें क्षमा करते हैं। वे हमारे छिछोरेपन, ईष्ष्या, कामुकता एवं क्रोध को भी क्षमा करते हैं। हमारी लिप्सा, क्रूरता और स्वामित्व भाव को भी क्षमा करते हैं। हमारे अहंकारमय आचरण और गलत चीज़ों की गुलामी को भी वे क्षमा करते हैं। परन्तु जिस प्रकार हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है तो जब वे क्षमा करते हैं तो सोचते हैं कि उन्होंने आप पर बहत बड़ी कृपा की है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् भी क्षमा पाकर जब लोग बड़ी-बड़ी गलतियाँ किए चले जाते हैं तो प्रतिक्रिया स्वरूप उन लोगों के विरुद्ध भगवान शिव के अन्दर यह प्रतिक्रिया कोप का रूप धारण कर लेती है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति को बहुत बड़ा आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है, उसे प्रकाश मिल जाता है, परन्तु इस प्रकाश में भी यदि व्यक्ति गलत मार्ग पर चलता रहे तब भगवान शिव का कोप उग्र हो जाता है। वे सोचते हैं। कि यह व्यक्ति कितना मुर्ख है। मेरे कहने का अभिप्राय ये है कि आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के प्रति श्री शिव बहत अधिक संवेदनशील हो जाते हैं कि इन लोगों को क्षमा दे दी गई, आत्मसाक्षात्कार जैसा आशीर्वाद दे दिया गया, फिर भी ये गलत कार्य किए चले जाते हैं तब वे और अधिक कुपित हो जाते हैं और सन्तुलन के रूप क्षमा घटती चली जाती है =ी ु श यव= :১ ्० क और क्रोध बढ़ने लगता है। परन्तु जब आप क्षमा करते हैं और उस क्षमा के परिणाम स्वरूप स्वयं को कृतज्ञ मानते हैं तब उनके आशीर्वाद की वर्षा आप पर होने लगती है। दसरों को क्षमा करने की अथाह शक्ति वे आपको प्रदान करते हैं। वे आपके क्रोध को शान्त करते हैं, आपकी कामुकता को शान्त करते हैं, लोभ को शान्त करते हैं। ओस की सुन्दर बूँदों सम उनका आशीष हमारे अस्तित्व पर पड़ता है और हम वास्तव में सुन्दर पुष्पों सम बन जाते हैं। उनके आशीष की शीतल धूप में हम चमक उठते हैं। अब वे अपने क्रोध एवं विध्वंसक शक्ति का उपयोग उन सभी तत्वों को नष्ट करने में करते हैं जो हमें कष्ट देती हैं। हर कदम पर, हर प्रकार से वे आत्मसाक्षात्कारी लोगों की रक्षा करते हैं। च= ५ू रस x८ ओसुरी शक्तियाँ सहजयोगियों को अपनी चपेट में लेने का प्रयत्न करती हैं परन्तु एकादश रुद्र की महान शक्ति से वे शान्त हो जाती है। चैतन्य चेतना के माध्यम से हम ठीक मार्ग पर आ जाते हैं। उनके सुन्दर आशीर्वादों का वर्णन बाइबल के साथ psalm-23 में किया गया है- 'परमात्मा मेरे संरक्षक (Shepherd) हैं।' सारा वर्णन किया गया है कि एक चरवाहें की तरह से किस प्रकार वे आपकी देखभाल करते हैं, परन्तु वे आसुरी लोगों की देखभाल नहीं करते। वे उन्हें त्याग देते हैं। सहजयोग में आकर भी जो लोग आसुरी स्वभाव नहीं छोड़ते उन्हें वे नष्ट कर देते हैं। सहजयोग में आकर भी जो ध्यान-धारणा नहीं करते उन्हें या तो वे नष्ट कर देते हैं या सहजयोग से बाहर फैंक देते हैं। जो लोग परमात्मा के विरुद्ध अफवाहें फैलाते हैं और जिनका रहन-सहन ऐसा है जो सहजयोगियों को शोभा नहीं देता, ऐसे लोगों की समस्या भी वे समाप्त कर देते हैं। इस प्रकार एक शक्ति से तो वे रक्षा करते हैं और दूसरी से बाहर फैंकते हैं। उनकी विध्वंसक शक्तियाँ | जब बहुत बढ़ जाती है तब हम कहते हैं कि 'एकादश रुद्र गतिशील हो उठे हैं। अब जबकि कलकी स्वयं गतिशील होगी तो एकादश रुद्र की अभिव्यक्ति होगी अर्थात् इसकी विध्वंसक शक्ति पृथ्वी पर विद्यमान आसुरी शक्तियों को नष्ट करेगी और सभी शुभ तत्वों की रक्षा करेंगी। इसलिए सभी सहजयोगियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि शीघ्र, अति शीघ्र अपने उत्थान को प्राप्त कर लें। अपने सामाजिक, विवाहित जीवन से या परमात्मा के जो आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुए हैं उनसे संतुष्ट होकर न बैठ जाएं। आप हमेशा सोचते हैं कि परमात्मा ने हमारे लिए क्या किया है? किस प्रकार से उन्होंने हमारे लिए चमत्कार किए। परन्तु हमें सोचना चाहिए कि हमने अपने लिए क्या किया ? अपनी उन्नति और उत्थान के लिए हम क्या कर रहे हैं? ग्यारह रुद्रों में से पाँच आपके भवसागर के दाई ओर के हैं और पाँच बाई ओर के। आपने यदि कुगुरुओं के सम्मुख सिर झुकाया हो या गलत पुस्तकें पढ़ी हों या गलत लोगों की संगति में रहे हों या गलत मार्ग पर चलने वाले लोगों के प्रति आपकी सहानुभूति हो या आप स्वयं किसी कुगुरु के प्रतिनिधि रहे हों तो भवसागर के बाईं ओर के पाँच एकादश कुपित हो जाते हैं। परन्तु यदि हम ऊपर वर्णित कुकृत्यों को छोड़ दें तो इन पाँचों रुद्रों की समस्या का समाधान हो सकता है। मोहम्मद साहब ने कहा कि शैतान को जूतों से पीटें । परन्तु यह कार्य आपको हृदय से करना होगा, मशीन की तरह से नहीं। सहजयोग में आने वाले से लोग मुझे बताते हैं कि, 'मेरे पिताजी फलाना गुरु को मानते हैं।' लिप्सा भाव से इन गलत गुरुओं को मानने वाले माता-पिता, बहन- भाई आदि को उन गुरुओं के चंगुल से छुड़वाने में लगे हुए सहजयोगी भी फँस जाते हैं या इन आसुरी शक्तियों के सामने घुटने टेक देते हैं। मैं एक सहजयोगिनी को जानती हँ जिसके बहुत माता-पिता ने कहा कि उसके बच्चे का बपतिस्मा अवश्य होना चाहिए। मैंने उसे बताया कि वह उस बच्चे का बपतिस्मा नहीं करा सकती क्योंकि वह आत्मसाक्षात्कारी हैं। परन्तु वह अपने माता-पिता का विरोध न कर सकी और बच्चे को बपतिस्मा के लिए ले गई और अब उस बच्चे की दशा बड़ी अजीबोगरीब हो गई है। बच्चा पागल सा दिखाई देता था। मैंने स्वयं ये सब देखा है। अन्तत: उस महिला को यह सब छोड़ना पड़ा तब कहीं उसकी रक्षा हुई। यदि उसका एक और बच्चा होता तब भी वो ऐसा ही करती और दूसरे बच्चे की स्थिति बहुत ही अधिक खराब हो जाती। सहजयोगियों के साथ समस्या ये है कि जो भी लोग सहजयोग के कार्यक्रम में आते हैं वो स्वयं को सहजयोगी समझने लगते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं होता। या तो आपमें बहुत तेज संवेदनशीलता होनी चाहिए और यदि आप अपने शरीर पर या अपनी बुद्धि से महसूस करते हैं तो आपको समझना चाहिए कि सहजयोग क्या है? नकारात्मक व्यक्ति सदैव अधिक नकारात्मक लोगों के प्रति आकर्षित होता है। वह ये भी नहीं समझ पाता कि दूसरा व्यक्ति इतना भयानक 22 आसूरी शक्तियाँ सहजयोगियों को अपनी चपेट में लेने का प्रयतन कटती हैं पटन्तु एकादश रद्र की महान शक्ति से वे शान्त हो जाती है। रूप से नकारात्मक है, वह उससे प्रभावित हो जाता है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को नकारात्मक प्रभाव के कारण चोट पहुँचती है और भगवान शिव भी उसकी रक्षा नहीं कर पाते। हमें किसी भी नकारात्मक व्यक्ति से सहानुभूति नहीं होनी चाहिए चाहे वह पागल हो, चाहे उसे कोई परेशानी हो, चाहे वह आपका सम्बन्धी हो या कुछ और। ऐसे लोगों से सहानुभूति होनी ही नहीं चाहिए। इसके विपरीत ऐसे लोगों के लिए हमारे अन्दर एक प्रकार का क्रोध, निर्लिप्सा एवं क्रोधपूर्ण अलगाव होना चाहिए। यह क्रोधमय निर्लिप्सा केवल ऐसे लोगों के लिए ही होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त क्रोध का सहजयोगियों में कोई स्थान नहीं । मैंने देखा है कि लोग बहुत अच्छे सहजयोगियों पर क्रोध करते हैं परन्तु अपने अत्याधिक नकारात्मक पति-पत्नियों पर क्रोध नहीं करते। तो जब ये एकादश पाँच ओर से गतिशील हो उठते हैं, क्योंकि जब ये बाईं ओर से दाईं ओर को आते हैं, तो व्यक्ति नकारात्मक होकर अहंवश कार्य करने लगता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी स्थिति को अपने हाथों में लेकर कह सकता है। कि मैं फलाना सहजयोगी हूँ, मैं फलाना हूँ और हमें ऐसा करना चाहिए आपको इस प्रकार आचरण करना चाहिए । वह लोगों पर रौब झाड़ने लगता है और कुछ अधकचरे औसत वर्ग के सहजयोगी उसे मानने लगते हैं । परन्तु बहुत से लोग ये जानते हैं कि वह सहजयोग से बाहर जाने के रास्ते पर चल पड़ा है। वह व्यक्ति बाईं ओर के प्रकोप में आने लगता है या हम कह सकते हैं कि मेधा (मस्तिष्क) के दाएं हिस्से में, माथे (Forehead) को संस्कृत में मेधा कहते हैं। दाईं ओर के व्यक्ति के मन में ये विचार होता है कि मैं स्वयं बहत बड़ा गुरू हूँ। वे सहजयोग के विषय में भी शिक्षा देने लगते हैं मानो वे बहुत महान गुरु बन गए हों। हम कुछ लोगों को जानते हैं जो किसी भी कार्यक्रम में बड़े-बड़े भाषण देते हैं, मेरे भाषण के टेप तक नहीं चलने देते। वे समझते हैं कि वे बहुत बड़े विशेषज्ञ हो गए हैं। उनमें से कुछ तो कहते हैं कि अब हम बहुत ऊँचे हो गए हैं, कि हमें पानी पैर क्रिया की कोई आवश्यकता नहीं, हमें ध्यान धारणा की भी कोई आवश्यकता नहीं। ऐसे कुछ लोग कहते हैं कि हम सहजयोगी हैं और आस-पास की चीज़ों का हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। हम इतने महान हैं। परन्तु उनमें से सबसे अधम वो लोग हैं जो मेरा नाम लेकर लोगों को हक्म देते हैं कि श्रीमाताजी ने ऐसा कहा हैं' मैं इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि श्रीमाताजी ने ऐसा कहा है, जबकि मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही होती। यह सब झूठ है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सहजयोग का उपयोग करते हैं और सहजयोगियों का अनुचित लाभ उठाते हैं। ऐसे लोग अमंगलमय हो जाते हैं। इस प्रकार के कार्य करने वाले व्यक्ति अत्यन्त अपमानपूर्वक सहजयोग से बाहर चले जाते हैं। हमें ऐसे व्यक्ति के समीप कभी नहीं जाना चाहिए, उससे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहि, और ना ही उससे हमें कोई सहानुभूति होनी चाहिए क्योंकि उसकी यह अमंगलमयता किसी को भी किसी भी सीमा तक हानि पहुँचा सकती है। तो ऐसे लोगों से दूर रहने में ही हित है। किसी व्यक्ति में जब यह दसों एकादश विकसित हो जाते हैं तब निश्चित रूप से उसे कैन्सर या कोई अन्य भयानक लाइलाज रोग हो जाता है। विशेष तौर पर जब ग्यारहवाँ रुद्र यहाँ (माथे में) हो- जो कि विराट चक्र है और जो सामूहिकता है। जब यह भी बाधित हो जाता है तो ऐसा व्यक्ति इससे निकल नहीं सकता। इन पाँचों में से यदि यह एक मान लो, मूलाधार या आज्ञा से जुड़ जाए तो व्यक्ति को अत्यन्त घिनौनी बीमारियाँ हो सकती हैं। इसलिए मैं सदैव कहती हैँ कि अपने आज्ञा चक्र के विषय में सावधान रहें क्योंकि यदि यह एक बार एकादश रुद्रों या उनके एक भाग से जुड़ जाए तो व्यक्ति को कुछ भी हो सकता है। उसकी | भयानक दुर्घटना हो सकती है, अचानक उसे कोई आघात पहुँच सकता है, कोई उसका कत्ल कर सकता है। जिस व्यक्ति को दाईं आज्ञा और कोई एकादश (बायां या दायां) खराब हो उसके साथ कुछ भी हो सकता है। अर्थात् यह 23 पाँचों या इन में से कोई एक यदि आज्ञा चक्र समेत खराब हो तो परमात्मा की संरक्षण शक्तियाँ कम हो जाती हैं। अत: अपने अगन्य चक्र को ठीक रखें। अब जैसे मैं बोल रही हैँ आप निरन्तर मेरी ओर देखें ताकि आपमें निर्विचार चेतना आ जाए और आज्ञा चक्र शान्त हो जाए। हर समय अपने चित्त को इधर-उधर न भटकने दें, तब आप पाएंगे कि आपका चित्त निर्विचार चेतना में परिवर्तित होता जा रहा है। और तब आपका चित्त इस प्रकार स्थिर हो जाएगा कि आपको किसी भी चीज़ की चिन्ता न करनी पड़ेगी। निर्विचार चेतना में कोई भी आपको छू नहीं सकता, यह आपका किला है। ध्यानधारणा द्वारा हमें निर्विचार चेतना स्थापित करनी चाहिए। इससे पता चलता है कि हम ऊँचे उठ रहे हैं। कुछ लोग ध्यान धारणा करते हैं और कहते है 'श्री माताजी, ठीक है, हम ध्यान कर रहे हैं।' मशीन की तरह से वे ध्यान करते हैं और कहते हैं कि मैंने यह किया, मैंने वह किया। परन्तु क्या आपको निर्विचार समाधि की अवस्था प्राप्त हुई जो कि आरम्भिक स्थिति है? क्या आपने अपने सिर से शीतल लहरियाँ निकलते हुए महसूस की ? यदि आप मशीन की तरह से ध्यान कर रहे हैं तो इससे कोई लाभ न होगा, न आपको न किसी अन्य को। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् क्योंकि आप भली-भाँति सुरक्षित होते हैं इसलिए आपको सभी आशीर्वाद प्राप्त हो जाते हैं और एक महान भविष्य आपके सम्मुख होता है। परन्तु पूर्ण विनाश की सम्भावना भी आपके सम्मुख होती है। समानता का एक उदाहरण देते हुए मैं कहूँगी कि उत्थान पथ पर सभी लोग हाथ पकड़कर आपको आश्रय दे रहे हैं और उन्नत होने के लिए विविध प्रकार से आप सुरक्षित हैं। परन्तु गलती से नीचे गिर जाने की भी सम्भावना है। यदि आप सत्य और प्रेम से सम्बन्ध तोड़कर हर समय आश्रय देने वाले लोगों को चोट पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं तो आप बहुत ऊँचाई से गिर जाते हैं। क्योंकि जिस ऊँचाई पर आप होंगे उसी से ही आप गिरेंगे और उतनी ही अधिक शक्ति से गिरेंगे और गहरी खाई में जा पड़ेंगे। गहरी खाई से आपको बचाने के लिए परमात्मा ने सारे प्रयत्न किए हैं आपको पूरी सहायता दी है फिर भी यदि आप उस ऊँचाई से गिरना चाहते हैं तो यह बहुत भयानक है । सहजयोग में होते भी यदि कोई व्यक्ति सहजयोग के कार्य को हानि पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो एकादश रुद्र हुए उसे इतनी बुरी तरह चोट पहुँचाते हैं कि उनका आक्रमण बहुत ही विस्तृत होता है। परिवार के कुछ लोग यदि सहजयोग कर रहे हैं तो भी पूरे परिवार की रक्षा हो सकती है। परन्तु पूरा परिवार ही सहजयोगियों के विरुद्ध है और उन्हें परेशान करने की कोशिश करता है तो ऐसा परिवार पूर्णत: नष्ट हो सकता है। अब जैसे मैंने आपको बताया ये एकादश रुद्र भवसागर से निकलते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि विनाशकारी भाव मुख्यत: भवसागर से आता है। परन्तु ये सब शक्तियाँ एक ही अवतरण को दी गई हैं। श्री महाविष्णु को जो कि भगवान ईसामसीह हैं, जिन्होंने क्रॉस थामा हुआ है। आपकी तथा पूरे विश्व की रक्षा करने वाली सभी चीज़ों के वे ही आधार हैं। वे ओंकार मूर्ति हैं, वे ही चैतन्य स्वरूप हैं। जब वे क्रोधित होते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड टूटने लगता है। हर अणु-रेणु में, | हर मानव में, सभी जड़ चेतन में वे ही विद्यमान हैं, उनके कुपित हो जाने से सभी कुछ खतरे में पड़़ जाता है। अत: ईसामसीह को प्रसन्न रखना अत्यन्त आवश्यक है। ईसा ने कहा है हमें नन्हें बच्चों की तरह से होना पड़ेगा अर्थात् अबोध। हृदय की पवित्रता ही उन्हें प्रसन्न करने का सर्वोत्तम मार्ग 24 25 53 26 wwwm क= है। पश्चिमी देशों में, विशेष कर के लोगों ने अपने मस्तिष्क बहुत अधिक विकसित कर लिए हैं। शब्दों से खिलवाड़ करके वे सोचते हैं कि उनके जितना ज्ञान किसी को नहीं है। ऐसे लोगों को समझ लेना चाहिए कि जो भी कुछ आप कर रहे हैं परमात्मा उसे जानते हैं। आप यदि हृदय से शुद्ध नहीं हैं तो ऐसे व्यक्ति के लिए यह सोचना कि वह बहत अच्छा सहजयोगी है या बहुत खतरनाक है, ऐसे लोग न तो भूतबाधित हैं न ही बन्धनग्रस्त। वे अहं ग्रस्त व्यक्ति हैं। परन्तु वे अत्यन्त चालाक लोग हैं जो इस बात को जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। कुछ लोग भूत बाधित होकर स्वयं को नष्ट करने का प्रयत्न करते हैं या रोते हैं, बिलखते हैं और सभी प्रकार के कार्य करते हैं। कुछ लोग सोचते है कि यदि वे स्वयं को कष्ट देंगे या कोई और ऐसा कार्य करेंगे तो परमात्मा प्रसन्न हो जाएंगे, ऐसे लोग भयंकर गलतफहमी में है। सहजयोग में यदि आप आनन्द नहीं उठा सकते तो जान लीजिए कि आपमें कोई कमी है। सहजयोग में यदि आप प्रसन्न नहीं रह सकते तो आपको जान लेना आवश्यक है कि निश्चित रूप से आपमें ही कोई कमी है। सहजयोगियों की संगति का आप यदि आनन्द नहीं उठा सकते तो भी आपको जान लेना चाहिए कि आपमें अवश्य कोई कमी है। परमात्मा की महानता को यदि आप नहीं सराह सकते तो भी आप ही में कुछ कमी है। नकारात्मक लोगों और उनकी समस्याओं के विषय में यदि अब भी आप चिन्तित हैं तो आप जान लें कि आप ही में कुछ कमी है। बुरे लोगों से यदि यदि सहजयोग विरोधी नकारात्मक लोगों और सारी आपको सहानुभूति है तो भी आप ही में कुछ कमी है। परन्तु नकारात्मकता के प्रति आपमें क्रोध है तो आप ठीक हैं। यह चीज़ जब परिपक्व हो जाएगी तो आप स्वयं एकादश की शक्ति बन जाओगे। जो भी व्यक्ति आपको अपमानित करने और हानि पहुँचाने का प्रयत्न करेगा वह समाप्त हो जाएगा। जिन लोगों ने किसी भी प्रकार से मुझे अपमानित करने का प्रयत्न किया या आपको हानि पहुँचाने का प्रयत्न किया उनके साथ ऐसा घटित हो चुका है। कभी-कभी तो मुझे उनके विषय में बहुत चिन्ता होती है। तो व्यक्ति को ऐसा होना चाहिए कि वह स्वयं एकादश बन सके। ऐसे लोगों को कोई छू भी नहीं सकता। परन्तु ऐसे व्यक्ति करुणा से और क्षमा से परिपूर्ण हो जाते हैं। परिणामस्वरूप एकादश बहुत तेजी से कार्य करने लगते हैं। जितने अधिक करुणामय आप होंगे एकादश उतने ही अधिक शक्तिशाली हो जाएंगे। जितने अधिक सामूहिक चेतन आप होंगे उतने ही अधिक एकादश कार्य करेंगे । एकान्त में बैठकर कुछ लोग कहते हैं कि घर में रहना ही ठीक है परन्तु वे नहीं जानते कि वे क्या खो रहे हैं ? दसरे लोगों के साथ आप के जो भी अनुभव रहे हों फिर भी आपको चाहिए कि उनके साथ मिलकर रहें। सदैव कार्यक्मों में भाग लें, कार्यभार सम्भाले, इसके लिए आगे बढ़े, इसे कार्यान्वित करें। तब आपको हजारों गुना आशीर्वाद प्राप्त होंगे । एकादश रुद्र में पूर्ण विध्वंसक शक्तियाँ हैं। ये श्री गणेश की विध्वंसक शक्तियाँ हैं। श्री ब्रह्मा विष्णु और महेश की विध्वंसक शक्तियाँ हैं। माँ आदिशक्ति की विध्वंसक शक्तियाँ हैं। ब्रह्मा विष्णु, महेश की विध्वंसक शक्तियों के अतिरिक्त ये श्री भैरव, श्री हनुमान, श्री कार्तिकेय और श्री गणेश की भी विध्वंसक शक्तियाँ हैं। ये श्री सदाशिव और आदिशक्ति की भी शक्तियाँ हैं। सभी अवतरणों की विध्वंसक शक्तियाँ एकादश हैं। इसके अतिरिक्त एकादश रुद्र हिरण्यगर्भ की भी विध्वंसक शक्ति है। जब यह शक्ति गतिशील होती है तो हर अणु का विस्फोट हो जाता है। पूरी आण्विक ऊर्जा विध्वंसक शक्ति बन जाती है। तो पूरी विध्वंसक शक्ति ही एकादश रुद्र है। यह अत्यन्त शक्तिशाली और विस्फोटक है । परन्तु यह अन्धी नहीं है, अत्यन्त विवेकशील है और अति कुलता पूर्वक गुथी हुई है। सभी अच्छाइयों को छोड़ती हुई यह बुराइयों पर आक्रमण करती है और उचित समय पर उचित स्थान पर सीधे ही चोट पहुँचाती है। बीच में खड़ी किसी भी अच्छी चीज़ को हानि नहीं पहुँचाती। उदाहरण के रूप में मान लो कि एकादश रुद्र की दृष्टि किसी व्यक्ति पर पड़ रही रय च |ाी 27 है परन्तु बीच में कोई दिव्य या सकारात्मक चीज़ है तो सकारात्मक के बीच में से गुजरती हुई, उसे बिना कोई हानि पहुँचाए, यह नकारात्मक को चोट पहुँचाती है। कुछ लोगों को यह शीतल करती है और कुछ अन्य को जला देती है, इतनी कोमलता और सूझबूझ से यह कार्य करती है। यह अत्यन्त तेज भी है और अत्यन्त कष्टदायी भी। झटके से यह गला नहीं काटती धीरे-धीरे करके यह इस कार्य को करती है। जिन भी भयानक कष्टों के विषय में आपने होगा या ४. सुना जिन्हें आपने देखा होगा वह सब एकादश रुद्र की ही अभिव्यक्तियाँ हैं। उदाहरण के लिए कैन्सर का ही लें। कैन्सर हो जाने पर रोगी की नाक काट लेते हैं, जुबान निकाल देते हैं और एक-एक करके भयंकर कष्ट के साथ भिन्न अंग निकाल दिए जाते हैं। कुष्ठरोग का उदाहरण लें। कुष्ठरोगी अपनी अंगुलियों का भी एहसास नहीं कर सकता। उनके शरीर के किसी हिस्से पर यदि कोई जख्म आदि हो जाएं तो भी उन्हें उसका एहसास नहीं होता। उनकी उंगलियाँ गलने लगती है। | इस प्रकार शनै:, शनै: एकादश रुद्र लोगों को खा लेता है, उन्हें निगल लेता है। एकादश रुद्र परन्तु परम पिता की दृष्टि जब अपने बच्चों पर पड़ती है तो ये भयानक क्रोध अत्यन्त मृद् के तथा मधुर रूप में परिवर्तित हो जाता है। माँ महाकाली की एक कथा है। एक बार वे अत्यन्त कुपित हो गई। इतनी कुपित कि अपनी एकादश शक्तियों से उन्होंने पूरे विश्व को नष्ट कर देना चाहा। वे पूरे विश्व को ही नष्ट करने लगी थीं। भगवान शिव ने जब उन्हें इतना क्रोधित देखा तो वे घबरा गए। महाकाली ने जब अपनी विनाश लीला शुरु की और विनाश नृत्य करने लगीं तो गतिशील होने शिव को समझ नहीं आया कि उन्हें किस प्रकार रोकें। उन्होंने उनका बच्चा उठाया, आप कह पट सकते हैं कि वो भी एक सहजयोगी, ईसामसीह या उनका कोई अन्य महान बालक होगा और उसे उनके चरणों में डाल दिया। देवी के चरणों से जब धप्प-धप्प हो रही थी तो उनकी दृष्टि पैरों में पड़े अपने बच्चे पर पड़ी। उसे देखकर उनकी जुबान बाहर को निकल आई और उनका अनतत: सदाशिव विनाश नृत्य रुक गया। ऐसा केवल एक ही बार घटित हुआ। एकादश रुद्र के गतिशील होने पर अन्तत: सदाशिव के क्रोध के कारण पुर्ण विनाश हो जाता है। तब पूर्ण प्रलय आ जाती है। अत: हमें जान लेना चाहिए कि किस प्रकार एकादश रुद्र कार्य करता है और किस प्रकार सहजयोगियों को स्वयं एकादश रुद्र बनना है। यह शक्ति स्वयं में विकसित करने के लिए व्यक्ति को अपने अन्दर निर्लिप्सा की अगाध शक्ति विकसित करनी के क्रोध के होती है-नकारात्मकता से अलगाव। उदाहरण के रूप में नकारात्मकता भाई, बहन, माता- पिता, मित्र तथा अन्य नज़दीकी रिश्तेदारों से आ सकती है। आपके अपने देश से भी आपको नकारात्मकता मिल सकती है। आपके आर्थिक और राजनीतिक विचार भी आपको काटण पूर्ण नकारात्मक बना सकते हैं। किसी भी प्रकार का गलत तदात्मय आपकी एकादश शक्तियों को | नष्ट कर सकता है। यह कहना पर्याप्त नहीं है कि मैं सहजयोगी हूँ और सहजयोग के प्रति समर्पित हूँ। आपको मस्तिष्क से भी समझना होगा कि सहजयोग क्या है ताकि विवेकशीलता से आप समझ सकें कि सहजयोग वास्तव में क्या है। पश्चिमी देशों में विशेष रूप से, लोग आवश्यकता से अधिक बुद्धिमान हैं। सहजयोग का प्रकाश उनकी बुद्धि में प्रवेश नहीं करता। आप अपनी लिप्साओं पर काबू नहीं पा सकते। इसका अर्थ ये नहीं है कि आप सहजयोग के विषय में बहुत अधिक बातें करें और या सहजयोग पर लम्बे भाषण दें। बुद्धि से भी आपको विनाश हो जाता है। 28 अ २० समझना चाहिए कि सहजयोग क्या है ? आज विशेष दिन है। कहा गया है कि हम एकादश रुद्र पूजा करें। यह सभी झूठ-मूठ के धर्मों, पंथो, गुरुओं के लिए है जो परमात्मा या धर्म के नाम पर लोगों को भ्रमित करते हैं तथा उन धर्मों के लिए है जो आत्मसाक्षात्कार की बात नहीं करते और न ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके परमात्मा से योग प्राप्त करते हैं। ये सब झूठे हैं। इस प्रकार की घड़ी गई बातों का परमात्मा से कोई सम्बन्ध नहीं, ये सच्चे धर्म नहीं हो सकते। नि:सन्देह ये लोगों को सन्तुलन देते हैं। परन्तु ऐसा करते हुए यदि ये लोगों से धन एकत्र करते हैं और उस धन से ऐश करते हैं तो यह तो धर्म का निम्नतर स्तर भी न हुआ। आरम्भ में आपको सन्तुलन प्रदान करना धर्म का कार्य है। परन्तु सन्तुलन का ढ़िंढोरा पीटने के लिए यदि वे आपसे धन माँगते हैं तो यह सन्तुलन नहीं हो सकता। इसमें परमात्मा का आशीर्वाद भी नहीं हो सकता। अवतरणों के अतिरिक्त किसी अन्य के सम्मुख झुकने के लिए कहने वाला कोई धर्म 'धर्म' नहीं हो सकता। यह पूर्णत: असत्य है। वास्तविक धर्म सदैव सन्तुलन प्रदान करेगा और उत्थान की बात करेगा यह न तो कभी धन की माँग करेगा और न ही कभी व्यक्ति विशेष को महान या पूज्य बनाएगा। अंत: हमें असत्य, नकारात्मक और वास्तविकता में भेद करने का ज्ञान होना चाहिए। चैतन्य लहरियों के ज्ञान से, अपनी बुद्धि से जब आप में यह विवेक विकसित हो जाएगा, जब आप स्वयं को नियन्त्रित कर लेंगे तब आप एकादश की शक्ति बन जाएंगे। ऐसा तभी होगा जब आप में परिपक्वता स्थापित हो जाएगी। आज मैं आप सबको आशीर्वाद देती हूँ कि आप एकादश रुद्र की शक्तियाँ बनें और आप में ऐसी निष्कपटता का विकास हो जो आपको उस स्थिति तक पहुँचा दें। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । 29 हमें सदा याद रखना हे कि ुं श्री माताजी वास्तव में कौन हैं ४ . ुम 'और मैं परमात्मा से प्रार्थना करूंगा तथा वे आपको एक और आनन्द-दाता प्रदान करेंगे---आनन्द-दाता, जो कि ब्रह्म चैतन्य हैं, जिन्हें परम-पिता, मुझ पर कृपा करके, भेजेंगे। वे आपको सब प्रकार का ज्ञान सिखायेंगे (गी)' ईसा मसीह आज के महत्वपूर्ण दिन पर मैं घोषणा करती हूँ कि मैं ही मानवता की रक्षा करने के लिए अवतरित हुई हूँ।' मैं घोषणा करती हूँ कि मैं ही आदिशक्ति हूँ, जो कि सब माताओं में परम् हैं, जो कि आदि माँ हैं, शक्ति हैं, जो परमात्मा की शुद्धतम इच्छा हैं, जो कि स्वयं ही अपने अस्तित्व को अर्थ-वत्ता प्रदान करने के लिए, और इस सृष्टि तथा मानव मात्र को अर्थ प्रदान करने के लिए अवतरित हुई हैं। और मुझे पूर्ण विश्वास है कि अपने प्रेम, धैर्य तथा अपनी शक्तियों के द्वारा मैं इस लक्ष को प्राप्त कर लूगी। मैं ही बार -बार अवतरित होती रही, परन्तु अब मैं सर्व शक्तियों सहित अवतरित हुई हूँ। न केवल मानव जाति को मोक्ष प्रदान करने के लिए, न केवल मानव-मात्र की मुक्ति के लिए, अपितु परमात्मा का साम्राज्य, आनन्द तथा आशीष, जिन से परम पिता आपको धन्य करना चाहते हैं, वो सब आपको प्रदान करने के लिए में इस पृथ्वी पर आयी हूँ। २.१२.१९७९ समय अत्यन्त महत्वपूर्ण है, यह चेतना सदा आपके हृदय में होनी चाहिए। आपका जन्म एक अत्यन्त महत्वपूर्ण समय में हुआ। जब भी आप मेरे साथ होते हैं वही समय श्रेष्ठतम होता है। अत: वास्तविक रूप से उस समय का लाभ उठाइये । २१.५.१९८४ 30 कु 31 हमें प्रतिदिन ध्यान-धारणा अवश्य करनी है विकसित होने के लिए ध्यान-धारणा आवश्यक है। प्रतिदिन, प्रतिदिन और प्रतिदिन ध्यान करना महत्वपूर्ण है। चाहे आपको एक दिन भोजन छोड़ना पड़े, नींद त्यागनी पड़े, चाहे आप एक दिन दफ्तर न जायें या दिन-चर्या का कोई और कार्य आपको छोड़ना पड़े-परन्तु प्रतिदिन आप ध्यान अवश्य करें। उत्थान के लिए यह प्रथम आवश्यक है। मुम्बई पूजा, १९८८ ध्यान-धारणा पर बहुत अधिक समय लगाना आवश्यक नहीं। परन्तु जो भी समय आप लगायें और जो लाभ आप प्राप्त करें वह सुस्पष्ट होना चाहिए। ध्यान की कान्ति आपमें कितनी है और किस तरह से आप इसे दूसरें में बाँटते हैं यह दोनों गुण उन सन्तों के हैं जो आपने बनना है। स्वयं गहनता को प्राप्त किए बिना न तो हम दूसरे सहजयोगियों की रक्षा कर सकते हैं और न ही उनकी जो सहजयोगी नहीं हैं। २७.७.१९८२ ध्यान-धारणा हमारे जीवन का अंग-प्रत्यंग है। जिस प्रकार मानव श्वास लेता है उसी प्रकार आपको ध्यान करना है। बिना ध्यान किये आपका उत्थान नहीं हो सकता। आपको ध्यान करना है। ध्यान किये बिना आप विकसित नहीं हो सकते। आप अपनी पूर्व अवस्था में ही रहेंगे। ध्यान- धारणा द्वारा गहनता प्राप्त करने पर ही व्यक्तित्व का विकास सम्भव है। उथलेपन से कोई लाभ नहीं इसी कारण ध्यान-धारणा आवश्यक है परन्तु लम्बे समय तक ध्यान आवश्यक नहीं। २.५.१९८७ सहजयोग में आकर भी जो लोग ध्यान-धारणा नहीं करते और न ही उत्थित (गहन) होते हैं, वे या तो नष्ट हो जाते हैं या सहजयोग से बाहर फेंक दिये जाते हैं। २८.७.१९८५ हमें दसरों की आलोचना क्तई नहीं करनी अपने दृष्टिकोण को बदलें। दूसरें की अच्छाई देखने का प्रयत्न करें । सहजयोग से बाहर के लोगों में न सही कम से कम सहजयोगियों की अच्छाईयों को देखने का प्रयत्न तो आप कर ही सकते हैं। उनके गुणों को देखने का प्रयत्न कीजिए। उन्होंने सहजयोग का क्या हित किया है ? आप उनके कितने आभारी हैं? उन्हें सहजयोग कैसे देना है? उनकी खूबियों को क्यों न देखा जाये ? | उन्हें उत्साहित करने से तथा उनसे प्रेम-व्यवहार द्वारा भी आप सहजयोग की सहायता कर रहे हैं। २८.७.१९८५ अपनी आँख में पड़े इतने बड़े कचड़े का ध्यान न करके अपने भाई की आँख में पड़े धूल के कण को क्यों देखता है? ओ पाखण्डी, पहले अपनी आँख के कचरे को निकाल फेंक और तब तू 32 स्पष्ट रूप से देख पायेगा कि भाई की आँख में पड़े धूल-कण को भी निकाल फेंकता है। श्री ईसा मसीह दूसरों के दोषों की गणना से हमारे अपने दोषों में वृद्धि होती है । श्री बुद्ध यदि आप एक माँ के बच्चे हैं तो किसी दसरे से ऊंचे कैसे जा सकते हैं? आप सदा माँ के बालक ही रहेंगे। माँ की दृष्टि में आप किसी अन्य बच्चे से ऊंचे कैसे हो सकते हैं? नहीं हो सकते। इसके विपरीत यदि आप इस तरह की चालाकी करने का प्रयत्न करेंगे तो माँ आपको दंड देगी। २८.७.१९८५ आत्मी के विरोध में न हमें कुछ करनी चाहिए और न कुछ कहेना बुराई क्या है? मैंने कुछ लोगों को कहते सुना है-- 'बुराई क्या है, मैं अभी तक धूम्रपान करता हूँ : चैतन्य लहरियाँ मुझमें हैं?' कुछ कहते हैं 'मैं अभी तक शराब पीता हूँ : चैतन्य लहरियाँ मुझमें हैं : क्या बुराई है?' 'मैं अभी तक फलां गुरु के पास जाता हूँ, मुझमें लहरियाँ ठीक ठाक हैं।' 'मैं अब भी पहले की तरह व्यभिचारमय जीवन बिता रहा हूँ:फिर भी मुझमें लहरियाँ हैं। लहरियाँ बहुत समय तक रहती हैं परन्तु अचानक रुक जाती हैं, आप स्वयं को इनकी सीमा से बाहर पाते हैं। आप यह भी नहीं जान पाते कि आपको बाहर फेंक दिया गया है। स्पर्श -रेखा की तरह, धीरे-धीरे आपको लगता है कि आप बाहर निकल गये। अत: मनुष्य को इसके विषय में सावधान रहना चाहिए । हमारे अन्दर ही एक अपकेन्द्री (सैन्ट्रीफ्यूगल) और एक केन्द्राभिमुखी ( सैन्ट्रीपीटल) शक्ति निहित है। एकादश (रुद्र) शक्ति अपकेन्द्रीय है, इसी के माध्यम से आपको (सहजयोग से) बाहर फेंका जाता है। सहजयोग न किसी के पैरों में गिरता है न हीं किसी से प्रार्थना करता है। यदि आपको सहजयोग में रहने की प्रबल इच्छा है तो आप अवश्य इसमें रहेंगे, पर यदि आप इसमें नहीं रहना चाहते हैं तो आपकी इच्छा से भी अधिक तेजी से यह आपको बाहर फेंकता है। सहजयोग में यही कठिनाई है और माँ होने के नाते मुझे यही रहस्य आपको बताना है कि यह (सहजयोग) आपको बाहर फेंक देने के लिए अति उत्सुक है। २१.५.१९८४ ० 33 हमें नियमित रूप से श्रीमाताजी के टेप सुनने तथा देखने चाहिए 'श्री माताजी, ये लोग केन्द्र के लिए एक टेप लेते हैं, हर व्यक्ति इसे सुनता है और बस समाप्त।' आप सबके पास एक-एक टेप होना चाहिए। लोग इतना भी नहीं करते। इतना भी नहीं । कुछ समय बाद यह हो सकेगा। यह सम्भव है कि एक देश में केवल एक ही टेप घुमाया जा रहा हो। 'हम टेप घुमाते हैं, आज न्यूयार्क में तो कल बोस्टन में। आपको यह बार -बार सुनना चाहिए ।' कागज पैन्सिल लेकर बैठ जाइए और स्वयं देखिए कि मैं क्या कह रही हूं। आपके पास हर टेप होना चाहिए इन भयंकर गुरुओं (अगुरुओं) के टेप आपको हर कार में, हर स्थान पर सुनने को मिलते हैं। उन सब लोगों के पास वो टेप हैं। क्या कारण है कि सहजयोगियों के पास मेरे टेप नहीं है? श्री विराट पूजा आश्रम में हमें समस्याएं नहीं खड़ी करनी चाहिए आश्रम आनन्द तथा शान्ति का स्थान होना चाहिए सामूहिकता में रह पाने में असमर्थ लोग किसी भी तरह से सहजयोगी नहीं है। सामूहिकता से भागने को प्रयत्नशील लोगों को जान लेना चाहिए कि उन्हीं में कुछ कमी है। दूसरों की (सहजयोगियों की) संगति का आनन्द उन्हें लेना चाहिए। दूसरों के सौन्दर्य से उन्हें आनन्दित होना चाहिए। उन्हें अन्य सहजयोगियों की चैतन्य लहरियों का आनन्द प्राप्त करना चाहिए। अपने लिए निजी वस्तुएं तथा सुविधाओं के विचार में प्रयत्नशील व्यक्ति अभी तक पूर्णतया परिपक्व नहीं हुए । सामूहिकता ही आपकी स्थिति का भलीभांति निर्णय करने का मापदण्ड है। बड़े होकर हम अपने व्यक्तिगत जीवन तथा निजी सुविधाओं की इच्छा करते हैं। इस प्रकार के जीवन में कोई आनन्द नहीं, यह आनन्द विहीन है। 'मैं सामूहिकता का कितना आनन्द लेता हूँ?' यही हर सहजयोगी के लिए अपने स्तर को देखने का मापदण्ड है। मैं दूसरों की संगति में ( सामूहिकता में) रहकर कितना आनन्दित होता हूँ? और अपना व्यक्तिगत-मेरा बच्चा, मेरा पति, मेरा परिवार, मेरा कमरा-मैं कितना चाहता हूँ? व्यक्तिगत उपलब्धियाँ चाहने वाले लोग अभी तक पूर्णत: सहजयोगी नहीं है। अभी तक वे अपरिपक्व हैं और जिस स्तर पर वे हैं, उसके योग्य नहीं हैं। १०.५.१९८७ 34 ey tio New Releases Title Place Date Type Lang. DVD VCD ACD MP3 ACS सहजयोग में प्रगति 10h Feb 1981 15* Delhi 15 PP Н 17th Feb 1981 सार्वजनिक प्रवचन:ब्रह्म तत्व का स्वरुप Delhi 16 PP 16* 16th Aug 1982 301* This is the Resurrection time London SP 457 16th Feb 1985 PP Delhi 14* 14 भाग १, २ Н सहस्रार-आत्मा 16th Oct 1988 नवरात्रि पूजा : हमारे जीवन का लक्ष्य गुडिपाडवा पूजा : देवी की शक्ति का प्रादुर्भाव 20 SP 20* Pune Н 5th Apr 2000 2d May 2009 Noida Sp/Pu 204 23* 204* H Sahasrara Day 2009 - Cabella 302* Mu Mu Evening Program, Part I & II 21st Mar 1983 Birthday Puja : Overcoming Sydney SP 303* 79* 79 E the six enemies, Part-I & II 29th Feb 1984 Mahashivratri Puja : Detachment & Pandharpur SP 252 304* E 252* & Enlightenment of Brain 6th Feb 2000 Shivratri Puja SP E/H/M 458* Pune st 21 Mar 2001 Birthday Puja सार्वजनिक कार्यक्रम Delhi 218* 218 SP th 24 Mar 2003 Delhi 072* 284* 284 PP Н th 28" Aug 1973 Shri Krishna Puja 303 SP 303* Mumbai E 24h Jul 1979 London 305* 305 SP Seeking : What are we seeking nd 2 May 1985 9th Aug 1987 Nirananda, Part-I & II Vienna SP 321* 321 E Shri Vishnumaya Puja : Vishnumaya 323* New York SP 323 E & Electricity Part-I & II 11h Sep 1994 Shri Ganesh Puja : Religions, 95* SP Moscow 95 Innocence & Love 04th Jul 1993 Cabella 62* Sp 62 Guru Puja : Understand your own value 7th Jan 1983 Ganesh & Devi Puja-Part I & II SP/PU E/M 460* 306* Rahuri th Sahasrara Puja 5" May 2002 307* Cabella SP/Pu 235* 235 Sahasrara Puja सहजयोग से लाभ SP/PU E 7th May 2000 208 Cabella 308* 208* nd 2 Apr 1986 15th Feb 1981 Calcutta 011* 011 PP H तत्त्व की बात, भाग १ Delhi 012* 012 PP 23d Feb 1986 धर्म की आवश्यकता Delhi 049 PP 049* Н 3rd Dec 1993 सार्वजनिक कार्यक्रम Delhi Н 056* PP 056 Music Title Artist Code No. ACD/ ACS/ Sahasrara Day Evening Program at Cabella, - 2nd May 2009, Part-I & II Bhajan Sopari 157* Musical Evening at Ganapatipule Sahasrara Seminar -1st-5th May 2009 Anand Kakade 158* Haasat Aali Nirmal Aayi Pt.B Subramanian,S.Malini 159* Niranand Pt.B Subramanian 160* Maa Tere Charno Mein Sandeep Dalal 161* Diwali Puja Bhajans, 3rd Nov 1986 Delhi Sahaja Artist 162* Classical Musical Program, Chhindwada, 21ª Mar 2008, Part-I Pt.Arun Apte & Surekha Apte 163* Pt. Arun Apte & Surekha Apte Classical Musical Program, Chhindwada, 21ª Mar 2008, Part-II 164* प्रकाशक निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in मंने जो करुणी एवं प्रेम आपको प्रदान किया है उसे संचित कर दसरों को पहुंचायें। अन्यथा आप सड़े कर नष्ट हो जाएंगे। प्रेम और करुणा आपसे बहनी ही चाहिए। २८.७.१९८५ ---------------------- 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-0.txt चेतच्य लहरो हिन्दी मई-जून २०१० १ रुभ दह र स 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-1.txt कहैँह ंक गं हृदय में आप देख रहे हैं, उसे यदि हृदयगम्य कर सके या पूजा पूजा करना सर्वोत्तम है। मेरे जिस चित्र को के पश्चात इसकी झलक हृदय की गहराइयों में उतार सकें तो वह आनन्द, जो आप उस समय प्राप्त करते हैं, ১ शाश्वत तथा अनन्त बन जाता है। 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-2.txt स अक आपको अपना ही हित साधना है और परम पद को प्राप्त करना है.... ४ आर्टीकेरिया....१६ वि एकादश रुद्र पूजा... २० ाम ि ले अन्य...... श्रीमाताजी द्वारा बताये गये उपदेश...३० म 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-3.txt आपको अपना ही हित साधना है और परम पद को प्राप्त करना है १९ मार्च १९८९ सहजयोग के कार्य में व्यस्त न जाने कैसे समय बीत जाता है। अब करिबन अठारह साल से सहजयोग कर रहे हैं हम और उसकी प्रगती अब काफी हो रही है। आपने देखा किस तरह से इसकी प्रगती बढ़ रही है। अब जन्मदिन के दिन अब हमारे तो आपकी सबकी स्तुति करनी चाहिए और सब अच्छा ही कहना चाहिए । लेकिन एक ही बात मुझे जो समझ में आती है और जो मुझे कहनी चाहिए वो है कि अपनी गहराई को बढ़ाना है । अपनी गहराई को बढ़ाना बहुत जरुरी है और ये गहराई हमारे अन्दर है, कहीं ढूँढने नहीं जाना है, अपने ही अन्दर बस ये गहराई है। लेकिन जब हम गहराई को बढ़ाते हैं तब ये देखना चाहिए कि हम पहले स्वयं कहाँ खड़े हैं। इसको पहले जान लेना चाहिए कि हम स्वयं कहाँ खड़े हैं। और उसे जानने के लिए एक तरीका है, सहज सरल तरीका है कि अपनी ओर दृष्टि करें जैसे कि हमारा व्यवहार कैसा है? हम क्या करते हैं? हम किस तरह से अपने मन में विचार लाते हैं? हमारे तौर-तरीके कैसे हैं? हम अपने को कहाँ तक सीमित रखते हैं। जैसे शुरुआत में जब दिल्ली में काम शुरू किया तो लोगों के तो अन्दाज ही कुछ और थे। मैं तो एकदम सकुचा गयी थी क्योंकि उस वक्त किसी को कुछ मालूम ही नहीं था पूजा के बारे में। वह सब प्लास्टिक के डिब्बियों में सामान-वामान लेकर के सब लोग पहुँचे तो मेरी तो हालात ही खराब हो गयी। मैंने कहा कि, 'अब तो क्या होगा बिचारों का। ये तो अज्ञानी हैं, इनको तो कुछ मालूम ही नहीं है। प्लास्टिक में कुमकुम लेकर आ गए हैं और घर का ही लोटा उठा लायें हैं पैर धोने के लिए तो बड़ी घबराहट हुई मुझे। मैं तो एकदम, मेरा तो सारा बदन ही एकदम सकुचा गया। मैं रोके रही सबको कि ठण्डे रहो सभी, नहीं तो हनुमानजी कहीं बिगड़ न जाए। कहीं गणेशजी का गुस्सा शुरु हो जाए तो न जाने क्या दिल्ली वालों का हाल होगा ! मेरे समझ में नहीं आया कि कैसे कहँ कि प्लास्टिक से पूजा नहीं होती है। जिस घर में चोरी हुई, जिस घर में पूजा हुई उसके वहाँ पर 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-4.txt ० च चन= ० पर हैट कुछ-कुछ चीजें रखी हुई थी, बिचारे महोदय बड़े अच्छे थे, उन्होंने हमें जगह दी, उनकी चीज़ें गायब हो गयी । पूजा के बाद सब लोग कुछ-कुछ उठाकर चल दिये। तो इससे शुरुआत हुई। उसने कहा कि, 'मैं अपने यहाँ तो नहीं दे सकता। आपको चाहिए तो आप हमारे कम्पाऊण्ड में कर लीजिए पूजा। लेकिन कम्पाऊण्ड से वे घर में न आयें। पानी-वानी का सब बाहर इन्तजाम है।' तो मुझे तो बड़ा वैसे लगा, 'ये तो बड़ा अपमान है किसी तरह से।' इस प्रकार यहाँ सहजयोग शुरु हुआ। और उस वक्त दुनिया भर के बीमार लोग हमारे पास। मेरे तो सबेरे से शाम तक हाथ दःख जाते थे और सबको तो यही फिकर कि 'मेरा लड़का ठीक नहीं, लड़की ठीक नहीं। मेरा तो बाप ठीक नहीं, मेरी तो माँ ठीक नहीं।' दुनिया भर के मरीज़ खड़े कर दिये। सबेरे से शाम तक यही काम! तो इसके बाद हमारे भाईसाहब के घर में शुरु हुआ। वहाँ भी यही मेरी तो जान खा जाये कि मेरे इसको ये हो गया, मेरे इसको वो हो गया, इसे तो देखना ही होगा, ऐसे कैसे आप नहीं देख रहे च= ॐ अ० े মন 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-5.txt हैं, ये नहीं, वो नहीं। अब चार बज जाएं मुझे खाने को नहीं मिला तो भी वो जान को लग जाए। उसके बाद टैलिफोन पे टैलिफोन, टैलिफोन पे टैलिफोन कि 'नहीं मुझे तो माताजी से बात करनी ही है।' जैसे कोई सबका मेरे ऊपर अधिकार ही है, पूरी तरह से। तो उसके बाद में फॉरेनस्स आने शुरु हुए तो उसमें भी बड़ी हालत खराब कर दी हमारी यहाँ। एक तो बीमारी से मैं बिल्कुल तंग आ गयी थी। जिसको देखो तो 'ये मिनस्टर आ रहा है, वो मिनस्टर आ रहा है।' सब लोग समझते हैं कि हम बड़े महत्वपूर्ण हैं , हमारे बच्चे बड़े महत्वपूर्ण हैं, हमारे रिश्तेदार बड़े महत्वपूर्ण हैं। यहाँ तक कि वे अस्पताल तक की विजीट करवायें (अस्पष्ट)... ये लोग तो इतने उथले लोग हैं कि इनको तो और कुछ सूझता ही नहीं, इतनी जबरदस्त । फिर इसके बाद हमारे भाईसाहब के यहाँ हमारा प्रोग्राम शुरू हुआ। तो वहाँ कुछ उन्होंने बिगड़ना शुरु किया कि 'तुम लोग सभी स्वार्थी हो, सिर्फ हमारी बहन को इसलिए सताते हो कि बस इसकी बीमारी ठीक करो, उसकी बीमारी ठीक करो। बड़े स्वार्थी हो। तुम लोग क्या करने वाले हो सहजयोग के लिए। यहाँ रहने के लिए तक इनको जगह नहीं, कुछ नहीं। ये अपने पैसों से आती है बिचारी। ये सबकुछ है।' सबको भगाया, जितने बीमार थे उन सबको भगाया कि, 'खबरदार ! अगर किसी ने बीमारी की बात की तो उसको नहीं छोडूँगा मैं!' जब उन्होंने ये शुरु कर दिया तब लोगों की संख्या बहत कम हो गयी लेकिन कायदे से लोग थोड़े शुरु हो गये। उसके बाद यहाँ परदेसी लोग आयें और शादियाँ-वादियाँ की हमने तो वो परदेसी लोगों से भी वो 'तुम हमको फारेन एक्सचेंज दे दो, इतना पैसा हमको दे दो। नहीं तो इसमें ऐसा ठीक हो जाएगा कि हम आ रहे हैं विलायत । विलायत में हमारे रहने का इन्तजाम कर दो।' ऐसा सब काम कराया। फिर मुझसे इतना खाने-पीने का पैसा लिया कि मेरा तो दिवाला ही बज गया । साथ ही सारा बैंक बैलन्स ही खाली हो गया| फिर मैंने कहा कि, 'अब तो मैं दिल्ली ही नहीं आने वाली हूँ' क्योंकि इनसे तो हम एक रूपया भी नहीं लेते थे खाने-पीने का और इतना खर्चा हुआ कि मैं तो बिल्कुल तंग आ गयी कि यहाँ पर इन दिनों में में बात कर रही हूँ इयर ७४-७५ की नहीं ७७ से ७९ तक सब बैंक खाली हो गया, अब मैंने कहा कि, 'अब करें क्या?' तो जैसे कि पहले यह कि बीमारियाँ ठीक करो, बड़े ये लो लेवल के लोग थे, जो सबकी बीमारियाँ ठीक कराने के पीछे लगे थे। इसका मतलब है कि इनको परम का मतलब ही नहीं मालूम है। परम पद में आना ही नहीं चाहते हैं। जिनकी बीमारियाँ ठीक करनी है उनको आप फोटोग्राफ दे दीजिए और उनसे कहना कि करें। पर वो तो फोटो लेंगे ही नहीं क्योंकि वो मानते ही नहीं सहजयोग को। तो फिर क्यों उनके लिए परेशान कर रहे हो माँ को। फिर उस पर प्रेशर करने का कि वाइस प्रेसिडन्ट साहब मिलने को आ रहे हैं। मैं तो तंग आ गयी कि फॉरेनर्स को यहाँ लाने के लिए पैसे तो है नहीं और फिर कुछ और चीज़ शुरु करें। फिर सहजयोगियों की खोपड़ी में कुछ आया और उन्होंने कहा कि अच्छा माँ ये थोड़े से लोग आ जाएं और हमारे घरों में रहें। और उनका जो पैसा बचेगा वो हम पैसे दे देंगे आश्रमों में। हालांकि महाराष्ट्र से यहाँ लोगों के पास पैसे ज़्यादा है। यहाँ सबके पास मोटर है। महाराष्ट्र में एक मोटर मिलना मुश्किल है। एक भी किसी के पास में अॅम्बॅसिडर मोटर नहीं कि जो मैं उनके मोटर में जाऊं, ये हालत है। लेकिन पैसे की ऐसी तकलीफ कभी किसी को नहीं हुई। यहाँ इतने कंजूस लोग हैं कि मैं तो हैरान हो गयी हूँ कि ये मोटरों में घूमते हैं। सबकुछ चाहिए, जेवर के जेवर, औरतों के कपड़े देखिए, आदमीओं के कपड़े देखिए सबकुछ बहुत बढ़िया, लेकिन वहाँ ये बात नहीं कि ये परमात्मा का कार्य है। तो जिस वक्त हमने काम शुरु किया, तो सब कोई रुपया लाकर देने लगा। मैंने कहा कि 'नहीं, अभी तो हमने कुछ बनाया नहीं है, ट्रस्ट-वस्ट तो अभी बनाया नहीं। जब ट्रस्ट बनायेंगे तब तक आपको रुकना होगा, तब तक आप अपना पैसा जमा कर के रखो।' और जिस वक्त हमने टरस्ट बनाया, ऐसा कोई भी नहीं था जिसने हजार रुपये से कम दिया हो, ऐसा कोई भी नहीं था। उसी वक्त हजार, दो हजार, चार हजार, पाँच हजार, जिसको जो मिला , 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-6.txt जो उन्होंने एकठ्ठा किया वो उन्होंने ला कर दिया। पैसे की तो मुझे कोई जरुरत नहीं है। आप तो जानते हैं कि सारा पैसा कार्य के लिए ही होना है। उस वक्त हमें यहाँ अच्छी जमीन मिल रही थी। काश! हम उस वक्त खरीद लेतें , पर हमने सोचा दिल्ली वालों के पैसे से ही होना चाहिए और दिल्ली वाले करें। अब महाराष्ट्र में जो रुपया एकठ्ठा हुआ जमीने खरीदी गयी। और सब जगह हमने जमीनें खरीद कर रखी है । और यहाँ भी जो रुपया बाद में दिया है वो सब से उससे महाराष्ट्र ही आया हुआ है। इसका मतलब ये नहीं कि आप रुपया बहुत खर्च करें। आप इतने फैशन करते हैं। यहाँ दिल्ली की औरतें बड़ी फैशन करती है। रोज उनको नयी साड़ियाँ चाहिए। कपड़े चाहिए। और अगर किसीको नायलॉन की साड़ी दें तो कहते हैं कि, 'हम नायलॉन नहीं पहनते, सिर्फ शिफॉन पहनते हैं।' अगर आप इतने रईस हैं तो एकाद कभी कुछ रुपये सहजयोग के लिए तो देना चाहिए। हमने तो बहत कुछ रुपया दिया है सहजयोग के लिए। मेरे husband से तो मेरा झगड़ा हो गया था इस बात को लेकर एक बार। उन्होंने कहा कि, 'अच्छे से मेरे बैंक को आपने पूरा खाली करवा दी। पिछले सब गुरु लोग तो बैंक भरते थे , तुमने तो मेरी बैंक खाली करवा दी।' तो भाई ये शर्म की बात है, बहुत शर्म की बात है कि आप लोगों की तरफ से मुझे ऐसा करना पड़ा। आदमी लोग भी यहाँ कितना खर्चा करते हैं, मैंने देखा है कि मोटर होनी चाहिए, टेलिविजन होना चाहिए। महाराष्ट्र में कितने लोगों के पास टेलीविजन है ? ये होना चाहिए, वो होना चाहिए, पर सहजयोग के लिए पैसा नहीं है। और पहले उस जमाने में हमारे पास साढ़े चार लाख रुपये एकठ्ठा हुये थे, उस जमाने में, तब कितने सहजयोगी थे, वैसे तो वो बहत गरीब थे आप लोगों से पैसों के मामले में। कोई बड़े पोजिशन में नहीं है। महाराष्ट्र में आप जानते हैं कि वहाँ पर सारे जितने भी बड़ी-बड़ी जगह है वो सब मारवाड़ी लोगों की है, गुजराती लोगों की है और सिंधी। इन्होंने सारा बिज़़नेस ले लिया है। आपको एक भी सहजयोगी वहाँ बिज़नेस वाला नहीं मिलेगा। और कितने कर्मठ लोग हैं। कैसे काम करते हैं आपने देखा। कितने, वहाँ तो बड़े-बड़े प्रोफेशनल लोग हैं पर आप किसी को भी पाईयेगा नहीं घमण्डीपना में। तो इस तरह से जब यहाँ सहजयोग | शुरु हुआ तो मैं बहुत घबरा गयी थी कि यहाँ सहजयोग कैसे चलेगा। यहाँ के लोग तो अपने में ही हैं, बड़े सेल्फिश हैं। अपनी ही बात करते हैं। अपने स्वार्थ में ही रहते है। इनको क्या परमात्मा मिलेगा। पर धीरे-धीरे ऐसा आपकी माँ का प्यार है कि वो माँ की प्यार में बदलते गये। बहुत बदल गये। मुझे तो देखकर बहुत खुशी हुई कि अब बहुत, आप लोगों में अन्तर आ गया है। तो भी, मैं ये कहँगी कि एक जमाना था जिस वक्त कि गांधीजी खड़े हुए, उन्होंने कहा कि देश का काम करना है। देश भर का ही काम था कोई मनुष्य भर का काम नहीं था, दुनिया भर का काम नहीं था, कुछ नहीं। हमें याद है कि हमारी अम्मा ने जितने भी घर के जेवरात थे गिन के सारे उनको दे दिये। उनके दो-चार ट्रेडिशनल जो थे वो छोड़ के बाकी सब दे दिये। हम लोगों ने भी हमारी जो चुड़ियाँ थी वो उतार के दे दी| हमारी मदर ने भी ऐसे बहुत और किये हैं । और भी बहुतों ने ऐसे काम किये हैं। लेकिन ऐसी उन्होंने कौनसी बड़ी भारी बात कही थी... अस्पष्ट... आप लोगो का सबका भला हो गया है सहजयोग में आकर। सबके हालात ठीक हो गये हैं, सब कुछ ठीक हो गया है, तन्दुरूस्ति ठीक हो गयं है। लेकिन सहजयोग के लिए लोग पैसा नहीं निकालते हैं । अगर आज पैसा होता तो ये जगह भी अच्छे से बना सकते थे हम। अब ये अटके पड़े हैं कि माँ, पैसा दो, पैसा नहीं है अब, माँ, आप पैसा दो। हमने कहा ठीक है तो आज हम ये ग्यारह हजार दे रहे हैं टोकन की तरह। आगे भी भेजेंगे। लेकिन आप लोगों को खुद सोचना चाहिए कि ये हमारा आश्रम है, हमें इसके लिए कुछ देना चाहिए। और इससे हमें ४ 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-7.txt कितने लाभ हुए हैं। सहजयोग से हमने कितना प्राप्त किया है। अब दूसरी बात ये है कि इससे जो एक हमारे अन्दर जो कैटेगरी है उसे देखना चाहिए । अa जब हम अपने अन्दर देख रहे हैं कि हम कंजुसी कर रहे हैं, जान बचा रहे हैं, कुछ काम कोई बताता है, तो कोई हाजिर ही नहीं होता है। तो | हमें सोचना चाहिए कि हमारे अन्दर गहराई ही नहीं है । हम कंजूसी कर रहे हैं, हममें गहराई ही नहीं है। आगे चलना चाहिए, हम अपने रिश्तेदारों की बीमारी के लिए हम माँ को तंग कर रहे हैं, ये बहुत ही लो टाइप के सहजयोगी हैं। इसमें गहराई नहीं है। माँ को परेशान कर रहे हैं। अरे, अगर माँ से तुम्हारे सम्बन्ध ठीक हो जाए तो कुछ कहने की जरुरत नहीं है। वैसे भी रिश्तेदारी ठीक हो जाती है। ऐसे भी कुछ लोग हैं जिन्होंने बताया कि फलाने साहब न्यूयॉर्क में बीमार है और फौरन ठीक हो गये। ऐसे भी लोग हैं। लेकिन आपमें गहराई कम है। और जब आपमें गहराई कम हो जाती है तो ये सब होता है। और सहजयोग में पैसे कमाने का भी लोग विचार करते हैं । ये भी बड़ी गन्दी चीज़ है और बहुत लो कर देता है आपको। इसमें कुछ हो, कि किताब बिक जाये, फलाना हो अपने विचारों को देखना जाए, ठिकाना हो जाए ये सब गलत बात है। चाहिए सहजयोग सत्ता के लिए नहीं है, पैसे के लिए नहीं है, आपसी रिश्तेदारों के लिए नहीं। ये आपके हित के लिए है। आपको अपना ही हित साधना है और परम पद को प्राप्त करना है। और और | जब तक हम इसका निश्चय नहीं कर लेते हैं कि हमें परम पद प्राप्त करना है और बाकी चीज़ें सब व्यर्थ है। फैमिली के झगड़े, लड़कों के झगड़े, मियाँ-बिवी के झगड़े ये सब मुझे कहने की बाते नहीं होती है। परम पद को पाने के बाद इसे आप अपने आप ही सॉल्व कर सकते हैं। अब सबसे सोचना चाहिए बड़ा एक दोष उसमें आ जाता है जैसे कि आप लोगों से बात करने का यही सबसे अच्छा मौका है, जहाँ मैं आपको बता सकती हूँ कि अहंकार को देखते रहना चाहिए कि हमें किस चीज़ का अहंकार है, किस चीज़ को हम महत्वपूर्ण समझते हैं। कौनसी चीज़ को हम सोचते हैं कि बहत जरुरी है और हमें करना चाहिए। अपने विचारों को देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि हम किस चीज़ को इतनी महत्वपूर्ण चीज़ समझते हैं। हम कौन सी चीज़ के लिए सोचते हैं कि ये चीज़ हमारे लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण है। उसी को तोलना चाहिए। कोई कोई लोग तो कहते हैं कि, 'हमारे लिए तो ये बहुत महत्वपूर्ण है माँ कि परम पद को प्राप्त करना है।' बस हो गया ऐसे लोग तो ठीक है। उनको तो कुछ कहने की जरूरत नहीं है। बाकी तो सब होते ही रहता है। नौकरी, खाना-पीना और दुनिया भर की चीजें। कि हम किस चीज़ को इतनी | महत्वपूर्ण चीज़ मैं चाहती हूँ कि दिल्ली वाले आज इस तरह से पूरी तरह निश्चय कर लें कि माँ के जन्मदिन के दिन, अब हमारी भी उम्र ६६ साल की हो गई है, काफी उम्र हो गई है और एक क्षण भी हमारा बेकार नहीं गया है। इतनी मेहनत हमने की है। जितनी हमने मेहनत की है हम नहीं चाहते कि आप लोग उतनी मेहनत करें, बिल्कुल भी नहीं करने की जरुरत है। हम आपके लिए मेहनत करने के लिए तैयार हैं सिर्फ आप अपने अन्दर अपने को तौलते रहिए कि मैंने क्या किया है, सहजयोग के लिए क्या किया है? जिसकी वजह से कि मैं आज ऐसा पहुँच नहीं पाया। सहजयोग के लिए मैंने क्या किया? माँ के लिए नहीं, सहजयोग के लिए। बहुत से लोग हैं जो मुझे रुपये दे देते हैं, कभी कुछ दे देते हैं, उससे क्या फायदा है! वो तो सिर्फ मैं सहजयोग को ही दे देती हूँ, छोड़ती थोड़ी हूँ। बेहरहाल वो भी एक चीज़ है अगर ऐसा कोई दे तो वो सहजयोग के लिए दे सकते हैं। ठीक है आप प्यार के स्वरूप कुछ दैं, जन्मदिन के दिन कुछ दें तो वो स्वीकार्य है। कोई बात नहीं है । लेकिन मेरे लिए कुछ खास जरूरत नहीं है किसी चीज़ की। मैं तो हरदम लड़ती रहती हूँ कि समझते हैं। ৪ जकै 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-8.txt जितना हो कम से कम खर्चा करो। इसलिए कि रुपया कुछ बचें और आप लोग इसे सहजयोग पर खर्च करें। सहजयोग में आप जानते हैं कि हमारे पास कोई और तरीका तो है नहीं। हम तो ऐसे-वैसे लोगों से तो कभी रुपये लेते नहीं कि कहीं भीक माँगते फिरते हैं या किसीसे कहते हैं कि आप हमें रुपया-पैसा दे दें। सो, मेरी यही विनती है आप लोगों से कि आपको अपने को तौलना चाहिए कि हम कहाँ तक हैं और हम क्या चाहते हैं । तो सहजयोग में जब तक आपका चित्त परमात्मा की ओर पूरी तरह से लगा नहीं रहेगा और सब ऐसी-वैसी चीज़ों में लगा रहेगा तो आप या तो पैसे बनाने के बारे में सोचेंगे या फिर उसकी बात सोचेंगे, नौकरी की सोचेंगे, धन्दे की सोचेंगे तो जो असल चीज़ है वो नहीं मिलने वाली है। और असल चीज़ मिलते ही बाकी सब ठीक हो जाता है। ये ऐसी कुछ विशेष चीज़ है। और जब तक ये नेगेटिवीटी बनी रहेगी तब तक आप का काम बनने ही नहीं | वाला है। अभी आज की ही बात बताते हैं, आज चाबी नहीं खुल रही थी तब मैंने कहा कि आज चाबी किसने बन्द की थी। तो कहा कि 'इन्होंने'। तो मैंने कहा कि अच्छा इन्हें थोडी देर बाहर भेजो। और उनके बाहर जाते ही चाबी गयी थी। आपका कोई काम बन ही नहीं सकता, जब नेगेटिव होंगे तो कोई काम बन नहीं सकता। लेकिन | | खुल अगर आप इस स्थिति पर आ जाए, आपके सारे काम अपने आप बन जाते हैं। और वो इतने बनते हैं कि कभी-कभी आपको लगता है कि 'माँ मैं ये नहीं चाह रहा था।' और फिर आप बाद में कहते हैं कि अच्छा हुआ यही हुआ और मैं गया झंझट से। इस प्रकार सहजयोग की एक किमया है, अपनी एक उसका चमत्कार है कि जो चीज़ सामने आती है वो स्वीकार्य करना चाहिए। और अन्त में आप ये कहेंगे कि यही मेरे लिए हितकारी था, यही अच्छा था। उसको प्रेम से स्वीकार्य करना चाहिए और तौलते जाना चाहिए अपने को जीवन में कि जैसे ही जीवन में आगे बढ़ेंगे तो आपको पता होगा कि इसके बड़े ही आशीर्वाद हैं , इतने अनन्त आशीर्वाद है कि सारे देवी - देवता आपके साथ लग जाएंगे। आप जहाँ जाएंगे आपके साथ आगे-पीछे दौड रहे होंगे। कोई आपको सता नहीं सकता, कोई आपसे छल नहीं कर सकता, आपको कोई परेशान नहीं कर सकता, आप पर कोई केस नहीं कर सकता, कुछ सुन्दर छूट नहीं। बिल्कुल आप पूरी तरह से, एकदम से ही आप सुरक्षित हैं। कोई आपको तकलीफ नहीं दे सकता। कोई अगर आपको तकलीफ देगा तो उसको बहुत तकलीफ होगा ये भी आप देख लीजिए। फिर हर तरह से आपकी हालत ठीक हो जाएगी, आपकी तंदुरुस्ती ठीक हो जाएगी। ये ठीक हो जाएगा, वो ठीक हो जाएगा। लेकिन ये भी एक प्रलोभन है हमारे लिए, एक प्रलोभन है । जैसे कि हम जा रहे हैं और हमें प्लेन पकड़ना है। रास्ते में मदारी का खेल हो रहा है, ये हो रहा है, वो हो रहा है लेकिन उससे हमें क्या मतलब है। हमें तो प्लेन पकड़ना है। तो फिर इस प्रलोभन में आप भटके तो गये। तो अब लोगों को मैंने देखा है कि सहजयोग में आते ही लोगों को बड़े पैसे मिल जाते हैं और फिर भटक गये। भटक गये तो उसके बाद कैन्सर हो गया, और फिर वापस आये मेरे पास। 'मैं छोड़ कर चला गया था सहजयोग। बिजनेस में बहुत काम था, ऐसा था, वैसा था।' सबसे पहली जो चीज़ है-सहजयोग में अपना मन बनाए रखें। हर एक प्रोग्राम जो है उसे अटेन्ड करनी चाहिए । हर कलेक्टिविटी में आना चाहिए। हर पूजा में जहाँ भी होता है आना चाहिए। पूरा चित्त इसमें देना चाहिए। पूरा समर्पण इसमें करना चाहिए। बाकी चीज़ें परमात्मा सब सम्भाल लेता है। आप तो जानते हैं कि आपकी माँ को पैसे का बिल्कुल समझता नहीं है, बैंक का समझता नहीं है। अब जो लोग मेरे साथ रहते हैं वो भी कहते हैं कि माँ का ये क्या हाल है। ....अस्पष्ट.... मेरी कुछ समझ में नहीं आता है कि ये है क्या भला! क्योंकि ये आजकल के कायदे-कानून, ये, वो ये कुछ मैं जानती नहीं। पर ऐसे देखा जाए तो मैं कायदे में बहुत होशियार हूँ। जो पॉईंट मैं निकालती हूँ वो बड़े-बड़े लॉयर बोलते हैं कि आपको ये पॉईंट कैसे सूझा। क्योंकि इसी में सूक्ष्मता है, मनुष्य में एकदम बराबर इस जगह पर। जैसे हरेक चीज़ सस्ती मिल जाए, ये कैसे मिल जाती है ? हरेक चीज़ बढ़िया मिल जाए। ये कैसे मिल जाती है? अभी आज ही के दिन इन लोगों ने कि वहाँ कौनसी चाबी लगेगी? और मैंने कहा कि ये चाबी लगेगी और वो लग गयी| वो गुच्छा ले आये , मैंने तो वो चाबी कभी पूछा 6. 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-10.txt में रहो, प्रलोभन में नहीं। एक बस् आनन्द देखी ही नहीं थी। वो कहने लगे कि माँ कौनसी चाबी लगेगी? और मैंने कहा, 'ये लगेगी।' और वो चाबी लग गयी। | में अब कहो कि माँ कैसे जानती हैं? क्योंकि सूक्ष्म है। हम सूक्ष्म में बैठे हैं। चित्त हमारा सूक्ष्म में ही है। और बाह्य हम सब कहेंगे कि ये भी करना है, वो भी करना है, फलाना है, ठिकाना है। तो इस प्रलोभन में आना नहीं है। एक बस आनन्द में रहो, प्रलोभन में नहीं। उसका आनन्द तो आप उठा ही नहीं सकते आप प्रलोभन में आये तो गये। धीरे -धीरे आप खिसकते ही जाएंगे, खिसकते जाएंगे। तो आज इतने सालों बाद इस बात को मैं कह रही हूँ आपसे और घबरा भी | रही हूँ कि दिल्ली में शुरु का आना और आज का आना ये बहुत अन्तर हो गया है। पर इससे भी बहुत ज़्यादा परिवर्तन होना चाहिए। और दिल खोलकर के मनुष्य को देना चाहिए। जैसे अब आप लोगों को सोचना चाहिए और बहुत लोग कहते हैं कि 'माँ मैं तो सोच तो रही थी कि दे दूँ, इतना रुपया दे दें। फिर मैंने सोचा कि लड़की के लिए जेवर बना लँ।' 'अच्छा! ठीक ही किया।' तो उसने पूछा, 'माँ, बुरा तो नहीं किया। नहीं, नहीं बहुत अच्छा किया। पर आपने तो अपने जेवर बैंक में रखे हैं। लड़की भी वो सारे जेवर बैंक में रखेगी। और उसकी भी लड़की होगी तो वो भी बैंक में रखेगी। सारा बैंक ही को पैसा देना है। उससे अच्छा अगर कोई चीज़ बना दो सबका हित होगा। कलेक्टिविटी में आनन्द आएगा। तो इस तरह की चीज़ों में प्रलोभन होना चाहिए। अब सबसे जो बड़ा सूक्ष्म प्रलोभन जो है सहजयोग में कि मैं करता हूँ। मैंने आश्रम की जमीन ली है। मैंने आश्रम बना दिया। और मेरी वजह से, या मैंने इतना रुपया इकठ्ठा कर दिया है या मैंने इसको ठीक कर दिया है, मैं, मैं, मैं.....ये बड़ा ही सूक्ष्म प्रलोभन है। से में ऑर्गनाइजर हूँ, में लीड़र हूँ। मैं बड़ा आदमी हूँ। 'मैं' इस चक्कर से बिल्कुल बचना चाहिए । मैंने ये किया, मैंने वो किया अगर ऐसे विचार आये तो आपको सोचना चाहिए कि आप ऊँची सीढ़ी पर पहुँच गये हैं और इस उँची सीढ़ी से जब आप गिरेंगे तो थड़ाम् से नीचे आएंगे। ये 'मैं', 'मेरा' छुड़ा लीजिए । अभी डेहराड़ून में एक लेडी मिली थी। उनके बच्चे आये तो उनका हाथ एकदम गरम, फूल दिये तो एकदम गरम। तो मैंने कहा कि 'आप कर क्या रहे हैं?' तो उसने कहा कि 'माँ, मैं कुछ भी नहीं कर रही हूँ।' और फिर बताने लगी कि माँ, आपने स्पाँडिलाइटिस मेरा ठीक किया। डाइबिटिज मेरा ठीक किया, फलाना मेरा ठीक किया, नौकरी मेरी कर दी। 'अगर ये हो गया तो आप गरम क्यों हैं?' नहीं माँ, मैं तो ये चाह रही थी कि मैं अपने यहाँ एक सेंटर चलाऊँ पर ये लोग परमिशन नहीं दे रहे हैं । पर मैं चला रही हूँ।' मैंने कहा, 'इसलिए आप गरम हैं। आप छोड़िए इसे। जिस लायक आप हैं उस लायक आप रहिए। आप ठीक होने के लायक हैं। आप ठीक होईये। अभी आप सेंटर चलाने के लायक नहीं है।' तो ये बात आपको सोचनी चाहिए, आपको अपने को जज़ करना चाहिए। ये जो लास्ट जजमेंट है, जो टाइम आया है पुनरुत्थान का ये लास्ट जजमेंट है। इसमें हमको ही अपना जजमेंट करना है कि हम कहाँ हैं? हम कैसे हैं? हमारा चित्त कहाँ दौड रहा है? हम किसे देखते रहते हैं? विचार, कहाँ हमारे विचार जा रहे हैं? अपने चित्त की ओर नज़र रखें, कहाँ जा रहा है हमारा चित्त? हमारा लक्ष्य कहां है? हम क्या सोच रहे हैं? इस पर बहुत सुन्दर लिखा हुआ है, नामदेव ने। जो कि आपके ग्रन्थों में भी है कि एक पतंग उड़ रही है और एक लड़का उसे उड़ा रहा है। इससे, उससे बात करता है, मज़ाक करता है, पर नज़र उसकी पतंग पर है। बहुत सी औरतें हैं वो सर पर घड़े रख कर चल रही है, हँस रही है, मज़ाक कर रही है, ठिठोली कर रही है पर नज़र उसकी सर पर है। एक औरत है, जो बच्चे को कमर पर ले कर घर झाड़ रही है, पानी भर रही है, सब काम कर रही है और बच्चा कमर पर है। ध्यान उसका कमर पर है। तुम्हारा ध्यान कहाँ पर है? हमारा ध्यान कहाँ है? ऐसे और भी प्रश्न खड़े हो जाएंगे कि माँ से 11 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-11.txt हमें मिलने नहीं दिया। हम तो आयें पर माँ से मिलने नहीं दिया। बहुत गलत बात है ये। माँ को तो प्रसन्न रखना चाहिए। अगर आपके लिए कोई ऐसा करे तो आपको अच्छा लगेगा ? और ये दिल्ली में सबसे ज़्यादा बीमारी है माँ से मिलने का। ये एक अहंकार का स्वरूप है। और मिलने नहीं दिया तो रोने बैठ गये या फिर चीखना शुरु कर दिया। ये बड़ी बारीक-बारीक चीज़ों का सोचना चाहिए। जैसे मेरा बर्थ डे हो रहा है, ऐसे आप लोगों का भी बर्थ डे होता है। जिस दिन आपने अपना रियलाइझेशन लिया, वो आपका बर्थ डे है । मैं तो अनादि हूँ। मेरी तो हजारों वर्षं की उम्र है। बहुत सी पूरानी उम्र है। मेरी तो कोई नयी उमर तो है नहीं। आप तो मेरा बर्थ डे मना रहे हैं। आप लोगों का बर्थ डे होना चाहिए कि जिन्होंने जन्म लिया, सहजयोगी बन कर के जो आज घूम रहे हैं। इन्होंने नया जन्म लिया है, नये स्वरूप में आये हैं। आपका बर्थ डे होना चाहिए। आप सारे मेरा क्या बर्थ डे मना रहे हैं! कैसे ये सहजयोगी हैं, आप देखिए कि मैं तो अनादि हूँ, मेरा क्या बर्थ डे मना रहे हैं? मैं चाहती हूँ कि आप लोगों का बर्थ डे मनाया जाय। और हर बर्थ डे में मनुष्य बढ़ते जाता है, घटता तो नहीं है। ऐसा भी कभी आपने देखा है कि मनुष्य बढ़ कर के, बाद में छोटा सा दूध पीता बच्चा हो जाए? पर सहजयोग में ऐसा होता है। अच्छे भले दिखते हैं, नज़र आते हैं, पर एकदम से पता नहीं क्या खोपडी बैठ जाती है। और लोग कहते हैं कि वो ऑफ हो गए हैं। मैंने कहा, 'ऑफ हो गये हैं ? मर गये हैं क्या ?' तो कहने लगे, कि ' नहीं, नहीं, सहजयोग से चले गये हैं, फिसल गये हैं।' और इतनी कठिन डगर नहीं है। बहुत आसान है, सहजयोग में बढ़ना बहुत आसान है, हर घड़ी। अब आपको देखना है कि हम किस लेवल के हैं? आपको तो कुछ कहने की भी जरूरत ही नहीं पड़ेगी, मिलने की भी क्या जरूरत है! माँ को तो हृदय में ही बसा लिया है । जब चाहें अपनी गर्दन को झुका लीजिए। मिलने की कौनसी जरुरत है। पहले मिलो , फिर माँ की जान खाओ कि ऐसा है, वैसा है। इससे प्रसन्न होंगी क्या? इसे देखके तो कभी प्रसन्न नहीं होंगी। अपनी जगह आप सोचो कि अगर सहजयोग में बढ़ना बहुत आसान है, हुए घड़ी। हमारे साथ कोई ऐसा करेगा तो क्या हमें अच्छा लगेगा ! तब आप देखियेगा कि आपकी विशालता इतनी बढ़ जाएगी, इतनी बढ़ जाएगी कि कौनसा भी प्रॉब्लेम ही नहीं आ सकता इतना साफ कर देगी। ये आप ही की विशालता है। आपको मेरी विशालता को आजमाने की कोई जरुरत ही नहीं है आप अपनी ही विशालता का उपयोग करें। ऐसे है कि अभी सहजयोगी जो महस कहने से ही सब मामला बन जाता है। ऐसे लोग हैं, ये नहीं कि नहीं। ऐसे तोड़ताड़ करके सब कुछ इसमें गहरा उतरना चाहिए। अब तो गणपतीपूले में आप लोगों के साथ मुलाकात होगी। और एक-एक जन्मदिवस मुझे याद आता है। जिस तरह से आप लोगों ने इतने प्रेम से इसे मनाया है और सुन्दर सजाया है। और यही कि आज ये आखरी दिन है और मैं चली जाऊंगी। और फिर इतने दिन बाद मुलाकात होगी। लेकिन मैं चाहती हूँ कि जिस वक्त भी मुलाकात हो तो आप लोग एकदम स्वच्छ, सुन्दर, अनुपम एक बढ़े हुए पेड़ के जैसे, जिसे मैं बड़े गर्व से देख सकूँ कि 'ये मेरे बच्चे हैं,' ये गर्व होना चाहिए मानो मैंने बच्चों से कुछ बात कह दी और इन्होंने ठान लिया और करके दिखा दिया। लेकिन यहाँ मैं सोचती हूँ कि बहुत कम लोग इस तरह के हैं। अधिकतर तो लोग ऐसे ही हैं कि जो आयें, अपना फायदा किया और चल दिये। फिर सोचते नहीं कि भाई तुम कैसे कर रहे हो और क्या ? ऐसा नहीं होना चाहिए। अगले साल भी यहाँ मेरा जन्मदिन हो ऐसी मेरी इच्छा भी है। हर एक आदमी कम से | कम आसानी से सौ लोगों को सहजयोग दे सकता है। अभी जैसे, यहाँ तो पता नहीं कि जैसे गौरी क पूजन होता है महाराष्ट्र में तो औरतें बुलाई जाती है, उनको हल्दी - कुमकुम देते हैं । तो अभी ये लोग 12 कै 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-12.txt क्या करते हैं कि, ये हमारा ही फोटो रखती हैं। हमारा ही पूजन करती हैं। और फ्रेन्डस को, सबको बुलाकर के हल्दी-कुमकुम देती हैं। तो फ्रेन्ड सर्कल में जहाँ पर भी आपकी दोस्ती है, पहचान है, रिश्तेदारी है सबसे बात करिए। देखिए इसमें कैसे लोग ठीक हो गये हैं। देखिए इसमें कैसे फायदे हो रहे हैं। कम से कम सौ में से पचास आदमी तो आपको मिल ही जाएंगे । शादी में जाएंगे । बहुत जरुरी है शादी में जाना! बहुत से लोग कहते हैं कि 'माँ, हम नहीं आ सकते, पूजा में। हमें शादी में जाना है।' और शादी में जाकर आपने किसको जोड़ा? एक भी आपका कोई बना सगा? वहाँ तो यही हुआ कि तुमने क्या कपड़े पहने थे। उसने क्या पहने थे । मैंने जो बताई थी 'बिना बात की बात।' ऐसे शादी में जाकर आपने कौन से लाभ उठाये हैं? यहाँ बहुत सी दुश्मनी है आपके साथ। तो यहाँ आपके अपने असली रिश्तेदार हैं। जो हमारी सारी विश्व की रिश्तेदारी है वो आज यहाँ बैठे हैं। सारा विश्व आज आपको पता होगा फ्रान्स में आज बहुत से लोगों ने आज सेमिनार किया है, हमारे बर्थ डे का, पाँच-छः रोज का यहाँ पर हो रहा है, सेमिनार हो रहा है इस में खबर भेजी है, 'माँ, हमने अठारह तारीख से शुरु कर दिया है आपके बर्थ डे का और सब एकट्े हुए हैं।' और वहीं से, मेरा अब सब जगह जाना नहीं होता। पहले जाते थे, पहले ग्रीस गये वहाँ सहजयोग बिठाया। बाद में फिनलैण्ड गये वहाँ सहजयोग बिठाया। अब टर्की गये हैं वहाँ बिठाया। जो देश छूट गया है वहाँ जाकर पहले सहजयोग फिट करते हैं और फिर जाते हैं। यहाँ तो सब गणपती जैसे बैठे हैं, कोई हिलता भी नहीं। यहाँ से नोएडा तक का यही नसीब समझ लो। मैंने सोचा नोएडा कोई दूर ही जगह है लेकिन देखा तो यहीं रखी हुई। चलो नोएडा में तो ऐसे लोग मिल गये हैं जिन्होंने खींच लिया है आप लोगों को। इतने आकर्षक लोग हैं। पर इससे जरा आगे जाईये, धीरे-धीरे ये चीज़ फैलेगी, जोर से भी फैल सकती है। फैलाना बहुत जरुरी है और टाइम बहुत कम है। और लोग देखिए अपने कैसे फैला बैठे हैं। किस तरह से काम कर रहे हैं और हम लोग हैं कि सो गये थे । और लोग हैं जो अपने गुरु का बखान करते रहते हैं हर वक्त। उनके गुरु एकदम चोर, उनसे सारा रुपया लूट लिया और बिल्कुल हालत खराब कर दिया। तो आज मुक्ति है, आप जो चाहे मेरे बारे में कहना चाहे कह सकते हैं। जो सहजयोग के बारे में कहना चाहते हैं कह सकते हैं। पहले कहा था आदिशक्ति मत कहो, पर अब आदिशक्ति कहने में अब कोई हर्ज नहीं, इसकी सिद्धता है हमारे पास में। खैर आप पहचानेंगे कैसे ? पहचानने के तरीके हैं आपके पास! हमने तो पहचान लिया। अपने चैतन्य को सवाल पूछने से आप जान सकते हैं। तो सबसे बताना होगा। अपने सब दोस्तों को बताना होगा। अपने सब पहचान वालों को बताना होगा। सबको बताना होगा, आपके रिश्तेदारी है, रिश्तेदारी कम से कम एक-एक के हजारो रिश्तेदार होंगे। उनको चिठ्ठियाँ लिखो, उनको खबर करो, सबको। जितने भी रिश्तेदार हैं, जिनको आप शादी में बुलाते हैं उन सबकी लिस्ट बनायें और सबको चिट्ठियाँ भेजो कि सहज से ऐसे -ऐसे लाभ हुआ है, इससे ये फायदे हुए हैं और इसे करना चाहिए। इससे आप उनका हित ही चाहते हैं । अपने घर में उनको डिनर पर बुलाते हो, बेकार का खर्चा करते हो। उससे क्या फायदा होता है। बाद में जाकर वो आपकी बुराई करेंगे और आप उनकी बुराई करेंगे। आप कहेंगे कि उन्होंने बहुत खा लिया और वो कहेंगे कि इन्होंने तो खाने को ही नहीं दिया। ऐसे लोगों को रास्ते पर लाना चाहिए या नहीं। आप जानते हैं, ये नहीं कि आप नहीं जानते और सहजयोग में आने से तो और साफ आप देखते हैं। सब चीज़़ को आप सब जगह, आज। | | साफ देखते हैं। फिर ऐसे लोगों को कहना चाहिए न साफ, ये बात है। अब तो हमारी जिंदगी बदल गयी है और आप भी बदल लीजिए, अच्छा है, बाकी सब बेकार है, कहने में तो कोई हर्ज नहीं और इस तरह से सहजयोग बहुत जोर से बढ़ सकता है। आज के दिन जाना मुझे अच्छा नहीं लगता क्योंकि आज अच्छा उत्सव का दिन है। आज ही बढिया सा प्रोग्राम होगा, पर वहाँ भी हजारों लोग बैठे होंगे। वहाँ भी जन्मदिन है और एक भावना से यहाँ से जाइये तो दूसरी भावना वहाँ शुरु हो जाती है। अब इसी तरह से दिन कट गये हैं हमारे, बड़े आनन्द से, सुख से दिन कट गये हैं हमारे। कोई तकलीफ नहीं है, ना ही कभी सोचा, कभी नहीं सोचा कि कैसे चल रहे हैं, क्या हो रहा है ? कभी रात 13 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-13.txt को दो-चार बजे से पहले तो सोये नहीं है। और दिन भर मेहनत चलती है। मैं तो चाहती नहीं कि आप लोग इतना मेहनत करें। लेकिन सहजयोग आपको चाहिए, मुझे नहीं ये जान लेना चाहिए। माँ इसलिए सोचती है कि आपको मिलना चाहिए, देना चाहिए इसलिए मैं आपको सहजयोग दे रही हूँ। लेकिन आपको मिलना चाहिए। आपकी चीज़ है ये, आपको प्राप्त करना चाहिए। ऐसा समझ लेने से आप समझ जाएंगे कि मेरे जीवन का इतना ही एक अर्थ है, एक इतना ही अर्थ है कि मेरे जीवन के कारण आपका कुण्डलिनी का जागरण हो गया और आप ऐसी स्थिति में आ गये कि जिससे आप दूसरों का जागरण कर सके और जिससे सारी दुनिया बदल जाए। तो इस जीवन का अर्थ कोई बहुत बड़ा मैं लगाती नहीं हूँ। अगर आप लोग नहीं होते तो मेरे जीवन का कोई अर्थ ही नहीं होता क्योंकि आप लोग हैं और आपके बच्चे हैं। ये काम तो बढ़ता ही जायेगा और बहुत से लोग पार हो जाएंगे। लेकिन मेरे जीवन में ही अगर कुछ विशेष चीजें हो जाए तो उससे जरूर संतोष रहेगा कि अपने ही जीवन में कोई चीज़ प्राप्त कर ली है । इसलिए जैसे-जैसे उम्र बढ़ रही है आप लोगों की जिम्मेदारी भी बढ़ रही है कि माँ के सामने दिखाना है कि हमने कौन -कौन सी चीजें पायी है और किस तरह से हमने सहजयोग को बढ़ाया है। सबसे बड़ी चीज़ ये है कि माँ के सामने हम कौनसा कमाल दिखा रहे हैं सहजयोग का, 14 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-14.txt सहजयोग उनके लिए जीवन हो गया है। और जब तक ये आपका जीवन नहीं होता है आप इसको पूरी तरह से पा नहीं सकते। वो दिखाना है। जैसे नोएडा का देखा, बड़ी खुशी हुई। इसी प्रकार कोई मुश्किल नहीं है। आप हरियाना की तरफ चले जाईये, उधर यु.पी. की तरफ चले जाईये| यही दिखाना है माँ को कि माँ हमने यहाँ ऐसे-ऐसे सहजयोग का सेंटर खोल दिये हैं। वहाँ इतने सारे सेंटर्स खोल दिये हैं। बस इसी से मुझे हो गया है सन्तोष। और मुझे कुछ नहीं चाहिए। एक फूलों की मुझे लालच है और वो भी आपने इतना अती कर दिया है कि अब तो नहीं चाहिए । वो भी छूट गया है। अब तो यही है कि कहाँ-कहाँ आपने बगीचे बनाये हैं, कहाँ-कहाँ आपने उद्यान खड़े किये हैं, कहाँ-कहाँ चमन खड़े किये हैं, वही सब सुनना है। पहले तो जब सहजयोगी नहीं थे तब मैं फूलों को देखती थी, लेकिन अब सहजयोगी आ गये हैं तो फूलों को कौन देखेगा। लेकिन अभी आपको ऐसे ही बगीचे हर जगह चलाने हैं। और कोई-कोई लोग इतने अच्छे हैं कि जहाँ बिजनेस होता है, जहाँ ट्रान्सफर होता है, जहाँ जिससे सम्बन्ध आता है फिर चाहे जापान जाए, चाहे वो अमेरिका जाए वहाँ जाकर वो बताते रहते हैं सहजयोग के बारे में। छोड़ते नहीं है। सहजयोग उनके लिए जीवन हो गया है। और जब तक ये आपका जीवन नहीं होता है आप इसको पूरी तरह से पा नहीं सकते । ये हमारे लिए जीवन है। बाकी सब चीजें तो चलती रहती है। वो कोई महत्वपूर्ण नहीं है। तो आज के दिन मैं आप सबको क्या कहूँ। मैं आपको धन्यवाद भी नहीं दे सकती कि मेरा बर्थ डे मनाया गया है। सिर्फ यही कि आप भी अपना बर्थ डे मनायें और आगे बढ़ते जाएं। बढ़ते -बढ़़ते एक काल में मैं ऐसा देखूँ कि दिल्ली के सहजयोगी बहुत ऊँचे पद पर चले गये हैं। दिल्ली बहुत महत्वपूर्ण जगह है । आप जानते हैं कि दिल्ली बहुत महत्वपूर्ण जगह है। यहाँ सहजयोग का लाभ होना और सहजयोगियों का एक विशिष्ट स्वरूप आना विशेष जरुरी है, अत्यन्त जरुरी है। सारी दुनिया दिल्ली को देख रही है। तो दिल्ली के लोगों में एक विशेष प्रगति होनी चाहिए और बढ़ना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए कि जैसे अब अपने यहाँ हिन्दी बोलने वाले बहुत से लोग हैं, उसी प्रकार यहाँ बहुत से लोग हैं जैसे यहाँ साऊथ इंडियन्स हैं उनको अप्रोच करना चाहिए। उनसे बात करनी चाहिए और बहुत कुछ काम हो सकता है। इस पर मैं चाहूँगी कि हर आदमी रोज लिखे कि आज हमने कितनों को सहजयोग दिया है। ये पता करना चाहिए कि हमने कितना आज काम किया है? कितनों को दिया है? फिर अपने बारे में सोचना चाहिए कि हम रात-दिन क्या फिक्र करते रहते हैं। हमारा जब सारा काम माँ करती है तो हम क्या फिक्र करते रहते हैं। हमारे दिमाग में क्या चलते रहता है। जब भी आप फिक्र करियेगा तो कोई काम नहीं होगा। जिस वक्त आपने मेरे ऊपर छोड़ दिया उस वक्त ही तो सारा काम होगा। जब आप कहते हैं कि 'हम ही बीच में कुछ लगाते हैं आधा।' तो अच्छा है, लो तुम्ही लगाओ आधा। पूरी तरह से छोड़ना आना चाहिए। और आप पूरी तरह से तब छोड़ सकोगे जब आप इस दशा में आएंगे। नहीं तो छोड़ ही नहीं सकते। अब कहने के लिए इतना ही है कि अब आप लोग जान ही गये हैं कि हम कौन है? छिपाने की कोई बात ही नहीं रह गयी। और उसकी सिद्धता भी हो गयी है अनेक तरह से। लेकिन इसका एहसास अभी नहीं है। अहसास अगर हो जाए तो किसकी फिक्र, किस चीज़ की है फिक्र? आदिशक्ति कहाँ बैठी हैं? किसके सामने बैठी हैं, बाते कर रही हैं। ऐसा कभी हुआ है क्या? सारे इतिहास में ऐसा कभी हुआ है! कहीं भी नहीं। और आप जानते हैं कि हम आदिशक्ति हैं। अभी आप हमारे बेटे हैं, आपको कैसे होना चाहिए! जैसे हमारा नाम है वैसे ही आपको होना है। यही आशीर्वाद है कि सब लोग समझदारी से काम लेंगे। सहजयोग आपका जीवन है और उसको आप अपने अन्दर पूरी तरह से उतारें। और उसके प्रकाश में आप भी प्रकाशित हों और दूसरों को भी प्रकाशित करें। | यही हमारा आशीर्वाद है। [र] 15 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-15.txt आर्टीकेरिया (Urticaria) प.पू.श्रीमाताजी और डा.तलवार के बीच हुई वार्तालाप का भाग चैतन्य लहरी २०००, खण्ड १२, अक १, २ आर्टीकेरिया रोग भी मनोदैहिक है। शिथिल जिगर के कारण इस रोग का प्रकोप हो सकता है। उपचार : गेरू का उपयोग करें। गेरू को पत्थर पर रगड़कर तनिक सी शहद में मिलाकर बच्चों को दें तथा बड़े भी इस रोग में गेरू का उपयोग करें। वृद्ध लोगों के लिए भी ये लाभकारी है क्योंकि इसमें घुलनशील कैल्शियम है। प्रभावित हिस्से पर इसे लगाकर किसी काले कपड़े से ढक दें। बाईं नाभि की खराबियों के कारण ये रोग होता है। जिग़र जब शिथिल होता है तो नाभि भी शिथिल हो जाती है। | 16 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-16.txt व्यक्ति अपनी शक्तियों का उपयोग नहीं कर पाता। यह बाईं नाभि द्वारा प्रभावित शिथिल जिगर होता है | बाईं ओर को ठीक करना ही इसका उपचार है। शरीर को काले कम्बल या कपड़े से ढ़ककर इसे गम्मी दी जा सकती है क्योंकि यह एक प्रकार की एलर्जी है। एकदम गर्म के उपयोग के बाद एकदम ठण्डे का उपयोग इसका कारण है। चाय-काफी पीने के तुरन्त पश्चात् ठण्डा पानी पीना भी इसका कारण है। इस अचानक परिवर्तन को हमारी प्रणाली सहन नहीं कर सकती। बाईं नाभि के क्षेत्र में ही हमारा प्लीहा (तिल्ली) भी है । प्लीहा गतिमापक और व्यवस्थापक भी है। अचानक परिवर्तन के कारण यह व्यवस्था अगर ठीक से न हो तो यह समस्या का कारण बनती है। अत: प्लीहा को रक्त कोषाणु (आर.बी.सी.) घटाने या बढ़ाने के लिए उद्युत रहना पड़ता है। परन्तु अचानक किए गए परिवर्तन के कारण प्लीहा पगला जाता है। एकदम उत्तेजित हो जाने वाले लोगों में रक्त कैन्सर रोग का यह मुख्य कारण है। बायाँ आज्ञा चक्र गतिशील होगा तो आप शिथिल हो जाएंगे और दाईं आज्ञा गतिशील होने पर आप अत्यन्त आक्रामक हो उठते हैं। शरीर में रसायनों का सन्तुलन आज्ञा चक्र से आता है। इसलिए आपको सदैव निर्विचारिता में रहना चाहिए। तामसी प्रवृत्ति (बाईं ओर ) के लोग स्वयं को कष्ट देते हैं और आक्रामक स्वभाव के (दाईं ओर) के अन्य लोगों को कष्ट देते हैं। अत: बाई ओर के लोगों के शरीर में दर्द होता है और वे कष्ट उठाते हैं। दूसरों को कष्ट पहुँचाने वाले, दाईं ओर के लोगों को इस बात का पता भी नहीं होता। ऐसे लोगों को ज़िगर का पीलिया रोग या चक्षु रोग हो सकते हैं। 'भक्ति' बाएं ओर का रोग है; श्रद्धा मध्य का। जब तक दर्द शुरू न हो जाएं बाईं ओर बहुत सुहावनी लगती है। परन्तु बाद में आप भटकने लगते हैं। कुछ भक्त लोगों के साथ ऐसा हो रहा है। जब मैं बोलती हूँ तो मेरा हर शब्द मन्त्र है । मैं जब बोलना आरम्भ करती हूँ तो लोग ठीक होने लगते हैं। अब सभी प्रकार के लोग आ रहे हैं। कुछ बहुत तेजी से उन्नत हो रहे हैं। उन्होंने मुझे देवी समझ कर एक तरफ बिठा दिया है कि मुझ तक नहीं पहुँचा जा सकता। अब आपमें से कोई सहजयोगी जब खड़ा हो जाएगा तो उसे से देखकर लोग सहज में आएंगे । कुछ लोगों का सहज कार्य के लिए आगे आना बहुत आवश्यक है। बहुत लोगों ने सहजयोग को व्यक्तिगत बना लिया है। वे जानना चाहते हैं कि उनके परिवार पर, दूसरे लोगों पर, बम्बई के लोगों पर इसका क्या प्रभाव पड़ रहा है। सहजयोगी अत्यन्त ईमानदार, करुणामय, कुशल , सुस्वभाव और कम क्रोध वाले हैं। उत्थान की इस प्रक्रिया में उनके चरित्र ने एक नया आयाम अपना लिया है। आप सभी दूसरों की चिन्ता किए बिना इस स्थिति को प्राप्त करने के लिए कठोर परिश्रम करें। परिस्थिति के समय अपनी स्थिति की परीक्षा होती है। अत: स्थिति पूर्णत: विवेकमय होनी चाहिए । चक्रों पर देवी- देवता विराजमान है। कुण्डलिनी जब जागृत होती है तो इन्हें भी जागृत करती है और जागृत होकर देवी-देवता उत्थान को कार्यान्वित करते हैं। अपने कार्य को भलीभांति जानते हैं और उसे अन्जाम देते हैं। उत्थान प्रक्रिया के समय ये देवी-देवता हमारे अन्दर स्थापित हुए। अपने स्थान पर रहते हुए ये कार्य करते हैं। एक छोटे से बीज का उदाहरण लें। यह स्थूल होता है। परन्तु इसमें बड़े-बड़े वृक्ष बनाने की सम्भावना निहित होती है। यह सम्भावना अत्यन्त सूक्ष्म होती है। यद्यपि यह स्थूल दिखाई पड़ती है। सुगन्ध पृथ्वी माँ का गुण है अत: जब कुण्डलिनी जागृत होती है तो अपने गुण को छूती है और कभी-कभी व्यक्ति में से सुगन्ध महकने में लगती है। आत्मसाक्षात्कार का कारण-सम्बन्ध शुद्ध इच्छा है। मनुष्य तीन सम्भावनाएं होती है-स्थूल, सूक्ष्म और कारणात्मक। 17 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-17.txt आत्मसाक्षात्कार का कारणात्मक सम्बन्ध अर्थात् शुद्ध इच्छा सूक्ष्म और स्थूल शरीर को ज्योतिर्मय करता है। जैसे बीज को यदि आप पृथ्वी माँ में डालें तो पृथ्वी माँ इसे जीवन्त करके सम्भावना शक्ति प्रदान करती है। इसी प्रकार कुण्डलिनी भी हमारे अन्दर पृथ्वी माँ हैं जो व्यक्ति के अन्दर छिपे बीज को सशक्त आयाम प्रदान करती है। सभी चक्र अपने गुण के अनुसार कार्य करते हैं, लेकिन समस्या ये है कि हम स्थूल स्तर पर भी इन चीज़ों को नहीं समझते। हम एक अणु को ही लें। अणु के अन्दर प्रोटोन, न्यूट्रोन और मेसोट्रोन होते हैं। हिलियम गैस की तरह से यदि आप इस अणु को ठण्डा करें तो प्रोटोन, न्यूट्रोन और मेसोट्रोन सामूहिक हो जाते हैं। इस प्रकार स्थूलतम चीज़ों में भी ये सम्भावना मौजूद है और वैज्ञानिक रूप से इसे प्रमाणित किया जा सकता है। मानव की बात जब हम करते हैं तो जीवन्त क्रिया की बात हम करते हैं। स्थूल स्तर पर मानव पूरी तरह से परिपक्व हो चुका है बिल्कुल उसी बीज की तरह से जो पूरी तरह से पक कर अंकुरण की सम्भावना से परिपूर्ण है। जरूरत है तो केवल इस बात की कि इसे उचित समय पर पृथ्वी माँ में बोना चाहिए। मानव की सम्भावना कुण्डलिनी है यह पृथ्वी माँ की तरह कारणात्मक सम्बन्ध की प्रतीक है। विराट का कारणात्मक गुण सामूहिकता है। आत्मा और कुण्डलिनी हमारे अन्दर सदाशिव और आदिशक्ति के प्रतीक हैं। ये कार्यकारण से परे हैं, वास्तव में यही कारणात्मक सम्बन्धों को बढ़ावा देते हैं। एक उदाहरण लें। मोमबत्ती जलाएं, अपना बायाँ हाथ इसकी लौ के सम्मुख करें। मेरी फोटोग्राफ के सामने अग्नितत्व जागृत हो जाता है। और इस प्रकार मोमबत्ती की लौ में उसकी सम्भाव्य शक्ति जागृत हो जाती है। यह अग्नि तत्व बाईं ओर की बाधाओं को भस्म करता है। बाधाओं को जलाती हुई मोमबत्ती की लौ से आपने | जागृत दीवार काली होते हुए देखी है। हर चीज़ का एक कारणात्मक सम्बन्ध होता है जिसमें सभी सम्भावनाएं निहित होती है। कारणात्मक से स्थूल तक हम सूक्ष्म के माध्यम से जाते हैं। अब क्या होता है, जैसे सुगन्ध का कारणात्मक पृथ्वी माँ हैं। पृथ्वी माँ के माध्यम से सभी फूल और वृक्ष बढ़ते हैं। मनुष्य का कारणात्मक कार्बन है। जिस प्रकार पृथ्वी माँ के अन्दर अग्नि जलती है और उस अग्नि के ताप से यह कार्बन की सृष्टि करती है और यह कार्बन आपके अन्दर अमीनो एसिड बनाने का कार्य करते हैं। तो कारणात्मक स्तर पर माँ जानती हैं कि माँ क्या हैं। शक्ति रूप में निराकार ही कारणात्मक है और इसका उपयोग करने के लिए साकार रूप में देवी - देवता हैं। वे इसका उपयोग करना जानते हैं । मध्य नाड़ी प्रणाली के माध्यम से स्थूल में इसका प्रदर्शन होता है। साकार ही कर्ता है। किसी देवता विशेष की अव्यक्त शक्ति कारणात्मक है परन्तु देवताओं के जागृत होते ही उनकी शक्तियाँ भी जागृत हो जाती हैं। यह एक जीवंत प्रक्रिया है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता। आप भ्रूण को ही देखें, किस प्रकार यह आकार धारण करता है, कौन इसका पथ प्रदर्शन करता है, कौन इस कार्य को करता है, कौन इसे चलाता है, कौन इसकी योजना बनाता है। स्त्री रोग विशेषज्ञ से मेरा प्रश्न है-किसी भी बाह्य चीज़़ को शरीर अपने अन्दर स्वीकार नहीं करता तो भ्रूण को बाहर क्यों नहीं फेंकता? मुझे इसका उत्तर दें। कोई शक्ति इसका पोषण करती है, इसकी देखभाल करती है और एक उचित समय पर इसे बाहर भेजती है। भ्रूण माँ के गर्भ में बढ़ता है परन्तु उसे कोई कष्ट नहीं देता । परन्तु जीवन शक्ति के परिवर्तन के दौरान माँ की मुखाकृति परिवर्तित होती है । तो माँ पर ये सौंदर्य कहाँ से आता है, इसके पोषण और देखभाल पर आप नजर डालें। इस पूर्णता को देख कर आश्चर्य होता है। क्या ऐसा नहीं होता ? | अपनी बुद्धि का हम कोई अन्त नहीं समझते। परन्तु परमात्मा के सम्मुख रखते हुए एक छोटा सा बीज आया और अन्त में एक नन्हा सा कोषाणु निकला। जो विवेक बुद्धि इस कोषाणु में है वह यदि मानव में आ जाए तो 18 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-18.txt प। निम निश्चित रूप से सहजयोग स्थापित हो जाएगा। एकदम से यह अपने मार्ग को देख लेता है, रास्ते पर आए पत्थर को यह देख लेता है। पत्थर से यह लड़ता नहीं। इसके इर्द -गिर्द घूमकर जड़ पत्थर से लिपट जाती है ताकि पेड़ बनने पर पत्थर इसे मजबूत बना सके। तब धीरे-धीरे यह पानी की ओर बढ़ती है। पानी के स्तर का इसको पूर्वाभास नहीं होता। गुँजमक्षी (Bumblebee) के साथ एक मैंने प्रयोग किया। इस पर मैंने रंग लगा दिया क्योंकि यह हमारे घर में अपना घरौंदा बनाती थी। यह रंग किसी तरह उसके पंखों पर आ गया। एक दिन मैं अपने घर से किसी बहुत दूर स्थान पर गई। उस गुँज मक्षी को मैंने वहाँ पाया। कुछ देर बाद फिर वह मक्षी हमारे घर पर थी उसे ये सारे मार्ग कैसे पता चले। उसमें अवश्य कोई चुम्बक होगा। आस्ट्रेलिया से साइबेरिया जाकर पक्षी किस प्रकार अपने घर खोज लेते हैं? क्योंकि वे सब सामूहिक होते हैं और उनमें पूर्ण प्रेम होता है। सभी इक्ट्ठेचलते हैं यह सब बातें पशु ओं के पाश की हैं। में परन्तु हम मानव अब पशु नहीं हैं। हम स्वतन्त्र हैं। इस स्वतन्त्रता बहुत कुछ खो गया है और लुप्त हो गया है। तब कहीं मानव स्थिर होते हैं। आदम और हौवा के स्तर पर यह स्वतन्त्रता दी गई थी। वे यदि समझदार होते तो कोई समस्या न होती। परन्तु अब इस स्वतन्त्रता के लिए बहुत कीमत चुकानी पड़ रही है। आजकल सब कार्यान्वित हो रहा है । विज्ञान को यह जीवन्त प्रक्रिया नहीं समझाई जा सकती। वैज्ञानिक देवी - देवताओं को तो मानेंगे नहीं । अत: उनकी चिन्ता छोड़ दे, हमारे यहाँ वैज्ञानिक नहीं है तो हानि क्या है? उन्हें भी हम छोड़ेंगे नहीं । वैज्ञानिकों के लिए आवश्यक है कि वे स्वयं को देखें । इसके बारे में कुछ अधिक वर्णन नहीं किया जा सकता। सल्फर-डाय-आक्साइड में चैतन्य लहरियाँ हैं। ये विद्युत चुम्बकीय-सममित होती है। और आइसोसिमैट्रिक होती है। वैज्ञानिक जो भी कुछ देखते हैं उसी का वर्णन करते हैं। सहजयोग में भी वे देखेंगे कि यह क्या है? आप लोग उन्हें तथ्य बताएं और इसका अनुभव उन्हें दें। वैज्ञानिक रूप से किस प्रकार आप उन्हें चीज़ें दिखा सकते हैं? 19 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-19.txt ब्कादर रुद्र १६/९/१९८४, अनुवादित एकादश रुद्र की महिमा गान करने के लिए आज हम एक विशेष प्रकार की पूजा कर रहे हैं। रुद्र श्री शिव की, आत्मा की विध्वंसक शक्ति है। उनकी एक शक्ति, जो उनका स्वभाव है, 'क्षमा है।' मानव होने के कारण हम लोग गलतियाँ करते हैं, गलत कार्य करते हैं, प्रलोभनों में फँसते हैं और हमारा चित्त भी अस्थिर है; परन्तु मानव जानकर वे हमें क्षमा करते हैं। जब हम अपने पावित्र्य को बिगाड़ते हैं; अनैतिक कार्य करते हैं, चोरी आदि करते हैं या उनके (शिव) विरुद्ध कार्य करते हैं तब भी वे हमें क्षमा करते हैं। वे हमारे छिछोरेपन, ईष्ष्या, कामुकता एवं क्रोध को भी क्षमा करते हैं। हमारी लिप्सा, क्रूरता और स्वामित्व भाव को भी क्षमा करते हैं। हमारे अहंकारमय आचरण और गलत चीज़ों की गुलामी को भी वे क्षमा करते हैं। परन्तु जिस प्रकार हर क्रिया की प्रतिक्रिया होती है तो जब वे क्षमा करते हैं तो सोचते हैं कि उन्होंने आप पर बहत बड़ी कृपा की है। आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने के पश्चात् भी क्षमा पाकर जब लोग बड़ी-बड़ी गलतियाँ किए चले जाते हैं तो प्रतिक्रिया स्वरूप उन लोगों के विरुद्ध भगवान शिव के अन्दर यह प्रतिक्रिया कोप का रूप धारण कर लेती है। आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति को बहुत बड़ा आशीर्वाद प्राप्त हो जाता है, उसे प्रकाश मिल जाता है, परन्तु इस प्रकाश में भी यदि व्यक्ति गलत मार्ग पर चलता रहे तब भगवान शिव का कोप उग्र हो जाता है। वे सोचते हैं। कि यह व्यक्ति कितना मुर्ख है। मेरे कहने का अभिप्राय ये है कि आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति के प्रति श्री शिव बहत अधिक संवेदनशील हो जाते हैं कि इन लोगों को क्षमा दे दी गई, आत्मसाक्षात्कार जैसा आशीर्वाद दे दिया गया, फिर भी ये गलत कार्य किए चले जाते हैं तब वे और अधिक कुपित हो जाते हैं और सन्तुलन के रूप क्षमा घटती चली जाती है =ी ु 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-20.txt श यव= :১ ्० क और क्रोध बढ़ने लगता है। परन्तु जब आप क्षमा करते हैं और उस क्षमा के परिणाम स्वरूप स्वयं को कृतज्ञ मानते हैं तब उनके आशीर्वाद की वर्षा आप पर होने लगती है। दसरों को क्षमा करने की अथाह शक्ति वे आपको प्रदान करते हैं। वे आपके क्रोध को शान्त करते हैं, आपकी कामुकता को शान्त करते हैं, लोभ को शान्त करते हैं। ओस की सुन्दर बूँदों सम उनका आशीष हमारे अस्तित्व पर पड़ता है और हम वास्तव में सुन्दर पुष्पों सम बन जाते हैं। उनके आशीष की शीतल धूप में हम चमक उठते हैं। अब वे अपने क्रोध एवं विध्वंसक शक्ति का उपयोग उन सभी तत्वों को नष्ट करने में करते हैं जो हमें कष्ट देती हैं। हर कदम पर, हर प्रकार से वे आत्मसाक्षात्कारी लोगों की रक्षा करते हैं। च= ५ू रस 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-21.txt x८ ओसुरी शक्तियाँ सहजयोगियों को अपनी चपेट में लेने का प्रयत्न करती हैं परन्तु एकादश रुद्र की महान शक्ति से वे शान्त हो जाती है। चैतन्य चेतना के माध्यम से हम ठीक मार्ग पर आ जाते हैं। उनके सुन्दर आशीर्वादों का वर्णन बाइबल के साथ psalm-23 में किया गया है- 'परमात्मा मेरे संरक्षक (Shepherd) हैं।' सारा वर्णन किया गया है कि एक चरवाहें की तरह से किस प्रकार वे आपकी देखभाल करते हैं, परन्तु वे आसुरी लोगों की देखभाल नहीं करते। वे उन्हें त्याग देते हैं। सहजयोग में आकर भी जो लोग आसुरी स्वभाव नहीं छोड़ते उन्हें वे नष्ट कर देते हैं। सहजयोग में आकर भी जो ध्यान-धारणा नहीं करते उन्हें या तो वे नष्ट कर देते हैं या सहजयोग से बाहर फैंक देते हैं। जो लोग परमात्मा के विरुद्ध अफवाहें फैलाते हैं और जिनका रहन-सहन ऐसा है जो सहजयोगियों को शोभा नहीं देता, ऐसे लोगों की समस्या भी वे समाप्त कर देते हैं। इस प्रकार एक शक्ति से तो वे रक्षा करते हैं और दूसरी से बाहर फैंकते हैं। उनकी विध्वंसक शक्तियाँ | जब बहुत बढ़ जाती है तब हम कहते हैं कि 'एकादश रुद्र गतिशील हो उठे हैं। अब जबकि कलकी स्वयं गतिशील होगी तो एकादश रुद्र की अभिव्यक्ति होगी अर्थात् इसकी विध्वंसक शक्ति पृथ्वी पर विद्यमान आसुरी शक्तियों को नष्ट करेगी और सभी शुभ तत्वों की रक्षा करेंगी। इसलिए सभी सहजयोगियों के लिए अत्यन्त आवश्यक है कि शीघ्र, अति शीघ्र अपने उत्थान को प्राप्त कर लें। अपने सामाजिक, विवाहित जीवन से या परमात्मा के जो आशीर्वाद उन्हें प्राप्त हुए हैं उनसे संतुष्ट होकर न बैठ जाएं। आप हमेशा सोचते हैं कि परमात्मा ने हमारे लिए क्या किया है? किस प्रकार से उन्होंने हमारे लिए चमत्कार किए। परन्तु हमें सोचना चाहिए कि हमने अपने लिए क्या किया ? अपनी उन्नति और उत्थान के लिए हम क्या कर रहे हैं? ग्यारह रुद्रों में से पाँच आपके भवसागर के दाई ओर के हैं और पाँच बाई ओर के। आपने यदि कुगुरुओं के सम्मुख सिर झुकाया हो या गलत पुस्तकें पढ़ी हों या गलत लोगों की संगति में रहे हों या गलत मार्ग पर चलने वाले लोगों के प्रति आपकी सहानुभूति हो या आप स्वयं किसी कुगुरु के प्रतिनिधि रहे हों तो भवसागर के बाईं ओर के पाँच एकादश कुपित हो जाते हैं। परन्तु यदि हम ऊपर वर्णित कुकृत्यों को छोड़ दें तो इन पाँचों रुद्रों की समस्या का समाधान हो सकता है। मोहम्मद साहब ने कहा कि शैतान को जूतों से पीटें । परन्तु यह कार्य आपको हृदय से करना होगा, मशीन की तरह से नहीं। सहजयोग में आने वाले से लोग मुझे बताते हैं कि, 'मेरे पिताजी फलाना गुरु को मानते हैं।' लिप्सा भाव से इन गलत गुरुओं को मानने वाले माता-पिता, बहन- भाई आदि को उन गुरुओं के चंगुल से छुड़वाने में लगे हुए सहजयोगी भी फँस जाते हैं या इन आसुरी शक्तियों के सामने घुटने टेक देते हैं। मैं एक सहजयोगिनी को जानती हँ जिसके बहुत माता-पिता ने कहा कि उसके बच्चे का बपतिस्मा अवश्य होना चाहिए। मैंने उसे बताया कि वह उस बच्चे का बपतिस्मा नहीं करा सकती क्योंकि वह आत्मसाक्षात्कारी हैं। परन्तु वह अपने माता-पिता का विरोध न कर सकी और बच्चे को बपतिस्मा के लिए ले गई और अब उस बच्चे की दशा बड़ी अजीबोगरीब हो गई है। बच्चा पागल सा दिखाई देता था। मैंने स्वयं ये सब देखा है। अन्तत: उस महिला को यह सब छोड़ना पड़ा तब कहीं उसकी रक्षा हुई। यदि उसका एक और बच्चा होता तब भी वो ऐसा ही करती और दूसरे बच्चे की स्थिति बहुत ही अधिक खराब हो जाती। सहजयोगियों के साथ समस्या ये है कि जो भी लोग सहजयोग के कार्यक्रम में आते हैं वो स्वयं को सहजयोगी समझने लगते हैं। वास्तव में ऐसा नहीं होता। या तो आपमें बहुत तेज संवेदनशीलता होनी चाहिए और यदि आप अपने शरीर पर या अपनी बुद्धि से महसूस करते हैं तो आपको समझना चाहिए कि सहजयोग क्या है? नकारात्मक व्यक्ति सदैव अधिक नकारात्मक लोगों के प्रति आकर्षित होता है। वह ये भी नहीं समझ पाता कि दूसरा व्यक्ति इतना भयानक 22 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-22.txt आसूरी शक्तियाँ सहजयोगियों को अपनी चपेट में लेने का प्रयतन कटती हैं पटन्तु एकादश रद्र की महान शक्ति से वे शान्त हो जाती है। रूप से नकारात्मक है, वह उससे प्रभावित हो जाता है। ऐसी स्थिति में उस व्यक्ति को नकारात्मक प्रभाव के कारण चोट पहुँचती है और भगवान शिव भी उसकी रक्षा नहीं कर पाते। हमें किसी भी नकारात्मक व्यक्ति से सहानुभूति नहीं होनी चाहिए चाहे वह पागल हो, चाहे उसे कोई परेशानी हो, चाहे वह आपका सम्बन्धी हो या कुछ और। ऐसे लोगों से सहानुभूति होनी ही नहीं चाहिए। इसके विपरीत ऐसे लोगों के लिए हमारे अन्दर एक प्रकार का क्रोध, निर्लिप्सा एवं क्रोधपूर्ण अलगाव होना चाहिए। यह क्रोधमय निर्लिप्सा केवल ऐसे लोगों के लिए ही होनी चाहिए। इसके अतिरिक्त क्रोध का सहजयोगियों में कोई स्थान नहीं । मैंने देखा है कि लोग बहुत अच्छे सहजयोगियों पर क्रोध करते हैं परन्तु अपने अत्याधिक नकारात्मक पति-पत्नियों पर क्रोध नहीं करते। तो जब ये एकादश पाँच ओर से गतिशील हो उठते हैं, क्योंकि जब ये बाईं ओर से दाईं ओर को आते हैं, तो व्यक्ति नकारात्मक होकर अहंवश कार्य करने लगता है। ऐसा व्यक्ति किसी भी स्थिति को अपने हाथों में लेकर कह सकता है। कि मैं फलाना सहजयोगी हूँ, मैं फलाना हूँ और हमें ऐसा करना चाहिए आपको इस प्रकार आचरण करना चाहिए । वह लोगों पर रौब झाड़ने लगता है और कुछ अधकचरे औसत वर्ग के सहजयोगी उसे मानने लगते हैं । परन्तु बहुत से लोग ये जानते हैं कि वह सहजयोग से बाहर जाने के रास्ते पर चल पड़ा है। वह व्यक्ति बाईं ओर के प्रकोप में आने लगता है या हम कह सकते हैं कि मेधा (मस्तिष्क) के दाएं हिस्से में, माथे (Forehead) को संस्कृत में मेधा कहते हैं। दाईं ओर के व्यक्ति के मन में ये विचार होता है कि मैं स्वयं बहत बड़ा गुरू हूँ। वे सहजयोग के विषय में भी शिक्षा देने लगते हैं मानो वे बहुत महान गुरु बन गए हों। हम कुछ लोगों को जानते हैं जो किसी भी कार्यक्रम में बड़े-बड़े भाषण देते हैं, मेरे भाषण के टेप तक नहीं चलने देते। वे समझते हैं कि वे बहुत बड़े विशेषज्ञ हो गए हैं। उनमें से कुछ तो कहते हैं कि अब हम बहुत ऊँचे हो गए हैं, कि हमें पानी पैर क्रिया की कोई आवश्यकता नहीं, हमें ध्यान धारणा की भी कोई आवश्यकता नहीं। ऐसे कुछ लोग कहते हैं कि हम सहजयोगी हैं और आस-पास की चीज़ों का हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ सकता। हम इतने महान हैं। परन्तु उनमें से सबसे अधम वो लोग हैं जो मेरा नाम लेकर लोगों को हक्म देते हैं कि श्रीमाताजी ने ऐसा कहा हैं' मैं इसलिए बता रहा हूँ क्योंकि श्रीमाताजी ने ऐसा कहा है, जबकि मैंने ऐसी कोई बात नहीं कही होती। यह सब झूठ है। कुछ लोग ऐसे भी हैं जो सहजयोग का उपयोग करते हैं और सहजयोगियों का अनुचित लाभ उठाते हैं। ऐसे लोग अमंगलमय हो जाते हैं। इस प्रकार के कार्य करने वाले व्यक्ति अत्यन्त अपमानपूर्वक सहजयोग से बाहर चले जाते हैं। हमें ऐसे व्यक्ति के समीप कभी नहीं जाना चाहिए, उससे कोई सम्बन्ध नहीं रखना चाहि, और ना ही उससे हमें कोई सहानुभूति होनी चाहिए क्योंकि उसकी यह अमंगलमयता किसी को भी किसी भी सीमा तक हानि पहुँचा सकती है। तो ऐसे लोगों से दूर रहने में ही हित है। किसी व्यक्ति में जब यह दसों एकादश विकसित हो जाते हैं तब निश्चित रूप से उसे कैन्सर या कोई अन्य भयानक लाइलाज रोग हो जाता है। विशेष तौर पर जब ग्यारहवाँ रुद्र यहाँ (माथे में) हो- जो कि विराट चक्र है और जो सामूहिकता है। जब यह भी बाधित हो जाता है तो ऐसा व्यक्ति इससे निकल नहीं सकता। इन पाँचों में से यदि यह एक मान लो, मूलाधार या आज्ञा से जुड़ जाए तो व्यक्ति को अत्यन्त घिनौनी बीमारियाँ हो सकती हैं। इसलिए मैं सदैव कहती हैँ कि अपने आज्ञा चक्र के विषय में सावधान रहें क्योंकि यदि यह एक बार एकादश रुद्रों या उनके एक भाग से जुड़ जाए तो व्यक्ति को कुछ भी हो सकता है। उसकी | भयानक दुर्घटना हो सकती है, अचानक उसे कोई आघात पहुँच सकता है, कोई उसका कत्ल कर सकता है। जिस व्यक्ति को दाईं आज्ञा और कोई एकादश (बायां या दायां) खराब हो उसके साथ कुछ भी हो सकता है। अर्थात् यह 23 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-23.txt पाँचों या इन में से कोई एक यदि आज्ञा चक्र समेत खराब हो तो परमात्मा की संरक्षण शक्तियाँ कम हो जाती हैं। अत: अपने अगन्य चक्र को ठीक रखें। अब जैसे मैं बोल रही हैँ आप निरन्तर मेरी ओर देखें ताकि आपमें निर्विचार चेतना आ जाए और आज्ञा चक्र शान्त हो जाए। हर समय अपने चित्त को इधर-उधर न भटकने दें, तब आप पाएंगे कि आपका चित्त निर्विचार चेतना में परिवर्तित होता जा रहा है। और तब आपका चित्त इस प्रकार स्थिर हो जाएगा कि आपको किसी भी चीज़ की चिन्ता न करनी पड़ेगी। निर्विचार चेतना में कोई भी आपको छू नहीं सकता, यह आपका किला है। ध्यानधारणा द्वारा हमें निर्विचार चेतना स्थापित करनी चाहिए। इससे पता चलता है कि हम ऊँचे उठ रहे हैं। कुछ लोग ध्यान धारणा करते हैं और कहते है 'श्री माताजी, ठीक है, हम ध्यान कर रहे हैं।' मशीन की तरह से वे ध्यान करते हैं और कहते हैं कि मैंने यह किया, मैंने वह किया। परन्तु क्या आपको निर्विचार समाधि की अवस्था प्राप्त हुई जो कि आरम्भिक स्थिति है? क्या आपने अपने सिर से शीतल लहरियाँ निकलते हुए महसूस की ? यदि आप मशीन की तरह से ध्यान कर रहे हैं तो इससे कोई लाभ न होगा, न आपको न किसी अन्य को। आत्मसाक्षात्कार के पश्चात् क्योंकि आप भली-भाँति सुरक्षित होते हैं इसलिए आपको सभी आशीर्वाद प्राप्त हो जाते हैं और एक महान भविष्य आपके सम्मुख होता है। परन्तु पूर्ण विनाश की सम्भावना भी आपके सम्मुख होती है। समानता का एक उदाहरण देते हुए मैं कहूँगी कि उत्थान पथ पर सभी लोग हाथ पकड़कर आपको आश्रय दे रहे हैं और उन्नत होने के लिए विविध प्रकार से आप सुरक्षित हैं। परन्तु गलती से नीचे गिर जाने की भी सम्भावना है। यदि आप सत्य और प्रेम से सम्बन्ध तोड़कर हर समय आश्रय देने वाले लोगों को चोट पहुँचाने का प्रयत्न करते हैं तो आप बहुत ऊँचाई से गिर जाते हैं। क्योंकि जिस ऊँचाई पर आप होंगे उसी से ही आप गिरेंगे और उतनी ही अधिक शक्ति से गिरेंगे और गहरी खाई में जा पड़ेंगे। गहरी खाई से आपको बचाने के लिए परमात्मा ने सारे प्रयत्न किए हैं आपको पूरी सहायता दी है फिर भी यदि आप उस ऊँचाई से गिरना चाहते हैं तो यह बहुत भयानक है । सहजयोग में होते भी यदि कोई व्यक्ति सहजयोग के कार्य को हानि पहुँचाने का प्रयत्न करता है तो एकादश रुद्र हुए उसे इतनी बुरी तरह चोट पहुँचाते हैं कि उनका आक्रमण बहुत ही विस्तृत होता है। परिवार के कुछ लोग यदि सहजयोग कर रहे हैं तो भी पूरे परिवार की रक्षा हो सकती है। परन्तु पूरा परिवार ही सहजयोगियों के विरुद्ध है और उन्हें परेशान करने की कोशिश करता है तो ऐसा परिवार पूर्णत: नष्ट हो सकता है। अब जैसे मैंने आपको बताया ये एकादश रुद्र भवसागर से निकलते हैं। अत: हम कह सकते हैं कि विनाशकारी भाव मुख्यत: भवसागर से आता है। परन्तु ये सब शक्तियाँ एक ही अवतरण को दी गई हैं। श्री महाविष्णु को जो कि भगवान ईसामसीह हैं, जिन्होंने क्रॉस थामा हुआ है। आपकी तथा पूरे विश्व की रक्षा करने वाली सभी चीज़ों के वे ही आधार हैं। वे ओंकार मूर्ति हैं, वे ही चैतन्य स्वरूप हैं। जब वे क्रोधित होते हैं तो पूरा ब्रह्माण्ड टूटने लगता है। हर अणु-रेणु में, | हर मानव में, सभी जड़ चेतन में वे ही विद्यमान हैं, उनके कुपित हो जाने से सभी कुछ खतरे में पड़़ जाता है। अत: ईसामसीह को प्रसन्न रखना अत्यन्त आवश्यक है। ईसा ने कहा है हमें नन्हें बच्चों की तरह से होना पड़ेगा अर्थात् अबोध। हृदय की पवित्रता ही उन्हें प्रसन्न करने का सर्वोत्तम मार्ग 24 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-24.txt 25 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-25.txt 53 26 wwwm 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-26.txt क= है। पश्चिमी देशों में, विशेष कर के लोगों ने अपने मस्तिष्क बहुत अधिक विकसित कर लिए हैं। शब्दों से खिलवाड़ करके वे सोचते हैं कि उनके जितना ज्ञान किसी को नहीं है। ऐसे लोगों को समझ लेना चाहिए कि जो भी कुछ आप कर रहे हैं परमात्मा उसे जानते हैं। आप यदि हृदय से शुद्ध नहीं हैं तो ऐसे व्यक्ति के लिए यह सोचना कि वह बहत अच्छा सहजयोगी है या बहुत खतरनाक है, ऐसे लोग न तो भूतबाधित हैं न ही बन्धनग्रस्त। वे अहं ग्रस्त व्यक्ति हैं। परन्तु वे अत्यन्त चालाक लोग हैं जो इस बात को जानते हैं कि वे क्या कर रहे हैं। कुछ लोग भूत बाधित होकर स्वयं को नष्ट करने का प्रयत्न करते हैं या रोते हैं, बिलखते हैं और सभी प्रकार के कार्य करते हैं। कुछ लोग सोचते है कि यदि वे स्वयं को कष्ट देंगे या कोई और ऐसा कार्य करेंगे तो परमात्मा प्रसन्न हो जाएंगे, ऐसे लोग भयंकर गलतफहमी में है। सहजयोग में यदि आप आनन्द नहीं उठा सकते तो जान लीजिए कि आपमें कोई कमी है। सहजयोग में यदि आप प्रसन्न नहीं रह सकते तो आपको जान लेना आवश्यक है कि निश्चित रूप से आपमें ही कोई कमी है। सहजयोगियों की संगति का आप यदि आनन्द नहीं उठा सकते तो भी आपको जान लेना चाहिए कि आपमें अवश्य कोई कमी है। परमात्मा की महानता को यदि आप नहीं सराह सकते तो भी आप ही में कुछ कमी है। नकारात्मक लोगों और उनकी समस्याओं के विषय में यदि अब भी आप चिन्तित हैं तो आप जान लें कि आप ही में कुछ कमी है। बुरे लोगों से यदि यदि सहजयोग विरोधी नकारात्मक लोगों और सारी आपको सहानुभूति है तो भी आप ही में कुछ कमी है। परन्तु नकारात्मकता के प्रति आपमें क्रोध है तो आप ठीक हैं। यह चीज़ जब परिपक्व हो जाएगी तो आप स्वयं एकादश की शक्ति बन जाओगे। जो भी व्यक्ति आपको अपमानित करने और हानि पहुँचाने का प्रयत्न करेगा वह समाप्त हो जाएगा। जिन लोगों ने किसी भी प्रकार से मुझे अपमानित करने का प्रयत्न किया या आपको हानि पहुँचाने का प्रयत्न किया उनके साथ ऐसा घटित हो चुका है। कभी-कभी तो मुझे उनके विषय में बहुत चिन्ता होती है। तो व्यक्ति को ऐसा होना चाहिए कि वह स्वयं एकादश बन सके। ऐसे लोगों को कोई छू भी नहीं सकता। परन्तु ऐसे व्यक्ति करुणा से और क्षमा से परिपूर्ण हो जाते हैं। परिणामस्वरूप एकादश बहुत तेजी से कार्य करने लगते हैं। जितने अधिक करुणामय आप होंगे एकादश उतने ही अधिक शक्तिशाली हो जाएंगे। जितने अधिक सामूहिक चेतन आप होंगे उतने ही अधिक एकादश कार्य करेंगे । एकान्त में बैठकर कुछ लोग कहते हैं कि घर में रहना ही ठीक है परन्तु वे नहीं जानते कि वे क्या खो रहे हैं ? दसरे लोगों के साथ आप के जो भी अनुभव रहे हों फिर भी आपको चाहिए कि उनके साथ मिलकर रहें। सदैव कार्यक्मों में भाग लें, कार्यभार सम्भाले, इसके लिए आगे बढ़े, इसे कार्यान्वित करें। तब आपको हजारों गुना आशीर्वाद प्राप्त होंगे । एकादश रुद्र में पूर्ण विध्वंसक शक्तियाँ हैं। ये श्री गणेश की विध्वंसक शक्तियाँ हैं। श्री ब्रह्मा विष्णु और महेश की विध्वंसक शक्तियाँ हैं। माँ आदिशक्ति की विध्वंसक शक्तियाँ हैं। ब्रह्मा विष्णु, महेश की विध्वंसक शक्तियों के अतिरिक्त ये श्री भैरव, श्री हनुमान, श्री कार्तिकेय और श्री गणेश की भी विध्वंसक शक्तियाँ हैं। ये श्री सदाशिव और आदिशक्ति की भी शक्तियाँ हैं। सभी अवतरणों की विध्वंसक शक्तियाँ एकादश हैं। इसके अतिरिक्त एकादश रुद्र हिरण्यगर्भ की भी विध्वंसक शक्ति है। जब यह शक्ति गतिशील होती है तो हर अणु का विस्फोट हो जाता है। पूरी आण्विक ऊर्जा विध्वंसक शक्ति बन जाती है। तो पूरी विध्वंसक शक्ति ही एकादश रुद्र है। यह अत्यन्त शक्तिशाली और विस्फोटक है । परन्तु यह अन्धी नहीं है, अत्यन्त विवेकशील है और अति कुलता पूर्वक गुथी हुई है। सभी अच्छाइयों को छोड़ती हुई यह बुराइयों पर आक्रमण करती है और उचित समय पर उचित स्थान पर सीधे ही चोट पहुँचाती है। बीच में खड़ी किसी भी अच्छी चीज़ को हानि नहीं पहुँचाती। उदाहरण के रूप में मान लो कि एकादश रुद्र की दृष्टि किसी व्यक्ति पर पड़ रही रय च |ाी 27 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-27.txt है परन्तु बीच में कोई दिव्य या सकारात्मक चीज़ है तो सकारात्मक के बीच में से गुजरती हुई, उसे बिना कोई हानि पहुँचाए, यह नकारात्मक को चोट पहुँचाती है। कुछ लोगों को यह शीतल करती है और कुछ अन्य को जला देती है, इतनी कोमलता और सूझबूझ से यह कार्य करती है। यह अत्यन्त तेज भी है और अत्यन्त कष्टदायी भी। झटके से यह गला नहीं काटती धीरे-धीरे करके यह इस कार्य को करती है। जिन भी भयानक कष्टों के विषय में आपने होगा या ४. सुना जिन्हें आपने देखा होगा वह सब एकादश रुद्र की ही अभिव्यक्तियाँ हैं। उदाहरण के लिए कैन्सर का ही लें। कैन्सर हो जाने पर रोगी की नाक काट लेते हैं, जुबान निकाल देते हैं और एक-एक करके भयंकर कष्ट के साथ भिन्न अंग निकाल दिए जाते हैं। कुष्ठरोग का उदाहरण लें। कुष्ठरोगी अपनी अंगुलियों का भी एहसास नहीं कर सकता। उनके शरीर के किसी हिस्से पर यदि कोई जख्म आदि हो जाएं तो भी उन्हें उसका एहसास नहीं होता। उनकी उंगलियाँ गलने लगती है। | इस प्रकार शनै:, शनै: एकादश रुद्र लोगों को खा लेता है, उन्हें निगल लेता है। एकादश रुद्र परन्तु परम पिता की दृष्टि जब अपने बच्चों पर पड़ती है तो ये भयानक क्रोध अत्यन्त मृद् के तथा मधुर रूप में परिवर्तित हो जाता है। माँ महाकाली की एक कथा है। एक बार वे अत्यन्त कुपित हो गई। इतनी कुपित कि अपनी एकादश शक्तियों से उन्होंने पूरे विश्व को नष्ट कर देना चाहा। वे पूरे विश्व को ही नष्ट करने लगी थीं। भगवान शिव ने जब उन्हें इतना क्रोधित देखा तो वे घबरा गए। महाकाली ने जब अपनी विनाश लीला शुरु की और विनाश नृत्य करने लगीं तो गतिशील होने शिव को समझ नहीं आया कि उन्हें किस प्रकार रोकें। उन्होंने उनका बच्चा उठाया, आप कह पट सकते हैं कि वो भी एक सहजयोगी, ईसामसीह या उनका कोई अन्य महान बालक होगा और उसे उनके चरणों में डाल दिया। देवी के चरणों से जब धप्प-धप्प हो रही थी तो उनकी दृष्टि पैरों में पड़े अपने बच्चे पर पड़ी। उसे देखकर उनकी जुबान बाहर को निकल आई और उनका अनतत: सदाशिव विनाश नृत्य रुक गया। ऐसा केवल एक ही बार घटित हुआ। एकादश रुद्र के गतिशील होने पर अन्तत: सदाशिव के क्रोध के कारण पुर्ण विनाश हो जाता है। तब पूर्ण प्रलय आ जाती है। अत: हमें जान लेना चाहिए कि किस प्रकार एकादश रुद्र कार्य करता है और किस प्रकार सहजयोगियों को स्वयं एकादश रुद्र बनना है। यह शक्ति स्वयं में विकसित करने के लिए व्यक्ति को अपने अन्दर निर्लिप्सा की अगाध शक्ति विकसित करनी के क्रोध के होती है-नकारात्मकता से अलगाव। उदाहरण के रूप में नकारात्मकता भाई, बहन, माता- पिता, मित्र तथा अन्य नज़दीकी रिश्तेदारों से आ सकती है। आपके अपने देश से भी आपको नकारात्मकता मिल सकती है। आपके आर्थिक और राजनीतिक विचार भी आपको काटण पूर्ण नकारात्मक बना सकते हैं। किसी भी प्रकार का गलत तदात्मय आपकी एकादश शक्तियों को | नष्ट कर सकता है। यह कहना पर्याप्त नहीं है कि मैं सहजयोगी हूँ और सहजयोग के प्रति समर्पित हूँ। आपको मस्तिष्क से भी समझना होगा कि सहजयोग क्या है ताकि विवेकशीलता से आप समझ सकें कि सहजयोग वास्तव में क्या है। पश्चिमी देशों में विशेष रूप से, लोग आवश्यकता से अधिक बुद्धिमान हैं। सहजयोग का प्रकाश उनकी बुद्धि में प्रवेश नहीं करता। आप अपनी लिप्साओं पर काबू नहीं पा सकते। इसका अर्थ ये नहीं है कि आप सहजयोग के विषय में बहुत अधिक बातें करें और या सहजयोग पर लम्बे भाषण दें। बुद्धि से भी आपको विनाश हो जाता है। 28 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-28.txt अ २० समझना चाहिए कि सहजयोग क्या है ? आज विशेष दिन है। कहा गया है कि हम एकादश रुद्र पूजा करें। यह सभी झूठ-मूठ के धर्मों, पंथो, गुरुओं के लिए है जो परमात्मा या धर्म के नाम पर लोगों को भ्रमित करते हैं तथा उन धर्मों के लिए है जो आत्मसाक्षात्कार की बात नहीं करते और न ही आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करके परमात्मा से योग प्राप्त करते हैं। ये सब झूठे हैं। इस प्रकार की घड़ी गई बातों का परमात्मा से कोई सम्बन्ध नहीं, ये सच्चे धर्म नहीं हो सकते। नि:सन्देह ये लोगों को सन्तुलन देते हैं। परन्तु ऐसा करते हुए यदि ये लोगों से धन एकत्र करते हैं और उस धन से ऐश करते हैं तो यह तो धर्म का निम्नतर स्तर भी न हुआ। आरम्भ में आपको सन्तुलन प्रदान करना धर्म का कार्य है। परन्तु सन्तुलन का ढ़िंढोरा पीटने के लिए यदि वे आपसे धन माँगते हैं तो यह सन्तुलन नहीं हो सकता। इसमें परमात्मा का आशीर्वाद भी नहीं हो सकता। अवतरणों के अतिरिक्त किसी अन्य के सम्मुख झुकने के लिए कहने वाला कोई धर्म 'धर्म' नहीं हो सकता। यह पूर्णत: असत्य है। वास्तविक धर्म सदैव सन्तुलन प्रदान करेगा और उत्थान की बात करेगा यह न तो कभी धन की माँग करेगा और न ही कभी व्यक्ति विशेष को महान या पूज्य बनाएगा। अंत: हमें असत्य, नकारात्मक और वास्तविकता में भेद करने का ज्ञान होना चाहिए। चैतन्य लहरियों के ज्ञान से, अपनी बुद्धि से जब आप में यह विवेक विकसित हो जाएगा, जब आप स्वयं को नियन्त्रित कर लेंगे तब आप एकादश की शक्ति बन जाएंगे। ऐसा तभी होगा जब आप में परिपक्वता स्थापित हो जाएगी। आज मैं आप सबको आशीर्वाद देती हूँ कि आप एकादश रुद्र की शक्तियाँ बनें और आप में ऐसी निष्कपटता का विकास हो जो आपको उस स्थिति तक पहुँचा दें। परमात्मा आपको आशीर्वादित करें । 29 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-29.txt हमें सदा याद रखना हे कि ुं श्री माताजी वास्तव में कौन हैं ४ . ुम 'और मैं परमात्मा से प्रार्थना करूंगा तथा वे आपको एक और आनन्द-दाता प्रदान करेंगे---आनन्द-दाता, जो कि ब्रह्म चैतन्य हैं, जिन्हें परम-पिता, मुझ पर कृपा करके, भेजेंगे। वे आपको सब प्रकार का ज्ञान सिखायेंगे (गी)' ईसा मसीह आज के महत्वपूर्ण दिन पर मैं घोषणा करती हूँ कि मैं ही मानवता की रक्षा करने के लिए अवतरित हुई हूँ।' मैं घोषणा करती हूँ कि मैं ही आदिशक्ति हूँ, जो कि सब माताओं में परम् हैं, जो कि आदि माँ हैं, शक्ति हैं, जो परमात्मा की शुद्धतम इच्छा हैं, जो कि स्वयं ही अपने अस्तित्व को अर्थ-वत्ता प्रदान करने के लिए, और इस सृष्टि तथा मानव मात्र को अर्थ प्रदान करने के लिए अवतरित हुई हैं। और मुझे पूर्ण विश्वास है कि अपने प्रेम, धैर्य तथा अपनी शक्तियों के द्वारा मैं इस लक्ष को प्राप्त कर लूगी। मैं ही बार -बार अवतरित होती रही, परन्तु अब मैं सर्व शक्तियों सहित अवतरित हुई हूँ। न केवल मानव जाति को मोक्ष प्रदान करने के लिए, न केवल मानव-मात्र की मुक्ति के लिए, अपितु परमात्मा का साम्राज्य, आनन्द तथा आशीष, जिन से परम पिता आपको धन्य करना चाहते हैं, वो सब आपको प्रदान करने के लिए में इस पृथ्वी पर आयी हूँ। २.१२.१९७९ समय अत्यन्त महत्वपूर्ण है, यह चेतना सदा आपके हृदय में होनी चाहिए। आपका जन्म एक अत्यन्त महत्वपूर्ण समय में हुआ। जब भी आप मेरे साथ होते हैं वही समय श्रेष्ठतम होता है। अत: वास्तविक रूप से उस समय का लाभ उठाइये । २१.५.१९८४ 30 कु 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-30.txt 31 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-31.txt हमें प्रतिदिन ध्यान-धारणा अवश्य करनी है विकसित होने के लिए ध्यान-धारणा आवश्यक है। प्रतिदिन, प्रतिदिन और प्रतिदिन ध्यान करना महत्वपूर्ण है। चाहे आपको एक दिन भोजन छोड़ना पड़े, नींद त्यागनी पड़े, चाहे आप एक दिन दफ्तर न जायें या दिन-चर्या का कोई और कार्य आपको छोड़ना पड़े-परन्तु प्रतिदिन आप ध्यान अवश्य करें। उत्थान के लिए यह प्रथम आवश्यक है। मुम्बई पूजा, १९८८ ध्यान-धारणा पर बहुत अधिक समय लगाना आवश्यक नहीं। परन्तु जो भी समय आप लगायें और जो लाभ आप प्राप्त करें वह सुस्पष्ट होना चाहिए। ध्यान की कान्ति आपमें कितनी है और किस तरह से आप इसे दूसरें में बाँटते हैं यह दोनों गुण उन सन्तों के हैं जो आपने बनना है। स्वयं गहनता को प्राप्त किए बिना न तो हम दूसरे सहजयोगियों की रक्षा कर सकते हैं और न ही उनकी जो सहजयोगी नहीं हैं। २७.७.१९८२ ध्यान-धारणा हमारे जीवन का अंग-प्रत्यंग है। जिस प्रकार मानव श्वास लेता है उसी प्रकार आपको ध्यान करना है। बिना ध्यान किये आपका उत्थान नहीं हो सकता। आपको ध्यान करना है। ध्यान किये बिना आप विकसित नहीं हो सकते। आप अपनी पूर्व अवस्था में ही रहेंगे। ध्यान- धारणा द्वारा गहनता प्राप्त करने पर ही व्यक्तित्व का विकास सम्भव है। उथलेपन से कोई लाभ नहीं इसी कारण ध्यान-धारणा आवश्यक है परन्तु लम्बे समय तक ध्यान आवश्यक नहीं। २.५.१९८७ सहजयोग में आकर भी जो लोग ध्यान-धारणा नहीं करते और न ही उत्थित (गहन) होते हैं, वे या तो नष्ट हो जाते हैं या सहजयोग से बाहर फेंक दिये जाते हैं। २८.७.१९८५ हमें दसरों की आलोचना क्तई नहीं करनी अपने दृष्टिकोण को बदलें। दूसरें की अच्छाई देखने का प्रयत्न करें । सहजयोग से बाहर के लोगों में न सही कम से कम सहजयोगियों की अच्छाईयों को देखने का प्रयत्न तो आप कर ही सकते हैं। उनके गुणों को देखने का प्रयत्न कीजिए। उन्होंने सहजयोग का क्या हित किया है ? आप उनके कितने आभारी हैं? उन्हें सहजयोग कैसे देना है? उनकी खूबियों को क्यों न देखा जाये ? | उन्हें उत्साहित करने से तथा उनसे प्रेम-व्यवहार द्वारा भी आप सहजयोग की सहायता कर रहे हैं। २८.७.१९८५ अपनी आँख में पड़े इतने बड़े कचड़े का ध्यान न करके अपने भाई की आँख में पड़े धूल के कण को क्यों देखता है? ओ पाखण्डी, पहले अपनी आँख के कचरे को निकाल फेंक और तब तू 32 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-32.txt स्पष्ट रूप से देख पायेगा कि भाई की आँख में पड़े धूल-कण को भी निकाल फेंकता है। श्री ईसा मसीह दूसरों के दोषों की गणना से हमारे अपने दोषों में वृद्धि होती है । श्री बुद्ध यदि आप एक माँ के बच्चे हैं तो किसी दसरे से ऊंचे कैसे जा सकते हैं? आप सदा माँ के बालक ही रहेंगे। माँ की दृष्टि में आप किसी अन्य बच्चे से ऊंचे कैसे हो सकते हैं? नहीं हो सकते। इसके विपरीत यदि आप इस तरह की चालाकी करने का प्रयत्न करेंगे तो माँ आपको दंड देगी। २८.७.१९८५ आत्मी के विरोध में न हमें कुछ करनी चाहिए और न कुछ कहेना बुराई क्या है? मैंने कुछ लोगों को कहते सुना है-- 'बुराई क्या है, मैं अभी तक धूम्रपान करता हूँ : चैतन्य लहरियाँ मुझमें हैं?' कुछ कहते हैं 'मैं अभी तक शराब पीता हूँ : चैतन्य लहरियाँ मुझमें हैं : क्या बुराई है?' 'मैं अभी तक फलां गुरु के पास जाता हूँ, मुझमें लहरियाँ ठीक ठाक हैं।' 'मैं अब भी पहले की तरह व्यभिचारमय जीवन बिता रहा हूँ:फिर भी मुझमें लहरियाँ हैं। लहरियाँ बहुत समय तक रहती हैं परन्तु अचानक रुक जाती हैं, आप स्वयं को इनकी सीमा से बाहर पाते हैं। आप यह भी नहीं जान पाते कि आपको बाहर फेंक दिया गया है। स्पर्श -रेखा की तरह, धीरे-धीरे आपको लगता है कि आप बाहर निकल गये। अत: मनुष्य को इसके विषय में सावधान रहना चाहिए । हमारे अन्दर ही एक अपकेन्द्री (सैन्ट्रीफ्यूगल) और एक केन्द्राभिमुखी ( सैन्ट्रीपीटल) शक्ति निहित है। एकादश (रुद्र) शक्ति अपकेन्द्रीय है, इसी के माध्यम से आपको (सहजयोग से) बाहर फेंका जाता है। सहजयोग न किसी के पैरों में गिरता है न हीं किसी से प्रार्थना करता है। यदि आपको सहजयोग में रहने की प्रबल इच्छा है तो आप अवश्य इसमें रहेंगे, पर यदि आप इसमें नहीं रहना चाहते हैं तो आपकी इच्छा से भी अधिक तेजी से यह आपको बाहर फेंकता है। सहजयोग में यही कठिनाई है और माँ होने के नाते मुझे यही रहस्य आपको बताना है कि यह (सहजयोग) आपको बाहर फेंक देने के लिए अति उत्सुक है। २१.५.१९८४ ० 33 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-33.txt हमें नियमित रूप से श्रीमाताजी के टेप सुनने तथा देखने चाहिए 'श्री माताजी, ये लोग केन्द्र के लिए एक टेप लेते हैं, हर व्यक्ति इसे सुनता है और बस समाप्त।' आप सबके पास एक-एक टेप होना चाहिए। लोग इतना भी नहीं करते। इतना भी नहीं । कुछ समय बाद यह हो सकेगा। यह सम्भव है कि एक देश में केवल एक ही टेप घुमाया जा रहा हो। 'हम टेप घुमाते हैं, आज न्यूयार्क में तो कल बोस्टन में। आपको यह बार -बार सुनना चाहिए ।' कागज पैन्सिल लेकर बैठ जाइए और स्वयं देखिए कि मैं क्या कह रही हूं। आपके पास हर टेप होना चाहिए इन भयंकर गुरुओं (अगुरुओं) के टेप आपको हर कार में, हर स्थान पर सुनने को मिलते हैं। उन सब लोगों के पास वो टेप हैं। क्या कारण है कि सहजयोगियों के पास मेरे टेप नहीं है? श्री विराट पूजा आश्रम में हमें समस्याएं नहीं खड़ी करनी चाहिए आश्रम आनन्द तथा शान्ति का स्थान होना चाहिए सामूहिकता में रह पाने में असमर्थ लोग किसी भी तरह से सहजयोगी नहीं है। सामूहिकता से भागने को प्रयत्नशील लोगों को जान लेना चाहिए कि उन्हीं में कुछ कमी है। दूसरों की (सहजयोगियों की) संगति का आनन्द उन्हें लेना चाहिए। दूसरों के सौन्दर्य से उन्हें आनन्दित होना चाहिए। उन्हें अन्य सहजयोगियों की चैतन्य लहरियों का आनन्द प्राप्त करना चाहिए। अपने लिए निजी वस्तुएं तथा सुविधाओं के विचार में प्रयत्नशील व्यक्ति अभी तक पूर्णतया परिपक्व नहीं हुए । सामूहिकता ही आपकी स्थिति का भलीभांति निर्णय करने का मापदण्ड है। बड़े होकर हम अपने व्यक्तिगत जीवन तथा निजी सुविधाओं की इच्छा करते हैं। इस प्रकार के जीवन में कोई आनन्द नहीं, यह आनन्द विहीन है। 'मैं सामूहिकता का कितना आनन्द लेता हूँ?' यही हर सहजयोगी के लिए अपने स्तर को देखने का मापदण्ड है। मैं दूसरों की संगति में ( सामूहिकता में) रहकर कितना आनन्दित होता हूँ? और अपना व्यक्तिगत-मेरा बच्चा, मेरा पति, मेरा परिवार, मेरा कमरा-मैं कितना चाहता हूँ? व्यक्तिगत उपलब्धियाँ चाहने वाले लोग अभी तक पूर्णत: सहजयोगी नहीं है। अभी तक वे अपरिपक्व हैं और जिस स्तर पर वे हैं, उसके योग्य नहीं हैं। १०.५.१९८७ 34 ey tio 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-34.txt New Releases Title Place Date Type Lang. DVD VCD ACD MP3 ACS सहजयोग में प्रगति 10h Feb 1981 15* Delhi 15 PP Н 17th Feb 1981 सार्वजनिक प्रवचन:ब्रह्म तत्व का स्वरुप Delhi 16 PP 16* 16th Aug 1982 301* This is the Resurrection time London SP 457 16th Feb 1985 PP Delhi 14* 14 भाग १, २ Н सहस्रार-आत्मा 16th Oct 1988 नवरात्रि पूजा : हमारे जीवन का लक्ष्य गुडिपाडवा पूजा : देवी की शक्ति का प्रादुर्भाव 20 SP 20* Pune Н 5th Apr 2000 2d May 2009 Noida Sp/Pu 204 23* 204* H Sahasrara Day 2009 - Cabella 302* Mu Mu Evening Program, Part I & II 21st Mar 1983 Birthday Puja : Overcoming Sydney SP 303* 79* 79 E the six enemies, Part-I & II 29th Feb 1984 Mahashivratri Puja : Detachment & Pandharpur SP 252 304* E 252* & Enlightenment of Brain 6th Feb 2000 Shivratri Puja SP E/H/M 458* Pune st 21 Mar 2001 Birthday Puja सार्वजनिक कार्यक्रम Delhi 218* 218 SP th 24 Mar 2003 Delhi 072* 284* 284 PP Н th 28" Aug 1973 Shri Krishna Puja 303 SP 303* Mumbai E 24h Jul 1979 London 305* 305 SP Seeking : What are we seeking nd 2 May 1985 9th Aug 1987 Nirananda, Part-I & II Vienna SP 321* 321 E Shri Vishnumaya Puja : Vishnumaya 323* New York SP 323 E & Electricity Part-I & II 11h Sep 1994 Shri Ganesh Puja : Religions, 95* SP Moscow 95 Innocence & Love 04th Jul 1993 Cabella 62* Sp 62 Guru Puja : Understand your own value 7th Jan 1983 Ganesh & Devi Puja-Part I & II SP/PU E/M 460* 306* Rahuri th Sahasrara Puja 5" May 2002 307* Cabella SP/Pu 235* 235 Sahasrara Puja सहजयोग से लाभ SP/PU E 7th May 2000 208 Cabella 308* 208* nd 2 Apr 1986 15th Feb 1981 Calcutta 011* 011 PP H तत्त्व की बात, भाग १ Delhi 012* 012 PP 23d Feb 1986 धर्म की आवश्यकता Delhi 049 PP 049* Н 3rd Dec 1993 सार्वजनिक कार्यक्रम Delhi Н 056* PP 056 Music Title Artist Code No. ACD/ ACS/ Sahasrara Day Evening Program at Cabella, - 2nd May 2009, Part-I & II Bhajan Sopari 157* Musical Evening at Ganapatipule Sahasrara Seminar -1st-5th May 2009 Anand Kakade 158* Haasat Aali Nirmal Aayi Pt.B Subramanian,S.Malini 159* Niranand Pt.B Subramanian 160* Maa Tere Charno Mein Sandeep Dalal 161* Diwali Puja Bhajans, 3rd Nov 1986 Delhi Sahaja Artist 162* Classical Musical Program, Chhindwada, 21ª Mar 2008, Part-I Pt.Arun Apte & Surekha Apte 163* Pt. Arun Apte & Surekha Apte Classical Musical Program, Chhindwada, 21ª Mar 2008, Part-II 164* प्रकाशक निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in 2010_Chaitanya_Lehari_H_III.pdf-page-35.txt मंने जो करुणी एवं प्रेम आपको प्रदान किया है उसे संचित कर दसरों को पहुंचायें। अन्यथा आप सड़े कर नष्ट हो जाएंगे। प्रेम और करुणा आपसे बहनी ही चाहिए। २८.७.१९८५