चैतन्य लहरी २ु हिन्दी जुलाई-अगस्त २०१० ा ० सए मैं एक साधारण सी सद्गृहस्थ पत्नी हूँ जिसके पास यह अनुपम शिल्प है। मैं आपकी शिक्षक हैँ। मैं आपकी अचेतना में प्रवेश करने में सक्षम हँ। Seeking & Rationality इस अंक में श्री गणेश पूजा ... ४ हमें दूसरों के लिए जीना है..... ८ सत्य की प्राप्ति ही सबसे बड़ी प्राप्ति है ...२० दुल्हनों को उपदेश दस धर्म... १९ भौतिक चिकित्सा और हृदय रोग .. ३३ ...१६ ० ३ २७ ३ १ राम श्री गणेश पूजा कळवा, ३१ डिसंबर १९९४ 4 প गो अ. जि हम लोग श्री गणेश पूजा करेंगे। श्री गणेश की पूजा करना अत्यावश्यक है। क्योंकि उन्हीं की वजह से सारे संसार में पावित्र्य फैला था। आज संसार में जो-जो उपद्रव हम देखते हैं उसका कारण यही है कि हमने अभी तक अपने महात्म्य को नहीं पहचाना। और हम लोग ये नहीं जानते कि हम इस संसार में किसलिए आये हैं और हम किस कार्य में पड़े हुए हैं, हमें क्या करना चाहिए? इस चीज़ को समझने के लिए ही सहजयोग आज संसार में आया हुआ है। जो कुछ भी कलियुग की घोर दशा है उसे आप जानते हैं। मुझे वो बताने की इतनी जरूरत नहीं है। परन्तु हमें जान लेना चाहिए कि मनुष्य जो है, धर्म से परावृत्त हो गया है। जैसे कि उसकी जो श्रद्धाएं थीं वो भी ऊपरी तरह से आ गयी। उसमें आंतरिकता नहीं। वो समझ नहीं पाता है कि श्री गणेश को मानना, माने क्या है? अपने जीवन में क्या चीज़ें होनी चाहिए। लेकिन ये बड़ा मुश्किल है। कितना भी समझाईये, कुछ भी कहिये लेकिन मनुष्य नहीं समझ पाता है कि श्री गणेश को किस तरह से हम लोग मान सकते हैं। गर वो एक तरफ श्री गणेश की एक आशीर्वाद से प्लावित है, Nourished हैं तो वो बड़े पवित्र हैं, ऐसा वो सोचते हैं। ऐसी बात नहीं। अगर आप बहुत इमानदार आदमी है तो ठीक है। लेकिन नैतिकता में अगर आप कम हैं तो गलत है। अगर आप संसार के जो कुछ भी प्रश्न है उसकी ओर ध्यान नहीं देते हैं, तो भी आपमें सन्तुलन नहीं है। और उनकी जो शक्तियाँ हैं वो अगर अपने अन्दर जागृत करना है तो वो कुण्डलिनी के ही द्वारा जागृत हो सकती है, दूसरा उसका और कोई रास्ता नहीं है। उनकी जो विशेष चार शक्तियाँ हैं, उसमें से जो और भी अतिविशेष हैं, वो है सुबुद्धि, सुज्ञता। ये शक्तियाँ हमारे अन्दर प्रज्वलित होने के लिए हमें चाहिए | कि हम कुण्डलिनी का जागरण करके अपने अन्दर के गणेश को सन्तुष्ट कर लें। गणेश की नाराजगी भी बहुत नुकसानदेह हो सकती है। उनका स्वभाव तो एक तरफ तो बहुत शान्त, बहुत ठण्डा और दूसरी तरफ, जब वो देखते हैं कि मनुष्य किस गलत रास्ते पर चल पड़ा है, तो उससे इस कदर नाराज़ होते हैं जैसे कि मैंने में तीन बार कहा था कि आप पुना गणेश जी की स्थापना करके उसके सामने ये गन्दे डान्स, डिस्को और ये सब गन्दे गाने गाईयेगा तो वो जरूर आप पर नाराज़ हो जाएंगे और भूकम्प होगा। और वही बात हुई। भूकम्प हो गया। अब आपको ध्यान देना चाहिए कि हम कौनसी-कौनसी गन्दी चीज़ों की ओर चलते हैं। पहले परदेसिओं को म्लेच्छ कहते थे। उनकी इच्छा सब मल की ओर जाती थी। लेकिन अब हम लोग भी म्लेच्छ हो रहे हैं। गन्दे-गन्दे गाने हमें अच्छे लगते हैं, गन्दे-गन्दे पिक्चर हम देखते हैं। गन्दे-गन्दे वार्तालाप करते हैं, जबान से गन्दी बातें करते हैं। ये सब गणेशजी को बिल्कुल पसन्द नहीं। हमारी भाषा शुद्ध होनी चाहिए। हमारे विचार शुद्ध होने चाहिए और हमारे शौक भी शुद्ध होने चाहिए। ये अब धीरे - धीरे अपने यहाँ आने लग गया है। इस तरह की जब हम अपने अन्दर भावना रखते हैं तभी हम अपनी इज्जत करते हैं। तभी हम सोचते हैं कि हमारी जिन्दगी का कोई महात्म्य है। हम कोई रास्ते पे पड़े हुए लोग नहीं है। हम भारतीय हैं। और भारत में जन्म लेने के लिए अनेक वर्षों की तपस्या चाहिए। अनेक वर्षों के पुण्य के बाद ही आप भारतवर्ष में जन्म लेते हैं । आपका जीवन ऐसी उछली चीज़ों के लिए नहीं है। ये समझने की कोशिश करनी चाहिए। इधर जाते हैं, सिद्धीविनायक, मैं देखती हूँ 3अ५ लाइन लगती है। पर आप गणेशजी के लिए क्या करते हैं? अगर आप लोग ये गन्दे काम पसन्द करना ना करें तो यह सब खत्म हो जाएगा। गन्दी जगह जाना, खाना खाना, गन्दी बातें करना ये सब चीज़ें अपने यहाँ बड़ी ही सामान्य तौर पर लोग करने लग गये हैं। मैं अभी देखती हूँ कि रास्ते पर खड़े-खड़े लोग खा रहे हैं कहीं-कहीं जा रहे हैं, गन्दी बाते कर रहे हैं, औरतों पे रिमार्कस् कर रहे हैं, गन्दी निगाह से देख रहे हैं। ईसा ने तो ऐसा कहा था कि, 'अगर आप आँख से दो बार किसी औरत की तरफ देखें तो अपनी आँख निकालकर एक फेंके। अगर आपने एक हाथ से कोई गन्दा काम किया है तो हाथ काट लें। मैने ऐसा कोई ईसाई देखा नहीं है अब तक जिसका आँख निकला हो या हाथ कटा हो। पर वो अपने को ईसाई कहते हैं, नाम भर, असली में तो नहीं। और हमारे देश में खास करके लिखा हुआ है कि सबमें एक ही आत्मा का वास है। वो किसी भी जाति-पाति का नहीं हो सकता। जात जो है मनुष्य के जन्म के अनुसार नहीं बनायी गयी थी, वो उसके कर्म के अनुसार बनायी गयी थी। और जो लोग जात को ले कर के और इतना महात्म्य देते हैं वो भारतीय हो ही नहीं सकते। इसलिए जानना चाहिए कि हम लोग कितने ऐसे काम करते हैं जो बिल्कुल धर्म के विरुद्ध में है। और जब हम ऐसा कार्य करते हैं तो हमारे अन्दर गणेश जी नाराज हो जाते हैं। गणेश जी का नाराज़ होना भी बड़ा ही गणेश जी का दुःखप्रद है। क्योंकि उनकी नाराज़गी से अनेक ऐसी बीमारियाँ हो जाती हैं। कि वो किसी तरह से, उसका कोई उपाय ही नहीं है, जिसको कि इनक्यूरेबल कहते हैं। ऐसी बीमारियाँ हमें हो जाती हैं। इसलिए गणेश जी को नाराज़ होना भी बड़ा ही दुःखप्रद हैं। क्योंकि हमेशा प्रसन्न रखना चाहिए। सबसे पहले तो इस पृथ्वी को, जो उनकी माँ है, उस पृथ्वी तत्व को, जिससे वो गढ़े हुए हैं उसको बहुत मान देना चाहिए। उनकी नाराजगी से पहले जमाने में, अभी होता होगा, कि उठने से पहले जब जमीन को पैर से छूते थे तो माँ से क्षमा माँगते थे कि 'तुझे मैं पैर से छूता हूँ, मुझे क्षमा करें।' इतना अनेक ऐसी बीमारियाँ हो जाती हैं ] हमारे यहाँ मान था। आजकल तो कोई माँ-बाप का ही मान नहीं रखता तो जमीन का कौन रखेगा। हर एक चीज़ को नमस्कार करना, हर एक के प्रति श्रद्धा में होना ये अपने देश का एक विशेष स्वरूप है। अब वो सब स्वरूप नहीं रहे। ना बच्चे माँ-बाप का मान करते हैं, ना पति पत्नी की पर्वा करते हैं, ना पत्नी पती की पर्वा करती है। कोई भी, संसार के जितने रिश्ते हैं वो बड़े मान- पान से चलने चाहिए और इस प्रकार नाना धर्म अपने देश में बताये गये। राष्ट्रधर्म बताया गया है। अब विलायती चीज़ें लेना, विलायती कपड़े लेना, विलायती डान्स करना और विलायती कन्सेप्ट, चीजें उठा लेना ये कोई बड़ी अकल की बात नहीं है। हम सिर्फ विलायती सीख सकते हैं। हम उन्हें सीखा सकते हैं क्योंकि अपनी संस्कृति इतनी उँची है वो भी श्री गणेश के आधार पर। खास कर इस महाराष्ट्र में अष्टविनायक बैठे हुए हैं। महागणेश बिठाये हुए हैं। और यहाँ पर इस कदर गन्दगी मैं देखती हूँ तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि लोग गये कि वो कहाँ बैठे हुए हैं। वो कहाँ आयें हुए हैं। तो अपनी आप इज्जत करें । अपने को आप समझें। जब आप भूल अपनी आत्मा को पहचानेंगे तो आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपके अन्दर अनेक शक्तियाँ हैं। पर वो शक्तियों को आपने जगाया नहीं। इसलिए दुनियाभर की गरीबी यहाँ, दुनियाभर की परेशानियाँ और दुनियाभर की गन्दगी आ गयी है। आवश्यक है कि श्री गणेश जी की पूजा जो हम बाह्य में करते हैं वो अंदर में भी करें। और देखें कि हम में गणेश जी के कौनसे गुण आये हैं और ऐसी कौनसी हमारी विशेषता है कि उनके आशीर्वाद से हम प्रसादित हो। ऐसे हमारे में गुण आने चाहिए। एक दूसरे की इज्जत करना, एक दूसरे का मान रखना ये सारी चीजें बतायी गयीं लेकिन सोचते हैं कि ये क्या? परदेस में ऐसा कौन करता है और परदेस में तो इतनी समृद्धि है। आजकल तो उनकी समृद्धि की हालत खराब हो गयी है। जिस चीज़ को समृद्धि समझते थे अब समझ गये कि वो कोई खास चीज़ नहीं और वो भी उसमें भी गिरे जा रहे हैं। उन लोगों की जो भी बातें हैं वो बड़ी बाह्य है। रास्ते उनके साफ-सुथरे हैं लेकिन दिल खराब है। उनके यहाँ जो-जो चीज़ें मैंने देखीं वो ये कि अन्दर बिल्कुल गरन्दगी है और बाह्य में दिखाने के लिए सब अच्छा है। और सारा इन्तजाम वहाँ पर बिगड़ने का है। कोई बच्चा अगर वहाँ जाए तो उससे शराब नहीं छूट सकती। उसको सिगरेट पिलायेंगे, उसको गन्दी जगह ले जाएंगे। डिस्को में ले जाएंगे, ये करेंगे, वो करेंगे इस कदर वहाँ गन्दगी है कि घोर-घोर कलियुग वहाँ बसा हुआ है। हम लोग सोचते हैं कि वो लोग बड़े सुख में हैं। माँ-बाप कहाँ से सुखी होंगे जिनके बच्चे ड्रग्ज लेते हैं। हम | लोगों को अगर ठीक रास्ते पर रहना है और अपने अन्दर के आनन्द को उठाना है, जो सबसे बड़ी हमारे पास सम्पत्ति है तो जरूरी है कि अपनी पावित्र्यता को बचायें। और अपने को बहुत ही समझबूझ करके अपना जो व्यवहार है वो एक शान से बिठायें। ये नहीं कि भिखारी बन के और गन्दगी से अपने को मलते रहें। हिन्दुस्थानियों की जो बड़ी प्रशंसा है, अभी एक मुझे चायनिज़ साहब मिले थे, तो कहने लगे कि, 'अच्छा तो यही वो सम्पदा है जिसके बारे में बहुत सालों से में सुना था, पढ़ा था कि हिन्दुस्थान अध्यात्म की सम्पदा बड़ी जबरदस्त है।' हम अध्यात्म की सम्पदा हैं इसमें कोई शक नहीं। पर उधर रुझान होनी चाहिए। रुझान तो, हम लोग म्लेच्छ हो गये हैं। मल की ओर ही हमारी इच्छा जाएगी । जो चीज़ हमें मलीन करेगी उधर ही हम दौड़ेंग । तो ये जो सुन्दरता अपने अन्दर है वो कैसे प्रगट होगी । वो कैसे दिखेगी। इसलिए जरूरी है कि श्री गणेश की पूजा करते वक्त आप ध्यान रखें कि आप अन्दर भी श्री गणेश की स्थापना कर रहे हैं। नहीं तो वो भी नाराज होने में बड़े कठिन हैं। उनको समझाना बहुत मुश्किल है वो किसी चीज़ को पवित्रता से ऊँचा नहीं मानते। उनके सामने कोई बहस नहीं चलती। उनको कोई चीज़ से समझाया नहीं जाता। उन्होंने जो पवित्रता के बन्धन बनाये हुए हैं, उसमें रहने से हमें भी सुख मिलता है और वो भी प्रसन्न रहते हैं। आप सबको अनन्त आशीर्वाद ! हमें दूसरों के लिए नीना है.... क जहाँ आपने जन्म लिया है वह आपकी भूमि है और वहाँ जन्मे लोगों का ही उसपर अधिकार है। २०/६/१९९९, कान्ना जोहारी, अमेरिका पी् आप सब लोगों को यहाँ एकत्र हुआ देखकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। शहरों की पागल भीड़ से बहुत दूर यह चैतन्य लहरियों से परिपूर्ण सुन्दर स्थान है। अमेरिका के एक बहुत मोटे अखबार के पन्नों में से अचानक मैंने यह स्थान छाँटा। चैतन्य लहरियाँ इस प्रकार फूट पड़ रहीं थी कि मैंने कहा यह क्या है? कहाँ से ये चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं? इसका विज्ञापन बहुत छोटा सा था परन्तु इसे देखकर मैंने कहा कि, 'यही वह स्थान है जहाँ हमें जाना है। विज्ञापन में भी इस स्थान में बहुत चैतन्य-लहरियाँ हैं। अत: आप कल्पना कर सकते हैं कि किस प्रकार पथ-प्रदर्शन प्राप्त होता है। चैतन्य लहरियाँ यह पथ-प्रदर्शन प्रदान करती हैं। इन्हीं के माध्यम से मैं यहाँ पहुँची और परमेश्वरी शक्ति ने यह स्थान चुना। यह सब एक ही दिन में घटित हुआ। ऐसे चमत्कारिक कार्य भी एक ही दिन में हो जाते हैं। स्थान खरीदने के लिए उन्हें बहुत समय लग रहा था। परन्तु अचानक मैंने बताया कि यह स्थान ले लें तो अच्छा होगा। ये सब कुछ हो गया और अब हम इस सुन्दर वातावरण में बैठे हैं। निश्चित रूप से आप जानते होंगे कि मूल भारतीयों (Red Indians) को खदेड़ दिया गया था और छुपने के लिए वे यहाँ आए थे। इस स्थान पर वे छुपे रहे ताकि उन्हें नष्ट न कर दिया जाए। वह युग अब समाप्त हो गया है लोगों को दास बनाकर उनकी भूमि में प्रवेश करके उस पर कब्जा कर लेना और इसे बहुत बड़ी बहादुरी मानने का युग। वह सब अब समाप्त हो गया है। मानवीय सूझ-बूझ अब बहुत ऊँची उठ गई है और लोग अब यह जानते हैं कि ऐसा करना गलत है और अपराध है। वे जानते हैं कि जो हमने किया था वो गलत था। ये अपराध करने वाले लोग तो अब जीवित नहीं हैं। | परन्तु उनके नाती-पोते-पड़पोतों को अब ये ची़ें अच्छी नहीं लगतीं क्योंकि किसी की भूमि को हथियाने का अधिकार उन्हें नहीं है। नि:सन्देह भूमि किसी की नहीं हो सकती, फिर भी जहाँ आपने जन्म लिया है वह आपकी भूमि है और वहाँ जन्मे लोगों का ही उसपर अधिकार है। परन्तु युग-युगान्तरों से इस प्रकार के आक्रमण होते रहे हैं। अब समय आ गया है कि आप इस प्रकार के दुस्साहस त्याग दें कि किसी की भूमि में घुसकर, किसी के घर में घुसकर उस पर कब्जा कर लें। अब मैं एक अन्य प्रकार का आक्रमण देख रहीं हूँ। अपनी बातचीत से, आक्रामक दृष्टिकोण से लोग अन्य लोगों के मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं उन्हें अपना दास बना लेते हैं। आधुनिक समय, मेरे विचार से ऐसा है जिसमें लोगों को उचित-अनुचित के विषय में सोचने की या उचित चीज़ों को अपनाने की भी स्वतन्त्रता नहीं है। आस-पास घटित होने वाली सभी चीज़ों को अपनाने के लिए लोग विवश हैं चाहें वे चरित्रहीन हो, चाहे विनाशकारी। व्यक्ति को यह सब स्वीकार करनी पड़ती है क्योंकि अभी तक मैं सोचती हूँ कि हमारे पास पर्याप्त संख्या में सहजयोगी नहीं हैं जो इन आधुनिक दुष्प्रवृत्तियों का विरोध कर सकें। एक अन्य प्रकार का आक्रमण भी है इसमें कुगुरु आक्रमण करते हैं विशेष तौर पर अमेरिका में। इस मामले में अमेरिका वास्तव में अभिशप्त हैं क्योंकि उसके पास धन है। इसलिए विश्व के सभी धूर्त यहाँ आए! कल्पना करें। केवल धन का होना ही आशीर्वाद नहीं है। यहाँ आकर इन सब धूतों ने वैभवशाली लोगों कुछ को और अपने लिए बेशुमार धन बनाया। इस प्रकार का शोषण अत्यन्त भयानक है, अधिक भयानक। बहुत लूटा क्योंकि इससे मस्तिष्क भ्रष्ट हो जाता है। मैंने देखा बहुत से लोग, बहुत से साधक पूरी तरह से भ्रष्ट हो गए। मुझे आशा है कि पुनर्जन्म लेकर वे आत्मसाक्षात्कार पा लेंगे। नि:सन्देह जिज्ञासा तो है परन्तु सभी प्रकार की बाधाएं और प्रलोभन भी हैं। इसलिए सारी जिज्ञासा, सच्ची एवं ईमानदार जिज्ञासा के बावजूद भी वे ऐसे चंगुलों में फँस गए कि मैं वर्णन भी नहीं कर सकती की ऐसा क्यों हुआ। परन्तु ऐसा हुआ। व्यक्ति को यह सब देखना चाहिए, यह आपको दयनीय और दुःखी बनाता है। परन्तु अभी भी बहुत से कुगुरु वहाँ पर हैं। आप भी वहाँ हैं, अब इसे देखें। इस अन्तिम निर्णय में उस स्तर से ०. ा उन्नत होकर आप इस नए स्तर तक पहुँचे हैं जहाँ, मुझे विश्वास है कि आप लोग अन्य लोगों को भी विश्वस्त कर सकेंगे। हर व्यक्ति कम से कम एक हजार लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे सकता है। और आप लोग तो इतनी अधिक संख्या में हैं। विश्व, जिसे हम अन्यथा नहीं बचा सकते, उसका यह बहुत बड़ा उद्धार होगा। अतः हमें समझना चाहिए कि दूसरे लोगों को बचाना अब सहजयोगियों का प्रथम कर्तव्य है। भिन्न स्थानों पर सहजयोग के बारे में बातचीत करना और सहजयोग कार्यान्वित करना। उदाहरण के रूप में, मैं आश्चर्यचकित हँ, कदाचार पीड़ित (Abused) बच्चों पर कार्य कर रहे हैं। भारत में हम लोग जेलों में, सेना में सहजयोग कार्यान्वित कर रहे हैं। आप भी इन सभी प्रकार की गतिविधियों में प्रवेश कर सकते हैं, सभी आक्रान्त स्थानों पर जाकर सहजयोग द्वारा उनकी रक्षा कर सकते हैं। सर्वप्रथम, में सोचती हूँ कि, पावनता पर आक्रमण हो रहा है। पवित्रता पर आक्रमण होना अत्यन्त भयानक है क्योंकि छोटी आयु में बच्चों को ये अन्तर्बोध हो जाता है कि उनका क्या होगा ? अत: हमें इन सब अबोध बच्चों के विषय में सोचना चाहिए कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं, किस प्रकार उनकी रक्षा कर सकते बहुत 10 हैं? किस प्रकार हम यह सब कार्यान्वित कर सकते हैं? स्वयं से ऊपर उठकर अन्य लोगों तक पहुँचना आपका कार्य होना चाहिए। ठीक है, आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है, स्वयं को आपने सुधार लिया है, स्वयं को आप पूर्णत्व की ओर ले जा रहे हैं, ये सब कुछ है परन्तु अब क्या होना चाहिए? किस उद्देश्य के लिए आपमें यह ज्योति प्रज्जवलित की गई, यह अन्य लोगों के लिए है। सहजयोगियों को अब दूसरों के लिए जीवित रहना होगा अपने लिए नहीं। उन्हें सारी शक्ति, सारा आश्रय, सारे आशीर्वाद प्राप्त हो जाएंगे। तो अब हमें दूसरे लोगों के लिए जीना है। किस प्रकार हम दूसरे लोगों के लिए जीए । यह बात बहुत सहज है। दूसरे लोगों के लिए चिन्ता, हर चीज़ के लिए सोच-विचार, पृथ्वी माँ के लिए चिन्ता, अपने पड़ोसियों के लिए चिन्ता तथा विश्वभर के दुःखी लोगों के लिए चिन्ता होनी चाहिए। आप यदि समाचार पत्र पढ़े तो हैरान होंगे कि किस प्रकार घटनाएं घटित हो रही हैं, किस प्रकार लोग कष्ट उठा रहे हैं? मूलत: हमें समझना चाहिए कि जब तक आन्तरिक परिवर्तन नहीं हो जाता तब तक इस विश्व को परिवर्तित नहीं कर सकते। आप सब लोग दूसरों में अन्तर्परिवर्तन ला सकते हैं। अत: लोगों में अन्तर्परिवर्तन लाना आपका कर्तव्य है, आपका कार्य है। उन्हें बताएं कि दिव्य प्रेम क्या है? प्रेम ही सहजयोग कार्यान्वित करने का एक मात्र मार्ग है। आक्रामकता के अन्धेरे को यदि आप गहनता से देखें तो बहुत से आशीर्वाद और से लोगों के विचार स्पष्ट हो जाएंगे। यह सागर है, महानता का सागर। यह दिव्य प्रेम इतना महान है, इतना शक्तिशाली है और इतना कोमल है। प्रकृति को देखें, किस तरह से पेड़ बढ़ते हैं? हर पत्ते को सूर्य की धूप प्राप्त होती है, हर पेड़ की अपनी ही स्थिति है। हमें प्रकृति से बहुत कुछ सीखना है क्योंकि प्रकृति उस प्रेम से बंधी हुई है। प्रकृति में आक्रामकता का पूर्ण अभाव है। यह पूरी तरह से परमेश्वरी प्रेम के वश में है। इस सूझ- बूझ के साथ आप समझे कि जब आप साधकों के पास जाते हैं तो आपका दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए? आपकी चाल-ढाल कैसी होनी चाहिए? किस प्रकार आपको उनसे बातचीत करनी चाहिए? किस प्रकार उन्हें समझना चाहिए? किस प्रकार अपना प्रेम अभिव्यक्त करना बहुत चाहिए यह बिल्कुल सम्भव है, यह कठिन नही है। आपको न तो डरना चाहिए न संकोच करना चाहिए। अत्यन्त मधुरतापूर्वक आप उनसे बातचीत कर सकते हैं, उन्हें समझा सकते हैं, बता सकते हैं। यही वक्त है जब ये घटित होना था। यही कारण है कि आदिशक्ति को आना पड़ा। उनके बिना यह सम्भव न होता। बहुत से अवतरण आए परन्तु वे किसी विशेष चक्र पर ही सीमित रहे और कुछ अन्य स्वयं को आस-पास के लोगों में स्थापित करने में ही लगे रहे। उन्होंने प्रयत्न किया, इसे कार्यान्वित किया। परन्तु वास्तविकता में यह भली-भाँति कार्यान्वित न हो पाया। अत: आदिशक्ति को आना पड़ा और वे सभी अवतरण भी उनके साथ आए। वे सब हमारे साथ हैं। वो सभी आपकी सहायता करना चाहते हैं। उनकी इच्छा है। कि हर अच्छा कार्य, जो आप करना चाहते हैं, उसके लिए ये पावन चैतन्य लहरियाँ आपके 11 आपा पश प्रदर्शन करने के लिए, आपी सहायता करने के लिए, आपको बल देने के लिए और प्रेम करने के लिए से चैतन्य लहरियाँ निश्चित रूप से आपके साथ होंगी। साथ हों। सहजयोग के सभी कार्यों के लिए ये चैतन्य-लहरियाँ, आपका पथ प्रदर्शन करने के लिए, आपकी सहायता करने के लिए, आपको बल देने के लिए और प्रेम करने के लिए ये चैतन्य लहरियाँ निश्चित रूप से आपके साथ होंगी। आप हैरान होंगे कि किस प्रकार लोग सहजयोग का कार्य आरम्भ करना चाहते हैं। सभी कोनों से किस प्रकार उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। अत: सब लोगों को अपने मस्तिष्क में निर्णय करना चाहिए कि उनके सभी स्वप्न साकार हों । से इसके लिए आपको समझना होगा कि सहजयोग का प्रसार करना ही आपके जीवन का लक्ष्य है। अब भी बहुत सहजयोगी मुझे लिखते हैं, 'श्रीमाताजी, मेरे साथ ऐसा हो रहा है, मेरे साथ वैसा हो रहा है, मेरे पिताजी ऐसे हैं, मेरी माताजी वैसी हैं,' इस तरह का दृष्टिकोण आपको समाप्त कर देगा। यह सब अब वास्तव में समाप्त हो गया है। पहले लोग मुझे इस प्रकार के पत्र लिखा करते थे। परन्तु अब मुझे लगता है कि वो यह सब त्याग रहे हैं। मैं नहीं जानती कि क्या हुआ है? यह ऐसा अद्वितीय समय है जब ये प्रकाश सर्वत्र फैल गया है। प्रकृति पूर्णत: आपके साथ है। आप देख सकते हैं कि प्रकृति किस प्रकार कार्य कर रही है और किस प्रकार आपकी सहायता कर रही है और आपको सम्भल देने के लिए प्रयत्नशील है। किस प्रकार आपके किये सभी कार्य करने को यह उद्यत है। यह बात महसूस की जानी चाहिए और समझी जानी चाहिए कि आप अत्यन्त विशिष्ट लोग हैं और आप सबको, एक दो को नहीं, सभी को पूर्ण सहायता प्राप्त है। केवल दस लोगों के झुण्ड को नहीं, सभी सहजयोगियों को। मानो पूरा सागर ही आपकी सहायता के लिए तैयार हो, डूबते हुए बहुत से लोगों को बचाने में आपको तैरा कर पार करने के लिए तैयार हो। आपने ऐसा सागर नहीं देखा है जहाँ इतनी गहनता है और जहाँ आनन्द के साम्राज्य में आपको मुरली बनाने के लिए, आपकी रक्षा करने के लिए सभी प्रकार के प्रयत्न किए जाते हैं । आपके साथ यह सब घटित हो चुका है क्योंकि इसका एक उद्देश्य है । ऐसा केवल आपके पूर्व -पुण्यों आदि के कारण नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि पूर्वजन्मों के सुकृत्यों के कारण हमें यह प्राप्त हुआ है। यह सच है। कारण ये भी हो सकता है कि उसके परिणाम स्वरूप अब आप लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने के योग्य हो गये हैं और अब यही कार्य आपने करना है। आप लोग जो इस बीहड़ (संसार) में आए हैं उन्हें इसकी कर्तव्य विमूढ़ता से ऊपर उठना होगा और सभी लोगों को आशीर्वादित करना होगा, विशेष तौर पर अमेरिका के लोगों को बार-बार आशीर्वादित करना होगा क्योंकि अमेरिका विराट है, क्योंकि यह श्री कृष्ण की भूमि है, क्योंकि लोग सदैव आपका अनुसरण करने और आपकी नकल करने का प्रयत्न करेंगे। पूर्व -पुण्य यदि आपके पास हैं तो नि:सन्देह चीज़ें सुधरेंगी। परन्तु अब इसके लिए कुछ कार्य करने के विषय में आपका क्या विचार है? क्यों न आप इसके लिए कुछ कार्य करें? यही अत्यन्त महत्वपूर्णतम | कार्य है। अब जो कार्य आपने करना है वह है केवल अपनी गतिविधियों का पता लगाना। आप क्या करते रहे हैं? पता लगाएं कि आपने क्या किया है और क्या कर सकते हैं? ध्यान धारणा करते हुए अपने विषय में सोचें। आप कितने उन्नत हुए हैं? आपने क्या कार्य किया है? अन्य लोगों को आपने क्या दिया है? जो कुछ आपको प्राप्त हुआ उसे यदि आप बाँटेंगे नहीं तो यह बढ़ेगा नहीं। यह मूल सिद्धान्त है जो कार्यरत है। मैंने देखा है कि कुछ लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं, बहुत अच्छे हैं, जो सहजयोग के विषय में सभी कुछ जानते हैं, परन्तु अभी तक उनमें आत्मविश्वास की कमी है या वे वांछित रूप से गहन नहीं हैं। यह सब हो पाना केवल तभी सम्भव है जब आप नए सहजयोगी बनाने में जुट जाएंगे; अपनी मशहरी के लिए उनके हित के लिए और मानव मात्र के हित के लिए अधिक सहजयोगी बनाने में जब आप लग जाएंगे | 13 ये विनाशकारी विचार हैं जो सारी अच्छाईयों को नष्ट कर देंगे । मुझे कहा गया था कि, 'अमेरिका आऊँ और यहाँ ठहरूं, ' इससे अमेरिका का सुधार होगा। तो मैं यहाँ आ गयी हू। मैं यहाँ आई, यहाँ ठहरी और निश्चित रूप से अपना पूरा चित्त यहाँ डाला क्योंकि अमेरिका बहुत महत्वपूर्ण, अत्यन्त महत्वपूर्ण चक्र है। और यह इतना महत्वपूर्ण देश कभी-कभी मूर्खता पूर्ण कार्य करता है। मैं नहीं कहती कि आप राजनीति में प्रवेश करें, नहीं। मैं नहीं कहूँगी कि आप किसी तरह का विरोध करें या विरोधी समूह बना लें, नहीं। परन्तु आपको यह जान लेना होगा कि आपमें शक्तियाँ हैं, आपके विचारों और इच्छाओं में भी शक्तियाँ हैं इनका परीक्षण करें । एक बार जब आप आजमाइश करेंगे तो आपको पता चलेगा कि इन चीज़ों पर आपके चित्त डालने से ही कार्य हो जाएगा। मुझे विश्वास है कि इससे कार्य हो जाएगा। यह देश निश्चित रूप से मानव मात्र का उद्धार करने में सहायक हो सकता है। परन्तु यह तो उल्टी दिशा में चल रहा है। कहने से मेरा अभिप्राय है कि अमरीकी संस्कृति मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आती कि क्या है? वे कहते कुछ और करते कुछ और हैं। परम्परागत इतने समय में बनाई और स्वीकार की गई उनकी मूल्य प्रणाली उचित नहीं है। उनकी मूल्य प्रणाली इतनी उलझी हुई है कि केवल सहजयोगी ही अपनी सहज प्राप्त महानता से इन लोगों की जटिलता को दूर कर सकता है। उनके विचार अत्यन्त अजीबोगरीब हैं। ये विचार आपको रोक न पाएं और न ही आपके मार्ग में बाधा बन सकें क्योंकि ये अत्यन्त मूर्खतापूर्ण हैं। ये विनाशकारी विचार हैं जो सारी अच्छाईयों को नष्ट कर देंगे । आपको समझ लेना चाहिए कि अमेरीका के सहजयोगियों की जिम्मेदारी अन्य सहजयोगियों से कहीं अधिक है क्योंकि परमेश्वरी शक्ति उन्हें अत्यन्त सक्षम एवं प्रभावशाली मानती है। परमेश्वरी शक्ति सोचती है कि अब आपको आगे बढ़कर बहत सा कार्य करना चाहिए। हमारे पास शक्ति भी है और मशीनरी भी। परन्तु मशीनरी यदि कार्य न करे तो शक्ति का क्या उपयोग है। वह बेकार है। अतः मशीनरी को कार्य करना चाहिए और यह कार्य कर रही है, यह फैल रही है। परन्तु हमें अपने प्रयत्नों को दुगना करना होगा। मैं यहाँ कुछ सामाजिक कार्य करने के विषय में सोच रही थी ताकि यह लोगों को प्रभावित कर सके। सूक्ष्म स्तर पर तो हमने कार्य किया है परन्तु अब हमें स्थूल स्तर पर भी कार्य करना होगा। सूक्ष्म स्तर पर तो हमने उपलब्धि प्राप्त की है, परन्तु हम अभी बहुत अधिक प्राप्त कर सकते हैं। इससे बाहर आकर हमें सोचना होगा कि सांसारिक स्तर पर हम क्या कर सकते हैं जिससे लोग देख सकें कि सहजयोग क्या है और हम लोगों के लिए | क्या कर सकते हैं। आपका व्यक्तिगत आचरण, सामूहिक आचरण, राष्ट्रीय आचरण सभी मिलकर वातावरण को परिवर्तित करेंगे-उस वातावरण का जो बनावटी है ताकि वह भी सूक्ष्म बन सके। यह बात मैं बहुत से स्थानों पर कहती रही हूँ। परन्तु इस पूजा में यह बात कहना महत्वपूर्ण है कि आप यदि वास्तव में आदिशक्ति के हैं तो आपको समझ लेना होगा कि आपकी शक्तियाँ अनन्त हैं। आपको वह शक्तियाँ दर्शानी होंगी। ये जड़ नहीं हैं, यह तो एक आन्दोलन है जो कि अच्छे प्रकार का है। ये जानता है कि कहाँ प्रवेश करना है और किस प्रकार करना है। अब इस स्थान को ही देखें। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मैं इस स्थान के विषय में सोच भी सकती थी? मेरे मन में इतना अवश्य था कि यहाँ कहीं हमें कोई स्थान लेना चाहिए क्योंकि अमेरिका के सहजयोगियों के पास ध्यान के लिए कोई स्थान नहीं सम्मुख | है। बस, इतना ही। अब देखो कि किस प्रकार हमें यह स्थान मिल गया है। परन्तु आपके सूक्ष्म स्तर पर यह सब करने की इच्छा आप में होनी चाहिए तब यह कार्य करता है, जादू की तरह से कार्य करता है। मैं अब आपको बता दूँ कि स्वयं पर विश्वास करें और इसके विषय में फैसला कर लें। मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि इतनी आसानी से ये सब प्राप्त हो गया , विश्वास नहीं होता, इतनी आसानी से कि कोई अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी। जिस प्रकार हमें ये भूमि मिल गई ये सब इतना 14 প हा इ सहज था मानो बेचने वाला भी कोई सहजयोगी हो । बड़े जोश में वह आया, यह भूमि हमें बेची और समाप्त। न तो हमें उसे कुछ समझाना पड़ा और न ही कीमत कम करने के लिए कहना पड़ा, कुछ भी नहीं और उसने ये भूमि हमें बेच दी। इसी प्रकार सूक्ष्म स्तर पर जिस चीज़ की भी इच्छा आप करते हैं तो आपकी इच्छा महान शक्ति बन जाती है। और स्वयं कार्य करने लगती है। ये जानती है कि कहाँ जाना है, किस प्रकार प्रवेश करना है और किस क्षेत्र में और यह कार्य को करवा लेती है। इस शक्ति का अनुभव आप सब लोगों को करना चाहिए और पूर्ण विश्वास के साथ इसे कार्यान्वित करना चाहिए। यह हमारा प्रेम है, हमारी चिन्ता है। इसी शक्ति ने हमें आत्मसाक्षात्कार दिया है और इसी ने उपलब्धियों का वैभव हमें प्रदान किया है । मुझे विश्वास है कि यहाँ उपस्थित आप सभी लोगों ने इस बात को महसूस किया होगा कि यह सब किस प्रकार घटित हुआ और कितनी शीघ्रता से। यह हमें विश्वस्त करेंगी कि हममें क्या करने की शक्ति है? क्या उपलब्धि पाने की योग्यता हममें है? और जब अज्ञानान्धकार में खोए इतने लोगों के विषय में जब आप सोचते हैं तो हमें वास्तव में अपने अन्दर वह चिन्ता और वह तड़प देखनी चाहिए कि किस प्रकार इनकी सहायता कर सकता हूँ। आप हैरान होंगे कि एक बार जब आप इस प्रकार सोचने लगेंगे तो यह दिव्य शक्ति आपकी सहायता के लिए आती है। छोटी-छोटी चीज़ों और समस्याओं को भुला दें। आपके पीछे इतनी महान शक्ति है। ये सच है कि ये पूरा ब्रह्माण्ड और सभी कुछ सृजन करने के पश्चात् महानतम कार्य जो इस दिव्य शक्ति ने किया वह है सहजयोगियों का सृजन। यह महानतम कार्य है। जिनमें यह मैं आपकी सृष्टि की गई। और यह सब कार्य हुआ। परन्तु ज्ञान है, यह शुद्ध ज्ञान है, जिनके हृदय में परमेश्वरी प्रेम है, ऐसा व्यक्ति कितना महान है! केवल इसके विषय में सोचे और आपको वह प्रेम अभिव्यक्त करने के सभी अवसर प्राप्त हो जाएंगे । परमात्मा आपको धन्य करें। 15 रा ১ ० ्र दुल्हना को उपदेश दिल्ली, २३ मार्च २००० कर 28 ह oicp.cop.co.cp.co.cp.co.co.cco.cm आप सब लोगों को इतने सुन्दर वस्त्रों में सुसज्जित देखकर बहुत अच्छा लगा। मैं आपको बताना चाहती हूँ आपका विवाह सहजयोगियों से हो रहा है। यह बात आपने सदैव याद रखनी है। आजकल हम देख रहे हैं कि सहजयोग में भी विवाह टूट रहे हैं तथा ऐसा बहुत कुछ हो रहा है। परन्तु कभी-कभी तो केवल एक प्रतिशत ही विवाह टूटते हैं, सफल नहीं हो पाते। इसका कारण ये है कि वे सहजयोगी होने की अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझते हैं । इसलिए मैं चाहती हूँ कि आप सब लोग सदैव याद रखें कि आपका विवाह एक सहजयोगी से हुआ है और सदैव इस बात को याद रखें। आप उसका सम्मान करें, उसकी देखभाल करें और उसे प्रेम करें। हो सकता है कि कभी वह थोड़ा बहुत असन्तुलित हो जाए। बड़ी ही शान्ति से आपने उसे वापिस सन्तुलन में लाना है। सहजयोगियों के समाज को सुरक्षित रखना आपकी जिम्मेदारी है। लोग आपके घर में आएंगे, सहजयोगी, उनकी पत्नियाँ, बच्चे। आपको उनकी देखभाल करनी होगी क्योंकि आप ही सहजयोगी समाज की कार्यभारी हैं, हो सकता है आप बहत धन कमाती हो, बहत ही अच्छी स्थिति में हों। परन्तु सदैव आपको ये बात समझनी चाहिए कि आपने सहजयोग चालू रखना है। यह बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है। यह सहजयोग समाज को सुरक्षित रखता है। अत: सभी को प्रेम करें, सभी की देखभाल करें । कभी न सोचें कि यह आपका निजी घर है और आप वहाँ की साम्राज्ञी हैं। आप माँ हैं, बहन हैं और सहजयोगियों की सभी प्रकार से सम्बन्धी हैं। अत: जब भी वे आपके घर में आएं उनके प्रति पूर्ण सम्मान दिखाएं। अपने पति से कभी उनकी शिकायत न करें, उसे अच्छा नहीं लगेगा । सदैव याद रखें आपका धैर्य, आपका प्रेम, आपका पथ प्रदर्शन निश्चित रूप से आपके विवाहित जीवन को संवारेगा। आप यदि प्रसन्न रहना चाहती हैं तो आपको जानना होगा कि अन्य लोगों को किस प्रकार प्रसन्न रखें। दूसरों को यदि आप प्रसन्न नहीं रख सकती तो स्वयं भी कभी प्रसन्न नहीं हो सकतीं। अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं और अपने ही विचारों के विषय में नहीं सोचना चाहिए। सभी कार्य अत्यन्त शालीनता से करने चाहिए क्योंकि आप भद्र महिला हैं। आपकी शैली अत्यन्त शालीन होनी चाहिए। किसी पर आपको न तो चिल्लाना चाहिए न ही क्रोधित होना चाहिए और न ही किसी के साथ दुर्व्यवहार करना चाहिए । मैं तुरन्त जान जाती हूँ कि कठोर गृहणी कौन सी है? लोग मुझे बताते हैं कि श्रीमाताजी वह अजीब औरत है, लोगों से व्यवहार करना भी नहीं जानती। ऐसी बातें मैं सुनना नहीं चाहती। मैं सुनना चाहती हूँ कि आप बहुत ही मधुर और अच्छी पत्नी हैं जो अपने पति और सहजयोग परिवार की देखभाल करती है। आपका यही कार्य है। इसमें अपमानित महसूस करने की कोई बात नहीं। सहजयोग में आपको ऐसा ही करना है। इसी कारण से आप इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं। आप नहीं जानती कि महिला की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, इतनी महत्वपूर्ण कि वह पूरे परिवार को एक सुन्दर बगिया में परिवर्तित कर सकती है। अपने माधुर्य से, अपने प्रेममय सृजनात्मक मस्तिष्क से वह ये कार्य कर सकती है। अपनी प्रेम की कला को खोज निकालें और इसका उपयोग उन पर करें जो परेशान हो या नाराज हो या बिगड़े हुए हो। आप ऐसा कर सकती हैं । उस व्यक्ति को शान्त करना तथा उसे प्रभावित करना आपको आना चाहिए । 17 যে कতি चारित्रिक उदारता आपका प्रथम गुण होना चाहिए। किसी को यदि किसी चीज़ की आवश्यकता है तो आपको चाहिए कि उसे वो दे दें । तब आपको अपनी उदारता का आनन्द आएगा। दूसरे लोगों को क्षमा करते हुए भी आप लोगों को उदार होना है। क्षमा बहुत ही महत्वपूर्ण है, इससे आपको अपना विवाहित जीवन बोझिल नहीं लगेगा । क्षमा करें, स्वयं को भी क्षमा करना। किसी भी चीज़़ के लिए स्वयं को दोषी न माने, क्योंकि आप भी तो सहजयोगी हैं। आपसे भी यदि कोई गलती हो गई है तो कोई बात नहीं। परन्तु आपमें माधुर्य होना चाहिए। एक पत्नी का माधुर्य जो दूसरे लोगों को भी प्रेम एवं शान्ति प्रदान कर सके। आपको न तो रौबीला होना है और न तो आक्रामक, बिल्कुल भी नहीं । इसके विपरीत आप लोग तो बहुत कुछ सहन कर सकते हो और किसी मूर्खता को मज़ाक में परिवर्तित कर सकते हो । कोई भी चीज़ इतनी गम्भीर नहीं होती कि उसके लिए झगड़ा किया जाए। ये सब बाते तो हँसने के लिए होती है। प्रसन्नचित्त होकर आपको सदा मुस्कराते रहना है। आपका विवाह आपके लिए, आपके पति के लिए, सभी सहजयोगियों के लिए बहुत सुन्दर साबित होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि आपके विवाह यदि सफल होंगे तो आपको अत्यन्त सुन्दर जन्मजात साक्षात्कारी बच्चे होंगे। अत: आप अपने बच्चों तथा अन्य बच्चों के लिए बहुत अच्छी माताएं साबित होंगी। ये सब भविष्य के गर्भ मे आपके लिए निहित है । मैं मुझे पूरा विश्वास है कि आपके विवाह यदि सफ़ल हीगे तो आपको अत्यन्त सुन्दर जनमजात जानती हूँ कि आप सब अपने आगामी जीवन का बहुत आनन्द लेंगी और इसे साक्षात्कारी इतना सुन्दर बनाएंगी कि सभी लोग कहेंगे इन सहयोगिनियों को देखो, ये कितनी महान हैं। इनके जीवन कितने खुशहाल हैं। हमें अपनी गलतियों पर चित्त देना चाहिए, दूसरों पर नहीं। लोगों में स्वयं को सुधारने की योग्यता है। आप केवल इनके हित की इच्छा करें और उनके प्रति अत्यन्त स्नेहमय एवं विनम्र हों । मुझे विश्वास है कि आप सब इतने अच्छे परिवार बना सकते हैं जो देखने में नहीं आते। अत: परिवार में पति के बारे में या किसी अन्य के बारे में पति से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए । स्वयं को इतना मधुर बनाएं कि सभी लोग आपका प्रेम एवं पथ प्रदर्शन पाना चाहें और इसके लिए आपके पास आएं। मुझे आशा है आप ऐसा कर सकते हैं । बहत सी सहजयोगिनियों ने मेरा नाम रोशन किया है, उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया है। आपसे भी मैं यही आशा करती बुते होंगे । हं परमात्मा आपको धन्य करें। 18 १nc दस धर्म शी ६ ९ मार्च १९७९ नाभि में ही विष्णुजी का जो स्थान है, और विष्णु या जिसे हम लक्ष्मी, उनकी जो शक्ति मानते हैं-इसी में हमारी खोज होती है। जब हम अमीबा में रहते, तो हम खाना खोजते थे | जरा उससे बड़े जानवर हो गए तो और कुछ शुरू खाना पीना और संग-साथी ढूँढते हैं। उसके बाद हम इन्सान बन गए तो हम सत्ता खोजते हैं। हम इसमें पैसा खोजते हैं। बहुत से लोग तो खाने-पीने में मरे जाते हैं।...... .....जब ये स्थिति मनुष्य की आ जाती है-जब उसकी सत्ता खत्म हो गई, जब उसको समझ में आया कि सत्ता में नहीं रहा, पैसे में नहीं रहा, किसी चीज़ में उसे वह आनन्द नहीं मिला, जिसे खोज रहा था, तब आनन्द की खोज शुरू हो जाती है। वो भी नाभि चक्र से ही होती है। इसी खोज के कारण आज हम अमीबा से इन्सान बने। और इसी खोज के कारण, जिससे हम परमात्मा को खोजते हैं, हम इन्सान से अतिमानव होते हैं। 'आत्मा' को पहचानते हैं। आत्मा को पहचानते हैं-इसी खोज से। इसलिए लक्ष्मी-तत्व बहत जरूरी चीज़ है । | और लक्ष्मी-तत्त्व जो बैठा हुआ है, उसके चारों तरफ धर्म है । मनुष्य के दस धर्म बने हुए हैं। अब आप आधुनिक हो गए तो आप सब धर्म उठाकर चूल्हे में डाल दीजिए, भई आप आधुनिक हो गए, क्या कहने आपके! लेकिन ये तो आपके अन्दर दसों धर्म हैं ही। ये स्थित हैं, ये वहाँ हैं। अगर मनुष्य के दस धर्म नहीं रहे, तो वो राक्षस हो जाएगा। जैसे ये सोने का धर्म होता है कि ये खराब नहीं होता, इसी तरह से आपके अन्दर जो दस धर्म हैं, वो आपको बनाए रखने हैं-जो मानव धर्म हैं। अगर इन धर्मों की आप अवहेलना करें-और उसके उपधर्म भी हैं-तो आपका कभी भी उद्धार नहीं हो सकता, कभी भी आप पार नहीं हो सकते। पहले , जब तक आप धर्म को नहीं बनाते हैं, तब तक आप 'धर्मातीत' नहीं हो सकते - धर्म से ऊपर नहीं उठ सकते। पहले इन धर्मों को बनाना पड़ता है और इसलिए इन गुरुओं ने बहुत मेहनत की, बहुत मेहनत करी है इनकी मेहनत को हम लोग बिल्कुल मटियामेट कर रहे है, अपनी अक्ल की वजह से । सब इसको खत्म कर रहे हैं। 'इन धर्मों को बनाना हमारा पहला परम कर्तव्य है।' 19 सत्य की प्राप्ति ही सबसे बडी प्राप्ति है २५ और २६ मार्च २००१, दिल्ली ॐा सत्य को खोजने वाले और जिन्होंने सत्य को खोज भी लिया है , ऐसे सब साधकों को हमारा प्रणाम्। दिल्ली में इतने व्यापक रूप में सहजयोग फैला हुआ है कि एक जमाने में तो विश्वास ही नहीं होता था कि दिल्ली में दो-चार भी सहजयोगी मिलेंगे। यहाँ का वातावरण ही ऐसा उस वक्त था कि जब लोग सत्ता के पीछे दौड रहे थे और व्यवसायिक लोग पैसे के पीछे दौड़ रहे थे। तो मैं ये सोचती थी कि ये लोग अपने आत्मा की ओर कब मुडेंगे। पर देखा गया कि सत्ता के पीछे दौड़ने से वह सारी दौड़ निष्फल हो जाती। थोडे दिन टिकती है। ना जाने कितने लोग सत्ताधारी हुए और कितने उसमें से उतर गये। उसी तरह जो लोग धन प्राप्ति के लिए जीवन बिताते हैं उनका भी हाल वही हो जाता है। क्योंकि कोई सी भी चीज़ जो हमारी वास्तविकता से दूर है उसके तरफ जाने से अन्त में यही सिद्ध होता है कि ये वास्तविकता नहीं है। उसका सुख, उसका आनन्द क्षणभर में भंगूर हो जाता है। और इसी वजह से मैं देखती हूँ दिल्ली में इस कदर लोगों में जागृति आ गई है। ये जागृति आपकी अपनी संपत्ति है। ये आपके अपने शुद्ध हृदय से पाये हुए, प्रेम की बरसात है। इसमें ना जाने हमारा लेना देना कितना है। इसमें समझने की बात ये है कि अगर आपके अन्दर ये सूझबूझ नहीं होती, तो इस तरह से ये कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। इसमें एक चीज़ समझना है कि अनेक सन्तों ने इस देश में मेहनत की है। हर एक के घर-घर में उनके बारे में चर्चा होती है। और उन सन्तों के बारे में बहुत कुछ मालुमात बुजुर्गों को तो है पर बच्चों को भी हो जाती है। धीरे -धीरे ये बात जमती है कि आखिर ये लोग ऐसे कौन थे जिन्होंने इतना परमार्थ साध्य किया। पता नहीं कैसे इतने व्यावसायिक लोग जिनका सारा ध्यान रातदिन पैसा कमाने में, सत्ता कमाने में जाता है। वो मुडकर सहजयोग में आ गये। क्योंकि उनकी जो वह खोज थी उसमें | आनन्द नहीं था। उसमें नहीं था। शान्ति नहीं थी। किसी प्रकार का विशेष जीवन नहीं था। जब सुकून मनुष्य ये पता लगा लेता है कि उसके अन्दर कोई ऐसी वास्तविक आनन्द की भावना आयी है, न ही उसने उस सुख को पाया, जिसके लिए वह इस संसार में आया। ना जाने कैसे एक ज्योत से दूसरी ज्योत जलती गयी और आज मैं देखती हूँ कि यहाँ हजारों लोग उपस्थित हैं जिन्होंने अपने अन्दर की अन्तरात्मा को पहचाना है। सबसे पहले जान लेना चाहिए कि हमारे अन्दर जो बहुत सी त्रुटियाँ हैं, उसका कारण है कि हम लोगों ने धर्म को समझा नहीं है। जो धर्म मातंडोंने बना दिया, हमने उसी को सत्य मान लिया। कुछ उन्होंने कहा कि आईये कुछ अनुष्ठान करिये। यहाँ कुछ पूजापाठ करिये और कुछ इस तरह की चीजें बनायी गयी। मुसलमानों को भी इस तरह से पढ़ाया गया कि तुम अगर इस तरह से नमाज़ पढ़ो, और इन मुल्लाओं के कहने पे चलो तो तुम्हें मोक्ष मिल जाएगा। अब मनुष्य सोचने लगा कि ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। ऐसी तो कोई प्राप्ति हुई नहीं। फिर ये है क्या ? फिर हम ये कर्मकाण्ड क्यों करें? ये कर्मकाण्ड हमें गहरे अन्धकार में ले जाते हैं। हम लोग सोचते हैं कि उस कर्मकाण्ड से कुछ पाएंगे तो हमने बहुत कुछ पाया नहीं। जन्मजन्मान्तर से लोगों ने कितने कर्मकाण्ड किये हैं। उन्होंने क्या पाया? अब पाने का ा ा सत्य की प्राप्ति यही सबसे बड़ी चीज है समय भी आ गया है। आज इस कलियुग में ये समय आ गया है, ऐसा आ गया है कि आपको सत्य प्राप्त हो। सत्य की प्राप्ति यही सबसे बड़ी चीज़ है और सत्य ही प्रेम है। और प्रेम ही सत्य है। उसके ओर आप जरा विचार करें कि हम साधकों को खोजते हैं तो सोचते हैं कि हम सन्यास ले लें, हिमालय पे जाएं। अपने बाल मुण्डवा लें और इसी तरह की चीजें करें। जब सत्य का वास अन्दर है तो बाह्य की चीज़ों से और उपकरणों से क्या होने वाला है। इससे तो मनुष्य सत्य को नहीं पा सकता। क्योंकि इसके साथ कोई सत्य लिपटा ही नहीं है। तो करना क्या है? करना ये है कि आपके अन्दर जो सुप्त शक्ति कुण्डलिनी की है, उसको जागृत करना है। अब 'कुण्डलिनी की शक्ति आपके अन्दर है या नहीं ऐसी शंका करना भी व्यर्थ है। हर एक इन्सान के अन्दर त्रिकोणाकार अस्थी में कुण्डलिनी की शक्ति है। और उसे जागृत करना बहुत ही जरुरी है जिससे कि आप उस चीज़ को आप प्राप्त करें जिसे मैं कहती हूँ, 'सत्य', 'वास्तविकता' । सबने कहा है कि, 'अपने को जानो, अपने को पहचानो।' लेकिन कैसे ? हम तो अपने आपको जानते नहीं है। ना जाने अन्दर से हम कितने त्रुटियों से भरे हुए हैं। लोभ, मोह, मद, मत्सर सब तरह की चीज़ें हमारे अन्दर है। और हम यह समझ नहीं पाते कि कहाँ से ये सब चीजें आ रही है, जो हमें इस तरह से ग्रसित की हई है। इस चीज़ को अगर आप ध्यान से समझे कि एक बात है कि ये त्रुटियाँ सब बाह्य की है। आत्मा शुद्ध निरन्तर है। उसके ऊपर कोई भी तरह की लांछना नहीं है। और जब आई है तो ये किसी वजह से आयी होगी। हो सकता है कि आपकी परम्परागत आई होगी। पूर्वजन्म से आयी, माँ-बाप से आयी, समाज से आयी, ना जाने कहाँ-कहाँ से ये सब चीज़ आपके अन्दर समाविष्ट हई। अब इसके पीछे खोजते रहे कि ये कहाँ से आयी, इससे अच्छा है कि इसको नष्ट करें। ये हमारे अन्दर जो खराबियाँ हैं यही नष्ट हो जाएं तो फिर क्या हम एक शुद्ध चित्त बन जाते हैं। इसकी व्यवस्था जिस परमेश्वर ने आपको बनाया उसने की है। अब आपके अन्दर इतनी स्वतन्त्रता है कि आप अपने को पहचानने के लिए जो सर्व सिद्ध प्रक्रिया है उसे अपनाये और वह प्रक्रिया है कुण्डलिनी जागरण की । मैं यह बात कह रही हूँ ऐसी बात नहीं है। अनादि काल से इस भारत वर्ष में कुण्डलिनी की और कुण्डलिनी जागरण की बात की गयी है। हाँ, हालांकि उस वक्त ये कुण्डलिनी का जागरण बहुत कम लोगों को प्राप्त हुआ था और बहुत मुश्किलें होती थी। लेकिन इसका भी समय आ जाता है कि ये 22 ० और सत्य ही प्रेम है। और प्रेम ही सत्य है। सामूहिक हो जाए। और आज यही बात है कि उस सामूहिक स्थिति में आपने कुण्डलिनी का जागरण हैं और जब आपके पाया है। अब आप इस सामूहिक स्थिति में कुण्डलिनी के जागरण से प्लावित हुए अन्दर एक विशेष रूप का चैतन्य स्वरूप प्रकट हुआ है, उस वक्त आपने ये सोचना चाहिए कि वास्तविक में मैं तो ये हूँ और आज तक ना जाने किस चीज़ के पीछे भ्रामकता में मैं जा रहा था।' ये सब होता गया। आपके अन्दर जमता गया, बनता गया। और ये सब आपके दुर्बुद्धि, सुबुद्धि और ना जाने किस चीज़ से झुँझता गया। सबसे बड़ी बात ये है कि हमने अगर अपने को पहचानना है तो सर्वप्रथम हमारा सम्बन्ध चारों तरफ फैली हुई इस चैतन्य सृष्टि से होना चाहिए। चैतन्य से एकाकारिता प्राप्त होनी चाहिए। और उसके लिए, चैतन्य से एकाकारिता के लिए कुण्डलिनी ही और कोई मार्ग नहीं। कोई कुछ भी बतायें और कोई मार्ग है ही नहीं। उसका मार्ग है। लेकिन लोग आपको भुलावे में डालते हैं और लोग भटकने लगते हैं। मैं एक बार एक गुरुजी का प्रवचन सुन रही थी तो उन्होंने शुरू में ही गालियाँ देना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा 'आप लोग विकृत हैं'-माने गाली हो गयी और आपके जो तरीके हैं उसमें आप भगवान को नहीं खोज रहे हैं। आप प्रवृत्ति | मार्गी हैं, आप हर एक चीज़ के तरफ दौड़ते हैं। ये तो बात सही है। आप इस तरफ से, उस तरफ से दौडते हैं और दौड़ के आप उसमें खो जाते हैं। इस दौड में इस तरह के प्रवृत्ती में हमारी सारी ही शक्ति नष्ट हो जाती है। आज ये चाहिए, तो कल वह चाहिए, परसो वह चाहिए। तो भाग रहे हैं इधर से उधर, उधर से उधर। अब ये जो उन्होंने गाली बक दी कि आप प्रवृत्ती मार्गी हैं, मान लेते हैं कि अच्छा हम प्रवृत्ती मार्गी हैं और वो दूसरे के लिए कहते हैं आप निवृत्ती मार्गी नहीं है। तो आप क्यों आत्मा को प्राप्त कर रहे हो? अगर आप निवृत्ती मार्गी हैं मतलब आपकी वृत्ती इधर-उधर नहीं दौडती तो आप आत्मा को पा सकते हैं। अब पहले ही इस तरह की कठिन समस्या उपस्थित कर दी किे सर्वसाधारण मनुष्य अपने को सोचेगा कि हाँ भाई, मैं तो हूँ प्रवृत्ति मार्गी। तो वो कहेंगे, 'ठीक है आप गुरुओं की सेवा करो उनको पैसा दो, उन पे मेहनत करो, ये कर्मकाण्ड करो, इधर पैसा लगाओ, उधर पैसा लगाओ और जिस तरह | से हो सकता है तुम सब कुछ अपना परमेश्वर को दे दो, उसके बाद सन्यास ले लो।' अब आपको ये बात समझ में आ जाती है। भाई, ये आसान चीज़ है। पर ये अंधों की बात है। अच्छे भले आँख होते हुए कोई अगर कहें भी कि तुम अंधे हो तो कैसे मान लेना चाहिए। कोई कहेगा कि आप प्रवृत्ती मार्गी हैं, तो क्या उसे मान लेना चाहिए? अगर आपके अन्दर निवृत्ती नहीं है - ऐसा उनका कहना है- तो आप 23 ड 7USTAM ज्ञानमार्ग-मतलब सहजयोग में नहीं आ सकते! इस तरह की एक भाषा ये लोग व्यवहार में लाते हैं। और उससे सर्वसाधारण जनता ये कहती है कि हमारे लिए ये ठीक है कि गुरुओं की सेवा करनी चाहिए। उनको सब दो, उनको सब समर्पण दो। इस तरह की हमारे अन्दर जो एक गलत धारणा बैठ जाती है और हम उसे मान भी लेते हैं क्योंकि हमारे अन्दर ये विश्वास ही नहीं है कि हम कभी अपने आत्मा को पा सकते हैं? और जिससे हम अपनों को जान सकते हैं। यहाँ आज बहत सारे लोग बैठे हैं। जिन्होंने कुण्डलिनी का जागरण और उसकी विशेषताओं से पूर्णतया अपने जीवन को प्रफुल्लित किया हुआ है। और आप लोग सभी इस प्रकार इस चीज़ को पा सकते हैं । आपमें कोई कमी नहीं है। कोई कमी नहीं । ये शक्ति आप सबके अन्दर है। आपने कुछ भी किया हो , आपने कोई भी गलत काम किया हो, आप परमात्मा के विरोध में भी खड़े हो, चाहे कुछ भी किया हो, ये कुण्डलिनी तो अपनी जगह बैठी हुई है। और जब कोई उसको जगाने वाला आएगा तो वह जग जाएगी। और ये जो बाह्य की चीजें हैं, जिसको हम प्रवृत्ती कहते हैं, ये जो आपके अन्दर षड्रिपू हैं, एकदम झड़ जाएंगे । जब आप देखते हैं कि कोई बीज आप माँ के उदर में डालते हैं तो अपने आप प्रस्फुटित होता है। बीज में तो कुछ नहीं दिखाई देता। पर वह जब माँ के पेट में जाता है तो अपने आप प्रस्फुटित होता है। इतना ही नहीं पर उसके अंग प्रत्यंग में जीवन आ जाता है। उसी प्रकार कुण्डलिनी के जागरण से आप जागृत हो जाते हैं। और आपके अन्दर की जो वृत्तियाँ जो नाशकारी है, गलत है, अपने आप झड़ जाती है। ये बड़ा आश्चर्य का विषय है। किन्तु ये ऐसे बड़े आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि ये घोर कलियुग है और इसके प्रताप से ना जाने कितने लोग झुलस गये। और अब इसी कलियुग में यह कार्य होने वाला है और इसी कलियुग में आप इसे प्राप्त करने वाले हैं। और उस परमतत्व को आप प्राप्त करने वाले हैं, जो आपके अन्दर से आत्मा स्वरूप विराजित उसके प्रकाश में आप अपने को जानेंगे। आप जानेंगे कि आपके अन्दर कौन-कौन से दोष बीत गये। और अब आप शुद्ध चित्त वाले , आत्मास्वरूप हो गये हैं। इसको जब आप जान लेंगे कि यह स्थिति है और यही सच्चाई है तो जितनी झूठी बाते हैं, आप उसे छोड देंगे । उससे क्या फायदा है? किसी भी झूठी बात को साथ लेकर के आप कहाँ जा सकते हैं? पर तब तक झूठ नहीं दिखाई देता जब तक आपकी आत्मा जागृत नहीं है। आत्मा के प्रकाश में ही आप उस झूठ को समझ रहे हैं। सकते हैं जो आपको हर तरह से भुलावे में रखता है। और इस भुलावे में हर तरह के लोग घूम | बर आप दुनिया के तरफ नज़र करें। किसी भी धर्म का नाम लेकर आज लड रहे हैं। अरे भाई, जब धर्म है, एक ही परमात्मा है, तो लड़ क्यों रहे हैं? इस तरह के भुलावे जब तय्यार हो जाते हैं दिमाखी जमा -खर्च बन जाता है और उसको लोग अपना लेते हैं। उसका कारण यही है कि उनकी समझ में अभी यह प्रकाश नहीं है। जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो आपका सम्बन्ध उस परम चैतन्य के शक्ति से हो जाता है। 25 हे हैं या रिअॅक्ट कर र बाब जब आप प्रक्रिया कर रहे हैं और ये सम्बन्ध बड़ा माना हुआ है। आइनस्टाइन जैसे इतने बड़े साइंटिस्ट ने ये कहा है कि जब आपका सम्बन्ध 'टॉर्शन एरिया' जिसे कहते हैं उससे होता है तो अकस्मात ऐसी चीज़े होती हैं जिस तरह से आप शांत चित्त के हो जाते हैं। और उस शांत चित्त में ना जाने कितनी उपलब्धियाँ होती हैं । जितने तरह के नये-नये प्रयोग आपने किये हैं, नयी-नयी उपलब्धियाँ होती है, ये सारी चीजें होते हुए भी जब लोग बार -बार जगकर सो जाते हैं और सोकर फिर जगते हैं ऐसी भी दशा चलती है। ऐसे लोग नहीं होते कि | जो एक बार पार हो गये सो हो गये। उसके बाद उनकी गहनता कितनी है उस पर निर्भर है। अगर आप गहन है तो ये चीज़ जब आपके अन्दर जागृत होती है तो उसका बड़ा गहन अनुभव होता है। आप एकदम निर्विचारिता में चले जाते हैं। आज ही में बता रही थी कि मनुष्य विचार क्यों करता है। हर समय हर एक चीज़ पे देखना और उस पर विचार करना। कोई भी चीज़ जैसे ये कार्पेट है। कहाँ से आया, कितने में आया, दुनिया भर की झंझट इसके लिए होगी। बजाय इसके कि इतना सुन्दर है उसका आनन्द लें, मनुष्य सोचता ही रहता है। और इस तरह के सोच विचार से मनुष्य कभी-कभी पगला भी जाता है। तो किसी भी चीज़ की ओर देख कर के उस पर प्रक्रिया करना, रिअॅक्ट करना, इससे बढ़के और कोई गलती नहीं है। क्योंकि जब आप प्रक्रिया कर रहे हैं या रिअंँक्ट कर रहे हैं तो वो आप अपने अहंकार के कारण या आपके अन्दर जो सुप्त चेतना, जिसको कन्डिशनिंग कहते हैं उसके कारण होता है। आप इसलिए नहीं कर रहे हैं कि आप उसे पूरी तरह से देख रहे हैं वह साक्षी स्वरूपत्व में आप उसको पूरी तरह से देखते हैं। अगर उसको आप पूरी तरह से देख लें तो उसका आनन्द आपके अन्दर पूरी तरह से समा जाएगा। सबसे तो बड़ी बात ये है कि इस दशा में आने की बात तो बहतों ने की। मैं कह रही हूँ ऐसी बात नहीं है। वह बहत से लोग समझ नहीं पाए होंगे या सोचे होंगे कि ये कैसे हो सकता है। हम तो एक मानव है और ये कैसे हो सकता है? कुण्डलिनी जागरण से सब हो सकता है। और जब कुण्डलिनी आप सबके अन्दर वास्तव्य किये हुए है, जब वह स्थित है वहाँ, तो सिर्फ उसके जागरण की बात है। ये आपका धरोहर है, ये आपकी अपनी चीज़ है, जिसे आपने खरीदी नहीं, जिसके लिए पैसा नहीं दिया, किसी तरह की याचना नहीं की। वह अन्दर है। स्थित है। सिर्फ उसकी जागृति होने का विचार होना चाहिए। ये कुण्डलिनी शक्ति जो है वो आपकी बड़ी इच्छा है, बड़ी शुद्ध इच्छा है। शुद्ध इच्छा हमारे यहाँ कोई नहीं जैसे कि कोई साहब हैं, वह कहते हैं कि मैं एक मोटर खरीदना चाहता हूँ। फिर आ गयी मोटर। तो उसका आनन्द ही नहीं 26 ० तो वो आप अपने अहंकार के कारण उठाया और लगे दूसरा कुछ ढूँढने, तो वह चीज़ हो गयी, तो लगे तीसरी चीज़ ढूँढने। तो इसका मतलब है आपकी जो इच्छाएं हैं वह शुद्ध नहीं हैं। अगर वह शुद्ध इच्छा होती तो आप तृप्त होते। ये कुण्डलिनी शक्ति आपकी शुद्ध इच्छा है। और ये परमेश्वरी इच्छा है। ये जब आपके अन्दर जागृत हो जाती है, आप तृप्त हो जाते हैं। तृप्त हो जाते हैं माने आप ये सोचते हैं, कि ये जो मेरा मन - ये चाहिए, वो चाहिए सोचता था, उसकी जगह में ऐसी सुन्दर बाग में आया हूँ, जहाँ सुगन्ध ही सुगन्ध, आनन्द ही आनन्द, शान्ति ही शान्ति और प्रेम ही प्रेम बसा हुआ है। ये जब स्थिति आपकी आ जाए तो फिर आप मुड़के नहीं देखते उधर, जो गलत चीज़़ है, अधिकतर होते हैं, ऐसे भी लोग जो उठते हैं फिर गिरते हैं। पर सहजयोग में जिसने इसे एक बार प्राप्त की है वो इतनी महत्वपूर्ण चीज़ है और इतनी सहज में होती है। तो इसके लिए कुछ करना नहीं है। इसके लिए आपको पैसा देना नहीं है। कोई चीज़ नहीं, प्रार्थना नहीं, कुछ भी नहीं। सिर्फ आपके अन्दर शुद्ध इच्छा होनी चाहिए कि मैं अपने महत्व को प्राप्त करूं इस शुद्ध इच्छा से ही आप उसे प्राप्त करेंगे। सिर्फ मन में यही एक इच्छा रखें कि मेरी कुण्डलिनी जागृत हो जाए। ये इच्छा ही इतनी प्रबल है कि इससे अनेक लोग, अनेक देशों में मैंने देखा कि एकदम से पार हो गये। जैसे एक देश है बेनिन। वहाँ पर पहले वो मुसलमान लोग थे। और वो फ्रेंच लोगों से इतना घबरा गये थे कि उन्होंने मुसलमान धर्म ले लिया। वो मुसलमान धर्म लेने के बाद वो संतुष्ट नहीं थे। उससे भी परेशान, उससे भी झगड़े। पर जब उनको सहजयोग मिल गया तो सब कुछ छोड़-छाड़के अब मजे ले रहे हैं। आपको आश्चर्य होगा कि अब वहाँ भी चौदह हज़ार सहजयोगी हैं। सब मुसलमान। ये तो मैं मुसलमान उनको मानती हूँ जिनके हाथ में चैतन्य है। जिनके हाथ बोलेंगे। आज कियामा का जमाना है। जब आपके हाथ बोलते हैं तो आप मुसलमान है नहीं तो है नहीं। मुसलमान का मतलब है समर्पण। और जब तक आपके हाथ नहीं बोलते आपके अन्दर समर्पण नहीं । इस तरह से गलतफहमी में पड़े हुए लोग आज ना जाने क्या-क्या चीज़ें करते हैं। इसके लिए ये नहीं है कि आप अगर वेदशास्त्र पढ़ते हैं या अगर आप तीर्थयात्रा करते हैं और दुनियाभर के ब्राह्मणों को, आज हमारे पड़ोस में एक बड़़े जोरो में मन्त्र बोलने लग गये, ऐसे लोगों को आप प्रोत्साहित करते हैं और उनकी मदद करते हैं और उनको पैसा देते हैं, इससे कुछ नहीं होने वाला। ये सब बेकार की बाते हैं, बेवकुफी की बाते हैं। समझदारी क्या है? आपको क्या मिला, आपने सब दिया, आपको क्या मिला ? क्या आपको अपना आत्मसाक्षात्कार मिला? आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आप जानेंगे कि आप क्या हैं। और क्या आपकी शक्तियाँ हैं। और 27 इस सहज समाज में वही करना है जो सारे संसार का उद्धार कर सके। क्या कर सकते हैं आप, कितने समर्थ हैं। जब तक आपका अर्थ ही नहीं मिलता तो आप समर्थ कैसे होंगे? इस समर्थता में आप अनेक कार्य कर सकते हैं। मुझे तो इतना आश्चर्य होता है कि मैं जब परदेस में रहती हूँ तो ये परदेसियोंने, जिन्होंने कभी कुण्डलिनी का नाम भी नहीं सुना जब से पार हो गये तो ना जाने क्या-क्या चमत्कार कर रहे हैं दुनियाभर की चीज़़ों में। जब मुझे बताते हैं तो मैं सोचती हूँ कि ये | चमत्कार का भण्डारा जो है, ये कैसे एकदम से खुल गया! ये लोग इसे कैसे प्राप्त कर लिये। सब तरह से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आपकी पूर्णतया प्रगति हो जाती है और आप इसे आत्मसात कर लेते हैं। इतनी सुन्दर चीज़ है कि अपने आत्मा को आप जाने। आप ही के अन्दर ये हीरा है। आप ही के अन्दर ये ज्ञान है। आप ही के अन्दर सब कुछ है। सिर्फ उसका मार्ग जो है सिर्फ कुण्डलिनी जागरण है और कोई नहीं। ये मैं आपसे इसलिए बताना चाहती हूँ कि बहुत बार लोग मुझे प्रश्न पूछते हैं कि कुण्डलिनी के सिवाय कोई मार्ग है क्या ? तो मैं बताती हूँ कोई मार्ग नहीं, सच तो यही है। उसमें मेरा लेना-देना कोई नहीं। लेकिन आपको तो जो सच है वही बताना है। कुण्डलिनी के जागरण के सिवाय आपके पास कोई और मार्ग नहीं है, जिससे आप अपने को भी जाने और दुनिया को भी जाने। जितने भी दुनिया भर के धन्दे हैं, छोड़कर के अपने अन्दर सीधे बसी हई इस महान शक्ति का उद्घाटन करना ही आपका परम कर्तव्य है। आज लोगों को इतनी बड़ी तादाद में देखकर मेरा हृदय भर आता है। एक ज़माना था कि मैं दिल्ली को बिल्ली कहती थी, 'यहाँ तो किसी के खोपड़ी में सहजयोग घुसेगा नहीं।' आज मैं देख रही हूँ कि आप लोगों ने इसे आत्मसात किया है और अपनाया है। सब तरह का लाभ ही लाभ इसमें है। हर और तरह का लाभ इसमें है। और महालक्ष्मी की कृपा हो जाए तो अपना देश भी एक सुरम्य बहुत ही वैभवशाली देश हो सकता है। इसलिए हम सबको सामाजिक रूप से इसे फैलाना चाहिए । और इस सामाजिक रूप में हर तरह का पहलू हमें पहचानना चाहिए। जहाँ-जहाँ लोगों को तकलीफ है-मैंने कम से कम ऐसे सोलाह प्रोजेक्टस् बनाये हैं, जिसमें औरतों को मदद करना, बच्चों को मदद करना, बीमारों को मदद करना, बूढ़ों को मदद करना, खेतीहीन लोगों को मदद करना आदी अनेकों प्रॉजेक्टस् बनाये हैं, जिसमें सहजयोग कार्यशील है। और इस कार्य को करते हुए वो समझते हैं कि ये हमारे अन्दर इतनी शक्ति कैसे है। हम रोगियों को ठीक करते हैं, पागलों को ठीक करते हैं और व्यसनों से छुड़ाते हैं। ये सब 28 O० ए और जितनी इसकी व्रुटियाँ हैं उसको बिल्कुल पूरी तरह से नष्ट कर सके। शक्तियाँ हमारे अन्दर कैसे है? ये शक्ति आपके अन्दर आने का एकमेव साधन है कुण्डलिनी शक्ति का जागरण। उसको जागृत रखना चाहिए। इधर-उधर भटकने वाले लोगों को चाहिए कि वो जरा रुक जाए और देखें कि आप हैं कौन ? आप कितनी महान वस्तु हैं, आपमें कितना सामर्थ्य है और इसे आपको किस तरह से इस्तेमाल करना चाहिए । मुझे पूर्ण आशा है कि अगले वक्त जब मैं आऊँ तो इससे भी दुगने लोग यहाँ रहे। इतना ही नहीं वो लोग कार्यान्वित हों। सहजयोग में इसको पा कर के आपको सन्यास लेने की जरूरत नहीं है। हिमालय पर जाने की जरूरत नहीं। यहीं, यहीं समाज में रहकर के सहजयोग को फैलाना है। इस तरह से विश्व में एक विशेष सहज समाज बनाना है। इस सहज समाज में वही करना है जो सारे संसार का उद्धार कर सके। और जितनी इसकी त्रुटियाँ हैं उसको बिल्कुल पूरी तरह से नष्ट कर सके। ये कार्य आप सब लोग कर सकते हैं। इसलिए मैं आपसे बार-बार यही कहती रहूँगी कि अपनी जागृति करते रहना। मनन से जागृति बनी रहेगी और जो दोष हैं वह धीरे-धीरे निकल जाएंगे। इससे आप एक सुन्दर स्वरूप बहुत ही बढ़िया व्यक्ति हो जाएंगे। ऐसे अगर व्यक्ति समाज में हो जाए तो ये दुनिया भर की जो आफतें जो मची हुई हैं, दुनिया में ये मारामारी और किस तरह के घोर अत्याचार हो रहे हैं वो सब रुक जाएंगे। क्योंकि | आप एक सुन्दर मानव प्रकृति हो जाएंगे। और इन सब चीज़ों से आप दूर रहकर भी आप इन पर प्रकाश डाल सकते हैं और सब ठीक कर सकते हैं। आज के इस वातावरण में मनुष्य घबरा जा सकता है कि ये हो क्या रहा है? कैसे हो रहा है? इन सबको ये सोचना चाहिए कि एक दिन ऐसा आता है कि सब चीजें उनके सामने आकर खड़ी हो जाती है। और इतने दिन से चलने वाली ये चीज़ आज एकदम से उद्घाटित हो जाए, इसका कारण क्या, कि सब लोगों ने अभी तक आत्मा को वरण नहीं किया है। अगर आत्मा को आप अपना ले तो ना ऐसी गलतियाँ होगी, ना ऐसी चीज़ें आगे चलेंगी। अब ऐसी रुकावट आ गयी है, इन्सान 'खटाक' खड़ा हो गया है। और सोचता है 'ये है क्या?' ये है यही कि आप भटक गये हैं और कुछ लोग तो खाई में गिर गये हैं भटक कर। यही चीजें हैं। इसको समझने की कोशीश करनी चाहिए। इतने सालों से हमारे देश में जो महापाप चल रहा था आज उद्भव हुआ है। सामने आकर खड़ा हो गया। छोटेसे प्रमाण में हो गया। इससे जागृत होने की जरुरत है कि कहीं हम भी इस भटकावे में तो चल नहीं रहे है, कहीं हम भी इस तरह लुड़क तो नहीं गये हैं कि जहाँ हमको जाना नहीं चाहिए। आपको 29 ल अगर ये चीज़ हम समझ लें कि हमने हमारे 'स्व' का अर्थ आश्चर्य होगा कि आजकल मैं हिन्दुस्थान में देखती हूँ कि हर एक को ये बीमारी है । जो देखो वो ही पैसा बनाता है। जो देखो वही चाहता है कि किस तरह से नोच खसोटले। अच्छा है कि परदेस में ऐसा नहीं है। मुझे खुद हमेशा घबराहट लगी रहती है कि मेरे पास लोग खुद इसलिए आ रहे हैं कि किस तरह से मुझसे पैसा लें। अब ये पैसा मेरा जो है यह समाज कार्य के लिए है। इसलिए नहीं कि कोई चोर- उचक्के आये और मुझे लूट लें। पर वो कोशिश करते हैं। इसी प्रकार एक तरह की हमारे यहाँ भावना आ गयी है कि जैसा भी हो पैसा बना लो। पर ये लक्ष्मी नहीं है, अलक्ष्मी है। क्योंकि आप, जब तक लक्ष्मी आयेगी बहुत चंचल है और वह ऐसे रास्ते पे ले जाएगी कि आपके अन्दर अलक्ष्मी आयेगी । और उस अलक्ष्मी में आपको समझ में नहीं आएगा कि क्या करें। इसलिए किसी भी चीज़ की ज्यादती करने से पहले ये सोचना चाहिए कि हम कहाँ जा रहे हैं, कहाँ अग्रसर हो रहे हैं? कौन से जंजाल में फँस गये हैं। इस तरह की जो भावनाएं हैं कि पैसे के मामले में हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए और दूसरों का पैसा कैसे निकाल सकते हैं, वो करना चाहिए, ये चलने वाला नहीं है। पैसा आप क्या अपने साथ उठाके ले जाएंगे? जितना सारा कुकर्म है वह आपही के खोपड़ी पे बैठेगा। क्योंकि मानती हूँ मैं कि ये घोर कलियुग है। इसीके साथ एक और चल रहा है जिसको मैं कृतयुग कहती हूँ। जब ये परम चैतन्य कार्यान्वित है और ये परम चैतन्य वह कार्य कर रहा है जिससे बार-बार ऐसे लोगों को ठोकरे लगेंगी और वो समझ जाएंगे कि ये हमारे सामाजिक हित के विरोध में है। अगर आपको लोगों का हित पाना है, आपके अन्दर वह शक्ति है उसे आप जागृत करें और उनका हित सोचें । किन्तु हित के मामले में भी स्वार्थ नहीं होना चाहिए। असल में अपने यहाँ शब्द इतने सुन्दर हैं 'स्वार्थ ।' स्वार्थ का मतलब 'स्व' का अर्थ। क्या आपने अपने 'स्व' का अर्थ जाना है? 'स्व' का अर्थ जानना ही स्वार्थ है। बाकी सब बेकार है। अगर ये चीज़ हम समझ लें कि हमने हमारे 'स्व' का अर्थ नहीं जाना है तो हम उधर ही अग्रसर होंगे वही हम कार्य करेंगे जिसमें 'स्व' को जानने की व्यवस्था हो। इसलिए आज कल की जो भी कश्मकश चली है, झगड़े बाजी चली है, उसकी परम्परा बहुत पुरानी है। अपने देश में स्थित हो गयी, पता नहीं कैसे? पहले जब अंग्रेज आयें, वो भी ये धन्दे करते रहें। वे हमारे यहाँ से कोहिनूर का हीरा ले गये। उनको जब | तक आप कोई प्रेझेंट नहीं दो वो खुश नहीं होते। वह थोड़े प्रमाण में था अब तो बहुत ही बड़े प्रमाण में है। तब से शुरु हुआ। बढ़ते-बढ़़ते हमारे राजकारणी लोगों ने शुरु किया और आगे बढ़ गया। अब 30 ० नहीं जाना है तो हम उधर ही होंगे अग्रसंर राजकारणी ही नहीं पर हर एक आदमी ऐसा हो रहा है जो चाहता है कि किस तरह से ड्राका ड्राले, किस तरह से पैसा लूटे। इसका एक ही मार्ग है, वह है सहजयोग । इसीसे हमारा समाज व्यवस्थित हो जाएगा। इसीसे हमारे समाज में आपसी प्रेम और आदर बनेगा। ना कि हम केवल पैसे का आदर करें। अब दूसरी बात है सत्ता। सत्ता के पीछे भी लोग पागल हैं। 'सत्ता चाहिए।' किसलिए चाहिए सत्ता? किसलिए सत्ता चाहिए? आपकी अपने पे सत्ता नहीं है। आप दुनिया पे सत्ता लेकर क्या करोगे? 'सत्ता चाहिए! हमें ये होना है वो होना है!' किस दिन के लिए ? कौनसे उससे लाभ है? उससे आपका क्या लाभ होने वाला है? सत्ता करने के लिए भी बहुत बड़े आदर्श पुरुष हो गये। उनकी हिम्मत, उनका बड़प्पन, सच्चाई, वो तो है नहीं और सत्ता चाहिए। जैसे कोई बन्दर को सत्ता दे दीजिए तो वह क्या करेगा! मराठी में कहते हैं कि बन्दर के हाथ में जलती हुई लकड़ी दे दीजिए तो वह सबको जला देगा। वही है आज सत्ता का रूप। सब बन्दर जैसे अपनी सत्ता का इस्तेमाल करते हैं और पैसा कमाते हैं सत्ता के लिए। इस उनकी तरह के इन दोनों के द्वंद में चलने से आज हमारा देश बहुत ही गिर गया है सामाजिक रूप से। सहजयोग इसका इलाज है। सहजयोग में आने से आप समझ जाएंगे कि ये महामूर्खता है और इस मूर्खता को सहजयोगी नहीं करते। जिस दिन सहजयोग बहुत फैल जाएगा उस दिन ये सब चीज़ नष्ट हो जाएगी। ये रह ही नहीं सकता। इसलिए आपको ये समझना चाहिए कि जो आज-कल हम घबराये हुए हैं कि इस समाज का क्या होगा? उसको ठीक करने का भी, उसको सही रास्ते पर लाने का भी उत्तरदायित्व आपका है। आप कर सकते हैं। सहजयोगी ये कर सकते हैं और जो लोग सहजयोग में नहीं है उनको ला सकते हैं। हमें जो अच्छी समाजव्यवस्था चाहिए, अच्छी एक समाजव्यवस्था हो जिसमें कोई किसीको खसोटे ना और सब लोग आपस में प्रेम भाव से रहे, तो इसका इलाज सिर्फ सहजयोग कर सकता है । सहजयोग दिखने में सीधा-साधा है और सबके अन्दर शक्ति होने से सब सोचते हैं कि हम तो पार हो गये हैं। पर उसमें रमना पड़ता है। उसमें रजना पड़ता है। और उसके बाद ही उसकी सब शक्तियाँ जागृत हो जाती है। उससे आप हिन्दुस्थान ही नहीं सारे संसार का उद्धार कर सकते हैं और इस उद्धार की व्यवस्था होगी। अब इसमें कुछ-कुछ लोग ऐसे हैं कि वो शैतानी के पीछे हैं। उनकी इच्छायें शैतानी है। ठीक है, ऐसे लोग रहेंगे। मैंने आपको बार -बार बताया है कि अब ये 'आखरी जजमेन्ट' आ गया है। | इस वक्त आप अगर अच्छाई को पकड़ेंगे तो आप उठ जाएंगे और बुराई को पकड़ेंगे तो दब जाएंगे। 31 क हमें देखना चाहिए कि किस तरह से जगह-जगह में भूकम्प आते हैं। अभी गुजरात में भारी बड़ा भूकम्प आया था। वहाँ हमारे सिर्फ अठराह सहजयोगी थे। वो भी गुजरातियों का पता नहीं क्या, सहजयोग से खास मतलब नहीं है। अब टर्की में भी बहुत बड़ा भारी भूकम्प आया। वहाँ पर भी जितने भी सहजयोगी थे सब बच गये। एक से एक। उनके घर भी बिल्कुल सही सलामत। मैंने देखे थे क्योंकि आप परमात्मा के साम्राज्य में आ गये हैं। तो आपका संरक्षण है। तो आपको कोई मार नहीं सकता। कोई आपको नष्ट नहीं कर सकता। ऐसे ही और भी जगह है जहाँ भूकम्प आ गये। वहाँ भी हमने यही देखा है कि सहजयोगी एक भी नष्ट नहीं हुआ। ना उसका घर नष्ट हुआ। लातुर की ये बात है। लातुर में हमारा जहाँ सेंटर था उसके चारों तरफ, चारो तरफ खंदक पडे और बीच में सेंटर बिल्कुल ठीक था और एक भी लातूर का सहजयोगी मरा नहीं । कैसे हुआ? चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन करते हैं, सबने विसर्जन किया और विसर्जन करके जो आये उनमें से जो लोग दुष्ट प्रवृत्ती के थे उन्होंने शराब पी। शराब पी कर के नाच रहे थे और नाचते -नाचते सब जमीन के अन्दर गये। लातुर में एक भी सहजयोगी किसी | भी तरह से, कोई भी बात से वंचित नही रहा। उसकी गृहस्थी, उसका घर सब ठीक थे। यह क्या चमत्कार नहीं तो और क्या है! इसी प्रकार आप भी समझ लें कि परमात्मा का जो संरक्षण है वह आपके ऊपर है। क्योंकि आप उसके साम्राज्य में हैं। इन सारे साम्राज्यों के बाहर आप इतने ऊँचे चले गये कि आपको अब किसी भी चीज़ का भय नहीं है। कोई भी चीज़ आपको नष्ट नहीं कर सकती। इस तरह से हमने सहजयोग में अनेको उदाहरण देखे हैं। अनेक लोगों को बीमारी से उठते देखा है। ड्रग्ज लेने वाले लोग एक रात में ही बदल जाते हैं। एक रात में बदल गये। किसीको आश्चर्य होगा कि ये कैसे हुआ? वही बात मैंने कही कि कुण्डलिनी के जागरण से अपने अन्दर की सब विकृतियाँ झड़ जाती है और इस तरह से हर जगह में ये कार्य हो रहा है। और लोग अब ये महसूस कर रहे हैं। इसको समझ रहे हैं। कि परिवर्तन की जरुरत है। इस परिवर्तन के सिवा कुछ भी नहीं बदल सकता। कुछ भी ठीक नहीं हो सकता। ये मनुष्य ही है जो सब कुछ गड़बड़ करता है और ये मनुष्य ही है जो खुद इसको उठायेगा, आगे बढ़ायेगा। बड़ा विश्वास है मुझे कि, जिस तरह से यहाँ सहजयोग बढ़ा है और भी आगे बढ़ेगा बहुत और अनेक प्रांगण में, अनेक स्थिति में इसका प्रकाश चारों तरफ फैलेगा। आप सबको अनन्त आशीर्वाद! 32 ० भौतिक चिकित्सा और हृदय रोग भौतिक चिकित्सा : चैतन्य लहरियाँ जब बहती हैं तो शरीर की माँस पेशियों को आराम प्रदान करती है। तनावों के कारण माँसपेशियों में ऐंठन आ जाती है। उदाहरण के रूप में बाई विशुद्धि या किसी अन्य चक्र में तनाव से रीढ़ की हड्डी में ऐंठन शुरु हो जाती है। जब आप अपने चक्र मुझे समर्पित करते हैं तब ये सुखद अवस्था में आ जाती है और तब चैतन्य लहरियाँ देकर आप इन्हें ठीक कर सकते हैं। ये चैतन्य लहरियाँ आप दसरों को भी दे सकते हैं। दूसरे व्यक्ति को छूने की कोई आवश्यकता नहीं है। मंत्र का उपयोग करते हुए दूर से हाथ चलाकर दूसरे व्यक्ति को चैतन्य लहरियाँ दें। बाईं ओर की बीमारियों (मनोदैहिक रोग ) में आप सामूहिक अवचेतना (collective subconscious) में चले जाते हैं जहाँ प्रोटीन ५२ विषाणु एकत्र कर लेते हैं। इनके कारण कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है कि व्यक्ति लाइलाज हो जाता है। जिन लोगों के ज़िगर खराब हैं या जिन्होंने जिगर का दूरुपयोग किया है उन्हें ज्वर आ सकता है। गर्म जिगर को बर्फ रखकर ठीक किया जा सकता है। मलेरिया ज्वर भी दाई ओर का रोग है। बैक्टीरिया द्वारा हुए ज्वर बाई ओर का रोग है। ये विशेष रूप से फफूंद वाले पदार्थों को खाने से होते हैं जैसे खुम्भें (mushrooms), पुराना पनीर आदि। मधुमेह बाई ओर की बाधा से प्रभावित दाईं ओर की प्रतिक्रिया के कारण होता है। शरीर का दायां भाग संवेदनशील होता है। जब आप बहुत अधिक सोचते हैं अपनी आदतों में फँसे रहते हैं तो आपके अन्दर भय पैदा होता है जो आपको अधिक दुर्बल कर देता है। परिश्रमी व्यक्ति जब बहुत अधिक सोचता है तो उसकी चर्बी के कण मस्तिष्क को शक्ति पहुँचाने के लिए उपयोग हो जाते हैं। स्वाधिष्ठान इस कार्य के लिए गतिशील हो उठता है और इस व्यस्तता के कारण बाई ओर उपेक्षित हो जाता है। इसकी शक्तियाँ कम हो जाने से यह मनोदैहिक रोगों का कारण बन जाता है। इस स्थिति में यदि आप में कोई भय आ जाए या दोष भावना आ जाए तो मधुमेह हो सकता है। इसको ठीक करने के लिए 'अली' का मन्त्र लाभकारी है। स्वाधिष्ठान और बाई नाभि चक्र इसके स्रोत हैं। पत्नी के भय के कारण या उसके लिए या परिवार के किसी अन्य सदस्य के लिए चिन्ता करने से बाई नाभि प्रभावित हो जाती है। इस स्थिति में मधूमेह हो सकता है। अपने आज्ञा चक्र को साफ करके इसे ठीक करें। अधिक न सोचें. निर्विचार चेतना में बने रहें। बाई ओर को उठाकर दाईं ओर को डालें। अधिक शक्कर निकालने के कार्य को सन्तुलित करने के लिए नमक का उपयोग बढ़ा दें क्योंकि नमक में स्वच्छता कारक जल होता है। दाई नाभि और स्वाधिष्ठान पर बर्फ रखें और उपयुक्त परीक्षण के पश्चात् शक्कर का उपयोग बन्द कर दें। हृदय रोग : अत्याधिक गतिशील और शिथिल हृदय आक्रामक लोगों में अत्याधिक गतिशील हृदय होता है। ऐसे हालत में हृदयाघात हो सकता है। बहुत छोटी आयु 33 ा में भी ऐसा हो सकता है। चित्त का बहुत अधिक बाहर होना इसका कारण है। अत्याधिक भौतिक दृष्टिकोण होने के कारण आत्मा की ओर उनका चित्त नहीं होता और अन्तत: आत्मा उन्हें त्याग देती है। भविष्य की और परिवार की अधिक चिन्ता के कारण भी व्यक्ति आवांछित रूप से गतिशील हो उठता है जिसके कारण हृदय को अत्याधिक परिश्रम करके रक्त संचार करना पड़ता है और यह थक जाता है। बहुत अधिक मन्त्र आदि जपने वाले, तम्बाकू-सिगरेट पीने वाले लोग पहले अपनी बाई विशुद्धि को खराब कर लेते हैं। जिसके कारण हृदय को रक्त संचार करने में कठिनाई होती है और हृदय थक जाता है। बाईं विशुद्धि के कारण शिथिल हृदय 'हृदय शूल' (Angina) का कारण हो सकता है। हृदयाघात दो तरह के हो सकते हैं। पहली तरह की समस्या को पेट और हृदय की दाई ओर बर्फ रखकर ठीक किया जा सकता है। इसके लिए बाएं को उठाकर दाएं पर भी डाला जा सकता है। पानी पैर क्रिया लाभकारी है। दाई ओर की समस्या के लिए अग्नितत्व (Candle Treatment) नहीं करना चाहिए, बत्ती बुझाकर सोना चाहिए और अधिकतर घर में रहकर पूरा आराम करना चाहिए। दायाँ हाथ बायें हृदय पर रखकर कहना चाहिए, 'श्रीमाताजी में आत्मा हूँ, कृपा करके मुझे क्षमा कर दें।' शिथिल हृदय की समस्याओं में रोगी कह सकता है कि, 'श्रीमाताजी आप ही मेरी बीज मन्त्र हैं, आप ही मन्त्रिका हैं तथा 'मैं निर्दोष हूँ और 'श्रीमाताजी मैं सबको क्षमा करता हूँ।' बाईं ओर को शुद्ध करने के लिए अग्नि तत्व का उपयोग करें। बहुत | प.पू.श्रीमाताजी और डा.तलवार के बीच हुई वार्तालाप का भाग, चैतन्य लहरी २००० र 34 स्वः का मतलब है आत्मा और आत्मा का राज्य आना ही स्वराज्य है। स्वतन्त्र का मतलब है फिर वही आत्मा का तन्त्र माने आत्मा की एक रीत। प.पू.श्री माताजी निर्मलादेवी, ५.१२.९९ प्रकाशक + निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in का के ति अगर हम फूल से पूछते हैं कि उसे क्या चाहिए तो वह कहेगी कि मुझे कोई य नहीं चाहिए, शुज्य वी मुझे कुछ तहीं चाहि, जिस ते से आदिशक्ति चलने बली हैं उस ्ते पए मु डल टीजिए| ও माताल ---------------------- 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी २ु हिन्दी जुलाई-अगस्त २०१० ा ० 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-1.txt सए मैं एक साधारण सी सद्गृहस्थ पत्नी हूँ जिसके पास यह अनुपम शिल्प है। मैं आपकी शिक्षक हैँ। मैं आपकी अचेतना में प्रवेश करने में सक्षम हँ। Seeking & Rationality 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-2.txt इस अंक में श्री गणेश पूजा ... ४ हमें दूसरों के लिए जीना है..... ८ सत्य की प्राप्ति ही सबसे बड़ी प्राप्ति है ...२० दुल्हनों को उपदेश दस धर्म... १९ भौतिक चिकित्सा और हृदय रोग .. ३३ ...१६ ० ३ 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-3.txt २७ ३ १ राम श्री गणेश पूजा कळवा, ३१ डिसंबर १९९४ 4 প गो 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-4.txt अ. जि हम लोग श्री गणेश पूजा करेंगे। श्री गणेश की पूजा करना अत्यावश्यक है। क्योंकि उन्हीं की वजह से सारे संसार में पावित्र्य फैला था। आज संसार में जो-जो उपद्रव हम देखते हैं उसका कारण यही है कि हमने अभी तक अपने महात्म्य को नहीं पहचाना। और हम लोग ये नहीं जानते कि हम इस संसार में किसलिए आये हैं और हम किस कार्य में पड़े हुए हैं, हमें क्या करना चाहिए? इस चीज़ को समझने के लिए ही सहजयोग आज संसार में आया हुआ है। जो कुछ भी कलियुग की घोर दशा है उसे आप जानते हैं। मुझे वो बताने की इतनी जरूरत नहीं है। परन्तु हमें जान लेना चाहिए कि मनुष्य जो है, धर्म से परावृत्त हो गया है। जैसे कि उसकी जो श्रद्धाएं थीं वो भी ऊपरी तरह से आ गयी। उसमें आंतरिकता नहीं। वो समझ नहीं पाता है कि श्री गणेश को मानना, माने क्या है? अपने जीवन में क्या चीज़ें होनी चाहिए। लेकिन ये बड़ा मुश्किल है। कितना भी समझाईये, कुछ भी कहिये लेकिन मनुष्य नहीं समझ पाता है कि श्री गणेश को किस तरह से हम लोग मान सकते हैं। गर वो एक तरफ श्री गणेश की एक आशीर्वाद से प्लावित है, Nourished हैं तो वो बड़े पवित्र हैं, ऐसा वो सोचते हैं। ऐसी बात नहीं। अगर आप बहुत इमानदार आदमी है तो ठीक है। लेकिन नैतिकता में अगर आप कम हैं तो गलत है। अगर आप संसार के जो कुछ भी प्रश्न है उसकी ओर ध्यान नहीं देते हैं, तो भी आपमें सन्तुलन नहीं है। और उनकी जो शक्तियाँ हैं वो अगर अपने अन्दर जागृत करना है तो वो कुण्डलिनी के ही द्वारा जागृत हो सकती है, दूसरा उसका और कोई रास्ता नहीं है। उनकी जो विशेष चार शक्तियाँ हैं, उसमें से जो और भी अतिविशेष हैं, वो है सुबुद्धि, सुज्ञता। ये शक्तियाँ हमारे अन्दर प्रज्वलित होने के लिए हमें चाहिए | कि हम कुण्डलिनी का जागरण करके अपने अन्दर के गणेश को सन्तुष्ट कर लें। गणेश की नाराजगी भी बहुत नुकसानदेह हो सकती है। उनका स्वभाव तो एक तरफ तो बहुत शान्त, बहुत ठण्डा और दूसरी तरफ, जब वो देखते हैं कि मनुष्य किस गलत रास्ते पर चल पड़ा है, तो उससे इस कदर नाराज़ होते हैं जैसे कि मैंने में तीन बार कहा था कि आप पुना गणेश जी की स्थापना करके उसके सामने ये गन्दे डान्स, डिस्को और ये सब गन्दे गाने गाईयेगा तो वो जरूर आप पर नाराज़ हो जाएंगे और भूकम्प होगा। और वही बात हुई। भूकम्प हो गया। अब आपको ध्यान देना चाहिए कि हम कौनसी-कौनसी गन्दी चीज़ों की ओर चलते हैं। पहले परदेसिओं को म्लेच्छ कहते थे। उनकी इच्छा सब मल की ओर जाती थी। लेकिन अब हम लोग भी म्लेच्छ हो रहे हैं। गन्दे-गन्दे गाने हमें अच्छे लगते हैं, गन्दे-गन्दे पिक्चर हम देखते हैं। गन्दे-गन्दे वार्तालाप करते हैं, जबान से गन्दी बातें करते हैं। ये सब गणेशजी को बिल्कुल पसन्द नहीं। हमारी भाषा शुद्ध होनी चाहिए। हमारे विचार शुद्ध होने चाहिए और हमारे शौक भी शुद्ध होने चाहिए। ये अब धीरे - धीरे अपने यहाँ आने लग गया है। इस तरह की जब हम अपने अन्दर भावना रखते हैं तभी हम अपनी इज्जत करते हैं। तभी हम सोचते हैं कि हमारी जिन्दगी का कोई महात्म्य है। हम कोई रास्ते पे पड़े हुए लोग नहीं है। हम भारतीय हैं। और भारत में जन्म लेने के लिए अनेक वर्षों की तपस्या चाहिए। अनेक वर्षों के पुण्य के बाद ही आप भारतवर्ष में जन्म लेते हैं । आपका जीवन ऐसी उछली चीज़ों के लिए नहीं है। ये समझने की कोशिश करनी चाहिए। इधर जाते हैं, सिद्धीविनायक, मैं देखती हूँ 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-5.txt 3अ५ लाइन लगती है। पर आप गणेशजी के लिए क्या करते हैं? अगर आप लोग ये गन्दे काम पसन्द करना ना करें तो यह सब खत्म हो जाएगा। गन्दी जगह जाना, खाना खाना, गन्दी बातें करना ये सब चीज़ें अपने यहाँ बड़ी ही सामान्य तौर पर लोग करने लग गये हैं। मैं अभी देखती हूँ कि रास्ते पर खड़े-खड़े लोग खा रहे हैं कहीं-कहीं जा रहे हैं, गन्दी बाते कर रहे हैं, औरतों पे रिमार्कस् कर रहे हैं, गन्दी निगाह से देख रहे हैं। ईसा ने तो ऐसा कहा था कि, 'अगर आप आँख से दो बार किसी औरत की तरफ देखें तो अपनी आँख निकालकर एक फेंके। अगर आपने एक हाथ से कोई गन्दा काम किया है तो हाथ काट लें। मैने ऐसा कोई ईसाई देखा नहीं है अब तक जिसका आँख निकला हो या हाथ कटा हो। पर वो अपने को ईसाई कहते हैं, नाम भर, असली में तो नहीं। और हमारे देश में खास करके लिखा हुआ है कि सबमें एक ही आत्मा का वास है। वो किसी भी जाति-पाति का नहीं हो सकता। जात जो है मनुष्य के जन्म के अनुसार नहीं बनायी गयी थी, वो उसके कर्म के अनुसार बनायी गयी थी। और जो लोग जात को ले कर के और इतना महात्म्य देते हैं वो भारतीय हो ही नहीं सकते। इसलिए जानना चाहिए कि हम लोग कितने ऐसे काम करते हैं जो बिल्कुल धर्म के विरुद्ध में है। और जब हम ऐसा कार्य करते हैं तो हमारे अन्दर गणेश जी नाराज हो जाते हैं। गणेश जी का नाराज़ होना भी बड़ा ही गणेश जी का दुःखप्रद है। क्योंकि उनकी नाराज़गी से अनेक ऐसी बीमारियाँ हो जाती हैं। कि वो किसी तरह से, उसका कोई उपाय ही नहीं है, जिसको कि इनक्यूरेबल कहते हैं। ऐसी बीमारियाँ हमें हो जाती हैं। इसलिए गणेश जी को नाराज़ होना भी बड़ा ही दुःखप्रद हैं। क्योंकि हमेशा प्रसन्न रखना चाहिए। सबसे पहले तो इस पृथ्वी को, जो उनकी माँ है, उस पृथ्वी तत्व को, जिससे वो गढ़े हुए हैं उसको बहुत मान देना चाहिए। उनकी नाराजगी से पहले जमाने में, अभी होता होगा, कि उठने से पहले जब जमीन को पैर से छूते थे तो माँ से क्षमा माँगते थे कि 'तुझे मैं पैर से छूता हूँ, मुझे क्षमा करें।' इतना अनेक ऐसी बीमारियाँ हो जाती हैं ] हमारे यहाँ मान था। आजकल तो कोई माँ-बाप का ही मान नहीं रखता तो जमीन का कौन रखेगा। हर एक चीज़ को नमस्कार करना, हर एक के प्रति श्रद्धा में होना ये अपने देश का एक विशेष स्वरूप है। अब वो सब स्वरूप नहीं रहे। ना बच्चे माँ-बाप का मान करते हैं, ना पति पत्नी की पर्वा करते हैं, ना पत्नी पती की पर्वा करती है। कोई भी, संसार के जितने रिश्ते हैं वो बड़े मान- पान से चलने चाहिए और इस प्रकार नाना धर्म अपने देश में बताये गये। 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-6.txt राष्ट्रधर्म बताया गया है। अब विलायती चीज़ें लेना, विलायती कपड़े लेना, विलायती डान्स करना और विलायती कन्सेप्ट, चीजें उठा लेना ये कोई बड़ी अकल की बात नहीं है। हम सिर्फ विलायती सीख सकते हैं। हम उन्हें सीखा सकते हैं क्योंकि अपनी संस्कृति इतनी उँची है वो भी श्री गणेश के आधार पर। खास कर इस महाराष्ट्र में अष्टविनायक बैठे हुए हैं। महागणेश बिठाये हुए हैं। और यहाँ पर इस कदर गन्दगी मैं देखती हूँ तो मुझे बड़ा आश्चर्य होता है कि लोग गये कि वो कहाँ बैठे हुए हैं। वो कहाँ आयें हुए हैं। तो अपनी आप इज्जत करें । अपने को आप समझें। जब आप भूल अपनी आत्मा को पहचानेंगे तो आप आश्चर्यचकित होंगे कि आपके अन्दर अनेक शक्तियाँ हैं। पर वो शक्तियों को आपने जगाया नहीं। इसलिए दुनियाभर की गरीबी यहाँ, दुनियाभर की परेशानियाँ और दुनियाभर की गन्दगी आ गयी है। आवश्यक है कि श्री गणेश जी की पूजा जो हम बाह्य में करते हैं वो अंदर में भी करें। और देखें कि हम में गणेश जी के कौनसे गुण आये हैं और ऐसी कौनसी हमारी विशेषता है कि उनके आशीर्वाद से हम प्रसादित हो। ऐसे हमारे में गुण आने चाहिए। एक दूसरे की इज्जत करना, एक दूसरे का मान रखना ये सारी चीजें बतायी गयीं लेकिन सोचते हैं कि ये क्या? परदेस में ऐसा कौन करता है और परदेस में तो इतनी समृद्धि है। आजकल तो उनकी समृद्धि की हालत खराब हो गयी है। जिस चीज़ को समृद्धि समझते थे अब समझ गये कि वो कोई खास चीज़ नहीं और वो भी उसमें भी गिरे जा रहे हैं। उन लोगों की जो भी बातें हैं वो बड़ी बाह्य है। रास्ते उनके साफ-सुथरे हैं लेकिन दिल खराब है। उनके यहाँ जो-जो चीज़ें मैंने देखीं वो ये कि अन्दर बिल्कुल गरन्दगी है और बाह्य में दिखाने के लिए सब अच्छा है। और सारा इन्तजाम वहाँ पर बिगड़ने का है। कोई बच्चा अगर वहाँ जाए तो उससे शराब नहीं छूट सकती। उसको सिगरेट पिलायेंगे, उसको गन्दी जगह ले जाएंगे। डिस्को में ले जाएंगे, ये करेंगे, वो करेंगे इस कदर वहाँ गन्दगी है कि घोर-घोर कलियुग वहाँ बसा हुआ है। हम लोग सोचते हैं कि वो लोग बड़े सुख में हैं। माँ-बाप कहाँ से सुखी होंगे जिनके बच्चे ड्रग्ज लेते हैं। हम | लोगों को अगर ठीक रास्ते पर रहना है और अपने अन्दर के आनन्द को उठाना है, जो सबसे बड़ी हमारे पास सम्पत्ति है तो जरूरी है कि अपनी पावित्र्यता को बचायें। और अपने को बहुत ही समझबूझ करके अपना जो व्यवहार है वो एक शान से बिठायें। ये नहीं कि भिखारी बन के और गन्दगी से अपने को मलते रहें। हिन्दुस्थानियों की जो बड़ी प्रशंसा है, अभी एक मुझे चायनिज़ साहब मिले थे, तो कहने लगे कि, 'अच्छा तो यही वो सम्पदा है जिसके बारे में बहुत सालों से में सुना था, पढ़ा था कि हिन्दुस्थान अध्यात्म की सम्पदा बड़ी जबरदस्त है।' हम अध्यात्म की सम्पदा हैं इसमें कोई शक नहीं। पर उधर रुझान होनी चाहिए। रुझान तो, हम लोग म्लेच्छ हो गये हैं। मल की ओर ही हमारी इच्छा जाएगी । जो चीज़ हमें मलीन करेगी उधर ही हम दौड़ेंग । तो ये जो सुन्दरता अपने अन्दर है वो कैसे प्रगट होगी । वो कैसे दिखेगी। इसलिए जरूरी है कि श्री गणेश की पूजा करते वक्त आप ध्यान रखें कि आप अन्दर भी श्री गणेश की स्थापना कर रहे हैं। नहीं तो वो भी नाराज होने में बड़े कठिन हैं। उनको समझाना बहुत मुश्किल है वो किसी चीज़ को पवित्रता से ऊँचा नहीं मानते। उनके सामने कोई बहस नहीं चलती। उनको कोई चीज़ से समझाया नहीं जाता। उन्होंने जो पवित्रता के बन्धन बनाये हुए हैं, उसमें रहने से हमें भी सुख मिलता है और वो भी प्रसन्न रहते हैं। आप सबको अनन्त आशीर्वाद ! 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-7.txt हमें दूसरों के लिए नीना है.... क जहाँ आपने जन्म लिया है वह आपकी भूमि है और वहाँ जन्मे लोगों का ही उसपर अधिकार है। २०/६/१९९९, कान्ना जोहारी, अमेरिका पी् 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-8.txt आप सब लोगों को यहाँ एकत्र हुआ देखकर मुझे अत्यन्त प्रसन्नता हो रही है। शहरों की पागल भीड़ से बहुत दूर यह चैतन्य लहरियों से परिपूर्ण सुन्दर स्थान है। अमेरिका के एक बहुत मोटे अखबार के पन्नों में से अचानक मैंने यह स्थान छाँटा। चैतन्य लहरियाँ इस प्रकार फूट पड़ रहीं थी कि मैंने कहा यह क्या है? कहाँ से ये चैतन्य लहरियाँ आ रही हैं? इसका विज्ञापन बहुत छोटा सा था परन्तु इसे देखकर मैंने कहा कि, 'यही वह स्थान है जहाँ हमें जाना है। विज्ञापन में भी इस स्थान में बहुत चैतन्य-लहरियाँ हैं। अत: आप कल्पना कर सकते हैं कि किस प्रकार पथ-प्रदर्शन प्राप्त होता है। चैतन्य लहरियाँ यह पथ-प्रदर्शन प्रदान करती हैं। इन्हीं के माध्यम से मैं यहाँ पहुँची और परमेश्वरी शक्ति ने यह स्थान चुना। यह सब एक ही दिन में घटित हुआ। ऐसे चमत्कारिक कार्य भी एक ही दिन में हो जाते हैं। स्थान खरीदने के लिए उन्हें बहुत समय लग रहा था। परन्तु अचानक मैंने बताया कि यह स्थान ले लें तो अच्छा होगा। ये सब कुछ हो गया और अब हम इस सुन्दर वातावरण में बैठे हैं। निश्चित रूप से आप जानते होंगे कि मूल भारतीयों (Red Indians) को खदेड़ दिया गया था और छुपने के लिए वे यहाँ आए थे। इस स्थान पर वे छुपे रहे ताकि उन्हें नष्ट न कर दिया जाए। वह युग अब समाप्त हो गया है लोगों को दास बनाकर उनकी भूमि में प्रवेश करके उस पर कब्जा कर लेना और इसे बहुत बड़ी बहादुरी मानने का युग। वह सब अब समाप्त हो गया है। मानवीय सूझ-बूझ अब बहुत ऊँची उठ गई है और लोग अब यह जानते हैं कि ऐसा करना गलत है और अपराध है। वे जानते हैं कि जो हमने किया था वो गलत था। ये अपराध करने वाले लोग तो अब जीवित नहीं हैं। | परन्तु उनके नाती-पोते-पड़पोतों को अब ये ची़ें अच्छी नहीं लगतीं क्योंकि किसी की भूमि को हथियाने का अधिकार उन्हें नहीं है। नि:सन्देह भूमि किसी की नहीं हो सकती, फिर भी जहाँ आपने जन्म लिया है वह आपकी भूमि है और वहाँ जन्मे लोगों का ही उसपर अधिकार है। परन्तु युग-युगान्तरों से इस प्रकार के आक्रमण होते रहे हैं। अब समय आ गया है कि आप इस प्रकार के दुस्साहस त्याग दें कि किसी की भूमि में घुसकर, किसी के घर में घुसकर उस पर कब्जा कर लें। अब मैं एक अन्य प्रकार का आक्रमण देख रहीं हूँ। अपनी बातचीत से, आक्रामक दृष्टिकोण से लोग अन्य लोगों के मस्तिष्क में प्रवेश करते हैं उन्हें अपना दास बना लेते हैं। आधुनिक समय, मेरे विचार से ऐसा है जिसमें लोगों को उचित-अनुचित के विषय में सोचने की या उचित चीज़ों को अपनाने की भी स्वतन्त्रता नहीं है। आस-पास घटित होने वाली सभी चीज़ों को अपनाने के लिए लोग विवश हैं चाहें वे चरित्रहीन हो, चाहे विनाशकारी। व्यक्ति को यह सब स्वीकार करनी पड़ती है क्योंकि अभी तक मैं सोचती हूँ कि हमारे पास पर्याप्त संख्या में सहजयोगी नहीं हैं जो इन आधुनिक दुष्प्रवृत्तियों का विरोध कर सकें। एक अन्य प्रकार का आक्रमण भी है इसमें कुगुरु आक्रमण करते हैं विशेष तौर पर अमेरिका में। इस मामले में अमेरिका वास्तव में अभिशप्त हैं क्योंकि उसके पास धन है। इसलिए विश्व के सभी धूर्त यहाँ आए! कल्पना करें। केवल धन का होना ही आशीर्वाद नहीं है। यहाँ आकर इन सब धूतों ने वैभवशाली लोगों कुछ को और अपने लिए बेशुमार धन बनाया। इस प्रकार का शोषण अत्यन्त भयानक है, अधिक भयानक। बहुत लूटा क्योंकि इससे मस्तिष्क भ्रष्ट हो जाता है। मैंने देखा बहुत से लोग, बहुत से साधक पूरी तरह से भ्रष्ट हो गए। मुझे आशा है कि पुनर्जन्म लेकर वे आत्मसाक्षात्कार पा लेंगे। नि:सन्देह जिज्ञासा तो है परन्तु सभी प्रकार की बाधाएं और प्रलोभन भी हैं। इसलिए सारी जिज्ञासा, सच्ची एवं ईमानदार जिज्ञासा के बावजूद भी वे ऐसे चंगुलों में फँस गए कि मैं वर्णन भी नहीं कर सकती की ऐसा क्यों हुआ। परन्तु ऐसा हुआ। व्यक्ति को यह सब देखना चाहिए, यह आपको दयनीय और दुःखी बनाता है। परन्तु अभी भी बहुत से कुगुरु वहाँ पर हैं। आप भी वहाँ हैं, अब इसे देखें। इस अन्तिम निर्णय में उस स्तर से 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-9.txt ०. ा उन्नत होकर आप इस नए स्तर तक पहुँचे हैं जहाँ, मुझे विश्वास है कि आप लोग अन्य लोगों को भी विश्वस्त कर सकेंगे। हर व्यक्ति कम से कम एक हजार लोगों को आत्मसाक्षात्कार दे सकता है। और आप लोग तो इतनी अधिक संख्या में हैं। विश्व, जिसे हम अन्यथा नहीं बचा सकते, उसका यह बहुत बड़ा उद्धार होगा। अतः हमें समझना चाहिए कि दूसरे लोगों को बचाना अब सहजयोगियों का प्रथम कर्तव्य है। भिन्न स्थानों पर सहजयोग के बारे में बातचीत करना और सहजयोग कार्यान्वित करना। उदाहरण के रूप में, मैं आश्चर्यचकित हँ, कदाचार पीड़ित (Abused) बच्चों पर कार्य कर रहे हैं। भारत में हम लोग जेलों में, सेना में सहजयोग कार्यान्वित कर रहे हैं। आप भी इन सभी प्रकार की गतिविधियों में प्रवेश कर सकते हैं, सभी आक्रान्त स्थानों पर जाकर सहजयोग द्वारा उनकी रक्षा कर सकते हैं। सर्वप्रथम, में सोचती हूँ कि, पावनता पर आक्रमण हो रहा है। पवित्रता पर आक्रमण होना अत्यन्त भयानक है क्योंकि छोटी आयु में बच्चों को ये अन्तर्बोध हो जाता है कि उनका क्या होगा ? अत: हमें इन सब अबोध बच्चों के विषय में सोचना चाहिए कि हम उनके लिए क्या कर सकते हैं, किस प्रकार उनकी रक्षा कर सकते बहुत 10 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-10.txt हैं? किस प्रकार हम यह सब कार्यान्वित कर सकते हैं? स्वयं से ऊपर उठकर अन्य लोगों तक पहुँचना आपका कार्य होना चाहिए। ठीक है, आपको आत्मसाक्षात्कार प्राप्त हो गया है, स्वयं को आपने सुधार लिया है, स्वयं को आप पूर्णत्व की ओर ले जा रहे हैं, ये सब कुछ है परन्तु अब क्या होना चाहिए? किस उद्देश्य के लिए आपमें यह ज्योति प्रज्जवलित की गई, यह अन्य लोगों के लिए है। सहजयोगियों को अब दूसरों के लिए जीवित रहना होगा अपने लिए नहीं। उन्हें सारी शक्ति, सारा आश्रय, सारे आशीर्वाद प्राप्त हो जाएंगे। तो अब हमें दूसरे लोगों के लिए जीना है। किस प्रकार हम दूसरे लोगों के लिए जीए । यह बात बहुत सहज है। दूसरे लोगों के लिए चिन्ता, हर चीज़ के लिए सोच-विचार, पृथ्वी माँ के लिए चिन्ता, अपने पड़ोसियों के लिए चिन्ता तथा विश्वभर के दुःखी लोगों के लिए चिन्ता होनी चाहिए। आप यदि समाचार पत्र पढ़े तो हैरान होंगे कि किस प्रकार घटनाएं घटित हो रही हैं, किस प्रकार लोग कष्ट उठा रहे हैं? मूलत: हमें समझना चाहिए कि जब तक आन्तरिक परिवर्तन नहीं हो जाता तब तक इस विश्व को परिवर्तित नहीं कर सकते। आप सब लोग दूसरों में अन्तर्परिवर्तन ला सकते हैं। अत: लोगों में अन्तर्परिवर्तन लाना आपका कर्तव्य है, आपका कार्य है। उन्हें बताएं कि दिव्य प्रेम क्या है? प्रेम ही सहजयोग कार्यान्वित करने का एक मात्र मार्ग है। आक्रामकता के अन्धेरे को यदि आप गहनता से देखें तो बहुत से आशीर्वाद और से लोगों के विचार स्पष्ट हो जाएंगे। यह सागर है, महानता का सागर। यह दिव्य प्रेम इतना महान है, इतना शक्तिशाली है और इतना कोमल है। प्रकृति को देखें, किस तरह से पेड़ बढ़ते हैं? हर पत्ते को सूर्य की धूप प्राप्त होती है, हर पेड़ की अपनी ही स्थिति है। हमें प्रकृति से बहुत कुछ सीखना है क्योंकि प्रकृति उस प्रेम से बंधी हुई है। प्रकृति में आक्रामकता का पूर्ण अभाव है। यह पूरी तरह से परमेश्वरी प्रेम के वश में है। इस सूझ- बूझ के साथ आप समझे कि जब आप साधकों के पास जाते हैं तो आपका दृष्टिकोण कैसा होना चाहिए? आपकी चाल-ढाल कैसी होनी चाहिए? किस प्रकार आपको उनसे बातचीत करनी चाहिए? किस प्रकार उन्हें समझना चाहिए? किस प्रकार अपना प्रेम अभिव्यक्त करना बहुत चाहिए यह बिल्कुल सम्भव है, यह कठिन नही है। आपको न तो डरना चाहिए न संकोच करना चाहिए। अत्यन्त मधुरतापूर्वक आप उनसे बातचीत कर सकते हैं, उन्हें समझा सकते हैं, बता सकते हैं। यही वक्त है जब ये घटित होना था। यही कारण है कि आदिशक्ति को आना पड़ा। उनके बिना यह सम्भव न होता। बहुत से अवतरण आए परन्तु वे किसी विशेष चक्र पर ही सीमित रहे और कुछ अन्य स्वयं को आस-पास के लोगों में स्थापित करने में ही लगे रहे। उन्होंने प्रयत्न किया, इसे कार्यान्वित किया। परन्तु वास्तविकता में यह भली-भाँति कार्यान्वित न हो पाया। अत: आदिशक्ति को आना पड़ा और वे सभी अवतरण भी उनके साथ आए। वे सब हमारे साथ हैं। वो सभी आपकी सहायता करना चाहते हैं। उनकी इच्छा है। कि हर अच्छा कार्य, जो आप करना चाहते हैं, उसके लिए ये पावन चैतन्य लहरियाँ आपके 11 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-12.txt आपा पश प्रदर्शन करने के लिए, आपी सहायता करने के लिए, आपको बल देने के लिए और प्रेम करने के लिए से चैतन्य लहरियाँ निश्चित रूप से आपके साथ होंगी। साथ हों। सहजयोग के सभी कार्यों के लिए ये चैतन्य-लहरियाँ, आपका पथ प्रदर्शन करने के लिए, आपकी सहायता करने के लिए, आपको बल देने के लिए और प्रेम करने के लिए ये चैतन्य लहरियाँ निश्चित रूप से आपके साथ होंगी। आप हैरान होंगे कि किस प्रकार लोग सहजयोग का कार्य आरम्भ करना चाहते हैं। सभी कोनों से किस प्रकार उन्हें आशीर्वाद प्राप्त होते हैं। अत: सब लोगों को अपने मस्तिष्क में निर्णय करना चाहिए कि उनके सभी स्वप्न साकार हों । से इसके लिए आपको समझना होगा कि सहजयोग का प्रसार करना ही आपके जीवन का लक्ष्य है। अब भी बहुत सहजयोगी मुझे लिखते हैं, 'श्रीमाताजी, मेरे साथ ऐसा हो रहा है, मेरे साथ वैसा हो रहा है, मेरे पिताजी ऐसे हैं, मेरी माताजी वैसी हैं,' इस तरह का दृष्टिकोण आपको समाप्त कर देगा। यह सब अब वास्तव में समाप्त हो गया है। पहले लोग मुझे इस प्रकार के पत्र लिखा करते थे। परन्तु अब मुझे लगता है कि वो यह सब त्याग रहे हैं। मैं नहीं जानती कि क्या हुआ है? यह ऐसा अद्वितीय समय है जब ये प्रकाश सर्वत्र फैल गया है। प्रकृति पूर्णत: आपके साथ है। आप देख सकते हैं कि प्रकृति किस प्रकार कार्य कर रही है और किस प्रकार आपकी सहायता कर रही है और आपको सम्भल देने के लिए प्रयत्नशील है। किस प्रकार आपके किये सभी कार्य करने को यह उद्यत है। यह बात महसूस की जानी चाहिए और समझी जानी चाहिए कि आप अत्यन्त विशिष्ट लोग हैं और आप सबको, एक दो को नहीं, सभी को पूर्ण सहायता प्राप्त है। केवल दस लोगों के झुण्ड को नहीं, सभी सहजयोगियों को। मानो पूरा सागर ही आपकी सहायता के लिए तैयार हो, डूबते हुए बहुत से लोगों को बचाने में आपको तैरा कर पार करने के लिए तैयार हो। आपने ऐसा सागर नहीं देखा है जहाँ इतनी गहनता है और जहाँ आनन्द के साम्राज्य में आपको मुरली बनाने के लिए, आपकी रक्षा करने के लिए सभी प्रकार के प्रयत्न किए जाते हैं । आपके साथ यह सब घटित हो चुका है क्योंकि इसका एक उद्देश्य है । ऐसा केवल आपके पूर्व -पुण्यों आदि के कारण नहीं है। कुछ लोग कहते हैं कि पूर्वजन्मों के सुकृत्यों के कारण हमें यह प्राप्त हुआ है। यह सच है। कारण ये भी हो सकता है कि उसके परिणाम स्वरूप अब आप लोगों को आत्मसाक्षात्कार देने के योग्य हो गये हैं और अब यही कार्य आपने करना है। आप लोग जो इस बीहड़ (संसार) में आए हैं उन्हें इसकी कर्तव्य विमूढ़ता से ऊपर उठना होगा और सभी लोगों को आशीर्वादित करना होगा, विशेष तौर पर अमेरिका के लोगों को बार-बार आशीर्वादित करना होगा क्योंकि अमेरिका विराट है, क्योंकि यह श्री कृष्ण की भूमि है, क्योंकि लोग सदैव आपका अनुसरण करने और आपकी नकल करने का प्रयत्न करेंगे। पूर्व -पुण्य यदि आपके पास हैं तो नि:सन्देह चीज़ें सुधरेंगी। परन्तु अब इसके लिए कुछ कार्य करने के विषय में आपका क्या विचार है? क्यों न आप इसके लिए कुछ कार्य करें? यही अत्यन्त महत्वपूर्णतम | कार्य है। अब जो कार्य आपने करना है वह है केवल अपनी गतिविधियों का पता लगाना। आप क्या करते रहे हैं? पता लगाएं कि आपने क्या किया है और क्या कर सकते हैं? ध्यान धारणा करते हुए अपने विषय में सोचें। आप कितने उन्नत हुए हैं? आपने क्या कार्य किया है? अन्य लोगों को आपने क्या दिया है? जो कुछ आपको प्राप्त हुआ उसे यदि आप बाँटेंगे नहीं तो यह बढ़ेगा नहीं। यह मूल सिद्धान्त है जो कार्यरत है। मैंने देखा है कि कुछ लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं, बहुत अच्छे हैं, जो सहजयोग के विषय में सभी कुछ जानते हैं, परन्तु अभी तक उनमें आत्मविश्वास की कमी है या वे वांछित रूप से गहन नहीं हैं। यह सब हो पाना केवल तभी सम्भव है जब आप नए सहजयोगी बनाने में जुट जाएंगे; अपनी मशहरी के लिए उनके हित के लिए और मानव मात्र के हित के लिए अधिक सहजयोगी बनाने में जब आप लग जाएंगे | 13 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-13.txt ये विनाशकारी विचार हैं जो सारी अच्छाईयों को नष्ट कर देंगे । मुझे कहा गया था कि, 'अमेरिका आऊँ और यहाँ ठहरूं, ' इससे अमेरिका का सुधार होगा। तो मैं यहाँ आ गयी हू। मैं यहाँ आई, यहाँ ठहरी और निश्चित रूप से अपना पूरा चित्त यहाँ डाला क्योंकि अमेरिका बहुत महत्वपूर्ण, अत्यन्त महत्वपूर्ण चक्र है। और यह इतना महत्वपूर्ण देश कभी-कभी मूर्खता पूर्ण कार्य करता है। मैं नहीं कहती कि आप राजनीति में प्रवेश करें, नहीं। मैं नहीं कहूँगी कि आप किसी तरह का विरोध करें या विरोधी समूह बना लें, नहीं। परन्तु आपको यह जान लेना होगा कि आपमें शक्तियाँ हैं, आपके विचारों और इच्छाओं में भी शक्तियाँ हैं इनका परीक्षण करें । एक बार जब आप आजमाइश करेंगे तो आपको पता चलेगा कि इन चीज़ों पर आपके चित्त डालने से ही कार्य हो जाएगा। मुझे विश्वास है कि इससे कार्य हो जाएगा। यह देश निश्चित रूप से मानव मात्र का उद्धार करने में सहायक हो सकता है। परन्तु यह तो उल्टी दिशा में चल रहा है। कहने से मेरा अभिप्राय है कि अमरीकी संस्कृति मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आती कि क्या है? वे कहते कुछ और करते कुछ और हैं। परम्परागत इतने समय में बनाई और स्वीकार की गई उनकी मूल्य प्रणाली उचित नहीं है। उनकी मूल्य प्रणाली इतनी उलझी हुई है कि केवल सहजयोगी ही अपनी सहज प्राप्त महानता से इन लोगों की जटिलता को दूर कर सकता है। उनके विचार अत्यन्त अजीबोगरीब हैं। ये विचार आपको रोक न पाएं और न ही आपके मार्ग में बाधा बन सकें क्योंकि ये अत्यन्त मूर्खतापूर्ण हैं। ये विनाशकारी विचार हैं जो सारी अच्छाईयों को नष्ट कर देंगे । आपको समझ लेना चाहिए कि अमेरीका के सहजयोगियों की जिम्मेदारी अन्य सहजयोगियों से कहीं अधिक है क्योंकि परमेश्वरी शक्ति उन्हें अत्यन्त सक्षम एवं प्रभावशाली मानती है। परमेश्वरी शक्ति सोचती है कि अब आपको आगे बढ़कर बहत सा कार्य करना चाहिए। हमारे पास शक्ति भी है और मशीनरी भी। परन्तु मशीनरी यदि कार्य न करे तो शक्ति का क्या उपयोग है। वह बेकार है। अतः मशीनरी को कार्य करना चाहिए और यह कार्य कर रही है, यह फैल रही है। परन्तु हमें अपने प्रयत्नों को दुगना करना होगा। मैं यहाँ कुछ सामाजिक कार्य करने के विषय में सोच रही थी ताकि यह लोगों को प्रभावित कर सके। सूक्ष्म स्तर पर तो हमने कार्य किया है परन्तु अब हमें स्थूल स्तर पर भी कार्य करना होगा। सूक्ष्म स्तर पर तो हमने उपलब्धि प्राप्त की है, परन्तु हम अभी बहुत अधिक प्राप्त कर सकते हैं। इससे बाहर आकर हमें सोचना होगा कि सांसारिक स्तर पर हम क्या कर सकते हैं जिससे लोग देख सकें कि सहजयोग क्या है और हम लोगों के लिए | क्या कर सकते हैं। आपका व्यक्तिगत आचरण, सामूहिक आचरण, राष्ट्रीय आचरण सभी मिलकर वातावरण को परिवर्तित करेंगे-उस वातावरण का जो बनावटी है ताकि वह भी सूक्ष्म बन सके। यह बात मैं बहुत से स्थानों पर कहती रही हूँ। परन्तु इस पूजा में यह बात कहना महत्वपूर्ण है कि आप यदि वास्तव में आदिशक्ति के हैं तो आपको समझ लेना होगा कि आपकी शक्तियाँ अनन्त हैं। आपको वह शक्तियाँ दर्शानी होंगी। ये जड़ नहीं हैं, यह तो एक आन्दोलन है जो कि अच्छे प्रकार का है। ये जानता है कि कहाँ प्रवेश करना है और किस प्रकार करना है। अब इस स्थान को ही देखें। क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि मैं इस स्थान के विषय में सोच भी सकती थी? मेरे मन में इतना अवश्य था कि यहाँ कहीं हमें कोई स्थान लेना चाहिए क्योंकि अमेरिका के सहजयोगियों के पास ध्यान के लिए कोई स्थान नहीं सम्मुख | है। बस, इतना ही। अब देखो कि किस प्रकार हमें यह स्थान मिल गया है। परन्तु आपके सूक्ष्म स्तर पर यह सब करने की इच्छा आप में होनी चाहिए तब यह कार्य करता है, जादू की तरह से कार्य करता है। मैं अब आपको बता दूँ कि स्वयं पर विश्वास करें और इसके विषय में फैसला कर लें। मैं बहुत प्रसन्न हूँ कि इतनी आसानी से ये सब प्राप्त हो गया , विश्वास नहीं होता, इतनी आसानी से कि कोई अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ी। जिस प्रकार हमें ये भूमि मिल गई ये सब इतना 14 প 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-14.txt हा इ सहज था मानो बेचने वाला भी कोई सहजयोगी हो । बड़े जोश में वह आया, यह भूमि हमें बेची और समाप्त। न तो हमें उसे कुछ समझाना पड़ा और न ही कीमत कम करने के लिए कहना पड़ा, कुछ भी नहीं और उसने ये भूमि हमें बेच दी। इसी प्रकार सूक्ष्म स्तर पर जिस चीज़ की भी इच्छा आप करते हैं तो आपकी इच्छा महान शक्ति बन जाती है। और स्वयं कार्य करने लगती है। ये जानती है कि कहाँ जाना है, किस प्रकार प्रवेश करना है और किस क्षेत्र में और यह कार्य को करवा लेती है। इस शक्ति का अनुभव आप सब लोगों को करना चाहिए और पूर्ण विश्वास के साथ इसे कार्यान्वित करना चाहिए। यह हमारा प्रेम है, हमारी चिन्ता है। इसी शक्ति ने हमें आत्मसाक्षात्कार दिया है और इसी ने उपलब्धियों का वैभव हमें प्रदान किया है । मुझे विश्वास है कि यहाँ उपस्थित आप सभी लोगों ने इस बात को महसूस किया होगा कि यह सब किस प्रकार घटित हुआ और कितनी शीघ्रता से। यह हमें विश्वस्त करेंगी कि हममें क्या करने की शक्ति है? क्या उपलब्धि पाने की योग्यता हममें है? और जब अज्ञानान्धकार में खोए इतने लोगों के विषय में जब आप सोचते हैं तो हमें वास्तव में अपने अन्दर वह चिन्ता और वह तड़प देखनी चाहिए कि किस प्रकार इनकी सहायता कर सकता हूँ। आप हैरान होंगे कि एक बार जब आप इस प्रकार सोचने लगेंगे तो यह दिव्य शक्ति आपकी सहायता के लिए आती है। छोटी-छोटी चीज़ों और समस्याओं को भुला दें। आपके पीछे इतनी महान शक्ति है। ये सच है कि ये पूरा ब्रह्माण्ड और सभी कुछ सृजन करने के पश्चात् महानतम कार्य जो इस दिव्य शक्ति ने किया वह है सहजयोगियों का सृजन। यह महानतम कार्य है। जिनमें यह मैं आपकी सृष्टि की गई। और यह सब कार्य हुआ। परन्तु ज्ञान है, यह शुद्ध ज्ञान है, जिनके हृदय में परमेश्वरी प्रेम है, ऐसा व्यक्ति कितना महान है! केवल इसके विषय में सोचे और आपको वह प्रेम अभिव्यक्त करने के सभी अवसर प्राप्त हो जाएंगे । परमात्मा आपको धन्य करें। 15 रा 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-15.txt ১ ० ्र दुल्हना को उपदेश दिल्ली, २३ मार्च २००० कर 28 ह 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-16.txt oicp.cop.co.cp.co.cp.co.co.cco.cm आप सब लोगों को इतने सुन्दर वस्त्रों में सुसज्जित देखकर बहुत अच्छा लगा। मैं आपको बताना चाहती हूँ आपका विवाह सहजयोगियों से हो रहा है। यह बात आपने सदैव याद रखनी है। आजकल हम देख रहे हैं कि सहजयोग में भी विवाह टूट रहे हैं तथा ऐसा बहुत कुछ हो रहा है। परन्तु कभी-कभी तो केवल एक प्रतिशत ही विवाह टूटते हैं, सफल नहीं हो पाते। इसका कारण ये है कि वे सहजयोगी होने की अपनी जिम्मेदारी को नहीं समझते हैं । इसलिए मैं चाहती हूँ कि आप सब लोग सदैव याद रखें कि आपका विवाह एक सहजयोगी से हुआ है और सदैव इस बात को याद रखें। आप उसका सम्मान करें, उसकी देखभाल करें और उसे प्रेम करें। हो सकता है कि कभी वह थोड़ा बहुत असन्तुलित हो जाए। बड़ी ही शान्ति से आपने उसे वापिस सन्तुलन में लाना है। सहजयोगियों के समाज को सुरक्षित रखना आपकी जिम्मेदारी है। लोग आपके घर में आएंगे, सहजयोगी, उनकी पत्नियाँ, बच्चे। आपको उनकी देखभाल करनी होगी क्योंकि आप ही सहजयोगी समाज की कार्यभारी हैं, हो सकता है आप बहत धन कमाती हो, बहत ही अच्छी स्थिति में हों। परन्तु सदैव आपको ये बात समझनी चाहिए कि आपने सहजयोग चालू रखना है। यह बहुत बड़ा उत्तरदायित्व है। यह सहजयोग समाज को सुरक्षित रखता है। अत: सभी को प्रेम करें, सभी की देखभाल करें । कभी न सोचें कि यह आपका निजी घर है और आप वहाँ की साम्राज्ञी हैं। आप माँ हैं, बहन हैं और सहजयोगियों की सभी प्रकार से सम्बन्धी हैं। अत: जब भी वे आपके घर में आएं उनके प्रति पूर्ण सम्मान दिखाएं। अपने पति से कभी उनकी शिकायत न करें, उसे अच्छा नहीं लगेगा । सदैव याद रखें आपका धैर्य, आपका प्रेम, आपका पथ प्रदर्शन निश्चित रूप से आपके विवाहित जीवन को संवारेगा। आप यदि प्रसन्न रहना चाहती हैं तो आपको जानना होगा कि अन्य लोगों को किस प्रकार प्रसन्न रखें। दूसरों को यदि आप प्रसन्न नहीं रख सकती तो स्वयं भी कभी प्रसन्न नहीं हो सकतीं। अपनी आवश्यकताओं, इच्छाओं और अपने ही विचारों के विषय में नहीं सोचना चाहिए। सभी कार्य अत्यन्त शालीनता से करने चाहिए क्योंकि आप भद्र महिला हैं। आपकी शैली अत्यन्त शालीन होनी चाहिए। किसी पर आपको न तो चिल्लाना चाहिए न ही क्रोधित होना चाहिए और न ही किसी के साथ दुर्व्यवहार करना चाहिए । मैं तुरन्त जान जाती हूँ कि कठोर गृहणी कौन सी है? लोग मुझे बताते हैं कि श्रीमाताजी वह अजीब औरत है, लोगों से व्यवहार करना भी नहीं जानती। ऐसी बातें मैं सुनना नहीं चाहती। मैं सुनना चाहती हूँ कि आप बहुत ही मधुर और अच्छी पत्नी हैं जो अपने पति और सहजयोग परिवार की देखभाल करती है। आपका यही कार्य है। इसमें अपमानित महसूस करने की कोई बात नहीं। सहजयोग में आपको ऐसा ही करना है। इसी कारण से आप इतने महत्वपूर्ण हो गए हैं। आप नहीं जानती कि महिला की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण है, इतनी महत्वपूर्ण कि वह पूरे परिवार को एक सुन्दर बगिया में परिवर्तित कर सकती है। अपने माधुर्य से, अपने प्रेममय सृजनात्मक मस्तिष्क से वह ये कार्य कर सकती है। अपनी प्रेम की कला को खोज निकालें और इसका उपयोग उन पर करें जो परेशान हो या नाराज हो या बिगड़े हुए हो। आप ऐसा कर सकती हैं । उस व्यक्ति को शान्त करना तथा उसे प्रभावित करना आपको आना चाहिए । 17 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-17.txt যে कতি चारित्रिक उदारता आपका प्रथम गुण होना चाहिए। किसी को यदि किसी चीज़ की आवश्यकता है तो आपको चाहिए कि उसे वो दे दें । तब आपको अपनी उदारता का आनन्द आएगा। दूसरे लोगों को क्षमा करते हुए भी आप लोगों को उदार होना है। क्षमा बहुत ही महत्वपूर्ण है, इससे आपको अपना विवाहित जीवन बोझिल नहीं लगेगा । क्षमा करें, स्वयं को भी क्षमा करना। किसी भी चीज़़ के लिए स्वयं को दोषी न माने, क्योंकि आप भी तो सहजयोगी हैं। आपसे भी यदि कोई गलती हो गई है तो कोई बात नहीं। परन्तु आपमें माधुर्य होना चाहिए। एक पत्नी का माधुर्य जो दूसरे लोगों को भी प्रेम एवं शान्ति प्रदान कर सके। आपको न तो रौबीला होना है और न तो आक्रामक, बिल्कुल भी नहीं । इसके विपरीत आप लोग तो बहुत कुछ सहन कर सकते हो और किसी मूर्खता को मज़ाक में परिवर्तित कर सकते हो । कोई भी चीज़ इतनी गम्भीर नहीं होती कि उसके लिए झगड़ा किया जाए। ये सब बाते तो हँसने के लिए होती है। प्रसन्नचित्त होकर आपको सदा मुस्कराते रहना है। आपका विवाह आपके लिए, आपके पति के लिए, सभी सहजयोगियों के लिए बहुत सुन्दर साबित होगा। मुझे पूरा विश्वास है कि आपके विवाह यदि सफल होंगे तो आपको अत्यन्त सुन्दर जन्मजात साक्षात्कारी बच्चे होंगे। अत: आप अपने बच्चों तथा अन्य बच्चों के लिए बहुत अच्छी माताएं साबित होंगी। ये सब भविष्य के गर्भ मे आपके लिए निहित है । मैं मुझे पूरा विश्वास है कि आपके विवाह यदि सफ़ल हीगे तो आपको अत्यन्त सुन्दर जनमजात जानती हूँ कि आप सब अपने आगामी जीवन का बहुत आनन्द लेंगी और इसे साक्षात्कारी इतना सुन्दर बनाएंगी कि सभी लोग कहेंगे इन सहयोगिनियों को देखो, ये कितनी महान हैं। इनके जीवन कितने खुशहाल हैं। हमें अपनी गलतियों पर चित्त देना चाहिए, दूसरों पर नहीं। लोगों में स्वयं को सुधारने की योग्यता है। आप केवल इनके हित की इच्छा करें और उनके प्रति अत्यन्त स्नेहमय एवं विनम्र हों । मुझे विश्वास है कि आप सब इतने अच्छे परिवार बना सकते हैं जो देखने में नहीं आते। अत: परिवार में पति के बारे में या किसी अन्य के बारे में पति से कोई शिकायत नहीं होनी चाहिए । स्वयं को इतना मधुर बनाएं कि सभी लोग आपका प्रेम एवं पथ प्रदर्शन पाना चाहें और इसके लिए आपके पास आएं। मुझे आशा है आप ऐसा कर सकते हैं । बहत सी सहजयोगिनियों ने मेरा नाम रोशन किया है, उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया है। आपसे भी मैं यही आशा करती बुते होंगे । हं परमात्मा आपको धन्य करें। 18 १nc 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-18.txt दस धर्म शी ६ ९ मार्च १९७९ नाभि में ही विष्णुजी का जो स्थान है, और विष्णु या जिसे हम लक्ष्मी, उनकी जो शक्ति मानते हैं-इसी में हमारी खोज होती है। जब हम अमीबा में रहते, तो हम खाना खोजते थे | जरा उससे बड़े जानवर हो गए तो और कुछ शुरू खाना पीना और संग-साथी ढूँढते हैं। उसके बाद हम इन्सान बन गए तो हम सत्ता खोजते हैं। हम इसमें पैसा खोजते हैं। बहुत से लोग तो खाने-पीने में मरे जाते हैं।...... .....जब ये स्थिति मनुष्य की आ जाती है-जब उसकी सत्ता खत्म हो गई, जब उसको समझ में आया कि सत्ता में नहीं रहा, पैसे में नहीं रहा, किसी चीज़ में उसे वह आनन्द नहीं मिला, जिसे खोज रहा था, तब आनन्द की खोज शुरू हो जाती है। वो भी नाभि चक्र से ही होती है। इसी खोज के कारण आज हम अमीबा से इन्सान बने। और इसी खोज के कारण, जिससे हम परमात्मा को खोजते हैं, हम इन्सान से अतिमानव होते हैं। 'आत्मा' को पहचानते हैं। आत्मा को पहचानते हैं-इसी खोज से। इसलिए लक्ष्मी-तत्व बहत जरूरी चीज़ है । | और लक्ष्मी-तत्त्व जो बैठा हुआ है, उसके चारों तरफ धर्म है । मनुष्य के दस धर्म बने हुए हैं। अब आप आधुनिक हो गए तो आप सब धर्म उठाकर चूल्हे में डाल दीजिए, भई आप आधुनिक हो गए, क्या कहने आपके! लेकिन ये तो आपके अन्दर दसों धर्म हैं ही। ये स्थित हैं, ये वहाँ हैं। अगर मनुष्य के दस धर्म नहीं रहे, तो वो राक्षस हो जाएगा। जैसे ये सोने का धर्म होता है कि ये खराब नहीं होता, इसी तरह से आपके अन्दर जो दस धर्म हैं, वो आपको बनाए रखने हैं-जो मानव धर्म हैं। अगर इन धर्मों की आप अवहेलना करें-और उसके उपधर्म भी हैं-तो आपका कभी भी उद्धार नहीं हो सकता, कभी भी आप पार नहीं हो सकते। पहले , जब तक आप धर्म को नहीं बनाते हैं, तब तक आप 'धर्मातीत' नहीं हो सकते - धर्म से ऊपर नहीं उठ सकते। पहले इन धर्मों को बनाना पड़ता है और इसलिए इन गुरुओं ने बहुत मेहनत की, बहुत मेहनत करी है इनकी मेहनत को हम लोग बिल्कुल मटियामेट कर रहे है, अपनी अक्ल की वजह से । सब इसको खत्म कर रहे हैं। 'इन धर्मों को बनाना हमारा पहला परम कर्तव्य है।' 19 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-19.txt सत्य की प्राप्ति ही सबसे बडी प्राप्ति है २५ और २६ मार्च २००१, दिल्ली ॐा 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-20.txt सत्य को खोजने वाले और जिन्होंने सत्य को खोज भी लिया है , ऐसे सब साधकों को हमारा प्रणाम्। दिल्ली में इतने व्यापक रूप में सहजयोग फैला हुआ है कि एक जमाने में तो विश्वास ही नहीं होता था कि दिल्ली में दो-चार भी सहजयोगी मिलेंगे। यहाँ का वातावरण ही ऐसा उस वक्त था कि जब लोग सत्ता के पीछे दौड रहे थे और व्यवसायिक लोग पैसे के पीछे दौड़ रहे थे। तो मैं ये सोचती थी कि ये लोग अपने आत्मा की ओर कब मुडेंगे। पर देखा गया कि सत्ता के पीछे दौड़ने से वह सारी दौड़ निष्फल हो जाती। थोडे दिन टिकती है। ना जाने कितने लोग सत्ताधारी हुए और कितने उसमें से उतर गये। उसी तरह जो लोग धन प्राप्ति के लिए जीवन बिताते हैं उनका भी हाल वही हो जाता है। क्योंकि कोई सी भी चीज़ जो हमारी वास्तविकता से दूर है उसके तरफ जाने से अन्त में यही सिद्ध होता है कि ये वास्तविकता नहीं है। उसका सुख, उसका आनन्द क्षणभर में भंगूर हो जाता है। और इसी वजह से मैं देखती हूँ दिल्ली में इस कदर लोगों में जागृति आ गई है। ये जागृति आपकी अपनी संपत्ति है। ये आपके अपने शुद्ध हृदय से पाये हुए, प्रेम की बरसात है। इसमें ना जाने हमारा लेना देना कितना है। इसमें समझने की बात ये है कि अगर आपके अन्दर ये सूझबूझ नहीं होती, तो इस तरह से ये कार्य सम्पन्न नहीं हो सकता। इसमें एक चीज़ समझना है कि अनेक सन्तों ने इस देश में मेहनत की है। हर एक के घर-घर में उनके बारे में चर्चा होती है। और उन सन्तों के बारे में बहुत कुछ मालुमात बुजुर्गों को तो है पर बच्चों को भी हो जाती है। धीरे -धीरे ये बात जमती है कि आखिर ये लोग ऐसे कौन थे जिन्होंने इतना परमार्थ साध्य किया। पता नहीं कैसे इतने व्यावसायिक लोग जिनका सारा ध्यान रातदिन पैसा कमाने में, सत्ता कमाने में जाता है। वो मुडकर सहजयोग में आ गये। क्योंकि उनकी जो वह खोज थी उसमें | आनन्द नहीं था। उसमें नहीं था। शान्ति नहीं थी। किसी प्रकार का विशेष जीवन नहीं था। जब सुकून मनुष्य ये पता लगा लेता है कि उसके अन्दर कोई ऐसी वास्तविक आनन्द की भावना आयी है, न ही उसने उस सुख को पाया, जिसके लिए वह इस संसार में आया। ना जाने कैसे एक ज्योत से दूसरी ज्योत जलती गयी और आज मैं देखती हूँ कि यहाँ हजारों लोग उपस्थित हैं जिन्होंने अपने अन्दर की अन्तरात्मा को पहचाना है। सबसे पहले जान लेना चाहिए कि हमारे अन्दर जो बहुत सी त्रुटियाँ हैं, उसका कारण है कि हम लोगों ने धर्म को समझा नहीं है। जो धर्म मातंडोंने बना दिया, हमने उसी को सत्य मान लिया। कुछ उन्होंने कहा कि आईये कुछ अनुष्ठान करिये। यहाँ कुछ पूजापाठ करिये और कुछ इस तरह की चीजें बनायी गयी। मुसलमानों को भी इस तरह से पढ़ाया गया कि तुम अगर इस तरह से नमाज़ पढ़ो, और इन मुल्लाओं के कहने पे चलो तो तुम्हें मोक्ष मिल जाएगा। अब मनुष्य सोचने लगा कि ऐसा तो कुछ हुआ नहीं। ऐसी तो कोई प्राप्ति हुई नहीं। फिर ये है क्या ? फिर हम ये कर्मकाण्ड क्यों करें? ये कर्मकाण्ड हमें गहरे अन्धकार में ले जाते हैं। हम लोग सोचते हैं कि उस कर्मकाण्ड से कुछ पाएंगे तो हमने बहुत कुछ पाया नहीं। जन्मजन्मान्तर से लोगों ने कितने कर्मकाण्ड किये हैं। उन्होंने क्या पाया? अब पाने का 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-21.txt ा ा सत्य की प्राप्ति यही सबसे बड़ी चीज है समय भी आ गया है। आज इस कलियुग में ये समय आ गया है, ऐसा आ गया है कि आपको सत्य प्राप्त हो। सत्य की प्राप्ति यही सबसे बड़ी चीज़ है और सत्य ही प्रेम है। और प्रेम ही सत्य है। उसके ओर आप जरा विचार करें कि हम साधकों को खोजते हैं तो सोचते हैं कि हम सन्यास ले लें, हिमालय पे जाएं। अपने बाल मुण्डवा लें और इसी तरह की चीजें करें। जब सत्य का वास अन्दर है तो बाह्य की चीज़ों से और उपकरणों से क्या होने वाला है। इससे तो मनुष्य सत्य को नहीं पा सकता। क्योंकि इसके साथ कोई सत्य लिपटा ही नहीं है। तो करना क्या है? करना ये है कि आपके अन्दर जो सुप्त शक्ति कुण्डलिनी की है, उसको जागृत करना है। अब 'कुण्डलिनी की शक्ति आपके अन्दर है या नहीं ऐसी शंका करना भी व्यर्थ है। हर एक इन्सान के अन्दर त्रिकोणाकार अस्थी में कुण्डलिनी की शक्ति है। और उसे जागृत करना बहुत ही जरुरी है जिससे कि आप उस चीज़ को आप प्राप्त करें जिसे मैं कहती हूँ, 'सत्य', 'वास्तविकता' । सबने कहा है कि, 'अपने को जानो, अपने को पहचानो।' लेकिन कैसे ? हम तो अपने आपको जानते नहीं है। ना जाने अन्दर से हम कितने त्रुटियों से भरे हुए हैं। लोभ, मोह, मद, मत्सर सब तरह की चीज़ें हमारे अन्दर है। और हम यह समझ नहीं पाते कि कहाँ से ये सब चीजें आ रही है, जो हमें इस तरह से ग्रसित की हई है। इस चीज़ को अगर आप ध्यान से समझे कि एक बात है कि ये त्रुटियाँ सब बाह्य की है। आत्मा शुद्ध निरन्तर है। उसके ऊपर कोई भी तरह की लांछना नहीं है। और जब आई है तो ये किसी वजह से आयी होगी। हो सकता है कि आपकी परम्परागत आई होगी। पूर्वजन्म से आयी, माँ-बाप से आयी, समाज से आयी, ना जाने कहाँ-कहाँ से ये सब चीज़ आपके अन्दर समाविष्ट हई। अब इसके पीछे खोजते रहे कि ये कहाँ से आयी, इससे अच्छा है कि इसको नष्ट करें। ये हमारे अन्दर जो खराबियाँ हैं यही नष्ट हो जाएं तो फिर क्या हम एक शुद्ध चित्त बन जाते हैं। इसकी व्यवस्था जिस परमेश्वर ने आपको बनाया उसने की है। अब आपके अन्दर इतनी स्वतन्त्रता है कि आप अपने को पहचानने के लिए जो सर्व सिद्ध प्रक्रिया है उसे अपनाये और वह प्रक्रिया है कुण्डलिनी जागरण की । मैं यह बात कह रही हूँ ऐसी बात नहीं है। अनादि काल से इस भारत वर्ष में कुण्डलिनी की और कुण्डलिनी जागरण की बात की गयी है। हाँ, हालांकि उस वक्त ये कुण्डलिनी का जागरण बहुत कम लोगों को प्राप्त हुआ था और बहुत मुश्किलें होती थी। लेकिन इसका भी समय आ जाता है कि ये 22 ० 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-22.txt और सत्य ही प्रेम है। और प्रेम ही सत्य है। सामूहिक हो जाए। और आज यही बात है कि उस सामूहिक स्थिति में आपने कुण्डलिनी का जागरण हैं और जब आपके पाया है। अब आप इस सामूहिक स्थिति में कुण्डलिनी के जागरण से प्लावित हुए अन्दर एक विशेष रूप का चैतन्य स्वरूप प्रकट हुआ है, उस वक्त आपने ये सोचना चाहिए कि वास्तविक में मैं तो ये हूँ और आज तक ना जाने किस चीज़ के पीछे भ्रामकता में मैं जा रहा था।' ये सब होता गया। आपके अन्दर जमता गया, बनता गया। और ये सब आपके दुर्बुद्धि, सुबुद्धि और ना जाने किस चीज़ से झुँझता गया। सबसे बड़ी बात ये है कि हमने अगर अपने को पहचानना है तो सर्वप्रथम हमारा सम्बन्ध चारों तरफ फैली हुई इस चैतन्य सृष्टि से होना चाहिए। चैतन्य से एकाकारिता प्राप्त होनी चाहिए। और उसके लिए, चैतन्य से एकाकारिता के लिए कुण्डलिनी ही और कोई मार्ग नहीं। कोई कुछ भी बतायें और कोई मार्ग है ही नहीं। उसका मार्ग है। लेकिन लोग आपको भुलावे में डालते हैं और लोग भटकने लगते हैं। मैं एक बार एक गुरुजी का प्रवचन सुन रही थी तो उन्होंने शुरू में ही गालियाँ देना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा 'आप लोग विकृत हैं'-माने गाली हो गयी और आपके जो तरीके हैं उसमें आप भगवान को नहीं खोज रहे हैं। आप प्रवृत्ति | मार्गी हैं, आप हर एक चीज़ के तरफ दौड़ते हैं। ये तो बात सही है। आप इस तरफ से, उस तरफ से दौडते हैं और दौड़ के आप उसमें खो जाते हैं। इस दौड में इस तरह के प्रवृत्ती में हमारी सारी ही शक्ति नष्ट हो जाती है। आज ये चाहिए, तो कल वह चाहिए, परसो वह चाहिए। तो भाग रहे हैं इधर से उधर, उधर से उधर। अब ये जो उन्होंने गाली बक दी कि आप प्रवृत्ती मार्गी हैं, मान लेते हैं कि अच्छा हम प्रवृत्ती मार्गी हैं और वो दूसरे के लिए कहते हैं आप निवृत्ती मार्गी नहीं है। तो आप क्यों आत्मा को प्राप्त कर रहे हो? अगर आप निवृत्ती मार्गी हैं मतलब आपकी वृत्ती इधर-उधर नहीं दौडती तो आप आत्मा को पा सकते हैं। अब पहले ही इस तरह की कठिन समस्या उपस्थित कर दी किे सर्वसाधारण मनुष्य अपने को सोचेगा कि हाँ भाई, मैं तो हूँ प्रवृत्ति मार्गी। तो वो कहेंगे, 'ठीक है आप गुरुओं की सेवा करो उनको पैसा दो, उन पे मेहनत करो, ये कर्मकाण्ड करो, इधर पैसा लगाओ, उधर पैसा लगाओ और जिस तरह | से हो सकता है तुम सब कुछ अपना परमेश्वर को दे दो, उसके बाद सन्यास ले लो।' अब आपको ये बात समझ में आ जाती है। भाई, ये आसान चीज़ है। पर ये अंधों की बात है। अच्छे भले आँख होते हुए कोई अगर कहें भी कि तुम अंधे हो तो कैसे मान लेना चाहिए। कोई कहेगा कि आप प्रवृत्ती मार्गी हैं, तो क्या उसे मान लेना चाहिए? अगर आपके अन्दर निवृत्ती नहीं है - ऐसा उनका कहना है- तो आप 23 ड 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-23.txt 7USTAM 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-24.txt ज्ञानमार्ग-मतलब सहजयोग में नहीं आ सकते! इस तरह की एक भाषा ये लोग व्यवहार में लाते हैं। और उससे सर्वसाधारण जनता ये कहती है कि हमारे लिए ये ठीक है कि गुरुओं की सेवा करनी चाहिए। उनको सब दो, उनको सब समर्पण दो। इस तरह की हमारे अन्दर जो एक गलत धारणा बैठ जाती है और हम उसे मान भी लेते हैं क्योंकि हमारे अन्दर ये विश्वास ही नहीं है कि हम कभी अपने आत्मा को पा सकते हैं? और जिससे हम अपनों को जान सकते हैं। यहाँ आज बहत सारे लोग बैठे हैं। जिन्होंने कुण्डलिनी का जागरण और उसकी विशेषताओं से पूर्णतया अपने जीवन को प्रफुल्लित किया हुआ है। और आप लोग सभी इस प्रकार इस चीज़ को पा सकते हैं । आपमें कोई कमी नहीं है। कोई कमी नहीं । ये शक्ति आप सबके अन्दर है। आपने कुछ भी किया हो , आपने कोई भी गलत काम किया हो, आप परमात्मा के विरोध में भी खड़े हो, चाहे कुछ भी किया हो, ये कुण्डलिनी तो अपनी जगह बैठी हुई है। और जब कोई उसको जगाने वाला आएगा तो वह जग जाएगी। और ये जो बाह्य की चीजें हैं, जिसको हम प्रवृत्ती कहते हैं, ये जो आपके अन्दर षड्रिपू हैं, एकदम झड़ जाएंगे । जब आप देखते हैं कि कोई बीज आप माँ के उदर में डालते हैं तो अपने आप प्रस्फुटित होता है। बीज में तो कुछ नहीं दिखाई देता। पर वह जब माँ के पेट में जाता है तो अपने आप प्रस्फुटित होता है। इतना ही नहीं पर उसके अंग प्रत्यंग में जीवन आ जाता है। उसी प्रकार कुण्डलिनी के जागरण से आप जागृत हो जाते हैं। और आपके अन्दर की जो वृत्तियाँ जो नाशकारी है, गलत है, अपने आप झड़ जाती है। ये बड़ा आश्चर्य का विषय है। किन्तु ये ऐसे बड़े आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि ये घोर कलियुग है और इसके प्रताप से ना जाने कितने लोग झुलस गये। और अब इसी कलियुग में यह कार्य होने वाला है और इसी कलियुग में आप इसे प्राप्त करने वाले हैं। और उस परमतत्व को आप प्राप्त करने वाले हैं, जो आपके अन्दर से आत्मा स्वरूप विराजित उसके प्रकाश में आप अपने को जानेंगे। आप जानेंगे कि आपके अन्दर कौन-कौन से दोष बीत गये। और अब आप शुद्ध चित्त वाले , आत्मास्वरूप हो गये हैं। इसको जब आप जान लेंगे कि यह स्थिति है और यही सच्चाई है तो जितनी झूठी बाते हैं, आप उसे छोड देंगे । उससे क्या फायदा है? किसी भी झूठी बात को साथ लेकर के आप कहाँ जा सकते हैं? पर तब तक झूठ नहीं दिखाई देता जब तक आपकी आत्मा जागृत नहीं है। आत्मा के प्रकाश में ही आप उस झूठ को समझ रहे हैं। सकते हैं जो आपको हर तरह से भुलावे में रखता है। और इस भुलावे में हर तरह के लोग घूम | बर आप दुनिया के तरफ नज़र करें। किसी भी धर्म का नाम लेकर आज लड रहे हैं। अरे भाई, जब धर्म है, एक ही परमात्मा है, तो लड़ क्यों रहे हैं? इस तरह के भुलावे जब तय्यार हो जाते हैं दिमाखी जमा -खर्च बन जाता है और उसको लोग अपना लेते हैं। उसका कारण यही है कि उनकी समझ में अभी यह प्रकाश नहीं है। जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो आपका सम्बन्ध उस परम चैतन्य के शक्ति से हो जाता है। 25 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-25.txt हे हैं या रिअॅक्ट कर र बाब जब आप प्रक्रिया कर रहे हैं और ये सम्बन्ध बड़ा माना हुआ है। आइनस्टाइन जैसे इतने बड़े साइंटिस्ट ने ये कहा है कि जब आपका सम्बन्ध 'टॉर्शन एरिया' जिसे कहते हैं उससे होता है तो अकस्मात ऐसी चीज़े होती हैं जिस तरह से आप शांत चित्त के हो जाते हैं। और उस शांत चित्त में ना जाने कितनी उपलब्धियाँ होती हैं । जितने तरह के नये-नये प्रयोग आपने किये हैं, नयी-नयी उपलब्धियाँ होती है, ये सारी चीजें होते हुए भी जब लोग बार -बार जगकर सो जाते हैं और सोकर फिर जगते हैं ऐसी भी दशा चलती है। ऐसे लोग नहीं होते कि | जो एक बार पार हो गये सो हो गये। उसके बाद उनकी गहनता कितनी है उस पर निर्भर है। अगर आप गहन है तो ये चीज़ जब आपके अन्दर जागृत होती है तो उसका बड़ा गहन अनुभव होता है। आप एकदम निर्विचारिता में चले जाते हैं। आज ही में बता रही थी कि मनुष्य विचार क्यों करता है। हर समय हर एक चीज़ पे देखना और उस पर विचार करना। कोई भी चीज़ जैसे ये कार्पेट है। कहाँ से आया, कितने में आया, दुनिया भर की झंझट इसके लिए होगी। बजाय इसके कि इतना सुन्दर है उसका आनन्द लें, मनुष्य सोचता ही रहता है। और इस तरह के सोच विचार से मनुष्य कभी-कभी पगला भी जाता है। तो किसी भी चीज़ की ओर देख कर के उस पर प्रक्रिया करना, रिअॅक्ट करना, इससे बढ़के और कोई गलती नहीं है। क्योंकि जब आप प्रक्रिया कर रहे हैं या रिअंँक्ट कर रहे हैं तो वो आप अपने अहंकार के कारण या आपके अन्दर जो सुप्त चेतना, जिसको कन्डिशनिंग कहते हैं उसके कारण होता है। आप इसलिए नहीं कर रहे हैं कि आप उसे पूरी तरह से देख रहे हैं वह साक्षी स्वरूपत्व में आप उसको पूरी तरह से देखते हैं। अगर उसको आप पूरी तरह से देख लें तो उसका आनन्द आपके अन्दर पूरी तरह से समा जाएगा। सबसे तो बड़ी बात ये है कि इस दशा में आने की बात तो बहतों ने की। मैं कह रही हूँ ऐसी बात नहीं है। वह बहत से लोग समझ नहीं पाए होंगे या सोचे होंगे कि ये कैसे हो सकता है। हम तो एक मानव है और ये कैसे हो सकता है? कुण्डलिनी जागरण से सब हो सकता है। और जब कुण्डलिनी आप सबके अन्दर वास्तव्य किये हुए है, जब वह स्थित है वहाँ, तो सिर्फ उसके जागरण की बात है। ये आपका धरोहर है, ये आपकी अपनी चीज़ है, जिसे आपने खरीदी नहीं, जिसके लिए पैसा नहीं दिया, किसी तरह की याचना नहीं की। वह अन्दर है। स्थित है। सिर्फ उसकी जागृति होने का विचार होना चाहिए। ये कुण्डलिनी शक्ति जो है वो आपकी बड़ी इच्छा है, बड़ी शुद्ध इच्छा है। शुद्ध इच्छा हमारे यहाँ कोई नहीं जैसे कि कोई साहब हैं, वह कहते हैं कि मैं एक मोटर खरीदना चाहता हूँ। फिर आ गयी मोटर। तो उसका आनन्द ही नहीं 26 ० 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-26.txt तो वो आप अपने अहंकार के कारण उठाया और लगे दूसरा कुछ ढूँढने, तो वह चीज़ हो गयी, तो लगे तीसरी चीज़ ढूँढने। तो इसका मतलब है आपकी जो इच्छाएं हैं वह शुद्ध नहीं हैं। अगर वह शुद्ध इच्छा होती तो आप तृप्त होते। ये कुण्डलिनी शक्ति आपकी शुद्ध इच्छा है। और ये परमेश्वरी इच्छा है। ये जब आपके अन्दर जागृत हो जाती है, आप तृप्त हो जाते हैं। तृप्त हो जाते हैं माने आप ये सोचते हैं, कि ये जो मेरा मन - ये चाहिए, वो चाहिए सोचता था, उसकी जगह में ऐसी सुन्दर बाग में आया हूँ, जहाँ सुगन्ध ही सुगन्ध, आनन्द ही आनन्द, शान्ति ही शान्ति और प्रेम ही प्रेम बसा हुआ है। ये जब स्थिति आपकी आ जाए तो फिर आप मुड़के नहीं देखते उधर, जो गलत चीज़़ है, अधिकतर होते हैं, ऐसे भी लोग जो उठते हैं फिर गिरते हैं। पर सहजयोग में जिसने इसे एक बार प्राप्त की है वो इतनी महत्वपूर्ण चीज़ है और इतनी सहज में होती है। तो इसके लिए कुछ करना नहीं है। इसके लिए आपको पैसा देना नहीं है। कोई चीज़ नहीं, प्रार्थना नहीं, कुछ भी नहीं। सिर्फ आपके अन्दर शुद्ध इच्छा होनी चाहिए कि मैं अपने महत्व को प्राप्त करूं इस शुद्ध इच्छा से ही आप उसे प्राप्त करेंगे। सिर्फ मन में यही एक इच्छा रखें कि मेरी कुण्डलिनी जागृत हो जाए। ये इच्छा ही इतनी प्रबल है कि इससे अनेक लोग, अनेक देशों में मैंने देखा कि एकदम से पार हो गये। जैसे एक देश है बेनिन। वहाँ पर पहले वो मुसलमान लोग थे। और वो फ्रेंच लोगों से इतना घबरा गये थे कि उन्होंने मुसलमान धर्म ले लिया। वो मुसलमान धर्म लेने के बाद वो संतुष्ट नहीं थे। उससे भी परेशान, उससे भी झगड़े। पर जब उनको सहजयोग मिल गया तो सब कुछ छोड़-छाड़के अब मजे ले रहे हैं। आपको आश्चर्य होगा कि अब वहाँ भी चौदह हज़ार सहजयोगी हैं। सब मुसलमान। ये तो मैं मुसलमान उनको मानती हूँ जिनके हाथ में चैतन्य है। जिनके हाथ बोलेंगे। आज कियामा का जमाना है। जब आपके हाथ बोलते हैं तो आप मुसलमान है नहीं तो है नहीं। मुसलमान का मतलब है समर्पण। और जब तक आपके हाथ नहीं बोलते आपके अन्दर समर्पण नहीं । इस तरह से गलतफहमी में पड़े हुए लोग आज ना जाने क्या-क्या चीज़ें करते हैं। इसके लिए ये नहीं है कि आप अगर वेदशास्त्र पढ़ते हैं या अगर आप तीर्थयात्रा करते हैं और दुनियाभर के ब्राह्मणों को, आज हमारे पड़ोस में एक बड़़े जोरो में मन्त्र बोलने लग गये, ऐसे लोगों को आप प्रोत्साहित करते हैं और उनकी मदद करते हैं और उनको पैसा देते हैं, इससे कुछ नहीं होने वाला। ये सब बेकार की बाते हैं, बेवकुफी की बाते हैं। समझदारी क्या है? आपको क्या मिला, आपने सब दिया, आपको क्या मिला ? क्या आपको अपना आत्मसाक्षात्कार मिला? आत्मसाक्षात्कार के बाद ही आप जानेंगे कि आप क्या हैं। और क्या आपकी शक्तियाँ हैं। और 27 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-27.txt इस सहज समाज में वही करना है जो सारे संसार का उद्धार कर सके। क्या कर सकते हैं आप, कितने समर्थ हैं। जब तक आपका अर्थ ही नहीं मिलता तो आप समर्थ कैसे होंगे? इस समर्थता में आप अनेक कार्य कर सकते हैं। मुझे तो इतना आश्चर्य होता है कि मैं जब परदेस में रहती हूँ तो ये परदेसियोंने, जिन्होंने कभी कुण्डलिनी का नाम भी नहीं सुना जब से पार हो गये तो ना जाने क्या-क्या चमत्कार कर रहे हैं दुनियाभर की चीज़़ों में। जब मुझे बताते हैं तो मैं सोचती हूँ कि ये | चमत्कार का भण्डारा जो है, ये कैसे एकदम से खुल गया! ये लोग इसे कैसे प्राप्त कर लिये। सब तरह से शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक, आपकी पूर्णतया प्रगति हो जाती है और आप इसे आत्मसात कर लेते हैं। इतनी सुन्दर चीज़ है कि अपने आत्मा को आप जाने। आप ही के अन्दर ये हीरा है। आप ही के अन्दर ये ज्ञान है। आप ही के अन्दर सब कुछ है। सिर्फ उसका मार्ग जो है सिर्फ कुण्डलिनी जागरण है और कोई नहीं। ये मैं आपसे इसलिए बताना चाहती हूँ कि बहुत बार लोग मुझे प्रश्न पूछते हैं कि कुण्डलिनी के सिवाय कोई मार्ग है क्या ? तो मैं बताती हूँ कोई मार्ग नहीं, सच तो यही है। उसमें मेरा लेना-देना कोई नहीं। लेकिन आपको तो जो सच है वही बताना है। कुण्डलिनी के जागरण के सिवाय आपके पास कोई और मार्ग नहीं है, जिससे आप अपने को भी जाने और दुनिया को भी जाने। जितने भी दुनिया भर के धन्दे हैं, छोड़कर के अपने अन्दर सीधे बसी हई इस महान शक्ति का उद्घाटन करना ही आपका परम कर्तव्य है। आज लोगों को इतनी बड़ी तादाद में देखकर मेरा हृदय भर आता है। एक ज़माना था कि मैं दिल्ली को बिल्ली कहती थी, 'यहाँ तो किसी के खोपड़ी में सहजयोग घुसेगा नहीं।' आज मैं देख रही हूँ कि आप लोगों ने इसे आत्मसात किया है और अपनाया है। सब तरह का लाभ ही लाभ इसमें है। हर और तरह का लाभ इसमें है। और महालक्ष्मी की कृपा हो जाए तो अपना देश भी एक सुरम्य बहुत ही वैभवशाली देश हो सकता है। इसलिए हम सबको सामाजिक रूप से इसे फैलाना चाहिए । और इस सामाजिक रूप में हर तरह का पहलू हमें पहचानना चाहिए। जहाँ-जहाँ लोगों को तकलीफ है-मैंने कम से कम ऐसे सोलाह प्रोजेक्टस् बनाये हैं, जिसमें औरतों को मदद करना, बच्चों को मदद करना, बीमारों को मदद करना, बूढ़ों को मदद करना, खेतीहीन लोगों को मदद करना आदी अनेकों प्रॉजेक्टस् बनाये हैं, जिसमें सहजयोग कार्यशील है। और इस कार्य को करते हुए वो समझते हैं कि ये हमारे अन्दर इतनी शक्ति कैसे है। हम रोगियों को ठीक करते हैं, पागलों को ठीक करते हैं और व्यसनों से छुड़ाते हैं। ये सब 28 O० ए 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-28.txt और जितनी इसकी व्रुटियाँ हैं उसको बिल्कुल पूरी तरह से नष्ट कर सके। शक्तियाँ हमारे अन्दर कैसे है? ये शक्ति आपके अन्दर आने का एकमेव साधन है कुण्डलिनी शक्ति का जागरण। उसको जागृत रखना चाहिए। इधर-उधर भटकने वाले लोगों को चाहिए कि वो जरा रुक जाए और देखें कि आप हैं कौन ? आप कितनी महान वस्तु हैं, आपमें कितना सामर्थ्य है और इसे आपको किस तरह से इस्तेमाल करना चाहिए । मुझे पूर्ण आशा है कि अगले वक्त जब मैं आऊँ तो इससे भी दुगने लोग यहाँ रहे। इतना ही नहीं वो लोग कार्यान्वित हों। सहजयोग में इसको पा कर के आपको सन्यास लेने की जरूरत नहीं है। हिमालय पर जाने की जरूरत नहीं। यहीं, यहीं समाज में रहकर के सहजयोग को फैलाना है। इस तरह से विश्व में एक विशेष सहज समाज बनाना है। इस सहज समाज में वही करना है जो सारे संसार का उद्धार कर सके। और जितनी इसकी त्रुटियाँ हैं उसको बिल्कुल पूरी तरह से नष्ट कर सके। ये कार्य आप सब लोग कर सकते हैं। इसलिए मैं आपसे बार-बार यही कहती रहूँगी कि अपनी जागृति करते रहना। मनन से जागृति बनी रहेगी और जो दोष हैं वह धीरे-धीरे निकल जाएंगे। इससे आप एक सुन्दर स्वरूप बहुत ही बढ़िया व्यक्ति हो जाएंगे। ऐसे अगर व्यक्ति समाज में हो जाए तो ये दुनिया भर की जो आफतें जो मची हुई हैं, दुनिया में ये मारामारी और किस तरह के घोर अत्याचार हो रहे हैं वो सब रुक जाएंगे। क्योंकि | आप एक सुन्दर मानव प्रकृति हो जाएंगे। और इन सब चीज़ों से आप दूर रहकर भी आप इन पर प्रकाश डाल सकते हैं और सब ठीक कर सकते हैं। आज के इस वातावरण में मनुष्य घबरा जा सकता है कि ये हो क्या रहा है? कैसे हो रहा है? इन सबको ये सोचना चाहिए कि एक दिन ऐसा आता है कि सब चीजें उनके सामने आकर खड़ी हो जाती है। और इतने दिन से चलने वाली ये चीज़ आज एकदम से उद्घाटित हो जाए, इसका कारण क्या, कि सब लोगों ने अभी तक आत्मा को वरण नहीं किया है। अगर आत्मा को आप अपना ले तो ना ऐसी गलतियाँ होगी, ना ऐसी चीज़ें आगे चलेंगी। अब ऐसी रुकावट आ गयी है, इन्सान 'खटाक' खड़ा हो गया है। और सोचता है 'ये है क्या?' ये है यही कि आप भटक गये हैं और कुछ लोग तो खाई में गिर गये हैं भटक कर। यही चीजें हैं। इसको समझने की कोशीश करनी चाहिए। इतने सालों से हमारे देश में जो महापाप चल रहा था आज उद्भव हुआ है। सामने आकर खड़ा हो गया। छोटेसे प्रमाण में हो गया। इससे जागृत होने की जरुरत है कि कहीं हम भी इस भटकावे में तो चल नहीं रहे है, कहीं हम भी इस तरह लुड़क तो नहीं गये हैं कि जहाँ हमको जाना नहीं चाहिए। आपको 29 ल 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-29.txt अगर ये चीज़ हम समझ लें कि हमने हमारे 'स्व' का अर्थ आश्चर्य होगा कि आजकल मैं हिन्दुस्थान में देखती हूँ कि हर एक को ये बीमारी है । जो देखो वो ही पैसा बनाता है। जो देखो वही चाहता है कि किस तरह से नोच खसोटले। अच्छा है कि परदेस में ऐसा नहीं है। मुझे खुद हमेशा घबराहट लगी रहती है कि मेरे पास लोग खुद इसलिए आ रहे हैं कि किस तरह से मुझसे पैसा लें। अब ये पैसा मेरा जो है यह समाज कार्य के लिए है। इसलिए नहीं कि कोई चोर- उचक्के आये और मुझे लूट लें। पर वो कोशिश करते हैं। इसी प्रकार एक तरह की हमारे यहाँ भावना आ गयी है कि जैसा भी हो पैसा बना लो। पर ये लक्ष्मी नहीं है, अलक्ष्मी है। क्योंकि आप, जब तक लक्ष्मी आयेगी बहुत चंचल है और वह ऐसे रास्ते पे ले जाएगी कि आपके अन्दर अलक्ष्मी आयेगी । और उस अलक्ष्मी में आपको समझ में नहीं आएगा कि क्या करें। इसलिए किसी भी चीज़ की ज्यादती करने से पहले ये सोचना चाहिए कि हम कहाँ जा रहे हैं, कहाँ अग्रसर हो रहे हैं? कौन से जंजाल में फँस गये हैं। इस तरह की जो भावनाएं हैं कि पैसे के मामले में हमें बहुत सतर्क रहना चाहिए और दूसरों का पैसा कैसे निकाल सकते हैं, वो करना चाहिए, ये चलने वाला नहीं है। पैसा आप क्या अपने साथ उठाके ले जाएंगे? जितना सारा कुकर्म है वह आपही के खोपड़ी पे बैठेगा। क्योंकि मानती हूँ मैं कि ये घोर कलियुग है। इसीके साथ एक और चल रहा है जिसको मैं कृतयुग कहती हूँ। जब ये परम चैतन्य कार्यान्वित है और ये परम चैतन्य वह कार्य कर रहा है जिससे बार-बार ऐसे लोगों को ठोकरे लगेंगी और वो समझ जाएंगे कि ये हमारे सामाजिक हित के विरोध में है। अगर आपको लोगों का हित पाना है, आपके अन्दर वह शक्ति है उसे आप जागृत करें और उनका हित सोचें । किन्तु हित के मामले में भी स्वार्थ नहीं होना चाहिए। असल में अपने यहाँ शब्द इतने सुन्दर हैं 'स्वार्थ ।' स्वार्थ का मतलब 'स्व' का अर्थ। क्या आपने अपने 'स्व' का अर्थ जाना है? 'स्व' का अर्थ जानना ही स्वार्थ है। बाकी सब बेकार है। अगर ये चीज़ हम समझ लें कि हमने हमारे 'स्व' का अर्थ नहीं जाना है तो हम उधर ही अग्रसर होंगे वही हम कार्य करेंगे जिसमें 'स्व' को जानने की व्यवस्था हो। इसलिए आज कल की जो भी कश्मकश चली है, झगड़े बाजी चली है, उसकी परम्परा बहुत पुरानी है। अपने देश में स्थित हो गयी, पता नहीं कैसे? पहले जब अंग्रेज आयें, वो भी ये धन्दे करते रहें। वे हमारे यहाँ से कोहिनूर का हीरा ले गये। उनको जब | तक आप कोई प्रेझेंट नहीं दो वो खुश नहीं होते। वह थोड़े प्रमाण में था अब तो बहुत ही बड़े प्रमाण में है। तब से शुरु हुआ। बढ़ते-बढ़़ते हमारे राजकारणी लोगों ने शुरु किया और आगे बढ़ गया। अब 30 ० 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-30.txt नहीं जाना है तो हम उधर ही होंगे अग्रसंर राजकारणी ही नहीं पर हर एक आदमी ऐसा हो रहा है जो चाहता है कि किस तरह से ड्राका ड्राले, किस तरह से पैसा लूटे। इसका एक ही मार्ग है, वह है सहजयोग । इसीसे हमारा समाज व्यवस्थित हो जाएगा। इसीसे हमारे समाज में आपसी प्रेम और आदर बनेगा। ना कि हम केवल पैसे का आदर करें। अब दूसरी बात है सत्ता। सत्ता के पीछे भी लोग पागल हैं। 'सत्ता चाहिए।' किसलिए चाहिए सत्ता? किसलिए सत्ता चाहिए? आपकी अपने पे सत्ता नहीं है। आप दुनिया पे सत्ता लेकर क्या करोगे? 'सत्ता चाहिए! हमें ये होना है वो होना है!' किस दिन के लिए ? कौनसे उससे लाभ है? उससे आपका क्या लाभ होने वाला है? सत्ता करने के लिए भी बहुत बड़े आदर्श पुरुष हो गये। उनकी हिम्मत, उनका बड़प्पन, सच्चाई, वो तो है नहीं और सत्ता चाहिए। जैसे कोई बन्दर को सत्ता दे दीजिए तो वह क्या करेगा! मराठी में कहते हैं कि बन्दर के हाथ में जलती हुई लकड़ी दे दीजिए तो वह सबको जला देगा। वही है आज सत्ता का रूप। सब बन्दर जैसे अपनी सत्ता का इस्तेमाल करते हैं और पैसा कमाते हैं सत्ता के लिए। इस उनकी तरह के इन दोनों के द्वंद में चलने से आज हमारा देश बहुत ही गिर गया है सामाजिक रूप से। सहजयोग इसका इलाज है। सहजयोग में आने से आप समझ जाएंगे कि ये महामूर्खता है और इस मूर्खता को सहजयोगी नहीं करते। जिस दिन सहजयोग बहुत फैल जाएगा उस दिन ये सब चीज़ नष्ट हो जाएगी। ये रह ही नहीं सकता। इसलिए आपको ये समझना चाहिए कि जो आज-कल हम घबराये हुए हैं कि इस समाज का क्या होगा? उसको ठीक करने का भी, उसको सही रास्ते पर लाने का भी उत्तरदायित्व आपका है। आप कर सकते हैं। सहजयोगी ये कर सकते हैं और जो लोग सहजयोग में नहीं है उनको ला सकते हैं। हमें जो अच्छी समाजव्यवस्था चाहिए, अच्छी एक समाजव्यवस्था हो जिसमें कोई किसीको खसोटे ना और सब लोग आपस में प्रेम भाव से रहे, तो इसका इलाज सिर्फ सहजयोग कर सकता है । सहजयोग दिखने में सीधा-साधा है और सबके अन्दर शक्ति होने से सब सोचते हैं कि हम तो पार हो गये हैं। पर उसमें रमना पड़ता है। उसमें रजना पड़ता है। और उसके बाद ही उसकी सब शक्तियाँ जागृत हो जाती है। उससे आप हिन्दुस्थान ही नहीं सारे संसार का उद्धार कर सकते हैं और इस उद्धार की व्यवस्था होगी। अब इसमें कुछ-कुछ लोग ऐसे हैं कि वो शैतानी के पीछे हैं। उनकी इच्छायें शैतानी है। ठीक है, ऐसे लोग रहेंगे। मैंने आपको बार -बार बताया है कि अब ये 'आखरी जजमेन्ट' आ गया है। | इस वक्त आप अगर अच्छाई को पकड़ेंगे तो आप उठ जाएंगे और बुराई को पकड़ेंगे तो दब जाएंगे। 31 क 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-31.txt हमें देखना चाहिए कि किस तरह से जगह-जगह में भूकम्प आते हैं। अभी गुजरात में भारी बड़ा भूकम्प आया था। वहाँ हमारे सिर्फ अठराह सहजयोगी थे। वो भी गुजरातियों का पता नहीं क्या, सहजयोग से खास मतलब नहीं है। अब टर्की में भी बहुत बड़ा भारी भूकम्प आया। वहाँ पर भी जितने भी सहजयोगी थे सब बच गये। एक से एक। उनके घर भी बिल्कुल सही सलामत। मैंने देखे थे क्योंकि आप परमात्मा के साम्राज्य में आ गये हैं। तो आपका संरक्षण है। तो आपको कोई मार नहीं सकता। कोई आपको नष्ट नहीं कर सकता। ऐसे ही और भी जगह है जहाँ भूकम्प आ गये। वहाँ भी हमने यही देखा है कि सहजयोगी एक भी नष्ट नहीं हुआ। ना उसका घर नष्ट हुआ। लातुर की ये बात है। लातुर में हमारा जहाँ सेंटर था उसके चारों तरफ, चारो तरफ खंदक पडे और बीच में सेंटर बिल्कुल ठीक था और एक भी लातूर का सहजयोगी मरा नहीं । कैसे हुआ? चतुर्दशी के दिन गणपति विसर्जन करते हैं, सबने विसर्जन किया और विसर्जन करके जो आये उनमें से जो लोग दुष्ट प्रवृत्ती के थे उन्होंने शराब पी। शराब पी कर के नाच रहे थे और नाचते -नाचते सब जमीन के अन्दर गये। लातुर में एक भी सहजयोगी किसी | भी तरह से, कोई भी बात से वंचित नही रहा। उसकी गृहस्थी, उसका घर सब ठीक थे। यह क्या चमत्कार नहीं तो और क्या है! इसी प्रकार आप भी समझ लें कि परमात्मा का जो संरक्षण है वह आपके ऊपर है। क्योंकि आप उसके साम्राज्य में हैं। इन सारे साम्राज्यों के बाहर आप इतने ऊँचे चले गये कि आपको अब किसी भी चीज़ का भय नहीं है। कोई भी चीज़ आपको नष्ट नहीं कर सकती। इस तरह से हमने सहजयोग में अनेको उदाहरण देखे हैं। अनेक लोगों को बीमारी से उठते देखा है। ड्रग्ज लेने वाले लोग एक रात में ही बदल जाते हैं। एक रात में बदल गये। किसीको आश्चर्य होगा कि ये कैसे हुआ? वही बात मैंने कही कि कुण्डलिनी के जागरण से अपने अन्दर की सब विकृतियाँ झड़ जाती है और इस तरह से हर जगह में ये कार्य हो रहा है। और लोग अब ये महसूस कर रहे हैं। इसको समझ रहे हैं। कि परिवर्तन की जरुरत है। इस परिवर्तन के सिवा कुछ भी नहीं बदल सकता। कुछ भी ठीक नहीं हो सकता। ये मनुष्य ही है जो सब कुछ गड़बड़ करता है और ये मनुष्य ही है जो खुद इसको उठायेगा, आगे बढ़ायेगा। बड़ा विश्वास है मुझे कि, जिस तरह से यहाँ सहजयोग बढ़ा है और भी आगे बढ़ेगा बहुत और अनेक प्रांगण में, अनेक स्थिति में इसका प्रकाश चारों तरफ फैलेगा। आप सबको अनन्त आशीर्वाद! 32 ० 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-32.txt भौतिक चिकित्सा और हृदय रोग भौतिक चिकित्सा : चैतन्य लहरियाँ जब बहती हैं तो शरीर की माँस पेशियों को आराम प्रदान करती है। तनावों के कारण माँसपेशियों में ऐंठन आ जाती है। उदाहरण के रूप में बाई विशुद्धि या किसी अन्य चक्र में तनाव से रीढ़ की हड्डी में ऐंठन शुरु हो जाती है। जब आप अपने चक्र मुझे समर्पित करते हैं तब ये सुखद अवस्था में आ जाती है और तब चैतन्य लहरियाँ देकर आप इन्हें ठीक कर सकते हैं। ये चैतन्य लहरियाँ आप दसरों को भी दे सकते हैं। दूसरे व्यक्ति को छूने की कोई आवश्यकता नहीं है। मंत्र का उपयोग करते हुए दूर से हाथ चलाकर दूसरे व्यक्ति को चैतन्य लहरियाँ दें। बाईं ओर की बीमारियों (मनोदैहिक रोग ) में आप सामूहिक अवचेतना (collective subconscious) में चले जाते हैं जहाँ प्रोटीन ५२ विषाणु एकत्र कर लेते हैं। इनके कारण कई बार ऐसी स्थिति हो जाती है कि व्यक्ति लाइलाज हो जाता है। जिन लोगों के ज़िगर खराब हैं या जिन्होंने जिगर का दूरुपयोग किया है उन्हें ज्वर आ सकता है। गर्म जिगर को बर्फ रखकर ठीक किया जा सकता है। मलेरिया ज्वर भी दाई ओर का रोग है। बैक्टीरिया द्वारा हुए ज्वर बाई ओर का रोग है। ये विशेष रूप से फफूंद वाले पदार्थों को खाने से होते हैं जैसे खुम्भें (mushrooms), पुराना पनीर आदि। मधुमेह बाई ओर की बाधा से प्रभावित दाईं ओर की प्रतिक्रिया के कारण होता है। शरीर का दायां भाग संवेदनशील होता है। जब आप बहुत अधिक सोचते हैं अपनी आदतों में फँसे रहते हैं तो आपके अन्दर भय पैदा होता है जो आपको अधिक दुर्बल कर देता है। परिश्रमी व्यक्ति जब बहुत अधिक सोचता है तो उसकी चर्बी के कण मस्तिष्क को शक्ति पहुँचाने के लिए उपयोग हो जाते हैं। स्वाधिष्ठान इस कार्य के लिए गतिशील हो उठता है और इस व्यस्तता के कारण बाई ओर उपेक्षित हो जाता है। इसकी शक्तियाँ कम हो जाने से यह मनोदैहिक रोगों का कारण बन जाता है। इस स्थिति में यदि आप में कोई भय आ जाए या दोष भावना आ जाए तो मधुमेह हो सकता है। इसको ठीक करने के लिए 'अली' का मन्त्र लाभकारी है। स्वाधिष्ठान और बाई नाभि चक्र इसके स्रोत हैं। पत्नी के भय के कारण या उसके लिए या परिवार के किसी अन्य सदस्य के लिए चिन्ता करने से बाई नाभि प्रभावित हो जाती है। इस स्थिति में मधूमेह हो सकता है। अपने आज्ञा चक्र को साफ करके इसे ठीक करें। अधिक न सोचें. निर्विचार चेतना में बने रहें। बाई ओर को उठाकर दाईं ओर को डालें। अधिक शक्कर निकालने के कार्य को सन्तुलित करने के लिए नमक का उपयोग बढ़ा दें क्योंकि नमक में स्वच्छता कारक जल होता है। दाई नाभि और स्वाधिष्ठान पर बर्फ रखें और उपयुक्त परीक्षण के पश्चात् शक्कर का उपयोग बन्द कर दें। हृदय रोग : अत्याधिक गतिशील और शिथिल हृदय आक्रामक लोगों में अत्याधिक गतिशील हृदय होता है। ऐसे हालत में हृदयाघात हो सकता है। बहुत छोटी आयु 33 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-33.txt ा में भी ऐसा हो सकता है। चित्त का बहुत अधिक बाहर होना इसका कारण है। अत्याधिक भौतिक दृष्टिकोण होने के कारण आत्मा की ओर उनका चित्त नहीं होता और अन्तत: आत्मा उन्हें त्याग देती है। भविष्य की और परिवार की अधिक चिन्ता के कारण भी व्यक्ति आवांछित रूप से गतिशील हो उठता है जिसके कारण हृदय को अत्याधिक परिश्रम करके रक्त संचार करना पड़ता है और यह थक जाता है। बहुत अधिक मन्त्र आदि जपने वाले, तम्बाकू-सिगरेट पीने वाले लोग पहले अपनी बाई विशुद्धि को खराब कर लेते हैं। जिसके कारण हृदय को रक्त संचार करने में कठिनाई होती है और हृदय थक जाता है। बाईं विशुद्धि के कारण शिथिल हृदय 'हृदय शूल' (Angina) का कारण हो सकता है। हृदयाघात दो तरह के हो सकते हैं। पहली तरह की समस्या को पेट और हृदय की दाई ओर बर्फ रखकर ठीक किया जा सकता है। इसके लिए बाएं को उठाकर दाएं पर भी डाला जा सकता है। पानी पैर क्रिया लाभकारी है। दाई ओर की समस्या के लिए अग्नितत्व (Candle Treatment) नहीं करना चाहिए, बत्ती बुझाकर सोना चाहिए और अधिकतर घर में रहकर पूरा आराम करना चाहिए। दायाँ हाथ बायें हृदय पर रखकर कहना चाहिए, 'श्रीमाताजी में आत्मा हूँ, कृपा करके मुझे क्षमा कर दें।' शिथिल हृदय की समस्याओं में रोगी कह सकता है कि, 'श्रीमाताजी आप ही मेरी बीज मन्त्र हैं, आप ही मन्त्रिका हैं तथा 'मैं निर्दोष हूँ और 'श्रीमाताजी मैं सबको क्षमा करता हूँ।' बाईं ओर को शुद्ध करने के लिए अग्नि तत्व का उपयोग करें। बहुत | प.पू.श्रीमाताजी और डा.तलवार के बीच हुई वार्तालाप का भाग, चैतन्य लहरी २००० र 34 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-34.txt स्वः का मतलब है आत्मा और आत्मा का राज्य आना ही स्वराज्य है। स्वतन्त्र का मतलब है फिर वही आत्मा का तन्त्र माने आत्मा की एक रीत। प.पू.श्री माताजी निर्मलादेवी, ५.१२.९९ प्रकाशक + निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०- २५२८६५३७, २५२८६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in 2010_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-35.txt का के ति अगर हम फूल से पूछते हैं कि उसे क्या चाहिए तो वह कहेगी कि मुझे कोई य नहीं चाहिए, शुज्य वी मुझे कुछ तहीं चाहि, जिस ते से आदिशक्ति चलने बली हैं उस ्ते पए मु डल टीजिए| ও माताल