चैतन्य लहरौ हिन्दी सितंबर-अक्तूबर २०१२ दु मे श्रड इस प२मात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े बिनी व्यक्ति उस यन्त्र के समान होता है जो न तौ अपने सोत से जुड़ा अंक ही जिसका कोई हुआ है और न व्यक्तित्व, अर्थ या लक्ष्य है। सत से तन्त्र कार्य २म्बन्ध जुड़ते ही स करने लगती है तथा अपनी अभिव्यक्ति में करती है। प.पू.श्री माताजी, १३.९.१९९५ देवी पूजा बाई औ२ ह२ जंगह के अपने-अपने वाइब्रेशन्स होते हैं का ज्ञीन ...२२ ...2G ,४ ...8 म कृपयी ध्यान दें : २०१३ के सभी अंकों की नोंदणी सितंबर २०१२ को शुरू होकर ३० नवंबर २०१२ को समाप्त हो जाएगी] हर जगह के अपने-अपने मतर स ाव सब एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरुरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने-अपने वाइब्रेशन्स होते हैं। म वाइब्रेशन्स होते है १५.३.१९७९ देहली के निवासियों ने सहजयोग में जो मेहनत की है वो बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि आप जानते हैं कि सहजयोग में हमारे कोई भी मेंबरशिप नहीं है, कोई रूल्स नहीं है, कोई रेग्युलेशन्स नहीं है, ना ही कोई हम लोग रजिस्टर रखते हैं और ऐसी हालात में कुछ लोग इससे इतने निगडित हो जायें और इसके साथ इतने मेहनत से काम करें और ये सोंचे कि एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ सब लोग आ सके। अभी तो इनके घरों में ही प्रोग्राम होते हैं। तो इन्होंने मुझसे कहा था। मैंने कहा, 'अच्छा देखो भाई , अगर कोई मिल जाये तुमको कोई जगह तो ठीक है। सबके दृष्टि से जो भी होना है वो अच्छा ही है।' पर मेरे विचार से देहली के लोगों में बहुत ही ज्यादा परमात्मा का आशीर्वाद कार्यान्वित हुआ है। क्योंकि इस तरह से इन लोगों ने काम किया है कि देख कर बड़ा आश्चर्य होता है और जगह में तो बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हो पाया है। ये सब आप ही का अपना है। आप ही के लिये जगह बनी हुई है और आप ही वहाँ रहेंगे और आप ही उसको इस्तेमाल करें, उसका उपयोग करें। लेकिन ये जरूरी है कि एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरूरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने-अपने वाइब्रेशन्स होते हैं। कोई जगह ऐसी बना दी जाए जहाँ के वाइब्रेशन्स ऐसे हो कि आदमी जा कर के शान्तिपूर्वक वहाँ ध्यान करें और उससे लाभ उठाये, तो अच्छा होगा। लेकिन मुझे कुछ इसमें ज़्यादा समझता नहीं है पैसे-वैसे के मामले में। इसलिये जो भी आप लोगों को इसमें त्रुटि दिखायी दें तो आप मुझे बता सकते हैं। अगर कोई गलती हो जाए, कोई गड़बड़ हो जाए, हालांकि आपको आश्चर्य होगा कि सहजयोग को प्राप्त हये लोग जो हैं वो इस कदर इमानदार हैं, इतने ज़्यादा इमानदार है कि समझ नहीं आता है कि इनकी इमानदारी की कोई तुलना किसी से कर सकते हैं या नहीं। किसी भी भय के बगैर ही इतनी इमानदारी इनमें है और इतनी कर्तव्यपरायणता है और इतना प्रेम और इतनी समरसता आपस में है कि आश्चर्य होता है कि ये विभिन्न लोग हैं, विभिन्न धंदे वाले हैं, कोई सरकारी नौकर हैं, कोई कुछ हैं, लेकिन आपस में एक तरह का इतना प्रगाढ़ प्रेम और इतना आदर कि हम लोग सेंट्स हैं और सेंट्स को सेंट्स की रक्षा भी करनी चाहिए और उनकी प्रतिष्ठा भी रखनी चाहिए। इसका इतना ज़्यादा विचार अन्दर से आया हुआ है कि बड़ा आश्चर्य होता है! जैसे कि आपके यहाँ पर सुब्रमणियम साहब हैं और इन्होंने बहुत प्रगति की सहजयोग में। बहत ज़्यादा प्रगति की है। और हम देखते हैं कि जो लोग, जो आदमी प्रगति कर लेता है सहजयोग में उसको अपने ही आप मानने लग जाते हैं। हालांकि वो आदमी इतना प्रेममय होता है। वो कोई चीज़ को कुछ कहता ही नहीं, पर अपने ही आप ऐसे आदमी को मानने लग जाते हैं। क्योंकि उससे ऐसे अच्छे, सुन्दर से चैतन्य के वाइब्रेशन्स आते हैं कि वो मानने लग जाते हैं वो समझ लेते हैं कि ये आदमी हमसे जरा उँची स्थिति पे अभी पहुँचा हुआ है। और उसके लिये कोई कॉम्पिटिशन नहीं होती। उलटी ये कॉम्पिटिशन यही होती है कि हम इनके जैसे कैसे होंगे? इनके जैसे अच्छे कैसे बनेंगे? इनके जैसे दाता कैसे बनेंगे? में उसको। सहजयोग का जो सबसे बड़ा लाभ है वो यही है कि हमारे अन्दर आमूलाग्र बदल हो जाता है। जैसे ही हमारे अन्दर प्रकाश आ जाता है वैसे ही हमारे अन्दर आमूलाग्र बदल हो जाता है। जैसे कि आप देखते हैं अन्धेरे में जब आदमी चलता है तो उसकी चाल ही समझ में नहीं आती। वो कभी इधर टक्कर मारता है, 6. कभी उधर टक्कर मारता है। लेकिन जैसे ही प्रकाश उसके सामने आ जाता है, वो जानता है कि उसे कहाँ जाना है, कैसे चलना है, मर्यादायें जीवन की और सब चीज़ अपने आप बनने लग जाती हैं। वो स्वयं ही मर्यादा से दूर नहीं हटता है। और हमेशा उसको, एक तरह से उसके आत्मा के प्रकाश का आभास रहता है। और वो उसे छोड़ना नहीं चाहता है। जिस क्षण उसे वो छोड़ देता है उसी क्षण वो देखता है कि उसके वाइब्रेशन्स गये हैं और उसकी शान्ति उससे छूट गयी है। तो उसको चिपकता जाता है। जैसे कि छूट किसी को अमृत मिल जाए तो फिर वो गन्दे नाले में नहीं जाता है लेकिन ये घटना है। ये लेक्चर से नहीं होगा। मैं जानती हैँ इसका लेक्चर देने से कुछ नहीं होगा। ये पाने की बात है। जब आप पा लेते हैं, और जब आपका वृक्ष इसमें बढ़ जाता है, जब आप उस स्थिति में पहुँच जाते हैं तभी ये होनी घटता है। और तभी आप ऐसे हो जाते हैं। और इसका अनुभव आप लोगो को भी हुआ है। आप में से बहुत लोग पार हो चुके हैं और बहुतों को मिला हुआ है और इसमें आपको भाषा भी जानना जरूरी नहीं है। अभी एक साहब ने मुझे फ्रेंच भाषा में चिट्ठी लिखी थी। मुझे तो फ्रेंच भाषा पढ़ने ही नहीं आती। मतलब पढ़ तो लेती हूँ, पर समझ नहीं आती। सिर्फ वाइब्रेशन्स से मैं समझ गयी कि इन्होंने कितना प्रेम उसमें भरा हुआ है। ये तो सिर्फ प्याले हैं। प्याले हैं शब्द लेकिन उसके अन्दर का जो सुगन्ध है, उसके अन्दर की जो रस है, जो अमृत है उसकी तृप्ति से ही जो आनन्द है वो कहीं अधिक ज़्यादा है। क्योंकि सिर्फ प्याले देखने से होता है। अगर समझ लीजिए बड़े अच्छे प्याले बने हुये हो, बड़े खुबसूरत प्याले बने हों और उसके अन्दर गन्दी सी कोई चीज़ भरी हो, आप पीते ही साथ उसे थूंक देंगे। वो प्याले से आपको कोई मतलब नहीं। और प्याले कैसे भी रहें, लेकिन अन्दर अगर अमृत हो, तो आदमी उसे पीते ही साथ उस अमृतपान से जो वो तृप्ति पाता है वो उन प्यालों से नहीं पाता है। कल मैंने आपको कुण्डलिनी के बारे में बताया था। और उससे आगे मैं आपको बताना चाहती हूँ। हालांकि अब एक बड़ी, अच्छी, नयी किताब निकल आयी है। आप लोग कृपया वो भी ले लें और उसमें काफी बारिकी से चीज़ें दी गयी हैं। पर ये भी सब शब्द ही शब्द हैं ये समझ लेना चाहिए। अनुभूति के सिवाय, इसमें गहरे बैठे सिवाय सिर्फ ये दिमागी जमा-खर्च करने से कुछ नहीं होने वाला। जब आपके अन्दर अवेकनिंग होने लगती है तब अपने आप चेंजेस आने लग जाते हैं। जैसे कि मैंने आपसे कहा कि जैसे आपके अन्दर नाभि चक्र की जागृति होती है तो पहली चीज़़ ये हो जाती है कि आदमी में तृप्ति का स्वभाव आ जाता है। उसकी प्रायोरिटीज बदलती जाती है। एक साहब मुझे बता रहे थे कि, 'माँ, हमारे घर में तो कोई भी आता है तो बैठता भी नहीं दो मिनट। भागे जाता है। पता नहीं क्या है हमारे घर में?' और जैसे ही वो पार हो गये, उनके यहाँ रोज ही लोग आने लगे । बड़ा आकर्षण उनमें आ गया। तो मैंने कहा, 'कुछ फरक आया तुम्हें? क्या बात है!' कहने लगे, 'हाँ, मेरी समझ में आयी क्या बात हुई।' कहने लगे कि, 'हालांकि जब लोग आते थे तो मैं कोशिश करता था कि उनको खुश करू , उनको चीज़ें देता था। उनको मैं कहता था, ये लो, ये खाओगे, बैठो! लेकिन वो लोग पता नहीं कैसे ये समझ लेते थे कि मैं उपरी तरह से कर रहा हूँ। और मेरी बिवी भी ये काम करती थी। उनसे कहती थी, आप ये खा लीजिए, ये ले लीजिए, पर कुछ चीज़ बचा लेती थी। लगता था उसको कि सब चीज़ सामने न रख दें। कहीं सब रखे 7 और सब खा गये तो कैसे होगा। और उसके बाद ये हुआ कि मैंने अपनी बिवि को भी देखा और अपने को भी देखा कि कोई भी आता है तो हम दिल खोल के भैय्या, आ गये, आओ, बैठो। बिल्कुल इन्फॉरमल हो के, अच्छा, क्या खाओगे? अब ये ले लो, वो ले लो। इस तरह से हम सारी के सारी चीज़े उनके सामने रख देते थे।' और आश्चर्य है कि उनकी बिवी कहने लगी कि, 'पहले मैं इतना बनाती थी कि सब लोग इतना खाते थे उनका मन ही नहीं भरता था। और अब मैं थोड़ासा बनाती हैँ, तो लोग कहते हैं कि आपके हाथ में इतना स्वाद कैसे आ गया? इतना अच्छा बनाया और उसको खायेंगे और उसके बाद इतने संतोष से जाएंगे।' धीरे- धीरे फिर वही लोग फिर सहजयोग की ओर आने लगे। ये नाभि चक्र की एक विशेषता है कि र्त्री के हाथ में अन्नपूर्णा का वरदान हो जाता है। और जब ये नाभि चक्र पूरी तरह से प्रज्वलित हो जाता है, तो हजारों आदमी भी अगर खाने पे रहे खाना खतम नहीं होगा। संतोष बहुत हो जाएगा। लेकिन लोग अगर सोचें कि कितना बनाया? तो ज़्यादा बनाया नहीं है। लेकिन उसमें संतोष आ जाता है। आपके हाथ से संतोष के वाइब्रेशन्स उसमें चले जाते हैं और आदमी उसे खुशी से खाने लगता है। नाभि चक्र से प्रेम बहुत उमड़ता है मनुष्य के अन्दर, बहुत ही प्रेम उमड़ता है। उसको समझ में नहीं आता है मैं इनको कैसे, क्या दूँ? किस तरह से मैं इनको अपना प्रेम दूँ? हम लोग तो कभी सोचते भी नहीं है । प्यार हमारे अन्दर आता भी नहीं है और आया तो भी हम अपना छुपा लेते हैं प्यार कि कहीं ये न सोच लें कि हम कुछ चाह रहे हैं कि कुछ नहीं। नाभि चक्र के खुलते ही आदमी में इतना प्रेम उमड़ आता है कि उसको लगता है कि मैं इनको कैसे क्या देँ कि वो देँ। और एकदम खुल जाता है। एकदम खुल जाता है। उसको लगता है कि भाई आ गये हैं तो इनको किस तरह से खुश किया जाए। क्या दें? किस तरह से आराम दें? किस तरह से ये करें? वो आर्टिफिशिअल नहीं होता है। हमेशा मानव कितना भी खुद आर्टिफिशिअल हो जाए दूसरे की भी आर्टिफिशिआलिटी जानता है। ये आदमी कितना उपरी तरह से कह रहा है और कितना अन्दर से कह रहा है ये मनुष्य तभी पहचानता है। अपने देहातों में जरूर ऐसे लोग होते हैं कि वो खुश हो जाते हैं अगर उनके पास जाओ तो, और अगर उनको बहुत खुश करना हो.... पहले ऐसे लोग होते थे आज कल तो ऐसे लोग रहे नहीं। हम अपने फादर को जानते हैं कि अगर वो बहुत किसी दिन नाराज हो जाए तो उनसे जा के आप कहिए कि 'आज हमें आइसक्रीम खाना है', तो वो बहुत खुश हो जाएंगे। उनसे ऐसी कोई बात कह दीजिए उससे वो खुश हो जाते थे। इस तरह के पहले लोग होते थे और उस प्यार को, उसको देने में और खिलाने में और लोगों को आनन्द देने में उनको बड़ा आनन्द आता था। वही चीज़ अपने अन्दर इतनी ज़्यादा आ जाती है, याने मेरी तो समझ में नहीं आता कि लोगों को कहूँ तो क्या कहूँ कि अब बहत हो गया अब आपस के लिए न करो। देहात में गये तो इन लोगों के लिए न जाने इन्होंने क्या-क्या कर दिया। जितना भी कर सकते थे इनके लिये वहाँ कर दिया। ये अंग्रेज लोग कहते हैं कि, 'हमें कभी नहीं मालूम था कि आपके हिन्दुस्तानियों में इतना प्रेम होता है।' और मैंने कहा, 'तुम लोग नहीं हो? तुममें भी तो बहुत प्रेम आ गया है।' उनमें भी आ गया है, तुम में भी आ गया है। सब प्रेम का आन्दोलन चलता है। हम लोग ज़्यादा से ज़्यादा अपने बच्चे या भी पता नहीं कितना करते हैं। उसमें भी हमारा अपना बिवी या घर के दो-चार लोगों को प्यार करते हैं। वो 8. बना ही रहता है। लेकिन समझ लीजिए बहुत दिन बाद अपना बेटा आ रहा हो, लड़ाई से लड़ के, तो फिर हमारा जी करता है कि अब मिले किस तरह से ? तब एक बार आती है तबियत कि किस तरह से मिले। उतना ही प्यार, सर्वसाधारण ऐसे मुलाकात में भी, 'अरे वो हैं, चलिये, उनसे मिल ले । वो यहाँ रहते हैं उनको देख लें। उनकी कोई तकलीफ है उसे उठा लें। ये हैं तो वो कर लें।' इस तरह की चीज़ें इतनी अन्दर में पनपती है क्योंकि अपने आनन्द की कल्पना ही बदल जाती है। देने में आनन्द आता है। किसी के साथ करने में आनन्द आता है। थोड़ी सी भी चीज़़ हो तो आदमी बोलता है कि ये कर दूँ कि वो कर दूँ कि ऐसे कर दूँ कि वैसे कर दूँ। और इसका आनंद हम लोग आजकल आर्टिफिश अली इतना कैलक्यूलेट करते हैं हर एक चीज़ को, उससे नही आ सकता। तो ये जो प्रेम है जो अपने नाभि में उभरता है, जो हमारे चित्त में फैलता है। इतना ये सर्वव्यापी है और इतना आनंददायी है, इतना शांतिमय है कि आपकी तबियत खुश हो जाती है लोगों से मिलके। अब मैंने तो ऐसे भी लोग देखें हैं कि जो लोगों से बोअर ही होते रहते हैं लोग हमेशा। कोई आया तो फोन पे कहते हैं कि भाई, हम नहीं है घर में, जाईये। भागते रहते हैं। लोगों से भागते रहते हैं सुबह से शाम। कुछ लोग होते भी बड़े बोअर हैं। भागते रहते हैं, उसके बाद में अपने से भी भागते रहते हैं। उनको लगता है क्या करें? दो आदमी बैठें हैं, दोस्त हैं। तो बीच में कॉमिक पढ़ेंगे, ये एक पढ़ेंगे वो एक पढ़ेंगे या एक सिनेमा जा के साथ में देखेंगे । दोनों में कोई आदान-प्रदान नहीं होगा। लेकिन सहजयोगियों का ऐसा नहीं है । ये लोग कुछ पढ़ते नहीं है | कुछ नहीं। जब साथ बैठे रहते हैं तो सब शांति से अपने साथ बैठे आपस में मज़ा उठाते हैं। 'अरे भाई, क्या कर रहे हैं?' 'कुछ नहीं, बैठे हैं।' आपस में मज़ा उठा रहे हैं। कोई आदमी अगर पार हो जाता है.... अभी हम कलकत्ते जब गये थे, तो होटल में ठहरे थे वहाँ। होटल में एक साहब आयें। तीन - चार और लोग साथ में रहते थे दूसरे कमरों में। तो मेरे पैर पे आते साथ उसमें से वाइब्रेशन्स खूब जोर से शुरू हो गये। ये लोग दौड़ते हुए वहाँ से आयें, कहने लगे, 'माँ, कौन तुम्हारे पैर पे आ गया ? ' मैंने कहा, 'क्यों?' कहने लगे, 'उपर से एकदम से वाइब्रेशन्स आ गये।' मैंने कहा, 'देखो, ये!' उसका सुगन्ध ले रहे हैं। मज़ा उठा रहे हैं। अब वो आदमी कौन है? जात का कौन है? पात का कौन है? कौनसे गाँव का है कि कौनसे शहर का है कि कौनसे देश का है? वो उसके पीठ पर से वाइब्रेशन्स आये तो ओ हो हो..... क्या बात है! अब खड़े हुए, मज़ा उठा रहे हैं। वो भी मज़ा उठा रहे हैं, ये भी मज़ा उठा रहे हैं। बहुत बार आप देखते होंगे यहाँ जो सहजयोगी आप लोगों को मेरे पैर पे लाते हैं वो अपने ध्यान में आप लोगों का मज़ा उठा रहे हैं। फिर मैं कहती हूँ, अब ध्यान में मज़ा उठाओ। तुम तो इनका मज़ा उठाने में लग गये। तो मनुष्य की जो तत्व की कमाई है, उसके तत्व में जो कमाई है उसका मजा मनुष्य उठाता है। ये ना कि उसकी दुनिया की चीज़ों पे, क्या आपके पास बड़ी मोटरें हैं, क्या आपके पास बड़े-बड़़े मकानात है, घर है, उससे क्या होगा! इस तरह से हमारे यहाँ औरतों ने भी मर्यादायें छोड़ दीं। अपने घर वाले, अपने ससुराल वाले, अपने मैके वाले इनसे फट्क के रहना इस तरह की अजीब - अजीब चीज़े हमारे अन्दर बढ़ती है और इसका अगर आपको उदाहरण देखना है तो आप परदेस में जा के देखिए । कोई औरत आदमी को पती नहीं मानती वहाँ। 9. र ा॥ अभी पती बेचारे दफ्तर से आये और पता हुआ कि बिवी भाग गई। रोज के वहाँ ये धंधे चलते रहते हैं। आपको आश्चर्य होगा। किसी चीज़ की मर्यादा नहीं। अस्सी साल के बुढ़े आदमी की शादी अठारह साल की लड़की से हो सकती है। अस्सी साल की बुढ़ी औरत अठारह साल के लड़के को प्रेम पत्र लिखती है। बताईये, यहाँ कोई अगर ऐसी बेवकूफी करें तो लोग कहेंगे कि बुढ़िया को क्या हो गया है। क्योंकि उसमें कारण क्या है? मर्यादा जब बनती है तब मनुष्य परिपक्व होता है। देखिए आप, पेड़ हैं। पेड़ अगर बहुत उसमें जरूरत से ज़्यादा बढ़ने लग जाए तो लोग उसको काट देते हैं कि इसकी जो शाखायें बढ़ने लग गयी, फल नहीं लगेंगे। शाखाओं को काट देते हैं। उसी प्रकार हमको भी अपनी जो शाखायें इधर-उधर बढ़ी हैं 10 उसको काट के मर्यादा में रखना पड़ता है कि हम जो हैं हम पूरी तरह से परिपक्व हो जाए। मैच्यूरिटी हमारे अन्दर आ जाए। ये मैच्यूरिटी सिर्फ आपको श्रीरामचंद्र के उदाहरण से आ सकती है। कितनी मैच्यूअर पर्सनैलिटी थी उनकी देखिये। कितना संतुलन उनके अन्दर बँधा। कितना गांभीर्य उनके अन्दर में था। उनकी जितनी भी बातें बताई जायें उतनी कम है। लेकिन उनसे सबसे बड़ी चीज़ जो है कि एक राज्यकर्ते को कैसा होना चाहिए। त्याग में, कितना उसे त्याग करना चाहिए इसका एक उदाहरण है और ये सब राज्यकर्तों को देखना चाहिए कि अपनी पत्नी तो स्वयं आदिशक्ति थी, उनको मालूम था, ये देवी हैं। उनका तक उन्होंने ऐसी स्थिति में त्याग किया जब उनके बच्चे होने वाले थे। समाज और प्रजा को संतोष देने के लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया । लोगों से तो कहिए कि आज कोट बदल दीजिए तो वो तक बदलेंगे नहीं । ये हमारे अन्दर हमारी चेतना में जिस वख्त रामचंद्रजी आयें थे आठ हजार वर्ष पहले तब ये चीज़ हमारे अन्दर जागृत हुई है कि एक राजा को कैसे होना चाहिए! राजा का प्रतीक क्या होना चाहिए? हालांकि ये जरुर हम कहेंगे कि श्रीराम की कृपा से इस देश में ऐसे महान राज्यकर्ते हो गये। एक-एक का नाम लेते साथ दिल हो जाता है। राणा प्रताप... क्या त्यागमय थे। शिवाजी... एक से ऐसा बड़ा एक राजा-महाराजा यहाँ हो गये हैं। जिनका नाम लेते ही आदमी को लगता है 'वाह.. वाह.. क्या आदमी का नाम ले लिया !' इंग्लंड में और अमेरिका में ऐसे बहुत कम हुये। लेकिन तो भी वहाँ आपको मैं बता सकती हूँ कि अब्राहम लिंकन। इतना बड़ा आदमी था अब्राहम लिंकन, इतना, बिल्कुल सही चलने वाला, तत्वनिष्ठ और कोई भी गन्दगी उस आदमी में नहीं थी और मैच्यूरिटी उसके अन्दर थी। पूरी तरह से प्रगल्भित, और एक बड़ा, बढ़िया इन्सान था वो। लेकिन अब अमेरिका ऐसा आदमी नहीं बना सकती ना रशिया बना सकती है। जैसे जैसे इनके हो गये क्योंकि सबकी मर्यादायें टूट गयी। सबसे बड़ा अचिव्हमेंट हमने ये किया कि अपनी मर्यादायें तोड़ दी और इसको हम सोचते हैं 'स्वतंत्रता'। एक छोटी सी बात समझने की है, अगर समझ लीजिए, एक एरोप्लेन है। उसको उड़ना है। उसको मर्यादा में बाँधा जाता है कि नहीं? अगर वो कहें कि, 'मैं इस मर्यादा में नहीं रहूँगा।' तो वो सब उड़ते ही साथ इधर-उधर गिर जाएंगे। कोई भी चीज़ आप जब मर्यादा में बाँधते हैं, समझ लीजिए कि गेहूँ हैं, आप फैला दीजिए तो किसी के हाथ कुछ भी नहीं लगने वाला। उसको मर्यादा में बाँधिये। जो आदमी मर्यादा में नहीं होता उसके साथ आपको चलना- फिरना मुश्किल हो जाता है। ये किस ओर उठ - बैठेगा पता नहीं । इनको तो कोई मर्यादा ही नहीं है। न माँ-बहन, न कोई सी चीज़ 11 समझते हैं। ना बड़ा ना छोटा, कब जवाब दे दें, भागो रे भैया इससे! और इस तरह की बात करने में लोग सोचते हैं कि हमने बड़ी स्मार्ट बात कर दी। हाऽऽ क्या कहने! मैं तो कभी-कभी देखती हूँ, आश्चर्य होता है कि वाद-विवादों में भी, पार्लमेंट में भी मैंने देखा है। मुझे बड़ा आश्चर्य होता था! इतनी बुरी तरह से लोग आपस में बातचीत कैसे कर सकते हैं जिनके कि श्रीराम इस देश में हो गये? उनके हमारे उपर, अनंत उपकार हैं। और जिस इन्सान के अन्दर ये जागृत हो जाता है वो एकदम मर्यादा को प्राप्त होता है। हमारे सहजयोग में भी ऐसा ही है। जब लोग प्राप्त होते हैं इसको तो अपने आप उन्हे मर्यादा आ जाती है। अब अगर कभी आयें, कहें 'बेटा आज टाइम नहीं है, मेरे पैर नहीं छुओ।' बस ठीक है, बैठ गये। कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है उनको। बस इशारे पे देखते रहते हैं। उसमें क्या उनका गया और उन्होंने क्या खोया और जो ऐसा नहीं भी करते हैं, अपने माँ-बाप से इस तरह से बतर्ताव रखते हैं उन्होंने क्या बहुत पाया? उसी तरह अनुशासन का भी है। अनुशासन में अगर आप लोग सोचें कि हम लोग इंडिसिप्लीन से रहे और माँ चीखें और चिल्लायें और आफत मचायें; तो आप अपनी मर्यादाओं को तोड़ते हैं। उससे क्या मिला? क्या मिलता है? लोग कहते हैं स्ट्राइक्स करिये। हमने देखा है स्ट्राइक्स जो लोग करते हैं अधिकतर, जो पैसा कमाते हैं ज़्यादा, वो शराब में ही डालते हैं, कौन सा बड़ा भारी उन्होंने ताज़ बना लिया है इस चीज़ से! मर्यादायें तोड़ कर के कोई सी भी चीज़ पाना बहुत हानीकारक होता है। मर्यादा में रह कर के ही आप सब कुछ पा सकते हैं और मर्यादा तोड़ कर आप कभी भी कुछ हासिल नहीं कर सकते। क्योंकि जो भी आप हासिल करियेगा वो भी मर्यादा रहित होता है। तो इसका तत्व ये है, सीधा तत्व ये है कि अगर आपने मर्यादा तोड़ कर के कोई चीज़ को हासिल किया.... एक बच्चा है समझ लीजिए। उसने अपने माँ-बाप से मर्यादा तोड़ कर उनका रूपया-पैसा छीन लिया, वो वेस्ट हो जाएगा। आप कर के देखिए इस चीज़ को कि आप मर्यादा में रह कर देखिये। हमने तो देखा है कि जो आदमी विनम्र है, जो आदमी मर्यादा में है वो इतना उँचा उठता है क्योंकि उसकी नम्रता ही उसका सौंदर्य है और उसकी मर्यादा ही आपको उसके प्रती एक तरह से आकर्षित करती है। जिस आदमी में मर्यादा नहीं, पता नहीं कहाँ से कौन नौक आपको चुभ जाए। आप कोई नुकीले पत्थर पर बैठना चाहेंगे? फिर आप क्यों नुकीले बनते हैं? आपको खुद पता होना चाहिए कि हम खुद बड़े भारी नुकीले इन्सान हैं, हमारे पास जो भी आता है वो हमसे छीन ही जाएगा। जो खूबसूरती मनुष्य की है वो उसकी मर्यादा में है। जिस मनुष्य में मर्यादा नहीं उसमें कोई भी किसी प्रकार की खूबसूरती नहीं। अब लंडन में या पाश्चिमात्य देशों में लोगों ने बड़ा भारी संघर्ष किया कहते हैं। क्या उन्होंने जितनी भी परंपरायें थी उन्हें तोड़ दिया और तोड़ कर के उन्होंने चाहा कि हम कोई नयी चीज़ बनाये। और तोड़ के क्या आप करने लगे? तो ड्रग्ज लेने लगे। हाँ अगर कोई पाश हो तो उसे तोड़ना चाहिए। कोई अगर पाश हो.... पाश और मर्यादा में बड़ा अंतर होता है उसे समझ लेना चाहिए। कोई अगर आपके ऊपर पाश है, जैसे अंग्रेजों का हमारे ऊपर साम्राज्य था। ये हमारे ऊपर पाश था। उसको तोड़ना चाहिए। गुलामी बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए। लेकिन जो आदमी मर्यादा में रहता है उससे आज़ाद कोई आदमी नहीं होता है। वो अपने आज़ादी में 12 मर्यादा में है। क्योंकि वो आज़ाद है इसलिये नम्र है। जो आदमी को सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी रहती है और जो हमेशा कमी महसूस करता है वो हमेशा हावी रहता है दूसरे पे। श्री राम , जिनका नाम लेने से हमारे हृदय चक्र छूटते हैं, उनकी पत्नी सीताजी स्वयं साक्षात आदिशक्ति का अवतरण है। इन्होंने और भी अवतार बाद में लिये। तब उनको वनवास जाना पड़ा। लोग सोचते हैं 'जब वो इतने भगवान थे तो उन्हे वनवास क्यों जाना पड़ा?' ऐसे लोग कभी भी वनवास वरगैरा नहीं जाते| वो जहाँ भी जाते हैं वहाँ होते हैं। जैसे आज आपसे हम बात कर रहे हैं। अभी यहाँ है हम, बात कर रहे हैं । यहाँ नहीं हैं तो लंडन में हैं। वनवास क्या होता है? यहाँ पण्डॉल है, इसके नीचे में हैं? नहीं है तो पेड़ के नीचे में है। ऐसे लोगों का कोई भी वनवास वरगैरा नहीं होता है। वो जहाँ भी होते हैं, होते हैं। उनके लिये उनका वातावरण और ये कुछ महत्वपूर्ण नहीं रहता। फिर वो क्यों गये? एक सोचने की बात है कि वो अपने राजमहल में रहते हैं। ये सारा नाटक क्यों रचाया? सीताजी बिचारी, जिन्होंने कभी भी नंगे पैर चली नहीं । उनको सारे दर नंगे पैर क्यों ले गये तब? उसकी वजह है। इस देश के हर जगह में अपने वाइब्रेशन्स पहुँचाने के लिये वो पैदल गये थे। सीताजी जब चलती थी तो उनके पैर के वाइब्रेशन्स हर जगह पहुँचते थे, जो सारे देशभर में पहुँच गये। सबसे बड़े टूरिस्ट अपने श्रीरामचंद्रजी थे। यहाँ तक कि वो बैंकॉक आदि जगह से भी हो आये थे। तब अपनी हिन्दुस्तान की जो भूमि थी इस तरह से जुटी हुई थी बाद में ऐसी अलग हो गयी इसलिये इधर से उनको जाना पड़ा, बैंकॉक वरगैरा आदि हो कर के। ये सारा इसलिये नाटक रचाया था कि ये सारे देशभर घूम सके और हर जगह जा कर के अपने वाइब्रेशन्स छोड़ सके। सीताजी की नहानी एक जगह बनी हुई है, राहरी के पास में। मैं वो देखने गयी थी। दूर ही से पता हो रहा था कि वह इनकी ही नहानी है। इतने वाइब्रेशन्स वहाँ आ रहे थे, इतने वाइब्रेशन्स आ रहे थे और इतने अजीब तरह से वहाँ पानी बहता है कि समझ में नहीं आता कि नेचर से भी इस तरह से पानी वहाँ आ गया और किस तरह से हो रहा है? सब बड़ी अजीबोगरीब चीज़ है । लेकिन सबसे बड़ी चीज़ है वहाँ वाइब्रेशन्स क्योंकि जब वो वहाँ रहीं तो उनके सारे वाइब्रेशन्स वहाँ हैं । ये सहज में वाइब्रेशन्स बाँटने का तरीका था। अगर उस वख्त इन्होंने वाइब्रेशन्स नहीं बाँटे होते तो आज हमारा सहजयोग जम नहीं सकता था। क्योंकि आज भी भारत में लोग नंगे पाँव चलते हैं। इस देश का कण-कण वाइब्रेटेड है, शायद आप नहीं जानते! अगर आप पार हो जाएंगे, लंडन से आते कैसे वख्त हमने नीचे झाँक के देखा, मैंने कहा, 'हिन्दुस्तान आ गया।' तो इन लोगों ने कहा कि, 'माँ, जाना?' मैंने कहा कि, 'देखो, वाइब्रेशन्स दिख रहे हैं।' वाइब्रेशन्स ऐसे स्वल्पविराम जैसे ऐसे चिक-चिक- चिक दिख रहे हैं। मैंने कहा, देखो दिख रहा है। ये लोग भी कहने लगे, 'हाँ माँ, हिन्दुस्तान आ गया।' एकदम वाइब्रेशन्स पता चलते हैं। किस भूमि पर आप बैठे हैं? जिस भूमि को श्रीराम ने अपने पाँव से चैतन्यमय किया, उस भूमि में आप बैठे हैं। उस चैतन्य को आप पा लें। उनका जो भी त्याग है, उनके लिये वो नाटक मात्र है। ये बात जरूर है। उनके लिये इसमें कोई अर्थ नहीं। उनको त्यागना क्या और पकड़ना क्या! अरे भाई, जिसने पकड़ा ही नहीं उसका त्याग क्या होता है ? जो कोई पकडे हो वही तो त्याग करेगा ! तो उनका त्यागना और पकड़ना कुछ नहीं था। लेकिन ये जो कुछ भी उन्होंने किया है ये हमारी सहजयोग की तैय्यारियाँ है कि हमारे भारतवर्ष में इसके वाइब्रेशन्स लोगों को मिले । पर दुःख की बात ये है कि हमने चैतन्य तो क्या श्रीराम 13 ही को भूला दिया। अब उनकी दुकानें खोल दी। प्लास्टिक का एक फोटो मिल गया श्रीराम का, बैठ गये उसको लेकर के! और उसकी पूजा शुरू कर दी। कोई बड़े रईस हो गये, पैसे वाले हो गये, तो उन्होंने कहा, चलो भाई , एक श्रीराम का मंदिर खोल दो, जिससे अपने उपर का बोझा उतर जाये कि चलो, हमने कुछ तो कर दिया। एक साहब ने खोला एक मंदिर कहीं। बहुत रईस आदमी थे। उन्होंने ला कर के दिखायी राम की मूर्ति। कहने लगे, 'माँ, ये ठीक है?' मैंने कहा, 'नहीं, बिल्कुल ठीक नहीं ।' तो कहने लगे, 'क्यों?' मैंने कहा, 'श्रीराम की मूर्ति है और वो हृदय चक्र राइट में पकड़ रही है। मतलब श्रीराम के विरोध में है।' तो कहने लगे, 'इसका क्या डाइग्नोसिस हुआ?' मैंने कहा, 'डाइग्नोसिस ये हुआ है कि जिस आदमी ने बनायी है वो उसने अपने पिता से बहुत ज़्यादती करी है। इसका ये डाइग्नोसिस है।' आपको आश्चर्य होगा उसके बाद उन्होंने एक महीने भर बाद बताया कि वो आदमी पकड़ा गया। उसने अपने पिता का खून किया था । श्रीराम की मूर्ति वही आदमी बनाये जिसने अपने पती को या अपने पिता को श्रीरामचंद्र जैसे माना। बाकि किसीको ये अधिकार नहीं कि आया, वही बना रहा है अपना। जो आदमी अपनी पिता की सेवा नहीं कर सकता वो रामचंद्रजी की मूर्ति नहीं बना सकता। उसको अधिकार नहीं। लेकिन जब उसने अपने पिता की बहुत सेवा की, पिता को आनंद देते वक्त अपने में आनंद उठाया है वो अगर कैसी भी मूर्ति बनाये वो इतनी सुंदर होगी, उसके वाइब्रेशन्स, उसकी आनंददायी शक्ति संपूर्ण होगी । चाहे वो मार्बल क्यों न हो, चाहे वो मिट्टी की हो, उसमें चैतन्य है। उसको देखते ही लोगों के मन में भी अपने पिता के प्रति आदर हो। क्योंकि श्रीराम हमारे पिता हैं। वो हमारे पिता स्वरूप हैं। जिस वक्त आपका ये चक्र पकड़ा जाता है तो इसका ये अर्थ होता है कि या तो आप अपने पिता से रूष्ट हैं, पिता के प्रति कर्तव्यपरायण नहीं हैं और या तो अपने पिता की मृत्यु हो गयी है, आप उससे दुःखी हैं। कोई न कोई पिता का संबंध है और ये भी होता है कि आप अपने बच्चों के प्रति अच्छे पिता नहीं हैं। पिता का स्थान जो है वो आपका यहाँ पर, राइट साइड में हार्ट पर होता है। अगर ये स्थान आपका बिगड़ा हुआ है तो उसके ऐसे अनेक अर्थ निकलते हैं। इसके बिगड़ने से पहली भी कृति क्या थी? माने अनेक तरह से होता है, माने आपके पिता की मृत्यू हो गयी है, जो कि अकस्मात हुई और आप अभी उनके लिये परेशान हैं। तो वो अभी मंडरा रहे हैं। हो सकता है कि आप अपने पिता से बहुत दुष्ट व्यवहार कर रहे हैं। हो सकता है कि आप अच्छे पिता नहीं हैं। हो सकता है कि आपके पिता रहे ही नहीं। आपने पिता तत्व जाना ही नहीं। ये पिता का जो तत्व है ये हमारे अंदर किसी भी तरह से सुख पहुँचाता है। इसके इफेक्ट में क्या होता है। अगर किसी आदमी को न्यूमोनिया हो जाये तो ये चक्र पकड़ता है। अगर किसी को अस्थमा की बीमारी हो जाए तो अधिकतर यही चक्र पकड़ा जाता है। आश्चर्य की बात है, दो चक्र 14 हैं, जिसपे हमने देखा है अस्थमा पे आता है, पर अधिकतर आदमी लोगों में ये चक्र तब पकड़ा जाता है जब पिता का तत्व किसी तरह से दु:खी हो। पत्नी के कहने से पिता का अपमान करना। अपने बच्चों के सामने पिता का अपमान करना। या आपका अपने बच्चों का अवमानित करना। अपने बच्चों को निग्लेक्ट करना। ये सब चीज़ें इस चक्र में अति सूक्ष्म दिखायी देती है। अब इतनी सूक्ष्म होती है कि मैं आपसे बताऊँ कि एक साहब थे। तो वो बड़े ही ज़्यादा मॉडर्न थे। तो उनको बच्चा होने वाला था। तो उन्होंने अबॉर्शन करवा लिया। तो उन्होंने कहा कि 'भाई, ये क्यों कराया तुमने?' कहने लगे, 'इसलिये कराया कि हमने सोचा ज्यादा बच्चे होंगे तो हमें परेशानी होगी। हम लोग घूम- 15 ्र ी फिर नहीं सकेंगे। अभी हमारे घूमने-फिरने के दिन हैं। इस वक्त में ये क्या करें?' और उनका ये चक्र इतना पकड़ा है, इतना पकड़ा है कि उनका घूमना-फिरना बंद हो गया। उनको श्वास लग गया। अंत में उनको माफी माँगनी पड़ी। बड़ी मुश्किल से उनका ये चक्र छूटा है। तो ये इतना है कि इसका साक्षात सामने आता है। हमने बहुत से लोगों का अस्थमा ठीक किया है। पच्चीस-पच्चीस साल पुराने लोगों का हमने अस्थमा ठीक किया हुआ है। और उसमें क्या है कि उसका तत्व अगर आप जान लें कि किस वजह से अस्थमा होता है क्योंकि लंग्ज ये कंट्रोल करता है। किसी को न्यूमोनिया हो जाए तो आपको पता चल जाएगा इसको न्यूमोनिया हो रहा है क्योंकि उसका जो है ये चक्र पकड़ जायेगा बहुत जोरो में और उसमें से गर्मी आयेगी । अब ये चक्र हमारे उँगली पर कहाँ दिखायी देता है? ये! राइट साइड में। अब लेफ्ट साइड में भी हार्ट है और बीचोबीच भी हार्ट है। इस तरह से तीन हार्ट की स्थितियाँ हैं। अब जो बीच का हार्ट है यहाँ श्री जगदम्बा का स्थान है। इसको हम दर्गा, ललिता आदि कहते हैं, जिन्होंने अनेक बार इस संसार में अवतरण लिया। और ये जो भवसागर में जो भक्त लोग परमात्मा को खोजते हैं उनके लिये वो अवतार लेती हैं और सबकी रक्षा करती हैं। तो इनका इसेन्स जो है, इनका जो तत्व है वो है रक्षा! अब किसी औरत में समझ लीजिए सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी आ गयी, देखिये कितनी बारीक चीज़ है, किसी औरत में समझ लीजिए सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी आ गयी, उसका आदमी अच्छा न हो, इधर-उधर भागता हो, जिसकी तरफ से परेशान हो, उसको ब्रेस्ट कैन्सर हो जाएगा। उसको ब्रेस्ट कैन्सर हो जाएगा क्योंकि उसकी रक्षा का जो है वो स्थान रिक्त है। 'सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी' है। बहुत से आदमी लोग सोचते हैं कि औरतों को डरा दे और उनको डाँटें कि तुम बड़ी शक्की हो, तुम ऐसी हो, वैसी हो। अगर औरत को शक हो तो उस चीज़ पे नहीं उतरना चाहिए। छोड़ देना चाहिए। उसको बुरा नहीं मानना चाहिए। क्योंकि उसको आप अगर जबरदस्ती कोई चीज़ करेंगे तो उसका बीच का हृदय चक्र पकड़ेगा और उसको ऐसी तकलीफ होगी। ऐसे औरतों को दूध नहीं होता है बच्चों के लिए। सूख जाती है। 'सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी' आदमी में भी बहुत बार होती है। जैसे कि नौकरी का मामला है, कुछ हो गया तब भी आप जानते हैं कि यहाँ धकधक धकधक होता है। जैसे ही मनुष्य पैदा होता है उसका ये जो यहाँ पर स्टर्नम कर के जो बोन है, जो हड्डी है, उस हड्डी में अँटीबॉडीज तैयार होती हैं साइन्स में। अँटीबॉडीज वही जगदम्बा के सिपाही हैं, जो तैयार होते हैं। और वो सारे बॉडी में बिखर के रह जाते हैं। और जिस वक्त भी कौन सा भी अँटैक आता है इन्सान तो वो अँटीबॉडीज उसकी मदद करते हैं। लेकिन अगर जगदम्बा का तत्व बिल्कुल ही गया-बीता हो तो पर, ये अँटीबॉडीज भी मुरझाकर रह जाती हैं क्योंकि उनका जो संचालन है वो दुर्गा तत्व से है। आपको मालूम होगा कि जैसे भय हो जाए आदमी का दिल धड़कने लगता है धकधक धकधक। अब इस मामले में ये कहना चाहिए कि ये माँ का स्थान है। हमारे देश में लोग माँ को बहत ऊँचा मानते हैं। अपनी माँ को तो मानते हैं लेकिन अपने बच्चों की माँ को तो नहीं मानते हैं। क्योंकि ये हमारे बच्चों की माँ है इसलिये ये भी बड़ी महत्वपूर्ण चीज़ है। जब तक हम अपने बच्चों की माँ को वो स्थान न दें जैसे कि हमारे माँ का स्थान था । उनकी माँ ने भी सफर किया और उनके बच्चों की माँ भी सफर कर रही है। तब ये चक्र डेवलप होता है और इससे बहुत सिरियस बातें हो जाती हैं । 16 जैसे कि हिस्टेरिया की बीमारी। ये सारे लेफ्ट साइड के आक्रमण है। लेफ्ट साइड से जो कुछ सबकॉन्शस से आक्रमण आते हैं, औरतों का डरना , चीखना, चिल्लाना, घबड़ाना, नव्हसनेस, इनसोम्नीया, असंरक्षित रहना, परेशान होना , किसी भी चीज़ से हर समय भय, खौफ खाना, कोई चीज़ करने में आगे न आना, हर एक एग्रेशन के सामने सर झुकाना, ये सब चीजें घटित हो जाती है। बहुत से आदमियों में भी ये बात होती है। जब ये चक्र उनका सुप्त हो जाता है तो वो बड़े एग्रेशन अपने उपर ले लेते हैं बेचारे। और ये भी गलत चीज़ है किसी का एग्रेशन लेने की कोई जरूरत नहीं है। आपको बीच में खड़ा होना चाहिए । कोई अगर आपसे एग्रेशन करे तो आपको बीच में खड़ा होना चाहिए । ना तो किसी पे आप एग्रेशन करें ना आप किसी से एग्रेशन लें। जब ये चक्र पूरी तरह से संतुलित हो जाता है तब आप अपनी शान में खड़े रहते हैं क्योंकि जगदम्बा है, जो कि सारी जगत जननी है, सारे जग को सम्भालने वाली, वही आपकी माँ है। फिर आपको किस के बाप का डर है । लेकिन आप अँग्रेशन नहीं करते। फिर आप भक्तों का रक्षण करते हैं। फिर आप अपने अच्छाई में शान उठाते हैं। आपको घबड़ाहट नहीं होती है। बहुत से लोगों को लगता है कि, 'साहब, मैं क्या करू? मुझे बड़ा डर लगता है। मैं जरूरत से ज़्यादा इमानदार आदमी हूँ। मेरे दफ्तर में सब लोग बड़े बेईमान हैं। मुझे खा जाएंगे।' लेकिन जब जगत जननी अन्दर जागृत हो जाती है तो उसको शान लगती है। वो सोचता है कि 'ठीक है, ये तो बेकार लोग हैं। मैं तो कम से कम ठीक रस्ते पर हूँ।' वो अपने व्हर्चूज को एन्जॉय करने लग जाता है। हम तो अपने व्हर्चूज के लिये रोते रहते हैं। उसको अपने व्हर्चूज में घबड़ाहट नहीं होती। ना ही वो एग्रेस करता कि मैं इतना व्हर्चूअस हूँ और तुम नहीं हो। ये भी नहीं करता। ना तो वो एग्रेस करता है ना तो वो किसी पर एग्रेशन करता है, ना तो वो किसी का एग्रेशन लेता है इस तरह से उसका बीच का स्थान बन जाता है। अब ये जो हृदय चक्र है बीच का, ये बहुत जरूरी है। इसके खराब होने से भी स्पॉन्डिलाइटिस वगैरा हो जाते हैं कभी। तो छोटी -छोटी बातें हैं। इसको समझ लेना चाहिए। जैसे कि, लड़की है, उसकी शादी हो गयी । उसका पती, उसको अगर इनसिक्युरिटी डाल दें तो उसको समझाना चाहिए कि देखो, ये पाप है, ऐसे नहीं कर सकते। लड़की पे जबरदस्ती नहीं करें क्योंकि विशेषत: ये औरतों का चक्र बहुत खराब है। अपने यहाँ की औरतें बहुत शान्त हैं मैं आपसे कहती हूं। बहुत अच्छी हैं। अपने देश की इन औरतों की वजह से ही आज आपकी पेशानी ऐसी है। नहीं तो आप इंग्लैण्ड के आदमियों के देखिए तो उनके उड़ती रहती है आँख कहीं, नाक कहीं, कहीं मूँह। एक मिनट ऐसे चुप नहीं बैठ सकते, आपके जैसी पेशानी नहीं होती। इस उमर में तो उनके सारे पाँच-छः यहाँ पे लाइने आ जाएंगी और आँखें उनकी फड़केंगी, नाक उनकी फड़केंगी, गाल उनके उड़ेंगे। क्योंकि उनकी माँ किसी के साथ भागी होती है, पत्नी किसी के साथ भागी होती है। यहाँ की औरतों में बड़ी अभी भी सज्जनता है कि अपना पती, अपने बच्चे, चाहे जैसा पती हो। लेकिन इसकी ज़्यादती नहीं करी क्योंकि ये भी अगर ज़्यादती पर आ जाएगा तो इंग्लैण्ड यहाँ आ जाएगा। वहाँ औरतों ने आदमियों को घाटी बना कर रखा है। बिल्कुल। ये हालत कर के रखी है कि आदमियों को समझ में नहीं आता है कि इन औरतों के साथ रहे कैसे ? अच्छा ये एक का नहीं, सबका ही मैंने ये हाल देखा है। सुबह से शाम तक ये सफाई कर ये बर्तन धो, वो कर, ये नहीं किया तूने, वो नहीं किया। वो घर में नहीं आया तो उसको ढेर काम! हमारे यहाँ 17 तो आदमी लोग को हाथ में झाड़ भी लेना नहीं आता। जब बाहर जाते हैं तो रोते हैं कि अब खाना कैसे बनाएंगे? हमें तो ये भी नहीं आता, सब्जी कैसे? दाल कौनसी है? हमें मालूम नहीं। औरतों ने बहुत बोझा अपने उपर इस देश में उठाया है। इस देश की औरत जो है धरा है, पृथ्वी जैसे महान, एक से एक अपने देश में महान औरतें हो गयीं | उनका नाम लीजिए, नूरजहाँ जैसी औरत, क्या औरत थीं । चाँदबीबी थी , पद्मिनी थी। वो लोग विश्वास नहीं करते कि अपने यहाँ पद्मिनी जैसे कोई ऐसी विशेष औरत हुई होगी। वहाँ तो कोई औरत के पीछे में कोई आदमी लग जाए तो फौरन गायब! कोई वहाँ समझ नहीं सकता है कि कोई औरत अपने इज्जत की भी पर्वा करती है। कोई समझ नहीं सकता आजकल। आपको आश्चर्य होगा वहाँ तो सब औरतें इसी पे हैं कि कितने आदमी उनके पीछे भाग रहे हैं। बड़ी-बड़ी बुढ़िया लोग ऐसी बातें करती हैं। मुझे तो आश्चर्य होता है कि इनकी अकल क्या सब गायब हो गयी। और ये में आपको जनरल बात बता रही हैँ। सौ में अगर आपको एक औरत कायदे की मिल जाए तो आप कहें कि हाँ ठीक है। और आदमियों की तो हालत इन्होंने बिल्कुल ही कच्चा कर रखी है। जो हिन्दुस्तानी आदमी हैं, हिन्दुस्तानी औरत को छोड़ कर अंग्रेजी औरत से शादी करता है उसकी हालत देखने लायक हो जाती है। रोता है अपनी किस्मत को| हालांकि वो अच्छी बात नहीं है । लेकिन इस महान आत्माओं का आपको अपमान नहीं करना चाहिए। उनका मान रखिए । 'यत्र नारियाँ पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता:' जहाँ स्त्री पूज्यनीय होती हैं और पूजी जाती हैं वहीं देवता होते हैं। इन किसी भी देशों में औरतों की दशा ऐसी नहीं है जैसी यहाँ है, मतलब अच्छी है। यहाँ की जैसी कहीं औरतें हुई नहीं और ना ही यहाँ गयी है। आजकल उन्होंने और भी निकाला हुआ है, 'लिबर्टीज' और भी क्या-क्या निकाला हुआ है। 'लिब' लिबरेशन। इन औरतों के तो सिंग निकल आये हैं। बिल्कुल जानवर हो गयी हैं, बिल्कुल गधी हो गयी हैं। इनको कोई अकल नहीं है। अपने पती की सेवा करना, अपने बाल-बच्चों को सम्भालना ये महान कार्य है। ये तो तब आपको पता होगा जब ये नहीं कोई करेगा। जब बच्चे आपके रास्ते पर घूमेंगे और ड्रग्ज़ पियेंगे और बारह-बारह साल के बच्चे जाकर के अखबार बेचेंगे और चोरी होंगे और मारे जाएंगे। हमारी औरतों को ये किसी ने नहीं सीखाया। पढ़ी-लिखी नहीं है तो भी अन्दर से बहत बड़े दिलवाली औरत हैं। कोई-कोई होती हैं बिगड़ी हुईं। विशेषत: वेस्टनाइज्ड हो गयी तो फिर उनको तो कोई सूझता ही नहीं। वैसी भी औरतें होती हैं बेवकूफ। उन लोगों से कुछ सीखने का नहीं है। मैंने सौ बार आपसे कहा है। और औरतों को तो बिल्कुल उनसे कुछ सीखने का नहीं है। हम लोगों के पाँव के धूल के बराबर भी एक औरत मैंने वहाँ नहीं देखी। इसमें जो समझापन और जो सुलझापन और जो चरित्र। आपको बहुत अपने पे गर्व करना चाहिए कि आप एक ऐसे माँ के बेटे हैं जो चरित्रवान थीं और ऐसे पत्नी के पती हैं जो चरित्रवान है। क्योंकि वो चरित्रवान है उनकी जैसी औरतों की जो, उनका जो मान है घर में, वो होता है। हर जगह औरत इतनी बेवकुफ बन | बहुत इज्जत करनी चाहिए। पर हम लोगों के यहाँ नयी फैशन चल पड़ी दुश्चरित्र औरतों का बहुत माना जाता है। एक औरत दुश्चरित्र आ जाए सब उसीके पीछे दौड़ने लग जाते हैं। ऐसे बैल आदमी पता नहीं इस देश में कैसे पैदा हो गये? ऐसे कभी भी यहाँ नहीं थे। ये कोई पच्चीस-तीस साल में बहुत ही ज्यादा ऐसे बैल आदमी पैदा हो गये 18 मैं आपसे बता रही हैँ। हम लोगों के जमाने के जो जवान लोग होते थे आँख नीचे कर के ही चलते थे। उन लोगों को कभी सूझता भी नहीं था कि दूसरी औरत क्या है, क्या नहीं। अपनी पत्नी माने अपनी पत्नी! पर आजकल जो ये बैलपन आ गया है इस बैलपना से आपकी भी बिवी ऐसी हो जाएगी कि जो एक गाय होती है न लात मारने वाली उस तरह की हो जाएगी। अब वो होना ही है उसके आप पीछे पड़े हुए हैं। आपकी बिवी नहीं होगी तो आपके लड़के की बिवी होगी। यही मर्यादायें हैं। इसे बाँधना है और जिसे सम्भालना है। और वही है कि हृदय में अपनी पत्नी का स्थान है, अपनी माँ का स्थान है। सबसे बड़ी चीज़ है लेफ्ट साइड का हार्ट जो कि इस उँगली (तर्जनी) पर पकड़ता है। सबसे बड़ी चीज़ है। हार्ट में, हमारे हार्ट में लेफ्ट साइड़ में शिवजी का स्थान है। शिवजी जो हैं आत्मास्वरूप हैं, सदाशिव हैं । सदाशिव हमारे सर पे सदा विराजते हैं। और उन्हीं का प्रतिबिंब रूप हमारे अन्दर आत्मा है। आत्माराम जिसे हम कहते हैं। वो हमारे हृदय में बसते हैं। जब हम कभी भी इस आत्मा के विरोध में काम करते हैं, तब हमारा ये चक्र एकदम से ही सो जाता है। माने जो बहुत इगो ओरिएन्टेड लोग होते हैं जो कि राइट साइड बहुत चलाते हैं, इगो ओरिएन्टेड लोग हैं, कि जो बहत काम करते हैं, कि हमें प्लानिंग करना है, ये करना है, ये इगो से अपना काम लेना है। रिइलाइजेशन के बाद नहीं, तब तो डाइनेमिज़म अन्दर से बहता है। पर पहले इगो ओरिएन्टेड होते हैं। अब इसकी अतिक्रमण हो गया है उधर, अब यहाँ भी होने वाला है। ये इगो-ओरिएन्टेशन जब हमारे अन्दर बहुत बढ़ता है जब हमारा इगो बहुत ज़्यादा डेवलप हो जाता है, याने 'हम कोई बहुत बड़े हो गये', तब आपका हृदय चक्र पकड़ता है। इसलिए हार्ट अटैक्स जब आते हैं ये आदमी इगो ओरिएन्टेड होते हैं। लेकिन हम लोग हार्ट अटैक वाले आदमी के साथ बड़ी सिम्परथी करते हैं । सोचते हैं भाई, इनको हार्ट अटैक आ गया। अगर उनसे आप कहिए कि आपको हार्ट अटैक आया, आप आराम से लेटिए। मैंने ऐसे- ऐसे लोग देखे हैं, एक साहब थे। उनकी उमर नब्बे साल की थी। और उनको वो पैरेलिसिस, पैरेलिसिस भी इसी में होता है। बहुत ज़्यादा काम करने वाले आदमिओं को पैरेलिसिस कंट्रोल करता है। उनको पैरेलिसिस का झटका है। नब्बे साल की उमर। उनसे मिलने गये और वो सारे शिपिंग के स्टैटस्टिक बोल रहे थे। मैंने कहा कि इन आदमी को पता नहीं है कि अभी दो दिन रहना है कि नहीं। वो यही सब बोले जा रहे हैं । हालांकि उनकी एक साइड गायब हो गयी थी। दूसरे साइड से जो भी उनके शब्द निकल रहे थे, वो सारा के सारा रटे जा रहे थे। मैंने कहा इनका क्या होने वाला है पता नहीं। तो जब आदमी अतिशय प्लॅनिंग करता है और अतिशय सोचता है और एग्रेशन करता है इस तरह से तो परमात्मा उससे नाराज हो जाते हैं। मनुष्य का चित्त सिर्फ परमेश्वर पर होना चाहिए। मतलब ये कि आपका चित्त स्पिरीट पे नहीं है। आपको सिर्फ स्पिरिट होना चाहिए। मनुष्य के लिए बड़ा कठिन हो जाता है समझना कि हम नहीं देखें तो कैसा होगा। एक देखने वाले सबसे बड़े बैठे हुए हैं। ठीक है, आप कर्म करो । उसमें कोई हर्ज नहीं। पर उसका फल जो है, वो ऐसा मिले न मिले, उसमें इनवॉल्व्हमेंट नहीं होनी चाहिए। लेकिन ये भी एक कहने की बात हो जाती है कि जब तक घटना घटित नहीं होती आदमी नहीं कर सकता। तो भी मैं सबसे कहती हूँ कि कृष्ण ने कहा ना कि 'अतिकर्मी नहीं बनो'। थोड़ा आराम भी करना सीखो। कभी-कभी तो आराम कर लिया करो । जिन लोगों ने कहा कि 'आराम करना ही नहीं है', उन्होंने कौनसे चार चाँद लगा के | 19 रखे हैं हमें बताईये। कभी-कभी आराम भी करना चाहिए और उस परमात्मा को, जगननियन्ता को, जो कि सबका प्लानिंग करता है याद करना चाहिए। आजकल तो साइंटिस्ट लोग कहते हैं कि भगवान है ही नहीं, Negation ऑफ गॉड। पहले से ही कह दिया उन्होंने। ऐसे लोगों का हार्ट नहीं पकड़ेगा तो क्या पकड़ेगा। मतलब जब आपने उधर ध्यान ही नहीं दिया। उस चीज़ को आपने त्याग ही दिया है। तो फिर वो चीज़ खत्म होने वाली है। हार्ट अॅटैक इसी से आता है। सबसे बड़ी चीज़ है हृदय। हृदय से अगर आप सोच सकें, तो आप बहुत सुन्दर हो जाएंगे और अगर बुद्धि से आप प्रेम करें, तो और भी आपके चार चाँद लग जाएंगे। सारी चीज़ हृदय से होती है। सारा ज्ञान हृदय से मिलता है। आपको आश्चर्य होगा मैं जो बात कह रही हूँ। बुद्धि से ज्ञान नहीं मिलता, हृदय से मिलता है। कोई आप काम करें, हृदय से करें। कुछ पढ़ना है, हृदय से करें। कोई नौकरी करनी है, हृदय से करें। लेकिन आप बुद्धि से करते हैं, इगो ओरिएन्टेड हैं आप पर आप हृदय से करें तो मजा आते रहेगा। हृदय से करने का मतलब ये है कि आप अपने अन्दर के जो स्पिरिट है, आत्मा है उसको उपयोग में ला रहे हैं। कोई भी आदमी बात करता है, समझ लीजिए आपके सामने कोई आदमी लेक्चर दे रहा है , वो अगर हृदय से नहीं दे रहा है, तो आप जानते हैं कि ये बकवास चल रही है। इसके मन में कुछ है नहीं। पूरे साढ़ेतीन चक्र ले कर के हृदय से कुण्डलिनी का जो प्रतिबिंब है वो पूरा ऐसे रहता है। और जब तक आपके हृदय में बात बैठती नहीं, तब तक उसमें कोई भी सौंदर्य ही नहीं होता है, उसका कोई भी फल प्राप्त नहीं होता है। बुद्धि से सोची हुई बात से कुछ लाभ नहीं होता है। आप हर चीज़ को हृदय से करें। ज्ञान भी देखें। कोई आदमी हैं, समझ लीजिए आपसे हमें नितांत प्रेम है तो हमें पता है आपकी कुण्डलिनी कहाँ है। अब यहाँ मेहनत कर रहे हैं, दो बजे रात के तो भी बैठे हैं मेहनत करते क्योंकि हृदय से कर रहे हैं । उठे कैसें? सारा आपके बारे में ज्ञान हो जाएगा। माँ होती है, वो अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है। वो अपने बच्चे की छोटी- छोटी बात सब जानती है। उसका सारा उसे ज्ञान होता है। कोई सा भी कार्य करते वक्त अगर आप इसे हृदय से करें। आप सरकारी नौकर हैं, अगर वो ये सोचें कि 'ये काम जो है ये जनता का, मेरे हृदय से मैं कर रहा हूँ। मेरा हृदय चाहता है। इसके बगैर मुझे अच्छा नहीं लगेगा । उस पे कभी भी असर नहीं आयेगा । लेकिन जब ये चीज़ टूट जाती है तब स्पिरीट जो है वो लुप्त हो जाती है और स्पिरिट खत्म होते ही हमें मृत्यु आ जाती है। इसका ये मतलब नहीं है कि जो लोग बहुत काम करते हैं वो कोई बड़े पापी हैं, लेकिन अन्धे भी हैं। काम करिये लेकिन हृदय से कार्य करें। जिस कार्य में आपका हृदय से कार्य नहीं होता है उसका कोई निष्पन्न नहीं है, उसका कोई लाभ नहीं है, उससे किसी को सुख नहीं होने वाला है। आप पहाड़ कर लीजिए, प्लास्टिक है सारा। अब आप ही सोच लीजिए कि आप अपने दफ्तर का काम क्या हृदय से करते हैं। से लोग तो इसलिए करते हैं कि भाई पैसा ही मिलता है। करना ही है, क्या करें? अब मरना ही है। गले पड़ा ढ़ोल तो बजाना ही है। फिर मजा क्या आयेगा? नहीं तो इतना मजा आता है कि कितने भी तुफानों में आप खड़े होंगे, मजा आता है उससे लड़ने में कि हृदय से लड़ रहे हैं। क्योंकि हृदय जो है यही आनन्ददायी है। आनन्द का स्रोत आपका स्पिरिट है, आत्मा है और कहीं से आनन्द नहीं मिलने वाला। जब आपका आत्मा उससे सन्तोष बहुत पाता है तभी आपको इन सबमें आनन्द आयेगा और आपका फ्रस्ट्रेशन नाम की चीज़ आपसे हट जाएगी। 20 ी इस प्रकार आपके तीन चीक्रों को मैंने बताया है, इसको कि हम हृदय चक्र कहते हैं। उसको अनहत चक्र भी कहते हैं। अनहत माने without percussion! क्योंकि जब हृदय में, उसकी जो गति होती है, हृदय की उसमें हमारा जो प्रणव है, जिसकी वजह से हम जीवित हैं उसका आवाज किसी भी परकशन के बगैर आता है, किसी भी आहत के बगैर आता है इसलिये अनहत कहते हैं। पर जब कुण्डलिनी जागृत होती है और चित्त उसपे जब छा जाता है, तब कुण्डलिनी में भी अनहत जागृत हो जाता है और वो बोलता है। आप देख सकते हैं कि उसकी धक-धक-धक -धक, आप सुन भी सकते हैं स्टेथैस्कोप से कुण्डलिनी का चढ़ना और जब वो शिखर पे पहुँच जाता है, तो कबीर ने कहा है, 'शून्य शिखर पर अनहद बाजी रे' मतलब यहाँ पहुँच के अनहद ने बजाना शुरू किया 'मैं पहुँच गया हूँ। और जब वो अनहद टूटता है यहाँ तब ये आदमी रियलाइज्ड हो जाता है। 21 ४ ल देवी पूजा धरमशाला, २९.३.१९८५ है। ये सहस्रार है, जो पृथ्वी ने आपके लिए बनाया हुआ होनी चाहिए। इस सहस्रार की पूजा ये सहस्रार बहुत ऊँची चौज़ है। आज के शुभ अवसर पर यहाँ आए हैं। आज देवी का सप्तमी का दिन है। सप्तमी के दिन देवी ने अनेक राक्षसों को मारा, अनेक दृष्टों का नाश किया, विध्वंस कर डाला। क्योंकि संत-साधु जो यहाँ पर बैठे हुए तपस्या में संलग्न हैं उनको ये लोग सताते थे । हम लोग सोचते हैं कि माँ ये क्यों, क्यों इन्होंने इतनी तपस्या की। इनको क्या जरूरत थी इतना तप करने की, इतनी तपस्या करने की। वो सोचते थे कि हम इस शरीर से उस आत्मा को प्राप्त कर लें । इसलिए उन्होंने इतनी मेहनत की और इस स्थान में बैठ करके इतनी तपस्विता की । आज उन्हीं की कृपा से हम लोग आज इतने ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं। उन्हीं की कृपा से हमने पाया। इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग इस सहजयोग को समझ लें कि हमारे लिए एक बड़ी भारी देन हो गयी, कोई हम बड़े महान लोग हैं जिनको कि भगवान ने वरण कर लिया, हम लोग चुने हुए मनुष्य हैं और इस तरह की बातें सोचने वाले लोगों को मैं बताती हूँ बड़ा धक्का बैठेगा। ये देखेंगे कि जो लोग यहाँ पर भोले-भाले हैं, जो यहाँ सीधे-सरल हैं, जो स्वभाव से अत्यन्त सुन्दर हैं, वे सबसे पहले आकाश की ओर उठेंगे और बाकी सब यही धरातल पर बैठे रहेंगे। जितनी जड़ वस्तु है सब यहीं रह जाएगी। इसलिए सिर्फ आपका साक्षात्कार होना पूरी बात नहीं है। मैं यही बात अंग्रेजी में कह रही थी, वही बात आपसे कह रही इस शुभ अवसर पर ये जानना चाहिए कि परमात्मा ने अपनी सारी शक्तियाँ आपकी सुरक्षा के लिए, आपके क्षेम के लिए, आपकी अच्छाई के लिए लगा रखी हैं। पूर्णतया परमात्मा आपको आशीर्वाद दे रहे हैं। पूर्णतया वो आपको देखना चाहते हैं कि आप परमात्मा के साम्राज्य में आएं। उसका अभिवादन है एक तरह से कि आप अपने पिता के घर आइए और आ करके वहाँ पर आप आनन्द से बैठिए। लेकिन उस लायक तो होना चाहिए। अगर हम उस लायक नहीं हैं तो क्या हम वहाँ जा सकते हैं? हमारी लियाकत हमें देखनी चाहिए कि क्या है? सबसे पहले बात है कि आप पिता के घर आए हैं। में भी आज अपने पिता के घर आयी, ऐसा मुझे लगता है, क्योंकि हिमालय मेरा पिता है। आते ही साथ सबसे पहले जो भावना मेरे अन्दर उमड़ी वो मैं शब्दों में नहीं बता पाऊँगी, लेकिन ऐसा सोचती हूँ कि जैसे कि आज मेरे पिता के गौरव का मुझे एक बड़ा अच्छा समय मिल गया है। बड़ा शुभ अवसर प्राप्त हुआ है कि इस समय मैं अपने पिता के गौरव की गाथाएं लोगों से कहूँ कि इस पर आकर जिन्होंने भी तपस्याएं करीं। उन्होंने कहाँ से कहाँ अपनी उन्नति कर ली। इस हिमालय को देख करके जिन्होंने उच्चतम स्थिति प्राप्त करी, उन्होंने न जाने कहाँ से कहाँ अपने को उठा लिया। होनी चाहिए । ये ये सहस्रार है, जो पृथ्वी ने आपके लिए बनाया हुआ है। इस सहस्रार की पूजा सहस्रार बहुत ऊँची चीज़ है। पता नहीं आपको इसमें से चैतन्य लहरियाँ निकलती हुई दिखाई दे रही हैं कि नहीं। मेरे चारों ओर सिर्फ चैतन्य के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई दे रहा। चारों ओर चैतन्य ही चैतन्य है और इसमें रहने वाले लोग भी उस चैतन्य से ऐसे लिपटे हुए हैं, ऐसे समाए हुए हैं कि मानो जैसे सागर में मछलियाँ तैर रही हों। कोई भी इनमें और उनमें भेद नहीं रहा। जो पानी है उसी का उपयोग जैसे मछलियाँ 24 अपने तैरने के लिए कर रही हों। ये जो चैतन्य चारों तरफ फैला हुआ है, इतना यहाँ सुन्दर और इतना मनोरम है कि उसका वर्णन मैं वाकई शब्दों में नहीं कर सकती। और ये सारी हिमालय की कृपा है। हिमालय की कृपा है। हिमालय! सर्वप्रथम सोचिए कि हम लोग सागर को अपना गुरु मानते हैं। सागर हमारा पिता है और सागर जब सारा मैल छोड़-छाड़ करके दुनिया की सारी गन्दगी उसके अन्दर जब गिरती है, उसे नीचे छोड़ करके और जब वो आकाश में बादल की तरह उठता है तब वो बिल्कुल निष्पाप, सुन्दर, शुद्ध ऐसा बहता - बहता इस हिमालय के चरणों में जब आता है तब वो यहाँ पर हिम बनके छा जाता है। शब्द भी 'धवल' है। धवल माने अति शुद्ध, अत्यन्त स्वच्छ, अत्यन्त निर्मल। ऐसी ये जो धाराएं हैं, ऐसी ही धाराएं इस हिमालय में बह सकती हैं। ये धाराएं वही हैं जो हमारे मस्तिष्क में भी बहती हैं और जिसके सहारे हमारा सहस्रार प्रज्ज्वलित होता है। इसके अन्तर्गत क्या-क्या कहना चाहिए और क्या-क्या नहीं, ये मेैं नहीं बता सकती। लेकिन इतना ही बताती हूँ कि आज की जो यहाँ की एक आपको बहुत अच्छी संधि मिली है, एक शुभ अवसर मिला है उसकी गहराई में उतरने का प्रयत्न करें। उसकी महानता में उतरने का प्रयत्न करें। और ये सोचिए कि हम इसके सामने एक अकिंचन, एक छोटे से क्षुद्र हैं। हमारे अन्दर ऐसी कोई भी विशेषता नहीं है कि जो हम इस हिमालय के सामने अपने को उद्दामता से देख सकें । हम हैं ही क्या? ये तो महान चीज़ है! और ये सहस्रार, सारी सृष्टि का सहस्रार यहाँ है। इसने सारी सृष्टि को ही इतना आराम, इतना सुख और इतना आनन्द दिया हुआ है कि इससे आगे हमें और कुछ पाने का नहीं। इस सहस्रार के सहारे मैंने जाना कि जब तक हिमालय की शान्ति आपके अन्दर नहीं आएगी, उसकी शीतलता आपके स्वभाव में नहीं आएगी, तब तक आपका सहस्रार खोलना भी व्यर्थ जाएगा। नहीं तो आग की भट्टी की तरह से ये सहस्रार जलता है। जब मैं देखती हूँ कुछ-कुछ लोगों को, तो लगता है, हे भगवान मैंने इनका सहस्रार क्या खोल दिया अन्दर से आग की भट्टी जल रही है। अन्दर से इतना धुंआ और इतनी गन्दगी निकल रही है कि अच्छा है, इनका सहस्रार फिर से बन्द ही कर दो। ऐसा भानुमती का पिटारा खुल गया है कि पता नहीं इसके अन्दर से क्या-क्या चीजें निकल रही हैं। देखने के साथ ही आश्चर्य होता है कि साँप, बिच्छू, दुनिया भर की जो-जो चीज़ें गन्दगी की हैं वो सारी उभर करके ऊपर चली आती हैं। आज इस हिमालय को याद करके और उन सात देवियों को याद करके जिन्होंने यहाँ पर बहुत पराक्रम किए हुए हैं, उनको याद करना चाहिए कि हमारे पास भी दैवी शक्ति आए। और उस दैवी शक्ति को पूर्णतया हम एक माँ से प्राप्त किए हुए हैं। इसलिए जो माँ का स्वरूप है, उस स्वरूप को लेते हुए हम हिमालय की शरणागत हों। अपनी ओर नज़र रखिए । लोग दसरों की सोचते हैं। ये सोचते हैं, ये आदमी खराब है। That man is not good, that fellow is not good. What about yourself? See yourself. Hachi 34 ae दूसरों को नहीं देखना है। ये आदमी ये नहीं करता, वो आदमी वो नहीं करता। आप क्या कर रहे हैं, उसे 25 देखिए । हिमालय ये नहीं देखता, हिमालय ये नहीं देखता कि दुनिया ने उनके साथ क्या किया ? कितनी ज्यादती करी है? वो ये देखता है कि उसे क्या देना है? उसे क्या मेहनत करनी है? किस तरह से लोगों को प्लावित करना है? किस तरह से उनका संरक्षण करना है? इस हिमालय की चोटी से ही हमने अपनी सुरक्षा पायी। इसी से हमने अपनी गंगा, यमुना और सरस्वती की धाराएं पायीं। ये तीनों धाराएं हमारे अन्दर निर्मल बहती रही हैं। हालांकि इसमें हम हर तरह की गन्दगी डालते हैं। हर तरह से उसकी उपेक्षा करते हैं। हर तरह से उसका अपमान करते हैं। तो भी हिमालय सतत अपनी स्वच्छता उसके अन्दर बहाते रहते हैं। लेकिन सब चीज़ों का अन्त होने वाला है। इस तरह की चीजें और अधिक चलने वाली नहीं । सब लोग इसको याद रखिए कि मैं आपकी जबान में मधुरता पाऊँ, आपकी बातचीत में मिठास पाऊँ, आपके व्यवहार में सुरुचि पाऊँ। मैं इस चीज़ को अब माफ नहीं करूँगी, इसको आप जान लीजिए । ये करना महापाप है। किसी को भी किसी चीज़ के लिए दुःख देना बहुत बुरी बात है। कृपया एक दूसरे का आदर करिए। आप सहजयोगी हैं, दुसरे भी सहजयोगी हैं। आज आप किसी पद पर हैं दूसरा नहीं, ये पद आपने पाया हुआ नहीं, हमने दिया हआ है और जब चाहें इस पद से हम आपको हटा सकते हैं। इसलिए मेहरबानी से इसके योग्य बनें। नम्रतापूर्वक इसे करें। कितने ही लोगों ने मुझसे ये शिकायत की है कि माँ हम आप ही के प्रवचन में आएंगे और हम आपके सेंटर पर नहीं जाएंगे। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। हजारों लोग मेरे लेक्चर में आते हैं और क्यों ऐसे खो जाते हैं? तो क्या आप बीच में एक शैतान बनकर बैठे हुए हैं? कृपया म नहीं। हमने ऐसा किया है? क्या हमने ऐसा किया है?तब आप जानेंगे, जब आप इस मेरी बात की ओर ध्यान दें और अपनी ओर देखें। दसरों की ओर चीज़ को समझ लें, जब आप अपनी गलती को देखेंगे तभी तो आप न ठीक कर पाएंगे, और तभी आप इस हिमालय की महानता को जानेंगे, नहीं तो आप समझ नहीं पाएंगे। आपके अन्दर न वो संवेदना है, न ही वो आँखे हैं न ही वो समझ है, न ही वो सूझ-बूझ है ्टे कि आप इसे समझ पाएं कि ये क्या चीज़ है? जहाँ आप बैठे हुए हैं, किसकी गोद में आप आए हैं। जिसकी गोद में हम रहे, पले, बड़े हुए वही ये महान पिता हमारा है। इसका आप मान रखिए और इनके सामने नतमस्तक हो करके ये सिद्ध करके दें कि जो हमने कार्य किया वो किसी काम का रहा। बेकार का नहीं रहा। इसी प्रकार इन सात देवियों का आशीर्वाद आप पर अनन्त है। ये आपकी मौसियाँ समझ लीजिए। ये सारी आपकी देखभाल करती हैं। कहते हैं कि माँ मर जाए पर मौसी जिए । ऐसा कहा जाता है। क्योंकि मौसी जो होती है वो बच्चे को दुलार से रखती है। उसको संभालती है। उसकी रक्षा करती है। उसकी पूरी तरह से देखभाल करती है। उसका हमेशा मनोरंजन करती है। हरेक तरह की कठिनाइयों से आपको बचाती है। आप देखते हैं 26 कि छवि घूम रही है। कभी आकाश में बहुत सारे बादल आ रहे हैं। बहुत सुन्दर-सुन्दर से आप देखते हैं कि हर समय रंग-बिरंगे वहाँ पर नज़ारे दिखाई देते हैं । ये सब उनके खेल चल रहे हैं, आपको सुन्दरता से भरने के लिए । इसी प्रकार आप भी एक सुन्दर अच्छे व्यक्ति बनें। यहाँ पर बहुत कुछ कमाने का है। अब देखना है कि इस शान्ति के पुण्य से निकल करके आप कितने सुन्दर होते हैं? आज की पूजा में बहुत महत्व है और हो सकता है इस पूजा में बहुत लोग बहुत कुछ पा लेंगे। लेकिन अपने चित्त को स्थिर करें और चित्त में पहले शान्ति की आराधना करके कि, 'माँ, हमें आप शान्ति दीजिए।' शान्ति की माँग करें, जिससे आप दुनिया में शान्ति फैलाएं। तब आनन्द आता है। आनन्द शान्ति के बगैर नहीं आ सकता। प्र ग . ा० २ 27 शन बाई और ज्ञान २ अप्रैल २००२, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान केंद्र, नई दिल्ली सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम ! चिकित्सकों के सम्मुख बोलते हुए मुझे अपने विश्वविद्यालय के दिनों का स्मरण हो आया है। मैं भी चिकित्सा विज्ञान पढ़ी थी परन्तु भाग्य से या दुर्भाग्य से, लाहौर में हमारा विश्वविद्यालय बन्द हो गया। ऐसा नहीं था कि मेरा विश्वास पाश्चात्य चिकित्सा शिक्षा में न हो। परन्तु यह दोनों को जोड़ने का और समझने का सुनहरा अवसर था कि पाश्चात्य चिकित्सा शिक्षा में क्या कमी है। इस चिकित्सा पद्धति की मुख्य कमी ये है कि चिकित्सा विज्ञान मानव को व्यक्तिगत रूप से मानता है। पूर्ण से (विराट से) जुड़ा हुआ नहीं। आप सभी विराट से जुड़े हुए हैं। परन्तु लोगों को किस प्रकार विश्वस्त किया जाए कि आप सब पूर्ण से जुड़े हुए हो, केवल व्यक्ति (अकेले) नहीं हो। क्योंकि हम सब पूर्ण से जुड़े हुए हैं, हमारी सभी समस्यायें भी सबसे जुड़ी हुई हैं। किसी व्यक्ति को आप एक चीज़ का रोगी और दूसरे को दूसरी का नहीं मान सकते। हो सकता है कि जिस व्यक्ति में एक समस्या है उसमें कुछ अन्य समस्यायें भी हों, बहुत सारी अन्य समस्यायें भी जुड़ी हुई हों जिन्हें आप पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान से खोज न सकें। उदाहरण के रूप में किसी व्यक्ति को आप शारीरिक रूप से बहत बीमार देखते हैं, नि:सन्देह, परन्तु आप ये नहीं जानते कि उसे क्या होने वाला है। बिल्कुल भी नहीं जानते कि वह आपके सम्मुख क्या समस्या लाने वाला है। क्या वह मानसिक रूप से ठीक है या बीमार है क्योंकि उसमें कुछ कमी तो है। अब हम कई चीज़ों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं परन्तु चिकित्सा विज्ञान में उसका कोई इलाज नहीं है और आप कहते हैं कि यह मनोदैहिक समस्या है या ये दैहिक समस्या है। इन दोनों में क्या सम्बन्ध है, ये बात हम नहीं जानते। आप हैरान होंगे कि कैन्सर जैसी हमारी बहत सी बीमारियाँ मनोदैहिक समस्याओं के कारण आती है जो लाइलाज हैं। विशेष रूप से कैन्सर, या हम कह सकते हैं एड्स। ऐसे सभी रोग जिन्हें हम पूर्णत: लाइलाज और कठिन मानते हैं, ये हमारे बाईं ओर के सम्बन्धों के कारण आती है जिनके बारे में हम विश्वस्त भी नहीं होते (जैसा आपने शरीर तन्त्र के चित्र में देखा है) । चिकित्सा विज्ञान केवल दाईं ओर का ज्ञान है। इसका यह ज्ञान बहुत विस्तृत है यह सूक्ष्म नहीं है। मानव की बाईं ओर को समझने की यह कोई आवश्यकता नहीं समझता और यही कारण है कि बाईं ओर का ज्ञान चिकित्सा 28 शास्त्रियों को नहीं है। उदाहरण के रूप में एक व्यक्ति जो पागल है, जिसे पागलखाने भेज दिया गया है उसे हृदय रोग में हो सकता है, क्यों? किस प्रकार वह पागल हुआ। दूसरी ओर से उसका क्या सम्बन्ध है? उदाहरण के रूप एक रोगी कैन्सर पीड़ित है। कैन्सर के विषय में हम बहुत कुछ जानते हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं, कि किस प्रकार इसके विषाणु फैलने लगते हैं आदि-आदि। हम सभी कुछ जानते हैं। परन्तु कैन्सर किस कारण से होता है इस बात को कोई नहीं जानता और ये बात भी कोई नहीं जानता कि कैसे लोगों को कैन्सर होता है। जैसा आपने चित्र में देखा है हमारे अन्दर दो मुख्य नाड़ियाँ हैं। एक हमारी दाईं ओर की देखभाल करती है और दूसरी बाईं ओर की। बाईं ओर यदि समस्या है तो यह मनौदैहिक हो सकती है। मान लो आपका हाथ टूट गया है या आपके साथ कोई और शारीरिक समस्या है, वहाँ तक तो ठीक है। परन्तु यदि कोई जटिल मनौदैहिक रोग है तो चिकित्सक इसका इलाज नहीं कर सकते। खेद के साथ मुझे कहना पड़ रहा है क्योंकि आप लोगों को इस पक्ष (लेफ्ट साइड) का ज्ञान नहीं है। आप नहीं जानते कि व्यक्ति को कैन्सर का रोगी बनने के लिए क्या चीज़ प्रभावित कर रही है। आपको जानकर हर्ष होगा कि सहजयोग में कैन्सर का इलाज हो सकता है। यदि ये आरंभिक अवस्था में हो तो इसका इलाज बहुत आसान है। अन्यथा भी यह ठीक हो सकता है, विशेष रूप से रक्त कैन्सर पूरी तरह से ठीक हो सकता है। आप हैरान होंगे कि ये हमारे जीवन के इन दो पहलुओं का ऐसा सम्मिश्रण है कि हम लाइलाज रोगों में फँस जाते हैं । लाइलाज रोगों की बहुत बड़ी सूची है जिसे मैं बताना नहीं चाहती क्योंकि आप इसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं। परन्तु इस प्रकार के अधिकतर रोगों में बाईं ओर की जटिलता होती है। नि:सन्देह आप दाईं ओर के बारे में भली-भांति जानते हैं, अब शरीर रचना, उसकी चीर-फाड़ और उसके बाद की चीज़़ों को भी जानते हैं। ये सब आप जानते हैं परन्तु आपको इस बात का ज्ञान नहीं है कि बाईं ओर आपको किस प्रकार प्रभावित करती है। अतः इस भाषण में मैं आपको बाईं ओर के विषय में बताना चाहँगी, जिसके बारे में आपने कभी नहीं सुना और जिसके विषय में आप विश्वास भी नहीं करते। बायां पक्ष हमारे भूतकाल का क्षेत्र है और जो लोग भविष्यवादी हैं वो भूतकाल तथा बाएं अनुकम्पी से अधिक प्रभावित नहीं होते। परन्तु जो लोग बाईं ओर (भूतकाल) में रहते हैं उसकी चिन्ता करते हैं, अपने बीते हुए समय के विषय में जिन्हें खेद है, ऐसे सभी लोग इससे प्रभावित होते हैं। बाईं ओर के लोगों के विषय में यदि मैं आपसे बताऊंगी तो आपको सदमा पहुँचेगा। क्योंकि वास्तव में वे भूत-बाधित होते हैं। किसी मृत आत्मा की पकड़ उन पर होती है और वही मृत आत्मा उन पर कार्य करती है। आपको इस पर विश्वास नहीं होगा परन्तु ये बात सत्य है। कोई भी व्यक्ति जो उदासीन है या तामसिक स्वभाव का है उसके साथ ऐसा घटित हो सकता है। इसके अतिरिक्त भी बहत सी चीज़ें हैं जैसे ये झूठे गुरु। ये गुरु क्या करते हैं? ये व्यक्ति को सम्मोहित कर लेते हैं। मनुष्य का ये पक्ष चिकित्सा विज्ञान का क्षेत्र नहीं है। ये चिकित्सा विज्ञान से परे है। फिर भी चिकित्सकों को इसका ज्ञान होना चाहिए अन्यथा आप इन लोगों को ठीक न कर पाएंगे। हो सकता है आप रोग निदान कर लें परन्तु मनौदैहिक रोगों के शिकार ऐसे रोगियों का इलाज आप न कर पाएंगे। आज की चिकित्सा समस्या ये है कि चिकित्सक मनौदैहिक रोगों का इलाज नहीं कर सकते। इसके लिए आपको अपनी एम.बी. बी. एस. की उपाधि की तरह से बहुत से वर्ष खर्च नहीं करने पड़ेंगे। यह अत्यन्त तीव्रता से होने वाला प्रशिक्षण है, बशर्ते कि आप इसे करें। परन्तु इसमें पारंगत होने के लिए सर्वप्रथम आपको परमेश्वरी शक्ति से एकरूप होना पड़ेगा। ये कार्य बिल्कुल भी कठिन नहीं है । परन्तु प्राप्त करने के पश्चात् आपको अपनी आध्यात्मिक योग्यता बनाए रखनी होगी। 30 अबोधिता प्रथम आध्यात्मिक योग्यता है। पहला चक्र जो आप महसूस करते हैं वह पावनता का है। आप यदि पावन हैं तो आप सुगमता से ऐसे रोगियों को ठीक कर सकते हैं जो इस प्रकार की लाइलाज़ बीमारियों से पीड़ित हैं। मैं कहती हैँ कि व्यक्ति को सर्वप्रथम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। इस स्थिति में जब कुण्डलिनी उठती है तो यह आपके तालूरन्ध्र का भेदन करती है और आप सर्वव्यापी परमेश्वरी शक्ति से जुड़ जाते हैं। चाहे आप मुझ पर विश्वास न करें परन्तु अपना आत्मसाक्षात्कार पा ले। आपने यदि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया तो इस बात को समझ सकेंगे कि आपके रोगियों में किन चीज़ों का सम्मिश्रण है। क्या उसका रोग केवल शारीरिक है या उसमें बाईं ओर का सम्मिश्रण भी है। मैं हैरान थी कि उस दिन एक बच्चा मेरे पास आया । उसे मस्तिष्क-झिल्ली-सूजन रोग (मेनिंनजाइटिस) था। वह ठीक हो गया। उसके माता-पिता ये समझ भी न पाए कि कैसे वह ठीक हो गया है। बच्चा जब ठीक हो गया तो मैंने उससे पूछा तुम्हारा मित्र कौन है? उसने एक लड़के का नाम बताया जिसका एक गुरु भी था। मैंने उसे बताया कि किस प्रकार आप हर समय उस गुरु को देखे चले जाते हैं? ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस प्रकार के गुरुओं के चंगुल में फँस जाते हैं। आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि जब तक आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं कर लेते, आप जान ही नही सकते कि कौन सच्चा है, कौन झूठा है। एक अबोध बच्चा जो मस्तिष्क झिल्ली सूजन से पीड़ित था रातों रात ठीक हो गया! सहजयोग के महान अनुभव पर आप आश्चर्यचकित होंगे कि यह महान आश्चर्य है और यही कारण है कि लोग इसे स्वीकार नहीं करते। ऐसे बहत से मामले हैं जिनके माध्यम से हमने दर्शाया है कि जिन रोगियों को लाइलाज माना जाता था वे भी ठीक हो गए हैं। ऐसे बहुत से मामले विशेष रूप से कैन्सर जैसे गम्भीर रोगों के ! चिकित्सा विज्ञान में कैन्सर के साथ ऐसा ही होता रहेगा जब तक आप लोग इसे पूरी तरह से समझ नहीं लेते। परन्तु सहजयोग में ऐसा नहीं है। एक दम से आप जान जाते हैं कि व्यक्ति भूत-बाधित है। चिकित्सा विज्ञान की दिशा ये बिल्कुल भी नहीं है परन्तु हमारे देश में हमने सदैव इस पर विश्वास किया है । मृत लोगों के विषय में हमारे विशेष नियम हैं कि इनके साथ किस प्रकार व्यवहार करना है? किस प्रकार प्रेत-क्षेत्र में जाना है। सारे मृत शरीरों को समझने के लिए विशेष प्रकार की सूझ बूझ है, वो किस प्रकार का आचरण करते हैं, कहाँ रहते हैं और मैं सोचती हूँ कि आपके ज्ञान का यह बहुत बड़ा भाग है। बाईं ओर से आने वाली अधिकतर बीमारियों का आप इलाज नहीं कर सकते। मैं जानती हूँ कि चिकित्सा विज्ञान दाईं ओर को ठीक कर सकता है परन्तु कैन्सर को वो टालते चले जाते हैं। कभी एक जगह की शल्य चिकित्सा करते हैं, कभी दूसरी जगह को चीरते-फाड़ते चले जाते हैं। परेशान हो जाते हैं। ये करते हैं वो करते हैं। शल्य चिकित्सा कैन्सर को ठीक करने का कोई तरीका नहीं है। ये इसका उपाय नहीं है। आप यदि सहजयोग में कुशल हैं तो आपको इसका आपरेशन नहीं करना पड़ेगा। रातोरात आप इसको ठीक कर सकते हैं। रातोंरात आसानी से कैन्सर के रोगी को ठीक कर सकते हैं। ऐसा करने में वे सामर्थ्य हैं, विशेष रूप से भारतीय लोग क्योंकि भारतीयों में इसकी विशेष योग्यता है। मैं कहना चाहूंगी कि उनपर यह विशेष आशीर्वाद है | आप नहीं जानते ये देश कितना महान है! आप केवल पाश्चात्य शिक्षा के आधार पर कार्य कर रहे हैं। पाश्चात्य लोग अपने अनुभवों में कहाँ पहुँचे? वे इस बात को नहीं समझ पाते। उनके बच्चे नशों में फंस रहे हैं, उनके परिवार टूट रहे हैं, हर चीज़ उथल-पुथल हो रही है। ऐसा नहीं है कि मैं इस पाश्चात्य शिक्षा की निन्दा कर रही हूँ। बिल्कुल भी नहीं। परन्तु ये शिक्षा पूर्ण नहीं है। आपको इसका दूसरा पक्ष भी जानना है अन्यथा कैन्सर अस्पताल न बनाएं। केवल शारीरिक 31 समस्याओं को ही देखें जिन्हें आप ठीक कर सकते हैं। परन्तु यदि आप सभी प्रकार के रोगियों को ठीक करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ का ज्ञान भी आवश्यक है। घबराने की कोई बात नहीं, परेशान होने की कोई बात नहीं। परन्तु चिकित्सक होने के नाते आपको यह ज्ञान अवश्य होना चाहिए। मैं सोचती हूँ कि अभी तक भी चिकित्सा विज्ञान अधूरा है । डा . अग्रवाल ने भी यही कहा है। इसमें जो कमी है वह है बाईं ओर के ज्ञान की, जो हमारे पास है। अब मैं कहूँगी कि यह ज्ञान मैंने पुस्तकों से प्राप्त नहीं किया, केवल सहजयोगियों पर तथा लोगों पर कार्य करते हुए मैंने इसे पाया। मैंने देखा कि भारतीयों के मुकाबले पश्चिमी लोग इस बाईं ओर से अधिक पीड़ित हैं। परन्तु निश्चित रूप से, अभी भी मैं नहीं समझ पाती कि वे इस तरह बीमार क्यों है! उन्हें क्या हो गया है? मानव हित का, रोग मुक्त करने का कोई अत्यन्त सीमित क्षेत्र भी ले लें तो भी बाईं ओर को आपकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। मान लो कोई व्यक्ति हर समय रोता रहता है, उदास रहता है, तो ऐसे व्यक्ति को कैन्सर हो सकता है। दो प्रकार के लोग हैं-एक जो दाईं ओर के (आक्रामक) हैं तथा दूसरे जो बाईं ओर के (तामसिक) हैं । मैंने देखा है कि जो लोग अत्यन्त आक्रामक प्रवृत्ति के हैं, अत्यन्त हावी-होने वाले हैं तथा लोगों पर नियन्त्रण करने वाले हैं, उनके जिगर बहुत खराब होते हैं। मैं अवश्य कहँगी कि उनके ज़िगर बहुत खराब होते हैं। जब वो बहुत आक्रामक होते हैं तो सारी सीमाएं पार कर जाते हैं और इस स्थिति में जो पहली बीमारी उन्हें होती है उसे न तो आप खोज सकते हैं, न ठीक कर सकते हैं। इसमें एक जिगर रोग है। मेरे विचार से डाक्टर जिगर को ठीक नहीं कर सकते। इसके लिए वे प्रयत्न कर सकते हैं परन्तु जिगर को वैसे नहीं ठीक कर सकते जैसे सहजयोगी कर सकते हैं। किसी व्यक्ति का स्वभाव यदि गर्म है तथा वह आक्रामक है तो वह भयानक जिगर रोग का शिकार हो जाता है और सभी प्रकार की जटिलताएं बना लेता है। दायीं ओर के और भी बहुत से रोग हैं, बहुत से-परन्तु इनमें से मुख्य जिगर रोग ही है। जिगर अर्थात जीवन का आधार। आपका ज़िगर ही यदि खराब है तो अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति के पास कोई इलाज नहीं। हो सकता है थोड़ा बहुत कुछ हो जाए, परन्तु रोग बढ़ जाने की स्थिति में व्यक्ति मूरच्छ्छित हो सकता है, उसकी मृत्यु हो सकती है। पश्चिम में जिगर रोग आम बात है और उनके पास इसका कोई हल भी नहीं है। खराब जिगर के साथ ही वे जिए चले जाते हैं, डाक्टर उन्हें बस हस्पतालों में दाखिल कर लेते हैं। ये रोग लाइलाज नहीं हैं, ये पूर्णतः इलाज योग्य हैं। आपके पास क्योंकि ज्ञान (सहजज्ञान) नहीं है इसलिए आप उन्हें लाइलाज कहते हैं। नहीं, ये लाइलाज नहीं है। मैं अन्य रोगों को दोष नहीं देना चाहती, परन्तु ऐसे बहुत से रोग हैं जिनका पता भी नहीं लगाया जा सकता और न ही चिकित्सा विज्ञान द्वारा इनका इलाज हो सकता है। यह बात आपको स्वीकार करनी होगी कि स्थिति ऐसी ही है। जो चाहे प्रयत्न आप करते रहें परन्तु आप इन्हें ठीक नहीं कर सकते। जितनी चाहें दवाइयाँ बन जाएं , इन्हें ठीक नहीं किया जा सकता। मैं आपको बताना चाह रही हूँ कि बीमारियों की आधी अधूरी बातचीत होती है। उसमें भी बहुत से पहलू छोड़ दिए जाते हैं। | उदाहरण के रूप में दमा रोग को लें। डाक्टर दमा रोग को ठीक नहीं कर सकते। यह सच्चाई है। परन्तु सहजयोग इसे पूर्णत: ठीक कर सकता है। सहजयोग से हम अलर्जी के रोग भी ठीक कर सकते हैं, क्योंकि समस्या की जड़ों का यदि आपको ज्ञान होगा, वास्तविक जड़ों का यदि आपको ज्ञान होगा तो आप स्थिति को सम्भाल सकते हैं और रोग ठीक कर सकते हैं। सहजयोग का अभी तक कोई महाविद्यालय आदि नहीं है। काश ! हम ऐसा कुछ बना पाते। परन्तु सहजयोग हस्पताल हमने बनाया है । बेलापूर-नवी मुम्बई में हमने हस्पताल बनाया है। यहाँ लोगों का इलाज होता है। रोगियों 32 को केवल वहाँ रहने तथा खाने का खर्च देना पड़ता है और मेरे विचार से गरीब लोगों के लिए यह ३०० रु. प्रतिदिन से अधिक नहीं है। परन्तु वहाँ रोगी को कोई दवाई नहीं चाहिए और न ही किसी अन्य चीज़ पर उन्हें खर्च करना पड़ता है। क्या आप नहीं सोचते कि हमारे जैसे गरीब देश के लिए यह महत्वपूर्ण है ? अन्यथा व्यक्ति को एक्सरे तथा भिन्न परीक्षणों के लिए जाना पड़ता है और परिणाम कुछ भी नहीं निकलता। व्यक्ति को केवल यह समझ होनी चाहिए कि इसका उपयोग किस प्रकार करना है। मान लो किसी की टाँग गंभीर रूप से प्रभावित है तो आप इसे काट कर नकली टाँग लगा देते हैं। ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। सहजयोग में हमारे यहाँ कुछ डाक्टर हैं, उनमें से कुछ बहुत ही अच्छे हैं, उनमें से कुछ अमरीका के हैं, कुछ इटली के हैं, कुछ रुस के। रूसी डॉक्टर बहुत ही अच्छे हैं। मेरे विचार से इस शिक्षा (सहजयोग) से परे कुछ भी नहीं है और ये लोग इसे सीखने के लिए प्रयत्नशील हैं। किसी भी प्रकार की सुविधा यदि आप प्रदान करेंगे, उससे मुझे प्रसन्नता होगी परन्तु मैं आपके क्षेत्र में विशेष रूप से दिल्ली में, ग्रेटर नोएडा में, एक सहजयोग अस्पताल शुरू करने का निर्णय कर चुकी हूँ। आपमें से कुछ डॉक्टर यदि हमारा साथ देंगे तो हमारी बहुत सहायता होगी। ग्रेटर नोएडा में एक महाविद्यालय या चिकित्सा विद्यालय आरम्भ करने के विषय में भी मैं सोच रही हूँ। जहाँ हमारे विद्यार्थी तथा डॉक्टर रोगियों का इलाज कर सकेंगे। वहाँ पर इलाज के लिए कोई पैसा नहीं लिया जाएगा। परन्तु यदि लोग आकर वहाँ ठहरेंगे तो उन्हें अपने भोजन आदि के लिए पैसा देना होगा। मात्र इतना ही। अन्यथा मैं इस प्रकार का प्रबन्ध करने वाली हूँ और इस कार्य में जो भी डॉक्टर अपनी सेवाएं अर्पित करना चाहें हम उनकी सेवाओं को स्वीकार करेंगे। मैं नहीं जानती कि वेतन कितना होगा? परन्तु ये बहुत अधिक नहीं होगा। छ: सात हजार रुपये प्रतिमाह एक डॉक्टर को दिए जा सकेंगे। डॉक्टर को सहजयोगी होना आवश्यक होगा और सहजयोग की विधियों का ज्ञान भी उसके लिए अनिवार्य होगा। मेरे विचार से ऐसा करना बहुत उदारता होगी क्योंकि हमारे देश में बहुत से लोग इसलिए दम तोड़ देते हैं क्योंकि न तो वे अस्पताल में दाखिल हो सकते हैं न इलाज करवा सकते हैं। आप लोग यदि मेरी इस परियोजना के लिए कुछ समय दे सकें तो मुझे विश्वास है कि मैं गरीब लोगों के लिए एक अच्छे अस्पताल की व्यवस्था कर सकूंगी। वहाँ पर दैहिक और मनौदैहिक सभी प्रकार के रोगी आएंगे और आप लोग भी बहुत कुछ सीखेंगे। क्योंकि यह अत्यन्त सूक्ष्म ज्ञान है। पुस्तकों से इसे नहीं सीखा जा सकता। आपको रोगियों पर प्रयोग करने होंगे और आप हैरान होंगे कि लोग किस प्रकार रोगमुक्त होते हैं। यह किताबी ज्ञान नहीं है। यह तो अत्यन्त व्यवहारिक ज्ञान है और जिन लोगों में दानशील स्वभाव हो वो इस कार्य को बहत अच्छा कर सकते हैं और कुछ सीख सकते हैं। एक बात अवश्य में आपको बताना चाहूंगी कि सहजयोग में एक बहुत बड़ी बुराई है। सहजयोग में आप पैसा नहीं बना सकते, ऐसा आप यहाँ नहीं कर सकते, पैसा बनाने का प्रयत्न यदि आपने किया तो आप असफल हो जाएंगे। जो भी हो यह धन-व्यापार सहजयोगियों के लिए बहुत दूर की बात है। वे ऐसा नहीं कर सकते। परन्तु आप अपनी सेवाएं दे सकते हैं। बेलापुर अस्पताल में हमारे यहाँ एक बहुत अच्छे सेवानिवृत्त डॉक्टर थे उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया। अब वे जीवित नहीं हैं। परन्तु उन्होंने बहुत परिश्रम किया। अब उनकी पुत्रवधु वहाँ कार्य को देख रही हैं। आप यदि सेवानिवृत्त हैं और यदि आपको बहत अधिक धन की आवश्यकता नहीं है तथा आपमें कार्य करने की इच्छा है तो यह बहत अच्छा कार्य है। वहाँ कार्य करने वालों के लिए हम रहने का स्थान तथा भोजन की भी व्यवस्था करते हैं। 33 यह ज्ञान बहुत कठिन नहीं है परन्तु धन प्राप्ति के लिए इसे नहीं किया जा सकता। जब मैं चिकित्सा विज्ञान पढ़ रही थी तब तक यह क्षेत्र धनसंचालित न था। अब चिकित्सा क्षेत्र बहुत ही धन-लोलुप हो गया है। बड़ा ही अजीब समय है। खेदपूर्वक मुझे कहना पड़ रहा है। परन्तु चिकित्सक लोग बहुत आपके कुछ डॉक्टर अमेरीका गए और वहाँ पर लोगों को खूब बेवकूफ बनाया। वो इस सीमा तक गए कि उनके नाम से हमें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। उनकी तरह से आप पैसा नहीं बना सकेंगे। परन्तु सेवानिवृत्त होकर आप ही धन- लोलुप हो गए हैं। कुछ लोग सहजयोग सीखने के लिए आएं। मुश्किल से एक हमारा साथ दे, हमारी सहायता करें। आपमें से महीने भर में आप इसमें कुशल हो जाएंगे। बिना कोई उपाधि प्राप्त किए आप रोग निदान कर सकेंगे। किसी प्रयोगशाला में जाने की आपको आवश्यकता न होगी। तुरन्त आप जान जाएंगे कि समस्या क्या है और सभी प्रकार की लाइलाज बीमारियों का आप इलाज कर सकेंगे। मैं हैरान हँ कि ये सब कार्य इतने सुन्दर ढंग से कैसे हो रहा है? ये सारे कार्य और सभी कुछ ये लोग कर रहे हैं क्योंकि मैंने लोगों को रोगमुक्त किया, उनके लिए सभी कुछ किया। परन्तु यहाँ पर हमारा कोई अस्पताल नहीं है। हम चाहते हैं कि दिल्ली में पहला अस्पताल बने और मैं इस कार्य को कार्यान्वित करना चाहती हँ। आइए हम इस कार्य को करें। यही धर्मार्थ अस्पताल होगा। यही विवेकशीलता होगी। इसको बनाने के लिए धन मेरे पास है परन्तु मुझे ऐसे चिकित्सकों की आवश्यकता है जो सहायता कर सकें। सहजयोग बहुत ही आश्चर्यचकित कर देने वाली चीज़ है। आप जब आएंगे तो देखकर हैरान होंगे कि ये किस प्रकार कार्य करता है। मैं जानती हूँ कि आप उस स्तर तक कभी नहीं आए। कभी आप परमात्मा एकरुप नहीं हुए, आपने परमात्मा की शक्ति का कभी प्रयोग नहीं किया। एक बार जब आप इस शक्ति का उपयोग करने लगेंगे तो आप अपने कार्य पर हैरान होंगे। कहा गया है कि आप स्वयं को पहचानें। परन्तु आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए बिना ऐसा कर पाना संभव नहीं है। हमारे देश में आज हमें आत्मसाक्षात्कारी लोगों की आवश्यकता है। सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। ये सारे लड़ाई-झगड़े समाप्त हो जाएंगे , क्योंकि आप सामूहिक व्यक्ति बन जाते हैं, आपका व्यक्तित्व सामूहिक हो जाता है। न कोई युद्ध होगा न आक्रमण। मैं बहुत से मुस्लिम देशों को जानती हूँ। ऐसे बहुत से मुस्लिम देश हैं जहाँ पर लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं-जैसे टर्की, बेनिन, आइवरीकोस्ट, ऐसे सात देश हैं। इन क्षेतरों के मुसलमानों को सहजयोगी बना दिया गया है। इनमें सभी प्रकार की विचारधाराओं का समन्वय है, मानवीय योग्यताओं की सूझ-बूझ है तथा मानव व्यक्तित्व का सम्मान है। कहने से अभिप्राय ये है कि यहाँ का वातावरण बिल्कुल भिन्न है। भिन्न स्तर की चेतना वहाँ है और जैसे आप कह रहे थे वहाँ पर व्यक्ति अत्यन्त शान्त हो जाता है और मौन होते हुए भी अत्यन्त मधुर होता है। इस छोटे से भाषण में, मैं नहीं जानती, सहजयोग के विषय में आपको कितना कुछ बताऊं परन्तु यह अत्यन्त चमत्कारिक चीज़ है। कृपया अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का प्रयत्न करें। इन्होंने मुझसे आत्मसाक्षात्कार देने का अनुरोध किया है। मैंने कहा, 'अच्छा, मैं प्रयत्न करती हूँ और देखती हूँ कि मैं ये कार्य कर सकूं।" (इसके बाद श्रीमाताजी ने सभी उपस्थित साधकों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया।) 34 ाभ र श्री गणेश सवप्रथम स्थापित किए हुए देवती हैं| ये बीज हैं औ२ बीज से सर कविश्व निकल कर उसी में वापिस समा जाती है। विश्व में जो कुछ है, श्री गणेश उसी का बीज हैं इसलिये श्री गणेश को प्रमुख देवती मानी जाती है।...२भी लौग प्रथम श्री गणेश का पूजन करते हैं, उका कारण है कि श्री गणेश तत्व परमेश्वर ने सबसे पहले इस अष्टिमें स्थापित किया । प.पू.श्रीमाताजी, अप्रैल १९८३ प्रकाशक + निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२० २५२८६५३७, २५२८६७२०, e-mail : sale@nitl.co.in २हजयोग ऐसी चीज़ है, ऐसी एक तरीका है जो परमात्मा का अपनी तरीका है जिसके कारण आपके हाथ में से ये वीइब्रेशन बहने लग जाते हैं, पाँव में से बहने लग जाते हैं, आेशरी२ में बहने लग जाते हैं, जैसे ्य का फ्रकाश हो और ढूरों के अन्द२ जाकर, उसके प्रेम को जा करके उसमें भी वे गति दे सकते हैंकि उसके अन्द२से भी वो बहने लग जीए और एक तरह की चेन रिअँक्शन सी बना दें | - प. पू.श्री माताजी, बम्बई, २७.३.१९७४ ाी ---------------------- 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरौ हिन्दी सितंबर-अक्तूबर २०१२ दु मे श्रड 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-1.txt इस प२मात्मा की सर्वव्यापक शक्ति से जुड़े बिनी व्यक्ति उस यन्त्र के समान होता है जो न तौ अपने सोत से जुड़ा अंक ही जिसका कोई हुआ है और न व्यक्तित्व, अर्थ या लक्ष्य है। सत से तन्त्र कार्य २म्बन्ध जुड़ते ही स करने लगती है तथा अपनी अभिव्यक्ति में करती है। प.पू.श्री माताजी, १३.९.१९९५ देवी पूजा बाई औ२ ह२ जंगह के अपने-अपने वाइब्रेशन्स होते हैं का ज्ञीन ...२२ ...2G ,४ ...8 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-2.txt म कृपयी ध्यान दें : २०१३ के सभी अंकों की नोंदणी सितंबर २०१२ को शुरू होकर ३० नवंबर २०१२ को समाप्त हो जाएगी] 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-3.txt हर जगह के अपने-अपने मतर स ाव सब एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरुरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने-अपने वाइब्रेशन्स होते हैं। म 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-4.txt वाइब्रेशन्स होते है १५.३.१९७९ 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-5.txt देहली के निवासियों ने सहजयोग में जो मेहनत की है वो बहुत प्रशंसनीय है क्योंकि आप जानते हैं कि सहजयोग में हमारे कोई भी मेंबरशिप नहीं है, कोई रूल्स नहीं है, कोई रेग्युलेशन्स नहीं है, ना ही कोई हम लोग रजिस्टर रखते हैं और ऐसी हालात में कुछ लोग इससे इतने निगडित हो जायें और इसके साथ इतने मेहनत से काम करें और ये सोंचे कि एक जगह ऐसी होनी चाहिए जहाँ सब लोग आ सके। अभी तो इनके घरों में ही प्रोग्राम होते हैं। तो इन्होंने मुझसे कहा था। मैंने कहा, 'अच्छा देखो भाई , अगर कोई मिल जाये तुमको कोई जगह तो ठीक है। सबके दृष्टि से जो भी होना है वो अच्छा ही है।' पर मेरे विचार से देहली के लोगों में बहुत ही ज्यादा परमात्मा का आशीर्वाद कार्यान्वित हुआ है। क्योंकि इस तरह से इन लोगों ने काम किया है कि देख कर बड़ा आश्चर्य होता है और जगह में तो बहुत कोशिश करने पर भी कुछ नहीं हो पाया है। ये सब आप ही का अपना है। आप ही के लिये जगह बनी हुई है और आप ही वहाँ रहेंगे और आप ही उसको इस्तेमाल करें, उसका उपयोग करें। लेकिन ये जरूरी है कि एक उसका न्यूक्लिअस होना चाहिए, एक जगह होनी चाहिए जहाँ गणेश जी की स्थापना होनी चाहिए। इस तरह की एक जगह होना जरूरी होती है। क्योंकि हर जगह के अपने-अपने वाइब्रेशन्स होते हैं। कोई जगह ऐसी बना दी जाए जहाँ के वाइब्रेशन्स ऐसे हो कि आदमी जा कर के शान्तिपूर्वक वहाँ ध्यान करें और उससे लाभ उठाये, तो अच्छा होगा। लेकिन मुझे कुछ इसमें ज़्यादा समझता नहीं है पैसे-वैसे के मामले में। इसलिये जो भी आप लोगों को इसमें त्रुटि दिखायी दें तो आप मुझे बता सकते हैं। अगर कोई गलती हो जाए, कोई गड़बड़ हो जाए, हालांकि आपको आश्चर्य होगा कि सहजयोग को प्राप्त हये लोग जो हैं वो इस कदर इमानदार हैं, इतने ज़्यादा इमानदार है कि समझ नहीं आता है कि इनकी इमानदारी की कोई तुलना किसी से कर सकते हैं या नहीं। किसी भी भय के बगैर ही इतनी इमानदारी इनमें है और इतनी कर्तव्यपरायणता है और इतना प्रेम और इतनी समरसता आपस में है कि आश्चर्य होता है कि ये विभिन्न लोग हैं, विभिन्न धंदे वाले हैं, कोई सरकारी नौकर हैं, कोई कुछ हैं, लेकिन आपस में एक तरह का इतना प्रगाढ़ प्रेम और इतना आदर कि हम लोग सेंट्स हैं और सेंट्स को सेंट्स की रक्षा भी करनी चाहिए और उनकी प्रतिष्ठा भी रखनी चाहिए। इसका इतना ज़्यादा विचार अन्दर से आया हुआ है कि बड़ा आश्चर्य होता है! जैसे कि आपके यहाँ पर सुब्रमणियम साहब हैं और इन्होंने बहुत प्रगति की सहजयोग में। बहत ज़्यादा प्रगति की है। और हम देखते हैं कि जो लोग, जो आदमी प्रगति कर लेता है सहजयोग में उसको अपने ही आप मानने लग जाते हैं। हालांकि वो आदमी इतना प्रेममय होता है। वो कोई चीज़ को कुछ कहता ही नहीं, पर अपने ही आप ऐसे आदमी को मानने लग जाते हैं। क्योंकि उससे ऐसे अच्छे, सुन्दर से चैतन्य के वाइब्रेशन्स आते हैं कि वो मानने लग जाते हैं वो समझ लेते हैं कि ये आदमी हमसे जरा उँची स्थिति पे अभी पहुँचा हुआ है। और उसके लिये कोई कॉम्पिटिशन नहीं होती। उलटी ये कॉम्पिटिशन यही होती है कि हम इनके जैसे कैसे होंगे? इनके जैसे अच्छे कैसे बनेंगे? इनके जैसे दाता कैसे बनेंगे? में उसको। सहजयोग का जो सबसे बड़ा लाभ है वो यही है कि हमारे अन्दर आमूलाग्र बदल हो जाता है। जैसे ही हमारे अन्दर प्रकाश आ जाता है वैसे ही हमारे अन्दर आमूलाग्र बदल हो जाता है। जैसे कि आप देखते हैं अन्धेरे में जब आदमी चलता है तो उसकी चाल ही समझ में नहीं आती। वो कभी इधर टक्कर मारता है, 6. 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-6.txt कभी उधर टक्कर मारता है। लेकिन जैसे ही प्रकाश उसके सामने आ जाता है, वो जानता है कि उसे कहाँ जाना है, कैसे चलना है, मर्यादायें जीवन की और सब चीज़ अपने आप बनने लग जाती हैं। वो स्वयं ही मर्यादा से दूर नहीं हटता है। और हमेशा उसको, एक तरह से उसके आत्मा के प्रकाश का आभास रहता है। और वो उसे छोड़ना नहीं चाहता है। जिस क्षण उसे वो छोड़ देता है उसी क्षण वो देखता है कि उसके वाइब्रेशन्स गये हैं और उसकी शान्ति उससे छूट गयी है। तो उसको चिपकता जाता है। जैसे कि छूट किसी को अमृत मिल जाए तो फिर वो गन्दे नाले में नहीं जाता है लेकिन ये घटना है। ये लेक्चर से नहीं होगा। मैं जानती हैँ इसका लेक्चर देने से कुछ नहीं होगा। ये पाने की बात है। जब आप पा लेते हैं, और जब आपका वृक्ष इसमें बढ़ जाता है, जब आप उस स्थिति में पहुँच जाते हैं तभी ये होनी घटता है। और तभी आप ऐसे हो जाते हैं। और इसका अनुभव आप लोगो को भी हुआ है। आप में से बहुत लोग पार हो चुके हैं और बहुतों को मिला हुआ है और इसमें आपको भाषा भी जानना जरूरी नहीं है। अभी एक साहब ने मुझे फ्रेंच भाषा में चिट्ठी लिखी थी। मुझे तो फ्रेंच भाषा पढ़ने ही नहीं आती। मतलब पढ़ तो लेती हूँ, पर समझ नहीं आती। सिर्फ वाइब्रेशन्स से मैं समझ गयी कि इन्होंने कितना प्रेम उसमें भरा हुआ है। ये तो सिर्फ प्याले हैं। प्याले हैं शब्द लेकिन उसके अन्दर का जो सुगन्ध है, उसके अन्दर की जो रस है, जो अमृत है उसकी तृप्ति से ही जो आनन्द है वो कहीं अधिक ज़्यादा है। क्योंकि सिर्फ प्याले देखने से होता है। अगर समझ लीजिए बड़े अच्छे प्याले बने हुये हो, बड़े खुबसूरत प्याले बने हों और उसके अन्दर गन्दी सी कोई चीज़ भरी हो, आप पीते ही साथ उसे थूंक देंगे। वो प्याले से आपको कोई मतलब नहीं। और प्याले कैसे भी रहें, लेकिन अन्दर अगर अमृत हो, तो आदमी उसे पीते ही साथ उस अमृतपान से जो वो तृप्ति पाता है वो उन प्यालों से नहीं पाता है। कल मैंने आपको कुण्डलिनी के बारे में बताया था। और उससे आगे मैं आपको बताना चाहती हूँ। हालांकि अब एक बड़ी, अच्छी, नयी किताब निकल आयी है। आप लोग कृपया वो भी ले लें और उसमें काफी बारिकी से चीज़ें दी गयी हैं। पर ये भी सब शब्द ही शब्द हैं ये समझ लेना चाहिए। अनुभूति के सिवाय, इसमें गहरे बैठे सिवाय सिर्फ ये दिमागी जमा-खर्च करने से कुछ नहीं होने वाला। जब आपके अन्दर अवेकनिंग होने लगती है तब अपने आप चेंजेस आने लग जाते हैं। जैसे कि मैंने आपसे कहा कि जैसे आपके अन्दर नाभि चक्र की जागृति होती है तो पहली चीज़़ ये हो जाती है कि आदमी में तृप्ति का स्वभाव आ जाता है। उसकी प्रायोरिटीज बदलती जाती है। एक साहब मुझे बता रहे थे कि, 'माँ, हमारे घर में तो कोई भी आता है तो बैठता भी नहीं दो मिनट। भागे जाता है। पता नहीं क्या है हमारे घर में?' और जैसे ही वो पार हो गये, उनके यहाँ रोज ही लोग आने लगे । बड़ा आकर्षण उनमें आ गया। तो मैंने कहा, 'कुछ फरक आया तुम्हें? क्या बात है!' कहने लगे, 'हाँ, मेरी समझ में आयी क्या बात हुई।' कहने लगे कि, 'हालांकि जब लोग आते थे तो मैं कोशिश करता था कि उनको खुश करू , उनको चीज़ें देता था। उनको मैं कहता था, ये लो, ये खाओगे, बैठो! लेकिन वो लोग पता नहीं कैसे ये समझ लेते थे कि मैं उपरी तरह से कर रहा हूँ। और मेरी बिवी भी ये काम करती थी। उनसे कहती थी, आप ये खा लीजिए, ये ले लीजिए, पर कुछ चीज़ बचा लेती थी। लगता था उसको कि सब चीज़ सामने न रख दें। कहीं सब रखे 7 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-7.txt और सब खा गये तो कैसे होगा। और उसके बाद ये हुआ कि मैंने अपनी बिवि को भी देखा और अपने को भी देखा कि कोई भी आता है तो हम दिल खोल के भैय्या, आ गये, आओ, बैठो। बिल्कुल इन्फॉरमल हो के, अच्छा, क्या खाओगे? अब ये ले लो, वो ले लो। इस तरह से हम सारी के सारी चीज़े उनके सामने रख देते थे।' और आश्चर्य है कि उनकी बिवी कहने लगी कि, 'पहले मैं इतना बनाती थी कि सब लोग इतना खाते थे उनका मन ही नहीं भरता था। और अब मैं थोड़ासा बनाती हैँ, तो लोग कहते हैं कि आपके हाथ में इतना स्वाद कैसे आ गया? इतना अच्छा बनाया और उसको खायेंगे और उसके बाद इतने संतोष से जाएंगे।' धीरे- धीरे फिर वही लोग फिर सहजयोग की ओर आने लगे। ये नाभि चक्र की एक विशेषता है कि र्त्री के हाथ में अन्नपूर्णा का वरदान हो जाता है। और जब ये नाभि चक्र पूरी तरह से प्रज्वलित हो जाता है, तो हजारों आदमी भी अगर खाने पे रहे खाना खतम नहीं होगा। संतोष बहुत हो जाएगा। लेकिन लोग अगर सोचें कि कितना बनाया? तो ज़्यादा बनाया नहीं है। लेकिन उसमें संतोष आ जाता है। आपके हाथ से संतोष के वाइब्रेशन्स उसमें चले जाते हैं और आदमी उसे खुशी से खाने लगता है। नाभि चक्र से प्रेम बहुत उमड़ता है मनुष्य के अन्दर, बहुत ही प्रेम उमड़ता है। उसको समझ में नहीं आता है मैं इनको कैसे, क्या दूँ? किस तरह से मैं इनको अपना प्रेम दूँ? हम लोग तो कभी सोचते भी नहीं है । प्यार हमारे अन्दर आता भी नहीं है और आया तो भी हम अपना छुपा लेते हैं प्यार कि कहीं ये न सोच लें कि हम कुछ चाह रहे हैं कि कुछ नहीं। नाभि चक्र के खुलते ही आदमी में इतना प्रेम उमड़ आता है कि उसको लगता है कि मैं इनको कैसे क्या देँ कि वो देँ। और एकदम खुल जाता है। एकदम खुल जाता है। उसको लगता है कि भाई आ गये हैं तो इनको किस तरह से खुश किया जाए। क्या दें? किस तरह से आराम दें? किस तरह से ये करें? वो आर्टिफिशिअल नहीं होता है। हमेशा मानव कितना भी खुद आर्टिफिशिअल हो जाए दूसरे की भी आर्टिफिशिआलिटी जानता है। ये आदमी कितना उपरी तरह से कह रहा है और कितना अन्दर से कह रहा है ये मनुष्य तभी पहचानता है। अपने देहातों में जरूर ऐसे लोग होते हैं कि वो खुश हो जाते हैं अगर उनके पास जाओ तो, और अगर उनको बहुत खुश करना हो.... पहले ऐसे लोग होते थे आज कल तो ऐसे लोग रहे नहीं। हम अपने फादर को जानते हैं कि अगर वो बहुत किसी दिन नाराज हो जाए तो उनसे जा के आप कहिए कि 'आज हमें आइसक्रीम खाना है', तो वो बहुत खुश हो जाएंगे। उनसे ऐसी कोई बात कह दीजिए उससे वो खुश हो जाते थे। इस तरह के पहले लोग होते थे और उस प्यार को, उसको देने में और खिलाने में और लोगों को आनन्द देने में उनको बड़ा आनन्द आता था। वही चीज़ अपने अन्दर इतनी ज़्यादा आ जाती है, याने मेरी तो समझ में नहीं आता कि लोगों को कहूँ तो क्या कहूँ कि अब बहत हो गया अब आपस के लिए न करो। देहात में गये तो इन लोगों के लिए न जाने इन्होंने क्या-क्या कर दिया। जितना भी कर सकते थे इनके लिये वहाँ कर दिया। ये अंग्रेज लोग कहते हैं कि, 'हमें कभी नहीं मालूम था कि आपके हिन्दुस्तानियों में इतना प्रेम होता है।' और मैंने कहा, 'तुम लोग नहीं हो? तुममें भी तो बहुत प्रेम आ गया है।' उनमें भी आ गया है, तुम में भी आ गया है। सब प्रेम का आन्दोलन चलता है। हम लोग ज़्यादा से ज़्यादा अपने बच्चे या भी पता नहीं कितना करते हैं। उसमें भी हमारा अपना बिवी या घर के दो-चार लोगों को प्यार करते हैं। वो 8. 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-8.txt बना ही रहता है। लेकिन समझ लीजिए बहुत दिन बाद अपना बेटा आ रहा हो, लड़ाई से लड़ के, तो फिर हमारा जी करता है कि अब मिले किस तरह से ? तब एक बार आती है तबियत कि किस तरह से मिले। उतना ही प्यार, सर्वसाधारण ऐसे मुलाकात में भी, 'अरे वो हैं, चलिये, उनसे मिल ले । वो यहाँ रहते हैं उनको देख लें। उनकी कोई तकलीफ है उसे उठा लें। ये हैं तो वो कर लें।' इस तरह की चीज़ें इतनी अन्दर में पनपती है क्योंकि अपने आनन्द की कल्पना ही बदल जाती है। देने में आनन्द आता है। किसी के साथ करने में आनन्द आता है। थोड़ी सी भी चीज़़ हो तो आदमी बोलता है कि ये कर दूँ कि वो कर दूँ कि ऐसे कर दूँ कि वैसे कर दूँ। और इसका आनंद हम लोग आजकल आर्टिफिश अली इतना कैलक्यूलेट करते हैं हर एक चीज़ को, उससे नही आ सकता। तो ये जो प्रेम है जो अपने नाभि में उभरता है, जो हमारे चित्त में फैलता है। इतना ये सर्वव्यापी है और इतना आनंददायी है, इतना शांतिमय है कि आपकी तबियत खुश हो जाती है लोगों से मिलके। अब मैंने तो ऐसे भी लोग देखें हैं कि जो लोगों से बोअर ही होते रहते हैं लोग हमेशा। कोई आया तो फोन पे कहते हैं कि भाई, हम नहीं है घर में, जाईये। भागते रहते हैं। लोगों से भागते रहते हैं सुबह से शाम। कुछ लोग होते भी बड़े बोअर हैं। भागते रहते हैं, उसके बाद में अपने से भी भागते रहते हैं। उनको लगता है क्या करें? दो आदमी बैठें हैं, दोस्त हैं। तो बीच में कॉमिक पढ़ेंगे, ये एक पढ़ेंगे वो एक पढ़ेंगे या एक सिनेमा जा के साथ में देखेंगे । दोनों में कोई आदान-प्रदान नहीं होगा। लेकिन सहजयोगियों का ऐसा नहीं है । ये लोग कुछ पढ़ते नहीं है | कुछ नहीं। जब साथ बैठे रहते हैं तो सब शांति से अपने साथ बैठे आपस में मज़ा उठाते हैं। 'अरे भाई, क्या कर रहे हैं?' 'कुछ नहीं, बैठे हैं।' आपस में मज़ा उठा रहे हैं। कोई आदमी अगर पार हो जाता है.... अभी हम कलकत्ते जब गये थे, तो होटल में ठहरे थे वहाँ। होटल में एक साहब आयें। तीन - चार और लोग साथ में रहते थे दूसरे कमरों में। तो मेरे पैर पे आते साथ उसमें से वाइब्रेशन्स खूब जोर से शुरू हो गये। ये लोग दौड़ते हुए वहाँ से आयें, कहने लगे, 'माँ, कौन तुम्हारे पैर पे आ गया ? ' मैंने कहा, 'क्यों?' कहने लगे, 'उपर से एकदम से वाइब्रेशन्स आ गये।' मैंने कहा, 'देखो, ये!' उसका सुगन्ध ले रहे हैं। मज़ा उठा रहे हैं। अब वो आदमी कौन है? जात का कौन है? पात का कौन है? कौनसे गाँव का है कि कौनसे शहर का है कि कौनसे देश का है? वो उसके पीठ पर से वाइब्रेशन्स आये तो ओ हो हो..... क्या बात है! अब खड़े हुए, मज़ा उठा रहे हैं। वो भी मज़ा उठा रहे हैं, ये भी मज़ा उठा रहे हैं। बहुत बार आप देखते होंगे यहाँ जो सहजयोगी आप लोगों को मेरे पैर पे लाते हैं वो अपने ध्यान में आप लोगों का मज़ा उठा रहे हैं। फिर मैं कहती हूँ, अब ध्यान में मज़ा उठाओ। तुम तो इनका मज़ा उठाने में लग गये। तो मनुष्य की जो तत्व की कमाई है, उसके तत्व में जो कमाई है उसका मजा मनुष्य उठाता है। ये ना कि उसकी दुनिया की चीज़ों पे, क्या आपके पास बड़ी मोटरें हैं, क्या आपके पास बड़े-बड़़े मकानात है, घर है, उससे क्या होगा! इस तरह से हमारे यहाँ औरतों ने भी मर्यादायें छोड़ दीं। अपने घर वाले, अपने ससुराल वाले, अपने मैके वाले इनसे फट्क के रहना इस तरह की अजीब - अजीब चीज़े हमारे अन्दर बढ़ती है और इसका अगर आपको उदाहरण देखना है तो आप परदेस में जा के देखिए । कोई औरत आदमी को पती नहीं मानती वहाँ। 9. 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-9.txt र ा॥ अभी पती बेचारे दफ्तर से आये और पता हुआ कि बिवी भाग गई। रोज के वहाँ ये धंधे चलते रहते हैं। आपको आश्चर्य होगा। किसी चीज़ की मर्यादा नहीं। अस्सी साल के बुढ़े आदमी की शादी अठारह साल की लड़की से हो सकती है। अस्सी साल की बुढ़ी औरत अठारह साल के लड़के को प्रेम पत्र लिखती है। बताईये, यहाँ कोई अगर ऐसी बेवकूफी करें तो लोग कहेंगे कि बुढ़िया को क्या हो गया है। क्योंकि उसमें कारण क्या है? मर्यादा जब बनती है तब मनुष्य परिपक्व होता है। देखिए आप, पेड़ हैं। पेड़ अगर बहुत उसमें जरूरत से ज़्यादा बढ़ने लग जाए तो लोग उसको काट देते हैं कि इसकी जो शाखायें बढ़ने लग गयी, फल नहीं लगेंगे। शाखाओं को काट देते हैं। उसी प्रकार हमको भी अपनी जो शाखायें इधर-उधर बढ़ी हैं 10 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-10.txt उसको काट के मर्यादा में रखना पड़ता है कि हम जो हैं हम पूरी तरह से परिपक्व हो जाए। मैच्यूरिटी हमारे अन्दर आ जाए। ये मैच्यूरिटी सिर्फ आपको श्रीरामचंद्र के उदाहरण से आ सकती है। कितनी मैच्यूअर पर्सनैलिटी थी उनकी देखिये। कितना संतुलन उनके अन्दर बँधा। कितना गांभीर्य उनके अन्दर में था। उनकी जितनी भी बातें बताई जायें उतनी कम है। लेकिन उनसे सबसे बड़ी चीज़ जो है कि एक राज्यकर्ते को कैसा होना चाहिए। त्याग में, कितना उसे त्याग करना चाहिए इसका एक उदाहरण है और ये सब राज्यकर्तों को देखना चाहिए कि अपनी पत्नी तो स्वयं आदिशक्ति थी, उनको मालूम था, ये देवी हैं। उनका तक उन्होंने ऐसी स्थिति में त्याग किया जब उनके बच्चे होने वाले थे। समाज और प्रजा को संतोष देने के लिए उन्होंने इतना बड़ा त्याग किया । लोगों से तो कहिए कि आज कोट बदल दीजिए तो वो तक बदलेंगे नहीं । ये हमारे अन्दर हमारी चेतना में जिस वख्त रामचंद्रजी आयें थे आठ हजार वर्ष पहले तब ये चीज़ हमारे अन्दर जागृत हुई है कि एक राजा को कैसे होना चाहिए! राजा का प्रतीक क्या होना चाहिए? हालांकि ये जरुर हम कहेंगे कि श्रीराम की कृपा से इस देश में ऐसे महान राज्यकर्ते हो गये। एक-एक का नाम लेते साथ दिल हो जाता है। राणा प्रताप... क्या त्यागमय थे। शिवाजी... एक से ऐसा बड़ा एक राजा-महाराजा यहाँ हो गये हैं। जिनका नाम लेते ही आदमी को लगता है 'वाह.. वाह.. क्या आदमी का नाम ले लिया !' इंग्लंड में और अमेरिका में ऐसे बहुत कम हुये। लेकिन तो भी वहाँ आपको मैं बता सकती हूँ कि अब्राहम लिंकन। इतना बड़ा आदमी था अब्राहम लिंकन, इतना, बिल्कुल सही चलने वाला, तत्वनिष्ठ और कोई भी गन्दगी उस आदमी में नहीं थी और मैच्यूरिटी उसके अन्दर थी। पूरी तरह से प्रगल्भित, और एक बड़ा, बढ़िया इन्सान था वो। लेकिन अब अमेरिका ऐसा आदमी नहीं बना सकती ना रशिया बना सकती है। जैसे जैसे इनके हो गये क्योंकि सबकी मर्यादायें टूट गयी। सबसे बड़ा अचिव्हमेंट हमने ये किया कि अपनी मर्यादायें तोड़ दी और इसको हम सोचते हैं 'स्वतंत्रता'। एक छोटी सी बात समझने की है, अगर समझ लीजिए, एक एरोप्लेन है। उसको उड़ना है। उसको मर्यादा में बाँधा जाता है कि नहीं? अगर वो कहें कि, 'मैं इस मर्यादा में नहीं रहूँगा।' तो वो सब उड़ते ही साथ इधर-उधर गिर जाएंगे। कोई भी चीज़ आप जब मर्यादा में बाँधते हैं, समझ लीजिए कि गेहूँ हैं, आप फैला दीजिए तो किसी के हाथ कुछ भी नहीं लगने वाला। उसको मर्यादा में बाँधिये। जो आदमी मर्यादा में नहीं होता उसके साथ आपको चलना- फिरना मुश्किल हो जाता है। ये किस ओर उठ - बैठेगा पता नहीं । इनको तो कोई मर्यादा ही नहीं है। न माँ-बहन, न कोई सी चीज़ 11 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-11.txt समझते हैं। ना बड़ा ना छोटा, कब जवाब दे दें, भागो रे भैया इससे! और इस तरह की बात करने में लोग सोचते हैं कि हमने बड़ी स्मार्ट बात कर दी। हाऽऽ क्या कहने! मैं तो कभी-कभी देखती हूँ, आश्चर्य होता है कि वाद-विवादों में भी, पार्लमेंट में भी मैंने देखा है। मुझे बड़ा आश्चर्य होता था! इतनी बुरी तरह से लोग आपस में बातचीत कैसे कर सकते हैं जिनके कि श्रीराम इस देश में हो गये? उनके हमारे उपर, अनंत उपकार हैं। और जिस इन्सान के अन्दर ये जागृत हो जाता है वो एकदम मर्यादा को प्राप्त होता है। हमारे सहजयोग में भी ऐसा ही है। जब लोग प्राप्त होते हैं इसको तो अपने आप उन्हे मर्यादा आ जाती है। अब अगर कभी आयें, कहें 'बेटा आज टाइम नहीं है, मेरे पैर नहीं छुओ।' बस ठीक है, बैठ गये। कुछ कहने की जरूरत ही नहीं है उनको। बस इशारे पे देखते रहते हैं। उसमें क्या उनका गया और उन्होंने क्या खोया और जो ऐसा नहीं भी करते हैं, अपने माँ-बाप से इस तरह से बतर्ताव रखते हैं उन्होंने क्या बहुत पाया? उसी तरह अनुशासन का भी है। अनुशासन में अगर आप लोग सोचें कि हम लोग इंडिसिप्लीन से रहे और माँ चीखें और चिल्लायें और आफत मचायें; तो आप अपनी मर्यादाओं को तोड़ते हैं। उससे क्या मिला? क्या मिलता है? लोग कहते हैं स्ट्राइक्स करिये। हमने देखा है स्ट्राइक्स जो लोग करते हैं अधिकतर, जो पैसा कमाते हैं ज़्यादा, वो शराब में ही डालते हैं, कौन सा बड़ा भारी उन्होंने ताज़ बना लिया है इस चीज़ से! मर्यादायें तोड़ कर के कोई सी भी चीज़ पाना बहुत हानीकारक होता है। मर्यादा में रह कर के ही आप सब कुछ पा सकते हैं और मर्यादा तोड़ कर आप कभी भी कुछ हासिल नहीं कर सकते। क्योंकि जो भी आप हासिल करियेगा वो भी मर्यादा रहित होता है। तो इसका तत्व ये है, सीधा तत्व ये है कि अगर आपने मर्यादा तोड़ कर के कोई चीज़ को हासिल किया.... एक बच्चा है समझ लीजिए। उसने अपने माँ-बाप से मर्यादा तोड़ कर उनका रूपया-पैसा छीन लिया, वो वेस्ट हो जाएगा। आप कर के देखिए इस चीज़ को कि आप मर्यादा में रह कर देखिये। हमने तो देखा है कि जो आदमी विनम्र है, जो आदमी मर्यादा में है वो इतना उँचा उठता है क्योंकि उसकी नम्रता ही उसका सौंदर्य है और उसकी मर्यादा ही आपको उसके प्रती एक तरह से आकर्षित करती है। जिस आदमी में मर्यादा नहीं, पता नहीं कहाँ से कौन नौक आपको चुभ जाए। आप कोई नुकीले पत्थर पर बैठना चाहेंगे? फिर आप क्यों नुकीले बनते हैं? आपको खुद पता होना चाहिए कि हम खुद बड़े भारी नुकीले इन्सान हैं, हमारे पास जो भी आता है वो हमसे छीन ही जाएगा। जो खूबसूरती मनुष्य की है वो उसकी मर्यादा में है। जिस मनुष्य में मर्यादा नहीं उसमें कोई भी किसी प्रकार की खूबसूरती नहीं। अब लंडन में या पाश्चिमात्य देशों में लोगों ने बड़ा भारी संघर्ष किया कहते हैं। क्या उन्होंने जितनी भी परंपरायें थी उन्हें तोड़ दिया और तोड़ कर के उन्होंने चाहा कि हम कोई नयी चीज़ बनाये। और तोड़ के क्या आप करने लगे? तो ड्रग्ज लेने लगे। हाँ अगर कोई पाश हो तो उसे तोड़ना चाहिए। कोई अगर पाश हो.... पाश और मर्यादा में बड़ा अंतर होता है उसे समझ लेना चाहिए। कोई अगर आपके ऊपर पाश है, जैसे अंग्रेजों का हमारे ऊपर साम्राज्य था। ये हमारे ऊपर पाश था। उसको तोड़ना चाहिए। गुलामी बर्दाश्त नहीं करनी चाहिए। लेकिन जो आदमी मर्यादा में रहता है उससे आज़ाद कोई आदमी नहीं होता है। वो अपने आज़ादी में 12 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-12.txt मर्यादा में है। क्योंकि वो आज़ाद है इसलिये नम्र है। जो आदमी को सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी रहती है और जो हमेशा कमी महसूस करता है वो हमेशा हावी रहता है दूसरे पे। श्री राम , जिनका नाम लेने से हमारे हृदय चक्र छूटते हैं, उनकी पत्नी सीताजी स्वयं साक्षात आदिशक्ति का अवतरण है। इन्होंने और भी अवतार बाद में लिये। तब उनको वनवास जाना पड़ा। लोग सोचते हैं 'जब वो इतने भगवान थे तो उन्हे वनवास क्यों जाना पड़ा?' ऐसे लोग कभी भी वनवास वरगैरा नहीं जाते| वो जहाँ भी जाते हैं वहाँ होते हैं। जैसे आज आपसे हम बात कर रहे हैं। अभी यहाँ है हम, बात कर रहे हैं । यहाँ नहीं हैं तो लंडन में हैं। वनवास क्या होता है? यहाँ पण्डॉल है, इसके नीचे में हैं? नहीं है तो पेड़ के नीचे में है। ऐसे लोगों का कोई भी वनवास वरगैरा नहीं होता है। वो जहाँ भी होते हैं, होते हैं। उनके लिये उनका वातावरण और ये कुछ महत्वपूर्ण नहीं रहता। फिर वो क्यों गये? एक सोचने की बात है कि वो अपने राजमहल में रहते हैं। ये सारा नाटक क्यों रचाया? सीताजी बिचारी, जिन्होंने कभी भी नंगे पैर चली नहीं । उनको सारे दर नंगे पैर क्यों ले गये तब? उसकी वजह है। इस देश के हर जगह में अपने वाइब्रेशन्स पहुँचाने के लिये वो पैदल गये थे। सीताजी जब चलती थी तो उनके पैर के वाइब्रेशन्स हर जगह पहुँचते थे, जो सारे देशभर में पहुँच गये। सबसे बड़े टूरिस्ट अपने श्रीरामचंद्रजी थे। यहाँ तक कि वो बैंकॉक आदि जगह से भी हो आये थे। तब अपनी हिन्दुस्तान की जो भूमि थी इस तरह से जुटी हुई थी बाद में ऐसी अलग हो गयी इसलिये इधर से उनको जाना पड़ा, बैंकॉक वरगैरा आदि हो कर के। ये सारा इसलिये नाटक रचाया था कि ये सारे देशभर घूम सके और हर जगह जा कर के अपने वाइब्रेशन्स छोड़ सके। सीताजी की नहानी एक जगह बनी हुई है, राहरी के पास में। मैं वो देखने गयी थी। दूर ही से पता हो रहा था कि वह इनकी ही नहानी है। इतने वाइब्रेशन्स वहाँ आ रहे थे, इतने वाइब्रेशन्स आ रहे थे और इतने अजीब तरह से वहाँ पानी बहता है कि समझ में नहीं आता कि नेचर से भी इस तरह से पानी वहाँ आ गया और किस तरह से हो रहा है? सब बड़ी अजीबोगरीब चीज़ है । लेकिन सबसे बड़ी चीज़ है वहाँ वाइब्रेशन्स क्योंकि जब वो वहाँ रहीं तो उनके सारे वाइब्रेशन्स वहाँ हैं । ये सहज में वाइब्रेशन्स बाँटने का तरीका था। अगर उस वख्त इन्होंने वाइब्रेशन्स नहीं बाँटे होते तो आज हमारा सहजयोग जम नहीं सकता था। क्योंकि आज भी भारत में लोग नंगे पाँव चलते हैं। इस देश का कण-कण वाइब्रेटेड है, शायद आप नहीं जानते! अगर आप पार हो जाएंगे, लंडन से आते कैसे वख्त हमने नीचे झाँक के देखा, मैंने कहा, 'हिन्दुस्तान आ गया।' तो इन लोगों ने कहा कि, 'माँ, जाना?' मैंने कहा कि, 'देखो, वाइब्रेशन्स दिख रहे हैं।' वाइब्रेशन्स ऐसे स्वल्पविराम जैसे ऐसे चिक-चिक- चिक दिख रहे हैं। मैंने कहा, देखो दिख रहा है। ये लोग भी कहने लगे, 'हाँ माँ, हिन्दुस्तान आ गया।' एकदम वाइब्रेशन्स पता चलते हैं। किस भूमि पर आप बैठे हैं? जिस भूमि को श्रीराम ने अपने पाँव से चैतन्यमय किया, उस भूमि में आप बैठे हैं। उस चैतन्य को आप पा लें। उनका जो भी त्याग है, उनके लिये वो नाटक मात्र है। ये बात जरूर है। उनके लिये इसमें कोई अर्थ नहीं। उनको त्यागना क्या और पकड़ना क्या! अरे भाई, जिसने पकड़ा ही नहीं उसका त्याग क्या होता है ? जो कोई पकडे हो वही तो त्याग करेगा ! तो उनका त्यागना और पकड़ना कुछ नहीं था। लेकिन ये जो कुछ भी उन्होंने किया है ये हमारी सहजयोग की तैय्यारियाँ है कि हमारे भारतवर्ष में इसके वाइब्रेशन्स लोगों को मिले । पर दुःख की बात ये है कि हमने चैतन्य तो क्या श्रीराम 13 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-13.txt ही को भूला दिया। अब उनकी दुकानें खोल दी। प्लास्टिक का एक फोटो मिल गया श्रीराम का, बैठ गये उसको लेकर के! और उसकी पूजा शुरू कर दी। कोई बड़े रईस हो गये, पैसे वाले हो गये, तो उन्होंने कहा, चलो भाई , एक श्रीराम का मंदिर खोल दो, जिससे अपने उपर का बोझा उतर जाये कि चलो, हमने कुछ तो कर दिया। एक साहब ने खोला एक मंदिर कहीं। बहुत रईस आदमी थे। उन्होंने ला कर के दिखायी राम की मूर्ति। कहने लगे, 'माँ, ये ठीक है?' मैंने कहा, 'नहीं, बिल्कुल ठीक नहीं ।' तो कहने लगे, 'क्यों?' मैंने कहा, 'श्रीराम की मूर्ति है और वो हृदय चक्र राइट में पकड़ रही है। मतलब श्रीराम के विरोध में है।' तो कहने लगे, 'इसका क्या डाइग्नोसिस हुआ?' मैंने कहा, 'डाइग्नोसिस ये हुआ है कि जिस आदमी ने बनायी है वो उसने अपने पिता से बहुत ज़्यादती करी है। इसका ये डाइग्नोसिस है।' आपको आश्चर्य होगा उसके बाद उन्होंने एक महीने भर बाद बताया कि वो आदमी पकड़ा गया। उसने अपने पिता का खून किया था । श्रीराम की मूर्ति वही आदमी बनाये जिसने अपने पती को या अपने पिता को श्रीरामचंद्र जैसे माना। बाकि किसीको ये अधिकार नहीं कि आया, वही बना रहा है अपना। जो आदमी अपनी पिता की सेवा नहीं कर सकता वो रामचंद्रजी की मूर्ति नहीं बना सकता। उसको अधिकार नहीं। लेकिन जब उसने अपने पिता की बहुत सेवा की, पिता को आनंद देते वक्त अपने में आनंद उठाया है वो अगर कैसी भी मूर्ति बनाये वो इतनी सुंदर होगी, उसके वाइब्रेशन्स, उसकी आनंददायी शक्ति संपूर्ण होगी । चाहे वो मार्बल क्यों न हो, चाहे वो मिट्टी की हो, उसमें चैतन्य है। उसको देखते ही लोगों के मन में भी अपने पिता के प्रति आदर हो। क्योंकि श्रीराम हमारे पिता हैं। वो हमारे पिता स्वरूप हैं। जिस वक्त आपका ये चक्र पकड़ा जाता है तो इसका ये अर्थ होता है कि या तो आप अपने पिता से रूष्ट हैं, पिता के प्रति कर्तव्यपरायण नहीं हैं और या तो अपने पिता की मृत्यु हो गयी है, आप उससे दुःखी हैं। कोई न कोई पिता का संबंध है और ये भी होता है कि आप अपने बच्चों के प्रति अच्छे पिता नहीं हैं। पिता का स्थान जो है वो आपका यहाँ पर, राइट साइड में हार्ट पर होता है। अगर ये स्थान आपका बिगड़ा हुआ है तो उसके ऐसे अनेक अर्थ निकलते हैं। इसके बिगड़ने से पहली भी कृति क्या थी? माने अनेक तरह से होता है, माने आपके पिता की मृत्यू हो गयी है, जो कि अकस्मात हुई और आप अभी उनके लिये परेशान हैं। तो वो अभी मंडरा रहे हैं। हो सकता है कि आप अपने पिता से बहुत दुष्ट व्यवहार कर रहे हैं। हो सकता है कि आप अच्छे पिता नहीं हैं। हो सकता है कि आपके पिता रहे ही नहीं। आपने पिता तत्व जाना ही नहीं। ये पिता का जो तत्व है ये हमारे अंदर किसी भी तरह से सुख पहुँचाता है। इसके इफेक्ट में क्या होता है। अगर किसी आदमी को न्यूमोनिया हो जाये तो ये चक्र पकड़ता है। अगर किसी को अस्थमा की बीमारी हो जाए तो अधिकतर यही चक्र पकड़ा जाता है। आश्चर्य की बात है, दो चक्र 14 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-14.txt हैं, जिसपे हमने देखा है अस्थमा पे आता है, पर अधिकतर आदमी लोगों में ये चक्र तब पकड़ा जाता है जब पिता का तत्व किसी तरह से दु:खी हो। पत्नी के कहने से पिता का अपमान करना। अपने बच्चों के सामने पिता का अपमान करना। या आपका अपने बच्चों का अवमानित करना। अपने बच्चों को निग्लेक्ट करना। ये सब चीज़ें इस चक्र में अति सूक्ष्म दिखायी देती है। अब इतनी सूक्ष्म होती है कि मैं आपसे बताऊँ कि एक साहब थे। तो वो बड़े ही ज़्यादा मॉडर्न थे। तो उनको बच्चा होने वाला था। तो उन्होंने अबॉर्शन करवा लिया। तो उन्होंने कहा कि 'भाई, ये क्यों कराया तुमने?' कहने लगे, 'इसलिये कराया कि हमने सोचा ज्यादा बच्चे होंगे तो हमें परेशानी होगी। हम लोग घूम- 15 ्र ी 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-15.txt फिर नहीं सकेंगे। अभी हमारे घूमने-फिरने के दिन हैं। इस वक्त में ये क्या करें?' और उनका ये चक्र इतना पकड़ा है, इतना पकड़ा है कि उनका घूमना-फिरना बंद हो गया। उनको श्वास लग गया। अंत में उनको माफी माँगनी पड़ी। बड़ी मुश्किल से उनका ये चक्र छूटा है। तो ये इतना है कि इसका साक्षात सामने आता है। हमने बहुत से लोगों का अस्थमा ठीक किया है। पच्चीस-पच्चीस साल पुराने लोगों का हमने अस्थमा ठीक किया हुआ है। और उसमें क्या है कि उसका तत्व अगर आप जान लें कि किस वजह से अस्थमा होता है क्योंकि लंग्ज ये कंट्रोल करता है। किसी को न्यूमोनिया हो जाए तो आपको पता चल जाएगा इसको न्यूमोनिया हो रहा है क्योंकि उसका जो है ये चक्र पकड़ जायेगा बहुत जोरो में और उसमें से गर्मी आयेगी । अब ये चक्र हमारे उँगली पर कहाँ दिखायी देता है? ये! राइट साइड में। अब लेफ्ट साइड में भी हार्ट है और बीचोबीच भी हार्ट है। इस तरह से तीन हार्ट की स्थितियाँ हैं। अब जो बीच का हार्ट है यहाँ श्री जगदम्बा का स्थान है। इसको हम दर्गा, ललिता आदि कहते हैं, जिन्होंने अनेक बार इस संसार में अवतरण लिया। और ये जो भवसागर में जो भक्त लोग परमात्मा को खोजते हैं उनके लिये वो अवतार लेती हैं और सबकी रक्षा करती हैं। तो इनका इसेन्स जो है, इनका जो तत्व है वो है रक्षा! अब किसी औरत में समझ लीजिए सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी आ गयी, देखिये कितनी बारीक चीज़ है, किसी औरत में समझ लीजिए सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी आ गयी, उसका आदमी अच्छा न हो, इधर-उधर भागता हो, जिसकी तरफ से परेशान हो, उसको ब्रेस्ट कैन्सर हो जाएगा। उसको ब्रेस्ट कैन्सर हो जाएगा क्योंकि उसकी रक्षा का जो है वो स्थान रिक्त है। 'सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी' है। बहुत से आदमी लोग सोचते हैं कि औरतों को डरा दे और उनको डाँटें कि तुम बड़ी शक्की हो, तुम ऐसी हो, वैसी हो। अगर औरत को शक हो तो उस चीज़ पे नहीं उतरना चाहिए। छोड़ देना चाहिए। उसको बुरा नहीं मानना चाहिए। क्योंकि उसको आप अगर जबरदस्ती कोई चीज़ करेंगे तो उसका बीच का हृदय चक्र पकड़ेगा और उसको ऐसी तकलीफ होगी। ऐसे औरतों को दूध नहीं होता है बच्चों के लिए। सूख जाती है। 'सेन्स ऑफ इनसिक्युरिटी' आदमी में भी बहुत बार होती है। जैसे कि नौकरी का मामला है, कुछ हो गया तब भी आप जानते हैं कि यहाँ धकधक धकधक होता है। जैसे ही मनुष्य पैदा होता है उसका ये जो यहाँ पर स्टर्नम कर के जो बोन है, जो हड्डी है, उस हड्डी में अँटीबॉडीज तैयार होती हैं साइन्स में। अँटीबॉडीज वही जगदम्बा के सिपाही हैं, जो तैयार होते हैं। और वो सारे बॉडी में बिखर के रह जाते हैं। और जिस वक्त भी कौन सा भी अँटैक आता है इन्सान तो वो अँटीबॉडीज उसकी मदद करते हैं। लेकिन अगर जगदम्बा का तत्व बिल्कुल ही गया-बीता हो तो पर, ये अँटीबॉडीज भी मुरझाकर रह जाती हैं क्योंकि उनका जो संचालन है वो दुर्गा तत्व से है। आपको मालूम होगा कि जैसे भय हो जाए आदमी का दिल धड़कने लगता है धकधक धकधक। अब इस मामले में ये कहना चाहिए कि ये माँ का स्थान है। हमारे देश में लोग माँ को बहत ऊँचा मानते हैं। अपनी माँ को तो मानते हैं लेकिन अपने बच्चों की माँ को तो नहीं मानते हैं। क्योंकि ये हमारे बच्चों की माँ है इसलिये ये भी बड़ी महत्वपूर्ण चीज़ है। जब तक हम अपने बच्चों की माँ को वो स्थान न दें जैसे कि हमारे माँ का स्थान था । उनकी माँ ने भी सफर किया और उनके बच्चों की माँ भी सफर कर रही है। तब ये चक्र डेवलप होता है और इससे बहुत सिरियस बातें हो जाती हैं । 16 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-16.txt जैसे कि हिस्टेरिया की बीमारी। ये सारे लेफ्ट साइड के आक्रमण है। लेफ्ट साइड से जो कुछ सबकॉन्शस से आक्रमण आते हैं, औरतों का डरना , चीखना, चिल्लाना, घबड़ाना, नव्हसनेस, इनसोम्नीया, असंरक्षित रहना, परेशान होना , किसी भी चीज़ से हर समय भय, खौफ खाना, कोई चीज़ करने में आगे न आना, हर एक एग्रेशन के सामने सर झुकाना, ये सब चीजें घटित हो जाती है। बहुत से आदमियों में भी ये बात होती है। जब ये चक्र उनका सुप्त हो जाता है तो वो बड़े एग्रेशन अपने उपर ले लेते हैं बेचारे। और ये भी गलत चीज़ है किसी का एग्रेशन लेने की कोई जरूरत नहीं है। आपको बीच में खड़ा होना चाहिए । कोई अगर आपसे एग्रेशन करे तो आपको बीच में खड़ा होना चाहिए । ना तो किसी पे आप एग्रेशन करें ना आप किसी से एग्रेशन लें। जब ये चक्र पूरी तरह से संतुलित हो जाता है तब आप अपनी शान में खड़े रहते हैं क्योंकि जगदम्बा है, जो कि सारी जगत जननी है, सारे जग को सम्भालने वाली, वही आपकी माँ है। फिर आपको किस के बाप का डर है । लेकिन आप अँग्रेशन नहीं करते। फिर आप भक्तों का रक्षण करते हैं। फिर आप अपने अच्छाई में शान उठाते हैं। आपको घबड़ाहट नहीं होती है। बहुत से लोगों को लगता है कि, 'साहब, मैं क्या करू? मुझे बड़ा डर लगता है। मैं जरूरत से ज़्यादा इमानदार आदमी हूँ। मेरे दफ्तर में सब लोग बड़े बेईमान हैं। मुझे खा जाएंगे।' लेकिन जब जगत जननी अन्दर जागृत हो जाती है तो उसको शान लगती है। वो सोचता है कि 'ठीक है, ये तो बेकार लोग हैं। मैं तो कम से कम ठीक रस्ते पर हूँ।' वो अपने व्हर्चूज को एन्जॉय करने लग जाता है। हम तो अपने व्हर्चूज के लिये रोते रहते हैं। उसको अपने व्हर्चूज में घबड़ाहट नहीं होती। ना ही वो एग्रेस करता कि मैं इतना व्हर्चूअस हूँ और तुम नहीं हो। ये भी नहीं करता। ना तो वो एग्रेस करता है ना तो वो किसी पर एग्रेशन करता है, ना तो वो किसी का एग्रेशन लेता है इस तरह से उसका बीच का स्थान बन जाता है। अब ये जो हृदय चक्र है बीच का, ये बहुत जरूरी है। इसके खराब होने से भी स्पॉन्डिलाइटिस वगैरा हो जाते हैं कभी। तो छोटी -छोटी बातें हैं। इसको समझ लेना चाहिए। जैसे कि, लड़की है, उसकी शादी हो गयी । उसका पती, उसको अगर इनसिक्युरिटी डाल दें तो उसको समझाना चाहिए कि देखो, ये पाप है, ऐसे नहीं कर सकते। लड़की पे जबरदस्ती नहीं करें क्योंकि विशेषत: ये औरतों का चक्र बहुत खराब है। अपने यहाँ की औरतें बहुत शान्त हैं मैं आपसे कहती हूं। बहुत अच्छी हैं। अपने देश की इन औरतों की वजह से ही आज आपकी पेशानी ऐसी है। नहीं तो आप इंग्लैण्ड के आदमियों के देखिए तो उनके उड़ती रहती है आँख कहीं, नाक कहीं, कहीं मूँह। एक मिनट ऐसे चुप नहीं बैठ सकते, आपके जैसी पेशानी नहीं होती। इस उमर में तो उनके सारे पाँच-छः यहाँ पे लाइने आ जाएंगी और आँखें उनकी फड़केंगी, नाक उनकी फड़केंगी, गाल उनके उड़ेंगे। क्योंकि उनकी माँ किसी के साथ भागी होती है, पत्नी किसी के साथ भागी होती है। यहाँ की औरतों में बड़ी अभी भी सज्जनता है कि अपना पती, अपने बच्चे, चाहे जैसा पती हो। लेकिन इसकी ज़्यादती नहीं करी क्योंकि ये भी अगर ज़्यादती पर आ जाएगा तो इंग्लैण्ड यहाँ आ जाएगा। वहाँ औरतों ने आदमियों को घाटी बना कर रखा है। बिल्कुल। ये हालत कर के रखी है कि आदमियों को समझ में नहीं आता है कि इन औरतों के साथ रहे कैसे ? अच्छा ये एक का नहीं, सबका ही मैंने ये हाल देखा है। सुबह से शाम तक ये सफाई कर ये बर्तन धो, वो कर, ये नहीं किया तूने, वो नहीं किया। वो घर में नहीं आया तो उसको ढेर काम! हमारे यहाँ 17 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-17.txt तो आदमी लोग को हाथ में झाड़ भी लेना नहीं आता। जब बाहर जाते हैं तो रोते हैं कि अब खाना कैसे बनाएंगे? हमें तो ये भी नहीं आता, सब्जी कैसे? दाल कौनसी है? हमें मालूम नहीं। औरतों ने बहुत बोझा अपने उपर इस देश में उठाया है। इस देश की औरत जो है धरा है, पृथ्वी जैसे महान, एक से एक अपने देश में महान औरतें हो गयीं | उनका नाम लीजिए, नूरजहाँ जैसी औरत, क्या औरत थीं । चाँदबीबी थी , पद्मिनी थी। वो लोग विश्वास नहीं करते कि अपने यहाँ पद्मिनी जैसे कोई ऐसी विशेष औरत हुई होगी। वहाँ तो कोई औरत के पीछे में कोई आदमी लग जाए तो फौरन गायब! कोई वहाँ समझ नहीं सकता है कि कोई औरत अपने इज्जत की भी पर्वा करती है। कोई समझ नहीं सकता आजकल। आपको आश्चर्य होगा वहाँ तो सब औरतें इसी पे हैं कि कितने आदमी उनके पीछे भाग रहे हैं। बड़ी-बड़ी बुढ़िया लोग ऐसी बातें करती हैं। मुझे तो आश्चर्य होता है कि इनकी अकल क्या सब गायब हो गयी। और ये में आपको जनरल बात बता रही हैँ। सौ में अगर आपको एक औरत कायदे की मिल जाए तो आप कहें कि हाँ ठीक है। और आदमियों की तो हालत इन्होंने बिल्कुल ही कच्चा कर रखी है। जो हिन्दुस्तानी आदमी हैं, हिन्दुस्तानी औरत को छोड़ कर अंग्रेजी औरत से शादी करता है उसकी हालत देखने लायक हो जाती है। रोता है अपनी किस्मत को| हालांकि वो अच्छी बात नहीं है । लेकिन इस महान आत्माओं का आपको अपमान नहीं करना चाहिए। उनका मान रखिए । 'यत्र नारियाँ पूज्यन्ते, तत्र रमन्ते देवता:' जहाँ स्त्री पूज्यनीय होती हैं और पूजी जाती हैं वहीं देवता होते हैं। इन किसी भी देशों में औरतों की दशा ऐसी नहीं है जैसी यहाँ है, मतलब अच्छी है। यहाँ की जैसी कहीं औरतें हुई नहीं और ना ही यहाँ गयी है। आजकल उन्होंने और भी निकाला हुआ है, 'लिबर्टीज' और भी क्या-क्या निकाला हुआ है। 'लिब' लिबरेशन। इन औरतों के तो सिंग निकल आये हैं। बिल्कुल जानवर हो गयी हैं, बिल्कुल गधी हो गयी हैं। इनको कोई अकल नहीं है। अपने पती की सेवा करना, अपने बाल-बच्चों को सम्भालना ये महान कार्य है। ये तो तब आपको पता होगा जब ये नहीं कोई करेगा। जब बच्चे आपके रास्ते पर घूमेंगे और ड्रग्ज़ पियेंगे और बारह-बारह साल के बच्चे जाकर के अखबार बेचेंगे और चोरी होंगे और मारे जाएंगे। हमारी औरतों को ये किसी ने नहीं सीखाया। पढ़ी-लिखी नहीं है तो भी अन्दर से बहत बड़े दिलवाली औरत हैं। कोई-कोई होती हैं बिगड़ी हुईं। विशेषत: वेस्टनाइज्ड हो गयी तो फिर उनको तो कोई सूझता ही नहीं। वैसी भी औरतें होती हैं बेवकूफ। उन लोगों से कुछ सीखने का नहीं है। मैंने सौ बार आपसे कहा है। और औरतों को तो बिल्कुल उनसे कुछ सीखने का नहीं है। हम लोगों के पाँव के धूल के बराबर भी एक औरत मैंने वहाँ नहीं देखी। इसमें जो समझापन और जो सुलझापन और जो चरित्र। आपको बहुत अपने पे गर्व करना चाहिए कि आप एक ऐसे माँ के बेटे हैं जो चरित्रवान थीं और ऐसे पत्नी के पती हैं जो चरित्रवान है। क्योंकि वो चरित्रवान है उनकी जैसी औरतों की जो, उनका जो मान है घर में, वो होता है। हर जगह औरत इतनी बेवकुफ बन | बहुत इज्जत करनी चाहिए। पर हम लोगों के यहाँ नयी फैशन चल पड़ी दुश्चरित्र औरतों का बहुत माना जाता है। एक औरत दुश्चरित्र आ जाए सब उसीके पीछे दौड़ने लग जाते हैं। ऐसे बैल आदमी पता नहीं इस देश में कैसे पैदा हो गये? ऐसे कभी भी यहाँ नहीं थे। ये कोई पच्चीस-तीस साल में बहुत ही ज्यादा ऐसे बैल आदमी पैदा हो गये 18 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-18.txt मैं आपसे बता रही हैँ। हम लोगों के जमाने के जो जवान लोग होते थे आँख नीचे कर के ही चलते थे। उन लोगों को कभी सूझता भी नहीं था कि दूसरी औरत क्या है, क्या नहीं। अपनी पत्नी माने अपनी पत्नी! पर आजकल जो ये बैलपन आ गया है इस बैलपना से आपकी भी बिवी ऐसी हो जाएगी कि जो एक गाय होती है न लात मारने वाली उस तरह की हो जाएगी। अब वो होना ही है उसके आप पीछे पड़े हुए हैं। आपकी बिवी नहीं होगी तो आपके लड़के की बिवी होगी। यही मर्यादायें हैं। इसे बाँधना है और जिसे सम्भालना है। और वही है कि हृदय में अपनी पत्नी का स्थान है, अपनी माँ का स्थान है। सबसे बड़ी चीज़ है लेफ्ट साइड का हार्ट जो कि इस उँगली (तर्जनी) पर पकड़ता है। सबसे बड़ी चीज़ है। हार्ट में, हमारे हार्ट में लेफ्ट साइड़ में शिवजी का स्थान है। शिवजी जो हैं आत्मास्वरूप हैं, सदाशिव हैं । सदाशिव हमारे सर पे सदा विराजते हैं। और उन्हीं का प्रतिबिंब रूप हमारे अन्दर आत्मा है। आत्माराम जिसे हम कहते हैं। वो हमारे हृदय में बसते हैं। जब हम कभी भी इस आत्मा के विरोध में काम करते हैं, तब हमारा ये चक्र एकदम से ही सो जाता है। माने जो बहुत इगो ओरिएन्टेड लोग होते हैं जो कि राइट साइड बहुत चलाते हैं, इगो ओरिएन्टेड लोग हैं, कि जो बहत काम करते हैं, कि हमें प्लानिंग करना है, ये करना है, ये इगो से अपना काम लेना है। रिइलाइजेशन के बाद नहीं, तब तो डाइनेमिज़म अन्दर से बहता है। पर पहले इगो ओरिएन्टेड होते हैं। अब इसकी अतिक्रमण हो गया है उधर, अब यहाँ भी होने वाला है। ये इगो-ओरिएन्टेशन जब हमारे अन्दर बहुत बढ़ता है जब हमारा इगो बहुत ज़्यादा डेवलप हो जाता है, याने 'हम कोई बहुत बड़े हो गये', तब आपका हृदय चक्र पकड़ता है। इसलिए हार्ट अटैक्स जब आते हैं ये आदमी इगो ओरिएन्टेड होते हैं। लेकिन हम लोग हार्ट अटैक वाले आदमी के साथ बड़ी सिम्परथी करते हैं । सोचते हैं भाई, इनको हार्ट अटैक आ गया। अगर उनसे आप कहिए कि आपको हार्ट अटैक आया, आप आराम से लेटिए। मैंने ऐसे- ऐसे लोग देखे हैं, एक साहब थे। उनकी उमर नब्बे साल की थी। और उनको वो पैरेलिसिस, पैरेलिसिस भी इसी में होता है। बहुत ज़्यादा काम करने वाले आदमिओं को पैरेलिसिस कंट्रोल करता है। उनको पैरेलिसिस का झटका है। नब्बे साल की उमर। उनसे मिलने गये और वो सारे शिपिंग के स्टैटस्टिक बोल रहे थे। मैंने कहा कि इन आदमी को पता नहीं है कि अभी दो दिन रहना है कि नहीं। वो यही सब बोले जा रहे हैं । हालांकि उनकी एक साइड गायब हो गयी थी। दूसरे साइड से जो भी उनके शब्द निकल रहे थे, वो सारा के सारा रटे जा रहे थे। मैंने कहा इनका क्या होने वाला है पता नहीं। तो जब आदमी अतिशय प्लॅनिंग करता है और अतिशय सोचता है और एग्रेशन करता है इस तरह से तो परमात्मा उससे नाराज हो जाते हैं। मनुष्य का चित्त सिर्फ परमेश्वर पर होना चाहिए। मतलब ये कि आपका चित्त स्पिरीट पे नहीं है। आपको सिर्फ स्पिरिट होना चाहिए। मनुष्य के लिए बड़ा कठिन हो जाता है समझना कि हम नहीं देखें तो कैसा होगा। एक देखने वाले सबसे बड़े बैठे हुए हैं। ठीक है, आप कर्म करो । उसमें कोई हर्ज नहीं। पर उसका फल जो है, वो ऐसा मिले न मिले, उसमें इनवॉल्व्हमेंट नहीं होनी चाहिए। लेकिन ये भी एक कहने की बात हो जाती है कि जब तक घटना घटित नहीं होती आदमी नहीं कर सकता। तो भी मैं सबसे कहती हूँ कि कृष्ण ने कहा ना कि 'अतिकर्मी नहीं बनो'। थोड़ा आराम भी करना सीखो। कभी-कभी तो आराम कर लिया करो । जिन लोगों ने कहा कि 'आराम करना ही नहीं है', उन्होंने कौनसे चार चाँद लगा के | 19 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-19.txt रखे हैं हमें बताईये। कभी-कभी आराम भी करना चाहिए और उस परमात्मा को, जगननियन्ता को, जो कि सबका प्लानिंग करता है याद करना चाहिए। आजकल तो साइंटिस्ट लोग कहते हैं कि भगवान है ही नहीं, Negation ऑफ गॉड। पहले से ही कह दिया उन्होंने। ऐसे लोगों का हार्ट नहीं पकड़ेगा तो क्या पकड़ेगा। मतलब जब आपने उधर ध्यान ही नहीं दिया। उस चीज़ को आपने त्याग ही दिया है। तो फिर वो चीज़ खत्म होने वाली है। हार्ट अॅटैक इसी से आता है। सबसे बड़ी चीज़ है हृदय। हृदय से अगर आप सोच सकें, तो आप बहुत सुन्दर हो जाएंगे और अगर बुद्धि से आप प्रेम करें, तो और भी आपके चार चाँद लग जाएंगे। सारी चीज़ हृदय से होती है। सारा ज्ञान हृदय से मिलता है। आपको आश्चर्य होगा मैं जो बात कह रही हूँ। बुद्धि से ज्ञान नहीं मिलता, हृदय से मिलता है। कोई आप काम करें, हृदय से करें। कुछ पढ़ना है, हृदय से करें। कोई नौकरी करनी है, हृदय से करें। लेकिन आप बुद्धि से करते हैं, इगो ओरिएन्टेड हैं आप पर आप हृदय से करें तो मजा आते रहेगा। हृदय से करने का मतलब ये है कि आप अपने अन्दर के जो स्पिरिट है, आत्मा है उसको उपयोग में ला रहे हैं। कोई भी आदमी बात करता है, समझ लीजिए आपके सामने कोई आदमी लेक्चर दे रहा है , वो अगर हृदय से नहीं दे रहा है, तो आप जानते हैं कि ये बकवास चल रही है। इसके मन में कुछ है नहीं। पूरे साढ़ेतीन चक्र ले कर के हृदय से कुण्डलिनी का जो प्रतिबिंब है वो पूरा ऐसे रहता है। और जब तक आपके हृदय में बात बैठती नहीं, तब तक उसमें कोई भी सौंदर्य ही नहीं होता है, उसका कोई भी फल प्राप्त नहीं होता है। बुद्धि से सोची हुई बात से कुछ लाभ नहीं होता है। आप हर चीज़ को हृदय से करें। ज्ञान भी देखें। कोई आदमी हैं, समझ लीजिए आपसे हमें नितांत प्रेम है तो हमें पता है आपकी कुण्डलिनी कहाँ है। अब यहाँ मेहनत कर रहे हैं, दो बजे रात के तो भी बैठे हैं मेहनत करते क्योंकि हृदय से कर रहे हैं । उठे कैसें? सारा आपके बारे में ज्ञान हो जाएगा। माँ होती है, वो अपने बच्चे को बहुत प्यार करती है। वो अपने बच्चे की छोटी- छोटी बात सब जानती है। उसका सारा उसे ज्ञान होता है। कोई सा भी कार्य करते वक्त अगर आप इसे हृदय से करें। आप सरकारी नौकर हैं, अगर वो ये सोचें कि 'ये काम जो है ये जनता का, मेरे हृदय से मैं कर रहा हूँ। मेरा हृदय चाहता है। इसके बगैर मुझे अच्छा नहीं लगेगा । उस पे कभी भी असर नहीं आयेगा । लेकिन जब ये चीज़ टूट जाती है तब स्पिरीट जो है वो लुप्त हो जाती है और स्पिरिट खत्म होते ही हमें मृत्यु आ जाती है। इसका ये मतलब नहीं है कि जो लोग बहुत काम करते हैं वो कोई बड़े पापी हैं, लेकिन अन्धे भी हैं। काम करिये लेकिन हृदय से कार्य करें। जिस कार्य में आपका हृदय से कार्य नहीं होता है उसका कोई निष्पन्न नहीं है, उसका कोई लाभ नहीं है, उससे किसी को सुख नहीं होने वाला है। आप पहाड़ कर लीजिए, प्लास्टिक है सारा। अब आप ही सोच लीजिए कि आप अपने दफ्तर का काम क्या हृदय से करते हैं। से लोग तो इसलिए करते हैं कि भाई पैसा ही मिलता है। करना ही है, क्या करें? अब मरना ही है। गले पड़ा ढ़ोल तो बजाना ही है। फिर मजा क्या आयेगा? नहीं तो इतना मजा आता है कि कितने भी तुफानों में आप खड़े होंगे, मजा आता है उससे लड़ने में कि हृदय से लड़ रहे हैं। क्योंकि हृदय जो है यही आनन्ददायी है। आनन्द का स्रोत आपका स्पिरिट है, आत्मा है और कहीं से आनन्द नहीं मिलने वाला। जब आपका आत्मा उससे सन्तोष बहुत पाता है तभी आपको इन सबमें आनन्द आयेगा और आपका फ्रस्ट्रेशन नाम की चीज़ आपसे हट जाएगी। 20 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-20.txt ी इस प्रकार आपके तीन चीक्रों को मैंने बताया है, इसको कि हम हृदय चक्र कहते हैं। उसको अनहत चक्र भी कहते हैं। अनहत माने without percussion! क्योंकि जब हृदय में, उसकी जो गति होती है, हृदय की उसमें हमारा जो प्रणव है, जिसकी वजह से हम जीवित हैं उसका आवाज किसी भी परकशन के बगैर आता है, किसी भी आहत के बगैर आता है इसलिये अनहत कहते हैं। पर जब कुण्डलिनी जागृत होती है और चित्त उसपे जब छा जाता है, तब कुण्डलिनी में भी अनहत जागृत हो जाता है और वो बोलता है। आप देख सकते हैं कि उसकी धक-धक-धक -धक, आप सुन भी सकते हैं स्टेथैस्कोप से कुण्डलिनी का चढ़ना और जब वो शिखर पे पहुँच जाता है, तो कबीर ने कहा है, 'शून्य शिखर पर अनहद बाजी रे' मतलब यहाँ पहुँच के अनहद ने बजाना शुरू किया 'मैं पहुँच गया हूँ। और जब वो अनहद टूटता है यहाँ तब ये आदमी रियलाइज्ड हो जाता है। 21 ४ ल 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-21.txt देवी पूजा धरमशाला, २९.३.१९८५ है। ये सहस्रार है, जो पृथ्वी ने आपके लिए बनाया हुआ होनी चाहिए। इस सहस्रार की पूजा ये सहस्रार बहुत ऊँची चौज़ है। 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-23.txt आज के शुभ अवसर पर यहाँ आए हैं। आज देवी का सप्तमी का दिन है। सप्तमी के दिन देवी ने अनेक राक्षसों को मारा, अनेक दृष्टों का नाश किया, विध्वंस कर डाला। क्योंकि संत-साधु जो यहाँ पर बैठे हुए तपस्या में संलग्न हैं उनको ये लोग सताते थे । हम लोग सोचते हैं कि माँ ये क्यों, क्यों इन्होंने इतनी तपस्या की। इनको क्या जरूरत थी इतना तप करने की, इतनी तपस्या करने की। वो सोचते थे कि हम इस शरीर से उस आत्मा को प्राप्त कर लें । इसलिए उन्होंने इतनी मेहनत की और इस स्थान में बैठ करके इतनी तपस्विता की । आज उन्हीं की कृपा से हम लोग आज इतने ऊँचे स्थान पर बैठे हुए हैं। उन्हीं की कृपा से हमने पाया। इसका मतलब ये नहीं कि हम लोग इस सहजयोग को समझ लें कि हमारे लिए एक बड़ी भारी देन हो गयी, कोई हम बड़े महान लोग हैं जिनको कि भगवान ने वरण कर लिया, हम लोग चुने हुए मनुष्य हैं और इस तरह की बातें सोचने वाले लोगों को मैं बताती हूँ बड़ा धक्का बैठेगा। ये देखेंगे कि जो लोग यहाँ पर भोले-भाले हैं, जो यहाँ सीधे-सरल हैं, जो स्वभाव से अत्यन्त सुन्दर हैं, वे सबसे पहले आकाश की ओर उठेंगे और बाकी सब यही धरातल पर बैठे रहेंगे। जितनी जड़ वस्तु है सब यहीं रह जाएगी। इसलिए सिर्फ आपका साक्षात्कार होना पूरी बात नहीं है। मैं यही बात अंग्रेजी में कह रही थी, वही बात आपसे कह रही इस शुभ अवसर पर ये जानना चाहिए कि परमात्मा ने अपनी सारी शक्तियाँ आपकी सुरक्षा के लिए, आपके क्षेम के लिए, आपकी अच्छाई के लिए लगा रखी हैं। पूर्णतया परमात्मा आपको आशीर्वाद दे रहे हैं। पूर्णतया वो आपको देखना चाहते हैं कि आप परमात्मा के साम्राज्य में आएं। उसका अभिवादन है एक तरह से कि आप अपने पिता के घर आइए और आ करके वहाँ पर आप आनन्द से बैठिए। लेकिन उस लायक तो होना चाहिए। अगर हम उस लायक नहीं हैं तो क्या हम वहाँ जा सकते हैं? हमारी लियाकत हमें देखनी चाहिए कि क्या है? सबसे पहले बात है कि आप पिता के घर आए हैं। में भी आज अपने पिता के घर आयी, ऐसा मुझे लगता है, क्योंकि हिमालय मेरा पिता है। आते ही साथ सबसे पहले जो भावना मेरे अन्दर उमड़ी वो मैं शब्दों में नहीं बता पाऊँगी, लेकिन ऐसा सोचती हूँ कि जैसे कि आज मेरे पिता के गौरव का मुझे एक बड़ा अच्छा समय मिल गया है। बड़ा शुभ अवसर प्राप्त हुआ है कि इस समय मैं अपने पिता के गौरव की गाथाएं लोगों से कहूँ कि इस पर आकर जिन्होंने भी तपस्याएं करीं। उन्होंने कहाँ से कहाँ अपनी उन्नति कर ली। इस हिमालय को देख करके जिन्होंने उच्चतम स्थिति प्राप्त करी, उन्होंने न जाने कहाँ से कहाँ अपने को उठा लिया। होनी चाहिए । ये ये सहस्रार है, जो पृथ्वी ने आपके लिए बनाया हुआ है। इस सहस्रार की पूजा सहस्रार बहुत ऊँची चीज़ है। पता नहीं आपको इसमें से चैतन्य लहरियाँ निकलती हुई दिखाई दे रही हैं कि नहीं। मेरे चारों ओर सिर्फ चैतन्य के सिवाय और कुछ नहीं दिखाई दे रहा। चारों ओर चैतन्य ही चैतन्य है और इसमें रहने वाले लोग भी उस चैतन्य से ऐसे लिपटे हुए हैं, ऐसे समाए हुए हैं कि मानो जैसे सागर में मछलियाँ तैर रही हों। कोई भी इनमें और उनमें भेद नहीं रहा। जो पानी है उसी का उपयोग जैसे मछलियाँ 24 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-24.txt अपने तैरने के लिए कर रही हों। ये जो चैतन्य चारों तरफ फैला हुआ है, इतना यहाँ सुन्दर और इतना मनोरम है कि उसका वर्णन मैं वाकई शब्दों में नहीं कर सकती। और ये सारी हिमालय की कृपा है। हिमालय की कृपा है। हिमालय! सर्वप्रथम सोचिए कि हम लोग सागर को अपना गुरु मानते हैं। सागर हमारा पिता है और सागर जब सारा मैल छोड़-छाड़ करके दुनिया की सारी गन्दगी उसके अन्दर जब गिरती है, उसे नीचे छोड़ करके और जब वो आकाश में बादल की तरह उठता है तब वो बिल्कुल निष्पाप, सुन्दर, शुद्ध ऐसा बहता - बहता इस हिमालय के चरणों में जब आता है तब वो यहाँ पर हिम बनके छा जाता है। शब्द भी 'धवल' है। धवल माने अति शुद्ध, अत्यन्त स्वच्छ, अत्यन्त निर्मल। ऐसी ये जो धाराएं हैं, ऐसी ही धाराएं इस हिमालय में बह सकती हैं। ये धाराएं वही हैं जो हमारे मस्तिष्क में भी बहती हैं और जिसके सहारे हमारा सहस्रार प्रज्ज्वलित होता है। इसके अन्तर्गत क्या-क्या कहना चाहिए और क्या-क्या नहीं, ये मेैं नहीं बता सकती। लेकिन इतना ही बताती हूँ कि आज की जो यहाँ की एक आपको बहुत अच्छी संधि मिली है, एक शुभ अवसर मिला है उसकी गहराई में उतरने का प्रयत्न करें। उसकी महानता में उतरने का प्रयत्न करें। और ये सोचिए कि हम इसके सामने एक अकिंचन, एक छोटे से क्षुद्र हैं। हमारे अन्दर ऐसी कोई भी विशेषता नहीं है कि जो हम इस हिमालय के सामने अपने को उद्दामता से देख सकें । हम हैं ही क्या? ये तो महान चीज़ है! और ये सहस्रार, सारी सृष्टि का सहस्रार यहाँ है। इसने सारी सृष्टि को ही इतना आराम, इतना सुख और इतना आनन्द दिया हुआ है कि इससे आगे हमें और कुछ पाने का नहीं। इस सहस्रार के सहारे मैंने जाना कि जब तक हिमालय की शान्ति आपके अन्दर नहीं आएगी, उसकी शीतलता आपके स्वभाव में नहीं आएगी, तब तक आपका सहस्रार खोलना भी व्यर्थ जाएगा। नहीं तो आग की भट्टी की तरह से ये सहस्रार जलता है। जब मैं देखती हूँ कुछ-कुछ लोगों को, तो लगता है, हे भगवान मैंने इनका सहस्रार क्या खोल दिया अन्दर से आग की भट्टी जल रही है। अन्दर से इतना धुंआ और इतनी गन्दगी निकल रही है कि अच्छा है, इनका सहस्रार फिर से बन्द ही कर दो। ऐसा भानुमती का पिटारा खुल गया है कि पता नहीं इसके अन्दर से क्या-क्या चीजें निकल रही हैं। देखने के साथ ही आश्चर्य होता है कि साँप, बिच्छू, दुनिया भर की जो-जो चीज़ें गन्दगी की हैं वो सारी उभर करके ऊपर चली आती हैं। आज इस हिमालय को याद करके और उन सात देवियों को याद करके जिन्होंने यहाँ पर बहुत पराक्रम किए हुए हैं, उनको याद करना चाहिए कि हमारे पास भी दैवी शक्ति आए। और उस दैवी शक्ति को पूर्णतया हम एक माँ से प्राप्त किए हुए हैं। इसलिए जो माँ का स्वरूप है, उस स्वरूप को लेते हुए हम हिमालय की शरणागत हों। अपनी ओर नज़र रखिए । लोग दसरों की सोचते हैं। ये सोचते हैं, ये आदमी खराब है। That man is not good, that fellow is not good. What about yourself? See yourself. Hachi 34 ae दूसरों को नहीं देखना है। ये आदमी ये नहीं करता, वो आदमी वो नहीं करता। आप क्या कर रहे हैं, उसे 25 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-25.txt देखिए । हिमालय ये नहीं देखता, हिमालय ये नहीं देखता कि दुनिया ने उनके साथ क्या किया ? कितनी ज्यादती करी है? वो ये देखता है कि उसे क्या देना है? उसे क्या मेहनत करनी है? किस तरह से लोगों को प्लावित करना है? किस तरह से उनका संरक्षण करना है? इस हिमालय की चोटी से ही हमने अपनी सुरक्षा पायी। इसी से हमने अपनी गंगा, यमुना और सरस्वती की धाराएं पायीं। ये तीनों धाराएं हमारे अन्दर निर्मल बहती रही हैं। हालांकि इसमें हम हर तरह की गन्दगी डालते हैं। हर तरह से उसकी उपेक्षा करते हैं। हर तरह से उसका अपमान करते हैं। तो भी हिमालय सतत अपनी स्वच्छता उसके अन्दर बहाते रहते हैं। लेकिन सब चीज़ों का अन्त होने वाला है। इस तरह की चीजें और अधिक चलने वाली नहीं । सब लोग इसको याद रखिए कि मैं आपकी जबान में मधुरता पाऊँ, आपकी बातचीत में मिठास पाऊँ, आपके व्यवहार में सुरुचि पाऊँ। मैं इस चीज़ को अब माफ नहीं करूँगी, इसको आप जान लीजिए । ये करना महापाप है। किसी को भी किसी चीज़ के लिए दुःख देना बहुत बुरी बात है। कृपया एक दूसरे का आदर करिए। आप सहजयोगी हैं, दुसरे भी सहजयोगी हैं। आज आप किसी पद पर हैं दूसरा नहीं, ये पद आपने पाया हुआ नहीं, हमने दिया हआ है और जब चाहें इस पद से हम आपको हटा सकते हैं। इसलिए मेहरबानी से इसके योग्य बनें। नम्रतापूर्वक इसे करें। कितने ही लोगों ने मुझसे ये शिकायत की है कि माँ हम आप ही के प्रवचन में आएंगे और हम आपके सेंटर पर नहीं जाएंगे। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। हजारों लोग मेरे लेक्चर में आते हैं और क्यों ऐसे खो जाते हैं? तो क्या आप बीच में एक शैतान बनकर बैठे हुए हैं? कृपया म नहीं। हमने ऐसा किया है? क्या हमने ऐसा किया है?तब आप जानेंगे, जब आप इस मेरी बात की ओर ध्यान दें और अपनी ओर देखें। दसरों की ओर चीज़ को समझ लें, जब आप अपनी गलती को देखेंगे तभी तो आप न ठीक कर पाएंगे, और तभी आप इस हिमालय की महानता को जानेंगे, नहीं तो आप समझ नहीं पाएंगे। आपके अन्दर न वो संवेदना है, न ही वो आँखे हैं न ही वो समझ है, न ही वो सूझ-बूझ है ्टे कि आप इसे समझ पाएं कि ये क्या चीज़ है? जहाँ आप बैठे हुए हैं, किसकी गोद में आप आए हैं। जिसकी गोद में हम रहे, पले, बड़े हुए वही ये महान पिता हमारा है। इसका आप मान रखिए और इनके सामने नतमस्तक हो करके ये सिद्ध करके दें कि जो हमने कार्य किया वो किसी काम का रहा। बेकार का नहीं रहा। इसी प्रकार इन सात देवियों का आशीर्वाद आप पर अनन्त है। ये आपकी मौसियाँ समझ लीजिए। ये सारी आपकी देखभाल करती हैं। कहते हैं कि माँ मर जाए पर मौसी जिए । ऐसा कहा जाता है। क्योंकि मौसी जो होती है वो बच्चे को दुलार से रखती है। उसको संभालती है। उसकी रक्षा करती है। उसकी पूरी तरह से देखभाल करती है। उसका हमेशा मनोरंजन करती है। हरेक तरह की कठिनाइयों से आपको बचाती है। आप देखते हैं 26 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-26.txt कि छवि घूम रही है। कभी आकाश में बहुत सारे बादल आ रहे हैं। बहुत सुन्दर-सुन्दर से आप देखते हैं कि हर समय रंग-बिरंगे वहाँ पर नज़ारे दिखाई देते हैं । ये सब उनके खेल चल रहे हैं, आपको सुन्दरता से भरने के लिए । इसी प्रकार आप भी एक सुन्दर अच्छे व्यक्ति बनें। यहाँ पर बहुत कुछ कमाने का है। अब देखना है कि इस शान्ति के पुण्य से निकल करके आप कितने सुन्दर होते हैं? आज की पूजा में बहुत महत्व है और हो सकता है इस पूजा में बहुत लोग बहुत कुछ पा लेंगे। लेकिन अपने चित्त को स्थिर करें और चित्त में पहले शान्ति की आराधना करके कि, 'माँ, हमें आप शान्ति दीजिए।' शान्ति की माँग करें, जिससे आप दुनिया में शान्ति फैलाएं। तब आनन्द आता है। आनन्द शान्ति के बगैर नहीं आ सकता। प्र ग . ा० २ 27 शन 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-27.txt बाई और ज्ञान २ अप्रैल २००२, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान केंद्र, नई दिल्ली सभी सत्य साधकों को मेरा प्रणाम ! चिकित्सकों के सम्मुख बोलते हुए मुझे अपने विश्वविद्यालय के दिनों का स्मरण हो आया है। मैं भी चिकित्सा विज्ञान पढ़ी थी परन्तु भाग्य से या दुर्भाग्य से, लाहौर में हमारा विश्वविद्यालय बन्द हो गया। ऐसा नहीं था कि मेरा विश्वास पाश्चात्य चिकित्सा शिक्षा में न हो। परन्तु यह दोनों को जोड़ने का और समझने का सुनहरा अवसर था कि पाश्चात्य चिकित्सा शिक्षा में क्या कमी है। इस चिकित्सा पद्धति की मुख्य कमी ये है कि चिकित्सा विज्ञान मानव को व्यक्तिगत रूप से मानता है। पूर्ण से (विराट से) जुड़ा हुआ नहीं। आप सभी विराट से जुड़े हुए हैं। परन्तु लोगों को किस प्रकार विश्वस्त किया जाए कि आप सब पूर्ण से जुड़े हुए हो, केवल व्यक्ति (अकेले) नहीं हो। क्योंकि हम सब पूर्ण से जुड़े हुए हैं, हमारी सभी समस्यायें भी सबसे जुड़ी हुई हैं। किसी व्यक्ति को आप एक चीज़ का रोगी और दूसरे को दूसरी का नहीं मान सकते। हो सकता है कि जिस व्यक्ति में एक समस्या है उसमें कुछ अन्य समस्यायें भी हों, बहुत सारी अन्य समस्यायें भी जुड़ी हुई हों जिन्हें आप पाश्चात्य चिकित्सा विज्ञान से खोज न सकें। उदाहरण के रूप में किसी व्यक्ति को आप शारीरिक रूप से बहत बीमार देखते हैं, नि:सन्देह, परन्तु आप ये नहीं जानते कि उसे क्या होने वाला है। बिल्कुल भी नहीं जानते कि वह आपके सम्मुख क्या समस्या लाने वाला है। क्या वह मानसिक रूप से ठीक है या बीमार है क्योंकि उसमें कुछ कमी तो है। अब हम कई चीज़ों के बारे में अच्छी तरह से जानते हैं परन्तु चिकित्सा विज्ञान में उसका कोई इलाज नहीं है और आप कहते हैं कि यह मनोदैहिक समस्या है या ये दैहिक समस्या है। इन दोनों में क्या सम्बन्ध है, ये बात हम नहीं जानते। आप हैरान होंगे कि कैन्सर जैसी हमारी बहत सी बीमारियाँ मनोदैहिक समस्याओं के कारण आती है जो लाइलाज हैं। विशेष रूप से कैन्सर, या हम कह सकते हैं एड्स। ऐसे सभी रोग जिन्हें हम पूर्णत: लाइलाज और कठिन मानते हैं, ये हमारे बाईं ओर के सम्बन्धों के कारण आती है जिनके बारे में हम विश्वस्त भी नहीं होते (जैसा आपने शरीर तन्त्र के चित्र में देखा है) । चिकित्सा विज्ञान केवल दाईं ओर का ज्ञान है। इसका यह ज्ञान बहुत विस्तृत है यह सूक्ष्म नहीं है। मानव की बाईं ओर को समझने की यह कोई आवश्यकता नहीं समझता और यही कारण है कि बाईं ओर का ज्ञान चिकित्सा 28 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-29.txt शास्त्रियों को नहीं है। उदाहरण के रूप में एक व्यक्ति जो पागल है, जिसे पागलखाने भेज दिया गया है उसे हृदय रोग में हो सकता है, क्यों? किस प्रकार वह पागल हुआ। दूसरी ओर से उसका क्या सम्बन्ध है? उदाहरण के रूप एक रोगी कैन्सर पीड़ित है। कैन्सर के विषय में हम बहुत कुछ जानते हैं, इसमें कोई सन्देह नहीं, कि किस प्रकार इसके विषाणु फैलने लगते हैं आदि-आदि। हम सभी कुछ जानते हैं। परन्तु कैन्सर किस कारण से होता है इस बात को कोई नहीं जानता और ये बात भी कोई नहीं जानता कि कैसे लोगों को कैन्सर होता है। जैसा आपने चित्र में देखा है हमारे अन्दर दो मुख्य नाड़ियाँ हैं। एक हमारी दाईं ओर की देखभाल करती है और दूसरी बाईं ओर की। बाईं ओर यदि समस्या है तो यह मनौदैहिक हो सकती है। मान लो आपका हाथ टूट गया है या आपके साथ कोई और शारीरिक समस्या है, वहाँ तक तो ठीक है। परन्तु यदि कोई जटिल मनौदैहिक रोग है तो चिकित्सक इसका इलाज नहीं कर सकते। खेद के साथ मुझे कहना पड़ रहा है क्योंकि आप लोगों को इस पक्ष (लेफ्ट साइड) का ज्ञान नहीं है। आप नहीं जानते कि व्यक्ति को कैन्सर का रोगी बनने के लिए क्या चीज़ प्रभावित कर रही है। आपको जानकर हर्ष होगा कि सहजयोग में कैन्सर का इलाज हो सकता है। यदि ये आरंभिक अवस्था में हो तो इसका इलाज बहुत आसान है। अन्यथा भी यह ठीक हो सकता है, विशेष रूप से रक्त कैन्सर पूरी तरह से ठीक हो सकता है। आप हैरान होंगे कि ये हमारे जीवन के इन दो पहलुओं का ऐसा सम्मिश्रण है कि हम लाइलाज रोगों में फँस जाते हैं । लाइलाज रोगों की बहुत बड़ी सूची है जिसे मैं बताना नहीं चाहती क्योंकि आप इसके बारे में अच्छी तरह जानते हैं। परन्तु इस प्रकार के अधिकतर रोगों में बाईं ओर की जटिलता होती है। नि:सन्देह आप दाईं ओर के बारे में भली-भांति जानते हैं, अब शरीर रचना, उसकी चीर-फाड़ और उसके बाद की चीज़़ों को भी जानते हैं। ये सब आप जानते हैं परन्तु आपको इस बात का ज्ञान नहीं है कि बाईं ओर आपको किस प्रकार प्रभावित करती है। अतः इस भाषण में मैं आपको बाईं ओर के विषय में बताना चाहँगी, जिसके बारे में आपने कभी नहीं सुना और जिसके विषय में आप विश्वास भी नहीं करते। बायां पक्ष हमारे भूतकाल का क्षेत्र है और जो लोग भविष्यवादी हैं वो भूतकाल तथा बाएं अनुकम्पी से अधिक प्रभावित नहीं होते। परन्तु जो लोग बाईं ओर (भूतकाल) में रहते हैं उसकी चिन्ता करते हैं, अपने बीते हुए समय के विषय में जिन्हें खेद है, ऐसे सभी लोग इससे प्रभावित होते हैं। बाईं ओर के लोगों के विषय में यदि मैं आपसे बताऊंगी तो आपको सदमा पहुँचेगा। क्योंकि वास्तव में वे भूत-बाधित होते हैं। किसी मृत आत्मा की पकड़ उन पर होती है और वही मृत आत्मा उन पर कार्य करती है। आपको इस पर विश्वास नहीं होगा परन्तु ये बात सत्य है। कोई भी व्यक्ति जो उदासीन है या तामसिक स्वभाव का है उसके साथ ऐसा घटित हो सकता है। इसके अतिरिक्त भी बहत सी चीज़ें हैं जैसे ये झूठे गुरु। ये गुरु क्या करते हैं? ये व्यक्ति को सम्मोहित कर लेते हैं। मनुष्य का ये पक्ष चिकित्सा विज्ञान का क्षेत्र नहीं है। ये चिकित्सा विज्ञान से परे है। फिर भी चिकित्सकों को इसका ज्ञान होना चाहिए अन्यथा आप इन लोगों को ठीक न कर पाएंगे। हो सकता है आप रोग निदान कर लें परन्तु मनौदैहिक रोगों के शिकार ऐसे रोगियों का इलाज आप न कर पाएंगे। आज की चिकित्सा समस्या ये है कि चिकित्सक मनौदैहिक रोगों का इलाज नहीं कर सकते। इसके लिए आपको अपनी एम.बी. बी. एस. की उपाधि की तरह से बहुत से वर्ष खर्च नहीं करने पड़ेंगे। यह अत्यन्त तीव्रता से होने वाला प्रशिक्षण है, बशर्ते कि आप इसे करें। परन्तु इसमें पारंगत होने के लिए सर्वप्रथम आपको परमेश्वरी शक्ति से एकरूप होना पड़ेगा। ये कार्य बिल्कुल भी कठिन नहीं है । परन्तु प्राप्त करने के पश्चात् आपको अपनी आध्यात्मिक योग्यता बनाए रखनी होगी। 30 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-30.txt अबोधिता प्रथम आध्यात्मिक योग्यता है। पहला चक्र जो आप महसूस करते हैं वह पावनता का है। आप यदि पावन हैं तो आप सुगमता से ऐसे रोगियों को ठीक कर सकते हैं जो इस प्रकार की लाइलाज़ बीमारियों से पीड़ित हैं। मैं कहती हैँ कि व्यक्ति को सर्वप्रथम आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का प्रयत्न करना चाहिए। इस स्थिति में जब कुण्डलिनी उठती है तो यह आपके तालूरन्ध्र का भेदन करती है और आप सर्वव्यापी परमेश्वरी शक्ति से जुड़ जाते हैं। चाहे आप मुझ पर विश्वास न करें परन्तु अपना आत्मसाक्षात्कार पा ले। आपने यदि आत्मसाक्षात्कार प्राप्त कर लिया तो इस बात को समझ सकेंगे कि आपके रोगियों में किन चीज़ों का सम्मिश्रण है। क्या उसका रोग केवल शारीरिक है या उसमें बाईं ओर का सम्मिश्रण भी है। मैं हैरान थी कि उस दिन एक बच्चा मेरे पास आया । उसे मस्तिष्क-झिल्ली-सूजन रोग (मेनिंनजाइटिस) था। वह ठीक हो गया। उसके माता-पिता ये समझ भी न पाए कि कैसे वह ठीक हो गया है। बच्चा जब ठीक हो गया तो मैंने उससे पूछा तुम्हारा मित्र कौन है? उसने एक लड़के का नाम बताया जिसका एक गुरु भी था। मैंने उसे बताया कि किस प्रकार आप हर समय उस गुरु को देखे चले जाते हैं? ऐसे बहुत से लोग हैं जो इस प्रकार के गुरुओं के चंगुल में फँस जाते हैं। आपको इस बात का ज्ञान होना चाहिए कि जब तक आप आत्मसाक्षात्कार प्राप्त नहीं कर लेते, आप जान ही नही सकते कि कौन सच्चा है, कौन झूठा है। एक अबोध बच्चा जो मस्तिष्क झिल्ली सूजन से पीड़ित था रातों रात ठीक हो गया! सहजयोग के महान अनुभव पर आप आश्चर्यचकित होंगे कि यह महान आश्चर्य है और यही कारण है कि लोग इसे स्वीकार नहीं करते। ऐसे बहत से मामले हैं जिनके माध्यम से हमने दर्शाया है कि जिन रोगियों को लाइलाज माना जाता था वे भी ठीक हो गए हैं। ऐसे बहुत से मामले विशेष रूप से कैन्सर जैसे गम्भीर रोगों के ! चिकित्सा विज्ञान में कैन्सर के साथ ऐसा ही होता रहेगा जब तक आप लोग इसे पूरी तरह से समझ नहीं लेते। परन्तु सहजयोग में ऐसा नहीं है। एक दम से आप जान जाते हैं कि व्यक्ति भूत-बाधित है। चिकित्सा विज्ञान की दिशा ये बिल्कुल भी नहीं है परन्तु हमारे देश में हमने सदैव इस पर विश्वास किया है । मृत लोगों के विषय में हमारे विशेष नियम हैं कि इनके साथ किस प्रकार व्यवहार करना है? किस प्रकार प्रेत-क्षेत्र में जाना है। सारे मृत शरीरों को समझने के लिए विशेष प्रकार की सूझ बूझ है, वो किस प्रकार का आचरण करते हैं, कहाँ रहते हैं और मैं सोचती हूँ कि आपके ज्ञान का यह बहुत बड़ा भाग है। बाईं ओर से आने वाली अधिकतर बीमारियों का आप इलाज नहीं कर सकते। मैं जानती हूँ कि चिकित्सा विज्ञान दाईं ओर को ठीक कर सकता है परन्तु कैन्सर को वो टालते चले जाते हैं। कभी एक जगह की शल्य चिकित्सा करते हैं, कभी दूसरी जगह को चीरते-फाड़ते चले जाते हैं। परेशान हो जाते हैं। ये करते हैं वो करते हैं। शल्य चिकित्सा कैन्सर को ठीक करने का कोई तरीका नहीं है। ये इसका उपाय नहीं है। आप यदि सहजयोग में कुशल हैं तो आपको इसका आपरेशन नहीं करना पड़ेगा। रातोरात आप इसको ठीक कर सकते हैं। रातोंरात आसानी से कैन्सर के रोगी को ठीक कर सकते हैं। ऐसा करने में वे सामर्थ्य हैं, विशेष रूप से भारतीय लोग क्योंकि भारतीयों में इसकी विशेष योग्यता है। मैं कहना चाहूंगी कि उनपर यह विशेष आशीर्वाद है | आप नहीं जानते ये देश कितना महान है! आप केवल पाश्चात्य शिक्षा के आधार पर कार्य कर रहे हैं। पाश्चात्य लोग अपने अनुभवों में कहाँ पहुँचे? वे इस बात को नहीं समझ पाते। उनके बच्चे नशों में फंस रहे हैं, उनके परिवार टूट रहे हैं, हर चीज़ उथल-पुथल हो रही है। ऐसा नहीं है कि मैं इस पाश्चात्य शिक्षा की निन्दा कर रही हूँ। बिल्कुल भी नहीं। परन्तु ये शिक्षा पूर्ण नहीं है। आपको इसका दूसरा पक्ष भी जानना है अन्यथा कैन्सर अस्पताल न बनाएं। केवल शारीरिक 31 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-31.txt समस्याओं को ही देखें जिन्हें आप ठीक कर सकते हैं। परन्तु यदि आप सभी प्रकार के रोगियों को ठीक करना चाहते हैं तो दूसरी तरफ का ज्ञान भी आवश्यक है। घबराने की कोई बात नहीं, परेशान होने की कोई बात नहीं। परन्तु चिकित्सक होने के नाते आपको यह ज्ञान अवश्य होना चाहिए। मैं सोचती हूँ कि अभी तक भी चिकित्सा विज्ञान अधूरा है । डा . अग्रवाल ने भी यही कहा है। इसमें जो कमी है वह है बाईं ओर के ज्ञान की, जो हमारे पास है। अब मैं कहूँगी कि यह ज्ञान मैंने पुस्तकों से प्राप्त नहीं किया, केवल सहजयोगियों पर तथा लोगों पर कार्य करते हुए मैंने इसे पाया। मैंने देखा कि भारतीयों के मुकाबले पश्चिमी लोग इस बाईं ओर से अधिक पीड़ित हैं। परन्तु निश्चित रूप से, अभी भी मैं नहीं समझ पाती कि वे इस तरह बीमार क्यों है! उन्हें क्या हो गया है? मानव हित का, रोग मुक्त करने का कोई अत्यन्त सीमित क्षेत्र भी ले लें तो भी बाईं ओर को आपकी अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका है। मान लो कोई व्यक्ति हर समय रोता रहता है, उदास रहता है, तो ऐसे व्यक्ति को कैन्सर हो सकता है। दो प्रकार के लोग हैं-एक जो दाईं ओर के (आक्रामक) हैं तथा दूसरे जो बाईं ओर के (तामसिक) हैं । मैंने देखा है कि जो लोग अत्यन्त आक्रामक प्रवृत्ति के हैं, अत्यन्त हावी-होने वाले हैं तथा लोगों पर नियन्त्रण करने वाले हैं, उनके जिगर बहुत खराब होते हैं। मैं अवश्य कहँगी कि उनके ज़िगर बहुत खराब होते हैं। जब वो बहुत आक्रामक होते हैं तो सारी सीमाएं पार कर जाते हैं और इस स्थिति में जो पहली बीमारी उन्हें होती है उसे न तो आप खोज सकते हैं, न ठीक कर सकते हैं। इसमें एक जिगर रोग है। मेरे विचार से डाक्टर जिगर को ठीक नहीं कर सकते। इसके लिए वे प्रयत्न कर सकते हैं परन्तु जिगर को वैसे नहीं ठीक कर सकते जैसे सहजयोगी कर सकते हैं। किसी व्यक्ति का स्वभाव यदि गर्म है तथा वह आक्रामक है तो वह भयानक जिगर रोग का शिकार हो जाता है और सभी प्रकार की जटिलताएं बना लेता है। दायीं ओर के और भी बहुत से रोग हैं, बहुत से-परन्तु इनमें से मुख्य जिगर रोग ही है। जिगर अर्थात जीवन का आधार। आपका ज़िगर ही यदि खराब है तो अंग्रेजी चिकित्सा पद्धति के पास कोई इलाज नहीं। हो सकता है थोड़ा बहुत कुछ हो जाए, परन्तु रोग बढ़ जाने की स्थिति में व्यक्ति मूरच्छ्छित हो सकता है, उसकी मृत्यु हो सकती है। पश्चिम में जिगर रोग आम बात है और उनके पास इसका कोई हल भी नहीं है। खराब जिगर के साथ ही वे जिए चले जाते हैं, डाक्टर उन्हें बस हस्पतालों में दाखिल कर लेते हैं। ये रोग लाइलाज नहीं हैं, ये पूर्णतः इलाज योग्य हैं। आपके पास क्योंकि ज्ञान (सहजज्ञान) नहीं है इसलिए आप उन्हें लाइलाज कहते हैं। नहीं, ये लाइलाज नहीं है। मैं अन्य रोगों को दोष नहीं देना चाहती, परन्तु ऐसे बहुत से रोग हैं जिनका पता भी नहीं लगाया जा सकता और न ही चिकित्सा विज्ञान द्वारा इनका इलाज हो सकता है। यह बात आपको स्वीकार करनी होगी कि स्थिति ऐसी ही है। जो चाहे प्रयत्न आप करते रहें परन्तु आप इन्हें ठीक नहीं कर सकते। जितनी चाहें दवाइयाँ बन जाएं , इन्हें ठीक नहीं किया जा सकता। मैं आपको बताना चाह रही हूँ कि बीमारियों की आधी अधूरी बातचीत होती है। उसमें भी बहुत से पहलू छोड़ दिए जाते हैं। | उदाहरण के रूप में दमा रोग को लें। डाक्टर दमा रोग को ठीक नहीं कर सकते। यह सच्चाई है। परन्तु सहजयोग इसे पूर्णत: ठीक कर सकता है। सहजयोग से हम अलर्जी के रोग भी ठीक कर सकते हैं, क्योंकि समस्या की जड़ों का यदि आपको ज्ञान होगा, वास्तविक जड़ों का यदि आपको ज्ञान होगा तो आप स्थिति को सम्भाल सकते हैं और रोग ठीक कर सकते हैं। सहजयोग का अभी तक कोई महाविद्यालय आदि नहीं है। काश ! हम ऐसा कुछ बना पाते। परन्तु सहजयोग हस्पताल हमने बनाया है । बेलापूर-नवी मुम्बई में हमने हस्पताल बनाया है। यहाँ लोगों का इलाज होता है। रोगियों 32 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-32.txt को केवल वहाँ रहने तथा खाने का खर्च देना पड़ता है और मेरे विचार से गरीब लोगों के लिए यह ३०० रु. प्रतिदिन से अधिक नहीं है। परन्तु वहाँ रोगी को कोई दवाई नहीं चाहिए और न ही किसी अन्य चीज़ पर उन्हें खर्च करना पड़ता है। क्या आप नहीं सोचते कि हमारे जैसे गरीब देश के लिए यह महत्वपूर्ण है ? अन्यथा व्यक्ति को एक्सरे तथा भिन्न परीक्षणों के लिए जाना पड़ता है और परिणाम कुछ भी नहीं निकलता। व्यक्ति को केवल यह समझ होनी चाहिए कि इसका उपयोग किस प्रकार करना है। मान लो किसी की टाँग गंभीर रूप से प्रभावित है तो आप इसे काट कर नकली टाँग लगा देते हैं। ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं। मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि ऐसा करने की कोई आवश्यकता नहीं है। सहजयोग में हमारे यहाँ कुछ डाक्टर हैं, उनमें से कुछ बहुत ही अच्छे हैं, उनमें से कुछ अमरीका के हैं, कुछ इटली के हैं, कुछ रुस के। रूसी डॉक्टर बहुत ही अच्छे हैं। मेरे विचार से इस शिक्षा (सहजयोग) से परे कुछ भी नहीं है और ये लोग इसे सीखने के लिए प्रयत्नशील हैं। किसी भी प्रकार की सुविधा यदि आप प्रदान करेंगे, उससे मुझे प्रसन्नता होगी परन्तु मैं आपके क्षेत्र में विशेष रूप से दिल्ली में, ग्रेटर नोएडा में, एक सहजयोग अस्पताल शुरू करने का निर्णय कर चुकी हूँ। आपमें से कुछ डॉक्टर यदि हमारा साथ देंगे तो हमारी बहुत सहायता होगी। ग्रेटर नोएडा में एक महाविद्यालय या चिकित्सा विद्यालय आरम्भ करने के विषय में भी मैं सोच रही हूँ। जहाँ हमारे विद्यार्थी तथा डॉक्टर रोगियों का इलाज कर सकेंगे। वहाँ पर इलाज के लिए कोई पैसा नहीं लिया जाएगा। परन्तु यदि लोग आकर वहाँ ठहरेंगे तो उन्हें अपने भोजन आदि के लिए पैसा देना होगा। मात्र इतना ही। अन्यथा मैं इस प्रकार का प्रबन्ध करने वाली हूँ और इस कार्य में जो भी डॉक्टर अपनी सेवाएं अर्पित करना चाहें हम उनकी सेवाओं को स्वीकार करेंगे। मैं नहीं जानती कि वेतन कितना होगा? परन्तु ये बहुत अधिक नहीं होगा। छ: सात हजार रुपये प्रतिमाह एक डॉक्टर को दिए जा सकेंगे। डॉक्टर को सहजयोगी होना आवश्यक होगा और सहजयोग की विधियों का ज्ञान भी उसके लिए अनिवार्य होगा। मेरे विचार से ऐसा करना बहुत उदारता होगी क्योंकि हमारे देश में बहुत से लोग इसलिए दम तोड़ देते हैं क्योंकि न तो वे अस्पताल में दाखिल हो सकते हैं न इलाज करवा सकते हैं। आप लोग यदि मेरी इस परियोजना के लिए कुछ समय दे सकें तो मुझे विश्वास है कि मैं गरीब लोगों के लिए एक अच्छे अस्पताल की व्यवस्था कर सकूंगी। वहाँ पर दैहिक और मनौदैहिक सभी प्रकार के रोगी आएंगे और आप लोग भी बहुत कुछ सीखेंगे। क्योंकि यह अत्यन्त सूक्ष्म ज्ञान है। पुस्तकों से इसे नहीं सीखा जा सकता। आपको रोगियों पर प्रयोग करने होंगे और आप हैरान होंगे कि लोग किस प्रकार रोगमुक्त होते हैं। यह किताबी ज्ञान नहीं है। यह तो अत्यन्त व्यवहारिक ज्ञान है और जिन लोगों में दानशील स्वभाव हो वो इस कार्य को बहत अच्छा कर सकते हैं और कुछ सीख सकते हैं। एक बात अवश्य में आपको बताना चाहूंगी कि सहजयोग में एक बहुत बड़ी बुराई है। सहजयोग में आप पैसा नहीं बना सकते, ऐसा आप यहाँ नहीं कर सकते, पैसा बनाने का प्रयत्न यदि आपने किया तो आप असफल हो जाएंगे। जो भी हो यह धन-व्यापार सहजयोगियों के लिए बहुत दूर की बात है। वे ऐसा नहीं कर सकते। परन्तु आप अपनी सेवाएं दे सकते हैं। बेलापुर अस्पताल में हमारे यहाँ एक बहुत अच्छे सेवानिवृत्त डॉक्टर थे उन्होंने बहुत अच्छा कार्य किया। अब वे जीवित नहीं हैं। परन्तु उन्होंने बहुत परिश्रम किया। अब उनकी पुत्रवधु वहाँ कार्य को देख रही हैं। आप यदि सेवानिवृत्त हैं और यदि आपको बहत अधिक धन की आवश्यकता नहीं है तथा आपमें कार्य करने की इच्छा है तो यह बहत अच्छा कार्य है। वहाँ कार्य करने वालों के लिए हम रहने का स्थान तथा भोजन की भी व्यवस्था करते हैं। 33 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-33.txt यह ज्ञान बहुत कठिन नहीं है परन्तु धन प्राप्ति के लिए इसे नहीं किया जा सकता। जब मैं चिकित्सा विज्ञान पढ़ रही थी तब तक यह क्षेत्र धनसंचालित न था। अब चिकित्सा क्षेत्र बहुत ही धन-लोलुप हो गया है। बड़ा ही अजीब समय है। खेदपूर्वक मुझे कहना पड़ रहा है। परन्तु चिकित्सक लोग बहुत आपके कुछ डॉक्टर अमेरीका गए और वहाँ पर लोगों को खूब बेवकूफ बनाया। वो इस सीमा तक गए कि उनके नाम से हमें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है। उनकी तरह से आप पैसा नहीं बना सकेंगे। परन्तु सेवानिवृत्त होकर आप ही धन- लोलुप हो गए हैं। कुछ लोग सहजयोग सीखने के लिए आएं। मुश्किल से एक हमारा साथ दे, हमारी सहायता करें। आपमें से महीने भर में आप इसमें कुशल हो जाएंगे। बिना कोई उपाधि प्राप्त किए आप रोग निदान कर सकेंगे। किसी प्रयोगशाला में जाने की आपको आवश्यकता न होगी। तुरन्त आप जान जाएंगे कि समस्या क्या है और सभी प्रकार की लाइलाज बीमारियों का आप इलाज कर सकेंगे। मैं हैरान हँ कि ये सब कार्य इतने सुन्दर ढंग से कैसे हो रहा है? ये सारे कार्य और सभी कुछ ये लोग कर रहे हैं क्योंकि मैंने लोगों को रोगमुक्त किया, उनके लिए सभी कुछ किया। परन्तु यहाँ पर हमारा कोई अस्पताल नहीं है। हम चाहते हैं कि दिल्ली में पहला अस्पताल बने और मैं इस कार्य को कार्यान्वित करना चाहती हँ। आइए हम इस कार्य को करें। यही धर्मार्थ अस्पताल होगा। यही विवेकशीलता होगी। इसको बनाने के लिए धन मेरे पास है परन्तु मुझे ऐसे चिकित्सकों की आवश्यकता है जो सहायता कर सकें। सहजयोग बहुत ही आश्चर्यचकित कर देने वाली चीज़ है। आप जब आएंगे तो देखकर हैरान होंगे कि ये किस प्रकार कार्य करता है। मैं जानती हूँ कि आप उस स्तर तक कभी नहीं आए। कभी आप परमात्मा एकरुप नहीं हुए, आपने परमात्मा की शक्ति का कभी प्रयोग नहीं किया। एक बार जब आप इस शक्ति का उपयोग करने लगेंगे तो आप अपने कार्य पर हैरान होंगे। कहा गया है कि आप स्वयं को पहचानें। परन्तु आत्मसाक्षात्कार प्राप्त किए बिना ऐसा कर पाना संभव नहीं है। हमारे देश में आज हमें आत्मसाक्षात्कारी लोगों की आवश्यकता है। सभी प्रकार की समस्याओं का समाधान हो जाएगा। ये सारे लड़ाई-झगड़े समाप्त हो जाएंगे , क्योंकि आप सामूहिक व्यक्ति बन जाते हैं, आपका व्यक्तित्व सामूहिक हो जाता है। न कोई युद्ध होगा न आक्रमण। मैं बहुत से मुस्लिम देशों को जानती हूँ। ऐसे बहुत से मुस्लिम देश हैं जहाँ पर लोग आत्मसाक्षात्कारी हैं-जैसे टर्की, बेनिन, आइवरीकोस्ट, ऐसे सात देश हैं। इन क्षेतरों के मुसलमानों को सहजयोगी बना दिया गया है। इनमें सभी प्रकार की विचारधाराओं का समन्वय है, मानवीय योग्यताओं की सूझ-बूझ है तथा मानव व्यक्तित्व का सम्मान है। कहने से अभिप्राय ये है कि यहाँ का वातावरण बिल्कुल भिन्न है। भिन्न स्तर की चेतना वहाँ है और जैसे आप कह रहे थे वहाँ पर व्यक्ति अत्यन्त शान्त हो जाता है और मौन होते हुए भी अत्यन्त मधुर होता है। इस छोटे से भाषण में, मैं नहीं जानती, सहजयोग के विषय में आपको कितना कुछ बताऊं परन्तु यह अत्यन्त चमत्कारिक चीज़ है। कृपया अपना आत्मसाक्षात्कार प्राप्त करने का प्रयत्न करें। इन्होंने मुझसे आत्मसाक्षात्कार देने का अनुरोध किया है। मैंने कहा, 'अच्छा, मैं प्रयत्न करती हूँ और देखती हूँ कि मैं ये कार्य कर सकूं।" (इसके बाद श्रीमाताजी ने सभी उपस्थित साधकों को आत्मसाक्षात्कार प्रदान किया।) 34 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-34.txt ाभ र श्री गणेश सवप्रथम स्थापित किए हुए देवती हैं| ये बीज हैं औ२ बीज से सर कविश्व निकल कर उसी में वापिस समा जाती है। विश्व में जो कुछ है, श्री गणेश उसी का बीज हैं इसलिये श्री गणेश को प्रमुख देवती मानी जाती है।...२भी लौग प्रथम श्री गणेश का पूजन करते हैं, उका कारण है कि श्री गणेश तत्व परमेश्वर ने सबसे पहले इस अष्टिमें स्थापित किया । प.पू.श्रीमाताजी, अप्रैल १९८३ प्रकाशक + निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.८, चंद्रगुप्त हाउसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२० २५२८६५३७, २५२८६७२०, e-mail : sale@nitl.co.in 2012_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-35.txt २हजयोग ऐसी चीज़ है, ऐसी एक तरीका है जो परमात्मा का अपनी तरीका है जिसके कारण आपके हाथ में से ये वीइब्रेशन बहने लग जाते हैं, पाँव में से बहने लग जाते हैं, आेशरी२ में बहने लग जाते हैं, जैसे ्य का फ्रकाश हो और ढूरों के अन्द२ जाकर, उसके प्रेम को जा करके उसमें भी वे गति दे सकते हैंकि उसके अन्द२से भी वो बहने लग जीए और एक तरह की चेन रिअँक्शन सी बना दें | - प. पू.श्री माताजी, बम्बई, २७.३.१९७४ ाी