चैतन्य लहवी जनवरी-फरवरी २०१५ हिन्दी ह२] काल र0 0 ाब इस अंक में शिवजी के ऊपर सारा संसार निर्भर है ...4 चराचर की सृष्टि एक सूक्ष्म शक्ति है ...12 सहजयोगियों को उपदेश ...18 हम अपने गुरु को सग२ के २०प में मानते हैं। सग२ हमारे पिता हैं। विश्व द्वारा डाली गई गन्दगी को अपने अन्ढ२ डूबौकर बाढलों के २ूप में जब समुद्र आकाश में उठती है तौ यह अत्यन्त शुद्ध एवं सुन्द२ बन जाता है। पं.पू.श्री मातीजी, देवी पूजा, धर्मशाला, २६ मार्च १९८५ शिवजी के ऊपर र है संस २ निर्भ सारा अ ০ शिब एक देवी है, अबतरण है। अबतरण हम समझ़ते ही नहीं र. चौज क्या है? ठसका लोहा ही दूसवा होता इसकी ब्यवस्था है। 9 र दूकवी होवी है। ं दिल्ली, १६/२/१९७७ महाशिवरात्री के दिन हम लोग सब साथ शिव की स्तुति गा रहे हैं। शिव याने ...... इन्ही से सृष्टि शुरू हुई है और इन्हीं में खत्म हुई है। सबसे पहले अगर आप ब्रह्म को समझे तो ब्रह्म से शक्ति और शिव। जैसे कि एक सेल के अन्दर उसका न्युक्लिअस होता है, इसी तरह शिव और शक्ति सब से पहले ब्रह्म में स्थापित होती है । सृष्टि घटित हुई, की किस प्रकार ये घटना घटित हुई? किस प्रकार ब्रह्म शिव और शक्ति के रूप में प्रगट हुए हैं, ये सारी बातें मैं आपको शनिवार और रविर में बताऊंगी। लेकिन शिव से निकलती हुई शक्ति जब एक पॅराबोली में घूमती हैं, जब एक प्रदक्षिणा लेती हैं, तो एक - एक विश्व तैयार होते हैं। ऐसी अनेक प्रदक्षिणायें हैं, शक्ति की होती हैं। इसके बारे में भी मैं आपको बाद में बताऊंगी। अनेक विश्व तैयार होते रहे। अनेक भुवन तैयार होते रहे और मिटते भी रहे । शिव से शक्ति हट कर के विश्व बनाती है। शिव साक्षी स्वरूप हैं। ये खेल देखते रहते हैं शक्ति का। शक्ति का अगर खेल | इनकी समझ में ना आये तो वो जब चाहे तब अपनी शक्ति अपने अन्दर खींच लेते हैं। सारा ही खेल बंद हो जाता है। वो ही द्रष्टा हैं। वो ही देखने वाले है। वो ही इस खेल के आनन्द को उठाने वाले हैं। उन्हीं के कारण सारा खेल है। इसलिए अगर वो न रहे तो सारा खेल खत्म हो जाता है। वो स्थिति है। इन्ही के कारण एक्झिस्टन्स होता है। के हृदय के कारण ही वो जीवित माना जाता है। जिस वक्त उसका हृदय बंद हो जाता है, तो उसे मृत माना मनुष्य जाता है। जब शिव अपनी आँखे बंद कर लेते हैं तो उसे संहारक कहा जाता है। यही स्थित होते हैं और वही लय हो जाते हैं क्योंकि वो स्थित हो सकते हैं। इस कुंडलिनी शास्त्र में शिव का स्थान आज मैंने बताया था, हृदय में मनुष्य के अन्दर एक दीप-ज्योति की तरह हर समय जलते रहता है। इसके कारण हमारे अन्दर सत्, असत्, विवेक बुद्धि जागृत है, जो हमें मना करती रहती है कि ये गलत है, ये अधर्म है, ये बुरी बात है। ये कपट है, ये लोभ है, ये मद है, ये मत्सर है, ये अधर्म है, ये मनुष्य की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ काम है। ये शोभनीय नहीं है। लेकिन मनुष्य से जो स्वतंत्र रहा है इसे वो पूरी तरह से ....लाता है (अस्पष्ट) और शिव की अवहेलना करता है। शिव, संसार का गरल पी लेते हैं। जितना भी विष हमारे हृदय में बसा है, दूसरों के प्रति घृणा, हिंसा आदि अत्यंत बूरे विचारों को जो हमारा हृदय विषैल हो जाता है, उसको शिव हमारे अन्दर जब जागृत होते हैं, इसे पी लेते हैं। शिव का खाद्य ही, उनका पीना ही, गरल है। जो कुछ भी नशैली चीजें हैं, मद्य आदि, जो चेतना के विरोध में उत्थान पहुँचाती है, उन्हें शिव प्राशन कर लेते हैं । संसार का जितना भी इस प्रकार का विष है इसे वे ग्रहण कर लेते हैं अपने अन्दर। इसलिए उनको महाशिवरात्रि के दिन हम लोग प्रतीक रूप में भंग आदि नशैली चीज़़ें अर्पित करते हैं। इसका ये लगा लेता है, कि अगर शिव भंग पीते है तो हम भी पिएंगे, अगर शिव शराब पीते हैं, तो हम भी अर्थ मनुष्य शराब पिएंगे। आप क्या शिवजी हैं? इनके पॉँव के जूते बराबर भी आप हैं? जिन्होंने संसार का सारा गरल पी लिया, वो भी पीने वाले कोई चाहिए! देवी सारे भूतों को खा जाती है । रक्तबीज का जो रक्त संसार में बिखरा था , उसके एक-एक बूँद को देवी चाट गयी। क्या आप लोग इसे चाट सकते हैं? आप लोगों का इनसे मुकाबला है, जो आप शिव भंग पीने निकले । शिव चाहे दुनियाभर की भंग पी ले , उनपे चढ़ती ही नहीं। आप लोगों का ये हाल है? शिव एक दैवी है, अवतरण है। अवतरण हम समझते ही नहीं चीज़ क्या है? उसका लोहा ही होता है। दूसरा इसकी व्यवस्था दूसरी होती है। क्या आप इस तरह से (अस्पष्ट)...... हुए हैं? क्या आप उस कार्य के लिए बने हुए हैं कि दुनियाभर का आप जहर पी ले। बहुत से लोग ये कहते हैं, कि माँ, हमारे लिए तो शराब चढ़ती ही नहीं है । इससे बढ़कर और कोई भी झूठ नहीं हो सकता। इस बड़े बड़े गुरु भी, जैसे साईनाथ, शिर्डी के, वो भी एक अवतरण थे। ये चिलीम पिते हैं। तो अब सब लोग चिलीम पीने लग गये। क्या आप साईनाथ हैं? ये तो इसलिये पीते हैं कि आपके हाथ कोई चिलीम ही न लगे। सबकी चिलीम ही पी डालें एकदम। सबकी चिलीमे पचने के लिए वो पीते थे। क्या आप लोगों में इतनी शक्ति है कि आप चिलीम पी सकते हैं? उनको कैन्सर नहीं हो सकता था। शिव के भक्त जो हैं उन्हें शराब छूना भी नहीं चाहिए । उसके पास भी नहीं जाना चाहिए । उससे दूर भागना चाहिए। बजाए इसके जितने भी तांत्रिक हैं वो पाँच मकान ले के बैठे हुए है। वो क्या करते हैं? अपने को शाक्त कहलाते हैं। शक्ति के पुजारी कहलाते हैं, शिव के पुजारी कहलाते हैं और इस कदर व्यभिचार। शिव और व्यभिचार, जो संपूर्ण ब्रह्मस्वरूप हैं, इनका नाम ले कर के इतना महापाप करना? अपनी दुर्गति की पूर्ण व्यवस्था करना? एक माँ के नाते मैं आपसे बताती हैूँ कि इस तरह की गलतफ़हमी में कभी मत रहना। तंत्र का तरीका जो है बिल्कुल शैतानी तरीका है। आज महाशिवरात्रि के रोज मैं चाहती हूँ कि इसके बारे में जरूर बताऊं। तंत्र की व्यवस्था ये होती है कि जो चीज़ज़ परमेश्वर को पसंद नहीं हैं, जो चीज़़ देवी को पसंद नहीं है वो नहीं करें । देवी के सामने ही गलत- गलत काम करना शुरू है। व्यभिचार, सब तरह की विकृत बातें , जिसे देवी देख कर के घृणा आती हैं। इन्होंने तो देवी हमसे उत्पात करती हैं, उठते हैं, नाचते हैं, चिल्लाते हैं, चीखती हैं, गर्मियाँ होती हैं, कोडी निकलती हैं बदन पे, इसको कुण्डलिनी जागृति भी बहुत से कहते हैं। मेरे पास ऐसे बहुत से लोग आरयें, वो कहते हैं कि, हमारे अन्दर ऐसे लग रहा है कि हवा रोग का है । हमारी कुण्डलिनी जागृत है। और भी ऐसे आते हैं, जो बताते हैं कि यहाँ से ले कर, यहाँ तक सब हमारे अन्दर बड़े बड़े (अस्पष्ट)आये। यहाँ, उस साइन्स इन्स्टिट्यूट में एक डॉक्टर हैं, वो मेरे पास आये थे, बता रहे थे कि उनकी कुण्डलिनी किसी ने जागृत की और उनके बदन में हजारों बिच्छूं को काट लिया और बेचारे कूदते हुए खड़े रहे मेरे पास, 'माँ, मुझे बचाओ, मुझे बचाओ!' क्योंकि उनकी कुण्डलिनी, एक मिनट के अन्दर उनकी कुण्डलिनी मैंने साफ की। कुण्डलिनी नहीं, श्रीगणेश, शिवजी के पुत्र है, वो शक्ति के पुत्र है। जिस इन्सान ने उनकी कुण्डलिनी जागृत की थी उसका वो नाम उन्होंने मुझे बताया, वो किसी को बताते ही नहीं है डर के मारे। कुण्डलिनी के नाम से घबराते हैं 6. ार बेचारे । ये उनकी हालत कर दी और उनको कहा कि तुम्हारी कुण्डलिनी जागृत हो गयी। सारे बदन में, ऐसा समझ लीजिए कि जैसे सब हात-पैर जल गये। एक मिनट के अन्दर कुण्डलिनी शांत हो गयी। ऐसे तांत्रिकों से बहुत बच के रहने की जरूरत है। देवियों के सामने जा कर, जुराहों में आप जा के देखिए, इन तांत्रिकों ने क्या कर के रखा है। शंकराचार्य के बाद में तो इन्होंने तो एक नया ही जंग खड़ा किया। जैसे ही देवी की बात इन्होंने कहीं तो उन्होंने कहा, हाँ, अब माँ का राज्य आने वाला है, चलो। उस वख्त के राजा लोग बहुत गिरे हुए हैं। बहुत बूरे नज़र से हैं। इतने दुष्ट लोग उस वख्त राज्य करते थे। पूरा पट्टा के पट्टा, यहाँ से बंगाल तक, और उनके जो मंत्री लोग थे, जैन थे, जैन। जैन लोगों में खाने के मामले में तो पट्टे बाँध के है मुँह पर। औरत के मामले में कोई झगड़ा नहीं। मुँह में प्टे बाँध के घूमते हैं। सोचते हैं हो गया उनका। नाम को नाम धरते हैं। हालांकि महावीर बहुत ऊँचे थे। जैसे हमने सब का एक ठिकाना किया है, वैसे ही जैनियों ने महावीर का भी ठिकाना कर दिया। इन्होंने ये प्रथा चलायी, कि छोटे- छोटे लड़की-लड़कियों को भी वो आश्रमों में भेजते थे। इस कदर अनैतिकता बढ़ गयी| जबरदस्ती की बात। यहाँ तक कि ब्राह्मणों ने भी ये बात उठायी, विवाह के पश्चात भी मनुष्य को बिल्कुल संयमित रहना चाहिए और ब्रह्मचर्य में रहना चाहिए। बिल्कुल अननॅचरल सी बातें । उसके स्वभाव से खजुराहो जैसी गंदी चीज़ें तैयार की हालांकि खजुराहो में, मैं कहँगी, कलाकारों ने कमाल कर दिया। जहाँ जहाँ उन्होंने मूर्तियाँ बनायी, वहाँ देवी-देवताओं के लिए मूर्तियाँ काफ़ी बड़ी बन गयी है। वैसे उनको पाने की बहुत जरूरत होती है। छ: चक्र चलते रहते हैं तो पाने के उपर तो चाहिए, नहीं तो चलेगा ही नहीं । बाकी ये छोटी-छोटी, लम्बी-लम्बी, पतली - पतली कर के इन्होंने राजा को खुश करने के लिए । लेकिन वो कोणार्क का वो ढाँचा था वो उस कदर था। अब वहीं पर आप देखिए, पास ही में, ऐसे भी मंदिर हैं जो करिए, जा कर के असंतोष में, मदिरा पीते हैं, शराब पीते हैं और व्यभिचार करते हैं। जब वहाँ से देवी का चित्त हट जाता है, यहाँ तक हमारा फोटोग्राफ से हम बताते हैं आपको कि अभी तो आपको वाइब्रेशन्स आएंगे , अगर आप देखे तो । लेकिन इसके सामने व्यभिचार होना शुरू हो गया तो इससे, फोटोग्राफ से हम गायब। आपको कोई वाइब्रेशन्स नहीं आने वाले। चित्त ही हट गया। वैसी जगह शिवजी बैठते हैं, खा - पी के और तड़ाखे भी भर देते हैं। भैरवनाथ वहाँ जमे। उनके तड़ाखे के बगैर लोग ठीक नहीं हो सकते। पहले खूब तड़ाखे खाते हैं। बड़ी हालत खराब होती है उनकी। तो भी वो बेशरम जैसे लगे रहते हैं। उसके पश्चात, बीमार पड़ते हैं, उल्टियाँ होती हैं, खून गिरता है सब होता है। बदन में आग हो जाती है तो भी जमे रहते हैं । फिर शिवजी वहाँ से लुप्त हो जाते हैं। फिर अपना वहाँ अड्डा जमाया। सरल, भांग घोल कर के, अगर वहाँ मैफिल बैठती हैं, रात को व्यभिचार होते हैं और उसके बाद वो स्पिरिच्युअल आ जाते हैं। और उस स्पिरीट को हाथ में ले कर के इसी से सब ये जो धंधे, जो मैंने कल आपको बताये थे किये जाते हैं। शिवजी के भोलेपन की ये हद है। इतना इनोसन्स था वो कि जब रावण ने उनसे कहा कि, तुम मुझे अपनी शक्ति ही दे दो। तो उन्होंने दे दी। इतना भोलापन, निष्पाप, जिनको की पाप ही क्या है नहीं मालूम। पाप को भी खा जाए सब कुछ, लाओ, जो कुछ खाना है खा लो। जैसे गंगा में सारे पाप धुलते हैं कहते हैं। तो आप समझ सकते हैं कि गंगा में 7 इसलिए पाप धुलते हैं कि शिवजी के जटा से उतर आयीं| उनके जटा से छूने से ही इतने पाप धूलते हैं, जो स्वयं साक्षात होंगे तो क्या होंगे बताईये! जिनका साक्षात् करने से ही सारे जिसके पाप धुल जाए, जिनको याद करने से ही सबके जो भवसागर के जितने भी लगे हुए पशु-पक्षी के तरह से चिपके हुए गंद, मैल आदि जीवित और निर्जीव जो कुछ भी हो, सारी बाधायें जिसकी खत्म हो जाती हैं। ऐसे शिवजी के लिए लोग ये कहते हैं कि व्यभिचार ये शिवजी थे। ऐसे संसार में क्या बात की जाए? ये तांत्रिक शिवजी के दुष्मन है। नर्क में मरेंगे , कीड़े के मौत। हजारों वर्षों तक ये नर्क में रहे। लेकिन जो लोग इनकी बातों में फँसते हैं, और उनके चक्करों में घूमते हैं, भूत-प्रेतादि को इस्तेमाल करते हैं, दूसरों का नाश करते हैं, ये भी उनके पीछे ही जाने वाले। शिवजी के इस महापर्व में सहजयोगी जितने भी है निश्चय करें कि, 'हमारा हृदय अत्यंत स्वच्छ है, सज्जनता। हम अपने को देखें और शरमाये कि क्या हम इतने दुर्जन हैं कि इस तरह की बातें सोचें। अपने हृदय को देखें और पूछे कि, क्या हम इतने कपटी और बुरे लोग हैं, कि हम इस तरह की बातें सोचते ?' शिवजी को जागृत रखने के लिए मनुष्य को अत्यंत सरल हृदय होना चाहिए। शिवजी भोले थे , ऐसे आदमी बड़े भोले होते हैं और लोग कहते हैं कि ऐसे ठगे जाते हैं। सारी दुनिया ने भी ठग लिया तो कुछ नहीं गया। आपके ठगने से सभी चला जाता है। आप किसी को मत ठगिये। इसमें कोई बड़ी भारी बहादरी नहीं है कि आप बेवकूफ़ी करें। आपने अगर किसी को एक मर्तबा ठगा वो माफ नहीं होता। आपको कोई हजार बार ठग ले, जो आदमी वो होता है उसको कोई ठग ही नहीं सकता। ये तो मन के भाव हैं कि इसने उसको ठग लिया। उसने उसको ठग लिया। आप ठग कर के क्या इकठ्ठा करते हैं? धन, ठगा हुआ धन। दूसरे को ठगा हुआ धन। कितना नुकसानदेह होता है आपको पता नहीं। अभी राहरी में एक सज्जन मेरे पास आयें। और मुझसे कहने लगे कि, 'हमारे पुरखों का कुछ पैसा जमीन में गड़ा हुआ है माँ। और हमें मालूम है वो गड़ा है। तीन पुश्त पहले किसी ने वो निकालने की कोशिश की उसी दिन उस घर में तीन मृत्यु हो गये। उसके दुसरे पुश्त ने शुरू किया उसके बाद उसकी भी मृत्यु हो गयी। फिर चौथी मर्तबा ऐसा हो गया। अब हम हैं, अब हम क्या करें?' मैंने कहा, 'भूल जाओ उस धन को। बिल्कुल भूल जा। उसे खत्म होने दो। किसी को मार के, किसी को बच्चे भूखे रख के, किसी के आत्मा को तड़पा के आप ये पैसा ले कर के आये हैं। उनकी आत्मायें जो तड़पती है वो उनमें प्रचंड शक्ति है । वो आपके बच्चों के बच्चों तक खा जाएगी। ये शिवजी का काम है। शिवजी भोले बहुत है, लेकिन उनका गुस्सा आप जानते नहीं। उनका गुस्सा भयंकर है। और उनके गले में जो नाग रहता है वो सब समझता है। जो कोई भी इस तरह से किसी की आत्मा को दु:खी करेगा, उस आत्मा में शिवजी का स्थान है। उस आदमी का पुश्त न नुश्त हाल ये है। मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। आप कह रहे हो माताजी, आप ऐसी ही बातें करती हैं। हैदराबाद में एक सज्जन के घर, वो मुझे कहने लगे, चलिये। बहुत रईस आदमी है, बहुत ये है। रईस हो तो मुझे कोई मतलब नहीं। मैं अपनी गरीब हँ, अपनी गरिबी में ही ठीक हूँ। बहुत पीछे पड़े, चलिए माताजी। उन्होंने बड़ा 8 बुलाया। जैसे ही मैंने उनके घर में कदम रखा तो एक तरफ हो गयी। कहने लगे 'क्या बात है?' मैंने कहा, 'इस घर पे शाप है बहुत बड़ा।' 'ये आपको कैसे मालूम ?' मैंने कहा, 'है या नहीं सच-सच बोलो तुम? मैं अन्दर नहीं आने वाली। सच बोलो तुम।' कहने लगे, 'हाँ।' उस घर के दो जवान बच्चे हमेशा के ऐसे ही कुर्सी पर बैठे हुए हैं, दोनो पैर-हाथ लिए। खाते भी ऐसे ही, सोते भी ऐसे है। कहने लगे, 'माताजी, इनको ठीक करिये आप।' मैंने कहा, 'मुझे क्षमा करिये, में जा रही हूँ।' मैं बाहर निकल गयी। मैंने कहा, 'आप भी तो वही काम कर रहे हो, जो तुम्हारे पुरखों ने किया है।' कहने लगे, 'हमारे खानदान में हमेशा दो बच्चे ऐसे ही होते हैं। 'तो भी आपको ये बात नहीं समझती?' 'और इस पुश्त में तो ये दो बच्चे हैं, तिसरा है ही नहीं । इस खानदान का क्या होगा?' मैंने कहा, 'खानदान ले के बैठो, पैसा ले के बैठो, उसको चाटो आप! और खाओ और इनको चिपकाओ चारों तरफ। और इतना भी नहीं हुआ तो प्रोसेशन निकालो ।' किसी की आत्मा को कोसे, विशेषत: किसी गरीब को कोसे, उसकी आत्मा से आह लेना आपको पता होना चाहिए, जीने का राज ! सब कुछ चल रहा है। आपको दिखने में लगता है, अपनी कुडती ले आये, उसके घर का सारा सामान लूट के चले आये। घर में बहू आयी है। उसको सता रहे ही सास, उसमें बड़ा मज़ा आता है। उसको छल रही है। मेरे को इतना मेरे सास ने छला, तो मैं भी उसको छलूंगी। आहें मत लो, किसी गरीब की आहें मत लो। किसी के हृदय की आह मत लो। कभी भी मत लेना। शिवजी वहाँ बसते हैं, जान गये और जितना आदमी भोला होगा, उतना ही वहाँ शिवजी का राज जादा होगा। किसी भी भोले आदमी का फायदा मत उठाना। भोले आदमी के सामने हमेशा नत होना चाहिए क्योंकि शिवजी वहाँ जाग रहे हैं, तभी वो भोला है। आदमी तभी भोला होता है, जब उसके अन्दर शिवजी बसते हैं। भोले आदमी को लोग बहुत त्रस्त करते हैं। उसको छलते हैं। जिनको खास कर बहुत पैसे का समझ है, एक-एक, दो-दो पैसा जो जोड़ते बैठते हैं। जो भोले आदमी को उल्लू बना कर फिरते हैं। पैसा तो कभी मिल भी जाएगा। लेकिन शिवजी के श्राप से आप अभिमत नहीं हैं। आप कहेंगे कि, 'माँ, आप यूँही मुझे डरा रही हो।' मैं बिल्कुल भी नहीं डरा रही हूँ। मैं सजग करा रही हूँ। शिवजी के कार्य जो हैं, बहत गहन और बड़े ही दिनों तक चलने वाले हैं क्योंकि अंत तो शिवजी ही और सब लय जब होगा तभी शिवजी ही हैं। आज महाशिवरात्रि के दिन सब को यही निश्चय करना है, कि हम किसी भी प्रकार, किसी की आह न लें। किसी के साथ हम ज़्यादती नहीं करेंगे, किसी भी चीज़ की। कोई गरीब है, कोई मजदूर है, कोई हमारे नीचे है, कोई हमारा आश्रित है, जो भी रहें वहाँ शिवजी का राज है। उनमें सज्जनता है। नौकर है घर का, उसको खाने को नहीं देंगे, उसको भूखो मारेंगे। उसका पैसा मार लेंगे। इस में शिवजी का कोप आप पे आयेगा। मैं आपसे सच सच बता रही हूँ इसमें से एक अक्षर, एक बूंद भी झूठा नहीं है। आप चाहे वाइब्रेशन्स से जाने। इतने सहजयोगी है । कितने जोर से वाइब्रेशन्स देते हैं, अगर मैं एक भी अक्षर झूठ बोल रही हूँ तो आपके वाइब्रेशन्स देखें । किसी के साथ ज़्यादती करना शिवजी के सामने गुनहगार होना है। सज्जनता, सौजन्य, नम्रता, झुकना शिव है। कोई बात नहीं, अरे उनके साथ भैरवनाथ खड़े हुए हैं। एक सोटा लगायेंगे तो ठीक हो जाओगे तुम। भैरवनाथ तुम । 9. के चक्कर को तुम समझे नहीं। उनको एक पैसा नहीं माँगती हूँ। चारों तरफ चलता है उनका जोर। और वो इस तरह से मारते हैं, कि पुश्त न पुश्त चलता रहेगा। पुश्त न पुश्त। इनमें हनुमान जी जरा हल्के हैं मारने में, थोडा बहुत ठीक है। भैरवनाथ जी के बीच में न जाना। इसलिए अपने से जो नीचे है, अपने से जो दलित है, अपने से जो आश्रित है, अपने ऊपर जो निर्भर है उन सब के रहम (अस्पष्ट).. शिवजी को देखे बैठे कहाँ है। शमशान में, जहाँ कोई नहीं बैठता। राख में बैठे है। शादी में आये तो राख फाँस के आये। गले में वो साँप ले कर के। नंदी के सवारी। बताईये, बैल पर कोई बैठता है क्या? बभूत लगा कर के, अजीब सी शकल बना के, बाल वाल कर के, जटा-जूट, एक शेर का वो व्याघ्रचर्म बन गया। और उनके साथ एक-एक भूत चले आ रहे हैं। उनकी जो औरतें चली आ रही हैं, उनकी किसी की एक आँख हैं, किसी के दो नाक हैं, किसी के चार सींग हैं, जितने भी विद्रूप, विक्षिप्त लोग हैं, जिनमें शारीरिक दोष होता हैं, कोई अगर बहरा है तो उसका मज़ाक हो रहा है। परमात्मा का शुक्र करो कि तुम्हारे दोनों कान ठीक हैं। परमात्मा का शुक्र करो कि तुम्हारी दोनों आँखें ठीक हैं। कभी अंध के हाथ तुमने पकड़े नहीं, उसको उल्टा धक्के देने में मज़ा लेते हो। देखो शिवजी भगवान को, देखो उनकी बरात आ गयी है। और पार्वती के घर के तो सब लोग बड़े-बड़े हैं। विष्णुजी, उनके भाई खड़े हैं साथ में, बड़े सोफेस्टिकेटेड लोग हैं एक साईड में और एक ये बरात चली आयी शिवजी की। किसी की कोई हिम्मत नहीं की शिवजी को हँसे या उनके लोगों पे हँसे। दुनिया भर के जितने विद्रूप और कद्र लोग हैं सब को लिए चले आ रहे हैं बड़े शान से। रीति-रिवाज से नहीं। हम लोग तो हमारा बाप गरीब होगा तो उसको दफ्तर में आने के लिए कहेंगे कि मत आना , भैय्या। उसको कपड़े भी नहीं देंगे। अपने बाप से शर्म आती है! सब तो बड़ी शान से चले आ रहे हैं, वाह भाई , वाह! कोई बिचारे नंग भडंग, कपड़े नहीं, कुछ नहीं, जैसे भी है चले आ रहे हैं शिवजी के साथ में। अब पार्वती देखो घबरा रही है। 'ये क्या दुल्हा भी आया, मेरे घर, नाक | कटा रहे है। दो-चार अच्छे तो ले आते कम से कम सामने में । लेकिन अब बोले तो बोले क्या ?' भैरवनाथ जी सामने चले आ रहे हैं। लेकिन पार्वती के मन तो वही भाये हुए हैं। उनको तो कोई अब पसन्द नहीं। जैसे भी हैं, के लोग जैसे भी हैं। चाहे एक नाक हो, एक आँख हो, पती के घर के लोग आये, उनका मान, उनका पान। ससुराल उनको रीति-रिवाज से देखना, क्योंकि 'मैं बड़े विष्णु जी के घर, मेरे भाई खड़े हुए हैं विष्णुजी जैसे, कुबेर जिनके घर पानी भरते हैं और मैं हिमालय की बेटी हूँ। ऐसे ही पार्वती जी का विचार कर के हमें ये सोचना चाहिए कि संसार में जिस शिवजी को हम मानते हैं। जिनके ऊपर सारा संसार निर्भर है। जो एक क्षण में ही हमको खत्म कर सकते हैं। जब संहार होगा तो ग्यारह रूद्र के रूप में वो निकल कर के हम को खूँखार के और जो भी संयत भाव से ये सारा खेल देखते हैं, जिसके के लिए संसार की सारी सृष्टि आदि कुछ भी नहीं। और जो साक्षी मात्र देखते हैं दुनिया को। और जो हर एक भोले इन्सान के हृदय में जागृत है। जिनका स्थान ही ऐसे जगह है जहाँ कोई भी नहीं जानता। उनका कोई शृंगार नहीं, उनका कोई भी बाहरी भाव नहीं। इनके सिवाय किसी के पास कुछ भी नहीं शोभा देता। ऐसे शिवजी को जो इन्सान मानता है, वो ही इन्सान है, क्योंकि वो इन्सानियत को मानता है। इसलिए नहीं की फलाना बड़ा भारी अफसर है, फलाने के पास 10 इतना पैसा है। क्योंकि फलाने के पास इतनी विद्या है। दूसरे के पास में ये है। इसलिये की बड़ा मानव है। चाहे गरीब है, चाहे अमीर है, चाहे छोटा है, चाहे बड़ा, लेकिन वो बड़ा मानव है और बड़ा मानव वही होता है, जो साक्षात शिवजी के चरणों में है । आज का दिन ऐसा नहीं है कि आपको मैं .... करूँ, आज का दिन है बहुत। लेकिन एक बात मैं जरूर बताऊंगी कि महाशिवरात्री के दिन उपवास करने की कोई जरूरत नहीं। बिल्कुल, उल्टी बात। जिसने भी ये बात है। कही है, पता नहीं क्या शास्त्राधार है मैं पूछती हूँ। मुझे बताये कोई भी पंडित, कौनसे शास्त्र में लिखा हुआ शिवजी के विवाह के रोज आप लोग क्या उपवास करेंगे ? इसका कोई शास्त्राधार मुझे बताईये। मैं जानना चाहती हूँ। शास्त्र भी काफ़ी गड़बड़ कर दिये। लेकिन मैं जानना चाहती हूँ, इसका क्या शास्त्राधार है। कि गलत जगह पे आ के खुशियाँ मनाओ, मौज मनाओ। आज खुशियाँ मनाने का दिन है। कितने लोग उपवास कर के आये हैं? हाथ ऊपर करें। जिन्होंने जिन्होंने उपवास करें, आप लोग पार नहीं होते आज। आप जो पार है बच जाएंगे आज। नहीं | आने वाले वाइब्रेशन्स, देख लो। कोशिश करो । कोशिश कर के देख रहे हैं, आ रहे हैं वाइब्रेशन्स। कुछ नहीं आ रहे हैं। हल्के हो रहे हैं। झूठ नहीं बोल रहे है। आज खूब खाओ-पिओ। घर जा के लड्ड खाना। आपको शारीरिक स्वास्थ्य से देखना चाहिए शिवजी की स्थिति है हमारे, एक्झिस्टन्स। और एक्झिस्टन्स के लिए क्या जरूरी है? क्या चीज़ खानी चाहिए? आप लोग जानते हैं, कार्बोहाइड्रेट्स। उसके बगैर हमारे अन्दर शक्ति नहीं आती। आज के दिन सब को कार्बोहाइड्रेट्स खाना चाहिए, हर तरह के, या प्रोटिन्स खाना चाहिए । जितने भी आप प्रोटिन्स खायें अच्छे हैं। अधिक से अधिक आप प्रोटिन्स खायें । चने में प्रोटिन्स हैं। चना सिर्फ प्रोटिन है। अगर आप चना खायें तो आपने प्रोटिन्स खा लिये। हर चने से आपको प्रोटिन्स खाना चाहिए। जो भी प्रोटिन हो वो आज शिवजी के लिए खाना चाहिए। हृदय के लिए कितनी अच्छी चीज़ है प्रोटिन्स । अगर आप कृश प्रकृती के है तो आपको कार्बोहाइड्रेट्स भी खाना चाहिए, लेकिन सब से बड़ी चीज़ है प्रोटिन खाना चाहिए। और आज के दिन आप फल-फूल खाएंगे, जो कि नहीं खाना चाहिए। उसका कोई शास्त्राधार मुझे समझ में नहीं आता। पर रूढी चल गयी तो चलते है। अब जिसने चलायी वो कोई तांत्रिक ही होंगे। और तो कोई हो नहीं सकते। मुझे और तो कोई समझ में नहीं आता। एक सीधा हिसाब सोचना चाहिए, कि जिस दिन किसी का जन्म हो या विवाह हो, भूखे नहीं रहते हैं, एन्जॉय करते है खुश होके। कोई मरता है उस दिन भूखे रहेंगे। हम लोगों का हिसाब ऐसा कि जिस दिन कोई मरे, नर्क के दरवाजे खुले, उस दिन उपवास नहीं करना। सबेरे उठ कर खाना। आज सब लोग खायें, पियें। नरकचतुर्दशी के दिन उपवास करना चाहिए, तो उस दिन सबेरे नहा-धो कर के, चार बजे उठ कर पहले फराल करते हैं। देखिए, कितना उल्टा है। अब मैं ये बात कहँ, मुझे कबीर जैसे तो कह नहीं सकते। लेकिन हाँ, आप कहेंगे कि माताजी, कैसे उल्टी बातें बतायी। लेकिन ये बात सीधी है, इसे सीधी मानो। जो बात उल्टी हैं उसे उल्टी मानना होगा। लेकिन जो सत्य है उसे सत्य ही मानना होगा। उसको कोई बिगाड़ नहीं सकता। उसको कोई मिटा नहीं सकता। और सत्य है या नहीं ये अपने वाइब्रेशन्स से देख लीजिए मैं जो बात कह रही हूँ, और झूठ | हो तो वाइब्रेशन्स से पता चलेगा । 11 चराचर की सष्टि एक सूक्ष्म शकति हैं शক्ति है यमुनानगर, ०१ अप्रैल १९९० सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! सबसे पहले हमें ये जान लेना चाहिये कि सत्य जहाँ है, वहीं है, उसे हम बदल नहीं सकते उसे हम मोड़ नहीं सकते। उसे तोड़ नहीं सकते। वो था, है और रहेगा। अज्ञानवश हम उसे जानते नहीं, लेकिन हमारे बारे में एक बड़ा सत्य है कि हम ये शरीर, बुद्धि, आत्मा के सिवाय और कुछ नहीं। जिसे हम शरीर, बुद्धि और अहंकार आदि उपाधियों से जानते हैं वो आत्मा ही है और आत्मा के बजाय कुछ भी नहीं। ये बहुत बड़ा सत्य है जिसे हमें जान लेना चाहिए । दूसरा सत्य है कि ये सारी सृष्टि, चराचर की सृष्टि एक सूक्ष्म शक्ति है, जिसे हम कहेंगे कि परमात्मा की एक ही शक्ति है। कोई इसे परम चैतन्य कहता है और कोई इसे परमात्मा की इच्छाशक्ति कहता है। परमात्मा की इच्छा केवल एक ही है कि आप इस शक्ति से संबंधित हो जायें, आपका योग घटित हो जायें और आप उनके साम्राज्य में आ कर के आनंद से रममाण हो जाए। वो पिता परमात्मा, सच्चिदानंद अत्यंत दयालू, अत्यंत प्रेममय अपने संरक्षण की राह देखता है। इसलिये ये कहना की हमें अपने शरीर को यातना देनी है या तकलीफ़ देनी है ये एक तरह की छलना है। कोई भी बात से जब आप नाराज़ होते हैं तो आप कहते हैं कि अच्छा है,' इससे कुछ पा कर दु:खी होता है, सुख तो होने वाला नहीं। सो, सिर्फ एक ही बात को आप समझ लीजिए कि परमात्मा नहीं चाहते हैं की आप किसी प्रकार का भी दु:ख उसे दे। किसी तरह यातना का, वो चाहते हैं कि सहज में ही आप उस तरह को प्राप्त करें, इसमें आपकी सारी व्यथायें, जो अज्ञान के कारण हैं वो नष्ट हो जाएगी। आप निरानन्द में रममाण हो जाएंगे। उसकी पूर्णग व्यवस्था हमारे अन्दर परमात्मा ने की हुई है। जैसे की डॉक्टर साहब ने आप से बताया कि कुण्डलिनी की व्यवस्था हमारे अन्दर त्रिकोणाकार अस्थि में है। और इसके जागृति से आपका संबंध उस सूक्ष्म सृष्टि से हो जाता है, जो सृष्टि सारे संसार को चलाती है। सारे संसार में विचरण करती है, और सोचती है, समझती है। उसको प्लावित करती है, इसका सर्जन करती है और सब से अधिक इस सृष्टि के अन्दर जो सब से ऊँचा, पहुँचा हुआ मनुष्य प्राणी है उससे अत्यंत ग्रेट है। अब सिर्फ इस मनुष्य स्थिति में आने के बाद एक और स्थिति उत्क्रान्ति की होती है इसे हमें प्राप्त करना है। यहाँ जैसे मैंने कहा था कि 12 प्रथम सत्य है, यहाँ आप आत्मा हो जायें। आज कल के जमाने में हर तरह की गलत प्रणालियाँ चलती रही हैं। और इस तरह की बातें मैंने सुनी है कि इस में लिखा जाता है कि कुण्डलिनी का जागरण बड़ा कठिन है और इस में बहुत यातनायें हैं। ये सब आज कल की ही बातें हैं। हजारों वर्ष पूर्व मार्कडेय स्वामी ने लिखा है कि कुण्डलिनी जागरण के सिवाय हम आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त नहीं कर सकते। उसके बाद अनेक ऋषि-मुनियों ने इसके बारे में कहा। रामायण में भी आपने सुना होगा और उसके बाद हर प्रांत में, हर जगह, हर बार जब भी कोई विभूति पैदा हुई, उन्होंने यही कहा है कि आप अपनी जागृति करायें और इस कुण्डलिनी के द्वारा उस मोक्ष को प्राप्त करें। महाराष्ट्र में, ज्ञानेश्वरजी ने इस पे बहुत कुछ लिखा और अभी अभी तक गुरुनानक साहब ने भी इस पर बहुत विवेचन किया है। इतना ही नहीं, कबीरदासजी ने इसको बहुत खोल कर बहुत काव्यमय कहने के कारण लोगों को कुछ बात समझ में नहीं आयी। फिर घबरा के वो कहते हैं, 'कैसे समझाऊँ सब जगह अंधार !' ये अंधापन वो ये है कि हम ये नहीं समझते कि जब से हमारा परमात्मा से संबंध नहीं होता तब तक हम कोई भी कोशिश करें, कोई भी मेहनत करें, तो वहाँ तक कैसे पहुँचेगा। जैसे कि ये टेलिफोन है। जब तक आपके टेलिफोन का संबंध किसी और टेलिफोन से नहीं हो तो उसको घुमाने से क्या फायदा। इसलिये बहुत से लोग मेरे पास आ के कहते हैं, 'माँ, हम तो इतना भगवान को मानते हैं, इतनी पूजा करी, हमने इतने व्रत - वैकल्य करे, हम यहाँ गये, वहाँ गये, हम क्यों ऐसे?' सीधी बात है, आपका संबंध नहीं हुआ। ये ब्रह्मसंबंध होना चाहिए। और इसको अनेक लोगों ने विपरीत तरीके से इस्तमाल किया है, और बहुत बुरे ढंग से उन्होंने इस चीज़ को सामने रखा। और खास कर देखिये, इस में ऐसा काम करने से ब्रह्मसंबंध हो जाएगा, वैसा काम करने से ब्रह्मसंबंध हो जाएगा। इतना ही नहीं परमात्मा के नाम पे बेलगाम लोगों ने पैसे इकठ्ठे किये। भगवान को तो पैसे से संबंध नहीं है, ये तो मनुष्य का सबंध है। भगवान को क्या मालूम पैसा क्या चीज़ है? तो भगवान के नाम पे पैसा लेने से फायदा क्या है, जिसको समझ ही नहीं आता कि पैसा क्या चीज़ है? लेकिन हर जगह आप देखिये, कुछ सुविधा के नाम पर इतना पैसा लेते है। हर धर्म में ये बात है। कोई हिन्दू धर्म में, या सिखों में या ईसाईयों में बात है ऐसे नहीं, हर धर्म में ये बात है। कि हर किसी को इसी प्रकार कि अगर आपको धर्म को प्राप्त करना है तो आप पैसा निकालिये। इसके धूल के बराबर नहीं हैं ये चीजें। वो तो आप जैसे सत्य को खोजने वालों साधकों की खोज में है। उन्हीं का वो कल्याण करेगे। आपका कल्याण आप ही के अन्दर निहित है। कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। 'काहे ....खोजन जाये।' ये जब तक अपना आपा नहीं आप जानोगे तब तक कुछ नहीं मिलेगा। हम कहते हैं, ये मेरे बच्चे, ये मेरे पति, मेरे रिश्तेदार सब मेरे, मेरे और वो मैं कौन है जिसके लिए सब हैं? वहाँ पहुँचे कि मैं कौन हूँ? जब वहाँ पहुँचते ही कि 'मैं कौन हूँ?' वो हम ने अभी तक जाना नहीं कि 'मैं कौन हूँ ?' .... (अस्पष्ट) और किस तरह से कुण्डलिनी के जागरण से हमारी विकृतियां ठीक होती है। ये एक सर्वसाधारण तरीके से मैं आपको समझा सकती हैँ। समझ लीजिए की ये हमारी लेफ्ट साइड है और ये राइट साइड है। ये दोनों हमारे पीठ की रीढ़ की हड्डी में इस तरह से बैठ गयी और इसके नीचे ये चक्र तैयार है। हम उपर नहीं जा सकते। अपने भावना से खेलते रहता है, अपने भूत काल में जमा रहता है। और हर समय रोते रहता है कि क्या मेरा भूतकाल था? में 13 आत्मकाक्षात्कार का कहाँ पहुँच गया ? ये भी गया, वो भी गया। वो तो अपने लेफ्ट साइड में चला जाएगा। जो मनुष्य आगे की बात सोचता है, हमेशा भविष्य की बात सोचता है। हर समय ये सोचता है कि मुझे क्या करना कोलियुग में ही चाहिए, कहाँ जाना चाहिए, प्लॅनिंग करना है, हर समय। वो राइट साइड में चला जाता है। और बीच ये कार्यं होना है। में आने के लिए उसको कोई मार्ग नहीं। या तो हम पिछला सोचते हैं या अगला सोचते हैं। पागलों जैसे ये कार्य जो भी विचार हमारे अन्दर एक बार उठा जाता है। हम उसके उपर नाचते रहते हैं। इन दोनों के बीच में एक जगह है जो वर्तमान है। उस वर्तमान में रहने के लिए भी कुण्डलिनी का जागरण होना जरूरी है। पहले नहीं हो सकना । जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो सबसे पहले आप के अन्दर ये स्थिति प्राप्त होती है, इसे निर्विचार समाधि कहनी चाहिए। इसका हठयोग में, पातंजलि में बहुत है। ये पहली स्थिति आपने प्राप्त होनी चाहिए की जहाँ निर्विचार है। लेकिन निर्विचार समाधि में, निर्विचार समाधि माने उस वक्त आप सतत सतर्क होते है, कोई आप निद्रा में नहीं जाते, आप से कोई चक्कर नहीं आ जाते, आप कोई बेहोश नहीं हो जाते, लेकिन आप अत्यंत सतर्क हैं। लेकिन अन्दर से निर्विचार हैं, अत्यंत शांत हैं। अब देखिये, की अगर कोई सुंदर सी, शांत देवी, उसे देखने के साथ, आपके दिमाग में विचार चलने लगे कि ये कैसी चीज़ मैं पाऊँ, इसको कैसे ले लँ? अगर वो मेरी चीज़ है तो और सतर्क है । लेकिन जब कोई विचार ही नहीं आता, तो उस सुन्दर चीज़ को बनाने वाला, उसके आनन्द में पूरा के पूरा अत्यंत ऐसा मन में हो जाता है जैसे कि यमुना दोनों तरह से आनन्द में बहने लगती है । ये अनुभव करने के लिए है। कहने के लिए नहीं, भाषण देने के गंगा- लिए नहीं, इसका अनुभव होना चाहिए। जब तक ये अनुभव सिद्ध नहीं होगा, तब तक ये व्यर्थ है। और यही अनुभव को प्राप्त करना ही आत्मसाक्षात्कार है। आत्मा को सच्चिदानंद स्वरूप है। माने आत्मा को प्राप्त करने से आप खो जाते हैं। सत्य को जानने वाले हैं क्या? अभी तक हम जो सत्य जानते हैं वो पारस्पारिक है । रिलेटिव है। माने ये कि कोई कहेगा ये सत्य है, कोई कहेगा वो सत्य है, वो कहेगा वो सत्य है। एक चीज़ नहीं है कि सब कहें कि हाँ, यही सत्य है। इसकी वजह ये है कि अभी तक सत्य का अनुभव हमने नहीं किया। जब हमारी आत्मा हमारे चित्त में आ जाती है, उस प्रकार से हम केवल सत्य खोजते हैं। अंग्रेजी में कहना चाहिए अॅबसल्यूट टूथ। केवल सत्य को हम नहीं जानते और असत्य को भी हम जानते हैं। क्योंकि जो सत्य नहीं वो असत्य है। सब लोग, जितने भी लोग आत्मसाक्षात्कारी होते हैं वो एक ही बात है। उनमें न झगड़ा होता है न पार्टी होती है, न जश्न होता है। अब हमारा सहजयोग चालीस देशों में चल रहा है। हर तरह अलग अलग तरह के लोग हैं, बढ़िया बढ़िया हैं, और सब जब भी सम्मिलित होते हैं, ना कोई ऐसी बात, सब आपस में एक जैसे, एक साथ सामूहिक रूप में होते है, मानो छोटे छोटे बिंदू में सागर से बने हैं।.....(अस्पष्ट) इसलिये आत्मसाक्षात्कार का ये कार्य कलियुग में ही होना है। ये कार्य पहले नहीं हो सकता। लेकिन आज समय ऐसा आया है कि बहार आ गयी है। देखिये इतने सारे सागर, ये कलियुग की ही कमाल है। ये कलियुग की ही सत्य को खोजेगा क्योंकि वो संभ्रांत हैं। परेशान है, टेन्शन है, आफ़त है, बिमारियाँ हैं। फिर जब वो सत्य को कमाल है और इस कलियुग में ही ये चीज़ होने वाली है कि मनुष्य खोजता है तो उसका चित्त शुद्ध हो जाता है। आत्मा के प्रकाश से उसका चित्त शुद्ध हो जाता है। इसके कारण उसकी 14 सारी जो शारीरिक व्याधियाँ हैं दूर हो जाती है। कोई प्रकार की व्याधि नहीं रह जाती। अधिक तर व्याधियाँ लुप्त हो औं जाती हैं। .... (अस्पष्ट) इस प्रकार ६० डॉक्टर लोग लंडन में प्रक्रिया करायी। ... (अस्पष्ट) और वो आश्चर्यचकित हो गये। खुशखबरी कि अभी हम ऑस्ट्रेलिया गये थे। दो पेशंट्स थे। बिल्कुल मरती हुई हालत में आये, एड्स के पेशंट्स थे, वो दस मिनट में ठीक हो गये। और दो-तीन बाद वो आ गये कि बिल्कुल ठीक चल रहे है। लोगों ने शराब पीना, ये सब लेना, ड्रग लेना, अपने देश में तो ऐसा ही नहीं होता है। लेकिन बाहर ॐँ लोग.....। क्योंकि हम लोगों के सामने तो बड़े-बड़े आदर्श हैं। हमने देखा श्रीराम, सीता, सब बड़े-बड़े आदर्श है, इसकी वजह से हमारे अन्दर उन आदर्शों को प्राप्त करने से, विचार न करते हुए उन आदर्शों की सिर्फ हम कॉपी करते हैं। लेकिन उसको हम पाना नहीं चाहते। पर परदेश में ये हालत इतनी नहीं है, उनको देखते ही, जागृत हो जाती है। और एकदम चीज़ को पकड़ लेते है। एक लाख लोगों ने ड्रग छोड़ दिया, शराब पीना छोड़ दिया। दुनिया भर की गंदी आदतें छोड़ दी और इतने सुन्दर हो गये हैं कि जैसे एक कीचड़भरे एक सरोवर में कमल खिलें । मैं तो पहले कहती थी कि, 'बाबा, परदेस में तो जाना आफ़त आ जाएगी। इतने खराब वहाँ पर वाइब्रेशन्स है, वहाँ चैतन्य लहरी नहीं। वहाँ कहाँ पती ने मुझे भेजा।' लेकिन मैंने देखा , वहाँ कमल की कलियाँ हैं । और वही कमल खिल रहे हैं और सब सुरभित हैं। हम लोगों को अभी ये समझ में नहीं आता है कि इन देशों ने बहुत सारी सांसारिक प्रगति की। लेकिन कोई प्रगति नहीं। इनका हालत आप सुनिये। आप आश्चर्यचकित होंगे, माँ-बाप का कोई ठिकाना नहीं, बच्चे बारह साल के होते ही घर से निकले। माँ-बाप को मार डालते हैं, दादा-दादी को मार डालते हैं, माँ-बाप बच्चे को मार डालते हैं। लंदन शहर के अन्दर एक हप्ते में दो बच्चे माँ-बाप मार डालते हैं। आपको विश्वास नहीं होगा कि इन लोगों को क्या हुआ है? इनके हृदय सूख गये हैं कि क्या बात हो गयी थी कि ये बच्चों से तंग आ कर उनको मार दिये। हर रोज वहाँ इस तरह की बातें सुन के हैरान हो गयी कि कैसे ये कर सकते हैं इस तरह। अभी इस भारतवर्ष में ऐसे भी लोग हैं जिनके अन्दर इतना प्रेम है, इतना आदर है। ये सब उन लोगों ने जो भी प्रगति की है वो बाहर की प्रगति है, जैसे कि कोई पेड़ बढ़ जाए और उसको अपने मूल का पता न हो उसके कारण शुष्क हो जाए। बिल्कुल शुष्क हो गये। सारी दुनिया आपके चरणों में बसी हुई है। जिस दिन वो जानेगी कि यहाँ के लोग कितने आत्मसाक्षात्कारी हैं। इतना सब होते हुए भी हिन्दुस्थान में, सहजयोगी जो हैं पहले कोई नहीं। क्योंकि यहाँ तो चैतन्य जागृत है। आप जानते ही नहीं कि इस भारत वर्ष में जन्म लेने के लिए आपने न जाने कितने पुण्य किये हैं । ऐसा बड़ा देश, इतना ........ और इस देश से जाने वाली चीज़ें हैं, यही आपका धरोहर है, यही आपका हेरिटेज है और महान देश, ऊपरी उपरी चीज़ों को आप देखते हैं। इसकी गहनता को आप जानते ही नहीं। एक बार मैं अपने पति के साथ आ रही थी। यहाँ आते ही मैंने कहा कि, 'आ गया हिन्दुस्थान छू लिया। 'कैसे कहती हो कि हिन्दुस्थान छू लिया?' 'जिसमें सबकुछ चैतन्य बह रहा है।' तो उन्होंने जा के पायलट से पूछा, तो उसने कहा, 'अभी छुआ है।' एकदम चारों तरफ। मैं अभी रास्ते से आ रही थी। यही देख रही थी कि कितना चैतन्य है। शाकंभरी देवी का यहाँ अवतरण हुआ 15 शायद आप लोग नहीं जानते। और शाकंभरी देवी का यहाँ अवतरण बहुत बड़ा कार्य है। इसी प्रकार .... हमको ये भी जान लेना चाहिए इस भूमी में अनेक साधुओं ने, संतों ने अवतार लिये जहाँ बड़े-बड़े महान अवतरण जन्म लिये, जैसे श्रीराम जैसे। देवी ने अनेक अवतार यहाँ ले कर के, ....... | लेकिन वो आज वही दिन आया है, उनकी जो परंपरायें उन्होंने जो दी थी जो हमारे उपर इतने दिनों से हमारे उपर छायी हुई हैं। आत्मसाक्षात्कार पाते ही आप पहले शांति में चले जाएंगे जो कि आपकी अपनी चेतना है। से लोग बहुत शांति की बात करते हैं। शांति के विश्राम बनायें । शांति का एक उमेदवार अनुष्ठान बनाया था और उनके पास जाईये तो खड़े नहीं हो सकते । इतने क्रोधी लोग होते हैं। ऐसे लोगों को शांति कैसे मालूम! जो लोग शांति की बात करते हैं, अगर उनके हृदय में शांति नहीं तो वो क्या शांति प्रस्थापित कर सकते हैं? तो ये आपके अन्दर की, आपकी संपत्ति, आपके अन्दर की चीज़ है जिसे आपको क्रॉस करना है, उसे लेना-देना कुछ नहीं। आपके अन्दर की ये शक्ति, जैसे कि एक बीज में उसकी सृजन शक्ति होती है। आप उसे जमीन में छोड़ दीजिए वो अपने आप बढ़ेगा। ये जिवंत क्रिया है और इसीलिए ये सहज है । सह मतलब आपके साथ और ज माने पैदा हुआ। ये योग का अधिकार आपके अन्दर ही पैदा हुआ है। क्योंकि आप मानवरूप में पैदा हुये हैं। त्रिकोणाकार अस्थि में बैठी हुई | कृण्डलिनी ये आपकी अपनी व्यक्तिगत एक माँ है। जैसे कि एक कनेक्शन जरूर होता है जुड़ा हुआ। उसी प्रकार एक आपके अन्दर, सब के अन्दर आपकी माँ बसी हुई है और उसको अपने बारे में सब मालूमात होती है। ..... जैसे कि उस तरह से उस जनम , इस जनम के बारे में सब जानती है कि ये क्या है। और वो लालायित है .....(अस्पष्ट) अब आजकल के साइन्स के जमाने में वो सोचते हैं कि ये कौनसी बात माँ ने कही। परमात्मा का नाम भी उन्होंने सुना नहीं। लेकिन परमात्मा है। यही नहीं, पूरी सृष्टि में इन्हीं का साम्राज्य चलता है। वो ही सर्व को मानते हैं। इसकी सिद्धता की सहजयोग के बाद ही हो सकती है, उसके पहले बात बात है। और बात इसी से करते है, इसलिये ये अनुभव आप सब लोग आज शाम करें । ऊपरी बात को आप भूल जाईये। एकदम झगड़ा वगैरे सब बेकार है। जब तक इन लोगों को ये अनुभव नहीं आयेगा, ये ऐसे ही हैं बेचारे। लेकिन आप लोग आत्मसाक्षात्कारी हो जाएं। क्योंकि इसकी भविष्यवाणी हजार वर्ष पहले हुई है। भृगु मुनि ने इस पर भविष्यवाणी की है कि सहजयोग इस तरह से आयेगा। कि किस तरह आश्चर्य जनक है। चकित करने वाले है । इसके बारे में एक भाषण में मैं आपको क्या बताऊँ। इसपे तो अनन्त .(अस्पष्ट) लेकिन भाषण सुनने से, तर्क-वितर्क करने से (अस्पष्ट) सिर्फ जाना है, छ: चक्रों को पार करना है, अन्त में ब्रह्मरंध्र को भेदना है। उस कुण्डलिनी को ..... भी हो उसके अन्दर एक शिव की इच्छा है कि योग घटित होना है। कुण्डलिनी काम करती है, क्योंकि कुण्डलिनी भाषण देके, अंग्रेजी में, मराठी में जैसा के शुद्ध इच्छा की शक्ति शुद्ध है, बाकी इच्छायें हमारी अशुद्ध हैं। एक ही हमारी शुद्ध इच्छा है, चाहे हम जाने या न जाने कि हमारा आत्मसाक्षात्कार और इसके बाद इस तरह से हल निकल आये हैं, आपको लगने ही लगता है कि आप परमात्मा के साम्राज्य के भाग हैं। आप सबको आशीर्वाद! 17 सहजयोगियों को उपदेश गणपतीपुले, २ जनवरी १९८८ सबसे पहले एक बात समझ लेनी चाहिए कि यहाँ जो बंबई वाले और दिल्ली वाले लोग आये हैं ये मेहमान नहीं हैं। मेहमान जो लोग बाहर से आये हैं वो हैं। बसेस उनके पैसे से आयी हैं। आप तो एक पैसा भी नहीं दे रहे हैं उसके लिए। एक कवडी भी नहीं दे रहे हैं। बसेस उनकी हैं, वो सब बसेस मार कर आप लोग यहाँ आ गये। यहाँ बसेस छोड़ दिये, वो लोग रास्ते में लटक के खड़े हुए हैं। बजाए इसके कि आप उन लोगों का खयाल करें, आप आराम से यहाँ पहुँच गये। आके आराम से यहाँ बैठ गये हो । और आधे लोग रस्ते में बैठे हुए हैं और यहाँ बसेस सड़ रही हैं। आप लोग यहाँ मेहमान के रूप में नहीं आयें, कृपया ध्यान दीजिए । ये अपनी आदतें आप बदलिये। आप यहाँ पर आये हैं सेवा करने के लिए और ये बाहर के जो लोग आये हैं ये मेहमान हैं। आप जिस चाहे बस में चढ़ जाते | | हैं, जैसे कि आपने बस ली है किराये से। पिछली मर्तबा ४५,००० रू. मैंने भरा आप लोगों के बस में चढ़ने का। बेहतर है आप सब लोग पैदल आईये और नहीं तो एक चीज़ हो सकती है कि एक बस है सिर्फ आप के लिए। किसी भी टाइम में आप लोग निकलते हैं। आपको कोई टाइम नहीं है, कुछ नहीं है, एक ही बस आयेगी और वो बस दो मर्तबा आयेगी और उसी बस में आपको बैठने को मिलेगा और किसी बस में आप बैठ नहीं सकते। समझ गये आप! आप तो आराम से बैठ गये और सब लोग वहाँ लटके खड़े हैं अच्छी बात है? उनकी बसेस हैं। उन्होंने इतने पैसे दिये है। इसलिये आज बसेस हैं। उनकी वजह से आज सहजयोग चल रहा है। अब सारी बसेस है भेज दीजिए । एक बस है उसका नंबर यहाँ पे बताया जाएगा। और कोई दुसरे बस में हिन्दुस्थानी आदमी नहीं बैठेगा। एक बस आपके लिए है। वो जाएगी, आएगी, जाएगी, आएगी और अगर आप तैयार नहीं है तो पैदल आईये। यहाँ कोई बस चौबीस घंटे के लिए नहीं लगा सकते। हालांकि हमने इसका इंतजाम कर दिया है। चलो, ठीक है। लेकिन इसका ये | तो मतलब नहीं की आप जब इत्मिनान से जब चाहे, जिस वख्त उठे, राजासाहब जैसे, उनकी बसेस लगी चले आयें । ये तो ऐसे हुआ कि दुसरी गाडी मारी और चले आयें। अब एक ही बस आपके लिए है । वो वहाँ जायेगी और आयेगी। अब सबेरे के टाइम, आप लोगों को, ये लोग सबेरे उठ कर ध्यान करते हैं। उनसे कुछ सीखिए | एक तो इनसे सीखना चाहिए कि कायदा-कानून, डिसिप्लिन उनमें कितना है । दसरी बात ये है कि वो आपका आराम देखते हैं, उनका नहीं देखते। एक बस आपके लिए तय कर ली, बस। उससे ज्यादा हम दे नहीं सकते हैं। पैसा कौन देगा। एक बस का आपको हम नंबर बतायेंगे। वो बस आगे जायेगी, आयेगी । नहीं तो आप पैदल आईये| कौनसी आफ़त है। चलिये थोड़ा, अच्छा है सेहत के लिए। सबेरे के वख्त बस आयेगी। हम चाह रहे हैं कि सबेरे के बस के वख्त में आप वहीं रहिये। वहीं आप नहा, धो कर तैयार हो जाईये। और वही आपके लिए नाश्ता आ जाएगा। या आप अगर चाहें तो यहाँ आ जाईये। एक बस में, आप ज़्यादा लोग नहीं है, ११० लोग हैं आप सिर्फ। दो बस में आप आ सकते हैं। एक बार बस जायेगी, आ जायेगी, फिर आप जायेंगे , फिर आ जाना। बाकी बसेस को आप मत छुईये। उन सबका मुझे पैसा देना पड़ेगा। आप लोग देंगे क्या ४५,००० रुपया| आपसे किसने कहा इन बसेस में बैठने के लिए। आप उस बस में चढ़ के चले आये। कोई कायदा-कानून होना चाहिए । पूछना चाहिए कौनसी बस में जायें, कौन से में नहीं जायें।। अब आप मेहेरबानी करिए, अब सिर्फ जो बस आपके लिए है उसी बस 18 में आप सबेरे के वख्त बैठिये, यहाँ आईये, आपका वहीं नाश्ता आ जाएगा। लेकिन नवाब के जैसे रहने की जरूरत नहीं। सबेरे झट से उठ के नहा-धो लिया, ध्यान कर लिया और ध्यान के बाद में वहीं नाश्ता आ जाएगा। वो नाश्ता आपको साढ़े आठ बजे वहीं मिल जाएगा। ८.३० से ९.३० तक आप वहाँ पर नाश्ता कर के और एक बस है और अगर आप उस बस में नहीं आ सकते तो पैदल आईये मेहेरबानी कर के। बंबई के लोग, पुणे के लोग और दिल्ली के लोग, पुणे और बंबई के लोग तो मालगुंड में रह रहे हैं। आप लोग वहाँ रह रहे हैं कबूल। लेकिन इसका मतलब नहीं कि उनकी बसेस ले के चले आयें आराम से। पूछना चाहिये कि कौनसी बस हमारी हैं और कौनसी बस से हम आयें, पहली बात। दुसरी, कौन से टाइम पे आना चाहिए। अभी वो लोग सब लटके चार घण्टे से बैठे हैं। किसी ने पूछा भी नहीं कि वो लोग आये की नहीं आये? चार घण्टे से वो लोग खड़े हुए हैं। आप बैठ गये। आपको मतलब ही नहीं किसी से। आराम से आ के यहाँ जम गये। आप लोग यहाँ मेहमान नहीं हैं। ये आपका देश है हिन्दुस्थान। यहाँ पर बाहर से लोग आये हुए हैं। हिन्दुस्थान में आप हैं और हिन्दुस्थान के किनारे पर, अभी तक समुद्र में उतरे नहीं। समझ गये न आप! मेहेरबानी करिये, मुझे बड़ा दु:ख लगता है सोच कर कि ये लोग बिचारे लटके हुए हैं, चार घण्टे से खड़े हैं। आप लोग पहले चले, घूस घूस के चलो, चलो जल्दी चलो। वो कह रहे हैं, की सब लोग घूस गयें पहले ही, हम क्या करें, जंगली के जैसे। हम लोग सहजयोगी हैं। रास्ते पर के कोई वो तो नहीं, भिखारी लोग। कायदा-कानून कुछ न कुछ होना चाहिए। अब मेहेरबानी से आप लोग किसी के बस में नहीं चढ़ने वाले, सिर्फ आपकी ही एक बस है। एक तो हम ऐसी जगह आये हैं, जहाँ कुछ भी नहीं मिलता है। न कोई खाने-पीने की चीजें मिलती हैं न कुछ। सब चीज़ें कोल्हापूर से आ रही है। इसलिये यहाँ आये हैं कि ये हमारे लिए यात्रा है, क्षेत्र में हम आये हुए हैं। और इस जगह हम लोग मेहमान नहीं हैं। ये लोग मेहमान है। वैसे भी मैं देखती हूँ, दिल्ली वाले और बम्बई वाले सामने बैठ जाएंगे, वो लोग अपने पीछे में बैठे हैं। भाई , ये कोई तरीका होता है मेहमानों के साथ ये करने का, व्यवहार करने का? सबसे पहले हम लोग बैठ गये। खाना सबसे पहले हम खाएंगे। वो लोग बाद में खाएंगे। ये कोई तरीका होता है? हम लोग तो मशहूर है दुनिया में मेहमाननवाजी के लिए, तौर-तरीके के लिए । हम लोगों को दुनिया मानती है इस चीज़ के लिए। लेकिन सहजयोग में आते ही उल्टी खोपड़ी क्यों हो जाती है? कल से कायदे से आप लोग बिल्कुल इन के उपर आक्रमण नहीं करने वाले, किसी भी तरह का। और न ही इनके बसेस में घुसने वाले। सिर्फ आपके लिए एक बस रखी है, उनमें आप आईये । नहीं तो मेरे पास उनको इतना देने के लिए पैसा नहीं है। बहुत कुछ सीखने का, यहाँ आप सीखने के लिए आये हैं। अपनी जान बचाने के लिए नहीं आयएे हैं। पैदल चलने में क्या हर्ज है, जवान लोगों को ? थोड़े पैदल चले तो क्या हर्ज हो जायेगा ? आप लोगों के वहाँ नखरे ही नहीं मिलते, सुनते हैं कि एक आदमी , औरतों को तैयार होने में ही चार-चार घण्टे लग रहे है। एक बस रखिए । उसमें, एक ही बस आपके लिए है। उस बस से सब लोग आयें और सब लोग जायें। नहीं तो हम चाहते तो हम और कहीं आपको रखते। अच्छा रहता। कल हम सोच ही रहे हैं कि आप लोगों कहीं और रखा जाए। जिससे ये तकलीफ़ नहीं होगी। उनके बसेस उनके लिए है। रहने दीजिए वो आके पड़ी हुई हैं यहाँ बस। वो लोग रस्ते में 19 लटके, चार घण्टे से बैठे हैं। ये कोई अच्छी बात तो नहीं है। पैसे बिचारे देते हैं। उनके पैसे के दम पर सहजयोग चल रहा है। आप जानते हैं। और इन लोग सबको बता रहे थे कि वहाँ से सब ढकेल-ढुकेल के ये लोग बैठ गये आगे। हम लोगों का जगह ही नहीं मिली। और बसेस आ के यहाँ रोक ली और ये भी नहीं सोचा की बसेस वापस गयी की नहीं। वो लोग खड़े हैं वहाँ। अब देखिये, सारी बसेस यहीं पे खड़ी हुई हैं। आ कर बैठ गये आराम से यहाँ पर सब । दिल्ली वाले, बम्बई वाले, पूना वाले। मुझे दुःख महिनाभर प्रवास करते रहे। तकलीफ़ें उठाई हैं। आरामपसंदगी जो है ये सहजयोग का लक्षण नहीं है। जो आदमी आरामपसंद है वो सहजयोगी हो ही नहीं सकता। फिर वो बताएंगे कि हम आये, तो इतनी देर हमको तकलीफ़ हुई, फिर ये हुआ। जो आदमी को तकलीफ़ होती है वो सहजयोगी नहीं है । सहजयोग में आत्मा का आनन्द हैं, उसका आराम है, उसका सुख है। उसके लिए कोई तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए। कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए । उसी के आनन्द में विभोर रहना चाहिए। मैंने सुना की बहुत झगड़े हो रहे हैं कि कौन डॉम्मेटरी में रहेगा, कोई कहाँ रहेगा, कौन कहाँ रहेगा। ये तो गलत बात है। कम से कम अब जो लोग टेंट में हैं, उनमें से अगर कोई बुजुर्ग हो तो ठीक है। उनको डॉर्मेटरी में जाने दीजिए, बाकी आप यहीं रहिए | अगर आपका शरीर आपको सताता है तो उसको ठिकाने लगाईये। | ये लगता है, कि ये लोग इतने दूर से आये हैं बिचारे ये सारा उसको समझाना होगा। कोई आपको मैं हिमालय पे जाने के लिए नहीं कह रही हूँ कि ठंडी हवा में जा कर के आप वहाँ नंगे बदन, आप एक पाँव पर खड़े होईये, इतनी बात नहीं। लेकिन शरीर के चोचले चलाना बेकार के, सहजयोग में नहीं हो सकता और नहीं होने चाहिए। ऐसी कोई आफ़त नहीं। आप कहीं और जगह जाईये, शत्नोदेवी जाईये, कोई जगह जाईये चढ़ना पड़ता है आपको। सात-सात मील, उसके लिए ठीक है। शरीर को थोड़ासा श्रम देने से कोई आफ़त नहीं आने वाली। और कोई बड़ी भारी श्रम की बात भी नहीं है। अच्छी ठण्डी हवा चल रही है। चले आये टहलते टहलते। और इतनी ज़्यादा तैयारी करने की, इतने सजने - धजने की कोई ज़रूरत नहीं है । आज कोई पूजा नहीं है, कुछ नहीं है, समझ में नहीं आता। वो कह रहे हैं कि कोई भी आदमी टाइम से नहीं आता है। खड़े हैं बस वाले वहाँ। एक भी अभी चढ़ नहीं रहा। ये तो गलत बात है। सामूहिकता कम है, इसलिए ऐसा होता है। अब आपके लिए आपने कहा कि हम एक तारीख को आना चाहते हैं। तो आईये सर आँखों पर आईये। पर इसका मतलब नहीं है कि आप मेहमान होकर आयें। एक तारीख को आये हैं तो व्यवस्था आप करिये। देखिये, क्या हो रहा है? क्या नहीं? आप क्या मदद कर सकते हैं? आप लोगों से कहीं कहीं अधिक इन लोगों ने रुपया दिया हुआ है। और इस बार आठ लाख करीब पैसा बच जाएगा। हर साल इन्ही के पैसे से हम लोगों को फायदे हुए हैं। ये मैं नहीं कहती कि पैसा ही सब कुछ है। पर ये मेहमान हैं। कल अगर आप इनके देश में जाएंगे तो ये कभी ऐसा नहीं करेंगे। आपकी व्यवस्था पहले करेंगे। सब लोग घुस के चले आयें। कल सबेरे, आप लोग सब सबेरे उठ के और आठ बजे तक ध्यान में जायें। ८ से ९ बजे तक ध्यान होने के बाद नौ बजे आपको वहाँ पर नाश्ता मिलेगा। अब ये नहीं कि एक बैठे है, दो नहीं बैठे हैं। जिसको नौ बजे वहाँ नहीं आयेगा, उसको नाश्ता नहीं मिलेगा । यहाँ से नाश्ता वहाँ चला जाएगा। उसके बाद दस बजे तक आप लोग यहाँ तशरीफ़ ले आये। नौ से दस तक आपको टाइम है, आप | तब तक नाश्ता कर ले। सब कुछ कर के आप दस बजे वहाँ से चल दे। आपके लिए एक बस हैं। वही बस आयेगी। उससे आप यहाँ पहुँच जाईये। फिर वो बस हम वापस कर देंगे, फिर उससे आप यहाँ आईये। इस तरह से एक ही बस से आप आईये और जाईये। छ: बस का पैसा हम लोग नहीं दे सकते। 20 उसमें भी और बात है। ग्यारह घण्टे से ज्यादा अगर किसी ड्राइवर पे काम पड़ा तो उसका डबल पैसा देना पड़ता है। यहाँ पर प्रोग्राम कल से ग्यारह बजे शुरू होगा। ग्यारह बजे सब लोग पहुँच जायें। ग्यारह बजे से एक बजे तक यहाँ प्रोग्राम होगा। उसमें जो भी हम करे, भाषण दे, जो भी करे, करें। कल से ठीक से प्रोग्राम शुरू हो जाएगा। और उसके बाद आपको जरूरत नहीं कि आप जायें । यहीं आप खाना खाईये। और चाहे तो यहीं लेट जाईये । चाय वाय पी के आप चले जाईये। चाय पी कर आप जाईये वहाँ। तैयार हो जाईये शाम के वक्त में और उसके बाद आप वहाँ से, करीबन छ: बजे के करीब, आप चल दीजिए । छ: -साढ़े छ:। तो यहाँ पर आपका प्रोग्राम छ: बजे से शुरू होगा। छः, सात, आठ बजे तक और उसके बाद में नौ बजे तक, साढ़े नौ बजे तक चाहे दस बजे तक आपका खाना-पीना हो के दो घण्टे का म्युझिक प्रोग्राम होगा। इस तरह की व्यवस्था है। इस प्रकार काम हो सकता है। ज्यादा से ज्यादा यहाँ से वहाँ चल के जाने में आधा घण्टा लगेगा लेकिन अब हम लोगों को कुर्सियों की आदत हो गयी, हम चल ही नहीं सकते इतना। बहरहाल मैं नहीं कह रही हैूँ आप चलिये। पर कम से कम ये तो समझ लीजिये की आप हर एक बस में बैठ जाये, तो मेरी तो हालत खराब हो जायेगी । पिछली मर्तबा यही सब कर के बड़े आफ़त में डाल दिया मुझे। गाडी का नंबर है ७९६५, ड्राइवरसाब का नाम है, मि.पाटील। (ड्राइवर को-तुम्ही आपल्या गाडीत इंडियन्सना घेऊन यायचं, इंडियन्सना आणायचं. त्यांच्या दोन किंवा तीन ट्रीप करायच्या जास्त नाही आणि तुमच्याच गाडीमध्ये इथून ब्रेकफास्ट जाईल. ब्रेकफास्ट झाल्यानंतर तिथेच रहा तुम्ही फक्त इंडियन्सना आणायचं. बरं का ! आणि बाकीच्या ड्रायव्हर्सना सांगायचं एकाही इंडियनला घ्यायचंच नाही गाडीमध्ये. कळलं का? जास्त पैसे द्यावे लागतील आम्हाला.) अब हमें नाराज नहीं करना चाहिए। प्रसन्न करना चाहिए देवी को। प्रसन्न रखना चाहिए और प्रसन्नता होती है मनुष्य में जब तपस्विता आती है। आरामदेह लोग सहजयोग नहीं कर सकते। झगड़ा कर सकते हैं, ऑग्ग्युमेंट कर सकते हैं, बकवास कर सकते हैं, सब तरह की लांछनास्पद बाते कर सकते हैं। लेकिन आरामदेह लोग जो होते हैं सहजयोग नहीं कर सकते। आप लोगों को यहाँ आने के बाद यहीं रहना चाहिए। खाना खाने के बाद यहीं लेट जाईये। चाय पीना हो तो, क्योंकि अब चाय ले कर कौन भागेगा? तो ये कह रहे हैं कि यहाँ खाना खा के एक बस है वो आपको ले जायेगी, वही बस दूसरी पार्टी को ले जायेगी। और उसी के साथ वो चाय भी भेज देंगे। फिर आप वहाँ चाय पी लीजिये। और चाय पीने के बाद उसी बस से आप लोग आईये। और मेरी ताकीद है कि कोई भी | इन्सान जो कि हिन्दुस्थानी है, उसको कायदे से एक ही बस में आना चाहिए। नहीं तो ये लोग कल रिपोर्ट करेंगे और बहुत रुपया देना पड़ेगा। ये भी तो आप ही के बस वाले हैं। और आप ही की सरकार हैं और आप ही का खर्चा है। इतना बड़ा बड़ा खर्चा मुझे बता देते हैं मैं क्या करूँ? समझ गये। अब मेहेरबानी करिये, अपने मन से किसी भी बस में बैठने का आपको अधिकार नहीं है । सिर्फ एक बस आपके लिए तय कर ली। उसी का पैसा हम दे देंगे। आपको नहीं देना है तो मत दो। एक बस, समझे ना आप। इनसे कोई एक रुपया लेने की जरूरत नहीं। बेकार है। वो हिसाब हम कर लेंगे। लेकिन जो लोग बस में नहीं आयें वो वहीं रह जाए। वो दुसरे की बस में नहीं आयें, मेहेरबानी करें। एक भी आदमी अगर दूसरे बस में बैठेगा, उसका मुझे बहुत कुछ देना पड़ता है। इसलिए आप मेरे उपर मेहेरबानी करें। पिछली मर्तबे भी ऐसा हुआ था, इस मर्तबा भी ऐसा हो रहा है। 21 जो बुजुर्ग लोग हैं उनको चाहिए कि वो डॉर्मेटरी में शिफ्ट हो जाए, जहाँ भी जाना है और जो लोग आ रहे हैं वो भी डॉर्मेटरी में रहेंगे। वहाँ पर एक बस रहेगी आपके लिए। उससे आप आईये, जाईये, एक बस काफ़ी है। दिल्ली में भी लाइन से खड़े रहते हैं घंटो। यहाँ पर क्या नवाब साहबी आ गयी क्या? अच्छा, अब जो भी हो, आज अच्छी शुरुआत नहीं हुई। मुझे बहुत दुःख हो रहा है। बिचारे चार घंटे से वहाँ लटक के खड़े हो गये है। किसी को आपने आने नहीं दिया, और न यहाँ ला कर बस छोड दी। बड़े दुःख की बात है। इसलिए आप मन में अब माफी माँगे। और कहिए कि, 'अगले वख्त से ऐसा काम नहीं करेंगे माँ, ये बड़ी गलत बात हो गयी और इससे बड़ा दुःख होता है।' अब अगले प्रोग्राम मैं आपको बताती हैँ। जिसको आप सुन लीजिए। अगले प्रोग्राम में, हम लोगों का प्रोग्राम जो है वो इसी प्रकार होगा जैसे मैंने कहा। सबेरे उठ के मेडिटेशन होगा, फिर आप यहाँ ग्यारह बजे तक आ जाईये । नाश्ता कर के आप यहाँ पहुँच जाईये और खाना होने तक आप यहाँ रहिये। उसके बाद जाईये, आप आराम करिये, उसके बाद चाय पीजिए और चाय पी कर के और आप फिर से शाम को यहाँ पर आते वक्त याद रखिये की यहाँ छ: बजे तक पहुँच जाना है। तो वहाँ बस आयेगी। पहले बस से छ: बजे आ जाना, फिर दूसरे बस से आ जाना। फिर हम लोग छ:-साढ़े छ: से यहाँ प्रोग्राम में यहाँ शुरू करें। वैसे टाइम ज़्यादा नहीं लगता है। सिर्फ बात ये है कि उसकी परवाह नहीं है आपको । उनकी परवाह करनी चाहिए। पूछना चाहिए, आपने चाय पानी लिया या नहीं लिया। और कल से इसी तरह प्रोग्राम होगा। कल तीन तारीख को और भी लोग आ रहे हैं और तीन तारीख को जिन लोगों को शिफ्ट करना है उनको शिफ्ट कर दिया जाएगा। और आप लोगों के भी जो तंबू है वो यहाँ ला के लगा दिये जाएंगे| इसलिए बेहतर होगा कि आप लोग कल यहाँ पर चाय के बाद, नाश्ते के बाद वहीं रहें। क्योंकि आपके तंबू वहाँ से हटने वाले हैं और आपका जो सामान है, जैसे ये लोग आये परदेसी, तो ये सब सामान अपने हाथ में उठा के ले आये। आप लोगों के लिए टेंपो लाना पड़ा। क्योंकि आप लोग तो हाथ में कभी सामान उठाते नहीं। आज तक तो कभी किया ही नहीं। कुली थोडे ही है। सब हमारे यहाँ तो प्राइम मिनिस्टर है। तो उसके लिए भी आप लोग वो एक जो बस है, बस में आप सामान डाल के इधर ले आयें। यहाँ पर तंबू गाड़ दिये जाएंगी| तंबू कल उघाड़ दिये जाएंगे सबेरे । जब आप मेडिटेशन में जाएंगे उससे पहले तंबू उखाड़ कर के इधर लगा दिये जाएंगे , जिससे आपको बाथरूम की भी सहलियत हो जाएगी। और सारा इंतजाम हो जाएगा। तो यहाँ से खाना खाने के बाद यहाँ से जा कर के वहाँ रहिये। आपका जो सामान है, वो सामान जो है उसको आप को पहुँचाना होगा उन तंबुओं में खाना खाने को जाने से पहले। सो, कल सबेरे के प्रोग्राम में आप लोग एक ही प्रोग्राम करें कि अपनी व्यवस्था वहाँ से हटा कर के तंबुओं में करें। सो, कल सबेरे उठते ही आप लोगों का एक काम होगा की ये लोग जो भी चाहे करें, क्योंकि वो वहीं स्थित हैं, अपना सब सामान बाँध लें, सब ठीक- ठाक कर लें और तैयारी में रहें। कल तंबू गिराये जाएंगे और तंबू इधर डाल दिये जाएंगे|। और इस जगह आपका इंतजाम हो जाएगा , जहाँ बाथरूम्स बहुत सारे हैं, आप को परेशानी नहीं होगी। सिर्फ आपको अपना सामान उठा के इधर लाना है। वो आप उठा सकते हैं कि नहीं उठा सकते। अच्छा हाथ उठाओ, जो जो उठा सकते हैं। बस दो ही आदमी, और कोई नहीं। औरतें क्या नहीं उठायेंगी । चलो उठा के लाओ। कोई इंतजाम ही नहीं ना यहाँ पे| सामान उठाने का कोई इंतजाम ही नहीं है, तो क्या किया जाए ? तो एक टेंपो आ जायेगा। जो लोग बिल्कुल ही नहीं उठा सकेंगे उनके लिए एक टेंपो आ जाएगा। ऐसे ही फॉरेनर्स भी आपकी मदद कर देंगे। (फारेनर्स को बिनती) 22 स२ व पा ा उ क ४ ु (२ - 3-5 A ও) उ्हर ট দেনন ততত্ তইতাহর हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम बड़े ही सूक्ष्म और बड़े ही मजबूत धागे से बन्धे हुए हैं और आपसी प्रेम इससे बढ़कर आनन्द की कोई चीज़ है ही नहीं। (प.पू.श्रीमाताजी, कलकत्ता, ०९/०४/१९९०) प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.१०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११ ०३८. फोन : ०२०-२५२८६५३७, ६५२२६०३१, ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in, website : www.nitl.co.in भारतवर्ष में ही सारे विश्व की कुण्डलिनी बैठी हुई है और भारत वर्ष हमारा ठीक हो जाए तो सार संसार ही ठीक हो जाए। और उसका सहस्रार भी यहीं बैठा हुआ है और इसलिए मुझे हजारों हिन्दुस्तानी ऐसे चाहिए जो आत्मसाक्षात्कार दे पायें। प.पू.श्रीमाताजी, २५/११/१९७३ ० ই 4ট त का M० ९ हे नि ---------------------- 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-0.txt चैतन्य लहवी जनवरी-फरवरी २०१५ हिन्दी ह२] काल र0 0 ाब 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-1.txt इस अंक में शिवजी के ऊपर सारा संसार निर्भर है ...4 चराचर की सृष्टि एक सूक्ष्म शक्ति है ...12 सहजयोगियों को उपदेश ...18 हम अपने गुरु को सग२ के २०प में मानते हैं। सग२ हमारे पिता हैं। विश्व द्वारा डाली गई गन्दगी को अपने अन्ढ२ डूबौकर बाढलों के २ूप में जब समुद्र आकाश में उठती है तौ यह अत्यन्त शुद्ध एवं सुन्द२ बन जाता है। पं.पू.श्री मातीजी, देवी पूजा, धर्मशाला, २६ मार्च १९८५ 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-3.txt शिवजी के ऊपर र है संस २ निर्भ सारा अ ০ शिब एक देवी है, अबतरण है। अबतरण हम समझ़ते ही नहीं र. चौज क्या है? ठसका लोहा ही दूसवा होता इसकी ब्यवस्था है। 9 र दूकवी होवी है। ं 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-4.txt दिल्ली, १६/२/१९७७ महाशिवरात्री के दिन हम लोग सब साथ शिव की स्तुति गा रहे हैं। शिव याने ...... इन्ही से सृष्टि शुरू हुई है और इन्हीं में खत्म हुई है। सबसे पहले अगर आप ब्रह्म को समझे तो ब्रह्म से शक्ति और शिव। जैसे कि एक सेल के अन्दर उसका न्युक्लिअस होता है, इसी तरह शिव और शक्ति सब से पहले ब्रह्म में स्थापित होती है । सृष्टि घटित हुई, की किस प्रकार ये घटना घटित हुई? किस प्रकार ब्रह्म शिव और शक्ति के रूप में प्रगट हुए हैं, ये सारी बातें मैं आपको शनिवार और रविर में बताऊंगी। लेकिन शिव से निकलती हुई शक्ति जब एक पॅराबोली में घूमती हैं, जब एक प्रदक्षिणा लेती हैं, तो एक - एक विश्व तैयार होते हैं। ऐसी अनेक प्रदक्षिणायें हैं, शक्ति की होती हैं। इसके बारे में भी मैं आपको बाद में बताऊंगी। अनेक विश्व तैयार होते रहे। अनेक भुवन तैयार होते रहे और मिटते भी रहे । शिव से शक्ति हट कर के विश्व बनाती है। शिव साक्षी स्वरूप हैं। ये खेल देखते रहते हैं शक्ति का। शक्ति का अगर खेल | इनकी समझ में ना आये तो वो जब चाहे तब अपनी शक्ति अपने अन्दर खींच लेते हैं। सारा ही खेल बंद हो जाता है। वो ही द्रष्टा हैं। वो ही देखने वाले है। वो ही इस खेल के आनन्द को उठाने वाले हैं। उन्हीं के कारण सारा खेल है। इसलिए अगर वो न रहे तो सारा खेल खत्म हो जाता है। वो स्थिति है। इन्ही के कारण एक्झिस्टन्स होता है। के हृदय के कारण ही वो जीवित माना जाता है। जिस वक्त उसका हृदय बंद हो जाता है, तो उसे मृत माना मनुष्य जाता है। जब शिव अपनी आँखे बंद कर लेते हैं तो उसे संहारक कहा जाता है। यही स्थित होते हैं और वही लय हो जाते हैं क्योंकि वो स्थित हो सकते हैं। इस कुंडलिनी शास्त्र में शिव का स्थान आज मैंने बताया था, हृदय में मनुष्य के अन्दर एक दीप-ज्योति की तरह हर समय जलते रहता है। इसके कारण हमारे अन्दर सत्, असत्, विवेक बुद्धि जागृत है, जो हमें मना करती रहती है कि ये गलत है, ये अधर्म है, ये बुरी बात है। ये कपट है, ये लोभ है, ये मद है, ये मत्सर है, ये अधर्म है, ये मनुष्य की प्रतिष्ठा से जुड़ा हुआ काम है। ये शोभनीय नहीं है। लेकिन मनुष्य से जो स्वतंत्र रहा है इसे वो पूरी तरह से ....लाता है (अस्पष्ट) और शिव की अवहेलना करता है। शिव, संसार का गरल पी लेते हैं। जितना भी विष हमारे हृदय में बसा है, दूसरों के प्रति घृणा, हिंसा आदि अत्यंत बूरे विचारों को जो हमारा हृदय विषैल हो जाता है, उसको शिव हमारे अन्दर जब जागृत होते हैं, इसे पी लेते हैं। शिव का खाद्य ही, उनका पीना ही, गरल है। जो कुछ भी नशैली चीजें हैं, मद्य आदि, जो चेतना के विरोध में उत्थान पहुँचाती है, उन्हें शिव प्राशन कर लेते हैं । संसार का जितना भी इस प्रकार का विष है इसे वे ग्रहण कर लेते हैं अपने अन्दर। इसलिए उनको महाशिवरात्रि के दिन हम लोग प्रतीक रूप में भंग आदि नशैली चीज़़ें अर्पित करते हैं। इसका ये लगा लेता है, कि अगर शिव भंग पीते है तो हम भी पिएंगे, अगर शिव शराब पीते हैं, तो हम भी अर्थ मनुष्य शराब पिएंगे। आप क्या शिवजी हैं? इनके पॉँव के जूते बराबर भी आप हैं? जिन्होंने संसार का सारा गरल पी 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-5.txt लिया, वो भी पीने वाले कोई चाहिए! देवी सारे भूतों को खा जाती है । रक्तबीज का जो रक्त संसार में बिखरा था , उसके एक-एक बूँद को देवी चाट गयी। क्या आप लोग इसे चाट सकते हैं? आप लोगों का इनसे मुकाबला है, जो आप शिव भंग पीने निकले । शिव चाहे दुनियाभर की भंग पी ले , उनपे चढ़ती ही नहीं। आप लोगों का ये हाल है? शिव एक दैवी है, अवतरण है। अवतरण हम समझते ही नहीं चीज़ क्या है? उसका लोहा ही होता है। दूसरा इसकी व्यवस्था दूसरी होती है। क्या आप इस तरह से (अस्पष्ट)...... हुए हैं? क्या आप उस कार्य के लिए बने हुए हैं कि दुनियाभर का आप जहर पी ले। बहुत से लोग ये कहते हैं, कि माँ, हमारे लिए तो शराब चढ़ती ही नहीं है । इससे बढ़कर और कोई भी झूठ नहीं हो सकता। इस बड़े बड़े गुरु भी, जैसे साईनाथ, शिर्डी के, वो भी एक अवतरण थे। ये चिलीम पिते हैं। तो अब सब लोग चिलीम पीने लग गये। क्या आप साईनाथ हैं? ये तो इसलिये पीते हैं कि आपके हाथ कोई चिलीम ही न लगे। सबकी चिलीम ही पी डालें एकदम। सबकी चिलीमे पचने के लिए वो पीते थे। क्या आप लोगों में इतनी शक्ति है कि आप चिलीम पी सकते हैं? उनको कैन्सर नहीं हो सकता था। शिव के भक्त जो हैं उन्हें शराब छूना भी नहीं चाहिए । उसके पास भी नहीं जाना चाहिए । उससे दूर भागना चाहिए। बजाए इसके जितने भी तांत्रिक हैं वो पाँच मकान ले के बैठे हुए है। वो क्या करते हैं? अपने को शाक्त कहलाते हैं। शक्ति के पुजारी कहलाते हैं, शिव के पुजारी कहलाते हैं और इस कदर व्यभिचार। शिव और व्यभिचार, जो संपूर्ण ब्रह्मस्वरूप हैं, इनका नाम ले कर के इतना महापाप करना? अपनी दुर्गति की पूर्ण व्यवस्था करना? एक माँ के नाते मैं आपसे बताती हैूँ कि इस तरह की गलतफ़हमी में कभी मत रहना। तंत्र का तरीका जो है बिल्कुल शैतानी तरीका है। आज महाशिवरात्रि के रोज मैं चाहती हूँ कि इसके बारे में जरूर बताऊं। तंत्र की व्यवस्था ये होती है कि जो चीज़ज़ परमेश्वर को पसंद नहीं हैं, जो चीज़़ देवी को पसंद नहीं है वो नहीं करें । देवी के सामने ही गलत- गलत काम करना शुरू है। व्यभिचार, सब तरह की विकृत बातें , जिसे देवी देख कर के घृणा आती हैं। इन्होंने तो देवी हमसे उत्पात करती हैं, उठते हैं, नाचते हैं, चिल्लाते हैं, चीखती हैं, गर्मियाँ होती हैं, कोडी निकलती हैं बदन पे, इसको कुण्डलिनी जागृति भी बहुत से कहते हैं। मेरे पास ऐसे बहुत से लोग आरयें, वो कहते हैं कि, हमारे अन्दर ऐसे लग रहा है कि हवा रोग का है । हमारी कुण्डलिनी जागृत है। और भी ऐसे आते हैं, जो बताते हैं कि यहाँ से ले कर, यहाँ तक सब हमारे अन्दर बड़े बड़े (अस्पष्ट)आये। यहाँ, उस साइन्स इन्स्टिट्यूट में एक डॉक्टर हैं, वो मेरे पास आये थे, बता रहे थे कि उनकी कुण्डलिनी किसी ने जागृत की और उनके बदन में हजारों बिच्छूं को काट लिया और बेचारे कूदते हुए खड़े रहे मेरे पास, 'माँ, मुझे बचाओ, मुझे बचाओ!' क्योंकि उनकी कुण्डलिनी, एक मिनट के अन्दर उनकी कुण्डलिनी मैंने साफ की। कुण्डलिनी नहीं, श्रीगणेश, शिवजी के पुत्र है, वो शक्ति के पुत्र है। जिस इन्सान ने उनकी कुण्डलिनी जागृत की थी उसका वो नाम उन्होंने मुझे बताया, वो किसी को बताते ही नहीं है डर के मारे। कुण्डलिनी के नाम से घबराते हैं 6. 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-6.txt ार बेचारे । ये उनकी हालत कर दी और उनको कहा कि तुम्हारी कुण्डलिनी जागृत हो गयी। सारे बदन में, ऐसा समझ लीजिए कि जैसे सब हात-पैर जल गये। एक मिनट के अन्दर कुण्डलिनी शांत हो गयी। ऐसे तांत्रिकों से बहुत बच के रहने की जरूरत है। देवियों के सामने जा कर, जुराहों में आप जा के देखिए, इन तांत्रिकों ने क्या कर के रखा है। शंकराचार्य के बाद में तो इन्होंने तो एक नया ही जंग खड़ा किया। जैसे ही देवी की बात इन्होंने कहीं तो उन्होंने कहा, हाँ, अब माँ का राज्य आने वाला है, चलो। उस वख्त के राजा लोग बहुत गिरे हुए हैं। बहुत बूरे नज़र से हैं। इतने दुष्ट लोग उस वख्त राज्य करते थे। पूरा पट्टा के पट्टा, यहाँ से बंगाल तक, और उनके जो मंत्री लोग थे, जैन थे, जैन। जैन लोगों में खाने के मामले में तो पट्टे बाँध के है मुँह पर। औरत के मामले में कोई झगड़ा नहीं। मुँह में प्टे बाँध के घूमते हैं। सोचते हैं हो गया उनका। नाम को नाम धरते हैं। हालांकि महावीर बहुत ऊँचे थे। जैसे हमने सब का एक ठिकाना किया है, वैसे ही जैनियों ने महावीर का भी ठिकाना कर दिया। इन्होंने ये प्रथा चलायी, कि छोटे- छोटे लड़की-लड़कियों को भी वो आश्रमों में भेजते थे। इस कदर अनैतिकता बढ़ गयी| जबरदस्ती की बात। यहाँ तक कि ब्राह्मणों ने भी ये बात उठायी, विवाह के पश्चात भी मनुष्य को बिल्कुल संयमित रहना चाहिए और ब्रह्मचर्य में रहना चाहिए। बिल्कुल अननॅचरल सी बातें । उसके स्वभाव से खजुराहो जैसी गंदी चीज़ें तैयार की हालांकि खजुराहो में, मैं कहँगी, कलाकारों ने कमाल कर दिया। जहाँ जहाँ उन्होंने मूर्तियाँ बनायी, वहाँ देवी-देवताओं के लिए मूर्तियाँ काफ़ी बड़ी बन गयी है। वैसे उनको पाने की बहुत जरूरत होती है। छ: चक्र चलते रहते हैं तो पाने के उपर तो चाहिए, नहीं तो चलेगा ही नहीं । बाकी ये छोटी-छोटी, लम्बी-लम्बी, पतली - पतली कर के इन्होंने राजा को खुश करने के लिए । लेकिन वो कोणार्क का वो ढाँचा था वो उस कदर था। अब वहीं पर आप देखिए, पास ही में, ऐसे भी मंदिर हैं जो करिए, जा कर के असंतोष में, मदिरा पीते हैं, शराब पीते हैं और व्यभिचार करते हैं। जब वहाँ से देवी का चित्त हट जाता है, यहाँ तक हमारा फोटोग्राफ से हम बताते हैं आपको कि अभी तो आपको वाइब्रेशन्स आएंगे , अगर आप देखे तो । लेकिन इसके सामने व्यभिचार होना शुरू हो गया तो इससे, फोटोग्राफ से हम गायब। आपको कोई वाइब्रेशन्स नहीं आने वाले। चित्त ही हट गया। वैसी जगह शिवजी बैठते हैं, खा - पी के और तड़ाखे भी भर देते हैं। भैरवनाथ वहाँ जमे। उनके तड़ाखे के बगैर लोग ठीक नहीं हो सकते। पहले खूब तड़ाखे खाते हैं। बड़ी हालत खराब होती है उनकी। तो भी वो बेशरम जैसे लगे रहते हैं। उसके पश्चात, बीमार पड़ते हैं, उल्टियाँ होती हैं, खून गिरता है सब होता है। बदन में आग हो जाती है तो भी जमे रहते हैं । फिर शिवजी वहाँ से लुप्त हो जाते हैं। फिर अपना वहाँ अड्डा जमाया। सरल, भांग घोल कर के, अगर वहाँ मैफिल बैठती हैं, रात को व्यभिचार होते हैं और उसके बाद वो स्पिरिच्युअल आ जाते हैं। और उस स्पिरीट को हाथ में ले कर के इसी से सब ये जो धंधे, जो मैंने कल आपको बताये थे किये जाते हैं। शिवजी के भोलेपन की ये हद है। इतना इनोसन्स था वो कि जब रावण ने उनसे कहा कि, तुम मुझे अपनी शक्ति ही दे दो। तो उन्होंने दे दी। इतना भोलापन, निष्पाप, जिनको की पाप ही क्या है नहीं मालूम। पाप को भी खा जाए सब कुछ, लाओ, जो कुछ खाना है खा लो। जैसे गंगा में सारे पाप धुलते हैं कहते हैं। तो आप समझ सकते हैं कि गंगा में 7 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-7.txt इसलिए पाप धुलते हैं कि शिवजी के जटा से उतर आयीं| उनके जटा से छूने से ही इतने पाप धूलते हैं, जो स्वयं साक्षात होंगे तो क्या होंगे बताईये! जिनका साक्षात् करने से ही सारे जिसके पाप धुल जाए, जिनको याद करने से ही सबके जो भवसागर के जितने भी लगे हुए पशु-पक्षी के तरह से चिपके हुए गंद, मैल आदि जीवित और निर्जीव जो कुछ भी हो, सारी बाधायें जिसकी खत्म हो जाती हैं। ऐसे शिवजी के लिए लोग ये कहते हैं कि व्यभिचार ये शिवजी थे। ऐसे संसार में क्या बात की जाए? ये तांत्रिक शिवजी के दुष्मन है। नर्क में मरेंगे , कीड़े के मौत। हजारों वर्षों तक ये नर्क में रहे। लेकिन जो लोग इनकी बातों में फँसते हैं, और उनके चक्करों में घूमते हैं, भूत-प्रेतादि को इस्तेमाल करते हैं, दूसरों का नाश करते हैं, ये भी उनके पीछे ही जाने वाले। शिवजी के इस महापर्व में सहजयोगी जितने भी है निश्चय करें कि, 'हमारा हृदय अत्यंत स्वच्छ है, सज्जनता। हम अपने को देखें और शरमाये कि क्या हम इतने दुर्जन हैं कि इस तरह की बातें सोचें। अपने हृदय को देखें और पूछे कि, क्या हम इतने कपटी और बुरे लोग हैं, कि हम इस तरह की बातें सोचते ?' शिवजी को जागृत रखने के लिए मनुष्य को अत्यंत सरल हृदय होना चाहिए। शिवजी भोले थे , ऐसे आदमी बड़े भोले होते हैं और लोग कहते हैं कि ऐसे ठगे जाते हैं। सारी दुनिया ने भी ठग लिया तो कुछ नहीं गया। आपके ठगने से सभी चला जाता है। आप किसी को मत ठगिये। इसमें कोई बड़ी भारी बहादरी नहीं है कि आप बेवकूफ़ी करें। आपने अगर किसी को एक मर्तबा ठगा वो माफ नहीं होता। आपको कोई हजार बार ठग ले, जो आदमी वो होता है उसको कोई ठग ही नहीं सकता। ये तो मन के भाव हैं कि इसने उसको ठग लिया। उसने उसको ठग लिया। आप ठग कर के क्या इकठ्ठा करते हैं? धन, ठगा हुआ धन। दूसरे को ठगा हुआ धन। कितना नुकसानदेह होता है आपको पता नहीं। अभी राहरी में एक सज्जन मेरे पास आयें। और मुझसे कहने लगे कि, 'हमारे पुरखों का कुछ पैसा जमीन में गड़ा हुआ है माँ। और हमें मालूम है वो गड़ा है। तीन पुश्त पहले किसी ने वो निकालने की कोशिश की उसी दिन उस घर में तीन मृत्यु हो गये। उसके दुसरे पुश्त ने शुरू किया उसके बाद उसकी भी मृत्यु हो गयी। फिर चौथी मर्तबा ऐसा हो गया। अब हम हैं, अब हम क्या करें?' मैंने कहा, 'भूल जाओ उस धन को। बिल्कुल भूल जा। उसे खत्म होने दो। किसी को मार के, किसी को बच्चे भूखे रख के, किसी के आत्मा को तड़पा के आप ये पैसा ले कर के आये हैं। उनकी आत्मायें जो तड़पती है वो उनमें प्रचंड शक्ति है । वो आपके बच्चों के बच्चों तक खा जाएगी। ये शिवजी का काम है। शिवजी भोले बहुत है, लेकिन उनका गुस्सा आप जानते नहीं। उनका गुस्सा भयंकर है। और उनके गले में जो नाग रहता है वो सब समझता है। जो कोई भी इस तरह से किसी की आत्मा को दु:खी करेगा, उस आत्मा में शिवजी का स्थान है। उस आदमी का पुश्त न नुश्त हाल ये है। मैं झूठ नहीं बोल रही हूँ। आप कह रहे हो माताजी, आप ऐसी ही बातें करती हैं। हैदराबाद में एक सज्जन के घर, वो मुझे कहने लगे, चलिये। बहुत रईस आदमी है, बहुत ये है। रईस हो तो मुझे कोई मतलब नहीं। मैं अपनी गरीब हँ, अपनी गरिबी में ही ठीक हूँ। बहुत पीछे पड़े, चलिए माताजी। उन्होंने बड़ा 8 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-8.txt बुलाया। जैसे ही मैंने उनके घर में कदम रखा तो एक तरफ हो गयी। कहने लगे 'क्या बात है?' मैंने कहा, 'इस घर पे शाप है बहुत बड़ा।' 'ये आपको कैसे मालूम ?' मैंने कहा, 'है या नहीं सच-सच बोलो तुम? मैं अन्दर नहीं आने वाली। सच बोलो तुम।' कहने लगे, 'हाँ।' उस घर के दो जवान बच्चे हमेशा के ऐसे ही कुर्सी पर बैठे हुए हैं, दोनो पैर-हाथ लिए। खाते भी ऐसे ही, सोते भी ऐसे है। कहने लगे, 'माताजी, इनको ठीक करिये आप।' मैंने कहा, 'मुझे क्षमा करिये, में जा रही हूँ।' मैं बाहर निकल गयी। मैंने कहा, 'आप भी तो वही काम कर रहे हो, जो तुम्हारे पुरखों ने किया है।' कहने लगे, 'हमारे खानदान में हमेशा दो बच्चे ऐसे ही होते हैं। 'तो भी आपको ये बात नहीं समझती?' 'और इस पुश्त में तो ये दो बच्चे हैं, तिसरा है ही नहीं । इस खानदान का क्या होगा?' मैंने कहा, 'खानदान ले के बैठो, पैसा ले के बैठो, उसको चाटो आप! और खाओ और इनको चिपकाओ चारों तरफ। और इतना भी नहीं हुआ तो प्रोसेशन निकालो ।' किसी की आत्मा को कोसे, विशेषत: किसी गरीब को कोसे, उसकी आत्मा से आह लेना आपको पता होना चाहिए, जीने का राज ! सब कुछ चल रहा है। आपको दिखने में लगता है, अपनी कुडती ले आये, उसके घर का सारा सामान लूट के चले आये। घर में बहू आयी है। उसको सता रहे ही सास, उसमें बड़ा मज़ा आता है। उसको छल रही है। मेरे को इतना मेरे सास ने छला, तो मैं भी उसको छलूंगी। आहें मत लो, किसी गरीब की आहें मत लो। किसी के हृदय की आह मत लो। कभी भी मत लेना। शिवजी वहाँ बसते हैं, जान गये और जितना आदमी भोला होगा, उतना ही वहाँ शिवजी का राज जादा होगा। किसी भी भोले आदमी का फायदा मत उठाना। भोले आदमी के सामने हमेशा नत होना चाहिए क्योंकि शिवजी वहाँ जाग रहे हैं, तभी वो भोला है। आदमी तभी भोला होता है, जब उसके अन्दर शिवजी बसते हैं। भोले आदमी को लोग बहुत त्रस्त करते हैं। उसको छलते हैं। जिनको खास कर बहुत पैसे का समझ है, एक-एक, दो-दो पैसा जो जोड़ते बैठते हैं। जो भोले आदमी को उल्लू बना कर फिरते हैं। पैसा तो कभी मिल भी जाएगा। लेकिन शिवजी के श्राप से आप अभिमत नहीं हैं। आप कहेंगे कि, 'माँ, आप यूँही मुझे डरा रही हो।' मैं बिल्कुल भी नहीं डरा रही हूँ। मैं सजग करा रही हूँ। शिवजी के कार्य जो हैं, बहत गहन और बड़े ही दिनों तक चलने वाले हैं क्योंकि अंत तो शिवजी ही और सब लय जब होगा तभी शिवजी ही हैं। आज महाशिवरात्रि के दिन सब को यही निश्चय करना है, कि हम किसी भी प्रकार, किसी की आह न लें। किसी के साथ हम ज़्यादती नहीं करेंगे, किसी भी चीज़ की। कोई गरीब है, कोई मजदूर है, कोई हमारे नीचे है, कोई हमारा आश्रित है, जो भी रहें वहाँ शिवजी का राज है। उनमें सज्जनता है। नौकर है घर का, उसको खाने को नहीं देंगे, उसको भूखो मारेंगे। उसका पैसा मार लेंगे। इस में शिवजी का कोप आप पे आयेगा। मैं आपसे सच सच बता रही हूँ इसमें से एक अक्षर, एक बूंद भी झूठा नहीं है। आप चाहे वाइब्रेशन्स से जाने। इतने सहजयोगी है । कितने जोर से वाइब्रेशन्स देते हैं, अगर मैं एक भी अक्षर झूठ बोल रही हूँ तो आपके वाइब्रेशन्स देखें । किसी के साथ ज़्यादती करना शिवजी के सामने गुनहगार होना है। सज्जनता, सौजन्य, नम्रता, झुकना शिव है। कोई बात नहीं, अरे उनके साथ भैरवनाथ खड़े हुए हैं। एक सोटा लगायेंगे तो ठीक हो जाओगे तुम। भैरवनाथ तुम । 9. 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-9.txt के चक्कर को तुम समझे नहीं। उनको एक पैसा नहीं माँगती हूँ। चारों तरफ चलता है उनका जोर। और वो इस तरह से मारते हैं, कि पुश्त न पुश्त चलता रहेगा। पुश्त न पुश्त। इनमें हनुमान जी जरा हल्के हैं मारने में, थोडा बहुत ठीक है। भैरवनाथ जी के बीच में न जाना। इसलिए अपने से जो नीचे है, अपने से जो दलित है, अपने से जो आश्रित है, अपने ऊपर जो निर्भर है उन सब के रहम (अस्पष्ट).. शिवजी को देखे बैठे कहाँ है। शमशान में, जहाँ कोई नहीं बैठता। राख में बैठे है। शादी में आये तो राख फाँस के आये। गले में वो साँप ले कर के। नंदी के सवारी। बताईये, बैल पर कोई बैठता है क्या? बभूत लगा कर के, अजीब सी शकल बना के, बाल वाल कर के, जटा-जूट, एक शेर का वो व्याघ्रचर्म बन गया। और उनके साथ एक-एक भूत चले आ रहे हैं। उनकी जो औरतें चली आ रही हैं, उनकी किसी की एक आँख हैं, किसी के दो नाक हैं, किसी के चार सींग हैं, जितने भी विद्रूप, विक्षिप्त लोग हैं, जिनमें शारीरिक दोष होता हैं, कोई अगर बहरा है तो उसका मज़ाक हो रहा है। परमात्मा का शुक्र करो कि तुम्हारे दोनों कान ठीक हैं। परमात्मा का शुक्र करो कि तुम्हारी दोनों आँखें ठीक हैं। कभी अंध के हाथ तुमने पकड़े नहीं, उसको उल्टा धक्के देने में मज़ा लेते हो। देखो शिवजी भगवान को, देखो उनकी बरात आ गयी है। और पार्वती के घर के तो सब लोग बड़े-बड़े हैं। विष्णुजी, उनके भाई खड़े हैं साथ में, बड़े सोफेस्टिकेटेड लोग हैं एक साईड में और एक ये बरात चली आयी शिवजी की। किसी की कोई हिम्मत नहीं की शिवजी को हँसे या उनके लोगों पे हँसे। दुनिया भर के जितने विद्रूप और कद्र लोग हैं सब को लिए चले आ रहे हैं बड़े शान से। रीति-रिवाज से नहीं। हम लोग तो हमारा बाप गरीब होगा तो उसको दफ्तर में आने के लिए कहेंगे कि मत आना , भैय्या। उसको कपड़े भी नहीं देंगे। अपने बाप से शर्म आती है! सब तो बड़ी शान से चले आ रहे हैं, वाह भाई , वाह! कोई बिचारे नंग भडंग, कपड़े नहीं, कुछ नहीं, जैसे भी है चले आ रहे हैं शिवजी के साथ में। अब पार्वती देखो घबरा रही है। 'ये क्या दुल्हा भी आया, मेरे घर, नाक | कटा रहे है। दो-चार अच्छे तो ले आते कम से कम सामने में । लेकिन अब बोले तो बोले क्या ?' भैरवनाथ जी सामने चले आ रहे हैं। लेकिन पार्वती के मन तो वही भाये हुए हैं। उनको तो कोई अब पसन्द नहीं। जैसे भी हैं, के लोग जैसे भी हैं। चाहे एक नाक हो, एक आँख हो, पती के घर के लोग आये, उनका मान, उनका पान। ससुराल उनको रीति-रिवाज से देखना, क्योंकि 'मैं बड़े विष्णु जी के घर, मेरे भाई खड़े हुए हैं विष्णुजी जैसे, कुबेर जिनके घर पानी भरते हैं और मैं हिमालय की बेटी हूँ। ऐसे ही पार्वती जी का विचार कर के हमें ये सोचना चाहिए कि संसार में जिस शिवजी को हम मानते हैं। जिनके ऊपर सारा संसार निर्भर है। जो एक क्षण में ही हमको खत्म कर सकते हैं। जब संहार होगा तो ग्यारह रूद्र के रूप में वो निकल कर के हम को खूँखार के और जो भी संयत भाव से ये सारा खेल देखते हैं, जिसके के लिए संसार की सारी सृष्टि आदि कुछ भी नहीं। और जो साक्षी मात्र देखते हैं दुनिया को। और जो हर एक भोले इन्सान के हृदय में जागृत है। जिनका स्थान ही ऐसे जगह है जहाँ कोई भी नहीं जानता। उनका कोई शृंगार नहीं, उनका कोई भी बाहरी भाव नहीं। इनके सिवाय किसी के पास कुछ भी नहीं शोभा देता। ऐसे शिवजी को जो इन्सान मानता है, वो ही इन्सान है, क्योंकि वो इन्सानियत को मानता है। इसलिए नहीं की फलाना बड़ा भारी अफसर है, फलाने के पास 10 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-10.txt इतना पैसा है। क्योंकि फलाने के पास इतनी विद्या है। दूसरे के पास में ये है। इसलिये की बड़ा मानव है। चाहे गरीब है, चाहे अमीर है, चाहे छोटा है, चाहे बड़ा, लेकिन वो बड़ा मानव है और बड़ा मानव वही होता है, जो साक्षात शिवजी के चरणों में है । आज का दिन ऐसा नहीं है कि आपको मैं .... करूँ, आज का दिन है बहुत। लेकिन एक बात मैं जरूर बताऊंगी कि महाशिवरात्री के दिन उपवास करने की कोई जरूरत नहीं। बिल्कुल, उल्टी बात। जिसने भी ये बात है। कही है, पता नहीं क्या शास्त्राधार है मैं पूछती हूँ। मुझे बताये कोई भी पंडित, कौनसे शास्त्र में लिखा हुआ शिवजी के विवाह के रोज आप लोग क्या उपवास करेंगे ? इसका कोई शास्त्राधार मुझे बताईये। मैं जानना चाहती हूँ। शास्त्र भी काफ़ी गड़बड़ कर दिये। लेकिन मैं जानना चाहती हूँ, इसका क्या शास्त्राधार है। कि गलत जगह पे आ के खुशियाँ मनाओ, मौज मनाओ। आज खुशियाँ मनाने का दिन है। कितने लोग उपवास कर के आये हैं? हाथ ऊपर करें। जिन्होंने जिन्होंने उपवास करें, आप लोग पार नहीं होते आज। आप जो पार है बच जाएंगे आज। नहीं | आने वाले वाइब्रेशन्स, देख लो। कोशिश करो । कोशिश कर के देख रहे हैं, आ रहे हैं वाइब्रेशन्स। कुछ नहीं आ रहे हैं। हल्के हो रहे हैं। झूठ नहीं बोल रहे है। आज खूब खाओ-पिओ। घर जा के लड्ड खाना। आपको शारीरिक स्वास्थ्य से देखना चाहिए शिवजी की स्थिति है हमारे, एक्झिस्टन्स। और एक्झिस्टन्स के लिए क्या जरूरी है? क्या चीज़ खानी चाहिए? आप लोग जानते हैं, कार्बोहाइड्रेट्स। उसके बगैर हमारे अन्दर शक्ति नहीं आती। आज के दिन सब को कार्बोहाइड्रेट्स खाना चाहिए, हर तरह के, या प्रोटिन्स खाना चाहिए । जितने भी आप प्रोटिन्स खायें अच्छे हैं। अधिक से अधिक आप प्रोटिन्स खायें । चने में प्रोटिन्स हैं। चना सिर्फ प्रोटिन है। अगर आप चना खायें तो आपने प्रोटिन्स खा लिये। हर चने से आपको प्रोटिन्स खाना चाहिए। जो भी प्रोटिन हो वो आज शिवजी के लिए खाना चाहिए। हृदय के लिए कितनी अच्छी चीज़ है प्रोटिन्स । अगर आप कृश प्रकृती के है तो आपको कार्बोहाइड्रेट्स भी खाना चाहिए, लेकिन सब से बड़ी चीज़ है प्रोटिन खाना चाहिए। और आज के दिन आप फल-फूल खाएंगे, जो कि नहीं खाना चाहिए। उसका कोई शास्त्राधार मुझे समझ में नहीं आता। पर रूढी चल गयी तो चलते है। अब जिसने चलायी वो कोई तांत्रिक ही होंगे। और तो कोई हो नहीं सकते। मुझे और तो कोई समझ में नहीं आता। एक सीधा हिसाब सोचना चाहिए, कि जिस दिन किसी का जन्म हो या विवाह हो, भूखे नहीं रहते हैं, एन्जॉय करते है खुश होके। कोई मरता है उस दिन भूखे रहेंगे। हम लोगों का हिसाब ऐसा कि जिस दिन कोई मरे, नर्क के दरवाजे खुले, उस दिन उपवास नहीं करना। सबेरे उठ कर खाना। आज सब लोग खायें, पियें। नरकचतुर्दशी के दिन उपवास करना चाहिए, तो उस दिन सबेरे नहा-धो कर के, चार बजे उठ कर पहले फराल करते हैं। देखिए, कितना उल्टा है। अब मैं ये बात कहँ, मुझे कबीर जैसे तो कह नहीं सकते। लेकिन हाँ, आप कहेंगे कि माताजी, कैसे उल्टी बातें बतायी। लेकिन ये बात सीधी है, इसे सीधी मानो। जो बात उल्टी हैं उसे उल्टी मानना होगा। लेकिन जो सत्य है उसे सत्य ही मानना होगा। उसको कोई बिगाड़ नहीं सकता। उसको कोई मिटा नहीं सकता। और सत्य है या नहीं ये अपने वाइब्रेशन्स से देख लीजिए मैं जो बात कह रही हूँ, और झूठ | हो तो वाइब्रेशन्स से पता चलेगा । 11 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-11.txt चराचर की सष्टि एक सूक्ष्म शकति हैं शক्ति है यमुनानगर, ०१ अप्रैल १९९० सत्य को खोजने वाले आप सभी साधकों को हमारा नमस्कार! सबसे पहले हमें ये जान लेना चाहिये कि सत्य जहाँ है, वहीं है, उसे हम बदल नहीं सकते उसे हम मोड़ नहीं सकते। उसे तोड़ नहीं सकते। वो था, है और रहेगा। अज्ञानवश हम उसे जानते नहीं, लेकिन हमारे बारे में एक बड़ा सत्य है कि हम ये शरीर, बुद्धि, आत्मा के सिवाय और कुछ नहीं। जिसे हम शरीर, बुद्धि और अहंकार आदि उपाधियों से जानते हैं वो आत्मा ही है और आत्मा के बजाय कुछ भी नहीं। ये बहुत बड़ा सत्य है जिसे हमें जान लेना चाहिए । दूसरा सत्य है कि ये सारी सृष्टि, चराचर की सृष्टि एक सूक्ष्म शक्ति है, जिसे हम कहेंगे कि परमात्मा की एक ही शक्ति है। कोई इसे परम चैतन्य कहता है और कोई इसे परमात्मा की इच्छाशक्ति कहता है। परमात्मा की इच्छा केवल एक ही है कि आप इस शक्ति से संबंधित हो जायें, आपका योग घटित हो जायें और आप उनके साम्राज्य में आ कर के आनंद से रममाण हो जाए। वो पिता परमात्मा, सच्चिदानंद अत्यंत दयालू, अत्यंत प्रेममय अपने संरक्षण की राह देखता है। इसलिये ये कहना की हमें अपने शरीर को यातना देनी है या तकलीफ़ देनी है ये एक तरह की छलना है। कोई भी बात से जब आप नाराज़ होते हैं तो आप कहते हैं कि अच्छा है,' इससे कुछ पा कर दु:खी होता है, सुख तो होने वाला नहीं। सो, सिर्फ एक ही बात को आप समझ लीजिए कि परमात्मा नहीं चाहते हैं की आप किसी प्रकार का भी दु:ख उसे दे। किसी तरह यातना का, वो चाहते हैं कि सहज में ही आप उस तरह को प्राप्त करें, इसमें आपकी सारी व्यथायें, जो अज्ञान के कारण हैं वो नष्ट हो जाएगी। आप निरानन्द में रममाण हो जाएंगे। उसकी पूर्णग व्यवस्था हमारे अन्दर परमात्मा ने की हुई है। जैसे की डॉक्टर साहब ने आप से बताया कि कुण्डलिनी की व्यवस्था हमारे अन्दर त्रिकोणाकार अस्थि में है। और इसके जागृति से आपका संबंध उस सूक्ष्म सृष्टि से हो जाता है, जो सृष्टि सारे संसार को चलाती है। सारे संसार में विचरण करती है, और सोचती है, समझती है। उसको प्लावित करती है, इसका सर्जन करती है और सब से अधिक इस सृष्टि के अन्दर जो सब से ऊँचा, पहुँचा हुआ मनुष्य प्राणी है उससे अत्यंत ग्रेट है। अब सिर्फ इस मनुष्य स्थिति में आने के बाद एक और स्थिति उत्क्रान्ति की होती है इसे हमें प्राप्त करना है। यहाँ जैसे मैंने कहा था कि 12 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-12.txt प्रथम सत्य है, यहाँ आप आत्मा हो जायें। आज कल के जमाने में हर तरह की गलत प्रणालियाँ चलती रही हैं। और इस तरह की बातें मैंने सुनी है कि इस में लिखा जाता है कि कुण्डलिनी का जागरण बड़ा कठिन है और इस में बहुत यातनायें हैं। ये सब आज कल की ही बातें हैं। हजारों वर्ष पूर्व मार्कडेय स्वामी ने लिखा है कि कुण्डलिनी जागरण के सिवाय हम आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त नहीं कर सकते। उसके बाद अनेक ऋषि-मुनियों ने इसके बारे में कहा। रामायण में भी आपने सुना होगा और उसके बाद हर प्रांत में, हर जगह, हर बार जब भी कोई विभूति पैदा हुई, उन्होंने यही कहा है कि आप अपनी जागृति करायें और इस कुण्डलिनी के द्वारा उस मोक्ष को प्राप्त करें। महाराष्ट्र में, ज्ञानेश्वरजी ने इस पे बहुत कुछ लिखा और अभी अभी तक गुरुनानक साहब ने भी इस पर बहुत विवेचन किया है। इतना ही नहीं, कबीरदासजी ने इसको बहुत खोल कर बहुत काव्यमय कहने के कारण लोगों को कुछ बात समझ में नहीं आयी। फिर घबरा के वो कहते हैं, 'कैसे समझाऊँ सब जगह अंधार !' ये अंधापन वो ये है कि हम ये नहीं समझते कि जब से हमारा परमात्मा से संबंध नहीं होता तब तक हम कोई भी कोशिश करें, कोई भी मेहनत करें, तो वहाँ तक कैसे पहुँचेगा। जैसे कि ये टेलिफोन है। जब तक आपके टेलिफोन का संबंध किसी और टेलिफोन से नहीं हो तो उसको घुमाने से क्या फायदा। इसलिये बहुत से लोग मेरे पास आ के कहते हैं, 'माँ, हम तो इतना भगवान को मानते हैं, इतनी पूजा करी, हमने इतने व्रत - वैकल्य करे, हम यहाँ गये, वहाँ गये, हम क्यों ऐसे?' सीधी बात है, आपका संबंध नहीं हुआ। ये ब्रह्मसंबंध होना चाहिए। और इसको अनेक लोगों ने विपरीत तरीके से इस्तमाल किया है, और बहुत बुरे ढंग से उन्होंने इस चीज़ को सामने रखा। और खास कर देखिये, इस में ऐसा काम करने से ब्रह्मसंबंध हो जाएगा, वैसा काम करने से ब्रह्मसंबंध हो जाएगा। इतना ही नहीं परमात्मा के नाम पे बेलगाम लोगों ने पैसे इकठ्ठे किये। भगवान को तो पैसे से संबंध नहीं है, ये तो मनुष्य का सबंध है। भगवान को क्या मालूम पैसा क्या चीज़ है? तो भगवान के नाम पे पैसा लेने से फायदा क्या है, जिसको समझ ही नहीं आता कि पैसा क्या चीज़ है? लेकिन हर जगह आप देखिये, कुछ सुविधा के नाम पर इतना पैसा लेते है। हर धर्म में ये बात है। कोई हिन्दू धर्म में, या सिखों में या ईसाईयों में बात है ऐसे नहीं, हर धर्म में ये बात है। कि हर किसी को इसी प्रकार कि अगर आपको धर्म को प्राप्त करना है तो आप पैसा निकालिये। इसके धूल के बराबर नहीं हैं ये चीजें। वो तो आप जैसे सत्य को खोजने वालों साधकों की खोज में है। उन्हीं का वो कल्याण करेगे। आपका कल्याण आप ही के अन्दर निहित है। कहीं बाहर जाने की जरूरत नहीं है। 'काहे ....खोजन जाये।' ये जब तक अपना आपा नहीं आप जानोगे तब तक कुछ नहीं मिलेगा। हम कहते हैं, ये मेरे बच्चे, ये मेरे पति, मेरे रिश्तेदार सब मेरे, मेरे और वो मैं कौन है जिसके लिए सब हैं? वहाँ पहुँचे कि मैं कौन हूँ? जब वहाँ पहुँचते ही कि 'मैं कौन हूँ?' वो हम ने अभी तक जाना नहीं कि 'मैं कौन हूँ ?' .... (अस्पष्ट) और किस तरह से कुण्डलिनी के जागरण से हमारी विकृतियां ठीक होती है। ये एक सर्वसाधारण तरीके से मैं आपको समझा सकती हैँ। समझ लीजिए की ये हमारी लेफ्ट साइड है और ये राइट साइड है। ये दोनों हमारे पीठ की रीढ़ की हड्डी में इस तरह से बैठ गयी और इसके नीचे ये चक्र तैयार है। हम उपर नहीं जा सकते। अपने भावना से खेलते रहता है, अपने भूत काल में जमा रहता है। और हर समय रोते रहता है कि क्या मेरा भूतकाल था? में 13 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-13.txt आत्मकाक्षात्कार का कहाँ पहुँच गया ? ये भी गया, वो भी गया। वो तो अपने लेफ्ट साइड में चला जाएगा। जो मनुष्य आगे की बात सोचता है, हमेशा भविष्य की बात सोचता है। हर समय ये सोचता है कि मुझे क्या करना कोलियुग में ही चाहिए, कहाँ जाना चाहिए, प्लॅनिंग करना है, हर समय। वो राइट साइड में चला जाता है। और बीच ये कार्यं होना है। में आने के लिए उसको कोई मार्ग नहीं। या तो हम पिछला सोचते हैं या अगला सोचते हैं। पागलों जैसे ये कार्य जो भी विचार हमारे अन्दर एक बार उठा जाता है। हम उसके उपर नाचते रहते हैं। इन दोनों के बीच में एक जगह है जो वर्तमान है। उस वर्तमान में रहने के लिए भी कुण्डलिनी का जागरण होना जरूरी है। पहले नहीं हो सकना । जब कुण्डलिनी का जागरण होता है तो सबसे पहले आप के अन्दर ये स्थिति प्राप्त होती है, इसे निर्विचार समाधि कहनी चाहिए। इसका हठयोग में, पातंजलि में बहुत है। ये पहली स्थिति आपने प्राप्त होनी चाहिए की जहाँ निर्विचार है। लेकिन निर्विचार समाधि में, निर्विचार समाधि माने उस वक्त आप सतत सतर्क होते है, कोई आप निद्रा में नहीं जाते, आप से कोई चक्कर नहीं आ जाते, आप कोई बेहोश नहीं हो जाते, लेकिन आप अत्यंत सतर्क हैं। लेकिन अन्दर से निर्विचार हैं, अत्यंत शांत हैं। अब देखिये, की अगर कोई सुंदर सी, शांत देवी, उसे देखने के साथ, आपके दिमाग में विचार चलने लगे कि ये कैसी चीज़ मैं पाऊँ, इसको कैसे ले लँ? अगर वो मेरी चीज़ है तो और सतर्क है । लेकिन जब कोई विचार ही नहीं आता, तो उस सुन्दर चीज़ को बनाने वाला, उसके आनन्द में पूरा के पूरा अत्यंत ऐसा मन में हो जाता है जैसे कि यमुना दोनों तरह से आनन्द में बहने लगती है । ये अनुभव करने के लिए है। कहने के लिए नहीं, भाषण देने के गंगा- लिए नहीं, इसका अनुभव होना चाहिए। जब तक ये अनुभव सिद्ध नहीं होगा, तब तक ये व्यर्थ है। और यही अनुभव को प्राप्त करना ही आत्मसाक्षात्कार है। आत्मा को सच्चिदानंद स्वरूप है। माने आत्मा को प्राप्त करने से आप खो जाते हैं। सत्य को जानने वाले हैं क्या? अभी तक हम जो सत्य जानते हैं वो पारस्पारिक है । रिलेटिव है। माने ये कि कोई कहेगा ये सत्य है, कोई कहेगा वो सत्य है, वो कहेगा वो सत्य है। एक चीज़ नहीं है कि सब कहें कि हाँ, यही सत्य है। इसकी वजह ये है कि अभी तक सत्य का अनुभव हमने नहीं किया। जब हमारी आत्मा हमारे चित्त में आ जाती है, उस प्रकार से हम केवल सत्य खोजते हैं। अंग्रेजी में कहना चाहिए अॅबसल्यूट टूथ। केवल सत्य को हम नहीं जानते और असत्य को भी हम जानते हैं। क्योंकि जो सत्य नहीं वो असत्य है। सब लोग, जितने भी लोग आत्मसाक्षात्कारी होते हैं वो एक ही बात है। उनमें न झगड़ा होता है न पार्टी होती है, न जश्न होता है। अब हमारा सहजयोग चालीस देशों में चल रहा है। हर तरह अलग अलग तरह के लोग हैं, बढ़िया बढ़िया हैं, और सब जब भी सम्मिलित होते हैं, ना कोई ऐसी बात, सब आपस में एक जैसे, एक साथ सामूहिक रूप में होते है, मानो छोटे छोटे बिंदू में सागर से बने हैं।.....(अस्पष्ट) इसलिये आत्मसाक्षात्कार का ये कार्य कलियुग में ही होना है। ये कार्य पहले नहीं हो सकता। लेकिन आज समय ऐसा आया है कि बहार आ गयी है। देखिये इतने सारे सागर, ये कलियुग की ही कमाल है। ये कलियुग की ही सत्य को खोजेगा क्योंकि वो संभ्रांत हैं। परेशान है, टेन्शन है, आफ़त है, बिमारियाँ हैं। फिर जब वो सत्य को कमाल है और इस कलियुग में ही ये चीज़ होने वाली है कि मनुष्य खोजता है तो उसका चित्त शुद्ध हो जाता है। आत्मा के प्रकाश से उसका चित्त शुद्ध हो जाता है। इसके कारण उसकी 14 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-14.txt सारी जो शारीरिक व्याधियाँ हैं दूर हो जाती है। कोई प्रकार की व्याधि नहीं रह जाती। अधिक तर व्याधियाँ लुप्त हो औं जाती हैं। .... (अस्पष्ट) इस प्रकार ६० डॉक्टर लोग लंडन में प्रक्रिया करायी। ... (अस्पष्ट) और वो आश्चर्यचकित हो गये। खुशखबरी कि अभी हम ऑस्ट्रेलिया गये थे। दो पेशंट्स थे। बिल्कुल मरती हुई हालत में आये, एड्स के पेशंट्स थे, वो दस मिनट में ठीक हो गये। और दो-तीन बाद वो आ गये कि बिल्कुल ठीक चल रहे है। लोगों ने शराब पीना, ये सब लेना, ड्रग लेना, अपने देश में तो ऐसा ही नहीं होता है। लेकिन बाहर ॐँ लोग.....। क्योंकि हम लोगों के सामने तो बड़े-बड़े आदर्श हैं। हमने देखा श्रीराम, सीता, सब बड़े-बड़े आदर्श है, इसकी वजह से हमारे अन्दर उन आदर्शों को प्राप्त करने से, विचार न करते हुए उन आदर्शों की सिर्फ हम कॉपी करते हैं। लेकिन उसको हम पाना नहीं चाहते। पर परदेश में ये हालत इतनी नहीं है, उनको देखते ही, जागृत हो जाती है। और एकदम चीज़ को पकड़ लेते है। एक लाख लोगों ने ड्रग छोड़ दिया, शराब पीना छोड़ दिया। दुनिया भर की गंदी आदतें छोड़ दी और इतने सुन्दर हो गये हैं कि जैसे एक कीचड़भरे एक सरोवर में कमल खिलें । मैं तो पहले कहती थी कि, 'बाबा, परदेस में तो जाना आफ़त आ जाएगी। इतने खराब वहाँ पर वाइब्रेशन्स है, वहाँ चैतन्य लहरी नहीं। वहाँ कहाँ पती ने मुझे भेजा।' लेकिन मैंने देखा , वहाँ कमल की कलियाँ हैं । और वही कमल खिल रहे हैं और सब सुरभित हैं। हम लोगों को अभी ये समझ में नहीं आता है कि इन देशों ने बहुत सारी सांसारिक प्रगति की। लेकिन कोई प्रगति नहीं। इनका हालत आप सुनिये। आप आश्चर्यचकित होंगे, माँ-बाप का कोई ठिकाना नहीं, बच्चे बारह साल के होते ही घर से निकले। माँ-बाप को मार डालते हैं, दादा-दादी को मार डालते हैं, माँ-बाप बच्चे को मार डालते हैं। लंदन शहर के अन्दर एक हप्ते में दो बच्चे माँ-बाप मार डालते हैं। आपको विश्वास नहीं होगा कि इन लोगों को क्या हुआ है? इनके हृदय सूख गये हैं कि क्या बात हो गयी थी कि ये बच्चों से तंग आ कर उनको मार दिये। हर रोज वहाँ इस तरह की बातें सुन के हैरान हो गयी कि कैसे ये कर सकते हैं इस तरह। अभी इस भारतवर्ष में ऐसे भी लोग हैं जिनके अन्दर इतना प्रेम है, इतना आदर है। ये सब उन लोगों ने जो भी प्रगति की है वो बाहर की प्रगति है, जैसे कि कोई पेड़ बढ़ जाए और उसको अपने मूल का पता न हो उसके कारण शुष्क हो जाए। बिल्कुल शुष्क हो गये। सारी दुनिया आपके चरणों में बसी हुई है। जिस दिन वो जानेगी कि यहाँ के लोग कितने आत्मसाक्षात्कारी हैं। इतना सब होते हुए भी हिन्दुस्थान में, सहजयोगी जो हैं पहले कोई नहीं। क्योंकि यहाँ तो चैतन्य जागृत है। आप जानते ही नहीं कि इस भारत वर्ष में जन्म लेने के लिए आपने न जाने कितने पुण्य किये हैं । ऐसा बड़ा देश, इतना ........ और इस देश से जाने वाली चीज़ें हैं, यही आपका धरोहर है, यही आपका हेरिटेज है और महान देश, ऊपरी उपरी चीज़ों को आप देखते हैं। इसकी गहनता को आप जानते ही नहीं। एक बार मैं अपने पति के साथ आ रही थी। यहाँ आते ही मैंने कहा कि, 'आ गया हिन्दुस्थान छू लिया। 'कैसे कहती हो कि हिन्दुस्थान छू लिया?' 'जिसमें सबकुछ चैतन्य बह रहा है।' तो उन्होंने जा के पायलट से पूछा, तो उसने कहा, 'अभी छुआ है।' एकदम चारों तरफ। मैं अभी रास्ते से आ रही थी। यही देख रही थी कि कितना चैतन्य है। शाकंभरी देवी का यहाँ अवतरण हुआ 15 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-16.txt शायद आप लोग नहीं जानते। और शाकंभरी देवी का यहाँ अवतरण बहुत बड़ा कार्य है। इसी प्रकार .... हमको ये भी जान लेना चाहिए इस भूमी में अनेक साधुओं ने, संतों ने अवतार लिये जहाँ बड़े-बड़े महान अवतरण जन्म लिये, जैसे श्रीराम जैसे। देवी ने अनेक अवतार यहाँ ले कर के, ....... | लेकिन वो आज वही दिन आया है, उनकी जो परंपरायें उन्होंने जो दी थी जो हमारे उपर इतने दिनों से हमारे उपर छायी हुई हैं। आत्मसाक्षात्कार पाते ही आप पहले शांति में चले जाएंगे जो कि आपकी अपनी चेतना है। से लोग बहुत शांति की बात करते हैं। शांति के विश्राम बनायें । शांति का एक उमेदवार अनुष्ठान बनाया था और उनके पास जाईये तो खड़े नहीं हो सकते । इतने क्रोधी लोग होते हैं। ऐसे लोगों को शांति कैसे मालूम! जो लोग शांति की बात करते हैं, अगर उनके हृदय में शांति नहीं तो वो क्या शांति प्रस्थापित कर सकते हैं? तो ये आपके अन्दर की, आपकी संपत्ति, आपके अन्दर की चीज़ है जिसे आपको क्रॉस करना है, उसे लेना-देना कुछ नहीं। आपके अन्दर की ये शक्ति, जैसे कि एक बीज में उसकी सृजन शक्ति होती है। आप उसे जमीन में छोड़ दीजिए वो अपने आप बढ़ेगा। ये जिवंत क्रिया है और इसीलिए ये सहज है । सह मतलब आपके साथ और ज माने पैदा हुआ। ये योग का अधिकार आपके अन्दर ही पैदा हुआ है। क्योंकि आप मानवरूप में पैदा हुये हैं। त्रिकोणाकार अस्थि में बैठी हुई | कृण्डलिनी ये आपकी अपनी व्यक्तिगत एक माँ है। जैसे कि एक कनेक्शन जरूर होता है जुड़ा हुआ। उसी प्रकार एक आपके अन्दर, सब के अन्दर आपकी माँ बसी हुई है और उसको अपने बारे में सब मालूमात होती है। ..... जैसे कि उस तरह से उस जनम , इस जनम के बारे में सब जानती है कि ये क्या है। और वो लालायित है .....(अस्पष्ट) अब आजकल के साइन्स के जमाने में वो सोचते हैं कि ये कौनसी बात माँ ने कही। परमात्मा का नाम भी उन्होंने सुना नहीं। लेकिन परमात्मा है। यही नहीं, पूरी सृष्टि में इन्हीं का साम्राज्य चलता है। वो ही सर्व को मानते हैं। इसकी सिद्धता की सहजयोग के बाद ही हो सकती है, उसके पहले बात बात है। और बात इसी से करते है, इसलिये ये अनुभव आप सब लोग आज शाम करें । ऊपरी बात को आप भूल जाईये। एकदम झगड़ा वगैरे सब बेकार है। जब तक इन लोगों को ये अनुभव नहीं आयेगा, ये ऐसे ही हैं बेचारे। लेकिन आप लोग आत्मसाक्षात्कारी हो जाएं। क्योंकि इसकी भविष्यवाणी हजार वर्ष पहले हुई है। भृगु मुनि ने इस पर भविष्यवाणी की है कि सहजयोग इस तरह से आयेगा। कि किस तरह आश्चर्य जनक है। चकित करने वाले है । इसके बारे में एक भाषण में मैं आपको क्या बताऊँ। इसपे तो अनन्त .(अस्पष्ट) लेकिन भाषण सुनने से, तर्क-वितर्क करने से (अस्पष्ट) सिर्फ जाना है, छ: चक्रों को पार करना है, अन्त में ब्रह्मरंध्र को भेदना है। उस कुण्डलिनी को ..... भी हो उसके अन्दर एक शिव की इच्छा है कि योग घटित होना है। कुण्डलिनी काम करती है, क्योंकि कुण्डलिनी भाषण देके, अंग्रेजी में, मराठी में जैसा के शुद्ध इच्छा की शक्ति शुद्ध है, बाकी इच्छायें हमारी अशुद्ध हैं। एक ही हमारी शुद्ध इच्छा है, चाहे हम जाने या न जाने कि हमारा आत्मसाक्षात्कार और इसके बाद इस तरह से हल निकल आये हैं, आपको लगने ही लगता है कि आप परमात्मा के साम्राज्य के भाग हैं। आप सबको आशीर्वाद! 17 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-17.txt सहजयोगियों को उपदेश गणपतीपुले, २ जनवरी १९८८ सबसे पहले एक बात समझ लेनी चाहिए कि यहाँ जो बंबई वाले और दिल्ली वाले लोग आये हैं ये मेहमान नहीं हैं। मेहमान जो लोग बाहर से आये हैं वो हैं। बसेस उनके पैसे से आयी हैं। आप तो एक पैसा भी नहीं दे रहे हैं उसके लिए। एक कवडी भी नहीं दे रहे हैं। बसेस उनकी हैं, वो सब बसेस मार कर आप लोग यहाँ आ गये। यहाँ बसेस छोड़ दिये, वो लोग रास्ते में लटक के खड़े हुए हैं। बजाए इसके कि आप उन लोगों का खयाल करें, आप आराम से यहाँ पहुँच गये। आके आराम से यहाँ बैठ गये हो । और आधे लोग रस्ते में बैठे हुए हैं और यहाँ बसेस सड़ रही हैं। आप लोग यहाँ मेहमान के रूप में नहीं आयें, कृपया ध्यान दीजिए । ये अपनी आदतें आप बदलिये। आप यहाँ पर आये हैं सेवा करने के लिए और ये बाहर के जो लोग आये हैं ये मेहमान हैं। आप जिस चाहे बस में चढ़ जाते | | हैं, जैसे कि आपने बस ली है किराये से। पिछली मर्तबा ४५,००० रू. मैंने भरा आप लोगों के बस में चढ़ने का। बेहतर है आप सब लोग पैदल आईये और नहीं तो एक चीज़ हो सकती है कि एक बस है सिर्फ आप के लिए। किसी भी टाइम में आप लोग निकलते हैं। आपको कोई टाइम नहीं है, कुछ नहीं है, एक ही बस आयेगी और वो बस दो मर्तबा आयेगी और उसी बस में आपको बैठने को मिलेगा और किसी बस में आप बैठ नहीं सकते। समझ गये आप! आप तो आराम से बैठ गये और सब लोग वहाँ लटके खड़े हैं अच्छी बात है? उनकी बसेस हैं। उन्होंने इतने पैसे दिये है। इसलिये आज बसेस हैं। उनकी वजह से आज सहजयोग चल रहा है। अब सारी बसेस है भेज दीजिए । एक बस है उसका नंबर यहाँ पे बताया जाएगा। और कोई दुसरे बस में हिन्दुस्थानी आदमी नहीं बैठेगा। एक बस आपके लिए है। वो जाएगी, आएगी, जाएगी, आएगी और अगर आप तैयार नहीं है तो पैदल आईये। यहाँ कोई बस चौबीस घंटे के लिए नहीं लगा सकते। हालांकि हमने इसका इंतजाम कर दिया है। चलो, ठीक है। लेकिन इसका ये | तो मतलब नहीं की आप जब इत्मिनान से जब चाहे, जिस वख्त उठे, राजासाहब जैसे, उनकी बसेस लगी चले आयें । ये तो ऐसे हुआ कि दुसरी गाडी मारी और चले आयें। अब एक ही बस आपके लिए है । वो वहाँ जायेगी और आयेगी। अब सबेरे के टाइम, आप लोगों को, ये लोग सबेरे उठ कर ध्यान करते हैं। उनसे कुछ सीखिए | एक तो इनसे सीखना चाहिए कि कायदा-कानून, डिसिप्लिन उनमें कितना है । दसरी बात ये है कि वो आपका आराम देखते हैं, उनका नहीं देखते। एक बस आपके लिए तय कर ली, बस। उससे ज्यादा हम दे नहीं सकते हैं। पैसा कौन देगा। एक बस का आपको हम नंबर बतायेंगे। वो बस आगे जायेगी, आयेगी । नहीं तो आप पैदल आईये| कौनसी आफ़त है। चलिये थोड़ा, अच्छा है सेहत के लिए। सबेरे के वख्त बस आयेगी। हम चाह रहे हैं कि सबेरे के बस के वख्त में आप वहीं रहिये। वहीं आप नहा, धो कर तैयार हो जाईये। और वही आपके लिए नाश्ता आ जाएगा। या आप अगर चाहें तो यहाँ आ जाईये। एक बस में, आप ज़्यादा लोग नहीं है, ११० लोग हैं आप सिर्फ। दो बस में आप आ सकते हैं। एक बार बस जायेगी, आ जायेगी, फिर आप जायेंगे , फिर आ जाना। बाकी बसेस को आप मत छुईये। उन सबका मुझे पैसा देना पड़ेगा। आप लोग देंगे क्या ४५,००० रुपया| आपसे किसने कहा इन बसेस में बैठने के लिए। आप उस बस में चढ़ के चले आये। कोई कायदा-कानून होना चाहिए । पूछना चाहिए कौनसी बस में जायें, कौन से में नहीं जायें।। अब आप मेहेरबानी करिए, अब सिर्फ जो बस आपके लिए है उसी बस 18 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-18.txt में आप सबेरे के वख्त बैठिये, यहाँ आईये, आपका वहीं नाश्ता आ जाएगा। लेकिन नवाब के जैसे रहने की जरूरत नहीं। सबेरे झट से उठ के नहा-धो लिया, ध्यान कर लिया और ध्यान के बाद में वहीं नाश्ता आ जाएगा। वो नाश्ता आपको साढ़े आठ बजे वहीं मिल जाएगा। ८.३० से ९.३० तक आप वहाँ पर नाश्ता कर के और एक बस है और अगर आप उस बस में नहीं आ सकते तो पैदल आईये मेहेरबानी कर के। बंबई के लोग, पुणे के लोग और दिल्ली के लोग, पुणे और बंबई के लोग तो मालगुंड में रह रहे हैं। आप लोग वहाँ रह रहे हैं कबूल। लेकिन इसका मतलब नहीं कि उनकी बसेस ले के चले आयें आराम से। पूछना चाहिये कि कौनसी बस हमारी हैं और कौनसी बस से हम आयें, पहली बात। दुसरी, कौन से टाइम पे आना चाहिए। अभी वो लोग सब लटके चार घण्टे से बैठे हैं। किसी ने पूछा भी नहीं कि वो लोग आये की नहीं आये? चार घण्टे से वो लोग खड़े हुए हैं। आप बैठ गये। आपको मतलब ही नहीं किसी से। आराम से आ के यहाँ जम गये। आप लोग यहाँ मेहमान नहीं हैं। ये आपका देश है हिन्दुस्थान। यहाँ पर बाहर से लोग आये हुए हैं। हिन्दुस्थान में आप हैं और हिन्दुस्थान के किनारे पर, अभी तक समुद्र में उतरे नहीं। समझ गये न आप! मेहेरबानी करिये, मुझे बड़ा दु:ख लगता है सोच कर कि ये लोग बिचारे लटके हुए हैं, चार घण्टे से खड़े हैं। आप लोग पहले चले, घूस घूस के चलो, चलो जल्दी चलो। वो कह रहे हैं, की सब लोग घूस गयें पहले ही, हम क्या करें, जंगली के जैसे। हम लोग सहजयोगी हैं। रास्ते पर के कोई वो तो नहीं, भिखारी लोग। कायदा-कानून कुछ न कुछ होना चाहिए। अब मेहेरबानी से आप लोग किसी के बस में नहीं चढ़ने वाले, सिर्फ आपकी ही एक बस है। एक तो हम ऐसी जगह आये हैं, जहाँ कुछ भी नहीं मिलता है। न कोई खाने-पीने की चीजें मिलती हैं न कुछ। सब चीज़ें कोल्हापूर से आ रही है। इसलिये यहाँ आये हैं कि ये हमारे लिए यात्रा है, क्षेत्र में हम आये हुए हैं। और इस जगह हम लोग मेहमान नहीं हैं। ये लोग मेहमान है। वैसे भी मैं देखती हूँ, दिल्ली वाले और बम्बई वाले सामने बैठ जाएंगे, वो लोग अपने पीछे में बैठे हैं। भाई , ये कोई तरीका होता है मेहमानों के साथ ये करने का, व्यवहार करने का? सबसे पहले हम लोग बैठ गये। खाना सबसे पहले हम खाएंगे। वो लोग बाद में खाएंगे। ये कोई तरीका होता है? हम लोग तो मशहूर है दुनिया में मेहमाननवाजी के लिए, तौर-तरीके के लिए । हम लोगों को दुनिया मानती है इस चीज़ के लिए। लेकिन सहजयोग में आते ही उल्टी खोपड़ी क्यों हो जाती है? कल से कायदे से आप लोग बिल्कुल इन के उपर आक्रमण नहीं करने वाले, किसी भी तरह का। और न ही इनके बसेस में घुसने वाले। सिर्फ आपके लिए एक बस रखी है, उनमें आप आईये । नहीं तो मेरे पास उनको इतना देने के लिए पैसा नहीं है। बहुत कुछ सीखने का, यहाँ आप सीखने के लिए आये हैं। अपनी जान बचाने के लिए नहीं आयएे हैं। पैदल चलने में क्या हर्ज है, जवान लोगों को ? थोड़े पैदल चले तो क्या हर्ज हो जायेगा ? आप लोगों के वहाँ नखरे ही नहीं मिलते, सुनते हैं कि एक आदमी , औरतों को तैयार होने में ही चार-चार घण्टे लग रहे है। एक बस रखिए । उसमें, एक ही बस आपके लिए है। उस बस से सब लोग आयें और सब लोग जायें। नहीं तो हम चाहते तो हम और कहीं आपको रखते। अच्छा रहता। कल हम सोच ही रहे हैं कि आप लोगों कहीं और रखा जाए। जिससे ये तकलीफ़ नहीं होगी। उनके बसेस उनके लिए है। रहने दीजिए वो आके पड़ी हुई हैं यहाँ बस। वो लोग रस्ते में 19 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-19.txt लटके, चार घण्टे से बैठे हैं। ये कोई अच्छी बात तो नहीं है। पैसे बिचारे देते हैं। उनके पैसे के दम पर सहजयोग चल रहा है। आप जानते हैं। और इन लोग सबको बता रहे थे कि वहाँ से सब ढकेल-ढुकेल के ये लोग बैठ गये आगे। हम लोगों का जगह ही नहीं मिली। और बसेस आ के यहाँ रोक ली और ये भी नहीं सोचा की बसेस वापस गयी की नहीं। वो लोग खड़े हैं वहाँ। अब देखिये, सारी बसेस यहीं पे खड़ी हुई हैं। आ कर बैठ गये आराम से यहाँ पर सब । दिल्ली वाले, बम्बई वाले, पूना वाले। मुझे दुःख महिनाभर प्रवास करते रहे। तकलीफ़ें उठाई हैं। आरामपसंदगी जो है ये सहजयोग का लक्षण नहीं है। जो आदमी आरामपसंद है वो सहजयोगी हो ही नहीं सकता। फिर वो बताएंगे कि हम आये, तो इतनी देर हमको तकलीफ़ हुई, फिर ये हुआ। जो आदमी को तकलीफ़ होती है वो सहजयोगी नहीं है । सहजयोग में आत्मा का आनन्द हैं, उसका आराम है, उसका सुख है। उसके लिए कोई तकलीफ़ नहीं होनी चाहिए। कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए । उसी के आनन्द में विभोर रहना चाहिए। मैंने सुना की बहुत झगड़े हो रहे हैं कि कौन डॉम्मेटरी में रहेगा, कोई कहाँ रहेगा, कौन कहाँ रहेगा। ये तो गलत बात है। कम से कम अब जो लोग टेंट में हैं, उनमें से अगर कोई बुजुर्ग हो तो ठीक है। उनको डॉर्मेटरी में जाने दीजिए, बाकी आप यहीं रहिए | अगर आपका शरीर आपको सताता है तो उसको ठिकाने लगाईये। | ये लगता है, कि ये लोग इतने दूर से आये हैं बिचारे ये सारा उसको समझाना होगा। कोई आपको मैं हिमालय पे जाने के लिए नहीं कह रही हूँ कि ठंडी हवा में जा कर के आप वहाँ नंगे बदन, आप एक पाँव पर खड़े होईये, इतनी बात नहीं। लेकिन शरीर के चोचले चलाना बेकार के, सहजयोग में नहीं हो सकता और नहीं होने चाहिए। ऐसी कोई आफ़त नहीं। आप कहीं और जगह जाईये, शत्नोदेवी जाईये, कोई जगह जाईये चढ़ना पड़ता है आपको। सात-सात मील, उसके लिए ठीक है। शरीर को थोड़ासा श्रम देने से कोई आफ़त नहीं आने वाली। और कोई बड़ी भारी श्रम की बात भी नहीं है। अच्छी ठण्डी हवा चल रही है। चले आये टहलते टहलते। और इतनी ज़्यादा तैयारी करने की, इतने सजने - धजने की कोई ज़रूरत नहीं है । आज कोई पूजा नहीं है, कुछ नहीं है, समझ में नहीं आता। वो कह रहे हैं कि कोई भी आदमी टाइम से नहीं आता है। खड़े हैं बस वाले वहाँ। एक भी अभी चढ़ नहीं रहा। ये तो गलत बात है। सामूहिकता कम है, इसलिए ऐसा होता है। अब आपके लिए आपने कहा कि हम एक तारीख को आना चाहते हैं। तो आईये सर आँखों पर आईये। पर इसका मतलब नहीं है कि आप मेहमान होकर आयें। एक तारीख को आये हैं तो व्यवस्था आप करिये। देखिये, क्या हो रहा है? क्या नहीं? आप क्या मदद कर सकते हैं? आप लोगों से कहीं कहीं अधिक इन लोगों ने रुपया दिया हुआ है। और इस बार आठ लाख करीब पैसा बच जाएगा। हर साल इन्ही के पैसे से हम लोगों को फायदे हुए हैं। ये मैं नहीं कहती कि पैसा ही सब कुछ है। पर ये मेहमान हैं। कल अगर आप इनके देश में जाएंगे तो ये कभी ऐसा नहीं करेंगे। आपकी व्यवस्था पहले करेंगे। सब लोग घुस के चले आयें। कल सबेरे, आप लोग सब सबेरे उठ के और आठ बजे तक ध्यान में जायें। ८ से ९ बजे तक ध्यान होने के बाद नौ बजे आपको वहाँ पर नाश्ता मिलेगा। अब ये नहीं कि एक बैठे है, दो नहीं बैठे हैं। जिसको नौ बजे वहाँ नहीं आयेगा, उसको नाश्ता नहीं मिलेगा । यहाँ से नाश्ता वहाँ चला जाएगा। उसके बाद दस बजे तक आप लोग यहाँ तशरीफ़ ले आये। नौ से दस तक आपको टाइम है, आप | तब तक नाश्ता कर ले। सब कुछ कर के आप दस बजे वहाँ से चल दे। आपके लिए एक बस हैं। वही बस आयेगी। उससे आप यहाँ पहुँच जाईये। फिर वो बस हम वापस कर देंगे, फिर उससे आप यहाँ आईये। इस तरह से एक ही बस से आप आईये और जाईये। छ: बस का पैसा हम लोग नहीं दे सकते। 20 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-20.txt उसमें भी और बात है। ग्यारह घण्टे से ज्यादा अगर किसी ड्राइवर पे काम पड़ा तो उसका डबल पैसा देना पड़ता है। यहाँ पर प्रोग्राम कल से ग्यारह बजे शुरू होगा। ग्यारह बजे सब लोग पहुँच जायें। ग्यारह बजे से एक बजे तक यहाँ प्रोग्राम होगा। उसमें जो भी हम करे, भाषण दे, जो भी करे, करें। कल से ठीक से प्रोग्राम शुरू हो जाएगा। और उसके बाद आपको जरूरत नहीं कि आप जायें । यहीं आप खाना खाईये। और चाहे तो यहीं लेट जाईये । चाय वाय पी के आप चले जाईये। चाय पी कर आप जाईये वहाँ। तैयार हो जाईये शाम के वक्त में और उसके बाद आप वहाँ से, करीबन छ: बजे के करीब, आप चल दीजिए । छ: -साढ़े छ:। तो यहाँ पर आपका प्रोग्राम छ: बजे से शुरू होगा। छः, सात, आठ बजे तक और उसके बाद में नौ बजे तक, साढ़े नौ बजे तक चाहे दस बजे तक आपका खाना-पीना हो के दो घण्टे का म्युझिक प्रोग्राम होगा। इस तरह की व्यवस्था है। इस प्रकार काम हो सकता है। ज्यादा से ज्यादा यहाँ से वहाँ चल के जाने में आधा घण्टा लगेगा लेकिन अब हम लोगों को कुर्सियों की आदत हो गयी, हम चल ही नहीं सकते इतना। बहरहाल मैं नहीं कह रही हैूँ आप चलिये। पर कम से कम ये तो समझ लीजिये की आप हर एक बस में बैठ जाये, तो मेरी तो हालत खराब हो जायेगी । पिछली मर्तबा यही सब कर के बड़े आफ़त में डाल दिया मुझे। गाडी का नंबर है ७९६५, ड्राइवरसाब का नाम है, मि.पाटील। (ड्राइवर को-तुम्ही आपल्या गाडीत इंडियन्सना घेऊन यायचं, इंडियन्सना आणायचं. त्यांच्या दोन किंवा तीन ट्रीप करायच्या जास्त नाही आणि तुमच्याच गाडीमध्ये इथून ब्रेकफास्ट जाईल. ब्रेकफास्ट झाल्यानंतर तिथेच रहा तुम्ही फक्त इंडियन्सना आणायचं. बरं का ! आणि बाकीच्या ड्रायव्हर्सना सांगायचं एकाही इंडियनला घ्यायचंच नाही गाडीमध्ये. कळलं का? जास्त पैसे द्यावे लागतील आम्हाला.) अब हमें नाराज नहीं करना चाहिए। प्रसन्न करना चाहिए देवी को। प्रसन्न रखना चाहिए और प्रसन्नता होती है मनुष्य में जब तपस्विता आती है। आरामदेह लोग सहजयोग नहीं कर सकते। झगड़ा कर सकते हैं, ऑग्ग्युमेंट कर सकते हैं, बकवास कर सकते हैं, सब तरह की लांछनास्पद बाते कर सकते हैं। लेकिन आरामदेह लोग जो होते हैं सहजयोग नहीं कर सकते। आप लोगों को यहाँ आने के बाद यहीं रहना चाहिए। खाना खाने के बाद यहीं लेट जाईये। चाय पीना हो तो, क्योंकि अब चाय ले कर कौन भागेगा? तो ये कह रहे हैं कि यहाँ खाना खा के एक बस है वो आपको ले जायेगी, वही बस दूसरी पार्टी को ले जायेगी। और उसी के साथ वो चाय भी भेज देंगे। फिर आप वहाँ चाय पी लीजिये। और चाय पीने के बाद उसी बस से आप लोग आईये। और मेरी ताकीद है कि कोई भी | इन्सान जो कि हिन्दुस्थानी है, उसको कायदे से एक ही बस में आना चाहिए। नहीं तो ये लोग कल रिपोर्ट करेंगे और बहुत रुपया देना पड़ेगा। ये भी तो आप ही के बस वाले हैं। और आप ही की सरकार हैं और आप ही का खर्चा है। इतना बड़ा बड़ा खर्चा मुझे बता देते हैं मैं क्या करूँ? समझ गये। अब मेहेरबानी करिये, अपने मन से किसी भी बस में बैठने का आपको अधिकार नहीं है । सिर्फ एक बस आपके लिए तय कर ली। उसी का पैसा हम दे देंगे। आपको नहीं देना है तो मत दो। एक बस, समझे ना आप। इनसे कोई एक रुपया लेने की जरूरत नहीं। बेकार है। वो हिसाब हम कर लेंगे। लेकिन जो लोग बस में नहीं आयें वो वहीं रह जाए। वो दुसरे की बस में नहीं आयें, मेहेरबानी करें। एक भी आदमी अगर दूसरे बस में बैठेगा, उसका मुझे बहुत कुछ देना पड़ता है। इसलिए आप मेरे उपर मेहेरबानी करें। पिछली मर्तबे भी ऐसा हुआ था, इस मर्तबा भी ऐसा हो रहा है। 21 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-21.txt जो बुजुर्ग लोग हैं उनको चाहिए कि वो डॉर्मेटरी में शिफ्ट हो जाए, जहाँ भी जाना है और जो लोग आ रहे हैं वो भी डॉर्मेटरी में रहेंगे। वहाँ पर एक बस रहेगी आपके लिए। उससे आप आईये, जाईये, एक बस काफ़ी है। दिल्ली में भी लाइन से खड़े रहते हैं घंटो। यहाँ पर क्या नवाब साहबी आ गयी क्या? अच्छा, अब जो भी हो, आज अच्छी शुरुआत नहीं हुई। मुझे बहुत दुःख हो रहा है। बिचारे चार घंटे से वहाँ लटक के खड़े हो गये है। किसी को आपने आने नहीं दिया, और न यहाँ ला कर बस छोड दी। बड़े दुःख की बात है। इसलिए आप मन में अब माफी माँगे। और कहिए कि, 'अगले वख्त से ऐसा काम नहीं करेंगे माँ, ये बड़ी गलत बात हो गयी और इससे बड़ा दुःख होता है।' अब अगले प्रोग्राम मैं आपको बताती हैँ। जिसको आप सुन लीजिए। अगले प्रोग्राम में, हम लोगों का प्रोग्राम जो है वो इसी प्रकार होगा जैसे मैंने कहा। सबेरे उठ के मेडिटेशन होगा, फिर आप यहाँ ग्यारह बजे तक आ जाईये । नाश्ता कर के आप यहाँ पहुँच जाईये और खाना होने तक आप यहाँ रहिये। उसके बाद जाईये, आप आराम करिये, उसके बाद चाय पीजिए और चाय पी कर के और आप फिर से शाम को यहाँ पर आते वक्त याद रखिये की यहाँ छ: बजे तक पहुँच जाना है। तो वहाँ बस आयेगी। पहले बस से छ: बजे आ जाना, फिर दूसरे बस से आ जाना। फिर हम लोग छ:-साढ़े छ: से यहाँ प्रोग्राम में यहाँ शुरू करें। वैसे टाइम ज़्यादा नहीं लगता है। सिर्फ बात ये है कि उसकी परवाह नहीं है आपको । उनकी परवाह करनी चाहिए। पूछना चाहिए, आपने चाय पानी लिया या नहीं लिया। और कल से इसी तरह प्रोग्राम होगा। कल तीन तारीख को और भी लोग आ रहे हैं और तीन तारीख को जिन लोगों को शिफ्ट करना है उनको शिफ्ट कर दिया जाएगा। और आप लोगों के भी जो तंबू है वो यहाँ ला के लगा दिये जाएंगे| इसलिए बेहतर होगा कि आप लोग कल यहाँ पर चाय के बाद, नाश्ते के बाद वहीं रहें। क्योंकि आपके तंबू वहाँ से हटने वाले हैं और आपका जो सामान है, जैसे ये लोग आये परदेसी, तो ये सब सामान अपने हाथ में उठा के ले आये। आप लोगों के लिए टेंपो लाना पड़ा। क्योंकि आप लोग तो हाथ में कभी सामान उठाते नहीं। आज तक तो कभी किया ही नहीं। कुली थोडे ही है। सब हमारे यहाँ तो प्राइम मिनिस्टर है। तो उसके लिए भी आप लोग वो एक जो बस है, बस में आप सामान डाल के इधर ले आयें। यहाँ पर तंबू गाड़ दिये जाएंगी| तंबू कल उघाड़ दिये जाएंगे सबेरे । जब आप मेडिटेशन में जाएंगे उससे पहले तंबू उखाड़ कर के इधर लगा दिये जाएंगे , जिससे आपको बाथरूम की भी सहलियत हो जाएगी। और सारा इंतजाम हो जाएगा। तो यहाँ से खाना खाने के बाद यहाँ से जा कर के वहाँ रहिये। आपका जो सामान है, वो सामान जो है उसको आप को पहुँचाना होगा उन तंबुओं में खाना खाने को जाने से पहले। सो, कल सबेरे के प्रोग्राम में आप लोग एक ही प्रोग्राम करें कि अपनी व्यवस्था वहाँ से हटा कर के तंबुओं में करें। सो, कल सबेरे उठते ही आप लोगों का एक काम होगा की ये लोग जो भी चाहे करें, क्योंकि वो वहीं स्थित हैं, अपना सब सामान बाँध लें, सब ठीक- ठाक कर लें और तैयारी में रहें। कल तंबू गिराये जाएंगे और तंबू इधर डाल दिये जाएंगे|। और इस जगह आपका इंतजाम हो जाएगा , जहाँ बाथरूम्स बहुत सारे हैं, आप को परेशानी नहीं होगी। सिर्फ आपको अपना सामान उठा के इधर लाना है। वो आप उठा सकते हैं कि नहीं उठा सकते। अच्छा हाथ उठाओ, जो जो उठा सकते हैं। बस दो ही आदमी, और कोई नहीं। औरतें क्या नहीं उठायेंगी । चलो उठा के लाओ। कोई इंतजाम ही नहीं ना यहाँ पे| सामान उठाने का कोई इंतजाम ही नहीं है, तो क्या किया जाए ? तो एक टेंपो आ जायेगा। जो लोग बिल्कुल ही नहीं उठा सकेंगे उनके लिए एक टेंपो आ जाएगा। ऐसे ही फॉरेनर्स भी आपकी मदद कर देंगे। (फारेनर्स को बिनती) 22 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-22.txt स२ व पा ा उ क ४ ु (२ - 3-5 A ও) उ्हर ট দেনন ততত্ তইতাহর हमें ये समझ लेना चाहिए कि हम बड़े ही सूक्ष्म और बड़े ही मजबूत धागे से बन्धे हुए हैं और आपसी प्रेम इससे बढ़कर आनन्द की कोई चीज़ है ही नहीं। (प.पू.श्रीमाताजी, कलकत्ता, ०९/०४/१९९०) प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.१०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११ ०३८. फोन : ०२०-२५२८६५३७, ६५२२६०३१, ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in, website : www.nitl.co.in 2015_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-23.txt भारतवर्ष में ही सारे विश्व की कुण्डलिनी बैठी हुई है और भारत वर्ष हमारा ठीक हो जाए तो सार संसार ही ठीक हो जाए। और उसका सहस्रार भी यहीं बैठा हुआ है और इसलिए मुझे हजारों हिन्दुस्तानी ऐसे चाहिए जो आत्मसाक्षात्कार दे पायें। प.पू.श्रीमाताजी, २५/११/१९७३ ० ই 4ট त का M० ९ हे नि