चैतन्य लहरी मार्च-अप्रैल २०१५ हिन्दी भ क ८ क ज ी] ें क ॐ ३ं शि भभ प्लंस्टिक से आप हज़ारों फूल बनी सकते हैं लेकिन असिली फूल बड़ी मुश्किरल से लेकिन जब बहा२ आती है तौ हज़ारों फूल खरिल खिलते हैं । २कते हैं। प.पू.श्री माताजी, देवी पूजा, मुंबई, २१ मार्च १९७९ इस अंक में सत्य को मानना होगा ...4 जनम दिन पूजा, मुंबई, २१ मार्च १९७९ जड़ शक्ति और चैतन्य शक्ति दोनों शक्तियाँ साथ-साथ हैं ...12 सार्वजनिक कार्यक्रम, दिल्ली, १७ नवंबर १९७३ यहाँ हमारा क्या लक्ष्य है? ...22 नवआगमन अर्चना सहजयोग-संस्थापिका प.पू.माताजी श्री निर्मला देवी The Adorations एक दिव्य अवतरण प.पू. आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी के १००० नाम प.पू.माताजी श्री निर्मला देवी के प्रवचनों से संकलित बगैर आत्मा को पाये आप परमात्मा को नहीं जान सकते। सब कुछ बाकी जो भी आप कर रहे है, सब कुछ, अविद्या है। सब कुछ व्यर्थ है। लु त मेरा मन उमड़ आता है। आज तक लगातार बम्बई में ये जन्मदिवस मनाया गया। बम्बई में बहुत मेहनत करनी पड़ी है। सबसे ज्यादा बम्बई पर ही मेहनत की लोग कहते भी हैं कि, 'माँ आखिर बम्बई में आपका इतना क्या काम है?' पहले तो यहाँ पर रहना ही हो गया था। लेकिन बाद में भी बम्बई में काम बहुत हो सकता है ऐसा मुझे लगता है। हालांकि बम्बई पे कुछ छाया सी पड़ी हुई है। अभी दिल्ली में थोड़ा सा भी काम बहुत बढ़ जाता है। देहातों में भी काम हुआ है, हजारों लोग पार हो गये हैं। इसमें कोई शक नहीं। लंडन जैसे शहर में भी लेकिन बम्बई के लोगों पे कुछ काली छाया सी पड़ी हुई है। मेरे ख्याल से पैसे के चक्कर बहुत ज़्यादा बम्बई के लोगों में हैं। बड़ी आश्चर्य की बात है कि बम्बई में सालों लगातार मेहनत की है हमने और सबसे कम सहजयोगी बहुत काम हुआ। बहुत बम्बई शहर में हैं। इसका कोई कारण समझ में नहीं आता है। बहुत बार मैं सोचती हूँ और जब लोग मुझ से पूछते हैं 4 मुंबई , २१ मार्च १९७९ सुत्थ को मानवा होगा कि, 'माँ, आप बम्बई पे इतना क्यों अपना समय देती हैं? आखिर बम्बई में कौनसी बात है?' हालांकि शहरों से मैं बहुत घबराती हूँ। शहरों के लिए तो ठग लोग काफ़ी तैयार हो गये हैं क्योंकि आप की जेब में पैसे हैं और ठग आपको ठगना चाहते हैं। और आप लोगों के पास पैसा है, आप ठगों के पास ज़्यादा जाते हैं। जो लोग सर्कस बनाते हैं उनके पीछे में आप दौड़ते हैं। हज़ारों लोग ऐसे लोगों के लेक्चरों में दौड़ते हैं। असलियत को नहीं खोजते हैं। वो पैसे की जो अहंकार देने की शक्ति है उसको अजमाते हैं। लेकिन तो भी बम्बई से मेरा बड़ा प्रेम है। उसकी वजह है बहुत बड़ी। शायद आप लोग नहीं जानते कि महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती तीनों का उद्भव इसी बम्बई शहर में हुआ। इस धरती माँ ने न जाने क्या सोच कर के आपकी इस नगरी में ये पुण्य कार्य किया और ऐसी शक्तिशाली चीज़ जो कहीं भी, कहीं भी दुनिया में नहीं है। तीनों शक्तियों का यहाँ पर उद्घाटन किया। लेकिन लोग उस महालक्ष्मी के मंदिर में जा कर के भी सारे ही गलत काम करते हैं और उसके पास की जो महालक्ष्मी थी... उसमें अगर आप जा के देखे तो वहीं पे भीड़ लगी रहती है। न जाने लोग क्या खोज़ रहे हैं इस बम्बई शहर में। मैं बहुत बार सोचती रहती हूँ कि इन लोगों के दिमाग कब खुलेंगे? कब ये लोग सोचेंगे? कब इनके दिमाग में ये बात आयेगी कि सब से बड़ी चीज़ आत्मा को पाना है। बगैर आत्मा को पाये आप परमात्मा को नहीं जान सकते। सब कुछ बाकी जो भी आप कर रहे है, सब कुछ, अविद्या है। सब कुछ व्यर्थ है। आप जानते हैं कि परमात्मा का साम्राज्य अबाधित चल रहा है सारे संसार में। उसने सारी सृष्टि बनायी है और आपको भी इसीलिये बनाया है कि उस परमात्मा को जाने जो आप का कर्ता, स्रष्टा और आपका पालनहार है। उस की शक्ति को आप समझे। न जानें क्यों इन्सान इस तरह से भरमा गया है, इस तरह से गलत रास्ते पर चल पड़ा है, इस तरह से अपने जीवन को इतना क्षुद्र बना दिया है। हालांकि परमात्मा ने भी बहुत मेहनत की है इस मानव को बनाने के लिये। आप जानते हैं कि एक अमिबा से आपको इन्सान बनाया गया है। एक आप अपनी आँख को टटोले तो आप को पता होगा कि ये आँख कितनी महत्वपूर्ण है । इस आँख को कितनी खुबसूरती से उस परमात्मा ने घडाया है। इस सारे शरीर को उसने कितनी सुंदरता से बनाया है। और इस शरीर के अन्दर वो पूरा यंत्र बना के रखा है जिससे आपको ये वरदान मिलने वाला है और ये चाबी आपके अन्दर खुलने वाली है। लेकिन इस बम्बई शहर में लोग सोये हैं। कोई निद्रावस्था में लोग रहते हैं। पता नहीं की किस चीज़ की मस्ती चढ़ गयी, किस तरह का नशा चढा हुआ है। मैं बार-बार आप लोगों को कहती हैँ, कि आप जागिये। जागने का समय आ गया है। वास्तव में सहजयोग के मामले में आप जानते हैं, कोई ये नई चीज़ नहीं है। कबीर ने सहजयोग कहा हुआ है। नानक ने कहा हुआ है। राम ने जो किया वो सहजयोग ही था। जो नंगे पैर सारे भारतवर्ष में घूमे। आपके महाराष्ट्र में जो घूमे हैं। वो इसीलिये घूमे थें कि इस जमीन की, इस धरती, इस भारतमाता के कण-कण में वो चैतन्य भरें। उनके पैर से चैतन्य बहुता था। इस चैतन्य लहरियों को भरने के लिए उन्होंने यहाँ पर पदयात्रायें की। धरती माँ ने भी यहाँ पर अष्टविनायक की उत्पत्ति की हुई है। वो भी इसलिये की चैतन्य की लहरियाँ बहती रहेंगी और लोग उसको जानते हैं । उसके बाद कृष्ण ने जो भी किया वो भी सहजयोग ही था। पूरा सहजयोग था। राधाजी स्वयं साक्षात् शक्ति थी। रा.. धा, रा माने शक्ति, धा माने धारण करने वाली। वो शक्ति थी। जब वो अपने पाँव जमना में डालते थे तो वहाँ चैतन्य बहता था। उस पानी को जब वो अपने सर पर रखती थी तो भी चैतन्य बहता था। उस पानी को वो कंकड़ मार के जमीन पर गिराते थे तब भी चैतन्य वहाँ डालती थी। जब गोपियाँ अपने सर पे जमना का पानी रख के चलती थी तो उस पे भी कंकड़ मार के उनके पीठ पर वो चैतन्य का पानी गिराते थे । जिससे उनकी जागृति हो जाए। फिर वो रास खेलते थे। रा...स, रा माने शक्ति स माने सह। शक्ति के सहित जो वो सब को खड़ा कर देना चाहते थे, वो भी राधाजी के बदन से बहने वाली चैतन्य शक्ति सब में दौड़ाते थे। हर एक चीज़ में उन्होंने यही प्रयत्न किया, कि मनुष्य के अन्दर की कुण्डलिनी जागृत हो जाएं। इस तरह से जैसे खेल-कूद में हो जाएं। क्योंकि वे लीलाप्रिय थे। लेकिन मानव आज हजार साल से यही करता आ रहा है। मेरे जन्म से ही एक बात में जरूर जानती थी, इसलिये मैं अपने पिता से भी बहुत सलाह करती थी, वो भी बहुत पहुँचे हुये थे। उन्होंने भी मुझ से यही कहा कि जब तक ये चीज़ सर्वसामान्य से नहीं होगी, जब तक ये अनुभूति, आत्मा की ये अनुभूति जब तक सर्वसामान्य की नहीं होगी, तब तक न तो परमात्मा का कोई अर्थ रहेगा, न ही उनके सृजन का, उनके क्रिएशन का कोई अर्थ रहेगा। जरूरी है कि लोग आत्मा को जाने क्योंकि आत्मा के बगैर आप परमात्मा को जान नहीं सकते। जिस प्रकार आँख बरगैर आप कुछ देख नहीं सकते, उसी प्रकार जब तक आपका आत्मा जागृत नहीं होता तब तक आप परमात्मा को जान नहीं सकते। परमात्मा के नाम पर हजारों आप दुकानें खोल दे और परमात्मा के नाम पर दुनियाभर के के ढ़कोसले और ढोंग को खड़ा कर दे और जिसको की आप माने, उस से कुछ भी होने वाला नहीं। आप के हृदय अन्दर ही आत्मा का स्थान है। जो साक्षी आप ही के अन्दर बसा हुआ है, उस को जानना ही होगा। ये बहुत जरूरी बात है। आप समझते नहीं है। कितनी जरूरी बात है। वो समय आ गया है। आपने अभी विदेशी सहजयोगियों से सुना है, कि उनका देश, उनके देशों में वो सोचते हैं कि (अस्पष्ट) शराब पी कर रास्ते में लोट गये हैं। इतनी बुरी हालत है कि कौन माँ है, कौन बहन है, ये भी कोई पहचान नहीं पाता। एकदम टूट गये हैं लोग। उनको रात रात भर नींद नहीं आती। स्वीडन जैसे देश में दस में से नौ आदमी आत्महत्या की सोचते हैं। यहाँ पे सब से ज्यादा आत्महत्या संसार में होती हैं। जो सबसे ज्यादा सुबत्ता वाला देश है। हम लोग आज पैसों के पीछे में और दुनिया भर की गैर वस्तुओं की पीछे में सारी शक्तियाँ लगा रहे हैं। अपना स्वयं ही मूल्य खतम कर रहे हैं। हम किस चीज़ के लिये बने हैं, कैसे बने हैं? परमात्मा ने हमें कितनी मेहनत से बनाया। हमारा क्या 6. ्र Ηαππψ Βιρτηδαψ महत्त्व है ? हम क्या विशेष चीज़ है । हमारी लिये हर तरह से हर पाँचों तत्त्वों ने भी मेहनत की है। सब ने मेहनत कर के आपको बनाया, आपको घड़ाया। आपके अन्दर इसका पूरा यंत्र बनाया हुआ है। आपके अन्दर कुण्डलिनी बनायी है। उसकी जागृति बनायी हुई है। लेकिन सहजयोग धीरे धीरे पनपता है। एक ये जिवंत क्रिया, दूसरी सच्ची चीज़ है। झूठी चीज़ आप ऐसे ही बना दीजिये, प्लॅस्टिक से आप हज़ारों फूल बना सकते हैं लेकिन असली फूल बड़ी मुश्किल से खिलते हैं। लेकिन जब बहार आती है तो हज़ारों फूल खिल सकते हैं। लेकिन इस बम्बई में "बहार' किसी को खबर ही नहीं शायद | सब लोग सो रहे हैं। अपनी नींद में ही पड़े हुये हैं। किसी को होश ही नहीं कि बहार आ भी गयी और न जाने कितने ही खिल गये और अभी हम इसी मिट्टी में पड़ हये मर रहे हैं। आज बड़ा शुभदिन है। आज के दिन ऐसा नहीं की माँ बच्चों को डाँटें। सच आज ऐसा दिन नहीं है। लेकिन आज सालों से यहाँ पर, १९७० से ले कर आज तक हर बार मैंने यही जिद की बम्बई में ही ये दिन मनाया जायें। और हर बार मैं बहुत आप लोगों के तारीफ़ के पूल बाँधती रही। लेकिन देखती हैँ कि सहजयोग यहाँ पनप नहीं पाया है। यहाँ के गन्दे लोगों के दिमाग से चलेंगे। यहाँ पर आज एक गन्दा आदमी आ कर के गन्दी बातें आपको सुनायें तो हजारों आदमी वहाँ दौड़ कर के नंगे नाचेंगे । आप लोग नाचिये। लेकिन आप लोगों को सच्चाई चाहिये। से तो और मैं आज बता दे रही हूँ। इस बात को आप सुन ले। इस प्रकार एक दिन मैने बताया था, आंध्र में, मुझ लोग नाराज हो गये थे। जब मैंने आंध्र में जा के बताया कि जागिये आप लोग। क्या हैं यहाँ पर ? सब जगह तंबाकू लगाया है। तंबाकू के खेत के खेत। और कहने लगे, 'हम लोग नहीं खाते। हम लोग सिर्फ एक्सपोर्ट करते हैं। जितने रईस लोग हैं वो तंबाकू लगा रहे हैं और गरीब लोग जो हैं वो तांत्रिक विद्या पर | मैंने कहा, 'खबरदार, बहुत हो गया। अब ये समुद्र आ के खा जायेगा आपको।' और आप देखिये, मैंने किस डेट पर कहा हुआ है और वही हो गया। न जाने क्यों मेरे अन्दर इस कदर घबराहट हुई की ये लोग कर क्या रहे हैं? क्या भूल गये कि परमात्मा हर एक चीज़ को देखता है। हर कोई नापता हैं। हर सिटी का अपना अपना पुण्य हैं। हर जगह का अपना अपना पुण्य है। इसकी भी कोई हद होती है। उस हद से गुज़र गये हैं लोग।.....(अस्पष्ट) और उसको सहना पड़ेगा। पिछले साल मैंने ऐसे ही वहाँ के पंडों का हाल सुना। पंडों ने बहुत सताया और गंगा-जमना पर बैठ कर के इस तरह से वो धन को बेच रहे हैं। तभी मैंने ऐसे चीख चीख कर के कहा था कि इन पंडों से बच कर रहिये। अब देखा कि अपने खौंचे उठा के सब भागे जब गंगा जी और जमना जी ....(अस्पष्ट)। ये शुरुआत है। लेकिन आगे का भी सोचना होगा, मैं बता रही हूँ आपको । आगे का भी सोचना होगा। इसके आगे जो कल्कि अवतरण आने वाला है। वो आपके सामने आ कर ऐसे बतायेगा नहीं। आप से बिनती नहीं करने वाला। आप पे मेहनत नहीं करने वाला। आप को रियलाइझेशन नहीं देने वाला। आपकी कॅन्सर की बिमारियाँ ठीक नहीं करने वाला। वो तो हाथ में तलवार ले के खटा खट आखरी चीज़ है। उस वख्त सर्वनाश! यही उनका कार्य है। सहजयोग में बहुत अच्छा है। इसमें इंटिग्रेशन है, सुख है, आनन्द है, शारीरिक सुख है, मानसिक सुख है और परमात्मा का आशीर्वाद हैं। बहुत सुन्दर है। लेकिन कल्कि युग में ये नहीं होगा। कल्कि के अवतरण के बारे में आप सबने सुना है और वो होने वाला है। उससे पहले थोड़ी सी मियाद है। थोड़ा सा समय है। उस में मेहरबानी की 7 Hαππψ Βιρτηδαψ अपने आत्मा की आँखें खोले। आपके अन्दर आत्मा हमेशा वास करता रहा और आपकी कुण्डलिनी भी आपके साथ हमेशा रहती हैं। लेकिन आज तक कुण्डलिनी न जाने क्या क्या लोगों ने बना कर रखा है, जो की आपकी स्वयं माँ हैं। और आप भी उस चीज़ को हर समय किस तरह से सुनते रहे हैं। मेरी यही समझ में नहीं आता है, कि कुण्डलिनी जो की आपकी स्वयं की माँ हैं, उस पर गाली - गलोच लगाने वालों की बातें आप बड़ी प्रेम से सुनते रहे और उनके लिये रुपया दे दे कर के और वहाँ आपने घण्टों लगा दिये उनके टेप लगा लगा कर के। भक्ति से आपने उनकी गुरु विद्या सीख ली। जो आपकी माँ पे गाली लगाते हैं, ऐसे लोगों को आपने माना। सब से पहले आप जान लीजिये कि परमात्मा ने जब ये सृष्टि बनायी थी, तो पहली चीज़ उसने गणेश जी को बिठाया था, जो पवित्रता के द्योतक हैं। पहली चीज़ पवित्रता संसार में बनायी थी। और जिस इन्सान में पवित्रता नहीं होगी उसको परमात्मा की बात करने का कोई भी अधिकार नहीं। क्योंकि सहजयोग में आने के बाद आपकी पवित्रता बन जाती है। बहुतों की तो अपने आप ही बन जाती है। ये तो पूर्वसंपदा की बात है । पर बहुत से लोगों की धीरे-धीरे बनती है। याने आप सोचें कि जहाँ से भी आप आये हैं, सोलह हजार आदमियों ने शराब पीना छोड़ दिया है। इसलिये लोग सहजयोग में नहीं आते कि माताजी फिर कहेंगी कि आप शराब मत पिओ। मैं नहीं कहती, अपने आप छूट जाती है। क्योंकि जब मन की ही मदिरा आप पीने लग गये, जब आप को अपना ही आनन्द आने लग गया, जब मन से ही अमृत झरने लग गया, तो आप शराब क्यों पीते ? मुझे कहने की जरूरत क्या है? अपने आप, ये जो आज आपके सामने खड़े हये हैं ऐसे हमारे यहाँ तीन सौ पक्के लोग हैं जिन्होंने पूरी तरह से सब चीज़ अपने आप छोड़ दी और ये लोग तो ड्रग्ज तक लेते थे। मैंने जा कर उनसे नहीं कहा था कि, 'आप ड्रग्ज छोडिये।' आपके अन्दर की शक्ति है, आपके अन्दर की कुण्डलिनी है आप उसे खोज लीजिये। बस, इतना ही मुझे कहने का है। लेकिन ये बात कहने पर नाराज़ होने की भी कौन सी बात है । मैं कहती थी कि तांत्रिक लोगों को भी सोचना चाहिये, कि माँ क्या बुरे के लिये कहे। कोई माँ अपने बच्चे से कहेगी, कि जो गलत काम है वो सही है ? पर सहजयोग में आने के पहले मैं भी नहीं कहती। जैसे भी आप हैं, जो भी आपकी बीमारी है, जैसे भी आपकी हालत है हमारे सर आँखों पर ! कुछ आप आईये! और उसके बाद आप उसे पाईये। सहजयोग आपको आमूलाग्र, उपर से नीचे तक बदल देता है। क्योंकि ये जीवंत क्रिया है। जैसे एक पेड़ है। वो जीवंत है। उसके अन्दर कोई खराबी हो जाये , तो आप उसके अन्दर ऐसा कोई ड्रग डाल सकते हैं जिसके कारण पूरा उपर से नीचे वो ठीक हो सकता है। लेकिन जो मरी हुई चीज़ है। समझ लीजिये बिल्डिंग है इसके तहखाने में कोई खराबी हो जाये या इसके दीवारों में खराबी हो जाये , उसे हम ठीक नहीं कर सकते। आप जीवंत है। आपके अन्दर ये जीवंत क्रिया घटित होती है। उसके लिये परमात्मा ने आपको धीरे-धीरे एक-एक चक्र के इतना सुन्दर बनाया। लेकिन क्या आपके बारे में कुछ भी नहीं जानना चाहते ? क्या आपकी शक्ति को बना बिल्कुल ही नहीं पाना चाहते ? आपके अन्दर बने हुये ये चक्र कितने सुन्दर हैं। कितनी मेहनत से बने हैं और वो लालायित हैं। आपकी कुण्डलिनी जो है बैठी हुई है। हजारों वर्षों से आपके साथ जी रही है और चाह रही है कि वो क्षण आ जाये जब आप परमात्मा को पा ले। लेकिन उसके लिये कितना मुझे आप से कहना होगा। कितना आपका 8. आर्जव करना होगा। आपको भी तो थोड़ा सा सत्य को मानना होगा। सत्य आपके ...... मानने वाला नहीं। सत्य आपसे कोई वोट नहीं माँग रहा है। सत्य आपसे रुपया-पैसा नहीं माँग रहा है। आप खरीद नहीं सकते सत्य को। यही सत्य का दोष है। अगर आप सत्य को खरीद सकते और आपका हकदार अगर उससे पूरित होता तो आप लगे रहते। जैसे और गुरुओं के पीछे आप भाग रहे हैं और फालतू अपना समय बरबाद कर रहे हैं और अपना रुपया बरबाद कर रहे हैं। आप ही अपने गुरु हैं। आपको क्या जरूरत हैं किसी के पीछे भागने की! आप इसे पाईये। इसे जानिये। थोड़ी सी तो भी अपनी कद्र करें। अपनी इज्जत करें। अपने को समझें| ऐसी छोटी-छोटी चीजें, बेकार की चीज़ों में इस महान, मूल्यवान मनुष्य धारणा को न डालें। अभी दिल्ली के प्रोग्राम में न जाने कितने लोग पार हो गये। बहुत लोग आये। हर तरह के। मुझे आश्चर्य हुआ कि दिल्ली में, एक नानक साहब की बात मैं जरूर कहूँगी। इनकी कृपा बड़ी रही हैं, इसलिये दिल्ली के लोगों में | इसका जागरण बहुत है। पर इस महाराष्ट्र में ही कितना कार्य हो रहा है। ये संतों की भूमी है। यहाँ संतों ने अपना रक्त सिंचन किया है। इस महाराष्ट्र में बहुत कार्य हो सकता है। लेकिन इस मुम्बानगरी, जो कि इसकी राजधानी मानी जाती है, न जाने क्यों इतनी संतों से रहित, इतनी सत्य से रहित, नास्तिकों से भरी हुई, इतनी पाप नगरी क्यों हो गयी? आप पे बड़ा भारी उत्तरदायित्व हैं। आप पे बड़ी भारी जिम्मेदारी है। कल परमात्मा आप से पूछेगा कि, 'बेटे आपने क्या किया ? उस पाप में भाग लिया तुमने? उस पाप में तुम समागम कर गये।' कि लोग आते, 'माँ हमारे बच्चे का ऐसा क्यों हैं? हमारे बच्चे को ये तकलीफ क्यों हो रही है? हमारे बेटी को ये तकलीफ क्यों हो गयी? हमारा ऐसा क्यों हो गया ? आप क्या करते रहे? आप कहाँ हैं?' जिन देशों से आज ये लोग आके बातें कर रहे हैं। वहाँ जाने पर आपकी भी आँखें खुल जायेगी। आप उसी रास्ते पर चले जा रहे हैं। लेकिन वो किस ग्ढे में जाकर गिरे हैं वो आप देख नहीं सकते। क्योंकि आपके सामने सिर्फ उनका चलता हुआ रास्ता दिखायी दे रहा है। लेकिन वो गड्ढा नहीं दिखायी दे रहा है। जहाँ वो अपने सर ढूंढ रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं किसी तरह उसमें से निकल आयें। और जब वो कोशिश उनकी नहीं बन पाती तो आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या कर के भी कौन बच सकता है? कोई मरता ही नहीं। फिर से, फिर से वही जन्म आयेगा और वही द्विधा , वही आफ़त, वही आतंक। कॅन्सर की बीमारी एक बड़ा भारी, एक तरह से, आप लोगों के सामने एक शैतान खड़ा हुआ है। उसे देख कर तो आप समझ लें कि सहजयोग के सिवाय कॅन्सर ठीक नहीं हो सकता। आप कितनी भी कोशिश कर ले, आपका कॅन्सर सहजयोग के सिवाय ठीक हो नहीं सकता। अभी डॉ.कजोरिया आपके सामने थे, उन्होंने लंडन में भी कॅन्सर ठीक किया है। आप डॉक्टर लोगों के पास जाईये। यहाँ पर हमारे डॉक्टर भी बहुत से शिष्य हैं। वो भी कॅन्सर ठीक करते हैं। लेकिन जब डॉक्टरों के पास जाईये तो कहेंगे कि, 'हमारे पास लिस्ट दीजिये आप, | कितने लोगों का ठीक किया है।' ये प्यार का खेल है। क्या आप अपने घर में आये हये मेहमानों की लिस्ट देते हैं किसी को? क्या आप ये बताते हैं कि उसको कितने निवाले खाने के दिये? ये जो पैसे से काम करने वाले डॉक्टर है ये क्या समझ सकते हैं प्यार को! ये क्या माँ को समझ सकते हैं। इनके बस का नहीं है ये समझना। ये लोग तो हमसे ऐसे उलटे-सीधे सवाल पूछते हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। मुझे तो ये भी नहीं पता कितनों को ठीक किया, 9. कितनों को नहीं किया। गंगा बह रही है, जो ठीक हो गया वो ठीक हो गया। नहीं ठीक हुआ, नहीं हुआ। उसमें क्या कोई हिसाब लगाता है कि कितनों को ठीक किया ? कितनों को आशीर्वाद दिया? कितनों को पानी पिलाया? कितनों ने घड़े भरे? प्यार की महिमा आत्मा के प्रकाश से कभी नहीं खुलती। आत्मा का प्रकाश पहले खुलने दीजिये। आत्मा की रोशनी में आप देख सकते हैं कि प्यार चीज़ दूसरी ही है। आज तक आपने जाना ही नहीं प्यार क्या चीज़ है। प्यार की शक्ति कितनी प्रचंड है। कितनी महान शक्ति है। और इस शक्ति से बढ़ के दूसरी कोई सूक्ष्म शक्ति हो ही नहीं सकती। आप यहाँ बैठे -बैठे किसी भी आदमी को पार करा सकते हैं। यहाँ बैठे -बैठे किसी भी आदमी का भला कर सकते हैं और कल्याण कर सकते हैं । इसकी शक्ति कितनी सूक्ष्म है और कितनी गतिमान है, आप समझ भी नहीं सकते। आपका सारा साइन्स वगैरा इसके पास भी नहीं आता। पर आप इसके अन्दर तो आईये। इसको देखिये तो किस गरूर में आप बैठे ह्ये हैं। ये गरूर से भी अन्धापन बहुत ज़्यादा है। बहुत ज़्यादा अन्धापन है। कभी- कभी मुझे बड़ा दुःख होता है कि कब इसके बारे में लोग जागृत होंगे और इसे पायेंगे ? कल मैं आपको ये बताऊँगी कि आप क्या है? आप क्या चीज़ है? आपके अन्दर कौनसे चक्र हैं ? और कैसे कैसे वो गतिमान होते हैं? और किस तरह से ये सुरति, ये कुण्डलिनी, आपकी माँ, किस तरह से आपको बढ़िया तरीके से पार कराती हैं। कितनी कलात्मक हैं, कितनी सुन्दर हैं, कितनी प्रेममय हैं, इसको समझ लेना आपका परम कर्तव्य है। ये आपके साथ जन्मजन्मांतर रहती है और इसको पा लेना भी आपका सबसे बड़ा यही तो एक ध्येय है। आप किसलिये पैदा हये हैं? किसलिये मनुष्य बने? किसलिये अमिबा से आज तक इन्सान बनाया गया ? समझ लीजिये, ये एक बड़ा भारी सा इन्स्ट्रमेंट बनाया हमने। और इसको अगर मेन से लगाया नहीं तो इसका क्या अर्थ निकलता है? इसका कोई अर्थ ही नहीं। व्यर्थ हो गया। और इसको बनाने वाले का भी क्या अर्थ हुआ। परमात्मा का भी कोई अर्थ नहीं होता। लेकिन परमात्मा भी आपके सामने झुकता है। एक तरह से आपको स्वतंत्रता है। आपको स्वतंत्र किये बगैर ये कार्य नहीं हो सकता था। इसलिये आपको स्वतंत्र किया गया। लेकिन स्वतंत्रता का मतलब बेछूटपना तो नहीं हो सकता। कोई अगर एरोप्लेन के इससे कहें कि हम स्वतंत्र हैं। हम जहाँ चाहे जैसे चिपक जायें और जब चाहें निकल जायें, तो वो क्या एरोप्लेन चढ़ सकता है। आप अगर एक सबंध, पूरे एक परमात्मा के अंग-प्रत्यंग हैं, अगर आप उस विशाल-विराट के ही रक्तमाँस पेशियाँ हैं, तो क्या आप अपना अलग अस्तित्व रख सकते हैं? और कह सकते हैं कि मैं स्वतंत्रता से जन्मा हूँ। जैसे ही आपने ये कह दिया, आप मैलिग्नंट हो गये, आप एक कैन्सर हो गये उस शरीर से। जैसे ही आपने सोच लिया कि 'मुझे जो करना हैं मैं करूंगा।' उसी जगह आपको जानना चाहिये। एक तो आप जानते नहीं कि सारे परमात्मा, उसके एक- एक अंग-प्रत्यंग बसे हये हैं, जो भी महान...... जो आपने कहा ऐसे लोग हैं। वो सब आपको देख रहे हैं। जैसे ही आप इस कैन्सरस्थिति में चले जाएंगे , आप नुकसान पहुँचाएंगे अपने को भी, और उस विशाल देह को भी जिस में आत्मा समाया रखा है। इसका विचार आपको रखना चाहिए। बहुत जरूरी है कि अब समय बहत कम है। बहुत कम है। आप समझ सकते हैं कि १९७० से ले कर आज तक इस बम्बई शहर में मैंने महिनों काटे। बहत मेहनत की। जैसे इन्होंने कहा, सबसे ज़्यादा मेहनत मैंने बम्बई में की। बहुत ज़्यादा मेहनत की है। लेकिन बम्बई के लोग बहुत मुश्किल हैं । यहाँ पे 10 Ηαππψ Βιρτηδαψ यही हो कि 'अति परिचयात् अवज्ञा।' लेकिन ऐसे सोते रहने का अब समय बीत गया। कृपया आप लोग जागें। कल आप अपने साथ और लोगों को ले आईये, जो आपके अड़ोसी-पड़ोसी हैं। और हो सकें तो आज हमारा जो प्रोग्रॅम इसके बाद होने वाला है कव्वाली का उसमें मैं आपको आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयत्न करूंगी। इस वख्त सब लोग मेरी ओर ऐस तरह से हाथ कर के बैठें । और आपको धीरे-धीरे हाथ में ठण्डी- ठण्डी हवा आने लग जाएंगी। आप देखेंगे कि आपके हाथ के अन्दर ये चैतन्य की लहरियाँ ठण्डी-ठण्डी आने लगेंगी। इन ठण्डी-ठण्डी लहरों के बारे में श्री आदि शंकराचार्य ने आपको विशद रूप से बताया हैं। बायबल में भी बहुत बताया हैं, कि होली घोस्ट माने आदिशक्ति के अंग से ये ठण्डी - ठण्डी लहरें निकलती हैं । सब दूर इसका वर्णन है । कोई ये नयी चीज़ नहीं है। लेकिन आज तक ये सर्वसामान्य के लिये घटित नहीं हुआ था और ये चीज़ सर्वसामान्य को मिलनी चाहिये। दो-चार कोई चलती नहीं है। इस वजह से ये कार्य आज इस कलियुग में करने का आवश्यक था । आप लोगों ने आज मुझे इतनी बधाईयाँ दी हैं, इसमें से बहुत से सहजयोगी भी हैं। और सहजयोगी लोगों के लिये मैं इतना जरूर कहँगी कि बम्बई में क्योंकि इतने ब्रँचेस नहीं होते, ये प्रसार कम होता है, इसलिये जो सहजयोगी बहुत गहरे थे, बहुत गहरे थे सहजयोगी । यहाँ का गहरापन सहजयोगियों का प्रशंसनीय हैं। क्योंकि इसकी बहुत सारी शाखायें नहीं होती हैं। बाकी के सहजयोगी जितने भी हैं बहुत गहरे उतरते चले जा रहे हैं । बाकि इसका प्रसार बाहर कम फैलता है। जो हैं, २०० -३००-४०० तक होंगे कहना चाहिये, जो काफ़ी गहरे उतर गये हैं। लेकिन इनका प्रकाश बाहर की ओर नहीं फैला हुआ। इसलिये मुझे आपसे कहना है कि और जो आपके मित्र लोग हो, सब लोग हो, उनको खाना खिलाना, घूमाना, खिलाना इस तरह की बेकार की चीज़ों में उलझाने से अच्छा है कि आप इस पुण्य का लाभ उठायें कि उनको आप ही लोग यहाँ पर ला कर के पार करवायें । यहाँ, आप जानते हैं, यहाँ पैसा-रुपया, कोई चीज़ नहीं चलती। सिर्फ यही है कि आपको पार होना पड़ता है। इसमें कोई वाद - विवाद करने से पार नहीं हो सकता। झगड़ा करने से कोई पार नहीं होता। जो पार है वो पार है, जो नहीं है वो नहीं है। आपको पार होना है तो पार हो लीजिये। एक बार आईये, दो बार आईये, जरूर, आने के साथ पार हो जाता है। पिछली मर्तबा काफ़ी मेहनत की थी हमने, और ध्यान दिया था । लेकिन देखते यही हैं कि इन लोगों में अभी भी काफ़ी निद्रावस्था है। उसको थोड़ा सा जगाना चाहिये। और उस आशा से ही मैंने आज जरा आप से थोड़े कड़े शब्दों में कहा, कि कृपया जागृत होईये। अगर धीमी आवाज सुनाई नहीं देती, अगर मधुर आवाज सुनाई नहीं देती, मंजुल बात सुनाई नहीं देती, इसलिये थोड़ा सा कड़ा होना पड़ता है और कहना पड़ता है कि, बेटे जागो, बहुत देर हो गयी। सूर्य कब का आकाश पे आ गया। न जाने कब डूब जायेगा। फिर से अंधेरे में, हमेशा के अंधेरे में डूब जाओगे। एक माँ का हृदय हैं और वो भी विकल हो जाता है। कभी कभी बहुत व्यथित हो जाता है। इसे समझना चाहिये। आज आप लोगों से मैं एक ही वादा चाहती हूँ कि अगला जनम दिन मैं यहाँ करूंगी लेकिन आप बहुत बार, बहुत तादाद में सहजयोग को प्राप्त करें। 11 जड़ शक्ति और चैतन्य शक्ति दोनों शक्तियाँ सा-थ हैं री थे य्य दिल्ली, १७ नवंबर १९७३ जानवर में वो प्रश्न होते ही नहीं है जो मनुष्य में होते हैं। जानवर के लिये तो कोई प्रश्न ही नहीं होता है, वो सिर्फ जीता है। जिस शक्ति के सहारे वो जीता है उसकी ओर भी उसका कोई प्रश्न नहीं होता है कि वो कौनसी शक्ति है कि जिसके सहारे मैं जीता हूँ। इसकी वजह ऐसी है कि ये चैतन्य शक्ति, जो कि सारे सृष्टि की रचना करती है, उसकी चालना करती है, इसकी व्यवस्था करती है। वो प्राणिमात्र में बहती हुई और गुजर जाती है। क्योंकि इन्सान है जिसे के जीवन से सम्बन्धित ऐसी कुछ एक विशेष कारण, इसके एक विशेष तरह रचनायें हो जाती हैं कि जिससे मनुष्य उस शक्ति से वंचित हो जाता है। उसको अगर हम समझें तो साधारण शब्दों में इस तरह से कहा जायेगा कि मनुष्य प्राणिमात्र में नहीं। मनुष्य में जो अहंकार हो जाता है वो का दिमागी हाल जो है वो है। इसका दिमाग एक बहुत ही और तरह का ईै त्रिकोणाकार है। और इस त्रिकोण में जब ये महिने के, माँ के गर्भ में ओर गुज़रती है तो वो अंग्रेजी में कहते हैं, शक्ति, बच्चा तीन होते समय अन्दर की जिसे एक रिटरॅक्शन कहते हैं, विकेंद्रीकरण विलिनीकरण जिसे हिस्सों में बँट जाता है। कहते हैं उसमें तीन के बीच से सीधा नीचे २० एक हिस्सा जो सर के माथे हिस्से, जो कि सर के बाकी गुज़र जाता है। और बाकी दो ४ और यूँ कर के नीचे की ओर शक्ति की वजह से भी मनुष्य दो कोणों में से नीचे के गुज़र चले जाते हैं। इस .. तरह की प्राणि मात्र से एक दूसरी ही चीज़ है । ये जो गुज़रती हैं, और त्रिकोण के कोण की तरफ़ से जब गुज़रती हैं तब उसमें भी एक कोण आ जाता है। और उसी कोण शक्ति हमारे सर में त्रिकोण में से के कारण उसकी शक्तियाँ दो तरह से बदल जाती है। अगर आप लोग फिजिक्स जानते हो तो आप समझ लेंगे कि शक्ति हमेशा सीधी ही गुज़रती है। लेकिन वो जब इधर से गुजर कर आती है और उसे ऐसे जाना पड़ता है इसका 12 बदलता हुआ रूट (मार्ग) इसको दो शक्ति में बाँट देता है, जिसे कॉम्पोनन्ट कहते हैं। एक ऐसे बाहर की ओर जाती है, एक नीचे की ओर। बाहर की ओर जाने वाली शक्ति के कारण ही मनुष्य के अन्दर में बाहर की ओर शक्ति आ जायें। जैसे की एक जानवर है वो अगर इस स्टूरल पे आ कर बैठ जाये तो ये सोचेगा की स्टूल पे बैठे और मनुष्य अगर स्टूल पे बैठेगा तो सोचेगा की ये स्टूल मैं कैसे पा लँ? ये काम का है कि नहीं? इसको किसने बनाया ? इसका बनाने वाला कौन? कोई सी भी चीज़ देखते ही इन्सान उसपे लपटता है। क्योंकि इन्सान जो देखता है उसकी ओर भी लपटता है। जानवर में ये बात नहीं। इसका अगर मालिक आ जाये तो वो खुश हो जाता है। कोई अगर पराया आदमी आये तो भौंकने लग जाता है। कोई अगर चोर आयें तो फिर भौंकने लगता है। अब वो ये नहीं सोचता है कि ....(अस्पष्ट), इस माइक को मैं ले लँ। इस टेबल को मैं ले लूँ। उसको क्या सिर्फ ..... (अस्पष्ट)। उसमें सौंदर्य की भी दृष्टि नहीं आती। वो ये भी नहीं सोचता कि कोई चीज़ सुंदर है क्या। इसका रंग अच्छा है या बुरा। इससे उसे कोई मतलब नहीं। लेकिन मनुष्य कुछ भी वस्तु विशेष नहीं। फिर वो आगे बढ़ कर के ये सोचने लग जाता है कि मैं कोई एक विशेष हूँ। जैसे कि हम पैदा होते ही ये सोचने लग जाते हैं कि हम निर्मला है। हम हिन्दुस्थानी हैं। हम हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं। इस तरह की जो कुछ भी बाहर की उपाधियाँ हैं, इससे लिपटता है। ये जो बाहर जाने की प्रवृत्ति है, ये मनुष्य के त्रिकोणाकार मस्तिष्क से ......। अगर मनुष्य बाहर न जाये तो उसके आगे कोई प्रश्न नहीं आता। जैसे कुते, बिल्लियों के आगे कोई प्रश्न नहीं। उनके अन्दर से सारी चेतना के चली जाती है। उनके आगे कोई प्रश्न नहीं । कोई उनके अन्दर रिअॅक्शन नहीं। लेकिन हमें ऐसा है, गुजर हम अगर किसी भी चीज़ की ओर देखते हैं, उसके प्रति हमारा रिअॅक्शन होता है। उसी कारण हमारे अन्दर एक आगे से निकलने वाली और एक पीछे से निकलने वाली शक्ति के कारण हमारे अन्दर उसका रिअॅक्शन मात्र ही इगो और सुपर इगो, अहंकार और प्रतिअहंकार, नाम की दो संस्थायें तैयार हो कर के यहाँ एकत्र हैं। उसके एकत्रित होने के कारण यहाँ से हम सारे तरह से अलग ही हट जाते हैं । उस ओर में जो हमारे शक्ति विराजमान है, उस शक्ति से हम अलग हो गये। आप अलग है, आप अलग है। हम सब अलग-अलग है। वास्तविक हम एक ही शक्ति की देन हैं। जैसे कि कोई हमारे अन्दर पेट्रोल भर दिया हो , और हमें यहाँ से ... (अस्पष्ट)। इस शक्ति में से जो .... की शक्ति गुजर के जाती है, वो हमारे रीढ़ के पीठ की हड्डी से नीचे के हिस्से में जो त्रिकोणाकार अस्थि है उसके अन्दर जा के लपेट के साढ़े तीन चक्र में बैठती है। कुंडलों में बैठती है। इसलिये उसको कुण्डलिनी कहते हैं। ये शक्ति अभी दिखायी नहीं देती, इसलिये बहुत से लोग कहेंगे कि ये आप जो कह रहे हैं बात कैसे माने। लेकिन ये एक हप्ते पहुँचते तक आपको दिखायी देगी। जैसे कि आपको हम कहे कि माइक्रोस्कोप है, आपको बहुत माइक्रोस्कोप आपको मिलना चाहिए। अगर आप माइक्रोस्कोप नहीं मिला तो आप उस चीज़ को देखिये । तो एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि आप उन शक्तियों को देख सकते हैं। उसका आकार देख सकते हैं। लेकिन ये निराकार सी ऐसी चीजें दिखायी नहीं देगी, इन आँखों से नहीं दिखायी देगी। लेकिन में शक्ति जा कर के अन्दर बैठी हुई है। जिस वक्त ये कुण्डलिनी की जागृति होती है, हमारे यहाँ जो लोग आये हैं, और जो लोग अब पार हो चुके हैं, वो काफ़ी इस काम को जानते हैं। वो ही बता सकते हैं कि जब कुण्डलिनी 13 आपकी जागृत होती है, अगर कोई मेरे सामने झुका हुआ हो, तो उसके पीठ के इस रीढ़ के हड्डी के पीछे में उसका स्पन्दन दिखायी देता है। आप कभी भी श्वास यहाँ से लेते हैं तो उसका उठना और गिरना आप देख सकते हैं। चाहे आप पार हो या ना हो। बहुत से लोगों में ये दिखायी देता है। सब में दिखायी नहीं देता है। लेकिन विश्व की कृपा हो तो इसमें काफ़ी अच्छे से दिखायी देता है। काफ़ी देर तक आप देख सकते हैं कि वहाँ स्पंदन है । ये शक्ति वहाँ स्थित रहती है, वहाँ बैठी रहती है। यही कुण्डलिनी है, जो बैठी रहती है उस समय तक, जन्मजन्मांतर तक। यही कुण्डलिनी आपके अन्दर पनपती रहती है और सारी चीज़, टेप जिस तरह से होता है, रेकॉर्ड करती रहती है कि इनको क्या-क्या तकलीफ़ हैं? ये मेरा बेटा है, इसको क्या-क्या परेशानी है? इसके शरीर में क्या-क्या तकलीफ़ हैं? इसके मन में क्या तकलीफ़ हैं? और इसको किस चीज़ की कमी है? वो सब कुछ आपके बारे में जानती है। आपके माँ के अनेक बच्चे हो सकते हैं, पर इस माँ के आप ही हैं। अब मेरा जब से जन्म हुआ, मैं ये देख रही थी कि हर एक इन्सान की कुण्डलिनी वहीं जम गयी है। वो उठती ही नहीं। वजह क्या है? इसका उठने का जो मार्ग निश्चित हैं जिससे वो उठेगी जिसे वो जानती है, कि मुझे इसी मार्ग से उठना है। इसके बीच में एक बहुत बड़ी जगह है जो कि बाहर भी, जो डॉक्टर लोग हैं समझ सकते हैं, कि हमारे ...(अस्पष्ट) और अेऑर्टिक प्लेक्सस के बीच में कुछ भी नहीं। उसी तरह अन्दर, यहाँ भी हमारे जो वॉइड है से हमारे जो बीच की सुषुम्ना नाड़ी है उसमें ऐसी जगह है । सभी इन्सानों में ये जगह बनने के कारण ये कुण्डलिनी शक्ति है। मैं यही नहीं समझ पाती थी कि ये कुण्डलिनी शक्ति है। उठेगी तो किस तरह से उठेगी। उस गॅप को भरने का इलाज जो ढूँढा गया है वही सहजयोग है। ये जो कुण्डलिनी शक्ति उठती है, तो ये उपर जा कर के और फिर से इसी मार्ग से उपर जा कर के आपको एकाकार कर देती है। उस शक्ति से जो कि हमारे चैतन्य से घडती है। जैसे कि आप समझ लीजिये कि पेट्रोल हमारे अन्दर पहले भरा गया था। उसके बाद हमने इसे इस्तेमाल कर दिया। हमारी बाहर जाने की प्रवृत्ति से हम इसे इस्तेमाल करते हैं। अब नया पेट्रोल भरने के लिये फिर से ये कैप खुल गया है। और उसके लिये कुण्डलिनी ही उसे खोल देती है और उपर से कोई ब्रेक......, वो आप के अन्दर में वो शक्ति पूरी समय दौड़ती है। जब ये चीज़ घटित हो जाती है, उस वक्त आपको ऐसा लगता है कि आपके हाथ के अन्दर से कोई शक्ति बहती है। अब आश्चर्य की बात है, कि शुरू से जब से चैतन्य शक्ति अपना कार्य कर रही है तब से जड़ शक्ति और चैतन्य शक्ति दोनों शक्तियाँ साथ-साथ हैं। जैसे कि एक पेड़ है। पेड़ के अन्दर उसकी चैतन्य शक्ति है, लाइट है तभी तो वो पनप रहा है। लेकिन आप उसे देखते रहे। देख रहे हैं आप कि पेड़ कब आयें। माने जड़ शक्ति का काम आपने किया । चैतन्य शक्ति हमेशा जड़ शक्ति | को चलाती है। रेग्युलेट करती है और अपना काम करती है। लेकिन वो पहली मर्तबा जब आप रियलाइज्ड होते हैं, तब वो दिखायी देती है, तब उसका प्राद्भाव होता है। मैनिफेस्ट होता है। पहली मर्तबा आपके अन्दर से बहने तब लगती है जब ऊपर से उसका प्रवाह खुल जाता है और अन्दर से ठण्डे-ठण्डे वाइब्रेशन्स आने लगते हैं। लेकिन आप स्वयं उस दशा में पहुँच जाते हैं, जहाँ एकाकारिता स्थापित हो जाती है, अंतर्मन की। अगर यहाँ कोई साइकोलोजिस्ट है तो समझ सकते हैं। वो इसको युनिव्हर्सल अनकॉन्शस कहते हैं।......(अस्पष्ट) 14 बहुत से लोग तो ये भी कहते हैं, कि बड़े-बड़े लोग जैसे रमण .... थे उनको कैन्सर हो गया था। हो गया था, लेकिन उनको कोई बताने वाला नहीं था कि किस चीज़ की कमी थी। वाइब्रेशन्स के बारे में भी बहुत कम लोगों ने लिखा है। सब से तो कमाल ये है कि सिर्फ आदि शंकराचार्य ने ही उसके बारे में लिखा है। लेकिन जो अपने को बड़े हिन्दू कहलाते हैं वो आदि शंकराचार्य के विरोध में थे । आदि शंकराचार्य ने सिवाय सहजयोग के और कोई बात ही नहीं की। उन्होंने यही कहा कि ' न सांख्येन न योगेन' । सांख्य से, योग से, किसी भी चीज़ से परमात्मा को पाया नहीं जाता, वो सहज में ही हो जाता है। अपने आप ही, स्पॉन्टेनियसली योग होता है और उन्होंने कोई जाति-वाती बनायी नहीं थी । वो भी ये कह गये कि तीन तरह के संसार में लोग है। एक तो ये कि वो, जो बहत ही निम्न श्रेणी के होते हैं, जिनकी बुद्धि खास नहीं होती है। जो पूरी तरह से, अभी ह्यूमन बिईंग डेव्हलप नहीं है। माने समझ लीजिये कि ये माईक है। ये पूरी तरह से मशिन तैयार नहीं हुई है, इसका मेन से कनेक्शन लगाने की कोई जरूरत भी नहीं और फायदा भी नहीं। इस तरह के जो लोग हैं वो भक्ति रस में पड़े रहते हैं। उनका कुछ फायदा नहीं। दूसरे ऐसे लोग हैं कि जिनका मन बहुत इधर-उधर दौड़ता है। और उसके कारण वो बूरे काम, या ऐसे काम में जुटे रहते हैं जिससे उनकी शक्ति क्षीण हो जाती है। ऐसे लोग योग में पड़े हैं जिससे कि वो योग से खुद अपने को बचाये। लेकिन एक तिसरे तरह के लोग होत हैं जो कि इतने शुद्ध स्वरूप होते है। उनके अन्दर ये अद्भुत घटना घटित होती है। अब उनमें और मुझ में यही अन्तर है कि वो कहते हैं कि करोड़ों में एखाध होते हैं। मैं कहती हूैँ, लाखों होते हैं । यही एक बात उनमें और हमारे में अन्तर हैं। हो सकता है, कि छठी शताब्दि में ऐसे ही लोग रहे हैं, लेकिन जैसे आज हैं, देखती हूँ कि इनमें से हजारों लोग पार हैं। ये कुण्डलिनी जागृति के प्रति भी आपने बहुत कुछ कहा होगा। अगर आप उस किताबों को पढ़े हों तो शायद आप यहाँ न आते। क्योंकि उसके बारे में ऐसा बताया कि कुण्डलिनी की जागृति होती है तो बदन में बड़ी बड़ी फूँसियाँ निकल आती है, या बड़ी आग सी होती है। कोई लोग कहते हैं कि उसमें आदमी पागल हो जाता है । दुनिया भर की चीज़ें हैं। इस में ऐसा कुछ भी नहीं है। लेकिन वास्तविक ये लोग जिसको कुण्डलिनी जागृति कहते हैं वो कुण्डलिनी की जागृति नहीं है। वो कुण्डलिनी नाराज़ है। क्योंकि जब कुण्डलिनी मध्य मार्ग से उठती ही है तो उसको और जगह से किसी भी तरह से अन्दर उठाने का प्रयत्न करे तो ये गलत चीज़ है । मध्य मार्ग से वो तभी उठ सकती है, जब ऐसा ही आदमी जो संपूर्ण परमात्मा के चैतन्य स्वरूप प्रेम को ही बाँटता है। वो ही इस जगह को भर सकता है, जो मनुष्य के बीचोबीच में है। वास्तविक ऐसे लोग बहुत कम हैं। थे। हम तो कहेंगे अब बहुत लोग ऐसे हो रहे हैं। इन्हीं लोगों को रियलाइज्ड कहना चाहिए। जिनके अन्दर फिर चैतन्य शक्ति है। जब ऐसे ही लोग आपको जागृति देंगे, जो पार हो गये हैं, जो रियलाइज्ड हो गये हैं, तब आपको कभी भी कुण्डलिनी का कोई सा भी प्रादुर्भाव दिखायी नहीं देगा, जैसा कि लोग बताते हैं। बिल्कुल तथाकथित है ये बात। इस तरह की घटना घटित होती है। हमारे सामने हजारों लोगों की जागृतियाँ हो गयी हैं। बम्बई शहर में कम से कम दस हजार लोगों की जागृति हुई है। और पार भी करीबन तीन हजार के उपर लोग, चार हजार करीब, तीन 15 और चार के बीच पार हुये हैं। लेकिन किसी भी आदमी को किसी तरह की तकलीफ़ होते देखा नहीं । जैसा वर्णन हुए है। हाँ, थोड़ा बहुत जरूर, रेझिस्टन्स जिसे कहते हैं, क्योंकि हम जिस तरह का प्यार दे रहे हैं, हो सकता है कोई नफ़रत कर रहा हो और आपके अन्दर बसा हो। वो जरूर थोड़ा आपके शरीर को हिला सकता है, आपको कोई दुःख देने के लिए। लेकिन वो भी थोड़ी देर में ठीक हो जाता है और वो भी भाग खड़ा हो जाता है। क्योंकि जब वो देखता है कि यहाँ प्यार ही आ रहा है, वो भी जैसे कि उजाले को देख कर अंधेरा भाग जाता है, वो भी भाग जाता है। लेकिन कोई भी इन्सान को हमने देखा नहीं की उसके बदन पे फोड़ें आये हैं या फूँसियाँ आयी हैं या वो पागल जैसे कर रहा है। अभी कुछ दिन पहले हम एक जगह गये थे तो एक साहब हमारी तरफ पाँव कर के बैठे। किसी ने कहा ऐसे न बैंठे। तो उसने कहा कि, 'ऐसे बैठने दीजिये नहीं तो मैं मेंढ़क के जैसे कूदता ।' 'ये क्यों?' कहने लगे कि, 'मेरे गुरु बताया कि, जब कुण्डलिनी की जागृति होती है तो आप सब मेंढ़क के जैसे कूदते हैं।' तो उसको हमने कहा कि, 'तुम्हारी तो जागृति ही नहीं हुई और बहुत कम बीच की जो सुषुम्ना नाड़ी हैं, बीच में हमारे अन्दर और दो नाड़ियाँ हैं, जिसे ने मुश्किल काम हैं तुम्हारी जागृति होने का। क्योंकि इतनी जगह बनी हुई है। इसके अलावा सिम्पथैटिक नव्व्हस सिस्टीम कहते हैं। बगैर जब हम उस परमात्मा को पाये हये, उसकी शक्ति को पाये हये इसके नाम पर कोई भी काम करते हैं, या क्रिया करते हैं उसी वक्त हमारी जो सिम्पथैटिक नव्ह्हस सिस्टिम है वो चलने लग जाती है। इसे हम इड़ा और पिंगला नाड़ी जाने से ही ये कार्य होता है। और कहते हैं। उन नाड़ियों के तप्त हो जब आप कुछ भी परमात्मा के वो गर्मी आ जाती है। याने आप नाम पे करते हैं उस वक्त आप में ऐसा सोच लीजिये कि अगर आपने अपने घर का हिटर उसमें पानी डाले बगैर अगर चला दिया तो उसमें क्या हालत होगी। पहले उसमें प्रेम का पानी डालिये। जब तक उस में प्यार का पानी नहीं पड़ेगा तब तक वो कार्य बन नहीं सकता। को पाये हुये, उसकी शक्ति को पाये हुये इसके इसी तरह से जब हम बगैर उस परमात्मा नाम पर कोई भी काम करते हैं, या क्रिया करते हैं उसी वक्त हमारी जो सिम्परथैटिक नव्व्हस सिस्टिम है वो चलने लग जाती है। इड़ा या पिंगला, कोई सी भी नाड़ी के चलने से, क्रिया शक्ति के बनने से, जो आपकी शक्तियाँ हैं वो खत्म हो जाती है। आपकी इड़ा अगर बहुत चलेगी तो आपको कैन्सर जैसी भयंकर बीमारी होगी। ओव्हर अॅक्टिविटी जिसे कहते हैं। और अगर आपकी पिंगला बहुत ज्यादा चल गयी, तो आपका कंडिशनिंग बढ़ जायेगा, आपके अन्दर में जिसे कहते हैं भूतबाधा आ सकती है। इसलिये दोनो ही तरह से क्रिया का करना विशुद्ध माना जाता है। लेकिन जब आप वही हो गये, तब आप क्रिया ही नहीं करते। जैसे कि अब ये माइक है। ये क्या क्रिया करेगा सिवाय इसके कि जो मैं बोल रही हूैँ वही आप तक पहुँचाये। इसी तरह से आप भी एक खोखली चीज़ हो जाती है। हॉलो पर्सनॅलिटी हो जाते हैं। जिसके अन्दर कोई शक्ति अपने आप भर जाये। इस खोखलेपन से आपके अन्दर बैठी हई आपकी कुण्डलिनी प्रस्थापित हो जाती है। | 16 कुण्डलिनी आपकी माँ है। माँ आपके अन्दर पहले से ही बैठी हुई है। माँ ने ये क्या पहले से ही..... (अस्पष्ट) । बहुत से लोग ऐसी भी बात करते हैं कि हमारे सेक्स को सबलिमेट करना है। ये सब बेकार है। आप पहले से ही सबलिमेट हैं। आपको सबलिमेशन का कोई सवाल ही नहीं है । आप पहले ही से बैठे हये हैं। और इस तरह की गलत धारणा ले कर के जो लोग चलते हैं वही अपनी माँ का स्वयं उत्थान करते हैं। और इसी कारण उनकी कुण्डलिनी तो जगती नहीं लेकिन उसका जो क्रोध है, कुण्डलिनी का जो क्रोध है वो आप पर बहुत दौड़ने लग जाता है। और बुरी तरह से गरमी लोगों को पागल बनाती है। क्रिया, योग आदि बहुत आपने सुना होगा। इस तरह की सी चीज़ें हैं जो लोग करते हैं। अब बहुत से लोग हैं जो जप-तप आदि करते हैं। जप-तप बहुत करना भी बाहर की चीज़ है। आप परमात्मा के नाम पे कुछ भी नहीं कर सकते। यहाँ तक कि कितना भी सोचिये, हम कुछ भी जीवंत कार्य कर ही नहीं सकते। मनुष्य अपने भ्रम में ही ये बात सोचता है कि मैं कुछ करूँ। बिल्ली, कुत्ते कुछ ऐसा नहीं सोचते। हम वही कर सकते हैं जो मरा हुआ काम है। जैसे कि एक पेड़ मर जाये तो हमने एक खंबा बना दिया, खड़ा कर दिया। सब मरी हुई चीज़ है । कोई भी चीज़ जीवित नहीं और बिजली और आपके जो प्रकाश है, लाइट ये सब इलेक्ट्रिसिटी, आदि जितनी , आप जो कुछ भी शक्तियाँ जानते हैं, सब जड़ शक्ति है। इसमें तो जीवन शक्ति एक भी नहीं। आप कौन सा भी जीवंत कार्य नहीं कर सकते। माने आप एक फूल में से एक फल नहीं निकाल सकते। एक बीज में से आप एक पेड़ नहीं बना सकते । लेकिन मनुष्य को ऐसा भ्रम रहता है कि मैं सब कुछ करता हूँ। और जो ऐसे करोड़ो काम करता है जिसके आगे आपकी शक्ति हुई या वो से शक्ति आप कुछ करें। अब समझ लीजिये एक बड़ा भारी ऐसा मैग्नेट है। बहुत शक्तिशाली! और उसके आगे आप एक छोटे से मैग्नेट है। आप कर क्या सकते हैं उसको अपने तरफ खिंचने के लिए ! सिवाय इसके के अपने अन्दर जो मैग्नेट है उसको खत्म कर ले। मनुष्य कुछ कर ही नही सकता। और करता नहीं ये भ्रम में बैठा हुआ है कि वो करता है। क्योंकि उसके अन्दर इगो और सुपर इगो दोनों का प्रादुर्भाव हो जाता है। वो एक भ्रम को बना देता है कि मनुष्य कुछ भी करे। वास्तविक परमात्मा ने आपको उन्हीं के अपने लिये बनाया है। हम ही परमात्मा की छबि हैं। जैसे कि हमारे शरीर में जो शक्ति बह रही है वो इन उंगलियों से कार्यान्वित है। ये जितनी भी उंगलियाँ हैं ये हमें एक शरीर के स्वरूप में दिखायी देती हैं। माने की जड़ है। हम ही उसके जड़ स्वरूप हैं। जो हमारे अन्दर से वो कार्यान्वित करती है। वो स्वयं शक्ति स्वरूप हैं। वो सब कुछ जानते हैं। वो सब कुछ करते हैं। वो सब प्लॅनिंग करते हैं। वो बारीक- | बारीक चीज़ को जानते हैं। लेकिन वो निराकार हैं। वो साकार में ही हमारे अन्दर कार्यान्वित हैं। निराकार और साकार का कोई विचलन नहीं। जब आप कुण्डलिनी पर आईयेगा तो आपको आश्चर्य होगा कि किसी भी धर्म का किसी भी धर्म से झगड़ा नहीं था। अधर्म होगा तो हो। ईसा मसीह ने एक जगह ऐसा कहा है कि 'दोज हू आर नॉट अगेन्स्ट मी आर विथ मी'। कितनी बड़ी बात उन्होंने कह दी, कि जो मेरे खिलाफ़त में नहीं, माने जो चैतन्य | के खिलाफ़ नहीं वो सब मेरे ही हैं। ये आप अपनी कुण्डलिनी में भी देख सकते हैं, कि आपकी कुण्डलिनी स्वयं न 17 जाने कितने चक्करों में पड़ी हुई है। जैसे कि आप पूर्वजन्म में समझ लीजिये कि मुसलमान रहे हो। कम से कम हिन्दुओं को तो मानना ही पड़ेगा क्योंकि पुनर्जन्म को मानते हैं। हो सकता है कि आप ....(अस्पष्ट)। जिस चीज़ को आप नफ़रत करते रहे होंगे वही आज आप पैदा हुये हो। क्योंकि उस वक्त आप नफ़रत करते थे तो आज इस जन्म में हो सकता है कि आप इसलिये पा गये हैं कि जाने, जिसको आप नफ़रत कह रहे हैं वो बात इतनी बुरी नहीं है। अगर पहले जन्म में आप बड़ा ही अस्तित्व हो, परमेश्वर का अत्यंत, अट्ूट विश्वास हो, कि हाँ, परमात्मा है, परमात्मा है और आपको परमात्मा नहीं मिला और आपने उसी से अगर खुदकुशी कर ली तो इस जन्म में जरूरी नहीं की आप नास्तिक हो गये। आप चाहे नास्तिक हो या आस्तिक हो, परमात्मा तो है ही। उनको मानने न मानने से वो मिटते थोड़ी ही हैं। और हम होते ही कौन उनको मिटाने वाले। अगर ये उँगली माने चाहे नहीं माने इसके अन्दर शक्ति है। इसको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला और इसका मानना न मानना इसका मानना भी क्या है? इसका कोई अर्थ है क्या? इसको तो सिर्फ चाहिए कि इसके अन्दर से जो शक्ति चल रही है वो इस बुद्धि से कनेक्टेड हैं। वो जो भी कह रही है, जो भी करा रही है इसे सीधे -सीधे कहे। इसमें राधाजी का एक बड़ा सुन्दर उदाहरण है। यहाँ पे राधा जी के प्रेमी बहुत बैठे है इसलिये मैं बताना चाहती हूँ। एक बार राधाजी को श्रीकृष्ण की मुरली से बहुत ईर्ष्या हुई। उन्होंने कृष्ण से कहा कि, 'इस मुरली में क्या विशेषता हैं जिसको तुम अपने मुख उन्होंने मुरली से कहा कि, 'तुम्हारी क्या विशेषता हैं जो तुम उसके मुख में लगी रहती हो?' तो मुरली ने कहा कि, में हमेशा लगाये रहते हैं?' तो उन्होंने कहा कि, 'तुम उसी से जा कर पूछो। 'अरे पागल, तुझे नहीं मालूम कि मेरी कोई विशेषता नहीं, यही तो मेरी विशेषता हैं। मैं पूरी तरह से खोखली हो गयी हूँ, इसलिये तो वो मुझे बजा रहे हैं। अगर मैं कहीं भी खड़ी हो गयी, उसका तो सारा राज खराब जायेगा। मैं पूरी खोखली हो गयी हँ।' तो कहते हैं कि, राधाजी ने कृष्ण से कहा था कि अगले जन्म में उसे भी मुरली बनायें। इसी तरह से हम भी एक खोखले हो गये हैं। पर खोखले होने का मतलब ये नहीं कि आप कार्य को भूल जायें । बहुत से लोग ये कहते हैं कि हमारी जिम्मेदारी है। वास्तविक आपकी कोई जिम्मेदारी है नहीं। लेकिन लोग कहते हैं कि हमारी जिम्मेदारी है क्योंकि गलतफहमी में बैठे हैं। जैसे कि हम इसके इस छत्र के नीचे बैठे हये हैं। और ये खंबे इसको पकड़े हैं। कोई अज्ञानी हो तो अपना हाथ भी उसे बेकार में लगाये रखें कि मैं इसे पकड़े हूँ। लेकिन जो ज्ञानी है वो इसे जानता हैं कि इसके लिये खंबे खड़े हैं। सम्भालने वाले हम कौन हैं? उसी तरह से जब तक अज्ञान रहता है तब मनुष्य ये सोचता है कि मैं भी किस चीज़ के लिये हूँ और वो काम कर लेता है। और अगर मैं इस झंझट में पड़ गया तो मैं कोई साधू-संन्यासी और ये हो जाऊंगा। और मैं कुछ काम ही नहीं करूंगा। वास्तविक आप तभी ठीक से काम कर सकते हैं जब आप विचारों से परे हैं। वास्तविक आपके अन्दर की शक्ति इतनी अद्वितीय है, इतनी गहन है और इतनी ज़्यादा शक्तिशाली है कि ऐसे ही वो आपके अन्दर से बहने लग जाती है। आपके तो चार चाँद लगे। आपके बातचीत में, बोलने में, हर एक चीज़ में आप एक कमाल का जौहर होता है! लोग आश्चर्य में हो जाते हैं कि ये कैसे शुरू हो गया। अब यहाँ पे एक .... (अस्पष्ट) बैठी हुई हैं। वो बता रही हैं कि जब से उनकी जागृति हो कर ये पार हुई है, 18 उनकी लेखनी से ऐसी ऐसी चीज़ें उतरी हैं। खुद कहती हैं कि मुझे लगता है कि मैं ....हूँ। ये क्या हो रहा है? ऐसे ऐसे लोग जो साधारण भी कविता नहीं कर पाते थे। जब वो लोग पार हो गये उसके बाद वो ऐसी ऐसी कविता करते थे। एक लड़की थी। बिल्कुल साधारण घर में बैठे रंगों में खेला करती थी। उसके बाद जब वो पार हो गयी तो उसके एक्झिबिशन होने लग गये है और लाखों रुपया उसने कमाया। कोई अगर समझ लीजिये पॉलिटिशन है। जिस वक्त वो साक्षी हो जाता है तो पूरी तरह से सारी चीज़ को देख लेता है। इसके अलावा आप जब उसके आश्रय में पूरे खड़े हो जाते हैं, जब आप उसको पूरी तरह से मान लेते हैं, उसके भी हजारों हस्तक आपके आस-पास में खड़े रहते हैं। देवता मंडराने लगते हैं। आपको समझ में भी नहीं आता है कि कैसे काम बन जाता हैं? कैसे लोग आ जाते हैं? कैसे चीज़ बन जाती है? किस तरह से चीज़ आती है ? और किस तरह से काम पूरा हो जाता है ? इतनी कमाल की चीजें होने लग जाती हैं कि मनुष्य को आश्चर्य होता है कि ये चीज़़ कैसे बन गयी ? वो चीज़ कैसे बन गयी? लेकिन दृष्टि मनुष्य की इस पर नहीं होनी चाहिए कि हमारा मटेरिअल गेन क्या होगा ? बहुत से लाग कहते हैं कि कुण्डलिनी शक्ति जगा दीजिये तो हमारे अन्दर शक्ति आ जायेगी। असल में आप तो बिल्कुल शक्तिविहीन हो जाते हैं। लेकिन कुण्डलिनी आपकी शक्तिशालिनी है। परमात्मा की शक्ति आपके अन्दर से बह जाती है क्योंकि आप बिल्कुल शक्तिविहीन हो कर के संचालित हैं। जो कुछ भी आज तक सारे धर्मों में बताया गया उसका सार मात्र एक ही है कि आप अपने को जानें। और इसका जानने का मार्ग भी एकमात्र हैं वो है सहजयोग । स्पॉन्टेनियस ग्रोथ जिसे कहना चाहिए। जो अन्दर से ही अपने आप घटित होता है। बुद्ध को भी सहजयोग से ही मिला। वो इधर -उधर, हजार जगह भटकते, एक दिन थक कर पड़े हुये थे। और जब वो थके हुये लेटे हुए थे। उस वक्त उनकी कुण्डलिनी ने कहा कि, 'मेरा बेटा बहुत थक गया है। किसी तरह से उसे इस पे धरो।' उसी वक्त ...... उनके सर पे आकर रुक गरयी। और नीचे से कुण्डलिनी ने उनका सहस्रार तोड़ दिया। कोई भी आदमी आज तक सहजयोग के सिवाय पार नहीं हुआ है। सिर्फ यही हैं कि जैसे हम अब ....(अस्पष्ट) ले आने के लिये| पहले हज़रत बन गयें । फिर यहाँ से लखनौ छोड़ कर के हम दिल्ली में आयें। दिल्ली में घूम कर के हमने देखा कि इधर गये, उधर गये। वहाँ से घूमते घूमते किसी तरह लोगों ने कहा कि साहब ये तो यही है, आप ही के अन्दर में बैठा हुआ। आप कहाँ जा रहे हैं? तो लोगों ने सारा घूमना हमारा देखा। ये तो पहले वहाँ गये थे, फिर यहाँ से वहाँ गये, फिर जपान गये थे, फिर वहाँ चायना गये थे, फिर वहाँ से घूम घाम के फिर वहीं आये। वो सारे घूमने घामने में गड़बड़ हो गयी थी। वो अभी भी लोग पकड़े ह्ये हैं। लेकिन जिससे पा लिया है वो अधिक समाविष्ट है। इसका उदाहरण, सब से अच्छा उदाहरण हमारे ज्ञानेश्वरजी हैं। जब उनकी कुण्डलिनी जागृत हुई थी। उन्होंने छठा अध्याय लिखा तब उनकी जागृत हुई थी और जब वो पार हो गये तब तक उनके जाने के दिन पूरे हो रहे थे। उस वक्त उन्होंने समाधि ले ली। क्योंकि जब पा लिया तो इतनी खोज व्यर्थ है। नहीं पा लिया अब इतना जो कुछ खोजा था बेकार न हो जायें। समाधि ही ले लेते हैं। सारी ही खोज व्यर्थ हो जाती। लेकिन व्यर्थ कुछ भी नहीं होता । खोजते ही आदमी किस दशा में हो पहुँच जाता है। इसमें, खोज में कुण्डलिनी आपके साथ खड़ी खड़ी सारी 19 ही चीज़ रेकॉर्ड करती है। मनुष्य पहले पैसे में खोजता है। पोझिशन में खोजता है। उसके बाद में उससे भी, वो कहता है, 'क्या रखा है? सब जंग है।' जैसे अमेरिका में है। तब उसकी कुण्डलिनी कहती है कि, 'अच्छा, ये नहीं।' उसका फिर जन्म होता है। तो वो फिर एक सत्ता में खोजता है। इस सत्ता को देखता है। फिर सब सत्ता भी देख डाली। तब वो कहता है कि, 'इस में क्या?' फिर वो कहता है, 'चलो धर्म में खोजें।' धर्म भी तो बाहर है। हमारे सारे धर्म बाहर आ गये। अन्दर का धर्म कोई जानता भी नहीं। बात सब अन्दर के धर्म की करते हैं, लेकिन तरीके बाहर के है। इस वजह से वो बाहर खोजता है। धर्म में भी गुरु बनाता है, मंत्र करता है, मंदिर जाता है, परमात्मा को पुकारता है। लेकिन सारे ही धर्म का तत्त्व ये है इसको पा लेना। जो लोग पार हो चुके हैं ऐसे कितने भी गुरु हो गये हैं, जैसे गुरु नानक। वो कहते हैं सहज समाधि। सहज समाधि लागो। वो कहते हैं, 'काहे रे बन खोजन जाईं , सदा निवासी, सदा अनिफा, तो हे क्यों न समाई। कुछ तो मध्य जो बात बसत हैं मुकुर माहीर सिखायी, तैसे ही हरि बसे निरंतर, घट ही खोजो भाई ।' अब हम ऐसा ही हुआ कि किसी डॉक्टर ने प्रिस्क्रिप्शन सरदर्द हो रहा है और तुम रट रहे गा रहे हैं। रट रहे हैं, 'घट ही खोजो भाई'। ये तो अॅनासिन ले लों। तुम्हारा दिया कि तुम हमारे सारे धर्म 'अॅनासिन ले लो, अॅनासिन ले लो। लेगा कब ? अगर पेशंट लेगा ही बाहर आ गये। नहीं, तो उसका सरदर्द जायेगा कब ? घट के अन्दर खोजने का अन्दर का धर्म स्थापित होना। अपने आप ही हो मतलब ये है कि घट के अन्दर कोई जानता भी नहीं। जाता है। और हजारों लोगों का जाता है, जब उसका समय आ के बात सब अन्दर यहाँ बैठे हये हैं, आप अपना समय आ गया है। जो आप लोग | धर्म की करते है, की ये खोज है जो आपको यहाँ पुनर्जन्म जानते हैं। हजारों सालों लेकिन तरीके बाहर के हैं। ही अधिकार में पा लेते हैं। हम तो लायीं है। इसके कारण आप अपने कुछ कर नहीं रहे। जैसे समझ लीजिये चेक, आप ही से पैसे माँग ले। उनको देना ही की आप बैंक में जाते हैं। और अपना पड़ेगा। जाएंगे कहाँ? अगर आपको हम रियलाइझेशन नहीं देंगे तो हम जाएंगे कहाँ? देना ही पड़ेगा। क्योंकि आपका अधिकार हैं । आप जो भी पा रहे हैं अपने अधिकार में । आपकी इच्छा ही नहीं होगी, जब तक आपका स्वयं इतना अधिकार है। आपकी इच्छा के बगैर कोई सा भी कार्य नहीं। लेकिन हमको एक बात जरूर जान लेनी चाहिए हम क्या असलियत चाह रहे हैं या नकलियत चाह रहे हैं! आपको कुण्डलिनी जानती है। आपको वो सब कुछ जानती है आपके बारे में लेकिन आपकी स्वतंत्रता की भी इज्जत करती है। कि अपनी स्वतंत्रता में जिस दिन आप ये तय कर लें कि हम परम जानते हैं, उसी दिन कुण्डलिनी आपकी हुई। उसी दिन आपका सहस्त्रार टूट जायेगा| हमें और कोई चीज़ नहीं चाहिये। हमें तो परम की इच्छा है । हमें तो शरीर का कुछ नहीं चाहिये। और कुछ नहीं चाहिये। हम उसी परम पिता, परमात्मा, परमेश्वर हैं । उसी छत्र छाया में अपने को जागते रहता है। ये जिसने एक बार सोच लिया, वो पा लिया। 20 कुण्डलिनी के बारे में आपको अगर कोई सवाल हो तो आप मुझ से पूछे। कुण्डलिनी विषय तो बहुत बड़ा हैं, और इसका इतना कुछ, यहाँ पर जो कुछ लोग हैं, दो-चार लोग ऐसे आये हये हैं हमारे साथ में, जो रियलाइज्ड भी नहीं हैं। लेकिन वो उस दशा पे रियलाइज्ड हैं, इस जगह पहुँचे हैं कि वो दूसरों को रियलाइझेशन दें। जैसे आप पार होते हैं। आप स्वयं, आपके इशारे पर कुण्डलिनी नाचती है। इशारे पर, आप खुद महसूस करियेगा। हजारों आदमियों की आप ऐसे कर के कुण्डलिनी उठा सकते हैं। वो लोग बिल्कुल साधारण तरह के लोग हैं। नॉर्मल लोग हैं। अन्दर से आपको इनकी शक्ति का कुछ भी पता नहीं लग सकता है कि कितनी शक्ति है। लेकिन एक इशारे 6. पर इनकी कुण्डलिनी उठती है और ये लोग पार होते हैं। ऐसे हजार आदमी तैयार हो जाएंगे। बहुत बड़ा कार्य हो सकता है और एक नयी ...... तैयार होगी। एक नये तरह से, एक नयी संस्था। ऐसी ही जो अन्दर से चीज़ को पाये है। बाहर, ढकोसले, ढोंग, पैसों से नहीं मिलता। अपनी अपनी अन्दर की आर्तता को अपनी अपनी परमेश्वर की लगन से पाये ही इस चीज़ के जो लोग हैं इनकी आयू नब्बे साल की तो किसी से कम नहीं। साक्षी स्वरूप जो आदमी होता है, उसकी कितनी भी देन है, उसके कितने भी पॉवर्स हैं, कुछ भी हो लेकिन वो उसको अहंकार में कभी नहीं देखता है। उसको अहंकार नहीं होता । क्योंकि वो जब भी देता है, कहता है कि मेरे अन्दर से जा रहा है। ये हो रहा है, ये चल रहा है। इनका नहीं चल रहा है। इनका चल रहा है।अब आपका बेटा भी होगा तो भी आप उससे नहीं कह सकते कि हाँ, ये पार है। वो तो जब होता है तब पता चल जाता है कि हो गया है। अन्दर से ऐसे वाइब्रेशन्स आने लग जाते हैं। आपके भी अन्दर वाइब्रेशन्स होते हैं। अगर आप कहे जबरदस्ती कि ' साहब, इसको कराईये।' तो हो नहीं सकता। इसमें कोई रिकमन्डेशन नहीं चल सकता है। कोई पॉलिटिक्स नहीं चल सकता है। कोई प्रेशर नहीं चल सकता है। कोई रिश्ता नहीं चल सकता है। कोई पैसा नहीं चल सकता है। कौनसा भी, कोई भी मिथ्या, कोई सी भी चीज़़ इसको पकड़ नहीं सकती। सत्य जो है वो है, होना और घटित है। कौनसा भी कार्य, कार्यक्रम , कोई भी तरीका इससे बनता नहीं। अपने आप ही घटित है। लेकिन तो भी अपने मन की ओर ये दृष्टि जरूर डाल सकते हैं कि मनुष्य में अहंकार इतना ज़्यादा है, इतना सूक्ष्मतर है, उसे जैसे ही मैं कहती कि कुछ भी नहीं करने का, तो वो चकाचौंध हो जाता है। अगर मैं कहूँ कि आपको सर के बल खड़ा होना है। तो ठीक है। लेकिन जो चीज़ एकदम मुफ्त मिलने वाली है और बगैर किसी इससे मिलने वाली है, इस पर उसका विश्वास नहीं होता। क्योंकि वो अपने अहंकार में पड़ा होता है। परमात्मा के अहंकार को जानता है कि वो चाहे तो उंगली घुमा कर के सारी सृष्टि की सृष्टि बदल देगा। और चाहे तो इस सृष्टि के छोटे-छोटे एक - एक कण में भी वो जीव रखेगा। आप लोगों को वाकई कोई सवाल है तो पूछिये। और नहीं तो हम थोड़ा सा मेडिटेशन में जा कर के और प्रयोग करें । क्योंकि जब तक अनुभव नहीं होता है तब तक बातचीत, बातचीत रहती है। और बातचीत में क्या | रखा है? 21 यहाँ हमारा क्या लक्ष्य है? मैं न बहुत अधिक बोलती हूँ और न सोचती हूँ। आप भी न बोले तो बेहतर होगा। मेरे विचार से एक दूसरे से बात करना बन्द कर दें तो बेहतर होगा। यह सर्वोत्तम उपाय है, जो कार्यान्वित होगा। सभी प्रकार की व्यर्थ की बातें आप बोलते हैं। आपके पास कोई भी महान एवं उत्कृष्ट बात कहने को नहीं है। परमात्मा के विषय में बात करें। आत्मा के विषय में बात करें। आपके अन्दर शांति होनी चाहिए। आप यदि शांत होंगे तो आनन्द उठाएंगे। पूरा वातावरण शांत है। स्थान की शांति आप क्यों नहीं देखते। अत्यन्त सुख-सुविधा वाले स्थान पर भी यह शांति उपलब्ध नहीं होती। वहाँ पर बस शान्ति नहीं होती। इस शान्ति को अनुभव करें। आप सन्त हैं, अपनी शान्ति का अनुभव करें। आपके हृदय में शान्ति को अनुभव कर सकते हैं। वैभव ने आपको नष्ट कर दिया है। यह अभिशाप है। अत: स्थान की शान्ति को महसूस करें। यह अत्यन्त शांत स्थान है। अपने अन्दर शांति को महसूस करें। हृदय में कितनी शांति है? आप लोग कहते हैं, अच्छा है, बहुत शानदार है। क्या शानदार है? यही इसका सूक्ष्म पक्ष है। दृश्य की शांति को महसूस करने के लिए आपको सूक्ष्म व्यक्ति बनना होगा। सूक्ष्मता को महसूस करें । इसके पीछे छिपे संगीत और सुगंध को महसूस करे। मैं यदि आपकी आदर्श हूँ तो मैं तो अत्यन्त शांति महसूस करती हूँ। स्पष्ट बात यदि बोलू तो मैं नहीं जानती कि कब मैं इस स्थिति से निकलूगी। मैं इसे बनवास कहती हैँ। बनवास यानी जंगल में रहना। मुझे लगता है, कि यह उपद्रवी निरंकुश तथा अहंकारी भयानक लोगों का जंगल है; उन लोगों का जो परस्पर बातचीत करना भी नहीं जानते। मेरे विचार से यह बनवास है, जो बारह वर्ष के बाद समाप्त होता है। वास्तविक बनवास। परन्तु अब मुझे आप लोगों से कुछ आशा होती है। अब इस तरह की बात नहीं करनी है। अपने मस्तिष्क बिल्कुल बंद कर लें। कोई भी इस प्रकार की बात नहीं करेगा। यह बातें परमात्मा विरोधी है। माया को देखें। व्यक्तिगत बन जाएं अर्थात् ध्यान में बैठ जाएं, बातचीत न करें। ध्यान में स्थापित हो जाएं । आप लोग आयोजन आदि खोजने में लगे रहे है, मेरी तो समझ में नहीं आता कि मामला क्या है। स्वयं को इन चीज़ों में से निकाल ले। इससे पूरी तरह से निकल जाएं। यह बेवकूफी अब और नहीं होनी चाहिए । अगले वर्ष से ऐसे लोगों को यहाँ आना भी नहीं चाहिए। मेरी प्रार्थना है, कि जिन लोगों ने शिकायत की वो यहाँ न आएं। ( प.पू. श्रीमाताजी, ५ / १०/१९८३) 22 ३ अत: हमारे अन्त:स्थित इन चौदह अवस्थाओं के माध्यम से अपने पनर्जन्म के विषय में हम बात कर रहे है। इन स्तरों को पार कर अचानक हम सुन्दर कमलों की तरह खिल उठते हैं। ईस्टर पर अंडे भेंट करना इस बात का प्रतीक है कि ये अंडे सुन्दर पक्षी बन सकते हैं। प.पू.श्री माताजी, इटली, १९.४.१९९२ प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा। लि. प्लॉट नं. १०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०-२५२८६५३७, ६५२२६०३१ , ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in , website : www.nitl.co.in हिए जिससे हमारा चित्त खराब हो जाता है। दोनो ही चीज़ है कि चित्त भी साफ हो जाए नायें। जिस दिन इसका पूर्ण काम्बिनेशन बन क्रों में, सहस्रार में कोई प्रश्न नहीं रहेगा । २८/२/१९९१, होली पूजा, न्यू दिल्ली मरी ४ ा ा २० की ---------------------- 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी मार्च-अप्रैल २०१५ हिन्दी भ क ८ क ज ी] ें क ॐ ३ं शि भभ 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-1.txt प्लंस्टिक से आप हज़ारों फूल बनी सकते हैं लेकिन असिली फूल बड़ी मुश्किरल से लेकिन जब बहा२ आती है तौ हज़ारों फूल खरिल खिलते हैं । २कते हैं। प.पू.श्री माताजी, देवी पूजा, मुंबई, २१ मार्च १९७९ 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-2.txt इस अंक में सत्य को मानना होगा ...4 जनम दिन पूजा, मुंबई, २१ मार्च १९७९ जड़ शक्ति और चैतन्य शक्ति दोनों शक्तियाँ साथ-साथ हैं ...12 सार्वजनिक कार्यक्रम, दिल्ली, १७ नवंबर १९७३ यहाँ हमारा क्या लक्ष्य है? ...22 नवआगमन अर्चना सहजयोग-संस्थापिका प.पू.माताजी श्री निर्मला देवी The Adorations एक दिव्य अवतरण प.पू. आदिशक्ति माताजी श्री निर्मला देवी के १००० नाम प.पू.माताजी श्री निर्मला देवी के प्रवचनों से संकलित 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-3.txt बगैर आत्मा को पाये आप परमात्मा को नहीं जान सकते। सब कुछ बाकी जो भी आप कर रहे है, सब कुछ, अविद्या है। सब कुछ व्यर्थ है। लु त मेरा मन उमड़ आता है। आज तक लगातार बम्बई में ये जन्मदिवस मनाया गया। बम्बई में बहुत मेहनत करनी पड़ी है। सबसे ज्यादा बम्बई पर ही मेहनत की लोग कहते भी हैं कि, 'माँ आखिर बम्बई में आपका इतना क्या काम है?' पहले तो यहाँ पर रहना ही हो गया था। लेकिन बाद में भी बम्बई में काम बहुत हो सकता है ऐसा मुझे लगता है। हालांकि बम्बई पे कुछ छाया सी पड़ी हुई है। अभी दिल्ली में थोड़ा सा भी काम बहुत बढ़ जाता है। देहातों में भी काम हुआ है, हजारों लोग पार हो गये हैं। इसमें कोई शक नहीं। लंडन जैसे शहर में भी लेकिन बम्बई के लोगों पे कुछ काली छाया सी पड़ी हुई है। मेरे ख्याल से पैसे के चक्कर बहुत ज़्यादा बम्बई के लोगों में हैं। बड़ी आश्चर्य की बात है कि बम्बई में सालों लगातार मेहनत की है हमने और सबसे कम सहजयोगी बहुत काम हुआ। बहुत बम्बई शहर में हैं। इसका कोई कारण समझ में नहीं आता है। बहुत बार मैं सोचती हूँ और जब लोग मुझ से पूछते हैं 4 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-4.txt मुंबई , २१ मार्च १९७९ सुत्थ को मानवा होगा कि, 'माँ, आप बम्बई पे इतना क्यों अपना समय देती हैं? आखिर बम्बई में कौनसी बात है?' हालांकि शहरों से मैं बहुत घबराती हूँ। शहरों के लिए तो ठग लोग काफ़ी तैयार हो गये हैं क्योंकि आप की जेब में पैसे हैं और ठग आपको ठगना चाहते हैं। और आप लोगों के पास पैसा है, आप ठगों के पास ज़्यादा जाते हैं। जो लोग सर्कस बनाते हैं उनके पीछे में आप दौड़ते हैं। हज़ारों लोग ऐसे लोगों के लेक्चरों में दौड़ते हैं। असलियत को नहीं खोजते हैं। वो पैसे की जो अहंकार देने की शक्ति है उसको अजमाते हैं। लेकिन तो भी बम्बई से मेरा बड़ा प्रेम है। उसकी वजह है बहुत बड़ी। शायद आप लोग नहीं जानते कि महाकाली, महालक्ष्मी, महासरस्वती तीनों का उद्भव इसी बम्बई शहर में हुआ। इस धरती माँ ने न जाने क्या सोच कर के आपकी इस नगरी में ये पुण्य कार्य किया और ऐसी शक्तिशाली चीज़ जो कहीं भी, कहीं भी दुनिया में नहीं है। तीनों शक्तियों का यहाँ पर उद्घाटन किया। लेकिन लोग उस महालक्ष्मी के मंदिर में जा कर के भी सारे ही गलत काम करते हैं और उसके पास की जो महालक्ष्मी थी... उसमें अगर आप जा के देखे तो वहीं पे भीड़ लगी रहती है। न जाने लोग क्या खोज़ रहे हैं इस बम्बई शहर में। मैं बहुत बार सोचती रहती हूँ कि इन लोगों के दिमाग कब खुलेंगे? कब ये लोग सोचेंगे? कब इनके दिमाग में ये बात आयेगी कि सब से बड़ी चीज़ आत्मा को पाना है। बगैर आत्मा को पाये आप परमात्मा को नहीं जान सकते। सब कुछ बाकी जो भी आप कर रहे है, सब कुछ, अविद्या है। सब कुछ व्यर्थ है। आप जानते हैं कि परमात्मा का साम्राज्य अबाधित चल रहा है सारे संसार में। उसने सारी सृष्टि बनायी है और आपको भी इसीलिये बनाया है कि उस परमात्मा को जाने जो आप का कर्ता, स्रष्टा और आपका पालनहार है। उस की शक्ति को आप समझे। न जानें क्यों इन्सान इस तरह से भरमा गया है, इस तरह से गलत रास्ते पर चल पड़ा है, इस तरह से अपने जीवन को इतना क्षुद्र बना दिया है। हालांकि परमात्मा ने भी बहुत मेहनत की है इस मानव को बनाने के लिये। आप जानते हैं कि एक अमिबा से आपको इन्सान बनाया गया है। एक आप अपनी आँख को टटोले तो आप को पता होगा कि ये आँख कितनी महत्वपूर्ण है । इस आँख को कितनी खुबसूरती से उस परमात्मा ने घडाया है। इस सारे शरीर को उसने कितनी सुंदरता से बनाया है। और इस शरीर के अन्दर वो पूरा यंत्र बना के रखा है जिससे आपको ये वरदान मिलने वाला है और ये चाबी आपके अन्दर खुलने वाली है। लेकिन इस बम्बई शहर में लोग सोये हैं। कोई निद्रावस्था में लोग रहते हैं। पता नहीं की किस चीज़ की मस्ती चढ़ गयी, किस तरह का नशा चढा हुआ है। 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-5.txt मैं बार-बार आप लोगों को कहती हैँ, कि आप जागिये। जागने का समय आ गया है। वास्तव में सहजयोग के मामले में आप जानते हैं, कोई ये नई चीज़ नहीं है। कबीर ने सहजयोग कहा हुआ है। नानक ने कहा हुआ है। राम ने जो किया वो सहजयोग ही था। जो नंगे पैर सारे भारतवर्ष में घूमे। आपके महाराष्ट्र में जो घूमे हैं। वो इसीलिये घूमे थें कि इस जमीन की, इस धरती, इस भारतमाता के कण-कण में वो चैतन्य भरें। उनके पैर से चैतन्य बहुता था। इस चैतन्य लहरियों को भरने के लिए उन्होंने यहाँ पर पदयात्रायें की। धरती माँ ने भी यहाँ पर अष्टविनायक की उत्पत्ति की हुई है। वो भी इसलिये की चैतन्य की लहरियाँ बहती रहेंगी और लोग उसको जानते हैं । उसके बाद कृष्ण ने जो भी किया वो भी सहजयोग ही था। पूरा सहजयोग था। राधाजी स्वयं साक्षात् शक्ति थी। रा.. धा, रा माने शक्ति, धा माने धारण करने वाली। वो शक्ति थी। जब वो अपने पाँव जमना में डालते थे तो वहाँ चैतन्य बहता था। उस पानी को जब वो अपने सर पर रखती थी तो भी चैतन्य बहता था। उस पानी को वो कंकड़ मार के जमीन पर गिराते थे तब भी चैतन्य वहाँ डालती थी। जब गोपियाँ अपने सर पे जमना का पानी रख के चलती थी तो उस पे भी कंकड़ मार के उनके पीठ पर वो चैतन्य का पानी गिराते थे । जिससे उनकी जागृति हो जाए। फिर वो रास खेलते थे। रा...स, रा माने शक्ति स माने सह। शक्ति के सहित जो वो सब को खड़ा कर देना चाहते थे, वो भी राधाजी के बदन से बहने वाली चैतन्य शक्ति सब में दौड़ाते थे। हर एक चीज़ में उन्होंने यही प्रयत्न किया, कि मनुष्य के अन्दर की कुण्डलिनी जागृत हो जाएं। इस तरह से जैसे खेल-कूद में हो जाएं। क्योंकि वे लीलाप्रिय थे। लेकिन मानव आज हजार साल से यही करता आ रहा है। मेरे जन्म से ही एक बात में जरूर जानती थी, इसलिये मैं अपने पिता से भी बहुत सलाह करती थी, वो भी बहुत पहुँचे हुये थे। उन्होंने भी मुझ से यही कहा कि जब तक ये चीज़ सर्वसामान्य से नहीं होगी, जब तक ये अनुभूति, आत्मा की ये अनुभूति जब तक सर्वसामान्य की नहीं होगी, तब तक न तो परमात्मा का कोई अर्थ रहेगा, न ही उनके सृजन का, उनके क्रिएशन का कोई अर्थ रहेगा। जरूरी है कि लोग आत्मा को जाने क्योंकि आत्मा के बगैर आप परमात्मा को जान नहीं सकते। जिस प्रकार आँख बरगैर आप कुछ देख नहीं सकते, उसी प्रकार जब तक आपका आत्मा जागृत नहीं होता तब तक आप परमात्मा को जान नहीं सकते। परमात्मा के नाम पर हजारों आप दुकानें खोल दे और परमात्मा के नाम पर दुनियाभर के के ढ़कोसले और ढोंग को खड़ा कर दे और जिसको की आप माने, उस से कुछ भी होने वाला नहीं। आप के हृदय अन्दर ही आत्मा का स्थान है। जो साक्षी आप ही के अन्दर बसा हुआ है, उस को जानना ही होगा। ये बहुत जरूरी बात है। आप समझते नहीं है। कितनी जरूरी बात है। वो समय आ गया है। आपने अभी विदेशी सहजयोगियों से सुना है, कि उनका देश, उनके देशों में वो सोचते हैं कि (अस्पष्ट) शराब पी कर रास्ते में लोट गये हैं। इतनी बुरी हालत है कि कौन माँ है, कौन बहन है, ये भी कोई पहचान नहीं पाता। एकदम टूट गये हैं लोग। उनको रात रात भर नींद नहीं आती। स्वीडन जैसे देश में दस में से नौ आदमी आत्महत्या की सोचते हैं। यहाँ पे सब से ज्यादा आत्महत्या संसार में होती हैं। जो सबसे ज्यादा सुबत्ता वाला देश है। हम लोग आज पैसों के पीछे में और दुनिया भर की गैर वस्तुओं की पीछे में सारी शक्तियाँ लगा रहे हैं। अपना स्वयं ही मूल्य खतम कर रहे हैं। हम किस चीज़ के लिये बने हैं, कैसे बने हैं? परमात्मा ने हमें कितनी मेहनत से बनाया। हमारा क्या 6. 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-6.txt ्र Ηαππψ Βιρτηδαψ महत्त्व है ? हम क्या विशेष चीज़ है । हमारी लिये हर तरह से हर पाँचों तत्त्वों ने भी मेहनत की है। सब ने मेहनत कर के आपको बनाया, आपको घड़ाया। आपके अन्दर इसका पूरा यंत्र बनाया हुआ है। आपके अन्दर कुण्डलिनी बनायी है। उसकी जागृति बनायी हुई है। लेकिन सहजयोग धीरे धीरे पनपता है। एक ये जिवंत क्रिया, दूसरी सच्ची चीज़ है। झूठी चीज़ आप ऐसे ही बना दीजिये, प्लॅस्टिक से आप हज़ारों फूल बना सकते हैं लेकिन असली फूल बड़ी मुश्किल से खिलते हैं। लेकिन जब बहार आती है तो हज़ारों फूल खिल सकते हैं। लेकिन इस बम्बई में "बहार' किसी को खबर ही नहीं शायद | सब लोग सो रहे हैं। अपनी नींद में ही पड़े हुये हैं। किसी को होश ही नहीं कि बहार आ भी गयी और न जाने कितने ही खिल गये और अभी हम इसी मिट्टी में पड़ हये मर रहे हैं। आज बड़ा शुभदिन है। आज के दिन ऐसा नहीं की माँ बच्चों को डाँटें। सच आज ऐसा दिन नहीं है। लेकिन आज सालों से यहाँ पर, १९७० से ले कर आज तक हर बार मैंने यही जिद की बम्बई में ही ये दिन मनाया जायें। और हर बार मैं बहुत आप लोगों के तारीफ़ के पूल बाँधती रही। लेकिन देखती हैँ कि सहजयोग यहाँ पनप नहीं पाया है। यहाँ के गन्दे लोगों के दिमाग से चलेंगे। यहाँ पर आज एक गन्दा आदमी आ कर के गन्दी बातें आपको सुनायें तो हजारों आदमी वहाँ दौड़ कर के नंगे नाचेंगे । आप लोग नाचिये। लेकिन आप लोगों को सच्चाई चाहिये। से तो और मैं आज बता दे रही हूँ। इस बात को आप सुन ले। इस प्रकार एक दिन मैने बताया था, आंध्र में, मुझ लोग नाराज हो गये थे। जब मैंने आंध्र में जा के बताया कि जागिये आप लोग। क्या हैं यहाँ पर ? सब जगह तंबाकू लगाया है। तंबाकू के खेत के खेत। और कहने लगे, 'हम लोग नहीं खाते। हम लोग सिर्फ एक्सपोर्ट करते हैं। जितने रईस लोग हैं वो तंबाकू लगा रहे हैं और गरीब लोग जो हैं वो तांत्रिक विद्या पर | मैंने कहा, 'खबरदार, बहुत हो गया। अब ये समुद्र आ के खा जायेगा आपको।' और आप देखिये, मैंने किस डेट पर कहा हुआ है और वही हो गया। न जाने क्यों मेरे अन्दर इस कदर घबराहट हुई की ये लोग कर क्या रहे हैं? क्या भूल गये कि परमात्मा हर एक चीज़ को देखता है। हर कोई नापता हैं। हर सिटी का अपना अपना पुण्य हैं। हर जगह का अपना अपना पुण्य है। इसकी भी कोई हद होती है। उस हद से गुज़र गये हैं लोग।.....(अस्पष्ट) और उसको सहना पड़ेगा। पिछले साल मैंने ऐसे ही वहाँ के पंडों का हाल सुना। पंडों ने बहुत सताया और गंगा-जमना पर बैठ कर के इस तरह से वो धन को बेच रहे हैं। तभी मैंने ऐसे चीख चीख कर के कहा था कि इन पंडों से बच कर रहिये। अब देखा कि अपने खौंचे उठा के सब भागे जब गंगा जी और जमना जी ....(अस्पष्ट)। ये शुरुआत है। लेकिन आगे का भी सोचना होगा, मैं बता रही हूँ आपको । आगे का भी सोचना होगा। इसके आगे जो कल्कि अवतरण आने वाला है। वो आपके सामने आ कर ऐसे बतायेगा नहीं। आप से बिनती नहीं करने वाला। आप पे मेहनत नहीं करने वाला। आप को रियलाइझेशन नहीं देने वाला। आपकी कॅन्सर की बिमारियाँ ठीक नहीं करने वाला। वो तो हाथ में तलवार ले के खटा खट आखरी चीज़ है। उस वख्त सर्वनाश! यही उनका कार्य है। सहजयोग में बहुत अच्छा है। इसमें इंटिग्रेशन है, सुख है, आनन्द है, शारीरिक सुख है, मानसिक सुख है और परमात्मा का आशीर्वाद हैं। बहुत सुन्दर है। लेकिन कल्कि युग में ये नहीं होगा। कल्कि के अवतरण के बारे में आप सबने सुना है और वो होने वाला है। उससे पहले थोड़ी सी मियाद है। थोड़ा सा समय है। उस में मेहरबानी की 7 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-7.txt Hαππψ Βιρτηδαψ अपने आत्मा की आँखें खोले। आपके अन्दर आत्मा हमेशा वास करता रहा और आपकी कुण्डलिनी भी आपके साथ हमेशा रहती हैं। लेकिन आज तक कुण्डलिनी न जाने क्या क्या लोगों ने बना कर रखा है, जो की आपकी स्वयं माँ हैं। और आप भी उस चीज़ को हर समय किस तरह से सुनते रहे हैं। मेरी यही समझ में नहीं आता है, कि कुण्डलिनी जो की आपकी स्वयं की माँ हैं, उस पर गाली - गलोच लगाने वालों की बातें आप बड़ी प्रेम से सुनते रहे और उनके लिये रुपया दे दे कर के और वहाँ आपने घण्टों लगा दिये उनके टेप लगा लगा कर के। भक्ति से आपने उनकी गुरु विद्या सीख ली। जो आपकी माँ पे गाली लगाते हैं, ऐसे लोगों को आपने माना। सब से पहले आप जान लीजिये कि परमात्मा ने जब ये सृष्टि बनायी थी, तो पहली चीज़ उसने गणेश जी को बिठाया था, जो पवित्रता के द्योतक हैं। पहली चीज़ पवित्रता संसार में बनायी थी। और जिस इन्सान में पवित्रता नहीं होगी उसको परमात्मा की बात करने का कोई भी अधिकार नहीं। क्योंकि सहजयोग में आने के बाद आपकी पवित्रता बन जाती है। बहुतों की तो अपने आप ही बन जाती है। ये तो पूर्वसंपदा की बात है । पर बहुत से लोगों की धीरे-धीरे बनती है। याने आप सोचें कि जहाँ से भी आप आये हैं, सोलह हजार आदमियों ने शराब पीना छोड़ दिया है। इसलिये लोग सहजयोग में नहीं आते कि माताजी फिर कहेंगी कि आप शराब मत पिओ। मैं नहीं कहती, अपने आप छूट जाती है। क्योंकि जब मन की ही मदिरा आप पीने लग गये, जब आप को अपना ही आनन्द आने लग गया, जब मन से ही अमृत झरने लग गया, तो आप शराब क्यों पीते ? मुझे कहने की जरूरत क्या है? अपने आप, ये जो आज आपके सामने खड़े हये हैं ऐसे हमारे यहाँ तीन सौ पक्के लोग हैं जिन्होंने पूरी तरह से सब चीज़ अपने आप छोड़ दी और ये लोग तो ड्रग्ज तक लेते थे। मैंने जा कर उनसे नहीं कहा था कि, 'आप ड्रग्ज छोडिये।' आपके अन्दर की शक्ति है, आपके अन्दर की कुण्डलिनी है आप उसे खोज लीजिये। बस, इतना ही मुझे कहने का है। लेकिन ये बात कहने पर नाराज़ होने की भी कौन सी बात है । मैं कहती थी कि तांत्रिक लोगों को भी सोचना चाहिये, कि माँ क्या बुरे के लिये कहे। कोई माँ अपने बच्चे से कहेगी, कि जो गलत काम है वो सही है ? पर सहजयोग में आने के पहले मैं भी नहीं कहती। जैसे भी आप हैं, जो भी आपकी बीमारी है, जैसे भी आपकी हालत है हमारे सर आँखों पर ! कुछ आप आईये! और उसके बाद आप उसे पाईये। सहजयोग आपको आमूलाग्र, उपर से नीचे तक बदल देता है। क्योंकि ये जीवंत क्रिया है। जैसे एक पेड़ है। वो जीवंत है। उसके अन्दर कोई खराबी हो जाये , तो आप उसके अन्दर ऐसा कोई ड्रग डाल सकते हैं जिसके कारण पूरा उपर से नीचे वो ठीक हो सकता है। लेकिन जो मरी हुई चीज़ है। समझ लीजिये बिल्डिंग है इसके तहखाने में कोई खराबी हो जाये या इसके दीवारों में खराबी हो जाये , उसे हम ठीक नहीं कर सकते। आप जीवंत है। आपके अन्दर ये जीवंत क्रिया घटित होती है। उसके लिये परमात्मा ने आपको धीरे-धीरे एक-एक चक्र के इतना सुन्दर बनाया। लेकिन क्या आपके बारे में कुछ भी नहीं जानना चाहते ? क्या आपकी शक्ति को बना बिल्कुल ही नहीं पाना चाहते ? आपके अन्दर बने हुये ये चक्र कितने सुन्दर हैं। कितनी मेहनत से बने हैं और वो लालायित हैं। आपकी कुण्डलिनी जो है बैठी हुई है। हजारों वर्षों से आपके साथ जी रही है और चाह रही है कि वो क्षण आ जाये जब आप परमात्मा को पा ले। लेकिन उसके लिये कितना मुझे आप से कहना होगा। कितना आपका 8. 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-8.txt आर्जव करना होगा। आपको भी तो थोड़ा सा सत्य को मानना होगा। सत्य आपके ...... मानने वाला नहीं। सत्य आपसे कोई वोट नहीं माँग रहा है। सत्य आपसे रुपया-पैसा नहीं माँग रहा है। आप खरीद नहीं सकते सत्य को। यही सत्य का दोष है। अगर आप सत्य को खरीद सकते और आपका हकदार अगर उससे पूरित होता तो आप लगे रहते। जैसे और गुरुओं के पीछे आप भाग रहे हैं और फालतू अपना समय बरबाद कर रहे हैं और अपना रुपया बरबाद कर रहे हैं। आप ही अपने गुरु हैं। आपको क्या जरूरत हैं किसी के पीछे भागने की! आप इसे पाईये। इसे जानिये। थोड़ी सी तो भी अपनी कद्र करें। अपनी इज्जत करें। अपने को समझें| ऐसी छोटी-छोटी चीजें, बेकार की चीज़ों में इस महान, मूल्यवान मनुष्य धारणा को न डालें। अभी दिल्ली के प्रोग्राम में न जाने कितने लोग पार हो गये। बहुत लोग आये। हर तरह के। मुझे आश्चर्य हुआ कि दिल्ली में, एक नानक साहब की बात मैं जरूर कहूँगी। इनकी कृपा बड़ी रही हैं, इसलिये दिल्ली के लोगों में | इसका जागरण बहुत है। पर इस महाराष्ट्र में ही कितना कार्य हो रहा है। ये संतों की भूमी है। यहाँ संतों ने अपना रक्त सिंचन किया है। इस महाराष्ट्र में बहुत कार्य हो सकता है। लेकिन इस मुम्बानगरी, जो कि इसकी राजधानी मानी जाती है, न जाने क्यों इतनी संतों से रहित, इतनी सत्य से रहित, नास्तिकों से भरी हुई, इतनी पाप नगरी क्यों हो गयी? आप पे बड़ा भारी उत्तरदायित्व हैं। आप पे बड़ी भारी जिम्मेदारी है। कल परमात्मा आप से पूछेगा कि, 'बेटे आपने क्या किया ? उस पाप में भाग लिया तुमने? उस पाप में तुम समागम कर गये।' कि लोग आते, 'माँ हमारे बच्चे का ऐसा क्यों हैं? हमारे बच्चे को ये तकलीफ क्यों हो रही है? हमारे बेटी को ये तकलीफ क्यों हो गयी? हमारा ऐसा क्यों हो गया ? आप क्या करते रहे? आप कहाँ हैं?' जिन देशों से आज ये लोग आके बातें कर रहे हैं। वहाँ जाने पर आपकी भी आँखें खुल जायेगी। आप उसी रास्ते पर चले जा रहे हैं। लेकिन वो किस ग्ढे में जाकर गिरे हैं वो आप देख नहीं सकते। क्योंकि आपके सामने सिर्फ उनका चलता हुआ रास्ता दिखायी दे रहा है। लेकिन वो गड्ढा नहीं दिखायी दे रहा है। जहाँ वो अपने सर ढूंढ रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं किसी तरह उसमें से निकल आयें। और जब वो कोशिश उनकी नहीं बन पाती तो आत्महत्या करते हैं। आत्महत्या कर के भी कौन बच सकता है? कोई मरता ही नहीं। फिर से, फिर से वही जन्म आयेगा और वही द्विधा , वही आफ़त, वही आतंक। कॅन्सर की बीमारी एक बड़ा भारी, एक तरह से, आप लोगों के सामने एक शैतान खड़ा हुआ है। उसे देख कर तो आप समझ लें कि सहजयोग के सिवाय कॅन्सर ठीक नहीं हो सकता। आप कितनी भी कोशिश कर ले, आपका कॅन्सर सहजयोग के सिवाय ठीक हो नहीं सकता। अभी डॉ.कजोरिया आपके सामने थे, उन्होंने लंडन में भी कॅन्सर ठीक किया है। आप डॉक्टर लोगों के पास जाईये। यहाँ पर हमारे डॉक्टर भी बहुत से शिष्य हैं। वो भी कॅन्सर ठीक करते हैं। लेकिन जब डॉक्टरों के पास जाईये तो कहेंगे कि, 'हमारे पास लिस्ट दीजिये आप, | कितने लोगों का ठीक किया है।' ये प्यार का खेल है। क्या आप अपने घर में आये हये मेहमानों की लिस्ट देते हैं किसी को? क्या आप ये बताते हैं कि उसको कितने निवाले खाने के दिये? ये जो पैसे से काम करने वाले डॉक्टर है ये क्या समझ सकते हैं प्यार को! ये क्या माँ को समझ सकते हैं। इनके बस का नहीं है ये समझना। ये लोग तो हमसे ऐसे उलटे-सीधे सवाल पूछते हैं। मुझे बड़ा आश्चर्य होता है। मुझे तो ये भी नहीं पता कितनों को ठीक किया, 9. 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-9.txt कितनों को नहीं किया। गंगा बह रही है, जो ठीक हो गया वो ठीक हो गया। नहीं ठीक हुआ, नहीं हुआ। उसमें क्या कोई हिसाब लगाता है कि कितनों को ठीक किया ? कितनों को आशीर्वाद दिया? कितनों को पानी पिलाया? कितनों ने घड़े भरे? प्यार की महिमा आत्मा के प्रकाश से कभी नहीं खुलती। आत्मा का प्रकाश पहले खुलने दीजिये। आत्मा की रोशनी में आप देख सकते हैं कि प्यार चीज़ दूसरी ही है। आज तक आपने जाना ही नहीं प्यार क्या चीज़ है। प्यार की शक्ति कितनी प्रचंड है। कितनी महान शक्ति है। और इस शक्ति से बढ़ के दूसरी कोई सूक्ष्म शक्ति हो ही नहीं सकती। आप यहाँ बैठे -बैठे किसी भी आदमी को पार करा सकते हैं। यहाँ बैठे -बैठे किसी भी आदमी का भला कर सकते हैं और कल्याण कर सकते हैं । इसकी शक्ति कितनी सूक्ष्म है और कितनी गतिमान है, आप समझ भी नहीं सकते। आपका सारा साइन्स वगैरा इसके पास भी नहीं आता। पर आप इसके अन्दर तो आईये। इसको देखिये तो किस गरूर में आप बैठे ह्ये हैं। ये गरूर से भी अन्धापन बहुत ज़्यादा है। बहुत ज़्यादा अन्धापन है। कभी- कभी मुझे बड़ा दुःख होता है कि कब इसके बारे में लोग जागृत होंगे और इसे पायेंगे ? कल मैं आपको ये बताऊँगी कि आप क्या है? आप क्या चीज़ है? आपके अन्दर कौनसे चक्र हैं ? और कैसे कैसे वो गतिमान होते हैं? और किस तरह से ये सुरति, ये कुण्डलिनी, आपकी माँ, किस तरह से आपको बढ़िया तरीके से पार कराती हैं। कितनी कलात्मक हैं, कितनी सुन्दर हैं, कितनी प्रेममय हैं, इसको समझ लेना आपका परम कर्तव्य है। ये आपके साथ जन्मजन्मांतर रहती है और इसको पा लेना भी आपका सबसे बड़ा यही तो एक ध्येय है। आप किसलिये पैदा हये हैं? किसलिये मनुष्य बने? किसलिये अमिबा से आज तक इन्सान बनाया गया ? समझ लीजिये, ये एक बड़ा भारी सा इन्स्ट्रमेंट बनाया हमने। और इसको अगर मेन से लगाया नहीं तो इसका क्या अर्थ निकलता है? इसका कोई अर्थ ही नहीं। व्यर्थ हो गया। और इसको बनाने वाले का भी क्या अर्थ हुआ। परमात्मा का भी कोई अर्थ नहीं होता। लेकिन परमात्मा भी आपके सामने झुकता है। एक तरह से आपको स्वतंत्रता है। आपको स्वतंत्र किये बगैर ये कार्य नहीं हो सकता था। इसलिये आपको स्वतंत्र किया गया। लेकिन स्वतंत्रता का मतलब बेछूटपना तो नहीं हो सकता। कोई अगर एरोप्लेन के इससे कहें कि हम स्वतंत्र हैं। हम जहाँ चाहे जैसे चिपक जायें और जब चाहें निकल जायें, तो वो क्या एरोप्लेन चढ़ सकता है। आप अगर एक सबंध, पूरे एक परमात्मा के अंग-प्रत्यंग हैं, अगर आप उस विशाल-विराट के ही रक्तमाँस पेशियाँ हैं, तो क्या आप अपना अलग अस्तित्व रख सकते हैं? और कह सकते हैं कि मैं स्वतंत्रता से जन्मा हूँ। जैसे ही आपने ये कह दिया, आप मैलिग्नंट हो गये, आप एक कैन्सर हो गये उस शरीर से। जैसे ही आपने सोच लिया कि 'मुझे जो करना हैं मैं करूंगा।' उसी जगह आपको जानना चाहिये। एक तो आप जानते नहीं कि सारे परमात्मा, उसके एक- एक अंग-प्रत्यंग बसे हये हैं, जो भी महान...... जो आपने कहा ऐसे लोग हैं। वो सब आपको देख रहे हैं। जैसे ही आप इस कैन्सरस्थिति में चले जाएंगे , आप नुकसान पहुँचाएंगे अपने को भी, और उस विशाल देह को भी जिस में आत्मा समाया रखा है। इसका विचार आपको रखना चाहिए। बहुत जरूरी है कि अब समय बहत कम है। बहुत कम है। आप समझ सकते हैं कि १९७० से ले कर आज तक इस बम्बई शहर में मैंने महिनों काटे। बहत मेहनत की। जैसे इन्होंने कहा, सबसे ज़्यादा मेहनत मैंने बम्बई में की। बहुत ज़्यादा मेहनत की है। लेकिन बम्बई के लोग बहुत मुश्किल हैं । यहाँ पे 10 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-10.txt Ηαππψ Βιρτηδαψ यही हो कि 'अति परिचयात् अवज्ञा।' लेकिन ऐसे सोते रहने का अब समय बीत गया। कृपया आप लोग जागें। कल आप अपने साथ और लोगों को ले आईये, जो आपके अड़ोसी-पड़ोसी हैं। और हो सकें तो आज हमारा जो प्रोग्रॅम इसके बाद होने वाला है कव्वाली का उसमें मैं आपको आत्मसाक्षात्कार देने का प्रयत्न करूंगी। इस वख्त सब लोग मेरी ओर ऐस तरह से हाथ कर के बैठें । और आपको धीरे-धीरे हाथ में ठण्डी- ठण्डी हवा आने लग जाएंगी। आप देखेंगे कि आपके हाथ के अन्दर ये चैतन्य की लहरियाँ ठण्डी-ठण्डी आने लगेंगी। इन ठण्डी-ठण्डी लहरों के बारे में श्री आदि शंकराचार्य ने आपको विशद रूप से बताया हैं। बायबल में भी बहुत बताया हैं, कि होली घोस्ट माने आदिशक्ति के अंग से ये ठण्डी - ठण्डी लहरें निकलती हैं । सब दूर इसका वर्णन है । कोई ये नयी चीज़ नहीं है। लेकिन आज तक ये सर्वसामान्य के लिये घटित नहीं हुआ था और ये चीज़ सर्वसामान्य को मिलनी चाहिये। दो-चार कोई चलती नहीं है। इस वजह से ये कार्य आज इस कलियुग में करने का आवश्यक था । आप लोगों ने आज मुझे इतनी बधाईयाँ दी हैं, इसमें से बहुत से सहजयोगी भी हैं। और सहजयोगी लोगों के लिये मैं इतना जरूर कहँगी कि बम्बई में क्योंकि इतने ब्रँचेस नहीं होते, ये प्रसार कम होता है, इसलिये जो सहजयोगी बहुत गहरे थे, बहुत गहरे थे सहजयोगी । यहाँ का गहरापन सहजयोगियों का प्रशंसनीय हैं। क्योंकि इसकी बहुत सारी शाखायें नहीं होती हैं। बाकी के सहजयोगी जितने भी हैं बहुत गहरे उतरते चले जा रहे हैं । बाकि इसका प्रसार बाहर कम फैलता है। जो हैं, २०० -३००-४०० तक होंगे कहना चाहिये, जो काफ़ी गहरे उतर गये हैं। लेकिन इनका प्रकाश बाहर की ओर नहीं फैला हुआ। इसलिये मुझे आपसे कहना है कि और जो आपके मित्र लोग हो, सब लोग हो, उनको खाना खिलाना, घूमाना, खिलाना इस तरह की बेकार की चीज़ों में उलझाने से अच्छा है कि आप इस पुण्य का लाभ उठायें कि उनको आप ही लोग यहाँ पर ला कर के पार करवायें । यहाँ, आप जानते हैं, यहाँ पैसा-रुपया, कोई चीज़ नहीं चलती। सिर्फ यही है कि आपको पार होना पड़ता है। इसमें कोई वाद - विवाद करने से पार नहीं हो सकता। झगड़ा करने से कोई पार नहीं होता। जो पार है वो पार है, जो नहीं है वो नहीं है। आपको पार होना है तो पार हो लीजिये। एक बार आईये, दो बार आईये, जरूर, आने के साथ पार हो जाता है। पिछली मर्तबा काफ़ी मेहनत की थी हमने, और ध्यान दिया था । लेकिन देखते यही हैं कि इन लोगों में अभी भी काफ़ी निद्रावस्था है। उसको थोड़ा सा जगाना चाहिये। और उस आशा से ही मैंने आज जरा आप से थोड़े कड़े शब्दों में कहा, कि कृपया जागृत होईये। अगर धीमी आवाज सुनाई नहीं देती, अगर मधुर आवाज सुनाई नहीं देती, मंजुल बात सुनाई नहीं देती, इसलिये थोड़ा सा कड़ा होना पड़ता है और कहना पड़ता है कि, बेटे जागो, बहुत देर हो गयी। सूर्य कब का आकाश पे आ गया। न जाने कब डूब जायेगा। फिर से अंधेरे में, हमेशा के अंधेरे में डूब जाओगे। एक माँ का हृदय हैं और वो भी विकल हो जाता है। कभी कभी बहुत व्यथित हो जाता है। इसे समझना चाहिये। आज आप लोगों से मैं एक ही वादा चाहती हूँ कि अगला जनम दिन मैं यहाँ करूंगी लेकिन आप बहुत बार, बहुत तादाद में सहजयोग को प्राप्त करें। 11 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-11.txt जड़ शक्ति और चैतन्य शक्ति दोनों शक्तियाँ सा-थ हैं री थे य्य दिल्ली, १७ नवंबर १९७३ जानवर में वो प्रश्न होते ही नहीं है जो मनुष्य में होते हैं। जानवर के लिये तो कोई प्रश्न ही नहीं होता है, वो सिर्फ जीता है। जिस शक्ति के सहारे वो जीता है उसकी ओर भी उसका कोई प्रश्न नहीं होता है कि वो कौनसी शक्ति है कि जिसके सहारे मैं जीता हूँ। इसकी वजह ऐसी है कि ये चैतन्य शक्ति, जो कि सारे सृष्टि की रचना करती है, उसकी चालना करती है, इसकी व्यवस्था करती है। वो प्राणिमात्र में बहती हुई और गुजर जाती है। क्योंकि इन्सान है जिसे के जीवन से सम्बन्धित ऐसी कुछ एक विशेष कारण, इसके एक विशेष तरह रचनायें हो जाती हैं कि जिससे मनुष्य उस शक्ति से वंचित हो जाता है। उसको अगर हम समझें तो साधारण शब्दों में इस तरह से कहा जायेगा कि मनुष्य प्राणिमात्र में नहीं। मनुष्य में जो अहंकार हो जाता है वो का दिमागी हाल जो है वो है। इसका दिमाग एक बहुत ही और तरह का ईै त्रिकोणाकार है। और इस त्रिकोण में जब ये महिने के, माँ के गर्भ में ओर गुज़रती है तो वो अंग्रेजी में कहते हैं, शक्ति, बच्चा तीन होते समय अन्दर की जिसे एक रिटरॅक्शन कहते हैं, विकेंद्रीकरण विलिनीकरण जिसे हिस्सों में बँट जाता है। कहते हैं उसमें तीन के बीच से सीधा नीचे २० एक हिस्सा जो सर के माथे हिस्से, जो कि सर के बाकी गुज़र जाता है। और बाकी दो ४ और यूँ कर के नीचे की ओर शक्ति की वजह से भी मनुष्य दो कोणों में से नीचे के गुज़र चले जाते हैं। इस .. तरह की प्राणि मात्र से एक दूसरी ही चीज़ है । ये जो गुज़रती हैं, और त्रिकोण के कोण की तरफ़ से जब गुज़रती हैं तब उसमें भी एक कोण आ जाता है। और उसी कोण शक्ति हमारे सर में त्रिकोण में से के कारण उसकी शक्तियाँ दो तरह से बदल जाती है। अगर आप लोग फिजिक्स जानते हो तो आप समझ लेंगे कि शक्ति हमेशा सीधी ही गुज़रती है। लेकिन वो जब इधर से गुजर कर आती है और उसे ऐसे जाना पड़ता है इसका 12 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-12.txt बदलता हुआ रूट (मार्ग) इसको दो शक्ति में बाँट देता है, जिसे कॉम्पोनन्ट कहते हैं। एक ऐसे बाहर की ओर जाती है, एक नीचे की ओर। बाहर की ओर जाने वाली शक्ति के कारण ही मनुष्य के अन्दर में बाहर की ओर शक्ति आ जायें। जैसे की एक जानवर है वो अगर इस स्टूरल पे आ कर बैठ जाये तो ये सोचेगा की स्टूल पे बैठे और मनुष्य अगर स्टूल पे बैठेगा तो सोचेगा की ये स्टूल मैं कैसे पा लँ? ये काम का है कि नहीं? इसको किसने बनाया ? इसका बनाने वाला कौन? कोई सी भी चीज़ देखते ही इन्सान उसपे लपटता है। क्योंकि इन्सान जो देखता है उसकी ओर भी लपटता है। जानवर में ये बात नहीं। इसका अगर मालिक आ जाये तो वो खुश हो जाता है। कोई अगर पराया आदमी आये तो भौंकने लग जाता है। कोई अगर चोर आयें तो फिर भौंकने लगता है। अब वो ये नहीं सोचता है कि ....(अस्पष्ट), इस माइक को मैं ले लँ। इस टेबल को मैं ले लूँ। उसको क्या सिर्फ ..... (अस्पष्ट)। उसमें सौंदर्य की भी दृष्टि नहीं आती। वो ये भी नहीं सोचता कि कोई चीज़ सुंदर है क्या। इसका रंग अच्छा है या बुरा। इससे उसे कोई मतलब नहीं। लेकिन मनुष्य कुछ भी वस्तु विशेष नहीं। फिर वो आगे बढ़ कर के ये सोचने लग जाता है कि मैं कोई एक विशेष हूँ। जैसे कि हम पैदा होते ही ये सोचने लग जाते हैं कि हम निर्मला है। हम हिन्दुस्थानी हैं। हम हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, ईसाई हैं। इस तरह की जो कुछ भी बाहर की उपाधियाँ हैं, इससे लिपटता है। ये जो बाहर जाने की प्रवृत्ति है, ये मनुष्य के त्रिकोणाकार मस्तिष्क से ......। अगर मनुष्य बाहर न जाये तो उसके आगे कोई प्रश्न नहीं आता। जैसे कुते, बिल्लियों के आगे कोई प्रश्न नहीं। उनके अन्दर से सारी चेतना के चली जाती है। उनके आगे कोई प्रश्न नहीं । कोई उनके अन्दर रिअॅक्शन नहीं। लेकिन हमें ऐसा है, गुजर हम अगर किसी भी चीज़ की ओर देखते हैं, उसके प्रति हमारा रिअॅक्शन होता है। उसी कारण हमारे अन्दर एक आगे से निकलने वाली और एक पीछे से निकलने वाली शक्ति के कारण हमारे अन्दर उसका रिअॅक्शन मात्र ही इगो और सुपर इगो, अहंकार और प्रतिअहंकार, नाम की दो संस्थायें तैयार हो कर के यहाँ एकत्र हैं। उसके एकत्रित होने के कारण यहाँ से हम सारे तरह से अलग ही हट जाते हैं । उस ओर में जो हमारे शक्ति विराजमान है, उस शक्ति से हम अलग हो गये। आप अलग है, आप अलग है। हम सब अलग-अलग है। वास्तविक हम एक ही शक्ति की देन हैं। जैसे कि कोई हमारे अन्दर पेट्रोल भर दिया हो , और हमें यहाँ से ... (अस्पष्ट)। इस शक्ति में से जो .... की शक्ति गुजर के जाती है, वो हमारे रीढ़ के पीठ की हड्डी से नीचे के हिस्से में जो त्रिकोणाकार अस्थि है उसके अन्दर जा के लपेट के साढ़े तीन चक्र में बैठती है। कुंडलों में बैठती है। इसलिये उसको कुण्डलिनी कहते हैं। ये शक्ति अभी दिखायी नहीं देती, इसलिये बहुत से लोग कहेंगे कि ये आप जो कह रहे हैं बात कैसे माने। लेकिन ये एक हप्ते पहुँचते तक आपको दिखायी देगी। जैसे कि आपको हम कहे कि माइक्रोस्कोप है, आपको बहुत माइक्रोस्कोप आपको मिलना चाहिए। अगर आप माइक्रोस्कोप नहीं मिला तो आप उस चीज़ को देखिये । तो एक स्थिति ऐसी आ जाती है कि आप उन शक्तियों को देख सकते हैं। उसका आकार देख सकते हैं। लेकिन ये निराकार सी ऐसी चीजें दिखायी नहीं देगी, इन आँखों से नहीं दिखायी देगी। लेकिन में शक्ति जा कर के अन्दर बैठी हुई है। जिस वक्त ये कुण्डलिनी की जागृति होती है, हमारे यहाँ जो लोग आये हैं, और जो लोग अब पार हो चुके हैं, वो काफ़ी इस काम को जानते हैं। वो ही बता सकते हैं कि जब कुण्डलिनी 13 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-13.txt आपकी जागृत होती है, अगर कोई मेरे सामने झुका हुआ हो, तो उसके पीठ के इस रीढ़ के हड्डी के पीछे में उसका स्पन्दन दिखायी देता है। आप कभी भी श्वास यहाँ से लेते हैं तो उसका उठना और गिरना आप देख सकते हैं। चाहे आप पार हो या ना हो। बहुत से लोगों में ये दिखायी देता है। सब में दिखायी नहीं देता है। लेकिन विश्व की कृपा हो तो इसमें काफ़ी अच्छे से दिखायी देता है। काफ़ी देर तक आप देख सकते हैं कि वहाँ स्पंदन है । ये शक्ति वहाँ स्थित रहती है, वहाँ बैठी रहती है। यही कुण्डलिनी है, जो बैठी रहती है उस समय तक, जन्मजन्मांतर तक। यही कुण्डलिनी आपके अन्दर पनपती रहती है और सारी चीज़, टेप जिस तरह से होता है, रेकॉर्ड करती रहती है कि इनको क्या-क्या तकलीफ़ हैं? ये मेरा बेटा है, इसको क्या-क्या परेशानी है? इसके शरीर में क्या-क्या तकलीफ़ हैं? इसके मन में क्या तकलीफ़ हैं? और इसको किस चीज़ की कमी है? वो सब कुछ आपके बारे में जानती है। आपके माँ के अनेक बच्चे हो सकते हैं, पर इस माँ के आप ही हैं। अब मेरा जब से जन्म हुआ, मैं ये देख रही थी कि हर एक इन्सान की कुण्डलिनी वहीं जम गयी है। वो उठती ही नहीं। वजह क्या है? इसका उठने का जो मार्ग निश्चित हैं जिससे वो उठेगी जिसे वो जानती है, कि मुझे इसी मार्ग से उठना है। इसके बीच में एक बहुत बड़ी जगह है जो कि बाहर भी, जो डॉक्टर लोग हैं समझ सकते हैं, कि हमारे ...(अस्पष्ट) और अेऑर्टिक प्लेक्सस के बीच में कुछ भी नहीं। उसी तरह अन्दर, यहाँ भी हमारे जो वॉइड है से हमारे जो बीच की सुषुम्ना नाड़ी है उसमें ऐसी जगह है । सभी इन्सानों में ये जगह बनने के कारण ये कुण्डलिनी शक्ति है। मैं यही नहीं समझ पाती थी कि ये कुण्डलिनी शक्ति है। उठेगी तो किस तरह से उठेगी। उस गॅप को भरने का इलाज जो ढूँढा गया है वही सहजयोग है। ये जो कुण्डलिनी शक्ति उठती है, तो ये उपर जा कर के और फिर से इसी मार्ग से उपर जा कर के आपको एकाकार कर देती है। उस शक्ति से जो कि हमारे चैतन्य से घडती है। जैसे कि आप समझ लीजिये कि पेट्रोल हमारे अन्दर पहले भरा गया था। उसके बाद हमने इसे इस्तेमाल कर दिया। हमारी बाहर जाने की प्रवृत्ति से हम इसे इस्तेमाल करते हैं। अब नया पेट्रोल भरने के लिये फिर से ये कैप खुल गया है। और उसके लिये कुण्डलिनी ही उसे खोल देती है और उपर से कोई ब्रेक......, वो आप के अन्दर में वो शक्ति पूरी समय दौड़ती है। जब ये चीज़ घटित हो जाती है, उस वक्त आपको ऐसा लगता है कि आपके हाथ के अन्दर से कोई शक्ति बहती है। अब आश्चर्य की बात है, कि शुरू से जब से चैतन्य शक्ति अपना कार्य कर रही है तब से जड़ शक्ति और चैतन्य शक्ति दोनों शक्तियाँ साथ-साथ हैं। जैसे कि एक पेड़ है। पेड़ के अन्दर उसकी चैतन्य शक्ति है, लाइट है तभी तो वो पनप रहा है। लेकिन आप उसे देखते रहे। देख रहे हैं आप कि पेड़ कब आयें। माने जड़ शक्ति का काम आपने किया । चैतन्य शक्ति हमेशा जड़ शक्ति | को चलाती है। रेग्युलेट करती है और अपना काम करती है। लेकिन वो पहली मर्तबा जब आप रियलाइज्ड होते हैं, तब वो दिखायी देती है, तब उसका प्राद्भाव होता है। मैनिफेस्ट होता है। पहली मर्तबा आपके अन्दर से बहने तब लगती है जब ऊपर से उसका प्रवाह खुल जाता है और अन्दर से ठण्डे-ठण्डे वाइब्रेशन्स आने लगते हैं। लेकिन आप स्वयं उस दशा में पहुँच जाते हैं, जहाँ एकाकारिता स्थापित हो जाती है, अंतर्मन की। अगर यहाँ कोई साइकोलोजिस्ट है तो समझ सकते हैं। वो इसको युनिव्हर्सल अनकॉन्शस कहते हैं।......(अस्पष्ट) 14 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-14.txt बहुत से लोग तो ये भी कहते हैं, कि बड़े-बड़े लोग जैसे रमण .... थे उनको कैन्सर हो गया था। हो गया था, लेकिन उनको कोई बताने वाला नहीं था कि किस चीज़ की कमी थी। वाइब्रेशन्स के बारे में भी बहुत कम लोगों ने लिखा है। सब से तो कमाल ये है कि सिर्फ आदि शंकराचार्य ने ही उसके बारे में लिखा है। लेकिन जो अपने को बड़े हिन्दू कहलाते हैं वो आदि शंकराचार्य के विरोध में थे । आदि शंकराचार्य ने सिवाय सहजयोग के और कोई बात ही नहीं की। उन्होंने यही कहा कि ' न सांख्येन न योगेन' । सांख्य से, योग से, किसी भी चीज़ से परमात्मा को पाया नहीं जाता, वो सहज में ही हो जाता है। अपने आप ही, स्पॉन्टेनियसली योग होता है और उन्होंने कोई जाति-वाती बनायी नहीं थी । वो भी ये कह गये कि तीन तरह के संसार में लोग है। एक तो ये कि वो, जो बहत ही निम्न श्रेणी के होते हैं, जिनकी बुद्धि खास नहीं होती है। जो पूरी तरह से, अभी ह्यूमन बिईंग डेव्हलप नहीं है। माने समझ लीजिये कि ये माईक है। ये पूरी तरह से मशिन तैयार नहीं हुई है, इसका मेन से कनेक्शन लगाने की कोई जरूरत भी नहीं और फायदा भी नहीं। इस तरह के जो लोग हैं वो भक्ति रस में पड़े रहते हैं। उनका कुछ फायदा नहीं। दूसरे ऐसे लोग हैं कि जिनका मन बहुत इधर-उधर दौड़ता है। और उसके कारण वो बूरे काम, या ऐसे काम में जुटे रहते हैं जिससे उनकी शक्ति क्षीण हो जाती है। ऐसे लोग योग में पड़े हैं जिससे कि वो योग से खुद अपने को बचाये। लेकिन एक तिसरे तरह के लोग होत हैं जो कि इतने शुद्ध स्वरूप होते है। उनके अन्दर ये अद्भुत घटना घटित होती है। अब उनमें और मुझ में यही अन्तर है कि वो कहते हैं कि करोड़ों में एखाध होते हैं। मैं कहती हूैँ, लाखों होते हैं । यही एक बात उनमें और हमारे में अन्तर हैं। हो सकता है, कि छठी शताब्दि में ऐसे ही लोग रहे हैं, लेकिन जैसे आज हैं, देखती हूँ कि इनमें से हजारों लोग पार हैं। ये कुण्डलिनी जागृति के प्रति भी आपने बहुत कुछ कहा होगा। अगर आप उस किताबों को पढ़े हों तो शायद आप यहाँ न आते। क्योंकि उसके बारे में ऐसा बताया कि कुण्डलिनी की जागृति होती है तो बदन में बड़ी बड़ी फूँसियाँ निकल आती है, या बड़ी आग सी होती है। कोई लोग कहते हैं कि उसमें आदमी पागल हो जाता है । दुनिया भर की चीज़ें हैं। इस में ऐसा कुछ भी नहीं है। लेकिन वास्तविक ये लोग जिसको कुण्डलिनी जागृति कहते हैं वो कुण्डलिनी की जागृति नहीं है। वो कुण्डलिनी नाराज़ है। क्योंकि जब कुण्डलिनी मध्य मार्ग से उठती ही है तो उसको और जगह से किसी भी तरह से अन्दर उठाने का प्रयत्न करे तो ये गलत चीज़ है । मध्य मार्ग से वो तभी उठ सकती है, जब ऐसा ही आदमी जो संपूर्ण परमात्मा के चैतन्य स्वरूप प्रेम को ही बाँटता है। वो ही इस जगह को भर सकता है, जो मनुष्य के बीचोबीच में है। वास्तविक ऐसे लोग बहुत कम हैं। थे। हम तो कहेंगे अब बहुत लोग ऐसे हो रहे हैं। इन्हीं लोगों को रियलाइज्ड कहना चाहिए। जिनके अन्दर फिर चैतन्य शक्ति है। जब ऐसे ही लोग आपको जागृति देंगे, जो पार हो गये हैं, जो रियलाइज्ड हो गये हैं, तब आपको कभी भी कुण्डलिनी का कोई सा भी प्रादुर्भाव दिखायी नहीं देगा, जैसा कि लोग बताते हैं। बिल्कुल तथाकथित है ये बात। इस तरह की घटना घटित होती है। हमारे सामने हजारों लोगों की जागृतियाँ हो गयी हैं। बम्बई शहर में कम से कम दस हजार लोगों की जागृति हुई है। और पार भी करीबन तीन हजार के उपर लोग, चार हजार करीब, तीन 15 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-15.txt और चार के बीच पार हुये हैं। लेकिन किसी भी आदमी को किसी तरह की तकलीफ़ होते देखा नहीं । जैसा वर्णन हुए है। हाँ, थोड़ा बहुत जरूर, रेझिस्टन्स जिसे कहते हैं, क्योंकि हम जिस तरह का प्यार दे रहे हैं, हो सकता है कोई नफ़रत कर रहा हो और आपके अन्दर बसा हो। वो जरूर थोड़ा आपके शरीर को हिला सकता है, आपको कोई दुःख देने के लिए। लेकिन वो भी थोड़ी देर में ठीक हो जाता है और वो भी भाग खड़ा हो जाता है। क्योंकि जब वो देखता है कि यहाँ प्यार ही आ रहा है, वो भी जैसे कि उजाले को देख कर अंधेरा भाग जाता है, वो भी भाग जाता है। लेकिन कोई भी इन्सान को हमने देखा नहीं की उसके बदन पे फोड़ें आये हैं या फूँसियाँ आयी हैं या वो पागल जैसे कर रहा है। अभी कुछ दिन पहले हम एक जगह गये थे तो एक साहब हमारी तरफ पाँव कर के बैठे। किसी ने कहा ऐसे न बैंठे। तो उसने कहा कि, 'ऐसे बैठने दीजिये नहीं तो मैं मेंढ़क के जैसे कूदता ।' 'ये क्यों?' कहने लगे कि, 'मेरे गुरु बताया कि, जब कुण्डलिनी की जागृति होती है तो आप सब मेंढ़क के जैसे कूदते हैं।' तो उसको हमने कहा कि, 'तुम्हारी तो जागृति ही नहीं हुई और बहुत कम बीच की जो सुषुम्ना नाड़ी हैं, बीच में हमारे अन्दर और दो नाड़ियाँ हैं, जिसे ने मुश्किल काम हैं तुम्हारी जागृति होने का। क्योंकि इतनी जगह बनी हुई है। इसके अलावा सिम्पथैटिक नव्व्हस सिस्टीम कहते हैं। बगैर जब हम उस परमात्मा को पाये हये, उसकी शक्ति को पाये हये इसके नाम पर कोई भी काम करते हैं, या क्रिया करते हैं उसी वक्त हमारी जो सिम्पथैटिक नव्ह्हस सिस्टिम है वो चलने लग जाती है। इसे हम इड़ा और पिंगला नाड़ी जाने से ही ये कार्य होता है। और कहते हैं। उन नाड़ियों के तप्त हो जब आप कुछ भी परमात्मा के वो गर्मी आ जाती है। याने आप नाम पे करते हैं उस वक्त आप में ऐसा सोच लीजिये कि अगर आपने अपने घर का हिटर उसमें पानी डाले बगैर अगर चला दिया तो उसमें क्या हालत होगी। पहले उसमें प्रेम का पानी डालिये। जब तक उस में प्यार का पानी नहीं पड़ेगा तब तक वो कार्य बन नहीं सकता। को पाये हुये, उसकी शक्ति को पाये हुये इसके इसी तरह से जब हम बगैर उस परमात्मा नाम पर कोई भी काम करते हैं, या क्रिया करते हैं उसी वक्त हमारी जो सिम्परथैटिक नव्व्हस सिस्टिम है वो चलने लग जाती है। इड़ा या पिंगला, कोई सी भी नाड़ी के चलने से, क्रिया शक्ति के बनने से, जो आपकी शक्तियाँ हैं वो खत्म हो जाती है। आपकी इड़ा अगर बहुत चलेगी तो आपको कैन्सर जैसी भयंकर बीमारी होगी। ओव्हर अॅक्टिविटी जिसे कहते हैं। और अगर आपकी पिंगला बहुत ज्यादा चल गयी, तो आपका कंडिशनिंग बढ़ जायेगा, आपके अन्दर में जिसे कहते हैं भूतबाधा आ सकती है। इसलिये दोनो ही तरह से क्रिया का करना विशुद्ध माना जाता है। लेकिन जब आप वही हो गये, तब आप क्रिया ही नहीं करते। जैसे कि अब ये माइक है। ये क्या क्रिया करेगा सिवाय इसके कि जो मैं बोल रही हूैँ वही आप तक पहुँचाये। इसी तरह से आप भी एक खोखली चीज़ हो जाती है। हॉलो पर्सनॅलिटी हो जाते हैं। जिसके अन्दर कोई शक्ति अपने आप भर जाये। इस खोखलेपन से आपके अन्दर बैठी हई आपकी कुण्डलिनी प्रस्थापित हो जाती है। | 16 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-16.txt कुण्डलिनी आपकी माँ है। माँ आपके अन्दर पहले से ही बैठी हुई है। माँ ने ये क्या पहले से ही..... (अस्पष्ट) । बहुत से लोग ऐसी भी बात करते हैं कि हमारे सेक्स को सबलिमेट करना है। ये सब बेकार है। आप पहले से ही सबलिमेट हैं। आपको सबलिमेशन का कोई सवाल ही नहीं है । आप पहले ही से बैठे हये हैं। और इस तरह की गलत धारणा ले कर के जो लोग चलते हैं वही अपनी माँ का स्वयं उत्थान करते हैं। और इसी कारण उनकी कुण्डलिनी तो जगती नहीं लेकिन उसका जो क्रोध है, कुण्डलिनी का जो क्रोध है वो आप पर बहुत दौड़ने लग जाता है। और बुरी तरह से गरमी लोगों को पागल बनाती है। क्रिया, योग आदि बहुत आपने सुना होगा। इस तरह की सी चीज़ें हैं जो लोग करते हैं। अब बहुत से लोग हैं जो जप-तप आदि करते हैं। जप-तप बहुत करना भी बाहर की चीज़ है। आप परमात्मा के नाम पे कुछ भी नहीं कर सकते। यहाँ तक कि कितना भी सोचिये, हम कुछ भी जीवंत कार्य कर ही नहीं सकते। मनुष्य अपने भ्रम में ही ये बात सोचता है कि मैं कुछ करूँ। बिल्ली, कुत्ते कुछ ऐसा नहीं सोचते। हम वही कर सकते हैं जो मरा हुआ काम है। जैसे कि एक पेड़ मर जाये तो हमने एक खंबा बना दिया, खड़ा कर दिया। सब मरी हुई चीज़ है । कोई भी चीज़ जीवित नहीं और बिजली और आपके जो प्रकाश है, लाइट ये सब इलेक्ट्रिसिटी, आदि जितनी , आप जो कुछ भी शक्तियाँ जानते हैं, सब जड़ शक्ति है। इसमें तो जीवन शक्ति एक भी नहीं। आप कौन सा भी जीवंत कार्य नहीं कर सकते। माने आप एक फूल में से एक फल नहीं निकाल सकते। एक बीज में से आप एक पेड़ नहीं बना सकते । लेकिन मनुष्य को ऐसा भ्रम रहता है कि मैं सब कुछ करता हूँ। और जो ऐसे करोड़ो काम करता है जिसके आगे आपकी शक्ति हुई या वो से शक्ति आप कुछ करें। अब समझ लीजिये एक बड़ा भारी ऐसा मैग्नेट है। बहुत शक्तिशाली! और उसके आगे आप एक छोटे से मैग्नेट है। आप कर क्या सकते हैं उसको अपने तरफ खिंचने के लिए ! सिवाय इसके के अपने अन्दर जो मैग्नेट है उसको खत्म कर ले। मनुष्य कुछ कर ही नही सकता। और करता नहीं ये भ्रम में बैठा हुआ है कि वो करता है। क्योंकि उसके अन्दर इगो और सुपर इगो दोनों का प्रादुर्भाव हो जाता है। वो एक भ्रम को बना देता है कि मनुष्य कुछ भी करे। वास्तविक परमात्मा ने आपको उन्हीं के अपने लिये बनाया है। हम ही परमात्मा की छबि हैं। जैसे कि हमारे शरीर में जो शक्ति बह रही है वो इन उंगलियों से कार्यान्वित है। ये जितनी भी उंगलियाँ हैं ये हमें एक शरीर के स्वरूप में दिखायी देती हैं। माने की जड़ है। हम ही उसके जड़ स्वरूप हैं। जो हमारे अन्दर से वो कार्यान्वित करती है। वो स्वयं शक्ति स्वरूप हैं। वो सब कुछ जानते हैं। वो सब कुछ करते हैं। वो सब प्लॅनिंग करते हैं। वो बारीक- | बारीक चीज़ को जानते हैं। लेकिन वो निराकार हैं। वो साकार में ही हमारे अन्दर कार्यान्वित हैं। निराकार और साकार का कोई विचलन नहीं। जब आप कुण्डलिनी पर आईयेगा तो आपको आश्चर्य होगा कि किसी भी धर्म का किसी भी धर्म से झगड़ा नहीं था। अधर्म होगा तो हो। ईसा मसीह ने एक जगह ऐसा कहा है कि 'दोज हू आर नॉट अगेन्स्ट मी आर विथ मी'। कितनी बड़ी बात उन्होंने कह दी, कि जो मेरे खिलाफ़त में नहीं, माने जो चैतन्य | के खिलाफ़ नहीं वो सब मेरे ही हैं। ये आप अपनी कुण्डलिनी में भी देख सकते हैं, कि आपकी कुण्डलिनी स्वयं न 17 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-17.txt जाने कितने चक्करों में पड़ी हुई है। जैसे कि आप पूर्वजन्म में समझ लीजिये कि मुसलमान रहे हो। कम से कम हिन्दुओं को तो मानना ही पड़ेगा क्योंकि पुनर्जन्म को मानते हैं। हो सकता है कि आप ....(अस्पष्ट)। जिस चीज़ को आप नफ़रत करते रहे होंगे वही आज आप पैदा हुये हो। क्योंकि उस वक्त आप नफ़रत करते थे तो आज इस जन्म में हो सकता है कि आप इसलिये पा गये हैं कि जाने, जिसको आप नफ़रत कह रहे हैं वो बात इतनी बुरी नहीं है। अगर पहले जन्म में आप बड़ा ही अस्तित्व हो, परमेश्वर का अत्यंत, अट्ूट विश्वास हो, कि हाँ, परमात्मा है, परमात्मा है और आपको परमात्मा नहीं मिला और आपने उसी से अगर खुदकुशी कर ली तो इस जन्म में जरूरी नहीं की आप नास्तिक हो गये। आप चाहे नास्तिक हो या आस्तिक हो, परमात्मा तो है ही। उनको मानने न मानने से वो मिटते थोड़ी ही हैं। और हम होते ही कौन उनको मिटाने वाले। अगर ये उँगली माने चाहे नहीं माने इसके अन्दर शक्ति है। इसको कोई फर्क नहीं पड़ने वाला और इसका मानना न मानना इसका मानना भी क्या है? इसका कोई अर्थ है क्या? इसको तो सिर्फ चाहिए कि इसके अन्दर से जो शक्ति चल रही है वो इस बुद्धि से कनेक्टेड हैं। वो जो भी कह रही है, जो भी करा रही है इसे सीधे -सीधे कहे। इसमें राधाजी का एक बड़ा सुन्दर उदाहरण है। यहाँ पे राधा जी के प्रेमी बहुत बैठे है इसलिये मैं बताना चाहती हूँ। एक बार राधाजी को श्रीकृष्ण की मुरली से बहुत ईर्ष्या हुई। उन्होंने कृष्ण से कहा कि, 'इस मुरली में क्या विशेषता हैं जिसको तुम अपने मुख उन्होंने मुरली से कहा कि, 'तुम्हारी क्या विशेषता हैं जो तुम उसके मुख में लगी रहती हो?' तो मुरली ने कहा कि, में हमेशा लगाये रहते हैं?' तो उन्होंने कहा कि, 'तुम उसी से जा कर पूछो। 'अरे पागल, तुझे नहीं मालूम कि मेरी कोई विशेषता नहीं, यही तो मेरी विशेषता हैं। मैं पूरी तरह से खोखली हो गयी हूँ, इसलिये तो वो मुझे बजा रहे हैं। अगर मैं कहीं भी खड़ी हो गयी, उसका तो सारा राज खराब जायेगा। मैं पूरी खोखली हो गयी हँ।' तो कहते हैं कि, राधाजी ने कृष्ण से कहा था कि अगले जन्म में उसे भी मुरली बनायें। इसी तरह से हम भी एक खोखले हो गये हैं। पर खोखले होने का मतलब ये नहीं कि आप कार्य को भूल जायें । बहुत से लोग ये कहते हैं कि हमारी जिम्मेदारी है। वास्तविक आपकी कोई जिम्मेदारी है नहीं। लेकिन लोग कहते हैं कि हमारी जिम्मेदारी है क्योंकि गलतफहमी में बैठे हैं। जैसे कि हम इसके इस छत्र के नीचे बैठे हये हैं। और ये खंबे इसको पकड़े हैं। कोई अज्ञानी हो तो अपना हाथ भी उसे बेकार में लगाये रखें कि मैं इसे पकड़े हूँ। लेकिन जो ज्ञानी है वो इसे जानता हैं कि इसके लिये खंबे खड़े हैं। सम्भालने वाले हम कौन हैं? उसी तरह से जब तक अज्ञान रहता है तब मनुष्य ये सोचता है कि मैं भी किस चीज़ के लिये हूँ और वो काम कर लेता है। और अगर मैं इस झंझट में पड़ गया तो मैं कोई साधू-संन्यासी और ये हो जाऊंगा। और मैं कुछ काम ही नहीं करूंगा। वास्तविक आप तभी ठीक से काम कर सकते हैं जब आप विचारों से परे हैं। वास्तविक आपके अन्दर की शक्ति इतनी अद्वितीय है, इतनी गहन है और इतनी ज़्यादा शक्तिशाली है कि ऐसे ही वो आपके अन्दर से बहने लग जाती है। आपके तो चार चाँद लगे। आपके बातचीत में, बोलने में, हर एक चीज़ में आप एक कमाल का जौहर होता है! लोग आश्चर्य में हो जाते हैं कि ये कैसे शुरू हो गया। अब यहाँ पे एक .... (अस्पष्ट) बैठी हुई हैं। वो बता रही हैं कि जब से उनकी जागृति हो कर ये पार हुई है, 18 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-18.txt उनकी लेखनी से ऐसी ऐसी चीज़ें उतरी हैं। खुद कहती हैं कि मुझे लगता है कि मैं ....हूँ। ये क्या हो रहा है? ऐसे ऐसे लोग जो साधारण भी कविता नहीं कर पाते थे। जब वो लोग पार हो गये उसके बाद वो ऐसी ऐसी कविता करते थे। एक लड़की थी। बिल्कुल साधारण घर में बैठे रंगों में खेला करती थी। उसके बाद जब वो पार हो गयी तो उसके एक्झिबिशन होने लग गये है और लाखों रुपया उसने कमाया। कोई अगर समझ लीजिये पॉलिटिशन है। जिस वक्त वो साक्षी हो जाता है तो पूरी तरह से सारी चीज़ को देख लेता है। इसके अलावा आप जब उसके आश्रय में पूरे खड़े हो जाते हैं, जब आप उसको पूरी तरह से मान लेते हैं, उसके भी हजारों हस्तक आपके आस-पास में खड़े रहते हैं। देवता मंडराने लगते हैं। आपको समझ में भी नहीं आता है कि कैसे काम बन जाता हैं? कैसे लोग आ जाते हैं? कैसे चीज़ बन जाती है? किस तरह से चीज़ आती है ? और किस तरह से काम पूरा हो जाता है ? इतनी कमाल की चीजें होने लग जाती हैं कि मनुष्य को आश्चर्य होता है कि ये चीज़़ कैसे बन गयी ? वो चीज़ कैसे बन गयी? लेकिन दृष्टि मनुष्य की इस पर नहीं होनी चाहिए कि हमारा मटेरिअल गेन क्या होगा ? बहुत से लाग कहते हैं कि कुण्डलिनी शक्ति जगा दीजिये तो हमारे अन्दर शक्ति आ जायेगी। असल में आप तो बिल्कुल शक्तिविहीन हो जाते हैं। लेकिन कुण्डलिनी आपकी शक्तिशालिनी है। परमात्मा की शक्ति आपके अन्दर से बह जाती है क्योंकि आप बिल्कुल शक्तिविहीन हो कर के संचालित हैं। जो कुछ भी आज तक सारे धर्मों में बताया गया उसका सार मात्र एक ही है कि आप अपने को जानें। और इसका जानने का मार्ग भी एकमात्र हैं वो है सहजयोग । स्पॉन्टेनियस ग्रोथ जिसे कहना चाहिए। जो अन्दर से ही अपने आप घटित होता है। बुद्ध को भी सहजयोग से ही मिला। वो इधर -उधर, हजार जगह भटकते, एक दिन थक कर पड़े हुये थे। और जब वो थके हुये लेटे हुए थे। उस वक्त उनकी कुण्डलिनी ने कहा कि, 'मेरा बेटा बहुत थक गया है। किसी तरह से उसे इस पे धरो।' उसी वक्त ...... उनके सर पे आकर रुक गरयी। और नीचे से कुण्डलिनी ने उनका सहस्रार तोड़ दिया। कोई भी आदमी आज तक सहजयोग के सिवाय पार नहीं हुआ है। सिर्फ यही हैं कि जैसे हम अब ....(अस्पष्ट) ले आने के लिये| पहले हज़रत बन गयें । फिर यहाँ से लखनौ छोड़ कर के हम दिल्ली में आयें। दिल्ली में घूम कर के हमने देखा कि इधर गये, उधर गये। वहाँ से घूमते घूमते किसी तरह लोगों ने कहा कि साहब ये तो यही है, आप ही के अन्दर में बैठा हुआ। आप कहाँ जा रहे हैं? तो लोगों ने सारा घूमना हमारा देखा। ये तो पहले वहाँ गये थे, फिर यहाँ से वहाँ गये, फिर जपान गये थे, फिर वहाँ चायना गये थे, फिर वहाँ से घूम घाम के फिर वहीं आये। वो सारे घूमने घामने में गड़बड़ हो गयी थी। वो अभी भी लोग पकड़े ह्ये हैं। लेकिन जिससे पा लिया है वो अधिक समाविष्ट है। इसका उदाहरण, सब से अच्छा उदाहरण हमारे ज्ञानेश्वरजी हैं। जब उनकी कुण्डलिनी जागृत हुई थी। उन्होंने छठा अध्याय लिखा तब उनकी जागृत हुई थी और जब वो पार हो गये तब तक उनके जाने के दिन पूरे हो रहे थे। उस वक्त उन्होंने समाधि ले ली। क्योंकि जब पा लिया तो इतनी खोज व्यर्थ है। नहीं पा लिया अब इतना जो कुछ खोजा था बेकार न हो जायें। समाधि ही ले लेते हैं। सारी ही खोज व्यर्थ हो जाती। लेकिन व्यर्थ कुछ भी नहीं होता । खोजते ही आदमी किस दशा में हो पहुँच जाता है। इसमें, खोज में कुण्डलिनी आपके साथ खड़ी खड़ी सारी 19 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-19.txt ही चीज़ रेकॉर्ड करती है। मनुष्य पहले पैसे में खोजता है। पोझिशन में खोजता है। उसके बाद में उससे भी, वो कहता है, 'क्या रखा है? सब जंग है।' जैसे अमेरिका में है। तब उसकी कुण्डलिनी कहती है कि, 'अच्छा, ये नहीं।' उसका फिर जन्म होता है। तो वो फिर एक सत्ता में खोजता है। इस सत्ता को देखता है। फिर सब सत्ता भी देख डाली। तब वो कहता है कि, 'इस में क्या?' फिर वो कहता है, 'चलो धर्म में खोजें।' धर्म भी तो बाहर है। हमारे सारे धर्म बाहर आ गये। अन्दर का धर्म कोई जानता भी नहीं। बात सब अन्दर के धर्म की करते हैं, लेकिन तरीके बाहर के है। इस वजह से वो बाहर खोजता है। धर्म में भी गुरु बनाता है, मंत्र करता है, मंदिर जाता है, परमात्मा को पुकारता है। लेकिन सारे ही धर्म का तत्त्व ये है इसको पा लेना। जो लोग पार हो चुके हैं ऐसे कितने भी गुरु हो गये हैं, जैसे गुरु नानक। वो कहते हैं सहज समाधि। सहज समाधि लागो। वो कहते हैं, 'काहे रे बन खोजन जाईं , सदा निवासी, सदा अनिफा, तो हे क्यों न समाई। कुछ तो मध्य जो बात बसत हैं मुकुर माहीर सिखायी, तैसे ही हरि बसे निरंतर, घट ही खोजो भाई ।' अब हम ऐसा ही हुआ कि किसी डॉक्टर ने प्रिस्क्रिप्शन सरदर्द हो रहा है और तुम रट रहे गा रहे हैं। रट रहे हैं, 'घट ही खोजो भाई'। ये तो अॅनासिन ले लों। तुम्हारा दिया कि तुम हमारे सारे धर्म 'अॅनासिन ले लो, अॅनासिन ले लो। लेगा कब ? अगर पेशंट लेगा ही बाहर आ गये। नहीं, तो उसका सरदर्द जायेगा कब ? घट के अन्दर खोजने का अन्दर का धर्म स्थापित होना। अपने आप ही हो मतलब ये है कि घट के अन्दर कोई जानता भी नहीं। जाता है। और हजारों लोगों का जाता है, जब उसका समय आ के बात सब अन्दर यहाँ बैठे हये हैं, आप अपना समय आ गया है। जो आप लोग | धर्म की करते है, की ये खोज है जो आपको यहाँ पुनर्जन्म जानते हैं। हजारों सालों लेकिन तरीके बाहर के हैं। ही अधिकार में पा लेते हैं। हम तो लायीं है। इसके कारण आप अपने कुछ कर नहीं रहे। जैसे समझ लीजिये चेक, आप ही से पैसे माँग ले। उनको देना ही की आप बैंक में जाते हैं। और अपना पड़ेगा। जाएंगे कहाँ? अगर आपको हम रियलाइझेशन नहीं देंगे तो हम जाएंगे कहाँ? देना ही पड़ेगा। क्योंकि आपका अधिकार हैं । आप जो भी पा रहे हैं अपने अधिकार में । आपकी इच्छा ही नहीं होगी, जब तक आपका स्वयं इतना अधिकार है। आपकी इच्छा के बगैर कोई सा भी कार्य नहीं। लेकिन हमको एक बात जरूर जान लेनी चाहिए हम क्या असलियत चाह रहे हैं या नकलियत चाह रहे हैं! आपको कुण्डलिनी जानती है। आपको वो सब कुछ जानती है आपके बारे में लेकिन आपकी स्वतंत्रता की भी इज्जत करती है। कि अपनी स्वतंत्रता में जिस दिन आप ये तय कर लें कि हम परम जानते हैं, उसी दिन कुण्डलिनी आपकी हुई। उसी दिन आपका सहस्त्रार टूट जायेगा| हमें और कोई चीज़ नहीं चाहिये। हमें तो परम की इच्छा है । हमें तो शरीर का कुछ नहीं चाहिये। और कुछ नहीं चाहिये। हम उसी परम पिता, परमात्मा, परमेश्वर हैं । उसी छत्र छाया में अपने को जागते रहता है। ये जिसने एक बार सोच लिया, वो पा लिया। 20 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-20.txt कुण्डलिनी के बारे में आपको अगर कोई सवाल हो तो आप मुझ से पूछे। कुण्डलिनी विषय तो बहुत बड़ा हैं, और इसका इतना कुछ, यहाँ पर जो कुछ लोग हैं, दो-चार लोग ऐसे आये हये हैं हमारे साथ में, जो रियलाइज्ड भी नहीं हैं। लेकिन वो उस दशा पे रियलाइज्ड हैं, इस जगह पहुँचे हैं कि वो दूसरों को रियलाइझेशन दें। जैसे आप पार होते हैं। आप स्वयं, आपके इशारे पर कुण्डलिनी नाचती है। इशारे पर, आप खुद महसूस करियेगा। हजारों आदमियों की आप ऐसे कर के कुण्डलिनी उठा सकते हैं। वो लोग बिल्कुल साधारण तरह के लोग हैं। नॉर्मल लोग हैं। अन्दर से आपको इनकी शक्ति का कुछ भी पता नहीं लग सकता है कि कितनी शक्ति है। लेकिन एक इशारे 6. पर इनकी कुण्डलिनी उठती है और ये लोग पार होते हैं। ऐसे हजार आदमी तैयार हो जाएंगे। बहुत बड़ा कार्य हो सकता है और एक नयी ...... तैयार होगी। एक नये तरह से, एक नयी संस्था। ऐसी ही जो अन्दर से चीज़ को पाये है। बाहर, ढकोसले, ढोंग, पैसों से नहीं मिलता। अपनी अपनी अन्दर की आर्तता को अपनी अपनी परमेश्वर की लगन से पाये ही इस चीज़ के जो लोग हैं इनकी आयू नब्बे साल की तो किसी से कम नहीं। साक्षी स्वरूप जो आदमी होता है, उसकी कितनी भी देन है, उसके कितने भी पॉवर्स हैं, कुछ भी हो लेकिन वो उसको अहंकार में कभी नहीं देखता है। उसको अहंकार नहीं होता । क्योंकि वो जब भी देता है, कहता है कि मेरे अन्दर से जा रहा है। ये हो रहा है, ये चल रहा है। इनका नहीं चल रहा है। इनका चल रहा है।अब आपका बेटा भी होगा तो भी आप उससे नहीं कह सकते कि हाँ, ये पार है। वो तो जब होता है तब पता चल जाता है कि हो गया है। अन्दर से ऐसे वाइब्रेशन्स आने लग जाते हैं। आपके भी अन्दर वाइब्रेशन्स होते हैं। अगर आप कहे जबरदस्ती कि ' साहब, इसको कराईये।' तो हो नहीं सकता। इसमें कोई रिकमन्डेशन नहीं चल सकता है। कोई पॉलिटिक्स नहीं चल सकता है। कोई प्रेशर नहीं चल सकता है। कोई रिश्ता नहीं चल सकता है। कोई पैसा नहीं चल सकता है। कौनसा भी, कोई भी मिथ्या, कोई सी भी चीज़़ इसको पकड़ नहीं सकती। सत्य जो है वो है, होना और घटित है। कौनसा भी कार्य, कार्यक्रम , कोई भी तरीका इससे बनता नहीं। अपने आप ही घटित है। लेकिन तो भी अपने मन की ओर ये दृष्टि जरूर डाल सकते हैं कि मनुष्य में अहंकार इतना ज़्यादा है, इतना सूक्ष्मतर है, उसे जैसे ही मैं कहती कि कुछ भी नहीं करने का, तो वो चकाचौंध हो जाता है। अगर मैं कहूँ कि आपको सर के बल खड़ा होना है। तो ठीक है। लेकिन जो चीज़ एकदम मुफ्त मिलने वाली है और बगैर किसी इससे मिलने वाली है, इस पर उसका विश्वास नहीं होता। क्योंकि वो अपने अहंकार में पड़ा होता है। परमात्मा के अहंकार को जानता है कि वो चाहे तो उंगली घुमा कर के सारी सृष्टि की सृष्टि बदल देगा। और चाहे तो इस सृष्टि के छोटे-छोटे एक - एक कण में भी वो जीव रखेगा। आप लोगों को वाकई कोई सवाल है तो पूछिये। और नहीं तो हम थोड़ा सा मेडिटेशन में जा कर के और प्रयोग करें । क्योंकि जब तक अनुभव नहीं होता है तब तक बातचीत, बातचीत रहती है। और बातचीत में क्या | रखा है? 21 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-21.txt यहाँ हमारा क्या लक्ष्य है? मैं न बहुत अधिक बोलती हूँ और न सोचती हूँ। आप भी न बोले तो बेहतर होगा। मेरे विचार से एक दूसरे से बात करना बन्द कर दें तो बेहतर होगा। यह सर्वोत्तम उपाय है, जो कार्यान्वित होगा। सभी प्रकार की व्यर्थ की बातें आप बोलते हैं। आपके पास कोई भी महान एवं उत्कृष्ट बात कहने को नहीं है। परमात्मा के विषय में बात करें। आत्मा के विषय में बात करें। आपके अन्दर शांति होनी चाहिए। आप यदि शांत होंगे तो आनन्द उठाएंगे। पूरा वातावरण शांत है। स्थान की शांति आप क्यों नहीं देखते। अत्यन्त सुख-सुविधा वाले स्थान पर भी यह शांति उपलब्ध नहीं होती। वहाँ पर बस शान्ति नहीं होती। इस शान्ति को अनुभव करें। आप सन्त हैं, अपनी शान्ति का अनुभव करें। आपके हृदय में शान्ति को अनुभव कर सकते हैं। वैभव ने आपको नष्ट कर दिया है। यह अभिशाप है। अत: स्थान की शान्ति को महसूस करें। यह अत्यन्त शांत स्थान है। अपने अन्दर शांति को महसूस करें। हृदय में कितनी शांति है? आप लोग कहते हैं, अच्छा है, बहुत शानदार है। क्या शानदार है? यही इसका सूक्ष्म पक्ष है। दृश्य की शांति को महसूस करने के लिए आपको सूक्ष्म व्यक्ति बनना होगा। सूक्ष्मता को महसूस करें । इसके पीछे छिपे संगीत और सुगंध को महसूस करे। मैं यदि आपकी आदर्श हूँ तो मैं तो अत्यन्त शांति महसूस करती हूँ। स्पष्ट बात यदि बोलू तो मैं नहीं जानती कि कब मैं इस स्थिति से निकलूगी। मैं इसे बनवास कहती हैँ। बनवास यानी जंगल में रहना। मुझे लगता है, कि यह उपद्रवी निरंकुश तथा अहंकारी भयानक लोगों का जंगल है; उन लोगों का जो परस्पर बातचीत करना भी नहीं जानते। मेरे विचार से यह बनवास है, जो बारह वर्ष के बाद समाप्त होता है। वास्तविक बनवास। परन्तु अब मुझे आप लोगों से कुछ आशा होती है। अब इस तरह की बात नहीं करनी है। अपने मस्तिष्क बिल्कुल बंद कर लें। कोई भी इस प्रकार की बात नहीं करेगा। यह बातें परमात्मा विरोधी है। माया को देखें। व्यक्तिगत बन जाएं अर्थात् ध्यान में बैठ जाएं, बातचीत न करें। ध्यान में स्थापित हो जाएं । आप लोग आयोजन आदि खोजने में लगे रहे है, मेरी तो समझ में नहीं आता कि मामला क्या है। स्वयं को इन चीज़ों में से निकाल ले। इससे पूरी तरह से निकल जाएं। यह बेवकूफी अब और नहीं होनी चाहिए । अगले वर्ष से ऐसे लोगों को यहाँ आना भी नहीं चाहिए। मेरी प्रार्थना है, कि जिन लोगों ने शिकायत की वो यहाँ न आएं। ( प.पू. श्रीमाताजी, ५ / १०/१९८३) 22 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-22.txt ३ अत: हमारे अन्त:स्थित इन चौदह अवस्थाओं के माध्यम से अपने पनर्जन्म के विषय में हम बात कर रहे है। इन स्तरों को पार कर अचानक हम सुन्दर कमलों की तरह खिल उठते हैं। ईस्टर पर अंडे भेंट करना इस बात का प्रतीक है कि ये अंडे सुन्दर पक्षी बन सकते हैं। प.पू.श्री माताजी, इटली, १९.४.१९९२ प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा। लि. प्लॉट नं. १०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११०३८. फोन : ०२०-२५२८६५३७, ६५२२६०३१ , ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in , website : www.nitl.co.in 2015_Chaitanya_Lehari_H_II.pdf-page-23.txt हिए जिससे हमारा चित्त खराब हो जाता है। दोनो ही चीज़ है कि चित्त भी साफ हो जाए नायें। जिस दिन इसका पूर्ण काम्बिनेशन बन क्रों में, सहस्रार में कोई प्रश्न नहीं रहेगा । २८/२/१९९१, होली पूजा, न्यू दिल्ली मरी ४ ा ा २० की