चैतन्य लहरी हिन्दी जनवरी-फरवरी २०१६ उश ত पाम इस अंक में क्षमा ...4 (संक्रांति पूजा, पुणे, १५/१/२००५) सहजयोग एकदम प्रॅक्टिकल चौज है ...6 (सार्वजनिक कार्यक्रम, मुंबई, १७/३/१९७५) संवेदना ...14 (सेमिनार अँड मिटिंग, मुंबई, ३०/१/१९८०) इस दिन हम लोगों को तिलगूड़ दे क२ भीठा बोलने के लिये कहते हैं। प२ स्वयं को भी ऐसा कहे तो अच्छा है! क्योंकि ढूसरों को कहना बहत आसान है। आप मीठा बोले और हम बुराई करेंगे' इस तरह की फ्रवृत्तियों मीठा कर की व्जह से आज कोई भी मीठी बाते नहीं क२२हा है। प.पू.श्रीमातीजी, २हुरी, १४.१.१९८७ इभू कार दध हे आज का दिन पृथ्वी में उत्तर भाग में महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि सूर्य दक्षिण से उत्तर में आता है। इसलिये तो हम लोग इसको क्यों इतना मानते नहीं कि ये हम कर रहे हैं। हर साल एक ही तारीख जो कि सूर्य के ऊपर ...... हैं? क्या विशेष बात है कि सूर्य उत्तर में आ गया। तो हम लोगों को उसमें इतनी खुशी क्यों? बात ये है कि सूर्य से ही हमारे सब कार्य जो हैं प्रणीत होते हैं। अँधेरे में, रात्रि में हम लोग निद्रावस्था में रहते हैं। लेकिन जब सूर्य उदित होता है, उसके बाद ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। इसलिये इस कार्य को प्रभावित करने वाली जो चीज़ है वो है सूर्य। और वो हमारे कक्ष में आ जाती है, तो हम इसको बहुत मान्य करते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि बाकी सारे त्यौहार चंद्रमा पर आधारित हैं और सिर्फ यही एक त्यौहार ऐसा है, कि जो हम सूर्य के आधार करते हैं। ऐसे हमारे यहाँ सूर्यनारायण की भी बहुत महती है और लोग सूर्यनारायण को मानते हुये गंगाजी पर स्नान करने आते हैं और अनेक तरह के अनुष्ठान करते हैं। पर सब से महत्त्वपूर्ण यही एक चीज़ है । 4 दैं मा पुणे, १५ जनवरी २००५ अब हम लोगों को ये तय करना पड़ता है, कि इस दिन क्या करना चाहिये? इस विशेष दिन को क्या कार्य करना चाहिये? सूर्य का नमस्कार वरगैरा, सूर्य को अध्ध्य दे दिया और सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता हम लोगों ने संबोधित की। किंतु क्या विशेष अब कर सकते हैं? विशेष क्या कर सकते हैं? आज्ञा चक्र पे ही सूर्य का स्थान है, आप लोग जानते हैं। और आज्ञा चक्र से आप हर एक चीज़ को सोचते हैं। तो आज्ञा चक्र को ठीक करना बहुत जरूरी है। क्योंकि सूर्य को प्रभावित करता है। इसलिये आज्ञा का जो महत्त्व है वो ये है, कि आज्ञा पर हमारे जो हमारे ग्रह हैं, उसके अनुसार हम लोग आज्ञा चक्र से लोगों पर क्रोधित होते हैं और उनके साथ हमारा व्यवहार बिगड़ जाता है। गुस्सा आता है और हर तरह की आस्थायें मिटती जाती हैं। आज्ञा बहुत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसको हमें समझना चाहिये कि इस पर ईसामसीह का स्थान है। और ईसामसीह ने एक ही चीज़ बताई थी कि सब को क्षमा करना चाहिये। .... पर होता नहीं। क्षमा के लिये जरूरी है कि क्षमा करना बहुत जरूरी चीज़ है। और वो कैसे किया जाये? .... संतोष अन्दर आना चाहिये और ये सोचना चाहिये कि इसे अगर परमात्मा बोलेगा तो हमको क्या करना है। इसने जो कहा था वो इसके समान होगा। हमको इसमें क्यों पड़ना है? इस तरह से निरिच्छता आ जाये और आप क्षमा कर दे सब को, तो आज्ञा चक्र ठीक हो जाये। आज्ञा चक्र ठीक होने से जो बहुत बड़ी रुकावट हमारे उत्थान में है, जो कुण्डलिनी को रोकती है, वो है आज्ञा, और इसके लिये हमें क्षमा करना आना चाहिये। हर समय हम सोचते रहते हैं कि किसने क्या दुःख दिया? किसने क्या तकलीफ़ दी? उसकी जगह ये सोचना चाहिये कि हमें क्षमा कर दें। इसको उसको हमने क्षमा कर दिया और क्षमा करने से एकदम से आपको ... कि कुण्डलिनी झट् से उपर चढ़ जायेगी। इसके लिये हमें जरूरी है कि आज्ञा को साफ़ रखें। गुस्सा आना मनुष्य का स्वभाव है। परमात्मा का नहीं। मनुष्य का स्वभाव है। इसलिये उस गुस्से को रोकना चाहिये। और उसकी जगह क्षमा, क्षमा ऐसे तीन बार कहने से आज्ञा चक्र ठीक हो जाता है। सब को अनंत आशीर्वाद ! 5 सहजयोग एकदम प्रॅक्टिकल चीज़ है। मे उ जिसको की हम लोग कहते हैं कि काली उपासक है और कुछ कुछ नाम पचासो दे रखे हैं, सांख्य विद्या है और -प्रेत दुनियाभर की चीज़ बना रखी हुई है। उसके नाम पचासों हैं। उसको आप नौवी विद्या भी कहते हैं। उसको भूत विद्या भी कहते हैं। उसको लोग आज कल एक अवश्य कहते हैं कि कोई जिनिअस, इंटेलिजन्स उसका नाम बनाया रखा है। और ये सब भूतों के काम हैं। वो चीज़ जो महाकाली की शक्ति है, उसका विपर्यास कर लेते हैं या उससे मुँह मोड़ने से आ जाता है। या उसको अतिशय इस्तेमाल करने से भी आ जाता है। जैसे एक चीज़ से आप टूट जाते हैं तो दूसरी चीज़ से आप ठहर जाते हैं। जो मनुष्य, आज जो मेरी आप बात सुन रहे हैं, ये सब आपके सुप्त चेतन मन में, सबकॉन्शस माइंड में जाता है। सब वहाँ समा रहता है। वो वहाँ समाते जाती है और आप जितना सुप्त चेतन की ओर जाते हैं, उसमें जब हम बहुत उतरने लग जाते हैं, मतलब जब हम लिथार्जिक हो जाते हैं, हमारी अॅक्टिविटी खतम हो जाती है, जिस वक्त हम कुछ भी अॅब्स्टिनन्स नहीं करते हैं, कुछ भी वैराग्य नहीं देते हैं, और संसार की सारी प्रलोभनों में पड़ते जाते हैं। इस तरह के शराब, औरतों के चक्कर, गंदे गंदे कामों में फँसना, इस तरह की हर एक चीज़ों में हम घुसने लग जाते हैं, अतिशय खाना, पीना, गालियाँ बकना और पान, सिगरेट आदि अनेक तरह की विषयों में जब हम लिप्त होते जाते हैं, जैसे आज कल के तरुण हैं। 6. मुंबई, १७ मार्च १९७५ उसी तरह से ये गंदे नाच, और सब तरह की पवित्रता जब हम खत्म कर के अपने माँ के प्रति हम, जैसे कि विलायत में है, माँ के प्रति भी वो गंदी दृष्टि से देख सकते हैं। इतनी उन में गंदगी आ गयी। नब्बे साल की औरत होगी और उसका रोमान्स चलेगा वो कोई बीस साल के लड़के के साथ और वहाँ के पेपर में भी ये आता है। उसमें भी शर्म नहीं उन लोगों को। रोज पहले ही पेपर पे आयेगा । देखते ही, बाप रे बाप! महाघोर पाप। इतने पापमय विचार लोगों के हैं। अपने यहाँ भी मैं देखती हैँ, कौन कौन ये औरतें जो हैं| उस दिन वो जौहर साहब की बीबी को देखा। मैंने कहा, 'ये तो बिल्कुल वेश्या जैसी बातें लिख रही है।' सारी गंदी गंदी बातें लिखना । खुले तौर से लिख देना । वो गंदी औरतों के फोटो टाँगना। और इस तरह से अपनी माँ को रास्ते पे बेचना। इस तरह के जो गंदे काम होते रहते हैं, उससे आदमी उस दूसरी दशा में जाता है। उसमें वो आदमी बातचीत करने में जरूर मधुर लगेगा । उसमें मिठास होगी। एक शराबी आदमी होता है अधिकतर। अधिकतर शराबी आदमी बड़ा ही ज़्यादा दिल का बड़ा होता है। वो अकेला बैठ के शराब नहीं पियेगा । दस आदमिओं को बुलायेगा। उनके साथ शराब पियेगा । हमेशा जो पियक्कड लोग होते हैं उनको ये तो परवाह नहीं होती कि मेरे बीबी- बच्चे घर में मर रहे हैं क्या ? क्या हो रहा है? आओ भाई, तुम भी आओ | आओ, शराब पिओ। कोई होशोहवास उनको नहीं रह जाता है। उनको इस चीज़ का ख्याल नहीं रहता है। उनकी अगर माँ मर जाये, वो कफ़न के लिये पैसा लेने जायेंगे बाहर। किसी से भीख माँग के लायेंगे। क्योंकि उनके पास पैसा रहता नहीं। तो उसी रास्ते में अगर शराब की दुकान पड़ गयी तो माँ इधर में पड़ी रहेगी और वो रास्ते में बैठ के शराब पियेगा। याने जिसे सारा ही सार विचार टूट गया है। सारा ही धर्म टूट एक तो जाये। इस तरह की इंडलजन्स में जो पड़ता है, तो अॅब्स्टिनन्स एक्स्ट्रिम पे जो रहता है, जो कि मैंने कल आपको बताया था, योगी लोगों की बात और आज ये दूसरे तरह के महागंदे लोग, जो सड़ जाते हैं। इनमें कीड़े पड़ जाते हैं। यही भूत है। कोई चीज़ सड़ जाने पे, मर जाने पे, उस में जिस तरह से कीड़े पड़ते है वैसे ही आप के अन्दर में भी इस तरह के कीड़े पड़ते जाते हैं। जिनको आप अँटीजिनी कहते हैं। अगेन्स्ट लाइफ। जिसको आप लोग व्हायरस इन्फेक्शन कहते हैं। आपने होगा संसार में व्हायरस इन्फेक्शन है। जिसको आप व्हायरस इन्फेक्शन कहते हैं वो भी यही कीड़े होते हैं। जो आपके कलेक्टिव सबकॉन्शस में, माने सामूहिक सुप्त चेतन जो चारो तरफ है, वहाँ से एकदम से चले सुना आते हैं और उसके आने के कारण में संसार में जो मॉलिक्यूलर चेंजेस हो जाते हैं, माने हर एक जो अणु-रेणु है वो बदल जाते हैं। उसका जो घुमाना है, जो इस तरफ से घूमना चाहिये, वो उल्टे घूमने लग जाता है। जो स्वस्तिक हमारे गणेश जी का है, उसके उल्टा स्वस्तिक घूमने लग जाता है और जब वो उल्टा घूमने लग जाता है, सारा मॉलिक्यूल गिर चेंज हो जाता है। व्हायरस इन्फेक्शन आ जाता है। संसार में फटाकु एकदम लोग, उनको चक्कर आ जाती है, जाते हैं, उल्टियाँ हो जाती हैं। कोई लोग पागल हो जाते हैं। आपने सुना होगा की उनके रेटिना जो है उनका डिटॅचमेंट हो जाता है और उनको दिखायी नहीं देता। उसके बाद वो अँधे हो जाते हैं और इस तरह की पचासों चीजें। वो जो आती है संसार में और जो ऐसे कार्य करती है, वो तो कोई कंट्रोल नहीं आती। वो आती है, अपने आप से एकदम काफ़ी सारे मरे ह्ये जीव आते हैं संसार में, असर कर जाते हैं और खत्म हो जाते हैं। उनके असर लोगों पे आ 7 जाते हैं। यही व्हायरस इन्फेक्शन है। लेकिन बहुत से ऐसे लोग संसार में हैं, कि जब कोई मर जाता है, खास कर अगर कोई बड़ा दुष्ट मरा हो, तो उसकी खोपड़ी पर काबू कर लेंगे या उसकी हड्डिओं पे काबू कर लेंगे। उसके स्मशान तक जायेंगे। उसकी कबरें खोदेंगे । उसमें से उसको निकाल लेंगे और उस पर एक प्रेतविद्या की तरह हावी हो जायेंगे | उसके मंत्र करते हैं। उसका नाम जपते हैं। उसको ये कर के, वो कर के उस को अपने काबू में करते हैं । हम लोग असल में मरते थोड़ी ना हैं। थोड़ा सा हिस्सा हमारा मर जाता है और बाकी का हिस्सा, ट्रान्सपरन्ट सा संसार में सब दूर विचरण करते रहता है। अब वो मरे हये लोगों के बीच सात लोग हैं, सात लोग वहीं ठान रहते हैं। अब जो लोग पार हो गये हैं वो देवलोक में रहेंगे। ये कभी भी किसी आदमी की तहकी में नहीं घुसने वाले। चाहे अपना खुद का लड़का मर गया हो। अपनी खुद की बीबी मर गयी हो। कभी उस साइकी के अन्दर नहीं घुसेंगे । लेकिन उस के नीचे में भी, देवयोनी के नीचे में भी बहत से लोग हैं, राक्षस हैं। जो लोग राक्षस योनि के हैं, उस राक्षस योनि के लोगों को ये इच्छा होती है कि संसार में आओ और अपना राक्षसीपन दिखाओ। तो वो संसार में आते हैं कुछ तो रूप धारण कर लेते हैं मनुष्य के जैसा और कुछ लोग जो हैं ऐसे ही विचरण करते रहते हैं। उन लोगों पे ये लोग हावी रहते हैं। और उनको आपके आज्ञा चक्र से नाभि चक्र से आपके अन्दर डाल देते हैं। इसलिये कलयुग जो है मिक्श्चर है सारे, मिश्रण हो गया। साधु, संतों के भी आज्ञा चक्र में ये घुसा देते हैं। अब आपको पता ही नहीं चलता कहाँ घूसाते हैं, कब घुसाते हैं। जब तक आपको कैन्सर नहीं हो जाता है, जब तक आप फिजीकली प्रॉब्लेम में न आ जाये, आपको यही पता नहीं होता है कि भूत कहाँ से आ गये । इनकी कोई ये समझ में ही नहीं आता है, कि हमें ये बीमारी कैसे हो गयी ? बहुतों से लोग आते हैं, 'माताजी, मुझे रात में नींद नहीं आती। मेरा दिमाग खराब हो गया। मुझे बड़े भयंकर स्वप्न आते हैं। बड़ा डिप्रेशन रहता है। सब कुछ है, मैं बड़ा डिप्रेस्ड रहता हूँ। समझ में नहीं आता है क्या है?' फिर दूसरा आ के बताता है, 'साहब मेरी बीबी इतनी विचित्र है, उसका मेरी समझ में नहीं आता है कि हर समय वो मेरे उपर क्यों बिगड़ी रहती है?' फिर पता हुआ कि वो बिल्कुल राक्षसीन जैसी रहती है। इस तरह की बहत सी किताबें लिखी हैं जिस में उन्होंने इस शक्ति का वर्णन किया हआ है। उसमें से एक किताब है, एक्झॉसिस्ट। बड़ी गंदी तरीके से लिखी है वो। लेकिन उसमें लिखा है, ग्यारह साल की लड़की जो है, उस लड़की का किस तरह से मन विक्षुब्ध हो गया। इस तरह की भी बात लिखी है। बहुत सी ऐसी बातें संसार में आ रही है, लोग देख रहे हैं कि हजारों के पास सिद्धियाँ आ गयी। माने, आप ऐसा करें, आकाश से एकदम अंगूठी ला कर रख दी। आपने सोचा, अहाहा! महात्माजी का क्या कहने! अंगूठी ला के दे दी। महात्मी जी के चरणों में चले। महात्मा जी ने एक भूत आपके अन्दर भर दिया उसके साथ। दूसरे दिन आप बीबी का जेवर चुरा के ले गये महात्मा जी के चरणों में डाल दिये। आपने ये नहीं सोचा, महात्मा जी ने मुझे अंगूठी दी। मेरे नौकर को क्यों नहीं दी भाई ? सारे संसार के प्रॉब्लेम क्यों नहीं हल करते । ये तो कम से कम करें। बड़े भारी भगत हो गये, अहाहा, गुरुजी महाराज ! क्या कहने आपके! अंगूठी आपने हमें दे दी । क्या कहने ! बड़े 8. बड़े इस चक्कर में घुमते हैं। वो उनकी कमजोरियाँ हैं। वो अंगूठी दे दे। अंगूठी उनको इंप्रेस कर गयी। अंगूठी लेने जाते हैं। और ये रईसों को और बड़े बड़े पदाधिकारियों को अंगूठियाँ क्यों दे रहे हैं? क्यों नहीं इन गरीबों को देते हैं? ये कभी नहीं होगा। हम लोग फिर वो दूसरे तरह के होते हैं वो अपने को हिप्नोटाइज करते हैं। वो ऐसी आपसे मीठी, मीठी, असेले मीठी, मीठी बाते करेंगे। जैसे बहुत से औरतों को कहते हैं कि, 'मैं आपके पूर्वजन्म का पति था। ' अब में औरतें इतनी गधी होती हैं, उनकी समझ में नहीं आता कि पूर्वजन्म में होगा तो होगा। चूल्हे में गया | अभी जो बैठा हुआ है, उसको छोड़ के इसके पीछे में क्यों भाग रहे हैं? खास कर जो औरतें फ्रस्ट्रेटेड मरते थोड़ी होती हैं, जिनके आदमी बदमाश होते हैं। इधर - उधर भागते हैं। उनके औरतों को ये आदमी बड़ा अच्छा लगता है। लग गये उसके पीछे में। 'अब वो मेरे गुरु महाराज। अहाहा।' मुझे तो उन्होंने बिल्कुल, मेरी नी हालत खराब कर दी। ये नहीं जानती की उनके अन्दर सेक्स की दबी हयी प्रवृत्तियाँ हैं। उसको उभार कर हैं। के, उसको संजो कर के आप पे ऐसा काम कर रहे हैं और आप से रुपया-पैसा ले रहे हैं। ऐसी मैंने केसेस देखी हैं, औरतों ने अंगूठियाँ क्या, चूड़ियाँ क्या, वो सब दे दी। ये एक तरह की .....(अस्पष्ट)। दसरी चीज़ है आपको डोरा बांधने की। आप ड़रोरा बांध दिया। ये तो बहुत सस्ता मामला है। एक पैसे का ड्रोरा बारह रुपये में बाँध दिया। आपने लगा लिया। ड्रोरा आपके गले में, गये आप| ये सब से आसान तरीका है। तिसरा तरीका है कि आप से कहेंगे कि मंत्र जपे। एक और है महाशय। उनका की आप एक शृंग है उसको जपो। अब वो महाशय लगे शृंग शृंग जपने। देखा क्या कि उनको ट्रान्स आ गया। ट्रान्स में चले गये। कहने लगे कि ये तो जिनिअस हो गये। इनका ब्रेन बढ़ गया। इनके अन्दर एक भूत आ गया। अब वो शायद हो सकता है कि इनसे ज्यादा बुद्धिमान हो। हो सकता है। लेकिन क्रूकेड होगा बहुत बड़ा। वो इस आदमी को इस्तमाल करेगा और जब जायेगा तो उसके प्राण ले कर। उसको खत्म कर के। तो उन्होंने कहा, आप मंत्र जपो। आपने मंत्र जपा, राम, राम कहा। राम नाम का प्रभु नहीं। राम नाम का भूत कहीं होगा वो आपके अन्दर आयेगा। फिर आपसे उन्होंने कहा, कि आप पाँच बजे के करीब हमारा इंतजार करियेगा। उस वक्त हम आपका ये ठीक करेंगे। आपको जुड़ी आयेगी पाँच बजे । आप सोचेंगे आ गये मेरे अन्दर देवता। आपने सोचा मेरे अन्दर भगवान आ गये। आपने सोचा, अहाहा, मैं कितना बड़ा आदमी हो गया। आप क्या भगवान आने लायक आप हैं! क्या आापके अन्दर भगवान आ जायें, ऐसे आप शक्तिशाली हैं, कि आप के अन्दर भगवान आ जायें । उसके बाद आपकी तबियत ठीक हो गयी। क्योंकि वो दसरा आदमी आपके अन्दर आ गया। आप से वो चीज़ दबा दी। आपने सोचा कि, 'अहाहा, कितने अच्छे हम हो गये!' ऐसे स्पिरिच्युअल, बड़े भारी लीड़र, वहाँ लंडन शहर में तो इतने भरे हुये हैं, जिसकी कोई हद नहीं। ईसामसीह ने इसके खिलाफ़ इतनी बुलंद आवाज उठायी थी, नानक जी ने भी हिन्दुस्तान में इसके बाद बहुत इसके विवरण किया है, बहुत नानक जी ने कहा है। इसलिये सीख लोग नानक जी को मानते नहीं। नानक जी को मानने वाले लोग जो हैं, बहत लोग हैं लेकिन सीख लोग नहीं । जैसे सिंधी लोग भी मानते हैं नानक जी को। लेकिन सिंधी लोगों में इतना गुरुओं का चक्कर है, इसकी कोई हद ही नहीं। क्योंकि उनके पास पैसा होता है। जहाँ पैसा वहाँ ये भूत पहले पहुँचेंगे। उनको तो उनकी सूँघ लगती है। उसकी खुशबू आती है । इसके पास पैसा है, चलो। हर एक पैसे वाले के पीछे दो-चार तो ऐसे लगने ही हैं। और पैसे वाले, उनको चाहे मन में ये लगता हो कि मैंने गलत तरीके से पैसा कमाया है या कोई बात हो । वो सोचते हैं कि चलो, उसको थोड़ा सा पैसा दे दो। अपना भी पाप मोक्ष हो जायेगा। वो पता नहीं कि उससे भी कितना अधिक पापी बैठा हुआ है, उसको पैसा देने से तेरा पाप नष्ट नहीं होने वाला। तो उसको उन्होंने दो-चार लाख रुपया दे दिया। बाबाजी, बाबाजी, बाबाजी! बाबाजी गये ! एक एक बाबाजी के किस्से सुनायें तो आप लोग कहियेगा कि बाप रे बाप! किस चक्कर में हम हैं। अभी सितारा देवी ने एक किस्सा सुनाया। एक बाबाजी थे। किसी रईस के घर में रहते थे। मैं जाती थी, तो मैं भी उनके यहाँ जाया करती थी ऐसे। एक दिन मेरे पास पुलिस वाले आये। कहने लगे कि, 'उनके उसने सात लाख रूपये मारे हैं। आपसे भी | रुपया मारा क्या?' मैंने कहा, 'मैंने तो उनको कुछ खास दिया नहीं। हाँ भाई, थोड़ा बहुत दे देती थी मैं। उसके बाद में पता हुआ, सात लाख रुपये मारे थे, तो पेपर में आया था, कि उनको पकड़ा गया और वो जेल में चले गये। उसके कुछ दिन बाद मुझे मिले। सात साल बाद। तो वैसे के वैसे हट्टे कट्टे। कुछ उनको हुआ नहीं था। मैंने उनको 'कब पुछा, आये?' मैंने उनसे ये नहीं पूछा, जेल से कब आये? वो खूब जोर जोर से हँसने लगे । इतने बेशर्म हैं वो। उनको कोई शर्म नहीं होता। बेशर्म है वो। उनको जन लज्जा, या कोई लज्जा नाम की कोई चीज़ नहीं। उनको जेल में रखा था फिर भी बेशर्म जैसे वही काम कर रहे थे। उससे तो एक चोर अच्छा है। जो कहता है कि, 'मैं चोर हूँ, मैं चोरी करता हूँ।' वो जेल में जाता है, वहाँ से ठीक हो के आता है। उसका वो शर्म महसूस करता है। वो सोचता है कि देखो, मैंने कितना गंदा काम किया है। लेकिन ये लोग तो सोचते हैं कि, 'अच्छा है, मैंने ठगा इन लोगों को। मेरे पास अकल ज्यादा थी, | इसलिये मैंने ठग लिया। हमारी यूपी में एक नटवरलाल कर के एक महाशय हैं। वो भी हमारे श्रीवास्तव ही हैं। महापक्के, छटे हये चोर हो ऐसे चोर हैं। ऐसी उनकी कमाल है कि उनको कोई भी आदमी जेल में एक महिने के उपर रखने नहीं देता। एक दिन ऐसा हुआ कि एक जेलर साहब के यहाँ मैें गयी थीं। उन्होंने कहा कि, 'नटवरलाल को आप देखना चाहते हैं?' मैंने कहा, 'मैं देखूंगी। मैं मिलूंगी। देखूं तो कैसा आदमी है।' मैंने देखा कि वो निहायत बेशर्म आदमी है। इतना वो बेशर्म है कि वो कुछ भी कर सकता है, जिसको शर्म ही न हो किसी की। धर्म ही जिसके अन्दर नहीं हो। किसी तरह का काम कर सकता है। तो भी उसमें इतनी .... अन्दर थी कि मैं गयी तो उसने मेरे सामने आँख नहीं झुकायी। कहने लगे, 'माँ, मैं आपके सामने आँख नहीं झुकाऊंगा।' लेकिन ये तो इतने बेशर्म होते हैं कि मेरे से भी आँख मिलाने की कोशिश करते हैं। इतने बेशर्म होते हैं। महाबेशर्मों की दुनिया में रहते हैं और सब बेशर्म आपस में मिले रहते हैं । कोई उनको 10 जबे लज्जा नहीं आती। उनको जेल में ड्राल दो, उनको मना कर दो कि बम्बई नहीं आने का मरो वहाँ पे वो पूना में । तो भी बेशर्मी करते रहते हैं। और उनके शिष्य भी इतने बेशर्मी से बात करते हैं। इतने गंदे लोग होते हैं। कहते हैं, एक तो लेडी कहने लगी कि, 'उनसे तो मेरी शादी हो गयी। 'शादी हो गयी? अरे, पार तुम्हारे पति यहाँ बैठे हये हैं। तुम्हारे बाल-बच्चे बैठे हैं। इतने बड़े घर की औरत हो । तुमको शर्म नहीं आती? तुम्हारी उनसे शादी कैसे हो गयी?' 'वो तो मेरे पूर्वजन्म के पति है।' मैंने कहा, 'कैसे पता ?' होते हैं, 'वो कह रहे थे।' मैंने कहा, 'वो कहे तो क्या ब्रह्मवाक्य हो गया। ये कहने के लिये क्या लगता है दुनिया तेब में बताओ!' सोचना चाहिये, मनुष्य को हमेशा सोचना चाहिये, कि आप जिसको गुरु मान रहे हैं उसको काफ़ी पवित्रता है या नहीं? अगर उसके अन्दर पवित्रता नहीं तो उसके आगे झुकने की क्या जरूरत है! उसके पवित्र चरणों में जाने की क्या जरूरत है? जो आदमी आपको गंदी बातें सिखाता है, धर्म के नाम पे सेक्स जीव सिखाता है, वो आदमी कभी भी पवित्र नहीं हो सकता है। नहीं हो सकता। नहीं हो सकता। इसको आप होते लिख के रखें। जिस आदमी को औरतों में इंटरेस्ट है, वो आदमी आपका गुरु कैसे होगा? सब धंधे करो और गुरु बनो ये कौन सा भाई तरीका! मैंने नहीं जाना! इस तरह के गुरु आज कल हजारों निकल आये हैं। हैं। इसलिये ये जो शक्तियाँ हैं, इससे बहुत बच के रहने की जरूरत है। आज कलयुग में योगी तो एक बार पार हो ही जाते हैं। उनके अन्दर हृदय शक्ति में भरा जा सकता है। उनको पार कर सकते हैं और जब वो पार होते हैं तब काफ़ी पवित्र जीव होते हैं । लेकिन इस बदमाशी में घुसने वाले लोगों को आप क्या कह सकते हैं ? क्या उनको मैं पार करा सकती हूँ? कोई लोग कहते हैं कि, 'माताजी, ये लोग कहते हैं कि आप तो किसी गुरु को नहीं मानती।' मैंने कहा, 'कोई सच्चा गुरु हो उसको मैं मानूंगी। वो तो मुझे भी मानेगा। लेकिन जो दुर्जन है, तो उसे मैं कैसे कहूँ कि ये गुरु है भाई ? तुम क्यों कि मानते हूँ इसलिये मैं उनको गुरु कहूँ?' कोई तुम्हारा कल्याण उसने किया ? वो सिर्फ सोशिओ- इकोनॉमिक अॅक्टिविटीज कर रहे हैं कि, 'साहब, आप हमारे आश्रम में आईये। सारा रुपया पैसा जमा कर दीजिये आप और आप हमारे यहाँ रहिये। पता हुआ कि आप ट्रान्स में चले जा रहे हैं और अस्सी साल की बुढ़िया औरत अपने सर पे हीरा बाँध के बैठी हुई है। कहने, 'में जगन्माता!' दूसरों का पैसा खड़ा कर के हीरे लगा के बैठेंगे। उसको शर्म नहीं आती? कोई उसके पति का पैसा था या बाप का पैसा था। आप संन्यास ले के बैठी हुई हैं। क्या जरूरत है आपको हीरे लगा के बैठने की? आप लोगों को इस बात का पता होना चाहिये कि कलयुग में सब से बड़ा विरोध इसी शक्ति के कारण हुआ है। ये जो गंदी शक्ति, मैली शक्तियाँ संसार में फैली हुई हैं। जिसके कारण ये गुरुडम आदि फालतू की चीज़ें और ये आश्रम आदि फालतू की चीज़ें इकट्ठी हो गयी। उसी के कारण, उसी वजह से आप सहजयोग हमारा पनप ने का है, घर-घर में, हर दरवाज़े पर, हर मंदिरों में। आपके घर के मंदिर, आपके घर में भी ये भूत बैठे ह्ये हैं, जहाँ जाईये वहाँ । और ये सिर्फ 11 साधारण भूत नहीं हैं। ये राक्षसों के अवतार हैं। ये भी जान लीजिये। सोलह राक्षस, महिषासुर, मुक्तासुर, भस्मासुर, नरकासुर, सब पैदा हुये हैं। आपने और भी जिन जिन के नाम सुने ह्ये हैं। सारे के सारे आज पैदा हये हैं और राक्षसिनियाँ पैदा हयी हैं। अपने को कहती हैं कुछ। एक होलिका पैदा हो गयी। आप को क्या पता ? वो कहती कि मैं फलानी माँ हूँ। चले आप चरण पे। उनकी कब की पहचान है? राक्षसों की एक पहचान है कि जब आप उनसे बात करियेगा, देखियेगा कि उनकी आँख छोटी हो कर एकदम बिल्ली जैसी लुप्त हो जाती है। आपको मैं सीक्रेट बताती हूँ। जब आप किसी आदमी से बात करते वक्त, उसकी आँख की जो पुतली होती है, काली वाली वो छोटी हो कर के लुप्त हो जाये तो सोचना कि ये राक्षस है। तो ऐसे राक्षस को अगर गुरु बनाना है, तो आप भी राक्षस हो जायें। उससे से कम आप नहीं। और इसलिये सहजयोग के लिये बहुत जरूरी है, कि इस बात को आप जानें, कि इस तरह के बहुत राक्षस संसार में आ कर के और आप को बेवकूफ़ बना कर के, और पैसा कमा रहे हैं। वो कमायें, मैं कहती हूँ, स्मगलिंग करें, जो करना है करें, लेकिन आपकी कुण्डलिनी को न छुयें। आपकी कुण्डलिनी को ऐसा ठिकाना कर देते से लोगों को मैंने देखा है, कि उनकी कुण्डलिनी का ये हाल हो जाता है, कि वो बिल्कुल ऊपर आ कर के हैं। बहुत धड़ाम् से गिर जाती है। फिर उसको ऊपर बाँधती हूँ, फिर ऊपर चली जाती है। पता हुआ कि फलाने गुरु महाराज के पास गये और उन्होंने अडतीस रोल्स रॉईस खरीद कर के घुमा रहे हैं आराम से। आपकी कुण्डलिनी ठिकाने कर दी । आपका उत्थान नहीं हो सकता। आप पार नहीं हो सकते। आपका कल्याण नहीं हो सकता। अनेक ऐसे उदाहरण हमारे यहाँ हुये हैं। अभी अभी, रिसेन्टली, एक साहब हमारे आगे बहुत आग्यू करने लगे, अपने गुरु के लिये। मैंने कहा, 'बेटे, बैठ जाओ। तुम अपने गुरु के लिये क्या ऑग्ग्यू कर रहे हो ?' नहीं सुना। उसके बाद खड़े खड़े कहने लगे, 'मैं ऐसे हिलने लगा।' मैंने कहा, 'ये क्या? अपने गुरु को बुलाओ मेरे सामने। क्यों हिल रहे हो?' उस वक्त एक पागल आदमी सामने बैठा था। वो भी हिल रहा था। मैंने कहा, 'देखो, ये भी अभी पागल खाने से चला आ रहा है और तुम क्यों हिल रहे हो? दोनों में कोई अन्तर नहीं। दोनों हिल रहे हैं। इसी से साक्ष है।' तो भी जरासा बोलने को हये तो भी एकदम उनका तुम्हारे बदन एकदम से जम गया। जब उनका बदन जम गया तो कहने लगे, 'माँ, मैं तो जम गया।' मैंने कहा, 'अच्छा, गुरु का नाम बताओ।' उसके गुरु का नाम लिख कर के उसको १०८ जूते मारने के साथ वो छूट गया। ये साक्षात् है। सहजयोग एकदम प्रॅक्टिकल चीज़ है। मैं जो भी बोल रही हूँ वो बात आप सिद्ध कर सकते हैं। जैसे लॅबोरेटरी में आप सिद्ध करते हैं। कोई हवाई बात में नहीं कर रही हूँ। आप सब के सामने इसका साक्षात् दे सकते हैं कि कौन सा गुरु सच है और कौन सा गुरु झूठ है। उसके फोटो पर से आप बता सकते हैं । गगनगड महाराज के पास जब जाने का था तो सब ने ऑब्जेक्शन किया कि, 'माताजी, आप किसी गुरु के पास नहीं जाते हैं।' मैंने कहा, 'ये तो गुरु ही हैं, असली में गुरु हैं।' कहने लगे ' उनसे वाइब्रेशन्स नहीं हैं।' मैंने कहा, 'उनके साथ का जो फोटो है उसको हटाओ।' फोटो हटाते ही उनके वाइब्रेशन्स देख के, 'हाँ, भाई, वाइब्रेशन्स आये।' फिर 12 ऐसे के जायएेंगे?' मैंने गड़ तक जाने तक सब लोग मुझे परेशान कर रहे थे। 'माताजी, कहाँ साथ में चढ़ राक्षसे कहा, 'चलो, तुम| देखो तो सही।' वहाँ से इतने जोर से वाइब्रेशन्स आने लगे। तब सब की आँख खुल गयी। 'ये बात है!' वो भी हमें पहचानते हैं, हम भी उन्हें पहचानते हैं। क्योंकि हम एक सटल से आये हैं। को अगर एक ही चीज़ के ऊपर। आप भी देख लेंगे, जब आप पार हो जायेंगे, आपके अन्दर से वाइब्रेशन्स आने गुरु लग जायेंगे। आप भी पहचान लेंगे कि कौन आदमी पार है और कौन नहीं है। किस की कुण्डलिनी कहाँ फँसी हुई है? किस के चक्र कहाँ फँसे हये हैं? किस को क्या प्रॉब्लेम हैं? सब आपस में आप चेकिंग बनाना करना शुरू करेंगे। सहजयोगी से ही लाइट आने वाली है। सहजयोग से ही आप जानने वाले हैं, कि कौन है, तो आदमी साधु है, कौन असाधु है? आपका हाल क्या है? आपका प्रोग्रेस क्या है? आप कहाँ जा रहे आप हैं? आपको कैसे उठना है? सिर्फ सहजयोग से ही आप इसे जान सकते हैं। यही एक ज्ञान का मार्ग होता भी है और कोई नहीं । जब तक आपके अन्दर वाइब्रेशन्स नहीं आते सारी बातचीत, बातचीत ही रह जाती रक्षस है। हो जायें। ये जो मैली विद्या है, इसके बारे में मैंने लेक्चर दिया था एक बार | करीबन डेढ़ घण्टे का लेक्चर था। आप लोगों को और अगर इंटरेस्ट हो तो इसे सुन लीजिये। मैं तो उसको सुन सुन के और कह कह के, तंग आ गयी हूँ। सिर्फ कहने का ये है कि आप के अन्दर भी एक परम शक्ति है। जो इन दोनों शक्तियों के बीचोंबीच खड़ी है । वो दोनों शक्तियों को ही पूरी तरह से फिर से ढक सकती है। ये गंदी शक्तियाँ हैं दोनों। जिसके कारण हमारे अन्दर तकलीफ़ हो गयी है। इस से की इगो बन गया है, सुपर इगो बन गया है। ये उसी तरह से है जैसे कि फॅक्टरी में, शक्ति को इस्तेमाल करने से आप के अन्दर जैसे एक धुँआ होता है। उस धुँओे को भी कुण्डलिनी शक्ति शांत कर देती है। इतना ही नहीं वो इन दोनों ही चैनल्स को, जिसे इड़ा और पिंगला नाड़ी कहते हैं। पहले आपको मैंने पिंगला नाड़ी कल बतायी थी। आज इड़ा नाड़ी बतायी, जो हृदय चक्र पे से जाती है। अधिकतर कैन्सर की बीमारी , इस दूसरी मतलब जिसको कि इड़ा नाड़ी कहना चाहिये उससे होती है। असर उसका दोनों तरफ़ आता है, क्योंकि दोनों नाड़ियाँ ऐसी जुड़ी हुयी है। इसलिये इस नाड़ी का भी असर इस नाड़ी पे भी आ सकता है। पर ज्यादा कैन्सर की बीमारी लेफ्ट हैण्ड साइड़ पे प्रवाह से होती है। इसलिये कलयुग में क्योंकि इतने राक्षस एकसाथ आ गये हैं। कैन्सर की बीमारी से आ गये हैं। पागलपन भी आ गया। लोग अस्वस्थ भी हो गये। इसे नींद भी नहीं आती। परेशान भी हो गये हैं। बहुत संतप्त हो गये हैं। कलह हो रहा है। झगड़े हो रहे हैं। आपस में परेशानी हो रही है। 13 প এ संवेदनी मुंबई, ३० जनवरी १९८० ३० जाते समय आप सब लोगों को यहाँ पर छोड़ के इतनी प्यारी तरह से इन्होंने अपने हृदय से निकले हये शब्द कहे जिसे चित्त बहुत ....(अस्पष्ट) जाता है। आजकल के जमाने में जब प्यार ही नहीं रह गया तो प्रेम का खिंचाव और उससे होने वाली एक आतरिक भावना भी संसार से मिट गयी है। मनुष्य हर एक चीज़ का हल बुद्धि के बूते पर करना चाहता है। बुद्धि को इस्तेमाल करने से मनुष्य एकदम शुष्क हो गया। जैसे उसके अन्दर का सारा रस ही खत्म हो गया और जब भी कभी कोई भी आंतरिक बात छिड़ जाती है तो उसके हृदय में कोई कंपन नहीं होता। क्योंकि हृदय भी काष्ठवत हो गया। न जाने आज कल की हवा में ऐसा कौनसा दोष है, कि मनुष्य सिर्फ बुद्धि के घोड़े पे ही चलना चाहता है और जो प्रेम का आनन्द है उससे अपरिचित रहना चाहता है। लेकिन मैं तो बहुत पुरानी हूँ, बहुत ही पुरानी हूँ और मैं मॉडर्न हो नहीं पाती। इसलिये ऐसे के मेरा हृदय बहुत ही आंदोलित हो जाता है। लेकिन आज कल की बुद्धि भी सुन्दर शब्द सुन अब हार गयी। अपना सर टकरा टकरा के हार गयी है। और जान रही है कि उसने कोई सुख नहीं पाया। कुछ आनन्द नहीं पाया। उसने जो कुछ भी खोजा, जिसे अपनाया, वो सिर्फ उसका अहंकार था। उससे ज्यादा कोई उसके अन्दर अनुभूति नहीं आयी। धीरे धीरे मनुष्य इससे परिचित हो रहा है कि वो किस कदर काष्ठवत हो गया है। किस तरह उसकी भावना लुप्त हो रही है। 14 आज कल के कवि अगर पढ़िये या आजकल के अगर वाङ्मय पढ़िये, साहित्य तो उसमें आपको नज़र आयेगा, कि बहुत ही अश्लील तरह की, उथली बातें जिस का की सम्बन्ध हृदय से तो क्या, किसी उथली एक तरंग से भी नहीं लगता। उसी प्रकार कविताओं में भी, इतनी शुष्कता और इतनी घृणित बातें लिखी जाती हैं कि स्वभावत: कोई भी मनुष्य अगर इतना कृत्रिम और बुद्धिवादी न हो जायें तो ही घट गयी है और इस संवेदनशीलता के घटने के साथ ये पहचानना की कौन इन्सान अच्छा है, बुरा है, ये भी घट उसे तो जी मचलने लग जाये । माने हमारी संवेदनशीलता बड़ी गया। ये भी संवेदनशीलता हमारे अन्दर घट गयी है कि अच्छाई क्या है और बुराई क्या है? अच्छाई क्यों करनी चाहिये और बुराई क्यों छोड़नी चाहिये। इसकी भी अकल हमारे अन्दर से खत्म हो चुकी है। जब श्रीराम संसार में आये थे, हज़ारों वर्ष पहले, तब मनुष्य ज्यादा संवेदनशील था। एक तो माँ पृथ्वी से उसका सम्बन्ध बहुत घटित रहा। इसलिये उसकी संवेदना बड़ी तीक्ष्ण थी। वो जानते थे कि श्रीराम विष्णु के अवतरण है और सीताजी ये आदिशक्ति का अवतरण है। उनको किसी को बताने की जरूरत नहीं । उस वक्त अधिक तर लोग इस बात से परिचित थे कि श्रीराम भगवान के स्वरूप हैं। नहीं तो एक भिल्ली उनके लिये बेर ले के क्यों आयी। अब देखिये कहाँ श्रीराम इतने बड़े राजा और एक भिल्ली उनके लिये बेर ले के आयी। देखिये प्रेम का खेल कितना सुन्दर है। और जब वो अपने बेर तोड़ती थी, बूढ़ीसी भिल्ली थी। उसके दाँत भी कुछ टूटे ह्ये थे। एक एक बेर को वो दाँत मार के देखती थी कि कहीं खट्टा तो नहीं है। नहीं तो मेरे राम को खट्टा न लग जायें । इतने विचार से उस भिल्ली ने, उसके हाथ गंदे थे कि साफ़ थे पता नहीं। एक भिल्ली आप समझ सकते हैं कि जो बिल्कुल गिरिजनों में से, जिनको कहना चाहिये, हमारे यहाँ आजकल जिनको हम लोग दलित ही कहते हैं। ऐसे समाज में की भिल्ली इतने प्रेम से प्रभु राम के लिये छोटे छोटे बेर इकठ्ठे कर रही थी। और जब श्रीराम आये, तो बगैर हिचक के उन्होंने उनसे कहा कि, 'श्रीराम, मेरे पास आपके लिये बड़े सुन्दर बेर हैं। एक एक बेर मैंने अपनी दाँत से चख के देखे हैं। इससे आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी।' श्रीराम का हृदय पुलकित हो गया। क्योंकि वो प्रेम को जानते थे । प्रेम की संवेदना उनके अन्दर जबरदस्त थी। क्योंकि वो परमात्मा थे। परमात्मा स्वयं प्रेम है। इसलिये वो प्रेम को जानते हैं । प्रेम के भूखे हैं और प्रेम ही को पहचानते हैं । अगर आपको परमात्मा को बाँधना हैं तो आप प्रेम करिये। अगर आप प्रेम नहीं कर सकते तेा आप परमात्मा को नहीं बाँध सकते। सिर्फ प्रेम से ही आप परमात्मा को बाँध सकते हैं। किसी भी ऐसी शक्ति को आप तभी अपने ऊपर खींच सकते हैं, उसका उपयोग कर सकते हैं, उसके शरण जा सकते हैं या उसको अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं । जब आपके अन्दर ऐसा हृदय हो, कि जो प्रेम से खुश हो जाये। श्रीराम ने वो बेर फटाक् से एकदम, दौड़ के 'अरे, तुम इतने बेर इकठ्ठे कर लायी। चलो, चलो सब मुझे दे दो । ' और ले कर खाना शुरू कर दिया। और खूब खुशी से खा कर कहते हैं, 'वाह, मैंने तो ऐसे बेर कभी नहीं खाये। ऐसे बेर तो मैंने जीवन में कभी नहीं खाये । ऐसे सुन्दर बेर मैंने कभी खाये नहीं। ये तुम कहाँ से इकट्ठे कर के लायी। अच्छा, बताओ।' तो लक्ष्मण जी को बड़ा गुस्सा आ रहा था, कि ये क्या बद्तमीज़ी हैं। सब बेर एक एक झूठे कर के लायीं है और इन्होंने श्रीराम को दे दिया। तो उन्होंने लक्ष्मण जी को कहा कि, 'देखो, मैं तुम को इस में से एक भी बेर नहीं दूँगा। ये सारे मेरे लिये लायी है। बाकी तुम को चाहिये तो तुम अपने तोड़ के खा लेना। पर इस में से मैं एक भी नहीं दूंगा।' तो सीता जी तो बहुत होशियार थीं । उन्होंने कहा, 'श्रीराम, मुझे 15 भी तो दो-चार बेर दे दीजिये। क्या आप ही सब खाईयेगा । मैं तो आपकी अर्धांगी हूँ। मुझे भी तो एक-दो बेर दीजिये। तो उन्होंने कहा कि, 'अच्छा, आप चाहिये तो थोड़े से मुझ से बेर ले लीजिये।' अब लक्ष्मण जी को लगा कि देखो, सब तो भाभी को बेर दे दिये और मुझे नहीं दे रहे हैं ये। तब उनको बुरा लग गया। तो भाभी से कहते हैं कि, 'क्या मुझे कुछ बेर नहीं दीजियेगा? सब आप ही लोग खा लीजियेगा।' देखिये कितनी छोटी सी चीज़ है एक बेर। एक छोटी सी चीज़ है बेर। बड़ी भारी चीज़ नहीं। लेकिन उस बेर पे कितनी ही रचना, कविता कर सकते हैं आप। और उसकी आज तक याद है। हर एक हमारे जितना भी हिन्दुस्थान में जितना भी लिटरेचर कोई भी भाषा में हुआ हो। हर जगह शबरी के बेर कहे जाते हैं। कितनी सुन्दरतम कल्पना हैं और कितनी सूक्ष्म है वो। उसको समझने के लिये हृदय चाहिये। बुद्धि से आप नहीं समझ सकते इसे और जब भी इस बात का ख्याल बनता है और याद पड़ती है तो इतना हृदय उस से पुलकित हो जाता है, सोच के कि शबरी ने कितनी प्यार से ये बेर अपने भोले पन में इकट्ठे किये थे । ऐसे कहाँ शबरी जैसे लोग दुनिया में मिलेंगे! ये उसका हृदय था कि जिसे एक एक बेर में वो देख रहे थे और देख देख के खुश हो रहे थे कि अहाहा, कितना प्रेम मनुष्य में है। जैसे समझ लीजिये कि एक प्यार का सागर परमात्मा है और जब वो आ कर किनारे में टकराता है, तो किनारे के टकराव से फिर उस पे लहरें उठनी शुरू हो जाती हैं और वो जब लहरें वापस समुद्र की ओर जाती हैं तो आनन्द से वो बिल्कुल भर जाता है। प्रेम की गाथा जितनी कहो कम है। प्रेम की गाथा ऐसी है कि उसको कहते भी नहीं बनता। वो बहते ही रहता है, बहते ही रहता है, बहते ही रहता है। जितना बहता है उतना ही आनन्द उसमें से झरता है। आप प्रेम का मूल्य क्या दे सकते हैं मेरी समझ में नहीं आता। यही की जब आपसे वो टकराता है, तो उसके तरंग फिर उठ कर के और बड़ा सुन्दर सा चित्र सा बन जाता है। उस सागर पे भी एक चित्र सा बन जाता है। एक आंदोलन सा, एक बड़ा सुन्दर सा, एक झिलमिल, झिलमिल जिसे कहना चाहिये प्यार का दर्शन हो जाता है । इसके लिये मनुष्य में बड़ी सूक्ष्मता चाहिये, इस चीज़ को समझने के लिये। जो लोग बहुत ही ग्रोस है, बहुत ही जड़ है, जिनके अन्दर प्रेम का अभी तक आविर्भाव ही नहीं हुआ, जो एकदम पत्थर दिल हैं, इन लोगों के सामने प्रेम की गाथा कहना भैंस के आगे बीन बजाने के बराबर है। इस तरह की प्रेम की शक्ति हमारे अन्दर कहाँ से उदित होती है? इस जगह प्रेम की शक्ति है ये हमारे हृदय के अन्दर बसे हये आत्मा के तरह से ही प्रेम की शक्ति आती है। और इस के प्रतीक स्वरूप हमारे अन्दर जो यहाँ पर आपको दिखायेंगे, जो बीचोबीच, जो हमारे यहाँ बीच में है, हृदय में, बीच में यहाँ पर जो स्टर्नम बोन है, जिसे एक हड्डी के रूप में हम देखते हैं, वहाँ पर आप जानते हैं, कि अँटिबॉडिज नाम की चीज़़ तैय्यार होती है। ये माँ अपने शक्ति में क्योंकि हृदय चक्र जो है वो बराबर उसके पीछे में बराबर बीचोबीच है और इस हृदय चक्र पे जगदंबा का स्थान है मैंने कल आप से बताया था। और इस स्टर्नम बोन के अन्दर में ये जो सामने में जो हड्डी है, इस हड्डी के अन्दर अँटिबॉडिज नाम के सिपाही माँ तैय्यार कर देती है। जो बारह साल तक तैय्यार होते रहते हैं। और फिर वो अपने सारे शरीर में फैल कर सुसज्ज रहते हैं। कभी भी किसी भी तरह का अॅटॅक जब शरीर पर आता है, कोई भी तरह का, चाहे वो उसके माइंड से आये, चाहे उसके मन से आये, चाहे उसके शरीर से आये, चाहे उसके अहंकार से आये, सारे अॅटॅक से ये अँटिबॉडिज 16 जो होती हैं ये माँ के बनाये हये सिपाही उससे लड़ते रहते हैं । हम लोग सोचते हैं कि हमारे अन्दर जो भी कुछ इस तरह के संरक्षित रखने वाले जो कुछ भी हमारे अन्दर फोर्सेस हैं या शक्तियाँ हैं वो जैसे कोई हमारी अपनी ही हैं। ये पहले ही से परमात्मा ने आपके अन्दर ये सब धीरे धीरे एक एक चक्र बनाये। ये सारे चक्र आप ने जो उत्क्रांति में, इवोल्यूशन में जो जो कदम रखे हैं, उस कदम का माइल स्टोन है। अपने मंजिल पे पहुँचने के लिये जिस तह से आप गुजरे हैं उन तह का ये दिग्दर्शक है। मैंने आप से बताया कि कार्बन अॅटम जब आप थे तो आपका जो सब से छोटा चक्र है श्री गणेश का वो था। अब कार्बन कितना महत्त्वपूर्ण है उसके बारे में मैं आप से बताती रहूँ तो बहुत टाइम हो जायेगा। लेकिन अगर पिरीऑडिक टेबल आप देखें तो आपको पता चलेगा कि कार्बन अॅटम के आये बगैर किसी भी प्राणी में जीव नहीं आ सकता है। जीवन कार्बन के आने के बाद ही शुरू हुआ है। इसलिये ये कार्बन जो है ये श्रीगणेश है। जो अपने अन्दर मूलाधार चक्र पे बैठे हये हैं। उस श्रीगणेश का द्योतक है। जिस प्रकार कार्बन में भी चार वैलन्सीज होती है उसी प्रकार श्रीगणेश के भी चार हाथ है। और ये चारों हाथ हमारे अन्दर शक्ति के द्योतक है। जब हमारे अन्दर मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है, तो हमारे अन्दर ये चारों शक्तियाँ जागृत हो जाती है। इसी प्रकार हम हृदय चक्र की बात कर रहे थे कि हृदय चक्र जब इन्सान का खराब हो जाता है, या हृदय पे जब आघात होने लग जाते हैं, तो आदमी में असंरक्षित भावनायें आ जाती हैं। इनसिक्यूरिटिज आ जाती हैं। जिससे भय, आशंका आदि चीजें, डरना किसी चीज़ से, एकदम पता नहीं रात में बैठे बैठे, औरतों में ज्यादा तर होता है कि उनको हमेशा आशंका लगी रहती है कि कोई हमें परेशान तो नहीं कर देगा, कोई हमें मार तो नहीं डालेगा। किसी को कुछ दिखायी देता है, कहता है कि 'मुझे यहाँ पर एक आदमी दिखायी दिया। कहीं कुछ हो गया। इसी से हिस्टेरिया आदि जो बीमारियाँ हैं, डरने की जो बीमारियाँ हैं वो सब होती हैं। इसको सुरक्षित रखने के लिये हमारा जो हृदय का, सेंटर में जो हृदय चक्र है उसे जागृत रखना पड़ता है। कल मैंने बताया था, इसको जागृत रखने के लिये आपको जगदंबा का ध्यान करना चाहिये। वो किस प्रकार करना चाहिये आदि सब कुछ आप सहजयोग में सीख सकते हैं । असल में सहजयोग में पार होने के बाद भी आप को सीखना पड़ता है, कि ये चक्र क्या हैं, उसको जागृत कैसे रखना चाहिये, कुण्डलिनी को कैसे चढ़ाना चाहिये, किस तरह से ठीक रखना चाहिये। एक छोटी सी चीज़, अगर आपको मैं मोटर भी प्रेझेंट कर दूँ, और अगर ये नहीं आप सीख लेंगे कि मोटर कैसी चलानी है तो मोटर खड़ी रह जायेगी । उसी प्रकार सहजयोग में इसका बहुत सीखना होता है। मेरे लेक्चर में मैं आपको कहाँ तक बता सकती हूँ? लेकिन अधिकतर सहजयोग में आये हये लोग इस हॉल में, इसी प्रकार लोग आते हैं। लेकिन उनमें से कितने लोग सहजयोगी हो गये। इसी से मुझे आश्चर्य होता है । अभी उदाहरण के लिये आज ही एक माँ, एक बेटी, और उसकी बेटी, इस प्रकार तीन जनरेशन मेरे पास आये। ये लोग १९७० में मेरे हाथों से पार हुये थे। उसके बाद उनकी तबियत बड़ी खराब गयी, चार साल बाद। तो एक हुआ, वो हुआ, क्या करें?' बेचारे सहजयोगी के पास गये की, 'साहब, हमारी तबियत बड़ी खराब हो गयी। ये 17 सहजयोगी मेहनत करने के पीछे में उनके यहाँ गये। उनको देखा । उन से कहा कि, 'देखिये आप बिल्कुल सहजयोग नहीं कर रहे हैं। आपकी कुण्डलिनी यहाँ फँसी हुयी हैं। अगर आप अपनी कुण्डलिनी ठीक से जागृत कर ले, ठीक कर ले तो आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी। बिल्कुल आसान चीज़ हैं। मैं आपको कर के दिखाता हूँ।' उन्होंने उनकी कुण्डलिनी फिर से जागृत कर दी। उनसे कहा कि, 'अब देखिये , इसमें जमिये इस में थोड़ा सा काम करना पड़ेगा आपको। ज्यादा नहीं। जरा ध्यान दें। अपनी ज्योत जलानी चाहिये।' लेकिन वो फिर से वही, 'ये रे माझ्या मागल्या' जैसे मराठी में कहते हैं। उन्होंने बिल्कुल इस ओर ध्यान नहीं दिया। उसके बाद उनको एक गुरुजी मिल गये। बीचोबीच। तो उन्होंने उनको बताया कि, 'हाँ, मैं तुमको एक मंत्र देता हूँ। जंतर-मंतर देता हूँ।' उन्होंने कहा, 'अच्छा, ठीक है।' एक काला साधारण धागा, बिल्कुल साधारण धागा। पता नहीं क्या उन्होंने कर के और इन्होंने सब के गले में दे दिया। सब का सौ सौ रूपया ले लिया। जंतर मंतर कर के। वो धागे का दाम अगर जोड़ने चाहिये तो दो पैसा भी नहीं होगा। अब सब लोग गले में पहन के बिल्कुल इनके ऊपर मर गये। अब वो महाराज साहब जो हैं उनके बड़े ऐसे शिष्य। और उनको कहने लगे कि, 'ये जो उदी है, ये हम साईंनाथ की उरदी लाये हैं । ये अपने घर में रखिये ।' अब वो उदी ले कर के गयी। अपने घर में उदी लगाने लग गये। आज अब साईंनाथ तो हैं नहीं। पता नहीं ये किस की उदी है ? कौन से श्मशान घाट से उठा के लाये हो। और इसमें तुम्हारा कौन सा हेतु है। तो कहने लगे कि, 'ये उदी ऐसे ऐसे उपर से नीचे नीचे गिरती थी। तो हम बड़े इस से इंम्प्रस्ड हो गये।' मैंने कहा, 'ये तो सारी भूतविद्या है । बहरहाल जो भी हो उसी में बहते गये। आज वो पहुँची देवी जी, उनकी माताजी जो थी वो तो चल नहीं पा रही थी। उनका सारा बदन यूँ, यूँ हिल रहा था मेरे सामने। उनकी जो लड़की थी, उसकी एक टाँग टूट गयी। क्योंकि यहाँ पर उसके पता नहीं क्या हो गया, अॅक्सिडेंट हो गया और उसका एकदम ऑक्सिफिकेशन हो गया। तो उसके बाद डॉक्टर ने इधर से काट दिया। उनकी टाँग आधी छोटी हो गयी। उनकी जो लड़की थी उसे किड़नी की ट्रबल हो गयी और अब उसको डायलिसिस पे रखा हुआ है। उसको भी जा कर बेचारे एक सहजयोगी ने बचाया। उससे वो बच गयी और उसकी हालत अब पहले से ठीक है। हॉस्पिटल से निकल आयी। उस वक्त सहजयोगी ने उनको समझाया कि देखिये, इन साधुओं के चक्कर में मत घूमिये। लेकिन वो उनसे रुपया भी लेते थे। पैसा भी लेते थे और ये भी करते थे। तो उन्होंने कहा कि 'नहीं, नहीं वो हमसे बड़े अच्छे हैं। बड़ी मीठी बातें करते हैं। हमसे कभी नहीं कहते कि आप ये नहीं करो। हम शराब भी पीये, कहते हैं कि पिओ। कोई हर्जा नहीं। कुछ भी काम करो हर्जा नहीं है। बस पर्स मुझे दे दो। पीछे मैं हूँ। आपको जो भी काम करना है करते रहो । माताजी तो कहती हैं न कि ऐसा नहीं करो, वैसा नहीं करो। लेकिन ये तो कभी किसी चीज़ को मना नहीं करते। ये तो कुछ नहीं। अगर आप उनसे कोई भी बात करो वो आपसे कहते हैं ठीक है।' ऐसे ऐसे गुरु लोग हैं। आप स्मगलिंग करते हैं तो कहते हैं कि 'मैं तुम्हें स्मगलिंग का तरीका बताता हूँ। लेकिन उसमें से तुम मुझे इतना रुपया दे दो। अब इस तरह के महामूर्ख लोग, जो कि इनको परमात्मा का काम समझते हैं। ऐसे लोगों का किस से नुकसान होता है वो देखिये। अब वो जो लड़की थी, उसका भी डायलिसीस हो गया। उसकी भी हालत तरह खराब। मुझे तो तीनों को देख कर आँसू भर आये। मैंने कहा, 'हे राम, इनका ये क्या हो गया ?' मैंने कहा, 'अच्छा, 18 अब जाईये। माफ करिये।' मैं तो समझ गयी सब चीज़। उनके उपर दिखायी दे रही थी। मैं क्या कहूँ उनसे ? मुझे तो किसी ने कभी कोई बात बतायी नहीं थी, न शिकायत की थी, पर मैं समझ गयी कि ये बात क्या है। मैंने कहा कि, 'भाई, तुम तो १९७० में हमसे पार हुयी थीं। उसके बात वो जो दीप तुम्हारे अन्दर जला था, तुम्हारे अन्दर जो अनुभव आया था। उसका तुमने क्या किया ये? और उस वक्त के जो बीमार थे, जिनको ल्यूकेमिया था, कैन्सर था वो आज कहाँ से कहाँ पहुँच गये और तुम बेवकूफ़ जो कि इतनी अच्छी थी आज कहाँ से कहाँ पहुँच गयीं। ये सब क्यों किया? तो भी वो काला धागा ले कर के आये थे गले में गधे जैसे। वो काला धागा नहीं छूट सकता था उनका। वो गले में पहने | हुये थे। इतनी पकड़ होती है इन लोगों की। मैंने कहा, 'पहले आप इस काले धागे को फेंकियें।' बड़ी मुश्किल से माना उन्होंने, कि इस काले धागे को हम गले से उतारेंगे, बताईये। फिर सब बातें सामने आयीं, कि वो आदमी कितना रुपया लेता है, उनके लड़के को कितना लूटता है। ये हुआ, वो हुआ। उससे पहले वो बताने के लिये भी तैय्यार नहीं थी कि उस काले धागे के बूते पर। याने मनुष्य इतना कमजोर है, कि एक धागा तक उसे बाँध सकता है। उसकी यही बुद्धि है क्या? मैं कहती हूँ कि इतनी आप लोग इतनी बुद्धि की कमाल समझते हैं। आपके पास इतनी भी बुद्धि नहीं कि ये समझ ले कि इस आदमी को हम देख रहे हैं। इसका चरित्र अच्छा नहीं है। ये हमसे रुपया लूट रहा है। हमें परेशान कर रहा है। हमें इससे कोई भी लाभ नहीं। तो भी उसी के चरणों में आप क्यों जाते हैं? और उनका भी हृदय चक्र इतना धक धक, धक धक, ऐसे कर रहा है। बहरहाल तुम तो जानते हो कि माँ जो है वो क्षमाशील है। मतलब क्षमा हमारा स्वभाव है। हम उसको कुछ किसी तरह से जीत नहीं पाते। माने ऐसा है कि जब ऐसी हालत में किसे देखा तो फिर थोड़ा सा तो जरूर कहा लेकिन फिर उसके बाद फिर दिल लगा दिया। क्योंकि तकलीफ़ भी तो देखी नहीं जाती ना! बेवकूफ़ी है तो क्या! बच्चे तो अपने ही हैं। उनकी तकलीफ़ भी नहीं देखी जाती और मैंने फिर से अपने दिल को लगा लिया। लेकिन | क्यों मुझे परेशान करते हो? क्यों नहीं अपना जरा खयाल करते ? क्यों नहीं इसमें जचते हो? ये सब तुम्हारे लिये मुफ़्त है। इसको पाओ। इसमें रजना चाहिये। इसको सम्भालो। एक माँ हर समय अगर आपकी रखवाली भी करती रहे, और आप हर समय जाये और आ बैल मुझे मार, नहीं तो किसी कुँओं में कूद, नहीं तो कोई आग में कूद, इसकी क्या जरूरत है? ये शैतानों के काम हैं। समझना चाहिये कि जो आदमी भगवान के नाम पे पैसा लेता है वो शैतान है शैतान! उसके पास बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिये। आपको मैं समझा समझा के हार गयी। इस बम्बई शहर में कितने वर्षों से मैं यही बात कहती आयी हँ। पर अभी भी मैं देखती हूँ कि आधा बम्बई शहर किसी न किसी आदमी के पीछे में लगा हुआ है। हर सातवे घर में एक गुरु का फोटो मिल जायेगा | इतने हो गये हैं कि मच्छरों जैसे और सब को ये मच्छर काटते रहते हैं और लोगों को अच्छा लगता है कि मच्छरों का काटना। उसमें एक ही बस बात है कि वो आप से कहते हैं कि अच्छा मुझे पैसा दीजिये। कितनी बड़ी हम आपके गुरु हो जायेंगे। साफ़ सूक्ष्म अहंकार पे चोट है। इसे आप देख लीजिये, कि आप हमें पैसा दीजिये और साफ़ नहीं कहते वो। गोल घुमा कर कहते हैं। लेकिन आपको अच्छा लगता है, कि ये हमसे रुपया ले रहे हैं। हम गुरु को खरीद रहे हैं। गुरु रख लेते हैं लोग। 19 अभी हम एक गाँव गये थे। वहाँ पर एक देशमुख साहब खूब शराब पीते हैं। उनकी बीबी मेरे पास आयीं। मुझ से कहने लगी, 'माँ, इनकी शराब छुड़ा दो।' मैंने देखा कि इनका चक्कर ठीक नहीं । कहने लगे कि, 'नहीं हम तो बहुत धार्मिक हैं। हमने गुरु रखे हये हैं।' मैंने कहा, 'अच्छा!' जैसे पहले लोग, भाई लोग रख लेते थे या कोई ब्राह्मण लोग रख लेते थे, आजकल गुरु लोग रख लेते हैं। और वो गुरु लोगों को पैसा सप्लाय होते रहता है। और गुरु साहब कहते हैं कि, 'ठीक है भाई तुम्हारी औरतों को मैं सम्भालता हूँ।' ये औरतें जा कर के, ये गुरु यंग आदमी है उनको नेहलाती हैं, धुलाती हैं। ये करती हैं। वो करती हैं। और वो अगर कुछ कहें की, 'भाई तुम लोग शराब क्यों पीते हो?' अपने आदमी से ऐसे कहें। तो गुरु साह इनका भी हब कहते हैं कि 'देखिये , इनसे कुछ मत कहिये। मैं उनको ठीक कर लूंगा। अंत में मैं कल्याण करूंगा।' औरतों का तो कल्याण कर ही रहे हैं। अब उनका भी कल्याण करो। 'आप अभी कुछ मत कहिये।' इसलिये उनको सहजयोग पसंद नहीं आ सकता। ऐसे लोगों को सहजयोग पसंद नहीं आ सकता है क्योंकि वो चाहते हैं कि परमात्मा के नाम पर अपनी गन्दगियाँ छुपा लें। कितनी गन्दी चीज़ है! इससे परमात्मा का क्या नुकसान होने वाला है? अगर आपके अन्दर गन्दगी रहेगी तो इससे क्या परमात्मा को बीमारी होने वाली है कि आपको बीमारी होने वाली है? थोड़ा विचार करना चाहिये। परमात्मा तो निर्मल ही है। उसके अन्दर कोई दोष है ही नहीं। उसको कुछ नहीं चाहिये। वो आपको समझा रहा है। अगर वो कह रहा है कि , 'भाई, अपनी अन्दर की गन्दगी को निकाल दो| उससे आपको तकलीफ़ होगी। तो इस बात पर सब लोग नाराज़ हो जाते हैं। तो समझदारी की बात ये हैं कि जब आप पार जाते हैं, जब आप में आत्मसाक्षात्कार आ जाता है, आप खुद ही देखने लग जाते हैं अन्दर में कि मैंने ये चक्र ये चक्र पकड़ा है, मेरा ये चक्र पकड़ा है। 'माँ मेरे चक्र साफ़ करो!' आप को उसी की तकलीफ़ होने लग पकड़ा है, जाती है और कहते हैं कि चलो इसकी सफ़ाई करवा लें। जिस प्रकार एक जानवर को आप गन्दगी से ले जाईये उसको पता नहीं चलता है। उसी प्रकार मनुष्य को कितने भी अनीति चीज़़ में गुजार दीजिये, उसको पता नहीं चलता है, कि ये | अनीति है, ये पाप है। उसको समझ में नहीं आता है। पाप के प्रति उसकी संवेदना बिल्कुल झीरो हो गयी। लेकिन जब वो पार हो जाता है, वो देखने लगता है कि कितनी गन्दगी है। उसकी बदबू उसे आने लगती है। वो समझने लगता है कि ये मेरे अन्दर छिपी हुई सारी चीजें निकल जाये जितनी जल्दी, अच्छा है। क्योंकि वही अपना डॉक्टर हो जाता है और देखने लगता है। यही आत्मसाक्षात्कार है। अपने सारे चक्र को जानना, अपनी सारी खराबी जानना और दूसरों के अन्दर के जान कर के भी उसको सामूहिक चेतना में महसूस करना यही आत्मसाक्षात्कार है। ये कोई लेक्चरिंग की बात बिल्कुल भी नहीं। कल भी मैंने आपसे कहा ये घटित होना चाहिये। लेकिन इसमें अगर आप रूजे नहीं, इसमें आप बैठे नहीं, इसमें आपने मेहनत नहीं की और जो आप की पिछली आदतें थीं जैसे की बहोत अहंकारीपन करना और बेवकुफ़ियाँ करना तो फिर ये चीज़ चलने नहीं वाली। अपने प्रति प्रतिष्ठित हो गये। अपने को समझ के रखें, कि हम एक दीप हैं संसार के। हमें जलाया गया है। हमारे अन्दर रोशनी आ गयी है। इस रोशनी को बचाना चाहिये। जब तक आप ऐसा नहीं सोचेंगे सहजयोग में उतर नहीं सकेंगे। आज सारे संसार को देखिये आप एक कगार पर खड़ा हुआ है। इसलिये उसको उस उँची दशा में उतरना ही है। ये उसके उत्क्रांति का चरम पद है। ये उसको लेना ही है। जब तक उसने नहीं लिया, उसका इलाज भी आने वाला है। जो 20 इस लास्ट जजमेंट को, ये आखरी निर्णय है। आखिर परमात्मा लास्ट जजमेंट, आखरी निर्णय कैसे करें? कृण्डलिनी को चढ़ा कर ही आपका आखरी निर्णय होने वाला है । जो कुण्डलिनी के सहारे पार हो जाये वो जो एक तरफ़ नहीं हैं वो दूसरी तरफ़ हो जायेगा। इसलिये इसको आ मास करने की जरूरत थी । सामूहिक करने की जरूरत थी। सामूहिक ये कार्य होना चाहिये। ये सामूहिक कार्य होना चाहिये। और अभी भी अगर लोगों ने इस पे अपना निर्णय नहीं कर लिया, ये लास्ट जजमेंट नहीं कर लिया तो मैं आप से साफ़ बताना चाहती हूँ कि जिस प्रकार गेहूँ और ......(अस्पष्ट) अलग किये जाते हैं, उसका छिलका अलग उतार दिया जाता है, उसी प्रकार अगर आपने अपने को साफ़ नहीं कर लिया तो जो आखरी कल्की होगा वो आप। जो भी इस तरह के होंगे उसको अलग हटा लेंगे। उनका सर्वनाश है। क्योंकि इसको यही कहना चाहिये कि लास्ट सॉर्टिंग आऊट। इसमें किसी भी तरह की मैं अतियोक्ती नहीं कर रही हूँ। मैं आपसे बहत बिनती कर के कहती हूँ कि इस बात से आपको घबराना नहीं चाहिये और न ही नाराज़ होना चाहिये। क्योंकि ये बात हो के रहेगी। आप इस बात से सतर्क नहीं रहे, तो कल वो दिन नहीं आना चाहिये कि आप कहेंगे कि माँ आपने बताया नहीं कि लास्ट जजमेंट। इसलिये मैं आपसे साफ़ साफ़ बताना चाहती हूँ, कि यही लास्ट जजमेंट शुरू हो गया है। इसमें आप अपने को जज कर लीजिये । अब हमारे चक्रों में से जो आज्ञा चक्र है उसके बारे में मैं आपसे बताऊंगी। जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आज्ञा चक्र जो है वो हमारे मस्तिष्क के अन्दर, ब्रेन के अन्दर में पिनिअल बॉडी और पिट्यूटरी नाम की जो संस्थायें हैं उसके बराबर बीचोबीच है। और वहाँ पर रह कर के अतिसूक्ष्म ये सेंटर है । वो अपने अन्दर की इगो और सुपर इगो, जो कल | आपसे मैंने बताया था, वो दोनों संस्थाओं को चालित रखता है। ये आज्ञा चक्र, जहाँ मैंने सिन्दूर लगाया है। इस चक्र की एक खिड़की बाहर की ओर है और एक इस ओर है। इसलिये उसको द्विदल कहते हैं। इस चक्र के पीछे की तरफ़ जो खिड़की हैं, उससे हमारा सुपर इगो माने हमारा मन संचालित रहता है और जो सामने की खिड़की है उससे हमारा अहंकार संचालित रहता है। अब इसलिये कहा गया है कि किसी के सामने माथा झुकाने की जरूरत नहीं। मैं आप सब से भी कहती हैँ कि आप भी मेरे पैर क्यों छूते हैं? जब तक मैंने आपको कुछ दिया नहीं, क्या जरूरत है आप मेरे पैर छुईये? मतलब इसलिये मैं कहती हैँ कि अगर मैंने कह दिया छू लीजिये तो आप सारी दुनिया के छूना शुरू कर देंगे । किसी के भी आगे माथा झुकाना गलत चीज़ है। ये परमात्मा ने बनायी हुई पेशानी। सिवाय उस आदमी के जो की स्वयं साक्षात् परमात्मा से प्रेरित है, जिसने आपको कुछ विशेष अनुभव दिया है उसी के सामने सर झुकाना चाहिये। लेकिन हम लोगों की ऐसी प्रथा होगी कि हर जगह जा के सर झुकाते हैं। इसलिये ये जो पेशानी है, जहाँ ये आज्ञा चक्र है इसमें दोष आ जाता है। आज्ञा चक्र का दोष जो है पीछे में आता है जब आप पेशानी किसी के सामने झुकाते हैं, तो इसका दोष पीछे में आता है और आगे का दोष जो है वो अति विचार करने से आता है। कोई आदमी अगर हर समय सोचता रहे तो उसमें ये दोष आ जाता है या जो अहंकारी मनुष्य होता है उसका भी दोष इस चक्र पे आ जाता है। अब इस चक्र के जो द्विदल हैं, माने समझ लीजिये दो हाथ हैं, उस में से जो बीचोबीच जो इसका तत्त्व है वो तत्त्व एकादश रुद्र कहलाया जाता है। माने उसपे ग्यारह शक्तियाँ हैं जो हमारे माथे पे यहाँ ग्यारह चक्र हैं। बहुत महत्त्वपूर्ण ग्यारह चक्र 21 हैं। इसी एकादश रुद्र से ही कल्की बनेगा। इसी से सर्वनाश होने वाला है। इसलिये इसको बचाना बहुत जरूरी है। और इसके जो तत्त्वस्वरूप संसार में सब से बड़े अवतरण हये हैं, वो है जीजस क्राइस्ट। ये एक तरफ़ समझ लीजिये इनका हाथ श्रीगणेश का है, एक अंग इनका श्रीगणेश का है, जो कि लेफ्ट साइड हैं और राइट साइड जो है वो कार्तिकेय स्वामी, आप जिनको जानते हैं। कार्तिकेय स्वामी के बारे में आपने सुना होगा और जिनको दक्षिण में बहुत लोग मानते हैं। उनको मुरूगंद कहते हैं। इस प्रकार इनके दो अंग हैं । और इन दो अंगों को मिला कर के ही जीजस क्राइस्ट इस संसार में आये। और उनका जो क्रॉस है वो भी स्वस्तिक का ही रूप है। लेकिन जीजस क्राइस्ट के जीवन का सब से बड़ा उद्देश्य या उसकी महिमा है या उसका जो संदेश हैं वो क्रॉस नहीं है। क्योंकि जीजस क्राइस्ट ये कृष्ण के लड़के हैं। महाविष्णु के बारे में आप जरूर पढें। मैं जो बात कह रही हूँ एक भी बात झूठी नहीं और उनकी जो माँ मेरी थी और राधा जी हैं। रा...धा, रा माने शक्ति, धा माने जिसने धारणा की हुई है। महालक्ष्मी स्वरूपा हैं। उनकी जो माँ थी वो महालक्ष्मी थी। लेकिन जीजस क्राइस्ट के जमाने में उन्होंने ज्यादा बातचीत इसलिये नहीं की कि जब दष्ट रावण, राक्षस आदि लोग ये जानेंगे कि उनकी माँ ही महालक्ष्मी हैं, तो वो माँ के पीछे पड़ जायेंगे और तब वो अपना गुस्सा रोक नहीं पायेंगी। और उनकी पूरी एकादश रुद्र की जो शक्तियाँ हैं, वो क्रोधित हो कर सारे संसार को भस्म कर डालेंगी। इसलिये इस बात को बिल्कुल गुपित रखा गया। लेकिन तो भी इसाई धर्म के जो पहले कैथोलिक लोग हैं वो बहुत दिनों तक अभी भी मानते हैं, की उनकी माँ जो हैं वो दैवी शक्ति थी। लेकिन वही होली घोस्ट है, इसे वो नहीं मान सकते। और उनकी समझ में नहीं आता है कि होली घोस्ट चीज़ क्या है। क्योंकि उनमें भी आत्मसाक्षात्कारी लोग बहुत कम हये हैं और जो भी इसाई धर्म में आत्मसाक्षात्कारी हये हैं, उनको मार डाला, उनको फाँसी चढ़ा दिया या उनको बिल्कुल ही चर्च से निकाल डाला। जैसे हमारे यहाँ हिन्दू धर्म में भी जो कोई बड़ा भारी साधु-संत हुआ है, ज्ञानेश्वर हुओ, तुकाराम हुओे, आज तक कोई हुआ ही नहीं जिसके पीछे में सारी दुनिया न लग गयी हो। इसी प्रकार ईसामसीह के पीछे भी बहुत लोगों ने आप जानते हैं कि उनकी हालत खराब की ये और उनको किस तरह से क्रॉस पे चढ़ाया। चढ़ाना लिखा हुआ था। सूली पर चढ़ना उनका एक नाटक था। और ये नाटक करना पहले से लिखा था । क्योंकि कृष्ण ने अपने गीता में कहा है, कि ये जो प्रणव शक्ति है, जो ओंकार शक्ति है, ये शक्ति 'नैनं छिदन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक:', इसको कोई खत्म नहीं कर सकता। इसको कोई मार नहीं सकता। इस बात को सच करने के लिये ही ईसामसीह को आज्ञा चक्र पे सूली होना पड़ा। हर एक इनकार्नेशन ने, हर एक अवतार ने, संसार में आ कर के एक नया कदम लिया। अब आज्ञा चक्र की जो पकड़ है वो बहुत ही छोटी थी। उसमें जगह ही इतनी छोटी थी और उसमें से अतिपवित्र ही चीज़ गुज़र सकती है। बाकी जितने भी अवतार हये हैं, माने गणेश छोड़ कर के, बाकी जितने भी अवतरण हैं, संसार में आये हैं, श्रीविष्णु के अवतरण, वो सारे ही सदेह हैं। उनके अन्दर पृथ्वी का अंग है। 22 विश्व में प्रेम की शक्ति अत्यंत प्रगल्भ शक्ति है। प्रेम की शक्ति ही अत्यंत प्रभावशाली है। प्रेम में चाहे हम कष् उठाते हैं, वो भी अपने शक्ति के कारण कष्ट उठाते हैं, न कि अपनी दर्बलता के कारण । प.पू.श्रीमाताजी, मुंबई, २८/८/१९७३ प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.१०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११ ०३८. फोन : ०२०-६५२२६०३१, ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in, website : www.nitl.co.in अपने हिन्दुस्तान की सभी दुर्दशा खत्म हो कर यहाँ रामराज्य आने वाला है। कहना है इसलिये नहीं कहा है। मझे जो दिखायी दे रहा है वही मैंने कहा है। इसके लिये सभी सहजयोगियों ने परिश्रम करना चाहिये। परिश्रम के बगैर यह कार्य नहीं हो सकता। इतना महान कार्य आजतक किसी भी आध्यात्मिक लेवल पर नहीं हुआ और अगर हुआ भी है तो भी वो समाज तक नहीं पहुँची है। प.पू.श्री माताजी, ८/१२/१९८८ ০ ॐ २ के ु ००५- २] ि २३ कद छा ए रु ४ ह र विवा के रु EG ब८ खवर्णीमिनंदन -8 ও स ২৫ శ్రీరర भर ব त ख ১) ১ » ८ 2९ २ ना २ र] ० ---------------------- 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरी हिन्दी जनवरी-फरवरी २०१६ उश ত पाम 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-2.txt इस अंक में क्षमा ...4 (संक्रांति पूजा, पुणे, १५/१/२००५) सहजयोग एकदम प्रॅक्टिकल चौज है ...6 (सार्वजनिक कार्यक्रम, मुंबई, १७/३/१९७५) संवेदना ...14 (सेमिनार अँड मिटिंग, मुंबई, ३०/१/१९८०) इस दिन हम लोगों को तिलगूड़ दे क२ भीठा बोलने के लिये कहते हैं। प२ स्वयं को भी ऐसा कहे तो अच्छा है! क्योंकि ढूसरों को कहना बहत आसान है। आप मीठा बोले और हम बुराई करेंगे' इस तरह की फ्रवृत्तियों मीठा कर की व्जह से आज कोई भी मीठी बाते नहीं क२२हा है। प.पू.श्रीमातीजी, २हुरी, १४.१.१९८७ 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-3.txt इभू कार दध हे आज का दिन पृथ्वी में उत्तर भाग में महत्त्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि सूर्य दक्षिण से उत्तर में आता है। इसलिये तो हम लोग इसको क्यों इतना मानते नहीं कि ये हम कर रहे हैं। हर साल एक ही तारीख जो कि सूर्य के ऊपर ...... हैं? क्या विशेष बात है कि सूर्य उत्तर में आ गया। तो हम लोगों को उसमें इतनी खुशी क्यों? बात ये है कि सूर्य से ही हमारे सब कार्य जो हैं प्रणीत होते हैं। अँधेरे में, रात्रि में हम लोग निद्रावस्था में रहते हैं। लेकिन जब सूर्य उदित होता है, उसके बाद ही हमारे सारे कार्य चलते हैं। इसलिये इस कार्य को प्रभावित करने वाली जो चीज़ है वो है सूर्य। और वो हमारे कक्ष में आ जाती है, तो हम इसको बहुत मान्य करते हैं। सबसे बड़ी बात तो ये है कि बाकी सारे त्यौहार चंद्रमा पर आधारित हैं और सिर्फ यही एक त्यौहार ऐसा है, कि जो हम सूर्य के आधार करते हैं। ऐसे हमारे यहाँ सूर्यनारायण की भी बहुत महती है और लोग सूर्यनारायण को मानते हुये गंगाजी पर स्नान करने आते हैं और अनेक तरह के अनुष्ठान करते हैं। पर सब से महत्त्वपूर्ण यही एक चीज़ है । 4 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-4.txt दैं मा पुणे, १५ जनवरी २००५ अब हम लोगों को ये तय करना पड़ता है, कि इस दिन क्या करना चाहिये? इस विशेष दिन को क्या कार्य करना चाहिये? सूर्य का नमस्कार वरगैरा, सूर्य को अध्ध्य दे दिया और सूर्य के प्रति अपनी कृतज्ञता हम लोगों ने संबोधित की। किंतु क्या विशेष अब कर सकते हैं? विशेष क्या कर सकते हैं? आज्ञा चक्र पे ही सूर्य का स्थान है, आप लोग जानते हैं। और आज्ञा चक्र से आप हर एक चीज़ को सोचते हैं। तो आज्ञा चक्र को ठीक करना बहुत जरूरी है। क्योंकि सूर्य को प्रभावित करता है। इसलिये आज्ञा का जो महत्त्व है वो ये है, कि आज्ञा पर हमारे जो हमारे ग्रह हैं, उसके अनुसार हम लोग आज्ञा चक्र से लोगों पर क्रोधित होते हैं और उनके साथ हमारा व्यवहार बिगड़ जाता है। गुस्सा आता है और हर तरह की आस्थायें मिटती जाती हैं। आज्ञा बहुत महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसको हमें समझना चाहिये कि इस पर ईसामसीह का स्थान है। और ईसामसीह ने एक ही चीज़ बताई थी कि सब को क्षमा करना चाहिये। .... पर होता नहीं। क्षमा के लिये जरूरी है कि क्षमा करना बहुत जरूरी चीज़ है। और वो कैसे किया जाये? .... संतोष अन्दर आना चाहिये और ये सोचना चाहिये कि इसे अगर परमात्मा बोलेगा तो हमको क्या करना है। इसने जो कहा था वो इसके समान होगा। हमको इसमें क्यों पड़ना है? इस तरह से निरिच्छता आ जाये और आप क्षमा कर दे सब को, तो आज्ञा चक्र ठीक हो जाये। आज्ञा चक्र ठीक होने से जो बहुत बड़ी रुकावट हमारे उत्थान में है, जो कुण्डलिनी को रोकती है, वो है आज्ञा, और इसके लिये हमें क्षमा करना आना चाहिये। हर समय हम सोचते रहते हैं कि किसने क्या दुःख दिया? किसने क्या तकलीफ़ दी? उसकी जगह ये सोचना चाहिये कि हमें क्षमा कर दें। इसको उसको हमने क्षमा कर दिया और क्षमा करने से एकदम से आपको ... कि कुण्डलिनी झट् से उपर चढ़ जायेगी। इसके लिये हमें जरूरी है कि आज्ञा को साफ़ रखें। गुस्सा आना मनुष्य का स्वभाव है। परमात्मा का नहीं। मनुष्य का स्वभाव है। इसलिये उस गुस्से को रोकना चाहिये। और उसकी जगह क्षमा, क्षमा ऐसे तीन बार कहने से आज्ञा चक्र ठीक हो जाता है। सब को अनंत आशीर्वाद ! 5 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-5.txt सहजयोग एकदम प्रॅक्टिकल चीज़ है। मे उ जिसको की हम लोग कहते हैं कि काली उपासक है और कुछ कुछ नाम पचासो दे रखे हैं, सांख्य विद्या है और -प्रेत दुनियाभर की चीज़ बना रखी हुई है। उसके नाम पचासों हैं। उसको आप नौवी विद्या भी कहते हैं। उसको भूत विद्या भी कहते हैं। उसको लोग आज कल एक अवश्य कहते हैं कि कोई जिनिअस, इंटेलिजन्स उसका नाम बनाया रखा है। और ये सब भूतों के काम हैं। वो चीज़ जो महाकाली की शक्ति है, उसका विपर्यास कर लेते हैं या उससे मुँह मोड़ने से आ जाता है। या उसको अतिशय इस्तेमाल करने से भी आ जाता है। जैसे एक चीज़ से आप टूट जाते हैं तो दूसरी चीज़ से आप ठहर जाते हैं। जो मनुष्य, आज जो मेरी आप बात सुन रहे हैं, ये सब आपके सुप्त चेतन मन में, सबकॉन्शस माइंड में जाता है। सब वहाँ समा रहता है। वो वहाँ समाते जाती है और आप जितना सुप्त चेतन की ओर जाते हैं, उसमें जब हम बहुत उतरने लग जाते हैं, मतलब जब हम लिथार्जिक हो जाते हैं, हमारी अॅक्टिविटी खतम हो जाती है, जिस वक्त हम कुछ भी अॅब्स्टिनन्स नहीं करते हैं, कुछ भी वैराग्य नहीं देते हैं, और संसार की सारी प्रलोभनों में पड़ते जाते हैं। इस तरह के शराब, औरतों के चक्कर, गंदे गंदे कामों में फँसना, इस तरह की हर एक चीज़ों में हम घुसने लग जाते हैं, अतिशय खाना, पीना, गालियाँ बकना और पान, सिगरेट आदि अनेक तरह की विषयों में जब हम लिप्त होते जाते हैं, जैसे आज कल के तरुण हैं। 6. मुंबई, १७ मार्च १९७५ 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-6.txt उसी तरह से ये गंदे नाच, और सब तरह की पवित्रता जब हम खत्म कर के अपने माँ के प्रति हम, जैसे कि विलायत में है, माँ के प्रति भी वो गंदी दृष्टि से देख सकते हैं। इतनी उन में गंदगी आ गयी। नब्बे साल की औरत होगी और उसका रोमान्स चलेगा वो कोई बीस साल के लड़के के साथ और वहाँ के पेपर में भी ये आता है। उसमें भी शर्म नहीं उन लोगों को। रोज पहले ही पेपर पे आयेगा । देखते ही, बाप रे बाप! महाघोर पाप। इतने पापमय विचार लोगों के हैं। अपने यहाँ भी मैं देखती हैँ, कौन कौन ये औरतें जो हैं| उस दिन वो जौहर साहब की बीबी को देखा। मैंने कहा, 'ये तो बिल्कुल वेश्या जैसी बातें लिख रही है।' सारी गंदी गंदी बातें लिखना । खुले तौर से लिख देना । वो गंदी औरतों के फोटो टाँगना। और इस तरह से अपनी माँ को रास्ते पे बेचना। इस तरह के जो गंदे काम होते रहते हैं, उससे आदमी उस दूसरी दशा में जाता है। उसमें वो आदमी बातचीत करने में जरूर मधुर लगेगा । उसमें मिठास होगी। एक शराबी आदमी होता है अधिकतर। अधिकतर शराबी आदमी बड़ा ही ज़्यादा दिल का बड़ा होता है। वो अकेला बैठ के शराब नहीं पियेगा । दस आदमिओं को बुलायेगा। उनके साथ शराब पियेगा । हमेशा जो पियक्कड लोग होते हैं उनको ये तो परवाह नहीं होती कि मेरे बीबी- बच्चे घर में मर रहे हैं क्या ? क्या हो रहा है? आओ भाई, तुम भी आओ | आओ, शराब पिओ। कोई होशोहवास उनको नहीं रह जाता है। उनको इस चीज़ का ख्याल नहीं रहता है। उनकी अगर माँ मर जाये, वो कफ़न के लिये पैसा लेने जायेंगे बाहर। किसी से भीख माँग के लायेंगे। क्योंकि उनके पास पैसा रहता नहीं। तो उसी रास्ते में अगर शराब की दुकान पड़ गयी तो माँ इधर में पड़ी रहेगी और वो रास्ते में बैठ के शराब पियेगा। याने जिसे सारा ही सार विचार टूट गया है। सारा ही धर्म टूट एक तो जाये। इस तरह की इंडलजन्स में जो पड़ता है, तो अॅब्स्टिनन्स एक्स्ट्रिम पे जो रहता है, जो कि मैंने कल आपको बताया था, योगी लोगों की बात और आज ये दूसरे तरह के महागंदे लोग, जो सड़ जाते हैं। इनमें कीड़े पड़ जाते हैं। यही भूत है। कोई चीज़ सड़ जाने पे, मर जाने पे, उस में जिस तरह से कीड़े पड़ते है वैसे ही आप के अन्दर में भी इस तरह के कीड़े पड़ते जाते हैं। जिनको आप अँटीजिनी कहते हैं। अगेन्स्ट लाइफ। जिसको आप लोग व्हायरस इन्फेक्शन कहते हैं। आपने होगा संसार में व्हायरस इन्फेक्शन है। जिसको आप व्हायरस इन्फेक्शन कहते हैं वो भी यही कीड़े होते हैं। जो आपके कलेक्टिव सबकॉन्शस में, माने सामूहिक सुप्त चेतन जो चारो तरफ है, वहाँ से एकदम से चले सुना आते हैं और उसके आने के कारण में संसार में जो मॉलिक्यूलर चेंजेस हो जाते हैं, माने हर एक जो अणु-रेणु है वो बदल जाते हैं। उसका जो घुमाना है, जो इस तरफ से घूमना चाहिये, वो उल्टे घूमने लग जाता है। जो स्वस्तिक हमारे गणेश जी का है, उसके उल्टा स्वस्तिक घूमने लग जाता है और जब वो उल्टा घूमने लग जाता है, सारा मॉलिक्यूल गिर चेंज हो जाता है। व्हायरस इन्फेक्शन आ जाता है। संसार में फटाकु एकदम लोग, उनको चक्कर आ जाती है, जाते हैं, उल्टियाँ हो जाती हैं। कोई लोग पागल हो जाते हैं। आपने सुना होगा की उनके रेटिना जो है उनका डिटॅचमेंट हो जाता है और उनको दिखायी नहीं देता। उसके बाद वो अँधे हो जाते हैं और इस तरह की पचासों चीजें। वो जो आती है संसार में और जो ऐसे कार्य करती है, वो तो कोई कंट्रोल नहीं आती। वो आती है, अपने आप से एकदम काफ़ी सारे मरे ह्ये जीव आते हैं संसार में, असर कर जाते हैं और खत्म हो जाते हैं। उनके असर लोगों पे आ 7 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-7.txt जाते हैं। यही व्हायरस इन्फेक्शन है। लेकिन बहुत से ऐसे लोग संसार में हैं, कि जब कोई मर जाता है, खास कर अगर कोई बड़ा दुष्ट मरा हो, तो उसकी खोपड़ी पर काबू कर लेंगे या उसकी हड्डिओं पे काबू कर लेंगे। उसके स्मशान तक जायेंगे। उसकी कबरें खोदेंगे । उसमें से उसको निकाल लेंगे और उस पर एक प्रेतविद्या की तरह हावी हो जायेंगे | उसके मंत्र करते हैं। उसका नाम जपते हैं। उसको ये कर के, वो कर के उस को अपने काबू में करते हैं । हम लोग असल में मरते थोड़ी ना हैं। थोड़ा सा हिस्सा हमारा मर जाता है और बाकी का हिस्सा, ट्रान्सपरन्ट सा संसार में सब दूर विचरण करते रहता है। अब वो मरे हये लोगों के बीच सात लोग हैं, सात लोग वहीं ठान रहते हैं। अब जो लोग पार हो गये हैं वो देवलोक में रहेंगे। ये कभी भी किसी आदमी की तहकी में नहीं घुसने वाले। चाहे अपना खुद का लड़का मर गया हो। अपनी खुद की बीबी मर गयी हो। कभी उस साइकी के अन्दर नहीं घुसेंगे । लेकिन उस के नीचे में भी, देवयोनी के नीचे में भी बहत से लोग हैं, राक्षस हैं। जो लोग राक्षस योनि के हैं, उस राक्षस योनि के लोगों को ये इच्छा होती है कि संसार में आओ और अपना राक्षसीपन दिखाओ। तो वो संसार में आते हैं कुछ तो रूप धारण कर लेते हैं मनुष्य के जैसा और कुछ लोग जो हैं ऐसे ही विचरण करते रहते हैं। उन लोगों पे ये लोग हावी रहते हैं। और उनको आपके आज्ञा चक्र से नाभि चक्र से आपके अन्दर डाल देते हैं। इसलिये कलयुग जो है मिक्श्चर है सारे, मिश्रण हो गया। साधु, संतों के भी आज्ञा चक्र में ये घुसा देते हैं। अब आपको पता ही नहीं चलता कहाँ घूसाते हैं, कब घुसाते हैं। जब तक आपको कैन्सर नहीं हो जाता है, जब तक आप फिजीकली प्रॉब्लेम में न आ जाये, आपको यही पता नहीं होता है कि भूत कहाँ से आ गये । इनकी कोई ये समझ में ही नहीं आता है, कि हमें ये बीमारी कैसे हो गयी ? बहुतों से लोग आते हैं, 'माताजी, मुझे रात में नींद नहीं आती। मेरा दिमाग खराब हो गया। मुझे बड़े भयंकर स्वप्न आते हैं। बड़ा डिप्रेशन रहता है। सब कुछ है, मैं बड़ा डिप्रेस्ड रहता हूँ। समझ में नहीं आता है क्या है?' फिर दूसरा आ के बताता है, 'साहब मेरी बीबी इतनी विचित्र है, उसका मेरी समझ में नहीं आता है कि हर समय वो मेरे उपर क्यों बिगड़ी रहती है?' फिर पता हुआ कि वो बिल्कुल राक्षसीन जैसी रहती है। इस तरह की बहत सी किताबें लिखी हैं जिस में उन्होंने इस शक्ति का वर्णन किया हआ है। उसमें से एक किताब है, एक्झॉसिस्ट। बड़ी गंदी तरीके से लिखी है वो। लेकिन उसमें लिखा है, ग्यारह साल की लड़की जो है, उस लड़की का किस तरह से मन विक्षुब्ध हो गया। इस तरह की भी बात लिखी है। बहुत सी ऐसी बातें संसार में आ रही है, लोग देख रहे हैं कि हजारों के पास सिद्धियाँ आ गयी। माने, आप ऐसा करें, आकाश से एकदम अंगूठी ला कर रख दी। आपने सोचा, अहाहा! महात्माजी का क्या कहने! अंगूठी ला के दे दी। महात्मी जी के चरणों में चले। महात्मा जी ने एक भूत आपके अन्दर भर दिया उसके साथ। दूसरे दिन आप बीबी का जेवर चुरा के ले गये महात्मा जी के चरणों में डाल दिये। आपने ये नहीं सोचा, महात्मा जी ने मुझे अंगूठी दी। मेरे नौकर को क्यों नहीं दी भाई ? सारे संसार के प्रॉब्लेम क्यों नहीं हल करते । ये तो कम से कम करें। बड़े भारी भगत हो गये, अहाहा, गुरुजी महाराज ! क्या कहने आपके! अंगूठी आपने हमें दे दी । क्या कहने ! बड़े 8. 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-8.txt बड़े इस चक्कर में घुमते हैं। वो उनकी कमजोरियाँ हैं। वो अंगूठी दे दे। अंगूठी उनको इंप्रेस कर गयी। अंगूठी लेने जाते हैं। और ये रईसों को और बड़े बड़े पदाधिकारियों को अंगूठियाँ क्यों दे रहे हैं? क्यों नहीं इन गरीबों को देते हैं? ये कभी नहीं होगा। हम लोग फिर वो दूसरे तरह के होते हैं वो अपने को हिप्नोटाइज करते हैं। वो ऐसी आपसे मीठी, मीठी, असेले मीठी, मीठी बाते करेंगे। जैसे बहुत से औरतों को कहते हैं कि, 'मैं आपके पूर्वजन्म का पति था। ' अब में औरतें इतनी गधी होती हैं, उनकी समझ में नहीं आता कि पूर्वजन्म में होगा तो होगा। चूल्हे में गया | अभी जो बैठा हुआ है, उसको छोड़ के इसके पीछे में क्यों भाग रहे हैं? खास कर जो औरतें फ्रस्ट्रेटेड मरते थोड़ी होती हैं, जिनके आदमी बदमाश होते हैं। इधर - उधर भागते हैं। उनके औरतों को ये आदमी बड़ा अच्छा लगता है। लग गये उसके पीछे में। 'अब वो मेरे गुरु महाराज। अहाहा।' मुझे तो उन्होंने बिल्कुल, मेरी नी हालत खराब कर दी। ये नहीं जानती की उनके अन्दर सेक्स की दबी हयी प्रवृत्तियाँ हैं। उसको उभार कर हैं। के, उसको संजो कर के आप पे ऐसा काम कर रहे हैं और आप से रुपया-पैसा ले रहे हैं। ऐसी मैंने केसेस देखी हैं, औरतों ने अंगूठियाँ क्या, चूड़ियाँ क्या, वो सब दे दी। ये एक तरह की .....(अस्पष्ट)। दसरी चीज़ है आपको डोरा बांधने की। आप ड़रोरा बांध दिया। ये तो बहुत सस्ता मामला है। एक पैसे का ड्रोरा बारह रुपये में बाँध दिया। आपने लगा लिया। ड्रोरा आपके गले में, गये आप| ये सब से आसान तरीका है। तिसरा तरीका है कि आप से कहेंगे कि मंत्र जपे। एक और है महाशय। उनका की आप एक शृंग है उसको जपो। अब वो महाशय लगे शृंग शृंग जपने। देखा क्या कि उनको ट्रान्स आ गया। ट्रान्स में चले गये। कहने लगे कि ये तो जिनिअस हो गये। इनका ब्रेन बढ़ गया। इनके अन्दर एक भूत आ गया। अब वो शायद हो सकता है कि इनसे ज्यादा बुद्धिमान हो। हो सकता है। लेकिन क्रूकेड होगा बहुत बड़ा। वो इस आदमी को इस्तमाल करेगा और जब जायेगा तो उसके प्राण ले कर। उसको खत्म कर के। तो उन्होंने कहा, आप मंत्र जपो। आपने मंत्र जपा, राम, राम कहा। राम नाम का प्रभु नहीं। राम नाम का भूत कहीं होगा वो आपके अन्दर आयेगा। फिर आपसे उन्होंने कहा, कि आप पाँच बजे के करीब हमारा इंतजार करियेगा। उस वक्त हम आपका ये ठीक करेंगे। आपको जुड़ी आयेगी पाँच बजे । आप सोचेंगे आ गये मेरे अन्दर देवता। आपने सोचा मेरे अन्दर भगवान आ गये। आपने सोचा, अहाहा, मैं कितना बड़ा आदमी हो गया। आप क्या भगवान आने लायक आप हैं! क्या आापके अन्दर भगवान आ जायें, ऐसे आप शक्तिशाली हैं, कि आप के अन्दर भगवान आ जायें । उसके बाद आपकी तबियत ठीक हो गयी। क्योंकि वो दसरा आदमी आपके अन्दर आ गया। आप से वो चीज़ दबा दी। आपने सोचा कि, 'अहाहा, कितने अच्छे हम हो गये!' ऐसे स्पिरिच्युअल, बड़े भारी लीड़र, वहाँ लंडन शहर में तो इतने 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-9.txt भरे हुये हैं, जिसकी कोई हद नहीं। ईसामसीह ने इसके खिलाफ़ इतनी बुलंद आवाज उठायी थी, नानक जी ने भी हिन्दुस्तान में इसके बाद बहुत इसके विवरण किया है, बहुत नानक जी ने कहा है। इसलिये सीख लोग नानक जी को मानते नहीं। नानक जी को मानने वाले लोग जो हैं, बहत लोग हैं लेकिन सीख लोग नहीं । जैसे सिंधी लोग भी मानते हैं नानक जी को। लेकिन सिंधी लोगों में इतना गुरुओं का चक्कर है, इसकी कोई हद ही नहीं। क्योंकि उनके पास पैसा होता है। जहाँ पैसा वहाँ ये भूत पहले पहुँचेंगे। उनको तो उनकी सूँघ लगती है। उसकी खुशबू आती है । इसके पास पैसा है, चलो। हर एक पैसे वाले के पीछे दो-चार तो ऐसे लगने ही हैं। और पैसे वाले, उनको चाहे मन में ये लगता हो कि मैंने गलत तरीके से पैसा कमाया है या कोई बात हो । वो सोचते हैं कि चलो, उसको थोड़ा सा पैसा दे दो। अपना भी पाप मोक्ष हो जायेगा। वो पता नहीं कि उससे भी कितना अधिक पापी बैठा हुआ है, उसको पैसा देने से तेरा पाप नष्ट नहीं होने वाला। तो उसको उन्होंने दो-चार लाख रुपया दे दिया। बाबाजी, बाबाजी, बाबाजी! बाबाजी गये ! एक एक बाबाजी के किस्से सुनायें तो आप लोग कहियेगा कि बाप रे बाप! किस चक्कर में हम हैं। अभी सितारा देवी ने एक किस्सा सुनाया। एक बाबाजी थे। किसी रईस के घर में रहते थे। मैं जाती थी, तो मैं भी उनके यहाँ जाया करती थी ऐसे। एक दिन मेरे पास पुलिस वाले आये। कहने लगे कि, 'उनके उसने सात लाख रूपये मारे हैं। आपसे भी | रुपया मारा क्या?' मैंने कहा, 'मैंने तो उनको कुछ खास दिया नहीं। हाँ भाई, थोड़ा बहुत दे देती थी मैं। उसके बाद में पता हुआ, सात लाख रुपये मारे थे, तो पेपर में आया था, कि उनको पकड़ा गया और वो जेल में चले गये। उसके कुछ दिन बाद मुझे मिले। सात साल बाद। तो वैसे के वैसे हट्टे कट्टे। कुछ उनको हुआ नहीं था। मैंने उनको 'कब पुछा, आये?' मैंने उनसे ये नहीं पूछा, जेल से कब आये? वो खूब जोर जोर से हँसने लगे । इतने बेशर्म हैं वो। उनको कोई शर्म नहीं होता। बेशर्म है वो। उनको जन लज्जा, या कोई लज्जा नाम की कोई चीज़ नहीं। उनको जेल में रखा था फिर भी बेशर्म जैसे वही काम कर रहे थे। उससे तो एक चोर अच्छा है। जो कहता है कि, 'मैं चोर हूँ, मैं चोरी करता हूँ।' वो जेल में जाता है, वहाँ से ठीक हो के आता है। उसका वो शर्म महसूस करता है। वो सोचता है कि देखो, मैंने कितना गंदा काम किया है। लेकिन ये लोग तो सोचते हैं कि, 'अच्छा है, मैंने ठगा इन लोगों को। मेरे पास अकल ज्यादा थी, | इसलिये मैंने ठग लिया। हमारी यूपी में एक नटवरलाल कर के एक महाशय हैं। वो भी हमारे श्रीवास्तव ही हैं। महापक्के, छटे हये चोर हो ऐसे चोर हैं। ऐसी उनकी कमाल है कि उनको कोई भी आदमी जेल में एक महिने के उपर रखने नहीं देता। एक दिन ऐसा हुआ कि एक जेलर साहब के यहाँ मैें गयी थीं। उन्होंने कहा कि, 'नटवरलाल को आप देखना चाहते हैं?' मैंने कहा, 'मैं देखूंगी। मैं मिलूंगी। देखूं तो कैसा आदमी है।' मैंने देखा कि वो निहायत बेशर्म आदमी है। इतना वो बेशर्म है कि वो कुछ भी कर सकता है, जिसको शर्म ही न हो किसी की। धर्म ही जिसके अन्दर नहीं हो। किसी तरह का काम कर सकता है। तो भी उसमें इतनी .... अन्दर थी कि मैं गयी तो उसने मेरे सामने आँख नहीं झुकायी। कहने लगे, 'माँ, मैं आपके सामने आँख नहीं झुकाऊंगा।' लेकिन ये तो इतने बेशर्म होते हैं कि मेरे से भी आँख मिलाने की कोशिश करते हैं। इतने बेशर्म होते हैं। महाबेशर्मों की दुनिया में रहते हैं और सब बेशर्म आपस में मिले रहते हैं । कोई उनको 10 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-10.txt जबे लज्जा नहीं आती। उनको जेल में ड्राल दो, उनको मना कर दो कि बम्बई नहीं आने का मरो वहाँ पे वो पूना में । तो भी बेशर्मी करते रहते हैं। और उनके शिष्य भी इतने बेशर्मी से बात करते हैं। इतने गंदे लोग होते हैं। कहते हैं, एक तो लेडी कहने लगी कि, 'उनसे तो मेरी शादी हो गयी। 'शादी हो गयी? अरे, पार तुम्हारे पति यहाँ बैठे हये हैं। तुम्हारे बाल-बच्चे बैठे हैं। इतने बड़े घर की औरत हो । तुमको शर्म नहीं आती? तुम्हारी उनसे शादी कैसे हो गयी?' 'वो तो मेरे पूर्वजन्म के पति है।' मैंने कहा, 'कैसे पता ?' होते हैं, 'वो कह रहे थे।' मैंने कहा, 'वो कहे तो क्या ब्रह्मवाक्य हो गया। ये कहने के लिये क्या लगता है दुनिया तेब में बताओ!' सोचना चाहिये, मनुष्य को हमेशा सोचना चाहिये, कि आप जिसको गुरु मान रहे हैं उसको काफ़ी पवित्रता है या नहीं? अगर उसके अन्दर पवित्रता नहीं तो उसके आगे झुकने की क्या जरूरत है! उसके पवित्र चरणों में जाने की क्या जरूरत है? जो आदमी आपको गंदी बातें सिखाता है, धर्म के नाम पे सेक्स जीव सिखाता है, वो आदमी कभी भी पवित्र नहीं हो सकता है। नहीं हो सकता। नहीं हो सकता। इसको आप होते लिख के रखें। जिस आदमी को औरतों में इंटरेस्ट है, वो आदमी आपका गुरु कैसे होगा? सब धंधे करो और गुरु बनो ये कौन सा भाई तरीका! मैंने नहीं जाना! इस तरह के गुरु आज कल हजारों निकल आये हैं। हैं। इसलिये ये जो शक्तियाँ हैं, इससे बहुत बच के रहने की जरूरत है। आज कलयुग में योगी तो एक बार पार हो ही जाते हैं। उनके अन्दर हृदय शक्ति में भरा जा सकता है। उनको पार कर सकते हैं और जब वो पार होते हैं तब काफ़ी पवित्र जीव होते हैं । लेकिन इस बदमाशी में घुसने वाले लोगों को आप क्या कह सकते हैं ? क्या उनको मैं पार करा सकती हूँ? कोई लोग कहते हैं कि, 'माताजी, ये लोग कहते हैं कि आप तो किसी गुरु को नहीं मानती।' मैंने कहा, 'कोई सच्चा गुरु हो उसको मैं मानूंगी। वो तो मुझे भी मानेगा। लेकिन जो दुर्जन है, तो उसे मैं कैसे कहूँ कि ये गुरु है भाई ? तुम क्यों कि मानते हूँ इसलिये मैं उनको गुरु कहूँ?' कोई तुम्हारा कल्याण उसने किया ? वो सिर्फ सोशिओ- इकोनॉमिक अॅक्टिविटीज कर रहे हैं कि, 'साहब, आप हमारे आश्रम में आईये। सारा रुपया पैसा जमा कर दीजिये आप और आप हमारे यहाँ रहिये। पता हुआ कि आप ट्रान्स में चले जा रहे हैं और अस्सी साल की बुढ़िया औरत अपने सर पे हीरा बाँध के बैठी हुई है। कहने, 'में जगन्माता!' दूसरों का पैसा खड़ा कर के हीरे लगा के बैठेंगे। उसको शर्म नहीं आती? कोई उसके पति का पैसा था या बाप का पैसा था। आप संन्यास ले के बैठी हुई हैं। क्या जरूरत है आपको हीरे लगा के बैठने की? आप लोगों को इस बात का पता होना चाहिये कि कलयुग में सब से बड़ा विरोध इसी शक्ति के कारण हुआ है। ये जो गंदी शक्ति, मैली शक्तियाँ संसार में फैली हुई हैं। जिसके कारण ये गुरुडम आदि फालतू की चीज़ें और ये आश्रम आदि फालतू की चीज़ें इकट्ठी हो गयी। उसी के कारण, उसी वजह से आप सहजयोग हमारा पनप ने का है, घर-घर में, हर दरवाज़े पर, हर मंदिरों में। आपके घर के मंदिर, आपके घर में भी ये भूत बैठे ह्ये हैं, जहाँ जाईये वहाँ । और ये सिर्फ 11 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-11.txt साधारण भूत नहीं हैं। ये राक्षसों के अवतार हैं। ये भी जान लीजिये। सोलह राक्षस, महिषासुर, मुक्तासुर, भस्मासुर, नरकासुर, सब पैदा हुये हैं। आपने और भी जिन जिन के नाम सुने ह्ये हैं। सारे के सारे आज पैदा हये हैं और राक्षसिनियाँ पैदा हयी हैं। अपने को कहती हैं कुछ। एक होलिका पैदा हो गयी। आप को क्या पता ? वो कहती कि मैं फलानी माँ हूँ। चले आप चरण पे। उनकी कब की पहचान है? राक्षसों की एक पहचान है कि जब आप उनसे बात करियेगा, देखियेगा कि उनकी आँख छोटी हो कर एकदम बिल्ली जैसी लुप्त हो जाती है। आपको मैं सीक्रेट बताती हूँ। जब आप किसी आदमी से बात करते वक्त, उसकी आँख की जो पुतली होती है, काली वाली वो छोटी हो कर के लुप्त हो जाये तो सोचना कि ये राक्षस है। तो ऐसे राक्षस को अगर गुरु बनाना है, तो आप भी राक्षस हो जायें। उससे से कम आप नहीं। और इसलिये सहजयोग के लिये बहुत जरूरी है, कि इस बात को आप जानें, कि इस तरह के बहुत राक्षस संसार में आ कर के और आप को बेवकूफ़ बना कर के, और पैसा कमा रहे हैं। वो कमायें, मैं कहती हूँ, स्मगलिंग करें, जो करना है करें, लेकिन आपकी कुण्डलिनी को न छुयें। आपकी कुण्डलिनी को ऐसा ठिकाना कर देते से लोगों को मैंने देखा है, कि उनकी कुण्डलिनी का ये हाल हो जाता है, कि वो बिल्कुल ऊपर आ कर के हैं। बहुत धड़ाम् से गिर जाती है। फिर उसको ऊपर बाँधती हूँ, फिर ऊपर चली जाती है। पता हुआ कि फलाने गुरु महाराज के पास गये और उन्होंने अडतीस रोल्स रॉईस खरीद कर के घुमा रहे हैं आराम से। आपकी कुण्डलिनी ठिकाने कर दी । आपका उत्थान नहीं हो सकता। आप पार नहीं हो सकते। आपका कल्याण नहीं हो सकता। अनेक ऐसे उदाहरण हमारे यहाँ हुये हैं। अभी अभी, रिसेन्टली, एक साहब हमारे आगे बहुत आग्यू करने लगे, अपने गुरु के लिये। मैंने कहा, 'बेटे, बैठ जाओ। तुम अपने गुरु के लिये क्या ऑग्ग्यू कर रहे हो ?' नहीं सुना। उसके बाद खड़े खड़े कहने लगे, 'मैं ऐसे हिलने लगा।' मैंने कहा, 'ये क्या? अपने गुरु को बुलाओ मेरे सामने। क्यों हिल रहे हो?' उस वक्त एक पागल आदमी सामने बैठा था। वो भी हिल रहा था। मैंने कहा, 'देखो, ये भी अभी पागल खाने से चला आ रहा है और तुम क्यों हिल रहे हो? दोनों में कोई अन्तर नहीं। दोनों हिल रहे हैं। इसी से साक्ष है।' तो भी जरासा बोलने को हये तो भी एकदम उनका तुम्हारे बदन एकदम से जम गया। जब उनका बदन जम गया तो कहने लगे, 'माँ, मैं तो जम गया।' मैंने कहा, 'अच्छा, गुरु का नाम बताओ।' उसके गुरु का नाम लिख कर के उसको १०८ जूते मारने के साथ वो छूट गया। ये साक्षात् है। सहजयोग एकदम प्रॅक्टिकल चीज़ है। मैं जो भी बोल रही हूँ वो बात आप सिद्ध कर सकते हैं। जैसे लॅबोरेटरी में आप सिद्ध करते हैं। कोई हवाई बात में नहीं कर रही हूँ। आप सब के सामने इसका साक्षात् दे सकते हैं कि कौन सा गुरु सच है और कौन सा गुरु झूठ है। उसके फोटो पर से आप बता सकते हैं । गगनगड महाराज के पास जब जाने का था तो सब ने ऑब्जेक्शन किया कि, 'माताजी, आप किसी गुरु के पास नहीं जाते हैं।' मैंने कहा, 'ये तो गुरु ही हैं, असली में गुरु हैं।' कहने लगे ' उनसे वाइब्रेशन्स नहीं हैं।' मैंने कहा, 'उनके साथ का जो फोटो है उसको हटाओ।' फोटो हटाते ही उनके वाइब्रेशन्स देख के, 'हाँ, भाई, वाइब्रेशन्स आये।' फिर 12 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-12.txt ऐसे के जायएेंगे?' मैंने गड़ तक जाने तक सब लोग मुझे परेशान कर रहे थे। 'माताजी, कहाँ साथ में चढ़ राक्षसे कहा, 'चलो, तुम| देखो तो सही।' वहाँ से इतने जोर से वाइब्रेशन्स आने लगे। तब सब की आँख खुल गयी। 'ये बात है!' वो भी हमें पहचानते हैं, हम भी उन्हें पहचानते हैं। क्योंकि हम एक सटल से आये हैं। को अगर एक ही चीज़ के ऊपर। आप भी देख लेंगे, जब आप पार हो जायेंगे, आपके अन्दर से वाइब्रेशन्स आने गुरु लग जायेंगे। आप भी पहचान लेंगे कि कौन आदमी पार है और कौन नहीं है। किस की कुण्डलिनी कहाँ फँसी हुई है? किस के चक्र कहाँ फँसे हये हैं? किस को क्या प्रॉब्लेम हैं? सब आपस में आप चेकिंग बनाना करना शुरू करेंगे। सहजयोगी से ही लाइट आने वाली है। सहजयोग से ही आप जानने वाले हैं, कि कौन है, तो आदमी साधु है, कौन असाधु है? आपका हाल क्या है? आपका प्रोग्रेस क्या है? आप कहाँ जा रहे आप हैं? आपको कैसे उठना है? सिर्फ सहजयोग से ही आप इसे जान सकते हैं। यही एक ज्ञान का मार्ग होता भी है और कोई नहीं । जब तक आपके अन्दर वाइब्रेशन्स नहीं आते सारी बातचीत, बातचीत ही रह जाती रक्षस है। हो जायें। ये जो मैली विद्या है, इसके बारे में मैंने लेक्चर दिया था एक बार | करीबन डेढ़ घण्टे का लेक्चर था। आप लोगों को और अगर इंटरेस्ट हो तो इसे सुन लीजिये। मैं तो उसको सुन सुन के और कह कह के, तंग आ गयी हूँ। सिर्फ कहने का ये है कि आप के अन्दर भी एक परम शक्ति है। जो इन दोनों शक्तियों के बीचोंबीच खड़ी है । वो दोनों शक्तियों को ही पूरी तरह से फिर से ढक सकती है। ये गंदी शक्तियाँ हैं दोनों। जिसके कारण हमारे अन्दर तकलीफ़ हो गयी है। इस से की इगो बन गया है, सुपर इगो बन गया है। ये उसी तरह से है जैसे कि फॅक्टरी में, शक्ति को इस्तेमाल करने से आप के अन्दर जैसे एक धुँआ होता है। उस धुँओे को भी कुण्डलिनी शक्ति शांत कर देती है। इतना ही नहीं वो इन दोनों ही चैनल्स को, जिसे इड़ा और पिंगला नाड़ी कहते हैं। पहले आपको मैंने पिंगला नाड़ी कल बतायी थी। आज इड़ा नाड़ी बतायी, जो हृदय चक्र पे से जाती है। अधिकतर कैन्सर की बीमारी , इस दूसरी मतलब जिसको कि इड़ा नाड़ी कहना चाहिये उससे होती है। असर उसका दोनों तरफ़ आता है, क्योंकि दोनों नाड़ियाँ ऐसी जुड़ी हुयी है। इसलिये इस नाड़ी का भी असर इस नाड़ी पे भी आ सकता है। पर ज्यादा कैन्सर की बीमारी लेफ्ट हैण्ड साइड़ पे प्रवाह से होती है। इसलिये कलयुग में क्योंकि इतने राक्षस एकसाथ आ गये हैं। कैन्सर की बीमारी से आ गये हैं। पागलपन भी आ गया। लोग अस्वस्थ भी हो गये। इसे नींद भी नहीं आती। परेशान भी हो गये हैं। बहुत संतप्त हो गये हैं। कलह हो रहा है। झगड़े हो रहे हैं। आपस में परेशानी हो रही है। 13 প এ 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-13.txt संवेदनी मुंबई, ३० जनवरी १९८० ३० जाते समय आप सब लोगों को यहाँ पर छोड़ के इतनी प्यारी तरह से इन्होंने अपने हृदय से निकले हये शब्द कहे जिसे चित्त बहुत ....(अस्पष्ट) जाता है। आजकल के जमाने में जब प्यार ही नहीं रह गया तो प्रेम का खिंचाव और उससे होने वाली एक आतरिक भावना भी संसार से मिट गयी है। मनुष्य हर एक चीज़ का हल बुद्धि के बूते पर करना चाहता है। बुद्धि को इस्तेमाल करने से मनुष्य एकदम शुष्क हो गया। जैसे उसके अन्दर का सारा रस ही खत्म हो गया और जब भी कभी कोई भी आंतरिक बात छिड़ जाती है तो उसके हृदय में कोई कंपन नहीं होता। क्योंकि हृदय भी काष्ठवत हो गया। न जाने आज कल की हवा में ऐसा कौनसा दोष है, कि मनुष्य सिर्फ बुद्धि के घोड़े पे ही चलना चाहता है और जो प्रेम का आनन्द है उससे अपरिचित रहना चाहता है। लेकिन मैं तो बहुत पुरानी हूँ, बहुत ही पुरानी हूँ और मैं मॉडर्न हो नहीं पाती। इसलिये ऐसे के मेरा हृदय बहुत ही आंदोलित हो जाता है। लेकिन आज कल की बुद्धि भी सुन्दर शब्द सुन अब हार गयी। अपना सर टकरा टकरा के हार गयी है। और जान रही है कि उसने कोई सुख नहीं पाया। कुछ आनन्द नहीं पाया। उसने जो कुछ भी खोजा, जिसे अपनाया, वो सिर्फ उसका अहंकार था। उससे ज्यादा कोई उसके अन्दर अनुभूति नहीं आयी। धीरे धीरे मनुष्य इससे परिचित हो रहा है कि वो किस कदर काष्ठवत हो गया है। किस तरह उसकी भावना लुप्त हो रही है। 14 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-14.txt आज कल के कवि अगर पढ़िये या आजकल के अगर वाङ्मय पढ़िये, साहित्य तो उसमें आपको नज़र आयेगा, कि बहुत ही अश्लील तरह की, उथली बातें जिस का की सम्बन्ध हृदय से तो क्या, किसी उथली एक तरंग से भी नहीं लगता। उसी प्रकार कविताओं में भी, इतनी शुष्कता और इतनी घृणित बातें लिखी जाती हैं कि स्वभावत: कोई भी मनुष्य अगर इतना कृत्रिम और बुद्धिवादी न हो जायें तो ही घट गयी है और इस संवेदनशीलता के घटने के साथ ये पहचानना की कौन इन्सान अच्छा है, बुरा है, ये भी घट उसे तो जी मचलने लग जाये । माने हमारी संवेदनशीलता बड़ी गया। ये भी संवेदनशीलता हमारे अन्दर घट गयी है कि अच्छाई क्या है और बुराई क्या है? अच्छाई क्यों करनी चाहिये और बुराई क्यों छोड़नी चाहिये। इसकी भी अकल हमारे अन्दर से खत्म हो चुकी है। जब श्रीराम संसार में आये थे, हज़ारों वर्ष पहले, तब मनुष्य ज्यादा संवेदनशील था। एक तो माँ पृथ्वी से उसका सम्बन्ध बहुत घटित रहा। इसलिये उसकी संवेदना बड़ी तीक्ष्ण थी। वो जानते थे कि श्रीराम विष्णु के अवतरण है और सीताजी ये आदिशक्ति का अवतरण है। उनको किसी को बताने की जरूरत नहीं । उस वक्त अधिक तर लोग इस बात से परिचित थे कि श्रीराम भगवान के स्वरूप हैं। नहीं तो एक भिल्ली उनके लिये बेर ले के क्यों आयी। अब देखिये कहाँ श्रीराम इतने बड़े राजा और एक भिल्ली उनके लिये बेर ले के आयी। देखिये प्रेम का खेल कितना सुन्दर है। और जब वो अपने बेर तोड़ती थी, बूढ़ीसी भिल्ली थी। उसके दाँत भी कुछ टूटे ह्ये थे। एक एक बेर को वो दाँत मार के देखती थी कि कहीं खट्टा तो नहीं है। नहीं तो मेरे राम को खट्टा न लग जायें । इतने विचार से उस भिल्ली ने, उसके हाथ गंदे थे कि साफ़ थे पता नहीं। एक भिल्ली आप समझ सकते हैं कि जो बिल्कुल गिरिजनों में से, जिनको कहना चाहिये, हमारे यहाँ आजकल जिनको हम लोग दलित ही कहते हैं। ऐसे समाज में की भिल्ली इतने प्रेम से प्रभु राम के लिये छोटे छोटे बेर इकठ्ठे कर रही थी। और जब श्रीराम आये, तो बगैर हिचक के उन्होंने उनसे कहा कि, 'श्रीराम, मेरे पास आपके लिये बड़े सुन्दर बेर हैं। एक एक बेर मैंने अपनी दाँत से चख के देखे हैं। इससे आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी।' श्रीराम का हृदय पुलकित हो गया। क्योंकि वो प्रेम को जानते थे । प्रेम की संवेदना उनके अन्दर जबरदस्त थी। क्योंकि वो परमात्मा थे। परमात्मा स्वयं प्रेम है। इसलिये वो प्रेम को जानते हैं । प्रेम के भूखे हैं और प्रेम ही को पहचानते हैं । अगर आपको परमात्मा को बाँधना हैं तो आप प्रेम करिये। अगर आप प्रेम नहीं कर सकते तेा आप परमात्मा को नहीं बाँध सकते। सिर्फ प्रेम से ही आप परमात्मा को बाँध सकते हैं। किसी भी ऐसी शक्ति को आप तभी अपने ऊपर खींच सकते हैं, उसका उपयोग कर सकते हैं, उसके शरण जा सकते हैं या उसको अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं । जब आपके अन्दर ऐसा हृदय हो, कि जो प्रेम से खुश हो जाये। श्रीराम ने वो बेर फटाक् से एकदम, दौड़ के 'अरे, तुम इतने बेर इकठ्ठे कर लायी। चलो, चलो सब मुझे दे दो । ' और ले कर खाना शुरू कर दिया। और खूब खुशी से खा कर कहते हैं, 'वाह, मैंने तो ऐसे बेर कभी नहीं खाये। ऐसे बेर तो मैंने जीवन में कभी नहीं खाये । ऐसे सुन्दर बेर मैंने कभी खाये नहीं। ये तुम कहाँ से इकट्ठे कर के लायी। अच्छा, बताओ।' तो लक्ष्मण जी को बड़ा गुस्सा आ रहा था, कि ये क्या बद्तमीज़ी हैं। सब बेर एक एक झूठे कर के लायीं है और इन्होंने श्रीराम को दे दिया। तो उन्होंने लक्ष्मण जी को कहा कि, 'देखो, मैं तुम को इस में से एक भी बेर नहीं दूँगा। ये सारे मेरे लिये लायी है। बाकी तुम को चाहिये तो तुम अपने तोड़ के खा लेना। पर इस में से मैं एक भी नहीं दूंगा।' तो सीता जी तो बहुत होशियार थीं । उन्होंने कहा, 'श्रीराम, मुझे 15 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-15.txt भी तो दो-चार बेर दे दीजिये। क्या आप ही सब खाईयेगा । मैं तो आपकी अर्धांगी हूँ। मुझे भी तो एक-दो बेर दीजिये। तो उन्होंने कहा कि, 'अच्छा, आप चाहिये तो थोड़े से मुझ से बेर ले लीजिये।' अब लक्ष्मण जी को लगा कि देखो, सब तो भाभी को बेर दे दिये और मुझे नहीं दे रहे हैं ये। तब उनको बुरा लग गया। तो भाभी से कहते हैं कि, 'क्या मुझे कुछ बेर नहीं दीजियेगा? सब आप ही लोग खा लीजियेगा।' देखिये कितनी छोटी सी चीज़ है एक बेर। एक छोटी सी चीज़ है बेर। बड़ी भारी चीज़ नहीं। लेकिन उस बेर पे कितनी ही रचना, कविता कर सकते हैं आप। और उसकी आज तक याद है। हर एक हमारे जितना भी हिन्दुस्थान में जितना भी लिटरेचर कोई भी भाषा में हुआ हो। हर जगह शबरी के बेर कहे जाते हैं। कितनी सुन्दरतम कल्पना हैं और कितनी सूक्ष्म है वो। उसको समझने के लिये हृदय चाहिये। बुद्धि से आप नहीं समझ सकते इसे और जब भी इस बात का ख्याल बनता है और याद पड़ती है तो इतना हृदय उस से पुलकित हो जाता है, सोच के कि शबरी ने कितनी प्यार से ये बेर अपने भोले पन में इकट्ठे किये थे । ऐसे कहाँ शबरी जैसे लोग दुनिया में मिलेंगे! ये उसका हृदय था कि जिसे एक एक बेर में वो देख रहे थे और देख देख के खुश हो रहे थे कि अहाहा, कितना प्रेम मनुष्य में है। जैसे समझ लीजिये कि एक प्यार का सागर परमात्मा है और जब वो आ कर किनारे में टकराता है, तो किनारे के टकराव से फिर उस पे लहरें उठनी शुरू हो जाती हैं और वो जब लहरें वापस समुद्र की ओर जाती हैं तो आनन्द से वो बिल्कुल भर जाता है। प्रेम की गाथा जितनी कहो कम है। प्रेम की गाथा ऐसी है कि उसको कहते भी नहीं बनता। वो बहते ही रहता है, बहते ही रहता है, बहते ही रहता है। जितना बहता है उतना ही आनन्द उसमें से झरता है। आप प्रेम का मूल्य क्या दे सकते हैं मेरी समझ में नहीं आता। यही की जब आपसे वो टकराता है, तो उसके तरंग फिर उठ कर के और बड़ा सुन्दर सा चित्र सा बन जाता है। उस सागर पे भी एक चित्र सा बन जाता है। एक आंदोलन सा, एक बड़ा सुन्दर सा, एक झिलमिल, झिलमिल जिसे कहना चाहिये प्यार का दर्शन हो जाता है । इसके लिये मनुष्य में बड़ी सूक्ष्मता चाहिये, इस चीज़ को समझने के लिये। जो लोग बहुत ही ग्रोस है, बहुत ही जड़ है, जिनके अन्दर प्रेम का अभी तक आविर्भाव ही नहीं हुआ, जो एकदम पत्थर दिल हैं, इन लोगों के सामने प्रेम की गाथा कहना भैंस के आगे बीन बजाने के बराबर है। इस तरह की प्रेम की शक्ति हमारे अन्दर कहाँ से उदित होती है? इस जगह प्रेम की शक्ति है ये हमारे हृदय के अन्दर बसे हये आत्मा के तरह से ही प्रेम की शक्ति आती है। और इस के प्रतीक स्वरूप हमारे अन्दर जो यहाँ पर आपको दिखायेंगे, जो बीचोबीच, जो हमारे यहाँ बीच में है, हृदय में, बीच में यहाँ पर जो स्टर्नम बोन है, जिसे एक हड्डी के रूप में हम देखते हैं, वहाँ पर आप जानते हैं, कि अँटिबॉडिज नाम की चीज़़ तैय्यार होती है। ये माँ अपने शक्ति में क्योंकि हृदय चक्र जो है वो बराबर उसके पीछे में बराबर बीचोबीच है और इस हृदय चक्र पे जगदंबा का स्थान है मैंने कल आप से बताया था। और इस स्टर्नम बोन के अन्दर में ये जो सामने में जो हड्डी है, इस हड्डी के अन्दर अँटिबॉडिज नाम के सिपाही माँ तैय्यार कर देती है। जो बारह साल तक तैय्यार होते रहते हैं। और फिर वो अपने सारे शरीर में फैल कर सुसज्ज रहते हैं। कभी भी किसी भी तरह का अॅटॅक जब शरीर पर आता है, कोई भी तरह का, चाहे वो उसके माइंड से आये, चाहे उसके मन से आये, चाहे उसके शरीर से आये, चाहे उसके अहंकार से आये, सारे अॅटॅक से ये अँटिबॉडिज 16 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-16.txt जो होती हैं ये माँ के बनाये हये सिपाही उससे लड़ते रहते हैं । हम लोग सोचते हैं कि हमारे अन्दर जो भी कुछ इस तरह के संरक्षित रखने वाले जो कुछ भी हमारे अन्दर फोर्सेस हैं या शक्तियाँ हैं वो जैसे कोई हमारी अपनी ही हैं। ये पहले ही से परमात्मा ने आपके अन्दर ये सब धीरे धीरे एक एक चक्र बनाये। ये सारे चक्र आप ने जो उत्क्रांति में, इवोल्यूशन में जो जो कदम रखे हैं, उस कदम का माइल स्टोन है। अपने मंजिल पे पहुँचने के लिये जिस तह से आप गुजरे हैं उन तह का ये दिग्दर्शक है। मैंने आप से बताया कि कार्बन अॅटम जब आप थे तो आपका जो सब से छोटा चक्र है श्री गणेश का वो था। अब कार्बन कितना महत्त्वपूर्ण है उसके बारे में मैं आप से बताती रहूँ तो बहुत टाइम हो जायेगा। लेकिन अगर पिरीऑडिक टेबल आप देखें तो आपको पता चलेगा कि कार्बन अॅटम के आये बगैर किसी भी प्राणी में जीव नहीं आ सकता है। जीवन कार्बन के आने के बाद ही शुरू हुआ है। इसलिये ये कार्बन जो है ये श्रीगणेश है। जो अपने अन्दर मूलाधार चक्र पे बैठे हये हैं। उस श्रीगणेश का द्योतक है। जिस प्रकार कार्बन में भी चार वैलन्सीज होती है उसी प्रकार श्रीगणेश के भी चार हाथ है। और ये चारों हाथ हमारे अन्दर शक्ति के द्योतक है। जब हमारे अन्दर मूलाधार चक्र जागृत हो जाता है, तो हमारे अन्दर ये चारों शक्तियाँ जागृत हो जाती है। इसी प्रकार हम हृदय चक्र की बात कर रहे थे कि हृदय चक्र जब इन्सान का खराब हो जाता है, या हृदय पे जब आघात होने लग जाते हैं, तो आदमी में असंरक्षित भावनायें आ जाती हैं। इनसिक्यूरिटिज आ जाती हैं। जिससे भय, आशंका आदि चीजें, डरना किसी चीज़ से, एकदम पता नहीं रात में बैठे बैठे, औरतों में ज्यादा तर होता है कि उनको हमेशा आशंका लगी रहती है कि कोई हमें परेशान तो नहीं कर देगा, कोई हमें मार तो नहीं डालेगा। किसी को कुछ दिखायी देता है, कहता है कि 'मुझे यहाँ पर एक आदमी दिखायी दिया। कहीं कुछ हो गया। इसी से हिस्टेरिया आदि जो बीमारियाँ हैं, डरने की जो बीमारियाँ हैं वो सब होती हैं। इसको सुरक्षित रखने के लिये हमारा जो हृदय का, सेंटर में जो हृदय चक्र है उसे जागृत रखना पड़ता है। कल मैंने बताया था, इसको जागृत रखने के लिये आपको जगदंबा का ध्यान करना चाहिये। वो किस प्रकार करना चाहिये आदि सब कुछ आप सहजयोग में सीख सकते हैं । असल में सहजयोग में पार होने के बाद भी आप को सीखना पड़ता है, कि ये चक्र क्या हैं, उसको जागृत कैसे रखना चाहिये, कुण्डलिनी को कैसे चढ़ाना चाहिये, किस तरह से ठीक रखना चाहिये। एक छोटी सी चीज़, अगर आपको मैं मोटर भी प्रेझेंट कर दूँ, और अगर ये नहीं आप सीख लेंगे कि मोटर कैसी चलानी है तो मोटर खड़ी रह जायेगी । उसी प्रकार सहजयोग में इसका बहुत सीखना होता है। मेरे लेक्चर में मैं आपको कहाँ तक बता सकती हूँ? लेकिन अधिकतर सहजयोग में आये हये लोग इस हॉल में, इसी प्रकार लोग आते हैं। लेकिन उनमें से कितने लोग सहजयोगी हो गये। इसी से मुझे आश्चर्य होता है । अभी उदाहरण के लिये आज ही एक माँ, एक बेटी, और उसकी बेटी, इस प्रकार तीन जनरेशन मेरे पास आये। ये लोग १९७० में मेरे हाथों से पार हुये थे। उसके बाद उनकी तबियत बड़ी खराब गयी, चार साल बाद। तो एक हुआ, वो हुआ, क्या करें?' बेचारे सहजयोगी के पास गये की, 'साहब, हमारी तबियत बड़ी खराब हो गयी। ये 17 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-17.txt सहजयोगी मेहनत करने के पीछे में उनके यहाँ गये। उनको देखा । उन से कहा कि, 'देखिये आप बिल्कुल सहजयोग नहीं कर रहे हैं। आपकी कुण्डलिनी यहाँ फँसी हुयी हैं। अगर आप अपनी कुण्डलिनी ठीक से जागृत कर ले, ठीक कर ले तो आपको कोई तकलीफ़ नहीं होगी। बिल्कुल आसान चीज़ हैं। मैं आपको कर के दिखाता हूँ।' उन्होंने उनकी कुण्डलिनी फिर से जागृत कर दी। उनसे कहा कि, 'अब देखिये , इसमें जमिये इस में थोड़ा सा काम करना पड़ेगा आपको। ज्यादा नहीं। जरा ध्यान दें। अपनी ज्योत जलानी चाहिये।' लेकिन वो फिर से वही, 'ये रे माझ्या मागल्या' जैसे मराठी में कहते हैं। उन्होंने बिल्कुल इस ओर ध्यान नहीं दिया। उसके बाद उनको एक गुरुजी मिल गये। बीचोबीच। तो उन्होंने उनको बताया कि, 'हाँ, मैं तुमको एक मंत्र देता हूँ। जंतर-मंतर देता हूँ।' उन्होंने कहा, 'अच्छा, ठीक है।' एक काला साधारण धागा, बिल्कुल साधारण धागा। पता नहीं क्या उन्होंने कर के और इन्होंने सब के गले में दे दिया। सब का सौ सौ रूपया ले लिया। जंतर मंतर कर के। वो धागे का दाम अगर जोड़ने चाहिये तो दो पैसा भी नहीं होगा। अब सब लोग गले में पहन के बिल्कुल इनके ऊपर मर गये। अब वो महाराज साहब जो हैं उनके बड़े ऐसे शिष्य। और उनको कहने लगे कि, 'ये जो उदी है, ये हम साईंनाथ की उरदी लाये हैं । ये अपने घर में रखिये ।' अब वो उदी ले कर के गयी। अपने घर में उदी लगाने लग गये। आज अब साईंनाथ तो हैं नहीं। पता नहीं ये किस की उदी है ? कौन से श्मशान घाट से उठा के लाये हो। और इसमें तुम्हारा कौन सा हेतु है। तो कहने लगे कि, 'ये उदी ऐसे ऐसे उपर से नीचे नीचे गिरती थी। तो हम बड़े इस से इंम्प्रस्ड हो गये।' मैंने कहा, 'ये तो सारी भूतविद्या है । बहरहाल जो भी हो उसी में बहते गये। आज वो पहुँची देवी जी, उनकी माताजी जो थी वो तो चल नहीं पा रही थी। उनका सारा बदन यूँ, यूँ हिल रहा था मेरे सामने। उनकी जो लड़की थी, उसकी एक टाँग टूट गयी। क्योंकि यहाँ पर उसके पता नहीं क्या हो गया, अॅक्सिडेंट हो गया और उसका एकदम ऑक्सिफिकेशन हो गया। तो उसके बाद डॉक्टर ने इधर से काट दिया। उनकी टाँग आधी छोटी हो गयी। उनकी जो लड़की थी उसे किड़नी की ट्रबल हो गयी और अब उसको डायलिसिस पे रखा हुआ है। उसको भी जा कर बेचारे एक सहजयोगी ने बचाया। उससे वो बच गयी और उसकी हालत अब पहले से ठीक है। हॉस्पिटल से निकल आयी। उस वक्त सहजयोगी ने उनको समझाया कि देखिये, इन साधुओं के चक्कर में मत घूमिये। लेकिन वो उनसे रुपया भी लेते थे। पैसा भी लेते थे और ये भी करते थे। तो उन्होंने कहा कि 'नहीं, नहीं वो हमसे बड़े अच्छे हैं। बड़ी मीठी बातें करते हैं। हमसे कभी नहीं कहते कि आप ये नहीं करो। हम शराब भी पीये, कहते हैं कि पिओ। कोई हर्जा नहीं। कुछ भी काम करो हर्जा नहीं है। बस पर्स मुझे दे दो। पीछे मैं हूँ। आपको जो भी काम करना है करते रहो । माताजी तो कहती हैं न कि ऐसा नहीं करो, वैसा नहीं करो। लेकिन ये तो कभी किसी चीज़ को मना नहीं करते। ये तो कुछ नहीं। अगर आप उनसे कोई भी बात करो वो आपसे कहते हैं ठीक है।' ऐसे ऐसे गुरु लोग हैं। आप स्मगलिंग करते हैं तो कहते हैं कि 'मैं तुम्हें स्मगलिंग का तरीका बताता हूँ। लेकिन उसमें से तुम मुझे इतना रुपया दे दो। अब इस तरह के महामूर्ख लोग, जो कि इनको परमात्मा का काम समझते हैं। ऐसे लोगों का किस से नुकसान होता है वो देखिये। अब वो जो लड़की थी, उसका भी डायलिसीस हो गया। उसकी भी हालत तरह खराब। मुझे तो तीनों को देख कर आँसू भर आये। मैंने कहा, 'हे राम, इनका ये क्या हो गया ?' मैंने कहा, 'अच्छा, 18 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-18.txt अब जाईये। माफ करिये।' मैं तो समझ गयी सब चीज़। उनके उपर दिखायी दे रही थी। मैं क्या कहूँ उनसे ? मुझे तो किसी ने कभी कोई बात बतायी नहीं थी, न शिकायत की थी, पर मैं समझ गयी कि ये बात क्या है। मैंने कहा कि, 'भाई, तुम तो १९७० में हमसे पार हुयी थीं। उसके बात वो जो दीप तुम्हारे अन्दर जला था, तुम्हारे अन्दर जो अनुभव आया था। उसका तुमने क्या किया ये? और उस वक्त के जो बीमार थे, जिनको ल्यूकेमिया था, कैन्सर था वो आज कहाँ से कहाँ पहुँच गये और तुम बेवकूफ़ जो कि इतनी अच्छी थी आज कहाँ से कहाँ पहुँच गयीं। ये सब क्यों किया? तो भी वो काला धागा ले कर के आये थे गले में गधे जैसे। वो काला धागा नहीं छूट सकता था उनका। वो गले में पहने | हुये थे। इतनी पकड़ होती है इन लोगों की। मैंने कहा, 'पहले आप इस काले धागे को फेंकियें।' बड़ी मुश्किल से माना उन्होंने, कि इस काले धागे को हम गले से उतारेंगे, बताईये। फिर सब बातें सामने आयीं, कि वो आदमी कितना रुपया लेता है, उनके लड़के को कितना लूटता है। ये हुआ, वो हुआ। उससे पहले वो बताने के लिये भी तैय्यार नहीं थी कि उस काले धागे के बूते पर। याने मनुष्य इतना कमजोर है, कि एक धागा तक उसे बाँध सकता है। उसकी यही बुद्धि है क्या? मैं कहती हूँ कि इतनी आप लोग इतनी बुद्धि की कमाल समझते हैं। आपके पास इतनी भी बुद्धि नहीं कि ये समझ ले कि इस आदमी को हम देख रहे हैं। इसका चरित्र अच्छा नहीं है। ये हमसे रुपया लूट रहा है। हमें परेशान कर रहा है। हमें इससे कोई भी लाभ नहीं। तो भी उसी के चरणों में आप क्यों जाते हैं? और उनका भी हृदय चक्र इतना धक धक, धक धक, ऐसे कर रहा है। बहरहाल तुम तो जानते हो कि माँ जो है वो क्षमाशील है। मतलब क्षमा हमारा स्वभाव है। हम उसको कुछ किसी तरह से जीत नहीं पाते। माने ऐसा है कि जब ऐसी हालत में किसे देखा तो फिर थोड़ा सा तो जरूर कहा लेकिन फिर उसके बाद फिर दिल लगा दिया। क्योंकि तकलीफ़ भी तो देखी नहीं जाती ना! बेवकूफ़ी है तो क्या! बच्चे तो अपने ही हैं। उनकी तकलीफ़ भी नहीं देखी जाती और मैंने फिर से अपने दिल को लगा लिया। लेकिन | क्यों मुझे परेशान करते हो? क्यों नहीं अपना जरा खयाल करते ? क्यों नहीं इसमें जचते हो? ये सब तुम्हारे लिये मुफ़्त है। इसको पाओ। इसमें रजना चाहिये। इसको सम्भालो। एक माँ हर समय अगर आपकी रखवाली भी करती रहे, और आप हर समय जाये और आ बैल मुझे मार, नहीं तो किसी कुँओं में कूद, नहीं तो कोई आग में कूद, इसकी क्या जरूरत है? ये शैतानों के काम हैं। समझना चाहिये कि जो आदमी भगवान के नाम पे पैसा लेता है वो शैतान है शैतान! उसके पास बिल्कुल भी नहीं जाना चाहिये। आपको मैं समझा समझा के हार गयी। इस बम्बई शहर में कितने वर्षों से मैं यही बात कहती आयी हँ। पर अभी भी मैं देखती हूँ कि आधा बम्बई शहर किसी न किसी आदमी के पीछे में लगा हुआ है। हर सातवे घर में एक गुरु का फोटो मिल जायेगा | इतने हो गये हैं कि मच्छरों जैसे और सब को ये मच्छर काटते रहते हैं और लोगों को अच्छा लगता है कि मच्छरों का काटना। उसमें एक ही बस बात है कि वो आप से कहते हैं कि अच्छा मुझे पैसा दीजिये। कितनी बड़ी हम आपके गुरु हो जायेंगे। साफ़ सूक्ष्म अहंकार पे चोट है। इसे आप देख लीजिये, कि आप हमें पैसा दीजिये और साफ़ नहीं कहते वो। गोल घुमा कर कहते हैं। लेकिन आपको अच्छा लगता है, कि ये हमसे रुपया ले रहे हैं। हम गुरु को खरीद रहे हैं। गुरु रख लेते हैं लोग। 19 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-19.txt अभी हम एक गाँव गये थे। वहाँ पर एक देशमुख साहब खूब शराब पीते हैं। उनकी बीबी मेरे पास आयीं। मुझ से कहने लगी, 'माँ, इनकी शराब छुड़ा दो।' मैंने देखा कि इनका चक्कर ठीक नहीं । कहने लगे कि, 'नहीं हम तो बहुत धार्मिक हैं। हमने गुरु रखे हये हैं।' मैंने कहा, 'अच्छा!' जैसे पहले लोग, भाई लोग रख लेते थे या कोई ब्राह्मण लोग रख लेते थे, आजकल गुरु लोग रख लेते हैं। और वो गुरु लोगों को पैसा सप्लाय होते रहता है। और गुरु साहब कहते हैं कि, 'ठीक है भाई तुम्हारी औरतों को मैं सम्भालता हूँ।' ये औरतें जा कर के, ये गुरु यंग आदमी है उनको नेहलाती हैं, धुलाती हैं। ये करती हैं। वो करती हैं। और वो अगर कुछ कहें की, 'भाई तुम लोग शराब क्यों पीते हो?' अपने आदमी से ऐसे कहें। तो गुरु साह इनका भी हब कहते हैं कि 'देखिये , इनसे कुछ मत कहिये। मैं उनको ठीक कर लूंगा। अंत में मैं कल्याण करूंगा।' औरतों का तो कल्याण कर ही रहे हैं। अब उनका भी कल्याण करो। 'आप अभी कुछ मत कहिये।' इसलिये उनको सहजयोग पसंद नहीं आ सकता। ऐसे लोगों को सहजयोग पसंद नहीं आ सकता है क्योंकि वो चाहते हैं कि परमात्मा के नाम पर अपनी गन्दगियाँ छुपा लें। कितनी गन्दी चीज़ है! इससे परमात्मा का क्या नुकसान होने वाला है? अगर आपके अन्दर गन्दगी रहेगी तो इससे क्या परमात्मा को बीमारी होने वाली है कि आपको बीमारी होने वाली है? थोड़ा विचार करना चाहिये। परमात्मा तो निर्मल ही है। उसके अन्दर कोई दोष है ही नहीं। उसको कुछ नहीं चाहिये। वो आपको समझा रहा है। अगर वो कह रहा है कि , 'भाई, अपनी अन्दर की गन्दगी को निकाल दो| उससे आपको तकलीफ़ होगी। तो इस बात पर सब लोग नाराज़ हो जाते हैं। तो समझदारी की बात ये हैं कि जब आप पार जाते हैं, जब आप में आत्मसाक्षात्कार आ जाता है, आप खुद ही देखने लग जाते हैं अन्दर में कि मैंने ये चक्र ये चक्र पकड़ा है, मेरा ये चक्र पकड़ा है। 'माँ मेरे चक्र साफ़ करो!' आप को उसी की तकलीफ़ होने लग पकड़ा है, जाती है और कहते हैं कि चलो इसकी सफ़ाई करवा लें। जिस प्रकार एक जानवर को आप गन्दगी से ले जाईये उसको पता नहीं चलता है। उसी प्रकार मनुष्य को कितने भी अनीति चीज़़ में गुजार दीजिये, उसको पता नहीं चलता है, कि ये | अनीति है, ये पाप है। उसको समझ में नहीं आता है। पाप के प्रति उसकी संवेदना बिल्कुल झीरो हो गयी। लेकिन जब वो पार हो जाता है, वो देखने लगता है कि कितनी गन्दगी है। उसकी बदबू उसे आने लगती है। वो समझने लगता है कि ये मेरे अन्दर छिपी हुई सारी चीजें निकल जाये जितनी जल्दी, अच्छा है। क्योंकि वही अपना डॉक्टर हो जाता है और देखने लगता है। यही आत्मसाक्षात्कार है। अपने सारे चक्र को जानना, अपनी सारी खराबी जानना और दूसरों के अन्दर के जान कर के भी उसको सामूहिक चेतना में महसूस करना यही आत्मसाक्षात्कार है। ये कोई लेक्चरिंग की बात बिल्कुल भी नहीं। कल भी मैंने आपसे कहा ये घटित होना चाहिये। लेकिन इसमें अगर आप रूजे नहीं, इसमें आप बैठे नहीं, इसमें आपने मेहनत नहीं की और जो आप की पिछली आदतें थीं जैसे की बहोत अहंकारीपन करना और बेवकुफ़ियाँ करना तो फिर ये चीज़ चलने नहीं वाली। अपने प्रति प्रतिष्ठित हो गये। अपने को समझ के रखें, कि हम एक दीप हैं संसार के। हमें जलाया गया है। हमारे अन्दर रोशनी आ गयी है। इस रोशनी को बचाना चाहिये। जब तक आप ऐसा नहीं सोचेंगे सहजयोग में उतर नहीं सकेंगे। आज सारे संसार को देखिये आप एक कगार पर खड़ा हुआ है। इसलिये उसको उस उँची दशा में उतरना ही है। ये उसके उत्क्रांति का चरम पद है। ये उसको लेना ही है। जब तक उसने नहीं लिया, उसका इलाज भी आने वाला है। जो 20 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-20.txt इस लास्ट जजमेंट को, ये आखरी निर्णय है। आखिर परमात्मा लास्ट जजमेंट, आखरी निर्णय कैसे करें? कृण्डलिनी को चढ़ा कर ही आपका आखरी निर्णय होने वाला है । जो कुण्डलिनी के सहारे पार हो जाये वो जो एक तरफ़ नहीं हैं वो दूसरी तरफ़ हो जायेगा। इसलिये इसको आ मास करने की जरूरत थी । सामूहिक करने की जरूरत थी। सामूहिक ये कार्य होना चाहिये। ये सामूहिक कार्य होना चाहिये। और अभी भी अगर लोगों ने इस पे अपना निर्णय नहीं कर लिया, ये लास्ट जजमेंट नहीं कर लिया तो मैं आप से साफ़ बताना चाहती हूँ कि जिस प्रकार गेहूँ और ......(अस्पष्ट) अलग किये जाते हैं, उसका छिलका अलग उतार दिया जाता है, उसी प्रकार अगर आपने अपने को साफ़ नहीं कर लिया तो जो आखरी कल्की होगा वो आप। जो भी इस तरह के होंगे उसको अलग हटा लेंगे। उनका सर्वनाश है। क्योंकि इसको यही कहना चाहिये कि लास्ट सॉर्टिंग आऊट। इसमें किसी भी तरह की मैं अतियोक्ती नहीं कर रही हूँ। मैं आपसे बहत बिनती कर के कहती हूँ कि इस बात से आपको घबराना नहीं चाहिये और न ही नाराज़ होना चाहिये। क्योंकि ये बात हो के रहेगी। आप इस बात से सतर्क नहीं रहे, तो कल वो दिन नहीं आना चाहिये कि आप कहेंगे कि माँ आपने बताया नहीं कि लास्ट जजमेंट। इसलिये मैं आपसे साफ़ साफ़ बताना चाहती हूँ, कि यही लास्ट जजमेंट शुरू हो गया है। इसमें आप अपने को जज कर लीजिये । अब हमारे चक्रों में से जो आज्ञा चक्र है उसके बारे में मैं आपसे बताऊंगी। जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है। आज्ञा चक्र जो है वो हमारे मस्तिष्क के अन्दर, ब्रेन के अन्दर में पिनिअल बॉडी और पिट्यूटरी नाम की जो संस्थायें हैं उसके बराबर बीचोबीच है। और वहाँ पर रह कर के अतिसूक्ष्म ये सेंटर है । वो अपने अन्दर की इगो और सुपर इगो, जो कल | आपसे मैंने बताया था, वो दोनों संस्थाओं को चालित रखता है। ये आज्ञा चक्र, जहाँ मैंने सिन्दूर लगाया है। इस चक्र की एक खिड़की बाहर की ओर है और एक इस ओर है। इसलिये उसको द्विदल कहते हैं। इस चक्र के पीछे की तरफ़ जो खिड़की हैं, उससे हमारा सुपर इगो माने हमारा मन संचालित रहता है और जो सामने की खिड़की है उससे हमारा अहंकार संचालित रहता है। अब इसलिये कहा गया है कि किसी के सामने माथा झुकाने की जरूरत नहीं। मैं आप सब से भी कहती हैँ कि आप भी मेरे पैर क्यों छूते हैं? जब तक मैंने आपको कुछ दिया नहीं, क्या जरूरत है आप मेरे पैर छुईये? मतलब इसलिये मैं कहती हैँ कि अगर मैंने कह दिया छू लीजिये तो आप सारी दुनिया के छूना शुरू कर देंगे । किसी के भी आगे माथा झुकाना गलत चीज़ है। ये परमात्मा ने बनायी हुई पेशानी। सिवाय उस आदमी के जो की स्वयं साक्षात् परमात्मा से प्रेरित है, जिसने आपको कुछ विशेष अनुभव दिया है उसी के सामने सर झुकाना चाहिये। लेकिन हम लोगों की ऐसी प्रथा होगी कि हर जगह जा के सर झुकाते हैं। इसलिये ये जो पेशानी है, जहाँ ये आज्ञा चक्र है इसमें दोष आ जाता है। आज्ञा चक्र का दोष जो है पीछे में आता है जब आप पेशानी किसी के सामने झुकाते हैं, तो इसका दोष पीछे में आता है और आगे का दोष जो है वो अति विचार करने से आता है। कोई आदमी अगर हर समय सोचता रहे तो उसमें ये दोष आ जाता है या जो अहंकारी मनुष्य होता है उसका भी दोष इस चक्र पे आ जाता है। अब इस चक्र के जो द्विदल हैं, माने समझ लीजिये दो हाथ हैं, उस में से जो बीचोबीच जो इसका तत्त्व है वो तत्त्व एकादश रुद्र कहलाया जाता है। माने उसपे ग्यारह शक्तियाँ हैं जो हमारे माथे पे यहाँ ग्यारह चक्र हैं। बहुत महत्त्वपूर्ण ग्यारह चक्र 21 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-21.txt हैं। इसी एकादश रुद्र से ही कल्की बनेगा। इसी से सर्वनाश होने वाला है। इसलिये इसको बचाना बहुत जरूरी है। और इसके जो तत्त्वस्वरूप संसार में सब से बड़े अवतरण हये हैं, वो है जीजस क्राइस्ट। ये एक तरफ़ समझ लीजिये इनका हाथ श्रीगणेश का है, एक अंग इनका श्रीगणेश का है, जो कि लेफ्ट साइड हैं और राइट साइड जो है वो कार्तिकेय स्वामी, आप जिनको जानते हैं। कार्तिकेय स्वामी के बारे में आपने सुना होगा और जिनको दक्षिण में बहुत लोग मानते हैं। उनको मुरूगंद कहते हैं। इस प्रकार इनके दो अंग हैं । और इन दो अंगों को मिला कर के ही जीजस क्राइस्ट इस संसार में आये। और उनका जो क्रॉस है वो भी स्वस्तिक का ही रूप है। लेकिन जीजस क्राइस्ट के जीवन का सब से बड़ा उद्देश्य या उसकी महिमा है या उसका जो संदेश हैं वो क्रॉस नहीं है। क्योंकि जीजस क्राइस्ट ये कृष्ण के लड़के हैं। महाविष्णु के बारे में आप जरूर पढें। मैं जो बात कह रही हूँ एक भी बात झूठी नहीं और उनकी जो माँ मेरी थी और राधा जी हैं। रा...धा, रा माने शक्ति, धा माने जिसने धारणा की हुई है। महालक्ष्मी स्वरूपा हैं। उनकी जो माँ थी वो महालक्ष्मी थी। लेकिन जीजस क्राइस्ट के जमाने में उन्होंने ज्यादा बातचीत इसलिये नहीं की कि जब दष्ट रावण, राक्षस आदि लोग ये जानेंगे कि उनकी माँ ही महालक्ष्मी हैं, तो वो माँ के पीछे पड़ जायेंगे और तब वो अपना गुस्सा रोक नहीं पायेंगी। और उनकी पूरी एकादश रुद्र की जो शक्तियाँ हैं, वो क्रोधित हो कर सारे संसार को भस्म कर डालेंगी। इसलिये इस बात को बिल्कुल गुपित रखा गया। लेकिन तो भी इसाई धर्म के जो पहले कैथोलिक लोग हैं वो बहुत दिनों तक अभी भी मानते हैं, की उनकी माँ जो हैं वो दैवी शक्ति थी। लेकिन वही होली घोस्ट है, इसे वो नहीं मान सकते। और उनकी समझ में नहीं आता है कि होली घोस्ट चीज़ क्या है। क्योंकि उनमें भी आत्मसाक्षात्कारी लोग बहुत कम हये हैं और जो भी इसाई धर्म में आत्मसाक्षात्कारी हये हैं, उनको मार डाला, उनको फाँसी चढ़ा दिया या उनको बिल्कुल ही चर्च से निकाल डाला। जैसे हमारे यहाँ हिन्दू धर्म में भी जो कोई बड़ा भारी साधु-संत हुआ है, ज्ञानेश्वर हुओ, तुकाराम हुओे, आज तक कोई हुआ ही नहीं जिसके पीछे में सारी दुनिया न लग गयी हो। इसी प्रकार ईसामसीह के पीछे भी बहुत लोगों ने आप जानते हैं कि उनकी हालत खराब की ये और उनको किस तरह से क्रॉस पे चढ़ाया। चढ़ाना लिखा हुआ था। सूली पर चढ़ना उनका एक नाटक था। और ये नाटक करना पहले से लिखा था । क्योंकि कृष्ण ने अपने गीता में कहा है, कि ये जो प्रणव शक्ति है, जो ओंकार शक्ति है, ये शक्ति 'नैनं छिदन्ति शस्त्राणि, नैनं दहति पावक:', इसको कोई खत्म नहीं कर सकता। इसको कोई मार नहीं सकता। इस बात को सच करने के लिये ही ईसामसीह को आज्ञा चक्र पे सूली होना पड़ा। हर एक इनकार्नेशन ने, हर एक अवतार ने, संसार में आ कर के एक नया कदम लिया। अब आज्ञा चक्र की जो पकड़ है वो बहुत ही छोटी थी। उसमें जगह ही इतनी छोटी थी और उसमें से अतिपवित्र ही चीज़ गुज़र सकती है। बाकी जितने भी अवतार हये हैं, माने गणेश छोड़ कर के, बाकी जितने भी अवतरण हैं, संसार में आये हैं, श्रीविष्णु के अवतरण, वो सारे ही सदेह हैं। उनके अन्दर पृथ्वी का अंग है। 22 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-22.txt विश्व में प्रेम की शक्ति अत्यंत प्रगल्भ शक्ति है। प्रेम की शक्ति ही अत्यंत प्रभावशाली है। प्रेम में चाहे हम कष् उठाते हैं, वो भी अपने शक्ति के कारण कष्ट उठाते हैं, न कि अपनी दर्बलता के कारण । प.पू.श्रीमाताजी, मुंबई, २८/८/१९७३ प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.१०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११ ०३८. फोन : ०२०-६५२२६०३१, ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in, website : www.nitl.co.in 2016_Chaitanya_Lehari_H_I.pdf-page-23.txt अपने हिन्दुस्तान की सभी दुर्दशा खत्म हो कर यहाँ रामराज्य आने वाला है। कहना है इसलिये नहीं कहा है। मझे जो दिखायी दे रहा है वही मैंने कहा है। इसके लिये सभी सहजयोगियों ने परिश्रम करना चाहिये। परिश्रम के बगैर यह कार्य नहीं हो सकता। इतना महान कार्य आजतक किसी भी आध्यात्मिक लेवल पर नहीं हुआ और अगर हुआ भी है तो भी वो समाज तक नहीं पहुँची है। प.पू.श्री माताजी, ८/१२/१९८८ ০ ॐ २ के ु ००५- २] ि २३ कद छा ए रु ४ ह र विवा के रु EG ब८ खवर्णीमिनंदन -8 ও स ২৫ శ్రీరర भर ব त ख ১) ১ » ८ 2९ २ ना २ र] ०