चैतन्य लहरा जुलाई-अगस्त २०१६ हिन्दी तर मा ल पो ै पु. ये अच्छी वात है कि अपने सारे आायुधों के साथ वे हमारी रक्षा के लिए आते हैं। परन्तु उनके पास सुदर्शन चक्र भी है। सुदर्शन, 'सु' अर्थात् शुभ, 'दर्शन' अर्थात देखना। वे हमें शुभ-दर्शन देते हैं। आप उनके साथ चालाकियाँ करें तो वो सब आपकी गर्दन पर आती हैं और तब आपको अपने शुभ-दर्शन होते हैं कि आप कहीं हवा में लटक रहे हैं। प.पू.श्रीमाताजी, लंडन, १५.८.१९८२ ে ्री ७६০५ इस अंक में चैतन्य ...4 (पूजा, छिंदवाडा और गणपतिपुळे) एकाकार स्वरूप श्रौ दत्तमहाराज ...6 (सार्वजनिक कार्यक्रम, ९/१२/१९७३) निर्विचारिता ...18 (सेमिनार अँड मिटिंग, मुंबई, ६ / ४/१९७६) ० ० यहाँ के रहने वाले लोग और बाहर से आये हुये जो हिन्दुस्थानी लोग यहाँ पर हैं, ये बड़ी मुझे खुशी की बात है, की हमारे रहते हुये भी हमारा जो এ जन्मस्थान है, उसका इतना माहात्म्य हो रहा है ি और उसके लिये इतने लोग यहाँ सात देशों से लोग आये हये हैं। तो ये जो आपका छिंदवाडा जो है, एक क्षेत्रस्थान हो जायेगा और यहाँ अनेक लोग आयेंगे , रहेंगे। और ये सब संत -साधु हैं, संत हो गये और संतों जैसा इनका जीवन है, कहीं विरक्ति है, कहीं इनको। अपने घर में तो बहुत रईसी में रहते हैं। यहाँ (अस्पष्ट) है। कोई मतलब नहीं र आ कर के वो किसी चीज़ की माँग नहीं और हर हालत में ये खुश रहते हैं। इसी तरह से सहजयोग के चैतन्य से योगी लोग आये हये हैं। अलग-अलग बहुत जगह से, मद्रास से आये हये हैं और आप देख रहे हैं कि हैद्राबाद से आये हुये हैं। विशाखापट्टणम् वि इतना दूर, वहाँ से भी लोग आये हये हैं। बम्बई से आये हुये हैं, पुना से आये ह्ये हैं। दिल्ली से तो आये ही हैं बहुत सारे और लखनौ से आये हैं। हर जगह से यहाँ लोग आये हैं। पंजाब से भी आये हैं। इस प्रकार अपने देश से भी अनेक जगह से लोग आये हये हैं और यहाँ पूजा में सम्मिलित हैं । ये बड़ी अच्छी बात है कि सारा अपना देश एक भाव से एकत्रित हो जायें । बहुत हमारे यहाँ झगड़े और आफ़तें मची हुई हैं। इन सब से छुट्टी हो जायें और होना ही चाहिये। जब आप अपने अन्दर के धर्म को पहचानते हैं, तो आप जान लेते हैं कि आप सब एक हैं। हमारा कोई ऐसा मठ नहीं है और कोई ऐसा, जैसे गुरुओं के बड़े बड़े काफ़िले हैं, ऐसा कोई मामला नहीं है। हमारे यहाँ तो कोई भी मेंबर भी नहीं है | इसकी कोई संस्था नहीं, ऑरगनाइझेशन नहीं, कुछ नहीं है। सब अपने आप सारे काम हये हैं। सारे देश की ऐसी स्थिति हो जायें, जहाँ लोग संत हो जायें, तो वहाँ पर कोई भी प्रश्न नहीं रहता। सारे प्रश्न हमारे देश के ऐसे छूट जायें। इन लोगों की गरिबी भी हट गयी और जो कुछ इनकी शिकायतें थीं , शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक वो सब ठीक हो गयी | और ये अनन्त चीज़ों से आशीर्वादित है। और ये हैरान है कि ये कैसे हो गया! बिल्कुल खास बात नहीं 4t श्ी क्योंकि ये समय आया है। सब को होना है। छिंदवाडे में भी होना है, हर जगह होना है और सब को इसका पूरी तरह से फ़ायदा होना चाहिये। यहाँ पर हमने सेंटर किया हुआ है। जो लोग छिंदवाडे के हैं वो लोग जरूर इस सेंटर में आयें और अपने को सम्मिलित करें, तो उनको आत्मसाक्षात्कार मिलना कोई मुश्किल नहीं है। एक क्षण में उनको मिल शुरू सकता है। जो कबीर ने कहा, जो नानक ने कहा, जो ईसा ने कहा, मोहम्मद ने कहा वो चीज़ आप है, ये टाइम आ गया है। इसका फ़ायदा उठाना चाहिये। खास कर के मेरा जन्म यहाँ हुआ है, तो आप लोगों के लिये विशेष बात ये है कि चैतन्य मुझे दिखायी देता है, सारे आकाश में चैतन्य जैसे फैला हुआ हो। तो इस चीज़ को आप समझने की कोशिश करें। और इसको पा लें। ये सब के लिये हैं । इसमें जात-पात कोई चीज़ का बंधन नहीं है। सब लोगों को ये आनन्द इस सृष्टि में मिलें। हमारा सब को अनन्त आशीर्वाद है ! छिंदवाडा, १८ डिसेंबर १९९३ आप लोगों को अंग्रेजी तो काफ़ी समझ मे आती होगी, जो मैंने बात कही। आपको सबको मालूम है, कि हमारे जो अन्दर बैठे हुये देवी- देवता हैं, वो आपकी पूजा से बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और बहुत जोरों में वाइब्रेशन्स छोड़ना शुरू कर देते हैं। कभी तो जरूरत से ज़्यादा। चाहे आप उसको अॅबसॉर्ब करें, चाहे नहीं करें। अगर आपने उसको अॅबसॉर्ब नहीं किया तो मुझे ही तकलीफ़ होनी लगती है। इसलिये सब को बहुत खुले दिमाग़ से, खुले हृदय से, पूरी आर्तता अन्दर में ला कर के पूजा में बैठना चाहिये। जिस में जितनी आर्तता होगी उसे उतना ही फायदा होगा। इसलिये शुद्ध इच्छा होनी चाहिये। अन्दर शुद्ध इच्छा कर के और 'माँ, हमारे अन्दर ऐसा कुछ रंग भर दो, उतरे ही ना! एक बार जो रंग भर गया वो उतरे ही ना, ऐसा ही रंग भरो।' ऐसी मन में इच्छा कर के आपको बैठना चाहिये । अच्छा, अब काफ़ी देर हो चुकी है। और ये सब बेकार के इन लोगों ने पुलिसवाले लगा दिये हैं। उनके साथ बैठे बैठे भी टाइम गया। उसके बाद ये हुआ। तो जो भी हो, अभी ठंडी हवा चल रही है, तो अच्छा है कि इस वक्त पूजा हो रही है। गणपतीपुले, ०७ जनवरी १९९० 5 এ एकाकार स्वरप श्रीदत्तमहाराज ९ दिसंबर १९७३ श्री दत्त जयंती है। आज का दिन बहुत बड़ा है। इन्ही की आशीर्वाद से मैं सोचती हूँ कि ये आज का दिन आया हुआ है, जो आप लोगों में सहजयोग पल्लवित हुआ। सारे गुरुओं के गुरु, आदिगुरु श्रीदत्तमहाराज, उनका आज महान दिवस है। उनको मैं नमस्कार करती हूँ। उन्होंने मुझे अनेक जन्मों में सहजयोग पर बहुत सिखाया है। और उसी के फलस्वरूप इसी जन्म में भी मैं कुछ कार्य कर सकती हूँ। 'गुरुब्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ' आद्यशक्ति ने जब सब सृष्टि की रचना की। सारी सृष्टि की रचना करने के बाद जैसे एक राजा अपना राज्य फैलाता है और उसके बाद भेष बदल के इस संसार को देखने आता है, इस तरह आदिशक्ति भी बार बार संसार में अवतरित हुई। लेकिन चाहे शक्ति कितनी भी ऊँची हो, उसे एक मनुष्य गुरु की जरूरत है। मनुष्य का स्थान उस शक्ति 6. से ही है। अगर शक्ति को मानव रूप धारणा करनी है, तो कभी उसे पिता के स्वरूप, कभी उसे भाई के स्वरूप, कभी उसे बेटे स्वरूप पा कर ही वो संसार में आयी। सर्वप्रथम ऐसा ही समझें कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश इन देवों से जब सारी सृष्टि की रचना की, उस वक्त इस संसार में फँसे हये लोगों को बाहर निकालने का विचार आदिशक्ति के मन में आया, कि ये तीन तत् अगर किसी तरह से एकसाथ जूट जायें और उनमें श्री गणेश जी की बालकता, उनकी अबोधिता, उनका इनोसन्स उतर जायें, तो हो सकता है कि एक बहुत बड़ा कार्य करने वाले गुरु इन से निर्माण हो। सती अनसूया के रूप में उनका साक्षात् हुआ। ये एक ही ऐसी सती संसार में हैं कि जिसने इन्सान के तारण का विचार किया। ये तीनों बालक अनसूया के पास, अनसूया का अर्थ है कि जिसमें असूया नहीं। जो किसी से मत्सर नहीं करती। जो सर्वथा प्रेम होता है, उसमें मत्सर आदि, क्रोध आदि ऐसे नगण्य, क्षुद्र विचारों का कहाँ से स्थान है। जिस में कोई भी असूया नहीं, ऐसी अनसूया। इस की परीक्षा लेने के लिये ये तीनों भी, ऐसा कहा जाता है, इनके दरवाजे गये और उस वक्त उन्होंने अपने तेज बल से, ये तेज बल क्या था? कि यही माँ का प्रेम अत्यंत..., शक्तिशाली माँ का प्रेम जो उन पर बरस पड़ा और वो छोटे बच्चे हो गये। उन्हीं का एकाकार स्वरूप श्रीदत्तमहाराज है। एक अजीब सी विभूति हैं। इसका की कितना भी वर्णन किया जायें वो कम है और समझाया जायें वो भी समझ से परे। ऐसे त्रिगुणों से भरे हुये श्रीदत्तमहाराज आदिगुरु के रूप में संसार में आये और उन्होंने अनेक बार इसकी शिक्षा दी कि भवसागर को किस तरह से पार किया जायें । कल मैंने आपसे बताया है कि हम संसार में अनेक धर्म बना कर के लड़ाई कर रहे हैं। इसी एक श्रीदत्त के अवतार अनेक बार संसार में आये। उनमें से, जैसे कि मैंने आप से कल बताया था, राजा जनक, जो कि जानकी जी के पिता थे। वे भी और कोई नहीं थी, बल्कि इन्हीं दत्तात्रेय जी के अवतार थे । उसके बाद, मच्छिंद्रनाथ, आपने नाम सुना होगा। वे भी उन्हीं के अवतार हैं। उसके बाद झोराष्ट्र, जो तीन बार संसार में आये। ये भी उन्हीं के अवतार हैं। इसके बाद मोहम्मद साहब, जो कि साक्षात् उन्हीं के अवतार थे और जब उनसे बहुत बार पूछा कि, 'भाई, तुम से भी तो पहले कोई आये होंगे?' तो उन्होंने कहा कि, 'आये थे एक मोहम्मद साहब ।' फिर उनसे पूछा कि, 'उससे पहले कौन था ?' कहने लगे कि, 'एक मोहम्मद साहब।' मोहम्मद माने जो प्रेज होता है । जिसकी प्रेज की जायें । जो स्तुतिपात्र है। वही स्तुतिपात्र है जो संसार का तारण करता है। वही सारे मोहम्मद जो आये थे, वही सारे दत्तात्रेय जी बार बार संसार में आते हैं। उसके बाद नानक, गुरु नानक। उनकी आप अगर बानी कहे, उनकी आप अगर बातें सुने तो आपको आश्चर्य होगा, कि उन्होंने हर बार सहज में ही बात की। उन्होंने ही कहा कि, सहज समाधि लागो। उन्होंने ही कहा है कि, 'काहे रे बन खोजन जायीं, सदा निवासी, सदा अलेपा तो हे संग समायी। पुष्प मध्य जो बास बसत है, मुकुर माही जब छायीं, तैसे ही हरि बसे निरंतर, घट ही खोजो भाई ।' घट ही खोजो, अन्दर ही है। अन्दर ही उसे प्राप्त करो। हम तो कविता गा रहे हैं। गाना गा रहे हैं। जो उन्होंने हमें डिस्क्रीप्शन दिया था उसे रटे जा रहे हैं। हृदय के ही अन्दर बसे ह्ये इस परम तत्त्व को, खोजने की बात। अनादि काल से ये आदिगुरु बार बार जन्म ार में ले कर के... संस मोहम्मद साहब की जो लड़की थी, कल भी मैंने बताया है कि इसके बात शिया जाति की शुरूआत हुई। मुसलमानों में शिया नाम की जति है। सिया से आया हुआ शब्द शिया हो गया। सिया माने सीताजी, आप जब यूपी में जायें तो सीता जी 7 के लिये कहते हैं सिया जी। सियावर रामचन्द्र की जय! तब सिया का नाम लेते हैं। वो स्वयं सीताजी थी, आदिशक्ति थी। और उनके जो दो बेटे हुये थे, हसेन और हुसेन। जिन्होंने कितने ही दुष्टों का नाश किया। उसके बाद तंग आ कर के जब वो भी मर गये। उसके बाद दूसरे जन्म में उन्होंने सोचा कि अहिंसा को प्रस्थापित किया जायें । हिंसा से कुछ काम नहीं बना। एक नया एक्सपरिमेंट करने के लिये, उन्होंने बुद्ध और महावीर के रूप में जन्म लिया। एक्सपरिमेंट ही होते हैं। नानक साहब के बाद एक पचास-साठ साल पहले, अपने इस महाराष्ट्र में ही शिर्डी के साईंबाबा, ये भी साक्षात् दत्तात्रेय जी के ही अवतार थे। इसका आपको अगर प्रमाण चाहिये, अगर आप पार हो जायें, और इसके बाद आप किसी पे ही हाथ रख कर देखिये तो एक ही तरह के वाइब्रेशन्स दिखेंगे। वाइब्रेशन्स से ही आप सब को जान सकते हैं । जैसे आप के पास आँख होना जरूरी है, किसी की आप आकृति देख रहे हैं, उसका रंग देखिये , इसी तरह से आपके पास वाइब्रेशन्स आने की जरूरत हैं जिससे आप संसार के सब गुरुओं को जान सके। और जान सके कि कौन सच्चा गुरु हैं और कौन झूठा गुरु। कौन उस आदिगुरु दत्तात्रेय जी के साक्षात् हैं। कहने को तो आज कल हजारों गुरु संसार में आ गये। किसी के कहने से कोई गुरु नहीं होता। और किसी को मान भी लेने से वो गुरु नहीं होता। गुरु शब्द ही का अर्थ बहत बड़ा है। इसको समझ लेना चाहिये। आज इसी पे मैं | आज बातचीत करना चाहती हूँ कि गुरु कौन और कौन गुरु नहीं। गुरु शब्द का अर्थ ही ये है कि जो हमसे बड़ा है। जो हमसे उँचाईं पे बैठा हुआ है। जैसे उँचाई पे बैठा हुआ पानी अकस्मात नीचे आ जाये । वो अपनी सतह को ढूँढने के लिये, अपने सतह पे सब को लाने के लिये हमेशा लालायित है। आप पानी को किसी उँचाईं पर रख दीजिये, वो चाहेगा कि उसी उँचाईं पे सब को लाऊँ। यही गुरु का अर्थ ऐसा को नहीं। हमसे उँचा वो हर मामले में होना है। एक ही मामले में नहीं । इसलिये आजकल जो गली जो नहीं जो गुरु गली, रास्ते रास्ते पर हम लोग गुरुओं को मान रहे हैं, उनको याद रखना चाहिये, कि गुरुओं की हजारों .....। जो गुरु परम तत्त्व की बात करते हैं वो ही साक्षात् गुरु। जो परमात्मा की बात करते हैं और परमात्मा की ओर ही आपको उठाते हैं वही गुरु हैं। जो लोग आप से रुपया-पैसा लेते हैं, वो गुरु नहीं। जो अपनी वाणी का रुपया लेते हैं वो कभी भी | गुरु नहीं हो सकता। क्योंकि ये वाणी परमात्मा से आयी हुई बहमूल्य चीज़ है। इस की कोई भी किमत आप दे नहीं सकते। जिस दिन आप इसकी किमत दे सके, ये परमात्मा की चीज़ नहीं। आप परमात्मा को बाजार में जा कर खरीद नहीं सकते। याद रखिये, आज हम लोग इस तरह के हजारों लोगों के सामने खड़े हैं, जो परमात्मा के नाम पर पैसा कमायें । इससे बढ़ के अधमता और नीचता संसार में भी नहीं है। परमात्मा के पास एक ठोकर के बराबर भी संसार का कुछ कोई भी सामान, कोई भी वस्तु, कोई भी चीज़ अगर हो तो उसे हम मान सकते हैं कि परमात्मा को दें। जैसे कि हमारे घर में एक साहब आये थे, बड़े भारी महान गुरु अपने को बना कर के। और मुझ से कहने लगे कि, 'माताजी, आप को तो घर में ..... हैं और आप तो साधारण गृहिणी जैसी रह रही हैं। तो आप कैसे परमात्मा की बात करे? मैंने तो ये त्यागा, मैंने तो वो त्यागा, मैंने तो ये छोड़ा।' मैंने उन से कहा कि, 'वाकई तुम अगर त्यागना जानते हो, तो तुम ये भी जान लो कि इस में से जो भी चीज़़ तुम सोचो कि मेरे प्रभु के चरणों के धूल के बराबर भी है, उस के कणों के भी बराबर है, वो उठा के ले जाओ। लेकिन तौलना बराबर।' इधर उधर देखा उन्होंने। ये वो देखा। फिर वो सकपका गयें। मैंने कहा, 'क्यों? कोई चीज़ नहीं मिली।' कहने लगे, 'इसके बराबर तो कोई भी नहीं। फिर मैंने कहा उनसे कि, 'तुमने छोड़ा ही क्या ? तुमने क्या छोड़ा, जिसका झंडा सुबह-शाम घुमा कर के और काषाय वस्र पहन कर के और ऊपर में बाल मुंडवा कर के दुनिया भर में चिल्लाते फिर रहे हो। क्या छोड़ा तुमने यही पत्थर। ये मिट्टी। असल में सहजयोग इसीलिये घर-गृहस्थी में बैठे ह्ये साधारण लोगों में ही पनपता है। जो अपने झंडे गाड़ते हैं उनमें कभी भी सहजयोग नहीं आ सकता। जो लोग सहज, सरल भाव से करते हैं। परमात्मा के दिये हये ऐश्वर्य में, उनके आनन्द और सुख में सहज से प्रेमपूर्वक रहते हैं, ऐसे ही लोग, ऐसे ही मध्य स्थिति के लोग परमात्मा को पा सकते हैं। गुरु का मतलब अब आपको समझना चाहिये कि, जो लोग काषाय वस्त्र पहन कर के पैसा इकठ्ठा करते हैं, वो लोग कभी भी गुरु नहीं। जिनके पास टूटी हुई सायकलें थीं वो आज इम्पाला में घूम रहे हैं, वो कभी भी गुरु नहीं हो सकते। जो आदमी परमात्मा को पाया हुआ है वो चाहे जमीन पे सो जायें और चाहे वो महलों में सो जाये, आराम से। इसलिये जनक राजा का आपको मैं उदाहरण देती हूँ। जनक राजा के पास में नचिकेता कर के एक बड़ा भारी गया। पहले तो वो शंका से व्याकुल था। उसने अपने गुरु से कहा कि 'ये एक गृहस्थ में हैं, ये राजा है, इसके यहाँ तुम क्यों जाते हो? इसके आगे तुम क्यों झुकते हो? इसके चरण क्यों छूते हो? ये तो गृहस्थी आदमी है।' तो उन्होंने उनको कहा कि, 'तुम राजा जनक के यहाँ जाओ और उनके यहाँ रहो।' आप जानते हैं कि उनको विदेही कहा जाता है। नचिकेता जब उनके साथ जा के रहा। उन्होंने देखा कि उनके यहाँ इतना ऐश्वर्य है, इतना पैसा है, लोग खाना-पीना खा रहे हैं, आराम से रह रहे हैं। राजा सब खाना खाते हैं, घूमते हैं, फिरते हैं। बाल-बच्चे वाले आदमी, कैसे हो सकता है परमात्मा को जानना। दूसरे दिन उन्होंने कहा, 'मैं तो जा रहा हूँ। अभी इसी वक्त मैं चला जा रहा हूँ। मुझे यहाँ रहने का नहीं।' 'अच्छा, चलो, पहले नहाने तो चलो।' नदी पे नहाने गये। उनको अपने साथ शरयू नदी पर नहाने ले गये। नदी में नहाते वक्त एकदम से किसी ने आ के बताया कि, 'हे राजा, तेरे तो घर में आग लगी है। राजवाडे में सारी आग लगी हुई है।' राजा जनक ने कहा कि, 'लगने दो। अभी तो मैं ध्यान में हँ।' हँस के कहा। उसके बाद लोगों ने कहा, 'तुम्हारे सब घर वाले भाग गये। आग तुम्हारी तरफ आ रही है।' तो उन्होंने कहा, 'जाने दो, अभी तो में ध्यान में हूँ।' उसके बाद उन्होंने कहा कि, 'अरे भाई, आग यहाँ तक आ गयी। तुम्हारे बाहर आभूषण और वस्र पड़े हुये हैं ये भी चले जायेंगे।' वहाँ जो रखे थे वो भी भाग गये । ये नचिकेत अन्दर जो नहा रहे थे। उनके एक-दो जो कपड़े बाहर पड़े हुये थे। उन्होंने सोचा कि 'ये अगर जल जायें तो मेरा क्या हाल होगा?' तो भागे बाहर । उन्होंने अपने वो कपड़े उठा लिये। तो भी ये ध्यान में हैं। जब वो लौट के आये, उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने इनसे पूछा कि, 'राजा, आपको कोई चिंता नहीं है ? क्या आपके कपड़े आदि सब कुछ जल जाते। और फिर आप क्या ऐसे ही घूमते ?' तब उन्होंने कहा कि, 'जो मिथ्या है वो मिटने ही वाला है। वो कोई बताने की जरूरत नहीं। जब तक है रहने दीजिये और नहीं है तो जाने दीजिये।' यही बात सच है। जो गुरु मिथ्या को मिथ्या नहीं समझते हैं, उनके पास आप क्या ढूँढने जा रहे हैं? हमारे ससुराल में एक किस्सा है, कि एक बार ऐसा हुआ कि बाराती आये। अब बारातिओं ने कहा कि, 'आप हमारे लिये कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि हम दहीबड़ा खायें।' बारातिओं के में लोगों ने कहा कि, 'भाई, इस वक्त दहीबड़ा बनाना बहुत मुश्किल हैं।' क्योंकि जाड़े में दहीबड़ा शाम के वक्त बनाया जरा नखरे होते हैं। और जाडे के दिनों नहीं जाता। 'कम से कम तो दहीबड़ा खायें। इसी वक्त लाईये आप दहीबड़ा।' एक बाबाजी वहाँ रहते थे। उनका पता चला। उन्होंने बाबाजी को बुलाया कि, 'भाई, आप किसी तरह इंतजाम करो।' वो कहने लगे, 'मँगवा तो दूँगा, लेकिन उसके बाद मैं रहने वाला नहीं हूँ।' 'अच्छा ठीक है, मँगवा दीजिये। ' उन्होंने एक खिड़की बंद कर ली , दूसरी खिड़की बंद कर लीं। दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद कहा कि, 'देखो, आ गया आपका दहीबड़ा। खाईये।' वहाँ सब दहीबड़े आ गये। लोगों ने दहीबड़ा खाना शुरू कर दिया। बड़े खुश हये। बाबाजी भाग गये। रातोरात बाबाजी जान बचा कर भाग गये। लोगों को समझ में नहीं आया कि बाबाजी क्यों भागे? दूसरी दिन सबेरे, यहाँ माँग लोग होते हैं, एक जाति होती है, जो आती है, खाना- वाना सब बटोर कर ले जाती है। वो आयें और उन्होंने देखा बर्तन वगैरे को, कहने लगे, 'अरे, हमारे कुल्हड उठा के कौन ले के आया ? ये तो हमारे कुल्हड थे। कौन उठा के लाये?' वो जो विवाह था, संपन्न तो हुआ था। लड़की बिदा हो गयी। नहीं तो कोई लड़की को भी बिदा न लेता। वजह ये थी की सब लोग बहुत नाराज़ हो गये। कहने लगे कि ये कौन लेकर के आया हमारे पूर्वजों में, समझ लीजिये हमारे पिता की तरह मैं भी इस चीज़ों में विश्वास ही नहीं करती थी। इसे भानामती कहा जाता था महाराष्ट्र में पहले। ऐसी चीज़ों में कोई भी विश्वास ही नहीं करता था, कि ऊपर से कोई चीज़ चली आयी और उन्होंने दहीबड़े खा लिये। अब क्या परमात्मा कोई धंधा नहीं दहीबड़े खिलाने के सिवाय ? आप लोगों को भी सोचना चाहिये कि आप लोगों को दहीबड़े खिलाने का ही उनका एक धंधा बचा हुआ है। जब आप किसी को इतने गुरु बनाते हैं कि वो आपको दो सौ रुपया पकड़वा देते हैं। मैं कहती हूैँ कि ऐसे ही इतने दाता लोग अगर हैं तो इस देश का इतना इकोनॉमी प्रॉब्लेम्स ही सॉल्व कर दीजिये। सबको दीजिये। घड़ियाँ मँगवाते हैं स्वित्झर्लंड से बनी हुई । एक भगवान से बनी हुई घड़ी मँगवा दे तो मान लें। इस चीज़ को सोच लेना चाहिये कि हम लोग किस चीज़ को पाना चाहते हैं? उसी परम को पाना चाहते हैं। पर आप की ही तो खोज इन्हीं जड़ वस्तुओं में हैं। इन्हीं पत्थरों में हैं। इसलिये आप इन लोगों को गुरु मानते हैं। रुपया भी जाता है, पैसा भी जाता है। जब आपका सब पैसा निकल जाता है, तब आप मेरे पास आते हैं। कल ही एक स्त्री आयी थी आप ने देखा था, किस तरह से नाच रही थी, कूद रही थी। मैंने कहा, 'क्यों आयी भाई?' कहने लगी, 'क्या करें अब तो हम ऐसे हो गये। मैंने कहा, 'चाहे लोग पागल तुम्हें बनायें और पागलखाना मैंने खोल के रखा है। तुम वहाँ क्या खोजने गयी थी ? क्या नाचने-कूदने से परमात्मा मिल सकता है? ' हमारे मानव के जितने भी कायदे कानून बने हैं, उस में उन लोगों को इसका अंदाज भी नहीं है कि मनुष्य कितना दृढ़ित हो गया है। जिन्होंने भी बनाये हैं वो बहुत शालीन लोग थे। उन्होंने उस दृढ़ता को और उस धृष्टता को पहचाना ही नहीं कि मनुष्य अन्दर से कितने गन्दे कामों में फँसा हुआ है। अगर वो लोग जान जाये तो नये कायदे बनाने पड़ेंगे, इन लोगों को सब को पकड़ने के लिये। ईसा मसीह को तो इन्होंने उठा कर सूली पर चढ़ा लिया । वो आसान था। लेकिन इन लोगों को तो कोई पकड़ ही नहीं पाता। जो रात - दिन आपसे रुपया खसोट कर के और आप लोगों का सर्वनाश करने पर लगे हये हैं। 10 कस्तुरी का अगरं और कल आपके बच्चों को सुगन्ध आ रहा हैं तो उसके लिये पागलखाने में भेजने के लिये तैय्यार कोई आप को कसम ले कर बैठे हये हैं। कभी आप लोग इधर भी कहने की जरूरत नहीं है कि, यहाँ पे कस्तुरी का सुगन्ध हैं। आँख उठा कर के देखिये और के ১। नुल सोचिये कि ये क्या है? परमात्मा ० नाम पर जड़ वस्तुओं को बाँटना ০ ० कहाँ कि भल-मानसियत ! आप भी में ১ ১ क्या कभी सोचते नहीं? कलयुग ১ तो मैं सोचती हूँ कि मनुष्य पर हैं. कितनी प्रगल्भ बुद्धि, इतनी उसके अन्दर ....क्या वो सारी अपनी बुद्धि को बेच खाता है, कि वो समझता नहीं कि किस तरह का मेस्मरिज्म है और इनटाइसमेंट हैं। इसकी वजह से हम ऐसे पागल जैसे उसके पीछे भाग रहे हैं और अपने अन्दर झूठे, बिल्कुल मिथ्या, निष्पाप अन्दर में कर के की बड़े शान्ति में बैठे हुये है। अपने से भी भुलावा कर रहे हैं और दूसरों से भी भुलावा कर रहे हैं। जब आपको रियलाइजेशन हो जाता है, तब बहुत दूर जाने की, बहुत पढ़ने की जरूरत नहीं है। आप समझ सकते हैं कि आप रियलाइज्ड हैं। इसलिये आप में एक जगह अन्दर से शांत है। मैं देखती हूँ कि इतने लोगों के गुरु हैं और तीस-तीस, चालीस-चालीस साल में हार्ट अॅटैक आ कर के लोग मर जाये। असम्भव की बात हैं कि अगर आप में रियलाइजेशन का जरासा भी त्त् एक बार जाग उठा है, तो हार्ट अॅटैक तो क्या कोई अॅक्सिडेंट होना भी मुश्किल है। ऐसे ऐसे उदाहरण हमारे अन्दर है। एक छोटा सा लड़का, अभी परसों बता रहे थे कि ट्रेन से आ रहा था और ट्रेन पूरी उलट गयी। जिस डिब्बे में वो बच्चा था, उसमें से एक भी आदमी को चोट भी नहीं आयी। आपके उपर देवता मंडराना चाहिये। अगर दिव्य नहीं उतर सकता तो ऐसा रियलाइजेशन क्या ? अब हमारा ही लो, आप जानते हैं कि कितने ही पार हये हैं। कैन्सर तक ठीक करते हैं। कोई विशेष बात नहीं। कोई विशेष हमारे ख्याल से बात नहीं। सिर्फ यही है कि इसमें इनको इंटरेस्ट नहीं है, किसी को क्युअर करने में। इनको रियलाइजेशन में ही इंटरेस्ट है। क्योंकि जो आनन्द आप ने पाया है, वही आप चाहते हैं कि सब पायें। सहज में ही है। अगर आप के पास रुपया पैसा है तो आप चाहते हैं कि रुपया-पैसा खर्च करें। लोगों को खिलायें, पिलायें । ऐसे ही रियलाइज्ड सोल ही चाहेगा मन में कि दूसरों की भी जागृति करें और पार करें और कर सकते हैं। अगर आप के अन्दर लाइट आयी है उसके लिये कसम लेने की कोई जरूरत नहीं है। कस्तुरी का अगर सुगन्ध आ रहा हैं तो उसके लिये कोई आप को कसम ले कर कहने की जरूरत नहीं है कि, यहाँ पे कस्तुरी का सुगन्ध हैं। लेकिन कस्तुरी की खोज है कैसे ? ये पहले अन्दर सोच लीजिये। नहीं तो ऐसे चक्करों में घूमने की कोई जरूरत नहीं है। एक साइड में तो हमारे ये लोग हैं, जो कि हमारे सबकॉन्शस से खेल रहे हैं। हमारे जड़ चेतन से, हमारे पास्ट से 11 -० खेल रहे हैं। मैं ऐसे भी लोगों को जानती हूँ इस खोज में मैंने बहुत गुरु घंटालों को देखा और सब के मैं हथखण्डे जानती हूँ कि ये क्या क्या दशा करते हैं और किस तरह से जन्मजन्मांतर के लिये आपकी कुण्डलिनियों का सत्यानाश करते हैं। हैं। मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हूँ, जो आपको पिछले जन्म की बातें बताते हैं। इसी से आप अभिभूत हो जाते हैं । किसी ने कह दिया कि मैं तुम्हारा पति हूँ। एक थी, आयीं मेरे पास और कहने लगीं, 'माताजी, मैंने उनको अपना सर्वस्व दे दिया।' मैंने कहा, 'क्यों? क्यों दिया तुमने?' 'वो कह रहे थे कि मैं तुम्हारा पति हूँ।' मैंने कहा, 'तुम्हारा पति! बड़ी पातिव्रत्य हो। अगर ऐसा ही पातिव्रत्य हैं तो जो मर गया पति उसके लिये तो मरी जा रही हो और जो तुम्हारा पति आज जीवित है उसका क्या हाल है? उसके प्रति कोई पातिव्रत्य नहीं ? और ये जो एक पैसा खाऊ यहाँ बैठा हुआ है उसको तुमने सारे जेवर दे दिये। क्योंकि उसने तुमसे कहा कि, ये तुम्हारा पति है।' फिर कोई कह रहे थे , ये साहब हम से कह रहे थे कि, हम भगवान के अवतार हैं। हम परमेश्वर हैं। अरे कोई कहने के लिये अपने देश में किसी को क्या लगता है! झूठ बोलने में तो हम लोग पक्के माहिर है। कोई किसी से झूठ बोल दीजिये, इसको साइकोलॉजी में सिग्मॉइड पर्सनॅलिटी कहते हैं । आप पढ़े हैं साइकोलॉजी तो आप समझ सकते हैं, कि साइकोलॉजिस्ट ने इसका पता लगाया हैं। नहीं लगाया ऐसी बात नहीं। खड़े हो कर के जो चाहे अंटसंट बकने लग जाते हैं और लोग उस पे विश्वास करने लग गये। ऐसा बायबल में भी कहा गया है, कि ऐसे बहत से संसार में आये। सम्भल के रहिये। कहने लग गये, 'हम भगवान हैं!' अरे, भगवान हैं तो उसी को शक्ति भी तो होती है। एक महाशय जी से कहने लगे, 'मैंने उन से कहा मुझ कि आपके पास इतनी औरतों का जमाघट क्यों भाई? आप दरवाजे बंद कर के ये क्या कर रहे हैं?' भगवान के नाम पर ये काम क्या करते हैं?' किसी स्त्री पर उन्होंने बहुत अत्याचार किया था। मुझे आ कर प्राइवेटली बताती। मैंने कहा कि, 'तुम कोर्ट में जा कर बताओ।' ये आदमी पकड़ा गया। कहने लगी, 'हम कोर्ट में कैसे बतायें? हमारे ऊपर आफ़त तो आ जायेगी। हमारी इज्जत हैं। हमारी फॅमिली हैं।' तो मैंने कहा, 'अगर तुम कोर्ट में नहीं बता सकती, इसका कैसे पार हो। उस महाशय से जा कर जब मैंने कहा कि, 'तुम ये क्या कर रहे हो? क्यों ऐसा पाप ढो रहे हो? क्या तुमको इससे मिलेगा, परमात्मा के नाम।' कहने लगा, 'तुम्हे नहीं मालूम मैं श्रीकृष्ण हूँ।' मैंने कहा वाह, भाई वाह! शकल तो आपकी भूत जैसी और आप श्रीकृष्ण बने। आज श्रीकृष्ण कैसे ह्ये? मैंने कहा, 'श्रीकृष्ण को आप कितना जानते हैं? जिसने पाँच साल की उम्र में कालिया का मर्दन किया था उसके सर पे चढ़ के। मैं दाढ़ी आपकी नोचती हूँ तो उठ नहीं सकेंगे आप!' मज़ाक ही मैंने कहा दिया। बाद में सुना किसी ने उनकी दाढ़ी आधा घण्टा पकड़ी थी वो हिलते रहे ऐसे ऐसे। मैंने तो यूं ही कह दिया। ऐसे श्रीकृष्ण पैदा होने लग जाये। दूसरे साहब कहने लगे कि, 'मैं औरतों को इसलिये नग्न करता हूँ कि श्रीकृष्ण ने औरतों को नग्न किया।' बताईये कहाँ कि बेवकूफ़ी की बात है। श्रीकृष्ण पाँच साल की उमर में बच्चों जैसी उनकी लीला थी। औरतों के साथ में उनको क्या.... पाँच साल का बच्चा! वैसे बहुत गहन अर्थ है। वो तो सहजयोग लीला कर रहे थे। पाँच साल के बच्चे के लिये कौन बड़ा और कौन छोटा! पाँच साल के भी नहीं उससे भी छोटे थे। तो मैंने उनसे कहा कि, 'अगर यही बात थी तो काहे के लिये वो द्वारिका में बैठे हये वो द्रौपदी के वस्त्रहरण के वक्त में दौडे गये थे वहाँ। शंख-चक्र-गदा- पद्म, गरुड लयी सुधारें। क्यों सुधारें? क्यों सुधारे थे, अगर उनको स्त्री की 12 को पकड़ने वाले वो श्रीकृष्ण और आप संहारे गली में और बज़ार में मिलते हैं जहाँ जाईये वहाँ, एक श्रीकृष्ण, एक शिवजी भगवान। कहाँ पवित्रता का कोई ख्याल नहीं था। ये आप जवाब दीजिये।' कहाँ तो वो एक उँगली पर गुरु श्री शिवजी भगवान, कहाँ श्रीकृष्ण। कुछ आप की बुद्धि बच गयी है या नहीं? मुझे कभी कभी बड़ा आश्चर्य होता है। मनुष्य इतनी बुद्धि की प्रगल्भता में पहुँच गया जिसको परमात्मा ने सारे ही बुद्धि के आवरण खोल दिये। ऐसे मनुष्य के बुद्धि में धर्म के मामले में इतना पड़दा क्यों? अपने ही देश में नहीं इसको तो बात ही नहीं, परदेश में भी इस कदर अंध:कार! एक वहाँ योगी जी, पहुँचे हये हैं। उनका शिष्य हमसे मिलने आया। वो हमारे सामने आये। देखते हैं क्या उनका आज्ञा चक्र और नाभि चक्र दोनों को गोल घुमा दिया और वो भजन गा रहे हैं। उलटा घूमाने का मतलब हैं कि आदमी जो पागल होता है, जब आप पार हो जाये तो देखियेगा, कि जब आदमी पागल हो जाता है तब उनका आज्ञा चक्र और नाभि चक्र उलटा घूमता है। ये सब प्रेतसिद्धता, स्मशान सिद्धता, हमारे देश में, भारतवर्ष में पूराने जमाने से चली आयी है। उसके बारे हमारे यहाँ पे जानता नहीं ऐसी बात नहीं है, लेकिन उसकी ओर ये जरूर है कि आधुनिक शिक्षण व्यवस्था में इधर ध्यान नहीं है। ये जो देवियाँ वगैरे आती है किसी के बदन में और हम लोग कुंकु लगाने को जाते हैं। उनके अन्दर में भूत आते हैं। हमें समझ में क्यों नहीं आया। ये सब प्रेत विद्या और स्मशान विद्या है । इसका है। एक बड़ा भारी साइन्स इस पर मैं कभी चाहे तो बताऊंगी आपको। आज दत्त महाराज के चरणों में खड़ी हूँ। इसको भी जान लेना चाहिये। ये सब महामूर्खता के लक्षण हैं। वो हम ऐसे दूसरों के हाथों में अपने को बेच दें। कम से कम अपनी बुद्धि तो सही रखें। थोड़ा सा झटक के सोचें। जब कभी भाषण में आप जाये, तो आप सोचें कि आदमी बोल क्या रहा है? और कर क्या रहा है? इसका बोलना और करना इस में वो कभी भी गुरु हो ही नहीं सकता। इसको आप अन्तर , समझ लीजिये। अभी हम कहे कि हम ऐसे हैं, वैसे हैं। कल हम लपके सांसारिक चीजज़ों में , हम कभी भी वैसे हो नहीं सकते। संसार कोई व्यर्थ की चीज़ नहीं है। लेकिन साक्षित्व तो कम से कम गुरुओं में आना चाहिये। कम से कम। कुण्डलिनी के बारे में भी बहुत गुरुओं ने लिख लिया । जिनके बारे में आपको मुझे बताना है। कल भी मैंने बताया था, कि भगवान के पास में कोई घड़ी नहीं है। जो वो कह दें कि, 'चार बजे मैं तुम्हारी कुण्डलिनी जागृत करता हूँ।' ये सब भूतों की व्यवस्था है। इस पर मैं आपको एक बड़ा सा उदाहरण देती हूँ। डॉ.लाइन कर के एक बड़ा भारी डॉक्टर लंडन में रहता है। उसने कुछ बहुत शोध किये थे । वो चाहते थे कि लोगों को उसे शुअरटी आयें। लेकिन तो अकस्मात उनकी एक अॅक्सिडेंट में मृत्यु हो गयी। इसके कारण वो अपना जो शोध था, लोगों को बताने का, उन्होंने जब उनकी मृत्यु हो गयी, हम जब मरते हैं तो पूरे नहीं मरते हैं, थोड़ा सा हिस्सा गिर जाता है, बाकी सूक्ष्म शरीर जीवित है, तो उन्होंने उस सूक्ष्म शरीर में ये सोचा कि चलो किसी के अन्दर घुस कर ही, प्रवेश कर के देखें । तो विएतनाम में एक सोल्जर लड़ रहा था, उसके शरीर में उसने प्रवेश किया। और उसे कहा कि, 'तुम मेरे लड़के के पास चलो। और उसे ऐसी ऐसी बात बताओ।' अब ये सोचिये कि डॉक्टर लाइन को ऐसा ही करना था तो उसके लड़के के अन्दर क्यों नहीं घूसा? वो तो जानते थे, कि इससे कोई परिणाम नहीं। तो उन्होंने कहा कि, 'अच्छा तुम मेरे लड़के से 13 जा के सारी बात बताओ। जब ये सोल्जर उस लड़के के पास गया और उसे जा कर बताया तो वो इस बात को मान गया। उसने कहा कि, 'हाँ, ये सब बातें मेरे पिताजी के सिवाय और किसी को मालूम नहीं।' उसने कहा, 'चलो, तुम क्लिनिक खोलो।' उन्होंने एक बड़ा भारी ऑर्गनाइझेशन बनाया। जिसके तहत वो लोगों को ठीक करें। अब डॉ. लाइन के साथ बहुत से और डॉक्टर इनके साथ जुट गये। वो भी ये कार्य करते थे। अभी तक वो हो रहा है कार्य। वो आपसे बताते हैं कि आपको किसी तरह की तकलीफ़ है, शिकायत है, आपको बताते हैं, अच्छा पाँच बजे शाम को बराबर इस वक्त आपके अन्दर ठीक हो। कोई न कोई अन्दर व्यक्ति घुस कर के आप के साइकोलॉजी में जिसको हम सुपर इगो कहते हैं, इसके अन्दर घुस के और इस कार्य को करते हैं। एक भूत निकाल के दूसरा भूत बिठाया। अगर आप शराबी होंगे तो शराब ठीक हो जायेगा लेकिन क्रोध आने लगेगा। ये इन लोगों का कार्य है। पर बिचारे सीधे हैं। वो लोग कम से कम ये कहते हैं कि हम स्पिरीट का काम करते हैं। वो ये नहीं कहते हैं कि हम भगवान का कार्य करते हैं। लेकिन अपने देश में तो लोग पक्के भूत नहीं, राक्षसों का काम करते हैं और उसको भगवान का नाम देते हैं। ऐसे लोग अगर किसी को थोड़ा सा ठीक भी कर ले, तो इससे क्या फायदा? कुण्डलिनी जहाँ खराब हुई, अपने माँ को जहाँ ...हैं ऐसी जगह जाने की कोई जरूरत नहीं। आज नहीं कल आप लोग जरूर पार हो जाईयेगा। लेकिन गलत रास्ते पर मत जाईये। एक बार आपकी कुण्डलिनी खराब हो जायेगी, तो मैं उसे भी नहीं कर सकती। सारा ही कार्य खत्म हो जायेगा। जिन जिनकी कुण्डलिनियाँ खराब हो गयी है, | कुछ आप लोग जानते हैं, आप में से बहुत लोग पार हुये हैं, कितनी तकलीफें हमने उठायी। कुछ कुछ लोगों पर तो हाथ रखते वक्त इन लोगों के हाथ में बड़े बड़े ब्लिस्टर्स आते हैं। बहुत बड़े बड़े ब्लिस्टर्स आते हैं। और वो जब मेरी ओर हाथ करते हैं, उनको भी कभी कभी थोड़ा थोड़ा ब्लिस्टर्स जैसा आ जाता है। पर जलता तो बहुतों का हाथ है। मेरे पास एकदम ठण्डी ठण्डी हवा है, लेकिन उनके हाथ जल रहे हैं। क्योंकि मैं चाह रही हूँ कि उनकी सत्ता को स्थापना देँ और उनके अन्दर तो कोई और ही सत्ता बैठी है। ऐसे गुरुओं से बच के रहिये। क्योंकि कायदा इसे रोक नहीं सकता। सीधी तरह जिसकी रोकथाम नहीं, इसे अपने बुद्धि से सोचिये, कि सच्चा गुरु कौन हैं? वही जो आपको परम दे। इस पर अभी एक औरत ने मुझ से सवाल पूछा था। बहुत मौके का सवाल था। उसने मुझे पूछा कि, 'क्या आपने और भी कोई रियलाइज्ड सोल दुनिया में देखे हैं? जो कि आपके पास आये बगैर ही।' ऐसे तो बहुत हो चुके और अभी भी हैं। इसी कारण मैं अपने बहत शिष्यों को लेकर कोल्हापूर से दूर पच्चीस मील दूरी पर एक जंगल में, पहाड़ी के ऊपर सात मिल दूरी पर गगनगड़ में आ गयी, उनका बहुत बड़ा उत्सव है। इसके लिये मेरी सारी सदिच्छा है। वहाँ पर एक बड़ा भारी गुरु हैं। मैं इनको ले गयी। मैंने कहा तुम ऐसे हाथ रखो बस्। 'हाथ के सहारे इतने वाइब्रेशन्स आ रहे हैं माँ!' क्यों उस जंगल में चलें? ये भी सोचने की बात हैं। जितने भी बड़े बड़े पहुँचे हये लोग होते हैं, जंगल में रहते हैं। आपने नित्यानंद जी के लिये कहा। जो कि असल में बहुत बड़े गुरु हैं। वो अगर कोई भी आता था तो पत्थर मारते थे और कहते थे, 'भाग जाओ यहाँ से। निकल जाओ।' हमारे नागपूर में ताजुद्दीन बाबा थे। उनके लिये भी लोग ऐसा कहते थे। वो तो जंगल में ही रहते थे। अब वहाँ आबादी हो गयी। क्यों ये लोग जंगल में भाग जाते हैं? इसके दो-चार कारण हैं। अभी आपने देखा, यहाँ छोटे बच्चे बैठे थे। उनके हाथ जल रहे थे। इसी तरह से उनके बदन जलने लगते हैं। 14 बहुत से साधु तो बेचारे पानी में ही रहते हैं। क्योंकि आप लोगों की जो साइकी हैं, सुपर इगो हैं, उनमें बैठे ह्ये भूत इनको जलाने के लिये लगे हैं। उन भक्तों को सताने के लिये लगे हैं। इसलिये वो जंगल में भाग खड़े होते हैं। क्योंकि आप को तो पता नहीं आप कर क्या रहे हैं? आपके वाइब्रेशन्स आपको समझ कहाँ आते हैं? इसलिये बेचारे जंगलों में जा कर के बैठ हये हैं कि बाबा, बचाओ इन लोगों से। उनका तारण-हारण वो कहाँ से करे ! गगनगड़ के महाराज का ही देखिये । उन्होंने बहतों को तो ठीक किये। लेकिन क्या हैं उनकी उंगलियाँ टेलिस्कोप के जैसे अन्दर चली गयीं। पाँव की उंगलियाँ भी ऐसे अन्दर चली गयी। बेचारे पेड़ पर या सीढ़ी पर सवारी करते हैं। इसके अलावा इधर से उधर नहीं जाते। लेकिन जब मैं उनके पास पहुँची। जो लोग मेरे साथ थे उन्होंने भी देखा। उन्होंने फौरन मुझे पहचाना। कोई शंका नहीं। उन्होंने आज तक मुझे नहीं देखा है। लेकिन बहुत सालों से मेरे बारे में वो जानते ही थे। उम्र में भी मेरे से बड़े हैं। कहने लगे, 'बहत सालों से मैं आपका इंतजार कर रहा था माँ। आज हमारा भाग्य कि आप पधारे।' वो नाथपंथी हैं। और बड़े पहुँचे हये। ऐसे ही मैं हिमालय पर भी गयी थी। वहाँ पर भी मुझे मिले। ऐसे ही हरिद्वार में एक-दो हैं बहुत .... रहते हैं। मैंने उनसे कहा, 'बाहर आने का मौका है। मैं तुमको बताऊँगी की अपनी शक्ति को कैसे बचाना है और किस तरह से इन लोगों का प्रहार वापस लौटाना है। मैं बैठती हूँ। तुम आओ तो सही। सब को मैं ठीक कर दूँ। बहतों ने कहा, 'माँ आयेंगे, जरूर आयेंगे।' लेकिन हिम्मत दिखती नहीं बेचारों की। क्योंकि इनके हाथ-पैर तोड़ दिये। इनके बदन में छाले डाल दिये। उनको जला दिया। राक्षसों के साथ। समझ लीजिये दस राक्षस और छः राक्षसिनी अभी तक मैं जोड़ पायी हूँ। जन्म ले कर इस कलियुग में आयी। आजकल के जमाने में समझ लीजिये अगर रावण आ जाये, तो अपने को कहने नहीं वाला है कि मैं रावण हूँ। वो तो अपने को भगवान ही कहेगा। अगर रावण कहे तो अभी कैद में बंद ना हो जाये | राक्षसों की भी पहचान हैं वो भी मैं आपको बता देती हूँ। आप देखिये । आपको फायदा है। जिस आदमी की आँख बिल्ली के जैसे, आप बिल्ली की आँख पहले देखिये तब आपको समझ में आयेगा । बिल्ली की आँख, जैसे उसके अन्दर की पुतली होती है, आँख देखते देखते एकदम छोटी हो जाती है, भूरी हो जाती है। ऐसे ही राक्षसों की आँख होती है। मैं सब कुछ जानती हूँ, अच्छे से। हर एक जन्म में मैंने इन लोगों को देखा हुआ है। इनकी आँख से आप पहचान सकते हैं कि ये लोग राक्षस हैं, इनकी आँख की पुतली एकदम छोटी हो कर के ....। इनका क्या? कहने को वे भगवान कहे और कुछ कहे, राक्षस ही है और इन्होंने बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हैं। ये हमारे भोला शंकर जी का कार्य हैं, क्या करें ? उन्होंने बहत सारी सिद्धियाँ प्राप्त कर लीं। जैसे रावण को एक सिद्धि थी, कि जब वो बोलते थे और भाषण देते थे तो नाभि चक्र पे वो ऐसे कुछ काम कर जाते थे कि वहाँ पर एक एक भूत बैठ जायें । हजारों लोग अभिभूत हो कर के उनके पैरों को छूते थे। यहाँ तक कि राम से लड़ने के लिये कोई तैयार नहीं था। उन्होंने सब को तैयार किया। इसी तरह महिषासुर की भी थी । सारे ही असुरों की अपनी अपनी सिद्धियाँ थीं और इसी सिद्धियों के कारण वो लोग हमेशा भ्रमण करते रहे । प्रकाश को दबाते रहे और अंधेरा बढ़ता गया। आज कलयुग में बराबरी हैं। सारी बराबरी हैं और आप सोच रहे हैं कि मेरे दो ही हाथ हैं। आप ही लोगों के लिये, आप ही लोगों का कार्य है, आप को आश्चर्य होगा कि देवता भी एक तरफ बैठे ह्ये हैं और राक्षस भी एक 15 wwwwveved तरफ बैठे हैं। घमासान युद्ध चल रहा है। वो परेशानियाँ क्या आप सोचते हैं, आप के करने की वजह से ? बिल्कुल भी और राक्षस बैठ कर के प्रेत योनियों के सारे कार्य करा के आपको त्रस्त कर रहे हैं। किसी तरह से आप दौड़ नहीं । ये दुष्ट कर उनके ही चरणों में जायें। ये सब इन्हीं का कार्य है अगर इसी को हटाना है तो अपने ही अन्दर में ज्योत जलानी है। अगर इस को प्रकाशित करना है, तो सब को अपने अन्दर एक एक दीप जलायें। आप स्वयं एक दीप है और आश्चर्य तो ये है कि इस वक्त परमात्मा भी यही चाहता है कि मनुष्य ही कार्य करें। मनुष्य ही वो परमात्मा स्वरूप हो जायें और जिसको हम अति मानव कहते हैं, जिसको हम मॅन कहते हैं, इसकी स्थापना हो। एक नया डाइमेंशन आपके अन्दर आने वाला है। इसको लेना सीखो, इसको सुपर पाना सीखो। बुद्धि के कसौटी पर अभी इसे उतारा नहीं जा सकता। क्योंकि अगर बुद्धि से आप समझना चाहें तो आपको मेरा सिर्फ हाथ ही दिखायी दे रहा है, इसकी अन्दर से बहने वाली अव्यक्त धारायें नहीं दिखायी देगी। जो लोग बहुत बड़े पंडित हैं वो लोग चाहे तो कबीरदास को पढें, नानक जी को पढ़ें , हो सके तो आदि शंकराचार्य को पढ़ें। वो सब से बढ़िया हैं। आदि शंकराचार्य को अगर पढ़े तो समझ सकते हैं मैं कि किस चैतन्य लहरियों की बातें कर रही हूँ। कुण्डलिनी पर अभी तक मुझे कोई भी ऐसा दिखायी नहीं दिया, जिसे व्यवस्थित रूप से कुछ समझाऊँ। थोड़ा थोड़ा ज्ञान हो जाने से ही कभी कभी बड़ा भारी भयंकर अनर्थ हो जाता है । ऐसा ही अनर्थ कुण्डलिनी के बारे में भी आज तक होता रहा ही है। नहीं तो इस तरह की विचित्र बातें न जाने उस समय किन लोगों ने लिखी हैं। लेकिन तो भी की द्रष्टा स्थिति इतनी ऊँची हैं, इतनी ऊँची हैं, जैसे देवी भागवत आप पढ़े। मार्कण्डेय स्वामी की सप्तशती मनुष्य आप पढ़े आपको आश्चर्य होगा कि कितनी गहराई से, कितने छोटे छोटे डिटेल्स में उन्होंने इस चीज़ को जाना। असल में जब तक आप का रियलाइजेशन नहीं होता, तब तक सभी कुछ करना व्यर्थ है। कृष्ण ने भी यही कहा है। कृष्ण ने भी यही कहा था कि पहले उसे अन्दर ही पा लो। लेकिन समझने वालों ने समझा नहीं। वो कहते हैं कि अन्दर पा लो तुम कहते हो कि बाहर ले जाओ। इनका मतलब था कि तुम साक्षी हो। साक्ष होने के बाद तुम से हो रहा है, अकर्म में चला जा रहा है। आप कुछ करते ही नहीं। इगो ही खत्म हो गया। वो सुपर इगो ही खत्म हो गया जो कर्ता है, करने ही वाला चीज़ जायेगा। वो कह रहे थे तो माना नहीं । वो डिप्लोमॅट थे, राजकारणी थे। कृष्ण का भी अपना एक तरह का गुरुत्व है। उनका गुरुत्व ही बड़ा मजेदार है । बड़े भारी राजकारणी थे । इसको मैं कहती थी कि अॅबसल्यूट प्यूअर पॉलिटिशियन। ऐसा बड़ा पॉलिटिशियन था वो। और वो सब को जानता था कि इन महामूर्खों को ठीक करने का यही तरीका है। जिस वक्त में एक बच्चा है वो अपने घोड़े को गाड़ी के पीछे बाँध कर के हाँक रहा है। तो बाप आ कर के कहता है, 'चलने दो घोड़ा। ऐसे ही चलने दो, हाँकते रहो, हाँकते रहो । पहुँच जाओगे।' फिर बच्चा जब हार कर के सोचता है, 'अरे घोड़ा तो चल ही नहीं रहा।' तब उसको समझ में आता है, कि घोड़े को आगे करना चाहिये, हाँकना चाहिये। इसलिये उन्होंने कहा कि, 'अच्छा तुम कर्मयोग कर।' अब देखिये इसमें डिप्लोमसी कितनी ! फिर तब ऐसा भी गुरु मिलना बड़ा कठिन है! ऐसा भी गुरु है कि इसके लिये बहुत ही बुद्धि की तीक्ष्णता और प्रखरता चाहिये । आज तक आपको किसी ने ये बात नहीं बतायी होगी। आज बताऊँगी। आप सुन लीजिये। उन्होंने कहा कि 'ऐसा तुम कर्म करो। लेकिन कर्म का जो फल है वो परमात्मा पर छोड़ो।' वो हो ही नहीं सकता, बिल्कुल अॅबसर्ड कंडिशन। जब 16 आप किसी चीज़ को कर रहे हैं और जान रहे हैं, कर रहे हैं। आप इस को किसी और पे कैंसे छोड़ दें? घोड़ा पीछे कर के ही हाँकने को कह रहे हैं। दूसरा उन्होंने कहा कि, 'तुम भक्ति करो ।' देखिये , इसमें भी देखिये । बड़ा सुन्दर है। तुम अनन्य भक्ति करो। जब दुसरा कोई नहीं रहेगा तो भक्ति कैसे होने वाली? मतलब ये कि मिलन हो गया तो भक्ति किस की करें? उन्होंने कहा, 'पुष्पम्, फलम्, तोयम्' जो कुछ भी तुम मुझे दो मैं ले लूंगा। लेकिन देने के वक्त उन्होंने यही कहा है कि 'तुम अनन्य भक्ति करो ।' अॅबस्ड बात है। क्योंकि अॅबसर्डिटी पर ही आदमी का सर चकरायेगा । और तभी वो ठिकाने पे आयेगा। वो सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसे आदमी को अकल आने वाली है । पर मैं तो माँ हँ और माँ चाहे वो बात कहनी भी पड़े तो भी कह डालेगी कि बेटे ऐसा नहीं। ऐसा नहीं मानो जब तक हो सकेगा तब तक कहेगी। गला फाड़ फाड़ कर अपने बच्चे से कहेगी । माँ का हृदय और होता है। उसे डिप्लोमसी नहीं खेली जाती बहत देर। बहुत हो गया। बहुत परेशान। अब जरूरत है इस चीज़ को करने की और हो रहा है। आप लोग भी इस चीज़ को पा रहे हैं जिन्होंने पाया है। जिन्होंने जाना हैं कल भी यहाँ पर प्रोग्रॅम है, जरूर आयें। जिन्होंने नहीं पाया है वो भी आयें। हमारे यहाँ और भी जगह, भारतीय विद्याभवन में हम लोग हमेशा के लिये चाह रहे थे कि ऐसी जगह बनें कि लोग आते रहें। यहाँ पर बहुत से लोग ऐसे हैं जो पार हो गये हैं। जागृति तो आप पार होते ही दे सकते हैं इन लोगों को। चक्रों के बारे में बहुत जानते हैं, बहुत ज्ञानी हो गये हैं। और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पार नहीं करा सकते। हिन्दुस्तान की ये गरिमा हैं कि ये देश, हमारी योगभूमि है। सारे संसार के देशों से भी ऊँचा अपना देश । इस देश के वाइब्रेशन्स इतने हायेस्ट, इसमें कोई शंका नहीं। और सारे ही संसार की रीढ़ की हड्डी में अपना देश है और इसी में कुण्डलिनी का स्थान है । जो सारे ही संसार को एक दिन ठीक कर सकती है । पर अभी तो सारे ही चक्र हमारे पकड़े हुये हैं। कुण्डलिनी की गति ही मुश्किल हो रही है। आप अगर अपने अपने चक्र छुडा ले, तो हो सकता है इसी देश में से ही वो संदेश बाहर जाये, जिससे की सारा संसार बदल कर के एक दूसरे रास्ते पर आ कर खड़ा होगा। यहाँ सत्ययुग का ही आवाहन है और सत्ययुग भी आने वाला है। ये सत्ययुग के आने की बात, लेकिन ये अभी आपके स्वतंत्रता और आपकी सत्ता पे छोड़ा गया है कि आप चाहें तो इसे लें या संहार किया जाये। ऐसे ही कैन्सर जैसी और युद्ध जैसी बातें, ये सब हमारे संसार को खत्म करेगी। अगर आप लोग चाहे तो इसे ले सकते हैं और संसार को उजियारा में डाल सकते हैं। और नहीं तो अंध:कार आ कर परमात्मा चाहे हजारो सृष्टियाँ बना सकता है। एक एक्स्परिमेंट फेल हो गया। ऐसा ही वो सोचेगा। अभी आप की ही तुलना इसे देखना है कि कितने लोग अपने को लगाते हैं । बहुत बहुत आप सब का धन्यवाद! तीन दिन का सेमिनार बहुत प्रेमपूर्वक हुआ और बहुत लोगों ने इस प्रेम स्वीकार किया। इसलिये एक माँ के नाते मैं सबका धन्यवाद मानती हूँ। वैसे ही हमारे बहुत से बच्चों ने रात-दिन मेहनत कर के और औरों को तारण करने के लिये इतनी मेहनत की है और इसी तरह से करते रहें । ऐसे ही उनको आशीर्वाद दे कर और आप सब को मेरे प्रेम का आशीर्वाद दे कर मैं आप से बिदा लेती हूँ। 17 निर्विचारिता मुंबई, ६ अप्रैल १९७६ तुम लोगों को बुरा लगेगा इसलिये मराठी में बोलने दो । मैं कह रही हूँ कि तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं, उन प्रश्नों अचेतन में छोड़ो, वो मेरे पैर में बह रहा है। माने ये कि कोई भी प्रश्न , अब तुमको अपनी लड़की का प्रश्न है को तुम समझ लो। उसमें खोपड़ी मिलाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न है वो यहाँ छोड़ दो। उसका उत्तर मिल जायेगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इस चीज़ से लाभ होगा, वो नहीं बात। जो परमात्मा सोचता हैं तुम्हारे लिये जो हितकारी चीज़ है, वो घटित हो जायेगी। वो तुम कर भी नहीं सकते हो । इसलिये उसको छोड़ दो तुम क्यों बीच में तंगड़ियाँ तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो? तुमको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। तुम छोड़ तो दो। जो तुम्हारे सारे प्रश्नों को सॉल्व करने के लिये पूरी इतनी कमिटी बैठी हयी है, उनके पास छोड़ो तुम। सहजयोग में यही तो कमाल है, कि सर का बोझा उतर गया उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होंगे, ऐसे कमाल होंगे, कि बस्। लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है । आखिर तक वो यही सोचते रहता है कि , 'मुझी को करना है। और सोचते रहिये, एक के ऊपर एक ताना, बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिये। आखिर आप पाइयेगा, कि आप कहीं भी नहीं पहुँचे और पागलखाने में ही आप जाइयेगा। आपके प्रश्न हल करने के लिये बहुत बड़ी कमिटी बैठी हुई है। उसमें पाँचों तत्त्वों के अभिनायक बैठे ह्ये हैं, ब्रह्मदेव| सारे धर्म को बनाने वाले बैठे हैं, विष्णु और सारे संसार की स्थिति ले कर के और लय ले कर के बैठे हये हैं, शंकर जी। उनको भी तो कभी कभी चान्स दो| क्या तुम्ही लोग सारे प्रश्नों को ठीक करोगे ? और जैसे ही आप निर्विचार में होना शुरू कर देंगे, आप देखियेगा, आपके अन्दर ये तीनों ही शक्तियाँ अपने आप बन जायेंगी। अपने आप सुलझ जायेंगी, धर्म, अर्थ और काम। बिल्कुल वो ठीक से। अपने अपने जगह बैठ जायेगी। निर्विचारिता में रहने से आपके अन्दर जो प्रश्न है, उसमें कॉस्मिक चेंज आता है। ये कोई अन्दरूनी घटना घटित होती है। उसके सूत्र पे घटना होती है। जैसे एक आदमी समझ लीजिये की शराब पीता है। मिसाल के तौर पर। वो मेरे पास आता है। 'माताजी, ये शराब पीता है। उसकी शराब छुडाओ।' उसकी कुण्डलिनी जागृत करते ही, उसकी कॉस्मिक दशा ऐसी हो जाती है, कि वो शराब पीता है तो उसको उलटी होती है । फिर ये भी हो की सकता है कि शराब की भी जो मादक शक्ति है, उसको भी खत्म कर सकते हैं, जब शक्ति पे बैठे हैं, तो हर तरह शक्ति को ले सकते हैं। जितनी डिस्टूक्टिव शक्ति है उसको भी खत्म कर सकते हैं। लेकिन आप जो ये अपने छोटे से दिमाग में, हर एक चीज़ को सुलझाने का प्रयत्न करते हैं, उसी में गड़बड़ हो जाता है। बिल्कुल निर्विचार। मेरे पैर पे भी लोग रहते हैं। तभी वो विचार में रहते हैं। मुझे इतना आश्चर्य होता है कि कम से कम मेरे पैर पे तो विचार छोड़ दो। वहाँ पे भी उनका चलता रहता है विचार। मैं कोशिश कर रही हूँ। हाथ-पैर चला रही हैूँ, तांडव नृत्य हो रहा है और ये लोग इधर विचार ही कर रहे हैं। कम से कम मेरे पैर में विचार छोड़ना आना चाहिये। फिर धीरे-धीरे ये आदत बनते जायेगी। निर्विचारिता की। बसू एक छोटीसी चीज़ है, कि निर्विचार में रहना सीखो। कोई भी आपका प्रश्न हो निर्विचार में रहो। ऐसे मैं आपको सुझाव देती रहती हूँ। आपका ये चक्र क्यों पकड़ता है, वो क्यों पकड़ता है। छोटी छोटी बातें 18 প उसको समझ लेना चाहिये। आपका शरीर ठीक रखो, मन ठीक रखो। मन की भी बहत सारी बीमारियाँ होती है। औरतों को बीमारी होती है कि आदमियों के पीछे मैं मरूं, खास कर के। आदमियों को और बीमारियाँ होती है। मन की अनेक बीमारियाँ होती है। उधर जरा सा चित्त रखो। निर्विचार में रहो। एक छोटी सी चीज़ करने से ही आपका जो स्वयं, हृदय में बैठा हुआ स्व है, उसका प्रकाश फैलना शुरू होगा और वही प्रकाश है जो आपके अन्दर वाइब्रेशन्स की तरह बह रहा है। ये आपके अन्दर बसा हुआ परमात्मा का जो अंश है, स्व, सेल्फ, उसका प्रकाश सारे संसार में जाता है और लौट के आपके पास आ जाता है पॅराबोली में। अनेक उसकी लहरें चलती हैं। गोल गोल घूम कर के आपके हृदय में आ जाता है। अपनी जो बाती है उसे ठीक रखो। आपका शरीर ठीक रखो, जो आपका दीप है। आपकी जो शक्ति है तेल दिमागी जमाखर्च जो है उसमें खर्च न करो। लौ को सीधे लगाओ। ये लौ का उपर का हिस्सा है, उसको माँ से चिपका लो। उसके पैर में बाँध दो । सीधी उठेगी लौ। निर्विचारता में निर्भीकता से जलती है। और ऐसा आदमी कहीं खड़ा होगा तो उसकी तेजस्विता को देख कर लोग कहेंगे कि, 'भाई, तुम्हारे गुरु कौन हैं? ये तुमने किससे पाया है?' यही सहजयोग के लिये आप लोगों को करना है। जहाँ तक हो सके निर्विचार रहें। हम तो धक्का दे ही रहे हैं कुण्डलिनी को। आपको भी वहाँ रखने की कोशिश कर रहे हैं। आप भी जरा कोशिश करें । कोई विचार नहीं आना है और अपना माथा किसी के आगे मत झुकाना। याद रखना, किसी के आगे जा कर माथा नहीं झुकाना है। कोई भी हो। बहुत से लोग सहजयोगी, सहजयोगी कह के माथा झुकाते हैं। मैंने देखा है। ये सब फालतू की बातें करने की जरूरत नहीं। मूर्तियों में भी देख के जिस के वाइब्रेशन्स ठीक है, तो ठीक है। मूर्तियों से आप बहुत बड़ी मूर्तियाँ हैं। आप स्वयं एक मंदिर हैं। क्या वो मूर्ति थोड़ी आपके वाइब्रेशन्स जानती है! वो तो उसमें से वाइब्रेशन्स बस आ ही रहे हैं, | बस और क्या हो रहा है। आप तो अपने हाथ भी चला सकते हैं। दूसरों को आप जागृति दे सकते हैं। किसी के चक्र खराब हो उसको आप ठीक कर सकते हैं। मूर्ति तो वहाँ बैठी वाइब्रेशन्स छोड़ रही हैं । सहजयोग में बम्बई सेंटर में बहुत काम हुआ है। इसमें कोई शक नहीं। और लोगों ने बहत अपने को ऊँचा उठा दिया है। और वैसे भी महाराष्ट्र में बहुत काम हुआ है। एक छोटे से गाँव में राहरी में, बहुत काम हुआ है। जितना आप गहरा उतरेंगे उतना गहरा काम होगा। अपने को बहुत ज्यादा लोग नहीं चाहिये। थोड़े ही लोगों से काम बन जायेगा । लेकिन जो भी हो वो पक्के हो । (मराठी) आता काही प्रश्न असतील तर विचारा. राजकारण हो तो कृष्ण के जैसा। जिस राजकारण के कारण संसार का हित है, वही राजकारण एक सहजयोगी को करना चाहिये। याने कैसे? मैं करती हूँ। आप लोगों को पता नहीं राजकारण। राजकारण इस तरह से करना चाहिये कि खुबी से उस आदमी का हित निकाल ले। होशियारी से उसकी जो अच्छाईयाँ हैं उसको उठा लें। सीधे हाथ से तो आप लेने वाले नहीं। तो उसपे कुछ चॉकलेट चढ़ा कर के आप के मुँह में दे दिया। मुझ से बढ़ के कोई राजकारणी नहीं है। बच के रहो। बड़ी राजकारणी हँ मैं। अगर कोई ज्यादा निगेटिव होता जाता है तो उसका भिडा देती हूँ दूसरे निगेटिव आदमी के साथ में। लड़ते रहो वा मरते रहो। लेकिन मेरा जो राजकारण है वो तुम्हारे हित के लिये है। क्योंकि सीधे रस्ते आने ही नहीं वाले। तो राजकारण खेलना पड़ता है। फिर अंत में आते हैं। लेकिन विज्ड़म किस चीज़ में है? कि हम अपना अच्छा देखें। हम अपने अच्छे का सोचें। हम अपना हित सोचें। ये हित की गंगा बह रही है। 19 दूसरी निगेटिविटी आदमी में किस तरह से आती है? अपने तरफ नज़र रखें। पहले ये कि, निगेटिविटी में हम किस से ज़्यादा दोस्ती करते हैं? हम किस से ज्यादा मिलते हैं? मिलना बंद करिये। फौरन बंद करिये। कोई अगर पचास साल से उतरते हैं तो वो ग्रुप बना लेंगे। बनाने के लिये इन्सान को लगता ही नहीं है। तो भगवान ने ग्रुप कुछ आपको ग्रुप में पैदा किया है? अभी तो इंटरनैशनल लेवल पे उतरने की बात है। उसके बाद युनिवर्सल लेवल पे उतरने की बात है। अभी तो गिरगाव, दादर ही हो रहा है इधर। तो एक बड़ा भारी हम लोगों का जो दुश्मन है वो है राजकारण। जो हमारे अन्दर बैठा हुआ है। एक दुश्मन है हमारा बहुत बड़ा। काम-क्रोध-मद-मत्सर वो तो बहुत साफ़ है। लेकिन ये चोरी छुपे बैठे हये अपने अन्दर में एक बड़े दुष्ट जीव है जिनका नाम है राजकारणी स्वभाव। तो अपने से कहना चाहिये, 'ओ, मिस्टर राजकारणी, जरा चुप रहिये आप। हमको मत पट्टी पढ़ाईये। बड़ा चोर बैठा हुआ है अन्दर में। उसका ख्याल रखो। दूसरी निगेटिविटी कैसे आती है? कि हम मिसआयडेंटिफाइड हैं किसी चीज़ से। माने कि ये, हम कहें, यहाँ तक की हम हिन्दुस्तानी हैं। आप कोई हिन्दुस्तानी वगैरा नहीं। आप इन्सान हैं। ये बात बिल्कुल सत्य है। अब उसकी ओर बारीक बारीक में आईये। होते होते, अब मैं किस का नाम लूँ, कि हम उस गणपति के पास में रहने वाले हैं, या उसकी जो मिट्टी है वो हमारे फलाने गाँव से आती है, तो हम सब एक हैं। इस कदर के मिसआयडेंटिफिकेशन महामूर्खता के, मनुष्य के दिमाग में हमेशा रहते हैं। जब आप अनेक जन्मों में विश्वास करते हैं, तो आप ये किस प्रकार कह सकते हैं, कि आज आप ब्राह्मण हैं तो कल आप चांभार भी हो सकते हैं। और हो सकता है कि आप मुसलमान से आज आ कर के, यहाँ ब्राह्मण बने बैठे हैं। क्या आपको पता है आपका पास्ट क्या था? तो अपना जो गत है, जो भूत है, जो पास्ट है, उसका भी अगर सत्य आप देख ले, उसका भी अगर आप मत्यर्थ देख ले, उसका भी अगर आप त्त्व पहचान ले, तो आप उसको भी बिल्कुल समझ सकते हैं कि ये सब बकवास है। याने आप देख सकते हैं कि मैंने, ये मिट्टी कहाँ से इकठ्ठी की है, मूर्खता की। एक जनम में तो में मुसलमान था, एक जनम में में राजा था, एक जनम में मैं भिखारी हूँ। ये मिट्टी मैंने मूर्खता की कैसे इकठ्ठी की है। उसके तत्त्व को देखना चाहिये और उसका तत्त्व महाकाली का है। उसका तत्त्व महाकाली का है, अगर उसको आपने समझ लिया कि ये जो कुछ भी हमारा पास्ट है, ये हमारी बेवकूफ़ी के कारण वहाँ जमा है। 'मैं इसकी लड़की, मैं शिवाजी महाराज की फलानी, ठिकानी।' होगी, कौन शिवाजी पूछो। वो कहाँ और आप कहाँ! वो आयेंगे तो घोड़े पे आयेंगे। हम यहाँ के ब्राह्मण आये हैं, हम वहाँ के वो आये हुये हैं पोपसाहब, हम फलाने आये हुये हैं। ये सब मिसआयडेंटिफिकेशन इस महाराज ? कहाँ हैं वो? हैं मेरे सामने तो जनम के बहुत सारे हैं। ये भी एक तरह से पास्ट ही हैं क्योंकि इस मूवमेंट में तो नहीं है। इस समय तो नहीं है। इस समय ये आयडेंटिफिकेशन। इस समय में आप क्या है? एक ही तत्त्व हैं कि आप सब मेरे बेटे हैं। इसके सिवाय और कोई सत्य नहीं। सबको मैंने अपने सहस्रार से जन्म दिया है। इसके अलावा दूसरा कोई भी सत्य नहीं। यही एक सब से बड़ा | महान सत्य है। इसे शिरोधार्य करें। जो इसको नहीं शिरोधार्य करता वो कभी भी सहजयोगी ऊँचा उठ नहीं सकता है। वो दूसरों को हमेशा खींचता रहेगा । अपनी निगेटिविटी से दूसरों को खींचता रहेगा । वो अपने को अकलमंद बहुत समझें, कुछ भी समझें लेकिन उसको जानना चाहिये कि न तो वो खुद उठ रहा है न तो वो दूसरों को उठने देगा । आप 20 सब एक ही माँ के बेटे हैं और सब युनाइटेड हैं। इतना ही नहीं एक ही शरीर के अन्दर पनपने वाले आप महत्त्वपूर्ण चक्र हैं। ये आप जानते हैं कि नहीं जानते! विराट के अन्दर अनेक छोटे छोटे सेल्स हैं। अनेक छोटी छोटी पेशियाँ हैं। उसमें से आप जागृत पेशियाँ हैं। आप जागृत हैं। आप में से कोई वो पेशियाँ हैं जो हृदय में है। कुछ हैं वो ब्रेन में हैं। कुछ हैं वो उसके लंग्ज में हैं। कुछ हैं वो उसके पेट में हैं। जो जो जागृत ऑटोनॉमस काम हैं, उसके अन्दर की पेशियाँ आप लोग हैं। आप बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इस चीज़ का आयडेंटिफिकेशन, तादात्म्य आप में नहीं है। आप ऐसे तो बहुत महत्त्वपूर्ण बनते हैं। हम ये हैं, वो हैं, वो हैं। हमारे लिये क्या हैं? हम धूल के बराबर हैं। लेकिन ये रिलेशन टू सहजयोग। सहजयोग के साथ संबंधित जब आप हैं तभी आप महत्त्वपूर्ण हैं। नहीं तो आपका परमात्मा को कोई भी माहात्म्य नहीं है। समझ लीजिये आप। आप व्यर्थ हैं परमात्मा को। ऐसे हजारों उठा के फेंक देंगे वो। उसके पाँव के धूल के बराबर है। आपका माहात्म्य तभी हैं जब आप सहजयोग के रिलेशन में कहाँ तक उठते चले जाते हैं। हिन्दुस्तानी आदमी की शरीर व्यवस्था, उसकी मानसिक व्यवस्था, उसका सब कुछ एक अलग ढंग का है। चीनियों का अलग ढंग का है। अंग्रेजों का अलग ढंग का है। सब ने अपना अपना बना लिया है, मटका। सब ने अपने अपने मटके बना लिये हैं। किसी का कैसा शेप है, किसी का कैसा शेप है। उसमें कोई हर्ज की बात होनी ही नहीं चाहिये। लेकिन उसके अन्दर का माल मसाला भी एक विशेष रहता है। जैसे आप मराठी घर में जाओ, तो वहाँ अलग तरह की फोडणी (बघार) देते हैं। पी में जाओ तो वहाँ अलग तरह का। 'घरोघर मातीच्या चुली' यू. असल्या तरीसुद्धा। हर एक का अलग अलग तमाशा बना के रखा है। अब ये भी मिसआयडेंटिफिकेशन कितना जबरदस्त है, कि हम लोग सब अलग अलग हैं। हमारे अन्दर एक ही सुगन्ध अपना ही बह रहा है। इससे कम से कम तादात्म्य कर लेना चाहिये। पहला सत्य ये है कि तुम लोग सहजयोगी हो। माने माताजी निर्मलादेवी के सहस्रार से तुम लोग पैदा हये हो। और दूसरा सत्य ये है कि तुम सत्य से ही तादात्म्य कर सकते हो। असत्य से नहीं। जैसे ही तुमने किया, तुम्हारे वाइब्रेशन्स बंद हो जायेंगे। अगर तुम मुझे भी कहो कि, 'माँ, तुम ये करती हो तो हम सब करते हैं।' देखिये, हम ही जब सब करते हैं तो ये भी करते हैं। उसकी भी रिस्पॉन्सिबिलिटी हमें लेनी चाहिये । पर तुम ने भी तो कोई खराबी की है अपनी! हम जो बात कर रहे हैं उस तरह से चलो, तो सब ठीक होने वाला है। इसलिये जितनी भी इस तरह की गलत धारणायें हैं उसको बैठ कर के, लिख कर के कि मेरी खोपड़ी में ये आया, वो आया, फलाने जगह से, क्योंकि मेरी माँ ने ही यह पढ़ाया था, क्योंकि मुझे स्कूल में ये पढ़ाया गया। फिर मेरे देश में ऐसा पढ़ाया गया। ये सब गलत बातें मुझे निकाल के दीजिये। तभी सहजयोग, ये सहजयोगी एक ऊँचे पते के लोग, अपने आप ऊपर उठायेगा। जैसे चलनी आप घूमाईये, तो चलनी में ऐसे लोग उपर आ जाते हैं और बाकी सब नीचे। परमात्मा से एकात्म। एकात्मता आनी चाहिये। प्रभु, परमेश्वर से दोस्ती जोड़नी चाहिये । उसके सर्वशक्तिमान स्वरूप से एकाकार होना चाहिये। इसको जब आप समझ लेंगे और उसको अपने से तादात्म्य करना चाहिये । सत्य तो सब जानते हैं। ऐसे लेक्चर देने वाले बहुत हो गये। लेकिन इस तरह से अपने को तादात्म्य करते ही आप उधर नहीं बैठे, आप यहाँ आ के बैठ गये। साइड बदल गयी आपकी। सूर्य की तरफ़ आप मुख नहीं कर रहे हैं। आप स्वयं सूर्य हो गये। अभी आपने सिर्फ सूर्य की तरफ़ मुख किया है । फिर आप स्वयं सूर्य हो जायेंगे। अपनी क्षुद्रता को देखते जाओ | अपने छिद्रों को नापते जाओ। मैं तुम सब को सूर्य बनाना चाहती हूँ। इसके सिवाय मैं और कुछ नहीं चाहती। जो लोग अभी तक इस चीज़ को नहीं समझ पाये हैं और जान नहीं पाये 21 ०] वो छोटी दृष्टि के हैं। उनमें वो विशालता नहीं आयेगी । लेकिन तुम लोग सब अपने को विशाल बनाओ। दूसरा चाहे छोटा हो जायें आप अपने को अलग अलग तरह से विशाल बनाओ। विशालता से ये सब क्षुद्रतायें जो हैं ये खत्म हो जायेंगी। अपनी ओर दृष्टि करने पर, अपने दोष देखने पर अपने को कोई कंडेम्न करने की जरूरत नहीं है । अपने को बुरा मानने की जरूरत नहीं है। क्योंकि वो भी एक तरीका भागने का है। ये बड़ा भारी भागने का तरीका बनाया है मनुष्य ने । ये में समझ गयी अब। उसका ऐसा तरीका है कि उसने ऐसा कह दिया कि 'मैं हूँ ही खराब ! माताजी, में बहुत खराब आदमी हूँ।' बसू वो तो बेशरम हो गये आप। जैसे कि कहते हैं कि हिपोक्रसी दुनिया में नहीं होनी चाहिये। बेशमर्मों से हिपोक्रिस अच्छे होते हैं मेरे विचार से। बेशर्म जैसे रस्ते पर खड़े हो कर 'मैं बदमाश हूँ। मैं किसी से ड्रता नहीं। मैं बदमाश हूँ।' तो सभी बेशर्म हो गये उसके साथ में। इससे बेशम्मी बढ़ेगी। हिपोक्रसी से कम से कम बढ़ेगा नहीं मामला। बीच का रास्ता है। अपने दोषों को देखो। और जैसे बदन में कलंक लगाया है उसको पोछ दो। उसका बखान भी करने की मेरे पास जरूरत नहीं। ये तुम्हारा, तुम्हारे अन्दर, तुम्हारे साथ, तुम्हारा मामला है। तुम अपने को ठीक कर लो। ये तुम्हारा प्राइवेट मामला है। जब तक वो मेरी नज़र में नहीं आता मैं भी उसको नहीं कहती। नज़र आने पर भी मैं उसको नहीं कहती हूँ। बहुत देर तक में रुकी ही रहती हूँ। हाँ, लेकिन जब वो बहुत ही मारक हो जाता है, जब उसे सहजयोगी पे हाथ आने लग जाता है, दुसरों का नुकसान होने लगता है, तब किसी से कहती कि देखो तुम ऐसा नहीं करो। कोई मेरे पास आ कर के कन्फेशन करने की जरूरत नहीं है किसी तरह । आप अपने ही अन्दर अपनी स्वच्छता को देखो। अपना वरण करो। अपना स्वागत करो। अपनी इज्जत करो। अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाओ| अपने को उँचा उठाओ| अपना गौरव करो। गौरव करने योग्य बनो। जो भी तुम कर रहे हो, उससे क्या तुम्हारा गौरव हो गया या तुम्हारी बुराई हो गयी ये तुम खुद समझ सकते हो। इतनी अकल हर एक आदमी में है। लेकिन अब कोई भी चीज़ ऐसी नहीं करो जिससे की तुम्हें गौरव छोड़ना पड़े। अंधेरे में, कलियुग के घोर अंधेरे में, तारे बन के तुम्हे ही चमकना है। जितना अंधेरा गहनतम है, तारे बन के उसी में तुम्हें चमकना है। तुम ही मार्गदर्शन करने वाले हो संसार में । हम क्या मार्गदर्शन कर सकते हैं! क्योंकि हम ने न कोई मार्ग चला है और ना हम कहीं पहुँचे हैं। हम जहाँ हैं वही हैं और वही रहते हैं। लेकिन तुम लोग उठे हो । तुम्हें लोग देखेंगे। हमारे लिये तो सब कहते हैं कि, 'वो तो हैं ही सेंट, वो तो होली है । शी इज होलीएस्ट ऑफ द होली। उनका लोग मार्गक्रमण कर के आये हो। तुम हमारा क्या मुकाबला!' तुम्हारे ही तारे जगाने के हैं। अपनी क्षुद्रताओं को कम करो। एक दूसरे सहजयोगियों को क्रिटीसाइज मत करो। बहुत बुरी बात हैं क्योंकि हर सहजयोगी एक ही शरीर का अंग - प्रत्यंग है। इससे महामूर्खता क्या होगी कि कोई इस हाथ से उस हाथ की उंगलियाँ काट रहा है। अगर दूसरे सहजयोगी में कोई प्रॉब्लेम है और आप अगर सोचते हैं प्रेम में तो साइलेंटली उसको बंधन दीजिये। उसको जूते मारिये। ठीक करिये। पर अपने को भी बाद में जूते मार लीजिये। हालाकि ये जरूर बात है, कि जो आप लोग पिछले वर्ष थे उससे कहीं अधिक आज उजले हैं और जो पाँच- छः साल पहले थे उससे कहीं अधिक सुंदर हो। धीरे -धीरे प्रगति तो हो ही रही है। कोई गिर नहीं रहा है । कुछ ऐसे होते हैं वो गिर जाते हैं, झड़ जाते हैं, निकल जाते हैं। लेकिन धीरे-धीरे चीज़ ऊपर बढ़ती जाती है। चित्त आपका अपने ऊपर और हमारे ऊपर रहे। काम बन सकता है। 22 EGO १ भैंने तो तये किया है कि गुरुमंत्र वगैर कुछ नहीं देनी है। क्योंकि डसी में मन अटका २हती है। अंग२ आपकी उल्लती ह२ क्षण होगी, तो मैं कौनी मंत्र ढूँ आप लोगों को? कुछ भी गुरुमंत्र नहीं। मुड़े सिर्फ माँ २वरूप मान लो। दूसर कुछ भी नहीं। माँ स्वरूप देखा तो भी बहुतं है। जल्दी सब समझ में आती है। प.पू.श्रीमाताजी, मुंबई, ११/३/२००० प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.१०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११ ०३८. फोन : ०२०-६५२२६०३१, ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in, website : www.nitl.co.in म हिं सर्व प्रथम उन्हों ने कही कि सात्मानुभव (आत्मसाक्षात्कार) प्राप्त करके स्थিব্র বন जाो-सभी प्रलोभनों, अहं, सभी बन्धनों से मुक्त होकर स्थितप्रज्ञ बन जाओ । स्थितप्रज्ञ स्थिति में व्यक्ति सर्व साधारण लोगों की तरह से नहीं सोचता और न ही सामान्य ्यक्ति की तरह भौतिक पदार्थों की तरफ आकर्षित होता है। हेसा व्यक्ति पूर्णत: निर्लित्त होता है, उसे न तो कोई शिकायत होती है और न ही कोई ई्या। श्रीकृष्ण ने यह सब बताया। प.पू.श्रीमाताजी, ५/९/१९९९, कबैला, इटली, ---------------------- 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरा जुलाई-अगस्त २०१६ हिन्दी तर मा ल पो ै 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-1.txt पु. ये अच्छी वात है कि अपने सारे आायुधों के साथ वे हमारी रक्षा के लिए आते हैं। परन्तु उनके पास सुदर्शन चक्र भी है। सुदर्शन, 'सु' अर्थात् शुभ, 'दर्शन' अर्थात देखना। वे हमें शुभ-दर्शन देते हैं। आप उनके साथ चालाकियाँ करें तो वो सब आपकी गर्दन पर आती हैं और तब आपको अपने शुभ-दर्शन होते हैं कि आप कहीं हवा में लटक रहे हैं। प.पू.श्रीमाताजी, लंडन, १५.८.१९८२ ে ्री ७६০५ 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-2.txt इस अंक में चैतन्य ...4 (पूजा, छिंदवाडा और गणपतिपुळे) एकाकार स्वरूप श्रौ दत्तमहाराज ...6 (सार्वजनिक कार्यक्रम, ९/१२/१९७३) निर्विचारिता ...18 (सेमिनार अँड मिटिंग, मुंबई, ६ / ४/१९७६) ० ० 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-3.txt यहाँ के रहने वाले लोग और बाहर से आये हुये जो हिन्दुस्थानी लोग यहाँ पर हैं, ये बड़ी मुझे खुशी की बात है, की हमारे रहते हुये भी हमारा जो এ जन्मस्थान है, उसका इतना माहात्म्य हो रहा है ি और उसके लिये इतने लोग यहाँ सात देशों से लोग आये हये हैं। तो ये जो आपका छिंदवाडा जो है, एक क्षेत्रस्थान हो जायेगा और यहाँ अनेक लोग आयेंगे , रहेंगे। और ये सब संत -साधु हैं, संत हो गये और संतों जैसा इनका जीवन है, कहीं विरक्ति है, कहीं इनको। अपने घर में तो बहुत रईसी में रहते हैं। यहाँ (अस्पष्ट) है। कोई मतलब नहीं र आ कर के वो किसी चीज़ की माँग नहीं और हर हालत में ये खुश रहते हैं। इसी तरह से सहजयोग के चैतन्य से योगी लोग आये हये हैं। अलग-अलग बहुत जगह से, मद्रास से आये हये हैं और आप देख रहे हैं कि हैद्राबाद से आये हुये हैं। विशाखापट्टणम् वि इतना दूर, वहाँ से भी लोग आये हये हैं। बम्बई से आये हुये हैं, पुना से आये ह्ये हैं। दिल्ली से तो आये ही हैं बहुत सारे और लखनौ से आये हैं। हर जगह से यहाँ लोग आये हैं। पंजाब से भी आये हैं। इस प्रकार अपने देश से भी अनेक जगह से लोग आये हये हैं और यहाँ पूजा में सम्मिलित हैं । ये बड़ी अच्छी बात है कि सारा अपना देश एक भाव से एकत्रित हो जायें । बहुत हमारे यहाँ झगड़े और आफ़तें मची हुई हैं। इन सब से छुट्टी हो जायें और होना ही चाहिये। जब आप अपने अन्दर के धर्म को पहचानते हैं, तो आप जान लेते हैं कि आप सब एक हैं। हमारा कोई ऐसा मठ नहीं है और कोई ऐसा, जैसे गुरुओं के बड़े बड़े काफ़िले हैं, ऐसा कोई मामला नहीं है। हमारे यहाँ तो कोई भी मेंबर भी नहीं है | इसकी कोई संस्था नहीं, ऑरगनाइझेशन नहीं, कुछ नहीं है। सब अपने आप सारे काम हये हैं। सारे देश की ऐसी स्थिति हो जायें, जहाँ लोग संत हो जायें, तो वहाँ पर कोई भी प्रश्न नहीं रहता। सारे प्रश्न हमारे देश के ऐसे छूट जायें। इन लोगों की गरिबी भी हट गयी और जो कुछ इनकी शिकायतें थीं , शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक वो सब ठीक हो गयी | और ये अनन्त चीज़ों से आशीर्वादित है। और ये हैरान है कि ये कैसे हो गया! बिल्कुल खास बात नहीं 4t श्ी 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-4.txt क्योंकि ये समय आया है। सब को होना है। छिंदवाडे में भी होना है, हर जगह होना है और सब को इसका पूरी तरह से फ़ायदा होना चाहिये। यहाँ पर हमने सेंटर किया हुआ है। जो लोग छिंदवाडे के हैं वो लोग जरूर इस सेंटर में आयें और अपने को सम्मिलित करें, तो उनको आत्मसाक्षात्कार मिलना कोई मुश्किल नहीं है। एक क्षण में उनको मिल शुरू सकता है। जो कबीर ने कहा, जो नानक ने कहा, जो ईसा ने कहा, मोहम्मद ने कहा वो चीज़ आप है, ये टाइम आ गया है। इसका फ़ायदा उठाना चाहिये। खास कर के मेरा जन्म यहाँ हुआ है, तो आप लोगों के लिये विशेष बात ये है कि चैतन्य मुझे दिखायी देता है, सारे आकाश में चैतन्य जैसे फैला हुआ हो। तो इस चीज़ को आप समझने की कोशिश करें। और इसको पा लें। ये सब के लिये हैं । इसमें जात-पात कोई चीज़ का बंधन नहीं है। सब लोगों को ये आनन्द इस सृष्टि में मिलें। हमारा सब को अनन्त आशीर्वाद है ! छिंदवाडा, १८ डिसेंबर १९९३ आप लोगों को अंग्रेजी तो काफ़ी समझ मे आती होगी, जो मैंने बात कही। आपको सबको मालूम है, कि हमारे जो अन्दर बैठे हुये देवी- देवता हैं, वो आपकी पूजा से बहुत प्रसन्न हो जाते हैं और बहुत जोरों में वाइब्रेशन्स छोड़ना शुरू कर देते हैं। कभी तो जरूरत से ज़्यादा। चाहे आप उसको अॅबसॉर्ब करें, चाहे नहीं करें। अगर आपने उसको अॅबसॉर्ब नहीं किया तो मुझे ही तकलीफ़ होनी लगती है। इसलिये सब को बहुत खुले दिमाग़ से, खुले हृदय से, पूरी आर्तता अन्दर में ला कर के पूजा में बैठना चाहिये। जिस में जितनी आर्तता होगी उसे उतना ही फायदा होगा। इसलिये शुद्ध इच्छा होनी चाहिये। अन्दर शुद्ध इच्छा कर के और 'माँ, हमारे अन्दर ऐसा कुछ रंग भर दो, उतरे ही ना! एक बार जो रंग भर गया वो उतरे ही ना, ऐसा ही रंग भरो।' ऐसी मन में इच्छा कर के आपको बैठना चाहिये । अच्छा, अब काफ़ी देर हो चुकी है। और ये सब बेकार के इन लोगों ने पुलिसवाले लगा दिये हैं। उनके साथ बैठे बैठे भी टाइम गया। उसके बाद ये हुआ। तो जो भी हो, अभी ठंडी हवा चल रही है, तो अच्छा है कि इस वक्त पूजा हो रही है। गणपतीपुले, ०७ जनवरी १९९० 5 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-5.txt এ एकाकार स्वरप श्रीदत्तमहाराज ९ दिसंबर १९७३ श्री दत्त जयंती है। आज का दिन बहुत बड़ा है। इन्ही की आशीर्वाद से मैं सोचती हूँ कि ये आज का दिन आया हुआ है, जो आप लोगों में सहजयोग पल्लवित हुआ। सारे गुरुओं के गुरु, आदिगुरु श्रीदत्तमहाराज, उनका आज महान दिवस है। उनको मैं नमस्कार करती हूँ। उन्होंने मुझे अनेक जन्मों में सहजयोग पर बहुत सिखाया है। और उसी के फलस्वरूप इसी जन्म में भी मैं कुछ कार्य कर सकती हूँ। 'गुरुब्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर:। गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ' आद्यशक्ति ने जब सब सृष्टि की रचना की। सारी सृष्टि की रचना करने के बाद जैसे एक राजा अपना राज्य फैलाता है और उसके बाद भेष बदल के इस संसार को देखने आता है, इस तरह आदिशक्ति भी बार बार संसार में अवतरित हुई। लेकिन चाहे शक्ति कितनी भी ऊँची हो, उसे एक मनुष्य गुरु की जरूरत है। मनुष्य का स्थान उस शक्ति 6. 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-6.txt से ही है। अगर शक्ति को मानव रूप धारणा करनी है, तो कभी उसे पिता के स्वरूप, कभी उसे भाई के स्वरूप, कभी उसे बेटे स्वरूप पा कर ही वो संसार में आयी। सर्वप्रथम ऐसा ही समझें कि ब्रह्मा-विष्णु-महेश इन देवों से जब सारी सृष्टि की रचना की, उस वक्त इस संसार में फँसे हये लोगों को बाहर निकालने का विचार आदिशक्ति के मन में आया, कि ये तीन तत् अगर किसी तरह से एकसाथ जूट जायें और उनमें श्री गणेश जी की बालकता, उनकी अबोधिता, उनका इनोसन्स उतर जायें, तो हो सकता है कि एक बहुत बड़ा कार्य करने वाले गुरु इन से निर्माण हो। सती अनसूया के रूप में उनका साक्षात् हुआ। ये एक ही ऐसी सती संसार में हैं कि जिसने इन्सान के तारण का विचार किया। ये तीनों बालक अनसूया के पास, अनसूया का अर्थ है कि जिसमें असूया नहीं। जो किसी से मत्सर नहीं करती। जो सर्वथा प्रेम होता है, उसमें मत्सर आदि, क्रोध आदि ऐसे नगण्य, क्षुद्र विचारों का कहाँ से स्थान है। जिस में कोई भी असूया नहीं, ऐसी अनसूया। इस की परीक्षा लेने के लिये ये तीनों भी, ऐसा कहा जाता है, इनके दरवाजे गये और उस वक्त उन्होंने अपने तेज बल से, ये तेज बल क्या था? कि यही माँ का प्रेम अत्यंत..., शक्तिशाली माँ का प्रेम जो उन पर बरस पड़ा और वो छोटे बच्चे हो गये। उन्हीं का एकाकार स्वरूप श्रीदत्तमहाराज है। एक अजीब सी विभूति हैं। इसका की कितना भी वर्णन किया जायें वो कम है और समझाया जायें वो भी समझ से परे। ऐसे त्रिगुणों से भरे हुये श्रीदत्तमहाराज आदिगुरु के रूप में संसार में आये और उन्होंने अनेक बार इसकी शिक्षा दी कि भवसागर को किस तरह से पार किया जायें । कल मैंने आपसे बताया है कि हम संसार में अनेक धर्म बना कर के लड़ाई कर रहे हैं। इसी एक श्रीदत्त के अवतार अनेक बार संसार में आये। उनमें से, जैसे कि मैंने आप से कल बताया था, राजा जनक, जो कि जानकी जी के पिता थे। वे भी और कोई नहीं थी, बल्कि इन्हीं दत्तात्रेय जी के अवतार थे । उसके बाद, मच्छिंद्रनाथ, आपने नाम सुना होगा। वे भी उन्हीं के अवतार हैं। उसके बाद झोराष्ट्र, जो तीन बार संसार में आये। ये भी उन्हीं के अवतार हैं। इसके बाद मोहम्मद साहब, जो कि साक्षात् उन्हीं के अवतार थे और जब उनसे बहुत बार पूछा कि, 'भाई, तुम से भी तो पहले कोई आये होंगे?' तो उन्होंने कहा कि, 'आये थे एक मोहम्मद साहब ।' फिर उनसे पूछा कि, 'उससे पहले कौन था ?' कहने लगे कि, 'एक मोहम्मद साहब।' मोहम्मद माने जो प्रेज होता है । जिसकी प्रेज की जायें । जो स्तुतिपात्र है। वही स्तुतिपात्र है जो संसार का तारण करता है। वही सारे मोहम्मद जो आये थे, वही सारे दत्तात्रेय जी बार बार संसार में आते हैं। उसके बाद नानक, गुरु नानक। उनकी आप अगर बानी कहे, उनकी आप अगर बातें सुने तो आपको आश्चर्य होगा, कि उन्होंने हर बार सहज में ही बात की। उन्होंने ही कहा कि, सहज समाधि लागो। उन्होंने ही कहा है कि, 'काहे रे बन खोजन जायीं, सदा निवासी, सदा अलेपा तो हे संग समायी। पुष्प मध्य जो बास बसत है, मुकुर माही जब छायीं, तैसे ही हरि बसे निरंतर, घट ही खोजो भाई ।' घट ही खोजो, अन्दर ही है। अन्दर ही उसे प्राप्त करो। हम तो कविता गा रहे हैं। गाना गा रहे हैं। जो उन्होंने हमें डिस्क्रीप्शन दिया था उसे रटे जा रहे हैं। हृदय के ही अन्दर बसे ह्ये इस परम तत्त्व को, खोजने की बात। अनादि काल से ये आदिगुरु बार बार जन्म ार में ले कर के... संस मोहम्मद साहब की जो लड़की थी, कल भी मैंने बताया है कि इसके बात शिया जाति की शुरूआत हुई। मुसलमानों में शिया नाम की जति है। सिया से आया हुआ शब्द शिया हो गया। सिया माने सीताजी, आप जब यूपी में जायें तो सीता जी 7 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-7.txt के लिये कहते हैं सिया जी। सियावर रामचन्द्र की जय! तब सिया का नाम लेते हैं। वो स्वयं सीताजी थी, आदिशक्ति थी। और उनके जो दो बेटे हुये थे, हसेन और हुसेन। जिन्होंने कितने ही दुष्टों का नाश किया। उसके बाद तंग आ कर के जब वो भी मर गये। उसके बाद दूसरे जन्म में उन्होंने सोचा कि अहिंसा को प्रस्थापित किया जायें । हिंसा से कुछ काम नहीं बना। एक नया एक्सपरिमेंट करने के लिये, उन्होंने बुद्ध और महावीर के रूप में जन्म लिया। एक्सपरिमेंट ही होते हैं। नानक साहब के बाद एक पचास-साठ साल पहले, अपने इस महाराष्ट्र में ही शिर्डी के साईंबाबा, ये भी साक्षात् दत्तात्रेय जी के ही अवतार थे। इसका आपको अगर प्रमाण चाहिये, अगर आप पार हो जायें, और इसके बाद आप किसी पे ही हाथ रख कर देखिये तो एक ही तरह के वाइब्रेशन्स दिखेंगे। वाइब्रेशन्स से ही आप सब को जान सकते हैं । जैसे आप के पास आँख होना जरूरी है, किसी की आप आकृति देख रहे हैं, उसका रंग देखिये , इसी तरह से आपके पास वाइब्रेशन्स आने की जरूरत हैं जिससे आप संसार के सब गुरुओं को जान सके। और जान सके कि कौन सच्चा गुरु हैं और कौन झूठा गुरु। कौन उस आदिगुरु दत्तात्रेय जी के साक्षात् हैं। कहने को तो आज कल हजारों गुरु संसार में आ गये। किसी के कहने से कोई गुरु नहीं होता। और किसी को मान भी लेने से वो गुरु नहीं होता। गुरु शब्द ही का अर्थ बहत बड़ा है। इसको समझ लेना चाहिये। आज इसी पे मैं | आज बातचीत करना चाहती हूँ कि गुरु कौन और कौन गुरु नहीं। गुरु शब्द का अर्थ ही ये है कि जो हमसे बड़ा है। जो हमसे उँचाईं पे बैठा हुआ है। जैसे उँचाई पे बैठा हुआ पानी अकस्मात नीचे आ जाये । वो अपनी सतह को ढूँढने के लिये, अपने सतह पे सब को लाने के लिये हमेशा लालायित है। आप पानी को किसी उँचाईं पर रख दीजिये, वो चाहेगा कि उसी उँचाईं पे सब को लाऊँ। यही गुरु का अर्थ ऐसा को नहीं। हमसे उँचा वो हर मामले में होना है। एक ही मामले में नहीं । इसलिये आजकल जो गली जो नहीं जो गुरु गली, रास्ते रास्ते पर हम लोग गुरुओं को मान रहे हैं, उनको याद रखना चाहिये, कि गुरुओं की हजारों .....। जो गुरु परम तत्त्व की बात करते हैं वो ही साक्षात् गुरु। जो परमात्मा की बात करते हैं और परमात्मा की ओर ही आपको उठाते हैं वही गुरु हैं। जो लोग आप से रुपया-पैसा लेते हैं, वो गुरु नहीं। जो अपनी वाणी का रुपया लेते हैं वो कभी भी | गुरु नहीं हो सकता। क्योंकि ये वाणी परमात्मा से आयी हुई बहमूल्य चीज़ है। इस की कोई भी किमत आप दे नहीं सकते। जिस दिन आप इसकी किमत दे सके, ये परमात्मा की चीज़ नहीं। आप परमात्मा को बाजार में जा कर खरीद नहीं सकते। याद रखिये, आज हम लोग इस तरह के हजारों लोगों के सामने खड़े हैं, जो परमात्मा के नाम पर पैसा कमायें । इससे बढ़ के अधमता और नीचता संसार में भी नहीं है। परमात्मा के पास एक ठोकर के बराबर भी संसार का कुछ कोई भी सामान, कोई भी वस्तु, कोई भी चीज़ अगर हो तो उसे हम मान सकते हैं कि परमात्मा को दें। जैसे कि हमारे घर में एक साहब आये थे, बड़े भारी महान गुरु अपने को बना कर के। और मुझ से कहने लगे कि, 'माताजी, आप को तो घर में ..... हैं और आप तो साधारण गृहिणी जैसी रह रही हैं। तो आप कैसे परमात्मा की बात करे? मैंने तो ये त्यागा, मैंने तो वो त्यागा, मैंने तो ये छोड़ा।' मैंने उन से कहा कि, 'वाकई तुम अगर त्यागना जानते हो, तो तुम ये भी जान लो कि इस में से जो भी चीज़़ तुम सोचो कि मेरे प्रभु के चरणों के धूल के बराबर भी है, उस के कणों के भी बराबर है, वो उठा के ले जाओ। लेकिन तौलना बराबर।' इधर उधर देखा उन्होंने। ये वो देखा। फिर 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-8.txt वो सकपका गयें। मैंने कहा, 'क्यों? कोई चीज़ नहीं मिली।' कहने लगे, 'इसके बराबर तो कोई भी नहीं। फिर मैंने कहा उनसे कि, 'तुमने छोड़ा ही क्या ? तुमने क्या छोड़ा, जिसका झंडा सुबह-शाम घुमा कर के और काषाय वस्र पहन कर के और ऊपर में बाल मुंडवा कर के दुनिया भर में चिल्लाते फिर रहे हो। क्या छोड़ा तुमने यही पत्थर। ये मिट्टी। असल में सहजयोग इसीलिये घर-गृहस्थी में बैठे ह्ये साधारण लोगों में ही पनपता है। जो अपने झंडे गाड़ते हैं उनमें कभी भी सहजयोग नहीं आ सकता। जो लोग सहज, सरल भाव से करते हैं। परमात्मा के दिये हये ऐश्वर्य में, उनके आनन्द और सुख में सहज से प्रेमपूर्वक रहते हैं, ऐसे ही लोग, ऐसे ही मध्य स्थिति के लोग परमात्मा को पा सकते हैं। गुरु का मतलब अब आपको समझना चाहिये कि, जो लोग काषाय वस्त्र पहन कर के पैसा इकठ्ठा करते हैं, वो लोग कभी भी गुरु नहीं। जिनके पास टूटी हुई सायकलें थीं वो आज इम्पाला में घूम रहे हैं, वो कभी भी गुरु नहीं हो सकते। जो आदमी परमात्मा को पाया हुआ है वो चाहे जमीन पे सो जायें और चाहे वो महलों में सो जाये, आराम से। इसलिये जनक राजा का आपको मैं उदाहरण देती हूँ। जनक राजा के पास में नचिकेता कर के एक बड़ा भारी गया। पहले तो वो शंका से व्याकुल था। उसने अपने गुरु से कहा कि 'ये एक गृहस्थ में हैं, ये राजा है, इसके यहाँ तुम क्यों जाते हो? इसके आगे तुम क्यों झुकते हो? इसके चरण क्यों छूते हो? ये तो गृहस्थी आदमी है।' तो उन्होंने उनको कहा कि, 'तुम राजा जनक के यहाँ जाओ और उनके यहाँ रहो।' आप जानते हैं कि उनको विदेही कहा जाता है। नचिकेता जब उनके साथ जा के रहा। उन्होंने देखा कि उनके यहाँ इतना ऐश्वर्य है, इतना पैसा है, लोग खाना-पीना खा रहे हैं, आराम से रह रहे हैं। राजा सब खाना खाते हैं, घूमते हैं, फिरते हैं। बाल-बच्चे वाले आदमी, कैसे हो सकता है परमात्मा को जानना। दूसरे दिन उन्होंने कहा, 'मैं तो जा रहा हूँ। अभी इसी वक्त मैं चला जा रहा हूँ। मुझे यहाँ रहने का नहीं।' 'अच्छा, चलो, पहले नहाने तो चलो।' नदी पे नहाने गये। उनको अपने साथ शरयू नदी पर नहाने ले गये। नदी में नहाते वक्त एकदम से किसी ने आ के बताया कि, 'हे राजा, तेरे तो घर में आग लगी है। राजवाडे में सारी आग लगी हुई है।' राजा जनक ने कहा कि, 'लगने दो। अभी तो मैं ध्यान में हँ।' हँस के कहा। उसके बाद लोगों ने कहा, 'तुम्हारे सब घर वाले भाग गये। आग तुम्हारी तरफ आ रही है।' तो उन्होंने कहा, 'जाने दो, अभी तो में ध्यान में हूँ।' उसके बाद उन्होंने कहा कि, 'अरे भाई, आग यहाँ तक आ गयी। तुम्हारे बाहर आभूषण और वस्र पड़े हुये हैं ये भी चले जायेंगे।' वहाँ जो रखे थे वो भी भाग गये । ये नचिकेत अन्दर जो नहा रहे थे। उनके एक-दो जो कपड़े बाहर पड़े हुये थे। उन्होंने सोचा कि 'ये अगर जल जायें तो मेरा क्या हाल होगा?' तो भागे बाहर । उन्होंने अपने वो कपड़े उठा लिये। तो भी ये ध्यान में हैं। जब वो लौट के आये, उनको बड़ा आश्चर्य हुआ। उसने इनसे पूछा कि, 'राजा, आपको कोई चिंता नहीं है ? क्या आपके कपड़े आदि सब कुछ जल जाते। और फिर आप क्या ऐसे ही घूमते ?' तब उन्होंने कहा कि, 'जो मिथ्या है वो मिटने ही वाला है। वो कोई बताने की जरूरत नहीं। जब तक है रहने दीजिये और नहीं है तो जाने दीजिये।' यही बात सच है। जो गुरु मिथ्या को मिथ्या नहीं समझते हैं, उनके पास आप क्या ढूँढने जा रहे हैं? हमारे ससुराल में एक किस्सा है, कि एक बार ऐसा हुआ कि बाराती आये। अब बारातिओं ने कहा कि, 'आप 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-9.txt हमारे लिये कुछ ऐसी व्यवस्था करें कि हम दहीबड़ा खायें।' बारातिओं के में लोगों ने कहा कि, 'भाई, इस वक्त दहीबड़ा बनाना बहुत मुश्किल हैं।' क्योंकि जाड़े में दहीबड़ा शाम के वक्त बनाया जरा नखरे होते हैं। और जाडे के दिनों नहीं जाता। 'कम से कम तो दहीबड़ा खायें। इसी वक्त लाईये आप दहीबड़ा।' एक बाबाजी वहाँ रहते थे। उनका पता चला। उन्होंने बाबाजी को बुलाया कि, 'भाई, आप किसी तरह इंतजाम करो।' वो कहने लगे, 'मँगवा तो दूँगा, लेकिन उसके बाद मैं रहने वाला नहीं हूँ।' 'अच्छा ठीक है, मँगवा दीजिये। ' उन्होंने एक खिड़की बंद कर ली , दूसरी खिड़की बंद कर लीं। दरवाज़ा बंद कर दिया। उसके बाद कहा कि, 'देखो, आ गया आपका दहीबड़ा। खाईये।' वहाँ सब दहीबड़े आ गये। लोगों ने दहीबड़ा खाना शुरू कर दिया। बड़े खुश हये। बाबाजी भाग गये। रातोरात बाबाजी जान बचा कर भाग गये। लोगों को समझ में नहीं आया कि बाबाजी क्यों भागे? दूसरी दिन सबेरे, यहाँ माँग लोग होते हैं, एक जाति होती है, जो आती है, खाना- वाना सब बटोर कर ले जाती है। वो आयें और उन्होंने देखा बर्तन वगैरे को, कहने लगे, 'अरे, हमारे कुल्हड उठा के कौन ले के आया ? ये तो हमारे कुल्हड थे। कौन उठा के लाये?' वो जो विवाह था, संपन्न तो हुआ था। लड़की बिदा हो गयी। नहीं तो कोई लड़की को भी बिदा न लेता। वजह ये थी की सब लोग बहुत नाराज़ हो गये। कहने लगे कि ये कौन लेकर के आया हमारे पूर्वजों में, समझ लीजिये हमारे पिता की तरह मैं भी इस चीज़ों में विश्वास ही नहीं करती थी। इसे भानामती कहा जाता था महाराष्ट्र में पहले। ऐसी चीज़ों में कोई भी विश्वास ही नहीं करता था, कि ऊपर से कोई चीज़ चली आयी और उन्होंने दहीबड़े खा लिये। अब क्या परमात्मा कोई धंधा नहीं दहीबड़े खिलाने के सिवाय ? आप लोगों को भी सोचना चाहिये कि आप लोगों को दहीबड़े खिलाने का ही उनका एक धंधा बचा हुआ है। जब आप किसी को इतने गुरु बनाते हैं कि वो आपको दो सौ रुपया पकड़वा देते हैं। मैं कहती हूैँ कि ऐसे ही इतने दाता लोग अगर हैं तो इस देश का इतना इकोनॉमी प्रॉब्लेम्स ही सॉल्व कर दीजिये। सबको दीजिये। घड़ियाँ मँगवाते हैं स्वित्झर्लंड से बनी हुई । एक भगवान से बनी हुई घड़ी मँगवा दे तो मान लें। इस चीज़ को सोच लेना चाहिये कि हम लोग किस चीज़ को पाना चाहते हैं? उसी परम को पाना चाहते हैं। पर आप की ही तो खोज इन्हीं जड़ वस्तुओं में हैं। इन्हीं पत्थरों में हैं। इसलिये आप इन लोगों को गुरु मानते हैं। रुपया भी जाता है, पैसा भी जाता है। जब आपका सब पैसा निकल जाता है, तब आप मेरे पास आते हैं। कल ही एक स्त्री आयी थी आप ने देखा था, किस तरह से नाच रही थी, कूद रही थी। मैंने कहा, 'क्यों आयी भाई?' कहने लगी, 'क्या करें अब तो हम ऐसे हो गये। मैंने कहा, 'चाहे लोग पागल तुम्हें बनायें और पागलखाना मैंने खोल के रखा है। तुम वहाँ क्या खोजने गयी थी ? क्या नाचने-कूदने से परमात्मा मिल सकता है? ' हमारे मानव के जितने भी कायदे कानून बने हैं, उस में उन लोगों को इसका अंदाज भी नहीं है कि मनुष्य कितना दृढ़ित हो गया है। जिन्होंने भी बनाये हैं वो बहुत शालीन लोग थे। उन्होंने उस दृढ़ता को और उस धृष्टता को पहचाना ही नहीं कि मनुष्य अन्दर से कितने गन्दे कामों में फँसा हुआ है। अगर वो लोग जान जाये तो नये कायदे बनाने पड़ेंगे, इन लोगों को सब को पकड़ने के लिये। ईसा मसीह को तो इन्होंने उठा कर सूली पर चढ़ा लिया । वो आसान था। लेकिन इन लोगों को तो कोई पकड़ ही नहीं पाता। जो रात - दिन आपसे रुपया खसोट कर के और आप लोगों का सर्वनाश करने पर लगे हये हैं। 10 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-10.txt कस्तुरी का अगरं और कल आपके बच्चों को सुगन्ध आ रहा हैं तो उसके लिये पागलखाने में भेजने के लिये तैय्यार कोई आप को कसम ले कर बैठे हये हैं। कभी आप लोग इधर भी कहने की जरूरत नहीं है कि, यहाँ पे कस्तुरी का सुगन्ध हैं। आँख उठा कर के देखिये और के ১। नुल सोचिये कि ये क्या है? परमात्मा ० नाम पर जड़ वस्तुओं को बाँटना ০ ० कहाँ कि भल-मानसियत ! आप भी में ১ ১ क्या कभी सोचते नहीं? कलयुग ১ तो मैं सोचती हूँ कि मनुष्य पर हैं. कितनी प्रगल्भ बुद्धि, इतनी उसके अन्दर ....क्या वो सारी अपनी बुद्धि को बेच खाता है, कि वो समझता नहीं कि किस तरह का मेस्मरिज्म है और इनटाइसमेंट हैं। इसकी वजह से हम ऐसे पागल जैसे उसके पीछे भाग रहे हैं और अपने अन्दर झूठे, बिल्कुल मिथ्या, निष्पाप अन्दर में कर के की बड़े शान्ति में बैठे हुये है। अपने से भी भुलावा कर रहे हैं और दूसरों से भी भुलावा कर रहे हैं। जब आपको रियलाइजेशन हो जाता है, तब बहुत दूर जाने की, बहुत पढ़ने की जरूरत नहीं है। आप समझ सकते हैं कि आप रियलाइज्ड हैं। इसलिये आप में एक जगह अन्दर से शांत है। मैं देखती हूँ कि इतने लोगों के गुरु हैं और तीस-तीस, चालीस-चालीस साल में हार्ट अॅटैक आ कर के लोग मर जाये। असम्भव की बात हैं कि अगर आप में रियलाइजेशन का जरासा भी त्त् एक बार जाग उठा है, तो हार्ट अॅटैक तो क्या कोई अॅक्सिडेंट होना भी मुश्किल है। ऐसे ऐसे उदाहरण हमारे अन्दर है। एक छोटा सा लड़का, अभी परसों बता रहे थे कि ट्रेन से आ रहा था और ट्रेन पूरी उलट गयी। जिस डिब्बे में वो बच्चा था, उसमें से एक भी आदमी को चोट भी नहीं आयी। आपके उपर देवता मंडराना चाहिये। अगर दिव्य नहीं उतर सकता तो ऐसा रियलाइजेशन क्या ? अब हमारा ही लो, आप जानते हैं कि कितने ही पार हये हैं। कैन्सर तक ठीक करते हैं। कोई विशेष बात नहीं। कोई विशेष हमारे ख्याल से बात नहीं। सिर्फ यही है कि इसमें इनको इंटरेस्ट नहीं है, किसी को क्युअर करने में। इनको रियलाइजेशन में ही इंटरेस्ट है। क्योंकि जो आनन्द आप ने पाया है, वही आप चाहते हैं कि सब पायें। सहज में ही है। अगर आप के पास रुपया पैसा है तो आप चाहते हैं कि रुपया-पैसा खर्च करें। लोगों को खिलायें, पिलायें । ऐसे ही रियलाइज्ड सोल ही चाहेगा मन में कि दूसरों की भी जागृति करें और पार करें और कर सकते हैं। अगर आप के अन्दर लाइट आयी है उसके लिये कसम लेने की कोई जरूरत नहीं है। कस्तुरी का अगर सुगन्ध आ रहा हैं तो उसके लिये कोई आप को कसम ले कर कहने की जरूरत नहीं है कि, यहाँ पे कस्तुरी का सुगन्ध हैं। लेकिन कस्तुरी की खोज है कैसे ? ये पहले अन्दर सोच लीजिये। नहीं तो ऐसे चक्करों में घूमने की कोई जरूरत नहीं है। एक साइड में तो हमारे ये लोग हैं, जो कि हमारे सबकॉन्शस से खेल रहे हैं। हमारे जड़ चेतन से, हमारे पास्ट से 11 -० 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-11.txt खेल रहे हैं। मैं ऐसे भी लोगों को जानती हूँ इस खोज में मैंने बहुत गुरु घंटालों को देखा और सब के मैं हथखण्डे जानती हूँ कि ये क्या क्या दशा करते हैं और किस तरह से जन्मजन्मांतर के लिये आपकी कुण्डलिनियों का सत्यानाश करते हैं। हैं। मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानती हूँ, जो आपको पिछले जन्म की बातें बताते हैं। इसी से आप अभिभूत हो जाते हैं । किसी ने कह दिया कि मैं तुम्हारा पति हूँ। एक थी, आयीं मेरे पास और कहने लगीं, 'माताजी, मैंने उनको अपना सर्वस्व दे दिया।' मैंने कहा, 'क्यों? क्यों दिया तुमने?' 'वो कह रहे थे कि मैं तुम्हारा पति हूँ।' मैंने कहा, 'तुम्हारा पति! बड़ी पातिव्रत्य हो। अगर ऐसा ही पातिव्रत्य हैं तो जो मर गया पति उसके लिये तो मरी जा रही हो और जो तुम्हारा पति आज जीवित है उसका क्या हाल है? उसके प्रति कोई पातिव्रत्य नहीं ? और ये जो एक पैसा खाऊ यहाँ बैठा हुआ है उसको तुमने सारे जेवर दे दिये। क्योंकि उसने तुमसे कहा कि, ये तुम्हारा पति है।' फिर कोई कह रहे थे , ये साहब हम से कह रहे थे कि, हम भगवान के अवतार हैं। हम परमेश्वर हैं। अरे कोई कहने के लिये अपने देश में किसी को क्या लगता है! झूठ बोलने में तो हम लोग पक्के माहिर है। कोई किसी से झूठ बोल दीजिये, इसको साइकोलॉजी में सिग्मॉइड पर्सनॅलिटी कहते हैं । आप पढ़े हैं साइकोलॉजी तो आप समझ सकते हैं, कि साइकोलॉजिस्ट ने इसका पता लगाया हैं। नहीं लगाया ऐसी बात नहीं। खड़े हो कर के जो चाहे अंटसंट बकने लग जाते हैं और लोग उस पे विश्वास करने लग गये। ऐसा बायबल में भी कहा गया है, कि ऐसे बहत से संसार में आये। सम्भल के रहिये। कहने लग गये, 'हम भगवान हैं!' अरे, भगवान हैं तो उसी को शक्ति भी तो होती है। एक महाशय जी से कहने लगे, 'मैंने उन से कहा मुझ कि आपके पास इतनी औरतों का जमाघट क्यों भाई? आप दरवाजे बंद कर के ये क्या कर रहे हैं?' भगवान के नाम पर ये काम क्या करते हैं?' किसी स्त्री पर उन्होंने बहुत अत्याचार किया था। मुझे आ कर प्राइवेटली बताती। मैंने कहा कि, 'तुम कोर्ट में जा कर बताओ।' ये आदमी पकड़ा गया। कहने लगी, 'हम कोर्ट में कैसे बतायें? हमारे ऊपर आफ़त तो आ जायेगी। हमारी इज्जत हैं। हमारी फॅमिली हैं।' तो मैंने कहा, 'अगर तुम कोर्ट में नहीं बता सकती, इसका कैसे पार हो। उस महाशय से जा कर जब मैंने कहा कि, 'तुम ये क्या कर रहे हो? क्यों ऐसा पाप ढो रहे हो? क्या तुमको इससे मिलेगा, परमात्मा के नाम।' कहने लगा, 'तुम्हे नहीं मालूम मैं श्रीकृष्ण हूँ।' मैंने कहा वाह, भाई वाह! शकल तो आपकी भूत जैसी और आप श्रीकृष्ण बने। आज श्रीकृष्ण कैसे ह्ये? मैंने कहा, 'श्रीकृष्ण को आप कितना जानते हैं? जिसने पाँच साल की उम्र में कालिया का मर्दन किया था उसके सर पे चढ़ के। मैं दाढ़ी आपकी नोचती हूँ तो उठ नहीं सकेंगे आप!' मज़ाक ही मैंने कहा दिया। बाद में सुना किसी ने उनकी दाढ़ी आधा घण्टा पकड़ी थी वो हिलते रहे ऐसे ऐसे। मैंने तो यूं ही कह दिया। ऐसे श्रीकृष्ण पैदा होने लग जाये। दूसरे साहब कहने लगे कि, 'मैं औरतों को इसलिये नग्न करता हूँ कि श्रीकृष्ण ने औरतों को नग्न किया।' बताईये कहाँ कि बेवकूफ़ी की बात है। श्रीकृष्ण पाँच साल की उमर में बच्चों जैसी उनकी लीला थी। औरतों के साथ में उनको क्या.... पाँच साल का बच्चा! वैसे बहुत गहन अर्थ है। वो तो सहजयोग लीला कर रहे थे। पाँच साल के बच्चे के लिये कौन बड़ा और कौन छोटा! पाँच साल के भी नहीं उससे भी छोटे थे। तो मैंने उनसे कहा कि, 'अगर यही बात थी तो काहे के लिये वो द्वारिका में बैठे हये वो द्रौपदी के वस्त्रहरण के वक्त में दौडे गये थे वहाँ। शंख-चक्र-गदा- पद्म, गरुड लयी सुधारें। क्यों सुधारें? क्यों सुधारे थे, अगर उनको स्त्री की 12 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-12.txt को पकड़ने वाले वो श्रीकृष्ण और आप संहारे गली में और बज़ार में मिलते हैं जहाँ जाईये वहाँ, एक श्रीकृष्ण, एक शिवजी भगवान। कहाँ पवित्रता का कोई ख्याल नहीं था। ये आप जवाब दीजिये।' कहाँ तो वो एक उँगली पर गुरु श्री शिवजी भगवान, कहाँ श्रीकृष्ण। कुछ आप की बुद्धि बच गयी है या नहीं? मुझे कभी कभी बड़ा आश्चर्य होता है। मनुष्य इतनी बुद्धि की प्रगल्भता में पहुँच गया जिसको परमात्मा ने सारे ही बुद्धि के आवरण खोल दिये। ऐसे मनुष्य के बुद्धि में धर्म के मामले में इतना पड़दा क्यों? अपने ही देश में नहीं इसको तो बात ही नहीं, परदेश में भी इस कदर अंध:कार! एक वहाँ योगी जी, पहुँचे हये हैं। उनका शिष्य हमसे मिलने आया। वो हमारे सामने आये। देखते हैं क्या उनका आज्ञा चक्र और नाभि चक्र दोनों को गोल घुमा दिया और वो भजन गा रहे हैं। उलटा घूमाने का मतलब हैं कि आदमी जो पागल होता है, जब आप पार हो जाये तो देखियेगा, कि जब आदमी पागल हो जाता है तब उनका आज्ञा चक्र और नाभि चक्र उलटा घूमता है। ये सब प्रेतसिद्धता, स्मशान सिद्धता, हमारे देश में, भारतवर्ष में पूराने जमाने से चली आयी है। उसके बारे हमारे यहाँ पे जानता नहीं ऐसी बात नहीं है, लेकिन उसकी ओर ये जरूर है कि आधुनिक शिक्षण व्यवस्था में इधर ध्यान नहीं है। ये जो देवियाँ वगैरे आती है किसी के बदन में और हम लोग कुंकु लगाने को जाते हैं। उनके अन्दर में भूत आते हैं। हमें समझ में क्यों नहीं आया। ये सब प्रेत विद्या और स्मशान विद्या है । इसका है। एक बड़ा भारी साइन्स इस पर मैं कभी चाहे तो बताऊंगी आपको। आज दत्त महाराज के चरणों में खड़ी हूँ। इसको भी जान लेना चाहिये। ये सब महामूर्खता के लक्षण हैं। वो हम ऐसे दूसरों के हाथों में अपने को बेच दें। कम से कम अपनी बुद्धि तो सही रखें। थोड़ा सा झटक के सोचें। जब कभी भाषण में आप जाये, तो आप सोचें कि आदमी बोल क्या रहा है? और कर क्या रहा है? इसका बोलना और करना इस में वो कभी भी गुरु हो ही नहीं सकता। इसको आप अन्तर , समझ लीजिये। अभी हम कहे कि हम ऐसे हैं, वैसे हैं। कल हम लपके सांसारिक चीजज़ों में , हम कभी भी वैसे हो नहीं सकते। संसार कोई व्यर्थ की चीज़ नहीं है। लेकिन साक्षित्व तो कम से कम गुरुओं में आना चाहिये। कम से कम। कुण्डलिनी के बारे में भी बहुत गुरुओं ने लिख लिया । जिनके बारे में आपको मुझे बताना है। कल भी मैंने बताया था, कि भगवान के पास में कोई घड़ी नहीं है। जो वो कह दें कि, 'चार बजे मैं तुम्हारी कुण्डलिनी जागृत करता हूँ।' ये सब भूतों की व्यवस्था है। इस पर मैं आपको एक बड़ा सा उदाहरण देती हूँ। डॉ.लाइन कर के एक बड़ा भारी डॉक्टर लंडन में रहता है। उसने कुछ बहुत शोध किये थे । वो चाहते थे कि लोगों को उसे शुअरटी आयें। लेकिन तो अकस्मात उनकी एक अॅक्सिडेंट में मृत्यु हो गयी। इसके कारण वो अपना जो शोध था, लोगों को बताने का, उन्होंने जब उनकी मृत्यु हो गयी, हम जब मरते हैं तो पूरे नहीं मरते हैं, थोड़ा सा हिस्सा गिर जाता है, बाकी सूक्ष्म शरीर जीवित है, तो उन्होंने उस सूक्ष्म शरीर में ये सोचा कि चलो किसी के अन्दर घुस कर ही, प्रवेश कर के देखें । तो विएतनाम में एक सोल्जर लड़ रहा था, उसके शरीर में उसने प्रवेश किया। और उसे कहा कि, 'तुम मेरे लड़के के पास चलो। और उसे ऐसी ऐसी बात बताओ।' अब ये सोचिये कि डॉक्टर लाइन को ऐसा ही करना था तो उसके लड़के के अन्दर क्यों नहीं घूसा? वो तो जानते थे, कि इससे कोई परिणाम नहीं। तो उन्होंने कहा कि, 'अच्छा तुम मेरे लड़के से 13 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-13.txt जा के सारी बात बताओ। जब ये सोल्जर उस लड़के के पास गया और उसे जा कर बताया तो वो इस बात को मान गया। उसने कहा कि, 'हाँ, ये सब बातें मेरे पिताजी के सिवाय और किसी को मालूम नहीं।' उसने कहा, 'चलो, तुम क्लिनिक खोलो।' उन्होंने एक बड़ा भारी ऑर्गनाइझेशन बनाया। जिसके तहत वो लोगों को ठीक करें। अब डॉ. लाइन के साथ बहुत से और डॉक्टर इनके साथ जुट गये। वो भी ये कार्य करते थे। अभी तक वो हो रहा है कार्य। वो आपसे बताते हैं कि आपको किसी तरह की तकलीफ़ है, शिकायत है, आपको बताते हैं, अच्छा पाँच बजे शाम को बराबर इस वक्त आपके अन्दर ठीक हो। कोई न कोई अन्दर व्यक्ति घुस कर के आप के साइकोलॉजी में जिसको हम सुपर इगो कहते हैं, इसके अन्दर घुस के और इस कार्य को करते हैं। एक भूत निकाल के दूसरा भूत बिठाया। अगर आप शराबी होंगे तो शराब ठीक हो जायेगा लेकिन क्रोध आने लगेगा। ये इन लोगों का कार्य है। पर बिचारे सीधे हैं। वो लोग कम से कम ये कहते हैं कि हम स्पिरीट का काम करते हैं। वो ये नहीं कहते हैं कि हम भगवान का कार्य करते हैं। लेकिन अपने देश में तो लोग पक्के भूत नहीं, राक्षसों का काम करते हैं और उसको भगवान का नाम देते हैं। ऐसे लोग अगर किसी को थोड़ा सा ठीक भी कर ले, तो इससे क्या फायदा? कुण्डलिनी जहाँ खराब हुई, अपने माँ को जहाँ ...हैं ऐसी जगह जाने की कोई जरूरत नहीं। आज नहीं कल आप लोग जरूर पार हो जाईयेगा। लेकिन गलत रास्ते पर मत जाईये। एक बार आपकी कुण्डलिनी खराब हो जायेगी, तो मैं उसे भी नहीं कर सकती। सारा ही कार्य खत्म हो जायेगा। जिन जिनकी कुण्डलिनियाँ खराब हो गयी है, | कुछ आप लोग जानते हैं, आप में से बहुत लोग पार हुये हैं, कितनी तकलीफें हमने उठायी। कुछ कुछ लोगों पर तो हाथ रखते वक्त इन लोगों के हाथ में बड़े बड़े ब्लिस्टर्स आते हैं। बहुत बड़े बड़े ब्लिस्टर्स आते हैं। और वो जब मेरी ओर हाथ करते हैं, उनको भी कभी कभी थोड़ा थोड़ा ब्लिस्टर्स जैसा आ जाता है। पर जलता तो बहुतों का हाथ है। मेरे पास एकदम ठण्डी ठण्डी हवा है, लेकिन उनके हाथ जल रहे हैं। क्योंकि मैं चाह रही हूँ कि उनकी सत्ता को स्थापना देँ और उनके अन्दर तो कोई और ही सत्ता बैठी है। ऐसे गुरुओं से बच के रहिये। क्योंकि कायदा इसे रोक नहीं सकता। सीधी तरह जिसकी रोकथाम नहीं, इसे अपने बुद्धि से सोचिये, कि सच्चा गुरु कौन हैं? वही जो आपको परम दे। इस पर अभी एक औरत ने मुझ से सवाल पूछा था। बहुत मौके का सवाल था। उसने मुझे पूछा कि, 'क्या आपने और भी कोई रियलाइज्ड सोल दुनिया में देखे हैं? जो कि आपके पास आये बगैर ही।' ऐसे तो बहुत हो चुके और अभी भी हैं। इसी कारण मैं अपने बहत शिष्यों को लेकर कोल्हापूर से दूर पच्चीस मील दूरी पर एक जंगल में, पहाड़ी के ऊपर सात मिल दूरी पर गगनगड़ में आ गयी, उनका बहुत बड़ा उत्सव है। इसके लिये मेरी सारी सदिच्छा है। वहाँ पर एक बड़ा भारी गुरु हैं। मैं इनको ले गयी। मैंने कहा तुम ऐसे हाथ रखो बस्। 'हाथ के सहारे इतने वाइब्रेशन्स आ रहे हैं माँ!' क्यों उस जंगल में चलें? ये भी सोचने की बात हैं। जितने भी बड़े बड़े पहुँचे हये लोग होते हैं, जंगल में रहते हैं। आपने नित्यानंद जी के लिये कहा। जो कि असल में बहुत बड़े गुरु हैं। वो अगर कोई भी आता था तो पत्थर मारते थे और कहते थे, 'भाग जाओ यहाँ से। निकल जाओ।' हमारे नागपूर में ताजुद्दीन बाबा थे। उनके लिये भी लोग ऐसा कहते थे। वो तो जंगल में ही रहते थे। अब वहाँ आबादी हो गयी। क्यों ये लोग जंगल में भाग जाते हैं? इसके दो-चार कारण हैं। अभी आपने देखा, यहाँ छोटे बच्चे बैठे थे। उनके हाथ जल रहे थे। इसी तरह से उनके बदन जलने लगते हैं। 14 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-14.txt बहुत से साधु तो बेचारे पानी में ही रहते हैं। क्योंकि आप लोगों की जो साइकी हैं, सुपर इगो हैं, उनमें बैठे ह्ये भूत इनको जलाने के लिये लगे हैं। उन भक्तों को सताने के लिये लगे हैं। इसलिये वो जंगल में भाग खड़े होते हैं। क्योंकि आप को तो पता नहीं आप कर क्या रहे हैं? आपके वाइब्रेशन्स आपको समझ कहाँ आते हैं? इसलिये बेचारे जंगलों में जा कर के बैठ हये हैं कि बाबा, बचाओ इन लोगों से। उनका तारण-हारण वो कहाँ से करे ! गगनगड़ के महाराज का ही देखिये । उन्होंने बहतों को तो ठीक किये। लेकिन क्या हैं उनकी उंगलियाँ टेलिस्कोप के जैसे अन्दर चली गयीं। पाँव की उंगलियाँ भी ऐसे अन्दर चली गयी। बेचारे पेड़ पर या सीढ़ी पर सवारी करते हैं। इसके अलावा इधर से उधर नहीं जाते। लेकिन जब मैं उनके पास पहुँची। जो लोग मेरे साथ थे उन्होंने भी देखा। उन्होंने फौरन मुझे पहचाना। कोई शंका नहीं। उन्होंने आज तक मुझे नहीं देखा है। लेकिन बहुत सालों से मेरे बारे में वो जानते ही थे। उम्र में भी मेरे से बड़े हैं। कहने लगे, 'बहत सालों से मैं आपका इंतजार कर रहा था माँ। आज हमारा भाग्य कि आप पधारे।' वो नाथपंथी हैं। और बड़े पहुँचे हये। ऐसे ही मैं हिमालय पर भी गयी थी। वहाँ पर भी मुझे मिले। ऐसे ही हरिद्वार में एक-दो हैं बहुत .... रहते हैं। मैंने उनसे कहा, 'बाहर आने का मौका है। मैं तुमको बताऊँगी की अपनी शक्ति को कैसे बचाना है और किस तरह से इन लोगों का प्रहार वापस लौटाना है। मैं बैठती हूँ। तुम आओ तो सही। सब को मैं ठीक कर दूँ। बहतों ने कहा, 'माँ आयेंगे, जरूर आयेंगे।' लेकिन हिम्मत दिखती नहीं बेचारों की। क्योंकि इनके हाथ-पैर तोड़ दिये। इनके बदन में छाले डाल दिये। उनको जला दिया। राक्षसों के साथ। समझ लीजिये दस राक्षस और छः राक्षसिनी अभी तक मैं जोड़ पायी हूँ। जन्म ले कर इस कलियुग में आयी। आजकल के जमाने में समझ लीजिये अगर रावण आ जाये, तो अपने को कहने नहीं वाला है कि मैं रावण हूँ। वो तो अपने को भगवान ही कहेगा। अगर रावण कहे तो अभी कैद में बंद ना हो जाये | राक्षसों की भी पहचान हैं वो भी मैं आपको बता देती हूँ। आप देखिये । आपको फायदा है। जिस आदमी की आँख बिल्ली के जैसे, आप बिल्ली की आँख पहले देखिये तब आपको समझ में आयेगा । बिल्ली की आँख, जैसे उसके अन्दर की पुतली होती है, आँख देखते देखते एकदम छोटी हो जाती है, भूरी हो जाती है। ऐसे ही राक्षसों की आँख होती है। मैं सब कुछ जानती हूँ, अच्छे से। हर एक जन्म में मैंने इन लोगों को देखा हुआ है। इनकी आँख से आप पहचान सकते हैं कि ये लोग राक्षस हैं, इनकी आँख की पुतली एकदम छोटी हो कर के ....। इनका क्या? कहने को वे भगवान कहे और कुछ कहे, राक्षस ही है और इन्होंने बहुत सी सिद्धियाँ प्राप्त कर ली हैं। ये हमारे भोला शंकर जी का कार्य हैं, क्या करें ? उन्होंने बहत सारी सिद्धियाँ प्राप्त कर लीं। जैसे रावण को एक सिद्धि थी, कि जब वो बोलते थे और भाषण देते थे तो नाभि चक्र पे वो ऐसे कुछ काम कर जाते थे कि वहाँ पर एक एक भूत बैठ जायें । हजारों लोग अभिभूत हो कर के उनके पैरों को छूते थे। यहाँ तक कि राम से लड़ने के लिये कोई तैयार नहीं था। उन्होंने सब को तैयार किया। इसी तरह महिषासुर की भी थी । सारे ही असुरों की अपनी अपनी सिद्धियाँ थीं और इसी सिद्धियों के कारण वो लोग हमेशा भ्रमण करते रहे । प्रकाश को दबाते रहे और अंधेरा बढ़ता गया। आज कलयुग में बराबरी हैं। सारी बराबरी हैं और आप सोच रहे हैं कि मेरे दो ही हाथ हैं। आप ही लोगों के लिये, आप ही लोगों का कार्य है, आप को आश्चर्य होगा कि देवता भी एक तरफ बैठे ह्ये हैं और राक्षस भी एक 15 wwwwveved 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-15.txt तरफ बैठे हैं। घमासान युद्ध चल रहा है। वो परेशानियाँ क्या आप सोचते हैं, आप के करने की वजह से ? बिल्कुल भी और राक्षस बैठ कर के प्रेत योनियों के सारे कार्य करा के आपको त्रस्त कर रहे हैं। किसी तरह से आप दौड़ नहीं । ये दुष्ट कर उनके ही चरणों में जायें। ये सब इन्हीं का कार्य है अगर इसी को हटाना है तो अपने ही अन्दर में ज्योत जलानी है। अगर इस को प्रकाशित करना है, तो सब को अपने अन्दर एक एक दीप जलायें। आप स्वयं एक दीप है और आश्चर्य तो ये है कि इस वक्त परमात्मा भी यही चाहता है कि मनुष्य ही कार्य करें। मनुष्य ही वो परमात्मा स्वरूप हो जायें और जिसको हम अति मानव कहते हैं, जिसको हम मॅन कहते हैं, इसकी स्थापना हो। एक नया डाइमेंशन आपके अन्दर आने वाला है। इसको लेना सीखो, इसको सुपर पाना सीखो। बुद्धि के कसौटी पर अभी इसे उतारा नहीं जा सकता। क्योंकि अगर बुद्धि से आप समझना चाहें तो आपको मेरा सिर्फ हाथ ही दिखायी दे रहा है, इसकी अन्दर से बहने वाली अव्यक्त धारायें नहीं दिखायी देगी। जो लोग बहुत बड़े पंडित हैं वो लोग चाहे तो कबीरदास को पढें, नानक जी को पढ़ें , हो सके तो आदि शंकराचार्य को पढ़ें। वो सब से बढ़िया हैं। आदि शंकराचार्य को अगर पढ़े तो समझ सकते हैं मैं कि किस चैतन्य लहरियों की बातें कर रही हूँ। कुण्डलिनी पर अभी तक मुझे कोई भी ऐसा दिखायी नहीं दिया, जिसे व्यवस्थित रूप से कुछ समझाऊँ। थोड़ा थोड़ा ज्ञान हो जाने से ही कभी कभी बड़ा भारी भयंकर अनर्थ हो जाता है । ऐसा ही अनर्थ कुण्डलिनी के बारे में भी आज तक होता रहा ही है। नहीं तो इस तरह की विचित्र बातें न जाने उस समय किन लोगों ने लिखी हैं। लेकिन तो भी की द्रष्टा स्थिति इतनी ऊँची हैं, इतनी ऊँची हैं, जैसे देवी भागवत आप पढ़े। मार्कण्डेय स्वामी की सप्तशती मनुष्य आप पढ़े आपको आश्चर्य होगा कि कितनी गहराई से, कितने छोटे छोटे डिटेल्स में उन्होंने इस चीज़ को जाना। असल में जब तक आप का रियलाइजेशन नहीं होता, तब तक सभी कुछ करना व्यर्थ है। कृष्ण ने भी यही कहा है। कृष्ण ने भी यही कहा था कि पहले उसे अन्दर ही पा लो। लेकिन समझने वालों ने समझा नहीं। वो कहते हैं कि अन्दर पा लो तुम कहते हो कि बाहर ले जाओ। इनका मतलब था कि तुम साक्षी हो। साक्ष होने के बाद तुम से हो रहा है, अकर्म में चला जा रहा है। आप कुछ करते ही नहीं। इगो ही खत्म हो गया। वो सुपर इगो ही खत्म हो गया जो कर्ता है, करने ही वाला चीज़ जायेगा। वो कह रहे थे तो माना नहीं । वो डिप्लोमॅट थे, राजकारणी थे। कृष्ण का भी अपना एक तरह का गुरुत्व है। उनका गुरुत्व ही बड़ा मजेदार है । बड़े भारी राजकारणी थे । इसको मैं कहती थी कि अॅबसल्यूट प्यूअर पॉलिटिशियन। ऐसा बड़ा पॉलिटिशियन था वो। और वो सब को जानता था कि इन महामूर्खों को ठीक करने का यही तरीका है। जिस वक्त में एक बच्चा है वो अपने घोड़े को गाड़ी के पीछे बाँध कर के हाँक रहा है। तो बाप आ कर के कहता है, 'चलने दो घोड़ा। ऐसे ही चलने दो, हाँकते रहो, हाँकते रहो । पहुँच जाओगे।' फिर बच्चा जब हार कर के सोचता है, 'अरे घोड़ा तो चल ही नहीं रहा।' तब उसको समझ में आता है, कि घोड़े को आगे करना चाहिये, हाँकना चाहिये। इसलिये उन्होंने कहा कि, 'अच्छा तुम कर्मयोग कर।' अब देखिये इसमें डिप्लोमसी कितनी ! फिर तब ऐसा भी गुरु मिलना बड़ा कठिन है! ऐसा भी गुरु है कि इसके लिये बहुत ही बुद्धि की तीक्ष्णता और प्रखरता चाहिये । आज तक आपको किसी ने ये बात नहीं बतायी होगी। आज बताऊँगी। आप सुन लीजिये। उन्होंने कहा कि 'ऐसा तुम कर्म करो। लेकिन कर्म का जो फल है वो परमात्मा पर छोड़ो।' वो हो ही नहीं सकता, बिल्कुल अॅबसर्ड कंडिशन। जब 16 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-16.txt आप किसी चीज़ को कर रहे हैं और जान रहे हैं, कर रहे हैं। आप इस को किसी और पे कैंसे छोड़ दें? घोड़ा पीछे कर के ही हाँकने को कह रहे हैं। दूसरा उन्होंने कहा कि, 'तुम भक्ति करो ।' देखिये , इसमें भी देखिये । बड़ा सुन्दर है। तुम अनन्य भक्ति करो। जब दुसरा कोई नहीं रहेगा तो भक्ति कैसे होने वाली? मतलब ये कि मिलन हो गया तो भक्ति किस की करें? उन्होंने कहा, 'पुष्पम्, फलम्, तोयम्' जो कुछ भी तुम मुझे दो मैं ले लूंगा। लेकिन देने के वक्त उन्होंने यही कहा है कि 'तुम अनन्य भक्ति करो ।' अॅबस्ड बात है। क्योंकि अॅबसर्डिटी पर ही आदमी का सर चकरायेगा । और तभी वो ठिकाने पे आयेगा। वो सोच भी नहीं सकते थे कि ऐसे आदमी को अकल आने वाली है । पर मैं तो माँ हँ और माँ चाहे वो बात कहनी भी पड़े तो भी कह डालेगी कि बेटे ऐसा नहीं। ऐसा नहीं मानो जब तक हो सकेगा तब तक कहेगी। गला फाड़ फाड़ कर अपने बच्चे से कहेगी । माँ का हृदय और होता है। उसे डिप्लोमसी नहीं खेली जाती बहत देर। बहुत हो गया। बहुत परेशान। अब जरूरत है इस चीज़ को करने की और हो रहा है। आप लोग भी इस चीज़ को पा रहे हैं जिन्होंने पाया है। जिन्होंने जाना हैं कल भी यहाँ पर प्रोग्रॅम है, जरूर आयें। जिन्होंने नहीं पाया है वो भी आयें। हमारे यहाँ और भी जगह, भारतीय विद्याभवन में हम लोग हमेशा के लिये चाह रहे थे कि ऐसी जगह बनें कि लोग आते रहें। यहाँ पर बहुत से लोग ऐसे हैं जो पार हो गये हैं। जागृति तो आप पार होते ही दे सकते हैं इन लोगों को। चक्रों के बारे में बहुत जानते हैं, बहुत ज्ञानी हो गये हैं। और कुछ लोग ऐसे भी हैं जो पार नहीं करा सकते। हिन्दुस्तान की ये गरिमा हैं कि ये देश, हमारी योगभूमि है। सारे संसार के देशों से भी ऊँचा अपना देश । इस देश के वाइब्रेशन्स इतने हायेस्ट, इसमें कोई शंका नहीं। और सारे ही संसार की रीढ़ की हड्डी में अपना देश है और इसी में कुण्डलिनी का स्थान है । जो सारे ही संसार को एक दिन ठीक कर सकती है । पर अभी तो सारे ही चक्र हमारे पकड़े हुये हैं। कुण्डलिनी की गति ही मुश्किल हो रही है। आप अगर अपने अपने चक्र छुडा ले, तो हो सकता है इसी देश में से ही वो संदेश बाहर जाये, जिससे की सारा संसार बदल कर के एक दूसरे रास्ते पर आ कर खड़ा होगा। यहाँ सत्ययुग का ही आवाहन है और सत्ययुग भी आने वाला है। ये सत्ययुग के आने की बात, लेकिन ये अभी आपके स्वतंत्रता और आपकी सत्ता पे छोड़ा गया है कि आप चाहें तो इसे लें या संहार किया जाये। ऐसे ही कैन्सर जैसी और युद्ध जैसी बातें, ये सब हमारे संसार को खत्म करेगी। अगर आप लोग चाहे तो इसे ले सकते हैं और संसार को उजियारा में डाल सकते हैं। और नहीं तो अंध:कार आ कर परमात्मा चाहे हजारो सृष्टियाँ बना सकता है। एक एक्स्परिमेंट फेल हो गया। ऐसा ही वो सोचेगा। अभी आप की ही तुलना इसे देखना है कि कितने लोग अपने को लगाते हैं । बहुत बहुत आप सब का धन्यवाद! तीन दिन का सेमिनार बहुत प्रेमपूर्वक हुआ और बहुत लोगों ने इस प्रेम स्वीकार किया। इसलिये एक माँ के नाते मैं सबका धन्यवाद मानती हूँ। वैसे ही हमारे बहुत से बच्चों ने रात-दिन मेहनत कर के और औरों को तारण करने के लिये इतनी मेहनत की है और इसी तरह से करते रहें । ऐसे ही उनको आशीर्वाद दे कर और आप सब को मेरे प्रेम का आशीर्वाद दे कर मैं आप से बिदा लेती हूँ। 17 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-17.txt निर्विचारिता मुंबई, ६ अप्रैल १९७६ तुम लोगों को बुरा लगेगा इसलिये मराठी में बोलने दो । मैं कह रही हूँ कि तुम्हारे सामने जो भी प्रश्न हैं, उन प्रश्नों अचेतन में छोड़ो, वो मेरे पैर में बह रहा है। माने ये कि कोई भी प्रश्न , अब तुमको अपनी लड़की का प्रश्न है को तुम समझ लो। उसमें खोपड़ी मिलाने से कुछ नहीं होने वाला। जो भी प्रश्न है वो यहाँ छोड़ दो। उसका उत्तर मिल जायेगा। अब तुम अगर सोचते हो कि इस चीज़ से लाभ होगा, वो नहीं बात। जो परमात्मा सोचता हैं तुम्हारे लिये जो हितकारी चीज़ है, वो घटित हो जायेगी। वो तुम कर भी नहीं सकते हो । इसलिये उसको छोड़ दो तुम क्यों बीच में तंगड़ियाँ तोड़ रही हो? तुम क्यों परेशान हो रही हो? तुमको परेशान होने की कोई जरूरत नहीं। तुम छोड़ तो दो। जो तुम्हारे सारे प्रश्नों को सॉल्व करने के लिये पूरी इतनी कमिटी बैठी हयी है, उनके पास छोड़ो तुम। सहजयोग में यही तो कमाल है, कि सर का बोझा उतर गया उनकी खोपड़ी पर। छोड़ के देखो। ऐसे कमाल होंगे, ऐसे कमाल होंगे, कि बस्। लेकिन मनुष्य की खुद्दारी की बात हो जाती है । आखिर तक वो यही सोचते रहता है कि , 'मुझी को करना है। और सोचते रहिये, एक के ऊपर एक ताना, बाना चलता रहेगा। कितना भी आप करते रहिये। आखिर आप पाइयेगा, कि आप कहीं भी नहीं पहुँचे और पागलखाने में ही आप जाइयेगा। आपके प्रश्न हल करने के लिये बहुत बड़ी कमिटी बैठी हुई है। उसमें पाँचों तत्त्वों के अभिनायक बैठे ह्ये हैं, ब्रह्मदेव| सारे धर्म को बनाने वाले बैठे हैं, विष्णु और सारे संसार की स्थिति ले कर के और लय ले कर के बैठे हये हैं, शंकर जी। उनको भी तो कभी कभी चान्स दो| क्या तुम्ही लोग सारे प्रश्नों को ठीक करोगे ? और जैसे ही आप निर्विचार में होना शुरू कर देंगे, आप देखियेगा, आपके अन्दर ये तीनों ही शक्तियाँ अपने आप बन जायेंगी। अपने आप सुलझ जायेंगी, धर्म, अर्थ और काम। बिल्कुल वो ठीक से। अपने अपने जगह बैठ जायेगी। निर्विचारिता में रहने से आपके अन्दर जो प्रश्न है, उसमें कॉस्मिक चेंज आता है। ये कोई अन्दरूनी घटना घटित होती है। उसके सूत्र पे घटना होती है। जैसे एक आदमी समझ लीजिये की शराब पीता है। मिसाल के तौर पर। वो मेरे पास आता है। 'माताजी, ये शराब पीता है। उसकी शराब छुडाओ।' उसकी कुण्डलिनी जागृत करते ही, उसकी कॉस्मिक दशा ऐसी हो जाती है, कि वो शराब पीता है तो उसको उलटी होती है । फिर ये भी हो की सकता है कि शराब की भी जो मादक शक्ति है, उसको भी खत्म कर सकते हैं, जब शक्ति पे बैठे हैं, तो हर तरह शक्ति को ले सकते हैं। जितनी डिस्टूक्टिव शक्ति है उसको भी खत्म कर सकते हैं। लेकिन आप जो ये अपने छोटे से दिमाग में, हर एक चीज़ को सुलझाने का प्रयत्न करते हैं, उसी में गड़बड़ हो जाता है। बिल्कुल निर्विचार। मेरे पैर पे भी लोग रहते हैं। तभी वो विचार में रहते हैं। मुझे इतना आश्चर्य होता है कि कम से कम मेरे पैर पे तो विचार छोड़ दो। वहाँ पे भी उनका चलता रहता है विचार। मैं कोशिश कर रही हूँ। हाथ-पैर चला रही हैूँ, तांडव नृत्य हो रहा है और ये लोग इधर विचार ही कर रहे हैं। कम से कम मेरे पैर में विचार छोड़ना आना चाहिये। फिर धीरे-धीरे ये आदत बनते जायेगी। निर्विचारिता की। बसू एक छोटीसी चीज़ है, कि निर्विचार में रहना सीखो। कोई भी आपका प्रश्न हो निर्विचार में रहो। ऐसे मैं आपको सुझाव देती रहती हूँ। आपका ये चक्र क्यों पकड़ता है, वो क्यों पकड़ता है। छोटी छोटी बातें 18 প 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-18.txt उसको समझ लेना चाहिये। आपका शरीर ठीक रखो, मन ठीक रखो। मन की भी बहत सारी बीमारियाँ होती है। औरतों को बीमारी होती है कि आदमियों के पीछे मैं मरूं, खास कर के। आदमियों को और बीमारियाँ होती है। मन की अनेक बीमारियाँ होती है। उधर जरा सा चित्त रखो। निर्विचार में रहो। एक छोटी सी चीज़ करने से ही आपका जो स्वयं, हृदय में बैठा हुआ स्व है, उसका प्रकाश फैलना शुरू होगा और वही प्रकाश है जो आपके अन्दर वाइब्रेशन्स की तरह बह रहा है। ये आपके अन्दर बसा हुआ परमात्मा का जो अंश है, स्व, सेल्फ, उसका प्रकाश सारे संसार में जाता है और लौट के आपके पास आ जाता है पॅराबोली में। अनेक उसकी लहरें चलती हैं। गोल गोल घूम कर के आपके हृदय में आ जाता है। अपनी जो बाती है उसे ठीक रखो। आपका शरीर ठीक रखो, जो आपका दीप है। आपकी जो शक्ति है तेल दिमागी जमाखर्च जो है उसमें खर्च न करो। लौ को सीधे लगाओ। ये लौ का उपर का हिस्सा है, उसको माँ से चिपका लो। उसके पैर में बाँध दो । सीधी उठेगी लौ। निर्विचारता में निर्भीकता से जलती है। और ऐसा आदमी कहीं खड़ा होगा तो उसकी तेजस्विता को देख कर लोग कहेंगे कि, 'भाई, तुम्हारे गुरु कौन हैं? ये तुमने किससे पाया है?' यही सहजयोग के लिये आप लोगों को करना है। जहाँ तक हो सके निर्विचार रहें। हम तो धक्का दे ही रहे हैं कुण्डलिनी को। आपको भी वहाँ रखने की कोशिश कर रहे हैं। आप भी जरा कोशिश करें । कोई विचार नहीं आना है और अपना माथा किसी के आगे मत झुकाना। याद रखना, किसी के आगे जा कर माथा नहीं झुकाना है। कोई भी हो। बहुत से लोग सहजयोगी, सहजयोगी कह के माथा झुकाते हैं। मैंने देखा है। ये सब फालतू की बातें करने की जरूरत नहीं। मूर्तियों में भी देख के जिस के वाइब्रेशन्स ठीक है, तो ठीक है। मूर्तियों से आप बहुत बड़ी मूर्तियाँ हैं। आप स्वयं एक मंदिर हैं। क्या वो मूर्ति थोड़ी आपके वाइब्रेशन्स जानती है! वो तो उसमें से वाइब्रेशन्स बस आ ही रहे हैं, | बस और क्या हो रहा है। आप तो अपने हाथ भी चला सकते हैं। दूसरों को आप जागृति दे सकते हैं। किसी के चक्र खराब हो उसको आप ठीक कर सकते हैं। मूर्ति तो वहाँ बैठी वाइब्रेशन्स छोड़ रही हैं । सहजयोग में बम्बई सेंटर में बहुत काम हुआ है। इसमें कोई शक नहीं। और लोगों ने बहत अपने को ऊँचा उठा दिया है। और वैसे भी महाराष्ट्र में बहुत काम हुआ है। एक छोटे से गाँव में राहरी में, बहुत काम हुआ है। जितना आप गहरा उतरेंगे उतना गहरा काम होगा। अपने को बहुत ज्यादा लोग नहीं चाहिये। थोड़े ही लोगों से काम बन जायेगा । लेकिन जो भी हो वो पक्के हो । (मराठी) आता काही प्रश्न असतील तर विचारा. राजकारण हो तो कृष्ण के जैसा। जिस राजकारण के कारण संसार का हित है, वही राजकारण एक सहजयोगी को करना चाहिये। याने कैसे? मैं करती हूँ। आप लोगों को पता नहीं राजकारण। राजकारण इस तरह से करना चाहिये कि खुबी से उस आदमी का हित निकाल ले। होशियारी से उसकी जो अच्छाईयाँ हैं उसको उठा लें। सीधे हाथ से तो आप लेने वाले नहीं। तो उसपे कुछ चॉकलेट चढ़ा कर के आप के मुँह में दे दिया। मुझ से बढ़ के कोई राजकारणी नहीं है। बच के रहो। बड़ी राजकारणी हँ मैं। अगर कोई ज्यादा निगेटिव होता जाता है तो उसका भिडा देती हूँ दूसरे निगेटिव आदमी के साथ में। लड़ते रहो वा मरते रहो। लेकिन मेरा जो राजकारण है वो तुम्हारे हित के लिये है। क्योंकि सीधे रस्ते आने ही नहीं वाले। तो राजकारण खेलना पड़ता है। फिर अंत में आते हैं। लेकिन विज्ड़म किस चीज़ में है? कि हम अपना अच्छा देखें। हम अपने अच्छे का सोचें। हम अपना हित सोचें। ये हित की गंगा बह रही है। 19 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-19.txt दूसरी निगेटिविटी आदमी में किस तरह से आती है? अपने तरफ नज़र रखें। पहले ये कि, निगेटिविटी में हम किस से ज़्यादा दोस्ती करते हैं? हम किस से ज्यादा मिलते हैं? मिलना बंद करिये। फौरन बंद करिये। कोई अगर पचास साल से उतरते हैं तो वो ग्रुप बना लेंगे। बनाने के लिये इन्सान को लगता ही नहीं है। तो भगवान ने ग्रुप कुछ आपको ग्रुप में पैदा किया है? अभी तो इंटरनैशनल लेवल पे उतरने की बात है। उसके बाद युनिवर्सल लेवल पे उतरने की बात है। अभी तो गिरगाव, दादर ही हो रहा है इधर। तो एक बड़ा भारी हम लोगों का जो दुश्मन है वो है राजकारण। जो हमारे अन्दर बैठा हुआ है। एक दुश्मन है हमारा बहुत बड़ा। काम-क्रोध-मद-मत्सर वो तो बहुत साफ़ है। लेकिन ये चोरी छुपे बैठे हये अपने अन्दर में एक बड़े दुष्ट जीव है जिनका नाम है राजकारणी स्वभाव। तो अपने से कहना चाहिये, 'ओ, मिस्टर राजकारणी, जरा चुप रहिये आप। हमको मत पट्टी पढ़ाईये। बड़ा चोर बैठा हुआ है अन्दर में। उसका ख्याल रखो। दूसरी निगेटिविटी कैसे आती है? कि हम मिसआयडेंटिफाइड हैं किसी चीज़ से। माने कि ये, हम कहें, यहाँ तक की हम हिन्दुस्तानी हैं। आप कोई हिन्दुस्तानी वगैरा नहीं। आप इन्सान हैं। ये बात बिल्कुल सत्य है। अब उसकी ओर बारीक बारीक में आईये। होते होते, अब मैं किस का नाम लूँ, कि हम उस गणपति के पास में रहने वाले हैं, या उसकी जो मिट्टी है वो हमारे फलाने गाँव से आती है, तो हम सब एक हैं। इस कदर के मिसआयडेंटिफिकेशन महामूर्खता के, मनुष्य के दिमाग में हमेशा रहते हैं। जब आप अनेक जन्मों में विश्वास करते हैं, तो आप ये किस प्रकार कह सकते हैं, कि आज आप ब्राह्मण हैं तो कल आप चांभार भी हो सकते हैं। और हो सकता है कि आप मुसलमान से आज आ कर के, यहाँ ब्राह्मण बने बैठे हैं। क्या आपको पता है आपका पास्ट क्या था? तो अपना जो गत है, जो भूत है, जो पास्ट है, उसका भी अगर सत्य आप देख ले, उसका भी अगर आप मत्यर्थ देख ले, उसका भी अगर आप त्त्व पहचान ले, तो आप उसको भी बिल्कुल समझ सकते हैं कि ये सब बकवास है। याने आप देख सकते हैं कि मैंने, ये मिट्टी कहाँ से इकठ्ठी की है, मूर्खता की। एक जनम में तो में मुसलमान था, एक जनम में में राजा था, एक जनम में मैं भिखारी हूँ। ये मिट्टी मैंने मूर्खता की कैसे इकठ्ठी की है। उसके तत्त्व को देखना चाहिये और उसका तत्त्व महाकाली का है। उसका तत्त्व महाकाली का है, अगर उसको आपने समझ लिया कि ये जो कुछ भी हमारा पास्ट है, ये हमारी बेवकूफ़ी के कारण वहाँ जमा है। 'मैं इसकी लड़की, मैं शिवाजी महाराज की फलानी, ठिकानी।' होगी, कौन शिवाजी पूछो। वो कहाँ और आप कहाँ! वो आयेंगे तो घोड़े पे आयेंगे। हम यहाँ के ब्राह्मण आये हैं, हम वहाँ के वो आये हुये हैं पोपसाहब, हम फलाने आये हुये हैं। ये सब मिसआयडेंटिफिकेशन इस महाराज ? कहाँ हैं वो? हैं मेरे सामने तो जनम के बहुत सारे हैं। ये भी एक तरह से पास्ट ही हैं क्योंकि इस मूवमेंट में तो नहीं है। इस समय तो नहीं है। इस समय ये आयडेंटिफिकेशन। इस समय में आप क्या है? एक ही तत्त्व हैं कि आप सब मेरे बेटे हैं। इसके सिवाय और कोई सत्य नहीं। सबको मैंने अपने सहस्रार से जन्म दिया है। इसके अलावा दूसरा कोई भी सत्य नहीं। यही एक सब से बड़ा | महान सत्य है। इसे शिरोधार्य करें। जो इसको नहीं शिरोधार्य करता वो कभी भी सहजयोगी ऊँचा उठ नहीं सकता है। वो दूसरों को हमेशा खींचता रहेगा । अपनी निगेटिविटी से दूसरों को खींचता रहेगा । वो अपने को अकलमंद बहुत समझें, कुछ भी समझें लेकिन उसको जानना चाहिये कि न तो वो खुद उठ रहा है न तो वो दूसरों को उठने देगा । आप 20 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-20.txt सब एक ही माँ के बेटे हैं और सब युनाइटेड हैं। इतना ही नहीं एक ही शरीर के अन्दर पनपने वाले आप महत्त्वपूर्ण चक्र हैं। ये आप जानते हैं कि नहीं जानते! विराट के अन्दर अनेक छोटे छोटे सेल्स हैं। अनेक छोटी छोटी पेशियाँ हैं। उसमें से आप जागृत पेशियाँ हैं। आप जागृत हैं। आप में से कोई वो पेशियाँ हैं जो हृदय में है। कुछ हैं वो ब्रेन में हैं। कुछ हैं वो उसके लंग्ज में हैं। कुछ हैं वो उसके पेट में हैं। जो जो जागृत ऑटोनॉमस काम हैं, उसके अन्दर की पेशियाँ आप लोग हैं। आप बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इस चीज़ का आयडेंटिफिकेशन, तादात्म्य आप में नहीं है। आप ऐसे तो बहुत महत्त्वपूर्ण बनते हैं। हम ये हैं, वो हैं, वो हैं। हमारे लिये क्या हैं? हम धूल के बराबर हैं। लेकिन ये रिलेशन टू सहजयोग। सहजयोग के साथ संबंधित जब आप हैं तभी आप महत्त्वपूर्ण हैं। नहीं तो आपका परमात्मा को कोई भी माहात्म्य नहीं है। समझ लीजिये आप। आप व्यर्थ हैं परमात्मा को। ऐसे हजारों उठा के फेंक देंगे वो। उसके पाँव के धूल के बराबर है। आपका माहात्म्य तभी हैं जब आप सहजयोग के रिलेशन में कहाँ तक उठते चले जाते हैं। हिन्दुस्तानी आदमी की शरीर व्यवस्था, उसकी मानसिक व्यवस्था, उसका सब कुछ एक अलग ढंग का है। चीनियों का अलग ढंग का है। अंग्रेजों का अलग ढंग का है। सब ने अपना अपना बना लिया है, मटका। सब ने अपने अपने मटके बना लिये हैं। किसी का कैसा शेप है, किसी का कैसा शेप है। उसमें कोई हर्ज की बात होनी ही नहीं चाहिये। लेकिन उसके अन्दर का माल मसाला भी एक विशेष रहता है। जैसे आप मराठी घर में जाओ, तो वहाँ अलग तरह की फोडणी (बघार) देते हैं। पी में जाओ तो वहाँ अलग तरह का। 'घरोघर मातीच्या चुली' यू. असल्या तरीसुद्धा। हर एक का अलग अलग तमाशा बना के रखा है। अब ये भी मिसआयडेंटिफिकेशन कितना जबरदस्त है, कि हम लोग सब अलग अलग हैं। हमारे अन्दर एक ही सुगन्ध अपना ही बह रहा है। इससे कम से कम तादात्म्य कर लेना चाहिये। पहला सत्य ये है कि तुम लोग सहजयोगी हो। माने माताजी निर्मलादेवी के सहस्रार से तुम लोग पैदा हये हो। और दूसरा सत्य ये है कि तुम सत्य से ही तादात्म्य कर सकते हो। असत्य से नहीं। जैसे ही तुमने किया, तुम्हारे वाइब्रेशन्स बंद हो जायेंगे। अगर तुम मुझे भी कहो कि, 'माँ, तुम ये करती हो तो हम सब करते हैं।' देखिये, हम ही जब सब करते हैं तो ये भी करते हैं। उसकी भी रिस्पॉन्सिबिलिटी हमें लेनी चाहिये । पर तुम ने भी तो कोई खराबी की है अपनी! हम जो बात कर रहे हैं उस तरह से चलो, तो सब ठीक होने वाला है। इसलिये जितनी भी इस तरह की गलत धारणायें हैं उसको बैठ कर के, लिख कर के कि मेरी खोपड़ी में ये आया, वो आया, फलाने जगह से, क्योंकि मेरी माँ ने ही यह पढ़ाया था, क्योंकि मुझे स्कूल में ये पढ़ाया गया। फिर मेरे देश में ऐसा पढ़ाया गया। ये सब गलत बातें मुझे निकाल के दीजिये। तभी सहजयोग, ये सहजयोगी एक ऊँचे पते के लोग, अपने आप ऊपर उठायेगा। जैसे चलनी आप घूमाईये, तो चलनी में ऐसे लोग उपर आ जाते हैं और बाकी सब नीचे। परमात्मा से एकात्म। एकात्मता आनी चाहिये। प्रभु, परमेश्वर से दोस्ती जोड़नी चाहिये । उसके सर्वशक्तिमान स्वरूप से एकाकार होना चाहिये। इसको जब आप समझ लेंगे और उसको अपने से तादात्म्य करना चाहिये । सत्य तो सब जानते हैं। ऐसे लेक्चर देने वाले बहुत हो गये। लेकिन इस तरह से अपने को तादात्म्य करते ही आप उधर नहीं बैठे, आप यहाँ आ के बैठ गये। साइड बदल गयी आपकी। सूर्य की तरफ़ आप मुख नहीं कर रहे हैं। आप स्वयं सूर्य हो गये। अभी आपने सिर्फ सूर्य की तरफ़ मुख किया है । फिर आप स्वयं सूर्य हो जायेंगे। अपनी क्षुद्रता को देखते जाओ | अपने छिद्रों को नापते जाओ। मैं तुम सब को सूर्य बनाना चाहती हूँ। इसके सिवाय मैं और कुछ नहीं चाहती। जो लोग अभी तक इस चीज़ को नहीं समझ पाये हैं और जान नहीं पाये 21 ०] 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-21.txt वो छोटी दृष्टि के हैं। उनमें वो विशालता नहीं आयेगी । लेकिन तुम लोग सब अपने को विशाल बनाओ। दूसरा चाहे छोटा हो जायें आप अपने को अलग अलग तरह से विशाल बनाओ। विशालता से ये सब क्षुद्रतायें जो हैं ये खत्म हो जायेंगी। अपनी ओर दृष्टि करने पर, अपने दोष देखने पर अपने को कोई कंडेम्न करने की जरूरत नहीं है । अपने को बुरा मानने की जरूरत नहीं है। क्योंकि वो भी एक तरीका भागने का है। ये बड़ा भारी भागने का तरीका बनाया है मनुष्य ने । ये में समझ गयी अब। उसका ऐसा तरीका है कि उसने ऐसा कह दिया कि 'मैं हूँ ही खराब ! माताजी, में बहुत खराब आदमी हूँ।' बसू वो तो बेशरम हो गये आप। जैसे कि कहते हैं कि हिपोक्रसी दुनिया में नहीं होनी चाहिये। बेशमर्मों से हिपोक्रिस अच्छे होते हैं मेरे विचार से। बेशर्म जैसे रस्ते पर खड़े हो कर 'मैं बदमाश हूँ। मैं किसी से ड्रता नहीं। मैं बदमाश हूँ।' तो सभी बेशर्म हो गये उसके साथ में। इससे बेशम्मी बढ़ेगी। हिपोक्रसी से कम से कम बढ़ेगा नहीं मामला। बीच का रास्ता है। अपने दोषों को देखो। और जैसे बदन में कलंक लगाया है उसको पोछ दो। उसका बखान भी करने की मेरे पास जरूरत नहीं। ये तुम्हारा, तुम्हारे अन्दर, तुम्हारे साथ, तुम्हारा मामला है। तुम अपने को ठीक कर लो। ये तुम्हारा प्राइवेट मामला है। जब तक वो मेरी नज़र में नहीं आता मैं भी उसको नहीं कहती। नज़र आने पर भी मैं उसको नहीं कहती हूँ। बहुत देर तक में रुकी ही रहती हूँ। हाँ, लेकिन जब वो बहुत ही मारक हो जाता है, जब उसे सहजयोगी पे हाथ आने लग जाता है, दुसरों का नुकसान होने लगता है, तब किसी से कहती कि देखो तुम ऐसा नहीं करो। कोई मेरे पास आ कर के कन्फेशन करने की जरूरत नहीं है किसी तरह । आप अपने ही अन्दर अपनी स्वच्छता को देखो। अपना वरण करो। अपना स्वागत करो। अपनी इज्जत करो। अपनी प्रतिष्ठा बढ़ाओ| अपने को उँचा उठाओ| अपना गौरव करो। गौरव करने योग्य बनो। जो भी तुम कर रहे हो, उससे क्या तुम्हारा गौरव हो गया या तुम्हारी बुराई हो गयी ये तुम खुद समझ सकते हो। इतनी अकल हर एक आदमी में है। लेकिन अब कोई भी चीज़ ऐसी नहीं करो जिससे की तुम्हें गौरव छोड़ना पड़े। अंधेरे में, कलियुग के घोर अंधेरे में, तारे बन के तुम्हे ही चमकना है। जितना अंधेरा गहनतम है, तारे बन के उसी में तुम्हें चमकना है। तुम ही मार्गदर्शन करने वाले हो संसार में । हम क्या मार्गदर्शन कर सकते हैं! क्योंकि हम ने न कोई मार्ग चला है और ना हम कहीं पहुँचे हैं। हम जहाँ हैं वही हैं और वही रहते हैं। लेकिन तुम लोग उठे हो । तुम्हें लोग देखेंगे। हमारे लिये तो सब कहते हैं कि, 'वो तो हैं ही सेंट, वो तो होली है । शी इज होलीएस्ट ऑफ द होली। उनका लोग मार्गक्रमण कर के आये हो। तुम हमारा क्या मुकाबला!' तुम्हारे ही तारे जगाने के हैं। अपनी क्षुद्रताओं को कम करो। एक दूसरे सहजयोगियों को क्रिटीसाइज मत करो। बहुत बुरी बात हैं क्योंकि हर सहजयोगी एक ही शरीर का अंग - प्रत्यंग है। इससे महामूर्खता क्या होगी कि कोई इस हाथ से उस हाथ की उंगलियाँ काट रहा है। अगर दूसरे सहजयोगी में कोई प्रॉब्लेम है और आप अगर सोचते हैं प्रेम में तो साइलेंटली उसको बंधन दीजिये। उसको जूते मारिये। ठीक करिये। पर अपने को भी बाद में जूते मार लीजिये। हालाकि ये जरूर बात है, कि जो आप लोग पिछले वर्ष थे उससे कहीं अधिक आज उजले हैं और जो पाँच- छः साल पहले थे उससे कहीं अधिक सुंदर हो। धीरे -धीरे प्रगति तो हो ही रही है। कोई गिर नहीं रहा है । कुछ ऐसे होते हैं वो गिर जाते हैं, झड़ जाते हैं, निकल जाते हैं। लेकिन धीरे-धीरे चीज़ ऊपर बढ़ती जाती है। चित्त आपका अपने ऊपर और हमारे ऊपर रहे। काम बन सकता है। 22 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-22.txt EGO १ भैंने तो तये किया है कि गुरुमंत्र वगैर कुछ नहीं देनी है। क्योंकि डसी में मन अटका २हती है। अंग२ आपकी उल्लती ह२ क्षण होगी, तो मैं कौनी मंत्र ढूँ आप लोगों को? कुछ भी गुरुमंत्र नहीं। मुड़े सिर्फ माँ २वरूप मान लो। दूसर कुछ भी नहीं। माँ स्वरूप देखा तो भी बहुतं है। जल्दी सब समझ में आती है। प.पू.श्रीमाताजी, मुंबई, ११/३/२००० प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.१०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११ ०३८. फोन : ०२०-६५२२६०३१, ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in, website : www.nitl.co.in म 2016_Chaitanya_Lehari_H_IV.pdf-page-23.txt हिं सर्व प्रथम उन्हों ने कही कि सात्मानुभव (आत्मसाक्षात्कार) प्राप्त करके स्थিব্র বন जाो-सभी प्रलोभनों, अहं, सभी बन्धनों से मुक्त होकर स्थितप्रज्ञ बन जाओ । स्थितप्रज्ञ स्थिति में व्यक्ति सर्व साधारण लोगों की तरह से नहीं सोचता और न ही सामान्य ्यक्ति की तरह भौतिक पदार्थों की तरफ आकर्षित होता है। हेसा व्यक्ति पूर्णत: निर्लित्त होता है, उसे न तो कोई शिकायत होती है और न ही कोई ई्या। श्रीकृष्ण ने यह सब बताया। प.पू.श्रीमाताजी, ५/९/१९९९, कबैला, इटली,