चैतन्य लहरा सितंबर-अक्टूबर २०१६ हिन्दी ाम म ६ 15 इस अंक में आत्मिक क्रान्ति ...4 (पूजा, कोलकाता, १/४/१९८६) दो तरह के प्रवाह ...9 सार्वजनिक कार्यक्रम, मुंबई, ८/१२/१९७३) देवी के भी अवत२णों के समय बहुत सी आशुरी शक्तियाँ भी पृथ्वी प२ अवतरित हुई औ२ देवी को यूद्ध कर के उनका विनাश करनी पड़ा। यह विनाश केवल इसलिये नहीं था कि आसुरी शक्तियों को २माप्त करनी है। यह इसलिये था क्योंकि यह शक्तियाँ साधकों एवं सनतों का दमन करने तथा उन्हें हानि पहुँचाने का प्रयत्न करती हैं। पं.पू.श्रीमातीजी, नवरात्रि पूजी, २४.१०.१९९३ सारा संसार इस क्रान्ति से पुनीत हो जाएगा और आनन्द के सागर में परमात्मा के साम्राज्य में रहेगा। कलकत्ता, ०१ अप्रैल १९८६ आत्मिक क्रान्ति २१ मार्च से हमारा जन्मदिवस आप लोग मना रहे हैं और बम्बई में भी बड़ी जोर-शोर से चार दिन तक जन्म दिवस मनाया गया और इसके बाद दिल्ली में जनम दिवस मनाया गया और आज भी लग रहा है फिर आप लोग हमारा जन्म दिवस मनाते रहे। इस कदर सुंदर सजाया हुआ है इस मंडप को, फूलों से और विविध रंगों से सारी शोभा इतनी बढ़ाई हुई है कि शब्द रुक जाते हैं, कलाकारों को देख कर कि उन्होंने किस तरह से अपने हृदय से यहाँ यह प्रतिभावान चीज़ बनाई इतने थोड़ी समय में। आज विशेष स्वरूप ऐसा है कि अधिकतर इन दिनों में जब कि ईस्टर होता है मैं लंदन में रहती हूँ और हर ईस्टर की पूजा लंदन में ही होती है। तो उन लोगों ने यह खबर की, कि माँ कोई बात नहीं आप कहीं भी रहें जहाँ भी आपकी पूजा होगी वहाँ हमें याद कर लीजिएगा और हम यहाँ ईस्टर की पूजा करेंगे उस दिन। इतने जल्दी में पूजा का सारा इन्तजाम हुआ और इतनी सुंदरता से, यह सब परमात्मा की असीम कृपा है जो उन्होंने ऐसी व्यवस्था करवा दी। लेकिन यहाँ एक बड़ा कार्य आज से आरंभ हो रहा है। आज तक मैंने अगुरुओं के विषय के बारे में बहुत कुछ कहा और बहुत खुले तरीके से मैंने इनके बारे में बताया; ये कितने दुष्ट हैं, कितने राक्षसी हैं और किस तरीके से ये सच्चे साधकों का रास्ता रोकते हैं और उनको गलतफहमी में डाल के उनको एकदम उल्टे रास्ते पर ड्राल देते हैं। और इसके लिए बहुत लोगों ने जताया कि ऐसी बात करना ठीक नहीं इससे गुरु लोग आप पर आक्रमण करेंगे और आपको सताएंगे । लेकिन हुआ उसके बिलकुल उल्टा! किसी ने भी हमें कचहरी नहीं दिखाई, ना ही किसी ने हमारे बारे में बात कही। एक- एक करके हर एक दुष्ट सामने आया और दुनिया ने जाना कि जो कुछ हमने इनके बारे में कहा था वह बिलकुल सत्य है। आज धीरे-धीरे ये अगुरु मिट रहे हैं। लेकिन तांत्रिक अभी भी काफी अपना जोर बँधाये हुए हैं और आपके कलकत्ते में इसका मेरे खयाल से मुख्य स्रोत है। यहाँ पर वह पनपते हैं और यहीं से सारी दुनिया में छा जाते हैं। आज ही एक साहब से मुलाकात हुई, उनसे इतने तान्त्रिकों पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कौन -कौन उनके आश्रय में आये और कौन-कौन महात्मा बन गये। मुझे 4 म6 लगा ये अभियान अब शुरू हो गया। ये तान्त्रिकों को एक-एक करके ठीक करना जरूरी नहीं है। सबको एक साथ ही गंगाजी में धो ड़ालना चाहिए। तभी इनकी तबियत ठीक होगी। आज यह महिषासुर सब दूर फैल गया है। इसको खत्म करने का ही अभियान शुरू होना चाहिए। ये एक बड़ी भारी आत्मिक क्रान्ति है जिससे सारे संसार का कल्याण होने वाला है। सारा संसार इस क्रान्ति से पुनीत हो जाएगा और आनन्द के सागर में परमात्मा के साम्राज्य में रहेगा। लेकिन उसके लिए सबको धीरज से कुछ न कुछ त्याग करना चाहिए, और उसके लिए सबसे बड़ी चीज़ यह है कि हिम्मत रखनी चाहिए। हिम्मत से अगर काम लिया जाए तो कोई वह दिन से भरा हो नहीं जब हमारा सारा संसार सुख दूर जाएगा। किन्तु उसमें सबसे बड़ी अड़चन आती है हमें, जब तक कि सहजयोगी गहनता में उतरते नहीं। सहजयोगियों को चाहिए कि वे गहनता में उतरें। हर सहजयोगियों के लिए ये बड़ी जिम्मेदारी है कि उन्हें इस क्रान्ति में ऐसा कार्य करना चाहिए जो एक विशेष रूप धारण किए हो। अभी तक जो भी सहजयोगी मैं देखती हूँ उनमें यही बात होती है कि अभी हमारी यह पकड़ आ रही है, माँ, हमारे यह चक्र पकड़ रहे हैं, हमारा यह हो रहा है, अभी हमारे अन्दर यह दोष है, ऐसा है, वैसा है। लेकिन जब आप देना शुरू करें। मगर हम जब दूसरों को देना शुरू करेंगे, जब दूसरों का उद्धार करना करेंगे तो अपने आप यह सब चीजें धीरे -धीरे कम होती जाएगी। चित्त अपना इधर ही रहना चाहिए कि हमने शुरू कितनों को दिया । कितनों को हमने पार कराया। कितनों को हमने सहजयोग में लाया है। जब तक हम इसे जोर से नहीं कर सकते तब तक सहजयोग का कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा और ये बढ़ना अत्यंत आवश्यक है। उसके लिए और भी बातें करनी चाहिए। जो कि हम लोग सोच रहे हैं कि एक साल के अन्दर घटित हो जाएं । उसमें से एक बात ऐसे सोच रहे हैं कि इस तरह का एक कोई आश्रम बना लें जहाँ पर सहजयोगी अलग-अलग जगह से आकर रहेंगे और उनको सहजयोग के मार्ग से पूर्ण, पूर्णतया परिचित किया जाएगा। इतना ही नहीं लेकिन उनकी जो कुण्डलिनी है उसकी जागृति भी पूर्णतया हो जाएगी और वे एक बड़े, भारी महान योगी के रूप में हमारे संसार में कार्यान्वित होंगे। इसकी व्यवस्था सोच रहे हैं और मेरे विचार से साल भर के अन्दर कोई न कोई ऐसी चीज़ बन जाएगी जहाँ पर आप लोग कम से कम एक महीना आकर रह सकते हैं। और वहाँ रह कर आप सहजयोग में पारंगत हो जाएं। और एक निष्णात प्रवीण सहजयोगी बनकर इस सारे संसार में आप कार्य कर सकते हैं। पर सबसे पहले बड़ी बात यह है कि जो हमारे अन्दर एक तरह का अपने प्रति एक अविश्वास सा है जो डेफिडन्स है उससे हमें बाज़ आना चाहिए। हम आपसे बताते हैं यहाँ जो डॉ.वॉरेन है, ये जब सहजयोग में आए थे तो हमारे पास ज़्यादा से ज़्यादा एक-आठ दिन तक रहे। उसमें भी लड़ते झगड़ते रहे पूरे समय! उनके पहले समझ में नहीं आ रहा था किस तरह अपने को ठीक करें। फिलहाल जो भी हो उसके बाद वो ठीक हो गये और वापस वे ऑस्ट्रेलिया चले गए। और ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद उन्होंने इतने लोगों को पार कर दिया। इतने लोगों को ठिकाने लगा दिया कि मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। जिन्होंने गणपति भी क्या उसे जाना नहीं था । जिन्होंने किसी देवता को कभी जाना नहीं था। जिन्होंने कभी कुण्डलिनी के बारे में जाना नहीं था। वो आठ दिन के अन्दर इतने बढ़िया होकर और सारे ऑस्ट्रेलिया पर छा गये। तो यह सोचना कि हम इसे नहीं कर सकते हैं या कैसे करें, इसमें यह उलझन है लोग क्या समझेंगे? इस तरह की आप अगर आपने विचार धारणा रखी तो सहजयोग बढ़ नहीं सकता। परमात्मा आपके साथ में है, शक्ति आपके साथ 5 है। स्वयं आप योगी हैं और सब योगियों के ऊपर ये जिम्मेदारी है इस कार्य को पूरी तरह से करें। जब तक आप संगठित रूप से नहीं रहेंगे तब तक यह कार्य नहीं हो सकता। संगठित होना पड़ेगा। संगठित होने का मतलब यह है कि, आप एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। एक सहजयोगी को दूसरे सहजयोगी से कभी भी विलग समझना नहीं चाहिए । जैसे कि मैं देखती हूँ कि शुरुआत में सहजयोगी जो इन्सान सहजयोगी नहीं है उसकी ओर ज़्यादा मुड़ता है, बजाय इसके कि जो सहजयोगी है । तो पहली तो बात यह होनी चाहिए कि जो हमारे दूसरे भाई - बहन जो सहजयोगी हैं, उनके आगे बाकी सब पराये हैं। कोई कुछ भी बात कहें उनके साथ हमको किसी तरह से भी एकमत नहीं होना, क्योंकि वो आपको चक्कर में ड्राल देंगे और आपके अन्दर फूट पड़ जाएगी। इस आसुरी विद्या से अगर बचना है तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि आप योगी जन हैं और आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हर आसुरी विद्या का एक- एक एजेंट है। समझ लीजिए वह आपको खींचना चाहता है कि आप इस विद्या से हट जाएं और उनके विद्या में आ जाएं। और उनकी चालाकियाँ इतनी सुन्दर हैं कि आपकी समझ में नहीं आएगी। इसलिए पहली चीज़ यह है कि हम सहजयोगी, सहजयोगी के विरोध में नहीं जाएंगे और कोई ग्रुप हम न बनाये। और कहीं ग्रुप जरा सा भी बनने लग जाता है सहजयोग का तो मैं उसको तोड़ देती हूँ, और ऐसा तोड़ा है। अब जैसे ग्रुप बन गये, दिल्ली वाले हो गए, फिर दिल्ली में कोई हो गए तो कोई करोल बाग के हो गए। तो कोई कहीं के हो गए। तो कोई बम्बई के हो गए। तो बम्बई वाले तो उनमें भी कोई नागपाड़ा के हो गये, तो कोई दादर के हो गए, तो कोई कहां के हो गए। अब करते-करते फिर आप ऐसी छोटी जगह पर आप पहुँच जाएंगे जहाँ आप सिर्फ अकेले बैठे रहेंगे और आप कहेंगे कि सहजयोगी कहाँ गायब हो गए। तो इसमें से कोई भी चीज़ का ग्रुप नहीं होना चाहिए। जब इन्सान में कैन्सर सैट होता है तब वह ग्रुप बना के रहता है। एक आदमी में अगर 'डीएनए' जिसे कहते हैं एक आदमी में अगर खराब हो जाए, एक सेल में अगर खराबी आ जाए एक ही सेल में अगर खराबी आ जाए तो वह दूसरे सेल पर जोर करेगा और दसरा सेल तीसरे सेल पर जोर करेगा और ऐसा उनका एक गुट बनता जाएगा। वह चाहेगा हमारा जो एक ग्रुप है वह सब पर हावी हो जाएं। जब वह सब पर हावी होने लगता है जैसे कि आप समझ लीजिए कि आपके नाक का सेल है वो अगर बढ़ने लगा तो उन्होंने एक ग्रुप बना लिया। तो एक बड़ा सा यहाँ पर लम्पसा हो गया और उसने जाकर के आक्रमण किया आँख के ऊपर, फिर आँख को ढ़क लिया और वहाँ से गए कान को ढक लिया । इस तरह से कैन्सर जो होता है वह अपनी अपेक्षा दूसरों को नीचे समझता है। और एक ग्रुप बनाकर के उनके जो दूसरे लोग हैं, जो कि सहजयोगी हैं उनको दबाता है। ऐसी बीमारी अगर सहजयोग में अगर फैल जाए तो उसका ठिकाना मैं लगाती हूँ। चाहे मैं कहीं भी हँ, मैं चाहे लंदन में रहँ चाहे मैं अमेरिका में रहूँ चाहे कहीं भी रहँ उसका ठिकाना खूब अपने आप हो जाता है । इसलिए किसी को भी कोई ग्रुपबाज़ी नहीं करनी चाहिए । किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए हम एक ग्रुप के हैं। अगर दस आदमी एक साथ रहते हैं और बार-बार एक ही साथ दस आदमी रहते हैं तो समझ लेना चाहिए कि ग्रुप बन रहा है। सहजयोगियों को कभी भी एक साथ दस आदमी हर समय नहीं रहना चाहिए। जब आज इनके साथ बैठे तो कल उनके साथ, तो कल इनके साथ | जैसे कि हमारे अन्दर रतक्त की छोटी-छोटी पेशियाँ 6. हैं जिनको हम सेल्स कहते हैं। वो अगर समझ लीजिए कि एक जगह बैठ गये तो दस सेल्स ने यह सोचा कि हम यहीं | बैठ जाए तो उस आदमी की मृत्यु हो जाएगी। सहजयोग की मृत्यु हो जाएगी। इसलिए हम दस आदमी एक साथ क्योंकि हम एक ग्रुप के हैं, ये एक ग्रुप के हैं, वे एक ग्रुप के हैं। रक्ताभिसरण जिसे कहते हैं कि ब्लड का जो सरक्युलेशन है वह हमारे अन्दर खुले आम से होना चाहिए, तो कोई सा भी ग्रुप नहीं बनना चाहिए। जहाँ ग्रुप आपने देखा बन रहा है उस ग्रुप को छोड़कर दूसरे ग्रुप में चले जाएं। उस ग्रुप को तोडिए। उसे कहना इस ग्रुप के साथ आ जाए और वह उस ग्रुप के साथ आ जाएगा। इस तरह से आप जब तक नहीं करेंगे तब तक आपकी कलेक्टिविटी में निगेटिविटी बनती जाएगी। जैसे कि मैं कहती हूँ कि आपने अगर मंथन करके मख्खन निकाला। मख्खन के कण चारों तरफ हैं मगर उसमें बड़ा सा एक मख्खन का ढ़ेला ड्रालना पड़ता है फिर उसके आस-पास सारे जो कण हैं वो जुड़ते जाते हैं। मगर चार, पाँच, छ: कण मिलकर अलग से अगर बैठ जाएं तो जिसने मथा है वह कहता है जाने दीजिए। बेकार ही है, यह मख्खन बेकार ही है। इसे छोड़ दीजिए। जो बड़ा है उसे उठा लीजिए। तो सबको मिल-मिल करके एक बड़ा सा मख्खन के ठेला स्वरूप बनना है। इसी तरह से आपको भी एक बड़ा सा ग्रुप बनना चाहिए। करते-करते फिर एक बड़े सागर में विलीन होना चाहिए। तो एक बूंद को अगर आपको सागर में विलीन करना है तो आप चार-पाँच बूंद बना के आप जानते है कि दो मिनट के लिए आते हैं और नष्ट हो जाते हैं। अपने आप ही प्रकृति से ही होते हैं। सिर्फ बबुला उसको कोई कुछ करने की जरूरत नहीं है। इसलिए कोई सा भी ग्रुप आपको बनाना नहीं है। सबके साथ एक जैसा मिलना-जुलना, सबको एक साथ जाना। सबसे एक साथ प्रेम रखना और सबको एक साथ समझने की कोशिश करनी है। एक दूसरों को किसी भी तरीके से क्रिटीसाइज़ (निंदा) कभी नहीं करना चाहिए। आप आपस में भाई - बहन नहीं हैं लेकिन आप मेरे शरीर के अंग -प्रत्यंग हैं। अगर समझ लीजिए मेरी एक अंगुली ने दुसरी अंगुली को क्रिटीसाइज़ कर दिया तो क्या फायदा होगा? इससे तो नुकसान ही होने वाला है। इसलिए ठीक यही है कि मनुष्य को, इसलिए उचित बात है कि, हम लोगों को यह सोचना चाहिए कि अब हम मनुष्य नहीं हैं। हम अति मानव हैं और अति बहुत मानव की जो स्थिति है उसमें हमें सब दूर घूम-फिर कर के अपना चित्त परमात्मा पर रखना चाहिए। यह बड़ी भारी एक कठिनाई आ जाती है सहजयोग में। शुरुआत में कलेक्टिविटी, पता नहीं आदमी क्यों तोड़ देता है। यह भी एक आसुरी विद्या है। जहाँ कलेक्टिविटी ट्ूट जाती है। अब जैसे हम कहे कि बम्बई में यह काम कम है। पर दिल्ली में अभी नहीं मगर कलकत्ता में मुझे मालूम नहीं हाल। लेकिन मैं यही कहूँगी कि ये बीमारियाँ फैलने मत दीजिए। आप सब लोग मेरे बेटे हैं और मेरी बेटियाँ हैं। आपस में कोई सा भी अगर आपमें मतभेद हो जाए तो उसमें कोई ऐसी बात नहीं लेकिन यह है कि आपस में आप कोई ग्रुपबाज़ी मत कीजिए । फिर एक ग्रुप बन गया फिर वह ग्रुप वाले कहेंगे हमारे आदमी को आप सामने कीजिए | वह ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को सामने कीजिए , और फिर दूसरा ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को सामने कीजिए और उसका फिर असर क्या होगा ? आप देखते हैं कि ऐसे लोग सहजयोग से पराङ्मुख हो जाते हैं, हट जाते हैं। उनका स्थान खत्म हो जाता है। जैसे गुरुओं को खत्म किया है। वैसे इस तरह के लोगों को भी खत्म किया जाता है। तो मैं नहीं करूं तो आपकी प्रकृति ही कर देती है। इसलिए आपको खास करके मुझे कहना है कि, कृपया आप लोग अपनी ओर चित्त दें और दूसरों की ओर प्रेम दें। दूसरों को प्रेम दीजिए और अपनी ओर चित्त रखें। अपनी 7 ओर देखें । अपनी ओर देखिए और कहिए कि हम कैसे हैं? क्या हम ठीक हैं? क्या हमारे चक्र ठीक हैं? क्या हम में कोई दोष है? अगर आप सोचते हैं कि कोई समझता है तो उससे जाकर पूछिए कि, अगर कोई चक्र पकड़ रहा है तो बता दीजिए, हमारे समझ में नहीं आ रहा । जिस दिन आप इस चीज़ को अपना लेंगे कि हम माँ के अंग -प्रत्यंग में बैठे हैं आप समझ जाएंगे कि आपका कितना महत्त्व है। आप चाहे जैसे भी हैं हमने आपको स्वीकार कर लिया है। अब आपको भी हमें स्वीकार करना होगा और जानना होगा कि अब अत्यंत शुद्ध और पवित्र भाव से रहने से ही हमारी माँ को सुख और आनन्द मिल सकता है। आज की एक विशेष तिथि है, इस तिथि पर अभियान शुरू हो रहा है कि सारी दुनिया के जितने भी तांत्रिक हैं उनके पीछे मैं अब लगने वाली हूँ। और मैं चाहती हूँ कि आप भी सबके पीछे हाथ धो कर लगें । और जहाँ भी कोई तांत्रिक दिखाई दें तो उसके पास जाने वाले लोगों के लिए कुछ आप चाहे तो उसके लिए हैण्ड बिल्स वगैरे छपवा कर वहाँ पर भेज दीजिए कि ये तांत्रिक हैं और आप तांत्रिक से भाग निकले । जो आदमी तांत्रिक के पास जाता है, उसके घर अगर तांत्रिक आ जाए तो सात पुश्तों तक वह पनप नहीं सकता। उसके बच्चे नहीं पनप सकते। सात पुश्तों तक उसके यहाँ हालत खराब होगी। बड़े बड़े नुकसान होंगे। उसका घर जल जाएगा और हो सकता है उसकी बीबी कहीं आत्महत्या कर ले , उसके घर में हमेशा तकलीफें, दु:ख और परेशानी बनी रहेगी। इसलिए यह जो अभियान है इसका आज दिन ऐसा है कि सब लोग मज़ाक में अप्रेल फूल का दिन कहते हैं। तो इनको बेवकूफ बना-बना कर ही पटका जाएगा। उनको बेवकूफ बनाकर ही पटका जाएगा क्योंकि ये अपने को बहुत अकलमन्द समझते हैं। तो इनकी जो बेवकूफियाँ हैं उनको उनका पूर्णतया उद्घाटन करना आप लोगों का कार्य है। आप सबके प्यार और और इस शोभा से वाकई मैं अभिभूत हूँ। इतना आप लोगों ने खर्च किया, इतनी दुलार शोभा बढ़ाई है, सो यही कहना है कि बहुत ज़्यादा खर्चा करने की जरूरत नहीं है। आपकी माँ तो इतनी सीधी-साधी है। उसको कोई भी चीज़ की जरूरत नहीं। आप लोग जो भी हैं, जो कुछ भी हमें दे दें। वही बहुत है। हमें तो कुछ चाहिए भी नहीं। जो कुछ हमसे लेना है वह आप लोग ले लीजिए लेकिन अब आप लोगों के सन्तोष के लिए हम कहते हैं कि, 'अच्छा भाई, अगर आप लोगों को साड़ी देना है तो दे दें। अब क्या करें?' लेकिन वो भी क्या है चार साल पहले दी हुई साड़ियाँ अब भी ताले-चाबी में बन्द हैं वो तो हमारी समझ में आता है कि बाद में अगर कोई म्युझियम वगैरे कुछ बनेगा तो उसमें आप लोग लगा दीजिएगा। तो यह सब चीजें आपके शौक के लिए जो भी आप कहें मेरे पास धरोहर रखी हुई हैं और इसकी कोई जरूरत नहीं पर आपका प्रेम ऐसा है कि उसके आगे मैं कुछ बोल भी नहीं सकती और कुछ कह भी नहीं सकती। जो भी कुछ प्रेम से दीजिएगा चाहे वो शबरी के बेर हो और चाहे आप लोगों की कीमती साड़ियाँ हो सब मेरे लिए मान्य है। तो अब हम लोगों का पूजा का समय हो गया है। आज जैसे मैंने कहा था जन्मदिवस की बात है बराबर बारह बजे मैंने मेरा भाषण शुरू किया और बराबर बारह बजे मेरा जन्म हुआ था। इसलिए इतना समय लग गया। फूलों में समय लग गया, इसमें कोई घबराने की बात नहीं क्योंकि संजोग ऐसा है। बारह ही बजे आज का जन्म दिन मनाने का था। तो इस में सब चीज़ अपने समय पर ठीक-ठाक बैठती है। तो इसमें किसी को भी दोष नहीं मानना नहीं चाहिए । के दो तरह प्रवाह ५) मुंबई, ८ दिसंबर १९७३ बीचोंबीच जाने वाली शक्ति उनसे जा कर के हमारे रीढ़ की हड्डिओं के नीचे में जो त्रिकोणाकार अंत में जो अस्थि है उसमें जा के बैठ जाती है। इसी को हम कुण्डलिनी कहते हैं। क्योंकि वो साढ़े तीन वर्तुलों में रहती है, कॉइल्स में रहती है, कुण्डों में रहती है। और जो दो शक्तियाँ बाजू में मैंने दिखायी हुई हैं, ये भी उसी त्रिकोणाकार, लोलक जैसे, प्रिजम जैसे ब्रेन में से घुस कर के और आपस में क्रॉस कर के नीचे जाती हैं। इस तरह से अपने अन्दर तीन शक्तियाँ मैंने यहाँ दिखायी हुई हैं। एक जो बीचोबीच में से जा कर नीचे बैठ जाती है और दो बाजू में जाती हैं । उसके अलावा लोलक की जो दूसरी साइड है या दिमाग की जो दूसरी साईड है उस में से भी जो शक्तियाँ जाती हैं वो दिखा नहीं रही हूँ। जिसे की हम सेंट्रल न्वस सिस्टीम कहते हैं। ये जो यहाँ मैंने तीन संस्था दिखायी हुई हैं, उसके जो बीचोंबीच संस्था है , उसे हम कुण्डलिनी कहते हैं। इसके अलावा जो संस्थायें हैं वो किस तरह से क्रॉस कर जाती हैं आप देख रहे हैं और क्रॉस करने के नाते इस में दो तरह के प्रवाह होते हैं। एक बाहर की ओर, और एक अन्दर की ओर। जो अन्दर की ओर प्रवाह जाता है, उसी से हमारे अन्दर पेट्रोल भरा जाता है। और जो बाहर की ओर प्रवाह जाता है, उसी से हम बाहर जा कर के किसी भी चीज़ को चिपक जाते हैं, इन्वाल्वमेंट हो जाती है। जानवर को किसी से इन्वाल्वमेंट है? मनुष्य को है। 'ये मेरा है । ये मेरा बेटा है। ये मेरा भाई है। ये मेरा घर है। ये मेरा देश है।' मेरा, मैं ये सब उसी कारण आता है, जो कि ये प्रवाह हमारे अन्दर में बाहर की ओर जाने की हमारी अन्दर शक्ति है वही खींच ले जाता है हमारी भरने वाली को। हम बाहर आसानी से छोड़े जाते हैं। जैसे आप सब का चित्त मेरी ओर बहुत आसानी से है। किंतु अगर मैं सीधी बात कहूँ कि अपना चित्त आपस में और रखे। आप नहीं जाते। इससे सरस तो और होना ही नहीं है। किंतु ये नहीं हो पाता है। इसका कारण ये है कि हमारी बाहर जाने की शक्ति ज्यादा है और यही शक्ति हमें सिम्पथैटिक नाम की न्वस सिस्टीम देती है, जिसके कारण हम हमारे अन्दर बसी हुई जो शक्ति है उसे इस्तमाल करते हैं। उसे हम उपयोग में लाते हैं। जो हमारे अन्दर के स्रोत हैं उसे हम खर्च करते हैं। वही हमारी सिम्परथैटिक नर्वस सिस्टीम है। और जो हमारे अन्दर धरती है, वो हमारी पैरासिम्परथैटिक है। माने जो हमारे अन्दर आती है और आ कर के स्थित है। इन्हीं दो शक्तिओं के कारण हमारे अन्दर इगो और सुपर इगो नाम की दो चीजें प्रतिक्रिया रूप बन जाती हैं। और उससे हमारे मस्तिष्क से दोनों तरफ में इस तरह से पड़दा पड़ जाता है, कि हम उस सर्वगामी, सर्वव्यापी शक्ति को भूल जाते हैं। ये कुण्डलिनी जो कि हमारे अन्दर पीठ की रीढ़ की हड्डी में जा कर के बैठती है, अपने को साढ़े तीन कुण्डों में लपेटती है, उसका कारण क्या है, वो भी शास्त्रविदित है । लेकिन वो अभी मैं नहीं बताऊंगी। साढ़े तीन कुण्डों में लिपटी हुई ये कुण्डलिनी एकदम से उसकी जो लम्बाई है वो बढ़ जाती है और इसी कारण उसके बीच में तार टूट जाती है। तार टूट जाने के कारण अपने यहाँ पर बीच की नाड़ी जिसे हम सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं, जिससे कुण्डलिनी उतरती है, उसके अन्दर एक थोड़ी सी गैप हो जाती है। जगह बन जाती है। ये जगह हमारे एक में बाहर से भी, यहाँ अगर डॉक्टर लोग बैठे हये हो तो जानते होंगे .... और अॅवॉ्टिक प्लेक्सस में भी, ऐसी ही जगह हमारे अन्दर है। यही भवसागर है। यही आदिकाल में बनाया हआ भवसागर है। जो पहले आदि कुण्डलिनी बनायी गयी और उस आदि कुण्डलिनी को बना कर के ही परमात्मा ने सारी सृष्टि की है। और उसी का संपूर्ण प्रतिबिंब मनुष्य है। परमेश्वर की सारी कृति का प्रतिबिंब मनुष्य है। जैसे ही बच्चा जीव धारणा करता है, उसके हृदय में स्पंदन होता है, वैसे ही शिव, ईश्वर, जिनकी कल मैंने बात की थी, ये आपके हृदय में विराजमान होते हैं। और वो दिखायी देते हैं एक अंगूठे के जैसे। कोई अगर चल रहा हो, कोई अगर जोर से चल रहा हो दिखायी देते हैं। आप को नहीं दिखायी देते हैं, लेकिन हमें दिखायी देते हैं। आपको नहीं दिखायी दे सकते हैं, माने ऐसा नहीं कि आपको नहीं दिखायी देगा। अगर आपके पास माइक्रोस्कोप है तो आप इसको देख पा रहे हैं और जिसके पास नहीं है वो नहीं देख पा रहे हैं। इसका मतलब ये नहीं की जिसके पास माइक्रोस्कोप है उसे दिखायी नहीं देगा । आप भी माइक्रोस्कोप पा लें और इसे देखे और जाने। हृदय में बसा हुआ यही जीव, इसी को हम लोग जीवात्मा कहते हैं। इसे लोग सोल कहते हैं। जब वो धारणा करता है तो लोग उसे जीवात्मा कहते हैं। कुण्डलिनी, ये मैंने आपसे कहा, कि शक्ति है और हृदय में बसा हुआ ..(अस्पष्ट)। मनुष्य के अन्दर शिव और शक्ति दोनों ही बसे हैं। उनका मीलन होना जरूरी है। नहीं तो मनुष्य तत्त्व में उन्हें ब्रह्म तत्त्व की धारणा नहीं। हालांकि दोनों ही चीजें वहाँ पर हैं। जैसे की आपने अपने यहाँ गैस की लाइट देखी होगी । मुझे बड़ी मज़ेदार लगती है। उसके अन्दर भी आपने देखा होगा एक छोटी सी ज्योत जलती है और जब उसको पूरी तरह से आप खोल देते हैं, तब गैस ऊपर से दौड़ जाती है और गैस के कारण यहाँ लाइट आती है। इसी तरह मनुष्य में भी इनलाइटनमेंट जो आती है। वो भी बिल्कुल इसी तत्त्व से आती है कि पहले शिव की शक्ति हृदय में स्पंदित होती है और शक्ति जो है, शक्ति, आदिशक्ति जिसे कहियेगा, वो शिव स्वयं जो ईश्वर स्वरूप है, साक्षी स्वरूप है, और शक्ति जो कार्यान्वित होती है, कुण्डलिनी स्वरूप हमारी माँ है यहाँ त्रिकोणाकार स्थिती में बैठी है। इसका स्पंदन आदि हम आपको दिखा सकते हैं। वो यहाँ तो सब को कनव्हिन्स करते करते इतने साल बीत गये। मेरी तो समझ ही नहीं आता है कि इतनी बड़ी चीज़ के लिये इतने ज्यादा सब को लडाई, झगड़ा लेने की क्या जरूरत है। आखिर आप ही का कल्याण और मंगल ही तो हम चाह रहे हैं और जिनका हो गया है उनको तो ये बात मालूम है। किंतु इसके लिये लोगों को समझा समझा कर के आदमी पगला जाये। अगर मैं कल यहाँ एक हीरा रख दूेँ और आपसे कहूँ कि 'यहाँ एक हीरा रखा है। किसी को चाहें ले जाओ ।' कोई भी मुझ से झगड़ा नहीं करेगा , डिबेट नहीं करेगा , ऑग्ग्युमेंट नहीं करेगा । ले कर पहले हीरा दौड़ेगा। वो ये भी नहीं सोचेगा की ये खरा है या खोटा। हीरे जैसे हजारों हीरे जिस शक्ति के द्वारा बने हये हैं, उस शक्ति के बारे में इतना संसार में मुझे समझाना पड़ता है। कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि सारा जीवन ही ऐसा है। क्या ऐसे लोग होंगे ही नहीं संसार में जो इसको समझ सकें ? क्योंकि ये तो 'आ मास' देने की बात है मैं कर रही हूँ। बहुतों को देने की बात मैं कर रही हूँ। दो-चार लोगों को नहीं, अनेकों को होने की बात है और हो रही है। लेकिन जो होते भी हैं वो भी आधे- 10 नि अधूरे। पूरी तरह से पाना नहीं चाहते हैं। इसी कारण मुझे, हालांकि नहीं कहना चाहिये, कि आपको ये खयाल है इतना नहीं आया, जितना मैं कर पा रही हूँ। हमारे बीच में बीचोबीच जो गैप है, बीचोबीच जो ..... है, ऐसी (अस्पष्ट) पहले आदिशक्ति की हुई, और उसी ..... में हम जानते हैं कि नाभि पे ही हमें माँ अपना दान देती है। अपना रक्त देती है माँ। इसी तरह से इस आदिशक्ति माँ ने ही अपना रक्त इसी आदि मानव कहना चाहिये, या आदि मानव की जो कल्पना है, उसकी नाभि पे ही पहले... जैसे कि कोई हम बड़ा भारी कारोबार तैय्यार कर लें। तो हम क्या सोचते हैं कि इसका एक चेअरमन बना दे। इसका एक वाइस चेअरमन बना दें। इसमें दो-चार हो जाये। इस तरह से हम अलग-अलग जगह लोग बनाते हैं। इसी तरह से आदिशक्ति ने भी मानव की रचना करने से पहले इस सब का विचार किया और पंचमहाभूत से तैय्यार की हुई पृथ्वी, जो हम आपको दिखा सकते हैं वही हम आपको दिखायेंगे, इस पंचमहाभूत से निर्माण की हुई शक्ति के लिये सब से पहले कोई न कोई पालनकर्ता चाहिये। उस पालन कर्ते का अधिष्ठान करना जरूरी है। पालन कर्ता पहले बनाने पर ही सृष्टि बनानी चाहिये। इसलिये यहाँ नाभि चक्र पर श्री विष्णु की रचना की। ये सत्य है, इसको मैं साइंटिफिकली प्रूव्ह कर सकती हूँ। मैं तो यहाँ हिन्दू धर्म की या किसी धर्म की विशेषता ले कर नहीं आयी हूँ। सभी धर्मों में अपनी विशेषता है। सिर्फ हमारे अन्दर वो जीवंतता नहीं है। श्रीविष्णु साक्षात् अपने नाभि पर बसते हैं क्योंकि जब हम कुण्डलिनी की जागृती लोगों को देते हैं और जब उनका नाभि चक्र गड़बड़ में रहता है, तब हम देखते है कि श्रीविष्णु का नाम लेने से नाभि चक्र जो है खुल जाता है। लेकिन नॉन रियलाइज्ड आदमी को नहीं लेना चाहिये। नॉन रियलाइज्ड आदमी उसी तरह का होता है, जैसे कि आपका कनेक्शन तो लगा नहीं और आप टेलिफोन घुमा रहे है। जो रियलाइज्ड आदमी किसी आदमी को जागृति देते वक्त ये देखें कि उसकी नाभि चक्र पे कुण्डलिनी उठ नहीं रही है, अपनी जगह पे श्रीविष्णु का नाम लें और श्रीविष्णु के नाम से कुण्डलिनी वहाँ पर उठ खडी होती है। श्रीविष्णु की स्थापना में, श्री लक्ष्मी जी में उनकी शक्ति है हम लोग जानते हैं। ये बहुत अच्छा है हिन्दुस्तान में है कि ये सब बातें बचपन से हम अपनी दादी अम्मा और नानी अम्मा से सुनते आये हैं। अब अगले जनम की तो मैं नहीं कह सकती की कि यहाँ लोगों का क्या होगा? लेकिन आज जो हाल है उसमें अभी ऐसे बहुत लोग हैं, जो श्रीविष्णु को तो जानते ही हैं। श्रीविष्णु एक सिम्बल के रूप में नहीं है। जिसे की हम सिम्बल समझते हैं। सिम्बल से कहीं अधिक है। जैसे कि साइकोलॉजी में, बड़े बड़े साइकोलॉजिस्ट ने कहा हुआ है, कि मनुष्य स्वप्न में ऐसे ऐसे सिम्बल्स या प्रतीक देखता है, जो युनिवर्सल है, जो सार्वजनिक है, सब जगह वही वही दिखायी देता है। जैसे अगर किसी आदमी की मृत्यु होने वाली हो और उसमें अगर कोई हथियार इस्तेमाल होने वाला हो, तो उसको एक विशेष तरह का तिकोन दिखायी देता है, चाहे वो चाइनीज हो, चाहे वो इंडियन हो, चाहे वो अमेरिकन हो, वो पढ़ा लिखा हो या नहीं। ऐसे हजारों उदाहरण उन्होंने दिये हैं, और उसका सोल्यूशन निकाला कि कोई न कोई ऐसी शक्ति हमारे अन्दर में है, जिसको कि वो कहते हैं अनकॉन्शस| युनिवर्सल अनकॉन्शस| ऐसी कोई न कोई शक्ति हमारे अन्दर बसी हुई है, जो इस तरह की सभी बाहर की ओर है। ये जो शक्ति है, ये जो शक्ति हमारे अन्दर इस तरह के प्रतीक रूप में है, वही शक्ति है हमारे 11 अन्दर के प्रति जब हम गहरे में उतरते हैं, जब आत्मा के प्रति गहरायी में बैठते हैं तब उन्हें हम लोग देखते हैं। श्रीविष्णु का स्थान हमारे नाभि चक्र पे है। और नाभि में श्रीविष्णु जिस सागर पे लहरा रहे हैं, वो प्रेम का सागर है। 12 ब्राह्मण नहीं। ऐसे ही तेहरान में हम गये थे तो वहाँ मुंडों और ये लोग और कहने लगे कि, 'ये काफ़िर है और इनको हम हर जगह ही बेकार नज़र आते हैं, सारे धर्म वालों को। इनकी बात पे मत जाओ। ये तो नमाज़ पढ़ा नहीं सकती। हमने कहा, 'नमाज़ ही पढ़ा रहे है समझ लीजिये ।' कहें कि, 'हम मुसलमान हैं। मैंने कहा, 'मुसलमान का मतलब समझाईये।' मुसलमान का मतलब है, जो फिर से पैदा हुये। 'आप हुये हैं?' कहने लगे, 'हाँ, हुये हैं।' मैंने कहा, 'तो हमारे सामने नमाज़ पढ़ो।' नमाज़ तो पढ़ा गया, लेकिन उनकी हालत ऐसे ऐसे होने लगी। मैंने कहा, 'यही आप मुसलमान हैं। मेरे सामने दो मिनट भी आप हाथ नहीं कर पाते। आपकी आँख भी बंद नहीं हो पाती। आप आँख बंद करते तो आपकी आँख भी लपक रही है। कहने लगे, 'आप तो जादू कर रहे हैं।' मैंने कहा, 'जादू कर रही हूँ, मंत्र कर रही हूँ। आपमें अगर मुसलमानियत है तो रोक लीजिये।' ऐसे ही धर्म के नाम पर ठेका मार कर नहीं बैठ सकते। उसकी अॅथॉरिटी किसी को नहीं है। जब तक धर्म को जाना नहीं तब तक किसी के झंडे लगाने से कोई नहीं। ये तो ऐसा ही हुआ कि हिन्दुस्तान में आ कर कोई झंडा मार दे, 'ये मेरा हो गया।' हिन्दुस्तानी की पहचान है ऐसे ही धार्मिक कार्य से है। एक बार एक अंग्रेज ने पूछा कि, 'हिन्दुस्तानी क्या पहचान है? हिन्दुस्तानी बड़े अपने को समझते हैं । हिन्दुस्तानी की क्या पहचान है?' मैंने कहा, 'बड़ी अच्छी ....है हिन्दुस्तानी पहचानना, एक अंग्रेज पहचाना तो बताती हूँ।' कहने लगे , 'क्या पहचान है?' मैंने कहा, 'एक हिन्दुस्तानी के गले में आप हार पहना दीजिये, वो एक मिनट में उतार देगा । लेकिन अंग्रेज को पहना दिया तो दिनभर वो पहन के घूमेगा, रात को आपने खाने पे बुलाया तो फिर पहन के आयेगा। ये हिन्दुस्तानी की पहचान है।' मैंने कहा। ऐसे ही धार्मिक आदमी की भी पहचान होती है। बाहर से एकाध आदमी आपको बुरा लगता हो लेकिन धार्मिक आदमी धर्म में खड़ा हुआ अन्दर होता है। बाहर नहीं होता। अन्दर से जो धार्मिक होता है वो दूसरी बात है। और बाहर से जो लंपट और झूठ बोलने वाला और ढोंगी और भोंदू आदमी , कभी भी धार्मिक नहीं होता। और इसी वजह से हमारा धर्म सारे संसार का धर्म .... गया। किसी को विश्वास ही नहीं रह गया कि हिन्दू धर्म में जिसको की आदि शंकराचार्य जैसे कितने महान संतों ने, इतना महान स्वरूप दिया था , जो कि स्वयं एक रियलाइज्ड था। उसको कहाँ ले जा के गिरा दिया हमने। कहाँ मोहम्मद साहब और कहाँ उनका धर्म। कहाँ ईसामसीह और कहाँ उनका धर्म। देखते नहीं बनता ये लोग कहाँ अँधे जैसे उल्टे ही चले जा रहे हैं । ये हमारी माँ कुण्डलिनी यहाँ बैठी हुई है और इसी में श्रीगणेश उनकी रक्षा कर रहे हैं। वहाँ बैठे ह्ये हैं। लेकिन वो बालक हैं। बालक बेचारे रक्षा कर रहे हैं। लेकिन आततायी जब उन पर आक्रमण करते हैं तो माँ अन्दर से फूँकार करती है और उसी तरह सारे ही कुण्डलिनी के दोष आते हैं। उसके बाद नाभि चक्र पे मैंने आपको बताया है, श्रीविष्णु की स्थापना है और स्वाधिष्ठान चक्र जो कि हमारे निर्मिती के लिये बनाया गया है। जैसे हमारे औरतों का जो यूट्स होता है, वो अेऑर्टिक प्लेक्सस से कंट्रोल होता है जिसे हम स्वाधिष्ठान चक्र केंद्र से ही स्थापित करते हैं । जो कुछ भी हम निर्मिती करते हैं वो सब स्वाधिष्ठान चक्र पे है। | जो कि यहाँ मैंने छः नंबर पे दिखाया है। जैसे कि कोई बड़ा भारी लेखक, या कोई बड़ा भारी संत, जो भी कुछ ओरिजिनल आदमी बनाता है, वो सरस्वती की आराधना कर के ही होता है। सरस्वती इसकी अधिष्ठात्री है। इसकी 13 अधिष्ठात्री देवी सरस्वती है। इसलिये हमेशा गणेश के बाद हम लोग सरस्वती की पूजा करते हैं। और इन सब पूजा में और सब चीज़ों में कितना अर्थ है वही मैं सिद्ध करने के लिये आयी हूँं। जिसको ये लोग आडंबर कहते हैं वो कितनी महान चीज़ है लेकिन उसके अन्दर का गहरा अर्थ, उसके अन्दर की गहनता जिन्होंने समझी नहीं, जो साइन्स के झंडे लगा कर घूम रहे हैं, उनको भी मैं दिखाना चाहती हूँ कि साइन्स में इसका क्या अर्थ है। बिल्कुल साइन्स भी वहीं से आया हुआ है। अगर सरस्वती जी ना हो तो आइनस्टीन को पता न चलता कि थिअरी ऑफ रिलेटिविटी क्या है? आइनस्टीन ने भी अपनी किताब की शुरूआत में ही कहा है कि, 'मैं तो परेशान हो गया काम करते करते, किताबें पढ़ते पढ़ते और उसके बाद मैं थक कर किसी उद्यान में बैठ कर के सोप बबल्स से खेल रहा था। साबून के बुलबुले से खेल रहा था। तो उसमें उन्होंने कहा हुआ है, 'व्हेन समटाइम वेअर अननोन द थिअरी ऑफ रिलेटिविटी डॉन अपॉन यू।' इशारा उसी तरफ है, कि सारी निर्मिती हमारे अन्दर ही तो हो रही है। जो कुछ बाहर है वो जाना होगा। उसके बाद कहा है मैंने आपको पाँचवा जो चक्र है, नाभि चक्र, उसमें श्रीविष्णु की स्थापना हुई। श्रीविष्णु की स्थापना है विष्णु पालन करते हैं। उनकी पत्नी... । जैसे सरस्वती भी बनायी हुई बड़े सोच के बनायी। इसमें सोच- विचार बड़ा गहरा है। जो द्रष्टा है उन्होंने नहीं बनाया है। परमात्मा ने उनको बनाया है। इसलिये उनका सोच-विचार बड़ा अच्छा है। आप उस सरस्वती जी की मूर्ति अपने सामने रखे। वो श्वेतवस्त्रा है। श्वेतवस्त्रा का मतलब ही ये है.....(अस्पष्ट)। जैसे बहुत से लोग मुझ से कहते हैं कि माँ, 'आप सफ़ेद क्यों पहनती है?' 'मैं ....हँ। वैसे मैं हमेशा तो पहनती नहीं हूँ।' लेकिन ध्यान के समय जरूर सफ़ेद पहनती हैँ क्योंकि मनुष्य का चित्त जो है वो मेरे रंगों में न उलझ जायें। इसलिये सरस्वती को श्वेत वस्त्रा बनाया हुआ है और उसके हाथ में जो वीणा दी हुई है, बड़ी जोरकस है। वीणा अपने यहाँ का एक आदि गीत यंत्र है, वाद्य यंत्र है और उसका अर्थ ये है कि, आदमी को संगीत उतना ही मालूम होना चाहिये जितना एक सरस्वती के दिवाने को मालूम है। आपने देखा होगा कि बहुत से पढ़े लिखे लोग इतने बेस्वाद होते हैं, पूजा पाठ में सरदर्द हो जाये। उनके अन्दर जरा भी स्वाद, निखार जरा भी नहीं। अब बात करने लग गये तो बोअर हो जाते है। एक मिल गये। उन्होंने तो सारा पांडित्य ही हम पे डाल दिया। ऐसे पढ़े लिखे लोगों से लोग भागते हैं। ऐसा आदमी कभी भी सरस्वती का पुजारी नहीं हो सकता। पढ़ा लिखा होना और सरस्वती का पुजारी होना बहुत ही महदंतर है। हर एक पढ़े लिखे आदमी में संगीत का और हर एक कला का ज्ञान होना जरूरी है। सिर्फ एक ही चीज़ का स्पेशलाइजेशन कर लेने से आप विद्वान नहीं हो सकते। आप सरस्वती के पूजारी है। जो आदमी एक चीज़ को जानता है उसको सब कुछ जानना जरूरी होता है। ये सरस्वती की पहचान है। अब जैसे मुझे एक चीज़ समझ नहीं आती, वो है इकोनोमिक ऑफ ह्यूमन लॉज, जो चीज़ मेरे समझ से परे है, शायद हो सकता है, कि ये सब कुछ बहुत आर्टिफिशिअल है। शायद इसी वजह से मैं नहीं समझ पायी। कला में मनुष्य को गति लेनी चाहिये, जब वो अपने स्वाधिष्ठान चक्र में पूरित होता है। उसके बाद नाभि चक्र पे श्री लक्ष्मी जी का स्थान है। श्री लक्ष्मी जी, का भी देखिये, बड़ा सुन्दर सा स्वरूप बना 14 है। उनके दो हाथ में कमल है। एक हाथ ऐसा है और एक हाथ ऐसा (अॅक्शन)। अभी जो वाइब्रेशन्स ले रहे हैं वो समझ सकते हैं, इसका अर्थ क्या है और दो हाथ में कमल होने का मतलब ऐसा है जो कि आदमी रहित होती है स्री और दो हाथ। एक सामान के लिये है, एक शोभा होने के लिये| कंजूष आदमी कभी भी रईस नहीं होता। जो कंजूष है, उसको रईस नहीं कहना चाहिये। वो कंजूष भी है और पैसे वाला भी है। जिसके घर में शोभा है, जो कला का पुजारी है, जो कला को बनाने वाला है वही रईस आदमी है। और कमल का जो कोझीनेस है, उसकी जो आरामदेयता है, जैसे कि कोई भी भँवरा आ जायें उसे अपने पास में बुला लेता है, ऐसा जो है वही आदमी कमलापती कहा जाये। लेकिन हमारे यहाँ तो हर एक आदमी सोचता है कि मैं लक्ष्मीपती हूँ। लक्ष्मी जी का पति होने के लिये विष्णु जैसा पालनकर्ता चाहिये, जो सारे संसार की ओर एक पिता की दृष्टि रखे और सारे संसार को अपना एक कुटुंब समझ के उसके लिये रोता है और ऐसे पैसे वाले तो बहत हैं, लेकिन अपने रिश्तेदारों को सम्भाल नहीं पाता। उनके सुख-दु:ख की जो चिंता नहीं कर सकते, वो लक्ष्मीपति कैसे? जो सारे ही संसार के सुख-दुःख को सम्भालने वाला है, वही लक्ष्मी का पुजारी है। इसी को हम इनलाइटेन्ड इंडस्ट्रियलिस्ट कहते हैं। ऐसे अपने देश में अगर हो जाये तो अपने प्रश्न ही छूट जाये । लक्ष्मी जी का एक हाथ ऐसा होना और एक हाथ ऐसा होना बड़ा अच्छा है। इस हाथ का अर्थ ऐसा होता है कि लक्ष्मीपति को दान जरूर करना चाहिये। दान अव्याहत करना है। अपने आप करना चाहिये। दान करने में भावना नहीं होनी चाहिये की हम दे रहे हैं। देना का कोई मतलब ही नहीं । बगैर दिये हमें वो चुभ रहा था इसलिये हम निकाल ही दिये। और ये हाथ ऐसा होने का मतलब है हमारा आश्रय है। हमारे आश्रित है में जब कोई आदमी दौड़ के आता है और कहता है, 'भाई मैं बहुत परेशान हूँ। किसी तरह से मेरी मदद करें।' पहले ही हमारे चार दरवाजे बंद हो जायेंगे | उसको भगाने के लिये पाँच आपके दरबान खड़े रहेंगे। ऐसे आदमी को मैं लक्ष्मीपति नहीं कहूँगी। लोग कहेंगे कि, 'आप देने लग जायेंगे तो इसका तो कोई अंत नहीं। मरने वालों का तो अंत नहीं।' ऐसी बात नहीं। आपके दरवाजे जो आये उसको मोड़ना गलत बात है। लेकिन आप शायद जानते नहीं हैं, कि थोड़ासा दिया हुआ कितना बड़ा हो जाता है। बहुत बड़ा हो जाता है। मैंने अपने छोटे से जीवन में, मेरे पति की कोई विशेष तनख्वाह नहीं है, मतलब ऐसे कोई बड़े रईस आदमी नहीं है, लेकिन मैंने देखा है, जहाँ भी कहीं मदद की, जहाँ थोड़ा कर भी दिया, वो हजार गुना मेरे पर बरसा है। मेरी फॅमिली पर बरसा है। मेरे लोगों पर बरसा है और दुनिया पर। अपना देना कभी भी व्यर्थ नहीं गया। एक उदाहरण के लिये बात बताऊँ। हम दिल्ली में रहते थे तब एक शरणार्थी आयी और मेरे पास आ कर कहने लगी कि, 'माँ, कल मुझे बच्चा होने वाला है, ये सब मुझे प्यारा लगा। हमारे पास कोई जगह नहीं। आप के पास इतना बड़ा घर है हमें जगह दे दीजिये।' मैंने कहा, 'हाँ, आ जाओ। रह जाओ ।' मेरे पति आये, घबरा गये। कहने लगे, 'तुम कितनी भोली हो। किसी को भी घर में रख दिया। कल अगर कोई आफ़त आ जायेगी। मैंने कहा, 'आ जाये तो आ जाये। अगर अपना बच्चा अपने घर में आ जाये तो आफ़त आ सकती है। इसमें कौन सी बात है। वो कहने लगे, 'तुम्हारी तो बात समझ में आती नहीं।' मैंने कहा, 'अच्छा, चलो भाई , बाहर का कमरा खाली पड़ा है, उसमें रख दिया। कौन सी आफ़त आ गयी।' उनका भी कहना व्यावहारिक है और हम अव्यावहारिक है। व्यवहार हमें ज्यादा मालूम है तो आप समझ लीजियेगा आगे। वो हमारे घर में रही। उसके साथ में एक मुसलमान और वो हिन्दू थी, उसकी पत्नी। और वो मुसलमान उनके मित्र थे तो उनको भी भगा लिया था अपने घर में रखा था । मैंने कहा, 'चलो, | 15 दोनों यही रहो।' फिर वहाँ पे दिल्ली में आ कर के और सब लोग आ गये और कहने लगे कि, 'इस घर में भी एक मुसलमान छिपा हुआ है। हमको मालूम है, नौकरों ने बताया है। तो उन्होंने आ कर मुझ से पूछा। मैंने कहा, आप विश्वास रखते हैं,' मेरा कुंकु देख के पहले घबरा गये, 'तो यहाँ पर कोई मुसलमान नहीं। आप चले जाईये|' वो चले गये। उसके बाद वो मुसलमान साहब, जो एक बहुत बड़े शायर है, आज हिन्दुस्तान के बहुत बड़े शायर है। वो मुझे बहुत मानते है। अपने काव्यों में भी उन्होंने वर्णन किया है। लेकिन वास्तविक मैं तो उनको नहीं जानती थी। इतना बड़ा शायर, उसको मैं अगर .... नहीं देती, तो आज वो खत्म, इतनी बड़ी कवितायें जो लिखी वो सब खत्म है। वो जो थी मेरे साथ वो आज हिन्दुस्तान की बहुत बड़ी सिनेमा अॅक्ट्रेस है। बहुत बड़ी। और उसको एक बार, मैं कभी उसको बाद में मिली नहीं। वो बार बार मुझे खोजती रही। मैं चली गयी इधर-उधर, जहाँ मेरे पति जाते रहे। उसके बाद मैं बम्बई आयीं, तो हमारे कुछ नवयुवकों ने सोचा कि एक सिनेमा बनायें । मुझ से कहने लगे कि 'देवीजी से कहिये कि इसमें अॅक्ट करें।' मैंने कहा, 'मैं उसे नहीं कहूँगी।' कहा, 'क्यों ?' मैंने कहा, 'उससे एक बंधन है। उसे छोड़ दे।' जिस दिन मुहूर्त हुआ, वो आयीं। मुझे देख कर वो रो पड़ी। कहने लगी, 'माँ, तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि ये तुम्हारा है!' मैंने कहा, 'इसलिये मैंने नहीं बताया कि मैं जानती थी, कि मेरा सोच कर तुम एक बार इस पे ठान पड़े। मैंने कहा तुम्हारा सोच-विचार है।' इस तरह से न जानें कितने ही बार, हजारों मैं आपको उदाहरण दे सकती हूँ, कि दिया हुआ कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। रोका हुआ जरूर व्यर्थ हो जायेगा। कल अगर आपके यहाँ पर डिमॉनीटाइझेशन हो जाये तो गया। कल कुछ गड़बड़ हो गयी तो गया। दीजिये, दोनों हाथों से दीजिये। घबराईये नहीं । इस हाथ से आप दे रहे हैं और इस हाथ से आप के पास आता है। लक्ष्मी जी के अपने नाभि चक्र पर ....होने का यही कारण है, कि हम लोग जो कुछ भी खाते हैं, जो कुछ भी पाते हैं, पेट में हमारे जो भी अन्न जाता है, उसकी पचन क्रिया श्रीविष्णु जी के हवाले है । इसलिये जिन जिन को डाइबेटिस होता है, अधिकतर वो अगर दान करें तो ठीक हो जाये। आपको आश्चर्य होगा कि डाइबेटिस के लोगों को मैं हमेशा कहती हूँ, कि आप दान करें। दान, जो देते हैं वो मुड़ कर अपने पास हज़ार गुना आता है और मनुष्य के लिये बड़ा आशीर्वादित है। इसी तरह से पेट के जितने भी विकार हैं, जितने भी पेट के विकार है, सारे ही विकारों का इलाज श्रीविष्णु है। श्रीविष्णु का अवलंबन करने का मतलब ही है, कि हमारे अन्दर दानशूरता है। जो आदमी बड़ा हो जाता है, उसको पेट की शिकायत कम रहती है। ये कुछ है ऐसा। आपको दिखने में अजीब सा लगता है, पर ऐसी बात है। आप कर के देखियेगा। जिनको भी पेट की शिकायत हो आज जा कर कहीं, किसी को दान कर दें। किसी का पेट भर के आया आप देखियेगा आपका पेट हल्का हो जायेगा। ये शास्त्रोक्त बात है क्योंकि हमने इसको बहुत बार अजमाया है और लोगों ने भी आजमाया है कि इस से बड़ा फर्क पड़ता है। उसके बाद हृदय चक्र में मैंने आपसे पहले ही कहा था, कि शिवजी ईश्वर स्वरूप में है। शिवजी का हमारे अन्दर में होना आवश्यक ही है। क्योंकि वही साक्षी हैं । वही क्षेत्रज्ञ जिसे कहते हैं, वो हैं । वो सब को जानने वाले, वही साक्षी हैं। हमारे अन्दर कोई न कोई एक ऐसा बैठा हुआ आप सब को प्रतीत होता है, जो सब हमारा जानता है। हम अगर झूठ बोलते हैं तो, सच बोलते हैं तो, अच्छे बोलते हैं तो, दान देते हैं तो, बड़े होते हैं तो, छोटे होते हैं तो, सब को जानने 16 वाला हमारे हृदय में साक्षिस्वरूप जो बैठे हये हैं, वो परम ईश्वर, वही आत्मास्वरूप, हमारे हृदय में विराजमान हैं। लेकिन हृदय चक्र तक पहुँचने के लिये जो मैंने बीच की गॅप दिखायी है, यही सारा भवसागर है। इसके बीचोबीच श्रीविष्णु का स्थान और उसके ऊपर में ब्रह्मदेव बैठ कर के सारी सृष्टि की निर्मिती करते हैं। सारा भवसागर बनाया है। अब ये भवसागर बनाने के बाद प्रश्न ये हुआ कि को किस तरह से पार किया है। मनुष्य भी बन गया, अब मनुष्य इसको पार कैसे किया जाये? इस मनुष्य को पता कैसे हो ? इसमें ब्रह्मतत्त्व कैसे आयें? माने इसमें बैठे हये शिव और शक्ति का मिलन कैसे हो? योग कैसे बनें? इसके लिये एक विशेष तरह की व्यक्ति संसार में तैयार की। जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के तत्त्व को पकड़ के बनायी गयी, जिसे हम श्रीदत्तात्रेय जी के नाम से मानते हैं। श्रीदत्तात्रेय कोई नहीं हैं, लेकिन आदिगुरु हैं। मेरे भी गुरु हैं। अनेक जन्मों में उन्होंने मुझे सिखाया हैं। श्रीदत्तात्रेय जी के जन्म के बारे में सुन कर और उनके अनेक जन्मों के बारे में सुन कर आप लोग स्तंभित हो जायेंगे| कितनी बड़ी भारी बात हम लोग भूल में गये हैं। श्रीदत्तात्रेय जी के जन्म अनेक, पहले तो हम कह सकते हैं कि उनका जन्म राजा जनक के दशा हुआ। जब उनकी लड़की श्री सीताजी, स्वयं साक्षात् शक्तिस्वरूप है। उसके बाद उनका जन्म मछिंद्रनाथ, झोराष्ट्र और मोहम्मद साहब, जिनको की हम सोचते हैं, वो बिल्कुल दूसरे ही तरह के आदमी थे। वो हर तरह के प्रयत्न किया करते थे । पहले तो संसार में श्रीदत्त, आदि लोगों ने ये सिखलाया, कि इस तरह से अलग अलग हमारे अन्दर में प्रतीक स्वरूप इतनी चीज़ें हैं। वो कहते हैं, 'लोग इसी प्रतीक को पकड़ गये। मूर्तीपूजा में फँस गये।' उनका मतलब ये था कि इस मूर्ति से परे उस शक्ति को पहचानें। इसलिये पहले मूर्ति की बात की। जैसे कि फूल होता है। फूल में बैठे शहद के लिये फूल की बात पहले उन्होंने की थी। लेकिन लोग उसी फूल को चिपक गये। तो फिर ऐसे उन्होंने अवतार लिये, जिसमें उन्होंने शहद की बात की। उसमें उन्होंने पुनर्जन्म की बात जान बुझ कर नहीं की। क्योंकि पुनर्जन्म की बात अभी, सब लोग मुझे पूछते हैं कि, 'माताजी, हमारा पहला जनम बताईये।' जो गया जनम है उसको क्यों जानना चाहते हैं? आज का ही जनम ठीक है। इसी में पार हो जाईये। उसमें क्या विशेषता है? आप राजा थे या महाराजा थे या भिखारी थे, इससे क्या अन्तर होने वाला है। इसीलिये उन्होंने इस पर बात नहीं की। मोहम्मद साहब भी उसी दत्तात्रेय जी के अवतार है और उसी के अवतार राजा जनक थे। और उसी के अवतार नानक जी, जिनकी बहन नानकी जी थी, वो थी , वही आदिशक्ति थी। वही सीताजी। अब आपको और बताऊँ तो और आश्चर्य आयेगा, कि जो शिया पंथ शुरू हुआ था मोहम्मद साहब के बाद, उनकी जो लड़की फातिमा थी, वो भी थी आदिशक्ति और उनके जो दो बच्चे थे, हसन और हसेन, बाद में जब उन्होंने देखा कि संहार करने के बाद भी मनुष्य की समझ में नही आया, तो फिर वह बुद्ध और महावीर के नाम से पैदा हये और उन्होंने अहिंसा का धर्म संसार में ला कर के कोशिश की कि शायद अहिंसा को आने से ही ये लोग पार होंगे। लेकिन नहीं बना पाये। अब कहाँ किसी से आप लड़ रहे हैं, किस से आप झगड़ा कर रहे हैं। मैं तो हमेशा कहती हूँ, कि अगर एकाध मुसलमान अटक गया तो उसे कहती हूँ कि 'तू दत्तात्रेय का नाम ले।' और अगर कोई हिन्दू अटक जायें तो मैं कहती हूँ कि, 'मोहम्मद साहब का नाम ले।' आपको पता नहीं की जो आज बड़े भारी हिन्दू बने, पहले जनम में मुसलमान रहे। मैं जब ईराण में गयी तो वहाँ देखती हूैँ कि ध्यान में बैठे हये लोग घण्टा चला रहे हैं और तिलक ले रहे हैं और 17 आरती कर रहे हैं। क्योंकि जो एक अतिशयता पे रहता है, वो दूसरी अतिशयता पे जाता है, पेंड्यूलम की तरह। घण्टों बीचोबीच न ....न मुसलमान। सब तो हमारी पेट ही में घुसा हुआ है। आप देख रहे हैं कि आप जब मेरी ओर हाथ कर के ध्यान में, आज सबेरे लोगों ने ऐसा हाथ किया था और अभी भी आप लोग कर रहे हैं, फायदा रहेगा। ये बहुत नमाज का ....। लेकिन क्या मुसलमान जानते हैं कि ये क्या चीज़ है? या हिन्दू जानते हैं शायद? और सर पे हाथ रखने की चीज़ ख्रिश्चन्स में, आप जानते हैं कि बाप्टाइज जब करते हैं तब सर पे पानी डाल के, सहस्त्रार पे पानी डालते हैं। उसके बाद हमारे हृदय में बसे हये श्री शिवजी को, उनको जानना , बहुत कठिन बात है। वो अत्यंत भोले हैं, माने ये की वो सिर्फ देने वाले हैं। वो सिर्फ देखते रहते हैं, सुपरवाइजर है। वो शक्ति का सारा खेल देखते रहते हैं। लेकिन जब कुण्डलिनी उठ कर के हृदय चक्र के ऊपर चली जाती है, हृदय में है, हृदय चक्र में नहीं। मैंने सुना की कोई बड़े भारी लेखक हैं, उन्होंने कहा है कि हृदय यहाँ पे होता है। हृदय तो यहीं हैं, हृदय चक्र जो कि बीचोबीच है, वहाँ पे सिर्फ सुषुम्ना, उसका कार्य, वो शक्ति अलग ही रहती है, जब तक वो ऊपर की ये ब्रेन की ये जो प्लेट है, उसे मुर्धा कहते हैं वहाँ तक नहीं पहुँचती, तब तक शक्ति जो है, अकेली, वहाँ जा कर वो जब बरसने लगती है, दोनों साइड में, तब हृदय की साइड में उसका शीघ्र मिलन होता है। और जब नीचे की नाभि पर वो मिलते हैं तभी ब्रह्मतत्त्व तैय्यार हो कर के, ऊपर जाता है, और ऊपर का ये आज्ञा चक्र, जो कि जुड़ा हुआ है, वो खुल जाता है। शिवजी के पत्नी के बारे में जो कुछ भी कहा गया है, वो बिल्कुल सत्य है। देवी माहात्म्य आप पढ़े हैं। उसमें का एक भी अक्षर गलत नहीं। मार्कडेय स्वामी जी बहुत बड़े द्रष्टा थे। उनका एक भी अक्षर झूठ नहीं है। एक भी अक्षर बिगड़ा हुआ नहीं। मुझे तो कभी कभी आश्चर्य लगता है, कि मनुष्य में कहाँ तक और कैसे देखा इस बारीकी से। आप तो कहते हैं कि सब माया है और माया होते भी इतना माया को पहचाना। ये भी मनुष्य की कमाल है। लेकिन मार्कडेय सदी में श्री दर्गा जी का वर्णन किया है। वो बिल्कुल सही बात है। स्वामी का नाम भी किसने उन्होंने जो सुना। .. क्योंकि भवसागर से जब लोग पार करा रहे थे, तब उनको मदद करने के लिये उस शक्ति को अनेक रूप धारण करना पड़ा। और जब शक्ति आयीं, अपने आप इस संसार में उतरती हैं तो अकेले ही उतरती है। तब वो अनेक देवियों के रूपों में आ कर के उन्होंने सारे राक्षस जो कि भक्तों को सता रहे थे , उनको मारा, उनका संहार किया। लेकिन कोई फायदा नहीं। संहार किया तो फिर जिंदा हो गये, कलियुग में सारे फैल गये। वो फिर से आ गये हैं, लेकिन उस वक्त में, भक्त को सम्भालना ही था। उस वक्त में पार करने की बात कहाँ? वहाँ तो ऐसी हालत थी कि शरीर तक मनुष्य का, शरीर तक वहाँ कोई बात नहीं थी, कि वो शरीर ही बच जायेगा। इसलिये उनका संहार किया गया| वही जो देवी है, जिसको की हम आदिशक्ति के नाम, भगवती के नाम, से जानते हैं। उन्होंने ये शिवजी की पत्नी बन कर के, उस समय बहुत लोगों का संहार किया। उसके बाद आज्ञा चक्र, आज्ञा चक्र पे हम जब आते हैं, तो आपको आश्चर्य होगा कि बहत ही आधुनिक काल में आ गये। मोहम्मद साहब के पहले, थोड़े ही दिन पहले ही, ईसामसीह का जन्म हुआ। ईसामसीह साक्षात् राम स्वरूप है। साक्षात् गण है। आप सोचते हैं कि गणेशजी जो है वही ईसामसीह है। उनका जो क्रॉस, यहाँ पे मैंने क्रॉस 18 बताया है, वही वो क्रॉस है, जो कि श्री गणेश है, जिनका की आप ने देखा होगा कि स्वस्तिक बनाया गया। वही श्री गणेश के प्रणव स्वरूप है, वही प्रणव स्वरूप आदमी बन कर के संसार में आया, वही ईसामसीह है। ईसामसीह ने ही संसार में भूत निकाले । और किसी ने नहीं निकाले। उन्होंने तो मार ही डाले सबको । ये सभी कहते हैं उन्होंने ही मारे। ईसामसीह को मैं पहले इसलिये बता रही हूँ, कि विशुद्धि चक्र पे श्रीकृष्ण हैं। लेकिन ईसामसीह की जो माँ थी वो स्वयं राधा थी। इसलिये उसके स्वरूप में पहले उनको बता रही हूँ। ये आज्ञा चक्र पे जहाँ ... दिखाया गया वहाँ हैं। वहाँ श्रीकृष्ण जो थे, उनकी पत्नी राधा, रा माने चेतना, धा माने धारणा करने वाली, राधा, ये विशुद्धि चक्र पे कार्य करती है। अब यहाँ पर भी, अब डॉक्टरों से पूछे तो सोलह सब प्लेक्सेस हैं हमारे सव्ह्हायकल प्लेक्सेस में उनके भी सोलह कलायें हैं। वो संपूर्ण है। लेकिन संपूर्ण होने पर भी कार्य उतना पूरा इसलिये नहीं हो पाया, सारा जीवन ही दुष्टों से लड़ते लड़ते खत्म हो गया। इतने महा दुष्ट .....कि व्यर्थ हो गया उनका सारा। हालाकि सारा जो कुछ भी लीला का वर्णन है। ये सहज ही है। ये सहजयोग है। आपको आश्चर्य होगा, उनका मटकी का फोड़ना और पेट में सब लोगों को बंधवा लेना, राधाजी की मटकी फोड़ना सब में सहजयोग है। क्योंकि वो वाइब्रेटेड पानी जमना से ले जा रही थी। उनके पाँव | जमना जी में पड़े रहते थे। जमना जी का पानी वाइब्रेट होता था। उससे उठा के ले जाती थी। वो पानी गली में पड़ जाये, रास्ते में पड़ जाये, इसलिये मटकी वो फोड़ते थे। क्या राधाजी इस बात को जानती नहीं थी! पूरी तरह से जानती थी। लेकिन उस वक्त ऐसे हॉल होते और लोगों से बात की जाती कि, 'भाई तुम लोग ध्यान में जाओ।' लोग कहते कि, 'क्या पागल हो गये। हम तो घर-गृहस्थी के आदमी , हम कहाँ ध्यान में जायेंगे!' असल में सहजयोग घर-गृहस्थी के आदमिओं में ही हो सकता है। इन संन्यासिओं में अब नहीं हो सकता। इसलिये श्रीकृष्ण ने सहजयोग के प्रयोग के लिये साधारण गोप-गोपियाँ, साधारण तरह के रहने वाले, लोगों को ही चुना। आप नहीं जानते कि जो लोग सोचते हैं कि बड़े संन्यासी और तपस्वी, और फलाने, ढिकाने हो सकते हैं, हो जायें, उन से किसी का तारण नहीं हो सकता। किसी का साल्व्हेशन नहीं हो सकता। हाँ, ये जरूरी है कि एक बड़ा भारी योगी, एक बड़ा भारी तपस्वी हो गया, वो किसी को भस्म करना चाहे तो भस्म कर सकता है। किसी को आँख खोले तो भस्म हो गये। आपने भगीरथ प्रयत्नों को पढ़ा है, कि भगीरथ प्रयत्न में बताया गया है कि बेचारे उस भगीरथ के बाप-दादाओं को ही उसने भस्म किया । ये भी कोई बड़ी भारी चीज़ है, कि जिसको देखो आप भस्म कर रहे हैं। ऐसे ही पातिव्रत के आदमी जो सावित्री की शक्तियाँ हैं, जो सावित्री की बात करतें हैं, गायत्री की बात करते हैं, ध्यान रखें कि वो लोग अन्दर से कभी भी शांत, सुख और प्रेममय नहीं हो सकते। हाँ, वो तेजस्वी हो सकते हैं, प्रखर हो सकते हैं । क्योंकि चन्द्र नाड़ी जो यहाँ मैंने दिखाया है इस पर विजय है। उस तेजस्विता को पा कर करना भी क्या है? आज उसको भस्म किया, कल फिर वो अपने को भस्म करेंगे। कितने भी साधु, और बड़े बड़े अपने को समझते हैं कि हमने इस त्त्व को पा लिया, उस त्त्व को पा लिया, लेकिन वो ये नहीं जानते कि प्रेम तत्त्व को नहीं पाया बाकी सारे तत्त्वों को पा लिया। और ऐसी ही बड़ी बड़ी पतिव्रतायें, भगवान बचाये रखें उन लोगों से, जिन्होंने कि सावित्री की शक्ति को अपने अन्दर में समा लिया था, उन्होंने कौन सा बड़ा भारी तारण कार्य किया। मेरे कृष्ण को तक उन्होंने साग दे कर के खत्म किया। जिन्होंने उसको तक नहीं पहचाना ऐसी पतिव्रतायें किस काम की। बहुत ही सेल्फिश हैं। इसमें कोई ऐसी बात 19 नहीं, जो सारे समाज के लिये, सारे संसार के लिये करुणामय है। विचार करें आप! इसलिये जो जो लोग ईडा नाड़ी पर काम करते हैं। वो भी वहीं हैं और जो पिंगला नाड़ी, जो दुसरी नाड़ी बतायी गयी हैं, उस पर काम करते हैं वो भी वही हैं। माने जो बहुत करते हैं, माने संन्यास लोग, ये लोग, वो लोग, ये लोग भी वही हैं और जो लोग कहते हैं कि इधर वो भूत योनि लाते और इधर ये नहीं ये भी खाओ, वो भी खाओ, मद्य लो, खाओ, पिओ, वो भी वही हैं। तेजस्वी योनि लाते हैं। दोनों से देश का, आपके इस विश्व का कुछ भी संकट दूर नहीं हो सकता, न ही उसमें प्रेम स्थिती आ सकती है, न ही हमारे अन्दर तारण आ सकता है। तारण करने वाला जरूर था, इसलिये वहाँ पर .... स्थापना हुई और राधा जी तक, आपको आश्चर्य होगा मेरी स्वयं राधा है, वो भी तारण है, वो भी एक बड़ा भारी तारण है। सीताजी , जो कि राम की पत्नी थी। विवाहिता थी । उसके साथ समाज ने जो अन्याय किया। उसको घर से निकाल कर के, उसको दोषी कर के, कलंकित जो किया तब ये बड़े बड़े तेजस्वी लोग क्यों आँख बंद कर के बैठे थे? उन लोगों ने तब क्यों नहीं कहा, कि हमारी ये माँ हैं? इनको तुम घर से निकाल रहे हो । इन्होंने अग्निपरीक्षा दी है। तब इनके मुँह क्यों बंद हो गये थे? इनकी तेजस्विता कहाँ गयी थी ? इनकी अकल कहाँ मारी गयी थी? उस वक्त में बड़े एक से एक लोग थे। किसी ने कोई बात तक नहीं की। उनको ही अकल देने के लिये राधा जी ने कृष्ण से लौकिक विवाह नहीं किया। फिर भी सारा संसार कृष्ण का नाम राधा-कृष्ण से जानता है। लेकिन उसे विवाह का बंधन, लौकिक विवाह का बंधन भी बहुत मान्य है और इसी कारण कोई बच्चा नहीं है। किंतु उसके अगले जन्म में जब वो मेरी बन कर आयीं तब उस के लड़के ने चार चाँद लगाये थे, जो कि कुमारी दशा में, कोई कठिन काम नहीं है कुमारी दशा में बच्चा पैदा करना। अगर आप रियलाइज्ड सोल है और आप उस दशा में हैं, जैसे आज में सहस्रार से हजारों बच्चे पैदा कर रही हूँ। क्या मुश्किल हैं, अगर कोई चाहे तो अपने भूल से भी ऐसा बच्चा पैदा करे। अपने गर्भ से भी ऐसा बच्चा पैदा करे। कोई ऐसी कठिन बात नहीं है। लेकिन उन्होंने ये कर के दिखाया। और आज हालांकि उसका वो लौकिक दृष्टि से .... लेकिन आज दनिया के आगे मेरी एक बड़ी भारी महासती मानी गयी। उसको लोग डिवाइन मदर कहते हैं। ये उसके बच्चे का काम है। ऐसा बच्चा परमात्मा स्वरूप, लेकिन उसको भी किसी ने नहीं छोड़ा। उसकी जान खा ली। ३४ साल की उम्र में सब ने उसे मार डाला। इसी समाज ने जो बड़े अपने को हिन्दू, मुसलमान और फलाने, कहते हैं, उस वक्त में वो किस रूप में आ गये । ये जो समाज के बड़े ठेकेदार हैं इन्हीं लोगों ने उनको मारा। किसी को ये नहीं लगा कि इतना बड़ा महान आत्मा इस संसार से बिदा ले रहा है। इतनी छोटी सी उमर में असहाय, इस संसार से उन्हें जाना पड़ा। आज हजारों उनके नाम पर इन लोगों ने धर्म बनायें। इसका क्या अर्थ है? धर्म तो कुछ बन ही नहीं पाया। कहाँ वो और कहाँ उनके बनाये हुये धर्म। उन्होंने एक ही चीज़ पर बहुत जोर दिया था, कि हमारे अन्दर जो विनाशी शक्तियाँ हैं, जो निगेटिव फोर्सेस हैं, जिसको की वो शैतान कहते थे , जिसको की वो भूत कहते थे, स्पिरीट कहते थे, उनको निकाल देना। और आज सारा ख़रिश्चनिझम जो है वो सिर्फ स्पिरीट पे ही काम करता है। शर्म की बात हैं कि जिस चीज़ को उन्होंने हमेशा ही मना किया वही चीज़ हम बार-बार कर रहे है। जैसे मोहम्मद साहब ने बार बार यही कहा कि 'कम से कम शराब मत पियो। तो मुसलमान जितना शराब पीते हैं उस पर 20 कविता लिखी है और संसार में कहीं आपको नहीं मिलेगा। मतलब मैं कहती थी कि मोहम्मद साहब की तरफ से, मैं पूछती हूँ कि क्या यही मुसलमान धर्म है? ईसामसीह की तरफ से मैं पूछती हूँ कि क्या यही ईसाई धर्म है ? और आदि शंकराचार्य की तरफ से आप सब से पूछती हूँ कि क्या हिन्दू धर्म यही है? कि जो मिथ्या पर ही बैठे हैं और सारे जग को मिथ्या बताने वाले आदि शंकराचार्य को ठिकाने लगा रहे हैं। इस आज्ञा चक्र पे उनका वास है। हमारे यहाँ जो लोग आज्ञा चक्र तोड़ते हैं और आज्ञा चक्र पर जो आदमी पागल होता है, जिनको साइकोसोमॅटिक ट्रबल्स होते हैं, उनको कि लोग कहते हैं कि इनको साइकोलोजिकल ट्रबल है। हमारे साइकोलोजिस्ट भी हैं, वो भी बहुत बड़े आदमी हैं। वो भी इस पर काम कर रहे हैं। वो भी ईसामसीह का नाम लेने से ही भूत भागते हैं। फट् से भूत भागते हैं। एक उनका नाम काफ़ी है। लेकिन हम लोग किसी का भी नाम कहीं भी रटते रहते हैं। उसकी जगह तो जाननी चाहिये। इसकी वजह तो जाननी चाहिये। उसका अॅप्लीकेशन तो मालूम हो। ये सभी कुछ मैं बताना चाहती हूँ। लेकिन आपके समझने पर भी , आपके पाने पर भी बहुत कुछ निर्भर है। आज्ञा चक्र के बाद सहस्रार में एक हज़ार हमारे अन्दर, नौ सौ तरह की नाड़ियाँ हैं, ऐसे डॉक्टर्स कहते हैं। एक हजार नहीं कहते, मैंने इसे देखा है। कैसे दिखायी देता है? कोई समझ लें। बड़ा सा कमल हो । जैसे कि बाइबल में उसे कहा है टंग्ज ऑफ फ्लेम माने की किसी लपटों की कोई ऐसी जीभें लगी हुई हैं। जैसे कोई आग की लपट हो, उसी की जीर्भे, इस तरह से इतना बड़ा ऐसा, इस से थोड़ा बड़ा ऐसा कमल है। बहुत सारी लपटें सर में ऐसे ऐसे दिखायी देती है। और उसके बराबर बीचोबीच अपने वो ब्रह्मरंध्र है, जो सहस्रार में जिसको छेड़ने के बाद । जब रियलाइझेशन होता है तब मनुष्य इसी को छेड़ता है। पा लेता है। बहुत समय भी हो गया और आज का विषय भी कुछ विचित्र सा था। नया सा था। आज और कल में मैं इसको बताऊंगी कि सहजयोग से कैसे छेदा जाता है। कल मेडिटेशन में आयें। जो कुछ भी मैंने कहा है वो सब बेकार है, सब व्यर्थ है जब तक आपको ये अनुभव नहीं होगा, तब तक ये सभी व्यर्थ हैं। अनुभव के बाद ही आपको ये बाद समझेगी। लेकिन बगैर बताये हये कोई प्रत्यंतर भी नहीं आता । इसलिये मैंने इसे बताया है और आप लोग भी ऐसा ही समझें की बताया हुआ सब खत्म हो गया। कल मेडिटेशन का समय है। उस वक्त आप आईयेगा। आज मेडिटेशन नहीं हो पायेगा शाम के वक्त में। कल सबेरे काफ़ी देर तक मेहनत करेंगे। जिससे आप लोग पार हो जायें । और लेक्चर भी होगा और मेडिटेशन भी होगा। परमात्मा के लिये थोड़ा सा समय हम को देना है। थोड़ा सा समय दे दीजिये। ज्यादा मुझे नहीं चाहिये। आप ही का अपने से परिचय कराने के लिये, बिल्कुल थोड़ा समय अगर आप दे दें तो काम बन जायेगा। इतने लोग पार हो गये हैं कि मैं बहुत खुश हूँ। और आशा है कि कल आप लोग बहुत से पार हो जायेंगे | जिसको आप जान लें। जिस चीज़ की हम बात कर रहे हैं और जिसके कारण इस सारी सृष्टि की रचना हो गयी, सारी सृष्टि अंत पे आ के खड़ी हो गयी है। सारे सृष्टि की दारोमदार आप पे है। इसमें कुछ नहीं करना होगा। न कुछ लाना होगा, न ही कुछ देना होगा। अगर कुछ मुझ से ले सके तो मैं बड़ा आपका धन्यवाद समझती हूँ। 21 22 भ ८ िम आधी कळस मग पाया मतलब पहले आपकी आत्मा को बाँधनी शुर होती है और इस बाँधने की वजह से आप स्वयं ही उ२स प्रकाश में देखकते हैंकि आपकी क्या गलती हुई है? आपकहाँ गलत हुये? औ२ उस प्रकाश में आप जान जीते हैं, कि आपको क्या ठीक करनी है? आपकी गलतियों को कैसे ठीक करनी है? मैं आप लौगों को कुछ नहीं कहती हूँ। प.पू.श्रीमातीजी, औरंगाबाढ, ८/१२/१९८८ प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.१०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११ ०३८. फोन : ०२०-६५२२६०३१, ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in, website : www.nitl.co.in घ२ ये मंदि२ जैसा है जहाँ आपको २भी पवित्र चीज़ें बच्चों को देनी है, जैसे की पवित्रती, अबोधिता जिनकी उनको आगे भी आवश्यकती है। प.पू.श्रीमाताजी, लंडन, ११.६.१९७९ ुर +4 क ---------------------- 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-0.txt चैतन्य लहरा सितंबर-अक्टूबर २०१६ हिन्दी ाम म ६ 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-1.txt 15 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-2.txt इस अंक में आत्मिक क्रान्ति ...4 (पूजा, कोलकाता, १/४/१९८६) दो तरह के प्रवाह ...9 सार्वजनिक कार्यक्रम, मुंबई, ८/१२/१९७३) देवी के भी अवत२णों के समय बहुत सी आशुरी शक्तियाँ भी पृथ्वी प२ अवतरित हुई औ२ देवी को यूद्ध कर के उनका विनাश करनी पड़ा। यह विनाश केवल इसलिये नहीं था कि आसुरी शक्तियों को २माप्त करनी है। यह इसलिये था क्योंकि यह शक्तियाँ साधकों एवं सनतों का दमन करने तथा उन्हें हानि पहुँचाने का प्रयत्न करती हैं। पं.पू.श्रीमातीजी, नवरात्रि पूजी, २४.१०.१९९३ 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-3.txt सारा संसार इस क्रान्ति से पुनीत हो जाएगा और आनन्द के सागर में परमात्मा के साम्राज्य में रहेगा। कलकत्ता, ०१ अप्रैल १९८६ आत्मिक क्रान्ति २१ मार्च से हमारा जन्मदिवस आप लोग मना रहे हैं और बम्बई में भी बड़ी जोर-शोर से चार दिन तक जन्म दिवस मनाया गया और इसके बाद दिल्ली में जनम दिवस मनाया गया और आज भी लग रहा है फिर आप लोग हमारा जन्म दिवस मनाते रहे। इस कदर सुंदर सजाया हुआ है इस मंडप को, फूलों से और विविध रंगों से सारी शोभा इतनी बढ़ाई हुई है कि शब्द रुक जाते हैं, कलाकारों को देख कर कि उन्होंने किस तरह से अपने हृदय से यहाँ यह प्रतिभावान चीज़ बनाई इतने थोड़ी समय में। आज विशेष स्वरूप ऐसा है कि अधिकतर इन दिनों में जब कि ईस्टर होता है मैं लंदन में रहती हूँ और हर ईस्टर की पूजा लंदन में ही होती है। तो उन लोगों ने यह खबर की, कि माँ कोई बात नहीं आप कहीं भी रहें जहाँ भी आपकी पूजा होगी वहाँ हमें याद कर लीजिएगा और हम यहाँ ईस्टर की पूजा करेंगे उस दिन। इतने जल्दी में पूजा का सारा इन्तजाम हुआ और इतनी सुंदरता से, यह सब परमात्मा की असीम कृपा है जो उन्होंने ऐसी व्यवस्था करवा दी। लेकिन यहाँ एक बड़ा कार्य आज से आरंभ हो रहा है। आज तक मैंने अगुरुओं के विषय के बारे में बहुत कुछ कहा और बहुत खुले तरीके से मैंने इनके बारे में बताया; ये कितने दुष्ट हैं, कितने राक्षसी हैं और किस तरीके से ये सच्चे साधकों का रास्ता रोकते हैं और उनको गलतफहमी में डाल के उनको एकदम उल्टे रास्ते पर ड्राल देते हैं। और इसके लिए बहुत लोगों ने जताया कि ऐसी बात करना ठीक नहीं इससे गुरु लोग आप पर आक्रमण करेंगे और आपको सताएंगे । लेकिन हुआ उसके बिलकुल उल्टा! किसी ने भी हमें कचहरी नहीं दिखाई, ना ही किसी ने हमारे बारे में बात कही। एक- एक करके हर एक दुष्ट सामने आया और दुनिया ने जाना कि जो कुछ हमने इनके बारे में कहा था वह बिलकुल सत्य है। आज धीरे-धीरे ये अगुरु मिट रहे हैं। लेकिन तांत्रिक अभी भी काफी अपना जोर बँधाये हुए हैं और आपके कलकत्ते में इसका मेरे खयाल से मुख्य स्रोत है। यहाँ पर वह पनपते हैं और यहीं से सारी दुनिया में छा जाते हैं। आज ही एक साहब से मुलाकात हुई, उनसे इतने तान्त्रिकों पर बातचीत हुई। उन्होंने बताया कौन -कौन उनके आश्रय में आये और कौन-कौन महात्मा बन गये। मुझे 4 म6 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-4.txt लगा ये अभियान अब शुरू हो गया। ये तान्त्रिकों को एक-एक करके ठीक करना जरूरी नहीं है। सबको एक साथ ही गंगाजी में धो ड़ालना चाहिए। तभी इनकी तबियत ठीक होगी। आज यह महिषासुर सब दूर फैल गया है। इसको खत्म करने का ही अभियान शुरू होना चाहिए। ये एक बड़ी भारी आत्मिक क्रान्ति है जिससे सारे संसार का कल्याण होने वाला है। सारा संसार इस क्रान्ति से पुनीत हो जाएगा और आनन्द के सागर में परमात्मा के साम्राज्य में रहेगा। लेकिन उसके लिए सबको धीरज से कुछ न कुछ त्याग करना चाहिए, और उसके लिए सबसे बड़ी चीज़ यह है कि हिम्मत रखनी चाहिए। हिम्मत से अगर काम लिया जाए तो कोई वह दिन से भरा हो नहीं जब हमारा सारा संसार सुख दूर जाएगा। किन्तु उसमें सबसे बड़ी अड़चन आती है हमें, जब तक कि सहजयोगी गहनता में उतरते नहीं। सहजयोगियों को चाहिए कि वे गहनता में उतरें। हर सहजयोगियों के लिए ये बड़ी जिम्मेदारी है कि उन्हें इस क्रान्ति में ऐसा कार्य करना चाहिए जो एक विशेष रूप धारण किए हो। अभी तक जो भी सहजयोगी मैं देखती हूँ उनमें यही बात होती है कि अभी हमारी यह पकड़ आ रही है, माँ, हमारे यह चक्र पकड़ रहे हैं, हमारा यह हो रहा है, अभी हमारे अन्दर यह दोष है, ऐसा है, वैसा है। लेकिन जब आप देना शुरू करें। मगर हम जब दूसरों को देना शुरू करेंगे, जब दूसरों का उद्धार करना करेंगे तो अपने आप यह सब चीजें धीरे -धीरे कम होती जाएगी। चित्त अपना इधर ही रहना चाहिए कि हमने शुरू कितनों को दिया । कितनों को हमने पार कराया। कितनों को हमने सहजयोग में लाया है। जब तक हम इसे जोर से नहीं कर सकते तब तक सहजयोग का कार्य आगे नहीं बढ़ पाएगा और ये बढ़ना अत्यंत आवश्यक है। उसके लिए और भी बातें करनी चाहिए। जो कि हम लोग सोच रहे हैं कि एक साल के अन्दर घटित हो जाएं । उसमें से एक बात ऐसे सोच रहे हैं कि इस तरह का एक कोई आश्रम बना लें जहाँ पर सहजयोगी अलग-अलग जगह से आकर रहेंगे और उनको सहजयोग के मार्ग से पूर्ण, पूर्णतया परिचित किया जाएगा। इतना ही नहीं लेकिन उनकी जो कुण्डलिनी है उसकी जागृति भी पूर्णतया हो जाएगी और वे एक बड़े, भारी महान योगी के रूप में हमारे संसार में कार्यान्वित होंगे। इसकी व्यवस्था सोच रहे हैं और मेरे विचार से साल भर के अन्दर कोई न कोई ऐसी चीज़ बन जाएगी जहाँ पर आप लोग कम से कम एक महीना आकर रह सकते हैं। और वहाँ रह कर आप सहजयोग में पारंगत हो जाएं। और एक निष्णात प्रवीण सहजयोगी बनकर इस सारे संसार में आप कार्य कर सकते हैं। पर सबसे पहले बड़ी बात यह है कि जो हमारे अन्दर एक तरह का अपने प्रति एक अविश्वास सा है जो डेफिडन्स है उससे हमें बाज़ आना चाहिए। हम आपसे बताते हैं यहाँ जो डॉ.वॉरेन है, ये जब सहजयोग में आए थे तो हमारे पास ज़्यादा से ज़्यादा एक-आठ दिन तक रहे। उसमें भी लड़ते झगड़ते रहे पूरे समय! उनके पहले समझ में नहीं आ रहा था किस तरह अपने को ठीक करें। फिलहाल जो भी हो उसके बाद वो ठीक हो गये और वापस वे ऑस्ट्रेलिया चले गए। और ऑस्ट्रेलिया जाने के बाद उन्होंने इतने लोगों को पार कर दिया। इतने लोगों को ठिकाने लगा दिया कि मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ। जिन्होंने गणपति भी क्या उसे जाना नहीं था । जिन्होंने किसी देवता को कभी जाना नहीं था। जिन्होंने कभी कुण्डलिनी के बारे में जाना नहीं था। वो आठ दिन के अन्दर इतने बढ़िया होकर और सारे ऑस्ट्रेलिया पर छा गये। तो यह सोचना कि हम इसे नहीं कर सकते हैं या कैसे करें, इसमें यह उलझन है लोग क्या समझेंगे? इस तरह की आप अगर आपने विचार धारणा रखी तो सहजयोग बढ़ नहीं सकता। परमात्मा आपके साथ में है, शक्ति आपके साथ 5 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-5.txt है। स्वयं आप योगी हैं और सब योगियों के ऊपर ये जिम्मेदारी है इस कार्य को पूरी तरह से करें। जब तक आप संगठित रूप से नहीं रहेंगे तब तक यह कार्य नहीं हो सकता। संगठित होना पड़ेगा। संगठित होने का मतलब यह है कि, आप एक ही शरीर के अंग-प्रत्यंग हैं। एक सहजयोगी को दूसरे सहजयोगी से कभी भी विलग समझना नहीं चाहिए । जैसे कि मैं देखती हूँ कि शुरुआत में सहजयोगी जो इन्सान सहजयोगी नहीं है उसकी ओर ज़्यादा मुड़ता है, बजाय इसके कि जो सहजयोगी है । तो पहली तो बात यह होनी चाहिए कि जो हमारे दूसरे भाई - बहन जो सहजयोगी हैं, उनके आगे बाकी सब पराये हैं। कोई कुछ भी बात कहें उनके साथ हमको किसी तरह से भी एकमत नहीं होना, क्योंकि वो आपको चक्कर में ड्राल देंगे और आपके अन्दर फूट पड़ जाएगी। इस आसुरी विद्या से अगर बचना है तो आपको यह समझ लेना चाहिए कि आप योगी जन हैं और आप परमात्मा के साम्राज्य में हैं। हर आसुरी विद्या का एक- एक एजेंट है। समझ लीजिए वह आपको खींचना चाहता है कि आप इस विद्या से हट जाएं और उनके विद्या में आ जाएं। और उनकी चालाकियाँ इतनी सुन्दर हैं कि आपकी समझ में नहीं आएगी। इसलिए पहली चीज़ यह है कि हम सहजयोगी, सहजयोगी के विरोध में नहीं जाएंगे और कोई ग्रुप हम न बनाये। और कहीं ग्रुप जरा सा भी बनने लग जाता है सहजयोग का तो मैं उसको तोड़ देती हूँ, और ऐसा तोड़ा है। अब जैसे ग्रुप बन गये, दिल्ली वाले हो गए, फिर दिल्ली में कोई हो गए तो कोई करोल बाग के हो गए। तो कोई कहीं के हो गए। तो कोई बम्बई के हो गए। तो बम्बई वाले तो उनमें भी कोई नागपाड़ा के हो गये, तो कोई दादर के हो गए, तो कोई कहां के हो गए। अब करते-करते फिर आप ऐसी छोटी जगह पर आप पहुँच जाएंगे जहाँ आप सिर्फ अकेले बैठे रहेंगे और आप कहेंगे कि सहजयोगी कहाँ गायब हो गए। तो इसमें से कोई भी चीज़ का ग्रुप नहीं होना चाहिए। जब इन्सान में कैन्सर सैट होता है तब वह ग्रुप बना के रहता है। एक आदमी में अगर 'डीएनए' जिसे कहते हैं एक आदमी में अगर खराब हो जाए, एक सेल में अगर खराबी आ जाए एक ही सेल में अगर खराबी आ जाए तो वह दूसरे सेल पर जोर करेगा और दसरा सेल तीसरे सेल पर जोर करेगा और ऐसा उनका एक गुट बनता जाएगा। वह चाहेगा हमारा जो एक ग्रुप है वह सब पर हावी हो जाएं। जब वह सब पर हावी होने लगता है जैसे कि आप समझ लीजिए कि आपके नाक का सेल है वो अगर बढ़ने लगा तो उन्होंने एक ग्रुप बना लिया। तो एक बड़ा सा यहाँ पर लम्पसा हो गया और उसने जाकर के आक्रमण किया आँख के ऊपर, फिर आँख को ढ़क लिया और वहाँ से गए कान को ढक लिया । इस तरह से कैन्सर जो होता है वह अपनी अपेक्षा दूसरों को नीचे समझता है। और एक ग्रुप बनाकर के उनके जो दूसरे लोग हैं, जो कि सहजयोगी हैं उनको दबाता है। ऐसी बीमारी अगर सहजयोग में अगर फैल जाए तो उसका ठिकाना मैं लगाती हूँ। चाहे मैं कहीं भी हँ, मैं चाहे लंदन में रहँ चाहे मैं अमेरिका में रहूँ चाहे कहीं भी रहँ उसका ठिकाना खूब अपने आप हो जाता है । इसलिए किसी को भी कोई ग्रुपबाज़ी नहीं करनी चाहिए । किसी को भी यह नहीं सोचना चाहिए हम एक ग्रुप के हैं। अगर दस आदमी एक साथ रहते हैं और बार-बार एक ही साथ दस आदमी रहते हैं तो समझ लेना चाहिए कि ग्रुप बन रहा है। सहजयोगियों को कभी भी एक साथ दस आदमी हर समय नहीं रहना चाहिए। जब आज इनके साथ बैठे तो कल उनके साथ, तो कल इनके साथ | जैसे कि हमारे अन्दर रतक्त की छोटी-छोटी पेशियाँ 6. 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-6.txt हैं जिनको हम सेल्स कहते हैं। वो अगर समझ लीजिए कि एक जगह बैठ गये तो दस सेल्स ने यह सोचा कि हम यहीं | बैठ जाए तो उस आदमी की मृत्यु हो जाएगी। सहजयोग की मृत्यु हो जाएगी। इसलिए हम दस आदमी एक साथ क्योंकि हम एक ग्रुप के हैं, ये एक ग्रुप के हैं, वे एक ग्रुप के हैं। रक्ताभिसरण जिसे कहते हैं कि ब्लड का जो सरक्युलेशन है वह हमारे अन्दर खुले आम से होना चाहिए, तो कोई सा भी ग्रुप नहीं बनना चाहिए। जहाँ ग्रुप आपने देखा बन रहा है उस ग्रुप को छोड़कर दूसरे ग्रुप में चले जाएं। उस ग्रुप को तोडिए। उसे कहना इस ग्रुप के साथ आ जाए और वह उस ग्रुप के साथ आ जाएगा। इस तरह से आप जब तक नहीं करेंगे तब तक आपकी कलेक्टिविटी में निगेटिविटी बनती जाएगी। जैसे कि मैं कहती हूँ कि आपने अगर मंथन करके मख्खन निकाला। मख्खन के कण चारों तरफ हैं मगर उसमें बड़ा सा एक मख्खन का ढ़ेला ड्रालना पड़ता है फिर उसके आस-पास सारे जो कण हैं वो जुड़ते जाते हैं। मगर चार, पाँच, छ: कण मिलकर अलग से अगर बैठ जाएं तो जिसने मथा है वह कहता है जाने दीजिए। बेकार ही है, यह मख्खन बेकार ही है। इसे छोड़ दीजिए। जो बड़ा है उसे उठा लीजिए। तो सबको मिल-मिल करके एक बड़ा सा मख्खन के ठेला स्वरूप बनना है। इसी तरह से आपको भी एक बड़ा सा ग्रुप बनना चाहिए। करते-करते फिर एक बड़े सागर में विलीन होना चाहिए। तो एक बूंद को अगर आपको सागर में विलीन करना है तो आप चार-पाँच बूंद बना के आप जानते है कि दो मिनट के लिए आते हैं और नष्ट हो जाते हैं। अपने आप ही प्रकृति से ही होते हैं। सिर्फ बबुला उसको कोई कुछ करने की जरूरत नहीं है। इसलिए कोई सा भी ग्रुप आपको बनाना नहीं है। सबके साथ एक जैसा मिलना-जुलना, सबको एक साथ जाना। सबसे एक साथ प्रेम रखना और सबको एक साथ समझने की कोशिश करनी है। एक दूसरों को किसी भी तरीके से क्रिटीसाइज़ (निंदा) कभी नहीं करना चाहिए। आप आपस में भाई - बहन नहीं हैं लेकिन आप मेरे शरीर के अंग -प्रत्यंग हैं। अगर समझ लीजिए मेरी एक अंगुली ने दुसरी अंगुली को क्रिटीसाइज़ कर दिया तो क्या फायदा होगा? इससे तो नुकसान ही होने वाला है। इसलिए ठीक यही है कि मनुष्य को, इसलिए उचित बात है कि, हम लोगों को यह सोचना चाहिए कि अब हम मनुष्य नहीं हैं। हम अति मानव हैं और अति बहुत मानव की जो स्थिति है उसमें हमें सब दूर घूम-फिर कर के अपना चित्त परमात्मा पर रखना चाहिए। यह बड़ी भारी एक कठिनाई आ जाती है सहजयोग में। शुरुआत में कलेक्टिविटी, पता नहीं आदमी क्यों तोड़ देता है। यह भी एक आसुरी विद्या है। जहाँ कलेक्टिविटी ट्ूट जाती है। अब जैसे हम कहे कि बम्बई में यह काम कम है। पर दिल्ली में अभी नहीं मगर कलकत्ता में मुझे मालूम नहीं हाल। लेकिन मैं यही कहूँगी कि ये बीमारियाँ फैलने मत दीजिए। आप सब लोग मेरे बेटे हैं और मेरी बेटियाँ हैं। आपस में कोई सा भी अगर आपमें मतभेद हो जाए तो उसमें कोई ऐसी बात नहीं लेकिन यह है कि आपस में आप कोई ग्रुपबाज़ी मत कीजिए । फिर एक ग्रुप बन गया फिर वह ग्रुप वाले कहेंगे हमारे आदमी को आप सामने कीजिए | वह ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को सामने कीजिए , और फिर दूसरा ग्रुप कहेगा हमारे आदमी को सामने कीजिए और उसका फिर असर क्या होगा ? आप देखते हैं कि ऐसे लोग सहजयोग से पराङ्मुख हो जाते हैं, हट जाते हैं। उनका स्थान खत्म हो जाता है। जैसे गुरुओं को खत्म किया है। वैसे इस तरह के लोगों को भी खत्म किया जाता है। तो मैं नहीं करूं तो आपकी प्रकृति ही कर देती है। इसलिए आपको खास करके मुझे कहना है कि, कृपया आप लोग अपनी ओर चित्त दें और दूसरों की ओर प्रेम दें। दूसरों को प्रेम दीजिए और अपनी ओर चित्त रखें। अपनी 7 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-7.txt ओर देखें । अपनी ओर देखिए और कहिए कि हम कैसे हैं? क्या हम ठीक हैं? क्या हमारे चक्र ठीक हैं? क्या हम में कोई दोष है? अगर आप सोचते हैं कि कोई समझता है तो उससे जाकर पूछिए कि, अगर कोई चक्र पकड़ रहा है तो बता दीजिए, हमारे समझ में नहीं आ रहा । जिस दिन आप इस चीज़ को अपना लेंगे कि हम माँ के अंग -प्रत्यंग में बैठे हैं आप समझ जाएंगे कि आपका कितना महत्त्व है। आप चाहे जैसे भी हैं हमने आपको स्वीकार कर लिया है। अब आपको भी हमें स्वीकार करना होगा और जानना होगा कि अब अत्यंत शुद्ध और पवित्र भाव से रहने से ही हमारी माँ को सुख और आनन्द मिल सकता है। आज की एक विशेष तिथि है, इस तिथि पर अभियान शुरू हो रहा है कि सारी दुनिया के जितने भी तांत्रिक हैं उनके पीछे मैं अब लगने वाली हूँ। और मैं चाहती हूँ कि आप भी सबके पीछे हाथ धो कर लगें । और जहाँ भी कोई तांत्रिक दिखाई दें तो उसके पास जाने वाले लोगों के लिए कुछ आप चाहे तो उसके लिए हैण्ड बिल्स वगैरे छपवा कर वहाँ पर भेज दीजिए कि ये तांत्रिक हैं और आप तांत्रिक से भाग निकले । जो आदमी तांत्रिक के पास जाता है, उसके घर अगर तांत्रिक आ जाए तो सात पुश्तों तक वह पनप नहीं सकता। उसके बच्चे नहीं पनप सकते। सात पुश्तों तक उसके यहाँ हालत खराब होगी। बड़े बड़े नुकसान होंगे। उसका घर जल जाएगा और हो सकता है उसकी बीबी कहीं आत्महत्या कर ले , उसके घर में हमेशा तकलीफें, दु:ख और परेशानी बनी रहेगी। इसलिए यह जो अभियान है इसका आज दिन ऐसा है कि सब लोग मज़ाक में अप्रेल फूल का दिन कहते हैं। तो इनको बेवकूफ बना-बना कर ही पटका जाएगा। उनको बेवकूफ बनाकर ही पटका जाएगा क्योंकि ये अपने को बहुत अकलमन्द समझते हैं। तो इनकी जो बेवकूफियाँ हैं उनको उनका पूर्णतया उद्घाटन करना आप लोगों का कार्य है। आप सबके प्यार और और इस शोभा से वाकई मैं अभिभूत हूँ। इतना आप लोगों ने खर्च किया, इतनी दुलार शोभा बढ़ाई है, सो यही कहना है कि बहुत ज़्यादा खर्चा करने की जरूरत नहीं है। आपकी माँ तो इतनी सीधी-साधी है। उसको कोई भी चीज़ की जरूरत नहीं। आप लोग जो भी हैं, जो कुछ भी हमें दे दें। वही बहुत है। हमें तो कुछ चाहिए भी नहीं। जो कुछ हमसे लेना है वह आप लोग ले लीजिए लेकिन अब आप लोगों के सन्तोष के लिए हम कहते हैं कि, 'अच्छा भाई, अगर आप लोगों को साड़ी देना है तो दे दें। अब क्या करें?' लेकिन वो भी क्या है चार साल पहले दी हुई साड़ियाँ अब भी ताले-चाबी में बन्द हैं वो तो हमारी समझ में आता है कि बाद में अगर कोई म्युझियम वगैरे कुछ बनेगा तो उसमें आप लोग लगा दीजिएगा। तो यह सब चीजें आपके शौक के लिए जो भी आप कहें मेरे पास धरोहर रखी हुई हैं और इसकी कोई जरूरत नहीं पर आपका प्रेम ऐसा है कि उसके आगे मैं कुछ बोल भी नहीं सकती और कुछ कह भी नहीं सकती। जो भी कुछ प्रेम से दीजिएगा चाहे वो शबरी के बेर हो और चाहे आप लोगों की कीमती साड़ियाँ हो सब मेरे लिए मान्य है। तो अब हम लोगों का पूजा का समय हो गया है। आज जैसे मैंने कहा था जन्मदिवस की बात है बराबर बारह बजे मैंने मेरा भाषण शुरू किया और बराबर बारह बजे मेरा जन्म हुआ था। इसलिए इतना समय लग गया। फूलों में समय लग गया, इसमें कोई घबराने की बात नहीं क्योंकि संजोग ऐसा है। बारह ही बजे आज का जन्म दिन मनाने का था। तो इस में सब चीज़ अपने समय पर ठीक-ठाक बैठती है। तो इसमें किसी को भी दोष नहीं मानना नहीं चाहिए । 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-8.txt के दो तरह प्रवाह ५) मुंबई, ८ दिसंबर १९७३ बीचोंबीच जाने वाली शक्ति उनसे जा कर के हमारे रीढ़ की हड्डिओं के नीचे में जो त्रिकोणाकार अंत में जो अस्थि है उसमें जा के बैठ जाती है। इसी को हम कुण्डलिनी कहते हैं। क्योंकि वो साढ़े तीन वर्तुलों में रहती है, कॉइल्स में रहती है, कुण्डों में रहती है। और जो दो शक्तियाँ बाजू में मैंने दिखायी हुई हैं, ये भी उसी त्रिकोणाकार, लोलक जैसे, प्रिजम जैसे ब्रेन में से घुस कर के और आपस में क्रॉस कर के नीचे जाती हैं। इस तरह से अपने अन्दर तीन शक्तियाँ मैंने यहाँ दिखायी हुई हैं। एक जो बीचोबीच में से जा कर नीचे बैठ जाती है और दो बाजू में जाती हैं । उसके अलावा लोलक की जो दूसरी साइड है या दिमाग की जो दूसरी साईड है उस में से भी जो शक्तियाँ जाती हैं वो दिखा नहीं रही हूँ। जिसे की हम सेंट्रल न्वस सिस्टीम कहते हैं। ये जो यहाँ मैंने तीन संस्था दिखायी हुई हैं, उसके जो बीचोंबीच संस्था है , उसे हम कुण्डलिनी कहते हैं। इसके अलावा जो संस्थायें हैं वो किस तरह से क्रॉस कर जाती हैं आप देख रहे हैं और क्रॉस करने के नाते इस में दो तरह के प्रवाह होते हैं। एक बाहर की ओर, और एक अन्दर की ओर। जो अन्दर की ओर प्रवाह जाता है, उसी से हमारे अन्दर पेट्रोल भरा जाता है। और जो बाहर की ओर प्रवाह जाता है, उसी से हम बाहर जा कर के किसी भी चीज़ को चिपक जाते हैं, इन्वाल्वमेंट हो जाती है। जानवर को किसी से इन्वाल्वमेंट है? मनुष्य को है। 'ये मेरा है । ये मेरा बेटा है। ये मेरा भाई है। ये मेरा घर है। ये मेरा देश है।' मेरा, मैं ये सब उसी कारण आता है, जो कि ये प्रवाह हमारे अन्दर में बाहर की ओर जाने की हमारी अन्दर शक्ति है वही खींच ले जाता है हमारी भरने वाली को। हम बाहर आसानी से छोड़े जाते हैं। जैसे आप सब का चित्त मेरी ओर बहुत आसानी से है। किंतु अगर मैं सीधी बात कहूँ कि अपना चित्त आपस में और रखे। आप नहीं जाते। इससे सरस तो और होना ही नहीं है। किंतु ये नहीं हो पाता है। इसका कारण ये है कि हमारी बाहर जाने की शक्ति ज्यादा है और यही शक्ति हमें सिम्पथैटिक नाम की न्वस सिस्टीम देती है, जिसके कारण हम हमारे अन्दर बसी हुई जो शक्ति है उसे इस्तमाल करते हैं। उसे हम उपयोग में लाते हैं। जो हमारे अन्दर के स्रोत हैं उसे हम खर्च करते हैं। वही हमारी सिम्परथैटिक नर्वस सिस्टीम है। और जो हमारे अन्दर धरती है, वो हमारी पैरासिम्परथैटिक है। माने जो हमारे अन्दर आती है और आ कर के स्थित है। इन्हीं दो शक्तिओं के कारण हमारे अन्दर इगो और सुपर इगो नाम की दो चीजें प्रतिक्रिया रूप बन जाती हैं। और उससे हमारे मस्तिष्क से दोनों तरफ में इस तरह से पड़दा पड़ जाता है, कि हम उस सर्वगामी, सर्वव्यापी शक्ति को भूल जाते हैं। ये कुण्डलिनी जो कि हमारे अन्दर पीठ की रीढ़ की हड्डी में जा कर के बैठती है, अपने को साढ़े तीन कुण्डों में लपेटती है, उसका कारण क्या है, वो भी शास्त्रविदित है । लेकिन वो अभी मैं नहीं बताऊंगी। साढ़े तीन कुण्डों में लिपटी हुई ये कुण्डलिनी एकदम से उसकी जो लम्बाई है वो बढ़ जाती है और इसी कारण 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-9.txt उसके बीच में तार टूट जाती है। तार टूट जाने के कारण अपने यहाँ पर बीच की नाड़ी जिसे हम सुषुम्ना नाड़ी कहते हैं, जिससे कुण्डलिनी उतरती है, उसके अन्दर एक थोड़ी सी गैप हो जाती है। जगह बन जाती है। ये जगह हमारे एक में बाहर से भी, यहाँ अगर डॉक्टर लोग बैठे हये हो तो जानते होंगे .... और अॅवॉ्टिक प्लेक्सस में भी, ऐसी ही जगह हमारे अन्दर है। यही भवसागर है। यही आदिकाल में बनाया हआ भवसागर है। जो पहले आदि कुण्डलिनी बनायी गयी और उस आदि कुण्डलिनी को बना कर के ही परमात्मा ने सारी सृष्टि की है। और उसी का संपूर्ण प्रतिबिंब मनुष्य है। परमेश्वर की सारी कृति का प्रतिबिंब मनुष्य है। जैसे ही बच्चा जीव धारणा करता है, उसके हृदय में स्पंदन होता है, वैसे ही शिव, ईश्वर, जिनकी कल मैंने बात की थी, ये आपके हृदय में विराजमान होते हैं। और वो दिखायी देते हैं एक अंगूठे के जैसे। कोई अगर चल रहा हो, कोई अगर जोर से चल रहा हो दिखायी देते हैं। आप को नहीं दिखायी देते हैं, लेकिन हमें दिखायी देते हैं। आपको नहीं दिखायी दे सकते हैं, माने ऐसा नहीं कि आपको नहीं दिखायी देगा। अगर आपके पास माइक्रोस्कोप है तो आप इसको देख पा रहे हैं और जिसके पास नहीं है वो नहीं देख पा रहे हैं। इसका मतलब ये नहीं की जिसके पास माइक्रोस्कोप है उसे दिखायी नहीं देगा । आप भी माइक्रोस्कोप पा लें और इसे देखे और जाने। हृदय में बसा हुआ यही जीव, इसी को हम लोग जीवात्मा कहते हैं। इसे लोग सोल कहते हैं। जब वो धारणा करता है तो लोग उसे जीवात्मा कहते हैं। कुण्डलिनी, ये मैंने आपसे कहा, कि शक्ति है और हृदय में बसा हुआ ..(अस्पष्ट)। मनुष्य के अन्दर शिव और शक्ति दोनों ही बसे हैं। उनका मीलन होना जरूरी है। नहीं तो मनुष्य तत्त्व में उन्हें ब्रह्म तत्त्व की धारणा नहीं। हालांकि दोनों ही चीजें वहाँ पर हैं। जैसे की आपने अपने यहाँ गैस की लाइट देखी होगी । मुझे बड़ी मज़ेदार लगती है। उसके अन्दर भी आपने देखा होगा एक छोटी सी ज्योत जलती है और जब उसको पूरी तरह से आप खोल देते हैं, तब गैस ऊपर से दौड़ जाती है और गैस के कारण यहाँ लाइट आती है। इसी तरह मनुष्य में भी इनलाइटनमेंट जो आती है। वो भी बिल्कुल इसी तत्त्व से आती है कि पहले शिव की शक्ति हृदय में स्पंदित होती है और शक्ति जो है, शक्ति, आदिशक्ति जिसे कहियेगा, वो शिव स्वयं जो ईश्वर स्वरूप है, साक्षी स्वरूप है, और शक्ति जो कार्यान्वित होती है, कुण्डलिनी स्वरूप हमारी माँ है यहाँ त्रिकोणाकार स्थिती में बैठी है। इसका स्पंदन आदि हम आपको दिखा सकते हैं। वो यहाँ तो सब को कनव्हिन्स करते करते इतने साल बीत गये। मेरी तो समझ ही नहीं आता है कि इतनी बड़ी चीज़ के लिये इतने ज्यादा सब को लडाई, झगड़ा लेने की क्या जरूरत है। आखिर आप ही का कल्याण और मंगल ही तो हम चाह रहे हैं और जिनका हो गया है उनको तो ये बात मालूम है। किंतु इसके लिये लोगों को समझा समझा कर के आदमी पगला जाये। अगर मैं कल यहाँ एक हीरा रख दूेँ और आपसे कहूँ कि 'यहाँ एक हीरा रखा है। किसी को चाहें ले जाओ ।' कोई भी मुझ से झगड़ा नहीं करेगा , डिबेट नहीं करेगा , ऑग्ग्युमेंट नहीं करेगा । ले कर पहले हीरा दौड़ेगा। वो ये भी नहीं सोचेगा की ये खरा है या खोटा। हीरे जैसे हजारों हीरे जिस शक्ति के द्वारा बने हये हैं, उस शक्ति के बारे में इतना संसार में मुझे समझाना पड़ता है। कभी कभी मुझे ऐसा लगता है कि सारा जीवन ही ऐसा है। क्या ऐसे लोग होंगे ही नहीं संसार में जो इसको समझ सकें ? क्योंकि ये तो 'आ मास' देने की बात है मैं कर रही हूँ। बहुतों को देने की बात मैं कर रही हूँ। दो-चार लोगों को नहीं, अनेकों को होने की बात है और हो रही है। लेकिन जो होते भी हैं वो भी आधे- 10 नि 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-10.txt अधूरे। पूरी तरह से पाना नहीं चाहते हैं। इसी कारण मुझे, हालांकि नहीं कहना चाहिये, कि आपको ये खयाल है इतना नहीं आया, जितना मैं कर पा रही हूँ। हमारे बीच में बीचोबीच जो गैप है, बीचोबीच जो ..... है, ऐसी (अस्पष्ट) पहले आदिशक्ति की हुई, और उसी ..... में हम जानते हैं कि नाभि पे ही हमें माँ अपना दान देती है। अपना रक्त देती है माँ। इसी तरह से इस आदिशक्ति माँ ने ही अपना रक्त इसी आदि मानव कहना चाहिये, या आदि मानव की जो कल्पना है, उसकी नाभि पे ही पहले... जैसे कि कोई हम बड़ा भारी कारोबार तैय्यार कर लें। तो हम क्या सोचते हैं कि इसका एक चेअरमन बना दे। इसका एक वाइस चेअरमन बना दें। इसमें दो-चार हो जाये। इस तरह से हम अलग-अलग जगह लोग बनाते हैं। इसी तरह से आदिशक्ति ने भी मानव की रचना करने से पहले इस सब का विचार किया और पंचमहाभूत से तैय्यार की हुई पृथ्वी, जो हम आपको दिखा सकते हैं वही हम आपको दिखायेंगे, इस पंचमहाभूत से निर्माण की हुई शक्ति के लिये सब से पहले कोई न कोई पालनकर्ता चाहिये। उस पालन कर्ते का अधिष्ठान करना जरूरी है। पालन कर्ता पहले बनाने पर ही सृष्टि बनानी चाहिये। इसलिये यहाँ नाभि चक्र पर श्री विष्णु की रचना की। ये सत्य है, इसको मैं साइंटिफिकली प्रूव्ह कर सकती हूँ। मैं तो यहाँ हिन्दू धर्म की या किसी धर्म की विशेषता ले कर नहीं आयी हूँ। सभी धर्मों में अपनी विशेषता है। सिर्फ हमारे अन्दर वो जीवंतता नहीं है। श्रीविष्णु साक्षात् अपने नाभि पर बसते हैं क्योंकि जब हम कुण्डलिनी की जागृती लोगों को देते हैं और जब उनका नाभि चक्र गड़बड़ में रहता है, तब हम देखते है कि श्रीविष्णु का नाम लेने से नाभि चक्र जो है खुल जाता है। लेकिन नॉन रियलाइज्ड आदमी को नहीं लेना चाहिये। नॉन रियलाइज्ड आदमी उसी तरह का होता है, जैसे कि आपका कनेक्शन तो लगा नहीं और आप टेलिफोन घुमा रहे है। जो रियलाइज्ड आदमी किसी आदमी को जागृति देते वक्त ये देखें कि उसकी नाभि चक्र पे कुण्डलिनी उठ नहीं रही है, अपनी जगह पे श्रीविष्णु का नाम लें और श्रीविष्णु के नाम से कुण्डलिनी वहाँ पर उठ खडी होती है। श्रीविष्णु की स्थापना में, श्री लक्ष्मी जी में उनकी शक्ति है हम लोग जानते हैं। ये बहुत अच्छा है हिन्दुस्तान में है कि ये सब बातें बचपन से हम अपनी दादी अम्मा और नानी अम्मा से सुनते आये हैं। अब अगले जनम की तो मैं नहीं कह सकती की कि यहाँ लोगों का क्या होगा? लेकिन आज जो हाल है उसमें अभी ऐसे बहुत लोग हैं, जो श्रीविष्णु को तो जानते ही हैं। श्रीविष्णु एक सिम्बल के रूप में नहीं है। जिसे की हम सिम्बल समझते हैं। सिम्बल से कहीं अधिक है। जैसे कि साइकोलॉजी में, बड़े बड़े साइकोलॉजिस्ट ने कहा हुआ है, कि मनुष्य स्वप्न में ऐसे ऐसे सिम्बल्स या प्रतीक देखता है, जो युनिवर्सल है, जो सार्वजनिक है, सब जगह वही वही दिखायी देता है। जैसे अगर किसी आदमी की मृत्यु होने वाली हो और उसमें अगर कोई हथियार इस्तेमाल होने वाला हो, तो उसको एक विशेष तरह का तिकोन दिखायी देता है, चाहे वो चाइनीज हो, चाहे वो इंडियन हो, चाहे वो अमेरिकन हो, वो पढ़ा लिखा हो या नहीं। ऐसे हजारों उदाहरण उन्होंने दिये हैं, और उसका सोल्यूशन निकाला कि कोई न कोई ऐसी शक्ति हमारे अन्दर में है, जिसको कि वो कहते हैं अनकॉन्शस| युनिवर्सल अनकॉन्शस| ऐसी कोई न कोई शक्ति हमारे अन्दर बसी हुई है, जो इस तरह की सभी बाहर की ओर है। ये जो शक्ति है, ये जो शक्ति हमारे अन्दर इस तरह के प्रतीक रूप में है, वही शक्ति है हमारे 11 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-11.txt अन्दर के प्रति जब हम गहरे में उतरते हैं, जब आत्मा के प्रति गहरायी में बैठते हैं तब उन्हें हम लोग देखते हैं। श्रीविष्णु का स्थान हमारे नाभि चक्र पे है। और नाभि में श्रीविष्णु जिस सागर पे लहरा रहे हैं, वो प्रेम का सागर है। 12 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-12.txt ब्राह्मण नहीं। ऐसे ही तेहरान में हम गये थे तो वहाँ मुंडों और ये लोग और कहने लगे कि, 'ये काफ़िर है और इनको हम हर जगह ही बेकार नज़र आते हैं, सारे धर्म वालों को। इनकी बात पे मत जाओ। ये तो नमाज़ पढ़ा नहीं सकती। हमने कहा, 'नमाज़ ही पढ़ा रहे है समझ लीजिये ।' कहें कि, 'हम मुसलमान हैं। मैंने कहा, 'मुसलमान का मतलब समझाईये।' मुसलमान का मतलब है, जो फिर से पैदा हुये। 'आप हुये हैं?' कहने लगे, 'हाँ, हुये हैं।' मैंने कहा, 'तो हमारे सामने नमाज़ पढ़ो।' नमाज़ तो पढ़ा गया, लेकिन उनकी हालत ऐसे ऐसे होने लगी। मैंने कहा, 'यही आप मुसलमान हैं। मेरे सामने दो मिनट भी आप हाथ नहीं कर पाते। आपकी आँख भी बंद नहीं हो पाती। आप आँख बंद करते तो आपकी आँख भी लपक रही है। कहने लगे, 'आप तो जादू कर रहे हैं।' मैंने कहा, 'जादू कर रही हूँ, मंत्र कर रही हूँ। आपमें अगर मुसलमानियत है तो रोक लीजिये।' ऐसे ही धर्म के नाम पर ठेका मार कर नहीं बैठ सकते। उसकी अॅथॉरिटी किसी को नहीं है। जब तक धर्म को जाना नहीं तब तक किसी के झंडे लगाने से कोई नहीं। ये तो ऐसा ही हुआ कि हिन्दुस्तान में आ कर कोई झंडा मार दे, 'ये मेरा हो गया।' हिन्दुस्तानी की पहचान है ऐसे ही धार्मिक कार्य से है। एक बार एक अंग्रेज ने पूछा कि, 'हिन्दुस्तानी क्या पहचान है? हिन्दुस्तानी बड़े अपने को समझते हैं । हिन्दुस्तानी की क्या पहचान है?' मैंने कहा, 'बड़ी अच्छी ....है हिन्दुस्तानी पहचानना, एक अंग्रेज पहचाना तो बताती हूँ।' कहने लगे , 'क्या पहचान है?' मैंने कहा, 'एक हिन्दुस्तानी के गले में आप हार पहना दीजिये, वो एक मिनट में उतार देगा । लेकिन अंग्रेज को पहना दिया तो दिनभर वो पहन के घूमेगा, रात को आपने खाने पे बुलाया तो फिर पहन के आयेगा। ये हिन्दुस्तानी की पहचान है।' मैंने कहा। ऐसे ही धार्मिक आदमी की भी पहचान होती है। बाहर से एकाध आदमी आपको बुरा लगता हो लेकिन धार्मिक आदमी धर्म में खड़ा हुआ अन्दर होता है। बाहर नहीं होता। अन्दर से जो धार्मिक होता है वो दूसरी बात है। और बाहर से जो लंपट और झूठ बोलने वाला और ढोंगी और भोंदू आदमी , कभी भी धार्मिक नहीं होता। और इसी वजह से हमारा धर्म सारे संसार का धर्म .... गया। किसी को विश्वास ही नहीं रह गया कि हिन्दू धर्म में जिसको की आदि शंकराचार्य जैसे कितने महान संतों ने, इतना महान स्वरूप दिया था , जो कि स्वयं एक रियलाइज्ड था। उसको कहाँ ले जा के गिरा दिया हमने। कहाँ मोहम्मद साहब और कहाँ उनका धर्म। कहाँ ईसामसीह और कहाँ उनका धर्म। देखते नहीं बनता ये लोग कहाँ अँधे जैसे उल्टे ही चले जा रहे हैं । ये हमारी माँ कुण्डलिनी यहाँ बैठी हुई है और इसी में श्रीगणेश उनकी रक्षा कर रहे हैं। वहाँ बैठे ह्ये हैं। लेकिन वो बालक हैं। बालक बेचारे रक्षा कर रहे हैं। लेकिन आततायी जब उन पर आक्रमण करते हैं तो माँ अन्दर से फूँकार करती है और उसी तरह सारे ही कुण्डलिनी के दोष आते हैं। उसके बाद नाभि चक्र पे मैंने आपको बताया है, श्रीविष्णु की स्थापना है और स्वाधिष्ठान चक्र जो कि हमारे निर्मिती के लिये बनाया गया है। जैसे हमारे औरतों का जो यूट्स होता है, वो अेऑर्टिक प्लेक्सस से कंट्रोल होता है जिसे हम स्वाधिष्ठान चक्र केंद्र से ही स्थापित करते हैं । जो कुछ भी हम निर्मिती करते हैं वो सब स्वाधिष्ठान चक्र पे है। | जो कि यहाँ मैंने छः नंबर पे दिखाया है। जैसे कि कोई बड़ा भारी लेखक, या कोई बड़ा भारी संत, जो भी कुछ ओरिजिनल आदमी बनाता है, वो सरस्वती की आराधना कर के ही होता है। सरस्वती इसकी अधिष्ठात्री है। इसकी 13 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-13.txt अधिष्ठात्री देवी सरस्वती है। इसलिये हमेशा गणेश के बाद हम लोग सरस्वती की पूजा करते हैं। और इन सब पूजा में और सब चीज़ों में कितना अर्थ है वही मैं सिद्ध करने के लिये आयी हूँं। जिसको ये लोग आडंबर कहते हैं वो कितनी महान चीज़ है लेकिन उसके अन्दर का गहरा अर्थ, उसके अन्दर की गहनता जिन्होंने समझी नहीं, जो साइन्स के झंडे लगा कर घूम रहे हैं, उनको भी मैं दिखाना चाहती हूँ कि साइन्स में इसका क्या अर्थ है। बिल्कुल साइन्स भी वहीं से आया हुआ है। अगर सरस्वती जी ना हो तो आइनस्टीन को पता न चलता कि थिअरी ऑफ रिलेटिविटी क्या है? आइनस्टीन ने भी अपनी किताब की शुरूआत में ही कहा है कि, 'मैं तो परेशान हो गया काम करते करते, किताबें पढ़ते पढ़ते और उसके बाद मैं थक कर किसी उद्यान में बैठ कर के सोप बबल्स से खेल रहा था। साबून के बुलबुले से खेल रहा था। तो उसमें उन्होंने कहा हुआ है, 'व्हेन समटाइम वेअर अननोन द थिअरी ऑफ रिलेटिविटी डॉन अपॉन यू।' इशारा उसी तरफ है, कि सारी निर्मिती हमारे अन्दर ही तो हो रही है। जो कुछ बाहर है वो जाना होगा। उसके बाद कहा है मैंने आपको पाँचवा जो चक्र है, नाभि चक्र, उसमें श्रीविष्णु की स्थापना हुई। श्रीविष्णु की स्थापना है विष्णु पालन करते हैं। उनकी पत्नी... । जैसे सरस्वती भी बनायी हुई बड़े सोच के बनायी। इसमें सोच- विचार बड़ा गहरा है। जो द्रष्टा है उन्होंने नहीं बनाया है। परमात्मा ने उनको बनाया है। इसलिये उनका सोच-विचार बड़ा अच्छा है। आप उस सरस्वती जी की मूर्ति अपने सामने रखे। वो श्वेतवस्त्रा है। श्वेतवस्त्रा का मतलब ही ये है.....(अस्पष्ट)। जैसे बहुत से लोग मुझ से कहते हैं कि माँ, 'आप सफ़ेद क्यों पहनती है?' 'मैं ....हँ। वैसे मैं हमेशा तो पहनती नहीं हूँ।' लेकिन ध्यान के समय जरूर सफ़ेद पहनती हैँ क्योंकि मनुष्य का चित्त जो है वो मेरे रंगों में न उलझ जायें। इसलिये सरस्वती को श्वेत वस्त्रा बनाया हुआ है और उसके हाथ में जो वीणा दी हुई है, बड़ी जोरकस है। वीणा अपने यहाँ का एक आदि गीत यंत्र है, वाद्य यंत्र है और उसका अर्थ ये है कि, आदमी को संगीत उतना ही मालूम होना चाहिये जितना एक सरस्वती के दिवाने को मालूम है। आपने देखा होगा कि बहुत से पढ़े लिखे लोग इतने बेस्वाद होते हैं, पूजा पाठ में सरदर्द हो जाये। उनके अन्दर जरा भी स्वाद, निखार जरा भी नहीं। अब बात करने लग गये तो बोअर हो जाते है। एक मिल गये। उन्होंने तो सारा पांडित्य ही हम पे डाल दिया। ऐसे पढ़े लिखे लोगों से लोग भागते हैं। ऐसा आदमी कभी भी सरस्वती का पुजारी नहीं हो सकता। पढ़ा लिखा होना और सरस्वती का पुजारी होना बहुत ही महदंतर है। हर एक पढ़े लिखे आदमी में संगीत का और हर एक कला का ज्ञान होना जरूरी है। सिर्फ एक ही चीज़ का स्पेशलाइजेशन कर लेने से आप विद्वान नहीं हो सकते। आप सरस्वती के पूजारी है। जो आदमी एक चीज़ को जानता है उसको सब कुछ जानना जरूरी होता है। ये सरस्वती की पहचान है। अब जैसे मुझे एक चीज़ समझ नहीं आती, वो है इकोनोमिक ऑफ ह्यूमन लॉज, जो चीज़ मेरे समझ से परे है, शायद हो सकता है, कि ये सब कुछ बहुत आर्टिफिशिअल है। शायद इसी वजह से मैं नहीं समझ पायी। कला में मनुष्य को गति लेनी चाहिये, जब वो अपने स्वाधिष्ठान चक्र में पूरित होता है। उसके बाद नाभि चक्र पे श्री लक्ष्मी जी का स्थान है। श्री लक्ष्मी जी, का भी देखिये, बड़ा सुन्दर सा स्वरूप बना 14 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-14.txt है। उनके दो हाथ में कमल है। एक हाथ ऐसा है और एक हाथ ऐसा (अॅक्शन)। अभी जो वाइब्रेशन्स ले रहे हैं वो समझ सकते हैं, इसका अर्थ क्या है और दो हाथ में कमल होने का मतलब ऐसा है जो कि आदमी रहित होती है स्री और दो हाथ। एक सामान के लिये है, एक शोभा होने के लिये| कंजूष आदमी कभी भी रईस नहीं होता। जो कंजूष है, उसको रईस नहीं कहना चाहिये। वो कंजूष भी है और पैसे वाला भी है। जिसके घर में शोभा है, जो कला का पुजारी है, जो कला को बनाने वाला है वही रईस आदमी है। और कमल का जो कोझीनेस है, उसकी जो आरामदेयता है, जैसे कि कोई भी भँवरा आ जायें उसे अपने पास में बुला लेता है, ऐसा जो है वही आदमी कमलापती कहा जाये। लेकिन हमारे यहाँ तो हर एक आदमी सोचता है कि मैं लक्ष्मीपती हूँ। लक्ष्मी जी का पति होने के लिये विष्णु जैसा पालनकर्ता चाहिये, जो सारे संसार की ओर एक पिता की दृष्टि रखे और सारे संसार को अपना एक कुटुंब समझ के उसके लिये रोता है और ऐसे पैसे वाले तो बहत हैं, लेकिन अपने रिश्तेदारों को सम्भाल नहीं पाता। उनके सुख-दु:ख की जो चिंता नहीं कर सकते, वो लक्ष्मीपति कैसे? जो सारे ही संसार के सुख-दुःख को सम्भालने वाला है, वही लक्ष्मी का पुजारी है। इसी को हम इनलाइटेन्ड इंडस्ट्रियलिस्ट कहते हैं। ऐसे अपने देश में अगर हो जाये तो अपने प्रश्न ही छूट जाये । लक्ष्मी जी का एक हाथ ऐसा होना और एक हाथ ऐसा होना बड़ा अच्छा है। इस हाथ का अर्थ ऐसा होता है कि लक्ष्मीपति को दान जरूर करना चाहिये। दान अव्याहत करना है। अपने आप करना चाहिये। दान करने में भावना नहीं होनी चाहिये की हम दे रहे हैं। देना का कोई मतलब ही नहीं । बगैर दिये हमें वो चुभ रहा था इसलिये हम निकाल ही दिये। और ये हाथ ऐसा होने का मतलब है हमारा आश्रय है। हमारे आश्रित है में जब कोई आदमी दौड़ के आता है और कहता है, 'भाई मैं बहुत परेशान हूँ। किसी तरह से मेरी मदद करें।' पहले ही हमारे चार दरवाजे बंद हो जायेंगे | उसको भगाने के लिये पाँच आपके दरबान खड़े रहेंगे। ऐसे आदमी को मैं लक्ष्मीपति नहीं कहूँगी। लोग कहेंगे कि, 'आप देने लग जायेंगे तो इसका तो कोई अंत नहीं। मरने वालों का तो अंत नहीं।' ऐसी बात नहीं। आपके दरवाजे जो आये उसको मोड़ना गलत बात है। लेकिन आप शायद जानते नहीं हैं, कि थोड़ासा दिया हुआ कितना बड़ा हो जाता है। बहुत बड़ा हो जाता है। मैंने अपने छोटे से जीवन में, मेरे पति की कोई विशेष तनख्वाह नहीं है, मतलब ऐसे कोई बड़े रईस आदमी नहीं है, लेकिन मैंने देखा है, जहाँ भी कहीं मदद की, जहाँ थोड़ा कर भी दिया, वो हजार गुना मेरे पर बरसा है। मेरी फॅमिली पर बरसा है। मेरे लोगों पर बरसा है और दुनिया पर। अपना देना कभी भी व्यर्थ नहीं गया। एक उदाहरण के लिये बात बताऊँ। हम दिल्ली में रहते थे तब एक शरणार्थी आयी और मेरे पास आ कर कहने लगी कि, 'माँ, कल मुझे बच्चा होने वाला है, ये सब मुझे प्यारा लगा। हमारे पास कोई जगह नहीं। आप के पास इतना बड़ा घर है हमें जगह दे दीजिये।' मैंने कहा, 'हाँ, आ जाओ। रह जाओ ।' मेरे पति आये, घबरा गये। कहने लगे, 'तुम कितनी भोली हो। किसी को भी घर में रख दिया। कल अगर कोई आफ़त आ जायेगी। मैंने कहा, 'आ जाये तो आ जाये। अगर अपना बच्चा अपने घर में आ जाये तो आफ़त आ सकती है। इसमें कौन सी बात है। वो कहने लगे, 'तुम्हारी तो बात समझ में आती नहीं।' मैंने कहा, 'अच्छा, चलो भाई , बाहर का कमरा खाली पड़ा है, उसमें रख दिया। कौन सी आफ़त आ गयी।' उनका भी कहना व्यावहारिक है और हम अव्यावहारिक है। व्यवहार हमें ज्यादा मालूम है तो आप समझ लीजियेगा आगे। वो हमारे घर में रही। उसके साथ में एक मुसलमान और वो हिन्दू थी, उसकी पत्नी। और वो मुसलमान उनके मित्र थे तो उनको भी भगा लिया था अपने घर में रखा था । मैंने कहा, 'चलो, | 15 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-15.txt दोनों यही रहो।' फिर वहाँ पे दिल्ली में आ कर के और सब लोग आ गये और कहने लगे कि, 'इस घर में भी एक मुसलमान छिपा हुआ है। हमको मालूम है, नौकरों ने बताया है। तो उन्होंने आ कर मुझ से पूछा। मैंने कहा, आप विश्वास रखते हैं,' मेरा कुंकु देख के पहले घबरा गये, 'तो यहाँ पर कोई मुसलमान नहीं। आप चले जाईये|' वो चले गये। उसके बाद वो मुसलमान साहब, जो एक बहुत बड़े शायर है, आज हिन्दुस्तान के बहुत बड़े शायर है। वो मुझे बहुत मानते है। अपने काव्यों में भी उन्होंने वर्णन किया है। लेकिन वास्तविक मैं तो उनको नहीं जानती थी। इतना बड़ा शायर, उसको मैं अगर .... नहीं देती, तो आज वो खत्म, इतनी बड़ी कवितायें जो लिखी वो सब खत्म है। वो जो थी मेरे साथ वो आज हिन्दुस्तान की बहुत बड़ी सिनेमा अॅक्ट्रेस है। बहुत बड़ी। और उसको एक बार, मैं कभी उसको बाद में मिली नहीं। वो बार बार मुझे खोजती रही। मैं चली गयी इधर-उधर, जहाँ मेरे पति जाते रहे। उसके बाद मैं बम्बई आयीं, तो हमारे कुछ नवयुवकों ने सोचा कि एक सिनेमा बनायें । मुझ से कहने लगे कि 'देवीजी से कहिये कि इसमें अॅक्ट करें।' मैंने कहा, 'मैं उसे नहीं कहूँगी।' कहा, 'क्यों ?' मैंने कहा, 'उससे एक बंधन है। उसे छोड़ दे।' जिस दिन मुहूर्त हुआ, वो आयीं। मुझे देख कर वो रो पड़ी। कहने लगी, 'माँ, तुमने मुझे बताया क्यों नहीं कि ये तुम्हारा है!' मैंने कहा, 'इसलिये मैंने नहीं बताया कि मैं जानती थी, कि मेरा सोच कर तुम एक बार इस पे ठान पड़े। मैंने कहा तुम्हारा सोच-विचार है।' इस तरह से न जानें कितने ही बार, हजारों मैं आपको उदाहरण दे सकती हूँ, कि दिया हुआ कभी भी व्यर्थ नहीं जाता। रोका हुआ जरूर व्यर्थ हो जायेगा। कल अगर आपके यहाँ पर डिमॉनीटाइझेशन हो जाये तो गया। कल कुछ गड़बड़ हो गयी तो गया। दीजिये, दोनों हाथों से दीजिये। घबराईये नहीं । इस हाथ से आप दे रहे हैं और इस हाथ से आप के पास आता है। लक्ष्मी जी के अपने नाभि चक्र पर ....होने का यही कारण है, कि हम लोग जो कुछ भी खाते हैं, जो कुछ भी पाते हैं, पेट में हमारे जो भी अन्न जाता है, उसकी पचन क्रिया श्रीविष्णु जी के हवाले है । इसलिये जिन जिन को डाइबेटिस होता है, अधिकतर वो अगर दान करें तो ठीक हो जाये। आपको आश्चर्य होगा कि डाइबेटिस के लोगों को मैं हमेशा कहती हूँ, कि आप दान करें। दान, जो देते हैं वो मुड़ कर अपने पास हज़ार गुना आता है और मनुष्य के लिये बड़ा आशीर्वादित है। इसी तरह से पेट के जितने भी विकार हैं, जितने भी पेट के विकार है, सारे ही विकारों का इलाज श्रीविष्णु है। श्रीविष्णु का अवलंबन करने का मतलब ही है, कि हमारे अन्दर दानशूरता है। जो आदमी बड़ा हो जाता है, उसको पेट की शिकायत कम रहती है। ये कुछ है ऐसा। आपको दिखने में अजीब सा लगता है, पर ऐसी बात है। आप कर के देखियेगा। जिनको भी पेट की शिकायत हो आज जा कर कहीं, किसी को दान कर दें। किसी का पेट भर के आया आप देखियेगा आपका पेट हल्का हो जायेगा। ये शास्त्रोक्त बात है क्योंकि हमने इसको बहुत बार अजमाया है और लोगों ने भी आजमाया है कि इस से बड़ा फर्क पड़ता है। उसके बाद हृदय चक्र में मैंने आपसे पहले ही कहा था, कि शिवजी ईश्वर स्वरूप में है। शिवजी का हमारे अन्दर में होना आवश्यक ही है। क्योंकि वही साक्षी हैं । वही क्षेत्रज्ञ जिसे कहते हैं, वो हैं । वो सब को जानने वाले, वही साक्षी हैं। हमारे अन्दर कोई न कोई एक ऐसा बैठा हुआ आप सब को प्रतीत होता है, जो सब हमारा जानता है। हम अगर झूठ बोलते हैं तो, सच बोलते हैं तो, अच्छे बोलते हैं तो, दान देते हैं तो, बड़े होते हैं तो, छोटे होते हैं तो, सब को जानने 16 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-16.txt वाला हमारे हृदय में साक्षिस्वरूप जो बैठे हये हैं, वो परम ईश्वर, वही आत्मास्वरूप, हमारे हृदय में विराजमान हैं। लेकिन हृदय चक्र तक पहुँचने के लिये जो मैंने बीच की गॅप दिखायी है, यही सारा भवसागर है। इसके बीचोबीच श्रीविष्णु का स्थान और उसके ऊपर में ब्रह्मदेव बैठ कर के सारी सृष्टि की निर्मिती करते हैं। सारा भवसागर बनाया है। अब ये भवसागर बनाने के बाद प्रश्न ये हुआ कि को किस तरह से पार किया है। मनुष्य भी बन गया, अब मनुष्य इसको पार कैसे किया जाये? इस मनुष्य को पता कैसे हो ? इसमें ब्रह्मतत्त्व कैसे आयें? माने इसमें बैठे हये शिव और शक्ति का मिलन कैसे हो? योग कैसे बनें? इसके लिये एक विशेष तरह की व्यक्ति संसार में तैयार की। जो ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के तत्त्व को पकड़ के बनायी गयी, जिसे हम श्रीदत्तात्रेय जी के नाम से मानते हैं। श्रीदत्तात्रेय कोई नहीं हैं, लेकिन आदिगुरु हैं। मेरे भी गुरु हैं। अनेक जन्मों में उन्होंने मुझे सिखाया हैं। श्रीदत्तात्रेय जी के जन्म के बारे में सुन कर और उनके अनेक जन्मों के बारे में सुन कर आप लोग स्तंभित हो जायेंगे| कितनी बड़ी भारी बात हम लोग भूल में गये हैं। श्रीदत्तात्रेय जी के जन्म अनेक, पहले तो हम कह सकते हैं कि उनका जन्म राजा जनक के दशा हुआ। जब उनकी लड़की श्री सीताजी, स्वयं साक्षात् शक्तिस्वरूप है। उसके बाद उनका जन्म मछिंद्रनाथ, झोराष्ट्र और मोहम्मद साहब, जिनको की हम सोचते हैं, वो बिल्कुल दूसरे ही तरह के आदमी थे। वो हर तरह के प्रयत्न किया करते थे । पहले तो संसार में श्रीदत्त, आदि लोगों ने ये सिखलाया, कि इस तरह से अलग अलग हमारे अन्दर में प्रतीक स्वरूप इतनी चीज़ें हैं। वो कहते हैं, 'लोग इसी प्रतीक को पकड़ गये। मूर्तीपूजा में फँस गये।' उनका मतलब ये था कि इस मूर्ति से परे उस शक्ति को पहचानें। इसलिये पहले मूर्ति की बात की। जैसे कि फूल होता है। फूल में बैठे शहद के लिये फूल की बात पहले उन्होंने की थी। लेकिन लोग उसी फूल को चिपक गये। तो फिर ऐसे उन्होंने अवतार लिये, जिसमें उन्होंने शहद की बात की। उसमें उन्होंने पुनर्जन्म की बात जान बुझ कर नहीं की। क्योंकि पुनर्जन्म की बात अभी, सब लोग मुझे पूछते हैं कि, 'माताजी, हमारा पहला जनम बताईये।' जो गया जनम है उसको क्यों जानना चाहते हैं? आज का ही जनम ठीक है। इसी में पार हो जाईये। उसमें क्या विशेषता है? आप राजा थे या महाराजा थे या भिखारी थे, इससे क्या अन्तर होने वाला है। इसीलिये उन्होंने इस पर बात नहीं की। मोहम्मद साहब भी उसी दत्तात्रेय जी के अवतार है और उसी के अवतार राजा जनक थे। और उसी के अवतार नानक जी, जिनकी बहन नानकी जी थी, वो थी , वही आदिशक्ति थी। वही सीताजी। अब आपको और बताऊँ तो और आश्चर्य आयेगा, कि जो शिया पंथ शुरू हुआ था मोहम्मद साहब के बाद, उनकी जो लड़की फातिमा थी, वो भी थी आदिशक्ति और उनके जो दो बच्चे थे, हसन और हसेन, बाद में जब उन्होंने देखा कि संहार करने के बाद भी मनुष्य की समझ में नही आया, तो फिर वह बुद्ध और महावीर के नाम से पैदा हये और उन्होंने अहिंसा का धर्म संसार में ला कर के कोशिश की कि शायद अहिंसा को आने से ही ये लोग पार होंगे। लेकिन नहीं बना पाये। अब कहाँ किसी से आप लड़ रहे हैं, किस से आप झगड़ा कर रहे हैं। मैं तो हमेशा कहती हूँ, कि अगर एकाध मुसलमान अटक गया तो उसे कहती हूँ कि 'तू दत्तात्रेय का नाम ले।' और अगर कोई हिन्दू अटक जायें तो मैं कहती हूँ कि, 'मोहम्मद साहब का नाम ले।' आपको पता नहीं की जो आज बड़े भारी हिन्दू बने, पहले जनम में मुसलमान रहे। मैं जब ईराण में गयी तो वहाँ देखती हूैँ कि ध्यान में बैठे हये लोग घण्टा चला रहे हैं और तिलक ले रहे हैं और 17 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-17.txt आरती कर रहे हैं। क्योंकि जो एक अतिशयता पे रहता है, वो दूसरी अतिशयता पे जाता है, पेंड्यूलम की तरह। घण्टों बीचोबीच न ....न मुसलमान। सब तो हमारी पेट ही में घुसा हुआ है। आप देख रहे हैं कि आप जब मेरी ओर हाथ कर के ध्यान में, आज सबेरे लोगों ने ऐसा हाथ किया था और अभी भी आप लोग कर रहे हैं, फायदा रहेगा। ये बहुत नमाज का ....। लेकिन क्या मुसलमान जानते हैं कि ये क्या चीज़ है? या हिन्दू जानते हैं शायद? और सर पे हाथ रखने की चीज़ ख्रिश्चन्स में, आप जानते हैं कि बाप्टाइज जब करते हैं तब सर पे पानी डाल के, सहस्त्रार पे पानी डालते हैं। उसके बाद हमारे हृदय में बसे हये श्री शिवजी को, उनको जानना , बहुत कठिन बात है। वो अत्यंत भोले हैं, माने ये की वो सिर्फ देने वाले हैं। वो सिर्फ देखते रहते हैं, सुपरवाइजर है। वो शक्ति का सारा खेल देखते रहते हैं। लेकिन जब कुण्डलिनी उठ कर के हृदय चक्र के ऊपर चली जाती है, हृदय में है, हृदय चक्र में नहीं। मैंने सुना की कोई बड़े भारी लेखक हैं, उन्होंने कहा है कि हृदय यहाँ पे होता है। हृदय तो यहीं हैं, हृदय चक्र जो कि बीचोबीच है, वहाँ पे सिर्फ सुषुम्ना, उसका कार्य, वो शक्ति अलग ही रहती है, जब तक वो ऊपर की ये ब्रेन की ये जो प्लेट है, उसे मुर्धा कहते हैं वहाँ तक नहीं पहुँचती, तब तक शक्ति जो है, अकेली, वहाँ जा कर वो जब बरसने लगती है, दोनों साइड में, तब हृदय की साइड में उसका शीघ्र मिलन होता है। और जब नीचे की नाभि पर वो मिलते हैं तभी ब्रह्मतत्त्व तैय्यार हो कर के, ऊपर जाता है, और ऊपर का ये आज्ञा चक्र, जो कि जुड़ा हुआ है, वो खुल जाता है। शिवजी के पत्नी के बारे में जो कुछ भी कहा गया है, वो बिल्कुल सत्य है। देवी माहात्म्य आप पढ़े हैं। उसमें का एक भी अक्षर गलत नहीं। मार्कडेय स्वामी जी बहुत बड़े द्रष्टा थे। उनका एक भी अक्षर झूठ नहीं है। एक भी अक्षर बिगड़ा हुआ नहीं। मुझे तो कभी कभी आश्चर्य लगता है, कि मनुष्य में कहाँ तक और कैसे देखा इस बारीकी से। आप तो कहते हैं कि सब माया है और माया होते भी इतना माया को पहचाना। ये भी मनुष्य की कमाल है। लेकिन मार्कडेय सदी में श्री दर्गा जी का वर्णन किया है। वो बिल्कुल सही बात है। स्वामी का नाम भी किसने उन्होंने जो सुना। .. क्योंकि भवसागर से जब लोग पार करा रहे थे, तब उनको मदद करने के लिये उस शक्ति को अनेक रूप धारण करना पड़ा। और जब शक्ति आयीं, अपने आप इस संसार में उतरती हैं तो अकेले ही उतरती है। तब वो अनेक देवियों के रूपों में आ कर के उन्होंने सारे राक्षस जो कि भक्तों को सता रहे थे , उनको मारा, उनका संहार किया। लेकिन कोई फायदा नहीं। संहार किया तो फिर जिंदा हो गये, कलियुग में सारे फैल गये। वो फिर से आ गये हैं, लेकिन उस वक्त में, भक्त को सम्भालना ही था। उस वक्त में पार करने की बात कहाँ? वहाँ तो ऐसी हालत थी कि शरीर तक मनुष्य का, शरीर तक वहाँ कोई बात नहीं थी, कि वो शरीर ही बच जायेगा। इसलिये उनका संहार किया गया| वही जो देवी है, जिसको की हम आदिशक्ति के नाम, भगवती के नाम, से जानते हैं। उन्होंने ये शिवजी की पत्नी बन कर के, उस समय बहुत लोगों का संहार किया। उसके बाद आज्ञा चक्र, आज्ञा चक्र पे हम जब आते हैं, तो आपको आश्चर्य होगा कि बहत ही आधुनिक काल में आ गये। मोहम्मद साहब के पहले, थोड़े ही दिन पहले ही, ईसामसीह का जन्म हुआ। ईसामसीह साक्षात् राम स्वरूप है। साक्षात् गण है। आप सोचते हैं कि गणेशजी जो है वही ईसामसीह है। उनका जो क्रॉस, यहाँ पे मैंने क्रॉस 18 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-18.txt बताया है, वही वो क्रॉस है, जो कि श्री गणेश है, जिनका की आप ने देखा होगा कि स्वस्तिक बनाया गया। वही श्री गणेश के प्रणव स्वरूप है, वही प्रणव स्वरूप आदमी बन कर के संसार में आया, वही ईसामसीह है। ईसामसीह ने ही संसार में भूत निकाले । और किसी ने नहीं निकाले। उन्होंने तो मार ही डाले सबको । ये सभी कहते हैं उन्होंने ही मारे। ईसामसीह को मैं पहले इसलिये बता रही हूँ, कि विशुद्धि चक्र पे श्रीकृष्ण हैं। लेकिन ईसामसीह की जो माँ थी वो स्वयं राधा थी। इसलिये उसके स्वरूप में पहले उनको बता रही हूँ। ये आज्ञा चक्र पे जहाँ ... दिखाया गया वहाँ हैं। वहाँ श्रीकृष्ण जो थे, उनकी पत्नी राधा, रा माने चेतना, धा माने धारणा करने वाली, राधा, ये विशुद्धि चक्र पे कार्य करती है। अब यहाँ पर भी, अब डॉक्टरों से पूछे तो सोलह सब प्लेक्सेस हैं हमारे सव्ह्हायकल प्लेक्सेस में उनके भी सोलह कलायें हैं। वो संपूर्ण है। लेकिन संपूर्ण होने पर भी कार्य उतना पूरा इसलिये नहीं हो पाया, सारा जीवन ही दुष्टों से लड़ते लड़ते खत्म हो गया। इतने महा दुष्ट .....कि व्यर्थ हो गया उनका सारा। हालाकि सारा जो कुछ भी लीला का वर्णन है। ये सहज ही है। ये सहजयोग है। आपको आश्चर्य होगा, उनका मटकी का फोड़ना और पेट में सब लोगों को बंधवा लेना, राधाजी की मटकी फोड़ना सब में सहजयोग है। क्योंकि वो वाइब्रेटेड पानी जमना से ले जा रही थी। उनके पाँव | जमना जी में पड़े रहते थे। जमना जी का पानी वाइब्रेट होता था। उससे उठा के ले जाती थी। वो पानी गली में पड़ जाये, रास्ते में पड़ जाये, इसलिये मटकी वो फोड़ते थे। क्या राधाजी इस बात को जानती नहीं थी! पूरी तरह से जानती थी। लेकिन उस वक्त ऐसे हॉल होते और लोगों से बात की जाती कि, 'भाई तुम लोग ध्यान में जाओ।' लोग कहते कि, 'क्या पागल हो गये। हम तो घर-गृहस्थी के आदमी , हम कहाँ ध्यान में जायेंगे!' असल में सहजयोग घर-गृहस्थी के आदमिओं में ही हो सकता है। इन संन्यासिओं में अब नहीं हो सकता। इसलिये श्रीकृष्ण ने सहजयोग के प्रयोग के लिये साधारण गोप-गोपियाँ, साधारण तरह के रहने वाले, लोगों को ही चुना। आप नहीं जानते कि जो लोग सोचते हैं कि बड़े संन्यासी और तपस्वी, और फलाने, ढिकाने हो सकते हैं, हो जायें, उन से किसी का तारण नहीं हो सकता। किसी का साल्व्हेशन नहीं हो सकता। हाँ, ये जरूरी है कि एक बड़ा भारी योगी, एक बड़ा भारी तपस्वी हो गया, वो किसी को भस्म करना चाहे तो भस्म कर सकता है। किसी को आँख खोले तो भस्म हो गये। आपने भगीरथ प्रयत्नों को पढ़ा है, कि भगीरथ प्रयत्न में बताया गया है कि बेचारे उस भगीरथ के बाप-दादाओं को ही उसने भस्म किया । ये भी कोई बड़ी भारी चीज़ है, कि जिसको देखो आप भस्म कर रहे हैं। ऐसे ही पातिव्रत के आदमी जो सावित्री की शक्तियाँ हैं, जो सावित्री की बात करतें हैं, गायत्री की बात करते हैं, ध्यान रखें कि वो लोग अन्दर से कभी भी शांत, सुख और प्रेममय नहीं हो सकते। हाँ, वो तेजस्वी हो सकते हैं, प्रखर हो सकते हैं । क्योंकि चन्द्र नाड़ी जो यहाँ मैंने दिखाया है इस पर विजय है। उस तेजस्विता को पा कर करना भी क्या है? आज उसको भस्म किया, कल फिर वो अपने को भस्म करेंगे। कितने भी साधु, और बड़े बड़े अपने को समझते हैं कि हमने इस त्त्व को पा लिया, उस त्त्व को पा लिया, लेकिन वो ये नहीं जानते कि प्रेम तत्त्व को नहीं पाया बाकी सारे तत्त्वों को पा लिया। और ऐसी ही बड़ी बड़ी पतिव्रतायें, भगवान बचाये रखें उन लोगों से, जिन्होंने कि सावित्री की शक्ति को अपने अन्दर में समा लिया था, उन्होंने कौन सा बड़ा भारी तारण कार्य किया। मेरे कृष्ण को तक उन्होंने साग दे कर के खत्म किया। जिन्होंने उसको तक नहीं पहचाना ऐसी पतिव्रतायें किस काम की। बहुत ही सेल्फिश हैं। इसमें कोई ऐसी बात 19 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-19.txt नहीं, जो सारे समाज के लिये, सारे संसार के लिये करुणामय है। विचार करें आप! इसलिये जो जो लोग ईडा नाड़ी पर काम करते हैं। वो भी वहीं हैं और जो पिंगला नाड़ी, जो दुसरी नाड़ी बतायी गयी हैं, उस पर काम करते हैं वो भी वही हैं। माने जो बहुत करते हैं, माने संन्यास लोग, ये लोग, वो लोग, ये लोग भी वही हैं और जो लोग कहते हैं कि इधर वो भूत योनि लाते और इधर ये नहीं ये भी खाओ, वो भी खाओ, मद्य लो, खाओ, पिओ, वो भी वही हैं। तेजस्वी योनि लाते हैं। दोनों से देश का, आपके इस विश्व का कुछ भी संकट दूर नहीं हो सकता, न ही उसमें प्रेम स्थिती आ सकती है, न ही हमारे अन्दर तारण आ सकता है। तारण करने वाला जरूर था, इसलिये वहाँ पर .... स्थापना हुई और राधा जी तक, आपको आश्चर्य होगा मेरी स्वयं राधा है, वो भी तारण है, वो भी एक बड़ा भारी तारण है। सीताजी , जो कि राम की पत्नी थी। विवाहिता थी । उसके साथ समाज ने जो अन्याय किया। उसको घर से निकाल कर के, उसको दोषी कर के, कलंकित जो किया तब ये बड़े बड़े तेजस्वी लोग क्यों आँख बंद कर के बैठे थे? उन लोगों ने तब क्यों नहीं कहा, कि हमारी ये माँ हैं? इनको तुम घर से निकाल रहे हो । इन्होंने अग्निपरीक्षा दी है। तब इनके मुँह क्यों बंद हो गये थे? इनकी तेजस्विता कहाँ गयी थी ? इनकी अकल कहाँ मारी गयी थी? उस वक्त में बड़े एक से एक लोग थे। किसी ने कोई बात तक नहीं की। उनको ही अकल देने के लिये राधा जी ने कृष्ण से लौकिक विवाह नहीं किया। फिर भी सारा संसार कृष्ण का नाम राधा-कृष्ण से जानता है। लेकिन उसे विवाह का बंधन, लौकिक विवाह का बंधन भी बहुत मान्य है और इसी कारण कोई बच्चा नहीं है। किंतु उसके अगले जन्म में जब वो मेरी बन कर आयीं तब उस के लड़के ने चार चाँद लगाये थे, जो कि कुमारी दशा में, कोई कठिन काम नहीं है कुमारी दशा में बच्चा पैदा करना। अगर आप रियलाइज्ड सोल है और आप उस दशा में हैं, जैसे आज में सहस्रार से हजारों बच्चे पैदा कर रही हूँ। क्या मुश्किल हैं, अगर कोई चाहे तो अपने भूल से भी ऐसा बच्चा पैदा करे। अपने गर्भ से भी ऐसा बच्चा पैदा करे। कोई ऐसी कठिन बात नहीं है। लेकिन उन्होंने ये कर के दिखाया। और आज हालांकि उसका वो लौकिक दृष्टि से .... लेकिन आज दनिया के आगे मेरी एक बड़ी भारी महासती मानी गयी। उसको लोग डिवाइन मदर कहते हैं। ये उसके बच्चे का काम है। ऐसा बच्चा परमात्मा स्वरूप, लेकिन उसको भी किसी ने नहीं छोड़ा। उसकी जान खा ली। ३४ साल की उम्र में सब ने उसे मार डाला। इसी समाज ने जो बड़े अपने को हिन्दू, मुसलमान और फलाने, कहते हैं, उस वक्त में वो किस रूप में आ गये । ये जो समाज के बड़े ठेकेदार हैं इन्हीं लोगों ने उनको मारा। किसी को ये नहीं लगा कि इतना बड़ा महान आत्मा इस संसार से बिदा ले रहा है। इतनी छोटी सी उमर में असहाय, इस संसार से उन्हें जाना पड़ा। आज हजारों उनके नाम पर इन लोगों ने धर्म बनायें। इसका क्या अर्थ है? धर्म तो कुछ बन ही नहीं पाया। कहाँ वो और कहाँ उनके बनाये हुये धर्म। उन्होंने एक ही चीज़ पर बहुत जोर दिया था, कि हमारे अन्दर जो विनाशी शक्तियाँ हैं, जो निगेटिव फोर्सेस हैं, जिसको की वो शैतान कहते थे , जिसको की वो भूत कहते थे, स्पिरीट कहते थे, उनको निकाल देना। और आज सारा ख़रिश्चनिझम जो है वो सिर्फ स्पिरीट पे ही काम करता है। शर्म की बात हैं कि जिस चीज़ को उन्होंने हमेशा ही मना किया वही चीज़ हम बार-बार कर रहे है। जैसे मोहम्मद साहब ने बार बार यही कहा कि 'कम से कम शराब मत पियो। तो मुसलमान जितना शराब पीते हैं उस पर 20 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-20.txt कविता लिखी है और संसार में कहीं आपको नहीं मिलेगा। मतलब मैं कहती थी कि मोहम्मद साहब की तरफ से, मैं पूछती हूँ कि क्या यही मुसलमान धर्म है? ईसामसीह की तरफ से मैं पूछती हूँ कि क्या यही ईसाई धर्म है ? और आदि शंकराचार्य की तरफ से आप सब से पूछती हूँ कि क्या हिन्दू धर्म यही है? कि जो मिथ्या पर ही बैठे हैं और सारे जग को मिथ्या बताने वाले आदि शंकराचार्य को ठिकाने लगा रहे हैं। इस आज्ञा चक्र पे उनका वास है। हमारे यहाँ जो लोग आज्ञा चक्र तोड़ते हैं और आज्ञा चक्र पर जो आदमी पागल होता है, जिनको साइकोसोमॅटिक ट्रबल्स होते हैं, उनको कि लोग कहते हैं कि इनको साइकोलोजिकल ट्रबल है। हमारे साइकोलोजिस्ट भी हैं, वो भी बहुत बड़े आदमी हैं। वो भी इस पर काम कर रहे हैं। वो भी ईसामसीह का नाम लेने से ही भूत भागते हैं। फट् से भूत भागते हैं। एक उनका नाम काफ़ी है। लेकिन हम लोग किसी का भी नाम कहीं भी रटते रहते हैं। उसकी जगह तो जाननी चाहिये। इसकी वजह तो जाननी चाहिये। उसका अॅप्लीकेशन तो मालूम हो। ये सभी कुछ मैं बताना चाहती हूँ। लेकिन आपके समझने पर भी , आपके पाने पर भी बहुत कुछ निर्भर है। आज्ञा चक्र के बाद सहस्रार में एक हज़ार हमारे अन्दर, नौ सौ तरह की नाड़ियाँ हैं, ऐसे डॉक्टर्स कहते हैं। एक हजार नहीं कहते, मैंने इसे देखा है। कैसे दिखायी देता है? कोई समझ लें। बड़ा सा कमल हो । जैसे कि बाइबल में उसे कहा है टंग्ज ऑफ फ्लेम माने की किसी लपटों की कोई ऐसी जीभें लगी हुई हैं। जैसे कोई आग की लपट हो, उसी की जीर्भे, इस तरह से इतना बड़ा ऐसा, इस से थोड़ा बड़ा ऐसा कमल है। बहुत सारी लपटें सर में ऐसे ऐसे दिखायी देती है। और उसके बराबर बीचोबीच अपने वो ब्रह्मरंध्र है, जो सहस्रार में जिसको छेड़ने के बाद । जब रियलाइझेशन होता है तब मनुष्य इसी को छेड़ता है। पा लेता है। बहुत समय भी हो गया और आज का विषय भी कुछ विचित्र सा था। नया सा था। आज और कल में मैं इसको बताऊंगी कि सहजयोग से कैसे छेदा जाता है। कल मेडिटेशन में आयें। जो कुछ भी मैंने कहा है वो सब बेकार है, सब व्यर्थ है जब तक आपको ये अनुभव नहीं होगा, तब तक ये सभी व्यर्थ हैं। अनुभव के बाद ही आपको ये बाद समझेगी। लेकिन बगैर बताये हये कोई प्रत्यंतर भी नहीं आता । इसलिये मैंने इसे बताया है और आप लोग भी ऐसा ही समझें की बताया हुआ सब खत्म हो गया। कल मेडिटेशन का समय है। उस वक्त आप आईयेगा। आज मेडिटेशन नहीं हो पायेगा शाम के वक्त में। कल सबेरे काफ़ी देर तक मेहनत करेंगे। जिससे आप लोग पार हो जायें । और लेक्चर भी होगा और मेडिटेशन भी होगा। परमात्मा के लिये थोड़ा सा समय हम को देना है। थोड़ा सा समय दे दीजिये। ज्यादा मुझे नहीं चाहिये। आप ही का अपने से परिचय कराने के लिये, बिल्कुल थोड़ा समय अगर आप दे दें तो काम बन जायेगा। इतने लोग पार हो गये हैं कि मैं बहुत खुश हूँ। और आशा है कि कल आप लोग बहुत से पार हो जायेंगे | जिसको आप जान लें। जिस चीज़ की हम बात कर रहे हैं और जिसके कारण इस सारी सृष्टि की रचना हो गयी, सारी सृष्टि अंत पे आ के खड़ी हो गयी है। सारे सृष्टि की दारोमदार आप पे है। इसमें कुछ नहीं करना होगा। न कुछ लाना होगा, न ही कुछ देना होगा। अगर कुछ मुझ से ले सके तो मैं बड़ा आपका धन्यवाद समझती हूँ। 21 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-21.txt 22 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-22.txt भ ८ िम आधी कळस मग पाया मतलब पहले आपकी आत्मा को बाँधनी शुर होती है और इस बाँधने की वजह से आप स्वयं ही उ२स प्रकाश में देखकते हैंकि आपकी क्या गलती हुई है? आपकहाँ गलत हुये? औ२ उस प्रकाश में आप जान जीते हैं, कि आपको क्या ठीक करनी है? आपकी गलतियों को कैसे ठीक करनी है? मैं आप लौगों को कुछ नहीं कहती हूँ। प.पू.श्रीमातीजी, औरंगाबाढ, ८/१२/१९८८ प्रकाशक । निर्मल ट्रैन्सफोर्मेशन प्रा. लि. प्लॉट नं.१०, भाग्यचिंतामणी हाऊसिंग सोसाइटी, पौड रोड, कोथरुड, पुणे - ४११ ०३८. फोन : ०२०-६५२२६०३१, ६५२२६०३२, e-mail : sale@nitl.co.in, website : www.nitl.co.in 2016_Chaitanya_Lehari_H_V.pdf-page-23.txt घ२ ये मंदि२ जैसा है जहाँ आपको २भी पवित्र चीज़ें बच्चों को देनी है, जैसे की पवित्रती, अबोधिता जिनकी उनको आगे भी आवश्यकती है। प.पू.श्रीमाताजी, लंडन, ११.६.१९७९ ुर +4 क